खांस-खांसकर बुरा हाल है तो इसे हल्के में न लें, हो सकते हैं कैंसर के संकेत

शिवानी हर समय गले में दर्द और खांसी रहने की समस्या से परेशान रहती थी. उसने पहले घरेलू नुस्खे अपनाये. फिर आराम न मिलने पर डाक्टर से मिली और बोला,” डॉक्टर साब इतनी दवाइयां कर लीं पर आराम नहीं.”

इस पर डॉक्टर ने कहा,”थ्रोट कैंसर यानी गले के कैंसर में कई तरह के कैंसर शामिल होते हैं जिसमें लैरिनिक्स, फैरिनिक्स और टॉन्सिल्स के कैंसर होते हैं. इनके अलग-अलग लक्षण होते हैं जिनसे कैंसर का पता चलता है. इन लक्षणों पर ध्यान देकर तुरंत इलाज की जरूरत होती है. मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत , हेड व नेक कैंसर के सर्जन डॉक्टर अक्षत मलिक का मानना है कि इन लक्षणों को पहचानकर इसका इलाज कराना बेहद महत्वपूर्ण है.

गले के कैंसर के जो लक्षण होते हैं हालांकि दूसरी अन्य बीमारियों के कारण भी सामने आते हैं, लेकिन अगर ये लक्षण लगातार 2-3 हफ्तों तक दिखाई दे और वक्त के साथ-साथ हालात बिगड़ते जाएं तो इन्हें दरकिनार नहीं करना चाहिए.

लक्षण

लगातार आवाज बैठना या आवाज में बदलाव: अगर किसी का गला लगातार बैठा रहता है या आवाज दबी रहती है तो इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

गला सूखा: अगर गला सूखा रहने की परेशानी पुरानी है या फिर लगातार ऐसा रहता है और सामान्य इलाज से भी ठीक नहीं होता तो इसे इग्नोर न करें.

निगलने में समस्या: अगर खाना निगलने में दिक्कत हो रही है तो ये ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं.

लगातार खांसी: आमतौर पर लोग खांसी बहुत हल्के में लेते हैं लेकिन अगर सांस की दिक्कत आदि न हो और फिर भी लगातार खांसी रहती है तो दिखाने की जरूरत है.

एस्पिरेशन: कुछ निगलने पर खांसी आती है तो समस्या है. ऐसा हवा के पाइप में खाना जाने के कारण भी हो सकता है.

कान में दर्द: एक या दोनों कानों में बिना किसी खास वजह के दर्द होना भी गले में समस्या के कारण हो सकता है.

वजन कम होना: अचानक यूं ही वजन कम हो जाना, खाना निगलने में परेशानी और खाने की आदतों में बदलाव भी कैंसर के लक्षण हो सकते हैं.

गर्दन में गांठ: अगर गर्दन में गांठ हो या सूजन हो तो ये बढ़े हुए लिम्फ नोड्स के कारण हो सकता है और इससे कैंसर फैलने के संकेत मिलते हैं.

सांस लेने में कठिनाई: अगर गले का कैंसर एडवांस स्टेज में हो तो इससे सांस की समस्या भी हो सकती है.

लगातार सांस में बदबू: अगर आप टूथब्रश करते हैं और मुंह साफ करने के अन्य तरीके भी अपनाते हैं और फिर सांसों में बदबू रहती है तो ये चिंता का कारण हो सकता है.

डॉक्टर के मुताबिक ये सभी लक्षण किसी कम गंभीर बीमारी के कारण भी हो सकते हैं. लेकिन अगर ऐसा होता है तो डॉक्टर को जरूर दिखाएं. ऐसा करने से ट्यूमर होने की स्थिति में जल्दी डायग्नोज हो जाएगा और इलाज से इसे ठीक करना संभव रहेगा. वहीं, जो लोग स्मोकिंग करते हैं, तंबाकू का सेवन करते हैं, शराब पीते हैं वैसे लोग रेगुलर चेकअप कराएं और अपनी सेहत की मॉनिटरिंग रखें.

अपनी सेहत को सबसे ऊपर रखें, अवेयरनेस बढ़ाएं, समय पर डॉक्टर से सलाह लें और बेहतर इलाज लें ताकि गले के कैंसर के खिलाफ लड़ाई को जीता जा सके.

पोषक तत्वों का खजाना है मिलेट्स, जाने इसे कैसे करें खाने में शामिल

अच्छी सेहत के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होता है कि आप क्या खा रहे हैं. यदि आप भी खाने में किसी हैल्दी औप्शन की तलाश कर रहे हैं तो nएक खाद्य अनाज जिसे आप को अपने आहार में शामिल करने की आवश्यकता है तो वह है मिलेट्स. मिलेट्स एक प्रकार का मोटा अनाज होता है जोकि गेहूं, चावल के समान होता है लेकिन उस में दूसरे अनाजों के मुकाबले अधिक पोषण और स्वास्थ्य लाभ होते हैं. मिलेट्स के कई प्रकार होते हैं जैसेकि ज्वार, बाजरा, रागी और प्रोसो मिलेट्स आदि.

मिलेट्स के बारे में सब से अच्छी बात यह है कि आप इसे खाने से कभी बोर नहीं हो सकते क्योंकि यह कई रूपों में उपलब्ध है और आसानी से पकाया जा सकता है. सभी तरह के मिलेट्स अलगअलग गुणों से भरपूर होते हैं. ये सब स्वास्थ्य के लिए समान रूप से अच्छे हैं और बेहद पौष्टिक हैं. तभी तो इसे ‘सुपर ग्रेन्स’ के रूप में जाना जाता है. अपने आहार में मिलेट्स का उपयोग कर के आप अपने स्वास्थ्य को बेहतर
बना सकते हैं.

मिलेट्स के प्रकार

ज्वार: ज्वार भारत में एक पौपुलर मिलेट्स है और इसे अकसर रोटी, डोसा और चावल के रूप में खाया जाता है. यह फाइबर और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होता है और यह ग्लूटेन फ्री होता है जिस से ग्लूटेन ऐलर्जी वाले लोग भी इस का सेवन कर सकते हैं.

बाजरा: बाजरा विटामिन बी, फौलेट और ऐंटीऔक्सीडैंट्स का अच्छा स्रोत होता है. बाजरे को रोटी और खिचड़ी के रूप में खाया जाता है.

रागी: रागी उच्च प्रोटीन और कैल्सियम का स्रोत होता है. यह खासतौर पर साउथ इंडिया में पसंद किया जाता है और डोसा, इडली और रोटी के रूप में बना कर खाया जाता है.

कोरा: यह फाइबर और विटामिन का अच्छा स्रोत होता है. यह स्वादिष्ठ पुलाव और उपमा के रूप में खाया जा सकता है.

प्रोसो: यह विटामिंस, मिनरल्स और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होता है.

मिलेट्स के हैल्थ बैनिफिट्स: मिलेट्स कई तरह से हमारी हैल्थ के लिए फायदेमंद है:

पौष्टिकता: मिलेट्स विटामिन ए, विटामिन बी, मिनरल्स, फास्फोरस, पोटैशियम, ऐंटीऔक्सीडैंट, नियासिन, कैल्सियम और आयरन, प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्रोत होता है. यह हमारे शरीर को सभी महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व देता है और स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद करता है. बाजरा में कई पोषक तत्त्वों का भंडार होता है.

वजन नियंत्रण: मिलेट्स का सेवन करने से वजन को नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि इस में फाइबर होता है जो भूख को कम करता है.

दिल का स्वास्थ्य: मिलेट्स खराब कोलैस्ट्रौल को कम करने में भी मदद करता है जो हृदयरोग के लिए एक जोखिम कारक है. इस में ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं जो दिल के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं. इसे खाने से दिल की बीमारियों का रिस्क कम होता है.

मधुमेह में फायदेमंद: मिलेट्स में ग्लाइसेमिक इंडैक्स कम होता है जिस का अर्थ है कि उस का रक्त शर्करा के स्तर पर कम प्रभाव पड़ता है. यह मधुमेह वाले व्यक्तियों के लिए फायदेमंद हो सकता है.
कैंसर प्रतिरोधक: मिलेट्स में पाए जाने वाले ऐंटीऔक्सीडैंट्स कैंसर के खिलाफ लड़ाई में मदद कर सकते हैं.

पेट के लिए अच्छा: मिलेट्स में मौजूद अघुलनशील फाइबर प्रीबायोटिक के रूप में कार्य करता है जो आंत में अच्छे बैक्टीरिया का प्रवेश कराता है. मिलेट्स में फाइबर की प्रचुर मात्रा पाई जाती है. साबूत अनाज के रूप में सेवन करने पर फाइबर की मात्रा अधिक होती है और इस प्रकार यह पुरानी कब्ज के रोगियों के लिए फायदेमंद हो सकता है.

ग्लूटेन मुक्त विकल्प: यदि आप को सीलिएक रोग या ग्लूटेन संवेदनशीलता है तो बाजरा गेहूं और जौ जैसे ग्लूटेन युक्त अनाज का एक उत्कृष्ट विकल्प हो सकता है.

ऐंटीऔक्सीडैंट: मिलेट्स ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर होता है जिस से इसे खाने से संभावित रूप से पुरानी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है.

हड्डियों का स्वास्थ्य: मिलेट्स कैल्सियम और फास्फोरस जैसे आवश्यक खनिजों का एक स्रोत है जो स्वस्थ हड्डियों को बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण है.

कैसे खाएं मिलेट्स

मिलेट्स से तैयार किए जाने वाले विभिन्न पदार्थ खाने में स्वादिष्ठ होते हैं और स्वास्थ्यपूर्ण भी होते हैं. ये अपेक्षाकृत जल्दी पक जाते हैं और बिना किसी परेशानी के आप के दैनिक भोजन का हिस्सा बन सकते
हैं. आप इसे कई तरह से अपने आहार में शामिल कर सकते हैं.

मिलेट्स की रोटी, मिलेट्स की खिचड़ी, पुलाव, मिलेट्स की इडली, डोसा, उपमा और पोहे, मिलेट्स की ब्रैड, डैजर्ट्स, मिलेट्स का सूप आदि. सभी प्रकार के मिलेट्स को आप उपलब्धता के आधार पर अपने आहार में शामिल कर सकते हैं. यह पूरे साल बाजार में उपलब्ध रहता है. वैसे कुछ खास मिलेट्स खास मौसम में ज्यादा उपयोगी होता है मसलन:

सर्दी: सर्दी के लिए सब से अच्छा मक्का है. यह विशेष रूप से इसी समय उगाया जाता है. यह तासीर में भी गरम होता है.

गर्मी: पूरी गरमी में ज्वार और रागी का उपयोग करें. चिलचिलाती गरमी के दिनों में ये आप को हाइड्रेटेड रहने और आप के शरीर के तापमान को कम करने में मदद कर सकते हैं.

मिलेट्स खाने में कुछ सावधानियां भी जरूर रखें:

मिलेट्स अपने कई फायदों के कारण भोजन के लिए हैल्दी औप्शन है. लेकिन इसे खाने में कुछ सावधानियां रखनी भी जरूरी हैं तभी आप को इस का पूरा लाभ मिलेगा.

इस में मौजूद फाइटिक ऐसिड अन्य पोषक तत्त्वों के अवशोषण को कम कर सकता है. साथ ही यह कुछ लोगों के पेट के स्वास्थ्य के लिए भी परेशानी भरा हो सकता है. इसलिए इस को अपने आहार में शामिल करने से पहले उसे भिगोना चाहिए. भिगोने से उस में मौजूद फाइटिक ऐसिड की कमी होती है. मिलेट्स को भिगो कर, अंकुरित कर के खाने से इस के हानिकारक प्रभाव कम हो जाते हैं.

ज्वार और बाजरा वाले मिश्रण पर स्विच करने से पहले हलके अनाज जैसे रागी और फौक्सटेल बाजरा से शुरुआत करना बेहतर है. मिलेट्स में गोइट्रोजन भी होते हैं जो आयोडीन के अवशोषण में हस्तक्षेप कर सकते हैं जिसे खाना पकाने की प्रक्रिया में कम किया जा सकता है. इसलिए हाइपोथायरायडिज्म वाले लोगों को मिलेट्स से दूर रहना चाहिए.

मिलेट्स का सेवन करते समय भरपूर मात्रा में पानी पीना सुनिश्चित करें क्योंकि इस में फाइबर की मात्रा अधिक होती है. अगर आप मिलेट्स खाने के साथसाथ पानी नहीं पीते हैं तो इस से आप को पाचन संबंधी समस्या हो सकती है और निर्जलीकरण भी हो सकता है.

इम्यूनिटी बूस्ट करें

हमेशा फ्रैश मिलेट्स खाएं. कुछ लोगों की आदत होती है कि कई दिन पुराना मिलेट्स भी खा लेते हैं. ऐसा करना बिलकुल सही नहीं है. हमेशा ताजा मिलेट्स का सेवन करें. बिलकुल उसी तरह जैसे आप ताजा फल या सब्जियों का सेवन करते हैं.

मात्रा संतुलित रखें. मिलेट्स भले ही कई पोषक तत्त्वों का अच्छा स्रोत है, इस की मदद से इम्यूनिटी को बूस्ट किया जा सकता है, इस के बावजूद आप को यह सलाह दी जाती है कि अपनी डाइट में दूसरी तरहतरह की चीजों को भी शामिल करें जैसे दलिया, सलाद, फल आदि. इस से शरीर में पोषक तत्त्वों का बैलेंस बना रहेगा. डाइट में मिलेट्स के साथसाथ प्रोटीन, फैट और बैलेंस्ड डाइट का भी संतुलन बनाए रखें.
अधिक मात्रा में सेवन न करें जैसाकि किसी भी चीज की अति सही नहीं होती है. इसी तरह मिलेट्स का भी ज्यादा मात्रा में सेवन करना सही नहीं है.

स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि आप ज्यादा मात्रा में रिफाइंड मिलेट्स का सेवन न करें. इस से स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है. ज्यादा मसाले से न पकाएं. अकसर लोग मोटा अनाज को काफी मसालों के साथ पकाते हैं. ऐसा करना सही नहीं है. मसालों की वजह से भले यह खाने में स्वादिष्ठ हो जाए लेकिन पोषक तत्त्वों में कमी होने लगती है. इसे हलकेफुलके मसालों के साथ पकाया जा
सकता है.

मैंस्ट्रुअल कप्स उन दिनों की चिंता से आजादी

मैंस्ट्रुअल कप्स का प्रचलन यों तो भारत में आम नहीं हुआ है, मगर महिलाओं के लिए यह कितना उपयोगी है, जरूर जानिए… समाचारपत्रों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 75% सैनिटरी पैड्स तयशुदा मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं और इन से मूत्र संक्रमण एवं गर्भाशय संक्रमण से ले कर गर्भाशय कैंसर तक का खतरा है. जो सुरक्षित हैं, वे बहुत महंगे हैं और कोई फुल डे तो कोई फुल नाइट प्रोटैक्शन की बात करता है इसलिए भी 5-6 घंटे में बदले नहीं जाते.

अभी केवल 12% भारतीय महिलाएं इस विकल्प को वहन कर सकती हैं फिर भी औसतन किसी महिला के अपने जीवनकाल में 125-150 किलोग्राम टैंपन, पैड और ऐप्लिकेटर प्रयुक्त करने का अनुमान है. प्रतिमाह भारत में 43.3 करोड़ ऐसे पदार्थ कूड़े में जाते हैं, जिन में से अधिकांश रिवर बैड, लैंडफिल या सीवेज सिस्टम में भरे मिलते हैं क्योंकि एक तो ठीक से डिस्पोज करने की व्यवस्था नहीं होती और दूसरा अपशिष्ट बीनने वाले सफाईकर्मी हाथों से सैनिटरी पैड्स और डायपर्स को अलग करने के प्रति अनिच्छुक होते हैं, जबकि उन को अलग कर के उन्हें जलाने के लिए तैयार करना भारत सरकार की नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और हैंडलिंग नियमों के तहत आवश्यक है.

मैंस्ट्रुअल कप्स का प्रचलन भारत में अभी आम नहीं हुआ है. छोटे ही नहीं, बड़े शहरों में भी बहुत कम महिलाएं इन का उपयोग करती हैं.

मैंस्ट्रुअल कप्स के कम प्रचलन के कारण

सब से पहला और सब से बड़ा तो यही कि अभी तक कई लोगों ने इस के बारे में सुना भी नहीं है.
हमारे शरीर की रचना के प्रति ही इतनी अनभिज्ञता है कि इसके सही प्रयोग का तरीका नहीं पता होता.
द्य आज भी समाज में दाग लगने का हौआ इतना है कि मासिकस्राव शुरू होने से पहले ही इस का ट्रायल करने के बारे में सोचा जाता है जबकि सर्विक्स माहवारी के दौरान ही इतना नर्म और लचीला होता है कि इसे आसानी से लगाया जा सके. बाकी दिनों में बहुत मुश्किल और कष्टप्रद होता है.

सही आकार का चुनाव भी समस्या है. यह उम्र और प्रसव के प्रकार पर निर्भर है.
शुरुआती 1-2 या 3 साइकिल तक जब तक ठीक से अनुभव न हो, इस का प्रयोग मुश्किल लगता है और अधिकांश महिलाएं इसी दौरान इस के प्रयोग का विचार त्याग देती हैं, जबकि ठीक से इस्तेमाल करने पर जरूरी नहीं कि दिक्कत हो ही.

गलत तरीके, हाइजीन का खयाल न रखने, बड़े नाखून, बलपूर्वक लगाने की कोशिश या
फिर अनुपयुक्त साइज के कप के चलते कभीकभी योनि में जलन, खुजली, सूजन या लगाने के बाद पैल्विक पार्ट में दर्द हो सकता है. इस वजह से भी कई लड़कियां इसे छोड़ देती हैं.

मैंस्ट्रुअल कप्स के फायदे

सब से पहला फायदा बचत तो है ही, साथ ही यह विभिन्न प्रकार के संक्रमणों से भी बचाव करता है. सैनिटरी पैड्स या टैंपोन की तरह हाई अब्जार्बेंट मैटीरियल न होने से यह योनि के स्वाभाविक पीएच से कोई छेड़छाड़ नहीं करता, न ही टौक्सिक शौक सिंड्रोम का खतरा होता है, न ही आसपास की त्वचा में रैशेज कटनेछिलने और इन्फैक्शन का डर.

ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी 89% आबादी के लिए मैंस्ट्रुअल हाइजीन एक चुनौती है. गांवों में ही नहीं शहरों में भी निम्नवर्ग की महिलाएं, मजदूरिनें, भिखारिनें आदि राख, मिट्टी और प्लास्टिक की पन्नियों का इस्तेमाल करती हैं. साफ सूखे सूती कपड़े भी मिलना मुश्किल है. उन के लिए मैंस्ट्रुअल कप बहुत बड़ी राहत है.
इस के अलावा जिन का फ्लो बहुत ज्यादा होता है या जो महंगे सैनिटरी पैड्स और टैंपोन पर खर्च नहीं कर सकतीं उन के लिए भी यह बहुत काम का है.

खर्च बचाने के अलावा भी यह बहुत सुविधाजनक है. एक बार लगाने के बाद आप फ्लो की चिंता से लगभग मुक्त हो जाती हैं. शौच और स्नान के समय इसे निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती. तैराकी, राइडिंग, कूदना, दौड़भाग सब आसानी से कर सकती हैं. ये कप्स लीकेज प्रूफ होते हैं.

सब से बड़ी बात आसानी से खाली कर के साफ पानी से धो कर पुन: इस्तेमाल किए जा सकते हैं. पीरियड्स समाप्त होने के बाद 5 मिनट उबलते पानी में स्टरलाइज कर अच्छी तरह सुखा कर वापस रखे जा सकते हैं.

कौन-सा कप उचित रहेगा

आप के कपड़ों या फुटवियर्स की तरह कप्स का भी कोई स्टैंडर्ड फिक्स साइज नहीं है. स्मौल, मीडियम और लार्ज साइज हर कंपनी के अलगअलग आते हैं. सामान्य नियम है कि: हार्ड रिम वाला कप चुनें. साइज फ्लो से ज्यादा फिटिंग पर निर्भर है. हार्ड रिम वाले कप आसानी से लीक नहीं होते. अंदर जा कर खुलने और बाहर निकालने में भी सरल होते हैं. पर लड़कियां सौफ्ट रिम वाले स्मौल कप से शुरुआत कर सकती हैं.

25 वर्ष से कम आयु और वे महिलाएं जिन का सामान्य प्रसव नहीं हुआ है सिजेरियन हुआ है स्मौल साइज से शुरुआत करें.

30 से अधिक आयु या सामान्य प्रसव वाली या फिर अत्यधिक फ्लो वाली महिलाएं मीडियम या लार्ज लें.
द्य यदि किसी किस्म की ऐलर्जी या मैडिकल कंडीशन नहीं है तो पहले कम कीमत के कप्स से शुरुआत की जा सकती है. ये क्व200 से क्व500 में उपलब्ध हैं. एक बार आदत हो जाने पर अच्छे ब्रैंड के कप ले सकती हैं, जब ये 10-15 साल चल सकते हैं तो क्व1,000 से क्व1,200 की इनवैस्टमैंट भी महंगी नहीं है.

प्रयोग का तरीका

अगर आप ने टैंपून इस्तेमाल किया है तो यह भी बिलकुल वैसा ही है. पैल्विक मसल्स को बिलकुल ढीला छोड़ दें. कप की रिम (ऊपर का गोल सख्त हिस्सा) को पानी या वाटर बेस्ड लूब्रिकैंट लगा कर शेप में मोड़ लें और धीरेधीरे प्रविष्ट करें. अंदर जाते ही यह खुल जाएगा. ठीक तरह से प्रविष्ट किए जाने पर यह बाहर से नहीं दिखता और अंदर वैक्यूम बनने से लीक भी नहीं होता.

हालांकि 8 से 12 घंटे में निकालने को कहा जाता है पर बेहतर है 7-8 घंटे में खाली कर लिया जाए. इस के लिए सब से पहले कप के बेस को चुटकी से पकड़ कर सक्शन प्रैशर तोडि़ए और धीरे से नीचे की ओर बाहर खींच लीजिए. बहुत जल्दी या तेजी नहीं दिखानी है. शुरुआत में स्कूल, कालेज, औफिस या पब्लिक टौयलेट्स का इस्तेमाल करने से बचें. घर पर ही कोशिश करें.

खाली करने के बाद साफ पानी से धोना पर्याप्त है. किसी डिसइनफैक्टैंट का सीधा प्रयोग कप या प्राइवेट पार्ट पर न करें. इंटरनैट पर बहुत से वीडियोज मौजूद हैं जिन से प्रयोग विधि समझी जा सकती है.

मैंस्ट्रुअल कप्स बहुत सुविधाजनक हैं और इन का प्रयोग भी मुश्किल नहीं है. बस थोड़ी सी प्रैक्टिस की जरूरत है. कम से कम 3 महीने दें. इस तरह आप माहवारी के समय होने वाली असुविधा, दाग की चिंता, रैशेज, पैड्स के दुष्प्रभाव और खर्च से भी बचेंगी और यह ईको फ्रैंडली विकल्प पर्यावरण के लिए भी मुफीद है.

मुझे जानना है कि मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में खानपान की क्या भूमिका है?

सवाल

अवसाद और दूसरे मानसिक विकारों के बढ़ते मामलों को देखते हुए मैं यह जानना चाहती हूं कि मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में खानपान की क्या भूमिका है?

जवाब

पोषक तत्त्वों से भरपूर डाइट का सेवन करें. फाइबर, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और अच्छी वसा के साथ ही माइक्रो न्यूट्रिएंट्स जैसे मिनरल्स और विटामिंस उचित मात्रा में हों. अगर शरीर में ऊर्जा का स्तर ठीक होगा तो हम डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी से बच जाएंगे. जंक और प्रोसैस्ड फूड्स के बजाय घर पर बना सादा खाना खाएं. अपने डाइट चार्ट में फलों, सब्जियों, सूखे मेवों और साबूत अनाज को अधिक मात्रा में शामिल करें. अगर जरूरी हो तो 2-3 महीनों तक मल्टी विटामिन लें, लेकिन उस से अधिक समय नहीं.

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अगले महीने मेरी डिलिवरी है. मैं जानना चाहती हूं पोस्ट पार्टम डिप्रैशन क्या होता है और क्या यह सामान्य है?

जवाब

बच्चे के जन्म के बाद6 सप्ताह तक बेबी ब्ल्यूजया प्रैगनैंसी ब्लूज होना सामान्य है. इस दौरान बहुत ज्यादा हारमोन परिवर्तन होते हैं, इसलिए महिलाएं बहुत अस्थिर महसूस करती हैं. उन्हें रोना आना, चिड़चिड़ापन, परेशान होना, उदासी, रात में नींद न आना, बच्चे को संभालने में परेशानी होना, थकान, स्तनपान कराने में परेशानी होना जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति को पोस्ट पार्टम डिप्रैशन भी कहते हैं. लेकिन अगर यह स्थिति 6 सप्ताह के बाद भी बनी रहे तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि अगर समय रहते इसे ठीक नहीं कराया जाए तो यह पोस्ट पार्टम डिप्रैशन चलता रहता है केवल इस के रूप बदलते रहते हैं.

-डा. जया सुकुलक्लीनिकल साइकोलौजिस्ट, हैडस्पेस हीलिंग, नोएडा द्य  

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मेरी उम्र 52 साल है और मैं कई बार अपनी चीजें कहीं रख कर भूल जाती हूं

सवाल

मैं 52 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे चीजों को याद रखने में काफी परेशानी हो रही है. मैं कभी अपनी चीजें कहीं रख कर भूल जाती हूं तो कभी मामूली से जोड़घटाव भी बिना कैलकुलेटर के नहीं कर पाती हूं?

जवाब

आप की उम्र 52 साल है. इस उम्र तक अधिकतर महिलाएं मेनोपोज की स्थिति तक पहुंच जाती हैं. इस दौरान हारमोन संबंधी परिवर्तन बहुत अधिक होते हैं. कई महिलाओं में

प्री मेनोपोजल सिंड्रोम बहुत सालों तक चलता है. उस की वजह से ब्रेन फौग, याददाश्त कमजोर होना, मूड स्विंग जैसी समस्याएं होने लगती हैं. शरीर में हारमोनों का स्तर सामान्य बनाए रखने के लिए अनुशासित जीवनशैली का पालन करें. संतुलित व पोषक भोजन का सेवन करें और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. जरूरी चीजों को लिख कर रखें.

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मैंने कहीं डिजिटल डिमेंशिया के बारे में पढ़ा था. मैं जानना चाहती हूं यह क्या होता है और इस से कैसे बचा जा सकता है? 

जवाब

आज हमारे जीवन में गैजेट्स का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है. हमारी इन पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि हम अपने मस्तिष्क का इस्तेमाल ही नहीं करते. हमें कोई मोबाइल नंबर याद नहीं रहता, हम साधारण से जोड़घटाव भी बिना कैलकुलेटर के नहीं कर पाते हैं. धीरधीरे हमारी काग्नेटिव स्किल यानी सीखनेसम?ाने की क्षमता कम होने लगती है. यही डिजिटल डिमेंशिया है. इस के कारण मस्तिष्क का वह हिस्सा प्रभावित होता है जो याद रखने को ले कर निर्धारित है. इस के शिकार लोगों को जगह और रास्ते याद रखने में परेशानी होना, साधारण जोड़घटाव न कर पाना, चीजों को भूलने जैसी समस्याएं होने लगती हैं. जब जरूरत हो तभी गैजेट्स का इस्तेमाल करें. कुछ चीजों को बिना गैजेट्स के भी करने की आदत डालें. सप्ताह में एक दिन डिजिटल डिटौक्स करें. इस दिन गैजेट्स का इस्तेमाल बिलकुल न करें.

-डा. जया सुकुलक्लीनिकल साइकोलौजिस्ट, हैडस्पेस हीलिंग, नोएडा

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मेरा बच्चा बहुत उदास रहता है, मुझे बताएं क्या बच्चों में भी डिप्रैशन होता है?

सवाल

मेरा 11 साल का बेटा पिछले कुछ समय से बहुत उदास रहता है. मैं जानना चाहती हूं क्या बच्चों में भी डिप्रैशन होता है?

जवाब

बच्चों में ऐंग्जाइटी और डिप्रैशन दोनों के मामले बहुत होते हैं जो उन की पूरी जिंदगी पर प्रभाव डालते हैं और इन के कारण उन का शारीरिक और मानसिक विकास प्रभावित होता है. उन की समझ पूरी तरह विकसित नहीं हुई होती है इसलिए वे समझ नहीं पाते कि उन के साथ समस्या क्या है. न ही अपनी परेशानी किसी से साझा कर पाते हैं. बचपन का समय तो बहुत बेफिक्री का होता है. उस में उदासी और परेशानी जैसी समस्याएं सामान्यत: नहीं होती हैं. अगर घर और स्कूल में कोई समस्या नहीं है फिर भी आप का बच्चा उदास है और उस का व्यवहार सामान्य नहीं है तो तुरंत किसी साइकोलौजिस्ट या साइकिएट्रिस्ट को दिखाएं.

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सवाल

मेरे पति पिछले 2 सालों से डिप्रैशन के शिकार हैं. डाक्टर ने उन्हें काउंसलिंग के साथ कुछ दवाइयां भी दी थीं, लेकिन कुछ दिनों से वे मैडिसिन नहीं ले रहे हैं. क्या करूं?

दवाइयां बीच में बिलकुल नहीं रोकनी चाहिए. उपचार पूरा न कराने से बहुत ज्यादा नुकसान होता है. डिप्रैशन के लक्षण गंभीर हो जाते हैं और दूसरे मानसिक विकारों का खतरा भी बढ़ जाता है. दवाइयां छोड़ने के कुछ दिन बाद तक तो मरीज सामान्य महसूस करता है लेकिन फिर से उस में घबराहट, बेचैनी, रोने का मन करना और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं. अपने पति को दवाइयां लेने के लिए समझाएं. अगर वे आप की बात नहीं मानें तो उन की फिर से काउंसलिंग कराएं.

सवाल

मैं 38 वर्षीय घरेलू महिला हूं. 2-3 महीनों से मेरा घर से बाहर निकलने का मन ही नहीं करता. मैं हंसना और खुश रहना चाहती हूं, लेकिन ऐसा कर नहीं पा रही हूं. कृपया कोई हल बताएं?

अधिकतर लोगों का अपनी भावनाओं पर काबू नहीं होता, यह बहुत सामान्य है. लेकिन थोड़े से प्रयास से अपने व्यवहार में बदलाव लाना संभव होता है. अगर आप का अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं है तो व्यवहार में बदलाव लाएं. व्यवहार बदलने से भावनाओं को बदलना संभव होता है. आप एक अनुशासित जीवनशैली का पालन करें, नियत समय पर सोएं, उठें और खाएं, पीएं. रोज 20-30 मिनट अपना मनपसंद वर्कआउट करें. इसे घर में करने के बजाय पार्क या अपने घर के टैरेस पर करें. वीकएंड पर गैजेट्स का इस्तेमाल न करें या बहुत जरूरी हो तभी करें. अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं.

डा. जया सुकुल

क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट, हैडस्पेस हीलिंग, नोएडा 

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अच्छी सेहत के लिए जरूरी है हर दिन बस एक कप ग्रीन टी

बदलती लाइफस्टाइल और काम के बढ़ते दवाब के बीच अगर एक कप ग्रीन टी ग्रीन टी ली जाए तो आपके स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ेगा. एक नियत मात्रा में प्रतिदिन ग्रीन टी का सेवन आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद साबित हो सकता है. कई शोध में भी ग्रीन टी सेहत के लिए फायदेमंद बताया गया है, लेकिन ध्यान रखें कि जरूरत से ज्यादा ग्रीन टी आपके शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती है, इसलिए जरूरी है कि आप अधिक मात्रा में ग्रीन टी का सेवन न करें.

क्या आपको पता है कि ग्रीन टी पीने के अनेक फायदे हैं, आइये जानते हैं इसके असली फायदों के बारे में.

मानसिक शांति

यदि आप पर घर और आफिस मे काम का दबाव होता है और आप कुछ काम करने के बाद ही मानसिक रूप से थकान महसूस करने लगती हैं तो ग्रीन टी आपके इस मानसिक थकान को भगाने के लिए अच्छा रहेगा. ग्रीन टी में थेनाइन तत्व होता है, जिसमें एमिनो एसिड बनता है. एमिनो एसिड शरीर में ताजगी बनाए रखता है और आपको थकावट महसूस नहीं होने देता. जिससे आपको हमेशा ताजगी का एहसास होता है और मानसिक शांति भी मिलती है.

वजन कम करें

वजन कम करने में भी ग्रीन टी काफी हद तक सहायक है. ग्रीन टी पीने से आपके शरीर का मेटाबालिज्म बढ़ता है, जिससे पाचन क्रिया संतुलित रहती है. ऐसा होने से व्यक्ति का अतिरिक्त वजन कम होता है

नार्मल ब्लडप्रेशर

भागदौड़ भरी जिंदगी और आफिस की बढ़ती टेंशन के बीच उच्च रक्तचाप की अक्सर ही लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ता है. उच्च रक्तचाप आपके शरीर में अन्य कई बीमारियों का कारण भी हो सकता है. इसलिए यदि आपको ब्लड प्रेशर की समस्या है तो रोजाना ग्रीन टी पिए. इसे पीने से आपकी यह परेशानी नार्मल रहेगी. रक्तचाप सामान्य रहने से आपको गुस्सा भी नहीं आएगा.

कोलेस्ट्राल घटाएं

दिल के रोगियों के लिए ग्रीनटी का सेवन बहुत फायदेमंद है. ये शरीर में बेड कोलेस्ट्राल को कम करके गुड कोलेस्ट्राल को बढ़ाने में मददगार होती है. यदि आप आयली भोजन करती हैं तो आपको नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए.

डायबिटीज में फायदेमंद

यदि आपके शरीर में शुगर लेवल बढ़ रहा है तो ग्रीन टी का सेवन आपको बहुत फायदा पहुंचाता है. इसके अलावा जिन रोगियों को डायबिटीज की दिक्कत हैं तो उन्हें प्रतिदिन सुबह उठकर एक कप ग्रीन टी पीनी चाहिए. यह आपके शरीर में मौजूद शुगर लेवल को कंट्रोल करने में आपकी मदद करता है. मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति को भोजन के बाद ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए.

त्वचा में चमक

ग्रीन टी में एंटी एजिंग तत्व पाया जाता है जो आपकी त्वचा के लिए काफी फायदेमंद हैं. इसका सेवन करने से आपके चेहरे पर हमेशा चमक और ताजगी बनी रहती है साथ ही चेहरे की झुर्रियां भी कम होती है, इसके अलावा इसे पीने से आप चुस्त-दुरुस्त रहती हैं.

दांतों के लिए वरदान

आजकल युवा और बुजुर्गों में दांतों में पायरिया और केविटी की समस्या तेजी से बढ़ रही है. ग्रीन टी में पाया जाने वाले कैफीन दांतों में लगे कीटाणुओं को मारने में सक्षम होता है. बैक्टीरिया कम होने से आपके दांत लंबे समय तक सुरक्षित रहते हैं. इसलिए अगर आपको दांतो की समस्या है तो रोजाना एक कप ग्रीन टी का सेवन करना न भुलें, इससे आपके मसूड़ो में भी मजबूती आती है.

बांझपन के भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक दबाव: इनके साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट के संसाधन

आज के समाज में बांझपन (इंफर्टिलिटी) तेजी से चिंता का विषय बनता जा रहा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक आकलन के मुताबिक, भारत में बांझपन की समस्‍या 3.9% से 16.8% तक है. बांझपन (इंफर्टिलिटी) की बढ़ती वजह आज के दौर लोगों की दबाव से भरपूर जीवनशैली और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों से दूर होने को माना जा रहा है. आधुनिक युग में पुरुषों और औरतों पर वर्क-लाइफ संतुलन बनाने का काफी दबाव है, उस पर अल्‍कोहल और कैफीन का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन, तथा बढ़ता धूम्रपान भी इंफर्टिलिटी का कारण बन रहा है.

डॉ राम्या मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार- फर्टिलिटी और आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर) का कहना है

बेशक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई रोग नहीं है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी वजह से प्रभावित व्‍यक्ति की भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर असर पड़ता है. इसके कारण कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक-भावनात्‍मक विकार या साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि तनाव, अवसाद, नाउम्‍मीदी, अपरोधबोध, झुंझलाहट, चिंता और जीवन में किसी लायक न होने जैसा भाव पैदा होता है.

एनसीबीआई के मुताबिक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) से जूझ रहे लोग कई बार दु:ख, अफसोस, अकेलेपन जैसी समस्‍याओं के अलावा मानसिक रूप से काफी परेशान भी महसूस करते हैं. इंफर्टिलिटी से गुज़र रहे व्‍यक्ति की सेहत इन तमाम कारणों से काफी प्रभावित हो सकती है, लेकिन इनसे निपटने और सांत्‍वना देने के लिए कई उपाय और सपोर्ट सिस्‍टम्‍स भी हैं, जो मददगार साबित हो सकते हैं.

  1. इंफर्टिलिटी का भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई जीवनघाती समस्‍या नहीं है, लेकिन इसे कपल्‍स के जीवन में तनावपूर्ण स्थिति के रूप में देखा जाता है। चूंकि हमारे समाज में, वैवाहिक जीवन में बच्‍चों का होना काफी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है, ऐसे में बांझपन के चलते तनाव की स्थिति काफी बढ़ सकती है. गर्भधारण नहीं कर पाने के चलते कपल्‍स अपरोध बोध, पश्‍चाताप, निराशा, दुख, चिंता और झुंझलाहट जैसी भावनाओं के ज्‍वार से जूझते हैं. उस पर उन्‍हें समाज के दबाव भी झेलने पड़ते हैं, जो उनकी पहले से तनाव की स्थिति को और बढ़ाता है तथा उनके आत्‍म-सम्‍मान की भावना भी घटाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने खुद के महत्‍व को लेकर सवाल करने लगते हैं.

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या से पुरुष और महिलाएं दोनों ही जूझ सकते हैं, लेकिन अक्‍सर समाज में महिलाओं को ही इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है कि बांझपन झेल रहे कपल्‍स की जिंदगी पर समाज का नकारात्‍मक असर पड़ता है, खासतौर से महिलाओं को इसका दबाव ज्‍यादा सहना पड़ता है और वे कई बार हिंसा, तलाक, सामाजिक तौर पर बेइज्‍़ज़ती, भावनात्‍मक दबाव, निराशा, चिंता तथा आत्‍म-सम्‍मान में कमी जैसी समस्‍याओं को सहने को मजबूर होती हैं.

बांझपन (इंफर्टिलिटी) की वजह से पैदा होने वाला निराशा का भाव आपको अवसाद के गर्त में डुबो सकता है जहां से वापसी या आत्‍म-सम्‍मान वापस प्राप्‍त करना काफी चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है. लेकिन इससे निपटने के कई उपाय हैं और कई तरह के सपोर्ट भी उपलब्‍ध हैं जो कपल्‍स को बांझपन के दबावों से मुक्‍त रखने में मददगार साबित हो सकते हैं.

2. समस्‍या के साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट समाधान

1.सैल्‍फ-केयर

इसमें कोई शक नहीं कि खुद की देखभाल (सैल्‍फ केयर) सबसे बेहतरीन तरीका होता है अपना ख्‍याल रखने का. अपना मनपसंद मील बनाएं, सुकूनदायक संगीत को सुनें, सैर पर जाएं, रिलैक्सिंग स्‍नान करें और अच्‍छी नींद लें. अपने लिए कुछ समय निकालें और अपना ख्‍याल करें.

2. किसी नई हॉबी को अपनाएं

इंफर्टिलिटी से जूझते हुए बेशक, अपनी भावनाओं को समझना और संभावना काफी अहम् होता है, लेकिन लगातार उनके बारे में सोचते रहते से आप तनाव बढ़ाते हैं और एंग्‍ज़ाइटी भी लगातार बढ़ती रहती है. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिए कुछ समय निकालें, अपनी मनपसंद हॉबी को समय दें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सहजता हो और आप खुद को रिलैक्‍स महसूस करें, जैसे कि कुकिंग क्‍लास, म्‍युज़‍िक लैसन या पेंटिंग क्‍लास आदि से जुड़ें.

3. एक्‍सपर्ट की सहायता लें

अगर आपको लगता है कि आपके हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप किसी हैल्‍थ प्रोफेशनल की मदद लें जो आपको सही तरीके से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में बता सकते हैं और आपको खुद को सकारात्‍मक बनाने की दिशा भी दिखा सकते हैं. सच तो यह है कि किसी फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से परामर्श लेना सही फैसला हो सकता है, जो आपको कुछ अन्‍य तरीकों से गर्भधारण के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

4. क्‍या करें कि सब ठीक रहे

आज के समय में बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या काफी व्‍यापक हो चली है जिसका लोगों के भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विपरीत असर पड़ता है. इसका नकारात्‍मक असर तनाव, स्‍वभाव में चिडचिड़ापन, नाउम्‍मीदी का भाव, अपरोधबोध, निराशा और एंग्‍जाइटी बढ़ाता है. जब आप खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए किसी नई हॉबी को अपनाते हैं, सैल्‍फ-केयर पर ध्‍यान देते हैं और अपने हालात से निपटने के लिए प्रोफेशनल मार्गदर्शन लेते हैं, तभी आपको इस पूरे हालात के बारे में सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य दिखायी देता है.

मेंटल डिस्टरबेंस को बढ़ा रहा सोशल मीडिया : भ्रमजाल या मायाजाल

एक दिन सुबहसवेरे मैसेज आया, जिसे देख कर हैरान रह गया और सोच में पड़ गया इन दो शब्दों को ले कर. वे शब्द थे ‘हैप्पी एनिवर्सरी’. उस के आगे लिखा था, ‘तुम मेरी जिंदगी हो…’

भले ही ये शब्द कहने में आसान लगे हों, लेकिन बहुत बोझ से लगे. हैं न…

यह पढ़ते ही पुराने दिनों की यादों में खो गया.

कुछ साल पहले तक ये युगल तनाव भरे माहौल में अपने रिश्ते को बखूबी निभा रहे थे. वैसे, इन का रिश्ता टूटने के कगार पर आ पहुंचा था.

मैसेज पढ़ते ही तुरंत फोन किया और शादी की सालगिरह की बधाई दी. झिझकते हुए उस से उस के पति से बात कराने का अनुरोध किया.

उस समय उस का पति उस के पास ही बैठा था. बातचीत के दौरान सोशल मीडिया पर अपनी भेजी गई तमाम पोस्ट को बड़े ही गर्व से कह रहा था, तभी  यह बातचीत अचानक ही खत्म हो गई.

उस का पति यह जताने में कामयाब हो गया कि इंटरनेट के इस जुनूनी युग वह कहां है. उस शख्स का ऐसा कहना था कि फोन करना और मिलनाजुलना अब पुरानी बातें हो गई हैं. अब केवल औनलाइन के जरीए बात करने में वह काफी सहज है.

सोशल मीडिया के माध्यम से उस महिला ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया. हालांकि उस का पति उस के बगल में बैठ कर सारी बातें भलीभांति सुन रहा था. ऐसा लगा कि शायद अब उन युगल का रिश्ता पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है. ऐसा हो भी क्यों न, जब बाहरी दुनिया ने सोशल मीडिया पर शेयर की गई पोस्ट पर लाइक्स की  ज्यादा संख्या से इस की रजामंदी दे दी थी.

बाद में जब अलगअलग जगहों से पता चला कि दंपती के बीच अभी भी सबकुछ ठीक नहीं है यानी तनाव में जी रहे हैं. भले ही वे एक छत के नीचे जरूर हैं, लेकिन अभी भी अलगअलग रह रहे हैं.

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर निजी जिंदगी को बढ़ाचढ़ा कर पेश करना एक नया ट्रेंड बन गया है, जो वास्तविक और आभासी दुनिया के बीच की खाई को चौड़ा कर रहा है यानी चकाचौंध भरी दुनिया में जीने को विवश कर रहा है, आदी बना रहा है.

आभासी दुनिया में हमारे वजूद के फैलाव ने हमें अपने चारों ओर झूठ का एक ऐसा जाल बुनने के लिए मजबूर किया है, जो वास्तविक दुनिया के साथसाथ भौतिक संपर्क किए जाने पर एक खुला रहस्य बन सकता है और झूठ का महल कभी भी टूट कर बिखर सकता है.

बेशक, सोशल मीडिया पर टूटे रिश्ते और शादियां नए सिरे से दोहराई जा रही हैं, लेकिन यह उन लोगों के लिए टूटे रिश्तों की भावना पैदा करने की कीमत पर किया जा रहा है.

वे दिन गए, जब किसी भी उत्सव को निजी तौर पर पास जा कर, खुशी के पल में शामिल हो कर या एक फोन कर के खुशियों को व्यक्तिगत स्पर्श दिया जाता था. जहां सहानुभूति का एक शब्द जो व्यक्तिगत रूप से व्यक्त किया गया, शोक में डूबे परिवार को अतिरिक्त साहस दे सकता है, आज वहां इंटरनेट के माध्यम से इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस के जरीए संवेदनाओं को पेश किया जाता है.

केवल रिश्ते ही नहीं, बल्कि पारिवारिक यात्राएं भी स्पर्श बिंदुओं को प्रदर्शित करने के लिए की जाती हैं, न कि उन्हें जीवंत करने के लिए. एक विदेशी दौरा केवल फोटो क्लिक करने के लिए लिया जाता है और इसे उन लोगों के लिए प्रलोभन के रूप में शेयर किया जाता है, जो हमेशा घटना के लिए अपनी पसंद दर्ज करने के इच्छुक होते हैं.

ऐसे व्यक्ति के लिए सोशल मीडिया पर ज्यादा लाइक्स मिलने के बाद खुशी और यात्रा के मूल्य को सही ठहराती है.

एक ऐसे देश के नागरिक होने के नाते जो अपने मजबूत धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है, यह अनिवार्य है कि हम मूल प्रणाली में किसी भी विकृति यानी नकारात्मकता से प्रभावित होने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे, लेकिन यह तभी हो सकता है, जब हम अपने मूल सिद्धांतों पर टिके रहें, जो सच पर आधारित है.

सोशल मीडिया भ्रमजाल है, मायाजाल है, इस के चंगुल से छूट कर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, प्रियजनों से खुल कर मिलिए, उन्हें बुलाइए, खुशियां बांटिए. जो आप से जुड़े हैं, उन की मौजूदगी का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए मजा लें.

थोड़ा वक्त लगेगा संभलने में, डरें नहीं, लेकिन यही भाव हमें सच्चे दोस्त बनाने में मदद करेगा और हमारे सामाजिक तानेबाने को मजबूती देगा, जो वक्त की जरूरत है.

3 Tips: स्ट्रैस आप भी तो नहीं लेते

mअच्छी सेहत पाने की चाहत हर किसी की रहती है. यह चाहत कई बार इस कदर बढ़ जाती है कि लोग अपना तनाव बढ़ा लेते हैं, जिस की वजह से अच्छी सेहत पाने के लिए टैंशन होने लगती है जिस से सेहत और भी खराब हो जाती है. हर किसी का वजन, सुंदरता, बालों का रंग, बालों का होना या न होना, लंबाई सब अलगअलग हो सकता है. सब के अंदर बस एक बात कौमन होती है कि सब को सुंदर और स्मार्ट दिखना है.

मगर हरकोई एकजैसा नहीं दिख सकता क्योंकि सब की सेहत और शरीर अलगअलग होता है. जैसेजैसे उम्र गुजरती जाती है वैसेवैसे लोगों के अंदर अच्छी सेहत बनाने का रुझन भी बढ़ता जाता है. इस के लिए वे तमाम जतन करते हैं जैसे वे ऐक्सरसाइज करने लगते हैं, खानेपीने में तमाम तरह के परहेज करने लगते हैं, डाइटीशियन के अनुसार खाना लेने लगते हैं.

मनोविज्ञानी नेहा तिवारी कहती हैं, ‘‘अच्छी सेहत की सोच रखने वाले तमाम लोग ऐसे होते हैं जो अपने सामने किसी फिल्मी हीरो, हीरोइन, मौडल या खिलाड़ी को रखते हैं. विज्ञापनों में जल्दी परिणाम पाने के तमाम तरह के तरीके बताए जाते हैं. एक तय समय में अपनी सोच के अनुसार परिणाम पाते दिखाया जाता है जैसे किसी ने 30 दिन में 20 किलोग्राम वजन कम कर लिया, अपनी कमर का साइज या मोटापा कम कर लिया.

हो सकता है कि रियल लाइफ में यह परिणाम देर से मिले और उस के लिए ज्यादा समय देना पडे़. कई बार बहुत कुछ करने पर भी परफैक्ट परिणाम नहीं मिलता. ऐसे में टैंशन होने लगती है. यह टैंशन अच्छी सेहत पाने के लिए होती है पर यह सेहत को और खराब कर सकती है.’’

‘‘शरीर का वजन, मोटापा और रंगरूप प्रत्येक के शरीर के ढांचे के अनुरूप होता है. शरीर की हडिड्यां और फैट शरीर की बनावट को तय करता है. इन के अनुरूप ही बाकी शरीर की बनावट होती है. अगर चेहरा गोल और भरापूरा होता है तो कई बार डबल चिन की परेशानी दिखने लगती है. जिन का चेहरा लंबा और गाल चिपके होते हैं उन को डबल चिन नहीं होती है. ऐसे में डबल चिन वाला कितना भी प्रयास कर ले कुछ न कुछ डबल चिन दिखती ही है. अब यह डबल चिन हटाने की चाहत टैंशन बढ़ा सकती है. इसी तरह गालों में पड़ने वाले डिंपल्स को ले कर भी अलगअलग चाहत होती है.’’

अच्छी सेहत के लिए टैंशन न लें

अच्छी सेहत पाने के लिए जरूरी है कि अपने शरीर और उस की जरूरतों को सही से समझे उस के हिसाब से अपनी सेहत बनाएं. किसी दूसरे को देख कर उस के अनुसार सेहत बनाने की टैंशन न लें नहीं तो अच्छी सेहत का पता नहीं पर टैंशन जरूर ले लेंगे. फिर अगर तनाव लंबे समय तक रहेगा तो न केवल मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है. टैंशन बढ़ने से स्ट्रोक, दिल का दौरा, अवसाद जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.

तनाव के चलते भूलने की बीमारी, चिंता, चिड़चिड़ापन, कब्ज या दस्त, वजन का घटना अनिद्रा और समाज से कटेकटे रहना जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. इस से अच्छी सेहत पाने की जगह उस के और भी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में जरूरी है कि अच्छी सेहत पाने के लिए किसी दूसरे को देखने की जगह पर खुद को देखें. इस में आप का डाक्टर आप की पूरी मदद कर देगा.

वह आप को यह बता देगा कि आप के शरीर के फिट और सेहतमंद होने का क्या और कितना मतलब होगा. उस के अनुसार सेहत को ठीक करें. इस में उम्र का भी असर होता है.

22 साल की उम्र में 6 फुट के लड़के का वजन और 42 साल में 6 फुट वाले व्यक्ति का वजन बराबर हो भी जाए तो भी दोनों की स्मार्टनैस अलगअलग होगी.

अच्छी सेहत के लिए जरूरी बातें

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है कि यथार्थवादी बनें, सही लक्ष्य निर्धारित करें और ध्यान रखें कि यदि आप हमेशा सबकुछ पाना चाहते हैं, तो आप कभी भी संतुष्ट नहीं होंगे जो आप के अंदर टैंशन को बढ़ाएगा. समाज में दूसरों से संबंध बना कर रखें. एकदूसरे की मदद लेने और करने में कोई दिक्कत नहीं होती. इस से सामाजिक जीवन का निर्वाह होता है. हमेशा लोगों को खुश रखने वाली नीति को छोडें. जो काम न होने वाला हो उस के लिए नहीं कहना भी सीखें. इस के साथ ही समय प्रबंधन सीखें, अपने जरूरी कामों को प्राथमिकता दें और जो गैरजरूरी हों उन्हें हटा दें.

परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने से संबंध मजबूत होते हैं. सुरक्षा और अपनेपन की भावना पैदा होती है. यह आप को तनावों से लड़ने में मदद कर सकता है. ऐक्सरसाइज से ऐंडोर्फिन बढ़ता है. यह मस्तिष्क में रिसैप्टर्स को बढ़ाता है, जिस से तनाव कम होता है. पर्याप्त नींद लें. नींद की मात्रा भी हर व्यक्ति में अलगअलग होती है. पर्याप्त नींद लेना हर किसी के लिए महत्त्वपूर्ण है. अच्छी और गहरी नींद आप के मस्तिष्क को केंद्रित रखने में मदद करती है.

इस के साथ ही अपने अहंकार को खत्म करें. अहंकार के जगह अपने जीवन को आरामदायक बनाएं. आप जितने कम अहंकारी होंगे उतनी ही आसानी से असफलताओं को ?ोल सकेंगे. नकारात्मक लोगों, स्थानों और चीजों से दूर रहें. सोशल मीडिया से दूर रहें. किताबें और पत्रपत्रिकाएं को पढ़ने की आदत डालें. संगीत सुनें. संगीत का मन और शरीर पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ता है. कुछ समय अपने लिए निकालें. दिन में कम से कम आधा घंटा अपने लिए रखें. मैडिटेशन यानी ध्यान लगाने से दिमाग शांत होता है.

अच्छी सेहत के लिए अच्छी डाइट

डाइटीशियन रानू सिंह कहती हैं, ‘‘अगर सही डाइट लें और रोज ऐक्सरसाइज करें तो अच्छी सेहत के लिए डाक्टरी मदद की जरूरत कम पड़ती है. इस के अलावा उम्र के हिसाब से बौडी चैकअप कराते रहें. इस से शरीर में होने वाले बदलाव का असर समय से पता चल जाएगा. उस हिसाब से इस का प्रबंधन हो जाएगा. बीमार रहने वाले और बीमार न रहने वाले दोनों के अर्थ में अच्छी सेहत का पैमाना बदल जाता है.

ऐसे में जरूरी है कि दोनों इस अंतर को सम?ों. इस अंतर को सम?ा लेंगे तो अच्छी सेहत को ले कर तनाव नहीं रहेगा.

‘‘अच्छे स्वास्थ्य के लिए खानपान पर ध्यान देना अति आवश्यक है. सही और संतुलित आहार स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर डालता है. भले ही आप कोई डाइट चार्ट फौलो कर रहे हों, लेकिन उस में इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि आप

जो भी खा रहे हैं वह ताजा हो. खानपान के मामले में यह जरूरी है कि शरीर में आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति हो रही हो. इस के अलावा भारी भोजन लेने के बजाय हलका और उर्जा से भरपूर भोजन लें.’’

अच्छी सेहत को ले कर टैंशन न लें. टेंशन लेने से सेहत ठीक होने की जगह और खराब हो जाएगी. अच्छी सेहत के लिए दूसरों के उदाहरण न लें. आप का डाक्टर जिस बात को बताए उस पर ध्यान दें.

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