कोरियोग्राफर पुनीत पाठक की शादी में छाए मौनी रॉय से लेकर शक्ति मोहन के लुक्स, फोटोज वायरल

बौलीवुड कोरियोग्राफर पुनीत पाठक ने बीते दिनों अपनी मंगेतर निधि मूनी संग शादी कर ली है, जिसकी फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर धूम मचा रही है. वहीं शादी के मेहंदी से लेकर रिसेप्शन की बात करें तो सेलेब्स ने इस शादी में अपने फैशन और डांस से सभी का दिल जीत लिया है. मौनी हो या शक्ति मोहन हर कोई अपने लुक्स से फैंस को दीवाना बना रहा है. वहीं पुनीत और उनकी वाइफ निधि की बात करें तो उनका लुक भी पार्टी में चार चांद लगा रहा है. इसीलिए आज हम आपको पुनीत पाठक की शादी में पहुंचे सितारों के कुछ लुक्स दिखाने वाले हैं, जिसे आप किसी वेडिंग या पार्टी में ट्राय कर सकती हैं.

1. दुल्हन का लुक था खास

पुनीत पाठक की वाइफ निधि के लुक की बात करें तो वह सिंपल लुक में भी जहां एक्ट्रेसेस को टक्कर देती हैं तो वहीं शादी के रिसेप्शन में वह हैवी कारीगरी वाले पीच कलर के लहंगे में  बेहद खूबसूरत लग रही थीं. वहीं उनका लुक और बेहद खास लग रहा था. वहीं उनके साथ भारती सिंह भी नजर आईं, जो औरेंज कलर के अनारकली सूट में बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

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2. मौनी रौय का लुक था स्टाइलिश

 

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अगर आप ये जानना चाहती हैं कि सिंपल साड़ी के साथ हैवी ब्लाउज को कैसे कैरी करें तो मौनी रौय का लुक आपके लिए एक उदाहरण साबित कर सकता है. ये लुक आपके लिए कम्फरटेबल के साथ-साथ स्टाइलिश भी साबित होगा.

3. शक्ति का ये साड़ी लुक करें ट्राय

 

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अगर आप धोती साड़ी ट्राय करना चाहती हैं तो शक्ति का धोती साड़ी लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. शाइनी शिमरी साड़ी के साथ कड़ाईदार ब्लाउज आपके लुक पर चार चांद लगा देगा.

4.  मुक्ति की रफ्फल साड़ी करें ट्राय

 

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अगर आप भी किसी वेडिंग में रफ्फल साड़ी ट्राय करना चाहती हैं तो मुक्ति का रफ्फल साड़ी लुक आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. हैवी ब्लाउज के साथ रफ्फल ग्रीन साड़ी आपके लुक को और भी खूबसूरत बना देगा.

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5. मुक्ति और शक्ति का लहंगा औप्शन करें ट्राय

 

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वेडिंग फंक्शन में अपने लुक से धमाल मचाने वाली शक्ति और मुक्ति के ये लहंगा आपके लिए परफेक्ट औप्शन हैं.

शिवांगी जोशी से लेकर मौनी रौय, इस वेडिंग सीजन में ट्राय करें ये ट्रैंडी मांगटीके

फेस्टिव और वेडिंग सीजन की शुरआत हो चुकी है, जिसके लिए हर कोई शौपिंग और तैयारियों में जुटा हुआ है. लेडीज अपने लुक को सजाने के लिए नई और ट्रैंडी चीजें ट्राय कर रही हैं, जिसके चलते वह औप्शन तलाश कर हुई नजर आ रही हैं. वहीं ज्वैलरी की बात करें तो इन दिनों कुंदन से लेकर चोकर हर तरह की ज्वैलरी छाई हुई है. झुमका हो या मांग टीका कई तरह के औप्शन मार्केट में नए आ गए हैं. इसीलिए आज हम आपको मार्केट में ट्रैंडी मांग टीकों के क्लेक्शन के कुछ औप्शन दिखाएंगे, जिसे शिवांगी जोशी और हिना खान जैसे सितारे ट्राय कर चुके हैं. तो आइए आपको दिखाते मांग टीकों के ट्रैंडी औप्शन…

1. खूबसूरत है शिवांगी जोशी का मांग टीका

सीरियल में नए-नए लहंगे और ज्वैलरी से अपने लुक को सजाने वाली नायरा यानी शिवांगी जोशी फैंस के बीच पौपुलर हो चुकी हैं. वहीं वह अकसर अपने फैंस के लिए ज्वैलरी मांग टीका हो या झुमके, कलेक्शन शेयर करती रहती हैं. हाल ही में शिवांगी ने अपना एक सिंपल मांग टीका शेयर किया है, जिसे लहंगा हो या लांचा आप किसी भी इंडियन आउटफिट के साथ ट्राय कर सकती हैं.

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2. पिंक लहंगे के साथ ट्राय करें ये मांग टीका

अगर आप किसी पिंक लहंगे के साथ मांग टीका और ज्वैलरी तलाश कर रही हैं तो एक्ट्रेस क्रिस्टल डिसूजा का ये सिंपल लेकिन खूबसूरत मांग टीका आपके लिए अच्छा औप्शन है.

3. क्रिस्टल का ये मांग टीका करें ट्राय

अगर आप अपने लुक को ट्रैंडी मांग टीके से सजाना चाहती हैं तो क्रिस्टल का ये कुंदन पैटर्न वाला मांगटीका परफेक्ट औप्शन साबित होगा.

4. हैवी मांगटीका करें ट्राय

अगर आप साड़ी या लहंगे के साथ ज्वैलरी नहीं पहनना चाहतीं तो मौनी रौय का ये हैवी मांग टीका आपके लुक को कम्पलीट करने में मदद करेगा.

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5. हिना खान का राजस्थानी मांग टीका करें ट्राय

वेडिंग सीजन में अक्सर राजस्थानी लुक लड़कियां ट्राय करती नजर आती हैं. अगर आप भी इस बार राजस्थानी लुक ट्राय करने वाली हैं तो हिना खान का ये राजस्थानी मांग टीका ट्राय करना ना भूलें.

TV और फिल्मों के बाद डिजिटल वर्ल्ड में मौनी रॉय की धमाकेदार एंट्री, ट्रेलर रिलीज

‘‘क्योकि सास भी कभी बहू थी’,‘देवों के देव महादेव’,‘नागिन’,’मेरी आशिकी तुझसे’सहित कई चर्चित सीरियलों के अलावा‘तुम बिन -2’ व ‘मेड इन चाइना’जैसी फिल्मों की चर्चित अदाकारा अब पहली बार डिजिटल माध्यम में कदम रखने जा रही हैं.वह फिल्म ‘‘लंदन कंफीडेंशियल’’ से डिजिटल जगत मंे कदम रखने जा रही हैं,जो कि 18 सितंबर को ‘ओटीटी’प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर आएगी.इस रोमांचक व जासूसी फिल्म में उनके साथ पूरब कोहली, प्रवेश राणा और कुलराज रंधावा भी है.

फिल्म ‘लंदन कंफीडेशियल’ का टीजर आ चुका है. यह अंडरकवर एजेटों की कहानी है.टीजर में चीन के अधिकारी एक भारतीय जासूस बीरेंन (पूरब कोहली)से पूछताछ कर यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि चीनी प्रतिनिधिमंडल में उसका स्रोत क्या हैै.इससे बीरेन की टीम का हर सदस्य काफी परेशान और चिंतित है.क्योकि सभी को पता है कि सच बीरेन को ही पता है.उधर एक काॅंफ्रेंस चल रही है,जिसमें इस बात की चर्चा है कि सिर्फ एक सप्ताह का समय बचा है,उससे पहले कुछ नहीं किया गया,तो एक वायरस बाहर निकलेगा और हर शहर को बर्बाद कर देगा.

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फिल्म‘‘लंदन कंफीडेशियल’’ में एक अंडर कवर एजेंट का किरदार निभा रही अभिनेत्री मौनी राॅय ने अपने इंस्टाग्राम पर इसका टीजर पोस्ट करते हुए लिखा है-‘‘दो अंडर कवर एजेंट..एक भयंकर कंसीपरेंसी..वाच देम अनकवर..द ट्ेटर विदिन एंड चाइनीज प्लाट..’’

कंवल सेठी निर्देशित फिल्म ‘‘लंदन कंफीडेंशियल की कहानी कोरोना महामारी के इर्द गिर्द घूमती है.दो जासूस पूरब कोहली और मौनी राॅय लंदन में महामारी फैलाने वाले चीन के खिलाफ सबूत हासिल करने में सफल होने वाले होते हैं,तभी उन पर लगातार कई जघन्य हत्याएं करने का आरोप लग जाता है.

ह वेब फिल्म ‘‘जी 5’’पर उस वक्त आ रही है,जब भारत व चीन के बीच तनाव अपनी चरम सीमा पर है.और पूरा विश्व ‘कोरोना महामारी’ के लिए चीन को ही दोषी ठहरा रहा है. पर देखना होगा कि यह फिल्म हर मुद्दे को कितनी संजीदगी के साथ पेश करती है.

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मेड इन चाइना फिल्म रिव्यू: लेखक व निर्देशक की विफलता का परिणाम

रेटिंगःदो स्टार

निर्देशकः मिखिल मुसाले

कलाकारः राज कुमार राव,मौनी रौय, गजराज राव,बोमन ईरानी, परेश रावल,सुमित व्यास व अन्य.

अवधिः दो घंटे नौ मिनट

परिंदा जोशी के उपन्यास ‘‘मेड इन चाइना’’ पर इसी नाम की फिल्म ‘‘मेड इन चाइना’’ लेकर आए हैं, जो कि एक गुजराती बिजनेसमैन की कहानी है.  मगर इसमें टैबू समझ जाने वाले सेक्स के विषय का मिश्रण कर चूंचूं का मुरब्बा बना डाला.  फिल्मकार ने उपन्यास का बंटाधार कर डाला. .

कहानीः

फिल्म की कहानी अहमदाबाद के एक गुजराती व्यापारी परिवार की है. परिवार के मुखिया मेहता (मनोज जोशी) के दो बेटे देवराज (सुमित व्यास) और रघुवीर (राज कुमार राव) हैं.  रघुवीर की पत्नी रूक्मणी (मौनी रौय) और एक बेटा है. मेहता ने अपना व्यापार रघुवीर को सौंपकर खुद एक मंदिर के ट्रस्टी बन गए हैं.  देवराज तो एक मोटीवेशनल स्पीकर (गजराज राव) के साथ जुड़े हुए हैं.  रघुवीर अब तक 13 तरह के व्यापार में हाथ आजमा चुका है और हर व्यापार में वह असफल रहा है. मगर उसकी पत्नी रूक्मणी हमेशा उसके साथ खड़ी नजर आती है.

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फिलहाल रघुवीर नेपाली चटाई बेच रहा है,मगर लाभ नहीं हो रहा है. मोटीवेशनल स्पीकर के लिए चीन से धन इकट्ठा करने के लिए देवराज को चीन जाना है,वह अपने पिता से कहकर रघुवीर के साथ ले जाता है. वहां देवराज तो असफल हो जाता है, मगर रघ्ुावीर को एक चीनी मिलता है, जिससे रघुवीर को सेक्स कमजोरी दूर करने की दवा का नुस्खा मिल जाता है. अब रघुवीर भारत वापस आकर भारतीय जुगाड़ के साथ नया बिजनेस शुरू करता है. इसके लिए वह मशहूर सेक्सोलॉजिस्ट डाक्टर वर्दी (बोमन ईरानी)के साथ हाथ मिलाता है. तो वहीं वह मशहूर फायनेंसर तमन (परेश रावल)से भी सलाह लेता रहता है. सारा खेल जम जाता है और उसकी सेक्स कमजोरी ूदूर करने की दवा ‘‘टाइगर सूप’’उंची कीमत पर बिकने लगती है. फिर तमन  बहुत बड़ी राशि रघुवीर के व्यापार में लगाते हैं. इससे मोटीवेशनल स्पीकर और उसके भाई देवराज को तकलीफ होती है. वह उसे फंसाने की सोचने लगते हैं. फिर कहानी कई मोड़ो से होकर गुजरती है और एक दिन वह बहुत बड़ी कारपोरेट कंपनी का सीईओ बन जाता है.

निर्देशनः

पूरी फिल्म देखने के बाद यह अहसास करना मुश्किल हो जाता ैहै कि ‘‘मेड इन चाइना’’के निर्देशक वही मिखिल मुसाले है,जिन्हे दो वर्ष पहले गुजराती फिल्म‘‘रौंग साइड राजू’’ के लिए सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था. इसकी सबसे बड़ी कमजोर कड़ी पटकथा है. निर्देशक मिखिल मसाले ने दीवाली के अवसर पर पूरे परिवार का मनोरंजन करने के साथ संदेश देने की नेक नीयत से एक गुजराती व्यवसायी एंटरप्रिनोर की कहानी के साथ भारत में टैबू समझे जाने वाले सेक्स समस्या पर जागरूकता वाली फिल्म बनाने का प्रयास किया,मगर ऐसा करते समय वह कुछ नया नही परोस पाए. फिल्म सेक्स, सेक्स से जुड़़ी बीमारी तथा सेक्स शिक्षा से जुड़ी तमाम वर्जनाओ पर बात करती है, मगर फिल्म का क्लायमेक्स जरुरत से ज्यादा डॉ.  वर्दी का उपदेशात्मक भाषण के अलावा कुछ नही है. इतना ही नही इसी तरह का क्लायमेक्स और यही बातें कुछ समय पहले प्रदर्शित असफल फिल्म ‘‘खानदानी शफाखाना’’ में दर्शक देख चुके हैं. सबसे बड़ी समस्या यह है कि फिल्म से ह्यूमर ही गायब है.

इंटरवल से पहले फिल्म कुछ ज्यादा ही कमजोर है. कहानी आगे बढ़ती नहीं,बल्कि घसीटी जाती है. देवरासज का किरदार जिस तरह से परदे पर आता है और रघुवीर से उसकी बातचीत, इस बात का असहास ही नहीं कराती कि वह दोनों भाई हैं. कुछ किरदारों का औचित्य समझ में नही आता. इंटरवल के बाद कहानी गति पकड़ती है.

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अभिनयः

रघुवीर के किरदार में राज कुमार राव ने बेहतरीन अभिनय किया है. बोमन ईरानी ने छा गए हैं.  पूरी फिल्म सिर्फ राज कुमार राव व बोमन ईरानी के ही कंधे पर है. इनके बीच की केमिस्ट्री देखते ही बनते हैं.  मगर कई दृश्यो में बोमन ईरानी के आगे अभिनय के मामले में राज कुमार राव बौने साबित होते है. मौनी रौय का किरदार तो जबरन ठूसा हुआ लगता है. मौनी ने यह फिल्म क्यों की,यह तो वही जाने. अमायरा दस्तूर की प्रतिभा को जाया किया गया. सुमित व्यास और गजराज राव के किरदार सही ढंग से लिखे ही नहीं गए. लंबे समय बाद परदे पर परेश रावल का आगमन सुखद अहसास देता है.

राज कुमार राव,बोमन ईरानी और परेश रावल की मौजूदगी के चलते फिल्म का वजूद बचा रहता है.

रिव्यू : फिल्म देखने से पहले जाने कैसी है ‘रोमियो अकबर वाल्टर’

फिल्म: रोमियो अकबर वाल्टर

कलाकार: जौन अब्राहम, मौनी रौय, सिकंदर खेर, सुचित्रा कृष्णमूर्ति और जैकी श्रौफ

निर्देशक: रौबी ग्रवाल

रेटिंग: दो स्टार

भारत-पाक के बैकग्राउंड पर 2013 में प्रदर्शित निखिल अडवाणी की जासूसी फिल्म ‘‘डी डे’’, 2018 में रिलीज फिल्म ‘‘राजी’’ सहित कई बेहतरीन फिल्में आ चुकी हैं. इन फिल्मों के मुकाबले ‘‘रोमियो अकबर वाल्टर’’ एक अति सतही और बोर करने वाली लंबी फिल्म है. आर्मी बैकग्राउंड के फिल्मकार रौबी ग्रेवाल का दावा है कि उन्होने इस फिल्म का लेखन व निर्देशन करने से पहले काफी शोध कार्य करते हुए कई जासूस/स्पाई से बात की. मगर फिल्म देखकर उनका दावा कहीं से भी सच के करीब नहीं नजर आता.

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कहानी…

फिल्म ‘‘रोमियो अकबर वाल्टर’’ की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध की है. जब पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था. पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी सेना आजादी की लड़ाई लड़ रही थी. भारत भी इसकी आजादी का पक्षधर था. 1971 के युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद होकर बांग्लादेश बन गया. ऐसी ही परिस्थिति में भारतीय जासूसी संस्था ‘रौ’ के मुखिया श्रीकांत राय (जैकी श्राफ) को अपने साथ जोड़ने के लिए ऐसे इंसान की तलाश थी, जो कि आसानी से भीड़ का हिस्सा बन सके या अपने आस पास के इंसान को आसानी से भटका सके. श्रीकांत राय की यह खोज उन्हें आर्मी के शहीद मेजर के बेटे रोमियो अली (जौन अब्राहम) तक ले जाती है. रोमियो एक बैंक कर्मी है. बुजुर्ग बनकर कविताएं पढ़ता है. बैंक में उसकी सहकर्मी हैं पारूल(मौनी रौय), जिससे वो प्यार करता है. एक दिन बैंक में नकली डकैती होती है, जिसके बाद रोमियो अली को श्रीकांत राय के सामने पहुंचा दिया जाता है. रोमियो अली को जासूस बनने की ट्रेनिंग दी जाती है और फिर वह अकबर मलिक (जौन अब्राहम) के नाम से पीओके पहुंचता है. एक होटल में नौकरी करते हुए वह शरीक अफरीदी के करीब पहुंचता है और वह भारत में श्रीकांत तक सारी जानकारी मुहैया करता रहता है कि किस तरह 22 नवंबर को पूर्वी पाकिस्तान से सटे भारतीय गांव को तबाह करने की योजना है. अफरीदी का अपना बेटा नवाब अफरीदी अपने पिता का दुश्मन है, जो कि पाकिस्तान के उप सेनाध्यक्ष के साथ मिला हुआ है. कुछ समय बाद अकबर मलिक की मदद के लिए भारतीय डिप्लोमेट के रूप में श्रद्धा शर्मा (मौनी रौय) पहुंचती है. श्रद्धा शर्मा का फोन पाकिस्तानी आईएसआई टेप कर रही है. इसी के चलते श्रद्धा और अकबर मलिक की मुलाकात की जानकारी आईएसआई आफिसर खुदा बख्श सिंह (सिकंदर खेर) को पता चलती है. फिर खुदाबख्श सिंह, अकबर मलिक के पीछे पड़ जाता है और एक दिन उसे गिरफ्तार कर यातना देकर सच जानने का असफल प्रयास करता है. अफरीदी की मदद से वह छूट जाता है, मगर सेनाध्यक्ष की हत्या हो जाती है और उप सेनाध्यक्ष गाजी खान सेनाध्यक्ष बन जाता है. उसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं. जिनके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

फिल्म समीक्षा : नोटबुक

पटकथा लेखक…

पटकथा लेखक की अपनी कमजोरियों के चलते ये जासूसी फिल्म की बजाय एक एक्शन और रोमांस से भरपूर वेब सीरीज नजर आती है. लेखक व फिल्मकार रौबी ग्रेवाल ने बेवजह भावनात्मक, रोमांटिक और सेक्शुअल सीन्स को भरकर एक बौलीवुड मसाला फिल्म बनायी है. फिल्म में जौन अब्राहम और मौनी रौय के बीच रोमांटिक और सेक्शुअल सीन फिल्म में पैबंद नजर आते हैं. इन्ही सीन्स के चलते फिल्म बेवजह लंबी हो गयी है. इतना ही नहीं एडीटिंग में फिल्म को कसने की जरुरत थी. इंटरवल से पहले तो कहानी खिसकती ही नही है. दर्शक कहने पर मजबूर हो जाता है कि कहां फंसा गया.

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एक्टिंग…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो यह फिल्म जौन अब्राहम के करियर की सबसे कमजोर फिल्म है. मौनी रौय तो महज खूबसूरत गुड़िया के अलावा कुछ नहीं है. फिल्म में अगर कोई किरदार याद रह जाता है, तो वह है श्रीकांत राय का, जिसे जैकी श्राफ ने निभाया है. जैकी श्राफ के अभिनय की जरुर तारीफ की जानी चाहिए. इसके अलावा एक भी कलाकार प्रभावित नहीं कर पाता. रघुबीर यादव सहित कई दिग्गज कलाकारों के कमजोर अभिनय के लिए लेखक व निर्देशक ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. किसी भी किरदार को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

‘बेटो को पढाओं और ना समझे तो थप्पड़ लगाओं’ का नारा होना चाहिए : मौनी रौय

साल 2007 में धारावाहिक ‘क्योंकि सांस भी कभी बहू थी’ में कृष्णा तुलसी की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री मौनी रौय पश्चिम बंगाल के कूचबिहार की हैं. उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी, जिसमें उनके माता-पिता ने भरपूर सहयोग दिया. उनके दादाजी एक थिएटर आर्टिस्ट थे, जिनसे मौनी काफी प्रभावित थीं. धारावाहिक ‘नागिन’ उसकी सबसे सफल शो रहा, जिससे वह घर-घर में पहचानी गयी. मौनी का रुझान बचपन से स्केचिंग, पेंटिंग और डांस में रहा. वह एक प्रशिक्षित कत्थक डांसर हैं. यही वजह है कि उन्होंने कई डांस रियलिटी शो में भाग लिया और पुरस्कार भी जीता.

मौनी का फिल्मी सफर फिल्म ‘गोल्ड’ से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने अक्षय कुमार की पत्नी की भूमिका निभाई थी. अभी उनकी दूसरी फिल्म रोमियो, अकबर, वाल्टर (रौ) रिलीज पर है, जिसे लेकर वह बहुत खुश हैं. हंसमुख और विनम्र मौनी से बात हुई, पेश है कुछ अंश.

इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?

इसकी कहानी ने मुझे बहुत प्रेरित किया और मैं ऐसी फिल्म का हिस्सा बनना हमेशा से चाहती थी, क्योंकि ऐसे गुमनाम वीरों की कहानी को हमेशा कहने की जरुरत होती है, जिसे लोग नहीं जानते. हमारी सुरक्षा में लगे ऐसे वीरों की कहानी में शामिल होना मेरे लिए गर्व की बात है.

क्या कोई खास तैयारी करनी पड़ी ?

मैंने इस पर रिसर्च वर्क पूरी तरह से किया है और उनके काम को समझने की कोशिश की है. वे उस समय कैसे बात करते थे और उनकी चल चलन क्या थी आदि पर काम किया, बाकी निर्देशक रोब्बी ग्रेवाल ने काफी सहयोग दिया है.

टीवी से फिल्मों में आईं, दोनों में क्या फर्क महसूस करती हैं?

माध्यम अभिनय में कोई मायने नहीं रखता. फिल्म हो या टीवी दोनों में ही चरित्र के अनुसार अभिनय करना पड़ता है. टीवी से फिल्मों में आना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि मैं टीवी पर अच्छा काम कर रही थी, ऐसे में मुझे फिल्म ‘गोल्ड’ मिली और मैंने तब उसे करना ही बेहतर समझा और मैंने किया.  मैंने कई बार सोचा कि मैं इस फिल्म के बाद दोबारा टीवी पर चली आउंगी, लेकिन फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’, रोमियो, अकबर, वाल्टर (रौ), ‘मेड इन चाइना’ आदि कई फिल्में मिली, तब मैंने इसमें ही रहना उचित समझा. पहले भी फिल्मों के औफर आते थे, पर उतनी अच्छी फिल्में नहीं मिल रही थी, जिससे मैं टीवी को छोड़ सकूं, क्योंकि टीवी मेरा घर है, जहां से मैंने अभिनय को सीखा है.

क्या आप फिल्मों का चयन करते समय अपने किरदार की अहमियत को भी देखती हैं?

हां अवश्य देखती हूं, क्योंकि कई बार एक छोटी सी भूमिका भी फिल्म के लिए काफी प्रभावशाली होती है और मैं ऐसी भूमिका में काम करना पसंद करती हूं.

फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में आप नकारात्मक भूमिका निभा रही हैं, क्या आपको नहीं लगता कि आप टाइपकास्ट की शिकार हो सकती हैं?

नकारात्मक चरित्र अगर आपको अच्छा और चुनौतीपूर्ण लगे, उसकी अहमियत फिल्म में है तो उसे करने में मुझे कोई समस्या नहीं, क्योंकि मुझे हर तरह की भूमिका निभाना पसंद है.

जौन अब्राहम के साथ काम करने के अनुभव क्या थे?

जौन एक अनुभवी कलाकार हैं. उनसे उनकी सादगी और काम करने के तरीके मुझे बहुत अच्छे लगे. जब आप एक बड़े कलाकार के साथ काम करते हैं, तो उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है.

टीवी पर फिर से काम करना पसंद करेंगी?

समय मिले और अच्छी स्क्रिप्ट मिलने पर अवश्य काम करूंगी. अभी मेरी कई फिल्में आगे आने वाली है, जिसकी शूटिंग कर रही हूं.

कूचबिहार से मुंबई तक आप पहुंच चुकी हैं, इसे आप कैसे देखती हैं?

मैं अपनी जर्नी से बहुत खुश हूं. कूचविहार से दिल्ली और फिर मुंबई, ये सब बहुत मुश्किल था, क्योंकि एक दौर ऐसा था, जब मैं कुछ भी नहीं थी और एकता कपूर ने मुझे काम दिया, मुझपर विश्वास रखा. धारावाहिक ‘नागिन’ मेरी सबसे चर्चित और बड़ा शो रहा, जिसने मुझे पहचान दी और आज मैं यहां तक पहुंची हूं. इसके अलावा मेरा परिवार और मेरे दोस्त, जिन्होंने कभी मुझे नकारात्मक सोचने पर मजबूर नहीं किया और मुझे अच्छा काम मिलता गया. मैं आज भी हर दिन सुबह उठकर काम करना पसंद करती हूं.

क्या आपका कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मैं अपने दिल से चाहती हूं कि कोई हिस्टोरिकल, म्यूजिकल डांस वाली फिल्म बने, जिसमें मैं अभिनय के साथ-साथ कत्थक करूं.

क्या कोई सोशल वर्क आप करती हैं?

मैं सोशल वर्क करती हूं, लेकिन इतना जरुर कहना चाहती हूं कि हमारे देश में खासकर छोटे शहरों और गांव के लड़कों को एजुकेट करना बहुत जरुरी है, जहां वे महिलाओं का सम्मान करना सीखें. मैं एक छोटे शहर से हूं, जहां मैंने पुरुष प्रधान समाज को देखा है. लोग ‘बेटी बचाओं बेटी पढाओं’ का नारा लगाते रहते हैं, जबकि ये नारा ‘बेटों को पढाओं और ना समझे तो थप्पड़ लगाओं’ होना चाहिए.

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