जानें पोस्ट वर्कआउट ग्रूमिंग

जिम जाने वाले युवाओं के लिए जरूरी है पोस्ट वर्कआउट ग्रूमिंग. इस से जहां आप पसीने की बदबू से बचेंगे वहीं खुद को फ्रैश व ऊर्जावान महसूस करेंगे और आप की बौडी व चेहरा चमचमाता नजर आएगा.

युवकों को सिक्स पैक बनाने के लिए या फिर जिम जौइन करने के लिए सब से ज्यादा किसी ने प्रेरित किया है, तो वो हैं सलमान खान. आज यह नाम युवाओं में जूनून बन चुका है. युवा अपने बिजी शैड्यूल से वक्त निकाल कर जिम जाते हैं. यहां तक कि वे जबरदस्त ठंड में भी जिम जाना नहीं छोड़ते, जिस का नतीजा उन्हें कूल बौडी व यंग लुक के रूप में मिलता है. लेकिन जब ये युवा जिम से बाहर निकलते हैं तो इन का पूरा शरीर पसीने से तर होता है, जिस कारण इन से पसीने की बदबू आती है और बाल भी चिपचिपे नजर आते हैं.

आप का फिजिक कितना ही अच्छा हो, लेकिन इस हालत में जब आप जिम से बाहर आते हैं तो पसीने से तरबतर नजर आते हैं, जिस से आप का पूरा व्यक्तित्व जीरो नजर आता है. ऐसे में कोई भी लड़की आप से इंप्रैस होना तो दूर, आप की तरफ देखना भी पसंद नहीं करेगी. आप टैंशन न लें, क्योंकि जब प्रौब्लम आती है तो उस का सौल्यूशन भी अवश्य होता है. ऐसे में हम आप को बताते हैं कि कैसे आप हौट बौडी के साथ हौट लुक को भी मैंटेन रख सकते हैं वह भी पोस्ट वर्कआउट से. बस, इस के लिए आप को कुछ ग्रूमिंग प्रोडक्ट औैर केयर की जरूरत है.

पसीना

जब भी हम शारीरिक श्रम करते हैं तो उस से हमारी बौडी गरम हो जाती है. ऐसे में बौडी के तापमान को मैंटेन रखने के लिए हमारे शरीर से पसीना निकलना शुरू होता है, जिस से शरीर धीरेधीरे ठंडा होने लगता है, लेकिन पोस्ट वर्कआउट स्टेज में भी आप की बौडी से पसीना निकलता है, अगर आप ने कोई भी कूलिंग एजैंट नहीं अपनाया तो यह प्रक्रिया जारी रहती है औैर इसलिए वर्कआउट के बाद कोल्ड शावर लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन वर्कआउट के दौरान उत्पन्न हुई गंदगी, पसीना, धूल, कीटाणु को पूर्णतया शरीर से हटाने के लिए सिर्फ कोल्ड शावर, सोप का इस्तेमाल ही काफी नहीं होता, बल्कि आप को पोस्ट वर्कआउट शावर लेते वक्त शावर जैल यूज करने की आवश्यकता होती है. ये न सिर्फ अच्छे क्लींजिंग एजैंट  हैं बल्कि ये आप की बौडी के मौइश्चर लैवल को भी बनाए रखते हैं. इन से आप खुद को फ्रैश और ऊर्जावान भी महसूस करते हैं.

हेयर नोवोशन

वर्कआउट के तुरंत बाद ऐनर्जी लैवल हाई होता है, ब्लड सर्कुलेशन बढ़ जाता है, जिस की वजह से आप का चेहरा, बौडी, स्किन तुरंत लाल पड़ जाती है. बिलकुल ऐसा ही असर आप की स्कैल्प पर भी होता है, लेकिन बौडी स्किन की तरह स्कैल्प विजिबल नहीं होती और आप को स्कैल्प पर हुआ इफैक्ट नजर नहीं आता. यही कारण है कि जिम जाने वालों में यह कौमन हैबिट नजर आती है कि वे अपनी स्कैल्प को नजरअंदाज कर देते हैं, जिस कारण बालों का वौल्यूम, क्वालिटी, टैक्स्चर खराब होता जाता है, जो थोड़ी केयर करते भी हैं वे अपने पसीने, गंदगी में डूबे बालों को धोने के लिए रैगुलर फोम शैंपू ही यूज करते हैं.

लेकिन अगर आप को अपने बालों की हैल्थ अच्छी रखनी है तो फोम बैस्ड शैंपू, ऐंटी डैंड्र्फ शैंपू या हेयर लौस शैंपू को पूरी तरह अवौइड करें, क्योंकि ये धूलमिट्टी हटाने के साथ ही बालों का नैचुरल औयल भी हटा देते हैं. इसलिए उपरोक्त शैंपू की जगह क्रीम बैस्ड शैंपू को अपनी जिम किट में जगह दें. यह आप के बालों के नैचुरल औयल और मौइश्चर को बालों में लौक कर देता है. यह न सिर्फ आप के बालों और स्कैल्प को हाइड्रैट रखता है बल्कि रफनैस और ड्राइनैस को दूर कर बालों को सिल्की ऐेंड सौफ्ट टच भी देता है, क्योंकि यह शैंपू के साथ कंडीशनर का काम भी करता है.

स्टाइल करैक्टली

वर्कआउट के बाद प्रौपर शावर लेने के बाद भी आप की बौडी का तापमान नौर्मल होने की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है यानी शावर के बाद भी तापमान नौर्मल से थोड़ा ऊपर ही रहता है. इस दौरान अगर आप ने अपने बालों की स्टाइलिंग के लिए गलत जैल जैसे हैवी ड्यूटी जैल या क्रीम इस्तेमाल की तो आप बिलकुल भी स्टाइलिश नजर नहीं आएंगे, क्योंकि ये आप के बालों को फ्लैट कर देंगे. इसलिए शैंपू के बाद कूल मोड पर रख कर हेयर ड्रायर का इस्तेमाल करें. लेकिन अगर यह सुविधा उपलब्ध नहीं है तो आप ऐसे स्टाइलिंग प्रोडक्ट अपने जिम किट में रखें जो क्ले या वैक्स बेस्ड हों. नौर्मल हेयर जैल से ये बेहतर हैं. जैल गरमी से बह जाता है. इस के विपरीत क्ले आप के बालों को मजबूत पकड़ देता है, साथ ही आप के स्कैल्प की स्किन ब्रीद भी कर सकती है.

स्किन डीप नरिशमैंट

पोस्ट वर्कआउट शावर के बाद आप अपनी स्किन पर क्या औैर किस तरह के प्रोडक्ट अप्लाई करते हैं, इस पर भी आप का लुक निर्भर करता है कि आप कूल डूड नजर आते हैं या नहीं. यह तो आप ने जाना कि शावर के बाद भी आप की बौडी का तापमान थोड़ा बढ़ा हुआ रहता है. ऐसे में अगर आप हैवी, क्रीमी, मौइश्चराइजर अप्लाई करेंगे तो आप की बौडी हीट होने की वजह से आप को बेहिसाब पसीना आएगा. ऐसा लगेगा जैसे सूरज की तपन से आप रोस्ट हो रहे हैं और थिक बौडी लोशन यूज करेंगे तो शरीर पिघलता महसूस होगा. दोनों ही स्थितियां आपके पर्सनैलिटी के लिए सही नहीं है. ऐसे में आप अपनी जिम किट में औयल फ्री, लाइट वेट मौइश्चराइजर व लोशन रखिए. इन को लगाने से स्किन पोर बंद नहीं होंगे और त्वचा आसानी से सांस ले सकेगी तथा ये लोशन आसानी से स्किन में अंदर तक समा जाएंगे.

सैक्सुअल हाइजीन: जरूरी है जागरूकता

स्वस्थ जीवन जीने के लिए जितना जरूरी बेसिक हाइजीन है उतना ही जरूरी सैक्सुअल हाइजीन है. आज भी हमारे देश में प्राइवेट पार्ट के हैल्थ और सैक्सुअल हाइजीन के बारे में उतनी गंभीरता से बातें नहीं बताई जाती, जितनी की बेसिक हाइजीन के बारे में, पर क्या आपको पता है सैक्सुअल हाइजीन को इग्नोर करने से कई तरह के गंभीर इंफैक्शन और सैक्सुअल प्रौब्लम हो सकती है. सैक्सुअल प्रौब्लम क्यों होती है और इसे रोकने के उपाय क्या हैं इस बारे में बता रही हैं कोलंबिया एशिया हौस्पिटल, गुड़गांव की कंसलटेंट औब्सटेट्रिक्स और गाइनेकोलौजिस्ट डाक्टर रितु सेठी.

क्यों होता है इंफैक्शन

एक सर्वे के अनुसार लगभग 93% शादीशुदा महिलाएं सैक्सुअल हाइजीन का खयाल नहीं रखती, दिल्ली, मुंबई और बैंगलुरू जैसे बड़े शहरों में एक सर्वे के मुताबिक 45% महिलाएं सामान्य वैजाइनल प्रौब्लम से ग्रसित हैं. लेकिन वे इसे चुपचाप सहती हैं. इस विषाय को किसी से शेयर नहीं करतीं, क्योंकि वे इंटिमेट हाइजीन को इतना महत्त्वपूर्ण ही नहीं समझती. दरअसल महिलाओं को इस बात का एहसास व समझ ही नहीं कि सैक्सुअल हाइजीन का सीधा संबंध सैक्सुअल इंफैक्शन से होता है और इस की कई वजह है.

सैक्सुअल इंफैक्शन की वजह

महिलाओं में जागरूकता की कमी

महिलाओं में सैक्सुअल हाइजीन की जानकारी न होने की सब से बड़ी वजह हमारा सामाजिक ढांचा, जागरूकता व सर्तकता की कमी है. भारत में प्राइवेट पार्ट पर बात करने से लोग झिझकते हैं. यहां तक कि इस बारे में अपने डाक्टर्स से भी बात करने से कतराते हैं. सर्तकता और जागरूकता की कमी के चलते ही आज भी पढ़ीलिखी महिलाएं वैजाइनल हैल्थ व हाइजीन को अनदेखा कर रही है और कई गंभीर यौन रोग का शिकार हो रही हैं. जिस का परिणाम वैजाइना में गंध, खुजली और बैक्टीरियल इंफैक्शन आदि हो जाते हैं.

हाइजीन का ध्यान न देना

प्रकृति ने महिलाओं के वैजाइनल की संरचना कुछ ऐसे की है कि हाइजीन का ध्यान न रखने से वो इंफैक्शन के संपर्क में जल्दी आ जाती हैं जिस के कारण, यूरिन में जलन, फिजिकल रिलेशन बनाने के दौरान योनि में तेज जलन व दर्द, जैसी समस्याओं से हर महिला ग्रसित होती है.

वैजाइना और एनस का आसपास होना

महिलाओं में यूरिन इंफैक्शन की सब से बड़ी वजह उन के वैजाइना और (मलद्वार) एनस के बीच मामूली अंतर होना है अधिकांश महिलाओं में मलत्याग के बाद मल को साफ करने की प्रक्रिया बहुत गलत होती है, जिस से मल का टुकड़ा उन की योनि तक पहुंचना बेहद आसान हो जाता है और ऐसा अकसर होता है इसलिए मल के योनि तक पहुंचने का महिलाओं को पता ही नहीं चलता लेकिन इस के प्रभाव से वो इंफैक्शन का शिकार हो जाती हैं. लेकिन शायद ही महिलाएं इस के प्रति सचेत होती हैं. मल को साफ करने के लिए हाथ को आगे की तरफ न कर के पीछे की तरफ कर के मल की सफाई करें. वैजाइनल की क्लीनिंग का भी खास ध्यान रखें.

इनर वियर का साफ ना होना

महिलाएं अपनी पैंटी की साफसफाई की हमेशा से ही उपेक्षा करती हैं, जो यूरिन इंफैक्शन का कारण होती है. पैंटी का अंदरूनी हिस्सा, संक्रमित ल्यूकोरिया आदि के कारण संक्रमित हो जाता है जिस से पैंटी प्रदूषित रहती है. बाद में इसी पैंटी के जरिए योनि मार्ग से इंफैशन देखने में आता है.

पीरियड के समय सफाई न होना

खास कर पीरियड्स के दौरान अपनी पैंटी की साफसफाई का खास ध्यान न रखना, भी इंफैक्शन की वजह है, जिस से योनि से दुर्गंध युक्त पानी निकलना, प्रदर रोग, योनि व पेशाब में जलन खुजली एक बड़ी वजह हो जाती है.

सैक्सुअल हाइजीन को प्रभावित करने वाले कारक

महिलाओं में सैक्सुअल हाइजीन, हारमोनल परिवर्तन, पीरियड्स टाइम, बीमारी, प्रैगनैंसी, फिजिकल एक्टीविटीज और पैंटी पहनने के प्रकार से प्रभावित होती है. पीरियड्स के दौरान लंबे समय तक एक ही पैड का प्रयोग करने से इंफैक्शन और गंध हो जाती है.

सैक्स लाइफ को प्रभावित करते हारमोनल चेंजेज

महिलाओं में हारमोनल चेंजेज और खराब स्वास्थ्य के दौरान वैजाइनल डिसचार्ज होता है. जिस से योनि में गीलापन होता है और यही गीलापन ईचिंग का कारण होता है. इस के अलावा प्रैगनैंसी और डिलीवरी के दौरान वैजाइना की मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं जो सैक्सुअल हाइजीन को प्रभावित करती है.

महिलाओं में सैक्सुअल हाइजीन की कमी उन की सैक्स लाइफ को खत्म कर देती है.

हाइजीन पर ध्यान देने वाली खास बातें

महिलाओं में प्राइवेट हाइजीन के मूल मुद्दों को अकसर ही नजरअंदाज कर दिया जाता रहा पर हैल्दी रहने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है.

1. सार्वजनिक शौचालयों के इस्तेमाल के समय हमेशा सचेत रहे हमेशा टौयलेट जाते समय फ्लश जरूर करें.

2. पैंटी की सफाई किसी अच्छे डिटरजैंट से करें ताकि वह अच्छी तरह से साफ हो जाए.

3. पैंटी को हमेशा सीधी दिशा में धूप में ही सुखाएं ताकि उस का अंदरूनी हिस्सा धूल, मिट्टी आदि से प्रदूषित न हो सके.

4. रोज पहनने वाली पैंटी पर आयरन जरूर चलाएं. आयरन की गरमी से बैक्टीरिया का पूरी तरह से अंत हो जाता है और पैंटी इंफैक्शन से मुक्त हो जाती है.

5. पीरियड्स के दौरान अपने पैड्स को 6 घंटे के अंतराल पर बदलें इसी समय इंफैक्शन होने का ज्यादा डर होता है.

6. हमेशा लाईट कलर की पैंटी का प्रयोग करें व्हाइट कलर की पैंटी बेस्ट है इस में थोड़ी भी गंदगी साफ पता चलती है.

7. पैंटी को डिटर्जेंट से धोने के बाद एक बार डिटौल व ऐंटीसैप्टिक की कुछ बूंदें डाल कर पानी में जरूर साफ करें इस से पैंटी बैक्टीरिया मुक्त हो जाती है और आप को फंगल या ऐसे किसी अन्य संक्रमण से बचाती है.

8. सिंथेटिक की बजाए कौटन की पैंटी का प्रयोग करें और अपनी पैंटी को हर 3 महीने में चेंज जरूर करें.

9. एक्सरसाइज के बाद पसीने से भीगी पैंटी को तुरंत बदल लें नमी के कारण उस में बैक्टीरिया पनपने का खतरा बढ़ जाता है.

10. वैजाइना को गुनगुने पानी से अच्छी तरह से साफ करें.

11. किसी भी सूरत में टैलकम पाउडर का इस्तेमाल न करें विशेष तौर पर निजी अंगों पर क्योंकि इस से ओवेरियन कैंसर होने की रिपोर्ट्स सामने आ रही है.

12. बहुत ज्यादा टाइट पैंटी न पहनें.

13. अपनी पैंटी को अपने अन्य कपड़ों के साथ कभी न धोएं उसे अलग से साफ करें.

महिलाओं के आवश्यक टैस्ट

नियमित तौर पर स्वास्थ्य जांच कराना भी बहुत जरूरी है, जिस से जीवनशैली संबंधी बीमारियों की जांच कर उन की रोकथाम की जा सके और साथ ही पैप स्मीयर्स जैसे महत्त्वपूर्ण टेस्ट भी हो सके, जिन्हें यौन संबंधों के कारण होने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए किया जाता है, क्योंकि लंबी अवधि में ये बीमारियां सर्वाइकल कैंसर की वजह भी बन सकती हैं. सैक्सुअल तौर पर बेहद सक्रिय महिलाओं को ये जांच अवश्य कराने की सलाह देनी चाहिए.

कम उम्र में ही महिलाओं की जांच जीवनशैली संबंधी बीमारियों के लिए भी हो जानी चाहिए जैसे डायबिटीज. क्योंकि इस का महिलाओं की फर्टिलिटी पर प्रभाव पड़ता है और अगर इस की जांच सही समय पर नहीं हो तो यह महिलाओं के जीवन को युवा उम्र में ही प्रभावित कर सकती है. ऐसी स्थितियों की वजह से लंबी अवधि में महिला और उस के साथी के यौन स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है.

सैक्सुअल हैल्थ के लिए जरूरी है सेफ सैक्स

अक्सर शर्म और झिझक के चलते महिलाएं अपने मेल पार्टनर से सेफ सैक्स पर बात नहीं करती लेकिन आप की सेहत आप के हाथ है. सैक्स के दौरान अपने पार्टनर से कंडोम यूज करने को कहें जिस से कई तरह के गंभीर व जानलेवा यौन संक्रमणों से बचा जा सकता है.

सैक्सुअल हैल्थ के लिए बैलैंस्ड डाइट बहुत जरूरी है. ये इंफैक्शन से बचाता है. यदि वैजाइनल ड्रायनैस है तो सोया प्रोडक्ट्स का अधिक इस्तेमाल करें क्योंकि इस में एस्ट्रोजन का एक प्रकार पाया जाता है जो नेचुरल लूब्रिकेशन को बढ़ाता है इस के साथ एक्सरसाइज भी बहुत जरूरी है.

ये सभी बातें महिलाओं के सैक्सुअल जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं क्योंकि बारबार फंगल इंफैक्शन होने से फिजिकल रिलेशन के दौरान अत्यधिक दर्द और सूखापन हो जाता है जिस से महिलाएं इंटरकोर्स करने से कतराने लगती हैं इसलिए अगर इस की मूल वजह को सुधार दिया जाए और लड़कियों को युवा उम्र से ही अपनी साफसफाई रखने की बात सिखाई जाए तो इस से बेहद तेजी से बढ़ते यौन बीमारियों के मामले नियंत्रित करने में मदद मिलेगी. मूल मुद्दों की जानकारी के अभाव के कारण ही अकसर लड़कियों में यूरिनरी ट्रैक्ट (मूत्रमार्ग) के इंफैक्शन हो जाते हैं और जेनिरी-यूरिनरी सिस्टम में भी फंगल इंफैक्शन हो जाता है. इसलिए जितनी जल्दी हो इस का खास ध्यान रखें.

ज्यादा वजन से होने वाली बीमारियां और इलाज बताएं?

सवाल-

मैं 57 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरा वजन 98 किलोग्राम और लंबाई 5 फुट 3 इंच है. मेरे घुटनों में बहुत दर्द रहता है. और्थोपैडिक सर्जन ने नी रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने से पहले वजन कम करने की सलाह दी है. काफी प्रयासों के बाद भी मेरा वजन कम नहीं हो रहा है. डाक्टर ने मुझे बैरिएट्रिक सर्जरी कराने की सलाह दी है. क्या यह सुरक्षित सर्जरी है?

जवाब-

आप के और्थोपैडिक डॉक्टर ने सही सलाह दी है. आप को नी रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने से पहले अपना वजन कम करना ही होगा क्योंकि वजन अधिक होने से सर्जरी कराने से भी आप को आराम नहीं मिलेगा. बैरिएट्रिक सर्जरी एक बहुत ही सुरक्षित सर्जरी है, लेकिन आप इसे किसी अच्छे अस्पताल में प्रशिक्षित डाक्टर से ही कराएं. इसे कराने के बाद जोड़ों का दर्द भी कम होगा और इस के बाद अगर आप नी रिप्लेसमैंट सर्जरी का विकल्प भी चुनेंगी तो भी अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे.

सवाल-

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. पिछले 2 वर्षों से मैं नियमित रूप से ऐक्सरसाइज कर रही हूं? लेकिन मेरा वजन कम नहीं हो रहा है. मैं जानना चाहती हूं कि खानपान की वजन कम करने में क्या भूमिका है?

जवाब-

वजन कम करने में खानपान की सब से महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. आप कितनी भी ऐक्सरसाइज कर लें लेकिन अगर आप अपनी कैलोरी इनटेक को नियंत्रित नहीं रखेंगी तो वजन कम कर पाना संभव नहीं होगा. दिन में 3 बार मेगा मील खाने के बजाय 6 बार मिनी मील खाएं. गेहूं के बजाय मल्टीग्रेन आटे का सेवन करें. हरी सब्जियां जैसे पालक, मेथी और सरसों खूब खाएं. एक दिन में 600 ग्राम हरी सब्जियां खाने की कोशिश करें. जितनी बार भोजन करें उतनी बार आप की थाली में एक ऐसा पकवान जरूर हो, जिस में प्रोटीन पाया जाता हो. चावल, चौकलेट, कौफी, चिप्स, मिठाई तथा फास्ट फूड के स्थान पर सादा, सुपाच्य तथा संतुलित भोजन लें. भोजन को खूब चबाचबा कर खाएं तथा हमेशा कुछ न कुछ खाते रहने से परहेज करें. रात का खाना सोने से 2 घंटे पहले कर लें.

सवाल-

मेरा 2 साल का बेटा है. उस का वजन थोड़ा ज्यादा है. मैं ने सुना है जो बच्चे बचपन में मोटे होते हैं युवा होने पर उन के मोटापे की चपेट में आने की आशंका अधिक होती है?

जवाब-

गोलमटोल बच्चे सब को बड़े प्यारे लगते हैं. दरअसल, हम छोटे बच्चों के वजन को किसी शारीरिक समस्या से नहीं बल्कि सुंदरता और स्वास्थ्य से जोड़ कर देखते हैं, लेकिन अगर नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों का वजन सामान्य से अधिक है तो उन के महत्त्वपूर्ण अंगों और मस्तिष्क का विकास प्रभावित हो सकता है. बच्चों में मोटापे को रोकने के लिए बनाई इंडियन एकेडमी औफ पीडिएट्रिक्स की एक रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के मोटे वयस्कों में बदलने की आशंका 70% होती है. आप अपने बच्चे के खानपान का ध्यान रखें, उसे अपने साथ वौक पर ले जाएं. जैसेजैसे उस की उम्र बढ़ती जाए उसे आउटडोर ऐक्टिविटीज में भाग लेने और नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करने के लिए प्रेरित करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

8 Tips: स्वस्थ रहना है तो खाएं अखरोट

सेहत के लिए अखरोट के फायदे अनगिनत हैं. अखरोट भी ब्राज़ील नट, काजू, पहाड़ी बादाम और पिस्ते की ही प्रजाति से संबंध रखता है. अखरोट में ओमेगा-3 फैट की उपस्थिति के साथ ही कॉपर, मैंगनीज और बायोटिन भी उच्च मात्रा में होता है. अखरोट को पावर फूड का नाम दिया गया है क्योंकि यह शरीर का स्टेमिना बढ़ाने में मदद करता है.

अखरोट के स्वास्थ्य लाभ

1. नींद ना आने की समस्या को दूर करता है अखरोट

हमारे शरीर को समय पर पर्याप्त मात्रा में नींद की ज़रूरत होती है. मेलाटोनिन नामक होर्मोन हमारी नींद के लिए उत्तरदायी होता है, और यही मेलाटोनिन अखरोट में भी पाया जाता है. इसीलिए जिन लोगों में नींद ना आने की समस्या होती है उन्हें अखरोट के सेवन की सलाह दी जाती है.

2. अखरोट डाइट करने वालों के लिए फायदेमंद

अखरोट में फैट और कैलोरी की भरपूर मात्रा होती है, और अखरोट खाने के फायदें भी अनेक हैं इसीलिए यह डाइट करने वालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है. शरीर को लाभ देने वाले वसा की उचित मात्रा के साथ अखरोट में ज़रूरी फाइबर और प्रोटीन भी होते हैं जो शरीर को ऊर्जा और सेहत प्रदान करते हैं.

3. एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर अखरोट

आपको यह जानकार आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि अखरोट एंटीऑक्सीडेंट का एक बहुत बड़ा स्रोत है. और इसमें ओमेगा 3 एसिड भी उच्च मात्रा में पाया जाता है जो सूक्ष्म कणों की वजह से शरीर को होने वाले नुकसान को ठीक करता है. यह शरीर के लिए एक ज़रूरी वसीय अम्ल है.

4. गर्भधारण करने वाली महिलाओं के लिए अखरोट

अखरोट से होने वाले स्वास्थ्य लाभ सभी के लिए समान होते हैं चाहे वह किसी भी उम्र के हों, इसीलिए बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सभी के लिए अखरोट खाना फायदेमंद माना जाता है. विटामिन B समूह के अंतर्गत आने वाले तत्व जैसे राइबोफ्लेविन, थाइमिन आदि की उपस्थिति भी अखरोट की गिरियों में पाई जाती है जो गर्भवती महिलाओं की सेहत और उनके गर्भस्थ शिशु के विकास के लिए बहुत ज़रूरी और लाभकारी होता है. इसीलिए प्रेग्नेंट महिलाओं को अखरोट का सेवन करना चाहिए.

5. कोलेस्ट्रॉल को कम करता है अखरोट

अखरोट में ओमेगा 3 की उपस्थिति ही शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहयोग देती है. और इसके अलावा पित्ताशय को ठीक रख उसे सुचारु रूप से कार्य करने में भी मदद देती है. इस प्रकार आप देख सकते हैं कि अखरोट सेहत के लिए गुणों का खज़ाना है.

6. अखरोट के सेवन से ब्रेस्ट कैंसर से बचाव

नियमित रूप से अखरोट का सेवन कई बीमारियों से बचा सकता है. रोजाना अखरोट खाने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में फाइटोस्टेरॉल और एंटीऑक्सीडेंट्स मिलते हैं जो ब्रेस्ट कैंसर से बचाव के लिए ज़रूरी होते हैं. इस तरह अखरोट का नियमित सेवन करने से आप ब्रेस्ट कैंसर जैसी भयावह बीमारी से बच सकते हैं.

7. दिल को स्वस्थ रखता है अखरोट

अखरोट हृदय को रोगों से बचाता है. अखरोट को ऐसे ही बिना किसी सैचुरेटेड फैट वाली चीज़ के साथ खाएं. यह आपके दिल को बीमारियों से बचाने में भी मदद करता है. इसमें मौजूद शरीर के लिए सेहतमंद वसीय अम्ल आपके दिल को सेहतमंद बनाते हैं. अपने दिल की हिफ़ाजत के लिए अखरोट को रोजाना अपने आहार में शामिल करें.

8. अखरोट खाने से होता है तनाव कम

उच्च रक्त चाप का मुख्य और सबसे बड़ा कारण तनाव है. तनाव ही आपके ब्लड प्रेशर को बढ़ा कर परेशानियाँ पैदा कर देता है. अनेक तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएँ तनाव को बढ़ाने में मदद करते है. अखरोट को तनाव कम करने वाला आहार माना जाता है, और कई शोधों में इसे सिद्ध भी किया जा चुका है. अतः अखरोट के लाभ अनन्य और बहुमूल्य हैं, इसका आपको नियमित सेवन करना चाहिए.

क्या मोटापे के कारण प्रैग्नेंसी में प्रौब्लम आ सकती है?

सवाल-

मैं 28 वर्षीय घरेलू महिला हूं. मेरी लंबाई 5 फुट 4 इंच और वजन 85 किलोग्राम है. मैं और मेरे पति फैमिली प्लान करना चाहते हैं. क्या मोटापे के कारण गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा बढ़ जाता है?

जवाब-

यह बात बिलकुल सही है कि मोटापे के कारण गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. आप गर्भावस्था के दौरान वजन नहीं घटा सकतीं न ही आप को प्रयास करना चाहिए. अगर आप का वजन अधिक है या आप मोटी हैं तो आप को कम से कम 1 साल पहले अपनी प्रैगनैंसी प्लान करना चाहिए ताकि गर्भावस्था तथा प्रसव के दौरान जटिलताएं न हों और आप एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, प्रतिदिन 100-200 कैलोरी का इनटेक कम कर दें, इस से 1 वर्ष में आप बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के 5 से 10 किलोग्राम तक वजन कम कर लेंगी. अगर कोई महिला मोटापे से छुटकारा पाने के लिए वेट लौस सर्जरी करना चाहती है, तो यह जरूरी सुझाव है कि इसे गर्भधारण की योजना बनाने से कम से कम 18 महीने पहले कराएं.

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गर्भधारण करना किसी भी महिला के लिए सब से बड़ी खुशी की बात और शानदार अनुभव होता है. जब आप गर्भवती होती हैं, तो उस दौरान किए जाने वाले प्रीनेटल टैस्ट आप को आप के व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं. इस से ऐसी किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार या कोई जैनेटिक बीमारी. ये नतीजे आप को शिशु के जन्म के पहले ही स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं.

यों तो प्रीनेटल टैस्ट बेहद मददगार साबित होते हैं, लेकिन यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि उन के परिणामों की व्याख्या कैसे करनी है. पौजिटिव टैस्ट का हमेशा यह मतलब नहीं होता है कि आप के शिशु को कोई जन्मजात विकार होगा. आप टैस्ट के नतीजों के बारे में अपने डाक्टर से बात करें और उन्हें समझें. आप को यह भी पता होना चाहिए कि नतीजे मिलने के बाद आप को सब से पहले क्या करना है.

डाक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टैस्ट कराने की सलाह देते हैं. कुछ महिलाओं के मामले में ही जैनेटिक समस्याओं की जांच के लिए अन्य स्क्रीनिंग टैस्ट कराने की जरूरत पड़ती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Healthy प्रैग्नेंसी के लिए 5 नियमित जांच

प्रैग्नेंसी के बाद वजन कम करने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं एक गृहिणी हूं, मेरी उम्र 35 वर्ष है. मेरा वजन 98 किलोग्राम है. मेरी बेटी के जन्म के बाद मेरा वजन लगभग 27 किलोग्राम बढ़ गया है. मैं ने वजन कम करने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. मेरी लंबाई 5 फुट 1 इंच है. कृपया मुझे बताएं कि मेरा आदर्श वजन क्या होना चाहिए और इसे पाने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

जवाब-

आप को अपना आदर्श वजन पाने के लिए कम से कम अपना वजन 40-45 किलोग्राम कम करना पड़ेगा. इतना वजन कम करने के लिए आप को काफी मेहनत करनी पड़ेगी. पहले किसी डाइटिशियन की देखरेख में आप ऐक्सरसाइज और डाइट के द्वारा 10 किलोग्राम वजन कम करने का लक्ष्य रखें.

इस के बाद वजन कम करने के लिए हम कुछ दवाइयां लेने का सुझाव भी देते हैं, लेकिन आप को शुरुआत डाइट और ऐक्सरसाइज से ही करनी चाहिए. नाश्ता हैवी करें, लंच और डिनर हलका लें. खाने के बीच में थोड़ा सलाद और फल खाएं. 1 सप्ताह में 500 ग्राम वजन कम करने का लक्ष्य रखें. 3-4 महीने तक यह प्रयास करें और परिणाम देखें.

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दिल्ली की 32 वर्षीय गृहिणी शुचिका चौहान अपने बढ़ते वजन को अपनी शारीरिक सुंदरता में एक बड़ी कमी मानते हुए कहती है, ‘‘खाने की अधिकता और शारीरिक श्रम की कमी के कारण बढ़ता मोटापा ही मेरी परेशानी की वजह है और मु झे डर है

कि कहीं आगे यह और न बढ़ जाए, इसलिए मैं ने इसे नियंत्रित करने पर ध्यान देना शुरू कर दिया है.’’

मगर उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी रोग आदि भयंकर बीमारियों को बुलावा देने वाले इस मोटापे की चपेट में आने के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें नजरअंदाज कर लोग बढ़ते वजन की समस्या का शिकार होते चले जाते हैं.

इस की असल वजह है अस्वास्थ्यकर खुराक भरी स्टार्चयुक्त भोजन, फलों तथा सब्जियां रहित खाना और शारीरिक श्रम का अभाव. महिलाओं के लिए भी खतरा कम नहीं है. देश में पुरुषों से ज्यादा स्त्रियां खासकर 35 से ज्यादाकी आयु वाली अधिक वजन की है.

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वजन न बढ़ने के कारण परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 62 साल है. मैं बहुत दुबलीपतली हूं. दूध, घी, हरी सब्जियां, फल, जूस सभी कुछ खातीपीती हूं, पर चेहरे पर रौनक नहीं आती. नींद न आने की भी थोड़ी समस्या है, जिस के लिए मुझे नींद की गोली लेनी पड़ती है. रोजाना सुबह 2 किलोमीटर की सैर भी करती हूं, 1 घंटा व्यायाम करती हूं. फिर भी न तो वजन बढ़ता है, न ही चेहरे पर चमक आती है. सोशल गैटटुगैदर और पार्टी वगैरह में जाते समय सोचती हूं कि काश मेरा शरीर थोड़ा अधिक भरा होता. कृपया समाधान बताएं?

जवाब-

सब से पहले यह बात जान लें कि हर किसी के शरीर की संरचना दूसरे से भिन्न होती है. यह संरचना हमारी आनुवंशिकी, हमारे बचपन, हमारे शारीरिक विकास, हमारी मानसिक प्रवृत्तियों और अगर वर्तमान के नए आयुर्विज्ञान सिद्धांतों को समझें तो हमारी आंतों में जी रही बैक्टीरिया की बस्ती, जिसे वैज्ञानिक माइक्रोबायोम कहते हैं, इन तमाम चीजों पर निर्भर करती है.

आप जिस उम्र में आ पहुंची हैं, उस में इन चीजों को बदलना नामुमकिन है. बस खुश रहिए, चिंता कम करें और जीवन का पूरा आनंद लें. वजन कम होना स्वास्थ्य के लिए अच्छा ही है. उस से शरीर के जोड़ों और रीढ़ पर कम भार रहता है और व्यक्ति आर्थ्राइटिस तथा दूसरी बहुत सी बीमारियों से बचा रहता है.

चेहरे की रौनक शारीरिक वजन से अधिक मन की अवस्था पर निर्भर करती है. आप का भरापूरा परिवार है, आप के पास सुख के सभी साधन हैं, उन का आनंद लेने से ही जीवन में खुशियों का वसंत खिला रह सकता है.

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जिस तरह वजन का बढ़ना एक बीमारी है, उसी तरह से वजन का जरुरत से ज्यादा कम होना भी एक बीमारी ही है. अगर शरीर बहुत कमजोर और दुबला-पतला हो तो आपका हर कोई मजाक उड़ाता है और आप हर जगह हंसी का पात्र बनते हैं.

वजन की कमी को दूर करने के लिए आपको कुछ खास खाद्य पदार्थ को अपने रोज के भोजन में शामिल करना चाहिए. हम आपको बताएंगे कि किन चीजों को खाने से आप आसानी से अपने आपको चुस्त-दुरुस्त और हष्ट-पुष्ट बना सकते हैं.

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कैसी हो बच्चे की इम्यूनिटी वाली डाइट

अन्नपूर्णा और प्रीति दोनों ही अपने बच्चों को ले कर पार्क में घुमाने लाई थीं. अन्नपूर्णा का बेटा मयंक जहां बच्चों की हर ऐक्टिविटीज और गेम्स में भाग ले रहा था और जीत भी रहा था वहीं उस से 1 साल बड़ा प्रीति का बेटा किंचित थोड़ा सा खेल कर ही थक चुका था और एक कोने में बैठा एक पप्पी को तंग करने में मशगूल था.

प्रीति ने उदास स्वर में अन्नपूर्णा को अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा, ‘‘यार अन्नू तेरा बेटा तो बड़ा स्ट्रौंग है. उसे जब भी देखती हूं हमेशा ऐक्टिव दिखता है और हर चीज में अव्वल रहता है पर मेरा बेटा कहीं मन ही नहीं लगाता. बहुत जल्दी थक जाता है और उस की ग्रोथ भी ठीक से नहीं हो रही. मुझे लगता है किंचित उम्र में बड़ा है, मगर लंबाई में भी मयंक ने ही बाजी मारी है.’’

‘‘हां यार यह तो सच है कि मेरा बेटा हर जगह अव्वल आता है और इस की एक वजह यह है कि मैं ने शुरू से ही उस के खानपान पर पूरा ध्यान दिया है. मैं उसे हमेशा अच्छी डाइट देती हूं.’’

‘‘मगर मेरा बेटा तो खाने में इतने नखरे करता है कि क्या बताऊं. मुश्किल से कुछ गिनीचुनी चीजें खाता है. हां जंक फूड्स जितने भी दे दो उन्हें खुशीखुशी खाता है. तभी मैं उसे पिज्जा, बर्गर, फ्रैंच फ्राइज ही दे देती हूं खाने को. आखिर उस का पेट तो भरना है न इसलिए जो खाता है वही खिला देती हूं,’’ प्रीति ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘मगर यह तो बिलकुल सही नहीं है प्रीति. इस तरह तो उसे सही पोषण ही नहीं मिलेगा. पोषण का ध्यान नहीं रखोगी तो आगे जा कर उस के शारीरिकमानसिक विकास में अवरोध आएगा. कम उम्र में ही बीमारियां घेरने लगेंगी. बच्चे जो खाना चाहते हैं वह दे देना सही नहीं. उन्हें वे चीजें ही खिलाओ जो उन के लिए जरूरी हैं,’’ अन्नपूर्णा ने समझया.

‘‘और जो वह न खाए तो?’’

‘‘तो देने का तरीका बदलो. मान लो उसे दाल खाना पसंद नहीं, मगर दालें प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती हैं. ऐसे में आप चीला बना कर दाल खिला सकती हो. मसलन, कभी बेसन का तो कभी मूंग दाल का स्वादिष्ठ चीला खिलाइए. वह इनकार कर ही नहीं पाएगा. इसी तरह वह दूध नहीं पी रहा तो उसे पनीर की सब्जी खिलाइए या दूध में चौकलेट फ्लेवर का बौर्नविटा या हौर्लिक्स मिला कर दीजिए. अगर वह हरी सब्जी नहीं खा रहा तो उन्हें बनाने का अंदाज बदल कर देखिए या सब्जी भर कर परांठा बना लीजिए.’’

‘‘यार तूने तो मेरी आंखें खोल दीं. कितने अच्छे तरीके बताए हैं तूने. मैं कल से ही ट्राई करती हूं,’’ खुश हो कर प्रीति ने अन्नपूर्णा का शुक्रिया किया.

यह सच है कि बच्चे अकसर खाने में आनाकानी करते हैं, पर आप को उन्हें हैल्दी खाना खाने की आदत डालनी होगी. बच्चों की सेहत का बचपन से ही खयाल रखने की जरूरत होती है ताकि उम्र के साथ उन की सेहत और इम्यूनिटी मजबूत हो और उन के शरीर को तमाम इन्फैक्शन और बीमारियों से लड़ने की ताकत मिले. बढ़ती उम्र में बच्चों को सही और भरपूर पोषण की जरूरत होती है जिस में प्रोटीन, विटामिन जैसे कई तरह के पोषक तत्त्व शामिल हैं.

अगर बच्चों की डाइट में इन का अभाव हो जाए तो उन्हें कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं घेर सकती हैं. पहले यह जानना होगा कि आप के बढ़ते बच्चे की डाइट में कौन से पोषक तत्त्व शामिल करने जरूरी हैं और इस के लिए कौन से चीजें खिलानी जरूरी हैं.

बढ़ते बच्चों के लिए जरूरी पोषक तत्त्व

प्रोटीन: अच्छे विकास और ताकत के लिए प्रोटीन बच्चों की डाइट में ज़रूर होना चाहिए. यह एक ऐसा तत्त्व है जिस की जरूरत सिर्फ बड़ों को ही नहीं बल्कि बच्चों को भी होती है. यह तत्त्व शरीर के सैल्स के निर्माण, भोजन को ऐनर्जी में बदलने, इन्फैक्शन से लड़ने और शरीर में औक्सीजन के लैवल को बनाए रखने में मदद करता है. प्रोटीन की पूर्ति के लिए सोयाबीन, दालें, अंडा, चिकन और डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन कराएं.

कैल्सियम: बच्चों के शरीर को कैल्सियम की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि उन की हड्डियां, दांत कैल्सियम से ही मजबूत होते हैं. 35 साल की उम्र तक पीक बोन मास बनता है, इसलिए मजबूत हड्डियों के निर्माण के लिए भी सही मात्रा में कैल्सियम का सेवन करना बहुत जरूरी है. आप उन्हें दूध, दही, पनीर सहित अन्य डेयरी प्रोडक्ट्स दें जिन में पर्याप्त मात्रा में कैल्सियम मौजूद होता है. उन्हें सुबह की धूप लेने की आदत भी डालनी चाहिए ताकि विटामिन डी शरीर को मिले.

फाइबर: फाइबर के सेवन से पाचनतंत्र स्वस्थ रहता है, पोषक तत्त्वों का अवशोषण ठीक से होता है. हर बच्चे के आहार में फाइबर को जरूर शामिल करना चाहिए. इसके लिए आप ब्रोकली, सेब, नट्स, ऐवोकाडो, नाशपाती आदि दे सकती हैं.

आयरन: इस के सेवन से बच्चे का विकास ठीक तरह से होता है क्योंकि आयरन रैड ब्लड सैल्स के निर्माण के लिए बहुत जरूरी है जो पूरे शरीर में औक्सीजन पहुंचाती हैं. खून की कमी से कई तरह के रोग पैदा होते हैं. इस के विपरीत जब शरीर में आयरन की पर्याप्त मात्रा होती है तो इस से खून तो तेजी से बनता ही है साथ ही ध्यान और एकाग्रता में भी सुधार आता है.

यही वजह है कि बढ़ते बच्चों के लिए आयरन बहुत जरूरी होता है. इस के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, मछली, अंडा, मांस, चुकंदर, साबुत अनाज, बींस, नट्स, ड्राई फू्रट आदि देने चाहिए.

विटामिन सी: विटामिन सी सर्दीजुकाम से लड़ने के साथसाथ और भी कई तरह से फायदेमंद होता है. यह रक्तवाहिकाओं की दीवारों को मजबूत करता है, घाव को सही करने के साथ ही दांतों और हड्डियों को भी मजबूती देता है. जब बच्चा बढ़ता है तो उस के शरीर को विटामिन सी की सख्त जरूरत होती है. इस तत्त्व की पूर्ति के लिए बच्चों को खट्टे फल, टमाटर, स्ट्राबेरी, आम, नाशपाती, ब्रोकली, पालक जैसी चीजें खिलाएं.

फौलेट: शायद बहुत कम लोगों को पता हो लेकिन फौलेट भी बढ़ते बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है. यह बच्चों के शरीर के सैल्स को मजबूत और हैल्दी रखता है. इस विटामिन की कमी से बच्चों को एनीमिया रोग यानी शरीर में खून की कमी हो सकती है. बच्चों की बौडी में फौलेट की मात्रा बनी रहे इसलिए उन्हें मिक्स अनाज का दलिया, पालक, चने, मसूर की दाल और स्प्राउट्स जैसी चीजें दें.

कार्बोहाइड्रेट: यह भी बच्चों के बेहतर विकास के लिए एक जरूरी तत्त्व है. यह ऊतक के निर्माण और मरम्मत करने में महत्त्वपूर्ण है. कार्बोहाइड्रेट कई अलगअलग रूपों (शर्करा, स्टार्च, फाइबर) में आते हैं. लेकिन बच्चों को स्टार्च और फाइबर अधिक और चीनी कम देनी चाहिए. ब्रैड, आलू, पास्ता, चावल और अनाज आदि में प्रचुर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट होता है.

बढ़ते बच्चों की डाइट में जरूर होनी चाहिए ये पौष्टिक चीजें:

दूध: दूध बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि इस में कैल्सियम की पर्याप्त मात्रा होती है जिस से हड्डियां मजबूत बनती है. साथ ही दूध में विटामिन ए,बी2 और बी12 भी होते हैं जो शारीरिक विकास के लिए जरूरी हैं.

ब्रोकली: ब्रोकली में भरपूर मात्रा में कैल्सियम पाया जाता है. इस से बच्चों की हड्डियां मजबूत होती हैं. आप अपने बच्चे को इस का सूप दे सकती हैं या फिर दूसरी सब्जियों के साथ मिला कर इसकी सब्जी तैयार कर सकती हैं.

बादाम: हर सुबह मुट्ठी भर बादाम बच्चों की याददाश्त, नजर और यहां तक कि मानसिक विकास में मदद कर सकते हैं. बादामों में कई प्रकार के खनिज, विटामिन और स्वस्थ वसा पाई जाती है जो शरीर के लिए भी काफी फायदेमंद मानी जाती है.

अध्ययनों के अनुसार बादाम, हड्डियों के बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी सहायक हैं. इन में मौजूद विटामिन ई बच्चों की लंबाई बढ़ाने में सहायक माना जाता है.

डेयरी उत्पाद: प्रोटीन के अलावा, हड्डियों की बेहतर संरचना और मजबूती के लिए कैल्सियम की आवश्यकता होती है. डेयरी उत्पाद जैसे दही, पनीर, दूध और मक्खन में भरपूर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है. दूध स्वस्थ वसा, फास्फोरस और मैग्नीशियम प्रदान करता है जो बच्चे की लंबाई को बढ़ाने में मदद करता है. 1 गिलास दूध में करीब 8 ग्राम तक प्रोटीन होता है जो मांसपेशियों के निर्माण में भी सहायक होता है.

अंडे: वसा और प्रोटीन का समृद्ध स्रोत अंडे सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. 1 बड़े अंडे में करीब 6 ग्राम प्रोटीन होता है. इस में मौजूद अमीनो ऐसिड हड्डियों के निर्माण को बढ़ावा देता है और उन्हें मजबूत बनाता है. इस के अतिरिक्त अंडों से विटामिन डी भी प्राप्त किया जा सकता है जो हड्डियों को कैल्सियम ठीक से अवशोषित करने में मदद करता है. अंडों में कोलीन नामक पोषक तत्त्व भी भरपूर मात्रा में होता है जो मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी होता है. अंडों को बौयल, फ्राई या किसी भी अन्य रूप में बच्चे को दें.

बैरीज: ब्लूबेरी और स्ट्राबेरी में पोटैशियम, विटामिन सी, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर और ऐंटीऔक्सीडैंट होता है. इस में फैट और कोलैस्ट्रौल नहीं होता. इन का स्वाद मीठा होता है इसलिए बच्चे इन्हें पसंद करते हैं. इन्हें आप ओटमील, दही, दलिया आदि में मिक्स कर सकती हैं.

शकरकंद: यह आंखों के लिए बहुत ही फायदेमंद है. इस में विटामिन ए, सी, ई, कैल्सियम, पोटैशियम और आयरन होता है.

जब निकलें शिशु के दांत

बच्चे के दांतों को निकलता देखना हर पेरैंट्स के लिए बहुत खुशी की बात होती है. पहला दांत आने का मतलब यह होता है कि अब शिशु खानेपीने की हलकी ठोस चीजें खा सकेगा. मगर बच्चे के लिए दांत निकलना कष्ट का सबब बन जाता है क्योंकि दांत आते समय बच्चे को दर्द, बुखार जैसी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

अगर आप का छोटा बच्चा भी बिना किसी वजह के रो रहा है, हर चीज अपने मुंह में डाल रहा है या बिना वजह परेशान है तो ये संकेत दांत निकलने के हो सकते हैं. आमतौर पर बच्चों के दांत 4 से 7 महीनों के बीच निकलने शुरू हो जाते हैं. वैसे कुछ बच्चों के दांत आने में देरी भी होती है. दांत निकलने के क्रम में शरीर में कुछ बदलाव भी आते हैं, लेकिन जानकारी के अभाव में पेरैंट्स सम?ा नहीं पाते और बेवजह परेशान होने लगते हैं.

दांत निकलने के लक्षण

बारबार रोना और परेशान दिखना. जब दांत निकलते हैं तो बच्चों के मसूड़ों में तकलीफ होती है. ऐसे में वे चिड़चिड़े और परेशान रहते हैं. ठीक से सो भी नहीं पाते.

पेट में समस्या

जब बच्चों के दांत निकलते हैं तो उन्हें डायरिया यानी लूज मोशन की समस्या हो सकती है जो 2-3 दिन रह सकती है. कुछ बच्चे इन दिनों कब्ज से भी परेशान रहते हैं, जिस के कारण उन के पेट में दर्द होता रहता है.

चीजें मुंह में डालना

जब बच्चे के दांत निकलते हैं तो वह हर चीज को मुंह में डालने लगता है क्योंकि मसूड़ों में खुजली, सूजन और दर्द रहता है. ऐसे में बच्चों को चबाने से आराम मिलता है. दरअसल, बच्चों के मसूड़ों के मांस को चीर कर दांत बाहर निकलते हैं, इसलिए उन में दर्द और खुजली होती है. इस तकलीफ से राहत पाने के लिए वे इधरउधर की चीजें उठा कर उन्हें चबाने की कोशिश करते हैं.

हलका बुखार

बच्चे के दांत निकलने पर उस के मसूड़ों में खारिश होने लगती है, जिस के कारण वह किसी भी चीज को उठा कर मुंह में डालने लगता है और कई बार साफसफाई का ध्यान नहीं रखने पर बच्चा इन चीजों पर मौजूद बैक्टीरिया के कारण संक्रमित हो जाता है. इस से बच्चे का पेट खराब हो जाता है और उसे उलटी व दस्त की समस्या हो जाती है. कई बार इन्फैक्शन के कारण उसे बुखार भी आ जाता है.

कई मातापिता शिशु को दांत निकलने के समय होने वाली दिक्कतों से बचाने के लिए दवा का उपयोग करने लगते हैं जबकि ऐसा करने से बचना चाहिए. दांत निकलने में दवा के इस्तेमाल के बजाय अगर आप कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें और कुछ घरेलू उपाय करें तो काफी हद तक इन दिक्कतों से बचा जा सकता है:

– जब बच्चे के दांत निकल रहे होते हैं तो उस का कुछ चबाने का मन करता है. इस से बच्चे को आराम मिलता है. गाजर सख्त होती है इसलिए बच्चे को गाजर चबाने के लिए दे सकती हैं. एक लंबी गाजर को धो कर छील लें. 15-20 मिनट के लिए फ्रिज में रख कर ठंडा करें और उस के बाद बच्चे को दें. बच्चे को जब भी गाजर चबाने के लिए दें तब कोई न कोई उस के आसपास रहे ताकि वह गाजर को निगले नहीं या गाजर उस के गले में न फंसे. शिशु को ठंडा खीरे या सेब का टुकड़ा भी दे सकती हैं.

– मार्केट में टीथिंग बिस्कुट आते हैं जो दांत निकलने की प्रक्रिया को आसान बनाते हैं. ये बिस्कुट मीठे नहीं होते हैं और बच्चे को दांत निकलने पर होने वाले दर्द और असहजता से आराम दिलाते हैं. केला भी इस दर्द को कम करने का काम कर सकता है. केला मुलायम होता है और इसे चबाने से शिशु के दांतों को आराम मिल सकता है.

– कभीकभी मसूड़ों की मालिश से बच्चों को दांत निकलने की परेशानी में बहुत मदद मिलती है. मसूड़ों पर हलका दबाव दर्द को कम और बच्चों को शांत करने में मदद करता है. अपनी उंगली अच्छे से साफ करें या एक मुलायम कपड़ा लें और फिर उस से कुछ सैकंड्स के लिए बच्चे के मसूड़ों को रगड़ें. आप के शिशु को शुरुआत में शायद अच्छा न लगे परंतु बाद में राहत महसूस होगी. इस के अलावा किसी और्गेनिक तेल से बच्चे के माथे और गालों की भी मालिश करें.

– बच्चे की दूध की बोतल को फ्रिज में ठंडा होने के लिए रख दें. ठंडा होने पर इसे बच्चे को चबाने के लिए दें. इस से बच्चे को दांत निकलने पर हो रहे दर्द से राहत मिलेगी.

– 1/2 चम्मच सूखे कैमोमाइल फूलों को 1 कप गरम पानी में मिलाएं. इस को छान कर रख

लें. अब इस चाय का एक छोटा चम्मच अपने बच्चे को हर 1 या 2 घंटे बाद दें. कैमोमाइल का फूल 1 वर्ष से अधिक उम्र के शिशुओं में दांत निकलने की परेशानी में बहुत मदद कर सकता है. इस में सूजन को कम करने वाले गुण भी होते हैं.

लंबाई बढ़ाने का कोई तरीका बताएं?

सवाल-

मैं 13 साल की लड़की हूं. मेरी लंबाई 4 फुट 9 इंच है. कुछ ऐसे व्यावहारिक उपाय बताएं जिन से कि मेरी लंबाई बढ़ सके?

जवाब-

आप की लंबाई बढ़ने की अभी 2-3 साल तक अच्छी संभावना है. कुछ छोटेछोटे उपाय अमल में लाने से आप को लाभ मिल सकता है.

बेहतर होगा कि आप नियमित अच्छी प्रोटीनयुक्त डाइट लें. दूध, दही, दालें, अन्न, अंडा, गोश्त और मछली प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. शरीर को अच्छी मात्रा में कैलोरी और प्रोटीन मिलते रहने से कद लंबा होने की संभावना बढ़ जाती है. इस के विपरीत अगर कैलोरी और प्रोटीन पर्याप्त न लें तो कद छोटा रह जाता है. दूसरा, खूब खेलेंकूदें, भागेंदौड़ें, शारीरिक कसरत करें. इस से भी शरीर में अधिक ग्रोथ हारमोन स्रावित होता है और लंबाई बढ़ाने में मदद मिलती है. तीसरा, रात में 7-8 घंटे की नींद लें. यह न केवल स्वास्थ्य अच्छा बनाए रखने का जरूरी नुसखा है, बल्कि लंबाई बढ़ाने में भी मददगार सिद्ध होता है. इस से शरीर की जैव रासायनिकी पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है. चौथा, कभी कोई रोग हो तो समय से उस का इलाज कराएं. उस के प्रति लापरवाही न बरतें.

इन 4 नियमों को अमल में लाने के बाद आगे मातापिता से विरासत में मिले जींस पर यह बात छोड़ दें कि आप की लंबाई कितनी बढ़ेगी.

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बच्चों की हाइट में रुकावट आना माता-पिता के लिए चिंता का कारण बन जाता है. वैसे तो लड़कों की हाइट 25 वर्ष तक और लड़कियों की हाइट 18 वर्ष तक बढ़ती है. ज़्यादातर बच्चों की हाइट उनके माता-पिता के अनुसार ही होती है जिसे हम जेनेटिक बोलते है, लेकिन कई बार बच्चों की हाइट माता -पिता जितनी भी नहीं बढ़ती इसकी वजह हार्मोन का ग्रोथ न होना हो सकता है.
कम हाइट के वजह से बच्चों के व्यवहार में भी बदलाव देखने को मिलता है. कई बार कम हाइट वाला बच्चा बाकी बच्चों के सामने खुद को कमजोर समझने लगता है, ऐसा देखा भी गया है जिन बच्चों की हाइट कम होती है उन में चिढ़चिढ़ापन ज्यादा आ जाता है. अगर आप को भी अपने बच्चों के हाइट में ग्रोथ नजर नहीं आ रही तो आप इन टिप्स को जरूर अपनाएं.

बच्चों की अच्छी हाइट के लिए अपनाएं ये टिप्स

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