Raksha Bandhan 2024 : भाई बहन का प्यार है मीठी तकरार, रिश्ते को इस तरह बनाएं मजबूत

रिया और रोहित दोनों भाई बहन हैं पर लड़ाई के वक़्त ऐसा लगता है कि एक दूसरे से बड़ा उनका कोई दुश्मन नही है.अभी कुछ दिनों से दोनों में बोलचाल बंद है.आज रिया का प्रेसेंटेशन है उसे जल्दी कॉलेज पहुंचना है पर गाड़ी स्टार्ट ही नहीं हो रही तभी रोहित ने आवाज़ दी कि चलो छोड़ो अपनी खटारा देर हो रही है रिया तो जैसे समझ ही नही पाई और जल्दी से चल दी .कॉलेज पहुँचकर उसने रोहित को थैंक्स कहा और एक छोटी सी पहल में उनका झगड़ा ख़त्म हो गया.

अमूमन भाई बहन के रिश्ते में ये आम बात है किंतु कई बार ये आपसी मनमुटाव इतना बढ़ जाता है कि इतना प्यारा रिश्ता भी खराब सा हो जाता है.तब ये समझ नहीं आता कि किस तरह सब फिर से पहले जैसा किया जाए .अभी भाई बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक राखी का त्यौहार भी आने वाला है ऐसे में हम आपके लिए लाए हैं कुछ ऐसे सुझाव जिनकी मदद से आप आपसी मनमुटाव को दूर कर इस स्नेहिल रिश्ते को खूबसूरत बना सकते हैं और अपनों को करीब ला सकते हैं.

1. पहल करने में संकोच न करें

कई बार झगड़ा बहुत ही बढ़ जाता है और तू तू मै मैं इतनी हो जाती है कि दोनों ही का मन खट्टा हो जाता है.लड़ाई बेहद हो जाने पर भी मन की भावनाएँ एक दूसरे के लिए पहले की तरह ही रहती हैं बस दोनों का अहम एक दूसरे से बात करने को रोकता है .ऐसे में आप अपना अहम तुरंत छोड़ कर स्वयं बातचीत की पहल करें फिर देखिए चुटकियों में बात बन जाएगी.

2. नए सिरे से शुरू करें

इसके लिए सबसे पहले ये सोचना बंद करना होगा कि मैं ही सही हूँ क्योंकि किसी भी लड़ाई में थोड़ी थोड़ी ग़लती दोनों पक्षों की होती है.ऐसे में बजाय दूसरे की कमी पर ध्यान रखने के अपनी कमी को पहचानने का प्रयास करें .उसके बाद मन मे ये पक्का करें कि अब ये ग़लती नहीं करेंगे ऐसे में आपका रिश्ता और मजबूत होगा.

3. राज को राज रहने दें

भाई बहन एक दूसरे के सबसे बड़े राजदार होते हैं ऐसी कई बातें होती हैं जो वो सिर्फ एक दूसरे से शेयर करते हैं पर कई बाद क्रोध या आवेश में एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए वो राज की बात किसी के सामने भी बोल देते हैं .ऐसा करने से कुछ समय को तो मानसिक संतुष्टि होती है पर बाद में अपराधबोध होने लगता है.इसलिए इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि ये लड़ाई तो कुछ समय की है पर रिश्ता तो जीवन भर का है इसलिए लड़ाई के झोंके में एक दूसरे के राज सार्वजनिक करने से बचें .इस से रिश्ते में गहराई बनी रहेगी और विश्वास भी मजबूत होगा.

4. कारण जानने का प्रयास

कई बार लड़ाई इतनी लम्बी खिंच जाती है कि हम ये ही भूल जाते हैं कि आखिर ये शुरू क्यों हुई थी .अगर हम ये जानने का प्रयास करें कि झगड़े का मूल कारण क्या था तो उसे सुलझाना आसान हो जाएगा.कारण जानने के बाद यदि लगे कि इसे खत्म किया जा सकता है तो उसका हल करने में देर न करें .एक बात हमेशा ध्यान रखिये कि बड़ा से बड़ा कारण भी भाई बहन के पवित्र रिश्ते के सामने बहुत छोटा है.

5. दें प्यार भरा उपहार

किसी भी रिश्ते को यदि फिर से पहले की तरह स्नेहसिक्त करना है तो उपहार से अच्छा कुछ नहीं हो सकता है.आप अचानक एक सरप्राइज गिफ्ट दे सकते हैं .गिफ्ट महंगा हो जरूरी नही बस प्यार भरा होना चाहिए. जैसे एक दूसरे की पसंदीदा चॉकलेट , कोई पसंदीदा गैजेट, एक ड्रेस या एक फूल भी दिया जा सकता है.या कोई पसंदीदा डिश अगर आपको बनानी आती है तो वो बनाकर खिलाया जा सकता है.

6. जताना भी है ज़रूरी

एक दूसरे को ये जताते रहना भी जरूरी होता है कि वो आपके लिए कितना मायने रखता है. ये रिश्ता आपके लिए अनमोल है और चाहे कितनी भी लड़ाई हो पर अगर कोई मुश्किल आती है तो आप हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े होंगे ये विश्वास कायम रखना भी आप ही की जिम्मेदारी है.

अगर आप ये सब बातें जीवन मे अपनायेंगे तो निश्चित ही आपके इस प्यार भरे रिश्ते में चार चाँद लग जाएँगे और ये अटूट बंधन और मजबूत हो जाएगा.

Raksha Bandhan 2024 : राखी पर गिफ्ट की कीमत नहीं, देखें भाईबहन का प्यार

अब संयुक्त परिवार वाला समय नहीं रहा जब कई सारे भाईबहन होते थे. उस वक्त एक या दो भाई बहन से बातचीत बंद हो जाए तो भी चलता था. मगर आजकल जब आप के पास कुल एक भाई या बहन है तो आप बिलकुल भी रिस्क नहीं ले सकते. आप को उस इकलौते भाई या बहन को बहुत संजो कर रखना होगा. जरूरत के वक्त वही आप के काम आएगा. उसे ही आप अपना परिवार कह सकती हैं. उस की फॅमिली के साथ ही आप अपनापन बांट सकती हैं. उसी के साथ आप ने पूरा बचपन की शैतानियां और किशोरावस्था के राज बांटे हैं. वही आप को समझता है और उसी के साथ आप सुरक्षित महसूस करती हैं. फिर उस भाई जैसे अनमोल रत्न को आप खो कैसे सकती हैं. इसलिए सारे ईगो परे हटा कर भाई पर जी भर कर प्यार लुटाइए.

त्यौहार प्यार बढ़ाने का दिन है –

त्यौहार के रूप में आप को बहाने मिल जाते हैं अपनों के करीब आने का, पुरानी गलती सुधारने का और कुछ ऐसा कर दिखाने का जिस से सामने वाला आप को फिर से गले लगा ले. इस मौके को न गंवाएं. आप अपने भाई या बहन के लिए कोई प्यारा सा गिफ्ट खरीदें जो उस की पसंद का भी हो और सालों उस के पास भी रह सके.

गिफ्ट की कीमत नहीं प्यार देखें – 

रक्षाबंधन के मौके पर आप के भाई या भाभी ने आप को जो भी गिफ्ट दिया हो उसे प्यार लें. किसी भी तरह का असंतोष या नाराजगी न दिखाएं क्योंकि गिफ्ट में पैसा नहीं भावनाएं देखी जाती हैं. आज आप लड़ाई कर लेंगी तो कल को उस छोटे से गिफ्ट के लिए भी तरसेंगी. इसलिए छोटी सी बात पर अपने रिश्तों में किसी तरह की कड़वाहट न आने दें. बहुत सी बहनों की आदत होती है कि रक्षा बंधन से महीने भर पहले से ही अपने भाई या भाभी को गाइड करने लगती हैं या फरमाइश करने लगती हैं कि इस बार उन्हें यह गिफ्ट चाहिए. भाई पर इस तरह हक़ ज़माना गलत नहीं मगर कई बार संभव है कि आप का भाई ज्यादा पैसे खर्च करने की हालत में न हो या उस की कोई और प्रॉब्लम हो. ऐसे में अपनी फरमाइश रखने के बजाए प्यार से इन्तजार करें कि वह क्या देता है. जो भी उपहार आप को मायके से मिले उसे सम्मान के साथ स्वीकार करें.

त्यौहार के दिन कोई झगड़ा नहीं – 

साल भर के बाद रक्षा बंधन का दिन आता है. इस खूबसूरत दिन को लड़झगड़ कर बर्बाद कतई न करें. लड़ने के तो सौ बहाने मिल जाएंगे मगर फिर साल भर आप के दिल में कठोर बातें जब तीर बन कर चुभती रहेंगी तो आप खुद को माफ़ नहीं कर पाएंगी. इसलिए किसी भी तरह बात न बढ़ा कर प्यार और सम्मान के साथ उस दिन को गुजरने दे.

इस दिन के लिए कोई बहाना या एक्सक्यूज़ नहीं –

इस दिन भाई या उस के परिवार से मिलने जरूर जाएं. कोई बहाना या एक्सक्यूज़ न बनाएं. क्योंकि एक बार आप जाने से मन करेंगी तो अगली बार से आप को बुलाना भी कम कर दिया जाएगा. धीरेधीरे दूरी बढ़ती जाएगी. इसलिए मिलने के नियम को कठोरता से बरकरार रखें. खासकर जब आप एक ही शहर में हैं तब तो कोई भी बहाना बनाने की बात सोचें भी नहीं. इस दिन दूसरे मुद्दे बीच में न लाएं. सिर्फ भाई बहन का प्यार और मां बाप का दुलार ही याद रहे. रिश्ते में कितने भी मसलें हों मगर इस दिन जरूर मिलें.

पुराने बचपन के दिन याद करें –

जब आप भाई से मिलें तो कुछ समय के लिए सारी परेशानियां और उलझनें भूल जाएं. कुछ समय बस एकदूसरे के साथ बिताएं. बचपन की वो यादें और शरारतें याद करें. अपने बच्चों को भी पुराने किस्से सुनाएं. इस से वे भी इस रिश्ते का सम्मान करना सीखेंगे. पुरानी यादों के बहाने आप एकदूसरे के और करीब भी आएंगे.

बात पसंद न आए तो तुरंत कहें –

इस रिश्ते में सब से ज्यादा दरार तब आने लगती है जब भाई और बहन आपस में अपनी भावनाओं को शेयर नहीं करते. अगर आप को बहन या भाई से कोई शिकायत है तो उस से खुल कर बात करें. मन में बात रखने से मसला सुलझेगा नहीं बल्कि आप के बीच की दूरियां बढ़ेगी. इस से मन में नेगेटिव फीलिंग्स बढ़ेगी जो किसी गलत समय बाहर निकलेगी और रिश्ते के मिठास को पूरी तरह ख़त्म कर देगी.

दोस्तों की तरह शेयर करें छोटीछोटी बात – 

शादी के बाद भी आपस में अपने दुखसुख शेयर करें. इस से आप के बीच की दूरियां कम होगी और रिश्ता मजबूत होगा. अगर हर छोटी छोटी बात एकदूसरे से शेयर की जाए तो भाईबहन का रिश्ता दोस्ती का रिश्ता बन जाता है. आप किसी मुसीबत में भी है तो भाई से तुरंत बात शेयर करें. इस से आप की प्रॉब्लम का सलूशन भी निकल जाएगा और आप के बीच का तालमेल भी ठीक रहेगा.

एकदूसरे के लिए रखें त्याग की भावना –

अक्सर देखा जाता है कि भाईबहन किसी चीज को ले कर लड़ने लगते है कि वह उसे क्यों मिली मुझे क्यों नहीं. ऐसी स्थिति में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना पैदा होती है जो उन के रिश्ते में दरार ले कर आती है. इस के विपरीत त्याग की भावना आप को करीब लाती है.अनोखा होता है भाईबहन का प्यार

खट्टी मिठ्ठी तकरार में छिपा होता है प्यार –

शायद ही ऐसे कोई भाई बहन होंगे जिन के बीच छोटी मोटी नोकझोंक न होती है. लेकिन उन की इस तकरार के पीछे भी प्यार छिपा होता है जिसे वह वक्त आने पर एकदूसरे के लिए दिखाने में बिल्कुल भी पीछे नहीं रहते हैं. यही कारण है कि भाई और बहन का रिश्ता देखने में तो उतना मजबूत नहीं लगता, मगर समय पड़ने पर दोनों का प्यार साफ नजर आता है. वह एकदूसरे से प्यार करते हैं तो नफरत भी करते हैं. एकदूसरे का मजाक उड़ाते हैं तो तालमेल भी बिठा लेते हैं. भाई बहनों की बॉन्डिंग बहुत स्ट्रॉन्ग होती है. भाई या बहन हो तो जिंदगी का मजा दोगुना हो जाता है. शायद यही वजह है कि एक बेटा और एक बेटी से परिवार को पूरा माना जाता है. इस से बच्चों का बचपन भी अच्छा रहता है और उन के बीच एक मजबूत रिश्ता भी बनता है.

बन जाते हैं बेस्ट फ्रेंड –

जिंदगी में कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें आप मातापिता से खुल कर शेयर नहीं कर पाते हैं लेकिन अपने भाई या बहन से आसानी से साझा कर पाते हैं. इसी दौरान आप एकदूसरे के बेस्ट फ्रेंड भी बन जाते हैं. वहीं कई घर ऐसे भी होते हैं जहां बड़ा भाई या बहन पैरेंट्स की जगह मजबूत सहारा बन कर आप की जिंदगी में खड़ा होता है. ऐसे में आप अपनी छोटी से छोटी बात उन से शेयर करने लग जाते हैं और आप का रिलेशनशिप स्ट्रांग होता चला जाता है.

मुश्किल वक्त में देते हैं एकदूसरे का साथ –

जब भी किसी लड़की को कोई लड़का परेशान कर रहा होता है तो वह सब से पहले अपने भाई के पास जाती है. बहनों को ले कर भाई हमेशा ही बहुत प्रोटेक्टिव रहते हैं. उन्हें कोई भी तकलीफ हो तो वे पूरा घर सिर पर उठा लेते हैं. वहीं बहन भी अपने भाई को पैरेंट्स की हर डांट से बचाने के साथ ही उन के कठिन समय में उन का साथ देने का काम करती हैं. परेशानी के समय भाई या बहन के पास आप को रोने के लिए सब से मजबूत और कोमल कंधे मिलते हैं. यही बातें भाई और बहन के रिश्ते को मजबूत बनाती हैं.

Raksha Bandhan 2024 : समय चक्र- अकेलेपन की पीड़ा क्यों झेल रहे थे बिल्लू भैया?

शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…य-पि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी? जैसे इतने वर्ष कटे, कुछ और कट जाते.

कभी सोचा भी न था कि ‘अपने घर’ और ‘अपनों’ से इतने वर्षों बाद मिलना होगा. ऐसा नहीं था कि घर की याद नहीं आती थी, कैसे न आती? बचपन की यादों से अपना दामन कौन छुड़ा पाया है? परंतु परिस्थितियां ही तो हैं, जो ऐसा करने पर मजबूर करती हैं कि हम उस बेहतरीन समय को भुलाने में ही सुकून महसूस करते हैं. अगर बिल्लू भैया का पत्र न आया होता तो मैं शायद ही कभी शिमला आने के लिए अपने कदम बढ़ाती.

4 दिन पहले मेरी ओर एक पत्र बढ़ाते हुए मेरे पति ने कहा, ‘‘तुम्हारे बिल्लू भैया इतने भावुक व कमजोर दिल के कैसे हो गए? मैं ने तो इन के बारे में कुछ और ही सुना था…’’

पत्र में लिखी पंक्तियां पढ़ते ही मेरी आंखों में आंसू आ गए, गला भर आया. लिखा था, ‘छोटी, तुम लोग कैसे हो? मौका लगे तो इधर आने का प्रोग्राम बनाना, बड़ा अकेलापन लगता है…पूरा घर सन्नाटे में डूबा रहता है, तेरी भाभी भी मायूस दिखती है, टकटकी लगा कर राह निहारती रहती है कि क्या पता कहीं से कोई आ जाए…’

समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे आज बिल्लू भैया जैसा इनसान एक निरीह प्राणी की तरह आने का निमंत्रण दे रहा है और वह भी ‘अकेलेपन’ का वास्ता दे कर. यादों पर जमी परत पिघलनी शुरू हुई. वह भी बिल्लू भैया के प्रयास से क्योंकि यदि देखा जाए तो यह परत भी उन्हीं के कारण जमानी पड़ी थी.

बचपन में बिल्लू भैया जाड़ों के दिनों में अकसर पानी पर जमी पाले की परत पर हाकी मार कर पानी निकालते और हम सब ठंड की परवा किए बिना ही उस पानी को एकदूसरे पर उछालने का ‘खेल’ खेलते.

एक बार बिल्लू भैया, बड़े गर्व से हम को अपनी उपलब्धि बता ही रहे थे कि अचानक उन से बड़े कन्नू भैया ने उन का कान जोर से उमेठ कर डांट लगाई…

‘अच्छा, तो ये तू है, जो मेरी हाकी का सत्यानाश कर रहा है…मैं भी कहूं कि रोज मैच खेल कर मैं अपनी हाकी साफ कर के रखता हूं और वह फिर इतनी गंदी कैसे हो जाती है.’

और बिल्लू भैया भी अपमान व दर्द चुपचाप सह कर, बिना आंसू बहाए कन्नू भैया को घूरते रहे पर ‘सौरी’ नहीं कहा. बचपन से ही वे रोना या अपना दर्द दूसरे से कहना अच्छा नहीं समझते थे, कभीकभी तो वे नाटकीय अंदाज में कहते थे, ‘आई हेट टियर्स…’

दूसरों से निवेदन करना जो इनसान अपनी हेठी समझता हो आज वह इस तरह…इस स्थिति में.

कितना अच्छा समय था. जब हम छोटे थे और एकता के धागे से बंधा कुल मिला कर लगभग 20 सदस्यों का हमारा संयुक्त परिवार था, जिस में दादी, एक विधवा व निसंतान चचेरी बूआ, हमारे पिता, उन से बड़े 3 भाई, सब के परिवार, हम 10 भाईबहन जोकि अपनीअपनी उम्र के भाईबहनों के साथ दोस्त की तरह रहते थे. सगे या चचेरे का कोई भाव नहीं, ताऊजी की दुकान थी…जहां पर ग्राहक को सामान से ज्यादा ताऊजी की ईमानदारी पर विश्वास था.

मेरे पिता, ताऊजी के साथ दुकान पर काम करते थे और उन के अन्य 2 भाइयों में से एक स्थानीय डिगरी कालेज में तथा एक आयकर विभाग में क्लर्क के पद पर थे जोकि निसंतान थे. कन्नू व बिल्लू भैया ताऊजी के बेटे थे. उस के बाद नन्हू व सोनू भैया थे. हम 3 बहनें, 1 भाई थे. अध्यापन का कार्य करने वाले ताऊजी के 2 बच्चे अभी छोटे थे क्योंकि वे उन की शादी के लगभग 10 साल बाद हुए थे. आयकर विभाग वाले ताऊजी निसंतान थे.

समय के साथ घर में परिवर्तन आने शुरू हुए, दादी व बूआ की मौत एक के बाद एक कर हो गई. घर के लड़के शहर छोड़ कर बाहर जाने लगे. कोई डाक्टरी की पढ़ाई के लिए, तो कोई नौकरी के लिए. मेरी भी बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. बिल्लू भैया की भी नागपुर में एक दवा की कंपनी में नौकरी लग गई, जब वे भी चले गए तब अचानक एक दिन ताऊजी पापा से बोले, ‘छोटे, अच्छा हुआ कि सभी अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं, मैं चाहता भी नहीं था कि आने वाले समय में नई पीढ़ी यहां बसे. हम ने तो निभा लिया पर ये बच्चे हमारी तरह साथ नहीं रह सकते. बड़ी मुश्किल से परिवार जुड़ता है और उस में किसी एक का योगदान नहीं होता बल्कि सभी का धैर्य, निस्वार्थ त्याग, स्नेह व समर्पण मिला कर ही एकतारूपी मजबूत धागे की डोर सब को जोड़ पाती है, वर्षों लग जाते हैं…यह सब होने में.’

वैसे तो दूसरे लोग भी घर से गए थे पर ताऊजी ने यह बात बिल्लू भैया के जाने के बाद ही क्यों कही? यह विचार मेरे मन में कौंधा और उस का उत्तर मुझे मात्र 6 महीने बाद ही मिल गया. वह भी एक तीव्र प्रहार के रूप में. ऐसी चोट मिली कि आज तक उस की कसक अंदर तक पीड़ा पहुंचा देती है.

बात यह हुई कि मात्र 6 महीने बाद ही बिल्लू भैया नौकरी छोड़ कर घर वापस आ गए.

‘मैं भी दुकान संभाल लूंगा क्योंकि मुझे लगता है कि बुढ़ापे में आप लोग अकेले रह जाएंगे, आप लोगों की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए,’ कहते हुए जब बिल्लू भैया ने अपना सामान अंदर रखना शुरू किया तो घर के सभी सदस्य बहुत खुश हुए किंतु ताऊजी अपने चेहरे पर निर्लिप्त भाव लिए अपना कार्य करते रहे.

मुझे जीवन की कड़वी सचाइयों का इतना अनुभव न था अन्यथा मैं भी समझ जाती कि यह चेहरा केवल निर्लिप्तता लिए हुए नहीं है बल्कि इस के पीछे आने वाले तूफान के कदमों की आहट पहचानने की चिंता व्याप्त है और यही सत्य था. तूफान ही तो था, जिस का प्रभाव आज तक महसूस होता रहा. धमाका उस दिन महसूस हुआ जब मैं अलसाई सी अपने बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़ी थी कि एक तेज आवाज मेरे कानों में पड़ी :

‘चाचाजी, कभीकभी मुझे लगता है कि आप अपने फायदे के लिए हमारे पिताजी के साथ रह रहे हैं. आप को अपनी बेटियों की शादी के लिए पैसा चाहिए न इसीलिए…’ यह क्या, मैं ने आंखें खोल कर देखा तो अपने पापा के सामने बिल्लू भैया को खड़ा देखा…

‘यह क्या कह रहे हो? हमारे बीच में ऐसी भावना होती तो हम इतने वर्षों तक कभी साथ न रह पाते. संयुक्त परिवार है हमारा, जहां हमारेतुम्हारे की कोई जगह नहीं. इतनी छोटी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’ पापा लगभग चिल्लाते हुए बोले.

पापा की एक आवाज पर थर्राने वाले बिल्लू भैया की आज इतनी हिम्मत हो गई कि उम्र का लिहाज ही भूल गए थे. मैं सिहर कर चुपचाप पड़ी सोने का नाटक करने लगी पर ताऊजी के उस वाक्य का अर्थ मेरी समझ में आ गया था. नई पीढ़ी का रंग सामने आ रहा था. पिता होने के नाते वे अपने बेटे की नीयत जानते थे और अपने संयुक्त परिवार को हृदय से प्यार करने वाले ताऊजी इस की एकता को हर खतरे से बचाना चाहते थे.

हतप्रभ से मेरे पापा ने जब यह बात मेरे ताऊजी से कही तो वे केवल एक ही वाक्य बोल पाए, ‘शतरंज की बाजी में, दूसरे के मजबूत मोहरे पर ही सब से पहले वार किया जाता है. वही हो रहा है. तुम मुझ पर विश्वास रखोगे तो कुछ नहीं बिगड़ेगा.’

कही हुई बात इतनी कड़वी थी कि उस की कड़वाहट धीरेधीरे घर के वातावरण में घुलने लगी…उस का प्रभाव धीरेधीरे अन्य लोगों पर भी दिखने लगा और एक अदृश्य सी सीमारेखा में सभी परिवार सिमटने लगे. एक ताऊजी कालेज के वार्डन बन कर वहीं होस्टल में बने सरकारी घर में चले गए. दूसरे भी मन की शांति के लिए घर के पीछे बने 2 कमरों में रहने लगे. अपमान से बचने के लिए उन्होंने रसोई भी अलग कर ली. अलगाव की सीमारेखा को मिटाने वाले सशक्त हाथ भी उम्र के साथ धीरेधीरे अशक्त होते चले गए. ताऊजी को लकवा मार गया और पापा भी अपने सबल सहारे को कमजोर पा कर परिस्थितियों के आगे झुकने को मजबूर हो गए, परंतु अंत समय तक उन्होंने ताऊजी का साथ न छोड़ा.

अब घर बिल्लू भैया व उन की पत्नी के इशारे पर चलने लगा, समय आने पर मेरी भी शादी हो गई और मैं शिमला के अपने इस प्यारे से घर को भूल ही गई. ताऊजी, ताईजी, पापा का इंतकाल हो गया. मां मेरे भाई के पास आ गईं. अब मेरे लिए उस घर में बचपन की यादों के सिवा कुछ न था.

समय का चक्र अविरल गति से घूम रहा था…और आज बिल्लू भैया भी उम्र के उसी पड़ाव पर खड़े थे, जिस पड़ाव पर कभी मेरे पापा अपमानित हुए थे, पर उन्होंने ऐसा पत्र क्यों लिखा? क्या कारण होगा?

अचानक कानों में पति के स्वर पड़े तो मेरी तंद्रा भंग हुई थी.

‘‘तुम शिमला क्यों नहीं चली जातीं, तुम्हारा घूमना भी हो जाएगा और उन का अकेलापन भी दूर होगा…चाहे थोड़े दिनों के लिए ही सही,’’ अचानक अपने पति की बातें सुन कर मैं ने सोचा कि मुझे जाना चाहिए…और मैं तैयारी करने लग गई थी.शिमला पहुंचते ही, मैं अपनी थकान भूल गई. तेज चाल से अपने मायके की ओर बढ़ते हुए मुझे याद ही नहीं रहा कि दिल्ली में रोज मुझे अपने घुटनों के दर्द की दवा खानी पड़ती है. कौलबेल पर हाथ रखते ही, बिल्लू भैया की आवाज सुनाई पड़ी, मानो वे मेरे आने के इंतजार में दरवाजे के पीछे ही खड़े थे…

‘‘छोटी, तू आ गई…बहुत अच्छा किया.’’ मुझे ऐसा लगा मानो ताऊजी सामने खड़े हों. ‘‘तेरी भाभी तो तेरे लिए पकवान बनाने में व्यस्त है…’’ तब तक भाभीजी भी डगमग चाल से चल कर मुझ से लिपट गईं. सच कहूं तो उन के प्यार में आज भी वह आकर्षण नहीं था, जो किसी ‘अपने’ में होता है. आज हम सब को अपने पास बुलाना उन की मजबूरी थी. अकेलेपन के अंधेरे से बाहर निकलने का एक प्रयास मात्र था…उस में अपनापन कहां से आएगा.

‘‘चलचल, अंदर चल,’’ बिल्लू भैया मेरा सामान अंदर रखने लगे, घर में घुसते ही मेरी आंखें भर आईं. यों तो चारों ओर सुंदरसुंदर फर्नीचर व सामान सजा हुआ था. पर सबकुछ निर्जीव सा लगा. काश, बिल्लू भैया व भाभीजी समझ पाते कि रौनक इनसानों से होती है, कीमती सामान से नहीं.

घर से हमारे बचपन की यादें मिट चुकी थीं. आज मां के हाथ के बने आलू की खुशबू, मात्र कल्पना में महसूस हो रही थी. मकान की शक्ल बदल चुकी थी… दुकान से मिसरी, गुड़, किशमिश गायब थी. बिल्लू भैया भी तो वे बिल्लू भैया कहां थे?

‘‘कितना बदल गया सबकुछ…’’ मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया.

‘‘सच कहती है तू…वाकई सब बदल गया, देख न, तनय, जिसे बच्चे की तरह गोद में खिलाया था…आज मुझ से कितनी ऊंची आवाज में बात करने लगा,’’ बिल्लू भैया के मन का गुबार मौका मिलते ही बाहर आ गया.

‘‘तनय, कन्नु भैया का बेटा… क्यों, क्या हो गया?’’

‘‘कहता है, मैं जायदाद पर अपना अधिकार जमाने के लिए, नौकरी छोड़ कर यहां आया था,’’ बता भला, मैं ऐसा क्यों करने लगा. जानता है न कि मैं कमजोर हो गया हूं तो जो चाहे कह जाता है, अपना हिस्सा मांग रहा है… कौन सा हिस्सा दूं और लोग भी तो हैं,’’ कहतेकहते बिल्लू भैया हांफने लगे, ‘‘बंटवारे का चक्कर होगा तो मैं और तेरी भाभी कहां जाएंगे.’’

विनी (भैया की बेटी) भी अमेरिका में बस गई थी. असुरक्षा व भय का भाव भैया की आवाज में साफ झलक रहा था.

मेरे कदम जम गए… कानों में दोनों आवाजें गूजने लगीं… एक जो मेरे पापा से कही गई थी और दूसरी आज ये बिल्लू भैया की. कितनी समानता है. न्याय मिलने में सालों तो लगे पर मिला. शायद इसीलिए परिस्थितियों ने बिल्लू भैया से मुझे ही चिट्ठी लिखवाई, क्योंकि उस दिन अपने पापा को मिलने वाली प्रत्यक्ष पीड़ा की प्रत्यक्षदर्शी गवाह मैं ही थी. इसीलिए आज न्याय प्राप्त होने की शांति भी मैं ही महसूस कर सकती थी.

आंखें बंद कर मन ही मन मैं ने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया. आज बिल्लू भैया को इस स्थिति में देख कर मुझे अपार दुख हो रहा था… बचपन के सखा थे वे हमारे.

‘‘भैया, हम आप के साथ हैं. हमारे होते हुए आप अकेले नहीं हैं. मैं वादा करती हूं कि तीजत्योहारों पर और इस के अलावा भी जब मौका लगेगा हम एकदूसरे से मिलते रहेंगे,’’ मैं ने अपनी आवाज को सामान्य करते हुए कहा क्योंकि मैं किसी भी हालत में अपने हृदय के भाव भैया पर जाहिर नहीं करना चाहती थी. मेरे इतने ही शब्दों ने भैया को राहत सी दे दी थी…उन के चेहरे से अब तनाव की रेखाएं कम होने लगी थीं.

आखिर मेरे चलने का दिन आ गया. पूरे घर का चक्कर लगा कर एक बार फिर अपने मन की उदासी को दूर करने का प्रयास किया पर प्रयास व्यर्थ ही गया. बस स्टैंड पर भैया की आंखों में आंसू देख कर मेरे सब्र का बांध टूट गया क्योंकि ये आंसू सचाई लिए हुए थे. पश्चात्ताप था उन में, पर अब खाइयां इतनी गहरी थीं कि उन को पाटने में वर्षों लग जाते… ताऊजी की सहेजी गई अमानत अब पहले जैसा रूप कैसे ले सकती थी.

बस चल पड़ी और भैया भी लौट गए. मन में एक टीस सी उठी कि काश, यदि बिल्लू भैया जैसे लोग कोई भी ‘दांव’ लगाने से पहले समय के चक्र की अविरल गति का एहसास कर लें तो वे कभी भी ऐसे दांव लगाने की हिम्मत न करें…

यह अटल सत्य है कि यही चक्र एक दिन उन्हें भी उसी स्थिति पर खड़ा करेगा जिस पर उन्होंने दूसरे व्यक्ति को कमजोर समझ कर खड़ा किया है. इस तथ्य को भुलाने वाले बिल्लू भैया आज दोहरी पीड़ा झेल रहे थे…निजी व पश्चात्ताप की.

Raksha Bandhan 2024 : चमत्कार- क्या बड़ा भाई रतन करवा पाया मोहिनी की शादी?

‘‘मोहिनी दीदी पधार रही हैं,’’ रतन, जो दूसरी मंजिल की बालकनी में मोहिनी के लिए पलकपांवडे़ बिछाए बैठा था, एकाएक नाटकीय स्वर में चीखा और एकसाथ 3-3 सीढि़यां कूदता हुआ सीधा सड़क पर आ गया.

उस के ऐलान के साथ ही सुबह से इंतजार कर रहे घर और आसपड़ोस के लोग रमन के यहां जमा होने लगे.

‘‘एक बार अपनी आंखों से बिटिया को देख लें तो चैन आ जाए,’’ श्यामा दादी ने सिर का पल्ला संवारा और इधरउधर देखते हुए अपनी बहू सपना को पुकारा.

‘‘क्या है, अम्मां?’’ मोहिनी की मां सपना लपक कर आई थीं.

‘‘होना क्या है आंटी, दादी को सिर के पल्ले की चिंता है. क्या मजाल जो अपने स्थान से जरा सा भी खिसक जाए,’’ आपस में बतियाती खिलखिलाती मोहिनी की सहेलियों, ऋचा और रीमा ने व्यंग्य किया था.

‘‘आग लगे मुए नए जमाने को. शर्म नहीं आती अपनी पोशाक देख कर? न गला, न बांहें, न पल्ला, न दुपट्टा और चली हैं दादी की हंसी उड़ाने,’’ ऋचा और रीमा को आंखों से ही घुड़क दिया. वे दोनों चुपचाप दूसरे कमरे में चली गईं.

लगभग 2 साल पहले सपना ने अपने पति रामेश्वर बाबू को एक दुर्घटना में गंवा दिया था. श्यामा दादी ने अपना बेटा खोया था और परिवार ने अपना कर्णधार. दर्द की इस सांझी विरासत ने परिवार को एक सूत्र में बांध दिया था.

‘‘चायनाश्ते का पूरा प्रबंध है या नहीं? पहली बार ससुराल से लौट रही है हमारी मोहिनी. और हां, बेटी की नजर उतारने का प्रबंध जरूर कर लेना,’’ दादी ने लाड़ जताते हुए कहा था.

‘‘सब प्रबंध है, अम्मां. आप तो सचमुच हाथपैर फुला देती हैं. नजर आदि कोरा अंधविश्वास है. पंडितों की साजिश है,’’ सपना अनचाहे ही झल्ला गई थी.

‘‘बुरा मानने जैसा तो कुछ कहा नहीं मैं ने. क्या करूं, जबान है, फिसल जाती है. नहीं तो मैं कौन होती हूं टांग अड़ाने वाली?’’ श्यामा दादी सदा की तरह भावुक हो उठी थीं.

‘‘अब तुम दोनों झगड़ने मत लगना. शुक्र मनाओ कि सबकुछ शांति से निबट गया नहीं तो न जाने क्या होता?’’ मोहिनी के बड़े भाई रमन ने बीचबचाव किया तो उस की मां सपना और दादी श्यामा तो चुप हो गईं पर उस के मन में बवंडर सा उठने लगा. क्या होता यदि मोहिनी के विवाह के दिन ऊंट दूसरी करवट बैठ जाता? वह तो अपनी सुधबुध ही खो बैठा था. उस की यादों में तो आज भी सबकुछ वैसा ही ताजा था.

‘भैया, ओ भैया. कहां हो तुम?’ रतन इतनी तीव्रता से दौड़ता हुआ घर में घुसा था कि सभी भौचक्के रह गए थे. वह आंगन में पड़ी कुरसी पर निढाल हो कर गिरा था और हांफने लगा था.

‘क्या हुआ?’ बाल संवारती हुई अम्मां कंघी हाथ में लिए दौड़ी आई थीं. रमन दहेज के सामान को करीने से संदूक में लगवा रहा था. उस ने रतन के स्वर को सुन कर भी अनसुना कर दिया था.

शादी का घर मेहमानों से भरा हुआ था. सभी जयमाला की रस्म के लिए सजसंवर रहे थे. सपना और रतन के बीच होने वाली बातचीत को सुनने के लिए सभी बेचैन हो उठे थे. पर रतन के मुख से कुछ निकले तब न. उस की आंखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे.

‘अरे, कुछ तो बोल, हुआ क्या? किसी ने पीटा है क्या? हाय राम, इस की कनपटी से तो खून बह रहा है,’ सपना घबरा कर खून रोकने का प्रयत्न करने लगी थीं. सभी मेहमान आंगन में आ खड़े हुए थे.

श्यामा दादी दौड़ कर पानी ले आई थीं. घाव धो कर मरहमपट्टी की. रतन को पानी पिलाया तो उस की जान में जान आई.

‘मेरी छोड़ो, अम्मां, रमन भैया को बुलाओ…वहां मैरिज हाल में मारपीट हो गई है. नशे में धुत बराती अनापशनाप बक रहे थे.’’

सपना रमन को बुलातीं उस से पहले ही रतन के प्रलाप को सुन कर रमन दौड़ा आया था. रतन ने विस्तार से सब बताया तो वह दंग रह गया था. वह तेजी से मैरिज हाल की ओर लपका था उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उस के साथ थे.

रमन मैरिज हाल पहुंचा तो वहां कोहराम मचा हुआ था. करीने से सजी कुरसियांमेजें उलटी पड़ी थीं. आधी से अधिक कुरसियां टूटी पड़ी थीं.

‘यह सब क्या है? यहां हुआ क्या है, नरेंद्र?’ उस ने अपने चचेरे भाई से पूछा था.

‘बराती महिलाओं का स्वागत करने घराती महिलाओं की टोली आई थी. नशे में धुत कुछ बरातियों ने न केवल महिलाओं से छेड़छाड़ की बल्कि बदतमीजी पर भी उतर आए,’ नरेंद्र ने रमन को वस्तुस्थिति से अवगत कराया था.

रमन यह सब सुन कर भौचक खड़ा रह गया था. क्या करे क्या नहीं…कुछ समझ नहीं पा रहा था.

‘पर बराती गए कहां?’ रमन रोंआसा हो उठा था. कुछ देर में स्वयं को संभाला था उस ने.

‘जाएंगे कहां? बात अधिक न बढ़ जाए इस डर से हम ने उन्हें सामने के दोनों कमरों में बंद कर के ताला लगा दिया,’ नरेंद्र ने क्षमायाचनापूर्ण स्वर में बोल कर नजरें झुका ली थीं.

‘यह क्या कर दिया तुम ने. क्या तुम नहीं जानते कि मैं ने कितनी कठिनाई से पाईपाई जोड़ कर मोहिनी के विवाह का प्रबंध किया था. तुम लोग क्या जानो कि पिता के साए के बिना जीवन बिताना कितना कठिन होता है,’ रमन प्रलाप करते हुए फूटफूट कर रो पड़ा था.

‘स्वयं को संभालो, रमन. मैं क्या मोहिनी का शत्रु हूं? तुम ने यहां का दृश्य देखा होता तो ऐसा नहीं कहते. तुम्हें हर तरफ फैला खून नजर नहीं आता? यदि हम करते इन्हें बंद न तो न जाने कितने लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते,’ नरेंद्र, उस के मित्र प्रभाकर, सुनील और अनिल भी उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयत्न करने लगे थे.

किसी प्रकार साहस जुटा कर रमन उन कमरों की ओर गया जिन में बराती बंद थे. उसे देखते ही कुछ बराती मुक्के हवा में लहराने लगे थे.

‘तुम लोगों का साहस कैसे हुआ हमें इस तरह कमरों में बंद करने का,’ कहता हुआ एक बराती दौड़ कर खिड़की तक आया और गालियों की बौछार करने लगा. एक अन्य बराती ने दूसरी खिड़की से गोलियों की झड़ी लगा दी. रमन और उस के साथी लेट न गए होते तो शायद 1-2 की जान चली जाती.

दूल्हा ‘राजीव’ पगड़ी आदि निकाल ठगा सा बैठा था.

‘समझ क्या रखा है? एकएक को हथकडि़यां न लगवा दीं तो मेरा नाम सुरेंद्रनाथ नहीं,’ वर के पिता मुट्ठियां हवा में लहराते हुए धमकी दे रहे थे.

चंद्रा गार्डन नामक इस मैरिज हाल में घटी घटना का समाचार जंगल की आग की तरह फैल गया था. समस्त मित्र व संबंधी घटनास्थल पर पहुंच कर विचारविमर्श कर रहे थे.

चंद्रा गार्डन से कुछ ही दूरी पर जानेमाने वकील और शहर के मेयर रामबाबू रहते थे. रमन के मित्र सुनील के वे दूर के संबंधी थे. उसे कुछ न सूझा तो वह अनिल और प्रभाकर के साथ उन के घर जा पहुंचा.

रामबाबू ने साथ चलने में थोड़ी नानुकुर की तो तीनों ने उन के पैर पकड़ लिए. हार कर उन को उन के साथ आना ही पड़ा.

रामबाबू ने खिड़की से ही वार्त्तालाप करने का प्रयत्न किया पर वरपक्ष का कोई व्यक्ति बात करने को तैयार नहीं था. वे हर बात का उत्तर गालियों और धमकियों से दे रहे थे.

रामबाबू ने प्रस्ताव रखा कि यदि वरपक्ष शांति बनाए रखने को तैयार हो तो वह कमरे के ताले खुलवा देंगे पर लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें कोई आश्वासन नहीं मिला. साथ ही सब को गोलियों से भून कर रख देने की धमकी भी मिली.

इसी ऊहापोह में शादी के फूल मुरझाने लगे. बड़े परिश्रम और मनोयोग से बनाया गया भोजन यों ही पड़ापड़ा खराब होने लगा.

‘जयमाला’ के लिए सजधज कर बैठी मोहिनी की आंखें पथरा गईं. कुछ देर पहले तक सुनहरे भविष्य के सपनों में डूबी मोहिनी को वही सपने दंश देने लगे थे.

काफी प्रतीक्षा के बाद वह भलीभांति समझ गई कि दुर्भाग्य ने उस का और उस के परिवार का साथ अभी तक नहीं छोड़ा है. मन हुआ कि गले में फांसी का फंदा लगा कर लटक जाए, पर रमन का विचार मन में आते ही सब भूल गई. किस तरह कठिन परिश्रम कर के रमन भैया ने पिता के बाद कर्णधार बन कर परिवार की नैया पार लगाई थी. वह पहले ही इस अप्रत्याशित परिस्थिति से जूझ रहा था और एक घाव दे कर वह उसे दुख देने की बात सोच भी नहीं सकती थी.

उधर काफी देर होहल्ला करने के बाद बराती शांत हो गए थे. बरात में आए बच्चे भूखप्यास से रोबिलख रहे थे. बरातियों ने भी इस अजीबोगरीब स्थिति की कल्पना तक नहीं की थी.

अत: जब मेयर रामबाबू ने फिर से कमरों के ताले खोलने का प्रस्ताव रखा, बशर्ते कि बराती शांति बनाए रखें तो वरपक्ष ने तुरंत स्वीकार कर लिया.

अब तक अधिकतर बरातियों का नशा उतर चुका था. पर रस्सी जलने पर भी ऐंठन नहीं गई थी. वर के पिता सुरेंद्रनाथ तथा अन्य संबंधियों ने बरात के वापस जाने का ऐलान कर दिया. रामबाबू भी कच्ची गोलियां नहीं खेले थे. उन के इशारा करते ही कालोनी के युवकों ने बरातियों को चारों ओर से घेर लिया था.

‘देखिए श्रीमान, मोहिनी केवल एक परिवार की नहीं सारी कालोनी की बेटी है. जो हुआ गलत हुआ पर उस में बरातियों का दोष भी कम नहीं था,’ रामबाबू ने बात सुलझानी चाही थी.

‘चलिए, मान लिया कि दोचार बरातियों ने नशे में हुड़दंग मचाया था तो क्या आप हम सब को सूली पर चढ़ा देंगे?’ वरपक्ष का एक वयोवद्ध व्यक्ति आपा खो बैठा था.

‘आप इसे केवल हुड़दंग कह रहे हैं? गोलियां चली हैं यहां. न जाने कितने घरातियों को चोटें आई हैं. आप के सम्मान की बात सोच कर ही कोई थानापुलिस के चक्कर में नहीं पड़ा,’ रमन के चाचाजी ने रामबाबू की हां में हां मिलाई थी.

‘तो आप हमें धमकी दे रहे हैं?’ वर के पिता पूछ बैठे थे.

‘धमकी क्यों देने लगे भला हम? हम तो केवल यह समझाना चाह रहे हैं कि आप बरात लौटा ले गए तो आप की कीर्ति तो बढ़ने से रही. जो लोग आप को उकसा रहे हैं, पीठ पीछे खिल्ली उड़ाएंगे.’

‘अजी छोडि़ए, इन सब बातों में क्या रखा है. अब तो विवाह का आनंद भी समाप्त हो गया और इच्छा भी,’ लड़के के पिता सुरेंद्रनाथ बोले थे.

‘आप हां तो कहिए, विवाह तो कभी भी हो सकता है,’ रामबाबू ने पुन: समझाया था.

काफी नानुकुर के बाद वरपक्ष ने विवाह के लिए सहमति दी थी.

‘इन के तैयार होने से क्या होता है. मैं तो तैयार नहीं हूं. यहां जो कुछ हुआ उस का बदला तो ये लोग मेरी बहन से ही लेंगे. आप ही कहिए कि उस की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा. माना हमारे सिर पर पिता का साया नहीं है पर हम इतने गएगुजरे भी नहीं हैं कि सबकुछ देखसमझ कर भी बहन को कुएं में झोंक दें,’ तभी रमन ने अपनी दोटूक बात कह कर सभी को चौंका दिया था और फूटफूट कर रोने लगा था.

कुछ क्षणों के लिए सभी स्तब्ध रह गए थे. रामबाबू से भी कुछ कहते नहीं बना था. पर तभी अप्रत्याशित सा कुछ घटित हो गया था. भावी वर राजीव स्वयं उठ कर रमन को सांत्वना देने लगा था, ‘मैं आप को आश्वासन देता हूं कि आप की बहन मोहिनी विवाह के बाद पूर्णतया सुरक्षित रहेगी. विवाह के बाद वह आप की बहन ही नहीं मेरी पत्नी भी होगी और उसे हमारे परिवार में वही सम्मान मिलेगा जो उसे मिलना चाहिए.’

‘ले, सुन ले रमन, अब तो आंसू पोंछ डाल. इस से बड़ी गारंटी और कोई क्या देगा,’ रामबाबू बोले थे.

धीरेधीरे असमंजस के काले मेघ छंटने लगे थे. नगाड़े बज उठे थे. बैंड वाले अपनी ही धुन पर थिरक रहे थे. रमन पुन: बरातियों के स्वागतसत्कार मेें जुट गया था.

रमन न जाने और कितनी देर अपने दिवास्वप्न में डूबा रहता कि तभी मोहिनी ने अपने दोनों हाथों से उस के नेत्र मूंद दिए थे.

‘‘बूझो तो जानें,’’ वह अपने चिरपरिचित अंदाज में बोली थी.

रमन ने उसे गले से लगा लिया. सारा घर मेहमानों से भर गया था. सभी मोहिनी की एक झलक पाना चाहते थे.

मोहिनी भी सभी से मिल कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रही थी. तभी रामबाबू ने वहां पहुंच कर सब के आनंद को दोगुना कर दिया था. रमन कृतज्ञतावश उन के चरणों में झुक गया था.

‘‘काकाजी उस दिन आप ने बीचबचाव न किया होता तो न जाने क्या होता,’’ वह रुंधे गले से बोला था.

‘‘लो और सुनो, बीचबचाव कैसे न करते. मोहिनी क्या हमारी कुछ नहीं लगती. वैसे भी यह हमारे साथ ही दो परिवार के सम्मान का भी प्रश्न था,’’ रामबाबू मुसकराए फिर

राजीव से बोले, ‘‘एक बात की बड़ी उत्सुकता है हम सभी को कि वे लोग थे कौन जिन्होंने इतना उत्पात मचाया था? मुझे तो ऐसा लगा कि बरात में 3-4 युवक जानबूझ कर आग को हवा दे रहे थे.’’

‘‘आप ने ठीक समझा, चाचाजी,’’ राजीव बोला, ‘‘वे चारों हमारे दूर के संबंधी हैं. संपत्ति को ले कर हमारे दादाजी से उन का विवाद हो गया था. वह मुकदमा हम जीत गए, तब से उन्होंने मानो हमें नीचा दिखाने की ठान ली है. सामने तो बड़ा मीठा व्यवहार करते हैं पर पीठ पीछे छुरा भोंकते हैं,’’ राजीव ने स्पष्ट किया.

‘‘देखा, रमन, मैं न कहता था. वे तो विवाह रुकवाने के इरादे से ही बरात में आए थे, पर उस दिन राजीव, तुम ने जिस साहस और सयानेपन का परिचय दिया, मैं तो तुम्हारा कायल हो गया. मोहिनी बेटी के रूप में हीरा मिला है तुम्हें. संभाल कर रखना इसे,’’ रामबाबू ने राजीव की प्रशंसा के पुल बांध दिए थे.

राजीव और मोहिनी की निगाहें एक क्षण को मिली थीं. नजरों में बहते अथाह प्रेम के सागर को देख कर ही रमन तृप्त हो गया था, ‘‘आप ठीक कहते हैं, काका. ऐसे संबंधी बड़े भाग्य से मिलते हैं.’’

वह आश्वस्त था कि मोहिनी का भविष्य उस ने सक्षम हाथों में सौंपा था.

Raksha Bandhan 2024 – क्या खोया क्या पाया : क्या वापस पा सकी संध्या

इस बार जब मैं मायके गई तब अजीब सा सुखद एहसास हुआ मुझे. मेरे बीमार पिता के पास मेरी इकलौती मौसी बैठी थीं. वह मुझे देख कर खुश हुईं और मैं उन्हें देख कर हैरान.

यह मेरे लिए एक सुखद एहसास था क्योंकि पिछले 18 साल से हमारा उन से अबोला चल रहा था. किन्हीं कारणों से कुछ अहं खड़े कर लिए थे हमारे परिवार वालों ने और चुप होतेहोते बस चुप ही हो गए थे.

जीवन में ऐसे सुखद पल जो अनमोल होते हैं, हम ने अकेले रह कर भोगे थे. उन के बेटों की शादियों में हम नहीं गए थे और मेरे भाइयों की शादी में वे नहीं आए थे. मौसा की मौत का समाचार मिला तो मैं आई थी. पराए लोगों की तरह बैठी रही थी, सांत्वना के दो शब्द मेरे मुंह से भी नहीं निकले थे और मौसी ने भी मेरे साथ कोई बात नहीं की थी.

मौसी से मुझे बहुत प्यार था. अपनी मां से ज्यादा प्रिय थीं मौसी मुझे. पता नहीं स्नेह के तार क्यों और कैसे टूट गए थे जिन्हें जोड़ने का प्रयास यदि एक ने किया तब दूसरे ने स्वीकार नहीं किया था और यदि दूसरे ने किया तो पहले की प्रतिक्रिया ठंडी रही थी.

‘‘कैसी हो, संध्या? बच्चे साथ नहीं आए?’’ मौसी के स्वर में मिठास थी और बालों में सफेदी. 18 सालों में कितनी बदल गई थीं मौसी. सफेद साड़ी और उन का सूना माथा मेरे मन को चुभा था.

‘‘दिनेशजी साथ नहीं आए, अकेली आई हो?’’ मेरे पति के बारे में पूछा था मौसी ने. लगातार एक के बाद एक सवाल करती जा रही थीं मौसी. मेरी आवाज नहीं निकल रही थी. हलक  में 18 साल के वियोग का गोला जो अटक गया था. एकाएक मौसी से लिपट कर मैं चीखचीख कर रो पड़ी थी.

‘‘पगली, रोते नहीं. देख, चुप हो जा संध्या,’’ इस तरह बड़े स्नेह से मौसी दुलारती रही थीं मुझे.

कितने ही अधिकार, जो कभी मुझे मौसी और मौसी के परिवार पर थे, अपना सिर उठाने लगे थे, मानो पूछना चाह रहे हों कि क्यों उचित समय पर हमारा सम्मान नहीं किया गया पर यह भी तो एक कड़वा सच है न कि प्यार तथा अधिकार कोई वस्तु नहीं हैं जिन्हें हाथ बढ़ा कर किसी के हाथ से छीन लिया जाए. यह तो एक सहज भावना है जिसे बस महसूस किया जा सकता है.

‘‘बच्चे साथ नहीं आए, किस के पास छोड़ आई है उन्हें?’’ मौसी के इस प्रश्न पर मैं रोतेरोते हंस पड़ी थी.

‘‘वे अब मेरी उंगली पकड़ कर नहीं चलते, मौसी. होस्टल में रह कर पढ़ते हैं.’’

‘‘अच्छा, इतने बड़े हो गए.’’

‘‘आप  भी तो बूढ़ी हो गईं, और मेरे भी बाल देखो, अब सफेद हो रहे हैं.’’

‘‘हां,’’ कह कर मेरा गाल थपक दिया मौसी ने.

‘‘जीवन ही बीत गया अब तो…चल, आ, बैठ…मैं तेरे लिए चायनाश्ता लाती हूं. दीदी दवा लेने बाजार गई हैं.’’

‘‘छोटी भाभी कहां हैं?’’ मैं ने आगेपीछे नजरें दौड़ाई थीं.

‘‘आज उस के मायके में कोई फंक्शन था, इसलिए वह वहां गई है. घर में अकेले थे सो मैं भी चली आई. चल, हाथमुंह धो ले…मैं देखती हूं, क्या है फ्रिज में,’’ यह कह कर मौसी चली गईं.

5-7 मिनट में ही मौसी मेरे लिए चाय और नाश्ता ले कर आईर्ं.

‘‘ले, डबलरोटी के पकौड़े तुझे बहुत पसंद हैं न, मुझे याद है…साथ है यह मीठी डबलरोटी…यह भी तेरी पसंद की ही है.’’

मौसी का उत्साह वही वर्षों पुराने वाला ही था, यह देख कर आंखें भर आई थीं मेरी. मुसकरा पड़ी थी मैं.

‘‘बहुएं कैसी हैं, मौसी?’’ खातेखाते मैं ने पूछा था, ‘‘अब तो आप दादी भी बन गई हैं. कैसा लगता है दादी बनना?’’

‘‘अरे, आज की दादी बनी हूं मैं… 10 साल की पोती है मेरी. अब तो वह 5वीं में पढ़ती है. पोता भी 8 साल का है. नरेश की बेटी भी इस साल स्कूल जाएगी.’’

‘‘नरेश की भी बेटी है?’’ मैं आश्चर्य से बोली, ‘‘वह जरा सा था जब देखा था उसे.’’

‘‘हां, कल आना घर पर, देख लेना सब को. तुझे बहुत याद करते हैं लड़के. राखी पर सब का मन दुखी हो जाता है. तेरे बाद कभी किसी से उन लोगों ने राखी नहीं बंधवाई.’’

खातेखाते कौर मेरे गले में ही अटक गया. मुझे याद है, 18 साल पहले जब मैं मौसी के घर उन के बेटों को राखी बांधने गई थी तब मौसा ने कितना अनाप- शनाप कहा था.

आपसी संबंधोें की कटुता उस के मुंह पर इस तरह दे मारी थी मानो भविष्य में कभी उस की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. कैसी विडंबना है न हमारे जीवन की. जब हम जवान होते हैं, हाथों में ताकत होती है तब कभी नहीं सोचते कि धीरेधीरे यह शक्ति घटनी है. हमें भी किसी पर एक दिन आश्रित होना पड़ सकता है. अपने स्वाभिमान को हम इतनी ऊंचाई पर ले जाते हैं कि वह अभिमान बन कर सामने वाले के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने लगता है. अपनी सीमा समाप्त हो कर कब दूसरे की सीमा शुरू हो गई पता ही नहीं चलता.

राखी बांधना छोड़ दिया था तब मैं ने. उस के बाद मौसी की दहलीज ही नहीं लांघी थी. आज मौसी उसी के बारे में बात कर रही थीं. पूछना चाहा था मैं ने कि अगर मैं राखी बांधने नहीं आई तो तीनों लड़कों में से कोई भी राखी बंधवाने क्यों नहीं आया था? क्यों नहीं किसी ने उस से मिलना चाहा? मैं तो सदा दोनों बहनों में पुल का ही काम करती रही थी. पर एक दिन जब मैं पुल की ही भांति दोनों तरफ से प्रताडि़त होने लगी तब मैं ने बीच में से हट जाना ही ठीक समझा था.

‘‘मौसी, आप भी चाय लें न,’’ मैं ने उन की बात को उड़ा देना ही ठीक समझा था.

‘‘अभी तेरे आने से पहले मैं ने और जीजाजी ने चाय पी थी.’’

मौसी मेरे पिता की पीठ सहला रही थीं. 2 बूढ़ों में एक की सेवा दूसरा कर रहा था. देखने में अच्छा भी लग रहा था और विचित्र भी.

‘‘आप का जूस ले आऊं न अब…6 बज गए हैं,’’ मौसी ने पूछा और साथ ही जा कर जूस ले भी आईं.

पिताजी जूस पी ही रहे थे कि अम्मां भी आ गईं. वह मुझे देख कर खुश थीं और मैं दोनों बहनों को साथसाथ देख कर.

शाम गहरी हुई तो मौसी अपने घर चली गईं. दूसरी शाम आईं तो मेरे लिए पूरा दिन अपने साथ बिताने का न्योता था उन के होंठों पर.

‘‘भाभियों से नहीं मिलेगी क्या? सब तुझे देखना चाहती हैं…कल सुबह नरेश तुझे लेने आ जाएगा.’’

मौन स्वीकृति थी मेरे होंठों पर.

सुबह नरेश लेने चला आया. सुंदर, सजीला निकला था नरेश. इस से पहले जब देखा था तब बीमार रहने वाला, कमजोर सा लड़का था वह.

‘‘चरण स्पर्श, दीदी, पहचाना कि नहीं. मैं हूं तुम्हारा सींकिया पहलवान… नरेश…याद आया कि नहीं.’’

याद आया, अकसर सब उसे सींकिया पहलवान कह कर चिढ़ाते थे. वह सब को मारने दौड़ता था, सिवा मेरे.

आज भी उसे मेरा संबोधन याद था. आत्मग्लानि होने लगी मुझे. मैं सोचने लगी कि कैसी बहन हूं, यही सुंदर सा प्यारा सा युवक आज यदि मुझे कहीं बाजार में मिल जाता तो शायद मैं पहचान भी न पाती.

‘‘जीते रहो,’’ सस्नेह मैं ने उस का सिर थपथपाया था.

‘‘चलो, दीदी, वहां बड़ी बेसब्री से आप का इंतजार हो रहा है.’’

‘‘अच्छा, अम्मां, मैं चलती हूं,’’ मां से विदा ली थी मैं ने.

मौसी के घर मेरा भरपूर स्वागत हुआ था. तीनों बहुएं मेरे आगेपीछे सिमट आई थीं. बारीबारी से सभी चरण स्पर्श करने लगीं. बच्चों को मेरे पास बैठाया और कहा, ‘‘यह बूआ हैं, बेटे. इन्हें नमस्ते करो.’’

कितने चेहरे थे जो मेरे अपने थे, मगर मुझ से अनजान थे. जिन से आज तक मैं भी अनजान थी. बीते 18 सालों में कितना कुछ बीत गया, कितना कुछ ऐसा बीत गया जिसे साथसाथ रह कर भी भोगा जा  सकता था, साथसाथ रह कर भी जिया जा सकता था.

पूरा दिन एक उत्सव सा बीत गया. बीते 18 साल मानो किसी कोने में सिमट गए हों, मानो वह बनवास, वह एकदूसरे से अलग रहने की पीड़ा कभी सही ही नहीं थी.

कड़वे पल न उन्होंने याद दिलाए न मैं ने, मगर आपस की बातों से मैं यह सहज ही जान गई थी कि मुझे वह भूले कभी भी नहीं थे. बारबार मेरे मन में एक ही प्रश्न उठ रहा था, जब दोनों तरफ प्यार बराबर था तो क्यों झूठे अहं खड़े किए थे दोनों परिवारों ने? क्यों अपनेअपने अहंकार संबंधों के बीच ले आए थे? समझ में नहीं आ रहा था, आखिर क्या पाया था हम दोनों परिवार वालों ने इतना सुख, इतना प्यार खो कर?

शाम के समय नरेश मुझे वापस घर छोड़ गया. रात में अम्मां और पिताजी मुझ से पूरा हालचाल सुनते रहे. 18 वर्षों के बाद मौसी के घर जो गई थी मैं.

‘‘कैसे लगे सब लोग…बहुएं… बच्चे?’’

‘‘बहुत अच्छे लगे. मेरे आगेपीछे ही पूरा परिवार डोलता रहा. बच्चे बूआबूआ करते रहे और भाभियां दीदीदीदी. लगा ही नहीं, कभी हम अजनबी भी रह चुके हैं,’’ एक पल रुकने के बाद मैं फिर बोली, ‘‘अम्मां, एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि अचानक यह सब पुन: जुड़ कैसे गया?’’

‘‘ऐसा ही तो होता है…और यही जीवन है,’’ हंस कर बोले थे पिताजी, ‘‘जब इनसान जवान होता है तब भविष्य की बंद मुट्ठी उसे क्याक्या सपने दिखाती रहती है, तुम खुद भी महसूस करती होगी. भविष्य क्या है उस से अनजान हम तनमन से जुटे रहते हैं, बच्चों की लिखाईपढ़ाई है, बेटी की जिम्मेदारी है, सभी कर्तव्य पूरे करने होते हैं हमें और हम सांस भी लिए बिना कभीकभी निरंतर चलते रहते हैं. हमारी आंखों के सामने बच्चों के साथसाथ अपना भी एक उज्ज्वल भविष्य होता है कि जब बूढ़े हो जाएंगे तो चैन से बैठ कर अपनी मेहनत का फल भोगेंगे, बुढ़ापे में संतान सेवा करेगी, पूरा जीवन इसी आस पर ही तो बिताया होता है न हम ने. उस पल कभीकभी अपने सगे भाईबहनों से भी हम विमुख हो जाते हैं क्योंकि तब हमें अपनी संतान ही नजर आती है…बाकी सब पराए.

‘‘कई बार तो हम अपने मांबाप के साथ भी स्वार्थपूर्ण व्यवहार करने लग जाते हैं, क्योंकि उन के लिए कुछ भी करना हमें अपने बच्चों के अधिकार में कटौती करना लगता है. तब हम यह भूल जाते हैं कि हमारे मातापिता ने भी हमें इसी तरह पाला था. उन का भी चैन से बैठ कर दो रोटी खाने का समय अभी आया है. उन को छोड़ हम अपनी गृहस्थी में डूब जाते हैं और जब हम खुद बूढ़े हो जाते हैं तब पता चलता है कि हम भी अकेले रह गए हैं.

‘‘लगता है, हम तो ठगे गए हैं. मेरामेरा कर जिस बच्चे को पालते रहे वह तो मेरा था ही नहीं. वह तो अपने परिवार का है और हम उस की गृहस्थी के अवांछित सदस्य हैं, बस.’’

बोलतेबोलते थक गए थे पिताजी. कुछ रुक कर हंस पड़े वह. फिर बोले, ‘‘बेटा, ऐसा सभी के साथ होता है. जीवन की संध्या में हर इनसान अकेला ही रह जाता है. पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही होता आया है. तब थकाहारा मनुष्य अपने जीवन का लेखाजोखा करता है कि उस ने जीवन में क्या खोया और क्या पाया. भविष्य से तो तब कोई उम्मीद रहती नहीं जिस की तरफ आंख उठा कर देखे, सो अतीत की ओर ही मुड़ जाता है.

‘‘तुम्हारी मौसी भी इसीलिए अतीत को पलटी हैं. शायद भाईबहन ही अपने हों…और मजे की बात बुढ़ापे में पुराने दोस्त और पुराने संबंधी याद भी बहुत आते हैं. सब की पीड़ा एक सी होती है न इसीलिए एकदूसरे को आसानी से समझ भी जाते हैं, जबकि जवानों के पास बूढ़ों को समझने का समय ही नहीं होता.’’

‘‘आप का मतलब है संतान से हुआ  मोहभंग उन्हें भाईबहनों की ओर मोड़ देता है?’’

‘‘हां, क्योंकि तब उसे जीने को कुछ तो चाहिए न…भविष्य नहीं, वर्तमान नहीं तो अतीत ही सही.

‘‘तुम्हारी मौसी का भरापूरा परिवार है. वह सुखी हैं. फिर भी अकेलेपन का एहसास तो है न. मौसा रहे नहीं, बच्चों के पास उन के लिए समय नहीं सो एक भावनात्मक संबल तो चाहिए न उन्हें… और हमें भी.’’

पिताजी ने खुद की तरफ भी इशारा किया.

‘‘हम भी अकेले से रह गए हैं. तुम दूर हो, तुम्हारे भाई अपनेअपने जीवन में व्यस्त हैं…एक दिन सहसा तुम्हारी मौसी सामने चली आईं… तब हम हक्केबक्के रह गए, स्नेह का धागा कहीं न कहीं अभी भी हमें बांधे हुए है यह जान हमें बहुत संतोष हुआ. और बुढ़ापे में सोच भी तो परिपक्व हो जाती है न. पुरानी कड़वी बातें न वह छेड़ती हैं न हम. बस, मिलबैठ कर अच्छा समय काट लेते हैं हम सब.

‘‘अब चलाचली के समय चैन चाहिए हमें भी और तुम्हारी मौसी को भी, क्योंकि जीवन का लेखाजोखा तो हो चुका न, अब कैसा मनमुटाव?’’

सारे जीवन का सार पिताजी ने छान कर सामने परोस दिया. जवानी के जोश में भाईबहनों से विमुखता क्या जायज है? जबकि यह एक शाश्वत सत्य है कि आज के युग में संयुक्त परिवारों का चलन न रहने पर हर इनसान का बुढ़ापा एक एकाकी श्राप बनता जा रहा है, क्या यह उचित नहीं कि हम अपनी सोच को थोड़ा सा और बढ़ा कर स्नेह के धागे को बांधे रखें ताकि बुढ़ापे में एकदूसरे के सामने आने पर शरम न आए और अपनी संतान का भी उचित मार्गदर्शन कर सकें… बुढ़ापा तो उन पर भी आएगा न. बुढ़ापे में भाईबहनों में घिर उन्हें भी अच्छा लगेगा क्योंकि तब उन की संतानें भी उन्हें अकेला छोड़ अपनेअपने रास्ते निकल चुकी होंगी.

पीढि़यों का यह चलन पहली बार संध्या को बड़ी गहराई से कचोट गया. क्या वास्तव में उस के साथ भी ऐसा ही होगा? जेठजी के साथ परिवार वालों की खटपट चल रही है, जिस वजह से उन से कोई भी मिलना नहीं चाहता. उस के पति भी नहीं, बात क्या हुई कोई नहीं जानता. बस, जराजरा से अहं उठा लिए और बोलचाल बंद. कोई भी पहल करना नहीं चाहता जबकि सचाई यह है कि घर में हर पल उन्हीं की बात की जाती है.

‘‘आप को भाई साहब से मिलना चाहिए, हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं, हम भला उन के सामने कैसा उदाहरण पेश कर रहे हैं. खून के रिश्तों में अहं नहीं लाना चाहिए, वह हमारे बड़े हैं, हमारे अपने हैं. पहल हम ही कर लेते हैं, कोई छोटे नहीं हो जाएंगे हम…चलिए चलें.’’

संध्या ने घर वापस पहुंच कर सब से पहले अपने घर के टूटे तारों को जोड़ने का प्रयास किया. पति एकटक उस का चेहरा ताकने लगे.

‘‘जहां तक हो सके हमें निभाना सीखना चाहिए, तोड़ने की जगह जोड़ना सिखाना चाहिए अपने बच्चों को…’’

बात को बीच में काटते हुए संध्या के पति बोले, ‘‘और सामने वाला चाहे मनमानी करता रहे.’’

‘‘फिर क्या हो गया… वह आप के बड़े भाई हैं…मैं ने कहा न, व्यर्थ अहं रख कर खून के  रिश्ते की बलि नहीं चढ़ानी चाहिए.’’

संध्या ने मौसी की पूरी कहानी पति को सुना दी. चुपचाप सुनते रहे वह, जरा सा तुनके, फिर सहज होने लगे.

‘‘तुम ही पैर छूना, मैं नहीं…’’

‘‘कोई बात नहीं, मैं ही छू लूंगी, वह मेरे ससुर समान जेठ हैं. आप साथ तो चलिए.’’

संध्या मनाती रही, समझाती रही. उम्मीद जाग उठी थी मन में कि पति भी मान जाएंगे. एक सीमा में रह कर रिश्तों को निभाना इतना मुश्किल नहीं, ऐसा उसे विश्वास था. मन में जरा सा संतोष जाग उठा कि हो सकता है कि जब उस का बुढ़ापा आए तो वह अकेली न हो, उस के भाई, उस के रिश्तेदार आसपास हों, एकदूसरे से जुड़े हुए. तब वह यह न सोचे कि उस ने जीवन में अपनों को अपने से काट कर क्या खोया क्या पाया.

Raksha Bandhan Special : स्किन के मुताबिक करें मेकअप, नहींं हटेगी देखने वालों की नजर

फेस्टिवल्स का समय हो और महिलाएं मेकअप न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता. इस समय तो हर महिला स्टाइलिश एथनिक ड्रेसेस और जूलरी के साथ ब्राइट मेकअप लुक को तरजीह देती है. मगर फेस्टिवल्स के दौरान काम भी बहुत बढ़ जाता है. ऐसे में स्वाभाविक है कि मेकअप के दौरान कुछ गलतियां या चूक हो जाती हैं, जिस से खूबसूरती निखारने के बजाय बिगड़ भी सकती है. आइये ऐल्प्स ब्यूटी क्लिनिक की फाउंडर भारती तनेजा से जानते हैं कि ऐसी गलतियों से कैसे बचा जा सकता है;

ट्रेंडी बनें

गलती 1 : फेस्टिव सीजन के हिसाब से ट्रेंडी ड्रेस और मेकअप सेलेक्ट न करना .

समाधान : फेस्टिव मेकअप करते समय सब से बड़ी गलती जो हम अक्सर कर जाते हैं वह ये कि हम बहुत डार्क और हेवी मेकअप कर लेते हैं. पर जरुरी यह है कि मेकअप करते समय हमें लेटेस्ट ट्रेंड की जानकारी हो. आप महफिल में आउट आफ प्लेस नज़र न आएं इस के लिए मेकअप हमेशा ट्रेंड के हिसाब से ही करें.

स्किन के मुताबिक करें मेकअप

गलती 2 : स्किन के मुताबिक मेकअप नहीं करने से मेकअप का रिजल्ट कम दिखाई देता है

समाधान : प्रोडक्ट्स खरीदते समय स्किनटोन ही काफी नहीं, इस के लिए स्किन टाइप को भी ध्यान में रखना जरूरी होता है. अगर आप की स्किन औयली है तो फेस पाउडर ऐसा चुनें जिस में सिर्फ टैल्क या टैलकम हो क्यों कि यह चेहरे से औयल अब्जौर्ब कर आप को परफेक्ट फिनिश देता है. वहीं ड्राई स्किन वालों को हाइड्रोनिक एसिड और हाइड्रेटिंग प्रॉपर्टीज़ के साथ आने वाले फेस पाउडर का चुनाव करना बेहतर रिजल्ट देता है. यदि आप की त्वचा ड्राइ है तो फेस क्लीनिंग के लिए हमेशा क्लींजिंग मिल्क का प्रयोग करें. साथ ही मेकअप के लिए क्रीमी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर सकतें हैं. जबकि ऑयली स्किन  वालों को फेस क्लीन करने के लिए एसिट्रंजेंट का प्रयोग करना चाहिए और मेकअप के लिए वाटर बेसड प्रोडक्ट इस्तेमाल करें.

ब्लशर का प्रयोग ज्यादा न हो

गलती 3 : ब्लशर के ज्यादा होने से सुंदरता बढ़ने के बजाय घट जाती है.

समाधान : अगर ब्लशर करने के बाद आपको महसूस हो कि यह ज्यादा दिख रहा है तो एक साफ ब्लश-ब्रश से एक्स्ट्रा ब्लश साफ कर दें. टिश्यू पेपर से स्क्रब न करें, इससे त्वचा को नुकसान हो सकता है. ब्लश इस्तेमाल करना हो तो फाउंडेशन जरूर लगाना च‍ाहिए. ब्लशर लगाते हुए यह पता होना चाहिए कि इसकी सही मात्रा क्या है और फिर इसे मेकअप बेस के साथ ब्लेंड करने के लिए क्लौकवाइज और एंटीक्लौकवाइज लगाये. साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि कौम्पेक्ट के साथ मिलने वाले ब्रश छोटे होते हैं. हमेशा फुल साइज ब्लश ब्रश का इस्तेमाल करें.

अंडर आई डार्क सर्कल के लिए कंसीलर

गलती 4 : काले घेरों को छिपाने के लिए कंसीलर लगाना स्वाभाविक नहीं लगता.

समाधान: आई क्रीम या आंखों का सीरम आवश्यक है लेकिन कंसीलर लगाने से पहले इसे त्वचा में अब्जॉर्ब होने देना चाहिए.वरना कंसीलर जल्दी क्रीज हो कर अन-नैचुरल लगने लगता है. आंखों के नीचे कंसीलर को रगड़ना नहीं थपथपाना चाहिए. रंगडने से यह चारों और फैल जाता है.

विंग्ड आईलाइनर का सही प्रयोग

गलती 5 : आंखों की सुंदरता को कम कर देता है टेढा-मेढा आईलाइनर लगना.

समाधान: आजकल विंग्ड आईलाइनर लगाना फैशन में है. अधिकतर महिलाएं विंग्ड आईलाइनर लगाना पसंद करती हैं, लेकिन इसे लगाने में थोड़ी दिक्कत और सावधानी की भी ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में विंग्ड आईलाइनर लगाने में आप का काफी समय बर्बाद होता है. कई बार तो इसे लगाना बहुत ही मुश्किल भरा लगता है और बाद में आप अपना आईलाइनर सामान्य तरीके से ही लगा लेते हैं. लेकिन आप की इस समस्या का भी समाधान है. आप बौबी पिन के उपयोग से विंग्ड आईलाइनर आसानी से लगा सकते हैं. बौबी पिन के अंतिम सिरे पर आईलाइनर लगाएं और अपनी आखों के छोर पर रखें. आईलाइनर के इस्तेमाल से विंग को भरें और इस के बाद आगे से सामान्य तरीके से आईलाइनर लगाएं.

इडली के बेटर से बनाएं इडली पिज्जा और इडली कैरेमल नगेट्स

इडली मुख्यतया दक्षिण भारतीय व्यंजन है. इसे दाल चावल और उड़द की दाल को पीसकर फर्मेंट किये गए घोल से बनाया जाता है. भले ही यह दक्षिण भारतीय व्यंजन हो परन्तु वर्तमान में यह देश के सभी प्रान्तों के भोजन में अपना प्रमुख स्थान बना चुका है.  इसे मूंग, चना दाल और सूजी से भी बनाया जाने लगा है. आज हम आपको इडली के बेटर से पारम्परिक डिश के स्थान पर कुछ ट्विस्ट के साथ व्यंजन बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप सुगमता से घर की सामग्री से ही बना सकतीं है. इन्हें बनाने में आप अपनी इच्छानुसार इडली के पारंपरिक चावल और दाल के अथवा सूजी के बेटर का प्रयोग कर सकतीं हैं. तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-लावा इडली

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

तैयार इडली का घोल          3 कप

पानी पूरी                           6

तैयार सांभर                      6 टेबलस्पून

रिफाइंड तेल                     1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                   1/4 टीस्पून

बारीक कटा हरा धनिया     1 टीस्पून

नमक                               स्वादानुसार

विधि

सभी पानी पूरी की ऊपरी सतह को थोड़ा सा तोड़ लें ताकि इसमें सांभर की फिलिंग की जा सके. पूरी के टूटे टुकड़े को भी सम्भाल कर रखें. अब इडली के घोल में चिली फ्लैक्स, नमक, तेल और हरी धनिया डालकर अच्छी तरह मिलाएं. अब मध्यम आकार की 6 कटोरियां लेकर तेल से ग्रीस करें. कटोरी में एक सर्विंग स्पून बेटर डालकर पानी पूरी रखें, अब पानी पूरी में सांभर डालकर ऊपर से पूरी का टूटा हुआ टुकड़ा लगाएं ताकि सांभर बाहर न निकले. अब इस पानी पूरी के ऊपर इस तरह से इडली का बेटर डालें कि सांभर भरी पूरी अच्छी तरह कवर हो जाये. इन कटोरियों को उबलते पानी के ऊपर चलनी के ऊपर रखकर ढक दें और 15 से 20 मिनट तक पकाएं. सर्विंग डिश में एक चम्मच सांभर डालकर तैयार इडली रखें और चम्मच से इडली को थोड़ा काटकर सर्व करें ताकि इडली के अंदर से सांभर का गर्म लावा निकलता हुआ दिखे.

-इडली पिज़्ज़ा

कितने लोगों के लिए            4

बनने में लगने वाला समय       20 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

इडली बेटर                      2 कप

बारीक कटा प्याज             1 टीस्पून

बारीक कटी शिमला मिर्च     1 टीस्पून

कॉर्न के दाने                      1 टीस्पून

कटे ऑलिव्स                   4-6

चीज क्यूब्स                     2

चिली फ्लैक्स                   1/4 टीस्पून

ओरेगेनो                           1/4 टीस्पून

टोमेटो सॉस                    1 टीस्पून

शेजवान चटनी                 1 टीस्पून

बटर                                 1 टीस्पून

विधि

4 कटोरियों  को चिकना करके आधा आधा कप इडली का बेटर डालकर उबलते पानी के ऊपर छलनी रखकर कटोरियों को रख दें और ढककर 20 मिनट तक पका लें.

ठंडा होने पर इन्हें बीच से दो स्लाइस में काट लें. शेजवान चटनी और टोमेटो सॉस को एक साथ मिक्स कर लें. इडली के स्लाइस पर बटर लगाकर तैयार सॉस फैलाएं, ऊपर से सभी कटी सब्जियां, ऑलिव्स, कॉर्न डालकर आधा चीज क्यूब ग्रेट कर दें. चीज के ऊपर ऑरिगेनो और चिली फ्लैक्स बुरकें.एक नॉनस्टिक तवे पर बटर लगाकर तैयार इडली स्लाइस को रख दें. ढककर धीमी आंच पर 5 से 7 मिनट अथवा चीज के मेल्ट होने तक पकाएं.

-इडली कैरेमल नगेट्स

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय    30 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री 

तैयार इडली                 4

शकर                            2 टेबलस्पून

बटर                             1 टीस्पून

दालचीनी पाउडर             1/4 टीस्पून

नींबू का रस                     1/4 टीस्पून

बारीक कटे पिस्ता             1/2 टीस्पून

घी                                  1 टेबलस्पून

विधि

इडली को छोटे छोटे टुकड़ों में काट लें. गर्म घी में धीमी आंच पर इन्हें सुनहरा होने तक रोस्ट करें. अब एक नॉनस्टिक पैन में बटर डालकर शकर, दालचीनी और नींबू का रस डाल दें. धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए शकर के पूरी तरह घुलकर हल्के बादामी रंग के होने तक पकाएं. जैसे ही शकर का रंग बदलने लगे तो इडली के रोस्टेड टुकड़े डाल दें. अच्छी तरह चलाकर गैस बंद कर दें. सभी टुकड़ों को चम्मच से अलग कर दें. बारीक कटे पिस्ता से सजाकर सर्व करें.

अर्जुन कपूर ने बहनों के साथ मनाया रक्षा बंधन, नहीं दिखी जाह्नवी कपूर

अर्जुन कपूर ने अपनी बहन अंशुला कपूर, रिया कपूर, खुशी कपूर, शनाया कपूर और मोहित मारवाह के साथ रक्षा बंधन मनाया. अभिनेता ने इंस्टाग्राम पर अपने त्योहार रक्षा बंधन उत्सव की एक मनमोहक तस्वीर साझा की.

सोनम कपूर और जान्हवी कपूर इस महफिल से दूर रहीं. अर्जुन ने अपनी बहन और भाइयों के साथ, परिवार के सदस्यों को स्नेहपूर्वक स्वीकार करते हुए तस्वीर खिंचवाई. कपूर खानदान की सबसे बड़ी बहन, रिया कपूर ने मौज-मस्ती के लिए अपने सभी चचेरे भाइयों बहनों को अपने घर पर आमंत्रित किया. एक-एक करके खुशी कपूर, अर्जुन कपूर, शनाया कपूर, अंशुला कपूर और अनिल कपूर को रिया के आवास पर पहुंचते देखा गया था.

शनाया कपूर ने शेयर की तस्वीरे

शनाया ने इंस्टाग्राम पर कई तस्वीरें पोस्ट कीं जिसमें दिखाया गया कि उनका एक साथ बिताया समय कैसा था. सबसे पहले फ्रेम में उनके सभी चचेरे भाइयों के साथ एक पारिवारिक तस्वीर थी. आगे खुशी, अंशुला और शनाया की सेल्फी थी. तीसरी तस्वीर अपने भाइयों के हाथों पर राखी बांधती हुई बहनों की थी. आगे कपूर परिवार के सबसे प्यारे सदस्य, उनके कुत्ते की तस्वीर थी. आखिरी तस्वीर उन भाइयों में से एक के हाथ की थी जिनकी कलाई पर कई राखियां बंधी थीं.

 

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रक्षाबंधन पर अर्जुन कपूर को अपने दूसरे कजिन्स की याद आई

कपूर खानदान के कुछ कजिन्स दिन भर एक साथ थे, सोनम कपूर और जान्हवी कपूर जैसे अन्य लोग पारिवारिक मनोरंजन में शामिल नहीं हुए. अर्जुन भी उन्हें मिस कर रहे थे इसलिए उन्होंने परिवार की तस्वीर पोस्ट की और कैप्शन में बताया कि वह कपूर खानदान के अन्य लोगों को मिस कर रहे हैं.

उन्होंने लिखा, “राखी मोहिकों में से आखिरी !!! “इस कबीले में से कुछ मुख्य लोग गायब हैं, जो छूट गए हैं.” अर्जुन कपूर की इस तस्वीर पर लोग खूब रिएक्ट कर रहे हैं और अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, “आप सभी को रक्षाबंधन की बधाई” तो वहीं एक दूसरे यूजर ने लिखा, “आखिर ये जाह्नवी कपूर कहां हैं?”

अर्जुन कपूर के इस पोस्ट पर शनाया कपूर ने दिल का इमोजी बनाया है लेकिन जाह्नवी ने इस पोस्ट पर अब तक कोई रिएक्शन नहीं दिया है. अर्जुन के पोस्ट को अब तक 38 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं.

सेलेब्स की नजर में रक्षाबंधन का त्यौहार है क्या, जानें यहां

रक्षाबंधन यानि राखी का त्यौहार केवल आम बहनों के लिए ही नहीं, बल्कि सेलेब्स भाई – बहन भी पूरे साल इसका इंतजार करते है और इसे यादगार बनाना चाहते है. उनके लिए एक दूसरे का प्यार और बॉन्डिंग बहुत अहमियत रखता है. इस प्यारे रिश्ते को वे कैसे नॉरिश करते है, याद करते है और इस अवसर पर उनके गिफ्ट्स क्या होते है, आइये जानें, उनकी खुशियां.

फरनाज शेट्टी

एक वीर की अरदास फेम अभिनेत्री फरनाज शेट्टी कहती है कि मेरा एक छोटा भाई है, जो मुझसे 2 साल का छोटा है, लेकिन मैं उससे छोटी दिखती हूं. पर मैं उससे काफी मैच्योर हूं, स्वभाव से वह अभी भी बच्चा है. उसकी देखभाल करना मुझे पसंद है, लेकिन एक बात उसकी बहुत अच्छी है, जब भी मुझे उसकी जरुरत होती है, एक फ़ोन कॉल पर वह हमेशा हाज़िर रहता है. ये मेरे लिए बहुत सुकून भरी है, क्योंकि जो बातें मैं किसी से शेयर नहीं कर सकती, उसे मैं उससे शेयर कर सकती हूं.

समय के साथ -साथ हम दोनों जितने मैच्योर हो रहे है, हमारी इमोशनल बोन्डिंग उतनी गहरी होती जा रही है. मेरी बिजी सिड्यूल में दोस्त भले ही न हो, एक भाई मेरे लिए काफी है. एक प्यारा रिश्ता जिसे मैं हमेशा बहुत अच्छा फील करती हूं. मेरे आसपास सारे कजिन्स रहते है और मुझे रक्षाबंधन का त्यौहार मनाना बहुत पसंद है, क्योंकि इस त्यौहार पर मैं बचपन की सारी यादों को एक बार फिर से ताजा कर लेती हूं. वैसे तो सारे साल एक दूसरे को गिफ्ट देते रहते है, लेकिन इस दिन का मिला गिफ्ट सबसे खास होता है.

नवीन प्रभाकर

अभिनेता नवीन प्रभाकर कहते है कि बचपन से हम दोनों भाई-बहन के बीच नोंक-झोंक, मजाक चलती रहती थी, जो पूरी ड्रामे की तरह हुआ करती थी, जिसमे हंसी-ख़ुशी के साथ-साथ रोना-धोना सब चलता रहता था. ये सबकुछ हम दोनो को एक अच्छी बोन्डिंग देने में सक्षम रही. रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के बीच ही नहीं, बल्कि हर भाइयों और बहनों के बीच भी एक अच्छे बोन्डिंग का एहसास दिलाती है. ये रिश्ते अनमोल होते है, जिसे बयां करना आसान नहीं.

पहले की सारी नोंक-झोंक समय के साथ एक दोस्ती और अपनेपन का एहसास दिलाती है. विश्व के किसी भी देश में रहने पर भी बहन भाई को राखी भेजती है. आज व्हाट्स एप एक ऐसी तकनिकी सुविधा है, जिसने सारी दूरियों को नजदीकियों में बदल दिया है, जो आज से पहले नहीं था. मैं अपने बहनों और परिवार के साथ इस पर्व को मनाने की इच्छा रखता हूं. उस दिन मैं अपनी बहनों को कुछ स्पेशल गिफ्ट देने की प्लान कर रहा हूँ.

आदित्य देशमुख

पुनर्विवाह फेम अभिनेता आदित्य देशमुख कहते है कि मेरे पास बायोलॉजिकल बहन की कमी है, लेकिन मेरी कजिन्स कई है और उनका प्यार मेरे ऊपर हमेशा बरसता रहता है. ऐसी बोन्डिंग और किसी रिश्ते में नहीं हो सकती, मैं उनके साथ बचपन से जुड़ा हुआ हूं. शूटिंग में अधिक देर होने पर कई बार मुझे बहन के साथ रहना पड़ता है, वह दिन मेरे लिए खास होता है. उनके साथ मेरी बॉन्डिंग मस्ती, जोक्स, नोंक-झोंक आदि के साथ चलती रहती है. मैं उनसे छोटा होने की वजह से मेरे लिए हर बात माफ़ होती है. रक्षाबंधन मेरे लिए बहुत स्पेशल है, उस दिन राखी के साथ प्यार और गिफ्ट्स दोनों ही मुझे मिलने वाला है. इस बार मैं बहनों को गोल्ड या सिल्वर कॉइन से अलग कुछ गिफ्ट्स देने वाला हूं.

रोहित चौधरी

अभिनेता रोहित चौधरी कहते है कि मैं अपने तीन बहनों में सबसे छोटा हूं. मेरी सबसे बड़ी बहन तो मेरी मां की तरह मुझे प्रोटेक्ट करती रहती है. शादी के बाद भी उनका रिश्ता मेरे साथ पहले जैसा ही है. रक्षाबंधन, भाई – बहन के इस रिश्ते को हमेशा मजबूती और प्यार से भर देती है. बहने कितनी भी दूर रहे लेकिन उनका प्यार भाइयों तक हमेशा पहुंचता रहता है. मेरा उनसे रिश्ता मजबूत, ख़ुशी और गम को शेयर करने का है, जो दिन हो या रात है, हमेशा रहता है. वैसे तो सभी बहनों के साथ मेरा अच्छा रिश्ता है, लेकिन बड़ी बहन मेरे लिए सबसे कीमती, दोस्त, मैटरनल फिगर और फॅमिली लिंक है. मैंने उनकी इच्छाओं को पूरा करने के बारें में सोचा है. भाई – बहन एक दूसरे से कितनी भी दूर हो, लेकिन रक्षाबंधन का त्यौहार उनके रिश्ते को मजबूत बनाने का काम करती है.

चारू मलिक

अभिनेत्री चारू कहती है कि बचपन से मुझे एक भाई की बहुत इच्छा रही, और मेरी विश पूरी हुई, जब रक्षाबंधन से पहले मेरे भाई गौरव मलिक का जन्म हुआ और मैंने इस त्यौहार को हर्षोल्लास के साथ मनाया. हालांकि अभी वह अमेरिका में है, लेकिन उसका प्यार मुझ तक हमेशा पहुंचता है. मेरी बहन पारुल मुझे हमेशा राखी बांधती है. इस साल मैं फ़ोन कॉल से राखी को स्पेशल बनाने वाली हूं. हमारे सबसे बड़ी गिफ्ट्स भाई का यहां आना और हम दोनों बहनों का वहां जाना है. समय बदल गया है, लेकिन हमारा प्यार और रिश्ता सादा के लिए एक ही रहेगा. पारुल, गौरव और मैं हमेशा फ़ोन कॉल पर बातचीत करते है, जहां एक दूसरे की बातों को शेयर करते है, जो मुझे बहुत ख़ुशी देती है.

Raksha Bandhan: खूबसूरती में चार चांद लगा देगा ब्लशर

चेहरे पर खिली सुंदर मुस्कान हर किसी को आपकी तरफ आकर्षित कर सकती है. आपकी इसी मुस्कान चार चांद लगा देता है ब्लशर. लेकिन, यदि आपने इसका गलत इस्तेमाल किया तो आप दस साल बड़ी उम्र की भी लग सकती हैं.

आप बिना मेकअप किए भी ब्लशर लगाने से बेहद खूबसूरत दिखाई दे सकती हैं. ब्‍लशर लगाने में आपसे कोई गड़बड़ी न हो, इसके लिए आपका कुछ बातों का जानना बेहद जरूरी है. आपको बता रहे हैं ब्लशर के इस्तेमाल का तरीका.

रोजी ग्लो के लिए

मेकअप में ब्लशर सबसे जरूरी है. इसका इस्तेमाल डल स्किन में फ्रेश और रोजी ग्लो लाने में मदद करता है. इसमें थोड़ा गोल्डेन शिमर मिलाने से यह फीचर्स को बैलेंस कर देगा. इससे आप हल्‍के फीचर्स को उभार सकती हैं. उसे एक डेफिनिशन दे सकती हैं.

दें सही कवरेज

क्रीम ब्लशर, मूस ब्लशर पाउडर, लिक्विड या जेल ब्लशर लगाने का सही तरीका जानना जरूरी है.

पाउडर ब्लशर

पाउडर ब्लशर आपको बोल्ड लुक लेता है. क्योंकि इसकी कवरेज मीडियम से हेवी होती है. यह चीक्स को शेप, शेड और कॉन्टूर करने के लिए बेस्ट है. इसे लगाने का सही तरीका है, डोम-शेप्ड ब्लशर ब्रश को ब्लशर पर रखकर गोलाई में घुमाएं. फिर मुस्कराएं और चीक्स के एपल पर हल्‍का स्ट्रोक्स देते हुए लगाएं. माथे की तरफ ले जाते हुए लगाएं. ब्रश से अच्छी तरह ब्लेंड करें.

लिक्विड/जेल ब्लशर

इसे आप चीक्स और लिप्स दोनों के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं या फिर दूसरे शेड्स और प्रोडक्ट भी इसके साथ प्रयोग कर सकती हैं. लिक्विड से क्रीम जेल का टेक्सचर अलग-अलग होता है. ये लॉन्गलास्टिंग व नैचुरल मैट स्टेन लुक देते हैं. इन्हें हर प्रकार की त्वचा के लिए प्रयोग किया जा सकता है. लेकिन यह ऑयली व कॉम्बिनेशन कॉम्प्लेक्स के लिए परफेक्ट है. क्योंकि एक बार लगाने के बाद यह लंबे समय तक टिकता है. फैलता या बहता नहीं है.

लिक्विड और जेल ब्लशर लगाते ही चीक्स में कलर ऐड कर देते हैं. चीक्स के बीच (एपल्स पर) थोड़ा सा जेल या लिक्विड ब्लशर रखें. फिर अपनी उंगली या छोटे फर्म ब्लशर ब्रश से लार्ज सर्कुलर मोशन में चीक्स पर ब्लेंड करें. चीक्स के एपल के बाहर तक ब्लेंड करें. चीक्स पर अच्छी तरह ब्लेंड होने बाद आप फेस को शेप देने, कंटूर और हाइलाइट करने के लिए मूस, क्रीम, पाउडर ब्लशर और ब्रॉन्जर भी लगा सकती हैं.

जैसी त्वचा वैसा ब्लश

आपका ब्‍लश हमेशा आपकी त्‍वचा के हिसाब से होना चाहिए.

पेल स्किन

ऐसा शेड चुनें जो आपको नैचलर ब्लश दे. पेल पीच और पिंक शेड ऐसी त्वचा के लिए सही नहीं होते. इसलिए इवनिंग पार्टी के लिए हनी-टोंड ब्रॉन्जर का इस्तेमाल करें. जैसे कि चीक कलर 12 एप्रिकॉट शिमर, चीक कलर 04 गोल्डेन पिंक , लिप और चीक स्टेन 01 रोज पिंक या फिर चीक कलर 03 हेदर पिंक प्रयोग कर सकती हैं.

मीडियम स्किन

मीडियम पिंक, गोल्डन पीच और मोव-टोंड बेरी हमेशा मीडियम स्किन टोन को कॉप्लिमेंट देते हैं. सन किस्ड ग्लो के लिए इस पर गोल्डन ब्रॉन्ज ब्लश लगाएं. जैसे कि चीक कलर 4 गोल्डन पिंक, चीक कलर 10 स्वीट नटमेग, नेचर्स मिनरल चीक कलर 3 वार्म कलर.

ऑलिव स्किन

ऐसी स्किन पर ब्राइटर और पॉप शेड्स अच्छे लगते हैं. जैसे ब्रिक ब्रोज, डीप रोजेज, प्लम और लाइट बेरी टोंस. फ्रेश शिमर लुक के लिए थोड़ा -सा शियर ब्रॉन्जर भी लगाएं.

डार्क स्किन

ऐसा ब्लशर चुनें जो आपके कॉम्प्लेक्शन को उभारे. पेल पेस्टल शेड्स से बचें. यह आपके कॉम्प्लेक्शन को चॉकी और ग्रे कर देंगे. इसलिए डीप रेड टोंस, रिच रोज, ब्रिक रेड्स, रस्ट, बरगंडी, रिच मोव्स और सक्युलंट बेरी ह्यू शेड चुनें. इसे चाहे अकेले इस्तेमाल करें या फिर सन किस्ड ग्लो के लिए डीप गोल्डन ब्रॉन्ज ब्लशर ऊपर से लगाएं.

क्या करें

यदि ब्लशर अधिक लग जाए तो उसे बिना मेकअप हटाए टोन डाउन कैसे करें. इसके लिए पाउडर पफ लें और उस पर साफ टिश्यू लपेटें. बॉडी शॉप का विटमिन ई फेस मिस्ट या फासन मिस्ट वॉटर स्प्रे टिश्यू में हल्‍का सा लगाएं और चीक्स पर रखकर दबाएं. चीक्स रगडें या मलें नहीं. यह हल्‍के से अतिरिक्त कलर को हटा देगा. ध्यान दें कि कहीं फाउंडेशन या पाउडर न निकल जाए या खराब हो जाए.

हर सीजन के लिए ट्रेंडी

ट्रेंड आते और जाते हैं, लेकिन ब्लशर हमेशा ट्रेंड में रहता है. फिर चाहे आप ब्लशर का इस्तेमाल शेप, शेड और कंटूर के लिए करें या शियर लुक के लिए. या फिर फीचर्स को हाइलाइट करने के लिए. एक अच्छा ब्लशर, जो आपकी स्किन टोन को सूट करे आप साल के 365 दिन तक लगा सकती हैं.

आप शियर ब्लशर किसी भी सीजन में आसानी से लगा सकती हैं. स्प्रिंग टिंट देने के लिए इस पर शियर हनी टोंड ब्रॉन्जर लगाएं. गर्मियों में इस पर आप शिमरिंग गोल्डन ह्यू और सर्दियों में शिमरिंग हाइलाइटर लगा सकती हैं. स्प्रिंग स्किन फ्रेश और फ्लर्टी लुक देती है. समर कॉम्प्लेक्शन सन-किस्ड और ग्लोइंग दिखना चाहिए. इसलिए ब्लशर के ऊपर हनी टोंड शिमर जरूर लगाएं. यह अनोखी चमक देगा और आप यंग नजर आएंगी. सर्दियों में क्रीम ब्लशर और शियर हाइलाइटर लगाने से चेहरे में मॉयस्चर लेवल भी संतुलित रहता है और पैची नहीं लगता. इसके ऊपर पाउडर ब्लशर, ब्रॉन्जर और हाइलाइटर लगाने से बेहतरीन ग्लो आ जाता है.

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