डिलीवरी के बाद क्या कौपर टी लगवाना सही है?

सवाल-

मैं 28 वर्ष की हूं. पिछले साल मेरी नौर्मल डिलिवरी हुई थी और डाक्टर ने मुझे कौपर टी लगवाने की सलाह दी थी. लेकिन उस के बाद मुझे बहुत ज्यादा पीरियड्स हो रहे हैं. क्या यह चिंता की बात है?

जवाब-

कौपर टी या कौपर आईयूडी एक गर्भनिरोधक उपकरण है जिसे गर्भाशय में डाला जाता है और इस में हारमोंस नहीं होते हैं. इसलिए इस में हारमोनल बर्थ कंट्रोल विधियों के कारण कभीकभी होने वाले जोखिम या साइड इफैक्ट्स नहीं होते हैं. लेकिन कौपर आईयूडी के कारण खून ज्यादा निकलता है और आप को माहवारी यानी पीरियड्स के दौरान विशेषकर पहले 3 से 6 महीनों के दौरान मरोड़ महसूस होता है. अन्य लक्षणों में पीरियड्स के बीच समय का अंतर होना, पीरियड्स का अनियमित होना या फिर काफी लंबे समय तक पीरियड्स रहने या भारी रक्तस्राव होना और पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा ऐंठन होना शामिल हैं. लेकिन इन में से कई लक्षण समय के साथ कम होते जाते हैं. यह सब से बेहतरीन गर्भनिरोधक उपायों में से एक है और आप को दुर्घटनावश होने वाले गर्भधारण के जोखिम से सुरक्षित रखता है. इसलिए आप को थोड़ा इंतजार करना चाहिए. हां ज्यादा लंबे समय तक बहुत अधिक माहवारी की समस्या रहती है तो स्त्री रोग विशेषज्ञा के पास जाएं और इस के उपचार एवं गर्भनिरोध के दूसरे विकल्पों पर चर्चा करें.

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किसी भी युवती के लिए पहले सैक्स के दौरान उस की वर्जिनिटी सब से ज्यादा माने रखती है. युवती की योनि के ऊपरी हिस्से में पतली झिल्ली होती है जो उस के वर्जिन होने का प्रमाण देती है, लेकिन किसी भी युवती की योनि और उस के ऊपरी सिरे में स्थित हाइमन झिल्ली को देख कर यह पता लगाना कि वह वर्जिन है कि नहीं न तो संभव है न ही ठीक. सैक्स के दौरान अकसर पार्टनर द्वारा युवती की योनि से रक्तस्राव की उम्मीद की जाती है लेकिन ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पहली बार सैक्स के दौरान युवती के वर्जिन होने के बावजूद उस की योनि से रक्तस्राव नहीं होता, फिर भी साथी  द्वारा यह मान लिया जाता है कि युवती पहले भी सैक्स कर चुकी है, जबकि पहली बार सैक्स के दौरान युवती की योनि से स्राव होने या न होने को उस के वर्जिन होने का सुबूत नहीं माना जा सकता, क्योंकि पहली बार में बहुत सी युवतियों को इसलिए रक्तस्राव नहीं होता, क्योंकि खेलकूद, साइकिल चलाना आदि की वजह से उन की योनि में स्थित झिल्ली कब फट जाती है उन्हें स्वयं नहीं पता चलता. इस का कारण हाइमन झिल्ली का बहुत पतला व लचीला होना है. कभीकभी युवती में जन्म के समय से ही यह झिल्ली मौजूद नहीं होती. ऐसे में पहले सैक्स के दौरान योनि से रक्तस्राव न होने के आधार पर युवती के चरित्र पर संदेह करना गलत होता है.

पहली बार सैक्स के दौरान युवक अपने साथी से उस के कुंआरी होने का सुबूत भी मांगते हैं, जबकि वह खुद के कुंआरे होने का सुबूत देना उचित नहीं समझते. इस वजह से पहला सैक्स जिसे हम वर्जिनिटी का नाम देते हैं, आगे चल कर सैक्स संबंधों में बाधा बन जाता है. युवती की वर्जिनिटी पर शक की वजह से कई तरह की गलतफहमियां जन्म लेती हैं. इस का प्रमुख कारण कुंआरेपन को ले कर लोगों से सुनीसुनाई बातें हैं.

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..तो आने वाला है हार्ट अटैक

हार्ट अटैक कभी भी अचानक आ सकता है, लेकिन कुछ लक्षण हैं, जो हार्ट अटैक के 1 महीने पहले नजर आने लगते हैं.  अगर आपको भी नजर आते हैं यह 6 लक्षण तो सावधान हो जाएं, क्योंकि आप हार्ट अटैक के शि‍कार हो सकते हैं. अभी जानिए इन लक्षणों को, ताकि हार्ट अटैक से बचा जा सके.

1. सीने में असहजता

यह दिल के दौरे के लिए जिम्मेदार लक्षणों में से एक है. सीने में होने वाली किसी भी प्रकार की असहजता आपको दिल के दौरे का शि‍कार बना सकती है. खास तौर से सीने में दबाव या जलन महसूस होना. इसके अलावा भी अगर आपको सीने में कुछ परिवर्तन या असहजता का अनुभव हो, तो तुरंत अपने चिकित्सक से सलाह लें.

2. थकान

बगैर किसी मेहनत या काम के थकान होना भी हार्ट अटैक की दस्तक हो सकती है. जब हृदय धमनियां कोलेस्ट्रॉल के कारण बंद या संकुचित हो जाती हैं, तब दिल को अधि‍क मेहनत करने की आवश्यकता होती है, जिससे जल्द ही थकान महसूस होने लगती है. ऐसी स्थि‍ति में कई बार रात में अच्छी खासी नींद लेने के बाद भी आप आलस और थकान का अनुभव करते हैं, और आपको दिन में भी नींद या आराम की जरुरत महसूस होती है.

3. सूजन

जब दिल को शरीर के सभी आंतरिक अंगों में रक्त पहुंचाने के लिए अधि‍क मेहनत करनी पड़ती है, तो शि‍राएं फूल जाती हैं और उनमें सूजन आने की संभावना बढ़ जाती है. इसका असर खास तौर से पैर के पंजे, टखने और अन्य हिस्से में सूजन के रूप में नजर आने लगता है. इसके कभी-कभी होंठों की सतह पर नीला होना भी इसमें शामिल है.

4. सर्दी का बना रहना

लंबे समय तक सर्दी या इससे संबंधि‍त लक्षणों का बना रहना भी दिल के दौरे की ओर इशारा करता है. जब दिल, शरीर के आंतरिक अंगों में रक्तसंचार के लिए ज्यादा मेहनत करता है, तब रक्त के फेफड़ों में स्त्रावित होने की संभावना बढ़ जाती है. सर्दी में कफ के साथ सफेद या गुलाबी रंग का बलगम, फेफड़ों में स्त्रावित होने वाले रक्त के कारण हो सकता है.

5. चक्कर आना

जब आपका दिल कमजोर हो जाता है, तो उसके द्वारा होने वाला रक्त का संचार भी सीमित हो जाता है. ऐसे में दिमाग तक आवश्यकता के अनुसार ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती, जिससे निरंतर चक्कर आना या सिर हल्का होना जैसी समस्याएं होने लगती हैं. यह हार्ट अटैक के लिए जिम्मेदार एक गंभीर लक्षण है, जिस पर आपको तुरंत ध्यान देना चाहिए.

6. सांस लेने में दिक्कत

इनके अलावा सांस लेने में अगर आपको किसी प्रकार का परिवर्तन या कमी का एहसास होता है, तो यह भी दिल के दौरे का लक्षण हो सकता है. जब दिल अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाता तो फेफड़ों तक उतनी मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती जितनी आवश्यकता होती है. इस वजह से सांस लेने में कठिनाई होती है. अगर आपके साथ भी ऐसा ही कुछ होता है, तो बगैर देर किए डॉक्टर को जरूर दिखाएं.

इन 6 लक्षणों में से किसी लक्षण के सामने आने या महसूस होने पर तुरंत अपने डॉक्टर को जरूर दिखाएं या फिर यथासंभव सलाह लें.

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हिस्टेरेक्टोमी के बाद मैं सो नहीं पाती, क्या करुं?

सवाल-

मैं ने कुछ महीने पहले हिस्टेरेक्टोमी (गर्भाशय को काट कर निकाल देना) करवाई थी. इस के बाद मेरे सोने का चक्र बदल गया. मैं सो नहीं पाती. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब-

जिन महिलाओं के गर्भाशय को सर्जरी से निकाल दिया जाता है उन्हें  वर्चुअल रूप से रातोंरात मेनोपौज (रजोनिवृत्ति यानी माहवारी बंद होना) हो जाता है. इन मामलों में नींद में बाधा आना आम बात है. संभावित रूप से हौट फ्लशेज या रात में पसीना आने के अलावा यह मेनोपौज का सब से आम लक्षण है. मेनोपौज के बाद ज्यादा से ज्यादा आराम करें, सोने के दौरान साफसफाई का पूरा ध्यान रखें. कौफी कम से कम पीएं, सही खानपान लें, नियमित रूप से व्यायाम करें और सोने का एक निश्चित समय तय करें. सर्जरी के कारण होने वाले मेनोपौज में महिलाओं को नींद आने में काफी मुश्किल आती है और वे रात में ज्यादा बार जागती हैं. मेनोपौज के साइड इफैक्ट्स को कम करने के लिए हारमोन रिप्लेसमैंट थेरैपी पर विचार करने की भी सलाह दी जाती है.

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गर्भाशय फाइब्रोइड्ससुसाध्य (गैरकैंसर) ट्यूमर है, जो गर्भाश्य की मांसपेशीय परत पर अथवा उसके भीतर विकसति होता है.इसमें तंतुमय टिश्यू और चिकने मांसपेशी सेल्स होते है, जिनका पोषण रक्तवाहिनी के सघन नेटवर्क से होता है. फाइब्रोइड्स महिलाओं में होने वाला बहुत ही सामान्य सुसाध्य ट्यूमर है. अनुमान है कि 30 से 50 वर्ष के बीच की महिलाओं में करीब 25 से 35 प्रतिशत में फाइब्रोइड्स का इलाज सापेक्ष हो गया है. सामान्यतया जिस महिला में गर्भाशय फाइब्रोइड्स की समस्या है, उनमें एक से अधिक फाइब्रोइड्स है और वे बडे़ आकार के हो सकते है. कुछ मटर से बडे़ नहीं होते है, जबकि अन्य बढ़कर खरबूजे के आकार का हो सकते है.

लक्षण

एक महिला मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव, दर्दभरा मासिकधर्म, मासिकधर्म के दौरान रक्तस्राव और पीठशूल या पीठदर्द जैसे लक्षणों से इसका अनुभव करती है. अधिकतर मरीजों में रक्तस्राव इतना अधिक होगा किउनमें यह खून की कमी का कारण बन जाता है. खून की कमी से थकान,सिरदर्द हो सकता है.जब फाइब्रोइड्स आकार में बड़ा होता है, तब यह अन्य पेल्विक अंगो पर दबाव बनाने लगता है. इसके फलस्वरूप पेट के नीचले हिस्से में भारीपन, बार-बार पेशाब लगना, पेशाब होने में कठिनाई और कब्ज महसूस हो सकता है. ये लक्षण किसी को हल्का, कम आकर्षक लग सकते है और चिड़चिड़ापन आगे चलकर कामेच्छा घटा सकती है और इसका असर लोगों की जिंदगी पर पड़ सकता है. ओबेस्ट्रिक्स एंड ग्यानकोलाजी जर्नल तथा वुमेन हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार गर्भाशय फाइब्रोइड से काफी भय एवं रूग्णता हो सकती है और वर्कप्लेस प्रदशर्न से समझौता करना पड़ सकता है.

45 साल की उम्र और एक Miscarriage के बाद प्रैग्नेंट होना

आर्थिक सुरक्षा और सेहतमंद माहौल उत्पन्न करने के लिये कई सारे दम्पति देरी से प्रेग्नेंसी का विकल्प चुन रहे हैं. वैसे, हमेशा ही हर चीज के फायदे और नुकसान होते हैं और नुकसान के बारे में जानकारी होने पर उन्हें सही तरीके से संभालना महत्वपूर्ण होता है.

आपको बता दें कि, 45 की उम्र वाली महिलाओं से जन्में बच्चे की हेल्दी होने की संभावना 1 फीसदी तक कम हो जाती है. साथ ही गर्भावस्था के समय महिलाओं में गेस्टेशनल डायबिटीज और हाइरपटेंशन का स्तर काफी हद तक बढ़ जाता है. अधिक उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं के लिए न सिर्फ कंसीव करना मुश्किल होता है बल्कि अगर महिला गर्भवती हो जाती है तब भी उसे हाई रिस्क ग्रुप में रखा जाता है. इसका कारण ये है कि 40 से 50 साल की उम्र में गर्भवती होने वाली महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कई खतरों का सामना करना पड़ता है.

गर्भ धारण से जुड़े जोखिम और सुझाव बात रहीं हैं वरिष्ठ परामर्शी प्रसूति एवं स्त्रीरोग विशेषज्ञ, डॉ. मनीषा रंजन. जब आपकी उम्र बढ़ती जाती है तो आपको कई सारी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और इसलिये अतिरिक्त सावधान रहना और सबसे बेहतर संभावित परिणाम के लिये अतिरिक्त चीजें करना बेहद जरूरी है. बाँझपन की स्थिति में आप अपने एग्स को फ्रीज कर सकती हैं या फिर डॉक्टर्स या विशेषज्ञों की देखरेख में आईवीएफ जैसे अस्सिटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजिस (एआरटी) का सहारा ले सकती हैं. वैसे, प्रजनन की दवाओं या उपचार की मदद के बिना 45 साल की उम्र के बाद माँ बनने की संभावना थोड़ी कम होती है.

45 साल की उम्र में बच्चे के बारे में विचार करना

हाइपरटेंशन, डायबिटीज और प्रसव से जुड़ी समस्याएं 40 की उम्र के बाद आम होती हैं. ये समस्याएं बेहद ही आम हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आपको इनका सामना करना ही होगा. हालांकि, आपको 40 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने के खतरों के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिये.

35 की उम्र के बाद, महिलाओं का प्रजनन दर कम होना शुरू हो जाता है. इसके परिणामस्वरूप, महिलाओं को निम्नलिखित जोखिमों के साथ प्रजनन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है :

गर्भावस्था जनित डायबिटीज

गर्भवास्थाजनित डायबिटीज (मधुमेह) गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है, जो अब काफी आम होता जा रहा है. 20 से 34-35 वर्ष के उम्र की महिलाओं की तुलना में 40 से अधिक उम्र की महिलाओं को गर्भावस्थाजनित डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा होता है. इसकी वजह से गर्भावस्था में मुश्किलें पेश आ सकती हैं.

क्रोमोसोमल असामान्यताएं

चूँकि, बढ़ती उम्र की महिलाओं में अंडों की संख्या कम हो जाती है, बाकी अंडों की क्वालिटी कम होने लगती है, जिसके परिणामस्वरूप डीएनए का स्तर कम होता जाता है. इसकी वजह से शिशुओं में क्रोमोसोमल असामान्यताएं हो सकती हैं, जिसकी वजह से वे डाउन सिंड्रोम जैसे मानसिक विकारों से ग्रसित हो सकते हैं.

मृत शिशु पैदा होने की आशंका

40 वर्ष से अधिक उम्र की गर्भवती महिलाओं में 35-39 साल की महिलाओं की अपेक्षा मृत शिशु के पैदा होने का खतरा अधिक होता है. अपने बच्चे के मूवमेंट पर नजर रखना बेहद जरूरी हो जाता है, खासकर यदि आप अपनी नियत तारीख को पार कर चुकी हैं. यदि आप महसूस करती हैं कि आपके बच्चे का मूवमेंट धीमा हो गया है, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर या प्रसूति इकाई से संपर्क करना चाहिये.

40 साल की उम्र के बाद, योनि मार्ग से प्रसव के दौरान मृत बच्चे के पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है. माँ और बच्चे दोनों को बचाने के लिये इस उम्र में सीजेरियन डिलीवरी तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

देरी से गर्भावस्था की अन्य समस्याओं में शामिल हैं :

  1. अस्वास्थ्यकर अंडे
  2. प्रीक्लेम्पसिया
  3. प्लेसेंटा के साथ जटिलता (जैसे कि प्लेसेंटा प्रिविया)
  4. समय से पहले प्रसव
  5. सी-सेक्शन की जरूरत
  6. नियत समय से पहले प्रसव पीड़ा होना
  7. जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे का जन्म
  8. एक्टोपिक गर्भाधान
  9. गर्भपात

45 साल की उम्र के बाद स्वस्थ गर्भधारण किस प्रकार हो सकता है?

किसी भी उम्र में एक सेहतमंद जीवनशैली बनाए से अच्छी प्रेग्ननेंसी सुनिश्चित हो सकती है. सही वजन बनाकर रखें, धूम्रपान और शराब का सेवन छोड़ दें, संतुलित आहार लें, प्रेग्नेंसी के पहले और उसके दौरान कैफीन लेने से बचें, प्रोसेस्ड फूड नहीं लें और रोजाना एक्सरसाइज करें.

जीवन, नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं से भरपूर है. कई सारी परेशानियों के बावजूद, 40 के बाद की उम्र में प्रेग्नेंट होना आम और सेहतमंद है. बड़ी उम्र में माँ बनना अच्छा और मुश्किल दोनों ही एक साथ हो सकता है. यदि आपने जीवन में देरी से बच्चा करने का फैसला किया है तो एक फर्टिलिटी डॉक्टर से बात करें, जो आपको कई सारी संभावनाओं के बारे में बता सकते हैं और सबसे सही विकल्प चुनने में आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं. प्रेग्नेंट होने से पहले अपने डॉक्टर से अपनी सेहत से जुड़ी कोई समस्या हो तो इसके बारे में अपनी आनुवंशिकी जाँच कराएं.

तो मम्मा आप तैयार हो जाइये, क्योंकि आप कर सकती हैं.

यदि गर्भावस्था के दौरान आपको बेहतरीन देखभाल मिलती है, अच्छा खाना खाती हैं और एक सेहतमंद जीवनशैली जीती हैं और नौ महीनों तक अपना पूरा ध्यान रखती हैं और अपनी प्रेग्नेंसी में सबसे बढ़िया स्वास्थ्य के साथ कदम रखती हैं तो आपकी प्रेग्नेंसी परेशानीमुक्त होगी और आप एक हेल्दी डिलीवरी कर पाएंगी.

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यदि मुझे पीसीओएस है तो मुझे Pregnant होने में कितना समय लगेगा?

सवाल-

यदि मुझे पीसीओएस है तो मुझे गर्भवती होने में कितना समय लगेगा?

जवाब-

यदि आपको पौलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) है और आप गर्भधारण करना चाहती हैं तो आप की गर्भावस्था कई चीजों से प्रभावित हो सकती है. इस में आप के अपने स्वास्थ्य के साथसाथ आप के पार्टनर की उम्र और सामान्य स्वास्थ्य का भी हाथ होता है. यदि आप की उम्र 35 साल से कम है और आप नियमित रूप से अंडोत्सर्ग कर रही हैं और यदि आप को एवं आप के पार्टनर को आप के प्रजनन को प्रभावित करने वाली कोई दूसरी चिकित्सा संबंधी परेशानियां नहीं हैं तो इस बात की संभावना अधिक है कि 1 साल के अंदर या उस से भी जल्दी आप गर्भधारण कर सकती हैं. यदि आप के पार्टनर को चिकित्सा संबंधी कोई परेशानी है जैसेकि शुक्राणु की संख्या कम होना या यदि आप को ऐंडोमिट्रिओसिस या फाइब्रौयड्स जैसी स्त्रीरोग संबंधी कोई दूसरी समस्या है तो आप को गर्भवती होने में 1 साल से ज्यादा का समय लग सकता है. ज्यादातर महिलाओं में 32 साल की उम्र के बाद प्राकृतिक प्रजनन की क्षमता घटने लगती है और 37 की उम्र तक आतेआते इस में और गिरावट आ जाती है. यदि आप का मासिकधर्म यानी माहवारी नियमित नहीं हैं या फिर प्रजनन संबंधी ऐंडोमिट्रिओसिस जैसी कोई और समस्या है तो रिप्रोडक्टिव ऐंडोक्राइनोलौजिस्ट और गाइनोकोलौजिस्ट के पास जाएं.

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पीसीओएस यानी पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम एक सामान्य हारमोन में अस्थिरता से जुड़ी समस्या है जो महिलाओं की प्रजनन आयु में उन के गर्भधारण में समस्या उत्पन्न करती है. यह देश में करीब 10% महिलाओं को प्रभावित करती है. पीसीओएस बीमारी में ओवरी में कई तरह के सिस्ट्स और थैलीनुमा कोष उभर जाते हैं जिन में तरल पदार्थ भरा होता है. ये शरीर के हारमोनल मार्ग को बाधित कर देते हैं जो अंडों को पैदा कर गर्भाशय को गर्भाधान के लिए तैयार करते हैं. पीसीओएस से ग्रस्त महिलाओं के शरीर में अत्यधिक मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन होता है. इस की अधिक मात्रा के चलते उन के शरीर में पुरुष हारमोन और ऐंड्रोजेंस के उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है. अत्यधिक पुरुष हारमोन इन महिलाओं में अंडे पैदा करने की प्रक्रिया को शिथिल कर देते हैं. इस का परिणाम यह होता है कि महिलाएं जिन की ओवरी में पौलीसिस्टिक सिंड्रोम होता है उन के शरीर में अंडे पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है और वे गर्भधारण नहीं कर पातीं.

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वाइट पीरियड्स से परेशान हो गई हूं, इसका कोई इलाज बताएं

सवाल-

मैं 35 वर्षीय महिला हूं. मुझे योनि से कभी पतला, कभी सफेद व चिपचिपा और दुर्गंधयुक्त स्राव आने की परेशानी है. पति से डाक्टर के यहां चलने के लिए कहती हूं तो वे बात को गंभीरता से नहीं लेते यानी टाल जाते हैं. क्या यह समस्या सभी स्त्रियों को होती है? क्या मुझे इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए या इस का इलाज करवाना जरूरी है?

जवाब-

अगर योनि से दुर्गंधयुक्त स्राव आए तो यह इस बात का लक्षण है कि बच्चेदानी या योनि में या तो किसी तरह का इन्फैक्शन पैठ किए हुए है या फिर कोई दूसरी गंभीर समस्या जन्म ले चुकी है. दोनों ही स्थितियों में इसे नजरअंदाज करना सरासर नासमझी है. इस से रोग भीतर ही भीतर बढ़ कर अधिक गंभीर रूप ले सकता है. यह आप को तो हानि पहुंचाएगा ही, आप के पति के लिए भी हानिकर सिद्ध हो सकता है. पतिपत्नी में किसी भी एक को सैक्सुअली ट्रांसमिटिड इन्फैक्शन होने से दूसरे को यह इन्फैक्शन होने का पूरापूरा खतरा रहता है. अपने पति को यह बात समझाएं और आप दोनों ही डाक्टर से मिल कर अपना ठीक से इलाज करवाएं. यदि आप की पूरी कोशिश करने के बावजूद आप के पति इलाज के लिए समय न निकालें तो आप स्वयं किसी बड़े अस्पताल में स्त्रीरोग विशेषज्ञा से मिल कर अपनी जांच और इलाज करवाएं. मगर इलाज योग्य डाक्टर से ही करवाएं. दीवारों, अखबारों और पत्रिकाओं में विज्ञापन छाप कामधंधा चलाने वाले यानी झोलाछाप तथाकथित सैक्सोलौजिस्ट, नीमहकीम या वैद्य वगैरह के चक्कर में गलती से भी न फंसें. स्पैशलिस्ट डाक्टर आप की आंतरिक शारीरिक जांच करने के साथसाथ योनि से आने वाले स्राव के नमूने की जांच कराने के बाद ही आप के पति और आप को उचित दवा लिखेगा. नियम से दवा लेने पर आप दोनों पतिपत्नी इस परेशानी से उबर जाएंगे.

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मोटा होने के लिए क्या करुं?

सवाल-

मैं 17 साल की युवती हूं. मेरा शरीर बहुत दुबलापतला है, जिस कारण मुझ पर कोई भी ड्रैस सुंदर नहीं लगती. अगले महीने मेरी बहन का विवाह है. कुछ ऐसे उपाय बताएं जिन से शादी तक मेरा वजन 5-6 किलोग्राम बढ़ जाए?

जवाब-

आप की यह इच्छा कि आप बहन के विवाह पर सुंदर दिखें बिलकुल प्रासंगिक है, किंतु इतने कम समय में इतना वजन बढ़ाने की चाहत ठीक नहीं है. हालांकि कुछ दवाएं जैसे स्टेराइड, ऐपेटाइट स्टीम्यूलैंट और विटामिन दे कर इसे पूरा करने की कोशिश की जा सकती है, लेकिन कोई भी डाक्टर इस का पक्षधर नहीं हो सकता. आप की उम्र में बहुत से किशोर शरीर से दुबलेपतले होते हैं, लेकिन उन की पर्सनैलिटी फिर भी मनमोहक और अतिआकर्षक होती है. इस उम्र में त्वचा का लावण्य तो सुंदर और लुभावना होता ही है, मन और तन जिस रचनात्मक ऊर्जा से खिले रहते हैं उस की कोई तुलना ही नहीं हो सकती. अत: आप मन में आ रही हीनभावना को दरकिनार कर दें और किसी क्रिएटिव ड्रैस डिजाइनर से अपनी कदकाठी के अनुरूप उपयुक्त पोशाकें तैयार करवा लें. यकीनन आप अपनी बहन के विवाह में बहुत सुंदर दिखेंगी. इस के अलावा संतुलित आहार जिस में प्रोटीन, विटामिन और खनिज पर्याप्त मात्रा में हों जैसे दाल, दूध, दही, पनीर, अंडे, मांस, हरी तरकारियां और ताजे फल प्रचुर मात्रा में लें. नियमित व्यायाम करें. समय से सोएं और जागें. स्वस्थ दिनचर्या रखें. इस से आप का स्वास्थ्य ठीक रहेगा.

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वजन आज हर उम्र की एक बड़ी समस्या बन गया है. इसी का फायदा उठा कर वजन घटाने का दावा करने वाली हर तरह की आयुर्वेदिक और ऐलोपैथिक दवाओं का बाजार गरम हो गया है. लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि ब्लड ग्रुप आधारित डाइट भी आप का वजन घटाने में मदद कर सकती है?

चौंक गए न? दरअसल, यह मामला ब्लड ग्रुप के हिसाब से डाइटिंग के जरीए अपनी काया को छरहरा बनाने का है. यह खास तरह की डाइट ‘ब्लड ग्रुप डाइट’ कहलाती है. क्या है यह ब्लड ग्रुप डाइट? आइए, जानते हैं कोलकाता, यादवपुर स्थित केपीसी मैडिकल कालेज व हौस्पिटल की  न्यूट्रिशनिस्ट और डाइटिशियन, रंजिनी दत्त से.

रंजिनी दत्त का इस संबंध में कहना है कि मैडिकल साइंस में ब्लड ग्रुप डाइट एक अवधारणा है. हालांकि अभी इस अवधारणा को पुख्ता वैज्ञानिक आधार नहीं मिला है, लेकिन ब्लड ग्रुप आधारित डाइट से बहुतों को फायदा भी हुआ है, यह भी सच है. पश्चिमी देशों में इस अवधारणा को मान कर डाइट चार्ट बहुत चलन में है.

रंजिनी दत्त का यह भी कहना है कि वजन कम करने के इस नुसखे को ‘टेलर मेड ट्रीटमैंट’ कहा जाता है. अब सवाल यह उठता है कि यह काम तो पर्सनलाइज्ड डाईट चार्ट या रूटीन कर ही सकता है. फिर ब्लड ग्रुप डाइट क्यों?

हर व्यक्ति की पाचन और रोगप्रतिरोधक क्षमता उस के ब्लड ग्रुप पर निर्भर करती है. बाकायदा जांच में यह पाया गया है कि ‘ओ’ ब्लड ग्रुप के व्यक्ति आमतौर पर एग्जिमा, ऐलर्जी, बुखार आदि से ज्यादा पीडि़त होते हैं.

‘बी’ ब्लड गु्रप वालों में रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होती है. इस ब्लड ग्रुप वाले ज्यादातर थकेथके से रहते हैं. कोई गलत फूड खाने से इन्हें ऐलर्जी हो जाती है, तो ‘एबी’ ब्लड ग्रुप वालों की समस्या अलग किस्म की होती है. इन्हें छोटीछोटी बीमारियां लगभग नहीं के बराबर होती हैं. लेकिन इस ब्लड ग्रुप के लोगों को कैंसर, ऐनीमिया या फिर दिल की बीमारी होने की संभावना अधिक रहती है.

खाने के बारे में यह मिथ भी जानें

मानव शरीर में 95 फीसदी से ज्यादा बीमारियां पोषणयुक्त तत्त्वों की कमी और शारीरिक श्रम में कमी के चलते होती हैं. आइए, भोजन से जुड़े कुछ मिथकों की सचाई के बारे में जानते हैं:

मिथक: किसी वक्त का भोजन न करने पर अगले भोजन में उस की कमी पूरी हो जाती है.

सचाई: किसी भी समय का भोजन मिस करना ठीक नहीं माना जाता है और इस की कमी अगले वक्त के भोजन करने से पूरी नहीं होगी. एक दिन में 3 बार संतुलित भोजन लेना जरूरी होता है.

मिथक: यदि खाने के पैकेट पर ‘सब प्राकृतिक’ लिखा हो तो वह खाने में सेहतमंद होता है.

सचाई: अगर किसी चीज पर ‘सब प्राकृतिक’ का लैबल चस्पा हो तो भी उस में चीनी, असीमित वसा या फिर दूसरी चीजें शामिल होती हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है. ‘सब प्राकृतिक’ लैबल वाले कुछ स्नैक्स में उतनी ही वसा शामिल होती है जितनी कैंडी बार में. पैकेट के पिछले हिस्से पर लिखी हिदायतों को पढ़ना जरूरी होता है, जो आप को सब कुछ बयां कर देती है.

मिथक: अगर वजन जरूरत से ज्यादा नहीं है, तो अपने खाने के बारे में परवाह करने की जरूरत नहीं है.

सचाई: अगर आप को अपने वजन से समस्या नहीं है, तो भी हर दिन सेहतमंद भोजन का चुनाव करना जरूरी होता है. अगर आप अपने शरीर को एक मशीन की तरह से देखते हैं, तो भी उस मशीन को पूरी मजबूती के साथ चलाने के लिए आप सब से अच्छे ईंधन का इस्तेमाल करते हैं. जंक फूड से दूर रहने का भी यही मकसद है. अगर आप खराब खाने की आदतें विकसित कर लेंगे, तो आप को भविष्य में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

मिथक: चीनी की जगह शहद से अपने खाने को मनचाहे तरीके से मीठा कर सकते हैं.

सचाई: रासायनिक लिहाज से शहद और चीनी बिलकुल बराबर हैं. यहां तक कि नियमित चीनी के सेवन के मुकाबले शहद में ज्यादा कैलोरी हो सकती है. इसलिए बिलकुल चीनी की ही तरह शहद का भी कम मात्रा में इस्तेमाल करने का प्रयास करें.

मिथक: जब तक हम प्रत्येक दिन विटामिन का सेवन कर रहे हैं, हम क्या खा रहे हैं, उस के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है.

सचाई: कुछ पोषण विशेषज्ञों का कहना है कि विटामिन की गोलियां लेना अच्छी बात है, लेकिन ये गोलियां हर उस चीज को पूरा कर देंगी, जिस की लंबे समय से आप को जरूरत है, यह कोई जरूरी नहीं. सेहतमंद खाना आप को प्रोटीन, ऊर्जा और बहुत सारी ऐसी जरूरी चीजें मुहैया कराता है जो विटामिन की गोलियां नहीं करा सकती हैं. इसलिए एक विटामिन और चिप्स का एक पैकेट अभी भी एक खतरनाक लंच है. इस के बजाय आप को संतुलित और पोषणयुक्त भोजन की जरूरत है.

मिथक: चीनी आप को ऊर्जा देती है. अगर आप को दोपहर या फिर खेल खेलने से पहले ऊर्जा बढ़ाने की जरूरत है, तो एक कैंडी बार खाएं.

सचाई: चौकलेट, कैंडी और केक जैसी खाद्यसामग्री में चीनी की मात्रा पाई जाती है, जो यकीनन आप के खून में शर्करा की मात्रा बढ़ा देगी और फिर इस के जरीए आप के शरीर की प्रणाली में जल्द ही ऊर्जा के संचार का एहसास होगा. लेकिन बाद में ब्लड शुगर में बहुत तेजी से गिरावट आती है और फिर आप को ऐसा महसूस होगा कि शुरू के ऊर्जा के स्तर में भी कमी आ गई है.

मिथक: विटामिन और खनिज की जरूरत को पूरा करने के लिहाज से ऊर्जा बार सब से बेहतर रास्ता है.

सचाई: ऊर्जा बार कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा के बेहतर स्रोत हो सकते हैं, लेकिन दूसरे खाने की तरह इन का भी बेजा इस्तेमाल हो सकता है. ज्यादा तरह के खाने का मतलब है आप अपने शरीर को उतना ही नुकसान पहुंचा रहे हैं जितना कैंडी, केक और कुकी के खाने से होता है.

मिथक: कार्बोहाइड्रेट आप को मोटा करता है.

सचाई: अगर आप औसत और संतुलित मात्रा में इन का सेवन करते हैं, तो आप के शरीर के लिए ये सब से बेहतर ऊर्जा के स्रोत साबित हो सकते  हैं.

 – डा. नीलम मोहन, मेदांता मैडिसिटी

हल्के में न लें मुंह की जलन

मुंह में जलन सिर्फ अत्यधिक मसालेदार खाना खाने की वजह से ही नहीं होती वरन इस के अन्य कारण भी होते हैं.

आइए, जानें मुंह की जलन के कारण और निवारण के बारे में:

दांतों की सफाई: दांतों की स्वच्छता पर ध्यान न देने से मुंह में जलन, सूखापन, मौखिक अल्सर जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. मौखिक स्वच्छता के लिए नियमित ब्रशिंग जरूरी है.

पोषण की कमी: शरीर में विटामिन, लौह तथा खनिज की कमी भी इस समस्या का कारण हो सकती है. अत: ऐसा भोजन लें जिस में ये सारी चीजें पर्याप्त मात्रा में हों.

बीमारी: मधुमेह और थाइराइड से पीडि़त लोगों में भी यह परेशानी होती है.

अतिसंवेदनशीलता: ऐलर्जी से ग्रस्त लोगों को भी किसी खाद्य पदार्थ से इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है.

हारमोनल असंतुलन: हारमोनल समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों में भी इस के लक्षण दिखाई देते हैं. हारमोनल असंतुलन रजोनिवृत्त महिलाओं में दिखाई देती है. इसलिए उन में मुंह में जलन की समस्या मुंह में लार की कमी की वजह से होती है.

दवाओं का सेवन और इलाज: रेडिएशन और कीमो थेरैपी जैसे उपचार कराने वालों को इस समस्या का सामना करना पड़ता है. इसलिए कोई भी दवा लेने के पहले इस विषय पर डाक्टर से जरूर परामर्श करें.

नशे की आदत: धूम्रपान व नशा भी मुंह जलाने के लिए कारण बनते हैं. खासतौर पर शराब पीने वाले लोगों में यह समस्या आम होती है. ऐसे लोगों को मुंह की जलन के साथसाथ पेट और सीने में जलन की शिकायत भी रहती है.

मुंह की जलन का उपचार

मुंह की जलन को हलके में न ले कर तुरंत डाक्टर से पदामर्श लें और इन बातों पर तुरंत गौर फरमाएं:

– धूम्रपान बंद कर दें.

– अम्लीय पेय और शराब का सेवन न करें.

– अपने आहार में पौष्टिक तत्त्वों जैसे दालें, फाइबरयुक्त खाना, मौसमी फल इत्यादि शामिल करें.

– तरल पदार्थ का सेवन ज्यादा से ज्यादा करें. यह ध्यान रखें कि तरल पदार्थ जरूरत से ज्यादा ठंडा न हो.

– सही ब्रशिंग तकनीक जानें.

– स्वाद मुक्त हलके टूथपेस्ट से दांतों की सफाई करें.

– अपने डैंचर फिक्स रखें.

– मसालेदार व ज्यादा गरम खाद्यपदार्थों के सेवन से बचें.

– खासतौर पर रात में बिना मसाले वाल खाना लें.

जिंदगी भर स्वादिष्ठ और पौष्टिक खाने का आनंद उठाना है तो मुंह की सेहत से जुड़ी इन बातों को आज से ही अपनाएं.

डा. शांतनु जरादी

डैंटज डैंटल केयर के चिकित्सक

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कच्चे चावल खाने की आदत से कैसे छुटकारा पाएं?

सवाल-

मैं 44 साल की महिला हूं. 1 साल से एक विचित्र समस्या से परेशान हूं. मैं रोजाना 1 कटोरी कच्चे चावल खाती हूं. इन्हें खाए बिना मुझे चैन नहीं मिलता. मैं ने इस आदत को छोड़ने की बहुत कोशिश की पर लत है कि छूटे नहीं छूट रही है. इस बीच मुझे त्वचा रोग ऐग्जिमा भी हुआ, जो दवा खाने से ठीक हो गया. 2 बार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन भी हुआ. वह भी दवा लेने से ठीक हो गया. कहीं ऐग्जिमा और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन कच्चे चावल खाने की लत से तो नहीं हुआ या फिर यह कहीं शरीर में किसी विटामिन की कमी का लक्षण तो नहीं? कृपया बताएं कि कच्चे चावल खाने की अपनी इस आदत से छुटकारा पाने के लिए क्या करूं?

जवाब-

आप जिस समस्या से गुजर रही हैं वह पाइका नामक विकार का ही एक रूप नजर आता है. यह तन से अधिक मन का विकार है, जो वयस्कों में कम बच्चों में अधिक देखा जाता है. गर्भवती स्त्रियों में भी यह विकार देखा जाता है. अकसर इस में मिट्टी, दीवार का चूना, पेंट, लकड़ी का चूरा आदि चीजें खाने की आदत पड़ जाती है. यह तो गनीमत है कि आप की लत कच्चे चावल खाने तक ही सीमित है. यह विकार किन कारणों से जन्म लेता है, यह कोई ठीकठीक नहीं जानता. पर अत्यधिक मानसिक स्ट्रैस, शरीर में विटामिन और खनिज आदि तत्त्वों की कमी, औब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर जैसी कई भिन्नभिन्न स्थितियां इस के लिए दोषी पाई गई हैं. आप के शरीर में किसी विटामिन या खनिज तत्त्व की कमी है, यह सहीसही जानकारी तो डाक्टरी जांच से ही प्राप्त हो सकती है. शारीरिक जांच और विशेष रक्त जांच कर के डाक्टर विटामिन और खनिज तत्त्वों की कमी की पुष्टि का उपाय बता सकता है. अगर समस्या मनोवैज्ञानिक है, तब इस का समाधान किसी योग्य साइकोलौजिस्ट की मदद से किया जा सकता है. बिहेवियर थेरैपी और कुछ दवाएं इस स्थिति में लाभकारी सिद्ध होती हैं.

हां, ऐग्जिमा या यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फैक्शन से पाइका का कोई संबंध होने की कोई गुंजाइश नहीं है. अत: इस विषय में आप मन में किसी प्रकार की ग्रंथि न पालें. बहुत संभव है कि कुछ समय तक मल्टीविटामिन टैबलेट लेने और अपने मन को समझाने से ही आप इस विकार पर जीत हासिल कर लें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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