पति-पत्नी के रिश्ते में नयापन बनाए रखें ऐसे

शादी के बाद पतिपत्नी प्यार से अपने जीवन का घोंसला तैयार करते हैं. कैरियर बनाने के लिए बच्चे जब घर छोड़ कर बाहर जाते हैं तो यह घोंसला खाली हो जाता है. खाली घोंसले में अकेले रह गए पतिपत्नी जीवन के कठिन दौर में पहुंच जाते हैं. तनाव, चिंता और तमाम तरह की बीमारियां अकेलेपन को और भी कठिन बना देती हैं. ऐसे में वह एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम का शिकार हो जाते हैं.  आज के दौर में ऐसे उदाहरण बढ़ते जा रहे हैं. अगर पतिपत्नी खुद का खयाल रखें तो यह समय भी खुशहाल हो सकता है, जीवन बोझ सा महसूस नहीं होगा. जिंदगी के हर पड़ाव को यह सोच कर जिएं कि यह दोबारा मिलने वाला नहीं.

राखी और राजेश ने जीवनभर अपने परिवार को खुशहाल रखने के लिए सारे इंतजाम किए. परिवार का बोझ कम हो, बच्चे की सही देखभाल हो सके, इस के लिए एक बेटा होने के बाद उन्होंने फैमिली प्लानिंग का रास्ता अपना लिया. बच्चे नितिन को अच्छे स्कूल में पढ़ाया. बच्चा पढ़ाई में होनहार था. मैडिकल की पढ़ाई करने के लिए वह विदेश गया. वहां उस की जौब भी लग गई. राखी और राजेश ने नितिन की शादी नेहा के साथ करा दी. नेहा खुद भी विदेश में डाक्टर थी. बेटाबहू विदेश में ही रहने लगे. राखी और राजेश का अपना समय अकेले कटने लगा. घर का सूनापन अब उन को परेशान करने लगा था.

राखी ने एक दिन कहा, ‘‘अगर  बेटाबहू साथ होते तो कितना अच्छा होता. हम भी बुढ़ापे में आराम से रह रहे होते.’’

‘‘राखी जब नितिन छोटा था तो हम दोनों यही सोचते थे कि कब यह पढ़ेलिखे और अच्छी सी नौकरी करे. समाज कह सके कि देखो, हमारा बेटा कितना होनहार है,’’ राजेश ने पत्नी को समझाते हुए कहा.

‘‘तब हमें यह नहीं मालूम था कि हम इस तरह से अकेलेपन का शिकार हो जाएंगे,’’ राखी ने कहा.

राजेश ने समझाते हुए कहा, ‘‘हम ने कितनी मेहतन से उसे पढ़ाया. अपने शौक नहीं देखे. हम खुद पंखे की हवा खाते रहे पर बेटे को हर सुखसुविधा दी. अब जब वह सफल हो गया तो अपने अकेलेपन से घबरा कर उस को वापस तो नहीं बुला सकते. उस के सपनों का क्या होगा.’’

‘‘बात तो आप की भी सही है. हमें खुद ही अपने अकेलेपन से बाहर निकलना होगा. हम अकेले तो ऐसे नहीं हैं. बहुत सारे लोग ऐसे ही जी रहे हैं,’’ राखी ने कहा.

राखी और राजेश ने इस के बाद फिर कभी इस मुद्दे पर बात नहीं की. उन्होंने अपने को बदलना शुरू किया. सोशल ऐक्टिविटीज में हिस्सा लेना शुरू किया. खुद क ो अच्छी डाइट और ऐक्सरसाइज से फिट किया. साल में 2 बार वे अपने बहूबेटे के पास विदेश जाने लगे. वहां वे 20-25 दिनों तक रहते थे.  साल में 1-2 बार बेटाबहू भी उन के पास छुट्टियों में आने लगे. कभी महसूस ही नहीं हुआ कि वे अकेले हैं. सोशल मीडिया के जरिए वे आपस में जुडे़ रहते थे. अपने बारे में राजेश और राखी बहूबेटे को बताते तो कभी बहूबेटा उन को बताते रहते. फैस्टिवल पर कभीकभी एकसाथ मिल लेते थे.

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राखी ने डांस सीखना शुरू किया. लोग शुरूशुरू में हंसने लगे कि यह कैसा शौक है. राखी ने कभी इस बात का बुरा नहीं माना. डांस सीखने के बाद राखी ने अपने को व्यस्त रखने के लिए शहर में आयोजित होने वाले डांस कंपीटिशन में हिस्सा लेना शुरू किया. राखी की डांस में एनर्जीदेख कर सभी उस की प्रशंसा करने लगे. पत्नी को खुश देख कर राजेश भी बहुत खुश था. मातापिता को खुश देख कर बेटाबहू भी खुश थे. जीवन का जो घोंसला सूनेपन से भर गया था, वापस खुशहाल हो रहा था.

राखी और राजेश एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम के शिकार अकेले कपल नहीं हैं. समाज में ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आज के समय में हर परिवार में 1 या 2 ही बच्चे हैं. ऐसे हालात हर जगह बन रहे हैं. अब पतिपत्नी खुद को बदल कर आपस में नयापन बनाए रख कर हालात से बाहर निकल रहे हैं.

बनाएं नई पहचान

संतोष और सुमन की एक बेटी थी. वे दोनों सोचते थे कि ऐसे लड़के से शादी करेंगे जो उन के साथ रह सके. बेटी ने विदेश में जौब कर ली. उस की शादी वहीं रहने वाले एक बिजनैसमैन से हो गई. संतोष ने अपनी पत्नी सुमन को खुद को सजनेसंवरने के लिए  कहा. सुमन को यह पहले भी पसंद  था. ऐसे में उस का शौक अब और निखरने लगा.  कुछ ही तैयारी के बाद एक समय ऐसा आया कि सुमन शहर की हर पार्टी में शामिल होने लगी. वह पहले से अधिक निखर चुकी थी. संतोष खुद बिजनैसमैन था इसलिए पत्नी को कम समय दे पाता था पर जहां तक हो सकता था पत्नी का पूरा साथ देता था.

एक दिन सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. सुमन ने उस में हिस्सा लिया और विवाहित महिलाओं की यह सौंदर्य प्रतियोगिता जीत ली. वह अब खुद  ही ऐसे आयोजनों के साथ जुड़ कर  नए सिरे से अपने को स्थापित कर  चुकी है.

अब केवल पति को ही नहीं, उस के बच्चों को भी मां के टैलेंट पर गर्व होता है. सुमन ने मौडलिंग भी शुरू कर दी. वह कहती है हम ने शादी के बाद जिन शौकों को पूरा करने का सपना देखा था, वे अब पूरे हो रहे हैं. ऐसे में मेरा मानना है कि शादी के बाद देखे गए सपने अगर पूरे नहीं हो रहे हैं तो उन को पूरा करने का समय यही है. सपने भी पूरे होंगे और अकेलापन भी दूर होगा.

अपने शौक को पूरा करे

अर्चना को स्कूल के दिनों से ही पेंटिंग बनाने का शौक था. जल्दी शादी, फिर बच्चे होने के बाद यह शौक दरकिनार हो गया था. अर्चना की परेशानी थोड़ी अलग थी. वह सिंगल मदर थी. उस ने खुद ही बेटे आलोक को अपने दम पर पढ़ालिखा कर विदेश भेजा. अब खुद अकेली रह गई. कई बार आलोक अपनी मां को भी अपने साथ ले जाता था. पर अर्चना वहां रहने के लिए तैयार नहीं थी. कुछ दिन बेटे के पास विदेश रह कर वापस चली आती थी. वापस आ कर उसे अकेलापन परेशान करता था.  अकेलेपन से बचने के लिए अर्चना ने अपने पेंटिंग के शौक को पूरा करना शुरू किया. खुद सीख कर अब वह बच्चों को भी पेंटिंग सिखाने लगी. इस से उसे कुछ पैसे भी मिलते थे. इन पैसों से अर्चना ने पेंटिंग कंपीटिशन का आयोजन कराया. अब अर्चना को कहीं भी अकेलापन नहीं लग रहा था. अर्चना ने अपने को फिट रखा. आज वह खुश है और अब वह पहले से अधिक सुंदर लगती है. मां को खुश देख कर बेटा भी पूरी मेहनत से अपना काम कर रहा है.

कई बार पेरैंट्स बच्चों के कैरियर को बनाने के लिए अपने शौक को पूरा नहीं करते. उन को दरकिनार कर देते हैं. जब बच्चे बाहर सैटल हो जाएं तो पेरैंट्स अपने शौक को पूरा कर सकते हैं. इस से 2 तरह के लाभ होते हैं. एक तो पुराने शौक पूरे हो जाते हैं. दूसरे, खुद इतना व्यस्त हो जाते हैं कि खालीपन का एहसास नहीं होता.

अपने शौक के पूरा होने का एहसास दिल को खुशी देता है. कई लोग हैं जो खाली समय में बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं. कुछ लोग पर्यावरण के लिए जागरूकता अभियान चलाते हैं. इस से समाज के लोग उन के साथ खडे़ होते हैं और समाज में उन को नया मुकाम भी हासिल होता है.

पत्नी को प्रोत्सहित करें. उस के लिए पैसे और समय दोनों उपलब्ध कराएं. साथ में, उस के आत्मविश्वास को जगाएं कि वह अभी भी अपने हुनर का कमाल दिखा सकती है.

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नयापन बनाए रखने के टिप्स

एनर्जी से भरपूर दवाएं खाना भी जरूरी होता है. आमतौर पर ऐसे समय में सैक्स के महत्त्व को दरकिनार किया जाता है. हालांकि सैक्स भी इस उम्र में जरूरी होता है. यह केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिक हैल्थ के लिए जरूरी होता है. इस से खुद में एक बदलाव का अनुभव होता है.

शुरूआत में पति खुद ही पत्नी का हौसला बढ़ाएं. फैशन, फिटनैस और ब्यूटीफुल ड्रैस आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं.

खालीपन को दूर करने के लिए क्याक्या किया जा सकता है जिस से पहचान भी बने, यह पत्नी की योग्यता को देख कर फैसला करें.

सोशल सर्किल बनाते समय यह ध्यान रखें कि एकजैसी सोच के लोग हों. कई बार नैगेटिव सोच के लोग आगे बढ़ने के बजायपीछे ढकेल देते हैं.

जब पति तोड़े भरोसा

आयशा अपने पति से तलाक चाहती है. वजह है उस के पति के किसी और महिला से संबंध. आयशा ने 2 साल पहले ही आयुश से शादी की थी. शादी के बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, मगर एक दिन आयशा को पता चला कि उस के पति औफिस से निकल कर किसी और महिला के पास जाते हैं. आयशा अभी मां नहीं बनी है. आयुश से अलग होने में उसे कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जो सब कुछ जानते हुए भी अपने परिवार और बच्चों की खातिर तलाक नहीं ले पातीं.

यह सच है कि बेवफा साथी कभी सच्चा साथी नहीं हो सकता. एक बार भरोसा टूट जाने के बाद रिश्तों में हमेशा के लिए कड़वाहट आ जाती है. एक बात और ध्यान देने वाली है कि पति की बेवफाई झेलने वाली औरत सिर्फ पत्नी नहीं होती, मां भी होती है, इसलिए पति से संबंध बिगड़ने का बच्चों की देखरेख पर भी बुरा असर पड़ता है. बेवफाई हर औरत को अखरती है भले ही उस की उम्र कुछ भी हो. बेवफा साथी के साथ कैसे पेश आएं, इस का फैसला बहुत सोचविचार कर और समझदारी से करना चाहिए.

सही निर्णय लें

जब आप को एहसास होता है कि आप के साथ धोखा हो रहा है तो एक मां होने के नाते कभीकभी आप को कठिन फैसला लेना पड़ता है. आप अविश्वास भरे माहौल में रहने के बजाय अलग रहना पसंद करेंगी और रिश्ता तोड़ना चाहेंगी. मगर आप अपने बच्चों के सामने अपने असफल रिश्ते का उदाहरण भी नहीं रखना चाहतीं. परिवार के लोग भी नहीं चाहते कि आप अपना रिश्ता खत्म करें. आप घुटन व अवसाद में जी रही हैं और आप की जिंदगी बदतर हो गई है तो समझ लीजिए अब फैसले की घड़ी है. अब या तो आप पति से वादा लीजिए कि भविष्य में वे कभी आप के साथ धोखा नहीं करेंगे या फिर उन से अलग होने का फैसला. आप का सही फैसला आप की जिंदगी पुन: पटरी पर ला सकता है.

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बच्चों को आश्वस्त करें

अगर आप अपने पति के बरताव और उन की बेवफाई से तंग आ कर उन से अलग होने का फैसला कर रही हैं तो आप का यह निर्णय आपसी सहमति पर होना चाहिए. अपने बच्चों को भरोसा दिलाएं कि आप के तलाक के फैसले का उन की जिंदगी से कोई लेनादेना नहीं है. उन्हें पहले से बेहतर जिंदगी देने का आश्वासन दें. उन्हें बताएं कि अगलअलग घर में रह कर भी वे उन्हें पहले जैसे ही भरपूर प्यार करेंगे. याद रखिए, आप का रिश्ता टूटने पर जितनी तकलीफ आप को होगी उस से कहीं अधिक आप के बच्चों को होगी. एक तो अपनी मां का तलाक होने का दर्द और दूसरा अपने पिता से दूर होने का, यदि बच्चे मां के पास हैं तो.

बच्चों के सवालों के लिए रहें तैयार

याद रखें बच्चे इस बात को पहले सोचते हैं कि उन के मातापिता के अलग हो जाने पर उन की जिंदगी कैसी होने वाली है. इसलिए उन के सवालों के जवाब देने के लिए पहले से ही तैयार हो जाएं. जैसे घर छोड़ कर कौन जाएगा? हमारी छुट्टियां कैसे बीतेंगी? पापा के हिस्से का काम कौन करेगा? आदिआदि.

क्या आप माफ कर सकती हैं

अगर आप के पति को अपने किए पर पछतावा है और वे आप को बारबार लगातार सौरी बोल रहे हैं, तो एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देखें कि क्या आप उन्हें माफ कर सकती हैं? क्या आप भविष्य में उन पर भरोसा कर सकती हैं? क्या आप बीती बातों को भुला सकती हैं? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिन के उत्तर आप को देने हैं और अपनी भावनाओं के प्रति ईमानदार रह कर फैसला करना है. याद रखें सब कुछ भुला कर रिलेशनशिप में बने रहने का फैसला लेने के बाद आप अपने पति को उन के किए की सजा नहीं दे पाएंगी.

रिश्ता बचाने की कोशिश करें

अगर आप के पति ने सिर्फ एक बार गलती की है और वे इस के लिए खेद जता रहे हैं तो तलाक जैसा कठिन फैसला आप की जिंदगी के लिए बैस्ट नहीं हो सकता. यह भले ही आप को सुनने में अच्छा न लगे, लेकिन सच यही है. कुछ लोगों का कहना होता है कि जिस ने एक बार धोखा किया है वह हमेशा देगा. मगर ऐसा सोचना गलत है. आप अपना रिश्ता बचा कर अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी में बहुत कुछ बचा सकती हैं.

बच्चों को न बताएं

अपने बच्चों से यह कतई न कहें कि आप उन के पापा के किसी और से अफेयर के कारण अलग होना चाहती हैं. हो सकता है कि वे आप के लिए एक अच्छे पति न बन पाए हों, मगर अपने बच्चों के लिए वे एक अच्छे पापा हों. इसलिए अगर आप उन से उन के पापा के अफेयर के बारे में बताएंगी तो उन के बालमन को आघात लगेगा और इस से निकलने में उन्हें बहुत समय लग सकता है.

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बच्चों को जरीया न बनाएं

ऐसी परिस्थितियों में आप अपने पति को हर्ट करने के लिए अपने बच्चों का इस्तेमाल कर सकती हैं, जो ठीक नहीं है. ऐसा कर के आप बच्चों का उन के पापा के साथ संबंध भी बिगाड़ रही हैं. बच्चों को खुद फैसला करने दें कि उन का अपने पापा के प्रति क्या विचार है. थोड़ा बड़ा होने पर वे ऐसा कर सकते हैं. आज शहरों में तलाक के मामलों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है. इस में 80 फीसदी कारण पार्टनर की बेवफाई होती है. आज महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं. रिश्तों में ऐसी कड़वाहट के साथ जीना उन्हें हरगिज गवारा नहीं है. यह सच है कि बेवफा साथी के साथ रहने का फैसला करना बहुत कठिन है, लेकिन एक रिश्ते की चिता पर कई रिश्तों की अर्थी न चढ़ जाए, यह सोच कर अगर संभव हो तो रिश्ता बचाने की एक कोशिश जरूर करनी चाहिए. पति से अलग होने के फैसले के साथ पति का पूरा परिवार भी अकसर अलग हो जाता है. बच्चों से उन का पिता छिनने के साथ ही उन के दादादादी, बूआ, चाचा यानी पूरा परिवार छिन जाता है. तलाक के कठिन फैसले से सिर्फ आप ही अकेली नहीं होतीं, कई जिंदगियां छिन्नभिन्न हो जाती हैं. इसलिए रिश्ते को बचाने की कोशिश किए बिना तलाक के लिए आवेदन करना ठीक नहीं है. यकीन मानिए, जो खुशी सब के साथ जीने में है, वह अकेले में कतई नहीं.

उम्र भर रहें जवान

कुछ दिनों से आलोक कुछ बदलेबदले से नजर आ रहे हैं. वे पहले से ज्यादा खुश रहने लगे हैं. आजकल उन की सक्रियता देख कर युवक दंग रह जाते हैं. असल में उन के घर में एक नन्ही सी खुशी आई है. वे पिता बन गए हैं. 52 साल की उम्र में एक बार फिर पिता बनने का एहसास उन को हर पल रोमांचित किए रखता है. इस खुशी को चारचांद लगाती हैं उन की 38 वर्षीय पत्नी सुदर्शना. सुदर्शना की हालांकि यह पहली संतान है लेकिन आलोक की यह तीसरी है.

दरअसल, आलोक की पहली पत्नी को गुजरे 5 साल बीत चुके हैं. उन के बच्चे जवान हो चुके हैं और अपनीअपनी गृहस्थी बखूबी संभाल रहे हैं. कुछ दशक पहले की बात होती तो इन हालात में आलोक के दिल और दिमाग में बच्चों के सही से सैटलमैंट के आगे कोई बात नहीं आती. इस उम्र में अपनी खुशी के लिए फिर से शादी की ख्वाहिश भले ही उन के दिल में होती लेकिन समाज के दबाव के चलते इस खुशी को वे अमलीजामा न पहना पाते. अब जमाना बदल चुका है. लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो गए हैं, एंप्टी नैस्ट सिंड्रोम से बाहर निकल रहे हैं. और अपनी खुशियों को ले कर भी वे ज्यादा स्पष्ट और मुखर हैं. अब लोग 70 साल तक स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं.

जब आलोक ने देखा कि उन के बच्चों का उन के प्रति दिनप्रतिदिन व्यवहार बिगड़ता जा रहा है. अपने कैरियर व भावी जिंदगी को बेहतर बनाने की आपाधापी में बच्चों के पास उन की खुशियों को जानने व महसूस करने की फुरसत नहीं है तो आलोक ने न केवल उन से अलग रहने का निर्णय लिया बल्कि एक बार फिर से अपनी जिंदगी को व्यवस्थित करने का मन बनाया.

एक दिन इंटरनैट के जरिए उन की मुलाकात सुदर्शना से हुई जो उन्हीं की तरह अच्छी जौब में थी. आर्थिक नजरिए से सैटल थी, लेकिन कैरियर के चक्कर में सही उम्र में शादी न हो सकी थी. वह 37 साल की हो चुकी थी. उस ने एक खूबसूरत नौजवान का जो ख्वाब देखा था, उसे अब भूल चुकी थी. उसे अब एक व्यावहारिक दोस्त चाहिए था.  सुदर्शना को आलोक में व्यावहारिक जीवनसाथी के सभी गुण नजर आए. दोनों ने झटपट कानूनी तरीके से शादी कर ली. कोकशास्त्र में कहा गया है कि पुरुषों की सैक्स क्षमता पूरी तरह से उन के अपने हाथों में होती है. दरअसल, जवानी में जो अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं उन के लिए अधेड़ावस्था जैसी कोई चीज ही नहीं होती. सच बात तो यह है कि इस युग में अधेड़ उम्र के माने वे नहीं रहे जो आधी सदी पहले तक हुआ करते थे. महिलाएं जरूर अभी तक रजोनिवृत्ति के चलते कुदरत के सामने अपने मातृत्व को लंबे समय तक कायम रखने को ले कर विवश हैं लेकिन स्त्रीत्व का आकर्षण उन में भी उम्र का मुहताज नहीं रहा.

सैक्स का सुख लें

आज पुरुष चाहे 50 का हो या 55 का या फिर 60 वर्ष का, स्वस्थ रहने की सजगता ने उसे इस उम्र में भी फिट बनाए रखा है, हालांकि इस में उसे कुदरत का भी साथ मिला है. वास्तव में उम्र ढलने के साथसाथ उस के परफौर्मैंस में कुछ गिरावट तो आती है, लेकिन उस की यह क्षमता बिलकुल खत्म नहीं होती.

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यहां कनफ्यूज न हों, पहले भी यह सब सहजता से होता रहा है. मगर इस तरह की क्षमताएं आमतौर पर राजाओं, महाराजाओं और अमीरउमरावों तक ही सीमित होती थीं क्योंकि वही आमतौर पर स्वस्थ होते थे और स्वास्थ्य के प्रति सजग होते थे. आम आदमी के लिए पहले न तो इतनी सहजता से स्वस्थ रहने के साधन उपलब्ध थे, न ही इस का ज्ञान था, इसलिए उन में बुढ़ापा जल्दी आ जाता था.

वैसे लंबे समय तक सैक्स में सक्षम और सक्रिय बने रहने का एक आसान उपाय है हस्तमैथुन. हस्तमैथुन एक ऐसी प्रक्रिया है जिस में किसी दूसरे की जरूरत नहीं होती. शरीर विज्ञान की सीख कहती है कि शरीर के जिस अंग को आप सक्रिय बनाए रखेंगे उस की उम्र उतनी ही लंबी होगी और वह उतनी ही देर तक सक्षम रहेगा. वास्तव में यह बात सैक्स के मामले में भी सही है. असल में जो व्यक्ति जितना ज्यादा सैक्स करता है वह उतनी ही देर तक सैक्स कर सकता है.

मशहूर विशेषज्ञ डा. जौनसन का भी कहना था और आज के सैक्सोलौजिस्ट भी इस बात को मानते हैं कि लंबे समय तक सैक्स क्षमता बरकरार रखने के लिए युवावस्था में सैक्स सक्रियता जरूरी है. अगर यह सक्रियता रहती है तो 50 वर्ष की उम्र के बाद भी पुरुष को नपुंसक होने का डर नहीं रहता. यही नहीं, वह 70 साल तक पिता बनने का सुख भी प्राप्त कर सकता है.

सैक्सोलौजिस्ट हस्तमैथुन को विशेष महत्त्व देते हैं. असल में जो पुरुष अपने लिंग को जितना सक्रिय रखता है, उस की उतनी ही सैक्स की चाहत बढ़ती है क्योंकि इस प्रक्रिया में लिंग की अच्छीखासी ऐक्सरसाइज होती है.

कई बार पुरुष इसलिए भी अपनी पत्नियों को संतुष्ट नहीं कर पाते क्योंकि वे सैक्स के मामले में लगातार सक्रिय नहीं रहते. इस से उन के अंग विशेष की ऐक्सरसाइज भी नहीं हो पाती और ऐन मौके पर शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. कहने का मतलब यह है कि इस मामले में निष्क्रियता सैक्ससुख से वंचित कर देती है.

सैक्सोलौजिस्टों की मानें तो हस्तमैथुन सैक्स क्षमता बनाए रखने का एक कारगर तरीका है. यह न सिर्फ पुरुषों को स्वस्थ रखता है बल्कि अच्छीखासी प्रैक्टिस भी कराता है. इतना ही नहीं, उम्र ढलने के साथ सैक्स की चाहत को बढ़ाने में मदद करता है.

खानपान व जीवनशैली सुधारें

इन तमाम बातों के साथसाथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि अपने खानपान व मोटापे को भी नजरअंदाज न करें. सैक्स जीवन पर सब से ज्यादा कुप्रभाव मोटापा ही डालता है. मोटापे का अतिरिक्त वजन विटामिन बी-1 के लिए जिगर और थायराइड से प्रतिस्पर्धा करता है और इन दोनों ही अंगों को खराब कर देता है, जबकि सैक्स क्षमता के लिए दोनों ही अंग महत्त्वपूर्ण हैं. मोटा व्यक्ति पतले व्यक्ति की तुलना में सैक्स की कम इच्छा करता है. जब वह इच्छा करेगा भी, न तो वह पार्टनर को संतुष्ट कर पाता है और न खुद ही संतुष्ट हो पाता है. इस में दोराय नहीं है कि सैक्स सब के जीवन का अभिन्न हिस्सा है. ऐसे में न सिर्फ खानपान, जीवनशैली आदि का खयाल रखना होता है बल्कि कुछ सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो नशीले पदार्थों के आदी होते हैं.

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लब्बोलुआब यह है कि भविष्य को आनंदमय बनाना है तो युवावस्था से ही इस का ध्यान रखना होगा. इतना ही नहीं, अपने भावनात्मक रिश्तों को भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है. आज के दौर में बच्चे अपने कैरियर के लिए घर से दूर चले जाते हैं. ऐसे में मातापिता घर में अकेले रह जाते हैं. ऐसे पतिपत्नी के लिए सैक्स जीवन को ऊर्जावान बनाए रखता है. कहने की बात नहीं है कि सैक्स शारीरिक क्रिया के अलावा मानसिक संतुष्टि भी है. इसलिए चैन और सुकून से जीने के लिए अपने लाइफस्टाइल को बदल डालें और 60 वर्ष की उम्र के बाद भी गुनगुनाएं, अभी तो मैं जवान हूं…

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सवाल

मैं विवाहित युवक हूं. अपनी बीवी की एक असंगत समस्या से परेशान हूं. जब भी रात को हम सहवास करने के लिए बिस्तर पर जाते हैं, तो पत्नी पूछती है कि करोगे क्या? उठो करो. इस से मैं खीज जाता हूं कि न कोई फोरप्ले, न कोई उत्साह. कृपया बताएं कि क्या करूं कि बीवी अपना व्यवहार बदले और हम दोनों सहवास का पूरापूरा आनंद उठा सकें?

जवाब 

आप अपनी पत्नी को समझाएं कि सहवास अन्य दैनिक कार्यों से अलग क्रिया है. यह वह कार्य नहीं है जिसे झटपट निबटा लिया जाए. इस में तन के साथ साथ मन से भी सक्रिय होना होता है, इसलिए हड़बड़ी न मचाए. सहवास में प्रवृत्त होने से पहले स्पर्श, आलिंगन, चुंबन आदि रतिक्रीड़ाएं करनी चाहिए. इस से मजा दोगुना हो जाता है. यदि आप पत्नी को प्यार से समझाएंगे तो वह आप की बात पर जरूर गौर करेगी. उस के बाद सहवास दोनों के लिए रुचिकर हो जाएगा.

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सैक्स से पहले छेड़छाड़ है बेहद जरूरी

प्रिया का कहना है कि उस का पति जिस्मानी रिश्ता बनाते समय बिलकुल भी छेड़छाड़ नहीं करता और न ही प्यार भरी बातें करता है. उसे तो बस अपनी तसल्ली से मतलब होता है. जब तन की आग बुझ जाती है, तो निढाल हो कर चुपचाप सो जाता है. वह बिन पानी की मछली की तरह तड़पती ही रह जाती है.

कुछ इसी तरह राजेंद्र का कहना है, ‘‘जिस्मानी रिश्ता कायम करते वक्त मेरी पत्नी बिलकुल सुस्त पड़ जाती है. वह न तो इनकार करती है और न ही प्यार में पूरी तरह हिस्सेदार बनती है. न ही छेड़छाड़ होती है और न ही रूठनामनाना. नतीजतन, सैक्स में कोई मजा ही नहीं आता.’’

इसी तरह सरिता की भी शिकायत है कि उस का पति उस के कहने पर जिस्मानी रिश्ता तो कायम करता है, पर वह सुख नहीं दे पाता, जो चरम सीमा पर पहुंचाता हो. हालांकि वह अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है, फिर भी सरिता को ऐसा लगता है, मानो वह अपनी मंजिल पर पहुंच कर भी नहीं पहुंची. सैक्स के दौरान वह इतनी जल्दबाजी करता है, मानो कोई ट्रेन पकड़नी हो. उसे यह भी खयाल नहीं रहता कि सोते समय और भी कई राहों से गुजरना पड़ता है. मसलन छेड़छाड़, चुंबन, सहलाना वगैरह. नतीजतन, सरिता सुख भोग कर भी प्यासी ही रह जाती है.

मनोज की हालत तो सब से अलग  है. उस का कहना है, ‘‘मेरी पत्नी इतनी शरमीली है कि जिस्मानी रिश्ता ही नहीं बनाने देती. अगर मैं उस के संग जबरदस्ती करता हूं, तो वह नाराज हो जाती है. छेड़छाड़ करता हूं, तो तुनक जाती?है, मानो मैं कोई पराया मर्द हूं. समझाने पर वह कहती है कि अभी नहीं, इस के लिए तो सारी जिंदगी पड़ी हुई है.’’

इसी तरह और भी अनगिनत पतिपत्नी हैं, जो एकदूसरे की दिली चाहत को बिलकुल नहीं समझते और न ही समझने की कोशिश करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि शादीशुदा जिंदगी कच्चे धागे की तरह होती है. इस में जरा सी खरोंच लग जाए, तो वह पलभर में टूट सकती है.

पतिपत्नी में छेड़छाड़ तो बहुत जरूरी है, इस के बिना तो जिंदगी में कोई रस ही नहीं, इसलिए यह जरूरी है कि पति की छेड़छाड़ का जवाब पत्नी पूरे जोश से दे और पत्नी की छेड़छाड़ का जवाब पति भी दोगुने मजे से दे. इस से जिंदगी में हमेशा नएपन का एहसास होता है.

अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने के दौरान या किसी दूसरे समय पर भी पति अपनी पत्नी को सहलाए और उस के जवाब में पत्नी पूरे जोश के साथ प्यार से पति के गालों को चूमते हुए अपने दांत गड़ा दे, तो उस मजे की कोई सीमा नहीं होती. पति तुरंत सैक्स सुख के सागर में डूबनेउतराने लगता है.

इसी तरह पत्नी भी अगर जिस्मानी रिश्ता कायम करने से पहले या उस दौरान पति से छेड़छाड़ करते हुए उस के अंगों को सहला दे, तो कुदरती बात है कि पति जोश से भर उठेगा और उस के जोश की सीमा भी बढ़ जाएगी.

कभीकभी यह सवाल भी उठता है कि क्या जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए कायम किया जाता है? क्या दिमागी सुकून से उस का कोई लेनादेना नहीं होता? क्या जिस्मानी रिश्ते के दौरान छेड़छाड़ करना जरूरी है? क्या छेड़छाड़ सैक्स सुख में बढ़ोतरी करती है? क्या छेड़छाड़ से पतिपत्नी को सच्चा सुख मिलता है?

इसी तरह और भी कई सवाल हैं, जो पतिपत्नी को बेचैन किए रहते हैं. जवाब यह है कि जिस्मानी रिश्तों के दौरान छेड़छाड़ व कुछ रोमांटिक बातें बहुत जरूरी हैं. इस के बिना तो सैक्स सुख का मजा बिलकुल अधूरा है. जिस्मानी रिश्ता सिर्फ सैक्स सुख के लिए ही नहीं, बल्कि दिमागी सुकून के लिए भी किया जाता है.

कुछ पति ऐसे होते हैं, जो पत्नी की मरजी की बिलकुल भी परवाह नहीं करते, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए. पत्नी की चाहत का भी पूरा खयाल रखना चाहिए, नहीं तो आप की पत्नी जिंदगीभर तड़पती ही रह जाएगी.

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कुछ औरतें बिलकुल ही सुस्त होती हैं. वे पति को अपना जिस्म सौंप कर फर्ज अदायगी कर लेती हैं. उन्हें यह भी एहसास नहीं होता कि इस तरह वे अपने पति को अपने से दूर कर रही हैं.

कुछ पति जिस्मानी रिश्ता तो कायम करते हैं और जल्दबाजी में अपनी मंजिल पर पहुंच भी जाते हैं, परंतु उन्हें इतना भी पता नहीं होता कि इस के पहले भी और कई काम होते हैं, जो उन के मजे को कई गुना बढ़ा सकते हैं.

कुछ औरतें शरमीली होती हैं. वे जिस्मानी रिश्तों से दूर तो होती ही हैं, छेड़छाड़ को भी बुरा मानती हैं.

अब आप ही बताइए कि ऐसे हालात में क्या पत्नी पति से और पति पत्नी से खुश रह सकता है?

नहीं न… तो फिर ऐसे हालात ही क्यों पैदा किए जाएं, जिन से पतिपत्नी एकदूसरे से नाखुश रहें?

इसलिए प्यार के सुनहरे पलों को छेड़छाड़, हंसीखुशी व रोमांटिक बातों में बिताइए, ताकि आने वाला कल आप के लिए और ज्यादा मजेदार बन जाए.

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घरेलू जिम्मेदारियां : पुरुष कितने सजग

वसुधा ने औफिस से आते ही पति रमेश से पूछा कि अतुल अब कैसा है? फिर वह अतुल के कमरे में चली गई. सिर पर हाथ रखा तो महसूस हुआ कि वह बुखार से तप रहा है.

वह घबरा कर चिल्लाई, ‘‘रमेश, इसे तो बहुत तेज बुखार है. डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा.’’

जब तक रमेश कमरे में आते तब तक वसुधा की निगाह अतुल के बिस्तर की बगल में रखी उस दवा पर पड़ गई जो दोपहर में उसे खानी थी.

बुखार तेज होने का कारण वसुधा की समझ में आ गया था. उस ने रमेश से पूछा, ‘‘तुम ने अतुल को समय पर दवा तो खिला दी थी न?’’

‘‘मैं समय पर दवा ले कर तो आया था पर यह सो रहा था. मैं ने 1-2 आवाजें लगाईं. जब नहीं सुना तो दवा रख कर चला गया कि जब उठेगा खुद खा लेगा. मुझे क्या पता कि उस ने दवा नहीं खाई होगी.’’

परेशान वसुधा ने गुस्से से कहा, ‘‘रमेश, दवा लेने और दवा खिलाने में फर्क होता है. तुम क्या समझोगे इस बात को. कभी बच्चे की देखभाल की हो तब न,’’ और फिर उस ने अतुल को जल्दी से 2-3 बिस्कुट खिला कर दवा दी और सिर पर ठंडी पट्टी रखने लगी. आधे घंटे बाद बुखार थोड़ा कम हो गया, जिस से डाक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ी.

असल में वसुधा के 10 साल के बेटे अतुल को बुखार था. उस की छुट्टियां समाप्त हो गई थीं, इसलिए रमेश को बेटे की देखभाल के लिए छुट्टी लेनी पड़ी. औफिस निकलने से पहले वसुधा ने रमेश को कई बार समझाया था कि अतुल को समय से दवा खिला देना, पर जिस बात का डर था, वही हो गया.

75 वर्षीय विमला गुप्ता हंसते हुए कहती हैं, ‘‘यह कहानी तो घरघर की है. पिछले सप्ताह मैं अपनी बहू के साथ शौपिंग करने गई थी. 2 साल की पोती को संभालने की जिम्मेदारी उस के दादाजी की थी. पोती को संभालने के चक्कर में दादाजी ने न तो समय देखा न जरूरी बात याद रखी, घर में ताला लगा पोती को साथ ले कर निकल पड़े पार्क की तरफ. इसी बीच नौकरानी आ कर लौट गई. घर आते ही देखा, ढेर सारे बरतनों के साथ किचन हमारा इंतजार कर रही है. एक काम किया पर दूसरा बिगाड़ कर रख दिया.’’

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इन बातों को पढ़ते हुए कहीं आप यह तो नहीं सोच रहीं कि अरे यहां तो अपना ही दर्द बयां किया जा रहा है. जी हां, अधिकांश महिलाओं को यह शिकायत रहती है कि पति या घर के किसी पुरुष सदस्य को कोई काम कहो तो तो वह करता तो है पर या तो अनमने ढंग से या ऐसे कि कहने वाले की परेशानी बढ़ जाती है. आखिर ऐसा क्यों होता है कि पुरुषों द्वारा किए जाने वाले घरेलू कार्य ज्यादातर स्त्रियों को पसंद नहीं आते? उन के काम में सुघड़ता की कमी रहती है अथवा वे जानबूझ कर तो आधेअधूरे काम तो नहीं करते हैं?

पुरुषों की प्रकृति एवं प्रवृत्ति में भिन्नता

इस संबंध में अनुभवी विमला गुप्ता का कहना है कि असल में स्त्रीपुरुषों के काम करने की प्रवृत्ति और प्रकृति में फर्क होता है. ज्यादातर पुरुषों को बचपन से ही घर के कामों से अलग रखा जाता है, जबकि लड़कियों को घर के कार्य सिखाने पर जोर दिया जाता है. ऐसे में पुरुषों के पास इन कार्यों के लिए धैर्य की कमी होती है और वे औफिस की तरह ही हर जगह अपना काम निबटाना चाहते हैं. खासकर घरगृहस्थी के कामों में, जो कहा जाता है उसे वे ड्यूटी समझ कर पूरा करने की कोशिश करते हैं, उन्हें उन कामों से कोई विशेष लगाव या जुड़ाव महसूस नहीं होता.

इस के विपरीत स्त्रियां स्वभाव से ही काम करने के मामले में अपेक्षाकृत ज्यादा ईमानदार होती हैं. वे सिर्फ काम ही नहीं करतीं, बल्कि उस काम विशेष के अलावा उस से संबंधित अन्य कई बातों को ले कर भी ज्यादा संजीदा रहती हैं.

बेफिक्र एवं आलसी

दूध चूल्हे पर चढ़ा कर भूल जाना, दरवाजा खुला छोड़ देना, टीवी देखतेदखते सो जाना, पानी पी कर फ्रिज में खाली बोतल रख देना, सामान इधरउधर फैला कर रखना और भी न जाने कितनी ऐसी छोटीबड़ी बातें हैं, जिन्हें देख कर यह माना जाता है कि पुरुष स्वभाव से ही बेफिक्र, स्वतंत्र और लापरवाह होते हैं पर वास्तव में ऐसा नहीं है कि वे घरेलू काम सही ढंग से नहीं कर सकते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार वास्तविकता यह है कि ज्यादातर उन के किए बिना ही सब कुछ मैनेज हो जाता है तो वे आलसी बन जाते हैं और घरेलू काम करने से कतराने लगते हैं. एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कुछ पुरुष घरेलू कामों को करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं. वे घंटों बैठ कर टीवी के बेमतलब कार्यक्रम देख सकते हैं पर घरेलू काम नहीं कर सकते.

दोहरी जिम्मेदारी निभाना टेढ़ी खीर

इस बात को कई पुरुष भी स्वीकार कर चुके हैं कि घर और औफिस दोनों मैनेज करना अपने वश की बात नहीं है. पर महिला चाहे कामकाजी हो या हाउसवाइफ, आज के जमाने में उस का एक पैर रसोई में तो दूसरा घर के बाहर रहता है. घरेलू महिला को भी घर के कामों के अलावा बैंक, स्कूल, बिजलीपानी के बिल जमा करना, शौपिंग जैसे बाहरी काम खुद करने पड़ते हैं जबकि इस की तुलना में पति शायद ही घर के कामों में उतनी मदद करता हो. अगर महिला कामकाजी हो तो कार्य का भार कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है. उसे अपने औफिस के काम के साथसाथ पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाना पड़ता है. महिलाएं अपनी घरेलू जिम्मेदारियों से कभी मुक्त नहीं हो पातीं. दोहरी जिम्मेदारी को निभाते रहने के कारण कामकाजी होते हुए भी वे सदा घरगृहस्थी के कामों से भी जुड़ी होती हैं. अत. उन में काम निबटाने की सजगता और निपुणता स्वत: ही आ जाती है.

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अनुभव एवं परिपक्वता

मीनल एक उच्च अधिकारी हैं, जिन का खुद का रूटीन बहुत व्यस्त रहता है, फिर भी वे कहती हैं, ‘‘सुबह का समय तो पूछो मत कैसे भागता है. आप कितने भी ऊंचे ओहदे पर हों, घर के सदस्य आप से बेटी, पत्नी, बहू, मां के रूप में अपेक्षाएं तो रखते ही हैं, जबकि पुरुषों से ऐसी अपेक्षाएं कम ही रखी जाती हैं. ऐसे में चाहे मजबूरी हो या जरूरत, महिलाओं को मल्टीटास्कर बनना ही पड़ता है अर्थात एकसाथ कई काम करना जैसे एक तरफ दूध उबला जा रहा है, तो दूसरी तरफ वाशिंग मशीन में कपड़े धोए जा रहे हैं, बच्चे का होमवर्क कराया जा रहा है तो उसी समय पति की चाय की फरमाइश पूरी की जा रही है. इन कामों को करतेकरते स्त्रियां पुरुष की अपेक्षा घरेलू कामों में अधिक कार्यकुशल, अनुभवी और परिपक्व हो जाती हैं.’’

एक शोध के मुताबिक स्त्रियों का मस्तिष्क पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय रहता है जिस के कारण वे एकसाथ कई कामों को अंजाम दे पाती हैं.

जार्जिया और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक स्टडी रिपोर्ट के अनुसार महिलाएं ज्यादा अलर्ट, फ्लैक्सिबल और और्गेनाइज्ड होती हैं. वे अच्छी लर्नर होती हैं, इस तरह की कई दलीलें दे कर इस बात को साबित किया जा सकता है कि पुरुषों में घरेलू जिम्मेदारियां निभाने की क्षमता स्त्रियों की अपेक्षा कम होती है.

अब सोचने वाली बात यह है कि आधुनिक जमाने में जब पत्नी कामकाजी हो कर पति के बराबर आर्थिक सहयोग कर रही है तो पुरुष का भी दायित्व बनता है कि वह भी घरेलू जिम्मेदारियों को निभाने में खुद को स्त्री के बराबर ही सजग और निपुण साबित करे.

विवाह बाद प्रेम में कटौती नहीं

विवाह के बाद पुरुषों की प्रेमभावना कुंद हो जाने पर अधिकांश महिलाएं खुद को छला हुआ महसूस करती हैं, जबकि पुरुष भी ऐसा ही महसूस करते हैं. अकसर महिलाएं शिकायत करती हुई कहती हैं कि जैसे ही कोई महिला किसी पुरुष के प्रति प्रेम में प्रतिबद्घ होती है वैसे ही उन की प्रेमभावना स्त्री के प्रति खत्म हो जाती है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू के जानेमाने समाजशास्त्री डा. अमित कुमार शर्मा का कहना है, ‘‘कुछ प्राकृतिक गुणों के कारण स्त्रियों के प्रति पुरुषों की प्रेमभावना अधिक समय तक सशक्त नहीं रह पाती है जिस के कारण महिलाएं खुद को उपेक्षित और छला हुआ अनुभव करती हैं और ऐसे क्षणों की तलाश में रहती हैं कि जब पुरुष उन के प्रति आकर्षित हो. लेकिन पहले जैसी आसक्ति व प्रेमाभिव्यक्ति हो पाना संभव नहीं हो पाता.’’

अधिकतर पुरुष, स्त्रीप्राप्ति के लिए अपनी प्रेमाभिव्यक्ति को एक हथियार के रूप में प्रयोग करते हैं. उन का यह हथियार उसी प्रकार होता है जिस तरह कोई शिकारी अपने हथियार से शिकार करने के बाद उसे खूंटी पर टांग देता है. उसी प्रकार पुरुष अपनी प्रेमाभिव्यक्ति को अपनी जेब में रख लेते हैं जब तक कि उन्हें दोबारा इस की जरूरत न पड़े. दूसरी ओर, महिलाएं आवेश में किए गए प्रेम को भी अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लेती हैं.

प्रेम आनंद-प्रेम दर्द

यौवन से भरपूर 24 वर्षीय मिनीषा गुप्ता का कहना है, ‘‘प्रेम आनंद के साथ शुरू होता है और जब हम शादी कर लेते हैं तो यही प्रेम दर्द का कारण बनता है. जैसा कि मैं देख रही हूं कि हमारी शादी को मात्र 2 वर्ष हुए हैं और अभी से मेरे पति मुझे नजरअंदाज करने लगे हैं. जबकि, शादी से पहले वे मुझे दुनिया की सब से खूबसूरत युवती बताते थे. मेरे हाथों को सहलाते हुए उन्हें दुनिया के सब से मुलायम हाथ करार देते थे. वे अब मेरी भौतिक सुविधाओं का तो खयाल करते हैं लेकिन मैं उन के मुंह से प्यार के दो बोल सुनने को तरस जाती हूं.’’

पत्नियों की यह भी एक आम शिकायत है कि उन के पति उन्हें एक साथी या पार्टनर के रूप में बहुत कम स्वीकारते हैं. अधिकतर पुरुष भावनात्मक स्तर पर बिना कुछ बांटे पति की भूमिका निभाते हैं.

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कुछ महिलाएं तो यहां तक कहती हैं कि कई पतियों को पत्नी से जुड़ी जानकारी तक नहीं होती. वे जल्दी बच्चे भी नहीं चाहते पर किसी प्रकार के गर्भनिरोधक इस्तेमाल करने के प्रति भी लापरवाह होते हैं और पत्नी के गर्भवती होते ही वे अपनी दुनिया में खो जाते हैं. पत्नी को अपना ध्यान रखने की हिदायतें देने के बाद वे किसी किस्म की जिम्मेदारी नहीं बांटते.

दांपत्य जीवन

पत्नियां अब शादी को सिर्फ खाना पकाना, बच्चे पैदा करना और घरगृहस्थी संभालना मात्र ही नहीं मानतीं. लेकिन फिर भी महिलाओं के मन में यह कसक तो बनी ही रहती है कि पति शादी से वह सबकुछ पा जाता है जो वह चाहता है लेकिन उसे उस का पूरा हिस्सा ईमानदारी के साथ नहीं मिलता. जिस शारीरिक जरूरत को पति बेफिक्री व हक से प्राप्त कर लेता है जबकि पत्नी द्वारा उसी जरूरत की मांग करने पर उस को तिरस्कार से देखा जाता है.

अधिकतर महिलाएं पुरुषों की मानसिकता अब अच्छी तरह समझने लगी हैं. उन के अनुसार, भारतीय पुरुष आज भी दांपत्य रिश्तों के मामलों में आदिमानव की तरह ही हैं. जबकि पुरुषों के लिए यह समझना जरूरी है कि उन का दांपत्य जीवन और सैक्स से जुड़ी हर गतिविधि तभी सुखद व आनंददायी होगी जब वे शारीरिक व मानसिक तौर पर फिट होंगे.

आज के दौर में पति व पत्नी में शारीरिक संबंधों को खुल कर भोगने की लालसा तेज हुई है. लिहाजा, यह जरूरी है कि दांपत्य में झिझक से परे हो कर सुखों को आपस में ज्यादा से ज्यादा बांटने की कोशिश की जाए. भारतीय पुरुषों की सब से बड़ी समस्या यह है कि उन्हें एक अच्छे प्रेमी की भूमिका निभानी नहीं आती है और जो थोड़ीबहुत आती भी है वह पति के रूप में आते ही लगभग खत्म हो जाती है. पति के लिए करवाचौथ का व्रत रखने वाली, साड़ी और बिंदी में सजीसंवरी पत्नी अगर प्यार के सुख की चाहत रखती है तो वह पति की भृकुटि का निशाना बन जाती है.

एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार  67 प्रतिशत भारतीय पुरुष पत्नी के साथ शारीरिक संबंधों को ले कर ज्यादा खुदगर्ज होते हैं.

पुरुष बनाम महिला

ब्रिटेन की आर्थिक एवं सामाजिक शोध परिषद द्वारा 40 हजार गृहिणियों पर किए गए अध्ययन से भी ज्ञात होता है कि पुरुषों की अपेक्षा वे विवाह से जल्दी ऊब जाती हैं क्योंकि महिलाएं संबंध बनाने में अधिक निष्ठा से सम्मिलित होती हैं जबकि पुरुष परस्पर संबंधों में लापरवाह होने के कारण भूल जाता है कि महिला को प्रेम की भी आवश्यकता है.  पुरुष अपने ऊपर लगे आरोपों का खंडन करते हुए कहते हैं कि प्रेम में कमी के लिए महिलाएं खुद दोषी हैं. क्योंकि शादी के बाद महिलाएं उतनी आकर्षक नहीं रह पातीं, जितनी वे शादी से पूर्व होती हैं. वे अपनी देखभाल उतनी नहीं करती हैं जितनी वे शादी से पूर्व करती थीं.

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इस संबंध में कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि विपरीत लिंगी को आकर्षित करने के लिए किसी प्रकार के ढोंग की आवश्यकता नहीं है. सच्चे प्रेमी भौतिक प्रेम की अपेक्षा आत्मिक प्रेम को अधिक महत्त्व देते हैं. इसलिए शारीरिक रूप से आकर्षित करने का तरीका छोड़ना आप के लिए बेहतर होगा. जिसे आप पसंद करते हो, तो, ‘जो है जैसा है’ के आधार पर करें. यदि आप की प्रेमभावना उस के प्रति वास्तविक है तो वह ऐसी नहीं होगी कि वह शादी के बाद खत्म हो जाए. असीमित और अनावश्यक उम्मीद रखने पर आप को निराश होना पड़ेगा. अपनेआप को सच्चे जीवनसाथी के रूप में ढालने के बाद ही आप उन्मुक्त हो कर एकदूसरे के साथ जीवन का आनंद ले सकते हैं.

मेरे पति का 2 लड़कियों के साथ अफेयर चल रहा है, मैं क्या करुं?

सवाल

मैं विवाहित युवती हूं. मेरे पति के 2 युवतियों से संबंध हैं. मैं बहुत परेशान हूं और मुझे आपसे बहुत उम्मीद है. कृपया बताएं कि मैं ऐसा क्या करूं जिस से अपने पति को उन युवतियों के चंगुल से बचा सकूं?

जवाब

लगता है, आप अपनी घरगृहस्थी में कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो पति के प्रति लापरवाह होती गईं. घर में अपेक्षित प्यार और तवज्जो न मिलने के कारण ही आप के पति ने बाहर दूसरी महिलाओं से संबंध बना लिए. उन्हें वापस पाने के लिए आप को अब थोड़े धीरज से काम लेना होगा.

पति जब भी घर आएं उन के साथ बिलकुल सामान्य व्यवहार करें. उन्हें तानेउलाहने न दें, न ही उन से लड़ाई झगड़ा करें, वरना वे घर आने से भी कतराने लगेंगे, जो आप के हित में नहीं होगा. पति जितनी देर घर रहें उन्हें भरपूर प्यार दें. धीरेधीरे उन का बाहर से वैसे भी मोहभंग हो जाएगा. विवाहित पुरुषों को युवतियां ज्यादा दिनों तक घास नहीं डालतीं, साथ ही अवैध संबंधों की मियाद भी ज्यादा लंबी नहीं होती. इसलिए चिंता छोड़ कर पति को वापस पाने के प्रयास में लग जाएं.

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रात के 10 बज रहे थे. 10वीं फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट से सोम कभी इस खिड़की से नीचे देखता तो कभी उस खिड़की से. उस की पत्नी सान्वी डिनर कर के नीचे टहलने गई थी. अभी तक नहीं आई थी. उन का 10 साल का बेटा धु्रव कार्टून देख रहा था. सोम अभी तक लैपटौप पर ही था, पर अब बोर होने लगा तो घर की चाबी ले कर नीचे उतर गया.

सोसाइटी में अभी भी अच्छीखासी रौनक थी. काफी लोग सैर कर रहे थे. सोम को सान्वी कहीं दिखाई नहीं दी. वह घूमताघूमता सोसाइटी के शौपिंग कौंप्लैक्स में भी चक्कर लगा आया. अचानक उसे दूर जहां रोशनी कम थी, सान्वी किसी पुरुष के साथ ठहाके लगाती दिखी तो उस का दिमाग चकरा गया. मन हुआ जा कर जोर का चांटा सान्वी के मुंह पर मारे पर आसपास के माहौल पर नजर डालते हुए सोम ने अपने गुस्से पर कंट्रोल कर उन दोनों के पीछे चलते हुए आवाज दी, ‘‘सान्वी.’’

सान्वी चौंक कर पलटी. चेहरे पर कई भाव आएगए. साथ चलते पुरुष से तो सोम खूब परिचित था ही. सो उसे मुसकरा कर बोलना ही पड़ा, ‘‘अरे प्रशांत, कैसे हो?’’

प्रशांत ने फौरन हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया, ‘‘मैं ठीक हूं, तुम सुनाओ, क्या हाल है?’’

सोम ने पूरी तरह से अपने दिलोदिमाग पर काबू रखते हुए आम बातें जारी रखीं. सान्वी चुप सी हो गई थी. सोम मौसम, सोसाइटी की आम बातें करने लगा. प्रशांत भी रोजमर्रा के ऐसे विषयों पर बातें करता हुआ कुछ दूर साथ चला. फिर ‘घर पर सब इंतजार कर रहे होंगे’ कह कर चला गया.

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जानलेवा रोग पत्नी वियोग

प्यार वाकई आदमी को अंधा बना देता है. इस के चलते आदमी इतना भावुक, भयभीत और संवेदनशील हो जाता है कि फिर व्यावहारिकता और दुनियादारी नहीं सीख पाता. यही ऋषीश के साथ हुआ, जिस ने नेहा से लव मैरिज की थी. प्रेमिका को पत्नी के रूप में पा कर वह बहत खुश था. पेशे से फुटबाल कोच और ट्रेनर ऋषीश की खुशी उस वक्त और दोगुनी हो गई जब करीब डेढ़ साल पहले नेहा ने प्यारी सी गुडि़या को जन्म दिया. भोपाल के कोलार इलाके में स्थित मध्य भारत योद्धाज क्लब को हर कोई जानता है, जिस का कर्ताधर्ता ऋषीश था. हंसमुख और जिंदादिल इस खिलाड़ी से एक बार जो मिल लेता था वह उस का हो कर रह जाता था. मगर कोई नहीं जानता था कि ऊपर से खुश रहने का

नाटक करने वाला यह शख्स कुछ समय से अंदर ही अंदर बेहद घुट रहा था. ऋषीश की जिंदगी में कुछ ऐसा हो गया जिस की उम्मीद शायद खुद उसे भी न थी. गत 3 जुलाई को 32 साल के ऋषीश दुबे ने जहर खा कर आत्महत्या कर ली तो जिस ने भी सुना वह खुदकुशी की वजह जान कर हैरान रह गया. ऋषीश ने पत्नी वियोग में जान दे दी. उस के मातापिता दोनों बैंक कर्मचारी हैं. उस शाम जब वे घर लौटे तो ऋषीश घर में बेहोश पड़ा था.

घबराए मातापिता तुरंत बेटे को नजदीक के अस्पताल ले गए जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. मौत संदिग्ध थी इसलिए पुलिस को बुलाया गया तो पता चला कि ऋषीश ने जहर खाया था. उस की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया. मगर मरने से पहले ऋषीश ने अपनी यादों का जो पोस्टमार्टम कलम से कागज पर किया वह शायद ही कभी मरे, क्योंकि वह जिस्म नहीं एहसास है. तो मैं नहीं रहूंगा

परिवार, समाज और दुनिया से विद्रोह कर नेहा से शादी करने वाला ऋषीश यों ही 3 जुलाई को हिम्मत नहीं हार गया था. हिम्मत हारने की वजह थी कभी उस की हिम्मत रही नेहा जो कुछ महीनों से उस का साथ छोड़ मायके रह रही थी. पति से विवाद होने पर पत्नी का मायके जा कर रहने लगना कोई नई बात नहीं, बल्कि एक परंपरा सी हो चली है, जिस का निर्वाह नेहा ने भी किया और जातेजाते नन्हीं बेटी को भी साथ ले गई, जिस में ऋषीश की सांसें बसती थीं.

2 महीने पहले किसी बात पर दोनों में विवाद हुआ था. यह भी कोई हैरत की बात नहीं थी, लेकिन नेहा ने ऋषीश की शिकायत थाने में कर दी. अपने सुसाइड नोट में ऋषीश ने नेहा को संबोधित करते हुए लिखा कि तुम साथ छोड़ती

हो तो मैं नहीं रहूंगा और मैं साथ छोड़ूंगा तो तुम नहीं रहोगी. 4 पेज का लंबाचौड़ा सुसाइड नोट भावुकता और विरह से भरा है, जिस का सार इन्हीं 2 पंक्तियों में समाया हुआ है. दोनों ने एकदूसरे से वादा किया था कि कुछ भी हो जाए कभी एकदूसरे के बिना नहीं रहेंगे यानी बात मिल के न होंगे जुदा आ वादा कर लें जैसी थी.

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वादा नेहा ने तोड़ा और इसे पुलिस थाने जा कर सार्वजनिक भी कर दिया तो ऋषीश का दिल टूटना स्वाभाविक बात थी. यह वही पत्नी थी जो कभी उस के दिल का चैन और रातों की नींद हुआ करती थी. एक जरा सी खटपट क्या हुई कि वह सब भूल गई. अलगाव से आत्महत्या तक

तुम ने मुझे धोखा दिया धन्यवाद… पत्नी को शादी के पहले के वादे याद दिलाने वाला ऋषीश क्या वाकई पत्नी को इतना चाहता था कि बिना उस के जिंदा नहीं रह सकता था? इस सवाल का जवाब अच्छेअच्छे दार्शनिक और मनोविज्ञानी भी शायद ही दे पाएं. ऋषीश की आत्महत्या की वजह का एक पहलू जो साफ दिखता है वह यह है कि उसे पत्नी से यह उम्मीद नहीं थी. मगर ऐसा तो कई पतियों के साथ होता है कि पत्नी किसी विवाद या झगड़े के चलते मायके जा कर रहने लगती है. लेकिन सभी पति तो पत्नी वियोग में आत्महत्या नहीं कर लेते?

तो क्या आत्महत्या कर लेने वाले पति पत्नी को इतना चाहते हैं कि उस की जुदाई बरदाश्त नहीं कर पाते? इस सवाल के जवाब हां में कम न में ज्यादा मिलते हैं, जिन की अपनी व्यक्तिगत पारिवारिक और सामाजिक वजहें हैं जो अब बढ़ रही हैं, इसलिए पत्नी वियोग के चलते पतियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले भी बढ़ रहे हैं. सामाजिक नजरिए से देखें तो वक्त बहुत बदला है. कभी पत्नी तमाम ज्यादतियां बरदाश्त करती थी, लेकिन मायके वालों की यह नसीहत याद रखती थी कि जिस घर में डोली में बैठ कर जा रही हो वहां से अर्थी में ही निकलना.

इस नसीहत के कई माने थे, जिन में पहला अहम यह था कि बिना पति और ससुराल के औरत की जिंदगी दो कौड़ी की भी नहीं रह जाती. दूसरी वजह आर्थिक थी. समाज और रिश्तेदारी में उन महिलाओं को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता था जो पति को छोड़ देती थीं या जिन्हें पति त्याग देता था. अब हालत उलट है. अब उन पतियों को अच्छी निगाहों से नहीं देखा जाता जिन की पत्नियां उन्हें छोड़ कर चली जाती हैं. पति को छोड़ना आम बात

पत्नी वियोग पहले की तरह सहज रूप से ली जाने वाली बात नहीं रह गई कि गई तो जाने दो दूसरी शादी कर लेंगे. ऐसा अब नहीं होता है, तो यह भी कहा जा सकता है कि हम एक सभ्य, अनुशासित और रिश्तों के समर्पित समाज में रहते हैं. इसी सभ्य समाज का एक उसूल यह भी है कि पत्नी अगर पति को छोड़ कर चली जाए तो पति का रहना दूभर हो जाता है. उसे कठघरे में खड़ा कर तमाम ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि वह घबरा उठता है. ऐसे ही कुछ कमैंट्स इस तरह हैं:

क्या उसे संतुष्ट नहीं रख पा रहे थे? क्या उस का कहीं और अफेयर था? क्या घर वाले उसे परेशान करते थे? क्या उस में कोई खोट आ गई थी? क्या यार एक औरत नहीं संभाल पाए, कैसे मर्द हो? आजकल औरतें आजादी और हालात का फायदा इसी तरह उठाती हैं. जाने दो चली गई तो भूल कर भी झुक कर बात मत करना. अब फंसो बेटा पुलिस, अदालत के चक्करों में. सुना है उस ने रिपोर्ट लिखा दी? अब कैसे कटती हैं रातें? कोई और इंतजाम हो गया क्या? कोई भी पति इन और ऐसे और दर्जनों बेहूदे सवालों से बच नहीं सकता. खासतौर से उस वक्त जब पत्नी किसी भी शर्त पर वापस आने को तैयार न हो.

क्या करे बेचारा पत्नी के वापस न आने की स्थिति में पति के पास करने के नाम पर कोई खास विकल्प नहीं रह जाते. पहला रास्ता कानून से हो कर जाता है जिस पर कोई पढ़ालिखा समझदार तो दूर अनपढ़, गंवार पति भी नहीं चलना चाहता. इस रास्ते की दुश्वारियों को झेल पाना हर किसी के बस की बात नहीं होती. पत्नी को वापस लाने का कानून वजूद में है, लेकिन वह वैसा ही है जैसे दूसरे कानून हैं यानी वे होते तो हैं, लेकिन उन पर अमल करना आसान नहीं होता.

दूसरा रास्ता पत्नी को भूल जाने का है. ज्यादातर पति इसे अपनाते भी हैं, लेकिन इस विवशता और शर्त के साथ कि जब तक रिश्ता पूरी तरह यानी कानूनी रूप से टूट न जाए तब तक भजनमाला जपते रहो यानी तमाम सुखों से वंचित रहो.

तीसरा व चौथा रास्ता भी है, लेकिन वे भी कारगर नहीं. असल दिक्कत उन पतियों को होती है जो वाकई अपनी पत्नी से प्यार करते हैं. ये रास्ता नहीं ढूंढ़ते, बल्कि सीधे मंजिल पर आ पहुंचते हैं यानी खुदकुशी कर लेते हैं जैसे भोपाल के ऋषीश ने की और जैसे राजस्थान के उदयपुर के विनोद मीणा ने की थी. आत्महत्या और प्रतिशोध भी

गत 14 जुलाई को उदयपुर के गोवर्धन विलास थाना इलाके में रहने वाले विनोद का भी किसी बात पर पत्नी से विवाद हुआ तो वह भी मायके चली गई. 5 दिन विनोद ने पत्नी का इंतजार किया पर वह नहीं आई तो कुछ इस तरह आत्महत्या की कि सुनने वालों की रूह कांप गई. कोल माइंस में काम करने वाले विनोद ने खुद को डैटोनेटर बांध लिया यानी मानव बम बन गया और खुद में आग लगा ली. विनोद के शरीर के इतने चिथड़े उड़े कि उस का पोस्टमार्टम करना मुश्किल हो गया.

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विनोद के उदाहरण में प्यार कम दबाव ज्यादा है, जिस का बदला उस ने खुद से लिया. मुमकिन है विनोद को भी दूसरे आत्महत्या करने वाले पतियों की तरह पुरुषोचित अहम पर चोट लगी हो या स्वाभिमान आहत हुआ हो अथवा वह भी दुनियाजहान के संभावित सवालों का सामना करने से डर रहा हो. जो भी हो, लेकिन पत्नी वियोग में इतने घातक और हिंसक तरीके से आत्महत्या कर लेने का यह मामला अपवाद था, जिस में ऋषीश की तरह काव्य या भावुकता नहीं थी. थी तो एक खीज और बौखलाहट जो हर उस पति में होती है, जिस की पत्नी उसे घोषित तौर पर छोड़ जाती है. क्या पति इतने पजैसिव हो सकते हैं कि पत्नी वियोग में जान ही दे दें? इस का सवाल रोजाना ऐसे मामले देखने के चलते न में तो कतई नहीं दिया जा सकता.

तो फिर जाने क्यों देते हैं पत्नी वियोग में आत्महत्या मध्य प्रदेश के सागर जिले के 21 वर्षीय ब्रजलाल ने भी की थी. लेकिन यहां वजह जुदा थी. ब्रजलाल की शादी को अभी 3 महीने ही हुए थे कि उस की पत्नी अपने प्रेमी के साथ भाग गई.

ब्रजलाल के सामने चिंता या तनाव यह था कि अब किस मुंह से वह रिश्तेदारों और समाज के चुभते सवालों का सामना करेगा. हालांकि चाहता तो कर भी सकता था, लेकिन 21 साल के नौजवान से ऐसी उम्मीद लगाना व्यर्थ है कि वह दुनिया से लड़ पता. यहां वजह वियोग नहीं, बल्कि कहीं नाक थी. ब्रजलाल के पास मुकम्मल वक्त और मौका था कि वह अपनी पत्नी की करतूत और उस के मायके वालों की गलती लोगों को बताता और फिर तलाक ले कर दूसरी शादी कर लेता. यह भी लंबी प्रक्रिया होती, लेकिन इस के लिए उस के पास समय तो था पर हिम्मत, सब्र और समझदारी नहीं थी.

समय उन के पास नहीं होता जिन की पत्नियां कुछ या कईर् साल प्यार से गुजार चुकी होती हैं, लेकिन फिर एकाएक छोड़ कर चली जाती हैं, ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जो पति बगैर पत्नियों के नहीं रह सकते वे आखिर उन्हें जाने ही क्यों देते हैं? यह एक दुविधाभरा सवाल है, जिस में लगता नहीं कि पत्नी को चाहने वाला कोई पति जानबूझ कर उसे भगाता या जाने देता हो. तूतू, मैंमैं आम है और दांपत्य का हिस्सा भी है, लेकिन यहां आ कर पतियों की वकालत करने को मजबूर होना ही पड़ता है कि पत्नियां अपनी मनमानी के चलते जाती हैं. वे अपनी शर्तों पर जीने की जिद करने लगें तो पति बेचारे क्या करें सिवा इस के कि पहले उन्हें जाता हुए देखते रहें, फिर विरह के गीत गाएं और फिर पत्नी को बुलाएं. इस पर भी वे न आएं तो उन की जुदाई में खुदकुशी कर लें.

क्या कुछ पत्नियां पति के प्यार को हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं? इस सवाल का जवाब भी साफ है कि हां करती हैं, जिस की परिणीति कभीकभी पति की आत्महत्या की शक्ल में सामने आती है. कोई पत्नी इस जिद पर अड़ जाए कि शादी के 5 साल हो गए अब मांबाप या परिवार से अलग रहने लगें तो पति का झल्लाना स्वाभाविक है कि जब सबकुछ ठीकठाक चल रहा है तो अलग क्यों होएं? इस पर पत्नी जिद करते यह शर्त थोप दे कि ठीक है अगर मांबाप से अलग नहीं हो सकते तो मैं ही चली जाती हूं. जब अक्ल ठिकाने आ जाए तो लेने आ जाना. और वह सचमुच सूटकेस उठा कर बच्चों सहित या बिना बच्चों के चली भी जाती है. पीछे छोड़ जाती है पति के लिए एक दुविधा जिस का कोई अंत या इलाज नहीं होता.

ऐसी और कई वजहें होती हैं, जिन के चलते पत्नियां आगापीछा कुछ नहीं सोच पातीं सिवा इस के कि चार दिन अकेला रहेगा तो पत्नी की कीमत समझ आ जाएगी. ये पत्नियां यह नहीं सोचतीं कि उन की कीमत तो पहले से ही पति की जिंदगी में है जिसे यों वसूला जाना घातक सिद्घ हो सकता है. इस पर भी पति न माने तो पुलिस थाने और कोर्टकचहरी की नौबत लाना पति को आत्महत्या के लिए उकसाने जैसी ही बात है.

बचें दोनों पत्नी को हाथोंहाथ लेने को तैयार बैठे मायके वाले भी बात की तह तक नहीं पहुंच पाते. बेटी या बहन जो कह देती है उसे ही सच मान बैठते हैं और उस का साथ भी यह कहते हुए देते हैं कि अच्छा यह बात है, तो हम भी अभी मरे नहीं हैं.

मरता तो वह पति है जो ससुराल वालों से यह झूठी उम्मीद लगाए रहता है कि वे बेटी की गलती को शह नहीं देंगे, बल्कि उसे समझाएंगे कि वह अपने घर जा कर रहे. वहां पति और उस के घर वालों को उस की जरूरत है. ऐसी कहासुनी तो चलती रहती है. इस की वजह से घर छोड़ आना बुद्धिमानी की बात नहीं. मगर जब ऐसा होता नहीं तो पति की रहीसही उम्मीदें भी टूट जाती हैं. भावुक किस्म के पति जो वाकई पत्नी के बगैर नहीं रह सकते उन्हें अपनी जिंदगी बेकार लगने लगती है और फिर वे जल्द ही सब का दामन छोड़ देते हैं, इसलिए थोड़े गलत तो वे भी कहे जाएंगे. पत्नी के चले जाने

पर पति थोड़ी सब्र रखें तो उन की जिंदगी बच सकती है. कई मामलों में देखा गया है कि पति अहं, स्वाभिमान या जिद को छोड़ पत्नी के मायके जा कर उस से घर चलने के लिए मिन्नतें करता है तो पत्नी के भाव और बढ़ जाते हैं और वह वहीं उस का तिरस्कार या अपमान कर देती है. ऐसी हालत में अच्छेअच्छे का दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है तो फिर ऋषीश जैसों की गलती या हैसियत क्या जो प्यार के हाथों मजबूर होते हैं.

क्या करे पत्नी पत्नियों को चाहिए कि समस्या वाकई अगर कोईर् है तो उसे पति के साथ रहते ही सुलझाने की कोशिश करें, वजह पतिपत्नी दोनों वाकई एक गाड़ी के 2 पहिए होते हैं, जिन्हें घर के बाहर की लड़ाई संयुक्तरूप से लड़नी होती है. पति अगर आर्थिक, भावनात्मक या व्यक्तिगत रूप से पत्नी पर ज्यादा निर्भर है या असामान्य रूप से संवेदनशील है तो जिम्मेदारी पत्नी की बनती है कि वह उसे छोड़ कर न जाए.

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क्या किसी ऐसी जिद की सराहना की जानी चाहिए जिस के चलते पत्नी खुद अपनी ही वजह से विधवा हो रही हो. कोई भी हां नहीं कहेगा. मातापिता की भूमिका पति के घर वालों खासतौर से मांबाप को भी चाहिए कि वे ऐसे वक्त में बेटे का खास खयाल रखें बल्कि वह भावुक हो तो नजर रखें और बहू न आ रही हो तो बेटे को समझाएं कि इस में कुछ खास गलत नहीं है और न ही प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है और हो भी रही हो तो उस की कीमत बेटे की खुशी के आगे कुछ नहीं. इस तरह की बातें उसे हिम्मत देने वाली साबित होंगी. अगर इतना भी नहीं कर सकते तो उस पर ताने तो बिलकुल न कसें. पतियों को छोड़ कर चली जाने वाली पत्नियां और दुविधा में पड़े विरह में जी रहे पतियों को फिल्म ‘आप की कसम’ का यह गाना जरूर गुनगुना लेना चाहिए- ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वे फिर नहीं आते…’

पत्नी विरह प्रधान इस फिल्म में नायक बने राजेश खन्ना ने आत्महत्या तो नहीं की थी पर उस की जिंदगी किस तरह मौत से भी बदतर हो गई थी, यह फिल्म में खूबसूरती से दिखाया गया है. इसलिए पतियों को भी इस गाने का यह अंतरा याद रखना चाहिए- ‘कल तड़पना पड़े याद में जिन की, रोक लो उन को रूठ कर जाने न दो…’

मेरी बीवी को कंसीव करने में दिक्कत आ रही हैं, कृपया कारण बताएं?

सवाल

मैं 35 साल का हूं और मेरी बीवी 33 साल की है. मेरी एक बेटी भी है, पर बीवी और बच्चे चाहती है. दिक्कत यह है कि अब वह पेट से नहीं हो पा रही है. मैं ने उसे महिला डाक्टर को भी दिखाया, पर सबकुछ ठीक है. फिर वह पेट से क्यों नहीं हो रही? इस बारे में आप मुझे खुल कर बताएं?

जवाब

जब बीवी में कोई कमी नहीं है, तो वह कभी न कभी जरूर दोबारा पेट से हो जाएगी. आप किसी और माहिर डाक्टर से खुद की भी जांच करा लें. आप के पास बेटी तो है ही. लिहाजा, ज्यादा परेशानी वाली बात नहीं है.

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एक दिन का बौयफ्रैंड

‘‘क्या तुम मेरे एक दिन के बौयफ्रैंड बनोगे?’’ उस लड़की के कहे ये शब्द मेरे कानों में गूंज रहे थे. मैं हक्काबक्का सा उस की तरफ देखने लगा. काली, लंबी जुल्फों और मुसकराते चेहरे के बीच चमकती उस की 2 आंखें मेरे दिल को धड़का गईं. एक अजनबी लड़की के मुंह से इस तरह का प्रस्ताव सुन कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मुझ पर क्या बीत रही होगी.

मैं अच्छे घर का होनहार लड़का हूं. प्यार और शादी को ले कर मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं. बहुत पहले एक बार प्यार में पड़ा था पर हमारी लव स्टोरी अधिक दिनों तक नहीं चल सकी. लड़की बेवफा निकली. वह न सिर्फ मुझे, बल्कि दुनिया छोड़ कर गई और मैं अकेला रह गया.

लाख चाह कर भी मैं उसे भुला नहीं सका. सोच लिया था कि अब अरेंज्ड मैरिज करूंगा. घर वाले जिसे पसंद करेंगे, उसे ही अपना जीवनसाथी मान लूंगा.

अगले महीने मेरी सगाई है. लड़की को मैं ने देखा नहीं है पर घर वालों को वह बहुत पसंद आई है. फिलहाल मैं अपने मामा के घर छुट्टियां बिताने आया हूं. मेरे घर पहुंचते ही सगाई की तैयारियां शुरू हो जाएंगी.

‘‘बोलो न, क्या तुम मेरे साथ..,’’ उस ने फिर अपना सवाल दोहराया.

‘‘मैं तो आप को जानता भी नहीं, फिर कैसे…’’ में उलझन में था.

‘‘जानते नहीं तभी तो एक दिन के लिए बना रही हूं, हमेशा के लिए नहीं,’’ लड़की ने अपनी बड़ीबड़ी आंखों को नचाया. ‘‘दरअसल,

2-4 महीनों में मेरी शादी हो जाएगी. मेरे घर

वाले बहुत रूढि़वादी हैं. बौयफ्रैंड तो दूर कभी मुझे किसी लड़के से दोस्ती भी नहीं करने दी. मैं ने अपनी जिंदगी से समझौता कर लिया है. घर

वाले मेरे लिए जिसे ढूंढ़ेंगे उस से आंखें बंद कर शादी कर लूंगी. मगर मेरी सहेलियां कहती हैं कि शादी का मजा तो लव मैरिज में है, किसी को बौयफ्रैंड बना कर जिंदगी ऐंजौय करने में है. मेरी सभी सहेलियों के बौयफ्रैंड हैं. केवल मेरा ही कोई नहीं है.

‘‘यह भी सच है कि मैं बहुत संवेदनशील लड़की हूं. किसी से प्यार करूंगी तो बहुत गहराई से करूंगी. इसी वजह से इन मामलों में फंसने से डर लगता है. मैं जानती हूं कि मैं तुम्हें आजकल की लड़कियों जैसी बिलकुल नहीं लग रही होऊंगी. बट बिलीव मी, ऐसी ही हूं मैं. फिलहाल मुझे यह महसूस करना है कि बौयफ्रैंड के होने से जिंदगी कैसा रुख बदलती है, कैसा लगता है सब कुछ, बस यही देखना है मुझे. क्या तुम इस में मेरी मदद नहीं कर सकते?’’

‘‘ओके, पर कहीं मेरे मन में तुम्हारे लिए फीलिंग्स आ गईं तो?’’

‘‘तो क्या है, वन नाइट स्टैंड की तरह हमें एक दिन के इस अफेयर को भूल जाना है. यह सोच कर ही मेरे साथ आना. बस एक दिन खूब मस्ती करेंगे, घूमेंगेफिरेंगे. बोलो क्या कहते हो? वैसे भी मैं तुम से 5 साल बड़ी हूं. मैं ने तुम्हारे ड्राइविंग लाइसैंस में तुम्हारी उम्र देख ली है. यह लो. रास्ते में तुम से गिर गया था. यही लौटाने आई थी. तुम्हें देखा तो लगा कि तुम एक शरीफ लड़के हो. मेरा गलत फायदा नहीं उठाओगे, इसीलिए यह प्रस्ताव रखा है.’’

मैं मुसकराया. एक अजीब सा उत्साह था मेरे मन में. चेहरे पर मुसकराहट की रेखा गहरी होती गई. मैं इनकार नहीं कर सका. तुरंत हामी भरता हुआ बोला, ‘‘ठीक है, परसों सुबह 8 बजे इसी जगह आ जाना. उस दिन मैं पूरी तरह तुम्हारा बौयफ्रैंड हूं.’’

‘‘ओके थैंक्यू,’’ कह कर मुसकराती हुई वह चली गई.

घर आ कर भी मैं सारा समय उस के बारे में सोचता रहा.

2 दिन बाद तय समय पर उसी जगह पहुंचा तो देखा वह बेसब्री से मेरा इंतजार कर रही थी.

‘‘हाय डियर,’’ कहते हुए वह करीब आ गई.

‘‘हाय,’’ मैं थोड़ा सकुचाया.

मगर उस लड़की ने झट से मेरा हाथ थाम लिया और बोली, ‘‘चलो, अब से तुम मेरे बौयफ्रैंड हुए. कोई हिचकिचाहट नहीं, खुल कर मिलो यार.’’

मैं ने खुद को समझाया, बस एक दिन. फिर कहां मैं, कहां यह. फिर हम 2 अजनबियों ने हमसफर बन कर उस एक दिन के खूबसूरत सफर की शुरुआत की. प्रिया नाम था उस का. मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा था और वह मेरी बगल में बैठी थी. उस की जुल्फें हौलेहौले उस के कंधों पर लहरा रही थीं. भीनीभीनी सी उस की खुशबू मुझे आगोश में लेने लगी थी. एक अजीब सा एहसास था, जो मेरे जिस्म को महका रहा था. मैं एक गीत गुनगुनाने लगा. वह एकटक मुझे निहारती हुई बोली, ‘‘तुम तो बहुत अच्छा गाते हो.’’

‘‘हां थोड़ाबहुत गा लेता हूं… जब दिल को कोई अच्छा लगता है तो गीत खुद ब खुद होंठों पर आ जाता है.’’

मैं ने डायलौग मारा तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी. दूधिया चांदनी सी छिटक कर उस की हंसी मेरी सांसों को छूने लगी. यह क्या हो रहा है मुझे. मैं मन ही मन सोचने लगा.

तभी उस ने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया, ‘‘माई प्रिंस चार्मिंग, हम जा कहां रहे हैं?’’

‘‘जहां तुम कहो. वैसे मैं यहां की सब से रोमांटिक जगह जानता हूं, शायद तुम भी जाना चाहोगी,’’ मेरी आवाज में भी शोखी उतर आई थी.

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‘‘श्योर, जहां तुम चाहो ले चलो. मैं ने तुम पर शतप्रतिशत विश्वास किया है.’’

‘‘पर इतने विश्वास की वजह?’’

‘‘किसीकिसी की आंखों में लिखा होता है कि वह शतप्रतिशत विश्वास के योग्य है. तभी तो पूरी दुनिया में एक तुम्हें ही चुना मैं ने अपना बौयफ्रैंड बनाने को.’’

‘‘देखो तुम मुझ से इमोशनली जुड़ने की कोशिश मत करो. बाद में दर्द होगा.’’

‘‘किसे? तुम्हें या मुझे?’’

‘‘शायद दोनों को.’’

‘‘नहीं, मैं प्रैक्टिकल हूं. मैं बस 1 दिन के लिए ही तुम से जुड़ रही हूं, क्योंकि मैं जानती हूं हमारे रिश्ते को सिर्फ इतने समय की ही मंजूरी मिली है.’’

‘‘हां, वह तो है. मैं अपने घर वालों के खिलाफ नहीं जा सकता.’’

‘‘अरे यार, खिलाफ जाने को किस ने कहा? मैं तो खुद पापा के वचन में बंधी हूं. उन के दोस्त के बेटे से शादी करने वाली हूं. 6-7 महीनों में वह इंडिया आ जाएगा और फिर चट मंगनी पट विवाह. हो सकता है मैं हमेशा के लिए पैरिस चली जाऊं,’’ उस ने सहजता से कहा.

‘‘तो क्या तुम भी ‘कुछकुछ होता है’ मूवी की सिमरन की तरह किसी अजनबी से शादी करने वाली हो, जिसे तुम ने कभी देखा भी नहीं है?’’ कहते हुए मैं ने उस की आंखों में झांका. वह हंसती हुई बोली, ‘‘हां, ऐसा ही कुछ है. पर चिंता न करो. मैं तुम्हें शाहरुख यानी राज की तरह अपनी जिंदगी में नहीं आने दूंगी. शादी तो मैं उसी से करूंगी जिस से पापा चाहते हैं.’’

‘‘तो फिर यह सब क्यों? मेरे इमोशंस के साथ क्यों खेल रही हो?’’

‘‘अरे यार, मैं कहां खेल रही हूं? फर्स्ट मीटिंग में ही मैं ने साफ कह दिया था कि हम केवल 1 दिन के रिश्ते में हैं.’’

‘‘हां वह तो है. ओके बाबा, आई ऐम सौरी. चलो आ गई हमारी मंजिल.’’

‘‘वैरी नाइस. बहुत सुंदर व्यू है,’’ कहते हुए उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

थोड़ा घूमने के बाद वह मेरे पास आती हुई बोली, ‘‘लो अब मुझे अपनी बांहों में भरो जैसे फिल्मों में करते हैं.’’

वह मेरे और करीब आ गई. उस की जुल्फें मेरे कंधों पर लहराने लगीं. लग रहा था जैसे मेरी पुरानी गर्लफ्रैंड बिंदु ही मेरे पास खड़ी है. अजीब सा आकर्षण महसूस होने लगा. मैं अलग हो गया, ‘‘नहीं, यह नहीं होगा मुझ से. किसी गैर लड़की को मैं करीब क्यों आने दूं?’’

‘‘क्यों, तुम्हें डर लग रहा है कि मैं यह वीडियो बना कर वायरल न कर दूं?’’ वह शरारत से खिलखिलाई. मैं ने मुंह बनाया, ‘‘बना लो. मुझे क्या करना है? वैसे भी मैं लड़का हूं. मेरी इज्जत थोड़े ही जा रही है.’’

‘‘वही तो मैं तुम्हें समझा रही हूं. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, तुम तो लड़के हो,’’ वह फिर से मुसकराई, ‘‘वैसे तुम आजकल के लड़कों जैसे बिलकुल नहीं.’’

‘‘आजकल के लड़कों से क्या मतलब है? सब एकजैसे नहीं होते.’’

‘‘वही तो बात है. इसीलिए तो तुम्हें चुना है मैं ने, क्योंकि मुझे पता था तुम मेरा गलत फायदा नहीं उठाओगे वरना किसी और लड़के को ऐसा मौका मिलता तो उसे लगता जैसे लौटरी लग गई हो.’’

‘‘तुम मेरे बारे में इतनी श्योर कैसे हो कि वाकई मैं शरीफ ही हूं? तुम कैसे जानती हो कि मैं कैसा हूं और कैसा नहीं हूं?’’

‘‘तुम्हारी आंखों ने सब बता दिया मेरी जान, शराफत आंखों पर लिखी होती है. तुम नहीं जानते?’’

इस लड़की की बातें पलपल मेरे दिल को धड़काने लगी थीं. बहुत अलग सी थी वह. काफी देर तक हम इधरउधर घूमते रहे. बातें करते रहे.

एक बार फिर वह मेरे करीब आती हुई बोली, ‘‘अपनी गर्लफ्रैंड को हग भी नहीं करोगे?’’ वह मेरे सीने से लग गई. लगा जैसे वह पल वहीं ठहर गया हो. कुछ देर तक हम ऐसे ही खड़े रहे. मेरी बढ़ी हुई धड़कनें शायद वह भी महसूस कर रही थी. मैं ने भी उसे आगोश में ले लिया. उस पल को ऐसा लगा जैसे आकाश और धरती एकदूसरे से मिल गए हों. कुछ पल बाद उस ने खुद को अलग किया और दूर जा कर खड़ी हो गई.

‘‘बस, कुछ और हुआ तो हमारे कदम बहक जाएंगे. चलो वापस चलते हैं,’’ वह बोली. मैं अपनेआप को संभालता हुआ बिना कुछ कहे उस के पीछेपीछे चलने लगा. मेरी सांसें रुक रही थीं. गला सूख रहा था. गाड़ी में बैठ कर मैं ने पानी की पूरी बोतल खाली कर दी.

सहसा वह हंस पड़ी, ‘‘जनाब, ऐसा लग रहा था जैसे शराब की बोतल एक बार में ही हलक के नीचे उतार रहे हो.’’

उस के बोलने का अंदाज कुछ ऐसा था कि मुझे हंसी आ गई. ‘‘सच, बहुत अच्छी हो तुम. मुझे डर है कहीं तुम से प्यार न हो जाए,’’ मैं ने कहा.

‘‘छोड़ो भी यार. मैं बड़ी हूं तुम से, इस तरह की बातें सोचना भी मत.’’

‘‘मगर मैं क्या करूं? मेरा दिल कुछ और कह रहा है और दिमाग कुछ और.’’

‘‘चलता है. तुम बस आज की सोचो और यह बताओ कि हम लंच कहां करने वाले हैं?’’

‘‘एक बेहतरीन जगह है मेरे दिमाग में. बिंदु के साथ आया था एक बार. चलो वहीं चलते हैं,’’ मैं ने वृंदावन रैस्टोरैंट की तरफ गाड़ी मोड़ते हुए कहा, ‘‘घर के खाने जैसा बढि़या स्वाद होता है यहां के खाने का और अरेंजमैंट देखो तो लगेगा ही नहीं कि रैस्टोरैंट आए हैं. गार्डन में बेंत की टेबलकुरसियां रखी हुई हैं.’’

रैस्टोरैंट पहुंच कर उत्साहित होती हुई प्रिया बोली, ‘‘सच कह रहे थे तुम. वाकई लग रहा है जैसे पार्क में बैठ कर खाना खाने वाले हैं हम… हर तरफ ग्रीनरी. सो नाइस. सजावटी पौधों के बीच बेंत की बनी डिजाइनर टेबलकुरसियों पर स्वादिष्ठ खाना, मन को बहुत सुकून देता होगा.

है न?’’

मैं खामोशी से उस का चेहरा निहारता रहा. लंच के बाद हम 2-1 जगह और गए. जी भर कर मस्ती की. अब तक हम दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. बातें करने में भी मजा आ रहा था. दोनों ने ही एकदूसरे की कंपनी बहुत ऐंजौय की थी, एकदूसरे की पसंदनापसंद, घरपरिवार, स्कूलकालेज की कितनी ही बातें हुईं.

थोड़ीबहुत प्यार भरी बातें भी हुईं. धीरेधीरे शाम हो गई और उस के जाने का समय आ गया. मुझे लगा जैसे मेरी रूह मुझ से जुदा हो रही है, हमेशा के लिए.

‘‘कैसे रह पाऊंगा मैं तुम से मिले बिना? नहीं प्रिया, तुम्हें अपना नंबर देना होगा मुझे,’’ मैं ने व्यथित स्वर में कहा.

‘‘आर यू सीरियस?’’

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‘‘यस आई ऐम सीरियस,’’ मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मुझे नहीं लगता कि अब मैं तुम्हें भूल सकूंगा. नो प्रिया, आई थिंक आई लाइक यू वैरी मच.’’

‘‘वह डील न भूलो मयंक,’’ प्रिया ने याद दिलाया.

‘‘मगर दोस्त बन कर तो रह सकते हैं न?’’

‘‘नो, मैं कमजोर पड़ गई तो? यह रिस्क मैं नहीं उठा सकती.’’

‘‘तो ठीक है. आई विल मैरी यू,’’ मैं ने जल्दी से कहा. उस से जुदा होने के खयाल से ही मेरी आंखें भर आई थीं. एक दिन में ही जाने कैसा बंधन जोड़ लिया था उस ने कि दिल कर रहा था हमेशा के लिए वह मेरी जिंदगी में आ जाए.

वह मुझ से दूर जाती हुई बोली, ‘‘गुडबाय मयंक, मैं शादी वहीं करूंगी जहां पापा चाहते हैं. तुम्हारा कोई चांस नहीं. भूल जाना मुझे.’’ वह चली गई और मैं पत्थर की मूर्त बना उसे जाते देखता रहा. दिल भर आया था मेरा. ड्राइविंग सीट पर अकेला बैठा अचानक फफकफफक कर रो पड़ा. लगा जैसे एक बार फिर से बिंदु मुझे अकेला छोड़ कर चली गई है. जाना ही था तो फिर जरूरत क्या थी मेरी जिंदगी में आने की. किसी तरह खुद को संभालता हुआ घर लौटा. दिन का चैन, रात की नींद सब लुट चुकी थी. जाने कहां से आई थी वह और कहां चली गई थी? पर एक दिन में मेरी दुनिया पूरी तरह बदल गई थी. देवदास बन गया था मैं. इधर घर वाले मेरी सगाई की तैयारियों में लगे थे. वे मुझे उस लड़की से मिलवाने ले जाना चाहते थे, जिसे उन्होंने पसंद किया था. पर मैं ने साफ इनकार कर दिया.

‘‘मैं शादी नहीं करूंगा,’’ मेरा इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया.

‘‘क्यों, कोई और पसंद आ गई?’’ मां ने अलग ले जा कर पूछा.

‘‘हां.’’ मैं ने सीधा जवाब दिया.

‘‘तो ठीक है, उसी से बात करते हैं. पता और फोन नंबर दो.’’

‘‘मेरे पास कुछ नहीं है.’’

‘‘कुछ नहीं, यह कैसा प्यार है?’’ मां ने कहा.

‘‘क्या पता मां, वह क्या चाहती थी? अपना दीवाना बना लिया और अपना कोई अतापता भी नहीं दिया.’’

फिर मैं ने उन्हें सारी कहानी सुनाई तो वे खामोश रह गईं. 6 माह बीत गए. आखिर घर वालों की जिद के आगे मुझे झुकना पड़ा. लड़की वाले हमारे घर आए. मुझे जबरन लड़की के पास भेजा गया. उस कमरे में कोई और नहीं था. लड़की दूसरी तरफ चेहरा किए बैठी थी. मैं बहुत अजीब महसूस कर रहा था.

लड़की की तरफ देखे बगैर मैं ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं आप को किसी भ्रम में नहीं रखना चाहता. दरअसल मैं किसी और से प्यार करने लगा हूं और अब उस के अलावा किसी से शादी का खयाल भी मुझे रास नहीं आ रहा. आई एम सौरी. आप इस रिश्ते के लिए न कह दीजिए.’’

‘‘सच में न कह दूं?’’ लड़की के स्वर मेरे कानों से टकराए तो मैं हैरान रह गया. यह तो प्रिया के स्वर थे. मैं ने लड़की की तरफ देखा तो दिल खुशी से झूम उठा. यह वाकई प्रिया ही थी.

‘‘तुम?’’

‘‘हां मैं, कोई शक?’’ वह मुसकराई.

‘‘पर वह सब क्या था प्रिया?’’

‘‘दरअसल, मैं अरेंज्ड नहीं, लव मैरिज करना चाहती थी. अत: पहले तुम से प्यार का इजहार कराया, फिर इस शादी के लिए रजामंदी दी. बताओ कैसा लगा मेरा सरप्राइज.’’

‘‘बहुत खूबसूरत,’’ मैं ने पल भर भी देर नहीं की कहने में और फिर उसे बांहों में भर लिया.

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कुछ सच शादी के बारे में

व्हाट्सऐप पर शादी को ले कर यह जोक काफी चर्चित हुआ, ‘जो लोग जल्दबाजी में बिना सोचेसमझे शादी का फैसला कर लेते हैं वे अपनी आगे की जिंदगी बरबाद कर लेते हैं, लेकिन जो लोग बहुत सोचसमझ कर शादी करते हैं वे भी क्या कर लेते हैं?’

सच, मजाकमजाक में इस जोक ने शादी का सच बयान कर दिया है. शादी एक जुआ ही तो है. या तो आप का चुनाव सही होगा या फिर नहीं. तो इस से पहले कि आप गठबंधन में बंधने का मन बना लें और 7 वचनों का आदानप्रदान करें, जरा इन बातों पर भी गौर कर लें जो ‘पोस्ट मैरिज बदलाव’ के बारे में हैं और जिन के बारे में आप के मातापिता, दोस्तयार, शुभचिंतक नहीं बताने वाले. अगर आप शादी का लड्डू चख चुके हैं, तो भी इन्हें पढ़ ही लीजिए ताकि आप यह सोचना बंद कर सकें कि यार हमारी रिलेशनशिप में क्या गलत है या हम दोनों में से कौन गलत है, जो गाड़ी बारबार पटरी से उतर जाती है.

जस्ट चिल, यह सब कुछ नौर्मल है, शादी के बाद आदर्श और अवश्यभावी फेज हैं ये:

शादी हर समस्या का समाधान नहीं

भारतीय समाज में शादी को कुछ इस तरह महिमामंडित किया गया है कि हम यह यकीन कर बैठते हैं कि शादी हर समस्या का रामबाण इलाज है. शादी के बाद सब कुछ अपनेआप ठीक हो जाएगा, तो कोई हैरानी की बात नहीं कि दुलहन बनी लड़की यह उम्मीद अपनी पलकों पर सजा लेती है कि उस की जिंदगी शादी के बाद जन्नत बन जाएगी. चांदी के दिन और सोने की रातें होंगी. उस का प्रिंस चार्मिंग उसे एक प्रिं्रसेस की तरह ट्रीट करेगा. बेशक कुछ हद तक ऐसा होता भी है. जिंदगी खुशनुमा होती है, बदलती है, लेकिन शादी से यह उम्मीद न रखें कि यह आप की जिंदगी की हर कमी को पूरा कर देगी, क्योंकि शादी के बाद आप को एक अदद पति ही मिलता है, अलादीन का चिराग नहीं.

दो जिस्म मगर एक जान हैं हम

यह कहना, सुनना, गुनगुनाना बेहद रोमांटिक, हसीन और सच्चा लगता है. मगर वास्तविकता में एक सक्सैसफुल मैरिज वह होती है जहां 2 अलगअलग व्यक्तित्व अपनी रिलेशनशिप को जीवंत और कामयाब बनाए रखने के लिए एकसाथ, लगातार, सामान रूप से प्रयास करते हैं. एकदूसरे के इर्दगिर्द घूमते रहना और शादी के बाद अपनी जिंदगी यह कहते बिताना कि  ‘तेरे नाम पे शुरू तेरे नाम पे खत्म’ एक बोरिंग, आउटडेटेड तरीका है मैरिड लाइफ बिताने का.

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हमेशा अपने पार्टनर को आकर्षक नहीं पाएंगे

शादी के बाद एक वक्त ऐसा भी आएगा जब आप मानसिक धरातल पर, भावनात्मक रूप से एकदूसरे से जुड़े रहेंगे, एकदूसरे के प्रति वफादार रहेंगे, मगर हो सकता है कि आप दोनों के बीच फिजिकल अट्रैक्शन की कमी हो जाए. मतलब कि जो पति आप को पहले रितिक रोशन सा डैशिंग नजर आता था, जिस की फिजिक पर से आप की आंखें नहीं हटती थीं, वह अब आप की आंखों के आकर्षण का केंद्र बिंदु न रहे. इस की 2 वजहे हो सकती हैं. पहली शारीरिक बदलाव. जैसे वजन का बढ़ना, क्योंकि आप भी मानती होंगी कि पति के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर गुजरता है और आप ने यह रास्ता अपना कर उन्हें गुब्बारा बना दिया और दूसरी मानसिक बदलाव जैसे कहते हैं न, घर की मुरगी दाल बराबर, तो रोजरोज उन्हें देखने पर कुछ खास कशिश महसूस न होती हो. खैर, कारण जो भी हों, लेकिन ऐसा होने पर घबराएं नहीं. अपने पार्टनर को आकर्षक नहीं पाने का मतलब यह हरगिज नहीं होता कि आप का प्यार खत्म हो गया है. यह शादी के बाद का एक अस्थाई दौर है. यह भी गुजर ही जाएगा.

प्यार में डूबे रहने की स्टेज की समाप्ति

हम सब जानते हैं हनीमून फ्रेज यानी हैप्पिली एवरआफ्टर अथवा लव फौरएवर के बारे में. लेकिन यह फीलिंग परमानैंट नहीं होती और कई बार तो शादी के कुछ समय बाद एक ऐसा दौर भी आ जाता है कि जब प्यार महसूस होना तो दूर आप स्वयं ही हैरान हो कर खुद से पूछ बैठते हैं कि यार मैं ने इस बंदे से शादी क्यों की? इस में ऐसा क्या खास देख लिया मैं ने?

आप के साथ भी ऐसा हो सकता है, पर रिलैक्स, हर मैरिड कपल इस दौर से कभी न कभी गुजरता है. आप भी गुजर जाएंगे. फिर वक्त बीतने पर एकदूसरे को अच्छी तरह समझने के बाद आप की शादीशुदा जिंदगी में खूबसूरत कागजी फूलों की जगह हकीकत की पथरीली, मगर ठोस जमीन पर सच्चे प्यार के फूल खिलेेंगे, जिन की खुशबू आप की जिंदगी को महका देगी.

कभीकभी पार्टनर से चिढ़, नफरत हो जाना

यहां हम नफरत शब्द का इस्तेमाल शाब्दिक रूप से नहीं कर रहे हैं. लेकिन हां एक ऐसा समय आता है जब हम उन बातों की वजह से ही अपने पार्टनर से चिढ़ने लग जाएं, जिन बातों पर फिदा हो कर से अपना जीवनसाथी चुना था या यह कह लीजिए कि उन की खूबियां ही बाद में आप को उस की खामियां लगने लगें. जैसे उस का सैंस औफ ह्यूमर, उस की हाजिरजवाबी या सब की मदद को सदा तत्पर रहना अथवा क्रिकेट, फुटबौल को ले कर छाया जनून.

फिर भी आप उन बातों को बदलने की कोशिश न करें. आप का जीवनसाथी जैसा है उसे उसी रूप में उन्हें अपनाएं. आखिरकार यह वही व्यक्ति है जिसे आप ने शिद्दत से चाहा था.

अपने पार्टनर से कैसे ट्रीट करें

यह एक और पौपुलर नोशन है. आप पति से यह उम्मीद करती हैं कि वे आप के फैवरेट रोमांटिक हीरो की तरह आप से पेश आएं. जो मौकेबेमौके प्यार भरी बातें करता, लाल गुलाब पेश करता है या मिडनाइट सरप्राइज प्लान करता है.

लेकिन एक सच यह भी है कि अगर आप अपनी शादी में रोमांस को जिंदा रखना चाहती हैं, तो अपने पति को उस तरीके से ट्रीट करें, जो तरीका आप खुद के लिए चाहती हैं. कहने का मतलब यह कि आप उन्हें वैसे सरप्राइज दीजिए, जिन्हें पाने की चाहत आप को है. उन के लिए कैंडल लाइट डिनर अरेंज करें जो आप को भी पसंद है. गुडमौर्निंग किस दीजिए रोज, जो आप खुद पाना चाहती हैं. एक बार उन्हें इस की आदत पड़ने दीजिए, फिर आप को खुद ही रिटर्न ट्रीट मिलनी शुरू हो जाएगी.

शादी हमेशा खुशियों भरी नहीं होती

यह जाननासमझना औैर स्वीकरना आवश्यक है और यह भी कि वक्त जैसेजैसे गुजरता जाएगा हमेशा कोईर् न कोई ऐसा इश्यू आप दोनों के बीच आ खड़ा होेगा, जिस पर आप एकमत नहीं होंगे. लेकिन आप को इन सब से डील करना सीखना होेगा. ऐसा बहुत बार होगा कि पार्टनर की बातें, हरकतें आप को हैरान कर दें. आप उन की मेरी मरजी वाले ट्रैक से परेशान हो जाएं, लेकिन कुछ भी हो, आप को सब्र से काम लेना होगा. कुछ वक्त लें, कुछ उन्हें दें, अपने ईगो को बीच में न आने दें. समस्या जैसी भी हो, सुलझ ही जाएगी.

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एक बच्चा टूटती शादी को नहीं बचा सकता

सच तो यह है कि एक मुश्किल दौर से गुजरते कपल के बीच एक नन्हेमुन्ने की मौजूदगी हालात, तनाव को और बढ़ा देती है. अगर आप को यह सदियों पुरानी दादी, नानी की आजमाई गोल्डन ऐडवाइज मिले कि हैव ए किड ऐंड सेव योर मैरिज यानी जल्दी से एक बच्चा प्लान करो औैर देखो कैसे सब कुछ ठीक हो जाता है, तो इस सलाह पर अमल न करें, क्योंकि यह मुश्किल का हल नहीं, बल्कि मुश्किलें बढ़ाने वाला कदम साबित होगा. एक बच्चे को दुनिया में लाना बहुत बड़ा दायित्व होता है. इस का निर्णय तभी लिया जाना चाहिए जब आप दोनों उस की परवरिश के लिए पूरी तरह तैयार हों.

सच यही है कि शादी हर सवाल का जवाब नहीं होती, बल्कि यह तो अपनेआप में एक पहेली होती है, जिस का हल तभी निकलता है जब दोनों अपने अहं और स्वार्थ का त्याग कर एक इकाई बन जाते हैं.

प्यार को प्राथमिकता दें

दरअसल, पतिपत्नी के मध्य टकराव ही वैवाहिक जीवन के लिए अभिशाप बनता है. जहां ईगो का टकराव न हो, वहां वैवाहिक जीवन निरंतर सफलता के साथ चलता है. एक कारण यह भी है कि जहां अपेक्षाएं ज्यादा हों, वहां अगर उन की पूर्ति नहीं होती, तो प्रतिदिन नई समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है कि परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल क्यों न हों, पतिपत्नी के मध्य प्रेम हमेशा कायम रहे. पतिपत्नी एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसलिए दोनों को ही अपने अहम के टकराव से बचना चाहिए और प्रेम के मूलमंत्र पर अमल करना चाहिए, क्योंकि दांपत्य जीवन अगर सहज नहीं है, तो पारिवारिक जीवन भी परेशानियों का केंद्र बन जाता है.

-ऋचा पांडे, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट औफ इंडिया एवं ग्लोबल ऐंबैसेडर सिरोज यूनाइटेड (यूएसए)

एकदूसरे की भावनाओं को समझें

पतिपत्नी को हमेशा एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताने का प्रयास करना चाहिए. जरूरी है कि वे साथ में कुछ समय बैठें, बातें करें. एकदूसरे की भावनाओं को समझें, एकदूसरे को प्रोत्साहित करें. मगर अपनी इनडीविजुअल आईडैंटिटी को भी मैंटेन रखें. दूसरे को अपने जैसा बनाने का प्रयास कतई न करें. जिंदगी के महत्त्वपूर्ण निर्णय एकदूसरे के साथ बैठ कर ही लें.

-डा. गौरव गुप्ता, मनोवैज्ञानिक, तुलसी हैल्थकेयर

शादी से जुड़े कुछ तथ्य

विवाह एक अनूठा बंधन है, जिस में 2 व्यक्ति 7 फेरे ले कर एकदूसरे के साथ सदा के लिए जुड़ जाते हैं. पर क्या वाकई यह बंधन इतना ही मजबूत होता है? या फिर कुछ ऐसे तथ्य भी हैं, जिन से आप वाकिफ नहीं. आइए, आप को रूबरू कराते हैं, शादी से जुड़े ऐसे ही तथ्यों से:

– नौकरी, बच्चे, टीवी, इंटरनैट, हौबीज व घरपरिवार की जिम्मेदारियों की वजह से एक औसत दंपती दिन में केवल 4 मिनट ही अकेले एकदूसरे के साथ वक्त बिता पाते हैं.

– 25 साल से कम उम्र में शादी होने पर तलाक का खतरा ज्यादा होता है. महिला यदि पुरुष से काफी बड़ी है, तो भी तलाक की संभावना बढ़ जाती है. जबकि पुरुष काफी बड़ा हो तो ऐसा होने की संभावना कम रहती है.

– एक व्यक्ति का शैक्षिक स्तर इस बात पर काफी प्रभाव डालता है कि वह शादी किस उम्र में करेगा. अधिक पढ़ेलिखे लोग सामान्यतया या अधिक उम्र में शादी करते हैं जबकि कम पढ़ेलिखों की शादी जल्दी होती है.

– एक अध्ययन में पाया गया है कि वे महिलाएं जिन के यहां घर के कामों का संतुलित विभाजन होता है और जिन के पति अपने हिस्से का काम बखूबी निभाते हैं, ज्यादा खुश व संतुष्ट दिखती हैं. बनिस्बत कि वे महिलाएं जिन्हें अपने पति से इस संदर्भ में शिकायत रहती है.

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– 15 साल के लंबे अध्ययन में पाया गया कि शादी से पूर्व एक व्यक्ति की प्रसन्नता का स्तर शादी के बाद उस की सफल और खुशहाल वैवाहिक जिंदगी का अच्छा सूचक है. दूसरे शब्दों में स्वयं विवाह व्यक्ति की प्रसन्नता की वजह नहीं होता.

– बर्थ और्डर भी कहीं न कहीं आप के विवाह की सफलता/असफलता निर्धारित करते हैं. सब से ज्यादा सफल शादियां वे रही हैं, जहां भाइयों में सब से बड़ी बहन की शादी बहनों में सब से छोटे भाई के साथ हुई. जबकि 2 पहली संतानों के बीच हुई शादी कम निभ पाती है.

– शादी और सगाई की अंगूठी बाएं हाथ की चौथी उंगली में पहनी जाती है. रोम में लोग यह विश्वास करते थे कि इस उंगली की एक खास वेन सीधी दिल तक जाती है.

– न्यूयौर्क यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के मुताबिक, ठिगने व्यक्ति ज्यादा गंभीरता से शादी निभाते हैं और अपने ठिगनेपन को कंपेनसेट करने के लिए अधिक कमाते हैं.

– गरिमा पंकज 

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