लौकडाउन- भाग 3 : जब बिछड़े प्यार को मिलवाया तपेश के दोस्त ने

लेखिका- सावित्री रानी

तपेश खुद काम के सिलसिले में कई देशों में रह चुका था. इसलिए उसे इंग्लिश के भिन्नभिन्न एकसैंट्स की पहचान थी. उसे पता था कि लैबनान और ईजिप्ट जैसे देशों में पैसे वाले लोग अपनी पढ़ाई फ्रैंच माध्यम में भी करते हैं. तभी तपेश को कुछ दिन पहले पीयूष से फोन पर हुई बात याद आई. जब तपेश के घर पार्टी थी और पीयूष भी आमंत्रित था. लेकिन पार्टी वाले दिन पीयूष का फोन आया था, ‘‘आज मैं तेरे यहां पार्टी में नहीं आ सकूंगा. सारी यार.’’

‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है?’’

‘‘तबीयत बिलकुल ठीक है. दरअसल, आज ईजिप्ट से मेरा एक दोस्त आ रहा है तो उसे रिसीव करने जाना है.’’

‘‘ ठीक है.’’

‘‘उफ, तो यही दोस्त था जो ईजिप्ट से आया था,’’ तपेश अकेले ही बैठाबैठा बुदबुदा रहा था.

तभी नर्स ने आ कर सूचना दी कि आप पीयूष से मिल सकते हैं. उसे रूम में शिफ्ट कर दिया गया है.

तपेश रूम में पहुंचा तो वह महिला पहले से पीयूष के बैड के पास पड़ी कुरसी पर बैठी थी. पीयूष की हालत ठीक लग रही थी. उस ने उस महिला से मिलवाते हुए कहा, ‘‘तपेश, यह मेरी दोस्त नाहिद है. ईजिप्ट से आई है और नाहिद यह मेरा दोस्त तपेश.’’

‘‘हाई नाहिद.’’

‘‘हाई तपेश.’’

नाहिद की आंखों में पीयूष के लिए   झलकता चिंता का भाव काफी कुछ कह रहा था. पीयूष की हालत अब ठीक लग रही थी. तपेश उन दोनों को अकेला छोड़ कर डाक्टर से बात करने के बहाने वहां से चला गया. पता चला कि डाक्टर तो अभी व्यस्त हैं, तो वह रूम के बाहर बैंच पर बैठ गया.

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अब तपेश की कल्पना की उड़ान इस कहानी के सिरे ढूंढ़ने  लगी. उसे यह तो पता था कि पीयूष करीब 4 साल पहले किसी फौरेन असाइनमैंट पर ईजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था. पर यह नाहिद की क्या कहानी है, इस बारे में उसे बिलकुल भी भनक नहीं थी.

तभी सामने से डाक्टर को आते देख कर तपेश उन से पीयूष के अपडेट्स लेने लगा.

डाक्टर ने बताया, ‘‘हम करोना के चलते पीयूष को यहां और ज्यादा दिन नहीं रखना चाहते. उस की हालत अब ठीक है. आप उसे घर ले जा सकते हैं. कुछ समय बाद उन को ऐंजिओप्लास्टी की जरूरत पड़ सकती है. हो सकता है न भी पड़े. फिर दवाइयों और इंस्ट्रक्शंस की लंबी लिस्ट दे कर डाक्टर चले गए.

तपेश ने पीयूष को अपने घर ले जाने की पेशकश करते हुए कहा, ‘‘मैं तु  झे अकेले नहीं छोड़ सकता यार. तू मेरे घर चल, वहां मैं और शालू मिल कर तेरी अच्छी देखभाल कर सकेंगे.’’

पीयूष ने सवालिया निगाहों से नाहिद की ओर देखा तो वह अपनी फ्रैंच इंग्लिश में बोली, ‘‘तपेश आप पीयूष की चिंता बिलकुल भी न करें. मैं उस का ध्यान रखूंगी. कोई जरूरत हुई तो आप को कौल कर लूंगी.’’

तपेश ने हैरानी और परेशानी से पीयूष की ओर देखा, ‘‘यार यह कैसे संभालेगी? न तो यह यहां की भाषा जानती है न ही इसे यहां का सिस्टम सम  झ आएगा.’’

नाहिद उन की हिंदी में हो रही बातचीत को न सम  झ पाने के कारण कुछ असमंजस में थी, सो बोली, ‘‘तपेश आप पीयूष के पास बैठो तब तक मैं डाक्टर से मिल कर आती हूं.’’

उस के जाते ही तपेश ने अपनी प्रश्नों से भरी निगाहें पीयूष की तरफ मोड़ी.

पीयूष अपनी सफाई देता सा बोला, ‘‘वह तु  झे पता है न कि मैं कुछ साल पहले ईजिप्ट गया था और वहां 2 साल रहा था?’’ पीयूष ने नजरें   झुका कर थोड़ा शरमाते हुए कहा.

‘‘हां, तो?’’

‘‘तो नाहिद वहां मेरी ही कंपनी में काम करती थी. यह ईजिप्ट के काफी जानेमाने परिवार की लड़की है, लेकिन जरा मनमौजी है. उसी दौरान इस का तलाक हुआ था. इसीलिए इस का नौकरी से भी मन उचट गया था. यह काफी परेशान रहने लगी थी.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर इस ने नौकरी भी छोड़ दी थी.’’

‘‘तो फिर करती क्या है?’’

‘‘फिर इस ने वहीं ईजिप्ट के ऐलैक्जैंडरिया शहर में अपनी एक सोविनियर की शौप खोल ली थी. कला और कलाकृतियों की इसे काफी परख थी और यही उस का शौक भी था. तु  झे तो पता ही है कि मु  झे भी कला से काफी लगाव है.’’

‘‘हांहां, यह कौन नहीं जानता?’’

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‘‘तो बस इस के नौकरी छोड़ने के बाद भी हमारे शौक समान होने के कारण हमारी दोस्ती बरकरार रही. फिर मेरी सलाह पर इस ने इंडियन सोविनियर्स भी रखने शुरू कर दिए.’’

‘‘हां, पर तु  झे तो इंडिया वापस आए 2 साल हो गए, फिर अब यह यहां कैसे?’’

‘‘वह क्या है न मैं यहां से सोविनियर्स भेजता रहता हूं, जिन की वहां अब काफी मांग बढ़ गई है. तो इस बार नाहिद ने सोचा कि क्यों न इस बार अपनी पसंद से और ज्यादा मात्रा में सोविनियर खरीदे जाएं.’’

‘‘फिर?’’

‘‘फिर बस यह इसीलिए यहां आई थी, लेकिन 2 दिन बाद ही कोरोना की वजह से लौकडाउन हो गया और यह यहीं फंस गई.

‘‘लेकिन फंसी अच्छी,’’ मैं ने मजाक करते हुए एक आंख दबाई.

‘‘अरे नहीं यार, ऐसा कुछ भी नहीं है,’’ पीयूष नजरें   झुका कर बोला.

पीयूष और नाहिद पीयूष के घर लौट गए. 1-2 बार तपेश उस से मिलने पीयूष के घर गया और उस के चेहरे की लौटती रौनक देख कर नाहिद द्वारा की जा रही देखभाल से आश्वस्त हो कर लौट आया.

एक दिन तपेश के पास सुबहसुबह पीयूष का फोन आया, ‘‘क्या तू कल सुबह 9 बजे मेरे घर आ सकता है? मु  झे अस्पताल जाना है.’’

‘‘क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’

‘‘हांहां सब ठीक है. चैकअप के लिए बुलाया है.’’

‘‘ठीक है.’’

जब तपेश अगले दिन उस के घर पहुंचा तो उसे नाहिद और पीयूष दोनों कुछ ज्यादा ही ड्रैसअप से लगे. वह सम  झ न पाया कि

अस्पताल जाने के लिए इतना तैयार होने की भला क्या जरूरत थी. फिर सोचा छोड़ो यार जैसी उन की मरजी.

बाहर निकले तो पीयूष बोला, ‘‘गाड़ी मैं चलाऊंगा.’’

‘‘अरे लेकिन मैं हूं न.’’

‘‘नहीं मैं ही चलाऊंगा. अब तो मैं ठीक हूं,’’ वह जिद करने लगा.

हार कर तपेश ने उसे गाड़ी की चाबी देते हुए कहा, ‘‘ओके.’’

मगर थोड़ी देर में गाड़ी को अस्पताल की तरफ न मुड़ते देख तपेश बोला, ‘‘अरे यार, अस्पताल का कट तो पीछे रह गया. तेरा ध्यान कहां है?’’

पीयूष मुसकराते हुए बोला, ‘‘ध्यान सीधा मंजिल पर है.’’

‘‘मंजिल, कौन सी…’’ तपेश का वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि उस ने देखा गाड़ी मैरिज रजिस्ट्रार के औफिस के सामने जा रुकी.

‘‘पीयूष यार यहां क्यों, कैसे…’’

‘‘अरे यार मैरिज के लिए और कहां जाते हैं, मु  झे नहीं पता,’’ पीयूष ने गाड़ी से निकलते हुए ठहाका लगाया.

‘‘मैरिज, किस की, कैसे?’’

गाड़ी से निकल कर पीयूष और नाहिद ने एकदूसरे की बांहों में बांहें डालते हुए  एकसाथ कहा, ‘‘ऐसे,’’ और दोनों खिलखिला उठे.

तपेश ने नाहिद की ओर देखा तो उस के शर्म से लाल चेहरे से नईनवेली दुलहन   झलक रही थी.

‘‘अच्छा तो यह बात है. तो फिर यह भी बता दो कि इस गरीब की दौड़ क्यों लगवाई सुबहसुबह?’’

‘‘तो क्या गवाह हम खुद ही बन जाते?’’ अदा से मुसकराते हुए पीयूष बोला.

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तपेश खफा हुआ सोच रहा था, कितनी अजीब बात है मेरे दोस्त की भी. जिस की किश्ती किनारे पर डूब गई थी, उसे पार भी लगाया तो किस ने? तूफानों ने?

जिस करोना ने सारी दुनिया को हिला दिया, सब को घरों में बैठा दिया, सब की बड़ीबड़ी योजनाओं पर पानी फेर दिया, मिले हुओं को हमेशा के लिए बिछड़वा दिया, उस ने मेरे दोस्त की वह योजना भी सफल करवा दी, जो उस ने बनाई भी नहीं थी और उन्हें मिलवा दिया जिन्हें पता ही नहीं था कि उन्हें मिलना भी है. वाह रे करोना. वाह रे लौकडाउन.

विश्वास के घातक टुकड़े- भाग 3 : इंद्र को जब आई पहली पत्नी पूर्णिमा की याद

इंद्र ने नर्सिंगहोम का नाम बता दिया तो वह वहां चली गई. अंजलि ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया, सब के चेहरे खिल उठे. सास जल्द से जल्द नवजात शिशु को गोद में ले कर दादी बनने की हसरत पूरी करना चाहती थी.

कुछ घंटे के इंतजार के बाद अंजलि को उस के केबिन में लाया गया. साथ में नर्स की गोद में बच्चा भी था. नर्स ने कुछ नेग के साथ बच्चा सास की गोद में रख दिया. बच्चे को देख इंद्र का मन पुलकित हो उठा.

‘‘बिलकुल इंद्र पर गया है,’’ सास पुचकारते हुए बोली. इंद्र दौड़ कर बाजार से मिठाई लाया. अस्पताल के सारे स्टाफ का मुंह मीठा कराया. एक तरफ खड़ी पूर्णिमा अंदर ही अंदर रो रही थी. किसी का ध्यान उस पर नहीं गया. सब को बच्चे और अंजलि की फिक्र थी.

जो खुशी उसे देनी चाहिए थी वह अंजलि से मिल रही थी. जो मानसम्मान उसे मिलना चाहिए था, वह अंजलि को मिल रहा था. यह सब उस के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा थी. मौका देख कर वह बिना बताए घर लौट आई. बिस्तर पर पड़ते ही वह फूटफूट कर रोने लगी. क्योंकि यहां उस का रुदन सुनने वाला कोई नहीं था. तभी मां का फोन आया. वह फोन पर ही रोने लगी.

‘‘पूर्णिमा, चुप हो जा मेरी बच्ची. मैं अभी तेरे भाई को तुझे लेने के लिए भेज रही हूं. परेशान मत हो.’’ मां ने ढांढस बंधाया.

‘‘क्यों न होऊं परेशान, अंजलि मां बन गई. एक मैं हूं जो बांझ के कलंक के साथ जी रही हूं.’’ पूर्णिमा का क्षोभ, गुस्सा, झलक गया. वह सिसकती रही.

मां ने उसे समझाया, ‘‘कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा? हो सकता है तू भी मां बन जाए.’’

‘‘नहीं बनना है मुझे मां.’’ कह कर पूर्णिमा ने फोन काट दिया.

वह सुबक रही थी, तभी इंद्र का फोन आया, ‘‘पूर्णिमा, कहां हो तुम? सब तुम को पूछ रहे हैं.’’

‘‘बच्चा कैसा है?’’ पूर्णिमा स्वर साध कर बोली.

‘‘एकदम ठीक है,’’ इंद्र खुश हो कर बोला.

कुछ दिन अस्पताल में रह कर अंजलि घर आ गई. इंद्र को तो बहाना मिल गया अंजलि के साथ रहने का. बच्चा खिलाने के नाम पर अब वह पूर्णिमा की खबर भी लेना भूल गया. यह सब असह्य था पूर्णिमा के लिए. सो एक दिन मन बना कर इंद्र से बोली, ‘‘इंद्र, मैं हमेशा के लिए मायके में रहना चाहूंगी.’’

‘‘क्यों?’’

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‘‘यहां मेरा मन नहीं लगता. वहां मेरा सुखदुख बांटने वाले मांबाप तो हैं.’’

‘‘तुम्हें यहां किस बात की कमी है,’’ सुन कर एक बार फिर से उस का मन भीग गया. पर जाहिर नहीं होने दिया.

‘‘परसों मेरा भाई आ रहा है. मुझे नहीं लगता कि अब यहां मेरी जरूरत है. मैं एक कामवाली बाई बन रह गई हूं.’’

‘‘तुम ऐसा क्यों कह रही हो?’’

‘‘ऐसा ही है.’’ बात को तूल न देते हुए वह अपने कमरे में आई और सामान पैक करना शुरू कर दिया.

जैसेजैसे सामान पैक करती उस की रुलाई फूटती रही. कभी सोचा तक नहीं था कि एक दिन ऐसी स्थिति आएगी, जब इस घर की दीवारें उस के लिए बेगानी हो जाएंगी. कभी यही दीवारें उस के नईनवेली दुलहन बनने की गवाह थीं. जब वह पहली बार आई थी तो लगता था कि ये सब उस पर फूल बरसा रही हैं. मगर आज कालकोठरी सरीखी लग रही थीं. सास ने महज औपचारिकता निभाई. बेटे के खिलाफ न तब खड़ी हुई, न अब.

पूर्णिमा को मायके में रहते हुए एक महीना हो गया था. उस ने एक संस्थान में नौकरी कर ली. शुरू में कभीकभार इंद्र का फोन आ जाता था. उस ने उसे खर्च के लिए रुपए देने की पेशकश की मगर पूर्णिमा ने मना कर दिया. देखतेदेखते 6 महीने गुजर गए. इंद्र अपनी नई पत्नी के साथ खुश था.

अचानक एक दिन उस के औफिस में एक युवक उस से मिलने के लिए आया. इंद्र उसे ले कर एक रेस्टोरेंट में चला गया. जैसेजैसे वह युवक इंद्र से अपनी बात कहता, वैसेवैसे इंद्र के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ती जातीं.

‘‘तुम्हारे पास सबूत क्या है?’’ इंद्र बोला.

उस ने अदालत के कागजात इंद्र को दिखाए, जिस में गवाह के रूप में उन लोगों के हस्ताक्षर थे, जिस के बारे में वह सोच भी नहीं सकता था.

‘‘अब तुम चाहते क्या हो?’’ इंद्र ने उस से पूछा.

‘‘वह आज भी मेरी पत्नी है. बाकी आप जो भी फैसला लें.’’ कह कर उस युवक ने इंद्र को ऐसे भंवरजाल में फंसा दिया कि उस से न हंसते बन रहा था न ही रोते. उस का मोबाइल नंबर लेने के बाद वह घर आया.

उस समय अंजलि अपने बच्चे के साथ लेटी हुई थी. एकहरे बदन की अंजलि मां बनने के बाद और भी निखर गई थी, जिस से सिवाय प्यार जताने के उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. मगर हकीकत तो आखिर हकीकत होती है. वह बिना कपड़े उतारे चिंताग्रस्त हो कर सोफे पर बैठ गया.

‘‘ऐसे क्यों बैठा है. अंजलि क्या कर रही है?’’ इंद्र की मां ने पूछा.

सास की आवाज पर अंजलि की तंद्रा टूटी.

‘‘आप? आप कब आए?’’ वह अचकचा उठी.

‘‘ये क्या हालत बना रखी है? औफिस में ज्यादा काम था क्या? देर क्यों हो गई?’’ अंजलि के सवालों से वह खिसिया गया.

‘‘क्या आते ही सवालों की झड़ी लगा दी. खुद तो दिन भर बच्चे का बहाना बना कर लेटी रहती हो. पति मरे या जीए, तुम्हें जरा भी चिंता नहीं रहती.’’ इंद्र के बदले तेवर ने अंजलि को असहज बना दिया. ऐसा पहली बार हुआ, जब इंद्र के बात करने का लहजा उस के प्रति असम्मानजनक था.

‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया. यह तो रोज ही होता है. अब बच्चे को समय न दूं तो क्या उसे अकेला छोड़ दूं.’’ अंजलि ने भी उसी टोन में जवाब दिया. उस समय तो इंद्र ने अपने आप पर नियंत्रण रखा, मगर जब परिस्थिति बदली तो मूल विषय पर आ गया.

‘‘क्या तुम्हारी पहले भी शादी हो चुकी है?’’ इंद्र के इस सवाल पर अंजलि अंदर ही अंदर डर गई. डर स्वाभाविक था. पहले तो उस ने नानुकुर किया. मगर जब इंद्र ने उस के पहले पति का नाम बताया तो वह अपने बचाव में बोली, ‘‘हां, 3 साल पहले मैं ने अपने औफिस में काम करने वाले प्रियांशु से शादी की थी.’’

‘‘क्या तुम्हारा उस से तलाक हुआ था?’’ इंद्र के इस सवाल पर उस ने चुप्पी साध ली.

‘‘बोलती क्यों नहीं? अगर यह मामला पुलिस के सामने गया तो जेल मुझे होगी. क्योंकि मैं ने किसी की ब्याहता को घर में रखा है.’’ इंद्र ने अपनी कमजोरी स्वत: जाहिर कर दी.

‘‘नहीं लिया था,’’ अंजलि बोली.

‘‘वजह?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘शादी के बाद पता चला कि उस का चालचलन अच्छा नहीं है. वह न केवल शराबी था बल्कि उस के दूसरी औरतों से भी संबंध थे.’’

‘‘इसलिए साथ छोड़ दिया?’’

‘‘हां.’’

‘‘शादी क्या गुड्डेगुडि़यों का खेल है, जो आज किसी से कर ली और कल किसी और के साथ.’’

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‘‘यह सवाल आप मुझ से पूछ रहे हैं? आप ने खुद शादी को मजाक बना रखा है.’’ अंजलि अपने मूल स्वभाव पर आ गई. इंद्र सन्न रह गया. जिसे उस ने फूल सी कोमल समझा था, वह कांटों सरीखी निकली.

‘‘क्या बक रही हो?’’ वह चीखा.

‘‘गलत क्या कहा. आप ने पूर्णिमा के साथ जो किया, क्या वह खेल नहीं था?’’ इंद्र को अब अपनी भूल का अहसास हुआ. अनायास उस का ध्यान पूर्णिमा पर चला गया. उसे अफसोस होने लगा कि उस ने पूर्णिमा का विश्वास क्यों तोड़ा. पर अब क्या किया जा सकता था.

‘‘इंद्र, मैं जानती हूं कि मुझ से गलती हुई. मुझे उसे तलाक दे देना चाहिए था.’’

‘‘तुम ने इस सच को मुझ से क्यों छिपाया?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. मैं ने जब प्रियांशु से शादी की, तब मेरे मातापिता दोनों की रजामंदी थी. वे दोनों इस शादी के गवाह भी थे. मगर बाद में हालात कुछ ऐसे बने कि मैं ने प्रियांशु का घर हमेशा के लिए छोड़ दिया.

‘‘3 साल तक उस ने मेरी कोई खबर नहीं ली. न ही मैं ने उस के बारे में जानने का प्रयास किया. यह सोच कर कि मामला खत्म हो चुका है. नौकरी के दौरान वह शहर में अकेला रहता था. बाद में पता चला कि उस ने नौकरी छोड़ दी. मैं ने सोचा या तो वह कहीं और नौकरी कर रहा होगा या अपने शहर उन्नाव चला गया होगा.’’

‘‘तुम्हें पूरा विश्वास है कि वह उन्नाव का ही रहने वाला था?’’ इंद्र के इस सवाल पर वह किंचित परेशान दिखी.

‘‘उस ने बताया था तो मैं ने मान लिया.’’ अंजलि से बात करने पर इंद्र को लगा कि या तो अंजलि पूरी तरह बेकसूर है या फिर वह खुद साजिश का शिकार हो चुका है.

‘‘क्या तुम उस के साथ जाना पसंद करोगी?’’ इंद्र के इस सवाल पर वह विचलित हो गई.

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‘‘आप कैसे सोच सकते हैं कि मैं उस के साथ रहना पसंद करूंगी? मैं आप के बच्चे की मां बन चुकी हूं.’’

‘‘कानूनन हमारा विवाह अवैध है. तुम भले ही न फंसो, लेकिन तुम्हारे उस पति की शिकायत पर मुझे जेल हो सकती है.’’ इस पर अंजलि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं जताई.

अगले दिन उस युवक का फोन आया तो इंद्र ने बाद में बात करने को कहा. इस बीच उस ने वकील के माध्यम से इस विवाह की हकीकत को जानने का प्रयास किया. वकील ने बताया कि उन दोनों ने अदालत में शादी की है. यह जान कर इंद्र और भी परेशान हो उठा.

अगले दिन उस युवक का दोबारा फोन आया, ‘‘आप ने क्या सोचा है?’’

‘‘तुम अब तक कहां थे?’’ इंद्र गुस्से में बोला.

‘‘जहां भी था, इस का मतलब यह तो नहीं है कि आप मेरी बीवी को अपनी बना लें.’’ वह बोला.

‘‘तुम चाहते क्या हो?’’ इंद्र मूल मुद्दे पर आया.

‘‘अंजलि मुझे चाहिए.’’ कुछ सोच कर इंद्र बोला, ‘‘वह तुम्हारे साथ जाना नहीं चाहती.’’

यह सुन कर वह हंसने लगा.

‘‘इस का मतलब यह तो नहीं कि आप उसे अपने घर में रख लें.’’ उस का कहना ठीक था.

‘‘मैं चाहता हूं कि एक बार तुम उस से मिल लो. अगर वह तुम्हारे साथ जाना चाहेगी तो ले जाना वरना तलाक दे कर अपना रास्ता बदल लो.’’ इंद्र ने कहा.

‘‘ठीक है,’’ इंद्र ने अंजलि को इस वार्तालाप से अवगत कराया.

‘‘मैं उस का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करूंगी. आप ने कैसे सोच लिया कि मैं उस के साथ जाऊंगी.’’ अंजलि की त्यौरियां चढ़ गईं.

‘‘बिना तलाक दिए मैं भी तुम्हें अपने पास रखना नहीं चाहूंगा.’’ इंद्र ने साफ कह दिया.

‘‘आप होश में तो हैं. आप की हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की?’’ इस बार अंजलि के तेवर बिलकुल अलग थे. कल तक जिसे वह छुईमुई समझता था वह नागिन सी फुफकारने लगी थी.

‘‘ऐसा रहा तो मुझे जहर खा कर मरना पडे़गा. इस भंवनजाल से निकलने के लिए बस एक ही रास्ता बचा है मेरे लिए.’’ इंद्र रुआंसा हो गया.

‘‘वह तुम्हें तलाक देगा. क्या इस के लिए तैयार हो?’’ उस के चेहरे पर खुशी के भाव तैर गए.

‘‘बिलकुल,’’ अंजलि के कथन से उसे तसल्ली हुई. इंद्र ने उस युवक को एक गोपनीय जगह बुलाया.

‘‘वह तुम्हारे साथ जाने के लिए तैयार है.’’ कह कर इंद्र ने प्रियांशु के साथ चाल चली.

‘‘क्या?’’ वह आश्चर्य से बोला.

‘‘मैं उस कमीनी के साथ बिलकुल नहीं रहूंगा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इस से पहले भी उस ने एक लड़के से शादी कर के मुझे धोखा दिया था. वह शादी महज 6 महीने चली थी.’’

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‘‘तुम्हें कैसे पता चला?’’ इंद्र ने पूछा.

‘‘ऐसी बातें छिपाए नहीं छिपती. तभी तो मैं ने उस का साथ छोड़ा.’’

‘‘यह सब जानने के बावजूद भी तुम उसे अपनी पत्नी बता रहे हो?’’

‘‘बताना ही पड़ेगा. उस ने काफी पैसे ऐंठे हैं मुझ से. लगभग 5 लाख रुपए. अब अगर सूद समेत मुझे नहीं मिलेगा तो जाहिर सी बात है, मैं आप दोनों को नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘कितने चाहिए?’’

‘‘10 लाख.’’ उस युवक ने कहा.

‘‘मैं इतना नहीं दे सकता. 6 पर तैयार हो जाओ तो मैं तुम्हें दे सकता हूं.’’ वह तैयार हो गया.

इस तरह अंजलि उस युवक से आजाद हो गई. अब यह इंद्र को तय करना था कि अंजलि को किस रूप में ले. क्या ऐसी औरत विश्वास लायक है? वह खुद भी तो बेवफाई के कटघरे में खड़ा था. अनायास उस का ध्यान पूर्णिमा पर चला गया और वह पश्चाताप के गहरे सागर में डूब गया.

जीवनज्योति- भाग 3: क्या पूरा हुआ ज्योति का आई.पी.एस. बनने का सपना

लेखक- मनोज सिन्हा

अचानक ठठा कर हंस पड़ी ज्योति. कुछ ऐसा कि एक क्षण तक कुछ बोल नहीं पाई. किसी तरह खिलखिलाते हुए एकएक शब्द जोड़जोड़ कर बोल पड़ी वह, ‘‘तुम्हारा मतलब प्यार,’’ और इसी के साथ हंसती हुई वह दोहरी होती जा रही थी.

‘‘हंसो ज्योति, इतना हंसो कि अवसाद का अंधेरा छंट जाए, निराशा भरी इस निशा का अंत हो जाए. आशा की एक नई सुबह आए, उम्मीदों की किरणें फूटें, उमंग और उत्साह के पक्षी चहचहाने लगें.’’

हांफती हुई ज्योति ने स्वयं को कुछ नियंत्रित किया और आंखों की नमी को पोंछती हुई कह उठी थी, ‘‘पता नहीं मैं इतना क्यों हंसने लगी?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारा जीवन बहुत प्यारा है. वह तुम्हें हंसाना चाहता है. जिंदा देखना चाहता है क्योंकि जीवन ही हंसी है, खुशी है, आशा है, प्रेम है और मौत निराशा है, खामोशी है.’’

ज्योति ने गंभीरता ओढ़ ली थी. लेकिन जीवन गंभीर नहीं था. उस ने एक के बाद एक कई सवाल कर डाले.

‘‘अच्छा ज्योति, यह तो बता दो कि तुम ने अपने घर वालों के नाम कोई संदेश, कोई चिट्ठी छोड़ी है या नहीं? तुम्हारे इस तरह चले जाने से क्या बीतेगी तुम्हारे मांबाप पर, बहनें क्या सोचेंगी, इस बारे में भी तुम ने कुछ सोचा है? वह बेचारा मुनीम, क्या तुम्हारी मौत और समाज की उठती उंगलियों को एकसाथ झेल पाएगा?’’

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सच के एकएक बड़े पत्थर बारबार जीवन व्यावहारिकता के उस तालाब में फेंक रहा था जिस की ऊपरी परत पर बर्फ का एक बड़ा आवरण पसर गया था. ऐसा भी नहीं था कि बर्फ के नीचे का पानी हिलोरे नहीं ले रहा था. क्षोभ की तरंगें उठ रही थीं ज्योति के अंतस में भी. पर सोच लिया था उस ने कि अब किसी बात की कोई सफाई नहीं देगी वह.

‘‘वाह, ज्योति वाह, जिंदगी भर तुम्हारी खुशी के लिए जीतेमरते तुम्हारे बाप ने अपने दिल का बोझ कम करने के लिए दो कड़वे बोल बोल दिए जो तुम्हें इतने चुभ गए कि अब आत्महत्या कर के यह जताना चाहती हो कि बेटी के बाप को हर वक्त पश्चात्ताप की आग में ही जलते रहना चाहिए. अरे, वह तो एडि़यां घिसघिस कर तुम तीनों बहनों की शादी करने और गृहस्थी बसा देने के बाद ही मरेगा मगर तुम अभी से ही उसे जीतेजी क्यों मारना चाहती हो?

‘‘सोच लो ज्योति, तुम्हारी मौत की खबर पा कर जमाने के ताने सुन कर तो तुम्हारे पिताजी किसी सेठ की ड्योढ़ी पर मुनीमगीरी के लायक भी नहीं रहेंगे. फिर क्या तुम्हारा बाप, मुंशी रामप्यारे सहाय, किसी मंदिर या रेलवे स्टेशन की सीढि़यों पर बैठ कर भीख मांगेगा? क्या तुम्हारी मां, सुमित्रा देवी इस बुढ़ापे में पेट के लिए घरघर जा कर झाड़ूबर्तन, चूल्हेचौके का काम करेंगी? नीतू और पिंकी अपनी तमन्नाओं का गला घोंट कर किसी नाचनेगाने वाली गली के कोठे की जीनत बनेंगी?’’

ऐसे सख्त पत्थरों की वार से दरक गया था ज्योति का मन. बर्फ का आवरण था, कोई लोहे की चादर नहीं. बिलबिला कर बाहर आ गया था भीतर का सारा गुबार, झल्ला कर चीख पड़ी थी ज्योति अपना फैसला सुनाते हुए, ‘‘तो जहन्नुम में जाएं? कोई जिए या मरे मुझे क्या? मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि लड़की होना अभिशाप है और मैं अपनी जीवनलीला समाप्त कर खुद को इस अभिशाप से मुक्त करना चाहती हूं, सुन रहे हो तुम? मैं खुद को मार देना चाहती हूं.’’

और इसी झल्लाहट में पुल के आखिरी किनारे पर अपना कदम बढ़ा गई थी ज्योति.

जीवन भी चुप नहीं था. जताना चाहता था कि सचमुच जिंदगी की आखिरी सांस तक वह उस के साथ है. उस की आवाज अब भी गूंज रही थी, ‘‘ज्योति, जीवन एक जंग है. इस से भागने वाले कायर कहलाते हैं. जिन में विश्वास, उत्साह, साहस और लगन होती है वह मौत को धत्ता बता कर जीवन को गले लगाते हैं. निराशा को नहीं आशा को गले लगाते हैं. वैसे तुम आत्महत्या कर रही हो तो करो, मगर मुझे यकीन है कि अनिश्चितताओं और हताशा के अंधेरे में भी राह दिखाने के लिए एक ज्योति जरूर जगमगाती रहेगी. याद रखना इस रात की भी एक सुबह जरूर होगी, इस निशा का अंत होगा, ज्योति.’’

हर रात की सुबह होती है. उस रात की भी सुबह हुई और सूर्य भी कब सिर पर चढ़ आया. पता नहीं चला. मुंशीजी के घर में व्याप्त खामोशी को किसी ने झंझोड़ा था, सांकल पीटपीट कर खटखट खट्टाक…खट…

आंखों पर चश्मा चढ़ाते मुंशीजी ने थके कदमों से चल कर दरवाजा खोला था. पोस्टमैन लिफाफा थामे बड़बड़ाया, ‘‘रजिस्ट्री डाक है, लीजिए और यहां दस्तखत कर दीजिए.’’

लिफाफे में से कागज निकाल कर पढ़ते ही मुंशी रामप्यारे सहाय की आंखें आश्चर्य से फैलती चली गईं. सहसा विश्वास नहीं हो पा रहा था कि मुंशीजी को, उस आशय पर जो इस पत्र में लिखा था. झुरझुरी ले कर स्वयं को सामान्य किया तो आंखें बरस पड़ीं. रुंधे गले से भावातिरेक में उन्होंने पुकारा, ‘‘अजी सुनती हो, सुमित्रा… नीतू, पिंकी…जानता था मैं कि ज्योति एक न एक दिन जरूर कुछ न कुछ ऐसा करेगी. अरे, सुनती हो…सुमित्रा…’’

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बाबूजी का इस तरह सुबहसुबह चिल्लाना सब को एक घबराहट दे गया था. बदहवासी के कुछ ऐसे ही आलम में सभी दौड़तेकूदते बाबूजी के पास आ गए थे. सुमित्रा, नीतू, पिंकी सब की आंखों में एक सवालिया निशान और मन में बेचैनी कि आखिर हुआ क्या?

बाबूजी, बच्चों की भांति बिलखते हुए बोले, ‘‘कितना गलत कहा था मैं ने सुमित्रा, काश, इतनी कड़वी बातें उसे कल न कहता तो इतनी आत्मग्लानि, इतना पछतावा तो मुझे न होता, ज्योति… ज्योति…कहां हो ज्योति?’’

‘‘जी, मैं यहां हूं, बाबूजी…’’ कमरे के अंदर, दरवाजे की ओट से लगी, ज्योति सामने आ कर खड़ी हो गई थी. बाबूजी के बचेखुचे शब्द ज्योति के करीब आते ही तरलता में परिवर्तित हो कर मुंह के अंदर ही उमड़ने लगे थे. क्या कहें, कैसे कहें, बाबूजी की इस भावविह्वलता को देख कर ज्योति की आंखें अपनेआप छलक आई थीं.

‘‘मैं ने सब सुन लिया है, बाबूजी. आप मन में ग्लानि क्यों लाते हैं. आप की जगह कोई भी होता तो वही कहता जो आप ने कहा था. दरअसल, गलती हमें समझने में हुई, बाबूजी.’’

खुशी से चहक उठे थे मुंशीजी, ‘‘अरे, गोली मार अलतीगलती को. सुमित्रा…3-3 बेटियों का बाप, यह मुनीम रामप्यारे सहाय ग्लानि क्यों करेगा? सीना ठोक कर चलेगा जमाने के सामने…सीना ठोक कर.’’

पत्र दिखाते हुए ज्योति के ठीक सामने तन कर खड़े हो गए थे बाबूजी, ‘‘ये देख, तेरा नियुक्तिपत्र. पढ़ न? पुलिस की सब से बड़ी आफीसर की नौकरी मिल गई है तुझे, ज्योति सहाय, आई.पी.एस. जयहिंद, मैडम.’’

जमीन पर पांव धमका कर एक जोरदार सैल्यूट दिया था मुंशीजी ने अपनी ज्योति बिटिया को.

पुलक उठी थी सुमित्रा, नीतू और पिंकी भी. सचमुच कंगले की ड्योढ़ी पर आसमान भी झुक गया था आज. और इस आसमान को झुका लाई थी एक बेटी, ज्योति.

कुछ खुशियां ऐसी भी होती हैं जिन्हें सब के साथ बांटा तो जा सकता है, मगर उन्हें महसूस करने, आत्मसात करने के लिए किसी एकांत की आवश्यकता होती है. एक ऐसा एकांत जहां आंखें मूंद कर गुजरे वक्त के एकएक क्षण का हिसाबकिताब तो होता ही है, आने वाले समय के गर्भ में छिपे कई पहलुओं को सजायासंवारा भी जाता है.

ज्योति भाग कर अपने कमरे में चली गई. कभी हंसतेहंसते रोई, तो कभी रोतेरोते हंसती रही. मनोभावों का प्रवाह कम हुआ तो वह आईने के पास आ खड़ी हुई जहां अब ज्योति नहीं, बल्कि आई.पी.एस. ज्योति सहाय का अक्स उभर आया था. भरेपूरे गोरे बदन पर कसी खाकी वरदी, कंधे पर चमचमाता अशोक स्तंभ, सिर पर आई.पी.एस. बैज लगा हैट, चौड़े लाल बेल्ट में लटका रिवाल्वर, लाल बूट और चेहरे पर शालीनता से भरा एक अद्वितीय रौब.

शायद इसी अक्स को देख कर किसी ने बहुत करीब आ कर कहा था उसे, ‘‘बधाई हो, ज्योति.’’

मनप्राण में रचबस गई इस आवाज को अंतस में महसूस किया था ज्योति ने. आंखें बंद कर के वह अपने मन के अंदर झांक आई थी. जहां सचमुच मुसकराता हुआ उस का प्यारा जीवन था और जहां जल रही थी एक जीवनज्योति.

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दोहरे मापदंड- भाग 2 : खुद पर बीती तो क्या सचिन को अपनी गलती का एहसास हुआ

निकिता की बात को राज ने आगे बढ़ाया, ‘‘भोपाल में हमारी बैंक की शाखा में महीने में एक बार काम के बाद सब का एकसाथ डिनर पर जाने का अच्छा चलन था. ऐसे ही एक डिनर के बाद मैं ने निकिता से कहा था, ‘निकिता तुम दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? ऐसे अकेले कहां तक जिंदगी ढोओगी? शादी कर लोगी तो तुम्हारे बेटे को अगर पिता का नहीं, तो किसी पिता जैसे का प्यार तो मिलेगा.’

‘‘इस पर निकिता ने अपनी शून्य में ताकती निगाहों के साथ मुझ से पूछा था, ‘ये सब कहने में जितना आसान होता है, करने में उतना ही मुश्किल. कौन बिताना चाहेगा मुझ विधवा के साथ जिंदगी? कौन अपनाएगा मुझे मेरे बेटे के साथ? क्या तुम ऐसा करोगे राज, अपनाओगे किसी विधवा को एक बच्चे के साथ?’

‘‘निकिता के शब्दों ने मेरे होश उड़ा दिए थे और उस वक्त मैं सिर्फ ‘सोचूंगा, और तुम्हारे सवाल का जवाब ले कर ही तुम्हारे पास आऊंगा,’ कह कर वहां से चला आया था.

‘‘मैं चला तो आया था मगर निकिता के शब्द मेरा पीछा नहीं छोड़ रहे थे. मेरे मन में एक अजब सी उथलपुथल मची हुई थी. मेरे मन की उलझन मां से छिपी न रह सकी. उन के पूछने पर मैं ने निकिता के साथ डिनर के दौरान हुए वार्त्तालाप का पूरा ब्योरा उन्हें दे दिया.

‘‘सब सुनने के बाद मां ने कहा, ‘सीधे रास्तों पर तो बहुत लोग हमराही बन जाते है मगर सच्चा पुरुष वह है जो दुर्गम सफर में हमसफर बन कर निभाए. बेटा, एक विधवा हो कर अगर मैं ने दूसरी विधवा स्त्री के दर्द को न समझा तो धिक्कार है मुझ पर. यह मैं ही जानती हूं कि तुम्हारे पिता की मृत्यु के बाद तुम्हें कैसेकैसे कष्ट उठा कर पाला था. कहने को तो मैं संयुक्त परिवार में रहती थी पर तुम्हारे पिता के दुनिया से जाते ही मुझे जीवन की हर खुशी से बेदखल कर दिया गया था.

‘‘‘घर और घर के लोग मेरे होते हुए भी बेगाने हो चुके थे. तुम्हारी परवरिश भी तुम्हारे चाचाताऊ के बच्चों की तरह न थी. जहां उन के बच्चे अच्छे कौन्वैंट स्कूल में जाते थे वहीं तुम्हें मुफ्त के सरकारी स्कूल में भेज दिया गया. जिन कपड़ों को पहन कर उन के बच्चे उकता जाते, वे तुम्हारे लिए दे दिए जाते.

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‘‘‘राज बेटा, उस माहौल में मेरा तुम्हारा जीना, जीना नहीं था, सिर्फ जीवन का निर्वाह करना था. बेटा, मुझे तुम पर गर्व होगा अगर तुम निकिता और उस के बच्चे को अपना कर, उन की जिंदगी के पतझड़ को खुशगवार बहार में बदल दो.’ मां ने छलकते हुए आंसुओं के बीच आपबीती बयां की थी.

‘‘दूसरे दिन जब मैं ने निकिता को लंचटाइम में अपनी मां के साथ हुई सारी बातचीत बताई और कहा कि मैं उस से शादी करना चाहता हूं, तब निकिता बोली, ‘मैं किसी की दया की मुहताज नहीं हूं, कमाती हूं, जैसे 4 साल काटे हैं वैसे ही बची जिंदगी भी काट लूंगी.’

‘‘‘निकिता पैसा कमाना ही अगर सबकुछ होता तो संसार में परिवार और घर की परिकल्पना ही न होती. जिंदगी में बहुत से पड़ाव आते हैं जब हमसब को एकसाथी की जरूरत होती है.’

‘‘‘और अगर मुझे अपनाने के कुछ सालों बाद तुम्हें अपने निर्णय पर पछतावा होने लगा तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. पहले ही वक्त का क्रूर प्रहार झेल चुकी हूं. इसलिए किसी से भी मन जोड़ने से घबराती हूं, न मैं किसी से बंधन जोडूं, न वक्त के सितम ये बंधन तोड़ें.’

‘‘‘निकिता, डूबने के डर से किनारे पर खड़े रह कर उम्र बिता देने में कहां की बुद्धिमानी है? ऐसे ही खौफ के अंधेरों को दिल में बसा कर जिओगी तो उम्मीदों का उजाला तो तुम से खुदबखुद रूठा रहेगा.’

‘‘ऐसी ही कुछ और मुलाकातों, कुछ और तकरारों व वादविवादों के बाद अंत में निकिता और मैं शादी के बंधन में बंध गए.’’

राज की माताजी ने अब दिग्गज को अपना नातीपोता ही मान लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि निकिता और राज के कोई दूसरी संतान पैदा हो और दिग्गज के प्यार का बंटवारा हो.

उन सब की बातें सुन कर मेरी आंखें छलछला गईं. मैं ने ऐसे महान लोगों के बारे में कहानियों में ही पढ़ा था, आज आमनेसामने बैठ कर देख रही थी.

‘‘क्या बेवकूफ आदमी है,’’ राज के घर से दस कदम दूर आते ही सचिन का पहला वाक्य था.

‘‘कौन?’’

‘‘राज, और कौन.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या कर दिया उस ने. इतने अच्छे से हम दोनों का स्वागत किया, अच्छे से अच्छा बना कर खिलाया, और कैसे होते हैं भले लोग? तुम्हें इस सब में बेवकूफी कहां नजर आ रही है?’’

‘‘जो एक बालबच्चेदार सैकंडहैंड औरत के साथ बंध कर बैठा है, वह बेवकूफ नहीं तो और क्या है? देखने में अच्छाखासा है, बैंक में मैनेजर है, अच्छी से अच्छी कुंआरी लड़की से उस की शादी हो सकती थी.’’

‘‘मगर सचिन…’’

‘‘जैसा राज खुद, वैसी ही उस की वह मदर इंडिया. कह रही थीं कि उन्हें खुद का कोई नातीपोता भी नहीं चाहिए, और दिग्गज ही उन के लिए सबकुछ है. भारत सरकार को उन्हें तो मदर इंडिया के खिताब से नवाजना चाहिए.’’

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सचिन राज और उस की मां की बुरी तरह से खिंचाई कर रहे थे. मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा.

वक्त के साथ मेरी और निकिता की दोस्ती पक्की होती जा रही थी. वैसे, मैं निकिता से ज्यादा वक्त उस की सास के साथ बिताती, क्योंकि निकिता तो अपनी नौकरी के कारण ज्यादातर घर में होती ही नहीं थी.

इधर, सचिन के विचारों में कोई परिवर्तन नहीं था. जब कभी भी मेरे घर में राज का जिक्र आता तो सचिन उस को उस के नाम से न बुला कर सैकंडहैंड बीवी वाला कह कर बुलाते. मैं ने उन्हें कई बार समझाने की कोशिश की कि किसी के लिए भी ऐसे शब्द बोलना अच्छी बात नहीं. मगर मेरा उन्हें समझाना चिकने घड़े पर पानी डालने जैसे था.

दिनचर्या अपने ढर्रे पर चल रही थी. सचिन की हाल ही में पदोन्नति हुई थी. काम में उन की व्यस्तता दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, इसलिए दीवाली पर भी हम धौलपुर न जा पाए. एक दिन सचिन ने औफिस से आते ही बताया कि उन के पापा का फोन आया था और तत्काल ही हम दोनों को धौलपुर बुलाया है. मेरी ननद पद्मजा के पति अस्पताल में भरती थे.

‘‘इस में इतना सोचना क्या? जब घर में कोई बीमार है तो हमें जाना ही चाहिए. वैसे भी हम दीवाली पर भी जा नहीं पाए,’’ बुलावे की खबर सुनते ही मैं ने धौलपुर जाने की तत्परता जताई.

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दोहरे मापदंड- भाग 1 : खुद पर बीती तो क्या सचिन को अपनी गलती का एहसास हुआ

‘‘यहकैसी जगह है? यहां तो किसी से कोई मतलब ही नहीं रखता. तुम तो औफिस चले जाते हो, मेरे लिए वक्त काटना भारी पड़ता है,’’  मैं ने सचिन के औफिस से वापस आते ही हमेशा की तरह शिकायती लहजे में कहा.

‘‘यह मुंबई है श्वेता, यहां आने पर शुरू में सब को ऐसा ही लगता है, लेकिन बाद में सब इस शहर को, और यह शहर यहां आने वालों को अपना लेता है. जल्दी ही तुम भी यहां के रंगढंग में ढल जाओगी.’’

मुझे धौलपुर में छूटे हुए अपने ससुरालमायके की बहुत याद आती. शादी के बाद मैं सिर्फ 2 महीने ही अपनी ससुराल में रही थी लेकिन सब ने इतना प्यारदुलार दिया कि महसूस ही नहीं हुआ कि मैं इस परिवार में नई आई हूं. सचिन का परिवार उस के दादाजी की पुश्तैनी हवेली में रहता था. उस के परिवार में उस के चाचाचाची, मातापिता और एक विवाहित बहन पद्मजा थी.

पद्मजा थी तो सचिन से छोटी मगर उस की शादी हमारी शादी से एक साल पहले ही हो चुकी थी. उस की ससुराल भी धौलपुर में ही थी, इसलिए वह जबतब मायके आतीजाती रहती थी. चाचाचाची की कोई अपनी संतान नहीं थी, सो वे दोनों अपने अंदर संचित स्नेह सचिन और पद्मजा पर ही बरसाया करते थे. ऐसे हालात में जब मैं शादी के बाद ससुराल में आई तो मुझे एक नहीं, 2 जोड़े सासससुर का प्यार मिला.

सब के प्यार के रस से भीगी हुई मैं ससुराल नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर ब्याहता तो मैं सचिन की थी और उन की नौकरी धौलपुर से मीलों दूर मुंबई में थी, इसलिए शादी के कुछ महीनों बाद जब मैं मुंबई आई तो मन में दुख और सुख के भाव साथसाथ उमड़ रहे थे.

एक तरफ अपने छोटे से घरौंदे में आने की खुशी तो दूसरी तरफ ससुरालमायके का आंगन पीछे छूटने का गम. ऊपर से मुंबई की भागमभाग जिंदगी जहां किसी को किसी के दुखसुख से मतलब नहीं.

हमारे अपार्टमैंट के हर फ्लोर पर 4 फ्लैट थे. हमारे फ्लोर का एक फ्लैट खाली पड़ा था. एक में हम रहते थे. बाकी बचे 2 फ्लैट्स में से एक में अधेड़ दंपती रहते थे और दूसरे में एक बैचलर. अधेड़ दंपती उत्तर भारत से आए हुए हर व्यक्ति को भइया लोग कह कर बुलाते थे और सोचते थे कि अगर उन्होंने अपना उठनाबैठना भइया लोगों के साथ बढ़ाया तो मुंबइया महाराष्ट्रियन उन का हुक्कापानी बंद कर देंगे.

जब तीसरे और महीनों से खाली पड़े हुए फ्लैट में उत्तर भारतीय निकिता और राज आए तो मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. मैं दूसरे ही दिन उन के यहां चाय का थरमस और ताजी बनी मठरियों के साथ पहुंच गई. निकिता भी मुझ से ऐसे मिली जैसे कि अपनी किसी पुरानी सहेली से मिल रही हो.

2-3 दिनों तक मैं उन के घर ऐसे ही चाय ले कर जाती रही और नए घर में सामान लगाने में उन की मदद करती रही. निकिता और राज एक प्राइवेट बैंक में काम करते थे. उन का एक 6-7 साल का बेटा दिग्गज भी था. राज की माताजी भी उन के साथ ही रहती थीं.

जब घर व्यवस्थित होने के बाद उन की दिनचर्या ढर्रे पर आ गई तो निकिता ने मुझे और सचिन को अपने घर खाने पर आने का न्योता दिया, ‘‘श्वेता, तुम ने तो हमारे लिए बहुत किया वरना यहां मुंबई में कौन किसे पूछता है. आने वाले इतवार को तुम और सचिन हमारे यहां डिनर पर आओ. इसी बहाने सचिन और राज भी एकदूसरे से मिल लेंगे.’’

मैं ने निकिता का निमंत्रण बड़ी तत्परता के साथ स्वीकार कर लिया, क्योंकि मैं जब भी उस के घर जाती तो निकिता की सास उस की पाककला की तारीफ करते न थकती थीं.

‘‘तुम इतना सारा खाना कैसे बनाओगी, मैं भी अपने घर से एकदो चीजें बना लाऊंगी,’’ मैं

ने निकिता का मन रखने के लिए ऊपरी तौर पर पूछ लिया.

‘‘कुछ मत बना कर लाना. बस, आ जाना टाइम से,’’ निकिता ने सामने पड़े हुए कपड़ों के गट्ठर में से एक तौलिया तह करते हुए कहा.

इतवार की शाम दोनों परिवार निर्धारित समय पर निकिता के घर में डाइनिंग टेबल के इर्दगिर्द बैठे थे. जायकेदार खाने के दौरान हर तरह की गपशप चल रही थी. राज की अत्यंत सौम्य स्वभाव की माताजी बड़े ही दुलार से सब की प्लेटों पर नजर रखे हुए थीं.

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गपशप भी अपनी चरम सीमा पर थी. पहले राज ने सचिन से उस के कामकाज के बारे में जानकारी ली, फिर उस ने अपने और निकिता के काम के बारे में उसे बताया. घूमतेफिरते बातों ही बातों में वे सवाल भी पूछ लिए गए जो कि जब नए जोड़े पहली बार अनौपचारिक माहौल में मिलते हैं तो अकसर पूछ लेते हैं.

‘‘वैसे तुम्हारी शादी हुए कितना वक्त हो गया?’’ उस हलकेफुलके माहौल में सचिन ने राज और निकिता से पूछा.

‘‘सिर्फ 2 साल,’’ राज ने संक्षिप्त जवाब दे कर फिर से राजनीतिक मुद्दों की तरफ बात मोड़नी चाही, मगर उस का जवाब सचिन की जिज्ञासा बढ़ा चुका था.

‘‘क्या…सिर्फ 2 साल?’’ ऐसा कैसे हो सकता है, तुम्हारा बेटा दिग्गज ही करीब 6-7 साल का होगा, सचिन ने आश्चर्र्य से पूछा.

‘‘हां, हमारा बेटा अगले महीने पूरे 7 साल का हो जाएगा. बहुत ही प्याराप्यारा बेटा है मेरा,’’ राज के स्वर में गर्व और खुशी दोनों का भाव एकसाथ था.

‘‘वह तो ठीक है, सभी बच्चे अपने मांबाप को प्यारे ही लगते हैं. मगर जब तुम्हारी शादी को ही 2 साल हुए हैं तो यह 7 साल का बेटा तुम्हारा कैसे हो सकता है. अभी हम भारतीयों में शादी के पहले बच्चे पैदा करने का रिवाज तो नहीं है.’’

‘‘तुम ने बिलकुल सही कहा सचिन. हमारे समाज में विवाहपूर्व बच्चों की स्वीकृति अभी बिलकुल भी नहीं है. हां, कुछ हद तक लिवइन का ट्रैंड तो अब आ चुका है. असल में दिग्गज निकिता की पहली शादी की संतान है,’’ राज ने सलाद की प्लेट से एक गाजर का टुकड़ा उठा कर उसे कुतरते हुए कहा.

सचिन राज की तरफ ऐसे देख रहे थे जैसे कि उन का सामना किसी दूसरी दुनिया के प्राणी से हो गया हो. उन की जिज्ञासा अब हैरानी में बदल चुकी थी. राज की अनुभवी माताजी ने सचिन की हालत को भांपते हुए बात आगे बढ़ाई, ‘‘बेटा सचिन, राज जो कह रहा है वह सच है. दिग्गज निकिता की पहली शादी की संतान है. मगर अब वह मेरा पोता है और राज ही उस का पिता है.’’

‘‘जब राज ने भोपाल में बैंक में काम शुरू किया तो मैं वहां पहले से ही काम करती थी. एक बार हम सब साथी काम के बाद डिनर पर गए. वहीं बातों ही बातों में मेरी एक सहेली से राज को पता चला कि मेरे पति की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी है. साथ ही, बताया कि मेरे बेटे का जन्म मेरे पति की मृत्यु के करीब 2 महीने बाद में हुआ था. बेचारे दिग्गज को तो उस के बायोलौजिकल पिता की छाया तक देखने को नहीं मिली,’’ बतातेबताते निकिता की आवाज कंपकंपाने लगी थी.

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दोहरे मापदंड- भाग 3 : खुद पर बीती तो क्या सचिन को अपनी गलती का एहसास हुआ

‘‘ठीक है, तो फिर जल्दी से दिल्ली की फ्लाइट बुक करा लेता हूं, फिर दिल्ली से टैक्सी ले कर धौलपुर चले चलेंगे.’’

फ्लाइट बुक होतेहोते और धौलपुर तक पहुंचने में 3 दिनों का वक्त लग गया. पहुंचने पर पता चला कि पद्मजा के पति की 2 घंटे पहले ब्रेन हेमरेज होने से मृत्यु हो चुकी है. सारे घर में मातम छाया हुआ था. पद्मजा का रोरो कर बुरा हाल था. उस की मुसकराहट से तर रहने वाले गुलाबी होंठ सूख कर चटख रहे थे. उस की इस हालत को देख कर मुझे विश्वास ही न होता था कि यह मेरी वही प्यारी सी ननद है जो सिर्फ 8 महीने पहले मेरी बरात में नाचती, गाती, हंसती, मुसकराती, गहनों से लदी हुई आई थी.

सचिन चाह कर भी धौलपुर में ज्यादा समय न रुक पाए. तेरहवीं के तीसरे दिन ही उन्हें मुंबई लौटना पड़ा. तेरहवीं के कुछ दिनों बाद ससुरजी पद्मजा को उस की ससुराल से ले आए थे. मैं ने उस के साथ रहना ही ठीक समझा, सोचा कि जब महीनेदोमहीने में परिवार पर आए हुए दुख के बादल थोड़े छंट जाएंगे तब मैं मुंबई लौट जाऊंगी. अभी पद्मजा को मेरे साथ की बहुत जरूरत थी. अगर वह कभी गलती से मुसकराती थी तो मेरे साथ, खाना खाती तो मेरे साथ और मेरे आग्रह करने पर.

इन हालात को देख कर परिवार के सभी बड़ों ने फैसला किया कि पद्मजा को भी मेरे साथ मुंबई भेज दिया जाए. इसी में उस की भलाई भी थी. मुंबई वापस आ कर मैं ने जैसेतैसे उसे एमबीए करने के लिए राजी कर लिया. दुखों के भार को दूर रखने का सब से सही तरीका होता है खुद को इतना व्यस्त करो कि दुखों को क्या, खुद को ही भूल जाओ.

पद्मजा को पढ़नेलिखने का शौक तो था ही, अब यह शौक उस का संबल बन गया. वह दिनरात असाइनमैंट्स और परीक्षाओं की तैयारी में व्यस्त रहती. अपनी जिंदगी के नकारात्मक पहलू को सोचने का ज्यादा वक्त ही न मिल पाता उसे. इस संबल की बदौलत उस की जिंदगी की उतरी हुई गाड़ी फिर से धीरेधीरे पटरी पर आने लगी थी.

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एमबीए पूरा करते ही उसे एक कंपनी में नौकरी भी मिल गई और वह अपने इस नए माहौल में पूरी तरह से रम चुकी थी. अब उस के चेहरे पर पुरानी रंगत कुछ हद तक वापस आने लगी थी.

मगर सचिन के दिल को चैन नहीं था. वे कहा करते, ‘‘पद्मजा मेरी बहन है, मुझे अच्छा लगता अगर यह अपने पति के साथ हमारे पास कभीकभी छुट्टियां बिताने आतीजाती और अपने पति के घर में आबाद रहती. शादी के बाद बहनबेटियां इसी तरह आतीजाती अच्छी लगती हैं, दयापात्र बन कर बापभाई के घर में उम्र बिताती हुई नहीं. पद्मजा का इन परिस्थितियों में हमारे पास उम्र बिताना तो वह घाव है जिस पर वक्त मरहम नहीं लगाता बल्कि उस को नासूर बनाता है.’’

यह सच भी था, हम चाहे पद्मजा का कितना भी खयाल रख लें, कितना भी प्यार और सुखसुविधाएं दे लें, हमारे घर में उस का उम्र बिताना उस की जिंदगी की अपूर्णता थी.

इधर कुछ दिनों से पद्मजा के हावभाव बदल रहे थे. वह औफिस से भी देर से आने लगी थी. पूछने पर कहती कि एक सहयोगी काम छोड़ कर चला गया है, सो, वह उस के हिस्से का काम करने में भी बौस की मदद कर रही है.

मगर उस के हावभाव कुछ और ही कहानी कहते से लगते. अपनी कमाई का एक

बड़ा हिस्सा वह अपने रखरखाव, कपड़ों और सौंदर्य प्रसाधनों पर खर्च करती. उस का मोबाइल उस के हाथ से न छूटता था. खातेपीते, टैलीविजन देखते हुए भी वह चैट करती रहती.

पहले तो मैं ने इसे मुंबई की हवा का असर समझा, मगर मेरा दिमाग ठनका जब मैं ने देखा कि वह मोबाइल को टौयलेट में भी अपने साथ ले जाती थी. मैं ने सचिन से कई बार इस बारे में बात करनी चाही मगर उन्होंने मेरी बात को हर बार अनसुना कर दिया. आखिर मैं ने ही इस पहेली को सुलझाने का निश्चय किया और सही मौके का इंतजार करने लगी. और वह मौका मुझे जल्दी ही मिल गया.

रविवार का दिन था और पद्मजा सहकर्मी सोनाली के साथ सिनेमा देखने जाने वाली थी. आदतानुसार वह सुबह से उठ कर चैट कर रही थी. जब अचानक उसे खयाल आया कि जाने से पहले उसे अभी नहाना भी है, तो वह जल्दीजल्दी कपड़े समेट कर बाथरूम में भागी. इस हड़बड़ी में कपड़ों के बीच में रखा उस का मोबाइल बाथरूम के दरवाजे पर गिर गया और उसे पता न चला.

उस के बाथरूम का दरवाजा बंद करते ही मैं ने मोबाइल उठा लिया. चूंकि वह 2 सैकंड पहले ही उस पर चैट कर रही थी, इसलिए वह अभी अनलौक ही था. मैं ने फटाफट उस के मैसेज कुरेदने शुरू कर दिए. उस की कौल हिस्ट्री में सब से ज्यादा कौल किसी देवांश की थीं.

जब मैं ने देवांश के संदेशों को पढ़ा तो सारी स्थिति समझने में मुझे देर न लगी. वह सिनेमा देखने भी उसी के साथ जा रही थी किसी सोनाली के साथ नहीं. खैर, मैं ने अपनी भावनाओं को काबू में रख के पद्मजा का मोबाइल उस के हैंडबैग में ले जा कर रख दिया और किचन में जा कर काम करने लगी. वह गुनगुनाती हुई बाथरूम से निकली और मुझ से गले मिल कर खुशीखुशी सिनेमा देखने चली गई.

मैं ने धीरज रखा और सोचा कि जब वह वापस आएगी तब इत्मीनान से बैठ कर बात करूंगी. उस रात मैं घर का काम खत्म कर के पद्मजा के कमरे में आ कर उस के पास लेट गई और यहांवहां की बातें करने लगी.

‘‘मूवी कैसी थी पद्मजा?’’

‘‘ठीक ही थी, वैसी तो नहीं जैसी कि सोनाली ने बताई थी, जब वह पिछले हफ्ते देख कर आई थी.’’

‘‘सोनाली, क्या मतलब? वह यह मूवी पहले देख चुकी थी और आज फिर से तुम्हारे साथ गई थी.’’

‘‘भाभी वो मैं…’’

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‘‘वो मैं क्या, पद्मजा, मुझे नहीं लगता कि तुम सोनाली के साथ मूवी देखने गई थीं.’’

‘‘मगर भाभी मैं…’’

‘‘अगरमगर क्या? मैं जानती हूं कि तुम किसी देवांश के साथ गई थीं.’’

‘‘पर आप ऐसा कैसे कह सकती हैं?’’

‘‘क्योंकि तुम जब नहाने गईं तो तुम्हारा मोबाइल बाथरूम के बाहर गिर गया था और मैं ने तुम्हारे कुछ मैसेजेस देख लिए थे. मुझे परेशानी इस बात की नहीं कि तुम किसी पुरुष मित्र के साथ गई थीं, दुख इस बात का है कि तुम ने मुझ से झूठ बोला और मुझे बेगाना समझा. शायद मैं ने ही तुम्हारे रखरखाव में कुछ कमी की होगी जो मैं तुम्हारा विश्वास न जीत सकी.’’

‘‘नहीं भाभी, ऐसी बात नहीं है. मेरी अच्छी भाभी, ऐसा तो भूल कर भी न सोचिए. आप ही हैं जो बुरे वक्त में मेरा सब से बड़ा सहारा, सब से अच्छी दोस्त बनीं. बताना तो मैं बहुत समय से चाहती थी मगर समझ नहीं आ रहा था कि कैसे बात शुरू करूं. डर था कि न जाने भैया की क्या प्रतिक्रिया हो.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं. पर अब तो जल्दी से मुझे सब बताओ.’’

‘‘देवांश मेरे साथ मेरे औफिस में काम करता है, भाभी वह बहुत अच्छा लड़का है. वह यह जानता है कि मैं एक विधवा हूं फिर भी वह मुझे अपनाने को तैयार है.’’

‘‘और तुम्हारी क्या मरजी है?’’

‘‘मेरा दिल भी उसे चाहता है, अभी मेरी उम्र भी क्या है. मैं अपने दिवंगत पति की यादों की काली चादर ओढ़ कर, जिंदगी के अंधेरों में उम्रभर नहीं भटक सकती.’’

‘‘हम ही कौन सा तुम्हें एकाकी जीवन बिताते हुए देख कर सुखी हैं. तुम और देवांश वयस्क हो, अपना भलाबुरा समझते हो. और हां, अब ज्यादा देर न लगाओ, अगले ही इतवार को देवांश को घर बुला लो, हम से मिलने के लिए.’’ मैं ने पद्मजा के गालों पर बिखरे हुए बालों को हटाते हुए कहा.

‘‘ठीक है, मेरी अच्छी भाभी,’’ कह कर पद्मजा भावविभोर हो कर छोटे बच्चे की तरह मुझ से लिपट गई.

अगले रविवार की शाम मेरे घर में रूपहला उजाला सा बिखरा हुआ था और पद्मजा इस उजाले में सिर से पांव तक नहाई सी प्रतीत हो रही थी. रोशनखयाल देवांश ने कुछ ही घंटों में सचिन पर अपना प्रभुत्व कायम कर लिया.

‘‘औरत केवल एक शरीर नहीं है, पूरी सृष्टि है. जब विधुर पुरुष का विवाह अविवाहित स्त्री से हो सकता है तो फिर अविवाहित पुरुष एक विधवा को अपनाने में क्यों इतना सोचते हैं? रही बात समाज और रीतिरिवाजों की, तो ये सब इंसान के लिए बने हैं, इंसान  इन के लिए नहीं,’’ कहतेकहते देवांश थोड़ा रुका, उस की आंखें पद्मजा पर एक सरसरी दृष्टि डालती हुई सचिन के चेहरे पर जम गईं और उस ने घोषणात्मक स्वर में ऐलान किया, ‘‘मैं पद्मजा को अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. अगर आप न भी करेंगे तो भी मैं ऐसा करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि पद्मजा की खुशी इसी में है और मेरे लिए संसार में उस की खुशी से बढ़ कर कुछ नहीं हैं.’’

कुछ देर के लिए कमरे में गहरी चुप्पी छाई रही, सभी एकदूसरे के चेहरे ताक रहे थे. मन ही मन विचारों की कुछ नापतौल सी चल रही थी.

अंत में सचिन ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘अरे भाई, जब तुम दोनों ने सबकुछ पहले से ही फाइनल कर लिया है तो मैं क्या, कोई भी तुम्हारा निर्णय नहीं बदल सकता,’’ कहते हुए सचिन अपनी जगह से उठे और उन्होंने पद्मजा का हाथ ले देवांश के हाथों में पकड़ा दिया.

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उस रात देवांश खुशीखुशी विदा हो गया था अपनी शादी की तैयारियां जो शुरू करनी थी उसे. पद्मजा के कमरे से खुशी के गीतों की गुनगुनाहटें आ रही थीं. सब से ज्यादा फूले नहीं समा रहे थे सचिन. वे बिना रुके देवांश की तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे, ‘‘क्या कमाल का लड़का है, कैसे उत्तम विचार हैं उस के. अपने मांबाप का इकलौता बेटा है. बड़े ही ऊंचे संस्कार दिए हैं उस के मांबाप ने उसे. युगपुरुष, महापुरुष वाली बात है उस में.’’

और मैं हैरान, जड़वत सी, दोगली मानसिकता के शिकार अपने पति के दोहरे मापदंडों की गवाह बनी खड़ी थी.

छैल-छबीली

पार्टी डांस ड्रिंक: भाग 3- क्या बेटे का शादीशुदा घर टूटने से बचा पाई सोम की मां

लेकिन वाणी बोली, ‘‘देखिए सोम, आप का जीने का ढंग मुझे पसंद नहीं और मेरी स्टाइल आप को पसंद नहीं. इसलिए अच्छा यही है कि हम दोनों अलग हो जाएं.’’ मन ही मन खुश होता हुआ सोम बोला, ‘‘वाणी तुम से सौरी बोल तो दिया, अब मान भी जाओ.’’ ‘‘सोम, आज आप ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं. यदि कुहू गोद में न होती तो मैं बहुत पहले आप का घर छोड़ चुकी होती. कुहू की ममता के कारण ही इस समय तक मैं आप का अत्याचार झेलती रही.’’

‘‘बहुत दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा, मुझ से जबान लड़ाती हो.’’

‘‘सोम, आज आखिरी बार मैं आप से कह रही हूं कि तमीज से बात करो. नहीं तो मैं क्या करूंगी, इस का आप को अनुमान भी नहीं है. मुझे कमजोर मत समझिएगा. इतने दिन मैं चुप और शांत इसलिए रही कि शायद आप सुधर जाओगे, लेकिन आप ने तो न सुधरने की कसम खा ली है.’’ वाणी का कड़ा रुख देख सोम चुपचाप अपने कमरे में चला गया. परंतु उस की आंखें क्रोध से लाल हो रही थीं. दोनों में बोलचाल बंद थी. घर में शांति छा गई थी. वाणी को सीक्रेट सर्विस वालों की रिपोर्ट का इंतजार था. वह जब उसे मिली तो उस का शक सही निकला था. उन लोगों ने सोम और नैना के रिश्तों की बात सच बताई. साथ ही नैना के अन्य संबंधों की सीडी उस को दे कर गए. अब वह आश्वस्त थी कि अपने और सोम के रिश्ते को या तो बचा लेगी या तोड़ लेगी. तभी मम्मीजी का फोन आ गया कि पापा को हार्टअटैक पड़ा है, इसलिए तुम दोनों तुरंत आओ. सोम और वह दोनों तुरंत वहां पहुंच गए थे. पापाजी एक हफ्ते नर्सिंग होम में रहने के बाद डिस्चार्ज हो कर घर आ गए थे. सोम के पिता महेंद्रजी बहुत जल्दी स्वस्थ हो गए. नैना के नशे में डूबा सोम वाणी को वहीं छोड़ मुंबई चला आया. वाणी के उतरे हुए चेहरे और गुमसुम रहने से सरिताजी का माथा ठनका. उन्होंने पूछा, ‘‘वाणी, तुम्हारे और सोम के बीच सब ठीक तो है न?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘सोम तो तुम्हें फोन भी नहीं करता?’’

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‘‘वे काम में बहुत बिजी रहते हैं, इसलिए नहीं कर पाए होंगे.’’

‘‘तुम मुझ से कुछ छिपा रही हो. सचसच बताओ. मैं अपने बेटे के स्वभाव को अच्छी तरह जानती हूं.’’

अब वाणी अपने को रोक न पाई तो एकदम से उबल पड़ी, ‘‘मम्मीजी, मैं सोम से तलाक लेना चाहती हूं. मैं उन के साथ अब नहीं निभा सकती.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘प्लीज, आप पापाजी से कुछ मत कहिएगा. अभी उन की तबीयत पूरी तरह ठीक नहीं है.’’ वाणी ने सीक्रेट सर्विस वालों द्वारा दी हुई सीडी उन के हाथ में रख दी और फूटफूट कर रो पड़ी. सरिताजी ने वाणी के आंसू पोछे और बोलीं, ‘‘तुम चुप हो जाओ. मैं तुम्हारे साथ हूं. तुम्हारी समस्या का समाधान मैं करूंगी.’’ सरिताजी ने आहत मन से उस सीडी को देखा. वे वाणी से बोलीं, ‘‘बेटी, जैसे शरीर में कोई रोग या बीमारी हो जाने पर उस का इलाज करने के लिए कड़वी दवा पीनी पड़ती है, वैसे ही यदि सोम के कदम बहक गए हैं, तो हम सब को मिल कर उसे सही रास्ते पर लाना होगा. तुम्हें मेरा साथ देना होगा. मेरा विश्वास है कि सोम बहुत जल्द तुम्हारे पास होगा. बस थोड़ा धीरज रखो.’’ उन्होंने वाणी को इंगलिश स्पीकिंग और व्यक्तित्व विकास की क्लासेज जौइन करवा दीं. सुंदर तो वह थी ही अब उस का व्यक्तित्व भी निखर उठा था, क्योंकि उस का आत्मविश्वास बढ़ चुका था. सरिताजी वाणी के बदले हुए व्यक्तित्व से बहुत खुश थीं. कुछ दिनों बाद वे बेटे के घर अकेले पहुंच गईं. घर पर नैना की यहांवहां बिखरी चीजें देख वे सोम से बोलीं, ‘‘बेटा, यहां तुम्हारे साथ कौन रहता है?’’

सकपकाया सा सोम बोला, ‘‘कोई नहीं मौम? मेरी एक दोस्त किसी मीटिंग में यहां आई है. उसी का सामान यहांवहां बिखरा हुआ है. 3-4 दिनों से वह यहां है, आज उसे जाना है.’’ ‘‘साफ शब्दों में क्यों नहीं कहते कि मेरी गर्लफ्रैंड मेरे साथ रह रही है. वैसे बेटा यह तुम ने बड़ा अच्छा किया कि अपने लिए एक पार्टनर ढूंढ़ लिया. लेकिन तुम्हें पार्टनर बड़ी जल्दी से मिल गई. अभी तो वाणी को गए 2 महीने भी नहीं हुए. चलो मेरी चिंता समाप्त हुई. मैं सोचती थी कि मेरा इतना मौडर्न बेटा कैसे उस देहाती लड़की के साथ गुजर कर रहा होगा?’’

‘‘नहीं मां, ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन वाणी के साथ रहना तो वास्तव में बहुत मुश्किल है. पक्की घरेलू और देहातिन लड़की है. मैं तो उस के साथ खून का घूंट पी कर रहता हूं.’’

‘‘तो ठीक है, तुम उस से तलाक ले लो.’’

‘‘हां, मैं मन ही मन यह सोचता तो था, लेकिन हिम्मत नहीं पड़ती थी. अब आप मेरे फेवर में हैं तो मैं कल ही वकील से मिल कर बात करूंगा. लेकिन मौम, आप पापा के सामने अपने कदम पीछे तो नहीं कर लेंगी? मुझे पापा से बहुत डर लगता है.’’ ‘‘हां, तुम्हारे पापा को समझाना तो थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि वाणी ने उन पर न जाने कौन सा जादू कर रखा है. वे तो रातदिन उस की तारीफ करते रहते हैं. चलो देखती हूं, लेकिन अपनी दोस्त से कब मिलवाओगे?’’

‘‘शुभ काम में देरी कैसी डियर मौम. मैं ने तो उसे न आने के लिए मैसेज कर दिया था पर अब उसे आने के लिए बोल देता हूं.’’ ‘‘यह सब तो ठीक है, लेकिन वाणी तो आदर्श हिंदू लड़की है. वह तो मरते दम तक तुम्हें तलाक नहीं देगी और साथ में तुम्हारी बेटी कुहू का जीवन संकट में पड़ जाएगा.’’

‘‘मौम, आज नैना बिजी है, इसलिए वह नहीं आएगी.’’

‘‘रात में वह कहां बिजी रहती है?’’

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‘‘मुझे क्या मालूम. किसी क्लाइंट के साथ उस की मीटिंग होगी. हम लोग पर्सनल बातें आपस में डिस्कस नहीं करते.’’

‘‘फिर तो वह अमीर लड़की होगी. चलो अच्छा है तुम्हारी नौकरी चली गई तो वह तुम्हारा खर्च तो उठा लेगी.’’

‘‘मौम, आप तो न जाने क्या कहना चाह रही हैं.’’

‘‘देखो सोम, जब किसी ऐसे काम को करने जा रहे हो, जिस का फैसला कोई दूसरा करने वाला हो, तो उस के नकारात्मक पहलू पर भी विचार करना चाहिए. जरा वह ब्रेसलेट ले आओ.’’ सोम ने ब्रेसलेट ला कर सरिताजी की हथेली पर रखा. उन्होंने ब्रेसलेट को उलटपलट कर और यहांवहां जरा सा घिस कर देखा. फिर बोलीं, ‘‘इस ब्रेसलेट पर तो सोने की पौलिश भी नहीं है. इस की कीमत तो क्व100, क्वडेढ़ 100 होगी. चलो इस को ज्वैलर के यहां परखवा लेते हैं.’’

‘‘छोड़ो मौम, नैना ने शायद मुझ पर इंप्रैशन जमाने के लिए यह नकली ब्रेसलेट दिया होगा.’’

‘‘मेरे लाल, असलीनकली को पहचानना सीखो. कब तक नकली तड़कभड़क के पीछे भागते रहोगे?’’

‘‘आप ने तो जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया. दोस्तों के बीच तो यह सब चलता ही रहता है.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं. अब छोड़ो भी ये सब बातें. जरा यह सीडी वीडियो प्लेयर में लगा दो. आते समय तेरे पापा ने यह कह कर दी थी कि इस सीडी को अपने लायक बेटे के साथ ही बैठ कर देखना. जरा देखूं तो इस सीडी में ऐसा क्या है.’’

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सोम ने सीडी चालू की. टीवी में सब से पहले नैना का फोटो उस के पूर्व पति के साथ था, जिस में वह साधारण परिवार की वेशभूषा में थी. उस का पति कोई क्लर्क था. उसे छोड़ कर नैना ने किसी दूसरे व्यक्ति से ब्याह रचाया था. उस का भी फोटो था. उसे छोड़ने के बाद किसी अधेड़ रईस के साथ रहने लगी थी. वह उस के पैसे पर ऐश करती रही. जब उस की आर्थिक स्थिति खराब हो गई, उस को पैरालाइसिस हो गया, तो उस को छोड़ कर अब इधरउधर रईस, स्मार्ट लड़कों के संग रोमांस का नाटक कर के उन्हें लूट रही थी. नाइटक्लब के भी कई वीडियो थे, जिस में वह अलगअलग लड़कों के साथ अश्लील नृत्य कर रही थी. सोम ने मां के हाथ से रिमोट ले कर टीवी बंद कर दिया. वह गुमसुम हो गया था. उस की आंखों से आंसू बह निकले थे. ‘‘मौम, मैं भटक गया था. असली हीरे को छोड़ मैं नकली की चमकदमक में भटक गया था. मैं वाणी का गुनहगार हूं. मुझे उस से माफी मांगनी है, कहीं देर न हो जाए.’’ वह सोच रही थी कि मां के इस कदम ने उस की टूटती शादी को बचा लिया था. तभी सोम के दोस्त रुचिर और भुवन के सम्मिलत स्वर से उस की तंद्रा टूटी, ‘‘थैंक्स भाभी. आप के कड़े रुख के कारण सोम ने हम सब के सामने शर्त रख दी थी कि या तो दोस्ती या ड्रिंक. ड्रिंक पर दोस्ती भारी पड़ी.’’

वाणी प्यार भरी निगाहों से सोम को देख कर उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘थैंक्स सोम.’’

पार्टी डांस ड्रिंक: भाग 2- क्या बेटे का शादीशुदा घर टूटने से बचा पाई सोम की मां

उस की सुंदरता में खोए सोम को सब सपना सा लग रहा था, लेकिन वह भी बोला, ‘‘हैलो, माईसैल्फ सोम.’’ दोनों में दोस्ती होते देर न लगी. सोम उस की सुंदरता पर मर मिटा था, तो नैना सोम की स्मार्टनैस और जवानी पर. उन दोनों ने बेखौफ ड्रिंक और डांस का अच्छी तरह आनंद लिया. फोन नंबर का आदानप्रदान हुआ और शुरू हो गया दोनों का मिलनाजुलना. सोम सब कुछ भूल कर नैना के प्यार में खो गया. वह मीटिंग और अधिक काम के बहाने घर देर से पहुंचने लगा. दोनों के बीच जिस्मानी रिश्ते बन चुके थे, इसलिए सोम उस के नशे में डूबा रहता. दोनों अकसर साथ में लंच करते, तो कभी पिक्चर, कभी थिएटर, कभी मौल में घूमते. वाणी को पति के आचरण पर शक होने लगा था. वह कभीकभी उस के फोन काल और एसएमएस चैक करती, परंतु चौकन्ना सोम पत्नी के लिए कोई निशान नहीं छोड़ता था. एक दिन शाम को अचानक सोम बोला, ‘‘वाणी, मैं दिल्ली जा रहा हूं. वहां न्यूयार्क से एक डैलिगेशन आया है. उन के साथ मेरी मीटिंग है. मुझे वहां 2-3 दिन लगेंगे.’’ वाणी ने पति को शक की नजर से देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं सिर्फ धीमी आवाज में बाय कह दिया. बाद में उस ने सोम की सेक्रेटरी से पता लगा लिया कि वह छुट्टी ले कर गया हुआ है, तो उस का शक विश्वास में बदल गया.

इधर सोम प्लेन की सीट पर बैठते ही नैना के ख्वाबों में खो गया. उस ने अपनी आंखें बंद कर ली थीं और वह नैना के सान्निध्य के खूबसूरत एहसास को जी रहा था. तभी उस के फोन की घंटी बज उठी थी. उधर नैना थी. वह बोली, ‘‘डियर, मेरे लिए एकएक पल काटना मुश्किल हो रहा है. मेरी फ्लाइट में अभी देर है.’’ सोम ने एहतियातन दोनों की अलगअलग फ्लाइट बुक करवाई थी. वह आने वाले कल के रंगीन सपनों में खोया नैना के साथ बिताने वाले समय की रूपरेखा मन ही मन बना रहा था. वह दिल्ली पहुंचा ही था कि फिर से नैना का फोन आ गया, ‘‘डियर, तुम कहां तक पहुंचे?’’

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‘‘मैं दिल्ली पहुंच गया हूं. जब तुम्हारी फ्लाइट पहुंचेगी मैं एअरपोर्ट पर तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलूंगा.’’

‘‘तुम बहुत अच्छे हो. तुम मुझे यूज कर के फिर अपनी बीवी के आंचल में तो नहीं लौट जाओगे?’’

‘‘नहीं…’’

नैटवर्क की प्रौब्लम के चलते फोन कट चुका था, लेकिन नैना के नशे में डूबे सोम ने वाणी से तलाक लेने का मन बना लिया था. वह सोच रहा था कि दिल्ली से लौटते ही वह अपने वकील से कागज तैयार करवा लेगा. नैना को लेने वह एअरपोर्ट पर पहुंचा. उस के हाथ में एक बड़ा सा बुके था. आज वह अपने नए जीवन की शुरुआत करने जा रहा था. यहां पर केवल वह होगा और उस की नैना. आज तो नैना शौर्ट स्कर्ट और टौप पहन कर आई थी. सोम उत्तेजनावश उस को निहारता ही रह गया. नैना ने पास आते ही उसे अपने आलिंगन में जकड़ लिया. रात में जिस 5 सितारा होटल में वे ठहरे थे, उस के विशेष कक्ष में दोनों ने डिनर लिया. तभी नैना ने अपने पर्स से एक सुंदर सा ब्रेसलेट निकाल कर सोम की कलाई में पहना दिया.

‘‘डियर सोम, यह ब्रेसलेट मैं ने तुम्हारे लिए ही खरीदा है. यह हर समय तुम्हें मेरी याद दिलाता रहेगा.’’ ब्रेसलेट पहन सोम अचकचा उठा. उसे भी तो नैना के लिए कोई महंगा गिफ्ट खरीदना पड़ेगा. यह मस्ती तो उस पर भारी पड़ रही थी. रात में नैना उस को एक नाइट क्लब में ले गई. यह उस के लिए नया अनुभव था, लेकिन शायद नैना इन पार्टियों और क्लबों की अभ्यस्त थी. वहां सहजता से वह एक के बाद एक पैग चढ़ा रही थी, साथ ही सोम को भी पिला रही थी. दोनों मदहोशी में थे और गहरे नशे में डूब चुके थे. होटल में लौटने पर सोम अपने फोन पर कुछ कर रहा था कि नैना उस के हाथ से फोन खींच कर बोली, ‘‘तुम भी खूब हो. मुझ जैसी हसीना के बजाय फोन से खेल रहे हो.’’ फिर वह उस के और करीब खिसक कर बोली, ‘‘मुझे एक लंबे इंतजार के बाद तुम जैसा साथी मिला है. तुम अपनी बीवी से कब तलाक लोगे? बहुत हो गई लुकाछिपी. अब तुम से दूरी मुझ से बरदाश्त नहीं हो रही है.’’

‘‘नैना, यह बताओ कि आज तक तुम्हारे जीवन में कोई और तो नहीं आया?’’

‘‘नहीं यार, मैं सिंगल हूं. तुम्हें देखते ही मुझे जाने क्या हो गया. मैं तुम्हारे प्यार में पड़ कर सारी दुनिया भूल गई. दिन भर तुम्हारे ख्वाबों में खोई रहती हूं. औफिस के काम में भी मेरा मन नहीं लगता,’’ यह सब कहतेकहते उस ने सोम के होंठों पर अपने दहकते हुए होंठ रख दिए. फिर दोनों बेसुध हो कर सो गए. सुबह सोम के पास औफिस से जरूरी मीटिंग के लिए फोन आ गया. वह जाना नहीं चाहता था, क्योंकि अभी नैना के साथ और समय बिताना चाह रहा था, लेकिन उस का लौटना जरूरी था, इसलिए वह नैना से बोला, ‘‘नैना, मुझे औफिस की मीटिंग की वजह से आज ही मुंबई पहुंचना होगा.’’

‘‘ठीक है, तुम चले जाओ. मैं 2 दिन बाद पहुंचूंगी.’’

सोम फ्लाइट से अगले दिन सुबह जब घर पहुंचा तो नैना को छोड़ कर आने की वजह से खिसियाया हुआ था. फिर जब औफिस के लिए तैयार हो रहा था, वाणी किचन में गई. उस ने चायनाश्ता बनाया और डाइनिंग टेबल पर रख दिया. सोम हड़बड़ाता हुआ कमरे से निकला तो कप में चाय देखते ही चिल्लाया, ‘‘बदतमीज औरत, जब तुझे पता है कि मैं इस तरह की चाय नहीं पीता, तो क्यों बना कर रख देती हो?’’ और गुस्से में चाय का कप और नाश्ता दोनों को उठा कर जमीन में फेंक दिया. वाणी किचन से बाहर आई और सोम से बोली, ‘‘सोम मैं आप की पसंद की पौट वाली चाय बना कर लाती हूं, प्लीज रुक जाइए. घर से इस तरह चायनाश्ते के बिना मत जाइए.’’ सोम ने वाणी को सामने से हटाने के लिए धक्का दिया और बिना पीछे देखे गाड़ी स्टार्ट कर के चला गया. वाणी जमीन पर गिर गई और टेबल का कोना माथे पर चुभ जाने से उस के माथे से खून बह निकला. कुछ पलों के लिए वह बेहोश हो गई. फिर होश आने पर उस ने चोट पर दवा लगाई और लेट कर अपने जीवन के बारे में सोचने लगी. वह कब तक इस तरह से अपमानित होहो कर जीती रहेगी? उसे अपने भविष्य के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचना पड़ेगा. सोम उस पर हाथ भी उठाने लगे हैं. वह किस तरह से सोम को सही रास्ते पर लाए.

तभी उस का मोबाइल बज उठा. उधर उस की सासूमां सरिताजी थीं.

‘‘कैसी हो वाणी?’’

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मेरे नालायक बेटे का क्या हाल है?’’

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‘‘वे भी ठीक हैं.’’

‘‘तेरा खयाल रखता है मेरा अकड़ू बेटा?’’

‘‘जी मम्मीजी.’’

‘‘उसे बता देना कि मैं उसे याद कर रही थी.’’ उन की बात यहीं खत्म हो गई पर मम्मीजी के अकड़ू शब्द ने वाणी की चेतना को जगा दिया. उस ने नैट पर प्राइवेट डिटैक्टिव एजेंसी को ढूंढ़ व उस से संपर्क कर सोम और उस की महिला मित्र के विषय में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए कहा. उस के लिए उस ने मुंहमांगी फीस भी दी. उस के बाद उस ने अपना सामान गैस्टरूम में शिफ्ट कर लिया. शाम को जब सोम आया तो सारे घर में अंधेरा देख उस का माथा ठनका. फिर वाणी को गैस्टरूम में देखा तो बोला, ‘‘यह सब क्या नाटक है?’’

‘‘जो देख रहे हो. जल्दी ही मैं अपनी व्यवस्था कर लूंगी. फिर यहां से हमेशा के लिए आप की नजरों से दूर हो जाऊंगी.’’ अपनी सुबह की गलती का एहसास होते ही उस ने वाणी से आज पहली बार माफी मांग कर समझौता करना चाहा.

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पार्टी डांस ड्रिंक: भाग 1- क्या बेटे का शादीशुदा घर टूटने से बचा पाई सोम की मां

अलसाई हुई वाणी के मोबाइल की घंटी बजी तो उस ने उसे उठाया. उधर मम्मीजी थीं.

‘‘वाणी, हैप्पी मैरिज ऐनिवर्सरी.’’

‘‘थैंक्स मम्मीजी.’’

‘‘तुम्हारा प्यारा पिया कहां है?’’

‘‘मम्मीजी वे तो घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कहां गया?’’

‘‘मैं तो सो रही थी. वे न जाने कब उठ कर चले गए. मुझे पता ही नहीं चला.’’ ‘‘सोम कभी नहीं सुधरेगा. उसे याद भी नहीं रहा कि आज तुम लोगों की मैरिज ऐनिवर्सरी है.’’

‘‘उन्हें कोई जरूरी काम होगा इसीलिए चले गए होंगे,’’ वाणी ने कहा, लेकिन वह मन ही मन उदास हो उठी थी. सोम को ऐनिवर्सरी भी याद नहीं रही. तभी आहिस्ता से सोम कमरे में आया और फोन हाथ में ले कर बोला, ‘‘थैंक्स मौम.’’

‘‘हम लोग शाम तक तुम्हारे पास पहुंच रहे हैं. आज कुछ पार्टीशार्टी हो जाए.’’

‘‘ओ.के. मौम, लेकिन आप की लाडली बहू जब परमिशन देगी तब तो.’’

‘‘समझ लो मिल गई.’’

‘‘ओ.के. मौम, मैं एअरपोर्ट पर आऊं?’’

‘‘नहीं. तुम पार्टी की तैयारी करो.’’ फिर सोम ने वाणी को अपने आगोश में ले लिया और एक प्यारा सा चुंबन उस के गाल पर अंकित कर उस की कलाइयों में डायमंड के कंगन पहना दिए और बोला, ‘‘डियर, हैप्पी ऐनिवर्सरी. आज तो सैलिब्रेशन का दिन है. आज तो ग्रैंड पार्टी होगी. डांस फ्लोर वाला हौल बुक करेंगे. मौम और डैड को तो डांस के बिना मजा ही नहीं आएगा.’’

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‘‘लेकिन एक बात सुन लीजिए. ड्रिंक के लिए नो परमिशन.’’ आज से 5 साल पहले की बात है, जब मंजरी की शादी में उस के सौंदर्य और शालीनता से प्रभावित हो कर मम्मीजी और पापाजी ने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. वह छोटे शहर के मध्यवर्गीय परिवार की बेटी थी. उस के बाबूजी कृष्णदास सोम के पिता महेंद्रजी के बचपन के दोस्त थे और एक स्कूल में प्रधानाध्यापक थे. सोम के पिता महेंद्रजी फौज में भरती हो कर बाहर चले गए थे और इस समय बहुत ऊंचे ओहदे पर थे. वे स्वाभाविक रूप से बहुत खुले विचारों के थे और जब से लंदन रह कर आए थे, तब से अपने को आधा अंगरेज समझने लगे थे. इसलिए सोम और वाणी दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि बिलकुल अलगअलग थी. सोम अपने पापा से बचपन से डरता था. उसी डर के कारण उस ने मंडप में वाणी के संग फेरे ले कर उसे अपनी जीवनसंगिनी बना तो लिया था, परंतु मन ही मन वह उसे देहाती लड़की ही समझ रहा था.

सोम की जीवनशैली के पाश्चात्य तौरतरीके देख वाणी थोड़ा घबराई थी. परंतु रात के अंधेरे में उस का सान्निध्य पा कर वह दिल से उस की हो गई थी. ससुराल में पहले दिन वाणी की नींद जब प्याजलहसुन की तेज गंध से खुली थी, तो उस का जी मिचला उठा था. वह जल्दीजल्दी तैयार हो कर नीचे आई, तो डाइनिंग टेबल पर सब लोग उस का नाश्ते पर इंतजार कर रहे थे. देर हो जाने की वजह से वह सकुचा उठी थी. टेबल पर एक प्लेट में अंडे की भुरजी देख कर वह सकपका गई थी. फिर भी अपने को सामान्य करती हुई अपनी प्लेट में ब्रैड ले कर कुतरने लगी थी. ‘‘वाणी यह अंडा भुरजी तो लो. इसे सोम ने तुम्हारे लिए विशेष रूप से बनवाया है.’’

वह धीमी आवाज में बोली थी, ‘‘मैं अंडा नहीं खाती हूं.’’ लेकिन सोम ने तेजी से लपक कर अपनी प्लेट से पूड़ी और भुरजी का बड़ा सा कौर बना कर उस के मुंह में रख दिया था. वह घबरा कर तेजी से बाथरूम की तरफ भागी थी. उसे मम्मीजी की आवाज पीछे से सुनाई दी थी, ‘‘सोम, तुम्हें इस तरह से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए थी.’’ इस के बाद वह 2-3 दिन वहां रही तो सोम उस से उखड़ाउखड़ा सा रहा. फिर उस की छुट्टियां समाप्त हो गईं, तो वाणी को उस के साथ मुंबई आना पड़ा. छोटे शहर की वाणी मुंबई की तेज रफ्तार भरी जिंदगी देख सहम सी गई थी. वह हर काम सोम की इच्छानुसार करने के चक्कर में सब उलटापुलटा कर बैठती. एक दिन शाम को सोम घर आते ही बोला, ‘‘तैयार हो जाओ. आज मेरी शादी की पार्टी है, जिस में मेरे कुछ खास दोस्त होंगे. जरा ढंग से तैयार होना.’’ वाणी सोम के साथ आज पहली बार घर से बाहर पार्टी में जा रही थी. इस वजह से वह खुश मन से सजधज कर तैयार हुई तो सोम बुरा सा मुंह बना कर बोला, ‘‘यह क्या गंवारों की तरह साड़ी पहन ली. कुछ वैस्टर्न पहनतीं.’’

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पार्टी में उस के दोस्त रुचिर और भुवन तो उस की सुंदरता पर मर मिटे थे. रुचिर ने हैलो करने को हाथ पकड़ा तो पकड़े ही रह गया. उस ने जबरदस्ती खींच कर अपना हाथ छुड़ाया. भुवन नशे में धुत्त था. वह उसे खींच कर डांस फ्लोर पर ले जा रहा था. उस के मना करते ही सोम सब के सामने नाराज हो कर बोला, ‘‘तुम ने तो मैनर्स का ककहरा भी नहीं पढ़ा है. डांस कर लोगी तो क्या हो जाएगा?’’ वाणी की आंखों में आंसू आ गए थे. वह कोने में जा कर बैठ गई थी. वहां भुवन की पत्नी निशा बैठी हुई थी. उस को भी इस तरह की पार्टियां पसंद नहीं थीं. सोम के 7-8 दोस्तों और उन की पत्नियों ने जी भर कर बोतलें खाली कीं. फिर किसी को होश नहीं रहा कि कौन किस की बांहों में थिरक रहा है. सब नशे में डूबे हुए थे. उसे यह सब बहुत अटपटा लग रहा था. सोम को नशे में धुत्त देख वह परेशान हो उठी थी. वाणी ने उस दिन से इस तरह की पार्टियों में न जाने की कसम खा ली थी.जल्द ही वाणी के पैर भारी हो गए. उस की तबीयत ढीली रहने लगी. लेकिन दोनों के संबंध सामान्य नहीं हो पाए. सोम उस पर हावी होता गया. वह झगड़े से बचने के लिए चुप रह जाती. कभीकभी पीने वाला सोम अकसर पी कर आने लगा था.

उस की खराब तबीयत के बारे में सुन कर उस के अम्माबाबूजी आ कर उस को अपने साथ ले गए. वहां कुहू के पैदा होने पर सोम आया और बेटी को लाड़ दिखा कर चला गया. वह सोचती थी कि मेरी प्यारी सी बेटी हम दोनों के रिश्ते सामान्य कर देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सोम की मम्मीजी और पापाजी विदेश में थे. थोड़े दिनों बाद वह सोम के साथ फिर से मुंबई आ गई. वहां नन्ही सी कुहू की देखभाल में उस का समय बीतने लगा. उस की सहायता के लिए एक आया लीला को रख लिया गया. एक दिन सुबह औफिस जाते हुए सोम बोला, ‘‘शाम को 6 बजे तैयार रहना. आज रुचिर की मैरिज ऐनिवर्सरी है. उस ने तुम्हें ले कर आने को कहा है.’’ यह कह कर वह औफिस चला गया, लेकिन वाणी के लिए वहां जाना मुमकिन नहीं था, क्योंकि कुहू को बुखार था. फिर उसे शुरू से ही सोम के दोस्त पसंद नहीं थे. पीना, डांस करना और आपस में भद्देभद्दे मजाक करना. पीनेपिलाने वाली पार्टियों से तो वह कोसों दूर रहना चाहती थी.

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शाम 7 बजे आते ही सोम घुड़क कर बोला, ‘‘तुम्हारे कान बंद रहते हैं क्या? सुबह मैं तुम से कुछ कह कर गया था. अभी तक तुम तैयार क्यों नहीं हुई हो?’’

‘‘मैं नहीं जा पाऊंगी. कुहू को बुखार है.’’ सोम नाराज हो कर पैर पटकता हुआ घर से चला गया. लेकिन पार्टी में अकेले जाने के कारण सोम दोस्तों से हायहैलो करने के बाद एक पैग ले कर कोने की एक टेबल पर चुपचाप बैठ गया. उस पर अभी नशे का सुरूर चढ़ा भी नहीं था कि एक सुंदर महिला पर उस की निगाह पड़ी. वह कुछ क्षणों तक उस को अपलक निहारता रह गया. सोम की निगाहें उस महिला से एक क्षण को मिल गईं तो उस ने एक घूंट में ही बड़ा पैग खाली कर दिया. वह महिला भी अकेली बैठी सोम की ओर देख रही थी. अचानक वह तेजी से उठी और उस के पास आ कर कुरसी पर बैठते हुए बोली, ‘‘हाय हैंडसम, माईसैल्फ नैना.’’

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