हर साल लाखों की जान लेती है घर की मामूली धूल

दो साल पहले डायसन इंडिया और फिक्की रिसर्च एंड एनालिसिस सेंटर ने दिल्ली, मुंबई और बंग्लुरु में 100 घरों का सफाई सर्वे किया. इस सर्वे में पाया गया कि वे घर जहां नियमित सफाई होती है, जहां सफाई के लिए कोई नियुक्त है, उन घरों में भी कार्पेट, मैट्रेस, सोफा और कार के पायदानों के नीचे निरीक्षण करने पर अच्छी खासी धूल पायी गई. इन जगहों पर करीब 100 से 125 ग्राम तक धूल निकली. घर के भारी पर्दे सोफे, गलीचे ये तमाम चीजें घरेलू धूल की खान होते हैं. यहां मौजूद धूल के बारीक कण घर मंे रहने वालों खासकर बच्चों और बूढ़ों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक होते हैं. घर में जिन जगहों पर धूप नहीं आती, जहां खिड़कियां अकसर बंद रहती हैं, वहां नमी, अंधेरा और घुटन के कारण फंफूद पनपने लगती है. यह फंफूद भी घरेलू धूल यानी डस्ट माइट्स में बड़ा इजाफा करती है.

अमरीका में डाॅक्टर लगातार लोगों को आगाह करते हैं कि एलर्जी से बचना है तो हर हफ्ते घर मंे कम से कम तीन बार वैक्यूम क्लीनर से सफाई करें. हम चाहें नौकरीपेशा हों या अपना कोई कारोबार करते हों, हम सबको घरों की चारदीवारी के भीतर लंबा समय गुजारना पड़ता है. ऐसे में धूल से भरा घर के भीतर का यह वातावरण हमारी सेहत के लिए सचमुच बहुत खतरनाक है. मैक्केरी विश्वविद्यालय में पर्यावरणीय वैज्ञानिक मार्क टेलर ने इंडोर धूल पर बड़ा काम किया है. उनके मुताबिक घर की धूल को अगर हम वैक्यूम क्लीनर से इकट्ठा करके किसी प्रयोगशाला में जंचवाएं यानी इसमें मौजूद खतरनाक तत्वों का विश्लेषण कराएं तो पता चलेगा कि करीब 360 किस्म के खतरनाक विषैले तत्व इस धूल में मौजूद हैं. लेकिन यह मत सोचिए कि हमारा घर पूरी तरह से बंद है, तो धूल आयेगी कहां से? वैज्ञानिकों के मुताबिक मौसम, जलवायु घर की उम्र और उसके निर्माण में इस्तेमाल हुई विभिन्न किस्म की निर्माण सामग्री से घर की कुल धूल का एक तिहाई निर्मित होता है. जिन घरों में पालतू जानवर लोगों के साथ रहते हैं, उन घरों में यह घरेलू धूल और ज्यादा खतरनाक हो जाती है. क्योंकि इस धूल में लगातार पालतू जानवरों के बाल और मृत कोशिकाओं का चूरा शामिल होता रहता है.

हम और हमारे पालतू जानवरों के शरीर से लगातार मृत कोशिकाएं झड़ती रहती हैं. ये कोशिकाएं मलबे का हिस्सा बनती हैं. धूल मंे इनका अच्छा खासा हिस्सा होता है. यही वजह है कि जब ये धूल हमारे शरीर के अंदर पहुंचती है तो कई तरह की एलर्जी का खतरा रहता है. मगर धूल में सिर्फ इतना ही नहीं होता. घर की रसोई मंे बनने और सड़ने वाले तमाम खाद्य पदार्थ, उन्हें खाने वाले कीड़े मकौड़े, घर मंे बिछे कालीन के फाइबर, कपड़ों और बिस्तरों से निकलने वाली रूई और इसी तरह के दूसरे करीब 360 कण या तत्व धूल का हिस्सा होते हैं. ये हमारी सेहत के लिए बहुत खतरनाक होते हैं. घरों में सबसे ज्यादा धूल फर्नीचर, बच्चों के सोने के कपड़ों आदि से निकलती है. घर मंे खुले पड़े रहने वाले जूते, गंदे कपड़े, अखबार और किताबों के ढेर भी घरेलू धूल के बड़े स्रोत हैं. घर की धूल कई बार बाहर की धूल से ज्यादा जहरीली होती है. इसलिए घर की धूल से सावधान रहना बहुत जरूरी है.

घर की इस धूल में कई कार्बनिक और अकार्बनिक तत्व होते हैं. इसमें बैक्टीरिया, वायरस, फंफूद के बीजाणु, पौधों के तंतु, छाल, पत्तियों के ऊतक अत्यंत सूक्ष्मजीव और उनके मलकण, पालतू जानवरों के शरीर की मृत त्वचा. ये सब चीजें पहले घर के फर्श पर, हमारी पढ़ने, लिखने वाली मेज पर या ऐसी ही किसी दूसरी जगह पर एकत्र होती हैं, फिर हवा के द्वारा उड़कर धूल से मिल जाती हैं. घर की सजावटी चीजें जो पक्षियों के पंखों, कपास, ऊन, जूट और जानवरों के बालों से बनी होती हैं, उनमें धूल के बारीक कण अंदर तक प्रविष्ट कर जाते हैं. फर्नीचर, गद्दे, तकियों, सोफे, रूई, पाॅलीफाइबर, स्पंज ये सब जब पुराने होकर टूटने लगते हैं तो इनमें मौजूद धूल के कण घर के सदस्यों की बीमारी का एक बड़ा कारण बन जाते हैं. यह घरेलू धूल कितनी भयावह होती है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर में हर साल 28 लाख से ज्यादा लोग ऐसी घरेलू धूल से मर जाते हैं. इनमें करीब 5 लाख भारतीय होते हैं.

घरेलू धूल के पैदा होने की और खास जगहों में काम में न आ रहे गर्म कपड़े, कंबल आदि भी होते हैं. इन कपड़ों में नमी तथा धूप के अभाव के कारण रेशों के अंदर, फंफूद और डस्ट माइट्स पनपने लगती है. यही वजह है कि अगर इन्हें धूप में अच्छी तरह सुखाकर प्रयोग में न लाया जाये तो इनका इस्तेमाल करने से एलर्जी हो जाती है. घर में सफाई करने के दौरान धूल के ये कण पूरे वातावरण में फैलकर अपना एक वायुमंडल बना लेते हैं, इससे भी कई बार घर के सदस्यों को कई बार एलर्जी हो जाती है. दमा के रोगियों को घर की इस धूल से खास तौरपर एलर्जी होने का खतरा रहता है.

सवाल है घर मंे धूल कम से कम पैदा हो इसके लिए हमंे क्या करना चाहिए?

– घर में पानी की लीकेज हो रही हो तो इसे तुरंत सही करवा लें.

– घर में साफ और स्वच्छ वायु के आवागमन के लिए दरवाजे और खिड़कियों को खोलकर रखें.

– फर्नीचर और अन्य चीजों से धूल झाड़ते समय उसे गीले कपड़े से पोंछना जरूरी है ताकि धूल पूरे वातावरण में फैलकर बीमारी की वजह न बने.

– बच्चों को जानवरों के पंखों, खाल और बालों से बने खिलौने खेलने के लिए न दें.

– घर के गद्दे, सोफे, पर्दे, बिस्तर, कुर्सियों को वैक्यूम क्लीनर से कुछ कुछ दिनों जरूर साफ करें.

– समय-समय पर घर के गद्दों और बिस्तर को धूप में रखें.

– कालीन और गलीचों के स्थान पर लकड़ी का फर्श, टायल्स आदि इस्तेमाल करें.

– घर की धूल भरी किताबों, फाइलों, कपड़ों और बिस्तर को झाड़ते समय मुंह ढंककर रखें.

– पेट्स को बेडरूम में न आने दें.

– इंडोर प्लांट्स या पौधों या फूलों के गुच्छे को सजावट के लिए खुले स्थानों में रखें.

गुड मोर्निंग मैसेजों की बरसात, फालतू की शिष्टता का नाटक

सुबह उठकर फोन खोलिये तो मैसेज बाॅक्स भरा मिलेगा. न जाने अचानक दोस्त और जान पहचान के लोग कितने शिष्ट हो गये हैं कि सूरज निकलने के पहले ही गुड मोर्निंग मैसेज की झड़ी लगा देते हैं. इन मैसेज को देखकर कोई सोचे तो यही समझेगा कि ढेरों ऐसे मैसेज पाने वाला शख्स आखिर कितना लोकप्रिय और प्रभावी होगा या लोग उसकी कितनी इज्जत करते होंगे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. गुड मोर्निंग का मैसेज भेजने वाले लोग न तो आपका बहुत सम्मान करते हैं और न ही आपको बहुत प्रभावी मानते हैं. दरअसल वे भी बदले में ऐसे ही मैसेजों की बरसात चाहते हैं, बस इतना सा मामला है. यह एक फालूत की शिष्टता है जिसका इन दिनों फैशन बन गया है.

इसलिए मैंने अपने व्हाट्सएप के स्टेटस में लिख रखा है, गुड मोर्निंग, गुड इवनिंग के फालतू के मैसेज मुझे मत भेजिये. कुछ लोग तो स्टेटस पढ़कर संयम बरतते हैं, लेकिन कुछ फिर भी नहीं मानते. यही वजह है कि सुबह व्हाट्सएप्प खोलते ही मेरा मूड अकसर दिनभर के लिए ऑफ हो जाता है. ऐसा नहीं है कि मैं बहुत चिड़चिड़ा व्यक्ति हूं और बिना मतलब ऐसे मैसेजों से परेशान रहता हूं. इसके कुछ खास कारण हैं. एक तो इनसे अकारण ही मेरे फोन का सारा स्पेस भर जाता है. इन्हें डिलीट करने में भी अच्छा खासा समय जाया होता है और सबसे बड़ी बात जिस कारण मैं इनसे चिढ़ता हूं, वह यह है कि शायद ही इस दिखावटी शिष्टता से बड़ा कोई दूसरा झूठ होता है.

अभी कल की बात है सुबह सुबह मेरे पास जो गुड मोर्निंग मैसेज आया, उसमें लिखा था, “शुभचिंतक सड़कों पर लगे सुंदर लैंप की तरह होते हैं, वे हमारी यात्रा की दूरी को तो कम नहीं कर सकते लेकिन हमारे पथ को रोशन और यात्रा को आसान करते हैं … सुप्रभात.” इसे देखते ही मेरे तन-मन में आग लग गई क्योंकि जिसने यह संदेश भेजा था, उसे मैं बहुत अच्छे तरीके से जानता हूं. कई साल वह मेरा सहकर्मी था और दफ्तर में ज्यादातर का वह काम करना मुश्किल कर देता था. वही इस किस्म के मैसेज भेज रहा है. यह पाखंड नहीं है तो और क्या है? सबसे बड़ी बात तो यह है कि गुड मोर्निंग मैसेज भेजने वाले इन मैसेजों में लिखी अच्छी अच्छी बातों का कभी अपने जीवन में उतारने का प्रयास नहीं करते. अगर ये लोग अपने ही कथन पर अमल कर लें तो दुनिया सबके लिए रहने की बेहतर जगह हो जाये.

शायद ऐसे ही लोगों की वजह से अमरीकी चिंतक व दार्शनिक रिचर्ड बाश ने अपनी एक किताब ‘इल्यूजन’ में लिखा है, “आप उस बात की अच्छी शिक्षा देते हैं, जिसे आपको स्वयं सीखना चाहिए.” गुड मोर्निंग मैसेजों के मामले में तो यह बात पूरी तरह से खरी उतरती है. इस फैशन में एक बड़ा नुकसान हो रहा है. लोग गालिब या गुलजार का नाम लेकर ऐसे अधकचरे व घटिया शेर आपको भेज देंगे कि सुबह सुबह पढ़कर आपका मूड खराब हो जाए, अगर आपने आॅरिजनल पढ़ रखे हैं. गुड मोर्निंग मैसेजों में अक्सर ही न सिर्फ कोट्स को मिसकोट्स कर दिया जाता है बल्कि किसी का कथन किसी के मत्थे मड़ दिया जाता है.

वैसे मिसकोट्स की बीमारी गुड मोर्निंग मैसेजों तक ही सीमित नहीं है. बोगस कोट्स इन दिनों हर जगह हवा में घुले हुए हैं. इसके लिए हम सार्वजनिक मंचों पर भाषण देने वाले वक्ताओं, आलसी भाषण लेखकों और पक्षपाती राजनीतिज्ञों को इस संस्कृति के पुरोधाओं में गिन सकते हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर एक बार कोई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद या विधायक किसी कोट को मिसकोट कर दे तो फिर उसे सही करना या उसे उसके मूल स्वामी से जोड़ना बहुत कठिन हो जाता है. एम हिदायतउल्लाह जब देश के (छठे) उप-राष्ट्रपति थे तो उस समय खुशवंत सिंह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य थे . हिदायतउल्लाह की पहचान एक ज्ञानी के रूप में थी और चूंकि वह देश के (ग्यारहवें) मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके थे इसलिए उनकी बात को पत्थर की लकीर की तरह स्वीकार किया जाता था. ध्यान रहे कि उपराष्ट्रपति राज्य सभा के चेयरपर्सन भी होते हैं. बहरहाल, उच्च सदन में हिदायतउल्लाह अपने संबोधन में संदर्भ सहित कोट्स का बहुत अधिक प्रयोग करते थे, जिससे न सिर्फ उनकी बात में वजन पैदा होता था बल्कि सांसद प्रभावित होते थे कि वह कितने लर्नेड हैं और कोई भी उनके कथन को चुनौती नहीं देता था. एक दिन खुशवंत सिंह ने गौर किया तो पाया कि हिदायतउल्लाह विलियम हैजलिट या जॉन डॉन के कोट को भी शेक्सपियर के साथ जोड़ देते हैं और सब सदस्य मान लेते हैं कि प्रमाणित है आपका फरमाया हुआ’.

हिदायतउल्लाह तो खैर एक का कोट दूसरे के नाम से बोल देते थे, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो गालिब का नाम लेकर जून 2019 में राज्यसभा में एक ऐसा शेर पढ़ा जो गालिब ने कभी कहा ही नहीं था और उसके मिसरे (पंक्तियां) भी बहर (वजन) में नहीं थीं. उन्होंने जैसे ही यह पढ़ा- ‘ताउम्र गालिब ये भूल करता रहा/धूल चेहरे पर थी और मैं आईना साफ करता रहा’- तो और लोग भी इसे गालिब के नाम से कोट करने लगे, जिनमें बीजेपी के नेताओं के साथ फिल्म निर्देशक महेश भट्ट भी शामिल हैं. गालिब के 220वें जन्म दिवस पर कांग्रेस सांसद शशी थरूर ने तो मिसकोटेशन तमाम सीमाएं पार कर दीं. किसी की बेकार सी कविता को गालिब की ‘महान पंक्तियां’ बताते हुए उन्होंने ट्वीट किया- ‘खुदा की मुहब्बत को फना कौन करेगा? सभी बंदे नेक हों तो गुनाह कौन करेगा? ए खुदा मेरे दोस्तों को सलामत रखना/वरना मेरी सलामती की दुआ कौन करेगा? और रखना मेरे दुश्मनों को भी महफूज/वरना मेरे तेरे पास आने की दुआ कौन करेगा?’

इस ट्वीट पर जावेद अख्तर ने व्यंग किया, “शशी जी, जिसने भी आपको यह पंक्तियां दी हैं उस पर फिर कभी विश्वास मत करना. यह स्पष्ट है कि आपकी साहित्यक विश्वसनीयता को ध्वस्त करने के लिए किसी ने इन पंक्तियों को आपके प्रदर्शनों की सूची में प्लांट कर दिया है.” मिसकोट सिर्फ अपने देश के नेता ही नहीं करते हैं. यह ‘आम गुनाह’ दुनियाभर में होता है. बराक ओबामा जब सीनेटर थे तो उन्होंने सीनेट में अपने एक आलोचक से अब्राहम लिंकन का हवाला देते हुए कहा था, “अगर आप मेरे बारे में झूठ बोलना बंद नहीं करेंगे, तो मैं आपके बारे में सच बताने लगूंगा.” यह कोट लिंकन का नहीं है बल्कि 19वीं शताब्दी में सीनेटर चैन्सय डेपेव ने अपने प्रतिद्वंदियों के लिए सबसे पहले इसका इस्तेमाल किया था.

खैर मुझे इस सब पर थीसिस नहीं लिखना, मैं तो सिर्फ यह बता रहा था कि ये जो गुड मोर्निंग के मैसेज है वो किस तरीके से आपका समय भी बर्बाद करते है और आपकी समझ पर भी पलीता लगाते हैं.

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