जब अजीब हो सैक्सुअल व्यवहार

ओसामा की पत्नी सैक्स की भूखी

अलकायदा के पूर्व प्रमुख ओसामा बिन लादेन की सब से बड़ी पत्नी ने दावा किया है कि ओसामा की सब से छोटी पत्नी चौबीसों घंटों सैक्स करना चाहती थी. द सन के अनुसार खैरियाह ने कहा कि अमल हमेशा ओसामा के साथ सोने के लिए झगड़ा करती थी. मुझे ओसामा के पास नहीं जाने देती थी.

क्या कहता है सर्वे

अमेरिका ने भी सैक्स की लत को 2012 में मानसिक विकृति करार दिया और इस काम को लास एंजिल्स की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अंजाम दिया है. भारत में यह समस्या अभी शुरुआती दौर में है. लेकिन एक ओर मीडिया और इंटरनैट पर मौजूद तमाम उत्तेजना फैलाने वाली सामग्री की मौजूदगी तो दूसरी ओर यौन जागरूकता और उपचार की कमी के चलते वह दिन दूर नहीं जब सैक्स की लत महामारी बन कर खड़ी होगी. क्याआप को फिल्म ‘सात खून माफ’ के इरफान खान का किरदार याद है या फिर फिल्म ‘मर्डर-2’ देखी है? फिल्म ‘सात खून माफ’ में इरफान ने ऐसे शायर का किरदार निभाया है, जो सैक्स के समय बहुत हिंसक हो जाता है. इसी तरह ‘मर्डर-2’ में फिल्म का खलनायक भी मानसिक रोग से पीडि़त होता है. फिल्म ‘अग्नि साक्षी’ में भी नाना पाटेकर प्रौब्लमैटिक बिहेवियर से पीडि़त होता है. इसे न सिर्फ सैक्सुअल बीमारी के रूप में देखना चाहिए, बल्कि यह गंभीर मानसिक रोग भी हो सकता है.

सैक्सोलौजिस्ट डाक्टर बीर सिंह, डाक्टर एम.के. मजूमदार और मनोचिकित्सक डाक्टर स्मिता देशपांडे से बातचीत के आधार पर जानें कि सैक्सुअल मानसिक रोग कैसेकैसे होते हैं:

ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर

फैटिशिज्म: इस में व्यक्ति उन वस्तुओं के प्रति क्रेजी हो जाता है, जो उस की सैक्स इच्छा को पूरा करती हैं. इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति अपने पासपड़ोस की महिलाओं के अंडरगारमैंट्स चुरा कर रात को पहनता है. कभीकभी ऐसे लोग महिलाओं पर बेवजह हमला भी कर देते हैं या फिर उन्हें छिप कर देखते हैं.

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सैक्स फैरामोन: सैक्स फैरामोन यानी गंध कामुकता से पीडि़त व्यक्ति काफी खतरनाक होता है. ऐसा व्यक्ति स्त्री की डेट की गंध से उत्तेजित हो जाता है. ऐसे में कोई भी स्त्री, जिस की देह की गंध से वह उत्तेजित हुआ हो, उस का शिकार बन सकती है. वह उस स्त्री को हासिल करने के लिए कुछ भी कर सकता है.

सैक्सुअली प्रौब्लमैटिक बिहेवियर: सैक्स से पहले पार्टनर को टौर्चर करने के मनोविकार को प्रौब्लमैटिक बिहेवियर भी कहते हैं, जिसे नाना पाटेकर की फिल्म ‘अग्नि साक्षी’ में दिखाया गया है. महिला की आंखों पर पट्टी बांधना, उस के हाथपैर बांधना, उसे काटना, बैल्ट या चाबुक से मारना, दांत से काटना, सूई चुभोना, सिगरेट से जलाना, न्यूड घुमाना, चुंबन इतनी जोर से लेना कि दम घुटने लगे, हाथों को बांध कर पूरे शरीर को नियंत्रण में लेना और फिर जो जी चाहे करना. इस तरह के कई और हिंसात्मक तरीके होते हैं, जिन्हें ऐसे पुरुष यौन क्रिया से पहले पार्टनर के साथ करते हैं.

निम्फोमैनिया: निम्फोमैनिया काफी कौमन डिजीज है. इस की पेशैंट केवल फीमेल्स ही होती हैं. उन में डिसबैलेंस्ड हारमोंस की वजह से हाइपर सैक्सुअलिटी हो जाती है. फीमेल्स के सैक्सुअली ज्यादा ऐक्टिव हो जाने की वजह से उन्हें मेल्स का साथ ज्यादा अच्छा लगने लगता है. ऐसी लड़कियों में मेल्स को अपनी तरफ अट्रैक्ट करने की चाह काफी बढ़ जाती है. वे ऐसी हरकतें करने लगती हैं, जिन से लड़के उन की तरफ अट्रैक्ट हों. ऐसा न होने पर उन्हें डिप्रैशन की प्रौब्लम भी हो जाती है.

पीड़ा रति नामक काम विकृति: इस बीमारी में व्यक्ति संबंध बनाने से पहले महिला को बुरी तरह पीटता है. यौनांग को बुरी तरह नोचता है. पूरे शरीर में नाखूनों से घाव बना देता है. पीड़ा रति से ग्रस्त पुरुष अपने साथी को पीड़ा पहुंचा कर यौन संतुष्टि अनुभव करता है. ऐसी अनेक महिलाएं हैं, जिन्हें शादी के बाद पता चलता है कि उन के पति इस तरह के किसी ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त हैं. ऐसी स्थिति में उन्हें जल्द से जल्द किसी मनोचिकित्सक या सैक्सोलौजिस्ट के पास ले जाना जरूरी हो जाता है. अगर इलाज के बाद भी पुरुष सही न हो, तो किसी वकील से मिल कर आप परामर्श ले सकती हैं कि ऐसे व्यक्ति के साथ पूरी जिंदगी बिताना सही है या फिर इस रिश्ते को खत्म कर लेना.

वैवाहिक बलात्कार: सुनने में अटपटा सा लगता है कि क्या विवाह के बाद पति बलात्कार कर सकता है. लेकिन यह सच है कि कुछ महिलाओं को अपने जीवन में इस त्रासदी से गुजरना पड़ता है. इस प्रकार के पति हीनभावना के शिकार होते हैं. उन्हें सिर्फ अपनी सैक्स संतुष्टि से मतलब होता है. अपने साथी की भावनाएं उन के लिए कोई माने नहीं रखतीं. हमारे हिंदू विवाह अधिनियम के तहत इस तरह पत्नी की इच्छा व सहमति की परवाह किए बिना पति द्वारा जबरन यौन संबंध बनाना यौन शोषण व बलात्कार की श्रेणी में आता है.

आमतौर पर शराब के नशे में पति इस तरह के अपराध करते हैं. शराब के नशे में वे न केवल पत्नी का यौनशोषण करते हैं वरन उन से मारपीट भी करते हैं. यह कानूनन अपराध है. वैसे पति द्वारा पत्नी पर किए गए बलात्कार के लिए हमारे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 375 और 379 के तहत पत्नियों को कई अधिकार प्राप्त हैं. वे कानूनी तौर पर पति से तलाक भी ले सकती हैं.

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पीडोफीलिया: पीडोफीलिया यानी बाल रति पीडोफीलिया से पीडि़त पुरुष छोटे बच्चे के साथ यौन संबंध बना कर काम संतुष्टि पाते हैं. वे बच्चों के साथ जबरदस्ती करने के बाद पहचान छिपाने के लिए बच्चे की हत्या तक कर डालते हैं. पीडोफीलिया से पीडि़त व्यक्ति में यह भ्रांति होती है कि बच्चे के साथ यौन संबंध बनाने पर उस की यौन शक्ति हमेशा बनी रहेगी. ऐसे व्यक्ति अधिकतर 14 साल से कम उम्र के बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं.

सैक्स मेनिया: इस से ग्रस्त व्यक्ति के मन में हर समय सैक्स करने की इच्छा रहती है. वह दिनरात उसी के बारे में सोचता है. फिर चाहे वह औफिस में काम कर रहा हो या फिर दोस्तों के साथ पार्टी में हो, उसे हर वक्त सैक्स का ही खयाल रहता है. वह अपने सामने से गुजरने वाली हर महिला को उसी नजर से देखता है. यह एक प्रकार का मानसिक रोग होता है, जिस में व्यक्ति के मन में सैक्स की इच्छा इस कदर प्रबल हो जाती है कि वह पहले अपनी पत्नी को बारबार सैक्स करने के लिए कहता है और फिर बाहर अन्य महिलाओं से भी संबंध बनाने की कोशिश करता है. एक पार्टनर से उस का काम नहीं चलता है. उसे अलगअलग पार्टनर के साथ सैक्स करने में आनंद आता है.

इस बीमारी से पीडि़त व्यक्ति का कौन्फिडैंस इस हद तक बढ़ जाता है कि उसे लगता है कि उस के लिए कुछ भी असंभव नहीं है. जो भी वह चाहता है उसे पा सकता है. अपने इसी जनून के चलते कई बार वह अपना अच्छाबुरा सोचनेसमझने की शक्ति भी खो देता है और फिर कोई अपराध कर बैठता है. उसे उस का पछतावा भी नहीं होता, क्योंकि ऐसा कर के उस के दिल और दिमाग को अजीब सी संतुष्टि मिलती है, जो उसे सुकून देती है.

सैक्स फोबिया: यह सैक्स से जुड़ी एक समस्या है. जिस तरह सैक्स मेनिया में व्यक्ति के मन में सैक्स को ले कर कुछ ज्यादा ही इच्छा होती है उसी तरह कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें सैक्स में कोई रुचि नहीं होती. जब ऐसी अलगअलग प्रवृत्ति के 2 लोग आपस में वैवाहिक संबंध में बंधते हैं, तो सैक्स के बारे में अलगअलग नजरिया रखने के कारण सैक्स की प्रक्रिया और मर्यादा को ले कर उन में विवाद शुरू होता है और दोनों में से कोई भी इस बात को नहीं समझ पाता कि सैक्स मेनिया और सैक्स फोबिया, मानव मस्तिष्क में उठने वाली सैक्स को ले कर 2 अलगअलग प्रवृत्तियां हैं. दोनों के ही होने के कुछ कारण होते हैं और थोड़े से प्रयास और मनोचिकित्सक की सलाह के साथ इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है.

पीपिंग: पीपिंग का मतलब है चोरीछिपे संभोगरत जोड़ों को देखना और फिर उसी से यौन संतुष्टि प्राप्त करना. संभोगरत अवस्था में किसी को देखने से रोमांच की स्वाभाविक अनुभूति होती है. हेवलाक एलिस ने अपनी पुस्तक ‘साइकोलौजी औफ सैक्स’ में लिखा है कि संभ्रांत लोग अपनी जवानी के दिनों में दूसरी औरतों को सैक्स करते हुए देखने के लिए उन के कमरों में ताकाझांकी करते थे. यही नहीं सम्मानित मानी जाने वाली औरतें भी परपुरुष के शयनकक्षों में झांकने की कोशिश किया करती थीं. अगर आदत हद से ज्यादा बढ़ जाए तो एक गंभीर मानसिक रोग के रूप में सामने आती है.

ऐग्जिबिशनिज्म: इस डिसऔर्डर से पीडि़त व्यक्ति अपने गुप्तांग को किसी महिला या बच्चे को जबरदस्ती दिखाता है. इस से उसे खुशी और संतुष्टि मिलती है. ऐसे लोग दूसरों को अप्रत्यक्ष रूप से हानि पहुंचाना चाहते हैं. हमारे देश में किसी को इस तरह तंग करना कानूनन अपराध है. ऐसा करने वालों को निश्चित अवधि की कैद और जुर्माना देना पड़ सकता है.

फ्रोट्यूरिज्म: इस सैक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त व्यक्ति किसी से भी संबंध बनाने से पहले अपने गुप्तांग को रगड़ता या दबाता है. यह डिसऔर्डर ज्यादातर नपुंसकों में पाया जाता है.

बेस्टियलिटि: इस में व्यक्ति के ऊपर सैक्स इतना हावी हो जाता है कि वह किसी के साथ भी सैक्स करने में नहीं झिझकता. ऐसे में वह ज्यादातर असहाय लोगों या जानवरों का उत्पीड़न करता है.

सैडीज्म ऐंड मैसेकिज्म: इस से पीडि़त व्यक्ति ज्यादातर समय फैंटेसी करता रहता है. ऐसे लोग सैक्स के समय अपने पार्टनर को नुकसान भी पहुंचाते हैं.

ऐक्सैसिव डिजायर: अगर किसी शादीशुदा पुरुष का मन अपनी पत्नी के अलावा अन्य महिलाओं के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने को करे तो वह एक डिसऔर्डर से पीडि़त होता है.

सैक्स ऐडिक्शन: सैक्स ऐडिक्शन एक प्रकार की लत है, जिस में पीडि़त व्यक्ति को हर जगह दिन और रात सैक्स ही सूझता है. ऐसे लोग अपना ज्यादातर समय सैक्स संबंधी प्रवृत्तियों में बिताने की कोशिश करते हैं. जैसे कि पोर्न वैबसाइट देखना, सैक्स चैट करना, पोर्न सीडी, अश्लील एमएमएस देखना. एक सैक्स ऐडिक्ट की सैक्स इच्छा बेकाबू होती है. उस की प्यास कभी पूरी तरह नहीं बुझती. ऐसे लोग समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं. वे बच्चों, बुजुर्गों या जानवरों के साथ सैक्स कर सकते हैं.

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ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर के कारण

वैज्ञानिक, मनोचिकित्सक ऐबनौर्मल सैक्सुअल बिहेवियर के उत्पन्न होने के बारे में अभी तक सहीसही कारणों का पता नहीं लगा पाए हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि मस्तिष्क में स्थित न्यूरोट्रांसमीटर में किसी प्रकार की खराबी, मस्तिष्क की रासायनिक कोशिकाओं में गड़बड़ी, जींस की विकृति आदि कारणों की वजह से व्यक्ति ऐबनौर्मल सैक्सुअल बिहेवियर से पीडि़त हो जाता है. अगर हम बात करें सैक्स ऐडिक्शन की तो कुछ वैज्ञानिक ऐसा भी मानते हैं कि 80% सैक्स ऐडिक्ट लोगों के मातापिता भी जीवन में अकसर सैक्स ऐडिक्ट रहे होंगे. ऐसा भी माना जाता है कि अकसर ऐसे लोगों में सैक्सुअल ऐब्यूज की हिस्ट्री होती है यानी ज्यादातर ऐसे लोगों का कभी न कभी यौन शोषण हो चुका होता है. इस के अलावा जिन परिवारों में मानसिक और भावनात्मक रूप से लोग बिखरे हुए हों, ऐसे परिवारों के लोगों के भी सैक्स ऐडिक्ट होने की आशंका रहती है.

इस तरह के डिसऔर्डर की कई वजहें हो सकती हैं. जिन लोगों की उम्र 60 साल से ज्यादा होती है वे भी इस का शिकार हो सकते हैं. दूषित वातावरण, गलत सोहबत, अश्लील पुस्तकों का अध्ययन, ब्लू फिल्में अधिक देखने आदि की वजह से व्यक्ति ऐसी काम विकृति से पीडि़त हो जाते हैं. विवाह के बाद जब पत्नी को अपने पति के काम विकृत स्वभाव के बारे में पता चलता है तब उस की स्थिति काफी परेशानी वाली हो जाती है.

डिसऔर्डर को दूर करने के उपाय

अगर शादी के बाद पत्नी को पता चले कि उस का पति किसी ऐसे ही रोग से पीडि़त है, तो उसे संयम से काम लेना चाहिए. ऐसे पति पर गुस्सा करने, उस के बारे में ऊलजलूल बकने, यौन इच्छा शांत न करने देने, ताना देने आदि से गंभीर स्थिति पैदा हो जाती है. ऐसे पति तुरंत किसी तरह का गलत निर्णय भी ले सकते हैं. यहां तक कि हत्या या आत्महत्या का निर्णय भी ले लेते हैं.

काम विकृति से पीडि़त पति को प्यार से समझाएं. सामान्य संबंध बनाने को कहें. जब पति न माने तब अपनी भाभी या सास को इस की जानकारी दें.

ऐसे लोगों का मनोचिकित्सक से इलाज कराया जा सकता है. इन में सब से पहले मरीज की काउंसलिंग की जाती है, जिस से पता लगाया जाता है कि मरीज बीमारी से कितना ग्रस्त है. उस के बाद उसे दवा दी जाती है.

वक्त रहते डाक्टर से परामर्श किया जाए तो इस तरह के डिसऔर्डर ठीक हो जाते हैं. लेकिन यह परेशानी ठीक नहीं हो रही और पति मानसिक व शारीरिक पीड़ा पहुंचाता है तो ऐसे व्यक्ति से तलाक ले कर अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देने के बारे में सोच सकती हैं.

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40 पार की तैयारी करने के 5 टिप्स

40 की उम्र निकलते ही महिलाओं में अकेलेपन की समस्या घर करने लगती है कामकाजी की अपेक्षा होममेकर महिलाओं में यह समस्या अधिक देखी जाती है क्योंकि जब बच्चे छोटे होते हैं तो घर के कार्यों और बच्चों के पालन पोषण के कारण इन्हें सिर तक उठाने का अवसर नहीं मिलता परन्तु अब तक अधिकतर परिवारों में बच्चे पढने के लिए बाहर चले जाते हैं और यदि नहीं भी जाते हैं तो 18-20 की उम्र में उनकी अपनी ही दुनिया हो जाती है जिसमें वे व्यस्त रहते हैं. बच्चों की परवरिश में हरदम व्यस्त रहने वाली मां की उम्र भी अब तक 40 पार हो जाती है. पति अपने व्यवसाय या नौकरी में ही मसरूफ रहते हैं और बच्चे अपनी पढाई, दोस्तों और कैरियर में. वर्तमान समय में घरेलू कार्यों के लिए भी हर घर में मेड और मशीनें मौजूद हैं. जिससे घरेलू कार्यों में लगने वाला समय भी बहुत कम हो गया है. इन्हीं सब कारणों से जीवन के इस पड़ाव में महिलाओं के जीवन में रिक्तता आना प्रारंभ हो जाती है यदि समय रहते इस रिक्तता का इलाज नहीं किया जाता तो कई बार यह काफी गंभीर समस्या बन जाती है. घर में बच्चों के न होने से महिलाओं की व्यस्त दिनचर्या में अचानक विराम लग जाता है और कई बार तो वे स्वयं को घर का सबसे बेकार सदस्य समझने लगती हैं जिसकी किसी को भी आवश्यकता नहीं है. परंतु इस समस्या से निपटने का उपाय भी महिलाओं के स्वयं के हाथ में ही है. जैसे ही बच्चे कुछ बड़े होने लगें तो प्रत्येक महिला को यह कटु सत्य स्वीकार कर लेना चाहिए कि एक न एक दिन बच्चे अपनी दुनियां में व्यस्त हो जाएगें. जिस प्रकार कामकाजी महिलाओं को रिटायरमेंट के बाद सक्रिय रहने के लिए किसी गतिविधि में व्यस्त रहना आवश्यक है उसी प्रकार आज प्रत्येक महिला को चाहे वह कामकाजी हो या घरेलू, स्वयं को व्यस्त रखने के उपाय खोज लेने चाहिए ताकि बच्चों के बाद जीवन में आयी रिक्तता से स्वयं को दूर रखकर खुशहाल और स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सके.

अक्सर महिलाओं को यह कहते सुना जाता है कि करना तो मैं भी कुछ चाहती हूं परंतु क्या करूं यह समझ नहीं आता. मेरी क्यूरी कहती हैं कि, ‘‘हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि हमारे अंदर भी कोई न कोई हुनर छुपा है जिसे खोजना अनिवार्य है.’’यह सही है कि छोटे बच्चों के पालन पोषण की व्यस्तता में स्वयं के लिए थोड़ा सा भी वक्त निकालना काफी चुनौतीभरा कार्य होता है परंतु जहां चाह वहां राह वाले सिद्धांत पर अमल करें और जब भी वक्त मिले अपनी जिजीविषा को कायम रखें और जब आवश्यकता हो तो अपने इस हुनर को बाहर लाएं. वर्तमान में परिवार का स्वरूप एक या दो बच्चों तक ही सीमित हो गया है इसलिए अपने बच्चों के लिए माताएं बहुत अधिक पजेसिव हैं. उनका प्रत्येक छोटा बड़ा कार्य करके वे उन्हें पंगु तो बनाती ही हैं स्वयं भी पूरे समय व्यस्त रहती हैं इसकी अपेक्षा बच्चों को प्रारंभ से ही आत्मनिर्भरता का पाठ पढाएं, परिवार में कार्यों का विभाजन करें, आवश्यकतानुसार हेल्पर रखें ताकि आप अपने लिए भी चंद लम्हे निकाल सकें. यह आवश्यक नहीं है कि आप कोई भी कार्य धनार्जन के लिए ही करें बल्कि वह करें जिसमें आप खुशी महसूस कर सकें, अपने जीवन को जीवंत बना सकें, जिससे आप अपने जीवन के इस दूसरे दौर को पहले दौर से भी अधिक रोचक और आनंदकारी बना सकें.

1. रुचियों को जीवंत रखें

आमतौर पर विवाहोपरांत अपने घर प्ररिवार में महिलाएं इतनी अधिक व्यस्त हो जाती हैं कि वे अपनी रुचियां तो क्या अपने अस्तित्व तक को विस्मृत कर देती हैं. जीवन का भले ही कोई भी दौर क्यों न हो, सिलाई, कढ़ाई, रीडिंग, लेखन या कुकिंग जैसी अपनी रुचियों का परित्याग कदापि न करें क्योंकि वही तो आपका अस्तित्व और वजूद है जो आपको दूसरों से पृथक करता है. जब भी समय मिले कुछ न कुछ अंशों में अपनी हॉबी को कायम अवश्य रखें ताकि आवश्यकता पड़ने पर आप उसमें स्वयं को व्यस्त रख सकें यदि आप अपनी हॉबी पर काम नहीं करेंगी तो जीवन के एक पड़ाव पर खुद को अकेलेपन से घेर लेंगी.

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2. सीखना जारी रखें

एक से ढर्रे पर चलते चलते जीवन में बोरियत सी आने लगती है. सीखने की कोई उम्र नहीं होती लियोनार्डो द विंची कहते हैं कि ‘‘सीखने की प्रवृत्ति से मस्तिष्क कभी थकता नही है तथा जीवन उत्साह से परिपूर्ण रहता है.’’ अपनी रूटीन दिनचर्या से कुछ समय अपने लिए निकालकर अपनी रूचि के कार्य को अपडेट करने और जीवन में जीवन्तता बनाये रखने के लिए हमेशा कुछ नया सीखती अवश्य रहें ताकि जीवन में सदैव उत्साहजनक तरंगों का संचार होता रहे.

3. पति की सहभागी बनें

पति की सहयोगी बनना आपके लिए व्यस्त रहने का सर्वोत्तम उपाय है. कई बार जब पति अपने व्यवसाय या नौकरी के बारे में पत्नी को बताना चाहते हैं तो पत्नियां ‘‘तुम्हारी तुम जानो’’ कहकर पति की आफिसियल या व्यवसायिक बातों से पल्ला झाड़ लेतीं हैं इसकी अपेक्षा आप प्रारंभ से ही उनके काम में हाथ बटाएं, उन्हें रुचिपूर्वक सुनें आवश्यकता पड़ने पर  अपनी राय भी दें इससे आप स्वयं तो अपडेट रहेंगी ही पति भी आपके महत्व से अवगत रहेंगे. साथ ही आगे चलकर जब आपके बच्चे बड़े हो जाएँ तो आप उनके कार्य में भी अपना भरपूर योगदान दे सकेंगीं.

4. सक्रिय और सकारात्मक रहें

एक निश्चित समय के बाद रहना अकेले ही है इस कटु सत्य को स्वीकार कर अपने को व्यस्त रखने के उपाय खोजने में ही बुद्धिमानी है. नकारात्मकता जहां आपके जीवन को निष्क्रिय कर देती है, जीवन को तनाव और अवसाद जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर देती है वहीं सकारात्मकता जीवन में सक्रियता का संचार कर जीवन को उत्साह से सराबोर कर देती है इसलिए सदैव पाजिटिव और सक्रिय रहें.

5. स्वयं पर ध्यान दें

इस उम्र में अपने जीवन मे योगा, व्यायाम और टहलने को प्राथमिकता दें ताकि आप शरीर और मन से स्वस्थ रह सकें. जीवन की समस्यायों और अकेलेपन का रोना रोते रहने की अपेक्षा कुछ अपने मन का करें अपने व्यक्तित्व को निखारने का भी प्रयास करें. योग, व्यायाम और वाकिंग से स्वयं को फिट रखने के साथ साथ ब्यूटी पार्लर जाकर अपने सौन्दर्य में भी चार चांद लगाएं अब तक जो भी करने की इच्छा आपके मन में रह गयी है उस सबको पूरा करने का वक्त है यह, अतः अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति करें.

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5 बातें रिजैक्ट कर देतीं Proposal

जब प्रपोज करने पर हमेशा नाकामयाबी ही मिलती हो तो दिल टूट जाता है. समझ नहीं आता कि आखिर हम में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो हमारा प्यार अधूरा रह गया. इस स्थिति में आप के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि पार्टनर ने आप को क्यों न कहा आइए, जानते हैं इस संबंध में:

ऐटिट्यूड भरा प्रोपोजल

भले ही आप ने अपने क्रश को प्रपोज तो कर दिया, लेकिन वह प्रोपोजल आप का ऐटिट्यूड से भरा हुआ हो, तो हमेशा आप को न ही सुनने को मिलेगी क्योंकि आप जिसे भी प्रपोज करें वह नहीं चाहेगा कि जिस से वह संबंध जोड़ने जा रहा, उस में ऐटिट्यूड हो. फिर चाहे आप कितनी भी गुड लुकिंग क्यों न हों.

आप के प्रोपोजल को न करने पर मजबूर कर ही देगा क्योंकि जिस में अभी इतना ऐटिट्यूड है आगे कितना होगा, कहा नहीं जा सकता. इसीलिए आप को हमेशा अपने क्रश को प्रपोज करने में असफलता मिलती है.

टिप: जब भी आप अपने पार्टनर को प्रपोज करने जाएं तो आप के प्रोपोजल का तरीका बहुत ही सौफ्ट व उसे आकर्षित करने वाला होना चाहिए न कि रोब व ऐटिट्टूड से भरा हुआ हो.

आप का गुड लुकिंग नहीं होना

हो सकता है कि आप जब भी अपने क्रश को प्रपोज करते हों, तो आप को न ही सुनने को मिलता हो. ऐसा इसलिए क्योंकि आप उसे प्रपोज करने तो पहुंच गए, लेकिन अपने हुलिए पर जरा ध्यान नहीं दिया. ऐसे में आप के क्रश से आप को न ही सुनने को मिलेगी, क्योंकि कोई भी लड़की यह नहीं चाहेगी कि उस का पार्टनर दिखने में अच्छा न हो, क्योंकि कहते हैं न कि बातों का इफैक्ट लोगों पर बाद में पड़ता है पहले तो चेहरा ही वर्क करता है. ऐसे में प्रपोज करने से पहले अपने हुलिए पर ध्यान जरूर दें.

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टिप: भले ही आप को टिपटौप रहने का शौक न हो, लेकिन जब आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हों तो खुद को टिपटौप बना कर ही जाएं ताकि लड़की की नजर में आप पहली बार ही बस जाएं और वह आप के प्रोपोजल को न न कर पाए. गुड लुकिंग, हैंडसम बौय की चाह हर लड़की को होती है.

इशारों के बाद प्रपोज करना

कुछ लड़कों की यह आदत होती है कि वे जिसे पसंद करते हैं उसे इशारों से अपने मन का हाल बताने की कोशिश करते हैं, जबकि लड़कियां ऐसे लड़कों से दूरी बनाने में ही समझदारी समझती हैं, क्योंकि ऐसे लड़के उन्हें नियत के सही नहीं लगते. उन्हें लगता है कि जो अभी ऐसी हरकत कर रहा है वह आगे किस हद तक चला जाएगा, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में वे उस के प्रपोज करते ही उसे साफ इनकार कर देती हैं.

टिप: जिस पर भी आप का क्रश है और आप उसे प्रपोज करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि आप भले ही उसे छिपछिप कर देखें, लेकिन उसे इशारे न करें. जब भी उसे प्रपोज करें तो आप की आंखों में उस के लिए प्यार दिखे न कि एक अजीब सी शरारत.

शो औफ कर के प्रपोज करना

अगर आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हैं और उसे अपने पैसों का रुतबा दिखा कर प्रपोज कर रहे हैं तो यकीन मानिए आप को न ही सुनने को मिलेगी, क्योंकि जो शुरुआत में ही इतना दिखावा कर रहा है वह आगे भी अपने पैसों के बल पर मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, ऐसा सोच कर लड़की आप के गुड लुकिंग होते हुए भी आप को न करने में ही समझदारी समझेगी.

टिप: जब प्रपोज करने के लिए जाएं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आप की पर्सनैलिटी व आप के प्रपोज करने के अंदाज में पैसों का दिखावा जरा भी न हो.

ज्यादा स्मार्ट बनना

कुछ लड़कों की यह आदत होती है कि वे लड़कियों के सामने खुद को जरूरत से ज्यादा स्मार्ट दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में जब वे अपने क्रश को अपना बनाने के बारे में सोचते हैं तब उन की यह स्मार्टनैस उन के रिजैक्शन के रूप में सामने आती है, क्योंकि कोई भी लड़की जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने वाले लड़के को पसंद नहीं करना चाहती. ऐसे में बस वे यही सोचते रह जाते हैं कि लड़की ने उन्हें रिजैक्ट क्यों किया, जबकि उन्होंने तो उन्हें पहल कर के पहले प्रपोज किया.

टिप: ओवर स्मार्टनैस को एक तरफ रख कर कूल डाउन हो कर इस अंदाज में प्रपोज करें कि आप का क्रश आप को हां कहे बिना न रह सके.

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दीवानगी जब हद से जाए गुजर

प्यार एक खूबसूरत एहसास है. प्यार से सुंदर कुछ नहीं पर जिद या ग्रांटेड ले कर प्यार करना बेकार है. प्यार को प्यार की नजर से करना ही सही है. कई बार व्यक्ति प्यार समझ नहीं पाता. प्यार अचानक होता है और इस में ऐज फैक्टर, कास्ट, क्रीड आदि कोई माने नहीं रखते.

1. प्रेम बन सकता है तनाव का सबब

प्यार किसी के लिए दवा का काम करता है तो किसी के लिए तबाही और बदले का सबब भी बन जाता है. हर इंसान अपने व्यतित्त्व और परिस्थितियों के हिसाब से प्यार को देखता है. प्यार अंधा होता है पर कितना यह बाद में पता चलता है. इसीलिए फौल इन लव कहते हैं यानी आप प्यार में गिर जाते हैं. गिर जाना यानी अपनी आईडैंटिटी, अपना सबकुछ भूल जाते हैं. इस के अंदर आप खुद को भूल कर दूसरे को सिर पर चढ़ा लेते हैं. इसलिए प्यार में बहुत से लोग पागल हो जाते हैं, तो कुछ आत्महत्या तक कर लेते हैं.

प्यार किस तरह की पर्सनैलिटी वाले शख्स ने किया है इस पर काफी कुछ डिपैंड करता है. इमोशनली अनस्टेबल पर्सनैलिटी के लिए प्यार हमेशा डिपैंडैंट फीचर रहता है. उस की सोच होती है कि दूसरा शख्स उस का ध्यान रखेगा, उसे प्यार करेगा, उसे संभालेगा. इस तरह के लोग काफी कमजोर होते हैं. वे बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं तो बहुत जल्दी डिप्रैशन में भी आ जाते हैं.

प्यार में 3 फैक्टर्स बहुत हाई लैवल पर रहते हैं- पहला त्याग, दूसरा कंपैटिबिलिटी और तीसरा दर्द. दूसरा बंदा आप को किस तरह से देख रहा है, आप को कितने अंकों पर आंक रहा है यह भी काफी महत्त्वपूर्ण है. वह आप से किस लैवल तक क्या चाहता है, यह देखना भी जरूरी होता है.

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2. हारमोंस का लोचा

प्यार में कई तरह के हारमोंस निकलते हैं जिन का असर हमारी पूरी पर्सनैलिटी पर पड़ता है. प्यार से व्यक्ति को एक तरह की किक मिलती है. कोई सामने वाला जब आप की मनपसंद, प्यारभरी बातें कर रहा होता है तो आप खुश हो जाते हैं. प्यार का कनैक्शन एक तरह के ऐंजाइम से रहता है, जो आप को खुश और दुखी दोनों रख सकता है. इस में जब खुशी मिलती है तो डोपामाइन हारमोंस सीक्रेट होते हैं. इस से कई बार आप बहुत ज्यादा वेट गेन कर लेते हैं और प्यार में आप फिट भी हो जाते हैं, क्योंकि आप को सामने वाले को खुश भी करना होता है. प्यार में कई तरह के पर्सनैलिटी चेंजेज होते रहते हैं.

3. असुरक्षा की भावना

प्यार में असुरक्षा की भावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. आप सामने वाले पर हमेशा नजर रखते हैं कि वह किसी और को तो नहीं देख रहा, किसी और से तो बातें नहीं कर रहा, किसी और के करीब तो नहीं हो रहा, दूसरा व्यक्ति कहीं मुझ से मेरे प्यार को तो छीन नहीं लेगा जैसी बातें आप के दिमाग में चलती रहती हैं. प्यार में हम डिपैंडैंट हो जाते हैं. अपना चोला बदल लेते हैं. अपना सबकुछ भूल जाते हैं, यहां तक कि अपना काम भी. हमारा पूरा ध्यान एक ही बंदे पर केंद्रित हो जाता है. इस से हमारा काम, हमारा शेड्यूल सबकुछ प्रभावित हो जाता है.

4. डिपैंडैंसी

आप किसी पर पूरी तरह डिपैंडैंट हो जाते हैं तो आप की अपनी पर्सनैलिटी खो जाती है. आप किसी और का चोला पहन लेते हैं. उसे खुश करने के लिए आप उस की पसंद की बात करते हैं, उस की पसंद के कपड़े पहनते हैं, दूसरों से भी उसी की बातें करते रहते हैं, उसी को समझने का प्रयास करते हैं. सारा दिन उसी के खयालों में खोए रहने लगते हैं. दिनभर उस से फोन पर बातें कर टच में रहने की कोशिश में रहते हैं. एक समय आता है जब वह कहीं न कहीं आप को यूज करने लगता है. आप उस के लिए फौर ग्रांटेड हो जाते हैं. साइकोलौजिकली आप ड्रैंड आउट हो जाते हैं. आप की जिंदगी में भारी परिवर्तन होने लगता है. कोई व्यक्ति आप के सिस्टम में घुस जाता है.

5. जब टूटता है नशा

प्यार का नशा जब टूटता है तो हम कहते हैं कि हमारी आंखों पर पट्टी बंधी थी. हम प्यार में अंधे हो गए थे. सचाई से अवगत होने पर इस चीज को बरदाश्त नहीं कर पाते कि हम कहीं न कहीं ऐसे आदमी से जुड़े थे जो डबल डेटिंग कर रहा था. आप के साथसाथ किसी और के भी क्लोज था. अकसर लड़कियां स्मार्टनैस या पैसे देख कर फंस जाती हैं. प्यार एक बहुत ही मिसअंडरस्टुड शब्द है. प्यार में कभी भी आप को 100% वापस नहीं मिलता. फिर आप को इस बात का डिपै्रशन होता है कि आप उसे जितना प्यार करती हैं वह उतना आप का खयाल क्यों नहीं रखता? आप को पूछता क्यों नहीं? आप उस के लिए अपने मांबाप, दोस्तों और यहां तक कि जिम्मेदारियों को भी भूल जाती हैं पर संभव है कि वह आप को ही छोड़ दे.

प्यार में धर्म की वजह से अकसर ओनर किलिंग्स के केसेज होते हैं. सुसाइड होते हैं, वैबसुसाइड होते है, व्हाट्सऐप पर ही इंसान दूसरे को दिखाते हुए आत्महत्या कर लेता है. प्यार में फ्रौड केसेज भी काफी होते हैं. कई बार जिस से आप प्यार कर रही होती हैं वही व्यक्ति एकसाथ कई लड़कियों के साथ डेट कर रहा होता है.

कई बार मुसलिम युवक हिंदू लड़की को मुसलिम बनाने के लिए प्यार का नाटक करते हैं. कई बार बदला लेने के लिए भी लोग किसी को अपने प्रेमजाल में फंसा कर आप की जिंदगी को खतरे में डाल सकते हैं. इसी तरह के मामलों में ऐसिड अटैक या मर्डर की घटनाएं होती हैं.

वन साइडेड लव है, तो साइको लवर्स पैदा हो जाते हैं. सामने वाले पर ऐसिड अटैक कर देने या मार डालने की घटनाएं भी अकसर होती रहती हैं. अपने साथी के साथ मिल कर पुराने प्रेमी को खत्म करना जैसे क्राइम ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स की वजह से जन्म लेते हैं.

6. कैसे बचें

– कभी भी किसी इंसान को अपना सबकुछ मान कर अपना पूरा वक्त न दें. हमेशा एक सीमा में रह कर ही किसी से प्यार करें.

– कभी भी किसी के लिए अपनी आईडैंटिटी खत्म न करें. अपनी आईडैंटिटी हमेशा बचा कर रखें, क्योंकि आप की पहचान आप से है किसी और से नहीं.

– अपनी पसंद का काम करते रहें ताकि आप जीवन से किसी के जाने पर बिलकुल खाली और बरबाद न हो जाएं.

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क्या कहता है कानून

रिस्ट्रिक्शन आर्डर: यदि कोई ऐसा शख्स आप से प्यार करने का दावा करता है, जिस के प्रति आप के मन में कोई सौफ्ट कौर्नर नहीं और वह जबरदस्ती पीछे पड़ा है व बेवजह परेशान करने लगा है तो आप उस पर रिस्ट्रिक्शन और्डर लगवा सकती हैं. इस के तहत वह व्यक्ति 100 मीटर की दूरी तक आप के आसपास भी नहीं दिख सकता. इस के अलावा आप दूसरे कई कानूनों का सहारा ले सकती हैं. मसलन, आईपीसी की धाराएं जैसे-

धारा 509: यदि कोई बातों और हावभाव से आप को परेशान कर रहा हो जबकि आप का रुझान उस की तरफ  नहीं है.

धारा 506: यदि कोई भी व्यक्ति धमकी देता है जैसेकि जान से मारने की धमकी, रेप करने की धमकी तो इस तरह की धमकियां देने पर आईपीसी की धारा 506 लगती है.

धारा 376: यदि रेप हुआ हो तो यह धारा लग सकती है.

धारा 354: सैक्सुअल हैरसमैंट और स्टौकिंग आदि के केसेज में धारा 354 लगती है.

धारा 302: कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है.

धारा 366: विवाह के लिए विवश करने के मकसद से किडनैप किए जाने पर धारा 366 लगाई जा सकती है.

धारा 326: यह धारा ऐसिड अटैक के केसेज में लगाई जाती है.

-क्रिमिनल साइकोलौजिस्ट अनुजा कपूर

से गरिमा पंकज द्वारा की गई बातचीत पर आधारित

बेवफाई आखिर क्यों

यूनाइटेड किंगडम के कुल्युवेन विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में डा. मारटेन लारमूसीयू द्वारा किए एक अध्ययन में पाया गया कि यूके की 2% संतानें गैरपिता से उत्पन्न हैं. अब प्रश्न यह उठता है कि इतने बड़े स्तर पर लोग बेवफाई में लिप्त क्यों हैं, जबकि बेवफाई, भावनात्मक व यौन विशिष्टता के संदर्भ में किए गए विवाह अनुबंध का उल्लंघन है?

वर्तमान समय में विभिन्न पत्रपत्रिकाओं द्वारा किए गए सर्वे भी इसी बात को इंगित करते हैं कि भारत में भी 25 से 30% विवाहित महिलाएं समयअसमय पर अपने पति के अतिरिक्त अन्य पुरुषों के साथ अपनी कामवासना शांत करती हैं. भले ही यह अतिशयोक्ति लगती हो, लेकिन सच को नकारा नहीं जा सकता. जो महिलाएं बहुत सीधीसादी व गंभीर दिखती हैं वे भी विवाहशादियों व सामाजिक मेलमिलाप के अवसरों पर अपने लिए किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में रहती हैं, जो उन की कामवासना को दबेछिपे शांत कर सके.

अधिकतर लोग यह जानते हुए भी कि उन की पत्नियां उन के प्रति वफादार नहीं हैं, तो भी वे इस सत्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने से कतराते हैं. कई लोग तो जानबूझ कर भी ऐसा सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि उन की पत्नी उन के प्रति पूरी वफादार है.

1950 के आरंभ में किंसे द्वारा जारी किए सर्वे में बताया गया था कि  विवाह पूर्र्व शारीरिक संबंधों की तुलना में विवाहेतर संबंधों की संख्या अधिक है. किंसे ने लिखा था कि उन के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने वालों में से 50% विवाहित पुरुषों के तथा 25% विवाहित महिलाओं के विवाहेतर संबंध थे.

इसी प्रकार अमेरिका में यौन व्यवहार पर आधारित जेन्स द्वारा किए गए सर्वे में एकतिहाई विवाहित पुरुष और एकचौथाई महिलाओं का विवाहेतर संबंधों में लिप्त होना पाया गया था. बेवफाई पर सब से सटीक सूचना शिकागो विश्वविद्यालय में 1972 में किए गए एक अध्ययन से आई थी, जिस में 12% पुरुष और 7% महिलाओं ने विवाहेतर संबंधों में लिप्त होना स्वीकारा था.

मनोवैज्ञानिकों का विश्वास है कि व्यक्ति न तो पूरी तरह एकल विवाही है और न ही पूरी तरह बहुविवाही. मानव विज्ञानी हेलनफिशर के मुताबिक व्यभिचार के लिए कई मनोवैज्ञानिक कारण जिम्मेदार हैं.

कुछ लोग विवाह के उपरांत भी यौन संबंधों का अभाव पाते हैं, जिस कारण वे विवाहेतर यौन संबंध कायम कर लेते हैं. कुछ लोग अपनी यौन समस्या के समाधान हेतु तो कुछ अपनी ओर ध्यानाकर्षण के लिए भी विवाहेतर संबंध कायम कर लेते हैं. कुछ लोग प्रतिशोध लेने या विवाह संबंधों को और रोचक बनाने के लिए भी विवाहेतर संबंध कायम कर लेते हैं.

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हेलनफिशन ने अपने शोध में व्यभिचार के लिए कुछ जैविक कारण भी बताए हैं. उन्होंने बताया है कि इनसान के मस्तिष्क में 2 प्रणालियां हैं. एक प्रणाली प्रेमालाप और लगाव से जुड़ी है, तो दूसरी पूर्णतया यौन आचरण से. कभीकभी दोनों प्रणालियों का तालमेल टूट जाता है, जिस के कारण बिना भावनात्मक लगाव के व्यक्ति यौन संतुष्टि प्राप्त करने में सक्षम नहीं होता.

सोशल मीडिया पर प्रतिदिन 18 लाख व्यक्ति केवल सैक्स चर्चा करते हैं. बेवफाई के प्रत्येक मामले में व्यक्ति का एक अलग उद्देश्य हो सकता है, लेकिन बेवफाई की मुख्यरूप से 5 श्रेणियां हैं-

अवसरवादी बेवफाई: अवसरवादी बेवफाई तब लागू होती है जब कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति समर्पित तो होता है, किंतु अपनी यौनेच्छा पूरी करने के लिए वह किसी अन्य से यौन संबंध स्थापित कर लेता है.

अनिवार्य बेवफाई: यह स्थिति तब पैदा होती है जब कोई व्यक्ति अपने धोखेबाज जीवनसाथी के प्रेम से पूर्णतया ऊब जाता है. तब उस के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह भी किसी अन्य के साथ यौन संबंध बनाए.

विरोधाभासी बेवफाई: यह स्थिति तब पैदा होती है जब कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध रहता है, किंतु अपनी प्रबल यौनेच्छा के कारण समयसमय पर अन्य से भी यौन संबंध बनाता रहता है.

संबंधनिष्ट बेवफाई: यह स्थिति तब पैदा होती है जब कोई व्यक्ति अपने वैवाहिक संबंधों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध रहता है, लेकिन जीवनसाथी से कोई अपनत्व न मिलने के कारण वह किसी अन्य से यौन संबंध स्थापित कर लेता है.

रोमांटिक बेवफाई: यह स्थिति तब पैदा होती है जब कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी से प्रतिबद्ध रहते हुए कई अन्य के साथ रोमांस करता रहता है.

लेकिन इन सभी प्रकार की बेवफाई हर हाल में दुष्परिणाम ही देती है. ऐसे संबंधों

के उजागर होने पर बेइज्जती, आत्मग्लानी, मानसिक तनाव, पारिवारिक संबंधों में बिखराव, मुकदमेबाजी सहित और कई परेशानियां पैदा हो सकती हैं.

बेवफाई हर युग में होती रही है पर आज औरतों के अधिकार ज्यादा हैं. अत: वे ज्यादा रिस्क भी लेती हैं और बेवफाई करने वाले साथी को छोड़ती भी नहीं है. उचित यही है कि आप अपने जीवनसाथी के प्रति ईमानदार रहें. अगर कोई परेशानी है तो पहले तो कोशिश करें उसे बातचीत से हल किया जाए और बेवफाई को जीवन का अंत न समझा जाए. फिर विवाह विशेषज्ञों से बात करें. अलग रहने या तलाक लेने की बात तब करें जब साथी लगातार बेवफाई कर रहा हो.

– डा. प्रेमपाल सिंह वाल्यान

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पति का टोकना जब हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो उन्हें इस तरह कराएं एहसास

कविता शादी से पहले ही शहर के एक सरकारी स्कूल में टीचर थी. जब उस की शादी हुई तो वह जो कुछ उस के ससुराल वाले कहते उसे मानने लगी. फिर उसी के अनुसार उस ने अपने रहने, खाने व पहननेओढ़ने की जीवनशैली बना ली. कविता का ससुराल पक्ष ग्रामीण क्षेत्र से था, लेकिन शहरी होने के बावजूद भी उस ने हर एक पारंपरिक रीतिरिवाज को बड़ी आसानी से अपना लिया. लेकिन परिवार, पति, बच्चों व नौकरी के साथ बढ़ती जिम्मेदारियों का चतुराई से सामंजस्य बैठाना उस के लिए शादी के 15 साल बाद भी एक चुनौती है. वक्त के साथ सब कुछ बदलता है. लेकिन कविता की ससुराल में कुछ भी नहीं बदला. बदलाव के इंतजार में वह घुटघुट कर जीती आई है और अभी भी जी रही है.

उस के पति की धारणा यह थी कि शादी के बाद पत्नी का एक ही घर होता है, और वह है पति का घर. दकियानूसी सोच की वजह से अकसर कविता के घर से उस की अनर्गल बातें सुनाई पड़ जाती थीं. जैसे, साड़ी ही पहनो, सिर पर पल्लू रख कर चला करो, घर में मम्मीपापा के सामने घूंघट निकाल कर रहा करो, सुबह नाश्ते में यह बनाना… दोपहर का खाना ऐसा बनाना… रात का खाना वैसा बनाना आदि. कपड़े वाशिंग मशीन में नहीं हाथ से ही धोने चाहिए, क्योंकि मशीन में कपड़े साफ नहीं धुलते. कविता को बचपन से ही अपने पैरों पर खड़ा होने का शौक था और इस जनून को पूरा करने के लिए वह हालात से समझौता करने के लिए तैयार थी.

समय बीतने पर वह प्रमोट हो कर प्रथम ग्रेड टीचर बन गई. उस के बच्चे 9वीं और 10वीं कक्षा में अध्ययन कर रहे थे. लेकिन अभी भी उसे स्पष्ट निर्देश मिले हुए थे कि बस से आयाजाया करो. अगर पैदल जाओ तो इसी रास्ते से पैदल वापस आया करो और ध्यान रहे स्कूल के अलावा अकेली कहीं मत जाना. मानसिक तनाव झेलती कविता इन सब बातों से झल्ला उठी, क्योंकि वह स्कूल में सहयोगियों और पड़ोसिनों के लिए उपहास का पात्र बन गई थी. उस ने मन में ठान ली कि वह अब यह सब धीरेधीरे खत्म कर देगी और खुद की जिंदगी जिएगी. हर गलत बात का पालन और समर्थन नहीं करेगी.

आधुनिकता का वास्ता

उस ने ऐसा सोचा और फिर एक बार बोल क्या दिया तानों, बहस व कोसने का सिलसिला शुरू हो गया. लेकिन कविता ने परिवर्तन करने की ठान ली. वह धीरेधीरे घूंघट हटा कर सिर तक पल्ला लेने लगी. फिर आधुनिकता का वास्ता दे कर सूट भी पहनने लगी तो पति तिलमिला गया. उस के तिलमिलाने से कविता ने जब यह कहा कि मैं थक चुकी हूं और अब नौकरी नहीं करना चाहती. जितना करना था कर लिया. अब मैं आप का, बच्चों और परिवार का ध्यान रखूंगी और इस के लिए मैं घर पर ही रहूंगी. सुनते ही पति बौखला गया और यह कह कर, ‘‘धौंस देती है नौकरी की… छोड़ दे… अभी ही छोड़ दे… क्या तेरे नौकरी नहीं करने से मेरा घर नहीं चलेगा,’’ घर से बाहर निकल गया. 2 घंटे बाद वह वापस आया और बोला, ‘‘ठीक है, पहन लो सूट लेकिन लंबे और पूरी बांहों वाले कुरते ही पहनना और चूड़ीदार नहीं, सलवार पहनोगी.’’ आधुनिकता की दिखावटी केंचुली में खुद को फंसा पा कर कविता खुद को बेहद अकेला महसूस कर रही थी और उस की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे, जिन्हें समझने का दम न उस के पति के पास था और न घर के अन्य सदस्यों के पास.

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रूढि़वादी सोच

अशोक 5 भाइयों में मझला भाई है. वह पढ़ालिखा है लेकिन उस की सोच शुरू से ही, मातापिता व अन्य भाइयों से बिलकुल विपरीत कट्टर, रूढि़वादी और परंपरावादी रहा है. उस के मातापिता व घर के अन्य सदस्य वक्त के साथ बदले लेकिन वह बिलकुल नहीं बदला. उस की बेबुनियादी बातें, व्यवहार एवं आचरण पहले जैसा है. अशोक की शादी निशा से हुई. शादी के बाद होली निशा का पहला त्योहार था. उसे होली के एक दिन पहले ही अशोक द्वारा कठोर निर्देश मिल गए थे कि कल होली है, ध्यान रहे रंग नहीं खेलना है. निशा बोली, ‘‘क्यों…?’’ तो अशोक ने कहा, ‘‘क्यों कोई मतलब नहीं, बस नहीं खेलना तो नहीं खेलना.’’ निशा ने सोचा कि हो सकता है कि इन के यहां होली के त्योहार पर कभी कोई दुखद घटना घटी हो, इसलिए इन के यहां नहीं खेलते होंगे. दूसरे दिन देखा कि घर के सभी लोग चहकचहक कर होली खेल रहे हैं. वह दिल ही दिल में अचंभित हो रही थी कि अशोक ने मुझे तो मना किया है तो ये सब क्या है… सब क्यों खेल रहे हैं?

वह सोच ही रही थी कि सब ने आ कर होली है भई होली है कह कर उसे गुलाबी रंग के गुलाल से रंग दिया. यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि वह सकपका गई और इनकार करने का भी समय उसे नहीं मिल पाया. फिर वह अशोक की कही बात सोच ही रही थी कि अशोक आ गया और आवाज दी, ‘‘निशा.’’ निशा आवाज सुन कर बहुत खुश हुई कि चलो अच्छा हुआ जो ये आ गए. आज हमारी पहली होली है. उस का दिल गुदगुदा रहा था. अशोक के पास आते ही उस ने हरे रंग का गुलाल मुट्ठी में भर लिया और ज्यों ही अशोक के गाल पर लगाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, अशोक ने उस का हाथ झटक दिया. उस के हाथ का सारा गुलाल हवा में फैल कर बिखर गया. इस अप्रत्याशित आक्रामकता के लिए निशा कतई तैयार नहीं थी.

अशोक की आंखें तर्रा रही थीं. वह तेज आवाज में बोला, ‘‘जब तुम्हें मना किया था कि होली नहीं खेलना है तब क्यों होली खेली?’’ निशा सिर झुका कर बाथरूम में चली गई. फिर पूरे दिन निशा का मूड खराब रहा. रात को बिस्तर पर अशोक ने अपनी सफाई देते हुए कहा, ‘‘होली नहीं खेलना. मैं ने सिर्फ इसलिए कहा था कि इस के रंगों से घर में गंदगी हो जाती है साथ ही चमड़ी भी खराब हो जाती है.’’

बातबात पर टोकना

निशा ने अपने पति की इस बात को सकारात्मक लिया तो बात आईगई हो गई. लेकिन धीरेधीरे विचारों की परतें उधड़ने और खुलने लगीं. हर बात पर टोकाटाकी फिर तो जैसे उस की झड़ी ही लग गई.

‘‘पड़ोसिनों से ज्यादा बात मत किया करो… टाइम पास औरतें हैं वे.’’

‘‘बाल खुले मत रखा करो… ऐसी चोटी नहीं वैसी बनाया करो, नहीं तो बाल खराब हो जाएंगे.’’

‘‘सहेलियों से मोबाइल पर ज्यादा बात नहीं किया करो… बारबार बात करने से मोबाइल खराब हो जाता है और मस्तिष्क पर भी बुरा असर पड़ता है. साथ ही पैसे का मीटर भी खिंचता है.’’

‘‘टीवी ज्यादा मत देखो, आंखें कमजोर हो जाएंगी.’’

‘‘घर की बालकनी में मत खड़ी हुआ करो, कई तरह के लोग यहां से गुजरते हैं.’’

‘‘सभी के खाना खाने के बाद तुम खाना खाया करो. मर्यादा और लक्ष्मण रेखा में रहा करो.’’

निशा भीतर ही भीतर कसमसा गई. फिर उस के द्वारा अपने अधिकारों की मांग शुरू हुई तो अशोक उस को छोड़ देने की बारबार धमकी देने लगा. समय रुका नहीं और अशोक की आदतें भी नहीं छूटीं. अब निशा चिड़चिड़ी रहने लगी. उस के गर्भ में अशोक का बच्चा पल रहा था. वह आवाज उठाने का प्रयास करती तो सीधे उस के खानदान को गाली मिलती. धीरेधीरे वह अवसाद में आने लगी. उस से उबरने और अपना ध्यान हटाने के लिए कभी मैगजीन पढ़ती या कोई संगीत सुनती तो भी ताने कि पैसा खर्च होता है… समय खराब होता है… स्वास्थ्य खराब होता है.

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बदलनी होगी सोच

निशा अब अपना दिमागी संतुलन खोने लगी, क्योंकि अशोक का छोटीछोटी बातों में मीनमेख निकालना और उसे बातबात पर ताने देना कम नहीं हो रहा था. वह रोती तो उस के आंसू मगरमच्छ के आंसू समझ लिए जाते. निशा अधिक घुटन नहीं सह सकी तो अपने मायके आ गई. वहां उस को बेटा हुआ. अशोक उसे देखने नहीं आया, उस ने तलाक के कागज पहुंचा दिए. पर निशा ने तलाक के पेपर साइन नहीं किए. उस का बेटा 4 साल का हो चुका है, वह आज भी प्रयासरत है कि अशोक उसे अपने घर ले जाएं. पर अशोक ऐसा बिलकुल नहीं सोचता. वह कहता है कि निशा उस की एक नहीं सुनती. जबकि सच तो यह है कि अहंकारी, जिद्दी एवं स्वार्थी अशोक को हां में हां करने वाली गुडि़या चाहिए. सहयोगिनी एवं अर्द्धांगिनीनहीं. कहीं कम तो कहीं ज्यादा अहं और स्वार्थ पति पत्नी पर लाद देने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह नहीं सोचते कि कोई पत्नी दिल से ऐसे रिश्तों को कैसे पाल सकती है और निभा सकती है? ऐसे रिश्ते चलते नहीं घिसटते हैं और बाद में नासूर बन जाते हैं. जुल्म बड़ा आसान लगता है मगर पत्नी की भावनाओं को दफना कर क्या पति खुद सुख के बिस्तर पर सो पाता है?

यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस प्रकार सुबह उठ कर दांतमुंह व शरीर की सफाई जरूरी है वैसे ही सुखद एवं स्थायी रिश्तों के लिए मानसिक एवं विचारात्मक सफाई भी जरूरी है. पतिपत्नी दोनों का ही दायित्व बनता है कि वे अपनी गलतियां सुधारें और एकदूसरे की भावनात्मक, शारीरिक एवं मानसिक जरूरतें समझ कर कदम से कदम मिला कर साथसाथ चलने को तत्पर रहें. वे इस बात का खयाल रखें कि एकदूसरे के प्रति कभी नफरत के बीज न पनपने पाएं.

मैं अपनी शादीशुदा जिंदगी से परेशान हो गई हूं?

सवाल

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. पति रोजाना मुझ से संबंध बनाते हैं. मना करने पर वे मारपीट कर के जबरन संबंध बनाते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पति कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं, बस उन का तरीका गलत है. यही काम वे प्यार से भी कर सकते हैं. आप को भी अगर कोई तकलीफ होती है, तो उस बारे में पति को तसल्ली से बता सकती हैं. जब आप इतनी गहराई से जुड़ी हैं, तो बात करने में झिझकना नहीं चाहिए. वैसे, पति का हक है आप के साथ संबंध बनाना, लिहाजा मना न करें.

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हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियां सुनी और सुलझई जाती हैं. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया है, इसलिए वह संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया. दरअसल, आयोग अध्यक्षा टीवी पर लाइव महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं. इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला आयोग की अध्यक्षा को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उस के पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं.

अध्यक्षा को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उस की शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा कि अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो भुगतो. उन का पीडि़ता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

मगर जातेजाते वे यह कहना नहीं भूलीं कि औरतें फोन कर के शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया काररवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इस के बाद से आयोग अध्यक्षा घेरे में आ गईं कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है. बात भले ही आ कर अध्यक्षा की रुखाई पर सिमट गई, लेकिन गौर करें तो मामला कुछ और ही है.

जब जबान नहीं हाथ चलाएं बच्चे

‘‘पापा, सुनो… सुनो न…’’ थोड़ी देर बाद तेज आवाज में चिंटू चिल्लाया, ‘‘पापा… पापा ऽऽऽ, मुझे दाल नहीं खानी, मेरे लिए पिज्जा और्डरकरो.’’ पिज्जा की जिद के चक्कर में चिंटू ने खाना फेंक दिया और कमरे में बंद हो जोरजोर से चिल्लाने लगा.उस की इस हरकत पर पापा को भी गुस्सा आ गया. उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम कितने बदतमीज हो गए हो,अब तुम्हें आगे से कुछ नहीं मिलेगा.’’ यह सुनते ही चिंटू ने रोना शुरू कर दिया. इकलौते बच्चे को रोते देख किस बाप का दिल नहीं पिघलेगा.

‘‘अलेअले, मेरा बेटा, अच्छा बाबा, कल तुम्हारे लिए पिज्जा मंगा देंगे.’’ इतना सुनना था कि चिंटू की बाछें खिल गईं, ‘‘ये…ये, हिपहिप हुर्रे. पापा, लव यू.’’

‘‘लव यू टू माय सन,’’ पापा ने प्रत्युत्तर में कहा. क्या आप और आप का बेटा/बेटी चिंटू की तरह ही रिऐक्ट करते हैं? अगर हां, तो आप का बच्चा न केवल जिद्दी है बल्कि उस की परवरिश में आप की तरफ से कमी है. बच्चे अकसर अपना गुस्सा मारपीट या रो कर निकालते हैं ताकि उन की मुंह से निकली ख्वाहिश पूरी हो सके. मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे ऐसा व्यवहार अपने आसपास की घटनाओं से ही सीखते हैं.

यहां कुछ पेरैंट्स के साथ हुई घटनाओं के उदाहरण पेश किए जा रहे हैं :

उदाहरण-1

दिल्ली के मयूरविहार, फेज वन, इलाके में रहने वाले रोहन और साक्षी को एक फैमिली गैट टूगैदर में जाना था. वे अपने 8 वर्षीय बेटे सारांश को भी साथ ले कर गए. वैसे तो साक्षी कभी भी सारांश को अकेले नहीं भेजती थी क्योंकि वह बड़ा शैतान बच्चा था. पार्टी में पहुंच कर भी साक्षी ने सारांश का हाथ नहीं छोड़ा क्योंकि साक्षी जानती थी कि हाथ छोड़ते ही वह उछलकूद करने लगेगा. साक्षी को देख उस की फ्रैंड लीजा आ गई. उस ने कहा कि चल, वहां चल कर मजे करते हैं. अब अपनी पूंछ को छोड़ भी दे. उस के कहते ही साक्षी ने सारांश से बच्चों के ग्रुप में शामिल होने को कहा. थोड़ी देर बाद ही चीखनेचिल्लाने के साथ रोने की आवाजें आने लगीं. मुड़ कर देखा, तो सारांश ने एक बच्चे की धुनाई शुरू कर दी थी, जिस कारण वह खूब रो रहा था. साक्षी भाग कर वहां पहुंची और सारांश को समझा कर उसे सौरी बोलने को कहा. फिर साक्षी वहां से चली आई. दरअसल, सारांश जैसे बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और जब मिलते हैं तो लड़ाईझगड़ा शुरू कर देते हैं.

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उदाहरण-2

मैं ने एक दिन डिनर के लिए अपने एक रिश्तेदार दंपती को घर पर आमंत्रित किया. वे लोग तय समय पर अपनी 6 वर्षीय बेटी सना के साथ आ गए. बातों का दौर शुरू हुआ. बातें इतनी रुचिकर थीं कि काफी देर तक जारी रहीं. बीचबीच में उन की बेटी सना, जो स्वभाव से ऐंठू और कम बोलने वाली थी, ने तो बात करना व बैठना ही मुश्किल कर दिया. वह कुछ सैकंडों में बीचबीच में पापापापा आवाजें लगाए. ‘बसबस, बेटा शांत बैठो’ जैसे शब्द भाईसाहब भी कहते जा रहे थे. कुछ देर बाद सना भाईसाहब की गोद में चढ़ी और उन के गालों पर चांटे मारने लगी. भाईसाहब तो बेटी के लाड़ में इतने अंधे दिखे कि कहने लगे, ‘अरे, मेरा सोना बेटा…अच्छा बताओ, क्या कह रही थी.’ यह देख मैं और मेरे पति एकदूसरे का मुंह देखने लगे. बेटी की ऐसी हरकत के बावजूद भाईसाहब ने उसे कुछ नहीं कहा. बच्चों के प्रति मांबाप का प्यार स्वाभाविक है पर बच्चे को इतना लाड़ देना कि वह मारने लगे या बीच में बोलने लगे गलत है.

ऐसे करें पहचान

डेढ़ से 2 साल : इस उम्र के बच्चे अपनी जरूरत को सही से बता नहीं पाते. इसी उम्र में बच्चों की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत पड़ती है. इस उम्र के बच्चे दांत काटना, हाथ चलाना, खिलौने पटकना, लात मारना या रोने जैसी हरकतें ज्यादा करते हैं. बच्चा अगर इस तरह का नैगेटिव व्यवहार करे तो उसे फौरन समझाएं क्योंकि इस उम्र में नहीं समझाएंगे तो वह बड़ा हो कर भी ऐसी हरकतें करता रहेगा. यह समझें कि वह कहना क्या चाह रहा है और यह सीख कहां से रहा है.

3-6 साल : अगर 2 साल तक उस का व्यवहार नहीं सुधरता तो इस उम्र में वही व्यवहार बच्चों की आदत बन जाती है और वे समझते हैं कि कौन सी चीज पाने के लिए उन्हें क्या करना है. मान लीजिए अगर कोई खिलौना या उन्हें कोई मनपसंद चीज खानी है तो वे मार्केट में बुरी तरह से फैल जाते हैं और चीजें देख कर रोने लगते हैं और तब तक रोते हैं जब तक कि उन्हें वह चीज न मिल जाए.

7-10 साल : इस उम्र के कई बच्चे शैतानी में पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं. ऐसे बच्चों को बातें खूब आती हैं और वे अपनेआप को नुकसान पहुंचा कर अपनी बातों को मनवाते हैं, जैसे चीखतेचिल्लाते हैं, झल्लाते हैं, मारते हैं, चुप हो जाते हैं, चिड़चिड़ करते हैं, बातें छिपाते हैं, झूठ बोलते हैं, बातें बनाते हैं. ऐसे बच्चे अपने आसपास नेगेटिव व्यवहार देखते हैं, उस का असर उन पर पड़ता है.

क्यों होता है ऐसा

सिंगल चाइल्ड : हम दो हमारा एक कौंसैप्ट यानी सिंगल चाइल्ड के चलते भी अब बच्चों में एकाधिकार की भावना आती है, जिस के चलते भी बच्चे दूसरे बच्चों को ऐक्सैप्ट नहीं कर पाते और उन्हें अपनी चीजें भी नहीं देते. वे जहां दूसरे बच्चों या भीड़भाड़ को देखते हैं तो असहज हो जाते हैं. ऐसे बच्चों के दोस्त भी कम होते हैं. ऐसे बच्चे पर पेरैंट्स हमेशा समाजीकरण का विशेष ध्यान दें.

खेल खेलें : इंडोर गेम्स में भी बच्चे सिर्फ वीडियो गेम्स ही खेलना पसंद करते हैं या फिर ज्यादा हुआ तो टीवी खोल कर कार्टून देखते हैं. अगर बच्चों में पेरैंट्स आउटडोर खेल खेलने के लिए प्रेरित करें तो इस से बच्चा बहुतकुछ सीखता है. आउटडोर गेम्स से चीजों की शेयरिंग तो होती ही है, इस से बच्चा अपनी पारी का इंतजार करना भी सीखता है. बच्चे को ऐसे में यह भी एहसास होगा कि हर जगह मनमानी नहीं चल सकती. अगर आप का बच्चा शर्मीला है तो उसे पार्क में ले जाएं ताकि बच्चा और बच्चों के समूह को देखे और खेलने के लिए उत्सुक भी हो.

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घर स्कूल से भी सीखते हैं बच्चे

देखा जाए तो ज्यादातर बच्चे नेगेटिव व्यवहार सब से पहले अपने घर से सीखते हैं. घर के आसपास का माहौल भी अच्छा होना चाहिए ताकि बच्चे पड़ोस से कुछ गलत न सीखें. कुछ बच्चे स्कूल से भी नेगेटिव व्यवहार सीखते हैं. घर में तो टीवी में हिंसा देखने से भी गलत सोच बनती है, जैसे एक कार्टून में अगर भीम ने किसी को मारा तो मारने वाली हिंसा को बच्चे जल्दी अपना लेते हैं. बच्चे कहा जाए तो हर एक गलत चीज जल्दी सीखते हैं और फिर वे प्रैक्टिकली करने की कोशिश भी करते हैं. पहले टीवी पर कोई ऐक्शन या ‘शक्तिमान’ सीरियल आता था तो शक्तिमान अपनी उन शक्तियों और ऐक्शन सीन को अंत में बच्चों को करने से मना करता था, ठीक वैसे ही अगर बच्चा मारधाड़ वाली चीजें देखे तो उसे प्यार से समझाएं.

बुजुर्गों को दें अपना प्यार भरा साथ      

मुंबई की एक पॉश सोसाइटी में रहने वाले 70 वर्षीय मिश्रा जी आजकल बेहद डरे हुए हैं उन्हें अपने घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर में वे अपने बुजुर्ग माता पिता को खो चुके हैं. जब से कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोंन ने भारत में दस्तक दी है वे दोनों पति पत्नी बेहद सहम गये हैं यहां तक कि अब उन्हें बेंगलोर में रहने वाले अपने बच्चों के पास जाने में भी डर लग रहा है. वे कहते हैं, “”मार्च 2020 में कोरोना काल से पूर्व हमउम्र दोस्तों से हर दिन मॉर्निग ईवनिंग वॉक पर मिलते थे कुछ अपने दिल की कहते थे तो कुछ उनकी सुनते थे और वह कहना सुनना हमारे लिए पूरे दिन टॉनिक का कार्य करता था पर कोरोना के बाद से हम अपने घरों में बंद हैं. दूसरी लहर में अपने माता पिता को खोने के बाद अब तो कोरोना के नाम से ही रूह कांप जाती है, अब ये ओमिक्रोंन न जाने क्या कहर बरपायेगा यकीन मानिए कभी कभी तो मन घोर निराशा में घिरने लगता है.’’

भोपाल में रहने वाली 70 वर्षीया मीता जी के दोंनों बच्चे यू. एस. में हैं……वे यहां अपने 75 वर्षीय पति के साथ अकेली रहतीं हैं. कोरोना की दूसरी लहर में उन्होंने अपने कुछ करीबियों को खो दिया था. वे कहतीं हैं, “अपने आसपास होने वाली करीबियों की असामयिक मौतों ने हमें तोड़कर रख दिया…..उस समय एक दूसरे का हाथ पकड़कर बेड पर लेटे लेटे बिना खाए पिए हमने कई रातें गुजारीं…..हरदम यही डर सताता रहता था कि यदि हमें कोरोना हो गया तो क्या होगा क्योंकि इस समय कोई मददगार हमें मिल नहीं सकता और बच्चे हमारे पास आ नहीं सकते, पिछले कुछ महीनो में अपने जैसे तैसे खुद को सम्भाला था पर अब इस तीसरी लहर की आहट ने तो हमें मानो फिर से वहीँ पहुंचा दिया है पता नहीं अब इस लहर में हम जैसे बुजुर्ग बचेगें भी या नहीं.’’

वास्तव में कोरोना महामारी ने यूं तो समूची दुनिया को ही प्रभावित किया है परंतु इससे सर्वाधिक पीड़ित बुजुर्ग हैं. यदि वे अकेले रह रहे हैं तो कोरोना के खौफ से भयभीत हैं और यदि अपने बच्चों के साथ भी हैं तो भी वे अकेले ही हैं क्योंकि वर्क फ्राम होम में बड़े और ऑनलाइन क्लास में बच्चे व्यस्त हो जाते हैं. इसके अतिरिक्त बच्चों की यूं भी अपनी एक अलग दुनिया होती है, कोरोना से पूर्व वे मार्निंग ईवनिंग वॉक पर जाकर कुछ बाहर की आबोहवा ले लेते थे तो अपने हमउम्र साथियों से मिलकर दुख सुख की कह सुन भी लेते थे जिससे उनका मन भी हल्का हो जाया करता था. परंतु कोरोना ने उन्हें एकदम अकेला कर दिया है. घर में रहकर भी वे बेगानों से हो गए हैं. एक हालिया रिसर्च के अनुसार इस समय देश के करीब 82 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं. 70 प्रतिशत नींद न आना, और रात को आने वाले डरावने सपनों से जूझ रहे हैं, 63 प्रतिशत अकेलेपन या सामाजिक अलगाव के कारण अवसाद की ओर अग्रसर हैं, वहीं 55 प्रतिशत बुजुर्ग प्रतिबंधों के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से स्वयं को कमजोर अनुभव कर रहे हैं. पहली और तीसरी लहर को किसी तरह झेल लेने वाले बुजुर्ग अब तीसरी लहर की आहट से ही बहुत खौफ में हैं.”

वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक निधि तिवारी कहतीं हैं, “पिछले लॉकडाउन के समय रामायण, महाभारत जैसे धारावाहिक देखने से उनका समय कट जाता था परंतु कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता ने उन्हें डरा दिया है और अब कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोंन के द्वारा आने वाली इस तीसरी लहर के आने से तो वे एकदम टूट से गये हैं क्योंकि  शायद कहीं न कहीं उनके अवचेतन में यह बैठ गया है कि अब शायद बाकी जीवन यूं ही मास्क और परिचितों से मिले बिना ही गुजारना पड़ सकता है.’’ वे आगे कहतीं हैं, ‘मेरे पास प्रतिदिन ऐसे 8 से 10  बुजुर्गों के फोन आते हैं जिसमें वे कहते हैं कि ऐसी कैद की जिंदगी से तो अच्छा है कि भगवान उन्हें उठा ही ले’’

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क्या हो उपाय

बुजुर्ग हमारे समाज और परिवार के आधारस्तंभ हैं… संयुक्त राष्ट्र संघ की शाखा यू एन फार एजिंग अपने वक्तव्य में कहती हैं कि, ‘’युवा पीढी बुजुर्गों को यह अहसास दिलाएं कि वे उनके लिए बहुत कीमती है.. उन्हें कभी यह नहीं लगना चाहिए कि वे अब जीवन के अंतिम चरण में हैं और उनके जीवन की कोई अहमियत नहीं है.’’ भारत ही नहीं समूचे विश्व के बुजुर्ग कोरोना के बाद से भयावह अकेलेपन के दौर से गुजर रहे हैं. यूं भी बच्चों के दूसरे शहर या विदेश चले जाने पर वे अकेले रह जाते हैं पर उस अकेलेपन को वे समय समय पर बच्चों के पास जाकर, कभी बच्चों को अपने पास बुलाकर, नाते रिश्तेदारों से मिलजुलकर खुशी खुशी काट लेते थे. बच्चों के लिए अपने हर सुख दुःख को कुर्बान करने वाले बुजुर्गों का इस प्रकार डर कर जीना बेहद चिंताजनक है……..यह सही है कि बच्चे अपनी नौकरी छोड़कर उनके साथ नहीं रह सकते परंतु दूर रहकर भी उन्हें हरदम अपनेपन का अहसास तो कराया ही जा सकता है. लंबे समय से अपने शहर और घर को छोड़कर स्थायी रूप से बच्चों के साथ रहना भी उनके लिए व्यवहारिक नहीं हो पाता. कोरोना हाल फिलहाल तो हमारे बीच से जाने वाला नहीं है समय समय पर इसकी लहरें और लाकडाउन मानव जाति केा झेलना ही होगा. ऐसे में परिवार के अन्य सभी सदस्यों को उनके बेहतर स्वास्थ्य और मनोदशा के लिए प्रयास करने ही होंगें.

क्या करें युवा सदस्य

–परिवार के सदस्य चाहे उनके साथ हों या दूर हर दिन उन्हें यह अहसास कराएं कि यह वक्त बहुत जल्दी ही गुजर जाएगा और हर समय वे उनके साथ हैं.

-कई बार उन्हें लगता है कि अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के बाद अब उनके जीने का कोई मकसद ही नहीं बचा है इसलिए घर के प्रत्येक निर्णय में उन्हें शामिल करें और उनकी राय पर अमल करने का भी प्रयास करें और ताकि उन्हें अपनी महत्ता महसूस हो सके.

-घर के युवा सदस्य उनके हमउम्र दोस्तों और नाते रिश्तेदारों के साथ वीडियो कॉल, जूम कॉल, गूगल मीट आदि पर मीटिंग करवाएं.

-व्हाट्स अप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर निरंतर आने वाली नकारात्मक खबरों से उन्हें दूर करने का प्रयास करें ताकि वे नकारात्मकता से बचे रहें. घर के सदस्य उन्हें संगीत, साहित्य या जोक्स आदि की एप डाउन लोड करके दें ताकि उसमें व्यस्त रह सकें. उनके लिए विभिन्न पत्रिकाओं के सब्सक्रिप्शन करके दें.

-छोटे बच्चों को पढाने, उनके साथ खेलने, किचिन तथा अन्य घरेलू कार्यों में उनका भरपूर सहयोग लें, उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना भी करें.

-जितना अधिक हो सके उनके साथ समय बिताने का प्रयास करें, दूर होने पर सप्ताह में कम से कम एक या दो बार उनसे वीडियो काल पर अवश्य बातचीत करें.

-अपने पडोस या सोसाइटी में रहने वाले बुजुर्गों को अपना कुछ समय दें, अक्सर वे ज़ूम मीटिंग, विडिओ कालिंग, जैसी नयी तकनीकों से अनभिज्ञ होते हैं ऐसे में आप इन तकनीकों को ओपरेट करना उन्हें सिखाएं ताकि वे अपनों से टच में रहें.

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बुजुर्ग स्वयं भी करें प्रयास

-निम्हांस-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज बेंगलूर के अनुसार बच्चे ही नहीं बुजुर्गों को स्वयं भी इस अकेलेपन से उबरने के प्रयास करने होंगें ताकि कोराना का भय उन पर हावी न हो सके.

–इस समय अपनी मनपसंद गतिविधियों जैसे कार्ड्स वर्ड पहेली हल करना, संगीत सुनना, बागवानी, शतरंज, कैरम या ताश के पत्ते खेलने में स्वयं को व्यस्त रखें.

-अपने शरीर को फिट रखने के लिए घर में ही कुछ चहलकदमी, योगा, व्यायाम करें साथ ही अपने परिजनों की यथासंभव मदद करने का प्रयास करें.

-रूटीन के समाचार सुनने के अतिरिक्त बेवजह की बहस अथवा किसी भी प्रकार की नकारात्मक खबरें टी. वी. पर सुनने से बचें. अपने मनपसंद टी. वी. शोज, वेब सीरीज अथवा मूवी देखें.

-छोटों के सहयोग से सोशल मीडिया, वीडियो कालिंग आदि पर एक्टिव होना सीखें ताकि अकेलेपन का अहसास न हो सके.

बच्चा न होना बदनसीबी नहीं

मातृत्व एक ऐसा सुख है जिस की चाह हर औरत को होती है? शादी के बाद से ही औरत इस ख्वाब को देखने लगती है. लेकिन कहते हैं न कि ख्वाब अकसर टूट जाते हैं. हां कई बार कुछ कारणों से या किसी समस्या की वजह से अगर कोई औरत मां बनाने के सुख से वंचित रह जाती है तो उस से बड़ा सदमा और दुख उस के जीवन में कुछ और नहीं होता. दुनिया मानो जैसे उस के लिए खत्म सी हो जाती है.

उस पर अगर उसे बांझ, अपशकुनी, मनहूस और न जाने कैसेकैसे ताने सुनाने को मिलें तो उस के लिए कोई रास्ता नहीं बचता. ताने देने वालों में बहार वाले ही नहीं बल्कि उस के अपने ही घर के लोग शामिल होते हैं.

जैसे ही एक नवयुवती को विवाह के कुछ साल बाद पता चलता है कि वह मां नहीं बन सकती तो आधी तो वह वैसे ही मर जाती है बाकी रोजरोज के अपनों के ताने मार देते हैं. टीवी पर दिखाए गए एक सीरियल ‘गोदभराई’ में घर की बहू खुद बांझ न होने के बावजूद अपने पति की कमी की वजह से मां नहीं बन पाती. इसी कारण उसे पासपड़ोसियों के ताने सुनने पड़ते हैं जिस वजह से वह दुखी होती है. उस के अपने ही उसे नीचा दिखने का कोई मौका नहीं छोड़ते. गलती किसी की भी हो ताने हमेशा उसे ही सुनने पड़ते हैं.

औरतों के खिलाफ प्रचार

टीवी पर दिखाए जाने वाले सोप ओपेरा तो उन औरतों के खिलाफ प्रचार करते हैं जो मां नहीं बन पातीं और लोग इसे बड़े चाव से देखते हैं. यह मनोरंजन के लिए कहानी ही नहीं है बल्कि इस में कहीं न कहीं समाज की सचाई छिपी हुई है. वह दर्द है जिसे बहुत सारी महिलाओं को सहना पड़ता है.

अब सुनीता का ही उदाहरण ले लीजिए. इन की शादी को 4 साल हो गए और शादी के 6 महीने बाद से ही सास को अपने पोतेपोतियों को खिलने की इच्छा होने लगी और फिर देखते ही देखते 4 साल बीत गए. बीच में सुनीता ने कई टैस्ट भी करवाए जिन का नतीजा सिर्फ यह बयां करता है कि वह मां नहीं बन सकती और बस फिर शुरू हो गया आईवीएफ सैंटरों के चक्कर लगाने का. उस के गर्भाशय में ही कमजोरी है जिस से वह मां नहीं बन सकती. तानों इस सिलसिले में सिर्फ सास ही नहीं बल्कि सुनीता की ननद, देवरानी और पति भी इस में शामिल हैं.

असल में दोस्तों और सहेलियों के बीच भी ऐसी औरतें कटीकटी सी रहती हैं, क्योंकि उन की बातें तो बच्चों के बारे में ही होती हैं. परिवार और दूसरों के ताने तो फिर भी वे सह लेतीं पर पति के भी साथ न देने पर जैसे उन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो.

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मां न बन पाने का गम तो उन्हें पहले ही था पर पति की बेरुखी ने और तोड़ कर रख दिया. बुरे समय में आखिर दोनों एकदूसरे के सुखदुख के साथी होते हैं पर किसी एक के बुरे समय में दूसरे का साथ न होना तोड़ कर रख देता है.

अनचाहा दर्द

सुनीता अपना दर्द बयां करते हुए कहती हैं कि शुरुआत में तो वे अपनी ससुराल वालों के तानों से परेशान हो कर कई ओझओं और तांत्रिकों के पास गईं जिन्होंने उन्हें कई पूजापाठ और दान करने को कहा. उन्होंने सब किया पर फिर भी उस का कोई नतीजा नहीं निकला इन सब के नाम पर उन ओझओं और तांत्रिकों ने उन के परिवार वालों से हजारों रुपए वसूले पर उस का फायदा कुछ नहीं हुआ.

फिर उन लोगों ने उन्हें श्रापित बताया और कहा कि भगवान ही नहीं चाहते कि उन्हें कोई औलाद हो. आईवीएफ सैंटरों में जो पैसा खर्च हुआ वह अलग.

फिर क्या था इन सब के बाद तो परिवार वाले उन्हें और ज्यादा ताने देने लगे और नफरत करने लगे. सास तो पति की दूसरी शादी तक करवाना चाहती थीं पर उन्हें जब पता चला कि तलाक आसान नहीं है और कहीं वे पुलिस में चली गईं तो चुप हो कर रह गईं. सब लोग उन से दूरी बनाने लगे और हर शुभ काम से भी दूरी रखी जाने लगी. फिर धीरेधीरे वे भी खुद को ही दोष देने लगीं. उन्हें लगने लगा कि वे मनहूस हैं. कई बार मन में खयाल आने लगा कि कहीं जा कर आत्महत्या कर लें.

मगर एक दिन सुनीता की मुलाकात अपनी सहेली से हुई जिस के समझने पर सुनीता का खोया आत्मविश्वास लौटने लगा. सुनीता की सहेली ने समझया कि वह खुद को मनहूस न मान कर हालात का सामना करे. अगर वह खुद को ही मनहूस समझने लगेगी तो बाहर वाले तो उसे ताने देंगे ही.

उस की सहेली ने समझया कि खुद को मनहूस समझने से कुछ नहीं होगा उलटा खुद का आत्मविश्वास कम होगा. बच्चे होने और न होने से कोई मनहूस नहीं हो जाता. तांत्रिकों को यह कैसे पता हो सकता है कि तुम श्रापित हो.

अंधविश्वास भरी बातें

बस फिर क्या था सुनीता को इस बात का एहसास हुआ की वाकई में इस में उन की कोई गलती नहीं है और न ही वे मनहूस है और न ही अपशकुनी. पहले सुनीता को इस बात का एहसास हुआ और फिर उन्होंने सोचा कि अब इस बात का एहसास वे अब अपने पति को भी करवाएंगी और फिर अपने ससुराल वालों को.

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सुनीता को तो इस का मौका मिला और उन्हें उन की सहेली का सहारा भी जो उन की जिंदगी में एक उम्मीद की किरण ले कर आया वरना शायद उन्होंने खुदकुशी कर ली होती या पूरी जिंदगी खुद को कोसतेकोसते बितातीं लेकिन आज भी कई महिलाएं ऐसी हैं जो पूरे परिवार के ताने सुनसुन कर जी रही हैं. न ससुराल और समाज में उन्हें इज्जत मिलती है और न ही पति का प्यार. फिर भी वे अपने रिश्ते निभाती हैं और उफ तक नहीं करतीं.

जरा सोचिए क्या खुद को मनहूस समझना या खुद को दोष देना वह भी उस बात के लिए जिस में आप का कोई कुसूर नहीं है और न ही कोई दोष ठीक है? तांत्रिक लोग सिर्फ आप की भावनाओं का फायदा उठा कर पैसा ऐंठने के लिए श्राप या पाप जैसी अंधविश्वास भरी बातें आप के दिमाग में डालते हैं. विडंबना तो यह है कि पढ़ेलिखे लोग भी आजकल इन सब बातों में यकीन रखते हैं और घर की बहुओं को ताने देते हैं, जबकि आजकल विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि हर चीज का इलाज संभव है. तांत्रिकों और बाबाओं की बातों में आने के बाद के बजाय महिलाओं को अकेला बिना बच्चों के जीना सीखना होगा. फिर यह न भूलें कि वृद्धावस्था में बच्चों का भी भरोसा नहीं रहता कि वे साथ रहेंगे.

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