ऐसे बनें गुड Husband-Wife

आज की जीवनशैली में घर और औफिस की बढ़ती जिम्मेदारियों को निभाना यों तो आसान लगता है किंतु वास्तव में आसान है नहीं. स्वस्थ मानसिकता के अभाव में इस रिश्ते को निभाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. आइए, उन बातों का अध्ययन करें जो कमजोर पड़ते रिश्तों को और अधिक कमजोर बनाती हैं.

विवाह के बाद के पहले 5 वर्ष

  • पतिपत्नी के लिए पहले 5 वर्ष बहुत अहमियत रखते हैं. शुरू के 5 वर्षों में जो गलतियां करते हैं वे हैं:
  • खुद को बदलने की जगह पार्टनर से बदलने की चाह रखना.
  • य लाइफपार्टनर से जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं रखना.
  • छोटीछोटी बातों को मुद्दा बना कर लड़ाईझगड़ा करना. न खुद चैन से रहना, न दूसरे को चैन से रहने देना.
  • एकदूसरे के दोषों को ढूंढ़ढूंढ़ कर आलोचना और ताने मारने की प्रवृत्ति रखना.

इन कारणों से पतिपत्नी में दूरी बढ़ती जाती है और वक्त रहते अगर सूझबूझ से अपनी समस्याओं का समाधान पतिपत्नी नहीं कर पाते हैं तो अलगाव होना और फिर तलाक की संभावना बढ़ जाती है. अत: दोनों को इस बात का आभास होना चाहिए कि रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं. इन्हें अथक प्रयास द्वारा, स्वस्थ मानसिकता के साथ संभालना बहुत जरूरी होता है.

गलतियों को मानें

सब से विचित्र बात यह है कि पतिपत्नी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं कर पाते जबकि जीवन से संबंधित ये गलतियां जीवन को अधिक सीमा तक प्रभावित करती हैं. इन्हें छोटी गलतियां मानना ही मूलरूप से गलत है. रिश्ते को हर हाल में टूटने से बचाने की जिम्मेदारी पति और पत्नी दोनों की होती है. मुश्किलें पतिपत्नी की हैं, तो समाधान भी उन के द्वारा ही ढूंढ़ा जाना चाहिए.

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दिल खोल कर प्रशंसा करें

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट मानते हैं कि एकदूसरे के प्रति तारीफ के शब्द न केवल पार्टनर्स को एकदूसरे के नजदीक लाते हैं, बल्कि टूटने के कगार पर आ गए रिश्तों में ताजगी भरने की भी संभावना रखते हैं. वैवाहिक जीवन की कामयाबी बहुत सीमा तक इस बात पर निर्भर करती है कि पतिपत्नी एकदूसरे की प्रशंसा कर के जीवन को आनंदपूर्ण बनाए रखें.

रिलेशनशिप टिप्स

ऐक्सपर्ट स्टीव कपूर ने अपनी पुस्तक में हैल्दी रिलेशनशिप के निम्न टिप्स दिए हैं:

पतिपत्नी को सैंस औफ ह्यूमर रखना चाहिए. चीजों और समस्याओं को गंभीरता से लेना चाहिए, जब यह स्थिति और समस्या की मांग हो.

पतिपत्नी को एकदूसरे की ड्रैस सैंस की तारीफ करनी चाहिए. अच्छी बातों के लिए तारीफ करने में कंजूसी बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

एकदूसरे को कौंप्लिमैंट दें. विश्वास के आधार पर रिश्ते में मिठास भरें.

यदि पतिपत्नी में से कोई एकदूसरे की बात मानने को तैयार नहीं है तो इस के कारण को जानने की कोशिश करें न कि उस के साथ विवाद कर उसे परेशान करें और खुद भी परेशान हों.

सरे की भावनाओं से खिलवाड़ ठीक नहीं होता है. एकदूसरे को ब्लैकमेल करने से या उस की कमजोरी पर फोकस करने की आदत आत्मघाती होती है. भावनात्मक स्तर पर एकदूसरे के साथ जुड़ाव के लिए वक्त निकाल कर घूमने अवश्य जाएं. भूल कर भी अपने प्यार का प्रदर्शन लोगों के सामने न करें.

बहसबाजी अच्छी आदत नहीं है. जब भी ऐसा अवसर आए अपने संवाद को कट शौर्ट कर के सुखद मोड़ देते हुए अपने रिश्ते को बचाएं और संवारें.

रिलेशनशिप की समस्याओं की पृष्ठभूमि

आइए, रिलेशनशिप की समस्याओं को नीतिपूर्वक तरीके से निबटने के बारे में जानें:

  • आप अपने पार्टनर को बेहद प्यार करते हैं, लेकिन जब बात आती है इगो को बैलेंस करने की तो चुपचाप सहन करते हुए कभी खुल कर एकदूसरे के सामने नहीं आ पाते हैं. चुप रहना एक बहुत बड़ी कमजोरी बन जाती है. बेहतर होगा कि अपनी तरफ से आप स्पष्ट रूप से पार्टनर का सहयोग कर विवाहित जीवन को बेहतर बनाने के बारे में सोचें.
  •  रिलेशनशिप का सारा दारोमदार क्रिया और प्रतिक्रिया का है. अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने में जल्दबाजी न करें. सोचसमझ कर व सूझबूझ के साथ सही प्रतिक्रिया दें. एक सिंगल वार्तालाप से हमेशा समस्या सुलझ जाने की आशा न करें.
  • अपनी रिलेशनशिप को बेहतर बनाए रखने के लिए एकदूसरे से सुझाव मांगें और अध्ययन करने के बाद उन सुझावों को अमल में लाएं जो रिलेशनशिप के लिए कारगर और उपयोगी हैं. यह काम धैर्यपूर्वक समस्या को खुले दिल से स्वीकार करने के बाद ही हो सकता है.
  •   कार का वादविवाद न करें और न ही दूसरे लोगों को उस का हिस्सा बनाएं. कम से कम शब्दों में समस्या को परिभाषित करें. एकदूसरे को उचित समय दें. ऐसा माहौल बनाएं जिस में आप खुले दिल और दिमाग से समस्या का निवारण करने की जिम्मेदारी पूरी लगन और सचाई के साथ कर सकें.
  • हर समस्या के समाधान पर एकदूसरे को पार्टी, लंच, डिनर दे कर यह एहसास कराएं कि जो कुछ हुआ बहुत अच्छा हुआ.

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ऐसे निकालें समस्याओं के हल

पतिपत्नी का रिश्ता जब विवाह के बाद प्रारंभिक चरण में होता है तो सब रिश्तेदारों की अपेक्षाएं वास्तविक आधार पर नहीं होतीं. संबंधी नई बहू से आशा करते हैं कि वह हर रिश्ते को दिल से सम्मान दे. अपनी सुविधा को नजरअंदाज कर वह रिश्ते का निर्वाह इस तरह करे जैसे वह उन्हें बरसों से जानती है. अधिकतर पत्नियां जन्मदिन या शादी की वर्षगांठ पर यह उम्मीद रखती हैं कि पति उपहार में डायमंड या गोल्ड के आभूषण, डिजाइनर वस्त्र आदि उसे गिफ्ट करे. दोनों पार्टनर जीवन के लिए प्रैक्टिकल अप्रोच अपनाएं तो वे जीवन को क्रोध, तानों और दोषारोपण की मौजूदगी में भी उत्तम तरीके से बिता सकते हैं.

मनोवैज्ञानिक जौन गोटमैन का सुझाव है कि पतिपत्नी का महत्त्वपूर्ण कर्तव्य है कि वे एकदूसरे पर कीचड़ न उछालें. एकदूसरे के प्रशंसक बनें. एकदूसरे के लिए चिंता तो करें, लेकिन रचनात्मक सोच के साथ. उन का हर फैसला सहयोग के आधार पर होना चाहिए. हर विवाह की स्थिति ऐसी होती है कि अगर आप खूबियां ढूंढ़ेंगे तो आप को सब कुछ अच्छा नजर आएगा. अगर एकदूसरे की कमियों पर फोकस करना चाहेंगे तो बहुत कमियां नजर आएंगी. इसलिए बेहतर होगा कि अच्छाई पर फोकस रखें व पौजिटिव नजरिया अपनाएं. आप में वे सब गुण और काबिलीयत हैं, जो आप को ‘विन विन’ स्थिति में रख कर विजयी घोषित कर सकते हैं. प्यार मांगने से नहीं मिलता है. प्यार के लिए डिजर्व करना पड़ता है. जीवन का हर लमहा आनंद से सराबोर होना चाहिए. यह पतिपत्नी का जन्मसिद्ध अधिकार है.

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क्या शादी से पहले की यह प्लानिंग

बदलती सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों ने लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है. आधुनिकता के इस युग में ऐसी सभी सामाजिक मान्यताएं जो व्यक्ति की इच्छाओं और हितों के खिलाफ हैं, अपना औचित्य खो चुकी हैं. बदलावों की इस सूची में विवाह की प्रक्रिया को भी शामिल किया जा चुका है. जहां पहले मातापिता ही अपनी संतान के लिए हमसफर चुनते थे, वहीं अब जीवनसाथी का चुनाव युवा खुद करने लगे हैं.

प्यार के नशे में चूर युवाओं को अपने साथी के साथ के अलावा कुछ नहीं सूझता. अपने रिश्ते पर सामाजिक मुहर लगवाने के लिए शादी के बंधन में युवा बंध तो जाते हैं, लेकिन प्यार का हैंगओवर तब उतर जाता है जब पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से सामना होता है.

इस स्थिति में कई बार रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं. ऐसा ही हुआ दिल्ली की दिव्या के साथ. वह अपने प्रेमी अमित को पति के रूप में पा कर बेहद खुश थी. दिव्या का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत था, लेकिन अमित अपने घर में इकलौता कमाने वाला था. अत: मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ छोटे भाई की पढ़ाईलिखाई का खर्च भी उसे ही उठाना पड़ता था.

पहले से अमित के परिवार की आर्थिक स्थिति से अवगत दिव्या को उस के जिम्मेदाराना  स्वभाव ने ही आकर्षित किया था. लेकिन यह आकर्षण तब फीका पड़ने लगा जब दिव्या को ससुराल जा कर घरेलू कामकाज में खटना पड़ा. आमदनी अच्छी होने के बावजूद अमित दिव्या को नौकरचाकर की सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकता था, क्योंकि उस की सैलरी का आधे से अधिक हिस्सा घर की ही जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्च हो जाता था.

दिव्या ने भी शादी से पहले अमित से इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोई बात नहीं की थी. अमित दिव्या को इसीलिए ऐडजस्टिंग स्वभाव का समझता था. लेकिन यहां गलती दिव्या की है. गलती यह नहीं कि सुविधाओं के अभाव में वह ऐडजस्ट नहीं कर पा रही, बल्कि गलती यह है कि दिव्या ने शादी से पूर्व अपनी जरूरतों का जिक्र अमित से नहीं किया जो उस की सब से बड़ी भूल थी.

दिव्या की ही तरह कई लड़कियां हैं, जो अपनी उम्मीदों को अपने प्रेमी पर शादी से पहले कभी जाहिर नहीं करतीं और बाद में उम्मीद के विपरीत परिस्थितियों में उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि आखिर अपनी इच्छाओं को पहले जाहिर कर देते तो ये दिन न देखने पड़ते.  इसलिए बहुत जरूरी है कि शादी से पहले अपनी और अपने प्रेमी की इन बातों का खयाल कर लिया जाए:

– आप का प्रेमी किराए के मकान में रहता है, मगर आप अपना घर चाहती हैं, इस बात को अपने प्रेमी के आगे रखने में कोई हरज नहीं है. यदि उस की आर्थिक स्थिति उसे शादी से पहले नया घर खरीदने की मंजूरी देगी तो वह शायद ऐसा कर सकेगा वरना शादी के बाद जल्दी से जल्दी अपना घर खरीदने का प्रयास करेगा. इस के अलावा आप खुद भी अपना घर खरीदने में अपने पति की आर्थिक सहायता करने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगी.

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– आजकल कामकाजी लड़कियों के पास रसोई में परिवार के लिए खाना बनाने का समय नहीं होता, लेकिन विवाह बाद रसोई के काम के अलावा घर के बाकी काम भी करने पड़ते हैं. मगर सहयोग के लिए एक नौकर हो तो बात बन जाती है. अपने प्रेमी को शादी से पहले ही इस बात का संकेत दे दें कि आप पूरा दिन रसोई में नहीं खट सकतीं और आप को बेसिक होम ऐप्लायंस और एक नौकर की आवश्यकता पड़ेगी. यदि आप के प्रेमी के घर में पहले से ये सब चीजें उपलब्ध नहीं होगीं, तो वह कोशिश करे आप की मदद के लिए कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराने की या फिर वह आप को साफ कह दे कि घर के काम के लिए सहयोग की उम्मीद न रखें. इस से आप अपने लिए सुविधा का सामान खुद भी जुटा सकती हैं.

– घर में वाहन होने के बाद भी उस के सुख से आप वंचित हैं, क्योंकि वाहन पति नहीं पति के पिता का है. जाहिर है आप का उस वाहन पर हक नहीं है. लेकिन यदि वाहन आप के लाइफस्टाइल के लिए बहुत जरूरी है, तो इस की व्यवस्था करने के लिए प्रेमी को कहें या फिर खुद प्रयास करें.

– प्रेमी की दादी, बहन या भाई की जिम्मेदारी उठाना.

– प्रेमी यदि संयुक्त परिवार से है तो भाभी/देवरानी आदि की समस्याएं.

– नौकरी है तो ठीक वरना अपने व्यवसाय के लंबे घंटे.

कैरियर प्लानिंग पर भी चर्चा जरूरी

आज की लड़कियां शिक्षित, आत्मनिर्भर और महत्त्वाकांक्षी हैं. घर बैठ कर रोटियां बेलने के बजाय उन्हें लैपटौप पर उंगलियां दौड़ाना पसंद है. मगर शादी के बाद पति चाहता है कि वह हाउसवाइफ बन जाए. अब यहां निर्णय आप को लेना है कि पति चाहिए या कैरियर अथवा दोनों. इस के लिए आप को विवाह का निर्णय लेने के पूर्व ही बौयफ्रैंड से इन बिंदुओं पर बात कर लेनी चाहिए:

– शादी के बाद भी आप अपने कैरियर के लिए उतनी ही फिक्रमंद रहना चाहती हैं जितनी अभी हैं. हो सकता है आप का बौयफ्रैंड इस के विपरीत आप को नौकरी छोड़ घर की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए कहे. इस परिस्थिति में यदि आप अपने कैरियर से खुशीखुशी समझौता कर लेती हैं तो ठीक है वरना रिश्ते से समझौता करना ही बेहतर विकल्प होगा.

– शादी के बाद प्रेमी किस शहर में शिफ्ट होने की सोच रहा है. इस बारे में प्रेमी से चर्चा करें. आपसी सहमति से ही किसी दूसरे शहर में शिफ्ट होने का निर्णय लें.

– कई बार शादी के बाद भी युवा अपने कैरियर से संतुष्ट नहीं होते. ऐसे में जौब छोड़ कर फिर से पढ़ने का मन बना लेते हैं. आप के साथ ऐसा न हो, इस के लिए पार्टनर से इस विषय पर भी बात कर लें.

परखें पार्टनर की नीयत

प्यार में साथी के आकर्षण में खो जाना एक आम बात है. लेकिन आकर्षण में इतना भी न खोएं कि पार्टनर की नीयत को न परख सकें. दरअसल, लड़कियां अधिक भावुक होती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में जल्दी फंस जाती हैं. लेकिन कुछ लड़कों में इस के विपरीत गुण होते हैं. वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए लड़कियों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लेते हैं. जैसे कानपुर की सोनिया को कौशल ने फंसाया था. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. सोनिया पढ़ाई में होशियार थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी. कौशल इन सभी बातों को भांप चुका था. सोनिया को अपने प्यार में फंसाने का उस का मकसद केवल उस के पैसों पर जिंदगी भर मजे लूटना था. घर वालों के बहुत समझाने पर भी सोनिया नहीं मानी और कौशल से शादी कर ली.

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शादी के बाद पति का निकम्मापन सोनिया को खलने लगा. लेकिन अब घर वालों से भी वह कुछ नहीं कह सकती थी. पछताने के सिवा अब उस के पास और कोई चारा न था.

सोनिया जैसी स्थिति का सामना हर उस लड़की को करना पड़ सकता है, जो अपने पार्टनर की नीयत को परखे बिना शादी का फैसला ले लेती है. लेकिन सवाल यह उठता है कि साथी की नीयत को कैसे परखा जाए? चलिए हम बताते हैं:

– पैसों को ले कर बौयफ्रैंड का क्या बरताव है, यह भांपने की कोशिश करें. जब आप दोनों साथ घूमते हैं, तो अधिक खर्चा कौन करता है? कहीं पैसे खर्च करने में साथी आनाकानी तो नहीं करता? इन बातों को समझने की कोशिश करें.

– भले ही आप की सैलरी आप के बौयफ्रैंड से ज्यादा हो, लेकिन उस के आत्मसम्मान को परखें. यदि वह आप से पैसे लेने में नहीं हिचकता तो जाहिर है कि उस में आत्मसम्मान की कमी है.

– यह जानने की कोशिश करें कि आप का साथी शादी के वक्त आप से किनकिन विलासिता की चीजों की डिमांड करता है. जाहिर है यदि वह आप से नक्द या किसी मूल्यवान वस्तु की चाहत रखता है तो उसे आप से नहीं आप के पैसों से प्रेम है.

शादी से पूर्व फाइनैंशियल प्लानिंग

कनासा स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्चर एवं असिस्टैंट प्रोफैसर औफ फैमिली स्टडीज ऐंड ह्यूमन सर्विस की सोनया बर्ट की 4,500 कपल्स पर की गई स्टडी के परिणामस्वरूप पतिपत्नी के रिश्ते में सब से बुरा वक्त तब आता है, जब पैसों को ले कर दोनों में झगड़े होते हैं. स्टडी के मुताबिक इन झगड़ों की वजह से रिश्ता टूटने के कगार पर आ जाता है. इसलिए शादी से पूर्व ही भविष्य में आने वाली आर्थिक जरूरतों पर चर्चा कर लेनी चाहिए.

इस बाबत आर्थिक सलाहकार अरविंद सिंह सेन कहते हैं, ‘‘लव मैरिज में अकसर किसी एक पक्ष के घर वालों को रिश्ते पर आपत्ति होती है. ऐसे में शादी के बाद अपनी सभी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए नए जोड़े को अपनी ही आमदनी पर निर्भर होना पड़ता है. ऐसे में सब से अधिक जरूरी होती है सिर छिपाने के लिए एक छत यानी अपना घर और आपातकालीन स्थितियों से निबटने के लिए नक्द पैसा. यदि शादी से पूर्व कुछ निवेश किए गए हों तो इस से काफी मदद मिलती है. ये निवेश इस प्रकार के हो सकते हैं:

– अपना घर होने के सपने को पूरा करने के लिए शादी से 2-4 साल पहले ही रियल स्टेट स्मौल इन्वैस्टमैंट प्लान लिया जा सकता है. इस प्लान के तहत बिना होम लोन लिए और एकमुश्त डाउनपेमैंट की समस्या से बचने के लिए छोटीछोटी इंस्टौलमैंट्स दे कर अपना घर बुक किया जा सकता है. हां, यह प्लान लेने से पहले कुछ जरूरी बातों पर जरूर गौर कर लें:

– सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई गाइडलाइन को पढ़ कर ही कोई फैसला लें.

– विश्वसनीय बिल्डर द्वारा बनाई गई प्रौपर्टी में ही निवेश करें.

– चिट फंड कंपनियों द्वारा बनाई प्रौपर्टी में निवेश करने से बचें.

– ग्रुप हैल्थ इंश्योरैंस प्लान लें. यदि आप तय कर चुकी हैं कि शादी आप को अपने बौयफ्रैंड से ही करनी है तो अपने और उस के नाम पर इस प्लान को लिया जा सकता है. यह प्लान शादी के बाद सेहत से जुड़ी हर परेशानी में आप का आर्थिक मददगार बनेगा. इस प्लान के तहत छोटीछोटी बीमारियों से ले कर प्रैगनैंसी तक इस प्लान में कवर होते हैं.

अत: भावनाओं में बह कर बनाए गए रिश्ते भविष्य में आने वाली दिक्कतों का सामना करने में कमजोर साबित हो सकते हैं. प्रेम विवाह में अकसर ऐसा ही होता है. लेकिन थोड़ी सी समझदारी, प्लानिंग और साथी को परखने की कला आप की शादीशुदा जिंदगी को सफल बना सकती है.

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जानें खुशहाल गृहस्थी के राज

कहते हैं जीवन का असली सुख विवाह में है पर कभीकभी विवाहित जीवन में आई कुछ गलतफहमियां परिवार उजाड़ कर रख देती हैं. अगर विवाह को सफल बनाना है तो पतिपत्नी दोनों को छोटीछोटी बातों को भूल कर अपनी गृहस्थी को खुशहाल बनाना चाहिए. शादी से पहले हर लड़के या लड़की के मन में जीवनसाथी की एक छवि होती है, जो जरूरी नहीं कि हकीकत से मेल खाए. वैसे भी जब 2 भिन्न विचारधाराओं के लोग एकदूसरे के साथ रहते हैं तो उन में मतभेद होना आम बात है. इन मतभेदों को मिटा कर ही विवाह की नींव मजबूत की जा सकती है.

प्यार और विश्वास की मजबूत नींव

पतिपत्नी का रिश्ता खून का नहीं होता, लेकिन दोनों का रिश्ता खून के रिश्ते से भी बढ़ कर होता है. इस रिश्ते में प्यार, समर्पण और विश्वास होता है. इस रिश्ते की डोर बड़ी नाजुक होती है, इसे मजबूती से पकड़ कर रखना चाहिए. हमेशा अपने प्यार को खुल कर दर्शाएं. कभी भी प्यार का इजहार करने के लिए हिचकिचाएं नहीं. प्यार के साथ एकदूसरे पर विश्वास करना भी इस रिश्ते की सफलता के लिए काफी अहम है. विवाह को सफल बनाने के लिए एकदूसरे पर अटूट विश्वास करें. किसी की भी बातों में आ कर अपना विश्वास नहीं तोड़ें.

जीवनसाथी भी दोस्त भी

दोस्ती से बड़ा कोई रिश्ता नहीं है. अगर पतिपत्नी एकदूसरे के दोस्त बन जाएं तो जीवन की कठिन राहें भी आसान हो जाती हैं. प्यार, विश्वास और दोस्ती के साथ रह कर जिंदगी को और भी खूबसूरती से जिया जा सकता है. यह मानना है हाउसवाइफ रंजना सक्सेना का. उन की मानें तो पतिपत्नी छोटीछोटी बातों को भूलना सीखें और हर बात पर टोकाटाकी न करें. इस से जीवन में तनाव आ जाता है. अपनी सभी महत्त्वपूर्ण बातों में एकदूसरे को राजदार बनाएं. इस से आपसी भरोसा बढ़ता है.

समझें एकदूसरे की भावनाओं को

पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए. दोनों को पहले एकदूसरे को जानना जरूरी है. कोई भी ऐसी बात न कहें जिस से पति या पत्नी आहत हो. अपनी कमियों और भूलों को स्वीकार करना चाहिए. इस से दोनों का रिश्ता मजबूत होगा. लड़कियों को हर समय अपने मायके की तारीफ नहीं करनी चाहिए, इसे ससुराल वाले अपना अपमान मान सकते हैं. कुछ घरों में पति अपनी पत्नी से असम्मानजनक व्यवहार करते हैं, ऐसा कर के वे अपनी पत्नी के दिल में अपने प्यार और समर्पण की जगह नफरत पैदा करते हैं. एकदूसरे की भावनाओं को समझ कर अच्छा व्यवहार करें.

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पैसों को न दें अहमियत

अगर घर में सिर्फ पति कमाते हैं तो उन्हें कभी भी इस बात का घमंड नहीं होना चाहिए कि मैं कमाता हूं और मेरी पत्नी आराम से घर में रहती है और न ही पति से ज्यादा कमाने वाली पत्नी इस बात को मन में लाए कि वह पति से ज्यादा कमाती है. पति ध्यान रखें कि अगर पत्नी हाउसवाइफ है तो भी घरगृहस्थी चलाने के लिए जीतोड़ मेहनत करती है. याद रखिए, घर बसाना किसी एक के बस की बात नहीं है. इसलिए एकदूसरे का सम्मान करें.

परिवार का महत्त्व

एकदूसरे के परिवार को हमेशा सम्मान दें. पति या पत्नी के परिवार के सदस्योें को प्यार और इज्जत दें. साथ ही ध्यान रखें कि आप के परिवार की छोटीछोटी बातें बाहर वालों को पता न चलें. अगर मामला गंभीर हो तो शांति से उस पर विचार करेें और जरूरत पड़ने पर अपने किसी विश्वसनीय मित्र की सहायता लें. कोई भी फैसला करने से पहले पति को अपनी पत्नी और पत्नी को अपने पति से राय जरूर ले लेनी चाहिए.

थोड़ा फौर्मल हो जाएं

एकदूसरे की तारीफ करने में कंजूसी न करें. अपनी तारीफ सुनना पति और पत्नी दोनों को ही अच्छा लगता है. इस के अलावा समयसमय पर एकदूसरे को सरप्राइज गिफ्ट दे कर भी अपनी भावनाएं और प्यार प्रकट करना चाहिए. भले ही यह सब आप को औपचारिकता लगे, पर ये छोटीछोटी बातें जीवन में खुशियां भर देती हैं.

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बचें इन बातों से

आप एकदूसरे को प्यार तो करें, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर अपनी शारीरिक हरकतों पर नियंत्रण रखें.

एकदूसरे की बातें सुनने का प्रयास करें, न कि अपनी ही बात को ले कर हावी हो जाएं.

अपने साथी से किसी भी विषय पर बात करें, लेकिन बातचीत को बहस में न बदलने दें.

तनाव के क्षणों में आप एकदूसरे के पास रह कर तनाव का कारण समझने और समाधान करने का प्रयास करें.

व्यस्त दिनचर्या में भी एकदूसरे के पास बैठने, गपशप करने और योजनाएं बनाने के लिए वक्त निकालें.

पत्नियां पति के घर पहुंचते ही समस्याओं का रोना न रोएं और पतियों को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे भी अपनी पत्नियों को यह बात न सुनाएं कि मैं तो घर के खर्च से तंग आ गया हूं.

एकदूसरे की आलोचना न करें.

काम के दौरान बेवजह बारबार फोन कर के एकदूसरे को डिस्टर्ब न करें.

किसी भी एक के प्यार में बनावटीपन या औपचारिकता दूसरे से दूर कर सकती है.

छुट्टी का दिन एकदूसरे के साथ बिताना चाहिए पर कभीकभी अलगअलग समय बिताना भी अच्छा होता है.

आप भले ही एकदूसरे से बहुत प्यार करते हों पर घरपरिवार के समारोह या किसी भी पार्टी में हर पल एकदूसरे की बांहों में बांहें डाल कर घूमना ठीक नहीं है.

पति या पत्नी दूसरे को अपनी जागीर समझ कर उस पर हर वक्त हक न जमाए.

एकदूसरे की हरकतों पर नजर रखना, शक करना, आप के बीच दूरियां बढ़ा सकता है.

सप्ताह के अंत में कुछ नयापन लाएं, जिस से इस भागदौड़ की जिंदगी में कुछ चैन और सुकून मिले.

रोमांसपूर्ण आकर्षण के लिए अपने पहनावे पर पूरा ध्यान दें. वही कपड़े पहनें, जो एकदूसरे को अच्छे लगते हों.

प्यारभरा एक स्पर्श अपनेपन के एहसास को और भी बढ़ा देता है.

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न आए Married Life में दरार

विवाहेतर संबंध कई युगों से चले आ रहे हैं और हर वर्ग व समाज के लोग इस वर्जित फल को पाने के लिए लालायित रहते हैं. उन के सामाजिक व आर्थिक स्टेटस, पारिवारिक बैकग्राउंड, शिक्षादीक्षा और धर्म व संस्कार में अंतर हो सकता है, लेकिन इस सुख को पाने के लिए सभी विवेकहीन हो कर अपनी बांहें पसार आगे बढ़ जाते हैं. इस के परिणाम अकसर सुखद नहीं होते. भई, 2 नावों को सवारी कर कौन पार उतर पाया है? और फिर दांव पर बहुत कुछ लग जाता है, कैरियर, इज्जत, मानसम्मान, रिश्तों का टूटना, आर्थिक परेशानी, मानसिक तनाव, बच्चों का भविष्य वगैरह. फिर भी समझदार, परिपक्व वयस्क व्यक्ति (मर्द/औरत) क्यों रखते हैं विवाहेतर संबंध? कभीकभी तो ऐसे कपल के बीच इस अफेयर का बम फूटता है जो परफैक्ट कपल नजर आ रहे होते हैं. समझ नहीं आता कि आखिर क्यों, कैसे? यहां तो सब कुछ सही था. लेकिन नहीं, निश्चित तौर पर कहीं न कहीं कुछ न कुछ गलत था जिसे दोनों ही नहीं देख पाए.

यहां बताए जा रहे हैं कुछ संभावित मुख्य कारण, जिन्हें आप विवाहेतर संबंध यानी ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के लिए उत्तरदायी मान सकते हैं:

कम उम्र में शादी

जिन की शादी कम उम्र में यानी 20-22 वर्ष तक की उम्र में हो जाती है उस वक्त उन में न तो अधिक समझ होती है, न ही उन के कैरियर व जिंदगी में स्थायित्व आया होता है. ऐसे लोग जब 30-32 की उम्र में पहुंचते हैं तभी उन के विचारों में परिपक्वता आती है या कहिए उन्हें जिंदगी जीने का सलीका आता है. और इन सब के साथ ही उन्हें यह महसूस होता है कि उन्होंने अपनी जवानी के दिन यों ही गुजार दिए. मौजमस्ती, फ्लर्टिंग जैसी अवस्थाओं से वे गुजरे ही नहीं. जिंदगी के उस हसीन हिस्से को वे अब जीना चाहते हैं, अनुभव करना चाहते हैं. अपनी लाइफ में थ्रिल, ऐक्साइटमैंट को महसूस करने के लिए वे मुड़ते हैं ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की खतरनाक, फिसलन भरी मगर बेहद हसीन, दिलफरेब गलियों में.

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गलत कारणों से हुई शादी

अधिकांश व्यक्ति परिवार व समाज के दवाब में आ कर जीवनसाथी का चयन कर बैठते हैं. ऐसी शादी सामाजिक प्रतिष्ठा, आर्थिक कारण और जाति बंधन वगैरह को ध्यान में रख कर तय होती हैं. शादी के कुछ वर्षों बाद उन्हें अपनी इस गलती का एहसास होता है कि उन्होंने गलत जीवनसाथी का चयन कर लिया है. जिंदगी के इस मुकाम पर अगर उन की मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाती है जो उन के लाइफ पार्टनर से शारीरिक या मानसिक रूप से बेहतर है तो वे तुरंत उस की तरफ आकर्षित हो जाते है. और यह आकर्षण, जानपहचान व दोस्ती के गलियारों से गुजरता एक मजबूत अफेयर के अंजाम तक पहुंच जाता है.

जिंदगी में आए बदलाव से उपजा स्ट्रैस

जिंदगी हर पल रंग बदलती है. नित नई चुनौती सामने रखती है. लेकिन कभीकभी काफी कठिन दौर से गुजरना पड़ता है. जैसे पारिवार में किसी प्रिय की मौत, फाइनैंशियल लौस, नौकरी का खोना, पदोन्नति न होना वगैरह. ऐसे मुश्किल हालात में कई बार लोग सहारे व इमोशनल सपोर्ट के लिए अपने पार्टनर को छोड़ किसी और के सहज उपलब्ध मजबूत कंधे का सहारा लेते हैं. खासतौर पर तब जब पार्टनर ज्यादा सपोर्टिव व समझदार न हो. कई बार अनजान हमदर्द को हम अपना दर्द आसानी से बता देते हैं और अपनी कमजोरी अपने डर का हमराज उसे बना लेते हैं जो हमारी तरफ इन मुश्किल हालात में सहानुभूति और सहारे का हाथ बढ़ाता है. धीरेधीरे हमदर्दी का यह रिश्ता अनजाने में ही अफेयर की शक्ल अख्तियार कर लेता है.

मातापिता बनना

घरआंगन में नन्ही किलकारी की गूंज से मधुर संगीत दूसरा नहीं होता. लेकिन पतिपत्नी से मातापिता बनने का सफर दोनों के जीवन में काफी बदलाव लाता है और यह दौर चुनौतीपूर्ण भी होता है. पतिपत्नी की परस्पर रिलेशनशिप व प्राथमिकताएं बदलती हैं. एकदूजे के साथ जितना वक्त बिताना चाहिए उस में कमी आ जाती है. अकसर देखा गया है कि एक पत्नी मां की भूमिका में जिस सहजता से ढल जाती है और बच्चे के प्रति पूर्णतया समर्पित हो जाती है, पति के लिए यह बदलाव उतना आसान नहीं होता. उसे अकसर लगता है कि उस का महत्त्व पत्नी की नजर में कम हो गया है. उसे जिस अटैंशन और वैंपरिंग की आदत हो गई थी, वह उसे मिस करता है. और इसी अटैंशन की खोज में वह घर से बाहर भागता और अफेयर में उलझ जाता है. पत्नी अपने बच्चे में इतनी उलझी होती है कि काफी वक्त तक पति की कारगुजारी की उसे भनक तक नहीं लगती.

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सैक्सुअल रिलेशन में उदासीनता

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होने की एक बहुत बड़ी या प्रमुख वजह आप इसे मान सकते हैं. सैक्सुअल डिजायर का पूरा न होना पतिपत्नी के रिश्ते को बेहद कमजोर कर देता है. अपने जीवन को इस कमी को दूर करने के लिए अकसर घर से बाहर कदम निकलते हैं और अफेयर जन्म लेता है.

भावनात्मक अलगाव

कभीकभी कपल के बीच भावनात्मक अलगाव पैदा हो जाता है. दोनों के बीच प्यार तो होता है, मगर जुड़ाव कम होता जाता है. कैरियर के सिलसिले में अलगअलग शहरों/देशों में रहना इस की एक वजह होती है. और वजहें होती हैं वक्त की कमी या फिर संवाद की कमी.ऐसा होने से हो सकता है कि गुजरते वक्त के साथ आप एकदूजे से इमोशनली डिसकनैक्ट हो जाएं और किसी और से आप के मन के तार जुड़ जाएं. बाद में यह खूबसूरत, भावनात्मक रिश्ता अफेयर का रूप ले ले.

बदलाव की चाह

कभीकभी जिंदगी एक मुकाम पर आ कर ठहर सी जाती है. रिश्ते, बातें, स्पर्श, साथ, साहचर्य इन सब से ताजगी की महक उड़ जाती है. शादी के कुछ वर्षों पश्चात उपजी इस एकरसता से पैदा होती है बदलाव की चाह. लाइफ पार्टनर से प्यार है मगर रिश्ते में वह स्पार्क बाकी नहीं, जो पहले था. इस कमी को दूर करने, जिंदगी में कुछ नया, ऐडवैंचरस करने और मिर्चमसाला भरने की चाह नए साथी, नए सफर पर चलने की वजह बनती है. ऐसे में शुरुआत हो जाती है एक नए अफेयर की.

कैरियर में आगे बढ़ने की ललक

आज कैरियर वूमन का जमाना है. मर्दों के लिए तो पहले भी था, लेकिन अब महिलाओं के लिए भी कैरियर उन की टौप मोस्ट प्राथमिकता है. अब जब मैरिड कपल में दोनों ही वार्किंग हैं, दोनों ही पदोन्नति पाने को बेताब हैं, अपना सारा समय, शक्ति, ऊर्जा और क्षमता कैरियर को ऊंचा उगने में लगा रहे हैं, तो स्पष्ट है कि उन के पास आपसी रिश्तों को संवारने, सहेजने और मजबूत बनाने के लिए न तो वक्त है, न ही इस की जरूरत उन्हें महसूस होती है. नतीजा, उन के रिश्ते में अब वह मजबूती, स्थायित्व नहीं रह जाता जो पहले होता था. इस कमी के चलते दोनों में से कोई भी एक पार्टनर सहज ही उपलब्ध मौके का फायदा उठा कर नई राह का राही बन जाता है.

किसी एक का बेहद आकर्षक होना

आम जिंदगी में यह बहुत ही कम देखने में आता है कि पतिपत्नी दोनों ही समान रूप से खूबसूरत, आकर्षक हों. 19-20 के फर्क को रहने दिया जाए तो ऐसे भी कपल देखने में मिलते हैं जहां अंतर 10 और 20 का होता है. और अगर पति 20 और बीवी 10 है, तो ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का खतरा 10 गुना बढ़ जाता है. हैंडसम, उच्चपदस्थ, वैलग्रूम्ड मर्दों की तरफ विवाहित, अविवाहित महिलाएं बिन डोर खिंची चली जाती हैं. और मर्द तो विधिवत प्रेमी होते ही हैं, ऐसे में सैक्सी, हौट सुंदर बाला जब स्वयं आगे बढ़ ग्रीन सिगनल दे बैठे तो अफेयर की शुरुआत तो बस हुई ही समझो.

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नारी स्वतंत्रता व समानता का दौर

आज के दौर में नारी किसी बात में मर्द से पीछे नहीं, अफेयर के मामले में भी नहीं. पति का हद से ज्यादा व्यस्त रहना, साधारण व्यक्तित्व होना, पत्नी से प्यार तो करना मगर इजहार, इकरार करना न आना या कहिए  पत्नी को वह अटैंशन न देना जो शादी की शुरुआत में देता था, ये कुछ ऐसे कारण हैं जो पत्नी को ऐक्स्ट्रा अफेयर के लिए उकसाते हैं. पहले भी ये वजहें होती थीं लेकिन पत्नी यों ही जीवन जीती रहती थी. लेकिन अब जौब करने से उस के पास भी भरपूर मौका है, पति के अलावा अन्य मर्दों के संपर्क में आने, उन से दोस्ती, फ्लर्टिंग, अफेयर करने का. लेकिन गलत राह के राही बनेंगे तो सही मंजिल तक कभी नहीं पहुंचेगे. बहकने, कदम डगमागाने के कारण चाहे जो भी हों, लेकिन समझदारी इसी में है कि आकर्षण, बदलाव और मौजमस्ती की चाहत में किए अफेयर को जल्द ही खत्म कर अपने घर जीवनसाथी के पास वापस आ जाएं. आखिर जिंदगी भर के साथ का वादा भी तो किया है. न.

दोस्ती का एक रिश्ता ऐसा भी

मेरी सहेली रागिनी मेरे घर आई हुई थी. अभी कुछ ही देर हुई होगी कि मेरी बेटी का फोन आ गया. मैं रागिनी को चाय पीने का इशारा कर बेटी के साथ तन्मयता से बातें करने लगी. हर दिन की ही तरह बेटी ने अपने दफ्तर की बातें, दोस्तों की बातें बताते, घर जा कर क्या पकाएगी इस का मेन्यू और तरीका डिस्कस करते हुए मेरा, अपने पापा, नानानानी सहित सब का हालचाल ले फोन रखा.

जैसे ही मैं ने फोन रखा कि रागिनी बोल पड़ी, ‘‘तुम्हारी बेटी तुम से कितनी बातें करती है. मेरे बेटे तो कईकई दिनों तक फोन नहीं करते हैं. मैं करती हूं तो भी हूंहां कर संक्षिप्त सा उत्तर दे कर फोन औफ कर देते हैं. लड़की है न इसलिए इतनी बातें करती है.’’

मैं ने छूटते ही कहा, ‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. मेरा बेटा भी तो होस्टल में रह कर पढ़ रहा है. वह भी अपनी दिन भर की बातें, पढ़ाईलिखाई के अलावा अपने दोस्तों के विषय में और अपने कैंपस में होने वाली गतिविधियों की भी जानकारी देता है. सच पूछो तो रागिनी मुझे या मेरे बच्चों को आपस में बातें करने के लिए टौपिक नहीं तलाशने होते हैं.’’

मैं रागिनी के अकेलेपन और उदासी का कारण समझ रही थी. बच्चे तो उस के भी बाहर चले गए थे पर उस का अपने बच्चों के साथ संप्रेषण का  स्तर बेहद बुरा था. उसे पता ही नहीं रहता कि उस के बच्चों के जीवन में क्या चल रहा है. बेटे उदास हैं या खुश उसे यह भी नहीं पता चल पाता. कई बार तो वह, ‘‘बेटा खाना खाया? क्या खाया?’’ से अधिक बातें कर ही नहीं पाती थी.

मैं रागिनी को बरसों से जानती हूं, तब से जब हमारे बच्चे छोटे थे. मैं जब भी रागिनी के घर जाती, देखती कि वह या तो किसी से फोन पर बातें कर रही होती या फिर कान में इयरफोन लगा अपना काम कर रही होती. उस के घर दिन भर टीवी चलता रहता था. बच्चे लगातार घंटों कार्टून चैनल देखते रहते. रागिनी या उस के पति का भी पसंदीदा टाइम पास टीवी देखना ही था. अब जब बच्चों ने बचपन में दिन का अधिकांश वक्त मातापिता से बातें किए बगैर ही बिताया था तो अचानक उन्हें सपना तो नहीं आएगा कि मातापिता से भी दिल की बातें की जा सकती हैं.

जैसा चाहे ढाल लें

वाकई यह मातापिता के लिए एक बड़ी चुनौती है कि वे अपने बच्चों के वक्त को, उन के बचपन को किस दिशा में खर्च कर रहे हैं. बच्चे तो गीली मिट्टी की तरह होते हैं. उस गीली मिट्टी को अच्छे आचारव्यवहार और समझदारी की धीमी आंच में पका कर ही एक इनसान बनाया जाता है. जन्म के पहलेदूसरे महीने से शिशु अपनी मां की आवाज को पहचानने लगता है. एक तरह से बच्चा गर्भ से ही अपने मातापिता की आवाज को सुननेसमझने लगता है. इसलिए बच्चों के सामने हमेशा अच्छीअच्छी बातें करें. अनगढ़ गीली मिट्टी के बने बाल मानस को आप जैसे चाहें ढाल लें.

बाल मनोचिकित्सक मौलिक्का शर्मा बताती हैं कि जो मातापिता अपने बच्चों से शुरुआत से ही खूब बतियाते हैं, हंसते हैं हंसाते हैं, अपनी रोजमर्रा की छोटीछोटी बातें भी शेयर करते हैं, उन के बच्चों को भी आदत हो जाती है अपने मातापिता से सारी बातें शेयर करने की. और फिर यह सिलसिला बाद की जिंदगी में भी चलता रहता है. लाख व्यस्तताओं के बीच अन्य दूसरे जरूरी कामों के साथ बच्चे अपने मातापिता से जरूर बतिया लेते हैं.

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संयुक्त परिवारों में बच्चों से बातें करने, उन्हें सुनने वाले कई लोग होते हैं मातापिता से इतर, इस के विपरीत एकल परिवारों में मातापिता दोनों  अपनेअपने काम से थके होने के चलते बच्चों को क्वालिटी टाइम नहीं दे पाते हैं बातचीत करनी तो दूर की बात है.

माता पिता से सीखते हैं बच्चे

होली फैमिली हौस्पिटल, बांद्रा, मुंबई के चाइल्ड साइकोलौजिस्ट डाक्टर अरमान का कहना है कि अपने बच्चों के बचपन को सकारात्मक दिशा में खर्च करना मातापिता का प्रथम कर्तव्य है. अकसर घरों में बच्चों को टीवी के सामने बैठा दिया जाता है, खानापीना खाते हुए वे घंटों कार्टून देखते रहते हैं. खुद मोबाइल, कंप्यूटर या किसी भी अन्य चीज में व्यस्त हो जाते हैं. इस दिनचर्या में बेहद औपचारिक बातों के अलावा मातापिता बच्चों से बातें नहीं करते हैं.

बच्चों के सामने बातें करना मानो आईने के समक्ष बोलना है, क्योंकि आप के बोलने की लय, स्वर, लहजा, भाषा वे सब सीखते हैं. बातचीत के वे ही पल होते हैं जब आप अपने अनुभव और विचारों से उन्हें अवगत करते हैं, अपनी सोच उन में रोपित करते हैं. जैसा इनसान उन्हें बनाना चाहते हैं वैसे भाव उन में भरते हैं.

आप जब बूढ़े हो जाएं तब भी आप के बच्चे आप से बातें करने को लालायित रहें तो इस के लिए आप को इन बातों पर अमल करना होगा:

– छोटे बच्चों को खिलातेपिलाते, मालिश करते, नहलाते यानी जब तक वह जगा रहे उस के साथ कुछ न कुछ बोलते रहें. ऐसे बच्चे जल्दी बोलना भी शुरू करते हैं.

– थोड़ा बड़ा होने पर गीत और कहानी सुनाने की आदत डालें. इस से कुछ ही वर्षों में बच्चे पठन के लिए प्रेरित होंगे. उन्हें रंगबिरंगी किताबों से लुभाएं और किताबों से दोस्ती कराने की भरसक कोशिश करें.

– टीवी चलाने के घंटे और प्रोग्राम तय करें. अनर्गल, अनगिनत वक्त तक न आप टीवी देखें और न ही बच्चों को देखने दें. यदि आप अपने मन को थोड़ा साध लेते हैं, तो यकीन मानिए आप स्वअनुशासन का एक बेहतरीन पाठ अपने बच्चों को पढ़ा देंगे.

– अपने संप्रेषण के जरीए आप छोटे बच्चों में कई अच्छे संस्कार रोपित कर सकते हैं जैसे  देश प्रेम, स्वच्छता, सच बोलना, लड़की को इज्जत देना इत्यादि. आज का आप के द्वारा रोपित बीजरूपेण संस्कार के वटवृक्ष के तले भविष्य में समाज और देश खुशहाल होगा.

– यदि छोटा बच्चा कुछ बोलता है, तो उसे ध्यान से सुनें. कई बार मातापिता बच्चों की बातों को अनसुनी करते हुए अपनी धुन में रहते हैं. अपने बच्चों की बातों को तवज्जो दें. उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि आप उन की बातों को हमेशा ध्यान से सुनेंगे चाहे कोई और सुने या नहीं.

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– लगातार संप्रेषण से ही आप बच्चे में किसी भी तरह की आ रही तबदीलियों को भांप सकेंगे. ठीक इसी तरह जब आप से अलग वह रहेगा/रहेगी तो आप की अनकही बातों को वह महसूस कर लेगा. मेरी बेटी हजारों मील दूर फोन पर मेरी आवाज से समझ जाती है कि मैं बीमार हूं, दुखी हूं या उस से कुछ छिपा रही हूं.

– बच्चों के संग बोलतेबतियाते आप दुनियादारी की कई बातें उन्हें सिखा सकते हैं. एकल परिवार में रहने वाला बच्चा भी इसी जरीए रिश्तों और समाज के तौरतरीकों से वाकिफ होता है. यदि बच्चे आप से पूरी तरह खुले रहेंगे तो आप उन्हें बैड टच गुड टच और सैक्स संबंधित ज्ञान भी आसानी से दे सकेंगे.

– सिर्फ छुट्टियों में बात करने या वक्त देने वाली सोच से आप बच्चों के कई हावभावों से अनभिज्ञ रह जाते हैं. परीक्षा की घड़ी हो या पहले प्यार का पल युवा होते बच्चे अपनी बचपन की आदतानुसार आप से शेयर करते रहेंगे. फिर दुनिया में आप से बेहतर काउंसलर उन के लिए कोई नहीं होगा.

– यकीन मानिए अपने बच्चों से बेहतर मित्र दुनिया में कोई नहीं होता है. संप्रेषण वह पुल होता है, जो आप को अपने बच्चों से जोड़े रखता है ताउम्र.

जब पत्नी हो कमाऊ

आजकल के विवाह विज्ञापनों से पता चलता है कि नौजवान कमाऊ पत्नी ही चाहते हैं. ऐसे लोग पतिपत्नी की कमाई से शादी के बाद जल्दी साधनसंपन्न होना चाहते हैं. अगर कमाऊ लड़की को शादी करने के बाद अपने पति के परिवार के सदस्यों के साथ रहना पड़े तो संयुक्त परिवार के सभी सदस्यों के विचार और धारणाएं अलगअलग होने की वजह से उस को नए माहौल में ढलना पड़ता है. वह स्वावलंबी होने के साथसाथ अगर स्वतंत्रतापसंद होगी, तो उसे जीवन में नई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. कुछ परिवारों में सभी कमाऊ सदस्य अपनीअपनी कमाई घर के मुखिया को सौंपते हैं. मुखिया घरेलू खर्च को वहन करता है. ऐसी स्थिति में कमाऊ नववधू को भी अपनी पूरी कमाई घर के मुखिया को सौंपनी पड़ेगी. लेकिन स्वतंत्र स्वभाव वाली युवती ऐसा नहीं करना चाहेगी. उस अवस्था में नववधू और परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव पैदा होगा. पति और पत्नी के बीच मनमुटाव भी हो सकता है, जो उन के जीवन में जहर घोल देगा. ऐसे जहर को विवाहविच्छेद में परिवर्तित होते देखा गया है.

क्या करे पति

अगर परिवार वाले अपनी कमाऊ बहू से उस की कमाई नहीं लेते तो कमाऊ नववधू खुश रहती है और स्वतंत्ररूप से अपने दोस्तों के साथ घूमती है. अगर पतिपत्नी के विचारों में समन्वय होता है तब तक जीवन की गाड़ी ठीक चलती है, लेकिन अगर कहीं पति अपनी पत्नी को शक की निगाह से देखने लगे तो समस्या गंभीर बन जाती है. शादी के पहले कोई लड़का अपनी होने वाली कमाऊ पत्नी से नहीं पूछता कि वह अपनी कमाई उसे देगी या नहीं. अगर पूछ ले तो शादी के बाद कोई समस्या खड़ी न हो. एक प्राचार्य ने एक लैक्चरर से शादी की. प्राचार्य की इतनी कमाई थी कि घर का खर्च आराम से चलता था. ऐसी स्थिति में लैक्चरर पत्नी ने अपनी कमाई अपने पति को नहीं दी और कहा कि घर का खर्च तो आराम से चल ही रहा है. धीरेधीरे प्राचार्य को शक होने लगा कि उस की पत्नी अपने साथियों को खिलानेपिलाने में खर्च कर रही है और उसे एक नया पैसा नहीं दे रही है. अत: धीरेधीरे मनमुटाव ने विकराल रूप धारण कर लिया और उन दोनों में विवाहविच्छेद हो गया.

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ऐसा भी होता है

कुछ गुलछर्रे उड़ाने के लिए ही कमाऊ पत्नी चाहते हैं. ऐसे लड़के अपनी कमाई और अपनी बीवी की कमाई को मिला कर ऐशोआराम की जिंदगी जीना चाहते हैं. शादी के पहले ऐसे लड़कों का पता नहीं चलता. लेकिन शादी के बाद वे गुल खिलाने लगते हैं. कई बार तो अपनी बीवी की कमाई भी उन के लिए कम पड़ने लगती है. पतिपत्नी के बीच पैसों के लिए झगड़ा होने लगता है. कुछ अधिक संपन्न लड़कियां स्त्रीशासित परिवार बनाने के लिए अपने से कमाई में कमजोर पर प्रसिद्ध पुरुषों को उन की पत्नी से तलाक दिला कर शादियां करती हैं ताकि ऐसा पुरुष उन का जीवन भर कहना मानता रहे. ऐसी लड़कियां दकियानूसी परिवार के सदस्यों के साथ समझौता नहीं कर सकतीं.

होना क्या चाहिए

कमाऊ बहू या तो परिवार के सदस्यों की भावनाओं से समझौता करे या शांति से पतिपत्नी अपने परिवार से अलग रहें. इतना ही नहीं पुरुषशासित समाज में जहां पुरुषों की चलती है वहां कमाऊ बहू नाराज रहेगी इसलिए समाज के बदलते आयाम में कमाऊ बहू को घर के सभी आर्थिक खर्चों में राय देने का अधिकार होना चाहिए. आजकल पति और पत्नी को समान अधिकार है, इसलिए दोनों को अपने परिवार के माहौल में मिलजुल कर रहना चाहिए अन्यथा पारिवारिक परिवेश में अशांति रहेगी. 

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जब बच्चे करें वयस्क सवाल

बहुत से बच्चे अभिभावकों से पूछते हैं, ‘मम्मी मैं कहां से आया’, ‘सैक्स क्या होता है?’ कल तक परियों व राजाओं की कहानियां सुनने वाले बच्चों के मुंह से ये सवाल सुन कर अभिभावक परेशान हो जाते हैं. जब मम्मी को नहीं सूझता कि वह इन सवालों के क्या जवाब दे या बच्चों को कैसे समझाए, तो वह उन्हें अभी आप छोटे हो कह कर या फिर डांट कर चुप करा देती है. मगर इस बारे में दिल्ली के अपोलो हौस्पिटल की चाइल्ड स्पैशलिस्ट डाक्टर रोशनी मेहता का कहना है कि बच्चों के ऐसे सवाल जिन के जवाब देने में आप सहज महसूस नहीं कर रही हैं, तो अभी आप की यह जानने की उम्र नहीं है, बड़े होगे तो खुद ही समझ जाओगे जैसे जवाब दे कर टालें नहीं, क्योंकि संचार क्रांति के युग के बच्चे इस से संतुष्ट नहीं होंगे.

अगर आप बात नहीं करेंगी तो वे इस की जानकारी अन्य माध्यमों, जैसे अपने दोस्तों, मीडिया, इंटरनैट या अन्य संचार माध्यमों से लेंगे. ऐसे में संभव है कि उन्हें सही जानकारी न मिले और उन के मन में यह बात बैठ जाए कि सैक्स एक ऐसा विषय है, जिस पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जाती है. यह वर्जित विषय है. इस से बेहतर है कि हम उन्हें घुमाफिरा कर, लेकिन सरल भाषा में जवाब दें.

जैसेकि 3-4 साल की उम्र का बच्चा यह पूछ सकता है कि उस के पास पेनिस है. लड़कियों के पास यह क्यों नहीं है? ध्यान रहे कि यह शरीर के अंगों के बारे में जानने की बच्चों की सहज और सामान्य उत्सुकता है, इसलिए मातापिता को चाहिए कि अपनी क्षमता के अनुसार वे बच्चे को भरसक संतुष्ट करने की कोशिश करें.

जैसे मातापिता अपनी स्थानीय भाषा में बच्चे को शरीर के हिस्सों के बारे में बताएं. लेकिन देरसवेर उन्हें बताना पड़ेगा कि लड़के के प्राइवेट पार्ट को पेनिस कहते हैं और लड़कियों के प्राइवेट पार्ट को वैजाइना. इस तरह बच्चे के मन में यह विश्वास जगाएं कि उस के सवालों के लिए आप हमेशा तैयार हैं. अगर उस के मन में कोई शंका है तो आप उस का निवारण करेंगे.

आइए जानें कुछ ऐसे ही सवाल और उन के जवाब जिन्हें बच्चों के लिए जानना जरूरी है ताकि वे जिम्मेदारी के साथ विकसित हों और साथ ही अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम.

4 से 9 साल के बच्चों के सवाल

मम्मी मैं कहां से आया?

यह सवाल इस उम्र के हर बच्चे के मन में उठना स्वाभाविक है और अगर पूछे जाने पर आप उसे सही जवाब नहीं देंगे और डांट देंगे तो यह गलत बात होगी. बच्चे से यह भी न कहें कि तुम भगवान या बाबा के घर से आए हो, बल्कि उसे सच बताएं. वरना बच्चा बचपन से अंधविश्वासी बन जाएगा और उसे लगेगा कि हर चीज भगवान के घर से मंगवाई जा सकती है. बच्चे इस उम्र में जानवरों या फूलपौधों के उदाहरणों से हर बात अच्छी तरह समझ जाते हैं, इसलिए उन के सवालों के जवाब उन्हें उन की इसी भाषा में समझाएं. फूलों का उदाहरण दे कर उन्हें बताएं कि वे कैसे पैदा होते हैं और फिर मां के शरीर से अलग हो कर कैसे अपनी बढ़ोतरी करते हैं. उन से यह भी कह सकते हैं कि मां के शरीर में एक खास अंग गर्भाशय होता है जहां से तुम आए हो. उन्हें जन्म की पूरी प्रक्रिया बिताने की जरूरत नहीं है.

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सैक्स क्या होता है?

इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि मम्मी और पापा एकदूसरे से खास तरह से प्यार करते हैं, जिसे सैक्स कहते हैं.

भैया और मेरे प्राइवेट पार्ट्स अलग क्यों हैं?

बच्ची को बताएं कि जिस तरह कुत्ते, हाथी, घोड़े, गाय इन सभी की शारीरिक बनावट अलगअलग होती है, उसी तरह लड़के और लड़की के शरीर की बनावट और उन के अंग भी अलगअलग होते हैं.

सैनिटरी नैपकिन क्या होता है?

टीवी में विज्ञापन देख कर यह सवाल बच्चे अकसर पूछते हैं? इस सवाल का घबरा कर उलटासीधा जवाब न दें, बल्कि उन्हें समझाएं कि जिस तरह नाक व हाथ पोंछने के लिए मम्मा तुम्हें नैपकिन देती हैं उसी तरह के ये नैपकिन भी हैं. बस फर्क इतना है कि ये नैपकिन सिर्फ प्राइवेट पार्ट्स पोंछने के लिए होते हैं और इन का इस्तेमाल बड़े होने पर किया जाता है. ये बच्चों के लिए नहीं होते. जिस तरह मम्मा और बच्चों के कपड़े और रूमाल अलगअलग होते हैं उसी तरह बच्चों और बड़ों के नैपकिन भी अलगअलग होते हैं.

कंडोम क्या होता है?

टीवी में विज्ञापन देख कर बच्चे यह सवाल भी पूछते हैं. इस स्थिति में बच्चे से कुछ छिपाएं नहीं, बल्कि बताएं कि जिस तरह हाथों को किसी बीमारी से बचाने के लिए हम दस्ताने पहन लेते हैं उसी तरह कंडोम भी एक तरह का दस्ताना ही होता है, जो पुरुषों को बीमारियों से बचाता है. हां, अगर बच्चा 10 साल से बड़ा है, तो उसे बता सकते हैं कि कंडोम सैक्स के दौरान पुरुषों को बीमारियों से बचाता है.

10-15 साल के बच्चों के सवाल

मेरी मूंछें और प्राइवेट पार्ट्स पर बाल क्यों आ रहे हैं? मेरी आवाज क्यों बदल रही है?

सब से पहले तो बच्चों को इस बात का विश्वास दिलाएं कि आवाज बदलना, मुंहासे होना, दाढ़ी आना आदि आम बात है. उन्हें कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह किशोरावस्था की सामान्य प्रक्रिया है. उन्हें तो खुश होना चाहिए कि वे बड़े हो रहे हैं. उन्हें बताएं कि आप भी ऐसे ही बड़े हुए थे. यह बदलाव लड़कों और लड़कियों में अलगअलग हो सकते हैं, इसलिए एकदूसरे के बदलाव को देख कर कन्फ्यूज न हों.

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पीरियड्स क्या होते हैं?

पीरियड्स के बारे में हर मां को अपनी बेटी के पूछने से पहले ही बता देना चाहिए. 10 साल की उम्र में लड़की के पहुंचते ही उसे इस बारे में बता देना चाहिए. अगर उसे कहीं बाहर से पता चलेगा तो वह परेशान हो जाएगी. इसलिए बेटी को बताएं कि यह सामान्य प्रक्रिया है. हर लड़की को इस से गुजरना पड़ता है. आप उसे अपने पहले अनुभव के बारे में भी बताएं कि आप को भी दर्द हुआ था, पर धीरेधीरे आदत हो गई. इस समय की जाने वाली साफसफाई और अन्य बातें भी बेटी को समझाएं ताकि उसे कोई परेशानी न हो.

नाइटफाल क्या होता है?

बच्चे के इस तरह के सवाल पर सकपकाएं नहीं, क्योंकि हो सकता है कि वह इस उम्र से गुजर रहा हो, इसलिए उसे समझाएं कि यह बिलकुल नौर्मल बात है. जिस तरह हमारे शरीर में टौयलेट बनता रहता है और निकलता रहता है उसी तरह लड़कों के शरीर में हर वक्त सीमन बनता रहता है और जब यह ज्यादा इकट्ठा हो जाता है तो सोते वक्त निकल जाता है. इस में कुछ गलत नहीं है. इस से घबराएं नहीं.

मास्टरबेशन क्या होता है?

सीमन को जब खुद अपने प्राइवेट पार्ट को टच कर के निकाला जाता है तो उसे मास्टरबेशन कहते हैं. ऐसा करने पर शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती है. हां, अति हर चीज की बुरी होती है. इसलिए अपना ध्यान पढ़ाई अथवा अन्य गतिविधियों में लगाएं. छोटे बच्चे को यह भी बताना जरूरी है कि शरीर के जो अंग ढके रहते हैं उन्हें छूने का हक सिर्फ मां को है. मां नहलाते वक्त ऐसा कर सकती है या फिर डाक्टर कर सकता है. लेकिन अगर इस के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा करता है फिर चाहे वह व्यक्ति आप के दादा, मामा, भाई ही क्यों न हो और यह कहता हो कि किसी को मत बताना तो तुम्हें यह बात अपने मम्मीपापा को जरूर बतानी चाहिए. बच्चे को यह भी सिखाइए कि अगर कोई उस के प्राइवेट पार्ट्स को छूने की कोशिश करता है तो उसे क्या करना चाहिए. आप उसे सिखा सकती हैं कि ऐसा होने पर वह यह कहे कि मुझे हाथ मत लगाना वरना मैं तुम्हारी शिकायत कर दूंगा या दूंगी. बच्चे को बताइए कि वह शिकायत करने से न डरे भले ही वह व्यक्ति डराएधमकाए.

रेप क्या होता है? अगर वह यह पूछे तो रेप शब्द को समझाने के लिए कहें कि जिस तरह आप अपनी गुडि़या को किसी दूसरे को छूने नहीं देतीं, वह आप की है, उसे प्यार करने का हक सिर्फ आप का है, उसी तरह आप हमारी गुडि़या हो. आप को सिर्फ मम्मापापा, दादादादी ही प्यार कर सकते हैं. यदि कोई अनजान व्यक्ति इस तरह छूता है या जानपहचान का व्यक्ति भी इस तरह छुए जो आप को खराब लगे तो उस जबरदस्ती और अच्छा न लगने वाले व्यवहार को रेप कह सकते हैं.

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शादी का लड्डू: बनी रहे मिठास

शादी की शुरुआत एकदूसरे के प्रति अथाह प्यार व भविष्य का तानाबाना बुनने से होती है. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है, पारिवारिक जिम्मेदारियां प्राथमिकता बनने लगती हैं और प्यार धीरेधीरे अपनी जगह खोने लगता है. इस आपाधापी में पतिपत्नी यह भूल जाते हैं कि अगर आपसी रिश्ते में प्यार की ताजगी बनी रहेगी तो जिम्मेदारियों का निर्वाह भी हंसीखुशी होता रहेगा.

अपनी व्यस्त जिंदगी से कुछ पल सिर्फ एकदूसरे के लिए निकाल कर तो देखें, हर एक लमहा हमेशा के लिए यादगार बन जाएगा.

कुछ बोल प्यार के

रविवार का खुशनुमा दिन. दिल्ली के शालीमार बाग के एक होटल में कारोबारी चोपड़ाजी की शादी की सिल्वर जुबली की पार्टी चल रही थी. अकसर अपने काम में व्यस्त रहने वाले कारोबारी यहां फुरसत में एकदूसरे से गप्पें लड़ा रहे थे. तभी एक कारोबारी अपने परिचित एक कारोबारी से कहता है, ‘‘गुप्ताजी, आप की शादी को भी तो शायद 25 वर्ष होने वाले हैं. आप कब दे रहे हैं अपनी शादी की सिल्वर जुबली की पार्टी?’’

गुप्ताजी अपने दोस्त की बात पर मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘दोस्त, हमारे जीवन में तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिसे किसी पर्व की तरह मनाया जाए या फिर पार्टी दी जाए. मेरी पत्नी से कभी पूछ कर देखो तो. वह तो जैसे मेरे से उकता चुकी है. वह यही कहती मिलेगी कि मुझे अपनी जिंदगी में बहुत ही नीरस व्यक्ति मिला है, जो अपनी पत्नी को गहनेकपड़े दे कर ही अपना यानी पति का फर्ज पूरा हुआ समझता है.’’ इस बातचीत के दौरान गुप्ता जी यह बताना भूल गए कि आखिर शादी के बाद स्वयं उन्होंने अपनी पत्नी के साथ प्यार भरे मीठे पल बिताने की कितनी कोशिश की. पत्नी को सोनेचांदी के उपहार से ज्यादा पति के साथ बिताए प्यारे पल व प्यार से कहे गए दो शब्द ज्यादा प्रिय होते हैं.

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आपस में प्यार के दो मीठे बोल बोलने के लिए समय का इंतजार करते रहेंगे तो शायद यूं ही सारी उम्र बीत जाए. सुबह औफिस पहुंचने की भागमभाग के बीच कुछ पल निकाल कर पत्नी को आलिंगन करते हुए सिर्फ इतना कहना है कि आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो. फिर तो पत्नी के चेहरे पर छाई लाली को आप सारा दिन भुला नहीं पाएंगे.

शाम को चाय की चुसकियां लेते समय पत्नी की प्यार भरी छेड़छाड़ पति की सारे दिन की थकान दूर कर देगी. ये छोटेछोटे पल नीरसता को दूर कर के जिंदगी को खुशनुमा बना देंगे.

मेड फौर ईचअदर

हाल ही में किए गए एक सर्वे के अनुसार अधिकांश विवाहित जोड़े शादी के 2-3 साल बाद ही एकदूसरे से उकताने लगते हैं. कई पति तो ऐसे भी होते हैं कि पत्नी अगर कुछ दिनों के लिए मायके चली जाए तो वे उन दिनों को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं. ऐसे पतियों को पत्नी की कमी का एहसास तब होता है जब घरेलू कामकाज खुद करने पड़ते हैं.

फिर जिन दिनों को आप स्वतंत्रता के दिन कह रहे हैं, ऐसे आजादी के दिन जब लंबे खिंचने लगते हैं तो पत्नी पर निर्भर ज्यादातर पति मन ही मन यही सोचते हैं कि पत्नी जल्दी से जल्दी घर लौट आए तो अच्छा हो. हां, यह बात अलग है कि 100 में से 1 भी पति यह मानने को तैयार नहीं होता है कि पत्नी के जाने पर उसे किसी प्रकार की कोई दिक्कत पेश आ रही थी.

उम्र के साथ बढ़ता प्यार

‘‘शादी के कुछ वर्ष बीत जाने के बाद पतिपत्नी एकदूसरे से उकताए से दिखते जरूर हैं, पर यह उकताहट मन से नहीं, ऊपरी तौर पर होती है, क्योंकि शादी के कुछ ही वर्षों के बाद पति अपनी पत्नी पर कुछ इस कदर निर्भर हो जाते हैं कि छोटीमोटी बात के लिए भी वे अपनी पत्नी के मुहताज हो जाते हैं और तब उन की ‘मेड फौर ईचअदर’ वाली स्थिति बन जाती है.

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शादी के बाद बढ़ती उम्र में प्यार का प्रभाव जानने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि शादी के बाद समय के साथ शादीशुदा जोड़ों में आपसी प्यार व लगाव कम होता जाता है, वाली बात पूरी तरह से गलत है. सचाई यह है कि शादी के बाद वर्षों तक साथ रहने और एकदूसरे के गुणों को जाननेसमझने के बाद शादी के शुरुआती दौर की तरह ही इस उम्र में भी प्यार फिर से परवान चढ़ता है और पहले के प्यार के दौर के मुकाबले यह कहीं ज्यादा गहरा होता है.

मुझसे कोई प्यार करता है, लेकिन मैं उससे प्यार नहीं करती, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है. पर समस्या यह है कि मेरा चचेरा भाई भी मुझे बहुत प्यार करता है, मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन यह बात कह कर मैं उसे दुखी भी नहीं करना चाहती हूं. फिर यदि मैं ने अपने बौयफ्रैंड से इस प्रेम संबंध को समाप्त करने की बात कही तो उसे तो दुख होगा ही, साथ ही मैं भी उस से जुदा हो कर जी नहीं पाऊंगी. मैं अजीब उलझन में हूं. किसी का भी दिल नहीं तोड़ना चाहती. कृपया मेरा मार्गदर्शन करें.

जवाब

आप को अपने चचेरे भाई को किसी मुगालते में नहीं रखना चाहिए. उस से साफ साफ कह दें कि आप दोनों भाईबहन हैं और आप का खून का रिश्ता है. आप की उस के प्रति जो चाहत है वह सिर्फ एक बहन की अपने भाई के प्रति है. यह सुन कर वह दुखी होगा, हो सकता है कि आप से नफरत भी करने लगे, पर इस के अलावा आप के पास कोई चारा भी नहीं है. प्यार के इस भ्रम को जितनी जल्दी तोड़ देंगी, तकलीफ उतनी ही कम होगी.

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एक हार्ट केयर हौस्पिटल के शुभारंभ का आमंत्रण कार्ड कोरियर से आया था. मानसी ने पढ़ कर उसे काव्य के हाथ में दे दिया. काव्य ने उसे पढना शुरू किया और अतीत में खोता चला गया…

उस ने रक्षित का दरवाजा खटखटाया. वह उस का बचपन का दोस्त था. बाद में दोनों कालेज अलगअलग होने के कारण बहुत ही मुश्किल से मिलते थे. काव्य इंजीनियरिंग कर रहा था और रक्षित डाक्टरी की पढ़ाई. आज काव्य अपने मामा के यहां शादी में अहमदाबाद आया हुआ था, तो सोचा कि अपने खास दोस्त रक्षित से मिल लूं, क्योंकि शादी का फंक्शन शाम को होना था. अभी दोपहर के 3-4 घंटे दोस्त के साथ गुजार लूं. जीभर कर मस्ती करेंगे और ढेर सारी बातें करेंगे. वह रक्षित को सरप्राइज देना चाहता था.

उस के पास रक्षित का पता था क्योंकि अभी उस ने पिछले महीने ही इसी पते पर रक्षित के बर्थडे पर गिफ्ट भेजा था. दरवाजा दो मिनट बाद खुला, उसे आश्चर्य हुआ पर उस से ज्यादा आश्चर्य रक्षित को देख कर हुआ. रक्षित की दाढ़ी बेतरतीब व बढ़ी हुई थी. आंखें धंसी हुई थीं जैसे काफी दिनों से सोया न हो. कपड़े जैसे 2-3 दिन से बदले न हों. मतलब, वह नहाया भी नहीं था. उस के शरीर से हलकीहलकी बदबू आ रही थी, फिर भी काव्य दोस्त से मिलने की खुशी में उस से लिपट गया. पर सामने से कोई खास उत्साह नहीं आया.

‘क्या बात है भाई, तबीयत तो ठीक है न,’ उसे आश्चर्य हुआ रक्षित के व्यवहार से, क्योंकि रक्षित हमेशा काव्य को देखते ही चिपक जाता था.

जानें कैसी हो इकलौते की परवरिश

आस्ट्रेलिया के मोनाश और क्लेयटन विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक इकलौते बच्चे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16% कम जोखिम उठाना पसंद करते हैं. साथ ही उन में स्वार्थ की भावना भी ज्यादा होती है. यह निष्कर्ष चीन में 1979 में ‘एक परिवार एक ही बच्चा’ की नीति लागू होने के पहले और उस के बाद के वर्षों में पैदा हुए बच्चों का आपसी तुलनात्मक अध्ययन कर के निकाला गया है. इकलौते बच्चों को परिवार में बेहद लाड़प्यार मिलता है, जिस की वजह से उन में बादशाही जिंदगी जीने की आदत पड़ सकती है. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. वे स्वार्थी तो होते ही हैं, भाईबहनों के अभाव की वजह से बचपन से इन में प्रतियोगी भावना की कमी पाई जाती है. यही नहीं यूरोप में किए गए एक शोध के मुताबिक इकलौती संतान के मोटे होने की संभावना भी भाईबहन वाले बच्चों की तुलना में 50% अधिक होती है. यह निष्कर्ष यूरोप के 8 देशों के 12,700 बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया.

ऐसे बच्चे अन्य बच्चों की तरह घर से बाहर निकल कर कम खेलते हैं और टीवी देखने के ज्यादा आदी होते हैं. वे खानेपीने में भी मनमानी करते हैं. मांबाप प्यारदुलार में उन की हर मांग पूरी करते जाते हैं. इन वजहों से उन में मोटे होने की संभावना ज्यादा पाई जाती है.

एकल परिवार

आज के संदर्भ में देखा जाए तो इस तरह के शोधों और उन से निकाले गए निष्कर्षों पर गौर करना लाजिम है. आज बढ़ती महंगाई और बदलती जीवनशैली ने सामाजिक संरचना में परिवर्तन ला दिया है. संयुक्त परिवारों के बजाय अब एकल परिवारों को प्रमुखता मिल रही है. पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं. पत्नी को घर के साथ दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ती है. ऐसे में कभी परिस्थितिवश तो कभी सोचसमझ कर लोग एक ही बच्चे पर परिवार सीमित करने का फैसला ले लेते हैं. हाल ही में भारत में एक मैट्रिमोनियल साइट (शादी.कौम) द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक महिलाओं की तुलना में पुरुष एक से अधिक बच्चों की इच्छा अधिक रखते हैं. सर्वे में जहां 62% पुरुषों ने एक से ज्यादा बच्चों की जरूरत पर बल दिया, वहीं सिर्फ 38% महिलाओं ने ही इस में रुचि दिखाई.

दरअसल, पुरुष सोचते हैं कि बच्चे उन के जीवन के केंद्र हैं और एक सफल शादी के सूचक हैं, इसलिए वे ज्यादा बच्चे पसंद करते हैं. इस के विपरीत महिलाएं, जिन्हें मूल रूप से बच्चों के देखभाल की पूरी जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, कम बच्चे चाहती हैं. मैट्रोज के कपल्स पर आधारित इस सर्वे में पाया गया कि 42% मैरिड कपल्स के पास सिंगल चाइल्ड थे, जबकि 28% मैरिड कपल्स के 1 से ज्यादा बच्चे थे. इस सर्वे में एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि लव मैरिज करने वाले कपल्स सिंगल चाइल्ड तो अरैंज मैरिज वाले कपल्स 1 से ज्यादा बच्चे पसंद करते हैं. लव मैरिज करने वाले कपल्स में से 49% ने सिंगल चाइल्ड की इच्छा जताई, जब कि अरैंज मैरिज करने वाले कपल्स में से 62% एक से अधिक बच्चों के ख्वाहिशमंद थे, क्योंकि वे बेटा और बेटी दोनों ही चाहते थे.

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सोच में बदलाव

इस संदर्भ में मैट्रो हौस्पिटल की कंसल्टैंट साइके्रटिस्ट, अवनि तिवारी कहती हैं कि आजकल की बढ़ती महंगाई और टूटते संयुक्त परिवारों की परंपरा ने लोगों की सोच में बदलाव पैदा किया है. अब लोग बच्चे को जन्म देने का फैसला बहुत सोचविचार कर लेते हैं, क्योंकि पतिपत्नी दोनों को अपना कैरियर भी देखना होता है. उधर घर में सास, मां, मौसी, बूआ आदि की कमी रहती है. ऐसे में सारी जिम्मेदारी स्वयं उठानी पड़ती है. फिर अधिक उम्र में विवाह की वजह से भी रिप्रोडक्टिव कैपिसिटी घट रही है. बड़े शहरों में रहने वाले ज्यादातर कपल्स किसी तरह एक बच्चा तो मैनेज कर लेते हैं, क्योंकि ऐसा उन्हें समाज के लोगों का मुंह बंद करने और खुद भी मांबाप बनने का आनंद उठाने के लिए जरूरी लगता है. पर दूसरे बच्चे की बात पर उन्हें सोचना पड़ता है. अकसर यह भी होता है कि एक पार्टनर यदि इच्छुक भी है, तो दूसरा बढ़ती जिम्मेदारियों और खर्चों का वास्ता दे कर दूसरे को चुप करा देता है. ऐसे घरों में अब चूंकि बच्चा इकलौता होता है तो मांबाप की सारी उम्मीदें उसी से जुड़ी होती हैं. उन के पास यह विकल्प नहीं होता कि चलो एक बच्चा डाक्टर बनना चाहता है तो कोई बात नहीं, दूसरा मेरी मरजी के मुताबिक इंजीनियर या वकील वगैरह बन जाएगा. पतिपत्नी की सारी उम्मीदों का केंद्र वह इकलौता बच्चा रहता है.

बच्चा सोचता है कि सब कुछ तो मेरा ही है. इस से उस में न तो प्रतियोगी भावना पैदा होती है और न ही वह अच्छा पीयर रिलेशनशिप यानी हमउम्र साथियों से दोस्ती ही डैवलप कर पाता है. यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो संभव है कि बच्चा आत्मकेंद्रित हो जाए. पर मांबाप बचपन से उस में सही संस्कार और सोच पैदा करें तो इस स्थिति से बचा जा सकता है. मांबाप को चाहिए कि वे बच्चे को रिश्तेदारों और पड़ोसियों के हमउम्र बच्चों के साथ मिक्सअप होना सिखाएं. उस के हाथ से दूसरों को चीजें दिलवाएं. बच्चे को अकेला न छोड़ें. बड़े भाईबहन के रहने से छोटा बच्चा अकसर सारे काम जल्दी सीख जाता है, क्योंकि बड़ा भाई/बहन उसे सब सिखाता जाता है. पर चूंकि यहां बच्चा अकेला है, तो मांबाप को ही यह भूमिका निभानी होगी. बच्चे के साथ बच्चा बन कर रहना होगा, उस के साथ खेलना होगा और उसे अच्छी आदतें सिखानी होंगी.

मिथक और वास्तविकताएं

वैसे यह कहना कि बच्चा इकलौता है तो वह हमेशा ही हठी, स्वार्थी या आत्मकेंद्रित होगा, जरूरी नहीं है. यह बात महत्त्वपूर्ण है कि उस की परवरिश कैसे की गई है. आप महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध या फिर आइजैक न्यूटन का उदाहरण ले सकते हैं. ये भी इकलौते बच्चे थे पर मानवता और देशसेवा के नाम अपनी जिंदगी उत्सर्ग कर दी. दुनिया को नया ज्ञान दिया. बच्चे में आप शुरू से मिलजुल कर रहने और दूसरों के लिए परवाह करने की आदत डालें तो बड़े होने पर बच्चे का व्यक्तित्व संतुलित और उदात्त होगा. अकसर कहा जाता है कि अकेला बच्चा अकेलेपन का शिकार हो सकता है और आगे चल कर वह असामाजिक प्रवृत्ति का इंसान बनता है, पर यह भी जरूरी नहीं. ‘किंग औफ रौक ऐंड रौल’ कहे जाने वाले एल्विस प्रेश्ले को ही लीजिए. वे अपने असंख्य प्रशंसकों एवं दोस्तों के बीच काफी लोकप्रिय रहे. न सिर्फ गाने की वजह से वरन उदात्त और मिलनसार स्वभाव की वजह से भी. वे अपने दोस्तों की बहुत मदद करते थे और उन्हें हर तरह से सपोर्ट देते थे.

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रखें कुछ बातों का खयाल

  1. बच्चे से दोस्ताना व्यवहार करें. घर में उसे अकेला महसूस न होने दें.
  2. जब भी वक्त मिले, बच्चे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं. उसे अच्छी किताबें पढ़ने को दें.
  3. बच्चे को थोड़ा स्पेस भी दें. उस की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप न करें.
  4. जब बच्चा भाईबहन न होने की शिकायत करे तो उसे समझाएं कि चचेरेममेरे भाई बहन भी उतने ही करीबी हो सकते हैं. उसे रिश्तेदारों के बच्चों से मिलाने ले जाएं. आसपास के बच्चों से दोस्ती करने को प्रेरित करें.
  5. बच्चे में स्कूल में दोस्तों और घर में रिश्तेदारों के बच्चों के साथ मिल कर रहने, अपनी चीजें शेयर करने और अच्छा बरताव करने की आदत डालें.
  6. बच्चे पर जरूरत से ज्यादा प्रैशर न डालें. अकेला बच्चा है तो आप उसे हर क्षेत्र में परफैक्ट देखना चाहेंगे. उस के जरीए अपना सपना पूरा करना चाहेंगे. पर ध्यान रखें, इस चक्कर में उस पर अनावश्यक दबाव न बनाएं. उसे अपना बचपन जीने दें.
  7. अपने बच्चे की केयर करने और उस की खुशियों की परवाह करने के साथ उसे अनुशासन में रहना भी सिखाएं. उस की हर जायज व नाजायज मांग पूरी न करें. उस की इच्छा का खयाल रखें. पर वह गलत बात की जिद करे तो मना करें.
  8. अपने बच्चे में अच्छे मानवीय गुणों, नैतिक मूल्यों और संस्कारों की नींव डालने का प्रयास करें.
  9. किसी भी चीज का सकारात्मक पक्ष देखने की आदत भी डालें.
  10. बच्चा आप के लिए अनमोल है पर उसे यह एहसास न दिलाएं कि वह दूसरों से बढ़ कर  है या उस की खुशी के लिए आप किसी भी हद तक जा सकते हैं. बच्चे को सामान्य जिंदगी जीने दें. उसे घमंडी या बदतमीज न बनाएं. कभीकभी उसे गलत काम करने पर डांटें और सजा भी दें.
  11. बच्चे में सदैव मखमली बिस्तर पर रहने की आदत न डालें. उस में अपना काम स्वयं करने की आदत बचपन से डालें. यही नहीं घरेलू कामों में भी उसे अपनी मदद के लिए बुलाएं. इस से जहां उसे काम में सहयोग देने की आदत पड़ेगी, वहीं आप के साथ अधिक वक्त बिताने का मौका भी मिलेगा.

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