ससुराल में रिश्ते निभाएं ऐसे

सिर्फ 7 फेरे ले लेने से पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बनता है. रिश्ता बनता है समझदारी से निबाहने के जज्बे से, पतिपत्नी का रिश्ता बनते ही सब से अहम रिश्ता बनता है सासबहू का. या तो सासबहू का रिश्ता बेहद मधुर बनता है या फिर दोनों ही जिद्दी और चिड़चिड़ी होती हैं. ऐसा बहुत कम पाया गया है कि दोनों में से एक ही जिद्दी और चिड़चिड़ी हो. जिद दोनों तरफ से होती है. एक तरफ से जिद हो और कहना मान लिया जाए तो झगड़ा किस बात का? एक तरफ से जिद होती है तो उस की प्रतिक्रियास्वरूप दूसरी ओर से भी और भी ज्यादा जिद का प्रयास होता है. यह संबंधों को बिगाड़ देता है. इस के नुकसान देर से पता चलते हैं. तब यह रोग लाइलाज हो जाता है.

कटुता से प्रभावित रिश्ते

सासबहू के संबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है. मनोवैज्ञानिक स्टीव कूपर का मत है कि संबंध में कटुता एक कुचक्र है. एक बार यह शुरू हो गया तो संबंध निरंतर बिगड़ते चले जाते हैं. बिगड़ते रिश्तों में आप जीवन के आनंद से वंचित रह जाते हैं. अन्य रिश्ते जो प्रभावित होते हैं वे हैं छोटे बच्चों के साथ संबंध, देवरदेवरानी, ननदननदोई, जेठजेठानी, पति के भाईभाभी आदि. ये वह रिश्ते हैं जो परिवार में वृद्धि के साथ जन्म लेते हैं. इन रिश्तों को निभाना रस्सी पर नट के बैलेंस बनाने के समान है. हर रिश्ते में अहं अपना काम करता है और अनियंत्रित तथा असंतुलित अहं के कारण घर का माहौल शीघ्रता से बिगड़ता है.

जेठजेठानी

यह रिश्ता बड़े होने के साथ आदर व सम्मान चाहता है. बहू का कर्तव्य है वह रिश्तों को निभाते समय आदर व सत्कार से पेश आए. जेठजेठानी की तरफ से यह प्रयास होना चाहिए कि बहू को बच्चों के समान प्यार दें. उस की हर आवश्यकता का ध्यान रखें. यह प्यार दोतरफा है.

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देवरदेवरानी

देवरदेवरानी के साथ बहू का रिश्ता सौहार्दपूर्ण होना चाहिए. अगर देवरदेवरानी से कोई गलत व्यवहार हो जाए तो बहू को क्षमाशील और सहनशील होना चाहिए. यहां यह नहीं कहा जा रहा है कि बहू को अपने सम्मान का खयाल नहीं रखना चाहिए. उस के आत्मसम्मान की रक्षा होनी चाहिए.

बच्चों के साथ व्यवहार

छोटे बच्चे संयुक्त परिवार में बड़े लाड़प्यार से पाले जाते हैं. सास तो उन को पूरा प्यार देती है. बहू को चाहिए वह भी उन्हें मां की तरह प्यार करे. उन का स्वभाव कोमल होता है. उन्हें कू्रर स्वभाव वाली बहू अच्छी नहीं लगती.

ननद-ननदोई के साथ व्यवहार

ननद शादी के बाद अकसर पति के साथ मायके आती है. वह बेशक थोड़े समय के लिए ही आए उस का स्वागत और सत्कार खुले दिल से होना चाहिए. घर के दामाद का भी आदर से भरपूर स्वागत होना चाहिए. बहू को चाहिए वह बढ़चढ़ कर परिवार के लोगों के साथ उन के सत्कार में भागीदार बने. उन्हें एहसास कराए कि उन का परिवार में आनाजाना उसे अच्छा लगता है. ननद परिवार की लड़की है. इस के लिए जाते समय ननदननदोई को उचित उपहार दे कर विदा किया जाए. सासबहू दोनों आपस में बातचीत कर के उपहार की व्यवस्था करें. जब पत्नी सब रिश्तों में अपने सद्भाव की मिठास भरती है, उन्हें अपने व्यवहार से सम्मान और प्यार देती है तो ऐसी बहू अपने पति की प्यारी और गर्व के योग्य बन जाती है. फिर कहा भी जाता है कि बहू वही जो पिया मन भाए.

वयस्क लड़का-लड़की

संयुक्त परिवार में जब बहू प्रवेश करती है तो सब से अधिक खुश होते हैं परिवार के कुंआरे लड़कालड़की. उन्हें मित्रवत व्यवहार की जरूरत होती है. अगर ससुराल आने पर बहू का रवैया उन के साथ मित्रवत होता है तो वह सास का दिल जीत लेती है. बहू उन का मार्गदर्शन करने की स्थिति में होती है.

सासबहू से अच्छे व्यवहार की अपेक्षा

नकचढ़ी और जिद्दी स्वभाव से हार न मानते हुए, सभी रिश्तेदारों की जिम्मेदारी होती है कि वे उन्हें अवसर दें कि निम्न बिंदुओं पर खुद को पू्रव कर सकें.

दूसरे रिश्तेदारों की स्थिति में खुद को रख कर सोचें. उन की अपेक्षा क्या है, उस के अनुसार व्यवहार द्वारा घर वालों का दिल जीतें.

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उन से व्यवहार करने में क्षमाशील और सहनशील बनें. गलती सभी से हो सकती है, यह मान कर चलें. अपनी गलती सहर्ष स्वीकारें.

अपना नजरिया सैक्रीफाइस वाला रखें. पौजिटिव सोच रिश्तों के पोषण के लिए टौनिक का काम करती है. गिव ऐंड टेक अच्छी नीति है. 

लाडली को सिखाएं रिश्ते संवारना

‘मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो,’ टीवी पर आ रहे इस सीरियल की नायिका जब विवाह कर के अपनी ससुराल पहुंचती है, तो उस की मां उस की हर गतिविधि पर नजर रखने लगती है. मां वीडियो कौलिंग कर बेटी की घरगृहस्थी में घुसी रहती है, जो कतई उचित नहीं होता है.

भले मां बेटी को जन्म देती हैं, उसे पालपोस कर बड़ा करती हैं, हर पल बेटी का हित चाहती हैं, पर कई बार उन की जरूरत से ज्यादा फिक्रमंद रहने की आदत बेटी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है. मांबेटी का रिश्ता प्यार की डोर से बंधा होता है.

शुरुआत में बरतें सावधानी

बेटी की सुरक्षा और उस के सुखद भविष्य के लिए मां हर मुमकिन प्रयास करती है. दोनों एकदूसरे की दुनिया होती हैं, पर जब बेटी की शादी हो जाती है तो बेटी एक दूसरी दुनिया में प्रवेश करती है. उस के जीवन में नए लोग और नए रिश्ते आते हैं. इन नए रिश्तों को प्यार से सींचने के लिए बेटी को काफी कंप्रोमाइज करने होते हैं और यह जरूरी भी है, क्योंकि रिश्तों का पौधा मजबूत बन सके, इस के लिए शुरुआती दिनों में ही ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है.

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बेटी को संवारने दें अपनी दुनिया

बेटी जब बिदा हो कर ससुराल चली जाए तो मां को बाद में भी उस के साथ चिपके नहीं रहना चाहिए. बेटी को अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीने दें. अपनी समस्याओं को स्वयं सुलझाने का मौका दें. अपनी परिस्थितियों के साथ एडजस्ट करने दें.

बातबात पर यदि मां बेटी को अपनी सलाह देती रहेगी तो बेटी कभी स्वतंत्र निर्णय लेना नहीं सीख पाएगी. वैसे भी जब मां उस घर में नहीं है, तो सारी परिस्थितियों को समझे बगैर दी गई सलाह एकतरफा ही रहेगी और बेटी की समस्याएं सुलझने के बजाय उलझती चली जाएंगी.

बेटी समझे ससुराल को अपना घर जब शादी कर के लड़की पति के घर आती है तो फिर वही उस का अपना घर बन जाता है. नए रिश्ते ज्यादा करीब हो जाते हैं और ससुराल का मानसम्मान उस का अपना हो जाता है. लड़की को सदैव इस हकीकत को समझना चाहिए.

हमेशा यह याद रखना चाहिए कि रिश्ता टूटने में एक भी पल नहीं लगता, अगर एक बार रिश्ते में दरार आ जाए तो फिर उसे पाटा नहीं

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जा सकता. यदि दरार भर भी जाए तो खटास फिर भी नहीं जाती. इसलिए रिश्ते की डोर को अपने प्रयासों से मजबूत बनाने का प्रयास करें. एक बार रिश्ता मजबूती से जुड़ जाए तो फिर उसे कोई नहीं तोड़ सकता.

जब माता या पिता का हो एक्सट्रा मैरिटल अफेयर

दिल्ली के एक कौलेज में छात्रों को साइकोलौजिकल सपोर्ट देने के उद्देश्य से बनाये गए क्लिनिक में काउंसलरका एक दिन किसी छात्रा द्वारा बताई गयी ऐसी समस्या से सामना हुआ जो पहले कोई और लेकर नहीं आया था. प्रौब्लम लड़की के पिता से जुड़ी थी, लेकिन वह छात्रा अपने अन्य मित्रों के समान पिता के अनुशासनपूर्ण रवैये से परेशान नहीं थी. उसकी समस्या तो यह थी कि उसके पिता अनुशासन में नहीं हैं. लड़की के अनुसार उसके पिता समाज व परिवार के क़ायदे भूलकर अपने औफ़िस की एक महिला मित्र संग अवैध सम्बन्ध बनाये हुए हैं. एक दिन जब वहछात्रा अपनी कुछ सहेलियों के साथ एक कौफ़ी शौप में पहुंची तो पिता उस युवती के साथ सटकर बैठे थे. ग़नीमत यह रही कि सखियों में से कोई भी उसके पिता को नहीं पहचानती थी, वरना छात्रा के अनुसार वह आत्महत्या ही कर लेती.

एक अन्य घटना मध्य प्रदेश की है, जहां अपने पति के मित्र से सम्बन्ध रखने पर एक मां को जान से हाथ धोना पड़ा. 15 वर्षीय बेटे को मां के विवाहेतर सम्बन्ध का पता लगा तो वह आग-बबूला हो उठा और उसने अपनी मां की हत्या कर दी.

विवाहेतर सम्बन्ध या एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर से जुड़े समाचार प्राय सुनने में आ ही जाते हैं. आज जब समाज में ‘मेरा जीवन मेरे नियम’ का चलन ज़ोर पकड़ने लगा है तो इस प्रकार की समस्याएं भी खड़ी हो रही हैं. युवा हो रहे बच्चों को जब अपने माता या पिता के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होती है तो उनके दिल पर क्या गुज़रती होगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. ऐसी परिस्थिति का सामना वे किस प्रकार करें इस पर विचार तभी हो सकता है जब उन पर पड़ने वाले प्रभावों को समझ लिया जाए.

माता-पिता के एक्स्ट्रा मैरिटल अफ़ेयर का बच्चों पर प्रभाव

– अभिभावक की रुचि कहीं और देखकर वे स्वयं को उपेक्षित समझने लगते हैं और हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं.

– इस प्रकार के सम्बन्धों और उसके कारण माता-पिता के बीच होने वाले विवाद से वे तनाव में आ जाते हैं औरस्वयं कोअकेलामहसूस करने लगते हैं.

– माता-पिता तो एक-दूसरे से लड़ झगड़कर अपनी बात कह सकते हैं लेकिन बच्चे की यह समस्या हो जाती है कि वह क्या करे? न तो पीड़ित अभिभावक का पक्ष ले सकता है और न ही अफ़ेयर में फंसे अभिभावक को खरी-खोटी सुना सकता है.

– माता-पिता के बीच सम्बन्ध टूट जाने का भय उसमें असुरक्षा की भावना को जन्म देता है.

– विवाहेतर सम्बन्ध बनाने वाले अभिभावकों की गतिविधियों पर प्रभावित बच्चे आते-जाते नज़र रखने लगते हैं, जिससे उनके भीतर संदेह की प्रवृत्ति घर करने लगती है.

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– मित्रों को इस बात का पता लग जाएगा तो उनकी प्रतिक्रिया न जाने क्या होगी, इस बात का भय उनको दोस्तों से दूर कर देता है और वे समाज से कटना शुरू कर देते है.

– युवा बच्चों का ध्यान अपना करियर बनाने में रहता है. इस प्रकार के सम्बन्धों के विषय में जानकर उनका मन पढ़ाई या किसी परीक्षा की तैयारी आदि में नहीं लग पाता. इसका प्रभाव उनके सम्पूर्ण जीवन पर पड़ सकता है.

– बच्चे माता-पिता को अपना आदर्श मानते हैं. जब उनके रिश्ते में वे किसी तीसरे का प्रवेश देखते हैं तो उनका अभिभावकों से विश्वास उठने लगता है.

– युवा हो रहे बच्चे पर कभी-कभी इस बात का प्रभाव इतना गहरा पड़ जाता है कि क्रोध के कारण उसकी प्रवृति हिंसात्मक होने लगती है.

क्या करें जब माता या पिता के हों विवाहेतर सम्बन्ध

• यह सच है कि बच्चों को इस प्रकार का आघात सहन करना भारी पड़ता है, लेकिन इसका परिणाम घर से चले जाना या पढ़ाई से दूर हो जानानहीं होना चाहिए. एक ग़लत कदम के लिए कोई दूसरा ग़लत कदम उठा लेना समझदारी नहीं.

• माता या पिता द्वारा यदि एक भूल हो गयी तो इसका यह अर्थ नहीं कि उनका अपनी संतान के प्रति स्नेह भी समाप्त हो गया. इसलिए अपने को उपेक्षित मानकर आत्महत्या करने की बात सोचना बिल्कुल ग़लत होगा.

• इस बात की चिंता कि समाज इस बारे में क्या सोचेगा, माता या पिता को भी होगी. इसलिए अभिभावकों के अवैध सम्बन्धों को लेकर बच्चों को दिन-रात इस चिंता में घुलना कम करना चाहिए कि लोग क्या कहेंगे? अपने मित्रों से मिलना-जुलना उन्हें पूर्ववत जारी रखना चाहिए.

• संयम से काम लेना होगा. आवश्यकता पड़ने पर अभिभावकों को अपनी मनोदशा बताई जा सकती है. यदि साफ़-साफ़ कहने में संकोच हो तो लिखकर विनम्रतापूर्वक अपने दिल की बात बताना सही होगा.

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• मां या पिता के विषय में कुछ भी अप्रिय देखा अथवा सुना गया हो तोअपनी बातजल्दी ही पेरेंट्स तक पहुंचा देनी चाहिए. शुरू-शुरू में बच्चे द्वारा अपनी बात कह देने से एक लाभ तो यह होगा कि उस पीड़ित बच्चे के मन-मस्तिष्क में पनप रहा तनावहिंसात्मक रूप नहीं लेगा और दूसरा सम्बन्ध में लिप्त अभिभावक को संभलने में अधिक समय नहीं लगेगा.

• अपने मन की बात कह देने के बाद बच्चों को चाहिए कि इस विषय में अधिक न सोचें और चिंताग्रस्त होने के स्थान पर पढ़ाई में मन लगाकर अपने सपनों को पूरा करने में जुटे रहें. कोई भी समस्या दूर होने में कुछ समय तो लगता ही है.

यह सच है कि युवा बच्चे अपनी समझदारी दिखाते हुए विवाहेतर सम्बन्धों में रुचि ले रहे अभिभावकों को अपनी दुर्गति से परिचित करवा सकते हैं, लेकिन एक अहम् बात जो समझना आवश्यक है कि माता-पिता पेरेंट्स होने के साथ-साथ एक इंसान भी हैं और भूल तो किसी भी व्यक्ति से हो सकती है.समस्या कोई भी हो उसका समाधान ढूंढा जा सकता है. इसलिए यह याद रखना होगा कि माता या पिता को कहीं सम्बन्ध बढ़ाते देख अपना आपा खोकर कुछ भी अनुचित करने से बचना होगा.

पापा मेरे प्यार के खिलाफ हैं, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. हम दोनों इस बारे में अपनी फैमिली को बता चुके हैं. हम आगे की पढ़ाई साथ करना चाहते थे, लेकिन मुझे पटना भेज दिया गया और उसे कोटा. उस की फैमिली मुझे स्वीकार करती है लेकिन मेरी फैमिली कहती है कि वह मांसाहारी है और मुझे उस से बात करने से भी मना करते हैं. मेरे पापा कहते हैं कि यदि मैं ने उस युवक से बात की तो वे अपना गला काट लेंगे. मैं किसी को खोना नहीं चाहती. क्या करूं?

जवाब

‘जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी,’ लेकिन जब बात अपने अजीज की हो तो दुविधा होती ही है. आप की स्थिति भी कुछकुछ ऐसी ही है. यह अच्छी बात है कि आप पेरैंट्स की इज्जत समझती हैं, लेकिन उन का आप पर उस युवक को छोड़ने हेतु आत्महत्या की धमकी देते हुए दबाव बनाना एकदम गलत है. ऐसे में आप को अपने प्रेम की परीक्षा देनी होगी.

अपने प्रेमी से कुछ दिन अगर दूर रहना पड़े तो कोई हर्ज नहीं. इस बीच अपने पिता को कौन्फिडैंस में लीजिए. जब उन्हें लगे कि वाकई युवक अच्छा है तभी बात बढ़ाइए. किसी अन्य के जरिए उन से बात करेंगी तो अच्छा रहेगा.

साथ ही अपने प्रेमी से कहें कि अच्छा कैरियर बनाए और सब को इंप्रैस करे. फिर तो जीत आप की ही होगी, क्योंकि युवती के पिता सिर्फ यही चाहते हैं कि युवक पढ़ालिखा और अच्छी कमाई व ओहदे वाला हो. जब समाज में उस की इज्जत होगी तो पिता भी स्टेटस व मांसाहारी होने पर एतराज नहीं करेंगे और आप का प्यार भी परवान चढ़ेगा.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बेटे नहीं बेटियां हैं बुढ़ापे की लाठी

कुछ अरसा पहले दिल्ली से सटे गे्रटर नोएडा की यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनी कि मां के शव को ले कर 4 बेटियां भाई के दरवाजे पर 3 घंटे तक अंतिम संस्कार के लिए रोती रहीं, लेकिन भाई ने दरवाजा नहीं खोला. सैक्टरवासियों और पुलिस के समझाने पर भी उस का दिल नहीं पसीजा, तो अंतत: बेटियों ने ही मां के शव को मुखाग्नि दी. भाई के अपनी मां को मुखाग्नि न देने का कारण चाहे जो भी हो, मगर आज भी घर में बेटा पैदा होने पर मातापिता बेहद खुश होते हैं, क्योंकि आज भी समाज में ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि बेटा घर का कुलदीपक होता है और वही वंश को आगे बढ़ाता है. जबकि आज के बदलते परिवेश में बेटों की संवेदनाएं अपने मातापिता के प्रति दिनबदिन कम होती जा रही हैं. बेटियां जिन्हें पराया धन कहा जाता है, जिन के पैदा होने पर न ढोलनगाड़े बजते हैं, न जश्न मनाया जाता है और न ही लड्डू बांटे जाते हैं. डोली में बैठ कर वे ससुराल जरूर जाती हैं पर वही आज के परिवेश में मांबाप के बुढ़ापे की लाठी बन रही हैं.

बेटियों ने दिया सहारा

कुछ महीने पहले बरेली की रहने वाली कृष्णा जिन की उम्र 80 वर्ष है, रात सोते समय पलंग से गिर गईं. डाक्टरों ने कहा कि कौलर बोन टूट गई है अत: इन्हें बैड रैस्ट पर रहना पड़ेगा. वकील बेटे की पत्नी को उन की देखरेख यानी कपड़े बदलवाना, खाना खिलाना आदि करना ठीक नहीं लगा, तो रोज पतिपत्नी के बीच झगड़ा होने लगा. अंतत: लखनऊ से बेटीदामाद ऐंबुलैंस ले कर आए और मां को अपने घर ले गए. अब बेटी के घर उन की अच्छी तीमारदारी हो रही है. पर बेटे ने वहां जाना तो दूर एक बार फोन कर के भी मां का हालचाल नहीं पूछा. जबकि मां की नजरें हर समय बेटे को खोजती रहती हैं.

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ऐसे न जाने कितने मांबाप होंगे जिन्हें उन के बेटे अपने पास नहीं रखना चाहते. अब रामकुमारजी को ही लें. 10 साल पहले रिटायर हो गए थे. सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर थे. पत्नी रही नहीं. बेटे की शादी की. फिर घर के एक कोने में पड़े रहते थे. बेटे ने पूरे घर में अपना कब्जा कर रखा था. बहू उन से बात नहीं करती थी. हाल ही में उन्हें कैंसर होने का पता चला तो बेटी आ कर ले गई. वह पिता का इलाज करवा रही है. बेटे को इस से कोई मतलब नहीं है. घर रामकुमारजी का पर अधिकार बेटे का. रामकुमारजी बताते हैं कि बेटी ने जब लव मैरिज की थी तो वे उस से काफी समय तक नाराज रहे थे. फिर भी आज वही बेटी मेरे बुढ़ापे का सहारा बन रही है. कई महिलाएं तो वृद्धाश्रम में इसलिए रह रही हैं कि उन के बेटे उन की देखभाल नहीं करते और बेटी कोई है नहीं. कर्नाटक की रहने वाली 73 वर्षीय शकुंतला बताती हैं कि उन के पति का बिजनैस था. पति के निधन के बाद इकलौते बेटे ने बिजनैस संभाला. फिर वह गुड़गांव आ कर रहने लगा और घर में पोते के लिए जगह कम होने का हवाला दे कर उसे वृद्धाश्रम में छोड़ गया. इसी तरह केरल की रहने वाली 65 वर्षीय विजयलक्ष्मी का बेटा उन्हें अपने परिवार के साथ मस्कट ले गया. वहां वे घर का काम करती थीं व बेटे के छोटे बच्चे को संभालती थीं. पर जब वे बीमार हुईं और घर का काम करने में असमर्थ हो गईं तो बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. तब केरल के ही रहने वाले एक व्यक्ति को उन पर दया आई और उस ने उन की भारत वापसी का इंतजाम कराया. अब वे अपनी बेटी के पास हैं. वही उन की देखभाल कर रही है.

इसी तरह एटा के रहने वाले शर्माजी की पत्नी नहीं रहीं तो वे अपने इंजीनियर बेटे के पास नोएडा आ गए. उन के आते ही बहू ने भी जौब शुरू कर दी और अपने बच्चे को क्रैच में न भेज कर उसे सुबह स्कूल की बस में चढ़ाना, दोपहर को घर लाना और खाना खिलाना आदि सभी काम शर्माजी पर डाल दिए. एक दिन वे गिर पडे़ और पैर की हड्डी टूट गई. बस तभी से बेटेबहू ने उन से मुंह मोड़ लिया. अपनी बेटी से मोबाइल पर बात करते थे तो मोबाइल भी उन्होंने ले लिया. वे उन से बात नहीं करते थे. खाना भी मुश्किल से एक समय और वह भी बेसमय मिलता. अंतत: बेटी आई और अपने पिता को देहरादून अपने साथ ले गई. अब वे ठीक हैं. बेटे ने तो उन का हालचाल भी नहीं पूछा. ऐसे किस्से आज समाज के हर वर्ग में और हर दूसरेतीसरे घर में घट रहे हैं.

बेटों के विचार

सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है जो बेटे अपने जन्म देने वाले मांबाप की देखभाल करना नहीं चाहते? क्या उन की संवेदनाएं मर गई हैं अथवा अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ाना चाहते हैं? आइए, जानें कुछ बेटों ने इस संबंध में क्या बताया: बेटे चाहते हैं कि बुढ़ापे में अपने मातापिता की देखभाल करें, पर नौकरी के कारण दूसरे शहर में जाना, बारबार ट्रांसफर होना, छोटा घर, बच्चों की पढ़ाई का बढ़ता खर्चा और सब से मुख्य बात पत्नी का भी नौकरीपेशा होना अथवा सहयोग न देना, जिस की वजह से वे ऐसा नहीं कर पाते. फिर बड़े शहरों में एक तो विश्वासपात्र नौकर नहीं मिलते और अगर कोई मिल भी जाता है तो मोटा वेतन मांगता है. तो भी डर बना रहता है कि कहीं घर में कोई दुर्घटना न घट जाए. उस पर मातापिता का जिद्दी होना, हर समय की टोकाटोकी, खानपान में नुक्ताचीनी जैसी कई समस्याएं हैं. घर आने पर हर व्यक्ति सुकून चाहता है, पर ऐसे हालात में यह संभव नहीं हो पाता. कई बार मातापिता स्वयं भी साथ नहीं रहना चाहते. फिर आज के माहौल में छोटा परिवार की धारणा को भी बढ़ावा मिल रहा है.

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ऐसा क्यों हो रहा

सवाल यह उठता है कि आज के समय में ऐसा क्यों हो रहा है, जबकि मातापिता भी शिक्षित हैं और बच्चे भी?

मनोचिकित्सक दिव्या बताती हैं कि बेटा और बेटी के साथ समान व्यवहार करना व बेटी को भी प्रौपर्टी में समान हिस्सा देने से लड़कों के मन में यह विचार आने लगा है कि मांबाप के देखभाल की जितनी जिम्मेदारी उन की है उतनी ही बेटी की भी यानी मांबाप की देखभाल की जिम्मेदारी अकेले उन की नहीं है. वैसे भी भावनात्मक रूप से लड़कियां अपने मातापिता से ज्यादा जुड़ी रहती हैं. दूसरे अब वे भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो रही हैं, अत: ससुराल वाले भी उन से कुछ नहीं कह पाते. अब पतियों को भी यह समझ में आने लगा है कि पत्नी के मातापिता भी उतने ही जरूरी हैं जितने अपने. इसी कारण वे पत्नी को पूरापूरा सहयोग देते हैं.

मातापिता स्वयं भी जिम्मेदार होते हैं. बहू में हर समय कमी देखते हैं, उस के साथ जुड़ाव नहीं कर पाते. कोई बात करनी हो तो भी बेटे से अलग करते हैं. बहू के सामने नहीं. दूसरे हर बात में अपनी बेटी को बहू के मुकाबले ज्यादा आंकते हैं. गाहेबगाहे बेटी को तो तोहफे देते रहते हैं पर बहू को नहीं. यह सच है कि उम्र के साथ कुछ बीमारियों का लगना आम बात है तो भी वे मांबाप हैं और उन्हें भावनात्मक सहारा अपने बच्चों से मिलना ही चाहिए ताकि वे उम्र के आखिरी पड़ाव पर खुद को उपेक्षित न महसूस करें.

तोलमोल कर बोलने के फायदे

अपने अच्छे व्यवहार व प्यार से कोई भी किसी का दिल जीत सकता है, उसे अपने अनुरूप बना सकता है. जरूरत होती है सिर्फ खुद को टटोलने की कि कहीं खुद में कुछ खामियां तो नहीं? कहीं छोटीछोटी बातों पर झगड़े तो नहीं होते? अगर आप इस पर गौर करेंगे, तो यकीन मानिए कि झगड़े बंद हो जाएंगे. वैसे हम सब की यही कहानी है. कितना पढ़लिख लिया है पर गुस्सा कंट्रोल में नहीं रहता. जानेअनजाने जबान फिसल ही जाती है. भले ही मन में सामने वाले के लिए कुछ नहीं है पर दिल को छलनी करने वाली बात जबान पर क्यों आ जाती है? यही आदत रिश्तों के दरमियान दूरियां ले आती है, जिन्हें फिर संजोना मुश्किल ही नहीं असंभव होता है.

मैं ने अपने पड़ोस कि नईनवेली दुलहन ओजल को पिछले कुछ दिनों से गंभीर हावभाव लिए देखा. हरदम खिलखिलाती, चंचल व मस्तमौला रहने वाली ओजल का यों गंभीर देखा नहीं गया. बहुत पूछने पर उस ने बताया कि उस की हसबैंड से कोल्ड वार चल रही है. ताज्जुब हुआ कि प्यार में साथ जीनमरने की कसमें खाने के बाद मांबाप की रजामंदी व आशीर्वाद से वंचित इस कपल ने कोर्ट मैरिज की और आज महज 3 महीने शादी में टूटने की कगार पर आ खड़ी हुई. उन के अटूट प्यार का यह अंजाम, ओजल का पति से यों रूठना और 2 सप्ताह से बातचीत बंद रहना मुझ से देखा न गया. मैं ने उस की मुलाकात पड़ोस में रहने वाले फैमिली कांउसर व सुप्रीम कोर्ट के वकील सरफराज सिद्दीकी से करवाई, ताकि उस की नई जिंदगी के आगाज में यों गाठें नहीं आएं और प्यार की सौंधी महक से घरआंगन ताउम्र महकता रहे. सरफराज ने उन्हें समझाया तो बिगड़ते हालात संभल गए और अब खुशहाल है उन की जिंदगी.

सोचसमझ कर बोलो

सरफराज कहते हैं कि तीर कमान से और बात जबान से एक बार निकलने के बाद वापस नहीं आती, इसलिए जो भी बोलो सोचसमझ कर बोलो. पतिपत्नी के बीच तूतू मैंमैं असामान्य नहीं है. उन में लड़ाईझगड़ा होना तो आम बात है. माना कि पतिपत्नी के प्यारे रिश्ते का ठोस बनाने के लिए कभीकभार की मीठी नोकझोंक बहुत अहम है, लेकिन एक सीमा तक. वरना रिश्ते में जहर घुलते देर नहीं लगती. वैसे लड़ाई के बाद प्यार पतिपत्नी के रिश्ते को और मीठा कर देता है. पर इसे आदतन मैरिज लाइफ में शामिल करना अलगाव, तलाक जैसी गंभीर स्थितियां तक रिश्ते में ले आता है. सोचो कि झगड़ा होता क्यों है? इस की मुख्य वजह क्या है? कभीकभी तो पति या पत्नी पता भी नहीं चलता कि उस ने ऐसा क्या बोला कि नाराजगी हो गई? लेकिन सच तो यह है कि आप ने अनजाने में ही सही, कुछ ऐसा बोल दिया जो उन के  दिल को लग गया. ये गलतियां आप से अकसर होती हैं.

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आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातें जिन पर चुप्पी लगाना आप के और उन के लिए जरूरी है. कारण, शरीर पर लगे घाव तो भर जाते हैं, लेकिन दिल पर लगे घाव जीवन भर दर्द का एहसास देते रहते हैं. रिश्ते में नाराजगी न हो, इस के लिए कुछ बातों से दूरी और कुछ बातों का खयाल रखना नितांत आवश्यक है.

मेरा बौयफ्रैंड मेरी गर्लफैंड

याद रहे कि जो बात बीत गई सो बीत गई. पुरानी बातों पर चर्चा करने से रिश्ते में खटास और नाराजगी ही हाथ आएगी. अगर आप पार्टनर के दिल में बस चुकी हैं या पार्टनर आप के दिल में बस चुका है या यों कहें कि आप दोनों एकदूजे के दिल की धड़कनों को पहचानते हैं, तो ऐसे में आप की या उन की ऐक्स बौयफ्रैड या गर्लफ्रैंड पर चर्चा नाराजगी लाने के सिवा कुछ और नहीं करेगी. इस के अलावा नई और पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड की तुलना भी रिश्ते में दरार ले आएगी. इसलिए पुराने याराने की भूलवश भी चर्चा नहीं करें.

जादुई वाक्य

आई लव यू’ वाक्य में तो जैसे शहद घुला है. आइए एक पुराना दिन याद करते हैं. मिलने का समय शाम 5 बजे तय हुआ था और आप किसी कारणवश सही समय पर नहीं पहुंचे. ऐसे में उन का गुस्से से लालपीला होना लाजिम था. लाख समझाने के बावजूद गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. लेकिन आप के जादुई वाक्य ने सब भुला दिया. आप ने उन का हाथ अपने हाथों में लिया और बोल दिया, ‘आई लव यू’. बस फिर क्या था, गुस्सा काफूर और प्यार में इजाफा होता गया. न कोई सवाल न कोई जवाब. यह एक जादुई वाक्य है. परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, यह एक वाक्य ही काफी होता है, उसे ठीक करने के लिए. पर एक बात का खयाल रखने की जरूरत है. जब आप यह बोलते हैं कि ‘आई लव यू’, तो महिला के भीतर भावनाओं का सागर उमड़ पड़ता है. वह आप से पलट कर सवाल करती है कि क्या वाकई आप शिद्दत से ऐसा महसूस करते हैं? इस के साथ ही कई और सवाल भी वह आप से करेगी. अगर ऐसे सवालों का सामना करने के लिए आप तैयार नहीं हैं, तो बेहतर

यही होगा कि आप ऐसा कुछ कहने की बजाय कुछ और कह कर उन का दिल जीतने की कोशिश करें.

खाने को ऐंजौय करें

अगर आप खाने के शौकीन हैं, तो वे भला क्यों नहीं हो सकतीं? माना छरहरी दिखने के लिए वे काफी मेहनत करती हैं, लेकिन आप को बता दें कि नए स्वाद चखना लड़कियों को बहुत लुभाता है. शादी से पहले या शादी के बाद आप दोनों डिनर के लिए होटल गए हैं. मैन्यू कार्ड देख कर पार्टनर ने भारीभरकम और्डर दे दिया, जिसे देखते ही आप हैरानपरेशान हो गए. यह सब देख आप शांत रहिए. भूल कर भी उस से यह सवाल न कीजिए कि क्या वाकई तुम इतना सब खा सकोगी? वरना आप का नतीजा भुगतना पड़ सकता है. अच्छा होगा कि आप खाने पर  कोई चर्चा ही न करें. गौरतलब है कि खानेपीने को ले कर लड़कियां काफी इमोशनल होती हैं. नएनए स्वाद चखना एक तरह से उन का जनून होता है. खानेपीने के बात पर टीकाटिप्पणी से नाराजगी की आलम इतना बढ़ सकता है कि रिश्ते में चुप्पी पसर जाए. अगर आप दोनों टेबल पर हों, तो उन पलों को ऐंजौए करें. साथ ही पार्टनर को नाराज नहीं करना चाहते, तो खानेपीने के लंबे और्डर पर कोई सवाल न करें.

आदत हो गई तुम्हारी

कोई भी काम गलत हो या आप के कहे अनुसार न हो, तो आप बिना कुछ सोचे यह बोल देते हैं कि तुम्हारी ऐसी आदत हो गई है. भले ही सुनने में यह बात छोटी लगे, लेकिन यह बात चिनगारी की तरह आग को बढ़ाती है. यही नहीं, उन की आदत का रोना रो कर आप उन्हें खुद को गलत साबित करने का मौका दे रहे हैं. और यहीं से छोटी सी बात तूतू मैंमैं फिर मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न कर देती है.

मां बहन जैसी हो

गर्लफ्रैंड या पार्टनर की कभी उस की मां या बहन से तुलना न करें. आप उन्हें उतना बेहतर नहीं जानते हैं, जितना कि वे जानती हैं. आप यह भी नहीं जानते कि दोनों के बीच वास्तव में कैसा रिश्ता है. इन सब बातों के अलावा सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हर शख्स अपनी एक अलग पहचान चाहता है, तो फिर उस की तुलना किसी से क्यों की जाए?

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टटोलिए स्वयं को

सिर्फ कटु आलोचना व दूसरों के सामने उपहास कर के तो हम किसी को बदल नहीं सकते. उस के लिए आवश्यकता है कि हम सामने वाले की भी भावनाओं को समझें. अपने अच्छे व्यवहार व प्यार से जब हम औरों का दिल जीत सकते हैं, तो पार्टनर को बहुत कुछ अपने अनुरूप भी बना सकते हैं. जरूरत है सिर्फ अपनेआप को टटोलने की कि कहीं हम में ही तो कुछ खामियां नहीं? पतिपत्नी के संदर्भ में यह बात और भी जरूरी है. हमारा सही सोचने का ढंग ही हमें सही दिशा में ले चलने के लिए सहायक होगा. फिर हमें औरों से शिकायत नहीं होगी.

शादी के लिए हां करने से पहले ये 5 बातें जानना है जरुरी

हमेशा पति को ही हर गलत बात का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. पत्नियां भी काफी अनुचित बातें कह कर पति का दिल दुखाती हैं. कुछ बातें पति को कभी न कहें. उन्हें बुरा लग सकता है. जानें वे बातें क्या हो सकती हैं-

1. मैं कर लूंगी

पलंबर या इलैक्ट्रिशियन को बुलाने के समय यह न कहें कि मैं कर लूंगी, भले ही इस से आप का काम जल्दी हो जाए पर पति को शायद अच्छा न लगे. मनोवैज्ञानिक ऐनी क्रोली का कहना है, ‘‘हो सकता है वह आप की हैल्प कर के आप को खुश करना चाहता हो. इस बात से पति चिढ़ते हैं, क्योंकि ‘मैं कर लूंगी’ इस बात से पति के कार्य करने पर आप का संदेह प्रतीत होता है और या यह कि आप को उस की जरूरत नहीं है.’’

2. तुम्हें पता होना चाहिए था

क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक रियान होव्स का कहना है, ‘‘अगर आप यह आशा करती हैं कि आप का पति हर बात या इशारा जो आप करती हैं, अपनेआप समझ जाएं तो आप खुद ही निराश होंगी. जब पति पत्नी के मन की बात नहीं समझते तो पत्नियां बहुत अपसैट हो जाती हैं. लेकिन पुरुष सच में दिमाग नहीं पढ़ पाते. अगर पत्नियां इस बात को स्वीकार कर लें तो वे बहुत दुखों से बच सकती हैं. वे साफसाफ कहें कि वे क्या चाहती हैं.’’

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3. क्या तुम्हें लगता है कि वह सुंदर है

पुरुषों की काउंसलिंग के स्पैशलिस्ट एक थेरैपिस्ट कर्ट स्मिथ का कहना है, ‘‘क्या आप सचमुच किसी आकर्षक स्त्री के विषय में अपने पति के विचार जानना चाहती हैं? शायद नहीं. आप यह पूछ कर अपने पति को असहज स्थिति में डाल रही हैं. कमरे में अधिकांश पुरुष सुंदर स्त्री को पहले ही देख चुके होते हैं. यदि वह आप का सम्मान रखने के लिए वहां नहीं देख रहा है तो आप का पूछना उसे असहज कर देगा. वह तय नहीं कर पाएगा कि आप को अपसैट न करने के लिए या आप को दुख न पहुंचाने के लिए क्या करे.’’

4. पुरुष बनो

स्मिथ कहते हैं, ‘‘क्या आप सचमुच ये शब्द कहती हैं? पुरुष बन कर दिखाने का कोई सही या गलत तरीका नहीं है. आदमी बनो यह कहना उस की पहचान पर एक घातक हमला होता है, यह नफरत और शर्म से भरी बात होती है, यह आप के रिश्ते को ऐसी हानि पहुंचा सकती है, जिस की पूर्ति मुश्किल होगी.’’

5. हमें बात करने की जरूरत है

ये शब्द विवाहित पुरुष के अंदर डर सा पैदा कर देते हैं. थेरैपिस्ट मार्सिया नेओमी बर्गर का कहना है, ‘‘अगली बार कोई इशू हो तो आसान शब्दों का प्रयोग करें. ये शब्द सिगनल देते हैं कि पत्नी को पति से शिकायत या कोई आलोचना का विषय है, फिर जो आप अकसर सोच रही होती हैं, उस के उलटा हो जाता है.’’

6. फिर दोस्तों के साथ जा रहे हो

होव्स कहते हैं, ‘‘पति का दोस्तों के साथ क्रिकेट देखने या गोल्फ खेलने से आप के विवाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, यह चीज आप के रिश्ते को अच्छा ही बनाएगी. हां, कभीकभी पति पीने के लिए कोई बहाना कर देते हैं पर अधिकतर कुछ सलाह, कुछ महत्त्वपूर्ण बातें, सहारे के लिए मिलतेजुलते हैं, जो पत्नी अपने पति को दोस्तों से मिलनेजुलने से मना करती है वह अपने पति को उस के सपोर्ट सिस्टम से दूर कर रही होती है जबकि वह अन्य पतियों और पिताओं के साथ समय बिता कर अच्छा इनसान ही बनेगा.’’

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किसी पुरुष ने आप का पति बनने के बाद अपनी मरजी से जीने का अधिकार नहीं खो दिया है. उस पर विश्वास करें, उस का सम्मान करें. अपनी शिकायतें, सुखदुख उस के साथ प्यार से बांटें. वैसे भी आज के जीवन में बहुत भागदौड़ है, तनाव है. उस के साथ अपना जीवन प्यार से, सुख से, आराम से बिताएं.

शादी के लिए हां करने से पहले जाननी जरुरी हैं ये 5 बातें

‘शादी,’ यह शब्द सुनते ही किसी के चेहरे पर मुसकराहट आ जाती है तो किसी के चेहरे पर टैंशन. कई लोगों के साथ ये दोनों चीजें होती हैं. मतलब वे कभी खुश होते हैं तो कभी चिंता में पड़ जाते हैं. एक तरफ नए रिश्ते की एक्साइटमैंट होती है तो दूसरी तरफ जिम्मेदारियों का एहसास. कहते हैं न ‘शादी का लड्डू, जो खाए पछताए जो न खाए वह भी पछताए.’ भई, जब पछताना ही है तो क्यों न खा कर ही पछताया जाए. तो अब जब आप ने शादी करने का मन बना ही लिया है तो कुछ सवालों के जवाब जानना आप के लिए बेहद जरूरी हैं. चाहें आप लव मैरिज कर रही हों या फिर अरेंज.

शादी के बाद आप रोज कुछ न कुछ अपने पार्टनर के बारे में नई बातें जान सकती हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो शादी से पहले ही आप दोनों को जानना जरूरी है. इन के जवाब जानने के बाद आप को यह पता चल जाता है कि आप उन से शादी कर सकती हैं या नहीं. साथ ही, इस बात का एहसास हो जाता है कि आप दोनों के लिए आने वाली लाइफ कैसी हो सकती है.

घर के काम की जिम्मेदारी

अब वह समय नहीं रहा कि किसी एक पर काम का पूरा बोझ दे दिया जाए. शादी के बाद ज्यादातर लड़ाई इसी बात की होती है कि झाड़ ूपोंछा, बरतन, कपड़े धोने और खाना बनाने का काम कौन करेगा. अगर होने वाला लाइफपार्टनर आप से यह कहता है कि वह तो पानी भी नहीं उबाल सकता, घर के काम करना तो दूर की बात है. फिर आप सोच लीजिए. अगर आप मैनेज कर सकती हैं तो इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन अगर आप को लगता है कि घर के कामों में उन्हें भी मदद करनी चाहिए तो यह बात उन को बता दें.

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अगर वे यह जवाब देते हैं कि वे इस के लिए तैयार हैं तब तो रिश्ते को आगे ले जाइए लेकिन अगर वे यह जताते हैं कि घर के काम की जिम्मेदारी सिर्फ औरत की है तो ऐसे रिश्ते में संभल जाना ही बेहतर है.

शादी के बाद का कैरियर

अपने कैरियर के बारे में अपने होने वाले लाइफपार्टनर से पहले ही बता दें. जैसे, आप कैरियर को ले कर काफी सीरियस और प्रोफैशनल हैं. इस के लिए आप काफी मेहनत भी कर रही हैं और शादी के बाद भी बाहर जा कर काम करना चाहती हैं. वहीं अगर शादी के बाद आप काम नहीं करना चाहतीं तो भी उन से साफसाफ बता दें. साथ ही, उन से यह भी पूछें कि आगे चल कर कैरियर प्लानिंग क्या है. अगर वे ट्रांसफर लेना चाहते हैं तो क्या आप के लिए यह पौसिबल है, यह शादी से पहले ही क्लीयर कर लेना चाहिए.

कर्ज तो नहीं

शादी के कई साल बाद अगर पता चलता है कि पार्टनर ने लाखों का कर्जा लिया है तो बसीबसाई गृहस्थी खराब हो जाती है. इसलिए उन से पहले ही पूछ लें कि क्या कोई उधार या क्रैडिट कार्ड का बड़ा बकाया बिल तो नहीं है. उन के जवाब के बाद सोचसमझ कर अगला कदम बढ़ाएं, क्योंकि आर्थिक वजह से भी बड़ेबड़े झगड़े होते हैं.

बच्चों के बारे में

आज के दौर में बहुत सारे कपल ऐसे हैं जो बच्चे पैदा नहीं करना चाहते. वे एडौप्शन या आईवीएफ को बेहतर मानते हैं. इसलिए शादी के पहले ही एकदूसरे के विचार जानना जरूरी है. क्या पता आप बच्चा चाहती हों और वे नहीं या यह भी हो सकता है कि वे बच्चा चाहते हों लेकिन आप नहीं. इसलिए इस पर खुल कर बात कर लें.

धार्मिक, राजनीतिक विचार और रिस्पैक्ट

आप दोनों एकदूसरे से अपने धार्मिक व राजनीतिक विचार शेयर करें. आजकल हर किसी की अपनी राजनीतिक विचारधारा और धार्मिक नजरिया होता है. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो धार्मिक या नास्तिक होते हुए भी किसी और पर अपनी सोच नहीं थोपते और कुछ ऐसे भी होते हैं जो दूसरे पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं. तो आप उन के सामने अपनी बात रखिए. हो सकता है कि आप दोनों की सोच एक हो और अगर एक न भी हो तो भी उन से पूछिए कि फ्यूचर में आप दोनों एकदूसरे की विचारधाराओं का सम्मान कर पाएंगे या नहीं. क्या एकदूसरे को इस की आजादी दे पाएंगे. कहीं यह आप के बीच दूरी की वजह तो नहीं बनेगी.

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हैल्थ प्रौब्लम

वैसे तो होने वाले पार्टनर से शादी करने से पहले कोई ऐसी बात नहीं छिपानी चाहिए जिस से आगे चल कर आप दोनों के रिश्ते में दरार पड़े लेकिन आज के दौर में एक अहम सवाल का जवाब जानना बेहद जरूरी हो गया है, वह है हैल्थ प्रौब्लम. जरूरी नहीं है कि बीमारी बड़ी हो. आप दोनों को अपनी स्वास्थ्य समस्याओं पर बात कर लेनी चाहिए, भले ही वह छोटी बीमारी क्यों न हो. आप दोनों अगर मैनेज कर सकते हैं तो रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई बुराई नहीं है.

जब फ्लर्ट करने लगे मां का फ्रैंड  

20वर्षीय सेजल अपनी मां शेफाली के बौयफ्रैंड राजीव मलिक से बेहद परेशान है. 45 वर्षीय शेफाली 10 साल से अपने पति रवि से अलग रह रही हैं. ऐसे में पुरुषों का आनाजाना उस की जिंदगी में लगा रहता है. राजीव मलिक शेफाली के घरबाहर दोनों के काम देखता है और इस कारण राजीव का हस्तक्षेप शेफाली की जिंदगी में बढ़ने लगा था. हद तो तब हो गई जब राजीव 48 वर्ष की उम्र में भी खुलेआम सेजल से फ्लर्ट करने लगा था.

कभी पीठ पर चपत लगा देता, कभी गालों को प्यार से छूना, कभी सेजल के बौयफ्रैंड्स के बारे में तहकीकात करना इत्यादि से सेजल के साथ ये सब उस की अपनी सगी मां के सामने हो रहा था जो मूर्खों की तरह अपने बौयफ्रैंड के ऊपर आंखें मूंद कर विश्वास कर बैठी थी. सेजल एक अजीब सी कशमकश से गुजर रही है. उसे सम झ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस के साथ अपनी बात सा झा करे?

सेजल ने जब यह बात अपने बौयफ्रैंड संचित को बताई तो उस ने सेजल को सपोर्ट न कर के इस बात का फायदा उठाया. एक तरफ संचित तो दूसरी तरफ राजीव, सेजल का इन दोनों के बाद पुरुषों से विश्वास ही उठ गया है. काश सेजल ने बात अपनी मौसी या नानी को बताई होती.

उधर काशवी के मम्मी के दोस्त आलोक अंकल कब अंकल की परिधि से निकल कर कब उस के जीवन में आ गए खुद काशवी भी न जान पाई थी. आलोक अंकल का खुल कर पैसा खर्च करना, रातदिन उस से चैट करना सबकुछ काशवी को पसंद आता था. काशवी की मम्मी रश्मि उधर  यह सोच कर खुशी थी कि उन की बेटी को फ्रैंड फिलौसफर और गाइड मिल गया है. आलोक को और क्या चाहिए एक तरफ रश्मि की दोस्ती और दूसरी तरफ काशवी की अल्हड़ता.

काशवी के साथ छिछोरेबाजी करते हुए आलोक को यह भी याद नहीं रहता कि उस की अपनी बेटी काशवी की ही  हमउम्र है.

मगर कुछ लड़कियां सम झदार भी होती हैं. जब बिनायक ने अपनी फ्रैंड सुमेधा की बेटी पलक के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश की तो पलक ने भी अपना काम निकाला और जैसे ही विनायक ने फ्लर्टिंग के नाम पर सीमा लांघनी चाही तो पलक ने बड़ी होशयारी से अपनी मम्मी सुमेधा को आगे कर दिया. विनायक और सुमेधा आज भी दोस्त हैं, परंतु विनायक अब भूल कर भी पलक के आसपास नहीं फटकते हैं.

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आज के आधुनिक युग की ये कुछ  अलग किस्म की समस्याएं हैं. जब महिलापुरुष एकसाथ काम करेंगे तो स्वाभाविक सी बात है  कि उन में दोस्ती भी होगी और ये पुरुष मित्र घर भी आएंगेजाएंगे.

मगर इन पुरुष मित्रों की सोच कैसी है यह आप की मम्मी या आप को भी नहीं पता होता है. इसलिए अगर आप की मम्मी का पुरुष मित्र आप से फ्लर्टिंग करने की कोशिश करे तो उसे हलके में न लें. आप आज की पढ़ीलिखी स्वतंत्र युवा हैं. हलकेफुलके मजाक और भोंडे़ मजाक में फर्क करना सीखें.

मौसी या आंटी को बनाएं राजदार

आप की मौसी या आंटी को आप से अधिक जिंदगी के अनुभव हैं. वे अपने अनुभवों के आधार पर अवश्य ही आप को सही सलाह देंगी. अपने तक ही ऐसी बात को सीमित रखें, बातचीत अवश्य करें.

फ्रैंड के बच्चों से कर लें दोस्ती

यदि मम्मी के फ्रैंड अपनी सीमा रेखा को भूलने की कोशिश करें तो उन्हें मर्यादा में रखने के लिए उन के बच्चों से दोस्ती कर लें. उन के घर जाएं, उन के परिवार को अपने घर पर बुलाएं.

अपने पापा को भी साथ ले कर जाना मत भूलें. जैसे ही परिवार की बात आती है अच्छेअच्छे सूरमाओं के पसीने छूट जाते हैं. वे भूल से भी आप को तंग नहीं करेंगे.

गलत बात का करें विरोध

बहुत बार देखने में आता है कि हम  अपने बड़ों की गलत बात को जानबू झ कर नजरअंदाज कर देते हैं. इस के पीछे बस उन की उम्र का लिहाज होता है, परंतु ये आप के मम्मी  या पापा नहीं हैं कि आप को उन का लिहाज करना पड़े. उन की गलत बात का डट कर  विरोध करें और अगर जरूरी लगे तो अपनी  मम्मी को भी उन के फ्रैंड के व्यवहार से अवगत अवश्य कराएं.

लक्ष्मण रेखा खींच कर रखें

अपनी मम्मी के फ्रैंड से बातचीत करने में कोई बुराई नहीं है, परंतु अपने व्यवहार को मर्यादित रखें. अगर आप खुद ही फौर्मल रहेंगी तो आप के अंकल भी कैजुअल नहीं हो पाएंगे. हलकाफुलका मजाक करने में बुराई नहीं है पर इन हलकेफुलके पलों में यह याद रखें कि आप की मम्मी भी शामिल हो.

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दिखाएं उम्र का आईना

यह सब से अचूक और कारगर उपाय है, जो कभी खाली नहीं जाता है. अगर मम्मी के फ्रैंड ज्यादा तफरीह करने की कोशिश करें तो उन्हें उन की उम्र का आईना दिखाने से गुरेज न करें. अपने को उम्रदराज मनाना किसी को भी पसंद नहीं है. एक बार आप अपने और उन के बीच उम्र का फासला महसूस करवाएंगी तो भूल से भी वे दोबारा आसपास नहीं फटकेंगे.

जब कोई पीठ पीछे बुराई करे

वैसे तो वह हमेशा मेरी सच्ची दोस्त बनती है, लेकिन पीठ पीछे लोगों से मेरी बुराई करती है. समझ नहीं आता उस की बातों पर विश्वास करूं या नहीं. सच बहुत ही अटपटा सा महसूस होता है जब आप किसी दूसरे से अपने बारे में बुराई सुनते हैं और यह बुराई आप के किसी खास दोस्त या सहकर्मी अथवा परिजन ने की हो. मनमस्तिष्क दोनों को ही काफी ठेस पहुंचती है. लेकिन ऐसे में जरूरी है कि आप कुछ बातें ध्यान में रखें ताकि इन सब से निबट सकें:

सच्चाई को जानें:

सब से अहम बात यह है कि सुनीसुनाई बातों पर विश्वास न करें. सब से पहले यह जान लें कि उस बात में कितनी सचाई है. कई बार लोग अफवाह फैला देते हैं या फिर छोटी सी बात का बतंगड़ बना देते हैं. इसलिए जरूरी है कि बातों की सचाई को जाने बिना प्रतिक्रिया व्यक्त न करें, क्योंकि कई बार हमारी छोटी सी गलती हमें अपने नजदीकी लोगों से अलग कर देती है.

धोखे के संकेतों से बचें:

कई बार ऐसा होता है कि हमें कुछ ऐसे संकेत मिलते हैं, जिन से पता चलता है कि सामने वाला हमें धोखा दे रहा है, लेकिन हम उन्हें अनदेखा कर देते हैं. लेकिन जितना अधिक अवसर पीठ पीछे बुराई करने वालों को मिलेगा आप के संबंध में उतनी ही अफवाहें फैलेंगी. इस से आप की छवि और आप के कामकाज पर भी असर पड़ेगा. अत: जरूरी है कि इन संकेतों पर ध्यान दें और इन से निबटें.

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अच्छे संबंध बनाएं:

ध्यान दें यदि आप के संबंध अच्छे होंगे तो लोग आप के बारे में गलत सोचने में 10 बार सोचेंगे. महत्त्वपूर्ण है कि अपनी छवि को अच्छा बनाए रखने के लिए अपने आसपास के लोगों से व्यवहार में मित्रता और सकारात्मक रुख अपनाएं. सभी को सम्मान दें. यदि आप का व्यवहार रूखा है, तो पक्का है आप बुराई के पात्र बनेंगे ही. अत: जरूरी है कि आप का व्यवहार लोगों के बीच अच्छा हो ताकि उन्हें पीठ पीछे आप की बुराई करने का मौका न मिल सके.

नोट करें:

जब भी आप को लगे कि कोई आप की पीठ पीछे बुराई कर के औरों के बीच आप के लिए अफवाह फैला रहा है, तो आप नोट करें कि कब, कैसे और कहां आप के बारे में गलत अफवाह उस व्यक्ति ने फैलाई. जो भी हुआ उसे लिख डालिए, साथ ही उन कारणों को भी जिन की वजह से आप सोचते हों कि किसी ने आप को जानबूझ कर चोट पहुंचाई है. इस से आप के अनुभवों का विवेचन आसान हो जाता है और आप को पता चल जाता है कि वह घटना मात्र एक गलतफहमी थी अथवा किसी बड़े षड्यंत्र का एक हिस्सा.

इन बातों पर भी दें ध्यान

– जब आप को किसी व्यक्ति विशेष पर शक हो तो आप उस से जुड़े किसी ऐसे व्यक्ति से बात करें, जो उस का मित्र न हो कर केवल उसे जानता हो. उस व्यक्ति को उस के चरित्र के बारे में, उस के कारनामे और व्यवहार के बारे में बताएं.

– आप को लगता है कि बात आप के व्यक्तित्व पर आ रही है, साथ ही बढ़ती भी जा रही है, तो पीठ पीछे बुराई करने वाले से स्वयं मिलें. यदि व्यक्तिगत रूप से बात नहीं कर पा रहे हों तो टैक्स्ट या ई मेल का प्रयोग करें.

– अकसर देखने में आता है कि कुछ ऐसे लोग भी हमारे घर, औफिस और महल्ले में मौजूद होते हैं, जो मानसिक तौर से मनोरोगी तो नहीं होते, लेकिन दूसरे का मजाक या पीठ पीछे बुराई करने में उन्हें बेहद मजा आता है, लेकिन जरूरी है कि आप अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए ऐसे लोगों से दूर ही रहें.

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– यदि बात किसी कार्यालय की की जाए तो बहुत से सहकर्मी ऐसे होते हैं, जो दूसरों को आगे न बढ़ने देने के लिए चालाकियां करते हैं. उन्हें नीचा दिखाने के लिए गलत बातों का षड्यंत्र रचते हैं. ऐसे में आप को चाहिए कि बातों को जानने की कोशिश करें, उन का समाधान निकालें.

– उन घटनाओं की व्यक्तिगत रूप से अथवा ई मेल द्वारा चर्चा करें, जिन की वजह से आप परेशान हैं. समस्या को सामने लाएं और देखें कि क्या दूसरे व्यक्ति में उस पर बात करने योग्य परिपक्वता है.

– यदि सामने वाला व्यक्ति अपनी गलती मानने से इनकार कर देता है, तो आप के द्वारा नोट की गई सभी बातों को सभी के सामने रखें, जिन के बीच वह आप की बुराई करता था या अफवाहें फैलाता था.

– कई बार कुछ लोग आप के मित्र या परिजनों के बारे में उलटासीधा बोल कर कि फलां तेरे बारे में ऐसा कहता है, अफवाहें फैलाते हैं. अत: आप विश्वास न करें. क्या पता वह व्यक्ति आप के बीच कड़वाहट लाना चाहता हो. इसीलिए तो कहते हैं कि सुनो सब की करो अपने मन की.

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