मेरी सास के घुटने में बहुत दर्द रहता है,कब सर्जरी कराना जरूरी है?

सवाल

मेरी सास की उम्र 58 साल है. पिछले 2 वर्षों से उन के घुटनों में बहुत दर्द रहता है. मैं जानना चाहता हूं कि कब घुटनों की सर्जरी कराना जरूरी हो जाता है? रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी क्या है?

जवाब

कोई भी और्थोपैडिक सर्जन डायग्नोसिस के बाद ही बता पाएगा कि मरीज के घुटनों के जोड़ कितने क्षतिग्रस्त हो चुके हैं और क्या घुटना प्रत्यारोपण उपचार का अंतिम विकल्प है. घुटनों का एक्स रे, सीटी स्कैन और एमआरआई कराने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाती है. अगर समस्या गंभीर नहीं है तो नौनसर्जिकल उपचारों से आराम मिल सकता है. लेकिन समस्या गंभीर होने पर घुटना प्रत्यारोपण कराना जरूरी हो जाता है. रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट सर्जरी सर्जरी की एक प्रक्रिया है जिस में रोबोट की सहायता से सर्जरी की जाती है. यह सर्जरी की एक अत्याधुनिक तकनीक है. इस के द्वारा जो कृत्रिम इंप्लांट लगाए जाते हैं, उन का जोड़ों में बेहतर तरीके से प्लेसमैंट होता है.

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मेरी माताजी की उम्र 61 साल है. उन के दोनों घुटने खराब हो गए हैं. डाक्टर ने दोनों घुटनों के लिए घुटना प्रत्यारोपण सर्जरी कराने की सलाह दी है. लेकिन हमें इस सर्जरी की सफलता को ले कर संदेह है?

जवाब

जिन लोगों के घुटने पूरी तरह खराब हो जाते हैं और दूसरे उपचारों से उन्हें आराम नहीं मिलता है तो घुटना प्रत्यारोपण उन के लिए अंतिम विकल्प बचता है. यह आज के दौर की सब से सफल सर्जरी मानी जाती है क्योंकि अच्छे इंप्लांट्स और बेहतर तकनीकों की उपलब्धता के कारण इस की सफलता दर 100 % है.

-डा. ईश्वर बोहरा

जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन, बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली. 

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

संपर्क सूत्र, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द है मुझे कोई उपाय बताएं

सवाल

मुझे खुद को फिट रखनेके लिए दौड़ना पसंद है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे टखनों की मांसपेशियों में दर्द, खिंचावऔर कड़ापन महसूस हो रहा है.मैं क्या करूं?

जवाब

ऐसा लगता है कि ऊंचीनीची सतह पर दौड़ने या किसी और कारण से आप के टखने चोटिल हो गए हैं. यह समस्या टखनों की हड्डियों के फ्रैक्चर होने या मांसपेशियों, लिगामैंट्स और टैंडन के क्षतिग्रस्त होने से होती है. टखनों में होने वाली समस्याओं को स्पोर्ट्स इंजरी कहा जाता है क्योंकि इस के अधिकतर मामले खिलाडि़यों में ही देखे जाते हैं. अगर समस्या लगातार बनी हुई है तो किसी और्थोपैडिक सर्जन को दिखाएं. पहले नौनसर्जिकल उपायों से उपचार किया जाता है. जब इन से मरीज को आराम नहीं मिलता तो एंकल ऐंथ्रोस्कोपी प्रक्रिया द्वारा टखने की सर्जरी की जाती है. यह एक मिनिमली इनवेसिव सर्जरी है जो काफी आसान और दर्दरहित होती है.

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मैं 55 वर्षीय बैंककर्मी हूं. मु   झे औस्टियोपोरोसिस है. अपनी हड्डियों की मजबूती के लिए मैं क्या उपाय कर सकती हूं?

जवाब

हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए आप संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें जिस में सब्जियां, फल, दूध व दुग्ध उत्पाद, सूखे मेवे, अंडे, साबूत अनाज और दालें शामिल हों. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज और वाक करें. इस से बोन डैंसिटी बढ़ती है. रोज कम से कम 20-30 मिनट सुबह की कुनकुनी धूप लें. इस से आप को पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिल जाएगा जो आप की हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है. अगर आप धूम्रपान या शराब का सेवन करती हैं तो बंद कर दें. नियमित अंतराल पर अपना बोन डैंसिटी टैस्ट कराती रहें.

सवाल

मैं 35 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे नी आर्थ्राइटिस है. मैं जानना चाहती हूं कि क्या बिना सर्जरी के इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है?

नी आर्थ्राइटिस यानी घुटनों का आर्थ्राइटिस एक लगातार गंभीर होती समस्या है क्योंकि समय के साथ घुटनों के जोड़ों की खराबी बढ़ती जाती है. कई कारण हैं जो घुटनों के आर्थ्राइटिस का कारण बन सकते हैं जैसे घुटनों में लगी कोई चोट, गठिया, औटो इम्यून डिजीजेज आदि. अगर आप की समस्या ज्यादा गंभीर नहीं है तो आप अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं. जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाएं, मोटापे को नियंत्रण में रखें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. डायग्नोसिस के बाद उचित उपचार करने में देरी न करें तो बीमारी को गंभीर होने से रोका जा सकता है और किसी हद तक घुटना प्रत्यारोपण से बचा जा सकता है.

-डा. ईश्वर बोहराजौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन,

बीएलके सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

स्रूस्, व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या 9650966493 पर भेजें.

घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में लाइफस्टाइल में क्या बदलाव होने चाहिए?

सवाल-

मैं 38 वर्षीय आईटी प्रोफैशनल हूं. जब मैं औफिस में बैठा रहता हूं तब भी मेरे घुटनों में बहुत तेज दर्द और जकड़न होती है. मुझे जिम जाने और वर्कआउट करने का समय कभीकभी ही मिल पाता है. मैं ने घुटनों के दर्द के लक्षणों की खोज की तो पाया कि घुटनों का आर्थ्राइटिस 30 वर्ष की प्रारंभिक अवस्था और 40 वर्ष की उम्र में आम समस्या है. क्या आप घुटनों के आर्थ्राइटिस को दूर रखने में जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर और ज्यादा विस्तार से प्रकाश डाल सकते हैं? वे बेसिक चीजें कौन सी हैं, जिन से मैं अपने घुटनों को दुरुस्त रख सकता हूं और दर्द की समस्या से छुटकारा पा सकता हूं?

जवाब-

मैं आप को डाक्टर से सलाह लेने और घुटनों का उचित इलाज कराने की सलाह दूंगा. इंटरनैट पर देख कर खुद अपना इलाज करने से आप को गलत जानकारी मिल सकती है और आप की हालत बिगड़ सकती है. अपने घुटनों को स्वस्थ रखने के लिए आप को जिम में जाने और बहुत ज्यादा देर तक नहीं बैठना है और समयसमय पर ब्रेक ले कर हलकाफुलका व्यायाम करना है.

किसी भी तरह का हलका व्यायाम जैसे 30 मिनट तक चलने और एस्केलेटर की जगह सीढि़यों से आनेजाने से आप को घुटनों के दर्द से काफी आराम मिल सकता है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अगर आप का वजन ज्यादा है तो यह आप के घुटनों का मजबूत रखने में सब से बड़ी रुकावट है.

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रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

इस बीमारी के लक्षण का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस में सूजन, जोड़ों में तेज दर्द जैसे लक्षण होते हैं. पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं को अधिक देखने को मिलती है. वैसे तो यह समस्या बढ़ती उम्र के साथसाथ होती है, लेकिन अनियमित दिनचर्या और गलत खानपान के कारण कम उम्र की महिलाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

हमेशा हाथों को मुलायम बनाए रखने के खास टिप्स बताएं?

सवाल

मेरे हाथों की स्किन बेजान और ड्राई दिखने लगी है. हमेशा हाथों को मुलायम बनाए रखने के खास टिप्स बताएं?

जवाब

हाथों को सुंदर बनाए रखने के लिए स्क्रब करना बेहद जरूरी होता है. हाथों को स्क्रब करने से त्वचा से मृत कोशिकाएं हट जाती हैं और हाथ सुंदर दिखने लगते हैं. इस के बाद हाथों पर मौइश्चराइजर लगाना जरूरी होता है. इस से त्वचा पर मौइस्चर बना रहता है.

हाथों के लिए स्क्रब बनाने के लिए 1 मुट्ठी बादाम पीस कर पाउडर बना लें. उस में आधा चम्मच शहद डाल कर पेस्ट बना लें. इस पेस्ट से हाथों को  स्क्रब करें. चीनी, नमक और नारियल तेल से बना स्क्रब भी यूज कर सकती हैं.

इस स्क्रब को बनाने के लिए 1 चम्मच नारियल तेल और 1 चम्मच शहद को अच्छी तरह मिला लें. अब इस में एकचौथाई कप नमक और चीनी मिलाएं. अब इस में थोड़ा सा नीबू का रस मिला कर 30 सैकंड तक ब्लैंड करें. इस से हाथों पर स्क्रब करने से मृत कोशिकाएं हट जाती है.

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लौकडाउन के दौरान घर का काम करते हुए हाथों और पैरों का इस्तेमाल सब से ज्यादा होता है. आजकल हमें ऐसे कई तरह के काम करने पड़ रहे हैं जो हाथों की त्वचा को सीधा नुकसान पहुंचाते हैं. जैसे कपड़े धोते समय तरहतरह के डिटर्जेंट का उपयोग करना पड़ता है. उन में केमिकल्स कंपोनेंट काफी हाई होता है. यही नहीं कपड़े धोते समय कभी गर्म तो कभी ठंडे पानी का इस्तेमाल होता है. यह सब हमारे हाथों के लिए काफी परेशानी पैदा करते हैं. त्वचा पर रैशेज या फिर इरिटेशन हो जाती है.

Monsoon Special: इन 7 टिप्स से बरसात में रहेंगे फिट एंड फाइन

चिलचिलाती गरमी से मौनसून की बौछारें राहत तो देती हैं पर बारिश के बाद वातावरण में बढ़ती उमस के कारण वायरल, बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण भी सक्रिय हो जाते हैं. इस दौरान डेंगू, मलेरिया आदि के मामले भी बढ़ जाते हैं. फिर उमस भरे मौसम में शरीर में पानी की कमी भी हो सकती है.

तो क्या मौनसून का लुत्फ न उठाएं? नहीं, मौनसून का दिल खोल कर लुत्फ उठाने के लिए बस इन स्वास्थ्य संबंधी उपायों का पालन करें:

 1. मच्छरों से बचाव

वैसे तो डेंगू व मलेरिया के मामले गरमी के महीनों से ही दिखने लगते हैं, लेकिन जब मौनसून की बौछारें शुरू होती हैं तो ये बीमारियां चरम पर पहुंच जाती हैं. उमस बढ़ते ही कीड़ेमकोड़ों को पनपने का माकूल माहौल जो मिल जाता है. ठहरे हुए पानी में मच्छरों को प्रजनन करने की अच्छी जगह मिल जाती है और हवा में बढ़ती उमस उन्हें पनपने का अच्छा मौका मिल जाता है. इसीलिए मच्छरजनित बीमारियों का कहर मौनसून के मौसम में चरम पर होता है. अत: घर के आसपास ठहरे हुए पानी में मच्छर मारने वाली दवा का छिड़काव करें.

2. भरपूर पानी पीते रहें

अत्यधिक उमस का मतलब है कि बहुत ज्यादा पसीना निकलेगा. लिहाजा डीहाइड्रेशन होना पक्का है. पूरे वर्ष की तरह मौनसून के दौरान भी खुद को हाइड्रेटेड रखना जरूरी है. शुद्ध जल का पर्याप्त सेवन करें ताकि आप का शरीर और त्वचा हाइड्रेटेड बनी रहे. इस से आप के शरीर को संक्रमण से लड़ने की ताकत भी मिलती है और आप पानी की कमी होने से भी बचे रहते हैं. इस के अलावा भरपूर पानी पीने से शरीर के विषाक्त तत्त्व भी पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर निकलते रहते हैं.

3. बैक्टीरियल एवं फंगल संक्रमण से बचाव

मौनसून के मौसम में बैक्टीरियल और फंगल संक्रमण बड़ी तेजी से फैलता है, क्योंकि इस मौसम का तापमान और नमी उन की वृद्धि के लिए अनुकूल हो जाती है. त्वचा के संक्रमण से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपनी त्वचा को ज्यादा समय तक भीगने से बचाएं. सीलन के कारण फंगल संक्रमण बढ़ता है. बैक्टीरियल और फंगल समस्याओं से बचे रहने के लिए ऐंटीबैक्टीरियल साबुन, क्रीम और पाउडर का इस्तेमाल करें, खासकर तब जब आप की त्वचा ज्यादा संवेदनशील हो.

आर्द्र मौसम में फंगल तेजी से फैलता है. त्वचा के मुड़ने वाले स्थानों पर लाल निशान पड़ जाते हैं. इस के अलावा तैलीय त्वचा में तेजी से दाने निकल आते हैं और खुजली भी होने लगती है. बहुत ज्यादा पसीना निकलने की स्थिति में यदि आप त्वचा को सुखा कर नहीं रखते और कपड़े नहीं बदलते हैं तो भी ऐसी समस्याएं बढ़ जाती हैं. ज्यादा देर तक पसीने वाले मोजे पहनने से भी समस्या बढ़ जाती है. इसलिए अपने पैरों और जांघों को सूखा और संक्रमण मुक्त रखें.

स्नान करने के बाद तौलिए से त्वचा और सिर को पोंछ कर सुखा लें. जब भी पैरों को धोएं, उन्हें तौलिए से अच्छी तरह पोंछ कर सुखा लें और उंगलियों के बीच के हिस्सों को भी सुखा लें. इस से आप संक्रमण से बचे रहेंगे. घर में प्रवेश करते ही पैरों को धो लें और संभव हो तो पानी में बेटाडीन की कुछ बूंदें मिला कर उस में पैरों को कुछ देर डुबोए रखें. जरूरत हो तो ऐंटीफंगल पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. पैरों में हवा की आवाजाही बनाए रखने के लिए खुले जूते या चप्पलें पहनें.

4. तैलीय और बाहर के भोजन से परहेज करें

मौनसून के मौसम में अपचता भी एक बड़ी समस्या होती है. जब उमस अधिक होती है तो शरीर में भोजन पचाने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है. फिर जब आप का पाचनतंत्र कमजोर रहता है तो गरिष्ठ भोजन आप के पेट को आसानी से बिगाड़ सकता है. लिहाजा आप अपने पेट को बिगड़ने न दें. इसे संक्रमण की चपेट में न आने दें. तैलीय भोजन भी त्वचा में संक्रमण और अन्य समस्याएं पैदा करने के लिए जिम्मेदार होता है. अत: इस दौरान हलका और आसानी से पचने वाला भोजन ही करें.

इस दौरान चूंकि संक्रमण चरम पर होता है, इसलिए बाहर के भोजन से परहेज करना ही बेहतर होगा. मौनसून के दौरान सड़क किनारे के ढाबों और रैस्टोरैंट में खाना खाने से दूर ही रहें. घर में बना भोजन ही करें. इस से संक्रमण की चपेट में आने की संभावना कम रहेगी, जो इस दौरान वातावरण में तेजी से फैल चुका होता है.

5. आंखों को भी रखें साफ

इस मौसम में आंखों का वायरल संक्रमण भी चिंता का कारण बनता है. हालांकि इस मौसम में संक्रमण से बचना मुश्किल होता है, लेकिन यह तय है कि आंखों की साफसफाई करते रहने से आप संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं. घर में प्रवेश करते ही साबुन से हाथ धो कर आंखों को पानी से अच्छी तरह धोएं.

हर रात सोने से पहले आंखों में गुलाबजल की कुछ बूंदें डालें. पानी में सल्फर का टुकड़ा डाल कर भी रख सकते हैं. फिर उस पानी से आंखों को साफ कर सकते हैं.

6. प्रतिरक्षण प्रणाली मजबूत रखें

संक्रमण से लड़ने का सब से अच्छा तरीका अपने शरीर को अंदर से मजबूत बना कर रखना है और यह मजबूती सही खानपान से ही संभव हो सकती है. शरीर को चमकदार और अंदर से मजबूत बनाए रखने के लिए नियमित रसदार फल और हरी सब्जियां खाएं. सेब, नाशपाती और अनार जरूर खाएं. भोजन में लहसुन का इस्तेमाल करें. नियमित दही खाएं.

7. साफसफाई के नियमों का पालन करें

मौनसून के दौरान संक्रमण तेजी से फैलता है. इसलिए खुद को जितना साफसुथरा रखेंगे आप के संक्रमित होने की उतनी ही कम संभावना रहेगी. हम सार्वजनिक परिवहन में सफर करते हैं, सार्वजनिक स्थानों और सामुदायिक केंद्रों में जाते हैं जहां हर तरह के लोग होते हैं. इन में से कई लोग संक्रमण से ग्रस्त हो सकते हैं. अत: उन से संक्रमित न होने का सब से अच्छा उपाय यही है कि घर आते ही हाथों और चेहरे को अच्छी तरह धो लें. संभव हो तो स्नान ही कर लें तथा शरीर को अच्छी तरह सुखा लें.

– डा. रविंद्र गुप्ता, इंटरनल मैडिसिन कंसल्टैंट, कोलंबिया एशिया हौस्पिटल

 

Monsoon Special: बारिश और एलर्जी

मौनसून में जरा सी भी लापरवाही ऐलर्जी और इन्फैक्शन से ग्रस्त कर सकती है. बरसात के शुरू होने के साथ ही ये बीमारियां काफी परेशान करने लगती हैं. इस के साथ ही त्वचा और आंखों से संबंधित रोग भी काफी परेशान करते हैं.

1.स्किन इन्फैक्शन

बरसात की शुरुआत होते ही हमारी त्वचा के लिए परेशानी बढ़ जाती है. चूंकि इस दौरान वातावरण में ह्यूमिडिटी बहुत ज्यादा होती है. ऐसे में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि काफी तेजी से ग्रो करते हैं और जैसे ही ये त्वचा के संपर्क में आते हैं, त्वचा को संक्रमित कर देते हैं. हालांकि इन दिनों त्वचा को अगर सब से ज्यादा किसी माइक्रोब से संक्रमित होने का डर होता है, तो वह है फंगस. बरसात के मौसम में सब से ज्यादा फंगस यानी फफूंद के कारण ही त्वचा संक्रमित होती है और कई प्रकार के स्किन डिजीज होने की संभावना बनी रहती है.

2.रैड पैचेज यानी लाल चकत्ते

फंगल इन्फैक्शन की वजह से त्वचा खासकर बगलें, पेट और जांघों के बीच के जोड़ और स्तनों पर गोल, लाल पपड़ीनुमा चकत्ते निकल आते हैं. इन में काफी खुजली होती है.

इस परेशानी से बचने के लिए बगल, ग्रोइन और शरीर में जहांजहां जोड़ हैं वहां ऐंटीफंगल पाउडर लगाएं ताकि पसीना और नमी एकत्रित न होने पाए. बारबार फंगल इन्फैक्शन होने पर मैडिकेटेड पाउडर का इस्तेमाल करें.

3.हीट रैशेज

इस मौसम में पसीना काफी आता है, जिस से त्वचा के छिद्र यानी स्किन पोर्स बंद हो जाते हैं. इस वजह से त्वचा पर लाल फुंसियां यानी घमौरियां निकल आती हैं. इन में काफी खुजली और जलन होती है.

प्रिकली हीट पाउडर लगाएं. ढीले और सूती कपड़े पहनें. त्वचा की साफसफाई का पूरा खयाल रखें. घमौरियों के होने पर कालामाइन लोशन का इस्तेमाल करें. इस से खुजली से राहत मिलेगी.

4.पैरों का इन्फैक्शन

फंगल इंफैक्शन के कारण पैरों की उंगलियां संक्रमित हो जाती हैं. असल में इस मौसम में नंगे पांव गीले फर्श पर चलने या देर तक पानी में पैरों के रहने के कारण वहां मौजूद फंगस उंगलियों को संक्रमित कर देता है.

इस संक्रमण की वजह से उंगलियां लाल हो कर सूज जाती हैं और उन में खुजली भी होती है. इस संक्रमण के होने पर रोगी को चलने में काफी तकलीफ होती है. इस संक्रमण के कारण कई बार अंगूठे के नाखून यानी टो नेल्स और दूसरे नाखून भी संक्रमित हो जाते हैं. इस संक्रमण के होने पर नाखून बदरंग और कमजोर हो कर अपनी चमक खो देते हैं.

फुट और नेल इन्फैक्शन से बचने के लिए गीली जमीन पर नंगे पैर न चलें. पैरों को ज्यादा देर तक गीला न रहने दें. गीले जूतेचप्पल पहनने से बचें. बहुत देर तक जूतेमोजे न पहने रखें, क्योंकि इस से पसीना निकलता है और वह सूख नहीं पाता है, जिस से फंगल इन्फैक्शन हो सकता है. इस मौसम में सैंडल्स और फ्लोटर्स ही पहनें. नाखूनों को समयसमय पर काटते रहें और उन की साफसफाई का विशेष ध्यान रखें. सूती मोजे पहनें.

5.साइट संक्रमण

मौनसून में आंखों को सब से ज्यादा तकलीफ साइट संक्रमण से ही होती है. इस संक्रमण के होने पर पलकों पर एक प्रकार का लंप यानी गांठ सी हो जाती है. इस की वजह से आंखों में काफी दर्द होता है. यह संक्रमण बैक्टीरिया द्वारा आंखों के संक्रमित होने के कारण होता है. गरम पानी में कपड़ा डुबो कर सेंकने और हर 2-3 घंटे पर आंखों की सफाई करने से रोगी को आराम मिलता है.

इस के अलावा इस मौसम में आंखों का लाल हो जाना. उन में जलनचुभन और खुजली होना आम बात है.

6.ऐथलीट फुट

यह बीमारी उन लोगों को होती है, जो काफी लंबे समय तक पानी में रहते हैं, खासकर गंदे पानी में. इस संक्रमण की शुरुआत अंगूठे से होती है. वहां की त्वचा सफेद या हरे रंग की हो जाती है. उस में बहुत ज्यादा खुजली होने लगती है. कई बार तो यहां की त्वचा से दुर्गंधयुक्त स्राव या पस भी निकलने लगता है.

इस संक्रमण से बचने के लिए पानी से निकलने के बाद पैरों को गरम पानी और साबुन से साफ करें. उस के बाद अच्छी तरह सुखाएं. बूट पहनने से बचें.

7.अस्थमा

मौनसून में हवा में परागकण और फंगस जैसे ऐलर्जन के मौजूद रहने के कारण अस्थमा की परेशानी बढ़ जाती है. मौनसून में अस्थमा के तेज होने के कई कारण होते हैं:

– गरज के साथ तेज बारिश के होने से इस मौसम में रोगी को अस्थमा के अटैक आने लगते हैं. चूंकि इस मौसम में तेज हवा चलती है इस कारण बड़ी मात्रा में फूलों के परागकण निकल कर हवा में फैल जाते हैं, जो सांस के साथ रोगी के शरीर में चले जाते हैं. नतीजा रोगी की परेशानी बढ़ जाती है.

– इस मौसम में ह्यूमिडिटी यानी आर्द्रता के बढ़ने से फंगल स्पोर्स या मोल्ड्स काफी तेजी से पनपते हैं. ये फंगस या मोल्ड्स दमे के रोगी के लिए बेहद स्ट्रौंग ऐलर्जन होते हैं. ऐसे में वातावरण में इन की वृद्धि अस्थमा रोगियों की परेशानी का सबब बन जाती है. यही कारण है कि इस मौसम में दमा के अटैक ज्यादा आते हैं.

– बरसात के कारण हवा में सल्फर डाइऔक्साइड और नाइट्रोजन औक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो जाती है. फलतया वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हो जाती है. ये सल्फर डाइऔक्साइड और नाइट्रोजन औक्साइड दमे के रोगियों को सीधा प्रभावित करते हैं और परेशानी बढ़ा देते हैं.

– मौनसून के दौरान गाडि़यों के धुएं के कारण होने वाला वायु प्रदूषण आसानी से समाप्त नहीं होता. इस वजह से अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है.

– मौनसून के मौसम में कुत्ते, बिल्ली अकसर घर के अंदर ही रहते हैं, बाहर कम निकलते हैं. इस वजह से उन के बालों में रूसी की मात्रा बढ़ जाती है. यह रूसी भी अस्थमा रोगियों की परेशानी को बढ़ाती है.

– मौनसून के दौरान वायरल इन्फैक्शन में वृद्धि हो जाती है. इस वजह से भी रोगी में दमे के लक्षण उभर आते हैं.

 सावधानियां 

– इस दौरान नियमित रूप से दमा की दवा लेते रहें. जो गंभीर रूप से अस्थमा से पीडि़त हों वे अपने साथ इनहेलर के द्वारा ली जाने वाली दवा भी लेते रहें ताकि उन के वायुकोष में सूजन न हो.

– आर्द्रता यानी ह्यूमिडिटी और नम जगहों को समयसमय पर एअर आउट करें. डीह्यूमिडिफायर के माध्यम से ऐसी जगहों की आर्द्रता को 25 से 50% तक कम करें.

– जरूरत पड़ने पर एअर कंडीशन का प्रयोग करें.

– बाथरूम की नियमित सफाई करें और उन उत्पाद का इस्तेमाल करें, जो फफूंद को खत्म करते हों.

– भाप को बाहर निकालने के लिए ऐग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें.

– इन दिनों इनडोर प्लांट्स को बैडरूम से बाहर रखें.

– बाहरी स्रोतों जैसे गीली पत्तियों, बाग की घास, कूड़े आदि से दूर रहें, क्योंकि वहां फफूंद होने का डर रहता है.

– फंगस को खत्म करने के लिए ब्लीच और डिटर्जैंट वाली क्लीनिंग सौल्यूशन का प्रयोग करें.

– जिस समय सब से ज्यादा परागकण हवा में फैले हों जैसे एकदम सुबह उस समय बाहर जाने से बचें.

– जब परागकण ज्यादा मात्रा में हवा में फैले हों उस समय खिड़कियां बंद रखें.

– रोएंदार तकिए और बिस्तर का इस्तेमाल न करें.

– सप्ताह में 1 बार गरम पानी से चादरों और तकियों के कवरों को साफ करें.

– महीने में 2 बार गरम पानी से घर के सारे परदों को साफ करें.

– इन दिनों कालीन न बिछाएं. अगर कालीन बिछा रखा है, तो उसे साफ करते समय मास्क का प्रयोग करें.

– इस बात का ध्यान रखें कि घर में धूल न जमने पाए. गीले कपड़े से लैंपशेड, खिड़कियों के शीशों को साफ करें.

8.आई इन्फैक्शन

इन दिनों हवा में मौजूद परागकण, धूलकण और दूसरे ऐलर्जन के कारण आंखें संक्रमित हो कर लाल हो जाती हैं. इसे ऐलर्जिक कंजक्टिवाइटिस कहते हैं. इस वजह से आंखों में सूजन आ जाती है. हालांकि इस कंजक्टिवाइटिस में आंखों से पानी नहीं निकलता है, लेकिन उन में खुजली बहुत ज्यादा होती है. इस परेशानी से बचने के लिए ऐलर्जन से बच कर रहें. समयसमय पर आंखों में आईड्रौप डालें.

सावधानी

– गंदे हाथों से आंखों को स्पर्श न करें.

-अगर आप को महसूस होता है कि आप को ऐलर्जिक कंजक्टिवाइटिस हो गया है, तो तुरंत साफ पानी से आंखों को धोएं और ठंडे पानी में पट्टी डुबो कर आंखों पर दबा कर रखें.

– अगर घर में किसी को कंजक्टिवाइटिस हुआ है, तो उसे ड्रौप डालने के बाद अपने हाथों को साफ पानी से धोएं.

– इन दिनों अपना तौलिया, साबुन, तकिया और दूसरी व्यक्तिगत चीजें किसी दूसरे के साथ शेयर न करें. ऐसा करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इन्फैक्शन हमेशा हाथों, कपड़ों आदि से फैलता है.

– इन दिनों कौंटैक्ट लैंस के इस्तेमाल से बचें.

– घर से बाहर निकलते समय धूप का चश्मा जरूर लगाएं.

– सड़क किनारे बिकने वाली चीजों को खाने से बचें.

– बाहर से आने के बाद अपने हाथों को साफ पानी से धोएं.

– बारबार आंखों को स्पर्श न करें.

– आंखों को पोंछने के लिए रूमाल या तौलिए के बजाय डिस्पोजेबल टिशू का इस्तेमाल करें.

– हाथों को समयसमय पर साफ पानी से धोते रहें.

– इन दिनों कौस्मैटिक्स का इस्तेमाल न करें.

– आंखों की साफसफाई का पूरा ध्यान रखें. उन्हें साफ और ठंडे पानी से धोएं.

– आंखों को दिन में 3-4 बार साफ करें.

– नाखूनों को समयसमय पर काटते रहें.

– अगर आंखों में चुभन महसूस हो रही है, तो रगड़ें नहीं वरना संक्रमण हो सकता है.

– परेशानी होने पर डाक्टर को दिखाएं

डा. पी के मल्होत्रा

सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली

Monsoon Special: इन 4 टिप्स से पाएं बरसात की सीलन से छुटकारा

बारिश का मतलब है नमी, बदबू करते कपड़े, अलमारियों में फंगल इंफेक्शन और भी बहुत कुछ. मॉनसून के दस्तक देने के बाद बारिश का लुत्फ उठाने का आनंद ही कुछ और है, लेकिन बारिश का पानी जब घरों में घुस जाता है तो परेशानी का सबब बन जाता है. यही नहीं लीकेज कभी-कभी जबरदस्त नुकसान का कारण बन जाती है.

बरसात के मौसम में घरों में सीलन बढ़ जाती है और कॉकरोचों के पनपने के लिए ये सबसे अनुकूल समय होता है. इनके सबसे अधि‍क पनपने की जगहें किचन और स्टोर रूम होती है.

मॉनसून में घर की, खासकर लकड़ी के फर्नीचर और दरवाजे-खिड़कियों की देखभाल बहुत जरूरी होती है, वरना मॉनसून के बाद उनका आकार और रंग, दोनों खराब हो सकता है. अगर आप अपना घर बारिश के लिए तैयार नहीं रखती हैं तो यह मौसम भारी मुसीबत का कारण बन सकता है.

बरसात के दिनों में अक्सर घर में अजीब-सी बदबू आने लगती है, जिससे घर के वातावरण के साथ ही मूड भी खराब हो जाता है. अगर आप भी इस समस्या से परेशान हैं और सफाई करने के बाद भी घर में ताजगी का एहसास नहीं होता. कुछ घरेलू उत्पादों की मदद से आपका काम बन सकता है.

1. साफ-सफाई

घर की रोज सफाई होनी चाहिये. इससे घर में न तो नमी रहती है और न ही गंदी महक आती है.

2. नालियों की सफाई

घर के अंदर और बाहर की नालियों की अच्छी तरह से सफाई कर लीजिये ताकि वहां कहीं गंदगी जाम न हो और सीवेज सिस्टम भी सही होना चाहिये.

3. दरवाजों को करें फिक्स

बरसात के दिनों में जहां घर में सीलन की परेशानी होती है तो वहीं लकड़ी के दरवाजे पानी पड़ने से फूल जाते हैं. ऐसे में दरवाजों को निकलवा कर उन्हें दुबारा फिक्स करना चाहिये और उसे पेंट या फिर उस पर प्लास्टिक की पट्टी लगानी चाहिये जिससे अगर उस पर पानी पड़े तो वह फूले नहीं.

4. दीवारों पर लाइट पेंट करवाएं

बरसात में अकसर कीड़े-मकोडों आ जाते हैं. क्योंकि डार्क कलर्स कीडे-मकोडों को ज्यादा भाते हैं, इसलिए आप दीवारों पर व्हाइट या लाइट कलर ही पेंट कराएं.

मानसून में इन 10 टिप्स की मदद से छोटे बच्चों को दें पूरी हाइजीन

भारी गर्मी के बाद बारिश का आनंद लेना सभी को पसंद आता है, लेकिन मानसून में बीमारियों का ख़तरा भी सबसे ज़्यादा होता है, क्योंकि इस समय आसपास जमा हुए पानी में मच्छर तेज़ी से पनपने लगते हैं, जो डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं. वहीं दूसरी ओर कपड़ों, दीवारों और हवा में मौजूद नमी के कारण बैक्टीरिया भी बढ़ने लगते है, ऐसे में इस मौसम में हाइजीन और मच्छरों से सुरक्षित रहना बहुत ज़रूरी होता है.

ख़ासकर छोटे बच्चों को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि उनके बीमार होने की संभावना अधिक होती है. इसलिए आसपास के माहौल को हमेशा साफ़ रखना आवश्यक होता है, ताकि बच्चा मच्छरों से सुरक्षित रहे. हालाँकि ये करना आसान नहीं होता, लेकिन निरंतर प्रयास से थोड़ा कम किया जा सकता है.

इस बारें में माइलो एक्सपर्ट श्वेता गुप्ता कहती है कि मच्छरों को भगाने में कॉइल और स्प्रे जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करना इफेक्टिव हो सकता है, लेकिन इससे बच्चे को हेल्थ संबंधित समस्याएं होने की संभावनाएं बढ़ जाती है. इसलिए इस मानसून के मौसम में बच्चे का ध्यान रखने के लिए कुछ सुझाव निम्न है,

1. 2 माह से कम उम्र के बच्चे को मच्छरों और कीटों से सुरक्षा देने के लिए सिर्फ़ अच्छे कपड़ों और बेड नेट का ही इस्तेमाल करें.

2. हमेशा बच्चे को उठाने से पहले हाथों को अच्छी तरह से साफ़ कर लें. हाथों को कुछ समय के अंतराल में धोते रहें.बच्चों की इम्यूनिटी कमज़ोर होती है, जिस वजह सेवे जल्दी बीमार पड़ जाते हैं. साथ ही बच्चे के हाथों को भी साफ़ रखें. असल में बच्चे जिस भी चीज़ को देखते हैं, उसे मुँह में डालने की कोशिश करते है, ऐसे में बच्चों के हाथों की सफाई भी मेडिकेटिड साबुन से करनी चाहिए, क्योंकि उनकी त्वचा बहुत ही नाज़ुक होती है.

3. बच्चे को कॉटन के ऐसे ढीले कपड़े पहनाएं, जो बच्चे के हाथों और पैरों को अच्छे से कवर करते हो, ताकि मच्छर बच्चे की त्वचा तक न पहुंच सके और बच्चे की त्वचा को हवा भी लगती रहें. ध्यान रखें कि बच्चे को कपड़े पहनाने से पहले उसका शरीर पूरी तरह से सूख चुका हो, क्योंकि अक्सर गीली त्वचा पर बैक्टीरिया पनपने लगते हैं और त्वचा पर फंगल इंफेक्शन होने की संभावना होती है.

4. मच्छरों को दूर रखने में मॉस्किटो रेपलेंट बहुत ही इफेक्टिव तरीके़ से काम करता है. इसमें नैचुरल पदार्थ से बने रेपलेंटहोता है और ये आसानी से मच्छरों को दूर भगा सकता है, लेकिन इसका ज़्यादा उपयोग फफोले, मेमोरी लॉस और साँस लेने में तकलीफ जैसी समस्याओं को बढ़ा सकता है. इसलिए बच्चे की सुरक्षा के लिए डीईईटी-फ्री और लेमनग्रास, सिट्रोनेला, नीलगिरी और लैवेंडर जैसी चीज़ों से बने रेपेलेंट का ही इस्तेमाल करें.

5. मॉस्किटो पैचेस मच्छरों को दूर रखने में इफेक्टिव तरीक़े से काम करता है. आप इसे बच्चे के कपड़ों, क्रिब, बेड और स्ट्रॉलर पर लगा सकते हैं.

6. अपने बच्चे के स्ट्रॉलर, कैरियर या क्रिब को मच्छरदानी से कवर कर दें, ताकि मच्छर आपके बच्चे तक न पहुंच सके. आप घर के अंदर और बाहर जाने पर भी मच्छरदानी का उपयोग कर सकते हैं. ऐसा करने से मच्छर आपके बच्चे की त्वचा तक नहीं पहुंच पाएंगे.

7. घर में साफ़-सफाई का विशेष तौर पर ध्यान रखें.एसी के पानी की ट्रे, प्लांट गमलों में पानी, आदि किसी जगह पर पानी जमा न होने दें. यहाँ तक कि वॉशरूम में बाल्टी में पानी भर कर न रखें. अगर कहीं से पानी लीक होता हो, तो उसका भी ध्यान रखें. दरअसल, जमे हुए पानी में मच्छर और कीड़ें तेज़ी से पनपते हैं.

8. भले ही आपका घर कितना ही साफ़ क्यों न हो, लेकिन आप अपने बच्चे को किसी भी चीज़ को मुँह में रखने से नहीं रोक सकते. इसलिए यह ज़रूरी है कि आपके बच्चे के संपर्क में आने वाली हर चीज़ साफ़ हो, ख़ासकर खिलौने. आप ठोस खिलौनों को साबुन की मदद से धो सकते हैं. वहीं, सॉफ्ट खिलौनों को वॉशिंग मशीन में धो सकते हैं.

9. बेबी वाइप्स के साथ उन साबुन का भी इस्तेमाल करें, जो आपके बच्चे की नाजु़क त्वचा के अनुकूल हो. न्यू बोर्न बेबी के लिए अल्कोहल-फ्री और पानी पर आधारित वाइप्स का ही उपयोग करें, क्योंकि इस तरह की वाइप्स बच्चे की त्वचा को ख़ासतौर पर पोषण देती है.

10. अगर आपके बच्चे को डेंगू हो जाता है, तो उसके लक्षणों पर नज़र रखें, ताकि उसे सही ट्रीटमेंट दिया जा सके. बुखार,उल्टी, सिरदर्द, मुँह का सूखापन, पेशाब में कमी, रैशेज और ग्रंथि में सूजन आना आदि कुछ आम लक्षण हैं. इन लक्षणों को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए. बच्चे में इनमें से कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें.

इस छोटी उम्र में बच्चे अपना ख़्याल ख़ुद नहीं रख सकते हैं. बीमारियों से बचने के लिए उन्हें ख़ास केयर की ज़रूरत होती है. इसलिए इस मानसून में टिप्स को फॉलो कर, अपना और अपने परिवार का बेहतर तरीक़े से ख़्याल रख सकती है.

Monsoon Special: आंखों की सुरक्षा है जरुरी

अगर मौनसून में आंखों का ठीक प्रकार से ध्यान न रखा जाए तो उन में कई समस्याएं हो जाती हैं. मसलन, आंखों का सूजना, लाल होना, आंखों का संक्रमण भी हो सकता है. कंजक्टिवाइटिस, आई स्टाई, ड्राई आईज के साथसाथ कौर्नियल अल्सर होने का भी खतरा बढ़ जाता है.

मौनसून में होने वाली आंखों की प्रमुख समस्याएं हैं:

  1. कंजक्टिवाइटिस: कंजक्टिवाइटिस में आंखों के कंजक्टाइवा में सूजन आ जाती है. उन में जलन महसूस होती है. आंखों से पानी जैसा पदार्थ निकलने लगता है.

कारण: फंगस या वायरस का संक्रमण, हवा में मौजूद धूल या परागकण, मेकअप प्रोडक्ट्स.

उपचार: अगर आप कंजक्टिवाइटिस के शिकार हो जाएं तो हमेशा अपनी आंखों को ठंडा रखने के लिए गहरे रंग के ग्लासेज पहनें. अपनी आंखों को साफ रखें. दिन में कम से कम 3-4 बार ठंडे पानी के आंखों को छींटे दें. ठंडे पानी से आंखें धोने से रोगाणु निकल जाते हैं. अपनी निजी चीजें जैसे टौवेल, रूमाल आदि किसी से साझा न करें. अगर पूरी सावधानी बरतने के बाद भी आंखें संक्रमण की चपेट में आ जाएं तो स्विमिंग के लिए न जाएं. कंजक्टिवाइटिस को ठीक होने में कुछ दिन लगते हैं. बेहतर है कि किसी अच्छे नेत्ररोग विशेषज्ञ को दिखाया जाए और उचित उपचार कराया जाए.

2. कौर्नियल अल्सर: आंखों की पुतलियों के ऊपर जो पतली झिल्ली या परत होती है उसे कौर्निया कहते हैं. जब इस पर खुला फफोला हो जाता है, तो उसे कौर्नियल अल्सर कहते हैं. कौर्नियल अल्सर होने पर आंखों में बहुत दर्द होता है, पस निकलने लगता है, धुंधला दिखाई देने लगता है.

कारण: बैक्टीरिया, फंगस या वायरस का संक्रमण.

उपचार: यह आंखों से संबंधित एक गंभीर समस्या है. इस में डाक्टर से मिल कर तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है.

3. ड्राई आईज: इस में आंखें लगातार आंसुओं का निर्माण करती हैं ताकि उन में नमी बनी रहे और ठीक प्रकार से दिखाई दे. इस के कारण अंतत: आंसुओं का प्रवाह असंतुलित हो जाता है, जिस के कारण आंखें ड्राई हो जाती हैं. ड्राई आईज की समस्या हर मौसम में होती है, लेकिन बरसात में यह समस्या अधिक बढ़ जाती है.

कारण: हवा, धूल और ठंडी हवा के संपर्क में अधिक रहना.

उपचार: इस का सब से बेहतर उपचार डाक्टर द्वारा सुझाए आई ड्रौप्स का इस्तेमाल करना है. अगर समस्या तब भी बनी रहे तो तुरंत किसी अच्छे नेत्ररोग विशेषज्ञ को दिखाएं.

4. आई स्टाई: आई स्टाई को सामान्य बोलचाल की भाषा में आंख में फुंसी होना कहते हैं. यह मौनसून में आंखों में होने वाली एक प्रमुख समस्या है. यह समस्या पलकों पर एक छोटे उभार के रूप में होती है. आमतौर पर यह समस्या आंखों को गंदे हाथों से रगड़ने से होती है या फिर नाक के बाद तुरंत आंखों को छूने से भी होती है. कुछ बैक्टीरिया जो नाक में पाए जाते हैं वे भी आई स्टाई का कारण बनते हैं.

कारण: मौनसून में बैक्टीरिया का संक्रमण.

उपचार: आईड्रौप्स और दूसरी दवाएं

मौनसून में आंखों की सुरक्षा

  1. आंखों को छूने से पहले हमेशा अपने हाथ धोएं.
  2. जब भी बाहर जाएं अपने साथ ऐंटीबैक्टीरियल लोशन जरूर रखें.
  3.  अगर कौंटैक्ट लैंस लगाते हैं, तो किसी के भी साथ अपना लैंस सौल्यूशन साझा न करें.
  4. नाखून छोटे रखें, क्योंकि बड़े नाखूनों में धूल जमा हो जाती है, जो फिर जब आंखें सीधे हाथों के संपर्क में आती हैं, तो धूल उन में जा सकती है.
  5.  ऐक्सपाइरी डेट के प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें.
  6. आंखों के संक्रमण के दौरान मेकअप प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें.
  7.  इस दौरान कौंटैक्ट लैंस न लगाएं.
  8.  धूल भरी आंधी, बारिश और तेज हवाओं से आंखों को सुरक्षित रखने के लिए ग्लासेज का इस्तेमाल करें.

मुझे मास्क लगाने पर फेस पर बहुत पसीना आता है?

सवाल-

मुझे मास्क लगाने पर फेस पर बहुत पसीना आता है, जिस के कारण मैं मास्क पहनना चाह कर भी नहीं पहन पा रही हूं, क्या ऐसा कोई उपाय है. जिस से मैं मास्क भी पहनूं और मुझे पसीने की समस्या भी न आए?

जवाब-

मास्क लगाने से अगर त्वचा में रैशेज या पसीना हो तो इस से बचने के लिए कौटन के बने मास्क या रूमाल का इस्तेमाल करें. मास्क पहनने से पहले चेहरे पर ऐसी क्रीम या मौइस्चराइजर लगाना चाहिए, जिस में ऐंटीइनफ्लैमेटरी इन्ग्रीडिऐंट्स हों. इस के लिए आप नियासिनमाइड बेस्ड क्रीम चुन सकती हैं. नियासिनमाइड विटामिन बी का ही एक प्रकार है. यह हमारी स्किन में सेरामाइड का निर्माण करने में सहायता करता है. सेरामाइड स्किन पर किसी भी तरह की दिक्कत को बढ़ने से रोकता है. यह हमारी त्वचा से अतिरिक्त पसीना निकलने से भी रोकता है. जिन की स्किन बहुत अधिक सैंसिटिव होती है,

उन्हें भी नियासिनमाइड बेस्ड औइनमैंट्स का उपयोग करना चाहिए ताकि गरमी में मास्क के कारण त्वचा संबंधी समस्याएं न बढ़ें.

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वायरसों से बेसिक बचाव के लिए मास्क पहना यानी नाक-मुंह ढका जाता है. मौजूदा घातक नोवल कोरोना वायरस के बहुत तेजी से फैलाव को देखते हुए विश्व संस्था डब्लूएचओ ने इस के इस्तेमाल पर काफी अधिक जोर दिया है. कुछ देशों ने तो इस के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है. हमारे देश के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मास्क पहनना लाजिमी करार दिया है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने पहले से ही इसे जरूरी घोषित कर रखा है.

दरअसल, कोरोना से बचाव सिर्फ आज या कल ही नहीं, बल्कि आने वाले लंबे समय तक करना होगा, क्योंकि इस की दवा फ़िलहाल उपलब्ध नहीं है. इस वायरस के नाक या मुंह के रास्ते शरीर के अंदर जाने से रोकने के लिए मास्क का इस्तेमाल किया जाता है.

संक्रमित होने से बचाता है मास्क :

कनाडा में मैकमास्टर विश्वविद्यालय ने अपने शोध कहा है कि आम कपड़े से बने मास्क नोवल कोरोना वायरस के संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रभावी हैं. विशेषरूप से ऐसे मास्क जो सूती कपड़े के बने हों.

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