साथ: भाग 2- पति से दूर होने के बाद कौन आया शिवानी की जिंदगी में

‘‘आप मांजी को अकेला ही छोड़ कर आए हैं, यह तो ठीक नहीं है,’’ फिर पता नहीं क्या सोच कर मैं ने साहिल से कहा, ‘‘आप काम कीजिए, मैं आप के घर जा रही हूं. मुझे आज वैसे भी कुछ खास काम नहीं, आप मांजी को फोन कर दीजिए.’’

पूरे हक से कही मेरी यह बात सुन कर साहिल हैरान था पर उस ने मुझे मना नहीं किया. अगले 30 मिनट बाद मैं मांजी के पास थी. मैं ने उन को दवा दी और उन के पास बैठी रही. वे बोलीं, ‘‘बेटा, अब मैं ठीक हूं, साहिल तो ऐसे ही परेशान हो जाता है.’’

‘‘मांजी, आप साहिल की शादी कर दो, ताकि आप की सेवा करने के लिए कोई आप के पास रहे,’’ मैं ने मांजी के सिर को दबाते हुए कहा.

मांजी ने आंखें बंद करते हुए कहा, ‘‘यह सपना तो मैं कब से देख रही हूं पर साहिल को कोई पसंद ही नहीं आती. कहता है कि आजकल की लड़कियां सिर्फ दिखावटी जिंदगी जीती हैं, सचाई तो उन में है ही नहीं.’’

कुछ देर में मांजी की आंख लग गई और मैं साहिल के बारे में सोचती रही. उस में कोई दिखावा नहीं था. सादगी भरी थी उस की जिंदगी. शाम को साहिल के घर लौटते ही मैं वापस आ गई.

अगला दिन रविवार था, औफिस की छुट्टी थी. मेरा मन हुआ कि मांजी की तबीयत का हाल पूछ लूं. मैं ने साहिल को फोन किया तो मांजी ने ही फोन उठाया. उन्होंने बहुत जोर दिया कि मैं लंच उन के साथ ही करूं. तो मैं ने मान लिया क्योंकि घर पर अकेले रहने को दिल नहीं कर रहा था. मैं झट से तैयार हो कर मांजी के पास पहुंच गई. दरवाजे की कालबैल बजाते ही साहिल को अपने सामने खड़ा पाया.

सफेद कुरतेपाजामे में वह बहुत आकर्षित लग रहा था. मेरी नजर उस पर 1 मिनट टिकी फिर मैं ने नजरें हटा ली. सारा दिन मांजी और साहिल के साथ ही बीता. रात का खाना भी उन के साथ ही खाया. रात को काफी देर हो गई तो साहिल मुझे घर छोड़ आया. उस रात मुझे सिर्फ साहिल का ही खयाल आता रहा. अगले दिन मैं औफिस पहुंच कर सब से पहले साहिल के पास गई.

‘‘गुड मौर्निंग साहिल,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘वेरी गुड मौर्निंग शिवी.’’

साहिल के मुंह से शिवी सुन कर मुझे अजीब लगा पर अगले ही मिनट साहिल फिर बोला, ‘‘ओ सौरी, शिवानीजी,’’ मेरा ध्यान कहीं और था.

‘‘कोई बात नहीं, पर ये शिवी कौन है?’’ मैं ने साहिल से पूछा.

‘‘अरे कोई नहीं, आप ही हैं. कल रात मांजी से आप की बात कर रहा था तो मांजी ने आप को प्यार से बारबार शिवी कहा था. इसलिए मेरे मुंह से यह निकल गया, सौरी,’’ साहिल ने थोड़ा घबरा कर कहा पर मैं उस के मुंह से शिवी सुन कर बहुत खुश थी. हम ने उस दिन भी लंच साथ किया और शाम को घर आने से पहले मैं साहिल के घर मांजी से मिलने भी गई.

धीरेधीरे यह एक सिलसिला सा बन गया. अब साहिल मुझे शिवी ही कहता था. हम साथसाथ लंच करते, साथसाथ घर वापस आते. हमारी नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. मुझे पता नहीं चला कि कब मुझे साहिल का साथ इतना पसंद आने लगा कि मैं भूल गई कि मैं शादीशुदा हूं.

पुणे से वापस आ कर और भी बिजी हो गए थे. उन को अपनी मेहनत का फल भी मिला. उन का प्रमोशन हो गया. हम दोनों में बात न के बराबर होती थी. लेकिन जब कभी उन के औफिस की कोई पार्टी वगैरह होती थी तो मैं उन के साथ जरूर जाती थी और उन के दोस्त जब मेरी तारीफ करते थे तो उन का चेहरा चमक उठता था.

उस दिन साहिल का फोन आया कि मांजी की तबीयत बहुत खराब हो गई है, वह उन को अस्पताल ले जा रहा है. मैं ने अमन को फोन कर कह दिया कि मेरी एक सहेली की मां बहुत बीमार हैं, मैं उन को देखने जाऊंगी, इसलिए रात को देर से आऊंगी. अमन ने सिर्फ ओके कह कर फोन काट दिया. मांजी आईसीयू में थीं. डाक्टर ने कहा कि यहां कोई और नहीं रुक सकता, आप कल सुबह आना. मैं समझबुझ कर साहिल को घर ले आई. रात काफी हो चुकी थी. साहिल मांजी को ले कर बहुत परेशान था. उस को ऐसी हालत में छोड़ कर मैं घर कैसे जाऊं, समझ नहीं आ रहा था. पर घर तो जाना ही था.

‘‘अब मैं चलती हूं साहिल, कल सुबह आती हूं,’’ मैं ने अपना पर्स उठाते हुए कहा.

‘‘प्लीज मत जाओ शिवी, मुझे तुम्हारी जरूरत है,’’ साहिल की आंखों में आंसू थे, उस ने मुझे अपनी ओर खींच लिया.

‘‘साहिल मुझे जाने दो रात बहुत हो चुकी है,’’ मैं ने अपनेआप को छुड़ाते हुए कहा. लेकिन चाह कर भी वहां से घर नहीं आ पाई. सारी रात साहिल सिर्फ मेरी गोद में सिर रख कर रोता रहा और कहता रहा कि वह मांजी और मेरे बिना नहीं जी पाएगा.

मैं सुबह घर जा रही थी तो लग रहा था कि अमन की बातों को झेलना पड़ेगा. पर घर पर अमन अभी तक सो रहे थे. मैं नहाने चली गई. वापस आई तो देखा अमन अब भी सो रहे थे. मैं किचन में चली गई. इतने में साहिल का फोन आया. उस ने कांपती हुई आवाज में मुझे मांजी के न होने की खबर दी. मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. दिल किया कि जोर से रो लूं पर खुद पर नियंत्रण किया. साहिल कैसे सहेगा इस दुख को. सोचते हुए मैं ने अमन को जगाया और बताया कि मेरी सहेली की मांजी नहीं रहीं.

‘‘अरे ये तो बुरा हुआ,’’ उन्होंने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘मैं जा रही हूं अमन, आप प्लीज नाश्ता बाहर कर लेना,’’ मैं ने जल्दी से उन को कहा.

‘‘हां, ठीक है. अरे सुनो, आज पवन के घर पार्टी है तुम जल्दी आ जाना,’’ अमन ने चादर मुंह पर लेते हुए कहा तो मैं थोड़ी सोचती हुई वहीं खड़ी रह गई कि ये इंसान हैं या पत्थर. किसी की मां नहीं रहीं और इन को पार्टी में जाना है. पर इन का भी क्या कुसूर ये तो अपनों का दर्द ही नहीं समझते, परायों का क्या समझेंगे.

अल्पविराम: शादीशुदा स्वरा जब अपने दोस्त के प्यार में पड़ गई

शादीके 10 साल के बाद प्रेम क्या मर जाता है? रिश्ता भी विवाहित जोड़े क्या यंत्रचालित ढंग से निभाने लगते हैं? अब यह सब विवाहितों पर लागू होता है अथवा नहीं, यह तो वे ही जानें, स्वरा और आलोक के लिए तो यह पूर्णतया सत्य है. स्वरा और आलोक के विवाह को 9 साल से कुछ महीने ज्यादा ही हो गए थे. उन का एक 8 साल का प्यारा बेटा शिव था. आलोक एक उच्च पद पर कार्यरत था, इसलिए घर में वह सब कुछ मौजूद था, जो उसे आधुनिक और संपन्न बनाता था. शिव के जन्म के बाद स्वरा ने अपनी स्कूल की जौब छोड़ दी थी और अब जब शिव तीसरी कक्षा का छात्र है, वह अपना खाली समय शौपिंग, गौसिप वगैरह में गुजारती. आज वह घर में ही थी और इधरउधर की बातें सोचतेसोचते थक गई थी. शिव के आने में काफी समय था अभी. और आलोक के आने का कोई तय समय नहीं था. जब बैठेबैठे ऊब गई तो महाराज को खाना क्या बनाना है, बता कर गाड़ी ले कर निकल गई.

मौल में घूमते हुए उस का ध्यान कई जोड़ों पर गया. कितना समय बीत गया था आलोक और उसे ऐसे घूमे हुए. अब तो आलोक रोमांटिक बातों पर हंसता है और फैमिली आउटिंग को टालता है. प्रेम भी वे मशीनी तरीके से करते हैं और इस प्रेम का दिन भी फिक्स हो गया है, शनिवार की रात. अब तो हालत यह हो गई है कि शनिवार की रात जब आलोक उस की तरफ बढ़ता, तो उसे उबकाई आ जाती. वह कोई न कोई बहाना बनाने की कोशिश करती. कभीकभी वह जीत जाती, तो कभीकभी आलोक जीत जाता. तब वह सोचती कि प्रेम क्या कभी तय कर के किया जाता है? वह तो एक उन्माद की तरह आता है और सुख दे जाता है. लेकिन आलोक को यह बात कौन समझाए? वह तो प्रेम भी अपनी मीटिंग की तरह करने लगा था. ऐसा पहले तो नहीं था. क्या उसे अपना बाकी जीवन ऐसे ही गुजारना होगा.

‘‘मैडम, ऐक्सक्यूज मी, आप एक फौर्म भर देंगी?’’ एक युवक उस के पास आ कर बोला, तो उस की विचारों की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान दुनिया में लौट आई.

‘‘क्या है यह?’’

‘‘यह हमारी कंपनी की स्पैशल स्कीम है. सभी फौर्म में से एक सिलैक्ट होगा और उसे भरने वाले को 3 दिन और 2 रातों का गोवा का पैकेज मिलेगा.’’

‘‘बाद में आना, अभी मैं बिजी हूं,’’ स्वरा ने उसे टालते हुए कहा.

‘‘परंतु मैं तो बिलकुल फ्री हूं,’’ कोई अचानक उन के बीच आ कर बोला तो स्वरा और वह लड़का दोनों चौंक गए.

अरे यह तो कमल है, उस के कालेज के दिनों का सहपाठी. स्वरा को याद आया, कितना स्मार्ट हो गया है यह लल्लू. फिर उस लड़के से उस का नंबर ले कर स्वरा ने उसे बाद में आने को कहा.

उस लड़के के जाने के बाद स्वरा और कमल मौल में ही एक रैस्टोरैंट में बैठे तो बात करतेकरते कब शाम हो गई उन्हें पता ही नहीं चला. अगले दिन मिलने का वादा कर के स्वरा घर आ गई, परंतु घर आ कर भी कमल की बातों को भूल नहीं पा रही थी. कितने दिनों के बाद किसी ने उस की इस तरह से तारीफ की थी. रात में खाना खा कर अभी वह लेटी ही थी कि फोन की घंटी बजी. फोन कमल का था. उस ने सोचा कि कमल को डांट दे कि अभी फोन करने का क्या मतलब? परंतु कर नहीं पाई. उन की बात जब खत्म हुई तो पता चला कि रात का 1 बज गया है.

फिर तो यह रोज का सिलसिला बन गया. या तो वे दिन में मिल लेते या घंटों फोन पर बातें करते रहते. स्वरा काफी खुश रहने लगी थी, क्योंकि कमल और उस की सोच काफी मिलती थी. वह कमल से उन सभी टौपिक पर बात करती, जिन पर वह अकेली बैठे सोचती रहती. फिर उसे लगता कि कमल आलोक से कितना अलग, कितना संवेदनशील है. ऐसा होने से दोनों ही एकदूसरे का साथ ज्यादा से ज्यादा चाहने लगे थे. एक दिन कमल ने अचानक स्वरा को फोन कर के मौल में बुला लिया और वह पहुंची तो बोला, ‘‘स्वरा, कल मैं कंपनी के काम से न्यू जर्सी जा रहा हूं. 1 महीने बाद आऊंगा.’’

‘‘क्या इतने दिन…’’

‘‘हां, लगेंगे तो इतने ही दिन. जाना तो मैं भी नहीं चाहता था पर तुम तो जानती ही हो मेरे बिजनैस की प्रौब्लम.’’

‘‘नहींनहीं कमल तुम जरूर जाओ. हम फोन पर तो बात करते रहेंगे.’’

‘‘स्वरा, मैं एक बात सोच रहा था.’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘जाने से पहले तुम्हारे साथ कुछ वक्त गुजारना चाहता था.’’

‘‘गुजार तो रहे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसे नहीं अकेले कहीं… तुम समझ रही हो न?’’

कुछ सोच कर स्वरा ने कहा, ‘‘बोलो, कहां चलें?’’

‘‘तुम कोई सवाल मत करो, बस चलो. मुझ पर तुम्हें भरोसा तो है न?’’

‘‘चलो, फिर चलें.’’

कमल ने गाड़ी एक आलीशान होटल के सामने रोकी.

‘‘ये कहां आ गए हम?’’ स्वरा गाड़ी से उतरते हुए बोली. वह खुद को असहज महसूस कर रही थी.

‘‘स्वरा, मुझे तुम से जो बात करनी है, उस के लिए एकांत जरूरी है.’’

होटल की लौबी से कमरे तक पहुंचने का रास्ता स्वरा को काफी लंबा महसूस हो रहा था, परंतु वह अंदर से एक अलग रोमांच का भी अनुभव कर रही थी. शादी के पहले कालेज बंक कर के जब स्वरा आलोक से मिलने जाया करती थी, तब भी कुछ ऐसा ही महसूस करती थी. परंतु एक अंतर यह था कि तब उस के कदम तेजी से बढ़ते थे, लेकिन आज बड़ी मुश्किल से उठ रहे थे.

‘‘आओ स्वरा, अंदर आओ. कहां खो गईं, भरोसा तो है न मुझ पर?’’

‘‘कमल, यह तुम ने दूसरी बार पूछा है. औफकोर्स है यार. न होता तो यहां तक आती क्या?’’

अंदर पहुंच कर कमल ने स्वरा को बिस्तर पर बैठाया और खुद उस के घुटनों के पास नीचे बैठ गया.

‘‘यह क्या कमल, तुम यहां क्यों बैठ रहे हो?’’

‘‘मुझे यहीं बैठने दो स्वरा, क्योंकि मुझे जो कहना है वह मैं तुम्हारी आंखों में आंखें डाल कर कहना चाहता हूं.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

‘‘स्वरा, तुम से मिलने से पहले मैं सोचता था कि मेरी जिंदगी यों ही कट जाएगी. औफिस से घर व घर से औफिस. और एक ऐसी बीवी जो मुझ से ज्यादा किट्टी पार्टी और शौपिंग में रुचि रखती है. मैं शायद अपने दोनों बेटों की खातिर जी रहा था यह जिंदगी. लेकिन तुम मिलीं तो सब कुछ बदल गया. हम दोनों शादी की बेमजा जिंदगी में कैद हैं, इसलिए मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूं,’’ ऐसा कहते हुए कमल स्वरा के एकदम करीब आ गया. इतना करीब कि उस की गरम सांसें स्वरा के कोमल कपोलों को सुलगाने गीं.

स्वरा ने इस क्षण के आने के बारे में सोचा न हो ऐसा न था. वह सोचती थी कि जब यह क्षण आएगा तो वह रोमांचित हो जाएगी. जो रिक्तता उस की शादीशुदा जिंदगी में आ गई थी, शायद वह भर जाएगी. परंतु यह क्या? कमल का पास आना उसे बिलकुलअच्छा नहीं लगा. उसे ऐसा लगा जैसे आलोक की कोई बहुत प्यारी चीज, कमल उस से छीनना चाहता है और वह ऐसा होने नहीं देना चाहती. उसी पल उस को यह भी एहसास हुआ कि अंदरूनी रूप से तो वह कभी भी आलोक से दूर हुई ही नहीं थी.

एक झटके में वह कमल को पीछे कर के खड़ी हो गई.

‘‘क्या हुआ स्वरा, मुझ से कोई भूल हो गई?’’

‘‘भूल, नहीं कमल, हुआ तो यह है कि तुम्हारी वजह से मैं समझ पाई कि मैं आलोक से कितना प्यार करती हूं. हमारी शादी में एक अल्पविराम जरूर लग गया था, परंतु प्रयास कर के मैं उसे हटा दूंगी. अल्पविराम को पूर्णविराम समझने की भूल से उबारने के लिए धन्यवाद दोस्त.’’

कमल को जड़ छोड़ कर स्वरा होटल से बाहर आ गई और औटो में बैठ कर उस ने 3 फोन किए. पहला, टूअर पैकेज वाले लड़के को और उस से गोवा की अगले हफ्ते की बुकिंग करवाई. दूसरा, अपनी मां को ताकि शिव उस पूरे हफ्ते किसी भरोसेमंद के पास रहे और तीसरा फोन किया आलोक को.

महत्त्वाकांक्षा: आधुनिकता की चमक में जब मीत ने आया को सौंपी बेटी की परवरिश

आजमीता का औफिस में कतई मन नहीं लग रहा था. सिर भारी हो गया था, आंखें सूजी हुई थीं. रात में वह सो जो नहीं पाई थी. पति से काफी नोकझोंक हुई थी. उस की पूरी रात टैंशन में गुजरी थी.

‘‘तुम औफिस से छुट्टी क्यों नहीं ले लेतीं.’’

‘‘आप क्यों नहीं ले लेते? पिछली दफा मैं ने लंबी छुट्टी नहीं ली थी क्या?’’ पति के कहने पर मीता फट पड़ी.

‘‘उस के पहले मैं ने भी तो लंबी छुट्टी ली थी.’’

उस के बाद दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ और फिर दोनों बिना कुछ खाएपीए सो गए.

सुबह उठने पर दोनों के चेहरों पर कई सवालिया निशान थे. बिना एकदूसरे से बोले और कुछ खाएपीए दोनों औफिस चले गए.

‘पूरी जिम्मेदारी औरत के सिर ही क्यों थोप दी जाती है.’ रहरह कर यही सवाल उसे बुरी तरह मथे जा रहा था. हर बार औरत ही समझौता करे? पत्नी की प्रौब्लम से पति को सरोकार क्यों नहीं? क्यों पुरुष इतना खुदगरज, लालची और हठधर्मी बन जाता है?

‘‘अरे, क्या हुआ? यह मुंह क्यों लटका हुआ है?’’ मैडम सारिका ने पूछा.

‘‘क्या बताऊं मैडम, बेटी को ले कर हम दोनों में रोज झगड़ा होता है. वह बीमार है. मुझे दफ्तर की ओर से विदेश यात्रा पर जाना है. ऐसे में मैं कैसे छुट्टी ले सकती हूं. पति मेरी कोई मदद नहीं करते, उलटे गृहिणी बनने की सलाह दे कर मेरा और मूड खराब कर देते हैं.’’

‘‘बेटी को क्या हुआ है?’’

‘‘उस ने हंसनाखेलना छोड़ दिया है. हमेशा उनींदी सी रहती है. रहरह कर दांत किटकिटाती है. हर समय शून्य में निहारती रहती है.’’

‘‘किसी चाइल्ड स्पैशलिस्ट को दिखाओ,’’ मैडम सारिका घबरा कर बोलीं.

‘‘मैं छुट्टी नहीं ले सकती… मेरी टेबल पर बहुत काम पड़ा है.’’

‘‘उस की तुम टैंशन मत लो… मैं सब संभाल लूंगी… तुम बेटी को किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओ.’’

मीता को यह जान कर अच्छा लगा कि पति ने भी अगले दिन की छुट्टी ले ली है. अगली सुबह आया की राह देखी, उस के न आने पर पड़ोसिन को घर की चाबी दे कर डाक्टर के पास रवाना हो गए.

डिस्पैंसरी में बहुत भीड़ थी. प्राइवेट डिस्पैंसरी में भी सरकारी अस्पतालों जैसी भीड़ देख कर मीता दंग रह गई. उसे अपना नंबर आना नामुमकिन सा लगने लगा, क्योंकि शनिवार होने के कारण डिस्पैंसरी 1 बजे बंद हो जानी थी.

मीता को आज पता चला कि छुट्टी की कितनी अहमियत है. सरकारी और प्राइवेट औफिसों में कितना अंतर है. प्राइवेट औफिस सैलरी तो अच्छी देते हैं पर खून चूस लेते हैं. जरा भी आजादी नहीं… कितना मन मार कर काम करना पड़ता है… इंसान मशीन बन जाता है. अपनी आजादी पर ग्रहण लग जाता है.

इस बीच पड़ोसिन का फोन आया कि आया अभी तक नहीं आई है. पता नहीं क्या हो गया था उसे जो बिना बताए छुट्टी कर गई.

बड़ी देर बाद मीता का नंबर आया. बच्ची की हालत देख कर एक बार को डाक्टर भी चौंक गया. उस ने बच्ची की बीमारी से संबंधित बहुत सारे प्रश्न पूछे, जिन के मीता आधेअधूरे उत्तर ही दे पाई. जितना आया जानती थी उतना मीता कहां जानती थी… बच्ची का खानापीना, खेलनाखिलाना सब कुछ उसी के जिम्मे जो था. वह दिन भर आया के पास ही तो रहती थी.

बच्ची का मुआयना कर डाक्टर ने कुछ सावधानियां बरतने की सलाह दी और बच्ची को ज्यादा से ज्यादा अपने पास रखने की ताकीद भी की. साथ ही यह भी कहा कि आया पर पूरी नजर रखें. यह सुन मीता घबरा गई.

अब पतिपत्नी दोनों को एहसास हो रहा था कि उन से बच्ची की उपेक्षा हुई है. उन्होंने अपनी बेटी से ज्यादा नौकरी को अहमियत दी. यह उसी का दुष्परिणाम है, जो बच्ची की हालत बद से बदतर हो गई.

‘‘सुनो जी, मैं 1 सप्ताह की छुट्टी ले लेती हूं… सैलरी कटे तो कटे… बच्ची को इस समय मेरी सख्त जरूरत है,’’ मीता कहतेकहते रो पड़ी.

‘‘मैं भी छुट्टी ले लेता हूं मीता. मेरी भी बराबर की जिम्मेदारी है… कहीं का नहीं छोड़ा इस नौकरी ने हमें, महत्त्वाकांक्षी बन कर रह गए थे हम.’’

‘‘बच्ची को कुछ हो गया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. विदेश जाने की धुन ने मुझे एक तरह से अंधा बना दिया था,’’ मीता अपने पति के कंधे पर सिर रख कर रोने लगी.

 

बच्ची की आंखें थोड़ी खुलतीं, फिर बंद हो जातीं. वह अपनी अधखुली आंखों से शून्य में निहारती. अपनी मां को अर्धबेहोशी में देखते रहने का वह पूरा प्रयत्न करती.

‘‘बेटी आंखें खोल… अपनी ममा से बातें कर… देख तो तेरी ममा कितनी दुखी हो रही है… अब तुझे कभी आया के पास नहीं छोड़ेगी तेरी ममा… जरा तो देख..’’ कहतेकहते मीता का कंठ पूरी तरह अवरुद्ध हो गया.

रोतेबिलखते कब उस की आंख लग गई, उसे पता ही नहीं चला. दरवाजे पर आहट से वह जागी. दरवाजा खोला तो सामने पति हाथ में लिफाफा लिए खड़े थे. पति के हाथों से लगभग उसे छीन कर बच्ची की ब्लड रिपोर्ट पढ़ने लगी.

‘‘ड्रग्स,’’ उस ने प्रश्नवाचक दृष्टि से पति की ओर ताका.

‘‘हां, ड्रग्स. बच्ची को धीमा जहर दिया जा रहा था. जरूर यह आया का काम है. तभी तो वह अब नहीं आ रही है.’’

‘‘बेबी के शरीर ने फंक्शन करना बंद कर दिया है,’’ मीता को डाक्टर का यह कहना याद आ गया और वह चक्कर खा कर बिस्तर पर जा गिरी.

कुछ समय बाद अचानक डाक्टर का फोन आया. बच्ची को ले कर क्लीनिक बुलाया. डाक्टर ने पुलिस को फोन कर आया को गिरफ्तार भी करा दिया था. पुलिस आया को ले कर क्लीनिक आ गई थी. उन के वहां पहुंचने पर आया उन से मुंह छिपाने का प्रयास करने लगी. तब पुलिस ने उन के सामने ही आया से पूछताछ शुरू की.

‘‘क्या आप की आया यही है?’’

‘‘जी, यही है,’’ दोनों ने एकसाथ जवाब दिया.

‘‘बच्ची पूरा दिन आया के पास ही रहती थी क्या?’’

‘‘जी हां, हम दोनों तो अपनेअपने औफिस चले जाते थे.’’

‘‘क्या आप ने इसे नौकरी पर रखते समय पुलिस थाने में जानकारी दी थी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘यही आप से बहुत बड़ी गलती हुई है…’’ पुलिस इंस्पैक्टर ने दो टूक शब्दों में कहा और फिर आया की ओर मुखातिब हुए, ‘‘पतिपत्नी के औफिस जाने के बाद तुम बच्ची को कहां ले जाती थी?’’

‘‘जी, कहीं नहीं, मैं पूरा समय घर पर ही रहती थी.’’

‘‘झूठ… इन को जानती हो?’’ पुलिस ने पास के पार्क के माली की ओर इशारा कर के पूछा तो आया का चेहरा उतर गया. पार्क में बीमार बच्ची के नाम पर भीख मांगती थी. बच्ची बीमार सी लगे, इसलिए उसे भूखा रखती, ऊपर से धीमे जहर ने बच्ची पर और कहर ढा दिया था. पर समय रहते डाक्टर के रिपोर्ट करने पर पुलिस ने उसे रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया था.

अब आया जेल में थी और बच्ची अस्पताल में जीवनमृत्यु के बीच झूल रही थी. वह अपने मातापिता की महत्त्वाकांक्षा की बलि जो चढ़ गई थी.

 

मृगमरीचिका एक अंतहीन लालसा: मीनू ने कैसे चुकाई कीमत

प्रेम विवाह: भाग 2- अभिजित ने क्यों लिया तलाक का फैसला?

शादी के बाद हनीमून मना कर वे घर में दाखिल हुए तो कैथरीन की सास जानकी ने उस से कहा, ‘देखो कैथरीन, अब तुम इस घर की बहू हो. पर एक बात मैं तुम्हें साफसाफ बता देना चाहती हूं. मेरी रसोई में प्रवेश न करना. मेरी सास छुआछूत बहुत मानती हैं और किसी का छुआ नहीं खातीं.’

‘जी,’ कैथरीन बोली. पर उस का सर्वांग सुलग उठा.

‘एक बात और सवेरे जब उठो तो अपनी नाइटी बदल कर सलवारकमीज या साड़ी पहन कर बाहर आना. घर के बड़ेबूढ़ों का थोड़ाबहुत लिहाज तो करना ही पड़ेगा.’

‘जी,’ कैथरीन बोली.

उस ने मन ही मन अपने दांत पीसे. घर में घुसते ही इतनी हिदायतें, बंदिशें. घर भी क्या था एक खंडहर. बदरंग दीवारें, जगहजगह से प्लास्टर उखड़ा हुआ. दड़बे जैसे कमरे. उसे और अभि को सब से अच्छा कमरा दिया गया था. कमरा क्या एक कोठरी थी.

एक बात उसे बहुत अखरती थी. देर रात तक घर के लोग जागते रहते थे. अभि के पिता दमे के मरीज थे और निरंतर खांसते रहते थे. सवेरे 5 बजे सास उठ जातीं और किचन में खटरपटर करने लगतीं.

अभि कैथरीन को अपनी बांहों में लेता तो वह उसे परे धकेलती, ‘रुको, अभि, घर में सब जाग रहे हैं.’

‘तो क्या हुआ, हम पतिपत्नी हैं और अपने कमरे में बंद हैं. हमें किसी से क्या लेना?’

‘नहीं, मुझे शर्म आती है.’

‘ओहो, यह क्या गंवारों जैसी बातें कर रही हो. कम औन यार, वक्त जाया न करो. मेरी बांहों में आओ. आज रविवार है,’ अभि ने कहा.

‘तो?’

‘आज का दिन तुम्हारे नाम. हम पूरा दिन साथ बिताएंगे. पहले एक बढि़या से रेस्तरां में तुम्हें खाना खिलाएंगे. उस के बाद पिक्चर देखेंगे और शाम को पार्क में टहल कर घर लौटेंगे.’

कैथरीन उस से लिपट गई, ‘ओह अभि, तुम कितने अच्छे हो.’

पार्क में बैठेबैठे उस ने अभि के कंधे पर सिर रख दिया.

‘अभि, आज का दिन कितना अच्छा गुजरा. काश हमें एकांत खोजने के लिए घर से बाहर न आना होता. क्यों अभि, क्या हम अलग मकान में शिफ्ट नहीं कर सकते? छोटा सा 1 बैडरूम वाला, किराए का ही सही.’

‘यह कैसे संभव है डार्लिंग? 2 घर चलाना मेरे लिए मुमकिन नहीं और मैं एकएक पैसा अपनी बहनों की शादी के लिए जोड़ रहा हूं. किराए के घर के लिए भी डिपौजिट की जरूरत पड़ती है. वह कहां से लाएंगे?’

‘ओह,’ कैथरीन ने एक ठंडी सांस भरी, ‘तो सारा खेल पैसों का है.’

अगर उस का बस चलता तो वह अभि के परिवार को घर से चलता कर देती. घर मकान मालिक को लौटा कर बदले में एकमुश्त पैसे ले कर एक अलग घर बसाती, जहां वह और अभि आनंद से रहते. पर यह सब एक आकाश कुसुम जैसा था.

‘तो कम से कम मुझे ही कोई नौकरी कर लेने दो,’ उस ने कहा, ‘घर पर तो अम्मां मुझे किसी काम को हाथ लगाने नहीं देतीं और मैं दिन भर बैठी बोर होती रहती हूं.’

‘तुम नौकरी करोगी?’

‘हां, इस में हरज ही क्या है. मैं ग्रैजुएट हूं और मैं ने सैके्रेटरी का कोर्स भी किया हुआ है. उस रोज मेरी सहेली शीला मिली थी. वह बता रही थी कि वरली में एक प्राइवेट कंपनी में रिसेप्शनिस्ट की पोस्ट खाली है. वेतन भी ठीक है और काम भी हलका है. क्या कहते हो?’

‘ठीक है. तुम्हें जंचे तो कर लो.’

कैथरीन अपनी नई नौकरी पर गई तो उसे बहुत अच्छा लगा. उस के सहकर्मी बड़े मिलनसार थे. पर अपने बौस चौधरी को ले कर वह तनिक उलझन में पड़ गई. उस के बौस जरा रंगीन मिजाज के थे. उन की आदत थी कि दफ्तर में घुसते ही स्टाफ की लड़कियों को छेड़ते, उन से चुहल करते. सब से हायहैलो करते. वे कैथरीन की मेज पर रुकते, उस से थोड़ी देर बतियाते, फिर अपने कैबिन में दाखिल होते.

‘इस रोमियो से जरा बच कर रहना,’ उसे उस के सहकर्मियों ने आगाह किया, ‘यह सब लड़कियों से फ्लर्ट करता है, उन के करीब आने की कोशिश करता है. इस से दूरी बनाए रखना.’

एक दिन चौधरी ने उसे बुलाया,

‘मिस कैथरीन, मुझे मालूम हुआ है कि तुम ने सैके्रटरी का कोर्स किया हुआ है. मेरी स्टैनो छुट्टी पर गई हुई है. अगर कुछ दिन तुम उस का काम भी संभाल लो तो मैं तुम्हारा आभारी होऊंगा.’

भला वह कैसे इनकार कर सकती थी. जबतब उस का इंटरकौम बज उठता, ‘कैथरीन, मेरे कैबिन में आना. एक लैटर डिक्टेट करना है.’

एक बार तो वह लिफ्ट से नीचे जा रही थी कि चौधरी भी लिफ्ट में आ गया.

‘तुम घर ही जा रही हो न. कहो तो मैं तुम्हें ड्रौप कर दूं.’

‘नहीं सर, मैं चली जाऊंगी.’

लेकिन चौधरी ने उस की एक न सुनी.

यहां तक तो ठीक था पर एक दिन लिफ्ट में उसे अकेली पा कर चौधरी ने उसे चूम लिया. वह हड़बड़ा गई.

‘सौरी डियर, तुम जब मुसकराती हो तो तुम्हारे गालों में जो गड्ढे पड़ते हैं वे इतने प्यारे लगते हैं कि मैं खुद को रोक न सका,’ चौधरी ने सफाई दी.

वह कैंटीन में बैठी घर से लाया हुआ सैंडविच खा रही थी कि उस के सहकर्मियों ने प्रवेश किया.

‘हैलो कैथरीन, कैसा चल रहा है?’

‘ठीक है.’

‘क्या बात है, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो?’ शुक्ला ने कहा, ‘लगता है अपने दिलफेंक आशिक ने कोई गुस्ताखी की है.’

कैथरीन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘मैं यह नौकरी छोड़ दूंगी,’ वह बोली.

‘तुम क्यों नौकरी छोड़ोगी? नौकरी तो उसे छोड़नी होगी.’

‘हां, हम सब उस के बरताव से तंग आ गए हैं,’ बनर्जी ने कहा, ‘हम उसे ऐसा सबक सिखाना चाहते हैं कि वह दोबारा कभी लड़कियों को छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगा.’

‘हम ने एक प्लान बनाया है,’ गोडबोले ने कहा, ‘तुम साथ दो तो ही इसे अंजाम दिया जा सकता है.’

‘क्या मतलब?’

उन्होंने उसे बताया.

वह सोच में पड़ गई.

‘ओह, मुझे नहीं लगता कि मैं यह सब कर पाऊंगी,’ वह बोली.

‘सोच लो. हम तुम्हें इस काम के लिए 2 लाख रुपए देंगे.’

‘2 लाख?’ वह चकित हुई.

‘हां, हम ने ये रुपए चंदा मांग कर इकट्ठे किए हैं. हम किसी भी कीमत पर चौधरी को यहां से भगाना चाहते हैं. उस ने मेरी बहन का जीवन बरबाद कर दिया. वह इस की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गई और इसे दिल दे बैठी. वह सोचती थी कि यह अपनी पत्नी को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगा. पर इस ने उसे धोखा दिया. मेरी बहन अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है.’

‘लेकिन इस काम में बड़ा जोखिम है,’ उस ने आपत्ति की.

‘बिलकुल नहीं. बात हम चारों के बीच रहेगी. किसी और को कानोंकान खबर भी न होगी, सोच लो. 5 मिनट के काम के लिए 2 लाख मिल रहे हैं.’

वह उधेड़बुन में पड़ी रही. बड़ी विषम परिस्थिति थी. पैसा उस की कमजोरी था. इतने सारे पैसे हाथ आ गए तो उस की सारी मुश्किलें दूर हो जाएंगी. वह और अभि एक अलग मकान किराए पर ले लेंगे और जिंदगी का भरपूर आनंद उठाएंगे. काफी सोचविचार के बाद उस ने निश्चय कर लिया.

हमेशा की तरह चौधरी ने उसे बुलाया. वह शौर्टहैंड की नोटबुक ले कर गई. फिर चौधरी ने साथ कौफी पीने की फरमाइश की. वह उसे कौफी का प्याला थमा रही थी कि प्याला छलक गया और गरमगरम कौफी उस के हाथों पर गिर गई. प्याला उस के हाथ से छूट कर छन्न से जमीन पर जा गिरा. उस के मुंह से चीख निकली.

‘अरे, जरा सी कौफी ही तो गिरी है. इस में इतना परेशान होने की क्या बात है?’ चौधरी ने कहा.

पर उस पर तो जैसे पागलपन सवार हो गया था. वह फिर जोर से चीखी.

‘क्या हुआ, हाथ जल गया क्या? देखूं तो,’ चौधरी ने उस का हाथ थामा.

उस ने उस का हाथ झटक दिया, ‘मुझे हाथ मत लगाना. मुझ से दूर रहो बदमाश कहीं के.’

चौधरी हक्काबक्का रह गया.

‘यह क्या बक रही हो? तुम होश में तो हो?’

तभी अचानक कैबिन का द्वार खुला और 4 लोग अंदर घुस आए.

‘क्या बात है? यह हंगामा कैसा है?’

कैथरीन उन लोगों को देख कर रोते हुए बोली, ‘इस आदमी ने मुझे रेप करने की कोशिश की.’

चौधरी का चेहरा पीला पड़ गया.

‘यह झूठ है. मैं ने इसे हाथ भी नहीं लगाया.’

‘इस ने मुझ से हाथापाई की. मुझे अपनी बांहों में लेना चाहा. मेरे कपड़े फाड़ दिए.’

‘झूठ, सरासर झूठ,’ चौधरी ने सिर हिलाया.

कैथरीन फूटफूट कर रोने लगी.

कैबिन में भीड़ इकट्ठा हो गई थी. कुछ के हाथों में कैमरे थे. वे धड़ाधड़ तसवीरें ले रहे थे. दरअसल, वे टीवी और अखबार वाले थे.

‘हम ने पुलिस को खबर कर दी है,’ किसी ने कहा.

‘नहीं, पुलिस मत बुलाओ,’ चौधरी गिड़गिड़ा रहा था, ‘आप लोग जानते हैं कि यह इलजाम सरासर झूठा है. आप जो चाहें मैं करने के लिए तैयार हूं. मैं इज्जतदार आदमी हूं.’

कैथरीन जब घर पहुंची तो घर के लोग टीवी के इर्दगिर्द बैठे थे. अभि का चेहरा उतरा हुआ था.

 

साथ: भाग 1- पति से दूर होने के बाद कौन आया शिवानी की जिंदगी में

बात 5 साल पहले की है. मेरी शादी को 1 साल हो चुका था. पर अमन और मेरे विचारों में इतना अंतर था कि अकसर हमारे बीच छोटीछोटी बातों को ले कर बहस होती रहती थी. हद तो एक दिन तब हो गई जब अमन शाम को गुस्से में घर आए और आते ही मुझे जोरजोर से पुकाराना शुरू का दिया.

मैं ऊपर के कमरे से जल्दी से नीचे आ गई, ‘‘क्या हुआ अमन सब ठीक तो है न?’’

‘‘नहीं, तुम्हारे रहते कुछ भी ठीक नहीं हो सकता. आज तुम्हारी वजह से औफिस में मेरी बहुत बेइज्जती हुई,’’ अमन की आंखें लाल हो चुकी थीं.

‘‘पर मैं ने क्या किया?’’ मैं ने भी गुस्से में पूछा.

मुझे गुस्से में देख कर अमन और गुस्से में आ गए, ‘‘तुम जैसी अनपढ़ और गंवार के साथ मेरी जिंदगी नर्क बन गई है. तुम ने आज खाने में नमक इतना मिला दिया था कि लंच टाइम में सब ने मेरी हंसी उड़ाई.’’

‘‘देखो अमन, पहली बात तो यह कि मैं अनपढ़ नहीं हूं और दूसरी बात यह कि अगर एक दिन नमक थोड़ा ज्यादा हो गया तो कौन सा तूफान आ गया? आप वह खाना फेंक कर बाजार से कुछ और मंगवा लेते,’’ मैं ने चिल्ला कह कहा.

मुझ से मेरे इस तरह का जवाब सुन कर अमन गुस्से से कांपने लगे और मेज पर पड़ा फूलदान उठा कर मेरी तरफ फेंक दिया. अगर वक्त रहते मैं वहां से हटी न होती तो मेरा सिर फट जाता. अब तो मामला बरदाश्त से बाहर हो चुका था. सब्जी में नमक थोड़ा ज्यादा होने पर अमन हाथ उठा सकते हैं, ऐसा मैं ने सोचा भी नहीं था. वह रात जैसेतैसे कट गई पर सुबह होते ही मैं ने अमन से कह दिया कि जो कुछ रात को हुआ अगर वह दोबारा हुआ तो मैं गांव से आप के मांबाप को बुला लूंगी. अमन अपने मांबाप की बहुत इज्जत करते थे, इसलिए मेरी बात का असर उन पर तुरंत हुआ. कुछ दिन शांति से निकल गए पर उन का गुस्सा उन्हें कैसे छोड़ता.

एक दिन हम दोनों उन के एक दोस्त के घर गए. वहां उन के दोस्त की पत्नी, जो फैशन डिजाइनर हैं, अपने कपड़ों की खुद तारीफ कर रही थीं. अमन का मूड खराब हो गया. घर आ कर वे मु?ा पर फिर ?ाल्ला उठे, ‘‘तुम्हें कपड़े पहनने की तमीज भी नहीं.’’

इतना कह कर वे सोने चले गए और मैं ने वहीं सोफे पर सारी रात अपने से बातें करने में निकाल दी.

सुबह मैं ने एक फैसला लिया. मैं चाय बना कर अमन के पास गई. उन्हें बहुत प्यार से जगाया और चाय का कप पकड़ा कर प्यार से कहा, ‘‘अमन, आप को शायद ठीक ही लगता है, मैं आप के लायक नहीं हूं. क्या आप मुझे एक मौका देंगे?’’

अमन ने चाय का एक घूंट ही भरा था. उन का हाथ रुक गया और वे हैरानी से पूछने, ‘‘मौका, कैसा मौका?’’

‘‘मैं नौकरी करना चाहती हूं, ताकि दिल्ली में रहने के तौरतरीके सम?ा सकूं और आप के लायक बन सकूं. मैं ने ग्रैजुएशन कर रखा है. मुझे छोटीमोटी नौकरी तो मिल ही जाएगी. वैसे भी घर पर तो मैं सारा दिन बोर ही होती रहती हूं. बाहर जाऊंगी तो कुछ सीखने को मिलेगा,’’ मैं ने एक ही सांस में सब कुछ बोल दिया.

‘‘नौकरी, पर…,’’ अमन ने थोड़ा गंभीर हो कर कहा.

मैं ने उन को बीच में ही टोक दिया, ‘‘पर कुछ नहीं, नौकरी करूंगी तो यहां का अंदाज भी समझ आ जाएगा. फिर आप को मुझे कहीं ले जाने में शर्म नहीं आएगी.’’

‘‘देखो शिवानी, तुम्हारे नौकरी करने में मुझे कोई एतराज नहीं है पर तुम नहीं कर पाओगी. यह दिल्ली है, यहां अंगरेजी आनी जरूरी है. तुम से नहीं हो पाएगा, तुम रहने दो,’’ उन्होंने चाय का कप एक तरफ रखते हुए कहा.

‘‘पर मुझे एक मौका तो दीजिए,’’ मैं ने उन का हाथ पकड़ लिया.

‘‘ठीक है, तुम करना चाहो तो कोशिश कर लो, पर मुझे पता है कि तुम्हारा यह जोश जल्दी ही ठंडा पड़ जाएगा,’’ वे एक अजीब सी हंसी हंस कर बाथरूम में फ्रैश होने चले गए.

उन की उस हंसी ने मेरे नौकरी करने के इरादे को और पक्का कर दिया. अखबारों में विज्ञापन देखदेख कर मैं ने 1 हफ्ते में 10 इंटरव्यू दे डाले पर कुछ हाथ न लगा.

मेरी इतनी भागदौड़ का फल मुझे एक दिन मिल गया. एक कंपनी में मुझे सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई. इस पर भी अमन ने एक कांटा यह कह कर चुभा दिया कि जो नौकरी तुम को मिली है उसे तो दिल्ली की कालेज की लड़कियां अपनी छुट्टियों में टाइम पास करने के लिए करती हैं. उन की इस बात से नौकरी मिलने का जोश थोड़ा थम गया पर ठंडा नहीं हुआ.

औफिस के काम में सारे दिन का पता ही नहीं चलता था. मुझे अपने काम के सिलसिले में बहुत लोगों से मिलनाजुलना होता था, जिन में से कुछ अमन जैसे घमंडी और गुस्सैल होते थे तो कुछ साहिल जैसे शांत. साहिल मेरे साथ काम करता था. मैं सेल्स में थी तो वह अकाउंट में. काम के सिलसिले में हम अकसर बात करते थे.

वह बहुत शांत और समझदार इंसान था. सारा औफिस उस की तारीफ करता था. हर किसी की मदद करने में वह सब से आगे रहता था. मेरी पहली नौकरी थी, इसलिए सब से ज्यादा मुझे ही उस की मदद की जरूरत पड़ती थी.

साहिल के प्रमोशन की पार्टी थी. उस ने औफिस के सभी लोगों को अपने घर पर बुलाया था. उस की मां से मिल कर पता चला कि साहिल के पिताजी बचपन में ही गुजर गए थे और उन्होंने किस तरह मेहनत कर के साहिल को काबिल बनाया था. साहिल की मां मेरठ की थीं और शादी के बाद दिल्ली आई थीं. उन से मिल कर मुझे अपनी मां की याद आ गई थी.

उस दिन घर वापस आने में थोड़ी देर हो गई. मुझे डर था कि कहीं अमन गुस्सा न हो जाए, पर मेरी सोच से उलट अमन ने घर का दरवाजा खोलते ही नाराज होने के बजाय मेरे सूट की तारीफ की. उस रात अमन का मूड बहुत अच्छा था. अगली सुबह अमन ने बताया कि उन को 4 दिन के लिए औफिस के काम से पुणे जाना है. मैं ने उन को कहा कि मैं अकेली कैसे रहूंगी तो उन्होंने कहा कि अब तुम भी नौकरी करती हो, अपनेआप में थोड़ा आत्मविश्वास जगाओ.

अमन चले गए तो सिर्फ अपने लिए लंच बनाने का दिल नहीं हुआ. औफिस में लंच टाइम में कैंटीन गई तो वहां साहिल को देख कर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि साहिल की मां ने बताया था कि साहिल बाहर का खाना नहीं खाते.

मैं ने साहिल के सामने वाली कुरसी पर बैठते हुए पूछा, ‘‘साहिल, आप तो बाहर का खाना नहीं खाते, फिर आज कैंटीन में कैसे?’’

‘‘बस यों ही, मांजी की तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी इसलिए,’’ उस के चेहरे पर थोड़ी परेशानी आ गई.

‘‘क्या हुआ मांजी को?’’ मैं ने पूछा.

‘‘कल रात से बुखार है. अगर मुझे मैनेजर को इस महीने की रिपोर्ट नहीं देनी होती तो आज घर पर ही रुक जाता,’’ उस के चेहरे पर परेशानी दिख रही थी.

जिजीविषा: अनु पर लगे चरित्रहीनता के आरोपों ने कैसे सीमा को हिला दिया

अनुराधा लगातार हंसे जा रही थी. उस की सांवली रंगत वाले चेहरे पर बड़ीबड़ी भावप्रवण आंखें आज भी उतनी ही खूबसूरत और कुछ कहने को आतुर नजर आ रही थीं. अंतर सिर्फ इतना था कि आज वे आंखें शर्मोहया से दूर बिंदास हो चुकी थीं. मैं उस की जिजीविषा देख कर दंग थी.

अगर मैं उस के बारे में सब कुछ जानती न होती तो जरूर दूसरों की तरह यही समझती कि कुदरत उस पर मेहरबान है. मगर इत्तफाकन मैं उस के बारे में सब कुछ जानती थी, इसीलिए मुझे मालूम था कि अनुराधा की यह खुशी, यह जिंदादिली उसे कुदरतन नहीं मिली, बल्कि यह उस के अदम्य साहस और हौसले की देन है. हाल ही में मेरे शहर में उस की पोस्टिंग शासकीय कन्या महाविद्यालय में प्रिंसिपल के पद पर हुई थी. आज कई वर्षों बाद हम दोनों सहेलियां मेरे घर पर मिल रही थीं.

हां, इस लंबी अवधि के दौरान हम में काफी बदलाव आ चुका था. 40 से ऊपर की हमउम्र हम दोनों सखियों में अनु मानसिक तौर पर और मैं शारीरिक तौर पर काफी बदल चुकी थी. मुझे याद है, स्कूलकालेज में यही अनु एक दब्बू, डरीसहमी लड़की के तौर पर जानी जाती थी, जो सड़क पर चलते समय अकसर यही सोचती थी कि राह चलता हर शख्स उसे घूर रहा है. आज उसी अनु में मैं गजब का बदलाव देख रही थी. इस बेबाक और मुखर अनु से मैं पहली बार मिल रही थी.

मेरे बच्चे उस से बहुत जल्दी घुलमिल गए. हम सभी ने मिल कर ढेर सारी मस्ती की. फिर मिलने का वादा ले कर अनु जा चुकी थी, लेकिन मेरा मन अतीत के उन पन्नों को खंगालने लगा था, जिन में साझा रूप से हमारी तमाम यादें विद्यमान थीं…

अपने बंगाली मातापिता की इकलौती संतान अनु बचपन से ही मेरी बहुत पक्की सहेली थी. हमारे घर एक ही महल्ले में कुछ दूरी पर थे. हम दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का फर्क था, फिर भी न जाने किस मजबूत धागे ने हम दोनों को एकदूसरे से इस कदर बांध रखा था कि हम सांस भी एकदूसरे से पूछ कर लिया करती थीं. सीधीसाधी अनु पढ़ने में बहुत होशियार थी, जबकि मैं शुरू से ही पढ़ाई में औसत थी. इस कारण अनु पढ़ाई में मेरी बहुत मदद करती थी.

अब हम कालेज के आखिरी साल में थीं. इस बार कालेज के वार्षिकोत्सव में शकुंतला की लघु नाटिका में अनु को शकुंतला का मुख्य किरदार निभाना था. शकुंतला का परिधान व गहने पहने अनु किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उस ने बड़ी ही संजीदगी से अपने किरदार को निभा कर जैसे जीवंत कर दिया. देर रात को प्रोग्राम खत्म होने के बाद मैं ने जिद कर के अनु को अपने पास ही रोक लिया और आंटी को फोन कर उन्हें अनु के अपने ही घर पर रुकने की जानकारी दे दी.

उस के बाद हम दोनों ही अपनी वार्षिक परीक्षा की तैयारी में व्यस्त हो गईं. जिस दिन हमारा आखिरी पेपर था उस दिन अनु बहुत ही खुश थी. अब आगे क्या करने का इरादा है मैडम? मेरे इस सवाल पर उस ने मुझे उम्मीद के मुताबिक जवाब न दे कर हैरत में डाल दिया. मैं वाकई आश्चर्य से भर  उठी जब उस ने मुझ से मुसकरा कर अपनी शादी के फैसले के बारे में बताया.

मैं ने उस से पूछने की बहुत कोशिश की कि आखिर यह माजरा क्या है, क्या उस ने किसी को अपना जीवनसाथी चुन लिया है पर उस वक्त मुझे कुछ भी न बताते हुए उस ने मेरे प्रश्न को हंस कर टाल दिया यह कहते हुए कि वक्त आने पर सब से पहले तुझे ही बताऊंगी.

मैं मां के साथ नाना के घर छुट्टियां बिताने में व्यस्त थी, वहां मेरे रिश्ते की बात भी चल रही थी. मां को लड़का बहुत पसंद आया था. वे चाहती थीं कि बड़े भैया की शादी से पहले मेरी शादी हो जाए. इसी बीच एक दिन पापा के आए फोन ने हमें चौंका दिया.

अनु के पापा को दिल का दौरा पड़ा था. वे हौस्पिटल में एडमिट थे. उन के बचने की संभावना न के बराबर थी. हम ने तुरंत लौटने का फैसला किया. लेकिन हमारे आने तक अंकल अपनी अंतिम सांस ले चुके थे. आंटी का रोरो कर बुरा हाल था. अनु के मुंह पर तो जैसे ताला लग चुका था. इस के बाद खामोश उदास सी अनु हमेशा अपने कमरे में ही बंद रहने लगी.

अंकल की तेरहवीं के दिन सभी मेहमानों के जाने के बाद आंटी अचानक गुस्से में उबल पड़ीं. मुझे पहले तो कुछ समझ ही न आया और जो समझ में आया वह मेरे होश उड़ाने के लिए काफी था. अनु प्रैग्नैंट है, यह जानकारी मेरे लिए किसी सदमे से कम न थी. अगर इस बात पर मैं इतनी चौंक पड़ी थी, तो अपनी बेटी को अपना सब से बड़ा गर्व मानने वाले अंकल पर यह जान कर क्या बीती होगी, मैं महसूस कर सकती थी. आंटी भी अंकल की बेवक्त हुई इस मौत के लिए उसे ही दोषी मान रही थीं.

मैं ने अनु से उस शख्स के बारे में जानने की बहुत कोशिश की, पर उस का मुंह न खुलवा सकी. मुझे उस पर बहुत क्रोध आ रहा था. गुस्से में मैं ने उसे बहुत बुराभला भी कहा. लेकिन सिर झुकाए वह मेरे सभी आरोपों को स्वीकारती रही. तब हार कर मैं ने उसे उस के हाल पर छोड़ दिया.

इधर मेरी ससुराल वाले चाहते थे कि हमारी शादी नाना के घर लखनऊ से ही संपन्न हो. शादी के बाद मैं विदा हो कर सीधी अपनी ससुराल चली गई. वहां से जब पहली बार घर आई तो अनु को देखने, उस से मिलने की बहुत उत्सुकता हुई. पर मां ने मुझे डपट दिया कि खबरदार जो उस चरित्रहीन से मिलने की कोशिश भी की. अच्छा हुआ जो सही वक्त पर तेरी शादी कर दी वरना उस की संगत में तू भी न जाने क्या गुल खिलाती. मुझे मां पर बहुत गुस्सा आया, पर साथ ही उन की बातों में सचाई भी नजर आई. मैं भी अनु से नाराज तो थी. अत: मैं ने भी उस से मिलने की कोशिश नहीं की.

2 साल बीत चुके थे. मेरी गोद में अब स्नेहा आ चुकी थी. मेरे भैया की शादी भी बनारस से तय हो चुकी थी. शादी के काफी पहले ही मैं मायके आ गई. यहां आ कर मां से पता चला कि अनु ने भैया की शादी तय होने पर बहुत बवाल मचाया था. मगर क्यों? भैया से उस का क्या वास्ता?

मेरे सवाल करने पर मां भड़क उठीं कि अरे वह बंगालन है न, मेरे भैया पर काला जादू कर के उस से शादी करना चाहती थी. किसी और के पाप को तुम्हारे भैया के मत्थे मढ़ने की कोशिश कर रही थी. पर मैं ने भी वह खरीखोटी सुनाई है कि दोबारा पलट कर इधर देखने की हिम्मत भी नहीं करेंगी मांबेटी. पर अगर वह सही हुई तो क्या… मैं कहना चाहती थी, पर मेरी आवाज गले में ही घुट कर रह गई. लेकिन अब मैं अनु से किसी भी हालत में एक बार मिलना चाहती थी.

दोपहर का खाना खा कर स्नेहा को मैं ने मां के पास सुलाया और उस के डायपर लेने के लिए मैडिकल स्टोर जाने के बहाने मैं अनु के घर की तरफ चल दी. मुझे सामने देख अनु को अपनी आंखों पर जैसे भरोसा ही नहीं हुआ. कुछ देर अपलक मुझे निहारने के बाद वह कस कर मेरे गले लग गई. उस की चुप्पी अचानक ही सिसकियों में तबदील हो गई. मेरे समझने को अब कुछ भी बाकी न था. उस ने रोतेरोते अपने नैतिक पतन की पूरी कहानी शुरू से अंत तक मुझे सुनाई, जिस में साफतौर पर सिर्फ और सिर्फ मेरे भैया का ही दोष नजर आ रहा था.

कैसे भैया ने उस भोलीभाली लड़की को मीठीमीठी बातें कर के पहले अपने मोहपाश में बांधा और फिर कालेज के वार्षिकोत्सव वाले दिन रात को हम सभी के सोने के बाद शकुंतला के रूप में ही उस से प्रेम संबंध स्थापित किया. यही नहीं उस प्रेम का अंकुर जब अनु की कोख में आया तो भैया ने मेरी शादी अच्छी तरह हो जाने का वास्ता दे कर उसे मौन धारण करने को कहा.

वह पगली इस डर से कि उन के प्रेम संबंध के कारण कहीं मेरी शादी में कोई विघ्न न आ जाए. चुप्पी साध बैठी. इसीलिए मेरे इतना पूछने पर भी उस ने मुंह न खोला और इस का खमियाजा अकेले ही भुगतती रही. लोगों के व्यंग्य और अपमान सहती रही. और तो और इस कारण उसे अपने जीवन की बहुमूल्य धरोहर अपने पिता को भी खोना पड़ा.

आज अनु के भीतर का दर्द जान कर चिल्लाचिल्ला कर रोने को जी चाह रहा था. शायद वह इस से भी अधिक तकलीफ में होगी. यह सोच कर कि सहेली होने के नाते न सही पर इंसानियत की खातिर मुझे उस का साथ देना ही चाहिए, उसे इंसाफ दिलाने की खातिर मैं उस का हाथ थाम कर उठ खड़ी हुई. पर वह उसी तरह ठंडी बर्फ की मानिंद बैठी रही.

आखिर क्यों? मेरी आंखों में मौन प्रश्न पढ़ कर उस ने मुझे खींच कर अपने पास बैठा लिया. फिर बोली, ‘‘सीमा, इंसान शादी क्यों करना चाहता है, प्यार पाने के लिए ही न? लेकिन अगर तुम्हारे भैया को मुझ से वास्तविक प्यार होता, तो यह नौबत ही न आती. अब अगर तुम मेरी शादी उन से करवा कर मुझे इंसाफ दिला भी दोगी, तो भी मैं उन का सच्चा प्यार तो नहीं पा सकती हूं और फिर जिस रिश्ते में प्यार नहीं उस के भविष्य में टिकने की कोई संभावना नहीं होती.’’

‘‘लेकिन यह हो तो गलत ही रहा है न? तुझे मेरे भैया ने धोखा दिया है और इस की सजा उन्हें मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘लेकिन उन्हें सजा दिलाने के चक्कर में मुझे जिंदगी भर इस रिश्ते की कड़वाहट झेलनी पड़ेगी, जो अब मुझे मंजूर नहीं है. प्लीज तू मेरे बारे में उन से कोई बात न करना. मैं बेचारगी का यह दंश अब और नहीं सहना चाहती.’’

उस की आवाज हलकी तलख थी. मुझ से अब कुछ भी कहते न बना. मन पर भाई की गलती का भारी बोझ लिए मैं वहां से चली आई.

घर पहुंची तो भैया आ चुके थे. मेरी आंखों में अपने लिए नाराजगी के भाव शायद उन्हें समझ आ गए थे, क्योंकि उन के मन में छिपा चोर अपनी सफाई मुझे देने को आतुर दिखा. रात के खाने के बाद टहलने के बहाने उन्होंने मुझे छत पर बुलाया.

‘‘क्यों भैया क्यों, तुम ने मेरी सहेली की जिंदगी बरबाद कर दी… वह बेचारी मेरी शादी के बाद अभी तक इस आशा में जीती रही कि तुम उस के अलावा किसी और से शादी नहीं करोगे… तुम्हारे कहने पर उस ने अबौर्शन भी करवा लिया. फिर भी तुम ने यह क्या कर दिया… एक मासूम को ऐसे क्यों छला?’’ मेरे शब्दों में आक्रोश था.

‘‘उस वक्त जोश में मुझे इस बात का होश ही न रहा कि समाज में हमारे इस संबंध को कभी मान्य न किया जाएगा. मुझ से वाकई बहुत बड़ी गलती हो गई,’’ भैया हाथ जोड़ कर बोले.

‘‘गलती… सिर्फ गलती कह कर तुम जिस बात को खत्म कर रहे हो, उस के लिए मेरी सहेली को कितनी बड़ी सजा भुगतनी पड़ी है, क्या इस का अंदाजा भी है तुम्हें? नहीं भैया नहीं तुम सिर्फ माफी मांग कर इस पाप से मुक्ति नहीं पा सकते. यह तो प्रकृति ही तय करेगी कि तुम्हारे इस नीच कर्म की भविष्य में तुम्हें क्या सजा मिलेगी,’’ कहती हुई मैं पैर पटकती तेजी से नीचे चल दी. सच कहूं तो उस वक्त उन के द्वारा की गई गलती से अधिक मुझे बेतुकी दलील पर क्रोध आया था.

फिर उन की शादी भी एक मेहमान की तरह ही निभाई थी मैं ने. अपनी शादी के कुछ ही महीनों बाद भैयाभाभी मांपापा से अलग हो कर रहने लगे थे. ज्यादा तो मुझे पता नहीं चला पर मम्मी के कहे अनुसार भाभी बहुत तेज निकलीं. भैया को उन्होंने अलग घर ले कर रहने के लिए मजबूर कर दिया था. मुझे तो वैसे भी भैया की जिंदगी में कोई रुचि नहीं थी.

हां, जब कभी मायके जाना होता था तो मां के मना करने के बावजूद मैं अनु से मिलने अवश्य जाती थी. मुझे याद है हमारी पिछली मुलाकात करीब 10-12 साल पहले हुई थी जब मैं मायके गई हुई थी. अनु के घर जाने के नाम पर मां ने मुझे सख्त ताकीद की थी कि वह लड़की अब पुरानी वाली अनु नहीं रह गई है.

जब से उसे सरकारी नौकरी मिली है तब से बड़ा घमंड हो गया है. किसी से सीधे मुंह बात नहीं करती. सुना है फिर किसी यारदोस्त के चक्कर में फंस चुकी है. मैं जानती थी कि मां की सभी बातें निरर्थक हैं, अत: मैं  उन की बातों पर ध्यान देना मुनासिब नहीं समझा.

पर अनु से मिल कर इस बार मुझे उस में काफी बदलाव नजर आया. पहले की अपेक्षा उस में अब काफी आत्मविश्वास आ गया था. जिंदगी के प्रति उस का रवैया बहुत सकारात्मक हो चला था. उस के चेहरे की चमक देख कर आसानी से उस की खुशी का अंदाजा लग गया था मुझे. बीती सभी बातों को उस ने जैसे दफन कर दिया था. मुझ से बातों ही बातों में उस ने अपने प्यार का जिक्र किया.

‘‘अच्छा तो कब कर रही है शादी?’’ मेरी खुशी का ठिकाना न था.

‘‘शादी नहीं मेरी जान, बस उस का साथ मुझे खुशी देता है.’’

‘‘तू कभी शादी नहीं करेगी… मतलब पूरी जिंदगी कुंआरी रहेगी,’’ मेरी बात में गहरा अविश्वास था.

‘‘क्यों, बिना शादी के जीना क्या कोई जिंदगी नहीं होती?’’ उस ने कहना जारी रखा, ‘‘सीमा तू बता, क्या तू अपनी शादी से पूरी तरह संतुष्ट है?’’ मेरे प्रश्न का उत्तर देने के बजाय उस ने मेरी ओर कई प्रश्न उछाल दिए.

‘‘नहीं, लेकिन इस के माने ये तो नहीं…’’

‘‘बस इसी माने पर तो सारी दुनिया टिकी है. इंसान का अपने जीवन से संतुष्ट होना माने रखता है, न कि विवाहित या अविवाहित होना. मैं अपनी जिंदगी के हर पल को जी रही हूं और बहुत खुश हूं. मेरी संतुष्टि और खुशी ही मेरे सफल जीवन की परिचायक है.

‘‘खुशियों के लिए शादी के नाम का ठप्पा लगाना अब मैं जरूरी नहीं समझती. कमाती हूं, मां का पूरा ध्यान रखती हूं. अपनों के सुखदुख से वास्ता रखती हूं और इस सब के बीच अगर अपनी व्यक्तिगत खुशी के लिए किसी का साथ चाहती हूं तो इस में गलत क्या है?’’ गहरी सांस छोड़ कर अनु चुप हो गई.

मेरे मन में कोई उत्कंठा अब बाकी न थी. उस के खुशियों भरे जीवन के लिए अनेक शुभकामनाएं दे कर मैं वहां से वापस आ गई. उस के बाद आज ही उस से मिलना हो पाया था. हां, मां ने फोन पर एक बार उस की तारीफ जरूर की थी जब पापा की तबीयत बहुत खराब होने पर उस ने न सिर्फ उन्हें हौस्पिटल में एडमिट करवाया था, बल्कि उन के ठीक होने तक मां का भी बहुत ध्यान रखा था. उस दिन मैं ने अनु के लिए मां की आवाज में आई नमी को स्पष्ट महसूस किया था. बाद में मेरे मायके जाने तक उस का दूसरी जगह ट्रांसफर हो चुका था. अत: उस से मिलना संभव न हो पाया था.

एक बात जो मुझे बहुत खुशी दे रही थी वह यह कि आज अकेले में जब मैं ने उस से उस के प्यार के बारे में पूछा तो उस ने बड़े ही भोलेपन से यह बताया कि उस का वह साथी तो वहीं छूट गया, पर प्यार अभी भी कायम है. एक दूसरे साथी से उस की मुलाकात हो चुकी है औ वह अब उस के साथ अपनी जिंदगी मस्त अंदाज में जी रही है. मैं सच में उस के लिए बहुत खुश थी. उस का पसंदीदा गीत आज मेरी जुबां पर भी आ चुका था, जिसे धीरेधीरे मैं गुनगुनाने लगी थी…

‘हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी… छांव है कभी, कभी है धूप जिंदगी… हर पल यहां जी भर जियो… जो है समा, कल हो न हो.’

आया: जब तुषार-रश्मि के मन में लक्ष्मी के प्रति मानसम्मान बढ़ गया

तुषार का तबादला मुंबई हुआ तो रश्मि यह सोच कर खुश हो उठी

कि चलो इसी बहाने फिल्मी कलाकारों से मुलाकात हो जाएगी, वैसे कहां मुंबई घूमने जा सकते थे.

तुषार ने मुंबई आ कर पहले कंपनी का कार्यभार संभाला फिर बरेली जा कर पत्नी व बेटे को ले आया.

इधरउधर घूमते हुए पूरा महीना निकल गया, धीरेधीरे दंपती को महंगाई व एकाकीपन खलने लगा. उन के आसपास हिंदीभाषी लोग न हो कर महाराष्ट्र के लोग अधिक थे, जिन की बोली  अलग तरह की थी.

काफी मशक्कत के बाद उन्हें तीसरे माले पर एक कमरे का फ्लैट मिला था, जिस के आगे के बरामदे में उन्होंने रसोई व बैठने का स्थान बना लिया था.

रश्मि ने सोचा था कि मुंबई में ऐसा घर होगा जहां से उसे समुद्र दिखाई देगा, पर यहां से तो सिर्फ झुग्गीझोंपडि़यां ही दिखाई देती हैं.

तुषार रश्मि को चिढ़ाता, ‘‘मैडम, असली मुंबई तो यही है, मछुआरे व मजदूर झुग्गीझोंपडि़यों में नहीं रहेंगे तो क्या महलों में रहेंगे.’’

जब कभी मछलियों की महक आती तो रश्मि नाक सिकोड़ती.

घर की सफाई एवं बरतन धोने के लिए काम वाली बाई रखी तो रश्मि को उस से भी मछली की बदबू आती हुई महसूस हुई. उस ने उसी दिन बाई को काम से हटा दिया. रश्मि के लिए गर्भावस्था की हालत में घर के काम की समस्या पैदा हो गई. नीचे जा कर सागभाजी खरीदना, दूध लाना, 3 वर्ष के गोलू को तैयार कर के स्कूल भेजना, फिर घर के सारे काम कर के तुषार की पसंद का भोजन बनाना अब रश्मि के वश का नहीं था. तुषार भी रात को अकसर देर से लौटता था.

तुषार ने मां को आने के लिए पत्र लिखा, तो मां ने अपनी असमर्थता जताई कि तुम्हारे पिताजी अकसर बीमार रहते हैं, उन की देखभाल कौन करेगा. फिर तुम्हारे एक कमरे के घर में न सोने की जगह है न बैठने की.

तुषार ने अपनी पहचान वालों से एक अच्छी नौकरानी तलाश करने को कहा पर रश्मि को कोई पसंद नहीं आई.

तुषार ने अखबार में विज्ञापन दे दिया, फिर कई काम वाली बाइयां आईं और चली गईं.

एक सुबह एक अधेड़ औरत ने आ कर उन का दरवाजा खटखटाया और पूछा कि आप को काम वाली बाई चाहिए?

‘‘हां, हां, कहां है.’’

‘‘मैं ही हूं.’’

तुषार व रश्मि दोनों ही उसे देखते रह गए. हिंदी बोलने वाली वह औरत साधारण  मगर साफसुथरे कपडे़ पहने हुए थी.

‘‘मैं घर के सभी काम कर लेती हूं. सभी प्रकार का खाना बना लेती हूं पर मैं रात में नहीं रुक पाऊंगी.’’

‘‘ठीक है, तुम रात में मत रुकना. तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘लक्ष्मी.’’

‘‘देखो लक्ष्मी, हमारी छोटी सी गृहस्थी है इसलिए अधिक काम नहीं है पर हम साफसफाई का अधिक ध्यान रखते हैं,’’ रश्मि बोली.

‘‘बीबीजी, आप को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा.’’

लक्ष्मी ने प्रतिमाह 3 हजार रुपए वेतन मांगा, पर थोड़ी नानुकुर के बाद वह ढाई हजार रुपए पर तैयार हो गई और उसी दिन से वह काम में जुट गई, पूरे घर की पहले सफाईधुलाई की, फिर कढ़ीचावल बनाए और गोलू की मालिश कर के उसे नहलाया.

तुषार व रश्मि दोनों ही लक्ष्मी के काम से बेहद प्रभावित हो गए. यद्यपि उन्होंने लक्ष्मी से उस का पता तक भी नहीं पूछा था.

लक्ष्मी शाम को जब चली गई तो दंपती उस के बारे में देर तक बातें करते रहे.

तुषार व रश्मि आश्वस्त होते चले गए जैसे लक्ष्मी उन की मां हो. वे दोनों उस का सम्मान करने लगे. लक्ष्मी परिवार के सदस्य की भांति रहने लगी.

सुबह आने के साथ ही सब को चाय बना कर देना, गोलू को रिकशे तक छोड़ कर आना, तुषार को 9 बजे तक नाश्ता व लंच बाक्स तैयार कर के देना, रश्मि को फलों का रस निकाल कर देना, यह सब कार्य लक्ष्मी हवा की भांति फुर्ती से करती रहती थी.

लक्ष्मी वाकई कमाल का भोजन बनाना जानती थी. रश्मि ने उस से ढोकला, डोसा बनाना सीखा. भांतिभांति के अचार चटनियां बनानी सीखीं.

‘‘ऐसा लगता है अम्मां, आप ने कुकिंग स्कूल चलाया है?’’ एक दिन मजाक में रश्मि ने पूछा था.

‘‘हां, मैं सिलाईकढ़ाई का भी स्कूल चला चुकी हूं्.’’

रश्मि मुसकराती मन में सोचती रहती कि उसे तो बढ़चढ़ कर बोलने की आदत है.

डिलीवरी के लिए रश्मि को अस्पताल में दाखिल कराया गया तो लक्ष्मी रात को अस्पताल में रहने लगी.

तुषार और अधिक आश्वस्त हो गया. उस ने मां को फोन कर दिया कि तुम पिताजी की देखभाल करो, यहां लक्ष्मी ने सब संभाल लिया है.

रश्मि को बेटी पैदा हुई.

तीसरे दिन रश्मि नन्ही सी गुडि़या को ले कर घर लौटी. लक्ष्मी ने उसे नहलाधुला कर बिस्तर पर लिटा दिया और हरीरा बना कर रश्मि को पिलाया.

‘‘लक्ष्मी अम्मां, आप ने मेरी सास की कमी पूरी कर दी,’’ कृतज्ञ हो रश्मि बोली थी.

‘‘तुम मेरी बेटी जैसी हो. मैं तुम्हारा नमक खा रही हूं तो फर्ज निभाना मेरा कर्तव्य है.’’

तुषार ने भी लक्ष्मी की खूब प्रशंसा की.

एक शाम तुषार, रश्मि व बच्ची को ले कर डाक्टर को दिखाने गया तो रास्ते में लोकल ट्रेन का एक्सीडेंट हो जाने के कारण दंपती को घर लौटने में रात के 12 बज गए.

घर में ताला लगा देख दोनों अवाक् रह गए. अपने पास रखी दूसरी चाबी से उन्होंने ताला खोला व आसपास नजरें दौड़ा कर लक्ष्मी को तलाश करने लगे.

चिंता की बात यह थी कि लक्ष्मी, गोलू को भी अपने साथ ले गई थी.

तुषार व रश्मि के मन में लक्ष्मी के प्रति आक्रोश उमड़ पड़ा था. रश्मि बोली, ‘‘यह लक्ष्मी भी अजीब नौकरानी है, एक रात यहीं रह जाती तो क्या हो जाता, गोलू को क्यों ले गई.’’

बच्चे की चिंता पतिपत्नी को काटने लगी. पता नहीं लक्ष्मी का घर किस प्रकार का होगा, गोलू चैन से सो पाएगा या नहीं.

पूरी रात चिंता में गुजारने के पश्चात जब सुबह होने पर भी लक्ष्मी अपने निर्धारित समय पर नहीं लौटी तो रश्मि रोने लगी, ‘‘नौकरानी मेरे बेटे को चोरी कर के ले गई, पता नहीं मेरा गोलू किस हाल में होगा.’’

तुषार को भी यही लग रहा था कि लक्ष्मी ने जानबूझ कर गोलू का अपहरण कर लिया है. नौकरों का क्या विश्वास, बच्चे को कहीं बेच दें या फिर मोटी रकम की मांग करें.

लक्ष्मी के प्रति शक बढ़ने का कारण यह भी था कि वह प्रतिदिन उस वक्त तक आ जाती थी.

रश्मि के रोने की आवाज सुन कर आसपास के लोग जमा हो कर कारण पूछने लगे. फिर सब लोग तुषार को पुलिस को सूचित करने की सलाह देने लगे.

तुषार को भी यही उचित लगा. वह गोलू की तसवीर ले कर पुलिस थाने जा पहुंचा.

लक्ष्मी के खिलाफ बेटे के अपहरण की रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज करा कर वह लौटा तो पुलिस वाले भी साथ आ गए और रश्मि से पूछताछ करने लगे.

रश्मि रोरो कर लक्ष्मी के प्रति आक्रोश उगले जा रही थी.

पुलिस वाले तुषार व रश्मि का ही दोष निकालने लगे कि उन्होंने लक्ष्मी का फोटो क्यों नहीं लिया, बायोडाटा क्यों नहीं बनवाया, न उस के रहने का ठिकाना देखा, जबकि नौकर रखते वक्त यह सावधानियां आवश्यक हुआ करती हैं.

अब इतनी बड़ी मुंबई में एक औरत की खोज, रेत के ढेर में सुई खोजने के समान है.

अभी यह सब हो ही रहा था कि अकस्मात लक्ष्मी आ गई, सब भौचक्के से रह गए.

‘‘हमारा गोलू कहां है?’’ तुषार व रश्मि एकसाथ बोले.

लक्ष्मी की रंगत उड़ी हुई थी, जैसे रात भर सो न पाई हो, फिर लोगों की भीड़ व पुलिस वालों को देख कर वह हक्की- बक्की सी रह गई थी.

‘‘बताती क्यों नहीं, कहां है इन का बेटा, तू कहां छोड़ कर आई है उसे?’’ पुलिस वाले लक्ष्मी को डांटने लगे.

‘‘अस्पताल में,’’ लक्ष्मी रोने लगी.

‘‘अस्पताल में…’’ तुषार के मुंह से निकला.

‘‘हां साब, आप का बेटा अस्पताल में है. कल जब आप लोग चले गए थे तो गोलू सीढि़यों पर से गिर पड़ा. मैं उसे तुरंत अस्पताल ले गई, अब वह बिलकुल ठीक है. मैं उसे दूध, बिस्कुट खिला कर आई हूं. पर साब, यहां पुलिस आई है, आप ने पुलिस बुला ली…मेरे ऊपर शक किया… मुझे चोर समझा,’’ लक्ष्मी रोतेरोते आवेश में भर उठी.

‘‘मैं मेहनत कर के खाती हूं, किसी पर बोझ नहीं बनती, आप लोगों से अपनापन पा कर लगा, आप के साथ ही जीवन गुजर जाएगा… मैं गोलू को कितना प्यार करती हूं, क्या आप नहीं जानते, फिर भी आप ने…’’

‘‘लक्ष्मी अम्मां, हमें माफ कर दो, हम ने तुम्हें गलत समझ लिया था,’’ तुषार व रश्मि लक्ष्मी के सामने अपने को छोटा समझ रहे थे.

‘‘साब, अब मैं यहां नहीं रहूंगी, कोई दूसरी नौकरी ढूंढ़ लूंगी पर जाने से पहले मैं आप को आप के बेटे से मिलाना ठीक समझती हूं, आप सब मेरे साथ अस्पताल चलिए.’’

तुषार, लक्ष्मी, कुछ पड़ोसी व पुलिस वाले लक्ष्मी के साथ अस्पताल पहुंच गए. वहां गोलू को देख दंपती को राहत मिली.

गोलू के माथे पर पट्टी बंधी हुई थी और पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था.

डाक्टर ने बताया कि लक्ष्मी ने अपने कानों की सोने की बालियां बेच कर गोलू के लिए दवाएं खरीदी थीं.

‘‘साब, आप का बेटा आप को मिल गया, अब मैं जा रही हूं.’’

तुषार और रश्मि दोनों लक्ष्मी के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, ‘‘माफ कर दो अम्मां, हमें छोड़ कर मत जाओ.’’

दोनों पतिपत्नी इतनी अच्छी आया को खोना नहीं चाहते थे इसलिए बारबार आग्रह कर के उन्होंने उसे रोक लिया.

लक्ष्मी भी खुश हो उठी कि जब आप लोग मुझे इतना मानसम्मान दे रहे हैं, रुकने का इतना आग्रह कर रहे हैं तो मैं यहीं रुक जाती हूं.

‘‘साब, मेरा मुंबई का घर नहीं देखोगे,’’ एक दिन लक्ष्मी ने आग्रह किया.

तुषार व रश्मि उस के साथ गए. वह एक साधारण वृद्धाश्रम था, जिस के बरामदे में लक्ष्मी का बिस्तर लगा हुआ था.

आश्रम वालों ने उन्हें बताया कि लक्ष्मी अपने वेतन का कुछ हिस्सा आश्रम को दान कर देती है और रातों को जागजाग कर वहां रहने वाले लाचार बूढ़ों की सेवा करती है.

अब तुषार व रश्मि के मन में लक्ष्मी के प्रति मानसम्मान और भी बढ़ गया था.

लक्ष्मी के जीवन की परतें एकएक कर के खुलती गईं. उस विधवा औरत ने अपने बेटे को पालने के लिए भारी संघर्ष किए मगर बहू ने अपने व्यवहार से उसे आहत कर दिया था, अत: वह अपने बेटे- बहू से अलग इस वृद्धाश्रम में रह रही थी.

‘‘संघर्ष ही तो जीवन है,’’ लक्ष्मी, मुसकरा रही थी.

प्रेम विवाह: भाग 1- अभिजित ने क्यों लिया तलाक का फैसला?

अभी अभी कैथरीन और अभिजित में घमासान हो चुका था. अभिजित तैश में आ कर दरवाजा धड़ाम से बंद कर बाहर जा चुका था और कैथरीन चाय का खाली प्याला हाथ में थामे बुत बनी बैठी थी. उस का दिमाग एकदम सुन्न पड़ गया था. इस अप्रत्याशित प्रहार से वह एकदम बौखला गई थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अभि उसे यों छोड़ जाएगा. एक ही झटके में उस ने सारे रिश्तेनाते तोड़ दिए थे.

कैसी विडंबना थी कि जो व्यक्ति उस की मरजी के बिना एक कदम भी न उठाता था, वह उसे आज यों ठुकरा कर चला गया था. जो पुरुष उस के बिना एक पल भी नहीं रह पाता था, उसे अब उस की शक्ल तक देखना भी गवारा न था.

अभि में यह बदलाव धीरेधीरे आया था. पहले उस की दिनचर्या बदली थी.

‘‘डार्लिंग,’’ अभि ने कहा था, ‘‘हमारा रविवार का पिक्चर का प्रोग्राम कैंसिल. मुझे कुछ छात्रों के शोधकार्य जांचने हैं, उन का मार्गदर्शन करना है.’’

‘‘ठीक है,’’ उस ने सिर हिलाया. यह सब तो एक कालेज के प्रोफैसर की कार्यशैली में शामिल ही था. इस में कोई नई बात न थी.

फिर नित नए बहाने बनने लगे. आज स्टाफ मीटिंग है तो आज कुछ और.

इस पर भी उसे कोई शक नहीं हुआ. पर एक दिन उस ने अभिजित को रंगे हाथों पकड़ लिया. कैथरीन अपनी अमेरिकन सहेली डोरिस के साथ सुपर मार्केट में खरीदारी कर रही थी कि डोरिस ने उसे कोचते हुए कहा, ‘‘कैथी, उधर देख तेरा मियां बैठा है. वहां, उस कौफी शौप में. और यह उस के साथ कौन है भई? यह तो कोई स्टुडैंट दिखती है. पर इन्हें देखने से तो नहीं लगता कि ये पढ़ाईलिखाई की बातें कर रहे हैं. कैथी, मुझे तो कुछ दाल में काला नजर आता है. सच तो यह है कि मैं ने एक उड़ती हुई खबर सुनी थी कि तेरे पति का किसी छात्रा के साथ चक्कर चल रहा है. आज अपनी आंखों से देख भी लिया.’’

कैथरीन का चेहरा फक पड़ गया था.

‘‘कैथी, तू ने गौर किया किस तरह ये दोनों दीनदुनिया से बेखबर, एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले ऐसे बातें कर रहे हैं जैसे पे्रमी हों. मुझे तो आसार अच्छे नजर नहीं लगते. कैथी, तू अपने पति की लगाम कस कर रख, नहीं तो बाद में पछताना पड़ेगा.’’

कैथरीन गुस्से से होंठ चबाते हुए बोली, ‘‘आने दो अभि को घर पर. आज उस की ऐसी खबर लूंगी कि जिंदगी भर याद रखेगा. उसे अपने पद की गरिमा का भी खयाल नहीं. इस तरह खुलेआम, दिनदहाड़े अपनी छात्रा के साथ रोमांस लड़ाने का क्या मतलब?

‘‘आज मैं ने तुम्हें नौर्थ मौल में देखा. वह लड़की कौन थी जिस के साथ तुम बैठे कौफी पी रहे थे?’’ कैथरीन ने सवाल दागा.

अभि चौकन्ना हो गया, ‘‘वह तो सुहानी है मेरी एक स्टुडैंट. शोधकार्य कर रही है और जबतब मुझ से मदद मांगने आ जाती है.’’

‘‘लेकिन यह काम कालेज में या अपने घर में भी तो हो सकता है. तुम जानते हो पब्लिक प्लेस में तुम्हें किसी लड़की के साथ देख कर लोग इस का गलत मतलब निकाल सकते हैं.’’

‘‘ओह,’’ अभि ने मुंह बिचकाया, ‘‘लोगों का क्या, उन्हें तो तिल का ताड़ बनाने में देर नहीं लगती और तुम भूल रही हो कि यह अमेरिका है, इंडिया नहीं. यहां लड़कालड़की साथ बैठे हों तो कोई परवाह नहीं करता.’’

‘‘सो तो है पर फिर भी हमें सावधानी बरतनी चाहिए ताकि किसी को उंगली उठाने का मौका न मिले?’’

वह खोदखोद कर अभि से सवाल पूछती रही. आखिर सचाई सामने आ ही गई.

‘‘अब असली बात सुन ही लो तो बेहतर है. मैं तुम्हें कई दिनों से बताना चाह रहा था और सही मौके की तलाश में था. मैं और सुहानी एकदूसरे को चाहते हैं. हम एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते.’’

उसे एक झटका लगा.

‘‘यह क्या कह रहे हो अभि? यह क्या तुम्हारी प्यार करने की उम्र है?’’

‘‘प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती,’’ अभि ने कहा.

‘‘ठीक है, पर जरा अपनी मानमर्यादा का तो खयाल करो. वह लड़की तुम से उम्र में करीब 20 साल छोटी है.’’

‘‘इस से क्या होता है?’’

‘‘अभि पागल न बनो,’’ उस ने उसे प्यार से समझाना चाहा.

पर अभिजित अपनी बात पर अड़ा रहा.

‘‘ठीक है,’’ कैथरीन ने मौके की नजाकत समझते हुए हथियार डाल दिए. उस ने स्थिति से समझौता करने की सोची, ‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं की कद्र करती हूं. तुम उस लड़की के प्रति आकर्षित हो और वह भी तुम्हें शह दे रही है. हमारी शादी को 14 साल हो गए और हो सकता है कि तुम अपनी जिंदगी में कुछ नयापन चाह रहे हो. खैर, जो हुआ सो हुआ. मैं तुम्हारी इस क्षणिक कमजोरी को, इस गलती को नजरअंदाज करने के लिए तैयार हूं. अब यह नादानी छोड़ो और उस मुई सुहानी को अलविदा कह कर मेरे पास वापस आ जाओ.’’

‘‘नहीं, हम ने तय कर लिया है कि हम एकदूसरे के बिना नहीं रह सकते. मुझे तुम से तलाक चाहिए.’’

‘‘तलाक,’’ कैथरीन के दिमाग में जैसे एक हथौड़ा लगा. एकबारगी तलाक की मांग. तो मामला यहां तक पहुंच चुका है, उस ने सोचा.

‘‘अभि, यह तुम क्या कह रहे हो?’’ उस के होंठ थर्राए, ‘‘हम ने प्रेम विवाह किया था. इतने साल साथ बिताए हैं. क्या यह बात तुम्हारे लिए कोई माने नहीं रखती?’’

‘‘मैं तुम से बहस नहीं करना चाहता.

मैं तुम्हें सिर्फ इतना बताना चाहता हूं कि मेरा इरादा अटल है. मुझे तुम से तलाक चाहिए,

बस. मैं और सुहानी शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं.’’

‘‘अभि,’’ उस के मुंह से एक हृदयविदारक चीख निकली पर अभि कहां पसीजने वाला था. कैथरीन के गिड़गिड़ाने और उस के आंसुओं का उस पर कोई असर नहीं हुआ. वह टुकुरटुकुर देखती रही और अभिजित एक छोटी अटैची में अपना सामान भर कर चला गया.

अब क्या करे वह? उस ने अपने से सवाल किया. इस देश में यह सब होता ही रहता था. रोज जोड़े बदलते हैं, मानो जुराब के जोड़े हों. शादी के बंधन की कोई मान्यता ही न थी. मन भर गया तो अलग हो गए. आज इस के साथ तो कल किसी और के साथ.

अब वह भी उस जमात में शामिल हो जाएगी. तलाकशुदा, परित्यक्ता, पति की ठुकराई हुई, अकेली, गतिहीन. एक बिना मस्तूल की नाव की तरह डूबतीउतराती…

कल तक उस की सखीसहेलियां उस से रश्क करती थीं. आपस में बातें करते हुए वे कहतीं, ‘‘कितना सीधा पति मिला है कैथरीन को. उस के इशारों पर नाचता है. सब से बड़ी बात यह कि वह कैथी को छोड़ किसी और की तरफ देखता भी नहीं. भई कैथरीन, हमें भी यह गुर बताओ कि अपने पति को कैसे वश में रखा जाता है?’’

कैथरीन हंस देती, ‘‘मेरा मियां शादी से पहले अपनी मां का पल्लू थामे रहता था. अब मेरे आंचल से बंधा हुआ है.’’

वे सब ठहाका लगा कर हंसतीं और कैथरीन फूली न समाती. पर पलक झपकते ही उस का नीड बिखर गया था. उस के सपनों का महल ताश के पत्तों सा भरभरा कर गिर गया था.

अब क्या करे वह? इंडिया चली जाए? पर वहां उस के लिए कौन बैठा था. एक मां थी, जो कभी की चल बसी थी और ससुराल में उस के लिए कोई जगह न थी. उसे अभि के शब्द याद आए, ‘मैं सुहानी के बिना जी नहीं सकता.’ वह विद्रूप सी हंसी हंसी. यही सब तो अभि ने एक दिन उस से भी कहा था.

कैथरीन अचानक पिछली यादों में खो गई. वह उस समय सुहानी की उम्र की ही थी. कालेज में पहले ही दिन उस की सहेलियों ने उस से कहा, ‘तुझे खुश होना चाहिए कि तू इंगलिश में औनर्स कर रही है और तेरा प्रोफैसर है अभिजित अय्यर.’

‘क्यों, कोई तोप है वह?’ उस ने लापरवाही से कहा.

‘अरे तू उसे देख लेगी तो अपने होश खो बैठेगी. कितना हैंडसम है वह.’

‘फिल्म स्टार है क्या?’

‘अरी, फिल्म स्टार से भी बढ़ कर है. फिल्म स्टार में सिर्फ शक्ल होती है. इस में शक्ल और अक्ल दोनों हैं. कालेज की लड़कियां उस के आगेपीछे मंडराती हैं पर वह है कि किसी को घास नहीं डालता.’

‘क्यों भला?’ उसे कुतूहल हुआ.

‘क्या बताएं, बड़ा ही रूखा है. एकदम नीरस, घुन्ना. बस यों समझो कि किताबी कीड़ा है. नाक की सीध में क्लास में आता है और पढ़ा कर चला जाता है. न किसी से लेना न देना. किसी लड़़की की ओर ताकता भी नहीं.’

‘अच्छा.’

‘हां, हम सब कोशिश कर के हार गईं, किसी को लिफ्ट नहीं देता. बड़ी टेढ़ी खीर है.’

‘अभी उस का पाला कैथरीन नामक लड़की से नहीं पड़ा है,’ वह मुसकरा कर बोली.

‘अच्छा जी, इतना गुमान है अपने रंगरूप पर? मैं शर्त बदती हूं कि तू उसे डिगा नहीं सकेगी. मुंह की खाएगी और अपना सा मुंह ले कर आएगी,’ शीला ने कहा.

‘लगी शर्त. मैं दावे से कहती हूं कि फर्स्ट ईयर खत्म होतेहोते प्रोफैसर साहब मेरी जेब में होंगे. अगर जीत गई तो तुम्हें मुझे ताज होटल में दावत देनी होगी.’

‘और अगर ऐसा नहीं हुआ तो?’

‘तो मैं तुम लोगों को चौपाटी पर चाट खिलाऊंगी.’

‘डन,’ उन्होंने परस्पर हाथ मिलाया.

अब ‘औपरेशन अय्यर’ शुरू हुआ. कैथरीन जानबूझ कर अभिजित का ध्यान अपनी तरफ खींचने का प्रयास करती. वह क्लास में कोई सवाल पूछता तो झट अपना हाथ उठा देती. उस के सवालों का उलटापुलटा जवाब देती. बाकी विद्यार्थी हंसते और अय्यर खिसियाता. उसे अपने चश्मे के अंदर से घूरता. क्लास में देर से आती ताकि अभिजित का ध्यान उस की तरफ खिंचे. जब उस ने सुना कि अभिजित शेक्सपीयर के एक नाटक का निर्देशन करने वाला है, तो झट नाटक में भाग लेने पहुंच गई. उस के बाद वह उस के पास जबतब अपने प्रश्नों के समाधान के लिए पहुंच जाती.

एक दिन उस ने केक का डब्बा आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘लीजिए सर.’

‘यह क्या है?’

‘आज मेरा जन्मदिन है. यह मेरी मां का बनाया हुआ केक है, जो उन्होंने गोवा से भेजा है और मैं आप के लिए लाई हूं.’

‘ओह धन्यवाद,’ उस ने केक का टुकड़ा मुंह में भर लिया.

दूसरे दिन वह गेट के बाहर निकली तो अभिजित ने उसे अपनी खटरा कार से आवाज दी, ‘सुनिए मिस कैथरीन.’

कैथरीन ने चौंकने का नाटक किया, ‘ओह सर आप हैं. कहिए, मुझ से कोई काम था?’

‘हां, मैं तुम्हारे लिए फूल लाया था,’

उस ने गुच्छा आगे किया, ‘तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा.’

‘ओह,’ वह हर्ष से किलकी, ‘कितने सुंदर फूल हैं, वे भी लाल गुलाब के, जो मुझे बेहद पसंद हैं.’

‘क्या मैं आप को कहीं ड्रौप कर सकता हूं?’ अभि ने झिझकते हुए कहा.

‘ओह शुक्रिया सर, पर आप को मेरी वजह से परेशानी होगी. मैं मरीन ड्राइव पर लेडीज होस्टल में रहती हूं.’

‘मैं मलाबार हिल पर रहता हूं. आप को रास्ते में छोड़ता चला जाऊंगा.’

‘ओह मलाबार हिल तो बड़ा शानदार एरिया है. वहां चीफ मिनिस्टर की कोठी और उद्योगपतियों के बंगले हैं.’

‘हां, उन्हीं बंगलों के बीच मेरा किराए का मकान है, जो जीर्णशीर्ण और शायद 100 साल पुराना है. गगनचुंबी, चमचमाती इमारतों के बीच एक धब्बे जैसा. उस में मेरे बाप दादा आ कर बस गए थे. मैं अपने सम्मिलित परिवार के साथ वहां रहता हूं.’

‘सम्मिलित परिवार के माने…?’

‘मैं, मेरे मातापिता, मेरी 2 छोटी बहनें, एक विधवा बूआ, उन के 2 बेटे, एक दादी व एक नानी.’

‘इतने सारे लोग एकसाथ,’ उस ने अपना सिर थाम लिया. ‘मेरा मतलब, मुझे देखिए सर मेरा इस दुनिया में एक मां को छोड़ कर और कोई नहीं है. भाईबहन का न होना मुझे बहुत खलता है.’

‘क्या तुम कभी मेरे परिवार से मिलना चाहोगी?’

‘अवश्य, जब आप कहें… यहां गाड़ी रोक लीजिए. इन फूलों के लिए अनेक धन्यवाद. बाई द वे सर क्या आप जानते हैं कि लाल गुलाब प्यार का प्रतीक होता है?’

‘अच्छा? यह बात मैं नहीं जानता था.’

‘हां, लाल गुलाब खासकर उन्हीं लोगों को दिया जाता है, जिन के लिए मन में प्यार हो मसलन प्रेयसी या पत्नी.’

वह उस की ओर विमूढ़ सा देखता रह गया. कैथरीन खिलखिलाते हुए होस्टल के गेट के अंदर दाखिल हो गई. उस की सहेलियों ने उसे ताज होटल में खाना खिलाया और बीए की परीक्षा पास कर के वह निकली तो दीक्षांत समारोह के दिन उस के एक हाथ में कालेज की डिगरी थी और दूसरे हाथ की उंगली में अभिजित की दी हुई सगाई की अंगूठी झिलमिला रही थी.

पहला झटका उसे तब लगा जब उस ने जाना कि अभि के मातापिता उन दोनों की शादी के खिलाफ हैं.

‘क्या इस पूरे शहर में तुझे इसे छोड़ और कोई लड़की नहीं मिली?’ मांबाप ने लताड़ा, ‘हम उच्च कोटि के ब्राह्मण हैं और वह क्रिश्चियन. कैसे जमेगा? हमारे खानपान, रहनसहन में जमीनआसमान का अंतर है.’

अभि ने अपने पिता को किसी तरह समझाबुझा लिया था पर मां अड़ के बैठी थीं. ‘अरे सिर्फ सुंदर और पढ़ीलिखी होने से क्या होता है,’ उन्होंने बहस की थी, ‘शादी के लिए लड़की का कुल, गोत्र और खानदान देखा जाता है, कुंडलियां मिलाई जाती हैं. क्या हम नहीं जानते कि ईसाई लोग क्या हैं. ये पिछड़ी जाति के लोग पहले अंगरेजों के यहां बैरा और बावर्ची का काम किया करते थे. फिर बपतिस्मा पढ़ कर ईसाई बन कर अंगरेजों के बराबर कुरसी पर जा डटे. इन्हें हम काले साहब कहा करते थे पर ये लोग अपने को अंगरेजों से कम नहीं समझते थे.’

यह सब कैथरीन ने सुना तो तिलमिला कर बोली, ‘अपनी मां से कहो कि मेरे दादा अंगरेज थे और मेरी दादी ब्राह्मण. उन का प्रेम विवाह हुआ था. मेरी मां के पूर्वज पुर्तगाली थे.’

‘छोड़ो यह सब. इन बातों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं ने मां से साफ कह दिया कि मैं शादी करूंगा तो केवल तुम से. आखिर मैं अपनी मां का इकलौता लाड़ला बेटा हूं और यह घर भी मेरी बदौलत चलता है, इसलिए मां को मेरी बात माननी ही पड़ी.’

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