दिल धड़कने दो : क्या उनका रिश्ता शादी से पहले था ?

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा तो तन्वी उठ कर हमारे 10 साल के बेटे राहुल को स्कूल भेजने की तैयारी में व्यस्त हो गई. मैं भी साथ ही उठ गया. फ्रैश हो कर रोज की तरह 5वीं मंजिल पर स्थित अपने फ्लैट में राहुल के बैडरूम की खिड़की के पास आ कर खड़ा हो गया. कुछ दूर वाली बिल्डिंग की तीसरी मंजिल के फ्लैट में उस के बैडरूम की भी लाइट जल रही थी.

इस का मतलब वह भी आज जल्दी उठ गई है. कल तो उस के बैडरूम की खिड़की का परदा 7 बजे के बाद ही हटा था. उस की जलती लाइट देख कर मेरा दिल धड़का, अब वह किसी भी पल दिखाई दे जाएगी. मेरे फ्लैट की बस इसी खिड़की से उस के बैडरूम की खिड़की, उस की किचन का थोड़ा सा हिस्सा और उस के फ्लैट का वाशिंग ऐरिया दिखता है.

तभी वह खिड़की के पास आ खड़ी हुई. अब वह अपने बाल ऊपर बांधेगी, कुछ पल खड़ी रहेगी और फिर तार से सूखे कपड़े उतारेगी. उस के बाद किचन में जलती लाइट से मुझे अंदाजा होता है कि वह किचन में है. 10 साल से मैं उसे ऐसे ही देख रहा हूं. इस सोसायटी में उस से पहले मैं ही आया था. वह शाम को गार्डन में नियमित रूप से जाती है. वहीं से मेरी उस से हायहैलो शुरू हुई थी. अब तो कहीं भी मिलती है, तो मुसकराहट और हायहैलो का आदानप्रदान जरूर होता है. मैं कोई 20-25 साल का नवयुवक तो हूं नहीं जो मुझे उस से प्यारव्यार का चक्कर हो. मेरा दिल तो बस यों ही उसे देख कर धड़क उठता है. अच्छी लगती है वह मुझे, बस. उस के 2 युवा बच्चे हैं. वह उम्र में मुझ से बड़ी ही होगी. मैं उस के पति और

बच्चों को अच्छी तरह पहचानने लगा हूं. मुझे उस का नाम भी नहीं पता और न उसे मेरा पता होगा. बस सालों से यही रूटीन चल रहा है.

अभी औफिस जाऊंगा तो वह खिड़की के पास खड़ी होगी. हमारी नजरें मिलेंगी और फिर हम दोनों मुसकरा देंगे.

औफिस से आने पर रात के सोने तक मैं इस खिड़की के चक्कर काटता रहता हूं. वह दिखती रहती है, तो अच्छा लगता है वरना जीवन तो एक ताल पर चल ही रहा है. कभी वह कहीं जाती है तो मुझे समझ आ जाता है वह घर पर नहीं है… सन्नाटा सा दिखता है उस फ्लैट में फिर. कई बार सोचता हूं किसी की पत्नी, किसी की मां को चोरीछिपे देखना, उस के हर क्रियाकलाप को निहारना गलत है. पर क्या करूं, अच्छा लगता है उसे देखना.

तन्वी मुझ से पहले औफिस निकलती है और मेरे बाद ही घर लौटती है. राहुल स्कूल से सीधे सोसायटी के डे केयर सैंटर में चला जाता है. मैं शाम को उसे लेते हुए घर आता हूं. कई बार जब वह मुझ से सोसायटी की मार्केट में या नीचे किसी काम से आतीजाती दिखती है तो सामान्य अभिवादन के साथ कुछ और भी होता है हमारी आंखों में अब. शायद अपने पति और बच्चों में व्यस्त रह कर भी उस के दिल में मेरे लिए भी कुछ तो है, क्योंकि रोज यह इत्तेफाक तो नहीं कि जब मैं औफिस के लिए निकलता हूं, वह खिड़की के पास खड़ी मुझे देख रही होती है.

वैसे कई बार सोचता हूं कि मुझे अपने ऊपर नियंत्रण रखना चाहिए. क्यों रोज मैं उसे सुबह देखने यहां खड़ा होता हूं  फिर सोचता हूं कुछ गलत तो नहीं कर रहा हूं… उसे देख कर कुछ पल चैन मिलता है तो इस में क्या बुरा है  किसी का क्या नुकसान हो रहा है.

तभी वह सूखे कपड़े उतारने आ गई. उस ने ब्लैक गाउन पहना है. बहुत अच्छी लगती है वह इस में. मन करता है वह अचानक मेरी तरफ देख ले तो मैं हाथ हिला दूं पर उस ने कभी नहीं देखा. पता नहीं उसे पता भी है या नहीं… यह खिड़की मेरी है और मैं यहां खड़ा होता हूं. नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां आजकल मेरी इस खिड़की तक पहुंच गई हैं. उन्हीं के झुरमुट से उसे देखा करता हूं.

कई बार सोचता हूं हाथ बढ़ा कर टहनियां तोड़ दूं पर फिर मैं उसे शायद साफसाफ दिख जाऊंगा… सोचेगी… हर समय यहीं खड़ा रहता है… नहीं, इन्हें रहने ही देता हूं. वह कपड़े उतार कर किचन में चली गई तो मैं भी औफिस जाने की तैयारी करने लगा. बीचबीच में मैं उसे अपने पति और बच्चों को ‘बाय’ करने के लिए भी खड़ा देखता हूं. यह उस का रोज का नियम है. कुल मिला कर उस का सारा रूटीन देख कर मुझे अंदाजा होता है कि वह एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी मां है.

औफिस में भी कभीकभी उस का यों ही खयाल आ जाता है कि वह क्या कर रही होगी. दोपहर में सोई होगी… अब उठ गई होगी… अब उस सोफे पर बैठ कर चाय पी रही होगी, जो मेरी खिड़की से दिखता है.

औफिस से आ कर मैं फ्रैश हो कर सीधा खिड़की के पास पहुंचा. राहुल कार्टून देखने बैठ गया था. मेरा दिल जोर से धड़का. वह खिड़की में खड़ी थी. मन किया उसे हाथ हिला दूं… कई बार मन होता है उस से कुछ बातें करने का, कुछ कहने का, कुछसुनने का, पर जीवन में कई इच्छाओं को, एक मर्यादा में, एक सीमा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक दायित्व भी तो होते हैं… फिर सोचता हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

दो

सुबह 6 बजे का अलार्म बजा. मैं ने तेजी से उठ कर फ्रैश हो कर अपने बैडरूम की लाइट जला दी. समीर भी साथ ही उठ गए थे.

वे सुबह की सैर पर जाते हैं. मैं ने बैडरूम की खिड़की का परदा हटाया. अपने बाल बांधे. जानती हूं वह सामने अपने फ्लैट की खिड़की में खड़ा होगा, आजकल नीचे लगे पेड़ की कुछ टहनियां उस की खिड़की तक जा पहुंची हैं. कई बार सोचती हूं वह हाथ बढ़ा कर उन्हें तोड़ क्यों नहीं देता पर नहीं, यह ठीक नहीं होगा. फिर वह साफसाफ देख लेगा कि मैं उसे चोरीचोरी देखती रहती हूं. नहीं, ऐसे ही ठीक है. तार से कपड़े उतारते हुए मैं कई बार उसे देखती हूं, कपड़े तो मैं दिन में कभी भी उतार सकती हूं, कोई जल्दी नहीं होती इन की पर इस समय वह खड़ा होता है न, न चाहते हुए भी उसे देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाती हूं.

मैं ने कपड़े उतारते हुए कनखियों से उसे देखा. हां, वह खड़ा था. मन हुआ हाथ हिला कर हैलो कर दूं पर नहीं, एक विवाहिता की कुछ अपनी मर्यादाएं होती हैं. मेरा दिल जोर से धड़कता है जब मैं महसूस करती हूं वह अपनी खिड़की में खड़ा हो कर मेरी तरफ देख रहा है. स्त्री हूं न, बहुत कुछ महसूस कर लेती हूं, बिना किसी के कुछ कहेसुने. मैं समीर और अपने बच्चों के नाश्ते और टिफिन की तैयारी मैं व्यस्त हो गई.

तीनों शाम तक ही वापस आते हैं. मेरी किचन के एक हिस्से से उस की खिड़की का थोड़ा सा हिस्सा दिखता है, जिस खिड़की के पास वह खड़ा होता है वह शायद बैडरूम की है. किचन में काम करतेकरते मैं उस पर नजर डालती रहती हूं. सब समझ आता रहता है, वह अब तैयार हो रहा है. मुझे अंदाजा है उस के कमरे की किस दीवार पर शीशा है. मैं ने उसे वहां कई बार बाल ठीक करते देखा है.

जानती हूं किसी के पति को, किसी के पिता को ऐसे देखना मर्यादासंगत नहीं है पर क्या करूं, कुछ है, जो दिल धड़कता है उस के सामने होने पर. 10 साल से कुछ है जो उसे कहीं देखने पर, नजरें मिलने पर, हायहैलो होने पर दिल धड़क उठता है. वह अपनी कामकाजी पत्नी की घर के काम में काफी मदद करता है, बेटे को ले कर आता है, घर का सामान लाता है, कभी अपनी पत्नी को छोड़ने और लेने भी जाता है… सब दिखता है मुझे अपने घर की खिड़की से. कुल मिला कर वह एक अच्छा पति और अच्छा पिता है. कई बार तो मैं ने उसे कपड़े सुखाते भी देखा है… न मुझे उस का नाम पता है न उसे मेरा पता होगा. बस, उसे देखना मुझे अच्छा लगता है. मैं कोई युवा लड़की तो हूं नहीं जो प्यारव्यार का चक्कर हो. बस, यों ही तो देख लेती हूं उसे. वैसे दिन में कई बार खयाल आ जाता है कि क्या काम करता है वह  कहां है उस का औफिस  वह औफिस से आते ही अपनी खिड़की खोल देता है. मुझे अंदाजा हो जाता है वह आ गया है, फिर वह कई बार खिड़की के पास आताजाता रहता है. वह कई बारछुट्टियों में बाहर चला जाता है तो बड़ा खालीखाली लगता है.

10 साल से यों ही देखते रहना एक आदत सी बन गई है. वह दिखता रहता है पेड़ की पत्तियों के बीच से. दिल करता है उस से कुछ बातें करूं, कुछ कहूं, कुछ सुनूं पर नहीं जीवन में कई इच्छाओं को एक मर्यादा में रखना ही पड़ता है… कुछ सामाजिक उसूल भी तो हैं, फिर सोचती हूं दिल का क्या है, धड़कने दो.

बीबीआई: क्या आसान है पत्नी की नजरों से बचना

आप सोच रहे होंगे कि हम ने ‘सी’  की जगह गलती से ‘बी’ लिख दिया है. नहीं, यहां गलती नहीं की है. वैसे हम उन की नजर में गलतियों की गठरी हैं. भले ही खुद को गलतीलैस समझते हों? वे ट्रेन व हम पटरी हैं. सीबीआई की इस समय धूम मची हुई है. एफआईआर, छापे व जांच की बूम है. मुगालते में न रहें. जो सीबीआई के फंदे में फंसा सब से पहले तो वह धंधे से गया. फिर उस के सारे दोस्तरिश्तेदार उसे पहचानने की बात पर अंधे हो गए. सीबीआई के गहन अन्वेषण व बयान लेने में अच्छेअच्छे सयाने चारों खाने चित हो जाते हैं. सीबीआई तो जिस ने गलत काम किया हो उसे पकड़ती है या फिर जिस से काम करतेकरते गलती हो गई हो. लेकिन उसे पता न हो कि उस ने गलती की है या जो अपनी डफली अपना राग अलापता हो कि उस ने गलती की ही नहीं है. गलती तो उस की जांच करने वाले कर रहे हैं. इसीलिए आजकल बहुत से सयाने लोगों ने काम करना ही बंद कर दिया है और बाकायदा उदाहरण से अपनी बात को जस्टीफाई करने की कोशिश कर रहे हैं कि न सड़क पर गाड़ी चलाओ और न ही ऐक्सीडैंट का भय पालो. अब यह

कोई बात हुई कि काम ही न करो? बस घर बैठे वेतन लो. औफिस में कूलर, पंखे की हवा में गप्पें मारते रहो. एक और अन्वेषण ब्यूरो इस देश में है, जो सीबीआई से भी ज्यादा खतरनाक है. इस की तो अपनी तानाशाही चलती है. सीबीआई को सरकार केस सौंपती है. लेकिन यह सरकार अपने केस का स्वयं संज्ञान लेती है. पुलिस भी स्वयं है और न्यायाधीश भी, अदालत भी स्वयं और दंड के प्रावधान भी इसी के हैं और यह है बीबीआई. बहुत से लोगों ने इस का नाम नहीं सुना होगा. लानत है ऐसे लोगों पर कि इतनी पुरानी व विश्वसनीय संस्था के बारे में नहीं सुना. दरअसल, यह एक सदस्यीय आयोग है. इस का कार्यालय जहां आप रहते हैं वहीं है. इस का कार्यकाल उतना ही है जितना आप की जिंदगी का कार्यकाल. यह आयोग बड़ा जैंडर सैंसिटिव है. अब आप की यहां दाल नहीं गलती तो इसे जैंडर डिसिक्रिमिनेटरी कहने की ग…ग…गलती न करें.

बीबीआई आप पर पैनी नजर रखती है. इस के टूल हथौड़ी व छैनी से भी ज्यादा तेज मार करते हैं. आप कार्यालय के लिए घर से कब निकलते हैं, वहां कब पहुंचते हैं, लौटते कब हैं, लंच के लिए घर कब आते हैं या किसी दिन नहीं आए तो कारण, सैलरी कितनी है, कब जमा हो गई है, आप की जेब में कितने पैसे हैं, आप ने कब कितने खर्च किए हैं, आप की महिला दोस्त कितनी हैं मतलब महिला सहकर्मी कितनी हैं, आप आज नहाते समय गाना ज्यादा देर तक क्यों गुनगुना रहे थे, दोस्तों के साथ जाम कब टकराते हैं, खुद पर कितने और कब खर्च कर लेते हैं? जैसी चीजों पर पैनी नजर रहती है. यह एजेंसी उड़ती चिडि़या के पर पहचान लेती है. इतनी तीखी नजर तो ‘सीआईए’ भी नहीं रखती होगी. आप के 1-1 पल का, कल, आज और आने वाले कल का भी हिसाब इस एजेंसी के पास है. हां, हम फिर से कह रहे हैं कि यह उच्च स्तरीय स्पैशलाइजेशन वाली एजेंसी है. जैसे ही किसी की शादी होती है वह इस एजेंसी के राडार में आ जाता है. यह एजेंसी जैसा चाहती है आदमी वैसा करता है. यदि यह बोले कि आज नाश्ता नहीं करना है तो वह नहीं करेगा या वह बोले कि आज उपवास करना है तो वह उपवास पर रहेगा. चाहे उस की इच्छा हो या न हो.

यह एजेंसी तय करेगी कि आप की मां व आप के पिता कब आप के पास आएंगे और कब नहीं? आने के बाद टर्म ऐंड कंडीशंस उन के स्टे की क्या होंगी या आप के सासससुर के आने पर लिबरल टर्म्स क्या रहेंगी? बल्कि कहें कि उन का स्टे टर्मलैस रहेगा. यह सब यह एजेंसी ही तय करती है. यह सर्वव्यापी है. यह वेदकाल की आकाशवाणी सदृश है, जो इस ने कह दिया अंतिम है. यह एजेंसी सारे साधनों से संपन्न है. इस के अपने आदमी व अपने तरीके हैं. इस के अपने टूल किट में बेलन, धांसू तरीके से बहाने वाले आंसू, मायका, बिना जायके का भोजन, लताड़, खिंचाई, मुंह फुलाई, कोपभवन आदि रहते हैं, जिन्हें वह वक्त की नजाकत देख कर उपयोग करती है. ये इंद्र के वज्र व कृष्ण के सुदर्शन चक्र से भी ज्यादा प्रभावशाली होते हैं और आप के जीवनचक्र को पूरी तरह नियंत्रित करते हैं. यह आप की जिंदगीरूपी कार का स्टेयरिंग व्हील है. इन सब से यह आप की निगरानी करती है. आप के 1-1 पल की खबर रखती है. एक उदाहरण लें. आप औफिस जा रहे हैं. आप ने अपने हिसाब से कपड़े पहन लिए हैं. यहीं आप ने गलती कर दी. जिस दिन से 7 फेरे लिए हैं आप को अपने हिसाब से नहीं इस एजेंसी के हिसाब से चलना है. इस एजेंसी का फरमान आ गया कि नहीं ये कपड़े पहन कर आप नहीं जाएंगे तो आप को तुरंत कपड़े चेंज करने पड़ेंगे. इस की चौइस पर चूंचपड़ की कतई गुंजाइश नहीं है. मानव अधिकारों मतलब पति के अधिकारों की बात नहीं करेंगे. यहां ये फालतू की चीजें नहीं होतीं.

आप अभी तक इस एजेंसी के बारे में नहीं जान पा रहे हैं. लानत है आप को, रोज इस एजेंसी की डांटरूपी लात खाने के बाद भी उस का दिया रूखा दालभात भी ऐसे खाते हो जैसेकि छप्पन भोग मिल गया हो. इतनी ताकतवर है यह एजेंसी. फिर भी समझने में देर लगा रहे हो. वह सही कहती है कि तुम मंद बुद्धि, नासमझ हो. जेल में तो फिर भी हाई प्रोफाइल कैदी मिला खाना ठुकरा सकता है, बेस्वाद होने के आधार पर, लेकिन यहां यह विकल्प नहीं है. यदि कभी ऐसी जुर्रत की तो फिर भूखे ही रहना पड़ता है. गंगू फेंक नहीं रहा है स्वयं भुक्तभोगी है. यह जमानती वारंट कभी जारी नहीं करती है. आप की सारी गलतियां या अपराध गैरजमानती ही होते हैं इस के यहां. यह एजेंसी घरघर में है. इस ने सारे घरों में कब्जा कर रखा है. देश की जनसंख्या 120 करोड़ है. इस में शादीशुदा लगभग 70 करोड़ होंगे यानी 70 करोड़ एजेंसियां हैं. आप की शादी हुई और यह एजेंसी हरकत में आना शुरू हो जाती है. आप पर सुहागरात के बाद से ही नजर रखनी शुरू कर देती है. सुहागरात के दिन भी नजर रखती है. लेकिन यह प्यार की नजर होती है. उस के बाद तो बेशक शक व वर्चस्व की नजर होती है.

आप भले ही बत्ती वाले साहब हों. लाल, पीली, नीली बत्ती में लोगों पर रुतबा झाड़ते हों, लेकिन इस की बिना रंग व शेप की अदृश्य लताड़रूपी बत्ती तो आप को जब चाहे छठी का दूध याद दिला देती है. दिन में ही आप की बत्ती गुल कर देती है. ‘जोरू का गुलाम’ जुमला ऐसे ही नहीं बना है. इस एजेंसी का नाम है बीबीआई यानी बीवी ब्यूरो औफ इन्वैस्टीगेशन. सीबीआई तो एक है, यह सब घरों में है. यह ज्यादा ऐक्टिव 25 से 50 साल की उम्र वाले पतियों के घर में रहती है. आप की जवानी जब उतार पर आ जाती है तो फिर यह एजेंसी थोड़ा सा लिबरल या कहें कि लापरवाह हो जाती है. लेकिन इस का वजूद फिर भी रहता है. यह 45 की उम्र से ही बातबात में कहना शुरू कर देती है कि लगता है आप सठिया गए हो, लगता है आप बुढ़ा गए हो और यह सब सुनतेसुनते वास्तव में आप गए यानी गौन केस हो जाते हैं. सीबीआई कुछ नहीं है इस के सामने जो सब की जांच करती है. उस के अधिकारी भी घर की एजेंसी के राडार पर रहते हैं. यहां भी जो कुंआरे हैं वे ही नियंत्रणमुक्त रहते होंगे.

यह एजेंसी यह नहीं देखती कि आप पीएम हैं, सीएम हैं, जीएम हैं या कोई भी एम, इस का जो अपना तरीका है जरूरत पड़ने पर उसे इस्तेमाल करती ही है और यह अधिकार उसे 7 फेरे लेते ही मिल जाता है और आजीवन रहता है. अब आप दांपत्य जीवन जैसे अनोखे जीवन को इतना सब पढ़ कर उम्रकैद मत कहने लगना. वह जो निगरानी करती है या लताड़ मारती है वह आप की भलाई के लिए है. आप को ऐब व बुराई से बचाने का उस का घरेलू ऐप है यह. तो गंगू कह रहा है उस के निगरानी राडार को अपने खुशहाल जीवन का आधार बना लें. हम यहां यह लेख लिखते हुए बड़े खुश हो रहे हैं और वहां रसोई से उसे आभास हो गया है कि घंटे भर से क्या बात है उस का पति के रूप में पट्टे पर मिला बंधुआ मजदूर बड़ा खामोश है? उस का यह मैन हीमैन बनने की कोशिश तो नहीं कर रहा है? उस के कदमों की आवाज धीरेधीरे बढ़ती जा रही है. अब क्या होगा?

किट्टी की किटकिट

अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है जब किट्टी पार्टियां केवल अमीर घरों की महिलाओं का शौक होती थीं. आजकल महानगरों में ही नहीं वरन छोटेछोटे शहरों में भी किट्टी पार्टियां आयोजित की जाती हैं और मध्यवर्गीय परिवारों की गृहिणियां भी पूरे जोशखरोश के साथ इन पार्टियों में शिरकत कर के गौरवान्वित महसूस करती हैं.

अमूमन इन पार्टियों का समय लगभग 11 से 1 बजे के बीच रखा जाता है जब पतिदेव औफिस और बालगोपाल स्कूल जा चुके होते हैं. उस समय घर पर गृहस्वामिनी का निर्विघ्न एवं एकछत्र राज होता है. हर छोटेबड़े शहर में चाहे कोई महल्ला हो, सोसायटी हो, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग हो, इन पार्टियों का दौर किसी न किसी रूप में चलता रहा है.

इन पार्टियों की खासीयत यह होती है कि टाइमपास के साथसाथ ये मनोरंजन का भी अच्छा जरीया होती हैं जहां, गृहिणियां गप्पें लड़ाने के साथसाथ हंसीठिठोली भी करती हैं और एकदूसरे के कपड़ों व साजशृंगार का बेहद बारीकी से निरीक्षण भी करती हैं. किट्टी पार्टियों की मैंबरानों में सब से महत्त्वपूर्ण बात यह होती है कि सब से सुंदर एवं परफैक्ट दिखने की गलाकाट होड़ चलती रहती है, जिस का असर बेचारे मियांजी की जेब को सहना पड़ता है.

मैचिंग पर्स, मैचिंग ज्वैलरी और सैंडल की जरूरत तो हर किट्टी में लाजिम है. ऐतराज जताने की हिम्मत बेचारे पति में कहां होती है. यदि उस ने भूल से भी श्रीमतीजी से यह पूछने की गुस्ताखी कर दी कि क्यों हर महीने फालतू खर्चा करती हो, तो अनेक तर्क प्रस्तुत कर दिए जाते हैं जैसे मिसेज चोपड़ा तो हर किट्टी में अलगअलग डायमंड और प्लैटिनम के गहने पहन कर आती हैं. मैं तो किफायत में आर्टिफिशियल ज्वैलरी से ही काम चला लेती हूं. यदि मैं सुंदर दिखती हूं, अच्छा पहनती हूं तो सोसायटी में तुम्हारी ही इज्जत बढ़ती है. इन तर्कों के आगे बहस करने का जोखिम पतिदेव उठा नहीं पाते और बात को वहीं खत्म करने में बुद्धिमानी समझते हैं.

किट्टी पार्टियों में पैसों का लेनदेन भी जोर पकड़ता जा रहा है. पहले जहां किट्टी पार्टियां क्व500 से ले कर क्व1000 तक की होती थीं, वहीं आजकल इन में जमा होने वाली राशि क्व2 हजार से ले कर क्व10 हजार तक हो गई है.

श्रीमतीजी हर महीने पतिदेव से यह कह कर किट्टी के नाम पर पैसे वसूल लेती हैं कि तुम्हारे पैसे कहीं भागे थोड़े जा रहे हैं. जब मेरी किट्टी पड़ेगी तो सारे पैसे वापस घर ही तो आने हैं. मगर यह सच ही है कि कथनी एवं करनी में बड़ा अंतर होता है.

जब किट्टी के पैसे श्रीमतीजी के हाथ लगते हैं तो सालों से दबी तमन्नाएं अंगड़ाइयां लेने लगती हैं. उन के मनमस्तिष्क में अनेक इच्छाएं जाग्रत हो जाती हैं जैसे इस बार डायमंड या गोल्ड फेशियल कराऊंगी सालों से फू्रट फेशियल से ही काम चलाया है. बच्चों  की बोतल स्टील वाली ले लेती हूं. पानी देर तक ठंडा रहता है. अगली किट्टी में पहनने के लिए एक प्लाजो वाला सूट सिलवा लेती हूं. लेटैस्ट ट्रैंड है, पायलें पुरानी हो गई हैं कुछ पैसे डाल कर नई ले लेती हूं.

वे एक शातिर मैनेजर की तरह धीरेधीरे अपनी योजनाओं का क्रियान्वयन भी कर लेती हैं. अगर कभी नई बोतल देख पतिदेव ने पूछ लिया कि यह कब ली तो उस के जवाब में कड़ा तर्क कि बच्चों की सुविधाओं में मैं कंजूसी कभी नहीं करूंगी. अपना काम मैं चाहे जैसे भी चला लूं. इन ठोस तर्कों के आगे श्रीमानजी निरुत्तर हो जाते हैं.

आजकल किट्टी पार्टियां कई प्रकार की होने लगी हैं जैसे सुंदरकांड की किट्टी पार्टी जिस में मंडली इकट्ठा हो कर भजनकीर्तन के बाद ठोस प्रसाद ग्रहण करती है, हंसीठिठोली करती है और फिर एकदूसरे से बिदा लेती है.

अमीर तबके की महिलाएं तो थीम किट्टी करती हैं जैसे सावन में हरियाली जिस में हरे वस्त्र, आभूषण पहनने अनिवार्य हैं या जाड़ों में क्रिसमस थीम जहां लाल एवं श्वेत वस्त्रधारी मैंबरान का स्वागत सैंटाक्लाज करता है या फिर वैलेंटाइन थीम, ब्लैक ऐंड व्हाइट किट्टी या विवाह की थीम भी रखी जाती है जहां मैंबरानों के लिए अपनी शादी के दिनों में प्रयोग किए वस्त्र या आभूषण पहनने जरूरी होते हैं.

किट्टी की मैंबरान भी कई प्रकार की होती हैं जैसे अगर अर्ली कमिंग पर गिफ्ट है और किट्टी शुरू होने का निर्धारित समय 12 बजे है तो वे गिफ्ट के आकर्षण में बंधीं अपनेआप को समय की पाबंद दिखाते हुए तभी डोरबैल बजा देती हैं, जब 12 बजने में अभी 25 मिनट बाकी होते हैं. उधर बेचारी मेजबान अभी एक ही आंख में लाइनर लगा पाती है. वह मन ही मन कुढ़ती पर चेहरे पर झूठी मुसकान लिए आगंतुकों को बैठा कर अधूरा मेकअप पूरा करती है.

वहीं दूसरी प्रकार की किट्टी मेजबान ऐसी होती है कि वह अपनी पूरी ऊर्जा, समय और पैसा किट्टी से पहले इस बात में व्यय करती है कि उस की मेजबानी सर्वश्रेष्ठ हो. वह किट्टी से पहले परदे, कुशनकवर तो लगाती ही है, साथ ही बजट की परवाह किए बगैर 4-5 व्यंजन भी पार्टी में परोसती है ताकि हर मैंबरान मुक्त कंठ से उस की मेजबानी की प्रशंसा करे और वह खुशी के मारे फूलफूल कुप्पा होती रहे.

किट्टी पार्टी की कुछ सदस्य तो भाग्यशाली सिद्ध हो चुकी होती हैं कि चाहे जो भी हो तंबोला में वे खूब पैसे जीतती हैं. इस के विपरीत कुछ सदस्य तो जोशीली मुद्रा के साथ गेम्स जीतने के लिए जान की बाजी लगाने से गुरेज नहीं करती हैं. उन्हें हर हाल में गेम जीतना ही होता है. भले उन का मेकअप बिगड़ जाए, बाल खराब हो जाएं. अगर उस दिन भाग्य ने उन का साथ नहीं दिया तो झल्लाहट और खिसियाहट में किसी न किसी सहेली से उन का झगड़ा जरूर हो जाता है.

किट्टी में कुछ नजाकत एवं नफासत वाली मैंबरान भी होती हैं, जिन का उद्देश्य गेम जीतना कतई नहीं होता, वे संपूर्ण सजगता एवं सौम्यता से अपनी साड़ी का पल्लू, नैनों के काजल, मसकारा का खयाल रखते हुए गेम खेलने की औपचारिकता पूरी करती हैं.

एक अन्य प्रकार की मैंबरान ऐसी होती हैं जो गेम से पूर्व ही अपना रक्तचाप बढ़ा लेती हैं. उन का पेट बगैर कपालभाति के फूलनेपिचकने लगता है. वे स्वभावत: डरपोक किस्म की होती हैं जो अपनी पारी से पहले लघुशंका का निवारण करने जरूर जाती हैं. पता नहीं क्यों उन्हें ऐसा लगता है कि कहां फंस गईं. खेलकूद उन के बस का नहीं है. वे हार कर भी राहत की सांस लेती हैं यह सोच कर कि चलो उन की पारी निकल गई. बला टली.

जहां कुछ मेजबान जबरदस्त दिलदार होती हैं वहीं कुछ परले दर्जे की कंजूस जो कम से कम बजट में किट्टी निबटा देती हैं. इस प्रकार की मैंबरान गिफ्ट भी सोचसमझ कर चुनती हैं ताकि रुपयों की ज्यादा से ज्यादा बचत हो सके.

किट्टी पार्टी के दौरान ज्यादातर कुछ प्रौढ़ एवं जागरूक महिलाएं विचार रखती हैं कि अगली बार से खाने और मौजमस्ती के साथसाथ कुछ रचानात्मक एवं सृजनात्मक कल्याणकारी योजनाएं भी रखी जाएं, पर ये बातें सब की सहमति के बावजूद अगली किट्टी में हवाहवाई हो जाती हैं.

किट्टी पार्टी कुछ बहुओं के लिए अपनी सासों को महिलामंडित करने का एक मौका भी होता है जो वे घर में नहीं कर पातीं. वहीं कुछ सासों के लिए बहुओं की मीनमेख निकालने का भी मौका होता है. कुछ तो इतनी समर्पित किट्टी मैंबरान होती हैं कि चाहे कोई भी बाधा आ जाए काम वाली छुट्टी कर जाए, बच्चों की तबीयत खराब हो वे उन्हें बुखार की दवा दे कर भी किट्टी में जरूर उपस्थित होती हैं.

किट्टी पार्टियों का एक दूसरा संजीदा पहलू यह भी है कि भारतीय गृहिणियां किट्टी के माध्यम से ही थोड़ी देर के लिए स्वयं से रूबरू होती हैं और उस के बाद वे नई ऊर्जा, नवउत्साह के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करती हैं.

भारतीय मध्यवर्गीय समाज की मानसिकता के अनुसार किट्टी पार्टियों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता. जो महिलाएं किट्टी पार्टियां करती हैं उन्हें ज्यादातर स्वच्छंद एवं उच्शृंखल महिलाओं की श्रेणी में रखा जाता है, क्योंकि चाहे वे परिवार के लिए कितनी भी समर्पित रहें, परंतु यदि वे स्वयं के मनोरंजन हेतु कहीं सम्मिलित होती हैं, तो समाज उन्हें कठघरे में खड़ा करता है, हेय दृष्टि से देखता है, मेरे विचार से यह गलत है.

भारतीय गृहिणियां ताउम्र सुबह से शाम तक साल के बारहों महीने सिर्फ अपने घरपरिवार और बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा से पूर्ण करती हैं. उन का इतना हक तो बनता ही है कि जीवन के कुछ पल स्वयं के लिए बिना किसी आत्मग्लानि के व्यतीत करें और समाज उन के नितांत पलों को प्रश्नवाचक दृष्टि से न देखे. अंत में मैं इन पंक्तियों के साथ किट्टी की किटकिट को विराम देती हूं-

व्यतीत करना चाहती हूं,

सिर्फ एक दिन खुद के लिए,

जिस में न जिम्मेदारियों का दायित्व हो,

न कर्तव्यों का परायण,

न कार्यक्षेत्र का अवलोकन हो,

न मजबूरियों का समायन,

बस मैं,

मेरे पल,

मेरी चाहतें और

मेरा संबल,

मन का खाऊं,

मन का पहनूं,

शाम पड़े सखियों से गपशप,

फिर से जीना चाहती हूं,

एकसाथ में बचपन यौवन,

काश, मिले वो लमहे मुझे,

एक दिन अगर जी पाती हूं.

ममा आई हेट यू : क्या आद्या की मां से नफरत खत्म हो पाई?

‘‘आद्या,तुम्हारी मम्मी का फोन है,’’ अपनी बेटी संगीता का फोन आने पर शोभा ने अपनी 10 साल की नातिन को आवाज देते हुए कहा. वह दूसरे कमरे में टैलीविजन देख रही थी. जब कोई उत्तर नहीं मिला तो वे उठ कर उस के पास गईं और अपनी बात दोहराई.

‘‘उफ, नानी मैं ने कितनी बार कहा है कि मुझे उन से कोई बात नहीं करनी. फिर आप क्यों मुझे बारबार कहती हो बात करने को?’’ आद्या ने लापरवाही से कहा.

शोभा उस के उत्तर को जानती थीं, लेकिन वे अपनी बेटी संगीता को खुद उत्तर न दे कर आद्या की आवाज स्पीकर पर सुनवा कर उस से ही दिलवाना चाहती थीं वरना संगीता उन पर इलजाम लगाती कि वही उस की बेटी से बात नहीं करवाना चाहती.

फोन बंद करने के बाद शोभा ने आद्या की मनोस्थिति पता करने के लिए उस से कहा, ‘‘बेटा, वह तुम्हारी मां है. तुम्हें उन से बात करनी चाहिए…’’

अभी उन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि आद्या चिल्ला कर बोली, ‘‘यदि उन्हें मेरी जरा भी चिंता होती तो इस तरह मुझे छोड़ कर दूसरे आदमी के साथ नहीं चली जातीं… मेरी फ्रैंड वान्या को देखो, उस की मां उस के साथ रहती हैं और उसे कितना प्यार करती हैं. जब से मैं ने मां को फेसबुक पर किसी दूसरे आदमी के साथ देखा है, मुझे उन से नफरत हो गई है, अमेरिका में ममा और पापा के साथ रहना मुझे कितना अच्छा लगता था, लेकिन ममा को पापा से झगड़ा कर के इंडिया आते समय एक बार भी मेरा खयाल नहीं आया कि मेरा क्या होगा…मैं पापा के बिना रहना चाहती हूं या नहीं… पापा ने भी तो मुझे एक बार भी नहीं रोका… और फिर यहां आ कर उन्हें भी मुझ से अलग ही रहना था तो फिर मुझे पैदा करने की जरूरत ही क्या थी… मैं जब अपनी फ्रैड्स को अपने मम्मीपापा के साथ देखती हूं, तो कितना ऐंब्रैस फील करती हूं… आप को पता है? और वे सब मुझे इतनी सिंपैथी से देखती हैं. जैसे मैं ने ही कोई गलती की है… ऐसा क्यों नानी? मैं जानती हूं, ममा मुझ से फोन पर क्या कहना चाहती हैं… वे चाहती हैं कि मैं अपने अमेरिका में रहने वाले पापा से कौंटैक्ट करूं, ताकि वे मुझे अपने पास बुला लें और उन का मुझ से  हमेशा के लिए पीछा छूट जाए. उस के बाद वे मुझ से मिलने के बहाने अमेरिका आती रहें, क्योंकि आप को पता है न कि अमेरिका में रहने के लिए ही उन्होंने एनआरआई से लवमैरिज की थी. हमेशा तो फोन पर मुझ से यही पूछती हैं कि मैं ने उन से बात की या नहीं, लेकिन नानी मैं उन के पास नहीं जाना चाहती. मैं तो आप के पास ही रहना चाहती हूं. मैं ममा से कभी बात नहीं करूंगी, ममा आई हेट यू… आई हेट हर… नानी.

आद्या ने एक ही सांस में सारा आक्रोश उगल दिया और किसी अपने बिस्तर पर औंधी हो कर रोने लगी.

शोभा अवाक उस की बातें सुनती रह गईं कि इतनी छोटी उम्र में आद्या को हालात ने कितना परिपक्व बना दिया था.

आद्या के तर्क को सुनने के बाद शोभा गहरे सोच में डूब गईं. इतना समझाने के बाद भी कि अमेरिका में इतनी दूर रहने वाले लड़के के चरित्र के बारे में क्या गारंटी है, विवाह का निर्णय लेने के लिए सिर्फ फेसबुक की जानपहचान ही काफी नहीं है. लेकिन उन की बेटी संगीता ने एक नहीं सुनी और जिद कर के उस से विवाह किया था

विवाह के सालभर बाद ही आद्या पैदा हो गई. उस के पैदा होने के समय शोभा अमेरिका गई थी, लेकिन सुखसुविधा की कोई कमी न होते हुए भी घर में हर समय कलह का वातवरण ही रहता था, क्योंकि राहुल की आदतें बहुत बिगड़ी हुई थीं. उस के विवाह करने का एकमात्र उद्देश्य तो पत्नी के रूप में अनपेड मेड लाना था.

एक दिन ऐसा आया जब संगीता 4 साल की आद्या को ले कर भारत उन के पास लौट आई, लेकिन संगीता को अमेरिका के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने की इतनी आदत पड़ गई थी कि उस का अपनी आईटी कंपनी की नौकरी से गुजारा ही नहीं होता था.

4 साल बीततेबीतते उस ने अपने मातापिता को बताए बिना किसी बड़े बिजनैसमैन से दूसरी शादी कर ली. वह उस से विवाह करने के लिए इसी शर्त पर राजी हुआ कि वह अपनी बेटी को साथ नहीं रखेगी.

धीरेधीरे उम्र के साथ आद्या को सारे हालात समझ में आने लगे और उस का अपनी मां के लिए आक्रोश भी बढ़ने लगा, जिस की प्रतिक्रिया औरौं पर भी दिखने लगी. वह कुंठित हो कर अपनी स्थिति का अनुचित लाभ उठाने लगी. अपनी नानी से भी हर बात में तर्क करने लगी थी. स्कूल से आने के बाद वह घर में टिकती ही नहीं थी. उस की अपनी कालोनी में ही 2-3 लड़कियों से दोस्ती हो गई थी. उन के साथ ही सारा दिन रहती थी.

वहां रहने वाले परिवारों के लोग भी उस की बदसलूकी की उस की नानी से शिकायत करने लगे तो शोभा को बहुत चिंता हुई, लेकिन वह समझाने से भी कुछ समझना नहीं चाहती थी उस का व्यवहार जब सीमा पार करने लगा तो शोभा उसे एक काउंसलर के पास ले गईं. उस ने आद्या से बहुत सारे प्रश्न पूछे. उस का जीवन के प्रति नकारात्मक सोच देख कर उन्होंने शोभा को समझाया कि जोरजबरदस्ती उस से कोई कार्य न करवाया जाए और डांटने से स्थिति और बिगड़ जाएगी. जहां तक हो उसे प्यार से समझाने की कोशिश की जाए.

काउंसलर के कथन का भी आद्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा. उस के बाद से वह शोभा को इमोशनली ब्लैकमेल करने लगी. जब भी शोभा उसे कुछ समझातीं तो वह तुरंत कहती, ‘‘आप को डाक्टर साहब ने क्या कहा था. कि मेरे मामलों में ज्यादा दखलंदाजी न करें. मेरी तबीयत ठीक नहीं है… आखिर मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ कि ममापापा ने मुझे अपने से अलग कर दिया है. आखिर मेरा कुसूर क्या है? इतना कह कर वह रोने लगती और फिर खाना छोड़ कर खुद को कमरे में बंद कर लेती.

अपरिपक्व उम्र की होने के कारण

उसे इस बात की समझ ही नहीं थी कि उस के इस तरह के व्यवहार से उस की नानी कितनी आहत होती हैं, वे कितनी असहाय हैं, उस की इस स्थिति की दोषी वे तो बिलकुल नहीं है.

शोभा ने उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे बहुत समझाया कि उस के तो नानानानी हैं उसे संभालने के लिए, बहुत सारे बच्चों को तो कोईर् देखने वाला भी नहीं होता और अनाथाश्रम में पलते हैं. इस के जवाब में आद्या बोलती कि अच्छा होता वह भी अनाथाश्रम में पलती, कम से कम उसे अपने मातापिता के बारे में तो पता नहीं होता कि वे स्वयं तो मौज की जिंदगी काट रहे हैं और उसे दूसरों के सहारे छोड़ दिया है.

शोभा आद्या का व्यवहार देख कर बहुत चिंतित रहती थीं, उन्हें अपनी बेटी संगीता पर बहुत गुस्सा आता कि विवाह करने से पहले एक बार तो उस ने अपनी बेटी के बारे में सोचा होता कि वह क्या चाहती है? आखिर वह उसे दुनिया में लाई है, तो उस के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी बनती है. कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है. उस के गलत कदम उठाने की सजा उन्हें और आद्या को भुगतनी पड़ रही है. जवाब में वह कहती कि वह आद्या के लिए कुछ भी करेगी. बस अपने साथ ही तो नहीं रख सकती.

ज्यादा समस्या है तो उसे होस्टल में डाल देगी.

शोभा को उस की बातें इतनी हास्यास्पद लगतीं कि उस की बेटी की इतनी भी समझ नहीं है कि पहले के जमाने की उपेक्षा नए जमाने के बच्चे को पालना कितना जटिल है और वह भी ऐसे बच्चे को, जो सामान्य वातावरण में नहीं पल रहा.

किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे की सही परवरिश उस के मातापिता ही कर सकते हैं और मांबाप में अलगाव की स्थिति में किसी एक के द्वारा उसे प्यार और उस की देखभाल के लिए उसे समय देना जरूरी है वरना बच्चा दिशाहीन हो कर भटक सकता है. केवल भौतिक सुख ही उस के सही पालनपोषण के लिए पर्याप्त नहीं होते.

जिन बच्चों के मातापिता उन्हें बचपन में ही किसी न किसी कारण अपने से अलग कर देते हैं, वे अधिकतर बड़े होने पर सामान्य व्यक्तित्व के न हो कर दब्बू, आत्मविश्वासहीन और अपराधिक प्रवृत्ति के बन जाते हैं, क्योंकि बच्चे जितना अपने मातापिता की परवरिश में अनुशासित बन सकते हैं उतना किसी के भी साथ रह कर नहीं बल्कि स्थितियों का लाभ उठा कर इमोशनली ब्लैकमेल करते हैं और दया का पात्र बन कर ही आत्मसंतुष्टि महसूस करते हैं. मातापिता की जिम्मेदारी है कि विशेष स्थितियों को छोड़ कर अपने किसी स्वार्थवश बच्चों को किसी के सहारे न छोड़े, नानीदादी के सहारे भी नहीं. बच्चा पैदा होने के बाद उन का प्राथमिक कर्तव्य बच्चों का पालनपोषण ही होना चाहिए, क्योंकि वे ही उन्हें प्यार दे सकते हैं.

रीवा की लीना : समाज की रोकटोक और बेड़ियों से रीवा और लीना आजाद हो पाई ?

डलास (टैक्सास) में लीना से रीवा की दोस्ती बड़ी अजीबोगरीब ढंग से हुई थी. मार्च महीने के शुरुआती दिन थे. ठंड की वापसी हो रही थी. प्रकृति ने इंद्रधनुषी फूलों की चुनरी ओढ़ ली थी. घर से थोड़ी दूर पर झील के किनारे बने लोहे की बैंच पर बैठ कर धूप तापने के साथ चारों ओर प्रकृति की फैली हुई अनुपम सुंदरता को रीवा अपलक निहारा करती थी. उस दिन धूप खिली हुई थी और उस का आनंद लेने को झील के किनारे के लिए दोपहर में ही निकल गई.

सड़क किनारे ही एक दक्षिण अफ्रीकी जोड़े को खुलेआम कसे आलिंगन में बंधे प्रेमालाप करते देख कर वह शरमाती, सकुचाती चौराहे की ओर तेजी से आगे बढ़ कर सड़क पार करने लगी थी कि न जाने कहां से आ कर दो बांहों ने उसे पीछे की ओर खींच लिया था.

तेजी से एक गाड़ी उस के पास से निकल गई. तब जा कर उसे एहसास हुआ कि सड़क पार करने की जल्दबाजी में नियमानुसार वह चारों दिशाओं की ओर देखना ही भूल गई थी. डर से आंखें ही मुंद गई थीं. आंखें खोलीं तो उस ने स्वयं को परी सी सुंदर, गोरीचिट्टी, कोमल सी महिला की बांहों में पाया, जो बड़े प्यार से उस के कंधों को थपथपा रही थी. अगर समय पर उस महिला ने उसे पीछे नहीं खींचा होता तो रक्त में डूबा उस का शरीर सड़क पर क्षतविक्षत हो कर पड़ा होता.

सोच कर ही वह कांप उठी और भावावेश में आ कर अपनी ही हमउम्र उस महिला से चिपक गई. अपनी दुबलीपतली बांहों में ही रीवा को लिए सड़क के किनारे बने बैंच पर ले जा कर उसे बैठाते हुए उस की कलाइयों को सहलाती रही.

‘‘ओके?’’ रीवा से उस ने बड़ी बेसब्री से पूछा तो उस ने अपने आंचल में अपना चेहरा छिपा लिया और रो पड़ी. मन का सारा डर आंसुओं में बह गया तो रीवा इंग्लिश में न जाने कितनी देर तक धन्यवाद देती रही लेकिन प्रत्युत्तर में वह मुसकराती ही रही. अपनी ओर इशारा करते हुए उस ने अपना परिचय दिया. ‘लीना, मैक्सिको.’ फिर अपने सिर को हिलाते हुए राज को बताया, ‘इंग्लिश नो’, अपनी 2 उंगलियों को उठा कर उस ने रीवा को कुछ बताने की कोशिश की, जिस का मतलब रीवा ने यही निकाला कि शायद वह 2 साल पहले ही मैक्सिको से टैक्सास आई थी. जो भी हो, इतने छोटे पल में ही रीवा लीना की हो गई थी.

लीना भी शायद बहुत खुश थी. अपनी भाषा में इशारों के साथ लगातार कुछ न कुछ बोले जा रही थी. कभी उसे अपनी दुबलीपतली बांहों में बांधती, तो कभी उस के उड़ते बालों को ठीक करती. उस शब्दहीन लाड़दुलार में रीवा को बड़ा ही आनंद आ रहा था. भाषा के अलग होने के बावजूद उन के हृदय प्यार की अनजानी सी डोर से बंध रहे थे. इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद रीवा के पैरों में चलने की शक्ति ही कहां थी, वह तो लीना के पैरों से ही चल रही थी.

कुछ दूर चलने के बाद लीना ने एक घर की ओर उंगली से इंगित करते हुए कहा, हाउस और रीवा का हाथ पकड़ कर उस घर की ओर बढ़ गई. फिर तो रीवा न कोई प्रतिरोध कर सकी और न कोई प्रतिवाद. उस के साथ चल पड़ी. अपने घर ले जा कर लीना ने स्नैक्स के साथ कौफी पिलाई और बड़ी देर तक खुश हो कर अपनी भाषा में कुछकुछ बताती रही.

मंत्रमुग्ध हुई रीवा भी उस की बातों को ऐसे सुन रही थी मानो वह कुछ समझ रही हो. बड़े प्यार से अपनी बेटियों, दामादों एवं

3 नातिनों की तसवीरें अश्रुपूरित नेत्रों से उसे दिखाती भी जा रही थी और धाराप्रवाह बोलती भी जा रही थी. बीचबीच में एकाध शब्द इंग्लिश के होते थे जो अनजान भाषा की अंधेरी गलियारों में बिजली की तरह चमक कर राज को धैर्य बंधा जाते थे.

बच्चों को याद कर लीना के तनमन से अपार खुशियों के सागर छलक रहे थे. कैसा अजीब इत्तफाक था कि एकदूसरे की भाषा से अनजान, कहीं 2 सुदूर देश की महिलाओं की एक सी कहानी थी, एकसमान दर्द थे तो ममता ए दास्तान भी एक सी थी. बस, अंतर इतना था कि वे अपनी बेटियों के देश में रहती थी और जब चाहा मिल लेती थी या बेटियां भी अपने परिवार के साथ हमेशा आतीजाती रहती थीं.

रीवा ने भी अमेरिका में रह रही अपनी तीनों बेटियों, दामादों एवं अपनी 2 नातिनों के बारे में इशारों से ही बताया तो वह खुशी के प्रवाह में बह कर उस के गले ही लग गई. लीना ने अपने पति से रीवा को मिलवाया. रीवा को ऐसा लगा कि लीना अपने पति से अब तक की सारी बातें कह चुकी थी. सुखदुख की सरिता में डूबतेउतरते कितना वक्त पलक झपकते ही बीत गया. इशारों में ही रीवा ने घर जाने की इच्छा जताई तो वह उसे साथ लिए निकल गई.

झील का चक्कर लगाते हुए लीना रीवा को उस के घर तक छोड़ आई. बेटी से इस घटना की चर्चा नहीं करने के लिए रास्ते में ही रीवा लीना को समझा चुकी थी. रीवा की बेटी स्मिता भी लीना से मिल कर बहुत खुश हुई. जहां पर हर उम्र को नाम से ही संबोधित किया जाता है वहीं पर लीना पलभर में स्मिता की आंटी बन गई. लीना भी इस नए रिश्ते से अभिभूत हो उठी.

समय के साथ रीवा और लीना की दोस्ती से झील ही नहीं, डलास का चप्पाचप्पा भर उठा. एकदूसरे का हाथ थामे इंग्लिश के एकआध शब्दों के सहारे वे दोनों दुनियाजहान की बातें घंटों किया करते थे.

घर में जो भी व्यंजन रीवा बनाती, लीना के लिए ले जाना नहीं भूलती. लीना भी उस के लिए ड्राईफू्रट लाना कभी नहीं भूली. दोनों हाथ में हाथ डाले झील की मछलियों एवं कछुओं को निहारा करती थीं. लीना उन्हें हमेशा ब्रैड के टुकड़े खिलाया करती थी. सफेद हंस और कबूतरों की तरह पंक्षियों के समूह का आनंद भी वे दोनों खूब उठाती थीं.

उसी झील के किनारे न जाने कितने भारतीय समुदाय के लोग आते थे जिन के पास हायहैलो कहने के सिवा कुछ नहीं रहता था.

किसीकिसी घर के बाहर केले और अमरूद से भरे पेड़ बड़े मनमोहक होते थे. हाथ बढ़ा कर रीवा उन्हें छूने की कोशिश करती तो हंस कर नोनो कहती हुई लीना उस की बांहों को थाम लेती थी.

लीना के साथ जा कर रीवा ग्रौसरी शौपिंग वगैरह कर लिया करती थी. फूड मार्ट में जा कर अपनी पसंद के फल और सब्जियां ले आती थी. लाइब्रेरी से भी किताबें लाने और लौटाने के लिए रीवा को अब सप्ताहांत की राह नहीं देखनी पड़ती थी. जब चाहा लीना के साथ निकल गई. हर रविवार को लीना रीवा को डलास के किसी न किसी दर्शनीय स्थल पर अवश्य ही ले जाती थी जहां पर वे दोनों खूब ही मस्ती किया करती थीं.

हाईलैंड पार्क में कभी वे दोनों मूर्तियों से सजे बड़ेबड़े महलों को निहारा करती थीं तो कभी दिन में ही बिजली की लडि़यों से सजे अरबपतियों के घरों को देख कर बच्चों की तरह किलकारियां भरती थीं. जीवंत मूर्तियों से लिपट कर न जाने उन्होंने एकदूसरे की कितनी तसवीरें ली होंगी.

पीले कमल से भरी हुई झील भी 10 साल की महिलाओं की बालसुलभ लीलाओं को देख कर बिहस रही होती थी. झील के किनारे बड़े से पार्क में जीवंत मूर्तियों पर रीवा मोहित हो उठी थी. लकड़ी का पुल पार कर के उस पार जाना, भूरे काले पत्थरों से बने छोटेबड़े भालुओं के साथ वे इस तरह खेलती थीं मानो दोनों का बचपन ही लौट आया हो.

स्विमिंग पूल एवं रंगबिरंगे फूलों से सजे कितने घरों के अंदर लीना रीवा को ले गई थी, जहां की सुघड़ सजावट देख कर रीवा मुग्ध हो गई थी. रीवा तो घर के लिए भी खाना पैक कर के ले जाती थी. इंडियन, अमेरिकन, मैक्सिकन, अफ्रीका आदि समुदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के खाने का लुत्फ उठाते थे.

लीना के साथ रीवा ने ट्रेन में सैर कर के खूब आनंद उठाया था. भारी ट्रैफिक होने के बावजूद लीना रीवा को उस स्थान पर ले गई जहां अमेरिकन प्रैसिडैंट जौन कैनेडी की हत्या हुई थी. उस लाइब्रेरी में भी ले गई जहां पर उन की हत्या के षड्यंत्र रचे गए थे.

ऐेसे तो इन सारे स्थलों पर अनेक बार रीवा आ चुकी थी पर लीना के साथ आना उत्साह व उमंग से भर देता था. इंडियन स्टोर के पास ही लीना का मैक्सिकन रैस्तरां था. जहां खाने वालों की कतार शाम से पहले ही लग जाती थी. जब भी रीवा उधर आती, लीना चीपोटल पैक कर के देना नहीं भूलती थी.

मैक्सिकन रैस्तरां में रीवा ने जितना चीपोटल नहीं खाया होगा उतने चाट, पकौड़े, समोसे, जलेबी लीना ने इंडियन रैस्तरां में खाए थे. ऐसा कोई स्टारबक्स नहीं होगा जहां उन दोनों ने कौफी का आनंद नहीं उठाया. डलास का शायद ही ऐसा कोई दर्शनीय स्थल होगा जहां के नजारों का आनंद उन दोनों ने नहीं लिया था.

मौल्स में वे जीभर कर चहलकदमी किया करती थीं. नए साल के आगमन के उपलक्ष्य में मौल के अंदर ही टैक्सास का सब से बड़ा क्रिसमस ट्री सजाया गया था. जिस के चारों और बिछे हुए स्नो पर सभी स्कीइंग कर रहे थे. रीवा और लीना बच्चों की तरह किलस कर यह सब देख रही थीं.

कैसी अनोखी दास्तान थी कि कुछ शब्दों के सहारे लीना और रीवा ने दोस्ती का एक लंबा समय जी लिया. जहां भी शब्दों पर अटकती थीं, इशारों से काम चला लेती थीं.

समय का पखेरू पंख लगा कर उड़ गया. हफ्ताभर बाद ही रीवा को इंडिया लौटना था. लीना के दुख का ठिकाना नहीं था. उस की नाजुक कलाइयों को थाम कर रीवा ने जीभर कर आंसू बहाए, उस में अपनी बेटियों से बिछुड़ने की असहनीय वेदना भी थी. लौटने के एक दिन पहले रीवा और लीना उसी झील के किनारे हाथों में हाथ दिए घंटाभर बैठी रहीं. दोनों के बीच पसरा हुआ मौन तब कितना मुखर हो उठा था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस की अनंत प्रतिध्वनियां उन दोनों से टकरा कर चारों ओर बिखर रही हों.

दोनों के नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. शब्द थे ही नहीं कि जिन्हें उच्चारित कर के दोस्ती के जलधार को बांध सकें. प्रेमप्रीत की शब्दहीन सरिता बहती रही. समय के इतने लंबे प्रवाह में उन्हें कभी भी एकदूसरे की भाषा नहीं जानने के कारण कोई असुविधा हुई हो, ऐसा कभी नहीं लगा. एकदूसरे की आंखों में झांक कर ही वे सबकुछ जान लिया करती थीं. दोस्ती की अजीब पर अतिसुंदर दास्तान थी. कभी रूठनेमनाने के अवसर ही नहीं आए. हंसी से खिले रहे.

एकदूसरे से विदा लेने का वक्त आ गया था. लीना ने अपने पर्स से सफेद धवल शौल निकाल कर रीवा को उठाते हुए गले में डाला, तो रीवा ने भी अपनी कलाइयों से रंगबिरंगी चूडि़यों को निकाल लीना की गोरी कलाइयों में पहना दिया जिसे पहन कर वह निहाल हो उठी थी. मूक मित्रता के बीच उपहारों के आदानप्रदान देख कर निश्चय ही डलास की वह मूक मगर चंचल झील रो पड़ी होगी.

भीगी पलकों एवं हृदय में एकदूसरे के लिए बेशुमार शुभकामनाओं को लिए हुए दोनों ने एकदूसरे से विदाई तो ली पर अलविदा नहीं कहा.

खाली हाथ : जातिवाद के चलते जब प्रेमी अनुरोध पहुंचा पागलखाने

आगरापूरी दुनिया में ‘ताजमहल के शहर’ के नाम से मशहूर है. इसी शहर में स्थित है मानसिक रोगियों के उपचार के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय. इस संस्थान को कई भारतीय हिंदी फिल्मों में प्रमुखता से दिखाया गया है, हालांकि सच्चाई यह है कि न जाने कितनी भयानक और दुखद कहानियां दफन हैं इस की दीवारों में. आरोही को इस संस्थान में आए 2 महीने ही हुए थे. वह मनोचिकित्सक थी. इस के पहले वह कई निजी अस्पतालों में काम कर चुकी थी. अपनी काबिलीयत और मेहनत के बल पर उस का चयन सरकारी अस्पताल में हो गया था. उस से ज्यादा उस का परिवार इस बात से बहुत खुश था. वैसे भी भारत में आज भी खासकर मध्य वर्ग में सरकारी नौकरी को सफलता का सर्टिफिकेट माना जाता है. आरोही अपना खुद का नर्सिंगहोम खोलना चाहती थी. इस के लिए सरकारी संस्थान का अनुभव होना फायदेमंद रहता है. इसी वजह से वह अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़ कर यहां आ गई थी.

वैसे आरोही के घर से दूर आने की एक वजह और भी थी. वह विवाह नहीं करना चाहती थी और यह बात उस का परिवार समझने को तैयार नहीं था. यहां आने के बाद भी रोज उस की मां लड़कों की नई लिस्ट सुनाने के लिए फोन कर देती थीं. जब आरोही विवाह करना चाहती थी तब तो जातबिरादरी की दीवार खड़ी कर दी गई थी और अब जब उस ने जीवन के 35 वसंत देख लिए और उस के छोटे भाई ने विधर्मी लड़की से विवाह कर लिया तो वही लोग उसे किसी से भी विवाह कर लेने की आजादी दे रहे हैं. समय के साथ लोगों की प्राथमिकता भी बदल जाती है. आरोही उन्हें कैसे समझाती कि-

‘सूखे फूलों से खुशबू नहीं आती, किताबों में बंद याद बन रह जाते हैं’ या ‘नींद खुलने पर सपने भी भाप बन उड़ जाते हैं.’

‘‘मैडम,’’

‘‘अरे लता, आओ.’’

‘‘आप कुछ कर रही हैं तो मैं बाद में आ जाती हूं.’’

आरोही ने तुरंत अपनी डायरी बंद कर दी और बोली, ‘‘नहींनहीं कुछ नहीं. तुम बताओ क्या बात है?’’

‘‘216 नंबर बहुत देर से रो रहा है. किसी की भी बात नहीं सुन रहा. आज सिस्टर तबस्सुम भी छुट्टी पर हैं इसलिए…’’

‘‘216 नंबर… यह कैसा नाम है?’’

‘‘वह… मेरा मतलब है बैड नंबर 216.’’

‘‘अच्छा… चलो देखती हूं.’’

चलतेचलते ही आरोही ने जानकारी के लिए पूछ लिया, ‘‘कौन है?’’

‘‘एक प्रोफैसर हैं. बहुत ही प्यारी कविताएं सुनाते हैं. बातें भी कविताओं में ही करते हैं. वैसे तो बहुत शांत हैं, परेशान भी ज्यादा नहीं करते हैं, पर कभीकभी ऐसे ही रोने लगते हैं.’’

‘‘सुनने में तो बहुत इंटरैस्टिंग कैरेक्टर लग रहे हैं.’’

कमरे में दाखिल होते ही आरोही ने देखा कोई 35-40 वर्ष का पुरुष बिस्तर पर अधलेटा रोए जा रहा था.

‘‘सुनो तुम…’’

‘‘आप रुकिए मैडम, मैं बोलती हूं…’’

‘‘हां ठीक है… तुम बोलो.’’

‘‘अनुरोध… रोना बंद करो. देखो मैडम तुम से मिलने आई हैं.’’

इस नाम के उच्चारण मात्र से आरोही परेशान हो गई थी. मगर जब वह पलटा तो सफेद काली और घनी दाढ़ी के बीच भी आरोही ने अनुरोध को पहचान लिया. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया और वह चेतनाशून्य हो कर वहीं गिर गई. होश आने पर वह अपने क्वार्टर में थी. उस के आसपास हौस्पिटल का स्टाफ खड़ा था. सीनियर डाक्टर भी थे.

‘‘तुम्हें क्या हो गया था आरोही?’’ डाक्टर रमा ने पूछा.

‘‘अब कैसा फील कर रही हो?’’ डाक्टर सुधीर के स्वर में भी चिंता झलक रही थी.

‘‘हां मैडम, मैं तो डर ही गई थी… आप को बेहोश होता देख वह पेशैंट भी अचानक चुप हो गया था.’’

‘‘मुझे माफ करना लता और आप सब भी, मेरी वजह से परेशान हो गए…’’

‘‘डोंट बी सिली आरोही. तुम अब

आराम करो हम सब बाद में आते हैं,’’ डाक्टर सुधीर बोले.

‘‘जी मैडम, और किसी चीज की जरूरत हो तो आप फोन कर देना.’’

उन के जाने बाद आरोही ने जितना सोने की कोशिश की उतना ही वह समय उस के सामने जीवंत हो गया, जब आरोही और अनुरोध साथ थे. आरोही और अनुरोध बचपन से साथ थे. स्कूल से कालेज का सफर दोनों ने साथ तय किया था. कालेज में भी उन का विषय एक था- मनोविज्ञान. इस दौरान उन्हें कब एकदूसरे से प्रेम हो गया, यह वे स्वयं नहीं समझ पाए थे. घंटों बैठ कर भविष्य के सपने देखा करते थे. देशविदेश पर चर्चा करते थे. समाज की कुरीतियों को जड़ से मिटाने की बात करते थे. मगर जब स्वयं के लिए लड़ने का समय आया, सामाजिक आडंबर के सामने उन का प्यार हार गया. एक दलित जाति का युवक ब्राह्मण की बेटी से विवाह का सपना भी कैसे देख सकता था. अपने प्रेम के लिए लड़ नहीं पाए थे दोनों और अलग हो गए थे.

आरोही ने तो विवाह नहीं किया, परंतु 4-5 साल के बाद अनुरोध के विवाह की खबर उस ने सुनी थी. उस विवाह की चर्चा भी खूब चली थी उस के घर में. सब ने चाहा था कि आरोही को भी शादी के लिए राजी कर लिया जाए, परंतु वे सफल नहीं हो पाए थे. आज इतने सालों बाद अनुरोध को इस रूप में देख कर स्तब्ध रह गई थी वह. अगले दिन सुबह ही वह दोबारा अनुरोध से मिलने उस के कमरे में गई.

आज अनुरोध शांत था और कुछ लिख भी रहा था. हौस्पिटल की तरफ से उस की इच्छा का सम्मान करते हुए उसे लिखने के लिए कागज और कलम दे दी गई थी. आज उस के चेहरे से दाढ़ी भी गायब थी और बाल भी छोटे हो गए थे.

‘‘अनु,’’ आरोही ने जानबूझ कर उसे उस नाम से पुकारा जिस नाम से उसे बुलाया करती थी. उसे लगा शायद अनुरोध उसे पहचान ले.

उस ने एक नजर उठा कर आरोही को देखा और फिर वापस अपने काम में लग गया. पलभर को उन की नजरें मिली अवश्य थीं पर उन नजरों में अपने लिए अपरिचित भाव देख कर तड़प गई थी आरोही, मगर उस ने दोबारा कोशिश की, ‘‘क्या लिख रहे हो तुम?’’

उस की तरफ बिना देखे ही वह बोला-

‘सपने टूट जाते हैं, तुम सपनों में आया न करो, मुझे भूल जाओ और मुझे भी याद आया न करो.’

अनुरोध की दयनीय दशा और उस की अपरिचित नजरों को और नहीं झेल पाई आरोही और थोड़ा चैक करने के बाद कमरे से बाहर निकल गई. मगर वह स्वयं को संभाल नहीं पाई और बाहर आते ही रो पड़ी. अचानक पीछे से किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘आप अनुरोध को जानती हैं मैडम?’’

पीछे पलटने पर आरोही ने पहली बार देखा सिस्टर तबस्सुम को, जिन के बारे में वह पहले सुन चुकी थी. वे इकलौती थीं जिन की बात अनुरोध मानता भी था और उन से ढेर सारी बातें भी करता था. कई सालों से वह सिस्टर तबस्सुम से काफी हिलमिल गया था.

‘‘मैं… मैं और अनुरोध…’’

‘‘शायद आप वही परी हैं जिस का इंतजार यह पगला पिछले कई सालों से कर रहा है. पिछले कई सालों में आज पहली बार मुसकराते हुए देखा मैं ने अनुरोध को. चलिए मैडम आप के कैबिन में चल कर बात करते हैं.’’

दोनों कैबिन में आ गईं. तबस्सुम का अनुरोध के प्रति अनुराग आरोही देख पा रही थी.

‘‘अनुरोध… ऐसा नहीं था. उस की ऐसी हालत कैसे हुई? क्या आप को कुछ पता है?’’ सिर हिला कर सिस्टर ने अनुरोध की दारुण कहानी शुरू की…

‘‘अनुरोध का चयन मेरठ के कालेज में मनोविज्ञान के व्याख्याता के पद पर हुआ था. इसी दौरान वह एक शादी में हिस्सा लेने मोदी नगर गया था, परंतु उसे यह नहीं पता था कि वह शादी स्वयं उसी की थी.

‘‘उस के मातापिता ने उस के लगातार मना करने से तंग आ कर उस का विवाह उस की जानकारी के बिना ही तय कर दिया था. शादी में बहुत कम लोगों को ही बुलाया गया था. मोदी नगर पहुंचने पर उस के पास विवाह करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. अपने मातापिता के किए की सजा वह एक मासूम लड़की को नहीं दे सकता था और उस का विवाह विनोदिनी से हो गया.

‘‘विवाह के कुछ महीनों बाद ही विनोदिनी ने पढ़ाई के प्रति अपने लगाव को अनुरोध के सामने व्यक्त किया. अनुरोध सदा से स्त्री शिक्षा तथा स्त्री सशक्तीकरण का प्रबल समर्थक रहा था. खासकर उस के समुदाय में तो स्त्री शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय थी. इसीलिए जब उस ने अपनी पत्नी के शिक्षा के प्रति लगाव को देखा तो अभिभूत हो गया.

‘‘विनोदिनी कुशाग्रबुद्धि तो नहीं थी, परंतु परिश्रमी अवश्य थी और उस की इच्छाशक्ति भी प्रबल थी. उस के मातापिता बहू की पढ़ाई के पक्षधर नहीं थे. विनोदिनी के मातापिता भी उसे आगे नहीं पढ़ाना चाहते थे, परंतु सब के खिलाफ जा कर अनुरोध ने उस का दाखिला अपने ही कालेज के इतिहास विभाग में करा दिया. विनोदिनी को हर तरह का सहयोग दे रहा था अनुरोध.

‘‘शादी के 1 साल बाद ही अनुरोध की मां ने विनोदिनी पर बच्चे के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, परंतु यहां भी अनुरोध अपनी पत्नी के साथ खड़ा रहा. जब तक विनोदिनी की ग्रैजुएशन पूरी नहीं हुई, उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा तक नहीं.

‘‘विनोदिनी प्रथम श्रेणी में पास हुई और उस के बाद उस ने पीसीएस में बैठने की अपनी इच्छा अनुरोध को बताई. उसे भला क्या ऐतराज हो सकता था. अनुरोध ने उस का दाखिला शहर के एक बड़े कोचिंग सैंटर में करा दिया. घर वालों का दबाव बहुत ज्यादा बढ़ गया था. पहले 2 प्रयास में सफल नहीं हो पाई थी विनोदिनी.

‘‘मगर अनुरोध उसे सदा प्रोत्साहित करता रहता. इसी दौरान विनोदिनी 1 बेटे की मां भी बन गई. परंतु बच्चे को दूध पिलाने के अलावा बच्चे के सारे काम अनुरोध स्वयं करता था. घर के काम और जब वह कालेज जाता था तब बच्चे को संभालने के लिए उस ने एक आया रख ली थी. कभीकभी उस की मां भी गांव से आ जाती थीं. बेटे के इस फैसले से सहमत तो वे भी नहीं थीं, परंतु पोते से उन्हें बहुत लगाव था.

‘‘चौथे प्रयास के दौरान तो विनोदिनी को जमीन पर पैर तक रखने नहीं दिया था अनुरोध ने. अनुरोध की तपस्या विफल नहीं हुई थी. विनोदिनी का चयन पीसीएस में डीएसपी के पद पर हो गया था. वह ट्रेनिंग के लिए मुरादाबाद चली गई. उस समय उन का बेटा अमन मात्र 4 साल का था.

‘‘अनरोध ने आर्थिक और मानसिक दोनों तरह से अपना सहयोग विनोदिनी को दिया. लोगों की बातों से न स्वयं आहत हुआ और न अपनी पत्नी को होने दिया. उस ने विनोदिनी के लिए वह किया जो उस के स्वयं के मातापिता नहीं कर पाए. सही मानों में फैमिनिस्ट था अनुरोध. स्त्रीपुरुष के समान अधिकारों का प्रबल समर्थक.

‘‘जब विनोदिनी की पहली पोस्टिंग अलीगढ़ हुई तो लगा कि उस की समस्याओं का अंत हुआ. अब दोनों साथ रह कर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ेंगे, परंतु वह अंत नहीं आरंभ था अनुरोध की अंतहीन पीड़ा का.

‘‘विनोदिनी के जाने के बाद अनुरोध अपना तबादला अलीगढ़ कराने में लग गया. अमन को भी वह अपने साथ ही ले गई थी. अनुरोध को भी यही सही लगा था कि बच्चा अब कुछ दिन मां के साथ रहे और फिर उस का तबादला भी 6 महीने में अलीगढ़ होने ही वाला था. सबकुछ तय कर रखा था उस ने परंतु नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था उस के लिए.

‘‘विनोदिनी का व्यवहार समय के साथ बदलता चला गया. पद के घमंड में अब वह अनुरोध का अपमान भी करने लग गई थी. उस ने तो मेरठ आना बंद ही कर दिया था, इसलिए अनुरोध को अपने बेटे से मिलने अलीगढ़ जाना पड़ता था. विनोदिनी के कटु व्यवहार का तो वह सामना कर लेता था, परंतु इस बात ने उसे विचलित कर दिया था कि उन के बीच के झगड़े का विपरीत असर उन के बेटे पर हो रहा था.

अब वह शीघ्र ही मेरठ छोड़ना चाहता था. डेढ़ साल बीत गया था, पर उस का तबादला नहीं हो पा रहा था.

‘‘‘प्रिंसिपल साहब, आखिर यह हो क्या रहा है? 6 महीनों में आने वाली मेरी पोस्टिंग, डेढ़ साल में नहीं आई. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?’

‘‘‘अनुरोध तुम्हें तो पता है सरकारी काम में देर हो ही जाती है.’

‘‘‘जी सर… पर इतनी देर नहीं. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे आप जानबूझ कर ऐसा नहीं होने दे रहे?’

‘‘‘अनुरोध…’

‘‘‘आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हैं सर? क्या हमारा रिश्ता आज का है?’

‘‘‘अनुरोध… कोई है जो जानबूझ कर तुम्हारी पोस्टिंग रोक रहा है.’

‘‘‘कौन?’

‘‘‘तुम्हें तो मैं बहुत समझदार समझता था, जानबूझ कर कब तक आंखें बंद रखोगे?’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘गिरिराज सिंह और विनोदिनी…’

‘‘‘प्रिंसिपल साहब…’ चीख पड़ा अनुरोध.

‘‘अनुरोध के कंधे पर हाथ रख कर प्रिंसिपल साहब बोले,…

‘बेटा, विश्वास करना अच्छी बात है, परंतु अंधविश्वास मूर्खता है. अपनी नींद से जागो.’

‘‘विनोदिनी के बारे में ऐसी बातें अनुरोध ने पहली बार नहीं सुनी थीं, परंतु वह ऐसी सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करता था. उसे लगता था कि विनोदिनी बददिमाग, बदतमीज और घमंडी हो सकती है परंतु चरित्रहीन नहीं.

‘‘2 महीने की छुट्टी ले कर जिस दिन वह अलीगढ़ पहुंचा, घर पर ताला लगा था. वहां पर तैनात सिपाही से पता चला कि मैडम नैनीताल घूमने गई हैं. मगर विनोदिनी ने अनुरोध को इस बारे में कुछ नहीं बताया था.

‘‘7 दिन बाद लौटी थी विनोदिनी परंतु अकेले नहीं, उस के साथ गिरिराज सिंह भी था.

‘‘‘कैसा रहा आप का टूर मैडम?’

‘‘‘उसे देख कर दोनों न चौंके न ही शर्मिंदा हुए. बड़ी बेशर्मी से वह आदमी सामने रखे सोफे पर ऐसे बैठ गया जैसे यह उस का ही घर हो.’

‘‘‘तुम कब आए?’

‘‘विनोदिनी की बात अनसुनी कर अनुरोध गिरिराज सिंह से बोला, ‘मुझे अपनी पत्नी से कुछ बात करनी है. आप इसी वक्त यहां से चले जाएं.’

‘‘‘यह कहीं नहीं जाएगा…’

‘‘‘विनोदिनी चुप रहो…’

‘‘मगर उस दिन गिरिराज सिंह नहीं अनुरोध निकाला गया था उस घर से. विनोदिनी ने हाथ तक उठाया था उस पर.

‘‘गिरिराज और विनोदिनी को लगा था कि इस के बाद अनुरोध दोबारा उन के रिश्ते पर आवाज उठाने की गलती नहीं करेगा, परंतु वे गलत थे.

‘‘टूटा जरूर था अनुरोध पर हारा नहीं था. वह जान गया था कि अब इस रिश्ते

में बचाने जैसा कुछ नहीं था. उसे अब केवल अपने अमन की चिंता थी. इसलिए वह कोर्ट में तलाक के साथ अमन की कस्टडी की अर्जी भी दायर करने वाला था. इस बात का पता लगते ही विनोदिनी ने पूरा प्रयास किया कि वह ऐसा न करे. उन के लाख डरानेधमकाने पर भी अनुरोध पीछे नहीं हटा था. एक नेता और अधिकारी का नाम होने के कारण मीडिया भी इस खबर को प्रमुखता से दिखाने वाली है. इस बात का ज्ञान उन दोनों को था.

‘‘गिरिराज सिंह को अपनी कुरसी और विनोदिनी को अपनी नौकरी की चिंता सताने लगी थी. इसीलिए कोर्ट के बाहर समझौता करने के लिए विनोदिनी ने उसे अपने घर बुलाया.

‘‘जब अनुरोध वहां पहुंचा घर का दरवाजा खुला था. घर के बाहर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. जब बैल बजाने पर भी कोई नहीं आया तो उस ने विनोदिनी का नाम ले कर पुकारा. थोड़ी देर बाद अंदर से एक पुरुष की आवाज आई, ‘इधर चले आइए अनुरोध बाबू.’

‘‘अनुरोध ने अंदर का दरवाजा खोला तो वहां का नजारा देख कर वह हैरान रह गया. बिस्तर पर विनोदिनी और गिरिराज अर्धनग्न लेटे थे. उसे देख कर भी दोनों ने उठने की कोशिश तक नहीं की.

‘‘‘क्या मुझे अपनी रासलीला देखने बुलाया है आप लोगों ने?’

‘‘‘नहींजी… हा… हा… हा… आप को तो एक फिल्म में काम देने बुलाया है.’

‘‘‘क्या मतलब?’

‘‘‘हर बात जानने की जल्दी रहती है तुम्हें… आज भी नहीं बदले तुम,’ विनोदिनी ने कहा.

‘‘‘मतलब समझाओ भई प्रोफैसर साहब को.’’

‘‘इस से पहले कि अनुरोध कुछ समझ पाता उस के सिर पर किसी ने तेज हथियार से वार किया. जब उसे होश आया उस ने स्वयं को इसी बिस्तर पर निर्वस्त्र पाया. सामने पुलिस खड़ी थी और नीचे जमीन पर विनोदिनी बैठी रो रही थी.

‘‘कोर्ट में यह साबित करना मुश्किल नहीं हुआ कि विनोदिनी के साथ जबरदस्ती हुई है. इतना ही नहीं यह भी साबित किया गया कि अनुरोध एक सैक्सहोलिक है और उस का बेटा तक उस के साथ सुरक्षित नहीं है, क्योंकि अपनी इस भूख के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है. विनोदिनी के शरीर पर मारपीट के निशान भी पाए गए. अनुरोध के मोबाइल पर कई लड़कियों के साथ आपत्तिजनक फोटो भी पाए गए.

‘‘उस पर घरेलू हिंसा व महिलाओं के संरक्षण अधिनियम कानून के अनुसार केस दर्ज किया गया. उस पर बलात्कार का भी मुकदमा दर्ज किया गया. मीडिया ने भी अनुरोध को एक व्यभिचारी पुरुष की तरह दिखाया. सोशल नैटवर्किंग साइट पर तो बाकायदा एक अभियान चला कर उस के लिए फांसी की सजा की मांग की गई. कोर्ट परिसर में कई बार उस के मातापिता के साथ बदसुलूकी भी की गई.

‘‘अनुरोध के मातापिता का महल्ले वालों ने जीना मुश्किल कर दिया था. जिस दिन कोर्ट ने अनुरोध के खिलाफ फैसला सुनाया उस के काफी पहले से उस की मानसिक हालत खराब होनी शुरू हो चुकी थी. लगातार हो रहे मानसिक उत्पीड़न के साथ जेल में हो रहे शारीरिक उत्पीड़न ने उस की यह दशा कर दी थी. फैसला आने के 10 दिन बाद ही अनुरोध के मातापिता ने आत्महत्या कर ली और अनुरोध को यहां भेज दिया गया. एक आदर्शवादी होनहार लड़के और उस के खुशहाल परिवार का ऐसा अंत…’’

कुछ देर की खामोशी के बाद तबस्सुम फिर बोलीं, ‘‘मैडम, मैं मानती हूं कि घरेलू हिंसा का सामना कई महिलाओं को करना पड़ता है. इसीलिए स्त्रियों की रक्षा हेतु इस कानून का गठन किया गया था.

‘‘परंतु घरेलू हिंसा से पीडि़त पुरुषों का क्या? उन पर उन की स्त्रियों द्वारा की गई मानसिक और शारीरिक हिंसा का क्या?

‘‘अगर पुरुष हाथ उठाए तो वह गलत… नामर्द, परंतु जब स्त्री हाथ उठाए तो क्या? हिंसा कोई भी करे, पुरुष अथवा स्त्री, पति अथवा पत्नी, कानून की नजरों में दोनों समान होने चाहिए. जिस तरह पुरुष द्वारा स्त्री पर हाथ उठाना गलत है उसी प्रकार स्त्री द्वारा पुरुष पर हाथ उठाना भी गलत होना चाहिए. परंतु हमारा समाज तुरंत बिना पूरी बात जाने पुरुष को कठघरे में खड़ा कर देता है.

‘‘ताकतवार कानून स्त्री की सुरक्षा के लिए बनाए गए परंतु आजकल विनोदिनी जैसी कई स्त्रियां इस कानून का प्रयोग कर के अपना स्वार्थ सिद्ध करने लगी हैं.

‘‘वैसे तो कानून से निष्पक्ष रहने की उम्मीद की जाती है, परंतु इस तरह के केस में ऐसा हो नहीं पाता. वैसे भी कानून तथ्यों पर आधारित होता है और आजकल पैसा और रसूख के बल पर तथ्यों को तोड़ना और अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना आम बात हो गई है. जिस के पास पैसा और ताकत है कानून भी उस के साथ है.

‘‘हां, सही कह रही हैं आप तबस्सुम. अनुरोध जैसे मर्द फैमिनिज्म का सच्चा अर्थ जानते हैं. वे जानते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों एकसमान है. न कोई बड़ा, न कोई छोटा. इसलिए गलत करने पर सजा भी एकसमान होनी चाहिए.

‘‘मगर विनोदिनी जैसी कुछ स्त्रियां नारीवाद का गलत चेहरा प्रस्तुत कर रही हैं,’’ लता के अचानक आ जाने से दोनों की बातचीत पर विराम लग गया.

‘‘माफ कीजिएगा वह बैड नंबर 216 को खाना देना था.’’

‘‘अरे हां… तुम चलो मैं आती हूं. चलती हूं मैडम अनुरोध को खाना खिलाने का समय हो गया है.’’

‘‘मैं भी चलती हूं…’’

जब वे दोनों वहां पहुंचीं तो देखा अनुरोध अपने दोनों हाथों को बड़े ध्यान से निहार रहा  था. आरोही उस के पास जा कर बैठ गई. फिर पूछा, ‘‘क्या देख रहे हो? प्लीज कुछ तो बोलो.’’

कुछ नहीं बोला अनुरोध. उस की तरफ देखा तक नहीं.

सिस्टर तबस्सुम अनुरोध के सिर पर हाथ रख कर बोलीं, ‘‘बोलो बेटा, बताओ… तुम चिंता न करो कुदरत ने चाहा तो अब सब ठीक हो जाएगा.’’

इस बार वह उन की तरफ पलटा और फिर अपनी खाली हथेलियों को उन की तरफ फैलाते हुए बोला-

‘ऐ प्यार को मानने वालो, इजहार करना हमें भी सिखाओ. बंद करें हथेली या खोल लें इसे, खो गई हमारी छाया से हमें भी मिलवाओ…

रिश्ता और समझौता: अरेंज मैरिज के लिए कैसे मान गई मौर्डन सुमन?

अमेरिका के जेएफके अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे में सारी औपचारिकताओं को पूरा कर के जब अपना सामान ले कर सुमन बाहर आई तो उस ने अपनी चचेरी बहन राधिका को हाथ लहराते देखा. सुमन बड़ी मुसकान के साथ उस की ओर बढ़ी और फिर दोनों एकदूसरे से गले मिलीं.

‘‘अमेरिका के न्यूयौर्क में आप का स्वागत है सुमन,’’ कह कर राधिका ने सुमन के गाल पर किस किया.

सुमन ने भी उसे गले लगाया और फिर दोनों निकास द्वार की ओर बढ़ने लगीं.

राधिका, सुमन की चाची की बेटी है. वे लगभग हमउम्र हैं. दोनों का बचपन इंदौर में अपने नानाजी के घर में एकसाथ गुजरा था. हर छुट्टी पर परिवार के सभी सदस्य अपने नाना के घर इंदौर में इकट्ठा होते थे और उन दिनों की खूबसूरत यादें सुमन के दिमाग में अभी भी ताजा हैं. अपने नानानानी की मृत्यु के बाद सुमन की मां ने अपनी बहनों से अपना संपर्क बनाए रखा और वे अकसर मुंबई आती थीं. राधिका ने खुद सुमन के घर में रह कर मुंबई में ही कैमिस्ट्री में पौस्टग्रैजुएशन किया था और उस समय सुमन भी कंप्यूटर साइंस में पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही थी. राधिका नौकरी के सिलसिले में न्यूयौर्क चली गई और सुमन को मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई.

‘‘चाची और चाचा कैसे हैं,’’ गाड़ी को पार्किंग से बाहर निकालते हुए राधिका ने पूछा.

सुमन मुसकराते हुए बोली, ‘‘वे ठीक हैं.’’

अब दोनों ओर से चुप्पी थी. अमेरिकी धरती पर उतरते ही सुमन से कोई भी निजी सवाल पूछ कर राधिका उसे उलझन में नहीं डालना चाहती थी. इसी बीच सुमन का फोन बजा. आशीष का था. सुमन को झिझक हुई तो राधिका ने कहा, ‘‘तुम कौल लेने में क्यों संकोच कर रही हो?’’

तब सुमन ने कहा, ‘‘हैलो.’’

‘‘हाय स्वीट हार्ट,’’ दूसरी ओर से आशीष की आवाज थी,‘‘तम न्यूयौर्क पहुंच गई हो… यात्रा कैसी रहीं. कोई कठिनाई तो नहीं हुई?’’ उस की आवाज में चिंता बहुत स्पष्ट थी.

‘‘हां आशीष मैं बिना किसी दिक्कत के न्यूयौर्क पहुंच चुकी हूं… सफर अच्छा था… बस थोड़ी थकान महसूस कर रही हूं.  मेरी बहन राधिका हवाईअड्डे मुझे लेने आ गई थीं. अब हम अपने घर जा रही हैं… मैं तुम्हें बाद में फोन करूंगी,’’ और फिर फोन काट दिया.

फिर घंटी बजी. सुमन की मां थीं. मां ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ठीक हो? क्या राधिका एअरपोर्ट आ गई थी? सुमन ने फोन राधिका को पकड़ा दिया. राधिका बोली, ‘‘मौसी मैं एअरपोर्ट कैसे नहीं आती… आप सुमन की चिंता न करो… वह यहां बिलकुल सुरक्षित है. हम घर पहुंच कर आप को फोन करते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह सुमन की मां ने फोन काट दिया.

राधिका का तीसरी मंजिल पर

3 बैडरूम वाला अपार्टमैंट था.

जैसे ही राधिका और सुमन ने घर में प्रवेश किया एक फिरंगी लड़की एक बैडरूम से बाहर आई और सुमन को गले लगा कर मुसकराते हुए उस का अभिवादन करते हुए बोली, ‘‘यूएस में आप का स्वागत है और आशा है कि आप मेरे साथ रहना पसंद करेंगी.’’

सुमन सोच में पड़ गई कि राधिका अकेली रह रही है तो यह लड़की कौन?

राधिका उसे कौफी का कप पकड़ाते हुए बोली,

‘‘सुमन यह जेनिफर है. हम ने इस अपार्टमैंट को मिल कर किराए पर लिया है. वह एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करती है और वे ही अपनी कंपनी में तुम्हें नौकरी दिलाने में मदद करने वाली है… न्यूयौर्क बहुत महंगा शहर है… हम इस तरह एक अपार्टमैंट अकेले किराए पर नहीं ले सकते. वह बहुत व्यस्त रहती है, इसलिए ज्यादातर खाना बाहर से मंगवाती है… हमारे बीच कोई समस्या नहीं. अब तुम भी आ गई तो हम तीनों अपार्टमैंट साझा कर सकती हैं,’’ राधिका ने कौफी पीते हुए कहा.

सुमन चुप रही. वैसे भी वह केवल 2 साल के लिए अमेरिका आई है और फिर भारत अपने प्रेमी आशीष के पास वापस चली जाएगी. इस बीच जब जेनिफर उन दोनों के पास आई तो वह औफिस जाने के लिए पूरी तरह तैयार थी. उस ने एक ईमेल आईडी देते हुए सुमन से कहा,‘‘राधिका ने मुझे बताया था कि आप को सौफ्टवेयर सैक्शन में नौकरी की जरूरत है और मैं उसी फील्ड में काम करती हूं… वास्तव में मेरी खुद की टीम में एक शख्स की जरूरत है. आज ही अपना सीवी इस आईडी पर भेजें ताकि जल्दी आप की नियुक्ति हो जाए. बाय… शाम को मिलते हैं,’’ और फिर राधिका को गले लगा अपनी गाड़ी की चाबी ले कर दफ्तर के लिए निकल गई.

‘‘तो क्या चल रहा है? सुमन तुम मुझ से दिल खोल कर बात कर सकती हो, क्योंकि हम केवल चचेरी बहनें ही नहीं बचपन की दोस्त भी हैं. याद है तुम्हें हम उन छोटेछोटे रहस्यों को कैसे साझा करते थे… मैं ने आज छुट्टी ले ली है ताकि तुम्हारे साथ समय बिता सकूं और तुम्हारी चीजों को व्यवस्थित करने के लिए मदद कर सकूं,’’ राधिका ने कहा.

सुमन ने लंबी सांस ली. मुंबई में अच्छी सैलरी वाली नौकरी से इस्तीफा दे कर

अमेरिका क्यों आई है, राधिका को यह बताने के लिए सुमन ने खुद को तैयार किया.

कुछ दिन पहले ही सुमन ने मां को पिता की मौजूदगी में बताया था.

‘‘सुमन तुम यह क्या कह रही हो? तुम

ऐसे सोच भी कैसे सकती हो,’’ उस की मां चिल्लाई थीं.

‘‘क्या आप ने सुना है कि आप की बेटी एक ऐसे लड़के से प्यार करती है, जो हमारी बिरादरी का नहीं है और इस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि वह उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है ताकि वे एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें. फिर वे तय करेंगे कि शादी करनी है या नहीं,’’ यह कहते हुए सुमन की मां मुश्किल से सांस ले पा रही थीं.

सुमन की मां हर छोटी सी छोटी बात पर भी भावुक हो जाती है, उस के विपरीत उस के पिता एक संतुलित व्यक्ति हैं. उन्होंने ध्यान से अपनी बेटी की बात सुनी.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा, आशीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, लेकिन हम शादी में जल्दबाजी नहीं करना चाहते. मेरे अपने दफ्तर में 4 मित्र जोड़ों ने जल्दबाजी में शादी कर ली और फिर 1 साल के भीतर ही उन की शादी टूट गई. ऐसा इसलिए क्योंकि वे एकदूसरे को ठीक से समझे बगैर शादी कर बैठे. हम यह गलती नहीं दोहराना चाहते हैं. इन दिनों मुंबई में लिव इन रिलेशनशिप में रहना आम बात है. मेरे अपने दोस्त ऐसे ही रहते हैं. ऐसे साथ रहने से हम अपने साथी की ताकत और कमजोरी को समझ सकते हैं और एकदूसरे को बेहतर तरीके से जान सकते हैं. फिर तय कर सकते हैं कि एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं, हमारी शादी सफल हो सकती है या नहीं,’’ सुमन ने समझाया.

सुमन की मां बेशक सदमे की स्थिति में थीं, लेकिन उस के पिता हमेशा की तरह शांत थे. उन्होंने सुमन को अपनी बगल में बैठाया और फिर बोले, ‘‘तुम्हारे दोस्तों की शादियां टूट गईं और तुम्हें लगता कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को समझे बिना जल्दबाजी में शादी की. इस मामले में मेरा खयाल है कि तुम दोनों 1-2 साल के लिए अपनी दोस्ती बरकरार रख कर एकदूसरे को समझने की कोशिश करो और फिर शादी कर लो. यह लिव इन रिश्ता क्यों?’’ रामनाथ ने पूछा.

सुमन ने कहा, ‘‘पापा यही समस्या है. दरअसल, जब हम दोस्त होते हैं तो हम हमेशा दूसरे व्यक्ति को केवल अपना बेहतर पक्ष दिखाते हैं. हम सभी का एक और पक्ष है, जिसे हम जानबूझ कर दूसरों से छिपाते हैं. विवाह में ऐसा नहीं है. आप को अपने पूरे जीवन में एक व्यक्ति के साथ मिलजुल कर रहना होगा और आप को छोटी सी छोटी चीजें जैसे खाने से ले कर पैसे तक बड़े मामलों पर दोनों के बीच सहमति की जरूरत होती है.

‘‘उदाहरण के लिए मेरी एक दोस्त ने अपने बौयफ्रैंड से 4 साल तक डेटिंग करने के बाद शादी की. लेकिन शादी के बाद ही उसे समझ में आ गया कि जिस से उस ने ब्याह किया वह एक पुरुषवादी व्यक्ति है. यद्यपि मेरी सहेली उस से अधिक कमा रही थी, फिर भी उस के पति ने उस के साथ बदसलूकी की और पुराने जमाने की पत्नियों की तरह अपने परिवार की सेवा करने के लिए उसे मजबूर किया. इस के अलावा मेरी सहेली से उस की कमाई का हिस्सा मांगा… दुख की बात तो यह है कि उस लड़के ने मेरी सहेली की अपने मातापिता को किसी भी रूप से सहायता करने से सख्त मनाकर दिया. जब हम दोस्त होते हैं तब हमें एक मर्द के इस पहलू को नहीं जान सकते, क्योंकि उस वक्त सभी इंसान अपना अच्छा पक्ष ही दिखाएगा,’’ सुमन ने बताया.

थोड़ी देर रुक वह आगे बोली, ‘‘पापा, आज भी बहुत से भारतीय पुरुष हैं जो सोचते हैं कि वे घर के बौस हैं. पत्नी को केवल उन की आज्ञा का पालन करना चाहिए. स्त्री को उचित अधिकार और सम्मान नहीं दिए जाने की वजह से ही इन दिनों कई भारतीय शादियां टूट रही हैं. मैं नहीं चाहती कि मेरे साथ भी ऐसा हो. मैं ने सोचा कि जब हम एकसाथ रहते हैं तो हमारी सचाई एकदूसरे के सामने आती है तब हमें पता चलता है कि हम एकदूसरे के लिए सही हैं या नहीं.’’

रामनाथ ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम सही हो और मैं इस विषय में तुम से पूरी तरह सहमत हूं, लेकिन यह लिव इन रिलेशनशिप भी उतनी आसान नहीं जितना तुम समझ रही हो. यह भी बहुत सारी समस्याओं को जन्म देती है. तुम एक शिक्षित लड़की हो और मुझे तुम्हें बहुत समझाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम स्मार्ट और बुद्धिमान हो. शादी जैसे बंधन के बिना लड़का और लड़की पतिपत्नी की तरह रहने से भी समस्याएं हो सकती हैं. पहली बात यह है कि दोनों तरफ कोई प्रतिबद्धता नहीं है और यह किसी भी रिश्ते के लिए अच्छा नहीं है.

‘‘अगर इस तरह साथ रहने में जिन दिक्कतों का लड़का और लड़की को सामना करना पड़ता है, उन के बारे में मैं कहूं तो तुम समझोगी कि मैं पिछली पीढ़ी का बूढ़ा आदमी हूं और लिव इन रिलेशनशिप के खिलाफ कहता हूं. इसलिए मेरे पास एक सुझाव है. लिव इन रिलेशनशिप की अवधारणा पश्चिमी देशों से आई है न? लेकिन अब वे महसूस कर रहे हैं कि शादी की हमारी परंपरा बेहतर है. हमारी राधिका न्यूयौर्क में है और तुम वहां जा कर काम करो और पश्चिमी लोगों के साथ काम करते दौरान उन के जीवन को करीब से देखो. तब तुम अपने लिए क्या सही है यह निर्णय करने की स्थिति में होगी और वह तुम्हारे लिए बेहतर होगा.’’

सुमन को भी लगा कि यह एक अच्छा विचार है.

‘‘तो मैं अब अमेरिका में हूं, जहां लिव इन रिलेशनशिप की संस्कृति को समझना है,’’ सुमन ने हंसते हुए कहा.

राधिका भी हंस पड़ी, ‘‘तुम्हें पता है कि जेनिफर अगले हफ्ते वास्तव में अपने बौयफ्रैंड के साथ इसी बिल्डिंग में एक और फ्लैट में जाने की योजना बना रही है. एक नई लड़की क्लारा हमारी रूममेट होगी,’’ कह कर राधिका चाय के कप रखने चल दी और सुमन खिड़की से नीचे चल रही गाडि़यों की जलूस देखने लगी.

धीरेधीरे 3 साल बीत गए. हर हरिवार को सुमन के मातापिता उस से कम

से कम 2 घंटे तक इंटरनैट पर बात करते थे. इकलौती औलाद होने के नाते सुमन के मातापिता उस पर अपनी जान छिड़कते थे. खासकर सुमन की मां जो अपनी बेटी से अलग नहीं रह पा रही थी. उन्होंने अपने पति से कहा कि वे अमेरिका जाएं अपनी बेटी के पास.

रामनाथ ने उन्हें यह कहते हुए रोक दिया, ‘‘नहीं हम वहां नहीं जा रहे हैं. हम ने सुमन को वहां संस्कृति का निजी ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा है, जिस की भारतीय युवा पीढ़ी इतने उत्साह से पीछा कर रही हैं.’’

सुमन की मां के पास इसे मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था.

आशीष हर हफ्ते उस से इंटरनैट पर बात करता था, क्योंकि उसे भी सुमन से अलग रहना अच्छा नहीं लग रहा था. जब उस ने भी यूएस आने का प्रस्ताव रखा तो सुमन ने तुरंत मना कर दिया और कहा, ‘‘मैं ने अपने पिताजी से वादा किया है कि मैं आप को यहां नहीं बुलाऊंगी… और मैं अपना वादा नहीं तोड़ूंगी.’’

आशीष मान गया.

नौकरी भी अच्छी चल रही थी. न्यूयौर्क एक तेजी से आगे बढ़ने वाला शहर है, जो उस के मुंबई से भी ज्यादा तेज है. सुमन को सुबह 8 बजे अपने दफ्तर में पहुंचना है और वह जिस फ्लैट में रह रही है, वहां से पहुंचने में समय लगता. लेकिन न्यूयौर्क में आवागमन करना कोई समस्या नहीं है.

सुमन हर सुबह अपने और राधिका के लिए भारतीय नाश्ता बनाती और लंच भी पैक कर के औफिस के लिए निकल जाती.

एक रिसर्च स्कौलर होने के कारण राधिका की नौकरी लैब में थी और उस के काम का निश्चित समय नहीं था. कभीकभी 3-3 दिन तक घर नहीं आती और इस की सूचना सुमन को पहले ही दे देती थी ताकि वह उस का इंतजार न करे.

अब तक सुमन और क्लारा अच्छे दोस्त बन गए थे. सुमन को लगा कि क्लारा एक अच्छी लड़की है. लेकिन उस के साथ एकमात्र समस्या यह थी कि वह हर रविवार को कुछ मांसाहारी भोजन बनाती थी. उस की गंध को बरदाश्त करना शाकाहारी सुमन के लिए बहुत मुश्किल था. लेकिन धीरेधीरे सुमन उस गंध की आदी हो गई.

सुमन को रविवार को भी जल्दी उठना पड़ता था, क्योंकि क्लारा के रसोई में आने से पहले ही सुमन अपना और राधिका का खाना बना सके.

एक रविवार सुमन टीवी देख रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जेनिफर थी, जो अब उस की सहकर्मी है. उस के पास एक बैग था और उस की आंखें सूजी थीं. उस का हुलिया देख कर सुमन हैरान हो गई.

जेनिफर अंदर आई और बेकाबू हो कर बिलखबिलख कर रोने लगी. सुमन समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रिएक्ट करें. फिर उस ने खुद को संभाला और पूछा, ‘‘क्या हुआ जेनी तुम रो क्यों रही हो? कुछ तो बताओ… क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकती हूं?’’ सुमन ने जेनिफर को गले लगाते हुए कहा.

‘‘सुमन मेरा बौयफ्रैंड अव्वल नंबर का धोखेबाज निकला. उस का किसी दूसरी लड़की के साथ अफेयर चल रहा है. उस ने मुझ से यह बात छिपाई और ऊपर से मेरे सारे पैसे उस लड़की पर खर्च कर दिए. अब मैं बिलकुल कंगाल हूं. जब मैं ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि हम दोनों अलग हो जाएंगे. हम कानूनी रूप से विवाहित तो नहीं जो मैं अदालत से मदद ले सकूं… गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम ले सकूं. अगर इस में एक व्यक्ति दगाबाज निकले तो दूसरा कुछ भी नहीं कर सकता और मैं उसी हालत में हूं. मेरी सारी बचत को उस ने लूट लिया.’’

सुमन उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रही थी. जेनिफर ने पूछा, ‘‘क्या मैं आप लोगों के साथ तब तक रह सकती हूं जब तक कि मुझे एक और अपार्टमैंट और रूममेट नहीं मिलता है?’’

सुमन ने कहा, ‘‘बेशक

जेनी यह भी कोई पूछने वाली बात है क्या?’’

जेनिफर की हालत देख कर क्लारा को भी तरस आ गया और उसे अपने साथ रहने की इजाजत दे दी.

शाम को दफ्तर से आने पर राधिका ने पूरी कहानी सुनी. उसे अजीब सी बेचैनी हुई कि एक आदमी इतना मतलबी कैसे हो सकता है और उस के साथ ऐसा व्यवहार भी कर सकता है, जो उस से प्यार कर के उस के साथ रहने आई थी. वह सोच भी नहीं सकती कि एक इंसान इतनी ओछी हरकत कर सकता है. तीनों सहेलियां एकसाथ खाना खा कर इसी बारे में बात करती रहीं.

बातोंबातों में क्लारा ने अपनी समस्या बताई, ‘‘मैं भी ऐसी मुश्किल घड़ी से गुजर चुकी हूं. जब मैं अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप कर के बाहर आई थी तो पूरी तरह टूट चुकी थी और मेरा बैंक बैलेंस भी शून्य था. हमारे देश में यह एक मामूली समस्या बन चुकी है. ऐसा नहीं है कि केवल लड़के ही धोखा देते हैं. कभीकभी लड़कियां भी ऐसी गिरी हरकत करती हैं. इस तरह के रिश्ते की नींव आपसी विश्वास के अलावा कुछ भी नहीं है और अकेले ही इस स्थिति का सामना करना पड़ता है.

‘‘एक तरह से मुझे लगता है कि आप का देश अच्छा है सुमन. आप की शादियों में सभी बुजुर्ग और परिवार के अन्य सदस्य शामिल होते हैं और यह 2 व्यक्तियों का नहीं, बल्कि 2 परिवारों का मिलन बन जाता है. हमारे मामले में हम इस बड़ी दुनिया में अकेले हैं. 18 साल की उम्र में हम अपने परिवारों से बाहर आते हैं और हमें अकेले ही दुनिया का सामना करना पड़ता है. मेरे 3 ब्रेकअप हो चुके हैं और तुम जानती हो कि हर ब्रेकअप कितना दर्दनाक होता है… एक बार मैं एक गहरे मानसिक अवसाद में चली गई और अभी भी उस अवसाद के लिए गोलियां ले रही हूं… अब मैं अकेली हूं. वास्तव में मैं अब एक नए रिश्ते से डर रही हूं कि इस बार भी मुझे प्यार के बदले में छल ही मिलेगा,’’ और फिर क्लारा ने लंबी सांस भरी.

‘‘सुमन हर हफ्ते आप के मातापिता आप से बात करते हैं और यह एक अच्छा एहसास है कि इस दुनिया में कोई है, जो आप को बहुत प्यार देता है और आप की चिंता करता है. जब मैं 10 साल की थी तब मेरे मातापिता अलग हो गए थे और इस से मैं बहुत परेशान थी. मुझे अपनी मां के नए प्रेमी को स्वीकारने में बहुत समय लगा. मेरे पिताजी समय मिलने पर कभी फोन किया करते थे, लेकिन कभी भी मेरे साथ समय नहीं बिताया. मेरे 2 सौतेली बहनें और 2 सौतेले भाई हैं. मेरे पिता के अन्य महिलाओं के माध्यम से बच्चे हैं और मेरी मां के भी अन्य पुरुषों के साथ बच्चे हैं. मेरी मां कभी हम सब को मिलने के लिए बुलाती है. उस समय हम एकदूसरे से मिलते हैं… वह अवसर बहुत औपचारिक होता था,’’ क्लारा ने दुखी मन से बताया.

‘‘हमारे गुजाराभत्ता कानून महिलाओं के लिए बहुत सख्त और अनुकूल है और यही कारण है कि ज्यादातर अमीर पुरुष कानूनी शादी पसंद नहीं करते हैं. अगर हम शादीशुदा हैं और अलग हो गए हैं तो उन्हें हमारे द्वारा लिए गए पैसे वापस करने होंगे और गुजाराभत्ता के रूप में मोटी रकम भी चुकानी होगी. अब इस प्रकार के संबंधों में कानून कोई भूमिका नहीं निभाता है. हमें इसे अकेले ही निबटना होगा.

‘‘हर बार जब रिश्ते में धोखा खाते हैं तो लड़कियां हमेशा के लिए टूट जाती हैं. मुझे एक गहरी प्रतिबद्धता के साथ संबंध पसंद हैं. सुमन जब मैं आप की मां को आप से बात करते हुए देखती हूं, हालांकि मुझे आप की भाषा नहीं पता, मगर उन की अभिव्यक्ति से पता चलता है कि वे आप से कितना प्यार करती हैं… आप की खातिर किसी भी तरह का दुख भोगने के लिए तैयार हैं… हमारे देश में ऐसा नहीं है. यहां हर किसी को एक अलग व्यक्ति माना जाता है,’’ क्लारा की इस बात पर जेनिफर ने भी हामी भर ली.

राधिका सुमन की तरफ देख कर मुसकराई. सुमन समझ सकती थी कि वह क्या कहना चाहती है. सुमन को लगा कि हर जगह समस्याएं हैं. लिव इन रिलेशनशिप भी इतना आसान नहीं है, जितना हरकोई कल्पना करता है. भारतीय परिस्थितियों और भारतीय पुरुषों के साथ तो यह और भी कठिन है.

सुमन सोच में पड़ गई. एक बात उस की समझ में आई कि यदि आप के पास कानूनी सुरक्षा है, तो आप एक तरह से सुरक्षित हैं कि आप से आप का पैसा नहीं छीना जाएगा और ब्रेकअप के बाद आदमी को मुआवजा देना होगा और फिर जब आप विवाहित होते हैं तो आप की सामाजिक स्वीकृति भी होती है.

उस रविवार को जब उस के मातापिता लाइन पर आए तो सुमन ने अपने पिताजी से

कहा, ‘‘मैं अब उलझन में नहीं हूं पापा… ऐसा लग रहा है कि ऐसा कोई भी तरीका नहीं है, जो बिलकुल सही या बिलकुल गलत है.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटा. कोई भी व्यवस्था हर माने में सही या गलत नहीं हो सकती… हमें ही समझदारी के साथ काम करना पड़ेगा.

‘‘बेटा कोई भी शादी या रिश्ता इस दुनिया में ऐसा नहीं चाहे वह न्यूयौर्क हो या मुंबई ऐसा नहीं जो सौ फीसदी परफैक्ट हो. कोई न कोई कमी तो होती ही है और उसे नजरअंदाज कर के आगे बढ़ने में ही बेहतरी होती है. किसी भी रिश्ते की सफलता के लिए हर किसी को कुछ देना पड़ता है. तुम ही एक उदाहरण हो. तुम शुद्ध शाकाहारी हो मगर क्लारा के साथ एक ही रसोई को साझा कर रही हो क्यों? क्योंकि तुम क्लारा को ठेस पहुंचाना नहीं चाहती और उस से भी बढ़ कर तुम क्लारा से अपने रिश्ते का मूल्य समझती हो और उस की इज्जत करती हो, है न? जीवन भी इसी तरह है. अगर आप रिश्ते को बनाए रखना चाहते हैं तो मुकाम पर आप को हर हाल में समझौता करना होगा.’’

‘‘हर संस्कृति की अपनी ताकत और कमजोरी होती है. अमेरिकी संस्कृति की अपनी ताकत है कि यह हर व्यक्ति को मजबूत और आत्मनिर्भर बनाती है और वह कम उम्र में ही दुनिया से अकेले लड़ने की सीख देती है. मगर उस के लिए उन लोगों को किनकिन कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है यह आप ने खुद देख लिया.

‘‘हमारी भारतीय संस्कृति हमेशा परिवार की अवधारणा में विश्वास करती है और रिश्ते हमेशा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता रहे हैं. इस में कुछ ताकत और कमजोरी हो सकती है. समझौता हर रिश्ते का एक अभिन्न हिस्सा है, चाहे 2 लोग दोस्त हों या विवाहित.’’

अपने पिता से बात करने के बाद सुमन बहुत हलका महसूस कर रही थी. ‘जब वह एक रूममेट के लिए समझौता कर सकती है, वह भी एक विदेशी से तो फिर उस आदमी के लिए क्यों नहीं जो जीवनभर उस का साथी बनने वाला है, जो उस की सफलताओं और असफलताओं में उस के जीवन का हिस्सा बनने जा रहा है… वह है उस के जीवन का एक हिस्सा… यदि उस के लिए नहीं तो फिर वह किस के लिए समझौता करेगी,’ सुमन सोच रही थी.

अब सुमन ने फैसला कर लिया. वह आशीष से शादी करने के लिए तैयार थी और उस के साथ आने वाले समझौतों के लिए भी आशीष को वह मनाएगी ही क्योंकि 2 साल से वह भी उसी का इंताजर कर रहा है. आखिर समझौते के बिना जिंदगी ही क्या है.

किसना : बेटी के लिए क्या था पिता का फैसला

झारखंड का एक बड़ा आदिवासी इलाका है अमानीपुर. जिले के नए कलक्टर ने ऐसे सभी मुलाजिमों की लिस्ट बनाई, जो आदिवासी लड़कियां रखे हुए थे. उन सब को मजबूर कर दिया गया कि वे उन से शादी करें और फिर एक बड़े शादी समारोह में उन सब का सामूहिक विवाह करा दिया गया. दरअसल, आदिवासी बहुल इलाकों के इन छोटेछोटे गांवों में यह रिवाज था कि वहां पर कोई भी सरकारी मुलाजिम जाता, तो किसी भी आदिवासी घर से एक लड़की उस की सेवा में लगा दी जाती. वह उस के घर के सारे काम करती और बदले में उसे खानाकपड़ा मिल जाता. बहुत से लोग तो उन में अपनी बेटी या बहन देखते, मगर उन्हीं में से कुछ अपने परिवार से दूर होने के चलते उन लड़कियों का हर तरह से शोषण भी करते थे.

वे आदिवासी लड़कियां मन और तन से उन की सेवा के लिए तैयार रहती थीं, क्योंकि वहां पर ज्यादातर कुंआरे ही रहते थे, जो इन्हें मौजमस्ती का सामान समझते और वापस आ कर शादी कर नई जिंदगी शुरू कर लेते. मगर शायद आधुनिक सोच को उन पर रहम आ गया था, तभी कलक्टर को वहां भेज दिया था. उन सब की जिंदगी मानो संवर गई थी. मगर यह सब इतना आसान नहीं था. मुखिया और कलक्टर का दबदबा होने के चलते कुछ लोग मान गए, पर कुछ लोग इस के विरोध में भी थे. आखिरकार कुछ लोग शादी के बंधन में बंध गए और लड़कियां दासी जीवन से मुक्त हो कर पत्नी का जीवन जीने लगीं. मगर 3 साल बाद जब कलक्टर का ट्रांसफर हो गया, तब शुरू हुआ उन लड़कियों की बदहाली का सिलसिला. उन सारे मुलाजिमों ने उन्हें फिर से छोड़ दिया और  शहर जा कर अपनी जाति की लड़कियों से शादी कर ली और वापस उसी गांव में आ कर शान से रहने लगे.

तथाकथित रूप से छोड़ी गई लड़कियों को उन के समाज में भी जगह नहीं मिली और लोगों ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया. ऐसी छोड़ी गई लड़कियों से एक महल्ला ही बस गया, जिस का नाम था ‘किस बिन पारा’ यानी आवारा औरतों का महल्ला. उसी महल्ले में एक ऐसी भी लड़की थी, जिस का नाम था किसना और उस से शादी करने वाला शहरी बाबू कोई मजबूर मुलाजिम न था. उस ने किसना से प्रेम विवाह किया था और उस की 3 साल की एक बेटी भी थी. पर समय के साथ वह भी उस से ऊब गया, तो वहां से ट्रांसफर करा कर चला गया. किसना को हमेशा लगता था कि उस की बेटी को आगे चल कर ऐसा काम न करना पड़े. वह कोशिश करती कि उसे इस माहौल से दूर रखा जाए.

लिहाजा, उस को किसना ने दूसरी जगह भेज दिया और खुद वहीं रुक गई, क्योंकि वहां रुकना उस की मजबूरी थी. आखिर बेटी को पढ़ाने के लिए पैसा जो चाहिए था. बदलाव बस इतना ही था कि पहले वह इन लोगों से कपड़ा और खाना लेती थी, पर अब पैसा लेने लगी थी. उस में से भी आधा पैसा उस गांव की मुखियाइन ले लेती थी. उस दिन मुखियाइन किसना को नई जगह ले जा रही थी, खूब सजा कर. वह मुखियाइन को काकी बोलती थी. वे दोनों बड़े से बंगले में दाखिल हुईं. ऐशोआराम से भरे उस घर को किसना आंखें फाड़ कर देखे जा रही थी.

तभी किसना ने देखा कि एक तगड़ा 50 साला आदमी वहां बैठा था, जिसे सब सरकार कहते थे. उस आदमी के सामने सभी सिर झुका कर नमस्ते कर रहे थे. उस आदमी ने किसना को ऊपर से नीचे तक घूरा और फिर रूमाल से मोंगरे का गजरा निकाल कर उस के गले में डाल दिया. वह चुपचाप खड़ी थी. सरकार ने उस की आंखों में एक अजीब सा भाव देखा, फिर मुखियाइन को देख कर ‘हां’ में गरदन हिला दी. तभी एक बूढ़ा आदमी अंदर से आया और किसना से बोला, ‘‘चलो, हम तुम्हारा कमरा दिखा दें.’’

किसना चुपचाप उस के पीछे चल दी. बाहर बड़ा सा बगीचा था, जिस के बीचोंबीच हवेली थी और किनारे पर छोटे, पर नए कमरे बने थे. वह बूढ़ा नौकर किसना को उन्हीं बने कमरों में से एक में ले गया और बोला, ‘‘यहां तुम आराम से रहो. सरकार बहुत ही भले आदमी हैं. तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है…’’ किसना ने अपनी पोटली वहीं बिछे पलंग पर रख दी और कमरे का मुआयना करने लगी. दूसरे दिन सरकार खुद ही उसे बुलाने कमरे तक आए और सारा काम समझाने लगे. रात के 10 बजे से सुबह के 6 बजे तक उन की सेवा में रहना था. किसना ने भी जमाने भर की ठोकरें खाई थीं. वह तुरंत समझ गई कि यह बूढ़ा क्या चाहता है. उसे भी ऐसी सारी बातों की आदत हो गई थी.

वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘हम अपना काम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं सरकार, आप को शिकायत का मौका नहीं देंगे.’’

कुछ ही दिनों में किसना सरकार के रंग में रंग गई. उन के लिए खाना बनाती, कपड़े धोती, घर की साफसफाई करती और उन्हें कभी देर हो जाती, तो उन का इंतजार भी करती. सरकार भी उस पर बुरी तरह फिदा थे. वे दोनों हाथों से उस पर पैसा लुटाते. एक रात सरकार उसे प्यार कर रहे थे, पर किसना उदास थी. उन्होंने उदासी की वजह पूछी और मदद करने की बात कही.

‘‘नहीं सरकार, ऐसी कोई बात नहीं है,’’ किसना बोली.

‘‘देख, अगर तू बताएगी नहीं, तो मैं मदद कैसे करूंगा,’’ सरकार उसे प्यार से गले लगा कर बोले.

किसना को उन की बांहें किसी फांसी के फंदे से कम न लगीं. एक बार तो जी में आया कि धक्का दे कर बाहर चली जाए, पर वह वहां से हमेशा के लिए जाना  चाहती थी. उसे अच्छी तरह मालूम था कि यह बूढ़ा उस पर जान छिड़कता है. सो, उस ने अपना आखिरी दांव खेला, ‘‘सरकार, मेरी बेटी बहुत बीमार है. इलाज के लिए काफी पैसों की जरूरत है. मैं पैसा कहां से लाऊं? आज फिर मेरी मां का फोन आया है.’’

‘‘कितने पैसे चाहिए?’’

‘‘नहीं सरकार, मुझे आप से पैसे नहीं चाहिए… मुखियाइन मुझे मार देगी. मैं पैसे नहीं ले सकती.’’

सरकार ने उस का चेहरा अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘मुखियाइन को कौन बताएगा? मैं तो नहीं बताऊंगा.’’

‘‘एक लाख रुपए चाहिए.’’

‘‘एक… लाख…’’ बड़ी तेज आवाज में सरकार बोले और उसे दूर झटक दिया. किसना घबरा कर रोने लगी. ‘‘अरे… तुम चुप हो जाओ,’’ और सरकार ने अलमारी से एक लाख रुपए निकाल कर उस के हाथ पर रख दिए, फिर उस की कीमत वसूलने में लग गए. बेचारी किसना उस सारी रात क्याक्या सोचती रही और पूरी रात खुली आंखों में काट दी. शाम को जब सरकार ने किसना को बुलाने भेजा था, तो वह कमरे पर नहीं मिली. चिडि़या पिंजरे से उड़ चुकी थी. आखिरी बार उसे माली काका ने देखा था. सरकार ने भी अपने तरीके से ढूंढ़ने की कोशिश की, पर वह नहीं मिली. उधर किसना पैसा ले कर कुछ दिनों तक अपनी सहेली पारो के घर रही और कुछ समय बाद अपने गांव चली गई.

किसना की सहेली पारो बोली, ‘‘किसना, अब तू वापस मत आना. काश, मैं भी इसी तरह हिम्मत दिखा पाती. खैर छोड़ो…’’ किसना ने अपना चेहरा घूंघट से ढका और बस में बैठते ही भविष्य के उजियारे सपनों में खो गई. इन सपनों में खोए 12 घंटों का सफर उसे पता ही नहीं चला. बस कंडक्टर ने उसे हिला कर जगाया, ‘‘ऐ… नीचे उतर, तेरा गांव आ गया है.’’ किसना आंखें मलते हुए नीचे उतरी. उस ने अलसाई आंखों से इधरउधर देखा. आसमान में सूरज उग रहा था. ऐसा लगा कि जिंदगी में पहली बार सूरज देखा हो. आज 30 बसंत पार कर चुकी किसना को ऐसा लगा कि जैसे जिंदगी में ऐसी सुबह पहली बार देखी हो, जहां न मुखियाइन, न दलाल, न सरकार… वह उगते हुए सूरज की तरफ दोनों हाथ फैलाए एकटक आसमान की तरफ निहारे जा रही थी. आतेजाते लोग उसे हैरत से देख रहे थे, तभी अचानक वह सकुचा गई और अपना सामान समेट कर मुसकराते हुए आगे बढ़ गई. किसना को घर के लिए आटोरिकशा पकड़ना था. तभी सोचा कि मां और बेटी रोशनी के लिए कुछ ले ले, दोनों खुश हो जाएंगी. उस ने वहां पर ही एक मिठाई की दुकान में गरमागरम कचौड़ी खाई और मिठाई भी ली.

किसना पल्लू से 5 सौ का नोट निकाल कर बोली, ‘‘भैया, अपने पैसे काट लो.’’ दुकानदार भड़क गया, ‘‘बहनजी, मजाक मत करिए. इस नोट का मैं क्या करूंगा. मुझे 2 सौ रुपए दो.’’

‘‘क्यों भैया, इस में क्या बुराई है.’’

‘‘तुम को पता नहीं है कि 2 दिन पहले ही 5 सौ और एक हजार के नोट चलना बंद हो गए हैं.’’

किसना ने दुकानदार को बहुत समझाया, पर जब वह न माना तो आखिर में अपने पल्लू से सारे पैसे निकाल कर उसे फुटकर पैसे दिए और आगे बढ़ गई. अभी किसना ढंग से खुशियां भी न मना पाई थी कि जिंदगी में फिर स्याह अंधेरा फैलने लगा. अब क्या करेगी? उस के पास तो 5 सौ और एक हजार के ही नोट थे, क्योंकि इन्हें मुखियाइन से छिपा कर रखना जो आसान था. रास्ते में बैंक के आगे लगी भीड़ में जा कर पूछा तो पता लगा कि लोग नोट बदल रहे हैं. किसना को तो यह डूबते को तिनके का सहारा की तरह लगा. किसी तरह पैदल चल कर ही वह अपने घर पहुंची. बेटी रोशनी किसना को देखते ही लिपट गई और बोली, ‘‘मां, अब तुम यहां से कभी वापस मत जाना.’’

किसना उसे प्यार करते हुए बोली, ‘‘अब तेरी मां कहीं नहीं जाएगी.’’बेटी के सो जाने के बाद किसना ने अपनी मां को सारा हाल बताया. उस की मां ने पूछा, ‘‘अब आगे क्या करोगी?’’

किसना ने कहा, ‘‘यहीं सिलाईकढ़ाई की दुकान खोल लूंगी.’’

दूसरे दिन ही किसना अपने पैसे ले कर बैंक पहुंची, मगर मंजिल इतनी आसान न थी. सुबह से शाम हो गई, पर उस का नंबर नहीं आया और बैंक बंद हो गया. ऐसा 3-4 दिनों तक होता रहा और काफी जद्दोजेहद के बाद उस का नंबर आया, तो बैंक वालों ने उस से पहचानपत्र मांगा. वह चुपचाप खड़ी हो गई. बैंक के अफसर ने पूछा कि पैसा कहां से कमाया? वह समझाती रही कि यह उस की बचत का पैसा है. ‘‘तुम्हारे पास एक लाख रुपए हैं. तुम्हें अपनी आमदनी का जरीया बताना होगा.’’

बेचारी किसना रोते हुए बैंक से बाहर आ गई. किसना हर रोज बैंक के बाहर बैठ जाती कि शायद कोई मदद मिल जाए, मगर सब उसे देखते हुए निकल जाते. तभी एक दिन उसे एक नौजवान आता दिखाई पड़ा. जैसेजैसे वह किसना के नजदीक आया, किसना के चेहरे पर चमक बढ़ती चली गई. उस के जेहन में वे यादें गुलाब के फूल पर पड़ी ओस की बूंदों की तरह ताजा हो गईं. कैसे यह बाबू उस का प्यार पाने के लिए क्याक्या जतन करता था? जब वह सुबहसुबह उस के गैस्ट हाउस की सफाई करने जाती थी, तो बाबू अकसर नजरें बचा कर उसे देखता था.

वह बाबू किसना को अकसर घुमाने ले जाता और घंटों बाग में बैठ कर वादेकसमें निभाता. वह चाहता कि अब हम दोनों तन से भी एक हो जाएं. किसना अब उसे एक सच्चा प्रेमी समझने लगी और उस की कही हर बात पर भरोसा भी करती थी, मगर किसना बिना शादी के कोई बंधन तोड़ने को तैयार न थी, तो उस ने उस से शादी कर ली, मगर यह शादी उस ने उस का तन पाने के लिए की थी. किसना का नशा उस की रगरग में समाया था. उस ने सोचा कि अगर यह ऐसे मानती है तो यही सही, आखिर शादी करने में बुराई क्या है, बस माला ही तो पहनानी है. उस ने आदिवासी रीतिरिवाज से कलक्टर और मुखिया के सामने किसना से शादी कर ली, लेकिन उधर लड़के की मां ने उस का रिश्ता कहीं और तय कर दिया था. एक दिन बिना बताए किसना का बाबू कहीं चला गया. इस तरह वे दोनों यहां मिलेंगे, किसना ने सोचा न था.

जब वह किसना के बिलकुल नजदीक आया, तो किसना चिल्ला कर बोली, ‘‘अरे बाबू… आप यहां?’’

वह नौजवान छिटक कर दूर चला गया और बोला, ‘‘क्या बोल रही हो? कौन हो तुम?’’

‘‘मैं तुम्हारी किसना हूं? क्या तुम अब मुझे पहचानते भी नहीं हो? मुझे तुम्हारा घर नहीं चाहिए. बस, एक छोटी सी मदद…’’

‘‘अरे, तुम मेरे गले क्यों पड़ रही हो?’’ वह नौजवान यह कहते हुए आगे बढ़ गया और बैंक के अंदर चला गया. अब तो किसना रोज ही उस से दया की भीख मांगती और कहती कि बाबू, पैसे बदलवा दो, पर वह उसे पहचानने से मना करता रहा. ऐसा कहतेकहते कई दिन बीत गए, मगर बाबू टस से मस न हुआ. आखिरकार किसना ने ठान लिया कि अब जैसे भी हो, उसे पहचानना ही होगा. उस ने वापस आ कर सारा घर उलटपलट कर रख दिया और उसे अपनी पहचान का सुबूत मिल गया. सुबह उठ कर किसना तैयार हुई और मन ही मन सोचा कि रो कर नहीं अधिकार से मांगूंगी और बेटी को भी साथ ले कर बैंक गई. उस के तेवर देख कर बाबू थोड़ा सहम गया. उसे किनारे बुला कर किसना बोली, ‘‘यह रहा कलक्टर साहब द्वारा कराई गई हमारी शादी का फोटो. अब तो याद आ ही गया होगा?’’

‘‘हां… किसना… आखिर तुम चाहती क्या हो और क्यों मेरा बसाबसाया घर उजाड़ना चाहती हो?’’

किसना आंखों में आंसू लिए बोली, ‘‘जिस का घर तुम खुद उजाड़ कर चले आए थे, वह क्या किसी का घर उजाड़ेगी, रमेश बाबू… वह लड़की जो खेल रही है, उसे देखो.’’ रमेश पास खेल रही लड़की को देखने लगा. उस में उसे अपना ही चेहरा नजर आ रहा था. उसे लगा कि उसे गले लगा ले, मगर अपने जज्बातों को काबू कर के बोला, ‘‘हां…’’

किसना तकरीबन घूरते हुए बोली, ‘‘यह तुम्हारी ही बेटी है, जिसे तुम छोड़ आए थे.’’

रमेश के चेहरे के भाव को देखे बिना ही बोली, ‘‘देखो रमेश बाबू, मुझे तुममें कोई दिलचस्पी नहीं है. मैं एक नई जिंदगी जीना चाहती हूं. अगर इन पैसों का कुछ न हुआ, तो लौट कर फिर वहीं नरक में जाना पड़ेगा. ‘‘मैं अपनी बेटी को उस नरक से दूर रखना चाहती हूं, नहीं तो उसे भी कुछ सालों में वही कुछ करना पड़ेगा, जो उस की मां करती रही है. अपनी बेटी की खातिर ही रुपया बदलवा दो, नहीं तो लोग इसे वेश्या की बेटी कहेंगे. ‘‘अगर तुम्हारे अंदर जरा सी भी गैरत है, तो तुम बिना सवाल किए पैसा बदलवा लाओ, मैं यहीं तुम्हारा इंतजार कर रही हूं.’’ रमेश ने उस से पैसों का बैग ले लिया और खेलती हुई बेटी को देखते हुए बैंक के अंदर चला गया और कुछ घंटे बाद वापस आ कर रमेश ने नोट बदल कर किसना को दे दिए और कुछ खिलौने अपने बेटी को देते हुए गले लगा लिया. तभी किसना ने आ कर उसे रमेश के हाथों से छीन लिया और बेटी का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर बोली, ‘‘रमेश बाबू… चाहत की अलगनी पर धोखे के कपड़े नहीं सुखाए जाते…’’ और बेटी के साथ सड़क की भीड़ में अपने सपनों को संजोते हुए खो गई.

तसवीर: क्या मालविका ने बड़ी उम्र के केशव का रिश्ता स्वीकार कर लिया?

‘‘मुझे कल तक तुम्हारा जवाब चाहिए,’’ कह कर केशवन घर से बाहर जा चुका था. मालविका में कुछ कहनेसुनने की शक्ति नहीं रह गई थी. वह एकटक केशवन को जाते तब तक देखती रही, जब तक उस की गाड़ी आंखों से ओझल नहीं हो गई.

उस ने सपने में भी न सोचा था कि एक दिन वह इस स्थिति में होगी. केशवन ने उस से शादी का प्रस्ताव रखा था. उस के मन की मुराद पूरी होने जा रही थी. लेकिन एक तरफ उस का मन नाचनेगाने को कर रहा था, तो दूसरी तरफ वह अपने घर वालों की प्रतिक्रिया की कल्पना कर के परेशान हो रही थी.

जब वे सुनेंगे कि मालविका वापस इंडिया लौट कर नहीं आ रही है, तो पहले तो आश्चर्य करेंगे, भुनभुनाएंगे और जब जानेंगे कि वह शादी करने जा रही है तो गुस्से से फट पड़ेंगे.

‘अरे इस मालविका को इस उम्र में यह क्या पागलपन सूझा?’ वे कहेंगे, ‘लगता है कि यह सठिया गई है. इस उम्र में घरगृहस्थी बसाने चली है…’

लोग एकदूसरे से कहेंगे, ‘कुछ सुना तुम ने? अपनी मालविका शादी कर रही है. बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम. पता नहीं किस आंख के अंधे और गांठ के पूरे ने उस को फंसाया है. सचमुच शादी करेगा या शादी का नाटक कर के उसे घर की नौकरानी बना कर रखेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.’

मालविका अपनेआप से तर्क करती रही. क्या केशवन सचमुच उस से प्यार करने लगा था? वह ऐसी परी तो है नहीं कि कोई उस के रूप पर मुग्ध हो जाए.

उस की नजर सामने दीवार पर टंगे आदमकद आईने पर पड़ी. उस का चेहरा अभी भी आकर्षक था पर समय चेहरे पर अपनी छाप छोड़ चुका था. आंखें बड़ीबड़ी थीं पर बुझी हुईं. उन में एक उदास भाव निहित था. उस का शरीर छरहरा और सुडौल था पर उस की जवानी ढलान पर थी. वह हमेशा इसी कोशिश में रहती थी कि वह किसी की आंखों में न गड़े, इसलिए वह हमेशा फीके रंग के कपड़े पहनती थी. गहने भी नाममात्र को पहनती थी. वह इतने सालों से एक अनाम जिंदगी जीती आई थी. उस की कोई शख्सीयत नहीं थी, कोई अहमियत भी नहीं थी. बड़ी अदना सी इंसान थी वह. वह अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि केशवन ने उस में ऐसा क्या देखा कि वह उस की ओर आकर्षित हो गया. अगर वह चाहता तो उसे एक से बढ़ कर एक सुंदर लड़की मिल सकती थी.

उस ने फिर से वह लमहा याद किया जब केशवन ने उस से शादी का प्रस्ताव रखा था. वह उस पल को बारबार जीना चाहती थी.

‘मालविका, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं. क्या तुम मेरी बनोगी?’ उस ने कहा था.

‘यह क्या कह रहे हैं आप?’ वह स्तब्ध रह गई थी, ‘आप मुझ से शादी करना चाहते हैं?’

‘हां.’

‘लेकिन आप को लड़कियों की क्या कमी है? एक इशारा करेंगे तो उन की लाइन लग जाएगी.’

‘हां, लेकिन तुम ने यह कहावत सुनी है न कि दूध का जला छाछ भी फूंकफूंक कर पीता है. एक बार शादी कर के मैं धोखा खा गया. दोबारा यहां की लड़की से शादी करने की हिम्मत नहीं होती.’

फिर उस ने उसे अपनी पहली शादी के बारे में विस्तार से बताया था.

‘नैन्सी उसी अस्पताल में नर्स थी, जिसे मैं ने यहां आ कर जौइन किया

था. मैं इस शहर में बिलकुल अकेला था. न कोई संगी न साथी. नैन्सी ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया तो मुझे अच्छा लगा. मैं उस के यहां जाने लगा और धीरेधीरे उस के करीब आता गया. एक दिन हम ने शादी करने का निश्चय कर लिया.

‘पहले 4 वर्ष अच्छे गुजरे पर धीरेधीरे नैन्सी में बदलाव आया. वह बेहद आलसी हो गई. दिन भर सोफे पर पड़ी टीवी देखती रहती थी. नतीजा वह मोटी होती चली गई. उसे खाना बनाने में भी आलस आता था. जब मैं थकामांदा घर लौटता तो वह मुझे फास्ट फूड की दुकान से लाया एक पैकेट पकड़ा देती. घर की साफसफाई करने से भी वह कतराती थी. यहां तक कि वह हमारी नन्ही बच्ची की ओर भी ध्यान नहीं देती थी. जब मैं कुछ कहता तो हम दोनों में जम कर लड़ाई होती.

‘आखिर तलाक की नौबत आ गई. चूंकि हमारी बेटी कुल 3 साल की ही थी, इसलिए उसे मां के संरक्षण में भेजा गया. धीरेधीरे नैन्सी ने मेरी बेटी के कान भर कर उसे मेरे से दूर कर दिया व उस ने दूसरी शादी कर ली. अब मैं अपने एकाकी जीवन से तंग आ गया हूं. मुझे यह शिद्दत से महसूस हो रहा है कि जीवन के संध्याकाल में मनुष्य को एक साथी की जरूरत होती है.’

‘लेकिन,’ उस ने कहा, ‘आप को मालूम है कि मैं 40 पार कर चुकी हूं.’

‘तो क्या हुआ? चाहत में उम्र नहीं देखी जाती. इस देश में तुम्हारी उम्र की औरतें अभी भी बनठन कर और चुस्तदुरुस्त रहती हैं और भरपूर जिंदगी जीती हैं. मैं तुम्हें सोचने के लिए 24 घंटे का समय देता हूं. अभी मैं अस्पताल जा रहा हूं. कल सुबह तक मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए,’ केशवन ने मुसकरा कर कहा.

मालविका ने खिड़की के बाहर आंखें टिका दीं. मन अतीत की गलियों में भटकने लगा. उसे अपना गांव याद आया जहां उस का बचपन गुजरा था. घर में सम्मिलित परिवार की भीड़. सहेलियों के साथ धमाचौकड़ी मचाना. त्योहारों पर सजनाधजना. वह दुनिया ही अलग थी. वे दिन बेफिक्री और मौजमस्ती के दिन थे. फिर अचानक उस की शादी की बात चली और देखते ही देखते तय भी हो गई. घर में मेहमानों की गहमागहमी थी. सारा वातावरण पकवानों की खुशबू और फूलों की महक से ओतप्रोत था. द्वार पर बंदनवार सजे थे. अल्हड़ युवतियों की खिलखिलाहट गूंजने लगी. सखियां चुहल करने लगीं. सब एक सपने जैसा लग रहा था.

फेरे हो चुके थे. मृदंग की थाप और शहनाई की ऊंची आवाज के बीच शादी की पारंपरिक रस्में जोरशोर से हो रही थीं.

बात विदाई की होने लगी तो वर के पिता अनंतराम मालविका के पिता की ओर मुड़े और बोले, ‘श्रीमानजी, पहले जरा काम की बात की जाए.’

वे उन्हें एक ओर ले गए और बोले, ‘हां, अब आप हमें वह रकम पकड़ाइए, जो आप ने देने का वादा किया था.’

नारायणसामी मानो आसमान से गिरे, ‘कौन सी रकम? मैं कुछ समझा नहीं.’

‘वाह, आप की याददाश्त तो बहुत कमजोर मालूम देती है. आप को याद नहीं जब हम लोग सगाई के लिए आए थे तो आप ने कहा था कि आप क्व2 लाख तक खर्च कर सकते हैं?’

‘ओह अब समझा. श्रीमानजी, मैं ने कहा था कि मैं बेटी की शादी में क्व2 लाख लगाऊंगा क्योंकि इतने की ही मेरी हैसियत है. मैं ने यह तो नहीं कहा था कि मैं यह रकम दहेज में दूंगा.’

‘बहुत खूब. अब हमें क्या मालूम कि आप का क्या मतलब था. हम तो यही समझ बैठे थे कि आप हमें क्व2 लाख वरदक्षिणा देने के लिए राजी हुए हैं. तभी तो हम ने इस रिश्ते के लिए हामी भरी.’

नारायणसामी ने हाथ जोड़े, ‘मुझे क्षमा कीजिए. मुझे सब कुछ साफसाफ कहना चाहिए था. मुझ से भारी गलती हो गई.’

‘खैर कोई बात नहीं. शायद हमारे समझने में ही भूल हो गई होगी. पर एक बात मैं बता दूं कि दहेज की रकम के बिना मैं यह रिश्ता हरगिज कबूल नहीं कर सकता. मेरे डाक्टर बेटे के लिए लोग क्व10-10 लाख देने को तैयार थे. वह तो मेरे बेटे को आप की बेटी पसंद आ गई थी, इसलिए हमें मजबूरन यहां संबंध करना पड़ा. अब आप जल्द से जल्द पैसों का इंतजाम कीजिए.’

नारायणसामी ने गिड़गिड़ा कर कहा, ‘इतने रुपए देना मेरे लिए असंभव है. मैं ठहरा खेतिहर. इतनी रकम कहां से लाऊंगा? मुझ पर तरस खाइए. मैं ने शादी में अपनी सामर्थ्य से ज्यादा खर्च किया है. और पैसे जुटाना मेरे लिए बहुत कठिन होगा.’

‘अरे, जब सामर्थ्य नहीं थी तो अपनी हैसियत का रिश्ता ढूंढ़ा होता. मेरे बेटे पर क्यों लार टपकाई?’

नारायणसामी कातर स्वर में बोले, ‘ऐसा अनर्थ न करें. मैं वादा करता हूं कि जितनी जल्दी हो सकेगा मैं पैसों का इंतजाम कर के आप तक पहुंचा दूंगा.’

‘ठीक है. आप की बेटी भी तभी विदा होगी.’

तभी मालविका के तीनों भाई अंदर घुस आए.

‘आप ऐसा नहीं कर सकते,’ वे भड़क कर बोले.

‘क्यों नहीं कर सकता?’ अनंतराम ने अकड़ कर कहा.

‘हमारी बहन की आप के बेटे से शादी हो चुकी है. अब वह आप के घर की बहू है. आप की अमानत है.’

‘तो हम कब इनकार कर रहे हैं?’

‘लेकिन इस समय दहेज की बात उठा कर आप क्यों बखेड़ा कर रहे हैं बताइए तो? क्या आप को पता नहीं कि दहेज लेना कानूनन जुर्म है? अगर हम पुलिस में खबर कर दें तो आप सब को हथकडि़यां पड़ जाएंगी.’

‘पुलिस का डर दिखाते हो. अब तो मैं हरगिज बहू को विदा नहीं कराऊंगा. कर लो जो करना हो. न मुझे तुम्हारे पैसे चाहिए और न ही तुम्हारे घर की बेटी. मैं अपने बेटे की दूसरी शादी कराऊंगा, डंके की चोट पर कराऊंगा.’

‘हांहां, जो जी चाहे कर लेना. यह धमकी किसी और को देना. हमारी इकलौती बहन हमें भारी नहीं है कि हम उस के लिए आप के सामने नाक रगड़ेंगे. हम में उसे पालने की शक्ति है. हम उसे पलकों पर बैठा कर रखेेंगे.’

‘ठीक है, तुम रखो अपनी बहन को. हम चलते हैं.’

मालविका के मातापिता समधी के हाथपैर जोड़ते रहे पर उन्होंने किसी की एक न सुनी. वे उसी वक्त बिना खाएपिए बरातियों समेत घर से बाहर हो गए.

‘अरे लड़को, तुम ने ये क्या कर डाला?’ शारदा रो कर बोलीं, ‘लड़की के फेरे हो चुके हैं. अब वह पराया धन है. अपने पति की अमानत है. उसे कैसे घर में बैठाए रखोगे?’

‘फिक्र न करो अम्मां. उस धनलोलुप के घर जा कर हमारी बहन दुख ही भोगती. वे उसे दहेज के लिए सतातेरुलाते. अच्छा हुआ कि समय रहते हमें उन लोगों की असलियत मालूम हो गई.’

‘लेकिन अब तुम्हारी बहन का क्या होगा? वह न तो इधर की रही न उधर की. विवाहित हो कर भी उस की गिनती विवाहित स्त्रियों में नहीं होगी. बेटा, शादी के बाद लड़की अपनी ससुराल में ही शोभा देती है. चाहे जैसे भी हो समधीजी की मांगें पूरी करने की कोशिश करो और मालविका को ससुराल विदा करो.’

‘अम्मां तुम बेकार में डर रही हो. हम समधीजी की मांगें पूरी करते रहे तो इस सिलसिले का कभी अंत न होगा. एक बार उन के आगे झुक गए तो वे हमें लगातार दुहते रहेंगे. हमें पक्का यकीन है कि देरसवेर वे अपनी गलती मान लेंगे और मालविका को विदा करा के ले जाएंगे.’

‘पर वे अपने बेटे की दूसरी शादी की धमकी दे कर गए हैं.’

‘अरे अम्मां, अगर लड़के वाले अपने बेटे का पुनर्विवाह करेंगे तो हम भी अपनी मालविका का दूसरा विवाह रचाएंगे.’

यह कहना आसान था पर कर दिखाना बहुत मुश्किल. दिन पर दिन गुजरते गए और मालविका के लिए कोई अच्छा वर नहीं मिला. कोई लड़का नजर में पड़ता तो वही लेनदेन की बात आड़े आती. किसी दुहाजू का रिश्ता आता तो वह उन को न जंचता. जब मालविका की उम्र 30 के करीब पहुंची तो रिश्ते आने बंद हो गए.

उस की मां उस की चिंता में घुलती रहीं. वे बारबार अपने पति से गिड़गिड़ातीं, ‘अजी कुछ भी करो. मेरे गहने बेच दो. यह मकान या जमीन गिरवी रख दो पर लड़की का कुछ ठिकाना करो. जवान बेटी को कितने दिन घर में बैठा कर रखोगे. मुझ से उस की हालत देखी नहीं जाती.’

एक बार नारायणसामी लड़कों से चोरीछिपे समधी के घर गए भी पर अपना सा मुंह ले कर वापस आ गए. अनंतराम ने बताया कि उन का बेटा पढ़ाई करने के लिए अमेरिका जा चुका है और उस के शीघ्र लौटने की कोई उम्मीद नहीं है. उन्होंने दोटूक शब्दों में कह दिया कि अच्छा होगा कि आप लोग अपनी बेटी के लिए कोई और वर देख लें.

अब रहीसही आशा भी टूट चुकी थी. नारायणसामी गुमसुम रहने लगे. एक दिन उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे नहीं रहे.

उन के तीनों बेटे शहर में नौकरी करते थे, ‘अम्मां,’ उन्होंने कहा, ‘तुम्हारा और मालविका का अब यहां गांव में अकेले रहना मुनासिब

नहीं. बेहतर होगा कि तुम दोनों हमारे साथ चल कर रहो.’

बड़े बेटे सुधीर को मुंबई में रेलवे विभाग में नौकरी मिली थी. रहने को मकान था. मांबेटी अपना सामान समेट कर उस के साथ चल दीं.

मां ने जाते ही बेटे के घर का चूल्हाचौका संभाल लिया और मालविका के जिम्मे आए अन्य छिटपुट काम. उस ने अपने नन्हे भतीजेभतीजी की देखरेख का काम संभाल लिया.

कुछ दिन बाद उस के मझले भाई का फोन आया, ‘मां, तुम्हारी बहू के बच्चा होने वाला है. तुम तो जानती हो कि उस की मां नहीं है. उसे तुम्हें ही संभालना होगा. हम तुम्हारे ही भरोसे हैं.’

‘हांहां क्यों नहीं,’ मां ने उत्साह से कहा और वे तुरंत जाने को तैयार हो गईं. मालविका को भी उन के साथ जाना पड़ा.

अब उन की जिंदगी का यही क्रम हो गया. बारीबारी से तीनों भाई मांबेटी को अपने यहां बुलाते. मां के देहांत के बाद भी मालविका इसी ढर्रे पर चलती रही. उस के मेहनती और निरीह स्वभाव से सब प्रसन्न थे. उस की अपनी मांगें अत्यंत सीमित थीं. उसे किसी से कोई अपेक्षा नहीं थी. उस की कोई आकांक्षा नहीं थी. उस के जीवन का ध्येय ही था दूसरों के काम आना. वह हमेशा सब की मदद करने को तत्पर रहती थी.

उस के भाइयों की देखादेखी उस के अन्य सगेसंबंधी भी उसे गरज पड़ने पर बुला लेते. हर कोई उस से कस कर काम लेता और अपना उल्लू सीधा करने के बाद उसे टरका देता.

मालविका के दिन किसी तरह बीत रहे थे. कभीकभी वह अपने एकाकी जीवन की एकरसता से ऊब जाती. जब वह अपनी हमउम्र स्त्रियों को अपनी गृहस्थी में रमी देखती, उन्हें अपने परिवार में मगन देखती, तो उस के कलेजे में एक हूक उठती. लोगों की भीड़ में वह अकेली थी. जबतब उस का मन अनायास ही भर आता और जी करता कि वह फूटफूट कर रोए. पर उस के आंसू पोंछने वाला भी तो कोई न था.

उस के ससुर की धनलोलुपता और उस के भाइयों की हठधर्मिता ने उस की जिंदगी पर कुठाराघात किया था. अब वह एक बिना साहिल की नाव के मानिंद डूबउतरा रही थी. उद्देश्यहीन, गतिहीन…

मालविका के बड़े भाई सुधीर की बेटी उषा की शादी हो गई और वह अमेरिका के न्यूजर्सी शहर में जा बसी. जब वह गर्भवती हुई तो उसे मालविका की याद आई, तो वह अपने पापा से बोली, ‘पापा, आप किसी तरह बूआजी को यहां भेज दो तो मेरी मुश्किल हल हो जाएगी. वे घर भी संभाल लेंगी और बच्चे को भी देख लेंगी. यहां के बारे में तो पता है न आप को? बेबी सिटर और नौकरानियां 1-1 घंटे के हिसाब से चार्ज करती हैं. इस से हमारा तो दीवाला ही निकल जाएगा.’

‘हांहां तुम्हारे लिए मालविका कभी मना नहीं करेगी. पर कुछ दिनों से वह गठिया के दर्द से परेशान है. अगर तुम लोग उस के लिए मैडिकल इंश्योरैंस करा लो तो अच्छा रहेगा. सुना है कि उस देश में बीमार पड़ने पर अस्पताल और डाक्टरों के इलाज में बड़ा भारी खर्च होता है.’

‘हांहां क्यों नहीं. ये कौन सी बड़ी बात है. बूआ का बीमा करा लिया जाएगा. बस आप उन्हें जल्द से जल्द रवाना कर दें.’

मालविका अमेरिका के लिए रवाना हो गई. उस की भतीजी उसे एअरपोर्ट पर लेने आई थी.

‘बेटी, तेरे देश में तो बड़ी ठंड है,’ मालविका ने ठिठुरते हुए कहा, ‘मेरी तो कंपकंपी छूट रही है.’

उषा हंस पड़ी, ‘अरे बूआजी, अपना घर वातानुकूलित है. बाहर निकलो तो कार में हीटर लगा हुआ है. शौपिंग मौल में भी टैंप्रेचर गरम रखा जाता है. फिर सर्दी से क्यों घबराना? हां, एक बात का खयाल रखना बाहर कदम रखो तो बर्फ में पांव फिसलने का डर रहता है, इसलिए जरा संभल कर रहना.’

फिर उस ने मालविका के गले लग कर कहा, ‘बूआजी तुम आ गईं तो मेरी सब चिंता दूर हो गई. अब तुम मुझे वे सभी चीजें बना कर खिलाना जिन्हें खाने के लिए मेरा मन ललचाता है.’

घर पहुंच कर उषा ने कहा, ‘बूआ, आप का बिस्तर बेबी के रूम में लगा दिया है. जब बेबी पैदा होगा तो शायद रात में एकाध बार बच्चे को दूध की बोतल देने के लिए उठना पड़ेगा और हां, सुबह रस्टी को जरा बाहर ले जाना होगा, क्योंकि आप को

तो पता है मेरी नींद आसानी से नहीं खुलती.’

‘ये रस्टी कौन है?’

‘अरे रस्टी हमारा छोटा सा कुत्ता है. कल ही दिलीप उसे खरीद कर लाए हैं. हम ने सोचा है कि बच्चे को उस का साथ अच्छा लगेगा.’

‘पर बेटी, इतने नन्हे बच्चे के साथ कुत्ता पालना अक्लमंदी है क्या? जानवर का क्या ठिकाना, कभी बच्चे को नुकसान पहुंचा दे तो?’

‘अरे नहीं बूआ, ऐसा कुछ नहीं होगा. आप नाहक डर रही हैं. वैसे दिलीप जब घर में होंगे तो वे ही कुत्ते का सब काम देखेंगे.’

कुछ समय बाद उषा ने एक बालक को जन्म दिया. मालविका ने घर का काम संभाल लिया और बच्चे की जिम्मेदारी भी ले ली. वह दिन भर बहुत सारे काम करती और रात को निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ जाती. काम वह इंडिया में भी करती थी पर वहां और लोग भी थे उस का हाथ बंटाने के लिए. यहां वह अकेली पड़ गई थी.

एक दिन सुबह वह बच्चे का दूध बना रही थी कि रस्टी दरवाजे के पास आ कर कूंकूं करने लगा. ‘ओह तुझे भी अभी ही जाना है मुए,’ वह झुंझलाई.

जब रस्टी ने कूंकूं करना बंद न किया तो मालविका ने बच्चे को पालने में डाला और एक शौल लपेट कर रस्टी की चेन थामे घर से निकली.

पिछली रात बर्फ गिरी थी. सीढि़यों पर बर्फ जम गई थी और सीढि़यां कांच की तरह चिकनी हो गई थीं. मालविका ने हड़बड़ी में ध्यान न दिया और जैसे ही उस का पांव सीढ़ी पर पड़ा वह फिसल कर गिर पड़ी.

उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर में भयानक दर्द हुआ. उस के मुंह से चीख निकल गई. उसे लगा उस भीषण ठंड में धरती पर पड़ेपड़े उस का शरीर अकड़ जाएगा और उस का दम निकल जाएगा.

काफी देर बाद उषा ने द्वार खोला तो उसे पड़ा देख कर उस के मुंह से भी चीख निकल गई, ‘ये क्या हुआ बूआ? तुम कैसे गिर पड़ीं? मैं ने तुम्हें आगाह किया था न कि बर्फ पर बहुत होशियारी से कदम रखना वरना पैर फिसलने का डर रहता है.’

‘अब मैं जान कर तो नहीं गिरी,’ उस ने कराह कर कहा, ‘जल्दीबाजी में पांव फिसल गया.’ उषा व उस का पति दिलीप उसे अस्पताल ले गए.

डाक्टर ने मालविका की जांच कर के बताया कि इन का टखना टूट गया है. औपरेशन करना होगा और हड्डी बैठानी होगी और इस में 10 हजार डौलर का खर्चा आएगा.

10 हजार सुन कर मालविका की सांस रुकने लगी, ‘उषा, तू ने मेरा मैडिकल बीमा करा लिया था न?’

‘मैं ने दिलीप से कह तो दिया था. क्यों जी, आप ने बूआजी का बीमा करा लिया था न?’

‘ओहो, ये बात तो मेरे ध्यान से बिलकुल उतर गई.’

उषा अपने हाथ मलने लगी, ‘ये आप ने बड़ी गलती की. अब इतने सारे पैसे कहां से आएंगे?’

वे इधरउधर फोन घुमाते रहे. आखिर उन्हें एक डाक्टर मिल गया जो मालविका का औपरेशन 3 हजार डौलर में करने को तैयार हो गया.

प्लास्टर उतरने वाले दिन उषा अपनी बूआ को अस्पताल ले गई. प्लास्टर उतरने के बाद जब मालविका ने पहला कदम उठाया तो देखा कि उस का टूटा हुआ पैर सीधा नहीं पड़ रहा था. उस के पैर डगमगाए और वह कुरसी में गिर पड़ी.

‘हाय ये क्या हो गया?’ उस के मुंह से निकला.

डाक्टर ने पैर की जांच की और बोले, ‘लगता है पैर सैट करने में जरा गलती हो गई. अब जब आप चलेंगी तो आप का एक पैर थोड़ा टेढ़ा पड़ेगा. आप को छड़ी का सहारा लेना होगा और कोई चारा नहीं है.’

मालविका की आंखों से झरझर आंसू बह निकले. हाय वह अपाहिज हो गई. अब वह बैसाखियों के सहारे चलेगी. बुढ़ापे में उसे दूसरों के आसरे जीना होगा.

तभी एक नर्स उस के पास आई, ‘मैडम, आप ओपीडी में चलिए. हमारे अस्पताल में न्यूयार्क से एक विजिटिंग डाक्टर आए हैं, जो आप के पैर की जांच करना चाहते हैं?’

‘कौन डाक्टर?’ मालविका ने अपना आंसुओं से भीगा चेहरा ऊपर उठाया.

‘डाक्टर केशवन.’

‘केशवन? यह कैसा नाम है?’

‘वे आप के ही देश के ही हैं. चलिए, मैं आप को व्हीलचेयर में ले चलती हूं.’

मालविका का हृदय जोरों से धड़क उठा. क्या ये वही थे? नहीं, उस ने अपना सिर हिलाया. इस नाम के और भी तो डाक्टर हो सकते हैं. पर डाक्टर को देखते ही उस का संशय दूर हो गया. वही हैं, वही हैं उस के हृदय में एक धुन सी बजने लगी. हालांकि मालविका उन्हें पूरे 20 साल बाद देख रही थी पर उन्हें पहचानने में उसे एक पल की देरी भी नहीं हुई. केशवन का बदन दोहरा हो गया था और सिर के बाल उड़ गए थे. पर चेहरामोहरा वही था.

ये छवि तो उस के हृदय में अंकित थी, उस ने भावुक हो कर सोचा. इन की तसवीर तो उस ने सहेज कर अपने बक्से में रखी हुई थी. वह हर रोज अकेले में तसवीर को निकालती, उसे निहारती और उस पर 2-4 आंसू बहाती. ये तसवीर उन दोनों की मंगनी के अवसर पर ली गई थी. एक प्रति मालविका ने सब की नजर बचा कर चुरा कर अपने पास रख ली थी.

उस ने सुना था कि केशवन अमेरिका जा कर वहीं के हो गए थे. उस ने एक उड़ती हुई खबर यह भी सुनी थी कि केशवन ने एक गोरी मेम से शादी कर ली थी और इस बात से उस के मातापिता बहुत दुखी थे. डाक्टर केशवन कैबिन में आए. मालविका ने उन पर एक भेदी नजर डाली. क्या उन्होंने उसे पहचान लिया था? शायद नहीं. उन्होंने उस का पैर जांचा.

‘आप का औपरेशन सही तरीके से नहीं किया गया है, इसीलिए आप की चाल टेढ़ी हो गई है. दोबारा हड्डी तोड़ कर फिर से जोड़नी पड़ेगी.’

‘ओह इस में तो भारी खर्च आएगा,’ मालविका चिंतित हो उठी.

‘डाक्टर, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं,’ उषा बोल उठी,

‘हम सोच रहे हैं कि इन्हें वापस इंडिया भेज दें. वहां पर इन का इलाज हो जाएगा.’

‘पैसे की आप चिंता न करें,’ केशवन ने कहा, ‘मैं इन का इलाज अपनी क्लीनिक में करा दूंगा,

एक भारतीय होने के नाते हमें परदेश में एकदूसरे की मदद तो करनी ही चाहिए.’

‘ओह डाक्टर साहब आप ने हमें उबार लिया,’ उषा बोली.

‘मैं कल न्यूयार्क वापस जा रहा हूं. आप कहें तो इन्हें साथ ले जाऊंगा. औपरेशन के बाद इन्हें थोड़ा आराम की जरूरत है फिर ये इंडिया जा सकती हैं.’

औपरेशन होने के बाद केशवन ने पूछा, ‘अब आप क्या करना चाहेंगी? न्यूजर्सी अपनी भतीजी के पास रहेंगी या…’

‘और कहां जाऊंगी? मेरा तो और कोई ठौर नहीं है,’ मालविका ने कहा.

‘मेरा एक सुझाव है. यदि अन्यथा न समझें तो आप कुछ दिन मेरे यहां रह सकती हैं.’

‘आप के यहां?’ मालविका चौंक पड़ी, ‘लेकिन आप की पत्नी, आप का परिवार?’

केशवन हंस दिया, ‘मैं अकेला हूं. विश्वास कीजिए मुझे आप के रहने से कोई दिक्कत नहीं होगी बल्कि इस में मेरा भी एक स्वार्थ है. मैं कभीकभी अपने देश का खाना खाने को तरस जाता हूं. हो सके तो मेरे लिए एकाध डिश बना दिया करिए और कौफी का तो मैं बहुत ही शौकीन हूं. दिन में 5-6 प्याले पीता हूं. आप बना दिया करेंगी न?’

वह हंस पड़ी. वह उस से ढेरों सवाल करना चाहती थी. वह अकेला क्यों था? उस की बीवी कहां थी? लेकिन वह अभी उस के लिए नितांत अजनबी थी इसलिए उस ने चुप्पी साध ली.

केशवन के घर पर आ कर उसे ऐसा लगा था कि वह अपने मुकाम पर पहुंच गई है.

उसे एक फिल्मी गाना याद आया. ‘जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते…’

2 माह में ही वह ठीक हो कर चलने लगी. इतने दिन में केशवन के घर का चप्पाचप्पा उस का हो गया. उस ने बड़ी जतन से उसे ठीक कर दिया. वह डाक्टर का एहसान सेवा से चुकाना चाहती थी, उधर केशवन की बात ने उसे अंदर तक हिला दिया.

लेकिन मालविका ने सोचा, आज उस के जीवन में ये अनहोनी घटी थी. उस का गुजरा हुआ मुकाम फिर लौट आया था. जिस आदमी की तसवीर को देखदेख कर उस ने इतने साल गुजारे थे वह आज उस के सामने खड़ा था और उसे अपनाना चाह रहा था. ये एक चमत्कार नहीं तो क्या था. उस ने अपने लिए थोड़ी सी खुशी की कामना की थी. केशवन ने उस की झोली में दुनिया भर की खुशी उड़ेल दी थी.

भला ऐसा क्यों होता है कि इस भरी दुनिया में केवल एक व्यक्ति हमारे लिए अहम बन जाता है? उस ने सोचा. ऐसा क्यों लगता है कि हमारा जन्मजन्मांतर का साथ है, हम एकदूसरे के लिए ही बने हैं. एक चुंबकीय शक्ति हमें उस की ओर खींच ले जाती है. हर पल उस मनुष्य की शक्ल देखने को जी करता है, उस से बातें करने के लिए मन लालायित रहता है. उस की हर एक बात, हर एक आदत मन को भाती है. उस के बिना जीवन अधूरा लगता है, व्यर्थ लगता है. उस की छुअन शरीर में एक सिहरन पैदा करती है, तनमन में एक मादक एहसास होता है और हमारा रोमरोम पुकार उठता है- यही है मेरे मन का मीत, मेरा जीवनसाथी.

इस मनुष्य की तसवीर के सहारे उस ने इतने साल गुजार दिए थे. आज वह उस के सामने प्रार्थी बन कर खड़ा था. उस से प्यार की याचना करते हुए. क्या वह इस मौके को गवां देगी?

नहीं, उस ने सहसा तय कर लिया कि वह केशवन का प्रस्ताव स्वीकार कर लेगी. अगर उस ने ये मौका हाथ से निकल जाने दिया तो वह जीवन भर पछताएगी. आज तक वह औरों के लिए जीती आई थी. अब वह अपने लिए जिएगी और रही उस के परिवार की बात तो चाहे उन्हें अच्छा लगे चाहे बुरा, उन्हें उस के निर्णय को स्वीकार करना ही होगा.

घड़ी का घंटा बज उठा तो उस की तंद्रा भंग हुई. ओह वह बीते दिनों की यादों में इतना खो गई थी कि उसे समय का ध्यान ही न रहा. वह उठी और उस ने एकएक कर के घर का काम निबटाना शुरू किया. उस ने कमरों की सफाई की. आज उसे इस घर में एक अपनापन महसूस हो रहा था. हर एक वस्तु पर प्यार आ रहा था. उस ने केशवन के कपड़े करीने से लगाए. बगीचे से फूल ला कर कमरों में सजाए.

उस की निगाहें घड़ी की ओर लगी रहीं. जैसे ही घड़ी में 10 बजे घर का मुख्य द्वार खुला और केशवन ने प्रवेश किया.

‘‘ओह,’’ वह एक कुरसी में पसर कर बोला, ‘‘आज मैं बहुत थक गया हूं. आज सुबह 3 औपरेशन करने पड़े.’’

मालविका के मन में केशवन पर ढेर सारा प्यार उमड़ आया. उस ने कौफी का प्याला आगे बढ़ाया.

‘‘ओह, थैंक्स.’’

वह कौफी के घूंट भरता रहा और उसे एकटक देखता रहा.

वह तनिक असहज हो गई, ‘‘ऐसे क्या देख रहे हैं?’’

‘‘तुम्हें देख रहा हूं. आज तुम्हारे चेहरे पर एक नई आभा है, एक लुनाई है, एक अजब सलोनापन है. ये कायापलट क्यों हुई?’’

वह लजा गई, ‘‘क्या आप नहीं जानते?’’

‘‘शायद जानता हूं पर तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

उस के मुंह से बोल न निकला.

‘‘मालविका, कल मैं ने तुम से कुछ पूछा था. उस का जवाब क्या है बोलो, हां कि ना?’’

मालविका ने धीरे से कहा , ‘‘हां.’’

केशवन ने उठ कर उसे अपनी बांहों में ले लिया.

‘‘मालविका, आज मैं बहुत खुश हूं मुझे मालूम था कि तुम मेरा प्रस्ताव नहीं ठुकराओगी. तभी मैं ने तुम्हारे लिए ये अंगूठी पहले से ही खरीद कर रखी थी.’’

उस ने जेब से एक मखमली डब्बी निकाली और उस में से एक हीरे की अंगूठी निकाल कर उस की उंगली में पहना दी.

‘‘मैं तुम्हें एक और चीज दिखाना चाहता था.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘केशवन ने अपना हाथ आगे किया. मालविका चिंहुक उठी. उसे लगा वह रंगे हाथों पकड़ी गई है.’’

‘‘अरे,’’ वह हकलाने लगी, ‘‘ये तसवीर तो मेरे बक्से में थी. ये आप को कहां से मिली?’’

‘‘ये तसवीर मैं ने आप के बक्से से नहीं ली मैडम. ये तो मेरे मेज की दराज में पड़ी रहती है.’’

‘‘मालविका अवाक उस की ओर देखने लगी. शर्म से उस की कनपटियां लाल हो गईं.’’

मालविका की प्रतिक्रिया देख कर केशवन हंस पड़ा, ‘‘अरे पगली, जिस तरह तुम ने हमारी मंगनी के अवसर पर ली गई ये तसवीर संभाल कर रखी थी, उसी तरह मैं ने भी एक तसवीर मौका पा कर उड़ा ली थी. इसे जबतब देख कर तुम्हारी याद ताजा कर लिया करता था.’’

वह झेंप गई. ‘‘ओह, तो आप जान गए थे कि मैं कौन हूं.’’

‘‘और नहीं तो क्या. तुम ने क्या सोचा कि मुझे अनजान लोगों का मुफ्त इलाज करने का शौक है? उस दिन अस्पताल में तुम्हें मैं पहली नजर में ही पहचान गया था. तुम्हें भला कैसे भूल सकता था? आखिर तुम मेरा पहला प्यार थीं.’’

‘‘और आप ने यह बात मुझ से इतने दिनों तक बड़ी होशियारी से छिपाए रखी,’’ उस ने मीठा उलाहना दिया.

‘‘और करता भी क्या. तुम्हारा आगापीछा जाने बगैर मैं अपना मुंह न खोलना चाहता था. मैं तो यह भी न जानता था कि तुम शादीशुदा हो या नहीं, तुम्हारे बालबच्चे हैं या नहीं. तुम्हें अचानक अपने सामने देख कर मैं चकरा गया था. जब तुम्हें रोते हुए देखा तो कारण जान कर तुम्हारी मदद करने का फैसला कर लिया.

‘‘जब हमारी बातों के दौरान यह पता चला कि तुम्हारी शादी नहीं हुई है और न ही तुम्हारे जीवन में और कोई पुरुष आया है तो मैं ने तुम्हें अपना बनाने का निश्चय कर लिया. मेरा तुम्हें अपने घर बुलाने का भी यही मकसद था. मैं तुम्हारा मन टटोलना चाहता था. मैं चाहता था कि हम दोनों में नजदीकियां बढ़ें. हम एकदूसरे को जानें और परखें और जब मैं ने जान लिया कि तुम्हारे मन में मेरे प्रति कोई कड़वाहट नहीं है, कोई मनमुटाव नहीं है तो मेरी हिम्मत बढ़ी. मैं ने तुम से शादी करने की ठान ली.’’

मालविका की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. इतने बड़े संयोग की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

केशवन ने उसे बांहों में भींच लिया, ‘‘एक बार भारी गलती की कि अपने पिता का विरोध न कर तुम्हें खो दिया. शादी के बाद घर पहुंच कर मैं ने अपने पिता से बहुत बहस की पर वे यही कहते रहे कि उन्होंने मेरी पढ़ाई पर अपनी सारी पूंजी लगा दी है और ये रकम वे कन्या पक्ष से वसूल कर के ही रहेंगे. मैं ने भी गुस्से से भर कर अमेरिका जाने की ठान ली जहां से ढेर सारे डौलर कमा कर अपने पिता को भेज सकूं और उन की धनलोलुपता को शांत कर सकूं. उस के बाद नैन्सी मेरे जीवन में आई और मैं ने तुम्हें भुला देना चाहा.

‘‘मैं मानता हूं कि मैं ने तुम्हारे साथ बड़ा अन्याय किया. अब मैं तुम से शादी कर के इस का प्रतिकार करना चाहता हूं.

मालविका क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि हम दोनों का मिलन अवश्यंभावी था? किसी अज्ञात शक्ति ने हमें एकदूसरे से मिलाया है. नहीं तो न तुम अमेरिका आतीं और न हम यों अचानक मिलते.’’

उस ने मालविका के आंसू पोंछे, ‘‘यह समय इन आंसुओं का नहीं है. ये हमारी नई जिंदगी की शुरुआत है. मालविका, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. जो कुछ बीत गया उसे भुला दो और भावी जीवन की सोचो. हमें एकदूसरे का साथ मिला तो हम बाकी जिंदगी हंसतेखेलते गुजार देंगे, कल हम अपनी शादी के लिए रजिस्ट्रार औफिस जाएंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘फिर भी शादी के लिए हमें 2-4 चीजों की जरूरत तो पड़ेगी ही. मसलन, नई साड़ी, मंगलसूत्र वगैरह…’’

‘‘मंगलसूत्र मेरे पास है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘मैं आप का दिया हुआ ये मंगलसूत्र हमेशा अपने गले में पहने रहती हूं. यह 20 साल से एक कवच की तरह मेरे गले में पड़ा हुआ है.’’

‘‘सच?’’ केशवन हंस पड़ा. उस ने झुक कर मालविका का मुंह चूम लिया.

मालविका का सर्वांग सिहर उठा. उसे ऐसा लगा कि उस का शरीर एक फूल की तरह खिलता जा रहा है. वह केशवन के आगोश में सिमट गई. उसे अपनी मंजिल जो मिल गई थी.

वापसी : सीमा पति का घर छोड़ क्यों मायके चली गई थी ?

मैं अटैची लिए औटो में बैठ गई. करीब 1 महीने बाद अपने पति अमित के पास लौट रही थी. मुझे विदा करते मम्मीडैडी की आंखों में खुशी के आंसू थे.

मैं ने रास्ते में औटो रुकवा कर एक गुलदस्ता और कार्ड खरीदा. कार्ड पर मैं ने अपनी लिखावट बदल कर लिखा, ‘हैपी बर्थडे, सीमा’ और फिर औटो में बैठ घर चल दी.

सीमा मेरा ही नाम है यानी गुलदस्ता मैं ने खुद के पैसे खर्च कर अपने लिए ही खरीदा था. दरअसल, पटरी से उतरी अपने विवाहित जीवन की गाड़ी को फिर से पटरी पर लाने के लिए इनसान को कभीकभी ऐसी चालाकी भी करनी पड़ती है.

पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई थी. मम्मीपापा का सोचना था कि उसे ससुराल जाते देख कर मैं ने अपने घर अमित के पास लौटने का फैसला किया. उन का यह सोचना पूरी तरह गलत है. सचाई यह है कि मैं अमित के पास परसों रात एक तेज झटका के बाद लौट रही हूं.

मुझे सामने खड़ी देख कर अमित हक्केबक्के रह गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं बिना कोई सूचना दिए यों अचानक घर लौट आऊंगी.

मैं मुसकराते हुए उन के गले लग कर बोली, ‘‘इतना प्यार गुलदस्ता भिजवाने के लिए थैंक यू, माई लव.’’

उन के गले लग कर मेरे तनमन में गुदगुदी की तेज लहर दौड़ गई थी. मन एकदम से खिल उठा था. सचमुच, उस पल की सुखद अनुभूति ने मुझे विश्वास दिला दिया कि वापस लौट आने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

‘‘तुम्हें यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ उन की आवाज में नाराजगी के भाव मौजूद थे.

‘‘अब शरमा क्यों रहे हो? लो, आप से पहले मैं स्वीकार कर लेती हूं कि आज सुबह उठने के बाद से मैं आप को बहुत मिस कर रही थी. वैसे एक सवाल का जवाब दो. अगर मैं यहां न आती तो क्या आप आज के दिन भी मुझ से मिलने नहीं आते? क्या सिर्फ गुलदस्ता भेज कर चुप बैठ जाते?’’

‘‘यार, यह गुलदस्ता मैं ने नहीं भिजवाया है,’’ वे एकदम से चिड़ उठे, ‘‘और रही बात तुम से मिलने आने की तो तुम मुझे नाराज कर के मायके भागी थीं. फिर मैं क्यों तुम से मिलने आता?’’

‘‘चलो, मान लिया कि आप ने यह गुलदस्ता नहीं भेजा है, पर क्या आप को खुशी भी नहीं हुई है मुझे घर आया देख कर? झूठ ही सही, पर कम से कम एक बार तो कह दो कि सीमा, वैलकम बैक.’’

‘‘वैलकम बैक,’’ उन्हें अब अपनी हंसी रोकने में कठिनाई हो रही थी.

‘‘आई लव यू, माई डार्लिंग. लेकिन…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘अगर आप ने नहीं भेजा है, तो फिर यह गुलदस्ता मुझे किस ने गिफ्ट किया है?’’

‘‘यह तो तुम ही बता सकती हो. मुझ से दूर रह कर किस के साथ चक्कर चला रही हो?’’

‘‘मैं आप की तरह अवैध रिश्ता बनाने में विश्वास नहीं रखती हूं. बस, जिंदगी में जिस एक बार दिल दे दिया, सो दे दिया.’’

‘‘अवैध प्रेम करने का शौक मुझे भी नहीं है, पर यह बात तुम्हारे शक्की मन में कभी नहीं घुसेगी,’’ वे एकदम नाराज हो उठे.

‘‘देखोजी, मैं तो इस मुद्दे को ले कर कभी झगड़ा न करने का फैसला कर के लौटी हूं. इसलिए मुझे उकसाने की आप की सारी कोशिशें अब बेकार जाने वाली हैं,’’ उन का गुस्सा कम करने के लिहाज से मैं प्यार भरे अंदाज में मुसकरा उठी.

‘‘तुम तो 1 महीने में ही बहुत समझदार हो गई हो.’’

‘‘यह आप सही कह रहे हो.’’

‘‘मैं क्या सही कह रहा हूं?’’

‘‘यही कि एक महीना आप से दूर रह कर मेरी अक्ल ठिकाने आ गई है.’’

‘‘तुम तो सचमुच बदल गई हो वरना तुम ने कब अपने को कभी गलत माना है,’’ वे सचमुच बहुत हैरान नजर आ रहे थे.

‘‘अब क्या सारा दिन हम ऐसी ही बेकार बातें करते रहेंगे? यह मत भूलिए कि आज आप की जीवनसंगिनी का जन्मदिन है,’’ मैं ने रूठने का अच्छा अभिनय किया.

‘‘तुम कौन सा मुझे बता कर लौटी हो, जो मैं तुम्हारे लिए एक भव्य पार्टी का आयोजन कर के रखता,’’ वे मुझ पर कटाक्ष करने का मौका नहीं चूके.

‘‘पतिदेव, जरा व्यंग्य और दिल दुखाने वाली बातों पर अपनी पकड़ कमजोर करो, प्लीज. आज रविवार की छुट्टी है और मेरा जन्मदिन भी है. आप का क्या बिगड़ जाएगा अगर मुझे आज कुछ मौजमस्ती करा दोगे? साहब, प्यार से कहीं घुमाफिरा लाओ… कोई बढि़या सा गिफ्ट दे दो,’’ मैं भावुक हो उठी थी.

कुछ पलों की खामोशी के बाद वे बोले, ‘‘वह सब बाद में होगा. पहले सोच कर यह बताओ कि यह गुलदस्ता तुम्हें किस ने भेजा होगा.’’

मैं ने भी फौरन सोचने की मुद्रा बनाई और फिर कुछ पलों के बाद बोली, ‘‘भेजना आप को चाहिए था, पर आप ने नहीं भेजा है…तो यह काम विकास का हो सकता है.’’

‘‘कौन है यह विकास?’’ वे हैरान से नजर आ रहे थे, क्योंकि उन्हें अंदाजा नहीं था कि मैं किसी व्यक्ति का नाम यों एकदम से ले दूंगी.

‘‘पड़ोस में रहने वाली मेरी सहेली कविता की शादी 2 दिन पहले हुई है. यह विकास उस के बड़े भाई का दोस्त है.’’

‘‘आगे बोलो.’’

‘‘आगे क्या बोलूं? पति से दूर रह रही स्त्री को हर दिलफेंक किस्म का आदमी अपना आसान शिकार मानता है. वह भी मुझ पर लाइन मार रहा था, पर मैं आप की तरह…सौरी… मैं कमजोर चरित्र वाली लड़की नहीं हूं. उस ने ही कोशिश नहीं छोड़ी होगी और मुझे अपने प्रेमजाल में फंसाने को यह गुलदस्ता भेज दिया होगा. मैं अभी इसे बाहर फेंकती हूं,’’ आवेश में आ कर मैं ने अपना चेहरा लाल कर लिया.

‘‘अरे, यों तैश में आ कर इसे बाहर मत फेंको. कोई पक्का थोड़े ही है कि उसी कमीने ने इसे भेजा होगा.’’

‘‘यह भी आप ठीक कह रहे हो. तो एक काम करते हैं,’’ मैं उन की आंखोें में प्यार से देखने लगी थी.

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘आप इस से ज्यादा प्यारा और ज्यादा बड़ा एक गुलदस्ता मुझे भेंट कर दो. उसे पा कर मैं खुश भी बहुत हो जाऊंगी और अगर इसे विकास ने ही भेजा होगा, तो इस की अहमियत भी बिलकुल खत्म हो जाएगी.’’

‘‘तुम तो यार सचमुच समझदार बन कर लौटी हो,’’ उन्होंने इस बार ईमानदार लहजे में मेरी तारीफ की.

‘‘सच?’’

‘‘हां, अभी तक तो तुम्हारे अंदर आया बदलाव सच ही लग रहा है.’’

‘‘तो इसी बात पर बाहर लंच करा दो,’’ मैं ने आगे बढ़ कर उन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘नो प्रौब्लम, स्वीटहार्ट. मैं नहा लेता हूं. फिर घूमने चलते हैं.’’

फिर जब कुछ देर बाद मैं उन के मांगने पर तौलिया पकड़ाने गई, तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गुसलखाने के अंदर खींच लिया.

मेरा मन तो चाह ही रहा था कि ऐसा कुछ हो जाए. 1 महीने की दूरी की कड़वाहट को मिटाने का काम सिर्फ बातों से नहीं हो सकता था. अत: उन की बांहों में कैद हो कर मेरा उन के साथ मस्त अंदाज में नहाना हम दोनों की मनमुटाव की कड़वाहट को एक झटके में साफ कर गया था.

वे मुझे गोद में उठा कर शयनकक्ष में ले आए… प्यार के क्षण लंबे होते गए, क्योंकि महीने भर की प्यास जो हम दोनों को बुझानी थी. बाद में मैं ने उन से लिपट कर तृप्ति भरी गहरी नींद का आनंद लिया.

जब 2 घंटे बाद मेरी आंखें खुलीं तो मैं खुद को बहुत हलकाफुलका महसूस कर रही थी. मन में पिछले 1 महीने से बसी सारी शिकायतें दूर हो गई थीं. मुझे परसों रात को विकास के साथ घटी वह घटना याद आने लगी जिस के कारण मैं खुद ही अमित के पास लौट आई थी.

परसों रात मैं तो विकास के सामने एकदम से कमजोर पड़ गई थी. कविता की शादी में हम दोनों खूब काम कर रहे थे. हमारे बीच होने वाली हर मुलाकात में उस ने मेरी सुंदरता व गुणों की तारीफ करकर के मुझे बहुत खुश कर दिया था. लेकिन मुझे यह एहसास नहीं हुआ था कि अमित से दूर रहने के कारण मेरा परेशान व प्यार को प्यासा मन उस के मीठे शब्दों को सुन कर भटकने को तैयार हो ही गया था.

मैं उस रात कविता के घर की छत पर बने कमरे से कुछ लाने गई थी. तब विकास मेरे पीछेपीछे दबे पांव वहां आ गया. दरवाजा बंद होने की आवाज सुन कर मैं मुड़ी तो वह सामने खड़ा नजर आया. उस की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़ कर मैं बुरी तरह घबरा गई. मेरा सारा शरीर थरथर कांपने लगा.

‘‘विकास, तुम मेरे पास मत आना. देखो, मैं शादीशुदा औरत हूं…मेरे हंसनेबोलने का तुम गलत अर्थ लगा रहे हो…मैं वैसी औरत नहीं हूं…’’

उस ने मेरे कहने की रत्ती भर परवाह न कर मुझे अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘प्लीज, मुझे जाने दो…छोड़ो मुझे,’’ मैं उस से ऐसी प्रार्थना जरूर कर रही थी पर इस में भी कोई शक नहीं कि मुझे उस की नाजायज हरकत पर तेज गुस्सा नहीं आया था.

उस कमरे के साथ बालकनी न जुड़ी होती तो न जाने उस रात क्या हो जाता. उस बालकनी में 2 किशोर लड़के गपशप कर रहे थे. अगर ऐन वक्त पर उन दोनों की हंसने की आवाजें हमारे कानों तक न आतीं, तो विकास थोड़ी सी जोरजबरदस्ती कर मेरे साथ अपने मन की करने में सफल हो जाता.

उस की पकड़ ढीली पड़ते ही मैं कमरे से जान बचा कर भाग निकली थी. मैं सीधी अपने घर पहुंची और बिस्तर पर गिर कर खूब देर तक रोई थी.

बाद में कुछ बातें मुझे बड़ी आसानी से समझ में आ गई थीं. मुझे बड़ी गहराई से यह एहसास हुआ कि अमित के साथ और उस से मिलने वाले प्यार की मेरे तनमन को बहुत जरूरत है. वे जरूरतें अगर अमित से नहीं पूरी होंगी तो मेरा प्यासा मन भटक सकता है और किसी स्त्री के यों भटकते मन को सहारा देने वाले आशिकों की आजकल कोई कमी नहीं.

तब मैं ने एक महत्त्वपूर्ण फैसला करने में जरा भी देर नहीं लगाई थी. किसी विकास जैसे इनसान को प्रेमी बना कर अपनी इज्जत को दांव पर लगाने से बेहतर मुझे अमित के पास लौटने का विकल्प लगा.

मैं मायके में रहने इसलिए आई थी, क्योंकि मुझे शक था कि औफिस में उस के साथ काम करने वाली रितु के साथ अमित के गलत संबंध हैं.

वे हमेशा ऐसा कुछ होने से इनकार करते थे पर जब उन्होंने उस के यहां मेरे बारबार मना करने पर भी जाना चालू रखा, तो मेरा शक यकीन में बदलता चला गया था.

उस रात मुझे इस बात का एहसास हुआ कि यों मायके भाग कर अमित से दूर हो जाना तो इस समस्या का कोई हल था ही नहीं. यह काम तो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा था. यों दूर रह कर तो मैं अकेले रह रहे अमित को रितु से मिलने के ज्यादा मौके उपलब्ध करा रही थी. तभी मैं ने अमित के पास लौट आने का फैसला कर लिया था और आज सुबह औटो कर के लौट भी आई थी.

कुछ देर तक सो रहे अमित के चेहरे को प्यार से निहारने के बाद मैं ने उन के कान में प्यार से फुसफुसाते हुए कहा, ‘‘मुझे बहुत जोर से भूख लग रही है, जनाब.’’

‘‘तो प्यार करना फिर से शुरू कर देता हूं, जानेमन,’’ नींद से निकलते ही उन के दिलोदिमाग पर मौजमस्ती हावी हो गई.

‘‘अभी तो मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं.’’

‘‘तो बोलो खाना खाने कहां चलें?’’

‘‘मेरा चाइनीज खाने का मन है.’’

‘‘तो चाइनीज खाने ही चलेंगे.’’

‘‘पहले से तो किसी के साथ कहीं जाने का कोई प्रोग्राम नहीं बना रखा है न?’’

‘‘तुम रितु के साथ मेरा कोई प्रोग्राम होने की तरफ इशारा कर रही हो न?’’ वे एकदम गंभीर नजर आने लगे.

‘‘बिलकुल भी नहीं,’’ मैं ने झूठ बोला.

‘‘झूठी,’’ उन्होंने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित करने के बाद संजीदा लहजे में कहा, ‘‘मैं तुम्हें आज फिर से बता देता हूं कि रितु के साथ मेरा कोई गलत चक्कर…’’

‘‘मुझे आप पर पूरा विश्वास है,’’ मैं ने उन्हें टोका और हंस कर बोली, ‘‘मैं तो आप को बस यों ही छेड़ रही थी.’’

‘‘तो अब इस जरा सा छेड़ने का परिणाम भी भुगतो,’’ उन्होंने मुझे अपने आगोश में भरने की कोशिश की जरूर, पर मैं ने बहुत फुरती दिखाते हुए खुद को बचाया और कूद कर पलंग से नीचे उतर आई.

‘‘भूखे पेट न भजन होता है, न प्यार, मेरे सरकार. अब फटाफट तैयार हो जाओ न.’’

‘‘ओके, पहले तुम्हारी पेट पूजा कर ही दी जाए नहीं तो प्यार का कार्यक्रम रुकावट के साथ ही चलेगा,’’ मेरी तरफ हवाई चुंबन उछाल कर वे तैयार होने को उठ गए.

रितु को ले कर अमित के अडि़यल व्यवहार ने मुझे विकास की तरफ लगभग धकेल ही दिया था. अगर हमारा मनमुटाव मुझे गलत रास्ते पर धकेल सकता है, तो मैं अपने प्यार, सेवा और विश्वास के बल पर उन को अपनी तरफ खींच भी सकती हूं. उन की आंखों में अपने लिए गहरी चाहत और प्यार के भावों को पढ़ कर मुझे लग रहा कि बिना शर्त लौटने का फैसला कर के मैं ने बिलकुल सही कदम उठाया.

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