Hindi Stories Online : ममता – क्या थी गायत्री और उसकी बेटी प्रिया की कहानी

Hindi Stories Online : दालान से गायत्री ने अपनी बेटी की चीख सुनी और फिर तेजी से पेपर वेट के गिरने की आवाज आई तो उन के कान खड़े हो गए. उन की बेटी प्रिया और नातिन रानी में जोरों की तूतू, मैंमैं हो रही थी. कहां 10 साल की बच्ची रानी और कहां 35 साल की प्रिया, दोनों का कोई जोड़ नहीं था. एक अनुभवों की खान थी और दूसरी नादानी का भंडार, पर ऐसे तनी हुई थीं दोनों जैसे एकदूसरे की प्रतिद्वंद्वी हों.

‘‘आखिर तू मेरी बात नहीं सुनेगी.’’

‘‘नहीं, मैं 2 चोटियां करूंगी.’’

‘‘क्यों? तुझे इस बात की समझ है कि तेरे चेहरे पर 2 चोटियां फबेंगी या 1 चोटी.’’

‘‘फिर भी मैं ने कह दिया तो कह दिया,’’ रानी ने अपना अंतिम फैसला सुना डाला और इसी के साथ चांटों की आवाज सुनाई दी थी गायत्री को.

रात गहरा गई थी. गायत्री सोने की कोशिश कर रही थीं. यह सोते समय चोटी बांधने का मसला क्यों? जरूर दिन की चोटियां रानी ने खोल दी होंगी. वह दौड़ कर दालान में पहुंचीं तो देखा कि प्रिया के बाल बिखरे हुए थे. साड़ी का आंचल जमीन पर लोट रहा था. एक चप्पल उस ने अपने हाथ में उठा रखी थी. बेटी का यह रूप देख कर गायत्री को जोरों की हंसी आ गई. मां की हंसी से चिढ़ कर प्रिया ने चप्पल नीचे पटक दी. रानी डर कर गायत्री के पीछे जा छिपी.

‘‘पता नहीं मैं ने किस करमजली को जन्म दिया है. हाय, जन्म देते समय मर क्यों नहीं गई,’’ प्रिया ने माथे पर हाथ मार कर रोना शुरू कर दिया.

अब गायत्री के लिए हंसना मुश्किल हो गया. हंसी रोक कर उन्होंने झिड़की दी, ‘‘क्या बेकार की बातें करती है. क्या तेरा मरना देखने के लिए ही मैं जिंदा हूं. बंद कर यह बकवास.’’

‘‘अपनी नातिन को तो कुछ कहती नहीं हो, मुझे ही दोषी ठहराती हो,’’ रोना बंद कर के प्रिया ने कहा और रानी को खा जाने वाली आंखों से घूरने लगी.

‘‘क्या कहूं इसे? अभी तो इस के खेलनेखाने के दिन हैं.’’

इस बीच गायत्री के पीछे छिपी रानी, प्रिया को मुंह चिढ़ाती रही.

प्रिया की नजर उस पर पड़ी तो क्रोध में चिल्ला कर बोली, ‘‘देख लो, इस कलमुंही को, मेरी नकल उतार रही है.’’

गायत्री ने इस बार चौंक कर देखा कि प्रिया अपनी बेटी की मां न लग कर उस की दुश्मन लग रही थी. अब उन के लिए जरूरी था कि वह नातिन को मारें और प्रिया को भी कस कर फटकारें. उन्होंने रानी का कान ऐंठ कर उसे साथ के कमरे में धकेल दिया और ऊंची आवाज में बोलीं, ‘‘प्रिया, रानी के लिए तू ऐसा अनापशनाप मत बका कर.’’

प्रिया गायत्री की बड़ी लड़की है और रानी, प्रिया की एकलौती बेटी. गरमियों में हर बार प्रिया अपनी बेटी को ले कर मां के सूने घर को गुलजार करने आ जाती है.

गायत्री ने अपने 8 बच्चों को पाला है. उन की लड़कियां भी कुछ उसी प्रकार बड़ी हुईं जिस तरह आज रानी बड़ी हो रही है. बातबात पर तनना, ऐंठना और चुप्पी साध कर बैठ जाना जैसी आदतें 8-10 वर्ष की उम्र से लड़कियों में शुरू होने लगती हैं. खेलने से मना करो तो बेटियां झल्लाने लगती हैं. पढ़ने के लिए कहो तो काटने दौड़ती हैं. घर का थोड़ा काम करने को कहो तो भी परेशानी और किसी बात के लिए मना करो तो भी.

प्रिया के साथ जो पहली घटना घटी थी वह गायत्री को अब तक याद है. उन्होंने पहली बार प्रिया को देर तक खेलते रहने के लिए चपत लगाई थी तो वह भी हाथ उठा कर तन कर खड़ी हो गई थी. गायत्री बेटी का वह रूप देख कर अवाक् रह गई थीं.

प्रिया को दंड देने के मकसद से घर से बाहर निकाला तो वह 2 घंटे का समय कभी तितलियों के पीछे भागभाग कर तो कभी आकाश में उड़ते हवाई जहाज की ओर मुंह कर ‘पापा, पापा’ की आवाज लगा कर बिताती रही थी पर उस ने एक बार भी यह नहीं कहा कि मां, दरवाजा खोल दो, मैं ऐसी गलती दोबारा नहीं करूंगी.

घड़ी की छोटी सूई जब 6 को भी पार करने लगी तब गायत्री स्वयं ही दरवाजा खोल कर प्रिया को अंदर ले आई थीं और उसे समझाते हुए कहा था, ‘ढीठ, एक बार भी तू यह नहीं कह सकती थी कि मां, दरवाजा खोल दो.’

प्रिया ने आंखें मिला कर गुस्से से भर कर कहा था, ‘मैं क्यों बोलूं? मेरी कितनी बेइज्जती की तुम ने.’

अपने नन्हे व्यक्तित्व के अपमान से प्रिया का गला भर आया था. गायत्री हैरान रह गई थीं. उस दिन के बाद से प्रिया का व्यवहार ही जैसे बदल सा गया था.

ऐसी ही एक दूसरी घटना गायत्री को नहीं भूलती जब वह सिरदर्द से बेजार हो कर प्रिया से बोली थीं, ‘बेटा, तू ये प्लेटें धो लेना, मैं डाक्टर के पास जा रही हूं.’

प्रिया मां की गोद में बिट्टो को देख कर ही समझ गई थी कि बाजार जाने का उस का पत्ता काट दिया गया है.

गायत्री बाजार से घर लौट कर आईं तो देखा कि प्रिया नदारद है और प्लेट, पतीला सब उसी तरह पड़े हुए थे. गायत्री की पूरी देह में आग लग गई पर बेटी से उलझने का साहस उन में न हुआ था. क्योंकि पिछली घटना अभी गायत्री भूली नहीं थीं. गोद के बच्चे को पलंग पर बैठा कर क्रोध से दांत किटकिटाते हुए उन्होंने बरतन धोए थे. चूल्हा जला कर खाना बनाने बैठ गई थीं.

इसी बीच प्रिया लौट आई थी. गायत्री ने सभी बच्चों को खाना परोस कर प्रिया से कहा था, ‘तुझे घंटे भर बाद खाना मिलेगा, यही सजा है तेरी.’

प्रिया का चेहरा फक पड़ गया था. मगर वह शांत रह कर थोड़ी देर प्रतीक्षा करती रही थी. उधर गायत्री अपने निर्णय पर अटल रहते हुए 1 घंटे बाद प्रिया को बुलाने पहुंचीं तो उस ने देखा कि वह दरी पर लुढ़की हुई थी.

गायत्री ने उसे उठ कर रसोई में चलने को कहा तो प्रिया शांत स्वर में बोली थी, ‘मैं न खाऊंगी, अम्मां, मुझे भूख नहीं है.’

गायत्री ने बेटी को प्यार से घुड़का था, ‘चल, चल खा और सो जा.’

प्रिया ने एक कौर भी न तोड़ा. गायत्री के पैरों तले जमीन खिसक गई थी. इस के बाद उन्होंने बहुत मनाया, डांटा, झिड़का पर प्रिया ने खाने की ओर देखा भी नहीं था. थक कर गायत्री भी अपने बिस्तर पर जा बैठी थीं. उस रात खाना उन से भी न खाया गया था.

दूसरे दिन प्रिया ने जब तक खाना नहीं खाया गायत्री का कलेजा धकधक करता रहा था.

उस दिन की घटना के बाद गायत्री ने फिर खाने से संबंधित कोई सजा प्रिया को नहीं दी थी. प्रिया कई बार देख चुकी थी कि गायत्री उस की बेहद चिंता करती थीं और उस के लिए पलकें बिछाए रहती थीं. फिर भी वह मां से अड़ जाती थी, उस की कोई बात नहीं मानती थी. इतना ही नहीं कई बार तो वह भाईबहन के युद्ध में अपनी मां गायत्री पर ताना कसने से भी बाज नहीं आती, ‘हां…हां…अम्मां, तुम भैया की ओर से क्यों न बोलोगी. आखिर पूरी उम्र जो उन्हीं के साथ तुम्हें रहना है.’

गायत्री ने कई घरों के ऐसे ही किस्से सुन रखे थे कि मांबेटियों में इस बात पर तनातनी रहती है कि मां सदा बेटों का पक्ष लेती हैं. वह इस बात से अपनी बेटियों को बचाए रखना चाहती थीं पर प्रिया को मां की हर बात में जैसे पक्षपात की बू आती थी.

ऐसे ही तानों और लड़ाइयों के बीच प्रिया जवानी में कदम रखते ही बदल गई थी. अब वह मां का हित चाहने वाली सब से प्यारी सहेली हो गई थी. जिस बात से मां को ठेस लग सकती हो, प्रिया उसे छेड़ती भी नहीं थी. मां को परेशान देख झट उन के काम में हाथ बंटाने के लिए आ जाती थी. मां के बदन में दर्द होता तो उपचार करती. यहां तक कि कोई छोटी बहन मां से अकड़ती, ऐंठती तो वही प्रिया उसे समझाती कि ऐसा न करो.

बेटों के व्यवहार से मां गायत्री परेशान होतीं तो प्रिया उन की हिम्मत बढ़ाती. गायत्री उस के इस नए रूप को देख चकित हो उठी थीं और उन्हें लगने लगा था कि औरत की दुनिया में उस की सब से पक्की सहेली उस की बेटी ही होती है.

यही सब सोचतेविचारते जब गायत्री की नींद टूटी तो सूरज का तीखा प्रकाश खिड़की से हो कर उन के बिछौने पर पड़ रहा था. रात की बातें दिमाग से हट गई थीं. अब उन्हें बड़ा हलका महसूस हो रहा था. जल्दी ही वह खाने की तैयारी में जुट गईं.

आटा गूंधते हुए उन्होंने एक बार खिड़की से उचक कर प्रिया के कमरे में देखा तो उन के होंठों पर हंसी आ गई. प्रिया रानी के सिरहाने बैठी उस का माथा सहला रही थी. गायत्री को लगा वह प्रिया नहीं गायत्री है और रानी, रानी नहीं प्रिया है. कभी ऐसे ही तो ममता और उलझन के दिन उन्होंने भी काटे हैं.

गायत्री ने चाहा एक बार आवाज दे कर रानी को उठा ले फिर कुछ सोच कर वह कड़ाही में मठरियां तलने लगीं. उन्हें लगा, प्रिया उठ कर अब बाहर आ रही है. लगता है रानी भी उठ गई है क्योंकि उस की छलांग लगाने की आवाज उन के कानों से टकराई थी.

अचानक प्रिया के चीखने की आवाज आई, ‘‘मैं देख रही हूं तेरी कारस्तानी. तुझे कूट कर नहीं धर दिया तो कहना.’’

कितना कसैला था प्रिया का वाक्य. अभी थोड़ी देर पहले की ममता से कितना भिन्न पर गायत्री को इस वाक्य से घबराहट नहीं हुई. उन्होंने देखा रानी, प्रिया के हाथों मंजन लेने से बच रही है. एकाएक प्रिया ने गायत्री की ओर देखा तो थोड़ा झेंप गई.

‘‘देखती हो अम्मां,’’ प्रिया चिड़चिड़ा कर बोली, ‘‘कैसे लक्षण हैं इस के? कल थोड़ा सा डांट क्या दिया कि कंधे पर हाथ नहीं धरने दे रही है. रात मेरे साथ सोई भी नहीं. मुझ से ही नहीं बोलती है मेरी लड़की. तुम्हीं बोलो, क्या पैरों में गिर कर माफी मांगूं तभी बोलेगी यह,’’ कह कर प्रिया मुंह में आंचल दे कर फूटफूट कर रो पड़ी.

ऐंठी, तनी रानी का सारा बचपन उड़ गया. वह थोड़ा सहम कर प्रिया के हाथ से मंजनब्रश ले कर मुंह धोने चल दी.

गायत्री ने जा कर प्रिया के कंधे पर हाथ रखा और झिड़का, ‘‘यह क्या बचपना कर रही है. रानी आखिर है तो तेरी ही बच्ची.’’

‘‘हां, मेरी बच्ची है पर जाने किस जन्म का बैर निकालने के लिए मेरी कोख से पैदा हुई है,’’ प्रिया ने रोतेसुबकते कहा, ‘‘यह जैसेजैसे समझदार होती जा रही है, इस के रंगढंग बदलते जा रहे हैं.’’

‘‘तो चिंता क्यों करती है?’’ गायत्री ने फुसफुसा कर बेहद ममता से कहा, ‘‘थोड़ा धीरज से काम ले, आज की सूखे डंडे सी तनी यह लड़की कल कच्चे बांस सी नरम, कोमल हो जाएगी. कभी इस उम्र में तू ने भी यह सब किया था और मैं भी तेरी तरह रोती रहती थी पर देख, आज तू मेरे सुखदुख की सब से पक्की सहेली है. थोड़ा धैर्य रख प्रिया, रानी भी तेरी सहेली बनेगी एक दिन.’’

‘‘क्या?’’ प्रिया की आंखें फट गईं.

‘‘क्यों अम्मां, मैं ने भी कभी आप का इसी तरह दिल दुखाया था? कभी मैं भी ऐसे ही थी सच? ओह, कैसा लगता होगा तब अम्मां तुम्हें?’’

बेटी की आंखों में पश्चात्ताप के आंसू देख कर गायत्री की ममता छलक उठी और उन्होंने बेटी के आंसुओं को आंचल में समेट कर उसे गले से लगा लिया.

Amitabh Bachchan की फिल्म डौन में जब मनोज कुमार की वजह से खई के पान बनारस वाला… गाना जोड़ा गया…..

Amitabh Bachchan  : बौलीवुड के शहंशाह कहलाने वाले अमिताभ बच्चन शुरू से ही डायरेक्टर के एक्टर रहे हैं. चाहे जो हो जाए अगर डायरेक्ट उनसे कुछ भी करने के लिए कहता है तो वह इनकार नहीं करते , जैसे कि बंटी और बबली फिल्म में जब अमिताभ बच्चन को ऐश्वर्या राय और अभिषेक बच्चन के साथ कजरारे गाने पर डांस करने के लिए कहा गया तो उन्होंने पहले कजरारे गाने पर डांस करने में हिचकिचाहट दिखाई लेकिन जब डायरेक्टर ने कहां कि कजरारे गाना फिल्म में अच्छा लगेगा, तो अमिताभ बच्चन डांस करने के लिए तैयार हो गए. और बंटी और बबली का कजरारे गाना सुपरहिट हुआ.

इसी तरह एक बार फिल्म डौन के लिए अमिताभ बच्चन को एक्टर मनोज कुमार के कहने पर खई के पान बनारस वाला ….गाने पर जब डांस करना पड़ा तो पान खाने और डांस करने के चलते हालत खराब होने के बावजूद अमिताभ बच्चन ने सिर्फ मनोज कुमार और डायरेक्टर के कहने पर फिल्म डौन में खई के पान बनारस वाला गाने पर डांस किया.

इस बात का खास जिक्र करते हुए अमिताभ बच्चन ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि फिल्म डौन में पहले खई के पान बनारस वाला गाना नहीं था, इस फिल्म के डायरेक्टर चंद्रा बारोट जो मनोज कुमार के असिस्टेंट डायरेक्टर थे और डॉन फिल्म का डायरेक्शन वह पहली बार कर रहे थे, वह हमेशा मनोज कुमार से सलाह मशवरा करते रहते थे , इसी के चलते जब चंद्रा बारोट जी ने मनोज कुमार को डौन फिल्म दिखाई तो मनोज जी ने बोला इंटरवल के बाद फिल्म एक गाना होना चाहिए काफी साल मशवरा के बाद जब नकली डौन को पान खाने की आदत के बारे में बात हुई, तो मनोज जी ने कहा पान खाने पर ही गाना बना दो, उसके बाद खई के पान बनारस वाला गाना बना, अमित जी के अनुसार इस गाने की शूटिंग तीन-चार दिन चली, उसे दौरान मुझे कत्था,चूना, पान, बार-बार खाना पड़ा क्योंकि वह गाने में दिखाया गया था  और इस गाने के लिए तीन चार दिन डांस भी करना पड़ा जो मुझे उस वक्त बिलकुल नहीं आता था .

ये सब करने में मेरी हालत खराब हो गई थी . लेकिन बाद में फिल्म डौन भी अच्छी चली और खई के पान बनारस वाला गाना भी हिट हो गया तो थोड़ी राहत और तसल्ली हुई.

Icecream : घर पर ऐसे बनाएं हर फ्लैवर की आइसक्रीम

Icecream  : गरमी के मौसम में जब जब चारों तरफ गरमी और लू का बोलबाला रहता है, ऐसे में हर समय मन कुछ ठंडाठंडा खाने को करता है. इसीलिए गरमियों के मौसम में आइस्क्रीम पार्लर पर बहुत भीड़भाड़ रहती है. पर हर बार पार्लर से आइसक्रीम खाना न तो बजट फ्रैंडली होता है और न ही सेहतमंद, इसलिए यदि थोड़े से प्रयास से घर पर ही आइसक्रीम बना ली जाए तो पैसों की बचत के साथ साथ हैल्दी आइसक्रीम भी खायी जा सकती है.

आज हम आप को एक ऐसा ही प्रीमिक्स बनाना बता रहे हैं जिसे एक बार बना लेने के बाद आप किसी भी फ्लैवर की आइसक्रीम घर पर बड़ी ही आसानी से बना सकती हैं.

तो आइए, जानते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है :

कितने लोगों के लिए : 10
बनने में लगाने वाला समय : 20 मिनट
मील टाइप : वेज

सामग्री

बादाम : 1 कप
काजू : 1 कप
शक्कर : 1 कप
मिल्क पाउडर : 1 कप
कौर्नफ्लोर : ¾ कप

विधि

सभी सामग्री को एकसाथ मिक्सी में ग्राइंड कर लें. जब यह फाइन पाउडर हो जाए तो एक एअरटाइट कांच के जार में भर कर रख लें. यह एक ऐसा प्रीमिक्स है जिस से आप एक बेसिक आइसक्रीम तैयार कर सकेंगी और फिर इस में मनचाहा फ्लैवर और एसेंस डाल कर कोई भी आइसक्रीम बना सकती हैं.

ऐसे बनाएं बेसिक आइसक्रीम

1/2 लीटर फुल क्रीम दूध को गैस पर गरम करें. जब उबाल आ जाए तो गैस धीमी कर दें. 1/2 कप दूध को अलग निकाल कर इस में 2 बड़े चम्मच प्रीमिक्स पाउडर मिलाएं. अब इसे उबलते दूध में डाल कर अच्छी तरह चलाएं. जब 2-3 उबाल आ जाए तो गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर फ्रीजर में जमा दें. जब हलका सा जम जाए तो निकाल कर मिक्सी के ग्राइंडिंग जार में डालें. 1/2 कप चिल्ड क्रीम मिला कर चलाएं. अब इस में मनचाहा फूड कलर और एसेंस मिला कर आइसक्रीम जमाएं.

रखें इन बातों का ध्यान :

● लिक्विड फूड कलर का प्रयोग करें क्योंकि यह आइसक्रीम में अच्छी तरह मिक्स हो जाता है. इस के अतिरिक्त 2-3 बूंद से अधिक फूड कलर और एसेंस न डालें क्योंकि अधिक रंग और एसेंस आइसक्रीम के स्वाद को खराब कर देगा.

● यदि आप बटरस्कौच आइसक्रीम बनाना चाहती हैं तो ½ कप चीनी को एक पैन में धीमी आंच पर लगातार पकाएं। जब चीनी का रंग ब्राउन हो जाए तो में 8-10 टूटे हुए काजू मिलाएं और इसे एक थाली अथवा प्लेट में पतलापतला फैला दें. जब ठंडा हो जाए तो एकदम बारीकबारीक टुकड़ों में दरदरा कूट लें. अब इन्हें रंग, बटरस्कौच एसेंस के साथ ही आइसक्रीम में मिक्स कर दें.

● किसी फल की आइसक्रीम बनाने के लिए आप फल के गूदे को गैस पर गाढ़ा कर के आइसक्रीम को फेंटते समय मिक्स करें.

● चौकलेट आइसक्रीम बनाने के लिए आइसक्रीम प्रीमिक्स में पहले 1 टेबलस्पून चौकलेट पाउडर मिलाएं फिर इसे उबलते दूध में डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. ठंडा होने पर फ्रिज में जमाएं. जब हलका सा जम जाए तो निकाल कर मिक्सी में क्रीम मिलाकर फेंटें, फिर से जमाएं. 6-7 घंटे बाद निकाल कर सर्व करें.

● फलों के चंक्स, ड्राईफ्रूट अथवा चौकलेट चिप्स को सब से अंत में मिक्स करें ताकि उन का टैक्सचर फेंटते समय खराब न हो.

● आइसक्रीम को फ्रिज के उच्चतम तापमान पर ढंक कर ही जमाएं.

● यदि आप ने आइसक्रीम मोल्ड्स में आइसक्रीम जमायी है तो इन्हें पहले सादा पानी में डालें फिर निकालें। इस से आइसक्रीम बहुत आसानी से मोल्ड से बाहर आ जाएगी.

● आइसक्रीम को एकदम साफ और सूखे कंटेनर अथवा मोल्ड्स में जमाएं ताकि किसी भी प्रकार की दुर्गंध न आने पाए.

पब्लिक हैल्थ और साइंटिफिक रिसर्च के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान दिया : सौम्या स्वामीनाथन

Soumya Swaminathan : सौम्या स्वामीनाथन हाल ही में डब्ल्यूएचओ की मुख्य वैज्ञानिक थीं. भारत लौटने पर उन्होंने फरवरी,2023 में ‘एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन’ (एमएसएसआरएफ) के अध्यक्ष का पद संभाला. उन्होंने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक के रूप में भी कार्य किया है.

सौम्या स्वामीनाथन भारत की प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञा और टीबी तथा एचआईवी पर विश्व स्तर पर मान्यताप्राप्त शोधकर्ता भी हैं. वे क्लीनिकल केयर और रिसर्च में अपने साथ 40 वर्षों का अनुभव ले कर आई हैं और उन्होंने अपने पूरे कैरियर में अनुसंधान को प्रभावशाली कार्यक्रमों में बदलने के लिए काम किया है.

डा. स्वामीनाथन 2015 से 2017 तक भारत सरकार में स्वास्थ्य अनुसंधान सचिव और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की महानिदेशक थीं. 2009 से 2011 तक उन्होंने जिनेवा में यूनिसेफ/यूएनडीपी/ विश्व बैंक/डब्ल्यूएचओ विशेष कार्यक्रम के कोऔर्डिनेटर के रूप में भी काम किया.

शानदार कैरियर

सौम्या ने भारत, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी ऐकैडमिक ट्रेनिंग प्राप्त की. वे यू.एस. ‘नैशनल ऐकैडमी औफ मैडिसिन,’ यू.के. की ‘ऐकैडमी औफ मैडिकल साइंसेज’ और भारत में सभी विज्ञान ऐकैडमियों की फेलो हैं. उन्हें कई मानद डाक्टरेट की उपाधियां मिली हैं, जिन में ‘कैरोलिंस्का इंस्टिट्यूट,’ ईपीएफएल, लाजेन और लंदन स्कूल औफ ट्रौपिकल मैडिसिन ऐंड हाइजीन शामिल हैं. वे कई राष्ट्रीय और वैश्विक सलाहकार निकायों और समितियों में काम करती हैं. वे स्वीडन में कैरोलिंस्का विश्वविद्यालय और अमेरिका के बोस्टन में टफ्ट्स विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफैसर हैं.

सौम्या स्वामीनाथन एलायंस बायोवर्सिटी, कोलिशन फौर ऐपिडैमिक प्रिपेयर्डनैस इनोवेशन (सीईपीआई), फाइंड, पौपुलेशन फाउंडेशन औफ इंडिया की बोर्ड सदस्या हैं. वे तमिलनाडु जलवायु परिवर्तन मिशन की गवर्निंग काउंसिल की सदस्य और आईसीएमआर के वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड की अध्यक्षा भी हैं.

डब्ल्यूएचओ के उध्याटन मुख्य वैज्ञानिक के रूप में डा. स्वामीनाथन ने रिसर्च, क्वालिटी इंश्योरैंस औफ क्राइटेरिया ऐंड स्टैंडर्ड्स और डिजिटल हैल्थ पर ध्यान केंद्रित करते हुए विज्ञान प्रभाग का निर्माण किया.

नेतृत्व व योगदान

सौम्या ने महामारी के दौरान डब्ल्यूएचओ में वैज्ञानिक प्रयासों के समन्वय के साथसाथ निम्न और मध्य आय वाले देशों में समान वैक्सीन वितरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए कोवैक्स की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रोफैसर और डा. सौम्या स्वामीनाथन को राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के लिए प्रधान सलाहकार के रूप में नियुक्त किया.

उन का वर्तमान ध्यान जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य प्रभावों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों पर पड़ने वाले प्रभावों को दूर करने तथा भारत और क्षेत्रीय स्तर पर पोषण सुरक्षा को मजबूत करने के लिए खाद्य प्रणाली में परिवर्तन लाने पर है. पब्लिक हैल्थ और साइंटिफिक रिसर्च के क्षेत्रों में उन के नेतृत्व और योगदान को देखते हुए उन्हें गृहशोभा इंस्पायर्ड अवार्ड के तहत नेशन बिल्डिंग आइकोन अवार्ड से नवाजा गया.

महिलाओं के दिमाग का लोहा दुनिया ऐसे ही नहीं मानती, सौम्या स्वामीनाथन जैसी महिलाओं के ऐसे बड़े कामों की वजह से यह संभव हो पाया है. साइंस, टैक्नोलौजी, सोशल या फिर किसी भी फील्ड का नाम ले लें महिलाएं पुरुषों के बराबर ही नहीं बल्कि उन से आगे निकल चुकी हैं. हैल्थ का क्षेत्र हो या फिर साइंटिफिक रिसर्च की बात हो सौम्या ने बिना थके बिना रूके जो काम अभी तक किया है उसे दोगुनी ऊर्जा से आगे ले जाने को तैयार हैं. आधी आबादी को सौम्या से प्रेरणा ले कर आगे आना चाहिए और अपने योगदानों से खुद की नई पहचान बनानी चाहिए.

शारीरिक क्षमता को अपनी मजबूरी नहीं बनाया : शीतल देवी

Sheetal Devi : कौन कहता है आसमान में सूराख नहीं होता, एक पत्थर तबीयत से उछालो यारो’ इस कहावत को शीतल देवी ने महज 17 साल की उम्र में चरितार्थ किया जब उन्होंने पैरिस पैरालंपिक 2024 में मिक्स्ड कंपाउंड आर्चरी में ब्रौंज मैडल जीता. उन्हें देख कर कई युवतियों ने प्रेरणा ली और माना कि मजबूती शरीर में नहीं बल्कि हौसलो में होनी चाहिए.

कई लड़कियां स्पोर्ट्स के प्रति सजग हुईं और आर्चरी को उन्होंने अपना स्पोर्ट चुना. यही कारण भी था कि 20 मार्च को दिल्ली के ट्रावनकोर हाउस में गृहशोभा इंस्पायर आवर्ड में शीतल देवी को अवार्ड से सम्मानित किया गया.

यह दिलचस्प है कि पैरालंपिक में ब्रौंज मैडल जीतने वाली वे भारत की सब से कम उम्र की पैरालंपिक मैडलिस्ट बन गईं और पैरालंपिक के इतिहास की दूसरी आर्मलैस आर्चर.

यह कोई आम बात नहीं है. शीतल जम्मूकश्मीर के छोटे से गांव लोइधर से आती हैं. मगर असल ट्रैजेडी यह कि उन का जन्म फोकोमेलिया जैसी गंभीर कंडीशन के साथ हुआ. यह एक ऐसी कंडीशन मानी जाती है जिस में हाथों या पैरों का डैवलपमैंट रुक जाता है और हुआ भी यही कि जैसेजैसे शीतल बड़ी हुई उन की आर्म्स डैवलप नहीं हो पाईं.

हौंसलों को ताकत बनाया

मगर ऊंचाइयों को छूने वाले कहीं रुके हैं भला. शीतल ने ऐसी ऊंचाई छुई जो इतिहास बन गया. साथ ही यह बताया कि उन्होंने अपनी शारीरक अक्षमता को अपनी मजबूरी नहीं बनाया बल्कि अपने हौसलों को अपनी ताकत बनाया.

यही कारण भी था कि 2023 में वर्ल्ड आर्चरी पैराचैंपियनशिप में उन्होंने इंटरनैशनली डेब्यू करते हुए सिल्वर मैडल जीता और वे इस पदक को जीतने वाली इस चैंपियनशिप में पहली महिला आर्मलैस आर्चर बनीं. उन की अचीव करने की यह जर्नी यहीं नहीं रुकी. 2023 में ही उन्होंने एशियाई पैरागेम्स में गोल्ड मैडल जीता. हालांकि यह सफर इतना आसान नहीं था. बड़े मंचों में पहुंच कर कारनामे को अंजाम देने के पीछे कई संघर्ष छिपे थे.

जब शीतल छोटी थीं तब उन का पसंदीदा खेल पेड़ों पर चढ़ना था. यह वह ऐक्टिविटी थी जिस ने उन की अपर बौडी को मजबूत बनाया.

पैरा आर्चरी में शीतल देवी के कैरियर को आगे बढ़ाने में इंडियन आर्मी ने भी अहम भूमिका निभाई. 2021 में जम्मूकश्मीर के किश्तवाड़ में इंडियन आर्मी ने एक यूथ ऐक्टिविटी प्रोग्राम चलाया जहां शीतल देवी की स्किल्स का पता चला और वे नजरों में आईं.

शीतल के कोच ने शुरू में उन्हें प्रोस्थैटिक्स के साथ प्रैक्टिस करने का प्लान बनाया लेकिन यह कारगर नहीं हुआ. थोड़ीबहुत रिसर्च की तो पैरा प्लेयर मैट स्टुट्जमैन के बारे में पता चला जो एक आर्मलैस आर्चर थे, जिन्होंने लंदन 2012 पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के लिए अपने पैरों का इस्तेमाल किया था.

टर्निंग पौइंट

यह शीतल के लिए टर्निंग पौइंट था क्योंकि उन्होंने उसी विधा को अपनाया जो मैट स्टुट्जमैन ने अपनाया. इस में पैरों और पंजों से आर्चरी को होल्ड किया जाता है फिर कमान को अपने कंधे से खींचा जाता है.

शीतल ने पूर्व आर्चर प्लेयर कुलदीप वेदवान की अकादमी जौइन की और अपनी प्रैक्टिस की. इस में कोई दोराए नहीं कि शीतल यंग लड़कियों के लिए किसी इंस्पिरेशन से कम नहीं. जिन हालात से वे आईं और जिन तकलीफों को उन्होंने सहा उस से सीखने की जरूरत है कि हालात चाहे जो हों अगर हिम्मत है तो बहुत कुछ पाया जा सकता है.

Boyfriend : मै बौयफ्रेंड बनाना चाहती हूं, इसके लिए क्या करूं?

Boyfriend :  अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मेरी उम्र 19 वर्ष है और मैं घर पर रह कर ही स्कूल के बाद की पढ़ाई कर रही हूं. मैं दिनभर घर पर ही रहती हूं और यही वजह है कि मैं जब भी अपनी बाकी सभी दोस्तों को लड़कों के साथ तसवीरें पोस्ट करती देखती हूं तो मु झे बहुत बुरा लगता है. मैं यों घर में पड़ीपड़ी थक गई हूं. मैं भी चाहती हूं कि मेरा भी कोई बौयफ्रैंड हो जिसके साथ मैं घूमफिर सकूं. पर असल परेशानी यह है कि जब मैं अपनी इच्छाएं अपनी सहेलियों को बताती हूं तो वे मु झे इस नजर से देखती हैं जैसे मैं बुरी हूं और अजीब हूं या मु झ में लस्ट भरी हुई है. क्या मेरे बारे में उन की यह सोच सही है?

जवाब-

इस उम्र में युवाओं के मन में इस तरह के खयाल आना आम बात है. आप यदि कालेज जातीं तो वहां भी देखतीं कि सभी रिलेशनशिप में आजा रहे हैं और इस में कोई बुराई भी नहीं है. आप की सहेलियों का आप को यह कहना कि आप में लस्ट है या आप अजीब हैं, गलत है. आप उन सभी सामान्य लड़कियों की ही तरह हैं जो इस उम्र में बौयफ्रैंड की इच्छा रखती हैं. आप को बस जरूरत है घर से बाहर निकलने की, लोगों से मिलने की, दोस्त बनाने की. इस के लिए आप चाहें तो अपने कोर्स या हौबी के एकौर्डिंग कोई क्लास जौइन कर सकती हैं. घर में बैठ कर पढ़ने के पीछे कोई कारण तो होगा ही.

यदि, पैसों को ले कर समस्या हो तो आप नौकरी करने के बारे में भी सोच सकती हैं. आप इतना परेशान इसलिए हैं क्योंकि आप का दिमाग हमेशा फोन में लगा रहता है जहां आप अन्य लोगों की ऐक्टिविटीज से प्रभावित होती हैं. फोन में समय बरबाद करने के बजाय अपने आसपास की चीजों पर ध्यान दीजिए, किताब पढि़ए, कोई अच्छी वैब सीरीज देखिए. रही बात बौयफ्रैंड की, तो जब आप बाहर जाएंगी, दोस्त बनाएंगी तो अपनेआप ही आप की लवलाइफ भी ट्रैकपर आ जाएगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz . सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Hindi Fiction Stories : तुम्हारे अपनों के लिए – क्या श्रेया और सारंग के रिश्तों का तानाबाना उलझा रहा

Hindi Fiction Stories : दिल्ली से भोपाल तक का सफर  बहुत लंबा नहीं है, लेकिन भैया से मिलने की चाह में श्रेया को वह रात काफी लंबी लगी थी. ज्यादा खुशी और दुख दोनों में ही आंखों से नींद उड़ जाती है. बस, वही हाल दिल्ली से भोपाल आते हुए श्रेया का होता है. नींद उस की आंखों से कोसों दूर भाग जाती है. रातभर अपनी बर्थ पर करवटें बदलते हुए वह हर स्टेशन पर झांक कर देखती है.

‘भोपाल आ तो नहीं गया?’

‘अभी कितनी दूर है?’

जैसेतैसे सफर खत्म हुआ और टे्रन भोपाल पहुंची. खिड़की से ही उसे भैया दिख गए. वे फोन पर बातें कर रहे थे. ट्रेन रुकते ही भैया लपक कर डब्बे में उस की बर्थ ढूंढ़ते हुए आ गए. श्रेया बड़े भैया से लिपट गई. उस की आंखें भीग गईं. उस के बड़े भाई श्रेयस की आंखें भी छोटी बहन को देखते ही छलक गईं.

दोनों स्टेशन से बाहर निकले और कार में बैठ कर घर की ओर चल दिए. श्रेया भाई से बातें करने के साथ ही एकएक सड़क और आसपास की हर एक घरदुकान को बड़े कुतूहल से देख रही थी. वह अकसर ही भाई के यहां आती रहती थी. जहां बचपन गुजरा हो उस जगह का मोह सब चीजों से ऊपर ही होता है. जल्दी ही कार उन के पुश्तैनी मकान के आगे रुकी. श्रेया ने नजरभर घर को देखा और भैया के साथ अंदर चली गई.

रसोई से श्रेया के पसंदीदा व्यंजनों की खुशबू आ रही थी. कार की आवाज सुनते ही उस की भाभी स्नेहा लपक कर बाहर आई.

‘‘भाभी, कैसी हो?’’ श्रेया भाभी स्नेह के गले में बांहें डाल कर झूल गई.

‘‘इतनी बड़ी हो गई पर अभी तक बचपना नहीं गया,’’ स्नेहा ने प्यार से उस का गाल थपथपाते हुए कहा.

‘‘मैं कितनी भी बड़ी हो जाऊं मगर तुम्हारी तो बेटी ही रहूंगी न भाभी,’’ श्रेया ने लाड़ से कहा.

‘‘वह तो है. जा अपने कमरे में जा कर फ्रैश हो जा, मैं नाश्ता लगाती हूं,’’ स्नेहा बोली. श्रेया अपने कमरे में चली आई.

2 साल हो गए उस की शादी को लेकिन उस का कमरा आज भी बिलकुल वैसा का वैसा ही है. समय पर कमरे की सफाई हो जाती है. शादी के पहले की उस की जो भी चीजें, किताबें, सामान था सब ज्यों का त्यों करीने से रखा था. श्रेया का मन अपनी भाभी के लिए आदर से भर उठा. भैया उस से पूरे 10 साल बड़े थे. वह 12वीं में ही थी कि मां चल बसी. जल्दी ही पिताजी भी चले गए. भैयाभाभी ने ही उसे मांबाप का प्यार दिया और शादी की.

श्रेया बाहर आई तो टेबल पर नाश्ता लग चुका था. सारी चीजें उस की पसंद की बनी थीं, सूजी का हलवा, पनीर के पकौड़े व फ्रूट क्रीम नाश्ता करने के बाद तीनों बैठ कर बातें करने लगे.

दोपहर को श्रेया के दोनों भतीजे 7 साल का अंकुर और 4 साल का अंशु स्कूल से लौटे, तो बूआ को देख कर वे खुशी से उछल गए. श्रेया दोनों को साथ ले कर अपने कमरे में चली गई और उन के लिए लाई चीजें उन्हें दिखाने लगी.

रात को दोनों भतीजे श्रेया के साथ ही सोते थे. स्नेहा जब अपने काम निबटा कर कमरे में आई तो उस ने देखा कि श्रेयस तकिये से पीठ टिकाए बैठे हैं.

‘‘क्या बात है, किस चिंता में डूबे हुए हैं इतना?’’ स्नेहा ने पास बैठते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस, श्रेया के लिए ही परेशान हूं. उस का बारबार इस तरह यहां चले आना, ऐसा बचपना ठीक नहीं है,’’ श्रेयस ने चिंता जाहिर की.

‘‘अभी छोटी है, समझ जाएगी,’’ स्नेहा ने दिलासा दिया.

‘‘स्नेहा, अब इतनी छोटी भी नहीं रही वह. सारंग भी आखिर कब तक सहन करेगा. तुम समझाओ न उसे. तुम्हारे तो बहुत नजदीक है वह.’’

‘‘हां, नजदीक तो है लेकिन उस के साथ जो समस्या है उस विषय पर मेरा उस के साथ बात करना ठीक नहीं रहेगा. कुछ रिश्ते बहुत नाजुक डोर से बंधे होते हैं. इस बारे में तो आप ही उस से बात करना,’’ स्नेहा ने श्रेयस को समझाते हुए कहा.

‘‘शायद तुम ठीक कहती हो, मैं ही मौका देख कर बात करता हूं उस से,’’ श्रेयस ने कहा.

आंख बंद कर के वह पलंग पर लेट गया, लेकिन नींद तो आंखों से कोसों दूर थी. 2 साल हो गए श्रेया और सारंग की शादी को. सारंग बहुत अच्छा और समझदार लड़का है. श्रेया को प्यार भी बहुत करता है. दोनों ही एकदूसरे के साथ बहुत खुश थे. परंतु अपने वैवाहिक जीवन में श्रेया ने खुद ही समस्या खड़ी कर ली.

सारंग दिल्ली में एक मल्टीनैशनल कंपनी में उच्चपद पर आसीन है. उस के मातापिता उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर में रहते हैं. सारंग पढ़ाई में बहुत तेज था. वह दिल्ली में रह कर पढ़ा और वहीं जौब भी लग गई. भले ही उस का उठनाबैठना दिल्ली के उच्चवर्ग के साथ है, मगर वह खुद जमीन से जुड़ा हुआ है.

श्रेया अपने जीवन में बस, सारंग का साथ चाहती है. उसे सारंग की फैमिली, मातापिता, बहनजीजा सब बैकवर्ड लगते हैं. वह न तो उन लोगों का अपने घर आनाजाना पसंद करती है और न ही सारंग का वहां जाना उसे पसंद है. दीवाली पर भी श्रेया खुद तो अपनी ससुराल जाती नहीं है और सारंग को भी जाने नहीं देती. हर त्योहार वह चाहती है कि सारंग भोपाल आ कर मनाए. राखी व भाईदूज पर भी सारंग सालभर से घर नहीं जा पाया है. इस वजह से वह अंदर ही अंदर घुटता रहता है.

अब तो उस के घर वालों को भी श्रेया का स्वभाव समझ आ गया है इसलिए वे भी खुद उस से कटेकटे रहने लगे हैं. लेकिन सारंग बेचारा तो 2 पाटों के बीच पिस रहा है. वह श्रेया से भी बहुत प्यार करता है और अपने घर वालों से भी. उस के घर वाले इतने भले लोग हैं कि उन्होंने सारंग से यही कहा कि उन की चिंता वह न करे, बस, श्रेया को खुश रखे.

लेकिन श्रेया है कि खुश नहीं है. तब भी उसे यही लगता है कि सारंग उस से ज्यादा अपने घर वालों की परवा करता है. श्रेया से तो उसे प्यार है ही नहीं. सारंग के प्रति श्रेया यही सोच पाले बैठी है. मगर उसे यह समझ नहीं आता कि घर वालों से अलग रह कर सारंग गुमसुम सा क्यों न रहेगा. बस, उसे यही शिकायत है कि वह तो सारंग के लिए सबकुछ करती है, तब भी सारंग खुश नहीं है और वह उस की जरा भी कद्र नहीं करता.

आजकल श्रेया इसी दुख में जबतब भोपाल आ जाती है. श्रेयस को बहन का घर आना बुरा नहीं लगता, लेकिन वह अपने घर को उपेक्षित कर के और सारंग के प्रति मन में गांठ बांध कर आती है, वह ठीक नहीं है.

सारंग के आगे श्रेयस खुद को अपराधी महसूस करता है, क्योंकि उस की बहन की वजह से वह अपने मांबाप से दूर हो रहा है.

दूसरे दिन औफिस से आ कर जब  श्रेयस चाय पी चुका तो स्नेहा ने  उसे इशारा किया कि दोनों बच्चों को पार्क में ले जाने के बहाने एकांत में बैठ कर वह श्रेया से बात करे. श्रेयस दोनों बच्चों और श्रेया के साथ पार्क में चला आया. दोनों बच्चे आते ही दूसरे बच्चों के साथ खेलने और झूला झूलने में मगन हो गए. श्रेयस और श्रेया पास ही एक बैंच पर बैठ कर दोनों को देखने लगे.

‘‘सारंग से कुछ बात हुई? कैसा है वह?’’ श्रेयस ने बात शुरू की.

‘‘नहीं, कोई बात नहीं, कोई फोन नहीं. उसे मेरी फिक्र होती तो मुझे बारबार यहां भाग कर आने का मन क्यों होता.’’ श्रेया उदास हो गई.

‘‘ये भी तुम्हारा ही घर है. जब चाहो, जितनी भी बार चाहो, आ जाओ. लेकिन सारंग को तुम्हारी फिक्र नहीं है, ऐसी गलतफहमी मन में मत पालो, श्रेया.’’

‘‘तो आप ही बताइए, मुझे यहां आए 2 दिन हो गए हैं, एक बार भी उस का फोन नहीं आया. उस ने यह तक नहीं पूछा कि मैं पहुंच गई या नहीं. अब मैं और क्या सोचूं.’’ श्रेया बोली.

‘‘तो क्या तुम ने भी उसे मैसेज डाला या फोन किया कि तुम पहुंच गई. तुम भी तो कर सकती थी. और यह मत सोचो कि उसे तुम्हारी फिक्र नहीं है. कल तुम्हारी ट्रेन पहुंचने से पहले से ही उस के फोन आ रहे थे कि मैं स्टेशन पहुंचा या नहीं, तुम ठीक से पहुंच गई कि नहीं,’’ श्रेयस ने बताया, ‘‘तुम ही उसे गलत समझ रही हो.’’

‘‘मैं गलत नहीं समझ रही भैया. आप भाभी से कितने अटैच्ड हो, उन का हर कहा मानते हो. मगर सारंग को तो वह मुझ से लगाव है नहीं,’’ श्रेया की आवाज में उदासी थी.

‘‘रिश्तों में प्यार एकतरफा नहीं होता श्रेया, पाने से पहले हमें खुद देना पड़ता है. तुम सिर्फ लेना चाह रही हो, देना नहीं.’’

‘‘भैया, मैं क्या कमी करती हूं सारंग के लिए, उस के कपड़े धोना, उस का पसंदीदा खाना बनाना, उस का पूरा ध्यान रखती हूं और अब इस से ज्यादा क्या करूं?’’ श्रेया ने तुनक कर कहा.

‘‘शादी के बाद लड़की सिर्फ पति के साथ ही नहीं जुड़ती है, बल्कि उस के पूरे परिवार के साथ भी जुड़ती है. तुम्हारी समस्या यह है कि तुम परिवार के नाम पर सिर्फ और सिर्फ सारंग को ही चाहती हो, उस के घर वालों को अपनाना नहीं चाहती. तुम ने उस बेचारे को अनाथ बना कर रख दिया है. उसे उस के अपनों से अलगथलग कर दिया है. फिर तुम उम्मीद करती हो कि वह तुम से दिल से अटैच्ड रहे? तब भी वह अभी तक तो तुम से बहुत प्यार करता है श्रेया, लेकिन अगर तुम्हारा ऐसा ही रवैया रहा तो जल्दी ही वह तुम से दूर हो जाएगा,’’ श्रेयस ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘भैया, मैं ने सारंग से शादी की है, उस के बैकवर्ड घर वालों के साथ नहीं,’’ श्रेया की आवाज में अहं की झलक थी.

‘‘ऐसी मतलबी सोच रख कर चलने से रिश्ते नहीं निभाए जाते श्रेया,’’ श्रेयस की आवाज में बहन की सोच पर गहरा अफसोस छलक रहा था, ‘‘जीवनसाथी के दिल को जीतने के रास्ते बहुत सी राहों से गुजरते हैं, उन में सब से महत्त्वपूर्ण उस के अपने हैं. तुम सारंग के मन पर तभी राज कर सकती हो, जब उस के अपनों के मन को अपने प्यार से जीत लोगी.’’

‘‘मुझे किसी का मन जीतने की जरूरत नहीं है,’’ श्रेया रूखे स्वर में बोली.

‘‘फिर तो तुम बहुत जल्दी ही सारंग को खो दोगी और ताउम्र उस के प्यार के लिए तरसती रहोगी,’’ श्रेयस सख्ती से बोला, ‘‘अच्छा श्रेया, जैसा व्यवहार तुम सारंग के घर वालों के साथ करती हो, वैसे ही अवहेलना स्नेहा तुम्हारी करने लगे तो तब तुम्हें कैसा लगेगा?’’

‘‘भैया…’’ श्रेया अवाक हो कर उस का मुंह देखने लगी.

‘‘मैं सच बताऊं, मैं स्नेहा से क्यों इतना अटैच्ड हूं, क्यों उस पर इतना भरोसा करता हूं? क्योंकि वह तुम पर और मेरे बाकी अपनों पर जान छिड़कती है. मुझ से भी ज्यादा तुम सब से वह प्यार करती है. तुम जब भी आने वाली होती हो, वह अलार्म लगा कर सोती है ताकि तुम्हें स्टेशन लेने जाने में मुझे देरी न हो जाए. तुम्हारा कमरा भी पिछले 2 वर्षों से उसी की जिद से वैसा का वैसा रखा गया है ताकि तुम्हें कभी यह न लगे कि यहां किसी भी तरह से हम लोगों में या परिस्थितियों में फर्क आ गया है. तुम जब भी आओ, तुम्हें वही माहौल और घर मिले. उस की सोच भी तुम्हारी तरह होती तो क्या आज तुम बारबार यहां आ पाती, क्या मैं ही उस से इतना प्यार कर पाता?

‘‘जितना प्यार मैं स्नेहा से करता हूं श्रेया, बिना मांगे, बिना कहे उस ने उस से कहीं अधिक मुझे और मेरे अपनों को दिया है. तुम्हें तो फिर भी कुछ न दे कर बहुतकुछ मिल रहा है अब तक. अफसोस यह है कि तुम सिर्फ स्नेहा का प्राप्य देख रही हो पर अपनी छोटी सोच के चलते तुम यह देखना भूल गई कि उस ने इस घर में पैर रखते ही हम सब को कितना अधिक दिया है.

‘‘सारी जिम्मेदारियां उस ने कितनी कुशलता से निभाई हैं. औरत पति से पूरा लगाव, पूरी तवज्जुह चाहती है तो उसे भी पति के अपनों को पूरी तवज्जुह और प्यार देना आना चाहिए. स्नेहा ने यह बात समझी, तभी वह सब को साथ ले कर सब का प्यार, सम्मान और साथ पा रही है. मगर तुम ने…’’ एक गहरी सांस ले कर श्रेयस चुप हो गया.

अंधेरा घिरने लगा था. दोनों बच्चों को ले कर वे घर आ गए. दूसरे दिन चाय की ट्रे ले कर श्रेयस और स्नेहा गैलरी में आए तो देखा  श्रेया फोन पर बात कर रही थी. ‘‘न, न, अम्मा, कोई बहाना नहीं चलेगा. इस बार की दीवाली आप सब हमारे साथ ही मनाएंगे, बस.’’ अम्मा आगे कुछ बोलती उस से पहले श्रेया ने अम्मा की बात काटते हुए कहा, ‘‘इस बार मैं भैयाभाभी को भी अपने पास दिल्ली बुला लूंगी तो एकसाथ सब की भाईदूज एक ही जगह हो जाएगी और हां, गुड्डी से कहिए, लहंगा व पायल न खरीदे, मैं यहां ले कर रखूंगी.

‘‘और अम्मा, आते समय मेरे लिए मावे वाली गुझिया और अनरसे जरूर बना कर लाइएगा. मुझे आप के हाथ के बने बहुत पसंद हैं. अच्छा अम्मा रखती हूं, बाबूजी को प्रणाम कहिएगा. गुड्डी स्कूल से आ जाए, फिर शाम को उस से बात करती हूं.’’

स्नेहा और श्रेयस ने संतोषभरी मुसकान के साथ एकदूसरे की ओर देखा और दोनों की आंखें भीग गईं. अब श्रेया को सारंग से कभी कोई शिकायत नहीं होगी क्योंकि वह उस के अपनों का महत्त्व जान कर उन की कद्र करना सीख गईर् थी.

Best Hindi Stories : इंसाफ की डगर पे – क्या सही था गार्गी का फैसला

Best Hindi Stories :  ‘टिंगटौंग’ दरवाजे की घंटी बजी. टू बीएचके फ्लैट के भूरे रंग के दरवाजे के ऊपर नाम गुदे हुए थे- डा. भाष्कर सेन, श्रीमती गार्गी सेन, आईपीएस. अधपके बालों वाली एक प्रौढ़ा ने दरवाजा खोला और मुसकराते हुए कहा, ‘‘दीदी, आज बड़ी देर कर दी तुम ने. दादाबाबू तो कब के आए हुए हैं. काफी थकीथकी दिख रही हो,’’ कहतेकहते उस ने महिला के हाथों से बैग ले लिया और फिर कहा, ‘‘तुम जाओ कपड़े बदल लो, मैं खाना गरम करती हूं.’’ ये हैं श्रीमती गार्गी सेन, जौइंट कमिश्नर औफ पुलिस, (क्राइम), आईपीएस 1995 बैच और इस घर की मालकिन. गार्गी जूते उतार कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई. बैडरूम में उस के पति भाष्कर बिस्तर पर सफेद पजामा और कुरता पहने, आंखों पर चश्मा लगाए पैरासाइकोलौजी की किताब पढ़ रहा था.

गार्गी के पैरों की आहट सुनते ही उस ने आंखें किताब से ऊपर उठाईं और आंखों से चश्मा उतारा. किताब को बिस्तर के पास रखी साइड टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘आज लौटने में बहुत देर हो गई तुम्हें, उस नए मामले को ले कर उलझी हो क्या?’’ गार्गी उस के प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही बिस्तर पर उस की बगल में जा बैठी. भाष्कर ने उस की तरफ देखा और उस के गालों पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बहुत अपसेट लग रही हो, जाओ यूनिफौर्म बदलो, फ्रैश हो कर आओ, डिनर टेबल पर मिलते हैं.’’

गार्गी ने बिना कुछ कहे सिर हिला कर हामी भरी. बड़ी मुश्किल से रोंआसी आवाज में उस के मुंह से निकला, ‘‘हूं.’’ फिर एक लंबी सांस ले कर भाष्कर की तरफ आंखें उठाईं. उस की आंखों में आंसू लबालब भरे हुए थे, मानो अभी छलकने को तैयार हों. भाष्कर ने पहले ही उस की परेशानी भांप ली थी. उस ने गार्गी को आलिंगन किया और उसे अपने बाहुपाश में जोर से जकड़ते हुए 2-3 दफे उस की पीठ ठोकी.

गार्गी ने अपना सिर भाष्कर के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘तुम कैसे बिना कुछ कहे ही सब समझ जाते हो.’’ भाष्कर ने उस के कंधे पर फिर एक बार थपकी दी और कहा, ‘‘जाओ, हाथमुंह धो कर आओ, बहुत भूख

लगी है.’’ गार्गी ने जबरन अपने होंठों को चीर कर बनावटी मुसकराने की कोशिश की और उठ कर बाथरूम की ओर बढ़ गई.

कुछ देर बाद कपड़े बदल कर जब वह डाइनिंग टेबल पर आई तो भाष्कर पहले से ही वहां मौजूद था. सामने टीवी चल रहा था. गार्गी भाष्कर की बगल वाली सीट पर आ कर बैठ गई और रिमोट ले कर टीवी चैनल बदल दिया. इतने में प्रौढ़ा अंदर से आई और खाना परोसने लगी.

टीवी पर एक न्यूज चल रही थी और दिनभर की महत्त्वपूर्ण खबरों को एक ही सांस में न्यूज रीडर पढ़े जा रही थी, ‘‘चांदनी चौक कांड का आज 5वां दिन. मंत्री आशुतोष समाद्दार के भतीजे मंटू समाद्दार और उस के 3 साथियों को पुलिस हिरासत में लिया गया. डैफोडिल अस्पताल के सीएमओ डा. नीतीश शर्मा ने बताया कि नाबालिग लड़की की हालत नाजुक. शरीर पर चोटों के कई निशान पाए गए हैं. हमारे संवाददाता से बातचीत में मंत्री आशुतोष समाद्दार ने बताया, ‘मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे फंसाया जा रहा है. लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. उस की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सही नहीं है. उस की मां के पेशे के बारे में तो आप सब जानते ही होंगे, मैं और क्या कहूं. ऐसे में आप ऐसी लड़कियों से क्या आशा रख सकते हैं?’’ संवाददाता बोला, ‘पर ऐसा क्यों किया उस ने? व्यक्तिगत स्तर पर आप से कोई दुश्मनी है या विरोधी पार्टी का काम है, आप का क्या मानना है?’

मंत्री बोले, ‘कुछ कह नहीं सकते, विरोधी पार्टी का हाथ इस के पीछे है या नहीं, यह पता लगाना तो पुलिस का काम है. मैं बस इतना ही कहूंगा कि मेरा भतीजा निर्दोष है, उसे पैसों के लिए फंसाया जा रहा है. ऐसी लड़कियों के लिए यह पैसे कमाने का एक जरिया है.’ न्यूज रीडर ने अब कहा, ‘‘आइए जानते हैं कि इस मामले में पुलिस का क्या कहना है. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन से हमारे संवाददाता ने बात की.’’ ‘मामले की छानबीन हो रही है, मैडिकल रिपोर्ट आने से पहले कुछ कहा नहीं जा सकता. हम अपनी तरफ से मामले की सचाई तक पहुंचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

संवाददाता ने अपना अंदेशा जाहिर किया, ‘मुख्यमंत्री के करीबी रह चुके आशुतोष समाद्दार की राजनीतिक क्षेत्र में पहुंच काफी तगड़ी है. इसलिए यह आशंका जाहिर की जा रही है कि वे अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या पुलिस जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर सकते हैं. कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और ज्यादा परेशान दिखने लगी. भाष्कर ने परिस्थिति को भांपते हुए झट से अपने हाथ में रिमोट ले कर चैनल बदल दिया. फिर धीमी आवाज में कहा, ‘‘पिछले 4-5 दिनों से यह खबर सभी अखबारों व टीवी चैनलों पर छाई हुई है. मैं रोज इस का फौलोअप देखता रहता हूं. मैं जानता हूं तुम…’’ अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि इतने में गार्गी ने थाली आगे की ओर सरकाते हुए आवाज लगाई, ‘‘बेनु पीसी, मेरी प्लेट उठा लो, खाने का मन नहीं है.’’

प्रौढ़ा रसाईघर से दौड़ती हुई आई और विनय भाव से कहने लगी, ‘‘क्या हुआ दीदीभाई, क्यों खाने का मन नहीं, खाना अच्छा नहीं बना है क्या?’’ भाष्कर ने गार्गी के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘खा लो, वरना तबीयत खराब हो जाएगी.’’ और प्रौढ़ा की ओर मुड़ कर बोले, ‘‘पीसी, जरा रसोई से गुड़ ले आओ, इस का स्वाद बदल जाएगा.’’

गार्गी रोंआसी हो गई. उस ने नजरें उठा कर भाष्कर की आंखों में देखा. उन आंखों में आश्वासन था, समर्थन था और थी एक सच्चे साथी की प्रेमभावना जिस ने हर परिस्थिति में साथ रहने का वादा किया है. उस के मुंह से बस इतना निकला, ‘‘तुम नहीं जानते, भाष्कर कितना पौलिटिकल प्रैशर है.’’ भाष्कर ने इतने में उस के मुंह में निवाला ठूंस दिया और कहा, ‘‘मैं कुछ नहीं जानता, पर मैं सबकुछ समझ सकता हूं. पहले खाना खत्म करो.’’

गार्गी ने आंखों की पलकों से अपने आंसुओं को छिपाने की भरसक कोशिश करते हुए कहा, ‘‘मैं क्या करूं भाष्कर, एक तरफ मेरा कैरियर, दूसरी तरफ मेरा जमीर. अगर मैं समझौता नहीं करती हूं तो वे मेरे कैरियर को बरबाद कर देंगे. ऐसे में मुझे क्या

करना चाहिए?’’ भाष्कर ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें सालों से जानता हूं. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है. चाहे कुछ भी हो जाए तुम कुछ गलत कर ही नहीं सकतीं. तुम सच्ची हो और मैं यह भी जानता हूं कि तुम सचाई के साथ ही रहोगी, और तुम्हारे साथ रहेगा हम सब का विश्वास, मेरे व तुम्हारे शुभचिंतकों का प्रेम और सहयोग. मैं जानता हूं इन सब के साथ तुम जरूर अपनी लड़ाई में विजयी होगी, चाहे विपक्ष कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो. और देखो, बातोंबातों में कैसे खाना भी खत्म हो गया.’’

गार्गी ने देखा, सामने प्लेट खाली थी. उस ने कहा, ‘‘सच, तुम कब मेरे मुंह में निवाला भरते रहे, मुझे पता ही नहीं चला. तुम सचमुच मेरी बच्चों की तरह केयर करते हो. मैं तुम जैसा पति पा कर बहुत खुश हूं. पापा के बाद, बस, तुम ही तो हो जिसे हर मुसीबत में मेरा मार्गदर्शन करते हुए पाती हूं. थैंक्यू.

‘‘आज बहुत दिनों बाद पापा बारबार याद आ रहे हैं. मैं जब छोटी थी वे अकसर कहा करते थे, ‘बेटा, जब भी जीवन में किसी मोड़ पर कोई दुविधा हो तो अपने जमीर की सुनना. ऐसे मोड़ पर तुम्हें 2 रास्ते मिलेंगे. बेईमानी का रास्ता आसान होगा पर अगर तुम लंबी दौड़ में विजयी होना चाहती हो और अपने जीवन में सुखचैन चाहती हो तो कभी भी उस रास्ते को मत अपनाना वरना अपनी ही नजरों में सदा के लिए छोटी हो जाओगी.’’’ बात खत्म होते ही भाष्कर ने कहा, ‘‘चलो, अब बहुत रात हो गई है,

हमें सो जाना चाहिए. कल फिर तुम्हें सुबह उठना भी तो है. ड्यूटी पर जाना है न.’’

गार्गी ने हामी भरते हुए सिर हिलाया. उस के होंठों पर मंद मुसकराहट थी और चेहरे पर बेफिक्री का भाव. अगले दिन शाम को 6 बजे दरवाजे की घंटी बजी. अंदर से बेनु पीसी आई और दरवाजा खोला. गार्गी के चेहरे पर सुकून और अजीब सी खुशी झलक रही थी. अंदर घुस कर जूते उतारते हुए उस ने कहा, ‘‘बेनु पीसी, अलमारी के ऊपर से मेरा सूटकेस उतार कर रखना. ट्रैवल बैग स्टोर में रखा हुआ है, उस में मेरी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें और कुछ ड्राईफ्रूट्स डाल देना.’’

प्रौढ़ा ने पूछा, ‘‘क्यों, कहीं जा रही हो क्या?’’ गार्गी बाथरूम की ओर बढ़ती हुई बोली, ‘‘हूं, पहाड़ी इलाका है. परसों निकलूंगी. समझबूझ कर सारा सामान रख देना.’’

प्रौढ़ा प्रश्नों की बौछार करने ही वाली थी, मसलन, ‘कितने दिनों के लिए जाओगी, कब तक लौटोगी, दादाबाबू भी साथ जाएंगे या नहीं…’ पर इतने में गार्गी वहां से बैडरूम की तरफ जा चुकी थी. बैडरूम में पहुंच कर गार्गी ने भाष्कर को फोन किया और कहा, ‘‘जल्दी घर आओ, तुम से कुछ कहना है. नहीं, कुछ नहीं हुआ…न, कुछ नहीं चाहिए. बस, तुम आ जाओ.’’ घंटाभर बाद भाष्कर घर लौटने के बाद कपड़े बदल कर टीवी के सामने बैठ गए. गार्गी उन के पास वाली कुरसी पर जा बैठी. टीवी पर न्यूज चल रही थी, ‘‘ब्रेकिंग न्यूज, चांदनी चौक कांड ने लिया नया मोड़. मामले की देखरेख कर रहे आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि मंटू समाद्दार और उस के साथी हैं दोषी. जौइंट सीपी (क्राइम) गार्गी सेन ने प्रैस को दिया बयान, ‘मैडिकल रिपोर्ट के अनुसार दुराचार किया गया है. हम ने नाबालिग लड़की का बयान लिया है. आरोपियों की पहचान हो गई है. कानून अपना काम करेगा. दोषी कोई भी हों, उन के खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत कार्यवाही की जाएगी. पीडि़ता को इंसाफ जरूर मिलेगा. मैं ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है और चार्जशीट भी कोर्ट में पेश किए जाने के लिए तैयार है.’ ’’

न्यूज रीडर ने आगे खबर पढ़ी, ‘‘जौइंट सीपी साहिबा के इस बयान के कुछ ही घंटों में उत्तरी बंगाल के किसी दूरस्थ पहाड़ी इलाके में उन के तबादले की घोषणा हुई. इस संबंध में तरहतरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. यह तबादला क्या उन की सच्ची बयानबाजी की सजा है? क्या राजनीतिक दिग्गजों की स्वार्थसिद्धि न होने के परिणामस्वरूप प्रभाव का इस्तेमाल कर के यह तबादला करवाया गया. अब चलते हैं मौके पर मौजूद संवाददाता के पास. हां, मौमिता, इस मामले में पुलिस का क्या कहना है?’’ संवाददाता मौमिता बताती है, ‘पुलिस का तो यह कहना है कि यह रूटीन तबादला था. इस फैसले पर गार्गी सेन की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई है.

‘अब सवाल यह उठता है कि क्या इस से पुलिस की छानबीन पर कोई प्रभाव पड़ेगा, क्या राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सुबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा सकती है? ऐसी परिस्थिति में क्या पीडि़ता को इंसाफ मिल जाएगा? कैमरामैन रंजन मुखोपाध्याय के साथ मौमिता राय, सी टीवी न्यूज, बंगाल.’ समाचार खत्म होते ही गार्गी और भाष्कर दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. गार्गी ने भाष्कर से पूछा, मैं ने सही किया न?’’

भाष्कर ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और अपनी उंगलियां उस की उंगलियों में फंसा कर मुसकराते हुए हामी भर कर सिर हिला दिया. गार्गी ने अपने सिर का बोझ उस के कंधे पर रख कर आंखें बंद कर लीं. उस की आंखों से आंसुओं की धारा टपक रही थी.

भाष्कर ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘यह क्या, तुम रो रही हो? आज तो विजय दिवस है, झूठ पर सच की विजय, बुराई पर अच्छाई की विजय. आज से तुम आजाद हो, तुम्हें और ग्लानि का बोझ वहन नहीं करना पड़ेगा.’’ गार्गी ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं, ये तो कई दिनों से अंदर जमा थे, आज बाहर आए हैं. कोई और अफसोस नहीं, बस, तुम से दूर…’’ भाष्कर ने बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘अब तो हम और ज्यादा करीब हो गए. साथ रहने का अर्थ क्या हमेशा पास रहना है? अगर मेरी गार्गी बदल जाती तो शायद मैं उसे पहले जैसा प्यार न दे पाता और पास रहने के बावजूद उस से काफी दूर हो जाता. तुम सचाई के साथ हो और सदा रहना, मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा.’’

इतने में बेनु पीसी ने आ कर टीवी का चैनल बदल दिया था. टीवी पर संगीत बज रहा था, ‘‘इंसाफ की डगर पे…अपने हो या पराए, सब के लिए हो न्याय. देखो, कदम तुम्हारा, हरगिज न डगमगाए, रस्ते बड़े कठिन हैं, चलना संभलसंभल के…इंसाफ की डगर पे…’’

Famous Hindi Stories : सौतेले लोग – क्या हुआ कौशल के साथ

Famous Hindi Stories : कौशल के जीवन में जैसे कोई सुनामी आ गई थी. वे अपने दफ्तर के दौरे पर थे. पत्नी अंकिता बच्चों को स्कूल भेज कर घर की साफसफाई कर रही थी. आज जाने उसे क्या सूझा था कि उस ने घर को धो डालने का प्लान बना लिया था. जैसे ही उस ने पाइप लगा कर कमरे में पानी डाला, अचानक बिजली आ गई. उसे आहट भी नहीं हुई होगी कि बिजली उस की मौत का पैगाम ले कर आई है. कमरे में कूलर लगा था और उसी के करैंट में वह बिलकुल स्याह हो चुकी थी. पूरा घर अंदर से बंद था. लगभग 3 बजे जब दोनों बच्चे स्कूल से आए और दरवाजा खोलने की कोशिश की तो पता ही नहीं चला अंदर क्या हुआ है. अड़ोसीपड़ोसी इकट्ठे हो गए. दरवाजा खुला तो कौशल को फोन से सारी बातें बताई गईं. पुलिस बुलाई गई. ससुराल से ले कर स्वजनों तक खबर करैंट की भांति दौड़ गई.

2 मासूम बच्चे 3 साल की बेटी और 5 साल का बेटा. सभी सहमे और डरे हुए थे. नियति को तो जो करना था उस ने अपना खेल, खेल लिया था. कौशल उजड़ गए थे. न बच्चे संभलते, न गृहस्थी, न नौकरी. दोनों बच्चों को उन्होंने ननिहाल भेज दिया था. तब उन्हें अपनी मां की बड़ी याद आई थी. एक वर्ष पहले ही उन की मौत हुई थी. वे होतीं तो बच्चे आज बिना घरघाट के नहीं रहते. कौशल का सबकुछ लुट चुका था. दिमाग और दिल से भी वे डर गए थे. पत्नी का नीलावर्ण उन की आंखों से दूर नहीं हो पा रहा था. कौशल की नजर अब अखबारों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों और मैरिज पोर्टल्स पर भी जाती पर उन की नैया को दोबारा कौन पार उतारेगा, कहीं आस न बंधती. ड्यूटी पर जाते तो दोनों बच्चों का मासूम चेहरा याद आता. पत्नी का स्नेह याद आता. सोचते कि अब जाने कैसे होंगे दोनों.

वे जब भी ससुराल जाते, उन्हें दोनों बच्चों के रूखे बाल दिखाई देते और उन के भोले प्रश्न उन्हें अंदर से कुरेद देते, पापा, ‘आप हम लोगों के साथ क्यों नहीं रहते? मम्मी रहतीं तो हम लोग आप के पास ही होते न.’ उन्हें बच्चों से अलग रहना इसलिए भी नहीं भाता कि ये उन के अक्षरज्ञान का समय था. मां नहीं है और पिता भी इतनी दूर. इस से वे तड़प जाते. हजार कोशिशों के बाद जो रिश्ते मिलते, उन में संदेह ज्यादा जबकि संभावना कम दिखाई देती. एक टीचर उन से ब्याह के लिए राजी थी. उस का नाम था कला. उस से कौशल कुमार ने शादी से संबंधित बातें कीं. वह बहुत ही व्यस्त टीचर थी. स्कूल में पढ़ाने के बाद भी बच्चों के 3 बैच उस से ट्यूशन पढ़ने आते. उस के लिए शादी सामान्य सी बात थी. क्या हुआ, आप के 2 बच्चे हैं तो वे भी मेरे साथ मेरे ही स्कूल में पढ़ लेंगे. मैं शादी के लिए राजी हूं, पर नौकरी छोड़ पाना मेरे लिए संभव नहीं होगा.

कौशल कला की नौकरी छोड़ने वाली बात को दिल से लगा बैठे थे. बच्चों के लिए मां ढूंढ़ रहे थे. पर मां कहां मिली. वह तो मास्टरनी ही होगी. टुकुरटुकुर बेचारे बिना मुंह के बच्चे देखते रह जाएंगे. ‘मम्मा खीर बनाओ,’ बेटा तो मम्मी से पीले चावल की फरमाइश करता था. बच्चे नहीं खाते तो पत्नी सुबह ही पुआपूरी बना कर खिला देती थी. अब सिर्फ उंगली पकड़ कर तीनों भागते ही नजर आएंगे. उन की आंखों के कोर भीग गए.

कौशल की चिंता जायज थी. एक जीवन खुशियों से भरा था, दूसरा डरावना महसूस हो रहा था. 2 नादान मासूम बच्चे और हजार प्रश्नों से घिरे कौशल. किसी ने उन्हें दूसरी लड़की का पता भी बताया पर मालूम हुआ उस के तो विवाहपूर्व ही प्रेमप्रसंग काफी चर्चे में हैं. वह भी कौशल से ब्याह करना चाहती थी. इस विषय पर पूछे जाने पर उस ने बड़ी बेबाकी से कहा, इतने दिनों तक ब्याह नहीं हुआ तो थोड़ाबहुत तो चलता है और आप कौन सा मुझ से पहली शादी करने वाले हैं, आप के साथ मुझे आप के बच्चों को भी तो संभालना पड़ेगा. कौशल उस की बातों से दुखी हो गए. वे जानबूझ कर विवाह के लिए कैसे हां करते. उस के चरित्र का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा. इतने बोल्ड तो कौशल नहीं हो पाते. उन्हें लगता वे मर जाते तो पत्नी कुछ भी कर के बच्चों को पाल लेती पर वे अकेले 2 बच्चों की नैया पार नहीं लगा सकते. वे अपने दोस्तों के घर भी जाते तो उन के लिए सिर्फ संवेदना दी जाती.

उन्हें तो जीवन चाहिए था. एक खुशगवार घर का, एक मुसकराती पत्नी का, 2 हंसतेखेलते बच्चों के विकास का. पता नहीं वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे. उन्हें अपने विधुर जीवन पर तरस आता. अंकिता और दोनों बच्चों की तसवीर ले कर वे घंटों रो लेते पर जीवन का हल नहीं दिखाई पड़ता. कईकई दिनों तक वे छुट्टियां ले कर बिना खाए घर में ही रह जाते. न किसी से मिलते न बातें करते. अखबार के विज्ञापन में पत्नी ढूंढ़ते. इसी तलाश में वे गरीब से गरीब घर की लड़कियों को भी देख आए थे. विधवा और छोड़ दी गई महिलाओं के साथ भी वे गठबंधन को राजी थे पर कुछ न कुछ फेरे सामने आते ही गए. विधवा स्त्री भी 2 बच्चों के पिता के नाम पर तैयार नहीं हुई थी. एक महिला तो कौशल से पूछ बैठी थी, पत्नी दुर्घटना में मरी या मारा था. कौशल टूट चुके थे. हालांकि वे बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहते थे. यह उन के जीवन की मजबूरी थी. उन्होंने मन को कड़ा किया और एक विवाह प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी. जीवन की मजबूरियों ने उन्हें बहुत मजबूर किया था. इस बार अनामिका से विवाह की सहमति उन्होंने दे दी.

कौशल एक अच्छे इंसान थे. अनामिका उन के सामने दुबली सी आम लड़की थी. उस ने उन की मजबूरियों को सुना था, जाना था और अपनी सहमति दे दी थी. विवाह हो गया. अनामिका ने गृहस्थी संभाल ली. सभी कहते थे, ‘सौतेली मां बच्चों का खयाल नहीं रखेगी, अपनी ही सुखसुविधाओं का खयाल रखेगी.’ वर्षों की धारणा को अनामिका ने मिट्टी में मिला दिया था. बेटी को उस ने कंठहार बना लिया था. बेटे को भी वह पूरी देखरेख में रखती. कौशल का अब समय अच्छा था कि उन्हें अनामिका जैसी पत्नी मिली थी. खानापीना, झाड़ूबुहारू, बरतनकपड़े और आखिर में पति के पांव दबा कर सोना उस की आदत थी. कौशल के घर वाले दबाव बनाते कि एक कामवाली बाई को क्यों नहीं रखते. बच्चों के लिए ट्यूटर क्यों नहीं रखते. पत्नी को मशीन क्यों बनाया है. कईर् बार उन्होंने अनामिका से कहा पर उस ने कहा कि वह सारे दिन घर में क्या करेगी.

वे कहते थे कि घर अनामिका का अधिकार क्षेत्र है, वही जाने कैसे घर चलाना है. अनामिका भी तुरंत कौशल के पक्ष में खड़ी हो जाती. मुझे सारे काम करने पसंद हैं. मैं कर पाती हूं, फिर क्या जरूरत है इन सब की. धीरेधीरे बच्चे पढ़ने लगे. नौकरी में आ गए. अनामिका वैसे ही सेवाभाव से कार्यरत रही. पुरानी मान्यताएं और परंपराएं उस के सामने गलत साबित होती गईं. समझ में नहीं आता किस के कैसे रूप हैं. घर वालों को लगता कौशल ही सौतेला व्यवहार कर रहे हैं. पर उन्हें खाना मिलता है. बच्चे खुशीखुशी पढ़ाई कर रहे हैं. जब सबकुछ दिखाई पड़ रहा है तो कोई चाहे जैसे अपनी गृहस्थी चलाए. सब के रिश्ते तो सौतेले ही हैं. बच्चे मां को आदर देना सीख गए थे. कोई काम बिना बताए नहीं करते.

दूसरों को गृहस्थी में टांग अड़ाने की न तो गुंजाइश थी, न जरूरत. इसलिए सभी मन मसोस कर चुप रहते. तभी पड़ोस में मदन भैया की अचानक मौत हो गई. सुना था कि उन्होंने अपनी पत्नी के मरने के बाद दूसरा विवाह किया था जबकि उन के 4 बच्चे थे. पर मदन भैया की दूसरी पत्नी बीमारी का ऐसा स्वांग रचती कि बेचारे मदन भैया ही खाना बना कर पत्नी व बच्चों को खिलाते.

पैसों के लिए भी तकरार होती. इसी बीच मदन भैया को हार्टअटैक हो गया. अब पत्नी सौतेले बच्चों से बातें भी नहीं करती. कैसे चलेगी गृहस्थी उन पांचों की. मदन भैया के क्रियाकर्म के बाद सौतेले लोग क्या कहेंगे, समझ में नहीं आया पर अनामिका की सेवा, उस की कर्तव्यनिष्ठा ने सारे रिश्तों को मात दे दी थी.

अनामिका से जब मुलाकात हुई तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘दीदी, हर कोई अपनाअपना वर्तमान बनाता है. क्या फर्क पड़ता है अगर मैं सुबह से शाम तक खटती हूं. ऐसा तो हर मां करती है. मेरी मां भी किया करती थीं. फिर मेरा तो परिवार ही छोटा है.’ तब लगने लगा कि कौशल मेरी नजरों में, पत्नी के साथ जो सौतेला व्यवहार करता है वह सौतेला नहीं, बल्कि मोहब्बत से भरा अपनापन है. मैं अपने नजरिए से उन का अपनापन नहीं जान पाई थी. आखिर, मैं भी कितना जानती थी अनामिका और कौशल को. पर मुझे उन के बीच सौतेलापन दिखाई पड़ता था. पर अब लगा, सौतेले लोगों को समझ पाना इतना भी आसान नहीं. सचमुच जीवन जीना एक कला है, सभी इसे समझ नहीं पाते.

Latest Hindi Stories : अर्पण – क्यों रो बैठी थी अदिति

Latest Hindi Stories :  आदमकद आईने के सामने खड़ी अदिति खुद के ही प्रतिबिंब को मुग्धभाव से निहार रही थी. उस ने कान में पहने डायमंड के इयररिंग को उंगली से हिला कर देखा. खिड़की से आ रही साढ़े 7 बजे की धूप इयररिंग से रिफ्लैक्ट हो कर उस के गाल पर पड़ रही थी, जिस से वहां इंद्रधनुष चमक रहा था. अदिति ने आईने में दिखाई देने वाले अपने प्रतिबिंब पर स्नेह से हाथ फेरा, फिर वह अचानक शरमा सी गई. इसी के साथ वह बड़बड़ाई, ‘वाऊ, आज तो हिमांशु मुझे जरूर कौंपलीमैंट देगा.’

फिर उस के मन में आया, यदि यह बात मां सुन लेतीं तो कहतीं, ‘हिमांशु कहती है? वह तेरा प्रोफैसर है.’

‘सो व्हाट?’ अदिति ने कंधे उचकाए और आईने में स्वयं को देख कर एक बार फिर मुसकराई.

अदिति शायद कुछ देर तक स्वयं को इसी तरह आईने में देखती रहती लेकिन तभी उस की मां की आवाज  उस के कानों में पड़ी, ‘‘अदिति, खाना तैयार है.’’

‘‘आई, मम्मी,’’ अदिति बाल ठीक करते हुए डाइनिंग टेबल की ओर भागी.

अदिति का यह लगभग रोज का कार्यक्रम था. प्रोफैसर साहब के यहां जाने से पहले आईने के सामने ही वह अपना अधिक से अधिक समय स्वयं को निहारते हुए बिताती थी. शायद आईने को यह सब अच्छा लगने लगा था, इसलिए वह भी अदिति को थोड़ी देर बांधे रखना चाहता था. इसीलिए तो उस का इतना सुंदर प्रतिबिंब दिखाता था कि अदिति स्वयं पर ही मुग्ध हो कर निहारती रहती. आईना ही क्यों अदिति को तो जो भी देखता, देखता ही रह जाता. वह थी ही इतनी सुंदर. छरहरी, गोरी काया, मछली जैसी काली आंखें, घने काले रेशम जैसे बाल. वह हंसती तो सुंदरता में चारचांद लगाने के लिए गालों में गड्ढे पड़ जाते थे. अदिति की मम्मी उस से अकसर कहती थीं, ‘तू एकदम अपने पापा जैसी लगती है. एकदम उन की कार्बनकौपी.’ इतना कहतेकहते अदिति की मम्मी की आंखें भर आतीं और वे दीवार पर लटक रही अदिति के पापा की तसवीर को देखने लगतीं.

अदिति जब ढाई साल की थी, तभी उस के पापा का देहांत हो गया था. अदिति को तो अपने पापा का चेहरा भी ठीक से याद नहीं था. उस की मम्मी जिस स्कूल में नौकरी करती थीं उसी स्कूल में अदिति की पढ़ाई हुई थी. अदिति स्कूल की ड्राइंगबुक में जब भी अपने परिवार का चित्र बनाती, उस में नानानानी और मम्मी के साथ वह स्वयं होती थी. अदिति के लिए उस का इतना ही परिवार था.

अदिति के लिए पापा घर की दीवार पर लटकती तसवीर से अधिक कुछ नहीं थे. कभी मम्मी की वह आंखों से बहते आंसुओं में पापा की छवि महसूस करती तो कभी अलबम की ब्लैक ऐंड ह्वाइट तसवीर में वह स्वयं को जिस पुरुष की गोद में पाती वह ही तो उस के पापा थे. अदिति की क्लासमेट अकसर अपनेअपने पापा के बारे में बातें करतीं. टैलीविजन के विज्ञापनों में पापा के बारे में देख कर अदिति शुरूशुरू में कच्ची उम्र में पापा को मिस करती थी. परंतु धीरेधीरे उस ने मान लिया कि उस के घर में 2 स्त्रियां वह और उस की मम्मी रहती हैं और आगे भी वही दोनों रहेंगी.

बिना बाप की छत्रछात्रा में पलीबढ़ी अदिति कालेज की अपनी पढ़ाई पूरी कर के कब कमाने लगी, उसे पता  ही नहीं चला. वह ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में पढ़ रही थी, तभी वह अपने एक प्रोफैसर हिमांशु के यहां पार्टटाइम नौकरी करने लगी थी. डा. हिमांशु जानेमाने साहित्यकार थे. यूनिवर्सिटी में हैड औफ द डिपार्टमैंट. अदिति इकोनौमिक्स ले कर बीए करना चाहती थी परंतु डा. हिमांशु का लैक्चर सुनने के बाद उस ने हिंदी को अपना मुख्य विषय चुना था.

डा. हिमांशु अदिति में व्यक्तिगत रुचि लेने लगे थे. उसे नईनई पुस्तकें सजैस्ट करते, किसी पत्रिका में कुछ छपा होता तो पेज नंबर सहित रैफरेंस देते. यूनिवर्सिटी की ओर से. प्रमोट कर के 2 सेमिनारों में भी अदिति को भेजा. अदिति डा. हिमांशु की हर परीक्षा में प्रथम आने के लिए कटिबद्ध रहती थी. इसी लिए वे अदिति से हमेशा कहते थे कि वे उस में बहुतकुछ देख रहे हैं. वह जीवन में जरूर कुछ बनेगी.

वे जब भी अदिति से यह कहते, तो कुछ बनने की लालसा अदिति में जोर मारने लगती. उन्होंने अदिति को अपनी लाइब्रेरी में पार्टटाइम नौकरी दे रखी थी. वे जानेमाने नाट्यकार, उपन्यासकार और कहानीकार थे. उन की हिंदी की तमाम पुस्तकें पाठ्यक्रम में लगी हुई थीं. उन का लैक्चर सुनने और उन से मिलने वालों की भीड़ लगी रहती थी. नवोदित लेखकों से ले कर नाट्य जगत, साहित्य जगत और फिल्मी दुनिया के लोग भी उन से मिलने आते थे.

अदिति यूनिवर्सिटी में डा. हिमांशु को मात्र अपने प्रोफैसर के रूप में जानती थी. वे पूरे क्लास को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, यह भी उसे पता था. उसी क्लास में अदिति भी तो थी. अदिति उन की क्लास कभी नहीं छोड़ती थी. पहली बैंच पर बैठ कर उन्हें सुनना अदिति को बहुत अच्छा लगता था. लंबे, स्मार्ट, सुदृढ़ शरीर वाले डा. हिमांशु की आंखों में एक अजीब सा तेज था. सामान्य रूप से हल्के रंग की शर्ट और ब्लू डेनिम पहनने वाले डा. हिमांशु पढ़ने के लिए सुनहरे फ्रेमवाला चश्मा पहनते, तो अदिति मुग्ध हो कर उन्हें देखती ही रह जाती. जब वे अदिति के नोट्स या पेपर्स की तारीफ करते, तो उस दिन अदिति हवा में उड़ने लगती.

फाइनल ईयर में जब डा. हिमांशु की क्लास खत्म होने वाली थी तो एक दिन उन्होंने मिलने के लिए उसे डिपार्टमैंट में बुलाया. अदिति उन के कक्ष में पहुंची तो उन्होंने कहा, ‘अदिति, मैं देख रहा हूं कि इधर तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में नहीं लग रहा है. तुम अकसर मेरी क्लास में नहीं रहती हो. पहले 2 सालों में तुम फर्स्ट आई हो. यदि तुम्हारा यही हाल रहा तो इस साल तुम पिछले दोनों सालों की मेहनत पर पानी फेर दोगी.’

डा. हिमांशु अपनी कुरसी से उठ कर अदिति के पास आ कर खड़े हो गए. उन्होंने अपना हाथ अदिति के कंधे पर रख दिया. उन के हाथ रखते ही अदिति को लगा, जैसे वह हिमाच्छादित शिखर के सामने खड़ी है. उस के कानों में घंटियों की मधुर आवाज गूंजने लगी थीं.

‘तुम्हें किसी से प्रेम हो गया है क्या?’ उन्होंने पूछा.

अदिति ने रोतेरोते गरदन हिला कर इनकार कर दिया.

‘तो फिर?’

‘सर, मैं नौकरी करती हूं, इसलिए पढ़ने के लिए समय कम मिलता है.’

‘क्यों? डा. हिमांशु ने आश्चर्य से कहा, ‘शायद तुम्हें शिक्षा का महत्त्व पता नहीं है. शिक्षा केवल कमाई का साधन ही नहीं है. शिक्षा संस्कार, जीवनशैली और हमारी परंपरा है. कमाने के चक्कर में तुम्हारी पढ़ाई में रुचि खत्म हो गई है. इस तरह मैं ने तमाम विद्यार्थियों की जिंदगी बरबाद होते देखी है.’

‘सर,’ अदिति ने हिचकी लेते हुए कहा, ‘मैं पढ़ना चाहती हूं, इसीलिए तो नौकरी करती हूं.’

उन्होंने ‘आई एम सौरी, मुझे पता नहीं था,’ अदिति के सिर पर हाथ रख कर कहा.

‘इट्स ओके, सर.’

‘क्या काम करती हो?’

‘एक वकील के औफिस में मैं टाइपिस्ट हूं.’

‘मैं नई किताब लिख रहा हूं. मेरी रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करोगी?’

अदिति ने आंसू पोंछते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

उसी दिन से अदिति डा. हिमांशु की रिसर्च असिस्टैंट के रूप में काम करने लगी. इस बात को आज 2 साल हो गए हैं. अदिति ग्रेजुएट हो गई है. वह फर्स्ट क्लास आई थी यूनिवर्सिटी में. डा. हिमांशु एक किताब खत्म होते ही अगली पर काम शुरू कर देते. इस तरह अदिति का काम चलता रहा. अदिति ने एमए में ऐडमिशन ले लिया था. अकसर उस से कहते, ‘अदिति, तुम्हें पीएचडी करनी है. मैं तुम्हारे नाम के आगे डाक्टर लिखा देखना चाहता हूं.’

फिर तो कभीकभी अदिति बैठी पढ़ रही होती, तो  कागज पर प्रोफैसर के साथ अपना नाम जोड़ कर लिखती फिर शरमा कर उस कागज पर इतनी लाइनें खींचती कि वह नाम पढ़ने में न आता. परंतु बारबार कागज पर लिखने की वजह से यह नाम अदिति के हृदय में इस तरह रचबस गया कि वह एक भी दिन उन को न देखती तो उस का समय काटना मुश्किल हो जाता.

पिछले 2 सालों में अदिति प्रोफैसर के घर का एक हिस्सा बन गई थी. सुबह घंटे डेढ़ घंटे उन के घर काम कर के वह साथ में यूनिवर्सिटी जाती. फिर 5 बजे साथ ही उन के घर आती, तो उसे अपने घर जाने में अकसर रात के 8 बज जाते. कभीकभी तो 10 भी बज जाते. डा. हिमांशु मूड के हिसाब से काम करते थे. अदिति को भी कभी घर जाने की जल्दी नहीं होती थी. वह तो उन के साथ अधिक से अधिक समय बिताने का बहाना ढूंढ़ती रहती थी.

इन 2 सालों में अदिति ने देखा था कि प्रोफैसर को जानने वाले तमाम लोग थे. उन से मिलने भी तमाम लोग आते थे. अपना काम कराने और सलाह लेने वालों की भी कमी नहीं थी. फिर भी एकदम अकेले थे. घर से यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी से घर, यही उन की दिनचर्या थी. वे कहीं बाहर आनाजाना या किसी गोष्ठी में भाग लेना पसंद नहीं करते थे. बड़ी मजबूरी में ही वे किसी समारोह में भाग लेने जाते थे. अदिति को यह सब बड़ा आश्चर्यजनक लगता था. वे पढ़ाई के अलावा किसी से भी कोई फालतू बात नहीं करते थे. अदिति उन के साथ लगभग रोज ही गाड़ी से आतीजाती थी. परंतु इस आनेजाने में शायद ही कभी उन्होंने उस से कुछ कहा हो. दिन के इतने घंटे साथ बिताने के बावजूद उन्होंने काम के अलावा कोई भी बात अदिति से नहीं की थी. अदिति कुछ कहती तो वे चुपचाप सुन लेते. मुसकराते हुए उस की ओर देख कर उसे यह आभास करा देते कि उन्होंने उस की बात सुन ली है.

किसी बड़े समारोह या कहीं से डा. हिमांशु वापस आते तो अदिति बड़े ही अहोभाव से उन्हें देखती रहती. उन की शौल ठीक करने के बहाने, फूल या किताब लेने के बहाने, अदिति उन्हें स्पर्श कर लेती. टेबल के सामने डा. हिमांशु बैठ कर लिख रहे होते तो अदिति उन के पैर पर अपना पैर स्पर्श करा कर संवेदना जगाने का प्रयास करती. वे उस की नजरों और हावभाव से उस के मन की बात जान गए थे. फिर भी उन्होंने अदिति से कुछ नहीं कहा. अब तक अदिति का एमए हो गया था. डा. हिमांशु के अंडर में ही वह रिसर्च कर रही थी. उस की थिसिस भी अलग से तैयार ही थी.

अदिति को आभास हो गया था कि डा. हिमांशु उस के मन की बात जान गए हैं. फिर भी वे ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उन्हें कुछ पता ही न हो. उन के प्रति अदिति का आकर्षण धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा था. आईने के सामने खड़ी स्वयं को निहार रहीअदिति ने तय कर लिया था कि आज वह डा. हिमांशु से अपने मन की बात अवश्य कह देगी. फिर वह मन ही मन बड़बड़ाई, ‘प्रेम करना कोई अपराध नहीं है. प्रेम की कोई उम्र नहीं होती.’

इसी निश्चय के साथ अदिति डा. हिमांशु के घर पहुंची. वे लाइब्रेरी में बैठे थे. अदिति उन के सामने रखे रैक से टिक कर खड़ी हो गई. उस की आंखों से आंसू बरसने की तैयारी में थे. उन्होंने अदिति को देखते ही कहा, ‘‘अदिति, बुरा मत मानना, डिपार्टमैंट में प्रवक्ता की जगह खाली है. सरकारी नौकरी है. मैं ने कमेटी के सभी सदस्यों से बात कर ली है. तुम अपनी तैयारी कर लो. तुम्हारा इंटरव्यू फौर्मल ही होगा.’’

‘‘परंतु मुझे यह नौकरी नहीं करनी है,’’ अदिति ने यह बात थोड़ी ऊंची आवाज में कही. आंखों के आंसू गालों पर पहुंचने के लिए पलकों पर लटक आए थे.

डा. हिमांशु ने मुंह फेर कर कहा, ‘‘अदिति, अब तुम्हारे लिए यहां काम नहीं है.’’

‘‘सचमुच?’’ अदिति ने उन के एकदम नजदीक जा कर पूछा.

‘‘हां, सचमुच,’’ अदिति की ओर देखे बगैर बड़ी ही मृदु और धीमी आवाज में डा. हिमांशु ने कहा, ‘‘अदिति, वहां वेतन बहुत अच्छा मिलेगा.’’

‘‘मैं वेतन के लिए नौकरी नहीं करती,’’ अदिति और भी ऊंची आवाज में बोली, ‘‘सर, आप ने मुझे कभी समझा ही नहीं.’’

वे कुछ कहते, उस के पहले ही अदिति उन के एकदम करीब पहुंच गई. दोनों के बीच अब नाममात्र की दूरी रह गई थी. उस ने डा. हिमांशु की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘सर, मैं जानती हूं, आप सबकुछ जानतेसमझते हैं. प्लीज, इनकार मत कीजिएगा.’’

अदिति के आंसू आंखों से निकल कर कपोलों को भिगोते हुए नीचे तक बह गए थे. वह कांपते स्वर में बोली, ‘‘आप के यहां काम नहीं है? इस अधूरी पुस्तक को कौन पूरी करेगा? जरा बताइए तो, चार्ली चैपलिन की आत्मकथा कहां रखी है? बायर की कविताएं कहां हैं? विष्णु प्रभाकर या अमरकांत की नई किताबें कहां रखी हैं…?’’

डा. हिमांशु चुपचाप अदिति की बातें सुन रहे थे. उन्होंने दोनों हाथ बढ़ा कर अदिति के गालों के आंसू पोंछे और एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘तुम्हारे आने के पहले मैं किताबें ही खोज रहा था. तुम नहीं रहोगी तो भी मैं किताबें ढूंढ़ लूंगा.’’

अदिति को लगा कि उन की आवाज यह कहने में कांप रही थी.

डा. हिमांशु ने आगे कहा, ‘‘इंसान पूरी जिंदगी ढूंढ़ता रहे तो भी शायद उसे न मिले और यदि मिले भी तो इंसान ढूंढ़ता रहे. उसे फिर भी प्राप्त न हो सके, ऐसा भी हो सकता है.’’

‘‘जो अपना हो उस का तिरस्कार कर के,’’ इतना कह कर अदिति दो कदम पीछे हटी और चेहरे को दोनों हाथों में छिपा कर रोने लगी. फिर लगभग चीखते हुए बोली, ‘‘क्यों?’’

डा. हिमांशु ने अदिति को थोड़ी देर तक रोने दिया. फिर उस के नजदीक जा कर कालेज में पहली बार जिस सहानुभूति से उस के कंधे पर हाथ रखा था उसी तरह उस के कंधे पर हाथ रखा. अदिति को फिर एक बार लगा कि हिमालय के शिखरों की ठंडक उस के सीने में समा गई है. कानों में मधुर घंटियां बजने लगीं. उस ने स्नेहिल नजरों से डा. हिमांशु को देखा. फिर आगे बढ़ कर अपनी दोनों हथेलियों में उन के चेहरे को भर कर चूम लिया. फिर वह उन से लिपट गई. वह इंतजार करती रही कि डा. हिमांशु की बांहें उस के इर्दगिर्द लिपटेंगी परंतु ऐसा नहीं हुआ. वे चुपचाप बिना किसी प्रतिभाव के आंखें फाड़े उसे ताक रहे थे. उन का चेहरा शांत, स्थितप्रज्ञ और निर्विकार था.

‘‘आप मुझ से प्यार नहीं करते?’’

डा. हिमांशु उसे देखते रहे.

‘‘मैं आप के लायक नहीं हूं?’’

डा. हिमांशु के होंठ कांपे, पर शब्द नहीं निकले.

‘‘मैं अंतिम बार पूछती हूं,’’ अदिति की आवाज के साथ उस का शरीर भी कांप रहा था. स्त्री हो कर स्वयं को समर्पित कर देने के बाद भी पुरुष के इस तिरस्कार ने उस के पूरे अस्तित्व को हिला कर रख दिया था. आंखों से आंसुओं की जलधारा बह रही थी. एक लंबी सांस ले कर वह बोली, ‘‘मैं पूछती हूं, आप मुझे प्यार करते हैं या नहीं? या फिर मैं आप के लिए केवल एक तेजस्विनी विद्यार्थिनी से  अधिक कुछ नहीं हूं?’’ फिर डा. हिमांशु का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे अपनी बातों का जवाब चाहिए.’’

डा. हिमांशु उसी तरह जड़ बने खड़े थे. अदिति ने लगभग धक्का मार कर उन्हें छोड़ दिया. रोते हुए वह उन्हें अपलक ताक रही थी. उस ने दोनों हाथों से आंसू पोंछे. पलभर में ही उस का हावभाव बदल गया. उस का चेहरा सख्त हो गया. उस की आंखों में घायल बाघिन का जनून आ गया था. उस ने चीखते हुए कहा, ‘‘मुझे इस बात का हमेशा पश्चात्ताप रहेगा कि मैं ने एक ऐसे आदमी से प्यार किया जिस में प्यार को स्वीकार करने की हिम्मत ही नहीं है. मैं तो समझती थी कि आप मेरे आदर्श हैं, सामर्थ्यवान हैं. परंतु आप में एक स्त्री को सम्मान के साथ स्वीकार करने की हिम्मत ही नहीं है. जीवन में यदि कभी समझ में आए कि मैं ने आप को क्या दिया है, तो उसे स्वीकार कर लेना. जिस तरह हो सके, उस तरह. आज के आप के तिरस्कार ने मुझे छिन्नभिन्न कर दिया है. जो टीस आप ने मुझे दी है, हो सके तो उसे दूर कर देना क्योंकि इस टीस के साथ जिया नहीं जा सकता.’’

इतना कह कर अदिति तेजी से पलटी और बाहर निकल गई. उस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. फिर भी उस ने उसी कालेज में आवेदन कर दिया जिस में डा. हिमांशु ने नौकरी की बात कर रखी थी. 2-3 माह में वह कालेज भी जाने लगी पर डा. हिमांशु से कोई संपर्क नहीं किया. कुछ दिन बाद अदिति अखबार पढ़ रही थी, तो अखबार में छपी एक सूचना पर उस की नजर अटक गई. सूचना थी-‘प्रसिद्ध साहित्यकार, यूनिवर्सिटी के हैड औफ द डिपार्टमैंट डा. हिमांशु की हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई है. उन का…’

अदिति ने इतना पढ़ कर पन्ना पलट दिया. रोने का मन तो हुआ, लेकिन जी कड़ा कर के उसे रोक दिया. अगले दिन अखबार में डा. हिमांशु के बारे में 2-4 लेख छपे थे. अदिति ने उन्हें पढ़े बगैर ही उस पन्ने को पलट दिया था. इस के 4 दिन बाद औफिस में अदिति को पाठ्यपुस्तक मंडल की ओर से ब्राउनपेपर में लिपटा एक पार्सल मिला. भेजने वाले का नाम उस पर नहीं था. अदिति ने जल्दीजल्दी उस पैकेट को खोला. उस पैकेट में वही पुस्तक थी जिसे वह अधूरी छोड़ आई थी. अदिति ने प्यार से उस पुस्तक पर हाथ फेरा. लेखक का नाम पढ़ा. उस ने पहला पन्ना खोला, किताब के नाम आदि की जानकारी थी. दूसरा पन्ना खोला, लिखा था :

‘अर्पण

मेरे जीवन की एकमात्र स्त्री को, जिसे मैं ने हृदय से चाहा, फिर भी उसे कुछ दे न सका. यदि वह मेरी एक पल की कमजोरी को माफ कर सके, तो इस पुस्तक को अवश्य स्वीकार कर ले.’

उस किताब को सीने से लगाने के साथ ही अदिति एकदम से फफकफफक कर रो पड़ी. पूरा औफिस एकदम से चौंक पड़ा. सभी उठ कर उस के पास आ गए. हर कोई एक ही बात पूछ रहा था, ‘‘क्या हुआ अदिति? क्या हुआ?’’

रोते हुए अदिति मात्र गरदन हिला रही थी. उसे खुद ही पता नहीं था कि उसे क्या हुआ है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें