‘‘ड्यूटी के वक्त होटल का खाना खाती ही हो, क्यों अपने सैलिब्रिटीज सैफ के दिए माइक्रोवैव में नहीं बनाना?’’
‘‘रिसैप्शन के काउंटर में 10 घंटे खड़ेखड़े हड्डी पसली चूर हो जाती है, कौन छुट्टी में खाना बनाए. ऐसे भी ड्यूटी न भी करूं तो भी खाना बनाना मु झे पसंद नहीं. ये चीजें तो शौक की वजह से लीं.’’
‘‘मैं निकलता हूं, कल बताना कैसी लगी तुम्हें डिश, वैसे कल मैं व्यस्त रहूंगा, बड़ा कोई सिंगर रुक रहा है हमारे होटल में, कौंटिनैंटल डिश की जिम्मेदारी रहेगी मेरी.’’
‘‘अरे हां, उन्हें अटैंड करने की जिम्मेदारी तो मेरी ही रहेगी, ठीक है मैं फोन कर लूंगी तुम्हें.’’
दोनों एक ही बड़े होटल प्रौपर्टी से जुड़े थे. इंडियन इंस्टिट्यूट औफ होटल मैनेजमैंट से पढ़ कर निकलते ही कैंपस सिलैक्शन में दोनों का एकसाथ इस बड़े होटल गु्रप में हो गया था. निहार का फूड ऐंड ब्रेवरेज डिपार्टमैंट में और पूर्बा का बतौर ट्रेनी मैनेजर. कस्टमर और सैलिब्रटी गैस्ट की ओर से अगर बढि़या फीडबैक रहा तो होटल उसे सालभर में पदोन्नति दे कर मैनेजर बना सकता है. पूर्बा आगे बढ़ने के लिए, अपने ऐशोआराम को बढ़ाते रहने के लिए हाई प्रोफाइल लोगों को खुश करने में गुरेज नहीं करती.
22 साल की सुंदर पूर्बा 5 फुट 5 इंच की हाइट और खूबसूरत फिगर के साथ इस होटल
गु्रप की शान ही थी. कस्टमर उस के साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहते और यह बात पूर्बा बखूबी सम झती थी. पूर्बा तो निहार को भी सम झती थी. आज से नहीं कालेज से ही. लेकिन चतुर पूर्बा निहार के साथ जुड़ने के आखिरी अंजाम से भी वाकिफ थी. ज्यादा से ज्यादा क्या एक बिना घूंघट वाली, बिना परदे वाली दुलहन? उस के सपने बड़े हैं. निहार मगर ज्यादा कहां सम झता था पूर्बा को? उसे बस यही लगता था कि सारी कायनात उस के लिए बारबार संयोग पैदा करती है ताकि वह अपने मनमीत से मिल सके. 23 साल का यह नौजवान अपनी रौ में इतना मतवाला था कि पूर्बा को टटोलने की भी उस ने कभी जहमत नहीं उठाई.’’
रोबदार, रसूखदार चमचमाते पैसों की खनक वाले हाई प्रोफाइल लोगों की दीवानी पूर्बा अपनी पुरानी पहचानको भुला कर तिलिस्मी रोशनी के सफर में निकल पड़ी थी.
उसे गिफ्ट अच्छे लगते हैं, महंगे, बेशकीमती आधुनिक सामान की वह शौकीन है और वह भी इतना कि कोई भी कीमत इस के लिए भारी नहीं. घर की याद यानी क्लर्क पापा की तंगहाली की कहानी. घर यानी मां की दो पैसे बचाने की जद्दोजहद और निहार मतलब एक और घर एक और सम झ कर खर्च करने की कसमसाहट.
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निहार उसे अब अच्छा नहीं लग रहा था. वह जानती थी एक बार वह निहारकी हो गई, तो वह उस पर खर्चना बंद कर देगा, दुनियाभर की सारी रौनकें अपना रास्ता बदल लेंगी. निहार अपने गिफ्ट के बदले 2-4 बार सान्निध्य मांग लेता तो शायद पूर्बा उसे निराश नहीं करती. इतनी भी संगदिल नहीं वह और न ही संस्कार का लबादा चढ़ा रखा उस ने. उस की पसंद की जिंदगी इन राहों से हो कर गुजरती नहीं, उसे मालूम है. लेकिन निहार तो उसे ही चाहता है पूरापूरा. उसे हंसी आती है उस पर. ये छोटीछोटी मासूम अनुभूतियां अगर उसे गुलाम बना सकतीं तो वह यों बड़ेबड़े सम झौते नहीं करती. खैर, निहार की मरजी, जब तक लुटाना चाहे लुटाए.
पूर्बा का एक सिंगर के साथ आजकल कुछ ज्यादा उठनाबैठना था, इतना कि यह गायक अकसर होटल के बदले उस के फ्लैट में रुक जाता. इस की संगति में पूर्बा को महसूस हुआ कि वह अच्छा गाती भी है तो उस नामी सिंगर के अधिक निकट रहने की लालसा ने उसे भरसक गाने की प्रेरणा दी.
कुछ दिनों बाद सिंगर विदेश गया, पूर्बा की लाख कोशिशों के बावजूद उस के साथ संपर्क साधा न जा सका और कुछ ही दिनों में उस गायक की शादी की खबर आई.
पूर्बा बुरी तरह झुं झला गई, लेकिन ऐसी मनमानी तो अब उस की जीवनधारा का हिस्सा है. किनकिन पर खफा हो. जल्द ही उस गायक की यादों से उबर कर एक 50 साल के रसूखदार राजनेता के संपर्क में आ गई थी वह. हीरे की बेशकीमती हार के ले कर जिंदगी को जीने के वादे थे इस बार उस के लिए.
सपने फिर झील में कमल की तरह खिलने लगे, इस राजनेता का जैक जगा कर इस बार मैनेजर का पद ले लेने की मंशा थी उस की, अचानक देशविदेश में कोरोना की खबरों ने चौंकाना शुरू किया. खबरें थी कि अपना देश भी बंद हो सकता है. सोशल डिस्टैंसिंग की बात के जोर पकड़ते ही उस के सारे हाईप्रोफाइल संपर्क कट गए. जो जहां था थमने लगा. उस ने कई बड़े लोगों से संपर्क करना चाहा, लेकिन हर ओर से उपेक्षा ही हाथ आई. आशाहीन अनिश्चितता में उस ने फिलहाल घर लौटने का मन बनाया.
होटल वालों ने अपने कुछ स्टाफ को छोड़ बाकी सारे नए स्टाफ को अनिश्चित समय के लिए छुट्टी दे दी थी. अंदर की बात यह थी कि इन्हें फ्लैट भी खाली कर देने का अल्टिमेटम था. पूर्बा को 15 सौ किलोमीटर दूर घर लौटना था.
2 दिन की शुरुआती जनता कर्फ्यू लगने से पहले उस ने निहार को कौल लगाया. निहार ने फोन उठा लिया. पता चला वह घर आ गया है.
‘‘मु झे बताया नहीं,’’ उलाहना दिया पूर्बा ने.
‘‘तुम्हें फुरसत नहीं ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने से, हमारी क्या बिसात. इसलिए डिस्टर्ब नहीं किया,’’ निहार का टका सा जवाब मिला उसे.
सरकारी वाहन बंद थे, प्राइवेट वाहन का अतिरिक्त खर्च सहते हुए वह घर पहुंची किसी तरह.
घर उसे मुरगीखाने से कुछ कम नहीं लगता था, तिस पर पापा और दुर्बा तो किसी जेलर की तरह हर वक्त हमला बोले रहते. दिनभर सीखों और उलाहनों की बरसात. ऐसा लगता जैसे कोई कीचड़ फेंक कर मार रहा हो. पूर्बा न झगड़ा करती थी और न ही उन पर उस की कुछ बोलने की ही इच्छा होती, बस ये लोग इस की नजर में न आएं उस की इतनी भर तो इच्छा थी जो पूरी नहीं हो सकती थी. मां की तो पापा के सामने कोई आवाज ही नहीं थी और भाई अंशुल उसे बस ‘दीदी मौडल बनवा दो’, ‘फलाने से एक बार मेरी बात करवा दो’, ‘दीदी एक जींस दिलवा देना,’ ‘दीदी मु झ पर कौन सा हेयर कट सूट करेगा’, ‘जरा इन गूगल की तसवीरों को देख कर बताना.’
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यद्यपि भाई को हाथ में रखने के लिए उसे सब्जबाग दिखाना पड़ता, लेकिन पूर्बा जानती थी कि उसे कितना संघर्ष करना पड़ रहा है अपने बड़े सपनों को सच करने में, तो क्या वह भाई के लिए कुछ कर पाएगी.
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