Travel Special: भीड़-भाड़ से दूर जाना हो तो यहां जाएं

क्या आप भाग-दौड़ भरी जिन्दगी से परेशान हो गई हैं और कुछ दिन सूकून से गुजारना चाहती हैं? तो गांव से अच्छा और क्या होगा? आपको देश के सबसे कम आबादी वाले गांवों को जरूर देखना चाहिए. अगर आप ट्रेकिंग का भी शौक रखती हैं तो आपके लिए तो यह सबसे गांव बेस्ट डेस्टीनेशन हैं. ये गांव टूरिस्ट और यात्रियों की भीड़-भाड़ से भी अनछुए हैं. कहीं तो बस 250 लोग ही रहते हैं.

1. सांकरी, उत्तराखंड

आबादी: 270

ट्रेकिंग के शौकिनों और पर्वतारोहियों के बीच यह गांव मशहूर है. संकरी गांव के बाद हर की दून और केदारकांथा ट्रेक शुरू हो जाता है. यह टूरिस्ट की भीड़-भाड़ से दूर बसा एक शांत गांव है. इस गांव में 77 घर है जिसमें से कई घरों में आप ठहर सकती हैं.

2. हा, अरुणाचल प्रदेश

आबादी: 289

अरुणाचल प्रदेश की खूबसूरती का तो कोई जवाब ही नहीं है. पर ‘हा’ गांव आकर आपको शांति मिलेगी. 5000 फीट की ऊंचाई पर बसा है कुरुंग कुमेय जिले के लोंगडिंग कोलिंग (पिपसोरंग) में आदिवासी गांव ‘हा’. यहां से ‘ओल्ड जिरो’ बेहद पास है. कुदरत को महसूस करने के अलावा आप ‘हा’ गांव के पास ही मेंगा गुफाओं में भी जा सकते हैं.

3. शांशा, हिमाचल प्रदेश

आबादी: 320

किन्नोर हिमाचल का बेहद खूबसूरत पर बहुत कम चर्चित इलाका है. यहां बसे हर गांवों की आबादी भी बहुत कम है. ऐसा ही एक गांव है ‘शांशा’ जो कैलोंग से बस 27 किमी की दूरी पर है. तांदी-किश्तवार रोड से सटे इस गांव में केवल 77 घर हैं. आमतौर पर यहां ट्रेवेलर्स आराम करने के लिए रुकते हैं और 1-2 दिन बिताकर चले जाते हैं.

4. गंडाउलिम, गोवा

आबादी: 301

गोवा के किसी क्षेत्र की इतनी कम आबादी? चौंकिए मत, यह सच है. गोवा के मशहूर बीच घूम कर अगर आप ऊबने लगे तो यहां का रुख कर सकती हैं. राजधानी पंजीम से 15 किमी की दूरी पर बसा है यह गांव. इस गांव से पास ही बहते कम्बुरजुआ कनाल में आप मगरमच्छ भी देख सकती हैं.

तो इंतजार किस बात का है. ऑफिस से छुट्टी लीजिए और सूकून का रुख करिए.

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Summer Special: ओडिशा की नेचुरल खूबसूरती

भारत में कुछ पर्यटन स्थल ऐसे हैं जो अपनी संस्कृति व विरासत के मामले में अनूठे हैं. ओडिशा राज्य उन्हीं में से एक है. आप को जान कर हैरानी होगी कि ओडिशा के 3 प्रमुख दर्शनीय स्थल मितरकर्णिका वन्यजीव अभयारण्य, चिलका झील तथा ऐतिहासिक शहर भुवनेश्वर को संयुक्त राष्ट्र वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है.

एक ओर जहां ओडिशा का लहलहाता हरित वन आवरण फलफूलों तथा पशुपक्षियों की व्यापक किस्मों के लिए मेजबान का काम करता है वहीं वहां चित्रलिखित सी पहाडि़यों तथा घाटियों के मध्य अनेक चौंका देने वाले प्रपात तथा नदियां हैं जो विश्वभर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 500 किलोमीटर तटरेखा वाले ओडिशा में जहां बालेश्वर तट, चांदीपुर तट, कोणार्क तट, पारद्वीप तट, पुरी तट हैं जो उत्तर भारत के पर्यटकों को नया अनुभव देते हैं वहीं प्राकृतिक सौंदर्य, लहलहाते हरित वन आवरण, फलफूलों तथा पशुपक्षियों की मेजबानी करते अभयारण्य, जैसे नंदन कानन अभयारण्य, चिलका झील पक्षी अभयारण्य हैं, जो वनस्पतियों और जीवजंतुओं को कुदरती वातावरण में फलनेफूलने का मौका देते हैं.

चिलका झील

एशिया की सब से बड़ी खारे पानी की झील चिलका सैकड़ों पक्षियों को आश्रय  देने के साथसाथ भारत के उन कुछेक स्थानों में से है जहां आप डौल्फिन का दीदार भी कर सकते हैं. राज्य के समुद्रतटीय हिस्से में फैली यह झील अपनी खूबसूरती एवं वन्य जीवन के लिए प्रसिद्ध है. अफ्रीका की विक्टोरिया झील के बाद यह दूसरी झील है, जहां पक्षियों का इतना बड़ा जमघट लगता है. चिलका झील ओडिशा की एक ऐसी सैरगाह है जिसे देखे बिना ओडिशा की यात्रा पूरी नहीं हो सकती. सूर्य की किरणें व झील के ऊपर मंडराते बादलों में परिवर्तन के साथ यह नयनाभिराम झील दिन के हर पहर में अलगअलग रूप व रंग में नजर आती है.

फूलबानी

पूर्वी भारत के मध्य ओडिशा राज्य में बसा फूलबानी शहर प्राकृतिक दृष्टि से काफी खूबसूरत स्थान है. चारों ओर पहाड़ों से घिरे फूलबानी के 3 ओर पिल्लसंलुकी नदी बहती है. फूलबानी, कंधमाल जिले का मुख्यालय है जहां आ कर पर्यटकों को सुकून मिलता है. भीड़भाड़ से दूर इस इलाके में अपूर्व शांति है. पहाडि़यों की चोटियों से फूलबानी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है. यहां सितंबर से मई के बीच कभी भी जाया जा सकता है. भुवनेश्वर यहां का निकटतम हवाई हड्डा है जबकि बहरामपुर निकटतम पूर्वीय तटीय रेलवेलाइन पर स्टेशन है जो भारत के मुख्य नगरों से जुड़ा हुआ है.

ओडिशा का कंधमाल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथसाथ हस्तशिल्प के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां के दरिंगबाड़ी को ओडिशा का कश्मीर कहा जाता है. दिलोदिमाग को तरोताजा करने के लिए यह नगर श्रेष्ठ है. यहां का वन्य जीवन, पहाड़ व झरने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं.

फूलबानी से 98 किलोमीटर दूर कलिंग घाटी है. इस घाटी के पास ही दशमिल्ला नामक स्थान है जहां पर सम्राट अशोक ने कलिंग का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा था. यह घाटी सिल्वी कल्चर गार्डन व आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी जानी जाती है.

चंद्रभागा समुद्री तट

ओडिशा का चंद्रभागा समुद्री तट सैरसपाटे, नौका विहार व तैराकी के लिए बेहतरीन जगह है. अगर आप अपने कुछ खास पलों को खूबसूरत यादगार का रूप देना चाहते हैं तो यहां जरूर आएं. कोणार्क का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर जिसे वहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इस तट पर वार्षिक चंद्रभागा मेला लगता है. इस दौरान यह तट पर्यटकों, रंगों व प्रकाश से जीवंत हो उठता है. यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है. इस के अतिरिक्त यह पुरी, कोलकाता, दिल्ली, अहमदाबाद, विशाखापट्टनम आदि शहरों के रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है.

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Travel Special: पर्यटकों को लुभाता रंगीलो राजस्थान

मैं अपने परिवार के साथ अपनी कार से राजस्थान यात्रा पर गया था. लगभग तीनचौथाई राजस्थान की यात्रा कर के घर लौटा. यात्रा के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ कि पूरा राजस्थान अपने गौरवशाली अतीत की ऐतिहासिक गाथाओं, वैभवशाली महलों, ऐतिहासिक किलों के साथ ही अपनी आकर्षक लोककला, संगीत, नृत्य एवं रोचक आश्चर्यजनक रीतिरिवाजों तथा संस्कृति से पर्यटकोंको लुभाता है.

इस के साथ ही राजस्थान पर्यटन विभाग, होटल, रैस्टोरैंट एवं पर्यटकों की पसंद की सामग्री के व्यवसायी तथा पर्यटन से जुड़े लोग गाइड आदि भी पर्यटकों विशेषतौर पर विदेशी पर्यटकों को रिझाने में पूरी तरह से जागरूक हैं. राजस्थान में विदेशी पर्यटक भी बड़ी तादाद में आते हैं.

हम लोगों ने राजस्थान में प्रवेश सवाई माधोपुर से किया. सवाई माधोपुर में प्रवेश करते ही रेगीस्तान का जहाज ऊंट हमें दिखाई देने लगे. विचित्र बात यह थी कि ऊंट के बालों की कटिंग इस तरह की गई थी कि उन के पीठ एवं पेट पर जलते दिए एवं अन्य कलाकृतियां उभर आई थीं. पहले तो हमें लगा कि संभवत: काले पेंट से ये कलाकृतियां बनाई गई हैं, लेकिन पूछने पर पता चला कि ये कलाकृतियां ऊंट के बालों को काट कर बनाई गई हैं. ऊंट तो हम ने पहले भी देखे थे, लेकिन यह ऊंट पेंटिंग पहली बार देखी.

आकर्षण का केंद्र

रणथंभौर किले के पास पहुंचतेपहुंचते राजस्थान लोकसंस्कृति, ढांणी (राजस्थायनी ग्राम) की जीवनशैली आदि को उजागर करते तथा किले के आकार के होटल एवं रैस्टोरैंट नजर आए जोकि यकीनन पर्यटकों को लुभाने के लिए ही बने हैं. रणथंभौर किला एवं रिजर्व फौरैस्ट पर्यटन, जंगल सफारी हेतु हरे रंग से रंगी खुली छत वाले वाहन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे जबकि रणथंभौर किले तक जाने वाली सड़क बेहद खस्ता हालत में थी. यह जंगल के असली लुक के मद्देनजर था या फिर सवाई माधोपुर के फौरैस्ट डिपार्टमैंट की लापरवाही की वजह से समझ नहीं पाए.

जब हम लोग प्रसिद्ध स्थल पुष्कर पहुंचे तो उस वक्त वहां विश्व प्रसिद्ध कार्तिक मास में लगने वाला मेला समापन की ओर था. तब भी वहां देशविदेश के सैलानियों का सैलाब उमड़ रहा था. मेला अभी भी अपने पूरे शबाब पर था. लगभग

3-4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले मेले में सर्कस, जादू, मौत का कुआं के साथ ही राजस्थानी परिधानों, कलाकृतियों, विभिन्न खाद्यपदार्थों के स्टाल्स के साथ ही पशु मेले में ऊंटदौड़ देशीविदेशी पर्यटकों को समान रूप से लुभा रही थी.

राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा वहां नित नए सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं रोचक प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही थीं. प्रतियोगिताएं सिर्फ राजस्थान के अंचल के लोगों के लिए ही आयोजित थीं, लेकिन वे प्रतियोगिताएं राजस्थानी संस्कृति के तहत ही थीं. मसलन, विदेशी पर्यटकों के लिए पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता आयोजित की गई जोकि यकीनन उन्हें लुभाने के लिए ही आयोजित की गई थी जबकि लंबी मूंछों की प्रतियोगिता में प्रतियोगियों की डेढ़ 2 फिट लंबी मूंछें देशीविदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रही थीं.

ऐतिहासिक धरोहरों की भूमि

विदेशी पर्यटक, राजस्थान में सब से अधिक पुष्कर में ही निश्चिंत एवं स्वच्छंद हो कर विचरते नजर आए. बड़े होटलों के अलावा बहुतायत में वहां के स्थानीय लोगों ने भी अपने मकानों के कुछ हिस्से को गैस्टहाउस के रूप में परिवर्तित कर दिया था जिस में सिर्फ देशी पर्यटक ही नहीं, अपितु विदेशी पर्यटक भी रुक कर स्थानीय लोगों के परिवारों के साथ घुलमिल कर रह रहे थे.

जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर के आलीशान महल अपनी भव्यता की वजह से देशीविदेशी दोनों ही किस्म के पर्यटकों को लुभाते हैं तो अधिकांश महलों, किलों एवं हवेलियों पर स्वामित्व अभी भी राज परिवारों एवं हवेलियों के भूतपूर्व स्वामियों के वंशजों का ही है. वे वंशज भी अपने पूर्वजों की इन धरोहरों को सिर्फ भलीभांति संभालने में ही जागरूक नहीं हैं बल्कि पर्यटकों विशेषतौर पर विदेशी पर्यटकों को उन की आकर्षक प्रस्तुति कर लुभाने में भी पूरी तरह सक्रिय हैं.

साफसुथरे राजमहलों के कक्षों में अपने पूर्वजों के हथियार, वस्त्र, वाहन, दर्पण, कटलरी, बड़ेबड़े पात्र, सुरा पात्र, गंगाजल पात्र, उन के भव्य चित्र, विभिन्न अवसरों के एवं शिकार करते, पोलो खेलते हुए उन के चित्र उन के शयनकक्ष, उन के राज दरबार में उन के भव्य राजसिंहासन, दीवाने आम, दीवाने खास आदि की भव्य प्रस्तुति इस भांति प्रदर्शित की गई है कि देशीविदेशी दोनों ही किस्म के पर्यटकों को वह लुभाती है जबकि हवेलियों की भव्यता अतीत के साहूकारों, महाजनों के वैभव को दर्शाती है.

उन के बहीखाते, कमलदान तक हवेलियों में सुरक्षित हैं. विभिन्न महलों में राजपरिवार द्वारा प्रयुक्त किए जाने वाले हमाम एवं शौचालय तक पूरी तरह से ठीक हालत में पर्यटकों हेतु प्रदर्शित हैं.

राजसी ठाटबाट का अनुभव

प्राचीन राज वैभव तथा राज परिवार के पहनावे की एक झलक प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही संभवत: लगभग हर प्रसिद्ध महल एवं किले की देखरेख में राज परिवार के वंशजों द्वारा नियुक्त कर्मचारी राजसी ड्रैस चूड़ीदार पाजामा, बंद गले का कोट तथा केसरिया पगड़ी में विदेशी पर्यटकों को विशेषतौर पर लुभाते हैं.

कई विदेशी पर्यटक इन राजसी डै्रसों से सुसज्जित कर्मचारियों के साथ फोटो खिंचवा रहे थे तो कई विदेशी पर्यटक इन से अपनेआप को सैल्यूट करवाते हुए छवि को अपने कैमरे में कैद कर रहे थे. लगभग हर महल, हवेली एवं किले में देशीविदेशी पर्यटकों से प्रवेश शुल्क लिया जाता है जिस से अर्जित आय राज परिवार के वंशजों के पास तो जाती ही है इस के अतिरिक्त लगभग हर प्रतिष्ठित किले, महल का एक हिस्सा राज परिवार के वंशजों ने फाइव स्टार होटलों एवं रैस्टोरैंटों के रूप में परिवर्तित कर दिया है जिस से होने वाली अच्छीखासी आमदानी से वे अभी भी राजसी ठाटबाट के साथ अपना जीवन गुजार रहे हैं.

शानदार महल

उदयपुर के शानदार महलों को देखने के दौरान गाइड ने बताया कि उदयपुर राज परिवार के वंशजों के पूरे राजस्थान में लगभग 12 फाइवस्टार होटल हैं, जबकि विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए राजस्थान के कई स्थलों पर किलेमहलों के स्वरूप में नवर्निमित होटल भी दिखाई पड़े.

यह भी देखने में आया कि कई किलों, महलों के सामने कठपुतली वाले कठपुतली नचा कर, लोक गायक राजस्थानी लोकगीत गा कर तथा सपेरे बीन की धुन पर डोलते हुए सांप दिखा कर विदेशी पर्यटकों को लुभा रहे थे.

देश के अन्य प्रांतो में वन्य जीव संरक्षण कानून के चलते भले ही बंदर, भालू नचाते मदारी, बीन की धुन पर डोलते सांप यहां तक कि सर्कस में भी वन्य जीव दिखने बंद हो गए हैं, लेकिन राजस्थान के किलों के सामने विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए सपेरों को बीन की धुन पर डोलते सांप दिखाई की संभवतया विशेष छूट दी गई है.

जैसलमेर में किलों एवं हवेलियों के साथ ही पर्यटकों को जो दृश्य सब से अधिक आकर्षित करता है वह है रेगिस्तान के टीले, दूरदूर तक फैली रेत तथा उन में हवा से अंकित लहरें. उस विशाल रेगिस्तान में ऊंट एवं ऊंट गाड़ी से घूमना एक रोमांचकारी अनुभव होता है.

विशाल रेगिस्तान में ऊंट की सवारी

जैसलमेर शहर से लगभग 20-25 किलोमीटर दूरी पर विशाल रेगिस्तान स्थित है तथा उसी रेगिस्तान पर लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर भारतपाकिस्तान का बौर्डर है. रेगिस्तान को वहां के लोग ‘सम’ कहते हैं तथा  ‘कैमल सफारी’ के बुकिंग सैंटर एवं एजेंट्स के माध्यम से बुकिंग कर ऊंट एवं ऊंट गाड़ी द्वारा रेगिस्तान भ्रमण तथा रेगिस्तान के समीप ही टैंट में संचालित होटल्स में कैंप फायर तथा लोक गायकों के लोकगीत एवं लोक नर्तकियों के नृत्य, देशीविदेशी दोनों ही तरह के पर्यटकों को बेहद लुभाते हैं.

उन टैंट्स में संचालित होटल एवं खुले मंच पर लोकगीत एवं नृत्य के कार्यक्रम में नर्तकियां अतिथि पर्यटकों का स्वागत बाकायदा तिलक लगा कर एवं आरती उतार कर करती हैं, जिस से देशीविदेशी पर्यटक अभिभूत हो उठते हैं.

वैसे लगभग पूरे राजस्थान में ही पर्यटन स्थलोें पर पर्यटकों का स्वागत पूरे सम्मान के साथ किया जाता है. राजस्थानी लोग पर्यटकों को आदर से ‘साब जी’ कह कर संबोधित करते हैं. यहां तक कि राहगीरों से भी कुछ पूछने पर वे बड़े प्रेम एवं आदर के साथ पर्यटकों को जानकारी उपलब्ध कराते हैं.

पधारो म्हारे देश

एक जगह राह भटक जाने पर एक ग्रामीण मोटरसाइकिल सवार हमे सही रोड तक पहुंचाने हेतु लगभग 2-3 किलोमीटर तक मोटरसाइकिल चल कर हमें सही रोड पर पहुंचा कर लौटा तो हमें लगा कि वास्तव में राजस्थानी ‘पधारो म्हारे देश…’ गा कर ही पर्यटकों का स्वागत नहीं करते बल्कि उसे चरितार्थ भी पूरी आत्मीयता से करते हैं.

विदेशी पर्यटकों द्वारा ग्रामीण अंचल के अनपढ़ लोगों की फोटोग्राफी करने पर वे अनपढ़ लोग भी अब उन्हें ‘थैक्यू’ कहना सीख गए हैं, साथ ही ‘टैन रूपीज’ की मांग भी फोटोग्राफी के बदले में करने से वे नहीं चूकते. मजे कि बात तो यह हुई कि जब एक विदेशी महिला को राजस्थानी पगड़ी पहन कर घूमते हुए मैं ने देखा तो उस का फोटो अपने कैमरे में कैद करने का लोभ नहीं छोड़ सका. बदले में उस विदेशी महिला ने हंसते हुए कुछ व्यंग्य से कहा कि गिव मी टैन रूपीज.

मीणा सरकार ‘बूंदा’ के नाम पर नामांकित ‘बूंदी’ शहर में किला, नवल सागर, चित्रशाला, रानी की बाबड़ी, सुखमहल आदि पर्यटन स्थल हैं पर सभी स्थल शासकीय उपेक्षा से ग्रस्त प्रतीत हुए. नवल सागर झील का पानी पूरी तरह से काई से आच्छादित था तथा घाट जीर्णशीर्ण नजर आए. किला एवं चित्रशाला की दीवारों में विश्वप्रसिद्ध भीति चित्र चित्रितत हैं जिन में किले की अपेक्षा चित्रशाला के भीति चित्र पर्यटकों को अधिक आकर्षित करते हैं.

18वीं शताब्दी के राजस्थान की संस्कृति, धार्मिक, गाथाएं, राजारानी के जीवन के विभिन्न पहलुओं, युद्ध आदि के आकर्षक रंगीन चित्र चित्रशाला की दीवारों एवं छतों पर चित्रित हैं. लगभग 200 वर्ष का समय व्यतीत हो जाने के बावजूद उन चित्रों के रंग पूरी तरह से धूमिल नहीं हुए हैं.

उम्दा खरीदारी

जैसलमेर शहर में किले के रास्ते पर विदेशी पर्यटकों को भरमाती हुई कामशक्ति वर्धक चादरें बेची जा रही थीं. बकायदा उन चादरों पर इस आशय की स्लिप भी टंकित की गई थी

जिस में लिखा हुआ था ‘नो नीड फौर वियाग्रा मैजिक बैडशीट.’ बैडशीट का साइज बताने का भी उन का रोचक तरीका था कुछ बैडशीट पर टंकित स्लिप पर लिखा था ‘बेडशीट साइज वन वाइफ ओके.’

टूरिस्ट गाइड भी अपने विचित्र अंदाज में किलों, महलों का इतिहास तो बताते ही साथ ही देशी पर्यटकों को यह बतलाने से भी नहीं चूकते कि कब किस फिल्म की शूटिंग कहां हुई, कब कौन सा हीरोहीरोइन यहां आए, यहां आ कर क्या किया, क्या कहा आदि. लेकिन लगभग हर गाइड देशीविदेशी दोनों ही तरह के पर्यटकों को ‘राजस्थान टैक्सटाइल्स एंपोरियम’ एवं अन्य टूरिस्ट इंटरैस्ट की सामग्री के विक्रेताओं के पास अवश्य ले जाते हैं जहां से टूरिस्ट द्वारा खरीद पर उन्हें अच्छाखासा कमीशन मिलता है.

जयपुर ही नहीं राजस्थान के अन्य स्थलों

पर भी गाइड्स पर्यटकों को कपड़ों एवं अन्य सामग्री की दुकानों पर अवश्य ले जाते हैं जहां दुकानदार भी मार्केट रेट से अधिक रेट पर सामग्री बेचते हैं.

चित्तौड़गढ़ के टैक्सटाइल्स ऐंपोरियम में यह कह कर हम लोगों को साड़ी बेची गईर् कि इस साड़ी को फिटकरी के घोल में डाल कर सुखाने के बाद साड़ी से चंदन की महक आती है, लेकिन कई बार फिटकरी के घोल में डाल कर सुखाने के बाद भी उस में से चंदन की महक नहीं आई.

इन बातों को दरकिनार कर दें तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि राजस्थान देश के अन्य पर्यटन स्थल की अपेक्षा एक अलग ही अनूठे अंदाज से पर्यटकों को लुभाता है तो उस के पर्यटन स्थलों के गाइड्स एवं दुकानदारों का भरमाने, छलने का अंदाज भी अनूठा है.

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Summer Special: नागालैंड में मनाएं छुट्टियां

नागालैंड, भारत के पूर्वोत्तर का एक पहाड़ी क्षेत्र है जो अपनी पहाड़ियों और लुभावनी घाटियों के लिए प्रसिद्ध है. यहां का शांत वातावरण आपके मन को सुकून देगा और आप सारे गम भूल जायेंगे. इस जगह की खूबसूरती पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है. अक्टूबर से जून के बीच यहां घूमना सबसे अच्छा रहता है. 2438.4 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

कोहिमा वार सेमेटेरी

अगर आप विश्व युद्ध के इतिहास को याद करना चाहते हैं तो एक बार कोहिमा वार सेमेटेरी जरूर जाए. यह वार सेमेटेरी ब्रिटिश, भारतीय और ANZAC सैनिकों के सम्मान में समर्पित किया गया है.

मोकोकचुंग

मोकोकचुंग को नागालैंड की सांस्कृतिक और बौद्धिक राजधानी माना जाता है. ऊंचे-ऊंचे पहाड़ और नदियों की ध्वनि आपको बहुत प्रभावित करेगी. यह पारंपरिक भूमि त्यौहार के मौसम के दौरान और सुंदर हो जाती है. यह समुद्र तल से 1325 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. मोकोकचुंग का मौसम साल भर एक जैसा ही होता है.

कैथोलिक चर्च

कोहिमा के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है. यह एक बहुत ही पुरानी बैपटिस्ट कैथेड्रल है. यह जगह आपको नागालैंड के ईसाई धर्म के महत्त्व को दर्शाता है. यह चर्च बहुत ही बड़ा है और इसके जैसे आकार वाली चर्च आपको देखने नहीं मिलेगी. चर्च के अंदर की पेंटिंग बहुत ही खूबसूरत हैं.

डूज़ुकू वैली

डूज़ुकू वैली मनीपुर के सीमा के पास स्थित है. यह कोहिमा से लगभग 30 किमी की दूरी पर है. इस घाटी को अपनी प्राकृतिक सुंदरता और हर मौसम के फूलों के लिए जाना जाता है. डूज़ुकू घाटी की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय वसंत का होता है, इस समय पूरी घाटी फूलों से ढकी हुई होती है.

नागा हिल्स

नागा हिल्स 3825 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह भारत और बर्मा के सीमा पर स्थित है. ‘नागा’ शब्द वहां के नागा लोगों के कारण रखा गया था, जिन्हे बर्मी भाषा में नागा या नाका बोला जाता है.

सोम

कोन्यक नागाओं की भूमि, सोम नगालैंड में यात्रा करने के लिए एक दिलचस्प जगह है. कोन्यक खुद को नूह और अभ्यास कृषि के वंशज मानते हैं. सोम जिला नागालैंड के उत्तरी दिशा में है. यह उत्तर में अरुणाचल प्रदेश के राज्य से घिरा है , असम के पश्चिम में और म्यांमार के पूर्व में है.

दीमापुर

दीमापुर नागालैंड का प्रवेश द्वार है. दीमापुर एक कमर्सियल प्लेस है. यहां आपको हर तरह के जरूरत के सामान मिल जाएंगे. दीमापुर में घूमने के लिए कई स्थान हैं. जैसे कछारी खंडहर, इनटंकी वन्यजीव अभयारण्य, दीमापुर प्राणी उद्यान, हरा पार्क, रिजर्व वन, शिल्प गांव, हथकरघा और हस्तशिल्प एम्पोरियम और दीमापुर ए ओ बैपटिस्ट चर्च.

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Summer Special: किसी भी मौसम में घूम आइए यहां

भारत के हर कोने में प्रकृति ने अपना नूर बरसाया है और ऐसे ही कुछ शहरों में सालभर पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है. जानते हैं कुछ ऐसी ही जगहें जहां आप साल भर में कभी भी छुट्टि‍यां बिताने की प्लानिंग कर सकते हैं…

1. केरल

चारों तरफ फैली हरियाली और सुंदर नजारे केरल की खासियत हैं. यह जगह हनीमून कपल के बीच काफी पसंद की जाती है. केरल का मौसम गर्मियों में पर्यटकों को अपने समुद्रतटों के बीच खींच ही लाता है. लड़की के सुंदर बोट हाउस में रहने का लुफ्त उठाना चाहते हैं तो करेल से बेहतर दूसरी कोई जगह नहीं हो सकती.

2. जयपुर

मेवाड़ की शान और रॉयल अंदाज के लिए जाना जाने वाला जयपुर भी साल भर पर्यटकों से घिरा रहता है. यहां का मुख्‍य आकर्षण यहां के महल और खानपान है. हवा महल, आमेर किला, पानी के बीचों बीच बना जल जैसे वास्‍तुकला के भव्‍य नजारे आपको और कहीं देखने को नहीं मिलेंगे.

3. गोवा

विदेशी पर्यटकों की ही तरह देशी सैलानियों के बीच भी गोवा काफी कूल डेस्टिनेशन के रूप में जाना जाता है. गर्मियों और न्‍यू ईयर ईव पर यहां पर्यटकों की संख्‍या देखने लायक होती है. गोवा का सीफूड, गोवा किला, चोपारा किला और यहां के समुद्री तट यहां के मुख्‍य आकर्षण हैं.

4. कश्‍मीर

धरती की जन्‍नत कहे जाने वाले कश्‍मीर में भी सैलानियों का हुजूम साल भर देखने को मिल जाएगा. यह जगह भी हनीमून कपल की लिस्‍ट में जरूर शामिल रहती है. दूर-दूर तक फैले सुंदर पहाड़ और कश्‍मीरी खाने का स्‍वाद आपको जल्‍दी यहां से जाने नहीं देंगे.

5. कन्‍याकुमारी

समुद्र से घिरा हुआ भारत का सबसे निचला हिस्‍सा है कन्‍याकुमारी. यहां पर डूबता सूरज देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. कन्‍याकुमारी को केप कोमोरिन के नाम से भी जाना जाता है.

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Summer Special: धरती का स्वर्ग है गुलमर्ग

गुलमर्ग जम्मू कश्मीर के बारामूला जिले में स्थित एक खूबसूरत हिल स्टेशन है, जो फूलों के प्रदेश के नाम से भी प्रसिद्ध है. लगभग 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग, की खोज 1927 में अंग्रेजों ने की थी. कहा जाता है कि पहले गुलमर्ग का असली नाम गौरीमर्ग था जो यहाँ के चरवाहों ने इसे दिया था. फिर 16वीं शताब्‍दी में सुल्‍तान युसुफ शाह ने इसका नाम गुलमर्ग रखा.

हर ट्रेवेलर का सपना होता है कि एक बार न एक बार कश्मीर की इस सुन्दर वादी के मजे जरूर लें. यहां के हरे-भरे ढलान पूरे साल पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं. क्या आपको पता है? गुलमर्ग सिर्फ बर्फ से ढके पहाड़ों का शहर ही नहीं बल्कि यहां विश्व का सबसे बड़ा गोल्फ कोर्स भी है और देश का प्रमुख स्की रिजॉर्ट भी यहीं पर है. गुलमर्ग बॉलीवुड के सबसे पसंदीदा शूटिंग लोकेशन्स में से भी एक है.

चलिए आज हम इसी सौन्दर्य की सैर पर चलते हैं, जहां जाकर आप भी अपने आपको यह कहने से नहीं रोक पाएंगे कि ‘गर फिरदौस बर-रोये जमीन अस्त, हमी अस्तो, हमी अस्तो, हमी अस्त.’ इसका मतलब है ‘अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है’

गोंडोला लिफ्ट

अगर आप गुलमर्ग की यात्रा पर हैं तो सबसे पहले यहां के गोंडोला लिफ्ट की यात्रा करना न भूलें जो एशिया का इकलौता समुद्री तल से लगभग 13500 फीट ऊंचा केबल कार सिस्टम है.

गुलमर्ग स्की एरिया

श्रीनगर से लगभग 35 किलोमीटर दूर गुलमर्ग का हिल रिजॉर्ट जो हिमालय के पीर पांजाल पर्वत श्रेणी का एक हिस्सा है. यहां भारी मात्रा में बर्फबारी होने की वजह से यह जगह पर्यटकों और यहां के निवासियों का मनपसंद स्की एरिया बन गया है.

गोल्फ कोर्स

समुद्र से लगभग 2650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग का गोल्फ कोर्स दुनिया का सबसे ऊंचा ग्रीन गोल्फ कोर्स है.

अफरवात पीक

पर्यटकों का सबसे पसंदीदा पर्यटक स्थल अफरवात पीक गुलमर्ग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बर्फ से ढके हुए ये पहाड़ पाकिस्तान के साथ लगे हुए लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) से काफी नजदीक हैं.

बाबा रेशी मंदिर

बाबा रेशी मंदिर मुख्यतः,सन् 1480 में स्थापित बाबा रेशी को समर्पित एक दरगाह है.

खिलनमार्ग

खिलनमार्ग गुलमर्ग में स्थित एक छोटी से घाटी है जो ठण्ड में गुलमर्ग मे स्किंग करने की सबसे बेहतरीन जगह है. बसंत ऋतू में इस घाटी का नजारा देखने लायक होता है. पूरी घाटी हरे-भरे घास से भर जाती है और हरे-भरे घास के चारों तरफ पर्वत श्रेणियों का खूबसूरत नजारा कश्मीर की घाटी का सबसे अदभुत नजारा है.

तंगमार्ग

बारामुल्ला जिले में स्थित तंगमार्ग, गुलमर्ग से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह पूरे क्षेत्र में हैंडीक्राफ्ट के कामों की वजह से प्रसिद्द है.

गुलमर्ग बायोस्फियर रिज़र्व

गुलमर्ग बायोस्फियर रिज़र्व, कई लुप्त होते जा रहे जीवों को आवास स्थल है. यहां आपको कई अज्ञात किस्म के पेड़ पौधे भी देखने को मिलेंगे.

वेरीनाग

वेरीनाग एक जल प्रवाह है जो पीर पंजाल के बनिबल पास के आधार पर स्थित है. वेरीनाग प्रवाह झेलम नदी का ही एक स्रोत है.

अलपाथर झील

चीड़ और देवदार के पेड़ों से घिरी यह झील अफरवात चोटी के नीचे स्थित है. इस खूबसूरत झील का पानी मध्‍य जून तक बर्फ बना रहता है.

स्ट्रॉबेरी घाटी

गर्मी के मौसम में आप यहां आकर फ्रेश स्ट्रॉबेरी के भरपूर मजे ले सकते हैं.

फिरोजपुरा गांव

तंगमार्ग में स्थित फिरोजपुरा गांव का दृश्य ठण्ड के मौसम में शानदार होता है. आपको ऐसा लगेगा कि आप स्विट्जरलैंड के किसी क्षेत्र में आ गए हो.

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Summer Special: चलो! माउंट आबू घूम आते हैं

राजस्थान में अरावली पर्वतमालाएं गर्मी से सुकून भरे पल का एहसास कराती हैं. मरुस्थल के बीच हरियाली भरी जगह एक अद्वितीय खूबसूरती है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं माउंट आबू की जो राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है. अरावली पर्वतमालाएं इस हिल स्टीव की खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं. इसी तरह यह जगह कई पर्यटक आकर्षणों से भी भरी पड़ी है.

चलिए आज हम इसी खूबसूरत जगह की प्रमुख जगहों की सैर पर चलते हैं और इसकी खूबसूरती को सराहते हैं.

माउंट आबू वाइल्डलाइफ सेंचुअरी

माउंट आबू के जंगलों में कई जातियों के वनस्पति और जीवों पाए जाते हैं. अरावली पर्वत के ये जंगल यहां रहने वाले तेंदुओं के लिए प्रसिद्ध हैं. यहां कई अन्य जीव जैसे गीदड़, जंगली बिल्लियां, सांभर, भारत कस्तूरी बिलाव आदि भी पाए जाते हैं. इस हिल स्टेशन का यह इकलौता वाइल्डलाइफ सेंचुअरी पर्यटकों के बीच सबसे प्रमुख आकर्षण का केंद्र है.

नक्की झील

नक्की झील को एक मजदूर रसिया बालम ने अपने नाखूनों द्वारा खोद था. कथानुसार वहां के राजा की शर्त थी कि जो भी एक रात में वहां झील खोद देगा उससे वह अपनी पुत्री, राजकुमारी का विवाह करा देगा. नाखुनों से उस झील को खोदने की वजह से उस झील का नाम नक्की झील पड़ा. इस खूबसूरत झील में पर्यटकों के लिए नौका विहार का भी प्रबंध है. इसलिए नक्की झील माउंट आबू के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है.

दिलवाड़ा जैन मंदिर

दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू के प्रसिद्द पांच दिलवाड़ा जैन मंदिर के निर्माण में संगमरमर पत्थरों का उत्तम उपयोग किया गया है. दिलवाड़ा मंदिर का परिसर एक वास्तु चमत्कार और जैन धर्म के लोगों के लिए प्रसिद्द पर्यटक स्थल भी है. मंदिर में की गयी मनमोहक नक्काशियां जैन पौराणिक कथाओं का चित्रण करती हैं जो इस मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है.

अचलगढ़ का किला

अचलगढ़ का किला माउंट आबू में स्थित एक प्राचीन किला है. हालांकि इस किले का निर्माण परमार वंश ने किया था, पर इस किले का पुनर्निर्माण राजपूतों के राजा राणा कुंभा ने करवाया था. दुःख की बात है कि अब किले का ज्यादातर हिस्सा खंडहर में तब्दील हो गया है पर यह क्षेत्र आज भी इस प्रसिद्ध है.

गुरु शिखर

गुरु शिखर अगर आप माउंट आबू के चारों तरफ मनोरम दृश्य के मजे लेना चाहते हैं तो गुरु शिखर पॉइंट की ओर निकल पड़िये. यह शिखर अरावली पर्वत में सबसे उच्चतम बिंदु है और माउंट आबू से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ही है. गुरु शिखर का अद्भुत दृश्य, हिल स्टेशन के नजदीक ही प्रमुख नजारों में से एक है. माउंट आबू पूरे साल अपने कई सारे प्रमुख आकर्षणों के साथ कई पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है. हालांकि अक्टूबर से फरवरी महीने का समय राजस्थान जैसे मरुस्थलीय क्षेत्र के इकलौते हिल स्टेशन की यात्रा के लिए सबसे सही समय है. अपनी गोद में कई सारे आकर्षक केंद्रों को समेटे हुए माउंट आबू पर्यटन के लिए एक आदर्श केंद्र है.

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Summer Special: नेचर का अनछुआ खजाना है धारचूला

आए ठहरे और रवाना हो गए, जिन्दगी क्या है सफर की बात है…

रोजाना बस से, ट्रेन से या मेट्रो से 9 से 5 की नौकरी करने के लिए किया जाने वाला सफर, सफर नहीं कहलाता. गौरतलब है कि, जिन्दगी है तो जिए जा रहे हैं… मशीनी दुनिया की मशीनी आदतों की बलिहारी, चंद लम्हें खुद के लिए निकालना कोई गुनाह तो नहीं है. और चंद लम्हें खुद के लिए निकालने का मतलब किसी रिश्तेदार के यहां चाय-बिस्किट खाने जाना कभी नहीं होता, न ही 1 हफ्ते की छुट्टियां लेकर किसी भीड़-भाड़ वाले पर्यटन स्थल की यात्रा, सुकून देती है. ऐसी यात्रा में मजा बहुत आता है, इसमें कोई शक नहीं है. पर अगर इंसानों से ही बचना था तो भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाने का कोई तुक नहीं है.

तो क्यों न किसी ऐसी जगह की यात्रा की जाए, जहां इंसानी चहल-पहल कम हो पर प्राकृतिक सौंदर्य दोगुना हो? आराम से कुछ दिन बिताने हैं तो धारचूला जरूर जाएं. यह जगह इंसानों के बीच उतनी लोकप्रिय नहीं हो पाई है, शायद इसलिए अभी तक शोषित होने से बची हुई है.

धारचूला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में बसा एक खूबसूरत शहर है. हां, शहर के बाशिंदों को यह शहर नहीं लगेगा, क्योंकि यहां शहर जैसी सुविधायें नहीं हैं पर यहां की खूबसूरती कॉन्क्रीट के जंगलों में उपलब्ध सुविधाओं के सामने कुछ नहीं है. हिमालय की पहाड़ियों के बीचों-बीच बसा है धारचूला. यहां के स्थानीय निवासियों के अनुसार किसी जमाने में यहां से कई व्यापारी मार्ग होकर गुजरते थे. यह चारों तरफ से हिमालय की खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ बेहद खूबसूरत कस्बा है.

यहां के निवासी पहाड़ियों के उस पर बसे दारचूला के निवासियों से काफी मिलते-जुलते हैं. दारचूला नेपाल का एक कस्बा है. जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि उत्तराखंड के बाकि जगहों के मुकाबले यहां पर्यटकों की चहल-पहल नहीं रहती और यह इलाका काफी शांत रहता है.

समुद्रतल से 925 मीटर की की ऊंचाई पर भारत-नेपाल बोर्डर के पास बसा धारचूला अपने में अद्वितीय खूबसूरती समेटे हुए एक छोटा सा कस्बा है. धारचूला, ‘धार’ और ‘चूल्हा’ शब्द से बना है, क्योंकि इसका आकार, चूल्हे जैसा है. 1962 के युद्ध से पहले तक यह व्यापार का एक मुख्य शहर था. युद्ध के बाद भारतीयों और तिब्बतियों के बीच सारे व्यापारिक रिश्तें खत्म हो गए. धारचूला और नेपाल के दारचूला के बाशिंदों की संस्कृति, बोल-चाल, रहन-शहन काफी मिलते-जुलते हैं. यहां के लोगों को इतनी रियायत दी गई है कि बिना किसी कड़े पासपोर्ट चैकिंग के ये धारचूला से दारचूला और दारचूला से धारचूला आसानी से आ-जा सकते हैं.

धारचूला में देखने को है बहुत कुछ-

1. जौलजिबी

धारचूला से सिर्फ 23 किमी की दूरी पर बसा जौलजिबी गोरी और काली नदियों का संगम स्थल है. यह जगह नेपालियों के लिए भी महत्वपूर्ण है. हर साल नवंबर में यहां कुमाउंनी और नेपालियों द्वारा एक अन्तर्राष्ट्रीय मेले का आयोजन किया जाता है.

2. काली नदी

काली नदी को महाकाली या शारदा नदी भी कहा जाता है. यह नदी नेपाल और भारत की सीमा है. यहां जाएं और अपनी सारी चिंताएं नदी में डालकर नेपाल पहुंचा दें. यहां की खूबसूरती और शांति एक अलग ही सुकून देती है.

3. ओम पर्वत

इस पर्वत को छोटा कैलाश या आदि कैलाश भी कहा जाता है. यह हिन्दु धर्मियों के आस्था का केन्द्र है, पर इस खूबसूरत पर्वत के साथ धर्म को जोड़ने का कोई तुक समझ नहीं आता. यह पर्वत तिब्बत के कैलाश पर्वत से काफी मिलता-जुलता है. इस पर्वत के पास पार्वती झील और जौंगलिंगकोंग झील भी है. यह पर्वत भी भारत-नेपाल की सीमा की है.

4. अस्कोट मुस्क डियर सेन्चुरी

पिथौड़ागढ़ से 54 किमी की दूरी पर बसी यह सेन्चुरी पशु प्रेमियों को काफी पसंद आएगी. अस्कोट सेन्चुरी में कई प्रकार के पशु-पक्षी और पेड़-पौधे पाए जाते हैं. प्रकृति से घिरे और पशु पक्षियों के बीच यह जगह बहुत ज्यादा खूबसूरत है.

5. चिरकिला डैम

धारचूला से लगभग 20 किमी की दूरी पर यह डैम काली नदी पर बनाया गया है. यहां पर सरकार ने वाटर स्पोर्ट्स की भी व्यवस्था की है.

कब जाएं

धारचूला यूं तो कभी भी जाया जा सकता है. पर यहां मार्च-जून और सितंबर-दिसंबर के बीच जाना सही रहेगा. गर्मियों के मौसम में यहां ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती और सर्दियों के मौसम में बर्फबारी भी होती है.

कैसे पहुंचे?

हवाई यात्रा : पंतनगर सबसे नजदीकी ऐयरपोर्ट है. टैक्सी से आप आसानी से पंतनगर से धारचूला पहुंच सकते हैं.

रेल यात्रा : तनकपुर सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है. यह पिथौड़ागढ़ से तकरीबन 150 किमी की दूरी पर है. यहां से धारचूला के लिए बसें आसानी से मिल जाती हैं.

सड़क यात्रा : धारचूला रेलवे लाइनों से भले जुड़ा न हो, पर सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हैय अलमोड़ा, पिथौड़ागढ़, काठगोदाम, तनकपुर आदि से बस या  टैक्सी से धारचूला पहुंच सकते हैं.

धारचूला खूबसूरती के साथ ही इस बात का भी सबूत देता है कि इंसान दीवारें खड़ी करने के लिए खूबसूरत से खूबसूरत चीजों का भी बंटवारा कर देते हैं. यहां हर जगह आपको नेपाल और भारत के बीच की समानताएं नजर आएंगी.

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Summer Special: खूबसूरती का सतरंगा अहसास है सापूतारा

गुजरात का सापूतारा एक ऐसा टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, जहां ट्रैकिंग,एडवेंचर के साथ वाटरफॉल और दूर-दूर तक हरियाली दिखाई देता है. यह गुजरात का एकमात्र हिल स्टेशन है. भीड़भाड़ से दूर एक ऐसी जगह, जहां गांव और शहर दोनों का मजा साथ-साथ है. शहर की आपाधापी से दूर आदिवासियों के बीच एक दूसरी ही दुनिया है.

फैमिली के साथ करें एंज्वॉय

छुट्टियों पर जाने का मकसद तो बस इतना ही होता है कि ज्यादा से ज्यादा एंज्वॉय कर सकें. जगह इतनी खूबसूरत हो कि सारी परेशानियां और पूरे साल की आपाधापी की थकावट दूर कर सकें. वादियां इतनी खूबसूरत हों कि साल भर मन गुदगुदाता रहे. कुछ ऐसा ही है सापूतारा.

बादल कब आपको भिगो दें, पता ही नहीं चलता. थोड़ी-थोड़ी देर में होने वाली रिमझिम से पूरी वादी हरी-भरी, चंचल-सी लगने लगती है. जिधर नजर दौड़ाइए, वादियां, पहाडिय़ां, उमड़ते-घुमड़ते बादल, तपती गरमी में मन को शांति देते हैं, जबकि ठंड में पहाडिय़ों पर सफेद बर्फ की चादर हर किसी को लुभाती है.

एडवेंचर के साथ मस्ती भी

एक पर्यटक को चंद दिन गुजारने के लिए जो सुकून, मस्ती चाहिए सापूतारा में वह सब एक साथ मौजूद है. घने जंगलों के बीच से गुजरते इस छोटे से टूरिस्ट स्पॉट पर एडवेंचर पसंद करने वाले पर्यटकों के लिए जिप राइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माउंटेन बाइकिंग के साथ साथ माउंटेनियरिंग की सुविधाएं भी मौजूद हैं. घने जंगलों से होकर इस गुजराती आदिवासी प्रदेश से गुजरना काफी रोमांचक है. पहाडिय़ों के बीच से जब आप गुजरेंगे, तो जगह- जगह छोटे-छोटे वाटरफॉल रोमांचित करते जाएंगे. झील, फॉल, ट्रैकिंग और एडवेंचर को एंज्वॉय करने का कंपलीट डेस्टिनेशन होने की वजह से युवाओं का फेवरेट टूरिस्ट स्पॉट भी है.

आदिवासियों का जनजीवन

गुजरात पर्यटन सापूतारा को हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए खास तरह की तैयारी कर रहा है. आदिवासियों के घरों का चयन कर टूरिस्ट फ्रेंडली और उनके घरों में शौचालयों की व्यवस्था कर रही है. पर्यटक अधिक से अधिक आदिवासियों के जनजीवन को समझ सकें, इसके लिए आदिवासियों को भी खास तरह का प्रशिक्षण दिया गया है. आदिवासियों के साथ एक रात गुजारने की कीमत 2500 से तीन हजार रुपये है.

सापूतारा महाराष्ट्र और गुजरात के बॉर्डर पर है. सापूतारा नासिक और शिरडी से महज 70-75 किलोमीटर की दूरी पर है इसलिए यहां देशभर के पर्यटक आते हैं. दो-दो धार्मिक स्थल के बीच में होने की वजह से यह पूरा क्षेत्र शाकाहारी है. बहुत ढूंढऩे के बाद कहीं एक-आध नानवेज की दुकान मिलती है. इसलिए इसे शाकाहारी शहर भी कहते हैं.

बारिशों का लुत्फ

रिमझिम बारिश के बारे में यहां के लोगों का कहना है कि यहां कभी-भी बारिश होती है और छतरी की जरूरत नहीं पड़ती है. ये बारिश आपको गुदगुदाती हैं. पहाड़ियों पर उमड़ते-घुमड़ते बादल कभी भी पहाड़ियों को अपने आगोश में ले लेते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच जिप ट्रैकिंग भी है.

अन्य आकर्षण

सापूतारा नाम के हिसाब से यहां सांप का झुंड या बसेरा होना चाहिए था. शायद वह घने जंगलों में हो. हां, यहां सांप का मंदिर जरूर है, जो पर्यटकों और बच्चों में खासा पॉपुलर है. यहां एक झील भी है, जो कपल्स के लिए मोस्ट रोमांटिक डेटिंग प्लेस की तरह दिखाई देता है. बोटिंग करते लोग और बारिश पूरे वातावरण को रोमांचक बना देता है. यहां पर जगह-जगह छल्ली मिलती है-नमक, मिर्च और नींबू के साथ,चाय और उबली हुई मूंगफली. अलग ही मजा है उबली मूंगफली का भी. यहां से ही कुछ दूरी पर है गिरा फॉल, जिसे नियाग्रा फॉल के नाम से भी जाना जाता है. यहां पहुचने का रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है. मध्यमवर्गीय परिवारों का भी यह फेवरेट टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, क्योंकि यहां 1100 रुपये से लेकर 5500 रुपये तक के कमरे मौजूद हैं.

कैसे पहुंचें

सापूतारा सूरत, नासिक या शिरडी से भी पहुंचा जा सकता है. नजदीकी हवाई अड्डा सूरत है, जो करीब 170 किमी. की दूरी पर है. छोटी लाइन की ट्रेन से बाघई फिर वहां से सापूतारा पहुंच सकते हैं.

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Travel Special: चलिए टॉय ट्रेन के मजेदार सफर पर

खूबसूरत वादियों में कभी घने जंगल, तो कभी टनल और चाय के बगानों के बीच से होकर गुजरती टॉय ट्रेन की यात्रा आज भी लोगों को खूब रोमांचित करती है. अगर आप फैमिली के साथ किसी ऐसी ही यात्रा पर निकलने का प्लान बना रहे हैं, तो विश्व धरोहर में शामिल शिमला, ऊटी, माथेरन, दार्जिलिंग के टॉय ट्रेन से बेहतर और क्या हो सकता है?

कालका-शिमला टॉय ट्रेन

हिमाचल प्रदेश की खूबसूरत वैली हमेशा से पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही है. लेकिन कालका-शिमला टॉय ट्रेन की बात ही कुछ और है. इसे वर्ष 2008 में यूनेस्को ने वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. कालका शिमला रेल का सफर 9 नवंबर, 1903 को शुरू हुआ था. कालका के बाद ट्रेन शिवालिक की पहाड़ियों के घुमावदार रास्तों से होते हुए करीब 2076 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खूबसूरत हिल स्टेशन शिमला पहुंचती है. यह दो फीट छह इंच की नैरो गेज लेन पर चलती है.

इस रेल मार्ग में 103 सुरंगें और 861 पुल बने हुए हैं. इस मार्ग पर करीब 919 घुमाव आते हैं. कुछ मोड़ तो काफी तीखे हैं, जहां ट्रेन 48 डिग्री के कोण पर घूमती है. शिमला रेलवे स्टेशन की बात करें, तो छोटा, लेकिन सुंदर स्टेशन है. यहां प्लेटफॉर्म सीधे न होकर थोड़ा घूमा हुआ है. यहां से एक तरफ शिमला शहर और दूसरी तरफ घाटियों और पहाड़ियों के खूबसूरत नजारे देखे जा सकते हैं.

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (टॉय ट्रेन) को यूनेस्को ने दिसंबर 1999 में वल्र्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया था. यह न्यू जलापाईगुड़ी से दार्जिलिंग के बीच चलती है. इसके बीच की दूरी करीब 78 किलोमीटर है. इन दोनों स्टेशनों के बीच करीब 13 स्टेशन हैं. यह पूरा सफर करीब आठ घंटे का है, लेकिन इस आठ घंटे के रोमांचक सफर को आप ताउम्र नहीं भूल पाएंगे. ट्रेन से दिखने वाले नजारे बेहद लाजवाब होते हैं. वैसे, जब तक आपने इस ट्रेन की सवारी नहीं की, आपकी दार्जिलिंग की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी.

शहर के बीचों-बीच से गुजरती यह रेल गाड़ी लहराती हुई चाय बागानों के बीच से होकर हरियाली से भरे जंगलों को पार करती हुई, पहाड़ों में बसे छोटे -छोटे गांवों से होती हुई आगे बढ़ती है. इसकी रफ्तार भी काफी कम होती है. अधिकतम रफ्तार 20 किमी. प्रति घंटा है. आप चाहें, तो दौड़ कर भी ट्रेन पकड़ सकते हैं. इस रास्ते पर पड़ने वाले स्टेशन भी आपको अंग्रेजों के जमाने की याद ताजा कराते हैं.

दार्जिलिंग से थोड़ा पहले घुम स्टेशन है, जो भारत के सबसे ऊंचाई पर स्थित रेलवे स्टेशन है. यह करीब 7407 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां से आगे चलकर बतासिया लूप आता है. यहां एक शहीद स्मारक है. यहां से पूरे दार्जिलिंग का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण 1879 और 1881 के बीच किया गया था. पहाड़ों की रानी के रूप में मशहूर दार्जिलिंग में पर्यटकों के लिए काफी कुछ है. आप दार्जिलिंग और आसपास हैप्पी वैली टी एस्टेट, बॉटनिकल गार्डन, बतासिया लूप, वॉर मेमोरियल, केबल कार, गोंपा, हिमालियन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट म्यूजियम आदि देख सकते हैं.

नीलगिरि माउंटेन रेलवे

दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की तरह नीलगिरि माउंटेन रेल भी एक वल्र्ड हेरिटेज साइट है. इसी टॉय ट्रेन पर मशूहर फिल्म ‘दिल से’ के ‘ चल छइयां-छइयां’ गाने की शूटिंग हुई थी. आपको जानकर थोड़ी हैरानी भी हो सकती है कि मेट्टुपालियम-ऊटी नीलगिरि पैसेंजर ट्रेन भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन है. यह लगभग 16 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है. कहीं-कहीं पर तो इसकी रफ्तार 10 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो जाती है. आप चाहें, तो आराम से नीचे उतर कर कुछ देर इधर-उधर टहलकर, वापस इसमें आकर बैठ सकते हैं. मेट्टुपालियम से ऊटी के बीच नीलगिरि माउंटेन ट्रेन की यात्रा का रोमांच ही कुछ और है. इस बीच में करीब 10 रेलवे स्टेशन आते हैं.

मेट्टुपालियम के बाद टॉय ट्रेन के सफर का अंतिम पड़ाव उदगमंदलम है. यह टॉय ट्रेन हिचकोले खाते हरे-भरे जंगलों के बीच से जब ऊटी पहुंचती है, तब आप 2200 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर पहुंच चुके होते हैं. मेट्टुपालियम से उदगमंदलम यानी ऊटी तक का सफर करीब 46 किलोमीटर का है. यह सफर करीब पांच घंटे में पूरा होता है. अगर इतिहास की बात करें, तो वर्ष 1891 में मेट्टुपालियम से ऊटी को जोड़ने के लिए रेल लाइन बनाने का काम शुरू हुआ था. पहाड़ों को काट कर बनाए गए इस रेल मार्ग पर 1899 में मेट्टुपालियम से कन्नूर तक ट्रेन की शुरुआत हुई. जून 1908 इस मार्ग का विस्तार उदगमंदलम यानी ऊटी तक किया गया. देश की आजादी के बाद 1951 में यह रेल मार्ग दक्षिण रेलवे का हिस्सा बना. आज भी इस टॉय ट्रेन का सुहाना सफर जारी है.

नरेल-माथेरान टॉय ट्रेन

महाराष्ट्र में स्थित माथेरान छोटा, लेकिन अद्भुत हिल स्टेशन है. यह करीब 2650 फीट की ऊंचाई पर है. नरेल से माथेरान के बीच टॉय ट्रेन के जरिए हिल टॉप की जर्नी काफी रोमांचक होती है. इस रेल मार्ग पर करीब 121 छोटे-छोटे पुल और करीब 221 मोड़ आते हैं. इस मार्ग पर चलने वाली ट्रेनों की स्पीड 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होती है. माथेरान करीब 803 मीटर की ऊंचाई पर इस मार्ग का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है. यह रेलवे की विरासत का एक अद्भुत नमूना है.

माथेरान रेल की शुरुआत 1907 में हुई थी. बारिश के मौसम में एहतियात के तौर पर इस रेल मार्ग को बंद कर दिया जाता है. पर मौसम ठीक रहने पर एक रेलगाड़ी चलाई जाती है. माथेरन का प्राकृतिक नजारा बॉलीवुड के निर्माताओं को हमेशा से आकर्षित करता रहा है.

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