Top 10 Best Romantic Stories in Hindi: टॉप 10 बेस्ट रोमांटिक कहानियां हिंदी में

Romantic Stories in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Best Romantic Stories in Hindi 2022. इन कहानियों में प्यार और रिश्तों से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां हैं जो आपके दिल को छू लेगी और जिससे आपको प्यार का नया मतलब जानने को मिलेगा. इन Romantic Stories से आप कई अहम बाते भी जान सकते हैं कि प्यार की जिंदगी में क्या अहमियत है और क्या कभी किसी को मिल सकता है सच्चा प्यार. तो अगर आपको भी है संजीदा कहानियां पढ़ने का शौक तो यहां पढ़िए गृहशोभा की Best Romantic Stories in Hindi.

1. मिलन: क्या हिमालय और भावना की नई शुरुआत हो पाई

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एक तरफ हिमालय ने अपनी पत्नी को खोया तो दूसरी तरफ भावना की पति प्रांजल की मृत्यु के बाद दुनिया उजड़ गई. दोनों का यही अकेलापन उन्हें एकदूसरे के करीब ले आया, और उन्हें एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेना ही पड़ा…

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2. तुम मेरी हो: क्या शीतल के जख्मों पर मरहम लगा पाया सारांश

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बेकुसूर होते हुए भी शीतल बेवजह खुशियों से दूर जिंदगी जीने को मजबूर थी. सारांश की नजरों ने उस के दिल के जख्मों को देख लिया था. लेकिन, कुछ कर पाया वह शीतल के लिए?

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3. घरौंदा : क्यों दोराहे पर खड़ी थी रेखा की जिंदगी

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रेखा की जिंदगी कई धूपछांही रंगों से गुजर चुकी थी. पर ऐसा तो कभी न हुआ था. आज जिंदगी एक ऐसे दोराहे पर जा खड़ी हुई थी कि रेखा एकदम चकरा गई.

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4. उपहार: क्या मोहिनी का दिल जीत पाया सत्या

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सत्या मोहिनी की जरूरतों की वे चीजे तोहफे में दे कर उसे खुश रखना चाहता था. उस के लिए दोस्तों से उधार मांगने, घर का सामान चोरी कर के बेचने से भी उस ने परहेज नहीं किया.

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5. प्यार झुकता नहीं

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“एक जरूरी बात बतानी थी सुजाता” पटना से उसकी सहेली श्वेता बोल रही थी- “अरूण को कोरोना हुआ है. बहुत सताया था न तुम्हें. अब भुगत रहा है.” “पर मुझे क्या” वह लापरवाही से बोली- “अब तो तलाक की औपचारिकता भर रह गई है. उसे मुझे भरण-पोषण का खर्च देना ही होगा.”

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6. Romantic Story In Hindi: सबसे हसीन वह

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इन दिनों अनुजा की स्थिति ‘कहां फंस गई मैं’ वाली थी. कहीं ऐसा भी होता है भला? वह अपनेआप में कसमसा रही थी. ऊपर से बर्फ का ढेला बनी बैठी थी और भीतर उस के ज्वालामुखी दहक रहा था. ‘क्या मेरे मातापिता तब अंधेबहरे थे? क्या वे इतने निष्ठुर हैं? अगर नहीं, तो बिना परखे ऐसे लड़के से क्यों बांध दिया मु झे जो किसी अन्य की खातिर मु झे छोड़ भागा है, जाने कहां? अभी तो अपनी सुहागरात तक भी नहीं हुई है. जाने कहां भटक रहा होगा. फिर, पता नहीं वह लौटेगा भी या नहीं.’

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7. धुआं-धुआं सा: पति के बाइसेक्सुअल होने की बात पर क्या था विशाखा का फैसला

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सचाई स्पष्ट होने के बाद विशाखा बोली थी कि उस के दिल और दिमाग की जंग में जीत उस के दिमाग की हुई. तुम मूव औन कर चुके हो, मुझे भी करना चाहिए. करना ही होगा. एकसाथ रह कर दुखी रहा जाए, इस से बेहतर है…

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8. Romantic Story In Hindi: भावनात्मक सुरक्षा

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यह जानते हुए भी कि कविता के बगैर उस की जिंदगी अधूरी है, मुकेश को ऐसा क्या एहसास हुआ कि वह उस से कटाकटा सा रहने लगा. एक दिन तो हद ही हो गई…

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9. Romantic Story In Hindi: बुझते दिए की लौ

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बरसों बाद नूपुर से मिल कर एक बार फिर जिंदगी खुशनुमा सी लगने लगी थी. लेकिन जिंदगी के इस मोड़ पर हमेशा के लिए एकदूसरे का साथ पाना आज भी इतना आसान नहीं था.

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10. सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय

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पीहू लेटीलेटी सोच रही थी, संजय की बेफिक्री, उस के कूल नैचर पर फ़िदा हो कर ही उस के साथ जीवन में आगे नहीं बढ़ा जा सकता. वह अच्छा दोस्त हो सकता है पर लाइफपार्टनर तो बिलकुल नहीं. अब वह जमाना भी नहीं कि सिर्फ भावनाओं के सहारे भविष्य का कोई फैसला लिया जाए…

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बहुत देर कर दी: हानिया की दीवानी कोन थी

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दर्पण: क्या रिश्ते में आई दरार दोबारा ठीक हो सकती है

लेखक- मंजरी सक्सेना

‘‘आजकल बड़ा लजीज खाना भेजती हो बेगम,’’ आफिस से आ कर जूते खोलते हुए सुजय ने कहा. ‘‘क्यों, अच्छा खाना न भेजा करूं,’’ मैं ने कहा, ‘‘इन दिनों कुकिंग कोर्स ज्वाइन किया है. सोचा, रोज नईनई डिश भेज कर तुम्हें सरप्राइज दूं.’’ ‘‘शौक से भेजिए सरकार, शौक से. आजकल तो सभी आप के खाने की तारीफ करते हैं,’’ सुजय ने हंस कर कहा. मैं ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘सभी कौन?’’ ‘‘अरे भई, अभी आप यहां किसी को नहीं जानती हैं. हमें यहां आए दिन ही कितने हुए हैं. जब एक बार पार्टी करेंगे तो सब से मुलाकात हो जाएगी. यहां ज्यादातर अधिकारी मैस में ही खाना खाते हैं.

हां, मैं तुम्हें बताना भूल गया था कि निसार भी पिछले हफ्ते ट्रांसफर पर यहीं आ गया है. उसे मेरी सब्जियां बहुत पसंद आती हैं. एक दिन कह रहा था कि जब ठंडे खाने में इतना मजा आता है तो गरम कितना लजीज होगा,’’ सुजय मेरे खाने की तारीफों के पुल बांध रहे थे. मैं ने पूछा, ‘‘यह निसार क्या सरनेम हुआ?’’ ‘‘वह निसार नाम से गजलें लिखता है, वैसे उस का नाम निश्चल है,’’ सुजय ने बताया. ‘‘अच्छा,’’ कह कर मैं चुप हो गई पर चाय के उबाल के साथसाथ मेरे विचारों में भी उबाल आ रहे थे. ‘‘तुम्हें याद नहीं क्या मौली? हमारी शादी में भी निसार आया था.’’ ‘‘हूं, याद है,’’ अतीत की यादें आंधी की तरह दिल के दरवाजे में प्रवेश करने लगी थीं. मुंह दिखाई की रस्म शुरू हो चुकी थी. घर के सभी बड़े, ताऊ, चाचा, मामी, मामा कोई भी उपहार या गहना ले कर आता और पास बैठी छोटी ननद मेरा घूंघट उठा देती. बड़ों को चरण स्पर्श और छोटों को प्रणाम में मैं हाथ जोड़ देती थी. इतना सब करने पर भी मेरी पलकें झुकी ही रहतीं. घूंघट की ओट से अब तक बीसियों अनजान चेहरे देख चुकी थी. अचानक स्टेज के पास निश्चल को देखा तो हैरत में पड़ गई. सोचा, कोई दोस्त होगा, पर वह जब पास आया तो वही अंदाज. ‘भाभी, ऐसे नहीं चलेगा

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आप को मुंह दिखाई के समय आंखें भी दिखानी होंगी. कहीं भेंगीवेंगी आंख वाली तो नहीं?’ कह कर किसी ने घूंघट उठाना चाहा तो आवाज सुन कर मेरा मन हुआ कि आंखें खोल कर पुकारने वाले को देख तो लूं, पर संकोचवश पलक झपक कर रह गए थे. ‘अरे, दुलहन, दिखा दो अपनी आंखें वरना तुम्हारा यह देवर मानने वाला नहीं,’ किसी बूढ़ी औरत का स्वर सुन कर मैं ने आंखें खोल दीं. ऐसा लगा जैसे शिराओं में खून जम सा गया हो. तो यह निश्चल और सुजय आपस में रिश्तेदार हैं. मन ही मन सोचती मैं कई वर्ष पीछे लौट गई थी. निश्चल और कोई नहीं, मेरे स्कूल के दिनों का सहपाठी था जो रिकशे में मेरे साथ जाता था. सारे बच्चे मिल कर धमा- चौकड़ी मचाते थे. इत्तेफाक से कालिज में भी वह साथ रहा और 2-3 बार हमारा पिकनिक भी साथ ही जाना हुआ था. पता नहीं क्यों निश्चल की आंखों की भाषा पढ़ कर हमेशा ऐसा लगता था जैसे उस की आंखें कुछ कहनासुनना चाहती हैं. तब कहां पता था कि एक दिन पापा मेरे रिश्ते के लिए उसी का दरवाजा खटखटाने पहुंचेंगे. निश्चल का बायोडाटा काफी दिनों तक पापा की जेब में पड़ा रहा था. वह उस समय न्यूयार्क में कंप्यूटर इंजीनियर था. 2 महीने बाद भारत आने वाला था. घर वालों को फोटो पसंद आ चुकी थी. बस, जन्मपत्री मिलानी बाकी थी. हरसंभव कोशिशों के बाद भी जन्मपत्री नहीं मिली थी. चूंकि निश्चल के मातापिता जन्मपत्री में विश्वास करते थे इसलिए शादी टल गई थी. उन्हीं दिनों वैवाहिक विज्ञापन के जरिए सुजय से शादी की बात चली. सुजय से जन्मपत्री मिलते ही शादी की रस्म पूरी होगी. ‘‘क्या सोच रही हो, मौली?’’ सुजय की आवाज से मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. ‘‘कुछ नहीं,’’ होंठों पर बनावटी हंसी लाते हुए मैं ने कहा.

निश्चल कुछ ज्यादा मजाकिया स्वभाव का है. उस की बातों का बुरा नहीं मानना तुम. वैसे भी बेचारा अकेला है. न्यूयार्क में किसी अमेरिकन लड़की से शादी कर ली थी पर वह छोड़ कर चली गई…’’ उदार हृदय, पति बताते रहे और मैं हूं, हां करती चाय के कप से उड़ती हुई भाप देखती रही. निरीक्षण भवन में सुजय ने पार्टी का इंतजाम कराया था. खाने की प्लेट हाथ में लिए मैं खिड़की से बाहर का नजारा देखने लगी थी. रात के अंधेरे में मकानों की रोशनी आसमान में चमकते सितारों सी जगमगा रही थी. ‘‘आप बिलकुल नहीं बदलीं,’’ किसी ने पीछे से आवाज दी. निश्चल को देख कर मैं चौंक कर बोली, ‘‘आप ने मुझे पहचान लिया?’’ ‘‘लो, जिस के साथ बचपन से जवान हुआ उसे न पहचानने की क्या बात है. तब आप संगमरमर की तरह गोरी थीं, आज दूध की तरह सफेद हैं,’’ निश्चल ने कहा. ‘‘पर समय के साथ शक्ल और यादें दोनों बदल जाती हैं,’’ मैं ने यों ही कह दिया. ‘‘आप गलत कह रही हैं. समय का अंतराल यहां नहीं चल पाया. आप 13 साल पहले भी ऐसी ही थीं,’’ निश्चल ने हंसते हुए कहा तो शर्म से मेरी पलकें झुक गई थीं. तभी किसी को अपने आसपास यह कहते सुना, ‘‘ओहो, इस उम्र में भी क्या ब्लश कर रही हैं आप?’’ सुन कर मेरे गाल लाल हो गए थे. प्लेट रख कर हाथ धोने के बहाने दर्पण में अपना चेहरा देख कर मैं खुद ही शरमा गई थी. जब से निश्चल ने मेरी तारीफ में कसीदे पढ़े, मेरी जिंदगी ही बदल गई. जेहन में बारबार यह सवाल उठते कि क्यों कहा निश्चल ने मुझे संगमरमर की तरह गोरी और दूध की तरह सफेद…तब तो चौराहे की भीड़ की तरह मुझे छोड़ कर निश्चल ने पीछे मुड़ कर देखा तक नहीं और अपना रास्ता ही बदल लिया था.

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अब, जब हमारे रास्ते अलग हो गए, मंजिलें बदल गईं फिर उस कहानी को याद दिलाने की जरूरत किसलिए? मुझे किसी से भी किसी बात की शिकायत नहीं है, न क्षोभ न पछतावा, पर नियति ने क्यों मेरी जिंदगी में उस व्यक्ति को सामने खड़ा कर दिया जिस को मैं ने बचपन से चाहा. मैं सोच नहीं पाती, क्यों मन बारबार संयम का बांध तोड़ना चाहता है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उस से मुलाकात का कोई रास्ता ही न रह जाए. क्लब में तो हर हफ्ते ही मुलाकात होती है. उस पर भी अगर संतोष कर लिया जाए तो ठीक लेकिन गुस्सा तो मुझे अपने ऊपर इसलिए आता था कि जिस का अब जिंदगी से कोई वास्ता नहीं तो फिर क्यों मन उस चीज को पाना चाहता है. क्यों तिरछी बौछार में भीगने की चाहत है, क्या मैं समझती नहीं, निश्चल की आंखों की भाषा? सोचसोच कर मेरी रातों की नींद उड़ने लगी थी. मुलाकातों का सिलसिला अपने आप चलता जा रहा था. अपनी भांजी की शादी में जाना था. व्यस्तताओं के चलते सुजय दिल्ली आ कर मुझे प्लेन में बैठा गए थे. वहीं निश्चल को भी प्लेन में बैठा देख कर मैं हैरान थी कि अचानक उस का कार्यक्रम कैसे बन गया था, मैं समझ नहीं पा रही थी. प्लेन में कई सीटें खाली पड़ी थीं. निश्चल मेरे पास ही आ कर बैठ गया. धरती से हजारों मील ऊपर क्षितिज को अपने बहुत पास देख कर मन पुलकित हो रहा था या निश्चल का साथ पा कर, यह मैं समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन पेट में तेज दर्द से अचानक तबीयत खराब हो गई. फोन कर के डाक्टर को घर पर बुला लिया था. उन्होंने ब्लड टेस्ट, अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट देख कर कहा था कि आपरेशन करना पड़ेगा. डाक्टर ने ब्लड का इंतजाम करने को कहा क्योंकि मेरा ब्लड गु्रप ‘ओ पाजिटिव’ था. ‘‘अब क्या होगा?’’ मैं घबरा गई. ‘‘होना क्या है, कोई न कोई दाता तो मिल ही जाएगा,’’ डाक्टर ने कहा. ‘‘यहां कौन है? अभी तो हम ने किसी को खबर भी नहीं दी है,’’ सुजय ने कहा. मैं ने निश्चल को फोन मिलाया. ‘‘क्या कोई खास बात, आप परेशान लग रही हैं, मैं अभी आता हूं,’’ कह कर निश्चल ने फोन रख दिया. 10 मिनट के बाद ही निश्चल मेरे सामने था. उस को देखते ही सुजय ने कहा, ‘‘ब्लड का इंतजाम करना पड़ेगा.’’ निश्चल तुरंत अपना ब्लड टेस्ट कराने चला गया और लौट कर बोला, ‘‘सुनो, तुम्हारा और मेरा एक ही ब्लड गु्रप है.’’ ‘‘काश, घर वाले जन्मपत्री की जगह ‘ब्लड गु्रप’ मिला कर शादी करने की बात सोचते तब तो मैं जरूर ही तुम्हें कहीं न कहीं से ढूंढ़ निकालता.’’ अवाक् सी मैं निश्चल को देखती रह गई. शर्म से मेरे गाल लाल हो गए.

सुजय ने हंस कर कहा, ‘‘फिर तो हम घाटे में रहते.’’ आपरेशन के बाद होश में आने में कई घंटे लग गए थे. पानीपानी कहते हुए मैं ने आंखें खोलीं तो सामने निश्चल को देखा. मेरी आंखें सुजय को तलाश रही थीं. मुझे देख कर निश्चल ने कहा, ‘‘सुजय सब को फोन करने गया है कि आपरेशन ठीक हो गया और होश आ गया है, लेकिन पता है भाभी, आपरेशन के बाद से अब तक सुजय ने एक बूंद पानी तक नहीं पिया है, क्योंकि आप को भी पानी नहीं देना है. वैसे आप को तो ड्रिप चढ़ाई जा रही है,’’ रूमाल से मेरे होंठों को गीला कर के निश्चल बाहर सुजय के इंतजार में खड़ा रहा. निश्चल के कहे शब्दों से मैं अंदर तक हिल गई. जिस दर्पण में भावुक, टूट कर चाहने वाले इनसान का प्रतिबिंब हो उसे मैं खंडित करने की सोच भी नहीं सकती. अगर उस में जरा सी दरार आ जाए तो वह बेकार हो जाता है. अपने मन के दर्पण को मैं खंडित नहीं होने दूंगी. ‘खंडित दर्पण नहीं बनूंगी मैं,’ मन ही मन बुदबुदा रही थी. सुजय की मेरे प्रति आस्था ने मेरी दिशा ही बदल दी. जरा सी दरार जो दर्पण को खंडित कर देती है उस से मैं अपने को संयत कर पाई.

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इंग्लिश रोज: भाग 3- क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

गरमी का मौसम था. चारों ओर सतरंगी फूल लहलहा रहे थे. दोपहर के खाने के बाद दोनों कुरसियां डाल कर गार्डन में धूप सेंकने लगे. बाहर बच्चे खेल रहे थे. बच्चों को देखते विधि की ममता उमड़ने लगी. जौन की पैनी नजरों से यह बात छिपी नहीं. जौन ने पूछ ही लिया, ‘‘विधि, हमारा बच्चा चाहिए…? हो सकता है. मैं ने पता कर लिया है. पूरे 9 महीने डाक्टर की निगरानी में रह कर. मैं तैयार हूं.’’

‘‘नहींनहीं, हमारे हैं तो सही, वो 3, और उन के बच्चे. मैं ने तो जीवन के सभी अनुभवों को भोगा है. मां बन कर भी, अब नानीदादी का सुख भोग रही हूं,’’ विधि ने हंसतेहंसते कहा. ‘‘मैं तो समझा था कि तुम्हें मेरी निशानी चाहिए?’’ जौन ने विधि को छेड़ते हुए कहा, ‘‘ठीक है, अगर बच्चा नहीं तो एक सुझाव देता हूं. बच्चों से कहेंगे मेरे नाम का एक (लाल गुलाब) इंग्लिश रोज और तुम्हारे नाम का (पीला गुलाब) इंडियन समर हमारे गार्डन में साथसाथ लगा दें. फिर हम दोनों सदा एकदूसरे को प्यार से देखते रहेंगे.’’ इतना कह कर जौन ने प्यार से उस के गाल पर चुंबन दे दिया.

विधि भी होंठों पर मुसकान, आंखों में मोती जैसे खुशी के आंसू, और प्यार की पूरी कशिश लिए जौन के आगोश में आ गई. जौन विधि की छोटी से छोटी जरूरतों का ध्यान रखता. धीरेधीरे विधि के पूरे जीवन को उस ने अपने प्यार के आंचल से ढक लिया. सामाजिक बैठकों में उसे अदब और शिष्टाचार से संबोधित करता. उसे जीजी करते उस की जबान न थकती. कुछ ही वर्षों में जौन ने उसे आधी दुनिया की सैर करा दी थी. अब विधि के जीवन में सुख ही सुख थे. हंसीखुशी 10 साल बीत गए. इधर, कई महीनों से जौन सुस्त था. विधि को भीतर ही भीतर चिंता होने लगी, सोचने लगी, ‘कहां गई इस की चंचलता, चपलता, यह कभी टिक कर न बैठने वाला, यहांवहां चुपचाप क्यों बैठा रहता है? डाक्टर के पास जाने को कहो तो टालते हुए कहता है, ‘‘मेरा शरीर है, मैं जानता हूं क्या करना है.’’ भीतर से वह खुद भी चिंतित था. एक दिन बिना बताए ही वह डाक्टर के पास गया. कई टैस्ट हुए. डाक्टर ने जो बताया, उसे उस का मन मानने को तैयार नहीं था. वह जीना चाहता था. उस ने डाक्टर से कहा, ‘‘वह नहीं चाहता कि उस की यह बीमारी उस के और उस की पत्नी की खुशी में आड़े आए. समय कम है, मैं अब अपनी पत्नी के लिए वह सबकुछ करना चाहता हूं, जो अभी तक नहीं कर पाया. मैं नहीं चाहता मेरे परिवार को मेरी बीमारी का पता चले. समय आने पर मैं खुद ही उन्हें बता दूंगा.’’

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अचानक एक दिन जौन वर्ल्ड क्रूज के टिकट विधि के हाथ में थमाते बोला, ‘‘यह लो तुम्हारा शादी की 10वीं वर्षगांठ का तोहफा.’’ उस की जीहुजूरी ही खत्म नहीं होती थी. विधि का जीवन उस ने उत्सव सा बना दिया था. वर्ल्ड क्रूज से लौटने के बाद दोनों ने शादी की 10वीं वर्षगांठ बड़ी धूमधाम से मनाई. घर की रजिस्ट्री के कागज और एफडीज उस ने विधि के नाम करवा कर उसे तोहफे में दे दिए. उस रात वह बहुत बेचैन था. उसे बारबार उलटी हो रही थी और चक्कर आते रहे. जल्दी से उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां उसे भरती कर लिया गया. जौन की दशा दिनबदिन बिगड़ती गई. डाक्टर ने बताया, ‘‘उस का कैंसर फैल चुका है. कुछ ही समय की बात है.’’

‘‘कैंसर…?’’ कैंसर शब्द सुन कर सभी निशब्द थे. ‘‘तुम्हारे डैड, जाने से पहले, तुम्हारी मां को उम्रभर की खुशियां देना चाहते थे. तुम्हें बताने के लिए मना किया था,’’ डाक्टर ने बताया. बच्चे तो घर चले गए. विधि नाराज सी बैठी रही. जौन ने उस का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से समझाया, ‘‘जो समय मेरे पास रह गया था, मैं उसे बरबाद नहीं करना चाहता था, भोगना चाहता था तुम्हारे साथ. तुम्हारे आने से पहले मैं जीवन बिता रहा था. तुम ने जीना सिखा दिया है. अब मैं जिंदगी से रिश्ता चैन से तोड़ सकता हूं. जाना तो एक दिन सभी को है.’’ एक वर्ष तक इलाज चलता रहा. कैंसर इतना फैल चुका था कि अब कोई कुछ नहीं कर सकता था. अपनी शादी की 11वीं वर्षगांठ से पहले ही जौन चल बसा. अंतिम संस्कार के बाद उस के बेटे ने जौन की इच्छानुसार उस की राख को गार्डन में बिखरा दिया. एक इंग्लिश रोज और एक इंडियन समर (पीला गुलाब) साथसाथ लगा दिए. उन्हें देखते ही विधि को जौन की बात याद आई, ‘कम से कम तुम्हें हर वक्त देखता तो रहूंगा?’ इस सदमे को सहना कठिन था. विधि को लगा मानो किसी ने उस के शरीर के 2 टुकड़े कर दिए हों. एक बार वह फिर अकेली हो गई. एक दिन उस के अंतकरण से आवाज आई, ‘उठ विधि, संभाल खुद को, तेरे पास जौन का प्यार है, स्मृतियां हैं. वह तुझे थोड़े समय में जहानभर की खुशियां दे गया है.’ धीरेधीरे वह संभलने लगी. जौन के बच्चों के सहयोग और प्यार ने उसे फिर खड़ा कर दिया. कालेज में उसे नौकरी भी मिल गई. बाकी समय में वह गार्डन की देखभाल करती. इंग्लिश रोज और इंडियन समर की कटाईछंटाई करने की उस की हिम्मत न पड़ती. उस के लिए माली को बुला लेती. गार्डन जौन की निशानी था. एक दिन भी ऐसा न जाता, विधि अपने गार्डन को न निहारती, पौधों को न सहलाती. अकसर उन से बातें करती. बर्फ पड़े, कोहरा पड़े या फिर कड़कती सर्दी, वह अपने फ्रंट डोर से जौन के लगाए पौधों को निहारती रहती. उदासी में इंग्लिश रोज से शिकवेशिकायतें भी करती, ‘खुद तो अपने लगाए परिवार में लहलहा रहे हो और मैं? नहीं, नहीं, मैं शिकायत नहीं कर रही. मुझे याद है आप ने ही कहा था, ‘यह मेरा परिवार है डार्लिंग. मुझे इन से अलग मत करना.’

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उस दिन सोचतेसोचते अंधेरा सा होने लगा. उस ने घड़ी देखी, अभी शाम के 4 ही बजे थे. मरियल सी धूप भी चोरीचोरी दीवारों से खिसकती जा रही थी. वह जानती थी यह गरमी के जाने और पतझड़ के आने का संदेशा था. वह आंखें मूंद कर घास पर बिछे रंगबिरंगों पत्तों की कुरमुराहट का आनंद ले रही थी. अचानक तेज हवा के झरोखे से एक सूखा पत्ता उलटतापलटता उस के आंचल में आ अटका. पलभर को उसे लगा, कोई उसे छू कर कह रहा हो… ‘डार्लिंग, उदास क्यों होती हो, मैं यही हूं तुम्हारे चारों ओर, देखो वहीं हूं, जहां फूल खिलते हैं…क्यों खिलते हैं? यह मैं नहीं जानता. बस, इतना जरूर जानता हूं, फूल खिलता है, झड़ जाता है. क्यों? यह कोई नहीं जानता. बस, इतना जानता हूं इंग्लिश रोज जिस के लिए खिलता है उसी के लिए मर जाता है. खिले फूल की सार्थकता और मरे फूल की व्यथा एक को ही अर्पित है.’

उस दिन वह झड़ते फूलों को तब तक निहारती रही जब तक अंधेरे के कारण उसे दिखाई देना न बंद हो गया. हवा के झोंके से उसे लगा, मानो जौन पल्लू पकड़ कर कह रहा हो, ‘आई लव यू माई इंडियन समर.’ ‘‘मी टू, माई इंग्लिश रोज. तुम और तुम्हारा शरारतीपन अभी तक गया नहीं.’’ उस ने मुसकरा कर कहा.

इंग्लिश रोज: क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

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बहुत देर कर दी: भाग 4- हानिया की दीवानी कोन थी

रात को गजाला हानिया के पास आई और उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अली को पसंद करती है. उस से उस की अच्छी अंडरस्टैंडिंग है, इसलिए अली के रिश्ते को मंजूरी दे दी जाए. अब हानिया की समझ में आया, इसी वजह से उस ने अमान को ‘नहीं’ कह दिया था. रूमी उस की दोस्त है. उस की अली से मुलाकात हुई होगी. दोनों एकदूसरे को पसंद करते होंगे. पर यह बात वह सलमान को बता कर बेटी को नीचा नहीं दिखाना चाहती थी. उस ने और जीशान ने अली के खानदान, उस के रखरखाव की इतनी तारीफ की कि आधेअधूरे मन से सलमान को अली के रिश्ते के लिए हां कहना पड़ा.

शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. सलमान खूब धूमधाम से शादी करना चाहता था. हानिया ने भी कपड़ेजेवर सभीकुछ बहुत कीमती व अच्छा चुना. ताकि अब उस पर कोई इलजाम न आए. सलमान सब देख कर खुश तो बहुत हुआ पर मुंह से तारीफ न की. लेकिन इतना जरूर कहा, ‘‘मैं तो अमान को बेटी देना चाहता था, खूब रईस खानदान था. मेरी बेटी ऐश करती. सब से बड़ी बात इकलौता बेटा था. सबकुछ गजाला का ही होता. पर अपनीअपनी सोच है. ठीक है अली डाक्टर है, इसलिए उसे बेटी दे दी. आज भी तुम उसे अपनी बेटी न समझ सकीं. इतने दौलतमंद घराने को छोड़ कर डाक्टर के यहां बेटी ब्याह दी.’’

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हानिया को लगा, उसे किसी ने शोलों में धकेल दिया हो. सारी उम्र की मेहनत व कुरबानी सब बेकार गई. उस ने बेबस आंखों से सलमान को देखा और सिर झुका लिया, कुछ कह कर वह बात बढ़ाना नहीं चाहती थी. जीशान भी वहीं था. वह गुस्से से होंठ काटने लगा. पर मां का खयाल कर के चुप रहा. आज तक हानिया अनुशा की जगह न ले सकी थी. मौत के 17-18 साल बाद भी अनुशा उस के दिल पर राज कर रही थी. शादी खूब अच्छे से हो गई. सभी रिश्तेदारों, मेहमानों ने खूब तारीफ की. हर किसी की जबान पर एक ही बात थी, ‘मां हो तो हानिया जैसी.’ इतनी तारीफें भी हानिया के होंठों पर हंसी न ला सकीं. एक रोबोट की तरह वह सारे काम निबटाती रही, मुसकरा कर लोगों से मिलती रही. विदाई से पहले उसे गजाला के पास बैठने का वक्त मिला. जैसे ही वह मां के गले लगी, बिलखबिलख कर रो पड़ी और दोनों हाथ जोड़ कर गजाला कहने लगी, ‘‘अम्मी, मुझे माफ कर दीजिए, आप ने मेरे लिए जो किया वह सगी मां भी नहीं कर सकती. आप ने मेरे लिए कितने उलाहने, कितने ताने, कितनी बातें सहीं. मेरी वजह से आप की जिंदगी एक अजाब बन गई. सिर्फ मेरी वजह से आप ने जीशान को होस्टल भेज दिया, अपनी ममता का गला घोंट दिया. अम्मी, मैं किसकिस बात के लिए आप से माफी मांगूं? मेरी अली से शादी पर भी कैसेकैसे इलजाम पापा ने आप पर लगाए. आप तो पापा की मरजी के अनुसार अमान से ही मेरी शादी पर राजी थीं. पर मेरे कहने पर मेरी पसंद पर आप को अपनी राय बदलनी पड़ी. और मेरा दिल रखने के लिए आप ने अली का नाम लिया. पापा आप से नाराज भी हुए पर मेरी खातिर आप अपनी बात पर अड़ी रहीं. अम्मी, मैं कैसे इतने एहसान उतार पाऊंगी? आप ने सगी मां से बढ़ कर मेरे लिए किया है.’’ एक बार फिर वह सिसक उठी. हानिया उसे चुप कराने लगी.

सलमान जो बेटी से मिलने कमरे में आ रहा था, बेटी की आवाज, ‘‘अम्मी, मुझे माफ कर दो…’’ सुन कर बाहर ही रुक गया. बेटी के मुंह से हकीकत और मां की तारीफ सुन कर जैसे वह शर्म से पानीपानी हो रहा था. उस ने हानिया के साथ क्याक्या न जुल्म किए, कितना अपमान किया, कैसेकैसे इलजाम न लगाए पर वह खामोश, सब सुनती रही, सहती रही. सलमान बेटी के मुंह से अली के बारे में सुन कर बहुत शर्मिंदा हुआ. इस के लिए भी उस ने हानिया को दोष दिया था. सच में हानिया ने सलमान और गजाला के लिए अपनी परवा न की. घर का माहौल न बिगड़े, उस ने मासूम बच्चे को होस्टल भेज दिया. कैसी अंधी मुहब्बत थी सलमान की अनुशा और गजाला के लिए कि वह जीतीजागती चाहने वाली बीवी की मुहब्बत पैरों तले रौंदता रहा और मरी हुई बीवी का दम भरता रहा. आज उसे एहसास हो रहा था, हानिया उस के लिए कितनी जरूरी है. कितनी अच्छी तरह उस ने उस की गृहस्थी चलाई. दिल में हानिया की मुहब्बत तो सिर उभार रही थी, चाहत तो कब से पनप रही थी पर वह मानने को राजी न था. अपनी गलती, अपने जुल्म, अपनी लापरवाही पर उसे बड़ी शर्मिंदगी हो रही थी. उस ने इरादा कर लिया कि वह जल्द ही हानिया से अपनी गलतियों की माफी मांग लेगा. उसे उस का सही मुकाम व इज्जत देगा. जो तकलीफें उस ने उठाई हैं उतने ही सुख उसे देगा.

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हानिया उसी वक्त गजाला को समझाती हुई दरवाजे से बाहर ला रही थी. सलमान ने आगे बढ़ कर बेटी को गले लगाया. गजाला बाप से मिल कर फूटफूट कर रोई. सलमान भी रो पड़े, दिल भारी हो गया. विदाई के बाद घर में बेहद सन्नाटा हो गया. एक अजीब सी उदासी पसर गई. मंजूर और फैमिली दूसरे दिन जाने वाले थे. हानिया घर समेट रही थी, पता नहीं कब सोई. दूसरे दिन सुबह सलमान की आंख देर से खुली. नाश्ते की टेबल पर सब उन का इंतजार कर रहे थे. नाश्ता कर के सब बातें करते रहे. मंजूर वगैरा अपनी तैयारी करने के लिए उठ गए. सलमान उठ कर अपने कमरे में आया. कमरा हमेशा की तरह साफसुथरा महकता हुआ मिला. उस का दिल खुश हो गया. उसे याद आया, ‘हानिया कितनी ही थकी हुई हो, कितनी ही देर से सोई हो पर सवेरे कमरा इसी तरह चमकतादमकता मिलता था.’ उस ने सोचा कि आज वह हानिया का खूब शुक्रिया अदा करेगा. तारीफ कर के उस का जी खुश कर देगा.

हानिया उसी वक्त सूटकेस खींचती स्टोर से बाहर निकली और सलमान के सामने खड़ी हो गई. उस की आंखों में निश्चय की चमक और विश्वास था. उस ने धीरेधीरे बात कहना शुरू किया, ‘‘सलमान, आज आप से मुझे जरूरी बात करनी है. आप ने शादी की पहली रात ही मुझे बता दिया था कि आप सिर्फ गजाला के लिए मुझे ब्याह कर लाए हैं. उस के बाद भी कभी आप ने मुझे गजाला की मां नहीं समझा. शक और वहम आप को भरमाते रहे. आप ने कभी भी मुझे बीवी की इज्जत और मुहब्बत नहीं दी. ‘‘अब आप की बेटी इस घर से विदा हो गई है. मेरी जिम्मेदारी खत्म हो गई. अब आप को और आप के घर को मेरी जरूरत नहीं है. मैं अपनी अम्मी के साथ जा रही हूं. इतने अरसे तक मैं ने अपने बेटे को खुद से दूर रखा. उसे मां की मुहब्बत से वंचित रखा. अब मैं उस के पास रह कर उस का पूरा हक अदा करूंगी. मेरा उस के प्रति भी कोई फर्ज है जो मैं पूरा करना चाहती हूं. उस के हिस्से की मुहब्बत उसे दूंगी. आप अब मुझे इजाजत दीजिए.’’ सलमान को लगा जैसे किसी ने उस के पांवों के नीचे से जमीन खींच ली हो. वह अब हानिया के बिना जिंदगी गुजारने की सोच भी नहीं सकता था. वह जल्दी से बोल उठा, ‘‘हानिया, मेरी बात सुनो, मैं अपनी गलतियों पर शर्मिंदा हूं. मैं मानता हूं मैं ने तुम्हारे साथ बहुत ज्यादती की है. पर मुझे इस तरह छोड़ कर न जाओ. मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है.’’

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हानिया ने अटल लहजे में जवाब दिया, ‘‘जब मुझे आप की जरूरत थी तब आप ने साथ न दिया. अब मुझे आदत हो चुकी है. मैं ने फैसला कर लिया है, मैं जीशान के पास रहूंगी. मैं जा रही हूं. अब मुझे आप की कोई दलील रोक नहीं सकेगी.’’ यह कह कर, सूटकेस ले कर वह कमरे से बाहर निकल गई. बाहर मंजूर, जीशान सभी तैयार खड़े थे. वह उन लोगों के साथ गाड़ी में बैठ गई. सलमान देखता रह गया.

बहुत देर कर दी: भाग 3- हानिया की दीवानी कोन थी

वह मंजूर के साथ बैठ कर बातें कर रही थी. साढ़े 7 बजे के करीब सलमान औफिस से आ गया. चाय वगैरा पी कर उस ने गजाला के बारे में पूछा. जैसे ही उसे पता चला, गजाला अपनी दोस्त के पेरैंट्स के साथ फंक्शन में गई है और अब तक नहीं आई है, उस का पारा चढ़ गया. ‘‘हानिया, तुम्हें गजाला की जरा भी फिक्र नहीं है. साल में 1-2 बार ही उस के स्कूल जाना पड़ता है. तुम वह भी नहीं करतीं. आखिर, तुम्हें जाने में क्या तकलीफ थी?’’ हानिया ने उसे जीशान की तबीयत के बारे में बताया कि उसे ऐडमिट करना पड़ा था.’’ जवाब मिला, ‘‘उसे अम्मा देख लेतीं. तुम्हें उसे अकेले नहीं भेजना था. 8 बज रहे हैं, अभी तक पता नहीं है उन सब का?’’

उसी वक्त कार रुकने की आवाज आई. दोनों लपक कर गेट पर पहुंचे. गजाला गाड़ी से उतर रही थी. उस के हाथ पर पट्टी बंधी थी. अंकलआंटी को भी थोड़ी चोट लगी थी. उन लोगों ने बताया कि वे लोग फंक्शन के बाद स्कूल से लौट रहे थे. ट्रैफिक बहुत था. इसी बीच किसी जीप ने उन की गाड़ी को टक्कर मारी और तेजी से निकल गई. वह तो गनीमत रही कि किसी को ज्यादा चोट नहीं आई. गजाला के हाथ पर चोट लगी, हलका सा हेयरलाइन फ्रैक्चर है. वे लोग डाक्टर को दिखा कर आए थे. वे लोग चले गए. हानिया ने गजाला को दूध और दवा दे कर सुला दिया. सलमान का गुस्सा किसी तरह कम नहीं हो रहा था. एक हंगामा खड़ा कर दिया. हानिया की इतने सालों की मुहब्बत, मेहनत सब भुला दी.

‘‘मुझे मालूम था मेरी बच्ची इतनी तकलीफ में सिर्फ तुम्हारी वजह से है. तुम्हें अपने बेटे की पड़ी थी. दिखा दिया न तुम ने सौतेलापन? उस का खयाल होता तो तुम कभी उसे अकेली न भेजतीं.’’

इतनी शिकायतें, इतनी बदगुमानियां जैसे किसी ने उसे आसमान से जमीन पर पटक दिया हो. ताई ने सलमान को रोकासमझाया. मंजूर ने कहा, ‘‘भाईजान, ये सब तो होता रहता है. बच्चे गिरपड़ कर ही बड़े होते हैं.’’ जब तक गजाला के हाथ में पट्टी रही, सलमान का मूड औफ ही रहा. यह तो अच्छा हुआ कि हाथ जल्दी ठीक हो गया और कोई नुक्स न रहा.

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दिनरात का पहिया घूमता रहा. हानिया हद से ज्यादा गजाला का खयाल रखती. इस चक्कर में जीशान उपेक्षित भी हो जाता पर वह भी शायद बाप का मिजाज और मां की मजबूरी समझ गया था. कभी कोई शिकायत न करता. जीशान भी स्कूल जाता. दोनों के स्कूल अलगअलग थे पर टाइम एक ही था. सुबह के वक्त दोनों को तैयार करना, लंचबौक्स साथ देना, एक हड़बड़ी सी मच जाती. उस दिन भी वह इन्हीं कामों में लगी थी कि मंजूर उस से मिलने आया. वह वापस पुणे जा रहा था. वह कई दिनों से अम्मा के पास भी न जा सकी थी. बच्चों को नाश्ता दे कर वह वहीं बैठ कर बातें करने लगी. उसी वक्त जीशान दूध का गिलास उठा रहा था कि वह उस के हाथ से फिसल गया. गजाला के हाथ पर कुछ छींटे पड़े हालांकि दूध ज्यादा गरम न था पर सलमान फिर शुरू हो गए. गजाला कहती रही कि कुछ खास नहीं जला पर वह उस पर जरा सी ज्यादती बरदाश्त नहीं कर पाता था. एक लंबे भाषण और इलजाम के बाद हंगामा शांत हुआ.

सलमान के जाने के बाद मंजूर ने बहन को समझाया, ‘‘सलमान भाई को लगता है गजाला उन की महबूबा अनुशा की निशानी है. तुम उस से जरा भी ज्यादती न करो. तुम तो उसे बहुत प्यार करती हो पर उन्हें लगता है तुम्हारा ध्यान जीशान में है. इसलिए ऐसी घटनाएं घटती हैं. मुझे लगता है कि समस्या जीशान की वजह से ही उठती है. मेरी जौब पुणे में है. वहां बहुत अच्छेअच्छे स्कूल हैं. मैं नए सैशन में उस का ऐडमिशन करा देता हूं. पढ़ाई भी अच्छी होगी. जीशान यहां एक कौंपलैक्स में जी रहा है. अगर यह कौंपलैक्स बढ़ गया तो वह बाप व बहन से नफरत करने लग जाएगा. बेहतर है आप उसे पुणे भेज दो. मैं उस की पूरी देखरेख करूंगा और औरंगाबाद से पुणे ज्यादा दूर भी नहीं है.’’

हानिया को उस की बात समझ में आ गई. उस ने रजामंदी दे दी. वह धीरेधीरे जीशान को दिमागीतौर पर तैयार करने लगी. उस ने यह बात सलमान और ताई से कही. ताई तुरंत विरोध करने लगीं. सलमान ने कहा, ‘‘जैसा ठीक समझो, वह करो. मुझे कोई एतराज नहीं है.’’ उस ने समझाबुझा कर ताई व गजाला को भी राजी कर लिया. नए सैशन में जीशान मंजूर के साथ पुणे चला गया. घर में जैसे सन्नाटा छा गया. हानिया के दिल का एक कोना एकदम वीरान हो गया. 8 साल का मासूम बच्चा मां से जुदा हो गया. यह एक मां की कड़ी परीक्षा थी. शादी को खुशहाल बनाने की उसे यह कीमत चुकानी पड़ी. हालात पहले से बेहतर हो गए. सलमान का बेवजह का गुस्सा खत्म हो गया. अब हानिया पूरी तरह से गजाला की परवरिश में लग गई. गजाला बड़ी हो रही थी. उस पर ज्यादा ध्यान देना भी जरूरी था. जीशान छुट्टियों में आता रहता. उस का दिल होस्टल में लग गया था. पर मां की, घर की कमी तो महसूस होती ही थी. जिंदगी गुजरती रही. ताई कुछ दिन बीमार रहीं, फिर चल बसीं. हानिया को लगा, उस के सिर से मुहब्बत का साया हट गया. उन्होंने उसे हमेशा मां से बढ़ कर प्यार दिया था. वे उस के दुख को खूब समझती थीं.

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मंजूर की शादी थी. वह हफ्तेभर के लिए मायके गई. खूब अच्छी लड़की मिली, शादी भी अच्छे से हो गई. शादी के बाद हानिया के मम्मीपापा भी पुणे चले गए. गजाला बीए फाइनल में आ गई. जीशान ने 12वीं मैरिट में पास किया. उस का पुणे मैडिकल कालेज में ऐडमिशन हो गया. जीशान नानानानी के पास रह कर मैडिकल की पढ़ाई करने लगा. उस दिन सलमान बहुत खुशीखुशी घर आया और बताया कि उन का दोस्त जो अमेरिका में था, अब यहां आ कर सैट हो गया है. हमीर ने अपना बिजनैस शुरू किया है. उस का बेटा अमान एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रहा है. उन का घर मुंबई में है, वहीं सब साथ रह रहे हैं. अमान बहुत स्मार्ट और समझदार है. हमीर ने उस का रिश्ता गजाला के लिए दिया है. यह फोटो भी भेजा है. तुम फोटो दिखा कर गजाला से उस की मरजी मालूम कर लो ताकि बात तय की जा सके.

हानिया ने गजाला को फोटो दिखाया और उस की मरजी पूछी तो वह एकदम चुप हो गई, फिर बोली, ‘‘अम्मी, आप पापा को बोल दो कि मैं इतनी जल्दी शादी नहीं करना चाहती.’’ सलमान ने सुना तो गुस्से में आ गया, कहने लगा, ‘‘इतना अच्छा रिश्ता है, बिजनैस क्लास फैमिली है, गजाला वहां राज करेगी. पता नहीं क्यों आजकल की लड़कियां बस अपनी मरजी चलाना चाहती हैं. मैं खुद बात करूंगा.’’

सलमान की गजाला से बात करने की नौबत ही नहीं आई, उस के पहले गजाला की सहेली रूमी के मम्मीपापा अपने डाक्टर बेटे का रिश्ता ले कर आ गए. रूमी के पापा शहर के माने हुए सर्जन थे. उन का खुद का अस्पताल था. उन का बेटा अली भी उन्हीं के साथ था. काफी अच्छा खानदान था. दूसरा बेटा भी मैडिकल में था. एक बेटी रूमी थी जो गजाला के साथ थी. अली देखने में काफी स्मार्ट और मिलनसार था. सभी को खूब पसंद आया. जीशान तो अली के ही पक्ष में था क्योंकि वह खुद भी मैडिकल में था. सलमान खामोश हो गया. दोनों रिश्ते अच्छे थे पर सलामन का इरादा अपने दोस्त के बेटे अमान के लिए था. हानिया ने सोच कर जवाब देने को कह दिया.

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बहुत देर कर दी: भाग 2- हानिया की दीवानी कोन थी

सलमान ने मजबूरी के आगे सिर झुका दिया. हानिया अब सलमान की  दुलहन बन कर ताई के घर आ गई. पहली ही रात सलमान ने उसे उस की हैसियत समझा दी, ‘‘देखो हानिया, यह शादी मैं ने सिर्फ गजाला की वजह से की है, उसी के लिए तुम्हें लाया हूं. अनुशा को भूल पाना मेरे लिए मुश्किल है. उस की चाहत किसी से बांटना भी नहीं चाहता. मुझ से तुम उम्मीदें मत लगा लेना. और हां, यह बात याद रखना, गजाला में मेरी जान बसती है. उस की कोई तकलीफ मुझ से बरदाश्त न होगी. इस से अगर तुम ने कोई ज्यादती की तो मैं बरदाश्त नहीं करूंगा.’’ अरमानभरी रात सलमान की हिदायतों में गुजर गई. हानिया ने आंसूभरी आंखों से उस इंसान को देखा जो उस का हमसफर था. शायद, वह यह जानता भी न होगा कि हानिया के दिल में सलमान की मुहब्बत की कोंपल नवजवानी की सोंधी मिट्टी में जम चुकी थी पर अपनी कमसूरती का एहसास कर के उस ने अपने जज्बात अपने दिल में ही घोंट लिए थे. जबां पर ताला लगा लिया था. पर उस की मुहब्बत की आंच धीमेधीमे उस के दिल को तपा कर कुंदन बनाती रही. हानिया की अनुशा व गजाला से चाहत सलमान की मुहब्बत से ही जुड़ी थी. जो सलमान को प्यारा वह उसे भी प्यारा था. काश, अपनी मुहब्बत वह सलमान पर जाहिर कर सकती. उसे जो कुछ भी मिला है उसी में वह खुश रहने की काशिश करती.

जिंदगी कब दिल और जज्बात देखती है, वह तो अपनी रफ्तार से गुजरती है. हानिया के लिए कुछ नया न था, सिर्फ रिश्ता बदल गया था. हानिया ने सलमान से कोई उम्मीद नहीं जोड़ी थी. वह जानती थी, अनुशा उस के दिल पर राज करती है. उसे अपनी खिदमत, अपनी चाहत से ही सलमान के दिल में थोड़ी सी जगह बनानी थी जो कि एक मुश्किल काम था. कम से कम घर में उस के लिए रोशनी के मीनार थे- ताई की मुहब्बत और गजाला का मासूम प्यार. इतनी रोशनी जिंदगी गुजारने के लिए काफी थी. सलमान औफिस से आते, कुछ देर ताई के पास बैठते, कुछ वक्त गजाला के साथ बिताता, कुछ आम सवाल हानिया से पूछता. उस की हर जरूरत व ख्वाहिश का खयाल रखता पर मुहब्बत के मामले में वह बेहिस पत्थर बना रहा. हानिया ने भी हालात से समझौता कर लिया, उस ने जानतेबूझते यह सौदा किया, फिर गिला कैसा?

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हानिया की तबीयत कुछ दिनों से ठीक नहीं थी. डाक्टर को दिखाने पर खुशखबरी मिली कि वह मां बनने वाली है. ताई बेहद खुश हुईं. उसी वक्त मिठाई मंगवाई. उस के अम्मीअब्बा भी आए. अच्छाखासा खुशी का माहौल बन गया. बस, सलमान जरा चुपचुप सा था. रात को हानिया ने हिम्मत कर के पूछा, ‘‘क्या आप को बच्चे की खबर से खुशी नहीं हुई?’’ वह बोला, ‘‘खुशी, नाखुशी का क्या सवाल? अभी शादी को 6 महीने हुए, जरा जल्दी नहीं हो गया? पर तुम्हें इस बात का बहुत खयाल रखना होगा कि इस बच्चे की देखभाल में गजाला को न भूल जाओ.’’

हानिया का दिल कट कर रह गया, आंसू बहाने का कोई मतलब न था. उसे अपने व्यवहार से यह साबित करना था कि वह सगी मां से बढ़ कर है. बेटे के जन्म से घर में एक रौनक सी आ गई. ताई तो फूले न समातीं. गजाला को भी भाई को देख कर बहुत खुशी हुई. पर हानिया के लिए एक नया इम्तिहान शुरू हो गया. गजाला का पूरा खयाल रखते हुए बेटे जीशान को संभालना था. गजाला मां के मरने के बाद से थोड़ी जिद्दी व चिड़चिड़ी हो गई थी. उसे बड़ी होशियारी और प्यार से नौर्मल करना था. कहीं उस के दिल में यह खयाल न आ जाए कि मां, भाई को ज्यादा चाहती है. शायद नन्हा जीशान मां की मजबूरी जान गया था. वह थोड़े में ही सब्र करने लगा. उस का ज्यादा वक्त दादी के पास रखे झूले में ही गुजरता. उस दिन हानिया गजाला को एक नया खिलौना चलाना सिखा रही थी कि जीशान के रोने की आवाज आई. पहले तो वह बैठी रही पर रोना बढ़ गया तो वह उठ कर जीशान को देखने चली गई. सलमान बैठे न्यूजपेपर पढ़ रहे थे. अभी हानिया को बच्चे को संभालते 10 मिनट ही हुए थे कि गजाला के चीखचीख कर रोने की आवाज आई. वह घबरा कर उस के पास पहुंची. गजाला ने खिलौने का स्ंिप्रग मुंह के पास रख कर खींच दिया था, होंठ पर जरा सी चोट लग गई थी. सलमान ने एक हंगामा खड़ा कर दिया.

थोड़ी देर में ही हानिया ने गजाला को चुप करा लिया. उस के फूले होंठ पर शहद लगा दिया. पर सलमान की शिकायतें एक घंटा चलती रहीं, ‘‘तुम गजाला को छोड़ कर कैसे चली गईं. उस के हाथ से खिलौना ले कर जाना था. बेटे का रोना सुनते ही एकदम बेचैन हो जाती हो. अगर ज्यादा जोर से लग जाती तो? सच है अपना, अपना ही होता है.’’ वह सब खामोशी से सुनती रही. लेकिन ताई ने सलमान को डांटा, ‘‘इतनी चाहने वाली मां पर तुम इलजाम लगा रहे हो. वह अपने बच्चे से ज्यादा गजाला का खयाल रखती है. पर तुम्हारे दिमाग में जो वहम पल रहे हैं वे कभी तुम्हें सुकून से नहीं रहने देंगे, समझे.’’

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हानिया अब और सावधान हो गई. घर के कामकाज के साथ 2 छोटे बच्चों को संभालना. वह फिरकनी की तरह फिरती. खाना भी खुद पकाती क्योंकि सलमान को बूआ के हाथ का खाना पसंद न था. वह हर मुमकिन कोशिश करती कि कुछ ऐसा न हो जाए कि सलमान को लगे कि बेटी की उपेक्षा हो रही है. जीशान भी सलमान का खून था पर उस के दिल में जो चाहत गजाला के लिए थी, जीशान से वैसी मुहब्बत न थी. जीशान की हर जरूरत पूरी की जाती, बहुत खयाल रखा जाता. वह हर चीज का हकदार था, पर गजाला सी चाहत का नहीं. हां, ताई गजाला की तरह जीशान पर भी जीजान से न्योछावर थीं. हानिया का जब जी भर आता, मांबाप के पास चली जाती. वहां दोनों को बेपनाह मुहब्बत मिलती. उम्र इसी तरह सरक रही थी. गजाला थर्ड स्टैंडर्ड में आ गई. उस के स्कूल में कोई फंक्शन था, जिस में पेरैंट्स को बुलाया गया था. सलमान तो अपनी व्यस्तता की वजह से जा नहीं सकता था. हानिया का जाने का पक्का इरादा था. अचानक जीशान के पेट में सख्त दर्द उठा और फिर उलटी व दस्त शुरू हो गए. हानिया को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. जीशान को इस हालत में छोड़ कर वह नहीं जा सकती थी. गजाला ने ही सुझाया, उस की दोस्त जो करीब में ही रहती है, वह उस की मम्मीडैडी के साथ चली जाएगी. हानिया की भी उन से अच्छी दोस्ती थी. उस ने उन्हें फोन कर दिया.

तभी मंजूर, उस का भाई, आ गया जो पुणे में कहीं जौब कर रहा था. भांजे की तबीयत खराब देखी तो बहन को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने जीशान को ऐडमिट कर लिया. हानिया मंजूर को वहां छोड़ कर घर आ गई. 4 बजे गजाला की दोस्त व उस के मम्मीपापा आ गए. वे लोग खुशीखुशी पूरी तसल्ली दे कर गजाला को साथ ले गए. 2 घंटे का प्रोग्राम था. शाम को 7 बज गए. अभी तक वे लोग नहीं आए थे. हानिया वैसे भी बहुत परेशान थी क्योंकि जीशान को पास ही के एक नर्सिंगहोम में ऐडमिट करना पड़ा था. जैसेजैसे वक्त बीतता जा रहा था, उस की चिंता बढ़ती जा रही थी. शुक्र हुआ मंजूर जीशान को ले कर घर आ गया. ग्लूकोज चढ़ाने के बाद उस की तबीयत काफी अच्छी थी.

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बहुत देर कर दी: भाग 1- हानिया की दीवानी कोन थी

सूरत ज्यादा अच्छी न हो और उम्र 30 पार कर जाए तो रिश्ते घर का दरवाजा भूल जाते हैं. कभी भूलेभटके कोई रिश्ता आ भी जाता है तो ऐसा होता है कि आप उसे कुबूल नहीं कर पाते, बहुत कमतर. आजकल हानिया इसी मुश्किल से गुजर रही थी. नाकनक्शा तो अच्छा था मगर रंग सांवला था. बड़ीबड़ी आंखें जिन में गजब की कशिश थी पर पता नहीं लड़के वालों की पहली मांग गोरा रंग ही क्यों होती है. नाकनक्शा कैसा भी हो पर रंग गोरा हो तो लड़की पसंद कर ली जाती है, भले लड़का काला हो. हानिया से छोटी बहन सानी, जिस का रंग गोरा था, की 3 साल पहले शादी हो गई थी. आज एक बच्चे की मां थी. हानिया 32 साल की हो रही थी पर कहीं कोई बात नहीं बन रही थी. न कोई ढंग का रिश्ता आ रहा था न कहीं बात चल रही थी. कभी किसी कम पढ़ेलिखे व कम पैसे वाले की बहनें देखने आ जातीं या कभी 40-45 साल के आदमी, जिन के औलाद न हुई हो या बीवी की मृत्यु हो चुकी हो, के बच्चे संभालने को रिश्ता आ जाता. हानिया के अम्मीअब्बा पढ़ेलिखे, सुलझे हुए थे. वे इस विचार के थे कि पढ़ीलिखी बेटी को गलत रिश्ते में झोंकने से अच्छा है वह कुंआरी  रहे.

हानिया ने फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर लिया था और उसी इंस्टिट्यूट में जौब कर रही थी. सब से अच्छी बात यह थी कि उसे इस बात का कोई कौम्प्लैक्स नहीं था कि उस से पहले छोटी बहन की शादी हो गई, बल्कि उस ने ही सानी का रिश्ता आने पर मांबाप को उस की शादी कर देने के लिए राजी किया था. उस ने उन्हें यह तल्ख हकीकत समझाई थी कि अच्छे रिश्ते बारबार नहीं आते. इस तरह उस से पहले सानी की शादी हो गई. हानिया के ताया और ताई उसे खूब प्यार करते थे. उन का एक ही बेटा था सलमान, बेटी की कमी हानिया से पूरी हो जाती थी. वह वक्त मिलने पर अकसर ही ताया के यहां चली जाती. उस के जाने से उस घर में रौनक आ जाती. उन का बेटा सलमान गंभीर स्वभाव का था. उस ने अपनी पसंद अनुशा से शादी की थी. अनुशा बहुत खूबसूरत थी. वह जितनी खूबसूरत थी उतनी ही स्वभाव की भी अच्छी थी, खूब हंसनेहंसाने वाली लड़की. हानिया से उस की खूब बनती थी. अच्छी दोस्ती के लिए अच्छी सोच का होना जरूरी था जो दोनों में खूब थी.

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अनुशा की 2 साल की बेटी गजाला, हानिया की दीवानी थी. जैसे ही हानिया वहां पहुंचती, जिंदगी खिलखिला उठती. अनुशा को नईनई चीजें पकाने का बहुत शौक था. दोनों मिल कर खूब एक्सपेरिमैंट करतीं. जिंदगी इसी तरह गुजर रही थी. बीचबीच में हानिया के रिश्ते आते रहते पर ऐसे न होते जिन्हें कुबूल किया जाता. किसी रिश्तेदार की शादी में शिरकत कर के तायाताई, अनुशा और गजाला लौट रहे थे कि कार का ऐक्सिडैंट हो गया. सलमान औफिस की जरूरी मीटिंग की वजह से शादी में नहीं जा सके थे. ताया और अनुशा मौके पर ही खत्म हो गए. ताई के पैर की हड्डी टूट गई. गजाला को थोड़ी खरोंचें आई थीं. सारे खानदान में कोहराम मच गया. एक हंसतामुसकराता घर पलभर में बरबाद हो गया. हानिया उस के अम्मीअब्बा और भाई मंजूर, ताया के गम में बराबर के शरीक थे. मरने वाले तो मर गए पर अपने पीछे बेबसी और परेशानी छोड़ गए. ताई अस्पताल में ऐडमिट थीं. पैर के औपरेशन के बाद रौड डाल दी गई.

वक्त का काम गुजरना है. बड़े से बड़ा जख्म भी समय के साथ भर जाता है. ताई लकड़ी के सहारे चलने लगी थीं. हानिया उस के मांबाप, भाई इतने दिनों से ताया के घर पर ही थे. अब अपने घर लौट गए. वैसे घर पास ही था. घर में काम करने वाली बूआ का काम भी बढ़ गया था. वह बड़ी ईमानदार और हमदर्द औरत थी. इस बुरे वक्त में वह पूरा साथ दे रही थी. पर गजाला को संभालना उस के बस की बात न थी. इसलिए हानिया इंस्टिट्यूट से आते वक्त उसे साथ ले कर अपने घर चली जाती और सलमान औफिस से वापसी पर उसे पिक कर लेता. ताई छुट्टी के दिन हानिया और उस के छोटे भाई मंजूर को अपने घर पर बुला लेतीं. 3-4 महीने यही रूटीन रहा. सब ठीकठाक चल रहा था.

समय ऐसा भी आया कि हानिया के लिए एक अच्छा रिश्ता आ गया. लड़का 35-36 साल का था. उस की बीवी की बच्चे की डिलीवरी में मौत हो गई थी और बच्चे वगैरा नहीं थे. दुबई में अच्छी पोस्ट पर काम कर रहा था. रिश्ता हानिया के पापा के दोस्त लाए थे. हर तरह की तसल्ली दी, रिश्ता सभी को पसंद आया. सब लोग यह खुशखबरी सुनाने ताई के पास गए. ताई ने रिश्ते के बारे में सुन कर मुबारकबाद दी. पर उन का चेहरा उतर गया. उन्होंने बड़ी नरमी से देवर से कहा, ‘‘भाई अजहर, रिश्ता तो बहुत अच्छा है पर हम लोग हानिया के बगैर बेआसरा हो जाएंगे. मैं हानिया को अपने से दूर नहीं कर सकती. आप बस 15-20 दिन रुक जाएं. मैं सलमान की मरजी मालूम करती हूं. मैं हानिया को अपनी बहू बनाना चाहती हूं. गजाला को मां और मुझे बेटी मिल जाएगी. धीरेधीरे सलमान भी ऐडजस्ट हो जाएगा. बस, थोड़े दिन रुक जाइए.’’ अजहर साहब को भाभी से बड़ी हमदर्दी थी, भतीजे व पोती का बड़ा खयाल था, इसलिए बात दिल को लगी. हानिया की अम्मी भी बेटी को दूर नहीं भेजना चाहती थीं. वे भी इसी पक्ष में थीं कि सलमान से शादी हो जाए, बेटी पास में रहेगी. सलमान में कोई कमी न थी. उस की उम्र भी 36-37 साल ही थी, देखाभाला था. पर जो रिश्ता हानिया के लिए आया था वह भी एक शादी कर चुका था. जहां तक हानिया की मरजी जानने का सवाल था, वह मांबाप की खुशी में खुश थी. मंजूर, जो हानिया से 7-8 साल छोटा था, उसे भी सलमान पसंद था.

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ताई ने जब सलमान से हानिया से शादी करने को कहा तो उस ने साफ इनकार कर दिया, ‘‘मैं अनुशा से बहुत मुहब्बत करता हूं. मैं उसे भूल नहीं सकता. मैं उस की जगह दूसरी लड़की ला कर उस की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकता. न मैं उस की जगह किसी को देना चाहता हूं.’’ ताई उस वक्त चुप हो गईं, क्या कहतीं. 4-5 दिन बाद गजाला को तेज बुखार आ गया. सलमान ने छुट्टी ली पर गजाला हानिया से ज्यादा अटैच्ड थी. सलमान से संभल ही नहीं रही थी, न कुछ खा रही थी, न दवा पी रही थी. एक ही दिन में सारा घर परेशान हो गया. 4 बजे हानिया आई. उस ने सब अच्छे से संभाल लिया. गजाला को चिकन सूप और दलिया खिलाया, दवा पिलाई. वह आराम से सो गई. उस ने 2 दिनों की छुट्टी ले ली. उस ने गजाला के ठीक होने तक सारी जिम्मेदारी उठा ली. तीसरे दिन वह ठीक हो गई. यह सब हानिया की मुहब्बत और देखभाल का कमाल था.

उस दिन छुट्टी थी, सलमान घर पर था. गजाला को बर्गर खाना था. बूआ को बनाना नहीं आता था. थकहार कर सलमान उसे हानिया के घर छोड़ आए. फिर ताई ने सलमान को जिंदगी की हकीकत समझाई, ‘‘बेटा, जब देखो तब तुम गजाला को हानिया के यहां छोड़ आते हो. बीमारी में भी वही उसे संभाल सकती है. अब उस के लिए दुबई से एक अच्छा रिश्ता आया है. जल्द ही वह शादी कर के दुबई चली जाएगी. फिर तुम क्या करोगे? मैं पैर व बीमारी से मजबूर हूं. बूआ घर का काम संभाल लेती है, यही बहुत है. गजाला को संभालना हमारे बस का नहीं है. मैं तुम्हें इसीलिए हानिया से शादी करने को कह रही हूं. घर की लड़की है, सबकुछ जानतीसमझती है और सब से बड़ी बात गजाला को बहुत प्यार करती है.’’

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इंग्लिश रोज: भाग 1- क्या सच्चा था विधि के लिए जौन का प्यार

वह आज भी वहीं खड़ी है. जैसे वक्त थम गया है. 10 वर्ष कैसे बीत जाते हैं…? वही गांव, वही शहर, वही लोग…यहां तक कि फूल और पत्तियां तक नहीं बदले. ट्यूलिप्स, सफेद डेजी, जरेनियम, लाल और पीले गुलाब सभी उस की तरफ ठीक वैसे ही देखते हैं जैसे उस की निगाह को पहचानते हों. चौश्चर काउंटी के एक छोटे से गांव नैनटविच तक सिमट कर रह गई उस की जिंदगी. अपनी आरामकुरसी पर बैठ वह उन फूलों का पूरा जीवन अपनी आंखों से जी लेती है. वसंत से पतझड़ तक पूरी यात्रा. हर ऋतु के साथ उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, कभी उदासी, कभी मुसकराहट. उदासी अपने प्यार को खोने की, मुसकराहट उस के साथ समय व्यतीत करने की. उसे पूरी तरह से यकीन हो गया था कि सभी के जीवन का लेखाजोखा प्रकृति के हाथ में ही है. समय के साथसाथ वह सब के जीवन की गुत्थियां सुलझाती जाती है. वह संतुष्ट थी. बेशक, प्रकृति ने उसे, क्वान्टिटी औफ लाइफ न दी हो किंतु क्वालिटी औफ लाइफ तो दी ही थी, जिस के हर लमहे का आनंद वह जीवनभर उठा सकेगी.

यह भी तो संयोग की ही बात थी, तलाक के बाद जब वह बुरे वक्त से निकल रही थी, उस की बड़ी बहन ने उसे छुट्टियों में लंदन बुला लिया था. उस की दुखदाई यादों से दूर नए वातावरण में, जहां उस का मन दूसरी ओर चला जाए. 2 महीने बाद लंदन से वापसी के वक्त हवाईजहाज में उस के साथ वाली कुरसी पर बैठे जौन से उस की मुलाकात हुई. बातोंबातों में जौन ने बताया कि रिटायरमैंट के बाद वे भारत घूमने जा रहे हैं. वहां उन का बचपन गुजरा था. उन के पिता ब्रिटिश आर्मी में थे. 10 वर्ष पहले उन की पत्नी का देहांत हो गया. तीनों बच्चे शादीशुदा हैं. अब उन के पास समय ही समय है. भारत से उन का आत्मीय संबंध है. मरने से पहले वे अपना जन्मस्थान देखना चाहते हैं, यह उन की हार्दिक इच्छा है. उन्होंने फिर उस से पूछा, ‘‘और तुम?’’

‘‘मैं भारत में ही रहती हूं. छुट्टियों में लंदन आई थी.’’

‘‘मैं भारत घूमना चाहता हूं. अगर किसी गाइड का प्रबंध हो जाए तो मैं आप का आभारी रहूंगा,’’ जौन ने निवेदन करते कहा.

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‘‘भाइयों से पूछ कर फोन कर दूंगी,’’ विधि ने आश्वासन दिया. बातोंबातों में 8 घंटे का सफर न जाने कैसे बीत गया. एकदूसरे से विदा लेते समय दोनों ने टैलीफोन नंबर का आदानप्रदान किया. दूसरे दिन अचानक जौन सीधे विधि के घर पहुंच गए. 6 फुट लंबी देह, कायदे से पहनी गई विदेशी वेशभूषा, काला ब्लेजर और दर्पण से चमकते जूते पहने अंगरेज को देख कर सभी चकित रह गए. विधि ने भाइयों से उस का परिचय करवाते कहा, ‘‘भैया, ये जौन हैं, जिन्हें भारत में घूमने के लिए गाइड चाहिए.’’

‘‘गाइड? गाइड तो कोई है नहीं ध्यान में.’’

‘‘विधि, तुम क्यों नहीं चल पड़ती?’’ जौन ने सुझाव दिया. प्रश्न बहुत कठिन था. विधि सोच में पड़ गई. इतने में विधि का छोटा भाई सन्नी बोला, ‘‘हांहां, दीदी, हर्ज की क्या बात है.’’

‘‘थैंक्यू सन्नी, वंडरफुल आइडिया. विधि से अधिक बुद्धिमान गाइड कहां मिल सकता है,’’ जौन ने कहा. 2 सप्ताह तक दक्षिण भारत के सभी पर्यटन स्थलों को देखने के बाद दोनों दिल्ली पहुंचे. उस के एक सप्ताह बाद जौन की वापसी थी. जाने से पहले तकरीबन रोज मुलाकात हो जाती. किसी कारणवश जौन की विधि से बात न हो पाती तो वह अधीर हो उठता. उस की बहुमुखी प्रतिभा पर जौन मरमिटा था. वह गुणवान, स्वाभिमानी, साहसी और खरा सोना थी. विधि भी जौन के रंगीले, सजीले, जिंदादिल व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई. उस की उम्र के बारे में सोच कर रह जाती. जौन 60 वर्ष पार कर चुका था. विधि ने अभी 35 वर्ष ही पूरे किए थे. लंदन लौटने से 2 दिन पहले, शाम को टहलतेटहलते भरे बाजार में घुटनों के बल बैठ कर जौन ने अपने मन की बात विधि से कह डाली, ‘‘विधि, जब से तुम से मिला हूं, मेरा चैन खो गया है. न जाने तुम में ऐसा कौन सा आकर्षण है कि मैं इस उम्र में भी बरबस तुम्हारी ओर खिंचा आया हूं.’’ इस के बाद जौन ने विधि की ओर अंगूठी बढ़ाते हुए प्रस्ताव रखा, ‘‘विधि, क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’

विधि निशब्द और स्तब्ध सी रह गई. यह तो उस ने कभी नहीं सोचा था. कहते हैं न, जो कभी खयालों में हमें छू कर भी नहीं गुजरता, वो, पल में सामने आ खड़ा होता है. कुछ पल ठहर कर विधि ने एक ही सांस में कह डाला, ‘‘नहींनहीं, यह नहीं हो सकता. हम एकदूसरे के बारे में जानते ही कितना हैं, और तुम जानते भी हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’ ‘‘हांहां, भली प्रकार से जानता हूं, क्या कह रहा हूं. तुम बताओ, बात क्या है? मैं तुम्हारे संग जीवन बिताना चाहता हूं.’’ विधि चुप रही.

जौन ने परिस्थिति को भांपते कहा, ‘‘यू टेक योर टाइम, कोई जल्दी नहीं है.’’ 2 दिनों बाद जौन तो चला गया किंतु उस के इस दुर्लभ प्रश्न से विधि दुविधा में थी. मन में उठते तरहतरह के सवालों से जूझती रही, ‘कब तक रहेगी भाईभाभियों की छत्रछाया में? तलाकशुदा की तख्ती के साथ क्या समाज तुझे चैन से जीने देगा? कौन होगा तेरे दुखसुख का साथी? क्या होगा तेरा अस्तित्व? क्या उत्तर देगी जब लोग पूछेंगे इतने बूढ़े से शादी की है? कोई और नहीं मिला क्या?’ इन्हीं उलझनों में समय निकलता गया. समय थोड़े ही ठहर पाया है किसी के लिए. दोनों की कभीकभी फोन पर बात हो जाती थी एक दोस्त की तरह. कालेज में भी खोईखोई रहती. एक दिन उस की सहेली रेणु ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘विधि, जौन के जाने के बाद तू तो गुमसुम ही हो गई. बात क्या है?’’

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‘‘जाने से पहले जौन ने मेरे सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था.’’

‘‘पगली…बात तो गंभीर है पर गौर करने वाली है. भारतीय पुरुषों की मनोवृत्ति तो तू जान ही चुकी है. अगर यहां कोई मिला तो उम्रभर उस के एहसानों के नीचे दबी रहेगी. उस के बच्चे भी तुझे स्वीकार नहीं करेंगे.

जौन की आंखों में मैं ने तेरे लिए प्यार देखा है. तुझे चाहता है. उस ने खुद अपना हाथ आगे बढ़ाया है. अपना ले उसे. हटा दे जीवन से यह तलाक की तख्ती. तू कर सकती है. हम सब जानते हैं कि बड़ी हिम्मत से तू ने समाज की छींटाकशी की परवा न करते हुए अपने पंथ से जरा भी विचलित नहीं हुई. समाज में अपना एक स्थान बनाया है. अब नए रिश्ते को जोड़ने से क्यों हिचकिचा रही है. आगे बढ़. खुशियों ने तुझे आमंत्रण दिया है. ठुकरा मत, औरत को भी हक है अपनी जिंदगी बदलने का. बदल दे अपनी जिंदगी की दिशा और दशा,’’ रेणु ने समझाते हुए कहा. ‘‘क्या करूं, अपनी दुविधाओं के क्रौसरोड पर खड़ी हूं. वैसे भी, मैं ने तो ‘न’ कर दी है,’’ विधि ने कहा. ‘‘न कर दी है, तो हां भी की जा सकती है. तेरा भी कुछ समझ में नहीं आता. एक तरफ कहती है, जौन बड़ा अलग सा है. मेरी बेमानी जरूरतों का भी खयाल रखता है. बड़ी ललक से बात करता है. छोटीछोटी शरारतों से दिल को उमंगों से भर देता है. मुझे चहकती देख कर खुशी से बेहाल हो जाता है. मेरे रंगों को पहचानने लगा है. तो फिर झिझक क्यों रही है?’’

‘‘उम्र देखी है? 60 वर्ष पार कर चुका है. सोच कर डर लगता है, क्या वह वैवाहिक सुख दे पाएगा मुझे?’’ ‘‘आजमा कर देख लेती? मजाक कर रही हूं. यह समय पर छोड़ दे. यह सोच कि तेरी आर्थिक, सामाजिक, शारीरिक सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा. तेरा अपना घर होगा जहां तू राज करेगी. ठंडे दिमाग से सोचना…’’ ‘‘डर लगता है कहीं विदेशी चेहरों की भीड़ में खो तो नहीं जाऊंगी. धर्म, सोच, संस्कृति, सभ्यता, कुछ भी तो नहीं है एकजैसा हमारा. फिर इतनी दूर…’’ ‘‘प्रेम उम्र, धर्म, भाषा, रंग और जाति सभी दीवारों को गिराने की शक्ति रखता है. मेरी प्यारी सखी, प्यार में दूरियां भी नजदीकियां हो जाती हैं. अभी ईमेल कर उसे, वरना मैं कर देती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, मैं खुद ही कर लूंगी,’’ विधि ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘डियर जौन,

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