जानें, फेस्टिवल कैसे मानते हैं बौलीवुड स्टार्स   

सोनाक्षी सिन्हा को बचपन की यादें सताती हैं

मशहूर अभिनेता व राजनेता शत्रुघ्न सिन्हा की बेटी तथा बौलीवुड में कई कलाकारों के साथ काम कर चुकीं अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा यह बात मानती हैं कि समय व उम्र के साथ दीवाली पर्व को मनाने में उन की अपनी भूमिका बदलती रही है. पर उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ.

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सोनाक्षी कहती हैं, ‘‘बचपन में मेरे लिए दीवाली का मतलब अपनी मनपसंद चीजें खरीदना ज्यादा होता था. उस वक्त घर में बनने वाले पकवान, मिठाई आदि पर हमारा ध्यान ज्यादा रहता था. दीवाली के दिन घर पर हम सभी एकसाथ बैठ कर ट्रैडिशनल भोजन करते थे. मु झे याद है कि उन दिनों हमारे यहां बच्चों के लिए पटना से मिट्टी तथा शक्कर के बने हुए खास खिलौने आ जाया करते थे. उस तरह के खिलौने तब मुंबई में मिलते नहीं थे. बचपन की दीवाली के अपने अलग माने थे जोकि समय के साथ बदलते गए.’’

राजकुमार राव की दीवाली

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता राजकुमार राव अब तक ‘लव सैक्स और धोखा’, ‘शाहिद’,  ‘अलीगढ़,’ ‘बरेली की बर्फी’ और ‘स्त्री’ सहित कई सफलतम फिल्मों में विविधतापूर्ण किरदार निभा चुके हैं.

राजकुमार राव तो दीवाली का त्योहार परंपरागत तरीके से ही मनाने में यकीन करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं हमेशा परंपरागत तरीके से दीवाली मनाता हूं. मेरे लिए यह त्योहार मिठाई खाने की स्वतंत्रता वाला है. कलाकार के तौर पर मिठाई खाने को ले कर हमें कई तरह की बंदिशों का पालन करना होता है. दीवाली के मौके पर हम एकदम स्वतंत्र होते हैं. दोस्तों के साथ आतिशबाजी करते हैं, कम प्रदूषण फैलाने वाले एकदो पटाखे फोड़ते हैं. दोस्तों के संग फन के लिए ताश का खेल भी खेलते हैं, पर इस खेल में पैसों का कोई लेनदेन नहीं होता.’’

मृणाल दत्त रखते हैं प्रदूषण का खयाल

कई टीवी सीरियलों के अलावा वैब सीरीज ‘कोल्ड लस्सी चिकन मसाला’, ‘हेलो मिनी’ में अभिनय कर चुके मृणाल दत्त मूलतया दिल्ली से हैं. वे दीवाली को ले कर कहते हैं, ‘‘मेरे लिए दीवाली का मतलब सैलिब्रेशन है, उत्सव है. इस का जश्न मनाया जाना चाहिए. हम बचपन से दीवाली मनाते आए हैं. बचपन में हमें मिठाई और पटाखे के लिए ही दीवाली के आगमन का इंतजार रहता था. पर अब समय बदला है. हम भी सम झदार हो गए हैं, अब हमारी सोच बदली है.

‘‘मगर हमारी सोच यह कहती है कि दीवाली का जश्न मनाते हुए हम इतना खुशी में न  झूम जाएं कि बेतहाशा पटाखे फोड़ें और प्रदूषण को निमंत्रण दे कर संकट मोल ले लें. देखिए, दीवाली के समय सर्दी का मौसम शुरू हो जाता है और दिल्ली जैसे शहर में सर्दी के मौसम में प्रदूषण के कारण लोगों की जिंदगी पर बन आती है. ऐसे में हमें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि हम जश्न मनाएं पर उस से हमें या दूसरों को तकलीफ न हो.’’

मौनी रौय की मिठाइयां

‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी,’  ‘नागिन’ जैसे कई सफलतम सीरियलों के साथ 9 वर्ष तक टैलीविजन पर अभिनय करती रही अभिनेत्री मौनी रौय ने फिल्म ‘गोल्ड’ से अक्षय कुमार के साथ बौलीवुड में कदम रखा था. फिर वे जौन अब्राहम के साथ फिल्म ‘रौ’ में नजर आईं. अब वे अपनी अगली फिल्म ‘मेड इन चाइना’ में नजर आएंगी. दीवाली को ले कर वे कहती हैं, ‘‘हमारे घर पर हर वर्ष दीवाली के अवसर पर कई तरह की ढेर सारी मिठाइयां बनती हैं. इस बार भी यही योजना है. इस बार दीवाली के अवसर पर मेरी फिल्म ‘मेड इन चाइना’ प्रदर्शित होने वाली है. यदि इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर सफलता के  झंडे गाड़ दिए, तो मेरे लिए यह दोहरा जश्न मनाने का मौका हो जाएगा. मु झे तो पूरी उम्मीद है कि ऐसा ही होगा.’’

मिखिल मुसाले को ट्रिपल सैलिब्रेशन का मौका

गुजराती फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर चुके मिखिल मुसाले अब बतौर निर्देशक हिंदी फिल्म ‘मेड इन चाइना’ ले कर आए हैं. मूलतया महाराष्ट्रियन मगर पिछले 25 वर्षों से गुजरात में रह रहे मिखिल खुद को अब गुजराती ही सम झते हैं. मगर जब त्योहार का मामला होता है तो वह महाराष्ट्रियन पद्धति से ही त्योहार मनाते हैं.

दीवाली की चर्चा चलने पर मिखिल कहते हैं, ‘‘दीवाली के समय हमारी फिल्म रिलीज हो रही है और उसी सप्ताह में मेरा जन्मदिन भी है. यह ट्रिपल सैलिब्रेशन है. उत्साह है, नर्वस भी हूं.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘हम सब से ज्यादा दीवाली मनाते हैं. हम लोग रंगोली व मिठाई बनाने से ले कर आकाश कैंडिल तक बनाते हैं. मैं और मेरी बहन हम दोनों की क्राफ्ट में कुछ ज्यादा ही रुचि है. हम बचपन से रंगोली व आकाश कैंडिल बनाते आए हैं.’’

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गुलशन देवैय्या का पशु प्रेम

‘हंटर’, ‘हेट स्टोरीज’ सहित कई सफल फिल्मों व ‘स्मोक’ जैसी वैब सीरीज के अभिनेता गुलशन देवैया दीवाली नहीं मनाते हैं. वे कहते हैं, ‘‘पशु प्रेमी होने के चलते मैं दीवाली नहीं मनाता. मेरे घर में 3-3 बिल्लियां हैं. उन के लिए दीवाली का समय बहुत खौफ का समय होता है. पटाखों की आवाज से बेचारी बहुत डरती हैं. मु झे उन के लिए बहुत बुरा लगता है. बचपन में मैं बहुत पटाखे फोड़ा करता था. अब अंदर से भी पटाखे फोड़ने की इच्छा नहीं होती. दोस्तों के साथ पार्टी कर लेता हूं, मिठाइयां खा लेता हूं. मेरे कुछ दोस्त ताश खेलते हैं, पर मु झे उस का भी शौक नहीं है. मु झे ताश खेलना आता ही नहीं है.’’

सोनम कपूर को भाती है रोशनी और दीये

अदाकारा सोनम कपूर दीवाली को ले कर बेहद उत्साहित रहती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मु झे रोशनी और दीयों से कुछ ज्यादा ही प्यार है, इसी कारण मु झे दीवाली का त्योहार ज्यादा पसंद है. वैसे भी दीवाली इस कदर खुशियों भरा त्योहार होता है कि हर कोई इसे मनाना चाहता है. स्वाभाविक तौर पर हम दीवाली के दिन दीये जलाते हैं. पूरे घर को रंगबिरंगे दीयों से रोशन करते हैं. लोगों को मिठाइयां बांटते हैं. इसी के साथ हम सभी एकसाथ मिल कर अच्छा समय गुजारते हैं.’’

पटाखों से रहती हैं दूर

नारी उत्थान की बात करने वाली अदाकारा तापसी पन्नू इस बार दीवाली के ही अवसर पर प्रदर्शित हो रही अपनी फिल्म ‘सांड़ की आंख’ को ले कर अतिउत्साहित हैं, जिस में उन्होंने 60 वर्ष की शार्प शूटर प्रकाशी तोमर का किरदार निभाया है.

दीवाली की चर्चा चलने पर तापसी कहती हैं, ‘‘बचपन में तो दीवाली के पहले से ही पटाखे फोड़ने लगती थी. फिर एक दिन मेरी सोच बदल गई क्योंकि सम झ में आया कि इस से प्रदूषण फैलता है. हुआ यह था कि हमारे घर के अंदर बहुत प्रदूषण हो गया था. मु झे अपने किचन से बैडरूम का दरवाजा साफसाफ नहीं दिख रहा था. उस दिन से मेरी सोच बदल गई और पटाखे जलाने बंद कर दिए. रंगोली बचपन से बनाती थी, अभी भी बनाती हूं. ताश के पत्ते या जुआ खेलने में कभी यकीन नहीं रहा. मु झे रंगोली बनाना बहुत पसंद है. अच्छी या बुरी जैसी भी हो, पर मु झे बनानी है. मैं अभी भी दीये पर पेंट करती हूं.’’

जाह्नवी और ईशान के रिश्ते के लिए भाई शाहिद ने दी ये टिप्स

बौलीवुड के स्टार किड्स में से एक एक्ट्रेस जाह्नवी कपूर और एक्टर ईशान खट्टर इन दिनों अपने रिलेशनशिप को लेकर सुर्खियों में हैं, जिस पर दोनों एक्टर्स ने तो कोई खुलासा नही किया है, लेकिन ईशान खट्टर के भाई यानी एक्टर शाहिद कपूर ने दोनों के रिश्ते को लेकर एडवाइस दी है. आइए आपको बताते हैं क्या एडवाइस दी हैं शाहिद ने भाई ईशान को…

इंटरव्यू में खोले दिल के राज

एक्टर शाहिद ने हाल ही में नो फिल्टर नेहा सीजन 4 में हिस्सा लिया है. इस दौरान बौलीवुड स्टार और नामी एंकर एंड मौडल नेहा धूपिया के साथ एक्टर शाहिद कपूर ने दिल खोलकर कई बातें की है, जिसमें भाई के रिलेशनशिप के टौपिक पर भी बोला.

 

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Such maturity is rare @ishaankhatter @khemster2 @dr.jewelgamadia @jamesdhenchu_

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भाई के रिलेशनशिप पर कही ये बात

इसी दौरान एक्टर शाहिद से जब उनके भाई ईशान खट्टर और जाह्ववी कपूर के रयूमर्ड रिलेशनशिप को लेकर सवाल किया गया कि वो ईशान को और जाह्नवी कपूर संग रिश्ते पर क्या सलाह देना चाहेंगे तो एक्टर ने बेहद सटीक जवाब दिया. शाहिद कपूर ने कहा, ‘बैलेंस वर्क एंड पर्सनल स्पेस’ यानी की अपनी निजी जिंदगी और काम के बीच सही संतुलन बनाएं.

अक्सर साथ आते हैं दोनों नजर

ईशान खट्टर के परिवार और शाहिद कपूर के घर पर भी जाह्लनी कपूर कई बार स्पौट की गई हैं. शाहिद कपूर के घर पर जाह्नवी अक्सर फैमिली फंक्शन में मौजूद रहती है. वहीं, मीरा राजपूत और जाह्नवी कपूर का एक साथ जिम करना भी सुर्खियों में रहता है.

बता दें कि ईशान खट्टर और जाह्नवी कपूर एक साथ फिल्म धड़क से डेब्यू किया था, जिसके बाद ब्लौकबस्टर मराठी फिल्म सैराठ की हिंदी रीमेक में इन दोनों की केमिस्ट्री औडियंस को खूब पसंद आई थी.

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इस वजह से ट्रोलिंग का शिकार हुई शाहिद की वाइफ मीरा, फैंस ने सुनाई खरी खोटी

बौलीवुड एक्टर शाहिद कपूर जितना अपनी फिल्मों को लेकर सुर्खियों में रहते हैं उतना ही पर्सनल लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में रहते हैं. वहीं बात उनकी वाइफ मीरा राजपूत की करें तो वह भी अक्सर सुर्खियां बटोरती नजर आती हैं, लेकिन इस बार उनके सुर्खियों में आने का कारण उनकी कुछ फोटोज का ट्रोल होना बन गया है. आइए बताते हैं क्या है मीरा राजपूत के ट्रोल होने का कारण…

मीरा ने कराया फोटोशूट

हाल ही में मीरा राजपूत ने एक जानी-मानी मैगजीन के लिए कवर फोटोशूट कराया है, जिसके कारण लोग सोशल मीडिया पर उन्हें बुरा भला कह रहे हैं.

 

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Throwing that bouquet is so passé ?

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लोगों ने ऐसे किया ट्रोल

एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है, ‘शाहिद कपूर की पत्नी मीरा राजपूत ने कौफी विद करण पर कहा था कि वो नेपोटिज्म के खिलाफ हैं लेकिन अब वो खुद मैगजीन के कवर हैं क्योंकि वो शाहिद कपूर की पत्नी हैं.’ तो दूसरे यूजर ने लिखा है, ‘अगर कोई यह पूछ रहा है कि मीरा राजपूत ने ऐसा क्या किया है कि वो वोग के कवर पर हैं तो मैं उन्हें बताना चाहती हूं कि यह एक अच्छा सवाल है….’

करण के शो में कह चुकी हैं ये बात

mira

मीरा राजपूत कुछ समय पहले करण जौहर के चैट शो पर गई थीं, जहां उन्होंने नेपोटिज्म पर बात करते हुए कहा था कि वो इसे बिल्कुल भी सपोर्ट नहीं करती हैं.

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लोग कर रहे ये सवाल

लोग मीरा राजपूत से यही पूछ रहे हैं कि जब वो नेपोटिज्म को सपोर्ट नहीं करती हैं तो उन्होंने इतनी बड़ी मैगजीन के लिए कवर फोटोशूट क्यों कराया ? क्या उन्हें यह नहीं पता है कि ऐसी कई सारी महिलाएं हैं, जो उनसे ज्यादा डिजर्विंग हैं इस मैगजीन के कवर पर आने के लिए ? उन्होंने ऐसा कौन सा काम किया है, जिस वजह से उन्हें कवर पर आने का मौका मिला है ?

बता दें, मीरा अक्सर जिम के बाहर शाहिद कपूर के साथ स्पौट होती हैं तो कभी वो अपने बच्चों के साथ मुंबई में देखी जाती हैं, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं.

शाहिद कपूर- मैं कबीर सिंह बनकर घर नहीं जा सकता था…

फिल्म ‘इश्क-विश्क’ से बौलीवुड कैरियर की शुरुआत करने वाले एक्टर शाहिद कपूर ने कई सफल फिल्में देकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनायीं है. हालांकि उनकी फ़िल्मी सफ़र कई उतार-चढ़ाव के बीच रहा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जो भी फिल्में मिली, करते गए. उन्होंने हर तरह की फिल्मों में काम किया है. ‘विवाह’, ‘जब वी मेट’, ‘पद्मावत’, ‘उड़ता पंजाब’ आदि उनकी कई ऐसी फिल्में है, जिससे बौक्स औफिस पर काफी सफलता मिली. उन्होंने जिंदगी को जैसे आया वैसे जीने की कोशिश की. काम के दौरान ही उन्होंने मीरा राजपूत से शादी की और दो बच्चों के पिता बने. सुलझे व्यक्तित्व के एक्टर शाहिद कपूर की फिल्म ‘कबीर सिंह’ की सफलता पर वे बहुत खुश है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश…

सवाल. इस फिल्म में कबीर सिंह बनना कितना कठिन था?

तेलुगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ सबको अच्छी लगी थी और इसमें कबीर राजधीर सिंह बनना मेरे लिए चुनौती थी. ये हिंदी मेनस्ट्रीम के दर्शकों के लिए बनाया गया है, जिसे लोग पसंद कर रहे है. इसमें बैकड्राप अलग है, क्योंकि ये दिल्ली और मुंबई को बेस बनाकर बनायीं गयी है. बाकी इसमें अधिक बदलाव नहीं किया गया.

सवाल. इतनी इंटेंस भूमिका करने के बाद फिर से नार्मल होना कितना कठिन था?

मुश्किल नहीं था, हर दिन मुझे अपनी भूमिका से निकलना पड़ा और अपनी पत्नी और बच्चों के पास जाना था, ऐसे में कबीर सिंह बनकर घर नहीं जा सकता था. मैं एक प्रैक्टिकल एक्टर हूं. काम और निजी जिंदगी को नहीं मिलाता.

 

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These weekend numbers got us all like ? #kabirsingh

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सवाल. आपने अलग-अलग भूमिका की है, क्या कभी आपको ऐसे एक्सपेरिमेंट से डर लगा?

ये सही है कि आज के दर्शकों के मनोभाव को समझना मुश्किल होता है. मैंने हमेशा सोच-समझकर काम करने की कोशिश की और कबीर सिंह पहले से ही एक सफल फिल्म है. इसलिए इसके लिए मुझे कभी भी डर नहीं लगा. चरित्र और कंटेंट दोनों ही फिल्म की सफलता को निर्धारित करते है. इस फिल्म में मैंने एक दिल टूटे आशिक की भूमिका निभाई है, जिससे कई लोग रिलेट कर सकते है. दर्शक अगर फिल्म की कहानी से रिलेट कर पाए, तो फिल्म सफल होती है. फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ का सब्जेक्ट बहुत ही डार्क था, इसलिए उससे सबका जुड़ना संभव नहीं था, पर वह सफल रही, क्योंकि कहानी में सच्चाई थी. अलग भूमिका निभाने में मुझे कभी डर नहीं लगा. आज लोग रियलिटी को देखना पसंद करते है और वैसी फिल्में बन भी रही है.

सवाल. क्या आप कभी इस तरह के इंटेंस प्यार के शिकार हुए?

इस फिल्म के साथ मेरी कई पुरानी यादें ताज़ा हो गयी थी. ये एक कैंपस लव स्टोरी है. कौलेज के जमाने में जब प्यार हुआ था, मैंने जब किसी लड़की को पहली नजर में पसंद किया था तो कैसे बातें की थी. जब दिल टूटा तो कैसे अनुभव हुए थे. मसलन अकेले बैठे रहना, किसी से बातें न करना, इमोशनल गाने सुनना आदि बहुत सारे अनुभव हुए थे, जबकि ऐसा रियल में होता नहीं. जिंदगी हमेशा आगे बढती जाती है. अभी मैं 38 साल का हो चुका हूं और मेरे अंदर भी कई सारे परिवर्तन हुए है, जो पहले नहीं था.

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सवाल. आजकल आप फिल्मों के माध्यम से मैसेज देने की कोशिश कर रहे है, क्या फिल्में परिवेश को बदलने में सफल होती है?

आज के दर्शक काफी जागरूक है. वे फिल्मों को फिल्मों के नजरिये से ही देखते है और हर फिल्म में मैसेज नहीं होता. जबरदस्ती इससे डालने की भी जरुरत नहीं होती, क्योंकि फिल्में मनोरंजन का माध्यम है. इस फिल्म में मुझे एक बात अच्छी लगी है कि इसमे डिप्रेशन में जाने वाले को दिखाया गया है और अधिकतर लोग जब डिप्रेशन में होते है, तो उन्हें लगता है कि उन्हें कोई समझ नहीं रहा. वे अकेले इससे दौर से गुजर रहे है, जबकि ऐसा नहीं होता. बहुतों को ऐसा होता है और उससे खुद ही व्यक्ति निकल सकता है. मैंने अलग-अलग इमोशन की फिल्में करने की कोशिश की है. आम जीवन में हर दिन एक जैसे नहीं होता और फिल्में भी उसी की प्रतिबिम्ब होती है.

सवाल. प्यार के बारे में आपकी सोच क्या है?

मैं प्यार को स्ट्रोंगली मानता हूं और इससे जुड़ी शादी को भी अहमियत देता हूं. प्यार को सही नाम देना भी आपके उपर निर्भर करता है. प्यार की जरुरत हमेशा सभी को होती है.

सवाल. आप किस तरह के पिता है और बच्चों को किस तरह की आजादी देते है?

मैंने जरुरत के अनुसार काम किया है. जैसे बच्चों को खाना खिलाना, उनके डायपर बदलना, खेलना, स्कूल जाना, उनकी किताबें पढ़ना, सुलाना आदि सब किया है. मीरा कई बार परेशान हो जाती है ,पर मैं उन्हें सम्हाल लेता हूं. बच्चों को हर काम की आजादी, उनके उम्र के हिसाब से देता हूं. मैं बच्चों के साथ रोज समय बिताने की कोशिश करता हूं और अगर न बिता पाया तो असहज महसूस करता हूं.

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सवाल. क्या अभिनय के अलावा और कुछ करने की इच्छा है?

मैं फिल्मों से जुड़े हुए ही कुछ काम करने की इच्छा रखता हूं, लेकिन वह समय मिलने पर ही करना चाहता हूं.

एडिट बाय- निशा राय

कबीर सिंह फिल्म रिव्यू: लीक से हटकर लव स्टोरी

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः मुराद खेतानी, अश्विन वर्दे, भूषण कुमार, किशन कुमार

लेखक व निर्देशकः संदीप रेड्डी वांगा

कलाकारः शाहिद कपूर, किआरा अडवाणी,अर्जन बाजवा और सुरेश ओबेराय

अवधिः दो घंटे 55 मिनट

बौलीवुड में प्यार को लेकर हजारों फिल्में बन चुकी हैं. बेइंतहा प्यार में डूबे प्रेमी अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं. प्यार में कुर्बान हो जाने वाले प्रेमियों की भी कमी नही है. मगर फिल्म ‘‘कबीर सिंह’’ में एक अलग तरह की प्रेम कहानी है. यह कहानी एक बेहतरीन सर्जन डौक्टर की है, जो कि अति गुस्सैल है. उसके गुस्से आगे कोई नहीं ठहर सकता. वह अपने मेडिकल कौलेज की नई छात्रा प्रीति से बिना पूछे ही प्यार कर बैठता है और उसे अपने प्यार में दिवाना भी बना देता है. मगर कबीर सिंह भी दिशा भ्रम का शिकार है. अपने अंदर के गुस्से पर काबू न कर पाने और हालात का सही आकलन न कर पाने वाले युवक की कहानी है कबीर सिंह. माना कि वर्तमान युवा पीढ़़ी में चंद युवक कबीर सिंह की तरह गुस्सैल, दिशा भ्रमित, परिवार व समाज की परवाह न करने वाले, दिन रात ड्रग्स, शराब, सिगरेट आदि में डूबे रहने वाले,परि7स्थितियों का सही आकलन करने की बजाय सब कुछ गंवा देने वाला एक प्रतिशत युवक मौजूद होगा, मगर फिल्म में उसका महिमा मंडनकर पूरी युवा पीढ़ी को एक ही पायदान पर खड़ा कर देने की फिल्मकार की  कोशिश को जायज तो नहीं ठहराया जा सकता.फिल्म में कामुकता को प्यार से जिस तरह फिल्मकार ने जोड़ा है,वह भी कई सवाल खडा करता है. सिनेमा को महज मनोरंजन का साधन मानकर मनोरंजन के नाम पर इस तरह के चरित्रों का महिमा मंडन करना उचित है?मगर फिल्मकार की नजर में यह सारे सवाल बेमानी है क्योंकि हिंदी फिल्म ‘कबीर सिंह’ 2017 की सफल तेलगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ का रीमेक है.

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कहानीः

यह कहानी नशे में धुत होनहार सर्जन डौक्टर कबीर सिंह की है,जो कि अपने पिता राजधीर सिंह (सुरेश ओबेराय) द्वारा घर से निकाला गया है. वह एक किराए के मकान में एक कुत्ते के साथ रहता है, जिसे वह प्रीति के नाम से बुलाता है. फिर कहानी अतीत में दिल्ली के एक मेडिकल कौलेज से शुरू होती है. जहां पर डौ.कबीर सिंह (शाहिद कपूर) मास्टर आफ सर्जरी की पढ़ाई कर रहा है. उसका जिगरी दोस्त है शिवा (सोहम मजूमदार). अपने गुस्से पर काबू न रख पाने वाला कबीर सिंह बेहतरीन फुटबाल खिलाड़ी भी है. गुस्से में किसी का भी सिर,हाथ या पैर तोड़ देना उसके लिए बहुत मामूली बात है. दो कौलेज की टीमें जब फुटबाल मैच के लिए मैदान पर उतरती हैं, तो दूसरी टीम के कैप्टन अमित (अमित शर्मा) व दूसरे खिलाड़ियों की कबीर सिंह जबरदस्त पिटाई करता है. जिसके चलते उसे कौलेज के डीन (आदिल हुसेन) कालेज से निकालने का आदेश दे देते हैं. मगर कौलेज में हुए नए प्रवेश में से एक लड़की प्रीति सिंह सिक्का (किआरा अडवाणी) को देखते ही कबीर सिंह उसे अपना दिल दे बैठते हैं. फिर वह डीन से लिखित माफी मांगकर कौलेज में ही बने रह जते हैं और कौलेज की हर कक्षा में जाकर शिक्षक की मौजूदगी में पंजाबी भाषा में हर लड़के व लड़की को धमकी दे आता है कि प्रीति के साथ कोई रैगिंग नहीं होगी, कोई उसे परेशान नहीं करेगा. प्रीति पर सिर्फ उसका हक है. होली के दिन जब अमित, प्रीति पर रंग डाल देता है और प्रीत रोती है, तो प्रीति को साथ ले जाकर जिस तरह से कबीर सिंह, अमित की पिटाई करता है, उससे प्रीति का वह दिल जीत लेता है. उसके बाद कबीर सिंह, प्रीति की परछाई बनकर अपनी सर्जन की पढ़ाई पूरी करता है. प्रीति भी डाक्टर बन जाती है. मगर इस दौरान दोनों के बीच न सिर्फ प्यार परवान चढ़ता है, बल्कि कबीर सिंह व प्रीति के बीच शारीरिक संबंध भी कई बार बनते हैं. मगर फिर प्रीति के रूढ़िवादी परिवार और कबीर सिंह के गुस्से के चलते प्रीति की शादी कहीं और हो जाती है. कबीर सिंह शराब व ड्रग्स के नशे में जो गुस्से में जो हरकत करता है, उसके चलते कबीर के पिता उसे घर से बाहर कर देेते हैं. अब कबीर सिंह खुद को तबाह करने लगता है. इसी बीच एक अभिनेत्री जिया शर्मा (निकिता दत्ता) से भी कबीर सिंह के शारीरिक संबंध बनते हैं. वह आज भी बेहतरीन सर्जन है. उसका एक भी आपरेशन असफल नहीं होता, जबकि वह सारे आपरेशन शराब व ड्रग्स के नशे में धुत होकर ही करता है. पर एक आपरेशन के बाद उसका काम उससे छिन जाता है. अब तो उसकी जिंदगी तबाही के कगार पर पहुंच चुकी है. तभी कबीर सिंह की दादी (कामिनी कौशल) की मौत हो जाती है और इससे कबीर सिंह विचलित होकर खुद को नशे से दूर करने का वादा कर सुधर जाता है फिर एक दिन नौ माह की गर्भवती प्रीति से कबीर सिंह की मुलाकात एक बगीचे में होती है, पता चलता है कि प्रीति के पेट में कबीर का ही बच्चा पल रहा है. दोनों की शादी हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

एक नकारात्मक चरित्र को हीरो बनाकर पेश करने के लिए फिल्मकार संदीप रेड्डी वांगा ने सिनेमा के सारे क्राफ्ट का बेहतरीन उपयोग किया है. ड्रग्स व शराब के आदी, अति गुस्सैल, अपनी प्रेमिका के प्रति अति संरक्षणात्मक रवैया, सेक्स में डूबा रहने वाला, हिंसक मगर कुशल सर्जन को अपनाना दर्शक के लिए कठिन होता है, मगर फिल्मकार संदीप रेड्डी वंगा के कथा कथन शैली में गुम दर्शक सब कुछ पचा जाता है. कबीर सिंह का प्यार पर फना हो जाने का जज्बा, प्यार व अपने पेशे के प्रति ईमानदारी, काम से हटाए जाने की नौबत आने पर भी झूठ की सच बोलने की कबीर की अदा भी कबीर को दर्शकों का अपना बना देती है. मगर दर्शक सोचता रहता है कि तमाम बुराईयों व नकारात्मक पक्ष के बावजूद कबीर सिंह में कुछ अच्छा निकलकर आएगा, लेकिन अंत तक ऐसा कुछ नहीं होता. कबीर सिंह एक बेहरतीन प्रेमी भी नहीं बन पाता, क्योकि प्रीति से शादी न होने के बाद वह दूसरी शादी नहीं करता, मगर अपनी शारीरिक इच्छा यानी कि महज सेक्स यौन तृप्ति के लिए एक फिल्म अभिनेत्री से संबंध जोड़ता है. फिल्मकार ने जिस तरह से जंगल व कार के अंदर कबीर व अभिनेत्री जिया के बीच सेक्स संबंध दिखाए हैं, वह कबीर को अति छोटा ही बनाते है. जब कबीर सिंह खुद को बर्बादी की तरफ ले जा रहे होते हैं, तो उनके अंदर का जो दर्द है, वह दर्शक महसूस नहीं कर पाता, यह निर्देशक और अभिनेता शाहिद कपूर की कमजोरी ही है.

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डायरेक्शन…

इंटरवल के बाद फिल्म पर से फिल्मकार की पकड़ थोड़ी ढीली हो गयी है. इंटरवल के बाद कहानी में काफी दोहराव है. एडीटिंग टेबल पर इसे कसने की जरुरत थी. लगभग तीन घंटे की अवधि से फिल्म काफी लंबी हो गयी है. इसे काफी कम किया जा सकता था.

फिल्म के गाने प्रभावित नहीं करते. फिल्म में जिस तरह से एक दो लाइनें बीच बीच में पिरोई गयी हैं, वह कहानी की गति को बाधित करती हैं.

इतना ही नही जिसने मूल तेलगू फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ देखी है, उन्हें ‘कबीर सिंह’ काफी सतही फिल्म नजर आएगी. ‘अर्जुन रेड्डी’के साथ ‘कबीर सिंह’ की तुलना करने वालों को कबीर सिंह से निराशा ही होगी.

अभिनयः

अति जटिल, डार्क, विद्रोही, गुस्से पर काबू न रखने वाले, ड्रग्स व नशे के आदी कबीर सिंह के किरदार को जीवंत कर शाहिद कपूर ने अपनी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता को दर्शाया है, मगर कुछ दृश्यों में ‘उड़ता पंजाब’ वाला देाहराव भी है. कबीर सिंह के दोस्त शिवा के किरदार में सोहम मजूमदार ने खुद को एक बेहतरीन कलाकार के रूप में उभारा है. मेडिकल कौलेज के डीन के छोटे किरदार में आदिल हुसैन की प्रतिभा को जाया किया गया है. किआरा अडवाणी खूबसूरत लगी हैं. पर कई दृश्यों में वह अपनी आंखों से काफी कुछ कह जाती हैं. दादी के किरदार में कामिनी कौशल याद रह जाती है. सुरेश ओबेराय, निकिता दत्ता, अर्जन बाजवा, कुणाल ठाकुर ने ठीक ठाक काम किया है.

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Edited by Rosy

कियारा आडवाणी से जानें उनकी ब्यूटी का राज

बौलीवुड एक्ट्रेस कियारा आडवाणी इन दिनों अपनी आने वाली फिल्म कबीर सिंह के लिए प्रमोशन में डुटी हुई हैं. कियारा की एक्टिंग जितनी अच्छी है उतनी ही वह खूबसूरत हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कियारा ने अपनी खूबसूरती और फिटनेस से जुड़े कुछ खास टिप्स बताएं. जिसे आप अपनी खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए मौनसून में अपनी सकती हैं. आइए जानते हैं उनकी खूबसूरती के कुछ खास टिप्स-

सवाल- गर्मी और मानसून में अपने ब्यूटी का ख्याल कैसे रखती है?

मेरी जींस ऐसी है कि मुझे बहुत ज्यादा ब्यूटी का ख्याल नहीं रखना पड़ता, लेकिन कुछ चीजों को मैं हमेशा फौलो करती हूं. मसलन बालों के लिए सही शैम्पू का इस्तेमाल करना, बालों को अच्छी तरह से धोना, तेल लगाना आदि करती हूं.

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मेकअप उतारना नहीं भूलती

ज्यादा मेकअप करना फेस हैल्थ के लिए सही नही होता, लेकिन एक्ट्रेस और बिजी लाइफस्टाइल के कारण हमें मेकअप करना पड़ता है. इसलिए कितनी भी देर हो, लेकिन मैं अपना मेकअप उतारना नहीं भूलती.

स्किन के लिए नींद है जरूरी

लेट नाइट पार्टी और देर से सोने से मैं बचना पसंद करती हूं, क्योंकि टाइम से सोने से हमारी स्किन अच्छी रहती है और स्किन के लिए ये भी जरूरी है कि अपनी नींद पूरी करना न भूलें. अगर आपकी नींद पूरी नहीं होगी तो आपका फेस डल लगेगा.

लिक्विड ज्यादा पीना

मौनसून हो या समर स्किन को हाइड्रेट रखना जरूरी होता है, इसलिए जरूरी है कि आप ज्यादा से ज्यादा लिक्विड पीयें. चाहे वह जूस हो या पानी.

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स्किन को हेल्दी रखने के लिए डेली वर्कआउट

डेली वर्कआउट स्किन की स्किन हेल्थ के लिए बहुत अच्छा होता है. ये स्किन को नेचुरली टोन करने का काम करता है. साथ ही बौडी को भी फिट बनाए रखता है. ये मेरे ये मेरी ब्यूटी रिजीम में से एक है.

अगर प्यार टूटे तो अपनी आइडेंटिटी को कभी न भूलें- कियारा आडवाणी

बचपन से एक्टिंग की इच्छा रखने वाली एक्ट्रेस कियारा आडवाणी की बौलीवुड में एंट्री ‘फगली’ से हुई, लेकिन वह फिल्म बौक्स औफिस पर नहीं चली और फिर ढाई साल की कोशिश और मेहनत के बाद उन्हें फिल्म ‘एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी’ मिली.  जिसमें उनका रोल औडियंस को बेहद पसंद आया. वहीं अब कियारा अपनी नई फिल्म ‘कबीर खान’ में नजर आने वाली हैं. पेश है उनसे खास बातचीत के अंश.

सवाल- आपने इस फिल्म में बहुत ही शांत स्वभाव की लड़की की भूमिका निभाई है, असल जिंदगी में आप कैसी है?

ऐसी में बिल्कुल भी नहीं हूं. मैं बहुत ही चुलबुली स्वभाव की हूं. मेरी भूमिका एक ऐसे शांत लड़की की है, जिसकी जिंदगी में ठहराव है. इस किरदार को निभाना मेरे लिए चुनौती रही है. इसमें मुझे अधिकतर भाव आंखों से कहने पड़े है. शाहिद कपूर जैसे साथी कलाकार के होने की वजह से मुझे मेरी भूमिका निभाने में सहजता महसूस हुई. यह मेरी जर्नी की पहली लव स्टोरी वाली फिल्म है. उम्मीद है दर्शकों को पसंद आयेगी. इतना जरुर है कि इस चरित्र से कुछ-कुछ मेल है. मैं अपने प्यार के प्रति हमेशा निष्ठावान रहन पसंद करती हूं. मैं किसी भी रिलेशनशिप को महत्व देती हूं. मेरे लिए एक पुरुष और महिला के सम्बन्ध को शादी का रूप देना जरुरी है और विवाह जैसी संस्था को मैं सही मानती हूं.

 

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सवाल- आपको कभी प्यार हुआ या प्यार टूटने का एहसास हुआ?

जब मैं कौलेज में थी मुझे प्यार हुआ और वह बहुत अच्छा एहसास था, लेकिन जब आप ग्रो करते है, तो उसकी बारीकियां समझ में आती है. प्यार टूटने का दुःख हुआ, पर मैंने अपने परिवार के साथ उसे बाटने की कोशिश की, पहले मैं थोड़े दिन रोई, पर बाद में सब ठीक हो गया. किसी का भी अगर प्यार टूटता है, तो अपनी आइडेंटिटी को कभी नहीं भूलना चाहिए. आप जो है, उसे कायम रखे, काम पर फोकस करें और आगे बढे. अभी अगर फिर से मैंने किसी को प्यार किया, तो मुझे सबके सामने कहने में कोई एतराज नहीं होगी.

सवाल- आप अपनी फिल्मों की जर्नी को कैसे लेती हैं?

अभिनेत्री बनना मेरा एक सपना था. साल 2014 में मैंने फिल्म ‘फगली’ की थी. तब मुझे लगा थ कि पहली फिल्म मिलने के बाद मेरी जर्नी आसान होगी,लेकिन पहली फिल्म के बाद दूसरी फिल्म का मिलना और अधिक कठिन था. मेरी पहली फिल्म नहीं चली ,इससे ढाई साल तक मुझे कोई काम नहीं मिल रहा था. इससे मुझे बहुत निराशा हाथ लगी थी. उस समय मेरी परिवार ने बहुत सहयोग दिया. उन्होंने मुझे और अधिक मेहनत करने और औडिशन देते रहने की सलाह दी. मुझे पता नहीं चल रहा था कि कहां मुझे काम मिलेगा. फिर एम एस धोनी- द अनटोल्ड स्टोरी फिल्म मेरे पास आई. उस फिल्म ने मेरी पहचान बनायी. फिर मुझे काम मिलना शुरू हुआ. आज मुझे खुशी इस बात से है कि तब जो निर्देशक मुझसे मिलना नहीं चाहते थे, आज वह मुझे मेसेज कर मिलने की इच्छा जताते है. मेरे काम की तारीफ करते है. इस प्रोसेस को मैं मेहनत के साथ एन्जौय करना चाहती हूं.

सवाल- किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का ध्यान रखती है?

मैं अपने सूझ-बूझ से इसका चुनाव करती हूं. कई बार ये समझना मुश्किल होता है कि फिल्म चलेगी या नहीं. इसके अलावा मेरी एजेंसी और निर्माता निर्देशक करण जौहर से सलाह लेती हूं.

 

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सवाल- आपका सम्बन्ध कलाकार परिवार से रहा है, ऐसे में उन लोगों से क्या सीख मिली ?

जब मैं बहुत छोटी थी, जब अभिनेता अशोक कुमार का निधन हुआ था. मैं उनसे कभी नहीं मिली थी. मेरी मां और पिता व्यवसाय और शिक्षा के क्षेत्र से है. मुझे उनसे मिलने का अवसर नहीं था. जो भी मैंने किया है वह मेरी अपनी जर्नी है. मैं अभी सबकुछ सीख रही हूं.

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सवाल- परिवार का सहयोग आपके काम में कितना रहा?

मेरे माता-पता ने हमेशा सहयोग दिया है. किसी भी बात की चर्चा मैं उन दोनों से कर सकती हूं. वे मेरे आदर्श है.

सवाल- सोशल मीडिया पर आप कितनी एक्टिव हैं?

मैं खुद सोशल मीडिया को हैंडल करती हूं. मुझे अपने फैन से मिलना अच्छा लगता है और मैं समय-समय पर अपनी तस्वीरें शेयर करती रहती हूं. ये अच्छा मंच है. इसमें आप अपनी बात कह सकते है.

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Edited by Rosy

Father’s Day Special: दीपिका-आलिया से जानें क्यों खास हैं पापा

फादर्स डे हर साल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है इसके मनाने का उद्देश्य पिता को मान देना है. हालांकि यह परंपरा विदेशों से आया है, जहां अधिकतर वैवाहिक रिश्ते टूटने पर पिता बच्चे की परवरिश करते है, लेकिन आजकल हमारे देश में भी इसकी संख्या बढ़ी है. फादर्स डे को सिर्फ आम लोग ही नहीं बल्कि बौलीवुड सेलेब्स भी सेलिब्रेट करते हैं. तो चलिए इस मौके पर इन सेलेब्स से ही जानते हैं उनके पिता के बारे में कुछ खास बातें…

  1. दीपिका पादुकोण…

एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अपने पिता प्रकाश पादुकोण के बहुत करीब है. जब उन्होंने अभिनय क्षेत्र में कदम रखा था तो उन्होंने सबसे पहले अपनी राय पिता को बताई थी और उन्होंने उसे उसकी परमिशन दी थी. वह कहती है कि मेरे पिता ने हमेशा मुझे प्रोत्साहन दिया है और आज किसी भी सेलिब्रेशन को मैं उनके साथ साझा करना पसंद करती हूं, उन्होंने मुझे हमेशा किसी भी काम को सौ प्रतिशत कमिटमेंट करने की सलाह दी है. मेरी जिंदगी में उनकी बहुत अहमियत है.

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  1. आलिया भट्ट…

आलिया भट्ट अपने पिता महेश भट्ट के बहुत नजदीक है. वह कहती है कि फिल्मों में आने के बाद उनके और मेरे रिश्ते काफी गहरे हुए है. मेरे पिता बहुत ही साधारण जिंदगी जीना पसंद करते है. उन्हें मैंने हमेशा चप्पलों के साथ चलते हुए देखा है. मैंने उन्हें सबसे पहले एक शू प्रेजेंट किया था,जिसे उन्होंने सम्हाल कर रखा है. मैं हर दिन उनके साथ बिताना पसंद करती हूँ. वे मेरे आदर्श हैं.

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  1. अक्षय कुमार…

अक्षय कुमार के पिता हरि ओम भाटिया आर्मी औफिसर थे. उनके साथ उन्होंने बहुत अच्छा समय बिताया. वे कहते है कि मेरे अनुशासित जीवन का राज मेरे पिता है, जिन्होंने बचपन से मुझे इसकी ट्रेनिंग दी. वे मेरे आदर्श है. उन्हें हर तरह के मनोरंजक फिल्में पसंद थी. वे स्ट्रिक्ट पिता थे ,पर हर तरह के काम को प्रोत्साहन देते थे. मुझे याद आता है कि मेरी फिल्म ‘वक्त- द रेस अगेंस्ट टाइम’ के समय शूटिंग करना मेरे लिए बहुत कठिन था ,क्योंकि अभिनय और रियल लाइफ दोनों एक साथ चल रहे थे. फिल्म में अमिताभ बच्चन को कैंसर से लड़ते हुए दिखाया गया था जब कि रियल लाइफ में भी मेरे पिता भी कैंसर से जूझ रहे थे. ये फिल्म मैंने उनको समर्पित की है.

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  1. शाहिद कपूर

शाहिद कपूर की मां एक्ट्रेस नीलिमा अज़ीम, एक्टर पंकज कपूर से तब अलग हुए जब वह बहुत छोटे थे. वे कहते है कि मेरे पिता बहुत ही अच्छे पिता है. ये मैंने तब जाना जब मैं पिता बना. ये सही है कि जब मैं सिर्फ 2 साल का था, तब मेरे माता-पिता अलग हो गए थे. मुझे उस समय की कोई बात याद नहीं. जब मैं 17-18 साल का हुआ, तब मेरे और पिता के बीच में नजदीकियां बढ़ी. वह मेरे जीवन में बहुत अहमियत रखते है. मैं अपने पिता और मेरे बच्चों को साथ देखना पसंद करता हूं. वह मुझे बहुत ख़ुशी देती है.

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  1. कृष्णा भारद्वाज

कृष्णा कहते है कि मैं रांची से हूं और मेरे पिता का नाम डौ. अनिकेत भारद्वाज है. मेरे अंदर अभिनय की प्रतिभा को मैंने अपने पिता में भी देखा है. वे एक एक्टर,राइटर और डायरेक्टर है. हिंदी की ट्रेनिंग मुझे बचपन से ही मिली है, इसलिए मैं तेनाली राम की भूमिका अच्छी तरह से निभा पा रहा हूं, क्योंकि इसमें शुद्ध हिंदी बोलना पड़ रहा है. इस बार मैं पिता से दूर हूं,पर हमेशा उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है.

एडिट बाय- निशा राय

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