घोंसले के पंछी- भाग 2: क्या मिल पाए आदित्य और ऋचा

प्रतीक हंसा, ‘‘मम्मी, यह मेरा आज का फैसला नहीं है. पिछले 3 सालों से हम दोनों का यही फैसला है. अब यह बदलने वाला नहीं. आप अपने बारे में बताएं. आप हमारी शादी करवाएंगे या हम स्वयं कर लें.’’

किसी ने प्रतीक की बात का जवाब नहीं दिया. वे अचंभित, भौचक और ठगे से बैठे थे. वे सभ्य समाज के लोग थे. लड़ाईझगड़ा कर नहीं सकते थे. बातों के माध्यम से मामले को सुलझाने की कोशिश की परंतु वे दोनों न तो प्रतीक को मना पाए, न प्रतीक के निर्णय से सहमत हो पाए. प्रतीक अगले दिन बेंगलूरु चला गया. बाद में पता चला, उस ने न्यायालय के माध्यम से अपनी प्रेमिका से शादी कर ली थी.

वे दोनों जानते थे कि प्रतीक ने भले अपनी मरजी से शादी की थी. परंतु वह उन के मन से दूर नहीं हुआ था. बस उन का अपना हठ था. उस हठ के चलते अभी तक बेटे से संपर्क नहीं किया था. बेटे ने पहले एकदो बार फोन किया था. आदित्य और ऋचा ने उस से बात की थी, हालचाल भी पूछा परंतु उस को दिल्ली आने के लिए कभी नहीं कहा. फिर बेटे ने उन को फोन करना बंद कर दिया.

अब शायद वह हठ टूटने वाला था. अंकिता के साथ वह पहले वाली गलती नहीं दोहराना चाहते थे.

आदित्य ने शांत भाव से कहा, ‘‘ऋचा, हमें बहुत समझदारी से काम लेना होगा. लड़की का मामला है. प्रेम के मामले में लड़कियां बहुत नासमझी और भावुकता से काम लेती हैं. अगर उन्हें लगता है कि मांबाप उन के प्रेम का विरोध कर रहे हैं, तो बहुत गलत कदम उठा लेती हैं. या तो वे घर से भाग जाती हैं या आत्महत्या कर लेती हैं. हमें ध्यान रखना है कि अंकिता ऐसा कोई कदम न उठा ले.’’

ऋचा बेचैन हो गई, ‘‘क्या करें हम?’’

‘‘कुछ करने की आवश्यकता नहीं है, बस उस से बात करो. उस की सारी बातें ध्यान से सुनो. उस के मन को समझने का प्रयास करो. शायद हम उस की मदद कर सकें. अगर वह समझ गई तो बहकने से बच जाएगी. उस के पैर गलत रास्ते पर नहीं पड़ेंगे. ये रास्ते बहुत चिकने होते हैं. फिसलने में देर नहीं लगती.’’

‘‘ठीक है,’’ ऋचा ने आश्वस्त हो कर कहा.

ऋचा ने देर नहीं की. जल्दी ही मौका निकाला. अंकिता से बात की. वह अपने कमरे में थी. ऋचा ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘बेटा, क्या कर रही हो?’’

अंकिता हड़बड़ा कर खड़ी हो गई. वह बिस्तर पर लेटी मोबाइल पर किसी से बातें कर रही थी. अंकिता के चेहरे के भाव बता रहे थे, जैसे वह चोरी करते हुए पकड़ी गई थी. ऋचा सब समझ गई, परंतु उस ने धैर्य से कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?’’

अंकिता बी.ए. के दूसरे साल में थी.

‘‘ठीकठाक चल रही है,’’ अंकिता ने अपने को संभालते हुए कहा. उस की आंखें फर्श की तरफ थीं.

वह मां की तरफ देखने का साहस नहीं जुटा पा रही थी.

अंकिता जिन मनोभावों से गुजर रही थी, ऋचा समझ सकती थी. उस ने बेटी को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘बैठो और मेरी बात ध्यान से सुनो.’’

वह भी बेटी के साथ पलंग पर एक किनारे बैठ गई. उसे लग रहा था किसी लागलपेट की जरूरत नहीं, मुझे सीधे मुद्दे पर आना होगा.

अंकिता का हृदय तेजी से धड़क रहा था. पता नहीं क्या होने वाला था? मम्मी क्या कहेंगी उस से? उस की कुछ समझ में नहीं आ रहा था परंतु उस के मन में अपराधबोध था. मम्मी ने उसे फोन करते हुए देख लिया था.

ऋचा ने सीधे वार किया, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी मनोदशा समझ रही हूं. मैं तुम्हारी मां हूं. इस उम्र में सब को प्रेम होता है,’’ प्रेम शब्द पर ऋचा ने अधिक जोर दिया, ‘‘तुम्हारे साथ कुछ नया नहीं हो रहा है. परंतु बेटी, इस उम्र में लड़कियां अकसर बहक जाती हैं. लड़के उन को बरगला कर, झूठे सपनों की दुनिया में ले जा कर उन की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं. बाद में लड़कियों के पास बदनामी के सिवा कुछ नहीं बचता. वे बदनामी का दाग ले कर जीती हैं और मन ही मन घुलती रहती हैं.’’

अंकिता का दिल और जोर से धड़क उठा.

‘‘बेटी, अगर तुम्हारे साथ ऐसा कुछ हो रहा है, तो हमें बताओ. हम नहीं चाहते तुम्हारे कदम गलत रास्ते पर पड़ें. तुम नासमझी में कुछ ऐसा न कर बैठो, जो तुम्हारी बदनामी का सबब बने. अभी तुम्हारी पढ़ाई की उम्र है लेकिन यदि तुम्हारे साथ प्रेम जैसा कोई चक्कर है, तो हम शादी के बारे में भी सोच सकते हैं. तुम खुल कर बताओ, क्या वह लड़का तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है? वह तुम को ले कर गंभीर है या बस खिलवाड़ करना चाहता है.’’

अंकिता सोचने लगी पर उस के मन में दुविधा और शंका के बादल मंडरा रहे थे.

बताए या न बताए. मम्मी उस के मन की बात जान गई हैं. कहां तक छिपाएगी? नहीं बताएगी तो उस पर प्रतिबंध लगेंगे. उस ने आगे आने वाली मुसीबतों के बारे में सोचा. उसे लगा कि मां जब इतने प्यार और सहानुभूति से पूछ रही हैं, तो उन को सब कुछ बता देना ही उचित होगा.

अंकिता खुल गई और धीरेधीरे उस ने मम्मी को सारी बातें बता दीं. गनीमत थी कि अभी तक अंकिता ने अपना कौमार्य बचा कर रखा था. लड़के ने कोशिश बहुत की थी, परंतु वह उस के साथ होटल जाने को तैयार नहीं हुई. डर गई थी, इसलिए बच गई. मम्मी ने इतमीनान की गहरी सांस ली और बेटी को सांत्वना दी कि वह सब कुछ ठीक कर देंगी. अगर लड़का तथा उस के घर वाले राजी हुए तो इसी साल उस की शादी कर देंगे.

अंकिता ने बताया था कि वह अपने साथ पढ़ने वाले एक लड़के के साथ प्यार करती है. उस के घरपरिवार के बारे में वह बहुत कम जानती है. वे दोनों बस प्यार के सुनहरे सपने देख रहे हैं. बिना पंखों के हवा में उड़ रहे थे. भविष्य के बारे में अनजान थे. प्रेम की परिणति क्या होगी, इस के बारे में सोचा तक नहीं था. वे बस एकदूसरे के प्रति आसक्त थे. यह शारीरिक आकर्षण था, जिस के कारण लड़कियां अवांछित विपदाओं का शिकार होती हैं.

ऋचा ने आदित्य को सब कुछ बताया. मामला सचमुच गंभीर था. अंकिता अभी नासमझ थी. उस के विचारों में परिपक्वता नहीं थी. उस की उम्र अभी 20 साल थी. वह लड़का भी इतनी ही उम्र का होगा. दोनों का कोई भविष्य नहीं था. वे दोनों बरबादी की तरफ बढ़ रहे थे. उन्हें संभालना होगा.

स्थिति गंभीर थी. ऋचा और आदित्य का चिंतित होना स्वाभाविक था. परंतु ऋचा और आदित्य को कुछ नहीं करना पड़ा. मामला अपनेआप सुलझ गया. संयोग उन का साथ दे रहा था. समय रहते अंकिता को अक्ल आ गई थी. उस की मम्मी की बातों का उस पर ठीक असर हुआ था.

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घोंसले के पंछी- भाग 1: क्या मिल पाए आदित्य और ऋचा

आदित्य गुमसुम से खड़े थे. पत्नी की बात पर उन्हें विश्वास नहीं हुआ. वे शब्दों पर जोर देते हुए बोले, ‘‘क्या तुम सच कह रही हो ऋचा?’’

‘‘पहले मुझे विश्वास नहीं था लेकिन मैं एक नारी हूं, जिस उम्र से अंकिता गुजर रही है उस उम्र से मैं भी गुजर चुकी हूं. उस के रंगढंग देख कर मैं समझ गई हूं कि दाल में कुछ काला है.’’

आदित्य की आंखों में एक सवाल था, ‘वह कैसे?’

ऋचा उन की आंखों की भाषा समझ गई. बोली, ‘‘सुबह घर से जल्दी निकलती है, शाम को देर से घर आती है. पूछने पर बताया कि टाइपिंग क्लास जौइन कर ली है. इस की उसे जरूरत नहीं है. उस ने इस बारे में हम से पूछा भी नहीं था. घर में भी अकेले रहना पसंद करती है, गुमसुम सी रहती है. जब देखो, अपना मोबाइल लिए कमरे में बंद रहती है.’’

‘‘उस से बात की?’’

‘‘अभी नहीं, पहले आप को बताना उचित समझा. लड़की का मामला है. जल्दबाजी में मामला बिगड़ सकता है. एक लड़का हम खो चुके हैं, अब लड़की को खो देने का मतलब है पूरे संसार को खो देना.’’

आदित्य विचारों के समुद्र में गोता लगाने लगे. यह कैसी हवा चली है. बच्चे अपने मांबाप के साए से दूर होते जा रहे हैं. वयस्क होते ही प्यार की डगर पर चल पड़ते हैं, फिर मांबाप की मरजी के बगैर शादी कर लेते हैं. जैसे चिडि़या का बच्चा पंख निकलते ही अपने जन्मदाता से दूर चला जाता है, अपने घोंसले में कभी लौट कर नहीं आता, उसी प्रकार आज की पीढ़ी के लड़के तथा लड़कियां युवा होने से पहले ही प्यार के संसार में डूब जाते हैं. अपनी मरजी से शादी करते हैं और अपना घर बसा कर मांबाप से दूर चले जाते हैं.

आदित्य और ऋचा के एकलौते पुत्र ने भी यही किया था. आज वे दोनों अपने बेटे से दूर थे और बेटा उन की खोजखबर नहीं लेता था. इस में गलती किस की थी? आदित्य की, उन की पत्नी की या उन के बेटे की कहना मुश्किल था.

आदित्य ने पहले ध्यान नहीं दिया था, इस के बारे में सोचा तक नहीं था परंतु आज जब उन की एकलौती बेटी भी किसी के प्यार में रंग चुकी है, किसी के सपनों में खोई है, तो वे विगत और आगत का विश्लेषण करने पर विवश हैं.

प्रतीक एम.बी.ए. कर चुका था. बेंगलूरु की एक बड़ी कंपनी में मैनेजर था. एम.बी.ए. करते समय ही उस का एक लड़की से प्रेम हुआ था. तब तक उस ने घर में बताया नहीं था. नौकरी मिलते ही मांबाप को अपने प्रेम से अवगत कराया. आदित्य और ऋचा को अच्छा नहीं लगा. वह उन का एकलौता बेटा था. उन के अपने सपने थे. हालांकि वे आधुनिक थे, नए जमाने के चलन से भी वाकिफ थे परंतु भारतीय मानसिकता बड़ी जटिल होती है.

हम पढ़लिख कर आधुनिक बनने का ढोंग करते हैं, नए जमाने की हर चीज अपना लेते हैं, परंतु हमारी मानसिकता कभी नहीं बदलती. हमारे बच्चे किसी के प्रेम में पड़ें, वे प्रेमविवाह करना चाहें, हम इसे बरदाश्त नहीं कर पाते. अपनी जवानी में हम भी वही करते हैं या करना चाहते हैं परंतु हमारे बच्चे जब वही सब करने लगते हैं, तो सहन नहीं कर पाते हैं. उस का विरोध करते हैं.

प्रतीक उन का एकलौता बेटा था. वे धूमधाम से उस की शादी करना चाहते थे. वे उसे कामधेनु गाय समझते थे. उस की शादी में अच्छा दहेज मिलता. इसी उम्मीद में अपने एक रिश्तेदार से उस की शादी की बात भी कर रखी थी. मामला एक तरह से पक्का था. मांबाप यहीं पर गलती कर जाते हैं. अपने जवान बच्चों के बारे में अपनी मरजी से निर्णय ले लेते हैं. उन को इस से अवगत नहीं कराते. बच्चों की भावनाओं का उन्हें खयाल नहीं रहता. वे अपने बच्चों को एक जड़ वस्तु समझते हैं, जो बिना चूंचपड़ किए उन की हर बात मान लेंगे. परंतु जब बच्चे समझदार हो जाते हैं तब वे अपने जीवन के बारे में वे खुद निर्णय लेना पसंद करते हैं. वे अपना जीवन अपने तौर पर जीना चाहते हैं.

जब प्रतीक ने अपने प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन के कान खड़े हुए. चौंकना लाजिमी था. बेटे पर वे अपना अधिकार समझते थे. आदित्य और ऋचा ने पहले एकदूसरे की तरफ देखा, फिर प्रतीक की तरफ. वह एक हफ्ते की छुट्टी ले कर आया था. मांबाप से अपनी शादी के बारे में बात करने के लिए. प्रेम उस ने अवश्य किया था परंतु वह उन की सहमति से शादी करना चाहता था. अगर वे मान जाते तो ठीक था, अगर नहीं तब भी उस ने तय कर रखा था कि अपनी पसंद की लड़की से ही शादी करेगा. जिस को प्यार किया था, उसे धोखा नहीं देगा. मांबाप माने या न मानें.

ऋचा ने ही बात का सिरा पकड़ा था, ‘‘परंतु बेटे, हम ने तो तुम्हारी शादी के बारे में कुछ और ही सोच रखा है.’’

‘‘अब वह बेकार है. मैं ने अपनी पसंद की लड़की देख ली है. वह मेरे अनुरूप है.

हम दोनों ने एकसाथ एम.बी.ए. किया था. अब साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं, साथ ही जीवन व्यतीत करेंगे.’’

‘‘परंतु हमारे सपने…’’ ऋचा ने प्रतिवाद करने की कोशिश की परंतु प्रतीक की दृढ़ता के सामने वह कमजोर पड़ गईं. ऋचा की आवाज में कोई दम नहीं था. उसे लगा, वह हार जाएगी.

‘‘मम्मी, आप समझने की कोशिश कीजिए. बच्चे ही मांबाप का सपना होते हैं. अगर मैं खुश हूं तो आप के सपने साकार हो जाएंगे, वरना सब बेकार है.’’

‘‘बेकार तो वैसे भी सब कुछ हो चुका है. मैं बंसलजी को क्या मुंह दिखाऊंगा?’’ आदित्य ने पहली बार मुंह खोला, ‘‘उन के साथसाथ सारे नातेरिश्तेदार हैं. वे भी अलगथलग पड़ जाएंगे.’’

‘‘कोई किसी से अलग नहीं होता. आप धूमधाम से शादी आयोजित करें. रिश्तेदार 2 दिन बातें बनाएंगे, फिर भूल जाएंगे. प्रेमविवाह अब असामान्य नहीं रहे,’’ प्रतीक ने बहुत धैर्य से अपनी बात कही.

‘‘बेटे, तुम नहीं समझोगे. हम वैश्य हैं और हमारे समाज ने इस मामले में आधुनिकता की चादर नहीं ओढ़ी है. कितने लोग तुम्हारे लिए भागदौड़ कर रहे हैं. अपनी बेटी का विवाह तुम्हारे साथ करना चाहते हैं. जिस दिन पता चलेगा कि तुम ने गैर जाति की लड़की से शादी कर ली है, वे हमें समाज से बहिष्कृत कर देंगे. तुम्हारी छोटी बहन की शादी में तमाम अड़चनें आएंगी.’’

‘‘उस का भी प्रेमविवाह कर देना,’’ प्रतीक ने सहजता से कह दिया. परंतु आदित्य और ऋचा के लिए यह सब इतना सहज नहीं था.

‘‘बेटे, एक बार तुम अपने निर्णय पर पुनर्विचार करो. शायद तुम्हारा निश्चय डगमगा जाए. हम उस से सुंदर लड़की तुम्हारे लिए ढूंढ़ कर लाएंगे.’’

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हाय हैंडसम- भाग 2: क्या हुआ था गौरी के साथ

सोशलसाइट पर फेक आईडी बना कर लोग लोगों को ब्लैकमेल करते हैं, पर हम ऐसे नहीं हैं. हम सीधीसादी लड़की हैं. पैसे की भी हमारे पास कमी नहीं है. मम्मीपापा दोनों बिजनैस में हैं. हम उन की इकलौती, वह भी लाड़ली, संतान हैं. बहुत प्यार करते हैं मम्मीपापा हमें. पर क्या करें हम आप को प्यार करने लगे. आप का प्रोफाइल फोटो देख कर हमारा दिल हमारे काबू में नहीं रहा. आप के मन में हमें ले कर जो भी भ्रम हैं, वह हम मिल कर दूर कर लेंगे. हैंडसम, हमें इग्नोर मत करना वरना हमारा नन्हा सा, मासूम सा दिल टूट जाएगा.’

मैं ने उस से पीछा छुड़ाने की गरज से कह दिया, ‘अच्छा ठीक है. मैं अगले सप्ताह औफिस के काम से दिल्ली जाते वक्त तुम से मिल लूंगा.’ इतना सुनते ही वह खुशी से उछल पड़ी और बोली, ‘‘हैंडसम, आना जरूर, धोखा मत देना.’’

‘ठीक है, इस बीच तुम भी मुझे फोन मत करना, मैं खुद तुम्हें फोन कर लूंगा.’

‘ठीक है, हमे मंजूर है, नहीं करेंगे हम आप को फोन.’

‘हां, मैं ने भी कह दिया तो जरूर आऊंगा.’

मैं ने गौरी से कह तो दिया लेकिन मेरे जेहन में उस की बातें उथलपुथल मचाने लगीं. कभी सोचता, मैं कहां फंस गया, कभी अपने मन में उस की काल्पनिक तसवीर बनाने लगता, वह ऐसी दिखती होगी, वह वैसी दिखती होगी. एक बार मन में आया, मैं घर में पत्नी को बता दूं. फिर सोचा, पत्नी ने मेरी बातों पर यकीन नहीं किया तो… फालतू में बात का बतंगड़ बन जाएगा. घर में हंगामा खड़ा हो जाएगा. नहीं, मैं पत्नी को नहीं बताऊंगा. मुझे नहीं लगता कि वह लड़की गलत हो. वह भटक गई है, उस से मिल कर मुझे उस को समझना होगा, वरना उलटेसीधे हाथों में पड़ कर वह अपना जीवन बरबाद कर सकती है.

एक दिन जब मैं ने उस को फोन कर के बताया कि मैं कल सुबह 11 बजे तक उस के पास पहुंच जाऊंगा, मुझे मिल जाना, तो वह खुशी से जैसे पागल हो गई. कई बार एक सांस में, ‘आई लव यू… आई लव यू सो मच…’ बोलती चली गई. मैं ने बिना किसी प्रतिक्रिया के फोन डिसकनैक्ट कर दिया.

रात को औफिस के ड्राइवर का फोन आया, ‘सर, सुबह को कितने बजे गाड़ी ले कर आऊं?’

मैं ने सोचा, अगर ड्राइवर के साथ मैं गौरी से मिलूंगा तो ड्राइवर औफिस में सब को बता देगा और फिर यह बात घर तक भी पहुंच जाएगी. इसलिए मैं ने ड्राइवर से झठ बोला. मैं ने कहा, ‘मैं तो मुरादाबाद में ही हूं. रात को यहीं रुकना पड़ेगा. ऐसा करो, तुम कल दोपहर को 12 बजे तक यहां आ जाना, हम यहीं से दिल्ली चलेंगे.’

‘ठीक है सर,’ कह कर ड्राइवर ने फोन काट दिया.

अगले दिन सुबह मैं बस में बैठ कर जा रहा था. मन किसी अनजाने भय से भयांकित था. सोच रहा था, पता नहीं क्या होगा? मेरे साथ कहीं कुछ गलत न हो जाए. अगर ऐसा कुछ हो गया तो पत्नी और बच्चों को कैसे समझऊंगा? मैं तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगा, मेरी इज्जत का ढिंढोरा बीच बाजार पिट जाएगा? एक मन कह रहा था, मैं गौरी से न मिलूं, तो एक मन कह रहा था, मिल लो, मिलने से स्थिति साफ हो जाएगी. यही सब सोचते हुए मैं मुरादाबाद पहुंच गया. कपूर कंपनी चौराहे पर बस रुकी. मैं बस से उतरा ही था, गौरी मेरे सामने आ कर बोली, ‘हाय हैंडसम.’ मैं उसे देख कर सकपका गया.

‘जनाब, पूरे 9 बजे से यहां खड़ी आप का इंतजार कर रही हूं,’ उस ने जताया.

मैं ने बस, उस से इतना ही कहा, ‘तुम ने मुझे पहचान लिया?’

‘हां तो, इस में चौंकने की क्या बात है. बौडीशौडी तो बिलकुल फोटो जैसी है. बस, सिर के बाल ही तो थोड़े सफेद हुए हैं.’

मैं खामोश ही रहा.

‘हम चलें?’ उस ने सड़क किनारे खड़ी अपनी लाल रंग की बड़ी कार की तरफ इशारा कर के कहा.

‘हम कार से चलेंगे?’

‘हां कार भी हमारी, रैस्त्रां भी हमारा और लस्सी भी हमारी होगी, आप हमारे मेहमान जो हो.’

मैं उस की कार में बैठ गया. कार वही चला रही थी. हम मुरादाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर बिजनौर रोड पर एक रैस्टोरैंट में आ कर बैठ गए. उस ने 2 कुल्हड़ वाली लस्सी और 2 सैंडविच का और्डर दे दिया. वहां बैठे लोग मुझे और उस को अजीब निगाहों से घूरने लगे. मुझे अजीब लगा, तो मैं ने अपने हावभाव ऐसे कर लिए जैसे मैं उस का कोई रिश्तेदार हूं. वह बहुत उतावली हो रही थी. टेप रिकौर्डर की तरह पटरपटर बोले जा रही थी. वह क्या बोल रही थी, मैं कुछ सुन नहीं पा रहा था क्योंकि मेरा दिलोदिमाग उस की बातों में नहीं लग रहा था. मैं, बस, उसे देखे जा रहा था. फिर उस ने अपने दोनों हाथों की हथेलियों में अपने दोनों गालों को रोका और कुहनियों को मेज पर टिका कर हसरत से मुझे ऐसे देखने लगी जैसे कोई अनोखी चीज देख रही हो. फिर मुसकराने लगी.

मैं ने कहा, ‘अरे, ऐसे क्यों देख रही हो मुझे?’

वह उसी तरह मुसकराते हुए बोली, ‘एक बात बोलूं हैंडसम, मेरे दिल ने आप को चाह कर कोई गलती नहीं की. आप तो कल्पना से भी अधिक स्मार्ट और हैंडसम हैं. दिन में 10 बार देखते हैं आप की तसवीर को.’

‘अच्छा, ऐसा क्या है उस तसवीर में?’ मेरे कहते ही वह अपने महंगे मोबाइल फोन पर मेरा फेसबुक अकाउंट खोल कर मेरी डीपी को मुझे दिखाते हुए बोली, ‘‘हमारी निगाहों से देखिए अपनी इस तसवीर को. कैसे अपने दोनों हाथों को ऊपर कर के मंदमंद मुसकरा रहे हैं. इसी मुसकराहट ने हमारी जान ले ली.’’

मैं कभी अपनी फोटो देख रहा था, तो कभी उस को.

‘आप की लस्सी गरम हो रही है, पीजिए इसे,’ उस ने अधिकार से कहा.

मैं ने लस्सी का कुल्हड़ उठाया और एक घूंट भर कर कहा, ‘गौरी, तुम ने कहा था तुम मुझ से मिलना चाहती हो, तो मैं तुम से मिल लिया. तुम ने यह भी कहा था मिलने के बाद मैं जो कहूंगा, तुम उस को मानोगी?’

‘तो कहिए न, हम आप की बात सुनेंगे भी और मानेंगे भी,’ वह तपाक से बोली.

मैं ने कहा, ‘अब तुम न तो मुझे कभी फोन करोगी और न ही फेसबुक पर मुझे कोई मैसेज करोगी.’

‘आप से प्यार तो करूंगी या वह भी नहीं करूंगी. सुनिए हैंडसम, हम आप को अब न फोन करेंगे, न आप से फेसबुक पर चैट करेंगे लेकिन एक शर्त पर, एक बार, बस, एक बार आप हम से मुसकरा कर आई लव यू कह दीजिए.’

मैं ने मन में सोचा, यह लड़की बहुत जिद्दी है. ऐसे मानने वाली नहीं है. इस के लिए कुछनकुछ तो करना ही पड़ेगा. मैं ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम से सचमुच प्यार करने लगूंगा, तुम्हें आई लव यू भी बोलूंगा, लेकिन तब जब तुम अच्छे से अपनी पढ़ाई करोगी और फर्स्ट डिवीजन से अपनी इंटर की परीक्षा पास कर लोगी. उस से पहले, न तुम मुझे फोन करोगी और न ही मुझ से चैट करोगी.’

‘ओके हैंडसम, हमें आप की शर्त मंजूर है. अब हम खूब जम कर पढ़ाई करेंगे. हालांकि, यह सब करना हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा क्योंकि जो शर्त आप ने हमारे सामने रखी है वह हमारे लिए किसी सजा से कम नहीं है. फिर भी हम इस सजा को आप की मोहब्बत का तोहफा समझ कर स्वीकार कर लेते हैं, पर आप हमें भूल मत जाना.’

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हाय हैंडसम- भाग 3: क्या हुआ था गौरी के साथ

मेरे ड्राइवर ने मुझे फोन कर के कहा कि वह मुरादाबाद पहुंच गया है. ड्राइवर का फोन आते ही मैं ने गौरी से विदा ली. विदा लेते समय गौरी का चेहरा उतर गया. वह बहुत भावुक हो गई थी. उस की आंखों की चमक कम हो गई. वह एकदम छुईमुई सी दिखाई देने लगी. उस ने मुसकराने की कोशिश की, मगर उस के होंठ कांपने लगे. उस की आंखों में आंसू तैरने लगे. उस ने अपनी उंगली से आंख में लटके आंसू की उस बूंद को उठा लिया, जो टपक कर उस के गाल पर गिरने ही वाली थी.

मैं अपने ड्राइवर को गौरी के बारे में कुछ पता नहीं चलने देना चाहता था, इसलिए मैं गौरी से कुछ दूर चला गया. गौरी मुझे अभी भी अपलक देख रही थी.

मैं कार में बैठ गया. ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ाई, तो गौरी ने अपना एक हाथ थोड़ा सा ऊपर उठा कर मुझे बाय का इशारा किया. बदले में मैं ने कुछ नहीं किया. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा मैं पीछे घूम कर काफी दूर तक गौरी को देखता रहा. वह भी मुझे यों ही देखती रही और अपनी उंगलियों से अपनी आंखों के आंसू पोंछती रही.

गौरी से मिलने के बाद एक बात तो पूरी तरह साफ हो गई कि वह बहुत ही मासूम और भोली लड़की थी. उस के मन में मेरे लिए कोई छलकपट नहीं था. दिल की भी साफ थी. पता नहीं कैसे वह मेरी तरफ आकर्षित हो गई. कोई बात नहीं, अगर उस से यह भूल हो गई तो मुझे उस की भूल को सुधारना होगा.

मैं ने मन में सोच लिया, मैं अपना मोबाइल नंबर बदल लूंगा और कुछ समय के लिए फेसबुक चलाना भी बंद कर दूंगा. उसी समय मुझे याद आया, गौरी ने मुझ से कहा था, अगर मुझे जिंदा देखना चाहते हो तो मुझे कभी फेसबुक से अलग मत करना.’ मैं ने मन में सोचा, अगर गौरी ने ऐसावैसा कुछ कर लिया तो? नहीं, वह ऐसावैसा कुछ नहीं करेगी. मुझे थोड़ाबहुत बुराभला कहेगी और फिर नौर्मल हो जाएगी. इसी बहाने कमसेकम उस के दिलोदिमाग से प्यार का भूत तो उतर जाएगा. मैं ने ऐसा ही किया. दिल्ली से वापस आने के बाद अपना मोबाइल नंबर, जो गौरी के पास था बंद करवा कर दूसरा नंबर ले लिया और फेसबुक भी चलाना बंद कर दिया.

4 वर्षों बाद अब अचानक एक दिन मेरे व्हाटसऐप पर एक मैसेज आया, ‘‘हम तो आप को धोखेबाज, चालबाज और बेवफा भी नहीं कह सकते क्योंकि आप ने तो हमें कभी प्यार किया ही नहीं था. प्यार तो हम ने आप से किया था और वह भी बेइंतहा, हद से भी ज्यादा. हां, आप से यह जरूर पूछेंगे, आप ने ऐसा क्यों किया? आप का प्यार पाने के लिए हम ने रातदिन पढ़ाई कर के इंटर की परीक्षा में टौप किया, उस के बाद बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास कर ली. आप को नहीं मालूम, जब हम ने इंटर में टौप किया था तो हम कितने खुश थे. कितने ख्वाब देख डाले थे हम ने आप के लिए. हमें पूरा यकीन था आप अपना वादा निभाने के लिए हमारे पास जरूर आएंगे. हमें यह नहीं मालूम था आप ने हम से झठ बोला था. हम ने सैकड़ों बार आप को फोन लगाया, आप ने अपना फोन नंबर बदल दिया. फेसबुक पर भी हमारा कोई मैसेज नहीं पढ़ा, क्यों? क्यों किया आप ने ऐसा? हमारी भावनाओं के साथ आप ने खिलवाड़ क्यों किया?

‘‘हैंडसम, आप अच्छे इंसान हैं, इस बात का अंदाजा हमें तभी हो गया था जब हम आप से मिले थे और आप ने हमारी बेपनाह खूबसूरती को नजरभर कर भी नहीं देखा था. न आप ने हमारी खूबसूरती की तारीफ की थी. उसी दिन हम समझ गए थे आप उन आदमियों में से नहीं हैं जो किसी भी लड़की को देख कर अपना आपा खो देते हैं. आप की शालीनता और गंभीरता के कायल तो हम आज भी हैं. लेकिन हमें आप से यह उम्मीद नहीं थी कि आप हम से इस तरह किनारा कर जाएंगे.’’

व्हाट्सऐप पर गौरी का लंबा मैसेज पढ़ कर मैं असमंजस में पड़ गया. समझ नहीं आ रहा था, मैं गौरी के मैसेज का क्या जवाब दूं? जवाब दूं भी या नहीं? सोचा, अगर जवाब दूंगा तो बात आगे बढ़ जाएगी और नहीं दिया तो वह अपना आपा खो बैठेगी. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी. फिर सोचा, मुझे गौरी से बात कर के उसे समझ देना चाहिए.

मैं ने गौरी को मैसेज किया, ‘‘गौरी, तुम ने मेरे कहने से इंटर में टौप किया और फिर बीएससी भी फर्स्ट डिवीजन से पास किया, यह जान कर मुझे बेहद खुशी हो रही है. रही बात तुम से बात न करने की, तो सुनो, दिल्ली से वापस आने के बाद मुझे किन्हीं कारणों से अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. इसलिए कंपनी ने अपना सिम भी वापस ले लिया. उसी में तुम्हारा नंबर था. और फेसबुक मैं इसलिए नहीं देख पाया, क्योंकि मैं भी 4 सालों से काफी परेशान रहा, मेरी पत्नी एक्सपायर हो गई थीं.’’

‘‘ओह, सो सैड. यू नो हैंडसम, मेरी मम्मी भी नहीं रहीं. वे भी…’’ गौरी भावुक हो गई.

‘‘अरे, फिर तो बड़ी मुश्किल हो गई होगी?’’

‘‘हां, और पापा ने हमारी शादी कर दी,’’ उस ने कहा.

‘‘इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, जानते हो हैंडसम, हमारे हसबैंड बहुत अच्छे इंसान हैं. बिलकुल आप के जैसे. बड़े बिजनैसमैन हैं. बहुत प्यार करते हैं हम से. पर हम ने उन से कह दिया, हम अपने हैंडसम से प्यार करते हैं.’’

‘‘गौरी, यह तुम ने गलत किया, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए.’’

‘‘क्यों नहीं करना चाहिए? हम किसी को धोखे में नहीं रखना चाहते, इसीलिए हमारे मन में जो था, वह हम ने कह दिया.’’

‘‘एक बात कहूं गौरी, तुम मुझे बहुत प्यार करती हो न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. हम तो आप को खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं.’’

‘‘तो सुनो, अपना यह प्यारव्यार वाला चक्कर छोड़ कर अपने हसबैंड से प्यार करो. उसी में अपनी दुनिया और अपनी खुशियों को बसाओ. तुम्हें उसी में सबकुछ मिल जाएगा.’’

‘‘लेकिन आप तो नहीं मिलोगे. हैंडसम, हम अपने हसबैंड से साफ कह चुके हैं कि जब तक हम अपने हैंडसम से नहीं मिल लेंगे तब तक हम किसी के नहीं हो पाएंगे और उन्होंने हमारी बात मान भी ली.’’

‘‘अपनी यह नादानी छोड़ दो. गौरी. ऐसा पागलपन अच्छा नहीं होता. गौरी, कागज की नाव में सवार हो कर भावनाओं का सफर तय नहीं हो सकता और अब तो तुम्हारी शादी भी हो गई है. अब तुम्हें तुम्हारी खुशियां तुम्हारे हस्बैंड में ही मिलेंगी, कहीं और नहीं.’’

‘‘हैंडसम, एक बार, बस, एक बार आप हमें अपने सीने से लगा कर आई लव यू बोल दो. यकीन करना, आप फिर जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे.’’

‘‘नहीं, यह नामुमकिन है, गौरी. तुम मुझ से यह उम्मीद मत करो. मैं ऐसा कुछ नहीं कह पाऊंगा. तुम अच्छी तरह जानती हो, मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करता हूं. मैं अपने परिवार को धोखा नहीं दे सकता और तुम्हारे लिए तो बिलकुल भी नहीं, क्योंकि मैं ने तुम्हें कभी उस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘ठीक है, जब हम आप के नहीं हो पाए तो किसी और के भी नहीं हो पाएंगे. हम अपनी गाड़ी को सड़क के डिवाइडर से लड़ा देंगे और मर जाएंगे. हम सच कह रहे हैं, हैंडसम. इसे हमारी धमकी मत समझ लेना. जब हमारा दिल ही टूट गया, तो हम जी कर क्या करेंगे.’’

गौरी की बात सुन कर मैं एकदम घबरा गया. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, अगर मेरे मिलने और आई लव यू बोलने से तुम्हें खुशी मिल रही है तो मैं बोल दूंगा लेकिन उस के बाद तुम कोई और जिद  नहीं करोगी.’’

‘‘हां, हम वादा करते हैं, आप के मिलने और आई लव यू बोलने के बाद हम आप से फिर कभी कोई जिद नहीं करेंगे. लेकिन फोन पर नौर्मल बात तो कर ही सकते हैं?’’

‘‘हां, ठीक है, तुम जब चाहो, मुझ से मिल सकती हो.’’

‘‘हैंडसम, आप को नहीं मालूम कि आज हम कितने खुश हैं. आप से मिलने और प्यार के तीन शब्द ‘आई लव यू’ सुनने के लिए हम कल ही आप के पास आ रहे हैं.’’

‘‘ओके, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

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हाय हैंडसम- भाग 1: क्या हुआ था गौरी के साथ

‘प्यार दीवाना होता है, मस्ताना होता है, हर खुशी से हर गम से बेगाना होता है…’ मैं जब इस फिल्मी गाने को सुनता था तो मन में यही सोचता था, क्या वाकई प्यार दीवाना और मस्ताना होता है? लेकिन जब प्यार में दीवानीमस्तानी, हर खुशी हर गम से बेगानी एक लड़की से मुलाकात हुई तो यकीन हो गया, वास्तव में प्यार दीवाना और मस्ताना होता है.

4 साल पहले मैं फेसबुक खूब चलाता था. उसी दौरान मेरे मैसेंजर बौक्स में एक मैसेज आया, ‘हैलो…’

मैं ने मैसेज बौक्स के ऊपर नजर डाली, नाम था गौरी. इतनी देर में दूसरा मैसेज आ गया, ‘हैलो, आप कहां से हैं?’

मैं ने मैसेज में अपने शहर का नाम टाइप किया, साथ ही उस से पूछा, ‘आप कौन?’

‘जी, मेरा नाम गौरी है.’

‘ओके. कहां से हो?’ मैं ने मैसेज का जवाब दिया.

‘जी, मैं मुरादाबाद से हूं. क्या मैं आप से बात कर सकती हूं?’ उस ने अगला मैसेज किया.

‘बात तो आप कर ही रही हैं,’ मैं ने मजाकिया अंदाज में मैसेज किया.

‘जी, मेरा मतलब है, आप मुझे अपना मोबाइल नंबर देंगे?’

‘मोबाइल नंबर क्यों?’

‘आप से बात करनी है.’

‘तुम करती क्या हो?’ मैं ने पूछा.

‘स्टडी, मैं इंटरमीडिएट के एग्जाम की तैयारी कर रही हूं.’

‘तुम इंटरमीडिएट में पढ़ती हो?’ मैं चौंका.

‘हां, लेकिन आप को हैरानी क्यों हो रही है?’

‘वो… बस, ऐसे ही. तुम मुझ से क्या बात करोगी, मेरी उम्र मालूम है तुम्हें?’

‘जी, मैं ने आप की प्रोफाइल देखी है, आप की उम्र करीब 50 साल है.’

‘उम्र ही मेरी 50 साल नहीं है, मेरे 2 बच्चे भी हैं, वे भी तुम से बड़े.’

‘इस में आश्चर्य की क्या बात है. शादी के बाद बच्चे तो सभी के होते हैं. आप के भी हैं. एक बात बोलूं, आप बहुत हैंडसम हैं.’

‘फोटो में तो सभी हैंडसम दिखते हैं.’

‘सुनिए, मुझे आप से प्यार हो गया है.’

‘क्या कहा तुम ने?’ मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ.

‘आई लव यू… आई लव यू सो मच,’ उस ने फिर मैसेज किया.

‘तुम पागल तो नहीं हो?’

‘हां, मैं आप की प्रोफाइल फोटो देख कर पागल हो गई हूं.’

‘ज्यादा इमोशनल होने की जरूरत नहीं है. मेरी एक बात ध्यान से सुनो, बेटा.’

‘हाय… क्या कहा, बेटा… कितना अजीब इत्तफाक है, मेरे पापा भी मेरी मम्मी को प्यार से बेटा ही बुलाते हैं. आप के मुंह से बेटा शब्द सुन कर अच्छा लगा,’ उस ने रोमांटिक अंदाज में मैसेज भेजा.

‘तुम नादानी में कुछ भी बोले जा रही हो.’

‘मैं होशोहवास में बोल रही हूं.’

‘चलो, फिर से बेटा, अच्छा चलो, ऐसे ही बोलो आप.’

‘तुम चाहती क्या हो?’

‘इतनी जल्दी है आप को यह सुनने की?’

उस की बात से मैं झेंप गया था, फिर संभल कर मैं ने उस से कहा, ‘अगर तुम्हारे मम्मीपापा को तुम्हारे बारे में पता चला कि तुम किसी भी इंसान से ऐसी बातें करती हो तो उन पर क्या…’

‘सुनिए हैंडसम, अब मैं आप को हैंडसम ही बोला करूंगी और आप मुझे बेटा,’ उस ने मेरी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘‘हां तो हैंडसम, मैं कह रही थी, मैं हर किसी से ऐसे नहीं बोलती हूं, आप से ऐसे बोलने का मन हुआ, तो बोल रही हूं. दूसरी बात, मेरे मम्मीपापा के मुझे ले कर जो भी ड्रीम्स हैं उन्हें तो मैं हंड्रैड परसैंट पूरे करूंगी. पर ड्रीम्स से दिल का क्या लेनादेना. उसे तो इन सब चीजों से दूर रखिए. बेचारा मेरा नन्हामुन्ना, प्यारा सा एक ही तो दिल था उसे भी आप ने चुरा लिया.’

‘फालतू बातें मत करो.’

‘प्लीज हैंडसम, मुझे अपना नंबर दो न, मुझे आप से बहुत सारी बातें करनी हैं.’

‘नहीं, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और तुम भी अब मुझे मैसेज मत करना.’

‘सुनिए, औफलाइन मत होना, प्लीज.’

‘चुप रहो, मुझे तुम से कोई बात नहीं करनी है.’

‘ऐसा मत कहिए, प्लीज, अपना नंबर दे दो न.’

‘कहा न, मैं तुम्हें नंबर नहीं दूंगा और न ही आज के बाद कोई मैसेज करूंगा,’ यह मैसेज भेजते हुए मैं ने फेसबुक लौगआउट कर दिया.

अगले दिन मैं औफिस टूअर पर कई दिनों के लिए दिल्ली चला गया. इस बीच मैं ने फेसबुक ओपन नहीं किया. दिल्ली से वापस आने के बाद रात को मैं ने लैपटौप पर फेसबुक लौगइन किया. मैसेज बौक्स में कई मैसेज मेरा इंतजार कर रहे थे. उन मैसेजेस में गौरी का मैसेज भी था. उस के मैसेज को देख कर मेरा दिल धक्क… से हो गया. मन में सोचने लगा, यह लड़की जरूर सिरफिरी या पागल है. मैं तो इसे भूल गया था और यह? मैं ने उस के मैसेज पर क्लिक कर दिया. वही हंसतामुसकराता मासूम सा चेहरा सामने आ गया. मैसेज में लिखा था, ‘कहां हो हैंडसम, अपना नंबर दो न प्लीज.’ उस के मैसेज का मैं ने कोई रिप्लाई नहीं किया.

कई दिनों बाद मेरे मोबाइल पर एक अनजानी कौल आई. मैं ने कौल रिसीव की. दूसरी तरफ से खिलखिलाती हंसी सुनाई दी. उस के बाद आवाज आई, ‘हाय हैंडसम.’

उस आवाज को सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. दूसरी तरफ से फिर आवाज आई.

‘आप ने क्या समझ था, आप फेसबुक से दूर हो गए तो हम आप को अपने दिल से दूर कर देंगे. नहीं हैंडसम, ऐसा नहीं होगा. आप ने गौरी का दिल चुराया है. उस का चैन, उस की रातों की नींद चुराई है तो हम आप को कैसे भूल जाएंगे. हैंडसम, हम ने आप से सच्चा प्यार किया है. आप ने नंबर नहीं दिया तो क्या हुआ, आप फेसबुक से दूर हो गए तो क्या हुआ, हम तो आप से दूर नहीं हुए. हम ने आप का नंबर ढूंढ़ ही लिया. कोई बात नहीं, आप दुखी मत होइए. हम आप को परेशान भी नहीं करेंगे. क्या करें, हम आप पर मरमिटे हैं, इसलिए कभीकभार हम से बात कर लिया करो, ताकि हम जिंदा रह सकें.

क्या करें हैंडसम, हम तो दिल के हाथों मजबूर हो गए. दिल तो दिल ही है, कर बैठा आप से प्यार, तो कर बैठा. वैसे, आप हमारे ऊपर आंख मूंद कर भरोसा कर सकते हैं. हमें गर्व होता है अपनेआप पर जब हम सोचते हैं हमें प्यार भी हुआ तो एक मशहूर लेखक से. कभी तो हम भी उस की कहानी का हिस्सा बनेंगे. क्या हुआ… आप की खामोशी बता रही है, आप हमारी बेस्वादी बातों को सुन कर बोर हो रहे हैं. तभी तो कुछ बोल नहीं रहे हैं, हम ही बोले जा रहे हैं.’

‘क्या चाहती हो तुम?’ मैं ने झंझलाते हुए कहा तो वह तपाक से बोली, ‘आप से मिलना चाहते हैं एक बार बस. एक बार हम से मिल लो, फिर आप जैसा कहोगे, हम वैसा ही करेंगे. हैंडसम प्लीज, न मत करना. हम जानते हैं आप बहुत सज्जन हैं. हम से बात करते हुए आप को ?िझक होती है. पर हम सचमुच आप से प्यार करने लगे हैं.

आप हम से बिलकुल भी न घबराएं. हम न चालबाज हैं, न धोखेबाज. हमें आप से फोन रिचार्ज भी नहीं करवाना है, और न ही आप को ब्लैकमेल करना है. उम्र भी हमारी 20 साल है. आप को हम से कैसी भी कोई टैंशन नहीं मिलेगी. एक बार आप से मिलने की तमन्ना है. बस, वह पूरी कर दीजिए. हैंडसम, हम जानते हैं हमें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए.

‘हम यह भी नहीं चाहते कि हमारी गलती की सजा आप को मिले. आप हमारे बारे में कैसेकैसे अनुमान लगा रहे होंगे, हम कौन हैं, कहीं हम आप को गुमराह तो नहीं कर रहे हैं. हम लड़की हैं भी या नहीं, कहीं हम आप को किसी जाल में तो नहीं फांस रहे हैं. क्योंकि, आजकल ऐसा हो रहा है.

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वक्त की साजिश- भाग 3: क्या अभिषेक को मिला सच्चा प्यार

अभी वह सोच ही रहा था कि दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई जिस से उस की तंद्रा भंग हुई. कौन हो सकता है इस समय? उस ने जल्दी से स्टूल किनारे किया और शर्ट पहन कर दरवाजा खोला तो एकदम जड़ सा हो गया.

‘‘तुम…रंजना…तुम यहां,’’ बस, आगे के शब्द जैसे पिघल कर बह गए.

‘‘क्यों? क्या मैं नहीं आ सकती यहां?’’ रंजना हंसती हुई बोली.

‘‘नहीं, मैं ने ऐसा तो नहीं कहा, पर तुम…’’ वह कहना कुछ और ही चाह रहा था, पर जबान ने उस का साथ न दिया.

‘‘अंदर आ जाऊं कि यहीं खड़ी रहूं,’’ रंजना बोली.

वह एकदम से शर्मिंदा हो कर दरवाजे से हट गया.

रंजना कमरे के अंदर आई और दीवार से लगी फोल्ंिडग कुरसी खोल कर बैठ गई.

‘‘अब तुम भी बैठोगे कि वहीं खड़े रहोगे. यह आज तुम्हें क्या हो रहा है. अरे, तुम्हारे चेहरे पर तो हवाइयां उड़ रही हैं. क्या कहीं भागने की योजना बना रहे थे और मैं पहुंच गई?’’ रंजना ने अपनी स्वाभाविक हंसी के साथ यह प्रश्न उछाल दिया.

अभिषेक  के माथे पर यह सोच कर पसीना आ गया कि रंजना कैसे जान लेती है उस की हर बात. पर अपने को संयत रखने की भरपूर कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बिलकुल ठीक हूं. अच्छा, छोड़ो ये सब बातें, यह बताओ, तुम यहां कैसे?’’

‘‘अब कैसे क्या मतलब, जनाब से कल से मुलाकात नहीं हुई थी सो बंदी खुद हाजिर हो गई,’’ रंजना शरारत भरे अंदाज में बोली, ‘‘क्या बात है…कल मिलने क्यों नहीं आए?’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, मूड ही नहीं बना,’’ अभिषेक बोला.

‘‘अच्छा, अब मुझ से मिलने के लिए मूड की जरूरत पड़ती है,’’ रंजना उसी अंदाज में बोली.

अभिषेक खामोश हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बात करे.

‘‘क्या बात है, मुझे बताओ?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं, बात क्या हो सकती है, कुछ तो नहीं हुआ…पर…’’ आगे अभिषेक बोलताबोलता रुक गया.

‘‘पर क्या?’’ रंजना एकदम पास आ कर बोली, ‘‘मुझे बताओ तो सही.’’

‘‘पता नहीं क्यों मुझे कल से कैसाकैसा लग रहा है. घर से खत आया है. बस, उसी को पढ़ कर जाने क्याक्या मैं सोचने लगा.’’

‘‘क्या लिखा है पत्र में?’’ रंजना ने पूछा.

‘‘तुम खुद ही पढ़ लो. वहां दराज में रखा है.’’

रंजना पत्र पढ़ कर बोली, ‘‘ऐसा क्या लिखा है इस में. सही तो है. वास्तव में अभि, अब तुम्हें कुछ न कुछ करना चाहिए.’’

‘‘मैं क्या करूं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा. तुम तो देख ही रही हो कि कोई भी नौकरी नहीं मिल रही है.’’

‘‘अभी तक नहीं मिली है तो आगे मिल जाएगी, तुम इतने काबिल और समझदार हो,’’ रंजना उस का साहस बढ़ाती हुई बोली.

‘‘नहीं, रंजना. कुछ भी नहीं होने वाला. मैं सोचता हूं कि घर चला जाऊं, और वहीं खेतीबाड़ी शुरू करूं. कुछ घर में अपना सहयोग दूं. आखिर मेरी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं. हां, एक बात और…’’ इतना कहतेकहते उस के होंठ थरथरा उठे.

‘‘क्यों, रुक क्यों गए. कहो न और अब…क्या?’’ रंजना उस की आंखों में झांकती हुई बोली.

‘‘नहीं, कुछ नहीं.’’

‘‘नहीं, कुछ तो जरूर है?’’ रंजना उसी तरह आंखों में झांकती हुई बोली.

‘‘तुम तो बेकार में पीछे ही पड़ जाती हो,’’ अभिषेक थोड़ा परेशान हो कर बोला.

‘‘पहले कभी तुम इस तरह मुझ से व्यवहार नहीं करते थे, अभिषेक. आखिर क्या बात है, कुछ मैं ने गलती की है? कुछ पता तो चले,’’ रंजना एक सांस में बोलती चली गई.

‘‘देखो रंजना, मैं…अब तुम्हें कैसे समझाऊं कि इसी में तुम्हारी बेहतरी है.’’

‘‘अरे, किस में मेरी बेहतरी है?’’ रंजना लगभग चीखती हुई बोली.

‘‘तुम और मैं अब न ही मिलें तो अच्छा है.’’

रंजना आश्चर्यमिश्रित गुस्से के स्वर में बोली, ‘‘मेरी बेहतरी इस में है कि मैं अब तुम से न मिलूं. तुम से…’’

‘‘हां, रंजना,’’ अभिषेक उसे समझाते हुए बोला, ‘‘मैं अब तुम्हें क्या दे सकता हूं. मेरे पास कुछ नहीं है. रंजना, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं और कभी तुम्हें उदास या परेशान नहीं देख सकता और मेरे पास कुछ भी नहीं है जिस से मैं तुम्हें सुख दे पाऊं.’’

‘‘वाह…क्या बात है…तुम मुझ से बेहद प्यार करते हो इसलिए मुझे छोड़ने की बात कह रहे हो. यह बात कुछ समझ में नहीं आई और रही बात यह कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है, तो सुनो, तुम्हारे पास तुम खुद हो और तुम से बढ़ कर खुशी देने वाली चीज कोई दूसरी नहीं हो सकती मेरे लिए,’’ आखिरी शब्द बोलतेबोलते रंजना की आंखें भर आईं और गला रुंध गया.

‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं दे सकता तुम्हें. तुम मुझ से न ही मिलो तो अच्छा है. तुम्हारे पापा किसी अच्छे घर में तुम्हारी शादी कर देंगे, जहां तुम्हें देने को ऐशोआराम की सारी चीजें होंगी. खुद सोचो, भविष्य के लिए ये सब बेहतर है कि मैं…सोच कर देखो,’’ अभिषेक एक प्रवाह में बोलता चला गया.

‘‘तुम जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’

‘‘हां, मैं जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं.’’

‘‘नहीं, तुम नहीं जानते कि तुम क्या कह रहे हो. तुम मुझ से मर जाने को कह रहे हो,’’ रंजना रुंधे स्वर में बोली.

‘‘यह कैसी बात कह रही हो, मैं और तुम्हें…’’

‘‘हां, तुम अच्छी तरह जानते हो अभि,’’ वह जैसे फूट पड़ी, ‘‘मैं तुम्हारे बिना कुछ सोच भी नहीं सकती कि तुम इतने कमजोर भी हो सकते हो. पर इतना सुन लो, अगर तुम समझते हो कि मैं तुम से इस तरह अलग हो सकती हूं तो तुम गलत सोचते हो. मैं तुम्हारी तरह कमजोर नहीं हूं. मैं उम्र भर इंतजार कर सकती हूं. तुम्हें ही प्यार करती रहूंगी उम्र भर…और सुनो, तुम्हारी जगह कोई दूसरा मेरी जिंदगी में नहीं आ सकता…’’ यह कह कर रंजना उठ खड़ी हुई.

‘‘प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश करो. जिंदगी उतनी आसान नहीं है जितनी दिखाई पड़ती है. तुम्हें क्या हासिल होगा मुझ से. मेरी परेशानियों में घुट जाओगी और फिर  तुम्हें उदास देख कर क्या मैं भी खुश रह पाऊंगा, बोलो?’’ अभिषेक उस का हाथ पकड़ते हुए विवशता के स्वर में बोला.

‘‘तुम्हारे साथ अगर मुझे घुटघुट कर भी जीना पड़ा तो विश्वास मानो मैं इस के लिए कभी उफ तक नहीं करूंगी. अच्छा, एक बात का जवाब दो,’’ रंजना फैसले के स्वर में बोली, ‘‘क्या तुम मुझे खुद अपनेआप को दे पाओगे? सोच कर बताना,’’ इतना कह कर वह चली गई.

उसे लगा कि वह सवाल ही नहीं छोड़ गई बल्कि उस के षड्यंत्रकारी दिमाग की पीठ पर कोड़े बरसा कर चली गई. उस ने कान को छू कर देखा, मिट्टी नहीं लगी हुई थी. उस ने जैसे खुद अपनेआप को ही झटका दिया और वह सारा बोझ उतार दिया जो समय उस पर धीरेधीरे रखता चला गया था.

उस ने अपने हाथ को छू कर देखा, वे ठंडे नहीं थे. उस ने अपनी बांह उठाई और अपनी उलझनों के जाले को साफ करने लगा. उस के पैर जीवंत हो उठे और तेज कदमों से कमरे के बाहर निकल कर उस ने एक ठंडी भरपूर सांस भरी और चल पड़ा वह लड़ाई लड़ने जो उसे जीतनी ही थी. तभी दिमाग में आया, ‘अभि, आखिर कब तक तू हारता रहेगा?’

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वक्त की साजिश- भाग 2: क्या अभिषेक को मिला सच्चा प्यार

कुछ लोगों को भविष्य के बारे में स्वप्न आते हैं तो कुछ चेहरे के भावों को देख कर सामने वाले का भविष्य बता देते हैं. रंजना ने भी मुझे पढ़ कर बता दिया था. पर अब मैं क्या कर सकता हूं. उस ने सोचा, मैं अपने हाथों से अपने ही सपनों को आग लगाऊंगा. फिर उसे लगा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता हूं लेकिन ऐसा करना ही पड़ेगा. और कोई चारा भी तो नहीं है.

दीवार पर लटकी घड़ी में घंटे की आवाज से वह घबरा सा गया. उसे हाथों में गीलापन सा महसूस हुआ. जैसे उस ने अभीअभी रंजना का हाथ छोड़ा हो और रंजना की हथेली की गरमाहट से उस के हाथ में पसीना आ गया है.

उस ने जल्दी से तौलिया उठाया और उंगलियों के एकएक पोर को रंगड़रगड़ कर पोंछने लगा. फिर भी वह संतुष्ट नहीं हो पा रहा था. उसे बराबर अपना हाथ गीला महसूस होता रहा. गीले हाथों से ही तो कच्ची मिट्टी के बरतनों को संवारा जाता है. उस ने अपने गीले हाथों से उस समय की मिट्टी को सजासंवार तो लिया था पर सहेज कर रखने के लिए पका नहीं पाया.

‘मैं क्यों नहीं कर पाया ऐसा? क्यों मैं एक ऐसी सड़क का मुसाफिर बन गया जो कहीं से चल कर कहीं नहीं जाती.’

उस ने किताब को अपने से परे किया और बिस्तर पर पड़ी चादर से खुद को सिर से ले कर पांव तक ढंक लिया. उसे याद आया कि लाश को भी तो इसी तरह पूरापूरा ढंकते हैं. वह अपने पर हंसा. उसे अपना दम घुटता सा लगा. मुझे यह क्यों नहीं याद रहा कि मैं अभी तक जिंदा हूं. उसे अपने हाथ ठंडे से लगे. वह अपने हाथों के ठंडेपन से परेशान हो उठा. नहीं, मेरा हाथ ठंडा नहीं है, इसे ठंडा नहीं होना चाहिए. इसे गरम होना ही चाहिए.

‘ठंडे हाथ वाले बेवफा होते हैं,’ रंजना की आवाज उस के कानों में पड़ी.

‘अच्छा, तुम्हें कैसे पता?’

‘मैं ने एक किताब में पढ़ा था,’ रंजना बोली.

‘क्या किताबों में लिखी सारी बातें सच ही होती हैं?’

‘पर सब गलत भी तो नहीं होती हैं,’ रंजना जैसे उस के अंदर से ही बोली.

‘नहीं, मेरे हाथ ठंडे कहां हैं,’ उस ने फिर छू कर देखा और उठ कर बैठ गया. चादर को उस ने अपने दोनों हाथों पर कस कर लपेट लिया. पर उसे लगा जैसे उस ने अपने दोनों हाथ किसी बर्फ की सिल्ली में डाल दिए हैं. उस ने घबरा कर चादर उतार दी, ‘क्या मेरे हाथ वाकई ठंडे हैं? पर न भी होते तो क्या,’ उस ने सोचा, ‘मेरे माथे पर जो ठप्पा लगने वाला था, उस से कैसे बच सकता हूं.’

‘यह मुझे क्या हो रहा है?’ उस ने सोचा, ‘मैं पागल होता जा रहा हूं क्या?’ उस की आवाज गहरे कु एं से निकल कर आई.

‘तुम तो बिलकुल पागल हो,’ रंजना हंसी.

‘क्यों?’

‘अरे, यह तक नहीं जानते कि रूठे को कै से मनाया जाता है,’ रंजना बोली.

‘मैं क्या जानूं. यू नो, इट इज माई फर्स्ट लव.’

फिर इसी बात पर वे कितनी देर तक हंसते रहे.

हंसना तो जैसे वह भूल ही गया. उसे ठीक से याद नहीं आ रहा था कि वह आखिरी बार कब खुल कर हंसा था. वह उठा और खिड़की खोल दी. खिड़की के पल्ले चरमरा कर खुल गए.

‘काश, मैं इसी तरह जिंदगी में खुशी की खिड़की खोल पाता.’

उस ने कहा, कितनी बातें जीवन में ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों में नहीं ढाला जा सकता. वे बातें तो मन के किसी कोने में अपने होने का एहसास दिलाती रहती हैं बस. ठीक उसी खिड़की के नीचे कुछ गमले रखे हुए थे. हर बार बरसात में उन गमलों में फूलों के आसपास अपनेआप कुछ उग आता जो समय के साथ अपनेआप सूख भी जाता.

वह जल्दी से बाहर निकला और गमलों के पास पहुंच कर बेतरतीब उग आए घासफूस के झुंड को जल्दीजल्दी फूलों के चारों ओर से हटाने लगा. गमलों के फूल जैसे मुसकरा उठे. उस ने हलकी सी जुंबिश ली और तन कर खड़ा हो गया. कितने सुंदर होते हैं फूल. कितने सुंदर होते हैं सपने. पर मुरझा कर बिखर जाना ही उन की नियति है. उस के सपने भी फूल की तरह एक दिन मुरझा कर गिर जाएंगे.

‘टुकड़ोंटुकड़ों में मरना भी एक कला है,’ वह हंसा, ‘चलो, जब रंजना नहीं रहेगी तो कुछ तो मेरे पास रहेगा. मैं धीरेधीरे अपनेआप को मारूंगा. पहले कौन सा हिस्सा मरेगा… सब से पहले मैं अपने हाथों को मारूंगा. ये हमेशा ठंडे रहते हैं और घोषणा करते रहते हैं. इन्हें सब से पहले मरना चाहिए. फिर दिमाग को, क्योंकि यह भी हमेशा रोका करता है कि यह सही   है, यह गलत है. तुम पर ये जिम्मेदारियां हैं. ये न करो वो न करो. सब बकवास. फिर मुंह को, फिर आंख को और सब से बाद में कान को.’

‘तुम्हारे कान कितने प्यारे हैं,’ रंजना उस के कान से खेलती हुई बोली.

‘अच्छा, पर क्या तुम्हें मुझ में सिर्फ कान ही अच्छे लगते हैं और कुछ नहीं?’

‘नहीं, ऐसी बात नहीं है पर इन्हीं कानों से तो मैं अपने होेंठों की बात सुनती हूं,’ रंजना की उंगलियां बड़ी देर तक उस के कान से खेलती रहीं.

रंजना जैसे उस के कानों में खिलखिलाई हो. उस ने अपना कान छू कर देखा, कुछ मिट्टी सी लगी हुई थी. शायद गमले से घासफू स साफ करते हुए उस का हाथ कान तक गया हो और मिट्टी लग गई हो, पर उसे लगा जैसे घासफूस वहां भी उग आई हो. वक्त की साजिश की खरपतवार.

इन्हें हटाना आसान भी तो नहीं होता, पौराणिक कथाओं में आए रक्तबीज राक्षस की तरह. उस का प्रेम का कोमल सा पौधा इन खरपतवारों में फंस कर दम तोड़ देगा.

‘उफ, कितना विवश हो रहा हूं मैं,’ उस ने सोचा, ‘नहीं कर सकता कुछ चाह कर भी, पर मैं चाहता क्या हूं?’ उस ने जैसे अपनेआप से ही पूछा. इस का कोई उत्तर उस को खुद ही समझ में नहीं आया.

वह निढाल सा बिस्तर पर बैठ गया और छत की तरफ देखने लगा. हलकी सी भिनभिनाहट की आवाज उस के कानों में पड़ी. उस ने देखा, छत के एक कोने में एक कीड़ा जाले में फंस गया था और वह उस से निकलने का जितना प्रयास करता उतना ही और उलझता जा रहा था. ठीक इसी तरह वह जितना उलझनों से निकलने के बारे में सोचता, उतना ही उलझनों में घिरता चला जाता.

वह उठा और उस के मुंह से निकला, ‘मैं शायद अपनी उलझनों को न सुलझा पाऊं, पर तुम्हें तो निकाल ही दूंगा,’ उस ने झाड़ ू उठाई और स्टूल पर चढ़ कर जाले को साफ कर दिया. काश, कोई ऐसी झाड़ ू होती जिस से वह अपनी उलझनों के जाले को साफ कर पाता.

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अनाम रिश्ता: क्या मानसी को मिला नीरज का साथ

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एक मासूम सी ख्वाहिश: रवि को कौनसी लत लगी थी

 कहानी- कीर्ति प्रकाश

योंतो रवि और प्रेरणा की शादी अरेंज्ड मैरिज थी, मगर सच यही था कि दोनों एकदूसरे को शादी से 3 साल पहले से जानते थे और एकदूसरे को पसंद करते थे. दिल में एकदूसरे को जगह दी तो फिर कोई और दिल में न आया. दुनिया एकदूसरे के दिल में ही बसा ली सदा के लिए.

सब के लिए एक नियत वक्त आता है और इन दोनों के जीवन में भी वह नियत खूबसूरत वक्त आया जब मातापिता, समाज ने इन्हें पतिपत्नी के बंधन में बांध दिया.

जीवन आगे बढ़ा और प्यार भी. रवि और प्रेरणा के बीच हर तरह की बात होती. अमूमन पतिपत्नी बनने के बाद ज्यादातर जोड़ों के बीच बहुत सारी बातें खत्म हो जाती हैं. मसलन, राजनीति, खेलकूद, देशदुनिया, साइंस, कैरियर, हंसीमजाक आदि. मगर इन के बीच सबकुछ पहले जैसा था. हंसीमजाक, ठिठोली, वादविवाद, एकदूसरे की टांग खिंचाई, एकदूसरे की खास बातों में सलाह देनालेना, साथ घूमनाफिरना, एक ही प्लेट में खाना, एकदूसरे का इंतजार करना आदि सबकुछ बहुत प्यारा था रवि और प्रेरणा के बीच. ऐसा नहीं कि रवि और प्रेरणा के  झगड़े न होते हों. होते थे मगर वैसे ही जैसे दोस्त लड़ते झगड़ते, मुंह फुलाते और आखिर में वही होता, चलो छोड़ो न यार जाने दो न. सौरी बाबा… माफ कर दो न. गलती हो गई और दोनों एकदूसरे को गले लगा लेते.

रवि और प्रेरणा की छोटी सी प्यारी सी गृहस्थी थी. शादी को 6 साल हो गए थे. अनंत 2 साल का हो गया था. अब एक और मेहमान बस 4-5 महीनों में आने वाला था. जीवन की बगिया महक रही थी. रवि प्रेरणा का बहुत खयाल रखता था. प्रेरणा ने भी जीवन के हर पल में रवि को हद से ज्यादा प्यार किया. शादी के 6 साल बाद भी यों लगता जैसे अब भी दोनों प्यार में हैं और जल्द से जल्द एकदूसरे के जीवनसाथी बनना चाहते हों. रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों के अलावा शायद ही कोई सम झ पाता था कि दोनों पतिपत्नी हैं. हां, अनंत के कारण भले ही अंदाज लगा लेते थे वरना नहीं.

अब सबकुछ अच्छा चल रहा था. कहीं कोई कमी न थी. फिर भी जाने क्यों कभीकभी प्रेरणा उदास हो जाती. रवि शायद ही कभी उस के उदास पल देख पाता और कभी दिख भी जाते तो प्रेरणा कहती, ‘‘कुछ नहीं, यों ही.’’

प्रेम चीज ही ऐसी है जो स्व का त्याग कर दूसरे को खुश रखने की कला सिखा ही देती है. मगर इन सब बातों के बीच एक ऐसी बात थी, एक ऐसी आदत रवि की जिसे प्रेरणा कभी दिल से स्वीकार नहीं कर सकी. हालांकि उस ने कोशिश बहुत की. उस ने कई बार रवि से कहा भी, बहुत मिन्नतें भी कीं कि प्लीज इस आदत को छोड़ दो. यह हमारी प्यारी गृहस्थी, हमारे रिश्ते, हमारे अगाध प्यार के बीच एक दाग है. कहतेकहते अब 6 साल बीतने को थे. रवि ने न जाने उस आदत को खुद नहीं त्यागना चाहा या फिर उस से हुआ नहीं, पता नहीं. जबकि कहते हैं कि दुनिया में जिंदगी और मौत के अलावा बाकी सबकुछ संभव है. महान गायिका लताजी का यह गाना सुन कर मन को बहला लेती, ‘हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता, कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता…’

नन्हे मेहमान के आगमन में बस 2 महीनों की देरी थी. रवि जल्दी घर आता. प्रेरणा को बहुत प्यार देता. अनंत भी खुश था, क्योंकि उसे बताया गया कि मम्मी तुम्हारे लिए जल्द ही एक बहुत ही सुंदर गुड्डा या गुडि़या लेने जाएंगी जो तुम्हारे साथ खेलेगी भी, दौड़ेगी भी और बातें भी करेगी. अनंत को गोद में लिए रवि प्रेरणा के साथ बैठ घंटों दुनियाजहान की बातें करता. प्रेरणा हर वक्त खुश थी पर कभीकभी अनायास पूछ बैठती, ‘‘रवि, तुम सच में अपनी आदत नहीं छोड़ सकते?’’

रवि उस के हाथ थाम फिर वही बात दोहरा देता जो पिछले 6 सालों से कहता आ रहा था, ‘‘बस 2-4 दिन दे दो मु झे. सच कहता हूं इस बार पक्का. तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगा.’’

प्रेरणा कसक भरी मुसकान के साथ सिर हिला देती, ‘‘ओके, प्लीज, इस बार जरूर.’’

रवि प्यार से प्रेरणा के माथे को चूम लेता, कभी गालों पर थपकी दे कर कहता, ‘‘इस बार पक्का प्रौमिस.’’

बात फिर खत्म हो जाती.

एक शाम अचानक प्रेरणा का बहुत दिल किया कि आज आइसक्रीम

खाने चलते हैं. वैसे भी 2-3 महीनों से कहीं निकली नहीं थी. रवि ने कहा, ‘‘मैं घर ही ले आता हूं.’’

प्रेरणा नहीं मानी. तीनों तैयार हो कर आइसक्रीमपार्लर चले गए. आइसक्रीम खाते हुए बहुत खुश थे तीनों. होनी कुछ और लिखी गई थी, जिस का समय नजदीक था. तीनों घर आए. अनंत तो आते ही सो गया. प्रेरणा के दिल में आज फिर एक सोई हुई ख्वाहिश जगी. उस ने रवि का हाथ पकड़ कर अपनी ओर प्यार से खींचते हुए कहा, ‘‘रवि, सुनो न एक बात… इधर आओ तो जरा.’’

मगर रवि ने पुरानी आदत के अनुसार हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘रुको प्रेरणा. बस 5 मिनट, मैं अभी आया,’’ और फिर बालकनी में चला गया और सिगरेट पीने लगा.

अचानक प्रेरणा की तेज चीख सुन कर रवि दौड़ा. प्रेरणा बाथरूम में लहूलुहान पड़ी थी. अब बस उस की आंखें कुछ कह रह थीं पर उस के मुंह से कोई आवाज नहीं निकल रही थी. रवि के प्राण ही सूख चले. उस ने बिना देर किए ऐंबुलैंस बुलाई और प्रेरणा को कुछ ही पलों में हौस्पिटल पहुंचाया गया. तत्काल इलाज शुरू हुआ. रवि अब तक अपने मातापिता और प्रेरणा के घर वालों को भी खबर कर चुका था. सभी आ गए. सभी प्रेरणा के लिए चिंतित और दुखी थे.

उधर अनंत घर में अकेला था. सिर्फ नौकरों के भरोसे छोटा बच्चा नहीं रह सकता, इसलिए रवि की मां को घर जाना पड़ा. इधर डाक्टर प्रेरणा की कंडीशन को अब भी खतरे में बता रहे थे. बच्चा पेट में खत्म हो गया था. औपरेशन कर दिया था. अब प्रेरणा को बचाने की कोशिश में जुटे थे. थोड़ी देर में अनंत को ले कर मां पुन: हौस्पिटल आईं. मां ने रवि के हाथ में एक पेपर देते हुए कहा, ‘‘यह तकिए के नीचे रखा था शायद… अनंत के हाथ में खेलते हुए आ गया. कोई जरूरी चीज हो शायद यह सोच मैं लेती आई.’’

मां पढ़ना नहीं जानती थीं सो रवि पढ़ने लगा.

उस ने पहचान लिया. प्रेरणा की लिखावट थी और जगहजगह स्याही ऐसे बिखरी हुए थी कि लग रहा था उस ने रोतेरोते ही ये सब लिखा है. अरे यह तो अभी शाम को लिखा है उस ने… क्योंकि प्रेरणा की आदत सभी जानते हैं. वह कुछ भी लिखती है तो उस पर अपने साइन कर के नीचे तारीख और समय भी लिखती है. मतलब कि जब रवि थोड़ी देर के लिए सिगरेट पीने बालकनी में गया था तभी प्रेरणा ने यह लिखा था.

कागज में लिखा था, ‘पता है रवि जब प्यार में हम दोनों सराबोर हुए थे पहली बार… जब हम पहली बार अपनेअपने दिल की बात एकदूसरे से कहने को मिले थे, जो शायद हमारे प्यार की पहली ही शाम थी, उस दिन हम ने समंदर किनारे बने उस कौफीहोम में समंदर की लहरों को साक्षी मान कर एकदूसरे से पूछा था कि हम एकदूसरे को ऐसा क्या दे सकते हैं जो सच में बहुत नायाब हो. मैं ने कहा पहले आप कहो रवि. याद है रवि आप ने क्या कहा था? आप को तो शायद याद ही नहीं है, लेकिन मैं एक पल को भी नहीं भूली. आप ही ने कहा था रवि कि मैं तुम्हारी आंखों से अपनी आंखों को जोड़ना चाहता हूं. बोलो दोगी मु झे यह तोहफा? मैं ने आप की आंखों में प्यार की सचाई देखी थी. उस एक पल में मैं ने आप के साथ अपना पूरा जीवन देख लिया था. ऐसे तोहफे आप मांगेंगे यह कल्पना तो नहीं की थी, लेकिन आप की इस ख्वाहिश ने ही मु झे भी यह ख्वाहिश दे दी कि मैं आप की यह इच्छा जरूर पूरी कर दूं. दिल में तो आया था कि अभी ही पूरी कर दूं. पर मैं शादी के बाद आप की यह इच्छा जरूर पूरी करूंगी, मैं ने सोच लिया था. लेकिन साथ ही यह भी था कि मु झे आप का सिगरेट पीना बरदाश्त न था मैं ने अपने घरपरिवार में कभी ये सब देखासुना नहीं था.

‘मु झे इस के धुएं से, इस की अजीब सी स्मैल से हद से ज्यादा नफरत थी. मेरा दम घुटने को हो आता है इस से. फिर भी मैं ने नजरें नीची कर के कहा कि सही वक्त आने पर आप को यह तोहफा जरूर दूंगी. आप की आंखें खुशी से चमक उठी थीं. मु झे बहुत अच्छा लगा था रवि. फिर आप ने मु झ से पूछा कि तुम्हें मु झ से क्या चाहिए? याद है रवि, मैं ने एक ही चीज मांगी थी. रवि आप सिगरेट पीना छोड़ दो. इस के अलावा मु झे सारी जिंदगी कुछ और नहीं चाहिए. आप ने कहा बस 1 सप्ताह बाद तुम मु झे सिगरेट पीते नहीं देखोगी. मैं कितनी खुश हुई थी, आप इस का अंदाजा नहीं लगा सकते. लेकिन आप ने पलट कर यह नहीं पूछा कि मु झे यही तोहफा नायाब क्यों लगा? मैं ने बताया भी नहीं. जानते हो रवि क्यों नहीं मांगा था मैं ने ताकि मैं आप की ख्वाहिश पूरी कर सकूं. हां रवि, आप की सांसों से अपनी सांसों को जोड़ने की ख्वाहिश मेरे मन में भी जग चुकी थी. पर आप की सिगरेट पीने की आदत ने मु झे यह कभी करने न दिया.

‘मु झे आप से बहुत प्यार मिला है रवि बहुत सम्मान मिला है. सच है कि आप को जीवनसाथी पा कर मैं इस जहान में खुद को सब से ज्यादा खुशहाल पाती हूं. हमारी एकदूसरे से नजदीकियां तो शरीर और मन की तरह हैं रवि. पर बेहद अजीब है न कि इतने करीब हो कर भी वह पल नहीं आ पाया कि मेरा वादा और मेरी एक छोटी सी ख्वाहिश पूरी हो सके.

‘शादी के बाद इन 6 सालों में आप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया पर अफसोस मेरी एक छोटी सी यह ख्वाहिश आज भी अधूरी है. कितनी बार मैं ने चाहा, मगर हर बार जब भी आप की सांसों का हमकदम बनना चाहा हर बार वही सिगरेट की अजीब सी गंध ने मु झे मुंह फेर लेने को मजबूर किया. लेकिन आप ने कभी यह सम झने की कोशिश नहीं की. क्या कोई यकीन कर सकता है रवि कि पतिपत्नी हो कर, 1 बच्चे के मातापिता हो कर भी हम एकदूसरे के होंठों के स्पर्श को नहीं जानते. लोग हंसेंगे कि यह क्या बकवास है. भला 6 साल के दांपत्य जीवन में ऐसा पल न आया हो. मैं कैसे कहूं कि यह हमारे अटूट बंधन, गहरे प्रेम के बीच एक दाग की तरह है, मगर सच है आप नहीं सम झोगे रवि. लेकिन मैं अब सम झ गई हूं कि आप मु झे भी शायद छोड़ सकते हो, लेकिन सिगरेट को नहीं, कभी नहीं. मैं फिर आज इसलिए लिख रही हूं रवि क्योंकि आज हद से ज्यादा दिल मचल गया था और लगा था कि आप ने आज तो बहुत देर से सिगरेट नहीं पी है. शायद आज एक बार ही सही मेरी ख्वाहिश पूरी हो जाएगी. लेकिन आज भी आप हाथ छुड़ा कर सिगरेट उठा कर चल दिए.

‘मैं रोना चाहती हूं चीखचीख कर पर नहीं रो सकती, शायद हमारे अगाध प्रेम में यह शोभनीय नहीं होगा. मैं बांटना चाहती हूं अपना यह दर्द, मगर क्या यह किसी से कहना उचित लगेगा? बेहद अपमानित महसूस करने लगी हूं आप की सिगरेट के सामने अपनेआप को. कोई तरीका नहीं है मेरे पास अपनी इस अधूरी ख्वाहिश का दर्द बांटने के लिए सिवा इस के कि पन्ने पर उतार कर दिल हलका कर लूं, जबकि जानती हूं पहले की ही तरह कुछ देर बाद इसे भी फाड़ कर फेंक दूंगी पर कोई बात नहीं दिल तो हलका हो जाता है. आई लव यू रवि, लव यू औलवेज.’

पढ़तेपढ़ते रवि आंसुओं में डूब गया. उसे आज एहसास हुआ कि

उस की सिगरेट की लत के कारण क्या से क्या हो गया.

रवि के सिगरेट ले कर चले जाने के कारण प्रेरणा को आज बहुत ज्यादा बुरा लगा. उस की आंखों से आंसू छलक आए. उस ने पेपर और पैन उठाया और

अपने मन की सारी बात उस कागज पर लिख कर अपने मने को हलका कर लिया. जब तक रवि सिगरेट खत्म कर के कमरे में वापस आने वाला था. प्रेरणा का चेहरा आंसुओं से भीग गया था. वह उठ कर हाथमुंह धोने चली गई. जब वह वाशरूम से वापस आने लगी तो अचानक उस का पैर फिसल गया. यह उस की संतप्त मन की मंशा थी या प्रैगनैंसी के कारण उसे चक्कर आया होगा या फिर उस की जीवन की इतनी ही अवधि तय थी यह तो कुदरत को ही पता था या फिर खुद प्रेरणा को.

रवि पागलों की तरह डाक्टर से कह रहा था, ‘‘मेरी प्रेरणा को बचा लो. मेरा सबकुछ ले लो… मेरी जान भी उसे दे दो, मगर बचा लो उसे.’’

मगर यह नहीं हो सका. 8 घंटे के अथक प्रयास के बाद डाक्टरों ने आकर कहा, ‘‘हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन हम हार गए. प्रेरणा के पास अब ज्यादा समय नहीं. उस से मिल लें आप लोग.’’

रवि बदहवास प्रेरणा के पास पहुंचा. प्रेरणा की आंखें शून्यता से भरी थीं. रवि ने उस का हाथ थामा और पागलों की तरह कहने लगा, ‘‘प्रेरणा मु झे छोड़ कर मत जाओ… मत जाओ प्रेरणा… मैं तुम्हारी हर बात मान लूंगा आज से, अभी से. अब नहीं टालूंगा 1 सैकंड भी नहीं. बस मत जाओ… मत जाओ मु झे छोड़ कर.’’

प्रेरणा की आंखें रवि के चेहरे पर टिक गईं. वह बड़ी मुश्किल से जरा सा मुसकराई और फिर अपने होंठों पर एक मासूम सी ख्वाहिश सजा हमेशा के लिए खामोश हो गई.

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