कैसे पटरी पर लौटेगा बेहाल बौलीवुड

सिनेमा जगत पर भी कोरोना का कहर बुरी तरह बरपा है, चाहे बौलीवुड हो या क्षेत्रीय सिनेमा, सभी को कोरोना की मार झेलनी पड़ रही है. इंडस्ट्री के सभी डिपार्टमैंट और प्रोडक्शन के काम जैसे कास्टिंग, लोकेशन ढूंढ़ना, टेक स्काउटिंग, कौस्टयूम फिटिंग, वार्डरोब, हेयर ऐंड मेकअप आर्ट, साउंड व कैमरा, कैटरिंग, एडिटिंग, साउंड और वौयस ओवर जैसे सभी काम ठप पड़ गए हैं और ये काम करने वालों के पास कोई काम नहीं है और न ही कमाई का जरीया है.

एक्सपर्ट्स के अनुसार सिनेमाघरों के बंद होने, शूटिंग रुकने, प्रमोशनल इवेंट्स के न होने और इंटरव्यू रुकने के चलते टीवी और फिल्म इंडस्ट्री को आने वाले समय में भारी नुकसान झेलना पड़ेगा.

यह नुकसान कितना बड़ा होगा, इस के सही आंकड़ें अभी मौजूद नहीं हैं, लेकिन अनुमान है कि इंडस्ट्री को 100 से 300 करोड़ रुपए तक का नुकसान हो सकता है.

बंद पड़े हैं सिनेमाघर

तकरीबन 9,500 सिनेमाघरों को बंद कर दिया गया है और आने वाले कुछ हफ्तों तक इन के खुलने की कोई संभावना नहीं है. हर साल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 1,200 फिल्में बनती हैं. इन फिल्मों की कमाई मल्टीप्लैक्स से आती है, जो लौकडाउन के दौरान बंद हैं.

मार्च माह में सब से पहले रिलाइंस ऐंटरटेनमैंट ने रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सूर्यवंशी’ की तारीख आगे बढ़ाई थी, जिस के बाद फिल्म ‘संदीप और पिंकी फरार’,  ‘हाथी मेरे साथी’ समेत 83 फिल्मों की रिलीज की तारीख टाल दी गई.

फिल्म ‘बागी’ 3 मार्च को रिलीज जरूर हुई, लेकिन उस की टिकटों की बिक्री नहीं हुई थी. इस का एक कारण भारत में बढ़ रहा कोरोना का खतरा था.

इसी तरह इरफान खान और राधिका मदान की फिल्म ‘अंग्रेजी मीडियम’ को बौक्स औफिस से निकाल ओटीटी प्लेटफार्म डिज्नी हौटस्टार पर रिलीज किया गया. क्षेत्रीय फिल्मों को भी रिलीज से रोक दिया गया था.

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ओटीटी प्लेटफार्म्स बैस्ट औप्शन नहीं 

रिलीज डेट आगे बढ़ जाने और सिनेमाघरों के बंद होने के चलते फिल्म, टीवी व वैब सीरीज की शूटिंग को रोक दिया गया, जिस पर लौकडाउन के बाद पूरी तरह विराम लग गया. ओटीटी प्लेटफार्म्स जैसे अमेजन प्राइम, नैटफ्लिक्स पर कुछ फिल्में रिलीज जरूर हो रही हैं, लेकिन यह हर फिल्म के लिए संभव नहीं है कि वह ओटीटी तक पहुंच पाए और न ही ओटीटी प्लेटफार्म्स हर बड़ी फिल्म को खरीद सकते हैं.

चर्चित तेलुगु फिल्म प्रोड्यूसर एसकेएन का कहना है कि लगभग 1,000 सीटों वाले सिनेमाघरों को महीने के 10 लाख रुपए का घाटा हो रहा है.

एसकेएन इस बात को ले कर चिंतित हैं कि ओटीटी प्लेटफार्म्स लंबी रेस का घोड़ा साबित होंगे या नहीं. वे कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि ओटीटी प्लेटफार्म्स उन फिल्मों को खरीदना चाहेंगे, जो सिनेमाघर में रिलीज नहीं हुई हैं, क्योंकि हमें नहीं पता कि कौन सी फिल्म सिनेमाघर में हिट साबित होगी और कौन सी नहीं. और यह साफ  है कि ओटीटी उन्हीं फिल्मों को खरीदना चाहते हैं, जो पहले से ही हिट हों.’’

इस समय ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में केवल ओटीटी प्लेटफार्म ही एसे हैं, जो फायदे में हैं. बहुचर्चित शोज और फिल्मों को लोग लौकडाउन के चलते बिंज वौच कर रहे हैं, जिन के जरीए इन प्लेटफार्म की व्युअरशिप बढ़ी है.

साल 2019 में इस इंडस्ट्री ने 17,300 करोड़ रुपए की कमाई की थी. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि साल 2020 में इन प्लेटफार्म्स की कमाई के कितने रिकौर्ड टूटेंगे.

यह जगजाहिर है कि सिनेमाघरों में बौलीवुड फिल्मों की रिलीज व उन की मान्यता कितनी महत्वपूर्ण है, जोकि ओटीटी प्लेटफार्म्स पर होना मुश्किल है, दूसरी तरफ , ओटीटी प्लेटफार्म्स 5 करोड़ की फिल्म तो खरीद सकते हैं लेकिन वे 100 करोड़ की फिल्म खरीदने में असमर्थ होंगे. इसलिए बौलीवुड फिल्मों को सिनेमाघरों में रिलीज करना आवश्यक है.

इन फिल्मों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा दिल्ली, मुंबई और चेन्नई समेत भारत के 10 महानगरों से आता है, जो फिलहाल कोरोना वायरस के हौटस्पौट हैं. इस स्थिति में बौलीवुड की बिग बजट फिल्मों का भविष्य अंधकारमय है.

कर्मचारियों की है हालत पस्त

बड़े सितारे आएदिन सोशल मीडिया के जरीए अपनी उपस्थिति दिखाते हैं. किसी को अपने एसी खराब होने की चिंता है, तो कोई बरतन धोने को प्रोडक्टिविटी के रूप में पेश कर रहा है. परंतु, फिल्मों के बैकग्राउंड में काम करने वालों के लिए यह समय बेरोजगारी और भुखमरी ले कर आया है.

फिल्मों की शूटिंग और उस से जुड़े सभी प्रोडक्शन और प्रमोशन के काम बंद होने का इतना असर बड़े बैनर्स और एक्टर्स पर नहीं पड़ा है, जितना फिल्मों से जुड़े छोटे स्तर पर उतना काम करने वाले कर्मचारियों पर हुआ है. कू्र्र मेंबर्स, दिहाड़ी पर काम करने वाले और छोटेमोटे प्रोजेक्ट्स से पैसा कमाने वाले लोगों के लिए जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो गया है. वे दो 2 वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं.

प्रोड्यूसर्स गिल्ड औफ  इंडिया के अनुसार, बौलीवुड का काम ठप होने से इंडस्ट्री से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े तकरीबन 10 लाख लोगों पर कोरोना के चलते प्रभाव पड़ रहा है. कई लोग बिना काम के रहने को मजबूर हैं. इस से बौलीवुड में दिहाड़ी पर काम करने वाले 35,000 कर्मचारी अत्यधिक प्रभावित हुए हैं.

सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स एसोशिएशन यानी सिनटा द्वारा बौलीवुड के ए लिस्टर सितारों से इन कर्मचारियों के लिए डोनेशन की अपील की गई, जिस के चलते रोहित शेट्टी, सलमान खान, रितिक रोशन, अमिताभ बच्चन और विद्या बालन उन सितारों में से थे, जो दिहाड़ी कर्मचारियों के लिए फंड व राशन देने के लिए सामने आए.

चिंता की बात यह है कि आखिर कब तक डोनेशन के जरीए इन कर्मचारियों का घर चलेगा. ज्ञातव्य है कि मदद हर कर्मचारी तक नहीं पहुंच रही व एसे कितने ही अभिनेता हैं, जो खुद चिंता में हैं कि उन के खर्चे कैसे पूरे होंगे, परंतु पोपुलैरिटी के चलते वे मदद मांगने में असमर्थ हैं.

नए एक्टर्स और पैपराजी भी चपेट में

मुंबई महानगरी है और देश के अलगअलग हिस्सों से युवा यहां अपने सपने पूरे करने आते हैं. किराए के घरों में रहने वाले इन युवाओं को भी अपने घरों तक लौटना पड़ा. यह सभी छोटेमोटे प्रोजेक्ट कर अपना निर्वाह कर रहे थे, पर अब कोई काम न होने पर इन्हें अपने मातापिता पर आश्रित होना पड़ रहा है.

हालत यह है कि एकसाथ मिल कर जी लोग जिस घर का किराया दे रहे थे, उन में से कई अपने घर लौट चुके हैं. इस के चलते जो रह गया है, उसे पूरा किराया खुद देना पड़ रहा है. यह स्थिति कब तक बनी रहेगी, किसी को कोई अंदाजा नहीं है.

आएदिन टीवी एक्टर्स के एयरपोर्ट लुक्स, जिम लुक्स, वैडिंग लुक या सीक्रेट डेट लुक को कैमरे में कैद करने वाले पैपराजी भी कोरोना की मार से नहीं बचे हैं. न अब सैलिब्रिटी घर से निकल रहे हैं और न ही ये उन्हें कैप्चर कर पा रहे हैं.

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आमतौर पर एक दिन में 11,000 से 20,000 रुपए कमाने वाले इन पैपराजी के लिए कमाई के रास्ते बंद हो गए हैं. डायरैक्टर और प्रोड्यूसर रोहित शेट्टी व एक्टर रितिक रोशन ने इन के लिए डोनेशन दिया है.

ऐसे संभलेगी फिल्म इंडस्ट्री

लौकडाउन खुलने के बाद फिल्म इंडस्ट्री को पटरी पर वापस आना है. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. फिल्म के निर्मातानिर्देशकों को प्रीप्रोडक्शन काम को बेहद सावधानी से पूरा करना होगा.

यदि स्टाफ  के एक व्यक्ति को भी कोरोना संक्रमण होता है, तो सारा काम 3 हफ्तों तक रोक दिया जाएगा. अंतर्राष्ट्रीय यातायात पर प्रतिबंध होने पर ज्यादा से ज्यादा ग्रीन स्क्रीन पर शूटिंग होगी, जिस से फिल्में अलग तरह से बनेंगी. इसी तरह से अनेक बदलाव होने वाले हैं.

प्रोडक्शन को जारी करने के लिए प्रोड्यूसर्स गिल्ड औफ  इंडिया ने बैक टु एक्शन रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में औन और औफ  स्टेज व प्री और पोस्ट प्रोडक्शन के सभी डिपार्टमैंट्स के लिए निर्देश दिए गए हैं, जिन की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:

– लौकडाउन खुलने के पहले 3 महीनों में सैट पर आने वाले हर शख्स का टैंपरेचर चैक होगा व उस के द्वारा सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टैसिंग, जहां तक संभव हो, वर्क फ्रौम होम का पालन किया जाएगा. साथ ही, कम कास्ट और क्रू व बाहरी लोकेशनों में शूटिंग कम करने को ध्यान में रखा जाएगा. सैट पर मैडिकल टीम का होना अनिवार्य होगा.

– सैट पर सभी को हर थोड़ी देर में हाथ धोने होंगे व ट्रिपल लेयर मास्क हर समय लगाए रखना होगा. सभी को 3 मीटर की दूरी का पालन करना होगा और हाथ मिलाने, गले लगने व किस करने से परहेज करना होगा.

– सैट पर आने वाले हर क्रू मैंबर और स्टाफ  को अपनी फिटनैस और स्वास्थ्य के सही होने की पुष्टीकरण के लिए फार्म भरना होगा और किसी भी प्रोजैक्ट को साइन करने से पहले स्वास्थ्य की सही जानकारी देनी होगी.

– शूटिंग के दिनों में हर व्यक्ति की उपस्थिति का रिकौर्ड रखा जाएगा. सभी को शूटिंग से 45 मिनट पहले सैट पर पहुंचना होगा, ताकि उन्हें कोरोना से बचाव के तरीके बताए जाएं और नई दिनचर्या उन की आदत बन जाए.

– जो लोग घर से काम कर सकते हैं, उन्हें घर से ही काम करना होगा. 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्ति और किसी भी तरह की बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को घर से काम करना अनिवार्य होगा.

देखना यह है कि आखिर कब तक यह स्थिति बनी रहती है. सभी की कोशिश यही है कि काम जल्दी से जल्दी पटरी पर लौट आए और रफ्तार पकड़ ले.

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वेब सीरीज  पाताललोक

रेटिंग 4

कलाकार जयदीप अहलावत, नीरज काबी, अभिषेक बनर्जी, इश्वाक सिंह, गुल पनाग व अन्य.

निर्देशक अविनाश अरुण, प्रोसित रॉय

प्लेटफार्म अमजोन प्राइम

कोई एक जगह जहां आपको मीडिया, समाज, राजनीति और प्रशासन नंगा दिखने को मिले तो समझ जाइए जनाब आप ‘पाताललोक’ आ चुके हैं. जी हां, यही खासियत है इस नए वेब सीरीज ‘पाताललोक’ की. शानदार कंटेंट और समाज के डार्क साइड को लेकर बुनी गई इस सीरीज में आपको वह सब चीज देखने को मिल जाएगी जो शायद धरतीलोक में हम देख नहीं पाते या देखना नहीं चाहते.

इस वेब सीरीज की शुरुआत ही जयदीप अहलावत के इस संवाद होता है “यह एक नहीं 3 दुनिया है. सबसे ऊपर स्वर्ग लोक जिसमें देवता रहते हैं. बीच में धरती लोक जिसमें आदमी रहते हैं. और सबसे नीचे पाताल लोक जिसमें कीड़े रहते हैं.” यह संवाद ही काफी हद तक यह बताने के लिए काफी है कि इस क्राइम थ्रिल सीरीज में सुंदर सी दिखने वाली प्यारी प्यारी दुनिया सबके लिए एक जैसी नहीं, बल्कि यह 3 हिस्सों में बंटी हुई है.

इस सीरीज को प्रोड्यूस किया है अनुष्का शर्मा ने और निर्देशक है अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय. यह सीरीज इस 15 मई से अमेज़न प्राइम पर 9 एपिसोड के साथ अपलोड कर दी गई है. इस सीरीज के राइटर है सुदीप शर्मा. देखा जाए तो यह सीरीज किसी हीरोनुमा कहानी का हिस्सा नहीं बल्कि सभी पात्र खुद में एक बड़ी कहानी को खोलते हुए दिखाई देते है किन्तु मुख्य कलाकार के तौर पर जयदीप अहलावत तथा नीरज काबी देखने को मिल जाते हैं. इसके अलावा संजीदा अदाकारा गुल पनाग, अभिषेक बनर्जी, स्वस्तिका मुखर्जी तथा अन्य का भी अहम् किरदार है.

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क्या है सीरीज में?

यह कहानी दिल्ली के आउटर यमुना पार थाने से शुरू होती है जहां पर यमुना पुल के पास पकड़े गए 4 आरोपियों को लाया जाता है. अब मामला ओपन एंड शट केस है आरोपियों को रंगे हाथ पकड़ लिया गया है. इस मामले में बिगड़ने लायक कुछ नहीं होता इसलिए इस केस को इंस्पेक्टर हाथी राम चौधरी (जयदीप अहलावत) को दे दिया जाता है. हाथी राम चौधरी एक साधारण सा पुलिस वाला है जिसके हाथ इतने सालों की सर्विस में एक भी हाई प्रोफाइल केस हाथ नहीं लगा है. लेकिन यह क्या थोड़ी देर में पता चलता है कि यह अपराधी दिल्ली में टॉप के पत्रकार और मशहूर टीवी एंकर संजीव मेंहरा (नीरज काबी) के मर्डर के चलते आए थे. फिर शुरू होती है कांस्पीरेसी का असली मिस्ट्री खेल. जिसमें आपको कई हिचकोले खाने को मिलेंगे. कई पात्र खुलते दिखाई देंगे. और गुत्थी उलझती खुलती दिखेगी. अब आगे की मिस्ट्री क्या है इसे देखने के लिए आपको सीरीज देखनी पड़ेगी वरना मजा ख़राब हो जाएगा.

ख़ास क्या है?

नीरज काबी चूंकि बड़ा पत्रकार रहा है लेकिन अब नौकरी खतरे में पड़ गई है तो वह भी इसी बीच वापस खुद को ट्रेक में लाने के मोके ढूढ़ रहा है. इस सीरीज में जो 4 आरोपी पकड़े गए हैं उनके पीछे का इतिहास काफी सस्पेंस और रोचाक्ताओं से भरा है. जो इस वेब सीरीज की जान भी है. हाथी राम की इन्वेस्टीगेशन में कई पात्रों के शेड खुलते दिखेंगे. जो सीरीज को रोचक बनाते हैं. इस सीरीज की खासियत है वर्तमान और भूतकाल का कॉकटेल. जो सेक्रेड गेम 1 और असुर जैसी सीरीज की याद ताजा कर देते हैं. हर पात्र की बेकग्राउंड स्टोरी. जो काफी दिलचस्प है. इसी बेकग्राउंड स्टोरी में समाज की कुरूपता देखने को मिलती है. साथ ही वर्तमान में राजनीतिक चालबाजियां और प्रशासनिक समस्याएं दिख जाएंगी.

किसने कैसा काम किया?

इस सीरीज में बड़ा नाम देखने को नहीं मिलेगा. लेकिन ऐसे नामों की भरमार है जिन्हें कहीं न कहीं देखकर आपने पहले जरूर कहा होगा की क्या शानदार कलाकार है. सबसे पहले जयदीप अहलावत. इन्होने पुलिस का किरदार निभाया है. किरदार की बात की जाए तो शायद इस रोल के लिए इनसे बेहतर कलाकार मिलना मुश्किल था. अहलावत खुद हरियाणा से ताल्लुक रखते है साथ जिस तरह का पुलिसिया टोन और लहजा इस्तेमाल किया गया वह जयदीप पर जम गया.

अंसारी के किरदार में इश्वाक सिंह सोम्य दिखे. अंसारी का किरदार पटकथा में काफी अहम् हिस्सा है. जो वर्तमान में काफी सवाल इस समाज से करते हैं. इसके अलावा गुल पनाग पत्नी के रोल में अच्छी दिखी. नीरज काबी की बात क्या की जाए. शानदार. न्यज एंकर के तौर पर दर्शकों को जो चाहिए था वह उन्हें मिल गया संजीव मेहरा के तौर पर. इसके अलावा एक कलाकार जिसे अब स्पेस मिलता दिख रहा है वह है ‘हथोडा त्यागी’ यानी अभिजीत बनर्जी. साइलेंट रोल में उम्दा एक्टिंग. कम शब्द लेकिन जोरदार. सारे संवाद अपने चेहरे के हावभाव से कह दिए. इसके इतर बाकी कलाकारों ने भी अच्छी एक्टिंग की और अपनी जगह पकड़ के रखी.

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लेखन के तौर पर स्क्रिप्ट अच्छी है. समाज के कड़वे सच से रूबरू होने का मोका मिला है. इससे पहले भी संदीप शर्मा उड़ता पुजाब और एनएच 10 की स्क्रिप्ट लिख चुके हैं. तो समझा जा सकता है उन्हें किस तरह के कंटेंट में मजा आता है. डायरेक्शन अच्छा है. हां, शुरू में कहानी थोड़ी धीरे चलती है लेकिन बाद में शानदार तरह से पटरी पर दौड़ने लगती है. कुछ कुछ जगह वाकई कई शानदार डायलॉग और सीन दर्शाए गए है. जिसमें वर्तमान पॉलिटिक्स पर तीखे कटाक्ष हैं इसके अलावा मोबलिंचिंग का मामला, मीडिया और राजनीति का गठजोड़ और भ्रष्ट चेहरा काफी कुछ सवाल बनाते हैं. आज इस तरह के कंटेंट उतारना एक बड़ा चैलेंज है जो इस सीरीज ने एक्सेप्ट किया.

सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती – अनुजा साठे

मराठी नाटकों से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाली अभिनेत्री अनुजा साठे ने मराठी और हिन्दी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया है. संगीत के परिवार से सम्बन्ध रखने वाली अनुजा को कभी लगा नहीं था कि वह एक्ट्रेस बनेगी, लेकिन आज वह अपनी जर्नी से खुश है. काम के दौरान वह अभिनेता सौरभ गोखले से मिली और शादी की. अनुजा इस लॉक डाउन में पुणे में अपने घर पर पति के साथ है और कई फिल्में देखने और नयी- नयी व्यंजन बनाने में व्यस्त है. अनुजा फिल्म इंडस्ट्री की स्पॉट बॉय और लाइट मैन के बारें में बहुत चिंतित है, जिन्हें हर रोज काम के बदले पैसे मिलते है. इसके लिए उसने कुछ राशि डोनेट भी किया है. अनुजा की वेब सीरीज एक थी बेगम मराठी और हिंदी में रिलीज हो चुकी है, जिसमें उसकी भूमिका को काफी सराहना मिल रही है. हंसमुख और विनम्र अनुजा से बात हुई, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-इस वेब सीरिज में आपको खास क्या लगा?

ये एक बदले की भवना से ग्रसित महिला की कहानी है और मैंने ऐसी भूमिका आजतक नहीं की है. ये बहुत चुनौतीपूर्ण मेरे लिए रहा, क्योंकि एक सीधी सादी लड़की अगर ये ठान ले कि मैं अपने पति को मारने वाले से बदला लेकर रहूंगी और किस हद तक जाकर वह ये काम करती है. इसे दिखाया गया है. ये बहुत ही अलग और पावरफुल चरित्र है. कम्फर्ट जोन से निकलकर अभिनय करना किसी भी कलाकार के लिए बहुत अच्छा रहता है और ये मेरे लिए एक्सप्लोरिंग चरित्र रही है.

 

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Yes she was strong, but circumstances made her powerful. Yes she was a lover, but circumstances made her poisonous. She was Loyal , even when her love didnt exist anymore. She knocked the system down when she decided. Yes she was vulnerable but not weak.. She was a ticking time bomb and it was just the matter of time.. watch #Ekthibegum and witness a story of one heck of a woman who became the fire!! #ekthibegum #basedontrueevents #mxplayeroriginals written and directed by @darekarsachin special shout out to all my fantastic co actors @ankittmohan @santoshjuvekar12 @vijaynikam123 @a_me_baba @chinmay_d_mandlekar @rajendrashisatkar @resham._.resham !!! what a fun team to work with @madhurimaraj @vishal_modhave @sachingadankush @mxplayer @vakilabhishek

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सवाल-ये चरित्र आप से कितना मेल खाता है?

मेरे चरित्र के ट्रेंड के अलावा ये मुझसे कोई मेल नहीं खाती. इसलिए ये मेरे लिए अधिक मुश्किल था, क्योंकि 80 के दशक को 2020 में जीना ही एक अलग बात है. ट्रेंड और पॉवर दो बाते इस फिल्म में मेरे चरित्र में है और रियल में भी अगर मैंने कुछ ठान लिया है, तो उसे पूरा अवश्य करती हूं. यही एक कॉमन है.

सवाल-अभिनय में आना इतफाक थी या बचपन से सोचा था?

मैंने कभी नहीं अभिनय के बारें में सोचा नहीं था, क्योंकि बचपन से मैंने अपनी म्यूजिकल परिवार देखी है. मैं भी शास्त्रीय संगीत सीख रही थी. मेरे दादाजी, बुआ, अंकल, पिता सबकी रूचि संगीत में ही रही है. मैं भी वही करने की सोची थी. कॉलेज के दौरान मुझे लगा कि मैं कुछ और भी चीजो को एक्स्प्लोर करूँ और मैंने कॉलेज की नाटकों में भाग लेना शुरू कर दिया. वो मुझे अधिक अच्छा लगने लगा और संगीत पीछे रह गया. फिर मैंने एक्सपेरिमेंटल थिएटर करना शुरू कर दिया, तब भी मुझे ये हॉबी जैसा ही लगने लगा था. कॉलेज ख़त्म होने पर मेरे दोस्तों ने मुझे अभिनय करने की सलाह भी दी, पर मैंने नहीं मानी. तभी एक मराठी शो अग्निहोत्र में अभिनय का मौका मुझे मिला, जिसकी शूटिंग पुणे में होती थी.

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इसके बाद से मेरी अभिनय जर्नी शुरू हो गयी और साल 2010 में मैं मुंबई आ गयी. उसके बाद मुझे एक के बाद शो और फिल्में मिलने लगी. तमन्ना मेरी पहली हिंदी धारावाहिक थी. इसके अलावा कई हिंदी फिल्मों में भी काम मिला. काम मिलने के बाद लगा कि ये मेरी लाइन है और मैं अलग-अलग भूमिका निभाती गयी और दर्शकों का प्यार मुझे मिलता गया.

सवाल-पुणे से मुंबई आने पर कितना संघर्ष रहा?

मैंने शुरू से ही सोचा था कि हाथ में काम न होने पर मैं मुंबई नहीं जाउंगी और वैसा ही हुआ मेरे हाथ में मराठी शो थी और उसकी शूटिंग मुंबई में थी. इसके अलावा एक शो ख़त्म होने के बाद दूसरी तुरंत मिले, ये भी इस फील्ड में जरुरी नहीं होता. ये बड़े-बड़े स्टार्स के साथ भी कई बार होता ही है,ऐसे में जब काम नहीं होता, तो दिमाग को शांत रखकर काम ढूँढना पड़ता है. अपने काम और अपने आप पर भरोषा रखना पड़ता है, जिससे काम मिलना आसान हो जाता है. मुझे भी ऐसी हालात से गुजरना पड़ा. एक साल तक काम नहीं मिला, पर खुद पर विश्वास रहा और काम मिला.

सवाल-आपके काम में परिवार और पति का सहयोग कितना रहा?

इसकी शुरुआत मेरे माता-पिता से होती है, जिन्होंने मुझे किसी काम से कभी नहीं रोका. मेरी ख़ुशी को उन्होंने अधिक महत्व दिया है. उनकी चाहत को मुझपर उन्होंने थोपा नहीं. बचपन से यही माहौल मिला है. शादी के बाद पति भी फिल्म इंडस्ट्री से है और एक एक्टर है, इसलिए मेरे काम के ट्रेंड को अच्छी तरह से जानते है. साथ ही मेरे सास ससुर दोनों डॉक्टर है,वे भी मेरे काम को सराहते है. मुझे सबका सहयोग हमेशा मिला है. सहयोग न होने पर समस्या आती है.

सवाल-आप मराठी और हिंदी दोनों इंडस्ट्री में काम कर रही है, क्या अंतर पाती है?

मराठी इंडस्ट्री बहुत छोटी है. यहाँ पर सब एक दूसरे को जानते है. यहाँ प्यार और विश्वास पर बहुत सारा काम हो जाता है. हिंदी बहुत अधिक प्रोफेशनल है और हर काम को प्रोफेशनली किया जाता है, जो अच्छी बात है.

सवाल-अभी इस लॉक डाउन में आप क्या कर रही है?

मैं अभी पुणे में हूं, इस दौरान मैं और मेरे पति दोनों ही कुछ अलग-अलग काम कर रहे है मसलन खाना बनाना, घर की सफाई, वर्कआउट आदि कर रही हूं. कई फिल्में और वेब सीरीज जो हम दोनों ने मिस किया था, उसे साथ बैठकर देख रहे है.

सवाल-फिल्म इंडस्ट्री इस लॉक डाउन और कोरोना वायरस के चलते काफी समस्या ग्रस्त हो चुकी है, ऐसे में क्या-क्या कदम उठाने की जरुरत आगे आने वाले समय में पड़ेगी?

इंडस्ट्री के निर्माताओं ने एक फंड रेज किया है, जिससे डेली वेजेस पर काम करने वालों को कुछ सहायता राशि दिए जाय, मैंने भी कुछ सहायता की है. निर्माता, निर्देशक और कलाकार से अधिक वे लोग ही सफ़र करेंगे. इसलिए ऐसे सभी डेली वेजेस पर काम करने वालों को सहायता देने की जरुरत है. लॉक डाउन के बाद सबको मेहनत से काम करने की जरुरत है.

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सवाल-गृहशोभा के ज़रिये महिलाओं को क्या मेसेज देना चाहती है?

किसी भी महिला की अगर कोई ड्रीम है, तो उसे पूरा करें. सपने को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती. अपने आसपास की सभी महिलाओं को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करे और खुद भी वैसा करें, इससे आपको आपनी जिंदगी बहुत खूबसूरत लगेगी.

Lockdown पर मानवी गागरू का गिल्ट फ्री ब्रेक, बोलीं- कोई दूसरा औप्शन नहीं है

डिजनी चैनल की टीवी शो धूम मचाओं धूम से अपने कैरियर की शुरूआत करने वाली अभिनेत्री मानवी गागरू ने कई हिट फिल्में दी, जिसमें लाइफ रिबूट नहीं होती, नो वन किल्ड जसिका, उजड़ा चमन, शुभ मंगल ज्यादा सावधान आदि कई फिल्में है. जिसमें उसके अभिनय की काफी तारीफ की गयी. फिल्मों के अलावा उसने कई वेब सीरीज भी की है. उसे हर नया चरित्र आकर्षित करता है. दिल्ली की मानवी पिछले कई सालों से मुंबई में रह रही है और इस लॉक डाउन को एन्जॉय कर रही है और सोचती है कि इस लॉक डाउन के बाद काम बड़े जोर शोर से शुरू होगा, क्योंकि भाग दौड़ की जिंदगी से लोगों को थोड़ी फुर्सत मिली है, जिसे वे अपने परिवार के साथ बिता रहे है. नयी स्फूर्ति और नए सिरे से सब लोग पहले से और बेहतर काम कर इंडस्ट्री को एक बार फिर से पटरी पर ला देंगे. मानवी की वेब सीरीज फोर मोर शॉट्स सीजन 2 रिलीज पर है. गृहशोभा के लिए उसने ख़ास बात की पेश है, कुछ अंश.

सवाल- इस वेब सीरीज में आपको क्या ख़ास लगा ?

इसकी स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद आई थी. इसमें 4 लड़कियों की कहानी है, उनके लाइफ को सेलिब्रेट किया जा रहा है. ये किसी लड़की की दुखभरी या संघर्ष की कहानी नहीं है. नार्मल आज की बड़े शहर में रहने वाली आत्मनिर्भर लडकियां है. ये साथ रहती है और किसी गलती को समझती है. इसके अलावा इस वेब सीरीज की क्रू में सारी लड़कियां ही थी. निर्देशक, लेखक और हम 4 लड़कियां, ये मेरे लिए एक नया अनुभव था और मुझे बहुत अच्छा लगा था.

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सवाल- अभिनय में आने की इच्छा कहाँ से हुई, किसने प्रेरित किया?

मैं किसी फ़िल्मी परिवार से नहीं हूं और मैंने जीवन में कभी अभिनय की बात नहीं सोची थी. आप्शन भी नहीं था. स्कूल में रहते हुए डिजनी वाले किसी शो के लिए कलाकार ढूँढ़ रहे थे,उस समय एक टीचर के कहने पर वहां गयी और चुन ली गयी. मैंने उस टीचर को पहले मना भी किया था, क्योंकि मुझे डांस आती है, अभिनय नहीं. असल में मैंने 12 साल की उम्र से कथक सीखा है, लेकिन टीचर ने मुझे वहां एक परफ़ॉर्मर के तौर पर जाने के लिए कहा, मैं गयी और उन्हें मेरा परफोर्मेंस पसंद आया. उसके बाद भी मैं पढाई कर रही थी. कॉलेज के दौरान मैंने फिल्म ‘आमरस’ की, रिलीज होने तक मेरी पढाई ख़त्म हो चुकी थी. फिल्म बहुत अच्छी नहीं चली,पर मेरे काम को बहुत सराहा गया. तब मुझे लगा कि मुझे इसको सीरियसली लेना चाहिए. 2 साल तक कोशिश करने की जरुरत है. सफल न होने पर मैं हायर एजुकेशन में वापस चली आउंगी, ऐसा सोचकर मैं मुंबई साल 2010 में आ गयी. फिर मेरा संघर्ष शुरू हुआ. शुरू के दिनों में जब भी सोचती थी कि वापस चली जाउंगी, तभी कुछ काम मिल जाता था.इससे थोडा और रुकने की प्रेरणा जागती रही.

सवाल- अभिनय में आने के बारें में परिवार से कहने पर उनकी प्रतिक्रियां क्या रही?

उन्हें शुरू में समझ में नहीं आया कि मैं क्या करने वाली हूं, क्योंकि अधिकतर पढाई के बाद कुछ और करने की बात होती रही. एक्टिंग को लेकर कोई बात नहीं होती थी. जब मैं मुंबई आ गयी तो वे सोचने लगे कि मैं यहाँ कैसे एडजस्ट करुँगी, क्योंकि उस समय मैं कई लड़कियों के साथ रहती थी. वे कुछ दूसरा जॉब साथ-साथ करने की सलाह भी देते रहे, पर मैंने उन्हें हमेशा मना किया और अभिनय पर फोकस्ड रही. जब धीरे-धीरे काम आने लगा, तो उन्हें थोड़ी राहत मिली. वे खुश हुए. मुझे याद है, जब मैं मुंबई आ रही थी, तो पिता ने मुझे पास बिठाकर कहा कि ये अच्छा क्षेत्र नहीं है, आपको सावधान रहने की जरुरत है. मुझे लगा कि वे कास्टिंग काउच के बारें में कह रहे है. मैंने उनको भरोषा दिलाया था कि मुझे ऐसी चीजो को हैंडल करना आता है, लेकिन ऐसा नहीं था. वे मेरे काम के बारें में कह रहे थे,क्योंकि फ़िल्मी दुनिया में लोग एक दिन कामयाबी को सराहेंगे, तो दूसरे दिन नीचे भी उतार देते है. ये अनिश्चित इंडस्ट्री है. मुझे उनकी बातें तब समझ में नहीं आई थी, अब उनके कहने का मतलब पता चलता है.

सवाल- उजड़ा चमन आपकी सफल फिल्म रही, उसमें आपने एक मोटी लड़की की भूमिका निभाई, कैसे किया और फायदा कितना मिला?

मैंने उसमें बॉडी सूट पहनी थी, जो मेरे लिए अच्छी तरह से आरामदायक बनायी गयी थी. इस फिल्म के लिए मुझे वजन बढाने के लिए भी कहा गया था, पर उजड़ा चमन के कुछ दिनों बाद ही शुभ मंगल ज्यादा सावधान फिल्म की शूटिंग थी, इसलिए मैंने उन्हें मना किया था. फिर बहुत मुश्किल से ये बॉडी सूट बनी थी. फिल्म सफल होने पर कलाकार को लोग अधिक सराहने लगते है.

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सवाल- आप अब तक की जर्नी से कितनी संतुष्ट है?

मैं अपने आप को लकी समझती हूं, क्योंकि मुझे अच्छे प्रोजेक्ट के साथ अच्छे लोग भी मिले है, पिछले साल मैंने काफी काम किया है. वे सारे लोग प्रतिभावान और क्रिएटिवली अच्छे रहे, जिससे काम करना आसान हुआ. इस क्षेत्र में सबको एक जुट होकर काम करना पड़ता है. टीम वर्क सही हो तो ही काम सही होता है.

सवाल- लॉक डाउन की वजह से फिल्म इंडस्ट्री को काफी नुकसान हो रहा है, क्योंकि यहाँ टीम वर्क होता है, एक अकेला कुछ नहीं कर सकता, आपको क्या लगता है कि इंडस्ट्री को एक बार फिर से पटरी पर आने में कितना समय लगेगा? क्या-क्या तैयारियां उन्हें करनी पड़ेगी?

मेरे हिसाब से जो कलाकार वित्तीय रूप से अधिक सक्षम नहीं है, खासकर कोई नया कलाकार जिसने पहली प्रोजेक्ट को केवल साईन किया है. उनके रेंट को माफ़ करना चाहिए. इसके अलावा वार्ड बॉयज जिन्हें रोज के हिसाब से पैसे मिलते है, उनके लिए रिलीफ फंड रिलीज किये गए है. उसकी मुझे चिंता है. मैंने अपने स्टाफ को तीन महीने का वेतन दे दिया है, ताकि उनका घर चलता रहे. इसके अलावा इन दिनों क्रिएटिव लोग नए-नए कंटेंट बना रहे है. कोई मीम तो कोई विडियो बना रहा है. कोई थिएटर लाइव कर रहा है. ये अच्छी बात है, लोग क्रिएटिवली अच्छी चीजे सोच रहे है. ये सही है कि इस फील्ड में अभी कोई प्लानिंग नहीं हो पायेगा, क्योंकि लॉक डाउन है, पर मैं इस समय को एन्जॉय कर रही हूं,क्योंकि मैं पिछले कुछ दिनों से बहुत व्यस्त रही. ये गिल्ट फ्री ब्रेक है, क्योंकि कोई आप्शन नहीं है. इस लॉक डाउन के ख़त्म होने पर इंडस्ट्री बूम करेगी. लोग काम करने के लिए उत्सुक हो जायेंगे.

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सवाल-आप इन दिनों क्या कर रही है?

पहले दो दिन तो मुझे बहुत ख़ुशी मिली थी. मैं घर पर रहकर टीवी देखना, सोना और खाना खा रही थी, लेकिन जब मैंने हजारों की संख्या में फंसे लोगों को अपने घर जाने की चाहत को टीवी पर देखी, तो तनाव में आ गयी थी, रोने लगी थी, खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी,क्योंकि मैं कुछ करने में असमर्थ हूं. फिर धीरे-धीरे अच्छी न्यूज़ देखकर अपने आप को सम्हाली. अभी घर का काम बहुत है, उसे करने में पूरा दिन निकल जाता है. अभी कोई डेड लाइन नहीं है, इसलिए आराम से उठकर घर का काम कर लेती हूं. मुझे लगता है कि लॉक डाउन पीरियड में मैं अधिक डिसिप्लिन हो गयी हूं, अभी वर्कआउट न करने की कोई बहाना नहीं है. नियमित करती हूं और मेंटल हेल्थ के लिए आज ये बहुत आवश्यक भी है.

सुकून की जिंदगी बिता रहा हूं – चन्दन रॉय सान्याल

फिल्म ‘रंगदे बसंती’ और ‘कमीने’ सेहिंदीफिल्मों में अभिनय करने वाले अभिनेता चन्दन रॉय सान्याल (Chandan Roy Sanyal) ने हिंदी फिल्मों के अलावा बांग्ला फिल्मों में भी बहुत काम किया है. अभी उनकी वेब सीरीज ढीठ पतंगे रिलीज हो चुकी है, जिसे सभी पसंद कर रहे है. मुंबई में अपने घर में इन दिनों लॉकडाउन को वे अकेले एन्जॉय कर रहे है. वे इन दिनों घर पर साफसफाई से लेकर सारा काम और अपने पसंदीदा खाना बना रहे है. यूं तो उन्होंने कभी खाना नहीं बनाया, पर लॉकडाउन ने उन्हें इस ओर रूचि बढ़ाई है. यूट्यूब के ज़रिये उन्होंने डोसा बनाया और बात की. पेश है खास अंश.

सवाल- अभिनय में आने की प्रेरणा कहा से मिली ?

मैं करोलबाग केमध्यम वर्गीयबंगालीपरिवार से हूँ. जहाँ सिनेमा केवल देखा जाता था. कभी-कभी मेरे एकमामा मुझे फिल्म देखने ले जाया करते थे.फिल्में देखना पसंद था.वही से शौक पैदा हुआ. कभी अभिनय के बारें में सोचा नहीं था.कॉलेज जाने के बाद ड्रामा सोसाइटी में ज्वाइन किया और नाटकों में काम करने का अवसर जब-जब मिला, करता गया. कब ये शौक पैशन में बदल गया पता नहीं चला. एक जूनून हो गया, उसी में रच बस गया. 17 साल की उम्र में मैंनेथिएटर में अभिनय करना शुरू कर दिया था.

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सवाल- परिवार की प्रतिक्रिया कैसी रही?

परिवार वाले गुस्सा हो गये. रिश्तेदारों ने माता-पिता से कहा कि पूरी जिंदगी फटी जींस, कोल्हापुरी चप्पल और झोला लटकाकर मैं घूमूँगा.उन्हें भी ख़राब लग रहा था. मेरे साथ उनकी कहासुनी हुई और मैं घर छोड़कर आ गया. कॉलेज के दौरान ट्यूशन कर मैंने कुछ पैसे इकट्ठा किये थे. उस सात हज़ार रुपये लेकर मैं मुंबई साल 2003-04 में आ गया.

सवाल-  मुंबई में कितना संघर्ष रहा?

यहाँ बहुत संघर्ष था, 5 लड़के मीरा रोड के एक कमरे में रहते थे. वहां से मुझे अँधेरी आकर सब काम करना पड़ता था. अपनी तस्वीर लेकर हर प्रोडक्शन ऑफिस में डालता था. इस दौरान अलीक पद्मसी के साथ कुछ नाटकों में काम किया. इसके साथ-साथ मैंने कॉलेज में कुछ दिनों तक बच्चों को पढ़ाया भी करता था, जिससे मुझे कुछ पैसे मिल जाते थे. इसके अलावा अलीक के बेटे क्वासर ठाकोर पदमसी ‘थेस्पो’ नामक थिएटर फेस्टिवल करते है, उसमें मैंने उन्हें एसिस्ट किया, जिसमें प्रोडक्शन की सारी बारीकियों को नजदीक से जान पाया. इससे थोड़े पैसे भी मुझे मिल जाया करता था, जिससेमेरे घर का  खर्चा चल जाता था.

सवाल-  हिंदी फिल्मों में पहला ऑफर कैसे मिला?

मैंने नाटकों में अभिनय के द्वारा लोगों के बीच में काफी नाम कमा लिया था. विदेश में भी कई थिएटर में कामकिया, करीब तीन साल के बाद भारत आया और फिल्म‘कमीने’ के लिए ऑडिशन दिया और चुन लिया गया.

सवाल-  फिल्मों में कम दिखाई पड़ने की वजह क्या है?

जैसे काम आता है मैं करता जाता हूँ. लगातार दिखना मुश्किल होता है. ये आर्ट है जिसे अगर आपका दिल न चाहे तो नहीं कर सकते. आज के दर्शक भी बहुत जागरूक है, सही फिल्म करने पर सिर पर जितनी जल्दी उठाती है, गलतफिल्म करने पर उतनी ही जल्दी उतार भी देती है. इसलिए मैं धीरे-धीरे सही काम करता हूँ.

सवाल-  आपने बांग्ला फिल्में की है और बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में एक सफल हीरो की कमी है, इसे कैसे देखते है?

बांग्लाफिल्में बाहर की फिल्मोंसे अधिक प्रेरित हो चुकी है. वे अपने कला और साहित्यको भूलकर रास्ते भटक चुकी है, क्योंकिवे हिंदी और दक्षिण की फिल्मों से प्रभावित हो रही है. कहानी से लेकर संगीत सब वे दूसरों की कॉपी कर रही है. प्रेरित होना गलत नहीं है, पर उसमें अपनी संस्कृति को भूल जाना सही नहीं. दक्षिण की कई फिल्में ऐसी है, जो आज भी बहुत अच्छी बनती है और पूरे विश्व में उसे देखी जाती है. मैं भी बांग्ला फिल्में करता हूँ और अच्छी स्तर की कहानियों को हमेशा तलाशता रहता हूँ.

सवाल-  अभिनय के इस दौर को कैसे देखते है?

ये छोटे बड़े सभी कलाकारों के लिए अच्छा दौर है. नए और पुराने सभी कलाकारों को काम करने का मौका मिला है. केवल नामचीन ही नहीं सभी काम कर पा रहे है. मुझे एक सप्ताह में 9 शो के ऑफर मिले है, जो बड़ी बात है. अभी कोई आपके साथ दांव नहीं लगा रहा है. मुझे‘मन्मर्जियाँ’ फिल्म में अभिषेक बच्चन की भूमिका बहुत पसंद आई थी, वैसी भूमिका मुझे करने की इच्छा है.

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सवाल-  इनदिनों अभी आप क्या कर रहे है?

मैं घर की साफसफाई, बिल्लियों की देखभाल, पौधों को पानी देना और खाना पका रहा हूँ. मुझे लगता है कि मैं बिपासना के दौर से जा रहा हूँ. सुकून की जिंदगी बिता रहा हूँ.

सवाल-  आगे की योजनायें क्या है?

आगे एक वेब सीरीज ‘आश्रम’ तैयार है. इसके अलावा बांग्ला फिल्म और वेब सीरीज की है, जो रिलीज होने वाली है.

सवाल- यूथ को क्या मेसेज देना चाहते है?

ये मुश्किल घड़ी है, धैर्यऔर संयम बनायें रखे जब भी जरुरत हो, किसी की सेवा करें.

आर्ट में सेंसरशिप एक समस्या है –सयानी गुप्ता

फिल्म ‘मार्गरीटा विथ ए स्ट्रौ’ में पाकिस्तानी- बांग्लादेशी लड़की की भूमिका निभाकर डेब्यू करने वाली अभिनेत्री सयानी गुप्ता कोलकाता की है. उसे बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी, जिसमें साथ दिया उसकी माता-पिता ने. सयानी फिल्म में अपने चरित्र पर अधिक फोकस्ड रहती है और किसी भी चरित्र के लिए सौ प्रतिशत मेहनत करती है. फिल्म की सफलता से अधिक वह इसकी प्रोसेस को एन्जौय करती है और फिल्म इंडस्ट्री में आये परिवर्तन को अच्छा दौर बताती है, जहां हर कलाकार को काम करने का मौका आज मिल रहा है. वेब सीरीज  ‘इनसाइड एज 2’ में वह अपनी भूमिका को लेकर बहुत उत्सुक है. इसके अलावा उसकी जर्नी के बारें में रोचक बातचीत हुई, जहां उन्होंने आज के समाज और इंडस्ट्री की सोच के बारें में चर्चा की. आइये जानते है क्या कहती है सयानी इस बारें में.

सवाल-इंडस्ट्री में आना आपके लिए इत्तफाक था या बचपन से सोचा था?

मैं बचपन से अभिनेत्री बनना चाहती थी. 4 साल की उम्र से मैंने इस क्षेत्र में आने की सोची थी. पर मेरा पूरा परिवार शिक्षा के क्षेत्र से है. मैं मिडिल क्लास बंगाली परिवार से हूं . एक्टिंग करना ही मेरे लिए बड़ी बात थी. मुंबई आकर फिल्मों में काम करने की बात तो कोई सोच भी नहीं सकता था,पर मेरे पिता म्युजिशियन और आर्ट लवर रहे, थिएटर में भी उन्होंने काम किया था. जब मैं एक साल 8 महीने की थी, तब मेरी माँ ने मुझे डांस स्कूल में डाल दिया था. मुझे डांस में तब डाला गया, जब मुझे कुछ अधिक समझ में नहीं आता था. थिएटर में मैंने पहली प्रस्तुति तब दी, जब मैं केवल 3 साल की थी और मुझे अभिनय के बारें में कोई जानकारी नहीं थी. फिर मैं अभिनय और फिल्म मेकिंग सीखने के लिए फिल्म इंस्टिट्यूट गयी. बाद में मुझे इसका काफी हेल्प मिला और अभिनय मिलने में भी सुविधा हुई. यहाँ काम करने के बाद मैंने बहुत कुछ सीखा है. असल में अभिनय एक ग्रेजुअल प्रोसेस है जो समय के साथ-साथ आता है.

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सवाल-सर्टिफिकेशन न होने की वजह से वेब सीरीज में इंटिमेट सीन्स और हिंसा भरपूर परोसा जाता है, इस बारें में आप क्या सोचती है?

ये हर व्यक्ति की पसंद पर निर्भर करता है कि वह क्या देखे और क्या न देखें. कलाकार निर्देशक और लेखक के आधार पर अभिनय करता है. कहानी की ग्राफ और चरित्र को अगर सटीक न दिखाई जाय तो वेब सीरीज अच्छी नहीं लगती. केवल व्यवसाय के लिए सेक्स, हिंसा आदि को दिखाया जाना सही नहीं होता. अगर मैं गुस्सा होती हूं  तो मुझे उसका एहसास देखने वालों के लिए होना चाहिए. इसके लिए जो जरुरी है वह निर्देशक दिखाता है. सेंसरबोर्ड पास नहीं करेगा ये सोचकर उसके एसेन्स को अगर ख़त्म कर दिया जाय, तो ये सही नहीं. वैसे ही बिना जरुरत के गली-गलौज भी अच्छा नहीं होता. कहानी के अनुसार कुछ भी दिखाने पर दर्शक भी उसे सही मानते है. जब व्यक्ति कहानी में घुसता है, तो जो भी चीज प्रमाणिकता के अनुसार होती है उसे देखना वे पसंद करते है.

सवाल-सेंसरशिप के बारें में आप क्या कहना चाहती है?

किसी भी आर्ट में सेंसरशिप एक समस्या है. क्रिएटिव लोगों को पूरी आज़ादी अपनी कहानी कहने के लिए होनी चाहिए. दर्शक ही बता सकता है कि क्या सही क्या गलत है.किसी भी आर्ट फॉर्म के लिए सेंसर समस्या है. अगर आप बड़ों के साथ किसी फिल्म या वेब को देख नहीं सकते तो कोई आपको इसे देखने के लिए फोर्स नही करेगा और ये आपकी पूरी आजादी आपको मिली है.

सवाल-आगे क्या कर रही है?

अभी छत्तीसगढ़ में मैंने एक मर्डर मिस्त्री पर कॉमेडी फिल्म की शूटिंग पूरी की है और आगे कई फिल्में और वेब सीरीज है. एक बांग्ला फिल्म की बात भी चल रही है.

सवाल-आप एक डांसर है लेकिन उस चरित्र में देखने को कम मिला क्या इसका मलाल है?

ये सही कि मुझे हमेशा इंटेंस भूमिका मिलती है और मैं चाहती हूं  कि वैसी फिल्में मुझे मिले जिसमें मैं डांस कर सकूं.

सवाल-किसी फिल्म का सफल होना आपके लिए कितना माइने रखती है?

किसी फिल्म को साइन करते वक़्त आप उसकी सफलता पर ध्यान नहीं देते, क्योंकि आपको उसकी कहानी और आपका चरित्र पसंद आता है. उस प्रोसेस में पूरी टीम काम करती है. हम केवल उस कहानी की एक पार्ट बनना चाहते है. इस वेब सीरीज में भी मेरी भूमिका क्रिकेट की पूरी जानकारी रखने वाले की थी, जो मेरे पास नहीं थी. मैंने मेहनत कर उसे रियल बनाने की कोशिश की. इसमें लेखक और निर्देशक का काफी हाथ रहा है, जिन्होंने मुझे इस भूमिका के लायक बनाया. इसके अलावा इंडियन क्रिकेट टीम में महिलाएं बहुत कम है, ऐसे में मुझे कुछ पता करना भी मुश्किल था.

सवाल-महिला और पुरुष में अंतर आज भी है, इसे कैसे कम किया जा सकता है? इसकी शुरुआत कहां से होनी चाहिए?

सबसे पहले महिला और पुरुष को एक ह्युमन की तरह ट्रीट करना पड़ेगा. समाज और फिल्म मेकर को भी ऐसी ही सोच रखनी होगी. जब काम पर कोई आता है तो महिला हो या पुरुष उसके टैलेंट के अनुसार उससे व्यवहार करने की जरुरत है. फिल्म लेखक का ये दायित्व है कि वह हर किरदार को एक नज़र से देखें. ये सही है कि आज भी ये अंतर है, इसके लिए समाज की सोच को बदलने की जरुरत है. सोच में बदलाव प्रोसेस में है, फिल्म मेकर, लेखक और निर्देशक कोशिश कर रहे है . इसके बारें में अधिक बात होने की जरुरत है. पहले आईटम सोंग करने वाले को अलग नजरिये से देखा जाता था, जो अब नहीं है और निश्चित ही ये एक सकारात्मक सोच है.

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सिनेमा हमारे समाज का एक भाग है और उसका प्रभाव रहता है, लेकिन घर पर बेटी और बेटो में अंतर को ख़त्म करना होगा. इससे सोच में बहुत बदलाव आयेगा.

सवाल-आप अपनी जर्नी से कितना संतुष्ट है?

मुझे अभिनय करना बहुत पसंद है और मैं हर जगह हर चरित्र को करना चाहती हूं , पर समय नहीं मिल पाता. पिछले 2 सालों से मैंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ सही तरह से नहीं मिली और ये मेरे स्वास्थ्य पर भी असर होता है. मैं इस बात से खुश हूं  कि आज हर एक्ट्रेस को काम मिल रहा है, हर महिला ऐसे ही आगे बढे इसमें मुझे बहुत अधिक ख़ुशी मिलती है.

प्रकाश झा की वेब सीरीज में नजर आएंगे चन्दन रौय सान्याल

कहा जाता है कि अगर कंटेंट अच्छा हो तो एक्टर अपने उस चैरेक्टर के लिए लोगों के दिलों पर छाप छोड़ जाते हैं. अभिनेता चंदन रौय सान्याल ने अपने कई उल्लेखनीय फिल्मों के माध्यम से अपने अभिनय का प्रदर्शन किया है.

अभिनेता चन्दन रौय सान्याल जल्द ही एक दिलचस्प वेब सीरज में नजर आएंगे और इस सीरीज को कोई और नहीं बल्कि प्रकाश झा डायरेक्ट कर रहे हैं. हालांकि अभी तक इस सीरीज की कहानी को पूरी तरह रिवील नहीं किया गया है.  इस शो में अभिनेता बौबी देओल भी नजर आएंगे.

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चन्दन इस बारे में बताते हैं, “मैंने हमेशा कहता हूं कि वेब एक्टर्स और फिल्म मेकर्स के लिए बहुत ही बढ़िया प्लेटफार्म है . अब इस सीरीज के जरिए मुझे मेरे पसंदीदा डायरेक्टर प्रकाश झा के साथ काम करने का मौका भी मिल रहा है. इस शो की कहानी बहुत ही दिलचस्प है और मैं बहुत खुश हूं कि मुझे प्रकाश झा और बौबी देओल के साथ इस शो में काम करने का मौका मिला. मैं इस शो के बारे में ज्यादा तो नहीं बता सकता लेकिन मैं ये जरूर कहूंगा कि आपको इस शो में हमारा एक अलग पक्ष देखने को मिलेगा. ”

हाल ही में चन्दन फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ में नजर आये थे इसके अलावा वे भ्रम, हवा बदले हसु इन वेब शो में भी नज़र आये थे . हाल ही में उनकी बंगाली फिल्म ‘उरोजहाज द फ्लाइट’ ने कोलकाता इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में काफी तारीफें बटोरी.

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वैब सीरीज रिव्यू- पढ़ें यहां

सैक्स एजुकेशन

रिलीज ईयर – 2019

क्रिएटर – लौरी नन

कास्ट – एसा बटरफील्ड, गिलिअन एंडरसन, एमा मैके, कोनर स्वींडल्स

जौनर – कौमेडी ड्रामा, सैक्स कौमेडी, टीन ड्रामा

सैक्स एजुकेशन ब्रिटिश टीन कौमेडी ड्रामा वैब टैलीविजन सीरीज है जिस का इसी साल जनवरी में नैटफ्लिक्स पर प्रीमियर हुआ था. जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि इस में टीनएजर सैक्स पर बात की गई है. लेकिन, यह अपेक्षाओं से बिलकुल हट कर है. असल में यह शो सिर्फ सैक्स पर बात ही नहीं करता बल्कि टीनएजर्स की उस मानसिक स्थिति को भी उजागर करता है जिस से वे गुजर रहे हैं, हालांकि शो को खास इस पूरे मैटर को दिखाने का तरीका बनाता है.

ओटिस 16 साल का लड़का है और बाकी सभी लड़कों की ही तरह उस में भी कई शारीरिक और मानसिक बदलाव हो रहे हैं. उस की खुद की मां सैक्स काउंसलर हैं जिस कारण उसे सैक्स को ले कर अपनी उम्र से ज्यादा जानकारी है. यही वजह है कि वह सैक्स को ले कर इतना सहज नहीं है. सीरीज का इंट्रैस्ंिटग पार्ट तब शुरू होता है जब ओटिस स्कूल के बुली को उस की सैक्सुअल एंग्जाइटी पर एडवाइस देता है और जो उस के काम भी आती है. इस का फायदा मैव उठाती है जो ओटिस का कृश है. मैव ओटिस के पास स्कूल के बच्चों से पैसे ले कर उन्हें सैक्स एडवाइस लेने भेजती है.

सीरीज कहींकहीं बहुत हंसाती है तो कहीं रुलाती भी है. इसे देख बहुत कुछ जानने और सीखने को तो मिलता ही है, साथ ही एंटरटेनमैंट भरपूर होता है.

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अलियास ग्रेस

रिलीज ईयर – 2017

क्रिएटर – साराह पौली

कास्ट – सैरा गडेन, एडवर्ड होलक्रोफ्ट, रेबेक्का लीडियार्ड, जेकरी लेवी, पौल ग्रोस

जौनर – ड्रामा, मिस्ट्री

कनैडियन टैलीविजन मिनी सीरीज अलियास ग्रेस मारग्रेट औटवुड के इसी नाम के उपन्यास पर बेस्ड है. असल में मारग्रेट औटवुड ने यह उपन्यास आयरिश-कनैडियन 17 वर्षीया ग्रेस मार्क्स के जीवन पर लिखा था जिसे 1843 में अपने मालिक और उस की मिस्ट्रैस के खून के इलजाम में दोषी साबित किया गया था. ग्रेस मार्क्स के इस खून में भागीदारी के इलजाम को सालों तक सिर्फ इसलिए साबित नहीं किया जा सका था क्योंकि उस ने इसे कुबूलने से इनकार कर दिया और यह कहा कि उसे कुछ याद नहीं.

6 घंटे की इस मिनी सीरीज में यह प्रश्न बना रहता है कि क्या ग्रेस एम्नीशिया से पीडि़त थी, क्या उस में मल्टीपल पर्सनैलिटीज थीं, क्या सचमुच उस की दोस्त मेरी व्हीटली की रूह थी उस में, क्या वह निर्दोष थी या फिर सबकुछ ही ?ाठ था या दिखावा? किसी को असल में कभी पता ही नहीं चला कि ग्रेस मार्क्स ने असल में इस खून के पीछे क्या भूमिका निभाई थी. सीरीज थ्रिलिंग है, रहस्य से भरी हुई है, कहींकहीं लगता है जैसे ग्रेस कहानी को इस तरह बता रही हो जैसे वह अतीत में हो या किसी और ही दुनिया में.

सीरीज देखने पर 80 के दशक की लड़कियों का शोषण के खिलाफ न बोल पाना और अपनी आवाज उठाने में ?ि?ाकना साफ देखा जा सकता है, खासकर, जब ग्रेस की दोस्त मेरी अपने अमीर मालिक के बच्चे की मां बनने वाली होती है और उसे छिप कर अपना अबौर्शन कराना पड़ता है. उस जमाने में अबौर्शन की न कोई तकनीक मौजूद थी न सुविधा. इसी कारण जो कुछ मेरी के साथ हुआ वह ग्रेस के दिलोदिमाग में हमेशा के लिए घर कर जाता है. मेरी की चींखें सचमुच कानों में कई दिनों तक गूंजती हैं. यकीनन यह एक मस्ट वाच सीरीज है और इस से बेहतर तरीके से शायद ही इसे दिखाया जा सकता था.

फ्लीबैग

रिलीज ईयर – 2016

क्रिएटर -फीबी वालर-ब्रिज

कास्ट – फीबी वालर-ब्रिज, सिआन क्लिफोर्ड, ओलिविया कोलमैन, बिल पीटरसन, एंडरू स्कौट

जौनर – कौमेडी ड्रामा, ट्रैजिक कौमेडी

फ्लीबैग बाकी सभी वैब सीरीज से काफी अलग है क्योंकि यह न केवल एक मिनी ट्रैजिक कौमेडी सिटकौम है बल्कि यह ‘फोर्थ वाल’ पर बेस्ड है. फोर्थ वाल असल में सिनेमा का वह रूप है जिस में ऐक्टर अपने किरदार को निभाते हुए औडियंस से या कहें खुद से बात करता है, जिसे दर्शक देख सकते हैं लेकिन फिल्म या कहानी के अंदर किरदार के आसपास के लोग नहीं. फीबी वौलर-ब्रिज द्वारा क्रिएट की गई इस सीरीज में खुद फीबी ने ही मुख्य किरदार निभाया है. किरदार का असली नाम क्या है, यह उजागर नहीं होता, इसीलिए उसे फ्लीबैग कहा जा सकता है.

फ्लीबैग असल में एक स्ट्रौंग ब्रिटिश वुमन है जो बिलकुल अकेली है. उसे सैक्स करना पसंद है, उस के पास पैसा नहीं है, उस का खुद का कैफे है जो उस ने अपनी बैस्ट फ्रैंड बू के साथ शुरू किया था जो मर चुकी है. फ्लीबैग की एक सक्सैसफुल बहन है जो अपनी जिंदगी में उल?ा हुई है, पिता बात कर नहीं पाते और सौतेली मां उसे कुछ समझती नहीं. ओवरऔल उस की जिंदगी में कुछ अच्छा नहीं है. इन सभी के बीच फ्लीबैग फोर्थ वाल के जरिए कभी अपना गिल्ट बताती है, कभी किसी से बात करते हुए उस का मजाक उड़ाती है, दर्शकों को अपनेआप को जज करने का मौका देती है तो कभी बहानों की तरह इस फोर्थ वाल को यूज करती है.

क्रिटिकली एक्लैमड सीरीज फ्लीबैग फन्नी, इमोशनल, थ्रिलिंग और अमेजिंग है. बहुत ज्यादा गहराई में न उतर कर भी यह सीरीज गहराई का एहसास देती है. सीरीज के सब से दिलचस्प मोमैंट्स में से एक मोमैंट वह है जब फलीबैग बारबार अपनी सौतेली मां का सब से कीमती मेमैंटो चुरा लाती है और उसे जहां कहीं मौका मिलता है वहां यूज करती है. सीरीज के 2 सीजन हैं जिस में दूसरा सीजन माइंडब्लोइंग है.

टीवीएफ ट्रिपलिंग

रिलीज ईयर – 2016

क्रिएटर्स – द वाइरल फीवर

कास्ट – सुमित व्यास, अमोल पराशर, मानवी गगरु, कुणाल राय कपूर

जौनर – ड्रामा, कौमेडी

टीवीएफ ट्रिपलिंग इंडियन वैब सीरीज है जिस का कौंसैप्ट फ्रैश है और इंडियन सीरीज के लैवल को बढ़ाता है. चंदन, चितवन और चंचल 2 भाई एक बहन हैं जिन के नाम असल में सरस्वती चंद्र के गाने में से लिए गए हैं. तीनों अपनीअपनी जिंदगियों में परेशान होते हैं जब एक अनप्लैंड ट्रिप उन्हें एकदूसरे से एक बार फिर जोड़ देती है. सीरीज के डायलौग्स बहुत बढि़या हैं और उस से भी ज्यादा बढि़या है ऐक्टर्स की ऐक्ंिटग. सुमित व्यास चंदन के रोल में इतना फिट बैठता है कि यकीन नहीं होता कि वह केवल एक किरदार निभा रहा है. ऐसी ही अमोल पराशर की परफौर्मेंस भी है जो परफैक्ट है.

एक एपिसोड है जिस में चितवन चंदन को फट्टू कहता है और चंदन सचमुच गुंडों से लड़ने पहुंच जाता है. इस सीन में ठहाके मारमार कर हंसने से शायद ही कोई खुद को रोक पाएगा. हालांकि, आज की सभी इंडियन सीरीज की तरह इस में भी गालीगलौज है लेकिन ‘सैक्रेड गेम्स’ या ‘मिर्जापुर’ जैसी नहीं. सीरीज का म्यूजिक भी अच्छा है जिस से सीरीज में कनैक्टिविटी बढ़ती है. इस के 2 सीजंस हैं और दोनों ही देखने लायक हैं. पहले सीजन में जहां ये तीनों खुद की तलाश में निकलते हैं वहीं दूसरे में चंचल के पति की तलाश में जो असल में थोड़ा ट्रैजिक है, लेकिन मजा इस में भी बराबर बना रहता है. सीरीज में ‘क्राइसिस के टाइम पर फैमिली ही काम आती है’ जैसे वन लाइनर्स तो हैं ही.

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गर्ल्स होस्टल

रिलीज ईयर – 2018

क्रिएटर्स – गर्लीयापा 

कास्ट -सृष्टि श्रीवास्तव, पारुल गुलाटी, एहसास चन्ना, सिमरन नाटेकर, गगन अरोड़ा

जौनर – कौमेडी, ड्रामा

19 साल की रिचा डैंटल कालेज की फर्स्ट ईयर की स्टूडैंट है जहां उस के होस्टल के पहले दिन से ही रोमांच शुरू हो जाता है. गर्ल्स होस्टल में चारों तरफ से घिरी रिचा को मजा खूब आता है जिस में उस का हर कदम पर साथ देती है ?दिल्ली सी लड़की मिली. सीरीज असल में

4 लड़कियों रिचा, मिली, जो और जाहिरा के इर्दगिर्द घूमती है. मिली और रिचा एकदूसरे की अच्छी दोस्त बन जाती हैं और कभी होस्टल की लड़कियों की जासूसी करती फिरती हैं तो कभी किसी के ?ागड़ों को सुल?ाती रहती हैं. सीरीज में मस्तीमजा, सीनियरजूनियर की खींचतान, डैंटल और मैडिकल के बीच की लड़ाइयां और कहींकहीं थोड़ा प्यारमोहब्बत भी है. आखिर सीरीज की टैगलाइन ही ‘औल गर्ल्स, वन कैंपस, नो मर्सी’ है.

ज ज्यादा लंबी नहीं है और इस के एपिसोड्स यूट्यूब पर भी अवेलेबल हैं. हर एपिसोड में कुछ न कुछ खास है जिस का अंदाजा एपिसोड्स के नाम से भी कलकता है जिस में एक एपिसोड का नाम ‘द ब्रा चोर’ है. इसी तरह होस्टल का एक कोना है जहां कुछ भी छोड़ो, गायब हो जाता है, इसलिए उस कोने का नाम बरमूडा ट्रायंगल रखा गया है. इसी तरह कई चीजें हैं जिन्हें देख और सुन कर हंसी आती है. सीरीज के एक एपिसोड में सृष्टि यानी जो का एक मोनोलौग भी है जिसे बारबार सुनने का मन करता है. वैसे, यह सृष्टि श्रीवास्तव का पहला मोनोलौग नहीं है जो इतना फेमस हुआ है, इस से पहले भी उस के कई मोनोलौग्स हैं जिन्हें यूथ ने काफी पसंद किया है जिन में एक सैक्स पर तो एक मलिका दुआ के साथ मोटी लड़कियों पर बेस्ड है. कुल मिला कर यह सीरीज बढि़या है जो आजकल के यूथ की पहली पसंद भी है.

वैब सीरीज रिव्यू- क्या देखें क्या नहीं

यू

रिलीज ईयर – 2018

क्रिएटर्स- ग्रैग बरलेंटी, सेरा गैंबल

कास्ट- पैन बेडज्ली, एलीजाबेथ लेयल, लुका पडोवन, जैक चैरी, शेय मिचेल 

जौनर- साइकोलौजिकल थ्रिलर, क्राइम ड्रामा

क्या हो अगर आप पर हर समय कोई नजर रख रहा हो, आप की हर एक्टिविटी को मौनिटर कर रहा हो, आप के करीबी लोगों को आप से दूर कर आप की जिंदगी पर एक काले साए की तरह छा रहा हो? और अब सोचिए कि क्या हो जब आप किसी इंसान की हकीकत जाने बिना उस से प्यार कर बैठें? कुछ ऐसी ही कहानी है कैरोलिन केपन्स के उपन्यास पर आधारित नैटफ्लिक्स औरिजिनल साइकोलौजिकल थ्रिलर सीरीज ‘यू’ की.

सीरीज की शुरुआत होती है गुइनिवर बेक और जोसफ से. बेक एक खूबसूरत, जवान और स्मार्ट लड़की है जिसे लिखना, पार्टी करना, सोशल मीडिया पर तसवीरें पोस्ट करते रहना पसंद है. वहीं, जोसफ उर्फ जो एक साधारण दिखने वाला लड़का है और एक बुकस्टोर का क्लर्क है. लेकिन, यह साधारण सा लड़का असल में एक स्टाकर है जो बेक को देखते ही उस का कायल हो जाता है और बेक उस के लिए एक मकसद बन जाती है.

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सीरीज की दिलचस्प बात यह है कि यह किसी हीरो के नहीं बल्कि असल में एक स्टाकर के पौइंट औफ व्यू से दिखाई गई है जोकि रोमांचक है और सनसनी पैदा करता है. इस में छिपे राज और बेक के लिए जो द्वारा उठाए गए कदम थ्रिलिंग हैं. कुछ ऐसे मौके भी हैं जहां लगता है कि चीजों को ज्यादा ही बढ़ाचढ़ा दिया है लेकिन फिर भी इसे बिंज वाच करने का मन करता है. सीरीज के सीजन वन में 10 एपिसोड्स हैं और जल्द ही इस का दूसरा सीजन आने वाला है. सीजन वन जिस सस्पैंस के साथ खत्म हुआ है उस से सीजन 2 में परदा उठेगा. आगे और कितने राज हैं यह देखना मजेदार होगा.

द फैमिली मैन

रिलीज ईयर- 2019

क्रिएटर्स- राज निदिमोरु, कृष्णा डी के

कास्ट- मनोज बाजपेयी, प्रियमिनी, शारिब हाशमी, नीरज माधव, पवन चोपड़ा, किशोर कुमार

जौनर- ऐक्शन, ड्रामा

देशभक्ति पर आधारित सीरीज की ही तरह ‘द फैमिली मैन’ भी है, बस फर्क इतना है कि इस की नरेशन स्लो है और यह श्रीकांत, जिस का किरदार मनोज बाजपेयी निभा रहे हैं, पर आधारित है जो वक्तबेवक्त अपने परिवार और देश के बीच में से किसी एक को चुनने पर मजबूर रहता है. यह सीरीज आतंकवाद और धार्मिक अतिवाद जैसे मुद्दे को उजागर करती है. बावजूद इस के सीरीज का केंद्र श्रीकांत की अपने काम और घरपरिवार के बीच सामंजस्य बैठाने की जद्दोजहद को दिखाना ज्यादा लगता है.

मनोज बाजपेयी एक फिक्श्नल क्राइम एजेंसी ‘टास्क’ का जासूस या कहें औफिसर है, लेकिन अपने परिवार और बाकी दुनिया के लिए वह किसी सरकारी दफ्तर में फाइल लाने ले जाने का काम करता है. सुन कर अटपटा जरूर लगता है कि कैसे उस के अपने परिवार खासकर उस की पत्नी को उस के इस काम के बारे में कोई जानकारी नहीं है.

टास्क नामक यह फोर्स केवल आतंकवादी होने के शक पर 3 लड़कों को गोलियों से दाग देती है और गलती का एहसास होने पर उन्हें आतंकवादी करार दे देती है. अविश्वस?नीय जरूर लगता है पर फिर एहसास होता है कि यह सरकार पर बड़ी चालाकी से किया गया कटाक्ष है.

हर एपिसोड की शुरुआत में न्यूजपेपर कटिंग दिखा कर बताया गया है कि हर एपिसोड सत्य घटना से प्रेरित है जोकि सही भी लगता है क्योंकि असल में इस पूरी सीरीज में ही ऐसे मुद्दों को लिया गया है जिस से देश इस वक्त गुजर रहा है. सीरीज में ह्यूमर भी है और गंभीरता भी. यह सीरीज देखनी तो बनती है.

द मार्वलस मिसेज मेजल

रिलीज ईयर- 2017

क्रिएटर्स- एमी शरमन-पालाडीनो

कास्ट- रेचल ब्रोसनाहन, एलैक्स बोर्सटीन, माइकल जेगेन, मरीन हिंकल,

जौनर- कौमेडी ड्रामा, पीरियड ड्रामा

रीज की पृष्ठभूमि 1958 न्यूयौर्क की है. द मार्वलस मिसेज मेजल असल में मीरियम मिज मेजल है जो न्यूयौर्क में रहने वाली साधारण जूइश महिला थी लेकिन एक रात में ही उस की जिंदगी तब बदल गई जब उस के पति ने उसे यह कह कर छोड़ दिया कि उस का अपनी सैक्रेटरी के साथ अफेयर चल रहा है.

मिज खुद को अचानक ही सब से अकेला पाने लगती है, उसे लगता है जैसे अब यहां उस के लिए कुछ बचा ही नहीं है, लेकिन एपिसोड वन के ऐंड में ही यह सामने आता है कि मिज में स्टैंड अप कौमेडियन बनने की प्रतिभा है जिसे पूरे सीजन में आगे बढ़ाया गया है. प्रोफैशनल और पर्सनल लाइफ के बीच मिज की जद्दोजहद को दिखाया गया है.

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पूरा शो ही लाइट कौमेडी से घिरा हुआ है लेकिन जबतब दिखाए जाने वाले मिज के स्टैंड अप्स और मोनोलोग कमाल के हैं. यह सीरीज एक मस्ट वाच इसलिए भी है कि इस में एक फीमेल करैक्टर को अपनी पहचान बनाते और ख्याति पाते दिखाया गया है जिस के द्वारा रास्ते में आने वाली हर परेशानी को आड़ेहाथों लिया गया. सीरीज का तीसरा सीजन इस दिसंबर एमेजौन प्राइम पर आने वाला है.

पिनोकियो

रिलीज ईयर- 2014

क्रिएटर- पार्क हे रयून

कास्ट- ली जौंग सुक, पार्क शिन-हे, किम यंग-क्वांग, ली यू-बी

जौनर- रोमांस, ड्रामा, फैमिली, कौमेडी

यदि आप ने कोरियन ड्रामा के बारे में सुना होगा कि वे अत्यधिक रोमांटिक होते हैं या वे केवल प्यार के इर्दगिर्द ही घूमते हैं. लेकिन यह उन सभी केंड्रामा से बहुत ज्यादा अलग हैं. पिनोकियो कोरियन टैलीविजन ड्रामा सीरीज है. शो की गिनती एशिया के लोकप्रिय शोज में होती है जिस के किरदार कोरियाई ड्रामा जगत के जानेमाने चेहरे पार्क शिन और ली जोंग सुक हैं.

असल में प्यार और दोस्ती तो पिनोकियो में भी है लेकिन शो का मेन फोकस एक लड़के हा म्यूंग की कहानी दिखाना है जिस ने एक हादसे में अपने परिवार को खो दिया और वह भी उन पत्रकारों के कारण जिन्होंने उस के निर्दोष पिता को गुनहगार ठहराया. वह उन सभी पत्रकारों खासकर उस एक पत्रकार को यह साबित करना चाहता है कि असल में सच्ची पत्रकारिता क्या होती है. पर कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब वह उसी महिला की बेटी से प्यार कर बैठता है.

सीरीज हद से ज्यादा फनी है जिस में इमोशंस का तड़का बराबर लगाया गया. यह हिंदी और इंग्लिश सीरीज से बहुत अलग है क्योंकि इस में रिश्तों खासकर प्यार की जो परिभाषा दिखाई गई है वह स्लो पेस पर चलती है. इस सोशल मीडिया के जमाने में ऐसी कहानी पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल जरूर है मगर मन करता है कि इस पर विश्वास किया जाए.

द ऐंड औफ द फ***इंग वर्ल्ड

रिलीज ईयर- 2017

क्रिएटर्स- चार्ली कोवेल

कास्ट- एलैक्स लोथर, जेसिका बारडेन, गेमा व्हेलन, स्टीव ओरम

जौनर- डार्क कौमेडी, कौमेडी ड्रामा

लर्स फोर्समन की इसी नाम की ग्राफिक नौवल पर आधारित ‘द एंड औफ द फ***इंग वर्ल्ड’ ब्रिटिश डार्क कौमेडी ड्रामा टैलीविजन प्रोग्राम है जिसे नैटफ्लिक्स पर 8 एपिसोड के सीजन वन में दिखाया गया और जल्द ही इस का दूसरा सीजन भी आने वाला है. सीजन वन में जेम्स जोकि खुद को साइकोपाथ सम झता है अपनी क्लासमैट अलीसा से मिलता है जो रिबिलीयस है और उस की खुद की कई प्रौब्लम्स हैं. जिन से वह जूझ रही है. दोनों टीनएजर्स हैं और बाकी सभी सामान्य टीनएजर्स से बहुत अलग हैं.

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जेम्स को हौबी के तौर पर जानवरों को मारना पसंद है और एक दिन वह इस से ऊब जाता है और फैसला करता है कि वह किसी इंसान को मारेगा. अलीसा को लगता है कि जेम्स के साथ  झूठे रोमांस से शायद वह सचाई से दूर जा सकती है. जेम्स और अलीसा घर से भाग निकलते हैं जहां जेम्स का प्लान अलीसा को जान से मारना है. क्या जेम्स अलीसा को मार पाया? उन दोनों के बीच जो कैमिस्ट्रि डैवलप हुई, सच थी या नहीं? क्या दोनों अपनेअपने मकसद में कामयाब हुए? इन सब का जवाब सीरीज में है.

सीरीज मस्ट वाच है जो अपने साथ कई मुद्दे भी उजागर करती है. जेम्स और अलीसा को अपने सफर में कुछ ऐसी चीजों का सामना भी करना पड़ता है जो उन की आने वाली जिंदगी को हमेशा के लिए बदल कर रख देगी. सीरीज में डार्क ह्यूमर है जिस पर ठहाके मारमार कर हंसी तो नहीं आती लेकिन अच्छा लगता है, बोरियत नहीं होती.

https://www.youtube.com/watch?v=pLEBe5VWMX8

वैब सीरीज रिव्यू: जानें क्या देखें

दिल्ली क्राइम

रिलीज ईयर – 2019

क्रिएटर – रिची मेहता

कास्ट – शेफाली शाह, रसिका दुग्गल, आदिल हुसैन, राजेश तैलंग, डेंजिल स्मिथ, यशस्विनी दायमा

जौनर – क्राइम, ड्रामा, एंथोलौजी

16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप की पृष्ठभूमि पर बनी यह वैब सीरीज भारत की बैस्ट क्त्राइम डौक्यूमैंट्रीज में से एक है. नैटफ्लिक्स पर प्रसारित इस वैब सीरीज को व्यूअर्स से अलगअलग रिऐक्शंस मिले. सच्ची घटना होने के कारण सीरीज देखना अत्यधिक कठिन हो जाता है, लेकिन इसे देखने और उस पूरे इंसिडैंट को समझने के लिए सीरीज देखने का मन भी करता है.

निर्भया गैंगरेप देश के जघन्य अपराधों में से एक था जिस के पश्चात पूरे देश में एक क्त्रांति उठ खड़ी हुई थी. लड़की के साथ सिर्फ बलात्कार नहीं हुआ था बल्कि अमानवीय हिंसा हुई थी जिसे सुन कर सभी सकते में आ गए थे.

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निर्भया और उस के दोस्त के साथ 16 दिसंबर की रात जो कुछ हुआ उस से सभी वाकिफ हैं लेकिन उस के बाद किस तरह उन अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया गया, सीरीज में दिखाया गया है.

सीरीज पुलिस के पौइंट औफ व्यू से बनाई गई है, इसलिए किसीकिसी जगह एकतरफा लगती है, परंतु अपराध के पीछे के कारण और अपराधियों की मानसिकता को स्पष्टता से दिखाया गया है. वह छोटेछोटे तथ्य जिन से आम जनता अनजान थी और बनावटी मीडिया रिपोर्ट्स के चलते समझने से चूक रही थी, सीरीज में उजागर किए गए हैं.

डीसीपी वर्तिका चतुर्वेदी के किरदार को शेफाली शाह ने उम्दा निभाया है. सीरीज की खास बात यह है कि इस में किसी एक हीरो या हीरोइन की भूमिका को न दिखाते हुए सभी ऐक्टर्स को परफैक्ट स्क्रीन टाइम दिया गया है. दिल्ली पुलिस के टीमवर्क को दिखाया गया है. सीरीज संवेदनशील है और सीरीज के क्रिएटर्स का एक अतिसंवेदनशील मुददे को दिखाने का तरीका अच्छा है.

13 रीजंस व्हाई 

रिलीज ईयर – 2017

क्रिएटर – ब्रायन योर्की

कास्ट – कैथरिन लैंग्फोर्ड, डिलेन मिनेते, रोस बटलर, माइल्स हीजर, अलीशा बो, जस्टिन प्रेटिन्स, ब्रैंडन फ्लिन

जौनर – टीन ड्रामा मिस्ट्री

‘हे,इट्स हैनाह.. हैनाह बेकर….वैलकम टू योर टेप….’

नैटफ्लिक्स ओरिजिनल सीरीज ‘13 रीजंस व्हाई’ इसी नाम की जय अशेर की किताब पर आधारित है. सीरीज क्ले जेंसन और हैनाह बेकर के किरदार के इर्दगिर्द घूमती है. सीरीज के अब तक 3 सीजंस आ चुके हैं. सीरीज शुरू होती है क्ले जेंसन को कुछ औडियो टेप्स मिलने से. क्ले जेंसन को जो टेप्स मिलते हैं उन में हैनाह बेकर की आवाज रिकौर्डेड है जिस ने कुछ महीनों पहले ही सुसाइड किया है. इन टेप्स में हैनाह ने उन 13 कारणों को बताया है जिन के चलते उस ने यह कदम उठाया. जेसिका, जस्टिन, ब्राइस, टोनी, एलेक्स, टाइलर सभी हैनाह की मौत से किसी न किसी तरह जुड़े हुए हैं, कई राज छिपाए बैठे हैं जिन से क्ले को मिले टेप्स परदा उठाते हैं.

हैनाह बेकर के साथ सीरीज में ऐसी कई घटनाएं घटीं जिन्होंने उसे उस की जिंदगी खत्म करने को मजबूर कर दिया. हैनाह ने कोशिश भी की कि लोग उसे समझें लेकिन किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. आश्चर्य तब होता है जब क्ले, जिस ने कभी हैनाह के साथ कुछ गलत नहीं किया, भी उस की मौत के 13 कारणों में से एक है.

सीरीज सुसाइड, रेप, शोषण, ड्रग्स, स्टाकिंग और बुलिंग जैसे मुददों को उजागर करती है. पहला सीजन डार्क और एडल्ट सब्जैक्ट को उठाता है जिस की संवेदनशीलता को बखूबी लोगों तक पहुंचाया गया है. इसी के चलते इसे बैस्ट हाईस्कूल ड्रामा सीरीज भी करार दिया गया था. लेकिन, सीरीज का दूसरा और तीसरा सीजन दकियानूसी हैं. दूसरे सीजन में केवल डिप्रैशन, वायलैंस और ड्रामा दिखाने की ही कोशिश की गई. वहीं, सीरीज का तीसरा सीजन इसी अगस्त को रिलीज हुआ है जो दूसरे सीजन से भी ज्यादा डिसअपौइंटिंग है. इसलिए अगर आप सचमुच एक गंभीर, एंगेजिंग और स्टनिंग सीरीज देखने की इच्छा रखते हैं तो ‘13 रीजंस व्हाई’ के केवल पहले सीजन को ही देखें.

डिसैंडेंट्स औफ द सन

रिलीज ईयर – 2016

क्रिएटर – केबीएस ड्रामा प्रोडक्शन 

कास्ट – सोंग जूंग-की, सोंग हाय-क्यो, किम जी वोन, जिम गू

जौनर – रोमांस, मैलोड्रामा, ऐक्शन

साल 2016 में मेगाहिट रही यह सीरीज कोरियाई ड्रामा है. सीरीज 4 किरदारों सी जिन, डा. कांग मो यौन, सीयो दाय-यंग और यून मियोंग जू के इर्दगिर्द घूमती है. इस ड्रामा की भाषा कोरियाई है लेकिन इंग्लिश सबटाइटल्स के साथ इसे आसानी से देखा और समझा जा सकता है. यही कारण है कि यह एशिया में खूब देखी गई और भारतीय भी इस के फैंस की गिनती में शामिल हैं. रोमांस, फ्रैंडशिप, रिलेशनशिप और ब्रोमांस के साथ ऐक्शन और एडवैंचर की मिक्सिंग के चलते यह कोरियाई ड्रामा एशिया के सब से हिट कोरियन ड्रामा यानी केड्रामा में से एक है.

सी जिन साउथ कोरिया की स्पैशल फोर्सेस यूनिट का कैप्टन है. वहीं, कांग मो यौन एक डाक्टर है. पहली मुलाकात के बाद ही दोनों में एकदूसरे के लिए दिलचस्पी आ जाती है, लेकिन सी जिन के अचानक मिल जाने वाले प्रोजैक्ट्स और देशसेवा के बीच दोनों की लव स्टोरी का एंड हो जाता है.

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लेकिन, डा. कांग और सी जिन की मुलाकात एक बार फिर उरुक नाम के एक काल्पनिक देश में आपातकालीन स्थिति में होती है जहां दोनों एकदूसरे से प्यार का इजहार करते हैं. मुख्य किरदारों के हावभाव और शक्लसूरत इतनी खूबसूरत लगती है कि पहले 2 ऐपिसोड्स में ही आप उन के फैन हो जाते हैं. ड्रामा का रोमांस बनावटी नहीं लगता और न ही किसी भी तरह से वल्गर है. ताबड़तोड़ ऐक्शन, फनी मोमैंट्स, रोमांस का एप्रोच, सीरियस मिशंस और रोमांच से भरी यह सीरीज मस्ट वाच केड्रामा है.

माइंड द मल्होत्राज

रिलीज ईयर – 2019

क्रिएटर्स – अप्प्लौस एंटरटेनमैंट

कास्ट – मिनी माथुर, सायरस साहूकर, डैंजिल स्मिथ, सुष्मिता मुखर्जी, निक्की शर्मा

जौनर – कौमेडी ड्रामा, फैमिली ड्रामा

माइंड द मल्होत्राज अमेजोन प्राइम वीडियो की ओरिजनल इंडियन सिटकौम सीरीज है. यह इजराइली कौमेडी ‘ला फेमिग्लिया’ पर आधारित है. शो एक कपल शेफाली और ऋषभ की मिड लाइफ क्राइसिस को दर्शाता है. 3 बच्चों के मातापिता शेफाली और ऋषभ अपने रिश्ते में रोमांस और स्पार्क की कमी महसूस करते हैं और अपने एक दोस्त के डाइवोर्स को देख कर अपने रिश्ते को ले कर चिंतित हो उठते हैं.

ये दोनों एक डाक्टर को कंसल्ट करते हैं और उसे अपने जीवन के कुछ अटपटे और अजीब मोमैंट्स से अवगत कराते हैं. शेफाली और ऋषभ के अलावा उन के बच्चों जिया, दिया और योहान, ऋषभ की मां, उन के डाक्टर और आसपास के पड़ोसियों के किरदारों को भी फनी, ह्यूमरस दिखाया गया है.

यह शो फैमिली शो तो है मगर सिर्फ उन के लिए जो सर्काज्म और ह्यूमर को समझते हैं. शो को देखते समय ठहाके मारमार कर हंसी भले ही नहीं आती लेकिन मुस्कराहट बनी रहती है. शो के कुछ मजेदार सींस में से एक सीन वह है जब ऋषभ और शेफाली रोल प्ले कर सैक्स करना चाहते हैं लेकिन शेफाली बसंती बनती है जिस के हाथ बैड पर हथकड़ी से बंधे हैं और ऋषभ वीरू की बजाए ठाकुर के किरदार में आता है जिस ने अपने केरैक्टर को रियल लुक देने के लिए अपने हाथ भी पीठ पर रस्सी से बांध रखे हैं. दोनों की हाथ न छुड़ा पाने की लाचारी और फनी रिएक्शंस पर खूब हंसी आती है.

सामान्य इंडियन फैमिली शोज की तरह इस में एक्स्ट्रा ड्रामा नहीं है. किरदारों को आदर्श व्यक्तित्व के रूप में दिखाने की कोशिश नहीं की गई. यह सीरीज मौडर्न फैमिलीज की प्रौब्लम्स, हर चीज पा लेने की इच्छा, बढ़ते पीअर प्रैशर और कौम्प्लिकेटेड लाइफ को दिखाती है.

औरैंज इज द न्यू ब्लैक

रिलीज ईयर – 2013

क्रिएटर्स – जेंजी कोहेन 

कास्ट – टेलर शिलिंग, लोरा प्रेपोन, माइकल हारनी, जैसन बिग्ग्स, मिशेल हर्स्ट

जौनर – कौमेडी, ड्रामा

पाइपर कर्मेन की किताब औरैंज इज द न्यू ब्लैक : माई इयर इन ए विमैंस प्रिजन (2010) पर आधारित ‘औरैंज इज द न्यू ब्लैक’ अमेरिकन कौमेडी ड्रामा वैब टैलीविजन सीरीज है. किताब पाइपर कर्मेन के जेल में बिताए दिनों की याद है जिसे जेंजी कोहेन ने अडौप्ट कर सीरीज बनाई है. यह सीरीज नैटफ्लिक्स की सब से ज्यादा देखी गई सीरीज है.

सीरीज की मुख्य किरदार पाइपर चैपमैन है जिसे 10 साल पहले किए गए अपराध के लिए लिचफील्ड पेनीटेनशरी जोकि औरतों को मिनिमम सजा देने वाली जेल है, में जाना पड़ता है. पाइपर की पर्सनल लाइफ, लैस्बियन ऐंड स्ट्रैट पार्टनर्स और जेल की जिंदगी को राइटर ने ढेर सारे ह्यूमर के साथ लिखा है.

सीरीज को वर्थी टू वाच उस हरेक किरदार की कहानी बनाती है जिसे फ्लैशबैक्स के जरिए दिखाया गया है. जेल के शुरुआती दिनों में कैदियों को नापसंद आने वाली पाइपर के खाने में टैंपोन डाला जाता है, तो कभी हाथ पर नाजी टैटू तक बना दिया जाता है. इन सब से निकल कर पाइपर एक स्ट्रौंग कैरेक्टर के रूप में उभरती है. साथ ही, अन्य किरदारों की कहानियों को सीरीज के हर ऐपिसोड में बखूबी पिरोया गया है.

किरदारों की बैकस्टोरी, दमदार ऐक्टिंग, बोर न करने वाली कहानी और कौमेडी इस सीरीज को देखने पर मजबूर करती है. औरैंज इज द न्यू ब्लैक को कैदियों के जीवन, उन्हें मानवता से जोड़ने, सैक्सुअल और इमोशनल नीड्स को उजागर करने व लैस्बियन, बाईसैक्सुअल या अन्य सैक्सुअल टर्म्स के बारे में खुल कर बात करने के लिए क्रिटिकली खूब सराहा गया है. यह सीरीज यकीनन वन औफ द बैस्ट सीरीज में से एक है.

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