एसी में बैठना हो सकता है खतरनाक

क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो एसी वाले ऑफिस में काम करके खुद को खुशनसीब समझते हैं? क्या आप जब घर में होते हैं तो उस वक्त भी एसी ऑन ही रहता है और आप ठीक उसके सामने बैठना ही पसंद करते हैं?

अगर आप भी ऐसा करने वालों में से हैं तो आपको बता दें कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है और आपको अपनी इस आदत के बारे में एकबार और सोचने की जरूरत है.

एक अध्ययन में पाया गया है कि भले ही लोग एसी को लक्जरी लाइफस्टाइल से जोड़कर देखते हों लेकिन सच्चाई ये है कि एसी में 24 घंटे बैठे रहना सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.

बीते कुछ समय में एसी का इस्तेमाल अचानक से बढ़ गया है. गर्मियों में प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से धरती का तापमान इतना अधिक हो जाता है कि एसी के बिना काम भी नहीं चलता.

ऐसे में जो लोग अफोर्ड कर पाते हैं वो एसी लगवाने में जरा भी देर नहीं करते हैं. रही बात ऑफिसों की तो आज के समय में ज्यादातर दफ्तरों में एसी लगा ही होता है. ये मूलभूत जरूरत हो चुकी है.

पर सोचने वाली बात ये है कि एक आर्टिफिशियल टेंपरेचर में बहुत देर तक रहना किस हद तक खतरनाक हो सकता है, इस ओर कभी भी हमारा ध्यान ही नहीं जाता है. इस टेंपरेचर के बदलाव का सबसे बुरा असर हमारे इम्यून सिस्टम पर पड़ता है.

अगर आपको लगता है कि आप अक्सर ही बीमार पड़ने लगे हैं, तो हो न हो आपकी इस आदत ने आपके इम्यून सिस्टम को कमजोर कर दिया है.

एसी के सामने ज्यादा वक्त बिताने वालों को हो सकती हैं ये हेल्थ प्रॉब्लम्स-

1. साइनस की प्रॉब्लम

प्रोफेशनल्स की मानें तो जो लोग एसी में चार या उससे अधिक घंटे रहते हैं , उनमें साइनस इंफेक्शन होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है. दरअसल, बहुत देर तक ठंड में रहने से मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं.

2. थकान

अगर आप एसी को बहुत लो करके सोते हैं या उसके सामने बैठते हैं तो आपको हर समय कमजोरी और थकान रहने लगेगी.

3. वायरल इंफेक्शन

बहुत अधिक देर तक एसी में बैठने से, फ्रेश एयर सर्कुलेट नहीं हो पाती है. ऐसे में फ्लू, कॉमन कोल्ड जैसी बीमारियां होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है.

4. आंखों का ड्राई हो जाना

एसी में घंटों बिताने वालों में ये प्रॉब्लम सबसे ज्यादा कॉमन है. एसी में बैठने से आंखों ड्राई हो जाती हैं. एसी में बैठने का ये असर स्क‍िन पर भी नजर आता है.

5. एलर्जी

कई बार ऐसा होता है कि लोग एसी को टाइम टू टाइम साफ करना भूल जाते हैं, जिससे एसी की ठंडी हवा के साथ ही डस्ट पार्टिकल भी हवा में मिल जाते हैं. सांस लेने के दौरान ये डस्ट पार्ट‍िकल शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे इम्यून सिस्टम पर असर पड़ता है.

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मुझे गरदन में बारबार दर्द होता है, इसका क्या कारण है?

सवाल-

मेरी आयु 33 वर्ष है. 3 हफ्ते पहले मेरा सिर दरवाजे से टकरा गया था और मुझे गंभीर चोट लगी थी. अब गरदन में भी दर्द होने लगा है. क्या इस से मुझे चिंतित होने की जरूरत है?

जवाब-

चोट का असर कई बार कुछ हफ्तों तक बना रहता है. सिर जब किसी भारी वस्तु से झटके से टकराता है, तो गरदन पर भी उस चोट का असर पड़ता है, जिसे गरदन की मोच कहा जाता है. इस में गरदन के सौफ्ट टिशू में मामूली इंजरी हो जाती है. अपनी गरदन को थोड़ा आराम दें. उस पर दबाव डालना या झटका न देना ही बेहतर होगा. अगर दर्द बराबर बना हुआ है तो डाक्टर को दिखाएं.

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सवाल-

मेरी उम्र 22 वर्ष है. मुझे गरदन में बारबार दर्द होता है. इस से मुझे कम से कम 1 सप्ताह तक तकलीफ होती है. क्या ऐसा मेरे लगातार कंप्यूटर पर काम करने के कारण होता है? बताएं, क्या करूं?

जवाब-

गरदन के दर्द के कई कारण हो सकते हैं, मसलन सौफ्ट इंजरी, सर्वाइकल स्पौंडिलाइटिस या मोच आदि. लेकिन गलत मुद्रा और गरदन झुका कर लगातार कंप्यूटर या किसी अन्य इलैक्ट्रौनिक डिवाइस पर आंखें गड़ाए रखने के कारण भी युवाओं में आजकल गरदन के दर्द की समस्या आम हो गई है. आप को अपनी मुद्रा सही करनी होगी. ऐसी कुरसी और मेज का इस्तेमाल करना होगा जो आप की गरदन और कंप्यूटर स्क्रीन के बीच समानांतर ऊंचाई बनाती हों. साथ ही, काम के दौरान बे्रक लेते रहें. थोड़ी चहलकदमी करें, अपनी गरदन घुमाएं और थोड़ा स्ट्रैचआउट कर लें. अगर इस के बाद भी समस्या बनी रहे तो डाक्टर से संपर्क करें.

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जो लोग कामगर हैं, जिन्हें पूरे दिन कंप्यूटर पर बैठ के काम करना पड़ता है उन्हें गर्दन और पीठ दर्द की शिकायत रहती है. पर क्या आपको पता है कि अपने बैठने की आदत में बदलाव कर के आप इस परेशानी से निजात पा सकती हैं. आपको बता दें कि कंप्यूटर के सामने अधिक देर तक बैठने से आपके गर्दन और रीढ़ की हड्डियों पर काफी नुकसान पहुंचता है. इससे आपको अधिक थकान, सिर में दर्द और एकाग्रता में कमी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर आप अधिक देर तक इसी अवस्था में बैठी रहती हैं तो आपके स्पाइनल कौर्ड में भी घाव हो सकता है.

इस मुद्दे पर शोध कर रहे जानकारों का मानना है कि इन परेशानियों के लिए बैठने का गलत तरीका जिम्मेदार है. अगर आप सीधे बैठें तो इन परेशानियों से निजात पा सकती हैं. अगर आप सीधे बैठती हैं तो आपकी पीछे की मांसपेशियां आपके गर्दन और सिर के भार को सहारा देती हैं.

जानकारों की माने तो अगर आप सिर को 45 डिग्री के कोण पर आगे करती हैं तो आपकी गर्दन आधार की तौर पर कार्य करती हैं. इससे आपके गर्दन पर काफी भार आता है. ऐसी स्थिति में आपके सिर और गर्दन का वजन 45 पाउंड हो जाता है. इससे आपको दर्द और कई तरह की परेशानियां होती हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

एनीमिक हैं तो इन 9 फलों का करें सेवन

एनीमिया रक्त की एक जानी मानी बीमारी है. यदि आपको एनीमिया है तो इसका अर्थ यह है कि आपके रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की कमी है. इसका अर्थ यह भी है कि आपके रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर कम है.

क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसे फल हैं जिनका सेवन एनीमिक होने पर अवश्य करना चाहिए? हीमोग्लोबिन रक्त की कोशिकाओं में उपस्थित एक प्रोटीन है जो ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने में मदद करता है.

एनीमिया के उपचार में फल बहुत सहायक हैं और जब आप इनके बारे में जान जायेंगे तब आप भी इस स्थिति से निपटने में इन फलों का उपयोग कर सकेंगे.  एनीमिया का उपचार इसके कारण और गंभीरता के बारे में जानकर किया जा सकता है. सामान्यत: एनीमिया के उपचार में दवाईयां, आहार में परिवर्तन और कभी कभी सर्जरी शामिल हैं.

आइए प्रत्येक फल के गुणों के बारे में पढ़ें तथा जानें कि ये फल किस तरह एनीमिया के उपचार में सहायक हैं.

1. आलूबुखारा

आलूबुखारा तथा इसका रस आयरन के बहुत अच्छे स्त्रोत हैं तथा एनीमिया के उपचार के लिए उत्तम फल है. एनीमिया से बचने के लिए अपने नाश्ते में प्रतिदिन आलूबुखारे शामिल करें.

2. सेब

सेब उन कई फलों में से एक है जो ब्लड काउंट बढ़ाने में सहायक है. सेब में विटामिन सी होता है जो शरीर को नॉन-हेम आयरन अवशोषित करने में मदद करता है. एनीमिया से बचने के लिए प्रतिदिन एक सेब खाएं.

3. एप्रीकॉट (खुबानी)

एप्रीकॉट में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा यह आपके शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाने में सहायक होता है. अपने शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाने के लिए प्रतिदिन नाश्ते में या मिड-डे स्नैक के रूप में एक मुट्ठी एप्रीकॉट खाने की आदत डाल लें.

4. मौसंबी

मौसंबी में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा यदि आप एनीमिया से ग्रसित हैं तो इसका सेवन अवश्य करना चाहिए. आप इसे कच्चा भी खा सकते हैं या इसका जूस भी पी सकते हैं.

5. केला

शरीर में नई कोशिकाओं के निर्माण और रखरखाव के लिए फोलिक एसिड बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह एनीमिया के उपचार में भी बहुत मदद करता है, विशेष रूप से तब जब आप गर्भवती हों. केले में फोलिक एसिड पाया जाता है तथा अन्य कई फलों की तरह यह ब्लड काउंट को बढ़ाने में सहायक होता है.

6. संतरा

आपके शरीर के लिए विटामिन सी अत्यंत आवश्यक होता है क्योंकि यह शरीर को आयरन अवशोषित करने में सहायता करता है. खट्टे फल विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत होते हैं. संतरे में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा इसका उपयोग करके एनीमिया से बचा जा सकता है.

7. आम

आम में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, अत: एनीमिया होने की स्थिति में इनका सेवन करना बहुत अच्छा माना गया है. एनीमिया के उपचार के लिए इसे सर्वोत्तम माना गया है.

8. कीवी

कीवी में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यदि आप एनीमिक हैं और आयरन की गोलियाँ खा रहे हैं तो गोलियों के साथ साथ आपको कीवी भी खाना चाहिए. कीवी बहुत स्वादिष्ट होता है तथा एनीमिया की स्थिति से निपटने के लिए यह एक उत्तम फल है.

9. अनार

अनार में विटामिन सी तथा आयरन पाया जाता है. ये शरीर में न केवल रक्त प्रवाह को बढ़ाते हैं बल्कि एनीमिया के लक्षणों जैसे चक्कर आना, थकान, कमज़ोरी आदि के उपचार में भी बहुत प्रभावी हैं. प्रतिदिन एक अनार खाएं या इसके रस का सेवन करें.

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ब्लैक कॉफी पीने से होंगे ये 9 फायदे

अगर आप भी एक कॉफी पर्सन हैं और आपको कॉफी पीना बहुत पसंद है तो आपको ये जानकर खुशी होगी कि कॉफी पीने से आपकी सेहत को भी फायदा होता है. कई लेख और रिपोर्ट में कहा गया है ब्लैक कॉफी पीना सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि दो से तीन कप कॉफी बिना दूध या चीनी मिलाए पीने से लिवर से जुड़ी बीमारियों के होने की आशंका कम हो जाती है. विशेषज्ञों की मानें तो कॉफी के प्यालों से लि‍वर का कैंसर होने की आशंका भी कम हो जाती है.

ब्लैक कॉफी पीने के ये हैं फायदे-

1. एक्सट्रा फैट होता है कम

कैफीन से आपके कमर के आस पास के एक्स्ट्रा फैट को कम करने में सहायक है. पर अगर आप ज्यादा कॉफी पीती हैं तो शायद कैफीन आपकी वेस्ट घटाने में मदद न कर पाए.

2. कॉफी में हैं एशेंशियल न्युट्रीऐंट्स

एक कप कड़वे घोल के अलावा भी कॉफी में बहुत सारे पोषक तत्व होते हैं. नियमित कॉफी पीने से आप एनर्जाइज्ड फील करेंगी.

3. कैंसर के खतरे को करे कम

रिसर्च में पाया गया है कि कॉफी कैंसर सेल्स को ग्रो करने से रोकता है. कॉफी पीने से पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में एंडोमेट्रीयल कैंसर के चांसेस कम हो जाते हैं.

4. स्ट्रोक का रिस्क करे कम

स्ट्रोक आना आज एक कॉमन सिंपटम है. पर कॉफी स्ट्रोक के रिस्क को भी कम कर देता है.

5. शरीर में लाए स्फूर्ति

एक कप कॉफी आपको ऊर्जा से भर देती है. वर्क आउट करने से पहले भी आप एक कप कॉफी पी सकती हैं.

6. डीप्रेशन में सहायक

कई बार हम अकेलेपन के अंधेरों में डूबने लगते हैं. कॉफी आपको अवसादग्रस्त होने से भी बचाता है.

7. उम्र बढ़ाए, बस एक कप कॉफी

रिसर्च में पाया गया है कि कॉफी पीने वाले लोगों कि उम्र लंबी होती है. क्योंकि कॉफी पीने से हृदय रोग के खतरे कम हो जाते हैं.

8. दांतों की सुरक्षा

ब्लैक कॉफी आपके दांतों की भी सुरक्षा करता है. अगर आप 2 बार ब्रश करने में आलस करती हैं, तो ब्लैक कॉफी को अपनी रोजाना जिंदगी में शामिल करें.

9. लिवर को रखें स्वस्थ

अगर किसी को पहले से ही लिवर से जुड़ी कोई बीमारी है तो उनके लिए भी ब्लैक कॉफी पीना फायदेमंद है. कॉफी में पाए जानेवाले विभिन्न तत्व लिवर पर अच्छा असर डालते हैं.

कहीं ना लगे कॉफी की लत

सुबह की शुरुआत अकसर लोग कॉफी के साथ करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कॉफी अगर अधिक मात्रा में ली जाए तो आपको कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

सूत्रों की मानें तो कॉफी अधिक पीने से अलग-अलग लोगों के शरीर पर इसका अलग-अलग असर पड़ता है. कहते हैं अगर कैफीन की 1000 mg से अधिक मात्रा ली जाए तो उस इंसान को इसकी लत पड़ जाती है. कैफीन को अधिक मात्रा में लेने से नर्वसनेस, नींद ना आना, उत्तेजित होना, हार्टबीट बढ़ना, ज्यादा यूरीन आना जैसी परेशानी हो सकती हैं.

यही नहीं अगर 10 ग्राम से ज्यादा कैफीन ली जाए तो सांस लेने में दिक्कत आ सकती और मौत भी हो सकती है. अधिक कॉफी पीने से लोगों को सिरदर्द, नकसीर, उल्टी आना जैसी परेशानियों से हमेशा शिकायत रहती है.

कॉफी की लत अगर आप छोड़ना चाहते हैं तो जितना हो सके पानी खूब पिएं. मन ना माने तो कॉफी की जगह गर्म पानी में मिंट या दालचीनी डालकर पिएं.

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आर्थ्राइटिस और नीरिप्लेसमैट से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी नानी और मां दोनों को आर्थ्राइटिस के कारण नीरिप्लेसमैंट सर्जरी करानी पड़ी थी. मु झे भी दोनों घुटनों में औस्टियोआर्थ्राइटिस है. मेरी उम्र केवल 48 साल है. क्या मु झे भी नीरिप्लेसमैट कराना होगा?

जवाब-

आनुवांशिक कारणों के कारण आर्थ्राराइटिस का खतरा बढ़ जाता है. लेकिन आप परेशान न हों, प्रारंभिक स्तर पर आर्थ्राराइटिस का उपचार दवाइयों और ऐक्सरसाइज से ही किया जाता है. कई बार इंजैक्शन भी लगाए जाते हैं. इस से आराम मिलता है. इन सब के बाद भी जब परेशानी कम नहीं होती तब सर्जरी का विकल्प चुना जाता है. वैसे और्थोपैडिक सर्जन 48 की उम्र में नी रिप्लेसमैंट करने से बचते हैं, इस के बजाय अलाइनमैंट ठीक करने की सर्जरी की जाती है, सामान्यत: घुटने का जोड़ एक तरफ से खराब होता है, दूसरी तरफ का ठीक रहता है. अलाइनमैंट ठीक होने से घुटने का प्राकृतिक जोड़ बचा रहता है और दर्द में भी आराम मिलता है. इस के अलावा युवा मरीजों के लिए आंशिक घुटना प्रत्यारोपण का विकल्प भी चुना जाता है. इस में पूरे जोड़ के बजाय केवल क्षतिग्रस्त भाग को बदला जाता है. इस में रिकवरी काफी जल्दी होती है.

सवाल-

मेरी सास की उम्र 63 साल है. डाक्टर ने उन्हें नीरिप्लेसमैंट कराने का कहा है. हम ने रोबोटिक नी रिप्लेसमैंट के बारे में काफी सुना है. मैं जानना चाहती हूं कि यह पारंपरिक तकनीक से कितनी बेहतर है?

जवाब-

पारंपरिक सर्जरी की तुलना में रोबोटिक सर्जरी अधिक सटीक और सूक्ष्म होती है. इस के परिणाम भी बहुत अच्छे आते हैं और रिकवरी भी तेज होती है. घुटना प्रत्यारोपण की पारंपरिक तकनीक में इंप्लांट को ठीक तरह से बैठाने के लिए घुटने की मैनुअल तरीके से घिसाई की जाती है. जबकि रोबोटिक में सीटी स्कैन और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की सहायता से मरीज के घुटने का 3 डी स्कैन तैयार किया जाता है. इस में पहले ही योजना बना ली जाती है कि इंपलांट को किस तरह फिट करेंगे ताकि अलाइमैंट बेहतर हो. इस में स्वस्थ हड्डियों को कम नुकसान पहुंचता है और ज्यादा ऊतक भी क्षतिग्रस्त नहीं होते हैं. अलाइमैंट भी अच्छा होता है, इसलिए रोबोटिक्स को पारंपरिक घुटना प्रत्यारोपण से बेहतर माना जाता है.

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सवाल-

34 साल की उम्र में एक दुर्घटना में चोट लगने से मेरा लिगामैंट टूट गया था. लेकिन तब मैं ने सर्जरी नहीं करवाई थी. 14-15 साल बाद मु झे नीआर्थ्राइटिस हो गया है. क्या लिगामैंट टियर सर्जरी कराने से यह समस्या ठीक हो जाएगी?

जवाब-

लिगामैंट टियर होने से कुछ लोगों को घुटने में तेज दर्द होता है तो कई लोगों के पैर में लचक आ जाती है. घुटने के लगातार लचक खाने से 10-15 वर्षों में उस में आर्थ्राराइटिस विकसित हो जाता है. एक बार आर्थ्राराइटिस होने पर लिगामैंट का उपचार भी करें तो कोई फायदा नहीं होगा. इस से बचने के लिए जरूरी है कि दुर्घटना या खेलकूद में लिगामैंट क्षतिग्रस्त हो जाए तो तुरंत सर्जरी कराएं. इस के लिए और्थोस्कोपिक सर्जरी दूरबीन से की जाती है और रिकवरी भी बहुत तेज होती है. लेकिन अकसर लोग सोचते हैं कोई फ्रैक्चर तो नहीं है, इसलिए यह समय के साथ अपनेआप ठीक हो जाएगा. ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए और तुरंत सर्जरी करानी चाहिए.

सवाल-

मेरा वजन 98 किलोग्राम है और लंबाई 5 फुट 1 इंच है. मु झे दोनों घुटनों में आर्थ्राइटिस है. अकसर लोग मु झे बैरियाट्रिक सर्जरी कराने की सलाह देते हैं, कहते हैं. वजन कम होने से मेरा आर्थ्राइटिस ठीक हो जाएगा?

जवाब-

यह सही है कि वजन अधिक होने से घुटनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है. वजन कम करने से दर्द और सूजन में आराम मिलता है, घुटनों की मूवमैंट भी बेहतर होता है. अर्ली आर्थ्राइटिस में हम दवाइयों के साथ ऐक्सरसाइज और वजन कम करने की सलाह भी देते हैं. सर्जरी के पहले भी हम मरीज को वजन कम करने की सलाह देते हैं क्योंकि वजन अधिक होने से कृत्रिम जोड़ों पर भी दबाव पड़ता है. लेकिन यह पूरी तरह से गलत है कि वजन कम करने से आर्थ्राइटिस ठीक हो जाता है. आर्थ्राइटिस के कारण जोड़ को जितना नुकसान पहुंच चुका होता है वह तो वजन कम करने से ठीक नहीं होता, लेकिन घुटनों पर लोड कम कर के जोड़ को और अधिक नुकसान पहुंचाने से बचाया जा सकता है.

सवाल-

मैं 46 वर्षीय घरेलू महिला हूं. पिछले कुछ दिनों से मेरे दोनों घुटनों में बहुत दर्द हो रहा है. दैनिक गतिविधियां करने में भी परेशानी होती है और सीढि़यां चढ़नाउतरना तो जैसे मेरे लिए असंभव हो गया है?

जवाब-

यह आर्थ्राइटिस की शुरुआत है. आमतौर पर आर्थ्राइटिस की शुरुआत 55-60 साल की उम्र में होती है. लेकिन आप को यह समस्या अर्ली एज में ही हो गई है. आनुवंशिक कारण, चोट लगने या पोषण की कमी से जोड़ों में टूटफूट जल्दी शुरू हो जाती है. आप अपनी डाइट में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा दें. कैल्सियम और विटामिन डी के सप्लिमैंट्स लें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें, इस से घुटने के जोड़ स्वस्थ्य रहेंगे. इन से आराम न मिले तो डाक्टर को दिखाएं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

क्या महामारी ने बच्चों को सामाजिक रूप से असामान्य बना दिया है?

महामारी हमारी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में से एक रहा है. इसने सबकी जिंदगी को बहुत ही कठिन बना दिया और इस महामारी के दौरान जिन लोगों को सबसे ज्यादा परेशानी हुई, वो हैं हमारे बच्चे. इसकी वजह है उनके बेहद ही महत्वपूर्ण विकास में रुकावट आई. ना केवल वयस्कों को, बल्कि बच्चों को भी इसी मुश्किल दौर से होकर गुजरना पड़ रहा है. बच्चों के लिये बाहरी दुनिया से सामाजिक संपर्क बढ़ाने का यह शुरूआती दौर होता है, जिससे आगे चलकर उनमें बातचीत करने की कुशलता और समझदारी बढ़ती है. बच्चे अपने साथियों को देखकर व्यवहार करना सीखते हैं और उनसे बातचीत से हाव-भाव और तौर-तरीका सीखते हैं.

Dr Amit Gupta, Senior Consultant Paediatrician & Neonatologist, Motherhood Hospital, Noida  के अनुसार, एक बच्चे के विकास के शुरूआती चरणों में बहुत सारे सामाजिक संपर्क शामिल होने चाहिये, क्योंकि वे बच्चे के सकारात्मक विकास में एक आवश्यक भूमिका निभाते हैं. महामारी के दौरान, मुख्य रूप से बच्चों के बीच सामाजिक संपर्क नदारद था और उन्हें कई तौर-तरीकों और भावनाओं को सीखने और समझने में भी परेशानी हुई. अपने साथियों और बाहरी दुनिया से लगातार प्रतिक्रिया ना मिलना, जो उन्हें व्यवहार सिखाने में मदद करती हैं, ने बच्चों के लिये सही-गलत की पहचान करना मुश्किल कर दिया. उनका व्यवहार दूसरों पर क्या प्रभाव डालता है, इसने आगे उनकी समझ को जटिल बना दिया.

सामाजिक संपर्क की कमी-

बाहरी दुनिया से अचानक ही संपर्क कट जाने से बच्चे किसी भी तरह की गतिविधि में हिस्सा लेने से ज्यादा कतराने लगे. सामाजिक संपर्क की कमी और ज्यादातर वक्त डिजिटल स्क्रीन के सामने बिताने से बच्चे सामाजिक संपर्कों से दूर हो गये. इसका असर यह हुआ कि अपनों या औरों के साथ बातचीत की शुरूआत करने में काफी असहज महसूस करने लगे. सामाजिक भागीदारी से बचने से और भी रुकावटें पैदा होंगी और सामाजिक असहजता से बचने के लिए बातचीत का मार्ग बंद हो जाता है.

जो बच्चे पिछले दो सालों से घरों में बंद थे, उन्हें लंबे समय तक सामाजिक संपर्क की कमी की वजह से आमने-सामने बातचीत करने में असहजता महसूस हो रही है. कुछ समय एकांत में रहने की वजह से उनके लिये इस माहौल में ढलने में परेशानी महसूस हो रही है. यदि इस पर ध्यान ना दिया जाए तो कई बार यह सामाजिक असहजता, सोशल एंग्‍जाइटी में बदल सकती है हो सकता है कि बच्चे अपने उन अनुभवों से चूक गए हों जो सामाजिक रूप से उनके विकास में सहयोगी थे, लेकिन यह असहजता उन पर स्थायी प्रभाव नहीं डालेगी. एक बच्चे का मस्तिष्क अपने शुरूआती चरणों में अभ्यास और दोहराव के साथ विकसित होता है और अभी भी ठीक होने की हैरतअंगेज क्षमता पैदा कर सकता है.

लगातार बातचीत से बच्चे सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, जो उन्हें बिना किसी झिझक के फिर से जुड़ने के लिये प्रेरित करता है.

बच्चों पर असामान्य प्रभाव-

पेरेंट्स को इस असहजता को कम करने के लिये अपने बच्चे के साथ जरूर बात करनी चाहिये, क्योंकि इस बात के लिये वे अपने पेरेंट्स की ओर देखते हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में किस तरह की प्रतिक्रिया होनी चाहिये. भले ही महामारी के इस चरण ने बच्चों पर असामान्य प्रभाव डाला हो, लेकिन बच्चे बदलते परिवेश को अपना लेते हैं और वे सही और बेहतर हो जाएंगे. आखिरकार, मानवजाति चुनौतीपूर्ण स्थितियों से लड़ने में हमेशा ही मजबूत रही है.

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अगर परेशान करे जांघों का फैट

रूपा टेढ़ीटेढ़ी चल रही है. अपनी इस चाल पर उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हो रही है. यह तब और बढ़ जाती है जब सामने वालों की हंसती आंखें उसे देखती हैं. कोईकोई तो मुसकरा कर पूछ ही लेता है कि क्या हो गया? तो वह कुछ कह नहीं पाती. शेफाली चलते हुए एकांत पाते ही जांघों के बीच साड़ी व पेटीकोट दबा लेती है. कुछ देर उसे राहत मिलती है पर हर समय वह ऐसा नहीं कर पाती, तो इस राहत से वंचित रह जाती है. वह कहती है कि मैं कुछ भी काम कर रही होऊं पर मेरा ध्यान बंट जाता है और रगड़ खाती जांघों पर ही केंद्रित रहता है. मेरी कार्यक्षमता इस से बहुत प्रभावित हो रही है. मूड भी खराब रहता है.

सुभाष बाथरूम में जा कर जांघों के बीच पाउडर लगाता है. उस से पहले जांघों को सूती कपड़े से पोंछता है. वह कहता है कि इस से मैं कई बार खुद को अपनी ही नजरों में गिरा हुआ महसूस करता हूं. इस तरह की स्थितियां हमारे या हमारे आसपास के कई लोगों में दिखती हैं. उन की जांघें छिल जाती हैं. तनमन दोनों पर ऐसा असर पड़ता है कि बीमार जैसी स्थिति हो जाती है. जांघों की इस रगड़ पर ध्यान न दिया जाए, तो कभीकभी बड़ेबड़े घाव हो जाते हैं, यानी स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है. इस का निदान हर भुक्तभोगी चाहता है.

कारण क्या है

स्किन स्पैशलिस्ट डा. प्रमिला कहती हैं कि ऐसा मोटापे के कारण होता है. मोटापा जांघों पर भी होता है. अत: फ्रिक्शन यानी आपस में जांघों के टकराव से यह स्थिति होती है. अच्छा है कि इस का स्थायी निदान किया जाए और वह है खुद को ओवरवेट न होने दिया जाए. यदि ऐसा है तो वजन कम किया जाए. इस में सही खानपान और व्यायाम जल्दी तथा अच्छी भूमिका निभा सकता है. सावित्री इतनी मोटी भी नहीं है और उस की जांघें आपस में टकराती भी नहीं हैं तो फिर उसे यह समस्या क्यों है? इस पर डा. प्रमिला कहती हैं कि कभीकभी गलत पोस्चर में सोने के कारण भी ऐसा होता है. शरीर का वजन जहां पड़ना चाहिए वहां न पड़ कर कूल्हों से जांघों पर आ जाता है. जांघें नर्म और चर्बीली होती हैं, इस वजह से टकराने लगती हैं. अपना पोस्चर सही रख कर भी इस समस्या से बचा जा सकता है.

डा. पूनम बाली इस के चिकित्सकीय पक्ष की दृष्टि से कहती हैं कि जांघों में फैट ज्यादा जमा होता है. उन के आपस में टकराने से स्किन का प्रोटैक्टिव फंक्शन खत्म हो जाता है. इस से रैशेज हो जाते हैं तथा स्किन डार्क हो जाती है. यह सब देखने या अच्छा न लगने के स्तर पर ही नहीं है, बल्कि भुक्तभोगी को अच्छाखासा दर्द भी होता है. कई लोग तो रो पड़ते हैं. कई चिंता, तनाव से घिर जाते हैं. नहाने के बाद त्वचा को अच्छी तरह पोंछ कर ऐंटीसैप्टिक पाउडर लगाने से इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है. पर बेहतर इलाज जांघों का वजन कम करना ही है. वे युवा जो लुक को ले कर कांशस हैं तथा उन का जीवनसाथी उन की छिली हुई जांघें देख कर क्या महसूस करेगा, यह सोचते हैं वे इस के लिए स्किन लाइट करने का लोशन डाक्टर के परामर्श से इस्तेमाल कर सकते हैं. स्किन टाइटनिंग क्रीम भी काफी उपयोगी व मददगार है. पर यह सब किसी विशेषज्ञ की सलाह के बिना न किया जाए वरना परेशानी कम होने के बजाय बढ़ सकती है. यानी यहां ऐलर्जी हो सकती है व इन्फैक्शन और बढ़ सकता है. इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल के सीनियर कंसल्टैंट व डर्मैटोलौजिस्ट डा. देवेंद्र मोहन कहते हैं कि जांघों का एरिया काफी इन्फैक्शन प्रोन एरिया है. इस के आसपास यौनांग, मूत्राशय, मलद्वार आदि होने के कारण यहां संक्रमण ज्यादा तथा जल्दी होता है. जांघों के लगने की समस्या गरमी व बारिश में ज्यादा होती है. अत: उस वक्त साफसफाई का पूरा ध्यान रखना जरूरी है. इस एरिया को सूखा रखा जाए और डाक्टर की सलाह से ऐंटीफंगल का इस्तेमाल किया जाए. रुचिका कहती हैं कि मैं ने जांघों की ऐक्सरसाइज कर के डेढ़ महीने में ही इस समस्या से नजात पा ली.

मोहन कहता है कि मैं ने पैरों की ऐक्सरसाइज कर के शुरू में ही इस समस्या को काबू कर लिया. फिर वह क्रम ऐसा बढ़ा कि जांघों के साथसाथ शरीर का वजन भी नियंत्रित हो गया.

घरेलू नुसखे

कुछ घरेलू नुसखे ऐसे हैं जिन्हें अपना कर इस समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है:

इस एरिया में रात को सोने से पहले सरसों का तेल या हलदी लगाई जा सकती है. नीबू में पानी मिला कर लगाना भी राहत देता है. संतरे व किन्नू का रस भी इस्तेमाल किया जा सकता है. फलों की क्रीम भी अप्लाई की जा सकती है. ऐलोवेरा का रस भी रामबाण नुसखा है. नायलौन की या ऐसी ही दूसरी इनरवियर से बचें जो गीलापन न सोखती हो. देवेंद्र मोहन इस समस्या का एक और कारण बताते हैं. वे कहते हैं कि कभीकभी डायबिटीज के कारण भी यह समस्या हो सकती है. ऐसी स्थिति में इसे त्वचा की बीमारी मान कर ही न बैठ जाना चाहिए. अंदरूनी जांच भी करवानी चाहिए. समय पर किसी भी स्थिति को काबू किया जा सकता है. भारी जांघें समस्या खड़ी कर सकती हैं, यह ध्यान में रखने पर उन्हें हलका रखने की अपनेआप ही तलब होने लगती है. वाकिंग में तेजी ला कर या जिन को इस की आदत नहीं है, वे वाकिंग शुरू कर के भी इस समस्या के हल की ओर बढ़ सकते हैं.

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खांसी की प्रौब्लम से परेशान हो गई हूं, कोई इलाज बताएं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 वर्ष है. 3 साल पहले मुझे बलगम भरी खांसी हुई थी. यह खांसी कुछ दिन रह कर ठीक हो गई थी पर तभी से ऐसा लगता है जैसे गले में कुछ फंसा हुआ है. जोर से खखारने पर कभी पतला तो कभी गाढ़ा सफेदभूरे रंग का बलगम आता है. गले के अंदर से दुर्गंध भी आती है. डाक्टर का कहना है कि गला और टौंसिल ठीक है. बस ठंडी चीजों से परहेज करूं. लेकिन मुझे ऐसा करने पर भी आराम नहीं मिल रहा. उचित सलाह दें.

जवाब-

गले में कुछ फंसा होना, खंखारने पर दुर्गंधमय बलगम आना, सिर में दर्द होना ये सभी लक्षण इस बात का इशारा है कि कहीं आप के साइनस में इन्फैक्शन तो नहीं घर कर गया. अच्छा होगा कि आप किसी ईएनटी विशेषज्ञ को दिखाएं और उन की देखरेख में साइनस का एक्सरे करवाएं. वाटर्स व्यू नाम का यह साधारण एक्सरे कराने से यह पता चल सकेगा कि आप को साइनेसाइटिस है या नहीं.

सुबहशाम कुनकुने पानी से गरारा करें और भाप लें. इस से गला साफ रहेगा और खांसी से भी राहत मिलेगी. इस के अलावा सुबह के समय खुली व ताजा हवा में 3-4 मील की तेज गति से सैर करें. इस से आप के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होगी और आप की सेहत में सुधार आएगा. अगर साइनेसाइटिस की पुष्टि होती है तो उस का पूरा इलाज कराएं.

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कोरोना वायरस महामारी भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में फैल चुकी हैं. दिन-प्रति दिन इस महामारी से जूझने वालों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. ऐसे में इस वायरस से बचने के लिए इम्युनिटी को स्ट्रांग रखना व इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए हैलदी डाइट बहुत  ज़रूरी है, जो इस हालात में खांसी, जुकाम और फ्लू से हमें बचा सके.

इसी बात को ध्यान में रखते हुए अभी हाल ही में सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट व डाइटीशियन रुजुता दिवेकर ने सर्दी-खांसी और फ्लू से बचने के कुछ घरेलू उपाय बताए हैं.

न्यूट्रिशनिस्ट व डाइटीशियन रुजुता दिवेकर ने पोस्ट में लिखा है कि हमारे किचन व दादी मां के टाइम-टेस्ट्ड ज्ञान को फिर से रोशनी में आने के लिए किसी महामारी की जरूरत नहीं है.  इन चीजों को एक्सप्लोर करें, खुद भी खाएं और आने वाले जेनरेशन को भी इन चीजों को खाने के लिए प्रोत्साहित करें,  ठीक उसी तरह जैसे बचपन में आपकी दादी-नानी आपको प्यार से खिलाया करती थीं.

आइए जानते हैं रुजुता दिवेकर के क्या हैं 7 उपाय, जिसको  आप अपनी डाइट में शामिल कर सकती है-

1. घी, सूखी अदरक या  सोंठ, हल्दी, गुड़ को एक समान मात्रा में मिलाकर सुबह और रात में खाएं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Bollywood Dietitian से जानें जुकाम, खांसी और फ्लू को दूर भगाने के 7 घरेलू उपाय

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

Summer Special: गर्मियों में बीमारियों से बचने के उपाय

सर्दियों की तरह गर्मियां भी मौसमी बीमारियों के साथ आती हैं. गर्मी में होने वाली गर्मी से थकावट, लू लगना, पानी की कमी, फूड पॉयजनिंग आम बीमारियां हैं. अगर हम कुछ सावधानियां बरतें तो इन बीमारियों से बचा जा सकता है.

हीट एग्जॉशन

हीट एग्जॉशन गर्मी की एक साधारण बीमारी है जिसके दौरान शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तक होता है. चक्कर आना, अत्यधिक प्यास लगना, कमजोरी, सिर दर्द और बेचैनी इसके मुख्य लक्षण हैं.

उपाय

इसका इलाज तुरंत ठंडक देना और पानी पीकर पानी की कमी दूर करना है. अगर हीट एग्जॉशन का इलाज तुरंत न किया जाए तो हीट-स्ट्रोक हो सकता है, जो कि जानलेवा भी साबित हो सकता है.

हीट-स्ट्रोक

इसमें शरीर का तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है, जो कि अंदरुनी अंगों की कार्यप्रणाली को नष्ट कर सकता है. हीट-स्ट्रोक के मरीजों को शरीर का तापमान बहुत ज्यादा होता है, त्वचा सूखी और गर्म होती है, शरीर में पानी की कमी, कन्फयूजन, तेज या कमजोर नब्ज, छोटी-धीमी सांस, बेहोशी तक आ जाने की नौबत आ जाती है.

उपाय

हीट-स्ट्रोक से बचने के लिए दिन के सबसे ज्यादा गर्मी वाले समय में घर से बाहर मत निकलें. अत्यधिक मात्रा में पानी और जूस पीएं, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. ढीले-ढाले और हल्के रंग के कपड़े पहने.

फूड पॉयजनिंग

गर्मियों में आम तौर पर फूड पॉयजनिंग हो जाती है. गर्मियों में अगर खाना साफ-सुथरे माहौल में न बनाया जाए तो उसके दूषित होने का खतरा बढ़ जाता है. इसके साथ ही पीने का पानी भी दूषित हो सकता है. अत्यधिक तापमान की वजह से खाने में बैक्टीरीया बहुत तेजी से पनपते हैं, जिससे फूड पॉयजनिंग हो जाती है. सड़क किनारे बिकने वाले खाने-पीने के सामान भी फूड पॉयजनिंग के कारण बन सकते हैं.

उपाय

फूड पॉयजनिंग से बचने के लिए बाहर जाते वक्त हमेशा अपना पीने का पानी घर से ले के चलें.

बाहर खुले में बिक रहे कटे हुए फल खाने से परहेज करें. गर्मी में शरीर में पानी की कमी से बचने के और शरीर में पानी की मात्रा को पर्याप्त बनाए रखने के लिए अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ पिएं. खास तौर खेल-कूद की गतिविधियों के दौरान इस बात का ध्यान रखें. प्यास लगने का इंतजार न करें. हमेशा घर में बना हुआ नींबू पानी और ओआरएस का घोल आस-पास ही रखें. एल्कोहल और कैफीन युक्त पेय पदार्थों का परहेज करें, इनके सेवन से भी शरीर में पानी की कमी होती है.

तेज अल्ट्रा वायलेट किरणों और धूप से बचने के लिए धूप के चश्मे और हैट का प्रयोग करना भी काफी लाभप्रद साबित हो सकता है.

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Hypothyroidism: कैसे कम करें वजन

जब थायराइड ग्रंथि में थायराक्सिन हार्मोन कम बनने लगता है, तब उसे हाइपोथाइरॉयडिज्‍म कहते हैं. ऐसा होने पर शरीर का मेटाबॉलिज्‍म धीमा पड़ने लगता है और आप अपना वजन नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाते हैं.

इस बीमारी से अक्‍सर सबसे ज्‍यादा महिलाएं ही पीड़ित होती हैं. जो लोग हाइपोथाइरॉयडिज्‍म से पीडित हैं, उन्‍हें वजन घटाने में काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है.

मगर डॉक्‍टरों के अनुसार अगर एक स्‍वस्‍थ दिनचर्या रखी जाए तो आप अपना बढ़ा हुआ वजन आराम से घटा लेंगी. आइये जानते हैं कुछ उपाय :

अपना पोषण सुधारिये: आप दिनभर में जो कुछ भी खाते हैं, उसके पोषण का हिसाब रखिये. आपकी डाइट में लो फैट वाली चीजें होनी चाहिये. ऐसे आहार शामिल करें जिसमें आयोडीन हो. आप, बिना वसा का मीट, वाइट फिश, जैतून तेल, नारियल तेल, साबुत अनाज और बीजों का सेवन कर सकते हैं.

मैदा नहीं साबुत अनाज का आटा खाइये: आपको मैदे की जगह पर साबुत अनाज या गेंहू की रोटियां खानी चाहिये. इनमें वसा नहीं होता और यह आपके ब्‍लड शुगर को भी कंट्रोल रखेगा.

पानी का सेवन बढ़ाएं: दिनभर ढेर सारा पानी पियें, जिससे शरीर के अंदर गंदगी जमा ना हो पाए और आपको वजन घटाने में मदद मिले. बाजारू और शक्‍कर मिले ड्रिंक से दूरी बनाएं.

ग्रीन टी पियें: जिन लोगों को हाइपोथाइरॉयडिज्म है, उन्‍हें ग्रीन टी जरुर पीना चाहिये. इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट की मात्रा ज्‍यादा होती है और ये फैट को जल्‍द बर्न करती है. साथ ही यह पाचन क्रिया को दुरुस्‍त रखती है और थकान को भी दूर रखती है.

फाइबर खाइये: फाइबर खाने से पाचन क्रिया सही रहती है और कब्‍ज तथा शरीर की सूजन दूर रहती है.

भूखे मत रहिये: कभी अपना ब्रेकफास्‍ट मत छोडिये क्‍योंकि सुबह के वक्‍त आपके शरीर को ढेर सारी ऊर्जा की आवश्‍यकता होती है. अगर आप ब्रेकफास्‍ट छोड़ देंगे तो आपके शरीर का मेटाबॉलिज्‍म धीमा पड़ जाएगा और आपको बाद में तेज की भूख लगेगी जिसकी वजह से आप ढेर सारा खाना खा कर वजन बढा लेंगे.

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