अब हां कह दो: क्या हुआ था नेहा के साथ

लंचके समय समीर ने नेहा के पास आ कर उसे छेड़ा, ‘‘क्या मुझ जैसे स्मार्ट बंदे को आज डिनर अकेले खाना पड़ेगा?’’

‘‘मुझे क्या पता,’’ नेहा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘मैं ने एक बढि़या रेस्तरां का पता मालूम किया है.’’

‘‘यह मुझे क्यों बता रहे हो?’’

‘‘वहां का साउथ इंडियन खाना बहुत

मशहूर है.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो आज रात मेरे साथ वहां चलने को ‘हां’ कह दो, यार.’’

‘‘सौरी, समीर मुझे कहीं…’’

‘‘आनाजाना पसंद नहीं है, यह डायलौग मैं तुम्हारे मुंह से रोज सुनता हूं. इस बार सुर बदल कर ‘हां’ कह दो.’’

‘‘नहीं, और अब मेरा सिर खाना बंद करो,’’ नेहा ने मुसकराते हुए उसे डपट दिया.

नेहा के सामने रखी कुरसी पर बैठते हुए समीर ने आहत स्वर में पूछा, ‘‘क्या हम अच्छे दोस्त नहीं हैं?’’

‘‘वे तो हैं.’’

‘‘तब तुम मेरे साथ डिनर पर क्यों नहीं चल सकती हो?’’

‘‘वह इसलिए क्योंकि तुम दोस्ती की सीमा लांघ कर मुझे फंसाने के चक्कर में हो.’’

‘‘अगर हमारी दोस्ती प्रेम में बदल जाती है तो तुम्हें क्या ऐतराज है? आखिर एक न एक दिन तो तुम्हें किसी को जीवनसाथी बनाने का फैसला करना ही पड़ेगा न… अब मुझ से बेहतर जीवनसाथी तुम्हें कहां मिलेगा?’’ कह समीर ने बड़े स्टाइल से अपना कौलर खड़ा किया तो नेहा हंसने को मजबूर हो गई.

‘‘तो कितने बजे और कहां मिलोगी?’’ उसे हंसता देख समीर ने खुश हो सवाल किया.

‘‘कहीं नहीं.’’

‘‘अब क्या हुआ?’’ समीर ने अपना चेहरा लटका दिया.

‘‘अब यह हुआ कि मुझे लड़कियों पर लाइन मारने वाले लड़के पसंद नहीं और न ही मैं उन लड़कियों में से हूं जिन की झूठीसच्ची तारीफ कर कोईर् उन्हें अपने प्रेमजाल में फंसा ले. अब क्या तुम मेरी जान बख्शोगे?’’ नेहा ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘अभी नहीं. देखो, पहली बात तो यह कि मैं लड़कियों पर नहीं, बल्कि सिर्फ 1 लड़की पर अपने प्यार का जादू चलाना चाहता हूं और दूसरी बात यह कि मैं ने कभी तुम्हारी झूठी तारीफ नहीं करी है. मेरी नजरों में तुम संसार की सब से खूबसूरत और आकर्षक लड़की हो.’’ समीर की आंखों में अपने लिए गहरी चाहत के भावों को पहचान कर नेहा कोई चटपटा या तीखा जवाब नहीं दे पाई.

गहरी सांस लेने के बाद उस ने कोमल स्वर में कहा, ‘‘समीर, तुम मेरे बारे में ज्यादा नहीं जानते हो. प्रेम और शादी दोनों के बारे में मेरे विचार अच्छे नहीं हैं. तुम दिल के अच्छे इंसान हो. जाओ किसी और लड़की का दिल जीतने की कोशिश करो. मैं तुम्हारे लिए सही जीवनसंगिनी साबित नहीं हूंगी.’’

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‘‘क्या हम इस बारे में डिनर करते हुए बातें नहीं कर सकते हैं?’’

‘‘आज मुझे अपने पापा के साथ डिनर करना है. सौरी, फिर किसी दिन…’’

‘‘तो आज अपने पापा से ही मिलवा दो, तुम्हारा हाथ मांगने के लिए. एक दिन मुझे तुम्हारे मम्मीपापा से मिलना तो पड़ेगा ही न?’’

समीर ने अपनी यह इच्छा मजाक में बताई थी पर नेहा ने अचानक निर्णय लेते हुए उस से कहा, ‘‘ओके, आज तुम मिल ही लो मेरे मम्मीपापा से. रात को 9 बजे इस पते पर पहुंच जाना,’’ कह नेहा ने एक कागज पर अपने घर का पता लिखा और हैरान नजर आ रहे समीर के हाथ में पकड़ा दिया.

‘‘थैंक यू… थैंक यू… मैं आज तुम्हारे मम्मीपापा का दिल जरूर जीत लूंगा,’’ बहुत खुश नजर आ रहे समीर ने नेहा से जोशीले अंदाज में हाथ मिलाया तो वह गहरी सांस छोड़ कर जबरदस्ती मुसकराने लगी.

रात को समीर वक्त से नेहा के घर पहुंच गया. उसे बनठन कर आया देख नेहा हंस पड़ी.

‘‘स्मार्ट लग रहा हूं न?’’ समीर ने बड़ी अदा से कहा.

‘‘बहुत,’’ नेहा फिर हंसी और उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल दी.

‘‘अब इस हाथ को कभी मत छोड़ना,’’ समीर धीमी व रोमांटिक आवाज में बोला.

‘‘शटअप,’’ नेहा ने उसे हंसते हुए डपटा और फिर वहां उपस्थित 3 व्यक्तियों से परिचय कराने को तैयार हो गई.

‘‘समीर, अपनी उम्र से 10 साल छोटी दिखने वाली ये खूबसूरत लेडी मेरी मम्मी हैं… और ये मेरे पापा हैं. आजकल इन के सिर पर चुनाव लड़ने का भूत सवार है और इसीलिए खादी का कुरतापाजामा पहने हैं… और ये मेरे स्टैप फादर अरुणजी हैं. जब मैं 12 साल की थी तब मम्मीपापा का तलाक हुआ और मेरे 13 साल की होने से पहले मम्मी ने अरुण अंकल से शादी कर ली थी. यह कोठी इन्हीं की है.

‘‘और यह समीर है…मेरे साथ काम

करता है और औफिस खत्म होने के बाद का समय भी मेरी कंपनी में बिताने की इच्छा मन में रखता है. मेरे काफी हतोत्साहित करने के बावजूद यह मुझ से शादी करने का इच्छुक है. अब आप सब एकदूसरे को समझो और परखो. तब तक मैं मेज पर खाना लगवाती हूं,’’ अपने होंठों पर व्यंग्यभरी मुसकान सजाए नेहा रसोई की तरफ चल दी.

समीर को नेहा के मातापिता के तलाक के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस वक्त उसे यह एहसास हुआ कि नेहा की व्यक्तिगत जिंदगी के बारे में वह सचमुच बहुत कम जानता था.

अपने मन को हैरान होने का वक्त दिए बिना वह उन तीनों के सवालों के जवाब देने को तैयार हो गया.

नेहा की मम्मी सीमा ने उस के घर वालों के बारे में कई सवाल पूछे. वे उस के

शौक और मनोरंजन करने के तरीकों के बारे में जानकारी चाहती थीं. उन के सवाल पूछने के ढंग से समीर को जल्दी एहसास हो गया कि वह उन्हें प्रभावित करने में खास सफल नहीं हो रहा है.

नेहा के असली पिता नीरजजी ने उस के काम से जुड़े कई सवाल पूछे. वे उस की अपने भविष्य को संवारने की योजनाओं के बारे में जानने को बहुत उत्सुक थे. समीर को लगा कि वह उन का दिल जीतने में सफल रहा.

अरुण कम ही बोल रहे थे, लेकिन वहां चल रहे वार्त्तालाप में उन की पूरी दिलचस्पी है, यह तथ्य उन की चौकन्नी आंखों से साफ जाहिर हो रहा था. समीर जब भी उन की तरफ देखता

तो वे उस का हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकरा पड़ते.

समीर ने उन सभी से भावुक लहजे में एक ही बात कई तरह से घुमाफिरा कर कही, ‘‘मैं नेहा को दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं. आप सब उसे मेरे साथ शादी करने के लिए राजी करने में मेरी सहायता करें. मैं उसे बहुत खुश और सुखी रखने का वचन देता हूं.’’

नेहा उन सब के बीच आ कर एक बार भी नहीं बैठी. उस ने ऊंची आवाज में खाना लग जाने की सूचना दी तो सब उठ कर डाइनिंगटेबल की तरफ चल पड़े.

खाना खा कर समीर ने सब से विदा ली. नेहा के कान में उस ने फुसफसा कर इतना ही कहा, ‘‘अपनी मम्मी को तुम्हें मनाना पड़ेगा. तुम्हारे डैडी और अरुण अंकल को मैं पसंद आ गया हूं.’’

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‘‘अरुण अंकल अभी तुम्हारे साथ जाएंगे. वे जैसा कहें, तुम वैसा ही करना,’’ नेहा ने भी बहुत धीमी आवाज में जब उस से ऐसा कहा तो समीर जबरदस्त उलझन का शिकार बन गया.

‘‘मैं जरा बाजार तक जा रहा हूं,’’ ऐसा कह कर अरुण समीर की मोटरसाइकिल पर बैठ उस के साथ चले गए.

अंदर आने के बाद नेहा ने पहले डाइनिंग टेबल की सफाई करी और फिर

ड्राइंगरूम में वापस आ कर बिना कोई भूमिका बांधे अपने मातापिता से कहा, ‘‘मैं समीर से शादी करने को खास उत्सुक नहीं हूं पर वह ऐसा करने के लिए मेरी जान महीनों से खा रहा है. अब आप दोनों समीर और हमारी भावी शादी के बारे में अपनी सीधीसच्ची राय इसी समय मुझे बता दें.’’

‘‘मुझे समीर समझदार और गुणी लड़का लगा है. मेरी राय में वह अच्छा पति साबित होगा,’’ नीरज ने फौरन समीर को अपने भावी दामाद के रूप में स्वीकार कर लिया.

‘‘मेरी समझ से तुम्हें जल्दबाजी में काम नहीं लेना चाहिए. जब तक तुम्हारा दिल इस

शादी के लिए पूरे जोश से हां न कहे, तब तक इंतजार करना बेहतर होगा,’’ सीमा की गंभीर आवाज में समीर के प्रति उन की नापसंदगी साफ झलक रही थी.

‘‘मम्मी, यों घुमाफिरा कर बात मत करो. साफसाफ बताओ कि समीर तुम्हें क्यों पसंद नहीं आया है?’’ नेहा ने आवाज में तीखापन पैदा कर मां को सच बोलने के लिए उकसाया.

‘‘समीर का स्वभाव ठीक ही है, पर मुझे तुम दोनों की जोड़ी नहीं जंच रही है. यह दुबला बहुत है और चश्मा भी लगाता है… पर्सनैलिटी में जान नहीं है,’’ सीमा ने अपनी आपत्तियां जाहिर कर दीं.

‘‘नेहा, तुम इस कमअक्ल की बात पर ध्यान मत देना,’’ नीरज एकदम गुस्सा हो उठे, ‘‘यह किसी इंसान की काबिलीयत उस की शारीरिक सुंदरता से ही नाप सकती है और ज्यादा गहरा देखने की समझ इस के पास नहीं है. समीर तुम्हें प्यार करता है, इस बात का इस की नजरों में कोई महत्त्व नहीं है.’’

‘‘अकेले उस के प्यार करने से क्या होगा? अरे, उस का व्यक्तित्व आकर्षक होता तो क्या हमारी नेहा उस की दीवानी न होती?’’ सीमा अपने भूतपूर्व पति से भिड़ने को फौरन तैयार ?हो गईं.

‘‘दोनों अच्छा कमा रहे हैं. मुझे विश्वास है कि नेहा को वह सुखी रखेगा.’’

‘‘पत्नी को सुखी रखने के लिए दौलत से ज्यादा आपसी समझ जरूरी है. एकदूसरे को पसंद करना महत्त्वपूर्ण है.’’

‘‘विवाहित जिंदगी में सुरक्षा और स्थिरता के लिए बैंक में मोटी रकम का होना ज्यादा जरूरी है. घर में सुखशांति हो तो प्यार और आपसी समझ अपनेआप पैदा हो जाती है.’’

‘‘तब हमारा तलाक क्यों हुआ?’’ सीमा ने चिड़ कर पूछा.

‘‘तुम्हारी एहसानफरामोशी और चरित्रहीनता के कारण,’’ नीरज ने चुभते स्वर में कहा तो सीमा की आंखों से चिनगारियां फूटने लगीं.

‘‘तुम्हारे हाथों दिनरात की बेइज्जती से

बचने के  लिए मैं ने तुम से तलाक लिया था.

तुम पैसा कमाने की मशीन थे. मेरे लिए तुम्हारे पास वक्त ही कहां था? जब भी मैं ने तुम से अपने मन की बात कहनी चाही, तुम मारपीट

कर मेरा मुंह बंद कर देते थे. हमारी शादी न

टूटती तो या तो मैं पागल हो जाती या फिर आत्महत्या कर लेती.’’

‘‘तुम्हारी ऐसी बातों पर नेहा विश्वास नहीं करती है तो क्यों अब भी झूठ बोल रही हो? सब को मालूम है कि मुझे धोखा देने के लिए तुम्हें अरुण की फिल्म स्टार जैसी शक्लसूरत ने उकसाया था. तुम्हें शरीर की सुंदरता के अलावा न पहले कुछ भाता था, न अब भाता है और इसीलिए नेहा को गलत सलाह दे रही हो? ’’

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‘‘अपने को ज्यादा होशियार मत दिखाओ…’’

करीब 15 मिनट तक नेहा ने एक शब्द नहीं बोला और वे दोनों एकदूसरे

को नीचा दिखाने की कोशिश करते खूब झगड़े.

नेहा अचानक उठी और मुख्यद्वार की तरफ बढ़ी तो दोनों झटके से खामोश हो गए.

‘‘तुम कहां जा रही हो?’’ सीमा के इस सवाल का नेहा ने कोई जवाब नहीं दिया और दरवाजा खोल कर बाहर चली गई.

वह तुरंत जब अंदर आई तो उस के साथ अरुण और समीर भी थे. वह बोली, ‘‘इन दोनों ने खिड़की के बाहर खड़े हो कर आप दोनों को झगड़ते सुना है. अब मैं समीर से बात करूंगी और आप दोनों में से कोई बीच में बोला तो मैं यह घर छोड़ कर अलग रहने चली जाऊंगी,’’ मातापिता को गुस्से से घूरते हुए जब नेहा ने ऐसी चेतावनी दी तो उन दोनों की आगे कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं हुई.

नेहा ने फिर समीर की तरफ घूम कर चिड़े से लहजे में कहा, ‘‘अब तो तुम समझ ही गए होंगे कि मुझे शादी करने के नाम से इतनी नफरत…इतनी ऐलर्जी क्यों है. मैं ने 12 साल की उम्र तक शायद ही कभी इन दोनों के आपसी व्यवहार में प्यार की मिठास देखी हो. जब पापा मां पर हाथ उठाते थे तो उन्हें बचाने के चक्कर मेें मैं ने अपनी बहुत पिटाई कराई थी. तलाक के बाद मम्मी सारी दुनिया के सामने यह साबित करना चाहती थीं कि मुझे अकेली भी बहुत अच्छी तरह पाल सकती हैं. मेरा कैरियर अच्छा बनाने के नाम पर इन्होंने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत सताया था.

‘‘ये न अच्छे पतिपत्नी थे न अच्छे मातापिता हैं. इन के कारण मैं ने कभी शादी न करने का फैसला किया है. मुझे उम्मीद है कि अब तुम

मेरे जीवनसाथी बनने का सपना देखना हमेशा के लिए छोड़ दोगे.’’

समीर की समझ में नहीं आया कि वह नेहा को क्या जवाब दे. सीमा और नीरज की लड़ाई ने उसे काफी ज्यादा परेशान और तनावग्रस्त कर दिया था.

उसे कुछ न कहते देख अरुण संजीदा लहजे में बोलने लगे, ‘‘तुम दोनों के साथ इस वक्त मैं अपने दिल में उठ रही कुछ बातों को बांटना चाहता हूं. शायद वे बातें तुम्हें सही फैसला लेने में सहायता करें. तलाक होने से पहले सीमा और मैं अच्छे दोस्त थे. यह अपने दुख, तनाव और परेशानियों को मेरे साथ बांटती थी. अच्छा दोस्त होने के नाते मैं इसे खुश देखना चाहता था और इसीलिए इस का मनोबल ऊंचा रखने के लिए जो संभव होता, वह खुशी से करता. सीमा को खुश रखना, उसे हंसतेमुसकुराते देखना मुझे तब भी बहुत खुशी देता था और आज भी. वह काफी मूडी इंसान है, पर इस बात से मुझे कोई फर्क

नहीं पड़ता. मैं तो उसे हर हाल में प्रसन्न देखना चाहता हूं.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुम दोनों मेरे कुछ सवालों के जवाब ईमानदारी से दो. समीर, क्या नेहा को खुश कर के तुम्हें खुशी मिलती है?’’

‘‘बहुत ज्यादा, अंकल यह मेरी किसी बात पर हंस पड़े…मैं इस का कैसा भी काम कर पाऊं…यह मुझ से अपनेपन की मिठास के साथ बोल लेती है तो मेरा मन खुशी से नाच उठता है,’’ समीर भावुक हो उठा.

‘‘नेहा, तुम्हें समीर का कौन सा गुण सब से ज्यादा प्रभावित करता है?’’ अरुण ने कोमल स्वर में नेहा से पूछा.

कुछ देर सोचने के बाद नेहा ने छोटी सी मुसकान होंठों पर ला कर समीर की

तरफ देखते हुए जवाब दिया, ‘‘यह सिरफिरा इंसान मुझे हर हाल में हंसा सकता है. यह पूरा जोकर है.’’

‘‘मेरी तारीफ करने के लिए धन्यवाद,’’ समीर ने झुक कर नाटकीय अंदाज में नेहा को सलाम किया तो वह खुल कर हंस पड़ी.

‘‘देखा आप ने अंकल?’’

‘‘यह तुम्हें हंसा सकता है, इस बात की अहमियत को कम कर के मत आंको. नेहा तुम दोनों अच्छे दोस्त तो हो ही. इस दोस्ती की नींव को कभी कमजोर न पड़ने देने का पक्का संकल्प कर विवाहबंधन में बंध जाओ.

‘‘तुम अपने मम्मीपापा की कार्बन कौपी

नहीं हो जो अपने विवाह को सफल नहीं बना पाओगी. समीर तुम्हारा जीवनसाथी बनना चाहता है तो उसे ऐसा करने का मौका जरूर दो. शादी टूटने के कारणों की अच्छीखासी समझ तुम्हारे पास है. उस समझ के कारण शादी न करने का फैसला करने के बजाय अपनी शादी को सफल बनाना. तुम्हारी मम्मी को मैं समझाऊंगा. हम

सब का आशीर्वाद तुम दोनों को जरूर मिलेगा,’’ अरुण ने प्यार से नेहा के सिर पर हाथ रखा

और फिर समीर को खींच कर अपने सीने से

लगा लिया.

‘‘समीर के साथ शादी कर ले, मेरी

बच्ची. अकेले जिंदगी काटना बहुत कठिन है. अपने अकेलेपन से मैं इतना तंग आ चुका हूं

कि तुम्हारी मां अगर अरुण को छोड़ कर मेरे पास लौटना चाहे तो मैं इस बददिमाग औरत को फिर से अपना लूंगा,’’ नीरज के इस मजाक पर सभी हंस पड़े तो माहौल में व्याप्त तनाव छंट गया.

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‘‘यार, जल्दी से हां कहो, प्लीज. फिर हमें कल की पार्टी के बारे में चर्चा भी करनी है,’’ समीर ने अपने हाथों में नेहा के हाथ ले कर जबरदस्त आत्मविश्वास का प्रदर्शन किया.

‘‘तुम किस पार्टी की बात कर रहे हो?’’ नेहा ने उलझनभरे स्वर में पूछा.

‘‘अपनी मंगेतर का औफिस वालों से परिचय कराऊंगा तो क्या वे बिना पार्टी लिए हमारी जान बख्श देंगे?’’

नेहा ने उस की आंखों की गहराई में झांका तो उसे वहां अपने लिए प्यार, सम्मान और अपनेपन के भाव साफ नजर आए. उस ने

अपने दिल की बात सुनी और फिर समीर के

गले लग कर अपनी हां कही तो उस ने भावविभोर हो कर उसे गोद में उठा लिया.

पतिता का प्रायश्चित्त: आखिर रेणु के बारे में क्या थी मयंक की राय

लेखक- डौ. अनिल प्रताप सिंह

उस दिन शाम को औफिस से घर आने के बाद मयंक अपने परिवार के साथ कार से टहलने निकल पड़ा. मयंक के साथ उस की पत्नी स्नेह भी थी जो 2 साल के अंशु को गोद में ले कर बैठी थी.

मयंक कार के स्टेयरिंग पर था और उसे बहुत धीमी रफ्तार से चला रहा था. अचानक उस की नजर सड़क पार करती एक जवान औरत पर पड़ी. एकाएक उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. उस ने कार की रफ्तार को और भी धीमा कर दिया और उस औरत को गौर से देखने लगा.

‘‘क्या बात है?’’ स्नेह की आवाज में जिज्ञासा थी, ‘‘क्या देख रहे हैं आप?’’

‘‘मैं उस औरत को देख रहा हूं,’’ मयंक ने उस औरत की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘क्यों… कोई खास बात है क्या?’’ स्नेह ने पूछा.

‘‘हां है…’’ मयंक ने कहा, ‘‘एक लंबी कहानी है इस की. उस कहानी का एक पात्र खुद मैं भी हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ एक अविश्वास भरी हैरानी से स्नेह का मुंह खुला का खुला रह गया.

थोड़ी देर में मयंक ने कार की रफ्तार बढ़ा दी और आगे निकल गया.

मयंक इस शहर में अभी नयानया जिला जज बन कर आया था. उसे यहां रहने के लिए एक सरकारी बंगला मिला हुआ था. वह सपरिवार यानी स्नेह और 2 साल के अंशु के साथ रहने लगा था.

उस रात जब वे खाना खाने बैठे तो स्नेह ने उसी सवाल को दोहराया, ‘‘कौन थी वह औरत?’’

मयंक का दिल ‘धक’ से बैठ गया, पर उस ने खुद पर कंट्रोल कर के मन ही मन बात शुरू करने की भूमिका बना ली. फिलहाल टालने भर का मसाला तैयार कर के उस ने कहा, ‘‘आजकल उस औरत का एक केस मेरी अदालत में चल रहा है. तलाक का मामला है.’’

‘‘लेकिन, आप ने तो कहा था कि उस की कहानी के एक पात्र आप भी…’’

‘‘हां, मैं ने तब जो भी कहा हो, लेकिन इस समय मेरे सिर में दर्द है. मुझे आराम करने दो,’’ मयंक की आवाज में कुछ झुंझलाहट थी.

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स्नेह के मन में मची उथलपुथल को मयंक बखूबी समझ रहा था. औरत के मन में शक की उपज स्वाभाविक होती है. यों स्नेह मयंक के प्यार के आगे मुंह खोल सकने की हालत में नहीं थी.

मयंक टाल तो गया, पर वह औरत अब भी उस की यादों में छाई रही.

आज से तकरीबन 8 साल पहले जब मयंक ग्रेजुएशन का छात्र था तो उस की बड़ी बहन की शादी में दूर के रिश्तेदारों, परिचितों के अलावा बड़े भाई के एक खास दोस्त की बहन रेणु भी आई थी.

मयंक को पहले ही दिन लगा था कि रेणु बहुत ही चंचल स्वभाव की थी और बातूनी भी. रेणु के आते ही सब उस से घुलमिल गए थे. बातबात में हर कोई ‘रेणु, जरा मुझे एक गिलास पानी देना’, ‘जरा मेरे लिए एक कप चाय बना देना’, ‘मुझे भूख लगी है, खाना परोस देना’ जैसी फरमाइशें करने लगा था.

एक दिन मयंक ने पुकारा था, ‘रेणु, मुझे प्यास लगी है.’

अचानक रेणु मयंक के पास आई और फुसफुसा कर बोली, ‘कैसी…’ और इतना कह कर उस ने अपने होंठों पर बड़ी गूढ़ मुसकान बिखेर दी.

मयंक अचकचा सा गया था. उसे रेणु से इस तरह की हरकत की कतई उम्मीद न थी.

मयंक ने अपनी झेंप को काबू में करते हुए कहा, ‘फिलहाल तो मुझे पानी ही चाहिए.’

रेणु ने पानी दिया और उसी दिन थोड़ा एकांत पाते ही उस ने कहा, ‘मयंक, तुम मुझ से इतना कतराते क्यों हो? क्या मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती?’

‘नहीं’ कहने के बजाय मयंक के मुंह से निकला था, ‘क्यों नहीं…’

लेकिन उसी दिन से उन दोनों के बीच ऐसी निजी बातों का सिलसिला चल पड़ा था. लगा कि जैसे सारी दूरियां खत्म होती जा रही थीं. मयंक भी रेणु की बातों में दिलचस्पी लेने लगा था.

रेणु ने एक दिन मयंक के सामने शादी करने का प्रस्ताव रख दिया, ‘मयंक, मैं चाहती हूं कि हम दोनों जीवनभर एकदूसरे के बने रहें.’

‘क्या…’ मयंक की हैरानी लाजिमी थी. क्या रेणु उस के बारे में इस हद तक सोचती है?

‘हां मयंक, अगर मेरी शादी तुम से नहीं हुई तो मैं जिंदगीभर कुंआरी ही रहूंगी,’ रेणु ने कहा. लगा, जैसे उस के आंसू छलक पड़ेंगे.

मयंक थोड़ी देर तो चुप रहा था लेकिन कुछ ही पलों में उस के दिल में रेणु के लिए प्यार उमड़ पड़ा था. वह उसे वचन दे बैठा, ‘अगर तुम में सचमुच सच्चे प्यार की भावना है रेणु, तो मैं जिंदगीभर तुम्हारा साथ निभाऊंगा.’’

यह सुनते ही रेणु मयंक से लिपट गई.

‘मुझे तुम से ऐसी ही उम्मीद थी,’ रेणु बुदबुदाई.

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मयंक का एक दोस्त विनय भी शादी से कुछ दिन पहले ही हाथ बंटाने के लिए वहां आ गया था. एक दिन मयंक की मां ने विनय से शादी का कुछ सामान लाने को कहा. रेणु भी अपनेआप तैयार हो गई.

‘क्या मैं भी विनय के साथ चली जाऊं? इन के रास्ते में ही महमूदपुर पड़ेगा, जहां मेरी एक सहेली ब्याही गई है. अगर एतराज न करें तो मैं उस से मिल लूं? शाम को जब ये शहर से सामान ले कर लौटेंगे तो इन्हीं के साथ आ जाऊंगी,’ रेणु ने मयंक की मां से पूछा.

थोड़ी देर सोच कर मां बोलीं, ‘लेकिन, शाम तक जरूर लौट आना.’

‘हांहां, बस मिलना ही तो है,’ रेणु ने कहा, फिर वे दोनों स्कूटर पर बैठे और चले गए.

शाम हुई और शाम से रात, पर रेणु नहीं आई. मयंक ने सोचा कि आखिर वह अभी तक क्यों नहीं लौटी? विनय भी नहीं आया था.

अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘कौन…?’ मां ने पूछा.

‘मैं हूं,’ उधर से विनय ने कहा.

मां ने दरवाजा खोला. रेणु भी पीछे खड़ी थी.

‘कहां रह गए थे तुम दोनों?’ मां ने  झुंझलाते हुए पूछा.

‘कुछ नहीं… बस, इन का खटारा स्कूटर खराब हो गया था, फिर काफी पैदल चलना पड़ा,’ विनय कुछ बोलता, उस से पहले ही रेणु ने कहा और घर में जा घुसी.

उस समय मयंक को उस की यह हरकत सही नहीं लगी थी, फिर भी वह उस के शब्दजाल में फंस चुका था.

फिर एक दिन रेणु अपने घर चली गई. कई दिनों तक मयंक को कुछ भी अच्छा नहीं लगा था. घर में जाने की इच्छा भी न होती थी. हर जगह उस की यादें बिखरी हुई मालूम पड़ती थीं. उन्हीं यादों के नाते मयंक को लगता था जैसे वह खुद भी बिखर कर रह गया है.

मयंक ने अपनी मां को भी बता दिया था कि वह रेणु से प्यार करता है और शादी भी उसी से करना चाहता है.

‘मयंक, एक सवाल पूछूं तुम से?’ मां ने पूछा.

‘पूछो न मां… एक नहीं, हजार पूछो,’ मयंक ने कहा.

‘तुम्हें रेणु के चरित्र के बारे में क्या लगता है?’ मां ने सीधा सवाल किया.

मयंक बोला, ‘मुझे तो ठीक लगता है. वैसे, क्या आप को…?’

‘नहींनहीं, आजकल की लड़कियों के बारे में कालेज के लड़के ही ज्यादा जानकारी रखते हैं. खैर, ठीक ही है,’ मां ने कहा.

अचानक मां को पिताजी ने बुला लिया था. मयंक ने सोचा कि मां कहना क्या चाहती थीं?

एक दिन जब मयंक ने विनय को रेणु से अपने संबंध की बात बताई तो वह एकदम से बिफर गया, ‘तुम उसे भूल जाओ प्यारे… उस की मधुर मुसकानें बहुत जहरीली हैं.’

‘मैं समझा नहीं…’

‘तुम समझोगे भी कैसे? तुम्हारे दिमाग को तो रेणु नाम की उसी घुन ने चट कर रखा है. अब तुम समझनेबूझने की हालत में रह ही कहां गए हो?’ विनय ने ताना मारा.

‘क्या मतलब…’

‘तुम्हें यह शादी नहीं करनी है…’ विनय हक के साथ बोल पड़ा, ‘और अगर तुम उसे भूल नहीं पाते हो तो मुझे भूलने की कोशिश कर लेना.’

‘ठीक है. मैं भूल जाऊंगा उसे, लेकिन तुम भी इतना जान लो कि मैं जिंदगीभर कुंआरा ही रहूंगा,’ मयंक थोड़ा भावुक हो उठा.

‘आखिर तुम ने उस के अंदर ऐसा क्या देखा है, जो उस के लिए इतना बड़ा त्याग करने को तैयार हो?’

‘सिर्फ बरताव, खूबसूरती नहीं,’ मयंक ने कहा.

‘तो बस यही नहीं है उस में, बाकी सबकुछ हो भी तो क्या?’

‘क्या…?’

‘हां मयंक, उस का चरित्र सही नहीं है. अच्छा बताओ, तुम्हें वह दिन याद है न, जब रेणु मेरे साथ महमूदपुर गई थी?’

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‘हां, याद तो है?’

‘मेरा स्कूटर खराब हो गया था और मैं देर रात वापस लौटा था?’

‘हां, यह भी याद है…’

‘मैं और भी जल्दी आ सकता था, पर वह देरी रेणु ने जानबूझ कर की थी.’

मयंक हैरानी से विनय का मुंह ताकने लगा.

‘लेकिन, उस को भी तो आना था?’ मयंक अपने अंदर हैरानी समेटे बोल रहा था, ‘जबकि तुम दोनों को महमूदपुर में ही रात होने लगी थी.’

‘हां इसलिए, रात का फायदा उठाने के लिए ही ऐसा किया गया था.’

‘क्या मतलब…?’

‘अब इतने नादान तो हो नहीं तुम कि तुम्हें मतलब समझाना पड़े…’

‘तो क्या रेणु ऐसी…?’

‘जी हां, ऐसी ही है रेणु…’ विनय ने आगे कहा, ‘उस की उन गलत इच्छाओं के आगे मुझे मजबूर होना पड़ा था, क्योंकि वह किसी भी हद तक जा चुकी थी…’ वह बोलता जा रहा था, ‘मैं इस के बारे में कभी भी कुछ न कहता, अगर आज अपने सब से अच्छे और एकलौते दोस्त को जिंदगी के इतने बड़े फैसले का धर्मसंकट सामने न आ खड़ा होता.’

विनय की बातें मयंक के कानों में जहर घोल रही थीं और वह खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा था.

मयंक ने सोचा कि अपने इस सवाल का जवाब वह खुद रेणु से लेगा, पर इस की नौबत ही नहीं आने पाई. उस ने जल्दी ही

सुना कि रेणु का किसी से प्रेम विवाह हो गया है.

इधर मयंक के लिए भी कोई रिश्ता आया. उस ने मांबाप के फैसले को सिर्फ उन की खुशी के लिए अपनी रजामंदी

दे दी.

सुसंस्कारों में पलीबढ़ी स्नेह मयंक के घर में सब को भाती थी. जब वह जिला जज की इस जिम्मेदारी के लिए आने लगा तो मां ने स्नेह से हंसते हुए कहा, ‘मेरे और अपने दोनों बेटों का खयाल रखना है अब तुम्हें.’

‘जी मां,’ स्नेह ने भी हंस कर ही कहा, जो मां के लिए बहू के बजाय उन की लाड़ली बेटी थी.

आज रेणु से मयंक का सामना वक्त ने उस मुकाम पर आ कर कराया जहां वह मयंक की ही अदालत में एक गुनाहगार की तरह खड़ी थी. उस के पति ने ही उस पर किसी और से संबंध होने की बात पर तलाक मांगा था.

रेणु आई, मयंक भी. जिला जज से पहले वह एक नेकदिल इनसान ही था, इसलिए अपनी ही उलझनों की शिकन महसूस करते हुए वह भी उस के सामने अपनी कुरसी पर आ बैठा.

आज रेणु का चेहरा बहुत ही बुझा हुआ था. मयंक को उस का अल्हड़पन याद आया, पर उस की जिंदगी में खुशियों का जरा भी दीदार न हो सका.

बहस के दौरान रेणु ज्यादातर चुप

ही बनी रही और अपनी गलतियों को मान कर आगे से ऐसा कुछ न करने के लिए कहा.

रेणु के पति के पक्ष से पेश किए गए सुबूतों के आधार पर उसे तलाक मिल चुका था. पर रेणु के अदालत में बोले गए ये बोल, ‘आज मैं कहां से कहां होती…’ मयंक के जेहन में गूंजते रहे.

मयंक को बारबार यही अहसास

हो रहा था कि ऐसा रेणु ने उस के और मयंक के संबंधों को याद करते हुए

बोला था.

मयंक को आज उस पर तरस आ रहा था, पर यही तो था एक ‘पतिता का प्रायश्चित्त’.

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अजंता: भाग 4- आखिर क्या हुआ पूजा के साथ

लेखक- सुधीर मौर्य

तुम्हारे बिना देर शाम औफिस से लौट कर, घर आना और फिर अपने ही हाथों से अपार्टमैंट का ताला खोलना, वही ड्राइंगरूम, वही बैडरूम वही बालकनी, वही किचन सबकुछ तो वही है, मगर एक तुम्हारे बिना सबकुछ वैसा ही क्यों नहीं लगता? बेशकीमती कालीन, सुंदर परदे, रंगीन चादर, चमकते झालर, सुनहरा टीवी स्क्रीन, सुंदर हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ सुंदर क्यों नहीं लगता? क्षितिज तक फैला नीला सागर, उस पर उठती ऊंचीऊंची लहरें, सुनहरा रेत, ढलती शाम, सबकुछ सुहाना हो कर भी तुम्हारे बिना सुहाना क्यों नहीं लगता? पर्वत की चोटियों पर झूमती काली घटाएं पहाड़ों से आती सरसराती ठंडी हवाएं, स्वर्ग सा सुंदर, पहाड़ों का दामन, हसीन वादियां, खूबसूरत नजारे बहुत खूबसूरत हो कर भी तुम्हारे बिना सबकुछ खूबसूरत क्यों नहीं लगता?

जैसेजैसे शादी की तारीख नजदीक आ रही थी अजंता को प्रशांत की असलियत का पता चलता जा रहा था. एक दिन तो प्रशांत ने सारी सीमाएं ही लांघ दीं…

अजंता की जिंदगी से ज्योंज्यों दिन आगे बढ़ रहे थे वैसे-वैसे उस की जिंदगी में जद्दोजहद बढ़ती जा रही थी. शशांक की बेबाकियां बदस्तूर जारी थीं और अजंता ने न जाने क्यों कभी उस की बेबाकियों पर कोई प्रतिबंध लगाने की कोशिश नहीं की. शशांक, स्टूडैंट और टीचर के रिश्ते से हट कर अपने से करीब 3-4 साल बड़ी अपनी टीचर अजंता से प्रेमीप्रेमिका का संबंध बनाना चाहता था. अजंता का भी दिल कभी कहता कि अजंता यह शशांक तुझे बहुत प्यार करेगा, यही लड़का है जो तेरी इच्छाओं का सम्मान कर के तेरी जिंदगी में मुहब्बत के फूल खिलाएगा. पर अगले ही पल उस के दिमाग पर प्रशांत छा जाता. प्रशांत यद्यपि गाहेबगाहे अजंता के ऊपर अपनी इच्छाएं लादने का प्रयास करता पर जब कभी अजंता इस का विरोध करती तो वह अपनी गलती मान कर अजंता को खुश करने के लिए कुछ भी करता.

सच कहें तो अजंता की जिंदगी शशांक और प्रशांत के बीच उलझ रही थी. कभीकभी उस का दिल कह उठता कि अजंता ये लड़के शशांक और प्रशांत दोनों ही तेरे लायक नहीं. तू हिम्मत कर के इन दोनों को अपनी जिंदगी से बाहर कर दे. पर अजंता जानती थी वह इतनी सख्त दिल की नहीं. इसलिए न ही वह शशांक को कुछ कह पाती और प्रशांत तो उस के परिवार की पसंद था. इसलिए उसे मना करने वाला जिगर, बेहद कोशिश करने के बाद भी अजंता अपने भीतर कहीं भी ढूंढ़ नहीं पाती.

ऊपर से अजंता का अतीत कभीकभी उस के सामने किसी डरवाने सपने की तरह आ कर खड़ा हो जाता. राजीव, हां जो कभी प्रशांत से शादी करने के बाद किसी दिन उस के सामने आ गया और प्रशांत को पता लग गया कि इस व्यक्ति के साथ उस की पत्नी के अंतरंग संबंध रहे हैं. उस की पत्नी वर्जिन नहीं है तो क्या कयामत टूटेगी… अजंता और प्रशांत दोनों की जिंदगी नर्क बन जाएगी.

अजंता ने शशांक और प्रशांत से दूर होने की कोशिश भी की. वह जब प्रशांत से मिलने जाती तो वे कपड़े पहनती जो शशांक को पसंद होते और जब उसे लगता आज उसे शशांक मिल सकता है तो प्रशांत की पसंद के कपड़े पहनती.

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अजंता को ऐसी ड्रैस में देख कर प्रशांत का मूड खराब हो जाता. वह अजंता को शौर्ट कपड़ों में देख कर डांटने के अदांज में अच्छाखासा लैक्चर झाड़ता और आगे से ऐसे कपड़े न पहनने की हिदायत भी देता और शशांक वह अजंता को सलवारसूट आदि में देख कर कहता कि मैम बहुत खूबसूरत लग रही हो पर अगर आज आप ने स्कर्ट पहनी होती तो और खूबसूरत लगतीं.

शशांक की इन्हीं बातों ने अजंता को अपनी ओर थोड़ाबहुत खींचा भी था. उस की इच्छाओं का सम्मान करने वाला शशांक अजंता के दिल में जगह बनाने लगा. पर प्रशांत उस का मंगेतर था. कुछ समय बाद उन की शादी होने वाली थी. दोनों परिवार वालों के सारे जानने वाले और रिश्तेदारों को इस होने वाली शादी की खबर थी. अगर यह शादी टूटी तो कितनी बदनामी होगी, कितनी बातें उठेंगी.

शशांक की ओर बढ़ते अपने कदम तथा अपनी ओर बढ़ते शशांक के कदमों को रोकने के लिए अजंता ने एक दिन शशांक को प्रशांत के बारे में बता दिया. वह उस की मंगेतर है और जल्द ही उन की शादी होने वाली है. सुन कर शशांक के चेहरे पर कुछ देर के लिए उदासी छा गई पर फिर तुरंत ही खिलखिला कर हंसते हुए बोला, ‘‘मैम, किसी कवि ने कहा है कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’’

शशांक के चेहरे पर आई उदासी से उदास हुई अजंता ने उस की हंसी देख कर रिलैक्स होते हुए पूछा,‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह मैम कि हम तो तब तक कोशिश करते रहेंगे जब तक आप मेरे इश्क में गिरफ्तार नहीं हो जातीं.’’

‘‘नो चांस,’’ अजंता के यह कहने पर शशांक ने तपाक से कहा, ‘‘मैम, अगर इश्क में आप के गिरफ्तार होने के कोई चांस नहीं तो मुझे ही अपने इश्क में गिरफ्तार कर लीजिए.’’

शशांक की बात सुन कर न चाहते हुए भी अजंता हंस पड़ी और फिर उस ने महसूस किया कि उस का दिल शशांक की ओर थोड़ा और खिंच गया.

आगे के दिनों में अजंता की जिंदगी में 2 घटनाएं ऐसी घटीं जिन्होंने उस की सोच की धारा को बदलने में अहम रोल अदा किया.

पहली घटना…

फाइनल ऐग्जाम से पहले राजकीय पौलिटैक्निक लखनऊ में ऐनुअल स्पोर्ट्स गेम होते थे. पूरे प्रदेश के पौलिटैक्निक के लड़केलड़कियां जिन की खेल में रुचि होती इस इवेंट में हिस्सा लेते. हर कालेज अपने चुने स्टूडैंट्स का एक दल ले कर लखनऊ आता. उन के रहने एवं खेल को सुचारु रूप से संपन्न करवाने के लिए कालेज स्टाफ की सहायता राजकीय पौलिटैक्निक, लखनऊ के सीनियर स्टूडैंट्स करते. उन्हें वालेंटियर का एक पास इशू किया जाता.

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उस पास से स्टूडैंट्स किसी भी कैंप में आजा सकते थे. जूनियर लड़कों को कालेज के इतिहास में कभी वालेंटियर का पास इशू नहीं किया गया था. अजंता भी स्पोर्ट्सपर्सन थी, इसलिए वह इस इवेंट में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. अजंता उस समय यह देख कर चौंक पड़ी जब उस ने शशांक को वालेंटियर का पास अपने सीने पर लगाए झांसी से आए गु्रप को हैंडल करते देखा.

‘‘मैम, हर शहर से बहुत प्यारीप्यारी लड़कियां आई हैं खेलने के लिए पर उन में कोई भी आप सी प्यारी नहीं,’’ शशांक ने अजंता के पास से गुजरते हुए जब यह कहा तो उस के मन ने सोचा काश वह आज शशांक की टीचर न हो कर स्टूडैंट होती तो शायद शशांक की बात का पौजिटिव रिप्लाई देती.

बाद में जब अजंता ने शशांक से पूछा कि उसे यह पास कैसे मिल गया तो उस ने अलमस्त अंदाजा में कहा, ‘‘बड़ी सरलता से, वार्डन के घर पर उस की पसंदीदा चीज के साथ गया और यह पास ले आया.’’

यद्यपि शशांक का यह काम गलत था, पर अजंता को यह अच्छा लगा. सच तो यह था कि शशांक अब उसे अच्छा लगने लगा था.

हालांकि अजंता को वार्डन की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया. पहले उस ने सोचा कि इस प्रकरण की शिकायत प्रधानाचार्य से करे, पर इस से शशांक का पास छिन जाने का डर था, इसलिए अजंता चुप रह गई. यह इस बात का प्रमाण था कि वह शशांक की ओर आकर्षित हो चुकी है.

खेल समाप्त हो चुके थे. अगले दिन रंगारंग कार्यक्रम के बाद पार्टिसिपेट करने आए स्टूडैंट्स को अपनेअपने शहर लौट जाना था. पूरे कालेज कैंपस में खुशी का माहौल था. पर अचानक इसी खुशी के माहौल में एक घिनौनी हरकत ने कुहराम मचा दिया.

झांसी से आई स्टूडैंट पूजा जिस ने 100 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल किया था, वह फटे कपड़ों एवं खरोंची गई देह के साथ रोबिलख रही थी. वह शायद शौपिंग के लिए मार्केट गई थी. आते समय तक रात हो चुकी थी. उस के साथ 2 और लड़कियां थीं. कालेज के पिछले गेट पर औटो से उतर कर पूजा औटो वाले को पैसे देने लगी. उस की दोनों सहेलियां कालेज कैंपस की ओर बढ़ गईं. कालेज के पिछले गेट वाले रास्ते पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी कम थी.

पूजा जब पैसे दे कर कालेज के अंदर आई तब तक उस की सहेलियां आगे निकल गई थीं. तभी अचानक किसी ने पूजा को दबोच लिया. उस ने चीखने की कोशिश की तो तुरंत मुंह को मजबूत हाथों ने चुप कर दिया. पूजा की अस्मत लूटने से पहले लोगों ने उसे नहीं छोड़ा. वे 2 थे. जब पूजा इस हालत में लड़खड़ाती हुई अपने कैंपस में पहुंची तो उस की यह हालत देख कर वहां कुहराम मच गया. अजंता भी वहां पहुंच गई. सभी पूजा को सांत्वना दे रहे थे.

कुछ आवाजें उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं कि जो हुआ उसे दबा दिया जाए अन्यथा इस से पूजा के ही भविष्य पर असर पड़ेगा. पर एक आवाज थी जिस ने पूजा से कहा कि उठे और अभी पुलिस स्टेशन चले. उसे अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ पूरी ताकत लगा कर लड़ना चाहिए. यह आवाज शशांक की थी.

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‘‘यह लड़का क्या बकवास कर रहा है?’’ अजंता ने पहचानी हुई आवाज की ओर देखा तो प्रशांत खड़ा था.

‘‘आप यहां?’’

‘‘हां, तुम्हारे फ्लैट पर गया तो बंद था,’’ अजंता के सवाल का जवाब देते हुए प्रशांत ने कहा, ‘‘मुझे लगा कालेज में चल रहे इवेंट की वजह से तुम शायद अब तक कालेज में होगी, सो यहां चला आया. यहां देखा तो यह कांड हुआ है. जरूर इस लड़की ने जो यह शौर्ट स्कर्ट पहनी हुई है वह इस की इस हालत की जिम्मेदार है.’’

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समझौता: क्या राजीव और उसकी पत्नी का सही था समझौता

वेल्लूर से कोलकाता वापस आ कर राजीव सीधे घर न जा कर एअरपोर्ट से आफिस आ गया था. उसे बौस का आदेश था कि कर्मचारियों की सारी पेमेंट आज ही करनी है.

पिछले कई दिनों से उस के आफिस में काफी गड़बड़ी चल रही थी. अपने बौस अमन की गैरमौजूदगी में सारा प्रबंध राजीव ही देखता था. कर्मचारियों को भुगतान पूरा करने के बाद राजीव ने तसल्ली से कई दिनों की पड़ी डाक छांटी. फिर थोड़ा आराम करने की मुद्रा में वह आरामकुरसी पर निढाल सा लेट गया. राजीव ने आंखें बंद कीं तो पिछले दिनों की तमाम घटनाएं एक के बाद एक उसे याद आने लगीं. उसे काफी सुकून मिला.

वैशाली को अचानक आए स्ट्रोक के कारण उसे आननफानन में बेलूर ले जाना पड़ा था. कई तरह के टैस्ट, बड़ेबड़े और विशेषज्ञ डाक्टरों ने आपस में सलाह कर कई हफ्तों की जद्दोजहद के बाद यह नतीजा निकाला कि अब वैशाली अपने पैरों पर कभी खड़ी नहीं हो सकती क्योंकि उस के शरीर का निचला हिस्सा हमेशा के लिए स्पंदनहीन हो चुका है. वह व्हील चेयर की मोहताज हो गई थी. पत्नी की ऐसी हालत देख कर राजीव का दिल हाहाकार कर उठा, क्योंकि अब उस का वैवाहिक जीवन अंधकारमय हो गया था.

एक तरफ वैशाली असहाय सी अस्पताल में डाक्टरों और नर्सों की निगरानी में थी दूसरी तरफ राजीव को अपनी कोई सुधबुध न थी. कभी खाता, कभी नहीं खाता.

एक झटके में उस की पूरी दुनिया उजड़ गई थी. उस की वैशाली…इस के आगे उस का संज्ञाशून्य दिमाग कुछ सोच नहीं पा रहा था.

मोबाइल बजने से उस की सोच को दिशा मिली.

लंदन से बौस अमन का फोन था. वैशाली के बारे में पूछ रहे थे कि वह कैसी है?

‘‘डा. सुरजीत से बात हुई? वह तो बे्रन स्पेशलिस्ट हैं,’’ अमन बोले.

‘‘हां, उन को भी सारी रिपोर्ट दिखाई थी. मैं ने अभी डा. अभिजीत से भी बात की है. उन्होंने भी सारी रिपोर्ट देख कर कहा कि ट्रीटमेंट तो ठीक ही चल रहा है. पार्किन्सन का भी कुछ सिम्टम दिखाई दे रहा है.’’

‘‘जीतेजी इनसान को मारा तो नहीं जा सकता. जब तक सांस है तब तक आस है.’’

‘‘जी सर.’’

अपने बौस अमन से बात करने के बाद राजीव का मन और भी खट्टा हो गया. घर लौट कर कपड़े भी नहीं बदले, अपने बेडरूम में आ कर लेट गया. मां ने खाने के लिए पूछा तो मना कर दिया. बाबूजी नन्ही श्रेया को सुला रहे थे. आ कर पूछा, ‘‘बेटा, अब कैसी है, वैशाली? कुछ उम्मीद…’’

राजीव ने ना की मुद्रा में गरदन हिला दी तो बाबूजी गमगीन से वापस चले गए.

राजीव के मानसपटल पर वैशाली के साथ की कई मधुर यादें चलचित्र की तरह चलने लगीं.

उस दिन एम.बी.ए. का सेमिनार था. राजीव को घर से निकलने में ही थोड़ी देर हो गई थी. इसलिए वह सेमिनार हाल में पहुंचने के लिए जल्दीजल्दी सीढि़यां चढ़ रहा था. इतने में ऊपर से आती जिस लड़की से टकराया तो अपने को संभाल नहीं सका और जनाब चारों खाने चित.

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लड़की ने रेलिंग पकड़ ली थी इसलिए गिरने से बच गई पर राजीव लुढ़कता चला गया. वह तो श्ुक्र था कि अभी 5-6 सीढि़यां ही वह चढ़ा था इसलिए उसे ज्यादा चोट नहीं आई.

लड़की ने उस के सारे बिखरे पेपर समेट कर उसे दिए तो राजीव अपलक सा उस वीनस की मूर्ति को देखता ही रह गया. उस का ध्यान तब टूटा जब लड़की ने उसे सहारा दे कर उठाना चाहा. औपचारिकता में धन्यवाद दे कर राजीव सेमिनार हाल की ओर चल दिया.

सेमिनार के दौरान दोनों नायक- नायिका बन गए.

सेमिनार के बाद राजीव उस लड़की से मिला तो पता चला कि जिस मूर्ति से वह टकराया था उस का नाम वैशाली है.

राजीव का फाइनल ईयर था तो वैशाली भी 2-4 महीने ही उस से पीछे थी. एक ही पढ़ाई, एक जैसी सोच, रोजरोज का मिलना, एकसाथ बैठ कर चायनाश्ता करते. दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई. कसमें, वादे, एकसाथ खाना, एक ही कुल्हड़ में चाय पीना. प्रोफेसरों की नकलें उतारना, बरसात में भीग कर भुट्टे खाना उन की दिनचर्या बन गई.

एक बार पुचके (गोलगप्पे) खाते वक्त वैशाली की नाक बहने लगी तो राजीव बहुत हंसा…तब वैशाली बोली, ‘खुद तो मिर्ची खाते नहीं…कोई दूसरा खाता है तो तुम्हारे पेट में जलन क्यों होती है?’

‘अरे, अपनी शक्ल तो देखो. ज्यादा तीखी मिर्ची की वजह से तुम्हारी नाक बह रही है?’

‘तो पोंछ दो न,’ वैशाली ठुनक कर बोली.

और अपना रुमाल ले कर सचमुच राजीव ने वैशाली की नाक साफ कर दी.

पढ़ाई खत्म होते ही राजीव ने तपसिया के लेदर की निजी कंपनी में सहायक के रूप में कार्यभार संभाल लिया और वैशाली को भी एक प्राइवेट फर्म में सलाहकार के पद पर नियुक्ति मिल गई.

सुंदर, तीखे नैननक्श की रूपसी वैशाली पर सारा स्टाफ फिदा था पर वह दुलहन बनी राजीव की.

मधुमास कब दिनों और महीनों में गुजर गया, पता ही नहीं चला.

वैशाली अपने काम के प्रति बहुत संजीदा थी. उस की कार्यकुशलता को देखते हुए उस की कंपनी ने उसे प्रमोशन दिया. गाड़ी, फ्लैट सब कंपनी की ओर से मिल गया.

इधर राजीव का भी प्रमोशन हुआ. उसे भी तपसिया में ही फ्लैट और गाड़ी दी गई. अब दिक्कत यह थी कि वैशाली का डलहौजी ट्रांसफर हो गया था.

सुबह की चाय पीते समय वैशाली बुझीबुझी सी थी. प्रमोशन की कोई खुशी नहीं थी. उस ने राजीव से पूछा, ‘राजीव, हम डलहौजी कब शिफ्ट होंगे?’

‘हम?’

‘हम दोनों अलग कैसे रहेंगे?’

‘नौकरी करनी है तो रहना ही पड़ेगा,’ राजीव बोला.

‘राजीव, यह मेरे कैरियर का सवाल है.’

‘वह तो ठीक है,’ राजीव बोला, ‘पर वहां के सीनियर स्टाफ के साथ तुम कैसे मिक्स हो पाओगी?’

‘मजबूरी है…और कोई चारा भी तो नहीं है.’

राजीव चाय पीतेपीते कुछ सोचने लगा, फिर बोला, ‘तपसिया से डलहौजी बहुत दूर है. दोनों का सारा समय तो आनेजाने में ही व्यतीत हो जाएगा. मुझे एक आइडिया आया है. बोलो, मंजूर है?’

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‘जरा बताओ तो सही,’ बड़ीबड़ी आंखें उठा कर, वैशाली बोली.

‘देखो, तुम्हारे प्रजेंटेशन से मेरे बौस बहुत प्रभावित हैं, वह तो मुझे कितनी बार अपनी फर्म में तुम्हें ज्वाइन कराने के लिए कह चुके हैं. पर अचानक तुम्हारा प्रमोशन होने से बात दब गई.’

‘जरा सोचो…अगर तुम हमारी फर्म को ज्वाइन कर लेती हो तो कितना अच्छा होगा. तुम्हारा सीनियर स्टाफ का जो फोबिया है उस से भी तुम्हें मुक्ति मिल जाएगी.’

वैशाली कुछ सोचने लगी तो राजीव फिर बोला, ‘इसी बहाने हम पतिपत्नी एकसाथ कुछ एक पल बिता सकेंगे और तुम्हारा कैरियर भी हैंपर नहीं होगा. अब सोचो मत…कुछ भी हो, कोई भी कारण दिखा कर वहां की नौकरी से त्यागपत्र दे दो.’

वैशाली ने तपसिया में मार्केटिंग मैनेजर का पद संभाल लिया. बौस निश्ंिचत हो कर महीनों विदेश में रहते. अब तो दोनों फर्म के सर्वेसर्वा से हो गए. 6 महीने में ही लेदर मार्केट में अमन अंसारी की कंपनी का नाम नया नहीं रह गया. उन के बनाए लेदर के बैग, बेल्ट, पर्स आदि की मार्केटिंग का सारा काम वैशाली देखती तो सेलपरचेज का काम राजीव.

देखतेदेखते अब कंपनी काफी मुनाफे में चल रही थी और सबकुछ अच्छा चल रहा था. दोनों की जिंदगी में कोई तमन्ना बाकी नहीं रह गई थी. 2 साल यों ही बीत गए. सुख के बाद दुख तो आता ही है.

वैशाली को मार्केटिंग मैनेजर होने की वजह से कभी मुंबई, दिल्ली, जयपुर तो कभी विदेश का भी टूर लगाना पड़ता था. 2-3 बार तो राजीव व वैशाली यूरोप के टूर पर साथसाथ गए. फिर जरूरत के हिसाब से जाने लगे.

इसी बीच कंपनी के मालिक अमन अंसारी लंदन का सारा काम कोलकाता शिफ्ट कर के तपसिया के गेस्ट हाउस में रहने लगे. पता नहीं कब, कैसे वैशाली राजीव से कटीकटी सी रहने लगी.

कई बार वैशाली को बौस के साथ काम की वजह से बाहर जाना पड़ता. राजीव छोटी सोच का नहीं था पर धीरेधीरे दबे पांव बौस के साथ बढ़ती नजदीकियां और अपने प्रति बढ़ती दूरियां देख हकीकत को वह नजरअंदाज भी नहीं कर सकता था.

उस दिन शाम को वैशाली को बैग तैयार करते देख राजीव ने पूछा, ‘कहां जा रही हो?’

‘प्रजेंटेशन के लिए दिल्ली जाना है.’

‘लेकिन 2-3 दिन से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है. तुम्हें तो छुट्टी ले कर डाक्टर स्नेहा को दिखाने की बात…’

बात को बीच में ही काट कर वैशाली उखड़ कर बोली, ‘तबीयत का क्या, मामूली हरारत है. काम ज्यादा जरूरी है, रुपए से ज्यादा हमारी फर्म की प्रतिष्ठा की बात है. वर्षों से मिलता आया टेंडर अगर हमारी प्रतिद्वंद्वी फर्म को मिल गया तो हमारी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. मैं नहीं चाहती कि मेरी जरा सी लापरवाही से अमनजी को तकलीफ पहुंचे.’

दिल्ली से आने के बाद वैशाली काफी चुपचुप रहती. उस के व्यवहार में आए इस बदलाव को राजीव ने बहुत करीब से महसूस किया.

इसी बीच वैशाली की वर्षों की मां बनने की साध भी पूरी हुई. बड़ी प्यारी सी बच्ची को उस ने जन्म दिया. श्रेया अभी 2 महीने की हुई भी तो उसे सास के सहारे छोड़ वैशाली ने फिर से आफिस ज्वाइन किया.

‘वैशाली, अभी श्रेया छोटी है. उसे तुम्हारी जरूरत है,’ राजीव के यह कहने पर वैशाली तपाक से बोली, ‘आफिस को भी तो मेरी जरूरत है.’

देर से आना, सुबह जल्दी निकल जाना, काम के बोझ से वैशाली के स्वभाव में काफी चिड़चिड़ापन आ गया था लेकिन उस की सुंदरता, बरकरार थी. एक दिन आधी रात को ‘यह गलत है… यह गलत है’ कह कर वैशाली चीख उठी. वह पूरी पसीने में नहाई हुई थी. मुंह से अजीब सी आवाजें निकल रही थीं. जोरजोर से छाती को पकड़ कर हांफ रही थी.

राजीव घबरा गया, ‘क्या हुआ, वैशाली? ऐसे क्यों कर रही हो? क्या गलत है? बताओ मुझे.’

वैशाली उस की बांहों में बेहोश पड़ी थी. उस की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ? उसे फौरन अस्पताल में भर्ती किया गया. डाक्टरों ने बताया कि इन का बे्रन का सेरेब्रल अटैक था, जिसे दूसरे शब्दों में बे्रन हेमरेज का स्ट्रोक भी कह सकते हैं. कई दिनों तक वह आई.सी.यू. में भरती रही. अमन ने पानी की तरह रुपए खर्च किए. डाक्टरों की लाइन लगा दी. वैशाली के शरीर का दायां हिस्सा, जो अटैक से बेकार हो गया था, धीरेधीरे विशेषज्ञ डाक्टरों व फिजियोथैरेपिस्ट की देखरेख में ठीक होने लगा था.

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‘अरे, आज तो तुम ने श्रेया को भी गोद में उठा लिया?’ राजीव बोला तो ‘हां,’ कह कर वैशाली नजरें चुराने लगी. यानी कोई फांस थी जिसे वह निकाल नहीं पा रही थी.

राजीव वैशाली से बहुत प्यार करता था. उस की ऐसी हालत देख कर उस का दिल खून के आंसू रो पड़ता.

वेल्लूर ले जा कर महीनों इलाज चला. डाक्टरों की फीस, इलाज आदि सभी खर्चों में बौस ने कोई कमी नहीं रखी. राजीव का आत्मसम्मान आहत तो होता था, पर वैशाली को बिना इलाज के यों ही तो नहीं छोड़ सकता था.

कितनी बार सोचा कि अब यह नौकरी छोड़ कर दूसरी नौकरी कर लूंगा, लेकिन लेदर उद्योग में अमन अंसारी का इतना दबदबा था कि उन के मुलाजिम को उन की मरजी के खिलाफ कोई अपनी फर्म में रख कर उन से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था. इसलिए भी राजीव के हाथ बंधे थे, आंखों से सबकुछ देखते हुए भी वह खामोश था.

श्रेया अपनी दादी के पास ज्यादा रहती थी इसलिए वह उन्हें ही मां कहती.

दवा और परहेज से वैशाली अब सामान्य जीवन जीने लगी. उस के ठीक होने पर बौस ने पार्टी दी. इसे न चाहते हुए भी राजीव ने बौस का एक और एहसान मान लिया. अपने कुलीग के तीखे व्यंग्य सुन कर उस के बदन पर सैकड़ों चींटियां सी रेंग गई थीं.

उस पार्टी में वैशाली ने गुलाबी शिफौन की साड़ी पहनी थी जिस पर सिल्वर कलर के बेलबूटे जड़े थे. उस पर गले में हीरों का जगमगाता नेकलेस उस के रूप में और भी चार चांद लगा रहा था. सब मंत्रमुग्ध आंखों से वैशाली के रूपराशि और यौवन से भरे शरीर को देख रहे थे और दबेदबे स्वर में खिल्ली भी उड़ा रहे थे कि क्या नसीब वाला है मैनेजर बाबू. इन के तो दोनों हाथों में लड्डू हैं.

शर्म से गड़ा राजीव अमन अंसारी के बगल में खड़ी अपनी पत्नी को अपलक देख रहा था.

‘अब तुम घर पर रहो. तुम्हें काम करने की कोई जरूरत नहीं है. श्रेया को संभालो. मांबाबा अब उसे नहीं संभाल सकते. अब वह बहुत चंचल हो गई है.’

वैशाली बिना नानुकूर किए राजीव की बात मान गई तो सोचा, बौस से बात करूंगा.

एक दिन अमनजी ने पूछ लिया, ‘अरे, राजीव. मेरी मार्केटिंग मैनेजर को कब तक तुम घर में बैठा कर रखोगे?’

‘सर, मैं नहीं चाहता कि अब वैशाली नौकरी करे. उस का घर पर रह कर श्रेया को संभालना बहुत जरूरी हो गया है. यहां मैं सब संभाल लूंगा.’

‘अरे, ऐसे कैसे हो सकता है?’ अमन थोड़े घबरा गए. फिर संभल कर बोले, ‘राजीव, मैं ने तो तुम्हारे लिए मुंबई वाला प्रोजेक्ट तैयार किया है. इस बार सोचा कि तुम्हें भेजूंगा.’

‘पर सर, वैशाली व श्रेया को ऐसी हालत में मेरी ज्यादा जरूरत है,’ वह धीरे से बोला, ‘नहीं, सर, मैं नहीं जा सकूंगा.’

‘देख लो, मैं तुम्हारे घर की परिस्थितियों से अवगत हूं. सब समझता हूं और मुझे बहुत दुख है. मुझ से जो भी होगा मैं तुम्हारे परिवार के लिए करूंगा. यार, मैं ही चला जाता पर मेरे मातापिता हज करने जा रहे हैं. इसलिए मेरा उन के पास होना बहुत जरूरी है.’

अब नौकरी का सवाल था…मना नहीं कर सकता था.

2 दिन बाद बाबा का फोन आया कि वैशाली आफिस जाने लगी है, देर रात भी लौटी. राजीव ने बात करनी चाही तो अपना मोबाइल नहीं उठाया. दोबारा किया तो स्विच औफ मिला.

लौट कर राजीव ने पूछा, ‘वैशाली, मैं ने तुम्हें काम पर जाने के लिए मना किया था न?’

‘मेरा घर बैठे मन नहीं लग रहा था,’ वैशाली का संक्षिप्त सा उत्तर था.

राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि अमन अंसारी के चंगुल से कैसे वह वैशाली को छुड़ाए. आज वह मान रहा था कि पत्नी को अपनी फर्म में रखवाना उस की बहुत बड़ी भूल थी जिस का खमियाजा आज वह भुगत रहा है.

उसे यह सोच कर बहुत अजीब लगता कि साल्टलेक के अपने आलीशान बंगले को छोड़ कर अमनजी जबतब गेस्ट हाउस में कैसे पड़े रहते हैं? सुना था कि उन की बीवी उन्हें 2 महीने में ही तलाक दे कर अपने किसी प्रेमी के साथ चली गई थी. कारण जो भी रहा हो, यह बात तो साफ थी कि अमन एक दिलफेंक तबीयत का आदमी है.

वैशाली का जो व्यवहार था वह दिन पर दिन अजीब सा होता जा रहा था. कभी वह रोती तो कभी पागलों की तरह हंसती. उस की ऐसी हालत देख कर राजीव उसे समझाता, ‘वैशाली, तुम कुछ मत सोचो, तुम्हारे सारे गुनाह माफ हैं, पर प्लीज, दिल पर बोझ मत लो.’

तब वह राजीव के सीने से लग कर सिसक पड़ती. जैसे लगता कि वह आत्मग्लानि की आग में जल रही हो?

राजीव की समझ में नहीं आ रहा था कि वह पत्नी को कैसे समझाए कि वह जिस हालात की मारी है वह गुनाह किसी और ने किया और सजा उसे मिली.

अपने ही खयालों में उलझा राजीव हड़बड़ा कर उठ बैठा, उस के मोबाइल पर घर का नंबर आ रहा था. उस ने फोन उठाया तो मां ने कहा, ‘‘बेटा, वैशाली बाथरूम में गिर गई है.’’

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अस्पताल में भरती किया तो पता चला कि फिर मेजर स्ट्रोक आया था. यहां कोलकाता के डाक्टरों ने जवाब दे दिया, तब उसे दोबारा वेल्लूर ले जाना पड़ा. बौस अमन अंसारी भी साथ गए. इस बार भी सारा खर्चा उन्होंने किया. राजीव के पास जितनी जमापूंजी थी वह सब कोलकाता में ही लग चुकी थी. क्या करता? इलाज भी करवाना जरूरी था. वह अपनी आंखों के सामने वैशाली को बिना इलाज के मरते भी तो नहीं देख सकता? बिना पैसे के वह कुछ भी नहीं कर सकता था. न उस के पास सिफारिश है न पैसा. आजकल बातबात पर पैसे की जरूरत पड़ती है.

लाखों रुपए इलाज में लगे. 2 महीने से वैशाली वेल्लूर के आई.सी.यू. में थी जिस का रोज का खर्च हजारों में पड़ता था. डाक्टरों की विजिट फीस, आनेजाने का किराया, कहांकहां तक वह चुकाता? इसलिए पैसे की खातिर राजीव ने अपनी वैशाली के लिए हालात से समझौता कर लिया. उसे इस को स्वीकार करने में कोई हिचक महसूस नहीं होती.

अब तो वैशाली बेड पर पड़ी जिंदा लाश थी, जो बोल नहीं सकती थी, पर उस की आंखें, सब बता गईं जो वह मुंह से न कह सकी. राजीव रो पड़ा था. मन करता था कि जा कर अमन को गोली मार कर जेल चला जाए पर वही मजबूरियां, एक आम आदमी होने की सजा भोग रहा था.

वैशाली के शरीर का निचला हिस्सा निर्जीव हो चुका था लेकिन राजीव ने तो उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार किया है…करता है और ताउम्र प्यार करता रहेगा. उस से कैसे नफरत करे?

कल हमेशा रहेगा: भाग 3- वेदश्री ने किसे चुना

पापा ने भी मम्मी के साथ सहमत होते हुए कहा था, ‘बेटी, डा. साकेत ने हमारे बच्चे के लिए जो कुछ भी किया, वह आज के जमाने में शायद ही किसी के लिए कोई करे. यदि उन्होंने हमारी मदद न की होती तो क्या हम मानव का इलाज बिना पैसे के करवा सकते थे?

‘यह बात कभी न भूलना बेटी कि हम ने मानव के इलाज के बारे में मदद के लिए कितने लोगों के सामने अपने स्वाभिमान का गला घोंट कर हाथ फैलाए थे, और हर जगह से हमें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी थी. जब अपनों ने हमारा साथ छोड़ दिया तब साकेत ने गैर होते हुए भी हमारा दामन थामा था.’

‘अभिजीत अगर तुम्हारा प्यार है तो मानव तुम्हारा फर्ज है. फर्ज निभाने में जिस ने तुम्हारा साथ दिया वही तुम्हारा जीवनसाथी बनने योग्य है, क्योंकि सदियों से चली आ रही प्यार और फर्ज की जंग में जीत हमेशा फर्ज की ही हुई है,’ दिमाग के किसी कोने से वेदश्री को सुनाई पड़ा.

मम्मीपापा के दबाव में आ कर वेदश्री ने डा. साकेत से शादी करने का फैसला ले लिया. वह इस बात से दुखी थी कि अभि को यह बात कैसे समझाएगी. लेकिन बहते हुए आंसुओं को रोक कर उस ने एक निर्णय ले ही लिया कि वह अभि से मिलने आखिरी बार जरूर जाएगी.

वेदश्री की बातें सुनने के बाद अभि तय नहीं कर पा रहा था कि वह किस तरह अपनी प्रतिक्रिया दर्शाए. वह श्री को दिल से चाहता था और अपनी जिंदगी उस के साथ हंसीखुशी बिताने का मनसूबा बना रहा था. उस का सपना आज हकीकत के कठोर धरातल से टकरा कर चकनाचूर हो गया था और वह कुछ भी करने में असमर्थ था.

उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की अपनी गरीबी और लाचारी उस की जिंदगी से इस कदर खिलवाड़ करेगी. यदि वह अमीर होता तो क्या मानव के इलाज के लिए अपनी तरफ से योगदान नहीं देता? श्री उस के लिए सबकुछ थी तो उस के परिवार का हर सदस्य भी तो उस का सबकुछ था.

अब समय मुट्ठी से रेत की तरह सरक गया था. समय पर अब उस का कोई नियंत्रण नहीं रहा था. अब तो वह सिर्फ श्री और साकेत के सफल सहजीवन के लिए दुआ ही कर सकता था.

अपना हृदय कड़ा कर और आवाज में संतुलन बना कर अभिजीत बोला, ‘‘श्री, मैं तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूं पर तुम से तो मैं यही कहूंगा कि हमें समझदार प्रेमियों की तरह हंसीखुशी एकदूसरे से अलग होना चाहिए. प्यार कोई ऐसी शै तो है नहीं कि दूरियां पैदा होने पर दम तोड़ दे. प्यार किया है तो उसे निभाने के लिए शादी करना कतई जरूरी नहीं. प्लीज, तुम मेरी चिंता न करना. मैं अपनेआप को संभाल लूंगा पर तुम वचन दो कि आज के बाद मुझे भुला कर सिर्फ साकेत के लिए ही जिओगी.’’

आंखों में आंसू लिए भारी मन से दोनों ने एकदूसरे से विदा ली.

‘‘श्री, आज का दिन यहां खत्म हुआ तो क्या हुआ? याद रखना, कल फिर आएगा और हमेशा आता रहेगा… और हर आने वाला कल तुम्हारी जिंदगी को और कामयाब बनाए, यही मेरी दुआ है.’’

मंगलसूत्र पहनाते समय साकेत की उंगलियों ने ज्यों ही वेदश्री की गरदन को छुआ, उस के सारे शरीर में सिहरन सी भर गई. सप्तपदी की घोषणा के साथसाथ शहनाई का उभरता संगीत हवा में घुल कर वातावरण को और भी मंगलमय बनाता गया. एकएक फेरे की समाप्ति के साथ उसे लगता गया कि वह अपने अभिजीत से एकएक कदम दूर होती जा रही है. आज से अभि उस से इस एक जन्म के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाले सात जन्मों के लिए दूर हो गया है. अब उस का आज और कल साकेत के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया है.

फेरों के खत्म होते ही मंडप में मौजूद लोगों ने अपनेअपने हाथों के सारे फूल एक ही साथ नवदंपती पर निछावर कर दिए. तब वेदश्री ने अपने दिल में उमड़ते हुए भावनाओं के तूफान को एक दृढ़ निश्चय से दबा दिया और सप्तपदी के एकएक शब्द को, उस से गर्भित हर अर्थ हर सीख को अपने पल्लू में बांध लिया. उस ने मन ही मन संकल्प किया कि वह अपने विवाहित जीवन को आदर्श बनाने का हरसंभव प्रयास करेगी क्योंकि वह इस सच को जानती थी कि औरत की सार्थकता कार्येषु दासी, कर्मेषु मंत्री, भोज्येशु माता और शयनेशु रंभा के 4 सूत्रों के साथ जुड़े हर कर्तव्यबोध में समाई हुई है.

सुहाग सेज पर सिकुड़ी बैठी वेदश्री के पास बैठ कर साकेत ने कोमलता से उस का चेहरा ऊपर की ओर इस तरह उठाया कि साकेत का चेहरा उस की आंखों के बिलकुल सामने था. वह धड़कते हृदय से अपने पति को देखती रही, लेकिन उसे साकेत के चेहरे पर अभि का चेहरा क्यों नजर आ रहा है? उसे लगा जैसे अभि कह रहा हो, ‘श्री, आखिर दिखा दिया न अपना स्त्रीचरित्र. धोखेबाज, मैं तुम्हें कभी क्षमा नहीं करूंगा.’ और घबराहट के मारे वेदश्री ने अपनी पलकें भींच कर बंद कर लीं.

‘‘क्या हुआ, श्री. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’ साकेत उस की हालत देख कर घबरा गया.

‘‘नहींनहीं…बिलकुल ठीक हूं…आप चिंता न करें…पहली बार आज आप ने मुझे इस तरह छुआ न इसलिए पलकें स्वत: शरमा कर झुक गईं,’’ कह कर वह अपनी घबराहट पर काबू पाने का निरर्थक प्रयास करने लगी.

मन में एक निश्चय के साथ श्री ने अपनी आंखें खोल दीं और चेहरा उठा कर साकेत को देखने लगी.

‘‘अब मैं ठीक हूं, साकेत. पर आप से कुछ कहना चाहती हूं…प्लीज, मुझे एक मौका दीजिए. मैं अपने मन और दिल पर एक बोझ महसूस कर रही हूं, जो आप को हकीकत से वाकिफ कराने के बाद ही हलका हो सकता है.’’

‘‘किस बोझ की बात कर रही हो तुम? देखो, तुम अपनेआप को संभालो, और जो कुछ भी कहना चाहती हो, खुल कर कहो. आज से हम नया जीवन शुरू करने जा रहे हैं और ऐसे में यदि तुम किसी भी बात को मन में रख कर दुखी होती रहोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘साकेत, मैं ने आप से अपनी जिंदगी से जुड़ा एक गहरा राज छिपा कर रखा है और यह छल नहीं तो और क्या है?’’ फिर वह अभिजीत और अपने रिश्ते से जुड़ी हर बात साकेत को बताती चली गई.

‘‘साकेत, मैं आप को वचन देती हूं कि मैं अपनी ओर से आप को शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी,’’ अपनी बात खत्म करने के बाद भी वह रो रही थी.

‘‘गलत बात है श्री, आज का यह विशेष अवसर और उस का हर पल, हमारी जिंदगी में पहली और आखिरी बार आया है. क्या इन अद्भुत पलों का स्वागत आंसुओं से करोगी?’’ साकेत ने प्यार से उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया.

‘‘रही बात तुम्हारे और अभिजीत के प्रेम की तो वह तुम्हारा अतीत था और अतीत की धूल को उड़ा कर अपने वर्तमान को मैला करने में मैं विश्वास नहीं रखता…भूल जाओ सबकुछ…’’वह रात उन की जिंदगी में अपने साथ ढेर सारा प्यार और खुशियां लिए आई. साकेत ने उसे इतना प्यार दिया कि उस का सारा डर, घबराहट, कमजोर पड़ता हुआ आत्मविश्वास…उस प्यार की बाढ़ में तिनकातिनका बन कर बह गया.

वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त वेदश्री के जीवन में एक कभी न खत्म होने वाली वसंत को साथ ले आया जिस ने उस के जीवन को भी फूलों की तरह रंगीन बना दिया क्योंकि साकेत एक अच्छे पति होने के साथ ही एक आदर्श जीवनसाथी भी साबित हुए.

पहले दिन से ही श्री ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा द्वारा घर के सभी सदस्यों को अपना बना लिया. समय के पंखों पर सवार दिन महीनों में और महीने सालों में तबदील होते गए. 5 साल यों गुजर गए मानो 5 दिन हुए हों. इन 5 सालों में वेदश्री ने जुड़वां बेटियां ऋचा एवं तान्या तथा उस के बाद रोहन को जन्म दिया. ऋचा व तान्या 4 वर्ष की हो चली थीं और रोहन अभी 3 महीने का ही था. साकेत का प्यार, 3 बच्चों का स्नेह और परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठा, यही उस के जीवन की सार्थकता के प्रतीक थे.

साकेत की दादी दुर्गा मां सुबह जल्दी उठ जातीं. उन के स्नान से ले कर पूजाघर में जाने तक सभी तैयारियों में श्री का सुबह का वक्त कब निकल जाता, पता ही नहीं चलता. उस के बाद मांबाबूजी, साकेत तथा भैयाभाभी बारीबारी उठ कर तैयार होते. फिर अनिकेत और आस्था की बारी आती. सभी के नहाधो कर अपनेअपने कामों में लग जाने के बाद श्री अपना भी काम पूरा कर के दुर्गा मां की सेवा में लग जाती.

अनिकेत एवं आस्था तो भाभी के दीवाने थे. हर पल उस के आगेपीछे घूमते रहते. उन की हर जरूरत का खयाल रखने में श्री को बेहद सुख मिलता. श्री एवं अनिकेत दोनों की उम्र में बहुत फर्क नहीं था. अनिकेत ने एम.बी.ए. की डिगरी प्राप्त की थी. अब वह अपने पिता एवं बड़े भाई के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा था लेकिन अपनी हर छोटीबड़ी जरूरतों के लिए श्री पर ही निर्भर रहता. वह उस से मजाक में कहती भी थी, ‘अनिकेत भैया, अब आप की भाभी में आप की देखभाल करने की शक्ति नहीं रही. जल्दी ही हाथ बंटाने वाली ले आइए वरना मैं अपने हाथ ऊपर कर लूंगी.’

आगे पढ़ें- वेदश्री के खुशहाल परिवार को एक…

कल हमेशा रहेगा: भाग 2- वेदश्री ने किसे चुना

सर्जरी के तुरंत बाद डा. साकेत ने उसे बताया कि मानव की सर्जरी सफल तो रही लेकिन उस आंख का विजन पूर्णतया वापस लौटने में कम से कम 6 महीने का वक्त और लगेगा. यह सुन कर उसे तकलीफ तो हुई थी लेकिन साथसाथ यह तसल्ली भी थी कि उस का भाई फिर इस दुनिया को अपनी स्वस्थ आंखों से देख सकेगा.

‘‘श्री…जी, मैं ने आप से वादा किया था कि आप को कभी नाउम्मीद नहीं होने दूंगा…’’ साकेत ने उस की गहरी आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘मैं ने आप को दिया अपना वादा पूरा किया.’’

वेदश्री ने संकोच से अपनी पलकें झुका दीं.

‘‘फिर मिलेंगे…’’ कुछ निराश भाव से डा. साकेत ने कहा और फिर मुड़ कर चले गए.

उस दिन एक लंबे अरसे के बाद वेदश्री बिना किसी बोझ के बेहद खुश मन से अभिजीत से मिली. उसे तनावरहित और खुशहाल देख कर अभि को भी बेहद खुशी हुई.

‘‘अभि, कितने लंबे अरसे के बाद आज हम फिर मिल रहे हैं. क्या तुम खुश नहीं?’’ श्री ने उस का हाथ अपने हाथ में थाम कर ऊष्मा से दबाते हुए पूछा.

‘‘ऐसी बात नहीं, मैं तुम्हें अपने इतने नजदीक पा कर बेहद खुश हूं…खैर, मेरी बात जाने दो, मुझे यह बताओ, अब मानव कैसा है?’’

‘‘वह ठीक है. उसे एक नेक डोनेटर मिल गया, जिस की बदौलत वह अपनी नन्हीनन्ही आंखों से अब सबकुछ देख सकता है. आज मुझे लगता है जैसे उसे नहीं, मुझे आंखों की रोशनी वापस मिली हो. सच, उस की तकलीफ से परे, मैं कुछ भी साफसाफ नहीं देख पा रही थी. हर पल यही डर लगा रहता था कि यदि उस की आंखों की रोशनी वापस नहीं मिली तो उस के गम में कहीं मम्मी या पापा को कुछ न हो जाए. उस दाता का और डा. साकेत का एहसान हम उम्र भर नहीं भुला सकेंगे.’’

‘‘अच्छा, तुम बताओ, तुम्हारा भांजा प्रदीप किस तरह दुर्घटना का शिकार हुआ? मैं ने सुना था तो बेहद दुख हुआ. कितना हंसमुख और जिंदादिल था वह. उस की गहरी भूरी आंखों में हर पल जिंदगी के प्रति कितना उत्साह छलकता रहता…’’

अभि अपलक उसे देखता रहा. क्या वह कभी उसे बता भी सकेगा कि प्रदीप की ही आंख से उस का भाई इस दुनिया को देख रहा है? वह मरा नहीं, मानव की एक आंख के रूप में उस की जिंदगी के रहने तक जिंदा रहेगा.

वह बोझिल स्वर में वेदश्री को बताने लगा.

‘‘प्रदीप अपने दोस्त के साथ ‘कल हो न हो’ फिल्म देखने जा रहा था. हाई वे पर उन की मोटरसाइकिल फिसल कर बस से टकरा गई. उस का मित्र जो मोटरसाइकिल चला रहा था, वह हेलमेट की वजह से बच गया और प्रदीप ने सिर के पिछले हिस्से में आई चोट की वजह से गिरते ही वहीं उसी पल दम तोड़ दिया.

‘‘कहना अच्छा नहीं लगता, आखिर वह मेरी बहन का बेटा था, फिर भी मैं यही कहूंगा कि जो कुछ भी हुआ ठीक ही हुआ…पोस्टमार्टम के बाद डाक्टर ने रिपोर्ट में दर्शाया था कि अगर वह जिंदा रहता भी तो शायद आजीवन अपाहिज बन कर रह जाता…’’

‘‘इतना सबकुछ हो गया और तुम ने मुझे कुछ भी बताने योग्य नहीं समझा?’’ अभिजीत की बात बीच में काट कर श्री बोली.

‘‘श्री, तुम वैसे भी मानव को ले कर इतनी परेशान रहती थीं, तुम्हें यह सब बता कर मैं तुम्हारा दुख और बढ़ाना नहीं चाहता था.’’

कुछ पलों के लिए दोनों के बीच मौन का साम्राज्य छाया रहा. दिल ही दिल में एकदूसरे के लिए दुआएं लिए दोनों जुदा हुए. अभि से मिल कर वेदश्री घर लौटी तो डा. साकेत को एक अजनबी युगल के साथ पा कर वह आश्चर्य में पड़ गई.

‘‘नमस्ते, डाक्टर साहब,’’ श्री ने साकेत का अभिवादन किया.

प्रत्युत्तर में अभिवादन कर डा. साकेत ने अपने साथ आए युगल का परिचय करवाया.

‘‘श्रीजी, यह मेरे बडे़ भैया आकाश एवं भाभी विश्वा हैं और आप सब से मिलने आए हैं. भाभी, ये श्रीजी हैं.’’

विश्वा भाभी उठ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘‘आओ श्री, हमारे पास बैठो,’’ उन्हें भी श्री पहली ही नजर में पसंद आ गई.

‘‘अंकलजी, हम अपने देवर

डा. साकेत की ओर से आप की बेटी वेदश्री का हाथ मांगने आए हैं,’’ भाभी ने आने का मकसद स्पष्ट किया.

यह सुन कर श्री को लगा जैसे किसी ने उसे ऊंचे पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में धकेल दिया हो. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो वह सुन रही है वह सच है या फिर एक अवांछनीय सपना?

भाभी का प्रस्ताव सुनते ही श्री के मातापिता की आंखोंमें एक चमक आ गई. उन्होंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन की बेटी के लिए इतने बड़े घराने से रिश्ता आएगा.

‘‘क्या हुआ श्री, तुम हमारे प्रस्ताव से खुश नहीं?’’ श्री के चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख कर भाभी ने पूछ लिया.

साकेत और आकाश दोनों ही उसे देखने लगे. साकेत का दिल यह सोच कर तेजी से धड़कने लगा कि कहीं श्री ने इस रिश्ते से मना कर दिया तो?

‘‘नहीं, भाभीजी, ऐसी कोई बात नहीं. दरअसल, आप का प्रस्ताव मेरे लिए अप्रत्याशित है. इसीलिए कुछ पलों के लिए मैं उलझन में पड़ गई थी पर अब मैं ठीक हूं,’’ जबरन मुसकराते हुए वेदश्री ने कहा, ‘‘मैं ने तो साकेत को सिर्फ एक डाक्टर के नजरिए से देखा था.’’

‘‘सच तो यह है श्री कि जिस दिन तुम पहली बार मेरे अस्पताल में अपने भाई को ले कर आई थीं उसी दिन तुम्हें देख कर मेरे मन ने मुझ से कहा था कि तुम्हारे योग्य जीवनसाथी की तलाश आज खत्म हो गई. और आज मैं परिवार के सामने अपने मन की बात रख कर तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. अब फैसला तुम्हारे ऊपर है.’’

‘‘साकेत, मुझे सोचने के लिए कुछ वक्त दीजिए, प्लीज. मैं ने आप को आज तक उस नजरिए से कभी देखा नहीं न, इसलिए उलझन में हूं कि मुझे क्या फैसला लेना चाहिए…क्या आप मुझे कुछ दिन का वक्त दे सकते हैं?’’ वेदश्री ने उन की ओर देखते हुए दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘‘जरूर,’’ आकाश जो अब तक चुप बैठा था, बोल उठा, ‘‘शादी जैसे अहम मुद्दे पर जल्दबाजी में कोई भी फैसला लेना उचित नहीं होगा. तुम इत्मीनान से सोच कर जवाब देना. हम साकेत को भलीभांति जानते हैं. वह तुम पर अपनी मर्जी थोपना कभी भी पसंद नहीं करेगा.’’

‘‘हम भी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोडें़गे, क्यों साकेत?’’ भाभी ने साकेत की ओर देखा.

‘‘जी, भाभी,’’ साकेत ने हंसते हुए कहा, ‘‘शतप्रतिशत, आप ने बड़े पते की बात कही है.’’

जलपान के बाद सब ने फिर एकदूसरे का अभिवादन किया और अलग हो गए.

आज की रात वेदश्री के लिए कयामत की रात बन गई थी. साकेत के प्रस्ताव को सुन वह बौखला सी गई थी. ये प्रश्न बारबार उस के मन में कौंधते रहे:

‘क्या मुझे साकेत का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए? यदि मैं ने ऐसा किया तो अभि का क्या होगा? हमारे उन सपनों का क्या होगा जो हम दोनों ने मिल कर संजोए थे? क्या अभि मेरे बिना जी पाएगा और उस से वादाखिलाफी कर क्या मैं जी पाऊंगी? नहीं…नहीं…मैं अपने प्यार का दामन नहीं छोड़ सकती. मैं साकेत से साफ शब्दों में मना कर दूंगी. नए रिश्तों को बनाने के लिए पुराने रिश्तों से मुंह मोड़ लेना कहां की रीति है?’

सोचतेसोचते वेदश्री को साकेत याद आ गया. उस ने खुद को टोका कि श्री तुम

डा. साकेत के बारे में क्यों नहीं सोच रहीं? तुम से प्यार कर के उन्होंने भी तो कोेई गलती नहीं की. कितना चाहते हैं वह तुम्हें? तभी तो एक इतना बड़ा डाक्टर दिल के हाथों मजबूर हो कर तुम्हारे पास चला आया. कितने नेकदिल इनसान हैं. भूल गईं क्या, जो उन्होंने मानव के लिए किया? यदि उन का सहारा न होता तो क्या तुम्हारा मानव दुनिया को दोनों आंखों से फिर से देख पाता? खबरदार श्री, तुम गलती से भी अपने दिमाग में इस गलतफहमी को न पाल बैठना कि साकेत ने तुम्हें पाने के इरादे से मानव के लिए इतना सबकुछ किया. आखिर तुम दुनिया की अंतिम खूबसूरत लड़की तो हो ही नहीं सकतीं न…दिल ने उसे उलाहना दिया.

साकेत के जाने के बाद पापामम्मी से हुई बातचीत का एकएक शब्द उसे याद आने लगा.

मां ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बेटी, ऐसे मौके जीवन में बारबार नहीं आते. समझदार इनसान वही है जो हाथ आए मौके को हाथ से न जाने दे, उस का सही इस्तेमाल करे. बेटी, हो सकता है ऐसा मौका तुम्हारी जिंदगी के दरवाजे पर दोबारा दस्तक न दे…साकेत बहुत ही नेक लड़का है, लाखों में एक है. सुंदर है, नम्र है, सुशील है और सब से अहम बात कि वह तुम्हें दिल से चाहता है.’

आगे पढें- अपनों ने हमारा साथ छोड़ दिया तब…

उसका अंदाज: क्या थी नेहल की कहानी

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उसका अंदाज: भाग 1- क्या थी नेहल की कहानी

फोन की घंटी सुनते ही नेहल ने फोन कान से लगाया था, ‘‘हैलो.’’

‘‘कहिए, ‘थ्री इडियट्स’ फिल्म कैसी लगी? फिल्म पुरानी हो गई है, पर आप का उस के प्रति आकर्षण खत्म नहीं हुआ. कितनी बार देख चुकी हैं?’’ हलकी हंसी के साथ दूसरी ओर से आवाज आई थी.

‘‘हैलो, आप कौन?’’ नेहल को आवाज अपरिचित लगी थी.

‘‘समझ लीजिए एक इडियट ही पूछ रहा है,’’ फिर वही हंसी.

‘‘देखिए, या तो अपना नाम बताइए वरना इस दुनिया में इडियट्स की कमी नहीं है, उन में से आप को पहचान पाना कैसे संभव होगा. मैं फोन रखती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा गजब मत कीजिएगा. वैसे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला.’’

‘‘तुम्हारे सवाल का जवाब देने को मेरे पास फालतू टाइम नहीं है, इडियट कहीं का.’’

नेहल फोन पटकने ही वाली थी कि उधर से आवाज आई, ‘‘सौरी, गलती कर रही हैं, जीनियस इडियट कहिए. देखिए, किस आसानी से आप का मोबाइल नंबर मालूम कर लिया.’’

‘‘इस में कौन सी खास बात है, तुम जैसे बेकार लड़कों का काम ही क्या होता है. दोस्तों पर रोब जमाने के लिए लड़कियों के नामपते जान कर उन्हें फोन कर के परेशान करते हो. पर एक बात जान लो, अगर फिर फोन किया तो पुलिस ऐक्शन लेगी, सारी मस्ती धरी रह जाएगी,’’ गुस्से से नेहल ने फोन लगभग पटक सा दिया.

एमए फाइनल की छात्रा, नेहल सौंदर्य और मेधा दोनों की धनी थी. ऐसा नहीं कि उसे देख लड़कों ने फब्तियां न कसी हों या उस के घर तक उस का पीछा न किया हो, पर नेहल की गंभीरता का कवच उन्हें आगे बढ़ने से रोक देता. उसे पाने और उस के साथ समय बिताने की आकांक्षा लिए न जाने कितने युवक आहें भरते थे. लेकिन आज तक किसी ने उसे इस तरह का फोन नहीं किया था.

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मांबाप की इकलौती लाड़ली बेटी नेहल, अपने मन की बातें बस अपनी प्रिय सहेली पूजा के साथ ही शेयर करती थी. आज भी तमतमाए चेहरे के साथ जब वह यूनिवर्सिटी पहुंची तो पूजा देखते ही समझ गई कि नेहल का पारा हाई है. उस ने हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या बात है नेहल, आज तेरा गुलाबी चेहरा तमतमा क्यों रहा है?’’

‘‘मैं उसे ठीक कर दूंगी. अपने को हीरो समझता है. कहता है वह ‘जीनियस इडियट’ है. सामने आ जाए तो दिमाग ठिकाने न लगा दूं तो मेरा नाम नेहल नहीं.’’

‘‘किस की बात कर रही है, किसे ठीक करेगी?’’ पूजा कुछ समझी नहीं थी.

‘‘था कोई, नाम बताने के लिए हिम्मत चाहिए. न जाने उसे कैसे पता लग गया, हम ‘थ्री इडियट्स’ देखने गए थे. पूछ रहा था, फिल्म हमें कैसी लगी.’’

‘‘बस, इतनी सी बात पर इतना गुस्सा? अरे, बता देती तुझे फिल्म अच्छी लगी. रही बात उसे कैसे पता लगा, तो भई होगा कोई तेरा चाहने वाला. तुझे पिक्चर हौल में देखा होगा. इतना गुस्सा तेरी सेहत के लिए अच्छा नहीं, मेरी सखी. काश, कोई मुझे भी फोन करता, पर क्या करें कुदरत ने सारी सुंदरता तुझे ही दे डाली,’’ पूजा के चेहरे पर शरारतभरी मुसकराहट थी.

‘‘अच्छी बात है, अगली बार कोई फोन आया तो तेरा नंबर दे दूंगी. अब क्लास में चलना है या आज भी कौफी के लिए क्लास बंक करेगी?’’

‘‘मेरा ऐसा समय कहां, तू भला उस नेक काम में साथ देगी, नेहल? फिर उसी बोरिंग लैक्चर को सहन करना होगा. यार, यह हिस्ट्री सब्जैक्ट क्यों लिया हम ने. रोज गड़े मुर्दे उखाड़ते रहो.’’

पूजा के चेहरे के भाव देख नेहल हंस पड़ी.

‘‘तेरी सोच ही गलत है, पूजा. अगर रुचि ले तो इस विषय में न जाने कितना रोमांच और थ्रिल है. चल, वरना हम लेट हो जाएंगे.’’

बेमन से पूजा नेहल के साथ चल दी.

रात में मोबाइल की घंटी ने नेहल की नींद तोड़ दी. दिल में घबराहट सी हुई, कहीं  घर से तो फोन नहीं आया है. जब से नेहल पढ़ने के लिए इस शहर में आई थी, उस का मन घर के लिए चिंतित रहता था. शुरूशुरू में होस्टल में रहना उसे अच्छा नहीं लगा था. पूजा से मित्रता के बाद उसे घर की उतनी याद नहीं आती थी.

‘‘हैलो.’’

‘‘जरा अपनी खिड़की का परदा उठा कर देखिए, मान जाएंगी क्या नजारा है. प्लीज इसे मिस मत कीजिए, मेरी रिक्वैस्ट है,’’ फिर वही परिचित आवाज.

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‘‘दिमाग खराब है क्या मेरा जो रात के 2 बजे बाहर का नजारा देखूं? रात में जागना तुम जैसे उल्लू के लिए ही संभव है. लगता है तुम अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे, अब कोई ऐक्शन लेना ही होगा.’’

फोन तो नेहल ने बंद कर दिया, पर सोच में पड़ गई, आखिर वह उसे ऐसा क्या दिखाना चाहता है जिस के लिए आधी रात को उसे जगाया है. बिस्तर से सिर उठा कर जाली वाले झीने परदे से बाहर के नजारे को देखने का लोभ, वह संवरण नहीं कर सकी. बाहर पूर्णिमा का चांद अपने पूरे वैभव में साकार था. सारे पेड़पौधे चांदनी में नहाए खड़े थे. नेहल मुग्ध हो उठी. बिस्तर से उठ खिड़की के पास आ खड़ी हुई. उस के अंतर की कवयित्री जाग उठी. कविता की कुछ पंक्तियां मन में आई ही थीं कि मोबाइल फिर बजा.

‘‘मान गईं, क्या तिलिस्मी नजारा है. जरूर कोई कविता लिख डालेंगी, पर उस का क्रैडिट तो मुझे मिलेगा न?’’ फिर वही हंसी.

‘‘अब तक कितनों की नींद खराब कर चुके हो? तुम्हारा नंबर मेरे मोबाइल पर आ गया है, अब अपनी खैर मनाओ.’’

‘‘कमाल करती हैं, मैं ने बताया है न मैं जीनियस हूं. अगर मुझे पकड़ सकीं तो जो सजा देंगी, मंजूर है. वैसे कल आसमानी सलवारसूट में आप का चेहरा देख कर ऐसा लगा, नीले आकाश में चांद चमक रहा है. बाई द वे, आप का पसंदीदा रंग कौन सा है? नहीं बताएंगी तो भी मैं पता कर लूंगा. इतनी देर बरदाश्त करने के लिए थैंक्स ऐंड गुडनाइट.’’

फोन काट दिया गया.

बिस्तर पर लेटी नेहल की आंखों से नींद उड़ गई. उस से ऐसी गलती कैसे हो गई, किसी अजनबी के फोन को तुरंत काट क्यों नहीं दिया, क्यों उस की बातें सुनती रही, जवाब देती रही. वह उस के कपड़ों को भी नोटिस करता है. जरूर उस के होस्टल के आसपास रहने वाला कोई आवारा है. कल उस के नंबर से पता करना होगा. काफी देर बाद ही वह सो सकी. सुबहसुबह मां के फोन से नींद टूटी थी.

‘‘क्या हुआ, मां, घर में सब ठीक तो हैं?’’ नेहल डर गई थी.

‘‘सब ठीक हैं, तुझ से एक जरूरी बात करनी थी. देख, कुछ दिनों में एक इंद्रनील नाम का लड़का तुझ से मिलने आएगा. तू उस से अच्छी तरह से बात करेगी. उस के बारे में जो जानना चाहे, पूछ लेना. अपना रोब जमाने की कोशिश मत करना.’’

‘‘क्यों मां, क्या मैं किसी से ठीक से बात नहीं करती? वैसे वह मुझ से मिलने क्यों आ रहा है, कहीं तुम ने फिर मेरी शादी का सपना देखना तो शुरू नहीं कर दिया? मुझे अभी शादी नहीं करनी है.’’

‘‘बस नेहल, बहुत हो गया. तू ने कहा था, पढ़ाई पूरी करने के बाद शादी करेगी. तेरा एमए फाइनल 2 महीने बाद पूरा हो जाएगा. अब अगर तू ने मेरी बात नहीं मानी तो मैं तुझ से कभी बात नहीं करूंगी.’’

‘‘ठीक है मां, पर इंद्रनील हैं क्या चीज?’’

‘‘अरे, वह तो हीरा है. ऐसा प्यारा लड़का कि क्या बताऊं. हम से ऐसे मिला मानो बरसों से परिचित है. सब को हंसाना ही जानता है. आस्ट्रेलिया की एक बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी पर जा रहा है. जाने से पहले उस की मां उस की शादी कर देना चाहती हैं. जब तू उस से मिलेगी तब मेरी बातों की सचाई जान सकेगी, बेटी.’’

‘‘इस का मतलब है कि उस की मां को डर है कहीं वह आस्ट्रेलियन बहू न ले आए.’’

‘‘फिर तू ने अपनी बकवास शुरू कर दी. बस, इतना जान ले अगर तू ने मेरा कहा नहीं माना तो मैं भी तेरी कोई बात नहीं सुनूंगी,’’ इस बार मां का स्वर तीखा था.

‘‘ओके मां, मैं तुम्हारे इंद्रनीलजी से जरूर मिल लूंगी और कोई गलती भी नहीं करूंगी. अब तो खुश? हां, इतने लंबे नाम की जगह उसे कोई छोटा नाम नहीं मिला?’’

‘‘शादी के बाद तू उसे चाहे जिस नाम से पुकार, मुझे कोई लेनादेना नहीं है. अब तेरे कालेज का टाइम हो रहा है, बस, मेरी बातें याद रखना.’’

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‘‘भला तुम्हारी बातें कभी भूली हूं मां, बाबा को प्रणाम कहना,’’ फोन रख, नेहल तैयार होने बाथरूम में घुस गई. कौन है यह इंद्रनील जिस ने मां को इस तरह मोह लिया है. वैसे उस को शादी की कोई जल्दी नहीं है, पर मां की बातों ने उस के मन में उत्सुकता जगा दी, जरा देखें तो कौन हैं यह इंद्रनील. पूजा से बातें करने का निर्णय ले नेहल चल दी. मां के फोन की वजह से वह पूजा से कैंटीन में भी नहीं मिल सकी थी. पूजा नेहल का इंतजार कर रही थी.

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उसका अंदाज: भाग 3- क्या थी नेहल की कहानी

नीलेश को और बात करने का अवसर न दे, नेहल तेजी से कमरे के बाहर चली गई. मुसकराते चेहरे के साथ नेहल पूजा के कमरे में जा पहुंची.

‘‘हाय नेहल, कैसी रही तेरी मुलाकात? लगता है, बात जम गई,’’ पूजा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मुलाकात की छोड़, आज उस फोन करने वाले का रहस्य खुल गया.’’

‘‘सच, कौन है वह? उसे पुलिस के हवाले क्यों न कर दिया?’’

‘‘अरे, वह तो मेरे लिए मां द्वारा चुना गया उम्मीदवार इंद्रनील था. उस की बातों से समझ गई थी, अपने भाई का नाम ले कर मेरी परीक्षा ले रहे थे, जनाब. मैं ने भी अच्छा जवाब दिया है. देखें, अब उस दूसरे इंद्रनील को कहां से लाते हैं.’’

‘‘वाह, तेरी तो प्रेमकहानी बन गई नेहल. वैसे, कैसा लगा अपना मजनूं?’’

‘‘मुझे तो यही खुशी है, उसे करारा जवाब मिला है. वैसे देखने में खासा हीरो दिखता है. बातें भी अच्छी कर लेता है. पर अब मजा आएगा, मुझे बनाने चले थे और खुद बन गए,’’ नेहल के चेहरे पर शरारतभरी मुसकान थी.

‘‘मुझे तो यकीन है उस ने तेरा दिल चुरा लिया,’’ पूजा हंस रही थी.

‘‘जी नहीं, मेरा दिल यों आसानी से चोरी नहीं हो सकता. चलती हूं, शायद मां का फोन आए,’’ नेहा अपने कमरे में जाने को उठ गई.

किताब खोलने पर नेहल का मन नहीं लग रहा था. नीलेश का चेहरा आंखों के सामने आ रहा था. उस का क्या रिऐक्शन होगा, कहीं वह निराश तो नहीं हो गया, शायद वह हर दिन की तरह फोन करे और कहे, ‘आज आप ने मायूस कर दिया. इतना बुरा तो नहीं हूं मैं.’ देर रात तक कोई फोन न आने से नेहल ही निराश हो गई.

कल रविवार है, देर तक सोने के निर्णय के साथ न जाने कब सोई थी कि मोबाइल की घंटी सुनाई पड़ी. जरूर उसी का फोन होगा, पर दूसरी ओर से एक गंभीर पुरुषस्वर सुनाई दिया.

‘‘हैलो, नेहलजी, मैं इंद्रनील, जयपुर से बोल रहा हूं. माफ कीजिएगा, मैं आप से मिलने खुद नहीं पहुंच सका, बहुत जरूरी काम था, टाला नहीं जा सकता था. आप के बारे में नीलेश ने विस्तृत जानकारी दी है, मानो मैं स्वयं आप से मिला हूं. नीलेश ने आप का संदेश दिया है, जल्दी ही आप से मिलने पहुंचूंगा. मेरे बारे में नीलेश ने बताया ही होगा. और कुछ जानना चाहें तो बेहिचक पूछ सकती हैं.’’

‘‘जी नहीं, आप के भाई ने आप की बहुत प्रशंसा की है. एक बात पूछना चाहती हूं, आप अपने भाई पर इतना विश्वास रखते हैं कि अपनी जगह उसे भेज दिया, पर क्या आप जानते हैं कि आप की जगह वे खुद मेरे साथ अपनी शादी के लिए उत्सुक थे?’’

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‘‘अरे, आप उस की बातों को सीरियसली न लें, मजाक करना उस का स्वभाव है. हां, आप ने मेरे साथ अपनी शादी की सहमति दी है, उस के लिए आभारी हूं. जल्द ही हम जरूर मिलेंगे. नीलेश ने जयपुर से आप के मनपसंद रंग की साड़ी लाने को कहा है, वह ला रहा हूं. यहां से और कुछ चाहिए तो बताइए.’’

‘‘थैंक्स, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बाय.’’

फोन बंद करतेकरते नेहल का मन रोनेरोने का हो आया. यह क्या हो गया. फोन जयपुर से ही आया था. कौन है यह इंद्रनील, उस से बिना मिले, बिना फोन पर बात किए उस के साथ शादी के लिए स्वीकृति दे बैठी. तभी मां का फोन आ गया, ‘‘आज मेरी चिंता दूर हो गई, बेटी. इंद्रनील जैसा दामाद और तेरे लिए वर, कुदरती तौर पर ही मिलता है. उस ने तुझ से होली के बाद मिलने की इजाजत मांगी है. तेरी परीक्षा के पहले वाली प्रिपरेशन लीव में ही पहुंचेगा.’’

‘‘मां, मुझ से गलती हो गई, मैं इंद्रनील से शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘पागल मत बन. तू ने खुद सहमति दी है, किसी ने जबरदस्ती तो नहीं की है?’’

‘‘तुम नहीं समझोगी मां, मैं किसी और से…’’

‘‘मुझे कुछ समझना भी नहीं है. बहुत मनमानी कर ली. हम तेरे दुश्मन तो नहीं हैं, नेहल, इंद्रनील हर तरह से तेरे लिए उपयुक्त है. अब हमें परेशान मत कर, बेटी. बचपना छोड़, किसी को वचन दे कर वचन तोड़ना अक्षम्य अपराध है. मेरा यकीन कर, इंद्रनील के साथ तू बहुत सुखी रहेगी.’’

नेहल की समझ में नहीं आ रहा था, वह क्या करे? यह तो अपने पांव खुद कुल्हाड़ी मारने वाली बात हो गई. पूजा भी परेशान थी, पर उस का एक ही सुझाव था, फोन पर इंद्रनील को सचाई बता दे. जयपुर से इंद्रनील वापस जा चुका था, अब तो उस के फोन का इंतजार करना था.

प्रिपरेशन लीव की छुट्टियां शुरू हो गईं. नेहल का मन बेचैन था. इंद्रनील उस से मिलने कभी भी आ सकता है, क्या वह उस से कह सकेगी कि वह उस से नहीं, उस के छोटे भाई से विवाह करना चाहती है. छुट्टी के 3 दिनों बाद सुबहसुबह कलावती केयरटेकर ने आ कर कहा, ‘‘कोई नील बाबू आप से मिलने आए हैं. उन का पहला नाम याद नहीं रहा.’’

धड़कते दिल के साथ नेहल इंद्रनील से मिलने की हिम्मत जुटा पहुंची थी. सामने खड़े व्यक्ति को देख वह चौंक गई. अपनी उसी मोहक हंसी के साथ नीलेश खड़ा था. नेहल समझ नहीं सकी वह क्या कहे, पर खुद नीलेश आगे बढ़ आया.

‘‘कैसी हैं? चाहता तो था होली पर आ कर आप को रंगता, पर आ नहीं सका. अब तो बस कहना चाहूंगा जिंदगी की सारी खुशियां आप के जीवन में रंग भरती रहें.’’

‘‘इंद्रनीलजी की जगह क्या आज फिर उन की ओर से कोई नया संदेश लाए हैं?’’

‘‘नहीं, उन्होंने अपनी जगह हमेशाहमेशा के लिए मुझे दे दी, आखिर बिग ब्रदर को इतना तो करना ही चाहिए. वैसे भी वे जान गए थे कि आप मुझे चाहती हैं. आप का पीछा करने के लिए पूरे 10 दिन होम किए हैं, नेहलजी. सच कहिए, क्या मेरा फोन करना आप को खराब लगता था? मुझे तो लगता है, आप को मेरे फोन का इंतजार रहता था.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है, वैसे भी किसी के विकल्परूप में तुम्हें क्यों स्वीकार करूंगी? मैं ने तो इंद्रनील से मिलने आने का अनुरोध किया था, उन के विकल्प का नहीं.’’

‘‘अगर ऐसा है तो मिस नेहल, मैं किसी का विकल्प नहीं, स्वयं इंद्रनील हूं, अपने मातापिता का बड़ा बेटा. अब कहिए, क्या इरादा है? सौरी, मैं चाह कर भी आप के पास किसी दूसरे इंद्रनील को नहीं ला सकता. अब तो यही नील चलेगा, नेहल.’’

‘‘तुम इतने बड़े चीट हो, इंद्रनील? तुम से तो शादी करने में भी खतरा है.’’

‘‘फिर वही गलती कर रही हैं. मैं धोखेबाज नहीं, जीनियस इडियट हूं और मैं ने कहा था, मुझे आप पकड़ नहीं सकेंगी.’’

‘‘पर मैं ने तो तुम्हें पकड़ ही लिया. तुम्हें पहले दिन ही पहचान लिया था, मुझे फोन करने वाले तुम ही थे.’’

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‘‘पर यह तो नहीं समझ सकी थीं कि मैं ही इंद्रनील था, वरना मां से उस इंद्रनील से शादी न करने को क्यों कह रही थीं. धोखा खा गई थीं न? मां को मुझे ही सचाई समझानी पड़ी थी, वरना तुम ने तो उन्हें भी डरा दिया था.’’

‘‘मानती हूं, इस जगह तो मैं धोखा खा ही गई, पर इसे मेरी हार मत समझना. तुम ने मेरी मां को अपने मोहजाल में बांध लिया वरना…’’

‘‘तुम किसी बेचारे इंद्रनील का ही इंतजार करती रहतीं. अब तुम्हारी इस गलती के बदले तुम्हें सजा देने का अधिकार तो मुझे मिलना ही चाहिए,’’ इंद्रनील शरारत से मुसकराया.

‘‘क्या सजा दोगे, नील? इतने दिनों तक फोन कर के परेशान करते रहे, सजा तो तुम्हें मिलनी चाहिए,’’ नेहल ने मानभरे स्वर में कहा.

‘‘अच्छाजी, जैसे मैं जानता नहीं था, मोहतरमा को फोन का कितना इंतजार रहता था.’’

‘‘यह तुम्हारा भ्रम है, अगर पकड़ पाती तो तुम्हारे हाथों में हथकड़ी जरूर पहनवाती,’’ नेहल के चेहरे पर परिहास की हंसी खिल आई.

‘‘तो अब सजा दे दो, पर लोहे की हथकड़ी की जगह तुम्हारे प्यार का बंधन मंजूर है.’’

बात खत्म करते इंद्रनील ने नेहल के माथे पर स्नेह चुंबन अंकित कर दिया. नेहल के गुलाबी चेहरे पर सिंदूरी आभा बिखर गई.

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उसका अंदाज: भाग 2- क्या थी नेहल की कहानी

‘‘क्या हुआ, आज कैंटीन में नहीं आई? कहीं तेरे उस नए आशिक का फोन तो नहीं आ गया था?’’ पूजा के चेहरे पर हंसी थी.

‘‘आया था, रात के 2 बजे, चांद का दीदार कराने, पर सच वह दृश्य बड़ा सुंदर था. नहीं देख पाती तो इतनी सुंदर चांदनी में नहाई प्रकृति को मिस करती. शायद, जनाब को शायरी करने का शौक है. ऐसा लगता है उसे मेरे बारे में बहुतकुछ मालूम है, यहां तक कि मैं कविता लिखती हूं.’’

‘‘तब तो वह तेरा सच्चा आशिक है, नेहल.’’

‘‘सच्चे आशिक को अपना नामपता छिपाने की जरूरत नहीं होती, पूजा. वैसे एक बात है, वह बातें बड़े अंदाज से करता है. पता नहीं कहां से छिप कर मेरे बारे में सारी बातें पता कर लेता है. यहां तक कि मेरे पहने हुए कपड़ों के रंग भी याद रखता है.’’

‘‘सच कह, नेहल, तू उस की बातें एंजौय करती है या नहीं?’’

‘‘जब उस का फोन आता है तब तो गुस्सा आता है, पर बाद में उस की बातों पर हंसी आती है. वैसे, आज तक कभी उस ने कोई अश्लील बात नहीं कही है, जैसे कि अकसर सड़कछाप लड़के कहते हैं.’’

‘‘मुझे तो वह कोई सच्चा प्रेमी लगता है, नेहल. संभल के रहना.’’

‘‘अरे, क्या मुझे पागल समझती है? ये बातें छोड़, आज मां का फोन आया था, मेरी शादी के लिए मुझ से मिलने कोई आने वाला है. समझ में नहीं आ रहा है क्या करूं? पता नहीं मांबाप को बेटियों की शादी की इतनी जल्दी क्यों होती है.’’

‘‘वाह, यह तो गुड न्यूज है. कोई है वह जो हमारी नेहल को ले जाएगा. काश, मेरी शादी यहां आने के पहले ही तय न हो गई होती,’’ पूजा ने आह भरी.

‘‘क्यों? क्या नितिन से कोई शिकायत है या किसी और पर दिल आ गया है?’’

नेहल ने पूजा को छेड़ा.

‘‘अरे नहीं, नितिन तो बहुत अच्छा है. बस, कभी लगता है, मैं प्रेमविवाह करती. शादी के पहले के रोमांस का मजा ही और होता है.’’

‘‘प्रेम शादी के बाद कर लेना. हमारे देश में कितनी लड़कियों को प्रेमविवाह की अनुमति मिलती है. किसी न किसी बात को ले कर, अकसर प्रेम का धागा तोड़ ही दिया जाता है. मेरी एक बात मानेगी पूजा, जब वह मुझ से मिलने आएगा तब तू मेरे साथ रहेगी?’’

‘‘न बाबा, मैं क्यों कबाब में हड्डी बनूं, और हर डिबेट में जीतने वाली नेहल किसी से डरे, असंभव. चल, आज इस खुशी में क्लास छोड़ ही दें, चाट चलेगी?’’

‘‘ठीक है, आज इंद्रनील के नाम पर तेरी ही सही.’’

शाम को लौटी नेहल कमरे में पहुंची ही थी कि मोबाइल बजा, ‘‘क्लास बंक करना अच्छी बात नहीं है, खासकर आप जैसी लड़की से तो कतई ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती. क्या कोई खास खुशी सैलिबे्रट की जा रही थी?’’

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‘‘टु हैल विद यू. मैं क्या करती हूं, कहां जाती हूं तुम से मतलब? क्यों मुझे परेशान कर रहे हो, सामने क्यों नहीं आते?’’ नेहल नाराज हो उठी.

‘‘सौरी, आप को परेशान करना मेरा मकसद नहीं था.’’

इतना कहते ही फोन कट गया.

नेहल ने अपने मोबाइल पर आए नंबरों से उस फोन करने वाले का पता करना चाहा था, पर फोन हर बार किसी नए पीसीओ से किया गया था. उस ने ठीक कहा था, उसे पकड़ पाना कठिन था. कभी नेहल को फिल्मों में देखे गए कुछ पात्र याद आते जो पागल की तरह किसी लड़की के पीछे पड़, उस लड़की को परेशान कर देते थे. नेहल कभी सोचती, कहीं वह भी वैसा ही इंसान तो नहीं, पर उस की किसी भी बात से पागलपन नहीं झलकता था बल्कि बातों से वह पढ़ालिखा व्यक्ति लगता था.

‘‘आप से कोई मिलने आए हैं, विजिटर रूम में बैठे हैं,’’ होस्टल की केयरटेकर ने आ कर नेहल को सूचित किया.

‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ कह कर नेहल ने सरसरी नजर अपने कपड़ों पर डाली. अब चेंज करने का सवाल नहीं था, निश्चय ही वह इंद्रनील ही होगा. बालों पर हाथ फेर

वह विजिटर रूम की ओर चल दी.

विजिटर रूम में एक सौम्य युवक उस की प्रतीक्षा कर रहा था. नेहल के प्रवेश करते ही वह खड़ा हो गया. एक नजर में ही नेहल समझ गई, उस के व्यक्तित्व से कोई भी प्रभावित हो जाएगा. स्लेटी सूट के साथ सफेद शर्ट में उस का व्यक्तित्व और भी निखर आया था. चेहरे की मुसकान किसी को भी मोहित कर सकती थी.

‘‘प्लीज, बैठिए. मैं नेहल और आप शायद इंद्रनीलजी हैं,’’ मीठी आवाज में नेहल बोली.

‘‘ओह, तो आप मेरे बिग ब्रदर का इंतजार कर रही हैं. सौरी, उन्हें किसी जरूरी काम की वजह से शहर के बाहर जाना पड़ गया. आप उन्हें एक्स्पैक्ट करेंगी इसलिए उन्होंने आप को अप्रूव करने की जिम्मेदारी मुझे दे दी है. हां, अपना परिचय देना तो भूल ही गया, मैं नीलेश, इंद्रनीलजी का छोटा भाई.’’

‘‘कमाल है, आप के भाई ने अपनी जगह आप को भेजा है. कैसे हैं आप के सो कौल्ड बिग ब्रदर?’’ नेहल के शब्दों में व्यंग्य स्पष्ट था.

‘‘अरे, उन के गुणों के लिए तो शब्द कम पड़ जाएंगे. वे बेहद गंभीर, तेजस्वी, मेधावी, स्नेही, योग्य अधिकारी और न जाने क्याक्या हैं. मुझ पर उन्हें अगाध विश्वास है. उन की तुलना में मैं तो उन के पांवों की धूल भी नहीं हूं.’’

‘‘भले ही वे आप के शब्दों में गुणों की खान हों, पर जिस के साथ जीवनभर का साथ निभाना है उस से मिलना भी जरूरी नहीं समझते. यह कैसा विश्वास है? शायद विवाह में उन की ज्यादा रुचि नहीं है,’’ नेहल ने स्पष्ट शब्दों में अपनी राय दे डाली.

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‘‘वे जानते हैं कि आप की हर तरह की परीक्षा लेने के बाद ही मैं आप को अप्रूव करूंगा. वैसे मैं दावे के साथ कह सकता हूं, आप उन के लिए बहुत उपयुक्त जीवनसाथी हैं. बिग ब्रदर को भी यही बात समझाई है.’’

‘‘रुकिए, क्या कहा, आप मेरी परीक्षा लेंगे? आप मेरी परीक्षा लेने वाले होते कौन हैं?’’ नेहल का चेहरा तमतमा आया.

‘‘परीक्षा तो हो चुकी, और आप उस में पूरे अंक पा चुकी हैं,’’ फिर वही हंसी.

उस हंसी ने नेहल को किसी और की हंसी और बात करने के तरीके की याद दिला दी. निश्चय ही यह वही था जो फोन कर के उसे परेशान किया करता था. नेहल सोच में पड़ गई, उस जैसी बुद्धिमान लड़की पहले ही उसे क्यों नहीं पहचान गई.

अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

‘‘तुम…तुम, वही हो न जो मुझे फोन करते थे? क्या यही सब करने को तुम्हारे धीरगंभीर भाई ने इजाजत दी थी? साफसाफ सुन लो, मुझे तुम्हारे भाई या तुम्हारे साथ कोई भी रिश्ता मंजूर नहीं है,’’ नेहल का चेहरा लाल हो उठा.

‘‘भाई न सही, मेरे बारे में क्या राय है? आप की कितनी डांट सुनी है. सच कहता हूं, जिंदगीभर आप का गुलाम बन कर रहूंगा. अच्छीभली नौकरी है, आप को जिंदगी की हर खुशी देने का वादा रहेगा.’’

‘‘अपने आदरणीय बिग ब्रदर को क्या जवाब दोगे? तुम पर उन्हें अगाध विश्वास है. उन का विश्वास तोड़ना क्या ठीक होगा. नहीं मिस्टर नीलेश, आप अपने भाई का दिल नहीं तोड़ सकते. सच कहूं तो मुझे उन से हमदर्दी हो गई है. जो इंसान अपने भाई पर इतना विश्वास रखता है, वह अपनी पत्नी के तो सात खून भी माफ कर देगा. मुझे इंद्रनीलजी के साथ अपना रिश्ता मंजूर है.’’

‘‘शुक्रिया, आप ने मेरी आंखें खोल दीं. मैं सचमुच अपराध करने जा रहा था. अब मेरा मकसद पूरा हो गया. बिग ब्रदर तक आप की स्वीकृति पहुंच जाएगी,’’ फिर उस की मीठी हंसी देखसुन नेहल जैसे चिढ़ गई.

‘‘थैंक्स, मैं इंद्रनीलजी की प्रतीक्षा करूंगी और उन से कहिएगा मैं उन से मिलने को उत्सुक हूं. नमस्ते,’’ हाथ जोड़ नेहल ने अभिवादन किया.

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