आज की सास बहू, मिले सुर मेरा तुम्हारा

संडे था. फुटबौल का मैच चल रहा था. विपिन टीवी पर नजरें जमाए बैठा था. रिया ने कई बार कोशिश की कि विपिन टीवी छोड़ कर उस के साथ मूवी देखने चले पर वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा था.

बीचबीच में इतना कह देता था, ‘‘मैच खत्म होने दो, फिर बात करता हूं.’’ वहीं पास बैठी पत्रिका पढ़ती मालती बेटेबहू के बीच चलती बातें सुन चुपचाप मुसकरा रही थीं. सुधीश यानी उन के पति भी मैच देखने में व्यस्त थे. मालती को अपना अनुभव याद आ गया. सुधीश भी टीवी पर मैच देखना ही पसंद करते थे. मालती को भी मूवीज देखने का बहुत शौक था. बड़ी जिद कर के वे सुधीश को ले जाती थीं पर अच्छी से अच्छी फिल्म को भी देख कर वे जिस तरह की प्रतिक्रिया देते थे, उसे देख कर मालती हमेशा पछताती थीं कि क्यों ले आई इन्हें.

मालती ने चुपचाप रिया को अंदर चलने का इशारा किया तो रिया चौंकी. फिर मालती के पीछेपीछे वह उन के बैडरूम में जा पहुंची. पूछा, ‘‘मम्मीजी, क्या हुआ?’’

‘‘कौन सी मूवी देखनी है तुम्हें?’’

‘‘सुलतान.’’

मालती हंस पड़ीं, ‘‘टिकट मिल जाएंगे?’’

‘‘देखना पड़ेगा जा कर, पर विपिन पहले हिलें तो.’’

‘‘उसे छोड़ो, वह नहीं हिलेगा. तुम तैयार हो जाओ.’’

‘‘मैं अकेली?’’

‘‘नहीं भई, मुझे भी तो देखनी है.’’

‘‘क्या?’’ हैरान हुई रिया.

‘‘और क्या भई, मुझे भी बहुत शौक है. इन बापबेटे को मैच छुड़वा कर जबरदस्ती मूवी ले गए तो वहां भी ये दोनों ऐंजौय थोड़े ही करेंगे. हमारा भी उत्साह कम कर देंगे. चलो, निकलती हैं, मूवी देखने और फिर डिनर कर के ही लौटेंगी.’’

रिया मालती के गले लग गई. खुश होते हुए बोली, ‘‘थैंक्यू मम्मीजी, कितनी बोर हो रही थी मैं. संडे को पूरा दिन विपिन टीवी से चिपके रहते हैं.’’

ये भी पढ़ें- कहीं आप बच्चों को बहुत ज्यादा डांटते तो नहीं

दोनों सासबहू तैयार हो गईं.

सुधीश और विपिन ने पूछा, ‘‘कहां जा रही हैं?’’

‘‘मूवी देखने.’’

दोनों को करंट सा लगा. सुधीश ने कहा, ‘‘अकेले?’’

मालती हंसीं, ‘‘अकेले कहां, बहू साथ है. चलो, बाय. खाना रखा है. तुम दोनों का. हम डिनर बाहर करेंगी,’’ कह कर मालती रिया के साथ जल्दी से निकल गईं.

सासबहू ने 2 सहेलियों की तरह ‘सुलतान’ फिल्म का आनंद उठाया. कभी सलमान की बौडी की बात करतीं, तो कभी किसी सीन पर खुल कर ठहाके लगातीं. खूब अच्छे मूड में मूवी देख कर दोनों ने बढि़या डिनर किया. रात 10 बजे दोनों खिलीखिली घर पहुंचीं. बापबेटे का मैच खत्म हो चुका था. दोनों बोर हो रहे थे.

इस के बाद तो मालती और रिया के बीच सासबहू का रिश्ता 2 सहेलियों में बदल गया. जब भी सुधीश और विपिन कोई प्रोग्राम बनाने में जरा भी आनाकानी करते, दोनों दोबारा पूछती भी नहीं. शौपिंग पर भी साथ जाने लगीं, क्योंकि दोनों पुरुष लेडीज शौपिंग में बोर होते थे. दोनों को अब किसी फ्रैंड की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. रिया भी औफिस जाती थी. छुट्टी वाले दिन वह बाहर जाना चाहती, तो विपिन और सुधीश मैच देखना चाहते, दोनों फुटबौल के दीवाने थे. रिपीट मैच भी शौक से देखते थे. उन्हें मूवीज, शौपिंग का शौक था ही नहीं. रिया और विपिन में अब इस बात पर कोई मूड भी नहीं खराब करता था. चारों अपनाअपना शौक पूरा कर रहे थे.

एकदूसरे के साथ समय बिताने से एकदूसरे के स्वभाव, पसंदनापसंद जानने के बाद दोनों एकदूसरे की हर बात का ध्यान रखती थीं.

अब तो हालत यह हो गई थी कि विपिन कभी फ्री होता तो रिया कह देती, ‘‘तुम रहने दो, मम्मीजी के साथ चली जाऊंगी. तुम तो शौप के बाहर फोन में बिजी हो जाते हो. बोरियत होती है.’’

विपिन हैरान रह जाता था. सुधीश के साथ भी यही होने लगा था. रिया फ्री होती तो मालती रिया की ही कंपनी पसंद करतीं. सासबहू की बौंडिंग देख कर पितापुत्र हैरान रह जाते थे.

कई बार कह भी देते थे, ‘‘तुम दोनों हमें भूल ही गईं.’’

घर का माहौल हलकाफुलका, खुशनुमा रहता.

हर घर में सासबहू 2 सहेलियां बन जाएं तो जीने का मजा ही कुछ और होता है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए एकदूसरे के सुखदुख, पसंदनापसंद को दिल से महसूस करना होगा. जरूरी नहीं है कि पतिपत्नी के शौक एकजैसे हों. दोनों का अपना मन मारना ठीक नहीं होगा. अगर पितापुत्र के शौक सासबहू से नहीं मिलते और सासबहू की पसंदनापसंद आपस में मिलती है तो क्यों न अपने मन के अनुसार जीने के लिए एकदूसरे का साथ दे कर घर का माहौल तनावमुक्त रखा जाए.

एक और उदाहरण देखते हैं. एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मी व पलीबढ़ी सुमन जब एक मुसलिम लड़के समीर से अंतर्जातीय विवाह कर ससुराल पहुंची, तो सास आबिदा बेगम ने यह पता चलने पर कि सुमन शाकाहारी है, केवल शाकाहारी खाना बनातीं.

सुमन समीर के साथ लखनऊ में रहती थी. वह जितने भी दिन ससुराल कानपुर रहती, उतने दिन सिर्फ शाकाहारी खाना बनता. इस बात ने सुमन के मन में सासूमां के लिए प्यार और आदर का ऐसा बीज बोया कि समय के साथ सुमन के दिल में उस की इतनी गहरी जड़ें मजबूत हुईं कि दुनिया 2 अलगअलग माहौल में पलीबढ़ी सासबहू के बीच बैठे तालमेल को देख वाहवाह कर उठी.

आबिदा बेगम जो बहुत शांत और गंभीर सी दिखती थीं जब खुशमिजाज सुमन के साथ हंसतीबोलती, खिलखिलाती बाहर जातीं, तो उन के पति और बेटा हैरान हो जाते.

आज की अधिकतर सासें पुरानी फिल्मों की ललिता पवार जैसी सासें नहीं हैं. वे भी बहू के साथ हंसीखुशी से जीना चाहती हैं, जीवन में छूटे शौक को, अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहती हैं, वे बहू का प्यार भरा साथ पा कर जी उठती हैं.

आज की अधिकांश बहुएं भी पढ़ीलिखी, समझदार हैं. वे अपने कर्तव्यों, अधिकारों के प्रति सजग हैं. वे कामकाजी हैं. छुट्टी वाले दिन रिलैक्स होना चाहती हैं. सास का प्यार भरा साथ मिल जाए तो वे भी उत्साह से भर उठती हैं.

ये भी पढ़ें- ऑफिस की दोस्ती जब मानसिक रूप से परेशान करने लगे तो क्या करें?

आज की सासबहुएं दोनों ही जानती हैं कि हंसीखुशी एकसाथ मिल कर ही जीवन का आनंद लिया जा सकता है, लड़झगड़ कर अपना और दूसरों का जीना मुश्किल करने से कोई फायदा नहीं है. इस से दोनों पक्षों के लिए मुश्किलें ही बढ़ेंगी.

10 चीजें सासबहू साथसाथ कर सकती हैं:

1.     ब्यूटीपार्लर में जाना.

2.     बचाए पैसे को ढंग से खर्चना.

3.     घर की डैकोरेशन में साथ देना.

4.     अलग घरों में रह रही हैं तो एकदूसरे के साथ रात बिताना, बिना पतिबच्चों के.

5.     एक के मेहमान आएं तो दूसरी उन का आवभगत करना.

6.     एक ही किट्टी पार्टी में जाना.

7.     कई बार एक ही रंग की पोशाक पहनना.

8.     दोनों का अपनी सहेलियों को एक ही दिन बुलाना, जिस में कई सासें, बहुएं और सहेलियां हों.

9.     पेंटिंग, कुकिंग क्लासें जौइन करना.

10.   पति, ससुर को साथ मिल कर मजाक में तंग करना.

ये भी पढ़ें- यूं ही नहीं खत्म होने दे जिंदगी

कहीं आप बच्चों को बहुत ज्यादा डांटते तो नहीं

कहते हैं बच्चों को अच्छे संस्कार और अच्छा व्यवहार माता-पिता से वसीयत के तौर पर मिलते हैं. ये वसीयत बच्चों के पास कैसे लानी है इसकी जिम्मेदारी भी माता-पिता की ही होती है. इस चक्कर में माता पिता अपने बच्चों के प्रति ओवर-करेक्टिंग या क्रिटिकल मोड चले जाते हैं. उन्हें लगता है कि दुनिया जमाने में उनके बच्चे सबसे सही हो, अच्छे व्यवहार करने वाले हों. जिसके चलते वो अपने बच्चों को सही करने में लग जाते हैं. लेकिन उनका ये स्टेप कभी कभी बच्चों के लिए खतरनाक हो सकता है. वो बच्चों के फैसले और समस्याओं को सुलझाने के बजाए और भी उलझा देते हैं. ऐसे में पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वो बच्चों के बजाए खुद का विश्लेष्ण करें और खुद को बेहतर बनाने में समय दें. इसके लिए क्या सलाह देते हैं विशेषज्ञ, आइये जानते हैं.

कम होने लगता है कांफिडेंस और सेल्फ रिस्पेक्ट-

बच्चों पर ज्यादा हावी होना उन्हें परेशान करने लगता है. उनके अंदर से कांफिडेंस और सेल्फ रिस्पेक्ट कहीं गुम सी होने लगती है.  ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि जब आप जब आप सब कुछ अपने बच्चे के लिए तय करते हैं, और उसकी क्षमताओं को नजरअंदाज भी करते हैं. आप उसकी सराहना भी नहीं करते और दूसरों के आगे हमेशा उसे एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करते हैं. तो  वो खुद को बेहद गिरा हुआ और कमजोर महसूस करने लगता है. जिससे उसके कांफिडेंस और सेल्फरिस्पेक्ट में कमी होने लगती है. क्योंकि वो आपके फैसलों के आगे खुद को कभी भी सहज महसूस नहीं करेगा.

ये भी पढ़ें- ऑफिस की दोस्ती जब मानसिक रूप से परेशान करने लगे तो क्या करें?

बच्चे हो जाते हैं जिद्दी- 

अगर आप भी उन माता-पिता में से हैं, जो हमेशा अपने बच्चों को सुधारने में लगे रहते हैं, और हमेशा यही सोचते हैं, कि वो अच्छे हो जाएं. तो यकीन मानिये कि आप उन्हने ऐसा करके परेशान करते हैं. आप अपने बच्चों की क्षमताओं को सीमित करते हैं. उन्हें दूसरों के आगे अक्षम महसूस करवाते हैं. ऐसे बच्चे और भी ज्यादा चिडचिडे  होने लगते हैं. और वो जिद्दी होने लगते हैं.

वैल्यू खोना-

किसी ने सच ही कहा कि, आप जितना कम बोलेंगे, आपके शब्दों के मायने उतने ही ज्यादा होंगे. ऐसे में ये कहावत तभी सही बैठती है जब आप इसे अपने बचों पर आजमा सकते हैं. जब भी आप अपने बच्चों के हर फैसलों पर उनकी आलोचना करते हैं और उन्हें हर वक्त डांटते हैं तो आपके द्वारा कही हर बात और शब्द कम प्रभावशाली होते हैं. आप चाहे जितनी भी गम्भीर परिस्थितयों में उन्हें संभालने की कोशिश क्यों ना करें. आपका हर फैसला आयर हर आदेश उनके लिए सिर्फ किसी बैकग्राउंड म्यूजिक से कम नहीं होगा. और वो इसका जवाब देना भी बंद कर देंगे. जिससे आपकी वैल्यू ही कम हो जाएगी.

बिगड़ने लगते हैं रिश्ते- 

हर पैरेंट्स के लिए उनके बच्चे पूरी दुनिया होते हैं. उन्हें आपके साथ और आपकी गाइडेंस की जरूरत होती है. लेकिन आप हर वक्त उन्हें सुधारने के लिए उनके पीछे पड़े रहें वो इस बात को बिलकुल पसंद नहीं करते. आप उन्हें सुधारना ही चाहते हैं, तो उनके प्रति शांत और विन्रम रवैया अपना सकते हैं. आप उन्हें सुधारने के साथ उनके अंदर की खामियां भी स्वीकार करें. अगर आप हर वक्त उनकी पसंद और फैसलों में हस्तक्षेप करते रहेंगे तो इससे आपका अपने बच्चे के साथ रिश्ता बिगड़ना लगभग तय है.

क्या है समाधान-

बच्चों को सुधारना अगर आप इसे अपने दायें हाथ का खेल समझते हैं, तो आप अपने और अपने बच्चे के रिश्ते को बिगाड़ रहे हैं. एक तरीके से आप उसका आत्मसम्मान और कांफिडेंस भी गिरा रहे हैं. अगर आप चाहते हैं, आपका बच्चा इन सब चीजों से ना जूझे, तो इसका समाधान क्या हो आइये जानते हैं.

ये भी पढ़ें- यूं ही नहीं खत्म होने दे जिंदगी

बच्चों को उनके लिए चीजें तय करने दें.

अगर वो अपने लिए गलत चुनते हैं, तो इसका एहसास भी वो खुद ही करेंगे.

बच्चों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान बढ़ाने में उनकी मदद करें.

उन्हें कठिन चुनौतियों का सामना खुद करने दें.

उन्हें हर बात में रोक टोक ना करने दें.

बच्चों से छोटी छोटी बात पर लड़ने में अपना समय और एनर्जी दोनों की बर्बाद ना करें.

ये कुछ ऐसी टिप्स हैं, जिनको आपने अगर आजमा लिया. तो आप अपने बच्चे से अपना रिश्ता बेहतर बना लेंगे. आप बस इस बात का ख्याल रखें ज्यादा रोक टोक ना करें. आप अपने बच्चों की ताकत बनें, ना की उनकी कमजोरी.

ऑफिस की दोस्ती जब मानसिक रूप से परेशान करने लगे तो क्या करें?

अगर आपका ऑफिस में कोई दोस्त है तो वह आपका ऑफिस में काम में हाथ बंटाने में और आपके हौसले को बुलंद करने में बहुत मदद करता होगा. लेकिन इस ऑफिस वाली दोस्ती के काफी ज्यादा नुकसान भी हो सकते हैं. अगर आप इस दोस्ती में इमोशनल रूप से शामिल हो जाते हैं तो क्या होगा और अगर आप का वह दोस्त आपको काम करने के दौरान परेशान करता है या आप उसकी वजह से काम नहीं कर पाती हैं तो क्या करें? क्या आप जानती हैं इस प्रकार की दोस्ती में भी आपको एक रेखा बनानी होती है और इस रेखा को अगर आप पार करेंगी तो उसमें आपका ही नुकसान होगा.

एक्सपर्ट्स का इस बारे में क्या कहना है?

अगर आप किसी जगह काम कर रही हैं तो वहां पर सभी लोगों के साथ दोस्ताना भाव रखना और उनके साथ इंटरेक्ट करना एक अच्छी बात होती है. लेकिन आप शायद यह नहीं चाहती होंगी कि आपके जज्बातों का कोई फायदा उठा ले या उन्हें फालतू में प्रयोग किया जाए. आपको काम करते हुए किसी से इतना इमोशनल रूप से अटैच भी नहीं होना चाहिए कि इससे आपका काम करने का मन ही न करे और आपकी प्रोडक्टिविटी पर फर्क पड़े. ऑफिस में दोस्त बनाना अच्छी बात होती है लेकिन अगर आप उनके काम में या वह आपके काम में ज्यादा हस्तक्षेप कर रहे हैं या आप पर या आप किसी अन्य पर एक बोझ की तरह ट्रीट हो रही हैं तो यह मानसिक रूप से थोड़ा परेशानी देने वाला हो सकता है.

अगर आपको भी यह लगता है कि आप एक साथ काम करने वाले व्यक्ति या स्त्री से बहुत अधिक अटैच हो गई हैं और अब इस अटैचमेंट का आपके वर्क पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है तो आपको निम्न टिप्स का प्रयोग करना चाहिए.

 कुछ संकेतों की ओर ध्यान दें :

सबसे पहले आपको कुछ ऐसे संकेतों की ओर ध्यान देना चाहिए जिनसे आपको पता लगे कि आप सच में ही किसी व्यक्ति से अटैच हैं. इसके लिए आप देख सकते हैं कि आप उनके लिए अपने काम छोड़ रही हैं या आप इमोशनल रूप से स्थिर नहीं है. किसी के साथ अटैच होना बुरी बात नहीं है लेकिन खुद से यह बात जरूर पूछें कि क्या आप इस रिलेशन में होकर खुद को कैरियर के उस मुकाम पर पहुंचा पाएंगी जो आपने सोचा है?  क्या आप दोनों ही एक जैसे प्रयास कर रही हैं? अगर हां तो आप इस रिश्ते के लिए आगे बढ़ सकती हैं और न है तो आपको खुद ही समझ जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें- यूं ही नहीं खत्म होने दे जिंदगी

 दूसरे व्यक्ति को सारा दोष न दें :

अगर आप सोच रही हैं कि अब इस रिश्ते से आप परेशान हो रही हैं तो गुस्सा होना कभी कभार बनता है लेकिन इसमें सामने वाले व्यक्ति का कोई दोष नहीं है. आपको जबरदस्ती पकड़ कर वह व्यक्ति नहीं लाए थे यह आपकी भी जिम्मेदारी बनती है.  आप अपनी दोनो की पर्सनालिटी, आदतें और कार्य और कैरियर के बारे में समानताएं और असमानताएं देख कर एक निर्णय ले सकती हैं कि क्या आप सच में ही उनके साथ रह कर खुद के साथ न्याय कर रहे हैं या नहीं.

 उनसे एकदम से पूरी तरह अलग मत हो जाएं :

अगर आप खुद के होने वाले नुकसान को बचाने के लिए उनसे अलग होना चाहती हैं तो एकदम से ही उन्हें बेस्ट फ्रेंड से अनजान व्यक्ति न बना दें. आपको ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है. आप उन्हें बुरा महसूस कराए बिना भी यह काम कर सकती हैं. केवल अपने और अपने करियर के ऊपर अधिक ध्यान देने लग जाएं और उनके साथ भी बातें जारी रखें.

 बातें करने के अंदाज को बदल दें :

अगर आप किसी से दूर होना चाहती हैं तो उन्हें साफ साफ यह बताना थोड़ा अच्छा नहीं लगेगा लेकिन अगर आप अपनी बात करने का अंदाज बदल देंगी तो वह खुद ही समझ जाएंगे. जैसे आप अगर साथ रह रही हैं तो अधिक बातें अब साथ रहने के साथ नहीं बल्कि फोन कॉल पर करें. उन्हें कभी कभी अपने काम के लिए नजर अंदाज भी करें ताकि वह खुद समझ जाएं.

 खुद को स्ट्रॉन्ग बना कर रखें :

आपके प्रिय मित्र की भी अब आपके साथ गहरी दोस्ती हो गई होगी और जब उन्हें पता चलेगा कि आप उनके साथ नहीं रहना चाहती तो हो सकत है उनके लिए विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो गया हो इसलिए आपको थोड़ा स्ट्रॉन्ग बन कर रहना होगा. आपको उन्हें अपनी हालत समझानी होगी. और वह आप को इतनी आसानी से नहीं जाने देंगे इसलिए आपको उनके कहने पर खुद को उसी स्थान पर नहीं रोक देना है. खुद को मजबूत बनाएं रखें.

 इन बातों को ध्यान में रखें :

इन संकेतों पर ध्यान दें कि आप अपने करियर और काम में उनकी वजह से कम समय लगा पा रही हैं जिस कारण आपकी प्रोडक्टिविटी को नुकसान पहुंच रहा है.

अपने बात करने का अंदाज सभी के साथ बदल दें ताकि उन्हें भी अजीब न लगे.

उन्हें किसी और के साथ जुड़ने का मौका दें.

ये भी पढ़ें- साथ रहने के दौरान इन तरीकों से चेक करें अपना रिश्ता

 क्या न करें

उन पर सारा इल्जाम न लगाएं.

उनका साथ एकदम से न छोड़ दें.

अगर वह दुबारा आपके साथ आने की कोशिश करें तो वापिस न जाएं.

अगर आप धीरे धीरे इन टिप्स को अपनाएंगी तो थोड़े समय के बाद आपके मित्र को भी यह अहसास हो जायेगा कि अब आप उनके साथ समय बिताना पसंद नहीं करते हैं और वह खुद ही आपसे दूर रहने लग जायेंगे.

यूं ही नहीं खत्म होने दे जिंदगी

मेरे दादाजी की मृत्यु के कुछ ही समय बाद ही मैंने अपनी दादी को खो दिया. जो मेरे लिए काफी दर्दनाक था. मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि वह दादा जी की मृत्यु के बाद अकसर रोते हुए कहती थीं, “मैं जल्द ही तुम्हारे पास आऊंगी.” दुखी रहने के कारण उनका धीरे-धीरे स्वास्थ्य गिरने लगा और साल भी नहीं हुआ उससे पहले ही वह चल बसीं.

जीवनसाथी या साथी को खोने का दुख न केवल भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है और इस बात को बहुत से शोधों ने भी साबित किया है.

कहते हैं, जिसे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं उसे खो देने के ख्याल से भी मन डरने लगता है. लेकिन क्या हो अगर वही साथ बीच में छूट जाए और वो हमेशा के लिए हमें छोड़कर एक ऐसी दुनिया का हिस्सा बन जाएं जहां से वो कभी नहीं लौट सके. प्यार का टूटना और उसका हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो जाना दोनों ही अलग है. जब आपका प्यार टूटता है तो एक उम्मीद होती है, उसके वापस आने की. लेकिन जब वो दुनिया से ही रुखसत हो जाते हैं, तो सारी उम्मीदों में ‘वो काश’ शब्द जुड़ जाता है.

उदाहरण–

मैं रोज जब काम पर जाता हूं तो ऐसा लगता कि सब कुछ वैसा ही है जैसा हमेशा से था. लेकिन फिर जब मैं घर वापिस आता हूं तब वह खाली घर काटने को दौड़ता है. कोई हैलो कहने या मुझसे पूछने वाला नहीं है कि उस दिन मुझे कैसा लगा. रात के खाने की कोई स्वादिष्ट सुगंध नहीं होती. मुझे अपना खाना खुद बनाना पड़ता है. कभी-कभी तो अपने लिए कुछ बनाने का मन ही नहीं करता. हर टाइम मैं अपनी पत्नी की यादों में खोया रहता हूं. घर का हर कोना मुझे उस की याद दिलाता है…. क्योंकि जिसे खोया है वह न केवल मेरी पत्नी, बल्कि मेरी अच्छी दोस्त थी. समझ नहीं आता मैं उसके बिना अपना जीवन कैसे चलाऊं?”; कहना है मेरे एक मित्र का जिन्होंने अभी हाल ही में कोरोना की वजह से अपनी पत्नी को खोया है.

हमारी जिंदगी से इस तरह किसी के चले जाने से फर्क तो बहुत पड़ता है लेकिन हमें अपनी जिंदगी को फिर से शुरू करना चाहिए, एक नई उम्मीद और नई सुबह और उनकी यादों के साथ. आगर आप भी कुछ ऐसी ही परिस्थितयों से जूझ रहे हैं तो आप हमारा ये लेख जरुर पढ़ें. हो सकता है आपकी जिंदगी के लिए हमारा ये लेख आपका साथी बन जाए.

1. दुख करें साझा-

आपको कितना बड़ा ही दुःख क्यों न हो, जब तक आप अपना दुःख और तकलीफ किसी से साझा नहीं करेंगे, आपकी जिंदगी और भी मुश्किलों भरी हो जाएगी. आप अगर अपने दिल की बात किसी अपने से साझा करते हैं, तो ये आपके लिए सबसे बेहतरीन उपचार में से एक है. आप ऐसे लोगों के समूह का हिस्सा बनें जो शोक से थोड़ा दूर रहे. आप इसके अलावा ऑनलाइन समय बिताएं. आप उन लोगों से बात करें, जो आपको आने वाली जिंदगी के लिए प्रेरित करें.

ये भी पढ़ें- साथ रहने के दौरान इन तरीकों से चेक करें अपना रिश्ता

2. लंबी सांस लें-

जब भी आपको ऐसा महसूस हो कि आप इमोशनली तौर पर खत्म होने की कगार पर हैं, तो आपको एक पल ठहर कर एक लंबी सांस खुद के लिए लेने की जरूरत है. आप सारा ध्यान खुद पर केन्द्रित करने की कोशिश करें. अपने हाथ को पेट पर एक हाथ को अपनी सीने पर रखें और ऐसा महसूस करें, कि ताज़ी हवा को आप अपने गले से लगा रही हैं. आप इस खूबसूरत से ब्रेक को पकड़कर रखें. आप ये हर रोज तीन से चार बार जरुर करें.

3. वर्कआउट में समय गुजारें-

भावात्मक तौर पर खुद को मजबूत करना बेहद जरूरी होता हैं, खासकर तब जब आपने अपने करीबी को खोया होता है. आप ज्यादा से ज्यादा समय वर्कआउट करने में गुजार सकते हैं. इसके अलावा आप वाक, रनिंग, योग, एक्सेरसाइज़ करें. इससे आपका शरीर फिट और मजबूत रहेगा.

4. बनाएं ताज़ी यादें-

अपने ख़ास के बिना जिंदगी में आगे बढ़ना मुश्किल जरुर है लेकिन ये नामुमकिन बिलकुल भी नहीं है. आप ये एक धोखे जैसा महसूस कर सकते हैं क्योंकि पलभर में ही दुनिया बदल जाती है. लेकिन इन सब से उपर उठकर आपको अपना दिमाग और दिल दोनों ही मजबूत बनाना होगा. आप उन यादों को जीने की कोशिश करें, जो यादें अपने उनके साथ बनाई थीं. आप आपके मनपसंद का खाना बनाकर खाएं और उनके फेवरेट जगह घूमने भी जाएं.

5. प्यार की करें रिस्पेक्ट-

जब भी आपका अपना आपसे दूर चला जाता है, तो उनसे जुड़ी हर यादें और तारीख मन को और उदास बना देती हैं. लेकिन आपको उदासी को भूलकर उनकी मौत के कई सालों के बाद भी बर्थडे, ऐनिवेर्सरी और छुट्टियों को अच्छे से बिताना चाहिए. आप उनके बर्थडे पर उनकी पसंद का डिनर तैयार करें, जो अपनी कहानी बयां करता है. ये एक अच्छी प्यार की रिस्पेक्ट होगी.

ये भी पढ़ें- मेरी कमाई, मेरा हक

किसी के बिना जिंदगी बिताना मुश्किल है, लेकिन अपनी आगे की जिंदगी के लिए आपको अपने आपको इस मुश्किल की घड़ी से बाहर निकालना ही होगा. आपको ये समझना होगा कि जिंदगी उनकी यादों के साथ खूबसूरत रखी जा सकती है. ताकि दूसरी दुनिया से वो जब भी आपको देखें तो उन्हें आपको छोड़कर जाने का मलाल न हो. आप इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करें. ताकि आप एक बार फिर से जी सकें.

साथ रहने के दौरान इन तरीकों से चेक करें अपना रिश्ता

अगर आप दोनों अलग अलग रह रहे हैं तो हो सकता है आपके कभी कभार झगड़े होते हों और ज्यादातर समय आप एक दूसरे के साथ कुछ इस तरह रहते हों मानो हर चीज परफेक्ट है. लेकिन आपके रिश्ते का असली टेस्ट तब होता है जब आप एक साथ रहते हैं. इस दौरान आपको एक दूसरे की कमियों का पता चलता है और यह सब बातें पता लगती हैं कि आपको किन किन चीजों पर काम करने की आवश्यकता है. अगर आप पहले से ही इन चीजों को जान लेंगे तो आपको शादी के बाद अधिक परेशानियां नहीं होंगी. इसलिए अगर आप एक दूसरे के साथ लिव इन में रहने की सोच रहे हैं तो यह एक बुरा आइडिया नहीं है. आइए जानते हैं किन किन तरीकों से आप अपने रिलेशनशिप को टेस्ट कर सकते हैं.

आप यह सोचेंगी कि क्या आप सच में ही खुश हैं

जब आप एक साथ रहते हैं तो आपको अपने पार्टनर की बुरी आदतों के बारे में पता चलेगा और आप उनकी बहुत से चीजों को नोटिस करना शुरू कर देंगी चाहे वह चीजें आपको बुरी ही क्यों न लगती हों. इन चीजों को देख कर अगर आप खुद को खुश महसूस नहीं कर रही हैं तो उन्हें यह आदतें बदलने के लिए बोलें और इससे पता लगेगा कि वह आपके लिए सही है या नहीं.

वह आपको कितनी अटेंशन देते हैं 

एक साथ रहते समय आपको यह पता चलेगा कि आपके पार्टनर अपनी अधिक अटेंशन किसे देते हैं और वह आपको कितना समय दे पाते हैं. अगर वह आपकी ओर जरा भी ध्यान नही देते हैं तो समझ जाएं वह आपके लिए सही नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- मेरी कमाई, मेरा हक़

वह एक परिस्थिति का कैसे सामना करते हैं

अगर कल को कोई चुनौती का सामना करना पड़ जाए तो आपके पार्टनर किस तरह रिएक्ट करेंगे यह भी आप साथ रहते समय बहुत सी बातों में नोट कर सकती हैं. उनकी इन्हीं छोटी छोटी बातों पर आपको ध्यान रखना है.

वह घर के कामों में कितनी जिम्मेदारी लेते हैं

अगर आप चाहती हैं कि आपके पार्टनर आपके साथ मिल कर सारा काम करें तो आपको पहले यह देखना होता है कि वह आपकी काम में कितनी मदद करते हैं और कितने आलसी हैं. क्या वह किसी काम की जिम्मेदारी लेते हैं या उनसे बच कर भागते हैं?

इस दौरान आपको पता चलेगा कि वह आपके साथ कितने लंबे समय तक रह सकते हैं :

ज्यादातर रिश्तों के खत्म होने का यही कारण होता है कि पार्टनर्स एक दूसरे से बोर हो जाते हैं. जब आप साथ रहेंगे तो वह आपकी सभी आदतों को देखेंगे और इस दौरान अगर वह आपसे इंप्रेस रहते हैं और आपमें अधिक रुचि दिखाते हैं तो इसका मतलब है वह आपके साथ लंबे समय तक रहने वाले हैं.

आप अपनी खुशियों को पा रहे हैं :

अगर आपको उनके साथ रहने से या समय बिताने से ऐसा लगता है कि अब आप और अधिक खुश रहने लगे हैं या आपके अंदर की खुशियां बाहर आने लगी हैं तो वह व्यक्ति आपके लिए बिल्कुल सही हैं.

यह आपकी मानसिक सेहत का भी एक टेस्ट है :

अगर उनके साथ रहने से आपकी मेंटल हेल्थ स्थिर रहती है और आपके मन को शांति मिलती है तो वह आपके लिए सही है लेकिन अगर उनकी वजह से आपके दिमाग में हर समय चिंता और स्ट्रेस रहती है तो वह आपकी मानसिक सेहत से खिलवाड़ कर रही हैं.

ये भी पढ़ें- उफ… यह मम्मीपापा की लड़ाई

अगर आपके पार्टनर में ऊपर लिखित टेस्टों को पास कर दिया है तो आप उन्हें अपना होने वाला पति  मान सकती हैं और यह समझ सकती हैं कि आपकी पसंद सच में ही बहुत अच्छी है लेकिन अगर वह आधे से अधिक टेस्टों में फेल हो जाते हैं तो आपको थोड़ा चौकन्ना होने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति भविष्य में अपनी जिम्मेदारियों से भाग सकते हैं या आप अगर उनके साथ शादी करती हैं तो थोड़ा दुखी रह सकती हैं. इसलिए अपना निर्णय सोच समझ कर ही लें.

मेरी कमाई, मेरा हक

सोमी के ऑफिस में आज सभी के चेहरे गुलाब की तरह खिले हुए थे.हो भी क्यों ना आज सब कर्मचारियों को 10 प्रतिशत इन्क्रीमेंट मिला था.सोमी पर बुझी बुझी सी लग रही थी. जब कायरा ने पूछा तो सोमी फट पड़ीमेरी सैलरी पर मेरा नही ,बल्कि पूरे परिवार का हक हैं

इन्क्रीमेंट का मतलब हैं ज़्यादा काम ,पर मुझे क्या मिलेगा कुछ नही.हर महीने एक बच्चे की तरह मेरे पति मुझे चंद हज़ार पकड़ा देते हैं. पूछने पर बोलते हैंसब कुछ तो मिल रहा हैं क्या करोगी तुम इन पैसों का ,फिजूलखर्ची करने के अलावा

सोमी अकेली महिला नही हैं. सोमी जैसी महिलाएं हर घर मे मौजूद हैं जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर भी पराधीन हैं.वो बस अपने पति और परिवार के लिए एक कमाई की मशीन हैं.उनके पैसों को कैसे ख़र्च करना हैं और कहाँ निवेश करना हैं ये पति महोदय का मौलिक अधिकार होता हैं.

  रितिका की कहानी भी सोमी से कुछ अलग नही हैं.रितिका की सैलरी आते ही,पूरा पैसा विभाजित हो जाता हैं.बच्चों के स्कूल की फ़ीस, घर की लोन की किस्तें और घर ख़र्च सब रितिका की सैलरी पर होता हैं.परन्तु रितिका के पति प्रदीप की सैलरी कैसे ख़र्च होती हैं ये प्रदीप के अलावा कोई नही जानता हैं.

हर छुट्टियों में घूमने की प्लानिंग करना, दूर पास के रिश्तेदारों के लिए तोहफ़े खरीदना ,पत्नी बच्चो के लिए कपड़े इत्यादि खरीदना प्रदीप अपनी सैलरी से करता हैं और सबकी आंखों का तारा हैं.वहीं रितिका के बारे में प्रदीप कहता हैंअरे औरतों की लाली लिपस्टिक पर ख़र्च रोकना का ये नायाब तरीका हैं कि उनकी सैलरी पर लोन इत्यादि ले लो

रितिका जो 80 हज़ार मासिक कमा रही हैं ना अपनी पसंद के कपड़े पहन सकती हैं और ना ही अपनी पसंद के तोहफ़े किसी को दे सकती हैं.इतना कमाने के बाद भी वो पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर हैं.

  अगर ऊपर की दोनो घटनाओं को देखे तो एक बात दोनो में समान हैं कि सोमी और रितिका अभी भी गुलामी की बेड़ियों में मानसिक रूप से कैद हैं.दोनो ही महिलाओं में एक समानता हैं कि दोनों ही मानसिक रूप से स्वतंत्र नही हैं. दोनो को ये भी नही मालूम हैं कि उन्हें अपने गाढ़े पसीने की कमाई कैसे ख़र्च करनी हैं.

ये भी पढ़ें- उफ… यह मम्मीपापा की लड़ाई

ये कहना गलत ना होगा कि सोमी और रितिका जैसी महिलाओं की दशा उन महिलाओं से भी बदतर हैं जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नही हैं.कभी प्यार में तो कभी डर के कारण वो अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की कुंजी अपने पति के हाथों में थमा देती हैं जो बिल्कुल भी सही नही हैं.

आज के समय मे ज़िन्दगी की गाड़ी तभी सुचारू रूप से चल सकती जब दोनों जीवनसाथी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो.जैसे गाड़ी के दोनो पहिए यदि समान नही होते तो गाड़ी नही चल सकती हैं, उसी तरह से पति और पत्नी में भी समानता होनी चाहिए ताकि ज़िन्दगी सुचारू रूप से चल सके.

अगर आप इन छोटी छोटी बातों का ध्यान रखेगी तो अपनी कमाई को अपने हिसाब से ख़र्च कर पाएगी.

1.प्यार का मतलब नही हैं ग़ुलामी-

महिलाएं स्वभाव से ही कोमल और भावुक होती हैं.प्यार की डोर में बंधी हुई वो अपने वेतन का पूरा ब्यौरा अपने पति को दे देती हैं.पति अपने वेतन के साथ साथ अपनी पत्नी के वेतन को भी अपने हिसाब से ख़र्च करने लगते हैं.शुरू शुरू में तो पत्नियों को ये सब बड़ा प्यारा लगता हैं पर शादी के एक दो वर्ष के बाद उन्हें कोफ़्त होने लगती हैं.पति के हाथों में अपने वेतन या एटीएम कार्ड को पकड़ना प्यार या वफ़ा का नही ,गुलामी का परिचायक हैं.

2.अपने ऊपर ख़र्च करना हैं आपका मौलिक अधिकार-

बहुत से मामलों में देखने को मिलता हैं कि विवाह के पश्चात लड़कियां अपने ऊपर ख़र्च करने में हिचकिचाने लगती हैं.उन्हें लगता हैं कि अब घर की ज़िम्मेदारी ही उनकी सर्वपरिता हो जाता हैं. पार्लर जाना या खुद के ऊपर ख़र्च करना, सहेलियों के साथ बाहर जाना ,सब कुछ उन्हें बेमानी लगने लगता हैं जो सही नही हैं.आपका सबसे पहला रिश्ता अपने साथ हैं तो इसलिए उसे खुश रखना आपका मौलिक अधिकार हैं.

3.अपने भविष्य को सुरक्षित करे-

ज़िन्दगी आपकी हैं तो उसकी बागड़ोर अपने हाथों में ही रखे. विवाह का मतलब ये नही होता कि सबकुछ पति के भरोसे छोड़ कर हाथ पर हाथ धर कर बैठ जाए.अपने भविष्य को सुरक्षित रखना ,आपकी ज़िम्मेदारी हैं.अपनी कमाई को सही जगह पर लगाकर अपने भविष्य को सुनिश्चित कर ले.

4.लेन देन करे अपनी हैसियत के हिसाब से-

बहुत बार देखने मे  आता हैं कि पत्नी के वेतन के कारण ,पति अपनी झूठी शान दिखाते हुए बहुत महँगे महँगे तोहफे शादी और फंक्शन में दे देते हैं.अगर आपकी पति की भी ये आदत हैं तो आप उन पहले ही अवसर पर टोक दे.मायके और ससुराल दोनो ही जगह समान  रूप से और अपनी हैसियत के अनुरूप ही लेन देन करे.

5.निवेश करे सोच समझ कर-

अपने पैसों को सोच समझ कर निवेश करे क्योंकि ये आपकी मेहनत की कमाई हैं. आपको अपने पैसे शेयर मार्केट में लगाने हैं या उन पैसों से कोई बांड खरीदना हैं या फिर किसी प्रोपेर्टी में लगाना हैं आपका ही फैसला होना चाहिए.अपने पति से आप सलाह अवश्य ले सकती हैं पर उन्हें अपने पैसों का कर्ता धर्ता मत बनाइए.

ये भी पढ़ें- माता-पिता का डिवोर्स बच्चे पर कितना भारी, आइए जानें

6.धन हैं बड़ा बलवान-

ये बात हालांकि कड़वी हैं पर सत्य हैं.धन में बहुत ताकत होती हैं.जब तक आपके पास अपने पैसे हैं तब तक आपकी ससुराल में इज़्ज़त बनी रहेगी.आपके पति भी कुछ उल्टा सीधा करने से पहले सौ बार सोचेंगे क्योंकि उन्हें पता होगा कि आपकी ज़िंदगी की लगाम आपके ही हाथों में हैं.वो अगर कुछ ग़लत करेंगे तो आप उनको छोड़ने में जरा भी हिचकिचायेगी नही. पति महोदय को ये भी अच्छे से मालूम होगा कि आपके द्वारा भविष्य के लिए संचित किया हुआ धन आपके साथसाथ उनके बुढ़ापे की भी लाठी हैं

शादी निभाने की जिम्मेदारी पत्नी की ही क्यों

गौतम बुद्ध की शादी 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नाम की एक कन्या से होती है और 29 वर्ष की आयु में उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति होने के बाद यानी शादी के 13 वर्ष बाद उन्हें यह ध्यान आता है कि उन्हें संन्यास लेना है और तभी वे अचानक एक दिन आधी रात को बिना अपनी पत्नी को बताए अपनी पत्नी और नवजात शिशु को सोता छोड़ घर से चुपचाप निकल जाते हैं.

सांसारिक दुख उन्मूलन की तथा ज्ञान के खोज की ऐसी उत्कट अभिलाषा कि पत्नी और बेटे की जिम्मेदारी तक भूल गए, उन के पीछे उन के कष्टों का भी ज्ञान न रहा.

गौतम बुद्ध के विषय में यह कहा जाता है कि वे बचपन से ही बेहद करुण हृदय वाले थे किसी का भी दुख नहीं देख सकते थे और ऐसे करुण हृदय वाले बुद्ध को अपनी पत्नी का ही दुख नजर नहीं आया.

अपनी पत्नी की ऐसी उपेक्षा करने वाले करुण हृदय बुद्ध के अनुसार, दुख होने के अनेक कारण हैं और सभी कारणों का मूल है तृष्णा अर्थात पिपासा अथवा लालसा.

तो क्या ज्ञानप्राप्ति की उन की पिपासा ने उन के पीछे उन की पत्नी और उन के नवजात की जिंदगी को असंख्य दुखों की ओर नहीं धकेला था? बुद्ध के अष्टांगिक मार्गों में एक सम्यक संकल्प अथवा इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प करना तथा दूसरा सम्यक स्मृति अर्थात् अपने कर्मों के प्रति विवेक तथा सावधानी का स्मरण भी है.

मानसिक कष्ट देना भी हिंसा

इच्छा तथा हिंसा से रहित संकल्प… तो क्या, जब गौतम बुद्ध ने अपनी पत्नी का त्याग किया तो उन के इस कृत्य से उन की पत्नी को जिस प्रकार की मानसिक वेदना  झेलना पड़ी थी वह क्या हिंसा नहीं थी? किसी को शारीरिक आघात पहुंचाना ही हिंसा नहीं होता, बल्कि मानसिक कष्ट देना भी एक तरह की हिंसा ही तो है. अब यदि उन के अष्ट मार्ग में से सातवें मार्ग पर भी नजर डालें तो इन के अनुसार, ‘अपने कर्मों के प्रति सावधानी तथा विवेक का स्मरण.’

अब यदि देखा जाए तो अपनी पत्नी और पुत्र का त्याग करते वक्त क्या बुद्ध ने विवेकपूर्ण दृष्टि से उन के प्रति अपने दायित्वों के विषय में विचार किया नहीं न…

उन की पत्नी ने यह दायित्व अकेले ही निभाया होगा और उन्हें भी उस समय के समाज ने पतिव्रता नारी के गुण पति धर्म आदि का पाठ पढ़ा कर उन्हें चुप करा दिया होगा…

ये भी पढ़ें- आर्टिस्ट कृपा शाह से जानें कैसे भरे जीवन में रंग

बुद्ध तो अपनी पत्नी का त्याग कर महान ज्ञानी बन गए परंतु उन की पत्नी का क्या? उस पत्नी के अनजानेअनचाहे कष्टों का क्या जिसे बुद्ध सांसारिक दुखों के उन्मूलन हेतु छोड़ कर अकेले निकल गए?

इस समाज ने नारी को ही पत्नी धर्म के पाठ पढ़ाए. पुरुषों को कभी उन के उत्तरदायित्व से मुंह मोड़ने पर कुसूरवार नहीं ठहराया.

आश्चर्य है इस दलील पर

मर्यादापुरुषोत्तम राम तथा भारतीय संस्कृति के भाव नायक राम ने तो सीता जैसी परम पवित्र और आदर्श नारी का त्याग सिर्फ समाज द्वारा सवाल उठाए जाने पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए किया था क्योंकि समाज के किसी वर्ग में यह संदेह उत्पन्न हुआ कि सीता पहले की तरह ही पवित्र और सती नहीं हैं क्योंकि उन्हें रावण हरण कर के ले गया था.

वैसे दलील तो यह दी जाती है कि सीता ने खुद वन जाने की इच्छा जताई थी क्योंकि पति को बदनामी का दुख  झेलना न पड़े और राम ने इसे होनी सम झ कर मान लिया था.

आश्चर्य है ऐसी दलील पर कि जिन्हें अपनी पत्नी के सतीत्व पर पूर्ण विश्वास है वे समाज के किसी वर्ग के कहने पर बदनामी के दुख से दुखी या आहत हो जाएं और पत्नी उन के दुख से दुखी हो कर स्वयं ही गृह का त्याग कर दे और वह भी तब जबकि वह गर्भवती थी.

मर्यादापुरुषोत्तम राम उस समाज पर क्रोधित होने की जगह अपनी पत्नी के साथ खड़े होने की जगह, दुखी हो गए और उसे होनी सम झ लिया. यह दलील कुछ अजीब नहीं है?

जब राम ने रावण के द्वारा सीता के हरण को होनी नहीं सम झा अर्थात् यही किस्मत में लिखा था. तब यह नहीं सम झा और रावण का सर्वनाश कर दिया. वे अपनी पत्नी के सतीत्व पर उठे इस सवाल पर दुखी हो कर चुप रह जाते हैं और अपनी पत्नी को जंगल में भटकने के लिए छोड़ देते हैं.

यह किस प्रकार का आदर्श है जो समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया गया. क्या यह तर्क इसलिए नहीं दिया जाता ताकि समाज में नारियों को सीता का उदाहरण दे कर अन्याय के खिलाफ खड़े होने की जगह त्याग का पाठ पढ़ाया जा सके ताकि कभी कोई स्त्री अपने हक के लिए सवाल उठाए तो उसे सीता का उदाहरण दे कर पतिव्रता बने रहने की सलाह दे कर आदर्श नारी बनने का पाठ पढ़ा कर उस का मुंह बंद किया जा सके.

मर्यादापुरुषोत्तम राम ने यह किस प्रकार का उदाहरण भारतीय पुरुषों के समक्ष पेश किया कि यदि पत्नी के सतीत्व पर सवाल उठे तो पति को बदनामी का दुख हो तो पत्नी के साथ खड़े होने की जगह अपनी प्रतिष्ठा की वे चिंता करें और उसे भाग्य का लिखा सम झ लें और अपनी पत्नी की प्रतिष्ठा की रक्षा करने की जगह उसे घर त्याग कर चुपचाप जाने दें जबकि उस का कोई कसूर ही न था. क्या यह अन्याय नहीं था?

त्याग स्त्री ही क्यों करे

राजा दुष्यंत जो कि पूरू वंशी राजा थे, एक बार मृग का शिकार करते हुए महर्षि कण्व के आश्रम में पहुंचे और शकुंतला पर आसक्त हो कर गंधर्व विवाह कर लिया और कुछ समय उस के साथ व्यतीत कर अपने नगर लौट गए. आश्रम में शकुंतला उन के पुत्र को जन्म देती है परंतु बाद में शकुंतला जब राजा दुष्यंत के पास जाती है तो राजा उन्हें पहचानने से इनकार कर देते हैं.

दलील यह दी जाता है कि राजा किसी श्राप के कारण शकुंतला को भूल गए थे. खैर, शकुंतला वापस अकेले ही अपने पुत्र का पालनपोषण करती है और एक दिन राजा दुष्यंत वापस कण्व ऋ षि के घर पहुंचते हैं और उन का अपने पुत्र के प्रति प्यार भी अचानक उमड़ पड़ता है साथ ही खोई हुई अंगूठी भी मिल जाती है जिस से उन की खोई हुई याददाश्त वापस आ जाती है.

लेकिन इतने समय तक शकुंतला वन में अकेले ही दुख उठाती हुई अपने पुत्र का भरणपोषण करती है.

यहां भी बड़ी आसानी से समाज के ठेकेदारों ने पत्नी के लिए त्याग का उदाहरण पेश कर दिया कि एक पुरुष अपनी पत्नी का त्याग कर सकता है और वह भी बड़ी आसानी से तथा पत्नी उस की याददाश्त के वापस आने तक उस का इंतजार करती है. यहां भी त्याग की कहानी सिर्फ एक स्त्री के लिए. पुरुष चाहे तो कैसे भी अपनी पत्नी का त्याग कर दे परंतु पत्नी को पतिव्रता बने रहना है. यहां भी पति के कृत्य पर कोई सवाल नहीं. पत्नी और बेटे का त्याग कर पुरुष फिर भी महान बना रह जाता है.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: रोजाना 90 लाख वैक्सीन देने का दावा कितना सही?

यह कैसा क्रोध

राजा उत्तम ने तो क्रोध में ही अपनी पत्नी का त्याग कर दिया. उसे राजमहल से निकाल दिया उन्हें अपनी पत्नी का त्याग करने के लिए किसी ठोस कारण की जरूरत भी नहीं पड़ी बस पत्नी पर क्रोध आना ही काफी था. लेकिन बाद में निंदा और तिरस्कार के डर से अपनी पत्नी को वापस अपना लेते हैं परंतु सिर्फ क्रोध आया और पत्नी को घर से निकाल दिया यह उदाहरण भी समाज के लिए निंदनीय ही है.

ऋ षि गौतम ‘अक्षपाद गौतम’ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हैं और न्याय दर्शन के प्रथम प्रवक्ता भी माने जाते हैं. महर्षि गौतम को परम तपस्वी और बेहद संयमी भी बताया जाता है. महाराज वृद्धाश्रव की पुत्री अहिल्या उन की पत्नी थी जोकि बहुत ही सुंदर और आकर्षक थी. एक दिन ऋ षि स्नान के लिए आश्रम से बाहर गए तभी इंद्र ने गौतम ऋ षि का रूप ले कर उन के साथ छल किया और बिना किसी अपराध के ही अहिल्या को दंड भोगना पड़ा. ऋ षि गौतम ने आश्रम से इंद्र को निकलते देख लिया था और पत्नी के चरित्र पर ही शक कर बैठे और अपनी पत्नी को श्राप दे दिया और वह हजारों वर्षों तक पत्थर बनी रही.??

छल इंद्र का दंड पत्नी को

यहां सम झने वाली बात यह है कि न्याय दर्शन के प्रवक्ता परम तपस्वी बेहद संयमित ऋ षि अपनी पत्नी के साथ ही घोर अन्याय कर जाते हैं. वे इंद्र के छल के लिए दंड अपनी पत्नी को दे देते हैं जो उस ने किया ही नहीं था. उस कृत्य का दंड पा कर वह हजारों वर्षों तक पत्थर बनी रहती है. यहां एक ऋ षि का संयम जवाब दे देता है. इतने क्रोधित हो उठते हैं कि अपनी पत्नी को ही पत्थर बनाने का श्राम दे देते हैं.

यह कहानी पुरुषों की उस मानसिकता का उदाहरण है जहां एक पत्नी को मात्र उपभोग की वस्तु सम झा जाता रहा है और कभी भी अर्थहीन पा कर उस का त्याग करने में उसे दंडित करने में थोड़ा भी विलंब नहीं होता.

उन्होंने भी एक ऐसा दृष्टिकोण पत्नी को देखने का, सम झने का ऐसा ही नजरिया समाज के समक्ष प्र्रस्तुत किया था और फिर भी उन्हें महानता के शिखर पर बैठा कर यह समाज उन्हें पूजता रहा है. क्या अहिल्या के प्रति उन का अपराध क्षमा करने योग्य था?

पत्नी की अवहेलना

सम्राट अशोक ने भी अपनी पहली पत्नी जिस का नाम देवी था जोकि एक बौद्ध व्यापारी की पुत्री थी जिस से अशोक को पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा प्राप्त हुई थी को छोड़ कर एक मछुआरे की पुत्री करुणावकि से विवाह कर लेते हैं और उन के शिलालेखों में कहीं भी उन की पहली पत्नी का नाम तक नहीं होता है. सम्राट अशोक भले ही एक महान शासक के रूप में प्रसिद्धि पाए हों परंतु अपनी पत्नी की अवहेलना उन्होंने भी की.

और फिर संत कवि तुलसीदास जिन का विवाह रत्नावली नाम की अति सुंदर कन्या से हुआ था. ये पहले तो पत्नी प्रेम में इतना डूब जाते हैं कि लोकमर्यादा का होश तक नहीं रहता और फिर एक दिन अचानक पत्नी का त्याग कर देते हैं और संत कवि बन जाते हैं.

अटपटी दलील

ठीक इन्हीं की तरह कालिदास ने भी पारिवारिक जीवन का त्याग कर दिया और दुनिया के महान कवि बन गए. इन दोनों कवियों में एक बात की समानता है जिस में इन के त्याग के पीछे पत्नी की फटकार को ही कारण बताया गया. यहां यह दलील थोड़ी अटपटी सी लगती है कि दोनों कवियों ने अपनीअपनी पत्नी को त्यागने के पीछे का कारण अपनी पत्नी की फटकार या उस के उपदेश को ही बताया और अपनी महानता को भी बनाए रखने की चेष्टा करते हैं.

कोईर् भी पत्नी यह बिलकुल नहीं चाहेगी कि उस का पति उस का त्याग कर दे परंतु यहां पत्नियों के कारण का एक अलग ही उदाहरण पेश कर दिया गया और अकसर उदाहरण के तौर पर पेश भी किया जाता है.

समाज के ठेकेदारों ने इन्हें अपनीअपनी पत्नी को त्यागने में भी इन की महानता को ही ढूंढ़ निकाला. अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने के बावजूद इन की महानता पर कोई आंच नहीं आने दी और पत्नियों को त्याग का पाठ पढ़ाने के लिए एक नया फौर्मूला भी तैयार कर लिया, जिस का सहारा आज भी किसी न किसी रूप में लिया जाता है.

औरत क्या सजावटी वस्तु

अकसर ऐसा कहते हुए सुना जाता है कि स्त्रियां घरों की शोभा होती हैं. शोभा यानी सजावट. सजावट शब्द ने एक औरत को वस्तु शब्द का पर्याय बना दिया और फिर सजावट जैसे शब्द को गढ़ने वाले अपनी सोच की परिधि में एक औरत रूपी चेतना को घुटघुट कर दम तोड़ने पर मजबूर कर देते हैं. इस मानसिकता की शुरुआत संभवत: उन कथित दरबारी कवियों ने ही की थी जो शृंगार रस में डूब कर नखशिख वर्णन यानी किसी औरत के नाखूनों से ले कर उस के सिर तक की सुंदरता का वर्णन राज दरबारों में राजाओं के मनोरंजन के लिए किया करते थे. तब से ले कर लगभग आज तक औरतों को देखने का एक ही दृष्टिकोण लगभग तय सा हो गया. यह समाज औरत को बस एक खूबसूरत वस्तु के पैमाने में ही मापता आ रहा है.

आज भी औरतों को अपनी इसी सोच के दायरे में रख कर देखने वाले पुरुषों की कमी नहीं है विवाह के बाद पत्नियों को त्याग कर किसी खूबसूरत युवती से शादी कर लेना भी एक चलन बन गया है गांव में ऐसी पत्नी आज भी हैं, जिन्हें जिन के पतियों ने शादी के काफी साल बाद त्याग कर अकेले ही जिंदगी जीने के लिए छोड़ दिया और वे पतिव्रता नारी धर्म का पालन किए जी रही हैं. वे किन कष्टों का सामना कर रही हैं. उन की जिंदगी कैसीकैसी कठिनाइयों से भरी हुई है इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता.

ये भी पढ़ें- सावधान ! बदल गई है जॉब मार्केट, खुद को काम का बनाए रखने की कोशिश करें  

औरतों की आजादी पर अंकुश

सदियों पहले मनु ने एक फतवा जारी किया. मनु के अनुसार स्त्री का बचपन में पिता के अधीन, युवा अवस्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए. मनु का ऐसा कहना एक स्त्री के लिए फतवा नहीं है? स्त्रियों की आजादी को क्या ऐसा कह कर छीन नहीं लिया गया? क्या उन की आजादी पर अंकुश नहीं लगा दिया गया? क्या इस फतवे ने नारी के प्रति पुरुषों के अत्याचार के सिलसिले को और भी बढ़ावा नहीं दे दिया?

तमाम तरह की बंदिशें इस समाज में एक नारी के ऊपर ही लगानी शुरू कर दीं जैसे परदे में रहना, पुरुषों की आज्ञा का पालन करना, पुरुषों को पलट कर उत्तर न देना, चुपचाप उन के अत्याचारों को सहन करना इस सोच ने नारी को एक तरह से पुरुषों के अधीन बना दिया जैसे वे कोई संपत्ति हों जिन पर पहले पिता का, फिर पति का और फिर बाद में पुत्र का अधिकार हो गया और फिर स्त्री को सारे सुखों और अधिकारों से वंचित कर दिया गया.

इन सभी वजहों से वह एक वस्तु पर्याय बना दी गई, पुरुषों के अधीन हो गई. पुरुष जब चाहे उस का त्याग कर दे और वह मुंह तक न खोले, पलट कर जवाब तक न दे जैसे वह कोई वस्तु है जिस का त्याग पुरुष अपनी मरजी के हिसाब से कर सकता है.

पुरुषों के लिए कोई बंदिश नहीं

मनु और याज्ञवल्क्य जैसे स्मृतिकारों ने एक पत्नी के क्या कर्तव्य होते हैं जैसे निर्देश देते हुए पत्नी धर्म का पालन करना, पति को परमेश्वर मानना आदि फतवे जारी कर उन्हें पूर्णतया पति के उपभोग की वस्तु बना दिया, एक मानदंड तैयार कर दिया गया जिस के आधार पर उन्हें या तो देवी या तो फिर कुलक्षिणी करार दिया जाने लगा परंतु उसी समाज ने पुरुषों के लिए कभी कोई बंदिश क्यों नहीं लगाई?

पुरुष चाहे तो अपनी मरजी से पत्नी का साथ निभाए या फिर उस का अपनी मरजी से त्याग कर दे परंतु स्त्री के लिए सतीत्व का पालन करना, उस का देवी बने रहना क्यों अनिवार्य कर दिया गया? हमारा समाज आज भी नहीं बदला है. आज भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां पति अपनी पत्नी का त्याग कर महान बने बैठे हुए हैं. शादी की और उसे अकेला छोड़ दिया. खुद अपनी जिंदगी मजे में जी रहे हैं परंतु पत्नी को कोई पूछता नहीं. उस की हालत पर कहीं कोई चर्चा नहीं होती. बस पत्नियों को त्याग का पाठ पढ़ा दिया जाता है और वे देवी बने रहने के दायरे से कभी भी बाहर नहीं निकल पातीं.

दयनीय स्थिति

आज भी हमारे समाज में एक औरत पर ही हजारों पाबंदियां ज्यों की त्यों बनी हुई हैं. पुरुष चाहे तो कितने भी प्रेम करे. वह चाहे तो अपनी पहली पत्नी के होते हुए भी दूसरी शादी रचा ले. उसे समाज बहिष्कृत नहीं करता. उस के चरित्र पर सवाल उठाने की जगह उसे महान बना दिया जाता है. उसे कोई कुलटा नहीं कहता क्योंकि वह पुरुष है. त्याग का पाठ बस पत्नियों को ही पढ़ाई जाने की चीज है.

आज भी इस समाज में कईर् ऐसी पत्नियां हैं जिन के पति स्वयं तो समाज के कई प्रतिष्ठित स्थानों पर विराजमान हैं. उन में कोईर् अभिनेता है, फिल्म अभिनेता है, महान गायक है या फिर कोई राजनेता है और ये सब बिना किसी ठोस कारण अपनीअपनी पत्नी का त्याग कर महान बन बैठे हैं और फिर भी यह समाज उन्हें पूरी इज्जत व प्रतिष्ठा दे रहा है या देता आ रहा है. परंतु उन पत्नियों का जीवन कैसा है, वे किस प्रकार जी रही हैं, किसी को कोई चिंता नहीं है.

गांवों में तो ऐसी स्थिति और भी दयनीय है. जिस का पति बिना तलाक दिए मजे में अपनी जिंदगी बिता रहा है क्या वह पत्नी न्याय की हकदार नहीं है? क्यों उस के कष्टों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता? तीन तलाक बेशक निंदनीय अपराध है परंतु उन हिंदू औरतों, उन पत्नियों का क्या अपराध जिन के पतियों ने बिना तलाक दिए उन्हें अकेले जिंदगी जीने को लाचार कर रखा है.

आज ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो शादी कर अपनी पत्नी को छोड़ के विदेशों में भाग गए हैं. हाल के ही एक ताजा समाचार के अनुसार ऐसी 15 हजार महिलाओं की शिकायतें मिली हैं जिन के पति उन्हें छोड़ कर विदेश भाग गए हैं. हम हिंदू औरतों पर हो रहे खुले अत्याचार को भाग्य की देन कैसे मान सकते हैं. यदि साथ नहीं रख सकते तो तलाक दे कर उन्हें सम्मान के साथ जीने का हक तो दें.

ये भी पढ़ें- बस 3 मिनट का सुख और फिर…

उफ… यह मम्मीपापा की लड़ाई

आजकल आमतौर पर घरों में कभी नौकरी को ले कर तो कभी पारिवारिक समस्याओं को ले कर कलहकलेश होता ही है. महानगरों में अकसर महिलाएं एवं पुरुष दोनों ही कामकाजी होते हैं. ऐसे में गृहस्थी की गाड़ी चलाना आसान नहीं बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा है. आर्थिक स्थिति सुधरती है तो पारिवारिक समस्याएं आने लगती हैं. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं तो भी गृहस्थी के खर्चों को ले कर समस्याएं हैं.

कभीकभार पतिपत्नी एकदूसरे से तंग आ कर तलाक लेने की स्थिति तक पहुंच जाते हैं. सिर्फ तलाक ही नहीं यदि पतिपत्नी एकदूसरे से ईमानदारी न रखें और ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में पड़ जाएं तो घर में युवा बच्चों के मन पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है. लेकिन समस्या है कि ऐसे में आखिर बच्चे जाएं कहां? क्या करें या क्या न करें?

रिश्तेदारों के कारण तलाक देने के धमकी

बैंगलुरु में रहने वाले निखिल एक सौफ्टवेयर प्रोफैशनल हैं. उन की अपनी पत्नी से घर में अकसर तूतू, मैंमैं होती रहती है. पहले तो वे पूरा दिन औफिस रहते तो यह तकरार ज्यादा नजर नहीं आती थी. किंतु जब से कोरोना फैला और वर्क फ्रौम होम हुआ यह खिचखिच बढ़ गई. समस्या यह है कि जवान बेटा जो कालेज में पढ़ता है और होस्टल में रहता है वह अब घर से औनलाइन क्लासेज कर रहा है. बेटी भी कक्षा  8 में पड़ती है, जो सारा दिन घर में रहती है.

अब यह झगड़ा अकसर बच्चों के सामने होता है. इस में खास बात यह है कि झगड़े के मुद्दे कोई बड़े खास नहीं होते हैं. छोटेछोटे काम को ले कर बहस, स्वयं को अपने पार्टनर से सुपीरियर दिखाने की होड़ और पहले दूसरा चुप हो इसलिए उसे नीचा दिखाया जाता है.

जबजब झगड़ा होता निखिल पुरानी बातें निकाल लाता और अपनी पत्नी से कहता कि तुम ने मेरी मां से झगड़ा किया, मेरी बहन को घर में आने से रोका आदि. जब वे संयुक्त परिवार में थे बच्चे बहुत छोटे थे. सासननद आदि से उस की पत्नी का सामंजस्य नहीं बैठा था. इसलिए वे अकेले रहने लगे, सो ननद एवं सास ने उन के बच्चों व उस की पत्नी से किसी भी तरह का संबंध नहीं रखा.

ये भी पढ़ें- माता-पिता का डिवोर्स बच्चे पर कितना भारी, आइए जानें

बदला व्यवहार

करीब 5 वर्ष पहले ननद चाहती थी कि उस का बच्चा बैंगलुरु में पढ़ने आ रहा है तो वह निखिल के घर में ही रहे. उस की पत्नी ने इस से इनकार किया तो निखिल ने उसे तलाक देने के धमकी दी. तब से अब तक दोनों में अकसर तनातनी रहती है. उस ने मन ही मन सोच लिया कि यदि निखिल उसे इस तरह धमकाता है तो यह समझ लो कि तलाक हो ही गया. उस ने भी अपना व्यवहार बदल लिया है और दोनों के आपसी प्रेम में कमी आ गई है.

इसलिए अब झगड़े होने तो लाजिम हैं. अब तक यह बात बच्चों से छिपी थी, किंतु अब बच्चे घर हैं तो उन्हें समझ आया कि मातापिता बस जिंदगी ढो रहे हैं.

एक दिन युवा बेटे ने अपने पिता को नाराजगी दिखाई कि आप मां को तलाक देने की बात करते हैं यह भी नहीं सोचते कि छोटी बहन पर क्या असर पडे़गा? मैं तो बड़ा हो चुका हूं पर वह लोगों को क्या जवाब देगी? निश्चित रूप से उन का बेटा समझदार है जो इतनी गहरी बात कह गया.

कई बार वह स्वयं भी परेशान हो जाता है कि दोनों कैसे झगड़ा करते हैं.

एक दिन गुस्से में बोला कि आप दोनों ही बुरे हो. जब देखो झगड़ते हो और वह खाना खाते हुए बीच में ही उठ कर चला गया. इस घटना से यह तो समझ आता है कि उसे यह रोजरोज का झगड़ा पसंद नहीं.

आर्थिक तंगी में युवा बच्चों का कदम

जब से नौकरी गई, चेन्नई में रहने वाले श्रीनिवासन के घर में अकसर रुपयोंपैसों को ले कर झगड़ा होता रहता है. पहले अच्छी सोसायटी में रहते थे, बच्चे भी अच्छे स्कूल में थे. लेकिन नौकरी क्या गई, अपना घर किराए पर दे कर स्वयं कहीं दूर किराए पर रहने चले गए ताकि स्वयं के घर से अच्छा भाड़ा मिले और स्वयं कम भाड़ा दे कर कुछ रुपये बचा सकें. बच्चों का स्कूल भी बदल दिया ताकि कम फीस लगे. लेकिन मन मसोस कर जब परिवार को रहना पड़े तो घर में खटपट तो होनी ही थी.

घर में बैठे श्रीनिवासन अपनी पत्नी पर ही नजर रखते. यह क्यों कर रही हो? ऐसा क्यों नहीं किया? पत्नी भी कितना सहन करे? एक तो पैसे की तंगी, ऊपर से पति की टोकाटोकी. परेशान हो कर वह भी तूतड़ाक पर उतर आई. कभीकभार दोनों का झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह गुस्से में अपने बच्चों को पीट डालती.

युवा होते बच्चे बेचारे एक तरफ तो पैसों की मार सहन कर रहे थे. जहां इस उम्र में शौक पूरे किए जाते हैं, लड़कियां सजधज करती हैं वहीं श्रीनिवासन बातबात पर बच्चों को उन के खर्च के लिए ताने सुनाते. लेकिन उन के बच्चे बड़े समझदार निकले. दोनों भाईबहन ने मिल कर तय किया कि वे अपना खर्च स्वयं उठाएंगे और अपने मातापिता के झगड़ों को नजरअंदाज कर अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीएंगे बेटी तो आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपने खर्च का इंतजाम करने लगी. बेटे ने एक स्टोर में पार्टटाइम नौकरी कर ली. इस से दोहरा फायदा हुआ. एक तो घर की खिचखिच से दूर रहे, दूसरा आत्मनिर्भर भी बने.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर

पति विवेक अकसर अपने काम के सिलसिले में विदेश यात्रा पर रहता और युवा होते 2 बच्चे लड़की 10वीं कक्षा एवं बेटा 12वीं कक्षा में था. विवेक की पत्नी के लिए समस्या थी टाइम पास की सो अपनी सहेलियों के साथ किट्टी एवं डिस्को पब्स में जाया करती. युवा होते बच्चों को तो विवेक निर्देश देता कि अपना मन पढ़ाई में लगाओ और मेरी अनुपस्थिति में अपनी मां की बात सुनो.

लेकिन एक दिन जब बेटा रात को देर तक पढ़ रहा था, तो सोसायटी में नीचे वाक के लिए उतर गया. देखा उस की मां किसी गैर पुरुष के साथ गाड़ी में आई और वह पुरुष उसे सोसायटी के बाहर ड्रौप कर अपने घर चला गया. लेकिन जब बेटे ने देखा कि मां ने उस पुरुष को बाय के साथ एक किस भी किया तो उसे अपनी नजरों पर भरोसा न हुआ. लेकिन चोरी कभी छिपती नहीं.

कुछ ही दिनों में सोसायटी में उस की मां के अफेयर की खबरें फैलने लगीं. एक घर से दूसरे बात फैलते हुए वापस उन के घर तक पहुंची. विवेक को जब पता चला तो घर में तहलका मच गया. अब यदि उस की पत्नी किसी भी पुरुष से बोलती तो वह उसे शक की नजर से देखता. अकसर घर में कलहक्लेश रहता. कई बार सोसायटी के लोगों की खुसरफुसर बच्चों के भी कानों में भी पड़ती, उन्हें ताने सुनने पड़ते. सुन कर उन्हें बुरा तो बहुत लगता, अपने मातापिता पर गुस्सा भी आता, लेकिन बेटे को अपने कैरियर की फिक्र थी, वह जानता था कि यदि पढ़ाई में मन न लगाया तो उस का रिजल्ट खराब होगा.

उस के मातापिता बारबार अपने दोनों बच्चों से एकदूसरे की बुराई भी करते तो एक दिन बेटे ने कह दिया कि हमें अपनी जिंदगी जीने दो, आप दोनों आपस में निबटो. बेटा पढ़ाई करता और अपने दोस्तों के साथ कभी फिल्म देखने जाता तो कभी पार्टी कर अपना पूरा ऐंटरटेनमैंट करता. बड़े भाई की देखादेखी छोटी बहन ने भी यही रास्ता अपना लिया.

ये भी पढ़ें- बौयफ्रैंड न बन जाए मुसीबत

स्वयं की जिम्मेदारी

शो बिजनैस में कार्यरत निहाल अपने क्लाइंट्स के साथ तो खूब अच्छा और ईमानदार व्यवहार रखते हैं, किंतु अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं. अकसर अपने बच्चों की उम्र की लड़कियों से घिरे रहने वाले निहाल अपनी पत्नी को पैर की जूती के समान समझते हैं. दोनों का लड़ाईझगड़ा इतना बढ़ गया कि अब तलाक की प्रक्रिया चालू है. जब उन के युवा बच्चों से पूछा गया कि वे किस के साथ रहना चाहेंगे तो दोनों का सहमति से एक ही जवाब था कि इन दोनों के साथ नहीं, हम कहीं भी अकेले रह लेंगे पर इन के झगड़े हमें बरदाश्त नहीं.

दरअसल, बच्चे उन्हें झगड़ते हुए देखते हुए ही बड़े हुए. न तो उन्हें अपने मातापिता से प्यार है और न ही शायद उन को. कितनी बार तो उन के झगड़ों के फलस्वरूप घर में खाना भी नहीं बनता था. कितने ही त्योहार कलहक्लेश में मने. जब गैस्ट घर पर आते तो दिखावा होता कि बहुत समृद्ध, सुशील परिवार है, लेकिन उन के जाते ही वही ढाक के तीन पात वरना बच्चों की खातिर भी कई बार परिवार में शांति रखी जाती है. लेकिन उन के मातापिता तो अपने अहम और जिद में अड़े रहे. बच्चों ने समय रहते इस कटु सत्य को समझ लिया और अपना फैसला सुना दिया.

इन सभी उदाहरणों में मातापिता के झगड़ों से बच्चे परेशान तो हुए, किंतु उन्होंने यह तय कर लिया कि वे उन के झगड़ों का असर अपने निजी जीवन पर नहीं पड़ने देंगे. उन दोनों का जैसा भी रिश्ता है वे आपस में निबटें और निभाएं. हम बच्चों को झगड़े के बीच न खींचें और हम स्वयं भी उन के झगड़ों से अपना मूड और जीवन खराब न करें.

ये बच्चे बड़े ही समझदार हैं. आखिर हमें जो जीवन मिला है वह हमारे लिए है. यदि मातापिता परिस्थितियों को देखते हुए आपस में सामंजस्य न बैठा पाएं तो यह उन की स्वयं की जिम्म्मेदारी है.

बहनों के बीच जब हो Competition

” वाह इस गुलाबी मिडी में तो अपनी अमिता शहजादी जैसी प्यारी लग रही है,” मम्मी से बात करते हुए पापा ने कहा तो नमिता उदास हो गई.

अपने हाथ में पकड़ी हुई उसी डिज़ाइन की पीली मिडी उस ने बिना पहने ही आलमारी में रख दी. वह जानती है कि उस के ऊपर कपड़े नहीं जंचते जब कि उस की बहन पर हर कपड़ा अच्छा लगता है. ऐसा नहीं है कि अपनी बड़ी बहन की तारीफ सुनना उसे बुरा लगता है. मगर बुरा इस बात का लगता है कि उस के पापा और मम्मी हमेशा अमिता की ही तारीफ करते हैं.

नमिता और अमिता दो बहनें थीं. बड़ी अमिता थी जो बहुत ही खूबसूरत थी और यही एक कारण था कि नमिता अक्सर हीनभावना का शिकार हो जाती थी. वह सांवलीसलोनी सी थी. मांबाप हमेशा बड़ी की तारीफ करते थे. खूबसूरत होने से उस के व्यक्तित्व में एक अलग आकर्षण नजर आता था. उस के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. बचपन से खूब बोलती थी. घर के काम भी फटाफट निबटाती. जब कि नमिता लोगों से बहुत कम बात करती थी.

मांबाप उन के बीच की प्रतिस्पर्धा को कम करने की बजाय अनजाने ही यह बोल कर बढ़ाते जाते थे कि अमिता बहुत खूबसूरत है. हर काम कितनी सफाई से करती है. जब की नमिता को कुछ नहीं आता. इस का असर यह हुआ कि धीरेधीरे अमिता के मन में भी घमंड आता गया और वह अपने आगे नमिता को हीन समझने लगी.

नतीजा यह हुआ कि नमिता ने अपनी दुनिया में रहना शुरू कर दिया. वह पढ़लिख कर बहुत ऊँचे ओहदे पर पहुंचना चाहती थी ताकि सब को दिखा दे कि वह अपनी बहन से कम नहीं. फिर एक दिन सच में ऐसा आया जब नमिता अपनी मेहनत के बल पर बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और लोगों को अपने इशारों पर नचाने लगी.

यहां नमिता ने प्रतिस्पर्धा को सकरात्मक रूप दिया इसलिए सफल हुई. मगर कई बार ऐसा नहीं भी होता है कि इंसान का व्यक्तित्व उम्र भर के लिए कुंद हो जाता है. बचपन में खोया हुआ आत्मविश्वास वापस नहीं आ पाता और इस प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ जाता है.

ये भी पढ़ें- जब बेवजह हो चिड़चिड़ाहट

अक्सर दो सगी बहनों के बीच भी आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति पैदा हो जाती है. खासतौर पर ऐसा उन
परिस्थितियों में होता है जब माता पिता अपनी बेटियों का पालनपोषण करते समय उन से जानेअनजाने किसी प्रकार का भेदभाव कर बैठते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं;

किसी एक बेटी के प्रति उन का विशेष लगाव होना- कई दफा मांबाप के लिए वह बेटी ज्यादा प्यारी हो जाती जिस के जन्म के बाद घर में कुछ अच्छा होता है जैसे बेटे का जन्म, नौकरी में तरक्की होना या किसी परेशानी से छुटकारा मिलना. उन्हें लगता है कि बेटी के कारण ही अच्छे दिन आए हैं और वे स्वाभाविक रूप से उस बच्ची से ज्यादा स्नेह करने लगते हैं.

किसी एक बेटी के व्यक्तित्व से प्रभावित होना – हो सकता है कि एक बेटी ज्यादा गुणी हो, खूबसूरत हो, प्रतिभावान हो या उस का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली हो. जब कि दूसरी बेटी रूपगुण में औसत हो और व्यक्तित्व भी साधारण हो. ऐसे में मांबाप गुणी और सुंदर बेटी की हर बात पर तारीफ करना शुरू कर देते हैं. इस से दूसरी बेटी के दिल को चोट लगती है. बचपन से ही वह एक हीनभावना के साथ बड़ी होती है. इस का असर उस के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है.

बहनों के बीच यह प्रतिस्पर्धा अक्सर बचपन से ही पैदा हो जाती है. बचपन में कभी रंगरूप को ले कर, कभी मम्मी ज्यादा प्यार किसे करती है और कभी किस के कपड़े / खिलौने अच्छे है जैसी बातें प्रतियोगिता की वजह बनती हैं. बड़े होने पर ससुराल का अच्छा या बुरा होना, आर्थिक संपन्नता और जीवनसाथी कैसा है जैसी बातों पर भी जलन या प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाती है. बहने जैसेजैसे बड़ी होती हैं वैसेवैसे प्रतिस्पर्धा का कारण बदलता जाता है. यदि दोनों एक ही घर में बहू बन कर जाए तो यह प्रतिस्पर्धा और भी ज्यादा देखने को मिल सकती है |

पेरेंट्स भेदभाव न करें

अनजाने में मातापिता द्वारा किए हुए भेदभाव के कारण बहनें आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगती हैं. उन के स्वभाव में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष पनपने लगता है. यही द्वेष प्रतिस्पर्धा के रूप में सामने आता है और एक दूसरे से अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती.

इस के विपरीत यदि सभी संतान के साथ समान व्यवहार किया गया हो और बचपन से ही उन के मन में बिठा दिया जाए कि कोई किसी से कम नहीं है तो उन के बीच ऐसी प्रतियोगिता पैदा नहीं होगी. यदि दोनों को ही शुरू से समान अवसर, समान मौके और समान प्यार दिया जाए तो वे प्रतिस्पर्धा करने के बजाए हमेशा खुद से ज्यादा अहमियत बहन की ख़ुशी को देंगी.

40 साल की कमला बताती हैं कि उन की 2 बेटी हैं. उन की उम्र क्रमश: 7 और 5 साल है. छोटीछोटी चीजों को ले कर अकसर वे आपस में झगड़ती हैं. उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती है कि मम्मी मुझ से ज्यादा मेरी बहन को प्यार करती हैं.

दरअसल इस मामले में दोनों बेटियों के बीच मात्र दो साल का अंतर है. जाहिर है जब छोटी बेटी का जन्म हुआ होगा तो मां उस की देखभाल में व्यस्त हो गयी होंगी. इस से उस की बड़ी बहन को मां की ओर से वह प्यार और अटेंशन नहीं मिल पाया होगा जो उस के लिए बेहद जरूरी था. जब दो बच्चों के बीच उम्र का इतना कम फासला हो तो दोनों पर समान रूप से ध्यान दे पाना मुश्किल हो जाता है.

इस तरह लगातार के बच्चे होने पर बहुत जरूरी है कि उन दोनों के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए. नए शिशु की देखभाल से जुड़ी एक्टिविटीज में अपने बड़े बच्चे को विशेष रूप से शामिल करें. छोटे भाई या बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने से उस के मन में स्वाभाविक रूप से अपनत्व की भावना विकसित होगी. रोजाना अपने बड़े बच्चे को गोद में बिठा कर उस से प्यार भरी बातें करना न भूलें. इस से वह खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करेगा.

प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लें

आपस में प्रतिस्पर्धा होना गलत नहीं है. कई बार इंसान की उन्नति / तरक्की या फिर कहिए तो उस के व्यक्तित्व का विकास प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण ही होता है. यदि एक बहन पढ़ाई, खेलकूद, खाना बनाने या किसी और तरह से आगे है या ज्यादा चपल है तो दूसरी बहन कहीं न कहीं हीनभावना का शिकार होगी. उसे अपनी बहन से जलन होगा. बाद में कोशिश करने पर वह किसी और फील्ड में ही भले लेकिन आगे बढ़ कर जरूर दिखाती है. इस से उस की जिंदगी बेहतर बनती है. इसलिए प्रतिस्पर्धा को हमेशा सकारात्मक रूप में लेना चाहिए.

ये भी पढ़ें- धोखा खाने के बाद भी लोग धोखेबाज व्यक्ति के साथ क्यों रहते हैं?

रिश्ते पर न आए आंच

अगर दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा है तो यह महत्वपूर्ण है कि आप उसे टैकल कैसे करती हैं. आप का उस के प्रति रवैया कैसा है. प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लीजिए और इस के कारण अपने रिश्ते को कभी खराब न होने दीजिए. याद रखिए दो बहनों का रिश्ता बहुत खास होता है. आज के समय में वैसे भी ज्यादा भाईबहन नहीं होते है. यदि बहन से आप का रिश्ता खराब हो जाए तो आप के मन में जो खालीपन रह जाएगा वह कभी भर नहीं सकता. क्योंकि बहन की जगह कभी भी दोस्त या रिलेटिव नहीं ले सकते. बहन तो बहन होती है. इसलिए रिश्ते में पनपी इस प्रतिस्पर्धा को कभी भी इतना तूल न दें कि वह रिश्ते पर चोट करे.

यंगिस्तान: कही आप यूज तो नहीं हो रहे है!  

लॉक डाउन का समय चल रहा है , दिल दिमाग में नए -पुराने यादों के बीच महानता को ले कर संघर्ष चल रहा है. वही इस बदलते ज़माने के साथ रिश्ते नाते, दोस्ती और प्यार में आ रहे बदलाव का भी मूल्यांकन हो रहा है. इन सबके बीच कई बातें उभर कर सामने आ रही है. गिरती मानसिकता और बढ़ता स्वार्थ यंगिस्तान के एक बड़े समूह को मानसिक पतन को ओर अग्रसर कर रहा है. अपने पास खर्च के पैसे नही होते , लेकिन अगर उनके सबसे नजदीक साथी या उनका प्यार किसी चीज की मांग करे तो वह हर कीमत पर उसे पूरा करने में लग जाते है.

अपने मोबाईल में बैलेंस नहीं होता, लेकिन उनका रिचार्ज की उन्हें चिंता होती है. घरवालो को कभी फईनेसली मदद करे ना करे, लेकिन अपने खास दोस्त और प्यार के लिए पैसा जुटा कर उन्हें देना इनके लिए कोई बड़ा काम नही है . यंगिस्तान का एक बड़ा तबका भावनाओ में डूबा हुआ,आधुनिक रिश्ते नाते और प्यार में यह समझ ही नही पा रहा है ,कि कहा किसने उनका जम कर यूज किया. तो आइये 09 विन्दु के माध्यम से समझते है कही आप को कोई यूज तो नहीं कर रहा है.

1. किसी को आर्थिक रूप से दो या तीन बार सहायता करना बुरा नहीं है और वह भी ऐसा खास को जिसे आप पसंद करते हैं, जिसके साथ आपके मजबूत रोमांटिक संबंध हैं या जिसे आप अपने लिए सबसे खास सबसे अलग मानते है.लेकिन इस तरह की सहायता की भी सीमा होती है. अगर आप सीमा को नही समझ पा रहे है, और हर मांग को अपना खास मान कर पूरा करते जा रहे है, तो यह आपके लिए भारी पड़ सकता है.

ये भी पढ़ें- मैरिड लाइफ में हो सफल

2. सहायता किसी भी आर्थिक मदद के रूप में हो सकती है.अगर आपका साथी बार-बार और बहुत कम अंतराल में आपसे पैसों की डिमांड करता है और वह उन पैसों को वापस लौटाता भी नहीं है तो इसकी पूरी संभावना है कि वह पैसों के लिए आपको यूज कर रहा है. ऐसे में आप उसके मांग पर धीरे धीरे पैसे या सामान देना बंद कर दें, फिर देखें कि क्या वह तब भी आपके साथ है या नही ?

3. अगर आपका खास दोस्त या आपका प्यार आपसे हर बार मोबाईल बिल या रिचार्ज का बात कर आपका इमोशनल कर रही हो या कर रहा हो तो आप सावधान रहिए, हो सकता है आपका एक दो बार का मदद उसे आप पर निर्भर ना बना दे.

4. कभी कभी ऐसा भी होता है कि आप अपने उस खास के पार्टी में जाते है और जाने से पहले भी प्रेशर होता है एक महँगी गिफ्ट का ,तो उस समय आपका वह महंगा नही जरुरी लगता है लेकिन यही गिफ्ट  उसे आपके महंगे गिफ्टो कि आदत डालती है.इस तरह अगर आप इमोशन में डूबते उनके हर मांग को पूरा करते जायेगे तो आप एक साकेट दे रहे हाई कि आप खुद यूज होने के लिए तैयार है.

5. समाजशास्त्री डाँ प्रीति आरोड़ा का कहना है कि अधिकतर युवाओ कोइस बात का अहसास ही नहीं होता कि अपने फायदे और केवल टाइम पास के लिए उनका खास दोस्त, उनका पार्टनर या ब्वॉयफ्रैंड या गर्लफ्रैंड उनका यूज कर रहे होते है. सच्चाईतो यह है कि चाहे महिला हो या पुरुष, कोई भी किसी की स्वार्थपूर्ति के लिए यूज नहीं होना चाहता. लेकिन आज के युवाओ के बीच पनपी आधुनिक रिश्तो से एक दुसरे का समय पर उपयोग करने की प्रणाली बन गई है. यह अदृश्य प्रणाली हर साल ना जाने कितने युवाओ को सुनहरे रिश्ते और प्यार के बदले में धोका का जख्म दे रही है.

6. जब कोई केवल सेक्सुअल पर्पज के लिए किसी को यूज करता है तो उसमें पैसा, मौज-मस्ती और थोड़ी देर का साथ शामिल होता है. हालांकि यह बात आम है कि जब खुद के यूज होने की सच्चाई सामने आती है, तो लोग यूज करने वाले से किनारा काट लेते हैं, उससे विश्वास उठ जाता है.

ये  भी पढ़ें- औफिस की मुश्किल सिचुएशन

7. युवाओ को जन संचार की शिक्षा देने वाले संदीप दुबे का कहना है किअपनी आवश्यकताओं और स्वार्थ की पूर्ति के लिए साथी का मिसयूज करना कोई नई बात नहीं है. लेकिन आधुनिक दौर में यह बढ़ा है. जब यह सच्चाई जब सामने आती है तो बहुत दुख पहुंचाती है.

8. वही अपने खास प्यार के हाथो यूज होने के बाद इंजीनियरिंग छात्र सुनील कहते है कि पहले मैं इन बातो को नही मनाता था, लेकिन अब मनाता हूँ और किसी पर विश्वास करने से पहले दस दफा सोचता हूँ. जबकि 25 साल की सीमा का कहना है, कि यूज करने की बात तभी दमंग में आती है, जब हमारे रिश्तो में स्वार्थ  छिपा होता है और यूज होने के बाद किसी भी इंसान को जीवन का सबसे बड़ा दुःख होता है .

9. अगर आपको थोड़ा भी शक है कि आपको इस्तेमाल किया जा रहा है, तो आप जिस व्यक्ति के साथ रिलेशन में हैं, उसके साथ ज्यादा अलर्ट और ऑब्जव्रेट बने, साथ ही साथ उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारियां भी एकत्र करें. अगर आप फिर भी यूज होती हैं, तो जितनी जल्दी संभव हो, उस संबंध को तोड़ दें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें