जब रिश्तेदार को देना हो उधार

32 साल का निलय करीब 8 साल से एक कंपनी में सीनियर पोजीशन पर काम कर रहा था. उस ने हमेशा काफी संभल कर पैसे खर्च किए थे और इसलिए इतने कम समय में ही उस ने करीब 10 -12 लाख की रकम जमा कर ली थी. एक दिन उस का एक चचेरा भाई अनुज उस से मिलने आया. वह वैसे भी कभीकभार आता रहता था पर इस बार उस की मंशा उधार मांगने की थी.

अनुज ने बताया कि उस का बिज़नेस डूब रहा है और वह बहुत परेशान है. उसे अपना बिजनेस बचाने के लिए करीब 4-5 लाख रुपयों की जरूरत है. यदि निलय उस की मदद कर देता है तो वह उम्र भर अहसानमंद रहेगा और जल्द से जल्द रुपए वापस भी कर देगा. भाई की परेशानी और दर्द महसूस करते हुए निलय ने अपनी सेविंग्स में से 4 लाख उसे उधार दे दिए.

इस बात को 2 साल बीत गए पर अनुज ने रूपए वापस करने की कोई पहल नहीं की. निलय जब भी अनुज से रुपए मांगता तो वह कुछ न कुछ बहाने बना कर और कुछ महीनों में देने की बात कह कर गायब हो जाता. इस बीच कोरोना के कारण निलय की अपनी नौकरी भी छूट गई. लॉकडाउन और उस के बाद के कुछ महीने वह घर पर ही रहा. इस दौरान उसे पैसे की तंगी का अहसास होने लगा. वह अपने चचेरे भाई से कई दफा अपनी परेशानियां बता चुका था. मगर वह अब भी हर बार बहाने बनाने लगता.

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निलय को अपने ही पैसे बारबार मांगने में कोफ्त होने लगी. एक दिन उस ने कठोरता से रुपए वापस करने को कहा तो अनुज ने शाम तक का समय मांगा. शाम में जब निलय ने फोन किया तो उस ने फोन उठाया नहीं. निलय उस के घर पहुंचा तो पता चला कि वह अपना घर शिफ्ट कर कहीं और जा चुका है. किसी के पास भी अनुज का नया एड्रेस नहीं था. इस तरह निलय ने न सिर्फ अपने रूपए गंवाए बल्कि एक रिश्ता भी हमेशा के लिए खो दिया.

पैसे दे कर भी बिगड़ सकते हैं रिश्ते

अक्सर देखा गया है कि किसी परिचित या रिश्तेदार को जब आप रुपए उधार देते हैं तो उस समय तो वह आप के साथ बहुत विनम्रता से पेश आता है, बहुत दोस्ती और अपनापन दिखाता है. आप को महसूस होता है कि इस बंदे को अभी मेरी जरूरत है तो किसी भी तरह मदद करनी चाहिए. इस से रिश्ता और मजबूत हो जाएगा, पर कई दफा ऐसा होता नहीं है. समय बीतने के बाद जब आप उस से अपने रुपए वापस मांगते हैं तो पहले तो वह विनम्रता से अपनी मजबूरी दिखाता है और बहाने बनाना शुरू करता है. ऐसे में आप उसे और समय देते जाते हैं और वह हर बार कोई न कोई बहाना बना देता है.

फिर एक समय आता है जब आप थोड़ी कठोरता से रुपए देने की बात करते हैं. बस यहीं से रिश्तों में कड़वाहट आनी शुरू हो जाती है. उधार लेने वाला आप को इग्नोर करना शुरू करता है. उस का व्यवहार बिल्कुल उलट जाता है. उस की जुबान पर जो नरमी रहती थी वह कड़वाहट में बदल जाती है. आप को ऐसा महसूस होने लगता है जैसे अपने नहीं बल्कि उस के रुपए मांग रहे हैं. ऐसे में आप खुद को बहुत ठगा हुआ सा महसूस करते हैं. फिर आप भी कठोरता से रूपए मांगने शुरू कर देते हैं.

यहीं से रिश्ते बिगड़ते चले जाते हैं. कुछ लोग तो बाद में ऐसे शो करते हैं जैसे आप ने अपने रुपए मांग कर कोई गुनाह कर दिया और उन्हें अब आप से कोई बात ही नहीं करनी. यानी मदद भी करो और बुरे भी बनो.

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मीठामीठा बोल कर आप को पैसे वापस करने का दिलासा देते रहेंगे जैसे वे पैसे वापस करने की बात कर के भी बहुत बड़ा अहसान कर रहे हों और जब आप बारबार उन्हें यह बात याद दिलाते हो कि रूपए वापस चाहिए तो वे नाराज हो जाते हैं. दोस्ती और अपनेपन का स्थान दुश्मनी और नफरत ले लेती है.

उधार देने से पहले देखें कि रिश्ता महत्वपूर्ण है या पैसा.

जिस तरह कहा जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कोई भी बात बुरी लगे तो दो तरह से सोचो…..यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो बात भूल जाओ और यदि बात महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को भूल जाओ. ठीक उसी तरह आप को रिश्तेदार या पैसे में से अपनी प्राथमिकता तय करनी पड़ेगी. कई बार हमें पता होता है कि सामने वाला आप के रूपए नहीं लौटाएगा. ऐसे में यदि रूपए उधार मांगने वाला रिश्तेदार आप के जीवन में खास अहमियत रखता है और आप उस के बिना नहीं रह सकते तो उस की मदद जरूर करें. मगर यदि आप खुद ही आर्थिक दृष्टि से तंगी के दौर से गुजर रहे हैं तो ऐसी मदद का क्या फायदा?

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दबाव में न आएं

सामने वाले की आर्थिक मदद आप तभी कर सकते हैं यदि आप स्वयं आर्थिक रूप से सक्षम हों. भले ही आप का उस से कितना ही प्यारा या मजबूत रिश्ता ही क्यों न हो. खासकर जब आप को पता है कि ये रूपए वापस नहीं मिलेंगे. इस लिए खुद को परेशानी में डाल कर कभी भी दूसरों की मदद न करें. मदद तभी करें जब आप के पास उतने रूपए देने को के लिए हो. न तो पैसा किसी से उधार ले कर सामने वाले की मदद करें और न ही खुद को आर्थिक संकट में डालें. यदि इस प्रकार की कोई दुविधा हो तो सामने वाले को गोलमोल जवाब देने की अपेक्षा उसे स्पष्ट बताएं कि आप उस की मदद करने में असमर्थ हैं ताकि वह कहीं और ट्राई कर सके.

आप ने पैसे दे दिए, उस के बाद बारबार उसे उलाहना न दें या बारबार मांग कर उसे लज्जित न करें. क्योंकि इस तरह पैसे देने के बावजूद आप का रिश्ता खराब हो जाएगा. इसलिए पहले ही तय कर लें और अपने मन को समझा दें कि पैसा देने के बाद वापस नहीं आएंगे.

धोखेे में न फंसें

पैसा उधार देते हुए इस पहलू पर अवश्य गौर करें और जांच लें कि कहीं पैसा उधार मांगना उस की आदत तो नहीं. बहुत से लोग सामने वाले की भावनाओं का फायदा उठा कर पैसा उधार मांगना अपनी आदत बना लेते हैं और उधार वापस करने के नाम पर कन्नी काटने लगते हैं. यदि आप का यह रिश्तेदार भी इस तरह के मामलों में फंस चूका है तो उस से हाथ खींच लेना ही उचित होगा. जो इंसान किसी और के साथ धोखा कर सकता है वह आप के साथ भी धोखा कर सकता है इस बात का ध्यान जरूर रखें.

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ताकि मुसीबत न बने होस्टल लाइफ

लेखक- पारूल श्री

कीर्तिके होस्टल का पहला दिन था. 22 साल की कीर्ति इस से पहले कभी घर से दूर किसी दूसरे शहर जा कर होस्टल में नहीं रही थी. इसलिए वह काफी नर्वस थी, लेकिन साथ ही उत्साहित भी थी. शाम के 4 बजे जब वह होस्टल के कमरे में सामान ले कर पहुंची तो वहां पहले से एक लड़की मौजूद थी.

औपचारिक परिचय के बाद कीर्ति ने अपना सामान रख कर कमरे का जायजा लिया. कमरे में  3 बैड थे. एक कीर्ति का, दूसरा रिद्धिमा का, जो वहां पहले से थी और तीसरा रूहाना नाम की लड़की का था, जो उस समय वहां नहीं थी. कीर्ति से कुछ देर बातचीत के बाद रिद्धिमा किसी काम से बाहर चली गई. उस के जाने के बाद कीर्ति ने अपने कपड़े और सामान अलमारी में लगाया और बिस्तर पर लेट गई. वह थकी हुई थी, लिहाजा लेटते ही सो गई.

अचानक गेट पर हुई खटखट से उस की नींद खुली. घड़ी पर नजर डाली तो रात के 8 बज रहे थे. कमरे के दरवाजे पर रिद्धिमा थी. कुछ देर बाद रिद्धिमा उसे अपने साथ डिनर के लिए होस्टल के मैस में ले गई.

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रिद्धिमा 19 साल की शांत और सरल स्वभाव की लड़की थी और फर्स्ट ईयर में थी. इसलिए कीर्ति को भी उस के साथ घुलनेमिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. रिद्धिमा कीर्ति को दीदी कह कर बुलाने लगी. खाना खा कर कुछ देर दोनों होस्टल के कैंपस में टहलने लगीं. रात के 10 बज चुके थे. कमरे पर लौटने के बाद रिद्धिमा पढ़ने बैठ गई और कीर्ति ने भी अपनी किताबें खोल ली.

उस दिन कीर्ति ने रूहाना के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की और थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद दोनों सो गईं. दूसरे दिन कीर्ति जब शाम को कालेज से आई तो कमरा अंदर से बंद था. काफी देर खटखटाने के बाद जब दरवाजा खुला तो सामने एक लड़की खड़ी थी, जिस की आंखों में नींद थी. खुले बाल, शौर्ट्स, स्लीवलैस टौप में वह बेहद मौडर्न नजर आ रही थी. उम्र यही कोई 24-25 होगी. लेकिन उस की नींद से भरी लाललाल आंखें देख कर कीर्ति को थोड़ा अजीब सा महसूस हुआ.

दरवाजा खोल कर वह अपने बैड पर जा कर सो गई. कीर्ति समझ गई कि वह रूहाना है, लेकिन उसे अपना परिचय देने और उस का परिचय लेने से पहले ही वह सो चुकी थी. रिद्धिमा के बताए अनुसार ही उस का पूरा बैड बिखरा था. अपने फैले कपड़ों के ऊपर ही वह सो रही थी. बैड के पास रखी टेबल पर पर्स और साथ में सिगरेट का पैकेट रखा था.

फ्रैश हो कर कीर्ति ने अपने घर फोन किया. मांपापा से बात कर के उसे बहुत अच्छा लग रहा था. शाम की चाय ले कर वह बालकनी में आ कर बैठ गई. 5 बजे तक रिद्धिमा भी आ गई. डिनर के समय तक रूहाना सो रही थी. रात के 10 बजे डिनर के बाद दोनों जब अपने कमरे में आईं तब तक रूहाना भी फ्रैश हो कर अपने बिखरे कपड़ों को बैड के एक कोने में धकेलने में व्यस्त थी.

रिद्धिमा ने रूहाना का कीर्ति से परिचय कराया. रूहाना कीर्ति के घरपरिवार और उस की स्टडी वगैरह के बारे में पूछने लगी. ‘‘इतनी पढ़ाई कैसे कर लेते हो तुम लोग? मुझ से तो मुश्किल से ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई ही हो पाई है.’’

कीर्ति ने भी उस से पूछा कि वह क्या करती है. ‘‘मैं तो अभी कुछ नहीं करती हूं. बस घूमना और मस्ती करना… यह नौकरी और पढ़ाई मेरे बस की बात नहीं है,’’ रूहाना ने बेपरवाही से कहा.

‘‘ओके, मैं तो अब पढ़ने जा रही हूं,’’ कीर्ति ने जैसे ही रूहाना से कहा, रूहाना ने उसे फिर से रोकते हुए कहा कि कुछ देर और बातें करते हैं. तुम लोग तो रोज ही पढ़ाई करते हो. कीर्ति और रिद्धिमा के बारबार मना करने पर भी रूहाना ने उन की किताबें बंद करवा कर अपने लैपटौप पर फिल्म लगा दी. फिल्म भी कुछ ऐसी कि कीर्ति और रिद्धिमा नींद का बहाना कर के उठ गईं. रूहाना देर रात तक फिल्म देखते हुए पौपकौर्न खाती रही. फिर रात के 3 बजे बालकनी में जा कर उस ने ड्रिंक किया और 1 घंटा पीने के बाद बिस्तर पर पड़ कर सो गई.

सुबह जब कीर्ति नहाने के बाद बालकनी  में गई तो उस के पैर से कोई चीज टकराई. देखा तो शराब की बोतल थी और पास ही 2-3 सिगरेट के टुकड़े पड़े थे. कीर्ति के लिए ये सब बहुत अजीब था. उस ने इस बारे में रिद्धिमा से बात करने की सोची.

रिद्धिमा से बात करने पर पता चला कि वह तो खुद रूहाना के बरताव से परेशान है. कई बार तो रूहाना ने रिद्धिमा को ड्रिंक भी औफर किया और सिगरेट भी पीने को कहा. जब रिद्धिमा ने उसे समझाने की कोशिश की तो उस ने यह कह कर चुप करा दिया कि वह उस की मम्मी बनने की कोशिश न करे. रिद्धिमा ने बताया कि एक बार उस की तबीयत बिगड़ने पर रूहाना ने उस का बहुत ध्यान रखा था. उस के खानेपीने से ले कर दवा और बाकी सारी चीजों का भी उस ने पूरा खयाल रखा था. इसलिए वह चाह कर भी मैनेजमैंट से उस की शिकायत नहीं कर पाती है.

रिद्धिमा ने कीर्ति से कहा, ‘‘मैं जानती हूं कि वह थोड़ी अजीब है, शराबसिगरेट पीती है, बेतुकी बातें करती है, लेकिन दिल की बुरी नहीं है. मैं ने रूम भी बदलने की सोची थी पर दूसरा कोई रूम खाली न होने के कारण नहीं बदल सकी. सच बताऊं दीदी तो मैं इन सब चक्करों में पड़ना नहीं चाहती हूं. घर पर भी नहीं बता सकती, उलटा मुझे ही डांट सुनने को मिलगी, क्योंकि मैं अपनी जिद्द से घर से बाहर पढ़ाई करने के लिए आई हूं.’’

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रिद्धिमा ने तो यह सोच कर चुप्पी साध ली कि कौन फालतू के चक्करों में पड़ने जाए. लेकिन कीर्ति ने रूहाना से बात करने की सोची. उस ने रूहाना को समझाया कि वह ये सारी चीजें कमरे के अंदर न किया करे, इस से उन्हें काफी दिक्कत होती है. लेकिन रूहाना की हरकतों में कोई कमी नहीं आई.

रूहाना के रूटीन से कीर्ति का मन भर आया था. रोज सुबह बालकनी में शराब की बोतल और शाम को कालेज से आने के बाद कमरे में सिगरेट के जले टुकड़े देख कर कीर्ति परेशान हो चुकी थी. उस की उलटीसीधी बातें मसलन कौन किस का बौयफ्रैंड है, कौन किस के साथ डेट पर गया, किस ने अपनी वर्जिनिटी लूज की या किस ने अभी तक नहीं की… जैसी बेतुकी बातों से वह कीर्ति के सब्र का इम्तिहान ले रही थी. कीर्ति शुरू से ही बोल्ड और स्ट्रौग लड़की थी. उस ने अपने घर वालों को फोन पर बताया तो घरवालों ने उसे इस के खिलाफ ठोस कदम उठाने को कहा.

एक दिन जब कीर्ति शाम को थकी हुई कालेज से होस्टल वापस आई तो उस के कमरे का दरवाजा खुला था. अंदर आ कर देखा तो रूहाना शौर्ट्स और टौप में कीर्ति के ही बिस्तर पर सोई पड़ी थी. बैड के नीचे शराब की बोतल पड़ी थी और पूरे कमरे में अजीब सी गंध फैली हुई थी. कीर्ति ने फौरन वार्डन को अपने कमरे में बुलाया और रूहाना की हालत दिखाई.

दूसरे दिन वार्डन ने रूहाना को बुला कर बीती रात की हरकत के बारे में पूछा और उस के पेरैंट्स से बात करने की बात कही. लेकिन रूहाना ने माफी मांग कर दोबारा ऐसा नहीं करने का वादा किया.

इस के बाद से कीर्ति और रूहाना के बीच बातचीत बंद हो गई, हां, रिद्धिमा दोनों से ही बातें कर लेती थी और कीर्ति के उठाए कदम से रूहाना की हरकतों पर जो लगाम लगी थी, उस से खुश भी थी. रूहाना ने शराब पीनी तो नहीं छोड़ी, लेकिन अब वह शराब की बोतल छिपा कर रखती थी. किसी दिन अगर शराब पी कर सोती थी तो नींद खुलने के बाद वह खाली बोतल और सिगरेट के टुकड़े हटा कर कमरा साफ भी कर देती थी.

होस्टल में रहते हुए हो सकता है कि आप को भी ऐसी रूमपार्टनर मिली हो, जिस से आप को काफी परेशानी और मानसिक तनाव झेलना पड़ा हो. कीर्ति ने तो इस परेशानी से छुटकारा पा लिया, लेकिन क्या इस परेशानी का सिर्फ कम होना काफी है? अगर आप होस्टल या किराए पर कमरा लेने से पहले थोड़ी सर्तकता बरतें और छोटीछोटी बातों का ध्यान रखें तो हो सकता है कि इन परेशानियों और बिन बुलाई मुसीबतों से बच जाएं.

कीर्ति ने तो सही समय पर सही कदम उठा लिया, लेकिन रिद्धिमा जैसी लड़कियां भी होती हैं जो किसी डर या जानेअनजाने में ऐसे लोगों का विरोध करने की जगह चुप रहना बेहतर समझती हैं. वहीं रूहाना वार्डन की चेतावनी से थोड़ी संभल गई, लेकिन हो सकता है कि रूहाना जैसी हरकतों वाली कोईर् और लड़की गुस्से में आ कर कीर्ति जैसी लड़कियों के साथ कुछ बुरा कर दे या फिर कोई भोलीभाली लड़की हो तो उसे बहलाफुसला कर गलत चीजें सिखा दें, जैसा कि रूहाना रिद्धिमा के साथ कर रही थी.

आज बहुत सी लड़कियां पढ़ाई और नौकरी के सिलसिले में घर से दूर दूसरे बड़े शहरों या महानगरों में रहती हैं, जहां उन्हें कालेज के होस्टल या निजी छात्रावास या फिर किराए पर फ्लैट्स ले कर रहना पड़ता है. ऐसे में बाहर रहने वाली लड़कियों को तो आंख और कान खुले रखने ही चाहिए. साथ ही पैरेंट्स और होस्टल के मैनेजमैंट और फ्लैट्स के मालिकों को भी कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए.

पेरैंट्स रखें बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार

आज बहुत से युवा अपने मांबाप के साथ खुले और बेझिझक माहौल में रहते हैं. जो पेरैंट्स अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखते हैं, वे कूल कहलाते हैं. बच्चे अपनी हर परेशानी और बातें अपने मांबाप से तभी कह पाते हैं जब उन्हें लगता है कि उन की बातों के लिए उन्हें पेरैंट्स से डांट और लेक्चर नहीं मिलेगें.

रीमा अपने पेरैंट्स से अपनी हर छोटीबड़ी बात डिसकस करती है. चाहे वह कालेज की हो या दोस्तों की. उस की मां उस की बातों को अच्छी तरह सुनती भी हैं और रीमा के गलत होने पर उसे एक दोस्त की तरह समझाती भी हैं. इसलिए अगर कभी भी रीमा को कोई मुश्किल आती है तो वह अपनी मां की मदद लेती है और उस की मां भी उसे परेशानी से निकालने का रास्ता सुझाती हैं. रीमा के पेरैंट्स उस से प्यार भी करते हैं और उस पर भरोसा भी करते हैं, जिस से रीमा किसी भी मुश्किल हालात को चुपचाप सहन करने की जगह उस से बाहर निकलने का रास्ता आसानी से निकाल लेती है.

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यह जरूरी है कि अनुशासन के नाम पर बच्चों को खुद से दूर रखने की जगह उन के दोस्त बन कर किसी भी अनजान मुसीबत से बाहर निकलने की हिम्मत दें. ताकि कल को कोई बाहरी व्यक्ति आप के बीच के फासलों का फायदा न उठा सके और आप के बच्चे जहां भी रहें, सुरक्षित रहें.

खुद को बनाएं स्ट्रौंग ऐंड स्मार्ट

पढ़ाई हो या नौकरी, जब आप को घर से दूर किसी अनजान शहर में, अनजान लोगों के बीच रहना पड़े तो वहां आप का सब से सच्चा साथी आप खुद होते हैं. किसी भी मुश्किल घड़ी में अपनी मदद आप खुद कर पाएं, उस के लिए जरूरी है कि आप मानसिक और शारीरिक तौर पर मजबूत बनें. आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के साथ आप खुद को किसी भी मुसीबत से बाहर निकाल सकती है. खुद को कमजोर और अनाड़ी बना कर जीने से लोग आप का फायदा उठा सकते हैं. बहुत जरूरी है कि किसी भी मुश्किल हालात से निकलने के लिए सोचसमझ कर पूरे आत्मविश्वास के साथ सही कदम उठाएं.

डर से बाहर निकलें

दूसरों का हौसला तोड़ने या उन्हें नीचा दिखाने से लोग पीछे नहीं हटते हैं. खास कर होस्टल में रहने वाली लड़कियां अपने से छोटी या भोलीभाली लड़कियों को बुली करने का काफी प्रयास करती हैं. उन्हें डरानाधमकाना, अपने छोटेमोटे काम कराना, उन के पैसे खुद पर खर्च करा लेना, उन के कौस्मैटिक्स यूज कर लेना उन की आदत होती है. ऐसा कर के वे कमजोर लड़की को अपने अंगूठे के नीचे रखना चाहती हैं.

इन स्थितियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप किसी से बेवजह डर कर न रहें या किसी की बदतमीजी सहन न करें. अगर वे आप के सामने कोई भी अश्लील हरकत करें या गंदे शब्दों का प्रयोग करें अथवा आप की चीजें आप की इजाजत के बिना इस्तेमाल करें तो बिना डरे मना करें. अगर चीजें गंभीर लगने लगें तो अपने पेरैंट्स को भी इस बारे में जरूर बताएं.

बात कर के हल निकालें

अगर आप को अपने रूमपार्टनर से किसी चीज को ले कर परेशानी हो रही हो या उस की दिनचर्या से आप का काम बाधित हो रहा हो, तो उस से बात करें. उसे समझाएं कि उस के किस काम से आप को परेशानी होती है, आपस में बात कर के हल निकालें. हो सकता है कि आप के किसी क्रियाकलाप से उसे दिक्कत आ रही हो. अपनेअपने कामों का समय तय कर लें. यह भी बताएं कि वह आप की कौन सी चीजों को इस्तेमाल न करे या फिर अपनी चीजें आप की टेबल और बिस्तर पर न फैलाए.

हर स्थिति के लिए रहें तैयार

खुद को हर तरह की स्थिति के लिए तैयार रखें. कभीकभी दबंग रूममेट्स गालीगलौच या मारपीट करने पर भी उतारू हो जाते हैं. ऐसे में अपने बचाव के लिए आप को भी शारीरिक रूप से तैयार रहना चाहिए. यही नहीं, ऐसे रूममेट की शिकायत मकानमालिक या पुलिस को देने में भी संकोच नहीं करना चाहिए. ऐसा न हो कि आप शिकायत करने के बारे में सोचती ही रह जाएं और वह आप को ज्यादा नुकसान पहुंचा जाए.

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रूममेट्स से सचेत रहें

भले ही आप को अपनी रूमपार्टनर अच्छी लगती हो, लेकिन आंखें मूंद कर उस पर भरोसा करना आप को मुसीबत में भी डाल सकता है. रूमपार्टनर से निजी बातें करने की भूल न करें. अपने घरपरिवार की बातें तब तक शेयर न करें जब तक कि वह बहुत ज्यादा भरोसेमंद न हो जाए. इस बात को कतई न भूलें कि आप घर से दूर अपने सपनों को पूरा करने गई हैं. होस्टल या निजी कमरा किराए पर लेने के पीछे एकमात्र उद्देश्य आप की अपनी सुरक्षा और सुविधा होती है. कहीं ऐसा न हो कि दूसरों के कारण आप का होस्टल या बाहर अकेले रहने का अनुभव खट्टा हो जाए. होस्टल लाइफ को सुरक्षित तरीक से जीने के लिए जरूरी है कि आप खुद ही समझ और होशियारी से काम लें.

जब टूटे रिश्ते चुभने लगें

शादी का रिश्ता प्यार और विश्वास का होता है. दो लोग मिल कर एक जीवन शुरू करते हैं और एकदूसरे का सहारा बनते हैं. मगर जब रिश्तों में प्यार कम और घुटन ज्यादा हो तो ऐसे रिश्ते से अलग हो जाना ही समझदारी मानी जाती है. मगर अलग हो जाने के बाद की राह भी इतनी आसान नहीं होती.

पतिपत्नी के बीच रिश्ता टूटने के बाद अक्सर महिलाओं को ज्यादा समस्याएं आती हैं. यह इसलिए होता है क्योंकि आर्थिक जरूरतों के लिए महिलाएं अमूमन अपने पुरुष साथी पर निर्भर होती हैं. विवाद की स्थिति में उन्हें आर्थिक तंगी से बचाने के लिए कानून में कई प्रावधान किए गए हैं. इन्ही में एक मुख्य है गुजाराभत्ता.

हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 में पति और पत्नी दोनों को मैंटीनैंस का अधिकार दिया गया है. वहीं स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत केवल महिलाओं के पास यह हक है.

पति से अलग होने के बाद महिला को पति से अपने और बच्चे के पालनपोषण के लिए गुजारेभत्ते के तौर पर हर माह एक निश्चित रकम पाने का हक़ कानून द्वारा दिया गया है. यदि महिला कमा रही है तो भी उसे गुजाराभत्ता दिया जाएगा. यह नियम इसलिए बनाया गया है ताकि वह सम्मान के साथ अपना जीवनयापन कर सके.

पत्नी के नौकरी न करने पर विवाद की स्थिति में कोर्ट महिला की उम्र, शैक्षिक योग्यता, कमाई करने की क्षमता देखते हुए गुजाराभत्ता तय करता है. बच्चे की देखरेख के लिए पिता को अलग से पैसे देने पड़ते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने मासिक गुजारेभत्ते की सीमा तय की है. यह पति की कुल सैलरी का 25 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है. पति की सैलरी में बदलाव होने पर इसे बढ़ाया या घटाया जा सकता है.

मगर कई बार देखा जाता है कि पति गुजाराभत्ता यानी मैंटीनैंस देने में आनाकानी करते हैं और किसी भी तरह यह रकम कम से कम कराने की जुगत में लगे रहते हैं. वे कोर्ट के आगे साबित करने का प्रयास करते हैं कि उन की आय काफी कम है. वैसे भी रिश्तों में आया तनाव इंसान को एकदूसरे के लिए कितना संगदिल बना देता है इस की बानगी हम अक्सर देखते ही रहते हैं.

हाल ही में हैदराबाद का एक मामला भी गौर करने योग्य है. एक डॉक्टर ने अपनी अलग रह रही पत्नी को 15,000 रुपये प्रति माह गुज़ाराभत्ता देने के आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. लेकिन जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से पारित उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया,

ग़ौरतलब है कि दोनों की शादी 16 अगस्त, 2013 में हुई थी और दोनों का एक बच्चा भी है. बच्चे के जन्म के बादपतिपत्नी के बीच कुछ मतभेद पैदा हुए. पत्नी ने घरेलू हिंसा के मामले के साथ ही मैंटीनैंस की अरजी डाली. पत्नी ने दावा किया था कि उस का पति प्रति माह 80,000 रुपये का वेतन और अपने घर और कृषि भूमि से 2 लाख रुपये की किराये की आय प्राप्त कर रहा है . उस ने अपने और बच्चे रखरखाव लिए 1.10 लाख रुपये के मासिक की मांग की .
फैमिली कोर्ट ने मुख्य याचिका के निपटारा होने तक पत्नी और बच्चे को प्रति माह 15,000 रुपये रखरखाव का देने का आदेश दिया . मगर पति ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई.

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या आज के समय में सिर्फ 15,000 रूपए में बच्चे का पालनपोषण संभव है? पीठ ने लोगों की ओछी मनोवृति की ओर इशारा करते हुए कहा कि इन दिनों जैसे ही पत्नियां गुजाराभत्ते की मांग करती हैं तो पति कहने लगते हैं कि वे आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं या कंगाल हो गए हैं, यह उचित नहीं.

शादीब्याह के मामलों में हमारे देश में अजीब सा दोगलापन देखा जाता है. जब रिश्ते की बात होती है तो लड़के की आय और रहनसहन को जितना हो सके उतना बढ़ा कर बताया जाता है. लेकिन जब शादी के बाद खटास आ जाए और लड़के को अपनी पत्नी से छुटकारा पाना हो तो स्थिति उलट जाती है. कोर्ट में पति खुद को अधिक से अधिक मजबूर और गरीब साबित करने की कोशिश में लग जाता है. यह दोहरी मानसिकता कितनी ही महिलाओं व उन के बच्चों के लिए पीड़ा का सबब बन जाती है.

दिल्ली के रोहिणी स्थित अदालत में (नवंबर 10 2020 ) इसी से संबंधित एक केस की सुनवाई हुई. शिकायत कर्ता एक तीन साल के बच्चे की मां है. वह पति से अलग रहती है और अपने मातापिता के खर्च पर भरणपोषण कर रही है. उस का पति भोपाल का एक बड़ा कारोबारी है. उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है.

लेकिन जब पत्नी व अपने बच्चे को गुजाराभत्ता देने की बारी आई तो अपनी आर्थिक स्थिति खराब बताते हुए प्रतिवादी पति ने अपने नाम पर लिए गए कम्पयूटर व लैपटॉप भी अपनी मां के नाम पर कर दिए. यहां तक की जिस कंपनी का मालिक पहले खुद था वह कंपनी भी उस ने अपनी मां के नाम पर कर दी ताकि पत्नी व तीन साल के बच्चे को गुजाराभत्ता देने से बच सके. उस ने तुरंत कंपनी से इस्तीफ़ा दे दिया और अब उस के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं है.

अदालत ने उस के इस आचरण पर अचंभित होते हुए कहा कि लोगों की इस दोहरी मानसिकता को क्या कहा जाए. अपने ही बच्चे का खर्च उठाने को तैयार नहीं. बाद में अदालत ने पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी व बच्चे को निचली अदालत द्वारा निर्धारित गुजाराभत्ते की रकम का भुगतान करे.

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने इस मामले में (फरवरी 2020) महिला व उस के अबोध बच्चे के लिए 15 हजार रुपये का अंतरिम गुजाराभत्ता देने का निर्देश दिया था. पति ने इस आदेश को सत्र अदालत में चुनौती दी थी. सत्र अदालत ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

इस तरह के मामले दिखाते हैं कि कुछ लोगों के लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं होती. उन के लिए रूपए से बढ़ कर कुछ नहीं. रूपए बचाने के लिए ये लोग ईमानदारी ताक पर रख कर कितना भी नीचे गिर सकते हैं. इस का ख़ामियाज़ा बच्चे को भुगतना पड़ता है. इन बातों को ध्यान में रख कर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले में गुजाराभत्ता और निर्वाहभत्ता तय करने के लिए अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा है कि दोनों पार्टियों को कोर्ट में कार्यवाही के दौरान अपनी असेट और लाइब्लिटी का खुलासा अनिवार्य तौर पर करना होगा. साथ ही अदालत में आवेदन दाखिल करने की तारीख से ही गुजाराभत्ता तय होगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजाराभत्ते की रकम दोनों पार्टियों के स्टेटस पर निर्भर है. पत्नी की जरूरत, बच्चों की पढ़ाई, पत्नी की प्रोफेशनल स्टडी, उस की आमदनी, नौकरी, पति की हैसियत जैसे तमाम बिंदुओं को देखना होगा. दोनों पार्टियों की नौकरी और उम्र को भी देखना होगा.इस आधार पर ही तय होगा कि महिला को कितने रूपए मिलने चाहिए.

कई दफा ऐसा भी होता है कि पति के सामर्थ्य से ज्यादा गुजारेभत्ते की मान कर दी जाती है. ऐसे में पति अगर यह साबित कर दे कि वह इतना नहीं कमाता कि खुद का ख्याल रख सके या पत्नी की अच्छी आमदनी है या उस ने दूसरी शादी कर ली है, पुरुष को छोड़ दिया या अन्य पुरुष के साथ उस का संबंध है, तो उन्हें मैंटीनैंस नहीं देना होगा. खुद की कम इनकम या पत्नी की पर्याप्त आमदनी का सबूत पेश करने से भी उन पर इंटरिम मैंटीनैंस का भार नहीं पड़ेगा.

फरवरी 2018 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने गुजारेभत्ते को ले कर ऐसा ही एक आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट किया था कि यदि पत्नी खुद को संभालने में सक्षम है तो वह पति से गुजारेभत्ते की हक़दार नहीं है. याची के पति ने हाईकोर्ट को बताया था कि याचिकाकर्ता सरकारी शिक्षक है और अक्तूबर 2011 में उस का वेतन 32 हजार रुपये था. इस आधार पर कोर्ट ने उस की गुजारेभत्ते की मान ख़ारिज कर दी.

जरुरी है कि रिश्ता टूटने के बाद भी एकदूसरे के प्रति इंसानियत और ईमानदारी कायम रखी जाए. खासकर जब बच्चे भी हों. क्योंकि इन बातों का असर कहीं न कहीं बच्चे के भविष्य पर पड़ता है.

ब्रेकअप- पूर्णविराम या रिश्तों की नई शुरुआत?

जब अंशु को पता चला कि उस की भांजी आरवी का 5 साल पुराना रिश्ता टूट गया है तो उस के होश उड़ गए. कितनी प्यारी थी आरवी और कबीर की जोड़ी. दोनों एकसाथ ही मुंबई के इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ रहे थे. दोनों ही परिवार ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया था, बस एक सामाजिक स्वीकृति मिलनी बाकी थी.

अंशु बहुत ही दुखी मन से अपनी दीदी के घर गई तो देखा, आरवी तो एकदम नौर्मल है और खिलखिला रही थी. उसे लगा कि वह इतनी दूर से दौड़ी चली आ रही है और आरवी को देख कर लगता ही नहीं कि वह परेशान है.

अंशु को लगा कि आजकल के बच्चों का प्यार भी कोई प्यार है. जब चाहो रिलेशनशिप में आ जाओ और जब मरजी ब्रेकअप कर लो. ये आजकल के रिश्ते भी कोई रिश्ते हैं? बस सारे रिश्ते दैहिक स्तर पर ही आधारित हैं.

अंशु को अपना समय याद आ गया, जब उस का रिश्ता प्रवेश के साथ टूट गया था. पूरे 2 वर्ष तक वह अपने खोल से बाहर नहीं निकल पाई थी. कितनी मुश्किल से उस ने अपने नए रिश्ते को स्वीकार किया था.

कभीकभी तो अंशु को लगता है कि वह आज भी अपने पति को स्वीकार नहीं कर पाई है. प्रवेश के साथ उस टूटे रिश्ते की खिरच अभी भी बाकी है.

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रात को आरवी अंशु के गले लग कर बोली, ‘‘मौसी बहुत अच्छा हुआ, आप आ गई हो.‘‘

‘‘मेरा पूरा परिवार मेरे साथ खड़ा है, इसलिए तो मैं ये फैसला कर पाई हूं.‘‘

परंतु, अंशु को लग रहा था कि आरवी को दरअसल कबीर से कभी प्यार ही नहीं था. पर आरवी के अनुसार, घुटघुट कर जीने के बजाय अगर आप की बन नहीं रही है तो क्यों ना ब्रेकअप कर के आगे बढ़ा जाए.

आजकल की युवा पीढ़ी पहले से अधिक जागरूक और व्यावहारिक है. एक व्यक्ति के पीछे पूरी जिंदगी खराब करने के बजाय वह ब्रेकअप कर के आगे की राह आसान बना लेते हैं.

दूसरी ओर मानसी का जब ऋषि से 2 साल पुराना रिश्ता टूट गया, तो वह अवसाद में चली गई. अपने साथसाथ उस ने पूरे परिवार की जिंदगी भी मुश्किल कर दी थी. कोई भी रिश्ता जबरदस्ती का नहीं होता है. अगर आप का साथी आप के साथ वास्ता नहीं रखना चाहता है तो गिड़गिड़ाने के बजाय अगर आप सम्मानपूर्वक आगे बढ़ें, तो ना केवल आप के साथी के लिए, बल्कि आप के लिए भी अच्छा होगा.

हालांकि ब्रेकअप पर बहुत दलीलें हो सकती हैं, परंतु फिर भी एकसाथ घुटघुट कर जीने से कहीं अधिक बेहतर ब्रेकअप है. ब्रेकअप चाहे शादी से पहले हो या शादी के बाद, हमेशा मर्यादित होना चाहिए. ये कुछ छोटेछोटे व्यावहारिक सुझाव हैं, अगर हम इन्हें निजी जीवन में अपनाएं तो बहुत जल्दी ही एक संपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं-

– शहीदाना भाव ले कर मत घूमें – ब्रेकअप होने का मतलब यह नहीं है कि आप 24 घंटे मुंह बिसूर कर घूमते रहें. ये जीवन का अंत नहीं है. जिंदगी आप को फिर से खुशियां बटोरने का मौका दे रही है. आप की पहचान खुद से है. बहुत बार हम रिश्तों में ही अपना वजूद ढूंढ़ने लगते हैं. इसलिए हम किसी भी कीमत पर ब्रेकअप नहीं करना चाहते हैं. एक या दो दिन मूड का खराब होना लाजिमी है, पर उस खराब रिश्ते की यादों को च्युइंगम की तरह मत खींचें.

– दिल के दरवाजे खुले रखें – एक हादसे का मतलब ऐसा नहीं है कि आप जिंदगी को जीना ही छोड़ दें. दिल के दरवाजे को हमेशा खुला रखें. हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है. एक अनुभव बुरा हो सकता है, पर इस का मतलब यह नहीं कि आप रोशनी की किरण से मुंह फेर लें.

– काम में दिल लगा लें – काम हर मर्ज की दवा होती है. अपनेआप को काम में डुबा लें, आधे से ज्यादा दर्द तो यों ही गायब हो जाएगा और जितना अधिक काम में दिल लगेगा, उतना ही अधिक आप की प्रतिभा में निखार होगा और तरक्की के रास्ते खुल जाएंगे.

– ना छोड़ें आशा का साथ – बहुत बार देखने में आता है कि लोग ब्रेकअप के बाद निराशा की गर्त में चले जाते हैं. एक घुटन भरे रिश्ते में सारी उम्र निराशा में बिताने से अच्छा है कि ब्रेकअप कर के आप नई शुरुआत करें. आशा का दामन पकड़ कर रखें और ब्रेकअप के पश्चात नई शुरुआत करें.

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– जिंदगी खूबसूरत है – ब्रेकअप के कारण इस की खूबसूरती को नजरंदाज मत करें. जिंदगी वाकई खूबसूरत है. अपने ब्रेकअप से कुछ नया सीखें और दोबारा उन्हीं गलतियों को मत दोहराएं. ब्रेकअप के बाद ही आप को लोगों को समझने की बेहतर परख भी आती है.

अगर सरल भाषा में कहें, तो ब्रेकअप का मतलब पूर्णविराम नहीं बल्कि नई शुरुआत होता है.

भूलकर भी न कहें पति से ये 6 बातें

हमेशा पति को ही हर गलत बात का जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. पत्नियां भी काफी अनुचित बातें कह कर पति का दिल दुखाती हैं. कुछ बातें पति को कभी न कहें. उन्हें बुरा लग सकता है. जानें वे बातें क्या हो सकती हैं-

1. मैं कर लूंगी

पलंबर या इलैक्ट्रिशियन को बुलाने के समय यह न कहें कि मैं कर लूंगी, भले ही इस से आप का काम जल्दी हो जाए पर पति को शायद अच्छा न लगे. मनोवैज्ञानिक ऐनी क्रोली का कहना है, ‘‘हो सकता है वह आप की हैल्प कर के आप को खुश करना चाहता हो. इस बात से पति चिढ़ते हैं, क्योंकि ‘मैं कर लूंगी’ इस बात से पति के कार्य करने पर आप का संदेह प्रतीत होता है और या यह कि आप को उस की जरूरत नहीं है.’’

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2. तुम्हें पता होना चाहिए था

क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक रियान होव्स का कहना है, ‘‘अगर आप यह आशा करती हैं कि आप का पति हर बात या इशारा जो आप करती हैं, अपनेआप समझ जाएं तो आप खुद ही निराश होंगी. जब पति पत्नी के मन की बात नहीं समझते तो पत्नियां बहुत अपसैट हो जाती हैं. लेकिन पुरुष सच में दिमाग नहीं पढ़ पाते. अगर पत्नियां इस बात को स्वीकार कर लें तो वे बहुत दुखों से बच सकती हैं. वे साफसाफ कहें कि वे क्या चाहती हैं.’’

3. क्या तुम्हें लगता है कि वह सुंदर है

पुरुषों की काउंसलिंग के स्पैशलिस्ट एक थेरैपिस्ट कर्ट स्मिथ का कहना है, ‘‘क्या आप सचमुच किसी आकर्षक स्त्री के विषय में अपने पति के विचार जानना चाहती हैं? शायद नहीं. आप यह पूछ कर अपने पति को असहज स्थिति में डाल रही हैं. कमरे में अधिकांश पुरुष सुंदर स्त्री को पहले ही देख चुके होते हैं. यदि वह आप का सम्मान रखने के लिए वहां नहीं देख रहा है तो आप का पूछना उसे असहज कर देगा. वह तय नहीं कर पाएगा कि आप को अपसैट न करने के लिए या आप को दुख न पहुंचाने के लिए क्या करे.’’

4. पुरुष बनो

स्मिथ कहते हैं, ‘‘क्या आप सचमुच ये शब्द कहती हैं? पुरुष बन कर दिखाने का कोई सही या गलत तरीका नहीं है. आदमी बनो यह कहना उस की पहचान पर एक घातक हमला होता है, यह नफरत और शर्म से भरी बात होती है, यह आप के रिश्ते को ऐसी हानि पहुंचा सकती है, जिस की पूर्ति मुश्किल होगी.’’

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5. हमें बात करने की जरूरत है

ये शब्द विवाहित पुरुष के अंदर डर सा पैदा कर देते हैं. थेरैपिस्ट मार्सिया नेओमी बर्गर का कहना है, ‘‘अगली बार कोई इशू हो तो आसान शब्दों का प्रयोग करें. ये शब्द सिगनल देते हैं कि पत्नी को पति से शिकायत या कोई आलोचना का विषय है, फिर जो आप अकसर सोच रही होती हैं, उस के उलटा हो जाता है.’’

6. फिर दोस्तों के साथ जा रहे हो

होव्स कहते हैं, ‘‘पति का दोस्तों के साथ क्रिकेट देखने या गोल्फ खेलने से आप के विवाह को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा, यह चीज आप के रिश्ते को अच्छा ही बनाएगी. हां, कभीकभी पति पीने के लिए कोई बहाना कर देते हैं पर अधिकतर कुछ सलाह, कुछ महत्त्वपूर्ण बातें, सहारे के लिए मिलतेजुलते हैं, जो पत्नी अपने पति को दोस्तों से मिलनेजुलने से मना करती है वह अपने पति को उस के सपोर्ट सिस्टम से दूर कर रही होती है जबकि वह अन्य पतियों और पिताओं के साथ समय बिता कर अच्छा इनसान ही बनेगा.’’ किसी पुरुष ने आप का पति बनने के बाद अपनी मरजी से जीने का अधिकार नहीं खो दिया है. उस पर विश्वास करें, उस का सम्मान करें. अपनी शिकायतें, सुखदुख उस के साथ प्यार से बांटें. वैसे भी आज के जीवन में बहुत भागदौड़ है, तनाव है. उस के साथ अपना जीवन प्यार से, सुख से, आराम से बिताएं.

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खाने की टेबल पर साथ मिलकर लें स्वाद और संवाद का आनंद

खाने की मेज सिर्फ रोटी, भाजी, खीरपूड़ी आदि का संगम नहीं है, बल्कि बातचीत और गिलेशिकवे सुधारने की एक जिंदा इकाई भी है. यहां पर हर सदस्य को स्वाद और संवाद दोनों ही मिलते हैं.

किसी ने खूब कहा भी है कि परिवार ही वह पहली पाठशाला है जहां जीवन का हर छोटाबड़ा सबक सीखा जा सकता है. इसलिए जब भी अवसर मिले परिवार के साथ ही बैठना चाहिए. इस का सब से आसान उपाय यही है कि भोजन ग्रहण करते समय सब साथ ही बैठें.

अनमोल पल

जब पूरा परिवार साथ बैठ कर भोजन का आनंद लेता है तो उस समय हर पल अनमोल होता है. मनोवैज्ञानिक इसे गुणवत्ता का समय मानते हैं.साथसाथ भोजन करना कई मामलों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

आजकल सभी अपने कामों और जिंदगी में इतना बिजी रहते हैं कि एकसाथ रहते हुए भी परिवार के साथ बैठने का समय तक नहीं मिल पाता है. इसी वजह से परिवार के साथ बैठ कर भोजन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है, लेकिन ऐसा करना बच्चोंे और परिवार के लिए बहुत जरूरी है.

परिवार के साथ खाना खाने से आपस में दोस्ताना संबंध बनता है, स्वानस्य्वा की तरफ से लापरवाही में कमी आती है, शांतिपूर्ण विचार मन में पनपते हैं और मानसिक स्तर जैसे उदासी, ऊब, बेचैनी, घबराहट आदि महसूस नहीं होते.

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बेहतर चलन है

अगर कुछ ऐसे पारिवारिक मसले आ गए हैं जिन का हल नहीं निकल रहा है तो साथ खाने का चलन जरूर शुरू करें. यह बहुत अच्छा तरीका है, फैमिली यूनिट बनाने का और बच्चों के साथ अपने रिश्ते सुधारने का.

आप के लिए एक बेहतरीन अभिभावक बनने का यह अच्छा मौका है. नए रिश्तों को मजबूत करना चाहें तो साथ बैठ कर खाना खाएं. जैसे नया मेहमान या कोई पुराना रिश्तेदार भी आया है तो उस के साथ संबंध पक्का करने के लिए तो यह सब से बढ़िया तरीका है.

साथ खाने से बच्चों में टेबल मैनर्स भी सुधारे जा सकते हैं. आप के बच्चे सीखेंगे कि टेबल पर समय से जाना है जिस से परिवार के बाकी सदस्य भूखे नहीं बैठे रहें.

वहां पर किस तरह बैठना है, चम्मचकटोरी कैसे इस्तेमाल करना है वगैरह बच्चे बगैर किसी निर्देशन के सहज ही सीख जाते हैं.

यादगार रहेगा

जब आप के बच्चे बड़े होंगे तब वे आप के साथ बिताए हुए इस भोजन समय को कभी नहीं भूलेंगे. उन्हें इस बात का एहसास रहेगा कि परिवार का साथ बैठ कर खाना कितना जरूरी है और आगे चल कर वे भी अपने बच्चों में यही आदत डालेंगे.

वैसे तो आजकल कुछ न कुछ उपलब्धता के चलते हरकोई भरपेट खाना तो खा लेता है लेकिन उस से पोषण कम ही मिल पाता है. ऐसे में घर पर या बाहर जब भी मौका हो परिवार के साथ मिल कर खाने से न केवल बड़े बल्कि बच्चे भी पोषित खाना खाते हैं, उन में भी पोषित खाना खाने की आदत पैदा होती है.

परिवार के साथ डिनर करने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसेकि निराशा, हताशा, मोटापा, बारबार खाने की आदत, नशीले पदार्थों के सेवन आदि से किशोर दूर ही रहते हैं.

मिल कर भोजन करना कई बातों को पारदर्शी भी बनाता है क्योंकि एक बात एक बार ही कही जाती है और सब के सामने रखी जाती है. अतः यह आपसी समझ बनाने के लिए भी काफी अच्छा होता है.

न फोन न इंटरनैट

डाइनिंग टेबल पर खाना खाते समय फोन या इंटरनैट का इस्तेमाल नहीं के बराबर होता है. इस से इस दौरान ऐसा आनंद उत्पन्न होता है कि हरकोई खुशी महसूस करता है.

परिवार जब साथ मिल कर खाना खाए तो टीवी सहज ही बंद कर दिया जाता है और बच्चे मातापिता की निगरानी में क्वालिटी डाइट लेते हैं.इतना ही नहीं पारिवारिक समागम में भोजन को ले कर कुछ अलग ही तरह का सकारात्मक माहौल देखा जा सकता है.

शोध के बाद एक बात और सामने आई है कि एकसाथ खाने से मातापिता को अपने बेटे और बेटियों के स्वभाव, उन की अभिरुचि आदि का पता लगाने में मदद मिल सकती है.

बढ़ता है आत्मविश्वास

इस के अलावा जो बच्चे हमेशा अपने मातापिता के साथ खाते हैं, वे अपने कैरियर, दुनियादारी, मित्रों से सुकून भरे संबंध, स्वास्थ्य आदि के बारे में निर्णय लेने में काफी समझदार हो जाते हैं.

एकसाथ बैठ कर भोजन करने से न सिर्फ पारिवारिक सुकून व आनंद बढ़ता है, बल्कि यह स्वस्थ और तनावमुक्त रहने का भी एक आसान व प्रभावी तरीका है.

खाने की मेज पर जब पूरा परिवार एकसाथ होता है, तो एकदूसरे के बीच संवाद बढ़ता है, परिवार के लोग एक दूसरे के सुखदुख के बारे में जान पाते हैं. किसी के मन में कुछ भार है तो वह कम हो जाता है.

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घर के सदस्य अगर मिल कर भोजन करने की आदत डालें, तो इस से न केवल परिवार में खुशी बढ़ेगी उन में सामंजस्य भी बना रहेगा.

मातापिता बच्चों से बातचीत करते हैं, उन की दिनचर्या आदि पर चर्चा करते हैं तो इस का मानसिक प्रभाव बहुत अच्छा होता है. परिवार के साथ मन बांट लेने से बच्चों का आत्माविश्वाुस भी बढ़ता है. उन में जीवन के प्रति रूझान बढ़ता है और वे मेहनती बनते हैं.

तलाक के बाद सवालों के घेरे में

एक सफल शादी का सपना किसका नहीं होता, समय बदल रहा है और इस बदलते हुए समय में शादी टूटना कोई बड़ी बात नहीं है. यह सच है कि डाइवोर्स दोनो ही तरफ से एक दुखभरा समय होता है. परंतु यह और भी दुखभरा तब होता है जब आप को पता नहीं होता है कि आप के रिश्ते में क्या गलत हो रहा है और आप का पार्टनर या आप तलाक दे देते हैं. हालांकि यह समय आप के लिए बहुत कठिन समय होता है. पर  यह दुख हमेशा के लिए नहीं रहता है. हो सकता है आप उस समय बिल्कुल टूट जायें और अकेला महसूस करें.

वैसे भी पहले के मुकाबले अब तलाक के ग्राफ ज्यादा बढ़ गये हैं. जहां तलाक तो आसानी से हो जाते हैं, लेकिन मुश्किलें खड़ी होती हैं,तलाक के बाद. तलाक के बाद भी अक्सर लोग अपने पति-या पत्नी या अपने निजी कारणों को लेकर परेशानियां व सवालों के घरों में रहते हैं जैसे- अब क्या करें? कैसे सामना करें इन सवालों का? स्वयं को कैसे सम्भालें?  और इस दुख से कैसे खुद को बाहर लायें? आदि.

उदाहरण-

वाराणसी की रहने वाली 38 साल की रेनू तलाक शुदा हैं, और वो अपने माता-पिता के साथ रहती हैं. उनका कहना है कि, मैं मेरे परिवार में खुलकर नहीं रह पा रही हूं, क्योंकि मेरे सगे सम्बंधी ही मुझे बेवजह की सलाह देते हैं या अजीब अजीब से सवाल करते हैं. जिससे मुझे सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ये परिवार और रिश्तेदार ही मुझे तलाकशुदा महिला होने का बार-बार एहसास करवाते हैं, परेशान हो जाते हो समझ नहीं आता कि मैं, मेरी इस समस्या से कैसे निपटूंगी?

जवाब-

तलाक के बाद सबसे ज्यादा जरूरत होती है एक परिवार की, जो आपको आपको उस भयानक स्थिति से बाहर निकालने में मदद करता है. लेकिन रिश्तेदारों के ताने भी आम बात होते हैं. जो सपोर्ट के बाद भी कहीं न कहीं सामाजिक रूप से झुकाने का प्रयास करते हैं. इन सब से बचने के लिए आपको सबसे ज्यादा खुद की स्थिति समझने की जरूरत है, और वो कैसे समझेंगे जानिए.

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पहले अपनी स्थिति को समझें

आप अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं और तलाकशुदा हैं. आपके कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन आप उनके बच्चे हैं. वे समाज के प्रति जवाबदेह हैं. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने स्वतंत्र या अग्रगामी सोच वाले व्यक्ति हैं. यह कलंक भारत में एक वास्तविकता है. इन लोगों से आपको बचने की कोई सलाह नहीं है. आपको इसका सामना करना सीखना होगा.

अपने आप पर कुछ दया कीजिए

आप को यह जानना चाहिए कि एक न एक दिन सभी के रिश्ते खत्म हो ही जाते हैं, चाहे उनके पीछे किसी की मौत हो या कोई गलत फहमी. परंतु यदि डाइवोर्स आप की वजह से हुआ है और अब आप स्वयं को दोषी मानते हैं तो आप को अपने आप पर थोड़ा प्यार दिखाना चाहिए. स्वयं को दोषी भरी निगाहों से न देखें. आपने जो भी फैसला लिया है वह आप के लिए सही है. अब आप उस स्ट्रेस भरे रिश्ते से निकल चुके हैं, अतः अपने आप पर फोकस करें, स्वयं को प्यार करें.

स्वयं को शोक जताने दे

किसी से बिछड़ने का दर्द बहुत दुखभरा होता है और यह ऐसा महसूस होता है मानो हमने किसी अपने को इस दुनिया से खो दिया है. किसी एक इंसान का आप की जिंदगी से पूरी तरह चले जाना जो आप की जिंदगी का कभी अहम हिस्सा हुआ करते थे, दुख तो देता है. इसलिए बेशक आप  बहुत ही मजबूत  हों, लेकिन आप को कभी कभार अपना दिल हल्का कर लेना चाहिए. यदि आप को उनकी याद आती है या डाइवोर्स के कारण बुरा लगता है तो आप को यह अनुभव दबा कर नहीं रखना चाहिए. आप को इसे बाहर निकालना चाहिए. अपने शोक को जाहिर करना कोई बुरी बात नहीं है. अतः स्वयं को शोक जताने दे.

कुछ अन्य आकांक्षाओं पर ध्यान दें

यदि आप उन्हे या इस समय को भूल ही नहीं पा रहे हैं तो ऐसा होता है कि जब आप की नई नई शादी होती है तो आप अपनी शादी व अपने पार्टनर के लिए अपनी कुछ आदतें व अपनी कुछ इच्छाएं छोड़ देतीं हैं. अधिकांश महिलाएं ऐसा ही करतीं हैं. वह शादी के समय अपनी शिक्षा, अपना कैरियर व अपने सपने छोड़ देती हैं. परंतु अब स्वयं को व्यस्त रखने व उन पुरानी यादों को भुलाने के लिए आप को अपने वह सपने पूरे करने का समय है, जो आपने किसी और के लिए अधूरे छोड़ दिए थे.

खुद को अपने पैरों पर खड़ा करें

तलाक के बाद इंसान पूरी तरह टूट जाता है. एक महिला के लिए ये सब सहन करना आसान नहीं है. लेकिन समय के साथ-साथ खुद को मजबूत भी आपको ही करना होगा. इसके लिए कुछ समय अपना मन शांत करने के बाद आप किसी व्यवसाय या नौकरी से जुड़िये, क्योंकि यही एक मात्र ऐसा विकल्प है जो आपको सामाजिक और आर्थिक नजरिये से उठने में मदद करता है. और अगर आप व्यस्त रहेंगी तो तनाव भी कम होगा.

जीवन में तय कीजिये दिशा

आपको सबसे ज्यादा जरूरत होती है तो पहले खुद को जानने और समझने की. इसके लिए आप खुद से एक सवाल कीजिये कि आखिर आप अपने जीवन से क्या चाहती हैं. जिस दिन आपने अपने जीवन में एक सकारात्मक दिशा निर्धारित कर ली, उस दिन आपके व्यक्तिव पर सवाल उठाने वालों के हाथ झुक जाएंगे.

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कुछ समय बाद किसी दूसरे को डेट करना चाहिए

यदि आप भी मूव ऑन करके किसी अन्य व्यक्ति को डेट करने की सोच रहीं हैं तो लगभग आप को एक साल का इंतजार करना चाहिए. क्योंकि इस दौरान आप स्वयं को अपने साथ, खुश रखना सीख लेंगी. फिर आपको एक नए रिश्ते के लिए तैयार होने में किचन नहीं होगी. यदि आप डाइवोर्स के तुरन्त बाद किसी अन्य को केवल अपने अकेलेपन व बोरियत के लिए डेट कर रहीं हैं तो फिर आप उन के साथ भी वैसा ही कर रहीं हैं जैसा आप के साथ हो चुका है.

तलाक शब्द कहने में जितना छोटा होता है, उसकी चोट उतनी ही गहरी होती है. जब भी आप नया काम शुरू करते हैं, या फिर आप अपने पैरों पर खड़े होते हैं. तो आप अपने माता-पिता का आर्थिक सहयोग भी कर सकते हैं, और आप खुद को सामाजिक रूप से सक्रिय भी हो जाते हैं. इस लिए आप अपने जीवन में एक अच्छी पकड़ जरुर प्राप्त करें, जिसके बाद आप अपने व्यक्तित्व के जरिये शांत रह कर भी कुछ लोगों के मुंह पर ताला जड़ सकते हैं.

जब सताए घर की याद

बेहतर भविष्य और अच्छी नौकरी की चाह में घर से दूर रहने वाले युवाओं की संख्या दिनबदिन बढ़ती जा रही है. चूंकि अत्याधुनिक समाज में आए तकनीकी विकास ने आज संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं, लिहाजा यह दूरी बच्चों और उन के परेरैंट्स के लिए ज्यादा माने नहीं रखती है, क्योंकि मोबाइल, इंटरनेट, सोशल साइट्स के जरीए ये अपनों के संपर्क में लगातार बने रहते हैं. मगर घर से दूर रहने वाले युवाओं के लिए बाहर इतना आसान भी नहीं होता. कई बच्चे बाहर रह कर होम सिकनैस का शिकार हो जाते हैं, जिस से अपनी पढ़ाई या नौकरी में अपना सौ प्रतिशत नहीं दे पाते. यह होम सिकनैस उन की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, लिहाजा सफलता पाने की दौड़ में वे पीछे रह जाते हैं.

आखिर क्या है होम सिकनैस

बाहर रहने वाला बच्चा जब घर की याद कर अकेलापन महसूस करे और तनावग्रस्त रहने लगे तो यह लक्षण होम सिकनैस का है. घरपरिवार से अत्यधिक लगाव की स्थिति में बच्चा कहीं बाहर रहने से घबराता है और यदि बाहर रहना पड़े तो वह बारबार बीमार पड़ जाता है या अपनी पढ़ाई और अन्य कार्यों के प्रति उदासीन हो जाता है. यह स्थिति बच्चे के मानसिक व शारीरिक विकास को तो बाधित करती ही है, उस की कार्यक्षमता पर भी बेहद बुरा प्रभाव डालती है. यह समस्या ज्यादातर उन युवाओं के समक्ष खड़ी होती है जो पहली बार घरपरिवार से दूर रह रहे होते हैं या फिर वे इस का शिकार आसानी से बनते हैं जो कुछ अधिक संवेदनशील होते हैं.

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होम सिकनैस के कारण

दरअसल, घर पर रहने वाले बच्चे छोटेछोटे कामों के लिए मां को आवाज लगाते नजर आते हैं. घर के इसी सहज और सुविधाजनक माहौल के चलते वे आसान जिंदगी जीने के आदी हो जाते हैं. मगर बाहर रहने के दौरान जब उन्हें अपने सभी कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं तो ये कार्य उन्हें बोझ लगते हैं और उन की झल्लाहट का कारण बनते हैं. दूसरी तरफ कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जो मम्मीपापा या भाईबहनों को याद कर उदास हो जाते हैं. अपने घरपरिवार से अत्यधिक जुड़ाव के कारण उन्हें बाहर रहना और वहां के माहौल में एडजस्ट करना बहुत मुश्किल लगता है.

ऐसी स्थिति में क्या करें

कहते हैं न कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. तो जब आप अपनी आरामतलब जिंदगी को छोड़ कर घर से बाहर निकलेंगे तभी चुनौतियों से जूझने की क्षमता आप के अंदर विकसित हो सकेगी. यह जान लें कि जितनी अधिक मेहनत उतना बेहतर भविष्य. यह सही है कि अपनों से दूर रहना आसान नहीं. फिर भी घबराने के बजाय अगर समाधान ढूंढ़ा जाए और कुछ बेहतर विकल्पों की तलाश की जाए तो घर से दूर अकेलेपन की यह राह इतनी भी कठिन नहीं प्रतीत होगी. आइए, जानें कि घर की याद जब बहुत सताने लगे तो क्या करें:

अपना मनोबल ऊंचा रखें: यह माना कि आप अपने घर से दूर हैं और घर वालों से बारबार नहीं मिल सकते, लेकिन आज के दौर में उन के संपर्क में आसानी से रहा जा सकता है. मगर इस का यह मतलब भी नहीं कि आप अपनी पढ़ाई या जौब पर ध्यान न दे कर बारबार उन्हें कौल करते रहें. यदि हो सके तो रोज शाम को अपने काम से फ्री हो कर आप घर फोन कर सब की खैरखबर ले सकते हैं, साथ ही अपने काम व प्रोग्रैस के बारे में उन्हें बता सकते हैं.

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नए दोस्त बनाएं: अपने कालेज, कोचिंग या कार्यस्थल पर नए दोस्त बनाएं. उन के साथ कुछ समय व्यतीत करें. आसपास की जगहों पर उन के साथ घूमने का प्रोग्राम भी बना सकते हैं. इस से आप का अकेलापन दूर होने के साथ ही उस जगह विशेष के बारे में भी आप को नई जानकारी प्राप्त होगी. वैसे भी दोस्तों के साथ क्वालिटी वक्त बिता कर हम तरोताजा महसूस करते हैं.

खुद को व्यस्त रखें: अगर पढ़ाई या जौब करने के बाद आप के पास कुछ समय बचता है तो आप उस समय का प्रयोग अपना शौक पूरा करने में कर सकते हैं. इस के अलावा अपने पासपड़ोस में दूसरों की मदद करने में भी आप अपना खाली वक्त बिता सकते हैं. किसी की सहायता कर के आप को बेइंतहा खुशी महसूस होगी और इस से आप खुद को बहुत ऊर्जावान भी पाएंगे.

खुद से एक मुलाकात: अकेलेपन के इस सुअवसर का लाभ उठाएं और इस खूबसूरत वक्त में खुद से एक मुलाकात करना न भूलें. वैसे भी बाद में जीवन की बढ़ती व्यस्तता और आपाधापी में यह मौका हमें कम ही मिल पाता है. कहने का सार सिर्फ यह है कि अपनी अच्छाइयों और कमियों से रूबरू हो कर इस समय आप अपने व्यक्तित्त्व के सुधार की ओर अग्रसर हो सकते हैं.

अकेलेपन के शिकार तो नहीं: अकेलापन अवसाद की स्थिति की निशानी है, जबकि व्यक्ति के अकेले रहने का वक्त अपनेआप को कामयाब बनाने का एक स्वर्णिम अवसर है. अत: स्वयं को प्रेरित कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाएं. हर उस पल जब आप अकेला महसूस करें खुद को दिलासा दें कि यह स्थिति सदा के लिए नहीं है और जल्द ही आप अपने निश्चित मुकाम पर पहुंचेंगे.

इस तरह इन उपायों को अमली जामा पहना कर अपनी सफलता की राह में आड़े आ रही होम सिकनैस नामक बाधा से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

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रूठे हैं तो मना लेंगे

माता पिता और बच्चों का रिश्ता वैसे ही बहुत ख़ास होता है .बच्चों का जुड़ाव सबसे ज़्यादा माता पिता के साथ होता है इसलिए अमूमन वो भावनात्मक रूप से उनसे बेहद जुड़े होते हैं और अपने जीवन से संबंधित हर निर्णय उनकी सहमति से लेना चाहते हैं .

जहाँ तक हम भारतीय समाज की बात करें तो भारतीय अभिभावक अपने बच्चे के हर फैसले में अपना अधिकार सर्वोपरि रखते हैं ,उन्हें अपने बच्चों के लिए जो उचित लगता है उसके हित में दिखाई देता है बच्चों को वो वही करने की सलाह देते हैं फिर चाहे बात शिक्षा के क्षेत्र में विषय के चुनाव की हो ,कैरियर से संबंधित हो, विदेश जाने की हो, विवाह करने या न करने का निर्णय हो अथवा जीवनसाथी के चुनाव की बात ही क्यों न हो इन अब में अभिभावकों का निर्णय ही अधिकाँश मामलों में अंतिम होता है.ऐसा नहीं है कि बदलते समय और परिवेश के अनुसार लोगों की सोच में बदलाव नहीं आया है बच्चों को काफी बातों में स्वतंत्रता मिली है फिर भी अभी भी इस बदलाव का प्रतिशत बहुत कम है. ऐसे में बच्चों को ये जान लेना ज़रूरी है कि माता पिता हमेशा ही उनका हित चाहते हैं और उनके बारे में उनसे भी बेहतर जानते हैं .उनसे ज़्यादा जानने का मतलब है कि वो बच्चों को उनके सच के साथ पहचानते हैं ऐसे में बच्चों के सामने ये बहुत बड़ी चुनौती है कि वो अपने माता पिता को से अपने मन की बात कैसे मनवाएँ .इसके लिए कुछ तरीके कारगर हो सकते हैं.

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जब बात हो जीवनसाथी के चुनाव की हमारे देश में विवाह के बहुत मायने हैं विवाह जीवन का सबसे बड़ा फैसला माना जाता है और अमूमन हर भारतीय माता पिता अपने बच्चे के जन्म के साथ ही उसके विवाह के सपने संजोने लगते हैं ऐसे में जब तक बच्चे की उम्र विवाह योग्य होती है तब तक माता पिता के जज़्बात और अरमान उसके विवाह को लेकर बन चुके होते हैं ऐसे में जब विवाह की बात आती है तो बच्चों के जीवनसाथी का चुनाव माता पिता ही करना चाहते हैं इसे वो अपना अधिकार मानते हैं पर मुश्किल तब शुरू होती है जब बच्चे अपनी पसंद का जीवनसाथी चाहते हैं या वो किसी को पसंद कर लेते हैं और यदि वो लड़का या लड़की सजातीय या सधर्मी नहीं है तब तो भूचाल सा आ जाता है. वैसे तो लव मेरिज का प्रतिशत बढ़ा है पर आज भी इसकी मान्यता कम ही है.हमारे देश के कई क्षेत्र तो ऐसे हैं जहाँ लव मैरिज करने पर ऑनर किलिंग कर दी जाती है .ऐसे में अपनी पसंद की शादी करने के लिए माता पिता को राजी करना भी टेढ़ी खीर है.यदि आपने जिसे चुना है उसकी जाति आपसे अलग है तो समझाना और भी मुश्किल है .चूँकि अगर जाति अलग हैं तो खान पान रहन सहन में काफी अंतर आता है इसलिए माता पिता नही चाहते कि बच्चे अंतर्जातीय विवाह करें.पर फिर भी उन्हें मनाया जा सकता है अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो.

1. समझाएँ कि शादी पूरे जीवन की बात है आप ये समझाने का प्रयास करें कि ये एक दिन की बात नहीं है पूरे जीवन का प्रश्न है और यदि आप ही खुश नहीं रह पाए तो बाकी सबको कैसे खुश रख पाएँगे.

2. शादी कैसी भी हो चुनोतियाँ उसका हिस्सा हैं आप ये बताने का प्रयास करें कि इस से कोई फर्क़ नही पड़ता कि शादी अंतर्जातीय है ,आपकी पसंद की है या आपके माता पिता की पसंद की पर हर रिश्ते को निभाने के लिए प्रयास करने ही होते हैं जो पूरी तरह आप पर निर्भर करते हैं.उन्हें उदाहरण देकर बताएँ कि उनके इतने वर्षों के साथ में क्या उनके रिश्ते ने उतार चढ़ाव नहीं देखे.

3. लोग क्या सोचते हैं इस से कुछ नहीं बदलता उन्हें ये समझाएँ कि लोग क्या कहते हैं इस से आप को या उनको फर्क़ नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि ये रिश्ता पूरी तरह से दो लोगों का रिश्ता है .जब अच्छा बुरा समय आएगा तो आप सबको मिलकर काटना है लोगों को नहीं.

4. कुछ अपनों को अपने पक्ष में लें आपके कुछ क़रीबियों (जिनकी बात आपके माता पिता के लिए मायने रखती है )को विश्वास में लें जिस से वो आपके पक्ष को और अच्छे से समझा सकें.

5. माता पिता का विश्वास जीतें आपको उनका विश्वास जीतना होगा.उन्हें बताना होगा कि उन्हें आपके जीवनसाथी से जो उम्मीदें आपके लिए अपने लिए और परिवार के लिए हैं वो उस पर अवश्य खरा उतरेगा और उनकी मान्यताओं का उसी तरह सम्मान रखेगा जिस तरह उनकी पसंद से लाया गया व्यक्ति रखेगा.आजकल ग्लोबलाइजेशन का ज़माना है जिसमें सभी जातियों और प्रान्तों का खानपान एक जैसा ही है इसलिए इन बातों से आपके रिश्ते में कोई फर्क़ पड़ने वाला नहीं फिर जब रिश्ते में परस्पर प्रेम और विश्वास होता है एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान होता है तो ये बातें उसके आगे बहुत छोटी हैं.

6. उदाहरण तैयार रखें पहले से अपने परिवार में अपने पसंद से अंतर्जातीय विवाह करने वाले ऐसे लोगों को ढूंढ कर रख लें जिनके विवाह सफल हैं.माता पिता को बताइए कि कैसे वो लोग भी तो सफल हैं आपको भी कोई परेशानी नहीं आएगी.

7. उसे अपने माता पिता से मिलवाएँ कोई अच्छा समय देखकर उसे घर बुलाएँ और ऐसी योजना बनाएँ कि वो माता पिता के साथ एक अच्छा समय बिता पाए जिस से वो लोग उसे देख समझ सकें और उसके प्रति पूर्वाग्रहों से ग्रसित अपनी धारणाएँ और दृष्टिकोण बदल सकें.उनपर जल्दबाज़ी में कोई दबाव बनाने का प्रयास न करें बल्कि उन्हें अहसास कराएँ कि उनकी सहमति आपके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है.लेकिन अपने प्यार को छोड़ना आपके लिए उतना ही दुःखद है इसलिए आप उनसे उम्मीद रखते हैं कि वो आपकी भावनाओं को समझें.

8. यदि धर्म हों अलग अलग- यदि जिसे आपने पसंद किया है उसका धर्म अलग है तो चुनोती बहुत बड़ी होती है क्योंकि इस तरह की शादियों को हमारे समाज में आज भी स्वीकार्यता मुश्किल से मिलती है ऐसे में कोई भी माता पिता इस तरह की शादी के लिए तैयार नहीं होते .पर ऐसे में आप हिम्मत मत हारिये बल्कि समझाइए और प्रयत्न जारी रखिये उन्हें बताइए कि घर दो लोगों से मिलकर बनता है धर्म से कोई फर्क़ नही पड़ता जैसे दो लोग एक दूसरे की दूसरी अलग बातों का सम्मान करते हैं वैसे ही एक दूसरे के धर्मो का सम्मान भी कर सकते हैं और रजिस्टर्ड मैरिज करने पर अब ये भी संभव है कि दोनों को अपना धर्म नही बदलना पड़ेगा और भविष्य में जो संतान होगी वो बालिग होने पर अपना धर्म चुनने को स्वतंत्र होगी कि माता का धर्म अपनाए या पिता का इस से कोई भी परेशानी नहीं होना चाहिए किसी को .एक सफल विवाह में एक जाति या एक धर्म होने से ज्यादा विचारों का एक होना मायने रखता है और विवाह प्रेम की नींव पर टिके होते हैं यदि विवाह की नींव ही समझौते पर है तो वो ज़्यादा लंबा नहीं चल पाएगा इस तरह समझाने पर वो लोग आपकी बात अवश्य समझेंगे .उन्हें अपने ऐसे दूसरे दोस्तों से मिलाइए जिन्होंने ऐसी शादी की है और खुशहाल जीवन बिता रहे हैं इस से उनकी राय बदलने में आपको मदद मिलेगी.

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9. उनके प्यार को समझने का प्रयास करें और सोचें कि वो आपका भला चाहते हैं और आपके अच्छे बुरे वक़्त में कोई हो न हो वो हमेशा खड़े रहते हैं इसलिए जो आपने सोचा है उसको तथ्यों के साथ उनके सामने रखें और उन्हें बताएँ कि उनकी सलाह आपके लिए सबसे ज़्यादा मायने रखती है पर यदि फिर भी अंत में आपकी और उनकी राय अलग अलग दिशा में जाये तो आप जल्दबाजी न करते हुए बात को वहीं छोड़ दें और कुछ दिन बाद नए सिरे से बात को शुरू करें.

10.आपका कहने का तरीका बहुत मायने रखता है आप अपनी बात को प्रभावी ढंग से रखें और आपने जिसे भी चुना है उसकी सारी खूबियों के बारे में आप अच्छे से जानते हैं उन खूबियों के बारे में उन्हें बताएँ.

11. कुछ समय उनके साथ बिताएं जो सिर्फ़ आपका और उनका होकई बार बात कहने के लिए सही समय का चुनाव करना ज़रूरी होता है इसके लिए उनके साथ उनके समय में शामिल हों जिस से आपकी आपस की बॉन्डिंग मजबूत हो और वो आपकी बात समझ पाएँ.

12. उन्हें अहसास कराएँ कि वो सबसे महत्वपूर्ण हैं उन्हें बताएँ कि उनकी सलाह आपके लिए बहुत मायने रखती है.उन्होंने जो भी आपके लिए सोचा है वो निश्चित ही सबसे अच्छा होगा पर उसी तरह उन्हें भी आप पर भरोसा करना चाहिए कि आप जो भी करेंगे बहुत अच्छा होगा और ये भरोसा आप ही को क़ायम करना होगा.

आप उन्हें समझाइए कि आपको हर कदम पर उनका साथ चाहिये इस तरह समझाने पर वो जरूर ही आपकी बात पर अपनी सहमति देंगे और साथ भी ,बस किसी भी बात में उनको राजी करने के लिए उग्रता या उतावलापन न दिखाएँ उनको पूरा समय लेकर सोचने दें बस अपने सारे सकारात्मक पहलू अच्छे से समझा दें फिर देखिए वो आपकी बात जरूर समझेंगे.
उम्मीद है इस तरह से बात करने पर बात बन ही जाएगी.तो देर मत कीजिये और मना लीजिए अपने अपनों को.

9 टिप्स: जब न लगे बच्चे का पढ़ाई में मन

जरूरी नहीं की जो मुझ मे काबिलियत है वो तुम मे भी हो ,या जो तुम्हें  आता है वो मुझे भी आये.ये कथन हर किसी के  लिये स्टिक है चाहे बच्चा हो या बड़ा. ऐसा मुमकिन नहीं है की हर बच्चे की  बुद्धि का विकास  एक समान होता है. कुछ पढ़ाई मे ज्यादा अच्छे  होते  हैं तो कोई खेल में.प्रत्येक बच्चे  के अंदर एक सामान्य ऊर्जा होती है बस जरूरत है तो उस ऊर्जा को नया आयाम देने की . बच्चे की प्रतिभा को अच्छी तरह सिर्फ उसके माता -पिता या टीचर्स ही समझ सकते हैं इसीलिये इन्ही को जरूरत है उस कमजोर बच्चे की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की और उसमे एक नया आत्मविश्वास जगाने की. उसके  मन मे   एकग्रता बढ़ाने  की .

कैसे पढ़ाएं बच्चे को

अगर आपका बच्चा पढ़ाई मे कमजोर है तो ये टिप्स आजमाएं और अपने बच्चे मे फर्क पाएं-

1. सही जगह का करें चुनाव

परिवेश और वातावरण का पढ़ाई पर बहुत असर पड़ता है.  बच्चे मे एकग्रता लाने के  लिये जरूरी है  की उसे एक अलग कमरे मे  पढ़ाएं .बच्चे को टेबल चेयर पर बैठ कर पढ़ने की आदत डालें क्युकी चेयर पर पढ़ने से रीढ़ की हड्डी सीधी रहती है जिस से एकग्रता बनी रहती है . जब तक आप बच्चे को पढ़ाएं किसी को  भी डिस्टर्ब न करने दे.

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2. बच्चे की नहीं करें पिटाई

अगर बच्चे की समझ मे कोई चीज़ नहीं आ रही है तो उस पर चिल्लाये नहीं और न ही उसकी पिटाई करे ऐसा करने से बच्चे के मन मे डर  बैठ जाता  है व पढ़ाई से जी चुराने लगता है .इसलिये उसे प्यार से समझाए .और अगर बच्चा पढ़ाई से ऊब गया हैं तो जबरदस्ती न करें थोड़ी देर उसे उसकी पसंद का काम करने दें .

3. बच्चे की परेशानी समझें

कभी कभी बच्चे को लिखी हुई चीज़े    समझ नहीं आती  इसलिये उसे बोल कर समझाए उसको आसान तरीके मे बदल कर समझाएं  और बच्चे को लिख कर  याद करने की आदत डालें .लिखा हुआ बच्चे को ज्यादा समय तक याद रहता है .

4. पढ़ते वक़्त न करें डिस्टर्ब

जबतक उसका मन पढ़ाई में लगे उसको पढ़ने दें , किसी कार्य के लिए उसे न उठाए. और घर मे आने   जाने वालो से भी उसकी पढ़ाई मैं डिस्टर्बेंस न होने दें .

5. डेली कराएं पढ़ाई

पढ़ाई का एक निश्चित टाइम टेबल बनाये .निर्धारित समय अनुसार पढ़ाई करने बैठे और एक योजना बना कर पढ़ाई करें. रोजाना के जरूरी कार्यो की तरह पढ़ाई को भी यही अहमियत दें. टाइम टेबल को कठिन नहीं बल्कि आसान बनाए जिससे आपको पढ़ाई उबाऊ नहीं लगेगी, बीच-बीच में ब्रेक जरूर लें .

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6. खेलना भी हैं जरूरी

खेलना भी बहुत जरूरी होता है क्यों की खेलने से नई ऊर्जा मिलती है और मानसिक विकास होता है .बच्चे को खेलने का भी निश्चित समय रखें.

7. पर्याप्त  नींद है जरूरी

अच्छी नींद से हॉर्मोन सही तरीके से रेगुलेट होते हैं जिससे माइंड तेज होता है और शरीर को भी आराम मिलता है जिससे पढ़ा हुआ याद रखने में मदद मिलती है. 7 -8घंटे की नींद बच्चे  को जरूर लेने दें .

8. योग की डालें आदत

रोजाना सुबह 20 मिनट तक योगा करें , इससे  पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ेगी ,और  दिमाग के ध्यान लगाने की क्षमता तेज होगी , शरीर पूरे दिन ऊर्जावान रहेगा .

9. खान पान का रखें ध्यान

बच्चे की उम्र के हिसाब से खाना  खिलाये .पोस्टिक तथा बुद्धिवर्धक चीज़े दें जैसे – रोज़ कम से कम दस बादाम रात में पानी में भिगोकर दें, सूखे मेवा दें ,दूध अवश्य दें, अगर आप शाकहारी हैं तो अपने बच्चे को हफते में दो बार मछली अवश्य खिलाये, हरी सब्ज़ी , फल , दूध से बनी हुई प्रोटीन तथा आयरन कैल्शियम से युक्त चीज़े उसे अवश्य खिलाए.

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