सम्मान की जीत: क्या हुआ था रूबी के साथ

‘‘तुम्हें मुझ से शादी कर के पछतावा होता होगा न रूबी…’’ करन ने इमोशनल होते हुए कहा.

‘‘नहींनहीं, पर आज आप ऐसी बातें क्यों ले कर बैठ गए हैं,’’ रूबी ने कहा.

‘‘क्योंकि… मैं एक नाकाम मर्द हूं… मैं घर में निठल्ला बैठा रहता हूं … तुम से शादी करने के 6 साल बाद भी तुम्हें वे सारी खुशियां नहीं दे पाया, जिन का मैं ने तुम से कभी वादा किया था,’’ करन ने रूबी की आंखों में देखते हुए कहा.

‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है. आप ने मुझे सबकुछ दिया है… 2 इतने अच्छे बच्चे… यह छोटा सा खूबसूरत घर… यह सब आप ही बदौलत ही तो है,’’ रूबी ने करन के चेहरे पर प्यार का एक चुंबन देते हुए कहा. करन ने भी रूबी को अपनी बांहों में कस लिया.

गोपालगंज नामक गांव में ही रूबी और करन के घर थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता था और घर के बाहर दोनों का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ रहा था. दोनों ने शादी की योजना भी बना ली थी, साथ ही दोनों यह भी जानते थे कि यह शादी दोनों के घर वालों को मंजूर नहीं होगी, क्योंकि दोनों की जातियां इस मामले में सब से बड़ा रोड़ा थीं.

करन ब्राह्मण परिवार का लड़का था और उस का छोटा भाई पारस राजनीति में घुस चुका था और गांव का प्रधान बन गया था. रूबी एक गड़रिया की बेटी थी.

इस इश्क के चलते रूबी शादी से पहले ही पेट से हो गई थी और अब इन दोनों पर शादी करने की मजबूरी और भी बढ़ गई थी. फिर क्या था, दोनों ने अपनेअपने घर पर विवाह प्रस्ताव रखा,  पर दोनों ही परिवारों ने शादी के लिए मना कर दिया. इस के बाद इन दोनों ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ एक मंदिर में शादी कर ली.

पर दोनों के ही घर वाले उन्हें अपनाने और घर में पनाह देने के खिलाफ थे, इसलिए रूबी और करन को उसी गांव में अलग रहना पड़ा.

दोनों ने गांव के एक कोने में एक झोंपड़ी बना ली थी, दोनों का जीवन प्रेमपूर्वक गुजरने लगा. करन के पास तो कोई कामधाम नहीं था, इसलिए रूबी को ही घर के मुखिया की तरह घर चलाने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी.

गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर एक कसबे के एक पोस्ट औफिस में रूबी को कच्चे तौर पर लिखापढ़ी का काम मिल गया था. उसे रोज सुबह 12 बजे से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी देनी पड़ती थी, पर वह मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटी.

धीरेधीरे रूबी की मेहनत रंग लाई. घर में चार पैसे आने लगे, तो समय को मानो पंख लग गए और इसी दौरान रूबी 2 बेटियों की मां भी बन गई थी.

रूबी ने उन के पालनपोषण और अपने काम में बहुत अच्छा तालमेल बिठा लिया था. बच्चों की दिक्कत कभी उस के काम के आड़े नहीं आई, जिस का श्रेय करन को भी जाता है, क्योंकि जब भी रूबी बाहर जाती है, करन पर घर रह कर बच्चों का ध्यान रखता है.

रूबी ने कसबे के स्कूल जा कर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर ली थी और उस के बाद प्राइवेट फार्म भर कर ग्रेजुएशन भी कर ली थी.

बचपन से ही रूबी को समाजसेवा करने का बहुत शौक था. उस के मन में गरीबों के लिए खूब दया का भाव था, इसलिए वह अब पोस्ट औफिस में डाक को छांटने और लिखापढ़ी के काम के साथसाथ शहर की एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ गई थी, जो महिलाओं पर हो रहे जोरजुल्म के खिलाफ काम करती थी.

इस संस्था से जुड़ कर रूबी को मशहूरी मिलनी भी शुरू हो गई थी. शुरुआत में तो वह महिलाओं में जनजागरण करने के लिए पैदल ही गांवगांव घूमती थी, इस काम में उस की सहायक महिलाएं भी उस के साथ होती थीं, पर जब काम का दायरा बढ़ा तो

उस ने अपने लिए एक ईरिकशा भी खरीद लिया.

फिर क्या था, वह खुद आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती और पीछे अपनी सहायक महिला दोस्तों को

वह खुद बिठा लेती और गांवों में महिलाओं को सचेत करती और उन्हें आत्मनिर्भर होने का संदेश देती.

…धीरेधीरे रूबी पूरे इलाके में रिकशे वाली भाभी के नाम से जानी जाने लगी.

समाजसेवा का काम बढ़ जाने के चलते रूबी ने पोस्ट औफिस वाला काम भी छोड़ दिया था और अपने को पूरी तरह से समाजसेवा में लगा दिया.

गैरजाति में शादी कर लेने के चलते रूबी और करन पहले से ही गांव के सवर्ण लोगों की आंख में बालू की तरह खटक रहे थे, ऊपर से रूबी के इस समाजसेवा वाले काम ने घमंडी मर्दों के लिए एक और परेशानी खड़ी कर दी थी.

गांव के लोगों को लगने लगा कि अगर रूबी इसी तरह से लोगों को अपने होने वाले जोरजुल्म के खिलाफ जागरूक करती रही, तो एक दिन मर्दों का दबदबा ही खत्म हो जाएगा.

एक दिन जब रूबी अपने ईरिकशा से काम के बाद वापस आ रही थी, तो करन के छोटे भाई पारस, जो गांव का प्रधान भी था, ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘क्या भाभी… कहां चक्कर में पड़ी हो… इस झमेले वाले काम के चक्कर में जरा अपनी कोमल काया को तो देखो… कैसी काली पड़ गई हो,’’ पारस ने रूबी के सीने पर नजरें गड़ाते हुए कहा. दिनरात मेहनत करने से तुम्हारा मांस तो गल ही गया है… सूख कर कांटा होती जा रही हो और इन कोमल हाथों में ईरिकशा चला कर छाले पड़ गए हैं…

‘‘क्या इसी दिन के लिए तुम ने भैया से शादी की थी कि तुम्हें गलियों की धूल खानी पड़े…’’ पारस की नजरें अब भी रूबी के शरीर का मुआयना कर रही थीं.

‘‘क्या… भैया… आज बड़ी चिंता हो रही है मेरी…’’ रूबी ने ऊंची आवाज

में कहा.

‘‘क्यों नहीं होगी चिंता… अब आप भले ही नीची जाति की हों… पर अब तो मेरी भाभी बन गई हो न… तो हम लोग अपनी भाभी की चिंता नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?

‘‘वैसे, सच कहते हैं भाभी… तुम्हें देखने से यह नहीं लगता है कि तुम

2 बच्चों को पैदा कर चुकी हो… बड़ा फिगर मेंटेन किया है आप ने.’’

‘‘ये आप किस तरह की बातें कर रहे हो? आखिर चाहते क्या हो…?’’ रूबी की आवाज तेज थी.

‘‘कुछ नहीं भाभी… बस इतना चाहते हैं कि आप एक रात के लिए हमारे साथ सो जाओ. बस… कसम से… खुश कर देंगे आप को…’’

पारस अपनी बात को अभी खत्म भी नहीं कर पाया था कि तभी रूबी के एक तेज हाथ का जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा

पारस गाल पकड़ कर रह गया. कुछ दूरी पर खड़े लोगों ने भी यह मंजर देख लिया था.

अचानक पड़े थप्पड़ के चलते और मौके की नजाकत को देखते हुए पारस वहां से तुरंत हट गया. मन में रूबी से बदला लेने की बात ठान ली.

उस दिन की घटना का जिक्र रूबी ने किसी से नहीं किया और सामान्य हो कर काम करती रही.

जिस समाजसेवी संस्था के लिए रूबी काम करती थी, वह संस्था उस के द्वारा की जा रही कोशिशों से काफी खुश थी और रूबी अपने काम को और भी बढ़ाने में लगी हुई थी.

दिनभर जनसंपर्क के बाद जब रूबी शाम को घर लौटती, तो पति और बच्चे घर के दरवाजे पर इंतजार करते मिलते. उन्हें देख कर उस की सारी थकान मिट जाती और वह अपनी बच्चियों को अपने बांहों में भर लेती और अपनी स्नेहभरी आंखों से अपने पति को भी धन्यवाद देती कि उस ने बेटियों का ध्यान रखा.

आज जब काम के बाद रूबी घर लौट रही थी, तो उस की दोनों बेटियां गांव की टौफी और चिप्स की दुकान पर चिप्स खरीदती दिखीं, उन्हें इस तरह बाहर का सामान खरीदने के लिए रूबी ने पैसे तो दिए नहीं थे, फिर इन के पास पैसे कहां से आए…?

‘‘अरे, तुम यहां चिप्स खरीद रही हो… पर यह तो बताओ कि तुम्हारे पास चिप्स के लिए पैसे कहां से आए…?’’ रूबी ने उन्हें बहला कर पूछा.

‘‘मां… हमें पापा ने पैसे दिए थे और यह भी कह रहे थे कि बाहर जा कर खेलना… तभी हम लोग बाहर घूम रहे हैं,’’ बड़ी बेटी ने जवाब दिया.

न जाने क्यों, पर रूबी को यह बात कुछ अजीब सी लगी, पर फिर भी उस ने सोचा कि बच्चे अकेले करन को परेशान कर रहे होंगे, तभी उस ने पैसे दे कर बाहर भेज दिया होगा. इसी सोच के साथ वह बच्चों को ले कर घर आ गई.

घर में करन बिस्तर पर पड़ा हुआ आराम कर रहा था. रूबी के घर पहुंचने पर भी वह लेटा रहा और सिरदर्द होने की बात भी बताई. रूबी ने हाथपैर धो कर चाय बनाई और दोनों साथ बैठ कर पीने लगे.

चाय पीने के बाद जब रूबी रसोईघर में काम करने गई, तो वहां उस को एक पायल मिली. पायल देख कर उसे लगा कि क्या उस के पीछे किसी से करन का मामला तो नहीं चल रहा है?

रूबी ने वह पायल अपने पास रख ली और करन से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.

एक दिन की बात है. रूबी काम से थकीहारी आ रही थी. उस ने देखा कि उस की दोनों बेटियां उसी दुकान पर फिर से कुछ खाने का सामान खरीद रही थीं. आज वह चौंक उठी थी, क्योंकि इस तरह से बच्चियों को पैसे ले कर दुकान पर आना उसे ठीक नहीं लग रहा था.

‘‘अरे आज फिर पापा ने पैसे दिए क्या?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘नहीं मां… आज हमारे घर में गांव की एक आंटी आईं और उन्होंने ही हमें पैसे दिए.’’

बच्चों की बात पर सीधा भरोसा करने के बजाय रूबी ने घर जा कर देखना ही उचित समझा.

घर का दरवाजा अंदर से बंद था. अंदर क्या हो रहा है, यह जानने के लिए रूबी ने दरवाजे के र्झिरी से आंख लगा दी तो अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई. कमरे में करन किसी औरत पर झुका हुआ था और अपने होंठों से उस औरत के पूरे शरीर पर चुंबन ले रहा था, वह  औरत भी करन का पूरा साथ दे रही थी.

यह सब देख कर रूबी वहीं धम्म से दरवाजे पर बैठ गई. आंसुओं की धारा उस की आंखों से बहे जा रही थी.

कुछ देर बाद ‘खटाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला और एक औरत अपनी साड़ी के पल्लू को सही करते हुए बाहर निकली. रूबी ने उसे पहचान लिया था. यह गांव की ही एक औरत थी, जिस का पति बाहर शहर में ही रहता है और तीजत्योहार पर ही आता है. गांव में यह औरत अपने ससुर के साथ रहती है.

रूबी उस औरत से एक भी शब्द न कह पाई, अलबत्ता वह औरत पूरी बेशर्मी से रूबी को देख कर मुसकराते हुए चली गई.

रूबी बड़ी मुश्किल से अंदर गई. करन ने रूबी से हाथ जोड़ लिए. ‘‘मैं बेकुसूर हूं रूबी… यह औरत गांव में बिना मर्द के रहती है… आज जबरन कमरे में घुस आई… और बच्चों को बाहर भेज दिया. फिर मुझ से कहने लगी कि अगर मैं ने उस की प्यास नहीं

बुझाई, तो वह मुझ पर बलात्कार का आरोप लगा देगी… अब तुम्हीं बताओ… मैं क्या करता… मैं मजबूर था,’’ रोने लगा था करन.

रूबी कुछ नहीं बोल सकी. शायद अभी उस में सहीगलत का फैसला करने की हिम्मत नहीं रह गई थी.

अगले 15 दिनों तक रूबी अपने पति का बरताव देखने और नजर रखने की गरज से काम पर नहीं गई और न ही घर से बाहर निकली. इन दिनों में करन ने बड़ा ही संयमित जीवन बिताया. रोज नहाधो कर पूजापाठ में ही रमा रहना उस के रोज के कामों में शामिल था. उस का आचरण देख कर रूबी को लगने लगा कि करन जो कह रहा था, वही सही है. गलती करन की नहीं है, गलती उसी औरत की ही है.

कुछ दिनों बाद सबकुछ पहले की  तरह ही हो गया. फिर रूबी काम पर जाने लगी. उसे विश्वास हो चला था कि उस का पति उस से सच बोल रहा है, पर उस का यह विश्वास तब गलत साबित हो गया, जब उस ने एक बार फिर करन और उस औरत को एकसाथ संबंध बनाते हुए पकड़ लिया.

रूबी दुख और गुस्से में डूब गई थी और अब उस ने मन ही मन कुछ कठोर फैसला ले लिया था.

रूबी अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर सीधे गांव के प्रधान पारस के पास पहुंची. उसे देख कर पारस की बांछें खिल गईं.

‘‘अरे… अरे भाभीजी… आज हमारे दरवाजे पर आई हैं… अरे, धन्य भाग्य हमारे… बताइए, हमारे लिए क्या

आदेश है?’’

‘‘करन का एक दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है… मैं खुद अपनी आंखों से उन दोनों को गलत काम करते देख चुकी हूं… मुझे इंसाफ मिलना चाहिए… अब मैं करन के साथ और नहीं रहना चाहती हूं… तुम इस गांव के प्रधान हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘सही कहा आप ने भाभीजी…  मैं इस गांव का प्रधान हूं… और इस नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं लोगों की मदद करूं और आप की भी… पर, गांव का प्रधान कोई भी फैसला अकेला नहीं

सुना सकता. उस के लिए पंचायत बुलानी पड़ेगी…

‘‘और भाभीजी आप का मामला तो बहुत संगीन है… तो हम ऐसा करते हैं कि कल ही पंचायत बुला लेते हैं. आप कल सुबह 11 बजे पंचायत भवन में आ जाना… तब तक हम करन भैया को भी संदेश पहुंचवा देते हैं.’’

यह सुन कर रूबी वहां से चली आई और अगले दिन 11 बजने का इंतजार करने लगी.

अगले दिन ठीक 10 बजे पंचायत बुलाई गई, जिस में दोनों पक्षों के लोग भी थे. रूबी के मातापिता भी थे, पर करन के मातापिता ने यह कह कर आने से मना कर दिया कि लड़के ने अपनी मरजी से निचली जाति में शादी की है, अब हमें उस से कोई मतलब नहीं है… जैसा किया है… वैसा भुगते… लिहाजा, करन अपना पक्ष खुद ही रखने वाला था.

पंचायत की कार्यवाही शुरू हुई. पहले रूबी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया.

‘‘मैं कहना चाहती हूं कि मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर करन से शादी की थी, जिस से मैं

खुश भी थी, पर अब मेरे पति के गांव की ही दूसरी औरत के साथ गलत संबंध बन गए हैं, जिन्हें मैं ने अपनी आंखों से देखा है.

‘‘इस के बावजूद मैं ने करन को संभलने का एक मौका भी दिया, पर वह फिर भी गलत काम करता रहा, इसलिए मैं उस के साथ और नहीं रहना चाहती. मैं करन से तलाक लेना चाहती हूं. कार्यवाही आगे कोर्ट तक ले जाने से पहले मैं पंचायत की इजाजत चाहती हूं.’’

इस के बाद करन बोला, ‘‘मैं ने तो गले में कंठी धारण कर रखी है. मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता. और सारा गांव जानता है कि जब रूबी काम पर जाती है, तो मैं अपनी बेटियों के साथ घर पर रहता हूं. अब अपनी बेटियों के सामने कोई भला ऐसा काम कैसे कर सकता है… फिर भी रूबी के पास मेरे खिलाफ कोई सुबूत हो तो वह अभी पेश करे. अगर आरोप सही निकलेगा, तो मैं तुरंत ही तलाक दे दूंगा.’’

पारस तो पहले से ही रूबी से बदला लेना चाहता था, पर ऐसा कर नहीं पा रहा था. आज उस के सामने रूबी को जलील करने का अच्छा मौका था और पंचायत में भी सभी पारस की मंडली के ही लोग थे.

पारस द्वारा पंचायत का फैसला सुनाया गया, ‘‘रूबी किसी भी तरह से अपने पति को गुनाहगार साबित नहीं कर पाई और न ही करन के खिलाफ कोई सुबूत ही पेश कर पाई है. पंचायत को लगता है कि करन बेकुसूर है, इसलिए पंचायत के मुताबिक दोनों को एकसाथ ही रहना होगा. इन का तलाक नहीं कराया जा सकता.

‘‘रूबी ने अपने बेकुसूर पति पर बेवजह आरोप लगाए और पंचायत का समय खराब किया, इसलिए रूबी को सजा भुगतनी होगी.

‘‘रूबी को यह पंचायत 30,000 रुपए बतौर जुर्माना जमा करने का हुक्म देती है. और पैसे न जमा कर पाने की हालत में रूबी पर कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है. जुर्माना परसों शाम तक प्रधान के पास जमा हो जाना चाहिए.’’

यह फैसला सुन कर रूबी टूट गई थी. जो रूबी कुछ दिनों पहले तक महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जगा रही थी, वही रूबी जिस ने अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी की थी, उसे ही धोखा मिला.

और सब बातों के साथसाथ रूबी के सामने इतने पैसे जुर्माने के तौर पर जमा करने का हुक्म भी बजाना था, नहीं तो जालिम पंचायत न जाने क्या करवा दे.

एक दिन बीत गया था. पोस्ट औफिस में कुछ पैसे जमा थे और कुछ संदूक में थे, उन्हें मिला कर 20,000 रुपए ही हो सके. जब और पैसे का इंतजाम नहीं हो सका, तो तय समय पर रूबी इतने ही पैसों को ले कर पंचायत के सामने पहुंची और जुर्माने के पूरे पैसे जमा कर पाने में अपनी मजबूरी दिखाई.

प्रधान पारस ने बोलना शुरू किया, ‘‘रूबी हमारी भाभी लगती हैं… ये कहें तो हम सारा जुर्माना खुद ही जमा कर देंगे, पर क्यों करें, इंसाफ और धर्म के हाथों मजबूर हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते… और हमारी रूबी भाभी जुर्माना नहीं जमा कर पाई हैं, इसलिए पंचों का फैसला है कि इन को बाकी के बचे 10,000 रुपयों के बदले दूसरी तरह का जुर्माना देना होगा.

‘‘और वह जुर्माना यह होगा कि हमारे खेत में जितना कटा हुआ गेहूं पड़ा हुआ है, उसे किसी भी तरह से हमारे आंगन तक पहुंचाना होगा.’’

एक बार फिर यह पंचायती फरमान सुन कर रूबी दंग रह गई थी,

हां, शायद भाग ही जाती, पर दो बच्चियों को छोड़ कर जाना संभव नहीं था. और फिर करन का क्या भरोसा?

‘‘बोलो… जुर्माने के तौर पर दी जाने वाली सजा मंजूर है तुम्हें?’’ प्रधान पारस की आवाज गूंजी. कोई चारा नहीं था उस अबला रूबी के पास, पर वह इस समय एक ऐसे दर्द में थी, जिस से एक दूसरी औरत ही समझ सकती है.

रूबी ने हिम्मत जुटाई और सभी के सामने बोल दिया, ‘‘फैसला मंजूर है, पर मैं अभी यह सजा नहीं झेल सकती.’’

‘‘पर क्यों?’’ एक पंच बोला.

‘‘क्योंकि, मैं रजस्वला हूं…’’

सारी बैठी औरतें सन्न रह गईं और आपस में खुसुरफुसुर करने लगीं.

‘‘मैं इस समय कोई भारी चीज नहीं उठा पाऊंगी, इसलिए मैं विनती करती हूं कि मेरी यह सजा माफ कर दी जाए.’’

प्रधान और पंचायत के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. और नहीं किसी औरत के प्रति इस हालत में जरा भी हमदर्दी आई.

लिहाजा रूबी को पंचायत की बात माननी पड़ी. उस ने खेत में पड़ा गेहूं बोरियों में भरना शुरू किया और बोरी को लादलाद कर प्रधान के घर में रखना शुरू कर दिया, सूरज ऊपर तप रहा था, रूबी की आंखों में आंसू थे, पर वह अपने को किसी जाल में फंसा हुआ महसूस कर रही थी.

वह अभी कुछ ही बोरे रख पाई थी कि उस के पैर कांपने लगे. उस की जांघें छलनी हो गई थीं. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह और नहीं सह सकी और वहीं बेहोश हो गई.

रूबी की आंख जब खुली, तो उस ने अपने आसपास सभी साथियों को पाया, जो समाजसेवा के काम में रूबी के साथ ईरिकशे पर बैठ कर जाती थीं, उन लोगों ने ही रूबी को अस्पताल में भरती कराया और उस से बिलकुल भी चिंता न करने की सलाह दी.

जब अस्पताल से रूबी को छुट्टी मिली, तो वह वहां से अपनी साथियों की मदद से महिला आयोग पहुंची, जहां उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां बताई और यह भी बताया कि किस तरह से उस का पति एक दूसरी औरत के साथ जिस्मानी संबंध रखे हुए है, जबकि उन दोनों ने आपसी सहमति से प्रेम विवाह किया था.

महिला आयोग ने रूबी से हमदर्दी तो दिखाई, पर यह भी कहा कि आप पढ़ीलिखी लगती हैं… और जब तक आप के पास अपने पति के खिलाफ दूसरी महिला के साथ संबंध होने का कोई सुबूत नहीं होगा. तब तक हम

चाह कर भी आप की कोई मदद नहीं कर पाएंगे.

रूबी निराश हो कर वहां से लौट आई और यह सोचने लगी कि सुबूत कैसे जुटाया जाए.

फिर कुछ दिन बीतने के बाद रूबी एक दिन दोपहर में चोरीछुपे अपने गांव के घर में पहुंची और दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा करन ने खोला और रूबी को देखते ही बिफर गया, ‘‘तू फिर यहां आ गई अपनी शक्ल दिखाने के लिए.’’

‘‘करन… एक मिनट मेरी बात तो सुनो… हम ने तो प्रेम विवाह किया था, फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों?’’ रूबी ने पूछा.

‘‘प्रेम विवाह… हुंह… क्या तुम नहीं जानती कि हम दोनों अलगअलग जाति से संबंध रखते हैं… और हमारे गांव में किसी भी छोटी जाति वाली लड़की से शादी करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता… पूरे गांव ने मेरा बहिष्कार कर दिया… मैं अब और नहीं सह सकता… और फिर तुम्हारे अंदर भी मैं ने एक कमाऊ औरत होने का अहंकार देखा… तुम काम से आ कर मुझ पर अहसान दिखाती थी और अकसर ही मेरा बिस्तर बिना गरम किए ही सो जाती थी. और मैं रातभर करवट बदलता रहता था… और फिर तुम्हारे भी तो बाहर और भी कई मर्दों के साथ संबंध हैं, इसीलिए मैं ने भी इस औरत के साथ संबंध बना लिया है और आगे भी मैं इसी के साथ रहूंगा,’’ करन ने सब स्वीकार कर लिया.

‘‘पर, मैं ने तुम से प्रेम…’’ रूबी का स्वर बीच में ही रुक गया.

‘‘हट साली… गड़रिया की जाति… चली है एक ब्राह्मण से इश्क लड़ाने… भाग जा यहां से और दोबारा इस दरवाजे पर मत आना,’’ दहाड़ उठा था करन.

रूबी पीछे चल दी, आगे चल कर उस ने अपने हैंडबैग में छुपा खुफिया कैमरा निकाला और उस में होने वाली रिकौर्डिंग बंद की और अब उस के चेहरे पर विजयी मुसकान थी.

ये वीडियो रिकौर्डिंग उस ने कोर्ट में पेश की, जहां पर करन को अपने पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के लिए और दूसरी महिला से संबंध रखने के आरोप में सजा सुनाई गई.

यही नहीं, पंचायत द्वारा एक स्त्री पर अमानवीय व्यवहार करने के जुर्म में पंचायत के सभी सदस्यों को भी सजा दी गई और प्रधान को तत्काल प्रभाव से उस के पद से भी हटा दिया गया.

ये एक औरत की जीत थी, उस के सम्मान की जीत…

3 किरदारों का अनूठा नाटक: क्या था सिकंदर का प्लान

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईं.

उन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी.

सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे.

शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’

रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में न बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा.

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है.

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’’

दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी.

सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी न हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.

फिर उसे खयाल आया कि क्यों न वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में आ जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन आ जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा.

जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी.

पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’

रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के न रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए.

फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा.

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता है— रूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी.

रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

2 दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है.

दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’

सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’

‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, न कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास आ जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

वह काली रात: क्या हुआ था रंजना के साथ

जैसे ही रंजना औफिस से आ कर घर में घुसीं, बहू रश्मि पानी का गिलास उन के हाथ में थमाते हुए खुशी से हुलसते हुए बोली, मांजी, 2 दिनों बाद मेरी दीदी अपने परिवार सहित भोपाल घूमने आ रही हैं. आज ही उन्होंने फोन पर बताया.’’

‘‘अरे वाह, यह तो बड़ी खुशी की बात है. तुम्हारी दीदीजीजाजी पहली बार यहां आ रहे हैं, उन की खातिरदारी में कोई कोरकसर मत रखना. बाजार से लाने वाले सामान की लिस्ट आज ही अपने पापा को दे देना, वे ले आएंगे.’’

‘‘हां मां, मैं ने तो आने वाले 3 दिनों में घूमने और खानेपीने की पूरी प्लानिंग भी कर ली है. मां, दीदी पहली बार हमारे घर आ रही हैं, यह सोच कर ही मन खुशी से बावरा हुआ जा रहा है,’’ रश्मि कहते हुए खुशी से ओतप्रोत थी.

‘‘बड़ी बहन मेरे लिए बहुत खास है. 12वीं कक्षा में पापा ने जबरदस्ती मुझे साइंस दिलवा दी थी और मैं फेल हो गई थी. मैं शुरू से प्रत्येक क्लास में अव्वल रहने की वजह से अपनी असफलता को सहन नहीं कर पा रही थी और निराशा से घिर कर धीरेधीरे डिप्रैशन में जाने लगी थी. तब दीदी की शादी को 2 महीने ही हुए थे. मेरी बिगड़ती हालत को देख कर दीदी बिना कुछ सोचेविचारे मुझे अपने साथ अपनी ससुराल ले गईर् थीं. जगह बदलने और दीदीजीजाजी के प्यार से मैं धीरेधीरे अपने दुख से उबरने लगी थी. मेरा मनोबल बढ़ाने में जीजाजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. उन्हीं की मेहनत और प्यार का फल है कि डौक्टरेट कर के आज कालेज में पढ़ा कर खुशहाल जिंदगी जी रही हूं. मां, कितना मुश्किल होता होगा अपनी नईनवेली गृहस्थी में किसी तीसरे, वह भी जवान बहन को शामिल करना,’’ रश्मि ने अपनी दीदी की सुनहरी यादों को ताजा करते हुए अपनी सास से कहा.

‘‘हां, सो तो है बेटा, पर तुम उन की यादों में ही खोई रहोगी कि कुछ तैयारी भी करोगी. दीदी के कितने बच्चे हैं?’’ रंजना ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘2 बेटे हैं मां, बड़ा बेटा अमन इंजीनियरिंग के आखिरी साल में है और छोटा अर्णव 12वीं कर रहा  है,’’ रश्मि ने खुशी से उत्तर दिया.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए रंजना ने अपने

2 कमरों के छोटे से घर पर नजर डाली जो 4 लोगों के आ जाने से भर जाता था. उन्होंने पति के साथ मिल कर बड़े जतन से इस घर को उस समय बनाया था जब बेटे का जन्म हुआ था. तब आर्थिक स्थिति भी उतनी अच्छी नहीं थी. सो, किसी तरह 2 कमरे बनवा लिए थे. उस के बाद परिवार बड़ा हो गया पर घर उतना ही रहा. कितनी बार सोचा भी कि ऊपर 2 कमरे और बनवा लें, ताकि किसी के आने पर परेशानी न हो, पर सुरसा की तरह मुंह फाड़ती इस महंगाई में थोड़ा सा पैसा बचाना भी मुश्किल हो जाता है. खैर, देखा जाएगा.

2 दिनों बाद सुबह ही रश्मि की दीदी परिवार सहित आ गईं. सभी लोग हंसमुख और व्यवहारकुशल थे. शीघ्र ही रश्मि के दोनों बच्चे 12 वर्षीय धु्रव और 8 वर्षीया ध्वनि दीदी के बेटों के साथ घुलमिल गए. पुरुष देशविदेश की चर्चाओं में व्यस्त हो गए. वहीं रश्मि और उस की दीदी किचन में खाना बनाने के साथसाथ गपों में मशगूल हो गईं. रंजना स्वयं भी नाश्ता कर के अपने औफिस के लिए रवाना हो गईर्ं.

नहाधो कर सब ने भरपेट नाश्ता किया. रश्मि ने खाना बना कर पैक कर लिया ताकि घूमतेघूमते भूख लगने पर खाया जा सके. पूरे दिन भोपाल घूमने के बाद रात का खाना सब ने बाहर ही खाया. मातापिता के लिए खाना रश्मि के पति ने पैक करवा लिया. घर आ कर ताश की महफिल जम गई जिस में रंजना और उन के रिटायर्ड पति भी शामिल थे.

रात्रि में हौल में जमीन पर ही सब के बिस्तर लगा दिए गए. सभी बच्चे एकसाथ ही सोए. बाकी सदस्य भी वहीं एडजस्ट हो गए. रश्मि की दीदी ने पहले ही साफ कह दिया था कि मम्मीपापा अपने कमरे में ही लेटेंगे ताकि उन्हें कोई डिस्टर्ब न करे. अपने रात्रिकालीन कार्य और दवाइयां इत्यादि लेने के बाद जब रंजना हौल में आईं तो कम जगह में भी सब को इतने प्यार से लेटे देख कर उन्हें बड़ी खुशी हुई. अचानक बच्चों के बीच ध्वनि को लेटे देख कर उन का माथा ठनका, वे अचानक बहुत बेचैन हो उठीं और बहू रश्मि को अपने कमरे में बुला कर कहा, ‘‘बेटा, ध्वनि अभी छोटी है, उसे पास सुलाओ.’’

‘‘मां, वह नहीं मान रही. अपने भाइयों के पास ही सोने की जिद कर रही है. सोने दीजिए न, दिनभर के थके हैं सारे बच्चे, एक बार आंख लगेगी तो रात कब बीत जाएगी, पता भी नहीं चलेगा,’’ कह कर रश्मि वहां से खिसक गईं.

वे सोचने लगीं, ‘यह तो सही है कि थकान में रात कब बीत जाती है, पता नहीं चलता, पर रात ही तो वह समय है जब सब सो रहे होते हैं और करने वाले अपना खेल कर जाते हैं. रात ही तो वह पहर होता है जब चोर लाखोंकरोड़ों पर हाथ साफ करते हैं. दिन में कुलीनता, शालीनता, सज्जनता और करीबी रिश्तों का नकाब पहनने वाले अपने लोग ही अपनी हवस पूरी करने के लिए रात में सारे रिश्तों को तारतार कर देते हैं.

कहते हैं न, दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है, सो, उन का मन नहीं माना और कुछ देर बाद ही वे फिर हौल में जा पहुंचीं. ध्वनि उसी स्थान पर लेटी थी. उन्होंने धीरे से उस के पास जा कर न जाने कान में क्या कहा कि वह तुरंत अपनी दादी के साथ चल दी. बड़े प्यार से अपनी बगल में लिटा कर वे ध्वनि को कहानी सुनाने लगीं और कुछ ही देर में ध्वनि नींद की आगोश में चली गई. पर नातेरिश्तों पर कतई भरोसा न करने वाला उन का विद्रोही मन अतीत के गलियारे में जा पहुंचा.

तब वे भी अपनी पोती ध्वनि की उम्र की ही थीं. परिवार में उन के अलावा

4 वर्षीया एक छोटी बहन थी. मां गांव की अल्पशिक्षित सीधीसादी महिला थीं. एक बार ताउजी का 23 वर्षीय बेटा मुन्नू उन के घर दोचार दिनों के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षा देने आया था. भाई के आने से घर में सभी बहुत खुश थे, आखिर वह पहली बार जो आया था. गरमी का मौसम था. उस समय कूलरएसी तो होते नहीं थे, सो, मां ने खुले छोटे से आंगन में जमीन पर ही बिस्तर लगा दिए थे.

वे अपने पिता से कहानी सुनाने की जिद कर रही थीं कि तभी भाई ने कहानी सुनाने का वास्ता दे कर उसे अपने पास बुला लिया. वह भी खुशीखुशी भैया के पास कहानी सुनतेसुनते सो गई. आधी रात को जब सब सोए थे, अचानक उन्हें अपने निचले वस्त्र के भीतर कुछ होने का एहसास हुआ. कुछ समझ नहीं आने पर वे अचकचाईं और करवट ले कर लेट गईं. कुछ देर बाद भाई ने दोबारा उन्हें अपनी ओर कर लिया और वही कार्य फिर से शुरू कर दिया. न जाने क्यों उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था. जब असहनीय हो गया तो एक झटके से उठी और जा कर मां से चिपक कर लेट गई. उस दिन बहुत देर तक नींद ही नहीं आई. वह समझ ही नहीं पा रही थीं कि आखिर भैया उस के साथ क्या कर रहे थे?

8 साल की बच्ची क्या जाने कि उस के ही चचेरे भाई ने उस के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया था. उस समय मोबाइल, टीवी और सोशल मीडिया तो था नहीं जो मां के बिना बताए ही सब पता चल जाता. यह सब तो उसे बाद में समझ आया कि उस दिन भाई अपनी ही चचेरी बहन के साथ…छि… सोच कर उस का मन आज भी मुन्नू भैया के प्रति घृणा से भर उठता है. अगले दिन सुबह मां ने पूछा, ‘क्या हुआ रात को उठ कर मेरे पास क्यों आ गई थी.’

उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहे? सो वह ‘कुछ नहीं, ऐसे ही’ कह कर बाहर चली गई. उस समय तो क्या वह तो आज तक मां से नहीं कह पाई कि उन के लाड़ले भतीजे ने उस के साथ क्या किया था. पर क्या वह उस समय मां को बताती तो मां उस की बातों पर भरोसा करतीं? शायद नहीं, क्योंकि मां की नजर में वह तो बच्ची थी और मुन्नू भैया उन के लाड़ले भतीजे.

उस जमाने में मांबेटी में संकोच की एक दीवार रहती थी. वे इतने खुल कर हर मुद्दे पर बात नहीं करती थीं जैसे कि आज की मांबेटियां करती हैं. वह कभी किसी से इस विषय में बोल तो नहीं पाई परंतु पुरुषों और सैक्स के प्रति एक अनजाना सा भय मन में समा गया. पुरानी यादों की परतें थीं कि धीरेधीरे खुलती ही जा रही थीं. समय बीतता गया. जब उन्होंने जवानी की दहलीज पर पैर रखा तो मातापिता को शादी की चिंता सताने लगी. आखिर एक दिन वह भी आया जब पेशे से प्रोफैसर बसंत उन के जीवन में आए.

उन्हें याद है जब वे शादी कर के ससुराल आईं तो बहुत डरी हुई थीं. पति बसंत बहुत सुलझे और समझदार इंसान थे. उन्होंने आम पुरुषों की तरह संबंध बनाने की कोई जल्दबाजी नहीं की. जब सारे मेहमान चले गए तो एक दिन परिस्थितियां और माहौल अनुकूल देख कर बसंत ने जब उन के साथ संबंध बनाने की कोशिश करनी चाही तो वे घबरा कर पसीनापसीना हो गईं और उन की आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी. इस के बाद जब भी बसंत उन के नजदीक आने की कोशिश करते, उन की यही स्थिति हो जाती.

उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से कई बार रंजना से इस का कारण जानने की कोशिश की परंतु रंजना हर बार टाल गईं. एक दिन जब घर में कोई नहीं था, समझदार बसंत ने मानो समस्या हल करने का बीड़ा ही उठा लिया. वे रंजना का हाथ पकड़ कर जमीन पर बैठ गए और बड़े प्यार से इस मनोदशा का कारण पूछने लगे. पहले तो रंजना चुप रहीं पर फिर बसंत के प्यारभरे स्पर्श से सालों से जमी बर्फ की पर्त मानो पिघलने को आतुर हो उठी, उन की आंखों से आंसुओं के रूप में लावा बह निकला और रोतेरोते पूरी बात उन्होंने बसंत को कह सुनाई, जिस का सार यह था कि जब भी बसंत उन के नजदीक आते हैं उन्हें वह काली रात याद आ जाती है और वे घबरा उठती हैं.

बसंत कुछ देर तो शांत रहे, वातावरण में चारों ओर मौन पसर गया. वे मन ही मन घबराने लगीं कि न जाने बसंत की प्रतिक्रिया क्या होगी. परंतु कुछ देर बाद माहौल की खामोशी को तोड़ते हुए बसंत उठ कर उन की बगल में बैठ गए, रंजना का हाथ अपने हाथ में ले कर बड़े ही प्यार से बोले, ‘रंजू, जो हुआ उसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जाओ. तुम्हारी उस में कोई गलती नहीं थी. गलती तो तुम्हारे उस भाई की थी जिस ने एक कोमल कली को कुचलने का प्रयास किया. जिस ने तुम्हारे मातापिता के साथ विश्वासघात किया. जिस ने रिश्तों की गरिमा को तारतार कर दिया. वह भाई के नाम पर कलंक है. जहां तक मां का सवाल है वे यह कभी सपने में भी नहीं सोच पाईं होंगी कि उन का सगा भतीजा ऐसा कुकृत्य कर सकता है. परंतु अब मैं तुम्हारे साथ हूं. हम पतिपत्नी हैं. तुम्हारा और मेरा हर सुखदुख साझा है.

‘कल हम एक मनोवैज्ञानिक काउंसलर के पास चलेंगे जिस से तुम अपने मन की सारी पीड़ा को बाहर ला कर अपने और मेरे जीवन को सुखमय बना पाओगी. इतना भरोसा रखो अपने इस नाचीज जीवनसाथी पर कि जब तक तुम स्वयं को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर लेतीं मैं कोई जल्दबाजी नहीं करूंगा. बस, इतना प्रौमिस जरूर चाहूंगा कि यदि भविष्य में हमारी कोई बेटी होगी तो उसे तुम संभाल कर रखोगी. उसे किसी भी हालत में परिचितअपरिचित की हवस का शिकार नहीं होने दोगी. बोलो, मेरा साथ देने को तैयार हो.’

‘हां, बसंत, मैं अपनी बेटी तो क्या इस संसार की किसी भी बेटी को उस तरह की मानसिक यातना से नहीं गुजरने दूंगी, जिसे मैं ने भोगा है, पर मुझे अभी कुछ वक्त और चाहिए,’ रंजना ने बसंत का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, तो बसंत मुसकराते हुए प्यार से बोले, ‘यह बंदा ताउम्र अपनी खूबसूरत पत्नी की सहमति का इंतजार करेगा.’

अचानक रंजना कुछ सोचते हुए बोलीं, ‘बसंत, मैं धन्य हूं जो मुझे तुम जैसा समझदार पति मिला. मुझे लगता है हर महिला बाल्यावस्था में कभी न कभी पुरुषों द्वारा इस प्रकार से शोषित होती होगी. अगर आज तुम्हारे जैसा समझदार पति नहीं होता तो मुझ पर क्या बीतती.’

‘तुम बिलकुल सही कह रही हो, कितने परिवारों में ऐसा ही दर्द अपने मन में समेटे महिलाएं जबरदस्ती पति के सम्मुख समर्पित हो जाती हैं. कितनी महिलाएं अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं और कितनों के इसी कारण से परिवार टूट जाया करते हैं, जबकि इस प्रकार की घटनाओं में महिला पूरी तरह निर्दोष होती है, क्योंकि बाल्यावस्था में तो वह इन सब के माने भी नहीं जानती. चलो, अब कुछ खाने को दो, बहुत जोरों से भूख लगी है,’ बसंत ने कहा तो वे मानो विचारों से जागी और फटाफट चायनाश्ता ले कर आ गईं.

कुछ दिनों की कांउसलिंग सैशन के बाद वे सामान्य हो गईं और एक दिन जब वे नहा कर बाथरूम से निकली ही थीं कि बसंत ने उन्हें अपने बाहुपाश में बांध लिया और सैक्सुअल नजरों से उन की ओर देखते हुए बोले, ‘‘अब कंट्रोल नहीं होता, बोलो, हां है न.’’

बसंत की प्यारभरी मदहोश कर देने वाली नजरों में मानो वे खो सी गईं और खुद को बसंत को सौंपने से रोक ही नहीं पाईं. बसंत ने उन्हें 2 प्यारे और खूबसूरत से बच्चे दिए. बेटी रूपा और बेटा रूपेश. उन्हें अच्छी तरह याद है जैसे ही रूपा बड़ी होने लगी, वे रूपा को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देती थीं. दोनों बच्चों के साथ बसंत और उन्होंने ऐसा दोस्ताना रिश्ता कायम किया था कि बच्चे अपनी हर छोटीबड़ी बात मातापिता से ही शेयर करते थे.

वे चारों आपस में मातापिता कम दोस्त ज्यादा थे. बेटी रूपा जैसे ही 7-8 वर्ष की हुई, उन्होंने उसे अच्छीबुरी भावनाओं, स्पर्श और नजरों का फर्क भलीभांति समझाया. ताकि उस के जीवन में कभी कोई रात काली न हो. सोचतेसोचते कब आंख लग गई, उन्हें पता ही नहीं चला. सुबह आंख देर से खुली तो देखा कि सभी केरवा डैम जाने की तैयारी में थे. वे भी फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल लीं. अगले दिन रश्मि की दीदी का सुबह की ट्रेन से जाने का प्रोग्राम था. 3 दिन कैसे हंसीखुशी में बीत गए, पता ही नहीं चला.

कटी पतंग: बुशरा की डायरी में क्या था लिखा

लेखिका- दिव्या शर्मा

बिस्तर पर एक औरत की लाश पड़ी थी. इंस्पैक्टर ने कमरे का जायजा लेना शुरू किया. कमरे में एक छोटी सी खिड़की थी, जिस पर एक मोटा परदा डला था.

इंस्पैक्टर लाश के नजदीक पहुंच कर ठिठक गई. बैड के पास एक डायरी गिरी हुई थी. उस ने कौंस्टेबल को इशारा कर डायरी अपने पास मंगवाई और पन्ने पलटने लगी. उन पन्नों में लिखी कहानी इंस्पैक्टर की आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलनी लगी…

“1जनवरी, 2007

“थैंक यू अब्बू… इस सुंदर डायरी के लिए.

“बुशरा मलिक,

मकान नंबर 10, करीमगंज.”

“3 जनवरी, 2007

“ठीक तो कहता है फैजल कि मैं खूबसूरत हूं, मुझे फिल्मों में होना चाहिए. आज उस की बात सुन कर पहली बार इतने गौर से खुद को आईने में निहारा.

“सुन डायरी, तू तो मेरी दोस्त है ना…इसलिए तुझे आज अपने दिल की बात बताती हूं. फैजल मुझे बेइंतहा मोहब्बत करता है लेकिन बताता नहीं. सब जानती हूं मैं. मुझे जलाने के लिए रूखसाना से बातें करता रहता है जैसेकि मैं सच में जलूंगी…

“मुझे तो मुंबई जाना है. मौका देख कर अब्बू से बात करूंगी लेकिन तब तक यह बात अपने दिल में छिपाए रखना, समझ गई ना…

“चल अब सोती हूं.”

“5 जनवरी,2007

“अब्बू ने आज मुझे बहुत डांटा. बस, इतना ही तो कहा था कि मुझे औडिशन देना है मौडलिंग के लिए. अब्बू कहते हैं कि यह काम शरीफ घरानों की लड़कियों के लिए नहीं है. अब्बू यह क्या बात हुई भला, आप इतने पढेलिखे हैं फिर भी ऐसी बातें करते हैं? आप तो बिलकुल दकियानूसी नहीं थे.

“मैं एक दिन मुंबई जरूर जाऊंगी और देखना, अब्बू आप को अपनी बुशरा पर नाज होगा.”

“10जनवरी, 2007

“आज जन्मदिन है मेरा. अब्बू ने मुझे सोने के झुमके दिए हैं तोहफे में. बहुत प्यार करते हैं मुझे अब्बू. फैजल ने मेकअप बौक्स दिया है. मगर छिपा लिया मैं ने. कोई देख लेता तो तुफान आ जाता.”

“14फरवरी, 2007

“तूझे पता है कि आज फैजल ने मुझे आई लव यू कहा. मुझे बहुत शर्म आई. 4 महीने हो गए हैं फैजल को हमारे शहर में नौकरी करते. बता रहा था कि मुंबई में घर है उस का. मुझ से कहता है कि मुझे हीरोइन बनाएगा, चाहे कुछ भी करना पड़े.

“कह रहा था कि तुम्हारे लिए खुद को भी गिरवी रख दूंगा लेकिन तुम्हारा ख्वाब जरूर पूरा करूंगा…पागल है सच में. ऐसे भी कोई इश्क करता है क्या?”

“20 मार्च, 2007

“आज फिर अम्मी से बात करने की कोशिश की कि अब्बू को समझाए. लेकिन मेरी बात तो हिमाकत लगती है सब को. कह रही थीं कि 19 साल की हो गई हो अब निकाह कर के रूखसत कर देंगी घर से.

“मेरी ख्वाहिश, मेरे अरमानों की फिक्र बस फैजल को है. बेइंतहा मोहब्बत करता है मुझ से. मेरी आंखों में जानें क्या ढूंढ़ते रहता है…बावला है पूरा.

“देख, तुझे बता रही हूं अपने दिल का हाल, लेकिन तू किसी को न कहना.

अब तू भी सो जा. कल फिर तुझ पर मेरी कलम मेरा हाल लिखेगी…”

“5 अप्रैल, 2007

“कल फैजल मुंबई जा रहा है और मैं भी उस के साथ ही चली जाऊंगी. जब सपनों को पूरा कर लूंगी तभी लौट कर आऊंगी. थोड़े से गहने रख लिए हैं साथ में. जरूरत पड़ गई तो बेचारा फैजल कितना करेगा?

“क्या कहा, यह गलत है? अरे, यह गहने अम्मी के नहीं हैं. मेरे निकाह के लिए ही तो बनवाए हैं अम्मी ने. तो इन पर मेरा हक हुआ न…और फिर एक बार हीरोइन बन गई तो ऐसे कितने ही गहने खरीदवा दूंगी अम्मी को…हाय, आज की रात न जाने कैसे बीतेगी.

“तू बहुत बातें करती है डायरी. मुझे भी उलझा देती है नामुराद. चल अब सोती हूं, कल बहुत तैयारी करनी है.”

“10 जनवरी, 2008

“बहुत दिनों बाद तुझे उठा रही हूं डायरी. क्या करती, हिम्मत न थी इन नापाक हाथों से तुझे हाथ लगाने की.

अब्बू बहुत मोहब्बत से मेरे लिए लाए थे तुझे. “आज तुझे सीने से लगाया तो लगा कि अब्बू करीब हैं. मैं मुंबई आ कर अपने अब्बू की बुशरा न रही. अब रोज नए किरदार में खुद को ढालती हूं. रोज बिछती हूं, रोज सिकुड़ती हूं. मरना चाहती हूं लेकिन एक बार अपने अम्मीअब्बू को देख लूं बस.

“किसी तरह मुझे मौका मिल जाए यहां से निकलने का. हीरोइन बनने आई थी लेकिन मालूम न था यह ख्वाहिश मुझे यों तबाह कर देगी. सीने में दर्द उठ रहा है लेकिन तुझ से भी न कहूंगी. यह तो मुझे ही सहना होगा.”

“6 फरवरी, 2008

“जल्दी वापस चली जाऊंगी अपने शहर. एक बार जीभर देख लूं सब को. बस एक बार. फिर तो मर जाऊंगी. 10 बज रहे हैं और मैं यहां अकेली… थकी हुई. आज अगर घर में होती तो अम्मी की गोद में सिर रख कर लेटी होती. अब्बू की लाई कुल्फी खा रही होती लेकिन अब…”

“14 मार्च, 2008

“आज लौट आई हूं वापस अपने शहर लेकिन घर नहीं जा सकती. क्या मुंह दिखाऊंगी किसी को? कैसे कर सकूंगी अब्बू का सामना? कैसे कहूंगी कि आप की बुशरा सब खो चुकी है उस शहर में…

“कैसे कहूं कि फैजल ने नोच दी आप के घर की आबरू. वह बेच गया मुझे मंडी में. बन गई मैं धंधेवाली. नीलाम कर दी बुशरा ने आप की इज्जत. अब तो बस मरने का इंतजार है. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“20 जून, 2008

“अखबार में आज अपनी गुमशुदगी की खबर पढी. 1 साल से अधिक हो गए मुझे घर छोड़े लेकिन वे आज भी मुझे याद करते हैं.

“मन करता है जा कर अम्मी के गले लग जाऊं. अब्बू के कदमों में बैठ कर रो लूं. लेकिन नहीं कर सकती ऐसा. मेरे गुनाह इतने छोटे नहीं. मैं इन्हीं अंधेरे में सही हूं. कम से कम मुझे ढूंढ़ तो ना पाएंगे

“मैं अपनी नापाक शरीर ले कर आप के पास नहीं आ सकती, अब्बू. अकेली बैठी हूं इस छोटे से कमरे में. दम घुटता है मेरा यहां. क्या बनना चाहा और क्या बन गई मैं…

“जिस्म से रोज कपड़े उतरते हैं, रोज आदमी बदलते हैं लेकिन मैं तो वही रहती हूं बेशर्म की पुतली बुशरा. कीड़े रेंगते हैं मेरे जिस्म पर. घिनौनी हो गई हूं मैं. क्यों जिंदा हूं? काश कि मौत आ जाए मुझे…”

“20 जुलाई, 2008

“जी न माना तो चली गई आज चुपचाप अब्बू की दुकान पर. बस दूर से देख आई उन्हें. उन की आंखों में दर्द था…

“कितना नाज था उन्हें मुझ पर लेकिन मैं ने… मैं उन से नजरें नहीं मिला सकती.

“काश कि कुदरत मेरे गुनाहों को माफ कर दे, मेरे अब्बू के चेहरे पर हंसी खिला दे. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“8 सितंबर, 2008

“दुल्हा बना कितना सुंदर लग रहा था मेरा भाई. मन कर रहा था झूम कर नाचूं…लेकिन…बस दूर से ही देख सकी मैं.

“आज अम्मी ने हरा लिबास पहना था. वैसा ही लिबास जैसा मुझे पसंद है. पर वे बुझी हुई लग रही थीं…वे मुझे भूली नहीं.

“बस एक बार भाभी का चेहरा देख पाती लेकिन यह नापाक साया उन पर नहीं डाल सकती. मैं रो रही हूं अब्बू. मुझे ले जाओ यहां से.

“अम्मी मुझे माफ कर दो. मुझे पनाह दे दो अम्मी…

“यह मैं क्या कह रही हूं? नहीं… नहीं… मुझे मरना होगा. अपनी गंदगी का साया अपने घर पर न डालूंगी. काश, मुझे मौत आ जाए…”

“6 अक्तूबर, 2008

“बुखार से बदन तप रहा है लेकिन मुझ से ज्यादा तपन इन भूखों के शरीर में लगी है. इस शरीर से बेइंतहा मोहब्बत थी मुझे, इस पर गुरूर कर फैजल पर यकीन किया था… लेकिन अब… अब नफरत हो गई… कुदरत अब किसी और बुशरा को उस कमीने के चंगुल में न फंसने देना.

“अब्बू, आप की बुशरा से गुनाह हो गया… मुझे माफ कर दो अब्बू…आप सही कहते थे कि मुंबई बहुत गंदा शहर है. काश, मौत आ जाए मुझे…”

“10 अक्तूबर, 2008

“अपने इस जिस्म पर गुमान कर घर से निकल गई थी… देखो अब्बू… आप की बुशरा इलाज से भी महरूम है. मेरी छींक पर भी बेचैन हो उठते थे आप और आज कैसी गलीच जिंदगी जी रही हूं मैं… काश, मुझे मौत आ जाए…”

“15 अक्तूबर, 2008

“हिम्मत नहीं बची है अब. मौत करीब लग रही है. आज मैं मर जाऊंगी. कुदरत का बुलावा आ गया है. लेकिन मेरे बारे में मेरे परिवार को पता न चले. उन्हें पता न चले कि अब्बू की बुशरा अब धंधेवाली…

“काश, कोई इस जिस्म को लावारिस समझ खाक में मिला दे…”

उस के मासूम चेहरे पर अब भी नजामत दिख रही थी, भले ही प्राण नहीं था शरीर में. इंस्पैक्टर को आंखों में कुछ नमी सी महसूस हुई. डायरी को बंद कर उस ने एक ठंडी सांस ली और फिर मोहब्बत की शिकार ख्वाब देखने वाली बुशरा के मरे जिस्म को उस ने लवारिस लाश में शामिल कर दिया.

पिपासा: कैसे हुई थी कमल की मौत

सुबह के तकरीबन 9 बजे होंगे. भैंसों को चारासानी, पानी कर के दूध दुह कर ग्राहकों को बांट कर मदन खाट पर जा कर लेट गया था. पल दो पल में ही धूप उस के बदन पर लिपट कर अंगअंग सहला कर गरमाहट बढ़ाने लगी. मदन को गुदगुदी सी होने लगी थी. वह जैसे अपनी दोनों बांहों में धूप को समेट कर हौले से मुसकरा उठा.

तीस साल का मदन इतना भी रूखा या पत्थरदिल नहीं था, मगर अभी तक किसी को अपने दिल की बात कह कर अपना बना ही नहीं सका था.

मदन का पूरा बदन धूप की शरारतों से इठला ही रहा था, तभी अचानक किसी ने बाहर खटखट की आवाज की. आवाज सुन कर मदन चौंक गया.

‘अब कौन आया होगा?’ यह सवाल खुद से करता हुआ वह झट से करवट बदल कर पलटा और खाट पर से उठ कर जमीन खड़ा हुआ. जल्दी से वह बाहर गया, तो देखते ही पहचान गया.

“अरे, चमेली तुम…?”

“हां, मैं चमेली,” कह कर उस युवती ने अपने पास खड़े 4-5 बरस के बालक की कलाई को झिंझोड़ कर कहा.

चमेली मदन की दूर की रिश्तेदार थी. उस का विवाह जिला गाजियाबाद में हुआ था. और इस समय कुछ तो ऐसा हुआ था कि सारी दुनिया छोड़ कर वह बस मदन के दरवाजे पर खड़ी थी.

मदन ने उसे भीतर बुला लिया. कुछ ही देर बाद मदन को बाहर कुछ आवाजें सुनाई देने लगी थीं. लोगों में खुसुरफुसुर होने लगी थी. पर, मदन अपनी मेहनत पर जीने वाला स्वाभिमानी युवक किसी बात से नहीं डरता था और न ही किसी की परवाह करता था.

चमेली ने भीतर आ कर मदन की तरफ याचनाभरी निगाह से देखा. इस से पहले मदन कुछ कहता, वह झुक कर उस के पैरों से लिपट गई.

चमेली के इस तरह लिपटते देख मदन को अभीअभी सेंकी हुई धूप की गरमाहट दोबारा महसूस होने लगी और वह रोमांचित सा हो रहा था, पर उधर इस सब से बेखबर चमेली उस से सुबकसुबक कर बोली, “मेरा पति हर बात पर शक करता था. मैं वहां से भाग आई. अब मैं वापस लौट कर नहीं जाना चाहती. आप मुझे अपनी शरण में ले लो, तो बची उम्र भी जैसेतैसे काट लूंगी.”

मदन उस के लगातार स्पर्श से यों भी मदहोश सा हुआ जा रहा था. वह अपनेआप को सहज करने की कोशिश करने लगा और उस ने बालक को प्यार से पुचकार कर कहा, “आओ ना… मेरे पास आओ.”

मदन के शब्दों ने उस बालक पर जादू सा काम किया. वह बालक शायद जन्मों से इस मनुहार की ही तो कामना कर रहा था, प्यार का संकेत मिला और वह मदन की छाती से लिपट गया. मदन ने आंखें बंद कर लीं. उस को एक पल के लिए ऐसा लगा, जैसे चमेली ने आ कर उसे जकड़ लिया हो.

कुछ पल के लिए वहां खामोशी सी छाई रही. पैरों पर चमेली और गोदी में मासूम बालक था. मदन इस आनंद को छक कर भोग रहा था.

अचानक चमेली ने उठ कर कहा,”कहीं आप को कोई दिक्कत तो नहीं.”

“अरे, नहीं. तुम आराम से यहां रहो,” मदन ने अपनी आवाज में प्यार छलकाते हुए कहा, तो चमेली के बदन में जैसे बिजली सी दौड़ गई. वह रास्ते की थकान भूल कर कच्चे मकान को देखती रही और इधरउधर जा कर उस ने रसोई खोज ली.

मदन ने कहा, “तुम थकी हुई हो. मैं कुछ चायदूध गरम करता हूं.”

चमेली मदन की ओर देख कर जोर से बोली, “बस, अब मैं सब कर लूंगी.”

मदन यह सुन कर निश्चिंत हो गया और वह बालक के साथ खेलने लगा.

चमेली जरा सी देर में चाय, दूध सब तैयार कर लाई. चमेली और मदन चाय की चुसकियां लेने लगे. बालक दूध का गिलास गटागट पी गया और शरीर में ताकत आते ही यहांवहां दौड़ने लगा.

मदन का सूना घर किलकारी से गूंज उठा, जैसे कोई उत्सव हो.

मदन के इस कच्चे मकान में रसोई और गोदाम के अलावा 3 कमरे और भी थे. एक कमरा चमेली ने ले लिया. इस दौरान 2-4 दिन गांव के लोगों ने किसी न किसी बहाने मदन के आंगन की ताकझांक भी कर ली. पर आखिरकार सब लोग समझ गए कि चमेली मदन की शरणागत है, और मदन को इस मामले में किसी की राय, सलाहमशवरा आदि कतई नहीं चाहिए.

चमेली को आए 7-8 दिन हो गए थे. वह अपने कच्चे मकान के उसी कमरे मे रहता, जहां चमेली रहती.

मदन चमेली के साथ जन्नत सा सुख पा रहा था, और वह कमरा मदन को किसी परीलोक से कम न लगता था. अब चमेली ने इतना प्यार लुटा दिया, तो मदन भी पीछे नहीं रहा. शहर से बादाम, काजू, अखरोट, कपड़ेलत्ते, मखमली बिस्तर और कई खिलौने ला कर उस ने चमेली के बालक को निहाल कर दिया था.

मदन ने उस बालक का नाम रखा था कमल. चमेली को कमल नाम इतना भाया कि वह अपने इस बालक का असली नाम बिलकुल ही भूल गई.

लगभग एक महीना हो गया था और अब हालात इतने हसीन थे कि चमेली सुबहशाम कुछ नहीं सोचती थी, जब भी तड़प कर मदन पुकार लगाता, चमेली उस के लिए गलीचा बनने में पलभर की देरी नहीं करती थी. चमेली ने तो उस का पुनर्जागरण कर दिया था. चमेली उस की मांग पर उफ न करती, तो मदन ने भी उसे सिरआंखों पर बिठाया.

इन दिनों मदन को यह पूरी दुनिया जैसे फूलों का बाग लगती थी. चमेली दो समय भोजन पकाती और बाकी का वक्त मदन उस को एक तिनका तक न तोड़ने देता था. भैसों का गोबर उठाने, वहां साफसफाई करने और रसोई के सब छोटेबड़े बरतन वह खुद खुशीखुशी मांजता था.

चमेली ने भी गांव में सहेलियां बना ली थीं. जब मदन गांव से बाहर होता तो चमेली का जी उचटने लगता और कभी कमल को ले कर तो कभी उस को सुला कर वह यहांवहां, इधरउधर आनेजाने लगी.

एक दिन मदन ने कमल को गांव की पाठशाला में दाखिला दिला दिया, वहीं सुबह दूध और दोपहर को बढ़िया खाना मिलता था. चमेली अब और खूबसूरत हो गई थी.

3 महीने गुजर गए. एक दिन मदन को सदमा लगा, जैसे वह आसमान से गिरा. हुआ यों कि चमेली रातोंरात गायब हो गई. खूब पता लगाया तो खबर मिली कि वह बगल गांव के एक छोरे के संग मुंबई भाग गई. दोनों अपनी मरजी से गए थे और चमेली मदन के घर से एक रुपया तक न ले गई, बस उस के दो समय के कपड़े वहां नहीं थे. घर पर सब सामान सहीसलामत पा कर मदन ने चैन की सांस ली, मगर अब वह और कमल अकेले रह गए.

चमली उसे धोखा दे गई, इसीलिए शोक करना मूर्खता ही होती. पर, जीवट वाले मदन ने हार नहीं मानी और उस ने कमल को ही अपना जीवन मान लिया.

मदन उसे खुद स्कूल छोड़ने और लाने जाता, बाकी समय उस की भैंसें तो थीं ही, जो उस को बिजी रखती थीं.

हौलेहौले मदन और बालक कमल एकदूजे की छवि बनते गए. बालक कमल दस वर्ष का हुआ, तो उस को नईनई बातें पता लगीं. वह पढ़ने में अच्छा था और मेवे, फलफूल खा कर मजबूत शरीर का धावक भी था.

एक दिन कमल मदन से सैनिक स्कूल में पढ़ने की जिद करने लगा. मदन ने उस की पूरी बात सुनी. मदन को कोई दिक्कत नहीं थी. यह तो गर्व की बात थी. मदन ने खुशीखुशी दौड़भाग कर सैनिक स्कूल का प्रवेशफार्म भर दिया. परीक्षा में कमल का चयन हो गया. मदन उस को छात्रावास छोड़ कर वापस लौटा और 1-2 दिन बेचैन रह कर फिर से खुद को यहांवहां उलझा कर भैसों के काम में मन लगाने लगा.

कमल और चमेली दोनों ही बारीबारी से मदन के सपनों में आते थे. वैसे, कमल की तो नियम से चिट्ठी और फोन भी आते थे. 2 महीने तक तो लंबे अवकाश में कमल उस के पास आ कर रहा.

कमल मदन को सैनिक स्कूल के कितने किस्से सुनाता रहता था. मदन को लगता कि चलो, जीवन सफल हो गया.

समय पंख लगा कर उड़ता रहा. कमल जब 14 वर्ष का हुआ, तो उसे वहां पर मेधावी छात्र की छात्रवृत्ति मिलने लगी. अब वह पढ़नेलिखने के लिए मदन पर कतई निर्भर नहीं था.

मदन इस साल इंतजार करता रहा, पर न तो कमल खुद ही आया और न ही उस का फोन आया. अब तो उस के चिट्ठीफोन आने सब बंद हो गए थे. मदन को अब कुछ अवसाद सा रहने लगा.

पर, वह चमेली के धोखे को
याद कर के कमल का यह व्यवहार झेल गया. अब उस को काम करने में आलस आने लगा था, खासतौर पर भोजन पकाने में, इसलिए कुछ सोच कर उस ने घरेलू काम में मदद के लिए एक कामवाली रख ली. वह मदन से कुछ अधिक उम्र की थी, और खाना बनाना, कपड़े धोना वगैरह सब काम करने लगी.

एक दिन खाट पर लेटा मदन सोच रहा था कि आज कमल होता तो 20 बरस का होता. और चमेली… चमेली कहां होगी, यही सोचते हुए वह अचानक खाट से उठ बैठा, तो सामने कामवाली को खड़ा पाया.

वह कामवाली एक गिलास चाय बना कर ले आई थी. मदन की आंख से आंसू बह रहे थे. उस ने नजदीक जा कर वह आंसू अपने आंचल से पोंछ दिए और मदन अचानक ही एकदम भावुक सा हो उठा. उस ने संकेत से कुछ याचना की, फिर दोनों गले लग कर काफी देर तक यों ही बैठे रहे.

मदन बहुत ही कोमल दिल वाला और बड़ा ही भावुक है, यह बात इन 3 महीनों में वह अनुभवी स्त्री भांप गई थी.

अब कुछ सिलसिला यों बनने लगा कि वह कामवाली चमेली के उस कमरे में ले जा कर मदन को कभीकभी सहला दिया करती, तो कभी प्यार से पुचकार देती और कभीकभी मदन के आग्रह पर सारा काम यों ही रहने देती. बस मदन को छाती से चिपटा कर उस का दुखदर्द पी जाती थी. उस दिन भोजन मदन पकाता और एक ही थाली में दोनों थोड़ाथोड़ा खा लेते, पर पूरे तृप्त हो जाते थे.

इसी तरह एक साल और गुजर गया. मदन अब फिर से आनंद में रहने लगा था. गाव वालों की खुसुरफुसुर और ताकझांक चल रही थी. पर, इस से वह न तो कभी घबराया था और न ही आगे डरने वाला था. उस की कामवाली तो अपने खूनपसीने की रोटी खा रही थी. वह किसी अफवाह पर कान तक न देती थी. हर समय मौज में रहती और मदन की मौज में तिल भर कमी न आने देती थी.

एक दिन सुबहसवेरे वह मदन को सहला कर चाय उबाल रही थी कि एक आहट हुई. मदन उठ कर बाहर गया, तो 2 लोग बाहर खड़े थे, एक कमल और गोदी में तकरीबन 2 साल का प्यारा सा बालक.

मदन ने मन ही मन सोचा कि वाह बेटा, नौकरीब्याह सब कर लिया और खबर तक नहीं दी. पर, वह सिर झटक कर अपने विचार बदलने लगा. उस का दयावान मन जाग गया.

मदन को कमल से नाराजगी तो थी, पर नफरत नहीं थी. वह बहुत ही प्यार से उसे भीतर लाया. कमल ने सब रामकहानी सुना दी. वह अफसर हो गया था, पर पत्नी बेवफा निकली. वह किसी रसोइए के साथ भाग गई थी. अब यह नन्हा बालक किस के भरोसे रहेगा, कह कर कमल सुबक उठा.

कुछ देर बाद कमल के हाथों में चाय का गिलास आ गया था और बालक को एक सुंदर पर अधेड़ महिला गोदी में खिला रही थी.

मदन से सौ झूठीसच्ची बातें कर के कमल उसी दिन वापस लौट गया. मदन का जीवन एक बार फिर रौनक से भर उठा था. कितने बरस बीतते गए और बूढ़ा मदन उस बालक को बचपन से किशोरावस्था में जाता देख रहा था. यह बालक तो कमल से कई गुना मेधावी था, पर वह गांव की मिट्टी से बहुत लगाव रखता था. गांव छोड़ना ही नहीं चाहता था. लगभग छप्पन बरस की बूढ़ी हो चली कामवाली अम्मां अब मदन के पास स्थायी रूप से रहने लगी थी.

अब मदन और वो उस बालक का जीवन आधार थे. उन का गांव तो अब बहुत बेहतरीन हो गया था. बहुत सारी सुविधाएं यहां पर थीं. एक दिन मदन अपनी कामवाली के साथ किसी सामाजिक समारोह में गया तो वहां एक फौजी मिला. बातों से बातें निकलीं तो खुलासा हुआ कि वह कमल को जानता था. उस ने कमल की हर काली करतूत बताई और खुलासा किया कि कमल न जाने कितनी औरतें बदल चुका है. वह अफसरों की कमजोर नस का फायदा उठाता है और खुद भी गुलछर्रे उड़ाता है. वह अनैतिक हो चुका है. इतना बुद्धिमान है, पर बहुत ही गलत रास्ते पर है.

मदन चुपचाप सुनता रहा. उस को सुकून मिला कि अच्छा हुआ, जो कमल का बेटा यहां पर नहीं है. सुनता तो कितना परेशान होता.

मदन को इस बात का अंदेशा था क्योंकि कमल ने कभी एक नया पैसा इस बालक के लिए नहीं भेजा, कभी एक फोन तक नहीं किया था.

मदन ने उस फौजी युवक को अपना फोन नंबर दिया और उस का नंबर भी ले लिया.

कुछ सप्ताह और बीत गए. एक दिन सुबहसुबह ही मदन के पास फोन आया कि कमल की किसी रहस्यमयी और अज्ञात बीमारी से अचानक मौत हो गई है.

मदन ने संदेश सुन कर फोन काट दिया. उस ने उस रोज अपना सारा काम उसी तरह से किया जैसे वह पहले किया करता था. बालक भी पाठशाला से लौट कर खापी कर खेलने चला गया. उस दिन मदन की शाम एक सामान्य शाम की तरह गुजरी. मदन ने एक पल को भी कमल का शोक नहीं मनाया. अब कमल और चमेली उस के लिए अजनबी थे.

विश्वास: राजीव ने अंजू से क्यों की पैसों की डिमांड?

दोपहर के 2 बजे थे. शिवानी ने आज का हिंदी अखबार उठाया और सोफे पर बैठ कर खबरों पर सरसरी नजर दौड़ाने लगी. हत्या, लूटमार, चोरी, ठगी और हादसों की खबरें थीं. जनपद में ही बलात्कार की 2 खबरें थीं. एक 10 साला बच्ची से पड़ोस के एक लड़के ने बलात्कार किया और दूसरी 15 साला लड़की से स्कूल के ही एक टीचर ने किया बलात्कार. पता नहीं  क्या हो रहा है? इतने अपराध क्यों बढ़ रहे हैं? कहीं भी सिक्योरिटी नहीं रही. अपराधियों को पुलिस, कानून व जेल का जरा भी डर नहीं रहा. बलात्कार की खबरें पढ़ कर शिवानी मन ही मन गुस्सा हो गई. यह कैसा समय आ गया है कि किसी भी उम्र की औरत या बच्ची महफूज नहीं है. बच्चियों से भी बलात्कार. इन बलात्कारियों को ऐसी सजा मिलनी चाहिए, जो ये भविष्य में ऐसे घिनौने अपराध करने के काबिल ही न रहें.

शिवानी की नजर दीवार पर लगी घड़ी पर पड़ी. दोपहर के ढाई बज रहे थे. अभी तक मोनिका स्कूल से नहीं लौटी थी? स्कूल से डेढ़ बजे छुट्टी होती है. आधा घंटा घर लौटने में लगता है. अब तक तो मोनिका को घर आ जाना चाहिए था. शिवानी के पति कमलकांत एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर थे. उन की 8 साला एकलौती प्यारी सी बेटी मोनिका शहर के एक मशहूर मीडियम स्कूल में तीसरी क्लास में पढ़ रही थी. पढ़ने में होशियार मोनिका बातें भी बहुत प्यारीप्यारी करती थी. शादी के बाद कमलकांत ने शिवानी से कहा था, ‘देखो शिवानी, हमें अपने घर में केवल एक ही बच्चा चाहिए. हम उसी को अच्छी तरह पाल लें, अच्छी तालीम दिला दें, चाहे वह लड़का हो या लड़की. यही गनीमत होगी. उस के बाद हमें दूसरे बच्चे की चाह नहीं करनी है.’

शिवानी भी पति के इस विचार से सहमत हो गई थी. वह खुद एमए, बीऐड थी, पर बेटी के लिए उस ने नौकरी करना ठीक न समझा और एक घरेलू औरत बन कर रह गई. शिवानी के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. कहां रह गई मोनिका? सुबह साढ़े 7 बजे वह आटोरिकशा में बैठ कर गई थी. 5 बच्चे और भी जाते हैं उस के साथ. मोनिका सब से पहले बैठती है और सब से बाद में उतरती है. आटोरिकशा चलाने वाला श्यामलाल पिछले साल से बच्चों को ले जा रहा था, पर कभी लेट ही नहीं हुआ. लेकिन 2 दिन से श्यामलाल बीमार पड़ा था. कल उस का भाई रामपाल आया था आटोरिकशा ले कर.

तब शिवानी ने पूछा था, ‘आज तुम्हारा भाई श्यामलाल कहां रह गया?’

‘उसे 3 दिन से बुखार है. उस ने ही मुझे भेजा है,’ रामपाल ने कहा था.

पहले भी 2-3 बार रामपाल ही बच्चों को ले कर गया और छोड़ कर गया था. वह भी शहर में आटोरिकशा चलाता था.

आज शिवानी को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह रामपाल का मोबाइल नंबर लेना भूल गई थी. मोबाइल नंबर लेना न तो कल ध्यान रहा और न ही आज. अगर उस के पास रामपाल का मोबाइल नंबर होता, तो पता चल जाता कि देर क्यों हो रही है. पता नहीं, वह पढ़ीलिखी समझदार होते हुए भी ऐसी बेवकूफी क्यों कर गई?

शिवानी के मन में एक डर समा गया और वह सिहर उठी. उस का रोमरोम कांप उठा. दिल की धड़कनें मानो कम होती जा रही थीं. उस ने धड़कते दिल से श्यामलाल का मोबाइल नंबर मिलाया.

‘हैलो… नमस्कार मैडम,’ उधर से श्यामलाल की आवाज सुनाई दी.

‘‘नमस्कार. तुम्हारा भाई रामपाल अभी तक मोनिका को ले कर घर नहीं आया. पौने 3 बज रहे हैं. पता नहीं कहां रह गया वह? मेरे पास तो रामपाल का मोबाइल नंबर भी नहीं है?’’

‘इतनी देर तो नहीं होनी चाहिए थी. स्कूल से घर तक आधे घंटे से भी कम का रास्ता है. मैं ने उस का फोन मिलाया, तो फोन नहीं लग रहा है. पता नहीं, क्या बात है?

‘सुबह मैं ने उस से कहा था कि बच्चों को छोड़ कर सीधे घर आ जाना. डाक्टर के पास जाना है. दवा लानी है. 3 दिन से बुखार नहीं उतर रहा है,’ श्यामलाल बोला.

‘‘मुझे बहुत चिंता हो रही है. बेचारी मोनिका पता नहीं किस हाल में होगी?’’ शिवानी रोंआसा हो कर बोली. थोड़ी देर बाद शिवानी ने मोनिका की क्लास में पढ़ने वाली एक बच्ची की मम्मी को मोबाइल मिला कर कहा, ‘‘हैलो… मैं शिवानी बोल रही हूं…’’

‘कहिए शिवानीजी, कैसी हैं आप?’ उधर से एक औरत की मिठास भरी आवाज सुनाई दी.

‘‘क्या आप की बेटी मुनमुन स्कूल से आ गई है?’’

‘हां, वह तो 2 बजे से पहले ही आ गई थी. क्यों, क्या बात हुई?’

‘‘हमारी मोनिका अभी तक घर नहीं आई है.’’

‘यह क्या कह रही हैं आप? एक घंटा होने को है. आखिर कहां रह गई वह? आजकल का समय भी बहुत खराब चल रहा है. रोजाना अखबार में बच्चियों के बारे में उलटीसीधी खबरें छपती रहती हैं. हम अपने बच्चों को इन लोगों के साथ भेज तो देते हैं, पर इन का कोई भरोसा नहीं. किसी के मन का क्या पता…

‘आप पुलिस में रिपोर्ट तो लिखवा ही दीजिए. देर करना ठीक नहीं है.’

यह सुनते ही शिवानी का दिल बैठता चला गया. उस के मन में एक हूक सी उठी और वह रोने लगी. उस ने स्कूल में फोन मिलाया. उधर से आवाज सुनाई दी, ‘जय भारत स्कूल…’

‘‘मैं शिवानी बोल रही हूं. हमारी बेटी मोनिका तीसरी क्लास में पढ़ती है. वह अभी तक घर नहीं पहुंची. स्कूल में कोई बच्ची तो नहीं रह गई? छुट्टी कब हुई थी?’’

‘यहां तो कोई बच्ची नहीं है. छुट्टी ठीक समय पर डेढ़ बजे हुई थी. आप की बेटी किस तरह घर पहुंचती है?’

‘‘एक आटोरिकशा से. आटोरिकशा चलाने वाला श्यामलाल बीमार था, तो उस का भाई रामपाल आटोरिकशा ले कर आया था.’’

‘बाकी बच्चे घर पहुंचे या नहीं?’

‘‘जी हां, सभी पहुंच गए. बस, मेरी बेटी नहीं पहुंची.’’

‘आप पुलिस में सूचना दीजिए. इतनी देर से बच्ची घर नहीं पहुंची. कुछ तो गड़बड़ जरूर है. आजकल किस पर विश्वास करें? कुछ पता नहीं चलता कि इनसान है या शैतान?’

यह सुन कर शिवानी की आंखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. लग रहा था, मानो जिस्म की ताकत निकलती जा रही हो.

शिवानी ने कमलकांत को मोबाइल फोन मिलाया.

‘हैलो…’ उधर से कमलकांत की आवाज सुनाई दी.

‘‘मोनिका अभी तक स्कूल से नहीं आई,’’ शिवानी ने रोते हुए कहा.

‘क्या कह रही हो… 3 बज चुके हैं. आखिर कहां रह गई वह? आटोरिकशा वाले का नंबर मिलाया?’ कमलकांत की डरी सी आवाज सुनाई दी.

‘‘आज भी उस का भाई रामपाल आया था. उस का नंबर मेरे पास नहीं है. श्यामलाल ने कहा है कि रामपाल का फोन नहीं मिल रहा है. सभी बच्चे अपने घरों में पहुंच चुके हैं, पर हमारी मोनिका अभी तक नहीं आई,’’ कहतेकहते शिवानी सिसकने लगी.

‘शिवानी, मैं घर आ रहा हूं. अभी पुलिस स्टेशन पहुंच कर रिपोर्ट लिखवाता हूं,’ कमलकांत की चिंता में डूबी गुस्साई आवाज सुनाई दी.

15 मिनट बाद ही कमलकांत घर पहुंच गए. शिवानी सोफे पर कटे पेड़ की तरह गिरी हुई सिसक रही थी.

‘‘शिवानी, अपनेआप को संभालो. हम पर अचानक जो मुसीबत आई है, उस का मुकाबला करना है. मैं अब पुलिस स्टेशन जा रहा हूं,’’ कहते हुए कमलकांत कमरे से बाहर निकले.

तभी घर के बाहर एक आटोरिकशा आ कर रुका. उसे देखते ही कमलकांत चीख उठे, ‘‘अबे, अब तक कहां मर गया था?’’

शिवानी भी झटपट कमरे से बाहर निकली. कमलकांत ने देखा कि रामपाल के माथे पर पट्टी बंधी हुई थी. चेहरे पर भी मारपिटाई के निशान थे.

मोनिका आटोरिकशा से उतर रही थी. रामपाल ने मोनिका का बैग उठाया. शिवानी ने मोनिका को गोद में उठा कर इस तरह गले लगा लिया, मानो सालों बाद मिली हो.

कमलकांत ने मोनिका से पूछा, ‘‘बेटी, तुम ठीक हो?’’

‘‘हां पापा, मैं ठीक हूं. अंकल को सड़क पर पुलिस ने मारा,’’ मोनिका बोली.

कमलकांत व शिवानी चौंके. वे दोनों हैरानी से रामपाल की ओर देख रहे थे.

‘‘रामपाल, क्या बात हुई? यह चोट कैसे लगी? आज इतनी देर कैसे हो गई? हम तो परेशान थे कि पता नहीं आज क्या हो गया, जो अब तक मोनिका घर नहीं आई,’’ कमलकांत ने पूछा.

‘‘चिंता करने की तो पक्की बात है, साहबजी. रोजाना तो बेटी 2 बजे तक घर आ जाती थी और आज साढ़े 3 बज गए. इतनी देर तक जब बेटी या बेटा घर न पहुंचे, तो घबराहट तो हो ही जाती है,’’ रामपाल ने कहा.

‘‘तुम्हें चोट कैसे लगी?’’ शिवानी ने हैरानी से पूछा.

आटोरिकशा के एक पहिए में पंक्चर हो गया. पंक्चर लगवाने में आधा घंटा लग गया. आगे चौक पर जाम लगा था. कुछ लोग प्रदर्शन कर किसी मंत्री का पुतला फूंक रहे थे. कुछ देर वहां हो गई. मैं इधर ही आ रहा था. मैं जानता था कि आप को चिंता हो रही होगी…’’ कहतेकहते रामपाल रुका.

‘‘फिर क्या हुआ? मोनिका कह रही है कि तुम्हें पुलिस ने मारा?’’ कमलकांत ने पूछा.

‘‘मोनिका बेटी ठीक कह रही है. मोटरसाइकिल पर स्टंट करते हंसतेचीखते हुए 3 लड़के आ रहे थे. मुझे लगा कि वे आटोरिकशा से टकरा जाएंगे, तो मैं ने तेजी से हैंडल घुमाया. एक दुकान के बाहर एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. वह मोटरसाइकिल से हलका सा टकरा गया और मोटरसाइकिल पर बैठा तकरीबन 5 साल का बच्चा गिर गया. गिरते ही बच्चा रोने लगा.

‘‘दुकान से पुलिस का एक सिपाही कुछ सामान खरीद रहा था. वह वरदी में था, बच्चा व मोटरसाइकिल उसी की थी.

‘‘मैं ने आटोरिकशा से उतर कर सिपाही से हाथ होड़ कर माफी मांगी. उस ने मुझे गाली देते हुए 4-5 थप्पड़ मार दिए. इतना ही नहीं, मेरी गरदन पकड़ कर जोर से धक्का दिया, तो मेरा सिर आटोरिकशा से टकरा गया और खून निकलने लगा.

‘‘पास में ही एक डाक्टर की दुकान थी. मैं ने वहां पट्टी कराई और सीधा यहां आ रहा हूं,’’ रामपाल के मुंह से यह सुन कर कमलकांत और शिवानी के गुस्से का ज्वारभाटा शांत होता चला गया.

अचानक शिवानी के मन में दया उमड़ी. उस ने हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ. तुम्हें चोट भी लग गई.’’

‘‘मैडमजी, मुझे अपनी चोट का जरा भी दुख नहीं है. मगर मोनिका बेटी को जरा भी चोट लग जाती या कुछ हो जाता, तो मुझे बहुत दुख होता. आप अपने बच्चे को हमारे साथ किसी विश्वास से भेजते हैं. हमारा भी तो यह फर्ज बनता है कि हम उस विश्वास को बनाए रखें, टूटने न दें,’’ रामपाल ने कहा.

‘‘रुको रामपाल, मैं तुम्हारे लिए चाय लाती हूं.’’

‘‘शुक्रिया मैडमजी, चाय फिर कभी. घर पर भैया इंतजार कर रहे होंगे. बहुत देर हो चुकी है. मुझे उन को भी ले कर डाक्टर के पास जाना है. आप भैया को मोबाइल पर सूचना दे दो कि मोनिका घर आ गई है. उन को भी चिंता हो रही होगी,’’ रामपाल ने कहा और आटोरिकशा ले कर चल दिया.

बदला: मनीष के प्यार को क्या समझ पाई अंजलि

मनीष सुबह टहलने के लिए निकला था. उस के गांव के पिछवाड़े से रास्ता दूसरे गांव की ओर जाता था. उस रास्ते से अगले गांव की काफी दूरी थी. वह रास्ता गांव के विपरीत दिशा में था, इसलिए उधर सुनसान रहता था. मनीष को भीड़भाड़ से दूर वहां टहलना अच्छा लगता था. वह इस रास्ते पर दौड़ लगाता और कसरत करता था.

मनीष जैसे ही अपने घर से निकल कर गांव के आखिरी मोड़ पर पहुंचा, तो उस ने देखा कि सामने एक लड़की एक लड़के से गले लगी हुई. मनीष रुक गया था. दोनों को देख कर उस के जिस्म में सनसनाहट पैदा होने लगी थी. वह जैसे ही नजदीक पहुंचने वाला था, वह लड़की जल्दी से निकल कर पीछे की गली में गुम हो गई.

‘‘अरे, यह तो अंजलि थी,’’ वह मन ही मन बुदबुदाया. वही अंजलि, जिसे देख कर उस के मन में कभी तमन्ना मचलने लगती थी. उस के उभारों को देख कर मनीष का मन मचलने लगता था. आज उसे इस तरह देख कर वह अपनेआप को ठगा सा महसूस करने लगा था.

आज मनीष पूरे रास्ते इसी घटना के बारे में सोचता रहा. आज उस का टहलने में मन नहीं लग रहा था. वह कुछ दूर चल कर लौटने लगा था. वह जैसे ही घर पहुंचा कि गांव में शोर हुआ कि किसी की हत्या हुई है. लोग उधर ही जा रहे थे.

मनीष भी उसी रास्ते चल दिया था. वह हैरान हुआ, क्योंकि भीड़ तो वहीं जमा थी, जहां से अंजलि निकल कर भागी थी. एक पल को तो उसे लगा कि भीड़ को सब बता दे, पर वह चुप रहा.

सामने अंजलि अपने दरवाजे पर खड़ी मिल गई. शायद वह भी बाहर हो रही घटनाओं के संबंध में नजरें जमाई थी.

मनीष ने उसे धमकाते हुए कहा, ‘‘मैं ने सबकुछ देख लिया है. मैं चाहूं तो तुम सलाखों के पीछे चली जाओगी.’’

अंजलि ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘अपना मुंह बंद रखना. मैं तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘ठीक है. आज शाम 7 बजे झाड़ी के पीछे वाली जगह पर मिलना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

‘‘अच्छा, लेकिन अभी जाओ और घटना पर नजर रखना.’’

मनीष वहां से चल दिया. घटनास्थल पर भीड़ इकट्ठा हो गई थी. कुछ देर बाद पुलिस भी आ गई थी. पुलिस ने हत्या के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी ले कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था. मनीष अपने घर लौट आया था.

मनीष अंदर से बहुत खुश था कि आज उस की मनोकामना पूरी होगी. फिर हत्या कैसे और क्यों की गई है,  इस का राज भी वह जान पाएगा. उस के मन में बेचैनी बढ़ती जा रही थी. आज काम में बिलकुल भी मन नहीं लग रहा था, इसलिए समय बिताने के लिए वह अपने कमरे में चला गया था.

मनीष तय समय पर घर से निकल गया था. जाड़े का मौसम होने के चलते अंधेरा पहले ही हो गया था.

मनीष तय जगह पर पहुंच चुका था, तभी उस की ओर एक परछाईं आती हुई नजर आई. मनीष थोड़ा सा डर गया था. परछाईं जैसेजैसे उस की ओर बढ़ रही थी, उस के मन से डर भी खत्म हो रहा था, क्योंकि वह कोई और नहीं बल्कि अंजलि थी.

अंजलि के आते ही मनीष ने उस के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. कुछ पल के बाद उसे अपने आगोश में भरते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंजलि, तुम ने जितेंद्र की हत्या क्यों की?’’

‘‘उस की हत्या मैं ने नहीं की है, उस ने मेरे साथ सिर्फ शारीरिक संबंध बनाए थे, जो तुम देख चुके हो.’’

‘‘हां, लेकिन हत्या किस ने की?’’

‘‘शायद मेरे जाने के बाद किसी ने हत्या कर दी हो. यही तो मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है… और इसीलिए मैं डर रही थी और तुम्हारी बात मानने के लिए राजी हो गई,’’ अंजलि अपनी सफाई देते हुए बोली थी.

‘‘क्या उस की किसी से दुश्मनी रही होगी?’’ मनीष ने सवाल किया.

‘‘मुझे नहीं पता… अब तुम पता करो.’’

‘‘ठीक है, मैं पता करता हूं.’’

‘‘मुझे तो डर लग रहा है, कहीं मैं इस हत्या में फंस न जाऊं.’’

‘‘मेरी रानी, डरने की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हारे साथ हूं. मैं तुम्हारी मदद करूंगा. बस, तुम मेरी जरूरतें पूरी करती रहो,’’ मनीष के हाथ उस की पीठ से फिसल कर उस के कोमल अंगों को छूने लगे थे.

थोड़ी सी नानुकुर के बाद जब मनीष का जोश ठंडा हुआ, तो उस ने अंजलि को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया.

मनीष अगले सप्ताह रविवार को मिलने के लिए अंजलि से वादा किया था. अंजलि राजी हो गई थी. इधर अंजलि के मन का बोझ थोड़ा शांत हुआ कि वह मनीष को समझाने में कामयाब रही. मनीष को मुझ पर शक नहीं हुआ है. वह हत्यारे के बारे में पता करने में मदद करेगा.

अब अंजलि और मनीष के मिलने का सिलसिला जारी हो चुका था. मनीष एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता था. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. अंजलि महसूस कर रही थी कि मनीष दिल का बुरा नहीं है. उस की सिर्फ एक ही कमजोरी है. वह हुस्न का दीवाना है. कई बार अंजलि महसूस कर चुकी है कि आतेजाते मनीष उसे देखने की कोशिश करता था, लेकिन वह जानबूझकर शरीफ होने का नाटक करता था. इसीलिए औरों की तरह वह मेरा पीछा नहीं कर पाया था.

जितेंद्र की हत्या की जांच कई बार की गई, लेकिन यह पता नहीं चल पाया कि उस की हत्या किस ने की. पुलिस द्वारा जहरीली शराब पीने से मौत की पुष्टि कर तकरीबन उस की फाइल बंद कर दी गई थी. अब अंजलि भी समझ चुकी थी कि पुलिस की ओर से कोई डर नहीं है.

जितेंद्र की हत्या के बारे में गांव के लोगों की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इस के पीछे वजह यह थी कि वह लोगों की नजरों में अच्छा इनसान नहीं था. वह शराब तो पीता ही था, औरतों व लड़कियों को भी छेड़ता रहता था. बहुत से लोग उस के मरने पर खुश भी थे.

अंजलि तकरीबन एक साल से मनीष से मिल रही थी. कई बार मनीष उसे उपहार भी देता था. अब तो अंजलि का भी मनीष के बगैर मन नहीं लगता था.

एक दिन मनीष अंजलि को अपने गोद में ले कर उस के बालों से खेल रहा था. उस ने अपनी इच्छा जाहिर की, ‘‘क्यों न हम दोनों शादी कर लें? कब तक यों ही हम छिपछिप कर मिलते रहेंगे?’’

इस पर अंजलि बोली, ‘‘मुझे कोई एतराज नहीं है, पर मुझे अपनी मां से पूछना होगा.’’

‘‘तुम अपनी मां को जल्दी से राजी करो.’’

‘‘मां तो राजी हो जाएंगी, लेकिन यह बात मैं राज नहीं रखना चाहती हूं.’’

‘‘कौन सी बात?’’

‘‘यही कि जितेंद्र की हत्या किस ने की थी.’’

‘‘किस ने की थी?’’

‘‘मैं ने…’’

‘‘कैसे और क्यों?’’

‘‘3 साल पहले की बात है. मेरी एक बहन रिया भी थी. घर में मां और मेरी बहन समेत हम सभी काफी खुश थे. पिताजी के नहीं होने के चलते मेरी छोटी बहन रिया मौल में काम कर के अच्छा पैसा कमा लेती थी. उसी के पैसों से हमारा घर चल रहा था.

‘‘जब भी मेरी बहन घर से निकलती थी, जितेंद्र अपनी मोटरसाइकिल से उस का पीछा करता था. मना करने के बाद भी वह नहीं मानता था.

‘‘मेरी बहन रिया उस से प्यार करने लगी थी. जितेंद्र ने मेरी बहन से कई बार शारीरिक संबंध बनाए. बहन को विश्वास था कि जितेंद्र उस से शादी जरूर करेगा.

‘‘लेकिन, जितेंद्र धोखेबाज निकला. मेरी बहन रिया को जितेंद्र के बारे में पता चला कि वह कई लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका है. मेरी बहन पेट से हो गई थी. 5 महीने तक मेरी बहन शादी के लिए इंतजार करती रही. जितेंद्र केवल झांसा देता रहा.

‘‘आखिरकार जितेंद्र ने शादी करने से इनकार कर दिया था. उस का मेरी बहन से झगड़ा भी हुआ था.

‘‘मेरी बहन परेशान रहने लगी थी. उस ने मुझे सबकुछ बता दिया था. मैं बहन को ले कर अस्पताल गई थी. वहां मैं ने उस का बच्चा गिरवाया, पर वह कोमा में चली गई थी. उस का बच्चा तो मरा ही, मेरी बहन भी दुनिया छोड़ कर चली गई. उसी दिन मैं ने कसम खाई थी कि जितेंद्र का अंत मैं ही करूंगी.

‘‘इस बार मैं ने गोरा को फंसाया था. मैं भी उस से प्यार का खेल खेलती रही. उस ने कई बार मुझे हवस का शिकार बनाना चाहा, लेकिन मैं उस से अपनेआप को बचाती रही.

‘‘उस दिन जितेंद्र ने मुझे अपने गुसलखाने में बुलाया था. मैं सोच कर गई थी कि आज रात काम तमाम कर के आना है. मैं ने उस की शराब में जहर मिला दिया.

‘‘मैं उस की मौत को नजदीक से महसूस करना चाहती थी, इसलिए उस की हत्या करने के बाद मैं भी उस के साथ रातभर रही. वह तड़पतड़प कर मेरे सामने ही मरा था.

‘‘सुबह मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. जानबूझ कर उस के शरीर से मैं लिपटी हुई थी, ताकि कोई देखे तो गोरा को जिंदा समझे. पकड़े जाने पर पुलिस को गुमराह किया जा सके. हत्या के बारे में शक किसी और पर हो. यही हुआ भी. तुम ने मुझे बेकुसूर समझा.

‘‘मैं शादी करने से पहले सबकुछ तुम्हें बता देना चाहती हूं, ताकि भविष्य में पता चलने पर तुम मुझे गलत न समझ सको. मैं ने अपनी बहन रिया की मौत का बदला ले लिया, इसलिए मुझे इस बात का कोई अफसोस नहीं है.’’

मनीष यह सुन कर हक्काबक्का था. उस के मन में थोड़ा डर भी हुआ, लेकिन जल्द ही अपनेआप को संभालते हुए बोला, ‘‘तुम ने ठीक ही किया. तुम ने उस को उचित सजा दी है. तुम्हारे ऊपर किसी तरह का इलजाम लगता भी तो मैं अपने ऊपर ले लेता, क्योंकि मैं अब तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

अंजलि ने मनीष को अपनी बांहों में ले कर चूम लिया था. वह अपनेआप पर गर्व कर रही थी कि उस ने गलत इनसान को नहीं चुना है. फिर वह सुखद भविष्य के सपने देखने लगी थी. उन दोनों ने जल्दी ही शादी कर ली. अंजलि अब मनीष को अपना राजदार समझती थी.

 

वसूली : क्या हुआ था रधिया के साथ

Manoj Kumar Jha

रधिया का पति बिकाऊ एक बड़े शहर में दिहाड़ी मजदूर था. रधिया पहले गांव में ही रहती थी, पर कुछ महीने पहले बिकाऊ उसे शहर में ले आया था. वे दोनों एक झुग्गी बस्ती में किराए की कोठरी ले कर रहते थे.

रधिया को खाना बनाने से ले कर हर काम उसी कोठरी में ही करना पड़ता था. सुबहशाम निबटने के लिए उसे बोतल ले कर सड़क के किनारे जाना पड़ता था. उसे शुरू में खुले में नहाने में बड़ी शर्म आती थी. पता नहीं कौन देख ले, पर धीरेधीरे वह इस की आदी हो गई.

बिकाऊ 2 रोटी खा कर और 4-6 टिफिन में ले कर सुबह 7 बजे निकलता, तो फिर रात के 9 बजे से पहले नहीं आता था. उस की 12 घंटे की ड्यूटी थी.

जब बिकाऊ को महीने की तनख्वाह मिलती, तो रधिया बिना बताए ही समझ जाती थी, क्योंकि उस दिन वह दारू पी कर आता था. रधिया के लिए वह दोने में जलेबी लाता और रात को उस का कचूमर निकाल देता.

बिकाऊ रधिया से बहुत प्यार करता था, पर उस की तनख्वाह ही इतनी कम थी कि वह रधिया के लिए कभी साड़ी या कोई दूसरी चीज नहीं ला पाता था.

एक दिन दोपहर में रधिया अपनी कोठरी में लेटी थी कि दरवाजे पर कुछ आहट हुई. वह बाहर निकली, तो सामने एक जवान औरत को देखा.

उस औरत ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मेरा नाम मालती है. मैं बगल की झुग्गी में ही रहती हूं. तुम जब से आई हो, कभी तुम्हें बाहर निकलते नहीं देखा. मर्द तो काम पर चले जाते हैं. बाहर निकलोगी, तभी तो जानपहचान बढ़ेगी. अकेले पड़ेपड़े तो तुम परेशान हो जाओगी. चलो, मेरे कमरे पर, वहां चल कर बातें करते हैं.’’

रधिया ने कहा, ‘‘मैं यहां नई आई हूं. किसी को जानती तक नहीं.’’

‘‘अरे, कोठरी से निकलोगी, तब तो किसी को जानोगी.’’

रधिया ने अपनी कोठरी में ताला लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

जब वह मालती की झुग्गी में घुसी, तो दंग रह गई. उस की झुग्गी में

2 कोठरी थी. रंगीन टैलीविजन, फ्रिज, जिस में से पानी निकाल कर उस ने रधिया को पिलाया.

रधिया ने कभी फ्रिज नहीं देखा था, न ही उस के बारे में सुना था.

रधिया ने पूछा, ‘‘बहन, यह कैसी अलमारी है?’’

इस पर मालती मन ही मन मुसकरा दी. उस ने कहा, ‘‘यह अलमारी नहीं, फ्रिज है. इस में रखने पर खानेपीने की कोई चीज हफ्तों तक खराब नहीं होती. पानी ठंडा रहता है. बर्फ जमा सकते हैं. पिछले महीने ही तो पूरे 10 हजार रुपए में लिया है.’’

रधिया ने हैरानी से पूछा, ‘‘बहन, तुम्हारे आदमी क्या काम करते हैं?’’

मालती ने कहा, ‘‘वही जो तुम्हारे आदमी करते हैं. बगल वाली कैमिकल फैक्टरी में मजदूर हैं. पर उन की कमाई से यह सब नहीं है. मैं भी तो काम करती हूं. यहां रहने वाली ज्यादातर औरतें काम करती हैं, नहीं तो घर नहीं चले.

‘‘बहन, मैं तो कहती हूं कि तुम भी कहीं काम पकड़ लो. काम करोगी, तो मन भी बहला रहेगा और हाथ में दो पैसे भी आएंगे.’’

‘‘पर मुझे क्या काम मिलेगा? मैं तो अनपढ़ हूं.’’

‘‘तो मैं कौन सी पढ़ीलिखी हूं. किसी तरह दस्तखत कर लेती हूं. यहां अनपढ़ों के लिए भी काम की कमी नहीं है. तुम चौकाबरतन तो कर सकती हो? कपड़े तो साफ कर सकती हो? चायनाश्ता तो बना सकती हो? ऐसे काम कोठियों में खूब मिलते हैं और पैसे भी अच्छे मिलते हैं. नाश्ताचाय तो हर रोज मिलता ही है, त्योहारों पर नए कपड़े और दीवाली पर गिफ्ट.’’

‘‘आज मैं अपनी कमाई में से ही 2 बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं. इन की कमाई तो झुग्गी के किराए, राशन और दारू में ही खर्च हो जाती है.’’

‘‘क्या मुझे काम मिलेगा?’’ रधिया ने जल्दी से पूछा.

‘‘करना चाहोगी, तो कल से ही काम मिलेगा. जहां मैं काम करती हूं, उस के बगल में रहने वाली कोठी की मालकिन कामवाली के बारे में पूछ रही थीं. वे एक बड़े स्कूल में पढ़ाती हैं. उन के मर्द वकील हैं. 2 बच्चे हैं, जो मां के साथ ही स्कूल जाते हैं.

‘‘मैं आज शाम को ही पूछ लूंगी और पैसे की बात भी कर लूंगी. मालिकमालकिन अगर तुम्हारे काम से खुश हुए, तो तनख्वाह के अलावा ऊपरी कमाई भी हो जाती है.’’

इस बीच मालती ने प्लेट में बिसकुट और नमकीन सजा कर उस के सामने रख दिए. गैस पर चाय चढ़ा रखी थी.

चाय पीने के बाद मालती ने रधिया से कहा कि वह चाहे, तो अभी उस के साथ चली चले. मैडम 2 बजे घर आ जाती हैं. आज ही बात पक्की कर ले और कल से काम पर लग जा.

मालती ने यह भी बताया कि हर काम के अलग से पैसे मिलते हैं. अगर सफाई करानी हो, तो उस के 3 सौ रुपए. कपड़े भी धुलवाने हों, तो उस के अलग से 3 सौ रुपए. अगर सारे काम कराने हों, तो कम से कम 2 हजार रुपए.

मालती कपड़े बदलने लगी. उस ने रधिया से कहा, ‘‘चल, तू भी कपड़े बदल ले. पैसे की बात मैं करूंगी. चायनाश्ता तो बनाना जानती होगी?’’

‘‘हां दीदी, मैं सब जानती हूं. मीटमछली भी बना लेती हूं,’’ रधिया ने कहा. उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. अगर वह महीने में 2 हजार रुपए कमाएगी, तो उस की सारी परेशानी दूर हो जाएंगी.

रधिया तेजी से अपनी झुग्गी में आई. नई साड़ी पहनी और नया ब्लाउज भी. पैरों में वही प्लास्टिक की लाल चप्पल थी. उस ने आंखों में काजल लगाया और मालती के साथ चल पड़ी.

रधिया थी तो सांवली, पर जोबन उस का गदराया हुआ था और नैननक्श बड़े तीखे थे. गांव में न जाने कितने मर्द उस पर मरते थे, पर उस ने किसी को हाथ नहीं लगाने दिया. इस मामले में वह बड़ी पक्की थी.

रास्ते में मालती ने कहा, ‘‘बहन, अगर तुम्हारा काम बन गया, तो मैं महीने की पहली पगार का आधा हिस्सा लूंगी. यहां यही रिवाज है.’’

मालती एक कोठी के आगे रुकी. उस ने घंटी बजाई, तो मालकिन ने दरवाजा खोला.

मालती ने उन्हें नमस्ते किया. रधिया ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया. मालती 2 साल पहले उन के घर भी काम कर चुकी थी.

गेट खोल कर अंदर जाते ही मालती ने कहा, ‘‘मैडमजी, मैं आप के लिए बाई ले कर आई हूं.’’

‘‘अच्छा, बाई तो बड़ी खूबसूरत है. पहले कहीं काम किया है?’’ मैडम ने रधिया से पूछा.

मालती ने जवाब दिया, ‘‘अभी गांव से आई है, पर हर काम जानती है. मीटमछली तो ऐसी बनाती है कि खाओ तो उंगलियां चाटती रह जाओ. मेरे इलाके की ही है, इसीलिए मैं आप के पास ले कर आई हूं. अब आप बताओ कि कितने काम कराने हैं?’’

मैडम ने कहा, ‘‘देख मालती, काम तो सारे ही कराने हैं. सुबह का नाश्ता और दिन में लंच तैयार करना होगा. रात का डिनर मैं खुद तैयार कर लूंगी. कपड़े धोने ही पड़ेंगे, साफसफाई, बरतनपोंछा… यही सारे काम हैं. सुबह जल्दी आना होगा. मैं साढ़े 7 बजे तक घर से निकल जाती हूं.’’

इस के बाद मैडम ने मोलभाव किया और पूछा, ‘‘कल से काम करोगी?’’

‘‘मैं कल से ही आ जाऊंगी. जब काम करना ही है, तो कल क्या और परसों क्या?’’ रधिया ने कहा.

रात में जब बिकाऊ घर लौटा, तो रधिया ने उसे सारी रामकहानी सुनाई.

बिकाऊ ने कहा, ‘‘यह तो ठीक है कि तू काम पर जाएगी, पर कोठियों में रहने वाले लोग बड़े घटिया होते हैं. कामवालियों पर बुरी नजर रखते हैं. यह मालती बड़ी खेलीखाई औरत है. जिन कोठियों में काम करती है, वहां मर्दों को फांस कर वह खूब पैसे ऐंठती है. ऐसे ही नहीं, इस के पास फ्रिज और महंगीमहंगी चीजें हैं.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘मुझ पर कोई हाथ ऐसे ही नहीं लगा सकता. गांव में भी मेरे पीछे कुछ छिछोरे लगे थे, पर मैं ने किसी को घास नहीं डाली.

‘‘एक दिन दोपहर में मैं कुएं से पानी भरने गई थी. जेठ की दोपहरी, रास्ता एकदम सुनसान था. तभी न जाने कहां से बाबू साहब का बड़ा लड़का आ टपका और अचानक उस ने मेरा हाथ पकड़ लिया. मैं ने उसे ऐसा धक्का दिया कि कुएं में गिरतेगिरते बचा और फिर भाग ही खड़ा हुआ.

‘‘मैं दबने वाली नहीं हूं. पर मैं ने बात कर ली है. दुनिया में बुरेभले हर तरह के लोग हैं.’’

बिकाऊ ने कहा, ‘‘तू जैसा ठीक समझ. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है.’’

दूसरे दिन रधिया सुबह जल्दी उठी और मालती को साथ ले कर 6 बजे तक कोठी पर पहुंच गई. मालकिन ने उसे सारा काम समझाया.

रधिया ने जल्दी से पोंछा लगा दिया, गैस जला कर चाय भी बना दी.

‘‘तू भी समय से नाश्ता कर लेना. चाहो तो बाथरूम में नहा भी सकती हो. साहब निकल जाएं, तो कुछ कपड़े हैं, उन्हें धो लेना.’’

थोड़ी देर में रधिया साहब के लिए चाय बनाने चली गई. ‘ठक’ की आवाज कर वह कमरे में आ गई और बैड के पास रखी छोटी मेज पर टे्र को रख दिया.

साहब ने रधिया को गौर से देखा और कहा, ‘‘देखना, बाहर अखबार डाल गया होगा. जरा लेती आना.’’

रधिया बाहर से अखबार ले कर आ गई और साहब की तरफ बढ़ा दिया. इसी बीच साहब ने 5 सौ का एक नोट उस की तरफ बढ़ाया.

रधिया ने कहा, ‘‘यह क्या?’’

‘‘यह रख ले. मालती ने तुझ से 5 सौ रुपए ले लिए होंगे. पहले वह यहां काम कर चुकी है.

‘‘तुम ये 5 सौ रुपए ले लो, पर मैडम से मत कहना. तनख्वाह मिलने पर मैं अलग से 5 सौ तुझे फिर दे दूंगा. यह मुआवजा समझना.’’

लेकिन रधिया ने अपना हाथ नहीं बढ़ाया. इस पर साहब ने उसे 5 सौ के

2 नोट लेने को कहा.

रधिया ने साहब के बारबार कहने पर पैसे ले लिए और कपड़े धोने में लग गई. कपड़े धो कर जब तक उन्हें छत पर सुखाने डाला, तब तक साहब नहाधो कर तैयार थे. उस ने उन के नाश्ते के लिए आमलेट और ब्रैड तैयार किया, फिर चाय बनाई.

नाश्ता करने के बाद साहब बोले, ‘‘तू ने तो अच्छा नाश्ता तैयार किया. पर नाश्ते से ज्यादा तू अच्छी लगी.’’

चाय देते समय उस ने जानबूझ कर ब्लाउज का बटन ढीला कर दिया और ओढ़नी किनारे रख दी.

‘‘अब मैं चलता हूं. किसी चीज की जरूरत हो, तो मुझ से कहना. संकोच करने की जरूरत नहीं है.’’

साहब ने उसे टैलीविजन खोलना और बंद कर के दिखाया और अपना बैग रधिया को पकड़ा दिया.

बैग ले कर रधिया उन के पीछेपीछे कार तक गई. साहब ने उस के हाथों से बैग लिया. न जाने कैसे साहब की उंगलियां उस के हाथों से छू गईं.

रधिया भी 2 सैकंड के लिए रोमांचित हो उठी.

साहब के जाने के बाद रधिया ने गेट बंद किया. फिर वह कोठी के अंदर आई और दरवाजा बंद कर लिया.

वह नहाने के लिए बाथरूम में गई. ऐसा बाथरूम उस ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था. तरहतरह के साबुन, तेल की शीशियां और शैंपू की शीशी, आदमकद आईना.

रधिया को लगा कि वह किसी दूसरी दुनिया में आ गई है. कपड़े उतार कर पहली बार जब से वह गांव से आई थी, उस ने जम कर साबुन लगा कर नहाया और फिर बाथरूम में टंगे तौलिए से देह पोंछ कर मैडम का दिया पुराना सूट पहन कर अपनेआप को आदमकद आईने में निहारा. उसे लगा कि वह रधिया नहीं, कोई और ही औरत है.

अपने कपड़े धो कर रधिया उन्हें भी छत पर डाल आई. फिर बचे हुए परांठे खा लिए. थोड़ी चाय बच गई थी. उसे गरम कर पी लिया, नहीं तो बरबाद ही होती.

धीरेधीरे रधिया ने उस घर के सारे तौरतरीके सीख लिए. वह सारा काम जल्दीजल्दी निबटा देती और किसी को शिकायत का मौका नहीं देती. मैडम उस के काम से काफी खुश थीं. एक महीना कब बीत गया, उसे पता ही नहीं चला. महीना पूरा होते ही मैडम ने उसे बकाया पगार दे दी.

उस दिन वह काफी खुश थी. शाम तक जब वह अपनी झुग्गी में लौटी, तो उस ने सब से पहले एक हजार रुपए जा कर मालती को दे दिए.

मालती ने उसे चाय पिलाई और हालचाल पूछा. उस ने इशारों में ही पूछा कि साहब से कोई दिक्कत तो नहीं.

रधिया ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है.’’

मालती ने कहा, ‘‘अगर तू चाहे, तो शाम को किसी और घर में लग जा. और कुछ नहीं, तो हजार रुपए वहां से भी मिल जाएंगे.’’

इस पर रधिया ने कहा, ‘‘सोचूंगी… अपने घर का भी तो काम है.’’

साहब तो अपनी चाय उसी से लेते. जब मैडम आसपास न हों, तो उसे ही देखते रहते और रधिया मजे लेती रहती.

रधिया समझ गई थी कि मालिक की निगाह उस की जवानी पर है. वे उसे पैसे देते, तो वह पहले लेने से मना करती, पर वे जबरन उसे दे ही डालते और कहते, ‘‘देख रधिया, अपने पास पैसों की कमी नहीं है. फिर हजार रुपए की आज कीमत ही क्या है? तेरे काम ने मेरा दिल जीत लिया है. कई औरतों ने इस घर में काम किया, पर तेरी सुघड़ता उन में नहीं थी.’’

रधिया चुप रह जाती. साहब कुछ हाथ मारना चाहते थे, पर समझ ही नहीं आता था.

एक दिन मैडम ने उस से कहा, ‘‘रधिया, हमारे स्कूल से टूर जा रहा है. मैं भी जा रही हूं और बच्चे भी, घर में सिर्फ साहब रहेंगे. हमें टूर से लौटने में 10 दिन लगेंगे.

‘‘आनेजाने के टाइम का तुम समझ लेना. साहब को कोई दिक्कत न हो.

‘‘पहले आमलेट बना दे… और तू ऐसा करना, लंच के साथ डिनर भी तैयार कर फ्रिज में रख देना. साहब रात में गरम कर के खा लेंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ रधिया ने कहा और अपने काम में लग गई.

मैडम की गए 10वां दिन था. रधिया जब ठीक समय पर चाय और पानी का गिलास ले कर साहब के कमरे में पहुंची, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज कोर्ट नहीं जाना है. वकीलों ने हड़ताल कर दी है. फ्रिज में एक बोतल पड़ी होगी, वह ले आ. मैं थोड़ी ब्रांडी लूंगा, मुझे ठंड लग गई है.’’

रधिया रसोई में आमलेट बनाने चली गई. आमलेट बना कर उसे प्लेट में रख कर वह साहब के कमरे में गई, तो वे वहां नहीं थे. उस ने सोचा कि शायद बाथरूम गए होंगे. साहब तब तक वहां आ गए थे.

‘‘वाह रधिया, वाह, तू ने तो फटाफट काम कर दिया. तू बड़ी अच्छी है. आ चाय पी.

‘‘ये ले हजार रुपए. मनपसंद साड़ी खरीद लेना.’’

‘‘किस बात के पैसे साहब? पगार तो मैं लेती ही हूं,’’ रधिया ने कहा.

‘‘अरे, लेले. पैसे बड़े काम आते हैं. मना मत कर,’’ कहतेकहते साहब ने उस का हाथ पकड़ लिया और पैसे उस के ब्लाउज में डाल दिए.

रधिया पीछे हटी. तब तक साहब ने उस के ब्लाउज में हाथ डाल दिया था और उस के ब्लाउज के बटन टूट गए थे.

रधिया ने एक जोर का धक्का दिया. साहब बिस्तर पर गिर पड़े. इस बीच रधिया भी उन पर गिर गई.

रधिया ने एक जोरदार चुम्मा गाल पर लगाया और बोली, ‘‘साहब, 5 हजार और दो. देखो, मैडम बच्चों के साथ चली आ रही हैं.’’

साहब ने कहा, ‘‘रधिया, तू जल्दी यहां से निकल,’’ और अपना पूरा पर्स उसे पकड़ा दिया.

 

हवस का नतीजा : राज ने भाभी के साथ क्या किया

मुग्धा का बदन बुखार से तप रहा था. ऊपर से रसोई की जिम्मेदारी. किसी तरह सब्जी चलाए जा रही थी तभी उस का देवर राज वहां पानी पीने आया. उस ने मुग्धा के हावभाव देखे तो उस के माथे पर हाथ रखा और बोला, ‘‘भाभी, आप को तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां…’’ मुग्धा ने कमजोर आवाज में कहा, ‘‘सुबह कुछ नहीं था. दोपहर से अचानक…’’

‘‘भैया को बताया?’’

‘‘नहीं, वे तो परसों आने ही वाले हैं वैसे भी… बेकार परेशान होंगे. आज तो रात हो ही गई… बस कल की बात है.’’

‘‘अरे, लेकिन…’’ राज की फिक्र कम नहीं हुई थी. मगर मुग्धा ने उसे दिलासा देते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मामूली बुखार ही तो है. तुम जा कर पढ़ाई करो, खाना बनते ही बुला लूंगी.’’

‘‘खाना बनते ही बुला लूंगी…’’ मुग्धा की नकल उतार कर चिढ़ाते हुए राज ने उस के हाथ से बेलन छीना और बोला, ‘‘लाइए, मैं बना देता हूं. आप जा कर आराम कीजिए.’’

‘‘न… न… लेट गई तो मैं और बीमार हो जाऊंगी,’’ मुग्धा बैठने वालियों में से नहीं थी. वह बोली, ‘‘हम दोनों मिल कर बना लेते हैं,’’ और वे दोनों मिल कर खाना बनाने लगे.

मुग्धा का पति विनय कंपनी के किसी काम से 3 दिनों के लिए बाहर गया हुआ था. वह कर्मचारी तो कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन बौस का भरोसेमंद था. सो, किसी भी काम के लिए वे उसे ही भेजते थे.

मुग्धा का 21 साल का देवर राज प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. विनय जैसा प्यार करने वाला पति पा कर मुग्धा भी खुश रहती थी. कुछ पति की तनख्वाह और कुछ वह खुद जो निजी स्कूल में पढ़ाती, दोनों से मिला कर घर का खर्च अच्छे से निकल आता. सासससुर गांव में रहते थे. देवर राज अपनी पढ़ाई के चलते उन के साथ ही रहता था.

जिंदगी में कमी थी तो बस यही कि खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के 10 सालों के बाद भी उन के कोई औलाद नहीं थी. अब मुग्धा 35 साल की हो चुकी थी. अपनी हमउम्र बाकी टीचरों को उन के बच्चों के साथ देखती तो न चाहते हुए भी उसे रोना आ ही जाता. वह अपनी डायरी के पन्ने इसी पीड़ा से रंगती जाती.

रोटियां बन चुकी थीं. राज ने उसे कुरसी पर बैठने को बोला और सामान समेटने लगा. मुग्धा ने सिर पीछे की ओर टिकाया और आंखें बंद कर लीं. वातावरण एकदम शांत था. तभी वहां वही तूफान फिर से गरजने लगा जिस का शोर मुग्धा आज तक नहीं भांप पाई थी.

राज की गरदन धीरे से मुग्धा की ओर घूम चुकी थी. वह कनखियों से मुग्धा की फिटिंग वाली समीज में कैद उस के उभारों को देखने लगा था. मुग्धा की सांसों के साथ जैसेजैसे वे ऊपरनीचे होते, वैसेवैसे राज के अंदर का शैतान जागता जाता.

‘‘हो गया सब काम…?’’ बरतनों की आवाज बंद जान कर मुग्धा ने अचानक पूछते हुए अपनी आंखें खोल दीं.

राज हकबका गया और बोला, ‘‘हां भाभी, बस हो ही गया…’’ कह कर राज ने जल्दीजल्दी बाकी काम निबटाया और खाने की चीजों को उठा कर मेज पर ले गया.

मुग्धा ने मुश्किल से 2 रोटियां खाईं, वह भी राज की जिद पर. वह जबरदस्ती सब्जी उस की प्लेट में डाल दे रहा था. खाने के बाद मुग्धा सोने जाने लगी तो राज बोला, ‘‘भाभी, 15 मिनट के लिए आगे वाले कमरे में बैठिए न… मैं आप के लिए दवा ले आता हूं.’’

‘‘अरे नहीं, रातभर में उतर जाएगा…’’ मुग्धा ने मना किया लेकिन राज कहां मानने वाला था.

‘‘मैं पास वाले कैमिस्ट से ही दवा ले कर आ रहा हूं भाभी… जहां से आप मंगाती हैं हमेशा… दरवाजा बंद कर लीजिए… मैं अभी आया…’’ कहता हुआ वह निकल गया.

मुग्धा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर पैर ऊपर कर के बैठ गई.

राज ने तय कर लिया था कि आज तो वह अपने मन की कर के ही रहेगा. इस बीच कैमिस्ट की दुकान आ गई.

‘‘क्या बात है राज बाबू?’’ कैमिस्ट ने राज को खोया सा देखा तो पूछा. राज का ध्यान वापस दुकान पर आया.

‘‘दवा चाहिए थी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अबे तो यहां क्या मिठाई मिलती है?’’ कैमिस्ट उसे छेड़ते हुए बोला. वह उस का पुराना दोस्त था.

राज मुसकरा उठा और कहा, ‘‘अरे, जल्दी दे न…’’

‘‘जल्दी दे न…’’ बड़बड़ाते हुए कैमिस्ट ने हैरत से उस की ओर देखा, ‘‘कौन सी दवा चाहिए, यह तो बता?’’

राज को याद आया कि उस ने तो सचमुच कोई दवा मांगी ही नहीं है. उस ने ऐसे ही बोल दिया, ‘‘भाभी की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है. जरा नींद की गोली देना.’’

‘नींद की गोली बुखार के लिए…’ सोचते हुए कैमिस्ट ने उसे देखा. वह खुद भी मुग्धा के हुस्न का दीवाना था. हमेशा उस के बारे में चटकारे लेले कर बातें किया करता था. उस ने राज के मन की बात ताड़ ली. ऐसी बातों का उसे बहुत अनुभव जो था. उस ने नींद की गोली के साथ बुखार की भी दवा दे दी.

राज ने लिफाफा जेब में रखा और तेजी से वापस चलने को हुआ कि तभी कैमिस्ट चिल्लाया, ‘‘अरे भाई, खुराक तो सुन ले.’’

राज को अपनी गलती का अहसास हुआ. वह काउंटर पर आया. कैमिस्ट ने उसे डोज बताई और आंख मारते हुए बोला, ‘‘यह नींद वाली एक से ज्यादा मत देना… टाइट चीज है…’’

‘‘अबे, क्या बकवास कर रहा है,’’ राज के मन का डर उस की जबान से बोल पड़ा. उस की तो चोर की दाढ़ी में तिनका वाली हालत हो गई. वह जाने लगा.

कैमिस्ट पीछे से कह रहा था, ‘‘अगली बार हम को भी याद रखना दोस्त…’’

राज उस को अनसुना करता हुआ आगे बढ़ गया. घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही मुग्धा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

मुग्धा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. मुग्धा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ मुग्धा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने मुग्धा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए मुग्धा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ मुग्धा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमुग्धा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक कर चूरचूर हो कर मुग्धा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और मुग्धा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

मुग्धा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से मुग्धा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में मुग्धा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर मुग्धा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मुझे माफ कर दो… यह क्या हो गया मुझ से.’’

अचानक राज का ध्यान मुग्धा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और मुग्धा का सिर अपनी गोद में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे मुग्धा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

मुग्धा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

मुग्धा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद मुग्धा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर मुग्धा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा है, घबराए नहीं, लेकिन मुग्धा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए मुग्धा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उसके कंधे पर हाथ रखा लेकिन मुग्धा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘मुग्धा… मुग्धा…’’ चीखता हुआ विनय उसे झकझोरे जा रहा था, पर मुग्धा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी.

 

अग्निपरीक्षा: क्या कामयाब हो पाया रंजीत

रंजीत 9 बजे कालेज के गेट के नजदीक बैठ जाता. कालेज परिसर में जाने के लिए विद्यार्थियों को पहचान पत्र दिखाना होता है, जो उस के पास नहीं था. जब वह कालेज में पढ़ता ही नहीं है तो उस का पहचान पत्र कैसे बनता? सारा दिन कालेज के आसपास लड़कियों के आगेपीछे घूमता.

रंजीत के 2 चेलेचपाटे भी उस के साथ रहते. रंजीत के मातापिता अमीर थे, जिस कारण उसे मुंह मांगा जेब खर्च मिल जाता था, जिसे वह रोब डालने के लिए अपने मित्रों पर खर्च करता था. कालेज के कुछ लड़केलड़कियां भी मौजमस्ती के लिए उस के दल में शामिल हो गए. बाइक पर सवार हो कर सारा दिन मटरगश्ती करता रंजीत एकदम स्वतंत्रत जीवन व्यतीत कर रहा था.

एक दिन रंजीत कालेज के बाहर बस स्टौप पर बैठा लड़कियों को देख रहा था. बस से उतरती एक लड़की पर उस की नजर अटक गई.

‘‘गुरू कहां गुम हो गए हो. एकटक कालेज के गेट को देखे जा रहे हो?’’

‘‘देख वह लड़की कालेज के अंदर गई है. गजब की सुंदर है. जरा उस का बदन तो देख, उस के आगे माशाअल्लाह अप्सरा भी पानी भरेगी.’’

‘‘गुरू कौन से वाली?’’ कालेज के गेट पर खड़ी लड़कियों के समूह को देख कर उस के चमचे ने पूछा.

‘‘वह लड़की सीधे कालेज के अंदर चली गई है. इस समूह में नहीं है. आज पहली बार यहां देखा है. आज कहीं नहीं जाना है जब तक वह कालेज से बाहर नहीं निकलती है. आज गेट पर ही धरना देना है.’’

‘‘जो हुक्म गुरू.’’

कुछ देर बाद कालेज में पढ़ाई से मन चुराने वाले लड़केलड़कियों का झुंड भी रंजीत के इर्दगिर्द जमा हो गया और रंजीत से बर्गर खाने की फरमाइश होने लगी.

‘‘देखो, बर्गर पार्टी तब होगी जब मुझे वह दिखेगी.’’

‘‘कौन?’’ एकसाथ कई स्वर बोले.

‘‘शायद मैं उसे पहली बार देख रहा हूं. तुम्हारी मदद चाहिए… उस से दोस्ती करनी है.’’

‘‘ठीक है गुरू. हम सब तुम्हारे साथ हैं,’’ सब कालेज के गेट की तरफ देखने लगे.

दोपहर के 2 बजे वह लड़की कालेज के गेट पर नजर आई.

‘‘देखो, उस लड़की को देखो. उस का नाम बताओ.’’

‘‘गुरू इस का नाम दिशा है और यह दूसरे वर्ष की छात्रा है.’’

‘‘पुरानी छात्रा है… परंतु मैं ने इसे पहली बार देखा है.’’

‘‘दिशा बहुत पढ़ाकू लड़की है. यह सुबह 8 बजे आ जाती है. आज थोड़ी देर से आई है इस कारण तुम्हें पहली बार नजर आई.’’

‘‘मुझे दिशा से मिलवा दो… दोस्ती करवा दो.’’

‘‘यह मुश्किल है. वह पढ़ने वाली लड़की है. हमारी तरह मौजमस्ती करने वाली नहीं है. तुम्हारे इतने मित्र बन चुके हैं… किसी के साथ

भी मौजमस्ती कर लो… दिशा तो हमें भी डांट देती है.’’

‘‘उस की अकड़ तो तोड़नी ही होगी. वह मेरे दिल में उतर चुकी है. उस की जगह कोई और लड़की नहीं ले सकती… मेरा काम तो तुम्हें करना ही होगा.’’

2 दिन बाद रंजीत के समूह की 2 लड़कियों ने उस से साफ कह दिया कि दिशा की उस में कोईर् रुचि नहीं है. वह सिर्फ पढ़ने वाले लड़कों से ही दोस्ती रखना चाहती है. वह रंजीत को गुंडा, मवाली समझती है जो सारा दिन कालेज के इर्दगिर्द आवारागर्दी करता रहता है. दिशा ने उन्हें भी रंजीत से दूर रहने की सलाह दी है.

यह सुन कर रंजीत आगबबूला हो गया कि ये दोनों लड़कियां उस के पैसों से मौजमस्ती

कर रही हैं और साथ दिशा का दे रही हैं. जब समूह की लड़कियों ने रंजीत का साथ नहीं दिया तब रंजीत ने एक दिन कालेज के गेट पर दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने प्रस्ताव ठुकरा दिया और अपने रास्ते चल दी.

रंजीत ने हौसला नहीं छोड़ा. अगले दिन दोबारा दिशा का रास्ता रोक कर मित्रता का प्रस्ताव रखा. दिशा ने फिर प्रस्ताव ठुकरा दिया. 20 बार के असफल प्रयास के बाद एक दिन रंजीत ने दिशा का हाथ पकड़ लिया.

‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’ दिशा ने हाथ छुड़ाते हुए कहा.

‘‘मैं इतने दिनों से सिर्फ दोस्ती का हाथ मांग रहा हूं और तुम नखरे दिखा रही हो?’’

‘‘मैं तुम जैसे आवारा, गुंडे से कोई दोस्ती नहीं करना चाहती हूं. मेरा हाथ छोड़ो.’’

दिशा और रंजीत के बीच बहस देख कर कालेज के बहुत छात्रछात्राएं एकत्रित हो गए. कुछ प्रोफैसर भी बीचबचाव करने लगे. भीड़ देख कर रंजीत ने दिशा का हाथ छोड़ दिया.

‘‘खटाक… खटाक,’’ हाथ छूटते ही दिशा ने खींच कर 2 करारे थप्पड़ रंजीत के गाल पर जड़ दिए और फिर तेजी से अपने घर चल दी.

प्रोफैसरों ने रंजीत को चेतावनी दी कि आइंदा कालेज परिसर के पास नजर नहीं आना चाहिए वरना पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी जाएगी.

लुटेपिटे जुआरी की तरह रंजीत घर लौट आया. उस दिन के बाद कालेज के छात्रों ने उस का समूह छोड़ दिया. अब रंजीत अकेला अपने 2 चेलों के संग कालेज से थोड़ी दूर चहलकदमी करता रहता. अमीर परिवार के बिगड़े लड़के रंजीत ने इस किस्से को अपनी तौहीन समझा और फिर बदले की भावना से जलने लगा. कालेज के छात्रों से उस का संपर्क छूट गया. कालेज के गेट पर रंजीत पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी.

रंजीत के मन में दिशा रचबस गई थी. उस के प्रेम और मित्रता का प्रस्ताव दिशा ने ठुकरा दिया था और सब के सामने 2 थप्पड़ भी रसीद कर दिए थे. बदले की भावना ने उस के विवेक को जला दिया.

रंजीत ने एक दिन अपने चेलों को अपनी योजना बताई, ‘‘कान खोल कर सुनो… उस लौंडिया को उठाना है.’’

रंजीत की योजना को सुन कर दोनों चेले सन्न हो गए. बड़ी मुश्किल से गला साफ कर के कहने लगे, ‘‘गुरू, आप क्या कह रहे हो?’’

‘‘उसे जबरदस्ती उठाना है?’’

‘‘बहुत खतरनाक योजना है. तुम पहले से ही कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों की नजरों में हो, सीधेसीधे समझो गुरू कि दिशा को उठाने

का मतलब है जेल. सब पुलिस को तुम्हारा नाम बता देंगे.’’

‘‘मुझे कोईर् फर्क नहीं पड़ता… उसे कहीं का नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘गुरू बात को समझो… इस योजना को छोड़ो. कुछ और सोचो.’’

‘‘तुम मेरा साथ दोगे?’’

‘‘नहीं,’’ दोनों कह कर भाग गए.

‘‘नामर्द हैं दोनों. फालतू में दोनों को खिलातापिलाता रहा… किसी काम नहीं आए. कोई बात नहीं. इस काम को मैं अकेला कर लूंगा.’’

अब रंजीत अकेला ही दिशा को उठाने की योजना बनाने लगा. उस ने अपना

हुलिया बदला, दाढ़ी बढ़ा ली और दिशा का पीछा कर के उस की दिनचर्या की पूरी खबर लेने के बाद उस के अपहरण की योजना बनाई.

दिशा जिस जगह रहती थी वह दोपहर के समय थोड़ी सुनसान रहती थी. कालेज से घर आने की बस पकड़ी. बस स्टौप से पैदल घर जा रही थी. रंजीत आज कार में था. रंजीत ने कार उस के आगे अचानक रोकी. दिशा घबरा गई. दिशा साइड से कार के पार जाने की कोशिश करने लगी. रंजीत ने फुरती से क्लोरोफार्म में डूबा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, रंजीत ने कार का पिछला दरवाजा खोल कर उसे कार के अंदर धकेला.

क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा होने के कारण वह कोई प्रतिरोध नहीं कर पाई. कार की पिछली सीट पर बेसुध पड़ गई. रंजीत ने कार को वहां से तेजी से भगाया.

शहर से दूर अपने पैतृक गांव के मकान के पास रंजीत ने कार रोकी. गांव में एक बड़ा मकान था, जिस की देखभाल चमन करता था. चमन अपनी पत्नी चंपा और 2 बच्चों के संग मकान के पीछे वाले हिस्से के एक कमरे में रहता था. चमन बहुत भरोसेमंद और पुराना नौकर था. मकान एक तरह से छोटा फार्महाउस था.

अपने पैतृक मकान पहुंच कर रंजीत ने हौर्न बजाया, तो चमन ने मकान का गेट खोला. रंजीत ने कार को मकान के अंदर पार्क किया और फिर चमन की मदद से दिशा को कमरे में लिटाया. दिशा अभी भी बेसुध थी. रंजीत ने कमरे को बाहर से बंद कर दिया और चमन को सख्त हिदायत दी कि दिशा को मकान से बाहर नहीं जाने देना है और फिर दूसरे कमरे में जा कर आराम करने लगा.

रंजीत कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा हुआ आगे की रणनीति बना रहा था.

दिशा को कमरे में बंद करता देख चंपा स्थिति को भांप चमन से पूछने लगी, ‘‘यह लड़की कौन है?’’

‘‘मुझे नहीं मालूम.’’

‘‘लड़की बेहोश लग रही है.’’

‘‘हां, लग तो बेहोश ही रही है.’’

‘‘सुनो मुझे हालात सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘हां चंपा, कोई बात तो अवश्य है… खास नजर रखने को कहा है कि लड़की मकान से बाहर नहीं जाने पाए.’’

‘‘कुछ उलटासीधा तो नहीं कर दिया इस लड़की के साथ?’’

‘‘लगता तो नहीं है… अभी तक तो लड़की के कपड़े सहीसलामत हैं… लड़की होश में आए तब पता चले.’’

चमन के साथ बात करने के बाद चंपा कमरे के बाहर बैठी सब्जी काटती रही.

फिर साफसफाई में लग गई. लेकिन दिशा को क्लोरोफार्म की अधिक मात्रा दी गई थी, जिस कारण वह शाम तक बेसुध रही.

थोड़ी देर बाद रंजीत कमरे से बाहर आया और चंपा को कमरे के बाहर डेरा जमाए देख कर बोला, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो? अपने कमरे में जाओ… यहां मैं हूं… कुछ चाहिए होगा तब मैं आवाज दे दूंगा.’’

‘‘साहबजी, यह लड़की कौन है और कमरे को बाहर से बंद क्यों कर दिया है?’’

चंपा के इस प्रश्न से रंजीत का माथा भन्ना उठा और फिर गुस्से से चंपा पर बरस पड़ा, ‘‘देखो, तुम अपने काम से मतलब रखो… जिस काम के लिए तुम्हें नौकरी पर रखा है वह करो. मेरे से उलझने की जरूरत नहीं है.’’

रंजीत को गुस्से में देख कर चंपा खामोश रही. चमन उसे अपने कमरे में ले गया.

‘‘चंपा, तुम साहब से क्यों उलझ रही हो?’’ चमन बोला.

‘‘सुनो, यह गड़बड़ मामला है…मुझे पक्का शक है कि इस लड़की को जबरदस्ती उठा कर लाया गया है. लड़की बेहोश है… मुझे साहबजी के लक्षण सही नहीं लग रहे हैं.’’

‘‘चंपा हम नौकर हैं. हमें अपने दायरे में रह कर साहब लोगों से बात करनी चाहिए.’’

‘‘फिर भी एक लड़की की इज्जत का सवाल है. अगर इस लड़की के साथ साहब ने जबरदस्ती की तब मैं सहन नहीं करूंगी.’’

‘‘अगर वह लड़की अपनी मरजी से आई हो तब?’’

‘‘वह लड़की अपनी मरजी से नहीं आई है. अगर अपनी मरजी से आई होती तब वह बेहोश नहीं होती और कमरा भी बाहर से बंद नहीं होता. वह साहब के साथ हंसबोल रही होती.’’

चंपा की बात सुन कर चमन चुप हो गया कि उस की बात में वजन है. लेकिन वह एक नौकर है. उस के हाथ बंधे हुए हैं. वह मालिक के विरुद्ध नहीं जा सकता.

शाम के समय चमन रंजीत से रात के खाने का पूछने लगा, ‘‘साहबजी, रात को खाने में क्या लेंगे?’’

‘‘दालचावल और रोटी बना देना.’’

रात 8 बजे चमन रंजीत को खाना देने गया तो पूछा, ‘‘साहबजी, वह लड़की क्या खाएगी?’’

‘‘तुम मियांबीवी को उस की बहुत चिंता सता रही है… जब मैं ने कह दिया है कि उसे मैं देख लूंगा…’’

रंजीत ने अभी अपना वाक्य पूरा नहीं किया था कि साथ वाले कमरे से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दिशा को होश आ गया था. स्वयं को अनजान जगह देख कर परेशान हो गई. कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था. रंजीत ने तुरंत गोली की रफ्तार से उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘कौन?’’ दिशा के इस प्रश्न पर रंजीत की क्रूर हंसी गूंज उठी.

रंजीत की हंसी सुन कर चंपा भी दौड़ी चली आई.

‘‘दिशा मुझे पहचाना नहीं… अपने रंजीत को नहीं पहचाना?’’

रंजीत नाम सुन कर दिशा चौंक गई. 5 घंटे बाद वह होश में आईर् थी. रंजीत को सामने देख वह एकदम भयभीत हो उठी. उस के माथे पर पसीने की बूंदें छलकने लगीं. रंजीत ने दिशा को अपनी बांहों में भर कर उस के गालों को चूमने के लिए होंठ आगे किए कि तभी चुंबन लेने से पहले एक हाथ उस के होंठों और दिशा के होंठों के बीच आ गया.

उधर दिशा जब घर नहीं आई तब उस के परिवार वाले चिंतित हो गए. दिशा के मित्रों से संपर्क किया. सभी मित्रों ने एक ही बात बताई कि दिशा तो दोपहर को ही कालेज से घर रवाना हो गईर् थी. दिशा का परिवार सकते में आ गया. दिशा कहां जा सकती है…वह तो कालेज से सीधी घर आती है…अब तो रात के 9 बज रहे हैं. अंत में थाने जाना ही उचित समझा.

रंजीत के होंठों और दिशा के होंठों के बीच चंपा का हाथ था, ‘‘साहबजी, जुल्म मत कीजिए.’’

‘‘तू आगे से हट जा.’’

‘‘जबरदस्ती नहीं साहबजी, यदि लड़की हां कह देती है

तब मैं यहां से चली जाऊंगी,’’ चंपा दृढ़ता से दिशा को पकड़ कर अपने पीछे कर सुरक्षा कवच बन गई.

दिशा की गुमशुदा होने की रिपोर्ट पुलिस ने लिख ली. लेकिन रात के समय कोई काररवाई नहीं हुई. थाने में तैनात पुलिस अधिकारी ने कहा कि यदि कोई फोन आए तब तुरंत सूचित करें.

रंजीत की आंखों में खून उतर आया, ‘‘दिशा के आगे से हट जा, नहीं तो अंजाम बुरा होगा.’’

‘‘साहबजी, हम ने आप का नमक खाया है, इसलिए आप से विनती करती हूं कि दिशा को छोड़ दो.’’

‘‘तू ऐसे नहीं मानेगी,’’ रंजीत ने चंपा को पकड़ कर दिशा के आगे से हटाने की कोशिश की.

कोशिश को असफल बनाने के लिए चंपा ने दिशा को मजबूती से पकड़ लिया. रंजीत चंपा से उलझा तब चंपा ने अपनी हैसियत को भूल कर रंजीत को एक लात जमा दी. हालांकि चंपा दुबलीपतली छोटे कद की महिला थी, लेकिन उस की लात का प्रहार जोर से लगा और रंजीत का संतुलन बिगड़ गया. असंतुलन के कारण रंजीत लड़खड़ा गया.  लड़खड़ाते रंजीत को चमन ने संभाला.

‘‘साहबजी, आप दिशा को छोड़ दीजिए. आप को यह काम शोभा नहीं देता. हम 20 सालों से आप के नौकर हैं, लेकिन ऐसा काम बड़े साहबजी ने भी कभी नहीं किया.’’

दिशा के पक्ष में चमन और चंपा को देख रंजीत पीछे हट गया और फिर अपने कमरे में चला गया. जाते हुए चमन और चंपा को धमका गया, ‘‘दिशा को इस मकान से भागने नहीं देना है वरना तुम दोनों को भून दूंगा.’’

पूरी रात दिशा का परिवार सो नहीं सका. कालेज की सहेलियों के घर जा कर जानकारी जुटाते रहे. जब दोपहर को रोज की तरह कालेज से घर के लिए निकली तब वह कहां जा सकती है. इस प्रश्न का कोईर् उत्तर नहीं था. दिशा का फोन भी बंद या कवरेज क्षेत्र से बाहर आ रहा था, इसलिए संपर्क नहीं हो पा रहा था.

‘‘दिशा कुछ खा लो, दालचावल बने हैं.’’

‘‘नहीं खाया जाएगा… मुझे बहुत डर लग रहा है,’’ दिशा बुरी तरह डरी हुई थी.

डरी दिशा को चंपा अपने कमरे में ले गई. रंजीत चंपा और चमन के दिशा के बीच आने पर क्षुब्ध था, लेकिन बेबस था.

दिशा की एक सहेली ने रंजीत का जिक्र किया कि वह उसे परेशान करता था, लेकिन उस के पास रंजीत का कोईर् नंबर या घर का पता नहीं है.

पूरी रात दिशा भयभीत रही. चंपा और चमन दिशा को दिलासा देते रहे, लेकिन दिशा आशंकित रही. अगली सुबह दिशा का परिवार कालेज पहुंचा. कालेज के छात्रों और प्रोफैसरों से रंजीत के विषय में मालूम हुआ. रंजीत के समूह से जुड़े छात्रों से रंजीत के 2 चेलों का पता चला, जिन्होंने रंजीत का फोन नंबर और घर का पता दे दिया.

दिशा के गायब होने पर कालेज के छात्र एकत्रित हो कर मार्च निकाल कर पुलिस स्टेशन तक गए. छात्रों का समूह देख कर पुलिस ने तुरंत काररवाई शुरू कर दी. पुलिस के जांच दल ने पहले बस स्टौप से दिशा के घर तक जांच आरंभ की. दिशा का मोबाइल फोन गली की नाली में गिरा मिला.

जब रंजीत ने कार दिशा के आगे अचानक रोकी थी और क्लोरोफार्म लगा रूमाल दिशा के मुंह पर रखा तब फोन दिशा के हाथ से छूट कर नाली में गिर गया था और पानी में गिरने के कारण खराब हो गया, जिस कारण दिशा से संपर्क नहीं हो सका. पुलिस दल फिर रंजीत के घर पहुंचा.

अमीर मांबाप को नहीं मालूम था कि रंजीत कल से घर नहीं आया. पुलिस को देख कर रंजीत का परिवार सकते में आ गया कि रंजीत कहां है और घर पर एक कार भी नहीं है. कोठी में 4 कारें हैं. उन में से एक कार नहीं है. रंजीत सुबह ही घर से निकल जाता था. उस के मांबाप ने यह सोचा कि रंजीत रोज की तरह गया होगा. अब दिशा के गायब होने पर शक की सूई रंजीत पर घूम रही थी.

पुलिस ने रंजीत के चेलों से पूछताछ की. पुलिस की सख्ती से उन्होंने रंजीत

के बारे में बता दिया कि रंजीत दिशा का अपहरण कर सकता है, लेकिन वे दोनों इस में शामिल नहीं हैं. पुलिस ने रंजीत के चेलों से फोन लगवाया. रंजीत ने फोन उठाया तो चेलों ने रोते हुए रंजीत को हालात से अवगत कराया. रंजीत को यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन में पुलिस केस बन जाएगा और ये दोनों भी 2 मिनट में पुलिस के सामने सब बक देंगे.

पुलिस ने दिशा के मांबाप और रंजीत के चेलों के साथ रंजीत के गांव के पुश्तैनी मकान पर दबिश की. रंजीत कुछ नहीं बोला. उस की योजना तो पिछले दिन ही चंपा और चमन ने असफल कर दी थी. पुलिस ने रंजीत को हिरासत में लिया.

रंजीत के मांबाप उस की हरकत पर शर्मिंदा थे. उन्होंने पुलिस से केस रफादफा करने की पेशकश की, पर पुलिस ने असमर्थता व्यक्त की.

दिशा अपनी मां से मिल कर फूटफूट कर रो पड़ी. चंपा ने दिशा के मातापिता को उस के सकुशल होने का यकीन दिलाया.

दिशा की मां दिशा के पिता को एक कोने में ले जा कर कहने लगीं कि लड़की एक रात अनजान लड़के के घर रही, समाज और लोग तरहतरह की बातें करेंगे. हम किसकिस को जवाब देते फिरेंगे. दिशा का पिता निरुत्तर था.

यह बात चंपा के कान में पड़ गई, ‘‘आप कैसे मांबाप हैं जो अपनी लड़की पर शक कर रहे हैं? जब मैं उस के संपूर्ण सुरक्षित और सकुशल होने की गारंटी दे रही हूं तब आप किस बात की चिंता कर रहे हैं?’’

‘‘तुम समझ नहीं रही हो, हम ने समाज में रहना है… लोग तरहतरह की बातें बनाएंगे.’’

‘‘जब मैं ने दिशा को सुरक्षित रखा है तब आप चिंता क्यों कर रहे हैं? लोगों का काम तो तमाशा देखना है. लड़की कालेज जाती है, वहां लड़के भी पढ़ते हैं. लोग उलटासीधा कुछ भी

कह सकते हैं. जब लोग सीता पर उंगली उठा सकते हैं तो किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते हैं… जब कुछ गलत हुआ ही नहीं है तब क्यों घबरा रहे हो?’’ कह चंपा बड़बड़ाती हुई वहां से चली गई.

पुलिस ने चंपा की बातें सुन ली थीं. अत: बोली, ‘‘अब चलो वापस…आप की लड़की सहीसलामत सुरक्षित मिल गई है. चंपा की बात में दम है. खुद को देखो, समाज को नहीं.’’

फिर पुलिस की जीप में बैठ सभी चले गए. दिशा स्थितियों का अवलोकन करने लगी कि सीता से ले कर दिशा तक लोगों की मानसिकता नहीं बदली है. कब तक अग्नि परीक्षा देनी होगी? धर्म की गलत बातों से निकम्मे हो चुके समाज से और उम्मीद ही क्या की जा सकती है?

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