नई कार कैसे सहें ईर्ष्या का वार

कार स्टाइल और स्टेटस सिंबल बन गई है. ऐसे में कौन नहीं चाहता कि उस के पास भी ऐसी कार हो, जिसे देखने वाले बस देखते रह जाएं और उस गाड़ी को खरीद कर, जिसे वे सपने में देखते थे, उन का ड्रीम पूरा हो जाए. ऐसा ही सपना नीरज और उस के पार्टनर ने भी काफी समय पहले देखा था, जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने दिनरात मेहनत कर के काफी पैसे कमाए और फिर अपनी सेविंग से एक महंगी कार खरीदी. इस महंगी कार को देख कर उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि उन का सपना पूरा हो गया है.

लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन की यह कार देख कर लोग उन से ईर्ष्या करने लगेंगे, परिवार के सदस्य ही पराए हो जाएंगे, फ्रैंड्स उन्हें बातबात पर ताने मारने लगेंगे. उन की कार लेने की खुशी धीरेधीरे दर्द में बदलने लगेगी. फिर भी दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और सभी के बीच तालमेल बनाने की कोशिश कर के इस वाकेआ से कुछ चीजें भी सीखीं.

क्यों करते हैं लोग ईर्ष्या

अकसर लोग तब ईर्ष्या करते हैं जब वे खुद से, अपने पार्टनर से, अपनी चीजों से, अपनी तरक्की से, अपने धनवैभव से खुश नहीं होते हैं. उन का ऐसा विचार होता है कि उन के पास कितना भी हो, लेकिन वे अपनी चीजों से संतुष्ट न हो कर दूसरों की चीजों को देखदेख कर मन ही मन जलते रहते हैं. यहां तक कि कई बार तो ताने मारने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

लेकिन शायद यह नहीं जानते कि दूर के ढोल सुहावने लगते हैं. जो जितना संपन्न दिखता है, जरूरी नहीं कि उतना हो ही, पर देखने वाले को तो ऐसा ही लगता है जैसे सामने वाल के पास सबकुछ है और मेरे पास कुछ भी नहीं. ऐसे लोग बस दूसरों की हर चीज पर नजर रखते हैं और उन्हें देखदेख कर जलते रहते हैं. यहां तक कि ताने मारने में भी पीछे नहीं रहते हैं.

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ईर्ष्या कौन करता है

परिवार के लोग

चाहे आप जौइंट फैमिली में रहते हों या फिर न्यूक्लीयर फैमिली में, आप के परिवार में कोई न कोई ऐसा सदस्य जरूर होगा, जो आप की चीजों, आप की तरक्की से खुश नहीं होगा. उस का हावभाव, उस के बात करने का तरीका आप को बता देगा कि वह आप से जलता है. फिर चाहे वह बड़े भाई की पत्नी हो, भाभी हो या खुद भाई ही क्यों न हो.

भले ही उन के पास गाड़ी हो, लेकिन वे नहीं चाहेंगे कि आप भी गाड़ी या फिर कोई नई चीज खरीदें, क्योंकि सामाजिक दूरी जो मिट जाएगी. लोग उन्हें भी उतना ही संपन्न समझेंगे जितना आप को. जो उन्हें हरगिज बरदाश्त नहीं होगा और अगर उन के पास गाड़ी बगैरा नहीं है तो फिर तो वे बिलकुल भी नहीं चाहेंगे कि आप खरीदें और अगर खरीद भी ली है तो आप को ताने मारने में बिलकुल पीछे नहीं रहेंगे. इस तरह के लोग आप को परिवार में मिल जाएंगे.

औफिस के लोग

आप के औफिस में भी ऐसे लोग होंगे, जो पीठ पीछे आप की बुराई करते होंगे और आप की बौस द्वारा की गई तारीफ से जरा भी खुश नहीं होते होंगे. ये वही लोग हैं जो न तो आप के साथ रह कर आप के साथ होते हैं और न ही आप के पीछे से.

अगर आप ने इन से पहले या इन से अच्छी गाड़ी खरीद ली है, फिर तो ये बातबात में आप पर ताना मारने में पीछे नहीं रहेंगे. ये कहने में भी देर नहीं लगाएंगे कि वैसे तो इतनी कम सैलरी है या फिर हमेशा पैसों के लिए रोता रहता है और गाड़ी पता नहीं कहां से खरीद ली. यहां तक कि आप की तरक्की को देख कर आप से बात

करना भी छोड़ सकते हैं. फिर भी आप घबराएं नहीं और ऐसे लोगों का समझदारी के साथ सामना करें.

पुराने क्लासमेट

अकसर आप को तरक्की करते देख आप के पुराने स्कूल फ्रैंड्स भी आप के गाड़ी या फिर कोई अन्य महंगी चीज खरीदने पर आप को यह ताना मारने में भी पीछे नहीं रहेंगे कि पढ़ाई तो करता नहीं था, पता नहीं गाड़ी कहां से खरीद ली. आजकल पता नहीं कहां काम कर रहा है जो गाड़ी खरीद ली. यही नहीं हो सकता है कि ईर्ष्या के कारण आप से बात करना भी छोड़ दे. फिर भी आप उस के साथ गलत व्यवहार न करें, बल्कि अपनी अच्छाई से उस का दिल जीतने की कोशिश करें.

अपने पड़ोसी

आप के पड़ोसी चाहे कितने भी अच्छे क्यों न हों, लेकिन वे आप के घर में नई आती चीजों को देख कर बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. ऐसे में हर समय उन की नजरें आप के घर में ही लगी रहती हैं कि आप के घर कौन आया, कौन गया, क्या नया आया. आप की हर छोटीछोटी चीज पर उन की नजर टिकी रहती है.

ऐसे पड़ोसियों से बचना जरूरी है. हो सके तो उन से जो चीजें छिपाई जा सकें उन्हें दिखाने से बचें. अगर वे आप की नई गाड़ी को देख कर ताने मारें तो आप चुप रहें और ज्यादा शोऔफ करने से बचने की कोशिश करें.

कैसे निबटें

घमंड न करें

अकसर हमारी यह सोच होती है कि जब भी हम कोई बड़ी चीज जैसे गाड़ी, मकान बगैरा खरीद लेते हैं तो हमारे अंदर घमंड आ जाता है. हम फिर खुद के सामने किसी को कुछ नहीं समझते हैं. ऐसे में आप को जरूरत है कि आप खुद पर घमंड कर के दूसरों को नीचा न दिखाएं, बल्कि अपनी गाड़ी को सिर्फ अपनी जरूरत का टूल समझों.

दूसरों के सामने अपनी गाड़ी की बढ़ाचढ़ा कर तारीफ न करें, बल्कि जब कोई पूछे तो यही कहें कि यार जरूरत थी, इसलिए खरीदी और बड़ी और अच्छी गाड़ी खरीदने के पीछे यही मकसद है कि ये चीजें बारबार नहीं खरीदी जाती इसलिए एक बार में ही सोचसमझ कर खरीदी है.

फ्रैंड्स को लिफ्ट दें

अगर आप के फ्रैंड्स आप के गाड़ी खरीदने के कारण आप से ईर्ष्या करने लगे हैं तो आप भी उन से यह सोच कर बात करना बंद न कर दें कि ये मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं, बल्कि आप उन्हें लिफ्ट दें, आउटिंग पर ले जाएं. आप का ऐसा व्यवहार देख कर वे आप को अपनी गुड लिस्ट में शामिल कर लेंगे. इस से हो सकता है कि धीरेधीरे उन के मन से आप के लिए ईर्ष्या खत्म होने लगे.

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फैमिली के काम आएं

भले ही आप की नई कार को देख कर आप के फैमिली वाले आप को कितने भी ताने मारें, फिर भी आप उन्हें अपने दिल से न निकालें, बल्कि उन के काम आएं. जैसे उन्हें ट्रिप पर ले जाएं. अगर उन्हें कहीं बाहर जाना है तो आप उन्हें स्टेशन, एअरपोर्ट तक ड्रौप कर दें या फिर उन्हें कहीं आसपास जाना है तो आप उन्हें खुद बोलें कि आप हमारी गाड़ी से चले जाओ.

आप के ऐसे व्यवहार से उन्हें लगेगा कि आप कितने अच्छे हैं और हम उन के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं. हो सकता है कि आप का यह व्यवहार आप के अपनों के मन से आप के प्रति ईर्ष्या को खत्म कर दे.

मन पर न लें

चाहे आप के परिवार वाले हों, फ्रैंड्स हों या औफिस वाले, अगर आप के गाड़ी खरीदने के बाद आप को बातबात पर ताने मारें, तो उन की बातों को मन पर न लें और न ही उन्हें कोई पलट कर जवाब दें, क्योंकि इस से न सिर्फ संबंध बिगड़ेंगे, बल्कि आप खुद को भी परेशान करेंगे. इसलिए खुद पर भरोसा कर के आगे बढ़ें.

जब प्रेमी हो बेहद खर्चीला 

‘डेटिंग’ शब्द मन के कोमल भावों को जगाने के लिए काफी है. हमारा प्रेमी हमारे साथ होता है, जिस में हम अपने होने वाले जीवनसाथी की छवि देखते हैं. उस के साथ समय बिताना, आने वाले जीवन के सुहाने सपने सजाना कितना सुहावना होता है ये सब. कैसा होगा हमारा लाइफ पार्टनर, यह विचार अकसर मन में घूमता है. हम सभी अपने दिलों में एक तसवीर और दिमाग में एक चैकलिस्ट रखते हैं कि हमारे पार्टनर में ये खूबियां होंगी, वह स्मार्ट होगा, केयरिंग होगा, मु झे सम झेगा आदि. अमूमन लिस्ट लंबी ही होती है.

लेकिन इस लिस्ट में से एक गुण जो अकसर छूट जाता है वह है उस की ज्यादा या कम खर्चा करने की आदतें. आप का प्रेमी कितना मनीस्मार्ट है, इस का सीधा असर आप के रिश्ते पर पड़ता है. ‘यूनिवर्सिटी औफ ऐरीजोना’ ने करीब 500 लोगों का डाटा इकट्ठा किया. सभी अपने 20 के दशक में थे और अपने प्रेमी के प्रति भावनात्मक रूप से प्रतिबद्ध थे. इस शोध का परिणाम रहा कि वे कपल जिन में प्रेमी पैसों को ले कर जिम्मेदाराना स्वभाव के थे, उन में आपसी खुशी व तालमेल अधिक देखने को मिला. इस के उलट जिन कपल्स में पैसे के प्रति लापरवाही दिखी, वहां एकदूसरे पर कम विश्वास देखने को मिला. ‘यूनिवर्सिटी औफ मिशिगन’ में भी एक शोध हुआ जहां यह बात सामने आई कि शुरुआत में हो सकता है कि खर्च को ले कर एकदूसरे के विपरीत सोच आपसी आकर्षण का कारण बने, किंतु लंबे समय में इस से झगड़े, मनमुटाव और अधिक चिंता के लक्षण देखने को मिले.

रैड फ्लैग

इस का सीधा सा अर्थ है कि जैसे रंगरूप, व्यक्तित्व, व्यवहार आदि एक रिश्ते के लिए माने रखते हैं, वैसे ही पैसे के प्रति सोच और रवैया भी आपसी तालमेल के लिए आवश्यक है. यदि आप का प्रेमी खर्चीला है तो इस में आप कुछ समय तक तो खुश हो सकती हैं, उस के दिए तोहफों और महंगी जगहों पर करवाए डिनर को ले कर इतरा सकती हैं, किंतु लंबे समय में इस गुण को अवगुण बनने में देर नहीं लगेगी. फिनसेफ कंपनी के फाउंडर डाइरैक्टर मृण अग्रवाल कहते हैं कि किसी रिश्ते को बनाए रखने के लिए यह जरूरी होता है कि कपल आर्थिक मामलों में एकजैसी सोच रखते हों. दोनों की मानसिकता कमाने, बचाने, निवेश करने और लोन लेने में मिलती हो तो जिंदगी के अन्य उतारचढ़ाव आसानी से झेले जा सकते हैं. हालांकि पैसों से जुड़ी बातचीत तभी होनी चाहिए जब रिश्ते को कुछ समय बीत चुका हो.

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शुरुआत में पैसों से संबंधित बातें ठीक नहीं, ऐसा एक हाल ही में की गई स्टडी से सामने आया, जिस में करीब 60% लोगों ने माना कि कम से कम 6 महीनों बाद ही प्रेमियों को एकदूसरे से अपनी आर्थिक स्थिति शेयर करनी चाहिए. मगर यदि आप का प्रेमी तब भी अपने आर्थिक हालात के बारे में बात करने से कतराए तो यह एक रैड फ्लैग है.

तारेश भाटिया, सर्टिफाइड फाइनैंशियल प्लैनर कहते हैं कि आप का प्रेमी पिछले 4-5 सालों से नौकरी कर रहा है और अभी तक कोई ऐसेट नहीं बना पाया है जैसे घर, गाड़ी, बैंक बैलेंस, म्यूचुअल फंड या फिक्स्ड डिपौजिट तो इस का मतलब हो सकता है कि उस का कोई फाइनैंशियल गोल ही नहीं हैं. यह निश्चित तौर पर चेतावनी की तरह देखा जाना चाहिए. यह आर्थिक लापरवाही का चिह्न है, जिस का गलत असर आप के आने वाले जीवन पर अवश्य पड़ेगा.

तारेश सु झाव देते हैं कि यदि आप का प्रेमी बहुत महंगी जगह डिनर पर ले जाए या फिर किसी फैंसी जगह घुमाने ले जाए, जबकि उस की आमदनी इतनी ऊंची जगह के लायक नहीं है तो आप को उसे बढ़ावा नहीं देना चाहिए. हो सकता है उस की आदत अपनी आय से अधिक खर्च करने की हो. आप को इस के बारे में जितनी जल्दी पता चल जाए, उतना बेहतर, क्योंकि शादी के बाद ऐसी आदतों के सुधर जाने के चांस कम ही होते हैं.

कैसे पहचानें कि आप का प्रेमी पैसे के प्रति लापरवाह तो नहीं?

कीमत से बेअसर

वर्षा कहती है, ‘‘रेहान के साथ घूमने जाने का मतलब है शौपिंग, उसे खरीदारी करना इतना पसंद है कि क्या बताऊं. उसे हर चीज चाहिए. सबकुछ लेटैस्ट. चाहे ब्रैंडेड कपड़ेजूते हों या फिर इलैक्ट्रौनिक गैजेट, रेहान को सबकुछ चाहिए. यू नेम इट. लेकिन मेरी परेशानी यह है कि कुछ भी खरीदते समय वह उस की कीमत ही नहीं देखता. उस का यही हाल डिनर का बिल चुकाने, घर के लिए ग्रोसरी खरीदने या फिर वेटर को टिप देते समय भी है. ऐसा कब तक चलेगा? आखिर हम प्राइवेट नौकरियों में हैं. कोई खजाना तो गड़ा नहीं है हमारे पास.’’

पिछले 3 सालों से कपल रहे रेहान और वर्षा अब शादी के बारे में सोच रहे हैं. ऐसे में वर्षा का भविष्य को ले कर चिंताग्रस्त होना स्वाभाविक लगता है.

‘हाऊ टु बी हैप्पी पार्टनर्स’ की लेखिका डा. टीना टेसीना कहती हैं, ‘‘रिश्ते में आर्थिक बेवफाई तब होती है जब आपसी संवाद साफ न हो या फिर आप मतभेद अवौइड कर रहे हों. समय रहते पैसों को ले कर बातचीत कर लेने में ही भलाई है. एक आदतन खर्चीले व्यक्ति के साथ जिंदगी बिताना आसान नहीं होता. उस पर आगे चल कर उस के कर्जों में डूब जाने की आशंका भी अधिक रहती है. प्रेमी वो अच्छा जो जीवनमूल्यों पर ध्यान दे न कि केवल भौतिकताओं और दिखावों पर.

चादर से लंबे पैर

शिखा का बौयफ्रैंड उस की सहेलियों के लिए जलन का कारण है. उस का बीएमडब्ल्यू कार में आना, महंगे तोहफों से शिखा को रि झाना, ऊंचे रेस्तराओं में पार्टी देना, इन सब से आज शिखा खुश है परंतु कहीं उस के मन में एक सवाल कुलबुलाता रहता है कि एक साधारण सी कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर होते हुए वह ये सब कैसे अफोर्ड करता है? स्पष्ट है कि वह क्रैडिट कार्ड और लोन के बलबूते यह जिंदगी जी रहा है. तारेश भाटिया कहते हैं कि आप का प्रेमी कैसे कपड़े पहनता है, कैसा लाइफस्टाइल जीता है, कौन सी गाड़ी चलाता है, इन सब प्रश्नों में आप को इस बात का उत्तर मिलेगा कि कहीं उस का जिंदगी जीने का ढंग उस की आय के मुकाबले बेपरवाह तो नहीं. अगर वह बचत की नहीं, केवल खर्चे की बातें करता है तो यह ध्यान देने लायक बात है, क्योंकि जल्द ही उस के क्रैडिट बिल उस का वजूद खाने लगेंगे. इसलिए इस बात को उस की शानशौकत में दब कर टालें नहीं, बल्कि जितना जल्दी हो सके उस से इस विषय में बात करें.
यदि आर्थिक फुजूलखर्च चलता ही रहे तो इस का मतलब यह भी है कि आप का प्रेमी आप को अपने खर्चों से कम आंकता है. उस के लिए खर्चीला जीवन आप से अधिक महत्त्वपूर्ण है.

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टीना टेसीना इस आदत को संबंधों में विश्वासघात की तरह देखती हैं. यश और निवेदिता, दोनों 30 के दशक में हैं और जल्दी ही शादी करने वाले हैं. शादी से पहले दोनों ने एकदूसरे के निवेश और बचत के बारे में खुल कर बातचीत की. वे कहते हैं, ‘‘हम पिछले 5 साल से प्रेमी हैं. ऐसे में शादी से पहले हमें एकदूसरे के बारे में पूरी जानकारी होनी जरूरी है. घर, गाड़ी, यहां तक कि कैमरा व लैपटौप को भी हम अच्छे असेट मानते हैं.’’

निवेदिता बताती है, ‘‘यश, जोकि एक मार्केटिंग मैनेजर हैं, की आदत जरूरत से अधिक खर्च करने की थी. मैं एक बैंकर हूं. बचत करना और सही जगह निवेश करना मेरे जौब का हिस्सा है. यश की अधिक खर्चा करने की आदत ने एक बार हमारा ब्रेकअप भी करवा दिया था. दिक्कत यह थी कि हमें पता ही नहीं चलता कि पैसे कहां खर्च हो गए. दरअसल, यश को रोज बाहर खाने और पीने की आदत थी. अच्छे रेस्तरां में खाना और ड्रिंक्स बहुत महंगा पड़ता है.

तब मैं ने यश से पूछा कि उसे बाहर क्या पसंद है बाहर के खाने का स्वाद, वहां का माहौल या फिर घर पर खाना पकाने का आलस, फिर काफी विचार कर के दोनों ने अपनी ग्रौसरी लिस्ट में रैडी टु कुक रैसिपीज जोड़ लीं ताकि घर पर स्वाद बदला जा सके और खाना बनाना भी आसान रहे. एकसाथ सोचने से आप जल्दी सही निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं. जब से दोबारा पैचअप हुआ है, हम अपनी आज की और भविष्य की आर्थिक जरूरतों का पूरा ब्यौरा रखते हैं.’’ मनोवैज्ञानिक कोण

मनोवैज्ञानिक डा. प्रीति कहती हैं कि हमारे जो ट्रेट साधारणतया बाहर नहीं आते, वे आर्थिक लेनदेन में आसानी से निकल आते हैं. इसलिए प्रेमी के साथ आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि कहीं उन के अधिक खर्च करने की आदत कोई रैड फ्लैग तो नहीं. जैसे आप का प्रेमी आप के आर्थिक तौरतरीकों को काबू करने की कोशिश करें या फिर आप की खर्च करने या न करने की प्रवृत्ति को नीचा दिखाए. इन सब के पीछे उस की अपनी मनोग्रंथि हो सकती है. प्रेमी के प्यार में पागल हो कर आप की अपनी विवेचना और साफ सोचनेसम झने की शक्ति कम हो सकती है. ‘‘जब हम प्यार में होते हैं तो हम अपने प्रेमी की हर बात पर विश्वास करते हैं और उस की कमियों को नजरअंदाज करते हैं,’’ यह कहना है डा. प्रीति का.

अपोजिट अट्रैक्ट

अंगरेजी में कहते हैं कि हम उन की तरफ आकर्षित होते हैं, जो हम से बिलकुल अलग होते हैं या विपरीत सोच और स्वभाव के होते हैं जैसे अंतर्मुखी लोग बहिर्मुखी लोगों की तरफ आकर्षित होते हैं. लेकिन अगर आप पैसे बचाने के लिए घर से लंच ले कर औफिस जाती हैं, वहीं आप का प्रेमी रोज लंचडिनर सब बाहर से मंगवा कर खाता है तो आप दोनों की बचत कैसे होगी?

सुमन का प्रेमी सैल्फ पैंपरिंग में बहुत विश्वास रखता है. उसे हर महीने एक बेहतरीन पार्लर में अपना फेशियल, पैडीक्योर और हेयर स्पा करवाने का शौक था. इतने खर्चे तभी हो पाते थे जब वह हर महीने अपने क्रैडिट कार्ड का केवल न्यूनतम बिल चुकाता था और बाकी का सारा इकट्ठा होता जाता था. पर ऐसा कब तक चलता. सुमन के लाख सम झाने पर भी जब उस ने अपने तौरतरीके नहीं बदले तो हार कर सुमन को यह रिश्ता तोड़ना पड़ा.

कैसे निबटें इस स्थिति से

स्टूडैंट लोन ऐक्सपर्ट शशि मोहन का मानना है कि जो कपल अपनी आर्थिक स्थिति
और संकट के विषय में खुल कर बात करते हैं, वह अच्छी फाइनैंशियल चौइस करने में सक्षम होते हैं.

संग बनाएं बजट: एकदूसरे की बात सुन कर, एकदूसरे की जरूरतें सम झते हुए आप दोनों को एकसाथ बैठ कर बजट तैयार करना चाहिए. इस से आप की इच्छाएं भी पूरी हो जाएंगी, आप के खर्च सीमित रहेंगे और आप भविष्य के लिए जोड़ भी सकेंगे. बजट बनाने का एक अच्छा तरीका है. 50/30/20 बजट. इस का मतलब- टैक्स काटने के बाद की अपनी कमाई का 50% से अधिक हिस्सा आप अपनी जरूरतों पर खर्च नहीं करेंगे, 30% से अधिक हिस्सा अपनी इच्छाओं पर खर्च नहीं करेंगे और कम से कम 20% हिस्सा बचाएंगे.

फाइनैंशियल प्लान तैयार करें: किसी भी पक्ष को निशाना न बनाते हुए एक ऐसा प्लान तैयार करें जहां आप दोनों अगले 5-10-15-20 सालों में पहुंचना चाहते हों. भविष्य के अपने पड़ाव सोचें और उसी हिसाब से अभी से बचत योजना तैयार करें. मासिक खर्चे: कुछ लोग अपने खर्चे रोक ही नहीं पाते, फिर चाहे वो ब्रैंडेड बैग पर खर्च हो, कीमती घडि़यों पर हो या फिर किसी महंगी हौबी अथवा खेल पर. ऐसे में आप को अपने प्रेमी को इस बात के लिए राजी करना होगा कि हर महीने आप दोनों के खाते में कुछ निर्धारित राशि आएगी.

उस का व्यय आप की अपनी मरजी पर होगा किंतु उस राशि से अधिक आप को नहीं मिलेगा. जैसे मातापिता किशोर बच्चों को जेबखर्च देते हैं, वैसे ही आप भी कुछ निर्धारित राशि एक लिफाफे में रख कर अपने प्रेमी के हवाले करें. फिर उन पैसों को वह कैसे खर्च करता है, इस मामले में आप बिलकुल दखल नहीं देंगी. इस के 3 फायदे होंगे. पहला, आप दोनों वह बचत कर सकेंगे जो आप ने सोची है. आप के खर्चों पर एक सीलिंग लग जाएगी. दूसरा फायदा यह होगा कि आप का प्रेमी अपनी इच्छा से खर्चा कर के संतुष्टि पा सकेगा, बिना किसी रोकटोक के और तीसरा फायदा यह होगा कि इस खर्च के बारे में आप दोनों में से किसी को भी किसी तरह की ग्लानि का सामना नहीं करना पड़ेगा यानी गिल्ट फ्री स्पैंडिंग.

अधिक खर्चीला प्रेमी शुरुआत में आप को लुभा सकता है, इंप्रैस कर सकता है, मगर यदि आप दोनों अपनी जिंदगी साथ बिताने की सोच रहे हैं तो अच्छे लाइफस्टाइल के लिए आप के बैंक अकाउंट में धनराशि का होना आवश्यक है और इस के लिए जरूरत पड़ती है खर्चे पर थोड़ी लगाम लगाने की.

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रिश्ता आगे बढ़ाने से पहले

– जब आप का प्रेमी अकसर अपने खर्चों के बारे में आप से छिपाए या झूठ बोले.
– जब आप को खर्चों की रसीदें मिलें और आप का प्रेमी उन के बारे में आप को न बताए.
– जब आप के जौइंट बैंक अकाउंट से आप का प्रेमी अकेले ही पैसे निकाल कर खर्च करता फिरे.
– जब उस के सिर पर भारी स्टूडैंट लोन हो और वह अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा केवल खर्च करने में गंवा दे.
– उसे क्रैडिट कार्ड के चसके की बुरी लत लग चुकी हो.
– आप की तरह उसे बचत करने की आदत न हो, जिस कारण उसे न तो बजट बनाना आता हो और न ही बजट में खर्च करना.
– जब अपनी कमाई से उस का खर्च पूरा न पड़ता हो और उसे सब से उधार मांगने की बुरी लत लग चुकी हो. इन सभी गलत आदतों की वजह से आप का प्रेमी पैसों की कीमत नहीं सम झ पाएगा. उस के ऊपर पैसों की तंगी, उधारी,
डांवांडोल रिश्ते और आगे चल कर तनाव संबंधी परेशानियों का आना तय है. ऐसे में इस रिश्ते में आगे बढ़ने से पहले अच्छी तरह विचार कर लेने में ही आप की भलाई है.

ब्रेकअप से उबरने के 5 टिप्स

जब अंशु को पता चला कि उस की भानजी आरवी का 5 साल पुराना रिश्ता टूट गया है तो उस के होश उड़ गए. कितनी प्यारी थी आरवी और कबीर की जोड़ी. दोनों एकसाथ मुंबई के इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे थे. दोनों ही परिवारों ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था, बस एक सामाजिक स्वीकृति मिलनी बाकी थी. अंशु बहुत दुखी मन से अपनी दीदी के घर गई तो देखा आरवी तो एकदम नौर्मल थी और खिलखिला रही थी.

अंशु को लगा कि आजकल के बच्चों का प्यार भी कोई प्यार है. जब चाहो रिलेशनशिप में आ जाओ और जब मरजी ब्रेकअप कर लो. ये आजकल के रिश्ते भी कोई रिश्ते हैं? बस सारे रिश्ते दैहिक स्तर पर ही आधारित हैं.

अंशु को अपना समय याद आ गया जब उस का रिश्ता प्रवेश के साथ टूट गया था. पूरे 2 वर्ष तक वह अपनी खोल से बाहर नहीं निकल पाई थी. कितनी मुश्किल से उस ने अपने नए रिश्ते को स्वीकार किया था. कभीकभी अंशु को लगता कि वह आज तक भी अपने पति को स्वीकार नहीं कर पाई है. प्रवेश के साथ उस टूटे रिश्ते की टीस अभी भी बाकी है.

रात को आरवी अंशु के गले लग कर बोली, ‘‘मौसी, बहुत अच्छा हुआ आप आईं. मेरा पूरा परिवार मेरे साथ खड़ा है, इसीलिए तो मैं यह फैसला कर पाई हूं.’’

मगर अंशु को लग रहा था कि आरवी को दरअसल कबीर से कभी प्यार ही नहीं था. पर आरवी के अनुसार घुटघुट कर जीने के बजाय अगर आप की बन नहीं रही है तो क्यों न ब्रेकअप कर के आगे बढ़ा जाए.

आजकल की युवा पीढ़ी पहले से अधिक जागरूक और व्यावहारिक है. एक व्यक्ति के पीछे पूरी जिंदगी खराब करने के बजाय वह ब्रेकअप कर के आगे की राह आसान बना लेती है.

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दूसरी ओर मानसी का जब ऋषि से 2 साल पुराना रिश्ता टूट गया तो वह अवसाद में चली गई. अपने साथसाथ उस ने अपने पूरे परिवार की जिंदगी भी मुश्किल कर दी थी. कोई भी रिश्ता जबरदस्ती का नहीं होता है. अगर आप का साथी आप के साथ वास्ता नहीं रखना चाहता है, तो गिड़गिड़ाने के बजाय अगर आप सम्मानपूर्वक आगे बढ़ें तो न केवल आप के साथी के लिए बल्कि आप के लिए भी अच्छा होगा.

हालांकि ब्रेकअप पर बहुत दलीलें दी जा सकती हैं, फिर भी घुट कर जीने से ब्रेकअप कहीं अधिक बेहतर है.

ब्रेकअप चाहे शादी से पहले हो या शादी के बाद हमेशा मर्यादित होना चाहिए. अगर इन छोटेछोटे व्यावहारिक सु झावों को हम निजी जीवन में अपनाएं तो बहुत जल्दी एक संपूर्ण जीवन की ओर बढ़  सकते हैं:

1. शहीदाना भाव ले कर मत घूमें:

ब्रेकअप होने का मतलब यह नहीं है कि आप 24 घंटे मुंह बिसूर कर घूमते रहें. यह जीवन का अंत नहीं है. जिंदगी आप को फिर से खुशियां बटोरने का मौका दे रही है. आप की पहचान खुद से है. बहुत बार हम रिश्तों में ही अपना वजूद ढूंढ़ने लगते हैं. इसलिए हम किसी भी कीमत पर ब्रेकअप नहीं करना चाहते हैं. 1-2 दिन मूड का खराब होना लाजिम है पर उस खराब रिश्ते की यादों को च्यूइंगम की तरह मत खींचें.

2. दिल के दरवाजे खुले रखें:

एक हादसे का मतलब यह नहीं है कि आप जिंदगी को जीना छोड़ दें. दिल के दरवाजे हमेशा खुलें रखें. हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है. एक अनुभव बुरा हो सकता है पर इस का मतलब यह नहीं है कि आप रोशनी की किरण से मुंह फेर लें.

3. काम में मन लगाएं:

काम हर मर्ज की दवा होती है. अत: खुद को काम में डूबा लें, आधे से ज्यादा दर्द तो यों ही गायब हो जाएगा और जितना अधिक काम में दिल लगेगा उतना ही अधिक आप की प्रतिभा में निखार होगा और तरक्की के रास्ते खुलेंगे.

4. न छोड़ें आशा का साथ :

बहुत बार देखने में आता है कि लोग ब्रेकअप के बाद निराशा गर्त में चले जाते हैं. एक घुटन भरे रिश्ते में सारी उम्र निराशा में बिताने से अच्छा है कि बे्रकअप कर के नई शुरुआत करें. आशा का दामन पकड़े रखें और ब्रेकअप के बाद नई शुरुआत करें.

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5. जिंदगी खूबसूरत है:

जिंदगी खूबसूरत है और एक ब्रेकअप के कारण इस की खूबसूरती को नजरअंदाज न करें. अपने ब्रेकअप से कुछ सीखें और दोबारा उन्हीं गलतियों को न दोहराएं. ब्रेकअप के बाद ही आप को लोगों को सम झने की बेहतर परख आती है.

अगर सरल भाषा में कहें तो ब्रेकअप का मतलब पूर्णविराम नहीं, बल्कि रिश्तों की नई शुरुआत होता है.

जानें क्या हैं माफ करने के पौजीटिव इफेक्ट

जिस तरह से एक फूल को खिलने के लिए उसे सही मात्रा में हवा, पानी और धूप की जरूरत होती है. ठीक उसी तरह से एक इंसान को आगे बढ़ने या खिलने के लिए गर्मजोशी और सकारात्मकता से भरे हुए दिल की जरूरत होती है. साथ ही जरूरत है एक आशा से भरे मन और दृढ़ निश्चय की. हालांकि, अक्सर कई लोग अपनी जीवन में ये सभी बातें लागू करने में विफल हो जाते हैं. और नकारात्मकता से भर जाते हैं. जो हमें अपनी वास्तविक क्षमताओं को महसूस करने से रोकते हैं. और हम अपने नकारात्मक स्वाभाव के चलते लोगों से दूर होते चले जाते हैं और उन्हें उनकी गलतियों के लिए क्षमा नहीं कर पाते.

1. गलत है नकारात्मकता-

अगर हमारे दिल में नकारात्मकताएं हैं तो ये हमारे साथ-साथ दूसरों के लिए भी गलत हो सकता है. क्योंकि इससे हमारे व्यवहार में भी काफी बदलाव आ जाते हैं. जिससे बात-बात गुस्सा आना और नफरत भरने लगती है. जो हमारे स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालती है. वहीं बात अगर किसी को क्षमा करने की करें तो अगर आपके अंदर सकारात्मकता रहेगी तो, आपके लिए ये काम बेहद आसान हो जाएगा. इससे आप किसी के चहरे में हंसी और प्यार भी ला पाएंगे.

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2. क्षमा करना क्यों जरूरी-

दूसों को क्षमा करना ना सिर्फ हमारे की सकारात्मकता को दर्शाती है, बल्कि दूसरों के प्रति प्रेम की भावना को भी बढ़ाता है. क्षमा करना कई मायनों में जरूरी भी है आइये जानते हैं क्यों?

• क्षमा करने से आप खुद को अच्छा महसूस कर पाएंगे. आपके अंदर से क्रोध या अतीत की बातें भुलाने में मदद मिलती है और आप आगे बढ़ पाते हैं.
• अगर आप किसी को क्षमा करते हैं तो इससे मानसिक स्थिति में सुधार आता है. आप बार-बार एक बारे में नहीं सोचते. अगर आप सोचना बंद कर देंगे तो आपको ब्लडप्रेशर और अवसाद की समस्या कम हो जाएगी.
• अगर आपके अंदर सकारात्मकता होगी तो आपके अंदर दूसरों क्व प्रति आदर, करुना और आत्मविश्वास बढेगा. जिससे आप एक बेहतर इंसान बनेंगे.
• क्षमा करने से आप मानसिक तौर पर खुद कलो स्वस्थ्य बना पाएंगे. क्षमा करने से आप खुद के विचारों और भावनाओं में हेरफेर को रोक पाएंगे.
• क्षमा करने से आपको दिमागी रूप से शांति मिलेगी. आपके लिए ये दुनिया भले ही कितनी निराशजनक क्यों ना हो लेकिन, जहां आपने किसी के प्रति सकारात्मकता दिखाई और क्षमा किया, उसी बीच आप साड़ी अराजकताओं से भी दूर हो जाएंगे.

3. रिश्ते बनाए बेहतर-

आप अगर किसी को क्षमा करते हैं तो इससे आपके रिश्ते काफी बेहतर बनेंगे. आप अगर अपने माता-पिता, दोस्त, करीबी रिश्तेदारों या सहकर्मियों के साथ अगर आपकी कभी बहस भी होती है तो सिर्फ एक सॉरी आपके रिश्ते जो और भी मजबूर बना देगा.

4. दिखाए समझदारी-

दूसरों को क्षमा करना या क्षमा मांगना आपकी समझदारी को दर्शाता है. अगर आप किसी से दो शब्द प्यार के साथ क्षमा याचना करते हैं तो आप किसी भी इंसान का दिल जीत सकते हैं. सामने झट से आपकी साड़ी नकारात्मकता भुला कर आपको अच्छे नजरिये से देखने लगता है. इसी समझदारी से आप आप बड़ी से बड़ी कठनाइयों का भी सामना कर सकते हैं.

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5. खत्म करें नफरत-

आप अंदर अगर एक बाद क्षमा करने की भावना आ गयी तो समझिये आपके अंदर की नफरत ही खत्म हो जाएगी. और आपको नये सिरे से जीवन को जीने की इच्छुक बनाती है.

किसी के लिए अपने दिल से नफरत खत्म कर सकारात्मक होना बड़ी बात है. इससे आपका व्यक्तित्व दूसरों के लिए प्रेरणा बनेगा. इसलिए ये समझिये की जिन्दगी छोटी है, इस छोटी सी जिन्दगी में दूसरों को क्षमा करने या क्षमा मांगने से आगे कई रिश्ते बचते हैं तो आपको पीछे नहीं हटना चाहिए.

अरूबा कबीर, मेंटल हेल्थ थैरेपिस्ट काउंसलर एंड फाउंडर ऑफ एनसो वैलनेस से बातचीत पर आधारित

पारिवारिक कलह का असर मासूमों पर

पटना के फतुहा हाई स्कूल की टीचर मनीषा गोस्वामी की मौत के बाद पुलिस ने उस के पति रवि गोस्वामी को तो गिरफ्तार कर लिया, पर ससुराल के बाकी आरोपी फरार हो गए और वे मनीषा की बेटियों 2 साल की अंतरा और 10 महीने की विशाखा को भी साथ ले गए. मनीषा के भाई मनीष ने बताया कि मनीषा नौकरी करना चाहती थी, पर रवि मना करता था. यहां तक कि मनीषा को मायके भी नहीं जाने देता था. इस बात को ले कर रवि और मनीषा के बीच आएदिन झगड़ा होता था. गत 13 सितंबर को जब मनीषा मायके जाने की जिद पर अड़ गई, तो रवि ने उसे तीसरे माले से धक्का दे दिया, जिस से उस की मौत हो गई. जबकि रवि ने पुलिस को बताया कि मनीषा मायके जाने की जिद कर रही थी. जब उस ने मना किया तो मनीषा ने खुद ही छत से छलांग लगा दी.

मनीषा की मौत हो गई. उस के पति रवि को पुलिस ने जेल भेज दिया. पुलिस और अदालत अपनीअपनी रफ्तार से काम करती रहेंगी. साल दर साल पुलिस जांच चलती रहेगी और अदालत में तारीख दर तारीख पड़ती रहेगी. इन सब के बीच उन दोनों बच्चों का क्या होगा? इस सवाल पर कानून हमेशा की तरह खामोश है. उन बच्चों की जिंदगी कैसे चलेगी, जिन्हें पता तक नहीं है कि उन के साथ कितना बड़ा हादसा हुआ है? उन के नानानानी, मामामामी आदि कब तक उन का खयाल रखें? उन का पालनपोषण और पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? ऐसे कई सवाल हैं, जिन के जवाब न समाज के पास हैं और न ही कानून की मोटीमोटी किताबों में.

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मनोविज्ञानी अजय मिश्रा कहते हैं कि परिवार और मातापिता के झगड़ों के बीच बच्चे पिसते ही नहीं, बल्कि घुटते भी रहते हैं. हजारों ऐसे मामले अदालतों में चल रहे हैं और बच्चे सहमे और घुटते रहते हैं. एक वाकेआ के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि रांची के एक पतिपत्नी की लड़ाई का मामला उन के पास आया था. घर वाले दोनों के झगड़े से तंग आ कर दोनों को काउंसलिंग के लिए मेरे पास लाए थे. उन के 2 बच्चे भी उन के साथ आए थे. सभी से बात करने के बाद जब बच्चों से पूछा गया कि घर में कौन ज्यादा झगड़ा करता है, तो इस सवाल को सुन कर दोनों बच्चे सहम गए और अपने मातापिता को देखने लगे. बच्चों को दूसरे कमरे में ले जा कर पूछा तो 8 साल के बच्चे ने बताया कि मम्मी और पापा हमेशा लड़ाई करते हैं. लड़ाई करने के बाद हम से पूछते हैं कि बताओ तो कौन पहले झगड़ा करता है? मम्मी पूछती हैं कि पापा ज्यादा झगड़ा करते हैं न? पापा पूछते हैं कि मम्मी पहले लड़ाई की शुरुआत करती हैं न? हम क्या बोलेंगे? हमेशा दोनों लड़ाई करते हैं. लड़ाई करने के बाद दोनों सो जाते हैं और उस के बाद मुझे और मेरी बहन को ब्रैड या बिस्कुट खा कर सोना पड़ता है. कई बार तो ऐसा होता है कि मम्मीपापा के बीच 6-7 दिनों तक बोलचाल बंद रहती है और हमें स्कूल नहीं भेजा जाता है. मम्मी खाना भी ठीक से नहीं बनाती हैं.

पुलिस औफिसर आर.के. दुबे कहते हैं कि मातापिता अपने बच्चों की नजरों में हीरो होते हैं. उन की नजरों में वे दुनिया के सब से बेहतरीन इनसान होते हैं. ऐसे में उन के आपस में लड़ने से बच्चों के मन में बनी अपने मातापिता की इमेज गिरती है, जिस से बच्चों को बहुत तकलीफ होती है. उस तकलीफ को बच्चे बयां नहीं कर पाते और मन ही मन घुटते रहते हैं. इस से उन का मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है. जिस घर में लड़ाई ज्यादा होती है, उस घर के ज्यादातर बच्चे मानसिक बीमारी और डिप्रैशन के शिकार होते हैं. कई बच्चे तो गुस्सैल स्वभाव और अपराधी बन जाते हैं.

मातापिता की लड़ाई से भौचक बच्चे

मातापिता के झगड़े का सीधा असर बच्चों पर होता है. सब से ज्यादा नुकसान वही उठाते हैं. पटना हाई कोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि पतिपत्नी झगड़ा करने के बाद बच्चों की नजरों में खुद को सही साबित करने के लिए एकदूसरे के खिलाफ उन में जहर भरते हैं. लड़ाई के बाद मां अपने बच्चों से कहती है कि उन के पापा ही गंदे हैं. हमेशा लड़ाई करते हैं. पापा से बात नहीं करना वरना तुम्हें भी पीटेंगे. वहीं पिता अपने बच्चों को समझाता है कि उन की मम्मी ही लड़ाई की शुरुआत करती है. उन की मम्मी गंदी है. इस तरह की बातें सुन कर बच्चे दुविधा में पड़ जाते हैं. वे समझ नहीं पाते हैं कि दुनिया के सब से अच्छे उन के मातापिता हैं और वही दोनों एकदूसरे को बुरा ठहरा रहे हैं.

तलाक के बाद सिसकते बच्चे

पटना सिविल कोर्ट के सीनियर वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि मातापिता के तलाक के बाद सब से ज्यादा चुनौती का सामना उन के बच्चों को ही करना पड़ता है. कई केसेज में देखा गया है कि तलाक के मुकदमे में पतिपत्नी दोनों बच्चों को अपने पास रखने की जिद करते हैं. दोनों पक्ष अदालत से बारबार गुहार लगाते हैं कि बच्चों को उन के पास रहने दिया जाए. मां कहती है कि बच्चे पिता के पास नहीं रह सकेंगे, जबकि पिता यह दावा करता है कि वही बच्चों की बेहतर परवरिश कर सकता है. कई बार अदालत दोनों के पास कुछकुछ समय तक बच्चों को रहने का फैसला सुनाती है. ऐसे में बच्चे मातापिता से मिलते तो रहते हैं, लेकिन उन्हें उन का सच्चा प्यार नहीं मिल पाता है. मां खुद को बेहतर साबित करने के चक्कर में बच्चों को नएनए खिलौने और कपड़े देती है, तो पिता उस से बेहतर और कीमती चीज दे कर बच्चों की नजरों में अच्छा पिता बनने की कोशिश करता है. अपनेअपने अहं में डूबे मातापिता यह नहीं समझ पाते हैं कि बच्चों को असली खुशी दोनों के साथ रहने से मिलती है. अलगअलग रह कर दोनों से मिलने और महंगे से महंगे गिफ्ट्स देने से भी उन के मासूम मन को खुशी नहीं मिल सकती.

परिवार के झगड़ों के बीच लाचार बच्चे

संयुक्त परिवार के झगड़ों में सब से ज्यादा बच्चे ही पीडि़त होते हैं. वे अपने मातापिता को अपनों से ही लड़तेझगड़ते और पुलिसकचहरी करते देखते हैं. उन्हें यह समझ नहीं आता है कि उन के पिता और चाचा जो कभी साथसाथ रहते थे, आज आपस में लड़ाई क्यों कर रहे हैं? किस बात को ले कर घर के लोग एकदूसरे के दुश्मन बन गए हैं? परिवार मामलों की वकील सुनीता वर्मा एक केस का जिक्र करते हुए बताती हैं कि पटना के एक परिवार के भाइयों के बीच शुरू हुआ घरेलू झगड़ा मारपीट और पुलिस तक जा पहुंचा. एक भाई ने एफआईआर में भाई और भाभी के साथसाथ उन के 10 साल के बेटे को भी मारपीट करने का आरोपी बना दिया. मामला 6 सालों से कोर्ट में चल रहा है और 10 साल का बच्चा 16 साल का युवा बन गया है. उस के मन में आज भी अपने चाचा के प्रति इतना गुस्सा है कि अकसर कहता है कि कभी न कभी चाचा की पिटाई जरूर करेगा.

इस मामले से साफ हो जाता है कि बड़े झगड़ों और केस कर के अपनेअपने काम में मसरूफ हो जाते हैं, लेकिन मासूमों के मन पर वे सदमे की छाप छोड़ देते हैं और उन्हें गुस्सैल बना देते हैं.

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पिता के जेल जाने पर घुटते

किसी भी अदालत के कैंपस में जाने पर पुलिस वालों, कैदियों, अपराधियों, वकीलों और जजों की भीड़ के बीच कई औरतें और उन के साथ कई बच्चे दिख जाएंगे. बच्चे कभी अपने पिता के हाथों में लगी हथकड़ी देखते हैं, कभी पुलिस वाले को तो कभी अपनी मां के चेहरे को देखते हैं. पटना सिविल कोर्ट के वकील सुबोध गोस्वामी बताते हैं कि पिता को हथकड़ी में जकड़े देख कर मासूम बच्चे के दिमाग पर क्या गुजरती होगी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल है. 10-12 साल तक के बच्चे को तो पता ही नहीं चल पाता है कि उस के पिता ने क्या गुनाह किया है और उन्हें हथकड़ी से बांध कर क्यों रखा गया है? वह बुत बना सभी चेहरों को निहारता रहता है. मां के रोने पर उस के साथ रोने लगता है. सब से ज्यादा तकलीफदेह हालत तो उस मां की होती है जब उस का मासूम बच्चा उस से पूछता है कि उस के पिता उन के साथ घर में क्यों नहीं रहते हैं? पिता को पुलिस वालों ने हथकड़ी से क्यों बांध रखा है? वे घर कब आएंगे? उन्हें जेल में क्यों रखा गया है?

वहम है अकेलापन

समय पर विवाह न हो पाने, जीवनरूपी सफर में हमसफर द्वारा बीच में ही साथ छोड़ देने या पतिपत्नी में आपसी तालमेल न हो पाने पर जब तलाक हो जाता है तो ऐसी स्थिति में एक महिला अकेले जीवन व्यतीत करती है. लगभग 1 दशक पूर्व तक इस प्रकार अकेले जीवन बिताने वाली महिला को समाज अच्छी नजर से नहीं देखता था और आमतौर पर वह पिता, भाई या ससुराल वालों पर निर्भर होती थी. मगर आज स्थितियां इस के उलट हैं. आज अकेली रहने वाली महिला आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और जीवन में आने वाली हर स्थिति का अपने दम पर सामना करने में सक्षम है.

‘‘यह सही है कि हर रिश्ते की भांति पतिपत्नी के रिश्ते का भी जीवन में अपना महत्त्व है, परंतु यदि यह रिश्ता नहीं है आप के साथ तो उस के लिए पूरी जिंदगी परेशान और तनावग्रस्त रहना कहां तक उचित है? यह अकेलापन सिर्फ मन का वहम है और कुछ नहीं. इंसान और महिला होने का गौरव जो सिर्फ एक बार ही मिला है उसे मैं अपने तरीके से जीने के लिए आजाद हूं,’’ यह कहती हैं एक कंपनी में मैनेजर 41 वर्षीय अविवाहिता नेहा गोयल. वे आगे कहती हैं, ‘‘मैं आत्मनिर्भर हूं. अपनी मरजी का खाती हूं, पहनती हूं यानी जीती हूं.

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घर की स्थितियां कुछ ऐसी थीं कि मेरा विवाह नहीं हो पाया, परंतु मुझे कभी जीवनसाथी की कमी नहीं खली, बल्कि मुझे लगता है कि यदि मेरा विवाह होता तो शायद मैं इतनी आजाद और बिंदास नहीं होती. तब मेरी उन्नति में मेरी जिम्मेदारियां आड़े आ सकती थीं. मैं अभी तक 8 प्रमोशन ले चुकी हूं, जिन्हें यकीनन परिवार के चलते नहीं ले सकती थी.’’ केंद्रीय विद्यालय से प्रिसिंपल पद से रिटायर हुईं नीता श्रीवास्तव का अपने पति से उस समय तलाक हुआ जब वे 45 वर्ष की थीं और उन का बेटा 15 साल का. वे कहती हैं, ‘‘कैसा अकेलापन? मैं आत्मनिर्भर थी.

अच्छा कमा रही थी. बेटे को अच्छी परवरिश दे कर डाक्टर बनाया. अच्छा खाया, पहना और खूब घूमी. पूरी जिंदगी अपनी शर्तों पर बिताई. कभी मन में खयाल ही नहीं आया कि मैं अकेली हूं. जो नहीं है या छोड़ गया है, उस के लिए जो मेरे पास है उस की कद्र न करना कहां की बुद्धिमानी है?’’

रीमा तोमर के पति उन्हें उस समय छोड़ गए जब उन का बेटा 10 साल का और बेटी 8 साल की थी. उन की उम्र 48 वर्ष थी. पति डीएसपी थे. अचानक एक दिन उन्हें अटैक आया और वे चल बसे. अपने उन दिनों को याद करते हुए वे कहती है, ‘‘यकीनन मेरे लिए वे दिन कठिन थे. संभलने में थोड़ा वक्त तो लगा पर फिर मैं ने जीवन अपने तरीके से जीया.

आज मेरा बेटा एक स्कूल का मालिक है और बेटी अमेरिका में है. पति के साथ बिताए पल याद तो आते थे, परंतु कभी किसी पुरुष की कमी महसूस नहीं हुई. मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश थी और आज भी हूं.’’ मनोवैज्ञानिक काउंसलर निधि तिवारी कहतीं हैं, ‘‘अकेलापन मन के वहम के अलावा कुछ नहीं है. कितनी महिलाएं जीवनसाथी और भरेपूरे परिवार के होते हुए भी सदैव अकेली ही होती हैं. वंश को बढ़ाने और शारीरिक जरूरतों के लिए एक पति की आवश्यकता तो होती है, परंतु यदि मन, विचार नहीं मिलते तो वह अकेली ही है न? इसलिए अकेलेपन जैसी भावना मन में कभी नहीं आने देनी चाहिए.’’

अकेली औरतें ज्यादा सफल कुछ समय पूर्व एक दैनिक पेपर में एक सर्वे प्रकाशित हुआ था जो अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा महिलाओं पर कराया गया था. उस के अनुसार:

अकेली रहने वाली 93% महिलाएं मानती हैं कि उन का अकेलापन गृहस्थ महिलाओं की तुलना में जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल रहने में अधिक सहायक सिद्ध हुआ है. इस से उन्हें आजादी से जीवन जीने का अधिकार मिला है.

65% महिलाएं जीवन में पति की आवश्यकता को व्यर्थ मानती हैं और वे विवाह के लिए बिलकुल भी इच्छुक नहीं हैं. द्य आवश्यकता पड़ने पर विवाह करने के बजाय इन्होंने किसी अनाथ बच्चे को गोद लेना अधिक अच्छा समझा.

इन्हें कभी खालीपन नहीं अखरता. ये अपनी रुचि के अनुसार सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेती है और आधुनिक मनोरंजन के साधनों का लाभ उठाती हैं. चिंतामुक्त हो कर जी भर कर सोती हैं.

इस सर्वेक्षण के अनुसार एकाकी जीवन जीने वाले पुरुषों की संख्या महिलाओं की संख्या के अनुपात में बहुत कम है.

बढ़ रहा सिंगल वूमन ट्रैंड

पिछले दशक से यदि तुलना की जाए तो एकाकी जीवन जीने वाली महिलाओं की संख्या में 39 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. विदेशों में अकेले जीवन जीने वाली महिलाओं की उपस्थिति समाज में बहुत पहले से ही है, साथ ही वहां वे उपेक्षा और उत्पीड़न की शिकार भी नहीं होतीं. भारतीय समाज में 1 दशक में महिलाओं की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है. हाल ही में आई पुस्तक ‘आल द सिंगल लेडीज अनमैरिड वूमन ऐंड द राइज औफ एन इंडिपैंडैंट नेशन’ की लेखिका रेबेका टेस्टर के अनुसार 2009 के अनुपात में इस दशक में सिंगल महिलाओं की बढ़ती संख्या समाज में उन के महत्त्व का दर्ज कराती है.

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यह सही है कि हर रिश्ते की अपनी गरिमा और महत्त्व होता है. अकेलापन सिर्फ मन का वहम तो है, परंतु इस के लिए सब से आवश्यक शर्त है महिला की आत्मनिर्भरता और आत्मशक्ति का मजबूत होना, क्योंकि यदि वह आत्मनिर्भर नहीं है तो उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पराधीन होना होगा. पराधीनता तो सदैव कष्टकारी ही होती है. आत्मनिर्भरता की स्थिति में उस पर किसी का दबाव नहीं होता और अपने ऊपर उंगली उठाने वालों को भी मुंहतोड़ जवाब दे पाने में सक्षम होती है. ‘‘अकेले रहने वाली महिलाओं को अपनी आत्मशक्ति को मजबूत रखना चाहिए. जो जिंदगी आप ने चुनी है उस में खुश रहना चाहिए. कभी किसी को अपने पति के साथ देख कर मन को कमजोर करने वाले विचार नहीं आने चाहिए,’’ यह कहती हैं नीता श्रीवास्तव.

जब भी कभी ऐसा अवसर जीवन में आता है तो इसे सिर्फ अपने मन का वहम मानें और सचाई को स्वीकार कर के जीवन को आगे बढ़ाएं. जिंदगी जिंदादिली का नाम है न कि किसी के सहारे का मुहताज होने का. स्वयं को अंदर से मजबूत कर के अपनी शक्ति को सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में लगाना चाहिए. साथ ही कुछ ऐसे संसाधनों को भी खोजना चाहिए जिन में आप व्यस्त रहें.

लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप को कहें हां या न

साल 2010 में अपर्णा सेन की एक इंडियन-जापानी रोमांटिक ड्रामा बेस्ड बंगालीहिंदी फिल्म आई थी जिस का नाम था ‘जैपनीज वाइफ.’ इस का मुख्य प्लौट लौंग डिस्टैंस लव पर था. इस में मुख्य पात्र स्नेह्मोय चटर्जी (राहुल बोस) को प्यार हो जाता है दूर स्थित जापानी मूल की लड़की मियागु (चिगुसा टकाकु) से. दोनों में लैटर्स से बातचीत होती है और इन्हीं लैटर्स के आदानप्रदान में वे एकदूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने का वचन भी ले लेते हैं. लंबी दूरी होने के कारण 17 साल बाद भी वे एकदूसरे से मिल नहीं पाते, लेकिन उन के बीच रिश्ता फिर भी मजबूत ही रहता है. फिल्म के अंत में स्नेह्मोय चटर्जी की मौत के बाद उस की जापानी मूल की पत्नी भारत लौट आती है और चटर्जी की विधवा बन कर जीने लगती है.

फिल्म चाहे कई लूपहोल्स के साथ रही हो लेकिन इस फिल्म की कहानी की खासीयत लौंग डिस्टैंस लव था जो काफी अच्छे से दिखाया गया. खैर, अब बात फिल्म के एक दशक बाद की है. 2010 की तुलना में आज काफी चीजें बदल गई हैं. आज एकदूसरे से चिट्ठियों के माध्यम से कम्युनिकेट करने का तरीका लगभग खत्म हो गया है.

आज जमाना डिजिटल युग का है जिस में दुनिया एक फोन के भीतर समा चुकी है. गांव में बैठा युवक मीलों दूर शहर या दूसरे देश में किसी से आसानी से कम्युनिकेट कर सकता है. फिर ऐसे में आशंका तो कई गुना बढ़ जाती है कि लंबी दूरी के रिश्ते अपने पंख डिजिटल के माध्यम से फैला रहे होंगे.

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आनंद पर्वत इलाके में रहने वाला सनी एक आम परिवार का लड़का है जिस के पिताजी कारपैंटर का काम करते हैं. सनी की कहानी भी कुछ ‘जैपनीज वाइफ’ फिल्म से मिलतीजुलती है. लेकिन यह आज की बात है तो मामला चिट्ठीपत्री से हट कर डिजिटल हो गया. अपना कैरियर बनाने के लिए इंग्लिश सीखने की चाहत में सनी ने पास के एक एनजीओ में फ्री कोर्स सीखने का मन बनाया. कोर्स इंस्ट्रक्टर ने उसे सुझव दिया कि अगर इंग्लिश सीखनी है तो विदेशी मूल के लोगों से कम्युनिकेट करना शुरू करो. बस, फिर क्या, सनी ने औनलाइन साइट विजिट की जहां उस की मुलाकात इंडोनेशिया की एक लड़की से हुई. दोनों एकदूसरे से लगातार बात करते रहे और धीरेधीरे एकदूसरे को पसंद भी करने लगे. लेकिन, उस के सामने यह सवाल खड़ा हो गया है कि उस का यह लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप कितना सफल होगा. मुश्किल यह है कि इस रिश्ते में कितनी ‘हां’ और कितनी ‘न’ की गुंजाइश है.

जाहिर है आज डिजिटल टैक्नोलौजी के बढ़ते दायरे और पूरी दुनिया के फोन में सिकुड़ जाने से हमारे सामने लोगों से मेलजोल बढ़ाने व सीखने का अवसर बढ़ गया है. इन अवसरों के साथसाथ आज मौका अपने लिए प्यार चुनने का भी मिल गया है. फिर चाहे बात करने वाला या वाली कितनी ही दूर क्यों न हो. जहां पहले लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप के मौके किसी खास सिचुएशन में ही आ पाते थे, जैसे पढ़ाई या नौकरी के लिए सैकड़ों मील दूर जाना हो. आज ऐसी सिचुएशन घर बैठे सोशल मीडिया प्रोवाइड करवा देता है जिस में इंटरनैट ने चीजों को बहुत आसान कर दिया है. लेकिन लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप यानी एलडीआर सुनने में जितनी रूहानी लगती है उतना ही वह अपने साथ कुछ समस्याएं ले कर भी चलती है.

-सब से बड़ी समस्या फाइनैंशियल उभर कर आती है. इस समस्या को अगर आंका जाए तो भारत में आधे से ज्यादा एलडीआर वाले कपल एकदूसरे से मिलने की उम्मीद लगा ही नहीं पाते. यह सही है यंग एज में किसी से औनलाइन बात करना और बात का आगे बढ़ जाना सामान्य हो सकता है लेकिन उस रिश्ते को मुकाम तक पहुंचाने में सब से बड़ी अड़चन पैसों की आती है. यही बड़ा कारण इस समय सनी जैसे एलडीआर में है जिस में उन का एकदूसरे से मिलना फिलहाल असंभव दिखाई दे रहा है.

इस कारण वह चाह कर भी कोई कमिटमैंट करने की कंडीशन में नहीं है.

–  रिऐलिटी परियों की कहानियों से अलग है. हर किसी की अपनी जरूरतें होती हैं. खासकर तब जब आप रिलेशनशिप में होते हैं, तब आप की अपने पार्टनर के साथ फिजिकल होने की इच्छा प्रबल हो जाती है. लेकिन लौंग डिस्टैंस वाले रिश्तों में सिंपल टच तक के लिए तरसना पड़ता है तो सैक्स और किस करना तो दूर की बात है. शुरुआत में लगता है कि सब ठीक है लेकिन जैसे ही रिलेशन कुछ महीने आगे बढ़ता है तब इंटिमेसी लैवल भी हाई होने लगता है, जिस के पूरा न होने के कारण फ्रस्ट्रैशन लैवल भी बढ़ने लगता है.

-लौंग डिस्टैंस रिलेशन में हमेशा इनसिक्योरिटी बनी रहती है. ज्यादातर रिश्तों में यह तब होता है जब आप किसी को जानते तो हों लेकिन उस के तौरतरीकों को फेसटूफेस औब्जर्व नहीं कर पाते. लौंग डिस्टैंस रिलेशन की यही समस्या है कि सारा रिलेशन कम्युनिकेशन पर टिका रहता है. इस में ओब्जर्व करने के लिए सिर्फ बात ही एक रास्ता होता है, इसलिए डेटूडे लाइफ में आप के पार्टनर का किन से मिलना, कितने फ्रैंड, कहां विजिट किया जैसे सवाल कई शंकाओं को जन्म दे सकते हैं.

-इस तरह के रिश्तों में सब से बड़ी समस्या कम्युनिकेशन पर टिकी होती है. यानी आप किसी तकनीक की सहायता से ही एकदूसरे के रिश्ते में बंधे हैं. सोशल मीडिया या टैलीफोन से कम्युनिकेशन एक लिमिट तक ही अंडरस्टैंडिंग लैवल बढ़ा सकता है. आमतौर पर एलडीआर में डेटूडे बातचीत ही मुख्य होती है. इस का बड़ा कारण कपल के बीच फ्रैश मैमोरीज न के बराबर होती हैं. किसी मैमोरी के बनने का तरीका किसी घटना या इवैंट से जुड़ा होता है, और इवैंट ऐसा जो दोनों को रिलेट करे. किंतु ऐसी कंडीशन में इस तरह की मैमोरीज न के बराबर होती हैं, तो कम्युनिकेशन में एक समय के बाद ठहराव आ जाता है जो इरिटेट भी करने लगता है.

-ऐसे रिश्तों में ट्रस्ट लैवल कम रहता है. किसी लव रिलेशन में पार्टनर के प्रति ट्रस्ट या भरोसा होना बहुत बार सैक्सुअल रिलेशन से निर्धारित होता है, जिस में आमतौर पर यह समझ जाता है कि आप तन और मन से समर्पित हैं या नहीं. जाहिर सी बात है, पार्टनर का मन समर्पित है यह माना जा सकता है लेकिन तन समर्पित न होना, विश्वास की लकीर को कमजोर करता है. ऐसे में हमेशा अपने पार्टनर के क्लोज फ्रैंड्स को ले कर इनसिक्योरिटी रहती है, जिसे ले कर हमेशा संदेह लगा रहता है.

खैर, कुछ समस्याएं हैं जिन से एक लौंग डिस्टैंस कपल को दोचार होना पड़ता है. लेकिन, भारत में यह प्रौब्लम इस से कई गुना आगे बढ़ जाती है. भारत देश डाइवर्सिटी से घिरा हुआ है. कुछ लोग इस पर प्राउड करते हैं, वहीं कुछ डाइवर्सिटी के होने के अनेक एक्सपीरियंस तो मानते हैं लेकिन इस के साथ इसे सोशल बैरियर भी मानते हैं, जो आपस में आसानी से कनैक्ट करने से रोकते हैं. इन्हीं बैरियर्स में कास्ट, रिलीजन, एरिया, लैंग्वेज और कल्चर आता है. हमारे देश में किसी रिश्ते में बंधने का मतलब पारिवारिक मंजूरी का होना जरूरी हो जाता है. इतने सारे बैरियर्स पार करना अपनेआप में चुनौती होता है. फिर लौंग डिस्टैंस रिलेशन तो एक कदम और दूर की बात है.

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अगर आप भी लौंग डिस्टैंस रिलेशनशिप में हैं या आना चाहते हैं तो जरूरी है कि आप इन पौइंट्स को कंसीडर करें. जरूरी नहीं कि ये चीजें हर किसी के लिए समस्या हों, अगर आप इन्हें ध्यान में रखते हुए इन से टैकल कर सकते हैं तो चीजें बेहतर होंगी. लेकिन ध्यान रहे ऐसे रिश्ते ज्यादातर कंडीशन में असफल ही होते हैं. अगर लौंग डिस्टैंस में ही जाने का मन हो तो कोशिश करें कि आप का/की पार्टनर भले पास का न हो लेकिन उसी शहर से हो जहां से आप बिलोंग करते हैं. ऐसी स्थिति में इन बिंदुओं को आसानी से टैकल किया जा सकता है और संभव है कि भविष्य में आप के एकदूसरे को जीवनसाथी चुनने की संभावना भी बढ़ जाएगी.

फ़्लर्ट करिए जिंदगी में रंग भरिए

“हाय कैसी हो पूजा,” प्रभात पूजा के पास आ कर बैठता हुआ बोला.

“गुड. आप बताओ, ” पूजा ने भी पहचानी हुई नजरों से देखते हुए जवाब दिया.

“याद है न पिछली दफा हम रोहित की बर्थडे पार्टी में मिले थे, ” प्रभात ने याद दिलाने की कोशिश की.

“हां याद है मुझे. आप विहान के दोस्त हो न? ”

” हां. ”

“मेरा नाम याद रह गया आप को ?” पूजा ने शरारत से कहा.

“बिलकुल. दरअसल उस पार्टी में मिला तो बहुतों से से था मगर याद केवल आप रहीं,” प्रभात ने अपने दिल की बात कही
.
“अच्छा पर ऐसा क्यों ? “हंस कर पूजा ने पूछा.

“कुछ तो है आप में जो दूसरों में नहीं. शायद यह आप की बोलती हुई सी आँखें या फिर आप की यह मुसकान जो बस दिल पर असर करती है. ”

“रियली? यानी मेरी मुसकान ने पहली ही बार में इतना असर कर दिया,” पूजा प्रभात की आंखों में देखती हुई बोली.

“ऑफकोर्स, तभी तो महफ़िल में मेरी नजरें बस आप को ढूंढ रही थीं. ”

“बहुत दिलचस्प हैं आप. हमारी काफी जमेगी पर अभी निकलना होगा मुझे. दरअसल मेरा भाई नीचे वेट कर रहा है. फिर मिलेंगे, ” पूजा उठने लगी तो प्रभात ने अपना कार्ड देते हुए कहा, “श्योर. यह है मेरा नंबर कभी भी फ़ोन कर सकती हैं. ”

“जरूर. थैंक्स. बाय. ”

फ्लर्टिंग का यह एक छोटा सा उदाहरण है. प्रभात ने एक मामूली सी मुलाक़ात को दोस्ती में बदलने की पूरी कोशिश की थी और कामयाब भी हुआ.

जिंदगी बहुत खूबसूरत है मगर कई बार हम सही अर्थों में इस जिंदगी का आनंद नहीं ले पाते. कभी ऑफिस और घर की जिम्मेदारियां, कभी बीमारी हारी, कभी बोरियत भरी एकसार सी नीरस जिंदगी और कभी अकेलापन यानी किसी ऐसे साथी का अभाव जो बिल्कुल अपने जैसा हो और जो आप की रंगहीन जिंदगी में रंग भर जाए.

कई दफा आप जिंदगी में ऐसे लोगों से टकराए होंगे जिन के व्यक्तित्व ने आप को चुंबक की तरह आकर्षित किया होगा. आप के दिल ने कहा होगा कि काश यह मेरा होता. मगर आप जानते हैं कि वह आप का नहीं. आप या वो शादीशुदा है या फिर आप एकदूसरे से अनजान हैं. संकोचवश आप उस से बात तक नहीं कर पाए होंगे. मगर सोचिए क्या होता यदि आप ने उस से हल्के रोमांटिक मूड में बातें कर ली होतीं. उस की आंखों की शरारत भरी मुस्कान पर दोचार शायरियां सुना दी होतीं. जाहिर है आप दोनों के बीच एक प्यारा सा रिश्ता बन जाता. दोस्ती का रिश्ता कहिए या आकर्षण का रिश्ता. इस से किसी को परेशानी नहीं होती मगर आप का दिन बन जाता. आप घर आने के बाद भी बेवजह खुश रहते. कुछ सोचते, कुछ कल्पना करते और कुछ गीत गुनगुनाते. इसी को तो फ़्लर्ट करना कहते हैं.

चंद लम्हों की मुलाकात हो या लंबे समय तक एक साथ रहना हो, किसी भी हाल में अपने दिल की बात थोड़ी शराफत और थोड़ी शरारत के साथ जुबां पर लाने की कला ही फ्लर्टिंग है. कई बार फ्लर्टिंग की आदत के कारण आप को मनपसंद जीवनसाथी भी मिल जाता है.

कैसे करें शुरुआत फ्लर्टिंग की

आई कांटेक्ट बनाएं

जब आप किसी के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश करना शुरू करते हैं तो सब से पहले आई कांटेक्ट बनाएं. उस व्यक्ति की आँखों में गहराई से झांकें. ऐसा तब तक करते रहें जब तक वह आप को ऐसा करते पकड़ नहीं ले . इस के बाद भी कुछ पल के लिए उसे देखते रहें फिर मुस्कुराएं और नज़रें फेर लें. जब आप उस से बात कर रहे हों तब भी उस की आँखों में देखें.

मुस्कुराएं

जब आप किसी ऐसे शख्स से बात करते हैं जिसे आप पसंद करते हैं तो मुस्कान खुद ब खुद आप के चेहरे पर आ जाती है. आप तब भी मुस्कुरा सकते हैं जब आप हॉल में उस के पास से गुजरें या फिर कमरे के आर पार खड़े हों. अपने जज्बात जाहिर करने के लिए एक छोटी सी मुस्कराहट काफी होती है.
अपने मुंह के बजाय अपनी आँखों से मुस्कुराने की कोशिश करें. जब आप दिल से मुस्कुराते हैं तो आप का पूरा चेहरा चमक जाता है और इस बात का अहसास सामने वाले को भी होता है.

बात करें

आप जिस के साथ फ़्लर्ट करना चाह रहे हैं यदि उसे पहले से नहीं जानते तो एक सिंपल सा इंट्रोडक्शन फ्लर्टिंग शुरू करने का अच्छा तरीका है. आप ऐसे कह सकते हैं, “Hi, मैं मयंक गोस्वामी और आप…..? ”
जब वह अपना नाम बताये तो आप उस के नाम की तारीफ करते हुए बात आगे बढ़ा सकते हैं. बातचीत की शुरुआत आप मौसम, कोई करंट इशू या फिर अपनी हॉबी के बारे बताते हुए कर सकते हैं. बातचीत शुरू करने का सब से आसान तरीका है कि आप ऐसी कोई बात बोलें जिस का अंत सवाल से ही हो जैसे, ‘मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा की इस हफ्ते इतनी बारिश हुई है’ या ‘इस जगह काफी भीड़ है, है न?’
आप क्या कह रहे हैं वह महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि आप उस से बातें करना चाहते हैं और सामने वाले को इस के लिए न्यौता दे रहे हैं .

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अगर आप उस से पहले मिले हुए हैं तो आप दोनों के बीच किसी आम रूचि या अनुभव पर बात करें. जवाब देने के तरीके को को समझें. अगर दूसरा व्यक्ति इंट्रेस्ट ले कर बात का जवाब देता है तो ही बात को आगे बढ़ाएं. अगर वह जवाब नहीं देता या फिर उलझा हुआ सा लग रहा है तो शायद वह आप के साथ फ्लर्टिंग करने में इंटरेस्टेड नहीं है.

जब आप हलके विषयों पर बात करे रहे होते हैं जैसे, पेट्स, रियलिटी शोज या आप के पसंदीदा वेकेशन स्पॉट्स आदि तो फ़्लर्ट करना आसान होता है . इस का मतलब है की आप को शुरुआत में कभी भी गहराई वाली बातों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए. हंसीमज़ाक करना चाहिए क्यों कि आप का साथ एंजॉय करने पर ही वह आप में इंट्रेस्ट लेगा और आप से मिलने के बहाने ढूंढेगा.

कॉम्प्लीमेंट दें

फ्लर्टिँग का आनंद लेना है और रिश्ते में मजबूती लानी है तो इस की शुरुआत कॉम्प्लीमेंट देने से करें. कॉम्प्लीमेंट देते समय आई कांटेक्ट बनाएं रखें. यदि आप ने नजरें हटाईं तो आप की नीयत पर भरोसा करना कठिन होगा. जिस लड़की को आप पसंद करते हैं यदि वह किसी बात पर दुखी है तो आप कह सकते हैं, “ मुझे आप जैसी खूबसूरत लड़की को दुखी देखना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा. मैं इन आँखों में वही चमक देखना चाहता हूं जिसे देख मेरे जैसे लोग अपना दिल खो देते हैं. ”
इस तरह के प्यारे मगर हैल्दी कमैंट्स दूसरों की नजरों में आप के व्यक्तित्व को भी आकर्षक बनाते हैं. लुक्स पर कॉम्प्लीमेंट देने से पहले थोड़ा ध्यान रखें . अगर आप किसी लड़की की आँखों की तारीफ करेंगे तो उसे अच्छा लगेगा लेकिन अगर आप छूटते ही उस के फिगर की तारीफ करेंगे तो संभव है उसे यह बात पसंद न आए. इसलिए कोशिश करें कि आप उन की आंखों, मुस्कराहट, जुल्फों या फिर स्मार्ट लुक से जुड़े कमैंट्स करें.

अपने बारे में ज्यादा बात नहीं करें

अक्सर लोग अपने बारे में ज्यादा बात करना पसंद करते हैं मगर बेहतर होगा कि ऐसा करने के बजाय दूसरे व्यक्ति को अपने बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित करें . आप बीच में उस व्यक्ति को अपने बारे कुछ ऐसी बातें बता सकते हैं जिस से उस को आप के बारे में सवाल पूछने में आसानी हो. उस के बाद उन्हें यह मौका मिल जायेगा की वह ऐसी चीज़ों के बारे में बात करें जिन में आप दोनों की रूचि है इस से न सिर्फ आप की बातचीत आगे बढ़ेगी बल्कि आप को अपने क्रश के बारे में और बातें जानने को मिलेंगी.
अगर आप उस व्यक्ति को बिलकुल नहीं जानते तो उस की ऐसी किसी रूचि या शौक की बात करें जिस के बारे में आप को पता हो . मसलन वह बास्केटबाल खेलता है या किताबें पढ़ने का शौक़ीन है तो आप उस की पसंदीदा किताब या उस के द्वारा खेले गए बास्केटबॉल मैच के बारे में बात शुरू कर सकते हैं.

ज्यादा संजीदा नहीं हों

याद रहे की फ्लर्टिंग मस्ती का दूसरा नाम है और अगर आप की कोशिश सफल नहीं होती तो हिम्मत नहीं हारें. पॉजिटिव रहें. यह ज़रूरी नहीं की हर फ्लर्टिंग का अंत खूबसूरत ही हो. फ्लर्टिंग से आप नए लोगों से घुलनामिलना और खुश रहना सीख सकते हैं. इसे ले कर अपने आप पर प्रेशर डालने की ज़रुरत नहीं है.

फ्लर्टिंग हर जगह उचित नहीं. मसलन किसी के अंतिम संस्कार में आप फ्लर्ट नहीं कर सकते . वर्कप्लेस में भी आप फ्लर्टिंग नहीं कर सकते . स्थान के मुताबिक फ्लर्टिंग करें . किसी लाइब्रेरी या सेमिनार जैसी जगहों में मिलने से ज्यादा बातचीत नहीं हो पाती. ऐसी स्थिति में मुस्कुराएं, रूचि दिखाएं और उस के बाद कहीं मिलने का कार्यक्रम तय कर लें लेकिन किसी भी सूरत में उन के पीछे इसलिए नहीं घूमें की आप उन से बात करने में सकुचाते हैं. जो पहला मौका मिले उन से बात कर लें.

फ़्लर्ट करने के फायदे

आप को जान कर हैरानी होगी कि फ्लर्ट करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है. फ्लर्ट करना एक कला है और अगर आप इसे सही प्रकार से करें तो इस से आप को कई तरह के शारीरिक और मानसिक लाभ मिल सकते हैं. आइये जानते हैं फ्लर्टिंग के फायदे;

शरीर की ऊर्जा बढ़ाए

खुद को ऊर्जा से भरपूर और चुस्तदुरुस्त बनाए रखने के लिए फ्लर्ट कीजिए. फ्लर्ट करने से जहां आप का एनर्जी लेवल बढ़ता है वहीँ मूड भी अच्छा होता है. अपने साथी के साथ फ्लर्ट करने से आप के अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है और रिश्ते में मिठास भी आती है.

अकेलापन दूर करे

अगर आप अपने अकेलेपन से छुटकारा पाना चाहते हैं तो फ्लर्ट करना आप के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. इस से आप नए दोस्त बना सकेंगे. अपने मनपसंद लोगों का साथ पा सकेंगे. फ्लर्टिंग अंतर्मुखी व्यक्ति को भी बाहरी दुनिया से जोड़ने का काम करती है. वह एक्सट्रोवर्ट हो कर नयी खुशी से रूबरू होता है. इस से आप के भीतर नया आत्मविश्वास पैदा होता है.

ब्लड सर्कुलेशन बेहतर बनाए

फ्लर्ट करने से शरीर में एंड्रनालाइन नामक हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है. शरीर में रक्त का संचार बेहतर होता है. इस हार्मोन के स्तर में बढोत्तरी होने से आप ज्यादा एकाग्र हो कर काम कर पाते हैं.

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बोरियत दूर भगाए

यदि आप अपनी जिंदगी की एकरसता से परेशान हैं और लाइफ में कुछ इंटरेस्टिंग चाहते हैं तो फ़्लर्ट कीजिए. इस से मानसिक तनाव में कमी आती है और आप फ्रेश महसूस करते हैं.

रिश्ता बनाए मजबूत

अक्सर देखा जाता है कि लड़के किसी खूबसूरत लड़की को देख कर फ्लर्ट करना शुरु कर देते हैं. आजकल लड़कियां भी लड़कों के साथ फ्लर्टिंग करने से गुरेज नहीं करतीं. अपने साथी के साथ भी लोग फ्लर्ट करने का मजा लेते हैं. दरअसल फ्लर्टिंग रिश्ते को मजबूत बनाने में भी मदद करती है. अपने पार्टनर के साथ फ़्लर्ट करने के अपने फायदे हैं. प्यार और रोमांस से भरी यह फ्लर्टिंग आप के रिश्ते को नया आयाम दे सकती है. लेकिन फ्लर्टिंग के दौरान ऐसी बात कहने से बचें जिस से झगड़े की नौबत आ जाए.यह रिश्ते में आई दूरियों को दूर करने में सहायक है. मगर ध्यान रखें, अगर फ्लर्ट‍िंग अच्छी तरह की जाए तो यह सभी को पसंद आती है मगर सीमा लांघते ही यह अश्लीलता में बदल सकती है. फ्लर्टिंग को हेल्दी तरीके से एन्जॉय करें और अपने मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं.

कंफर्ट जोन

आप दोनों एक कंफर्ट जोन में आ जाते हैं. माना आप अपने बॉस/ कुलीग /पड़ोसी /रिश्तेदार /सहयात्री के साथ फ्लर्ट करते हैं. इस से आप के बीच फॉर्मल रिश्ते के बजाय फ्रेंडली रिलेशनशिप डिवेलप होने लगती है. आप दोनों के बीच एक कंफर्ट जोन आ जाता है और आप अपने काम ज्यादा बेहतर ढंग से कर पाते हैं. आप के अंदर पॉजिटिव उर्जा का संचार होता है.

एकदूसरे को जानने समझने का मौका मिलता है. फ़्लर्ट के बहाने सामने वाले से आप की बातचीत होती है. एकदूसरे का साथ पसंद आए तो दोनों काफी समय साथ बिताने लगते हैं. एकदूसरे को समझने और दुखसुख शेयर करने का मौका मिलता है. फ़्लर्ट करतेकरते आप उस के प्रति सीरियस भी हो सकते हैं. जिंदगी को नया तजुर्बा मिलता है.

तोहफा नयी खुशि‍यों का

जब भी कोई किसी से फ़्लर्ट करता है तो उन के चेहरे पर ख़ुशी की लकीरें खिंच जाती हैं. जब हम फ़्लर्ट करते हैं तो हमारे शरीर में सेरोटोनिन नाम के हारमोंस का श्राव होता है. इसे हैपी हारमोंस भी कहते हैं. इस के सक्रिय होने से हमारे मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हम अंदर से खुश रहने लगते हैं. इस से हमारे स्वस्थ पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता हैं. चेहरे पर भी एक अलग सा निखार आ जाता है.

नया ट्रेंड ऑनलाइन डेटिंग

डेटिंग या फ्लर्टिंग के लिए इन दिनों सोशल मीडिया का भी खूब इस्तेमाल हो रहा है. इस के लिए यंगस्टर्स अपना काफी समय ऑनलाइन बिता रहे हैं.मार्केटिंग एजेंसी यूरो आरएससीजी के सर्वे के मुताबिक किसी से रिलेशनशिप शुरू करने आगे बढ़ाने और खत्म करने तक में भी सोशल साइट्स का यूज़ हो रहा है. इस सर्वे में 34 फीसदी लोगों ने माना कि ऑनलाइन फ्लर्टिंग में कोई बुराई नहीं जबकि बाकी लोगों ने इसे गलत बताया.

कॉन्फिडेंस बूस्टर

अगर आप किसी को इंप्रेस करने की कोशिश कर हैं तो इस के लिए कॉन्फिडेंस होना बहुत जरूरी है. अगर आप इंप्रेस करने में कामयाब हो जाते हैं तो यह आप के लिए कॉन्फिडेंस बूस्टर का काम करता है. इस से आप अपनी प्रोफेशनल लाइफ में भी अच्छा महसूस करते हैं. एक सर्वे के मुताबिक मात्र 5 मिनट की ऑनलाइन फ्लर्टिंग आप को अपने काम में संतुष्टि की भावना देती है.

तारीफ करना आ जाता है

फ़्लर्ट करते हुए आप सामने वाली की तारीफ करते हैं. धीरेधीरे तारीफ करना आप की आदत में शुमार हो जाता है. आदत बनने पर आप अपने दूसरे दोस्तों की भी तारीफ करने से नहीं चूकते. इस से आप की गिनती पॉजिटिव लोगों में होने लगती है और आप का साथ लोगों को पसंद आता है.

खुशनुमा सेक्स लाइफ

हॉलैंड में 76 कपल्स पर हुई एक स्टडी से यह बात सामने आई कि जो लोग रोजाना फ्लर्टिंग करते हैं वे अपनी सेक्स लाइफ को खूब इंजॉय करते हैं. उन की जिंदगी में सेक्स और रोमांस जैसी चीजें खासतौर पर जगह बना लेती हैं.

अक्सर लोग फ्लर्टिंग को गलत अर्थ में लेते हैं. फ़्लर्ट करने वाले भी कई बार अपनी सीमा भूल जाते हैं. यह गलत है. फ्लर्टिंग कीजिए मगर उतना ही जो आप को और उसे खुशी दे. आप एकदूसरे को जानसमझ सकें, दोनों के बीच एक प्यारा सा रिश्ता बन सके. मगर फ्लर्टिंग की आड़ में गलत हरकतें करना या समाज को रुसवा करना उचित नहीं. यदि आप की बातें उस की परेशानी का सबब बनने लगे तो उसी वक्त यह रोक दें.

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ऐसा नहीं है कि फ्लर्ट का मतलब हमेशा चंद पलों का रिश्ता ही होता है. कई बार फ़्लर्ट करतेकरते इंसान को सामने वाले से सच्चा प्यार भी हो जाता है. सामने वाला भी आप के बगैर खालीखाली सा महसूस करने लगे तो समझिए आप दोनों इस रिश्ते के प्रति सीरियस होने लगे हैं. ऐसे में रिश्ते को आगे बढ़ाना संभव है तो ठीक है वरना इस रिश्ते को दोस्ती का रिश्ता बना कर जिंदगी के खालीपन को दूर कीजिए. आप सिर्फ दूसरे लोगों से ही फ्लर्ट करें यह जरूरी नहीं. आप अपने जीवनसाथी या बॉयफ्रेंड /गर्लफ्रेंड के साथभी फ़्लर्ट कर सकते हैं. इस से आप के रिश्ते में रोचकता और नवीनता आएगी.

कई दफा ऐसा भी होता है कि जिसे आप बहुत पसंद करते हैं उसे ही अपने इंट्रोवर्ट नेचर के कारण कुछ कह नहीं पाते. ऐसे में अगर आप ने थोड़ी सी हिम्मत जुटाई और फ्लर्ट के बहाने उस के आगे अपने दिल की बात हल्केफुल्के ढंग से रखने की कोशिश की तो संभव है आप कामयाब हो जाएँ और आप को आप का प्यार मिल जाए.

पुराने प्रेम का न बजायें ढोल

भारतीय साहित्य से लेकर धार्मिक कथाओं में सेक्स न ही हीन माना गया है और न ही इसमें किसी तरह की पाबंदी का जिक्र है. लेकिन जहां तक बात समाज की आती है, इसका रूप बिलकुल विपरीत दिखता है. यहां सेक्स को लेकर बात करना अच्छा नहीं माना जाता लेकिन मजाक और गालियां आम बात हैं. किशोरों को इसकी जानकारी देने में शर्म आती है लेकिन पवित्र बंधन के नाम पर विवाह में बांधना और किसी अनजान के साथ सेक्स करने को मजबूर करना रिवाज है. ऐसा ही एक बड़ा अंतर मर्द और औरत के प्रति कामइच्छाओं को लेकर रहा. यहां कौमार्य सिर्फ लड़की के लिए मायने रखता है, पुरुष का इससे कोई लेना देना नहीं है.

यानि लड़की का विवाह पूर्व सेक्स करना पाप की श्रेणी में आता रहा, हालांकि पुरुष इससे अछूता ही रहा. लेकिन बदलाव श्रृष्टी का नियम है. और कुछ ऐसा ही बदलाव समाज मेें दस्तक दे रहा है, जहां कुछ प्रतिशत ही सही पर विवाह पूर्व सेक्स एक समझदार जोड़े की शादी को प्रभावित नहीं कर रहा. इसलिए पुराने प्रेम का ढोल बजाते रहने से कोई सुख नहीं, कोई समझदारी नहीं.

शहरीकरण का प्रभा

भारत में शहर तीन श्रेणी में हैं. एक सर्वेक्षण में श्रेणी के शहरों में हुई पूछताछ में सामने आया कि अब दोनो ही साथी एक दूसरे के अतीत को वर्तमान में नहीं लाते. साथ ही तलाक और अफेयर के बढ़ते चलन में ऐसा संभव नहीं है कि कोई विवाह पूर्व सेक्स से अछूता रहा हो. ये अब एक सामान्य बात रह गई है. मायने ये रखता है कि विवाह के बाद साथी एक दूसरे के साथ कितने ईमानदार हैं. वहीं बी और सी श्रेणी के शहरों में करीब 40 से 48 प्रतिशत लोग विवाह पूर्व सेक्स का समर्थन करते हैं लेकिन सिर्फ अपने मंगेतर के साथ. उनका मानना है कि मंगनी के बाद शादी उसी व्यक्ति से होनी है तो सेक्स शादी के पहले हो या बाद में, मायने नहीं रखता.

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सवाल वर्जिनिटी का

अब एक सवाल आता है, वर्जिनिटी का. हर समय यही क्यों उम्मीद की जाए कि लड़की वर्जिन हो? मेरे पास इस प्रश्न का सीधा उत्तर तो नहीं है लेकिन मुझे अभी हाल में ही आयी एक मूवी ‘विक्की डोनर’ के  वो डायलॉग याद आ रहे हैं जब रिश्ते की बात के समय आयुष्मान को पता चलता है कि लड़की (यामी गौतम) का कोई अतीत भी है. तब आयुष्मान सीधा सवाल करता है कि, “सेक्स हुआ था क्या”? वह ‘नहीं’ में उत्तर देती है.  इस पर अपनी बात को जस्टिफाई करते हुए आयुष्मान कहता है कि “सेक्स नहीं हुआ तो उसे शादी थोड़ी न बोल सकते है”!!

कितना अजीब है यह विचार आज के ज़माने में. पर यह हमारे भारतीय समाज की हकीकत बयां करता है. इशारा करता है उस भारतीय मानसिकता की तरफ! मैं इसे अच्छा या बुरा नहीं कहूंगी. किसी के लिए फीलिंग होना, प्यार होना तो स्वाभाविक है . १० में से ९ लोगों के पास कुछ न कुछ कहानी भी होगी. लेकिन वह रिलेशनशिप कितना आगे बढ़ा यह जानने की  इच्छा  सिर्फ पुरुषों में ही नहीं महिलाओं में भी रहती हैं. लेकिन जब पुरुष को पता चलता है कि उसकी पत्नी शादी से पहले किसी के साथ रिलेशनशिप में थी तो वह यह बात आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता . कब शुरू होता है तानों और उल्हानों का सफर.

एक घटना –  सुनील अपनी पत्नी -संगीता से शादी के कुछ महीने बाद से ही  नाराज चल रहा था. सुनील को शक था कि उसकी पत्नी अब भी अपने पूर्व प्रेमी से मिलती है. लड़की के मायके वालों के हस्तक्षेप के बाद भी परिस्थितियां नहीं बदली और सुनील का दिन प्रतिदिन शक बढ़ता चला गया. जबकि विवाह से पहले सुनील खुद एक लड़की के साथ कुछ सालों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा था. बे बुनियाद शक की वजह से वह अक्सर अपनी पत्नी के ऊपर हाथ भी उठाने लगा. 1 दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि सुनील क्रोध में आपे से बाहर हो गया और उसने गुस्से में संगीता का गला दबा कर उस की हत्या कर दी .

पत्नी सती सावित्री क्यों

ऐसे आदमी जिनका खुद का एक पास्ट होता है, लेकिन उनको पत्नी सती सावित्री चाहिए होती है क्यों? उनके हिसाब से हर औरत का भी पास्ट होता है. यही सोच के साथ वो अपनी पत्नी पर कभी विश्वास नहीं करते. जबकि ऐसे व्यक्तियों को तो और ज्यादा अंडरस्टैंडिंग होना चाहिए.

उदाहरण -१

रीना जो कि एक कंपनी की एच आर है, इसलिए परेशान है क्योंकि उसके पति को रीना के शादी से पहले के सम्बन्धो के बारे में पता है और अब वो उस पर शक करता है! रीना ने बहुत सी बार अपने पति को समझाना चाहा कि सेक्स नहीं हुआ था और मैं विवाह से पहले वर्जिन थी. लेकिन फिर भी उसका पति शक करता है! अब यह कितनी ही दुःख की बात है और सिर्फ इतनी सी बात के लिए एक अच्छे रिश्ते के बाकि सारे पहलू दब जाते है और मजा चला जाता है.

पहलू और मुद्दे और भी हैं

एक रिश्ते के बहुत सारे पहलू होते हैं और यह उस समय की परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है. जबकि लम्बी अवधि में पुराने संबंध ज्यादा मैटर नहीं करते.  फिर भी राइ का पहाड़ बनाने की आदत से सब कुछ नष्ट हो जाता है. इसी कारण  हमारे देश में विर्जिनिटी रिकंस्ट्रक्शन की सर्जरी शुरू हो चुकी है! ये वो महिलायें/ लड़की करवातीं हैं जिनके शादी के पहले सेक्स संबंध थे और अब नहीं चाहतीं कि उनके पति को ये बात पता चले!

उदाहरण 2-

मैं यह सोचती हूं कि इस प्रकार के पुरुष माइनॉरिटी में है यानी ऐसी सोच वाले पुरुष आज के समय में कम होंगे. लेकिन हाल में हुआ किस्सा मुझे ऐसा न सोचने पर मजबूर कर रहा है! हुआ यूं कि मेरा एक मित्र (30साल)  जोकि आज की पीढ़ी का बहुत ही पढ़ा लिखा युवा है, वो इस बात पर अड़ा हुआ है की उसे ऐसी पत्नी चाहिए जो कि वर्जिन हो! हालांकि उसका तर्क ये है कि वो खुद वर्जिन है और चाहता है की उसका जीवन साथी भी वर्जिन हो! उसके नजरिए से देखें तो बात सही लगेगी लेकिन मेरा सवाल यह है कि  क्या पत्नी सिर्फ वर्जिन होने से रिश्ता अच्छा हो जायेगा?

योनी की झिल्ली सफल वैवाहिक जीवन की निशानी क्यों

आज भी हमारे समाज में लड़की के कुंवारेपन पर ज्यादा जोर दिया जाता है. शादी की पहली रात योनि की झिल्ली का फटना सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मानी जाती है. कैसी है यह मानसिकता और यह समाज का दोहरा पन. सुहागरात के दौरान योनी की झिल्ली  के फटने को ही सफल वैवाहिक जीवन की निशानी मान लिया जाता है.  यह मानसिकता अधिकांश पुरुष वर्ग की है चाहे वह किसी भी धर्म या समाज का हिस्सा हो. तभी तो आज भी बलात्कार के बाद मानसिक प्रताड़ना एक महिला वर्ग के हिस्से ही रहती है और बलात्कारी या शोषण करने वाला आजाद घूमता है.

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ना बदलने वाला समाज और पुराना दृष्टिकोण

लड़कियों या महिलाओं के प्रति यह सोच यह मानसिकता कोई नई बात नहीं इसकी जड़े बहुत पुरानी और गहरी हैं आज भी उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों या राज्यों में लड़की की पैदाइश के बाद खुशियां नहीं मनाते, बोझा ही मानते हैं. भले ही सरकार ने भ्रूण टेस्ट पर रोक लगा दी हो या उसे गिराने पर सजा या जुर्माना लगा दिया हो लेकिन आज भी बहुत से गांवों में , लड़की का पता चलने पर भ्रूण गिरा दिया जाता है या पैदा होते ही उसे किसी गटर में यह नाले में फेंक दिया जाता है वरना मार दिया जाता है. यानी समाज का दृष्टिकोण लही घिसा पिटा और पुराना.

शारीरिक संबंध के लिए कोई निश्चित पैमाना नहीं

मैं यहां कदापि नहीं कहूंगी कि शादी से पहले लड़के या लड़की को आपसी शारीरिक संबंध बनाने की छूट हो. पर यदि महिला के कुंवारेपन को पुरुष आंकता है तो पुरुष के कुंवारेपन को महिला को आंकने का अधिकार क्यों नहीं? यदि सेक्स की चाह पुरुष कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? कितने ही ऐसे  पुरुष होंगे जिन्होंने शादी से पहले किसी न  से शारीरिक संबंध बनाये होंगे या हस्तमैथुन किया होगा. फिर एक औरत के लिए पाबंदी क्यों?

आंकड़ों के अनुसार

आज के समय में पश्चिमी देशों में वर्जिनिटी नाम की कोई चिड़िया नहीं. वहां बालिग पुरुष व महिला आपसी रजामंदी से संबंध बना सकते हैं. जबकि हमारे देश में आज भी 71-79.9 प्रतिशत महिलाएं/ लड़कियां मिल जाएंगी जिन्होंने शादी से पहले किसी से संबंध न बनाया हो पर यही प्रतिशत पुरुषों मामले में सिर्फ 31-35 प्रतिशत ही होगा. इन देशों में अधिकतर लड़की लड़कियां 13 -16 साल की उम्र में ही सेक्सुअल रिलेशन बना लेते हैं और इन रिलेशंस के लिए वहां कोई तूल नहीं. इन देशों की संस्कृति में इसे मान्यता प्राप्त है.

तोड़नी होंगी वर्जनाएं

आज सोशल मीडिया का समय है. हम सबको अपनी सोच को बदल इन वर्जनाओं को तोड़ना होगा. समझना होगा कि शादी की शर्तों में वर्जिनिटी  है. एक औरत का चरित्र योनि की झिल्ली नहीं. वह भी पूरे सम्मान की अधिकारी है. वैसे तो आज  वर्जिनिटी अपने आप में कोई बड़ा सवाल नहीं माना जा सकता. इस सोच को बदलने के लिए मां बाप को भी अपनी मानसिकता को बदलना होगा. अगर लड़कों के लिए अपनी वर्जिनिटी खोना कोई बड़ा मुद्दा नहीं , तो लड़कियों के लिए भी नहीं होना चाहिए.

उम्र को क्यों करें नजरअंदाज

तीन पीढ़ी में देखा जाए तो विवाह की उम्र तेजी से बढ़ती हुई नजर आएगी. महिला सशक्तिकरण और जागरुक्ता की लहर तेज होने वाली ये पहली पीढ़ी है. जाहिर है आगे की पीढ़ियों के लिए संघर्ष थोड़ा कम होगा. दादी का बाल विवाह हुआ था, मां का विवाह 20 वर्ष तक हो चुका था पर आज विवाह 25-27 वर्ष से ऊपर होना आम बात है, लेकिन हार्मोनल बदलाव अपनी गति से ही चलते हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो दादी ने आज की उम्र में होने वाले सेक्स से पहले ही सेक्स कर लिया था. लेकिन उन्हें समाज की इजाजत थी. लड़कियां आज इस इजाजत का इंतजार नहीं करतीं , लेकिन उनके साथी के लिए ये बात ज्यादा मायने नहीं रखती क्योंकि वो भी इसी दौड़ में शामिल हैं. लेकिन फिलहाल ये समानता एक छोटे वर्ग तक ही सीमित है.

रिश्ते की नींव हो मजबूत

उसने तम्हें छुआ तो नहीं था, तुम उसके साथ कितनी बार सोर्इं? लड़की के शादी से पूर्व अफेयर की जानकारी अगर उसके पति को है तो ये सवाल लड़की के लिए आम बात रहे, भले वो उसे और उसके चरित्र को छलनी कर रहे हैं. हद्द तो यहां तक रही कि कुछ महिलओं को अपनी दूसरी शादी में भी ऐसे सवालों का सामना करना पड़ा. पर क्या ये वाकई मायने रखता है? आज कुछ पुरुषों के पास इसका जवाब है. जिन्हें लगता है कि ये मायने नहीं रखता, वो अपनी शादी को सफल बना रहे हैं. कुछ प्रतिशत ही सही, लेकिन साथी के इस खुले बर्ताव और अपनी पत्नी पर भरोसे के कारण ही आज महिलाएं अपने अतीत में हुए अत्याचार के बारे में खुलकर बोल पा रही हैं. कहते हैं कि सफल विवाह की नींव भरोसा और ईमानदारी होती है. इसलिए अगर लड़की अपने अतीत की कहानी साथी को सुनाती है तो इससे साफ जाहिर है कि वो अपने रिश्ते में ईमानदार रहना चाहती है. वहीं अगर वो छुपाती है और रिश्ते पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देती तो ये बात मायने नहीं रखती कि विवाह पूर्व उसका किससे कैसा रिश्ता था.

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क्या कहता है धर्म

बहुत कम लोग होते हैं जो धर्म को बहुत नजदीक से समझते और जानते हैं. ज्यादातर लोग सुनी सुनाई बातों को भरोसे के साथ मानते चले आते हैं क्योंकि ये बात किसी पूजनीय ने बताई होती है. ऐसे में वो अपनी बुद्धी नहीं लगाना चाहते. ऐसे में ज्यादातर पुरुष प्रधान का प्रभाव रहा जो महिलाओं के लिए लक्ष्मण रेखा बनाता रहा. जरूरी नहीं उनकी बताई बात किसी वेद, धार्मिक कथा या पुराण में लिखी हो. अगर नजदीक से समझा जाए तो सेक्स के विषय में धार्मिक कथाओं में खासा खुलापन भी देखने को मिलेगा. हालांकि एक प्रकार का दोगलापन यहां भी है. कुंती को विवाहपूर्व जन्मा पुत्र त्यागना पड़ा था लेकिन उसी कुंती की वधु को पांच पतियों का साथ मिला. यहां अतंर सिर्फ विवाह का था. फिर भी कुछ कथाएं हैं जो इस खुलेपन की ओर इशारा करती हैं. कुरुवंश को आगे बढ़ाने में ऋषि पराशर और सत्यवति के विवाहपूर्व संतान व्यास का सहारा लिया गया था. महाभारत में इस बात का भी वर्णन है कि अगर कोई बिना ब्याही स्त्री अपने मन का सेक्स पार्टनर चुनती है और उससे सेक्स की इच्छा जताती है तो उस पुरुष को उसकी इच्छा का मान रखना होता है. ऐसा न करने पर वो दण्ड का अधिकारी होता है. अर्जुन का श्राप इसका एक उदाहरण है. इसके अलावा साहित्य के कुछ पन्नों में भी इस विषय में खासा खुलापन दिखाया गया है जहां खुले में संबन्ध बनाने, और नजदीकी रिश्तों में कामइच्छा प्रकट करने का जिक्र है.

पति से घर का काम कैसे कराएं

हाल ही में ब्रिटेन में हुए एक सर्वे से पता चला है कि पुरुष घर के छोटेमोटे काम करने में भी आनाकानी करते हैं, इसलिए पत्नियां अपने पति से घर के काम कराने के लिए घूस का सहारा लेती हैं. यह घूस पति को स्पोर्ट्स चैनल देखने का मौका देने जैसी होती है. वे उन्हें तब अपनी पसंद का चैनल देखने देती हैं, जब वे दीवार पर तसवीर टांगने, घर के फर्नीचर को सही तरह से जमाने, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने का जिम्मा लेते हैं. इस के अलावा अपनी पसंद का महंगा गैजेट खरीदने की इजाजत, अपने दोस्तों के साथ बौयज नाइट आउट यानी रात में घूमने की आजादी, इन तरीकोें से पत्नियां पतियों को घरेलू काम में मददगार बनाती हैं.

सुपर बनने की डिमांड

भारतीय महिलाओं की स्थिति भी इस मामले में कुछ अलग नहीं है. उन के पास भी घरपरिवार, पति, बच्चे, औफिस, कैरियर, रिश्तेदारों के साथ निभाने आदि जिम्मेदारियों की लंबी लिस्ट होती है. उस से हर समय सुपर मां, सुपर पत्नी, सुपर कैरियर वूमन बनने की मांग की जाती है. ऐसे में औफिस और घर के बीच तालमेल बैठाती महिला अनेक अनचाहे पहलुओं से जूझती है. उस पर पति द्वारा, ‘साक्षी, मेरे जूते कहां हैं?’, ‘मेरा टिफिन पैक हुआ या नहीं?’, ‘मेरी फलां शर्ट प्रैस क्यों नहीं है?’, ‘शर्ट का बटन टूटा हुआ है’, ‘बाथरूम में तौलिया नहीं है’, ‘मेरी फाइल नहीं मिल रही’, ‘मेरी गाड़ी की चाबियां पकड़ाना जरा’, ‘तुम कोई भी काम ढंग से नहीं करती हो, तुम्हें पता है, मैं ये सब नहीं कर सकता’ जैसी शिकायतों का पुलिंदा किसी भी पत्नी को अंदर तक परेशान कर देता है कि जिन कामों के न होने की शिकायत पति कर रहा है, उन कामों को वह स्वयं भी कर सकता है. लेकिन वह इन कामों को पत्नी का काम समझता है.

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एकदूसरे के पूरक

हमारे समाज में लड़कियों में बचपन से ही जिम्मेदार, कार्यकुशल बनने और घरपरिवार के काम करने के संस्कार डाले जाते हैं. चाहे वह पत्नी हो, बच्चों की मां हो या बहू हो. भोजन, कपड़े धोना, बच्चों की देखभाल, फलसब्जी की खरीदारी, औफिस व घर के बीच तालमेल बैठाना सभी कामों की उम्मीद उसी से की जाती है. अगर पत्नी 2 दिन के लिए घर से बाहर चली जाए तो पति बीसियों बार कौन सी चीज कहां रखी है, जानने के लिए फोन करते हैं. घर लौटने पर घर में जगहजगह फैले अखबार, गंदे कपड़े, खाने की जूठी प्लेटें, डाइनिंग टेबल पर जमी धूल, सूखे गमले नजर आते हैं. जब स्त्रीपुरुष एकदूसरे के पूरक हैं, तो वे घरेलू कामों में एकदूसरे के मददगार क्यों नहीं हो सकते हैं?

जिम्मेदारी बराबर की

एक बौलीवुड अभिनेत्री से जब पूछा गया कि वे अपने होने वाले पति में क्या खूबी चाहती हैं, तो उन का जवाब था, ‘‘मैं चाहती हूं, मेरा होने वाला पति सही माने में मेरा सहयोगी, मेरा लाइफपार्टनर हो. वह हर पल हर सुखदुख में मेरा सहयोगी हो. उस में यह अहं न हो कि यह काम मेरा नहीं है, मैं इसे नहीं कर सकता.’’ दरअसल, आज की हर पढ़ीलिखी कैरियर माइंडेड युवती ऐसा जीवनसाथी चाहती है, जो जीवन के हर क्षेत्र में उसे पूरा सहयोग दे. उस की भावनाओं को पूरा महत्त्व दे, उसे बराबरी का अधिकार दे, उस के घरेलू कामों में उस की पूरी मदद करे. आज की जागरूक पत्नी का मानना है कि जब वह घर से बाहर जा कर पति को आर्थिक सहयोग दे रही है, तो पति से घरेलू कामों की उम्मीद करना कहीं से भी गलत नहीं है.

पति का सहयोग जरूरी

स्वतंत्र पत्रकार दीक्षा गोयल का कहना है कि पति का सहयोग कितना जरूरी और हिम्मत देने वाला होता है, यह मैं ने तब जाना जब मेरे बेटे अंश का जन्म हुआ. अंश के दूध की बौटल बनाने से ले कर उस के डायपर बदलने तक में मेहुल ने मुझे पूरा सहयोग दिया. आज अंश 5 साल का है, उसे बड़ा करने में मेहुल का बराबर का योगदान है. इस के विपरीत कई आलसी और अहंकारी पति इन कामों के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं समझते. औफिस से आते ही सब से पहले उन्हें चाय चाहिए. फिर वे पसर कर या तो टीवी के आगे बैठ जाते हैं या फिर नैट पर सर्फिंग कर के पत्नी को चिढ़ाते रहते हैं और खाना टेबल पर लगने का इंतजार करते रहते हैं. ऐसे पति आलसी और गैरजिम्मेदार पतियों की श्रेणी में आते हैं, जो बैठेबैठे और्डर करते रहते हैं. जब तक उन से कहा नहीं जाए, वे उठ कर पानी का गिलास भी नहीं लेते. ऐसे में पत्नी बेचारी झुंझला उठती है. अगर पति केवल पत्नी से ही घरेलू कामों की उम्मीद करे और पत्नी सहयोग के समय अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़े तो इस रिश्ते में कड़वाहट पैदा होती है और माहौल तनावपूर्ण हो जाता है.

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