पीरियड्स पर आधारित फिल्मों को लोग गंभीरता से नहीं लेते- सुशील जांगीरा

अभिनेत्री, ऐंकर, लेखक और निर्देशक सुशील जांगीरा किसी परिचय की मुहताज नहीं हैं. वे ‘खाकी’ और ‘स्पर्श द टच’ सहित कई फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं. 2 साल पहले जब उन्होंने पहली बार लेखक व निर्देशक की हैसियत से लघु फिल्म ‘मेरी रौक स्टार वाली जींस’ बनाई, तो उन्हें ‘दादा साहेब फालके अवार्ड’ कई पुरस्कारों से नवाजा गया.

इन दिनों वे अपनी दूसरी लघु फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ को ले कर सुर्खियों में हैं, जोकि सड़क व फुटपाथ पर रहने वाली उन गरीब व भीख मांगने वाली औरतों की मासिकधर्म की परेशानी के साथ यह सवाल उठाती है कि इन की प्राथमिकता भूख को शांत करना है अथवा सैनिटरी पैड को खरीदना. कोरोनाकाल में भी इस फिल्म को करीब 15 राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है.

पेश है, सुशील जांगीरा से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत:

आप की पिछली फिल्म ‘मेरी रौक स्टार वाली जींस’ को किस तरह के रिस्पौंस मिले?

यह एक लघु फिल्म है, जिसे काफी बेहतरीन रिस्पौंस मिला. यह कईर् मल्टी प्लेटफौर्म पर देखी जा सकती है. इसे दादा साहेब फालके अवार्ड सहित कई पुरस्कार मिले थे. बंगलुरु, पुणे व नासिक के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहो में इसे पुरस्कृत किया गया. वास्तव में मैं अपनी पहली फिल्म से ही कंटैंट प्रधान फिल्में बनाती आई हूं. इसी वजह से औरतों से संबंधित ज्वलंत मुद्दे पर यह दूसरी लघु फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ ले कर आई हूं.

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फिल्म ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ की विषयवस्तु का खयाल आप के दिमाग में  कैसे आया?

यह फिल्म औरतों की माहवारी, उन की निजी सुरक्षा, सैनिटरी पैड व दो वक्त की रोटी के इर्दगिर्द घूमती है. यों तो औरतों की माहवारी व सैनिटरी पैड पर कईर् फीचर, लघु व डौक्यूमैंट्री फिल्में हमारे देश सहित विदेशों में भी बन चुकी हैं, मगर किसी ने इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया कि एक ऐसी औरत जिस के पास अपना सिर छिपाने के लिए छत नहीं है, जोकि फुटपाथ के किनारे बैठी हुई भिखारी औरत है, उस की प्राथमिकता अपनी भूख मिटाना है अथवा निजी स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सैनिटरी पैड खरीदना है.

मेरे मन में बारबार यह सवाल उठता था कि हम ने इन औरतों को क्यों पीछे छोड़ दिया है. माहवारी को ले कर मु झे या किसी भी अन्य आम औरत को जो समस्याएं हैं, उन से ये गरीब, भिखारी व फुटपाथ पर रह रही औरतें भी गुजरती हैं. उन की जरूरतें अन्य औरतों के समान ही हैं. पर हम सभी ऐसी औरतों को क्यों नजरअंदाज कर देते हैं?

ये महिलाएं भी उतने ही सम्मान की अधिकारी हैं, जितनी छोटेबड़े घरों या महलों में रह रही औरतें हैं. इस के अलावा मैं सोचती थी कि ये सड़क पर बैठ कर किस तरह खुद की व्यवस्था करती हैं? ये किस तरह और कैसे स्नान करती हैं? माहवारी के दिनों में किस तरह खुद को सुरक्षित रखने के उपाय अपनाती हैं? इसी तरह के कई सवालों के जवाब खोजने के मकसद से हम एक दिन अपने 2 सहयोगियों के साथ कैमरा ले कर निकल पड़े. कई दिनों की लगातार जद्दोजहद के बाद जो कुछ फुटेज हम ने इकट्ठे किए थे, उन्हें एक कहानी का रूप दे कर ‘फीड आर ब्लीड इंडिया’ बना डाली.

कैमरा ले कर इन औरतों के पास जाने से पहले आप ने इस विषय पर कोई शोध कार्य किया था या नहीं?

मैं ने इस विषय पर चिंतन किया था, पर इन के संबंध में शोध करने के लिए ही हम कैमरा ले कर इन के पास गए. लेकिन घर से निकलने के पहले मैं ने कईर् सवाल कागज पर लिखे थे और उन सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए मैं सड़क पर निकली थी. ये सवाल मेरे अंतर्मन से निकले थे कि जिस तरह की समस्याएं मु झे हो रही हैं, उसी तरह की समस्याएं इन औरतों को जब होती हैं, तो ये कैसे संभालती हैं.

इन के पास पेट की भूख को मिटाने के लिए रोटी नहीं है, जबकि हम तो एक सुविधा वाली जिंदगी जी रहे हैं. हमारे पास अच्छी हाईजीन, अच्छी दवाएं व स्वस्थ भोजन सहित सबकुछ उपलब्ध है. पर इन महिलाओं के पास ये सब नहीं है. तो ये महिलाएं कैसे सबकुछ करती हैं. ये सारे सवाल मेरे अंदर की जो कशमकश थी, उस से पैदा हुए थे.

आप किन इलाकों में गए और किस तरह की औरतों से बात की?

मैं ने अपनी इस फिल्म को मुंबई, दिल्ली और अमृतसर में एक साल में फिल्माया है. हम ने यह फिल्मांकन सर्दी, गरमी और बारिश के मौसम में किया है, क्योंकि हर मौसम में समस्याओं के रूप कुछ बदल जाते हैं. मैं ने हर गलीमहल्ले में गए. हम किसी भी गली के फुटपाथ पर चले जाते थे. वहां मौजूद औरतों से बात करते थे.

कई बार जानकारी मिलती तो कई बार नहीं. कई औरतें कुछ भी कहने को तैयार ही नहीं होती थीं. सड़क,  झुग्गी झोंपड़ी, रेलवे पुल आदि हर जगह जगह गए. हम मुंबई में हाजी अली के आसपास, अमृतसर में गोल्डन टैंपल के आसपास, दिल्ली में कनाट प्लेस, मंदिरों के आसपास सभी इलाकों में गए. देखिए अलगअलग मौसम में इन औरतों से जा कर हम ने बात की, क्योंकि गरमी के मौसम में हालात अलग होते हैं, तो सर्दी और बरसात में अलग.

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आप ने काफी काम किया, पर कभी सोचा कि हमारे देश में ऐसे हालात क्यों बने हुए हैं कि आज भी औरतों को अपनी सुरक्षा या सैनिटरी पैड से कहीं अधिक भूख मिटाने को तवज्जो देनी पड़ रही है?

देखिए, एक बहुत पुरानी कहावत है कि भूखे पेट भजन न होय गोपाला… भूख की समस्या मुंह बाए खड़ी है. इस के लिए हमारा सिस्टम ही दोषी है. हमारे यहां आय का विभाजन समान नहीं है. हमारे देश में अमीरी व गरीबी के बीच एक बहुत बड़ी खाई है.

कुछ लोगों के पास इतना भोजन है कि वे हर दिन काफी बचा भोजन फेंक देते हैं तो कुछ लोगों को भरपेट भोजन भी मुहैया नहीं होता. हमारा सिस्टम ही गड़बड़ है. यदि सरकार कुछ सुविधाएं देती है, तो वे नीचे तक नहीं पहुंच पातीं. इस के अलावा इन्हें शिक्षा नहीं मिल रही. यदि इन्हें शिक्षा मिलेगी, तो इन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता चलेगा और ये अपने अंदर कुछ स्किल पैदा कर सकेंगी.

कहा जाता है कि भिखारियों का भी रैकेट है?

मैं ने भी सुना है, पर यह अपराध है. इस तरह के रैकेटबाजों को पकड़ने के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए और इन के चंगुल में फंसे छोटे बच्चों को छुड़ा कर उन्हें बेसिक स्किल की शिक्षा दी जाए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके.

क्या हमारे देश के एनजीओ भी औरतों की समस्याओं की अनदेखी कर रहे हैं?

मु झे नहीं पता. लेकिन मैं तो ‘सवेरा’ नामक एनजीओ के साथ जुड़ी हुई हूं. वे तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. वे तो ह्यूमन हाईजीन, चाइल्ड वैलफेयर, सैनिटरी नैपकिन सहित हर क्षेत्र में काफी काम कर रहे हैं. मैं इस एनजीओ के साथ मिल कर काम कर रही हूं.

मेरी सम झ से सभी एनजीओ औरतों की समस्याओं से वाकिफ होने के साथसाथ उन समस्याओं को ले कर आवाज भी उठा रहे हैं. मैं यह मानती हूं कि सभी के कुछ सकारात्मक व कुछ नकारात्मक पहलू होते हैं. सोशल मीडिया के भी कुछ पौजीटिव व कुछ नैगेटिव पौइंट्स हैं, जिन के पास धन की ताकत नहीं है, जो उच्च श्रेणी के हैं, वे अपनी आवाज आराम से उठा सकते हैं. उन की आवाज सुनी जा सकती है मगर निचले तबके, गरीब, लाचार की आवाज कोई नहीं सुनता. इन की आवाज को सरकार तक पहुंचाने का काम तो मीडिया ही कर सकता है.

सोशल मीडिया में यदि एक आम इंसान कुछ ट्वीट कर दे, तो उसे भी ढेर सारे लोग पढ़ सकते हैं. वह भी आग की तरह फैल सकता है. मीडिया भी अच्छी चीजों को आग की तरह फैला सकता है. पर गरीब, अनपढ़ तो अपनी बात को ट्वीट भी नहीं कर पाते. मैं यह नहीं कहती कि एनजीओ में कोई नकारात्मकता नहीं है. ढेर सारे एनजीओ काफी बेहतरीन काम कर रहे हैं. मैं हर एनजीओ के साथ नहीं जुड़ी हुई हूं.

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एनजीओ ‘सवेरा’ के माध्यम से आप क्याक्या कर रही हैं?

यह एनजीओ नारी उत्थान, बाल उत्थान, ह्यूमन हाईजीन, पर्यावरण के क्षेत्र में काफी अच्छा काम कर रहा. यह संस्था अलगअलग शहरों में कार्यरत है. यह संस्था सैनिटरी नैपकिन के मुद्दे को ले कर जो मैं ने लघु फिल्म बनाई है, उस के लिए भी काम कर रही है.

हमारा समाज आज भी मैंस्ट्रुअल हाइजीन के संबंध में अंधविश्वासों से ग्रस्त है- रिचा सिंह

रिचा सिंह

सीईओ, नाइन

पीरियड्स हर लड़की व महिला में होने वाली सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जिस के लिए ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन नाम के हारमोन जिम्मेदार हैं. लेकिन पीरियड्स को ले कर आज भी महिलाओं में जागरूकता  का अभाव है, जिस के कारण अलगअलग देशों में इसे ले कर अलगअलग भ्रांतियां फैली हुई हैं.

इस दौरान महिला को अशुद्ध समझ जाता है, जिस कारण उन्हें माहवारी के दौरान किचन में जाने की अनुमति नहीं होती, तो कहीं उन्हें इस दौरान जमीन पर सोना पड़ता है.

रिचा का मानना है कि पैड्स को ले कर भी जागरूकता का काफी अभाव है, जिस के कारण महिलाएं इन दिनों कपड़े का इस्तेमाल कर के खुद के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करती हैं. लेकिन हम उन की सुरक्षा और हाइजीन को ले कर प्रयासरत हैं. हम महिलाओं को जागरूक बनाने का प्रयास करत हैं और उन्हें यह बताते हैं कि कपड़ा इस्तेमाल करने से वे किन गंभीर बीमारीयों का शिकार हो सकती हैं.

पेश हैं, इस संबंध में नाइन सैनिटरी  पैड्स की सीईओ रिचा सिंह से हुई बातचीत के खास अंश:

अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे  में बताएं?

मेरे पापा इंजीरियर थे और मम्मी ने कुछ साल शिक्षक के रूप में काम किया. मेरे परिवार में लड़कियों के लिए यह सामान्य नहीं था कि वे उद्यम करें और अपना कैरियर बनाएं. यहां तक कि मेरी मम्मी और ग्रैंड मदर की मुझ से कुछ अपेक्षाएं थीं. वे चाहती थीं कि मैं डाक्टर या इंजीनियर बनूं, जो उस समय बहुत अच्छा कैरियर माना जाता था. लेकिन समय के साथ मेरा वाणिज्य और बिजनैस के प्रति झकाव बढ़ता  गया और यहीं से मेरी कौरपोरेट वर्ल्ड में यात्रा प्रारंभ हुई.

समाज में आज भी माहवारी को ले कर अंधविश्वास और भ्रांतियां हैं? आप इस पर क्या कहेंगी?

हमारा समाज आज भी मैंस्ट्रुअल हाइजीन के संबंध में विभिन्न अंधविश्वासों से ग्रस्त हैं. इस समय लड़की को अछूत माना जाता है. यही नहीं इस दौरान उस पर और भी कई प्रतिबंध लगाए जाते हैं. कुछ परिवार यहां तक मानते हैं कि मैंस्ट्रुअल हाइजीन का प्रबंधन करने के लिए पैसे खर्च करना एक पाप है, जिस कारण महिलाएं इन दिनों पुराना कपड़ा इस्तेमाल करती हैं, जो ज्यादातर मैला होता है, जो उन्हें खराब हाइजीन की ओर ले जाता है.

मासिकधर्म एक बहुत ही सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जो इस बात का इशारा है कि लड़की के शरीर में सभी जरूरी बदलाव हो रहे हैं, जो उस के फर्टाइल होने का इशारा करते हैं. इस दौरान निकलने वाला ब्लड गंदा नहीं होता है. यह स्टेम कोशिकाओं से भरपूर होता है, जो जीवन देने वाली कोशिकाएं होती हैं.

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कोरोनाकाल में आप ने पैड्स की डिस्ट्रीब्यूशन कैसे सुनिश्चित की?

लौकडाउन के दौरान हम ने पैड्स  की आपूर्ति सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर योजना बना कर काम करना शुरू किया. हम ने  सरकार के साथ मिल कर जागरूकता बढ़ाई.  पूरे भारत में सैनिटरी पैड्स को जरूरी आवश्यकता के रूप में सूचीबद्ध किया. इस  कार्य में हम ने सरकारी और गैरसरकारी संगठनों का भी समर्थन किया. हमारा प्रयास सफल रहा और हम बड़ी संख्या में महिलाओं और लड़कियों तक सैनिटरी पैड्स पहुंचा पाए.

मैंस्ट्रुअल हाइजीन क्यों जरूरी है?

मैंस्ट्रुअल हाइजीन को बहुत अधिक महत्त्व देने के 2 प्रमुख कारण हैं- पहला है मानसिक स्वास्थ्य के लिए, क्योंकि अच्छे और सुरक्षित मैंस्ट्रुअल हाइजीन के अभाव में लड़कियां व महिलाएं खुद को उन 5 दिनों में काफी सिमटा हुआ पाती हैं.

इस से उन के काम, परफौर्मैंस व पढ़ाई पर भी काफी असर पड़ता है और दूसरा खराब हाइजीन की वजह से वे विभिन्न तरह के संक्रमण का भी शिकार हो जाती हैं, जिस का पता भी नहीं चलता है और जब पता चलता है तो वह सर्वाइकल कैंसर या फिर इनफर्टिलिटी का रूप  ले लेता है, जो सिर्फ मैंस्ट्रुअल हाइजीन का ध्यान नहीं रखने के कारण है.

कौरपोरेट क्षेत्र में क्या आज भी महिलाओं के लिए कैरियर बनाने में मुश्किल है?

भारतीय महिलाओं को कौरपोरेट वर्ल्ड में काफी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इन में से अधिकांश खुद के परिवार के द्वारा ही हैं. किसी भी क्षेत्र में कार्य के लिए समर्पण व प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है. लेकिन ज्यादातर महिलाओं पर परिवार की जिम्मेदारियां थोपने के कारण कैरियर उन के लिए प्राथमिकता नहीं रह जाता. उन की परवरिश व समाज उन  के साथ कैसा व्यवहार करता है, के कारण भी ज्यादातर महिलाओं में चैलेंजिंग टास्क या रोल लेने में आत्मविश्वास की कमी देखने को  मिलती है.

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लेकिन यह हर किसी के लिए जरूरी है कि वह अपने टैलेंट व स्किल्स में विश्वास कर के सफलता के लिए प्रतिबद्ध हो. किसी भी तरह के सामाजिक दबाव को अपने ऊपर हावी न होने दे, क्योंकि कौरपोरेट की यही कोशिश है कि सब को बराबर नौकरी के अवसर मिलें. फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला. महिलाएं अब यह साबित भी कर रही हैं कि किसी भी क्षेत्र में वे पुरूषों की तुलना में कमतर नहीं. यह आदी आबादी के लिए अच्छा संकेत है.

मेरे पीरियड्स समय पर नहीं होते, मैं इस के लिए क्या करूं?

सवाल

मेरी माहवारी समय पर नहीं होती. मैं इस के लिए क्या करूं?

जवाब

आप ने अपनी उम्र का जिक्र नहीं किया है. वैसे, अकसर माहवारी का सिलसिला गड़बड़ा जाता है. लिहाजा, आप को ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है.

आमतौर पर शादी और बच्चे होने के बाद माहवारी ठीक हो जाती है. आप अपना खानपान ठीक रखें और खास तकलीफ हो, तो किसी माहिर लेडी डाक्टर को दिखाएं.

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अनियमित माहवारी

औरतों को हर माह पीरियड से दोचार होना पड़ता है, इस दौरान कुछ परेशानियां भी आती हैं. मसलन, फ्लो इतना ज्यादा क्यों है? महीने में 2 बार पीरियड क्यों हो रहे हैं? हालांकि अनियमित पीरियड कोई असामान्य घटना नहीं है, किंतु यह समझना आवश्यक है कि ऐसा क्यों होता है.

हर स्त्री की मासिकधर्म की अवधि और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है. किंतु ज्यादातर महिलाओं का मैंस्ट्रुअल साइकिल 24 से 34 दिनों का होता है. रक्तस्राव औसतन 4-5 दिनों तक होता है, जिस में 40 सीसी (3 चम्मच) रक्त की हानि होती है.

कुछ महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है (हर महीने 12 चम्मच तक खून बह सकता है) तो कुछ को न के बराबर रक्तस्राव होता है.

अनियमित पीरियड वह माना जाता है जिस में किसी को पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य हो. इस में कुछ भी शामिल हो सकता है जैसे पीरियड देर से होना, समय से पहले रक्तस्राव होना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहने तक. यदि आप को प्रीमैंस्ट्रुल सिंड्रोम की समस्या नहीं है तो आप उस पीरियड को अनियमित मान सकती हैं, जिस में अचानक मरोड़ उठने लगे या फिर सिरदर्द होने लगे.

असामान्य पीरियड के कई कारण होते हैं जैसे तनाव, चिकित्सीय स्थिति, अतीत में सेहत का खराब रहना आदि. इन के अलावा आप की जीवनशैली भी मासिकधर्म पर खासा असर कर सकती है.

कई मामलों में अनियमित पीरियड ऐसी स्थिति से जुड़े होते हैं जिसे ऐनोवुलेशन कहते हैं. इस का मतलब यह है कि माहवारी के दौरान डिंबोत्सर्ग नहीं हुआ है. ऐसा आमतौर पर हारमोन के असंतुलन की वजह से होता है. यदि ऐनोवुलेशन का कारण पता चल जाए, तो ज्यादातर मामलों में दवा के जरीए इस का इलाज किया जा सकता है.

इलाज संभव

जिन वजहों से माहवारी अनियमित हो सकती है या पीरियड मिस हो सकते हैं वे हैं: अत्यधिक व्यायाम या डाइटिंग, तनाव, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, युटरिन पोलिप्स या फाइब्रौयड्स, पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज, ऐंडोमिट्रिओसिस और प्रीमैच्योर ओवरी फेल्योर.

कुछ थायराइड विकार भी अनियमित पीरियड का कारण बन सकते हैं. थायराइड एक ग्रंथि होती है, जो वृद्धि, मैटाबोलिज्म और ऊर्जा को नियंत्रित करती है. किसी स्त्री में आवश्यकता से अधिक सक्रिय थायराइड है, इस का रक्तपरीक्षण से आसानी से पता किया जा सकता है. फिर रोजाना दवा खा कर इस का इलाज किया जा सकता है. हारमोन प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर भी इस समस्या का कारण हो सकता है.

यदि किसी महिला को पीरियड के दौरान बहुत दर्द हो, भारी रक्तस्राव हो, दुर्गंधयुक्त तरल निकले, 7 दिनों से ज्यादा पीरियड चले, योनि में रक्तस्राव हो या पीरियड के बीच स्पौटिंग, नियमित मैंस्ट्रुअल साइकिल के बाद पीरियड अनियमित हो जाए, पीरियड के दौरान उलटियां हों, गर्भाधान के बगैर लगातार 3 पीरियड न हों तो अच्छा यही होगा कि तुरंत चिकित्सीय परामर्श लिया जाए. अगर किसी लड़की को 16 वर्ष की आयु तक भी पीरियड शुरू न हो तो तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए.

– डा. मालविका सभरवाल, स्त्रीरोग विशेषज्ञा, नोवा स्पैशलिटी हौस्पिटल्स

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पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

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3. हौट बैग

पीरियड्स में होने वाले दर्द में हौट बैग काफी कारगर होता है. इसको पेट के उस हिस्से पर रखना होता है जहां दर्द महसूस हो रहा है. ऐसा करने से आपको आराम मिलेगा.

4. कैफीन से रहें दूर

पीरियड्स के दौरान काफीन से दूरी बनाएं रखें. इस वक्त में इसके सेवन से गैस की परेशानी होती है. गैस के कारण कई बार दर्द बढ़ जाता है.

5. एक्सरसाइज को अपनी रूटीन में शामिल करें

डेली रूटीन में एक्सरसाइज को शामिल करने से आपको दर्द में काफी राहत मिलेगी. इससे ब्लौटिंग की परेशानी में भी काफी राहत मिलती है.  ब्लौटिंग की वजह से ही दर्द महसूस होता है. ऐसे में लाइट एक्‍सरसाइज करने से आपकी मसल्‍स रिलैक्‍स महसूस करेंगी.

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6. नमक से भी बना लें दूरी

पीरियड्स में ब्लौटिंग होना एक आम बात है. ऐसे में अगर आप पीरियड्स से कुछ समय पहले ही नमक का सेवन कम कर देती हैं तो आपकी किडनी को अत्यधिक पानी निकालने में मदद मिलने के साथ आपको दर्द में भी राहत मिलेगी.

3 महीनों में एक बार पीरियड्स आते हैं, इसका असर प्रैग्नेंसी पर तो नहीं होगा?

सवाल-

मुझे पीरियड्स को ले कर काफी समस्या है. 2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आते हैं. शादी को 7 साल हो गए, लेकिन मेरी कोई संतान नहीं है. क्या मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?

जवाब-

2-3 महीनों में एक बार पीरियड्स आना पीसीओडी (पौलिसिस्टिक ओवरी डिसऔर्डर) की ओर संकेत देता है. यह आज एक आम समस्या है. खानपान व जीवनशैली में बदलाव और मोटापा इस के सब से प्रमुख कारण हैं. लेकिन इस का उपचार भी बहुत आसान है. आप रोज वर्कआउट करें, ताजा फल, सब्जियां खाएं, कार्बोहाइड्रेट (रोटी, चावल, ब्रैड) का सेवन कम करें, रिफाइंड शुगर का सेवन बंद कर दें और अपना वजन सामान्य बनाए रखें. इन बदलावों से आप की माहवारी सामान्य हो जाएगी. लेकिन इस के बाद भी अगर गर्भधारण करने में परेशानी आ रही है तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाएं. दवा, इंजैक्शन आदि उपचारों के द्वारा पीसीओडी के मामलों में आसानी से गर्भधारण किया जा सकता है.

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हर वर्ष सितंबर महीने के अंतिम बुधवार को राष्‍ट्रीय महिला स्‍वास्‍थ्‍य और तंदुरुस्‍ती दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसका उद्देश्‍य महिलाओं की तंदुरुस्‍ती और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में जागरूकता पैदा करना है. इस बारें में नवी मुंबई के रिलायंस हॉस्पिटल की हेड ऑफ ऑब्‍स्‍टेट्रिक्‍स एंड गायनकोलॉजी, डॉ. बंदिता सिन्‍हा कहती है कि कोविड महामारी के समय में स्वास्थ्य की देखभाल करने का महत्‍व और अधिक बढ़ गया है. महामारी की स्थिति महिलाओं के लिए चिंताजनक है. वे घर से काम कर रही हैं और घर के लिए काम कर रही हैं, और इस भाग-दौड़ में अपने स्‍वयं की देखभाल की अनदेखी कर देती है. महिलाओं को यह समझना चाहिए कि अब उनकी जिम्‍मेदारियां कई गुना बढ़ गई हैं और ऐसे में, उनके लिए अपने स्‍वयं के स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल और अधिक महत्‍वपूर्ण हो गया है. कुछ आसान बातें निम्न है, जो ध्‍यान देने योग्‍य है,

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पीरियड्स में तनाव से निबटें ऐसे

मासिकधर्म लड़कियों व महिलाओं में होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया है. इस दौरान शरीर में अनेक हारमोनल बदलाव होते हैं, जो शारीरिक और भावनात्मक रूप से प्रभाव डालने के कारण तनाव का कारण बन सकते हैं. कई कारण इस के जिम्मेदार हो सकते हैं.

कई महिलाएं मासिकधर्म शुरू होने से पहले या इस दौरान तनाव की ऐसी स्थिति से गुजरती हैं, जिस में उन्हें चिकित्सकीय इलाज की भी जरूरत होती है. यह सामान्य बात है कि तनाव, चिंता और चिड़चिड़ापन जिंदगी और रिश्तों को प्रभावित कर सकता है.

पीरियड्स के दौरान अगर थोड़ाबहुत तनाव महसूस हो, तो यह एक सामान्य स्थिति मानी जाती है. प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षणों का मुख्य कारण ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन हारमोंस के लैवल में बदलाव आना होता है.

सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में तनाव से ग्रस्त होने की आशंका ज्यादा होती है, जो मासिकधर्म के दौरान और बढ़ सकती है, क्योंकि ये हारमोनल ‘रोलर कोस्टर’ आप के ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर्स, जिन में सैरोटोनिन और डोपामाइन हैं, पर प्रभाव डाल सकते हैं, जो मूड को ठीक रखने का काम करते हैं. इस के अलावा जिन लड़कियों या महिलाओं को पहले पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक ऐंठन या ब्लीडिंग होती है, वे पीरियड्स शुरू होने से पहले दर्द व असुविधा को ले कर चिंतित हो सकती हैं, जो तनाव का कारण बनता है.

ये लक्षण आप के दैनिक जीवन को प्रभावित करने के लिए काफी गंभीर होते हैं, जिन में चिड़चिड़ापन या क्रोध की भावना, उदासी या निराशा, तनाव या चिंता की भावना,मूड स्विंग या बारबार रोने को मन करना, सोचने या ध्यान केंद्रित करने में दिक्कत, थकान या कम ऊर्जा, फूड क्रेविंग या ज्यादा खाने की इच्छा, सोने में दिक्कत, भावनाओं को कंट्रोल करने में परेशानी और शारीरिक लक्षण, जिन में ऐंठन, पेट फूलना, स्तनों का मुलायम पड़ना, सिरदर्द और जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द शामिल है.

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टीनऐजर्स को भी अत्यधिक तनाव महसूस हो सकता है. उन्हें मांसपेशियों में खिंचाव व ऐंठन, पेट दर्द, जोड़ों व कमर में दर्द व थकान हो सकती है. ये परिवर्तन उन के यौवन काल में हो रहे परिवर्तनों से जुड़ी होते हैं.

हारमोंस जैसे ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरौन जो पीरियड्स को दुरुस्त करने का काम करते हैं, में उतारचढ़ाव की वजह से आप की भूख, पाचन शक्ति और ऊर्जा का स्तर प्रभावित हो सकता है और ये सब आप के मूड को भी प्रभावित करने का काम करेंगे. इस से मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली पर भी असर पड़ सकता है. पीरियड्स के दौरान तनाव एक मूड डिसऔर्डर है, जिस से पीरियड्स के दौरान 5% महिलाएं प्रभावित होती हैं. निम्न उपाय पीरियड्स के दौरान तनाव को कम करने में मददगार साबित होंगे:

रीलैक्सेशन टैक्नीक

इस तकनीक का उपयोग करने से स्ट्रैस कम होता है. इस के लिए आप योगा, मैडिटेशन और मसाज जैसी थेरैपी ले सकती हैं.

पर्याप्त नींद लें

पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है. लेकिन सिर्फ यही जरूरी नहीं है, बल्कि आप कोशिश करें कि आप का रोजाना सोने व उठने का एक समय हो. छात्राएं सोने के शैड्यूल को न बिगाड़ें, क्योंकि इस से हारमोंस पर असर पड़ता है.

डाइट का खास ध्यान रखें

आप कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट लें. अपनी डाइट में साबूत अनाज व स्टार्ची वैजिटेबल्स ऐड करें, जो पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग व तनाव को कम करने का काम करेंगी. कैल्सियम रिच फूड जैसे दूध व दही लें. खाने में ज्यादा से ज्यादा फलों व सब्जियों को शामिल करें. थोड़ाथोड़ा खाएं ताकि पेट फूलने की समस्या न हो. अलकोहल व कैफीन से दूरी बनाएं.

विटामिंस हों ज्यादा

अनेक अध्ययनों से पता चला है कि कैल्सियम और विटामिन बी-6 दोनों तनाव के शारीरिक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों को कम करने का काम करते हैं.

व्यायाम जरूरी

दौड़ने या साइक्लिंग करने से मूड ठीक होता है.

कोंगिनेटिव बिहेवियरल थेरैपी

इस थेरैपी की तकनीक से आप तनाव पर अलग तरह से काबू पा सकती हैं. समय के साथ आप के मस्तिष्क में तंत्रिकों के मार्ग बदल जाएंगे, जो बेचैन करने वाली प्रतिक्रियाओं को कम करने में मदद करेंगे.

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कई महिलाओं में तनाव प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम का सामान्य लक्षण होता है. लेकिन ऐंठन और पेट फूलने की समस्या की तरह तनाव को भी नियंत्रित किया जा सकता है. इसलिए डरें नहीं, बल्कि डाक्टर से इस बारे में खुल कर बात करें. दवा से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.

-जैसमिन वासुदेवा

मार्केटिंग मैनेजर, सैनिटरी नैपकिन नाइन.   

जब मेरे पीरियड्स आते हैं, तो मैं बहुत उदासी महसूस करती हूं?

सवाल

मैं 20 साल की हूं और जब मेरे पीरियड्स आते हैं, तो मैं बहुत उदासी महसूस करती हूं. मेरा कुछ भी करने का मन नहीं होता. मैं इसी कारण कालेज भी नहीं जा पाती. मेरे साथ ऐसा क्यों होता है?

जवाब-

पीरियड्स से पहले और उस दौरान उदास या बीमार होना आम बात है. जब मासिकधर्म चक्र के दौरान लड़की के हारमोन का स्तर बढ़ता या घटता है, तो उसे शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह से प्रभावित कर सकता है. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम के रूप में जाना जाता है. यह लड़की को बिस्तर में रहने तक के लिए मजबूर कर सकता है.

प्रीमैंस्ट्रुअल के लक्षणों को कम करने के लिए ताजा फल और सब्जियों के साथसाथ संतुलित आहार लें. चिप्स जैसे प्रोसैस्ड खाद्यपदार्थों से परहेज करें. नमक कम खाएं और ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. कैफीन के सेवन से बचें. रात को भरपूर नींद लें. अगर ज्यादा परेशानी हो तो तुरंत डाक्टर से मिलें.

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कुछ लड़कियां पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स का सामना करती हैं तो कुछ लड़कियों को कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता है. ऐसे ही कुछ लड़कियां डिप्रैशन और इमोशनल आउटबर्स्ट का शिकार होती हैं. इसे कहते हैं प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम और 90 प्रतिशत लड़कियां वर्तमान में इसे महसूस कर रही हैं.

पीरियड के दौरान अनेक परेशानियां भी आती हैं. महीने में 2 बार पीरियड्स क्यों हो रहे हैं? मसलन, फ्लो इतना ज्यादा या इतना कम क्यों है ? पीरियड्स और लड़कियों के समान क्यों नहीं हैं? अनियमित पीरियड्स क्यों हैं? ये सब प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में घर कर लेते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- पीरियड्स की मुश्किलों से कैसे निबटें

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मुझे पीरियड्स के दौरान बहुत ऐंठन और योनि में दर्द रहता है?

सवाल-

मैं 21 साल की हूं. मुझे पीरियड्स के दौरान बहुत ऐंठन और योनि में दर्द रहता है. ऐसा कुछ ही महीनों से होने लगा है. बताएं क्या करूं?

जवाब-

मासिकधर्म के दौरान बहुत लड़कियों को यह परेशानी होती है. अत: आप नियमित व्यायाम करें. अपने पेट या पीठ के निचले हिस्से पर हीटिंग पैड रखें या फिर गरम पानी में स्नान लें. आप इन दिनों पूर्ण आराम करें. इस के बाद भी अगर फर्क नहीं पड़ता है तो स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिलें, क्योंकि ये सभी संकेत पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज, ऐंडोमिट्रिओसिस या फिर फाइब्रौयड्स के भी हो सकते हैं.

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पीरियड्स एक नेचुरल क्रिया है जिस के बारे में जानना हर बढ़ती उम्र की लड़की और उस की मां के लिए जरूरी है. मां के लिए यह जानना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इस प्राकृतिक क्रिया के बारे में अपनी बेटी को वह ही बेहतर तरीके से समझा सकती है. इन दिनों में लड़कियों के शरीर में अलगअलग बदलाव होते हैं और ये बदलाव होते बहुत ही सामान्य हैं. ये बदलाव हर लड़की के हार्मोंस पर निर्भर करते हैं.

कुछ लड़कियां पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स का सामना करती हैं तो कुछ लड़कियों को कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता है. ऐसे ही कुछ लड़कियां डिप्रैशन और इमोशनल आउटबर्स्ट का शिकार होती हैं. इसे कहते हैं प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम और 90 प्रतिशत लड़कियां वर्तमान में इसे महसूस कर रही हैं. पीरियड के दौरान अनेक परेशानियां भी आती हैं. महीने में 2 बार पीरियड्स क्यों हो रहे हैं? मसलन, फ्लो इतना ज्यादा या इतना कम क्यों है? पीरियड्स और लड़कियों के समान क्यों नहीं हैं? अनियमित पीरियड्स क्यों हैं? ये सब प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में घर कर लेते हैं. हमें यह समझने की जरूरत है कि ये सब परेशानियां असामान्य नहीं हैं. हर महिला का मासिकधर्म और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए क्लिक करें- अनियमित पीरियड्स से कैसे निबटें

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Festive Special: जब त्यौहारों में पीरियड्स शुरू हो जाएं

लेखक-पूजा भारद्वाज

फैस्टिवल के मस्तीभरे माहौल में हरकोई मस्ती के मूड में होता है, लेकिन महिलाओं के त्योहारों का मजा तब किरकिरा हो जाता है जब उन्हें ऐसे मौकों पर पीरियड्स शुरू हो जाते हैं. तब इस दौरान होने वाली थकावट, कमर व पेट दर्द, ज्यादा ब्लीडिंग और सिरदर्द जैसी समस्याएं उन के सारे उत्साह को कम कर देती हैं और वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पातीं. उन की हर योजना धरी की धरी रह जाती है. घर के बाकी लोगों को मस्ती करते देख उन के चेहरों पर उदासी छा जाती है. ऐसे में अगर वे इन बातों का खयाल रखें तो उन के त्योहार की चमक भी फीकी नहीं पड़ेगी:

रहें टैंशन फ्री

ऐसे समय में महिलाएं खुद को एक सीमित दायरे में बांध लेती हैं और बीमार सा महसूस करती हैं, जबकि यह कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह तो प्राकृतिक प्रक्रिया है, इसलिए दब कर नहीं खुल कर जीएं.  पीरियड्स को ले कर ज्यादा तनाव न लें, क्योंकि ज्यादा तनाव लेना उन की सेहत पर भारी पड़ सकता है. इसलिए सोच सकारात्मक रखें, तो ज्यादा बेहतर है. सब से जरूरी बात है कि परिस्थिति कैसी भी हो खुश रहें, क्योंकि जब आप अंदर से खुश रहेंगी, तो आप के चेहरे पर आने वाले ग्लो की बात ही कुछ अलग होगी.

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हौट वाटर बोतल से सिंकाई

पीरियड्स के दौरान पेट में अगर ज्यादा दर्द हो, तो आप गरम पानी की बोतल से सिंकाई भी कर सकती हैं, क्योंकि पीरियड्स में पेट की निचली तरफ गरम पानी की बोतल से सिंकाई करने से यूटरस की मांसपेशियों को आराम मिलता है और दर्द से राहत मिलती है.

साफ-सफाई का रखें खास ध्यान

पीरियड्स के दौरान साफसफाई का विशेष ध्यान रखें ताकि सेहत पर इस का बुरा असर न पड़े. इस दौरान पर्सनल साफसफाई का ध्यान रखने से आप कई तरह की बीमारियों जैसे यूटीआई और इन्फैक्शन से भी बच सकती हैं और इस में सब से अहम रोल उस पैड या सैनिटरी नैपकिन का होता है, जिस का आप पीरियड्स के दौरान इस्तेमाल करती हैं. इस के अलावा पीरियड्स के दौरान ऐंटीबायोटिक साबुन या क्लींजर से प्राइवेट पार्ट की सफाई करें. स्नान जरूर करें, क्योंकि इस से आप तरोताजा महसूस करेंगी और खिलीखिली नजर आएंगी.

कंफर्ट है जरूरी

आज भी ऐसी कई महिलाएं हैं, जो पीरियड्स के दौरान सैनिटरी पैड्स की जगह गंदे कपड़े, न्यूजपेपर, पत्ते या फिर गलत पैड्स का इस्तेमाल करती हैं, जिस में खुद को असहज महसूस करती हैं और कपड़े गंदे होने के डर से कहीं जाती नहीं और त्योहार का भरपूर आनंद नहीं ले पाती हैं. इसलिए इस समय में सिर्फ पैड्स का ही इस्तेमाल करें ताकि आप खुल कर जी सकें.

सही पैड ही चुनें

पीरियड्स के दौरान लंबे समय तक एक ही पैड का इस्तेमाल आप के लिए घातक साबित हो सकता है. इसलिए पैड कितनी भी अच्छी क्वालिटी का क्यों न हो कम से कम दिन में 3 बार जरूर चेंज करें, साथ ही पैड की क्वालिटी पर भी ध्यान दें, क्योंकि कई महिलाएं सस्ते के चक्कर में उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता कर लेती हैं और कम पैसों में घटिया ब्रैंड के नैपकिन यूज करने लगती हैं, जिस से उन्हें रैशेज हो जाते हैं.

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वैसे तो बाजार में विभिन्न कंपनियों के सैनिटरी नैपकिन मौजूद हैं, लेकिन नाइन की बात ही कुछ खास है, क्योंकि यह आप को खुल कर जीने की आजादी देता है और यह डाईऔक्सिन मुक्त है, जो सर्विकल कैंसर होने के खतरे को नियंत्रित करता है. इस के अलावा यह हैवी फ्लो में कामयाब है और लीक भी नहीं होता है. इसे डिस्पोज करना भी काफी आसान है, साथ ही यह पौकेट फ्रैंडली भी है.

जरूरी बातें

– सैनिटरी नैपकिन को 3-4 घंटे में बदलती रहें.

– माहवारी में हाइजीन का पूरापूरा ध्यान रखें ताकि आप को इन्फैक्शन न हो.

– माहवारी में प्राइवेट पार्ट की सफाई पर ध्यान दें.

– सूती अंडरवियर पहनें.

– माहवारी में डीहाइड्रेशन की समस्या भी हो सकती है, इसलिए अधिक पानी पीएं.

– इस समय तंग कपड़े पहनने से बचें. ढीले कपड़े पहनें.

पीरियड्स से जुड़ी सोच में बदलाव जरुरी: सृजना बगारिया

सृजना बगारिया (पी सेफ की सह-संस्थापिका )

मैन्सट्रुएशन एक हेल्दी बायोलॉजीकल प्रोसेस होता हैं . यह लड़कियों और महिलाओं के रिपरोडक्टिव सिस्टम से जुड़ा हुआ है . समाज में लोग इसे एक गंदगी के तौर पर देखते हैं इसलिए लड़कियां या महिलाएं इस पर बात करने से कतराती हैं.

देश में 88 प्रतिशत महिलाएं नहीं कर पाती पैड का इस्तेमाल

एक सर्वे के मुताबिक हमारे देश की लगभग 88 प्रतिशत महिलाएं अपने पीरियड्स के दौरान सैनेरटरी पैड का इस्तेमाल ही नहीं कर पाती हैं. पैड की जगह वे फटेपुराने कपड़े, अखबार, सूखी पत्तियां और प्लास्टिक तक इस्तेमाल में लाने को मजबूर हैं जो पूरी तरह गलत है और बहुत जोखिम भरा भी है .

पैड इस्तेमाल न करने से कैंसर का खतरा

भारत में मैन्सट्रुएशन लगभग 10 से लेकर14 साल की उम्र में शुरू हो जाता है जब कि मीनोपॉज की औसत उम्र लगभग 47 साल है . जब महिलाएं मेन्सट्रुअल में निकले खून को पैड के अलावा किसी दूसरी चीज से रोकती हैं तो वह खून उल्टी दिशा में बहने लगता है और वह एंडोमीट्रिओसिस जैसे गंभीर रोग की शिकार हो जाती हैं. पेल्विक इन्फेक्शन और रिप्रोडक्टिव ट्रेक्ट इन्फेक्शन जैसी गंभीर मामले आगे चल कर कैंसर होने की आशंका को बढ़ा देते हैं .

क्या है ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का हाल

ग्रामीण भारत में मैन्सट्रुएशन और इसकी हाइजीन को ले कर अभी जागरुकता की काफी कमी है . लोगों का कहना है कि नेशनल फैमिली हेल्थ 2015-16 के सर्वे के अनुसार 15 से 24 साल तक की 58 प्रतिशत महिलाएं नैपकीन, सैनिटरी नैपकीन का इस्तेमाल करती हैं . शहरी क्षेत्रों में 78 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स के दौरान पैड समेत दूसरी सुरक्षित तकनीकें अपनाती हैं जबकि ग्रामीण इलाकों में केवल 48 प्रतिशत महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान हाइजीन और दूसरी साफसुथरी तकनीकों का इस्तेमाल कर पाती हैं .

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क्या होते हैं रीयूजेबल सैनिटरी पैड

जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है कि यह वह पैड्स हैं जिन्हें बारबार इस्तेमाल किया जा सकता है. इन पैड्स की एक बात यह है कि इन को लगातार 1.5 साल से ले कर 2 साल तक प्रयोग किया जा सकता है . पीरियड्स में इस्तेमाल किए गए सैनिटरी पैड्स से पैदा हुआ कचरा पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है लेकिन रीयूजेबल पैड्स से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है . एक समस्या यह भी है कि बहुत सी महिलाओं को अभी तक यह नहीं पता कि सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करने के बाद क्या करना है या उन्हें कहां फेंकना है. बहुत सी महिलाएं, यहां तक कि शहरों में भी सामान्य कचरे के साथ ही कूड़ेदान में फेंक देती हैं जो बिल्कुल गलत है . पैड्स को हमेशा मिट्टी में दफना देना चाहिए या पूरी तरह किसी काले पॉलीथीन में बंद करके अलग रखना चाहिए ताकि उस की पहचान अलग से हो सके .

युवा आ रहे हैं आगे

भारत में युवाओं का प्रतिशत सब से अधिक है और इसलिए इस समय हर क्षेत्र की कमान युवाओं ने अपने कंधे पर संभाली हुई है. मैन्सट्रुएशन के विषय पर जागरुकता बढ़ाने में भी युवा पीछे नहीं है . देश के कोनेकोने से युवा कार्यक्रम, आविष्कारों और आयोजनों के माध्यम से जागरुकता फैलाने का काम कर रहे हैं . कोई रियूज़ेबल सैनिटरी पैड्स बना रहा है तो कोई पीरियड्स को सरल बनाने के लिए समाज को शिक्षित कर रहा है तो कोई स्वयंसेवी संस्था के साथ जुड़ कर काम कर रहा है . युवाओं के इसी जोश के भरोसे आज देश के कोनेकोने में मैन्सट्रुएशन को ले कर कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. लोग समझ रहे हैं कि यह कोई गंदगी नहीं बल्कि एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो लड़की या महिला के लिए बहुत आवश्यक है .

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