बच्चेदानी में बार-बार इन्फैक्शन से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 34 वर्षीय महिला हूं. 7 सालों से बच्चेदानी में बारबार इन्फैक्शन होने से परेशान हूं. दवा लेने पर कुछ समय तक आराम रहता है, पर कुछ दिनों बाद समस्या फिर शुरू हो जाती है. कृपया बताएं क्या करूं?

जवाब-

अच्छा होता आप हमें अपनी समस्या के बारे में अधिक खुल कर लिखतीं. पहली जरूरत यह है कि यह ठीक से जानाबूझा जाए कि यह ऐसा कौन सा इन्फैक्शन है, जो बारबार आप को परेशान कर रहा है. कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अपने पर्सनल हाइजीन के बारे में लापरवाही बरत रही हों या फिर ऐसे किसी इन्फैक्शन से आप के पति भी पीडि़त हों, इसलिए उन की दवा न होने से यह इन्फैक्शन बारबार उन से आप में लौट आता हो?

अच्छा होगा कि आप अपनी गाइनोकोलौजिस्ट से इस विषय पर खुल कर बात करें और अपने बचाव के लिए उपयुक्त कदम उठाएं. यदि पति को भी इलाज की जरूरत हो तो उन्हें भी दवा लेने के लिए प्रेरित करें. इस प्रकार बारबार इन्फैक्शन होना ठीक नहीं. लापरवाही बरतने से स्थिति कभी अचानक ज्यादा भी बिगड़ सकती है.

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गर्भाशय का कैंसर भारत में तेजी से पांव पसार रहा है. दुनिया में इस मामले में भारत का पहला नंबर है. औरतों के इसे ले कर लापरवाही बरतने की वजह से यह तेजी से फैल रहा है. दक्षिणपूर्व एशिया, भारत और इंडोनेशिशा में कुल कैंसर मरीजों का एकतिहाई हिस्सा गर्भाशय के कैंसर से पीडि़त है. 30 से 45 साल की उम्र की औरतों में इस कैंसर का ज्यादा खतरा होता है, इसलिए इस आयु की औरतों को लापरवाही छोड़ कर सचेत होने की जरूरत है.

महिलाओं में बढ़ते गर्भाशय कैंसर के बारे में दिल्ली के एम्स के डाक्टर नीरज भटला ने पिछले दिनों पटना में महिला डाक्टरों के सम्मेलन में साफतौर पर कहा कि कैंसर को पूरी तरह डैवलप होने में 10 साल का समय लगता है. अगर पेशाब में इन्फैक्शन हो या पेशाब के साथ खून आए तो उसे नजरअंदाज न करें. अगर औरतें हर 2-3 साल पर नियमित जांच कराती रहें तो इस बीमारी से बचा जा सकता है. गर्भाशय के कैंसर से बचाव के लिए हर 3 साल पर पैपस्मियर टैस्ट और स्तन कैंसर से बचाव के लिए हर 1 साल पर मैगोग्राफी करानी चाहिए. शुरुआती समय में इस का पता चलने पर आसानी से इलाज हो जाता है.

जानें क्यों होता है गर्भाशय कैंसर

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बेटी के घुटनों में दर्द रहता है, इसकी क्या वजह है?

सवाल-

मेरी 35 साल की बेटी के घुटनों में दर्द है, तो उस के औफिस में किसी को सर्वाइकल की तो किसी को कमर दर्द की समस्या है. इस की क्या वजह है? 

जवाब-

पहले आर्थ्राइटिस की समस्या केवल बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी, लेकिन अब युवाओं को भी इस समस्या से जूझना पड़ रहा है. आजकल युवावर्ग टैक्नोलौजी और सुविधाओं पर इतना ज्यादा निर्भर हो गया है कि शारीरिक परिश्रम करना कहीं पीछे छूट गया है. बच्चों का भी यही हाल है. वे इंटरनैट और टीवी के सामने ही समय बिताना पसंद करते हैं. खेलनाकूदना, पसीना बहाना या शारीरिक मेहनत करना बहुत कम देखने को मिलता है. पहले लोग शारीरिक काम बहुत करते थे, इसलिए स्वस्थ व फिट रहते थे. इस के अलावा युवाओं की अनियमित दिनचर्या, दिन भर डैस्क जौब, टैक्नोलौजी व मशीनों पर बढ़ती निर्भरता, शारीरिक व्यायाम न करने और पोषक खानपान न होने की वजह से आर्थ्राइटिस होने का रिस्क बढ़ जाता है. गौरतलब है कि व्यायाम या शारीरिक गतिविधियां न करने से मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिस से हड्डियों पर वजन पड़ने से जोड़ प्रभावित होने लगते हैं. इसलिए नियमित व्यायाम करने के साथसाथ, खानपान भी पोषक तत्त्वों से युक्त हो.

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रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस एक जटिल बीमारी है, जिस में जोड़ों में सूजन और जलन की समस्या हो जाती है. यह सूजन और जलन इतनी ज्यादा हो सकती है कि इस से हाथों और शरीर के अन्य अंगों के काम और बाह्य आकृति भी प्रभावित हो सकती है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस पैरों को भी प्रभावित कर सकती है और यह पंजों के जोड़ों को विकृत कर सकती है.

इस बीमारी के लक्षण का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस में सूजन, जोड़ों में तेज दर्द जैसे लक्षण होते हैं. पुरुषों की तुलना में यह बीमारी महिलाओं को अधिक देखने को मिलती है. वैसे तो यह समस्या बढ़ती उम्र के साथसाथ होती है, लेकिन अनियमित दिनचर्या और गलत खानपान के कारण कम उम्र की महिलाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है.

रोग के लक्षण

वास्तव में रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस से पीडि़त 90% लोगों के पैरों और टखनों में रोग के लक्षण सब से पहले दिखाई देने लगते हैं. इस स्थिति का आसानी से उपचार किया जा सकता है, क्योंकि मैडिकल साइंस ने अब काफी प्रगति कर ली है और विकलांगता से आसानी से बचा जा सकता है.

रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस से ज्यादातर हाथों, कलाइयों, पैरों, टखनों, घुटनों, कंधों और कुहनियों के जोड़ प्रभावित होते हैं. इस रोग में शरीर के दोनों तरफ के एकजैसे हिस्सों में सूजन व जलन हो सकती है. रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस के लक्षण समय के साथ अचानक या फिर धीरेधीरे नजर आ सकते हैं. पैरों और हाथों में विकृति आना रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस का सब से सामान्य लक्षण है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- महिलाओं में बढ़ती रह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस की समस्या

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स्टार मौम्स के फिटनैस Secrets

वेदिन लद गए जब मां बनने वाली को एक बिना शेप के शरीर वाली महिला माना जाता था. नेल्सन सर्वे ने यम्मीमम्मी सर्वे में पाया कि 67% नई मांएं चाहती हैं कि बच्चा होने के बाद भी उन का शरीर वैल शेप्ड और त्वचा चमकदार रहे. 75% महिलाएं मां बनने पर स्कार, पोस्ट प्रैगनैंसी रिकवरी और सी सैक्शन सर्जरी से डरती हैं, तो 86% महिलाएं स्ट्रैच मार्क्स से नजात पाना व फिर से पुराने रूप में आना मुश्किल मानती हैं. पर इससोच में अब परिवर्तन आया है. इस के बारे में स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. किरन कोएल्हो कहती हैं कि वह समय गया जब ग्लैमर वर्ल्ड की अभिनेत्रियां और मौडल्स अपने निजी जीवन को दांव पर लगा कर अपने कैरियर के बारे में सोचती थीं. अब तो बहुत सी अभिनेत्रियां ऐसी हैं जो समय से शादी कर के व मां बन कर भी पहले जैसे ग्लैमरस रूप में नजर आती हैं और अभिनय करती हैं.

आइए जानते हैं कि अपनेआप को फिट रखने के लिए उन्होंने क्या किया हैं.

मंदिरा बेदी: मौडल और अभिनेत्री मंदिरा बेदी कहती हैं कि जब मेरा बच्चा हुआ तो मेरा वजन 20 किलोग्राम अधिक हो चुका था, जिसे मैं ने 6 महीने में कम किया और वापस अपने वजन पर आ गई. वजन कम करना मुश्किल नहीं. इस के लिए केवल कमिटमैंट जरूरी होता है.

ऐश्वर्या राय बच्चन: ऐश्वर्या राय बच्चन जब मां बनने वाली थीं तो मीडिया ने उन की खूब चर्चा की. उन का वजन काफी बढ़ चुका था इसलिए वे कैमरे के सामने न आने की कोशिश करती रहती थीं. उस दौरान वे कहती थीं कि वे मदरहुड को ऐंजौय कर रही हैं, उन्हें अपने मोटापे को ले कर कोई चिंता नहीं. लेकिन आराध्या के जन्म के 6 महीने बाद वे फिर से फिट नजर आईं. उन्होंने कहा कि मैं अपनी डाइट पर काफी ध्यान देती हूं. जंकफूड व तले हुए व्यंजनों से दूर रहना मुश्किल होता है पर मैं अपनी डाइट में उबली हुई सब्जियां, फ्रैश फू्रट्स, ब्राउन राइस आदि लेती हूं. मैं दिन में 4 से 5 मील छोटेछोटे लेती हूं यानी भूखी नहीं रहती. इस के अलावा जिम रैग्युलर जाना, कार्डियो वर्कआउट आदि सभी पर ध्यान देती हूं, क्योंकि ये आप को फिर से उसी रूप में लाने में सहायक होते हैं.

डा. किरन कोएल्हो आगे कहती हैं कि बच्चे के जन्म के बाद मां तुरंत ही वर्कआउट कर सकती है. इस के लिए यह देखना जरूरी होता है कि बच्चा नौर्मल डिलिवरी से हुआ है या सिजेरियन से. नौर्मल डिलिवरी है तो 1 सप्ताह बाद लाइंग डाउन व्यायाम यानी लाइट पुशअप्स, स्ट्रैचिंग, वाकिंग आदि कर सकती हैं. आहाना देओल, जो अभी मां बनी हैं, ने बेबी बर्थ के अगले दिन से ही लाइंग डाउन व्यायाम शुरू कर दिया है. किसी भी महिला का वजन डिलिवरी तक 11 से 15 किलोग्राम तक बढ़ता है, इसलिए उसे चाइल्ड बर्थ के तुरंत बाद से ही डाक्टर की सलाह से व्यायाम करना चाहिए. लेकिन यह सलाह नौर्मल डिलिवरी वाली के लिए है. अगर सिजेरियन बेबी हुआ है तो मां को 40 दिनों के बाद डाक्टर की सलाह के आधार पर व्यायाम करना सही होता है. इस के अलावा प्रैगनैंट महिला की त्वचा पर स्ट्रैच मार्क्स पड़ते हैं जिन से बचने के लिए नियमित रूप से मौइश्चराइजर, विटामिन ई युक्त तेल आदि एबडौमिन और ब्रैस्ट पर लगाने चाहिए. 

मलाइका अरोड़़ा खान: अभिनेत्री मलाइका अरोड़ा खान कहती हैं कि मां बनने के बाद हर मां की तरह मुझे भी यह कहना अच्छा लगता था कि मेरे पास अब बिलकुल समय नहीं है. लेकिन जब मैं ने कई मौडल्स और अभिनेत्रियों को मां बनने के बाद भी पहले जैसा ही देखा, तो मेरे अंदर प्रेरणा जागी कि फिटनैस पर ध्यान देना मुश्किल है पर असंभव नहीं. फिर मैं ने जिम जाना, नियमित रूप से डाइट पर ध्यान देना, ग्रीन टी लेना, मिठाई को ना कहना, जल्दी डिनर करना आदि शुरू किया, तो धीरेधीरे मेरा वजन कम होने लगा और अभी उस वजन को कायम रखने के लिए मैं नियमित वर्कआउट करती हूं.

शिल्पा शेट्टी: अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी कहती हैं कि किसी के भी पास अपने लिए वक्त कभी नहीं होता. उसे निकालना पड़ता है और मैं निकाल लेती हूं. मेरे लिए मेरा बेटा वियान सब से बड़ी प्रायोरिटी है फिर राज भी हैं. लेकिन अगर मैं सब के बारे में सोचूं और अपने बारे में कुछ न सोचूं तो यह सही नहीं होगा. वियान की देखभाल के साथसाथ मैं अन्य कामों में इतनी व्यस्त थी कि साढ़े 4 महीने तक मैं ने अपने लिए कुछ भी नहीं किया. मेरा वजन चाइल्ड बर्थ के समय 20 किलोग्राम बढ़ कर 80 किलोग्राम हो गया था. मैं उस दौरान अच्छा फील नहीं कर रही थी. फिर मैं ने सोचा कि कुछ भी हो जाए, मैं अपने लिए कुछ करूंगी. मेरा बेटा सिजेरियन से हुआ था, इसलिए डाक्टर की सलाह से मैं ने व्यायाम करना शुरू किया. इस से मैं ने 3 महीने में अपना वजन 14 किलोग्राम कम किया. मैं ने कभी डाइटिंग नहीं की. बच्चे की देखरेख मैं खुद करती थी. अगर मां अपने बच्चे की देखभाल करती है, तो हर दिन उस की 500 कैलोरी बर्न होती है. क्रैश डाइटिंग से आप का मैटाबोलिज्म संतुलन बिगड़ता है, जिस से पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने का डर रहता है. मैं नियमित रूप से व्यायाम करती हूं.

लारा दत्ता: अभिनेत्री लारा दत्ता कहती हैं कि फिटनैस पर हर महिला को ध्यान देना चाहिए. मैं ने अपनी बेटी सायरा भूपति के जन्म के 8 सप्ताह के बाद मौडरेड ऐक्सरसाइज शुरू कर दिया था. फिर 3 महीने के बाद मैं ने रैग्युलर वर्कआउट अपने जिम इंस्ट्रक्टर टोनिया क्लार्क के साथ शुरू कर दिया, जिस में मैं कार्डियो, वेट ट्रेनिंग व कोर स्ट्रैंथनिंग बारीबारी से किया करती थी. इस के साथसाथ रिलैक्सिंग मसाज भी नियमित रूप से करवाती थी. इतना ही नहीं, मैं तो प्रैगनैंसी के दौरान भी ट्रेनर के हिसाब से योगा करती रही. मैं शाकाहारी हूं, इसलिए वजन को काबू में रखना आसान रहा. मैं हरी सब्जियां, फल, दालें आदि अधिक खाती हूं और खूब सारा पानी पीती हूं.

करिश्मा कपूर: अभिनेत्री करिश्मा कपूर 2 बच्चों की मां बन कर भी वैसी ही फिट दिखती हैं. वे कहती हैं कि मैं पारंपरिक व्यायाम पद्धति से अपना 24 किलोग्राम वजन कम किया है. इस के लिए मन में विश्वास होना जरूरी है. कई बार मन होता है कि वर्कआउट न करें. पर मैं कुछ भी हो, अपने लिए समय अवश्य निकालती हूं. वैसे मैं हमेशा और बहुत फिट रही हूं. स्कूल में पढ़ते समय हमेशा स्विमिंग करती थी अब दोनों बच्चों के साथ स्विमिंग करती हूं. इस के अलावा नैचुरल वे में मैं वर्कआउट अधिक करती हूं. मैं बिल्डिंग में टहलती हूं. लिफ्ट के बजाय सीढि़यों से चढ़ती हूं. मेरी एक पर्सनल इंस्ट्रक्टर है, जो मुझ से सप्ताह में 3 या 4 दिन व्यायाम करवाती है. मैं दिन में 6 से 7 बार 2 घंटे के अंतर पर छोटाछोटा मील लेती हूं. मुझे चिप्स, केक्स, बिरयानी, फ्रैंच फ्राइस आदि खूब पसंद हैं, लेकिन मैं हमेशा हैल्दी खाना लेना पसंद करती हूं. कभीकभी जंकफूड खा लेती हूं पर अगले दिन उस के अनुसार वर्कआउट करती हूं. मैं वैजिटेबल करी, चिकन, स्टीम्ड फिश, ब्राउन राइस आदि अधिक खाती हूं. मैं सप्लिमैंट कभी नहीं लेती.

काजोल: अभिनेत्री काजोल नायसा और युग 2 बच्चों की मां हैं, लेकिन जब भी वे मिलती हैं स्लिमट्रिम दिखती हैं. इस की वजह पूछने पर वे हंसती हुई कहती हैं कि अभी भी मैं नए युग की हीरोइनों के साथ आ रही हूं. ऐसे में स्लिम रहना मेरे लिए बहुत जरूरी है. मैं हमेशा फिटनैस पर अधिक ध्यान देती हूं. साथ ही हैल्दी डाइट को भी फौलो करती हूं. युग के पैदा होने के 6 महीने के बाद मैं वापस उसी रूप में आ गई. फिटनैस एक प्रकार की ‘स्किल’ है, जिस के लिए लगातार अभ्यास की जरूरत होती है. वर्कआउट में वेट लिफ्टिंग, कार्डियो अधिक करती हूं. वजन कम करने के लिए मैं फाइबर डाइट अधिक लेती हूं, पानी खूब पीती हूं. व्यस्तता और उलझन के बीच भी हमेशा सेहत का खयाल रखना आवश्यक है. हमारे पास अगर अपने लिए समय नहीं है तो शरीर असमय ही रोगों का भंडार और मन तनाव और अशांति का घर बन जाता है. अगर रोज 30 मिनट भी अपने लिए कुछ वर्कआउट अपने हिसाब से कर लिया जाए, तो स्वस्थ रहने के साथसाथ फिट भी रह सकते हैं.

न बनें डाइट मौम

9वर्षीय मिताली की जोरजोर से रोने की आवाज सुन कर वैशालीजी से रहा न गया. वे दौड़ कर कमरे में गईं, तो देखा उन की बहू सुलेखा मिताली को पीट रही थी. वैशालीजी ने पूछा तो पता चला कि मिताली कई दिनों से पाश्ता खाना चाह रही है, मगर सुलेखा रोज उसे नाश्ते में या तो 1 कटोरी उपमा या फिर दलिया दे रही है, जिस से मिताली पूरी तरह ऊब चुकी है. खाने में भी सुलेखा उसे रोज सिर्फ एक सब्जी जो कभी लौकी, कभी आलूपालक या फिर परवल की होती और रूखी रोटी देती.

सुलेखा हाल ही में अपने पीहर जा कर आई है. तभी से उस ने मिताली की डाइट में यह बदलाव किया है. वहां उसे एक पड़ोसिन से पता चला कि बच्चों को नापतोल कर, कैलोरी का हिसाब देख कर ही खिलाना चाहिए. बस तब से सुलेखा पर भी यह सनक सवार हो गई थी.

वैशालीजी को यह सब अजीब तो बहुत लगा पर कलह के डर से वे चुप रहीं. महीने भर तक ऐसा ही चलता रहा. तभी अचानक एक दिन मिताली बेहोश हो गई. उसे अस्पताल में भरती करवाना पड़ा. मिताली बेहद कमजोर हो चुकी थी. पूछताछ से पता चला कि रोज एकजैसा खाना देने के कारण मिताली को उलटियां आने लगी थीं. मम्मी के डर से कई बार खाना छिपा कर बाहर फेंक देती थी, इसीलिए वह कुपोषण का शिकार हो गई और उस की यह हालत हो गई.

अनावश्यक डाइट कंट्रोल

सुलेखा जैसी मानसिकता आजकल बहुत सी मांओं की मिलेगी. अपने बच्चों की सेहत के प्रति जरूरत से ज्यादा प्रोटैक्टिव नई पीढ़ी की मांओं का रवैया देख कर चिकित्सक और डाइटीशियन भी हैरान हैं.

कोलकाता के बेलव्यू अस्पताल में डाइटीशियन संगीता मिश्रा बताती हैं कि आजकल उन के पास बौडी कौंशस न्यू ऐज मांएं अपने 6-7 वर्षीय बच्चों को भी ला रही हैं और वे उन के भोजन की कैलोरी फिक्स किया हुआ डाइट चार्ट बनवाने में दिलचस्पी ले रही हैं.

मांओं की यह नई पीढ़ी बच्चों में बढ़ती ओबैसिटी के समाचारों से चिंतित हैं. इस के चक्कर में वे अपने अच्छेखासे सेहतमंद और ठीकठाक वजन वाले बच्चों की भी डाइट कंट्रोल करने में जुटी हुई हैं.

डाक्टर संगीता मिश्रा के पास ऐसी कई मांएं आती हैं, जो अपने बच्चों को बे्रकफास्ट के नाम पर सिर्फ 1 उबला अंडा या 2 इडली खाने को देती हैं और खाने में रूखी रोटी और उबली सब्जियां देने की कोशिश करती हैं.

मानसिक दबाव

कौरपोरेट वर्ल्ड भी मांओं के इस भय को खूब भुना रहा है. फैट फ्री फूड प्रोडक्ट्स की बहार है. बच्चों को बातबात पर टोका जा रहा है कि यह मत खाओ, यह मत पीओ. यह ज्यादा कैलोरी वाला फूड है. इस में बहुत फैट है, यहां कीटाणु हैं, वहां वायरस है आदि. हैल्थ ऐक्सपर्ट्स इस स्थिति से काफी चिंतित हैं. उन का मानना है कि बच्चों की वर्तमान पीढ़ी भोजन जैसी चीज, जो रुचिपूर्वक खानी चाहिए, को भी डरडर कर खा रही है. इस से भोजन का जो फायदा सेहत को मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता. बच्चे मानसिक दबाव में रहते हैं.

कुछ समय पहले अमेरिकी मीडिया में ऐसी ही एक डाइट मौम के किस्से खूब चर्चित हुए. मैनहट्टन की इस सोशलाइट महिला द्वारा लिन वीए ने फैशन मैगजीन के लिए लिखे लेख में माना कि वह अपनी बेटी की डाइट पर पहरा रखती थी. वह कई बार अपनी बेटी को खाना नहीं खाने देती थी. एक बार तो उस ने बेटी के हाथ से हौट चौकलेट का भरा गिलास छीन कर फेंक दिया, क्योंकि उसे पता नहीं था कि उस में कितनी कैलोरी है.

अत्याचार से कम नहीं

एक डाइटीशियन बताती हैं कि उन्हें यह देख कर हैरानी होती है कि जो मांएं अपने बच्चों को मेरे पास लाती हैं वे खुद ओवरवेट होती हैं. जब तक घर के बड़े खानपान में सावधानी नहीं बरतते और बच्चों के रोल मौडल नहीं बनते, तब तक बच्चों से ऐसी उम्मीद करना उन पर अत्याचार करने जैसा ही है.

बेहतर यह होगा कि बच्चों पर उन की पसंदीदा चीजें खाने पर पूरी तरह बैन लगाने या जबरदस्ती उन की मरजी के खिलाफ खिलाने के बजाय कुछ महत्त्वपूर्ण बातों पर ध्यान दिया जाए, जो बच्चे को स्वस्थ और तंदुरुस्त रखेंगी.

इस संबंध में फायदेमंद निम्न बातें जानना जरूरी है:

मैक्रोबायोटिक थेरैपी

मैक्रोबायोटिक में मान्यता है कि शरीर हर 7 वर्ष में खुद को रिप्लेनिश करता है, इसलिए बढ़ते हुए बच्चों में शुरू के 21 साल ज्यादा महत्त्वपूर्ण होते हैं. इस दौरान बच्चे को हैल्दी भोजन के लिए प्रेरित करने में मातापिता की अहम भूमिका होती है, जो बच्चे सब्जियों, साबूत अनाज, बींस, मेवे, बीज और फलों का नियमित सेवन करते हैं उन की रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी होती है. इस से बच्चे क्रोनिक डाइजैस्टिव प्रौब्लम, सर्दीजुकाम, ऐलर्जी, हार्ट डिजीज, औस्टियोपोरोसिस आदि से बचे रहते हैं. इस के लिए मां को बच्चों के लिए रोज अलगअलग फ्लेवर और स्वाद वाला फूड तैयार करना चाहिए ताकि भोजन उन्हें रुचिकर लगे. इस के लिए बच्चों को किचन गार्डन या बागबानी में भी इन्वौल्व किया जा सकता है ताकि उन का मन फलसब्जियां खाने को करे.

टोटल बैन नहीं

बच्चा पिज्जा, बर्गर या अन्य फास्टफूड की जिद करे, तो टोटल बैन के बजाय उसे उस की पसंदीदा चीज दिला कर उस की कमियों के बारे में बताएं. साथ ही, ऐसी चीजों से मिलतेजुलते फूड घर पर तैयार करने की कोशिश करें ताकि उन में सब्जियां, मेवे आदि डाल कर उन्हें हैल्दी बना सकें.

बच्चे के खाने के लिए मार्केट से कुछ ऐसे पैकेज्ड फूड भी लाती रहें, जिन की पैकिंग बेहद आकर्षक होती है और वे खाने में भी फायदेमंद होते हैं. जैसे रैडी टु ईट उपमा, इंस्टैंट ढोकला, इडली मिक्स आदि. बच्चे को चीनी के बजाय मीठे के दूसरे औप्शन भी चखने को दें जैसे आम, खजूर का गुड़, तरबूज, अंगूर, अनार आदि.

फिजिकल ऐक्टिविटी की आदत

मोटापे की मूल वजह है बच्चों में फिजिकल ऐक्टिविटी की कमी. ज्यादातर बच्चे गैजेट्स से चिपके रहते हैं और खेलकूद भूल जाते हैं. एक जिम्मेदार मां के नाते आप को अपने बच्चों को शारीरिक गतिविधियों वाले खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जैसे क्रिकेट, फुटबौल, बैडमिंटन, कबड्डी, खोखो आदि. साथ ही, किसी न किसी बहाने उन्हें दिन में 1-2 बार छोटीमोटी चीजें लाने के लिए बाजार भी भेजना चाहिए. स्कूल बहुत दूर न हो तो पैदल आनेजाने की आदत या फिर साइकिल से आनेजाने की आदत डालें. इस प्रकार बच्चे पर स्ट्रैस न डालते हुए भी आप उसे हैल्दी और फिट रख सकती हैं.

क्या है कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द

कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द एक प्रकार से सब माइग्रेन है. इस के चलते सिर में भयंकर दर्द होता है, जिस से मरीजों को असहनीय और लंबे समय तक रहने वाली पीड़ा का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा इस दर्द की वजह से चेहरे के एक सीमित हिस्से में घाव या पीड़ा का भी अनुभव होता है. आमतौर पर मरीज सालों तक इस माइग्रेन पर ध्यान न दे कर इलाज नहीं कराते हैं.

सामान्यतया लोग इस समस्या के लिए न्यूरोलौजिस्ट, डैंटिस्ट, स्पैशलिस्ट आदि के पास जाने की सलाह देते हैं, हालांकि कोई भी इस पीड़ा की असली वजह का पता नहीं लगा सकता है. यहां तक कि दर्द निवारक, संक्रमण रोधी एजेंट भी इस दर्द में आप को बहुत आराम नहीं पहुंचा सकते हैं. ईएनटी विशेषज्ञ द्वारा इस का विश्लेषण किया जा सकता है. वही इस का कारण बता सकता है और आप की मदद कर सकता है.

आमतौर पर कौंटैक्ट पौइंट सिरदर्द का एक इतिहास होता है, जिस में बाद में अन्य कारण भी शामिल हो सकते हैं जैसे आमतौर पर यह दर्द ऊपरी श्वसन संदूषण के कारण होता है. यह दर्द चेहरे के एक तरफ सीमित क्षेत्र में होता है. यह पीड़ा ऊपरी दांतों और मुंह के ऊपरी भाग तक सीमित रहती है. सिरदर्द के निर्धारण के लिए सर्दीखांसी की दवा अच्छा काम करती है, मगर ऐसा संयोग से होता है.

दर्द शुरू करने वाले कारक

शीत लहर, हाइपोग्लेसिमिया, भावनात्मक सदमा, अत्यधिक चाय या कौफी का सेवन, नींद की कमी, असंतुलित खानपान.

कारण

वास्तव में नाक के भीतर एक जगह होती है जहां एक शिरा (तंत्रिका) 2 हिस्सों के बीच पैक होती है. यह बहुत हद तक पैर के कटिस्नायुशूल जैसा होता है, मगर यह नाक और चेहरे के बीच होता है, जो शिरा 2 हिस्सों से घिरी होती है, वह या तो सामने से बंद शिरा होती है जोकि ट्राइजैमिनल शिरा के आंख वाले भाग की शाखा होती है या उन शिराओं में से एक होती है, जो स्पेनोप्लेटाइन केंद्र को अलग करती हैं.

इस कारण से पीड़ा उन हिस्सों में होती है जहां ये शिराएं दबी होती हैं. नाक की साइड प्रोफाइल में दोनों शिराएं पाई जाती हैं. दोनों शिराएं उस झिल्ली के भीतर होती हैं, जो नाक के दाएं और बाएं हिस्से को अलग करती हैं और नाक के आगे के हिस्से में स्थित होती हैं. पैट्रीगोपलेटाइन केंद्र इस से आगे मुंह और ऊपरी दांतों में जाता है.

अगर सभी चीजों पर विचार करें, तो ऊपरी दांतों और मसूड़ों में दर्द या मुंह के ऊपरी हिस्से में परेशानी के साथ कौंटैक्ट पौइंट माइग्रेन का अनुभव करने वाले मरीजों के स्पेनोप्लेटाइन केंद्र में शिकायत होती है, हालांकि सामने की एथमौइस शिरा में ऐसा नहीं होता है.

नाक के भीतर मौजूद गिल्टी पार्टी जोकि लगातार शिरा पर दबाव डालती है, एक झिल्ली होती है, जो नाक के किनारे पर गड्ढा या उभार सा बना देती है. इसे नाक के भीतर गोखरू की तरह समझें. झिल्ली एक विभाजक होती है, जो प्रिविलिज और नाक के बाएं दबाव को विभाजित करती है. उसे सीधा होना चाहिए. फिर भी जब इस में विसंगति आती है, तो यह एक साइड में सिकुड़ सकती है. अत्यधिक गंभीर स्थिति में यह क्षैतिज नैजल विभाजक में जा सकती है, जहां केंद्र और सर्पिल के कारण पिनपौइंट दिमागी दर्द होता है.

झिल्ली के अलावा अन्य संरचनाएं भी हैं, जो कभीकभी शिराओं पर दबाव बनाती हैं, जिस से कौंटैक्ट पौइंट दिमागी दर्द हो सकता है. इस में कोंच बुलोसा केंद्रीय सर्पिल से प्रवाहित वायु या अनियमित स्थिर सर्पिल की समस्या शामिल है. सर्पिल नाक के भीतर की विशिष्ट संरचना होती है, जो नाक में जाने वाली हवा को गरम और नम करती है.

उपचार

कौंटैक्ट पौइंट माइग्रेन शुरू करने वाले ये कारण संरचना से संबंधित हैं, इसलिए ऐसी कोई गोली या नैजल शौवर नही है जो इस समस्या का आसानी से समाधान कर दे, बिलकुल उसी तरह जैसे टूटी हड्डी को सिर्फ दवा खा कर ठीक नहीं किया जा सकता है. नैजल स्प्लैश और सर्दीखांसी की दवा से थोड़ी राहत मिल सकती है (कुछ घंटों से 1-2 दिन तक) क्योंकि ये सौल्यूशन उस सूजन को कम कर देते हैं, जो जगह बनाने और शिरा के दबाव को कम करने से रोकती है जैसे ही म्यूसोकल सूजन फिर से बढ़ती है, दर्द शुरू हो जाता है.

दर्द का जड़ से उपचार करने का मानक तरीका सर्जरी है, जिस में शिरा पर दबाव डालने वाली संरचनाओं को ठीक किया जाता है. इस सर्जरी में झिल्ली को ठीक करना या सैप्टल गोड को अपरूट किया जाता है. असामान्य स्थिति में सर्जरी की आवश्यकता भी पड़ सकती है. इस का उद्देश्य नाक में जितनी संभव हो सके उतनी जगह बनाना है, जिस से शिरा पर दबाव न पड़े और म्यूसोकल सूजन न हो.

असाधारण मामलों में कुछ अन्य चीजें भी हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है जैसे इन्फ्यूजन, हालांकि इस से भी कुछ समय के लिए ही राहत मिलती है (सब कुछ ठीक रहने पर कुछ महीने, आमतौर पर कुछ सप्ताह). इस से होने वाली राहत अस्थाई होने के कारण अब हम इस विकल्प की अनुशंसा नहीं करते हैं.

5 Tips: अपने गुस्से को करें काबू

क्रोध एक सामान्य, स्वस्थ भावना है, और हम सभी को तमाम मौकों पर गुस्सा आता है. लेकिन, जब यह नियंत्रण से बाहर है, यह आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ आपको अपनों के साथ रिश्तों को भी नुकसान पहुंचा सकता है.

गुस्सा दिल के दौरे, स्ट्रोक, ब्लड प्रेशर के खतरे को बढ़ा सकता है. जो भी वयक्ति गुस्से का शिकार होता है वो सामाजिक मेलजोल में भी पिछडा़ रहता है.

जो लोग गुस्सा ज्यादा करते हैं उनके लिए ये कुछ टिप्स हैं जिनसे आप अपने गुस्से को काबू में रख सकते हैं-

1. कुछ भी बोलने से पहले अपने विचारों पर ध्यान दें क्योंकि हो सकता कि आपकी बात से किसी को गुस्सा आ सकता है.

2. अपने गुस्से के संकेतों को पहचानें. जब आप गुस्से में होते हैं तो आफके दिल की धड़कन तेज हो जाती है, और आप अधिक तेजी से सांस लेते हैं, इन चुनौतियों पर काबू पाने के लिए प्रयास करें.

3. यदि बहुत गुस्से में हों तो 10 या उससे आगे की गिनती गिनें इससे ये फायदा होगा कि आपका गुस्सा शांत हो जाएगा या उसकी तीव्रता कम हो जाएगी.

4. जब आप एक सकारात्मक गैर टकराव के रास्ते में अपने गुस्से का इजहार कर रहे होंगे तो आप दूसरों को चोट पहुंचाए बिना स्पष्ट रूप से अपनी निराशा व्यक्त करने में मददगार रहेंगे.

5. धीरे-धीरे सांस लें और आराम करें. तीन से चार बार सांस लें और सांस छोड़ें, जब आप सांस लें फिर आप 3 तक गिनें फिर 3 सेकेंड तक सांस को होल्ड करें फिर जब सांस छोड़ें तो 3 तक गिनें ऐसा करने से आप गुस्से को मात देने में काफी हद तक कामयाब रहेंगे.

6. रोज रात में पर्याप्त नींद लें. क्योंकि नींद पूरी ना होने का स्थिति में आप तमाम समस्यायों से ग्रसित हो सकते हैं. रात की अच्छी नींद आपके मूड को सुधार सकती है और गुस्से को कम कर सकती है.

जानें क्या हैं Exercise के सही नियम

‘मेरी जिम जाने की दिल से चाहत है, लेकिन क्या करूं समय ही नहीं मिलता,’ यह बात कुछ लोगों से अकसर सुनने को मिलती है. फिटनैस के लिए आज का युवावर्ग जितना जागरूक और सजग है, उतना ही दूसरा वर्ग भी हो जाए और काम के झमेले, काम के तनाव वगैरह में से अपनेआप पर ध्यान देने के लिए समय निकाले तो अपनी चाहत पूरी न होने और अपने स्वास्थ्य व फिटनैस को ले कर पछतावा नहीं रहेगा.

शरीर प्रकृति की एक सुंदर, परिपूर्ण रचना है. यह शरीर जितना चलताफिरता है उतना ही मजबूत, हट्टाकट्टा और लचीला बना रहता है. इस शरीर को अच्छे आहार और व्यायाम का जोड़ दे कर प्रकृति का दिया हुआ लचीलापन व हट्टाकट्टापन जिंदगी भर संभाला जाता है. सहज रूप से करीना के जीरो फिगर और सिक्स पैक एब्स का आकर्षण हर एक को होता है, लेकिन उस के लिए कितने लोग मेहनत करने को तैयार होते हैं? सभी लोग इस के पीछे भागें यह जरूरी नहीं है, लेकिन अपने शरीर की सुडौलता बनाए रखने और जिंदगी भर स्वस्थ रहने के लिए अपनी व्यस्त जीवनशैली से थोड़ा समय अपने लिए निकालने में क्या मुश्किल है?

‘अपनीअपनी डफली अपनाअपना राग’ यह कहावत व्यायाम के लिए भी खरी उतरती है. जबकि व्यायाम की रूपरेखा इंसान के स्वास्थ्य, जीवनपद्धति, व्यवसाय व उम्र इन सभी चीजों को ध्यान में रख कर तय करनी पड़ती है. किसी एक इंसान के द्वारा किया जाने वाला व्यायाम दूसरे व्यक्ति को भी सूट करेगा ऐसा नहीं है. अच्छी नहीं लगने वाली तनाव, कष्ट या क्लेशदायक गतिविधि को हम व्यायाम नहीं कह सके हैं. लेकिन योग, रनिंग, वेट ट्रेनिंग, स्विमिंग, कोई खेल खेलना या डांस करना इन में से कोई भी व्यायाम हमें जिंदगी भर स्वस्थ रख सकता है.

व्यायाम के तत्त्व

व्यायाम करते समय 5 चीजें ध्यान में रखनी चाहिए:

1. शरीर का खिंचाव बढ़ाना:

व्यायाम के सभी तत्त्वों में यह सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्व है. व्यायाम करते वक्त हम शरीर को जो खिंचाव देते हैं, वह हमारी आम गतिविधियों के खिंचाव से ज्यादा होना चाहिए. धीरेधीरे उस की गति बढ़ानी चाहिए.

2. मांग के अनुसार निर्माण करना:

यह व्यायाम का बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है. अपना शरीर व उस के अवयव हम जैसी मांग करें वैसे काम करने लगते हैं. खुद को हालात से जोड़ने लगते हैं. उसी तरह व्यायाम के लिए भी बौडी उस के अनुकूल करनी पड़ती है. जैसे, अगर वेट ट्रेनिंग करनी है तो शुरुआत वार्मअप वेट ट्रेनिंग से करनी पड़ती है. मतलब यह कि प्रमुख व्यायाम में जो स्नायु काम करने वाले हैं वही स्नायु पहले व्यायाम के लिए तैयार करने होते हैं.

3. शरीर में कमजोरी न आने देना:

अच्छी तरह व्यायाम करने के बाद शरीर में कमजोरी नहीं आने देना चाहिए वरना शरीर सक्षम नहीं रहता है. ऐसा न हो इस के लिए सही आहार, ज्यादा पानी व नींद की जरूरत होती है.

4. निरंतरता:

व्यायाम में निरंतरता बनाए रखना जरूरी होता है, अन्यथा सब बेकार हो जाता है. व्यायाम नियमित रूप से नहीं करेंगे तो स्नायु व्यायाम के बारे में भूल जाएंगे. इस का सभी तत्त्वों पर नकारात्मक प्रभाव होता है.

5. व्यायाम में वैविध्य रखना:

लगातार एक ही तरह के व्यायाम की शरीर को आदत हो जाती है तो भी उस का सकारात्मक परिणाम दिखना बंद हो जाता है. इसलिए व्यायाम में वैविध्य रख कर उस का सुव्यवस्थित नियोजन कर व्यायाम विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के अनुसार व्यायाम करना चाहिए.

कौन सा व्यायाम करें

हर एक के शरीर का स्ट्रक्चर और जरूरतें अलगअलग होती हैं. उन के अनुसार ही व्यायाम चुनना चाहिए. इस के लिए प्रशिक्षक की मदद लेनी चाहिए. व्यायाम का प्रकार,समय,

परिवर्तन आदि प्रशिक्षक की सलाह ले कर तय करना चहिए.

व्यायाम के लिए उपयुक्त टिप्स

– व्यायाम का प्रकार कोई भी हो व्यायाम के मूलभूत तत्त्वों का पालन करना चाहिए.

– कौन सा व्यायाम करना है यह विशेषज्ञ के मार्गदर्शन के बाद ही तय करना चाहिए.

– व्यायाम तकलीफ देने वाला न हो कर आनंददायी होना चाहिए.

– तालमेल बैठाने वाला व्यायाम करें, लेकिन उसे नियमित रूप से करें.

– हर दिन के व्यायाम का समय निश्चित करें और उसी समय का पालन करें.

– व्यायाम करना अपनी जीवनशैली बनाएं.

– व्यायाम से पहले कुछ हलका खाएं. जैसे, सलाद, फल या ड्राईफ्रूट.

– खाने के 3-4 घंटे बाद व्यायाम करें.

– व्यायाम के परिधान आकर्षक होने के साथ सूती और आरामदायी होने चाहिए.

– मौसम के अनुसार कपड़ों में बदलाव करें. ठंडी हवा में ऊपर से जैकेट पहनें.

– व्यायाम करते वक्त पसीना पोंछने के लिए पास में नैपकिन रखें.

– इस बात को समझें कि व्यायाम की शुरुआत में बदनदर्द होता है, लेकिन बाद में फायदा ही फायदा होता है.

– व्यायाम करते वक्त मन को तरोताजा व सोच सकारात्मक रखें.

चलती रहें दौड़ती रहें

चलना व्यायाम के रूप में इस्तेमाल करना चाहती हैं तो इन टिप्स पर ध्यान दें:

– चलते वक्त श्वसन क्रिया पर नियंत्रण रखें. दीर्घ श्वसन क्रिया से हृदय का भी व्यायाम होता है.

– व्यायाम बिना खर्चे का है, लेकिन शूज पर अच्छे पैसे खर्च करें और सही माप के शूज का चुनाव करें.

– मोजे सूती इस्तेमाल करें.

– आज के संघर्ष भरे जीवन में व्यायाम के लिए कोई भी समय अच्छा ही है, लेकिन चलने के लिए सुबह के समय का चुनाव करें, क्योंकि उस वक्त हवा में धूलमिट्टी, धुएं आदि का प्रभाव कम होता है.

दौड़ना एक परिपूर्ण व्यायाम

वजन कम होना, शारीरिक क्षमता बढ़ना आदि दौड़ने के महत्त्वपूर्ण फायदे हैं. इस के अलावा और भी कई फायदे दौड़ने से शरीर को होते हैं:

निरोगी हृदय: दौड़ने से हृदय के स्नायुयों को अच्छा फायदा होता है. हृदय की गति बढ़ती है. इस से स्नायुओं की ताकत बढ़ती है.

वजन कम होना: वजन कम करने के लिए दौड़ना एक सुंदर व्यायाम है. एक साधारण व्यक्ति दौड़ते वक्त लगभग 1 हजार कैलोरीज जलाता है. इस से वजन कम हो जाता है.

हड्डी की क्षमता बढ़ाना: व्यायाम न करने से हड्डियां कमजोर होती हैं. लेकिन नियमित रूप से दौड़ने से व्यायाम न करने पर भी हड्डियों की क्षमता बढ़ती है.

श्वसन क्रिया में सुधार: दौड़ने से श्वसन क्रिया में सुधार होता है. श्वसन को मदद करने वाले स्नायुओं की ताकत और श्वसन क्षमता बढ़ती है.

वसा कम होना: जल्दी दौड़ने के लिए ऊर्जा लगती है, जिस के लिए शरीर में जमे हुए फैट्स का ज्वलन होता है. इस में वेट कम हो कर शरीर सुडौल बनता है.

मानसिक तनाव से मुक्ति: नियमित दौड़ने से तनाव से दूर रहने में भी मदद मिलती है. इस से सकारात्मक मानसिकता तैयार होती है. दिन भर फ्रैश रहने के लिए मदद मिलती है और थकावट नहीं होती.

अच्छी नींद आना: दौड़ने पर पूरे शरीर को व्यायाम मिलने से अच्छी नींद आती है.

प्रसन्न रहना: दौड़ने से शरीर में बदलाव होते हैं. इस से इंसान प्रसन्न रहता है.

बीमारी से दूर रहना: नियमित रूप से दौड़ने से स्ट्रोक, रक्तचाप, डायबिटीज जैसी बीमारियों से दूर रहना संभव होता है.

– अली शेख, फिटनैस विशेषज्ञ

एक्सपर्ट एडवाइस से दूर करें पुरुष बांझपन से जुड़ा कलंक

आइए उन लोगों की मदद करें जो “पिता बनना चाह रहे हैं’’ और बांझपन की समस्या से जूझ रहे हैं. बांझपन की समस्या वर्षों से एक चिंता का विषय रही है. यह दुनिया भर में 8-12% जोड़ों को प्रभावित करती है. सभी बांझपन के मामलों में, लगभग 40-50% मामले पुरुष बांझपन के कारण होते हैं. संतान सुख के लिए मां और पिता दोनों की प्रजनन क्षमता (fertility)अच्छी होनी चाहिए अगर दोनों में से किसी एक की फर्टीलिटी कमजोर होती है, तो बच्चे को जन्म देने में परेशानी आ सकती है. इसलिए  मां के साथ-साथ पिता को भी अपनी फर्टिलिटी पर ध्यान दे कर तुरंत इलाज करवाने की आवश्यकता होती है ताकि समय रहते सही इलाज किया जा सके.

फर्टिलिटी कंसल्टेंट, दिल्ली एनसीआर, नोवा साउथएंड आईवीएफ एंड फर्टिलिटी  की डॉ अस्वती नैर, बता रही हैं पुरुष बांझपन से जुड़े कलंक को दूर करने के बेहतर उपाय.

पुरूष बांझपन

दशकों पहले, बांझपन (इनफर्टिलिटी) को हमेशा एक ऐसे रूप में देखा जाता था जो कभी भी पुरुषों से संबंधित नहीं थी. हालांकि, समय बीतने के साथ इंसानी शिक्षा ने अपने सबसे तेज समय में इस सच्चाई को स्वीकार कर लिया कि बांझपन पुरुषों से भी संबंधित है. हमारी सांस्कृतिक समझ में हमेशा से यह धारणा रही है कि पुरुष की वीरता हमेशा उसकी उर्वरता से मापी जाती है. एक बार यह साबित हो जाए कि वह बांझपन से पीड़ित है, तो उसकी वीरता नगण्य हो जाती है. हालांकि, बहुत से पुरुष अपनी स्थिति के बारे में बात करने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं और अपनी समस्याओं के बारे में बात करने का साहस खो देते हैं, इस डर से कि समाज उन्हें “अपमान”, “कलंकित”, “कमजोर”, “अयोग्य” के प्रतीक के रूप में चिन्हित करेगा. यह अभी भी पुरुषों के लिए सार्वजनिक रूप से बात करने के लिए एक वर्जना बना हुआ है.

पुरुष आम तौर पर इस मामले में पीछे हट जाते हैं और इसे लेकर किए जाने वाले टेस्ट या जांच को लेकर हिचकिचाते हैं क्योंकि बांझपन विशेष रूप से पुरुषों का बांझपन अपने साथ कई सारे लांछनों को लेकर आता है. इसके अलावा इन मुद्दों को अक्सर यौन मुद्दों से जोड़कर भ्रम की स्थिति फैलाई जाती है. यह निदान और बांझपन का इलाज चाहने वाले पुरुषों को हतोत्साहित करता है. इसलिए पुरुष बांझपन की बात केवल तभी सामने आती है, जब दंपत्ति बच्चा पैदा करने की कोशिश कर रहे होते हैं.

बांझपन का कारण-

बांझपन का मुख्य कारण खराब शुक्राणु गतिशीलता या शुक्राणुओं की कम संख्या है. एक शुक्राणु की कार्यशीलता कई समस्याओँ से प्रभावित होती है, जिसमें हार्मोन और पिट्यूटरी समस्याओं के साथ-साथ पर्यावरणीय स्तर पर कई अन्य कारक शामिल हैं, जिसमें हमारी रोजाना की पेशेवर जिंदगी और निजी जिंदगी है और हमारे आस-पास की परिस्थितियां हैं.

अनुवांशिक कारण

इसके अलावा, अनुवांशिक कारणों से भी बांझपन की समस्या हो सकती है. उम्र, मोटापा और नशीली दवाओं और शराब का सेवन, लैपटॉप और मोबाइल फोन से विकिरण और धूम्रपान कुछ ऐसे प्रमुख कारक हैं जो बांझपन का कारण बनते हैं.

पुरुष बांझपन का इलाज-

पुरुष बांझपन के निदान में प्रजनन इतिहास और शुक्राणु विश्लेषण का प्रारंभिक मूल्यांकन महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं हैं. पुरुषों के लिए यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि वे आगे आएं और अपनी प्रजनन क्षमता का परीक्षण करवाएं और डॉक्टरों से इसके बारे में बात करें. इनमें से अधिकांश समस्याओं का इलाज बिना सर्जिकल उपचार के किया जा सकता है. जबकि कुछ को सर्जिकल उपचार की आवश्यकता होती है. पुरुषों में बांझपन के इलाज की कुछ तकनीकों में इंट्रायूटेराइन इनसेमिनेशन, आईवीएफ और इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन शामिल हैं.

डाइट में शामिल करें एंटीऑक्सीडेंट और कुशल विटामिन सप्लीमेंट-

एक सक्रिय, लाभकारी जीवन शैली को बनाए रखने के लिए संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिजों से युक्त भोजन का उचित सेवन सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. भोजन में पर्याप्त एंटीऑक्सीडेंट और कुशल विटामिन सप्लीमेंट शामिल करना सुनिश्चित करने से प्रजनन क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है.

पुरुष बांझपन से जुड़े ‘लांछनों’ को कम करने के उपाय-

इस दुनिया में हर समस्या का एक समाधान होता है और उन सभी समस्याओं का समाधान केवल उसके पास आकर और उसके बारे में बात करने से ही होता है. सबसे पहले पुरुष बांझपन के बारे में चर्चा शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है. सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, सरकार और आम जनता को शामिल करते हुए इस दिशा में एक सहयोगात्मक प्रयास की आवश्यकता है. जानकारी साझा करने की प्रक्रिया इस मामले में बेहद मददगार हो सकती हैं. कई महिला सार्वजनिक हस्तियां, विशेष रूप से मशहूर हस्तियां, सामने आ रही हैं और खुले तौर पर अपने प्रजनन मुद्दों पर चर्चा कर रही हैं, जिससे कई संघर्षरत लोगों को प्रेरणा मिली है. हालांकि, पुरुष बांझपन अभी भी एक वर्जित विषय है, जिसे बदलने की जरूरत है। यह तभी हो सकता है जब मुख्य धारा की मीडिया में प्रजनन या फर्टिलिटी चर्चा का विषय बने. लांछनों को उखाड़ फेंकना चाहिए और इसके बारे में बात और चर्चा करते हुए सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषयों में से एक को संबोधित करना चाहिए.

संस्कृति के कारण पैदा हुए इस संवेदनशील मुद्दे पर तथाकथित “शर्म” एक बेहद मजबूत बाधा है, जिसे दूर करने की आवश्यकता है। लेकिन सामूहिक प्रयासों और सकारात्मक रणनीति के साथ, हम एक समाज के रूप में इस विचार को  बदलने की शक्ति रखते है. जन्म देना और पिता बनना हर आदमी के जीवन की एक प्रमुख उपलब्धि होती है.

उज्ज्वल, बेहतर भविष्य के लिए मार्ग प्रशस्त करना-

जब पुरुष बांझपन के मुद्दों के लिए चिकित्सकीय सलाह लेने का साहस जुटाते हैं, तो यह स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की जिम्मेदारी है कि वे सरल और आसानी से उपलब्ध देखभाल प्रदान करें. रोगियों के लिए एक स्वागत योग्य वातावरण तैयार करना और अधिक समझदार व पारदर्शी होना इस मामले में महत्वपूर्ण  हैं.

पुरुष बांझपन के कारणों और परिणामों के बारे में समझ की कमी के कारण, स्वास्थ्य पेशेवरों को समस्या की व्याख्या करनी चाहिए, संभावित उपचार विकल्प निर्धारित करना चाहिए, मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करनी चाहिए, और जीवनशैली में बदलाव, आहार और व्यायाम के माध्यम से गर्भधारण की संभावनाओं को बेहतर बनाने के तरीकों को साझा करना चाहिए. यह अन्य पुरुषों को मदद मांगने के लिए प्रोत्साहित करेगा और उन्हें इस मामले में आगे बढ़ने से भयभीत होने से रोकेगा, जिससे बेहतर और उज्जवल भविष्य का मार्ग प्रशस्त होगा.

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Monsoon Special: मौनसून में जरूरी है इंटिमेट हाइजीन

महिलाएं आज सभी क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रही हैं. लेकिन वे शरीर से संबंधित किसी भी बात को खुल कर नहीं कहतीं, पति से भी नहीं. अंतरंग भाग की कुछ बीमारियों को वह किसी से नहीं कह पाती, इस का उदाहरण एक लेडी डाक्टर के पास मिला. 35 वर्षीय महिला डाक्टर से भी अपनी बात कहने से शर्म महसूस कर रही थी और डाक्टर पूरी तरह से उसे डांट रही थी जबकि उसे इंटरनली कुछ बड़ा इन्फैक्शन हो चुका था, जिस का इलाज जल्दी करना था.

इस बारे में नानावती मैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल की प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञा, डा. गायत्री देशपांडे कहती हैं कि आज भी छोटे शहरों की महिलाएं, किसी पुरुष स्त्रीरोग विशेषज्ञ से जांच नहीं करवातीं, उन के पास डिलिवरी के लिए नहीं जातीं.

असल में अंतरंग स्वच्छता और देखभाल का उन की शारीरिक व मानसिक हैल्थ पर काफी असर होता है, लेकिन जागरूकता के साथसाथ समय पर चिकित्सीय सहायता से वल्वोवैजाइनल इन्फैक्शन के मामलों में बढ़ोतरी हुई है खासकर गरमियों के मौसम में इंटिमेट हाइजीन को बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि पसीने और गरमी से इंटिमेट पार्ट में फंगल इन्फैक्शन बहुत जल्दी होता है, इसलिए महिलाओं को इस बात से अवगत होना चाहिए कि अंतरंग स्वच्छता केवल साफसफाई नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर उन की भलाई से जुड़ा विषय है.

धार्मिक और सामाजिक बाधाओं से दूर रहें

महिलाओं को उन सभी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक बाधाओं को खुद से दूर रखना बेहद जरूरी है क्योंकि उन्हें इस विषय पर खुल कर बातचीत करने और अंतरंग देखभाल के सब से बेहतर साधनों का उपयोग करने से रोका जाता है और कुछ घरेलू नुस्खों का प्रयोग किया जाता है, जिस से बीमारी अधिक बढ़ती है और कई बार यह इन्फैक्शन इतना अधिक फैल जाता है कि उसे कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. यहां तक कि उस महिला की मृत्यु भी हो सकती है.

इंटिमेट हाइजीन है क्या

डा. गायत्री कहती हैं कि गर्भाशयग्रीवा की बाहरी सतह से ले कर योनि के छिद्र तक की परत को वैजाइनल म्यूकोस (योनि श्लेष्मा) कहते हैं, जो कुदरती तौर पर निकलने वाले तरल पदार्थों की मदद से खुद को साफ करने में सक्षम होता है, खुद को साफ करने की क्षमता के बावजूद, योनि में कई स्वस्थ बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो संक्रमण की रोकथाम के साथसाथ माइक्रोबियल संतुलन भी बनाए रखते हैं. कई तरह के बाहरी या आंतरिक असंतुलन अथवा आदतों की वजह से स्वस्थ माइक्रोबियल की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है, जिस से योनि या मूत्र मार्ग में संक्रमण होने का डर रहता है.

इस के अलावा योनि को प्रतिदिन धोने, शौच के बाद टिशू पेपर या वेट वाइप्स का उपयोग करने, स्नान करने और अच्छी तरह सुखाने, अंडरगारमैंट्स की सफाई, मासिकधर्म के दौरान स्वच्छता बरकरार रखने और सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यौन संबंध बनाने से पहले और बाद में स्वच्छता का ध्यान रखने जैसी अच्छी आदतों से योनि और उस से संबंधित सभी अंतरंग अंगों की हिफाजत करने में काफी मदद मिलती है. इन बातों का ध्यान रखने से इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है:

रखें साफसफाई

हर बार पेशाब करने के बाद योनि को सामने की तरफ से ले कर पीछे तक सादे पानी से धोना जरूरी है. महिलाओं को समझना चाहिए कि योनि क्षेत्र भी उन की सामान्य त्वचा की तरह ही है, इसलिए नहाते समय इसे भी शरीर के दूसरे अंगों की तरह सामान्य साबुन या बौडी वाश से आगे से पीछे की ओर धोना चाहिए. पीछे के मार्ग (गुदा) पर बैक्टीरिया या जीवाणु मौजूद हो सकते हैं, जिन के संपर्क में आने से योनि में संक्रमण हो सकता है.

सही फैब्रिक का करें चुनाव

महिलाओं के लिए सूती पैंटी पहनना ही सब से बेहतर है, जो नमी को सोखने और इंटिमेट पार्ट को सूखा रखने में सहायक होती है. इसी तरह महिलाओं को बेहद तंग, गहरे रंग वाले या नम कपड़ों से परहेज करना चाहिए. अपने कपड़ों को पहनने से पहले उन्हें साफसुथरी जगह पर धूप में सुखाना जरूरी है ताकि अंतरंग भागों के आसपास नमी की मौजूदगी भी संक्रमण का एक प्रमुख कारण हो सकती है

सार्वजनिक शौचालयों का उपयोग

सार्वजनिक शौचालयों में ईकोलाई, स्टै्रफिलोकोकी, स्ट्रेप्टोकोकी जैसे सक्रिय जीवाणु मौजूद होते हैं, जो महिलाओं के मूत्रमार्ग में संक्रमण (यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन) का सब से आम कारण होते हैं. इन शौचालयों के साफसुथरे दिखने के बावजूद टौयलेट सीट, फ्लश, वाटर नोब्स या दरवाजे के हैंडल जैसी जगहों पर कीटाणु और बैक्टीरिया मौजूद हो सकते हैं.

इन से बचने के लिए आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए. मसलन, टौयलेट सीट पर टिशू पेपर का इस्तेमाल करना, कपड़े या शरीर को छूने से पहले हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइजर या साबुन का उपयोग करना चाहिए. बाहर के वाशरूम और टौयलेट का उपयोग करने के बाद लैक्टिक ऐसिड आधारित वैजाइनल वाश का उपयोग करना योनि की देखभाल के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है.

यौन संबंध से पहले  खुद को रखें स्वच्छ

यौन संबंध के दौरान साथी द्वारा साफसफाई नहीं रखने की वजह से महिलाओं के मूत्रमार्ग में संक्रमण या योनि में संक्रमण भी हो सकता है. यौन संबंध बनाने के बाद हमेशा मूत्र त्याग की कोशिश करनी चाहिए और योनि को आगे से पीछे की ओर साफ करना चाहिए. कंडोम और गर्भनिरोधक तरीकों का उपयोग करना यौन संबंधों से होने वाले संक्रमण की रोकथाम में बेहद मुख्य भूमिका निभा सकता है. 1 से अधिक साथी के साथ यौन संबंधों से परहेज करें और अपने साथी से भी प्राइवेट पार्ट की स्वच्छता बनाए रखने का अनुरोध करें.

रहें सावधान फीकी रंगत वाले स्राव से

माहवारी के दिनों में फीकी रंगत वाला मामूली स्राव होना बेहद सामान्य बात है. हारमोन में बदलाव की वजह से ऐसे स्राव में योनि तथा गर्भाशयग्रीवा की त्वचा की कोशिकाएं मौजूद होती हैं, लेकिन इस तरह के स्राव के बरकरार रहने, गंध और समयसारिणी को ध्यान में रखना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह माहवारी के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों को दर्शाता है. प्रीओव्यूलेटरी डिस्चार्ज (अंडोत्सर्ग से पहले का स्राव) अपेक्षाकृत गाढ़ा, कम और गोलाकार होता है, जबकि पोस्ट-ओव्यूलेटरी वैजाइनल डिस्चार्ज (माहवारी से 1 हफ्ता पहले) अधिक मात्रा में, बहुत पतला और चिपचिपा होता है. महिलाओं को यह समझना चाहिए कि इस तरह का स्राव बेहद सामान्य है और स्वस्थ अंडोत्सर्ग की प्रक्रिया का संकेत देता है.

अगर यह स्राव बेहद गाढ़ा है और इस के साथ लालिमा, खुजली या जलन की समस्या भी है और आप के माहवारी के दिनों के अलावा भी ऐसा होता है, तो इस समस्या पर तुरंत ध्यान देना और स्त्रीरोग विशेषज्ञा से परामर्श लेना बेहद जरूरी है.

प्यूबिक हेयर की वैक्सिंग या ट्रिमिंग

प्राइवेट पार्ट के बाल भी योनि के छिद्र की हिफाजत करते है, जो कई सूक्ष्म जीवों के लिए किसी रुकावट की तरह काम करते हैं, इसलिए वैक्सिंग कराने से न केवल योनि के ऐसे सूक्ष्म जीवों के संपर्क में आने की संभावना बढ़ जाती है बल्कि वैक्सिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अनुचित साधनों से योनि के आसपास सूजन या संक्रमण भी हो सकता है. अत: रैशेज और इन्फैक्शन से बचने के लिए प्यूबिक एरिया को साफ रखना जरूरी है.

इलाज से बेहतर रोकथाम

महिलाओं के लिए समस्याग्रस्त होने के बाद इलाज कराने के बजाय इस की रोकथाम पर ध्यान देना बेहतर है. साल में एक बार स्त्रीरोग विशेषज्ञा से परामर्श लेना, सर्विकल कैंसर से बचने के लिए समयसमय पर पीएपी स्मीयर टैस्ट आदि स्त्रीरोग विशेषज्ञा की सलाह पर कराने के साथसाथ उन के द्वारा दी गई दवाइयों का प्रयोग करें और अंतरंग स्वच्छता के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें.

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आखिर क्या है अंतर हार्ट अटैक और कार्डिएक अरेस्ट में, जानें यहां

53 साल के मशहूर सिंगर केके यानि कृष्णकुमार कुन्नथअब हमारे बीच नहीं है. कोलकाता कॉन्सर्ट के दौरान वे थोड़ी असहज महसूस कर रहे थे. इसके बावजूद उन्होंने करीब घंटे भर के अपने शो को पूरा किया और कॉन्सर्ट से होटल जाते हुए उनकी तबियत बिगड़ी और वे गिर पड़े. अस्पताल जाने के बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया. पुलिस को इंतजाम में किसी गड़बड़ी का शक था, तो किसी को ये हार्ट अटैक की संभावना बताई गयी, जबकि अंतिम पोस्टमार्टम और ऑटोप्सी के अनुसार गायक की मौत के कारण के रूप में ‘मायोकार्डियल इंफाक्र्शन’बताया गया.

ऐसी ही एक घटना मुंबई की पॉश एरिया में 38 साल के एक व्यक्ति की हुई. ऑफिस से घर लौटने पर उसकी पत्नी और बेटी ने उसकी घबराहट को देखा, उन्हें हवा के नीचे बैठाकर पानी दिया, व्यक्ति पानी पीने से पहले उसका गिलास हाथ से गिर गया और वह बेहोश हो गया. तुरंत डॉक्टर को भी बुलाया गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. इस व्यक्ति के पीछे घरेलू हाउसवाइफ और 2 छोटी-छोटी बेटियां बिना किसी सहारे के रह गई.

मायोकार्डियल इंफार्क्शन (एमआई) को साधारणत: हार्ट अटैक कहा जाता है, जब हार्ट में ब्लड फ्लो कम होने लगता है या हार्ट की कोरोनरी आर्टरी बंद हो जाती है, तब ऐसी अवस्था होती है. इस रोग में हृदय की धमनियों के भीतर एक प्लेक सा पदार्थ जमने लगता है, जिसकी वजह से ये धमनियां सिकुड़ने लगती है और हृदय तक खून का पहुंचना बंद हो जाता है.

क्या है अंतर

बहुत से लोग अक्सर हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट को समानार्थी समझ लेते है, लेकिन इन दोनों स्थितियों में काफी अंतर होता है. कुछ लोग कार्डियक अरेस्ट का मतलब दिल का दौरा समझ लेते है, परन्तु दिल का दौरा पड़ने का मतलब होता है हार्ट अटैक आना. दिल का दौरा तब होता है, जब हृदय में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता हैऔर कार्डियक अरेस्ट तब होता है जब मनुष्य का हृदय अचानक कार्य करना बन्द कर देता है, जिससे दिल का धड़कना भीअचानक बंद हो जाता है.कार्डियक अरेस्ट, हार्ट अटैक की तुलना में अधिक घातक होता है, क्योंकि कार्डिएक अरेस्ट में व्यक्ति को बचाने का समय बहुत कम मिल पाता है.

बने जागरूक

इस बारें मेंमुंबई की कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल की कार्डियोलोजिस्ट डॉ. प्रवीण कहाले कहते है कि दिल का दौरा (हार्ट अटैक) तब होता है, जब हृदय की धमनियों, यानि रक्त वाहिकाएं, जो हृदय की मांसपेशियों को पंप करने के लिए ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति करती है उनमे से एक ब्लॉक हो जाती है. ह्रदय मांसपेशी को उसका कार्य सुचारु रूप से कर पाने के लिए सबसे ज़रूरी होता है रक्त, लेकिन धमनी के ब्लॉक हो जाने पर वह नहीं मिल पाता हैऔर अगर इसका इलाज समय पर नहीं किया गया, तो पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिल पाने की वजह से ह्रदय मांसपेशी का कार्य बंद पड़ने लगता है. जब किसी व्यक्ति का हृदय रक्त पंप करना बंद कर देता है तब ह्रदय की गति रुक जाती है, जिसे कार्डियक अरेस्ट कहते है.यह व्यक्ति सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाता है. वयस्कों में कार्डियक अरेस्ट बहुत बार दिल के दौरे की वजह से होता है.जब दिल का दौरा पड़ता है, तब ह्रदय की धड़कन में खतरनाक अनियमितता आ जाती है, जिससे कार्डियक अरेस्ट हो सकता है. कमज़ोर ह्रदय वाले लोगों को यह तकलीफ होती है, यानि उनके ह्रदय की पंपिंग क्षमता (इजेक्शन फ्रैक्शन) बड़े पैमाने पर कम हो जाती है (35% से कम) इसे अचानक होने वाली ‘कार्डियक डेथ’ भी कहा जाता है.

दिल के दौरे के लक्षण

चेस्ट में बेचैनी

दिल के दौरों की ज़्यादातर केसेस मेंचेस्ट के बीचोबीच बेचैनी महसूस होती है, जो कई मिनटों तक रहती है, फिर दूर होती है और फिर से होने लगती है. बेचैन कर देने वाला दबाव, छाती को निचोड़ा जा रहा हो, ऐसा दर्द, छाती भरी भरी सी महसूस होना या छाती में दर्द होना, इनमें से कुछ भी हो सकता है.

शरीर के दूसरे हिस्सों में बेचैनी

दोनों या किसी एक हाथ में, पीठ, गर्दन, जबड़े या पेट में दर्द या बेचैनी होना.

सांस लेने में तकलीफ

छाती में बेचैनी के साथ-साथ सांस लेने में तकलीफ होना दिल के दौरे का एक लक्षण हो सकता है.कई दूसरे लक्षण जिसे अधिकतर व्यक्ति समझ नहीं पाते, जिसमें बहुत सारा पसीना निकलना, मतली या चक्कर आना.

पुरुषों और महिलाओं में लक्षण कई बार अलगअलग हो सकते है, इसलिए इसे भी जान लेना जरुरी है.
पुरुषों की तरह महिलाओं में भी दिल के दौरे का सबसे प्रमुख लक्षण, छाती में दर्द या बेचैनी होना, लेकिन इसके दूसरे लक्षण पुरुषों से अधिक महिलाओं में दिखाई पड़ते है,जिसमे खास कर सांस लेने में तकलीफ, मतली, उल्टी होना, पीठ और जबड़े में दर्द आदि.

कार्डियक अरेस्टे (cardiac arrest) में अचानक दिल का काम करना बंद हो जाता है. कार्डियक अरेस्टेकिसी लंबी या पुरानी बीमारी का हिस्साक नहीं है, इसलिए कार्डियक अरेस्टा को दिल से जुड़ी बीमारियों में सबसे खतरनाक माना जाता है. लोग अकसर इसे दिल का दौरा पड़ना (heart attack) समझते है. इस बारें में डॉ.प्रवीण कहते है कि इसके लक्षण को जानना बहुत जरुरी है.

कार्डियक अरेस्ट के लक्षण

• अचानक होश खो देना और उसे हिलाने पर भी वह कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दे पाता है,

• सामान्य रूप से सांस न ले पाना,

• अगर कार्डिएक अरेस्ट के व्यक्ति का सिर उठाकर कम से कम पांच सेकंड्स तक देखते है, तो पता चलेगा कि वह सामान्य तरीके से सांस नहीं ले पा रहे है. अगर किसी व्यक्ति को कार्डियक अरेस्ट पड़ रहा है, तो तुरंत कुछ उपाय कर सकते है, जो निम्न है.

क्या करें अचानक उपाय

• कार्डियक अरेस्ट होते ही उस व्यक्ति को सुरक्षित स्थिति में रखें, उसकी प्रतिक्रिया की जांच करे,

• अगर उसकी प्रतिक्रियां महसूस नहीं कर पा रहे है, तो तुरंत मदद के लिए चिल्लाएं, अपने आस-पास के किसी व्यक्ति को अपने इमरजेंसी नंबर पर कॉल करने के लिए कहे,इसके अलावा उस व्यक्ति को एईडी (ऑटोमेटेड एक्सटर्नल डिफाइब्रिलेटर) लेकर आने को कहे, उन्हें जल्दी करने के लिए कहे, क्योंकि इसमें समय बहुत महत्वपूर्ण होता है. यदि आप किसी ऐसे वयस्क के साथ अकेले है,जिन्हें कार्डियक अरेस्ट के लक्षण दिखाई दे रहे है,तो इमरजेंसी नंबर पर कॉल करन सबसे जरुरी होता है.

• उस व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, सिर्फ हांफ रहा है , सांस नहीं ले पा रहा है, तो कम्प्रेशन के साथ सीपीआर देना शुरू करें.

• हाई क्वालिटी सीपीआर देना शुरू करे, अपने हाथों को मिलाकर छाती को बीचोबीच रखें और छाती कम से कम दो इंच भीतर जाए, इस प्रकार दबाएं. एक मिनट में 100 से 120 बार दबाया जाना चाहिए. हर बार दबाए जाने के बाद छाती को उसकी सामान्य स्थिति में आने दें.

• एईडी का इस्तेमाल करें, जैसे ही एईडी आता है, उसे शुरू करें और संकेतों का पालन करें.

• सीपीआर देना जारी रखें. जब तक वह व्यक्ति सांस लेना या हिलना शुरू न कर दे, या ईएमएस टीम सदस्य जैसा अधिक उन्नत प्रशिक्षण लिया हुआ कोई व्यक्ति जब तक वहां न पहुंचे, तब तक सीपीआर को जारी रखना पड़ता है.

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