जब बेवजह हो चिड़चिड़ाहट

श्वेता को आजकल हर छोटीबड़ी बात मन पर लग जाती है. कोरोनाकाल में पूरा दिन घर में कैद रह कर उस का मन हर समय बु झाबु झा रहता था. अब कोरोनाकाल तो समाप्ति की तरफ है परंतु श्वेता के अंदर एक ऐसी मायूसी बैठ गई है कि अब  बातबात पर पति और बच्चों को  झिड़कना श्वेता की जिंदगी में आम हो गया है. परिणामस्वरूप पति और बच्चे श्वेता से कटेकटे रहते हैं.

मनीषा का किस्सा कुछ अलग है. नित नए पकवान, ब्यूटी ट्रीटमैंट और घर के कोनेकोने को चमकना सबकुछ मनीषा की दिनचर्या का हिस्सा था. परंतु जब शादी के 4 वर्ष बाद भी उसे कोई संतान नहीं हुई तो वह बेहद निराश हो गई. पासपड़ोस और रिश्तेदारों के बारबार तहकीकात करने पर मनीषा चिड़चिड़ी हो गई थी.

अब वह अपने पति और सासससुर की हर छोटी बात पर रिएक्ट कर देती है. उसे लगने लगा जैसे उस की जिंदगी से रौनक चली गई है. अब वह जिंदगी को बस ढो रही है.

गौरव की कंपनी में छंटनी शुरू हो गई है. वह पिछले 3 माह से एक अज्ञात भय में जी रहा है. हर समय घर के खर्चों पर टोकाटाकी करता रहता है. उस की पत्नी पूनम को अब सम झ ही नहीं आता कि वह गौरव के साथ कैसे डील करे. दोनों के बीच एक घुटन व्याप्त है जो कभी भी बम की तरह फूट सकती है.

नीति की समस्या कुछ अलग है. बेटी को जन्म देने के पश्चात पिछले 5 माह से नीति ने पार्लर का मुंह नहीं देखा है. अपने रूखेसूखे  झाड़ जैसे बाल, बढ़ी हुई आई ब्रोज और अपर लिप्स सबकुछ उसे चिड़चिड़ा रहा है.

नीति के अनुसार, ‘‘मैं खुद अपनी शक्ल आईने में देखने से डरती हूं, एक अजीब सी हीनभावना मन में घर कर गई है.’’

नीति को अपनी बेटी दुश्मन सी लगने  लगी थी.

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आजकल के समय में यह चिड़चिड़ापन, अकेलापन, अवसाद दिनप्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है. जिंदगी में कब क्या हादसा हो जाए, कोई नहीं जानता है. पर जिंदगी की खुशियों पर चिड़चिड़ाहट का ब्रेक न लगाएं. कुछ छोटेछोटे बदलाव कर के आप अपनेआप को स्थिर और शांत कर सकती हैं.

आदतों को स्वीकार करें:

चिड़चड़ाहट का मुख्य कारण होता है कि सामने वाला मेरे हिसाब से क्यों व्यवहार नहीं कर रहा है. परिवार के हर सदस्य को जैसा है वैसा ही स्वीकार करें. न खुद बदलें, न उन्हें बदलने को कहें.

आप उन्हें सलाह जरूर दे सकती हैं क्योंकि आप उन की शुभचिंतक हैं. उन्हें अगर ठीक लगेगा तो वे अवश्य उसे अपनाएंगे. अपनी मनोस्थिति को उन के व्यवहार के ऊपर निर्भर न होने दे.

खुद को समय दें:

जब तक आप खुद खुश नहीं रहेंगी तो दूसरों को कैसेखुश रखेंगी. इस के लिए खुद के साथ समय बिताएं. इस का मतलब यह नही है कि कमरा बंद कर के बैठ जाएं.

कोई भी ऐसा कार्य करें जो आप को स्फूर्ति और खुशी दे. आप अंदर से जितनी ऊर्जावान महसूस करेंगी उतना ही दूसरों के साथ आप के रिश्ते अच्छे बनेंगे.

प्लानिंग करें:

अधिकांश परिवारों में आर्थिक मंदी चिड़चिड़ापन बढ़ने का एक मुख्य कारण होता है. आर्थिक मंदी का अस्थायी दौर  होता है जो गुजर जाता है. यही वह समय है जब आप अपने पति या परिवार के सदस्यों को मानसिक एवं आत्मिक संबल दे सकती हैं.

हर माह के आरंभ में ही प्लानिंग करें और गैरजरूरी खर्चे जैसे बेवजह की औनलाइन शौपिंग, कपड़े, कौस्मैटिक्स आदि पर कटौती बड़े आराम से कर सकती हैं. जब यह प्लानिंग करें अपने परिवार के हर सदस्य को शामिल करें.

हर सदस्य को जब आर्थिक स्थिति का पता रहेगा तो कोई भी ताना या उलहाना नहीं देगा. यह परिवार में बेवजह का तनाव पनपने नहीं देगा.

सकारात्मक सोच रखें:

कैसी भी परिस्थिति हो, अगर आप नकारात्मक सोच रखेंगी तो चिड़चिड़ापन और अधिक बढ़ जाएगा. सकारात्मक सोच के साथ यदि परिस्थिति का सामना करेंगी तो बुरी से बुरी परिस्थिति का भी सामना बेहतर ढंग से कर पाएंगी. सकारात्मक सोच आप की सेहत के लिए भी एक रामबाण की तरह है.

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दिनचर्या को व्यवस्थित करें:

आजकल यह आम हो गया है कि लोग किसी भी समय सो रहे हैं और उठ रहे हैं. पहले बच्चों के स्कूल जाने के कारण बहुत हद तक सोनेउठने का समय व्यवस्थित था. अब समयसारिणी बिखर सी गई है.

याद रखें एक अव्यवस्थित दिनचर्या तनाव को बढ़ाने में सहायक होती है. घर पर रहने का मतलब यह नहीं कि आप किसी भी समय उठें या सोएं. ऐसा कर के अनजाने में आप बहुत सारी बीमारियों को भी न्योता दे रही हैं.

तुलना करना है व्यर्थ:

आप जहां भी हैं और जैसी भी हैं इस समय एकदम परफैक्ट हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में आप को अपने से बेहतर भी और कमतर भी मिलेंगे. आप से कमतर लोग हो सकता है.

आप से बेहतर कर  रहे हों परंतु तुलना कर के चिड़चिड़ापन मत बढ़ाएं क्योंकि यह जीवन है और  इस का कोई फिक्स्ड फौर्मूला नहीं होता है. चिड़चिड़ापन आप के साथसाथ आप के रिश्तों पर भी बुरा प्रभाव डालेगा. ‘ये वक्त तो अपनों के सहारे कट जाएगा, संयम से आने वाला कल बेहतर हो पाएगा.’ –

रितु वर्मा

धोखा खाने के बाद भी लोग धोखेबाज व्यक्ति के साथ क्यों रहते हैं?

कई बार लोगों को पता होता है कि उनके पार्टनर ने उन्हें चीट किया है और वह फिर भी इस स्थिति से बाहर नहीं निकलते हैं. ऐसा माना जाता है कि अगर आप खुद को धोखा खा कर भी उसी जगह रखते हैं और आगे नहीं बढ़ते हैं तो आप खुद की कदर नहीं कर रहे हैं और खुद की कदर खुद ही घटा रहे हैं. लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता है. इसके अलावा भी बहुत से कारण होते हैं जिनकी वजह से लोग अपने धोखेबाज पार्टनर के साथ रह लेते हैं और इसका कारण यह नहीं होता कि वह खुद की वैल्यू नहीं समझते हैं. आज हम कुछ ऐसे ही लोगों के बारे में बात करेंगे जो धोखा खा कर भी धोखेबाज के साथ रहे हैं और जिन्होंने इसके पीछे का अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया है कि ऐसी कौन कौन सी वजहें थी जिसकी वजह से उन्हें ऐसा करना पड़ा. आइए कुछ वजहों को जानते है.

परिवार उनके रिश्ते से अधिक आवश्यक होता है

एक 37 वर्षीय महिला अपना अनुभव बताती हुई कहती हैं कि उन्हें पता चल गया था कि उसके पति उन्हें धोखा दे रहे हैं लेकिन अलग होने से पहले उनके मन में उनकी बेटी के बारे में सवाल जागा कि अगर वह अलग हो गई तो उनकी बेटी का क्या होगा. उन्हें पिता का प्यार किस प्रकार मिलेगा. उनकी बेटी अब अपनी विकास होने वाली उम्र में थी और अगर अब वह अलग हो जाती हैं तो इससे उनकी बेटी के दिमाग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता था और उनके लिए यह सब सह पाना आसान नहीं होता. इसलिए उन्हें अपने धोखेबाज पति के साथ ही रहना पड़ा.

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सामाजिक शर्मिंदगी का डर

कुछ महिलाएं इस स्थिति से बाहर इसलिए भी नहीं निकल पाती हैं क्योंकि उन्हें यह डर रहता है कि अगर वह अपने पति से अलग हो गई तो समाज उन्हें बहुत से ताने देगा. ऐसे में ही एक महिला कहती हैं कि अगर वह इस बात का खुलासा सब के आगे कर देंगी तो उनके आस पड़ोस की आंटी उस महिला को ही सारी स्थिति का जिम्मेवार ठहराएगी. उनके मुताबिक वह महिला ही होती है जो अपने पति की शारीरिक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती जिस कारण वह दूसरी महिला के पास जाता है. यह भी महिलाओं के लिए एक सबसे बड़ी चुनौती होती है.

प्यार के लिए लड़ना

अगर हम किसी से प्रेम करते हैं और उन्हें किसी और व्यक्ति से प्रेम हो जाता है तो हम अपने रिश्ते को बचाने के लिए अंत तक कोशिश करते रहते हैं ताकि हम उनके प्यार को दोबारा पा सकें. ऐसा ही एक केस एक पुरुष के साथ भी हुआ. उनकी पत्नी उन्हें हर रोज बताती कि वह अपने सह कर्मी के साथ कैसा महसूस करती हैं और वह उसे कितना स्पेशल फील करवाता है. इसी बीच वह अपनी पत्नी का प्यार दुबारा पाने के लिए और अधिक प्रयास करने लग जाते हैं ताकि उन्हें उनका प्यार दोबारा से मिल सके.

इमोशनल जुड़ाव

जब दो लोग एक दूसरे से प्यार करते हैं और वह एक दूसरे का सहारा बन जाते हैं तो एक दूसरे से इस प्रकार जुड़ जाते हैं कि वह किसी और के साथ अपने पार्टनर को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. अगर वह अकेले रहने की भी सोचते हैं तो इस ख्याल से ही उनका दिल बहुत अधिक हर्ट होने लगता है. ऐसी ही एक महिला बताती हैं कि उनके पति ने किसी और को किस किया लेकिन वह चाह कर भी उन्हें नहीं छोड़ सकती क्योंकि जब उनके पिता की मृत्यु हुई तो उन्होंने उनका बहुत सपोर्ट किया था लेकिन तब से ही उनका रिश्ता खराब होने लगा था.

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कुछ लोग लोगों के मजाक से डरते हुए भी एक दूसरे के साथ रहते हैं क्योंकि उन्होंने अपने पूरे फ्रेंड सर्कल को अपने रिश्ते के बारे में बताया होता है और ब्रेक अप के बाद उनके दोस्त कहीं उनका मजाक न उड़ाने लगे इसलिए वह ऐसा नहीं करते.

जरूरी है प्रीमैरिज काउंसलिंग

राघव एक दवा बनाने वाली कंपनी में काम करता है. जब उस का रिश्ता तय हुआ तो उसे लगा कि उस ने गलती से ‘हां’ कर दी है. बारबार उसे यह बात कचोटने लगी कि लड़की की शक्ल ठीक नहीं है. राघव का जीजा उस का घनिष्ठ मित्र था और उस पर उसे पूरा भरोसा भी था. जब वह लड़की देखने गया तो किसी कारण से जीजा आ नहीं सका था. सब के कहने पर उस ने हां कर दी पर अब वह तय नहीं कर पा रहा था.

राघव को जब एक काउंसलर के पास लाया गया तो उस ने अपने दिल की बात उस से की कि लड़की सुंदर नहीं है और वह अगर उस से शादी करेगा तो सारी जिंदगी उसे खुश नहीं रख पाएगा. आखिरकार रिश्ता तोड़ दिया गया और विवाह से पहले सलाह लेने से 2 जिंदगियां बरबाद होने से बच गईं.

पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी तलाक का ग्राफ निरंतर बढ़ता जा रहा है. इस की मुख्य वजह है नई पीढ़ी की अपनी एक सोच होना, जो उन्हें अपने ढंग से जीने के लिए उकसाती है. अपनी इच्छाओं को दबाती नहीं है बल्कि अपने हक की लड़ाई लड़ती है. इसलिए उम्मीदें पूरी न होने पर बात तलाक तक पहुंच जाती है.

तलाक की सब से बड़ी वजह है पतिपत्नी के बीच शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक असंगति होना. इस के नतीजतन देखा गया कि 90 प्रतिशत युगल अवसाद का शिकार हो जाते हैं.

असल में प्यार करना, रिश्तों में बंधना आसान है पर उन्हें निभाना मुश्किल है. विवाह से पहले क्या कोई बताता है कि किस तरह से भावनात्मक रूप से सुदृढ़ और शारीरिक रूप से संतुष्ट रिश्ता कायम किया जाए. शायद नहीं, क्योंकि अभी भी हमारे देश में मातापिता या भाईबहन खुल कर विवाह से जुडे़ मसलों पर बात नहीं करते हैं.

प्रीमैरिज काउंसलिंग का उद्देश्य होता है युवा पीढ़ी को विवाह के बंधन की पूरी जानकारी देना ताकि युवकयुवती एकदूसरे के प्रति सम्मान रखते हुए एक स्नेहपूर्ण व मर्यादित रिश्ता जी सकें. स्वस्थ यौन संबंधों की जानकारी वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने के लिए बहुत जरूरी है. अन्य विकासशील देशों की तरह भारत में यौन शिक्षा की जानकारी अभी भी स्कूलकालिज में नहीं दी जाती है इसलिए पतिपत्नी को एकदूसरे की जरूरतों को समझने और सही तरह से संबंध कायम करने के लिए प्रीमैरिज काउंसलिंग आवश्यक है.

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अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डा. संदीप वोहरा का कहना है, ‘‘प्रीमैरिज काउंसलिंग की यह अवधारणा पूरी तरह से पश्चिमी है. भारत में करीब 5 साल पहले इसे मान्यता मिली है और अभी भी यह अपनी प्रारंभिक अवस्था में है. आज की पीढ़ी कैरियर पर ज्यादा ध्यान देती है और चाहती है कि उन के प्रोफेशन के सामने कोई अवरोध न आए. वे मानसिक रूप से सशक्त नहीं हैं इसलिए चाहे वह व्यक्तिगत संबंध हो या प्रोफेशनल, उन्हें समझने के लिए उन के पास न तो समय है न ही कोई दिशा. वे सब से पहले अपने होने वाले जीवनसाथी की शक्ल देखते हैं, आकर्षण को महत्त्वपूर्ण मानते हैं. हम उन्हें समझाते हैं कि यह गौण चीज है और जरूरी है हर स्तर पर संगति होना.’’

मनोवैज्ञानिक और काउंसलर हेमा गुप्ता का कहना है, ‘‘हमारे जीवन के 2 मुख्य पहलू काम और परिवार वाटर टाइट कंपार्टमेंट नहीं हैं, वे एकदूसरे से संबंधित हैं. विवाह से पहले इन दोनों विषयों पर स्पष्ट रूप से बात करना जरूरी है क्योंकि लड़के के लिए आज उस का काम जितना आवश्यक है उतना ही लड़की के लिए भी है. अगर इस स्तर पर वे सामंजस्य नहीं बिठा पाते हैं तो मतभेद होना स्वाभाविक ही है.

‘‘आज से 20-25 साल पहले तक मातापिता बच्चों से पूछते तक नहीं थे कि वे क्या चाहते हैं क्योंकि माना जाता था कि विवाह एक समझौते का नाम है पर अब विवाह का अर्थ है दोनों का समान रूप से विकास. विवाह 100 प्रतिशत सामंजस्य का नाम है पर उस का अर्थ है एकदूसरे को जैसे वे हैं उसी रूप में स्वीकारना. अकसर जब काउंसलिंग के लिए लड़कालड़की आते हैं तो एक ही सवाल उन्हें परेशान करता है कि उन्हें कैसे पता चले कि सामने वाला उन के लिए कैसा है? वे साथी के बारे में भी विस्तार से जानने को इच्छुक होते हैं.’’

आज जब लड़कालड़की दोनों ही अपनी स्वतंत्र सोच रखते हैं और आत्मनिर्भर रहते हुए आत्मसम्मान के साथ जीवन बिताना चाहते हैं, ऐसे में प्रीमैरिज काउंसलिंग बहुत ही प्रभावी जरिया है.

प्रीमैरिज काउंसलिंग के दौरान घरपरिवार, नौकरी, उत्तरदायित्व और समझौतों पर तो बात होती ही है, सेक्स संबंधी समस्याओं को ले कर भी लड़कालड़की में अनेक सवाल होते हैं. अपोलो अस्पताल की वरिष्ठ स्त्रीरोग विशेषज्ञ डा. गीता चड्ढा का कहना है, ‘‘अगर लड़की वर्जिन होती है तो उसे हम सेक्स की जानकारी देते हैं कि किस तरह पतिपत्नी को शारीरिक रिश्ता कायम करना चाहिए. विवाह के बाद भी ऐसे युगल आते हैं जो कहते हैं कि वे महीनों बीत जाने पर भी शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर पाए हैं.

जिन लड़कियों का हाइमन किसी वजह से फट गया है, उस मामले में हम लड़के को समझाते हैं कि ऐसा खेलकूद के दौरान हो जाता है और आवश्यक नहीं कि प्रथम सहवास के दौरान लड़की को रक्तस्राव हो. जो युगल विवाह होते ही संतान नहीं चाहते हैं उन्हें हम विभिन्न गर्भनिरोधकों की जानकारी देते हैं. विवाह से पहले ही लड़की को गर्भनिरोधक पिल्स देना शुरू कर देते हैं ताकि विवाह के बाद वह तनावग्रस्त न रहे.

‘‘कई लड़कियां जो 30 वर्ष से अधिक की होती हैं, वे चाहती हैं कि संतान जल्दी हो जाए तो हम जांच करते हैं कि वे स्वस्थ हैं कि नहीं और विवाह के तुरंत बाद गर्भवती होना ठीक रहेगा या नहीं.

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विवाह से पूर्व यौनसंबंधों के बारे में स्वस्थ जानकारी होना नितांत आवश्यक है क्योंकि यह ऐसा संवेदनशील विषय है जिसे ले कर लड़कालड़की दोनों के मन में एक घबराहट रहती है.’’

वास्तविकता तो यह है कि बेशक प्रीमैरिज काउंसलिंग की अवधारणा पाश्चात्य सभ्यता की देन है पर हर समाज में इस की जरूरत है. खासकर भारत जैसे देश में जहां अभी भी विवाह को ले कर मांबाप और लड़केलड़कियों के मन में पूर्वाग्रह हैं. इस के द्वारा वह विवाह से पहले ही साथी की कमियों, खूबियों और उम्मीदों को समझ विवाह के बाद रिश्ते को बेहतर बना सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि वह जान जाते हैं कि उन्हें विवाह के बाद किस स्तर पर और कितना सामंजस्य करना होगा.

कमिटमेंट का मतलब गुलामी नहीं

‘‘शादी से पहले तो बड़े वादे किए थे कि तुम्हें पलकों पर बैठा कर रखूंगा, तुम्हें दुनिया भर की खुशियां दूंगा, तुम सिर्फ मेरी रानी बन कर रहोगी. कहां गए वे वादे? तुम्हें तो मेरी फीलिंग्स की कोई परवाह ही नहीं है. तुम आखिरी बार मुझे कब किस हिलस्टेशन घुमाने ले कर गए थे? अब तुम्हें मेरी कोई परवाह नहीं है. अब तुम मुझ से प्यार नहीं करते.’’

‘‘तुम तो जब देखो सिर्फ शिकायतें ही करती रहती हो, कोशिश करता तो हूं हर वादा पूरा करने की. तुम समझती क्यों नहीं? पहले हालात और थे अब कुछ और हैं. अब हमारी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं. हमें अपने भविष्य की प्लानिंग भी तो करनी है. तुम क्या चाहती हो नौकरी छोड़ कर तुम्हारे साथ घूमता रहूं? तुम भी तो कितनी बदल गई हो. तुम ने भी तो शादी के समय वादा किया था कि कभी कोई शिकायत नहीं करोगी. मेरे साथ हर हाल में खुश रहोगी. फिर आए दिन की ये शिकायतें क्यों? मैं तो तुम से कमिटमैंट कर के फंस गया. इस से अच्छा तो मैं शादी से पहले था. तुम तो हर समय मुझे अपने हिसाब से चलाना चाहती हो. हमारा रिश्ता बराबरी का है. हम लाइफपार्टनर हैं. मैं तुम्हारा कोई गुलाम नहीं हूं.’’

विवाह के 1-2 साल बाद हर पतिपत्नी के बीच कमिटमैंट का यह सीन आम देखने को मिलता है. दरअसल, विवाह के समय फेरों के वक्त वरवधू द्वारा लिए गए वचनों से ही कमिटमैंट की शुरुआत हो जाती है. अगर आप विवाह का शाब्दिक अर्थ जानेंगे तो पाएंगे कि इस का अर्थ है विशेष रूप से उत्तरदायित्व यानी जिम्मेदारियों का वहन करना. जबकि विवाह का बेसिक कौन्सैप्ट होता है एकदूसरे की योग्यताओं और भावनाओं को समझते हुए गाड़ी के 2 पहियों की तरह प्रगतिपथ पर अग्रसर होते जाना. एकदूसरे का पूरक होना. लेकिन कई बार विवाह के समय एकदूसरे से किए गए कमिटमैंट्स बाद में दोनों के बीच विवाद का कारण बन जाते हैं, जिस का परिणाम हत्या, आत्महत्या या फिर तलाक के रूप में निकलता है.

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कमिटमैंट का अर्थ समर्पण नहीं

जब 2 लोग वैवाहिक बंधन में बंधते हैं, तो वे एकदूसरे से अनेक वादे करते हैं जैसे हम एकदूसरे को हर हाल में खुश रखेंगे, सारी जिम्मेदारियां मिलबांट कर निभाएंगे, एकदूसरे के साथ प्यार और विश्वास से रहेंगे, कभी एकदूसरे का विश्वास नहीं तोड़ेंगे आदिआदि. लेकिन जैसेजैसे वैवाहिक जीवन के साल गुजरने लगते हैं और जीवन वास्तविकता की पटरी पर चलने लगता है, सारे वादे हवा होने लगते हैं और दोनों एकदूसरे को टेकन फौर ग्रांटेड लेने लगते हैं. उन के साथ उन के अलावा अन्य रिश्ते जुड़ने लगते हैं और शुरू हो जाती हैं शिकायतें और एकदूसरे पर कमिटमैंट्स न पूरा करने के आरोप.

दरअसल, आज वैवाहिक रिश्तों का रूप बदल रहा है. आज इस रिश्ते में पर्सनल स्पेस, प्राइवेसी, सैल्फ रिसपैक्ट जैसे शब्द ऐंटर कर रहे हैं. अब इन शब्दों को आधार बना कर हर हाल में रिश्ता निभाना जरूरी नहीं रह गया. आज की वाइफ टिपिकल वाइफ नहीं रही. आज पतिपत्नी की जिम्मेदारियों की अदलाबदली हो रही है. जहां पत्नी ‘का’ बन कर घर की चारदीवारी लांघ कर आर्थिक जिम्मेदारियां संभाल रही है, वहीं पति भी ‘की’ बन कर घर की जिम्मेदारियां संभाल रहा है. आज वैवाहिक रिश्ते का कौन्सैप्ट पार्टनरशिप वाला यानी साझेदारी वाला हो गया है और दोनों में से कोईर् एक भी कमिटमैंट कर के समर्पण नहीं करना चाहता. आज की इन बदली परिस्थितियों में पार्टनरशिप यानी साझेदारी वाले इस रिश्ते में कमिटमैंट करना गलत नहीं है और हम यह भी नहीं कह रहे कि आप कमिटमैंट करने से बचें, लेकिन दोनों पार्टनर में से अगर कोई एक कमिटमैंट करता है, तो दूसरे को समझना होगा कि ऐसा कर के उस ने समर्पण नहीं किया है और न ही वह आप का गुलाम बन गया है.

क्यों ब्रेक होते हैं कमिटमैंट

शादी के समय चूंकि सब बहुत खुशनुमा होता है, सब कुछ अच्छा होता है, हालात फेवरेबल होते हैं, इसलिए पतिपत्नी एकदूसरे से ढेर सारे वादे कर लेते हैं, लेकिन उस समय वे यह नहीं जानते कि आने वाले समय में परिस्थितियां बदल सकती हैं. हो सकता है आज आप के पास एक बड़ी कंपनी में एक अच्छी नौकरी है, लेकिन आप नहीं जानते कल हो या न हो. आज आप का बिजनैस बहुत अच्छा चल रहा है, कल ऐसा चले या न चले. आज आप जौइंट फैमिली में हैं जहां आज भले ही आप को वैस्टर्न परिधान पहनने की आजादी न हो पर कल को हो सकता है आप की नौकरी विदेश में लग जाए जहां आप को सिर्फ वैस्टर्न परिधान ही पहनने को मिलें. दरअसल, परिस्थितियों के हिसाब से कमिटमैंट्स बदल जाते हैं. लेकिन परिस्थितियां बदल जाने से अगर आप अपने कमिटमैंट्स पूरे नहीं कर पाए, तो इस का अर्थ यह नहीं कि आप ने कमिटमैंट तोड़ दिया यानी आप ने गुनाह कर दिया और पार्टनर इस बात के लिए आप को दोषी ठहराए. इसलिए दोनों पार्टनर की इसी में भलाई है कि वे पुराने कमिटमैंट्स को भूल कर वर्तमान जिंदगी में जीएं.

रिश्ता बराबर की साझेदारी का

पति ने पत्नी से कमिटमैंट किया कि वह उसे हर साल कहीं घुमाने ले जाया करेगा. लेकिन 1 साल वह अपनी फाइनैंशियल प्रौब्लम के चलते ऐसा नहीं कर पाया, तो पत्नी को इसे कमिटमैंट तोड़ना नहीं समझना चाहिए वरन पति की स्थिति को समझ कर यह कहना चाहिए कि कोई नहीं जब हमारी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी तब चले जाएंगे. विवाह प्रकृति की देन नहीं, मनुष्य की अपनी बनाई संस्था है, जो 2 लोगों को एकदूसरे का साथ, सुरक्षा और हमदर्द देती है. यह सुख का मामला है और सुख पाना है, तो पतिपत्नी को अपने कमिटमैंट्स खुद तय करने होंगे, दोनों को एकदूसरे का वजूद स्वीकारना होगा, क्योंकि मामला बराबरी का है. कमिटमैंट का अर्थ बंधन या अपनी आजादी खोना हरगिज नहीं है.

कमिटमैंट प्यार है पत्थर की लकीर नहीं

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट प्रांजलि मल्होत्रा का मानना है कि पतिपत्नी जब नएनए विवाह बंधन में बंधते हैं, तो उन के लिए एकदूसरे से कमिटमैंट करना आसान होता है, क्योंकि उस समय सारे हालात फेवरेबल होते हैं, लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है दोनों के लिए उन कमिटमैंट्स को निभाना मुश्किल होता चला जाता है और दोनों को लगता है कि वे वादे से मुकर रहे हैं या कहें दोनों एकदूसरे पर वादाखिलाफी का आरोप लगाने लगते हैं. परिणामस्वरूप रिश्तों में तूतू, मैंमैं यानी कड़वाहट बढ़ने लगती है. अगर पतिपत्नी के बीच विश्वास की बात की जाए तो भी समय के साथ दोनों के बीच विश्वास की जगह शक घर करने लगता है. पतिपत्नी दोनों में से कोई भी एक अगर किसी अपोजिट सैक्स से बात करता है, तो दूसरे को लगता है कि उस के पार्टनर ने अपना लौयल रहने का कमिटमैंट तोड़ दिया. जबकि वह चैटिंग या मीटिंग, प्रोफैशनल भी तो हो सकती है. मगर इस ओर दोनों का ध्यान नहीं जाता. पति अगर देर रात घर आए तो पत्नी को लगता है उस का किसी के साथ चक्कर है जबकि इस का कारण औफिस की जिम्मेदारियां भी तो हो सकती हैं. इसीलिए पतिपत्नी को विवाह के समय में एकदूसरे से कमिटमैंट करते समय यह भी कह देना चाहिए कि मैं जो भी वचन तुम्हें दे रहा हूं या दे रही हूं उसे निभाना उस समय के हालात पर डिपैंड करेगा. हां, समय के साथ भले ही मेरा कमिटमैंट, मेरी प्राथमिकताएं बदल जाएं पर मेरा तुम्हारे प्रति प्यार हमेशा बना रहेगा. हम मिल कर सारी जिम्मेदारियां निभाएंगे.

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प्रांजलि मल्होत्रा के अनुसार, पतिपत्नी के रिश्ते में जहां तक कमिटमैंट और सबमिटमैंट की बात है कई बार दोनों पार्टनर में से एक के नेचर में होता है सबमिसिव होना. उस के परिवार की परिस्थितियां, उस का पालनपोषण का तरीका जहां उसे हर बात के लिए दबाव डाला जाता रहा हो तो वह विवाह के बाद भी अपने उस स्वभाव को बदल नहीं पाता और अपने रिश्ते में लड़ाईझगड़े से बचने के लिए खुद का समर्पण करता चला जाता है, हर कमिटमैंट को पूरा करने की कोशिश में शोषित फ्रस्ट्रेटेड होता रहता है.

ऐसा नहीं कि कमिटमैंट में सिर्फ पत्नी को ही खुद को सबमिट करना पड़ता है. कई बार पति के स्वभाव में भी सबमिसिव नेचर होता है और वह हर बात को मानता चला जाता है, लेकिन कमिटमैंट का अर्थ यह कदापि नहीं कि आप ने कमिटमैंट कर के कोई डील साइन कर दी, जिसे हर हाल में फुलफिल करना होगा. कमिटमैंट पतिपत्नी के बीच आपसी प्यार है, खुशहाल जिंदगी के लिए कोई पत्थर की लकीर नहीं. कुछ लोग इसे समझौते का नाम देते हैं, जो सही नहीं है. ऐडजस्टमैंट सही शब्द है, जहां दोनों एकदूसरे की स्थिति को समझते हैं, समय के साथ खुद को बदल लेते हैं और एकदूसरे के वजूद का सम्मान करते हैं.

प्रांजलि मल्होत्रा का यह भी कहना है कि पतिपत्नी एकदूसरे से कमिटमैंट करने से डरें नहीं, क्योंकि यह किसी भी तरह से गलत नहीं है. लेकिन ध्यान रहे कमिटमैंट का अर्थ गुलामी बिलकुल नहीं है, क्योंकि यह रिश्ता बराबरी का है, साझेदारी का है.

बच्चों को झूठा बनाते हैं माता पिता

रश्मि इस बात को ले कर बहुत परेशान रहती है कि उस का 12 साल का बेटा गुंजन झूठ बोलने लग गया है. बातबात पर उसे झूठ बोलने की लत लग गई है. खेलने के चक्कर में वह कह देता है कि उस ने स्कूल का होमवर्क कर लिया है जबकि स्कूल से टीचर का फोन आता है कि गुंजन ने होमवर्क नहीं किया. जब उस से इस का कारण पूछा गया तो उस ने बताया कि रात को वह मम्मीपापा के साथ पार्टी में चला गया था, इसलिए होमवर्क करने का समय ही नहीं मिला. यह सुन कर रश्मि हैरान रह गई कि कल गुंजन ने उस से कहा था कि उस ने होमवर्क पूरा कर लिया है.

कुछ ऐसा ही हाल सौम्या का है. उस ने अपने 16 साल के बेटे रोहन को इंजीनियरिंग की कोचिंग क्लास में ऐडमिशन दिलाया. रोहन रोज नियत समय पर कोचिंग जाने के लिए घर से निकलता. एक दिन उस के पापा ने उसे दोस्तों के साथ चौराहे के एक ढाबे में बैठा देख लिया. रोहन के घर लौटने पर उस के पापा ने पूछा कि वह कहां गया था तो उस ने बेबाकी से कहा कि कोचिंग के लिए गया था. यह सुन उस के पापा और सौम्या का माथा ठनक गया. वे समझ चुके थे कि उन का बेटा पढ़ाई में मन नहीं लगा रहा, ऊपर से झूठ बोलने लगा है.

अधिकतर मातापिता की यह आम परेशानी है कि उन के बच्चे उन से झूठ बोलने लगे हैं. स्कूल से भी टीचर की शिकायतें आती हैं कि बच्चा होमवर्क नहीं करता है और डांट एवं पिटाई से बचने के लिए रोज नए बहाने बनाता है. ऐसी शिकायतों को ले कर खुद का सिरदर्द बढ़ाने वाले अभिभावक को दरअसल खुद की आंखें खोलने की जरूरत है. अगर अभिभावक से कहा जाए कि अपने बच्चों को झूठा बनाने या बिगाड़ने में उन का बड़ा हाथ है तो एकबारगी वे चौंक जाएंगे और उलटा सवाल दागेंगे कि क्या हम खुद अपने बच्चों को बिगाड़ेंगे? अरे भई, हर कोई अपने बच्चों को अच्छा आदमी बनाना चाहता है.

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कई अभिभावक तो अपने ऊपर लगे ऐसे आरोपों को सुन कर भड़क उठेंगे. पर अगर वे गंभीरता से सोचेंविचारें, तो बच्चों के बिगड़ने के ज्यादातर मामलों में वे खुद को ही जिम्मेदार पाएंगे. कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए. हमेशा सच बोलो. झूठ बोलने से जिंदगी बरबाद हो जाती है. अगर कोई गलती हो जाए तो सचसच बता देना चाहिए. मां, बाप और गुरु से कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए. यही सब हम अपने बच्चों को घुट्टी की तरह पिलाते रहते हैं और समझ बैठते हैं कि बच्चा ये बातें सीख कर सच्चा और अच्छा इंसान बनेगा. जब अभिभावकों को महसूस होता है कि उन का बच्चा वह नहीं सीख रहा है जो वे उसे सिखा रहे हैं, बल्कि वह तो दूसरा ही पाठ पढ़ चुका है. जब तक अभिभावकों को यह बात समझ में आती है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.

बी एन कालेज के पिं्रसिपल पी के पोद्दार कहते हैं कि हर पेरैंट्स को यह बात समझने की जरूरत है कि उन के बच्चे वह नहीं सीखते जो वे उन्हें सिखाते हैं या सिखाने की कोशिशों में लगे रहते हैं. बच्चे वही सीखते हैं जो वह अपने मां, पिता और घर एवं आसपास के बड़ों को करते हुए देखते हैं. मम्मी, पापा, चाचा, दादा, नाना आदि के रंगढंग को देख कर ही बच्चे हर चीज सीखते हैं. बच्चे अपने से बड़ों के कथनी और करनी के अंतर को काफी जल्दी व गहराई से ताड़ लेते हैं.

बच्चों को यह देख कर हैरानी होती है कि पापा उसे तो झूठ नहीं बोलने को कहते हैं पर जब उन के औफिस से या किसी दोस्त का फोन आता है तो उस से ही कहलवा देते हैं कि पापा घर पर नहीं हैं या टौयलेट में हैं. पापा घर में बैठे रहते हैं और जब उन के बौस का फोन आता है तो कह देते हैं कि औफिस के काम से निकले हैं.

अपना व्यवहार ठीक रखें

मनोवैज्ञानिक बिंदु राय कहती हैं कि बड़ों को सिगरेट, तंबाकू, गुटखा, शराब आदि का सेवन करते देख बच्चों का मासूम दिल कचोट उठता है कि उन्हें जिन चीजों के लिए मना किया जाता है, वे काम उन के पापा, चाचा आदि खुद करते हैं. ऐसे में बच्चे चोरीछिपे उन चीजों का स्वाद लेने की पूरी कोशिश करते हैं. वे सोचते हैं कि जो चीज बड़ों के लिए ठीक है वह उन के लिए गलत क्यों और कैसे है. बच्चों के सामने खुद की कथनी और करनी को ठीक रखेंगे तो आप के बच्चे भी ठीक रहेंगे. अपने झूठ और फरेब के मकड़जाल में बच्चों को न उलझने दें. झूठे और किताबी पाठ पढ़ाने के बजाय पेरैंट्स बच्चों के सामने अपना व्यवहार ठीक रखेंगे तो निश्चित रूप से बच्चों पर उस का सकारात्मक असर पड़ेगा और तभी आप के बच्चे अच्छे इंसान बन कर आप का नाम रोशन कर सकेंगे.

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7 Tips: कहीं यह वजह इमोशनल Immaturity तो नहीं

रिश्ता कोई भी हो, जब तक उसमें इमोशनली मेच्योरिटी नहीं होगी तब तक रिश्ते का लम्बे समय तक टिक पाना मुश्किल होता है. ऐसे कई रिश्ते होते हैं, जो कुछ महीने में ही खत्म हो जाते हैं. रिश्ते में इमोशनली मेच्योरिटी काफी महत्व रखती है, जो बाद में घर बसाने के साथ प्रतिबद्धता को अच्छे से समझ सके. रिश्ते का आधार विश्वास होता है इस बारे में आपने सुना ही होगा. लेकिन रिश्ते में जो सबसे महत्वपूर्ण बात होती है, उसे हम सब अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं और वो है इमोशनली मेच्योरिटी. जो लम्बे और मजबूत रिश्ते के लिए बेहद जरूरी है. अगर आपको भी लगता है कि आपके और आपके पार्टनर के बीच में इमोशनली मेच्योरिटी नहीं है तो ये लेख आपके बहुत काम आने वाला है.

1. कहीं आपको भी तो नहीं होती जलन-

जब भी आपका पार्टनर किसी हॉट लड़की या लड़के से बात करता है तो आपके मन में जलन होना जायज है. लेकिन असल मायनों में जलन की भावना तब पनपती है, जब आपका पार्टनर आपसे ज्यादा दूसरों को प्राथमिकता देता है और आपसे ज्यादा अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ समय बिताता है.

2. अगर मतभेद ज्यादा है-

हर पार्टनर में लड़ाई झगड़े होने आम बात है. हर रिश्ते में कभी न कभी उतार चढ़ाव आता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप आपसी मतभेद को पनपने दें. अगर आपका पार्टनर अपनी गलती के लिए आपसे माफ़ी मांगता है तो सब कुछ भुलाकर आगे बढ़ें और गिले शिकवे भुला दें. अगर आप मतभेद रखेंगे तो इससे आपका रिश्ता बर्बाद हो जाएगा.

3. अगर नहीं मांगते माफ़ी

अगर आपको अपनी गलती का एहसास नहीं है और आप माफ़ी भी नहीं मांगना चाहतीं तो ये रिश्ते में सबसे बड़ी इमोशनली इमेच्योरिटी होती है. अगर आपको लगता है कि माफ़ी ना मांगने से रिश्ता मजबूत होगा तो आप गलत हैं. इससे रिश्ता खराब होगा.

4. अगर नहीं है पेशेंस-

रिश्ता कोई भी हो उसमें पेशेंस यानि की धैर्य बनाए रखने की भी जरूरत होती है. अपने रिश्ते की हर छोटी बात पर बेचैन होना इस बात को दर्शाता है कि, आप उस रिश्ते के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हैं. आप इस बात का ख्याल रखें कि जितना आप चीजों को लेकर पेशेंस रखेंगी आपका रिश्ता उतना ही अच्छा रहेगा. क्योंकि हर रिश्ते को समझने और उसे निभाने के लिए खुद को तैयार रखने में समय लगता है.

5. पार्टनर को करें बदलने की कोशिश-

अपने पार्टनर की पर्सनैलिटी को बदलना आसान नहीं है और ये मेच्योरिटी भी नहीं है. क्योंकि उनकी इसी पर्सनैलिटी की वजह से ही आप उनके साथ रिश्ते में बंधे हैं. आप बात करने का तरीका जरुर बदल सकते हैं. लेकिन उन्हें बदलने की कोशिश न करें.

6. अगर आप सेल्फिश हैं-

आप जब भी किसी से प्यार के रिश्ते में बंधते हैं जो आप अपने पार्टनर की जरूरतों को लेकर कभी कोई ओब्जेक्शन नहीं करते. लेकिन रिश्ते में अपरिपक्वता तब दिखती है जब आप उनकी जरूरतों से पहले खुद की जरूरतों को ऊपर रखते हैं. आप सेल्फिश होने से पीछे नहीं हटते. आप का रिश्ता इस मुकाम में आकर खराब हो सकता है. बेहतर होगा कि, आप अपनी जरूरतों से पहले उनके बारे में भी सोचें.

7. अगर नहीं करते भविष्य की बात-

आपका रिश्ता कैसा चल रह है, सिर्फ इतना ही काफी नहीं है. आपका रिश्ता किस तरफ जा रहा है आपको इसका अंदाजा भी होना चाहिए. जब आप ही अपने रिश्ते को लेकर गम्भीर नहीं होंगे तो आपके पार्टनर से भी गम्भीर होने की उम्मीद ना करें. ऐसे में आपको अपने भावनात्मक अपरिपक्व बिहेवियर पर कंट्रोल करने की जरूरत है.

अगर आप भी अपने रिश्ते में कुछ ऐसे संकेतों को देखते हैं तो आपके रिश्ते में बिलकुल भी इमोशनली मेच्योरिटी नहीं है. आप कोशिश करें कि इसे कम करें, क्योंकि इमोशनल मेच्योरिटी किसी भी रिश्ते का आधार होती है.

और वे जुदा हो गए

माइक्रोसौफ्ट के कोफाउंडर और दुनिया की सब से अमीर शख्सियतों में शुमार बिल गेट्स ने हाल ही में अपनी पत्नी मेलिंडा गेट्स से अलग होने का फैसला ले कर सब को अचरज में डाल दिया. अपनी शादी के करीब 27 सालों के बाद अलग होने के फैसले की जानकारी ट्विटर पर देते हुए उन्होंने एक बयान जारी किया.

उन्होंने लिखा, ‘‘काफी सोचनेसम झने और अपने रिश्ते पर काम करने के बाद हम ने अपनी शादी को खत्म करने का फैसला लिया है. हम नया जीवन शुरू करने जा रहे हैं इसलिए लोगों से हमारे परिवार के लिए स्पेस और प्राइवेसी बनाए रखने की उम्मीद है.’’

जीवन के करीब 3 दशक साथ निभाने के बाद कपल द्वारा लिए गए इस फैसले ने कई लोगों को चौंका दिया है. बिल और मेलिंडा को हमेशा एक सौलिड कपल के रूप में देखा जाता था. उन की शादीशुदा जिंदगी से कितने ही जोड़े प्रेरणा लिया करते थे. उन की खूबसूरत शादीशुदा जिंदगी के सफर में ऐसा मोड़ भी आएगा यह कल्पना किसी ने भी नहीं की थी.

नंबर वन का खिताब

28 अक्तूबर, 1955 में सिएटल में जन्मे बिल गेट्स का पूरा नाम विलियम हेनरी गेट्स है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान पौल जी. एलन के साथ दोस्ती हुई और दोनों के विचारों ने ‘माइक्रोसौफ्ट’ को जन्म दिया. 1990 के दशक में ‘माइक्रोसौफ्ट’ ने दुनियाभर में पीसी इंडस्ट्री में नंबर वन का खिताब हासिल किया.

1987 में काम के सिलसिले में बिल गेट्स और मेलिंडा पहली बार मिले. उस वक्त मेलिंडा के बहुत से बौयफ्रैंड थे. एक दिन अचानक ही मजाक में बिल ने मिरांडा को ‘आई लव यू’ कह दिया. धीरेधीरे नजदीकियां बढ़ती गई. आखिर 1994 में दोनों ने शादी कर ली. उस वक्त बिल 38 साल के थे और मेलिंडा की उम्र 29 साल की. उन के 3 बच्चे हुए. 1996 में बेटी जेनिफर, 1999 में बेटा रोरी और 2002 में बेटी फोएब का जन्म हुआ. बेटे को जन्म देने के 9 साल बाद मेलिंडा ने माइक्रोसौफ्ट में काम करना बंद कर दिया था.

प्रोफैशनल और मैरिड लाइफ के साथसाथ बिल गेट्स और मेलिंडा ने समाज के लिए भी बहुत कुछ किया. लोगों के स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास में अपना योगदान देने के लिए 1994 में दोनों ने मिल कर ‘बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ की स्थापना की. जून, 2008 में गेट्स माइक्रोसौफ्ट से अलग हो गए और पूरा वक्त इस फाउंडेशन को देने लगे. कोरोनाकाल में भी उन्होंने समाज के लिए काफी कुछ किया.

सबसे अमीर शख्स

बिल गेट्स पूर्व में दुनिया के सब से अमीर शख्स रह चुके हैं और उन की संपत्ति 124 अरब डौलर यानी करीब 10.87 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक होने का अनुमान है. डेढ़ एकड़ के उन के बंगले में 7 बैडरूम, जिम, स्विमिंग पूल, थिएटर आदि हैं.

कुछ महीने पहले जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार बिल गेट्स की हर सैकंड की कमाई  12 हजार, 54 रुपए है यानी 1 दिन की कमाई 102 करोड़ रुपए है. इस के अनुसार अगर वे रोज साढ़े 6 करोड़ रुपए खर्च करें तो पूरे रुपए खर्च करने में उन्हें 218 साल लग जाएंगे.

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फिलहाल मेलिंडा की दौलत तलाक के बाद 2 अरब डौलर से ज्यादा बढ़ गई है. मेलिंडा गेट्स अभी तक बिल गेट्स के साथ कंबाइंड नैटवर्थ में अरबपति थीं, लेकिन अब अकेले उन के पास 2 अरब डौलर से ज्यादा की संपत्ति है. बिल गेट्स द्वारा क्रिएट की गई कंपनी ‘कैस्केड इन्वैस्टमैंट’ ने मैक्सिको की सब से बड़ी कंपनियों में से 2 में, शेयरों को मैलिंडा को ट्रांसफर किया है.

हालांकि अब तक दोनों ने स्पष्ट तौर पर तलाक की वजहों को उजागर नहीं किया है. मगर खबरों के मुताबिक बिल गेट्स की ऐक्स गर्लफ्रैंड उन की पत्नी मेलिंडा के साथ तलाक की मुख्य वजह बताई जा रही है. ऐसा माना जा रहा है कि बिल गेट्स ने अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड की वजह से मेलिंडा से रिश्ता तोड़ा है.

कब आया सुर्खियों में

बिल गेट्स ने ऐक्स गर्लफ्रैंड एन विनब्लैड को ले कर काफी पहले ही मेलिंडा से एक सम झौता किया था, जिस के मुताबिक उन्हें हर साल अपनी ऐक्स गर्लफ्रैंड एन विनब्लैड के साथ एक वीकैंड मनाने की मंजूरी मिली हुई थी. यही नहीं मेलिंडा से शादी करने से पहले बिल गेट्स ने दोनों से इस की इजाजत ली थी.

इस का जिक्र बिल गेट्स ने 1997 में  टाइम मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में किया था. अलगअलग शहर में रहने की वजह से बिल  और विनब्लैड की मुलाकात वर्चुअल हुआ  करती थी. वे दोनों वर्चुअल डेट भी अरैंज किया करते थे.

कुछ ऐसा ही एक और हाई प्रोफाइल तलाक हाल ही में सुर्खियों में आया था. जनवरी, 2019 में अमेजन के संस्थापक, सीईओ और दुनिया के सब से धनी व्यक्ति जेफ बेजोस और उन की पत्नी मैकेंजी बेजोस ने भी शादी के 25 साल बाद तलाक ले लिया था. कपल ने ट्विटर पर इस की जानकारी दी थी.

54 साल के जेफ बेजोस और उन की पत्नी ने ट्विटर पर लिखा था, ‘‘हम अपने जीवन में होने वाले बदलाव के बारे में लोगों को बताना चाहते हैं. हमारा परिवार और हमारे घनिष्ठ मित्र जानते हैं, एक लंबे ट्रायल के बाद हम ने तलाक का फैसला लिया है. हालांकि हम अपनी जिंदगी में दोस्त बने रहेंगे. हम ने शानदार जिंदगी जी और हम अपने उज्ज्वल भविष्य को ले कर आशान्वित हैं. आगे भी हम एक परिवार और दोस्त की तरह रहेंगे.’’

मैकेंजी बेजोस अमेजन की पहली कर्मचारी थी. जेफ और मैकेंजी की मुलाकात डी.ई शो  में हुई थी. यह मुलाकात अमेजन की स्थापना  से पहले हुई थी. शादी के अगले साल यानी  1994 में जेफ बेजोस ने अमेजन की शुरुआत  की. अमेजन के पहले कौंट्रैक्ट के लिए मैकेंजी ने ही डील की थी.

गैराज से शुरू हुई अमेजन आज दुनिया की टौप 3 कंपनियों में शामिल है. जून, 2018 में जेफ बेजोस के दुनिया के सब से धनी व्यक्ति बनने की खबर आई थी. उस समय उन की संपत्ति 141.9 अरब डौलर थी.

तलाक की वजह

जेफ बेजोस पूर्व टीवी ऐंकर लौरेन सांचेज  के साथ रिश्ते में थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक लौरेन को लिखा गया उन का एक खत इस तलाक की वजह थी, जिस में जेफ ने लिखा था कि मैं तुम  को महसूस करना चाहता हूं, मैं तुम्हें अपनी धड़कन बनाना चाहता हूं. मैं तुम से प्यार करता हूं… इसी के बाद मैकेंजी और बेजोस अलग  हो गए.

बाद में जेफ बेजोस ने पत्नी से सब  से महंगा तलाक लिया. मैकेंजी को 2.52 लाख करोड़ के शेयर मिले. इस प्रक्रिया के पूरा होने  के बाद मैकेंजी विश्व की चौथी सब से  अमीर महिला बन गई. मैकेंजी ने फिर से  विवाह कर लिया और वह अमेजन में  4% हिस्सेदारी (करीब 36 अरब डौलर से अधिक) मिलने के बाद समाजसेवा पर ध्यान केंद्रित कर रही है.

शादी के इतने सालों बाद क्यों होता है तलाक

सोचने वाली बात है कि जो पत्नी 2-3 साल पहले तक बिल गेट्स की पूरी दुनिया थी उसे ही अब खुद से अलग करने का फैसला कितना कठिन रहा होगा. मेलिंडा के लिए भी इतने रईस, हुनरमंद और ख्यातिलब्ध जीवनसाथी जिस के साथ ढाई दशक से ज्यादा समय गुजारा, जीवन की खुशियां और जिम्मेदारियां आपस में बांटीं, उसी से जीवन के आधे रास्ते में अलग हो जाने का फैसला लेना क्या सहज रहा होगा?

वैसे भी शादी के सालों बाद प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में तलाक होना ज्यादा दुखद है. शादी के 2-3 साल के अंदर तलाक की बात सम झ आती है. 2 लोग जब आपस में तालमेल नहीं बैठा पाते तो वे अलग होने का फैसला ले लेते हैं. मगर शादी के 25-30 साल बाद तलाक का मतलब है उन के बीच तालमेल अच्छी तरह बैठ चुका था.

इतने सालों में तो इंसान 2 शरीर एक प्राण बन जाते हैं. एकदूसरे की आदत कुछ इस तरह हो जाती है जैसे दिल का सांसों से रिश्ता. आखिर फिर इस उम्र में तलाक होने की क्या वजह हो सकती है?

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दरअसल, व्यक्ति के जीवन में कुछ चीजें सब से ज्यादा अहमियत रखती हैं और वे हैं- पैसा, वफा और सुकून. शादी के कई साल बाद तलाक होने की वजह पैसों की किचकिच तो कतई नहीं हो सकती, क्योंकि जब दुनिया के सब से रईस इंसान और दुनिया के चौथे सब से दौलतमंद इंसान को शादी के 2-3 दशक बाद तलाक की त्रासदी से गुजरना पड़ा तो फिर पैसों का फलसफा तो सिरे से खारिज होता है.

बात तलाक तक पहुंची

जहां तक बात वफा की है तो यह काफी महत्त्वपूर्ण है. बहुत से मामलों में पाया गया है कि शादी के कई साल बाद भी यदि जीवनसाथी को यह पता चलता है कि उस के पति या पत्नी के जीवन में कोई और आ गया है या पहले से मौजूद है तो वह इस बात को स्वीकार नहीं कर पाता. आपसी  झगड़े और मतभेद बढ़ते जाते हैं और फिर बात तलाक तक पहुंच जाती है.

कई दफा इंसान सिर्फ इस वजह से अपने जीवनसाथी से अलग होने का फैसला ले लेता है, क्योंकि उसे वह अहमियत नहीं मिलती जिस की वह अपेक्षा करता है. दरअसल, जब आप सालों किसी के हमदर्द और हमसफर का दायित्व निभाते आ रहे हैं तो आप की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं. आप के बीच कोई परदा नहीं रह जाता.

आप हर काम एकदूसरे की सलाह ले कर ही करना चाहते हैं. मगर जब आप को महसूस होता है कि आप का जीवनसाथी आप को बताए बगैर ही अपने जीवन से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण फैसले ले रहा है या बहुत सी बातें आप से छिपा रहा है तो आप का विश्वास और सुकून दोनों ही खो जाते हैं. अंत में आप तलाक का फैसला ले लेते हैं ताकि खोया हुआ सुकून वापस मिल पाए.

कई बार जीवनसाथी से मिलने वाला छोटा सा आंसू सैलाब बन जाता है. कभी बेवफाई का दर्द तो कभी इतने सालों में भी न पहचान पाने की कसक दिल का सुकून छीन लेती है.

करीब आधी जिंदगी साथ बिताने के बाद हमसफर से उम्मीदें भी अधिक हो जाती हैं. पतिपत्नी का रिश्ता वैसे भी बहुत नाजुक होता है. एकदूसरे के लिए परवाह करने वाले और एकदूसरे पर जान देने को तैयार रहने वाले पतिपत्नी कभीकभी छोटा सा धोखा या छोटा सा अपमान भी नहीं सह पाते और अलग हो जाते हैं.

दर्द देता है तलाक

जब कोई जोड़ा अलग होता है तो लोग इस की वजह जानने में ज्यादा रुचि लेते हैं. लेकिन इस से गुजरने वाले जोड़े को कैसा लगता है इसे कोई नहीं सम झ पाता. सिर्फ इमोशनल ही नहीं, बल्कि तलाक फिजिकली भी लोगों को तोड़ देता है. फैसला लेने की शुरुआत से ले कर इस के अंत तक इतनी चीजें होती हैं कि व्यक्ति खुद को ड्रेन आउट महसूस करता है.

वकील, कोर्ट सैशन, परिवार और ऐक्स के साथ इस मुद्दे पर लगातार चर्चा, चीजों का बंटवारा, कस्टडी बैटल और इस सब के बीच उस साथी को ही अपने अपोजिट खड़ा पाना जो कभी हर स्थिति में आप के साथ खड़ा रहता था. इस सब से ऊपर जीवनसाथी से अलग होने का दुख तो होता ही है. ये तमाम बातें इंसान को गहरी भावनात्मक पीड़ा पहुंचाती हैं.

  बौलीवुड के महंगे तलाक

बौलीवुड में ये कुछ तलाक न सिर्फ चर्चा में रहे, बल्कि महंगे तलाक भी कहलाए:

रितिक रोशन-सुजैन खान

अभिनेता रितिक रोशन और सुजैन खान के अलग होने की खबरों से हरकोई हैरान था. दोनों की शादी 2000 में हुई थी. दोनों के ही अफेयर की खबरें आईं, लेकिन अंत तक कुछ साफ नहीं हो पाया कि दोनों ने तलाक क्यों लिया. सुजैन खान ने ऐलिमनी के रूप में रितिक से 400 करोड़ रुपए मांगे थे. बाद में रितिक ने सुजैन को करीब 380 करोड़ रुपए दिए थे.

सैफ अली खान-अमृता सिंह

अभिनेता सैफ अली खान और अमृता सिंह का तलाक बौलीवुड के सब से महंगे तलाकों में से एक था. दोनों ने 1991 में शादी की थी. उम्र में अमृता सैफ से लगभग 13 साल बड़ी हैं. शादी के लगभग 13 साल बाद दोनों अलग हो गए. सैफ ने अमृता को काफी जायदाद दी थी.

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मलाइका-अरबाज

ऐसा ही कुछ प्यार और दोस्ती भरा रिश्ता कई और सैलिब्रिटीज कपल्स का भी है, जो तलाक के बाद भी एकदूसरे से जुड़े हुए हैं. उदाहरण के लिए मलाइका और अरबाज साथ में अपने बेटे के साथ काफी समय बिताते हैं. इस के अलावा सभी पार्टियों में भी साथ दिखते हैं. तलाक के बाद भी इन के रिश्ते पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. इसी तरह आमिर खान और रीना भी साथ में समय बिताते हुए देखे जा सकते हैं. फरहान अख्तर और अधुना भंबानी 16 साल की शादी के बाद एकदूसरे से अलग हुए थे. दोनों आज भी एकदूसरे की इज्जत करते हैं और कभी एकदूसरे के बारे में बुरा बोलते नहीं सुने गए.

तलाक के बाद जरूरी नहीं कि रिश्ता खत्म हो अकसर ऐसा देखा जाता है कि तलाक के बाद लोग अपने पूर्व जीवनसाथी पर कई तरह के इलजाम लगाते हैं. यहां तक कि सैलिब्रिटीज भी जानेअनजाने अपने ऐक्स के विरुद्ध काफी बयानबाजी कर जाते हैं. वे इस बात को भूल जाते हैं कि उन्होंने जिन के साथ जिंदगी के बहुत सारे खूबसूरत पल शेयर किए हैं उन्हीं को नीचा दिखा रहे हैं. लेकिन रितिक और सुजैन के साथ ऐसा बिलकुल नहीं हुआ था. उन्होंने तलाक तो ले लिया, मगर एक बात जो नहीं बदली वह थी दोनों में दोस्ती और एकदूसरे को सम्मान देने की आदत.

पिछले साल यानी 2020 में लौकडाउन के दौरान सुजैन बच्चों के साथ रितिक के घर रहने चली गई थी. दरअसल, यह फैसला सुजैन को बच्चों के कारण लेना पड़ा था. दोनों के पास बच्चों की जौइंट कस्टडी है. ऐसे में बच्चों को लौकडाउन में मिलाना दोनों के लिए मुश्किल होता. रितिक ने इस के लिए सुजैन को रिक्वैस्ट की थी कि वह बच्चों से इतना दूर नहीं रह सकते हैं. ऐसे में सुजैन रितिक की भावनाओं का सम्मान करते हुए बेटों के साथ उन के घर रहने चली गई.

सौतेले रिश्ते बेकार नहीं होते

मनोज के मन में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था. बीते 10 वर्ष उस ने अपने ननिहाल में बिताए थे. यहां आ कर अपने पिता को सौतेली मां के प्रति स्नेह लुटाते और अपने सौतेले 2 छोटे भाइयों के प्रति दुलार करते देखना उस के लिए बहुत कठिन हो रहा था. वह 16 वर्षीय किशोर है. बीते दिनों नानी के गुजर जाने के बाद वह अपने घर वर्षों बाद लौट कर आया है.

मगर घर पर दूसरी स्त्री और उस के बच्चों का अधिकार उसे बरदाश्त नहीं हुआ. उस के ननिहाल में सभी उसे चेताया करते थे कि उसे अपनी सौतेली मां से संभल कर रहना होगा. बेचारा बिन मां का बच्चा. सौतेली मां तो सौतेली ही रहेगी. यही बातें उस के जेहन में घर कर गईं. नतीजतन उसे अपनी मां की हर बात उलटी लगती, छोटे भाई बिना बात पिट जाते.

एक दिन पिताजी ने उसे पलट कर डपटा तो उस ने अपने पिता के बिस्तरे पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. तो कोई हताहत नहीं हुआ, मगर सब अवाक रह गए.

40 वर्षीय अविवाहित अलका ने जिस विधुर से विवाह किया उस की पत्नी 4 बच्चों को छोड़ कर कैंसर पीडि़त हो इस दुनिया से चली गई. घर में 10, 12 और 14 वर्षीय पुत्रियों और  5 वर्षीय पुत्र के अतिरिक्त बूढ़े मातापिता भी मौजूद थे. अलका से सभी को बहुत अपेक्षाएं थीं. मगर 2 बड़ी पुत्रियां अपनी सौतेली मां के हर काम में मीनमेख निकालतीं.

अलका को सम झ ही नहीं आता कि उस ने विवाह के लिए हामी क्यों भर दी, सिवा उस पल के जब छोटा बेटा उस की गोद में आ दुबकता.

न पालें पूर्वाग्रह

सौतेली मां पर लिखी कहानियों के सिंड्रेला या राखी जैसे पात्र अकसर हमारे बालमन में अवचेतन रूप से मौजूद रहते हैं. उसे ही चंद रिश्तेदार या पड़ोसी अपनी सलाह दे कर मानो आग में घी का काम कर देते हैं.

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‘अब तो सौतेली मां का राज चलेगा,’ ‘पहली बीवी तो सेवा के लिए, दूसरी मेवा खाने के लिए होती है,’ ‘अब तो पिता भी पराया हो जाएगा’ इस प्रकार की नकारात्मक बातों से अपने मन में कोई पूर्वाग्रह न पालें.

सम झें नए रिश्तों की अहमियत

अपनी मां या पिता की दूसरी शादी की अहमियत को सम झें. इस नए रिश्ते से प्राप्त सुविधाओं पर ध्यान दें. जैसे नई मां के आने से घर की चाकचौबंद व्यवस्था, घर के छोटे बच्चे का उचित पालनपोषण, घर के बुजुर्गों की सेहत का खयाल जैसे कार्य बेहद सुगम रूप से होने लगते हैं. घर की आर्थिक व्यवस्था, सुरक्षा जैसे पहलू नजरअंदाज नहीं किए जा सकते.

संबंध सामान्य बनाने को दें समय

किसी भी रिश्ते को पारस्परिक रूप से मजबूत होने के लिए थोड़ा समय अवश्य लगता है.

यदि हम आपसी गलतफहमी को न पाल कर आपस में खुल कर बात करें. अपनी पसंदनापसंद एकदूसरे को बता दें तो रिश्ते बहुत जल्दी बेहतर बन जाएंगे. रिश्ते बेहतर बनाने के लिए स्वयं भी पहल करें. नए सदस्य से पहल की उम्मीद न करें.

अपने मातापिता के बीच वक्तबेवक्त न बैठें. उन्हें भी साथ बैठ कर बातचीत करने का मौका दें.

बड़ों के नजरिए को सम झें

अपने को बड़ों की जगह पर रख कर सोचें कि यह रिश्ता उन के लिए कितनी अहमियत रखता है. कल को आप भी अपने लक्ष्य के पीछे घर से दूर निकल जाओगे या फिर इसी घर में अपनी गृहस्थी में मग्न हो जाओगे. उस समय आज का निर्णय उचित प्रतीत होगा.

भावुकता से काम न लें

घर में अपनी मां से जुड़ी वस्तुओं को किसी अन्य महिला को इस्तेमाल करते देख या पिता को नए रिश्तों में ढलते देख कर भावुक न हों. यह सोचें कि घर का नया सदस्य अपना पुराना घर छोड़ कर आप के बीच आप सभी की उपस्थिति को स्वीकार कर अपने को ढालने में लगा है तो उसे भी सहज होने का मौका दें.

वर्तमान को स्वीकारें

जो सामने है, वही सच है. मातापिता भी अपने नए रिश्ते को ही अहमियत देंगे, गुजरे वक्त को कौन पकड़ पाया है.

पहले संयुक्त परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होने से विधवा, विधुर या आजीवन कुंआरे व्यक्ति की सुखसुविधाओं में कमी नहीं आती थी. वे आराम से अपना जीवनयापन कर लेते थे. उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा जैसे आर्थिक, सामाजिक अथवा समय से भोजन, बीमार होने पर सेवा का लाभ मिल जाता था.

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अब एकल परिवारों के कारण अपनी अधूरी गृहस्थी संभालना जब कठिन हो जाता है तभी व्यक्ति पुनर्विवाह का निर्णय लेता है. ऐसे में बच्चों से भी यह उम्मीद की जाती है कि वे रिश्तों की अहमियत को सम झें और उन्हें मन से स्वीकार करें.

दूरदराज बैठे रिश्तेदार अपनी गृहस्थी छोड़ कर हमेशा के लिए नहीं आ सकते हैं. ऐसी परिस्थितियों में बच्चों को भी सच को स्वीकार कर अपने भविष्य को बेहतर बनाने की ओर ध्यान देना चाहिए.

बच्चों के आपसी झगड़े को कंट्रोल करने के 7 टिप्स

रश्मि अपने बच्चों के परस्पर होने वाले झगड़े से हरदम इतनी परेशान रहती है कि कभी कभी वह गुस्से में कहने लगती है कि उसने दो बच्चे पैदा करके ही जीवन की बहुत बड़ी गल्ती की है. रश्मि ही नही प्रत्येक घर में आजकल अभिभावक बच्चों के रोज रोज होने वाले झगड़ों से परेशान हैं. एक तो वैसे भी कोरोना के कारण सभी स्कूल लंबे समय से बंद हैं ऊपर से लॉक डाउन के कारण बच्चे भी घरों में कैद रहने को मजबूर हैं. वास्तव में देखा जाए तो बच्चों का परस्पर झगड़ना उनके समुचित विकास की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. परन्तु अक्सर घर के कामकाज में उलझी रहने वाली माताएं परेशान होकर अपना भी आपा खो देतीं हैं जिससे समस्या गम्भीर रूप धारण कर लेती है. यहां पर प्रस्तुत हैं कुछ टिप्स जिनका प्रयोग करके आप बच्चों के झगड़े को आराम से निबटा सकतीं हैं-

1-बच्चों के कार्य, व्यवहार और पढ़ाई की बाहरी या घर के ही दूसरे बच्चे से कभी तुलना न करें क्योंकि प्रत्येक बच्चे का अपना पृथक व्यक्तित्व होता है.

2-बच्चे किसी भी उम्र के क्यों न हों आप उनसे उनकी उम्र के अनुसार घर के कार्य अवश्य करवाएं इससे वे व्यस्त भी रहेंगे और कार्य करना भी सीखेंगे.

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3-बच्चा यदि आपसे कुछ कहे तो उसे ध्यान से सुनें फिर समझाएं बीच में टोककर उसे शान्त कराने का प्रयास न करें.

4-टी. वी और खिलौने बच्चों में झगड़े का प्रमुख कारण होते हैं, इसलिए उनके बीच में  खिलौनों का बंटवारा कर दें और टी वी देखने का समय निर्धारित कर दें.

5-वे चाहे जितना भी लड़ें झगड़ें परन्तु आप अपना आपा खोकर हाथ उठाने या चीखने चिल्लाने की गल्ती न करें अन्यथा आपको देखकर वे भी परस्पर वैसा ही व्यवहार करेंगे.

6-किसी अतिथि अथवा दूसरे बच्चों के सामने  अपने बच्चे को डांटने से बचें….बाद में उसे प्यार से समझाने का प्रयास करें.

7-आप स्वयम भी आपसे में न झगड़कर बच्चों के सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें क्योंकि अनेकों रिसर्च में यह सिद्ध हो चुका है कि बच्चे अपने माता पिता का अनुकरण करते हैं.

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शादी पर भारी कोरोना महामारी

विभा की शादी इस वर्ष अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में होने वाली थी. यह शादी 6 महीने पहले तय हुई थी. विवाह से संबंधित सारी बुकिंग अग्रिम हो चुकी थी. सभी आवश्यक तैयारियां अंतिम दौर में चल रही थीं कि अचानक विभा के पिता की तबीयत खराब हो गई.

जांच में पता चला कि उन्हें कोरोना हुआ है. अगले 2 ही दिनों में परिवार के 3 अन्य सदस्य भी पौजिटिव हो गए. समधियों से बातचीत कर के विवाह स्थगित करने का निर्णय लिया गया. अब यह विवाह 6 माह बाद या स्थिति सामान्य होने पर होगा. नतीजतन, आननफानन में सभी परिचितों को सूचित करने के साथसाथ सभी अग्रिम बुकिंग भी निरस्त करनी पड़ीं.

यह विभा के परिवार के लिए बहुत परेशानी की घड़ी थी, क्योंकि उन के अग्रिम भुगतान के डूबने के आसार थे. यहां उन्हें राहत इस बात की थी कि यदि अगली तिथि पर इन्हीं व्यवसायियों के साथ बुकिंग यथावत रखी जाती है तो यह सारा अग्रिम भुगतान शादी की अगली तारीख वाली बुकिंग में समायोजित कर लिया जाएगा, लेकिन इस विवाह आयोजन से जुड़े विभिन्न व्यवसायों के लिए यह और भी अधिक मुश्किल घड़ी थी, क्योंकि उन्हें एक पूरी की पूरी बुकिंग का नुकसान हो चुका था. जिस अगली तारीख पर विभा की शादी तय होगी, उस तारीख पर किसी अन्य समारोह की बुकिंग हो सकती थी.

व्यवसायों पर गाज

भारत में अप्रैलमई को शादियों का सीजन माना जाता है. इस के बाद यह सीजन सर्दियों के मौसम में ही आता है. इस वर्ष सीजन में कर्फ्यू लगने और कोरोना की सख्त गाइड लाइन के कारण न केवल शादी करने वाले युवा निराश हुए हैं, बल्कि यह समय अनेक व्यवसायों पर भी गाज बन कर गिरा है. भारत में शादियों के जश्न कईकई दिनों तक चलते हैं. इस के इर्दगिर्द एक लंबीचौड़ी अर्थव्यवस्था काम करती है. लाखों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस अर्थव्यवस्था से जुड़े हुए हैं.

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शादी समारोहों से जुड़े सभी व्यवसाय जैसे घोड़ीबाजा, फूल और सज्जा व्यवसाय, टैंट हाउस, मैरिज पैलेस, होटल, बसटैक्सी आदि सभी इस महामारी का शिकार हुए हैं. सब की अलगअलग परिस्थितियां हो सकती हैं, लेकिन जो सा  झा समस्या है वह यह कि नुकसान सभी को हुआ है. किसी को कम तो किसी को अधिक.

भारत की ‘बिग इंडियन फैट वैडिंग्स’ पूरी दुनिया में मशहूर हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 1 करोड़ शादियां होती हैं और कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो इन पर प्रति शादी 5 लाख से ले कर 5 करोड़ तक का खर्च आता है.

बड़ा झटका

विभिन्न मुद्दों पर दुनियाभर में शोध कराने वाली कंपनी केपीएमजी की 2017 में की गई एक स्टडी के अनुसार, भारत में शादियों का सालाना कारोबार 36 अरब रुपयों का है. अमेरिका के बाद यह दूसरे नंबर पर आता है. ऐसे में यदि इस कारोबार पर कोरोना का साया मंडराएगा तो निश्चित रूप से इस कारोबार से जुड़े व्यवसायियों के लिए एक बड़ा   झटका होगा.

सौरभ का सूरत में इवेंट्स का कारोबार है. वह छोटीमोटी जन्मदिन की पार्टियों से ले कर शादीब्याह तक के बड़े आयोजन कराता है उस के अनुसार, कोरोना काल में उस के व्यवसाय में 25-30% तक का नुकसान हुआ है.

शादीब्याह में घोड़ी उपलब्ध करवाने वाले मुमताज अली से बात करने पर उस ने रोआंसे स्वर में बताया, ‘‘पूरा साल सीजन का इंतजार रहता है. सीजन अच्छा निकल जाए तो सालभर का खर्चा निकल आता है. हमारी मुख्य कमाई तो बरातियों के नाच और दूल्हे के ऊपर दोस्त, रिश्तेदारों द्वारा लुटाए जाने वाले रुपए होते हैं. इस सीजन एक तो बुकिंग ही कम हुई दूसरे शादी में लोगों के कम आने के कारण हमारी कमाई भी सिर्फ बुकिंग के पैसों तक ही सिमट गई. इस बार तो घोड़ी का खर्चा भी लगता है घर से ही करना पड़ेगा.’’

भारी नुकसान

इसी सिलसिले में आशियाना मैरिज पैलेस के संचालक कैलाश तिवारी से फोन पर बात हुई. उन्होंने बताया कि कोरोना के कारण बहुत सी बुकिंग कैंसिल हो गई हैं. इन में सामान्य बुकिंग भी शामिल हैं. पिछले वर्ष जैसे ही कोरोना का असर कुछ कम होने लगा था तब खूब बुकिंग होने लगी थी. लगा था कि पिछले नुकसान की भरपाई हो जाएगी.

उन्हीं के मद्देनजर हम ने विभिन्न थीम के अनुसार मंडप और अन्य सैट्स आदि पर बहुत इन्वैस्ट कर दिया था. बुकिंग कैंसिल होने के कारण हमें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है.

स्वर्ण व्यवसायी रमेश सोनी की अपनी अलग पीड़ा है. उन का कहना है कि वैवाहिक जेवर आदि नाममात्र के अग्रिम भुगतान पर और्डर किए जाते हैं. लेकिन हमें तो पूरा सोना खरीदना पड़ता है न. अब यदि शादियां खिसक जाती हैं तो हमें तो डबल नुकसान हुआ न. एक तो हमारा पैसा ब्लौक हो गया दूसरे चाहे सोने के भाव घटें या बढे़ं, हमें तो उसी कीमत पर जेवर देने होंगे, जिस भाव पर बुकिंग हुई थी.

सुनसान हैं वैवाहिक स्थल

शहर का मशहूर वैवाहिक स्थल गंगा महल मैरिज गार्डन इन दिनों सुनसान हैं. पूरे शहर के लिए यह विवाह स्थल इतना उपयुक्त है कि लोग वर्ष भर पहले ही इसे शादी समारोह के लिए बुक करवा लेते हैं. यहां शादी होना शहर में स्टेटस सिंबल माना जाता है.

यहां के संचालक ने अपनी परेशानी सा  झा करते हुए कुछ इस तरह बताया, ‘‘इस सीजन यहां कोई बड़ी बुकिंग नही हुई. कारण, शादी में मेहमानों की सीमित संख्या की कोरोना गाइड लाइन. अब जब कुल जमा 50 से भी कम मेहमान बुलाने हैं तो फिर लोग इतना बड़ा गार्डन क्यों बुक करवाएंगे? दूसरे यह भी कि कोरोनाकाल से पहले शादीब्याह से जुड़े हर बड़े समारोह यथा तिलक, सगाई या संगीत आदि के लिए एक अलग दिन निश्चित होता था और उसी के अनुसार अलगअलग थीम पर अलगअलग दिन समारोह स्थल की साजसज्जा की जाती थी.

‘‘उसी के अनुसार एक विवाह समारोह में इन समारोह स्थलों की बुकिंग भी कम से कम 3-4 दिन के लिए की जाती थी. अब यदि पूरा विवाह समारोह ही एक दिन में समेट दिया जाएगा तो आप सम  झ सकते हैं कि हमारा कितना नुकसान हुआ होगा.’’

ऐसा ही दर्द कई होटल संचालक और टूर्स ऐंड ट्रैवल्स वालों का भी है, जो इस वैवाहिक सीजन में हनीमून के लिए आने वाले जोड़ों का इंतजार कर रहे थे. सीजन के समय इन्हें अतिरिक्त स्टाफ भी रखना पड़ता है और किचन में अतिरिक्त सामान भी.

दिल्ली की मशहूर वैडिंग प्लानर कंपनी ‘राशि एंटरटेनमैंट’ के डाइरैक्टर राजीव के अनुसार, इस व्यवसाय में लगी लगभग 50% कंपनियां बंद हो गई हैं.

कार्ड आदि के प्रिंटिंग से जुड़े ‘शील प्रिंटर्स’ के मालिक योगेंद्र भाटी के अनुसार, पहले जहां शादियों में हजारों की संख्या में कार्ड छपते थे वहीं अब यह संख्या सिमट कर 40-50 पर आ गई है. लोग सिर्फ फौर्मैलिटी के लिए ही कार्ड छपवाते हैं. इस कारण कई छोटे कारोबारियों ने या तो अपनी दुकानें बंद कर दीं या बेच दी हैं.

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आशंका सच साबित हो रही

संयुक्त राष्ट्र के श्रम निकाय, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने गत वर्ष अप्रैल माह में जारी एक रिपोर्ट में यह आशंका जताई थी कि कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी के कुचक्रमें फंस सकते हैं. चूंकि शादी व्यवसाय भी ऐसा ही क्षेत्र है जहां अधिकतर लोग अनौपचारिक होते हैं. ऐसे में यह आशंका सच साबित होती दिखाई दे रही है.

शादी समारोहों के आगे खिसकने के कारण लाखों श्रमिकों के सामने परिवार पालने का संकट पैदा हो गया. सरकार का ध्यान इस तरफ भी जाना चाहिए.

सरकार की प्राथमिकता जीवन बचाना है, लेकिन जीविका को बचाना भी तो आवश्यक है. सरकार को कोरोना गाइड लाइन की पालना करते हुए विवाह समारोहों के आयोजनकर्ताओं को आवश्यक छूट देनी चाहिए ताकि इस व्यवसाय पर छाए मंदी के बादल कुछ हट सकें.

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