Mother’s Day Special: Healthy प्रैग्नेंसी के लिए 5 नियमित जांच

गर्भधारण करना किसी भी महिला के लिए सब से बड़ी खुशी की बात और शानदार अनुभव होता है. जब आप गर्भवती होती हैं, तो उस दौरान किए जाने वाले प्रीनेटल टैस्ट आप को आप के व गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं. इस से ऐसी किसी भी समस्या का पता लगाने में मदद मिलती है, जिस से शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है जैसे संक्रमण, जन्मजात विकार या कोई जैनेटिक बीमारी. ये नतीजे आप को शिशु के जन्म के पहले ही स्वास्थ्य संबंधी फैसले लेने में मदद करते हैं.

यों तो प्रीनेटल टैस्ट बेहद मददगार साबित होते हैं, लेकिन यह जानना भी महत्त्वपूर्ण है कि उन के परिणामों की व्याख्या कैसे करनी है. पौजिटिव टैस्ट का हमेशा यह मतलब नहीं होता है कि आप के शिशु को कोई जन्मजात विकार होगा. आप टैस्ट के नतीजों के बारे में अपने डाक्टर से बात करें और उन्हें समझें. आप को यह भी पता होना चाहिए कि नतीजे मिलने के बाद आप को सब से पहले क्या करना है.

डाक्टर सभी गर्भवती महिलाओं को प्रीनेटल टैस्ट कराने की सलाह देते हैं. कुछ महिलाओं के मामले में ही जैनेटिक समस्याओं की जांच के लिए अन्य स्क्रीनिंग टैस्ट कराने की जरूरत पड़ती है.

5 नियमित टैस्ट

गर्भावस्था के दौरान कुछ नियमित टैस्ट यह सुनिश्चित करने के लिए होते हैं कि आप स्वस्थ हैं. आप का डाक्टर आप के खून और पेशाब की जांच कर कुछ परिस्थितियों का पता लगाएगा. इन में निम्नलिखित टैस्ट शामिल हैं

1. हीमोग्लोबिन (एचबी)

2. ब्लड शुगर एफ और पीपी

3. ब्लड ग्रुप टैस्ट

4. वायरल मार्कर टैस्ट

5. ब्लड प्रैशर

अगर आप गर्भधारण करने के बारे में सोच रही हैं, तो डाक्टर आप को फौलिक ऐसिड (सप्लिमैंट्स) टैबलेट्स लेने की सलाह दे सकता है. ये टैबलेट लेने की सलाह आप को तब भी दी जा सकती है, जब आप स्वस्थ हों और अच्छा आहार भी ले रही हों. विटामिन बी सप्लिमैंट्स और कैल्सियम लेने की सलाह सभी गर्भवती, स्तनपान करा रही महिलाओं और स्तनपान कर रहे शिशुओं को दी जाती है. इन्हें शुरू करने से पहले डाक्टर से सलाह जरूर ले लें.

अन्य टैस्ट

स्कैनिंग टैस्ट

अल्ट्रासाउंड आप के शिशु और आप के अंगों की पिक्चर लेने के लिए ध्वनि तरंगों का इस्तेमाल करता है. अगर आप की गर्भावस्था सामान्य है, तो आप को 2-3 बार यह कराना होगा. पहली बार शुरुआत में यह देखने के लिए कि क्या स्थिति है, दूसरी बार शिशु का विकास देखने के लिए करीब 18-20 सप्ताह का गर्भ होने पर, जिस से यह सुनिश्चित हो सके कि शिशु के शरीर के सभी अंग अच्छी तरह विकसित हो सकें.

जैनेटिक टैस्ट

प्रीनेटल जैनेटिक टैस्ट विशेष तौर पर उन महिलाओं के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं, जिन के शिशु को जन्मजात विकार या जैनेटिक समस्या होने का जोखिम ज्यादा होता है. ऐसा निम्न परिस्थितियों के दौरान होता है.

– आप की उम्र 35 वर्ष से अधिक है.

– आप को कोई जैनेटिक बीमारी है या आप के व आप के साथी के परिवार में किसी जैनेटिक बीमारी का इतिहास हो.

– आप का पहले गर्भपात हुआ हो या मृत शिशु पैदा हुआ हो.

डा. मोनिका गुप्ता, एमडी, डीजीओ गाइनोकोलौजिस्ट के अनुसार, स्वस्थ गर्भावस्था के लिए इन जांचों के बारे में जानकारी होनी जरूरी है. प्रीनेटल टैस्ट में ब्लड टैस्ट शामिल है, जिस से आप के ब्लड टाइप, आप को ऐनीमिया है या नहीं इस के लिए आप के हीमोग्लोबिन का स्तर, डायबिटीज की जांच के लिए ब्लड ग्लूकोज का स्तर, आप का आरएच फैक्टर (अगर आप का ब्लड आरएच नैगेटिव है और शिशु के पिता का ब्लड आरएच पौजिटिव है, तो शिशु में भी पिता का आरएच पौजिटिव ब्लड हो सकता है, जिस से आप के शरीर में ऐंटीबौडीज बननी शुरू हो सकती हैं और उस से आप के गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है) जांचा जाएगा. एचआईवी, हैपेटाइटिस सी और बी जैसी बीमारियों के लिए आप का वायरल मार्कर टैस्ट भी होगा, क्योंकि गर्भावस्था के दौरान ये बीमारियां हो सकती हैं.

अगर आप को पहले से जानकारी हो कि आप को व आप के साथी को एक खास बीमारी है, तो आप पहले से ही भावनात्मक तौर पर तैयार हो सकती हैं. पहले से जानकारी होने पर आप

को परिस्थितियों पर बेहतर नियंत्रण रखने में आसानी होगी.

-डा. सुनीता यादव

प्रमुख क्वालिटी कंट्रोल, डालमिया मैडिकेयर

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ब्रैस्ट कैंसर और ब्रैस्ट फीडिंग से जुड़ी प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल-

स्तन कैंसर के क्या कारण हैं?

जवाब-

स्तन कैंसर एक घातक ट्यूमर है, जिस की शुरुआत स्तन कोशिकाओं में होती है. दुनिया भर में महिलाओं को होने वाले कैंसर में यह सब से आम है. महिलाओं को होने वाले सभी कैंसरों में स्तन कैंसर का हिस्सा 25 से 32% है. महिलाओं में बाहरी कारणों से होने वाले कैंसर में यह 22.9% है. स्तन कैंसर के मुख्य कारणों में महिला होना, आयु, स्तन कैंसर का पारिवारिक इतिहास, मोटापा, व्यायाम न करना, शराब पीना, रैडिएशन के संपर्क में रहना आदि हैं. बहुत सारी महिलाएं अपने बच्चे को शुरू के समय में स्तनपान नहीं कराती हैं. ऐसा कर के वे न सिर्फ खुद को, बल्कि अपने बच्चे के स्वास्थ्य को भी जोखिम में डालती हैं. अध्ययन से पता चला है कि अपने बच्चों को स्तनपान न कराने वाली महिलाएं स्तन कैंसर के लिहाज से ज्यादा जोखिम में रहती हैं. स्तन कैंसर होने का जोखिम महिलाओं की उम्र के साथ बढ़ता जाता है. उम्र बढ़ना और किसी करीबी रक्त संबंधी के कैंसर वाले जीन से जेनेटिकली प्रभावित होना भी स्तन कैंसर के संभावित कारणों में है. सच तो यह भी है कि एक स्तन में कैंसर वाली महिलाओं के दूसरे स्तन में भी कैंसर होने की आशंका बढ़ जाती है.

सवाल-

स्तनपान कराने से स्तन कैंसर की आशंका कम कैसे होती है?

जवाब-

वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनैशनल ने अपने अध्ययन में कहा है कि जो महिलाएं कम से कम 1 साल स्तनपान कराती हैं, ऐसा नहीं है कि उन्हें स्तन कैंसर होने की संभावना 5% कम होती है. स्तनपान कराने की किसी महिला की अवधि जितनी ज्यादा होगी उस का हारमोन स्तर उतना ज्यादा होगा. इस की आवश्यकता दूध बनाने के लिए होती है. इस से सैल का विकास प्रभावित होता है और स्तन को उन बदलावों से सुरक्षा मिलती है जो ऐसा नहीं होने पर संबंधित महिला को स्तन कैंसर के जोखिम में डाल देते. स्तनपान कराने के दौरान महिला की डिंबग्रंथि काम नहीं करती है. इस से भी स्तन या डिंबग्रंथि के कैंसर से बचाव होता है.

सवाल-

स्तनपान न कराने से कैसे स्तन कैंसर की आशंका बढ़ती है?

जवाब-

कई अध्ययनों से पता चला है कि स्तनपान कराने से स्तन कैंसर का जोखिम कम हो जाता है. खासकर स्तनपान अगर डेढ़दो साल चले. यानी स्तनपान से महिला को कैंसर से सुरक्षा मिलती है. एक अध्ययन के नतीजे से तो यह पता चला है कि महिला के जितने ज्यादा बच्चे हों और वह उन्हें जितनी लंबी अवधि तक स्तनपान कराती हो, उसे स्तन कैंसर होने का जोखिम उतना ही कम रहता है. अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि शिशु जन्म के बाद जिन माताओं ने अपने शिशु को स्तनपान कराया, वे स्तनपान नहीं कराने वाली महिलाओं से स्तन कैंसर के मामले में ज्यादा सुरक्षित रहीं.

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सवाल-

मां और बच्चे को स्तनपान कराने के क्या लाभ हैं?

जवाब-

स्तनपान कराने के लाभ बहुत हैं. प्रसव के बाद का पहला दूध बच्चे का पहला टीका कहा जाता है. मां का दूध बच्चे में ऐंटीबौडीज और रोगाणुओं से लड़ने वाली कोशिकाओं के स्थानांतरण के लिए पैसेज का भी काम करता है. यह हर तरह के संक्रमण और ऐलर्जी से सुरक्षा देता है. मां को स्तनपान के जरीए गर्भावस्था के दौरान बढ़ा अपना वजन कम करने में भी सहायता मिलती है. इस के अलावा इस प्रक्रिया के दौरान औक्सीटोसिन हारमोन निकलता है, जो गर्भावस्था से पहले का स्वास्थ्य और स्थितियां हासिल करने में मदद करता है.

सवाल-

1 दिन में कितनी बार या कितने समय तक बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए?

जवाब-

नवजात को 3 घंटे के अंतराल पर स्तनपान कराया जा सकता है. वैसे जब तक वह बड़ा हो रहा हो और मां को दिक्कत नहीं हो, तो बच्चे को दूध पिलाने का समय निश्चित करने की जरूरत नहीं है. हालांकि ऐसा भी देखा गया है कि कुछ सप्ताह बाद बच्चे खुद ही स्तनपान का अपना समय तय कर लेते हैं. रात में स्तनपान कराना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि रात में दूध बनाने वाले हारमोन ज्यादा बनते हैं और इस से ज्यादा दूध बनता है.

सवाल-

क्या भारतीय महिलाओं के बीच स्तनपान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है?

जवाब-

स्तनपान बच्चे के जन्म की तरह ही स्वाभाविक या प्राकृतिक है. इस के जानेमाने लाभ के बावजूद बहुत कम महिलाएं ज्यादा समय तक स्तनपान कराती हैं. कामकाजी महिलाएं अकसर स्तनपान की जगह दूसरे विकल्प आजमाती हैं ताकि अपना कामकाज और मां होने की जिम्मेदारी दोनों संभाल सकें. स्तनपान कम कराने के कारणों में खास कारण एक यह है कि मां के दूध के प्रचारित विकल्पों की भरमार है, जबकि विशेषज्ञों ने बारबार कहा है कि मां के दूध का कोई विकल्प नहीं है. मौजूदा स्थितियों के मद्देनजर इस बात की आवश्यकता है कि स्तनपान की संस्कृति को बढ़ावा दिया जाए और इस के लिए कामकाजी महिलाओं को भी ऐसी सुविधाएं दी जानी चाहिए, जिन से वे अपनी इस जिम्मेदारी का निर्वाह अपनी कामकाजी जिम्मेदारियों के साथ सहजता से कर सकें.

– डा. सच्ची बावेजा बी.एल. कपूर सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, दिल्ली

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14 Tips: तो नहीं बढ़ेगा वजन

बढ़ता वजन आप के माथे पर सिकुड़नों को बढ़ाता होगा, तो दिनबदिन बढ़ती चरबी आप को लोगों के सामने नहीं खुद अपनी नजरों में भी शर्मिंदा करती होगी. ऐसा चाहे डिलिवरी के बाद हुआ हो या अचानक यों ही, आप ने अपने वजन को घटाने के लिए व्यायाम, जिम, कार्डियो ऐक्सरसाइज वगैरह क्या कुछ नहीं किया लेकिन याद रखिए कि वजन घटाने का मतलब यह नहीं कि आप क्रैश डाइटिंग कर के एकदम से छरहरे बदन की हो जाएं. ध्यान रहे कि ऐसा करने से स्टैमिना कमजोर हो जाता है, तो न काम में मन लगता है और न दैनिक कार्यों के लिए ऐनर्जी रहती है. आप हैल्दी फूड के साथसाथ नियमित ऐक्सरसाइज व व्यायाम से ही अपना वजन मैंटेन कर सकती हैं.

आप का नाश्ता बिलकुल सही हो और थोड़ीथोड़ी देर बाद आप कुछ न कुछ खाती रहें. लेकिन डाइट में कैलोरी की मात्रा कम होनी चाहिए. तलेभुने और फास्ट फूड से दूर रहें. रात का खाना 8 बजे तक कर लें ताकि खाने को पचने का पर्याप्त समय मिल जाए और रात का खाना आप के पूरे दिन के खाने में सब से हलका होना चाहिए.

कुल मिला कर डाइट संतुलित मात्रा में लेनी चाहिए और डाइट में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए. एक आम इनसान को प्रतिदिन 2,500 कैलोरी की डाइट लेनी चाहिए. तभी हमारा शरीर स्वस्थ व छरहरा रह सकता है. आप अपने लिए डाइट प्लान इस तरह करें:

1. दिन में 3 बार की जगह 5 बार मील्स लें. इस में साबूत अनाज (ब्राउन राइस, व्हीट ब्रैड, बाजरा, ज्वार आदि) अवश्य शामिल करें. नौनरिफाइंड व्हाइट प्रोडक्ट्स (व्हाइट ब्रैड, व्हाइट राइस, मैदा आदि) को डाइट से पूरी तरह हटा दें.

2. डाइट में टोंड दूध से बना दही, पनीर व दाल, मछली आदि शामिल करें.

3. कब्ज व पेट की मरोड़ से बचने के लिए खाने में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं. इस के लिए सप्लिमैंट्स के बजाय प्राकृतिक फाइबर लें. फाइबर के प्रमुख स्रोत हैं, साबूत अनाज, होम मेड सूप, दलिया, फल आदि. इन से फाइबर के साथसाथ कई मिनरल्स व विटामिंस भी मिलेंगे.

4. हड्डियों की मजबूती के लिए डाइट में कैल्सियम की मात्रा बढ़ाएं. इस के प्रमुख स्रोत हैं- दूध, मछली, मेवा, खरबूज के बीज, सफेद तिल आदि. याद रहे कि पतले होने के फेर में कैल्सियम को डाइट से नदारद किया तो गठिया आप को जकड़ सकता है.

5. वजन कम करने के लिए आप फैट इनटेक (वसा की मात्रा) कम करना चाहते हैं, तो डाइट से फैट्स एकदम हटाने की जरूरत नहीं. डाइटिशियन के अनुसार, ऐनर्जी लैवल को बनाए रखने, टिशू रिपेयर और विटामिंस को बौडी के सभी हिस्सों तक पहुंचाने के लिए खाने में पर्याप्त मात्रा में फैट्स होने जरूरी हैं. इसलिए डाइट से फैट्स को पूरी तरह हटाने के बजाय आप मक्खन जैसे सैचुरेटेड फैट्स को अवौइड करें और इस की जगह औलिव औयल इस्तेमाल में लाएं.

6. दिन की शुरुआत जीरा वाटर, अजवाइन वाटर, मेथी वाटर या आंवला जूस से करनी चाहिए. इस से मैटाबोलिक रेट बढ़ता है.

7. बहुत ज्यादा देर तक खाली पेट न रहें. इस से आप एक बार में अधिक भोजन करेंगी. बेहतर होगा कि आप बीचबीच में कम वसा वाले स्नैक्स या फिर फल, सूप जैसी चीजें लेती रहें.

8. रामदायक लाइफस्टाइल अपनाने के बजाय कुछ परिश्रम भी करें. याद रहे कि वजन तभी बढ़ता है, जब खाने से मिलने वाली कैलोरी पूरी तरह बर्न नहीं होती.

9. वजन कम करने का अनहैल्दी तरीका है क्रैश डाइटिंग. इस से न सिर्फ वजन कम होता है, बल्कि मसल्स व टिशूज पर भी इस का बुरा असर पड़ता है.

10. दिन में 8-10 गिलास पानी पीएं.

11. आप के खाने में सोडियम की मात्रा कम होनी चाहिए. सोडियम शरीर से पानी सोखता है और ब्लडप्रैशर बढ़ाता है, इसलिए दिन भर में नमक बस 1 या 11/2 चम्मच ही लें.

12. कोलैस्ट्रौल लैवल कंट्रोल करने के लिए फैट की मात्रा पर ध्यान दें.

13. पानी वाले फलसब्जी (मौसंबी, अंगूर, तरबूज, खरबूजा, खीरा, प्याज, बंदगोभी आदि) रैग्युलर लें.

14. कम से कम चीनी व नमक का प्रयोग करें.

कामकाजी लोग क्या करें

कामकाजी लोगों का ज्यादातर समय औफिस की कुरसी पर बैठेबैठे ही बीत जाता है. ऐसे में वजन बढ़ाना तो आसान होता है पर एक बार बढ़ जाए तो घटाना बहुत मुश्किल होता है. ऐसे लोगों को अपने खाने के प्रति काफी सतर्क रहना चाहिए. वे कुछ निश्चित नियमों का पालन कर के ही अपने वजन को काबू में रख सकते हैं. औफिस में कार्बोहाइड्रेट वाली चीजें बाहर निकाल कर या कैंटीन में खाना आम बात होती है और उन्हें खा कर बैठे रहना वजन ही बढ़ाता है. ऐसा न हो, इस के लिए घर का बना टिफिन आप की काफी मदद करेगा.

जब उम्र कम हो

बेवजह का खानपान और असमय भोजन लेने की आदत ऐसे लोगों के वजन को बढ़ाने का काम करती है. फास्ट फूड पर निर्भरता भी इस उम्र के लोगों में औरों की अपेक्षा ज्यादा ही होती है. इसलिए दिन भर में 2 बार का भोजन और सुबह का प्रोटीनयुक्त नाश्ता दिन भर आप को चुस्त रखेगा और आप का वजन भी नियंत्रित करेगा. साथ ही खाने में सलाद का ज्यादा से ज्यादा सेवन करें तो बेहतर होगा. कम उम्र में वजन बढ़ जाने से बुरा और कुछ नहीं हो सकता. ऐसा न हो इस के लिए जरूरी है कि पहले फास्ट फूड से बचें. इस उम्र में सब से ज्यादा ताकत की आवश्यकता होती है, इसलिए प्रोटीन से भरपूर भोजन लें. कार्बोहाइड्रेट को नाश्ते में जरूर शामिल करें.

बुजुर्गों की डाइट

अगर आप 60 की उम्र पार कर चुके हैं, तो सेहत के प्रति ज्यादा सजग होंगे. इस उम्र में पाचन क्रिया के साथसाथ हड्डियां और मांसपेशियां दोनों ही कमजोर हो जाती हैं. बुजुर्गों के लिए बेहतर है कि कम खाएं पर कई बार खाएं. साथ ही व्यायाम को भी अपने दिन के प्लान में जरूर शामिल करें. दिन में 1 बार 20 मिनट टहलने से आप खुद को काफी तरोताजा रख पाएंगे. -दीप्ति अंगरीश डाइटिशियन, शिखा शर्मा से की गई बातचीत पर आधारित

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क्या ब्रेन स्ट्रोक दोबारा आने का खतरा होता है?

सवाल-

मेरी सास को एक बार ब्रेन स्ट्रोक हो चुका है. वे बहुत कमजोर हो गई हैं. क्या उन का दोबारा इस की चपेट में आने का खतरा है?

जवाब- 

उपचार के बाद भी आवश्यक सावधानियां बरतने जरूरी हैं क्योंकि एक बार स्ट्रोक की चपेट में आने पर पुन: स्ट्रोक का हमला होने की आशंका पहले सप्ताह में 11% और पहले 3 महीनों में 20% तक होती है. उन के खानपान का ध्यान रखें, उन्हें संतुलित और पोषक भोजन खिलाएं. हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज करने या टहलने के लिए कहें. डाक्टर द्वारा सुझई दवाइयां समय पर दें.

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पक्षाघात यानी ब्रेन स्ट्रोक दिमाग के किसी भाग में ब्लड सप्लाई बाधित होने या कम होने से होता है. दिमाग में औक्सीजन और पोषक तत्त्वों की कमी से ब्लड वैसेल्स यानी रक्त वाहिकाओं के बीच ब्लड क्लोटिंग की वजह से उस की क्रियाएं बाधित होने लगती है, इस कारण दिमाग की पेशियां नष्ट होने लगती है जिस से दिमाग अपना नियंत्रण खो देता है, जिसे स्ट्रोक सा पक्षाघात कहते हैं. यदि इस का इलाज समय पर नहीं कराया जाए तो दिमाग हमेशा के लिए डैमेज हो सकता है. व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.

आज विश्व में करीब 80 मिलियन लोग स्ट्रोक से ग्रस्त हैं, 50 मिलियन से ज्यादा लोग स्थाई तौर पर विकलांग हो चुके हैं. ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ के अनुसार 25% ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की उम्र 40 वर्ष है. इस बात को ध्यान में रखते हुए हर साल 29 अक्तूबर को ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ मनाया जाता है, जिस का उद्देश्य स्ट्रोक की रोकथाम, उपचार और सहयोग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना है.

मुंबई के अपैक्स सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के वरिष्ठ मस्तिष्क रोग स्पैशलिस्ट एवं न्यूरोलौजिस्ट डा. मोहिनीश भटजीवाले बताते हैं कि दुनियाभर में ब्रेन स्ट्रोक को मौत का तीसरा बड़ा कारण माना जा रहा है. केवल भारत में हर 1 मिनट में 6 लोगों की मौत हो रही है, क्योंकि यहां ब्रेन स्ट्रोक जैसी मैडिकल इमरजैंसी की स्थिति में इस के लक्षणों, कारणों, रोकथाम और तत्काल उपायों के प्रति जनजागरूकता का बहुत अभाव है जबकि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों को तत्काल उपचार से उन के अच्छे होने के चांसेस 50 से 70% तक बढ़ जाते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जानें क्या है ब्रेन स्ट्रोक और क्या है इसका इलाज

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

12 Tips: छोटी-छोटी तारीफों में होंगे बड़े फायदे

अपनी तारीफ सुनना भला किसे अच्छा नहीं लगता? तारीफ के 2 मीठे बोल कानों में मिठास घोल देते हैं. तारीफ छोटेबड़े सभी में ऊर्जा का संचार करती है. बात पुरुषों की की जाए तो वे स्वभाव से थोड़े कड़क जरूर होते हैं पर उन के भीतर भी कहीं एक नन्हा सा दिल छिपा होता है, जो अपनी प्रशंसा सुनते ही तेजी से धड़कने लगता है.

आइए जानें कि पुरुष किस तरह की तारीफ सुनना पसंद करते हैं:

1. आज खूब जम रहे हैं:

लुक्स की तारीफ महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी पसंद है. अपने ड्रैसिंग सैंस, अपने हेयरस्टाइल, अपने ब्रैंडेड जूतों को ले कर मिला कोई भी कौंप्लीमैंट पुरुषों को बेहद पसंद आता है. कपड़े खरीदने आदि में अगर कोई उन का सहयोग मांगे तो वे उसे बहुत अच्छा मानते हैं

2. यू आर वैरी सपोर्टिव:

कौंप्लीमैंट कंसीडिरेट होना, सहयोगियों के प्रति कोऔपरेटिव होना पौरुष की निशानी है. यह कौंप्लीमैंट यदि पुरुष सहकर्मियों से मिले तो सिर्फ अच्छा लगता है पर यदि महिलाएं यह कौंप्लीमैंट दें तो पुरुषों का स्वाभिमान कई गुना बढ़ जाता है, सीना गर्व से फूल जाता है.

3. आप का सैंस औफ ह्यूमर बहुत अच्छा है:

चतुर, हाजिरजवाब, खुशमिजाज पुरुष सभी को अच्छे लगते हैं. हर महफिल की वे शान होते हैं. यदि यह कौंप्लीमैंट अपने जानने वालों, मिलने वालों से मिले तो पुरुष गद्गद हो उठते हैं.

4. लविंग ऐंड केयरिंग:

जीवनसाथी या बच्चे, फ्रैंड्स अथवा कुलीग्स लविंग और केयरिंग कहें तो पुरुषों का आत्मबल बढ़ जाता है. परिवार के लिए वे जो कुछ भी करते हैं उस के लिए उन्हें यदि घर के सदस्य केयरिंग मान लें तो बस इतना ही काफी है.

5. ऐक्सीलैंट इन वर्क:

अपनी फील्ड में यदि पुरुष को उस का बौस, सहकर्मी या कोई सीनियर सर्वश्रेष्ठ कह दे या उस के प्रयासों की सराहना करे तो वह प्रफुल्लित हो उठता है. अपने कार्य की सराहना हर पुरुष में स्वाभिमान व कौन्फिडैंस भर देती है.

6. यू आर रीयली वैरी टैलेंटेड:

नौकरी, व्यापार के अतिरिक्त यदि कोई गुण आप में है और उस में आप उम्दा हैं, तो कोई उसे रेकगनाइज करे तो बहुत अच्छा लगता है. समाजसेवा, गाना, लिखना, खेलना किसी भी क्षेत्र में अपनी प्रतिभा की स्वीकृति न केवल पुरुषों को खुशी देती है, बल्कि उन्हें और अच्छा करने को भी लालायित करती है.

7. लुकिंग वैरी हौट टुडे:

महिलाओं की तरफ से खासतौर पर गर्लफ्रैंड की ओर से मिला यह कौंप्लीमैंट पुरुषों को घंटों, हफ्तों, महीनों तक खुश रख सकता है. आज के जमाने में यदि यह तारीफ सहकर्मियों से भी सुनने को मिले तो पुरुष उसे बेहद अच्छा मानते हैं.

8. आप अपनी उम्र से कम दिखते हैं:

पुरुषों को भी अपनी उम्र से कम दिखना अच्छा लगता है और यह कौंप्लीमैंट अगर महिलाओं से मिले तो सोने में सुहागा. किसी भी उम्र के पुरुष को अपनी उम्र से छोटा दिखना हमेशा पसंद होता है.

9. आप को तो बहुत लोग पसंद करते हैं:

कहने वाला न केवल इस से अपनी चाहत दर्शाता है, बल्कि वह खास व्यक्ति कितना प्रसिद्ध है यह भी बताता है. पुरुषों को ऐसे जुमले बहुत पसंद होते हैं. इस से उन की काम करने की शक्ति दोगुनी हो जाती है.

10. आप बड़े टैक्नोसेवी हैं:

गैजेट्स पर मास्टरी आज के जमाने में एक अतिरिक्त टैलेंट है. यदि पुरुष कंप्यूटर, लेटैस्ट ऐप्लीकेशंस, कैमरा, मोबाइल के विषय में कौंप्लीमैंट पाते हैं, तो इस से वे अच्छा फील करते हैं और उन की कार्यक्षमता भी निखरती है.

11. आप विश्वास के योग्य हैं:

किसी भी पुरुष को यह सुन कर बेहद अच्छा लगता है कि लोग उस पर विश्वास करते हैं. फिर चाहे बात चरित्र की हो या काम की, रिश्ते निभाने की हो या सहयोग करने की.

12. यू आर वैरी कूल:

कूल कहलाना आज के जमाने में कौंप्लीमैंट है. यह स्मार्टनैस और धैर्य को दर्शाता है. वर्कप्लेस पर, घर पर, कहीं भी यदि आप कूल कहे जाते हैं तो इस का मतलब आप में कोई बात है.

अकेले में पति की तारीफ पत्नी करे तो अच्छा लगता है, पर यदि सोसाइटी में सब के सामने पत्नी पति की तारीफ करे तो समझिए जीवन सुधर गया.

Breast feeding से संभव Cancer की रोकथाम

यह तो सभी को पता है कि नवजात के लिए स्तनपान जरूरी है. खासकर शुरू के 6 महीनों तक. लेकिन यह कम ही लोग जानते होंगे कि स्तनपान करने वाले शिशुओं की मौत की आशंका स्तनपान न करने वाले शिशुओं के मुकाबले 14 गुना कम होती है. मां के दूध में मौजूद कोलोस्ट्रम बच्चे का प्रतिरक्षण बेहतर करता है, जबकि दूध में मौजूद पोषक तत्त्व उसे बीमारियों से बचाते हैं. यह भी देखा गया है कि इस प्रक्रिया से मां में अल्जाइमर्स विकसित होने की आशंका कम होती है और बच्चे के विकसित होते फेफड़े मजबूत होते हैं. इस से बच्चे को दमा होने का खतरा भी कम होता है. इस के अलावा इस से बच्चे डायरिया और निमोनिया के भी कम शिकार होते हैं. हाल ही में वैज्ञानिक स्तनपान और स्तन कैंसर में सीधा संबंध जानने में सफल हुए हैं. स्तनपान कराना न सिर्फ बच्चे के लिए फायदेमंद है, बल्कि मां के लिए भी, क्योंकि इस से अंडाशय को कैंसर और स्तन कैंसर होने का जोखिम भी काफी कम हो जाता है. खासतौर से युवा महिलाओं के मामले में.

जीवनशैली में बदलाव

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ में किए गए एक अध्ययन के अनुसार स्तनपान कराने से ऐस्ट्रोजन रिसैप्टर नैगेटिव और प्रोजेस्टेरौन रिसैप्टर नैगेटिव ब्रैस्ट कैंसर का खतरा न्यूनतम होता है.
वैसे तो भारत में पहले स्तन कैंसर के मामले अपेक्षाकृत कम रहे हैं पर अब ऐसा नहीं है. भारतीय महिलाएं खासतौर से शहरी महिलाएं अपनी जीवनशैली के कारण बेहद प्रभावित हैं. देर से मां बनने की प्रवृत्ति और स्तनपान कराने से बचने के लिए सामाजिक और पेशेवर तनाव का शिकार होना इन कारणों में शामिल है.
महिलाओं में कैंसर के जितने मामले होते हैं उन में 25 से 32% स्तन कैंसर के होते हैं और मुख्यरूप से 50 साल से कम उम्र की महिलाएं प्रभावित होती हैं. इस का मतलब यह हुआ कि 20 से 50 साल के बीच की 48% महिलाएं इस का शिकार हो सकती हैं. पश्चिमी देशों में देखा गया है कि 100 में से 89 महिलाएं इस से बच जाती हैं. अत: भारत में भी स्तनपान कराने के महत्त्व के बारे में महिलाओं को जागरूक करने की आवश्यकता है. इस के लिए अभियान चलाए जाने की जरूरत है ताकि संदेश ज्यादा से ज्यादा महिलाओं तक पहुंचे. वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड द्वारा किए गए कैंसर के आंकड़ों के अध्ययन के मुताबिक जो महिलाएं कम से कम 1 साल तक स्तनपान कराती हैं उन्हें स्तन कैंसर होने की आशंका 5% कम होती है. जो महिलाएं जितने लंबे समय तक स्तनपान कराती हैं उन्हें कैंसर होने की आशंका उतनी ही कम हो जाती है.

ज्यादा गर्भपात भी जिम्मेदार

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक शहरी कामकाजी महिलाएं ज्यादा गर्भपात कराती हैं, बच्चे देर से पैदा करती हैं और उन की स्तनपान कराने की अवधि भी कम होती है, जबकि गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन ज्यादा मात्रा में करती हैं. ऐसी महिलाओं को स्तन और अंडाशय के कैंसर की आशंका ज्यादा रहती है. भारतीय महिलाएं जो गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं उन में कैंसर का यह जोखिम 9.5 गुना बढ़ गया है.
स्तन कैंसर का उपचार कराने वाली कोई महिला अगर प्रजनन के लिहाज से स्वस्थ है और उस की आयु भी सीमा के अंदर है तो उसे मां बनने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. एक अध्ययन से यह खुलासा हुआ है कि गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान बनने वाले हारमोन स्तन कैंसर की शुरुआत या उन्हें पुनर्जीवित करने का काम नहीं करते हैं.

– डा. शची बावेजा   कंसल्टैंट, बीएलके सुपरस्पैश्ययलिटी हौस्पिटल, दिल्ली

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बल्जिंग डिस्क और साइटिका से प्रौब्लम का इलाज बताएं?

सवाल

मैं 43 वर्षीय प्रोफैसर हूं. पिछले 2 माह से कमर में दर्द हो रहा है. जांच करवाने पर बल्जिंग डिस्क होने का पता चला है. मैं क्या करूं?

जवाब

बल्जिंग डिस्क के उपचार में फिजियोथेरैपी बहुत कारगर है. अगर इस से आराम न मिले तो सर्जरी जरूरी हो जाती है. आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमैंट द्वारा इस समस्या को ठीक किया जा सकता है. इस सर्जरी के द्वारा क्षतिग्रस्त डिस्क को आर्टिफिशियल डिस्क से बदल दिया जाता है. यह डिस्क लग जाने के बाद पीडि़त व्यक्ति को आगेपीछे झकने और अन्य कार्य करने में परेशानी नहीं होती है. रीढ़ की हड्डी का लचीलापन पहले की तरह ही सामान्य हो जाता है और रीढ़ की हड्डी पर पड़ने वाले झटकों को बरदाश्त करने की क्षमता बढ़ जाती है. आर्टिफिशियल डिस्क का सब से बड़ा फायदा यह है कि यह जीवनभर काम करती है.

सवाल

मैं 52 वर्षीय घरेलू महिला हूं, मेरी कमर के निचले भाग और कूल्हे में लगातार दर्द बना हुआ है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप को साइटिका की प्रौब्लम है. हालांकि साइटिका के कारण होने वाला दर्द बहुत गंभीर होता है, लेकिन अधिकतर मामलों में यह बिना औपरेशन के ही कुछ सप्ताह में ठीक हो जाता है. कई लोगों को हौट पैक्स, कोल्ड पैक्स और स्ट्रैचिंग से इस समस्या में आराम मिलता है. लेकिन जिन लोगों में साइटिका के कारण पैर अत्यधिक कमजोर हो जाते हैं या ब्लैडर अथवा बाउल में परिवर्तन आने से मलमूत्र त्यागने की आदतों में बदलाव आ जाता है उन के लिए औपरेशन कराना जरूरी हो जाता है.

इसके अलावा जीवनशैली में बदलाव लाएं. ऐसे भोजन का सेवन करें जो कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर हो. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें. हमेशा आरामदायक बिस्तर पर सोएं जो न बहुत सख्त हो और न बहुत नर्म.

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स्लिप डिस्क यानी कि कमर के निचले हिस्से, रीढ़ की हड्डी या फिर कमर के बीच होने वाला दर्द. ऐसे बहुत से लोग हैं जो स्लिप डिस्क की समस्या से परेशान हैं. इस समस्या में सबसे पहले रीढ की हड्डी पर दर्द होना शुरू होता है. कई बार कमर का निचला हिस्सा सुन्न भी पड़ जाता है. धीरे-धीरे नसों पर दवाब भी महसूस होना शुरू हो जाता है. परेशानी बढ़ने पर जरा सा झुकना भी मुश्किल हो जाता है. इससे धीरे-धीरे कमजोरी भी आनी शुरू हो जाती है. ऐसी स्थिति में ज्यादा देर तक खड़े रहना मुश्किल हो जाता है और बैठ कर उठने में भी परेशानी होती है. आज हम आपको स्लिप डिस्क में काम आने वाले घरेलू उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं लेकिन इससे पहले आप जानिए स्लिप डिस्क के कारण.

लाइफस्टाइल डिसऔर्डर से होती बीमारियां

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती जा रही हैं. इस से घर और कैरियर दोनों के बीच तालमेल बैठाए रखना उन के लिए चुनौती बनता जा रहा है. सेहत का ध्यान न रखने की वजह से महिलाएं कम उम्र में ही कई बीमारियों की शिकार हो जाती हैं, जिन्हें लाइफस्टाइल डिसऔर्डर बीमारियां भी कहा जा सकता है. इस के बारे में मुंबई के फोर्टिस हौस्पिटल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा डा. वंदना सिन्हा बताती हैं कि बीमारियां कभी भी अचानक नहीं होतीं. उन का अलार्म तो पहले ही बज चुका होता है, जिसे महिलाएं नजरअंदाज करती रहती हैं. ये बीमारियां तो दरअसल युवावस्था से ही शुरू हो जाती हैं.

महिलाओं के बदले लाइफस्टाइल की वजह से उन का मोटापा भी खूब बढ़ा है, जिस की वजहें जंक फूड का अत्यधिक सेवन, समय से भोजन न करना, डाइटिंग करना आदि हैं. इन से हारमोनल बैलेंस बिगड़ता है. आजकल करीब 40% महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी पाया जाता है. इस में ओवरीज ठीक से काम नहीं करतीं और हारमोनल संतुलन बिगड़ता है, जिस से चेहरे और बौडी पर अधिक हेयर ग्रो होने लगता है. त्वचा रफ हो जाती है और ऐक्ने का प्रभाव दिखता है.

एक सर्वे के मुताबिक, आज के दौर में 75% महिलाओं का कोई न कोई लाइफस्टाइल डिसऔर्डर है. इस से 42% को पीठ दर्द, मोटापा, डिप्रैशन, डायबिटीज, हाइपरटैंशन की शिकायत है. ऐसा न हो इस के लिए लड़कियों को किशोरावस्था से ही लाइफस्टाइल में परिवर्तन करना आवश्यक है, जिस के लिए सही व्यायाम, सही डाइट, मोटापे को न बढ़ने देना आदि सभी विषयों पर मातापिता को ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि ये आदतें ऐसी हैं, जिन्हें उन्हें कम उम्र से ही अभ्यास में लाना जरूरी है.

कम उम्र में दिल का दौरा

डा. वंदना बताती हैं कि दिल की बीमारी का खतरा भी महिलाओं में तेजी से बढ़ रहा है. आजकल 24-25 साल की उम्र में भी लड़कियों को दिल का दौरा पड़ जाता है, जो चिंता का विषय है. अगर लड़कियां ओवरवेट हैं, तो वे पतला होने के लिए खाना छोड़ देती हैं. तब जरूरत से कम खाना खाने पर वे ऐनीमिया और हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने से बारबार इन्फैक्शन की शिकार होती हैं.

इस के अलावा जब लड़कियों का स्वास्थ्य खराब रहने लगता है, तो वे मानसिक बीमारी की शिकार हो जाती हैं, जिस में डिप्रैशन, सुसाइडल टैंडैंसी आदि प्रमुख हैं. दरअसल, इस उम्र में पीयर प्रैशर अधिक होता है, जिस से बौयफ्रैंड या रिलेशनशिप न होने पर वे अपनेआप को कमतर समझना आदि को अपने अंदर पाल लेती हैं. क्या सही क्या गलत है यह समझना उन के लिए मुश्किल हो जाता है, तो वे दोस्तों की संगत में जाती हैं, जहां सही राय नहीं मिल पाती. ऐसे में मातापिता ही उन्हें सही दिशानिर्देश दे सकते हैं. युवावस्था में स्ट्रैस लैवल बढ़ने की वजह से नींद में कमी आती है, जिसे स्लीपिंग डिसऔर्डर कहते हैं. आजकल की लड़कियों में स्मोकिंग, ड्रिंकिंग की आदत भी बढ़ चुकी है, जो उन के लिए खतरनाक है.

विटामिन डी की कमी

विटामिन डी की कमी भी आजकल की युवतियों और महिलाओं में कौमन है. डा. वंदना का कहना है कि इस से महिलाओं में मैंस्ट्रुअल समस्या बढ़ रही है और शहरी क्षेत्रों में इस की संख्या अधिक है. विटामिन डी की कमी से महिलाओं को और भी कई गंभीर बीमारियों की शुरुआत हो जाती है. मसलन इम्यूनिटी का कम हो जाना, इनफर्टिलिटी का बढ़ना, मधुमेह की बीमारी, पीरियड की अनियमितता, स्तन कैंसर आदि. ओवरी के सही फंक्शन के लिए विटामिन डी जरूरी है. अत्यधिक दर्द के साथ पीरियड होने पर ऐंड्रोमैट्रियौसिस का खतरा रहता है, जिस में ओवरी में सिस्ट बन जाता है, जिस से आगे चल कर इनफर्टिलिटी बढ़ती है. यह समस्या आजकल 15 से 25 वर्ष की लड़कियों में अधिक देखने को मिल रही है, जो विटामिन डी की कमी की वजह से हो रही है. ये सभी बीमारियां लाइफस्टाइल की वजह से हैं, जिस का परिणाम स्ट्रैस है. विटामिन डी पूरे शरीर के लिए जरूरी है. यह हमारे शरीर में कैल्सियम के स्तर को नियंत्रित करता है.

संक्रमण का खतरा

संक्रमण की बीमारी भी आजकल महिलाओं में अधिक है. आजकल के युवा कम उम्र में अनप्रोटैक्टेड सैक्स में लिप्त होते हैं, तो उन के मल्टीपल सैक्सुअल पार्टनर्स भी होते हैं. ऐसे में हाइजीन पर ध्यान न देने से वे इन्फैक्शन के शिकार हो जाते हैं. जबकि पर्सनल हाइजीन पर अधिक ध्यान देना आवश्यक है. महिलाएं आजकल जेनाइटल ट्यूबरकुलोसिस की शिकार भी हो रही हैं. इस बीमारी की जब तक सही जांच न हो पता नहीं चलता. इस बीमारी के तहत वे मां नहीं बन पातीं. अगर गर्भधारण करती भी हैं, तो बच्चा पूरे 9 महीने नहीं ठहरता. बायोप्सी से इस का पता चलता है. कई जगह पर तो इस की जांच भी संभव नहीं होती. लाइफस्टाइल से जुड़ी सब से खतरनाक बीमारी हार्ट डिजीज है. अधिकतर महिलाएं शहरों में कामकाजी हैं. उन के खाने में फैट अधिक होता है और वे व्यायाम नहीं करतीं, इसलिए उन का कोलैस्ट्रौल लैवल बढ़ जाता है. इस से कम उम्र में ही हाई ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड आदि सब दिखने लगता है. डा. वंदना कहती हैं कि पहले जो बीमारी 45 वर्ष के बाद दिखती थी अब 27-28 साल की उम्र में ही दिखने लगी है. कामकाजी महिलाओं में स्ट्रैस लैवल काफी बढ़ चुका है.

मेनोपौज के बाद बीमारी बढ़ने की वजह कम उम्र में अपना ध्यान न रखना है. कुछ बीमारियां आनुवंशिक होती हैं. पर अधिकतर हमारे लाइफस्टाइल की वजह से ही होती हैं. मैटाबौलिज्म ठीक न रहने की वजह से रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इस से बीमारियां दिनोंदिन बढ़ती जाती हैं. अगर शुरू से ही कुछ खास बातों पर ध्यान दिया जाए तो इन बीमारियों से काफी हद तक बचा जा सकता है. डा. वंदना के अनुसार, इस के लिए कुछ टिप्स निम्न हैं:

  1. 30 मिनट फिजिकल ऐक्टिविटी हर दिन करें.
  2. 10 मिनट ब्रीदिंग ऐक्सरसाइज अवश्य करें. सुबह 5 मिनट शाम को 5 मिनट.
  3. रोज 10 से 15 गिलास पानी अवश्य पीएं.
  4. शुगर वाले खाद्यपदार्थ कम खाएं, प्रोटीन अधिक लें.
  5. फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट को डाइट में जरूर शामिल करें. फैट को कम से कम लें.
  6. चाय, कौफी अधिक न पीएं. ग्रीन टी का सेवन करें, जो स्वास्थ्य के लिए अच्छी है.
  7. स्ट्रैस लैवल कम करने के लिए अपने लिए समय निकालें. अपनी मनपसंद की किताबें व पत्रिकाएं पढ़ें और मूवी आदि देखें, जिस से आप को खुशी मिले.
  8. सर्वाइकल कैंसर का वैक्सिन 11-12 साल की उम्र में अवश्य लगवाएं.
  9. मोटापे को बढ़ने से रोकना बेहद जरूरी है. अगर यह समस्या आनुवंशिक है, तो डाक्टर की सलाह के आधार पर दिनचर्या बनाएं और फिट रहें.

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सैक्सी फिगर से करें इंप्रैस

शरत कटारिया द्वारा निर्देशित फिल्म ‘दम लगा के हईशा’ में आयुष्मान खुराना का भूमि पेडनेकर से विवाह तो हो जाता है, पर पति के लिए पत्नी की शारीरिक खूबसूरती माने रखती है. मोटी व कम सुंदर होने के कारण उस से प्यार नहीं कर पाता.

कोई कितनी भी फेयर क्यों न हो पर अगर फिगर अच्छी नहीं है तो वह अपना जादू नहीं बिखेर पाएगी. अमेरिका की यूनिवर्सिटी औफ  बेब्रास्का लिंकन की ओर से 24 महिलाओं को ले कर एक अध्ययन किया गया, जिस में यह पाया गया कि महिलाओं ने दूसरी महिलाओं को निहारने के दौरान उस के चेहरे के बदले उस की हिप्स और ब्रैस्ट को ज्यादा देर तक देखा और आंका कि वे कितनी अटै्रक्टिव हैं.

कमर के नीचे, पेट के पास, हिप्स के आसपास फैट जमा होने पर मोटापा नजर आने लगे तो फिर खराब लगता है. कुछ लड़कियों में हिप्स के आसपास फैट जेनेटिक कारणों से होता है तो कुछ में मोटापा गलत रहनसहन की वजह से होता है. शादी के बाद भी पति अपनी पत्नी की बेडौल फिगर को ले कर कमैंट कर देते हैं.

अगर हिप बड़े व बेडौल शेप में हैं और वहां काफी फैट जमा है, तो उस की वजह से युवती का कौन्फिडैंस कम होता है. अब कौस्मैटिक सर्जरी से अपनी फिगर को सैक्सी व अट्रैक्टिव बना कर अपने ठुमकों से पार्टनर को फस्ट नाइट पर इंप्रैस करा जा सकता है.

कौस्मैटिक प्लास्टिक सर्जरी एक ऐसी मैडिकल तकनीक है जो सरल और सुरक्षित ट्रीटमैंट है. जलने के निशान को हटाना हो, नोज की सर्जरी करनी हो, फेस लिफ्ट कराना हो, हिप्स सैक्सी बनानी हों. इस से सबकुछ संभव है. सिर्फ चेहरे की ही नहीं बल्कि शरीर के हर भाग की सुंदरता को बढ़ाया जा सकता है.

अपोलो हौस्पिटल के कौस्मैटिक विभाग के एक सीनियर कंसल्टैंट कहते हैं कि आज हर लड़की प्रियंका चोपड़ा व दीपिका पादुकोण जैसी फिगर पानी चाहती है. लड़के मलिका शेरावत व शर्लिन चोपड़ा जैसी हौट फिगर वाली पार्टनर की चाह रखते हैं.

पिछले कुछ सालों में बोटोक्स लगवाने से ले कर चेहरे की महीन लकीरें हटवाने, लाइपोसक्शन करवाने, ब्रैस्ट इंप्लांट करवाने, फुल बौडी लेजर ट्रीटमैंट लेने, होंठों या नाक को सही आकार दिलवाने, हेयर ट्रांसप्लांट करवाने वाली लड़कियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है.

चेहरा कितना भी सुंदर क्यों न हो, लेकिन हिप फ्लैट हैं तो लड़कों के मुंह से एक ही बात निकलती है कि लड़की सुंदर है पर हौट नहीं.

कौस्मैटिक सर्जरी से मिले परफैक्ट फिगर

कौस्मैटिक सर्जरी आधुनिक तकनीक है. हिप के पास के फैट को लाइपोसक्शन के द्वारा हटाया जाता है. इस से दाग के निशान, ढीली त्वचा व जमे फैट को निकाल कर एक परफैक्ट शेप दी जाती है. यही नहीं अगर हिप फ्लैट हैं जिस की वजह से आप चाह कर भी सैक्सी नहीं दिख पाती हैं तो इन्हें भी इंप्लांट के जरीए उभारा जाता है.

हिप सर्जरी कैसे की जाती है

दिल्ली के साकेत सिटी हौस्पिटल के प्लास्टिक सर्जरी कंसल्टैंट डा. रोहित नैयर बताते हैं कि आज हिप सर्जरी में लाइपोसक्शन और हिप इंप्लांट 2 प्रमुख पद्धतियां हैं, जिन से हिप को सही आकार दिया जाता है.

लाइपोसक्शन तकनीक फैट कोशिकाओं को स्थाई रूप से हटा देता है और शरीर को एक आकार प्रदान करता है. लाइपोसक्शन से कूल्हों, नितंबों, जांघों के चारों तरफ के फैट को भी निकाला जाता है. इस ट्रीटमैंट में सक्शन मशीन को कैनुला के साथ जोड़ा जाता है. जिस स्थान से फैट निकालना हो, वहां छोटेछोटे छिद्र बनाए जाते हैं. इन्हीं छिद्र की सहायता से त्वचा और मांसपेशियों के बीच मौजूद अतिरिक्त चरबी को बाहर निकाला जाता है.

चरबी की मात्रा के आधार पर कैनुला का आकार बढ़ाया जा सकता है. इस में सब से पहले एक कट लगा कर कैनुला को शरीर में प्रवेश कराया जाता है और हवा खींचने वाले यंत्र से इसे जोड़ दिया जाता है.

लाइपोसक्शन के परिणाम 4 से 6 महीने बाद दिखाई देते हैं, जब सूजन खत्म हो जाती है. तब तक मरीज को कसे हुए या प्रैशर गारमैंट्स पहनने पड़ते हैं. हिप की सर्जरी में लाइपोसक्शन में 1 से 2 लिटर वसा को ही निकाला जाता है. लाइपोसक्शन से कोई साइड इफैक्ट नहीं होता.

लाइपोसक्शन कराने के बाद कैलोरी की अपनी खुराक कम करना और व्यायाम आदि द्वारा कैलोरी की खपत को बढ़ाना होता है. यदि जीवनशैली को नहीं बदला जाए तो अच्छे परिणाम हासिल नहीं हो सकते.

इंप्लांट से सपाट हिप्स में एक उभार लाया जाता है. इस के लिए शरीर के दूसरे हिस्से से वसा एकत्रित कर या रैडीमेड इंप्लांट्स इस्तेमाल कर के हिप का आकार बढ़ाया जाता है. इस तरह की सर्जरी दक्षिण अमेरिका जैसे देशों में बहुत लोकप्रिय है. शरीर की वसा को इस्तेमाल करने के लिए उसे इंजैक्शन में भरा जाता है, फिर प्रत्येक भाग में

1/2 लिटर वसा इंजैक्शन से डाली जाती है. वसा डालते समय यह समस्या होती है कि कभीकभी इस में ढेर सारी वसा अवशोसित हो सकती है.

इसलिए इस समस्या को न्यूनतम करने के लिए हिप को आकार देने के लिए सिलिकौन इंलांट्स भी इस्तेमाल कर रहे हैं. एक छोटा सा चीरा लगा कर उसे हिप की मांसपेशियों के नीचे या ऊपर डाला जाता है.

खर्च: आमतौर पर यह सारी सर्जरी ₹50 हजार से ₹75 हजार के बीच हो जाती है.

कितना समय लगता है: सर्जरी में आमतौर पर 2 से 3 घंटे लगते हैं. कभीकभी ज्यादा समय भी लग जाता है. यह इस पर निर्भर करता है कि शरीर में कितना फैट जमा है. सभी तरह की सर्जरी चाहे वह पांत, आंख या किसी भी जगह की हो हलका दर्द तो होता ही है ठीक उसी तरह से प्लास्टिक सर्जरी में भी हलका दर्द होता है. नसों को बेहोश कर के सर्जरी की जाती है, पर इस में घबराने वाली कोई बात नहीं है. यह पूरी तरह से सुरक्षित है.

कौन करा सकता है सर्जरी: कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जो 18 साल से ज्यादा उम्र का हो, यह ट्रीटमैंट ले सकता है. कम उम्र में ट्रीटमैंट लेने से सही रिजल्ट नहीं मिलता क्योंकि उस समय शरीर का विकास हो रहा होता है. ये देखने में एकदम नैचुरल हिप्स की तरह ही दिखाई देते हैं. देखने पर पता नहीं चलता कि प्लास्टिक सर्जरी करवाई गई है. करवाने वाली पहले से ज्यादा सैक्सी व हौट नजर आती है.

ठीक होने में कितना समय: हिप सर्जरी के बाद कुछ निशान बन जाते हैं जो समय के साथ ठीक हो जाते हैं. पहले कुछ महीने दाग हलके लाल और सूजन वाले दिखाई देते हैं, लेकिन कुछ महीने बाद भर जाते हैं. यह 1 महीने में ठीक होने वाली सर्जरी नहीं है, इसलिए अगर आप के हिप्स हैवी हैं और आप उन की कौस्मैटिक सर्जरी करवाने की सोच रही हैं तो जल्द ही प्लान करें ताकि आप की सर्जरी अच्छी तरह से हो सके और शादी के बाद आप अपनी अदाओं से पति को घायल कर सकें.

किस तरह की समस्या हो सकती है: वैसे तो प्लास्टिक सर्जरी बहुत विश्वसनीय है और आधुनिक तकनीक से किसी प्रकार की खास समस्या उत्पन्न नहीं होती, फिर भी कुछ समस्याएं देखने को मिल सकती हैं जैसे खून निकलना, संक्रमण, संवेदनशीलता, घाव जल्दी नहीं भरना, ऐलर्जी, तरल पदार्थ जमा होना, नसों में सही तरह से रक्त का संचार न होना. लाल चकत्ते पड़ना, स्किन छिल जाना. इस में घबराने वाली कोई बात नहीं होती. ये परेशानियां दी गई दवाइयों से ठीक हो जाती हैं.

अनुभवी सर्जन से ही करवाएं: हिप सर्जरी के दौरान की गई छोटी सी लापरवाही से लेने के देने पड़ सकते हैं. जब आप को अपनी सर्जरी करानी हो तो इलाज से पहले पूरी जानकारी लें, पहले से इस का लाभ उठा चुके मरीजों से बात करें, उन के अनुभव जानें. इलाज की लागत और समय के बारे में भी पूछताछ करें. यह भी जान लें कि यह तकनीक आप पर कितनी सफल होगी और ट्रीटमैंट करवाने से पहले और बाद में किन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. इस तरह की जानकारी के बाद आप अपना इलाज करवाते हुए कम घबराएंगी और परिणाम भी अच्छा आएगा.

महिलाएं ही नहीं पुरुष भी करा सकते हैं सर्जरी: ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस तरह की सर्जरी केवल महिलाएं ही करा सकती हैं, बल्कि पुरुष भी अपने शरीर को कौस्मैटिक सर्जरी के जरीए सुडौल बना सकते हैं. महिलाओं की तरह उन के शरीर के निचले हिस्से पर फैट तो जमा नहीं होता, लेकिन ऊपरी हिस्से पर स्तनों के पास उभार आ जाता है जो देखने में खराब लगता है. अत: कौस्मैटिक सर्जरी से अपनी बौडी को परफैक्ट शेप दें.

पार्टनर को करें सैटिस्फाई: आप के मन में यह विचार अवश्य आ रहा होगा कि कहीं सर्जरी करवाने से आप की सैक्स लाइफ  पर तो किसी तरह का असर नहीं पड़ेगा और इस बात को जानने के बाद आप का पार्टनर कहीं गलत व्यवहार तो नहीं करेगा तो डरिए मत और इस तरह की बातें अपने दिमाग से निकाल दें क्योंकि हिप सर्जरी से आप अपने बेडौल शरीर को परफैक्ट बना कर अपने पार्टनर को खुश कर सकती हैं.

बौलीवुड में शर्लिन चोपड़ा खुद को हौट व सैक्सी दिखाने के लिए 2 बार हिप्स की सर्जरी करवा चुकी हैं. बट इंप्लांट में शिल्पा शेट्टी का भी नाम आता है. इन की सैक्सी फिगर का राज बट इंप्लांट ही है.

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जब हो किडनी में पथरी की प्रौब्लम

पिछले 2 दशक के दौरान किडनी में पथरी और मूत्र रोग के इलाज में भारी विकास हुआ है. फिर भी इस बीमारी में कमी आने के बजाय लगातार बढ़ोतरी हो रही है. पथरी के आपरेशन द्वारा इलाज में कई तरह की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिस में मरीज को कम से कम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पर जहां तक इस के औषधीय इलाज की बात है तो इस के लिए चिकित्सकों को कई तरह की आधुनिक जांच, खानपान और दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है. अध्ययन, सर्वेक्षण और अनुसंधान से यह भी पता चल गया है कि शारीरिक चयापचय (मेटाबोलिज्म) की गड़बड़ी को ठीक कर और इस के लिए विभिन्न तरह की दवाआें के प्रयोग से बिना आपरेशन के ही इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है.

20 से 60 वर्ष की अवस्था के बीच करीब 15 से 18 प्रतिशत लोगों में पथरी की शिकायत मिलती है. महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इस का प्रतिशत दोगुना देखने को मिलता है. एक पथरी होने की स्थिति में करीब 50 प्रतिशत लोगों में 7 साल के अंतराल में दूसरी पथरी होने की शिकायत मिलती है. यहां हम सब से पहले चर्चा कैल्शियम आक्जलेट की करते हैं. ज्यादातर स्थितियों में यह शारीरिक चयापचय (मेटाबोलिज्म) की गड़बड़ी के कारण होता है किंतु कई बार इस के कारणों का पता ही नहीं चल पाता. पेशाब में कैल्शियम आक्जलेट की मात्रा अधिक होने या फिर साइटे्रट की कमी के कारण इस की मात्रा मूत्र में अधिक हो जाती है जो आगे चल कर किडनी में पथरी के होने का कारण बनता है.

शरीर में इस की मात्रा बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं. मसलन, भोज्य पदार्थों में इस की अधिक मात्रा, आंत में इस के अवशोषण का बढ़ जाना, किडनी द्वारा इस का अवशोषण कम करना जिस की वजह से किडनी  की दीवारों में इस का जमाव बढ़ जाना. मरीज के पानी कम पीने से और किडनी द्वारा पानी का कम उत्सर्जन होने से किडनी में इस का अधिक मात्रा में जमाव होने लगता है जोकि आगे चल कर पथरी का रूप धारण करने लगता है. शरीर में पारा थार्मोन की अधिकता के चलते भी रक्त में इस की मात्रा बढ़ जाती है जो आगे चल कर पथरी बनने का कारण बनता है. शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता के कारण भी कैल्शियम नामक पथरी का निर्माण होता है. यदि खाने में अधिक मात्रा में आक्जलेट हो और आंत में सूजन की बीमारी हो तो इस का अवशोषण काफी बढ़ जाता है जिस के कारण इस तरह की पथरी होने की आशंका काफी बढ़ जाती है. खाने की वस्तुओं में साइटे्रट की कमी की वजह से यह कैल्शियम के साथ मिल कर इस के निकास को कम कर देता है जो आगे चल कर पथरी बनने का कारण बनता है.

यूरिक एसिड स्टोन का प्रतिशत अत्यधिक कम होता है और मूत्र में यूरिक एसिड के अत्यधिक स्राव होने से भी इस तरह की पथरी का निर्माण होता है.

रोग की पहचान

पथरी रोग से पीडि़त मरीज के पेट में दर्द की शिकायत होती है. पेट की बाईं या दाईं ओर स्थित किडनी में पथरी होती है, एक निश्चित स्थान में दर्द होता है. ऐसे मरीजों के मूत्र में रक्त या फिर मवाद भी पाया जाता है. इस की पहचान मूत्र की जांच से हो जाती है. इस के अलावा पेट का एक्सरे, अल्ट्रासाउंड कराने या फिर एक्स्क्रीटरी यूरोग्राम कराने से भी इस बीमारी का पता चल जाता है. मूत्र में क्रिस्टल की जांच कराने पर भी इस रोग का आसानी से पता चल जाता है.

रोग का इलाज

पथरी हो जाने पर अब कई प्रकार के इलाज उपलब्ध हैं. पथरी बहुत छोटी हो तो कुछ दवाओं के प्रयोग से भी निकल सकती है. ज्यादा संख्या में या बड़े आकार की पथरी को बिना सर्जरी किए लिथोट्रिप्सी द्वारा भी निकाला जा सकता है. इस में नियंत्रित तरीके से पथरी के शौक वेव डाल कर इतने छोटे भागों में तोड़ दिया जाता है कि वे पेशाब के साथ बह कर निकल जाएं. इस वेव का शरीर के अन्य भागों पर असर नहीं पड़ता. अधिक बड़ी पथरी होने पर सर्जरी ही अंतिम उपचार रह जाता है.जहां तक रोग से बचाव की बात है तो इस के लिए मरीज को काफी मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जानी चाहिए. प्रतिदिन इतना पानी पीएं ताकि ढाई लिटर से भी अधिक पेशाब हो. पानी पीने की क्रिया सुबह जगने से ले कर रात को सोने के पहले तक जारी  रहनी चाहिए. यहां लोगों में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किस तरह के पानी पीने पर पथरी की शिकायत होती है तो इस का आसान सा जवाब है कि साधारणतया नल के पानी पीने से ही इस तरह के रोग होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि काफी और जिन में कैफीन की प्रचुर मात्रा होती है जो पथरी होने की आशंका कम कर देती है और दूसरी ओर चाय इस के बनने की गति को बढ़ा देती है क्योंकि चाय में आक्जलेट की मात्रा ज्यादा होती है.

नियमित रूप से कोल्ड डिंक तथा अंगूर के रस के सेवन करने से पथरी बनने की क्रिया काफी बढ़ जाती है. नारंगी का रस और बीयर से इस के बनने की आशंका कम हो जाती है. ऐसे मरीजों को अधिक दूध पीने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा पाई जाती है. पथरी के मरीजों को भोजन में प्रोटीन की मात्रा कम लेने की सलाह दी जाती है. 70 साल की उम्र के मरीज को 50 ग्राम से भी कम प्रोटीन भोजन में लेना चाहिए. ऐसी स्थिति में यह मूत्र में एसिड के स्राव को कम कर देता है जो आगे चल कर साइटे्रट को उत्सर्जन होने से रोकता है. इस कारण मूत्र में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा नहीं आ पाती. फलस्वरूप पथरी बनने की आशंका स्वत: कम हो जाती है.

मांसाहारी भोजन के कम सेवन के कारण मूत्र में यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है. फलत: किडनी में कैल्शियम की पथरी की भी आशंका घट जाती है. ऐसे मरीजों को मांसाहारी भोजन को छोड़ कर शाकाहारी भोजन की सलाह दी जाती है. किडनी में पथरी होने की आशंका से बचने के लिए ऐसे मरीजों को कम मात्रा में नमक का सेवन करना चाहिए. एक वयस्क आदमी द्वारा प्रतिदिन 3 ग्राम से भी कम नमक का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है और पथरी होने की आशंका काफी कम हो जाती है. अधिक मात्रा में साइट्रस फू्रट के सेवन से किडनी में पथरी के बनने की क्रिया काफी कम हो जाती है. ऐसी स्थिति में किडनी से कैल्शियम का स्राव काफी कम हो जाता है जिस से पथरी के होने की आशंका भी काफी कम हो जाती है.

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