फ्लर्टनैस नहीं स्मार्टनैस

विद्या आजकल घर में बहुत बोर हो रही थी. दिन तो औफिस के काम में बीत जाता पर लौकडाउन में घर में बंद होने से उलझन होने लगी थी. ग्रौसरी लेने जाने में भी रिस्क लगता. वह अकेले ही इस फ्लैट में 4 महीने से किराए पर रह रही थी. किसी को जानती भी न थी. मुंबई में सुबह निकल कर जाना, फिर शाम को आ कर आसपड़ोस में झंकने की फुरसत भी कहां रहती है.

वह यों ही शाम को उठ कर बालकनी में आई, तो बराबर वाले फ्लैट का एक लड़का बालकनी में ऐक्सरसाइज कर रहा था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए. विद्या का कुछ टाइम पास हुआ. अब धीरेधीरे यह रूटीन ही हो गया. दोनों शाम को हायहैलो करते. फिर नाम पूछे गए.

बालकनी में कुछ दूरी थी, तो लड़के अवि ने फोन नंबर का इशारा किया. अब दोस्ती आगे बढ़ी. दोनों ही इस लौकडाउन में बोर हो रहे थे.

उसे अकेले देख अवि की हिम्मत बढ़़ी, कहा, ‘‘बाहर जाना तो सेफ है नहीं, मैं मम्मी की लिस्ट ले कर जाता हूं. आप को भी जो सामान मंगवाना हो, बता देना.’’

विद्या ने मजाक किया, ‘‘सोशल डिस्टैसिंग का टाइम है, आप से कैसे सामान मंगवाऊं?’’

‘‘अरे, कोई बात नहीं. अभी ला देता हूं सामान. शौप वाला अभी होम डिलीवरी नहीं कर रहा है.’’

‘‘नहींनहीं, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.’’

‘‘दोस्त समझ कर अपनी लिस्ट व्हाट्सऐप पर भेज दीजिए, मैं आप के डोर पर सामान रख दूंगा,’’ अवि नहीं माना. तो विद्या ने लिस्ट उसे दे दी.

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सामान ला कर अवि ने बैग उस के डोर पर रख कर घंटी बजाई. दोनों कुछ देर दूर से ही हंसीमजाक करते रहे. फिर तो यह नियम बन गया. अवि ही उस के सारे काम करने लगा. विद्या को तो कहीं निकलना ही नहीं पड़ा. विद्या अपनी दोस्त रुचि को फोन पर सब बता रही थी.

रुचि खूब हंसती, कहती, ‘‘ये लड़के भी न, लड़की देख कर सब डिस्टैसिंग भूल जाते हैं. ठीक है, तेरा क्या जा रहा है. फिलहाल काम करवा उस से, बाद में देखते हैं.’’

बहुत तेज बारिश हो रही थी. मुंबई की बारिश का वैसे भी कुछ पता नहीं होता कि कब रुकेगी. पोवई से अंधेरी जाने में अच्छेअच्छों की हालत खराब हो जाती. पर आरती आराम से तैयार हो रही थी. उस की रूममेट रूपा ने कहा भी, ‘‘यार, आज बहुत बारिश है, वर्क  फ्रौम होम ले ले.’’

आरती ने हंस कर कहा, ‘‘अनिल आता ही होगा कार से लेने. औफिस उसी के साथ जा रही हूं. आजकल लोकल ट्रेन के धक्कों से बच जाती हूं. आजकल टैक्सी में बैठने से तो डर ही लगता है, कोई वायरस न छोड़ गया हो. उस से अच्छा वायरस अनिल ही रहेगा, कोरोना से तो कम ही परेशान करेगा.’’

रूपा हंसी, ‘‘वाह, यह कब हुआ? वह तो सीनियर है न काफी तुम से?’’

‘‘हां, मैरिड है. उसे मेरी कंपनी चाहिए, मुझे आराम से आनाजाना. दोनों का काम हो जाता है. बदले में उसे झेलना पड़ता है, बस. वह फ्लर्ट करने की कोशिश कर रहा है. जानती हूं ऐसे पुरुषों को. मैरिड है, पर एक लड़की की कंपनी के लिए मरे जाते हैं. हद है, यार. पर ठीक है, मैं कौन सी मूर्ख हूं. आराम से कार में आनाजाना हो रहा है. इन जैसों का फायदा क्यों न उठाया जाए. जैसे ही लिमिट क्रौस करने की कोशिश करेगा, एक डिस्टैंस मैंटेन करना शुरू कर दूंगी. बहानों की कमी तो होती नहीं है,’’ कह कर वह हंसते हुए निकल गई.

ट्विंकल राठी ने एक मल्टीनैशनल कंपनी जौइन की. 3 महीने में उसे समझ आ गया कि यहां उस के एक सीनियर अतुल का सिक्का चलता है.

कभी फ्लर्टिंग की है? यह पूछने पर वह अपने बारे में खुल कर बताती है, ‘‘हमारे बौस अतुल की सब बात सुनते हैं. उस की रिकमैंडेशन पर ही औफिस में प्रमोशन होते हैं. मैं नईनई थी. अतुल साहब मेरे आसपास मंडराने लगे. पुरानी लड़कियों ने भी उन की इस आदत के चर्चे मुझ से खूब किए थे. कभी मुझे कौफी के लिए कैंटीन ले जाते, कभी मुझे घर तक ड्रौप करने के लिए कहते. मुझे क्या परेशानी होती. मैं औटो के धक्कों से बच जाती.

‘‘वे मेरी बड़ी अच्छी रिपोर्ट्स आगे पहुंचाते. मेरे प्रोमोशंस धड़ाधड़ होते रहे. मुझ में काबिलीयत थी, पर अतुल के सपोर्ट से मैं खूब आगे बढ़ी. वे मैरिड थे. उन के बच्चे थे. मुझ से हंसबोल कर, मेरे आगेपीछे घूम कर वे एंजौय कर रहे थे. तो मेरा भी कुछ नुकसान तो हो नहीं रहा था. फिर मेरा दूसरे औफिस में ट्रांसफर हो गया. फिर यह भी सुना कि अब वे नई लड़की के आगेपीछे घूम रहे हैं. ऐसे पुरुष आप को हर जगह मिल जाएंगे. उन की ऐसी आदतों का फायदा उठाना गलत कहां से हो गया.’’

स्मार्ट बन कर काम निकलवाना

एक लेखिका हैं मंजू शर्मा. अपने वाक कौशल और अदाओं पर उन्हें पूरा भरोसा है. उन का मानना है कि वे जहां भी अपनी कोई रचना भेज कर संपादकों से बात कर लेती हैं. उन की रचना फिर अस्वीकृत होने का कोई चांस ही नहीं है. सारे पुरुष संपादक उन से बात करने के लिए लालायित रहते हैं. उन्हें व्हाट्सऐप में मैसेज भेजते रहते हैं. उन की सुंदरता के कसीदे पढ़ते रहते हैं. उन्हें अपना काम निकालना आता है. उन्हें अपनी रचनाएं छपवानी हैं, इसलिए वे थोड़ीबहुत लिफ्ट दे देती हैं. उन का काम हो जाता है. जहां कोई पुरुष संपादक उन की रचना को रचनात्मकता की कसौटी पर ही परख कर छापता है, वहां वे अपना समय खराब नहीं करतीं. उन का मानना है कि अगर किसी पुरुष संपादक को लिफ्ट दे कर बिना ज्यादा मेहनत किए मेरी रचनाएं छप जाती हैं, तो बुरा क्या है.

खुशबू सिन्हा जब औफिस में कहीं किसी प्रैजेंटेशन में अटक जाती है, तो कुछ देर पहले से ही किसी न किसी से मीठी बातें कर के उसे हैल्प के लिए तैयार कर ही लेती है. उस का कहना है, ‘‘यह जरा भी मुश्किल नहीं, किसी भी यंग लड़की की हैल्प करने के लिए पूरा औफिस लगभग तैयार रहता ही है. तो ठीक है, दो मीठीमीठी मासूम बातें कर के इन लड़कों से काम निकलवाना बुरा तो नहीं है.

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चतुर लड़कियां आजकल फ्लर्ट समझती हैं. वे जानती हैं कि लड़कों से काम कैसे निकलवाया जा सकता है. लड़के तो यही समझते हैं कि वे बहुत स्मार्ट हैं, सामने वाली लड़की तो बहुत सीधी है, उस के साथ फ्लर्ट किया जा सकता है. पर अपने को होशियार समझ रहे लड़के होशियार लड़कियों के हाथों बुद्धू बन रहे होते हैं. उन्हें पता भी नहीं चलता और वे मेल ईगो को सैटिस्फाई कर के खुश हो रहे होते हैं. लड़कियां कामकाजी हों, तो वे ऐसे पुरुषों की नसनस खूब पहचानने लगती हैं.

चालाक तो बनना ही पड़ेगा

एक औफिस में काम करने वाली नीरा बताती हैं, ‘‘मीटिंग में पहले औफिस से निकलने में देर होती थी. तो अकेले घर पहुंचने की बड़ी चिंता रहती थी. पर देखा कि औफिस के एक 40 वर्षीय मिस्टर गुप्ता को लड़कियों से पूछने का बड़ा शौक है कि लेट हो रहा है तो मैं छोड़ दूं? उन के इस शौक का लड़कियां खूब फायदा उठाती हैं. अब यह किसी लड़की को ही कहने वाली बात तो नहीं है. भाई, जब आप लड़की की कंपनी के लिए मरे जा रहे हैं तो हमें भी क्या परेशानी है. आराम से चिपकू गुप्ताजी की कार में जाती हैं लड़कियां. इतनी देर में, भीड़ में, ट्रैफिक में उन्हें इस शौक में क्या आनंद आता है, वही जानें.’’

तो आगे से किसी लड़की को फ्लर्ट करने से पहले एक बार जरूर सोच लें कि फ्लर्ट है कौन, लड़की फ्लर्ट नहीं होशियार है, जो लड़के के अहं और घमंड को धता बता रही है और लड़के को पता भी नहीं. लड़के अब तक लड़कियों को बहुत ठगते आए हैं. उन का हमेशा नाजायज फायदा उठाते आए हैं. अब हवा बदली है. लड़कियां किसी भी तरह लड़कों से कम नहीं रहीं. आप उन की अदाओं पर मरते रहिए, उन के काम आने के लिए अपनेआप को पेश करते रहिए. वे आप की सेवाएं खुशीखुशी लेती रहेंगी. उन्हें भी तो आप के बनाए समाज में रहना है, चतुर तो होना ही पड़ेगा.

सहेलियां जब बन जाएं बेड़ियां

रंजना की आदतों से उस की बेटी अंजलि ही नहीं उस के पति रौनक भी कई सालों से परेशान हैं. रौनक तो उस दिन को कोसते हैं जब शादी के बाद वे रंजना को ले कर दिल्ली आए और एक ऐसी कालोनी में फ्लैट ले लिया, जहां हाई सोसाइटी की अमीर औरतें रहती हैं, जिन के पतियों को खूब ऊपर की कमाई होती है.

पतियों के पैसे पर ऐश करने वाली एक मुहतरमा रमा रंजना की पड़ोसिन है. उस के यहां रंजना किट्टी पार्टी के लिए जाती है. उस के साथ मौर्निंग वाक करती है, उस के गु्रप के साथ पिकनिक मनाती है, व्हाट्सऐप चैट करती है, शौपिंग करती है, फिल्में देखती है.

रौनक एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते हैं. वे किसी छोटे शहर में रहते तो जितनी सैलरी उन्हें कंपनी से मिलती है, उसे देखते हुए वे उस शहर के अमीरों में शुमार होते, लेकिन दिल्ली की पौश कालोनी में रह कर इस तनख्वाह में सबकुछ मैंटेन करना मुश्किल लगता है. उस पर रंजना की अपनी पड़ोसिन रमा से इस कदर दोस्ती ने उन की मुसीबतें बढ़ा रखी हैं.

अगर रमा ने नई वाशिंग मशीन खरीदी है तो रंजना को भी उसी तरह की वाशिंग मशीन चाहिए. वह उस के लिए जिद्द पकड़ लेती है, भले ही घर में पहले से ही वाशिंग मशीन हो और अच्छी चल रही हो, लेकिन रमा ने नई खरीदी है तो उस में जरूर कुछ नए और बेहतर फीचर्स होंगे वरना वह क्यों पुरानी मशीन सिर्फ डेढ़ हजार में अपनी कामवाली को देती? उस की भी तो पुरानी मशीन काम कर ही रही थी.

रंजना के तर्क सुन कर रौनक अपना सिर थाम लेते हैं. कुछ दिन पहले ही रंजना ड्राइंगरूम के लिए नए परदे ले आई थी, जो काफी महंगे लग रहे थे. उन परदों से ड्राइंगरूम के लुक में खासा बदलाव आ गया, लेकिन नए और इतने महंगे परदों की क्या जरूरत थी, जब पुराने वाले अभी बिलकुल ठीक थे, खूबसूरत लगते थे और उन को लिए चंद महीने ही हुए थे? जब रौनक ने यह सवाल पूछा तो बेटी अंजलि तुनक कर बोली, ‘‘ऊपर रमा आंटी ने नए परदे लिए हैं, तो मम्मी कैसे पीछे रहतीं? जा कर उसी शोरूम से उसी तरह के परदे ले आईं.’’ रौनक ने यह सुना तो सिर धुन लिया.

सहेलियों की नकल

रंजना जैसी बहुत औरतें हैं, जो हर वक्त अपनी सहेलियों की नकल करती हैं. सहेली ने नई साड़ी ली है, तो मुझे भी वैसी ही साड़ी चाहिए. सहेली ने घर के लिए कोई लग्जरी आइटम ज्वैलरी, कौस्मैटिक्स की नई रेंज ली है, सैंडल लिए हैं, कोई पालतू जानवर लिया है, तो मुझे भी चाहिए. ऐसी औरतें उच्चवर्ग, मध्यवर्ग व निम्नवर्ग तीनों में ही मिल जाएंगी, जिन के लिए सहेलियां बेडि़यां बन चुकी होती हैं. वे इन बेडि़यों से खुद को मुक्त नहीं करना चाहती हैं. नकल और दिखावा उन की रगों में खून के साथ बहने लगा है. सहेलियां जब बेडि़यां बन जाएं तो उस से घर वालों को भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

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हर वर्ग में यह दिक्कत

सहलियों की गिरफ्त में फंसी ये आरतें हर आयुवर्ग और आयवर्ग की होती हैं. अब निशा को ही देख लीजिए. इंटरमीडिएट में उस के सब से ज्यादा अंक बायलौजी में आए थे, लेकिन अपनी सहेली कोमल की देखादेखी उस ने बीएससी में एडमिशन न ले कर बीकौम करने की ठानी. उस के मातापिता समझाते रह गए कि जिस सब्जैक्ट में तुम सब से बेहतर हो, उसी में आगे की पढ़ाई करो, लेकिन सुननी तो सहेली की ही थी, लिहाजा कौमर्स की लाइन पकड़ ली और फर्स्ट ईयर में ही फेल हो कर बैठ गई. किसी तरह 4 साल में बीकौम पूरा किया और वह भी थर्ड डिविजन में. अब निशा का कौमर्स से मन हट चुका है और आगे क्या करना है, वह तय ही नहीं कर पा रही है.

शेफाली के लिए भी उस की 2 सहेलियां बेडि़यां बन गई हैं, पहली कक्षा से ग्रैजुऐशन तक तीनों साथ रहीं. साथ खातीपीती थीं, साथ शौपिंग करती थीं, साथ ही घूमने जाती थीं. शेफाली आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं थी, जितनी उस की दोनों सहेलियां थीं, लिहाजा शेफाली के हिस्से का खर्च भी कभीकभी वे दोनों ही उठा लेती थीं, लेकिन ग्रैजुएशन के बाद जब शेफाली की नौकरी लग गई, तो दोनों चाहने लगीं कि अब शेफाली भी उन्हें खिलाएपिलाए या फिल्म दिखाए. उन का मानना है कि स्कूल टाइम में या कालेज के दिनों में जब शेफाली के पास पैसे नहीं होते थे, तो वे दोनों उस के लिए खर्च करती थीं, अब शेफाली कमा रही है तो वह भी कभीकभी उन पर खर्च कर सकती है. दोनों आएदिन उस के सामने कोई न कोई फरमाइश रख देती हैं.

शेफाली के लिए अब यह दोस्ती महंगी पड़ रही है, क्योंकि उस के पिता रिटायर हो चुके हैं. उन की थोड़ी सी पैंशन घर खर्च में ही खत्म हो जाती है. ऐसे में शेफाली की कमाई का बड़ा हिस्सा उस के छोटे भाई की ट्रेनिंग के लिए जा रहा है. बचाखुचा ही वह अपने पर खर्च करती है. ऐसे में सहेलियों को घुमानेफिराने या पिक्चर दिखाने पर वह कहां से पैसे खर्च करे. शेफाली के लिए दोनों सहेलियां बेडि़यां बन गई हैं, जिन से वह मुक्त होना चाहती है. मगर कैसे, यह उसे समझ में नहीं आ रहा है.

दोस्ती का नाजायज फायदा

हमारे आसपास ऐसे बहुत से लोग होते हैं, जिन्हें हम अपना दोस्त बनाते हैं और जिन से हम अपने राज शेयर करते हैं, लेकिन जब ये लोग हमारा नाजायज फायदा उठाने लगें या जानेअनजाने में यूज करने लगें तो फिर यह रिश्ता बोझ बन जाता है. कई बार जब ऐसे रिश्ते मजबूरीवश टूटते हैं तो हमारा नुकसान भी करते हैं.

नेहा ने जब सुमन से दोस्ती तोड़ी तो नेहा के शादी से पहले के जीवन से जुड़े कुछ गहरे राज नेहा के पति को मालूम पड़ गए. किसी ने उन्हें फोन पर नेहा की तमाम बातें बता दीं. इन फोन कौल्स ने नेहा की जिंदगी बरबाद कर दी. आज वह तलाक के मुहाने पर खड़ी है. दोस्ती की बेड़ी तोड़ने की सजा भुगत रही है. उसे यकीन है कि उस की बीती जिंदगी से जुड़े प्रेमप्रसंग उस के पति को सुमन के द्वारा ही पता चले हैं, लेकिन अब वह क्या कर सकती है.

ध्यान रखें सहेलियां बनाएं, लेकिन उन्हें अपने जीवन में इतनी ज्यादा घुसपैठ न करने दें कि वे आप के और आप के परिवार के लिए मुसीबत बन जाएं. दोस्ती में इन बातों का खयाल रखना बहुत जरूरी है:

– सहेली से जीवन के राज शेयर न करें. कभी न कभी, कहीं न कहीं आप की बात उजागर हो ही जाएगी. अगर आप चाहती हैं कि आप की गुप्त बातें आप के साथ ही खत्म हों तो भूल कर भी उन्हें अपने मुंह से बाहर न आने दें, फिर चाहे आप के सामने आप की बचपन की पक्की सहेली ही क्यों न हो.

– सहेली के जीवन जीने के ढंग की नकल न करें. आप अपनी चादर देख कर ही अपने पैर फैलाएं. हर परिवार की अपनी आर्थिक स्थिति और जरूरतें होती हैं. इसलिए दूसरे की चीजों को देख कर अपनी आर्थिक स्थिति को डांवांडोल करना कोई समझदारी नहीं है.

– सहेली के विचारों को खुद पर कभी हावी न होने दें. आप सहेलियों से खूब बतियाएं, उन की सुनें, लेकिन अपनी बातों पर दृढ़ रहें. उन का कोई विचार अच्छा लगे तो अवश्य अपनाएं, लेकिन वे हमेशा ठीक बोलती हैं या उन की सारी बातें सही होती हैं, ऐसा सोचना गलत होगा. ऐसा सोच कर आप अपनी अहमियत को कम कर रही हैं, अपने कद को घटा रही हैं.

– सहेलियां टाइम पास करने के लिए होती हैं. जगह बदलते ही सहेलियां बदल जाती हैं, लेकिन परिवार जीवनभर साथ चलता है, इसलिए सहेलियों की संगत में ऐसा कोई

कदम न उठाएं, जिस से परिवार के लोगों को आघात पहुंचे.

– यदि सहेलियां अंधविश्वासी, किसी बाबा की भक्त, धार्मिक आयोजन करने वाली हैं तो उन से दूरी बना कर रखें, क्योंकि ये सहेलियां सुनसुन कर बहुत वाकपटु हो जाती हैं और आसपास सब को अपने बाबा या मंदिर का ग्राहक बनाने में लग जाती हैं. ये घरों तक को तुड़वा डालती हैं और फिर दोष भाग्य या कर्मों को देने लगती हैं.

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ये 5 गलतियां करती हैं रिश्तों को कमजोर

रिश्ते बनाना तो बहुत आसान होता है लेकिन उन्हें संभालना मुश्किल होता है. एक अच्छे रिश्ते का मतलब केवल फूल देना और अच्छी जगह पर डिनर करना नहीं होता है. वैसे तो बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं जिन्हें करने से आपके रिश्ते खराब हो सकते हैं लेकिन ऐसी कुछ गलतियां है जो आपको एक सीरियस रिलेशनशिप में भूल कर भी नहीं करनी चाहिए. अगर आप अपने रिश्ते के बौन्ड को और मजबूत बनाना चाहते हैं तो इन 5 गलतियों से जरूर बचे.

1. रोमांस में कमी

एक समय पर आप संतुष्ट हो जाते हैं और भूल जाते है कि रिश्ते में प्यार और रोमांस भी जरुरी है. ऐसा माना जाता है की प्यार दिखाया नहीं समझा जाता है. अगर आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं तो वो इंसान खुद ही आपके प्यार को समझेगा मगर कभी-कभी अगर अपने प्यार को जाहिर कर देंगे तो इससे आपके साथी को एक अलग खुशी मिलेगी. आपके लिए जरुरी है कि रिश्ते में रोमांस को बनाएं रखें और इसे बरकरार रखने के लिये एफर्ट डालें. कभी-कभी प्यार जताकर अपने साथी को खास महसूस कराया जा सकता है.

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2. परफेक्ट पार्टनर की उम्मीद…

इस दुनिया में कोई इंसान बिल्कुल परफेक्ट नहीं होता है इसलिए इसकी उम्मीद करना बेवजह है. हर चीज में अपने साथी को टोकते रहना और उसकी गलतियां निकालना सही नहीं है. अगर उनसे कोई गलती हो जाए तो उन्हें डांटने के बजाय समझाये. बार-बार उनकी गलती को गिनवाने से उनका आत्म-विश्वास कम होगा. बेहतर होगा कि आप अपनी उम्मीदें जरुरत से ज्यादा ना रखें. अगर कोई गलती भी हो जाए तो उसे दूसरों के सामने ना गिनाएं बल्कि उन्हें आपस में निपटा लें, उन्हें सुधारने का तरीका बताएं ताकि दोबारा उनसे वही गलती न हो जाए.

3. आमना-सामना करने से बचना…

बहुत बार हम सोचते हैं कि किसी भी झगड़े को खत्म करने के लिए उसके बारे में बात ही ना की जाए. बिना बात किए आपके सारे झगड़े खत्म नहीं होंगे बल्कि और ज्यादा बढ़ जाएंगे. अगर आप-दोनों के बीच लड़ाई हो तो उसका सामना करें. आमना-सामना करने से आप अपने बीच की प्रॉब्लेम को दूर कर पाएंगे. इन झगड़ों को अपने साथी को बताने के बजाय दूसरों को बताने की गलती ना करें. ऐसा करने से लोगों के सामने आपका ही मजाक बनेगा. कोई आपके प्रोब्लेम का हल नहीं निकालेगा बल्कि आपको और निराश ही करेगा. कोशिश करें कि आप एक-दूसरे से आराम से बैठकर बात करें और अपने प्रोब्लम का हल खुद निकाले.

4. ज्यादा बांधकर न रखें…

अपने रिश्ते को थोड़ा स्पेस दें. ज्यादा दखल देना भी अच्छा नहीं होता है. जब आप प्यार में होते हैं तो आप चाहते हैं कि सभी चीजें साथ में करें लेकिन रिश्ते की शुरुआत में ही ऐसा ठीक लगता है. जैसे आप आगे बढ़ते हैं तो ज्यादा साथ रहना भी आपके रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकता है. हर इंसान की अपनी एक लाइफ होती है और थोड़ा निजीं समय आपके रिश्ते को बेहतर बना सकता है.

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5. खुद को या साथी को बदलने की कोशिश…

कभी भी अपने पार्टनर को खुश करने के लिए खुद को नहीं बदले या फिर अपनी खुशी के लिये साथी को बदलने की कोशिश ना करें. अगर आप प्यार में हैं तो आप जैसे हैं उन्हें वैसे ही अच्छे लगेंगे और आपको भी उन्हें ऐसे ही पसंद करना चाहिए. अगर कोई आपको बदलना चाहता है तो उन्हें आपसे ज्यादा दिखावे से प्यार है. प्यार करने का मतलब एक-दूसरे की हर छोटी-बड़ी चीजों से प्यार करना होता है. हर तरह से एक-दूसरे को समझना होता है.

जब पति का प्यार हावी होने लगे

रोहिणी में रहने वाली संगीता ने अपनी सहेलियों को कौन्फ्रैंस कौल की, ‘‘क्या हाल हैं सब के? मैं बस अभीअभी फ्री हुई. आज मेरे पति को थोड़ी देर के लिए औफिस जाना पड़ा. कितना सुकून मिल रहा है, मैं बता नहीं सकती वरना अधिकतर वह वर्क फ्रौम होम करते हैं तो सारा दिन मेरे आसपास ही मंडराते रहते हैं.

किसी भी बहाने से उठूं, पीछेपीछे चले आते हैं. किचन में जाओ तो संग खाना बनवाने लगते हैं, सफाई करो तो डस्टिंग करने लगते हैं, कपड़े धोऊं तो निचोड़ने चले आते हैं…कम से कम तुम लोगों के पति औफिस तो जाते हैं, यहां तो सुख भी नहीं. ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर, चाय सबकुछ साथ में.

कुछ कहो तो कहते हैं मैं तुम से एक पल की दूरी भी बरदाश्त नहीं कर सकता. मैं तुम से इतना प्यार करता हूं कि तुम दूसरे कमरे में भी जाती हो तो तुम्हारी याद सताने लगती है.’’

संगीता की बातें सुन कर सभी सहेलियों के मुंह बनने लगे. एक ने तो कह भी दिया, ‘‘तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि इतना प्यार करने वाला पति मिला है. औरतें तरसती हैं इतने प्यार के लिए. तुम्हें मिल रहा है और तुम हो कि शिकायत कर रही हो.’’

दूसरी ने भी कहा, ‘‘बिलकुल सही बात है. क्या पता यह प्यार कब तक मिले. मैं ने तो सुना है कि जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है, प्यार कम होता है. तुम्हें तो अपने पति पर उन से भी ज्यादा प्यार लुटाना चाहिए. उन की सराहना करो, उन के लिए कुछ अच्छा पकाओ, उन के गुण गाओ.’’

‘‘तुम सब के लिए कहना आसान है, क्योंकि तुम मेरी स्थिति में नहीं हैं. विश्वास करो, ये सब बातें मैं अपना मन हलका करने के लिए कहती हूं, न कि कुछ जताने के लिए. माइ हसबैंड लव मी टू मच,’’ संगीता जब कभी अपने पति के प्यार के किस्से अपनी सहेलियों को सुनाती है तो वे सब रश्क करने लगती हैं. कुछ तो यह भी कहती हैं कि संगीता उन्हें जलाने के लिए ही ये मनगढ़ंत किस्से सुनाया करती है.

लेकिन संगीता जानती है कि उसे इन किस्सों को सुना कर खुशी नहीं होती है, उलटा उस के दिल का गुबार कुछ हलका हो जाता है.

क्या ‘टू मच लव’ होता है

प्यार की कोई सीमा नहीं होती, प्यार का कोई अंत नहीं होता जैसे जुमले हम सभी ने सुने हैं.

हम अकसर यह मानते हैं कि प्यार करो तो टूट कर करो, उस में डूब कर करो. लेकिन प्यार जरूरत से ज्यादा भी हो सकता है? शायद हां. हो सकता है कि जिसे हम प्यार समझते रहे हों, वह सामने वाले के लिए उस की निजता पर वार हो. प्यार करना और हावी हो जाने में अंतर होता है. हम प्यार के नाम पर सामने वाले की जिंदगी पर अपनी पकड़ को कसते चले जा सकते हैं और वह बेचारा शिकायत भी नहीं कर सकता, क्योंकि हम तो उस से प्यार करते हैं.

गायत्री का पति उस के हर निर्णय में अपनी मरजी चलाता है. चाहे उस के कपड़े हों, गहने हों, हेअर स्टाइल हो या फिर किस से दोस्ती करनी है, यह फैसला. कारण एक ही होता- मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारी चिंता करता हूं, तुम्हारी फिक्र रहती है मुझे, क्या तुम मेरी इतनी-सी बात भी नहीं मान सकतीं?

बेचारी गायत्री अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं कर पाती, क्योंकि हर बात में उस के पति का ‘टू मच लव’ आढ़े आ जाता है.

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केस स्टडी

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के संबल जिले की शरिया अदालत में एक महिला ने अपनी 18 महीने की शादी रद्द करने की दरख्वास्त दी. कारण बताया गया-उस का पति उस से जरूरत से अधिक प्यार करता है. बिलकुल नहीं लड़ता है.

उस महिला का कहना था कि उसे अपने पति के बेइंतहा प्यार व लगाव से घुटन होती है. पति के अच्छे बरताव के कारण उस महिला की जिंदगी नर्क बन गई है, इसलिए उस ने इस शादी को तोड़ने का मन बनाया.

वह अपने पति से तंग आ चुकी है. उस का पति खाना पकाने में उस की मदद करता है, उस के साथ घर के काम करवाता है, कभी उस की किसी बात से नाराज नहीं होता है.

महिला ने तथाकथित रूप से कहा, ‘‘मैं झगड़े के एक दिन के लिए तरसती हूं, लेकिन मेरे रोमांटिक पति के साथ ऐसा होना नामुमकिन है जो हमेशा मुझे माफ कर देता है और आए दिन मुझ पर तोहफों की बारिश करता रहता है.

‘‘मुझे बहस करनी है, एक झगड़ा चाहिए, न कि बिना परेशानियों वाली जिंदगी.’’

जब उस के पति से पूछा गया तो उस का कहना था कि वह एक आदर्श और अच्छा पति बनना चाहता था, इसलिए अपनी पत्नी की हर बात मानता रहा.

हालांकि शरिया के मौलाना ने उस औरत की तलाक की दरख्वास्त को बेकार और बेहूदा बताते हुन्ए खारिज कर दिया. किंतु इस केस से यह बात सामने आई कि जिसे हम एक आदर्श स्थिति समझ लेते हैं, जरूरी नहीं कि हर पत्नी को वही चाहिए.

थोड़े शिकवे थोड़ी शिकायत

पूजा का पति भी इसी तरह उस की बात में हां में हां मिलाता है. वह कहती है, ‘‘मैं कहूं कि मुझे मायके जाना है तो कहते हैं ठीक है. जब कहोगी तब लेने आ जाऊंगा. मैं कहूं कि मुझे खाना नहीं बनाना तो कहते हैं कि ठीक है, बाहर से और्डर कर देते हैं. मैं कहूं कि मुझे तुम्हारे खर्राटे तंग करते हैं तो कहते हैं कि ठीक है, मैं दूसरे कमरे में सो जाऊंगा. लगता है जैसे इन का नाम ‘मिस्टर ठीक है’ होना चाहिए.

‘‘मैं कितनी भी बार एक ही बात कहूं, इन का जवाब एक ही होता है कि ठीक है, तंग आ गई हूं मैं. लगता है जैसे मैं बौस हूं और ये मेरे मुलजिम. बस हाथ जोड़े खड़े रहते हैं. पतिपत्नी को समतल प्लेटफौर्म पर होना चाहिए न. कभी झगड़ा हो तो जिंदगी में नमक का स्वाद भी आए. यह क्या हर समय बस मीठा ही मीठा.’’

इतनी समीपता किस काम की

जब से जयश्री के पति का वर्क फ्रौम होम शुरू हुआ तब से उस की मुसीबतें बढ़ गईं. पहले पति औफिस और बच्चों के स्कूल चले जाने के बाद जयश्री अपना समय अपने हिसाब से गुजरती थी. कभी वौक पर जाती, कभी पुस्तक पढ़ती, कभी किसी सहेली के घर चली जाती, कभी कोई मूवी देखने बैठ जाती. लेकिन अब वर्क फ्रौम होम के चलते उस का पति हर समय उस के आसपास ही मंडराता रहता है. बच्चे तो औनलाइन क्लासेज में बिजी हो गए, पर पति वहीं बैठना चाहता है जहां जयश्री हो.

जयश्री कहती है, ‘‘जैसे ही मैं हिलती हूं, ये पूछने लगते हैं, कहां जा रही हो? उफ, अब क्या मैं टौयलेट भी पूछ कर जाऊं.’’

स्मिता के लिए भी उस के पति का हर समय पास होना कष्टदायक होता जा रहा है. उस के पति सैल्स डिपार्टमैंट में नौकरी करते हैं. वह कहती है, ‘‘औफिस में क्या हो रहा है, कौन क्या गेम खेल रहा है, कौन काम कर रहा है, कौन कामचोरी करता है… इन सब का कच्चाचिट्ठा मेरे पति मुझे सुनाते रहते हैं. मुझे इन सब में क्या इंटरैस्ट.

‘‘पर सबकुछ छोड़ कर मुझे उन की यह सारी बातों में अपना पूरा समय बेकार करना पड़ता है. जबकि मेरा मन करता है कि अपनी मनपसंद पत्रिका में छपी कहानियां व लेख पढ़ूं.’’

बीवी हूं बेटी नहीं

दिव्या का लिया हुआ कोई भी निर्णय उस के पति को गवारा नहीं होता. वह हर बात में यही कहता है कि तुम्हें नहीं पता आजकल दुनिया कितनी खराब है, सब लोग बेवकूफ बनाने के बहाने ढूंढ़ते रहते हैं, तुम ठहरीं घरेलू महिला. तुम्हें तो आसानी से उल्लू बना देंगे, आदि.

पति के अनुसार ऐसा वह दिव्या के प्यार में करता है. माना कि उस की चिंता प्यार का नतीजा है, परंतु ऐसे व्यवहार से दिव्या का आत्मविश्वास गिरता चला जा रहा है. क्या ऐसा प्यार पत्नी के लिए नुकसानदेह नहीं?

नीलिमा का पति उस के ऊपर तोहफों की बरसात करता रहता है. नीलिमा गलती से कह दे कि फलां की साड़ी कितनी सुंदर है या फिर मैं ने फलां जगह नहीं देखी, बस उस का पति आननफानन में उस की ख्वाहिश पूरी करने की जल्दबाजी में लग जाता है.

वह कहती है, ‘‘इस डर के मारे मैं किसी को कौंप्लिमैंट भी नहीं दे सकती कि मेरे पति फौरन वैसी ही वस्तु मेरे लिए ला देंगे. अरे यार, किसी चीज की प्रशंसा करने का अर्थ यह तो नहीं कि मुझे भी वह चीज चाहिए. पसंद आने का मतलब यह कैसे हो गया कि मुझे हर वह चीज चाहिए जो मुझे अच्छी लेगी.’’

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संभल कर रखें कदम

कोकिला की जब नईनई शादी हुई तब उस के पति उस से अच्छी कुकिंग किया करते थे. उन की ईगो बूस्ट करने के लिए कोकिला अकसर उन की प्रशंसा के पुल बांधती रहती, ‘‘इन के जैसे छोले तो मैं कभी बना ही नहीं सकती… इन के हाथ का हलवा खाने के बाद मुझे अपने हाथ का बिलकुल पसंद नहीं आता… इन से पावभाजी बनानी सीख तो लूं पर इन के हाथ जैसा स्वाद कहां से लाऊं.’’

ऐसी बातों से उस के पति फूले नहीं समाते थे, पर वहीं कुछ समय बाद ऐसा होने लगा कि वे कोकिला के हर पकवान में नुक्स निकालने लगे. उसे हर बार कोई न कोई टिप बताते, उसे बेहतर पकाने के नुसखे सिखाते. धीरेधीरे जब पूरा किचन कोकिला ने संभाल लिया तो वह भी उतना ही अच्छा खाना पकाने लगी. लेकिन शुरुआत में की गई गलती भारी पड़ने लगी. हर बार मेहमानों, ससुराल या मायके पक्ष या फिर दोस्तों के बीच पति द्वारा कोकिला के खाने में ‘ऐसे बनातीं तो और भी बढि़या बनता’ जैसे जुमलों से उसे कुढ़न होने लगी.

नहीं चाहिए इतना प्यार

प्यार से भी उकताहट हो सकती है. अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप,  कोई भी काम बहुत अधिक हो तो वह परेशान करने लगता है, फिर चाहे वह अच्छाई ही क्यों न हो. मैरिज काउंसलर प्रीति कहती हैं कि उन के पास एक केस आया था जहां पत्नी अपने पति के अत्यधिक प्यार से परेशान हो कर उन से सलाह लेने आई थी.

‘‘जब मैं सुबह औफिस के लिए जाने को तैयार हो रही होती हूं, तब मेरे पति मुझे पीछे से आ कर पकड़ लेते हैं और रोजाना लेट कर देते हैं. ऐसे ही जब मैं शाम को डिनर बना रही होती हूं तब भी मेरे पति का मुझे बांहों में भरना मुझे रास नहीं आता. हर चीज का अपना समय, अपनी जगह होती है.

रोज ये हरकतें मुझे इरिटेट करने लगी हैं. हालांकि शादी की शुरुआत में उन की बातें मुझे 7वें आसमान पर बैठा दिया करती थीं, पर अब उन की इन्हीं हरकतों पर मुझे कोफ्त होने लगी है. मेरी नजरों में प्यार वह है कि मेरे पति मेरा हाथ बंटाएं, मेरे कामों में मेरी मदद करें न कि केवल कोरा प्यार दर्शाते रहें. लेकिन वहीं मुझे ऐसा लगता है कि मैं स्वार्थी हो रही हूं. वह तो मुझ से प्यार करते हैं और मैं हूं कि शिकायत कर रही हूं.’’

मैरिज काउंसलर की सलाह

अकसर मैरिज काउंसलिंग में पतिपत्नी दोनों की एकसाथ काउंसलिंग की जाती है, किंतु इस मामले में प्रीति ने ऐसा नहीं किया. उन का सोचना था कि ज्यादा प्यार करने के लिए काउंसलर के पास जाना शायद पति को अखरेगा. दूसरी तरफ यह बात भी सच है कि जिन आदतों से हम अपने जीवनसाथी के प्रति आकर्षित होते हैं, अकसर उन्हीं के कारण हम बाद में खीजने लगते हैं.

प्रीति ने पत्नी को सलाह दी कि अपने मन से यह खयाल निकाल दें कि आप स्वार्थी हो रही हैं या फिर कृतघ्न बन रही हैं. जो प्यार आप के लिए पहले आकर्षण का केंद्र था, अब वही आप को घुटन देने लगा है, तो इस का इलाज यह हो सकता है कि आप इस विषय में अपने पति से खुल कर बात करें. आप क्या चाहती हैं, अपनी इच्छाएं, अपने सपने अपने पति से बांटिए ताकि उन्हें पता चल सके कि वाकई में उन की पत्नी क्या चाहती है.

मन के अंदर कुढ़ते रहने से रिश्ता खराब होता चला जाता है. बेहतरी इसी में है कि आप खुल कर संवाद करें और उन्हें अपने मुताबिक प्यार करने का मौका दें.

प्रीति कहती हैं कि ज्यादा प्यार करने में कोई नुकसान नहीं है. बस, दोनों पार्टनर्स को एकदूसरे की इच्छाओं का सम्मान करना चाहिए. कुछ लोगों को हर समय अपने पार्टनर की कंपनी चाहिए होती है तो कुछ एकांतप्रिय होते हैं. कुछ को बहुत सारी बातें करना भाता है तो कुछ शांति से कुछ पढ़ना या संगीत सुनना चाहते हैं.

शादीशुदा जीवन में भी हमें अपने पार्टनर द्वारा खींची रेखाओं का आदर करना आना चाहिए. वही असली प्यार है.

साफ बात करने में भलाई

निशा ने अपने पति से न सिर्फ इस विषय में बात की, बल्कि अपनी अलग हौबी भी शुरू कर दी. अब जब भी उस के पति का प्यार उस पर हावी होने लगता है, वह अपने पति से कहती है कि उसे अपनी हौबी करने की इच्छा है और वह चित्रकारी करने दूसरे कमरे में चली जाती है.

निशा की देखादेखी उस की सहेली टीना ने भी बागबानी की अपनी हौबी को अपने किचन गार्डन में विकसित कर लिया है. टीना खुश हो कर बताती है कि अपने पौधों के साथ समय व्यतीत कर के वो फ्रैश महसूस करती है और  पति की अत्यधिक निकटता से थोड़ी फ्रैश एअर भी ले लेती है.

निशा कहती है कि जब उस ने अपने पति से इस विषय में बात की तो वो आहत हो गए. उन का कहना था कि बीवियां तो प्यार के लिए तरसती हैं और तुम हो कि इस बात के लिए मुंह बना रही हो कि मैं तुम से बहुत ज्यादा प्यार  करता हूं.

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निशा को पति को समझने में 2 दिन का समय लगा. मैं ने उन्हें कई उदाहरण दे कर बताया कि उन का प्यार दरअसल में उन की असुरक्षा की भावना है, जो मुझ में नहीं है और इसलिए मैं उन्हें पूरी फ्रीडम और टाइम देती हूं. मेरे लिए उन के साथ चौबीसों घंटे चिपके रहना प्यार नहीं है, बल्कि मेरी सोच यह है कि थोड़ी देर की दूरी से प्यार और बढ़ता है.

हम दोनों यदि कुछ देर अलग रहें, अन्य लोगों से मिलें तो हमारे पास एकदूसरे से करने के लिए और भी कई बातें होंगी. मेरी यह बात उन्हें समझ आ गई और उन्होंने अपने व्यवहार में बदलाव लाना शुरू कर दिया.’’

यह बात सही है कि हर रिश्ते को थोड़ी ब्रीदिंग स्पेस चाहिए होती है. मनोचिकित्सक डा. शशांक का कहना है कि पतिपत्नी का एकदूसरे से कुछ दूरी बनाने से उन के रिश्ते में ताजगी आती है. तभी तो मायके से लौटी पत्नी और भी प्यारी लगती है. पति और पत्नी को अपने दोस्तों की अलगअलग मंडलियों से भी मेलजोल रखना चाहिए.जीवनसाथी के अलावा जिंदगी में दोस्तों की जगह बेहद जरूरी है.

दूसरे रिश्तों की कमी के कारण पतिपत्नी का रिश्ता बासा होने लगता है. एकदूसरे पर ज्यादा हावी होने से रिश्ते में खटास आने लगती है.

सब को अपनी स्पेस चाहिए, चाहे वह पति हो, पत्नी हो या फिर बच्चे. पतिपत्नी के रिश्ते में दोनों एक ही प्लेटफौर्म पर खड़े हैं. ऐसे में दोनों को चाहिए कि एकदूसरे की भावनाओं व इच्छाओं का सम्मान करें. एकदूसरे को अपनी मरजी के अनुसार जीने दें. कहीं प्यार के नाम पर आप अपने पार्टनर को कुचल तो नहीं रहे,

इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है. कई बार प्यार इतना हावी होने लगता है कि उस के नीचे दम घुटने लगता है. यह बात रिश्ते के लिए बिलकुल  अच्छी नहीं.

कैसे लें अपने प्रेमी की परीक्षा

विभा सूरज के प्यार में पागल थी. दोनों करीब 2 साल से रिलेशनशिप में थे जबकि विभा की मां को सूरज पसंद नहीं था. उन्होंने विभा को कई बार समझाया था कि सूरज का साथ छोड़ दे. मगर विभा हमेशा मां की बात इग्नोर कर देती. इधर सूरज विभा को अपने हिसाब से चलाता. विभा को क्या पहनना चाहिए, किस से दोस्ती करनी चाहिए, कैसे रहना चाहिए जैसी बातों का भी हिसाब वही रखता. विभा प्यार में थी इसलिए उस की हर बात विभा को अच्छी लगती. इतना ही नहीं बाहर जब भी खाने का प्रोग्राम बनता तो किसी न किसी बहाने से वह विभा के रुपए ही खर्च कराता. विभा जौब करती थी और उस के पास रुपयों की कमी नहीं थी. सो वह इन बातों की चिंता नहीं करती थी. उसे बस सूरज का साथ चाहिए होता था.

इस बीच एक दिन सूरज ने यह कह कर विभा से डेढ़ लाख रुपए उधार लिए कि उसे यह रकम किसी जरूरी काम के लिए अर्जेंटली चाहिए. विभा ने ज्यादा कुछ नहीं सोचा और रुपए दे दिए. उस के दोचार दिन बाद से ही सूरज ने विभा से मिलना कम कर दिया और फिर बिल्कुल ही गायब हो गया. विभा उस का फोन ट्राई करती तो कभी नौट रीचेबल और कभी स्विच ऑफ बताता. विभा समझ ही नहीं पा रही थी कि सूरज के साथ क्या हो गया. उसे डर लग रहा था कि कहीं वह किसी अनहोनी का शिकार तो नहीं हो गया. सूरज ने उसे बता रखा था कि वह किस कंपनी में और किस पद पर काम करता है. विभा सूरज के बताए उस एड्रेस पर पहुंची तो पता चला कि इस नाम का कोई भी शख्स वहां काम नहीं करता. विभा को समझ में आ गया कि उस के साथ धोखा हुआ है. सूरज उस से नहीं बल्कि उस के पैसों से प्यार करता था.

जैसा विभा के साथ हुआ वैसा किसी के भी साथ हो सकता है. ऐसे फ़्रौड लड़कों की कमी नहीं जो लड़कियों को अपने प्रेमजाल में फंसा कर रूपए ऐंठते हैं, शारीरिक शोषण करते हैं या फिर एक ही समय में कई लड़कियों के साथ रिलेशनशिप में होते हैं.

वस्तुतः प्यार एक खूबसूरत एहसास है. प्रेमी का साथ पा कर इंसान अपनी हर तकलीफ़ भूल जाता है. मगर कई दफा आप सोच भी नहीं पाते कि कब आप का प्रेमी आप को धोखा दे जाए या अकेला छोड़ जाए. आप का प्रेमी किस तरह का इंसान है और कितना साथ दे पाएगा यह जानने के लिए कुछ इस तरह से उस की परीक्षा ले सकती हैं,

1. अपना मोबाइल बिना पासवर्ड के छोड़ जाएं और देखें कि वह खंगालता तो नहीं

प्रेमी की परीक्षा लेने के लिए सब से बेहतर उपाय यह है कि उस के पास अपना मोबाइल बिना पासवर्ड के छोड़ जाएं और आसपास ही या दूसरे कमरे में जा कर काम में व्यस्त होने का अभिनय करें. फिर छिप कर उस पर नजर रखें और देखें कि क्या वह मौका पा कर जल्दीजल्दी आप का मोबाइल चेक करने लगता है? क्या वह आप के कांटेक्टस, कॉल हिस्ट्री, मैसेज या फेसबुक वगैरह चेक करने लगा है और आप के आते ही जल्दी से फोन नीचे रख देता है? यदि ऐसा है तो तय मानिए कि उसे आप पर तनिक भी भरोसा नहीं. वह आप पर शक करता है. याद रखें जहां शक है वहां प्यार नहीं होता. ऐसा व्यक्ति छोटी सी बात पर भी आप को बात सुनाने या लड़ाईझगड़े करने से बाज नहीं आएगा. ऐसे प्रेमी से दूरी रखने में ही भलाई है.

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2. अकेले में घर बुलाएं और देखें कि क्या वह सेक्स ही चाहता है कुछ और नहीं

आप से प्रेम करने वाले शख्स के लिए आप और आप की खुशी महत्वपूर्ण होगी न कि सेक्स. वह आप का प्यार जीतना चाहेगा. हर तरह से करीब आना और खुशी देना चाहेगा. मगर करीब आने का मतलब केवल सेक्स ही नहीं होता. एक बार अपने प्रेमी को अकेले घर में बुला कर देखें. अकेले में उस का व्यवहार देख कर आप समझ सकेंगी कि उस के दिमाग में क्या चलता है. वह सिर्फ शरीर की भूख शांत करने पर उतारू हो जाता है या फिर आप के पास बैठ कर सुखदुख की बातें करता है, नईनई चीजें बना कर खाता है, आप का साथ एंजॉय करता है, अपना फ्यूचर डिसकस करता है और कुछ खूबसूरत रोमांस भरे हल्केफुल्के पल जीता है? जिसे इंसान प्यार करता है उस के साथ सेक्स की रजामंदी भी देता है. मगर वह प्यार की अंतिम सीमा है. शुरुआत में ही उसी मकसद को पाने की चाहत यह दिखाती है कि वह वास्तव में आप से जुड़ नहीं सका है. वह सिर्फ शारीरिक सुख के लिए ही आप को प्यार के सपने दिखा रहा है. जो लड़के अकेला घर मिलते ही प्रेमिका पर शारीरिक संबंध का दबाव डालने लगते हैं अक्सर प्यार की असली परीक्षा में फेल हो जाते हैं.

3. उसे खाने पर रेस्टोरेंट में बुलाएं और खुद न पहुंचे और बढ़िया बहाना बना कर देखें कि वह नाराज़ तो नहीं

आप अपने प्रेमी का प्यार परखने के लिए एक उपाय यह आजमा सकती हैं कि उसे खाने पर रेस्टोरेंट में बुलाएं और खुद न पहुंचे. उस के द्वारा फोन करने पर कोई अच्छा सा बहाना बना दें मसलन मम्मी की तबीयत ठीक नहीं या फिर आप को कोई अर्जेंट काम से कहीं जाना पड़ा है. ऐसे में उस के रिएक्शन पर गौर करें. यदि वह गुस्सा हो जाता है और फोन पर ही आप को बातें सुनाने लगता है या फिर बाद में मिलने पर ताने देता है तो समझ जाइए कि वह आप के प्रति उदार नहीं है. उसे लगता है जैसे आप से प्यार कर वह कोई एहसान कर रहा है. आप के द्वारा थोड़ी सी भी लापरवाही से वह चिढ़ रहा है तो ऐसे में जाहिर है कि वह शख्स सही अर्थों में आप से प्यार नहीं करता. प्यार करने वाला बंदा अपनी सुविधा के बजाय आप की सुविधा का ख्याल पहले रखेगा. वह समझेगा कि यदि आप नहीं आ सकीं तो इस के पीछे आप की मजबूरी होगी न कि लापरवाही. यदि आप का प्रेमी शांति से आप की समस्या सुनता है. मदद करने और ध्यान रखने की बात कह कर बिना कोई नाराजगी जताए फोन काट देता है. बाद में भी इस घटना को ले कर कोई बात नहीं सुनाता है तो समझ जाइए कि आप का प्रेमी धैर्यवान और अंडरस्टैंडिंग नेचर का है जो दो लोगों के बीच मजबूत रिश्ते के लिए जरूरी क्वालिटीज हैं.

4. गंभीर बीमारी या गर्भ ठहरने जैसे बहाने बनाएं और देखें कि वह भागता है, टालता है या साथ चलता है.

मान लीजिए कि आप की अपने प्रेमी के साथ टयूनिंग काफी अच्छी है. मगर याद रखिए इतना ही काफी नहीं है. आप को उस की परीक्षा लेनी चाहिए कि वह मुसीबत के समय आप का साथ देता है या नहीं. आप उस से अपनी किसी गंभीर बीमारी का जिक्र करें और देखें कि उस का प्यार आप के लिए वैसा ही कायम है या नहीं? वह आप को हर संभव मदद का आश्वासन देता है या फिर इग्नोर कर देता है?

इसी तरह आप उसे झूठ कह सकती है कि आप प्रैग्नैंट हैं. यह सुन कर उस का रिएक्शन क्या होता है इस पर गौर करें. क्या वह यह बात सुनते ही भाग खड़ा होता है और आप को इग्नोर करने लगता है या फिर कुछ जरूरी काम के बहाने बना कर दूरी बना लेता है? आप साथ हॉस्पिटल चलने को कहती हैं तो क्या वह साथ चलता है या फिर टालता रहता है? उस की इन हरकतों के आधार पर आप आसानी से समझ सकती हैं कि उस का वास्तविक रूप क्या है और वह क्या इंटेंशन रखता है. वह एक जिम्मेदार प्रेमी है या फिर आप के पास केवल मजे लेने या टाइम पास करने के उद्देश्य से आता है

5. अपनी किसी खूबसूरत सहेली से उस की दोस्ती करा कर देखिए

आप अपनी किसी ऐसी सहेली से अपने प्रेमी की दोस्ती कराएं जो दिखने में खूबसूरत और स्मार्ट होने के साथ ही आप की विश्वासपात्र भी हो. सहेली से कहिए कि वह प्रेमी के करीब जाए और उसे अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास करे. यदि आप के प्रेमी पर इस का कोई असर नहीं पड़ता और वह डबल गेम नहीं खेलता तो आप निश्चिंत हो सकती हैं. पर यदि उस की हरकतें कुछ और बयां करती हैं और वह चोरीछिपे उस लड़की पर भी लाइन मारने का प्रयास करता है तो समझ जाइए कि वह कभी भी आप को धोखा दे सकता है. इस परिस्थिति में यह भी संभव है कि आप की सहेली भी उस की तरफ आकर्षित हो जाए और दोनों मिल कर आप को धोखा दें. ऐसे में भी आप के लिए फैसला लेना आसान हो जाएगा कि उस प्रेमी पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं. साथ ही एक धोखेबाज सहेली का असली चेहरा भी सामने आ जाएगा.

6. यदि संबंध है तो तीनचार बार मना कर के देखें कि वह नाराज तो नहीं होता

मान लीजिए कि आप काफी समय से दूसरे को जानते हैं और थोड़े समय बाद आपसी सहमति से आप के बीच संबंध भी बन गए हैं और अब यह आप की दैनिक आदत बन चुकी है. आप दोनों ही प्यार के इस रूप को एंजॉय कर रहे हैं मगर ऐसे में एक बार यह जरूर परखने की कोशिश कीजिए कि शारीरिक रिश्ते के अलावा भी वह आप से प्यार करता है या नहीं? मन से कोई जुड़ाव है या नहीं? वह आप की खुशी या गम से सरोकार रखता है या नहीं? इस के लिए किसी बहाने से तीनचार बार सेक्स के लिए मना कर के उस का रिएक्शन देखें. क्या वह आप के इंकार करने पर नाराज हो जाता है और आप पर झल्लाने लगता है या छोड़ कर चला जाता है? यदि ऐसा है तो जाहिर है कि उसे आप से सच्चा प्यार नहीं. वह आप को यूज़ कर रहा है.

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7. उस की बहन या मां से अकेले में मिलें और पता करें कि वह आप के बारे में झूठ सच क्या कहता है

आप कभी कोशिश कर के उस की मां और बहन से अकेले में मिलें, उन से बातें करें और पता लगाने का प्रयास करें कि वह उन से आप के बारे में किस तरह की बातें करता है? उस ने आप की अच्छाइयां बढ़ाचढ़ा कर बताई हैं या झूठसच बातें सुनाई हैं? उन की बहन या मां की आप के बारे में क्या राय है उस पर भी ध्यान दें क्यों कि उन की राय बेटे द्वारा बताई गई बातों के आधार पर ही बनी होगी.

8. कहीं से बड़ी रकम जमा कर उसे रखने को दें और रात में 12 बजे मांगें

आप अपने प्रेमी की ईमानदारी और लगाव की परीक्षा लेने का प्रयास करें. अक्सर पैसे रिश्तों के बीच में आ जाते हैं. कुछ लोग हमेशा पैसे को सब से ऊपर रखते हैं. ऐसे लोग विश्वास के योग्य नहीं होते, आप अपने प्रेमी की परीक्षा लेने के लिए कहीं से बड़ी रकम जमा कर उसे रखने को दें और थोड़े अरसे बाद रात में 12 बजे वे रूपए माँगें. अब देखिए कि वह क्या करता है. क्या वह आप के लिए रात में भी रूपए ले कर आ जाता है या फिर उन रुपयों को हड़प जाता है, रुपयों के मामले में हेरफेर करता है और बहाने बनाता है? यदि वह आप से सही अर्थों में प्यार करता है तो एकएक पैसे को ले कर ईमानदारी बरतेगा. रकम कितनी भी हो वह किसी भी तरह का हेरफेर नहीं करेगा. आप जब कहेंगी तब रुपए ले कर पहुंच जाएगा. प्रेमी की ईमानदारी उस का आप के लिए एक बेहतरीन जीवनसाथी बनने का एक महत्वपूर्ण सबूत है.

9. प्रेमी के किसी गहरे दोस्त के साथ नाम बदल कर दोस्ती करें

आप अपने प्रेमी के किसी खास दोस्त के साथ नाम बदल कर फोन फ्रेंडशिप कर सकती हैं या फिर उसे अपने विश्वास में ले कर प्रेमी के राज जानने का का प्रयास कर सकती हैं. लड़के दोस्तों के आगे हर बात खुल कर बोलते हैं. समझदारी से काम लें तो प्रेमी के दोस्त के जरिए आप यह पता लगा सकेंगी कि वह वास्तव में आप के बारे में क्या सोचता है.

उम्मीदों के बोझ तले रिश्ते

रिश्ता कोई भी हो उसमें उम्मीदें अपने आप पनपने लगती हैं. उम्मीदों पर खरा उतर गए तो रिश्ता गहराने लगता है वरना दरारों में देर नहीं लगती. कुछ रिश्ते जन्म से जुड़े होते हैं जहां कई दफा लाठी मारने से पानी अलग नहीं होता. लेकिन उनका क्या जो बीच सफर में जुड़े वो भी जीवन भर के लिए. जब बात हो पति पत्नि के रिश्ते की तो उम्मीदें कई बार सामान्य से ज्यादा हो जाती हैं. उम्मीदें स्वाभाविक हैं लेकिन यही दुख का बड़ा कारण भी. यानि जितनी ज्यादा उम्मीद उतना बड़ा दुख. रिश्तों की कामयाबी के लिए कई बातों का ध्यान रखना होता है. इनमें ये भी शामिल है कि आप अपने साथी के लिए क्या करते हैं और बदले में क्या उम्मीद रखते हैं. लेकिन ये किस हद तक ठीक है जिससे रिश्ता खूबसूरती से आगे बढ़ता चले ये बात भी मायने रखती है. इसका एक आसान फॉर्मुला है 80/20.

क्या है 80/20?

रिश्ते की डोर दोनों साथी थामें हैं. यानि उम्मीदें दोनो ओर से हैं. ऐसे में तकरार से बचने के लिए 80/20 का फॉर्मुला आपके काम आ सकता है. यहां आपको खुद की उम्मीदों से अपने साथी को 20 प्रतिशत की रिहायत देने की जरूरत है. बचा 80 प्रतिशत उनको आपकी उम्मीदों पर खरा उतरने का मौका देगा और आपको रिश्ते में संतुष्टी का अहसास होगा. एक बात आपको समझने की जरूरत है सौ प्रतिशत कुछ भी संभव नहीं, फिर इंसानी गलतियां कुछ हद्द तक नजरअंदाज किए बिना कैसे निभाया जा सकता है? इसलिए ये बीस प्रतिशत की रियायत आपके साथी को भी खुलेपन का अनुभव होने देगी और आपको शिकायत का कम मौका मिलेगा.

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जानकारों की मानें तो

80/20 का फॉर्मुला जानकारों का सुझाया हुआ है. शोध बताते हैं कि ज्यादा उम्मीद रखने वाले साथियों में तकरार की स्थिति अधिक बनी रहती है. इसलिए जानकारों का मानना है कि रिश्ते की मिठास को बनाए रखने के लिए उम्मीदों के बोझ को कम करना बेहद जरूरी है. जानकार ही नहीं बड़े बुजुर्गों से भी अक्सर यही नसीहत मिलती है कि जितनी उम्मीदें कम उतनी खुशियां ज्यादा. इसलिए इस फॉर्मुला को लागू करने के लिए जरूरी है कि आप खुद को और अपने साथी को स्पेस दें.

डॉ अमूल्य सेठ, साइकैटरिस्ट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल गाजियाबाद से बातचीत पर आधारित

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थोड़ी सी बेवफ़ाई में क्या है बुराई

हाल ही में सोशल मीडिया पर ममता बनर्जी का एक पुराना वीडियो काफ़ी वायरल हो गया. इस वीडियो में ममता महिलाओं के प्रति अपने खुले विचारों का प्रदर्शन करती हुई नज़र आईं. वायरल वीडियो में ममता कहती हुई दिख रही हैं कि अगर कोई भी महिला अपने पसंद के पुरुष के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखना चाहती है तो वह बिलकुल रख सकती है.

उन के शब्दों में ,’ मैं सभी गृहिणियों को यह बताना चाहती हूँ कि यदि आप कभी भी एक्स्ट्रा मैरिटल संबंध में रहना चाहती हैं तो आप यह कर सकती हैं. इस के लिए मैं आप को अनुमति दूँगी.’

ममता बनर्जी द्वारा दिए गए इस टेंपटेशन का बहुत से लोगों ने विरोध किया, नाकभौं सिकोड़े. बहुतों ने इसे नैतिकता विरोधी बताया तो कुछ लोग महिलाओं के जीवन में सच्चरित्रता की आवश्यकता पर उपदेश देने बैठ गए. लोगों को यह बात हजम ही नहीं हुई कि औरतों को ऐसे संबंधों की छूट भी मिल सकती है.

पर जरा सोचिये क्या हमारे समाज में इस मामले में पूरी तरह से दोहरे मानदंड नहीं हैं? पुरुष वैश्याओं के पास जाएं, अपनी यौन क्षुधा की पूर्ति के लिए रेप करें, वासना की आग में जल कर छोटीछोटी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद कर डालें तो भी ज्यादातर लोग मुंह पर टेप लगा कर बैठे रहते हैं. उस वक्त महिलाओं पर हो रहे शोषण को देख कर उन का खून नहीं खौलता. उस वक्त पुरुषों की सच्चरित्रता की आवश्यकता भी महसूस नहीं होती. पर जब बात स्त्रियों की आती है तो लोगों का नजरिया ही बदल जाता है. स्त्रियों पर नैतिकता के झूठे मानदंड स्थापित किये जाते हैं. सच्चरित्रता के नाम पर स्त्रियों पर बंधन डालना एक तरह से धार्मिक षड्यंत्र ही है. धर्मग्रंथों ने हमेशा हमें यही सिखाया है कि स्त्रियां पुरुषों की दासी हैं. पुरुष हर जगह अपनी मनमरजी से चल सकते हैं मगर स्त्रियों को एकएक कदम भी पूछ कर ही आगे बढ़ाना चाहिए.

यह वही समाज है जहां नीयत पुरुषों की खराब होती है और घूँघट औरतों को लगा दिया जाता है. बदचलनी पुरुष करते हैं और बदनाम औरतों को कर दिया जाता है. ऐसे में अगर कोई बराबरी की बात करे, महिलाओं को खुल कर जीने का मौका देने की वकालत करे तो धर्म के तथाकथित रक्षकों के सीने पर सांप लोटने लगते हैं. जब पुरुष बेवफाई करे तो मसला बड़ा नहीं होता मगर स्त्री बात भी कर ले तो हायतौबा मच जाती है.

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आज के समय में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कोई बड़ी बात नहीं रह गई है. बड़े शहर हों या छोटे जब स्त्री पुरुष मिल कर काम करते हैं, एकदूसरे के साथ वक्त बिताते हैं तो ऐसे रिश्ते बनने बहुत स्वाभाविक हैं. अस्वाभाविक बस इतना है कि स्त्रियां ऐसा करें या करने की बात भी कर दें तो नैतिकता का पालन कराने वाले तथाकथित धर्म रक्षकों के सीने में आग लग जाती है.

शादी में समर्पण का बोझ सिर्फ महिलाओं पर

अगर एक पुरुष एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स में इन्वॉल्व होता है और इस की जानकारी घरवालों को होती है तो भी कोई कुछ नहीं कहता. मगर यही काम एक औरत करे तो हल्ला मच जाता है. समाज के तथाकथित संचालक और धर्म व संस्कारों के रक्षक हंगामे खड़े कर देते हैं. उस महिला का समाज में निकलना दूभर कर दिया जाता है. घरवाले उस पर तोहमतें लगाने लगते हैं. आज अगर औरतें कह रही हैं कि हमें अपने पति के अलावा भी बाहर कहीं रिश्ता बनाने का हक़ है तो यह बात लोगों को हजम नहीं होती. लेकिन आदमी को सारी छूटें मिली हुई हैं. इस तरह के भेदभाव पूर्ण रवैये ने हमेशा ही औरतों को शिकंजे में रखा है. शादी होती है तो यह वचन लिया जाता है कि दोनों अपने साथी के लिए ही समर्पित रहेंगे. लेकिन इस वचन का पालन सिर्फ औरतों से ही कराया जाता है.

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से कुछ लोगों को मिलती है खुशी

अमेरिका की एक रिसर्च बताती है कि विवाहेतर संबंध रखने वाले कुछ लोग ज्‍यादा खुश रहते हैं. अमेरिका की मिसौरी स्‍टेट यूनिवर्सिटी की डॉ. एलीसिया वॉकर ने एश्‍ले मेडिसीन नामक एक डेटिंग साइट के एक हजार से ज्यादा यूजर्स के बीच एक सर्वे किया. यह डेटिंग साइट भी अनोखी है जो केवल विवाहित जोड़ों या रिलेशनशिप में रह रहे कपल्स के लिए डेटिंग सुविधा उपलब्ध कराती है. सर्वे में शामिल लोगों से पूछा गया कि अपनी गृहस्‍थी से बाहर किसी से संबंध बनाने के बाद उन के जीवन की संतुष्टि’ पर क्या असर पड़ा.

10 में से 7 लोगों ने कहा कि विवाहेतर संबंध करने के बाद वे अपनी शादीशुदा जिंदगी से ज्‍यादा संतुष्ट हैं. आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों से ज्‍यादा महिलाएं अपने विवाहेतर संबंधों की वजह से ‍ज्यादा खुश थीं. इस संतुष्टि को प्रभावित करने वाले बहुत से कारकों में सर्वप्रमुख था, अपनी गृहस्थी में पार्टनर से यौन संतुष्टि न मिल पाना लेकिन बाहर वाले पार्टनर से इस खुशी का मिलना.

अफेयर खत्म होने के बाद और खुशी

जब यह विवाहेतर संबंध खत्म हो जाते हैं तब क्‍या अपने पार्टनर को धोखा देने वाले को पछतावा होता है? इस सवाल का जवाब भी हैरान करने वाला था. शोध में शामिल लोगों ने कहा कि विवाहेतर संबंध खत‍म होने पर तो जीवन में पहले से भी ज्यादा संतुष्टि का अनुभव होता है.

PubMed नामक एक जर्नल में भी इसी तरह की एक रिसर्च छपी थी जिस में कहा गया था कि जो लोग अपनी शादी के बाहर किसी से अफेयर करते हैं, लेकिन इस की जानकारी अपने पार्टनर को नहीं देते, वे ज्यादा खुश रहते हैं.

थोड़ी सी बेवफ़ाई

इस का मतलब यह नहीं कि शादीशुदा जिंदगी की समस्‍याओं से निपटने का यह सही समाधान है. अपने पार्टनर को धोखा दे कर मिलने वाली खुशी अस्‍थायी होती है. पहले बातचीत कर के आप को अपनी शादीशुदा जिंदगी को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए. मगर परिणाम बेहतर न निकलें तो खुद परेशान होते रहने से बेहतर है कि जीवन में कुछ रोमांच लाएं भले ही इस के लिए थोड़ी सी बेवफ़ाई ही क्यों न करनी पड़े.

पुरुषों से ज्‍यादा महिलाओं के एक्‍स्‍ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप

आप को एक सच और बता दें और वो यह कि इस मामले में स्त्रियां आगे हैं. एक्स्ट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप ग्लीडन ने एक रिसर्च किया जिस में 53 फीसदी भारतीय महिलाओं ने माना है कि वे अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ इंटिमेट रिलेशनशिप में हैं. जबकि शादी के बाहर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखने वाले पुरुषों की संख्या 43 फीसदी थी.

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ग्लीडन का यह रिसर्च ऑनलाइन कराया गया था जिस में दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, पुणे, अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे बड़े शहरों के 1500 लोगों ने भाग लिया. रिसर्च में खुलासा हुआ कि पुरुषों के मुकाबले उन महिलाओं की संख्या ज्यादा थी जो नियमित रूप से अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों से रिश्ता रखती हैं.

सर्वे के मुताबिक़ 77 प्रतिशत भारतीय महिलाओं का कहना था कि उन के द्वारा पति को धोखा देने की वजह उन की शादी का नीरस हो जाना था. जब कि कुछ ने इसलिए धोखा दिया क्योंकि पति घरेलू कामों में हिस्सा नहीं लेते हैं. वहीं कुछ को शादी से बाहर एक साथी को खोजने से जीवन में उत्साह का अहसास हुआ. 10 में से 4 महिलाओं का मानना है कि अजनबियों के साथ मौजमस्ती के बाद जीवनसाथी के साथ उन का रिश्ता और अधिक मजबूत हुआ है.

प्रश्न यह उठता है कि क्या शादी जैसी संस्था महिलाओं के लिए बोझ बन रही है और क्या इस के लिए पुरुष ज्यादा जिम्मेदार हैं या फिर यह समाज की दकियानूसी सोच के खिलाफ महिलाओं की बगावत है.

बराबरी के नहीं पतिपत्नी के रिश्ते

भारत में पतिपत्नी के रिश्तों में बहुत भेदभाव है. ये रिश्ते बराबरी के नहीं हैं. ज्यादातर घरों में पति को मुखिया और पत्नी को दासी बना दिया जाता है. पति दूसरी औरत के साथ हंसीमजाक करे तो यह स्वाभाविक है और औरत करे तो वह वैश्या हो जाती है. पति रूपए कमाए तो वह सर्वेसर्वा बन जाता है मगर पत्नी कमाई करे फिर भी नौकरानी की तरह घर को भी संभाले. पति के लिए ऑफिस चले जाना ही उन की ड्यूटी है जो वह कर रहा है. वहीं पत्नी अगर वर्किंग है तो भी पूरे घर के काम कर के ही ऑफिस जा सकती है. वह बीमार है तो भी कोई मदद करने नहीं आता. यही वजह है कि अब महिलाऐं अपने बारे में भी सोचना चाहती हैं ताकि उन के जीवन में कुछ एक्साइटमेंट आए.

प्यार और तारीफ की जरूरत सब को होती है

शादीशुदा जिंदगी एक वक्त के बाद नीरस हो जाती है. देखा जाए तो महिला की जिंदगी काफी कठिन है. पुरुष ऑफिस जा कर फ्री हो जाते हैं. लेकिन महिलाओं को घर की हर छोटीछोटी ज़रूरतों का ख्याल रखना पड़ता है और बदले में तारीफ के दो शब्द भी नहीं मिलते. ऐसे में महिलाएं ऐसा शख्स ढूंढने लगती हैं उन्हें कहे कि वे सब से ज्यादा सुंदर हैं. शादी के कुछ दिन बाद या फिर बच्चे होने के बाद से ही पति उन्हें भाव नहीं देते. दो शब्द तारीफ़ के भी नहीं कहते. पहले की तरह रोमांस में समय भी नहीं बिताते. ऐसे में अपने अंदर पहले सी ताजगी और उत्साह लाने के लिए दूसरे पुरुष की तरफ उन का झुकाव हो सकता है.

महिलाएं क्‍यों करती हैं एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स

पति/पत्नी यानी जीवनसाथी से इंसान अपने मन की हर बात शेयर करता है. हर राज खोल देता है. खासकर महिलाएं जब तक किसी से अपना सुखदुख शेयर न कर लें उन्हें चैन नहीं पड़ता. मगर कई बार जब पत्नी को अपने पति का पूरा साथ नहीं मिल पाता और पति उसे इग्नोर करता है तो पत्नियां अपने दिल की बातें शेयर करने के लिए किसी और को तलाशती हैं और इस में ऐसा कुछ बुरा भी नहीं है. इस से उन की जिंदगी में वह उत्साह, उमंग और तरंग फिर से जागने लगती हैं जो अन्यथा उन की रोजाना की वैवाहिक जिंदगी से गायब हो चुकी थी.

जब विवाहित जिंदगी में सेक्स रोजाना का एक बोझिल रूटीन बन जाता है तो समझिये वह समय आ गया है जब महिलाएं अपने जीवन में खुशियां और उत्साह वापस लाने के लिए किसी अफेयर से जुड़ने की ख्वाहिश रखने लगती हैं. यह लव अफेयर उन्हें किसी सौगात से कम नहीं लगता.

अक्सर अपने बिजी शेड्यूल के कारण पति और पत्नी समानांतर जिंदगी जीने लगते हैं. उन्हें आपस में बातचीत करने का भी समय नहीं मिल पाता. यहां तक कि वीकेंड और छुट्टी के दिन भी वे एकदूसरे से कटेकटे ही रहते हैं. बच्चों के जन्म के बाद भी कई पति अपनी पत्नी से पहले सा प्यार नहीं कर पाते. वे उन्हें एक बच्चे की मां के रूप में देखने लगते हैं. अपनी पत्नी या प्रेमिका के रूप में नहीं देख पाते. ऐसे में महिलाओं के मन में अवसाद और निराशा पनपने लगती है. इस से निकलने के लिए ही वे ऐसे रिश्ते की तलाश करती हैं.

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वस्तुतः महिलाएं अपने पति से प्यार और आत्मीयता चाहती है और जब यह आत्मीयता महिलाओं को अपनी जिंदगी में नहीं मिलती तो उन के पास शादी से बाहर प्यार की तलाश करने के अलावा और कोई विकल्प बाकी नहीं रहता.

सच तो यह है कि महिलाओं के लिए असफल शादी की स्थिति को झेलने से ज्यादा बुरा कुछ नहीं होता. जिस शादी में अपनापन, इज़्ज़त और पति के प्यार की कमी होती है वहां महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है. वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं. ऐसे में शादी से बाहर प्रेम संबंध बना कर वे अपनी उबाऊ और असफल शादी के दर्द को भुलाने का प्रयास करती हैं. महिलाएं किसी अपने जैसे पार्टनर की तलाश करने का प्रयास करती हैं जिन की रुचियां और आदतें उन से मिलतीजुलती हों. इस में गलत क्या है?

मैं ससुराल के माहौल से नाखुश हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

  मैं 23 वर्षीय नवविवाहिता हूं. शादी के बाद ढेरों सपने संजोए मायके से ससुराल आई, मगर ससुराल का माहौल मुझे जरा भी पसंद नहीं आ रहा. मेरी सास बातबेबात टोकाटाकी करती रहती हैं और कब खुश और कब नाराज हो जाएं, मैं समझ ही नहीं पाती. वे अकसर मुझ से कहती रहती हैं कि अब तुम शादीशुदा हो और तुम्हें उसी के अनुरूप रहना चाहिए. मन बहुत दुखी है. मैं क्या करूं, कृपया सलाह दें?

जवाब-

अगर आप की सास का मूड पलपल में बनताबिगड़ता रहता है, तो सब से पहले आप को उन्हें समझने की कोशिश करनी होगी. खुद को कोसते रहना और सास को गलत समझने की भूल आप को नहीं करनी चाहिए. घरगृहस्थी के दबाव में हो सकता है कि वे कभीकभी आप पर अपना गुस्सा उतार देती हों, मगर इस का मतलब यह कतई नहीं हो सकता कि उन का प्यार और स्नेह आप के लिए कम है.

दूसरा, अपनी हर समस्या के समाधान और अपनी हर मांग पूरी कराने के लिए आप ने शादी की है, यह सोचना व्यर्थ होगा. किसी बात के लिए मना कर देने से यह जरूरी तो नहीं कि वे आप की बेइज्जती करती हैं.

आज की सास आधुनिक खयालात वाली और घरगृहस्थी को स्मार्ट तरीके से चलाने की कूवत रखती हैं. एक बहू को बेटी बना कर तराशने का काम सास ही करती हैं. जाहिर है, घरपरिवार को कुशलता से चलाने और उन्हें समझने के लिए आप की सास आप को अभी से तैयार कर रही हों.

बेहतर यही होगा कि आप एक बहू नहीं बेटी बन कर रहें. सास के साथ अधिक से अधिक समय रहें, साथ घूमने जाएं, शौपिंग करने जाएं. जब आप की सास को यकीन हो जाएगा कि अब आप घरगृहस्थी संभाल सकती हैं तो वे घर की चाबी आप को सौंप निश्चिंत हो जाएंगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

वर्कप्लेस को ऐसे बनाएं खास

पहला भाग पढ़ें- जौब से करेंगे प्यार तो सक्सेस मिलेगी बेशुमार

औफिस में काम करने के लिए जरूरी है कि हम अपने बर्ताव पर ध्यान देना चाहिए ताकि हमारी लाइफ स्मूदली चलती है. इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे, जिसे आप औफिस में अपने मूड स्विंग्स को कंट्रोल करते हुए एक अच्छा वर्कप्लेस बनाएंगे. तो आइए जानते हैं वर्क स्पेस से जुड़ी बातें…

1. सबसे पहले पसंदीदा काम करें

सुबह की शुरुआत 15 मिनट पहले करें. इस समय का इस्तेमाल उन कामों के लिए करें जो आप को ऊर्जावान बनाते हों. सुबह की शुरुआत सही होगी, तो पूरा दिन अच्छा गुजरेगा.

2. नापसंद काम लंच से पहले करें

कई काम पसंद तो नहीं होते, लेकिन उन्हें करना आप की जिम्मेदारी होती है. जैसे, किसी चिड़चिड़े ग्राहक से बात करना, किसी घिसीपिटी, असफल फाइल पर पत्राचार करना या उलझा हुआ हिसाबकिताब फिर से जांचना आदि. इन कामों को लंच से पहले कर डालें, ताकि लंच करने के बाद आप फ्रैश मूड में काम कर सकें.

 3. किसी के लिए अच्छा करें

दिन का ऐसा समय चुनें जब आप सब से ज्यादा थके हुए या नाखुश हों. इस समय औफिस में किसी कलीग की बिना अपेक्षा के मदद करें. इस का पौजिटिव असर होगा. मदद करने से जीवन में खुशियां आती हैं, साथ ही उन में आप के प्रति अच्छी भावना भी आएगी.

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4. कृतज्ञता जताना सीखें

आप को जो काम करने का मौका मिला है, उस के लिए धन्यवाद कहें. किसी भी काम को इस तरह से पूरा करें कि वह आप को अपने मकसद के थोड़ा और करीब ले जाए. खुद को मिली आजादी और मौके के लिए कृतज्ञ रहें. आप गौर करें कि आभार जताते समय दुखी नहीं रहा जा सकता. जीवन को महसूस करने की कोशिश करें.

वर्कप्लेस पर खुशियां ढूंढ़ें ताकि आप खुश रहें. बौस के गलत व्यवहार और विफलताओं को भुला कर आगे बढ़ें. नैगेटिव खयाल आप को कुछ नहीं देते. आप को जिन कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है उन्हें खुशीखुशी पूरा करें.

रिश्ते पर भारी न पड़ जाएं राजनीतिक मतभेद

हम अक्सर राजनीतिक मुद्दे पर लोगों को वादविवाद करते देखते हैं. लेकिन कई बार ये विवाद झगड़े का रूप भी ले लेते हैं. रिश्ते कितने भी अच्छे क्यों न हों जब सोच अलग होती है तो उन में दरार आ ही जाती है.

ऐसा ही कुछ हुआ सपना और नीलम के बीच. नीलम पढ़ने में तेज है, सामाजिक भी है, पारिवारिक भी है, लेकिन अकसर जब वह अपने दोस्तों के साथ होती है और वादविवाद के दौरान राजनीतिक मुद्दे आ जाते हैं तो वह बहुत अग्रैसिव हो जाती है. चेहरा लाल हो जाता है. कभीकभी तो गुस्से में कांपने भी लगती है.

कुछ दिनों पहले की बात है. नीलम और सपना अपने बाकी दोस्तों के साथ कालेज की कैंटीन में बैठे थे. चाय पीतेपीते सब की नजर कैंटीन में लगे टीवी पर थी. तभी किसी एक राजनीतिक दल का प्रचार आने लगा. नीलम ने प्रचार देखते ही कहा, ‘‘देखना, इस बार इसी की सरकार बनेगी. सही माने में ऐसा नेता ही देश का सिपाही है.’’

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नीलम की इस बात से सपना सहमत नहीं थी. वह अपनी राय देते हुए बोली, ‘‘किसी खास नेता का पक्ष करना एक व्यक्तिगत मामला है. तुम्हें यह पसंद होगा मुझे नहीं.’’

इस पर नीलम का मुंह बन गया. उस ने चाय के कप को सपना की तरफ गुस्से में पटकते हुए कहा, ‘‘क्यों इस में क्या खराबी है?’’

तभी वहां बाकी दोस्तों ने भी इस राजनीतिक दल और इस के विचारों का विरोध किया. नीलम अकेले उस के पक्ष में थी. सपना और बाकी दोस्त उस दल की खामियां निकालने में लगे हुए थे. ऐसे में नीलम खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगी. फिर वह गुस्से में पैर पटकती हुई वहां से चली गई.

नीलम और सपना आसपास ही रहती थीं. इसलिए दोनों कालेज भी एकसाथ आयाजाया करती थीं. लेकिन उस दिन नीलम बिना बताए ही कालेज से निकल गई. सपना ने जब उसे फोन कर के पूछा कि कहां है तो नीलम ने अनमने ढंग से कहा, ‘‘मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए मैं जल्दी घर आ गई.’’

सपना यह सुन कर उस का हाल जानने के लिए कालेज से सीधे नीलम के घर चली गई. वहां उस ने नीलम को अपने भाई के साथ छत पर बैडमिंटन खेलते पाया. उसे देख कर ऐसा लगा ही नहीं कि उस की तबीयत खराब है. सपना ने नीलम से बात करने की कोशिश की तो नीलम उसे नजरअंदाज करते हुए चली गई.

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कुछ दिनों तक सपना ने भी नीलम से बात नहीं की. एक दिन कालेज में डिबेट प्रतियोगिता आयोजित की गई. इस में छात्रों को किसी एक राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में बोलना था. इस प्रतियोगिता में सपना और नीलम ने भी भाग लिया. नीलम को ऐसे दल का नाम दिया गया जिस के पक्ष में सपना थी.

पहले बारी सपना ने किसी राजनीतिक दल की तारीफों के पुल बांध दिए. लेकिन जब नीलम की बारी आई तो उस ने शुरुआत ही ऐसे की जैसे मानो किसी ने उस के घर वालों को कुछ उलटा बोल दिया हो. दरअसल, नीलम कैंटीन की बात को भूली नहीं थी, इसलिए इस डिबेट के सहारे वह अपने दोस्तों को जवाब दे रही थी. प्रतियोगिता तो वह जीत गई, लेकिन इस राजनीतिक मतभेद के बाद अपने दोस्तों से दूर हो गई.

आमतौर पर बसों में, ट्रेनों में अथवा किसी सार्वजनिक जगह पर हम अकसर लोगों को राजनीतिक मुद्दे पर बात करते हुए देखते हैं. सार्वजनिक जगहों पर जब ऐसे मुद्दे उठाए जाते हैं तो यह लड़ाई की खास वजह बनती है. कोई जरूरी नहीं है कि वहां एकमत राय रखने वाले लोग हों.

चुनावी शोर

चुनावी समय शुरू होने से पहले ही लोग अलगअलग समूहों में दिखने लग जाते हैं. कल तक जो एकसाथ बैठ कर चाय पीते थे वे अलगअलग राजनीति दलों के सहायक बन कर एकदूसरे से लड़ने पर उतारू हो जाते हैं जैसे कोई इन की संपत्ति हड़पने की कोशिश कर रहा हो.

राजनीतिक मुद्दे पर अपनी बात रखना, अपनी राय देना हर किसी का अधिकार है, लेकिन इन मुद्दों की आड़ में लोग एकदूसरे से झगड़ने लग जाते हैं. एक  तरफ यह देख कर अच्छा लगता है कि देश की जनता इन मुद्दों पर आपस में वादविवाद करती है, लेकिन सोचिए अगर यही मुद्दे दुश्मनी की वजह बन जाएं तो?

दिल्ली मैट्रो में या तो लोग मौन व्रत रखे नजर आते हैं या फिर मोबाइल में खोए नजर आते हैं. लेकिन बात जब राजनीतिक मुद्दों पर बहस करने की आती है तो 2 अनजान व्यक्ति कब दोस्त बन जाते हैं और 2 दोस्त कब अनजान बन जाते हैं, इस का पता ही नहीं चलता.

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सौरभ और उस का दोस्त अमित मंडीहाउस से नोएडा जाने के लिए मैट्रो में चढ़े. दोनों की पहले से ही किसी विषय पर बात हो रही थी, लेकिन धीरेधीरे दोनों की आवाज पूरी मैट्रो में गूंजने लगी. दरअसल, दोनों राजनीतिक मुद्दे पर बात कर रहे थे. दोनों एकदूसरे से तेज आवाज में बात कर रहे थे. साइड में बैठा एक युवक सौरभ का साथ देते हुए दूसरे राजनीतिक दल की बुराई करने लगा. धीरेधीरे 2-4 लोग और बोल उठे. ऐसे में दोनों दोस्तों के बीच तूतू, मैंमैं शुरू हो गई. यह देखते ही बाकी लोग शांत हो गए. कुछ लोगों ने दोनों को शांत करवाया. दोनों शांत तो हो गए, लेकिन जैसे ही मैट्रो से बाहर निकले दोनों का गुस्सा साफ नजर आ रहा था.

राजनीतिक मुद्दों पर वादविवाद हर कोई करता है. इन मुद्दों के कारण रिश्तों में खटास आ जाए तो यह सरासर मूर्खता है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि वादविवाद से हमारी समझ बढ़ती है, बहुत कुछ नया मालूम होता है, सामान्य ज्ञान में सुधार होता है, आत्मविश्वास भी बढ़ता है, मगर जब आप ऐसे मुद्दों को उठाते हैं, उन पर विचारविमर्श करते हैं तो नकारात्मक रूप से नहीं, बल्कि एक समूह में रह कर भी इन मुद्दों पर बात की जा सकती है. लेकिन कुछ लोग ऐसा नहीं करते. कई बार ऐसे मामले हिंसक भी हो जाते हैं, जो बड़े हादसे का रूप ले लेते हैं.

बुरे वक्त में मदद के लिए आप के पास कोई नेता नहीं आएगा. आप का दोस्त ही आएगा. इसलिए रिश्ते सब से पहले हैं, राजनीतिक मुद्दों के कारण संबंध खराब न करें.

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