महिलाओं के खिलाफ नया हथियार रिवेंज पोर्न

यह उन दिनों की बात है जिन दिनों हाथ में कीपैड वाले फोन तो आम हो गए थे पर स्मार्ट और डिजिटल फोन न के बराबर हुआ करते थे. स्कूल टौयलेट की दीवारों पर लड़कियों के फोन नंबर लिखे होते थे. कहींकहीं स्कूल के पिछवाड़े वाले हिस्से में नाम सहित किसी लड़की की अश्लील चित्रकारी होती थी. स्कूल के ज्यादातर लड़के उन चित्रों को देख कर मादक मुसकान लिए गुजर जाया करते थे.

आमतौर पर यह हरकत 2 तरह के लड़के किया करते थे- एक वे जिन्हें उक्त लड़की बिलकुल भाव न दे रही हो और दूसरे वे जो धोखा महसूस किए लंपट आशिक की तरह लड़की से खासा नफरत कर रहे हों. लेकिन इन दोनों में ही जो बात समान थी वह यह कि ये दोनों प्रवृत्ति के लड़के यह काम लड़की से बदला लेने और उसे बदनाम करने के मकसद से किया करते थे. यह बात उस समय सामान्य तो लगती थी, पर कहीं न कहीं रिवेंज पोर्न के दायरे वाली थी.

समय बदला. युवाओं के हाथ में स्मार्ट फोन के साथसाथ इंटरनैट आया, सर्च बौक्स में डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू का औप्शन मिला तो लोग डिजिटली सोशल हो गए. छोटी दुनिया एकाएक सोशल मीडिया पर बड़ी हो गई. इस बड़ी सी आभासी दुनिया में जहां पूरे विश्व से जानकारी के आदानप्रदान के असीम विकल्प खुले, दूसरों से जुड़ने का मौका भी मिला, वहीं इस आदानप्रदान से कुछ खतरे भी पैदा हुए. इसी खतरे के तौर पर धड़ल्ले से उभरा इंटरनैट वाला रिवेंज पोर्न.

रिवेंज पोर्न के मामले

जैसाकि मरियम वैबस्टर डिक्शनरी द्वारा इसे परिभाषित किया गया, रिवेंज पोर्न- किसी व्यक्ति की अतरंग तसवीरों या क्लिपों को, विशेषरूप से बदला या उत्पीड़न के रूप में, उस व्यक्ति की सहमति के बिना औनलाइन पोस्ट करना है.

यानी किसी व्यक्ति के निजी या व्यक्तिगत पलों से जुड़ी सामग्री या अश्लील सामग्री को उस के पार्टनर या फिर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बिना अनुमति के औनलाइन इस आभासी दुनिया में सा  झा कर देना रिवेंज पोर्न या रिवेंज पोर्नोग्राफी कहलाती है. अब सवाल यह है कि हम इस मसले पर क्यों बात कर रहे हैं?

दरअसल पिछले कुछ सालों में भारत में भी इस तरह का चलन देखने में आ रहा है. सोशल मीडिया पर या पोर्न वैबसाइट पर ऐसे वीडियो या फोटो अपलोड करने की शिकायतें आ रही हैं जो बदले की भावना से किए गए हैं. ऐसी ही एक वारदात इस साल फरवरी में चेन्नई में घटी, जहां एक 29 वर्षीय हसन ने कथित तौर पर एक महिला के अश्लील वीडियो लीक किए.

दरअसल लड़की के मातापिता ने लड़कालड़की की शादी करने से इनकार कर दिया था. पुलिस के अनुसार लड़कालड़की दोनों की 2019 में सगाई हुई थी और कुछ महीने बाद उन की शादी होनी थी. परिवार वालों को लड़के के व्यवहार पर शक हुआ तो उन्होंने शादी रोक दी.

ऐसे में इस बीच जब दोनों रिश्ते में थे, तो लड़के ने उस के प्राइवेट वीडियो रिकौर्ड किए. शादी रुकने के बाद गुस्साए लड़के ने अपने दोस्तों को वे वीडियो लीक कर दिए और सोशल मीडिया पर तसवीरें पोस्ट कर दीं. इस के साथ ही गुस्साए लड़के ने लड़की के भाई को भी ये वीडियो शेयर किए, जिस के बाद लड़की के परिवार में मामला पता चला तो उन्होंने लड़के के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज की.

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ब्रेकअप का बदला

ऐसा ही एक मामला पिछले वर्ष जून माह में घटा था. मामला उत्तर प्रदेश के नोएडा का था, जहां प्रेमी ने अपनी प्रेमिका से ब्रेकअप का बदला लेने के लिए उस के करीब 300 फोटो पोर्न साइट को बेचे और 1000 वीडियो पोर्न साइट पर अपलोड कर दिए.

वह रोजाना फोटो व वीडियो कई प्लेटफौर्म पर अपलोड करता था. इतना ही नहीं पेटीएम के माध्यम से फोटोवीडियो बेचता भी था. पीडि़ता ने तंग आ कर जब पुलिस में शिकायत दर्ज कराई तब उस लड़के को पकड़ा गया.

पुलिस के मुताबिक पूर्व प्रेमी ने प्रेमिकी से बदला लेने के लिए ऐसा किया था. यह रिवेंज पोर्न का मामला था. आरोपी के पीडि़ता के साथ 4-5 साल पहले संबंध थे. तभी आरोपी ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर अश्लील वीडियो बनाए थे. उस दौरान भी आरोपी ने कई जगहों पर उस के अश्लील फोटो शेयर की थी.

पहले तो आरोपी ने लड़की को अश्लील वीडियो शेयर करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया और आरोपी ने वीडियो कौल के माध्यम से भी उस का यौन शोषण किया. जब पीडि़ता ने आरोपी से बात करनी बंद कर दी तो उस ने वीडियो और फोटो पौर्न साइट पर अपलोड कर दिए.

भूल जाने का अधिकार

यही नहीं 3 मई, 2020 को उड़ीसा के जिला ढेकनाल में एक एफआईआर दर्ज हुई. यहां गिरिधरप्रसाद गांव में कार्तिक पूजा के दिन आरोपी शुभ्रांशु राउत महिला के घर पर गया. चूंकि दोनों एक ही गांव के थे और एकदूसरे के साथ पढ़ते थे, ऐसे में महिला ने शुभ्रांशु राउत को घर पर आने दिया. एफआईआर के मुताबिक, घर पर कोई नहीं है, यह जान कर शुभ्रांशु ने महिला के साथ बलात्कार किया. इस दौरान उस ने अपने मोबाइल से पीडि़ता का वीडियो बनाया और तसवीरें भी खींची.

शुभ्रांशु ने पीडि़ता को धमकी दी कि किसी से शिकायत करने पर वीडियो सार्वजनिक कर देगा. पीडि़ता का आरोप था कि इस घटना के बाद आरोपी 10 नवंबर, 2019 से लगातार धमका कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता रहा. जब पीडि़ता ने तंग आ कर अपने मातापिता को यह बात बताई तो शुभ्रांशु ने पीडि़ता के नाम से ही फेसबुक पर एक अकाउंट बनाया और उस पर वे वीडियो और फोटो अपलोड कर दिए.

कई कोशिशों के बाद पुलिस ने अप्रैल, 2020 में मामला दर्ज किया और शुभ्रांशु को गिरफ्तार किया. उस ने उड़ीसा हाई कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी लगाई, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. इस सुनवाई के दौरान ही उड़ीसा हाई कोर्ट में जस्टिस एस के पाणिग्रही ने ‘भूल जाने के अधिकार’ का जिक्र किया.

भूल जाने का अधिकार निजता के अधिकार से इस मामले में अलग है क्योंकि जहां निजता के अधिकार में ऐसी जानकारी शामिल होती है जो सिर्फ अधिकार रखने वाले तक ही सीमित हो सकती है, जबकि भूल जाने के अधिकार में एक निश्चित समय पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को हटाना और तीसरे पक्ष को जानकारी तक पहुंचने से रोकना भी शामिल है.

आपराधिक धमकी

ऐसे ही एक मामले में चेन्नई की एक अदालत ने दिनोंदिन अपराध के बदलते चलन पर चिंता जताई थी. मामला पिछले वर्ष नवंबर का है. 24 साल के एक शख्स को रेप और आपराधिक धमकी के आरोप में 10 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाते हुए कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की.

कोर्ट ने कहा कि लड़के अपने पार्टनर के साथ बिताए अंतरंग पलों की वीडियोग्राफी कर लेते हैं और बाद में इस का इस्तेमाल धमकी देने और शोषण करने के रूप में करते हैं. कोर्ट ने कहा कि यह चलन एक नई सामाजिक बुराई है. ‘टाइम्स औफ इंडिया’ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी 2014 में पीडि़ता के संपर्क में आया जब दोनों अंबात्तुर की एक फैक्टरी में मिले. पीडि़ता उस फैक्टरी में काम करती थी. आरोपी सुरेश एक बैंक में रिप्रैजेंटेटिव के तौर पर काम करता था और वह फैक्टरी में पीडि़ता की डिटेल्स लेने गया था.

पीडि़ता को अपना बैंक अकाउंट शुरू कराने के लिए डिटेल्स देने की जरूरत थी. पीडि़ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि आरोपी ने मोबाइल नंबर लेने के बाद लड़की को परेशान करना शुरू कर दिया. वह बात करने के लिए उस पर अकसर दबाव बनाता था.

खबर के मुताबिक, कथित तौर पर आरोपी लड़की को काम के सिलसिले में अपने घर ले आया था जहां उस ने उस के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए, जिस के वीडियो आरोपी ने रिकौर्ड कर लिए. आरोपी ने धमकी में उसे बारबार घर आने के लिए कहा और ऐसा न करने पर वीडियो क्लिप वायरल कर देने की धमकी दी. जब लड़की पेट से हो गई तब घर वालों के पता चलने पर आरोपी के खिलाफ शिकायत की गई, जिस में कोर्ट ने आरोपी सुरेश को 10 साल की सजा सुनाई.

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पहले मामले की सुनवाई

भारत में रिवेंज पोर्न का पहला मामला ‘पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनिमेष बौक्सी’ के रूप में 2018 में सामने आया था, जिस में आरोपी को प्राइवेट क्लिप्स और तसवीरें सोशल साइट्स पर बिना पीडि़ता की सहमति के शेयर करने के अपराध में 5 साल की कैद और क्व9 हजार का जुरमाना लगाया गया था.

दरअसल, आरोपी शादी के बहाने पीडि़ता के साथ लगातार संबंध में था. इस दौरान वह दोनों की अतरंग तसवीरें और क्लिप बनाता रहा. जब शादी की   झूठी बात पीडि़ता के सामने आई तो आरोपी तसवीरों को सोशल साइट पर अपलोड करने की धमकी देने लगा. यहां तक कि आरोपी ने लड़की के फोन का इस्तेमाल कर और तसवीरें भी जुटाईं.

बाद में जब पीडि़ता ने रिश्ता खत्म कर लड़के से पिंड छुड़ाने की बात कही, तो आरोपी ने पीडि़ता और उस के पिता की पहचान का खुलासा करते हुए उन तसवीरों को चर्चित एडल्ट वैबसाइट पर अपलोड कर दिया. इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि पीडि़ता को बलात्कार पीडि़ता के रूप में ट्रीट किया जाए और उचित मुआवजा दिया जाए.

महिलाओं पर बढ़ते अपराध के आंकड़े

कोरोना महामारी की वजह से लगे लौकडाउन के दौरान सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता बढ़ी. ऐसे में साइबर क्राइम के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 की तुलना में 2020 में रिवेंज पोर्न के अधिक मामले दर्ज किए गए, जबकि यह तब की बात है जब 70% पीडि़त महिलाएं इस तरह के मामले दर्ज ही नहीं करती हैं.

साइबर ऐंड लौ फाउंडेशन नामक गैरसरकारी संगठन द्वारा आयोजित एक सर्वे में पाया गया कि भारत में 13 से 45 वर्ष की आयु के 27% इंटरनैट उपयोगकर्ता रिवेंज पोर्न के ऐसे उदाहरणों के अधीन हैं.

रिवेंज पोर्न के साथ समस्या यह है कि एक बार इसे औनलाइन पोस्ट करने के बाद इसे न केवल भारत में बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी एक्सेस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त भले ही सामग्री को एक साइट से हटा दिया गया हो, पर इस के प्रसार को समाहित नहीं किया जा सकता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जिस ने सामग्री को डाउनलोड किया है, वह इसे कहीं और पुनर्प्रकाशित कर सकता है, इसलिए इंटरनैट की सामग्री के अस्तित्व को बनाए रखता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 और 2014 के बीच अश्लील सामग्री के औनलाइन सा  झाकरण की मात्रा में क्व104 की वृद्धि हुई थी. वहीं 2010 की साइबर क्राइम रिपोर्ट से पता चला कि सिर्फ 35 फीसदी महिलाएं अपने शिकार की रिपोर्ट करती हैं.  इस में यह भी कहा गया है कि 18.3% महिलाओं को पता भी नहीं था कि उन्हें शिकार बनाया  गया है.

पिछले वर्ष ‘इंटरनैट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया’ के एक कार्यक्रम में कानून और आईटी मंत्री ने भारत में रिवेंज पोर्न की घटना के बारे में बात की. उन्होंने खुद माना की भारत में रिवेंज पोर्न की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है जो सही संकेत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत में रिवेंज पोर्न की   झलक देखने को मिल रही है और इस में यूट्यूब जैसे प्लेटफौर्म का भी दुरुपयोग हो रहा है. मैं ने इस मुद्दे पर सुंदर पिचाई से भी बात की है.’’

महिलाओं के लिए घातक

भारत में डिजिटल पर रिवेंज पोर्न की अधिकतर घटनाएं या यों कहें कि 90 फीसदी घटनाएं महिलाओं के साथ घटती हैं. महिलाएं अपने रोजमर्रा के जीवन में हमेशा अपराध और यौन हिंसा का शिकार होती रहती हैं. इस से पहले भी रिवेंज के नाम पर एसिड अटैक, यौन हमला, हत्या जैसी वारदातें होती ही थीं. अब रिवेंज पोर्न भी महिला उत्पीड़न की पहचान बनता जा रहा है.

भारत में डिजिटलीकरण ने देश के भीतर तकनीकी शक्ति और प्रौद्योगिकी तक पहुंच में वृद्धि की है, किंतु इस आभासी दुनिया में उत्पीड़न और अपराधों के मामलों में बाद में वृद्धि हुई है. ऐसे अपराध जिन्हें साइबर अपराध कहा जाता है, यह एक बड़ी समस्या के रूप में विकसित हुए हैं जिस से देश और दुनियाभर में कानूनी तौर पर भी और न्याय दिलाने के तौर पर भी सरकारें संघर्ष कर रही हैं.

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भारत में ऐसे कई मामले उभरने लगे हैं जहां लड़की से बदला लेने के लिए रिवेंज पोर्न ने कई लड़कियों की जिंदगी तबाह कर दी है. बदला और बदनाम इन 2 बातों के इर्दगिर्द रिवेंज पोर्न की वारदात को अंजाम दिया जाता है. लड़कियों से बदला लेने का यह तरीका बहुत ज्यादा पुराना नहीं है. इस की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और इस के कारण चिंता और बढ़ती जा रही है.

आईटी एक्ट क्या कहता है

धारा 66 ई: आईटी अधिनियम 2000 की यह धारा उस सजा से संबंधित है जहां किसी व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन होता है. इस में किसी भी व्यक्तिकी ऐसी अतरंग तसवीरें व क्लिप खींचना, छापना और शेयर करना जिस पर उक्त व्यक्ति को आपत्ति हो वह इस धारा के तहत आती है. इस में अपराधी को

3 साल की सजा या 2 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना नहीं हो सकता है या कुछ मामलों में दोनों ही हो सकते हैं.

धारा 67 व धारा 67ए: धारा 67 के अनुसार इलैक्ट्रौनिक माध्यम से अश्लील और यौन सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित है, जिस में अपराधी को 3 साल तक की कैद या 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. 67ए में दूसरे बार 5 साल की सजा और 10 लाख रुपए जुर्माना है. अगर दूसरी बार अपराधी ने अपराध किया है तो सजा 7 साल तक बढ़ जाती है.

धारा 67बी: यह धारा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों से संबंधित है. यदि किसी बच्चे को शामिल करते हुए अश्लील सामग्री के प्रकाशन का ऐसा कोई कार्य किया जाता है, तो इस तरह के अपराध के लिए 5 साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान होगा.

महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (1986)

विक्टिम इस की धारा 4 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है जिस में पेंटिंग फोटोग्राफ या फिल्म के माध्यम से महिला का अश्लील चित्रण हो. धारा 4 का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है, जहां अपराधी को कठोर कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है.

ऐसा हो तो क्या करें

साइबर सैल पर रिपोर्ट: भारत में साइबर सैल हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद है. सभी साइबर सैल में इस से जुड़े क्राइम से निबटा जाता है. कोई भी बड़ी आसानी से इंटरनैट के माध्यम से अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकता है. साइबर अपराध शाखाओं में उन वैबसाइटों की निगरानी के लिए कुछ तंत्र हैं जहां वीडियो अपलोड, देखे या सा  झा किए जाते हैं. शिकायत मिलने पर वे इलैक्ट्रौनिक वस्तुओं को जब्त कर लेते हैं और उन्हें फोरेंसिंक लैब में भेज देते हैं ताकि इस का पूरा इतिहास पता चल सके.

वैबसाइट या प्लेटफौर्म पर सीधी रिपोर्ट: इस में सीधे उसी वैबसाइट या माध्यम पर रिपोर्ट की जा सकती है जहां फोटो या वीडियो प्रसारित किए जा रहे हैं यह या तो स्वयं या कानूनी परामर्शदाता की सहायता से किया जा सकता है. आज सब से लोकप्रिय वैबसाइटों जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, गूगल आदि की सख्त नीतियां हैं जो न्यूडिटी पर प्रतिबंध करती हैं. ऐसी स्थितियों में यहां से डायरैक्ट रिलीफ मिल सकता है.

सभी सुबूत इकट्ठा करना: जिस ने यह किया है उस से संबंधित कोई सुबूत मिटाएं नहीं. जैसे मैसेजेस, किसी भी धमकी या ब्लैकमेलिंग संदेशों के स्क्रीन रिकौर्ड इत्यादि ताकि बाद में अपराधी के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सके.

राष्ट्रीय महिला आयोग या स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत: ऐसे मामलों में पीडि़त की ओर से कोई भी शिकायत दर्ज कर सकता है और पीडि़त को पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है. जो आरोप दायर किए जा सकते हैं, वे आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत लगाए गए आरोप और प्रसारित छवियों के प्रकारप्रसार पर निर्भर करते हैं. साइबर ब्लौग इंडिया जैसे कुछ विशेषज्ञ हैल्पलाइन नंबर भी हैं जो साइबर अपराध विशेषज्ञों से जोड़ सकते हैं.

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सावधानियां बरतें

खुद की अश्लील, निजी व किसी भी तरह की आपत्तिजनक सामग्री को रोकने का अब तक का सबसे अच्छा और आसान तरीका यही है कि ऐसी सामग्री पैदा होने ही न दें.

– कंप्यूटर और मोबाइल फोन पर सुरक्षा सौफ्टवेयर की मदद ली जा सकती है.

– हमेशा अपने लैपटौप, मोबाइल या किसी भी डिवाइस पर स्ट्रौंग पैटर्न लगा कर रखें.

– कभी भी दूसरों से अपना पासवर्ड शेयर न करें. संभव है कि जो आप का करीबी पहले भरोसेमंद रहा हो वह बाद में न हो.

– यदि किसी करीबी के पास आप के अतरंग फोटो हैं तो उस से हटाने के लिए कहने से कभी नहीं डरना चाहिए और सुनिश्चित करें कि वे हटे या नहीं.

– जागरूकता के तहत मातापिता और स्कूल में शिक्षकों को बच्चों को सैक्सटिंग के जोखिमों से अवगत कराना चाहिए.

– ध्यान रहे कि जब आप किसी प्रकार किसी होटल, पब या माल में जाते हैं तो चेंजिंग से पहले का अच्छी तरह मुआइना कर लें.

देवी का दर्जा महज दिखावा

सा ल की शुरूआत में गुजरात के अहमदाबाद शहर का एक अजीब वाकेआ सामने आया जहां एक शादीशुदा महिला ने साबरमती नदी में कूद कर अपनी जान दे दी.  23 साल की उस महिला का नाम आयशा था. आत्महत्या करने से पहले उस ने भावुक कर देने वाला एक वीडियो बनाया, जिस में वह अपने परिवार को मैसेज दे रही है. आयशा ने सुसाइड करने से पहले अपने पेरैंट्स को फोन भी किया. उस के पेरैंट्स उसे सम?झने की बहुत कोशिश कर रहे हैं कि कोई समस्या नहीं है सब ठीक हो जाएगा. उस के पापा ने यहां तक कहा कि अगर वह घर वापस नहीं आई तो वे भी आत्महत्या कर लेंगे, पूरे परिवार को मार देंगे.

यहां एक पिता की बेबसी साफ दिखाई दे रही है. लेकिन आयशा कह रही है कि नहीं… अब बस… बहुत हो चुका. अब नहीं जीना. थक गई हूं मैं अपनी जिंदगी से. बच गई तो ले जाना और अगर मर गई तो दफन कर देना मु?ो. आयशा ने अपने मातापिता से यह भी कहा कि पति आरिफ को उस की कोई परवाह नहीं.

 मरने से पहले वीडियो भेज देना

वीडियो में वह अपने पति का भी जिक्र कर रही है कि वह उसे बहुत प्यार करती है. लेकिन वह उस का फोन नहीं उठा रहा है और न ही उसे लेने आ रहा है. उस ने कुछ दिन पहले जब उसे फोन किया और उस से कहा कि तुम्हारे बिना मर जाऊंगी, तो आरिफ ने कहा मर जाओ पर मरने से पहले वीडियो बना कर जरूर भेज देना ताकि पुलिस मुझे परेशान न करे.

पति की बातों से आहत हो कर ही आयशा ने इतना बड़ा कदम उठा लिया. आयशा ने मरने से पहले कहा कि उस के पति को उस से आजादी चाहिए थी तो उस ने उसे आजाद कर दिया. लेकिन वह कामना करती है कि अब दोबारा उसे इंसानों की शक्ल न दिखे.

दहेज के लिए करता था प्रताडि़त

पेशे से टेलर आयशा के पिता लियाकत अली का कहना है कि उन की बेटी आयशा का निकाह 2018 में जालौर (राजस्थान) के आरिफ से हुआ था. लेकिन शादी के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताडि़त किया जाने लगा था.

शादी के कुछ महीने बाद ही आरिफ आयशा को उस के पिता के घर अहमदाबाद छोड़ गया. हालांकि सब के सम?झने के बाद ले भी गया. लेकिन 2019 में फिर उसे अहमदाबाद छोड़ गया यह बोल कर कि उस के परिवार वालों को डेढ़ लाख रुपए चाहिए. आयशा के पिता ने किसी तरह दिए भी. लेकिन पैसे मिलने के बाद आरिफ के परिवार वालों का लालच बढ़ता चला गया.

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इसलिए फिर वह उसे उस के पिता के घर अहमदाबाद छोड़ गया. फिर उसे लेने आना तो दूर, फोन पर बात भी नहीं करने लगा, जिस से आयशा परेशान रहने लगी थी और उस ने इतना बड़ा कदम उठा लिया.

एक लड़की से अफेयर

आयशा के वकील जफर पठान का कहना है कि आयशा के पति आरिफ का एक लड़की से अफेयर चल रहा था और वह अपनी पत्नी के सामने ही उस लड़की से वीडियो कौल पर बात करता था. वह अपनी प्रेमिका पर पैसे लुटाता था और इसी वजह से वह आयशा के पिता से रुपयों की मांग करता था. शादी के 2 महीने बाद ही आरिफ ने बताया कि वह एक लड़की से प्यार करता है.

लेकिन आयशा ने इसलिए इस बात को अपने मातापिता से छिपा कर रखा ताकि उन के पिता की इज्जत पर आंच न आए. वह हर पल एक नई तकलीफ से गुजरती रही, लेकिन अपने परिवार को कुछ नहीं बताया ताकि उन्हें तकलीफ न पहुंचे.

शादी के समय आयशा के पिता ने उसे जरूरत की हर चीज दी, लेकिन फिर भी उस के परिवार वाले संतुष्ट नहीं थे. एक लड़की के लिए इस से बुरा और क्या हो सकता है कि उस का पति उस के ही सामने अपनी गर्लफ्रैंड से वीडियो कौल पर बात करे और वह कुछ न कर पाए. पति उसे तलाक देने से ले कर जला कर मारने तक की बात करता था. डिप्रैशन के कारण ही आयशा का बच्चा उस के पेट में ही मर गया था.

उस के पिता का कहना है कि उन की बेटी हंसमुख थी, लेकिन निकाह के बाद से ही दहेज को ले कर उस की जिंदगी नर्क बना दी गई थी. एक बार तो ससुराल वालों ने 3 दिन तक उसे खाना नहीं दिया था.

 थम नहीं रहा सिलसिला

आजकल आत्महत्या की घटना एक आम सी बात होती जा रही है और जिस का सब से बड़ा कारण दहेज के लिए प्रताडि़त करना है. इसलिए कहते हैं परिवार भले ही गरीब हो पर शरीफ होना चाहिए. दहेज, जो समाज में एक अभिशाप है. जाने कितनों की जिंदगियां लील गया, फिर भी यह दहेज नाम का दानव जिंदा है और अभी भी लोगों की जिंदगियां लील रहा है.

पहली ऐनिवर्सरी के 16 दिन पहले एक महिला ने खुद को खत्म कर लिया क्योंकि शादी के बाद से ही उस के सासससुर और पति दहेज के लिए उसे प्रताडि़त करने लगे थे और उस के साथ मारपीट करते थे.

लड़की ने बहुत बार शिकायत भी की. दोनों परिवारों की सुलह भी हुई. लड़के वालों की डिमांड भी पूरी की जाती रही, पर फिर भी उस महिला के साथ जुल्म होता रहा.

आजिज आ कर महिला ने खुद को ही खत्म कर लिया. मरने से पहले सुसाइड नोट में उस ने लिखा कि उस के पिताजी ने उस के लिए बहुत कुछ किया. कई बार वे चैक से पैसे देते रहे. यहां तक कि उस के ससुराल वालों के पास जा कर उन्होंने बेटी की खुशी की भीख भी मांगी, पर वे नहीं माने और उस पर जुल्म होता रहा.

लेकिन अब वह अपने मातापिता को और दुखी नहीं देखना चाहती. इसलिए दुनिया से जा रही है, लेकिन उस की ससुराल वालों को इस की सजा जरूर मिलनी चाहिए.

हमारा भारत महान, जहां पहले तो बेटियों को देवी बना कर पूजते हैं और दूसरी तरफ दहेज के लिए उन्हीं को कभी आग के हवाले तो कभी रस्सी से ?झल जाने पर मजबूर कर देते हैं. दहेज प्रथा दुनिया के तमाम देशों में प्रचलित निकृष्टतम कुप्रथाओं में एक है, जिस में परोक्ष रूप से लड़की की शादी के लिए लड़का खरीदा जाता है और लड़के के मांबाप बड़ी शान से अपने बेटे की बिक्त्री करते हैं.

 लालच और लोलुपता

लालच और लोलुपता की इंतहा यह कि वे अपने बेटे के कैरियर के हिसाब से रेट तय करते हैं और उधर लड़की के मांबाप बेटी के लिए दहेज जुटाने के लिए कभी घर तो कभी जमीन बेच देते हैं. जिंदगीभर की सारी कमाई वे बेटी को दहेजस्वरूप दे देते हैं ताकि उन की बेटी अपनी ससुराल में सुखी रहे.

इस के बावजूद दहेजलोभियों का पेट नहीं भरता. वे बहू पर जुल्म करते हैं और हार कर लड़की अपनी जान ही खत्म कर लेती है.

शादी के बाद दुखी सिर्फ लड़की ही नहीं, बल्कि उस के मांबाप भी रहते हैं क्योंकि बेटी का दुख उन से देखा नहीं जाता. सोचते हैं रिश्ता बचा रहे तो बेहतर. जिस का नतीजा यह कि एक दिन जिंदगी से ऊब कर लड़की खुद को ही खत्म कर लेती है.

मजबूर पिता ने आत्महत्या कर ली

पिछले साल ही हरियाणा के रेवाड़ी जिले में सामाजिक तानेबाने को ?झक?झरने वाला एक मामला आया था जहां सगाई के एक दिन पहले लड़के वालों ने रुपए 30 लाख की डिमांड कर दी, जिसे लड़की के पिता ने पूरी करने में असमर्थता जताई तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया. कहा क्व30 लाख दे सकते हो तो लगन ले कर आना वरना मत आना, जबकि लड़की के परिवार वालों ने शादी की पूरी तैयारी कर ली थी. बेटी की शादी टूट जाने से आहत पिता ने खुद को ही खत्म कर लिया.

यह बात आज तक समझ नहीं आई कि शादी तो 2 दिलों का मिलन है, फिर बीच में दहेज कहां से आ गया? लेकिन क्या यहां गुनहगार लड़की के मातापिता नहीं हैं? क्या वे अपनी बेटियों की मौत के जिम्मेदार नहीं हैं? अगर वे दहेजलोभियों के पेट न भरते, तो क्या वे दोबारा अपना खाली पेट बजाते हुए फिर दहेज की मांग करते और न मिलने पर बहू पर जुल्म करते?

मातापिता के घर में हंसनेखिलखिलाने वाली बेटियों को दहेज के लोभी उन्हें एक शव बना देते हैं. अपराध ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10-11 सालों से लगातार 7-8 हजार विवाहिताएं दहेज प्रताड़ना से बचने के लिए खुद मौत को गले लगा रही हैं या फिर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जा रहा है. दहेज के कारण औसतन 20 महिलाएं रोज मर रही हैं. हर घंटे 1.

1 दिन में 20 महिलाएं मर रही हैं

फ्लाइट अटैंडैंट अनीसा बन्ना ने अपनी छत से कूद कर अपनी जान खत्म कर ली. उस के मातापिता का कहना है कि दहेज के लिए उसे भावनात्मक रूप से प्रताडि़त किया जाता था. भारत में एक खतरनाक प्रवृत्ति है जो दहेज के लिए हर दिन 20 महिलाओं को मरते हुए देखती है. या तो दहेज के लिए लड़की की हत्या कर दी जाती है या उसे मरने के लिए मजबूर कर दिया जाता था.

भारत में दहेज प्रथा अभी भी एक खतरनाक वास्तविकता है. दहेज में लड़की जितना धन ले कर अपनी ससुराल आती है, उतना ही उसे सम्मान की नजर से देखा जाता है. आखिर क्यों एक महिला का महत्त्व उस के लाए दहेज के अनुरूप होता है?

भारत के राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो ने 2017 तक लगभग 7000 दहेज से जुड़ी मौतों को दर्ज किया था. 2001 में दहेज की मृत्यु प्रति दिन लगभग 19 से बढ़ कर 2016 में 21 प्रति दिन हो गई. भारत में दहेज लेना और देना दोनों कानूनन जुर्म हैं. लेकिन फिर भी यह भारतीय विवाह का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है.

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सख्त कानून मगर…

पेशे से वकील सीमा जोशी के अनुसार, 1961 में बना दहेज निरोधक कानून महिलाओं पर विवाह के बाद होने वाले अत्याचार से बचाव के लिए है. इस की धारा 8 कहती है कि दहेज लेनादेना संज्ञेय अपराध है. दहेज देने के मामले में धारा 3 के तहत लड़की के परिवार वालों पर केस दर्ज हो सकता है.

इस धारा के तहत जुर्म के साबित होने पर कम से कम 5 साल कैद की सजा का प्रावधान है. धारा 4 के तहत दहेज मांगना जुर्म है. इस के दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल की सजा हो सकती है. फिर भी कानून को धत बता कर लोग दहेज ले और दे भी रहे हैं.

रौंगटे खड़े हो जाएंगे

आज कहीं दिखावे को तो कहीं स्टेटस के लिए दहेज का लेनदेन जारी है. लेकिन यहां एक लड़की के दिमाग में सवाल आता है कि क्या मेरा अपना कोई मूल्य नहीं है? क्यों मेरे मातापिता को दहेज देना पड़ेगा. लड़की कितना भी अच्छा कैरियर क्यों न बना ले, पर शादी का सवाल आते ही उसे लगता है कि मैं बो?झ हूं अपने मांबाप पर.

इसलिए कई बार मांबाप बेटी के साथ कठोर हो जाते हैं यह सोच कर कि बेटी को चाहे कितना भी पढ़ालिखा लो दहेज तो देना ही पड़़ेगा. लड़की को यह एहसास करवाना कि तुम कितनी भी सक्षम क्यों न हो, तुम्हारी आगे की जिंदगी के लिए धन दिया जा रहा है, उस के आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता व आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता है. यहीं से एक लड़की की मनोदशा बिगड़नी शुरू हो जाती है. समाज के बनाए इस नियम की खातिर लड़की अपने पूरे व्यक्तित्व को बदलने पर मजबूर हो जाती है.

आज लड़केलड़कियां एकसमान पढ़ाई कर रहे हैं, नौकरी कर रहे हैं. लेकिन समाज का ढर्रा वही है. गूगल न्यूज सर्च में ‘स्रश2ह्म्4 स्रद्गड्डह्लद्ध’ लिख कर देख लीजिए आप के रोंगटे खड़े हो जाएंगे. सिर्फ कम पढे़लिखे लोग ही नहीं, बल्कि पैसे वाले और पढ़ेलिखे लोग भी दहेज प्रताड़ना में शामिल हैं.

जम्मू में दहेज हत्या के आरोपियों की जमानत पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार से कहा था कि तमाम प्रयासों के बावजूद दहेज के कारण होने वाली मौतें बढ़ रही हैं. यदि सरकार और समाज ने इकट्ठा हो कर काम नहीं किया तो हालात बेकाबू हो सकते हैं.

भारतीय संस्कृति में दहेज प्रथा इतनी गहरी है कि इसे सामान्य और अपरिवर्तनीय माना जाता है. आज भी अगर लोगों से कहें कि दहेज लेना और देना अपराध है, तो लोग इसे एक वैकल्पिक वास्तविकता के रूप में अनदेखा कर देते हैं. कोई नहीं बोलना चाहता इस बारे में खुल कर.

आज इसीलिए लड़के और उस के परिवार वाले दहेज के लिए महिला को छोड़ देते हैं या उस के साथ बुरा बरताव करते हैं. एक औरत को पत्नी का दर्जा न दे कर उसे गुलाम बना कर रखते हैं और इस का सब से बड़ा कारण है बेटियों को बो?झ सम?झना.

बेटियों को जन्म लेने से पहले मार दिया जाता है ताकि हमेशा के लिए इस बो?झ से छुटकारा पा सकें. आखिर महिला पितृसत्तात्मक का भार कितनी दूर तक उठाएगी? परिवर्तन कैसे और कब शुरू होगा?

एक अभिशाप

हमारे समाज में दहेज प्रथा एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में, चाहे मानसिक हो या शारीरिक, को बढ़ावा देता है. अमीर परिवार के लिए तो बेटी की शादी आसान बात है, लेकिन गरीब मध्यवर्गीय परिवारों के लिए बेटी के विवाह में दहेज देना उन के लिए विवशता बन जाती है. वे जानते हैं कि अगर दहेज न दिया तो यह उन के मानसम्मान को तो कम करेगा ही, साथ ही बेटी को बिना दहेज के विदा किया तो ससुराल में उस का जीना दूभर बन जाएगा.

संपन्न परिवार बेटी के विवाह में किए गए व्यय को अपने लिए एक निवेश मानते हैं. उन्हें लगता है कि बहुमूल्य उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह सीधा उन की प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा. इस के अलावा ससुराल में उन की बेटी को प्रेम और सम्मान मिलेगा.

आज दहेज के नाम पर बड़ीबड़ी चीजों की मांग की जाती है. दहेज न दे पाने के कारण बरात वापस चली जाती है और फिर लड़की का विवाह होना मुश्किल हो जाता है. लोग पूछते हैं कि बरात वापस क्यों चली गई? जरूर लड़की में ही कोई खोट होगा. लेकिन वही लोग और समाज दोनों यह नहीं सम?झना चाहते कि कमी लड़की में नहीं, बल्कि दहेज में हो जाने के कारण बरात वापस चली गई.

इसलिए मांबाप हर हाल में कैसे भी कर के अपनी बेटी को दहेज दे कर उसे उस की ससुराल में सुखी कर देना चाहते हैं. लेकिन फिर भी क्या एक लड़की को अपनी ससुराल में बराबरी का हक मिल पाता है? दहेज लेने के बाद भी पति परमेश्वर बना रहता है और पत्नी दासी क्यों कहलाती है?

सिक्के का दूसरा पहलू

पुरुषप्रधान देश में महिलाओं को देवी का दर्जा तो मिला, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि आज भी महिलाओं को कमतर आंका जाता है. उन्हें कमजोर, असहाय, पति पर निर्भर, अबला, बेचारी सम?झ कर उन के साथ कभी दोयमदर्जे का तो कभी जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया जाता है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियोके ने कहा था कि हिंसा महज रणक्षेत्र तक ही सीमित नहीं है. कई महिलाएं व लड़कियां अपने परिवार में ही हिंसा की शिकार हो रही हैं. एक महिला के लिए सब से ज्यादा सुरक्षित जगह उस का घर होता है, लेकिन जब वहां भी उस पर हिंसा और अत्याचार हो तो वह कहां जाए?

नकारात्मक सोच

समाज में महिलाओं के प्रति सोच हमेशा से ही नकारात्मक रही है और जिस का सब से बड़ा उदाहरण है कचरे की ढेर में पड़े नवजात, जिन में 97% लड़कियां ही होती हैं. भारत में जन्म से ही महिला हिंसा के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं. शहर हो या गांव, शिक्षितवर्ग हो या अशिक्षित, उच्चवर्ग हो या निम्न आर्थिकवर्ग, गरीब हो या अमीर सभी जगह महिला हिंसा के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष स्वरूप देखने को मिल जाते हैं.

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सभ्य और विकसित समाज में जहां आज महिलाएं अपने अस्तित्व की जंग लड़ने में सक्षम हो रही हैं, वहीं इस

समाज  में उन पर सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य व आर्थिक  हिंसा के प्रत्यक्ष उदाहरण रोज देखनेसुनने को मिल रहे हैं.

पत्रकार नीता भल्ला अपने ऊपर शारीरिक और मानसिक हिंसा की कहानी सुनाते हैं कि कैसे उस के पार्टनर ने उस के चेहरे को दीवार पर दे मारा था, जिस के कारण चेहरे की दाहिने ओर सूजन हो गई थी. आंख के पास मारा जिस के कारण वह नीली पड़ गई थी. गरदन पर भी चोट के निशान थे, जिन के कारण वह गले में स्कार्फ लगा कर दफ्तर जाती थी.

  जिम्मेदार कौन

कहीं न कहीं औरतें खुद जिम्मेदार हैं अपने ऊपर होने वाले जुल्म लिए क्योंकि वे चुप लगा जाती हैं और पति ढीठ बनता जाता है. महिलाओं को यह डर सताने लगता है कि कहीं पति ने छोड़ दिया तो कहां जाएंगी? औरतों को हमेशा यह डर सताता रहता है कि कोई गलती हो जाने पर पति छोड़ न दे.

भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक, करीब 51% पुरुष और 54% महिलाएं पुरुषों द्वारा महिलाओं को पीटने को न्यायसंगत ठहराते हैं तो सोचिए एक महिला का अपने घरपरिवार में क्या इज्जत है? अगर कोई महिला अपने पति के हाथों पिट रही होती है तो आसपास के लोग देख कर भी कुछ नहीं बोलते.

भारत में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और उन्हें फालतू सम?झना, सदियों पुरानी भेदभावपूर्ण सोच है. महिलाओं पर होने वाली हिंसा कहीं न कहीं पुरुषों का उन्हें अपने से कमतर सम?झना ही है और दूसरा कारण दहेज, जिस के कारण औरतों को पतियों के ससुराल से वह इज्जत नहीं मिल पाता जिस की वे हकदार होती हैं.

आज के युवाओं को पढ़ीलिखी और नौकरी वाली लड़की तो चाहिए, पर अपने से आगे बढ़ते उसे नहीं देख सकते हैं. पत्नी इंगलिश तो बोले, परंतु उस से ज्यादा नहीं, क्योंकि इस से पुरुष के अहं को ठेस पहुंचती है. खुद से योग्य और सुंदर पत्नी होने पर वह उस की खीज पत्नी पर गाहेबगाहे बेइज्जत कर के निकालता है. पत्नी को कमतर सम?झने पर या उस के ऊपर रौब गांठने की मनोस्थिति भी पति को पत्नी के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए उकसाती है.

हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच आज भी हावी है. इसलिए तो कभी महिलाओं को ?झगड़ालू तो कभी वस्तु की तरह पेश किया जाता है. महिलाओं पर मीन्ज और मजाक बनाए जाते हैं. उन्हें हमेशा पुरुषों से कमतर आंकने की कोशिश की जाती है. मीन्ज के माध्यम से पत्नी एक फालतू चीज है जो पति का सुखचैन छीन लेती है. पति को न चाहते हुए भी ऐसी पत्नी के साथ रहना पड़ता है. इतना ही नहीं, उसे अलौकिक समस्याओं के तौर पर पापों के फल की तरह दिखलाया गया.

पितृसत्तात्मक समाज में एक पत्नी को हमेशा वस्तु सम?झ कर उसे पति की जरूरतों के अनुरूप ढालने की कोशिश की है. इस तर्ज पर इस की सामाजिक रचना गढ़ी गई है और इसे तमाम विचारों, कहावतों, सांस्कृतिक गतिविधियों और चुटकुलों के माध्यम से गाहेबगाहे दर्शाया जाता है.

औरत नहीं है वस्तु

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली शबनम बताती हैं कि हमें इसलिए इस मजाक को हलके में नहीं लेना चाहिए क्योंकि यह रूढि़वादी सोच को और बढ़ावा देता है. औरत कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं है. एक सभ्य समाज को चाहिए कि वह इस का विरोध करे. मजाक या चुटकुले के जरीए कही गई बात हमारे मन में धीरेधीरे पैठ जमाने और विचार बनाने का काम करती है.

ऐसे में बेहद जरूरी है कि जब महिला पर हिंसा, बलात्कार, लैंगिग भेदभाव या किसी भी हिंसा से संबंधित विचार हम किसी चुट्कुले में सुनते हैं तो उस पर तुरंत आपत्ति दर्ज करवाएं. शायद हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी महिलाओं को उसी नजरिए से देखता है, इसलिए ऐसे जोक्स सामने आते हैं. टीवी और फिल्मों में भी महिलाओं को खलनायिका के तौर पर दिखाया जाता है.

सिर्फ हिंदुओं में ही क्यों, अन्य धर्मों में भी औरतों की स्थिति दयनीय रही है. उन की स्वतंत्रता और उन्मुक्तता पर अनेक प्रकार के अंकुश लगाए गए जो आज भी कहींकहीं जारी हैं. परदा प्रथा इस सीमा तक बढ़ गई कि स्त्रियों के लिए कठोर एकांत नियम बना दिए गए. नारी के संबंध में मनु का कथन, ‘पितारक्षति कौमारे… न स्त्री स्वातंन्नयाम अर्हति.’

हिंदू धर्म की मान्यतों के अनुसार पति को भगवान का दर्जा दिया गया है, जिस की हर आज्ञा का पालन करना, पति की हर इच्छा को पूरा करना एक पत्नी का धर्म है. कई औरतें तो आज भी अपने पति का नाम नहीं लेती हैं क्योंकि इस से उन्हें पाप लगेगा.

यह कैसा समाज है जहां आजादी के 72 वर्ष बाद भी महिलाएं पुरुषों की सोच से आजाद नहीं हो पाई हैं? पतिपत्नी गाड़ी के 2 पहिए होने के बावजूद पत्नी को बराबरी का अधिकार नहीं मिल पाया है.

आज भी कई प्रकार के धार्मिक रीतिरिवाजों, कुत्सित रूढि़यों, यौन अपराधों, लैंगिग भेदभाव, घरेलू हिंसा, निम्नस्तरीय जीवनशैली, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज उत्पीड़न, कन्या भ्रूणहत्या, सामाजिक असुरक्षा और उपेक्षा की शिकार महिलाएं होती रहती हैं. आज भी अपने परिवार में एक औरत को वह स्थान नहीं मिल पाया है, जो उसे मिलना चाहिए. वह तो आज भी पति की जरूरतों को पूरा करने और उस के भोगविलास का साधन मात्र है.

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अब खुद को बदलना होगा

अपनों के बिना जीना सीखिए. कोविड-19 ने पहले घरों में  बंद कर के परिवारों को दूसरों से अलग किया अब बेसमय की मौतों ने अपनों में से 1-2 को छीन कर बिना उन के जीने पर मजबूर कर दिया है. कुछ कोविड के कारण कुछ सामाजिक बदलाव के कारण अब रिश्तेदार रिश्तेदार नहीं रह गए, दोस्त दोस्त नहीं रह गया. अगर कोई कोविड से चला गया तो अकेले ही उस की भरपाई करनी होगी, किसी का हाथ पीठ पर नहीं आएगा, किसी के 2 शब्द सुनने को नहीं मिलेंगे.

जब दहशत का माहौल होता है तो लोग दुबक जाते हैं पर यही समय होता है जब दुबकने के समय किसी का हाथ साथ में हो, पर यह दिख नहीं रहा. कोविड की दहशत कि मैं किसी के पास गई तो मु झे कोविड न हो जाए तो घर में ही मर जाएंगे, क्योंकि कोई न अस्पताल ले जाएगा न वहां जगह मिलेगी.

यहां तक कि मरने के बाद भी मरी गाय की तरह कचरा गाड़ी में पटक कर 4 और लाशों के साथ जला दिया जाए तो बड़ी बात नहीं. यह डर किसी को धैर्य बंधाने से रोकता है.

समाज को पढ़ाया गया है कि तू अकेला आया है, अकेले ही जाएगा. गीता बारबार कहती है यह बंधुबांधव सब छलावा हैं. फिर अर्जुन को बहकाती हुई वही गीता दोहराती है कि तू कहां मरने वाला है, मर तो तू पहले ही चुका है. तू मरता है तो भी तेरी आत्मा नहीं मरेगी, क्योंकि आत्मा तो नश्वर है.

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यानी रोज पट्टी पढ़ाई जा रही है कि अपने में मस्त रहो, किसी पर ध्यान न दो, अपने लिए करो और अपनों के लिए जान देने की बात न करो, उन की जान ले लो. गीता का सार यही है कि जब आफत है तो खुद की सोचो.

यह गीता पढ़े या बिना पढ़े आज पूरी तरह लागू हो रहा है. एक तो लौकडाउनों की वजह से लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों के यहां गम बांटने नहीं जा सकते ऊपर से कोविड का डर और तीसरे जो धर्म का पाठ पिछले 10 सालों में जम कर पढ़ाया गया है, उस का नतीजा यह भय कि हम अकेले रह गए हैं, कुछ हो जाए तो क्या करेंगे, सब से बड़ी आपदा है, कोविड से भी बड़ी.

वास्तव में जो अकेले रह गए हैं, उन की कुछ पूछताछ नहीं हो रही है. जिन्होंने दोस्तों, संबंधियों और थोड़ी पहचान वालों के व्हाट्सऐप गु्रप बना रखे हैं, इंस्ट्राग्राम अकाउंट खोल रखे हैं, ट्विटर पर हैं, उन के यहां दुख हुआ तो मैकैनिकली सब आत्मा की शांति के हाथ जोड़े दिखा कर इतिश्रीकर लेंगे.

मरने वाले का परिवार अपने को कैसे संभाल रहा है, इस की कहीं कोई जानकारी लेने की चेष्टा नहीं, किसी भी तरह टैलीफोन पर भी 2 बोल नहीं, क्योंकि मोबाइल फोन पर ज्यादा समय तो आए मैसेजों को आगे फौरवर्ड करने में, गुड मौर्निंग बोलने में, आए मैसेजों को डिलीट करने में लग जाता है. कौन किसी को फोन कर के पूछे कि कैसे हो? कहीं उस ने कोई काम बता दिया तो क्या होगा? धर्म तो पढ़ा रहा है न कि अपने लिए जीओ.

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बिना अपनों के जीना आसान नहीं है पर करना यही पड़ेगा. औनलाइन क्लासों में गार्डनिंग, निटिंग, कुकिंग, डासिंग सीखनी होगी और बेमतलब में उसे फेसबुक, व्हाट्सऐप गु्रप में डालना होगा जहां लगभग अनजान हो चुके दोस्त, रिश्तेदार, परिचित वाहवाह कर के इतिश्री कर लेंगे. यही सुख है, यही जीवन का उद्देश्य है.

अब खुद कमाने के सूत्र सीखने होंगे. गनीमत है कि औनलाइन बहुत से तरीके हैं, बहुत से काम हैं. उद्योगों को भी ऐसे लोगों की जरूरत है, जो घर पर रह कर उन का काम कर सकें. काम छोटा हो, बड़ा हो करने को तैयार रहें, स्तर का हो या न हो, हिचकिचाहट नहीं. यह कुछ पैसे देगा, समाज से जोड़े रखेगा, आप को सारा दिन कुछ करने की प्रेरणा देगा और जो चला गया उस का अभाव भरेगा.

कोविड-19 और सत्तारूढि़यों के रूढि़वादियों के धर्म ने आज बेहद सैल्फिश बना दिया है. हमें इसी समाज में रहने की आदत डालनी होगी. समाज नहीं बदलेगा, यह गारंटी है.

सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफौर्म

जब से ट्विटर और व्हाट्सएप पर सरकारी अंकुश की बात हुई हैं, लोगों का जो भी मर्जी हो बकवास इन सोशल मीडिया प्लेटफौमों से डालने की आदत पर थोड़ा ठंडा पानी पड़ गया है. हमारे यहां ऐसे भक्तों की कमी नहीं जो अपनी जातिगत श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को आंख मूंद कर समर्थन कर रहे थे और विरोधियों के बारे में हर तरह की अनापशनाप क्रिएट करने या फौरवर्ड करने में लगे थे. अब यह आधार ठंडा पडऩे लगा है.

सरकारी अंकुश इसलिए लगा है कि अब सरकारी प्रचार की पोल खोली जाने लगी है. कोविड से मरने वालों की गिनती जिस तरह से बड़ी थी उस से भयभीत हो कर लोगों को पता लगने लगा कि मंदिर और हिंदूमुस्लिम करने में जानें जाती हैं क्योंकि सरकार की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. भक्त को कम बदले पर जो समझदार थे उन की पूछ बढऩे लगी है और उन्हें जवाबी गालियां मिलनी बिल्कुल मिलनी बंद हो गई हैं.

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जैसे पहले झूठ के बोलवाले ने सच को दवा दिया था वैसे ही अब का बोलबाला झूठ को दबा रहा है और सरकार को यह मंजूर नहीं. हमारे धर्म ग्रंथ और धाॢमक मान्यताएं झूठ के महलों पर खड़ी हैं. कोर्ई भी धाॢमक कहानी पढ़ लो झूठ से शुरू होती है और झूठ पर खत्म होती है और उसे ही आदर्श मानमान कर सरकार ने झूठ पर झूठ बोला जो अब टिवटर और व्हाट्सएप जम कर खंगाला जाया जा रहा है. ट्विटर ने भाजपा के संबित पाया के ट्विट्स को मैनीयूलेटड कह डाला तो सरकार अब मोहल्ले की सासों की सरदार बन कर उतर आई है और पढ़ीलिखी बहुओं का मुंह बंद करने की ठान ली है.

हमारे रीतिरिवाज तो यही हैं और यही चलेंगे की तर्ज पर सरकार भी यही संविधान है और हम ही तय करेंगे कि यह संविधान किस तरह पढ़ा जाएगा. सासें तय करेंगी कि कौन क्या पहनेगा क्योंकि संस्कृति की रक्षा तो उन्हीं के हाथों में है चाहे वे सारे मोहल्ले में सब के बारे में सच बताने के नाम पर अफवाहें फैलाती रहती हो. अब देश में एक तरफ कट्टरपंथी सासनुमा सरकार है, दूसरी तरफ बहुएं जो आजादी भी मांग रही है और तर्क भी पेश कर रही हैं और दोनों का युद्ध ट्विटर और व्हाट्सएप की गली के आधार हो रहा है. आप घूंघट वालियों के साथ हैं या जींस वालियों के साथ?

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जैंडर इक्वैलिटी हल्ला ज्यादा तथ्य कम

सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की एक उच्चस्तरीय बैठक में ‘ऐजैंडा 2030’ के अंतर्गत 17 सतत विकास लक्ष्यों को रखा गया, जिसे भारत सहित 193 देशों ने स्वीकार किया. इन लक्ष्यों में लैंगिक समानता को भी शामिल किया गया था.

हमेशा से इस बात का हल्ला मचता रहा है कि समाज के विकास के लिए लैंगिक समानता बहुत जरूरी है. इस में कोई दोराय नहीं कि स्त्रीपुरुष के बीच सोचसमझ कर भेदभाव की एक खाई बनाई गई है. महिलाओं को समान अधिकार और उचित स्थान प्राप्त नहीं है जिस की वे हकदार हैं.

वर्ल्ड इकानौमिक फोरम द्वारा 2017 के ग्लोबल जैंडर गैप इंडैक्स की बात करें तो भारत 144 देशों की सूची में 108वें नंबर पर आता है.

डब्ल्यूईएफ ने पाया कि मौजूदा समय में जिस दर से सुधार किए जा रहे हैं उस हिसाब से दुनियाभर के सभी क्षेत्रों में मौजूद स्त्रीपुरुष असमानता अगले 108 वर्षों में भी दूर नहीं की जा सकेगी. दफ्तरों में तो यह असमानता खत्म करने में 202 साल लगने की संभावना है.

स्त्रीपुरुष समानता की हम भले ही कितनी भी बातें कर लें, मगर इस सच से इनकार नहीं कर सकते कि ऐसे कई तथ्य हैं, बातें हैं जो स्त्रियों को कमजोर बनाती हैं या फिर जिन की वजह से वे औफिस को कम समय दे पाती हैं और इस से तरक्की के अवसर भी कम होते जाते हैं.

कुदरत द्वारा किए गए इस भेदभाव को हम चाह कर भी नकार नहीं सकते. जिन महिलाओं ने इन्हें नकारा वे आगे बढ़ीं. उन्हें बढ़ने से रोका नहीं गया. मगर उन्हें अपवाद ही कहा जा सकता है. सामान्य जीवन में स्त्रियों को आगे बढ़ने में काफी अड़चनों का सामना करना पड़ता है.

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प्रैगनैंसी और चाइल्ड केयर

कुदरत ने स्त्री को मातृत्व का सुख दिया है तो साथ में 9 महीने बच्चे को कोख में रखने और फिर दूध पिला कर उसे बड़ा करने की जिम्मेदारी भी दी है. इस दौर से सामान्यतया हर स्त्री को गुजरना होता है. कम से कम जीवन में 2 बार एक महिला गर्भावस्था व 1-2 बार गर्भपात के दौर से गुजरती है. इस दौरान वह कितना भी प्रयास कर ले, दफ्तर में काम करने के बजाय उस के लिए अपने शरीर और घरपरिवार के प्रति जिम्मेदारियां निभाना ज्यादा जरूरी हो जाता है.

बच्चा जब तक छोटा होता है उस की नैपी बदलने से ले कर दूध पिलाने तक का सारा काम एक मां ही करती है. पिता भले ही बच्चे को ऊपर का दूध पिला कर पाल ले, मगर यह एक समझौता ही होगा. बच्चे को अच्छी सेहत और बेहतर पोषण मां के दूध से ही मिलता है. इसी तरह नैपी बदलने का काम मां जितना बेहतर निभा सकती है पिता या घर के दूसरे सदस्य नहीं.

जाहिर है, बच्चे के जन्म से ले कर उस के थोड़ा बड़ा हो जाने तक मां को पूरी सावधानी से अपने कर्तव्य निभाने होते हैं. इस दौरान स्वाभाविक है कि वह औफिस में ज्यादा बेहतर परफौर्मैंस नहीं दे पाती. वह बच्चे को छोड़ कर औफिस की मीटिंग्स के लिए आउट औफ टाउन नहीं जा सकती या फिर लेटनाइट औफिस में रुक नहीं सकती जबकि उस का पति यानी पुरुष इस दौरान भी हर जगह आ जा सकता है और हर तरह के काम कर सकता है.

पीरियड्स के दौरान महिलाओं की तकलीफ

महिलाओं के जीवन में महीने में 4 दिन पीरियड्स के नाम होते हैं. इस दौरान उन्हें दर्द और तकलीफ का सामना तो करना ही होता है, बारबार पैड्स बदलने और सफाई रखने के झंझट से भी गुजरना पड़ता है. यही नहीं पीरियड्स से

7 दिन पहले से उन्हें पीएमएस (प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम) की परेशानी भी हो जाती है, जिस के तहत फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन और फीलगुड ब्रेन कैमिकल सिरोटिन का स्तर कम होने से मूड खराब और चिड़चिड़ाहट रहने लगती है. न चाहते हुए भी इन दिनों उन के काम पर थोड़ा असर तो पड़ता ही है.

मसल्स और हड्डियों की मजबूती

कुछ महिलाएं भले ही अच्छे खानपान और व्यायाम द्वारा अपने शरीर को स्ट्रौंग बना लें या पहलवान और खिलाडि़न बन जाएं, मगर सामान्य रूप से देखा जाए तो स्त्री के मुकाबले पुरुष का शरीर स्वाभाविक रूप से मजबूत और ताकतवर होता है.

पुरुष भारी से भारी काम एक झटके में कर सकते हैं. इसी तरह दौड़भाग और धूप, धूलमिट्टी में घूमना या सुनसान सड़कों से गुजरना जैसे काम भी स्त्रियों के मुकाबले पुरुष ही बेहतर निभा सकते हैं.

घर वालों की सेवा

यदि परिवार में कोई बीमार है तो हम स्त्री की ओर ही देखते हैं. बीमारी व्यक्ति को खाना खिलाना, देखभाल करना, नैपी बदलना जैसे काम औरत ही बेहतर कर सकती है. इसी तरह जब औफिस में किसी के साथ लड़ाईझगड़ा करने या दम दिखाने की नौबत आती है तो पुरुष को आगे किया जाता है, क्योंकि पुरुष स्वभाव और शरीर से रफ ऐंड टफ होते हैं जबकि महिलाएं कोमल होती हैं.

मेकअप और फैशन

चाहे हम जितनी भी बात कर लें मगर

इस हकीकत से इनकार नहीं कर सकते हैं

कि महिलाओं को अपने मेकअप, ड्रैस और

दूसरे फैशन करने, बाल व नाखून संवारने या

फिर ऐक्सैसरीज पहनने में पुरुषों के मुकाबले

बहुत ज्यादा समय लगाना पड़ता है. इसी तरह औफिस जाना हो या मीटिंग के लिए तैयार होना हो, स्त्रियों को स्वाभाविक रूप से अधिक समय लगता है.

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सफाई का ज्यादा खयाल

महिलाएं अपनी साफसफाई का ज्यादा खयाल रखती हैं. कुदरती रूप से भी उन के लिए ऐसा करना जरूरी होता है. पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को यूरिन इन्फैक्शन ज्यादा होता है. वे किसी भी जगह शौच या यूरिन के लिए नहीं जा सकतीं. उन के शरीर की बनावट ही ऐसी होती है कि उन्हें इन्फैक्शन का खतरा ज्यादा होता है. ट्यूब यूरेथ्रा की बनावट स्त्रियों में पुरुषों की तुलना में छोटी होती है. इस से बैक्टीरिया आसानी से ब्लैडर तक पहुंच जाते हैं, जिस से इन्फैक्शन की संभावना रहती है.

हारमोनल परिवर्तन

महिलाओं और पुरुषों में न सिर्फ शरीर की बनावट में अंतर होता है, बल्कि उन की शारीरिक जरूरतों में भी फर्क होता है. एक महिला के शरीर में समयसमय पर हारमोन संबंधी कई बदलाव होते हैं.

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महिलाओं में मेनोपौज शुरू होने से पहले की अवस्था को पैरिमेनोपौज कहते हैं. यह 35 साल की उम्र से भी शुरू हो सकती है. इस समय स्त्री का हारमोन लैवल बहुत ऊपरनीचे होता है, जिस से अनिद्रा, मूड स्विंग्स और चिंता की शिकायत हो सकती है. इस के बाद जब अधेड़ावस्था में मेनोपौज का समय आता है तो महिलाओं को और भी ज्यादा हारमोनल समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

खूबसूरत दिखने की होड़ क्यों?

प्रिया मेट्रो स्टेशन की लिफ्ट में लगे मिरर में खुद को निहार रही थी. बड़ीबड़ी आंखें ,लंबे ,काले ,लहराते बाल, चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मीठी सी मुस्कान। आज उस ने गुलाबी रंग का सूट पहना था जो बहुत सुंदर लग रहा था। प्रिया को अपना व्यक्तित्व काफी आकर्षक लग रहा था. वह अपनी खूबसूरती
पर इतरा ही रही थी कि फर्स्ट फ्लोर पर लिफ्ट रुकी और एक खूबसूरत सी लड़की ने प्रवेश किया।
वह लड़की प्रिया से कहीं अधिक गोरी ,लंबी और तीखे नैन नक्श वाली थी। प्रिया ने एक बार फिर मिरर देखा। उस लड़की के आगे वह काफी सांवली, नाटी और साधारण सी लग रही थी. प्रिया के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गई. अब उसे अपना चेहरा बहुत फीका लगने लगा।वह  यह सोच कर दुखी हो गईकि उस का रंगरूप कितना साधारण सा है. वह बिल्कुल भी खूबसूरत नहीं।

बस एक लमहा गुजरा था. कहां प्रिया अपनी खूबसूरती पर इतरा रही थी को और कहां अब उस के चेहरे पर उदासी के बादल घनीभूत हो चुके थे. वजह साफ़ है , उस एक पल में प्रिया ने दूसरे से खुद की तुलना की थी और इस चक्कर में अपना नजरिया बदल लिया था। खुद को देखने और महसूस करने का नजरिया, जमाने की भीड़ में अपने वजूद को पहचानने का नजरिया , सब बदल गया था. बहुत साधारण सी बात थी मगर प्रियाकी जिंदगी में बहुत कुछ बदल गया. उस के चेहरे की मुस्कान छिन गई. जीवन के प्रति सकारात्मकता खो गई.एक पल के अंतर ने प्रिया को आसमान से जमीन पर ला पटका.

तुलना क्यों

प्रिया की तरह सामान्य जिंदगी में हम अक्सर अनजाने खुद के साथ ऐसा करते रहते हैं. दूसरों से तुलना कर अपनी कमियां देखते हैं और फिर जो है उस की खुशी भूल कर जो नहीं है उस का गम मनाने लगते हैं. इस से चेहरे की मुस्कान खो जाती है और पूरा व्यक्तित्व फीका लगने लगता है. इस के बाद हम शुरू करते हैं जो नहीं है उसे पाने की जंग। काले हैं तो गोरा होने की मशक्कत।
नाटे हैं तो लम्बा होने की चाहत। मोटे हैं तो पतले होने की कसरत। समय के साथ हम खुद को बदलने की जद्दोजहद में कुछ इस कदर मशरूफ हो जाते हैं कि अपने  असली किरदार से रूबरू ही नहीं हो पाते। दिमाग में तनाव और मन में निराशा लिए घूमते रहते हैं.

नजरिये का भेद

हम यदि खुद को देखने का सकारात्मक नजरिया अपनाते हैं तो हम जैसे हैं उसे अच्छा समझते हुए अपने गुणों को उभारने का काम कर सकते हैं. पर यदि नकारात्मक  नजरिया अपनाते हैं तो हमेशा अपनी खामियों को ही हाईलाइट करते रहेंगे। इस से हमारा आत्मविश्वास तो टूटेगा ही दिमाग भी खुद को बेहतर
दिखाने की उलझनों में ही डूबा रहेगा और हम हर काम में पिछड़ते  जाएंगे। पैसे बरबाद करेंगे सो अलग. इस से अच्छा है कि सकारात्मक नजरिया अपनाऐं। जैसे हैं उसे कुबूल करते हुए दूसरी खूबियों को उभारने का प्रयास करें।

मोटी हैं तो बातूनी बनें

यदि आप मोटी हैं तो पतले होने की जद्दोजहद के बजाय बातूनी बनिए और लोगों का दिल जीतने का प्रयास कीजिए।बातूनी का मतलब बेवजह बोलते रहना नहीं बल्कि लोगों को बोर न होने देना है. आप अपने अंदर ऐसी क्वालिटी पैदा कीजिए कि लोग आप का साथ चाहें. अपने दिल में कोई बात दबा कर न रखें. वैसे भी कहा जाता है कि मोटे लोग हंसाने में माहिर होते हैं। तो फिर क्यों न आप भी मस्ती भरे पल चुराने का प्रयास करें। जिस महफिल में जाएं वहां हंसी और ठहाकों की मजलिस जमा दें. गुदगुदी की फुलझड़ियां छोड़े। लोग आप के पास आने और आप को अपना हमराही बनाने को बेताब हो उठेंगे. अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बनाना जरूरी है न कि परफेक्ट फिगर की चाह में तनमन खराब कर लेना।

सांवली है तो कौन्फिडेंस लाइए

यदि आप का रंग सांवला है तो इस बात पर अफसोस करते रहने और रंग फेयर करने के प्रयास में लाखों रुपए खर्च करने से बेहतर है आप अपनी रंगत को स्वीकार
करें और रंग निखारने के बजाय खूबियों को उभारने का प्रयास करें अपना व्यवहार खूबसूरत बनाए ताकि लोग आप की कद्र करें और आप को सम्मान दे। गोरी रंगत तो 4 दिन की चांदनी होती है. मगर अच्छी सीरत हमेशा लोगों के दिलों पर राज करती है.स्टाइलिश कपड़े पहने। स्मार्ट हेयर कटिंग करवाऐं और सधी
हुई कॉन्फिडेंस से भरी चाल से अपना व्यक्तित्व आकर्षक बनाएं। त्वचा की रंगत सुधारने के बजाए चेहरे पर ग्लो और आंखों में विश्वास की चमक लाएं।

नाटी है तो नौटी बनें और फैशन सेंस के जलवे बिखेरे

आप का कद छोटा है तो निराश होने की जरूरत नहीं। नाटी लड़कियां यदि चुलबुली और शोख हो तो यह स्वभाव उन पर काफी सूट करता है। कपड़े ऐसे पहने जो आप को लंबा दिखाएं। मगर इस के पीछे अपने फैशन सेंस का दिवालिया न निकाले। स्टाइलिश कपड़े पहने। वैसे कपड़े जो आप को अच्छे लगते हो। जिन्हे पहन कर आप फैशन की दृष्टि से अपडेट नजर आए. इस से आप दूर से ही लोगों की
निगाहों पर छा जाएंगी. आप के अंदर की हीन भावना को पनपने के लिए धरातल नहीं मिलेगा।

हमें हरदम चमत्कार ही क्यों चाहिए

अभिनेता आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘बधाई हो’ की सफलता  ने आयुष्मान खुराना की पिछली फिल्मों ‘विकी डोनर’ व ‘बरेली की बर्फी’ की तरह लीक से हट कर मगर साधारण लोगों की जिंदगियों पर बेस होने के कारण सफल हुई है. विज्ञापन फिल्में बनाने वाले अमित शर्मा ने इस फिल्म में वास्तविकता दिखाई है और यही वजह है कि थोड़ा टेढ़ा विषय होने पर भी उस ने क्व100 करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया और बड़ी उम्र की औरतों को मां बनने के लिए एक रास्ता खोल दिया.

परिवार नियोजन से पहले बच्चे जब चाहे, हो जाते थे. जब पहला बच्चा 14-15 साल की उम्र में हो रहा हो तो आखिरी 40-45 वर्ष की उम्र में होना बड़ी बात नहीं थी और उसी समय पहले बच्चे का बच्चा भी हो सकता था. अब जब बच्चों की शादियां 30 के आसपास होने लगी हैं और परिवार नियोजन के तरीके आसान हैं, तो देर से होने वाले बच्चे पर आंखभौं चढ़ती हैं.

मामला देर से हुए बच्चे का उतना नहीं. ‘बधाई हो’ आम मध्यम परिवारों के रहनसहन की कहानी बयां करती है जो जगह की कमी, बंधीबंधाई सामाजिक मान्यताओं, पड़ोसियों के दखल के बीच जीते हैं. अमित शर्मा ने दिल्ली के जंगपुरा इलाके में बचपन बिताया और उसी महौल को उन्होंने फिल्म में उकेरा. इसीलिए फिल्म में बनावटीपन कम है. दर्शकों को इस तरह की फिल्में अच्छी लगती हैं क्योंकि ऐसी फिल्में आसपास घूमती हैं और बिना भारीभरकम प्रचार के चल जाती हैं.

हमारे यहां धार्मिक कहानियों का बोलबाला रहा है और इसीलिए हर दूसरी फिल्म में काल्पनिक सैटों, सुपरहीरो के सुपर कारनामे, मेकअप से पुती हीरोइनें होती हैं. हम असल में रामलीलाओं के आदी हैं जिन में जंगल में भी सीताएं सोने का मुकुट लगाए घूमती हैं. उन्हें देखतेदेखते हमारी तार्किक शक्ति जवाब दे चुकी है और ‘बधाई हो’ जैसी फिल्म के टिपिकल मध्यम परिवार का दर्शन पचता नहीं है.

असल में हमारी दुर्दशा की वजह ही यह है कि हम आमतौर पर वास्तविक समस्याओं से भागते हैं. हमें हरदम चमत्कार चाहिए. राममंदिर और सरदार पटेल की मूर्तियों को ले कर अरबोंखरबों रुपए खर्च इसीलिए करते हैं कि उस से कुछ ऐसा होगा कि सर्वत्र सुख संपदा संपन्नता फैल जाएगी. यह खामखयाली बड़ी मेहनत से हमारे पंडे हमारे मन में भरते हैं, जो फिल्मों में दिखता है और जहां लोग महलों में रहते हैं, बड़ी गाडि़यों में घूमते हैं और हीरो चमत्कारिक काम करते हैं. ‘बधाई हो’, ‘इंग्लिश विंग्लिश’, ‘हिंदी मीडियम’ जैसी फिल्में सफल हुईं तो इसलिए कि इस में रोजमर्रा की समस्याओं से जूझते आम लोगों को दिखाया गया उन्हीं के असली वातावरण में.

जीवन बड़ा कठिन और कठोर है. इसे समझनेसमझाने की जरूरत है. यह मंत्रोंतंत्रों से नहीं होगा. इस के लिए ऐसी कहानी कहने वाले चाहिए जो आम लोगों के सुखदुख को समझ सकें, भजन करने वाले और रामरावण युद्ध कराने वाले नहीं.

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