तुम्हारी सास: भाग 1- क्या वह अपने बच्चे की परवरिश अकेले कर पाई?

पति विपुल की अचानक मृत्यु के गम से रेखा उभर नहीं पाई. वह डिप्रैशन में पहुंच गई. लाख कोशिश करने पर भी उठतेबैठते, खट्टीमीठी यादें उस के जेहन में उभर आतीं. विपुल के साथ गुजारे उन पलों को रेखा ने जीने का सहारा बना लिया.

रेखा को उदास देख कर मांजी को बहुत तकलीफ होती. उन की कोशिश होती कि रेखा खशु रहे. मांजी ने बहुत सम?ाने की कोशिश कर कहा, ‘‘जिस मां का जवान बेटा उस की आंखों के सामने गुजर जाए, उस मां के कलेजे से पूंछो, मु?ा पर क्या गुजरती होगी…’’ बेटे की मौत का गम कोई कम नहीं होता, मेरी आंखों के सामने मेरा जवान बेटा चला गया और मैं अभागिन बैठी रह गई. मैं किस के आगे रोऊं. मैं ने तो कलेजे पर पत्थर रख लिया, लेकिन बेटा हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं.’’

‘‘मांजी, विपुल अगर बीमार होते तो बात सम?ा में आती लेकिन अचानक विपुल का इस दुनिया को छोड़ कर चले जाना… न कुछ अपनी कही, न मेरी सुनी. मैं कितना अकेला महसूस कर रही हूं… कुछ कह भी नहीं पाई विपुल से.’’ ‘‘जिस के लिए तुम दुखी हो, वह मेरा भी बेटा था. एक बार मेरी तरफ देख मेरी बच्ची. वक्त हर जख्म का मरहम है. उसे जितना कुरेदोगी उतना उभर कर आएगा. शांत मन से सोच कर तो देखो. जो यादें तकलीफदेह हों,

उन्हें भूल जाना ही बेहतर है, बेटा,’’ मांजी ने रेखा के सिर पर हाथ रखा और कहा, ‘‘अब अपने बच्चे को देखो, यही हमारी दुनिया है. इस की खुशी में ही हमारी खुशी है. तुम खुश रहोगी तब ही मैं खुश रह पाऊंगी. विपुल और तुम एक ही औफिस में थे. तुम्हारे कंधों पर घर की जिम्मेदारी थी, इसलिए तुम्हें जौब छोड़नी पड़ी. अब बेटी वक्त आ गया है विपुल के छोड़े काम अब तुम्हें ही तो पूरे करने हैं. कल से तुम्हें औफिस भी जाना है. अब तुम्हें घर संभालना है… अब मैं तुम्हारी आंखों में आंसू न देखूं… चलो सोने की कोशिश करो.’’

रेखा को नींद नहीं आई. इस घर में उस की छोटी सी दुनिया थी, जो उस ने विपुल के साथ बसाई थी. विपुल के साथ लड़ना?ागड़ना, रूठनामनाना सब ही तो था. अब ये दीवारें उस के आंसुओं की गवाह हैं. यही सोचतेसोचते सारी रात पलकों में ही गुजर गई.

आज रेखा का जन्मदिन भी है. वह बिस्तर पर लेटी सोचने लगी कि अगर विपुल होते तो 4 दिन पहले से ही हंगामा हो रहा होता. पिछले साल की ही बात है. इस दिन विपुल ने घर ही सिर पर उठा लिया था. रेखारेखा करते मुंह नहीं सूखता था. उदास मन से बिस्तर छोड़ चादर की तह बनाई और फ्रैश होने चली गई. सोचा आज के दिन जल्दी नहा लेती हूं. मांजी और बबलू ने भी मेरे लिए कुछ प्लान किया होगा. नहा कर कपड़े पहन ही रही थी तो देखा ब्लाउज का हुक टूटा हुआ है. वह गाउन पहन कर मांजी के पास गई और उन के पैर छुए, मांजी ने रोज की तरह उस के सिर पर हाथ रखा, लेकिन जन्मदिन विश नहीं किया. रेखा ने मन में सोचा शायद मांजी को मेरा जन्मदिन याद नहीं रहा होगा.

आगे बढ़ कर अपने बेटे बबलू को उठाया और स्कूल जाने के लिए तैयार होने के लिए कहा, लेकिन यह क्या? बबलू ने भी उसे विश नहीं किया. किसी को याद नहीं कि आज उस का जन्मदिन है. हमेशा मांजी उस के जन्मदिन पर माथा चमूती थीं और बबलू चुम्मियां करने में कोई कसर नहीं छोड़ता था, पर आज ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. रेखा की आंखें भर आईं. वह बाथरूम में गई और चेहरे पर पानी की छींटे डाल कर अपनेआप को संभाला और औफिस जाने के लिए तैयार होने लगी. पीछे मुड़ विपुल की तसवीर को देखा तो लगा कि वे मुसकरा कर ‘आल दा बैस्ट’ कह रहे हों जैसे.

रेखा को बबलू को स्कूल बस तक छोड़ना भी था. सोचने लगी इन 3 महीनों में जिंदगी के रंग ही बदल गए. मेरे दुखसुख का साथी जिस के साथ जीनेमरने के वादे किए थे अब नहीं रहा, कैसे मैनेज होगा सबकुछ? मैनेज कर भी पाऊंगी या नहीं?

मांजी यह सब देख अपनी बहू रेखा के लिए चितिंत रहती थीं. उन की कोशिश रहती कि रेखा को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो. वे आगे बढ़बढ़ कर उस का काम में हाथ बंटातीं. रेखा को देर होते देख, मांजी ने घड़ी की तरफ नजर की, मन में सोचा आज रेखा को इतनी देर क्यों लग रही है फिर आवाज लगाई, ‘‘अरे बहू (रेखा) क्या कर रही हो? जल्दी करो बेटा, घड़ी देखो तुम लेट हो रही हो.

बबलू की बस निकल गई तो तुम्हें स्कूल तक छोड़ना पड़ेगा.’’

रेखा ने जवाब में कहा, ‘‘बस मांजी जरा ब्लाउज में हुक टांक लूं फिर तैयार होती हूं.’’

‘‘लाओ बेटा, ब्लाउज मु?ो दे दो, हुक मैं लगा देती हूं.’’

‘‘अरे नहीं मांजी, आप मेरे ब्लाउज में हुक लगाएंगी, मु?ो अच्छा नहीं लगेगा.’’

मांजी ने फिर कहा, ‘‘इस में अच्छा नहीं लगने वाली क्या बात है बेटा? अगर मेरी जगह तुम्हारी मां होतीं तो वे भी ऐसा ही करतीं.’’

रेखा के उदास मन ने शादी के पहले की बात सोच कहा, ‘‘नहीं मांजी, ऐसा नहीं है, मेरी मां ऐसा कभी नहीं करतीं और 4 बातें मु?ो सुना देतीं, कहतीं कि बेटी तुम्हें पराए घर जाना है, अपना काम स्वयं करने की आदत डालो, ससुराल में कौन करेगा, तुम्हारी सास?’’ इतना कह हंस पड़ी.

तुम्हारी सास: भाग 2- क्या वह अपने बच्चे की परवरिश अकेले कर पाई?

‘‘परिवार में एकसाथ 3 लोगों का चले जाना मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई, उस पर बच्चे की परवरिश करना आसान नहीं था मेरे लिए.’’ दोनों ने एकदूसरे का दुख सुना और फिर मिलने का वादा किया. इस बीच दोनों बच्चों में भी दोस्ती हो गई.

बबलू ने खूब ऐंजौय किया. आज वह बहुत खुश था. कितने समय बाद उस ने बाहर का खाना खाया. आइस्क्रीम खाई और एक नया दोस्त भी बन गया. रेखा ने कहा, ‘‘चलें बेटा?’’

बबलू खुश होते हुए बोला, ‘‘हां मम्मी.’’

रेखा सुमित के बारे में सोचने लगी. उस

ने मांजी को सुमित के बारे में बताया. दोनों का दुख एक सा देख मांजी रेखा के लिए सुमित के सपने देखने लगीं. वे यह मौका खोना नहीं चाहती थीं. रेखा ने तो इसी तरह अकेले जीवन बिताने को अपनी नियति मान लिया था लेकिन मांजी ने ऐसा नहीं चाहा. बेटे विपुल को खोने के बाद बहू रेखा के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी हो ही नहीं सकता. जातेजाते रास्ते में एक बार फिर सुमित मिल गया. मांजी से रहा नहीं गया, कह बैठीं, ‘‘बेटा, मिलते रहना, मु?ो अच्छा लगेगा. अपना फोन नंबर दे दो बेटा.’’

‘‘जी, मांजी.’’

मांजी रेखा का मन जाने बिना सुमित के सपने देखने लगीं. अब मांजी हर 2 दिन बाद किसी न किसी बहाने सुमित और उस के बेटे को  बुला लेतीं और खुश रहतीं. जैसा वह चाह रही थीं, वैसा ही हो रहा था. जिस दिन सुमित आता, मांजी दोनों को कमरे में छोड़ किसी न किसी बहाने वहां से चली जातीं.

रेखा का मन बदलने लगा. सुमित का साथ पा कर रेखा खुश रहने लगी. हर शाम सुमित का घर में इंतजार होता. सुमित परिवार का हिस्सा बनता जा रहा था. रेखा को भी सुमित का इंतजार रहता. घर में हंसी गूंजने लगी. दोनों बच्चे भी एकदूसरे के साथ खुश थे.

जिस दिन सुमित नहीं आता सब की शाम खमोशी में ही बीत जाती. न जाने क्यों रेखा भी उदास हो जाती. सब को सुमित की आदत सी पड़ गई थी. रेखा सोचती पता नहीं क्यों सुमित के आने के बाद सबकुछ कैसे बदल गया. क्यों मेरा मन बदलने लगा. लेकिन अतीत है कि पीछा ही नहीं छोड़ रहा. मेरे लिए क्या ठीक रहेगा? अतीत या वर्तमान? इसी ऊहापोह में रात गुजर जाती.

मांजी के हृदय में रेखा के लिए जो दुख था उस में सुकून था. सोचतीं जब प्यार परवाना चढ़ जाएगा तब सुमित और रेखा की कोर्ट मैरिज करेंगी. वक्त के साथसाथ एक दिन ऐसा आया भी. मांजी ने रेखा के सामने सुमित से कह डाला, ‘‘बेटा, मैं रेखा का हाथ तुम्हारे हाथों में सौंपने की सोच रही हूं… बबलू को पिता का प्यार मिल जाएगा और बेटी को मां का, तुम्हारा क्या खयाल है इस बारे में? तुम भी बच्चे के साथ अकेले हो. परेशानियां बहुत आती होंगी?’’

इतना सुनना था, रेखा बोली पड़ी, ‘‘नहीं मांजी ऐसा नहीं होगा. सुमित मेरा दोस्त है. अच्छा दोस्त है. मैं उस से हर दुख और परेशानी शेयर कर सकती हूं. लेकिन सुमित को एक पति के रूप में नहीं देख सकती. क्यों आए सुमित, तुम मेरे जीवन में? तुम ने चाहे मेरे दिल में कितनी भी जगह बना ली हो लेकिन प्रत्यक्षत: पराएपन की रेखा अभी भी उतनी ही मोटी है शायद यह कभी धुंधली भी नहीं हो पाएगी.’’

दोनों एकदूसरे को देख खामोश थे. रेखा कह बैठी, ‘‘सुमित क्या एकदूसरे का दुख बांटने के लिए पति बनना जरूरी है? हम एक अच्छे दोस्त के रूप में एकदूसरे का सहारा बन सकते हैं… क्या तुम भूल पाओगे निकिता को?’’ सुमित बिना कुछ कहे वहां से चला गया. मांजी से रहा नहीं गया. वे विचलित हो गईं. रेखा से कहा, ‘‘विधवा औरतों के लिए समाज अभिशाप है, सारा समाज जो मर्द बाहुल्य है तुम्हें एक अलग नजरिए से देखेगा. उस की गंदी नजर, गंदी हरकतें क्याक्या सहोगी? मैं ने भोगा है, इस दौर से गुजर चुकी हूं, जब अंधेरा होता है तो सवेरा भी फूटता है. परिवर्तन संसार का नियम है.’’

‘‘मांजी जिन रिश्तों में सम?ाता करना पड़े वे रिश्ते जिंदा तो रहते हैं पर उन में जिंदगी नहीं होती. बबलू, आप और मैं इस में किसी चौथे की गुंजाइश नहीं और मैं खुश हूं. यही मेरी दुनिया है. धूल लग जाए तो मिटाना आसान होता है, लेकिन जहां जंग लग जाए न तो मुश्किल.’’

मांजी की आंखों के सामने कितने चित्र बनतेबिगड़ते रहे. उन का न इक्का काम आया न दुक्का और वे हार गईं. इतना कह रेखा अपने कमरे में चली गई, अभी भी विपुल की महक से कमर भरा हुआ था. उस महक से जो रोमरोम में बसी थी. अगले दिन, स्कूल जाने के लिए रेखा ने बबलू से कहा, ‘‘जाओ नहा कर आओ.’’

बबलू नहाने के लिए बाथरूम की ओर भाग गया. कुछ देर बाद बबलू ने आवाज लगाई, ‘‘मम्मी तौलिया देना जरा. बबलू के तौलिया मांगने पर रेखा को अपनी बात याद आ गई और एक हलकी सी मुसकान उस के होंठों पर तैर गई.

मांजी यह देख पूछ बैठीं, ‘‘इस मुसकान की वजह बेटा?’’ मु?ो अपनी शादी से पहले की बात याद आ गई. मैं नहाने जा रही थी, तो तौलिया ले जाना भूल गई, नहाने के बाद मैं ने मां को आवाज लगाई, ‘‘मां, जरा तौलिया पकड़ा देना

तो मां ने तौलिया तो दे दिया लेकिन साथ में कहा कि बेटी आज तो मैं दे रही हूं, आगे से ध्यान रखना यह गल्ती दोबारा न हो… अभी से आदत डाल लो, ससुराल में ऐसा हुआ तो कौन देगा, तुम्हारी सास? लेकिन मांजी यह गल्ती एक दिन फिर हो गई. मैं ने मां को तौलिया पकड़ाने के लिए आवाज लगाई तो मां नहीं आईं. मेरे बदन का सारा पानी इंतजार में सूख गया लेकिन मां ने तौलिया नहीं दिया. मु?ो इस सास नाम ने बहुत परेशान किया.’’ मांजी हंसते हुए बोली, ‘‘अच्छा तो यह बात थी.’’

अगले दिन रेखा औफिस के लिए तैयार होने जा रही थी. कुछ देर भी हो गई थी, हड़बड़ में नहाने के लिए तौलिया ले जाना भूल गई. नहाने के बाद बाथरूम से अवाज लगाई कि विपुल जरा तौलिया दे देना. दरवाजा खोल कर हाथ बाहर निकाला, तो मांजी ने हाथ में तौलिया पकड़ा दिया.

रेखा के मुख से विपुल नाम सुन मांजी सोच बैठीं, ‘‘इन यादों पर किसी का वश नहीं.’’ उधर जैसे ही रेखा ने तौलिया पकड़ा अचानक मां के कहे शब्द उस के मानसपटल पर घूम गए कि कपड़ों के साथ तौलिया ले जाने की आदत डालो बेटी वरना ससुराल में तौलिया कौन पकड़ाएगा, तुम्हारी सास? रेखा वहीं सिर पकड़ कर बैठ गई.

दीप जल उठे: प्रतिमा की सासु मां क्यों उसे अपनी बहु नहीं बेटी मानने लगी

दफ्तर से आतेआते रात के 8 बज गए थे. घर में घुसते ही प्रतिमा के बिगड़ते तेवर देख श्रवण भांप गया कि जरूर आज घर में कुछ हुआ है वरना मुसकरा कर स्वागत करने वाली का चेहरा उतरा न होता.  सारे दिन महल्ले में होने वाली गतिविधियों की रिपोर्ट जब तक मुझे सुना न देती उसे चैन नहीं मिलता था. जलपान के साथसाथ बतरस पान भी करना पड़ता था. अखबार पढ़े बिना पासपड़ोस  के सुखदुख के समाचार मिल जाते थे. शायद  देरी से आने के कारण ही प्रतिमा का मूड बिगड़ा हुआ है. प्रतिमा से माफी मांगते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें फोन नहीं कर पाया. महीने का अंतिम दिन होने के कारण बैंक में ज्यादा काम था.’’

‘‘तुम्हारी देरी का कारण मैं समझ सकती हूं, पर मैं इस कारण दुखी नहीं हूं,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘फिर हमें भी तो बताओ इस चांद से मुखड़े पर चिंता की कालिमा क्यों?’’ श्रवण ने पूछा.

‘‘दोपहर को अमेरिका से बड़ी भाभी का फोन आया था कि कल माताजी हमारे पास पहुंच रही हैं,’’ प्रतिमा चिंतित होते हुए बोली.

‘‘इस में इतना उदास व चिंतित होने कि क्या बात है? उन का अपना घर है वे जब चाहें आ सकती हैं.’’ श्रवण हैरानी से बोला.

‘‘आप नहीं समझ रहे. अमेरिका में मांजी का मन नहीं लगा. अब वे हमारे ही साथ रहना चाहती हैं.’’ प्रतिमा ने कहा.

‘‘अरे मेरी चंद्रमुखी, अच्छा है न, घर में रौनक बढ़ेगी, बरतनों की उठापटक रहेगी, एकता कपूर के सीरियलों की चर्चा तुम मुझ से न कर के मां से कर सकोगी. सासबहू मिल कर महल्ले की चर्चाओं में बढ़चढ़ कर भाग लेना,’’ श्रवण चटखारे लेते हुए बोला.

‘‘तुम्हें मजाक सूझ रहा है और मेरी जान सूख रही है,’’ प्रतिमा बोली.

‘‘चिंता तो मुझे होनी चाहिए, तुम सासबहू के शीतयुद्ध में मुझे शहीद होना पड़ता है. मेरी स्थिति चक्की के 2 पाटों के बीच में पिसने वाली हो जाती है. न मां को कुछ कह सकता हूं, न तुम्हें.’’

कुछ सोचते हुए श्रवण फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हें कुछ टिप्स देना चाहता हूं. यदि तुम उन्हें अपनाओगी तो तुम्हारी सारी परेशानियां एक झटके में उड़नछू हो जाएंगी.’’

‘‘यदि ऐसा है तो आप जो कहेंगे मैं करूंगी. मैं चाहती हूं मांजी खुश रहें. आप को याद है पिछली बार छोटी सी बात से मांजी नाराज हो गई थीं.’’

‘‘देखो प्रतिमा, जब तक पिताजी जीवित थे तब तक हमें उन की कोई चिंता नहीं  थी. जब से वे अकेली हो गई हैं उन का स्वभाव बदल गया है. उन में असुरक्षा की भावना ने घर कर लिया है. अब तुम ही बताओ, जिस घर में उन का एकछत्र राज था वो अब नहीं रहा. बेटों को तो बहुओं ने छीन लिया. जिस घर को तिनकातिनका जोड़ कर मां ने अपने हाथों से संवारा, उसे पिताजी के जाने के बाद बंद करना पड़ा.

‘‘उन्हें कभी अमेरिका तो कभी यहां हमारे पास आ कर रहना पड़ता है. वे खुद को बंधन में महसूस करती हैं. इसलिए हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिस में उन्हें अपनापन लगे. उन को हम से पैसा नहीं चाहिए. उन के लिए तो पिताजी की पैंशन ही बहुत है. उन्हें खुश रखने के लिए तुम्हें थोड़ी सी समझदारी दिखानी होगी, चाहे नाटकीयता से ही सही,’’ श्रवण प्रतिमा को समझाते हुए बोला.

‘‘आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करने को तैयार हूं,’’ प्रतिमा ने आश्वासन दिया.

‘‘तो सुनो प्रतिमा, हमारे बुजुर्गों में एक ‘अहं’ नाम का प्राणी होता है. यदि किसी वजह से उसे चोट पहुंचती है, तो पारिवारिक वातावरण प्रदूषित हो जाता है यानी परिवार में तनाव अपना स्थान ले लेता है. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि मां के अहं को चोट न लगे बस… फिर देखो…’’ श्रवण बोला.

‘‘इस का उपाय भी बता दीजिए आप,’’ प्रतिमा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, सब से पहले तो जब मां आए तो सिर पर पल्लू रख कर चरणस्पर्श कर लेना. रात को सोते समय कुछ देर उन के पास बैठ कर हाथपांव दबा देना. सुबह उठ कर चरणस्पर्श के साथ प्रणाम कर देना,’’ श्रवण ने समझाया.

‘‘यदि मांजी इस तरह से खुश होती हैं, तो यह कोई कठिन काम नहीं है,’’ प्रतिमा ने कहा.

‘‘एक बात और, कोई भी काम करने से पहले मां से एक बार पूछ लेना. होगा तो वही जो मैं चाहूंगा. जो बात मनवानी हो उस बात के विपरीत कहना, क्योंकि घर के बुजुर्ग लोग अपना महत्त्व जताने के लिए अपनी बात मनवाना चाहते हैं. हर बात में ‘जी मांजी’ का मंत्र जपती रहना. फिर देखना मां की चहेती बहू बनते देर नहीं लगेगी,’’ श्रवण ने अपने तर्कों से प्रतिमा को समझाया.

‘‘आप देखना, इस बार मैं मां को शिकायत का कोई मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘बस… बस… उन को ऐसा लगे जैसे घर में उन की ही चलती है. तुम मेरा इशारा समझ जाना. आखिर मां तो मेरी ही है. मैं जानता हूं उन्हें क्या चाहिए,’’ कहते हुए श्रवण सोने के लिए चला गया.

प्रतिमा ने सुबह जल्दी उठ कर मांजी के कमरे की अच्छी तरह सफाई करवा दी. साथ ही उन की जरूरत की सभी चीजें भी वहां रख दीं. हम दोनों समय पर एयरपोर्ट पहुंच गए. हमें देखते ही मांजी की आंखें खुशी से चमक उठीं. सिर ढक कर प्रतिमा ने मां के पैर छुए तो मां ने सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया.

पोते को न देख कर मां ने पूछा, ‘‘अरे तुम मेरे गुड्डू को नहीं लाए?’’

‘‘मांजी वह सो रहा था.’’ प्रतिमा बोली.

‘‘बहू… आजकल बच्चों को नौकरों के भरोसे छोड़ने का समय नहीं है. आएदिन अखबारों में छपता रहता है,’’ मांजी ने समझाते हुए कहा.

‘‘जी मांजी, आगे से ध्यान रखूंगी,’’ प्रतिमा ने मांजी को आश्वासन दिया. रास्ते भर भैयाभाभी व बच्चों की बातें होती रहीं. घर पहुंच कर मां ने देखा जिस कमरे में उन का सामान रखा गया है उस में उन की जरूरत का सारा सामान कायदे से रखा था. 4 वर्षीय पोता गुड्डू दौड़ता हुआ आया और दादी के पांव छू कर गले लग गया. ‘‘मांजी, आप पहले फ्रैश हो लीजिए, तब तक मैं चाय बनाती हूं,’’ कहते हुए प्रतिमा किचन की ओर चली गई.

रात के खाने में सब्जी मां से पूछ कर बनाई गई. खाना खातेखाते श्रवण बोला, ‘‘प्रतिमा कल आलू के परांठे बनाना, पर मां से सीख लेना तुम बहुत मोटे बनाती हो,’’ प्रतिमा की आंखों में आंखें डाल कर श्रवण बोला.

‘‘ठीक है, मांजी से पूछ कर ही बनाऊंगी.’’ प्रतिमा बोली.

मांजी के कमरे की सफाई भी प्रतिमा कामवाली से न करवा कर खुद करती थी, क्योंकि पिछली बार कामवाली से कोई चीज छू गई थी, तो मांजी ने पूरा घर सिर पर उठा लिया था.

अगले दिन औफिस जाते समय श्रवण को एक फाइल न मिलने के कारण वह बारबार प्रतिमा को आवाज लगा रहा था. प्रतिमा थी कि सुन कर भी अनसुना कर मां के कमरे में काम करती रही. तभी मांजी बोलीं, ‘‘बहू तू जा, श्रवण क्या कह रहा सुन ले.’’

‘‘जी मांजी.’’

दोपहर के समय मांजी ने तेल मालिश के लिए शीशी खोली तो प्रतिमा ने शीशी हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मांजी मैं लगाती हूं.’’

‘‘बहू रहने दे. तुझे घर के और भी बहुत काम हैं, थक जाएगी.’’

‘‘नहीं मांजी, काम तो बाद में भी होते रहेंगे. तेल लगातेलगाते प्रतिमा बोली, ‘‘मांजी, आप अपने समय में कितनी सुंदर दिखती होंगी और आप के बाल तो और भी सुंदर दिखते होंगे, जो अब भी कितने सुंदर और मुलायम हैं.’’

‘‘अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, हां तुम्हारे बाबूजी जरूर कभीकभी छेड़ दिया करते थे. कहते थे कि यदि मैं तुम्हारे कालेज में होता तो तुम्हें भगा ले जाता.’’ बात करतेकरते उन के मुख की लालिमा बता रही थी जैसे वे अपने अतीत में पहुंच गई हैं.

प्रतिमा ने चुटकी लेते हुए मांजी को फिर छेड़ा, ‘‘मांजी गुड्डू के पापा बताते हैं कि आप नानाजी के घर भी कभीकभी ही जाती थीं, बाबूजी का मन आप के बिना लगता ही नहीं था. क्या ऐसा ही था मांजी?’’

‘‘चल हट… शरारती कहीं की… कैसी बातें करती है… देख गुड्डू स्कूल से आता होगा,’’ बनावटी गुस्सा दिखाते हुए मांजी नवयौवना की तरह शरमा गईं. शाम को प्रतिमा को सब्जी काटते देख मांजी बोलीं, ‘‘बहू तुम कुछ और काम कर लो, सब्जी मैं काट देती हूं.’’

मांजी रसोईघर में गईं तो प्रतिमा ने मनुहार करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मुझे भरवां शिमलामिर्च की सब्जी बनानी नहीं आती, आप सिखा देंगी? ये कहते हैं, जो स्वाद मां के हाथ के बने खाने में है, वह तुम्हारे में नहीं.’’

‘‘हां… हां… क्यों नहीं, मुझे मसाले दे मैं बना देती हूं. धीरेधीरे रसोई की जिम्मेदारी मां ने अपने ऊपर ले ली थी. और तो और गुड्डू की मालिश करना, उसे नहलाना, उसे खिलानापिलाना सब मांजी ने संभाल लिया. अब प्रतिमा को गुड्डू को पढ़ाने के लिए बहुत समय मिलने लगा. इस तरह प्रतिमा के सिर से काम का भार कम हो गया था.’’

साथसाथ घर का वातावरण भी खुशनुमा रहने लगा. श्रवण को प्रतिमा के साथ कहीं घूमने जाना होता तो वह यही कहती कि मां से पूछ लो, मैं उन के बिना नहीं जाऊंगी. एक दिन पिक्चर देखने का मूड बना. औफिस से आते हुए श्रवण 2 पास ले आया. जब प्रतिमा को चलने के लिए कहा तो वह झट से ऊंचे स्वर में बोल पड़ी, ‘‘मांजी चलेंगी तो मैं चलूंगी अन्यथा नहीं.’’ वह जानती थी कि मां को पिक्चर देखने में कोई रुचि नहीं है. उन की तूतू, मैंमैं सुन कर मांजी बोलीं, ‘‘बहू, क्यों जिद कर रही हो? श्रवण का मन है तो चली जा. गुड्डू को मैं देख लूंगी.’’ मांजी ने शांत स्वर में कहा.

‘अंधा क्या चाहे दो आंखें’ वे दोनों पिक्चर देख कर वापस आए तो उन्हें खाना तैयार मिला. मांजी को पता था श्रवण को कटहल पसंद है, इसलिए फ्रिज से कटहल निकाल कर बना दिया. चपातियां बनाने के लिए प्रतिमा ने गैस जलाई तो मांजी बोलीं, ‘‘प्रतिमा तुम खाना लगा लो रोटियां मैं सेंकती हूं.’’

‘‘नहीं मांजी, आप थक गई होंगी, आप बैठिए, मैं गरमगरम रोटियां बना कर लाती हूं.’’ प्रतिमा बोली. ‘‘सभी एकसाथ बैठ कर खाएंगे, तुम बना लो प्रतिमा,’’ श्रवण बोला.

एकसाथ सभी को खाना खाते देख मांजी की आंखें नम हो गईं. श्रवण ने पूछा तो मां बोलीं, ‘‘आज तुम्हारे बाबूजी की याद आ गई. आज वे होते तो तुम सब को देख कर बहुत खुश होते.’’

‘‘मां मन दुखी मत करो,’’ श्रवण बोला.

प्रतिमा की ओर देख कर श्रवण बोला, ‘‘कटहल की सब्जी ऐसे बनती है. सच में मां… बहुत दिनों बाद इतनी स्वादिष्ठ सब्जी खाई है. मां से कुछ सीख लो प्रतिमा…’’

‘‘मांजी सच में सब्जी बहुत स्वादिष्ठ है… मुझे भी सिखाना…’’

‘‘बहू… खाना तो तुम भी स्वादिष्ठ बनाती हो.’’

‘‘नहीं मांजी, जो स्वाद आप के हाथ के बनाए खाने में है वह मेरे में कहां?’’ प्रतिमा बोली.

श्रवण को दीवाली पर बोनस के पैसे मिले तो देने के लिए उस ने प्रतिमा को आवाज लगाई. प्रतिमा ने आ कर कहा, ‘‘मांजी को ही दीजिए न…’’ श्रवण ने लिफाफा मां के हाथ में रख दिया. मांजी लिफाफे को उलटपलट कर देखते हुए रोमांचित हो उठीं. आज वे खुद को घर की बुजुर्ग व सम्मानित सदस्य अनुभव कर रही थीं. श्रवण व प्रतिमा जानते थे कि मां को पैसों से कुछ लेनादेना नहीं है. न ही उन की कोई विशेष जरूरतें थीं. बस उन्हें तो अपना मानसम्मान चाहिए था.

अब घर में कोई भी खर्चा होता या कहीं जाना होता तो प्रतिमा मां से जरूर पूछती. मांजी भी उसे कहीं घूमने जाने के लिए मना नहीं करतीं. अब हर समय मां के मुख से प्रतिमा की प्रशंसा के फूल ही झरते. दीवाली पर घर की सफाई करतेकरते प्रतिमा स्टूल से जैसे ही नीचे गिरी तो उस के पांव में मोच आ गई. मां ने उसे उठाया और पकड़ कर पलंग पर बैठा कर पांव में मरहम लगाया और गरम पट्टी बांध कर उसे आराम करने को कहा.

यह सब देख कर श्रवण बोला, ‘‘मां मैं ने तो सुना था बहू सेवा करती है सास की, पर यहां तो उलटी गंगा बह रही है.’’

‘‘चुप कर, ज्यादा बकबक मत कर, प्रतिमा मेरी बेटी जैसी है. क्या मैं इस का ध्यान नहीं रख सकती,’’ प्यार से डांटते हुए मां बोली.

‘‘मांजी, बेटी जैसी नहीं, बल्कि बेटी कहो. मैं आप की बेटी ही तो हूं.’’ प्रतिमा की बात सुनते ही मांजी ने उस के सिर पर हाथ रखा और बोलीं, ‘‘तुम सही कह रही हो बहू, तुम ने बेटी की कमी पूरी कर दी.’’

घर में होता वही जो श्रवण चाहता, पर एक बार मां की अनुमति जरूर ली जाती. बेटा चाहे कुछ भी कह दे, पर बहू की छोटी सी भूल भी सास को सहन नहीं होती. इस से सास को अपना अपमान लगता है. यह हमारी परंपरा सी बन चुकी है. जो धीरेधीरे खत्म भी हो रही है. मांजी को थोड़ा सा मानसम्मान देने के बदले में उसे अच्छी बहू का दर्जा व बेटी का स्नेह मिलेगा, इस की तो उस ने कल्पना ही नहीं कीथी. प्रतिमा के घर में हर समय प्यार का, खुशी का वातावरण रहने लगा. दीवाली नजदीक आ गई थी. मां व प्रतिमा ने मिल कर पकवान बनाए. लगता है इस बार की दीवाली एक विशेष दीवाली रहेगी, सोचतेसोचते श्रवण बिस्तर पर लेटा ही था कि अमेरिका से भैया का फोन आ गया. उन्होंने मां के स्वास्थ्य के बारे में पूछा और बताया कि इस बार मां उन के पास से नाराज हो कर गई हैं. तब से मन बहुत विचलित है.

यह तो हम सभी जानते हैं कि नंदिनी भाभी और मां के विचार कभी नहीं मिले, पर अमेरिका में भी उन का झगड़ा होगा, इस की तो कल्पना भी नहीं की थी. भैया ने बताया कि वे माफी मांग कर प्रायश्चित करना चाहते हैं अन्यथा हमेशा उन के मन में एक ज्वाला सी दहकती रहेगी. आगे उन्होंने जो बताया वह सुन कर तो मैं खुशी से उछल ही पड़ा. बस अब 2 दिन का इंतजार था, क्योंकि 2 दिन बाद दीवाली थी.

इस बार दीवाली पर प्रतिमा ने घर कुछ विशेष प्रकार से सजाया था. मुझे उत्साहित देख कर प्रतिमा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बहुत खुश नजर आ रहे हैं?’’

अपनी खुशी को छिपाते हुए मैं ने कहा, ‘‘तुम सासबहू का प्यार हमेशा ऐसे ही बना रहे बस… इसलिए खुश हूं.’’

‘‘नजर मत लगा देना हमारे प्यार को,’’ प्रतिमा खुश होते हुए बोली. दीवाली वाले दिन मां ने अपने बक्से की चाबी देते हुए कहा, ‘‘बहू लाल रंग का एक डब्बा है उसे ले आ.’’ प्रतिमा ने जी मांजी कह कर डब्बा ला कर दे दिया. मां ने डब्बा खोला और उस में से खानदानी हार निकाला.  हार प्रतिमा को देते हुए बोलीं, ‘‘लो बहू,

ये हमारा खानदानी हार है, इसे संभालो. दीवाली इसे पहन कर मनाओ, तुम्हारे पिताजी की यही इच्छा थी.’’  हार देते हुए मां की आंखें खुशी से नम हो गईं.

प्रतिमा ने हार ले कर माथे से लगाया और मां के पैर छू कर आशीर्वाद लिया. मुझे बारबार घड़ी की ओर देखते हुए प्रतिमा ने पूछा तो मैं ने टाल दिया. दीप जलाने की तैयारी हो रही थी तभी मां ने आवाज लगा कर कहा, ‘‘श्रवण जल्दी आओ, गुड्डू के साथ फुलझडि़यां भी तो चलानी हैं. मैं साढ़े सात बजने का इंतजार कर रहा था, तभी बाहर टैक्सी रुकने की आवाज आई. मैं समझ गया मेरे इंतजार की घडि़यां खत्म हो गईं.

मैं ने अनजान बनते हुए कहा, ‘‘चलो मां सैलिब्रेशन शुरू करें.’’

‘‘हां… हां… चलो, प्रतिमा… आवाज लगाते हुए कुरसी से उठने लगीं तो नंदिनी भाभी ने मां के चरणस्पर्श किए… आदत के अनुसार मां के मुख से आशीर्वाद की झड़ी लग गई, सिर पर हाथ रखे बोले ही जा रही थीं… खुश रहो, आनंद करो… आदिआदि.’’

भाभी जैसे ही पांव छू कर उठीं तो मां आश्चर्य से देखती रह गईं. आश्चर्य  के कारण पलक झपकाना ही भूल गईं. हैरानी से मां ने एक बार भैया की ओर एक बार मेरी ओर देखा. तभी भैया ने मां के पैर छुए तो खुश हो कर भाभी के साथसाथ मुझे व प्रतिमा को भी गले लगा लिया. मां ने भैयाभाभी की आंखों को पढ़ लिया था. पुन: आशीर्वचन देते हुए दीवाली की शुभकामनाएं दीं मां की आंखों में खुशी की चमक देख कर लग रहा था दीवाली के शुभ अवसर पर अन्य दीपों के साथ मां के हृदयरूपी दीप भी जल उठे. जिन की ज्योति ने सारे घर को जगमग कर दिया.

मन का बोझ: भाग 1

 

कुम्हार का गधा अपनी पीठ पर बो?ा ढोता है. लेकिन पीठ से वह बो?ा उतरते ही गधा बो?ारहित हो जाता है क्योंकि वह वजनरूपी बो?ा था. मगर कुम्हार के मन का बो?ा उतरने का नाम ही नहीं लेता. लगता है वह तो उस के साथ उस की अंतिम सांस तक रहने वाला है. ऐसे ही हर आदमी अपने मन में कोई न कोई बो?ा लिए जीता है जो उस के साथ अंतकाल तक रहता है.

अभिषेक के पापा का चूडि़यों का छोटा सा बिजनैस था. उस का बड़ा भाई आशुतोष इस बिजनैस में उन का हाथ बंटाता था. अभिषेक पढ़ने में होनहार था, इसलिए यह तय हुआ कि उच्च शिक्षा के लिए उसे किसी बड़े शहर भेजा जाए.

इंटर करने के बाद अभिषेक का एडमिशन कुछ डोनेशन दे कर दक्षिण भारत के एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज में करा दिया गया. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिषेक को उम्मीद थी कि उसे जल्द ही कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मगर उस का न तो कहीं प्लेसमैंट हुआ और न ही और कहीं जल्दी नौकरी लगी.

इस समय तक आशुतोष ने अपने पापा के बिजनैस पर पूरी पकड़ बना ली थी और वह यह बिलकुल नहीं चाहता था कि अभिषेक घर वापस आ कर उस के बिजनैस में कोई दखल दे, हिस्से की बात तो बहुत दूर. अभिषेक के पापा अनुभवी थे. वे बखूबी जानते थे घरघर मटियालेचूल्हे. इसलिए उन्होंने भाइयों को आपसी अनबन से बचाने के लिए एक रिश्तेदार की सिफारिश अभिषेक से कोलकाता की एक फर्म में नौकरी पर लगवा दिया. वह खुशीखुशी कोलकाता के लिए रवाना हो गया. पापा ने चैन की सांस ली. आशुतोष तो मन ही मन खुश हो रहा था कि चलो बला टली.

अब अभिषेक के पापा बड़े गर्व से सीना तान कर कहते, ‘‘भाई, मैं तो औरतों की कलाइयों में चूडि़यां पहनातेपहनाते थक गया. लेकिन देखो, अब इस मनिहार का बेटा कोलकाता में इंजीनियर हो गया इंजीनियर.’’

अभिषेक की नौकरी लगते ही उस के लिए रिश्ते आने लगे. आशुतोष भी चाह रहा था कि जल्दी से जल्दी अभिषेक की शादी हो और वह कोलकाता में ही सैटल हो जाए ताकि वह घर की तरफ न देखे. फिर तो घर की सारी संपत्ति पर अपना ही हक.

अभिषेक के पापा आशुतोष के मनोभाव को भलीभांति सम?ाते थे. वे जानते थे कि आशुतोष अपने सगे छोटे भाई को घर की संपत्ति में से फूटी कौड़ी भी नहीं देना चाहता. वे यह भी जानते थे कि आशुतोष के सामने अब उन की अपनी कोई अहमियत नहीं रह गई है. आशुतोष ने पूरा बिजनैस अपने हाथ में ले लिया है. उस ने दुकान को आधुनिक तरीके से डैकोरेट करवा लिया था. औरतों को चूडि़यां पहनाने के लिए 2 लड़कियां रख ली थीं. बस, उन की इतनी हैसियत रह गई थी कि समय बिताने के लिए दुकान पर जा कर बैठ जाते थे और आवश्यकता पड़ने पर औरतों की कलाइयां में अभी भी चूडि़यां पहना देते थे. कभी आशुतोष को किसी काम से बाहर जाना पड़ जाता था तो उस दिन उन्हें गल्ले पर बैठ जाने का मौका भी प्राप्त हो जाता था.

उन्हीं दिनों अभिषेक के परिवार वालों को अभिषेक के लिए एक रिश्ता पसंद आ गया. लड़की वाले रुड़की के रहने वाले थे. लड़की का नाम शीतल था. वह उच्च शिक्षा प्राप्त थी. शीतल ने रुड़की विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में एमएससी कर रखी थी. वर्तमान में वह रुड़की के ही एक डिगरी कालेज में पढ़ा रही थी और शाम को कोचिंग क्लासेज भी ले रही थी. उस की आमदनी बहुत अच्छी थी. अभिषेक और शीतल ने भी एकदूसरे को पसंद कर लिया. जल्द ही दोनों की शादी हो गई.

लेकिन अभी वे हनीमून मना कर लौटे ही थे जब फर्म के मैनेजर ने एक दिन अभिषेक को अपने कैबिन में बुलाया और कहा, ‘‘अभिषेक, बड़े अफसोस के साथ आप को बताना पड़ रहा है कि आप का काम कहीं से भी संतोषजनक नहीं है. या तो आप का कालेज आप को इंजीनियरिंग की बारीकियां सिखा नहीं पाया या फिर आप नहीं सीख पाए. नियमानुसार फर्म आप को 1 महीने पहले नोटिस दे रही है, उस के बाद आप की सेवाएं समाप्त.’’

यह सुन कर अभिषेक के पैरों तले की जमीन खिसक गई. वह अपनी कमजोरी जानता था. इंजीनियरिंग की डिगरी पा लेना अलग बात है और इंजीनियरिंग के काम में माहिर होना अलग. उसे पता था कई इंजीनियरिंग कालेज केवल पैसे कमाने की मशीन बन कर रह गए हैं. वे केवल इंजीनियरिंग की डिगरियां बांटने का धंधा भर कर रहे हैं. न तो उन के पास इंजीनियरिंग के स्टूडैंट्स को पढ़ाने के लिए ढंग के टीचर हैं और न ही प्रयोगशालाओं में ढंग के उपकरण. वे हर साल न जाने कितने स्टूडैंट्स का जीवन दांव पर लगा रहे हैं.

अभिषेक ने जीवन में संघर्ष करना तो सीखा ही नहीं था. उस ने कोई और विकल्प ढूंढ़ने के बजाय अपने मातापिता की शरण ली और उन्हें सचाई से अवगत कराया. शीतल से यह बात अभिषेक और उस के परिवार वालों ने पूरी तरह छिपा कर रखी. शीतल के लाए दहेज की एक बड़ी रकम आशुतोष ने शादी में खर्च के नाम पर हड़प ली थी. अभिषेक को यह बात पसंद तो नहीं आई थी लेकिन उस की यह हिम्मत भी नहीं थी कि वह इस मसले पर कुछ बोले. अब तो बिलकुल नहीं जब उस की नौकरी जाती रही. वह पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर हो गया.

 प्रमोशन: भाग 3- क्या बॉस ने सीमा का प्रमोशन किया?

शाम को घर से बाहर गए सदस्य 1-1 कर लौटने लगे. रमाकांत भी बैंक से एक मित्र के घर चले जाने के कारण शाम को ही लौटे.

सीमा से कोई भी सीधे मुंह पेश नहीं आया. उस की बात का कोईर् जवाब ठीक से नहीं दे रहा था. परेशान हो कर सीमा अपने बैडरूम में कैद हो गई.

सीमा के लिए रात का खाना तो उस की ननद व सास ने बना दिया, पर खाने का बुलावा देने उसे कोई नहीं आया. पूरे घर का माहौल मातमी हो रहा था. हरेक से डांट खा कर रोंआसा रोहित भी उस की बगल में आ लेटा.

सीमा का खाना थाली में लगा कर जब राजीव शयनकक्ष में आया तब तक रोहित सो चुका था.

‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं है,’’ उदास सीमा ने ?ाठा बहाना बना कर खाना खाने से इनकार किया तो राजीव फौरन फट पड़ा.

‘‘मेरी परेशानियों को बेकार का ड्रामा कर के बढ़ाओ मत,’’ दबे क्रोध के कारण राजीव की आवाज कांप उठी, ‘‘तुम्हारी नासम?ा के कारण उधर घर वाले मु?ा से नाराज हैं और इधर तुम मु?ो परेशान करने पर तुली हुई हो. अच्छा होता अगर मैं शादी के बाद तुम्हें नौकरी करने की इजाजत ही नहीं देता.’’

‘‘मैं ने इजाजत ले कर नहीं बल्कि आप और आप के सब घर वालों के दबाव में आ कर नौकरी करी थी. मु?ो कोई शौक नहीं था घर से बाहर निकल कर परेशान होने का,’’ सीमा का स्वर ऊंचा हो गया.

‘‘मेरे घर वालों ने आज तक हर सुखसुविधा का खयाल रखा है. गृहस्थी के सभी ?ां?ाटों से तुम नौकरीपेशा होने के कारण ही बची रही हो.’’

‘‘मैं लखपति नहीं बन गई हूं नौकरी कर के. अपने क्व4 हजार के व्यक्तिगत खर्चे को छोड़ कर सारी कमाई हर महीने मैं ने आप के पिता के हाथों में रखी है.’’

‘‘अरे, उन की जिम्मेदारियों को पूरा करने

में हम दोनों हाथ नहीं बंटाएंगे, तो कौन करेगा

यह काम?’’

‘‘लेकिन उन की जिम्मेदारियों को पूरा करने की खातिर मैं अकेलेपन, दुख और अशांति का शिकार बनने को तैयार नहीं हूं.’’

‘‘तुम से कुछ सालों के लिए सम?ादारी भरा व्यवहार करने की मैं उम्मीद भी नहीं रखता हूं अब. बस, मेरे लिए अपने स्वार्थी व्यवहार के कारण इस घर में रहना कठिन मत बनाओ.’’

‘‘मु?ो स्वार्थी कहना उलटा चोर कोतवाल को डांटने जैसा है.’’

‘‘अच्छा बाबा, हम सब चोर हैं और तुम कोतवाल,’’ राजीव ने नाटकीय अंदाज में उस के सामने जोर से हाथ जोड़े, ‘‘अब चुपचाप खाना खाओ और मेरी जान बख्शो.’’

राजीव नाराज नजर आता बाहर घूमने चला गया. सीमा 2-4 कौर से ज्यादा गले से नीचे नहीं उतार सकी. घर के किसी सदस्य के सामने पड़ने से बचने के लिए वह बचा खाना व बरतन रसोई में रखने भी नहीं गई.

राजीव ने लौट कर अपनी नाराजगी भरी खामोशी कायम रखी. दोनों आंखें मूंदे देर तक  बेचैनी से करवटें बदलते रहे.

 

रविवार का दिन शनिवार से भी बदतर गुजरा. रमाकांत ने सुबह ही सुबह

छोटे बेटे संजीव को डांटते हुए घर में हंगामा खड़ा कर दिया.

‘‘नामाकूल. लफंगे,’’ रमाकांत छोटे बेटे

पर बरसे, ‘‘अगर तू पढ़लिख कर आज अच्छी नौकरी कर रहा होता, तो मु?ो किसी के एहसान की जरूरत नहीं रहती. सिर्फ क्व14 हजार कमा

कर तू मोटरसाइकिल और कार के सपने कैसे देखता है, गधे? तू तो जिंदगीभर को दुनिया

वालों की ठोकरें खाने को तैयार होगा.’’

‘‘बड़े भैया और भाभी का गुस्सा मु?ा पर निकालते हुए मु?ो गालियां सुनाने की आप को कोई जरूरत नहीं है,’’ संजीव बुरी तरह बौखला गया, ‘‘मु?ो किसी से कुछ नहीं चाहिए. मैं अपनी जरूरतें और शौक खुद पूरे कर सकता हूं.’’

‘‘वह तो कोई भी कर सकता है पर तेरी बहन के कोटा के कोर्स और उस की शादी का क्या होगा? मैं अपना सबकुछ तुम दोनों पर खर्च कर दूंगा, तो हम बूढ़ेबुढि़या की आगे जरूर दुर्गति होगी. इस स्वार्थी संसार में किसी से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.’’

‘‘यह डायलौग मु?ो नहीं, भैयाभाभी को सुनाओ.’’

‘‘ज्यादा बोलेगा तो जबान खींच लूंगा,’’ रमाकांत चीख पड़े.

?ागड़ा बढ़ता देख सुचित्रा बीच में बोली, तो रमाकांत उस के पीछे पड़ गए. कुछ देर बाद राजीव और सविता को भी उन्होंने लपेट लिया और खूब कड़वी चुभती बातें सभी को सुनाईं.

सीमा अपने कमरे से बाहर ही नहीं आई. उस से मिलने भी कोई नहीं अंदर आया. रोहित भी सहमासहमा सा अपनी मां के आसपास

बना रहा.

उस रात भी राजीव और सीमा 2 अजनबियों की तरह अगलबगल सोए. एकदूसरे के मनोभावों को न सम?ाने के घाव की टीस ने उन्हें देर रात तक जगाए रखा.

अगले दिन सोमवार की सुबह सीमा औफिस जाने की तैयारी करने लगी. उस दिन सविता उसे नियत समय पर बैड टी दे गई. उसे नाश्ता व लंच बौक्स भी हमेशा की तरह तैयार मिला. उस दिन बस यही अंतर था कि कोई भी उस के साथ मुसकराते हुए नहीं बोल रहा था. एक खिंचाव, एक शिकायत वह सब के हावभावों से साफ महसूस कर रही थी.

औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद सीमा को उस के बौस जतिन ने अपने कक्ष में बुलवा लिया. प्रमोशन के बारे में ‘हां’ या ‘न’ कहने की घड़ी आ चुकी थी.

‘‘तुम्हारा सुस्त चेहरा देख कर ही मैं ने तुम्हारे निर्णय को जान लिया है. सीमा लखनऊ जाना तुम्हारे लिए कठिन होगा, मु?ो मालूम था,’’ जतिन ने सहानुभूति भरे स्वर में वार्त्तालाप आरंभ किया.

‘‘सर, मैं लखनऊ जाऊंगी,’’ सीमा ने ये शब्द कठिनाई से ही अपने गले से बाहर निकाले.

‘‘अरे, मैं तो सोच रहा था कि तुम प्रमोशन लेने से इनकार कर दोगी,’’ जतिन हैरान हो उठे.

‘‘मेरी प्रमोशन के साथसाथ मेरे पति और ससुराल वालों की भी प्रमोशन हुई है. उन सब की प्रमोशन को ‘न’ कहना मेरे लिए संभव नहीं था.’’

‘‘मैं कुछ सम?ा नहीं सीमा?’’ जतिन उल?ान का शिकार बन गए.

 

‘‘सर, प्रमोशन से मेरी पगार बढे़गी और इसी कारण उन सब की जरूरतें,

इच्छाएं और मांगें भी बढ़ कर फैल गईं. मेरे लिए प्रमोशन को न कहना संभव नहीं रहा.’’

‘‘अपने छोटे बच्चे को छोड़ कर लखनऊ

में अकेली कैसे रहोगी सीमा?’’ जतिन चिंतित नजर आए.

‘‘सर, सब के लिए मैं नोट छापने वाली मशीन हूं. मेरी अच्छी तरह से देखभाल करने की पूरी योजना उन सब ने तैयार कर रखी है. मशीन को कम काम करने या बंद होने की सुविधा नहीं होती. उस के सुखदुख को महसूस करने की शक्ति को कोई नहीं पहचानता… कोई महत्त्व नहीं देता,’’ बोलते हुए सीमा का गला भर आया.

‘‘वक्त बदल रहा है और अब शायद औरतों को पुरुषों के बराबर कष्ट ?ोलने की ताकत भी अपने अंदर पैदा करनी होगी. बैस्ट औफ लक, माई डियर. प्रमोशन स्वीकार करने के लिए मेरी शुभकामनाएं.’’

जतिन को नकली मुसकान के साथ धन्यवाद दे कर सीमा उन के कक्ष से बाहर आ गई. कैसी भी खुशी महसूस करने के बजाय उस का दिल इस वक्त जोरजोर से रोने को कर रहा था.

सोलमेट: भाग 1- शादी के बाद निकिता का प्रेमी ने उसके साथ क्या किया?

‘‘आज संडे को सुबह सवेरे ही अपने पति प्रणय को फोन में घुसे देख मैं ने उन्हें शरारतभरे अंदाज में अपनी ओर खींचते हुए कहा, ‘‘यह सुबहसुबह मोबाइल में क्या देखने लग गए तुम?’’ ‘‘अरे, कुछ नहीं, वह मेरे बौस का मैसेज है. अरजैंट मीटिंग रखी है, जाना पड़ेगा मु झे,’’ कह कर वे झटके से उठ कर बाथरूम में घुस गए. बाहर निकल कर कहने लगे कि नाश्ता नहीं करूंगा, टाइम नहीं है, इसलिए जल्दी से बस चाय बना दो. प्रणय के औफिस जाने की सुन कर वैसे ही मेरा चेहरा उतर चुका था, सो मैं भुनभुनाते हुए किचन में घुस गई. ‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था इस संडे तुम पूरा दिन मेरे साथ बिताओगे?’’ किचन से ही पलट कर मैं ने पूछा, ‘‘कहा था न कि तुम मु झे अघोरा मौल शौपिंग कराने ले चलोगे. हम फिल्म देखेंगे, बाहर ही डिनर करेंगे यानी तुम ने सब झूठ कहा,’’ मैं ने मुंह बनाया. प्रणय हंस पड़ा, ‘‘अरे, नहीं बाबा… मैं ने तुम से कोई झूठ नहीं कहा. सच कहता हूं, मेरा भी मन था तुम्हारे साथ टाइम स्पैंड करने का.

लेकिन बौस ने अरजैंट मीटिंग रख दी तो क्या करें,’’ प्रणय ने बेचारगी दिखाते हुए कहा, तो मु झे और गुस्सा आ गया कि कैसा इंसान है यह. बोल नहीं सकता कि छुट्टी के दिन नहीं आ सकता, घर में भी काम होते हैं. ‘‘मन तो करता है तुम्हारे उस खूंसट बौस को भरभर कर गालियां दूं. अरे, खुद की बीवी तो है नहीं तो क्या जाने वह दूसरों की फिलिंग्स को. बोलते क्यों नहीं कि तुम कोई गुलाम नहीं हो उस के, जो जब बुलाए जाना पड़ेगा.’’ ‘‘गुलाम तो मैं तुम्हारा हूं माई सोलमेट. लेकिन रोटी का सवाल है न बाबा. नहीं कमाऊंगा तो खाऊंगा क्या? फिर मु झे बीवी के टुकड़ों पर पलना पड़ेगा,’’ बोल कर प्रणय हंसा.

मैं ने मुंह बिचका कर कहा, ‘‘ज्यादा कहानियां मत बनाओ? तुम हमेशा ऐसा करते हो. कहते हो नहीं जाऊंगा और चले जाते हो. छुट्टी का सारा मजा किरकिरा कर देते हो.’’ मेरी बात पर प्रणय ने मु झे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘अच्छा, अब ज्यादा गुस्सा मत करो? मैं जल्द ही लौट आऊंगा. फिर तुम्हें शौपिंग कराने ले चलूंगा. हम फिल्म देखने भी चलेंगे और डिनर भी बाहर ही करेंगे, अब खुश?’’ ‘‘प्रौमिस?’’ मैं ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा. ‘‘पक्का प्रौमिस,’’ बोल कर प्रणय फटाफट तैयार हो कर औफिस के लिए निकल गए. गाड़ी में बैठते हुए मु झे इशारे से कहा कि मैं फोन करूंगी तो तुम तैयार रहना. प्रणय को ‘बाय’ बोल कर अभी मैं बालकनी से हाल में आई ही थी कि मेरे फोन की घंटी बजी. मु झे लगा प्रणय का ही फोन होगा. शायद वे अपना वालेट या कोई फाइल भूल गए होंगे घर पर. लेकिन फोन किसी अननोन नंबर से था.

इसी नंबर से कल भी फोन आया था मेरे फोन पर लेकिन मैं ने उठाया नहीं क्योंकि बेकार में लोग फोन करकर के कुछ भी ज्ञान बघारने लगते हैं कि आप यह स्कीम ले लो, वह लोन ले लो, बहुत फायदा है इस में वगैरहवगैरह. कैसेकैसे ठग हो गए हैं दुनिया में कि पूछो मत. फोन से ही लोगों का अकाउंट खाली कर देते हैं. अभी परसों ही मैं ने अखबार में पढ़ा था कि एक रिटायर्ड शिक्षक के फोन पर किसी अननोन नंबर से फोन आया. उस आदमी ने बताया वह बैंक से बोल रहा है क्रैडिट कार्ड संबंधी कुछ जानकारी चाहिए. शिक्षक ने जानकारी दे दी और फिर मिनटों में उस के अकाउंट से क्व85 हजार रुपए गोल हो गए. मु झे सम झ नहीं आता कि इतना ठगी के मामले सामने आने के बाद भी लोग अलर्ट क्यों नहीं हैं? उस रिटायर्ड टीचर ने अगर उसे कुछ न बताया होता, तो उस के पैसे तो बच जाते न. ठग लोग ऐसे ही होते हैं. कोई बैंकर बन कर लोगों को फंसाता है तो कोई किसी कंपनी का कस्टमर केयर अधिकारी बन कर लोगों को चुना लगा डालता है. लोगों को अपने जाल में फंसाने के इन के पास कई तरीके होते हैं

. वे कहते हैं न चोर के चौरासी बुद्धि. नयानया रास्ता खोज ही निकालते हैं ये लोगों को ठगने का. खैर, मैं तो भई सतर्क रहती हूं. खुद पर गर्व महसूस करते हुए गाना गुनगुनाते हुए किचन में अपने लिए कौफी बनाने जाने ही लगी कि मेरा फोन फिर बजा. फोन उसी नंबर से था इसलिए मैं ने इग्नोर किया. लेकिन बारबार जब उसी नंबर से फोन आने लगा तो लगा हो सकता अपने किसी पहचान वाले का ही फोन हो. इसलिए इस बार मैं ने फोन उठा लिया. अभी मैं ने ‘हैलो’ कहा ही कि सामने वाले के मुंह से अपना ‘निक नेम सुन कर मैं चौंकी क्योंकि इस नाम से मु झे 1-2 लोग ही बुलाते थे जो मेरे काफी करीब थे. ‘‘जी, कौन बोल रहे हैं आप?’’ मैं ने सवाल किया. सामने वाला आदमी हंसते हुए बोला, ‘‘तुम्हारा सोलमेट. पहचाना मु झे?’’ बोल कर वह ठहाके लगा कर जोर से हंसा. उस की हंसी सुन कर मेरे चेहरे का भाव ही बदल गया क्योंकि यह आदमी कोई और नहीं बल्कि, मेरा पुराना प्रेमी ऋतिक था. ‘‘तुम? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मु झे फोन करने की?’’ बोल कर मैं उस का फोन काटने ही लगी कि… ‘‘नहींनहीं, निक्की डियर, इस बार फोन काटने की गलती मत करना. वरना तुम सोच भी नहीं सकती मैं क्या कर सकता हूं.

वैसे तुम्हारे पति का नंबर है मेरे पास,’’ बोल कर वह फिर हंसा, तो मेरा खून खौल उठा. ‘‘चाहते क्या हो तुम?’’ मैं एकदम से चीख पड़ी. फिर सोचा कि मैं ने तो इस का नंबर ब्लौक कर दिया था. लेकिन लगता है इस बार इस ने मु झे किसी दूसरे नंबर से फोन किया और मैं पहचान न सकी, गलती हो गई मु झ से, ‘‘अब क्या चाहिए तुम्हें बोलो?’’ ‘‘पैसे वे भी पूरे क्व20 लाख,’’ बेशर्म की तरह हंसते हुए ऋतिक बोला कि पैसे के साथ वह मेरा इंतजार करेगा. उसी होटल के रूम नंबर 102 में, जहां हम अकसर मिलते थे. ‘‘क्व20 लाख? तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया? कहां से लाऊंगी मैं क्व20 लाख? औरऔर मैं क्यों आऊं तुम से मिलने?’’ ‘‘तुम्हें आना तो पड़ेगा निक्की डीयर और वे भी पूरे क्व20 लाख के साथ वरना तुम जानती हो मैं क्याक्या कर सकता हूं. न… न… मेरी बात को गीदड़ भभकी मत सम झना. सच बता रहा हूं, तुम्हारी सारी तसवीरें, जो तुम ने मेरे साथ खिंचवाई थी, फोन चैंटिंग और हां, हमारे प्राइवेट पल के वीडियोज, जो मैं ने अपने फोन में सेव कर रखे हैं प्यारीप्यारी इमोजी के साथ तुम्हारे पति के व्हाट्सऐप पर सैंड कर दूंगा.

फिर न कहना कि बताया नहीं. एक और बात, इस बार मेरे फोन को ब्लौक करने की गलती तो बिलकुल भी मत करना डियर निक्की जान,’’ बोल कर एक खतरनाक हंसी के साथ ऋतिक ने फोन रख दिया. मैं वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई. मेरा दिमाग सुन्न हो चुका था. कुछ सम झ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं? कहीं सच में इस ने हमारी वे सारी तसवीरें और प्राइवेट पल के वीडियो प्रणय को भेज दिए तो क्या होगा. प्रणय तो मु झे अपनी जिंदगी से धक्के मार कर बाहर निकाल देंगे और मांपापा भी मु झे माफ नहीं करेंगे. ओह, अब क्या करूं मैं? अपना सिर पकड़ कर रो पड़ी मैं. तभी फिर मेरा फोन बजा. फोन उठाते ही मैं झल्ला पड़ी, ‘‘देखो, मैं तुम्हें आखिरी बार सम झा रही हूं. मैं सच में तुम्हारी पुलिस में कंप्लेन कर दूंगी… प्लीज, मु झे परेशान करना बंद करो.’’ ‘‘अरे, निकिता क्या हुआ तुम्हें? कौन परेशान कर रहा है मेरी जान को?’’ जब फोन पर प्रणय की आवाज सुनी तो मैं सकते में आ गई. ‘‘तुम, वह… वह मु झे लगा कि फिर… किसी कंपनी वाले ने फोन किया है,’’ मैं ने झट से बात बदली, ‘‘देखो न, ये कंपनी वाले भी न अजीब हैं. कब से फोन करकर के मु झे परेशान कर रहे हैं.’’ ‘‘अरे, तो फोन उठाओ ही मत न.

अच्छा, चलो मैं आता हूं,’’ कह कर प्रणय ने फोन रख दिया और कुछ ही समय में वह मेरे सामने थे. प्रणय को देखते ही मैं उन की बांहों में सिमट गई. मन से काफी डरी हुई थी मैं. मु झे यों अपने इतने करीब पा कर प्रणय शरारत से बोले, ‘‘क्या बात है अगर मु झे पता होता कि मेघ बरसने को तैयार हैं तो मैं औफिस जाता ही नहीं, कोई बहाना बना देता.’’ ‘‘तो बनाया क्यों नहीं?’’ मैं ने उन्हें प्यार से धक्का दिया. ‘‘पता नहीं था न कि आज तुम मूड में हो,’’ प्रणय हंसे. ‘‘ज्यादा बनो मत… और आज तो तुम्हारी कोई अरजैंट मीटिंग थी फिर इतनी जल्दी कैसे आ गए?’’ मेरी बात पर प्रणय बोले कि मैं ने जो उस के बौस को भरभर गालियां दीं उन से वह डर गया. ‘‘मजाक मत करो… बोलो न जल्दी कैसे आ गए?’’ मेरी बात पर वे कहने लगे, ‘‘दरअसल, आज जिस क्लाइंड के साथ मीटिंग होने वाली थी वह किसी कारणवश आ नहीं पाया, इसलिए मीटिंग कैंसिल हो गई. ‘‘अच्छा हुआ,’’ मैं ने छुटकारे की सांस ली. ‘‘छोड़ो वे सब बातें. देखो, मैं, ‘ड्रीम गर्ल 2’ के 2 टिकट ले आया हूं. कब से तुम कह रही थी न तुम्हें ‘ड्रीम गर्ल 2’ देखनी है. चलो, अब जल्दी से तैयार हो जाओ क्योंकि 12 बजे का ‘शो’ है और 11 बजने को हैं. जाने में भी तो समय लगेगा न. अपनी कलाईघड़ी पर नजर डालते हुए प्रणय बोले. मगर अब मेरा मन फिल्म देखने का जरा भी नहीं हो रहा था. लग रहा था बस प्रणय मेरे पास ही बैठे रहें और मैं उन के कंधे पर सिर टिकाए सुकून से आंखें बंद कर सो जाऊं. ‘‘अरे, अब बैठेबैठे क्या सोचने लग गई तुम? तैयार हो जाओ भई,’’ प्रणय ने टोका तो मैं उठ कर कमरे में आ गई. अलमारी से मैरून रंग का कुरताप्लाजो निकाला, मैचिंग इयरिंग्स पहने, लिपस्टिक लगाई, बालों को खुला ही छोड़ दिया और बाहर आ गई. प्रणय ने मु झे भरपूर नजरों से देखा और मुसकरा कर बाहर निकल गए.

मैं भी दरवाजा लौक कर उन के पीछेपीछे चल पड़ी. मु झे साड़ी पहनना ज्यादा पसंद है पर उस में समय लगता है, इसलिए मैं ने कुरताप्लाजो ही पहन लिया. गाड़ी में बैठे खिड़की से बाहर झांकते हुए सोचने लगी कि अगर ऋतिक ने प्रणय को सबकुछ बता दिया तो अनर्थ हो जाएगा. नहींनहीं, ऐसा तो नहीं करेगा वह. सिर्फ मु झे डरा रहा है, लेकिन बता दिया तो क्या होगा. मेरे मन में सवालों का तांता लगा था और जवाब कुछ भी नहीं था मेरे पास. ‘‘ओ मैडमजी, आप ने क्या मु झे अपना ड्राइवर सम झ लिया है?’’ प्रणय की बातों से चौंक कर मैं उन की तरफ देखने लगी. ‘‘हां, आप से ही कह रहा हूं. पति हूं तुम्हारा, बात तो करो मु झ से. पता नहीं क्या सोच रही हो कब से.’’ ‘‘नहीं, कुछ नहीं वह बस… सम झ नहीं आ रहा था क्या कहूं मैं क्यों न कुछ दिनों की छुट्टी ले कर हम कहीं घूमने चलें?’’ ‘‘हां, जा तो सकते हैं पर अभी नहीं क्योंकि अगले महीने से मेरा औडिट शुरू होने वाला है,’’ बोल कर प्रणय ने गाड़ी घुमाई तो मु झे लगा कि वहां ऋतिक खड़ा है. ऋतिक का डर मेरे ऊपर इतना हावी हो चुका था कि हर जगह मु झे वही नजर आ रहा था.

गाड़ी पार्किंग के समय भी मु झे लगा जैसे उस की नजरें मु झ पर ही टिकी हैं. लेकिन यह मेरा भ्रम ही था शायद क्योंकि वह यहां कैसे हो सकता है. वह तो यहां से ढाईतीन हजार किलोमीटर दूर, अपने घर बिहार में रहता है, तो वह यहां कैसे हो सकता है. मैं ने अपने मन को सम झाया. लेकिन फिर लगा नहीं वह तो यहीं इसी शहर में है, तभी तो उस ने मु झे उसी होटल में मिलने बुलाया है. ओह यानी वह मेरा पीछा कर रहा है? मैं तो अब और भी डर गई कि पता नहीं कब प्रणय के सामने मेरा राज खुल जाए और मेरी गृहस्थी तितरबितर हो जाए. इसलिए मैं प्रणय से जिद करने लगी कि हम कहीं घूमने चलते ही हैं. मेरी बात पर प्रणय ने मु झे अजीब नजरों से देखा जैसे कह रहे हों कि मु झे यह अचानक क्या हो गया? क्यों मैं बच्चों की तरह जिद कर रही हूं? लेकिन मैं उन्हें क्या और कैसे बताती कि मैं यहां इस शहर से भगाना चाह रही हूं जितनी जल्दी हो सके. फिल्म अच्छी थी. प्रणय का तो हंसहंस कर पेट ही फूल गया. लेकिन मेरे चेहरे से हंसी गायब थी. मौल में भी मैं ने कुछ नहीं खरीदा, बस विंडो शौपिंग कर लौट आई. होटल में खाना भी बस जरा सा ही खाया. हमें घर आतेआते रात के 10 बज गए. मैं काफी थकी हुई महसूस कर रही थी. तन से नहीं मन से और मन से थका हुआ इंसान खुद को बहुत ही कमजोर महसूस करता है. मैं भी कर रही थी.

जीवन लीला: भाग 1- क्या हुआ था अनिता के साथ

लेखकसंतोष सचदेव

जीवन के आखिरी पलों में न जाने क्यों आज मेरा मन खुद से बातें करने को हो गया. सोचा अपनी  जिंदगी की कथा या व्यथा मेज पर पड़े कोरे कागजों पर अक्षरों के रूप में अंकित कर दूं.

यह मैं हूं. मेरा नाम अनिता है. कहां पैदा हुई, यह तो पता नहीं, पर इतना जरूर याद है कि मेरे पिता कनाडा में भारतीय दूतावास में एक अच्छे पद पर तैनात थे. उन का औफिस राजधानी ओटावा में था. मां भी उन्हीं के साथ रहती थीं. मैं और मेरा भाई मांट्रियल में मौसी के यहां रहते थे. मेरी पढ़ाई की शुरुआत वहीं से हुई. मेरा भाई रोहन मुझ से 5 साल बड़ा था.

स्कूल घर के पास ही था, मुश्किल से 3-4 मिनट का रास्ता था. तमाम बच्चे पैदल ही स्कूल आतेजाते थे. लेकिन हमारे घर और स्कूल के बीच एक बड़ी सड़क थी, जिस पर तेज रफ्तार से कारें आतीजाती थीं. इसलिए वहां के कानून के हिसाब से स्कूल बस हमें लेने और छोड़ने आती थी.

घर में हम हिंदी बोलते थे, जबकि स्कूल में फ्रेंच और अंग्रेजी पढ़नी और बोलनी पड़ती थी. वहां की भाषा फ्रेंच थी. वहां सभी फ्रेंच में बातें करते थे. दुकानों के साइन बोर्ड, सड़कों के नाम, सब कुछ फ्रेंच में थे. जबकि मुझे फ्रेंच से बड़ी चिढ़ थी. स्कूल की कोई यूनीफार्म नहीं थी, फीस भी नहीं, किताबकापियां सब फ्री में मिलती थीं.

सर्दी में भी सभी लड़कियां छोटेछोटे कपड़े पहनती थीं. हम भारतीयों को यह सब बड़ा अजीब लगता था. बचपन के लगभग 10 साल वहीं बीते. मांट्रियल के बारे में सुना था कि वहां बहुत बड़ा पहाड़ था, जिसे माउंट रायल कहते थे. बोलतेबोलते वह माउंट रायल मांट्रियल बन गया. ऊंचे पहाड़ से बहते झरने की तरह मेरी जीवनधारा भी कभी कलकल करती, कभी हिलोरें भरती, कभी गहरी झील की गहराई सी समेटे आगे बढ़ रही थी. वह मधुरिम समय आज भी मेरे जीवन की जमापूंजी है.

मैं थोड़ा बड़ी हो गई. भारतीय परंपराओं के बंधनों से मेरा परिचय कराया जाने लगा. लड़कियां मित्र हो सकती हैं, लड़के नहीं. स्कूल सीमा के बाहर किसी लड़के के साथ न बोलना, न घूमना. पिता नए जमाने के साथ चलने के पक्षधर थे, पर मौसी ने जो बचपन में सिखाया था, उसे तब तक भूली नहीं थीं. वह उस परंपरा को आगे भी जारी रखने के लिए दृढ़ संकल्प थीं. मैं स्कर्ट नहीं पहन सकती थी. कमीज भी पूरी बाहों की, जिसे गले तक बंद करना पड़ता था. भले ही स्कूल में दूसरे बच्चों के बीच हंसी का पात्र बनूं, लेकिन मौसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी.

मैं दसवीं में पढ़ रही थी, तभी अचानक पिताजी का तबादला हो गया. हम अपने देश भारत आ गए. रहने को दिल्ली के आरकेपुरम में सरकारी मकान मिला. वह काफी खुला इलाका था, मां बहुत खुश थीं. क्योंकि उन्हें चांदनी चौक के पुराने कटरों की तंग गलियों वाले अपने पुश्तैनी मकान में नहीं जाना पड़ा था.

दिल्ली के स्कूलों में दाखिला कोई आसान काम नहीं था. पर पिताजी की सरकारी नौकरी और तबादले का मामला था, इसलिए घर के पास ही सर्वोदय स्कूल में दाखिला मिल गया. बारहवीं की परीक्षा मैं ने अच्छे नंबरों से पास की, जिस से दिल्ली विश्वविद्यालय में बीए में एडमिशन में कोई परेशानी नहीं हुई. इंगलिश औनर्स से बीए कर के मैं युवावस्था की दहलीज तक पहुंच गई.

मां बीमार रहने लगी थीं, भाई रोहन डाक्टरी की ऊंची शिक्षा के लिए लंदन चले गए. जैसा कि भारतीय हिंदू परिवारों में होता है, उसी तरह घर में मेरी शादी की चिंता होने लगी. मेरे पिताजी के एक बड़े पुराने मित्र थे सुंदरदास अरोड़ा. वह ग्रेटर कैलाश में एक बड़ी कोठी में रहते थे.

कनाडा से आने के बाद हम अकसर उन के यहां आयाजाया करते थे. एक दिन उन्होंने मेरे पिताजी से कहा, ‘‘हम दोनों अच्छे मित्र हैं, हमारे परिवार एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं. क्यों न हम इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदल दें. मैं चाहता हूं कि डा. वरुण की शादी अनिता से कर दी जाए.’’

वरुण उन दिनों अमेरिका में रह रहा था. वह वहीं अपनी क्लिनिक चलाता था. उन्होंने डा. वरुण को बुला लिया. उस ने मुझे पसंद कर लिया. मेरी पसंद, नापसंद के कोई मायने नहीं थे. बात आगे बढ़ी और मैं मिस अनिता मेहरा से मिसेज अनिता अरोड़ा हो गई.

शादी के बाद मैं वरुण के साथ अमेरिका के कैलीफोर्निया में रहने लगी. एक साल में ही मैं एक बेटे की मां बन गई. बेटे का नाम रखा गया रोहित. वक्त के साथ रोहित 3 साल का हो गया और स्कूल जाने लगा. पति ने उस की देखभाल के लिए एक आया रख ली थी. इसी बीच दिल्ली में मेरी सास सुमित्राजी के गंभीर रूप से बीमार होने की सूचना मिली. वरुण ने कहा कि रोहित को आया संभाल लेगी, इसलिए मैं सास की देखभाल के लिए दिल्ली चली जाऊं.

दिल्ली आ कर पता चला कि सास को कैंसर था. ससुर और मैं उन्हें ले कर अस्पतालों के चक्कर काटने लगे. उन की देखभाल के लिए घर पर नर्स रख ली गई थी. लेकिन मेरा मौजूद रहना जरूरी था.

6 महीने से ज्यादा बीत गए. सास की हालत में काफी सुधार आ गया तो मैं ने कैलीफोर्निया जाने की तैयारी शुरू कर दी. शुरूशुरू में वरुण लगभग रोज ही फोन कर के मां का हालचाल पूछता रहा. मैं भी अकसर फोन कर के रोहित के बारे में जानकारी लेती रहती थी. लेकिन अचानक वरुण के फोन आने बंद हो गए. मैं फोन करती तो उधर से फोन नहीं उठता. मुझे चिंता होने लगी.

वरुण से बात किए बगैर वहां कैसे जा सकती थी. जब वरुण से बात नहीं हो सकी तो मेरे ससुर ने अपने दूर के किसी रिश्तेदार से वरुण के बारे में पता करने को कहा. उन्होंने पता कर के बताया कि वरुण किसी डा. मारिया से शादी कर के नाइजीरिया चला गया है. उस के बाद वरुण का कुछ पता नहीं चला.

हम सभी हैरान रह गए. रोहित के बारे में पता करने मैं कैलीफोर्निया गई. पर उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. न परिचितों को न आसपड़ोस वालों को. मैं अकेली होटलों में कितने दिन रुक सकती थी. थकहार कर लौट आई.

मेरे ससुर और पिता की तमाम कोशिशों के बाद भी न वरुण का पता चला, न रोहित का. एक गहरा घाव भीतर ही भीतर रिसता रहा. कुछ दिन बीते थे कि मेरे मातापिता की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. भाई रोहन एक अंग्रेज महिला से शादी कर के लंदन में बस गया था. मातापिता की मौत पर दोनों दिल्ली आए थे. वे लोग चांदनी चौक का पुश्तैनी मकान बेच कर वापस चले गए. मुझे सांत्वना देने के सिवाय और वे कर भी क्या सकते थे.

ग्रेटर कैलाश की उस विशाल कोठी में मेरे दिन गुजरने लगे. समय बिताने और मानसिक तनाव से बचने के लिए मैं एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी. स्कूल से घर लौटती तो मेरे सासससुर दरवाजे पर मेरी बाट जोहते मिलते. उन्होंने मुझे मांबाप से कम प्यारदुलार नहीं दिया. मेरे ससुर की उदास आंखें सदा मेरे चेहरे पर कुछ खोजती रहतीं. वह अकसर कहते, ‘‘मैं तुम्हारे पिता और तुम्हारा अपराधी हूं. मेरे बेटे ने मेरे हाथों न जाने किस जन्म का पाप करवाया है.’’

सास भी अकसर अपनी कोख को कोसती रहतीं, ‘‘मेरे बेटे ने जघन्य पाप किया है. इतनी सुंदर पत्नी के रहते उस ने बिना बताए दूसरी शादी कर ली. मेरे पोते को भी ले गया. जिंदा भी हो तो मैं कभी उस का मुंह न देखूं.’’

आगे पढ़ें- अरुण मेरे पति का छोटा भाई था, जो…

अवैध संतान: क्या था मीरा का फैसला

मीरा कन्या महाविद्यालय के गेट से बाहर आते ही विमला मैडम ने अपनी चाल तेज कर दी. वे लगभग दौड़ रही थीं, इसलिए उन की बिटिया सीमा को भी दौड़ लगानी पड़ रही थी. विमला मैडम सीमा के उस सवाल से बचना चाहती थीं जो उस ने गेट से बाहर आते ही दाग दिया था, ‘‘मम्मी, मैं आप की और विमल सर की अवैध संतान हूं?’’

वे बिना कोई उत्तर दिए चली जा रही थीं. इसलिए जब उन के बगल से एक आटो गुजरा तो उसे रोक कर अपनी बेटी सीमा को लगभग खींचते हुए आटो में बैठ गईं. उन्हें पता था, उन की बेटी आटोचालक के सामने कुछ नहीं बोलेगी.

आज जो कुछ घटा उस की उम्मीद उन को सपने में भी नहीं थी. आज उन के स्कूल की छुट्टी जल्दी हो गई थी तब उन्होंने अपनी बेटी को भी छुट्टी दिला कर बाजार जाने की सोची थी. इसलिए, वे उस की बड़ी मैडम से अपनी बेटी की छुट्टी स्वीकृत करा कर, स्टाफरूम में बैठी थीं. तभी विमल सर स्टाफरूम में आए. विमला मैडम विमल सर से बात कर रही थीं. उसी समय सीमा स्टाफरूम में घुसी. उसे देख कर विमल सर बोले, ‘‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’’ उन के बात आगे बढ़ाने से पूर्व ही विमला मैडम ने इशारे से उन्हें रोक दिया. परंतु सर के ये शब्द सीमा के कान में पड़ गए. उस समय तो सीमा कुछ नहीं बोली परंतु गेट से बाहर आते ही मम्मी से पूछे बिना नहीं रही.

आटो में चुप बैठी रही सीमा घर पहुंचते ही बोल पड़ी, ‘‘मम्मी, आप जवाब नहीं दे रही हो जबकि मेरी सहेलियां मुझे चिढ़ाती हैं. कहती हैं, ‘तू भी कानपुर की और सर भी कानपुर के, और तेरे में सर का अक्स दिखाई देता है. कहीं तेरी मम्मी और सर के बीच अफेयर तो नहीं था?’ और आज उन के शब्द ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी’. तब क्या, मैं आप की और सर की अवैध संतान हूं?’’

विमला उस की बात को टालते हुए बोलीं, ‘‘जब तू पेट में थी तब तेरे सर के परिवार का घर में बहुत आनाजाना था, इसीलिए.’’

‘‘मम्मी, आप ने मुझे बच्चा समझा है. मैं सर से ही पूछ लूंगी,’’ कह कर सीमा वहां से उठ गई.

विमला ने उसे रोका नहीं क्योंकि उन को पता था, वह जो सोच लेती है, करती है. सीमा चायनाश्ता कर अपने कमरे में आ कर लेट गई. टीवी चला लिया परंतु उस का प्रिय प्रोग्राम भी उस को शांति नहीं दे रहा था. ‘यह तुम्हारी बेटी है, तभी…’, ये ही शब्द उस के कानों में बारबार गूंज रहे थे. तभी फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, उधर उस की सहेली मधु थी, ‘‘तू भी घर आ गई पागल, घड़ी देख, 4 से ज्यादा बज गए हैं.’’

इधरउधर की बातें करने के बजाय सीमा ने सीधे ही पूछ लिया, ‘‘तू विमल सर का घर जानती है?’’

‘‘क्यों? क्या तू भी सर से ट्यूशन पढ़ना चाहती है? हां, वह बहुत अच्छा पढ़ाते हैं. अरे हां, तेरा विषय तो सर पढ़ाते नहीं हैं. फिर तू…?’’

‘‘तुझ से जितना पूछा है उतना बता. मैं खुद चली जाऊंगी, तू केवल पता बता.’’

‘‘ऐसा कर, गांधी चौक की ओर से मेरे घर की ओर आएगी, तो पहले ही मोड़ पर अंतिम मकान है. उन के नाम की प्लेट लगी है.’’

उस ने फोन रख दिया और मम्मी से बोल दिया, ‘‘मैं मधु के घर जा रही हूं, जल्दी घर आ जाऊंगी.’’

कुछ ही देर में सीमा सर के घर पहुंच गई. वह पहले झिझकी, फिर घंटी बजा दी. दरवाजा सर ने ही खोला. एक पल को वह सर को देखती ही रही क्योंकि आज उसे सर दूसरे ही रूप में दिख रहे थे और फिर उसे अपना मकसद ध्यान आया और सर के कुछ बोलने से पहले ही वह बोल पड़ी, ‘‘सर, क्या मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

सर को शायद ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी.

इसलिए सर ने कहा, ‘‘देखो बेटे, ऐसे प्रश्न दरवाजे पर नहीं किए जाते. अंदर आओ. मैं तुम्हारे हर प्रश्न का उत्तर दूंगा.’’

वह अंदर आ गई. अंदर सर ने अपनी मम्मी से उस का परिचय कराया, ‘‘मम्मी, यह विमला की बेटी है.’’

सर की मम्मी पुलकित हो उठीं, ‘‘मम्मी को भी ले आती.’’

उन के और कुछ बोलने से पूर्व ही सर ने मम्मी को कहा, ‘‘मम्मी, बाकी बातें बाद में हो जाएंगी. इसे चायनाश्ता कराओ. पहली बार घर आई है,’’ उन के चले जाने के बाद सर बोले, ‘‘हां, अब बोलो.’’

‘‘सर, मैं आप की और मम्मी की अवैध संतान हूं?’’

‘‘देखो बेटे, संतान अवैध नहीं होती, बल्कि संबंध अवैध होते हैं. और फिर मेरे और तुम्हारी मम्मी के संबंधों को तो तुम्हारे पापा की स्वीकृति थी.’’

यह सुनते ही सीमा का मुंह खुला का खुला रह गया. उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई इतना नीचे भी गिर सकता है. उसे यह समझ नहीं आया कि पापा की क्या मजबूरी थी.

उस की परेशानी भांप कर सर बोले, ‘‘शांत हो कर बैठो, मैं सब बताता हूं. तुम्हारी मम्मी की शादी आम हिंदुस्तानी शादी थी. पहले 2 साल शादी की खुमारी में  निकल गए और फिर कानाफूसी शुरू हो गई कि घर में किलकारी क्यों नहीं गूंजी. पहले घर से और फिर आसपास. तुम्हारे पापा के दोस्त ताना मारने से नहीं चूकते. उधर, उन की मर्दानगी पर चुटकुले बनने लगे. साथ ही, डाक्टरी रिपोर्ट ने आग में घी का कार्य किया. कमी तुम्हारे पापा में मिली. ‘‘तुम्हारे पापा औफिस का गुस्सा घर में निकालने लगे. उन्हीं दिनों हमारा परिवार तुम्हारे पड़ोस में आ गया. तुम्हारी मम्मी हमारे घर आ जातीं. मैं तुम्हारी मम्मी के बाजार के काम कर देता. तुम्हारी मम्मी कोई बच्चा गोद लेने को कहतीं तो तुम्हारे पापा नाराज हो जाते. उन को अपनी मर्दानगी दिखानी थी. मेरे और तुम्हारी मम्मी के बीच निकटता बढ़ने लगी. तुम्हारे पापा ने हमारी निकटता को इग्नोर किया. फलस्वरूप, हमारी निकटता और बढ़ती गई और उस मुकाम तक पहुंच गई जिस के फलस्वरूप तुम अपनी मम्मी के पेट में आ गईं.

‘‘वह दिन मुझे आज भी याद है, मैं जब तुम्हारे घर पहुंचा तब तुम्हारी मम्मी के शब्द कान में पड़े, उन शब्दों को सुनते ही अंदर जा रहे मेरे कदम रुक गए. तुम्हारी मम्मी कह रही थीं, ‘लो, अब तुम भी मर्द बन गए. मैं गर्भवती हो गई. अब दोस्तों के सामने तुम्हारी गरदन नहीं झुकेगी.’ मुझे लगा कि मैं सिर्फ एक टूल था, जो तुम्हारे पापा को मर्द साबित करने के लिए इस्तेमाल किया गया था. मुझे तुम्हारी मम्मी पर गुस्सा आया. सोचा कि वहां जा कर अपनी नाराजगी जाहिर करूं लेकिन फिर मुझे तुम्हारी मम्मी पर तरस आ गया. मैं वापस घर आ गया. उस के बाद मैं कभी तुम्हारे घर नहीं गया.

‘‘उसी दौरान मेरे पापा का तबादला हो गया. जिस दिन हम जा रहे थे उस दिन तुम्हारी मम्मी हमें छोड़ने आई थीं. वे कुछ नहीं बोलीं लेकिन उन की चुप्पी भी बहुतकुछ कह गई. मैं ने उन को माफ कर दिया.’’

सर की मम्मी, जो वहां आ गई थीं, ने सब सुन लिया था, बोल पड़ीं, ‘‘बेटा, इस ने खुद को माफ नहीं किया और अब तक शादी नहीं की.’’

‘‘तुम्हारी मम्मी की खबरें शोभा आंटी से मिलती रहीं. तुम्हारा जन्म हुआ. तुम्हारे पिता ने पार्टी दी. लेकिन बताते हैं कि उन के चेहरे पर वह खुशी नहीं दिखाई दी जो एक बाप के चेहरे पर दिखाई देनी चाहिए थी. तुम्हारी मम्मी और पापा में झगड़ा और बढ़ गया. तुम्हारा चेहरा देख कर उन को पता नहीं क्या हो जाता, शायद उन को अपनी नामर्दी ध्यान आ जाती या वे हीनभावना से ग्रस्त हो गए थे. तुम्हारी ओर ध्यान नहीं देते. तुम्हारी मम्मी के लिए तुम सबकुछ थीं. शायद वे तुम्हारे कारण अपने को भूल जातीं.

‘‘एक दिन तुम्हारी मम्मी बाथरूम में नहा रही थीं. तुम जोरजोर से रो रही थीं. तुम्हारे पापा वहीं खड़े थे परंतु उन्होंने तुम्हें चुप नहीं कराया. उसी समय शोभा आंटी आ गईं. तुम्हें जोरजोर से रोते देख कर वे तुम्हारे पापा से बोलीं, ‘कैसा बाप है? लड़की रोए जा रही है और तू अपनी टाई बांधने में लगा है, जैसे यह तेरी बेटी नहीं है.’ आंटी के बोलते ही वे आगबबूला हो उठे. वे चीखे, ‘हांहां, यह मेरी बेटी नहीं है. मैं तो नपुंसक हूं.’

‘‘इतना कह कर वे घर से निकल गए और फिर केवल उन की मौत की सूचना आई कि उन्होंने रेलगाड़ी के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली थी. बस, एक ही बात उन्होंने अच्छी की, अपनी मौत के लिए किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया.

‘‘कुछ दिन के बाद तुम्हारे मामा, तुम्हारी मम्मी और तुम को ले कर चले गए.’’

बात गंभीर हो गई थी. एक तरह से वहां चुप्पी छा गई. चुप्पी सीमा ने ही तोड़ी, ‘‘सर, मेरी शादी के बाद मेरी मम्मी अकेली रह जाएंगी. आप भी कभी अकेले हो जाओगे. इसलिए आप और  मम्मी अपने उन अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘पगली, अब हमारी शादी की उम्र थोड़े ही है, अब तो तेरी शादी करनी है.’’

‘‘लेकिन सर, आप से मिलने के बाद मैं ने मम्मी के चेहरे पर अलग चमक देखी थी. और अब जब आप ने घर के दरवाजे पर मुझे देखा तो आप के चेहरे पर भी वही चमक मैं ने महसूस की.’’

‘‘बहुत बड़ी हो गई है तू और लोगों को पढ़ना भी जानती है.’’

‘‘प्लीज, सर.’’

‘‘तू एक तरफ तो मुझे पापा बनाना चाहती है और दूसरी ओर सरसर भी करे जा रही है. पापा नहीं कह सकती.’’

‘‘सौरी, पापा,’’ कहती हुई वह सर से लिपट गई. दादी ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘चल बेटा, अपनी बहू के पास चलते हैं.’’

सीमा ने उन को रोक दिया, ‘‘पहले मैं मम्मी से बात कर लूं.’’

‘‘मैं तेरी मम्मी को जानती हूं. वह भी राजी हो ही जाएगी.’’

‘‘हां, दादी, मम्मी मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हैं.’’

सीमा वापस घर जाने के लिए उठ खड़ी हुई तब विमल सर उसे छोड़ने आ गए. उधर, विमला सीमा के लिए चिंतित हो रही थीं. दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोलने पर सामने सीमा ही थी. विमला चीखीं, ‘‘कहां गई थी?’’

‘‘पापा के पास.’’

‘‘तेरे पापा तो मर चुके हैं.’’

‘‘वे मेरे पापा नहीं थे. वे आप के पति थे. और फिर वे तो पति कहलाने लायक भी नहीं क्योंकि वे तन से ही नहीं मन से भी नपुंसक थे, जो अपनी पत्नी को पराए मर्द के साथ सोने को प्रेरित करता है मात्र इसलिए कि दुनिया के सामने अपने को मर्द दिखा सके. अपने को मर्द दिखाने के लिए पत्नी द्वारा बच्चा गोद ले लेने के विचार को भी न सुने.’’

‘‘तो इतना जहर भर दिया उस ने. मुझे उस से यह उम्मीद नहीं थी. मैं इसीलिए चुप थी कि यह सुन कर तू मुझ से भी घृणा करने लगती.’’

‘‘मम्मी, मैं आप से घृणा करूंगी? आप ने जिस तरह मेरी परवरिश की है उस पर मुझे गर्व है कि तुम मेरी मां हो. पापा भी ऐसे नहीं हैं. दरवाजे पर मुझे देख कर उन की नजर इधरउधर घूम रही थी. वे शायद आप को खोज रहे थे.’’

फिर कुछ समय तक चुप्पी छाई रही. दोनों एकदूसरे को देखती रहीं. फिर सीमा ही बोली, ‘‘मम्मी, आप और सर अपने अवैध संबंधों को वैध नहीं बना सकते?’’

‘‘नहीं बेटा, अब मुझे तेरी शादी करनी है, अपनी नहीं.’’

‘‘मम्मी, पापा को पता है मैं उन की बेटी हूं परंतु मुझे बेटी नहीं कह सकते. मैं जानते हुए भी उन को पापा नहीं कह सकती. और आप मेरे सामने खोखली हंसी हंसोगी और अकेले में रोओगी.’’

‘‘लेकिन बेटा, लोग क्या कहेंगे?’’

‘‘उन की चिंता नहीं है. मुझे आप की चिंता है. मेरी शादी के बाद आप अकेली रह जाओगी और उधर, दादी कितने दिन की मेहमान हैं. बाद में पापा भी अकेले हो जाएंगे.’’

विमला विचारमग्न हो गईं. फिर अचानक बोल पड़ीं, ‘‘तू अकेली आई, कैसा पिता है? जवान लड़की को रात में अकेला भेज दिया.’’

‘‘नहीं, मम्मी, पापा आए थे.’’

‘‘फिर अंदर क्यों नहीं आए?’’

‘‘मम्मी, मैं ने मना कर दिया था. मैं चाहती थी कि पहले मैं आप से बात कर लूं.’’

‘‘ओह, क्या बात है. बड़ी समझदार हो गई है मेरी लाड़ली.’’

तभी फोन की घंटी बजी. सीमा ने फोन उठाया, उधर दादी थीं. उस ने फोन मम्मी को दे दिया. मम्मी बोलीं, ‘‘नमस्ते, आंटी.’’

‘‘अरे, मैं अब तेरी आंटी नहीं, बल्कि अब तेरी सास हूं.’’ इस के बाद की कहानी भी छोटी सी रह गई है. सीमा के मम्मीपापा के अवैध संबंध वैध बन गए. सब बहुत खुश थे. सब से ज्यादा कौन खुश था, बताने की जरूरत नहीं.

आज जब मैं यह कहानी लिख रहा हूं तब सीमा मेरे पास बैठी है, पूछ रही है, ‘पापा, मैं ने सही किया या गलत?’

अब आप लोग ही बताएं सीमा ने सही किया या गलत?

हमसफर: पूजा का राहुल से शादी करने का फैसला क्या सही था

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अंधविश्वास की बेड़ियां: पाखंड में अंधी सास को क्या हुआ बहू के दर्द का एहसास?

‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

यह कोई पहला मौका नहीं था. उन्होंने तो शादी के दूसरे साल से ही ऐसे तानों से मेरी नाक में दम कर दिया था. सावन उन के इकलौते बेटे और मेरे पति थे. मेरे ससुर बहुत पहले गुजर गए थे. घर में पति और सास के अलावा कोई न था. मेरी सास को पोते की बहुत ख्वाहिश थी. वे चाहती थीं कि जैसे भी हो मैं उन्हें एक पोता दे दूं.

मैं 2 बार लेडी डाक्टर से अपना चैकअप करवा चुकी थी. मैं हर तरह से सेहतमंद थी. समझाबुझा कर मैं सावन को भी डाक्टर के पास ले गई थी. उन की रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक थी.

डाक्टर ने हम दोनों को समझाया भी था, ‘‘आजकल ऐसे केस आम हैं. आप लोग बिलकुल न घबराएं. कुदरत जल्द ही आप पर मेहरबान होगी.’’

डाक्टर की ये बातें हम दोनों तो समझ चुके थे, लेकिन मेरी सास को कौन समझाता. आए दिन उन की गाज मुझ पर ही गिरती थी. उन की नजरों में मैं ही मुजरिम थी और अब तो वे यह खुलेआम कहने लगी थीं कि वे जल्द ही सावन से मेरा तलाक करवा कर उस के लिए दूसरी बीवी लाएंगी, ताकि उन के खानदान का वंश बढ़े.

उन की इन बातों से मेरा कलेजा छलनी हो जाता. ऐसे में सावन मुझे तसल्ली देते, ‘‘क्यों बेकार में परेशान होती हो? मां की तो बड़बड़ाने की आदत है.’’

‘‘आप को क्या पता, आप तो सारा दिन अपने काम पर होते हैं. वे कैसेकैसे ताने देती हैं… अब तो उन्होंने सब से यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हमारा तलाक करवा कर आप के लिए दूसरी बीवी लाएंगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. मैं न तो तुम्हें तलाक दूंगा और न ही दूसरी शादी करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम में कोई कमी नहीं है. बस कुदरत हम पर मेहरबान नहीं है.’’

एक दिन हमारे गांव में एक बाबा आया. उस के बारे में मशहूर था कि वह बेऔलाद औरतों को एक भभूत देता, जिसे दूध में मिला कर पीने पर उन्हें औलाद हो जाती है.

मुझे ऐसी बातों पर बिलकुल यकीन नहीं था, लेकिन मेरी सास ऐसी बातों पर आंखकान बंद कर के यकीन करती थीं. उन की जिद पर मुझे उन के साथ उस बाबा (जो मेरी निगाह में ढोंगी था) के आश्रम जाना पड़ा.

बाबा 30-35 साल का हट्टाकट्टा आदमी था. मेरी सास ने उस के पांव छुए और मुझे भी उस के पांव छूने को कहा. उस ने मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. आशीर्वाद के बहाने उस ने मेरे सिर पर जिस तरह से हाथ फेरा, मुझे समझते देर न लगी कि ढोंगी होने के साथसाथ वह हवस का पुजारी भी है.

उस ने मेरी सास से आने का कारण पूछा. सास ने अपनी समस्या का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया कि ढोंगी बाबा मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरने लगा. उस ने मेरी आंखें देखीं, फिर किसी नतीजे पर पहुंचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बहू पर एक चुड़ैल का साया है, जिस की वजह से इसे औलाद नहीं हो रही है. अगर वह चुड़ैल इस का पीछा छोड़ दे, तो कुछ ही दिनों में यह गर्भधारण कर लेगी. लेकिन इस के लिए आप को काली मां को खुश करना पड़ेगा.’’

‘‘काली मां कैसे खुश होंगी?’’ मेरी सास ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें काली मां की एक पूजा करनी होगी. इस पूजा के बाद हम तुम्हारी बहू को एक भभूत देंगे. इसे भभूत अमावास्या की रात में 12 बजे के बाद हमारे आश्रम में अकेले आ कर, अपने साथ लाए दूध में मिला कर हमारे सामने पीनी होगी, उस के बाद इस पर से चुड़ैल का साया हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाएगा.’’

‘‘बाबाजी, इस पूजा में कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं 7-8 हजार रुपए.’’

मेरी सास ने मेरी तरफ ऐसे देखा मानो पूछ रही हों कि मैं इतनी रकम का इंतजाम कर सकती हूं? मैं ने नजरें फेर लीं और ढोंगी बाबा से पूछा, ‘‘बाबा, इस बात की क्या गारंटी है कि आप की भभूत से मुझे औलाद हो ही जाएगी?’’

ढोंगी बाबा के चेहरे पर फौरन नाखुशी के भाव आए. वह नाराजगी से बोला, ‘‘बच्ची, हम कोई दुकानदार नहीं हैं, जो अपने माल की गारंटी देता है. हम बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं. तुम्हें अगर औलाद चाहिए, तो जैसा हम कह रहे हैं, वैसा करो वरना तुम यहां से जा सकती हो.’’

ढोंगी बाबा के रौद्र रूप धारण करने पर मेरी सास सहम गईं. फिर मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखते हुए चापलूसी के लहजे में बाबा से बोलीं, ‘‘बाबाजी, यह नादान है. इसे आप की महिमा के बारे में कुछ पता नहीं है. आप यह बताइए कि पूजा कब करनी होगी?’’

‘‘जिस रोज अमावास्या होगी, उस रोज शाम के 7 बजे हम काली मां की पूजा करेंगे. लेकिन तुम्हें एक बात का वादा करना होगा.’’

‘‘वह क्या बाबाजी?’’

‘‘तुम्हें इस बात की खबर किसी को भी नहीं होने देनी है. यहां तक कि अपने बेटे को भी. अगर किसी को भी इस बात की भनक लग गई तो समझो…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मेरी सास ने ढोंगी बाबा को फौरन यकीन दिलाया कि वे किसी को इस बात का पता नहीं चलने देंगी. उस के बाद हम घर आ गईं.

3 दिन बाद अमावास्या थी. मेरी सास ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया और फिर पूजा के इंतजाम में लग गईं. इस पूजा में मुझे शामिल नहीं किया गया. मुझे बस रात को उस ढोंगी बाबा के पास एक लोटे में दूध ले कर जाना था.

मैं ढोंगी बाबा की मंसा अच्छी तरह जान चुकी थी, इसलिए आधी रात होने पर मैं ने अपने कपड़ों में एक चाकू छिपाया और ढोंगी के आश्रम में पहुंच गई.

ढोंगी बाबा मुझे नशे में झूमता दिखाई दिया. उस के मुंह से शराब की बू आ रही थी. तभी उस ने मुझे वहीं बनी एक कुटिया में जाने को कहा.

मैं ने कुटिया में जाने से फौरन मना कर दिया. इस पर उस की भवें तन गईं. वह धमकी देने वाले अंदाज में बोला, ‘‘तुझे औलाद चाहिए या नहीं?’’

‘‘अपनी इज्जत का सौदा कर के मिलने वाली औलाद से मैं बेऔलाद रहना ज्यादा पसंद करूंगी,’’ मैं दृढ़ स्वर में बोली.

‘‘तू तो बहुत पहुंची हुई है. लेकिन मैं भी किसी से कम नहीं हूं. घी जब सीधी उंगली से नहीं निकलता तब मैं उंगली टेढ़ी करना भी जानता हूं,’’ कहते ही वह मुझ पर झपट पड़ा. मैं जानती थी कि वह ऐसी नीच हरकत करेगा. अत: तुरंत चाकू निकाला और उस की गरदन पर लगा कर दहाड़ी, ‘‘मैं तुम जैसे ढोंगी बाबाओं की सचाई अच्छी तरह जानती हूं. तुम भोलीभाली जनता को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से न केवल लूटते हो, बल्कि औरतों की इज्जत से भी खेलते हो. मैं यहां अपनी सास के कहने पर आई थी. मुझे कोई भभूत भुभूत नहीं चाहिए. मुझ पर किसी चुड़ैल का साया नहीं है. मैं ने तेरी भभूत दूध में मिला कर पी ली थी, तुझे यही बात मेरी सास से कहनी है बस. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो मैं तेरी जान ले लूंगी.’’

उस ने घबरा कर हां में सिर हिला दिया. तब मैं लोटे का दूध वहीं फेंक कर घर आ गई.

कुछ महीनों बाद जब मुझे उलटियां होनी शुरू हुईं, तो मेरी सास की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि वे उलटियां आने का कारण जानती थीं.

यह खबर जब मैं ने सावन को सुनाई तो वे भी बहुत खुश हुए. उस रात सावन को खुश देख कर मुझे अनोखी संतुष्टि हुई. मगर सास की अक्ल पर तरस आया, जो यह मान बैठी थीं कि मैं गर्भवती ढोंगी बाबा की भभूत की वजह से हुई हूं.

अब मेरी सास मुझे अपने साथ सुलाने लगीं. रात को जब भी मेरा पांव टेढ़ा हो जाता तो वे उसे फौरन सीधा करते हुए कहतीं कि मेरे पांव टेढ़ा करने पर जो औलाद होगी उस के अंग विकृत होंगे.

मुझे अपनी सास की अक्ल पर तरस आता, लेकिन मैं यह सोच कर चुप रहती कि उन्हें अंधविश्वास की बेडि़यों ने जकड़ा हुआ है.

एक दिन उन्होंने मुझे एक नारियल ला कर दिया और कहा कि अगर मैं इसे भगवान गणेश के सामने एक झटके से तोड़ दूंगी तो मेरे होने वाले बच्चे के गालों में गड्ढे पड़ेंगे, जिस से वह सुंदर दिखा करेगा. मैं जानती थी कि ये सब बेकार की बातें हैं, फिर भी मैं ने उन की बात मानी और नारियल एक झटके से तोड़ दिया, लेकिन इसी के साथ मेरा हाथ भी जख्मी हो गया और खून बहने लगा. लेकिन मेरी सास ने इस की जरा भी परवाह नहीं की और गणेश की पूजा में लीन हो गईं.

शाम को काम से लौटने के बाद जब सावन ने मेरे हाथ पर बंधी पट्टी देखी तो इस का कारण पूछा. तब मैं ने सारी बात बता दी.

तब वे बोले, ‘‘राधिका, तुम तो मेरी मां को अच्छी तरह से जानती हो.

वे जो ठान लेती हैं, उसे पूरा कर के ही दम लेती हैं. मैं जानता हूं कि आजकल उन की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी हुई है, जिस की वजह से वे ऐसे काम भी रही हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए. तुम मन मार कर उन की सारी बातें मानती रहो वरना कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो वे तुम्हारा जीना हराम कर देंगी.’’

सावन अपनी जगह सही थे, जैसेजैसे मेरा पेट बढ़ता गया वैसेवैसे मेरी सास के अंधविश्वासों में भी इजाफा होता गया. वे कभी कहतीं कि चौराहे पर मुझे पांव नहीं रखना है.  इसीलिए किसी चौराहे पर मेरा पांव न पड़े, इस के लिए मुझे लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. इस से मैं काफी थकावट महसूस करती थी. लेकिन अंधविश्वास की बेडि़यों में जकड़ी मेरी सास को मेरी थकावट से कोई लेनादेना न था.

8वां महीना लगने पर तो मेरी सास ने मेरा घर से निकलना ही बंद कर दिया और सख्त हिदायत दी कि मुझे न तो अपने मायके जाना है और न ही जलती होली देखनी है. उन्हीं दिनों मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. वे बेहोशी की हालत में मुझ से मिलने की गुहार लगाए जा रहे थे. लेकिन अंधविश्वास में जकड़ी मेरी सास ने मुझे मायके नहीं जाने दिया. इस से पिता के मन में हमेशा के लिए यह बात बैठ गई कि उन की बेटी उन के बीमार होने पर देखने नहीं आई.

उन्हीं दिनों होली का त्योहार था. हर साल मैं होलिका दहन करती थी, लेकिन मेरी सास ने मुझे होलिका जलाना तो दूर उसे देखने के लिए भी मना कर दिया.

मेरे बच्चा पैदा होने से कुछ दिन पहले मेरी सास मेरे लिए उसी ढोंगी बाबा की भभूत ले कर आईं और उसे मुझे दूध में मिला कर पीने के लिए कहा. मैं ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा करूंगी तो मुझे बेटा पैदा होगा.

अपनी सास की अक्ल पर मुझे एक बार फिर तरस आया. मैं ने उन का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मैं ने आप की सारी बातें मानी हैं, लेकिन आप की यह बात नहीं मानूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ सास की भवें तन गईं.

‘‘क्योंकि अगर भभूत किसी ऐसीवैसी चीज की बनी हुई होगी, तो उस का मेरे होने वाले बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.’’

‘‘अरी, भूल गई तू कि इसी भभूत की वजह से तू गर्भवती हुई थी?’’

उन के लाख कहने पर भी मैं ने जब भभूत का सेवन करने से मना कर दिया तो न जाने क्या सोच कर वे चुप हो गईं.

कुछ दिनों बाद जब मेरी डिलीवरी होने वाली थी, तब मेरी सास मेरे पास आईं और बड़े प्यार से बोलीं, ‘‘बहू, देखना तुम लड़के को ही जन्म दोगी.’’

मैं ने वजह पूछी तो वे राज खोलती हुई बोलीं, ‘‘बहू, तुम ने तो बाबाजी की भभूत लेने से मना कर दिया था. लेकिन उन पहुंचे बाबाजी का कहा मैं भला कैसे टाल सकती थी, इसलिए मैं ने तुझे वह भभूत खाने में मिला कर देनी शुरू कर दी थी.’’

यह सुनते ही मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई. मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही मुझे अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता दिखाई देने लगा. फिर मुझे किसी चीज की सुध नहीं रही और मैं बेहोश हो गई.

होश में आने पर मुझे पता चला कि मैं ने एक मरे बच्चे को जन्म दिया था. ढोंगी बाबा ने मुझ से बदला लेने के लिए उस भभूत में संखिया जहर मिला दिया था. संखिया जहर के बारे में मैं ने सुना था कि यह जहर धीरेधीरे असर करता है. 1-2 बार बड़ों को देने पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. लेकिन छोटे बच्चों पर यह तुरंत अपना असर दिखाता है. इसी वजह से मैं ने मरा बच्चा पैदा किया था.

तभी ढोंगी बाबा के बारे में मुझे पता चला कि वह अपना डेरा उठा कर कहीं भाग गया है.

मैं ने सावन को हकीकत से वाकिफ कराया तो उस ने अपनी मां को आड़े हाथों लिया.

तब मेरी सास पश्चात्ताप में भर कर हम दोनों से बोलीं, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. पोते की चाह में मैं ने खुद को अंधविश्वास की बेडि़यों के हवाले कर दिया था. इन बेडि़यों की वजह से मैं ने जानेअनजाने में जो गुनाह किया है, उस की सजा तुम मुझे दे सकती हो… मैं उफ तक नहीं करूंगी.’’

मैं अपनी सास को क्या सजा देती. मैं ने उन्हें अंधविश्वास को तिलांजलि देने को कहा तो वे फौरन मान गईं. इस के बाद उन्होंने अपने मन से अंधविश्वास की जहरीली बेल को कभी फूलनेफलने नहीं दिया.

1 साल बाद मैं ने फिर गर्भधारण किया और 2 स्वस्थ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. मेरी सास मारे खुशी के पागल हो गईं. उन्होंने सारे गांव में सब से कहा कि वे अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि अंधविश्वास बिना मूठ की तलवार है, जो चलाने वाले को ही घायल करती है.

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