टैक्नोलौजी और धर्म

आजकल बहुत सा पैसा टैक्नोलौजी सो चल रही पढ़ाई में लगाया जा रहा है और इस का अर्थ है कि सिमैंट और इंटों से बने स्कूलकालेजों में 40-50 साल पहले तय की गई शिक्षा अब अपना मतलब खोती जा रही है. जैसे फेक्ट्रियों में मजदूरों को नई टैक्नोलौजी बुरी तरह निकाल रही है, उसी तरह टैक्नोलौजी न जानने वाले युवाओं का भविष्य और ज्यादा धूमिल होता जा रहा है.

जिस तरह का पैसा बैजू जैसी कंपनियों में लग रहा है उस से साफ है कि कंप्यूटर पर बैठ कर ऊंची शिक्षा पाने वाले ही अब देशों और दुनिया में छा जाएंगे पर यह शिक्षा बहुत मंहगी है और साधारण घर इसे अफोर्ड भी नहीं कर पाएंगे.

अमेरिका में किए गए एक सर्वे में पाया गया कि 3000 डौलर (लगभग 18,00,000 लाख रुपए) कमाने वाले परिवारों में से 64′ के पास स्मोर्ट फोन, एक से ज्यादा कंप्यूटर वाईफाई, ब्रौडबैंड कनेक्शन स्मार्ट टीवी हैं. जबकि 3000 डौलर से कम वाले घरों में 16′ के पास ही ये सुविधाएं हैं. इस का अर्थ है कि गरीब मांबाप के बच्चे गरीबी में ही रहने को मजबूर रहेंगे क्योंकि न तो वे महंगे स्कूलकालेजों में जा पाएंगे न मंहगी चीजें खरीद पाएंगे. आज हाल यह है कि पिछले सालों में कम तकनीक जानने वालों के वेतनों में 2-3′ की वृद्धि हुई है जबकि ऊंची तकनीक जानने वालों का वेतन 20-25′ बड़ा है.

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भारत में यह स्थिति और ज्यादा उग्र हो रही है क्योंकि यहां भेदभाव को जन्म व जाति से भी जोड़ा हुआ है. यहां जिस तरह पूरे रोज के विज्ञापन कोचिंग क्लास चलाने वाले अखबारों में लेते हैं, उस से साफ है कि नौन टैक्नोलौजी शिक्षा भी मंहमी हो गई है, टैक्नोलौजी की शिक्षा तो न जाने कहां से कहां जाएगी.

टैक्नोलौजी से चलने वाली शिक्षा का एक बड़ा असर औरतों की शिक्षा पर पढ़ रहा है. उन्हें ऊंची पोस्ट मिलने में कठिनाई होने लगी हैं. क्योंकि सारी पढ़ाई का खर्च लडक़ों पर किया जा रहा है जो अब और ज्यादा हो गया है. हाल यह है कि भारत के विश्वविद्यालयों और कालेजों में ही, जहां पर अभी तक टैक्नोलौजी का राज नहीं है, केवल 7′ प्रमुख पोस्ट औरतों के पास है और इन में से भी ज्यादा ऐसे संस्थानों में हैं जहां केवल लड़कियां पढ़ रही हैं.

टैक्नोलौजी न केवल गरीब और अमीर का भेद बड़ा रही है, अमीरों में भी यह जेंडर यानी लडक़ेलडक़ी का भेद बढ़ा रही है. टैक्नोलौजी को समाज और दुनिया को बचाने वाला समझा जाता है पर यह बुरी तरह से कुछेक के हाथों में पूरी ताकत सौंप रहा हैं. अमीर घरों के लडक़े खर्चीली पढ़ाई कर के ऊंची कमाई करेंगे और मनचाही लडक़ी से शादी करेंगे पर उस लडक़ी पर मनचाहे ढंग से राज भी करेंगे. घर, कपड़ों, छुट्टियों, गाड़ी के लालच में पत्नियों की दशा राजाओं की रानियों की तरह हो जाएगी जो गहनों से लदी होती थीं पर राजा की निगाह में बस आनंद देने वाली गुडिय़ां होंगी.

इस समस्या का निदान आसान नहीं है और धर्म की मारी, अपने भाग्य पर निर्भर लड़कियां तो न भारत में न दुनिया में कहीं कभी इस स्थिति में लड़़ पाएंगी. वे टैक्नो गुलाम रहेंगी और टैक्नो गुलामों से काम कराने में फक्र करेंगी.

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नारकोटिक्स की समस्या है बड़ी और विशाल

शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को एक शिप क्रूज में खाना होने से पहले नारकोटिक्स विभाग वालों द्वारा पकड़ लेना एक तमाशा बन गया है. जब देश की मुसीबतों का अंत दिख नहीं रहा है, एक छोटे से मामले को जिस तरह जनमानस में तूल दी गई उस से लगता है कि हम लोग हमेशा से वास्तविक खतरों को भुला कर निरर्थक कामों में दिल बहलाने के पूरी तरह आदी हो गए हैं.

दुकान नहीं चल रही हो, पत्नी को बिमारी हो गई हो, बेटे के अच्छे अंक नहीं आ रहे हो, कर्ज भारी बड़ रहा हो, टैक्स वालों का हमला हो रहा हो. हमारे यहां हवन, मां की चौकी, तीर्थ यात्रा आदि एक आम बात है. ये सक असल समस्या से क्षणिक घुटकारा तो दिला देते हैं पर समस्या वहीं रहती है. ये सब बहुत सा धन व समय ले लेती हैं जो समस्या सुलझाने में लग सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका दौरे पर गए जहां उन्हें न राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ज्यादा भाव दिया न उपराष्ट्रपति भारतीय खून वाली कमला हैरिस ने और आस्ट्रेलिया व जापान के नेता अपने में मगन रहे. उस खिन्नता को देश की समस्याओं से दूर करने की जगह मोदी जी तुरंत रात देर को संसद भवन के नए निर्माण के कैमरों की टीम के साथ पहुंच गए जहां एक कुशल अनुभवी आर्कीटैक्ट की तरह ब्लूङ्क्षप्रट देखते हुए नजर आए. यह फोटोशूट निरर्थक था. देश के किसान अंादोलन से जूझना है, बढ़ती बेरोजगारी और मंहगाई से जूझना है, कोयला संकट से जूझना है पर एक आम नागरिक की तरह हम धाॢमक स्टंटबाजी में लगे रहते है.

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किसान बेबात में अपने खेत छोड़ कर देश भर में सडक़ों पर नहीं उतरे हैं. भारत सरकार जिन 3 कृषि कानूनों को थोपने में लगी है वे किसी समस्या का हल नहीं हैं. किसानों की ओर से न तो मंडियां भंग करने की मांग हो रही  थी, न कांट्रेक्ट पर जमीन देने की. किसान तो मिनिमम सपोर्ट प्राइस मांग रहे थे क्योंकि उन्हें आज खुले भाव में बिचौलियों की मेहरबानी से सही दाम नहीं मिल रहे. खेती की अर्थव्यवस्था सरकारी दखलअंदाजी से डगमगा रही है और बजाए इसे ठीक करने के पहले अमेरिकी दौरा किया गया और वहां से खिन्न हो कर लौटने पर संसद निर्माण देखने निकल पड़े.

नारकोटिक्स की समस्या बड़ी और विशाल है. पहले अमेरिका, अफगानिस्तान से ही आफीम के उत्पादन पर रोकटोक लगा कर इस व्यापार पर अंकुश लगाए रखना था पर अब तालिबानियों के राज में अमेरिका की कुछ नहीं चलेगी. ऐसे में एक मुसलिम सितारे के बेटे को ले कर हो हल्ला मचाया और सरकारी मशीनरी का उपयोग केवल जनता का दिल बहलाने के लिए करना है. यह ध्यान बंटा सकता है पर खंडहर होते देश को नहीं बना सकता. दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका जैसे देशों से भी बुरे हालत में जा रहे देश को भटकाने की जिम्मेदारी उन्हीं लोगों की है जो सही समस्याओं को नहीं देख पा रहे.

तथा बुरा है, गलत है, व्यापार जानलेवा है पर सितारों के बच्चों को आड़ में ङ्क्षहदूमुसलिम स्कोर करना और जानलेवा है.

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Judiciary और एजेंसी के जाल में फंसे Aryan Khan, पढ़ें खबर

बुरी लत चाहे ड्रग्स की हो या किसी दूसरे चीज की….कानून के हिसाब से सबकुछ होने की जरुरत है…… नामचीन व्यक्ति……क्रिकेट और हिंदी सिनेमा जगत के सेलेब्रिटी को जनता का प्यार बहुत मिलता है……उन्हें एक घड़ी पहनने का ब्रांड 5 करोड़ देती है……क्यों दे रही है?….जनता के लिए ही दे रही है, क्योंकि जनता उसे ही पहनना चाहेगी….और ब्रांड का काम बन जाता है ……एक आम इंसान को कोई ब्रांड5 करोड़ तो क्या 5 रुपये तक नहीं देती ….. अगर ब्रांड का फायदा सेलेब्रिटी को मिलता है, तो आपके बारें में जनता जानना भी चाहती है….इसे टाला नहीं जा सकता…क्योंकि आपने अगर इंडोर्समेंट का फायदा उठाया है, तो आपके जीवन में किसी का हस्तक्षेप न हो, ऐसा संभव नहीं. ऐसे ही कुछ बातों को कह रही थी, मुंबई हाईकोर्ट की वकील, सोशल एक्टिविस्ट और फॉर्मर ब्यूरोक्रेट आभा सिंह. व्यस्त दिनचर्या के बावजूद उन्होंने बात की और कहा कि कोर्ट का आर्यन खान को बेल न देना,मेरी समझ से बाहर है.

अंधा नहीं है कानून

आभा सिंह कहती है कि कानून कभी अंधा नहीं होता, जो सबूत सही ढंग से पेश न कर तोड़-मरोड़ कर रख दिया जाता है और जज उसी सबूत के आधार पर अपना निर्णय देता है. कई बार न्याय देने में देर हो जाती है, क्योंकि 50 प्रतिशत सीट कोर्ट में खाली है, जिसे अभी तक भरा नहीं गया. कानून अंधे होने की बात के बारें में गौर करें, तो आर्यन खान के पास से न तो ड्रग मिली और न ही उसके ब्लड टेस्ट में भी ड्रग लेने की कोई सबूत मिला, लेकिन 20 दिनों से वह जेल में है. इसलिए अबसबको लगने लगाहै कि सरकारी तंत्र किसी को कभी भी फंसा सकता है. अगर न्यायतंत्र इन एजेंसियों के आगे हल्की पड़ जाती है और एजेंसी की बातों को सही ढंग से नहीं परखती, तब लोग समझने लगते है कि कानून वाकई अंधा है.

न्यायतंत्र को परखने की है जरुरत

वकील आभा का कहना है कि इस देश में तो अब ये लगता है कि अगर आप एक नामचीन इंसान है, तो कुछ भी गलत किसी के साथ होने पर पूरा परिवार उसे भुगतता है. एजेंसी सही ढंग से कानून नहीं लगाती, इसलिए न्यायतंत्र को परखने की जरुरत है. कोई भी एजेंसी अगर गलत कानून लगाती है, तो उनपर कार्यवाई की जानी चाहिए, ताकि जनता को लगे कि कानून उनको सुरक्षा देने के लिए है, न कि दुरूपयोग कर अत्याचार करने की है.

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पोलिटिसाइज़ हो गई है एजेंसिया

सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति वी एम कनाडे, जो मुंबई की लोकायुक्त है और पिछले 40 साल से कानून के क्षेत्र में काम कर रहे है. उन्होंने आर्यन के बेल के बारें में कहा कि आर्यन के वकील ने हाई कोर्ट में फिर से एप्लीकेशन दिया है, जो हाईकोर्ट में मंगलवार को सुनवाई होगी. कानून के बारें आज जनता का विश्वास क्यों उठने लगा है पूछने पर न्यायमूर्ति कनाडे कहते है कि अगर आशा के अनुसार न्याय नहीं मिलता, तो लोग कानून में विश्वास नहीं रखते और आशा के अनुसार न्याय मिलने पर लोग न्याय पर विश्वास जताते है, लेकिन ये भी सही है कि जुडीशियरी लास्ट रिसोर्ट होती है और लोग उसपर सबसे अधिक विश्वास रखते है. मेरा अनुभव ये कहता है कि आज पोलिटिकल लड़ाई बहुत चल रही है. किसी भी निर्णय को पॉलिटिक्स के हिसाब से देखी जा रही है, यह सही नहीं है. मैं 16 साल जज रहा हूँ. नॉर्मली हम राजनीति में नहीं जाते, कानून के हिसाब से निर्णय देते है. इसके अलावा आज न्यायालयों में जजों और वकीलों की संख्या बहुत कम है, खाली स्थानों को जल्दी भरने की बहुत जरुरत है.

न्यायतंत्र पर विश्वास कम होने की वजह लॉयर आभा सिंहबताती है कि 84 वर्ष के स्टेन स्वामी की मृत्यु जेल में ही हो गयी, लेकिन उन्हें बेल नहीं मिला. मुझे लगता है कि पुलिस और कई एजेंसियां राजनीतिकरण का हिस्सा बन चुकी है. ये इस तरह के केस बनाती है. पिछले कुछ दिनों पहले एक बात सामने आई थी कि प्रधानमंत्री मोदी को किसी ने जान से मारने की धमकी दी है, फिर पता चला कि लैपटॉप पर ये मेसेज आया है.सबको पता है कि आज लोग मेल हैक कर क्या-क्या कर लेते है. ये बातें कितनी झूठी और बनावटी हो सकती है, ऐसे में आर्यन के व्हाट्स एप मेसेज को इतनी तवज्जों क्यों दी जा रही है? राईट टू लिबर्टी को बचाने केलिए सुप्रीम कोर्ट को नयी गाइडलाइन्स लानी पड़ेगी. आज देश के सारे हाई नेटवर्क वाले लोग देश छोड़कर चले जा रहे है,ऐसे में देश, एक अच्छा देश कैसे बन सकता है? हर नेता चाहते है कि पुलिस उनके सामने घुटने टेके, लेकिन न्यायतंत्र को देखना चाहिए कि पुलिसवाला क्या गलत कर रहा है? अगर अरेस्ट करने का पॉवर पुलिस को मिला है, तो कोर्ट बेल दे सकती है, लेकिन जुडीशियरी अगर अपने कानून को न देखकर दूसरी तरफ देखने लगे, तो अराजकता फैलती है.

सहानुभूति की है जरुरत

इसके आगे आभा का कहना है कि आर्यन को बिना किसी प्रूफ के जेल में डाले हुए है. असल में नारकोटिक ड्रग्स एंड साईकोट्रोपिक सबस्टेन्स (NDPS) एक्ट 1985 के तहत बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस कोतवाल ने रिया चक्रवर्ती को बेल तो दिया था, लेकिन उस समय NDPSएक्ट को उन्होंने नॉन बेलेबल कहा था. इसलिए आर्यन को बेल नहीं मिल रही है, लेकिन ये भी सच है कि पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई छोटा अमाउंट पर्सनल यूज़ के लिए कंज्यूम करता है, तो उसे बेल दे दी जाय, क्योंकि आपको उस इन्सान से सहानुभूति रखनी है, उसके एडिक्शन को छुड़ावाना, इलाज करवाना आदि की जरुरत है. यहाँ आर्यन के पास केवल 13 ग्राम ड्रग ही मिला है,जबकि हमारे देश में होली पर लोग चरस, गांजा आदि के प्रयोग कर ठंडाई बनाते है. अगर ड्रग को रोकना है, तो उन्हें ड्रग बेचने वाले पेडलर और  ड्रग सिंडिकेट को पकड़ने की जरुरत है. उन्हें पकड़ न पाने की स्थिति में बॉलीवुड और कॉलेज के बच्चों को पकड़ रहे है, जो सॉफ्ट टारगेट होते है और उन्हें पकड़कर मीडिया में तमाशा कर रहे है. जबकि ये बच्चे ड्रग सिंडिकेट के शिकार है और उनका परिवार बच्चों की इन आदतों से परेशान है. इंडिया में ड्रग, दवाइयों और कुछ खास चीजों के लिए लीगल है, जबकि कई देशों में इसे लीगल कर दिया गया है. इस तरह से अगर बच्चे अरेस्ट होने लगे, तो आधी जनता जेल में होगी. मेरा सुझाव है कि जब आर्यन के बेल की बात आगे हाई कोर्ट में सुना जाएँ, तो जस्टिस कोतवाल के बात को अलग रखकर, उस बच्चे को बेल दी जाय. NDPS एक्ट 1985 की सेक्शन 39 में लिखा हुआ है कि बच्चे के उम्र और पिछले आचरण को देखते हुए,उसे बेल दीजिये. नॉन बेलेबल का कोई सवाल नहीं उठता.

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सरकार की दोहरी नीति

23 साल के आर्यन को बेल न मिल पाने की वजह से फेंस और हिंदी सिनेमा जगत से जुड़े सभी लोग परेशान और दुखी है. एड गुरु प्रह्लाद कक्कड़ कहते है कि ड्रग्स कई प्रकार के होते है और क्राइम भी उसी हिसाब गिना जाता है. चरस और गांजा दो हज़ार सालों से साधु संत, व्यापारी और मेहनत करने वाले किसान,बदन दर्द को कम करने के लिए, सोने से पहले एक चिलम मारते है,उसे  ड्रग्स नहीं कहा जा सकता. जो नैचुरल पदार्थ ओपियम को प्रोसेस कर बनाया जाता है,वह ड्रग कहलाता है. ऐसे कई गांजा और चरस के ठेके को सरकार लाइसेंस देती है. फिर ये ड्रग कैसे हो सकती है?ये एक प्रकार की हिपोक्रेसी हुई. एक हाथ से सरकार गांव खेड़े में, साधु संत और अखाड़े वालों को मादक पदार्थों के सेवन की पूरी छूट देती हैऔर दूसरी तरफ कॉलेज जाने वाले एक बच्चे के पॉकेट से 10 ग्राम की कुछ भी मिलने पर पोलिटिकल एफिलियेशन के अनुसार छोड़ते है या जेल भेज देते है. इस प्रकार कानून की कोई पॉवर नहीं है. इससे जो कोई भी पॉवर में आएगा, वह दूसरे के पीछे पड़ेगा. यहाँ आर्यन खान से अधिक शाहरुख़ खान के पीछे सब पड़े है.ये एक प्रकार की दुश्मनी है,जिसे वे इस तरीके से निकाल रहे है,क्योंकि जिस चीज को 2 हज़ार साल से लोग प्रयोग करते आ रहे है, उसे गैर कानूनी नहीं कहा जा सकता.एनसीबी और सीबीआई सब सरकार के टट्टू है. एक 23 साल के बच्चे को जेल में डाल दिया और जो रियल में क्रिमिनल है, जिसने 4 लोगों को कुचल दिया, वह आराम से घूम रहा है. बिगड़ी हुई न्याय व्यवस्था को जनता महसूस कर रही है, क्योंकि सरकार दोहरी निति पर चल रही है, अपनों के लिए अलग कानून और दूसरों के लिए अलग कानून बनाए है.

बिके हुए है न्यूज़ चैनल्स

न्यूज़ चैनेल टीआर पी के लिए कुछ भी तमाशा कर रही है. आर्यन एडल्ट है, उसने जो किया, खुद से किया है. शाहरुख़ का नाम क्यों आ रहा है, जबकि अरबाज़ मर्चेंट और मुनमुन धमेचा के पेरेंट्स को कोई सामने नहीं ला रहे है. उन्होंने भी तो अपराध किया है. इसका अर्थ ये हुआ की मिडिया भी इसी गेम में फंसी हुई है, बिकीहुई है, तभी किसी पर कीचड़ उछाल रही है. मिडिया को सही बातें रखने की आवश्यकता है. जब दो हज़ार करोड़ ड्रग के साथ अदानी पोर्ट पर पकड़ा गया, उसे एक छोटी सी जगह पर पेज में छुपा हुआ न्यूज़ आइटम दिखा. जबकि आर्यन खान के साथ शाहरुख़ को जोड़कर न्यूज़ चैनेल हेड लाइन बनाती है. मुझे दुःख इस बात से है कि देश की न्यायतंत्र आज सरकार के टट्टू बन चुके है, जबकि उन्हें कानून के अनुसार निर्णय देना चाहिए. कानून के सामने सब बराबर है, टीआरपी के लिए टीवी चैनेल्स फेवरिटीज्म नहीं दिखा सकती.

इस प्रकार तथ्य यह है कि क्रूज ड्रग्स पार्टी मामले में आर्यन खान अभी भी जेल में है. सेशंस कोर्ट ने बुधवार 20 अक्तूबर को आर्यन की जमानत याचिका खारिज कर दी. आर्यन के साथ ही अरबाज मर्चेंट और मुनमुन धमेचा की जमानत याचिका खारिज कर दिया गया है. दरअसल आर्यन को 2 अक्टूबर को मुंबई से गोवा जा रही क्रूज पर रेव पार्टी में छापेमारी के बाद एनसीबी ने पहले हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार कर लिया. इसमें आर्यन के साथ 8 लोगों को भी ग‍िरफ्तार किया गया. आर्यन फिलहाल मुंबई के आर्थर रोड जेल में 14 दिनों की न्‍याय‍िक हिरासत में कैद है.अगली सुनवाई 26 अक्तूबर को होगी, अब देखना है कि आर्यन खान को बेल मिलेगी या नहीं.

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स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के प्रेरणास्रोत है प्रधानमंत्री जी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा है कि देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सबको स्वास्थ्य बीमा का कवर प्रदान कर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के सपने को पूरा किया जा रहा है. प्रधानमंत्री जी ने 03 वर्ष पूर्व दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा कवर योजना आयुष्मान भारत प्रारम्भ की थी. आयुष्मान भारत योजना के अन्तर्गत देश में 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा कवर दिया जा रहा है. इस योजना से प्रदेश में 06 करोड़ लोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं.

मुख्यमंत्री जी लोक भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान के अन्तर्गत अन्त्योदय राशन कार्ड धारकों को आयुष्मान कार्ड का वितरण कर रहे थे. इस अवसर पर मुख्यमंत्री जी ने 15 लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड अपने कर कमलों से प्रदान किए. उल्लेखनीय है कि आज प्रदेश के प्रत्येक जनपद में ब्लाॅक स्तर पर एक ही दिन में लगभग 01 लाख पात्र लोगों को इस योजना के अन्तर्गत आयुष्मान कार्ड का वितरण किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि 2011 की जनगणना के अनुसार एस0ई0सी0सी0 की सूची में कुछ परिवार आयुष्मान भारत योजना से वंचित रह गये थे. प्रदेश सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान से 8.45 लाख वंचित परिवारों के लगभग 45 लाख व्यक्तियों को जोड़ा गया. प्रदेश के 40 लाख से अधिक अन्त्योदय परिवार, जो आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना से आच्छादित होने से रह गये थे, उन परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान के अन्तर्गत आच्छादित किया जा रहा है. इससे प्रदेश की एक बड़ी आबादी लाभान्वित होगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि राज्य सरकार प्रदेश के सभी प्रवासी एवं निवासी श्रमिकों, जिनका रजिस्ट्रेशन श्रम विभाग में है, उनको 02 लाख रुपये का सामाजिक सुरक्षा कवर एवं 05 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा कवर उपलब्ध करा रही है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी इन सभी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के प्रेरणास्रोत हैं. उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत योजना ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता के साथ-साथ आमजन को जीने की एक राह दिखायी है. इसके अन्तर्गत लाभार्थी आयुष्मान भारत योजना में इम्पैनल्ड किसी अस्पताल में अपना उपचार करा सकता है.

चिकित्सा शिक्षा मंत्री श्री सुरेश खन्ना ने कहा कि लौकिक व अलौकिक जगत में जो मानवीय कार्य किये जाते हैं, वे दूसरों की जिन्दगी बनाते हैं. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में एक करोड़ से अधिक परिवारों को स्वास्थ्य बीमा का कवर प्रदान किया जा रहा है. पूर्ववर्ती सरकार में मात्र 30 हजार रुपये स्वास्थ्य बीमा का कवर प्रदान किया गया था. प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में वर्तमान में 05 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया जा रहा है. मुख्यमंत्री जी द्वारा प्रधानमंत्री जी का अनुकरण करते हुए प्रदेश में सबसे निचले स्तर पर खड़े व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए आज 40 लाख से अधिक परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है.

चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री श्री जय प्रताप सिंह ने कहा कि अन्तिम पायदान के 40 लाख अन्त्योदय राशन कार्डधारक परिवारों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है.

इस अवसर पर चिकित्सा एवं स्वास्थ्य राज्य मंत्री श्री अतुल गर्ग, नीति आयोग के सदस्य डाॅ0 विनोद पाॅल, मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, अपर मुख्य सचिव गृह श्री अवनीश कुमार अवस्थी, अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य श्री अमित मोहन प्रसाद, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एम0एस0एम0ई0 श्री नवनीत सहगल, निदेशक आई0आई0टी0 कानपुर श्री अभय करंदीकर, टीम-09 के सभी सदस्य, सूचना निदेशक श्री शिशिर तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश के 40.79 लाख अन्त्योदय राशन कार्डधारक परिवारों के 1.30 करोड़ सदस्यों को मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान में शामिल किया गया है. शुरुआती 10 दिनों में ही लगभग 02 लाख लोगों ने इस योजना के अन्तर्गत अपना कार्ड बनवा लिया. समय-समय पर ‘मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान’ के अन्तर्गत नई श्रेणियों को जोड़े जाने की भी व्यवस्था प्रदेश सरकार ने की और यह सुनिश्चित किया कि प्रदेश का कोई भी गरीब और वंचित परिवार योजना के दायरे से बाहर न रहे.

इसी क्रम में श्रम विभाग में पंजीकृत 11.65 लाख निर्माण श्रमिक परिवारों को भी योजना की पात्रता सूची में जोड़ा गया.
‘मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान’ के माध्यम से प्रदेश के लगभग 61 लाख परिवारों के 1.87 करोड़ व्यक्तियों को 05 लाख रुपए तक के निःशुल्क इलाज की सुविधा मिलना सम्भव हो सका है.

प्रारम्भ में ‘प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना’ के अन्तर्गत प्रदेश की 24 प्रतिशत आबादी को स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिल रहा था, लेकिन प्रदेश में ‘मुख्यमंत्री जन आरोग्य अभियान’ लागू होने से 13 प्रतिशत अतिरिक्त परिवारों को स्वास्थ्य बीमा कवर से जोड़ा गया. इसका परिणाम है कि आज प्रदेश की लगभग 37 प्रतिशत आबादी को 05 लाख रुपए तक की निःशुल्क उपचार सुविधा का लाभ मिल रहा है. इससे सतत विकास लक्ष्य के तहत गरीबी उन्मूलन और सबके लिए स्वास्थ्य के लक्ष्यों की पूर्ति में मदद मिलेगी.

त्योहारों के समय में निर्बाध विद्युत आपूर्ति आवश्यक – मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने प्रदेश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सायं 06 बजे से प्रातः 07 बजे तक निरन्तर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. उन्होंने कहा है कि वर्तमान समय पर्वों एवं त्योहारों का है. प्रदेशवासी नवरात्रि का पर्व हर्षोल्लास के साथ मना रहे हैं. विभिन्न स्थलों पर रामलीला आदि का आयोजन किया जा रहा है. ऐसे समय में रात्रि में निर्बाध विद्युत आपूर्ति आवश्यक है.

मुख्यमंत्री जी आज यहां अपने सरकारी आवास पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश में विद्युत व्यवस्था की समीक्षा कर रहे थे. सभी मण्डलायुक्त, जिलाधिकारी, ए0डी0जी0, बिजली विभाग के वरिष्ठ अधिकारी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से समीक्षा बैठक में सम्मिलित हुए. उन्होंने यू0पी0पी0सी0एल0 के चेयरमैन को प्रदेश में विद्युत संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति के सम्बन्ध में गहन समीक्षा करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि प्रदेश के विद्युत संयंत्रों को पर्याप्त कोयला आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रत्येक उपभोक्ता बिजली के बिल का भुगतान करना चाहता है. त्रुटिपूर्ण विद्युत बिलों से उपभोक्ता परेशान होता है, जिससे विद्युत बिल का कलेक्शन प्रभावित होता है. त्रुटिपूर्ण विद्युत बिलों के कारण उपभोक्ता को परेशानी नहीं होनी चाहिए. एग्रीमेण्ट के अनुसार कार्य न करने वाली विद्युत बिलिंग एजेंसियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए. ऐसी एजंेसियों की सिक्योरिटी जब्त की जाए, उनके विरुद्ध एफ0आई0आर0 कराने के साथ ही ब्लैक लिस्ट भी किया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने विद्युत बिलों के सम्बन्ध में शीघ्र ही एकमुश्त समाधान योजना (ओ0टी0एस0) लागू करने के निर्देश दिए. उन्होंने कहा कि खराब ट्रांसफार्मर्स को निर्धारित व्यवस्था के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 48 तथा शहरी क्षेत्रों में 24 घण्टों में आवश्यक रूप से बदला जाए. बदले गए ट्रांसफार्मर की गुणवत्ता भी परखी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि ट्रांसफार्मर्स की क्षमता वृद्धि के सम्बन्ध में पूर्व में लागू व्यवस्था को पुनः क्रियान्वित किया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के सम्बन्ध में तत्काल कार्यवाही की जाए. ट्यूबवेल के कनेक्शन समयबद्ध ढंग से प्रदान किए जाएं. जिस किसी किसान ने ट्यूबवेल के कनेक्शन के सम्बन्ध में भुगतान कर दिया है, उन्हें तत्काल विद्युत कनेक्शन प्रदान कर दिए जाएं. ऐसे मामलों को लम्बित न रखा जाए. सौभाग्य योजना सहित अन्य योजनाओं के लाभार्थियों के विद्युत बिलों में गड़बड़ी के मामलों का तत्काल समाधान कराया जाए.

मुख्यमंत्री जी ने पूर्वांचल, मध्यांचल, दक्षिणांचल, पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगमों तथा केस्को के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विद्युत व्यवस्था की विस्तृत समीक्षा की. उन्होंने सभी विद्युत वितरण निगमों को विद्युत व्यवस्था सुचारु बनाए रखने तथा लाइन लॉस को कम करने के निर्देश दिए.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि बैठक में दिए गए निर्देशों के सम्बन्ध में सभी विद्युत वितरण निगमों के प्रबन्ध निदेशक फीडर स्तर पर जवाबदेही तय कर कार्य करें. यू0पी0पी0सी0एल0 के चेयरमैन के स्तर पर प्रतिदिन इनकी समीक्षा विद्युत वितरण निगमवार होनी चाहिए. हर दूसरे दिन अपर मुख्य सचिव ऊर्जा द्वारा प्रगति की समीक्षा की जाए तथा रिपोर्ट ऊर्जा मंत्री को उपलब्ध करायी जाए. ऊर्जा मंत्री द्वारा प्रगति की साप्ताहिक समीक्षा की जाए.

इस अवसर पर ऊर्जा मंत्री श्री श्रीकान्त शर्मा, मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, कृषि उत्पादन आयुक्त एवं अपर मुख्य सचिव ऊर्जा श्री आलोक सिन्हा, पुलिस महानिदेशक श्री मुकुल गोयल, यू0पी0पी0सी0एल0 के चेयरमैन श्री एम0 देवराज, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री श्री एस0पी0 गोयल, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री एवं सूचना श्री संजय प्रसाद, उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम एवं पारेषण निगम के प्रबन्ध निदेशक श्री पी0 गुरुप्रसाद, सूचना निदेशक श्री शिशिर सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

कहीं खतना तो कहीं खाप… कब समाप्त होंगे ये शाप

“हद हो चुकी है बर्बरतां की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी.” विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बार-बार न्यूज़ चैनल बदल रहा था और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहा था. उसे भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वह अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहू-बेटी की कल्पना मात्र से ही सिहर उठा.

“अफगानी महिलाओं को इसका विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए.” पत्नी रीमा ने उसे चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उसे भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

“अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहाँ गया? क्यों सब के मुंह सिल गए.” विनय थोड़ा और जोश में आया. तभी उनकी बहू शैफाली ऑफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंग टेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी. विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुर्ती के साथ खुली-खुली पेंट और गले में झूलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

“कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल लें. इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए.” विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की. रीमा मौन रही. उसकी चुप्पी विनय की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

“अब क्या कहें? आजकल की लड़कियाँ हैं. अपनी मर्जी जीती हैं.” कहते हुए रीमा ने मुँह सिकोड़ा.

शैफाली के कानों में शायद उनकी बातचीत का कोई अंश पड़ गया था. वह अपने सास-ससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई.

“आपको क्या लगता है? तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?” कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया. बहू का इशारा समझकर विनय गुस्से में तमतमाता हुआ घर से बाहर निकल गया. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गई.

यह कोई मनगढ़ंत या कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गया हो लेकिन सोच अभी भी वही है.

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इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वो है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचार पत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज़ चैनल पर बहस… हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तस्वीर दिखा-सुना रहा है और वो है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा… बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहाँ महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए. सोशल मीडिया पर तालिबानियों को भर-भर के कोसा जा रहा है. महिलाओं को उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंग रूम में भी यही खबरें माहौल को गर्म किए हुए हैं.

कहाँ है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.

किसी और का उदाहरण क्या दीजिये, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को लेकर कितने ओछे विचार रखते हैं इसकी बानगी देखिये.

“महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं जिससे लोग उत्तेजित हो जाते हैं.” भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

“लड़के, लड़के होते हैं, उनसे गलतियाँ हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है.” सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

“अगर दो मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते.” जेके जोर्ज.

“शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नई-नई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसे-जैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वो मजा नहीं रहता.” कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को लेकर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा थरूर को “पचास लाख की गर्लफ्रेंड” कहकर विवाद को जन्म दिया था.

इसके अतिरिक्त महिलाओं को “टंचमाल” कहकर दिग्विजय सिंह, “परकटी” कहकर शरद यादव, और “टनाटन” कहकर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

“फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना.” जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पौशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढ़िया नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाऐं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंखार हो उठता है जिसकी परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाएं होती हैं. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्न-भिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है किन्तु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वो ये कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उनकी सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनिच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहाँ तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैसर्गिक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

मुस्लिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. वर्ष 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में “इक्विटी नाउ” द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति समझे जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट है. हिन्दू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है लेकिन यदाकदा इसकी सूचनाएं आती रहती हैं.

गुजरात प्रान्त में “मैत्री करार” नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहीं-कहीं लुकेछिपे आज भी जरी है. इसमें स्त्री-पुरुष बाकायदा करार करके साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार “लिव इन रिलेशनलशिप” जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं करवाती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालाँकि गुजरात के उच्च न्यायलय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

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स्त्री-पुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गॉड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वुमन को उसकी पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबाकर रखे और उससे खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन?

ताजा हालातों के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व क्व लिय्व सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उनकी स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किये जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढने की इजाजत तो दी गई है लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उनसे किसी तरह का कोई सम्पर्क नहीं रखेंगी. यूँ देखा जाये तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है लेकिन यहाँ इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90 प्रतिशत महिलाएं हिंसा का शिकार है और 17 प्रतिशत ने यौन हिंसा झेली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओ के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अक्सर पढ़ने-सुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घण्टे लगभग 39 अपराध होते हैं जिनमें 11 प्रतिशत हिस्सेदारी बलात्कार की है

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एक तिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पेरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन “जीन सॉरेस” के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12 प्रतिशत है यानी देश की हर 8 वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सबसे विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहाँ भी हर पांचवीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में इसका शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11 प्रतिशत यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग… हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इनका विरोध भी इसी पीढी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किये जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है? या फिर चालीस-पचास तक आते-आते उनकी संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करती वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई कि उन्हें एडवेंचर से दूर रहना चाहिए.

अमूमन घर की बड़ी-बूढ़ियां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्ती भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपने-अपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं ये युवा पीढी के प्रति उनकी ईर्ष्या या जलन तो नहीं? कहीं ये विचार तो उनसे ये सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रही वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले. ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सास-बहू के बीच तनातनी देखी जाती है. सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मारकर झेली थी, वह यूँ ही बिना किसी अहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे? या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरूष प्रधान समाज का कोई डर उनके अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपने ही प्रजाति की खिलाफत खड़ा कर रहा हो.

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प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा “नर्क का द्वार” या फिर “शैतान की बेटी” ही समझा जाता रहा है और उसके सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उसकी उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

हमारे देश की महिलाएं पुरुषों की कितनी हमकदम?

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियाँ सुनी और सुलझाई जाती है. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया इसलिए ये संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया.दरअसल, आयोग अध्यक्ष टीवी पर लाइव में महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं, इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला, आयोग की अध्यक्ष को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उसके पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं. अध्यक्ष को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उसकी शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा ,‘अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो ‘भुगतो’ उनका पीड़िता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

लेकिन जाते-जाते वे कहना न भूलीं कि औरतें फोन करके शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया कार्यवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इसके बाद से आयोग अध्यक्ष घेरे में आ गई कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है ! बात भले ही आकर अध्यक्ष की रुखाई पर सिमट गयी. लेकिन गौर करें तो मसाला कुछ और ही है. दरअसल मारपीट की शिकायत लेकर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उसके पति को बुलाकर समझाए या सास पर रौब जमाकर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया न, तो तुम्हारी खैर नहीं. वरना, क्या वजह है कि औरतें शिकायत लेकर आती तो हैं लेकिन पुलिस की दखल की बात सुनते ही वापस लौट जाती हैं.

ममता, बदला हुआ नाम’ के पति और सास उसपर जुल्म करते हैं. रोती-कलपती वह अपने मायके पहुँच जाती है. पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उनकी शिकायत लेकर पुलिस में जाए. कारण, एक डर की अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गयी और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात ये भी की, पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहाँ जाएगी ?ममता दो बच्चों की माँ है और उसका मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अक्सर पति ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत लेकर नहीं जाती है यह सोचकर की घर की बात घर में ही रहनी चाहिए. और अगर पति का घर छूट गया तो वह कहाँ जाएगी ? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.UN वीमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इसमें रेप छोड़कर बाकी सारी बातें शामिल है. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बात-बात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई ज़िम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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भारत में महिलाओं पर सबसे ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने साल 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवाल-जवाब हुए थे, जिससे पता चला कि शादी-शुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा झेलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा लिखाई-पढ़ाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते झिझकती है.देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई है.

लेकिन हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आकर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं ?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है ?

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उसे बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना, जैसे लड़कों में पोषण, घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अक्सर माँ-बाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी ? जमाना देख रही हो ? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है. ज्यादा पढ़ लिख गई, तो फिर लड़का ढूँढना मुश्किल हो जाएगा. राजनीतिक में जाओगी तो अपना ही घर बर्बाद करोगी, वगैरह वगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी, ऊंचे ओहदे पर चली  जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उसके जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है.  बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन  की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न समझे, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुख तकलीफ अगर माँ से कहे तो, नसीहतें मिलती है कि जहां चार बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं.यहाँ तक की गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपने ससुराल में टिकी रहे.लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उसके लिए सच में पराया बन गया. और जब अपने ही उसकी बात नहीं सुन रहेहैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा ? और रिश्ता ही बिगड़ेगा. यह सोचकर लड़की उसे ही अपनी किस्मत मान लेती है.

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहाँ जाएंगी ? बच्चे कैसे पलेंगे ? बच्चे-पति के बीच महिला अपनी पढ़ाई-लिखाई को भी भूल जाती है.  उनके पास भी कोई डिग्री है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलियत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. तो औरतें सहना ही अपना नसीब मान लेती हैं. लेकिन पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है ?

कहने को तो लगभग हर साल औरत-मर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होता है, रिसर्च होती है, कुछ कमेटियां बैठती है. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सुराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में, जहां शादियों को पवित्र रिश्ता का नाम दिया गया है, वहाँ एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता.मुंबई की एक महिला ने सेशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उसके साथ जबर्दस्ती संबंध बनाए और जिसके चलते उसे कमर तक लकवा मार गया, इसके साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं. साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया. लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

मैरिटल रेप क्या है ?

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

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मैरिटल रेप को लेकर भारत का क्या है कानून?

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.IPC की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, ये कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही ये इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबर्दस्ती या पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलग-अलगअदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सेशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के चार केस कोर्ट तक पहुंचे लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया.सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी. जेंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी ?’उनके ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि ‘किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी ? तो दूसरे ने कहा उसके चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का ये कानून भारत में साल 1860 से लागू है. इसके सेक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सेक्स की सहमति छुपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

लेकिन दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी साल 1991 में मैरिटल रेप को ये कहते हुए अपराध की श्रेणी  में रख दिया कि ‘छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है.भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.और इसी वजह से कई महिलाएं शादी-शुदा ज़िंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक MNC एग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया,‘ मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी. जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे.जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सेक्स के दौरान मुझे टोर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैंने मना किया तो उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं होती थी’ 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है ?

सीनियर एडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत सेक्सुअल असोल्ट का केस दर्ज करा सकती हैं.इसके साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सेक्सुअल असोल्ट का केस कर सकती हैं . इसके साथ ही अगर आपको चोट लगी है तो आप IPC की धाराओं में भी केस कर सकती हैं.लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सबूत दिखाना मुश्किल होगा.वो कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहाँ ये कितना सफल रहा है इससे कितना गुनाह रुका है ये कोई नहीं जानता .

एक तिहाई पुरुष मानते हैं कि वो जबरन संबंध बनाते हैं—–

  • इन्टरनेशनल सेंटर फॉर वुमेन और यूनाइटेड नेशन्स पॉपूलेशन फंड की ओर से साल 2014 में कराये गए एक सर्वे के अनुसार एक-तिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नियों के साथ जबरन सेक्स करते हैं.
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उनके पति जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.
  • एक सरकारी सर्वे के मुताबिक, 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उनके पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे उपेंद्र बख़्शी का कहना है कि ‘मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वो कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. साल 1980 में प्रोफेसर बख़्शी उन जाने-माने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े क़ानूनों में संशोधन को लेकर कई सुझाव भेजे थे. उनका कहना था कि समिति ने उनके सभी सुझाव स्वीकार कर लिए थे, सिवाय मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझाव को. उनका मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सेक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

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लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियाँ और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर के इस ‘अपमानजनक कानून’ को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी भारत के इस रवैये पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उनका ये भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि ये कानून महिलाओं के अधिकारों का ‘स्पष्ट उल्लंघन है और इसमें पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी ‘अस्वभाविक है. इसी वजह से इससे संबन्धित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वो कहती है कि भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खंरोचें तो असली चेहरा दिखाता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

नीलिमा कहती हैं कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत है और इसे हमारे जीवनकाल में बदलना चाहिए. बात जब वैवाहिक बलात्कार की आती है तो बाधाएं अधिक ऊंची होती हैं. ये मामला पहले ही सुलझ जाना चाहिए था. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम अभी भी इतिहास की गलतियों से लड़ रहे हैं और यह लड़ाई महत्वपूर्ण है.

इस वक़्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है ?

19वीं सदी में फेमिनिस्ट प्रोटेस्ट के बाद भी शादी-शुदा पुरुषों को पत्नी के साथ सेक्स का कानूनी अधिकार था.साल 1932 में पोलेंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया.1970 तक स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, सोवियत संघ जैसे देशों ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था. 1976 में ऑस्ट्रेलिया और 80 के दशक में साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इज़राइल ने भी इसे अपराध की लिस्ट में डाल दिया.

संयुक्त राष्ट्र यानि UN की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, दुनिया के 185 देशों में 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को अपराध बताने वाले स्पष्ट कानून हैं. जबकि 74 ऐसे हैं जहां पत्नी को पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है. भारत के पड़ोसी देश भूटान में भी मैरिटल रेप अपराध है.

लेकिन सिर्फ 34 देश ही ऐसे हैं जहां न तो मैरिटल रेप अपराध है और न ही पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है. इनमें चीन, बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और भारत देश है. इसके अलावा दुनिया के 12 देशों में इस तरह के प्रावधान हैं जिसमें बलात्कार का आरोपी अगर महिला से शादी कर लेता है तो उसे आरोपों से बरी कर दिया जाता है. यूएन इसे बेहद भेदभाव मानवाधिकारोंके खिलाफ मानता है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है, क्योंकि यहाँ दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़,द्र्श्यरतिकता और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं है.पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थय प्रभाव उत्पन्न कर सकता है. वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक  माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है.बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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महिलाओं के खिलाफ नया हथियार रिवेंज पोर्न

यह उन दिनों की बात है जिन दिनों हाथ में कीपैड वाले फोन तो आम हो गए थे पर स्मार्ट और डिजिटल फोन न के बराबर हुआ करते थे. स्कूल टौयलेट की दीवारों पर लड़कियों के फोन नंबर लिखे होते थे. कहींकहीं स्कूल के पिछवाड़े वाले हिस्से में नाम सहित किसी लड़की की अश्लील चित्रकारी होती थी. स्कूल के ज्यादातर लड़के उन चित्रों को देख कर मादक मुसकान लिए गुजर जाया करते थे.

आमतौर पर यह हरकत 2 तरह के लड़के किया करते थे- एक वे जिन्हें उक्त लड़की बिलकुल भाव न दे रही हो और दूसरे वे जो धोखा महसूस किए लंपट आशिक की तरह लड़की से खासा नफरत कर रहे हों. लेकिन इन दोनों में ही जो बात समान थी वह यह कि ये दोनों प्रवृत्ति के लड़के यह काम लड़की से बदला लेने और उसे बदनाम करने के मकसद से किया करते थे. यह बात उस समय सामान्य तो लगती थी, पर कहीं न कहीं रिवेंज पोर्न के दायरे वाली थी.

समय बदला. युवाओं के हाथ में स्मार्ट फोन के साथसाथ इंटरनैट आया, सर्च बौक्स में डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू का औप्शन मिला तो लोग डिजिटली सोशल हो गए. छोटी दुनिया एकाएक सोशल मीडिया पर बड़ी हो गई. इस बड़ी सी आभासी दुनिया में जहां पूरे विश्व से जानकारी के आदानप्रदान के असीम विकल्प खुले, दूसरों से जुड़ने का मौका भी मिला, वहीं इस आदानप्रदान से कुछ खतरे भी पैदा हुए. इसी खतरे के तौर पर धड़ल्ले से उभरा इंटरनैट वाला रिवेंज पोर्न.

रिवेंज पोर्न के मामले

जैसाकि मरियम वैबस्टर डिक्शनरी द्वारा इसे परिभाषित किया गया, रिवेंज पोर्न- किसी व्यक्ति की अतरंग तसवीरों या क्लिपों को, विशेषरूप से बदला या उत्पीड़न के रूप में, उस व्यक्ति की सहमति के बिना औनलाइन पोस्ट करना है.

यानी किसी व्यक्ति के निजी या व्यक्तिगत पलों से जुड़ी सामग्री या अश्लील सामग्री को उस के पार्टनर या फिर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बिना अनुमति के औनलाइन इस आभासी दुनिया में सा  झा कर देना रिवेंज पोर्न या रिवेंज पोर्नोग्राफी कहलाती है. अब सवाल यह है कि हम इस मसले पर क्यों बात कर रहे हैं?

दरअसल पिछले कुछ सालों में भारत में भी इस तरह का चलन देखने में आ रहा है. सोशल मीडिया पर या पोर्न वैबसाइट पर ऐसे वीडियो या फोटो अपलोड करने की शिकायतें आ रही हैं जो बदले की भावना से किए गए हैं. ऐसी ही एक वारदात इस साल फरवरी में चेन्नई में घटी, जहां एक 29 वर्षीय हसन ने कथित तौर पर एक महिला के अश्लील वीडियो लीक किए.

दरअसल लड़की के मातापिता ने लड़कालड़की की शादी करने से इनकार कर दिया था. पुलिस के अनुसार लड़कालड़की दोनों की 2019 में सगाई हुई थी और कुछ महीने बाद उन की शादी होनी थी. परिवार वालों को लड़के के व्यवहार पर शक हुआ तो उन्होंने शादी रोक दी.

ऐसे में इस बीच जब दोनों रिश्ते में थे, तो लड़के ने उस के प्राइवेट वीडियो रिकौर्ड किए. शादी रुकने के बाद गुस्साए लड़के ने अपने दोस्तों को वे वीडियो लीक कर दिए और सोशल मीडिया पर तसवीरें पोस्ट कर दीं. इस के साथ ही गुस्साए लड़के ने लड़की के भाई को भी ये वीडियो शेयर किए, जिस के बाद लड़की के परिवार में मामला पता चला तो उन्होंने लड़के के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज की.

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ब्रेकअप का बदला

ऐसा ही एक मामला पिछले वर्ष जून माह में घटा था. मामला उत्तर प्रदेश के नोएडा का था, जहां प्रेमी ने अपनी प्रेमिका से ब्रेकअप का बदला लेने के लिए उस के करीब 300 फोटो पोर्न साइट को बेचे और 1000 वीडियो पोर्न साइट पर अपलोड कर दिए.

वह रोजाना फोटो व वीडियो कई प्लेटफौर्म पर अपलोड करता था. इतना ही नहीं पेटीएम के माध्यम से फोटोवीडियो बेचता भी था. पीडि़ता ने तंग आ कर जब पुलिस में शिकायत दर्ज कराई तब उस लड़के को पकड़ा गया.

पुलिस के मुताबिक पूर्व प्रेमी ने प्रेमिकी से बदला लेने के लिए ऐसा किया था. यह रिवेंज पोर्न का मामला था. आरोपी के पीडि़ता के साथ 4-5 साल पहले संबंध थे. तभी आरोपी ने उस के साथ शारीरिक संबंध बना कर अश्लील वीडियो बनाए थे. उस दौरान भी आरोपी ने कई जगहों पर उस के अश्लील फोटो शेयर की थी.

पहले तो आरोपी ने लड़की को अश्लील वीडियो शेयर करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया और आरोपी ने वीडियो कौल के माध्यम से भी उस का यौन शोषण किया. जब पीडि़ता ने आरोपी से बात करनी बंद कर दी तो उस ने वीडियो और फोटो पौर्न साइट पर अपलोड कर दिए.

भूल जाने का अधिकार

यही नहीं 3 मई, 2020 को उड़ीसा के जिला ढेकनाल में एक एफआईआर दर्ज हुई. यहां गिरिधरप्रसाद गांव में कार्तिक पूजा के दिन आरोपी शुभ्रांशु राउत महिला के घर पर गया. चूंकि दोनों एक ही गांव के थे और एकदूसरे के साथ पढ़ते थे, ऐसे में महिला ने शुभ्रांशु राउत को घर पर आने दिया. एफआईआर के मुताबिक, घर पर कोई नहीं है, यह जान कर शुभ्रांशु ने महिला के साथ बलात्कार किया. इस दौरान उस ने अपने मोबाइल से पीडि़ता का वीडियो बनाया और तसवीरें भी खींची.

शुभ्रांशु ने पीडि़ता को धमकी दी कि किसी से शिकायत करने पर वीडियो सार्वजनिक कर देगा. पीडि़ता का आरोप था कि इस घटना के बाद आरोपी 10 नवंबर, 2019 से लगातार धमका कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाता रहा. जब पीडि़ता ने तंग आ कर अपने मातापिता को यह बात बताई तो शुभ्रांशु ने पीडि़ता के नाम से ही फेसबुक पर एक अकाउंट बनाया और उस पर वे वीडियो और फोटो अपलोड कर दिए.

कई कोशिशों के बाद पुलिस ने अप्रैल, 2020 में मामला दर्ज किया और शुभ्रांशु को गिरफ्तार किया. उस ने उड़ीसा हाई कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी लगाई, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. इस सुनवाई के दौरान ही उड़ीसा हाई कोर्ट में जस्टिस एस के पाणिग्रही ने ‘भूल जाने के अधिकार’ का जिक्र किया.

भूल जाने का अधिकार निजता के अधिकार से इस मामले में अलग है क्योंकि जहां निजता के अधिकार में ऐसी जानकारी शामिल होती है जो सिर्फ अधिकार रखने वाले तक ही सीमित हो सकती है, जबकि भूल जाने के अधिकार में एक निश्चित समय पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को हटाना और तीसरे पक्ष को जानकारी तक पहुंचने से रोकना भी शामिल है.

आपराधिक धमकी

ऐसे ही एक मामले में चेन्नई की एक अदालत ने दिनोंदिन अपराध के बदलते चलन पर चिंता जताई थी. मामला पिछले वर्ष नवंबर का है. 24 साल के एक शख्स को रेप और आपराधिक धमकी के आरोप में 10 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाते हुए कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की.

कोर्ट ने कहा कि लड़के अपने पार्टनर के साथ बिताए अंतरंग पलों की वीडियोग्राफी कर लेते हैं और बाद में इस का इस्तेमाल धमकी देने और शोषण करने के रूप में करते हैं. कोर्ट ने कहा कि यह चलन एक नई सामाजिक बुराई है. ‘टाइम्स औफ इंडिया’ में छपी इस रिपोर्ट के मुताबिक आरोपी 2014 में पीडि़ता के संपर्क में आया जब दोनों अंबात्तुर की एक फैक्टरी में मिले. पीडि़ता उस फैक्टरी में काम करती थी. आरोपी सुरेश एक बैंक में रिप्रैजेंटेटिव के तौर पर काम करता था और वह फैक्टरी में पीडि़ता की डिटेल्स लेने गया था.

पीडि़ता को अपना बैंक अकाउंट शुरू कराने के लिए डिटेल्स देने की जरूरत थी. पीडि़ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि आरोपी ने मोबाइल नंबर लेने के बाद लड़की को परेशान करना शुरू कर दिया. वह बात करने के लिए उस पर अकसर दबाव बनाता था.

खबर के मुताबिक, कथित तौर पर आरोपी लड़की को काम के सिलसिले में अपने घर ले आया था जहां उस ने उस के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए, जिस के वीडियो आरोपी ने रिकौर्ड कर लिए. आरोपी ने धमकी में उसे बारबार घर आने के लिए कहा और ऐसा न करने पर वीडियो क्लिप वायरल कर देने की धमकी दी. जब लड़की पेट से हो गई तब घर वालों के पता चलने पर आरोपी के खिलाफ शिकायत की गई, जिस में कोर्ट ने आरोपी सुरेश को 10 साल की सजा सुनाई.

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पहले मामले की सुनवाई

भारत में रिवेंज पोर्न का पहला मामला ‘पश्चिम बंगाल राज्य बनाम अनिमेष बौक्सी’ के रूप में 2018 में सामने आया था, जिस में आरोपी को प्राइवेट क्लिप्स और तसवीरें सोशल साइट्स पर बिना पीडि़ता की सहमति के शेयर करने के अपराध में 5 साल की कैद और क्व9 हजार का जुरमाना लगाया गया था.

दरअसल, आरोपी शादी के बहाने पीडि़ता के साथ लगातार संबंध में था. इस दौरान वह दोनों की अतरंग तसवीरें और क्लिप बनाता रहा. जब शादी की   झूठी बात पीडि़ता के सामने आई तो आरोपी तसवीरों को सोशल साइट पर अपलोड करने की धमकी देने लगा. यहां तक कि आरोपी ने लड़की के फोन का इस्तेमाल कर और तसवीरें भी जुटाईं.

बाद में जब पीडि़ता ने रिश्ता खत्म कर लड़के से पिंड छुड़ाने की बात कही, तो आरोपी ने पीडि़ता और उस के पिता की पहचान का खुलासा करते हुए उन तसवीरों को चर्चित एडल्ट वैबसाइट पर अपलोड कर दिया. इस मामले की सुनवाई में कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि पीडि़ता को बलात्कार पीडि़ता के रूप में ट्रीट किया जाए और उचित मुआवजा दिया जाए.

महिलाओं पर बढ़ते अपराध के आंकड़े

कोरोना महामारी की वजह से लगे लौकडाउन के दौरान सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता बढ़ी. ऐसे में साइबर क्राइम के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 की तुलना में 2020 में रिवेंज पोर्न के अधिक मामले दर्ज किए गए, जबकि यह तब की बात है जब 70% पीडि़त महिलाएं इस तरह के मामले दर्ज ही नहीं करती हैं.

साइबर ऐंड लौ फाउंडेशन नामक गैरसरकारी संगठन द्वारा आयोजित एक सर्वे में पाया गया कि भारत में 13 से 45 वर्ष की आयु के 27% इंटरनैट उपयोगकर्ता रिवेंज पोर्न के ऐसे उदाहरणों के अधीन हैं.

रिवेंज पोर्न के साथ समस्या यह है कि एक बार इसे औनलाइन पोस्ट करने के बाद इसे न केवल भारत में बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी एक्सेस किया जा सकता है. इस के अतिरिक्त भले ही सामग्री को एक साइट से हटा दिया गया हो, पर इस के प्रसार को समाहित नहीं किया जा सकता है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जिस ने सामग्री को डाउनलोड किया है, वह इसे कहीं और पुनर्प्रकाशित कर सकता है, इसलिए इंटरनैट की सामग्री के अस्तित्व को बनाए रखता है.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 और 2014 के बीच अश्लील सामग्री के औनलाइन सा  झाकरण की मात्रा में क्व104 की वृद्धि हुई थी. वहीं 2010 की साइबर क्राइम रिपोर्ट से पता चला कि सिर्फ 35 फीसदी महिलाएं अपने शिकार की रिपोर्ट करती हैं.  इस में यह भी कहा गया है कि 18.3% महिलाओं को पता भी नहीं था कि उन्हें शिकार बनाया  गया है.

पिछले वर्ष ‘इंटरनैट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन औफ इंडिया’ के एक कार्यक्रम में कानून और आईटी मंत्री ने भारत में रिवेंज पोर्न की घटना के बारे में बात की. उन्होंने खुद माना की भारत में रिवेंज पोर्न की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है जो सही संकेत नहीं है. उन्होंने कहा, ‘‘भारत में रिवेंज पोर्न की   झलक देखने को मिल रही है और इस में यूट्यूब जैसे प्लेटफौर्म का भी दुरुपयोग हो रहा है. मैं ने इस मुद्दे पर सुंदर पिचाई से भी बात की है.’’

महिलाओं के लिए घातक

भारत में डिजिटल पर रिवेंज पोर्न की अधिकतर घटनाएं या यों कहें कि 90 फीसदी घटनाएं महिलाओं के साथ घटती हैं. महिलाएं अपने रोजमर्रा के जीवन में हमेशा अपराध और यौन हिंसा का शिकार होती रहती हैं. इस से पहले भी रिवेंज के नाम पर एसिड अटैक, यौन हमला, हत्या जैसी वारदातें होती ही थीं. अब रिवेंज पोर्न भी महिला उत्पीड़न की पहचान बनता जा रहा है.

भारत में डिजिटलीकरण ने देश के भीतर तकनीकी शक्ति और प्रौद्योगिकी तक पहुंच में वृद्धि की है, किंतु इस आभासी दुनिया में उत्पीड़न और अपराधों के मामलों में बाद में वृद्धि हुई है. ऐसे अपराध जिन्हें साइबर अपराध कहा जाता है, यह एक बड़ी समस्या के रूप में विकसित हुए हैं जिस से देश और दुनियाभर में कानूनी तौर पर भी और न्याय दिलाने के तौर पर भी सरकारें संघर्ष कर रही हैं.

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भारत में ऐसे कई मामले उभरने लगे हैं जहां लड़की से बदला लेने के लिए रिवेंज पोर्न ने कई लड़कियों की जिंदगी तबाह कर दी है. बदला और बदनाम इन 2 बातों के इर्दगिर्द रिवेंज पोर्न की वारदात को अंजाम दिया जाता है. लड़कियों से बदला लेने का यह तरीका बहुत ज्यादा पुराना नहीं है. इस की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है और इस के कारण चिंता और बढ़ती जा रही है.

आईटी एक्ट क्या कहता है

धारा 66 ई: आईटी अधिनियम 2000 की यह धारा उस सजा से संबंधित है जहां किसी व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन होता है. इस में किसी भी व्यक्तिकी ऐसी अतरंग तसवीरें व क्लिप खींचना, छापना और शेयर करना जिस पर उक्त व्यक्ति को आपत्ति हो वह इस धारा के तहत आती है. इस में अपराधी को

3 साल की सजा या 2 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना नहीं हो सकता है या कुछ मामलों में दोनों ही हो सकते हैं.

धारा 67 व धारा 67ए: धारा 67 के अनुसार इलैक्ट्रौनिक माध्यम से अश्लील और यौन सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित है, जिस में अपराधी को 3 साल तक की कैद या 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है. 67ए में दूसरे बार 5 साल की सजा और 10 लाख रुपए जुर्माना है. अगर दूसरी बार अपराधी ने अपराध किया है तो सजा 7 साल तक बढ़ जाती है.

धारा 67बी: यह धारा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों से संबंधित है. यदि किसी बच्चे को शामिल करते हुए अश्लील सामग्री के प्रकाशन का ऐसा कोई कार्य किया जाता है, तो इस तरह के अपराध के लिए 5 साल की कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान होगा.

महिलाओं के अश्लील चित्रण रोकने के कानूनी प्रावधान (1986)

विक्टिम इस की धारा 4 के तहत शिकायत दर्ज करा सकती है जिस में पेंटिंग फोटोग्राफ या फिल्म के माध्यम से महिला का अश्लील चित्रण हो. धारा 4 का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है, जहां अपराधी को कठोर कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है.

ऐसा हो तो क्या करें

साइबर सैल पर रिपोर्ट: भारत में साइबर सैल हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद है. सभी साइबर सैल में इस से जुड़े क्राइम से निबटा जाता है. कोई भी बड़ी आसानी से इंटरनैट के माध्यम से अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकता है. साइबर अपराध शाखाओं में उन वैबसाइटों की निगरानी के लिए कुछ तंत्र हैं जहां वीडियो अपलोड, देखे या सा  झा किए जाते हैं. शिकायत मिलने पर वे इलैक्ट्रौनिक वस्तुओं को जब्त कर लेते हैं और उन्हें फोरेंसिंक लैब में भेज देते हैं ताकि इस का पूरा इतिहास पता चल सके.

वैबसाइट या प्लेटफौर्म पर सीधी रिपोर्ट: इस में सीधे उसी वैबसाइट या माध्यम पर रिपोर्ट की जा सकती है जहां फोटो या वीडियो प्रसारित किए जा रहे हैं यह या तो स्वयं या कानूनी परामर्शदाता की सहायता से किया जा सकता है. आज सब से लोकप्रिय वैबसाइटों जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, गूगल आदि की सख्त नीतियां हैं जो न्यूडिटी पर प्रतिबंध करती हैं. ऐसी स्थितियों में यहां से डायरैक्ट रिलीफ मिल सकता है.

सभी सुबूत इकट्ठा करना: जिस ने यह किया है उस से संबंधित कोई सुबूत मिटाएं नहीं. जैसे मैसेजेस, किसी भी धमकी या ब्लैकमेलिंग संदेशों के स्क्रीन रिकौर्ड इत्यादि ताकि बाद में अपराधी के खिलाफ मुकदमा दायर किया जा सके.

राष्ट्रीय महिला आयोग या स्थानीय पुलिस स्टेशन में शिकायत: ऐसे मामलों में पीडि़त की ओर से कोई भी शिकायत दर्ज कर सकता है और पीडि़त को पुलिस स्टेशन में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है. जो आरोप दायर किए जा सकते हैं, वे आईपीसी की धारा 504 और 506 के तहत लगाए गए आरोप और प्रसारित छवियों के प्रकारप्रसार पर निर्भर करते हैं. साइबर ब्लौग इंडिया जैसे कुछ विशेषज्ञ हैल्पलाइन नंबर भी हैं जो साइबर अपराध विशेषज्ञों से जोड़ सकते हैं.

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सावधानियां बरतें

खुद की अश्लील, निजी व किसी भी तरह की आपत्तिजनक सामग्री को रोकने का अब तक का सबसे अच्छा और आसान तरीका यही है कि ऐसी सामग्री पैदा होने ही न दें.

– कंप्यूटर और मोबाइल फोन पर सुरक्षा सौफ्टवेयर की मदद ली जा सकती है.

– हमेशा अपने लैपटौप, मोबाइल या किसी भी डिवाइस पर स्ट्रौंग पैटर्न लगा कर रखें.

– कभी भी दूसरों से अपना पासवर्ड शेयर न करें. संभव है कि जो आप का करीबी पहले भरोसेमंद रहा हो वह बाद में न हो.

– यदि किसी करीबी के पास आप के अतरंग फोटो हैं तो उस से हटाने के लिए कहने से कभी नहीं डरना चाहिए और सुनिश्चित करें कि वे हटे या नहीं.

– जागरूकता के तहत मातापिता और स्कूल में शिक्षकों को बच्चों को सैक्सटिंग के जोखिमों से अवगत कराना चाहिए.

– ध्यान रहे कि जब आप किसी प्रकार किसी होटल, पब या माल में जाते हैं तो चेंजिंग से पहले का अच्छी तरह मुआइना कर लें.

सेक्सुअली और मेंटली शोषण को बढ़ावा देती है,चाइल्ड मैरिज- कृति भारती

कृति भारती ( समाज सेविका, सारथी ट्रस्ट)

राजस्थान सरकार नेपिछले दिनों चाइल्ड मैरिज के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बताया. जिसमें बाल विवाह होने पर एक महीने के अंदर इसे पंजीकरण करना पड़ेगा. इसे विधान सभा में विरोध होने के साथ-साथ कानून की भी चुनौती मिली है. नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स का कहना है कि 18 साल से कम उम्र में विवाह को मान्यता देने को वे कानूनन विरोध करेंगे और रिव्यु की सिफारिश करेंगे. सारथी ट्रस्ट की कृति भारती, भारत की पहली विवाह विच्छेद करवाने वाली सोशल वर्कर है और उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है. उन्होंने आजतक करीब 43 लड़कियों की विवाह विच्छेद करवाया है और1500 चाइल्ड मैरिज को रुकवाया है, लेकिन सरकार द्वारा बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य बना देने को एक गलत निर्णय मानतीहै.

मिलेगा बढ़ावा बाल विवाह

कृति आगे कहती है कि राजस्थान चाइल्ड मैरिज के लिए बदनाम है और अनल्मेंट भी यहाँ सभी राज्यों से अधिक हुआ है. अनल्मेंट से पहले वकील,एक्टिविस्ट, सामाजिक कार्यकर्त्ता, विक्टिम आदि जो लोग इस काम में प्रभावित होते है, उन्हें पूछकर उनकी चुनौतियों को जानकर इसे लागू करना चाहिए. देखा जाय तो ये भारत में तालिबान शासन की तरह दिया गया निर्देश है. राजस्थान सरकार का बाल विवाह के रजिस्ट्रेशन को मान्यता देना सामाजिक सुधार नहीं, राजनीतिक लालच है,क्योंकि बाल विवाह एक संगीन अपराध की श्रेणी में आता है और संज्ञेय अपराध को रजिस्ट्रेशन की अनुमति नहीं दिया जासकता. ये किसी व्यक्ति के अपराध करने पर उसे मान्यता देने जैसा है, जिसमे अपराधी सजा नहीं, बल्कि पुरस्कृत करने योग्य है. अनल्मेंट अर्थात चाइल्ड मैरिज कैंसलेशन यानि चाइल्ड मैरिज को कानूनन कैंसल करवाना.

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कानून में संशोधन है जरुरी

आगे कानून के संशोधन के बारें में कृति का कहना है कि दिल्ली में हुए निर्भया काण्ड के 16 साल के अपराधी को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत उसे बाल सुधार गृह भेजा गया, जबकि उसने सबसे घिनौना काम किया और बाल अपराधी के उम्र को कम किये जाने के लिए पूरे देश ने आन्दोलन किया, पर कुछ आगे नहीं हुआ और वह जेल से निकल कर सुरक्षित बैठा है. चाइल्ड मैरिज को मान्यता देने से अब माता-पिता बच्चों के मैरिज को रजिस्ट्रेशन कर कागज अपने पास रखेंगे, ऐसे में बड़ी होकर किसी लड़की को अपने पति से विवाह विच्छेद ,किसी संगीन कारणों से लेना है, तो उसे कोर्ट के रजिस्ट्रेशनपेपर मांगने पर उसे आसानी से मिल पाना असंभव होगा, क्योंकि कम उम्र में शादी होने पर उसके कागजात पेरेंट्स के पास होते है. ऐसे में किसी लड़की को अनल्मेंट के लिए पेपर नहीं मिल सकता और लड़कियां उसी हालत में रहने के लिए मजबूर होगी. अनल्मेंट अब आसान नहीं, कठिन बनाया जा रहा है.

होता है अपराधी का रजिस्ट्रेशन

इसके अलवा सरकार इस दिशा में एक सर्वे कर डार्क ज़ोन, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन को पता कर आगे बढ़ेगी, लेकिन ये करना आसान नहीं, क्योंकि इससे लोग सच्चाई नहीं बताएँगे. मनोवैज्ञानिक स्तर पर बात करने से भी चाइल्ड मैरिज कहाँ अधिक और कहाँ कम है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.चाइल्ड मैरिज के अपराध को रजिस्टर करना ठीक नहीं. मैंने कई बार वर्कशॉप में पीड़ित लड़कियों को बताया है कि अगर आप किसी से अन्ल्मेंट की बात नहीं कह पा रही हो, तो सरकारी प्रतिनिधि से कहे. इससे उनकी समस्या का हल मिलेगा, लेकिन इसमें समस्या यह है कि यहाँ एक व्यक्ति शादी की पंजीकरण करता है तो दूसरा विवाह विच्छेद के लिए काम करता है. येरजिस्ट्रेशन केवल चाइल्ड मैरिज की नहीं, बल्कि सेक्सुअली प्रताड़ित करने वाले, बलात्कारी और घरेलू झगड़े को पंजीकरण करना है. सरकार अनाल्मेंटको मुश्किल बना कर खुद की पीठ थपथपा रहे है.

बदलाव नहीं चाहते

कृति आगे कहती है कि असल में पूरे राजस्थान में जाति पंचायत है, जोहर समुदाय की अलग-अलग जाति पंचायत होती है,इसमें अधिकतर सीनियर सिटीजन मुखिया या समुदाय प्रमुख होते है. ये उस कम्युनिटी की बॉडी होती है, ये लोग खुद को कोर्ट और जज समझते है. ये लोग कभी भी चाइल्ड मैरिज को ख़त्म होते देखना नहीं चाहते. ये किसी भी पार्टी के लिए वोट बैंक होते है, क्योंकि उनके मुखिया के कहने पर पूरा गांव उसे वोट देते है. ये सभी जातियों में होती है और चाइल्ड मैरिज को वे अपनी परंपरा समझते है. यहाँ लड़कियों को बोझ समझा जाता है, उनके अनुसार सही उम्र में लड़की की शादी करना अनिवार्य होता है, ताकि रेप और लव मैरिज होने से बचा जा सकेगा और परिवार का मुंह भी काला नहीं होगा. इसमें वे आज के ज़माने में लड़कियों के आत्मनिर्भर होने को सही मानने में असमर्थ होते है. वे बदलाव पसंद नहीं करते. ऐसे बिल को पास कर देने से विक्टिम को अधिक परेशानी न्याय मिलने में होगी.

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अनाल्मेंट में होगी परेशानी

पूरी दुनिया चाइल्ड मैरिज को हटाना चाहती है, जबकि ये इसे प्रमोट कर रही है. बाल विवाह को एक बाररजिस्ट्रेशन करवाने के बाद आगे किसी प्रकार की कार्यवाही सरकार के विरुद्ध करना बहुत मुश्किल होता है. मैं एक समाज सुधारक की तरह सही को सही और गलत को गलत कहना पसंद करती हूँ. चाइल्ड मैरिज में बच्चियों का अधिक शोषण होता है. इन बेड़ियों का टूटना जरुरी है, क्योंकि इससे डोमेस्टिक वायलेंस अधिक होता है. लड़कियों का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. चाइल्ड ट्राफिकिंग बढती है. अनाल्मेंट की प्रक्रिया भी कठिन होगी, क्योंकि लड़कियों के पास अगर मैरिज रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं होगा, तो वे एनाल्मेंट नहीं कर सकती, क्योंकि एक्ट के तहत पेरेंट्स ही चाइल्ड मैरिज को रजिस्ट्रेशन करवा सकते है.

होता है जाति से निकाला

अपने एक अनुभव के बारें में कृति कहती है कि एक बच्ची ने चाइल्ड मैरिज को इनकार किया, तो जाति पंचायत ने उस लड़की से ससुराल जाने या 16 लाख का दंड भरने को कहा, ऐसा न करने पर पूरे परिवार को जाति से निकाल कर हुक्का-पानी बंद करने की धमकी दी. जाति पंचायत के निर्देश की वजह से परिवारके किसी भी सदस्य को कुएं से पानी न भरने देना, राशन न मिलना, किसी के घर आना – जाना बंद कर देना आदि सब मना हो जाता है. कई बार ये परिवार राज्य छोड़ देने के लिए विवश हो जाते है.

इसके अलावा बाड़मेर की एक लड़की को अनल्मेंट के लिए मैंने रात के 4 बजे रेस्क्यू कर जोधपुर लाई, क्योंकि उसके पिता मर्डर के आरोपी थे और मैरिज के समय की कोई सबूत मेरे पास नहीं थी, जज मुझे उसकी चाइल्ड मैरिज की सबूत लाने को कह रहा था. इस काम में किसी का सहयोग नहीं था, कोई बयान नहीं दे रहा था, क्योंकि उसके पिता ने गोली मारने की धमकी दे रखी थी. बहुत मुश्किल से उसका अनाल्मेंट करवाया गया. इसलिए राज्य सरकार का बाल विवाह को पंजीकरणकरवाने की एक्ट एक घटिया निर्णय है.

धर्म हो या सत्ता निशाने पर महिलाएं क्यों?

अफगानिस्तान में मजहबी और सियासती लड़ाई जारी है. मूल में उस का धर्म इसलाम है. कट्टरपंथी तालिबान शरिया कानून का सख्त हिमायती है. वह इंसान के पहनावे से ले कर व्यवहार तक को अपने मुताबिक चलाना चाहता है. वह पुरुष से दाढ़ी रखने व टोपी लगाने और स्त्री से हिजाब ओढ़ने का सख्ती से पालन करवाने वाला है. औरतों के मामले में उस के विचार बेहद कुंठित हैं.

तालिबान औरतों को सैक्स टौय से ज्यादा कुछ नहीं समझता. यही वजह है कि पढ़ीलिखी, दफ्तरों में काम करने वाली और तरक्की पसंद अफगान औरतों में निजाम बदलने से बहुत ज्यादा बेचैनी है. उन्हें मालूम है तालिबान अभी भले यह ऐलान कर रहा हो कि वह औरतों की पढ़ाई और काम पर रोक नहीं लगाएगा, मगर जैसे ही पूरा अफगानिस्तान उस के कब्जे में होगा और तालिबानी सत्ता कायम होगी, औरतों की स्थिति सब से पहले बदतर होने वाली है. उन्हें एक बार फिर अपना कामधंधा और पढ़ाईलिखाई छोड़ कर घरों में कैद रहना होगा. खुद को हिजाब में  लपेट कर शरिया कानून का सख्ती से पालन करना होगा.

इस वक्त अफगानिस्तानी गायक, फिल्मकार, अदाकारा, डांसर, प्लेयर किसी तरह अफगान से निकल भागने की फिराक में हैं. तालिबान के कब्जे के बाद से बड़ी संख्या में कलाकारों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है. वजह यह कि तालिबान ने उन्हें शरिया कानून के अनुसार अपने पेशे का मूल्यांकन करने और उस के बाद पेशे को बदलने का फरमान सुना दिया है.

अगर उन्होंने नाफरमानी की तो वे गोलियों का निशाना बनेंगे क्योंकि तालिबान अपना उदारवादी मुखौटा बहुत देर तक अपने चेहरे पर नहीं संभाल सकता है. अमेरिकी सेनाओं की  पूरी तरह वापसी के बाद वह अपने असली रंग में आ जाएगा.

अब सिर्फ यादें

जो अफगान औरतें 60 के दशक में अपनी किशोरावस्था में थीं या जवानी की दहलीज पर पांव रख रही थीं, वे अब बूढ़ी हो चली हैं, मगर उस दौर के अफगानिस्तान की याद उन की आंखों में चमक पैदा कर देती है. पहले ब्रितानी संस्कृति और फिर रूसी कल्चर के प्रभाव के चलते 60 के दशक में अफगान महिलाओं की लाइफ बहुत ग्लैमरस हुआ करती थी.

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आज जहां वे बिना परदे के बाहर नहीं निकल सकतीं, उस अफगान की जमीन पर कभी फैशन शो आयोजित हुआ करते थे. महिलाएं शौर्ट स्कर्ट, बैलबौटम, मिडी, लौंग स्कर्ट, शौर्ट टौप जैसी पोशाकों पर रंगीन स्कार्फ और मफलर लपेटे दिखाई देती थीं. ऊंची हील पहनती थीं. बालों को स्टाइलिश अंदाज में कटवाती थीं. खुलेआम मर्दों की बांहों में बांहें डाले शान से घूमती थीं. क्लब, स्पोर्ट्स, पिकनिक का लुत्फ उठाती थीं.

काबुल की सड़कों पर अफगानी महिलाओं का फैशनेबल स्टाइल हौलीवुड की अभिनेत्रियों से कम नहीं था. वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर बड़े ओहदों पर काबिज होती थीं. 1960 से ले कर 1980 के बीच के फोटो देखें तो पाएंगे कि अफगानिस्तान में महिलाएं कितनी स्वच्छंद और आजाद थीं. वे फैशन सहित हर फील्ड में आगे थीं. तब के काबुल की तसवीरें ऐसा आभास देती हैं कि  जैसे आप लंदन या पैरिस की पुरानी तसवीरें  देख रहे हैं.

फोटोग्राफर मोहम्मद कय्यूमी के फोटो उस दौर का सारा हाल बयां करते हैं. चाहे मैडिकल हो या एयरोनौटिकल, अफगान महिलाएं हर फील्ड में अपनी जगह बना चुकी थीं. 1950 के आसपास अफगानी लड़केलड़कियां थिएटर और यूनिवर्सिटीज में साथ घूमते और मजे करते थे. औरतों की लाइफ बहुत खुशनुमा थी.

हर क्षेत्र में आगे थीं

उस समय अफगान समाज में महिलाओं की अहम भूमिका थी. वे घर के बाहर काम करने और शिक्षा के क्षेत्र में मर्दों के कंधे से कंधा मिला कर चलती थीं. 1970 के दशक के मध्य में अफगानिस्तान के तकनीकी संस्थानों में महिलाओं का देखा जाना आम बात थी. काबुल के पौलिटैक्निक विश्वविद्यालय में तमाम अफगानी छात्राएं मर्दों के साथ शिक्षा पाती थीं. 1979 से 1989 तक अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के दौरान कई सोवियत शिक्षक अफगान विश्वविद्यालयों में पढ़ाते थे. तब औरतों पर मुंह को ढकने का कोई दबाव नहीं था. वे अपने पुरुष दोस्तों के साथ काबुल की सड़कों पर आराम से घूमती और मस्ती करती थीं.

मगर 1990 के दशक में तालिबान का प्रभाव बढ़ने के बाद महिलाओं को बुरका पहनने की सख्त ताकीद की गई और उन के बाहर निकलने पर भी रोक लगा दी गई.

अफगानिस्तान हो या भारत, धर्म ने सब से ज्यादा नुकसान औरतों का ही किया है. सब से ज्यादा जुल्म औरतों पर ढाया है. सब से ज्यादा गुलामी की जंजीरों में औरतों को जकड़ा है. अगर कोई पुरुष भी धर्म के हाथों मारा जाता है तो उस की पीड़ा भी औरत ही उठाती है. एक पुरुष के मरने पर कम से कम 4 औरतें तकलीफ से गुजरती हैं और ताउम्र उस तकलीफ को झेलती हैं. वे हैं उस पुरुष की मां, बहन, बीवी और बेटी. धर्म औरत का सब से बड़ा दुश्मन है. धर्म की जंजीरों को काटने का फैसला औरत को ही लेना होगा. यह हौसला उस में कब जागेगा, फिलहाल कहना मुश्किल है.

धर्म तो एक बहाना है

अभी तो अफगानिस्तान में इसलाम मजबूत हो रहा है और भारत में हिंदुत्व. कोई ज्यादा फर्क नहीं है. वे इसलाम के नाम पर मारकाट करते हैं, ये हिंदुत्व के नाम पर करते हैं. धर्म के ठेकेदार सत्ताधारियों को अपनी मनमरजी पर चलाते हैं और उन के हाथों ये गुनाह करवाते हैं. फिर चाहे वे अफगानिस्तान में हों या हिंदुस्तान में. सत्ता की जबान से औरतों को जलील करवाया जाता है.

बीते एक दशक में जब से हिंदुस्तान में हिंदुत्व का पारा चढ़ना शुरू हुआ है सत्ताशीर्ष पर बैठे लोग औरत की गरिमा को तारतार करने में लगे हैं. औरत की बेइज्जती कर के वे खुद को ताकतवर दिखाने की कोशिश में हैं. भारतीय राजनीतिक विमर्श में कांग्रेस की विधवा, बार बाला, इटैलियन डांसर, भूरी काकी, वेश्या, चुड़ैल, कुतिया, दीदी ओ दीदी, ताड़का जैसे स्वर्णिम शब्दों से औरत का महिमामंडन करने का काम हिंदू हृदय सम्राट अकसर करते हैं. इस का विराट उद्घाटन ‘पचास करोड़ की गर्लफ्रैंड’ जुमले के साथ हुआ था जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख से कांग्रेस नेता शशि थरूर की मृतक पत्नी सुनंदा पुष्कर के लिए 29 अक्तूबर, 2012 को झरे थे.

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इतनी कुंठा किसलिए

प्रियंका गांधी जब चुनावी दौर में प्रचार के लिए उतरती हैं तो उन के कपड़ों से ले कर उन के नैननक्श तक पर राजनेताओं द्वारा टिप्पणी की जाती है. प्रियंका को ले कर ये बातें भी खूब कही गईं कि खूबसूरत महिला राजनीति में क्या कर पाएगी. वहीं शरद यादव का वसुंधरा राजे पर किया गया कमैंट भी याद होगा जब उन्होंने उन के मोटापे पर घटिया टिप्पणी की थी कि वसुंधरा राजे मोटी हो गई हैं, उन्हें आराम की जरूरत है.

महिलाओं के संबंध में ये अनर्गल बातें करने वालों को धर्म की घुड़की कभी नहीं मिलती. धर्म के ठेकेदार ऐसी बातों पर हंसते हैं और सत्ता में बैठे ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करते हैं. हैरानी की बात है कि सत्ता की ताकत हासिल करने वाली महिलाओं में भी महिलाओं के प्रति ऐसी जलील बातें करने वालों का विरोध करने या उन्हें फटकारने का साहस नहीं उपजता.

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