‘Jaane Jaan’ की स्क्रीनिंग पर पहुंचे लव वर्ड्स तमन्ना भाटिया- विजय वर्मा, फैंस ने दिया प्यार

विजय वर्मा बॉलीवुड के अभिनेता हैं जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की थी. एक्टिंग की शिक्षा प्राप्त करने के बाद, विजय को कई फिल्मों में देखा गया. हालांकि, वह काफी सालों बाद 2016 में फिल्म पिंक में शानदार अभिनय के बाद वह फेमस हुए. तब से, उन्होंने कई  बेव सीरिज और बॉक्स ऑफिस पर हिट फिल्में दी है.

वर्तमान में, विजय अपनी अपकमिंग ओटीटी फिल्म ‘जाने जान’ को प्रमोट कर रहे हैं. सीरिज की रिलीज से पहले आज, मिस्ट्री थ्रिलर फिल्म की टीम ने एक स्क्रीनिंग का आयोजन किया जिसमें बी-टाउन के कई सितारों ने भाग लिया.

बॉलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर की ओटीटी डेब्यू सीरिज ‘जाने जान’ की मुंबई में बीती रात को स्क्रीनिंग रखी गई. इस स्क्रीनिंग में कई बॉलीवुड सितारों ने शिरकत की. वहीं इस स्क्रीनिंग के दौरान फिल्म से ज्यादा चर्चा विजय वर्मा की गर्लफ्रेंड तमन्ना भाटिया की. स्क्रीनिंग के समय दोनों कपल साथ में पोज देते हुए खुश नजर आ रहे थे. दोनों ने पैपराजी को पोज दिए और दूसरे सेलेब्स के साथ हंसी मजाक मस्ती में बाते की.

 

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तम्मना भाटिया और विजय वर्मा

‘जाने जान’ की इवेंट में सभी का ध्यान न्यू लव वर्ड्स तम्मना भाटिया और विजय वर्मा पर खींच लिया. वहीं दोनों हाथों में हाथ डलकर स्क्रीनिंग पर पहुंचे. इस दौरान दोनों बहुत ही प्यारे लग रहे थे.

लुक की बात करें तो विजय वर्मा ब्लैक शर्ट के साथ गोल्डन पैंट और ब्लेजर में स्टाइलिश लग रहे थे. वहीं, ब्लू ड्रेस में तमन्ना भाटिया का ग्लैमर ऑन-पॉइंट था. हाई स्लीक हेयर बन, हाई हील्स और न्यूड मेकअप में वह खूबसूरत लग रही थीं.

 

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तमन्ना भाटिया और विजय वर्मा का वर्कफ्रंट

तेलुगु, तमिल और हिंदी फिल्मों में काम करने वाली भारतीय अभिनेत्री तम्मना को विजय वर्मा के साथ लस्ट स्टोरीज़ 2 में देखा गया था. इसके बाद वह तमिल फिल्म जेलर और तेलुगु भाषा में भोला शंकर लेकर आईं. वेदा 2024 में उनका अगला हिंदी प्रोजेक्ट होगा. वहीं विजय वर्मा की बात करें, तो ‘जाने जान’ के बाद वह अफगानी स्नो और मर्डर मुबारक में नजर आएंगे.

Sara Ali Khan: किसी के बोलने से फर्क नहीं पड़ता

12 अगस्त, 1995 को पटौदी परिवार में जन्मी सारा अली खान अभिनेत्री अमृता सिंह और अभिनेता सैफ अली खान की बेटी हैं. कोलंबिया विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातक की डिगरी हासिल करने के बाद सारा ने 2018 में सुशांत सिंह राजपूत के साथ रोमांटिक फिल्म ‘केदारनाथ’ से अभिनय जगत में कदम रखा था. इस के बाद उन्होंने ऐक्शन कौमेडी फिल्म ‘सिंबा’ की. ‘फोर्ब्स इंडिया’ की 2019 की 100 सैलिब्रिटीज सूची में सारा का नाम भी दर्ज हुआ. इस के बाद वे आनंद एल राय द्वारा निर्देशित फिल्म ‘अतरंगी रे’ में नजर आईं. हाल ही में उन की फिल्म ‘जरा हट के जरा बच के’ प्रदर्शित हुई है, जिस में विक्की कौशल उन के हीरो हैं.

अभिनय कैरियर

2018 में प्रदर्शित फिल्म ‘केदारनाथ’ में सारा ने एक ऐसी हिंदू लड़की की भूमिका निभाई, जिसे एक मुसलिम कुली से प्यार हो जाता है. इस फिल्म के लिए उन्होंने अपने सह अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मदद से शुद्ध हिंदी बोलनी सीखी थी.

‘केदारनाथ’ के प्रदर्शन के कुछ सप्ताह बाद सारा ने रणवीर सिंह के साथ रोहित शेट्टी की ऐक्शन फिल्म ‘सिंबा’ में अभिनय किया. उन्होंने ‘केदारनाथ’ की शूटिंग बीचबीच में रोक कर ‘सिंबा’ की शूटिंग की थी. इस के लिए वे विवादों में भी घिरी थीं. बहरहाल, ‘केदारनाथ’ और ‘सिंबा’ में सारा महज सुंदर व ग्लैमरस नजर आई थीं. उन के अंदर अभिनय प्रतिभा का अभाव था.

 

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इस के बाद सारा अली खान निर्देशक इम्तियाज अली की रोमांटिक फिल्म ‘लव आज कल’ में कार्तिक आर्यन के साथ नजर आई. इसी फिल्म के दौरान कार्तिक आर्यन के साथ उन के रोमांस की खबरें गरम हुई थीं, पर किसी ने भी इसे स्वीकार नहीं किया था. बाद में इन के ब्रेकअप की भी खबरें आईं. फिल्म ‘लव आज कल’ में सारा अली खान का किरदार काफी जटिल था, जिस के साथ वे न्याय नहीं कर पाईं. 2020 में ही वे वरुण धवन के साथ हास्य फिल्म ‘कुली नंबर वन’ में भी नजर आईं.

इस फिल्म के लिए भी सारा अली खान के अभिनय की जम कर आलोचना हुई. 2021 में आनंद एल. राय की फिल्म ‘अतरंगी रे’ में उन के सह अभिनेता अक्षय कुमार और धनुष थे. इस में पोस्टट्रौमैटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर वाली एक महिला के किरदार में नजर आईं. मगर यह फिल्म भी सिनेमाघरों के बजाय ओटीटी प्लेटफौर्म ‘डिज्नी हौटस्टार’ पर स्टीम हुई. फिर 2023 की शुरूआत में ‘डिज्नी हौट स्टार’ पर स्टीम हुई पवन कृपलानी की फिल्म ‘गैसलाइट’ में ग्लैमरस लड़की के बजाय व्हील चेयर पर रहने वाली अपाहिज लड़की के किरदार में नजर आईं. इस में उन के ऐक्शन दृश्य भी हैं.

इस फिल्म से उन के प्रशंसकों को कुछ उम्मीदें जगी थीं और अब हाल ही में सारा की लक्ष्मण उत्तेकर निर्देशित फिल्म ‘जरा हट के जरा बच के’ प्रदर्शित हुई. इस फिल्म में उन के सह नायक विक्की कौशल हैं. फिल्मकार ने फिल्म की पूरी कहानी को सारा के किरदार सौम्या आहुजा दुबे के ही इर्दगिर्द बुना है. पर सारा निराश करती हैं. जब शुरुआत में साड़ी पहने हुए बिंदी लगाए सौम्या के किरदार में सारा अली खान परदे पर नजर आती हैं, तो एहसास होता है कि इस में सारा के अभिनय का जादू नजर आएगा. मगर चंद दृश्यों बाद यह भ्रम दूर हो जाता है.

काम न आया अभिनय

बौलीवुड का एक तबका मानता है कि सारा को उन की प्रतिभा के बल पर नहीं बल्कि उन के पिता सैफ अली खान के प्रभाव के चलते ही फिल्में मिल रही हैं.

होमी अदजानिया की फिल्म ‘मर्डर मुबारक’ में भी अभिनय कर रही हैं. वहीं बायोपिक फिल्म ‘ऐ वतन मेरे वतन’ में स्वतंत्रता सेनानी ऊषा मेहता का किरदार निभा रही हैं. ‘ऐ वतन मेरे वतन’ सिनेमाघरों के बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफौर्म ‘अमेजन प्राइम वीडियो’ पर स्ट्रीम होगी.

 

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प्रोफैशनल अदाकारा क्यों नहीं बन पा रहीं

बौलीवुड का एक तबका मानता है कि अपनी कंजूसी के चलते सारा अभिनय के प्रशिक्षण पर भी पैसा खर्च नहीं करना चाहतीं. मगर 2 दिन बाद ही सारा ने अबू धाबी में अपनी कंजूसी की एक मिसाल पेश की, जिस का खुलासा उन्होने स्वयं एक औनलाइन वीडियो इंटरव्यू में किया. वास्तव में सारा अपनी नई फिल्म ‘जरा हट के जरा बच के’ के प्रमोशन के सिलसिले में ‘आइफा अवार्ड’ के समारोह में एक दिन के लिए आबू धाबी गई थीं.

 

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वहां वे पूरी टीम के साथ एक दिन रुकी थीं और अपनी मितव्ययता जीवनशैली के चलते रोमिंग पर पैसे खर्च करने के बजाय अपने हेयर ड्रैसर के हौट स्पौट का उपयोग किया.

सारा अली खान और उन के रिश्ते

इम्तियाज अली की फिल्म ‘लव आज और कल 2’ के दौरान फिल्म के सह कलाकार कार्तिक आर्यन के साथ सारा डेट कर रही थीं. दोनों ने कभी भी अपने रिश्ते की पुष्टि या खंडन नहीं किया हालांकि फिल्म निर्माता करण जौहर ने पिछले साल एक साक्षात्कार में उन के कथित ब्रेकअप के बारे में बात की थी. सारा की क्रिकेटर शुभमन गिल को डेट करने की भी खबरें थीं हालांकि दोनों में से किसी ने भी अपने इस अफवाह भरे रिश्ते की पुष्टि नहीं की.

क्या सीखा

‘‘मेरी सब से बड़ी सीख यह रही है कि उतारचढ़ाव जीवन का एक हिस्सा हैं. जब आप अपने सब से निचले स्तर पर होते हैं, तो आप को उठना और अपनी सब से तेज दौड़ लगानी होती है क्योंकि जब आप कम आत्मविश्वास महसूस कर रहे होते हैं और आप बैकफुट पर खेलना शुरू करो, यह सब से खराब है. मुझे नहीं लगता कि मुझे कोई पछतावा है.’’

बोलने की आजादी के नाम पर जहर फैला रहे है

व्हाट्सएप और ट्विटर अब के नहीं रहेंगे जो अब तक थे. लगता है उन में खुल कर हेट स्पीच और फेक न्यूज देने के दिन लदने लगे हैं. अंधभक्तों की एक बड़ी फौज ने उस बहुत ही उपयोगी मीडिया का जो गलत इस्तेमाल अपना जातिवादधर्मवाद और पुरुषबाद फैलाने के लिए किया था वह कम होने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में साफ कहा है कि हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ पुलिस को खुद एक्शन शुरू करना होगा. व्हाट्सएपट्विटरइंस्टाग्रामफेसबुकयूंट्यूव इसी हेट स्पीच ने बलबूते पर पनत रहे थे.

यह आम बात है कि जहां आपस में 4 जने झगडऩे लगें. 40 लोग तमाशा देखने के लिए खड़े हो जाते हैं. आज की औरततों का सब से बड़ा पार टाइम कोई विवादकिसी की चुगलीकिसी के घर का झगड़ा है. किट्टी पाॢटयों में किस के घर में क्या हुआ की बात होती हैक्या अच्छा करा जाए की नहीं.

व्हाट्सएपफेसबुकइंस्टाग्रामट्विटर के माध्यम से हेट स्पीच और फेक न्यूज की खट्टीमीठी गोली ऐसे ही नहीं दी जाती है. इस के पीछे बड़ा उद्देश्य है पूजापाठ करने वालों के चंदा जमा करनामंदिरों के लिए भीड़ जुटानाघरों में दान करने की लत डालनाआम जनता को तीर्थों में ले जानाआम औरत को बहकाकर पति या सास के अत्याचार से बचने के लिए व्रतपाठमन्नत का सहारा लेना जिस से धर्म की दुकान पर सोना बरसे.

यह ऐसे ही नहीं है कि देश भर में मंदिरोंभक्तोंआश्रणोंबाबाओं की खेती दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है. इस में व्हाट्सएपट्विटरइंस्टाग्राम और फेसबुक का बड़ा हाथ है जिस पर धर्म के दुकानदार बुरी तरह छाए हुए है ओर हर पोज में बड़ा चौड़ा बखान किया जाता है. फेक न्यूज और हेट स्पीच के लिए आए लोग इस प्रचार से प्रभावित होते ही हैं.

एल्ट न्यूज चलाने वाले मोहम्मद जुबेर पर पोस्को एक्ट में शिकायत करने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अब शिकायतों के खिलाफ मुकदमा दायरकरने का आदेश दिया है. मोहम्मद जुबैर के खिलाफ शिकायत करने वाले ने ट्वीटर पर एक तीखे कमेंट धर्म को लेकर किए थे जिस पर जुबेर ने कहा था कि महाश्य गालियां बकने से पहले कम से कम डीपी से अपनी पोती का फोटो तो हटा दो. इस पर चाइल्ड एब्यूज का मामला बना डाला गया और पुलिस ने तुरंत जुबेर को गिरफ्तार भर कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रिहा कर दिया और अब पुलिस कहती है कि अपराध बनता ही नहीं है. यह नहीं बताती कि जब अपराध बनता ही तो गिरफ्तार क्यों किया था.

पुलिस अफसरो को तो सजा हाई कोर्ट ने नहीं दी है पर शिकायती के खिलाफ झूठी शिकायत का मुकदमा करने का आदेश दे दिया है. व्हाट्सएपइंस्टाग्रामफेसबुकट्विटर पर फेक न्यूज डालने वालों के यह चेतावनी है. मजा तब आएगा जब इन्हें फौरवर्ड करने वालों को भी बराबर का अपराधी माना जाने लगे. दानपुण्य की दुकान चलाने के लिए धाॢमक पंडों ने पूरे समाज को कितने ही टुकड़ों में बांट डाला है. औरतों को तो अलगअलग माना जाता रहा हैअब सब धर्मों ही नहीं जातियों को टुकड़ों में बांट दिया है.

इन डिजिटल प्लेटफार्मों पर दलितकुर्मीअहीरजाटराजपूरब्राह्मïवैश्व गु्रप बने हुए हैं जिन में अपनाअपना बखान किया जाता है. फेक न्यूज से हर जाति अपने को महान बता रही है. हरेक के अपने मंदिरपुजारी हैं. ये प्लेट फार्म अलगाव को बुरी तर फैला रहे हैं.

मोबाइल आज फोन नहीं मशीनगन बन गया है जो आप के दिमाग को भून सकता है और आप इस से सैंकड़ों के दिमाग भूल सकते हैं.

मेंटल डिस्टरबेंस को बढ़ा रहा सोशल मीडिया : भ्रमजाल या मायाजाल

एक दिन सुबहसवेरे मैसेज आया, जिसे देख कर हैरान रह गया और सोच में पड़ गया इन दो शब्दों को ले कर. वे शब्द थे ‘हैप्पी एनिवर्सरी’. उस के आगे लिखा था, ‘तुम मेरी जिंदगी हो…’

भले ही ये शब्द कहने में आसान लगे हों, लेकिन बहुत बोझ से लगे. हैं न…

यह पढ़ते ही पुराने दिनों की यादों में खो गया.

कुछ साल पहले तक ये युगल तनाव भरे माहौल में अपने रिश्ते को बखूबी निभा रहे थे. वैसे, इन का रिश्ता टूटने के कगार पर आ पहुंचा था.

मैसेज पढ़ते ही तुरंत फोन किया और शादी की सालगिरह की बधाई दी. झिझकते हुए उस से उस के पति से बात कराने का अनुरोध किया.

उस समय उस का पति उस के पास ही बैठा था. बातचीत के दौरान सोशल मीडिया पर अपनी भेजी गई तमाम पोस्ट को बड़े ही गर्व से कह रहा था, तभी  यह बातचीत अचानक ही खत्म हो गई.

उस का पति यह जताने में कामयाब हो गया कि इंटरनेट के इस जुनूनी युग वह कहां है. उस शख्स का ऐसा कहना था कि फोन करना और मिलनाजुलना अब पुरानी बातें हो गई हैं. अब केवल औनलाइन के जरीए बात करने में वह काफी सहज है.

सोशल मीडिया के माध्यम से उस महिला ने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया. हालांकि उस का पति उस के बगल में बैठ कर सारी बातें भलीभांति सुन रहा था. ऐसा लगा कि शायद अब उन युगल का रिश्ता पहले से ज्यादा मजबूत हुआ है. ऐसा हो भी क्यों न, जब बाहरी दुनिया ने सोशल मीडिया पर शेयर की गई पोस्ट पर लाइक्स की  ज्यादा संख्या से इस की रजामंदी दे दी थी.

बाद में जब अलगअलग जगहों से पता चला कि दंपती के बीच अभी भी सबकुछ ठीक नहीं है यानी तनाव में जी रहे हैं. भले ही वे एक छत के नीचे जरूर हैं, लेकिन अभी भी अलगअलग रह रहे हैं.

सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर निजी जिंदगी को बढ़ाचढ़ा कर पेश करना एक नया ट्रेंड बन गया है, जो वास्तविक और आभासी दुनिया के बीच की खाई को चौड़ा कर रहा है यानी चकाचौंध भरी दुनिया में जीने को विवश कर रहा है, आदी बना रहा है.

आभासी दुनिया में हमारे वजूद के फैलाव ने हमें अपने चारों ओर झूठ का एक ऐसा जाल बुनने के लिए मजबूर किया है, जो वास्तविक दुनिया के साथसाथ भौतिक संपर्क किए जाने पर एक खुला रहस्य बन सकता है और झूठ का महल कभी भी टूट कर बिखर सकता है.

बेशक, सोशल मीडिया पर टूटे रिश्ते और शादियां नए सिरे से दोहराई जा रही हैं, लेकिन यह उन लोगों के लिए टूटे रिश्तों की भावना पैदा करने की कीमत पर किया जा रहा है.

वे दिन गए, जब किसी भी उत्सव को निजी तौर पर पास जा कर, खुशी के पल में शामिल हो कर या एक फोन कर के खुशियों को व्यक्तिगत स्पर्श दिया जाता था. जहां सहानुभूति का एक शब्द जो व्यक्तिगत रूप से व्यक्त किया गया, शोक में डूबे परिवार को अतिरिक्त साहस दे सकता है, आज वहां इंटरनेट के माध्यम से इंस्टेंट मैसेजिंग सर्विस के जरीए संवेदनाओं को पेश किया जाता है.

केवल रिश्ते ही नहीं, बल्कि पारिवारिक यात्राएं भी स्पर्श बिंदुओं को प्रदर्शित करने के लिए की जाती हैं, न कि उन्हें जीवंत करने के लिए. एक विदेशी दौरा केवल फोटो क्लिक करने के लिए लिया जाता है और इसे उन लोगों के लिए प्रलोभन के रूप में शेयर किया जाता है, जो हमेशा घटना के लिए अपनी पसंद दर्ज करने के इच्छुक होते हैं.

ऐसे व्यक्ति के लिए सोशल मीडिया पर ज्यादा लाइक्स मिलने के बाद खुशी और यात्रा के मूल्य को सही ठहराती है.

एक ऐसे देश के नागरिक होने के नाते जो अपने मजबूत धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है, यह अनिवार्य है कि हम मूल प्रणाली में किसी भी विकृति यानी नकारात्मकता से प्रभावित होने वाले आखिरी व्यक्ति होंगे, लेकिन यह तभी हो सकता है, जब हम अपने मूल सिद्धांतों पर टिके रहें, जो सच पर आधारित है.

सोशल मीडिया भ्रमजाल है, मायाजाल है, इस के चंगुल से छूट कर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, प्रियजनों से खुल कर मिलिए, उन्हें बुलाइए, खुशियां बांटिए. जो आप से जुड़े हैं, उन की मौजूदगी का गर्मजोशी से स्वागत करते हुए मजा लें.

थोड़ा वक्त लगेगा संभलने में, डरें नहीं, लेकिन यही भाव हमें सच्चे दोस्त बनाने में मदद करेगा और हमारे सामाजिक तानेबाने को मजबूती देगा, जो वक्त की जरूरत है.

Social media आधी हकीकत-आधा फसाना

अंजूजब कहती है कि मु झे तो घर के कामों से फुरसत ही नहीं मिलती जो सोशल मीडिया पर रहूं, मु झे तो शौक ही नहीं है तो उस की सहेलियां रेनू और दीपा हंस रही होती हैं. उस समय तो दोनों चुप रहती हैं पर बाद में दोनों इस बात पर अंजू की जो छीछालेदर करती हैं, अंजू अगर सुन ले तो इन दोनों के सामने कभी भोली बनने का नाटक न करे.

इस समय यही तो हो रहा है, अंजू की बात पर दोनों अकेले में हंस रही हैं. दीपा कह रही है, ‘‘यार, यह किसे बेवकूफ सम झती है, हर समय फेसबुक पर औनलाइन दिखती है. इस से किसी की पोस्ट पर न लाइक का बटन दबता है, न कमैंट करती है, जौब यह करती नहीं, बच्चे बड़े हो गए हैं, पढ़ने का कोई शौक है नहीं, सारा दिन इस के नाम के आगे ग्रीन लाइट जलती रहती है. सोच रही हूं एक स्क्रीनशौट इसी का ले कर इसी को दिखा दूं किसी दिन. तभी इस  झूठ से हमारा पीछा छूटेगा. यार, इसे पता नहीं है कि अब किसी की लाइफ प्राइवेट नहीं रही.’’

रेनू हंसी, ‘‘सोशल मीडिया कमाल की चीज है, भाई. लोग अपनेआप को होशियार सम झ रहे होते हैं. उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन पर कैसी पैनी नजरें रखी जाती हैं. हीररां झा को ही ले लो,’’ इतना कहते ही दोनों फिर हंसहंस कर लोटपोट होती रहीं.

राज खुलने का भय

बात यह है कि रेनू और दीपा दोनों एक ही स्कूल में टीचर्स हैं इन्हीं के स्कूल में लाइब्रेरियन हैं दीपकजी और ड्राइंग टीचर हैं, सपनाजी. दोनों की उम्र 55 के आसपास है. दीपकजी जरा रंगीन तबीयत के इंसान हैं. महिलाओं से बात करना उन्हें खूब भाता है. महिला किसी भी उम्र की हो, कोई फर्क नहीं पड़ता, बस महिला होनी चाहिए. सपनाजी के दोनों बच्चे विदेश में हैं. यहां अपने रिटायर्ड पति के साथ रहती हैं. उम्र तो 55 हो गई पर दिल 20 पर ही अटक गया है.

एक दिन लाइब्रेरी में कोई बुक लेने गईं तो दीपकजी से ऐसे दिल मिला कि आज रेनू और दीपा जैसी शैतान, नटखट टीचर्स ने उन का नाम ही हीररां झा रख दिया है. इन की चोरी सब ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर ही तो पकड़ी. अब सब लोग फेसबुक पर तो एकदूसरे के फ्रैंड्स हैं ही.

सपनाजी या दीपकजी बस कोई पोस्ट डाल दें, ऐसा मनोरंजन होता है सब का सारा दिन लोग स्कूल में दोनों की तरफ इशारे करते घूमते हैं. दोनों एकदूसरे की पोस्ट पर इतनी तारीफ भरे लंबेलंबे कमैंट करते हैं कि कुछ दिन तो लोगों ने हलके में लिया पर बात छिपी न रही, सब को सम झ आ गया कि कुछ तो है जिस की परदादारी है. अब तो यह हाल है कि रां झा ओह सौरी दीपकजी अगर एक पोस्ट मिले तो सब इंतजार करते हैं कि अभी देखते हैं. आज ही ओह सौरी सपनाजी क्या लिख कर  झंडे गाड़ेंगी. ऐसा लगता है कि बस लंबे कमैंट लिख कर एक दूसरे के गले में ही लटक जाएंगे किसी दिन.

अगर किसी दिन सपना हीर, यही नाम हो गया है अब इन का. कोई अपना पुराना फोटो डाल दें तो उफ, यह एडल्ट लव स्टोरी… रां झा दीपक के कमैंट पर सारा दिन शैतान जूनियर टीचर्स एकदूसरे को फोन कर के हंसती हैं. अब बेचारे इन दोनों अधेड़ आशिकों को सपने में भी उम्मीद नहीं होगी कि वे कितना बदनाम हो चुके हैं, दोनों अच्छेभले अपने रोमांस पर उम्र का परदा डाले चल रहे थे पर सोशल मीडिया ने सारे भेद खोल दिए.

बेवकूफ बनते लोग

अब बात सीमा की जो एक उभरती सिंगर है, अभी तक तो सोसाइटी और कालेज के प्रोग्राम में गागा कर अपना शौक पूरा कर रही थी पर उस की फ्रैंड नेहा उस से थोड़ी तेज है. नेहा भी सिगिंग में आगे बढ़ना चाहती है. दोनों के 1 ही बेटा है जो अभी छोटे हैं. दोनों के पति फुल सपोर्ट करते हैं. अचानक नेहा ने सीमा को बताया कि मशहूर गायक सुधीर वमास ने उसे मिलने के लिए बुलाया है तो सीमा का दिमाग घूम गया कि इसे कैसे बुला लिया?

यह भी तो मेरे जैसी ही है. इसे कैसे यह मौका मिला? उस ने पूछ ही लिया, ‘‘अरे, पर तु झे ये मिले कहां?’’

‘‘इंस्टाग्राम पर फौलो करती हूं.’’

‘‘तो इस से क्या हुआ? वह तो मैं भी

करती हूं.’’

‘‘बस वे धीरेधीरे मु झे पहचान गए.’’

सीमा को सम झ नहीं आया कि फौलो करने से क्या होता है. अब दोनों अच्छी सहेलियां हैं पर कंपीटिशन भी तो है, आगे भी तो बढ़ना है. अब सब नेहा ही क्यों बताए. सीमा ने घर जाकर सुधीर वर्मा को हर जगह खंगाल डाला, उन की हर पोस्ट पर नेहा के कमैंट्स दिखे. ओह, तो यह बात है. मैडम हर जगह उन्हें अच्छेअच्छे लंबे कमैंट्स कर के अपने बारे में बताती रही हैं. ओह, मैं कितनी बेवकूफ हूं उन का पेज बस लाइक कर के छोड़ दिया. उफ, चलो, अब भी क्या बिगड़ा है.

अभी शुरू कर देती हूं. फिर तो जहां सुधीर वर्मा, वहां सीमा. रियाज एक तरफ, लाइक्स और कमट्ंस एक तरफ. सुधीर वर्मा क्या, सीमा ने और भी सिंगर्स को फौलो करना शुरू कर दिया है. सारी ताकत उन की नजरों में आने के लिए  झोंक दी है. गाने का क्या है, गा तो लेती ही है.

कोई पूछे तो. कोई चांस तो दे. अब ये पैतरे भला नेहा से कैसे छिपे रहते. सीमा हर जगह दिख रही है, उसे भी औरों को फौलो करना होगा. दोनों आजकल काफी व्यस्त हैं.

नकली लोग नकली कमैंट्स

कालेज की कैंटीन में सुजाता उदास सा मुंह लटका कर बैठी थी. दोस्त रीनी ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, बौयफ्रैंड भाग गया क्या?’’

‘‘बकवास मत कर.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘यार, मैं कितनी ही अच्छी पोएम फेसबुक पर पोस्ट कर दूं, मेरी पोस्ट को लाइक्स ज्यादा क्यों नहीं मिलते? मेरी कजिन रोमा कितना बेकार लिखती है, उसे कितनी वाहवाही मिलती है.’’

‘‘तु झे नहीं पता?’’

‘‘क्या?’’

‘‘वह अपने कितने फोटो मिलाती है पोएम के साथ, वह भी फिल्टर वाली. सीख कुछ, मूर्ख लड़की. ऐसे ही नहीं मिलता सबकुछ. कुछ अदाएं दिखाओ, अपने जलवे दिखाओ, लिखो चाहे बेकार पोएम पर अपने को दिखाओ. तुम्हारी कजिन को उस की पोएम पर नहीं, उस के नकली फोटो पर लाइक्स मिलते हैं.’’

सुजाता को बात सम झ आई. रीनी का कहा माना, अब वह खुश है.

आशिकी के फसाने

तो बात यह है कि सोशल मीडिया पर आप कितने ही अपनेआप को बुद्धिमान सम झ रहे हों, आप पर नजर रखने वाले आप से ज्यादा होशियार हैं. आप कभी भी बोर हो रहे हों, आप के पास बहुत टाइम हो तो आराम से सोशल मीडिया पर टाइम खराब कर सकते हैं. देखिए, लोग क्याक्या कर रहे हैं, कहीं जाना भी नहीं, ओमीक्रोन का टाइम है, सब से सेफ है सोशल मीडिया पर मनोरंजन करना. बस दूसरों को बैठ कर देखिए, पर अंजू की तरह यह कहने की गलती न कीजिए कि आप सोशल मीडिया पर नहीं रहते, सब को आप की प्रैजेंस का पता रहता है.

घर में बंद बैठ कर थोड़ा मनोरंजन करना आपका हक है. आराम से दूसरों के मामलों में टांग अड़ाइए. सोशल मीडिया बहुत काम की चीज है, जिस के बारे में पता करना हो, खंगाल लिए उसकी लाइफ को और फिर भोले बन कर आशिकी के उन फसानों का आनंद लीजिए जिन में हीर रां झा जैसे लोग एकदूसरे में डूबे हैं.

दोस्तों के साथ हंसी, मस्ती जरूर करें, बस आप के इस मनोरंजन से किसी को कोई नुकसान न पहुंचे, इस बात का ध्यान जरूर रखें.

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सोशल मीडिया Etiquette का पालन करें कुछ इस तरह

सोशल मीडिया की भूमिका और महत्व को आज शायद ही कम करके आंका या अनदेखा किया जा सकता है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हर कोई सोशल मीडिआ प्लेटफार्म के ज़रिये अपनी बहुत अच्छी इमेज सामने रखना चाहता है और इमेज कॉन्शीयसनेस के दौर में हर कोई इस बात का भी ध्यान रखना चाहता है की वो किस तरह खुद के ओपिनियन सोशल मीडिया के ज़रिये रखते हैं और या फिर खुद को प्रेजेंट करते हैं. आये दिन हमें ऐसे भी किस्से देखने को मिलते हैं जब किसी पुरुष द्वारा सोशल मीडिया पर किसी महिला फ्रेंड की लुक्स या फिर व्यक्तित्व पर जाने अनजाने में की गयी टिप्पड़ी या तो किसी अप्रिय घटनाक्रम और या फिर अलग ही प्रतिस्पर्धा को पैदा कर देती हैं और या फिर एक विचित्र स्थिति उत्पन्न कर देते हैं.

सावधानियाऔर एटिकेट्स का ध्यान

इसके अतिरिक्त कई और ऐसी सावधानिया हैं और एटिकेट्स हैं जिनका ध्यान हमें रख कर कई बार हम अपने सोशल मीडिया पर किए गए व्यवहार और तालमेल से भी अपनी छवि खराब कर लेते हैं. हम जो भी छवि अपनी बनाते हैं, उसका असर हमारे आत्मसम्मान पर भी पड़ता है. सोशल मीडिया खासकर जेंडर बुलिंग पर धमकाना आज के दौर में आम बात हो गई है और सोशल मीडिया पर व्यक्त भावनाओं का मजाक सिर्फ इमोजी के जरिए ही उड़ाया जा सकता है. सोशल मीडिया पर की गयी शरारते, अनुचित व्यवहार, अवांछित टैगिंग, कमेंट्स, हैकिंग आदि के मामले भी सामने आ रहे हैं, जेंडर बुलिंग एक ऐसी समस्या है जो एक महिला के लिए ही नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी परेशान करने वाली है.

इसलिए कुछ सोशल मीडिया शिष्टाचार का पालन करके अपने आप को व्यक्त करना बहुत महत्वपूर्ण है जिसे हर आदमी को सोशल मीडिया पर पालन करना चाहिए, मूल बातें सभी को पता हैं, फिर भी कई पुरुष उनका पालन नहीं करते हैं और अनजाने में उन्हें अनदेखा कर देते हैं.

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सोशल मीडिया शिष्टाचार –

श्री विमल और प्रीति डागा से – प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और युवा कोच ऐसे ही महत्वपूर्ण टिप्स आपसे शेयर कर रहे हैं- जो सोशल मीडिया पर आपके छवि को निखारने में आपकी मदद करेंगे.

खास टिप्स

सोशल मीडिया पर महिलाओं के पर्सनल स्पेस का सम्मान करें, यह जरूरी नहीं है कि अगर किसी महिला ने आपकी फ्रेंड रिक्वेस्ट को स्वीकार कर लिया है, तो आप किसी भी समय और समय पर उन्हें मैसेज करना शुरू कर दें, या उन्हें स्टॉक करना शुरू कर दें. गोपनीयता के उल्लंघन से बचें.

यदि आपको भेजे गए संदेश का कोई उत्तर नहीं मिलता है, तो आप संदेश की प्रतीक्षा करें और फिर दुबारा से संदेश न भेजें, थोड़े को बहुत समझे और वहा से खुद का ध्यान हटा दें.

किसी को भी कॉल करने या मीटिंग के लिए समय का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है , और सोशल मीडिआ पर भी यह रूल अप्लाई होता है , समय का ध्यान रखें, जहा तक मुमकीन हो देर रात तक फेसबुक कॉल आदि न करें. हां यदि आपका सोशल मीडिया फ्रेंड बहुत खास है या आपका सम्बन्ध बहुत अटूट है वहा यह नियम अप्प्लाई नहीं होता है. कहा जाता है कि इज्जत दोगे तो इज्जत मिलेगी, सोशल मीडिया पर भी वैसा ही व्यवहार करो.

आपका लहजा न केवल फोन पर, बल्कि आपकी भाषा से भी पता चलता है, चाहे वह ट्विटर हो या फेसबुक अपनी भाषा और शब्दों के साथ विनम्र और चयनात्मक रहें.

अपनी प्रोफाइल पिक्चर को ओरिजिनल ही रखें, और अपनी जानकारी भी ओरिजिनल के रूप में दर्ज करें, कई बार पुरुष अपनी प्रोफाइल पिक्स पोस्ट करने के बजाय बॉलीवुड स्टार्स या उनकी पसंदीदा हस्तियों की तस्वीरें लगाते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने बारे में सब कुछ वैसे ही साझा करें जैसे वह है, लेकिन वास्तविक बनें और अपने बारे में सही जानकारी दर्ज करें.

किसी के साथ जहा तक हो सोशल मीडिआ पर सार्वजनिक टूर पर चैट न करें, चाहे वह पेशेवर हो या व्यक्तिगत, सार्वजनिक.

जब तक आप नहीं जानते, आपको अनावश्यक संदेश भेजने और टिप्पणियों को इंडेंट करने से बचना चाहिए, या सिर्फ इसलिए कि आपके संदेश का उत्तर नहीं दिया गया था, खराब टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.

किसी को टैग करने से पहले सोचें, हो सकता है कि कई लोग आपको सीधे तौर पर बाधित न करें लेकिन टैग किया जाना हर किसी को पसंद नहीं होता है, बेहतर है की टैगिंग से पहले आप मैसेज कर के टैग करने की परमिशन ले लें.

जहां तक संभव हो, शराब पीते समय अपनी बहुत सारी व्यक्तिगत तस्वीरें, पार्टी की तस्वीरें और अपनी तस्वीरें पोस्ट करने से बचें.

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जहां तक संभव हो सोशल मीडिया पर वाद-विवाद से बचें, आप अपने विचार रख सकते हैं लेकिन जानबूझ कर किसी से वाद-विवाद में न पड़ें, जरूरी नहीं कि आप उनसे हर विवाद को जीत लें, भले ही वाद-विवाद का मंच किसी के साथ आ जाए, तो पूरी शालीनता से अपनी बात और दूसरे व्यक्ति की बात के साथ तर्क से बाहर निकलें और अपनी बात समझाएं और उसका सम्मान करें.

अपनी भाषा के साथ-साथ सोशल मीडिया पर अपने व्याकरण का ध्यान रखें, हमेशा वर्तनी और व्याकरण की जांच करें.

अगर कोई आपकी पोस्ट पर टिप्पणी या ट्वीट करता है, तो बातचीत शुरू करने के लिए धन्यवाद कहना न भूलें, सोशल मीडिया पर किसी को भी नजरअंदाज करना पसंद नहीं है.

कुछ लोग सोशल मीडिया पर बहुत लंबे कमेंट करते हैं या लंबी पोस्ट डालते हैं, उन्हें भी ऐसी लंबी पोस्ट या कमेंट पढ़ना पसंद नहीं है, कोशिश करें कि आपकी पोस्ट सटीक हो और आप कम समय में अपनी बात कह सकें.

सोशल मीडिया से युवाओं में फोमो का खतरा

देश में जब कोरोना के कारण लौकडाउन लगा था तब बाहर जाने की सख्त मनाही थी. जैसे ही लौकडाउन की स्ट्रिक्टनैस को कम किया गया तो लोग शहरों से होमटाउन की तरफ जाने लगे थे, उस दौरान मेरे भी कुछ दोस्त जो पीजी में रहते थे, अपने होमटाउन की तरफ गए. मुझे भी होमटाउन जाने की काफी इच्छा थी लेकिन यहां ठहरना ज्यादा ठीक समझ. मगर उस दौरान एक बदलाव मेरे भीतर भी आया था. ज्यादा इंटरनैट चलाने की वजह से मेरे मन में हर समय कुछ सवाल घूमने लगे. सोशल मीडिया में क्या चल रहा है? वे दोस्त क्या कर रहे हैं? आज उन्होंने कौन सी पोस्ट डाली है? खुले आसमान में हरे खेतों के बीच खुले में घूम रहे हैं और स्टोरी डाल रहे हैं या नहीं? उन्हें कितने लाइक और शेयर आए हैं? इत्यादि.

यह सब मन में लगातार चलता रहता. अगर किसी दिन कुछ मिस हो जाता तो लगता गड़बड़ हो गई. हमेशा यह सोचता कि मैं ने गांव जाना मिस कर दिया वरना मैं भी ऐसे ही एंजौय कर रहा होता. यही बातें घबराहट पैदा करतीं और मैं और भी ज्यादा उन की डेली एक्टिविटीज को देखता रहता व डिप्रैस्ड हो जाता. इस का जो नतीजा निकला वह यह था कि मैं ने अपनी एंजौय करती हुई फोटो डालनी शुरू कर दीं. कभी घर में नई डिश बनाते हुए, तो कभी साफसफाई करते हुए ऐसी फोटो डालीं जैसे यह दूसरे प्लेनेट का कोई काम हो. 2013 में इस कंडीशन को पहली बार औक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी ने ‘फोमो’ के नाम से परिभाषित किया था.

फोमो यानी ‘फियर औफ मिसिंग आउट’. इस में बताया गया जब कोई व्यक्ति यह फील करता है कि वह उस मौके या उस जगह पर मौजूद नहीं हो पाया है या बुलाया नहीं गया है जहां उसे होना चाहिए था, तो वह बेचैनी और घबराहट महसूस करने लगता है. आमतौर पर फोमो वाली कंडीशन में व्यक्ति यह मानने लगता है कि उस का सोशल रैंक या स्टेटस कमतर है. जिस कारण वह एंग्जाइटी भी महसूस कर सकता है. फोमो विशेषतौर पर 18-33 साल के युवाओं को ज्यादा इफैक्ट करता है. यहां तक कि नैशनल स्ट्रैस एंड वेलबीइंग सर्वे में बताया गया कि इस एज ग्रुप के हर 3 में से 2 युवा फोमो का हर रोज अनुभव करते हैं.
क्यों होता है फोमो का अनुभव?

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इस के होने को ले कर जानकार सब से बड़ा कारण सोशल मीडिया को मानते हैं. सोशल मीडिया ऐसा टूल बन कर आया है जिस में किसी इवैंट को पोस्ट करने की सुविधा होती है. अब सवाल यह बन सकता है कि इस का फोमो से क्या लेनादेना. मामला यह है कि पहले जब सोशल मीडिया नहीं था तो लोगों के पास इवैंट को पब्लिकली पोस्ट करने की सुविधा नहीं होती थी. कोई व्यक्ति किसी इवैंट जैसे कौन्सर्ट, पार्टी, फैमिली टूर या स्कूल वैकेशन को मिस कर देता था तो दुख तो होता था लेकिन इतना नहीं जितना सोशल मीडिया के कारण तुरंत डे टू डे डाली गई पोस्ट से अपडेट मिलने पर होता है.

इस मसले पर कई साइकोलौजिस्ट्स का कहना है कि जितना सोशल मीडिया ने युवाओं में फोमो कंडीशन पैदा की है उतना ही सोशल मीडिया को फायदा हुआ है. इस से देखनेदिखाने का चलन चलने लगा. फेक फन या कहें खुश न होते हुए भी खुशी वाली तसवीरें पोस्ट करना आम हो गया. टैक्नोलौजी या सोशल मीडिया का इस्तेमाल सिर्फ इसलिए नहीं होने लगा कि लोग क्या कर रहे हैं बल्कि इसलिए भी कि वे कितना मजा मार रहे हैं. इसी चीज ने सोशल मीडिया को पैट्रोलडीजल देने का काम किया. अब यह देखना जरूरी हो गया कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर कितने लाइक्स और शेयर मिल रहे हैं. इस से सोशल रैंक या स्टेटस निर्धारित होने लगा.
फोमो के परिणाम

भारत में अगर किसी युवा से पूछा जाए कि क्या वह फोमो अनुभव कर रहा है, तो उस का जवाब होगा कि यह फोमो क्या होता है? इसलिए यह सवाल ही अपनेआप में बेमानी है. अगर कोई युवा जानता भी होगा कि फोमो क्या है तो ज्यादा चांस है कि वह मना ही करेगा. लेकिन अगर इस की जगह उस से यह पूछा जाए कि वह सोशल मीडिया पर जानपहचान या अनजान लोगों की मजेदार पोस्ट देख कर स्ट्रैस या एंग्जाइटी फील करता है तो वह हां ही कहेगा. यह हाल हर युवा का है. अगर इसी तरह एक मास ओपन सर्वे करवाया जाए तो पता चलेगा कि यह तो महामारी की तरह लोगों के बीच है.

इस से युवाओं के बीच नैगेटिव इफैक्ट देखने को मिल जाते हैं. संभव है कि यह फोमो किसी के आत्मविश्वास को बहुत ज्यादा गिरा दे. इस से अधिक खतरनाक यह है कि वह खुद की आइडैंटिटी को ही खत्म कर दे और झठे देखनेदिखाने वाले भ्रम में ही जीने लगे.

नैशनल स्ट्रैस एंड वेलबीइंग सर्वे के अनुसार, 60 प्रतिशत युवा इस बात से दुखी होते हैं कि उन के दोस्त उन के बगैर ही एंजौय कर रहे हैं. इस में से कई इस बात से बेचैन होते हैं कि उन के दोस्तों ने एंजौय करते समय क्याक्या किया होगा. ये चीजें दिमाग पर नैगेटिव इफैक्ट डालती हैं. इस से खुद की आइडैंटिटी को बहुत बार नुकसान पहुंचने का खतरा होता है.

इस से निबटें कैसे

डायरी लिखें : यह सब से शुरुआती प्रक्रिया होती है. डायरी एक हैल्पफुल टूल है खुद को समझने के लिए. डायरी या जर्नल लिखने से खुद के अनुभव बाहर आते हैं, मन में पौजिटिविटी पैदा होती है. लिखते समय इंसान लिखी हुई बात पर कई बार सोचता है. और अगर कोई नैगेटिव बात भी सामने आती है तो उसे बारबार पढ़ कर उस परेशानी से निबटा जा सकता है. यही कारण है कि वह अपने शब्दों में संतुलन लाने की कोशिश करता है. इसलिए ऐसे समय में डायरी लिखना अच्छा उपाय होता है.

दूसरों से खुद की तुलना न करें : यह बहुत कौमन है कि सोशल मीडिया में कोई पोस्ट देखने के बाद सब से पहले खुद से तुलना की जाती है. कोई अगर फोटो में खुश दिखाई दे रहा है तो खुद से तुलना कर और दुखी हो जाता है. लेकिन यह बात समझने की जरूरत है कि जरूरी नहीं कोई भी हंसता हुआ व्यक्ति खुश ही हो. हो सकता है कि उसे कोई दूसरी समस्या हो जिसे वह फेस कर रहा हो. और अगर वह खुश भी है तो इस में खुद को स्ट्रैस में डालने की जरूरत नहीं बल्कि खुद इस नकली दुनिया से बाहर निकलने की जरूरत है.

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टैक्नोलौजी के लिए शैड्यूल बनाएं : बहुत बार हम किसी चीज से छुटकारा पाने के लिए एग्रेसिव तरीकों का इस्तेमाल करने लगते हैं. उदाहरण के लिए फोन स्विचऔफ कर दिया, फ्लाइट मोड में डाल दिया या नैट औफ कर दिया. लेकिन उस के बाद क्या? कुछ नहीं. यहीं से अगला स्टैप शुरू होता है, खुद के लिए शैड्यूल बनाने का. इस का तरीका यह है कि जिस टाइम फोन से दूरी बनाई जा रही है उस समय किसी और चीज से नजदीकी बढ़ाई भी तो जानी चाहिए, जैसे वह किताब पढ़ने का समय हो सकता है, आउटडोर गेम खेलने का या दोस्तों के साथ सैरसपाटे का. इस से उस खाली समय में बेहतर आल्टरनेटिव मिल जाता है.

हकीकत पहचानें : इस बात को समझें कि दुनिया बहुत बड़ी है और आप बहुत छोटे. इसलिए आप हर जगह हर समय नहीं हो सकते. हर किसी के पास लिमिटेड टाइम और उस में करने के लिए अनलिमिटेड एक्टिविटीज हैं. संभव है कि आप बहुत सी चीजों को न कर पाएं या हर जगह शामिल न हो पाएं. इसलिए इस की चिंता न करें कि आप ने किसी समय कोई चीज मिस की, बल्कि यह सोचें कि उस समय आप ने वह एक्टिविटी की जो किसी और ने नहीं की.

क्या है सोशल मीडिया एडिक्शन

अकसर हम अपना अकेलापन या बोरियत दूर करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं और फिर धीरेधीरे हमें इस की आदत हो जाती है. हमें खुद एहसास नहीं होता कि कैसे समय के साथ यही आदत एक नशे की तरह हमें अपने चंगुल में फंसा लेती है. तब हम चाह कर भी इस से दूर नहीं हो पाते. ड्रग एडिक्शन की तरह सोशल मीडिया एडिक्शन भी शारीरिक व मानसिक सेहत के साथसाथ सामाजिक स्तर पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है.

हाल ही में अमेरिकी पत्रिका ‘प्रिवेंटिव मैडिसिन’ में प्रकाशित एक शोध के मुताबिक यदि हम सोशल मीडिया प्लेटफौर्म जैसे फेसबुक, ट्विटर, गूगल, लिंक्डइन, यूट्यूब, इंस्टाग्राम आदि पर अकेलापन दूर करने के लिए अधिक समय बिताते हैं, तो परिणाम उलटा निकल सकता है.

शोध के निष्कर्ष में पता चला है कि वयस्क युवा जितना ज्यादा सोशल मीडिया पर समय बिताएंगे और सक्रिय रहेंगे, उन के उतना ही ज्यादा समाज से खुद को अलग थलग महसूस करने की संभावना होती है.

शोधकर्ताओं ने 19 से 32 साल की आयु के 1,500 अमेरिकी वयस्कों द्वारा 11 सब से लोकप्रिय सोशल मीडिया वैबसाइट इस्तेमाल करने के संबंध में उन से प्राप्त प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण किया.

अमेरिका की पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी के प्रमुख लेखक ब्रायन प्रिमैक के मुताबिक, ‘‘हमें स्वाभाविक रूप से सामाजिक प्राणी हैं, लेकिन आधुनिक जीवन हमें एकसाथ लाने के बजाय हमारे बीच दूरियां पैदा कर रहा है जबकि हम ऐसा महसूस होता है कि सोशल मीडिया सामाजिक दूरियां को मिटाने का अवसर दे रहा है.’’

सोशल मीडिया और इंटरनैट की काल्पनिक दुनिया युवाओं को अकेलेपन का शिकार बना रही है. अमेरिका के संगठन ‘कौमन सैस मीडिया’ के एक सर्वेक्षण ने दिखाया कि किशोर नजदीकी दोस्तों से भी सामने मिलने के बजाय सोशल मीडिया और वीडियो चैट के जरिए संपर्क करना पसंद करते हैं. 1,141 किशोरों को अध्ययन में शामिल किया गया था और उन की उम्र 13 से 17 साल के बीच थी.

35% किशोरों को सिर्फ वीडियो संदेश के जरिए मित्रों से मिलना पसंद है. 40% किशोरों ने माना कि सोशल मीडिया के कारण मित्रों से नहीं मिल पाते. 32% किशोरों ने बताया कि वे फोन व वीडियो कौल के बिना नहीं रह सकते.

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इंटरनैट की लत किशोरों के दिमागी विकास अर्थात सोचनेसमझने की क्षमता पर नकारात्मक असर डाल सकती है. लगातार आभासी दुनिया में रहने वाले किशोर असल दुनिया से दूर हो जाते हैं. इस से वे निराशा, हताशा और अवसाद के शिकार बन सकते हैं.

जरा ध्यान दीजिए कि कैसे सोशल मीडिया का जाल धीरे धीरे हमें अपनी गिरफ्त में ले कर हमारा कितना नुकसान कर रहा है. आजकल घरों में सदस्य कम होते हैं, तो अकसर या तो मातापिता ही बच्चे का मन लगाने के लिए उन्हें स्मार्टफोन थमा देते हैं या फिर अकेलेपन से जूझते बच्चे स्वयं स्मार्टफोन में अपनी दुनिया ढूंढ़ने लगते हैं. शुरू शुरू में तो सोशल मीडिया पर नएन ए दोस्त बनाना बहुत भाता है, मगर धीरेधीरे इस काल्पनिक दुनिया की हकीकत से हम रूबरू होने लगते हैं. हमें एहसास होता है कि एक क्लिक पर जिस तरह यह काल्पनिक दुनिया हमारे सामने होती है वैसे ही एक क्लिक पर यह गायब भी हो जाती है और हम रह जाते हैं अकेले, तनहा, टूटे हुए से.

जिस तरह रोशनी के पीछे भागने से हम रोशनी को पकड़ नहीं सकते ठीक उसी तरह ऐसे नकली रिश्तों के क्या माने जो मीलों दूर हो कर भी हमारे दिलोदिगाम को जाम किए रहते हैं?

किसी को यदि एक बार सोशल मीडिया की लत लग जाए तो बेवजह बारबार वह अपना स्मार्ट फोन चैक करता रहता है. इस से उस का वक्त तो जाया होता ही है कुछ रचनात्मक करने की क्षमता भी खो बैठता है, जिस से रचनात्मक काम करने से मन को मिलने वाली खुशी से सदा वंचित रहता है.

इंसान एक सामाजिक प्राणी है. आमनेसामने मिल कर बातें कर इंसान को जो संतुष्टि, अपनेपन और किसी के करीब होने का एहसास होता है वह सोशल मीडिया में बने रिश्तों से कभी नहीं हो सकता.

जब आप सोशल मीडिया पर होते हैं तो आप को समय का एहसास नहीं होता. आप घंटों इस में लगे रहते हैं. लंबे समय तक स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने पर कई तरह की शारीरिक व मानसिक समस्याएं भी पैदा होती हैं.

स्वास्थ्य पर पड़ता है असर

स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने से नींद में कमी आ जाती है. आंखें कमजोर होने लगती हैं. शारीरिक गतिविधियों की कमी से तरहतरह की बीमारियां पैदा होने लगती हैं. याददाश्त तक कमजोर हो जाती है.

आजकल लोग किसी भी समस्या का तुरंत समाधान चाहते हैं. उन्हें इंटरनैट पर हर सवाल का तुरंत जवाब मिल जाता है. इसीलिए वे अपनी सोचनेसमझने की शक्ति खोने लगते हैं. दिमाग का प्रयोग कम हो जाता है. यह एक नशे की तरह है. लोग घंटों अनजान लोगों से चैट करते रहते हैं पर हासिल कुछ नहीं होता.

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दिल में घृणा जबान पर कालिख

सोशल मीडिया पर नुकसानदेह वीडियो, मैसेज आदि इस तरह चल रहे हैं मानो इस देश के लोगों को सिवा झूठ और गप्प के कुछ और सुहाता ही नहीं है. फोटोशौप कर के शातिर लोगों ने केवल घरों में शर्मिंदगी बिखेर रहे हैं, वे देश की विदेश नीति तक को भी नहीं बख्श रहे.

सोशल मीडिया पर 1 फोटो को बदल कर मोदी को लेह दौरे के दौरान 3 कुत्तों के साथ दिखाया गया है, जिन में एक का चेहरा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का लगाया गया, दूसरा चीन के राष्ट्रपति का और जो सब से आपत्तिजनक बात थी कि तीसरा नेपाल के प्रधानमंत्री का लगाया गया था.

नेपाल के साथ भारत के संबंध खराब चल रहे हैं पर इतने खराब भी नहीं हैं कि उसे पाकिस्तान की तरह दुश्मनों की गिनती में डाल दिया जाए.

नेपाल में अभी भी जाने के लिए भारतीयों को वीजा की जरूरत नहीं है और अभी भी वहां भारतीय रुपए ही चल रहे हैं. लाखों नेपाली भारत में काम कर रहे हैं और हजारों भारतीय नेपाल में हैं. नेपाल के तराई के इलाके के मधेशी अपनेआप को भारत के ज्यादा निकट महसूस करते हैं, बनिस्बत पहाड़ों के गोरखों के. वे नेपाली की जगह हिंदी, बिहार की स्थानीय भाषा बोलते हैं. वैसे भी भारतीयों का व्यापार नेपाल से हजारो सालों से लगातार चला आ रहा है. सोशल मीडिया में डाले गए ऐसे बिगड़ैल पोस्ट से माहौल काफी बिगड़ सकता है.

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इसी तरह उत्तर प्रदेश में विकास दुबे के मामले में एक ब्राह्मण हैंडल से उसे विल्लास बना दिया गया और उस के दादानाना मुसलमान घोषित कर दिए गए ताकि ब्राह्मणों की श्रेष्ठता पर कोई आंच नहीं आए.

यह घृणा का पाठ हमें बचपन से पढ़ाया जाता है. कहने को हम जगद्गुरु हैं, कहने को लोग यहां पूजाअर्चना से दिन शुरू करते हैं और खत्म करते हैं, कहने को लोग बुरे कर्मों के बुरे फल का नारा दिन में 4 बार दोहराते हैं, कहने को लोग प्रवचनों, गीतारामायण के पाठों, कीर्तनों, आरतियों में जा कर अपना चरित्र सुधारते रहते हैं पर असल में जरा सी परत उतारी नहीं कि कसैले मन वाले नजर आते हैं, जिन के दिल में घृणा और जबान पर कालिख भरी रहती है.

जो बातें वे पाकिस्तान, मुसलमानों, दलितों को कहते हैं वे ही बातें घरों में बीवियों को, भाईबहनों को, चाचाओं, सालों को और पड़ोसियों को कहने से नहीं हिचकते.

ये गालियां और अपशब्द उन की जबान का हिस्सा बन चुके हैं और उन की इस भाषा को धर्म का  पूरापूरा समर्थन है जो अपने प्रति तो नहीं पर हर दूसरे के खिलाफ इस तरह के शब्दों का उपयोग बिलकुल जायज मानता है.

टीका लगाए, जनेऊ पहने, कलेवा बांधे लोग जब झगड़ा करते हैं, तो कौन सी मांबहन की गाली है, जो नहीं देते? यही सोच उन्हें राहुल गांधी, सोनिया गांधी, बरखा दत्त के खिलाफ आग उगलने की ट्रेनिंग देती है और यही अब नेपाल जैसे मित्र देश को पूरी तरह दुश्मन बना रही है.

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महाभारत में ऐसे ही थोड़े पांडवों का मामा कौरवों की तरफ से लड़ रहा था? रामायण में भरत आखिर क्यों रामरावण युद्ध में अयोध्या से अपनी सेना कर नहीं आया था? हमारी संस्कृति पर हजारहजार अपनी धाती पीट ले, असल में मानवता का सद्व्यवहार कहीं से नहीं सिखाती. नेपाल इस च?पेटे में जल रहा है, यह तो बहुत अफसोस की बात है.

क्योंकि रिश्ते अनमोल होते हैं…

क्या कभी आपने सोचा है कि जो लोग हर मुश्किल घड़ी में हमारा साथ देते हैं हम उन्हें कितना समय दे पाते हैं. क्या अपने जीवन में हम उनकी अहमियत को समझते हैं अगर हां तो कितना…हमें शायद ये लगता है कि ये तो हमारे अपने हैं कहां जाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे वो कब और कैसे हमसे दूर होते जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता. हमें ऐसा लगता है कि हम इनके लिए ही तो दिन रात मेहनत करते हैं काम करते हैं. शायद इसी बहाने के साथ हम एक ऐसी दुनिया की तरफ भागने लगते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं.

हम क्यों भाग रहे हैं किसके लिए भाग रहे हैं कभी गौर से सोचते भी नहीं. रोज सुबह के बाद दिन, महीने और फिर साल…बस यूं ही गुजरते रहते हैं. जबकि असल में जिंदगी का मतलब भीड़ में भागना नहीं है. हां ये सच है कि हमारे लिए काम और सक्सेस दोनों जरूरी. इसके लिए हेल्दी कंपटीशन की भावना हमारे अंदर होनी चाहिए लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हम हमेशा काम को प्राथमिकता दें और परिवार को भूल जाएं. भई, जीवन में सब कुछ जरूरी है इसलिए काम और परिवार के बीच संतुलन बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. आखिर, काम के नाम पर हमेशा आपके अपनों को ही कंप्रमाइज क्यों करना पड़े.

लॉकडाउन ने दी सबक

लॉकडाउन ने सबको परिवार की अहमियत हो सिखा ही दी. साथ ही हम सभी को यह सबक भी दिया कि जिंदगी में भले एक दोस्त हो लेकिन वह सच्चा हो. सिर्फ दिखावे के लिए सोशल मीडिया पर भीड़ बढ़ाने वाले रिश्तों से कोई फर्क नहीं पड़ता बल्कि रियल लाइफ में कितने लोग आपका साथ देते हैं इससे फर्क पड़ता है.

रिलेशनशिप बॉन्डिंग क्यों जरूरी है

डॉक्टर नेहा गुप्ता (मेदांता हॉस्पिटल गुड़गांव) का कहना है कि, अगर अपने लोगों से बॉडिंग स्ट्रांग होती है तो हम मेंटली फिट रहते हैं और हमारी इम्यूनिटी भी स्ट्रांग होती है. आज के समय में रिश्ते लाइक और कमेंट में उलझ कर रह गए हैं. ऐसे में हमारे अहम रिश्ते दम तोड़ते जा रहे हैं और हम वर्चुअल दुनिया में ही खुशियां मना रहे हैं, जबकि यह झूठी और बनावटी दुनिया है.

बाद में पछताने से बेहतर है कि कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर अपने अनमोल रिश्तों को जीवन भर के लिए अपना बना लें. फिर चाहे वे आपके परिवार के सदस्य हों, दोस्त हों या ऑफिस के सहकर्मी. याद रखिए रिश्ते तोड़ना आसान हैं लेकिन इसके बाद के परिणामों का भुगतना मुश्किल होता है.

रिश्तों को मजबूत बनाने के टिप्स

माफी मांगने या माफ करने में न हिचकिचाएं

एक-दूसरे पर विश्‍वास करना सीखें

खुलकर बात करें चाहे वे माता-पिता हों या बच्चे

नोक-झोंक प्यार का हिस्सा हैं इन्हें दिल पर न लें

रिश्ते तोड़ने का ख्याल मन से निकाल दें

सहकर्मी के साथ मजबूत रिश्ते बनाने के टिप्स

खुद पहल करते हुए बातचीत शुरू करें और काम के अलावा भी एक-दूसरे को जानने की कोशिश करें.
अगर ऑफिस में कोई आपसे रिश्ता न रखना चाहे तो नकारात्मक राय न बनाएं और सिर्फ ऑफिस संबंधी कामों में ही उसकी मदद करें.

सहकर्मियों में कॉमन इंट्रेस्ट तलाशें इससे दोस्ती करने में काफी आसानी होती है.

कलीग्स से रिलेशन स्ट्रांग करने के लिए अपनी बड़े या छोटे पद को भूलकर सबसे एक समान फ्रेंडली व्यवहार करें.

जब भी किसी सहकर्मी को आपकी जरूरत पड़े तो बिना हिचकिचाए उसकी मदद करें.

पर्सलन और प्रोफेशनल लाइफ को बैलेंस करना है जरूरी

परिवार के सदस्यों, दोस्तों की अक्सर यही शिकायत रहती है कि हम उन्हें समय नहीं देते. जबकि हमें जब भी उनकी जरूरत होती है वे हमारे साथ होते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम घर और काम को बैलेंस करके नहीं चलते हैं.

समय को बर्बाद न करें

काम के समय को पर्सनल चीजों में न गवाएं वरना ऑफिस का काम आपके लिए बोझ बन जाएगा और तय समय में पूरा भी नहीं हो पाएगा. अगर ऑफिस के समय ही काम खत्म हो जाएगा तभी आप बिना किसी टेंशन के अपनी दूसरी जिम्मेदारियों को निभा पाएंगे.

जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ेगा भारी

अगर आपको अपनी क्षमता पता है और संकोच के कारण काम के लिए मना नहीं कर पा रहे हैं तो इस आदत को बदल दीजिए. आप अपने सीनियर्स से विनम्रता के साथ कह सकते हैं कि पहले आप जो काम कर रहे हैं उसे खत्म करने के बाद नए काम को पूरा कर पाएंगे.

महत्त्व के हिसाब से प्राथमिकता तय करें

अगर आप अपनी वर्क लाइफ को बैलेंस करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी प्राथमिकता तय करें. आपको रोज बहुत से काम करने होते हैं लेकिन आपको यह पता होता है कि कौन सा काम ज्यादा जरूरी है और किस काम को थोड़े समय के लिए टाला जा सकता है. इससे आपका दिमाग शांत रहेगा और काम भी हो जाएगा.

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