महंगे ख्वाब: भाग 3- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

राहुल और रश्मि इधरउधर बाइक से घूमने लगे. आज रश्मि काफी खुश थी, हो भी क्यों न, आज उस के सपनों के पर निकल आए थे. काफी देर घूमने के बाद राहुल ने रश्मि से कहा, ‘‘ऐसा है, इधरउधर घूमने से बेहतर है कि तुम आज मेरे रूम चलो, वहीं बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे.’’

रश्मि ने मारे खुशी के इस बात की तरफ जरा भी ध्यान नहीं दिया कि शहर में किसी लड़के के रूम में जाने के क्या माने होते हैं.

रश्मि पहली बार राहुल के रूम में आई थी. राहुल किराए के मकान में रहता था और भी कई लड़के उसी मकान में किराएदार थे. इन सब बातों से बेपरवा रश्मि वहां आ गई थी. राहुल रूम में अकेला रहता था, इसलिए उसे किसी के आने का कोई डर नहीं था. राहुल का कमरा देखने में अच्छा था, लेकिन सारा सामान इधर से उधर तक बिखरा था.

‘‘राहुल, तुम्हारा रूम कितना गंदा है, लगता है कभी इस की सफाई नहीं करते?’’

‘‘अब कौन रोजरोज सफाई अभियान चलाए,’’ राहुल एकदम पास आ कर बोला. थोड़ी देर बात करते हुए राहुल रश्मि से एकदम सट कर बैठ गया और उस के कंधे पर अपने हाथों को रख लिया.

रश्मि के कुछ न कहने पर उस का हौसला बढ़ गया और अचानक से रश्मि के नाजुक गालों को चूम लिया.

‘‘यह क्या कर रहे हो,’’ रश्मि उस के पास से हटते हुए बोली. लेकिन उसी पल राहुल ने पागल आशिकों की तरह उस का हाथ पकड़ कर खींच लिया, रश्मि उस के ऊपर आ गिरी. अब रश्मि उस की मजबूत बांहों में समा चुकी थी.

ऐसा नहीं है कि रश्मि ने राहुल से छूटने की कोशिश न की हो, लेकिन राहुल उसे अपने फौलादी हाथों से जकड़े हुए था. रश्मि उस की बांहों में शिकार बने परिंदे की तरह छटपटा रही थी, लेकिन उस की सारी कोशिशें नाकाम रहीं. इस का दूसरा पहलू यह भी था, रश्मि खुद ही राहुल की बांहों में प्यार के गोते लगाना चाहती थी. रश्मि अब राहुल के जिस्म में लता की तरह लिपटी हुई थी और रेगिस्तान में मछली की तरह प्यार में तड़प रही थी. राहुल भी सारी सरहदें पार कर के हद से गुजर जाना चाहता था. प्यार की तड़प, जज्बातों की प्यास और जिस्म की आग दोनों तरफ से इस कदर लगी थी कि उन्हें अच्छेबुरे की सुध ही न रही.

रफ्तारफ्ता यह सिलसिला चलता रहा और प्यार करने की चाहत दिनबदिन बढ़ती गई. लेकिन क्या यह प्यार था या सिर्फ चाहत या जो जिस्मों की प्यास बुझाने के लिए था? इस रिश्ते का नाम कुछ भी हो, एक बात तो तय थी कि इन में से कोई भी ईमानदार नहीं था. रश्मि को मौडल बनना था और राहुल को जिस्म की आग ठंडी करनी थी. रश्मि अपने ख्वाबों को हकीकत बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा चुकी थी, उसे सिर्फ कामयाबी चाहिए थी, फिर चाहे जैसे मिले. इस से रश्मि को कोई फर्क नहीं पड़ता था.

अकसर सुनने में आता है कि झूठ को इतनी बार बोलो कि वह सच लगने लगे, लेकिन आखिर कब तक? कब तक आप किसी से इस तरह से फरेब करते रहेंगे. एक दिन तो सचाई दुनिया के सामने आनी ही है और यह सचाईर् रश्मि के सामने बहुत भयानक रूप में आई.

रश्मि मौडल बनने के लिए कुछ भी कर सकती थी, इसलिए राहुल ने उसे उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया था. वह उसे आजकल में टालता रहा, फिर एक दिन उसे स्टूडियो में ले जा कर उस का फोटोशूट करवाया. विकास सर बोले ‘‘रश्मि, आप को मौडल बनना है?’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि बोली.

‘‘तो आप कल से इस तरह के गांव वाले कपड़े पहन कर मत आना.’’

‘‘जी सर,’’ रश्मि ने हामी भरी.

अगले दिन रश्मि काफी भड़कीला सूट पहन कर आई और फोटोशूट के लिए तैयार हो गई. कैमरामैन शौट लेने के लिए रेडी था. उस ने कई एंगल से शौट लिए. लेकिन विकास जिस तरह का शौट चाहते थे, उन्हें नहीं मिल पा रहा था. वे उठ खड़े हुए और रश्मि को डांटते हुए बोले कि तुम्हें इतना भी नहीं मालूम की कैसे कपड़े पहन कर आया जाता है.

फिर उन्होंने कैमरामैन से डिजाइन किए ड्रैसेज लाने को कहा. उस ने एक बौक्स से कुछ ड्रैसेस निकालीं और रश्मि को पहनने को दीं. रश्मि जब चेंजिंग रूम में गई और एक ड्रैस पहनी और वहीं लगे आईने में देखा तो शरमा गई. जो ड्रैस पहनी थी, उस से बमुश्किल ही जिस्म छिप पा रहा था. लेकिन यह सब तो करना ही था. इसी तरह कई ड्रैसेज में उस ने पोज दिए, रश्मि आज काफी नर्वस थी, उस की हालत देख कर राहुल उसे करीब कर के बोला, ‘‘रश्मि, यह सब तो करना ही पड़ेगा, अब मौडल जो बनना है.’’

‘‘हां राहुल, फिर भी मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा,’’ रश्मि उदासी से बोली.

रात को रश्मि काफी देर तक छत से लटकते पंखे को निहारती रही, ‘क्या मैं जो कर रही हूं, वह ठीक है? या मौडल बनने के चक्कर में किसी दलदल में फंस गई हूं.’ काफी रात तक वह जागती रही, लेकिन उस के लिए किसी नतीजे पर पहुंचना मुश्किल था. एक तरफ बचपन से पाला हुआ ख्वाब था, तो दूसरी तरफ ख्वाबों को हकीकत में बदलने का मौका और इस मौके में कई तरह के खौफनाक मोड़. आज रश्मि का फोटोशूट भोपाल से बाहर एक फार्महाउस में होना था. इसलिए थोड़ी देर बाद रश्मि तैयार हो कर राहुल की बाइक पर शहर से दूर किसी हाइवे पर फर्राटा भरते हुए चली जा रही थी. करीब 40 मिनट बाद उन की बाइक हाइवे से उतर कर एक ऊबड़खाबड़ सड़क पर हिचकोले खाते हुए मंजिल की तरफ बढ़ी.

बा?इक एक आलीशान फार्महाउस के सामने आ कर रुकी. राहुल ने हौर्न बजाया. गेट खुला. फिर दोनों अंदर साथ गए. वहां जा कर रश्मि ने देखा कि फार्महाउस काफी बड़ा है. सामने ही उसे विकास सर नजर आ गए. रश्मि ने नमस्ते कहा. इस के जवाब में विकास सर ने भी.

अंदर जा कर रश्मि ने देखा तो खानेपीने का इंतजाम पहले से ही था. वहीं टेबल पर कुछ बोतलें शराब की थीं. यह सब देख कर रश्मि को अजीब लगा, लेकिन फिर सोचा कि यह सब आज के दौर में चलता है. थोड़ी देर बाद सभी एक बड़े डाइनिंग टेबल पर बैठ कर खानेपीने लगे.

‘‘रश्मि,’’ सक्सेना सर ने उसे शराब पीने का औफर दिया. लेकिन रश्मि ने साफ मना कर दिया. ‘‘यह सब चलता है,’’ राहुल पीते हुए बोला. इस बार रश्मि ने जाम को हाथों से थाम लिया. शराब पीते ही रश्मि को बड़ा अजीब लगा, जैसे कोई तीखी चीज गले को चीर कर अंदर उतर गई हो.

विकास सर और राहुल पर शराब का सुरूर चढ़ा तो उन्होंने इधरउधर की भद्दी बातें करनी शुरू कर दीं. थोड़ी ही देर में विकास सर ने रश्मि को अपने पास बुलाया और हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया और छेड़खानी करने लगे.

‘‘सर, आप क्या रहे रहे हैं, यह सब गलत है,’’ रश्मि ने कहा. लेकिन सही और गलत की किसे परवा थी.

‘‘तुम्हें मौडल नहीं बनना क्या, देखो रश्मि, जिंदगी में कुछ बड़ा करना है तो यह सब गलत नहीं है, और मेरे कुछ करने से तुम्हारी खूबसूरती में कोई कमी नहीं आ जाएगी,’’ यह कहते हुए सक्सेना के हाथ रश्मि के गालों से होते हुए उस के सीने पर आ कर थम गए.

‘‘सर, यह तो मेरे बचपन का शौक है,’’ रश्मि धीमी आवाज में बोली.

‘‘फिर क्यों मना कर रही हो, हम कोई गैर नहीं हैं, हमें अपना ही समझो,’’ विकास सर कहते हुए बदहवास उस पर टूट पड़े.

रश्मि मौडल बनने के लिए अपनी इज्जत दांव पर लगाने से गुरेज करने वालों में नहीं थी, वह जिस्म को मंजिल हासिल करने का सिर्फ जरिया मानती थी और आज उस ने वही किया. यह बात और है कि एक औरत होने के नाते उसे भी थोड़ीबहुत झिझक थी, जो अब टूट चुकी थी.

मन में बाराबर यही आ रहा था कि बचपन से संजोए ख्वाब शायद अब हकीकत बन जाएं. लेकिन यह ख्वाब महंगे साबित होंगे, उस ने सोचा न था. लेकिन महंगे ख्वाब आसानी से पूरे नहीं होते हैं, इस बात का एहसास उसे अब तक हो चुका था. तभी तो अब रश्मि इस खेल में मंझी हुई खिलाड़ी की तरह विकास का साथ दे रही थी. यह सब करते हुए अब उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था, बल्कि जिंदगी का अहम हिस्सा मान कर अपने सपनों के साथ सैक्स का भी मजा लेने लगी. उसे अपनी मंजिल मिल गई थी.

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महंगे ख्वाब: भाग 2- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

12वीं का रिजल्ट आ गया, रश्मि ने स्कूल में टौप किया था. रश्मि के साथ घर वाले भी बहुत खुश थे. खुश भी क्यों न हों, बेटी ने उन का सिर फख्र से ऊंचा जो कर दिया था.

भोपाल के अच्छे कालेज में रश्मि का बीकौम में एडमिशन हो गया. वह पीजी में रहने लगी. उस का कालेज पीजी से आधे घंटे के फासले पर था, जिसे वह बस से तय करती.

रश्मि को आए हुए अभी 2 माह हुए थे कि 5 सितंबर नजदीक आ गया. यानी टीचर्स डे. इस के लिए क्लास के कई लड़केलड़कियों ने तरहतरह के सांस्कृतिक प्रोग्राम करने के लिए तैयारियां शुरू कर दीं. रश्मि को बड़ी जगह पर हुनर दिखाने का पहला मौका हाथ आया था, इसलिए वह किसी भी कीमत पर इसे गंवाना नहीं चाहती थी.

लिहाजा वह भी डांस की प्रैक्टिस में जीतोड़ मेहनत करने लगी. कालेज में प्रोग्राम के दौरान सभी ने एक से बढ़ कर एक झलकियां दिखा कर खूब वाहवाही लूटी, लेकिन अभी महफिल लूटने के लिए किसी का आना बाकी था.

‘तू शायर है, मैं तेरी शायरी…’ माधुरी की तरह डांस करती रश्मि की परफौर्मैंस देख हर तरफ तालियों की ताल सुनाई देने लगी.

सभी की जबां पर यही गीत खुदबखुद चलने लगा था. खैर, जब रश्मि स्टेज से ओझल हुई तब जा कर स्टुडैंट्स शांत हुए. लगभग एक बजे तक प्रोग्राम चला.

सभी टीचर्स के साथ ही लड़कों के बीच रश्मि को मुबारकबाद देने की होड़ सी लग गई. रश्मि के लिए ऐसा एहसास था जैसे हकीकत में वह कोई बड़ी सैलिब्रिटी हो. जितने भी लड़के थे, सभी उस के एकदम करीब हो जाना चाहते थे और यही मंशा रश्मि की थी.

घंटेभर बाद जब भीड़ कम हुई, तभी किसी की आवाज ने उस के कानों में दस्तक दी. उस ने मुड़ कर पीछे देखा, एक हैंडसम लड़के ने उसे मुबारकबाद देने के लिए हाथ बढ़ाया. रश्मि उसे नजरअंदाज न कर सकी और अपने नर्म व नाजुक हाथों को आगे बढ़ा दिया.

‘‘आप बहुत अच्छा डांस करती हैं, देख कर ऐसा लगा कि स्टेज पर माधुरी खुद ही परफौर्मैंस दे रही हों,’’ उस ने बड़ी सादगी से तारीफ की.

‘‘जी, शुक्रिया, मैं इतनी तारीफ के लायक नहीं कि आप मेरी इतनी तारीफ करें,’’ रश्मि सकुचाते हुए बोली.

‘‘मैं सच कह रहा हूं, आप ने वाकई में बहुत अच्छी परफौर्मैंस दी है,’’ अनजान लड़के ने बेबाकी से अपनी बात कही, ‘‘वैसे मेरा नाम राहुल है, और आप का?’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है,’’ रश्मि मुसकराई.

‘‘सोच रहा हूं जो दिखने में इतनी खूबसूरत है, उस का नाम कितना खूबसूरत होगा.’’

‘‘मेरा नाम रश्मि है,’’ रश्मि ने अपनी कातिल निगाहों से उस की तरफ देखा. राहुल ने भी रश्मि की आंखों में आंखें डाल दीं. काफी देर तक दोनों एकदूसरे को बिना पलक झपकाए देखते रहे, जब तक कि राहुल ने रश्मि की आंखों के सामने अपनी हथेलियों को ऊपरनीचे कर के कई बार इशारा नहीं किया.

तब जा कर रश्मि सपने से जागी और लजा गई. ‘‘आप से मिल कर खुशी हुई,’’ राहुल ने रश्मि के चेहरे को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘मैं पढ़ाई के साथ मौडलिंग करता हूं.’’ इतना सुनते ही रश्मि राहुल को देखते हुए सपनों के सागर में अठखेलियां खेलने लगी, उस ने कुछ ही देर में न जाने कितने सपने अकेले ही बुन लिए थे.

‘‘आप कहां खो गईं,’’ बोलते हुए राहुल का चेहरा रश्मि के इतना करीब हो गया था कि गरम सांसें एकदूसरे को महसूस होने लगीं. तभी रश्मि जागी, एक ऐसे सपने से जिस से वह जागना नहीं चाहती थी.

‘‘जी, कहिए क्या बात है,’’ रश्मि हड़बड़ा कर बोली.

‘‘आप किस दुनिया में खो गई थीं, मैं ने आप को कई बार पुकारा,’’ राहुल मुसकराया.

तभी उस का दोस्त रेहान आ गया और प्रैक्टिस पर जाने की बात कही. ‘‘अच्छा रश्मिजी, मैं चलता हूं, अब आप से कब मुलाकात होगी? अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आप का नंबर ले सकता हूं.’’

‘‘जी, क्यों नहीं,’’ और रश्मि ने उसे अपना नंबर दे दिया. शायद यही उस के खुले आसमानों में परवाज करने के लिए कोई खुली फिजा मुहैया करा दे.

रश्मि का राहुल को नंबर देना भर था कि कुछ ही दिनों में दोनों काफी देर तक बातें करने लगे, जो पहले कुछ सैकंड से शुरू हो कर मिनटों पर सवार हो कर अब घंटों का सफर तय करते हुए, मंजिल की तरफ तेजी से बढ़े जा रहे थे.

अब सवाल उठता है कि आखिर वे दोनों कौन से सफर को अपनी मंजिल मान बैठे थे. एकदूसरे का हमसाया बन कर औरों की आंखों में खटकने लगे. लेकिन इन सब बातों से रश्मि और राहुल बेपरवा अपनी जिंदगी में मस्तमौला हो कर हंसीखुशी वक्त बिताने लगे.

एक शाम रश्मि ने राहुल को कौल किया, लेकिन उस के किसी दोस्त ने कौल रिसीव की. ‘‘हैलो, आप कौन? आप किस से बात करना चाहती हैं,’’ उधर से किसी लड़के की आवाज आई.

‘‘मैं रश्मि बोल रही हूं, मुझे राहुल से बात करनी है.’’

‘‘अभी वे बिजी हैं, ऐसा करें आप कुछ वक्त बाद फोन कर लीजिएगा.’’

‘‘जी, आप का शुक्रिया,’’ रश्मि अपनी आवाज में मिठास घोल कर बोली.

करीब आधे घंटे के बाद उधर से राहुल का कौल आया, ‘‘हैलो डार्लिंग, यार, क्या बताऊं थोड़ा काम में बिजी हो गया था.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ रश्मि रूखेपन से बोली.

‘‘समझने की कोशिश करो, रश्मि,’’ राहुल मनाने के अंदाज में बोला, ‘‘सच कह रहा हूं, एक जरूरी काम में बिजी था.’’

‘‘अच्छा, ठीक है,’’ रश्मि ने तंज कसा.

‘‘अभी तक आप का मूड सही नहीं हुआ, अच्छा, कौफी पीने आओगी?’’ राहुल विनम्रता से बोला.

‘‘ठीक है, एक घंटे बाद मिलते हैं,’’ इतना कह कर रश्मि ने कौल काट दी.

एक घंटे बाद जब रश्मि बताए गए पते पर पहुंची तो राहुल पहले से उस के इंतजार में बैठा था.

‘‘क्या लोगी?’’ राहुल ने पूछा.

‘‘कुछ भी मंगा लो,’’ रश्मि नजर उठा कर बोली.

‘‘ठीक है,’’ और राहुल ने 2 कौफी का और्डर दे दिया.

‘‘राहुल, मुझे तुम से एक बात करनी है,’’ रश्मि संजीदगी से बोली.

‘‘हां, बोलो, क्या बात करनी है?’’

‘‘बात यह है कि मैं मौडल बनना चाहती हूं और इस काम में तुम ही मेरी मदद कर सकते हो,’’ रश्मि उस की तरफ देखने लगी.

‘‘अच्छा, यह बात है, मैडम को मौडल बनना है,’’ राहुल बोला.

‘‘हां, मेरी दिलीख्वाहिश है.’’

‘‘ठीक है, मेरी कई लोगों से पहचान है और मैं खुद मौडलिंग करता हूं. इसलिए डोंट वरी. मैडम अब मुसकरा भी दो,’’ राहुल उसे छेड़ते हुए बोला.

इस बात पर रश्मि हंस दी और उस की हंसी ने चारों तरफ अपनी चमक बिखेर दी. थोड़ी देर में कौफी भी आ गई. दोनों गर्मजोशी से बातें करते हुए गर्म कौफी का मजा लेने लगे. रश्मि को अब सुकून था, लेकिन एक डर भी. यह डर कैसा था, खुद रश्मि को नहीं मालूम था. फिर भी उस ने आगे बढ़ने का फैसला कर लिया था.

रश्मि, राहुल के कदमों को फौलो करते हुए पीछेपीछे तेजी से आगे बढ़ी जा रही थी. इन दोनों के पैर पहले फ्लोर में जा कर थमे.

‘‘हैलो राहुल,’’ उस अनजान आदमी ने कहा.

‘‘हैलो सर,’’ राहुल ने जवाब में हाथ बढ़ा दिया.

‘‘सर, ये हैं रश्मि, मिस रश्मि,’’ राहुल ने परिचय कराया.

‘‘और रश्मि, आप हैं विकास सर,’’ राहुल ने उस अनजान की तरफ इशारा करते हुए कहा.

‘‘हैलो सर,’’ रश्मि मुसकरा कर बोली.

‘‘सर, रश्मि की बचपन से बड़ी ख्वाहिश थी कि वह बड़ी हो कर मौडल बने, इसलिए मैं आप से मिलाने लाया हूं, आप इस की मदद कर सकते हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए कुछ करता हूं,’’ विकास सर बोले. इस के बाद विकास सर ने रश्मि से कुछ सवाल पूछे. सभी चायनाश्ता कर के वहां से चल दिए. विकास सर अपने काम से दूसरी तरफ चले गए.

महंगे ख्वाब: भाग 1- रश्मि को कौनसी चुकानी पड़ी कीमत

अपनी मंजिल पाने के लिए जनून एक हद तक सही है, लेकिन व्यक्ति मानमर्यादा की सीमा लांघ कर अपनी मंजिल पाए तो क्या उसे खुशी हासिल होगी? रश्मि भी अपने सपने को हकीकत बनाने की राह पर जा रही थी पर आगे धुंध ही धुंध थी.

‘‘मम्मी, आज आप खाना बना लो, मुझे टैस्ट की तैयारी करनी है, वो क्या है न, आज से मेरे टैस्ट शुरू हो रहे हैं और अगले महीने एग्जाम होंगे.

‘‘ठीक है, बेटी,’’ मां ने रूखेपन से जवाब दिया.

‘‘अरे मां, सच में टैस्ट है. मैं कोई बहाना नहीं कर रही.’’

‘‘अच्छा, ठीक है, कोई बात नहीं,’’ रश्मि की मां अनीता ने झिड़कते हुए जवाब दिया. रश्मि 16 वर्ष की बेहद खूबसूरत लड़की थी. अभी 12वीं में पढ़ रही थी. उस की खूबसूरती के किस्से हर किसी की जबां पर थे. रश्मि कई लड़कों के ख्वाबों की मल्लिका थी.

रश्मि अपने वजूद से महफिल की शमा को रोशन कर देती और अपनी किरण को आशिकों के दिलों में इस कदर उतार देती कि मानो उस के बिना पूरी कायनात अंधेरे में समा गई हो.

हुस्न के साथ ही तेज दिमाग सोने पे सुहागा होता है, रश्मि में ये दोनों खूबियां थीं. यही वजह थी उस के ऊंचे ख्वाब देखने की. वह एक मौडल बनना चाहती थी और चाहती थी कि हर किसी की जबान पर रश्मिरश्मि हो. इतनी मशहूर होने का सपना वह आंखों में संजोए थी.

मौडल बनने की इसी चाह में वह अपने जिस्म पर काफी ध्यान देती और खूब सजधज कर कालेज या किसी फंक्शन में जाती. इतना सब होने के बावजूद रश्मि को अपने बुने ख्वाब अफसाने ही लगते क्योंकि होशंगाबाद जैसे छोटे शहर में रह कर फेमस मौडल बनना मुमकिन न था. फिर, आज भी समाज में इस तरह के कामों को बुरी निगाहों से देखा जाता है.

लेकिन रश्मि ने मन ही मन ठान लिया था कि उसे अपने ख्वाबों को हकीकत बनाना ही है, चाहे उसे किसी भी हद तक जाना पड़े. अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए वह सबकुछ न्योछावर करने को तैयार थी.

‘‘यार सोनल, सुन न, मुझे तुझ से बहुत जरूरी बात करनी है,’’ रश्मि ने सोनल के कंधे को धीरे से पकड़ कर कहा.

‘‘हां, बोल न, क्या बात करनी है, रश्मि.’’

‘‘देख सोनल, तुझे तो पता है कि ‘‘मैं खूबसूरत हूं,’’ रश्मि की बात बीच में काटते हुए सोनल ने उस के चेहरे को एक आशिक की तरह पकड़ कर कहा, ‘‘सच में जान, तुम बहुत खूबसूरत हो. मैं तुम से

अभी इसी वक्त शादी करना चाहती हूं,

आई लव यूयूऊ…’’

‘‘सोनल, यार मेरा मूड मजाक का नहीं है. मैं सीरियस बात कर रही हूं और तुझे हंसीमजाक की लगी है.’’

‘‘सुन रश्मि, मैं सच कह रही हूं, तू बहुत खूबसूरत है. अच्छा यह सब जाने दे. अब बता क्या कह रही थी.’’

रश्मि संजीदगी से बोली, ‘‘मैं आगे की पढ़ाई के साथ मौडलिंग भी करना चाहती हूं.’’

‘‘हां, तो कर, तेरे लिए कौन सी बड़ी बात है. वैसे भी तू एकदम मौडल है ही,’’ सोनल ने रश्मि की हौसलाअफजाई की.

सोनल की बात सुन रश्मि ने कहा, ‘‘तेरी सारी बातें ठीक हैं, लेकिन मौडल कैसे बना जाता है? इस के लिए क्या पढ़ाई करनी पड़ती है? यह सब तो मुझे मालूम

ही नहीं.’’

‘‘हां रश्मि,’’ और सोनल ने गहरी सांस ले कर पूरी हवा को सिगरेट के धुएं के स्टाइल में मुंह बना कर हवा में उड़ा दी.

इस पर दोनों अपना सिर पकड़ कर ऐसे बैठ गईं, मानो कोई राह न दिख रही हो, लेकिन किसी ने सच ही कहा है कि जहां चाह, वही राह.

परीक्षा की घड़ी नजदीक आ गई और परीक्षा के बाद जब रश्मि अपने दोस्तों से मिली तो सभी एकदूसरे से सवालजवाब करने लगे.

तभी वहां पंकज आ गया.

‘‘रश्मि, तुम्हारा पेपर कैसा हुआ?’’ पंकज ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी भैया, बहुत अच्छा हुआ,’’ रश्मि नजरें झुका कर बोली.

पंकज, रश्मि का बड़ा भाई था. रश्मि के अलावा घर में मम्मीपापा और एक छोटी बहन रागिनी थी, जो 10वीं के पेपर दे रही थी. रश्मि के पापा दीपक पाटीदार थे. आमदनी सालभर में इतनी हो जाती कि घर का खर्च आसानी से चल जाता, लेकिन शौक पूरे नहीं किए जा सकते. रागिनी एकदम सिंपल लड़की थी. उसे अपनी दीदी की तरह सजनेसंवरने का बिलकुल भी शौक नहीं था.

12वीं के बाद कोई काम ढूंढ़ने के लिए परेशान होता है तो कोई अच्छी जगह एडमिशन के लिए. रोहित आते ही सोनल को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसा हुआ पेपर?’’

‘‘ठीक ही हुआ है,’’ सोनल मुंह बना कर बोली, ‘‘अपना बताओ?’’

‘‘सब ठीक है, यार, इतने नंबर आ जाएंगे कि फिर से इस स्कूल में नहीं पढ़ना पड़ेगा,’’ यह कहते हुए रोहित की नजर रश्मि की तरफ टिक गई. लेकिन रश्मि उस की इस हरकत से बेपरवा आलिया से बातों में मशगूल थी.

दरअसल, रोहित पिछले 2 वर्षों से रश्मि की चाहत में पागल था, लेकिन कभी दाल नहीं गली. हार कर रोहित अब उस की राह से हट कर सोनल की जिंदगी में आ गया.

‘‘रश्मि, तुम आगे की पढ़ाई करोगी या नहीं,’’ आलिया ने पूछा.

‘‘हां आलिया, मुझे बीकौम करना है,’’ रश्मि ने जल्दी से जवाब दिया.

‘‘इस के लिए तुम्हें बड़े शहर में दाखिला लेना होगा,’’ सोनल तपाक से बोल पड़ी.

रश्मि रेशम जैसे बालों को उंगलियों में नचाते हुए बोली, ‘‘यही तो मुश्किल है. किस शहर जाऊं और किस के साथ.’’ इसी उलझन में शाम हो गई और सभी एकदूसरे से गले मिल कर विदा लेने लगे.

घर पहुंच कर रश्मि ने अपनी बांहों की माला मां के गले में डाल कर जिस्म को ढीला छोड़ दिया. मां मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘बेटा, क्या बात है? आज अपनी मां पर बहुत प्यार आ रहा है.’’

‘‘मम्मी, आप से एक बात कहूं,’’ रश्मि झिझकते हुए बोली.

‘‘हां, बोल क्या बात है? वैसे भी आज मैं बहुत खुश हूं,’’ अनीता उस के गालों को प्यार से खींच कर बोली.

अब रश्मि के सामने दिक्कत यह थी कि वह मम्मी से किस तरह बात शुरू करे और कहां से, लेकिन शुरू तो करना था. इसलिए उस ने हिम्मत कर के मम्मी से कहना शुरू किया.

‘‘मम्मी, बात यह है कि मैं आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना चाहती हूं.’’ यह कहने के साथ रश्मि अपनी मां की आंखों में आंखें डाल कर बड़ी बेसब्री से उन के जवाब का इंतजार करने लगी.

अनीता की सांस जहां की तहां रुक गई. उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या जवाब दें, क्योंकि पति को अच्छी तरह जानती थीं. कुछ लमहों के बाद गहरी सांस छोड़ कर यह कहते हुए खड़ी हो कर जाने लगीं कि इस बात की इजाजत तेरे पापा ही देंगे.

रश्मि को एक पल के लिए ख्वाब टूटते हुए लगे, लेकिन दूसरे ही पल संभल कर बोली, ‘‘मम्मी, आप पापा से बात कर लो. मुझे बड़ा शौक है कि पढ़लिख कर आप लोगों का नाम रोशन करूं.’’

‘‘हूं, अच्छा, ठीक है,’’ मां ने इशारे से हामी भरी और अंदर चली गईं.

रश्मि का सोचसोच कर बुरा हाल हो गया था, ‘अगर पापा ने मना कर दिया तो,’ ‘नहीं, नहीं ऐसा नहीं हो सकता,’ खुद ही सवाल कर के जवाब भी खुद ही देती. उस रात रश्मि की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सारी रात करवट बदलबदल कर सुबह कर दी.

लेकिन अगली सुबह इतनी खूबसूरत होगी, उस ने सोचा न था. अब ख्वाबों को हकीकत बनाने वाली वह जादुई छड़ी रश्मि को मिल गई थी. पापा मान गए थे कि रश्मि आगे की पढ़ाई कर सकती है.

मोहपाश: भाग 4- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

छवि बच्चों को ले कर कौरीडोर में खड़ी थी. ड्राइवर गाड़ी ले आया. बच्चे कूद कर उस में बैठ गए. ड्राइवर बाहर निकल गया, वह समझ गई माहेश्वरी गाड़ी चलाएगा. वह चुपचाप आगे की सीट पर बैठ गई. माहेश्वरी आज बहुत स्मार्ट लग रहा था. जितनी देर बाहर वह मोबाइल पर बात करता रहा, छवि की नजर उसी पर टिकी रही.

माहेश्वरी गाड़ी का दरवाजा खोल कर बैठा. उस ने छवि को देखा. उसे देख कर वह चौंक गया. उस ने फिर छवि को देखा. बरसों बाद आंखों में काजल लगाई छवि आज उसे अलग नजर आ रही थी. पीछे एक बार बच्चों को देखते हुए उस ने फिर छवि को देखा और गाड़ी स्टार्ट की. मौल में प्रृशा का कपड़ा, प्रियम का ड्रैस खरीदा गया. दोनों के लिए खिलौने भी लिए गए. माहेश्वरी शर्ट की शौप पर रुक कर शर्ट देखने लगा. उस ने शर्ट पसंद की और बिल बनाने को कहा.

छवि ने शर्ट पर लगा धब्बा दिखाया. माहेश्वरी ने दूसरी मांगी और मोबाइल पर बात करने लगा. माहेश्वरी की मांगी शर्ट का वह कलर और नहीं था. छवि ने एक दूसरे रंग की शर्ट हाथ में उठाया, तभी माहेश्वरी आ गया. दुकानदार बोला, ‘सर, वह कलर नहीं है, मैडम ने उस की जगह इसे रखा.’

माहेश्वरी ने कहा, ‘ठीक है, जब मैडम ने कहा है, तब यही फाइनल है, बिल बना दो.’

‘मैं ने बस यह शर्ट पकड़ी थी,’ छवि ने धीरे से कहा.

माहेश्वरी ने उसे देखा. पर कुछ जवाब नहीं दिया. ठीक उस के सामने हैंडलूम साड़ियों की दुकान थी. छवि उसे देखे जा रही थी, जिसे माहेश्वरी ने देख लिया था. वह उस साड़ी की दुकान की ओर बढ़ा. छवि समझ गई, इसलिए वह धीरेधीरे चल रही थी.

‘नहीं, मुझे साड़ी नहीं चाहिए,’ वह दुकान में घुसने को तैयार नहीं हो रही थी.

‘छवि स्वाभिमानी होना अच्छी बात है, पर जब स्वाभिमान अहं बन जाता है तब वह अशोभनीय हो जाता है.’

माहेश्वरी के इस कथन पर निरुत्तर हो छवि चुपचाप साड़ी के दुकान में घुसी. बच्चे भी बैठ चुके थे. वह उन की बगल में बैठ गई. माहेश्वरी छवि के पास बैठ गया.

‘किस मैटीरियल में दिखाऊं?’

छवि को साड़ियों का उतना ज्ञान नहीं था. जब तक वह सोच पाती, माहेश्वरी ने कह दिया,

‘ढाका सिल्क में दिखाइए.’

दुकानदार ने दिखाना शुरू किया. उस ने पहले कम मूल्य की साड़ियों को दिखाना शुरू किया. माहेश्वरी ने कहा, ‘थोड़ा बैटर.’

उस ने मंहगी साड़ियों को दिखाना शुरू किया. छवि चुपचाप देख रही थी. माहेश्वरी ने 11 हजार रुपए की साड़ी पसंद कर ली. छवि ने सब से नीचे रखी कम मूल्य की साड़ी को पकड़ा और कहा, ‘इसे.’

माहेश्वरी ने उस का हाथ पकड़ कर धीरे से दबा कर कहा, ‘बस’ और अपनी आंखों से कहने की कोशिश की, ‘बहुत हुआ अब चुप रहो’. छवि माहेश्वरी के इस ब्यवहार से सिहर उठी. उस के मुंह से एक शब्द भी न निकला. प्रृशा ने पापा से कहा, ‘पापा, मुझे भूख लगी है.’

सब मौल के रैस्टोरैंट में बैठ गए. माहेश्वरी ने सूप मंगाया. सब पी रहे थे. अचानक माहेश्वरी को सूप सरक गया, वह खांसने लगा. छवि उठी और माहेश्वरी की पीठ सहलाने लगी. माहेश्वरी लगातार खांस रहा था. अब वह कांपने लगा था. उस ने छवि का हाथ जोर से पकड़ लिया. छवि ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की. खाना खा कर सब वापस घर आए.

छवि माहेश्वरी के प्रति अपने आर्कषण को महसूस करने लगी थी. माहेश्वरी की बातें, उस के ध्यान रखने का अंदाज सब उसे उस के करीब आने पर विवश कर रहा था. उसे रात की बात याद आ गई. वह प्रृशा को कहानी सुना रही थी, माहेश्वरी आया. इस बार वह अंदर आया और प्रृशा के पास बैठ कर बोला, ‘छवि, तुम ने जो मेरी बेटी के लिए किया, उस के लिए मैं तुम्हारा हमेशा एहसानमंद रहूंगा. यह एक छोटा सा उपहार कल पूर्णिमा के कार्यक्रम में तुम साड़ी के साथ पहनोगी, मुझे खुशी होगी.’

छवि ने देखा, उस में एक सुंदर सा गले का छोटा नैकलैस और वैसा ही छोटा सा कान का था. छवि को उस का उपहार देना अच्छा नहीं लगा. वह तुरंत स्टडीरूम में गई जहां महेश्वरी था. छवि कुछ कहती, उस के पहले वह बोल उठा, ‘लाओ वापस दे दो, लौटाने आई हो न, कर दो वापस.’

छवि चौंक गई, इन्हें मेरी बात कैसे पता चली. उस ने झट सैट पीछे छिपा लिया, बोली, ‘नहीं, मैं लौटाने नहीं आई हूं, मैं तो थैक्स कहने आई हूं, सुंदर सैट है.’

‘योर वैलकम,’ माहेश्वरी ने गंभीरता से कहा.

छवि चुपचाप चली आई. उस ने सोच लिया, उस का यहां का काम ख़त्म हो गया है. उसे अब यहां से निकल जाना चाहिए. उसे इस मोहपाश के बंधन से दूर चली जाना चाहिए. उस के लिए उस का बेटा प्रियम, बस, उस का मोहपाश रहेगा. माहेश्वरी जैसे देवपुरुष के जीवन में वह अपने कलंकित जीवन का साया नहीं पड़ने देगी. उस ने निश्चय कर लिया, वह कल पार्टी के बाद अपना इस्तीफा दे देगी.

माहेश्वरी मैंशन में पूर्णिमा के दिन विशेष कार्यक्रम होता था. कार्यक्रम के बाद लंच लेने के उपरांत छवि ने अपना इस्तीफा लिख कर औफिस में पहुंचा दिया. पूरे दिन वह माहेश्वरी के सामने आने से बचती रही. जब भी उस की आवाज सुनती, झट अपने कमरे में चली जाती. रात में वह खाने को पहुंची, तब माहेश्वरी के नौकर ने बताया, साहब ने खाना नहीं खाया, छत पर जा कर बैठे हैं, किसी को भी वहां आने को मना किया है.

उस ने चीना से दोनों बच्चों को देखते रहने को कहा और छत पर चली गई. वह जा कर माहेश्वरी के पास जा कर खड़ी हो गई. माहेश्वरी आरामकुरसी पर आंखें बंद किए चुपचाप गहन सोच की मुद्रा में बैठा था. आहट होने पर उस ने आंखें खोल कर देखा और फिर अपनी आंखें बंद कर लीं मानो उसे पता था, छवि जरूर आएगी.

छवि ने पूछा, ‘आप ने खाना क्यों नहीं खाया?’

‘भूख नहीं है.’

‘क्या हुआ जो भूख नहीं है.’

‘तुम सब जानती हो छवि, फिर क्यों पूछ रही हो.’

‘देखिए, मैं जिस काम के लिए आई थी, वह पूरा हो गया है. प्रृशा अब बिलकुल ठीक है. आप उसे अब स्कूल में डालने वाले हैं. सच पूछिए तो अब बेबी को गवर्नैंस की नहीं, एक मां की जरूरत है.’

‘तुम से अच्छी मां उसे कहां मिलेगी?’

‘मेरे बारे में आप नहीं जानते हैं. मेरा आंचल मैला है. इस में मेरे अतीत के काले गंदे धब्बे हैं.’

‘मैं अपने प्यार से उन धब्बों को धो दूंगा छवि.’

‘मैं एक कुंआरी मां हूं.’

‘मैं अपने नाम के सिंदूर से तुम्हें सुहागन मां बना दूंगा.’

‘आप नहीं जानते हैं, मैं आप की कितनी इज्जत करती हूं, आप पर मेरी कितनी श्रद्धा है. मैं आप के लायक नहीं हूं.’

छवि रोते हुए माहेश्वरी के पैरों पर गिर पड़ी.

‘किस ने कहा, तुम मेरे लायक नहीं हो, देखो, वह पूनम का चांद मुसकराता कह रहा है, तुम्हारी जगह वहां नहीं, यहां है…’

माहेश्वरी ने छवि को उठा कर अपने कलेजे से लगा लिया. छवि माहेश्वरी में सिमट कर सिसक उठी, आखिर माहेश्वरी के मोहपाश के बंधन में वह बंध ही गई.

मोहपाश- भाग 3- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

छवि को मां की याद आती है, उस के कारण उस की मां को लज्जित होना पड़ा. छवि का मन ग्लानि से भर जाता है. वह ठान लेती है, इस बच्ची की मदद वह जरूर करेगी. समय के साथ प्रृशा धीरेधीरे छवि से बहुत घुलनेमिलने लगती है. प्रृशा के कारण छवि माहेश्वरी से भी थोड़ा खुलने लगी थी. वह हंसमुख और स्पष्ट वक्ता है. प्रृशा बीमारी में बिस्तर गीला करने लगी थी, इसी कारण वह अपने पिता से अलग सो रही थी. दुष्प्रभाव का यह भी एक बड़ा कारण था. जैसेजैसे प्रृशा ठीक हो रही थी, सारी गलत चीजें अपनेआप हटती जा रही थीं.

माहेश्वरी के स्टाफ थोड़े जिद्दी एवं हठी लगे. मना करने के बावजूद पृशा की निजी आया चानी को रसोई में लगा देते थे. चानी पृशा के साथ खुब घुली और पृशा उस से ही काम करवाना पसंद करती थी. छवि के मना करने पर भी जब वे बाज नहीं आए, तब छवि को लगा इस विषय पर माहेश्वरी से ही बात करनी होगी. उस ने इंटरकौम में माहेश्वरी के पर्सनल नंबर से बताया, बात करनी है. माहेश्वरी ने कहा कि वह उन का स्टडीरूम में इंतजार करे. छवि सुतपा की सहायता से स्टडीरूम में पहुंच कर माहेश्वरी का इंतजार करने लगी.

कमरे में शीशे की आलमारियों में किताबें सजी थीं. माहेश्वरी परिवार को पढ़ने का शौक है. बहुत देर इंतजार करने के बाद जब माहेश्वरी नहीं आए तब उसे गुस्सा आने लगा. बड़े लोग पैसे कमाने में इतने ब्यस्त रहते हैं, इन्हें अपने बच्चे की भी फिक्र नहीं होती है. मैं उन की बच्ची के बारे में बात करने आई हूं, पर इन का ध्यान तो पैसा कमाने पर है. वह गुस्से से उठ खड़ी हुई. उस ने गुस्से से कुरसी पीछे ढकेला और मुड़ी. उसे पता भी न चला कि कब उस का पैर बुरी तरह मुड़ गया. वह गिरने वाली थी कि किसी की मजबूत बांहों ने उसे संभाल लिया.

उस ने संभालने वाले को देखने के लिए अपना चेहरा घुमाया, उस का चेहरा बिलकुल माहेश्वरी के चेहरे के सामने था. माहेश्वरी का एक हाथ अभी भी छवि की कमर पर था. छवि ने पास में रखी कुरसी की मूठ पकड़ी और उठने की कोशिश करने लगी. माहेश्वरी ने उठने में हलका सहारा दिया. छवि का गोरा चेहरा गुस्सा से और लाल हो रहा था.

माहेश्वरी ने कहा, ‘सौरी, देर हो गई. एक्चुअली अभी मेरे एक स्टाफ के पिता की डेथ हो गई. बौडी को हौस्पिटल से घर लाने का इंतजाम करने में देर हो गई. हां, बोलिए, क्या काम है?’

छवि का हृदय लज्जा से भर गया. वह अपनी गंदी सोच पर शर्मिंदा थी. उस ने माहेश्वरी से पृशा की समस्याओं के बारे में कुछ पूछताछ की और कहा, ‘अब बेबी की जिम्मेदारी उस की है, उसे अपनी तरह से सभांलने की स्वतंत्रता दी जाए, और सारे स्टाफ को पृशा से संबंधित उस का निर्णय मानना होगा.’

छवि को पैर में चोट लगी थी, उसे दर्द हो रहा था. वह उठी और जाने लगी. उसे चलने में तकलीफ हो रही थी. तभी माहेश्वरी ने कहा, ‘छवि रुको, तुम्हारे पैर में चोट आई है, तुम ठीक से चल नहीं पा रही हो.’

‘मैं ठीक हूं, चली जाऊंगी,’ छवि के स्वर में दर्द था.

‘शटअप छवि, मैं जो कह रहा हूं, सुनो,’ उस ने छवि को कुरसी दिया और बोला, ‘बैठो.’

छवि चुपचाप बैठ गई.

‘जिस पैर में चोट लगी है, उसे आगे करो.’

छवि ने चोट लगे पैर को झट से पीछे कर लिया. माहेश्वरी घुटनों के बल नीचे बैठ चुका था. छवि अभी भी संकोचवश चुप थी. माहेश्वरी ने उस के पीछे रखे पैर को खींच कर आगे कर लिया और बोला, ‘पैर ढीला रखो, टाइट मत करना.’

उस ने एड़ी को ले कर दोतीन बार गोलगोल घुमाया और जोर से खींच दिया. छवि की चीख निकल गई और आंखों में आंसूं आ गए. उस का जी चाहा, इस आदमी को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दे, इतनी जोर से दर्द करा दिया. वह उठ कर जाने लगी, उस ने माहेश्वरी को देखना चाहा पर वह वहां नहीं था, शायद वाशरूम में हाथ धोने गया था. छवि धीमे कदमों से अपने कमरे में आ गई. अब उसे आराम आ गया था.

माहेश्वरी का व्यक्तित्व उसे प्रभावित करने लगा था. माहेश्वरी भी छवि से बात करने का मौका चुकने न देता था. छवि के आए काफी दिन हो गए थे. परिस्थितियां अब बदल रही थीं. माहेश्वरी और छवि पृशा के कारण एकदूसरे को काफी जानने लग गए थे. प्रृशा भी अब काफी हद तक ठीक हो चली थी. उस ने बिस्तर गीला करना छोड़ दिया. छवि से उस की अच्छी बनने लगी थी. छवि जो भी कहती, वह झट से मान जाती.

माहेश्वरी अपनी बेटी की सुधरती हालत से खुश था. उसे छवि की देख भाल पर भरोसा होने लगा था. वह अपने पापा के साथ सोने लगी थी. रात को छवि उसे कहानी सुनाने जाती थी. कहानी सुनते समय वह छवि के गले में बांहें डाल देती. छवि धीरेधीरे उस के बाल सहलाती और वह सो जाती. छवि ने गौर किया जब वह पृशा को कहानी सुनाती, माहेश्वरी एक बार कमरे में जरूर आता और दोनों को देख वापस चला जाता. छवि को माहेश्वरी की इस आदत से प्यार होने लगा था. जिस दिन वह देर करता, वह परेशान हो जाती. उसे माहेश्वरी के आने का इंतजार रहने लगा.

एक दिन प्रृशा ने कहा कि उसे पिंक फ्रील वाली फ्रौक पहननी है. फ्रील वाली फ्रौक थी पर पिंक कलर की नहीं थी. बहुत खोजी गई, नहीं मिली. पता चला, पृशा ने दुर्घटना के समय पहनी थी जो फट चुकी है. छवि ने कहा, ‘कोई बात नहीं बेबी, हम शाम को मौल चलेंगे और आप के लिए खुब सारी फ्रील वाली फ्रौक लाएंगे. प्रृशा सुन कर बहुत खुश थी. बहुत दिनों के बाद वह मौल जा रही थी. उस ने पापा को बताया, ‘पापा खाना खाने के बाद मैं आंटी और प्रियम मौल जा रहे हैं शौपिंग करने.’

‘अच्छा, बहुत अच्छी बात है. लेकिन शाम को बहुत भीड़ हो जाएगी डौल, कल सुबह ब्रेकफास्ट के बाद चली जाना.’

‘ठीक है पापा.’

प्रृशा ने खुश हो कर कहा.

माहेश्वरी ने कहा, ‘चलो, मैं भी चलता हूं तुम लोगों के साथ.’

प्रृशा ने अपने हाथों को घुमा कर कहा, ‘यो पापा, यो पापा…’

प्रियम ने भी प्रृशा की देखादेखी नकल कर दी. छवि और माहेश्वरी की नजरें मिलीं. छवि ने नजरें नीची कर लीं. माहेश्वरी के चेहरे पर मुसकान थी.

छवि बोली, ‘बेबी, जब आप के पापा जा रहे है तब मैं रुक जाती हूं.’

‘नहीं आंटी, आप भी चलिए, आप को चलना होगा,’ प्रृशा जिद करने लगी.

‘बेबी, पापा तो जा रहे हैं न.’

‘पापा नहीं जा रहे हैं.’

माहेश्वरी बोल कर चुपचाप चला गया. उस के स्वर से छवि को लग गया कि माहेश्वरी बुरा मान गया है. छवि ने प्रृशा को समझाया, हम सब साथ चलेंगे. दूसरे दिन ब्रेकफास्ट के बाद बच्चों को तैयार कर वह खुद तैयार होने गई. उसे माहेश्वरी की नाराजगी से कहे स्वर रोमांचित कर रहे थे. ‘पापा नहीं जा रहे हैं’ कह कर जिस दृष्टि से माहेश्वरी ने उसे देखा, उस दृष्टि में प्यारभरी शिकायत दिख रही थी. आज उसे अचानक से मौसम खुशगवार सा लगने लगा. उस का मन अच्छे से तैयार होने का होने लगा. तैयार हो कर उस ने इंटरकौम पर फोन मिलाया. उस का दिल जोर से धड़क रहा था, फोन ले कर वह थोड़ी देर चुप रही. माहेश्वरी ने कहा, ‘छवि, बोलो, मैं सुन रहा हूं.’

‘हम सब तैयार हो कर आप का इंतजार कर रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगा.’

‘तब हम सब भी नहीं जा रहे हैं,’ छवि ने धीरे से कहा.

वह पलभर रुक कर बोला, ‘ठीक है, मैं आ रहा हूं.’

मोहपाश: भाग 2- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

 

छवि ने जब तक बच्चा नहीं देखा, वह बेचैन रही. देखने के बाद वह आराम से सो गई. छवि ने बच्चे का नाम प्रियम रखा.

देखतेदेखते छवि की आंखों का तारा प्रियम 3 साल का हो गया. उस की मीठी बोली छवि को अतीत की कड़वाहट भूलने में मदद कर रही थी. सुखदा भी सेवानिवृत्त हो कर कलकत्ता हमेशा के लिए आ गई. सुखदा को अब, बस, छवि के विवाह की चिंता थी. पर दिल से चोट खाई छवि विवाह के लिए राजी नहीं हो रही थी. सुखदा हर सभंव प्रयास कर रही थी कि किसी तरह छवि का घर बस जाए. पर छवि के हठ के आगे वह विवश हो जाती थी. छवि, बस, काम की तलाश में रहती थी.

एक दिन देविका ने छवि को बताया, ‘कलकत्ता के एक बहुत बडे बिजनैसमैन हैं अजीत माहेश्वरी. वे करीब 40 साल के हैं. उन की पत्नी की 2 महीना पहले कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. उन की 7 साल की बेटी है. जब से मां की मौत हुई है, बच्ची बहुत जिद्दी हो गई है. वह बच्ची किसी की बात नहीं मानती. किसी एक बात की जिद करती है, तो उसी को रटती रहती है. उसे कुछ समस्या है. अभी तक जितनी गवर्नैंस रखी गईं, ठीक से देख नहीं पाई हैं. अभी उस के पास कोई नहीं है. उसी को देखने के लिए उन्हें एक अच्छी गवर्नैंस की जरूरत है. खानापीना, रहना सब फ्री. गवर्नैंस को वहीं रहना होगा, तुम यह काम करोगी?’

‘छवि कैसे कर पाएगी, दोदो बच्चों की देखभाल?’ सुखदा ने चिंता ब्यक्त की.

‘दीदी, छवि को एक कोशिश करनी चाहिए. इंटररव्यू दे कर बच्ची से मिल ले, पता चल जाएगा,’ देविका ने सुखदा को समझाया.

‘ठीक है मासी. मां, तुम चिंता मत करो, मैं कर लूंगी,’ छवि ने कहा.

देविका जब माहेश्वरी मैंशन पहुंची तब वहां एक कमरे में बिठा कर उस से कहा गया, ‘बैठिए, सर अभी आ रहे हैं.’

देविका पहली बार इंटरव्यू दे रही थी, मन में खासी घबराहट थी. तभी अजीत माहेश्वरी आ गए. गठा हुआ शरीर, सुंदर नाकनक्श, लंबा कद, घने बाल, गोरा रंग, नीले रंग का सूट, आंखों पर पतले फ्रेम का चश्मा और चेहरे पर तेज, जो उस के ब्यक्तित्व को आकर्षक बना रहे थे. छवि उन से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उन्हें देख दो पल देखती रही, फिर उस ने अपनी नजरें नीची कर लीं.

‘आप तो बहुत कम उम्र की हैं?’ माहेश्वरी ने कहा.

इस बात का छवि क्या उत्तर दे, वह चुप रही.

‘आप की प्रोफाइल में लिखा है आप का एक बेटा है, वह कितने साल का है?’

‘4 साल का होने जा रहा है.’

‘आप को मेरी बेटी के बारे में पता है न, इतने छोटे बच्चे को ले कर आप मेरी बेटी प्रृशा को कैसे हैंडल कर पाएंगी?’

‘जैसे एक मां अपने 2 बच्चों की देखभाल करती है.’

न जाने कैसे छवि यह कह गई. उसे अपने ही इस कहे पर आश्चर्य भी हुआ.

माहेश्वरी इस उत्तर से खुश हो गया, बोला, ‘गुड़, आई एम इम्प्रैस्ड. ठीक है, आप कल से आ सकती हैं. चलिए, मैं आप को बेबी से मिला दूं.’

‘जी नहीं, मैं आज बेबी से नहीं मिलूंगी, कल जब आऊंगी, तभी मिलूंगी.’

छवि माहेश्वरी मैंशन पहुंच जाती है. उस का कमरा प्रृशा के कमरे की बगल में है. कमरे में सुविधा के सारे सामान हैं. एक औरत जो अपना नाम सुतपा बताती है, कहती है, साहब ने मुझे आप के बेटे के साथ रहने के लिए कहा है. बगल के कमरे से लगातार एक बच्ची के चिल्लाने की आवाज आ रही है.

‘नहीं, नहीं खाना है मुझे, मैं कुछ भी नहीं खाऊंगी.’

छवि उस से कहती है, फिलहाल वह उस के साथ वहां चले जहां से लगातार बच्ची के चिल्लाने की आवाज आ रही थी. छवि प्रियम को खिलौने दे कर खेलने को कहती है, ‘यहीं रहना, यहां से कहीं जाना नहीं.’

वह सुतपा के साथ प्रृशा के कमरे में आती है. कमरे में उस के पापा माहेश्वरी भी बारबार प्रृशा को ब्रेकफास्ट खिलाने की कोशिश कर रहे थे. छवि ने उन का अभिवादन किया. उन्होंने छवि की ओर देख कर इशारे से प्रृशा को देखने को कहा. उस दृष्टि में आग्रह के अंदर करुण याचना थी. छवि ध्यान से बच्ची को देखने लगी, 7 साल की दुबली, गोरी सी, छोटे बालों वाली प्यारी सी लड़की, ब्रेकफास्ट न करने को कह रही थी. लगभग आधा दर्जन नौकरानियां बारबार आ कर उस से खाने को कह रही थीं. जितनी बार उस से खाने को कहा जाता, उतनी बार वह न कर देती.

माहेश्वरी ने दोबारा जैसे फिर कहना चाहा, छवि ने इशारे से मना कर दिया. छवि ने आया से कहा, ‘जब वह कह रही है मैं नहीं खाऊंगी, तब तुम लोग क्यों जिद कर रहे हो. जब उस की इच्छा होगी, वह खुद खा लेगी.’

प्रृशा छवि की आवाज़ सुन छवि की ओर देखने लगी. तब छवि ने कहा, ‘बेबी, आप का मन ब्रेकफास्ट करने का नहीं है न?’

‘नहीं,’ उस ने तेज स्वर में कहा.

‘ठीक है, अब आप को कोई तंग नहीं करेगा. जब आप का मन होगा, तब आप कर लेना,’ छवि ने प्यार से कहा.

‘आप कौन हैं?’

‘डौल, ये तुम्हारी…’

‘मैं आप के साथ बात करने और खेलने के लिए आई हूं,’ छवि ने माहेश्वरी की बात काटते हुए कहा. माहेश्वरी का मोबाइल बजा, वह बाहर चला गया. तब तक प्रियम अपने कमरे से निकल कर छवि के पास आ कर खड़ा हो गया था.

‘ये कौन है?’

‘ये मेरे साथ है, मैं इसे आप के साथ खेलने के लिए लाई हूं.’

छवि ने प्रृशा से बात करना शुरू किया. वह लगातार बोलती जा रही थी. छवि उस की हर ऊटपटांग बात का भी जवाब देती जा रही थी. मां के बाद इतने धीरज से किसी ने उस की बातों को नहीं सुना था, इसलिए वह खुश हो गई. उस के मूड को देख कर छवि ने पूछा, ‘अच्छा, अब बताओ, क्या खाओगी.’

पृशा ने खुशी से अपनी इच्छा बताई.

छवि की समझ में आ गया कि वह बिन मां की बच्ची की है. उस बच्ची के दिल की बात समझने वाला कोई नहीं है. घर का हर एक ब्यक्ति उस के साथ, बस, अपना कर्तव्य निभाता है. पिता की समझ में भी ज्यादा कुछ नहीं आता है या हो सकता है उन की पत्नी ने उन्हें कभी इन सभी चीजों में ज्यादा न घसीटा हो. बेबी अगर एक बार मना करती है, फिर घर के दर्जनों नौकर उसे उसी काम की जिद करने लगते हैं, इस से वह चिढ़ जाती है. उसे प्यार और ममता की जरूरत है और बिना जरूरत का प्यार और ममता सिर्फ एक मां दे सकती थी.

मोहपाश: भाग 1- क्या बेटे के मोह से दूर रह पाई छवि

रात का दूसरा प्रहर था. ट्रेन अपनी रफ्तार से गंतव्य की ओर बढ़ी चली जा रही थी. छवि ने धीरे से कंबल से झांक कर देखा, डब्बे में गहन खामोशी छाई थी. छवि की आंखों से नींद गायब थी. उस का शरीर तो साथ था पर मन कहीं पीछे भाग रहा था.

वह बीए फाइनल की छात्रा थी. सबकुछ अच्छा चल रहा था. उस की सहेली लता ने अपने घर में पार्टी रखी थी, वहीं छवि की मुलाकात रौनक सांवत से हुई थी. पहली ही मुलाकात में रौनक उसे भा गया. वह वकालत की पढ़ाई कर रहा था. उस ने स्वयं को शहर के एक प्रसिद्ध पार्क होटल का एकलौता वारिस बताया. जानपहचान कब प्यार में बदल गई, दोनों को पता न चला. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें तक खा लीं.

रौनक के प्यार की मीठी फुहार दिनप्रतिदिन छवि को इतना भिगोती जा रही थी कि भोली छवि अपनी मां की बनाई ‘हां’, ‘न’ की मार्यादित लकीर की गिरफ्त से फिसल कर कब बाहर आ गई, उसे पता ही नहीं चला. जब पता चला तब पैर के नीचे से जमीन निकल गई. 2 महीने बाद फाइनल परीक्षा थी. छवि परीक्षा की तैयारी में जुट गई. परीक्षा के प्रथम दिन उस की तबीयत ख़राब लगने लगी. उस का शक सही निकला, वह गर्भवती थी.

उस ने रौनक से बात करने की बहुत बार कोशिश की. हर बार उस का मोबाइल आउट औफ रीच बता रहा था. दूसरी परीक्षा देने के बाद छवि सीधे पार्क होटल पहुंची, वहां किसी ने भी रौनक को नहीं पहचाना. छवि समझ गई, उस के साथ धोखा हुआ है. छवि भारीमन से घर लौट आई. अच्छी तरह से ठगी गई है, इस का एहसास अब उसे हो गया था. मोबाइल का लगातार न लगना भी संदेह की पुष्टि कर रहा था. अपने अल्हड़पन के गलत मोहपाश ने उसे कहीं का न रखा. वह चुपचाप कमरे में बैठी थी. सुखदा ने आ कर बत्ती जलाई.

‘अंधेरे में क्यों बैठी हो छवि, क्या बात है, पेपर अच्छा नहीं गया क्या?’

‘मां, बत्ती मत जलाओ.’

‘क्या हुआ है, बताओ, कुछ हुआ है क्या?’ सुखदा ने घबरा कर पूछा.

‘मां, तुम मुझे मार डालो, मैं जीना नहीं चाहती.’

‘क्या हुआ है, बताओ तो, जल्दी बोलो,’ सुखदा की आवाज में घबराहट थी.

‘मां, मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई, मैं बरबाद हो गई, मैं कहीं की न रही.’

‘साफसाफ कहो, क्या हुआ है, मुझे बताओ, मैं तुम्हारी मां हूं.’

‘मां, मां, मैं प्रैग्नैंट हूं’

‘क्या, यह तुम ने क्या किया छवि, कौन है वह.’

‘मां, वह झूठा निकला. उस ने खुद को पार्क होटल का वारिस बताया. पर यह झूठ है. उस ने मुझे धोखा दिया, मां.’

‘उस ने तुझे धोखा नहीं दिया पागल लड़की. तूने अपनेआप को धोखा दिया. उसे फोन लगा, मैं बात करूंगी.’

‘उस का फोन बंद है मां. मैं होटल गई थी. वहां उसे कोई नहीं जानता. वह झूठा निकला.’

छवि अपनी नादानी पर जारजार रो रही थी. सुखदा की समझ में नहीं आ रहा था वह इस परिस्थिति से कैसे निबटे. आज नहीं तो कल, यह खबर पूरी कालोनी में आग की तरह फैल जाएगी. छवि की बदनामी होगी अलग. उस का जीवन बरबाद हो जाएगा. वह छवि से बोली,

‘मैं डाक्टर से बात करती हूं. खबरदार, अब कोई गलत कदम तुम नहीं उठाओगी, समझी…’

छवि ने हामी में सिर हिलाया.

दूसरे दिन सुखदा छवि को ले कर नर्सिंगहोम गई. आधे घंटे बाद डाक्टर आ कर बोली, ‘सौरी सुखदा जी, गर्भपात नहीं हो पाया. छवि का ब्लडप्रैशर बहुत ज्यादा लो हो जा रहा है, ऐसे में गर्भपात करने से वह भविष्य में वह मां नहीं बन पाएगी.’

‘एकदो दिनों बाद?’ सुखदा ने पूछा.

‘मुझे नहीं लगता है कि यह सभंव हो पाएगा. अगर फिर वही प्रौब्लम हुई तब रिस्क बढ़ जाएगा.’

घर आ कर सुखदा लगातार फोन पर लगी रही. उस ने छवि से कहा, ‘अपना सारा सामान बांध लो, हम लोग परसों कलकत्ता जा रहे हैं. कलकत्ता में मेरी सहेली देविका बोस है. वह महिला उत्थान समिति की प्रबंधक है. तुम को उसी के पास वहीं रहना है. हम आतेजाते रहेंगे.’

‘मां, तुम हम से बहुत नाराज हो न, इसलिए मुझे ख़ुद से अलग कर रही हो?’

‘ख़ुद से अलग नहीं कर रहु छवि. तुम मेरी बेटी हो. तुम को हम अपने से अलग कैसे कर सकते हैं बेटा. तुम्हारे पापा के नहीं रहने के बाद हम तुम को देख कर ही जी पाए. यहां रहना अब ठीक नहीं होगा. मेरी नौकरी, बस, 3 साल और है. सेवानिवृत्ति के बाद हम भी वहीं आ कर साथ रहेंगे.’

कलकत्ता पहुंच कर समिति की प्रबंधक देविका बोस से मिली. 2 दिन रह कर सुखदा वापस पटना लौट आई. उसे छवि के बिना घर बहुत वीराना लग रहा था. आते समय छवि का क्रदंन भी उस के मन को कचोट रहा था, पर वह परिस्थितियों के कारण मजबूर थी. सुखदा ने सभी को बताया छवि परीक्षा के बाद अपने मामा के यहां गई है. छवि 9वीं कक्षा में थी जब उस के पिता दुनिया छोड़ गए. पतिपत्नी एक ही स्कूल में टीचर थे. पति के नहीं रहने के बाद 4 कमरे में फैल कर रहने वाली सुखदा ने उस में किराया लगा दिया और खुद ऊपर बने 2 कमरे और हाल में आ गई. इस से अकेलेपन का भय कुछ हद तक मिट चला था और थोड़े पैसे भी आ गए थे. परिस्थितियों के बदलने से उसे छवि की भलाई के लिए अपने दिल पर पत्थर रख कर यह फैसला लेना पड़ा. छवि का मन भी स्तब्ध था. अनजाने में की गई एक भूल ने उस के जीवन को ऐसे मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया था जहां से निकलने का रास्ता उसे नजर नहीं आ रहा था.

कलकत्ता में समिति में रहने वाली पीड़ित महिलाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए उन की शिक्षा व योग्यता के आधार पर उपयोगी कक्षाओं का संचालन होता था. समिति में रहने वाली हर महिला का किसी न किसी संस्था में नामांकन जरूरी था ताकि भविष्य में वह आत्मनिर्भर रह सके. निसंतान देविका छवि को अपनी बेटी की तरह प्यार करने लगी. उस का हर संभव प्रयास थे कि वह छवि के खंडित मन को वह फिर से जीवित कर सके.

गरमी की छुट्टियों में जब सुखदा आई तब छवि के पेट का उभार साफ दिखने लगा था. उसे छवि के बढ़ते मनोबल को देख कर बहुत संतोष हुआ कि उस का निर्णय सही था. छुट्टियां बिता कर वह वापस चली गई. नियत समय पर छवि ने एक स्वस्थ और सुंदर बेटे को जन्म दिया. प्रसूतिगृह से अपने कमरे में आने पर छवि लगातार अपने बच्चे को देखने की जिद करने लगी. एक बार तो सुखदा का मन हुआ कि वह छवि के उन्नत भविष्य के लिए झूठ कह दे कि उसे मृत बच्चा हुआ है, लेकिन मां बनी छवि बच्चे के लिए बेचैन हो पूछने लगी, ‘मां, कहां है मेरा बच्चा? प्रसव के बाद मैं ने डाक्टर की आवाज सुनी थी, वे कह रही थीं लड़का है. मैं ने बच्चे की रोने की आवाज़ भी सुनी थी. कहां है मेरा बेटा, बताओ न मां, कहां है मेरा बच्चा?’

नीला पत्थर : आखिर क्या था काकी का फैसला

‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी…’’ पार्वती बूआ की कड़कती आवाज ने सब को चुप करा दिया. काकी की अटैची फिर हवेली के अंदर रख दी गई. यह तीसरी बार की बात थी. काकी के कुनबे ने फैसला किया था कि शादीशुदा लड़की का असली घर उस की ससुराल ही होती है. न चाहते हुए भी काकी मायका छोड़ कर ससुराल जा रही थी.

हालांकि ससुराल से उसे लिवाने कोई नहीं आया था. काकी को बोझ समझ कर उस के परिवार वाले उसे खुद ही उस की ससुराल फेंकने का मन बना चुके थे कि पार्वती बूआ को अपनी बरबाद हो चुकी जवानी याद आ गई. खुद उस के साथ कुनबे वालों ने कोई इंसाफ नहीं किया था और उसे कई बार उस की मरजी के खिलाफ ससुराल भेजा था, जहां उस की कोई कद्र नहीं थी.

तभी तो पार्वती बूआ बड़ेबूढ़ों की परवाह न करते हुए चीख उठी थी, ‘‘कहीं नहीं जाएगी काकी. उन कसाइयों के पास भेजने के बजाय उसे अपने खेतों के पास वाली नहर में ही धक्का क्यों न दे दिया जाए. बिना किसी बुलावे के या बिना कुछ कहेसुने, बिना कोई इकरारनामे के काकी को ससुराल भेज देंगे, तो वे ससुरे इस बार जला कर मार डालेंगे इस मासूम बेजबान लड़की को. फिर उन का एकाध आदमी तुम मार आना और सारी उम्र कोर्टकचहरी के चक्कर में अपने आधे खेतों को गिरवी रखवा देना.’’

दूसरी बार काकी के एकलौते भाई की आंखों में खून उतर आया था. उस ने हवेली के दरवाजे से ही चीख कर कहा था, ‘‘काकी ससुराल नहीं जाएगी. उन्हें आ कर हम से माफी मांगनी होगी. हर तीसरे दिन का बखेड़ा अच्छा नहीं. क्या फायदा… किसी की जान चली जाएगी और कोई दूसरा जेल में अपनी जवानी गला देगा. बेहतर है कि कुछ और ही सोचो काकी के लिए.’’

काकी के लिए बस 3 बार पूरा कुनबा जुटा था उस के आंगन में. काकी को यहीं मायके में रखने पर सहमति बना कर वे लोग अपनेअपने कामों में मसरूफ हो गए थे. उस के बाद काकी के बारे में सोचने की किसी ने जरूरत नहीं समझी और न ही कोई ऐसा मौका आया कि काकी के बारे में कोई अहम फैसला लेना पड़े.

काकी का कुसूर सिर्फ इतना था कि वह गूंगी थी और बहरी भी. मगर गूंगी तो गांव की 99 फीसदी लड़कियां होती हैं. क्या उन के बारे में भी कुनबा पंचायत या बिरादरी आंखें मींच कर फैसले करती है? कोई एकाध सिरफिरी लड़की अपने बारे में लिए गए इन एकतरफा फैसलों के खिलाफ बोल भी पड़ती है, तो उस के अपने ही भाइयों की आंखों में खून उतर आता है. ससुराल की लाठी उस पर चोट करती है या उस के जेठ के हाथ उस के बाल नोंचने लगते हैं.

ऐसी सिरफिरी मुंहफट लड़की की मां बस इतना कह कर चुप हो जाती है कि जहां एक लड़की की डोली उतरती है, वहां से ही उस की अरथी उठती है. यह एक हारे हुए परेशान आदमी का बेमेल सा तर्क ही तो है. एक अकेली छुईमुई लड़की क्या विद्रोह करे. उसे किसी फैसले में कब शामिल किया जाता है. सदियों से उस के खिलाफ फतवे ही जारी होते रहे हैं. वह कुछ बोले तो बिजली टूट कर गिरती है, आसमान फट पड़ता है.

अनगनित लोगों की शादियां टूटती हैं, मगर वे सब पागल नहीं हो जाते. बेहतर तो यही होता कि अपनी नाकाम शादी के बारे में काकी जितना जल्दी होता भूल जाती. ये शादीब्याह के मामले थानेकचहरी में चले जाएं, तो फिर रुसवाई तो तय ही है. आखिर हुआ क्या? शीशा पत्थर से टकराया और चूरचूर हो गया.

काकी का पति तो पहले भी वैसा ही था लंपट, औरतबाज और बाद में भी वैसा ही बना रहा. काकी से अलग होने के बाद भी उस की जिंदगी पर कोई खास असर नहीं पड़ा.

काकी के कुनबे का फैसला सुनने के बाद तो वह हर तरफ से आजाद हो चुका था. उस के सुख के सारे दरवाजे खुल गए, मगर काकी का मोह भंग हो गया. अब वह खुद को एक चुकी हुई बूढ़ी खूसट मानने लगी थी.

भरी जवानी में ही काकी की हर रस, रंग, साज और मौजमस्ती से दूरी हो गई थी. उस के मन में नफरत और बदले के नागफनी इतने विकराल आकार लेते गए कि फिर उन में किसी दूसरे आदमी के प्रति प्यार या चाहत के फूल खिल ही न सके.

किसी ने उसे यह नहीं समझाया, ‘लाड़ो, अपने बेवफा शौहर के फिर मुंह लगेगी, तो क्या हासिल होगा तुझे? वह सच्चा होता तो क्या यों छोड़ कर जाता तुझे? उसे वापस ले भी आएगी, तो क्या अब वह तेरे भरोसे लायक बचा है? क्या करेगी अब उस का तू? वह तो ऐसी चीज है कि जो निगले भी नहीं बनेगा और बाहर थूकेगी, तो भी कसैली हो जाएगी तू.

‘वह तो बदचलन है ही, तू भी अगर उस की तलाश में थानाकचहरी जाएगी, तो तू तो वैसी ही हो जाएगी. शरीफ लोगों का काम नहीं है यह सब.’

कोई तो एक बार उसे कहता, ‘देख काकी, तेरे पास हुस्न है, जवानी है, अरमान हैं. तू क्यों आग में झोंकती है खुद को? दफा कर ऐसे पति को. पीछा छोड़ उस का. तू दोबारा घर बसा ले. वह 20 साल बाद आ कर तुझ पर अपना दावा दायर करने से रहा. फिर किस आधार पर वह तुझ पर अपना हक जमाएगा? इतने सालों से तेरे लिए बिलकुल पराया था. तेरे तन की जमीन को बंजर ही बनाता रहा वह.

‘शादी के पहले के कुछ दिनों में ही तेरे साथ रहा, सोया वह. यह तो अच्छा हुआ कि तेरी कोख में अपना कोई गंदा बीज रोप कर नहीं गया वह दुष्ट, वरना सारी उम्र उस से जान छुड़ानी मुश्किल हो जाती तुझे.’

कुनबे ने काकी के बारे में 3 बार फतवे जारी किए थे. पहली बार काकी की मां ने ऐसे ही विद्रोही शब्द कहे थे कि कहीं नहीं जाएगी काकी. पहली बार गांव में तब हंगामा हुआ था, जब काकी दीनू काका के बेटे रमेश के बहकावे में आ गई थी और उस ने उस के साथ भाग जाने की योजना बना ली थी. वह करती भी तो क्या करती.

35 बरस की हो गई थी वह, मगर कहीं उस के रिश्ते की बात जम नहीं रही थी. ऐसे में लड़कियां कब तक खिड़कियों के बाहर ताकझांक करती रहें कि उन के सपनों का राजकुमार कब आएगा. इन दिनों राजकुमार लड़की के रंगरूप या गुण नहीं देखता, वह उस के पिता की जागीर पर नजर रखता है, जहां से उसे मोटा दहेज मिलना होता है.

गरीब की बेटी और वह भी जन्म से गूंगीबहरी. कौन हाथ धरेगा उस पर? वैसे, काकी गजब की खूबसूरत थी. घर के कामकाज में भी माहिर. गोरीचिट्टी, लंबा कद. जब किसी शादीब्याह के लिए सजधज कर निकलती, तो कइयों के दिल पर सांप लोटने लगते. मगर उस के साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोचने मात्र की कोई कल्पना नहीं करता था.

वैसे तो किसी कुंआरी लड़की का दिल धड़कना ही नहीं चाहिए, अगर धड़के भी तो किसी को कानोंकान खबर न हो, वरना बरछे, तलवारें व गंड़ासियां लहराने लगती हैं. यह कैसा निजाम है कि जहां मर्द पचासों जगह मुंह मार सकता था, मगर औरत अपने दिल के आईने में किसी पराए मर्द की तसवीर नहीं देख सकती थी? न शादी से पहले और शादी के बाद तो कतई नहीं.

पर दीनू काका के फौजी बेटे रमेश का दिल काकी पर फिदा हो गया था. काकी भी उस से बेपनाह मुहब्बत करने लगी थी. मगर कहां दीनू काका की लंबीचौड़ी खेती और कहां काकी का गरीब कुनबा. कोई मेल नहीं था दोनों परिवारों में.

पहली ही नजर में रमेश काकी पर अपना सबकुछ लुटा बैठा, मगर काकी को क्या पता था कि ऐसा प्यार उस के भविष्य को चौपट कर देगा.

रमेश जानता था कि उस के परिवार वाले उस गूंगी लड़की से उस की शादी नहीं होने देंगे. बस, एक ही रास्ता बचा था कि कहीं भाग कर शादी कर ली जाए.

उन की इस योजना का पता अगले ही दिन चल गया था और कई परिवार, जो रमेश के साथ अपनी लड़की का रिश्ता जोड़ना चाहते थे, सब दिशाओं में फैल गए. इश्क और मुश्क कहां छिपते हैं भला. फिर जब सारी दुनिया प्रेमियों के खिलाफ हो जाए, तो उस प्यार को जमाने वालों की बुरी नजर लग जाती है.

काकी का बचपन बड़े प्यार और खुशनुमा माहौल में बीता था. उस के छोटे भाई राजा को कोई चिढ़ाताडांटता या मारता, तो काकी की आंखें छलछला आतीं. अपनी एक साल की भूरी कटिया के मरने पर 2 दिन रोती रही थी वह. जब उस का प्यारा कुत्ता मरा तो कैसे फट पड़ी थी वह. सब से ज्यादा दुख तो उसे पिता के मरने पर हुआ था. मां के गले लग कर वह इतना रोई थी कि मानो सारे दुखों का अंत ही कर डालेगी. आंसू चुक गए. आवाज तो पहले से ही गूंगी थी. बस गला भरभर करता था और दिल रेशारेशा बिखरता जाता था. सबकुछ खत्म सा हो गया था तब.

अब जिंदा बच गई थी तो जीना तो था ही न. दुखों को रोरो कर हलका कर लेने की आदत तब से ही पड़ गई थी उसे. दुख रोने से और बढ़ते जाते थे.

रमेश से बलात छीन कर काकी को दूर फेंक दिया गया था एक अधेड़ उम्र के पिलपिले गरीब किसान के झोंपड़े में, जहां उस के जवान बेटों की भूखी नजरें काकी को नोंचने पर आमादा थीं.

काकी वहां कितने दिन साबुत बची रहती. भाग आई भेडि़यों के उस जंगल से. कोई रास्ता नहीं था उस जंगल से बाहर निकलने का.

जो रास्ता काकी ने खुद चुना था, उस के दरमियान सैकड़ों लोग खड़े हो गए थे. काकी के मायके की हालत खराब तो न थी, मगर इतने सोखे दिन भी नहीं थे कि कई दिन दिल खोल कर हंस लिया जाए. कभी धरती पर पड़े बीजों के अंकुरित होने पर नजरें गड़ी रहतीं, तो कभी आसमान के बादलों से मुरादें मांगती झोलियां फैलाए बैठी रहतीं मांबेटी.

रमेश से छिटक कर और फिर ससुराल से ठुकराई जाने के बाद काकी का दिल बुरी तरह हार माने बैठा था. अब काकी ने अपने शरीर की देखभाल करनी छोड़ दी थी. उस की मां उस से अकसर कहती कि गरीब की जवानी और पौष की चांदनी रात को कौन देखता है.

फटी हुई आंखों से काकी इस बात को समझने की कोशिश करती. मां झुंझला कर कहती, ‘‘तू तो जबान से ही नहीं, दिल से भी बिलकुल गूंगी ही है. मेरे कहने का मतलब है कि जैसे पूस की कड़कती सर्दी वाली रात में चांदनी को निहारने कोई नहीं बाहर निकलता, वैसे ही गरीब की जवानी को कोई नहीं देखता.’’

मां चल बसीं. काकी के भाई की गृहस्थी बढ़ चली थी. काकी की अपनी भाभी से जरा भी नहीं बनती थी. अब काकी काफी चिड़चिड़ी सी हो गई थी. भाई से अनबन क्या हुई, काकी तो दरबदर की ठोकरें खाने लगी. कभी चाची के पास कुछ दिन रहती, तो कभी बूआ काम करकर के थकटूट जाती थी. काकी एक बार खाट से क्या लगी कि सब उसे बोझ समझने लगे थे.

आखिरकार काकी की बिरादरी ने एक बार फिर काकी के बारे में फैसला करने के लिए समय निकाला. इन लोगों ने उस के लिए ऐसा इंतजाम कर दिया, जिस के तहत दिन तय कर दिए गए कि कुलीन व खातेपीते घरों में जा कर काकी खाना खा लिया करेगी.

कुछ दिन तक यह बंदोबस्त चला, मगर काकी को यों आंखें झुका कर गैर लोगों के घर जा कर रहम की भीख खाना चुभने लगा. अपनी बिरादरी के अब तक के तमाम फैसलों का काकी ने विरोध नहीं किया था, मगर इस आखिरी फैसले का काकी ने जवाब दिया. सुबह उस की लाश नहर से बरामद हुई थी. अब काकी गूंगीबहरी ही नहीं, बल्कि अहल्या की तरह सर्द नीला पत्थर हो चुकी थी.

टैडी बियर: भाग 3- क्या था अदिति का राज

 

फिर वह नीलांजना के पास आ कर बोला, ‘‘तुम यहां कैसे? मतलब यहां किसलिए?’’

अर्णव के हैरानपरेशान चेहरे को देख नीलांजना की हंसी छूटने लगी. वह कुछ समझता उस से पहले ही धु्रव अर्णव के कंधे पर हाथ रखते हुए नीलांजना से बोला, ‘‘यह मेरा साला यानी अदिति का भाई है और अर्णव यह मेरी कजिन.’’

‘‘ओह नो…’’

‘‘अर्णव के हावभाव देख कर आदिति सहसा बोली, ‘‘नीलांजना यह तुम लाई हो… क्या तुम ही इस की….’’

‘‘हां भाभी मैं ही इस की ऐक्स गर्लफ्रैंड हूं… सौरी भाभी, प्रोग्राम तो अर्णव को परेशान करने का था, पर आप गेहूं के साथ घुन सी पिस गईं.’’

‘‘ओहो नीलांजना, बस अब बहुत हुआ… तेरे और अर्णव के चक्कर में मेरी प्यारी बीवी परेशान हो रही है. बस अब खोल दे सस्पैंस,’’ धु्रव ने कहा.

नीलांजना अर्णव और अदिति की बेचारी सी सूरत देख अपनी हंसी रोकते हुए बोली, ‘‘हुआ यों कि जब आप का और धु्रव भैया का फोटो सोशल साइट पर वायरल हुआ था तब मुझे इस टैडी को देख कर कुछ शक हुआ था, क्योंकि इस टैडीबियर को मैं ने अपने हाथ से बनाया था, इसलिए आसानी से पहचान लिया. और तो और इस के गले में मेरा वही रैड स्कार्फ बंधा था जो अर्णव को बहुत पसंद था. पोल्का डौट वाला रैड स्कार्फ… याद है अर्णव तुम उस स्कार्फ में देख कर मुझ पर कैसे लट्टू हो जाते थे,’’ कह वह जोर से हंसी तो अर्णव का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

अर्णव किसी तरह अपनी झेंप मिटाते हुए बोला, ‘‘दीदी, कम से कम स्कार्फ तो हटा देतीं.’’

यह सुन कर अदिति शर्म से दुहरी होती हुई बोली, ‘‘तुम दोनों के सामने मेरी और अर्णव की करामात यों सामने आएगी, सोचा नहीं था.’’

‘‘भाभी प्लीज… ये सब मजाक था. आप दोनों को शर्मिंदा करना हमारा कोई मकसद थोड़े ही था… आप भाईबहन की क्यूट बौंडिंग पर हम भाईबहन थोड़ी मस्ती करना चाहते थे. पहले भैया राजी नहीं थे. मुझ पर नाराज भी हुए कि मैं ने अर्णव को तंग करने के लिए टैडी क्यों मांगा… भैया आप से बहुत प्यार करते हैं भाभी… आप की शादी को पूरा 1 साल हो गया है. मैं इंडिया आती आप से मिलती अर्णव भी मिलता तो सब सामने आता ही… ऐसे में फन के लिए मैं ने अपने ध्रुव भैया को पटाया कि चलो थोड़ी मौजमस्ती के साथ यह बात खुले… मेरी ऐंट्री धमाके के साथ हो तो मजा आ जाए…’’ नीलांजना ने अदिति का हाथ पकड़ कर कहा.

अदिति कुछ शर्मिंदगी से बोली, ‘‘जो भी कहो, पर मेरी चोरी धु्रव के सामने इस तरह आएगी मैं सोच भी नहीं सकती थी.’’

यह सुन कर धु्रव ने उसे गले से लगाते हुए कहा, ‘‘दिल तो तुम ने मेरा कभी का चुरा लिया था मेरी जान और हां हमारे प्यार के प्रूफ के लिए किसी टैडीवैडी की जरूरत नहीं… हां बाय द वे नीलांजना ने हमारी शादी के पहले ही मुझे सब बता दिया था. पहले जाहिर करता तो पता नहीं तुम कैसे रिएक्ट करतीं. अब 1 साल में तुम्हें अपने प्रेम में पूरी तरह गिरफ्त में लेने के बाद मैं ने मस्ती करने की गुस्ताखी की है,’’ धु्रव कानों को पकड़ते हुए बोला.

अदिति को अब भी मायूस खड़े देख कर नीलांजना बोली, ‘‘भाभी प्लीज, आप ऐसे सैड ऐक्सप्रैशन मत दो. ऐसे ऐक्सप्रैशन तो मैं अर्णव के चेहरे पर देखना चाहती थी, पर क्या बताऊं, अब उस में भी मजा नहीं, क्योंकि अभीअभी आते समय प्लेन में एक इंडियन से मेरी मुलाकात हो गई. खूब बातें भी हुईं… लगता है वह मुझ में रुचि ले रहा है. फोन नंबर दिया है… देखते हैं क्या होता है?’’ कह कर वह बिंदास हंस दी.

‘‘अदिति सच कहूं तो आज से कुछ साल बाद हम यह किस्सा सुनेंगे, सुनाएंगे और हंसेंगे…’’ धु्रव बोला.

नीलांजना भी कहने लगी, ‘‘भाभी, आप और भैया तथा इस टैडी का फोटो वायरन होने के बाद ही मैं ने अर्णव के प्रति पाली नाराजगी और कुछ आप को तंग करने की गुस्ताखी में अर्णव से टैडी मांगा था. अर्णव कुछ समझ नहीं पाया पर मेरे इस व्यवहार पर इतना नाराज हुआ कि उस ने मुझे दिए सारे गिफ्ट मांग लिए. आस्ट्रेलिया में होने के कारण शादी में मैं नहीं आई, पर कभी न कभी तो मैं अर्णव से मिलती ही, तब सब जान ही जाते… भैया शादी के पहले से ही सब जानते थे. हम ने तय किया था कि किसी ऐसे ही मजेदार मौके पर इस बात का खुलासा करेंगे.’’

‘‘ओह,’’ कह कर अदिति ने अपना सिर पकड़ लिया. फिर अर्णव को धौल जमाती हुए कहने लगी, ‘‘सब तेरी वजह से हुआ है.’’

अर्णव को अपनी पीठ सहलाते देख कर धु्रव हंसते हुए बोला, ‘‘अरे सुनो अदिति, जब टैडी वाली बात सामने आई है तो अब मैं भी कन्फेस कर लूं…’’

‘‘क्या…अब क्या रह गया है,’’ हैरानी से अदिति ने पूछा.

धु्रव हंस कर बोला, ‘‘तुम्हें पहली बार मैं ने जो ड्रैस दी थी. अरे वही पिंक वाली

ड्रैस जो तुम्हारे ऊपर बड़ी फबती दिखती है, जिसे पहन कर टैडी और मेरे साथ तुम ने फोटो खचवाया था, जो वायरल हुआ था सोशल साइट पर…’’

‘‘हांहां, समझ गई तो?’’

उस का मुंह आश्चर्य से खुला देख नीलांजना हंसते हुए बोली, ‘‘भाभी, वह ड्रैस मैं ने अपने लिए औनलाइन मंगवाई थी, पर टाइट पड़ गई… रिटर्न औप्शन भी नहीं था. भैया आप को गिफ्ट देना चाहते थे तो मैं ने कहा इसे दे दो. पैसे बच जाएंगे और ड्रैस भी काम आ जाएगी.’’

‘‘ओह, नो,’’ अदिति सिर थामते हुए बोली. फिर सहसा हंसते हुए कहने लगी, ‘‘फिर तो नीलांजना, हम दोनों तुम्हारे कर्जदार हैं. ये ड्रैस के लिए और मैं टैडीबियर के लिए,’’ फिर सहसा धीमेधीमे हंसते हुए धु्रव को देख नकली गुस्से से बोली, ‘‘और हां, तुम ने उस ड्रैस के लिए कैसेकैसे स्वांग रचे थे… क्या कहा था कि यह ड्रैस देखते ही मैं फिदा हो गया और यह भी कि ड्रैस तुम्हारे लिए बनी हुई लगती है.’’

‘‘हां, तो सही तो कहा था… तभी तो नीलांजना को टाइट पड़ गई…’’ धु्रव की बात सुन कर सब जोर से हंस पड़े. अदिति भी.

तभी अर्णव की आवाज आई, ‘‘दीदी,

10 बजे गए हैं, कुछ खाने को दो. और

हां नीलांजना काफी देर हो गई तुम्हारा कोई फोन नहीं आया. शायद जहाज में बैठे सहयात्री ने तुम्हारे साथ टाइम पास किया होगा. तभी फोन नहीं किया… देख लो, औप्शन अभी भी तुम्हारे सामने है,’’ अर्णव ने शरारत से कहा.

यह सुन ‘‘अर्णव के बच्चे,’’ कहते हुए नीलांजना ने टैडी उस पर दे मारा.

घर की इस गहमागहमी में धु्रव कुछ रूठी हुई अदिति को मनाते हुए कह रहा था,, ‘‘बड़ा शोर है यहां… अगले साल इन हड्डियों से बचने के लिए हम हनीमून पर कहीं बाहर चले जाएंगे…’’

‘‘सच?’’ अदिति ने नकली गुस्सा फेंक कर मुसकराते हुए उसे बाहों में भर लिया.

एकदूसरे से छिपाए गए बड़े झूठ यहां खुले थे, पर जो सच इन के दिलों में बंद था वह यह कि दोनों एकदूसरे से बेइंतहा प्यार करते थे. तभी तो एक के बाद एक हुए खुलासे पर दोनों को हंसी आ रही थी. शादी की पहली सालगिरह की दूसरी सुबह यकीनन यादगार थी.

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