पूर्वकथा :
मेरी की सभी सहेलियां और चंदू व आनंद कालेज की गतिविधियों में भाग लेते थे. आनंद जहां गंभीर और काफी अमीर था वहीं चंदू एक नरमदिल इंसान था. हर कार्य वह निस्वार्थ भाव से करता था जबकि आनंद अपना बुराभला देख कर ही काम करता था. नीरू आनंद की दीवानी हो गई थी लेकिन कालेज में घटी एक घटना ने उस की सोच ही बदल दी.
अब आगे…
कालेज चुनाव में शीतल जीत गई थी. जीत की पार्टी वह अपने सारे दोस्तों को कैंटीन में दे कर लौटी थी. नीरू के लिए विशेष निमंत्रण था. वैसे भी अब वह उन के घर लगी थी, क्योंकि उन के साथ एक अनकहा सा रिश्ता बन गया था. आनंद का व्यवहार ऐसा होता जैसे उस का उस पर कोई हक हो.
शीतल भी ऐसा ही व्यवहार करती थी, क्योंकि वह समझ गई थी कि उस का भाई नीरू को बहुत पसंद करता है. तीनों कार की ओर जा ही रहे थे कि इतने में जोर की चीख सुनाई पड़ी. चारों ओर से सारे विद्यार्थी उस ओर दौड़ पड़े. माली का बेटा जो अकसर अपने पिता के साथ काम करने आया करता था जोरजोर से रो रहा था. कुदाल लग जाने से उस का पैर लहूलुहान हो गया था. घाव कुछ ज्यादा ही गहरा था. सभी लोग तरहतरह के सुझाव दे रहे थे. कोई आटो बुलाने जा रहा था, कोई प्रिंसिपल के कमरे की ओर दौड़ रहा था तो कोई कह रहा था कि डाक्टर को ही यहां बुला लो.
नीरू को लगा आनंद उसे अपनी कार से डाक्टर के पास ले जाएगा, मगर वह मौन खड़ा तमाशा देख रहा था. पता नहीं कहां से चंदू आया उस ने माली के सिर का साफा निकाला और बच्चे के पैर में बांध दिया. फिर 10-12 साल के बच्चे को अपने हाथों में उठा लिया और कहा, ‘‘चलो यार, कोई मेरे साथ. मेरी जेब से मेरी बाइक की चाबी निकाल कर गाड़ी चलाओ. मैं इसे ले कर पीछे बैठता हूं.’’ फाटक काफी दूर था अगर कोई आटो ले कर आता तो तब तक काफी खून बह जाता.
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इस के बाद शीतल के घर जा कर भी नीरू अनमनी सी ही रही. न उसे वहां पैस्ट्रीज अच्छी लगीं न कोल्डड्रिंक्स.
‘‘क्या हो गया नीरू तुम्हें, क्या तुम मेरी जीत से खुश नहीं हो?’’
‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है…’’
‘‘शायद माली के बेटे वाली घटना से विचलित है. दिल इतना कमजोर होगा तो कैसे चलेगा. यह तो उन के जीवन का भाग है,’’ आनंद हंसा.
उसे लगा वह उस की हिम्मत नहीं बंधा रहा है बल्कि हंसी उड़ा रहा है.
‘‘मैं तो उस घटना को वहीं भूल गई. नीरू तुम्हें सख्त होना पड़ेगा, नहीं तो तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल होगी,’’ शीतल ने कहा.
‘‘सख्त, यह तो संवेदनहीनता है. एक गरीब, निसहाय आदमी को भी बच्चा उतना ही प्यारा होता है जितना एक करोड़पति को. ऊपर से अस्पताल का खर्च. कैसे झेल पाएगा वह?’’ उस का हृदय भीग गया.
‘‘छोड़ो यार, तुम तो ऐसे डिस्टर्ब हो जैसे वह तुम्हारा अपना हो. यह सब तो चलता रहता है. ठीक है तुम्हारा मूड ठीक करने का उपाय मैं जानती हूं.’’
‘‘अच्छा शीतल, मुझे कुछ काम है. अभी आता हूं,’’ कह कर आनंद वहां से
चला गया.
‘‘सुनो नीरू, पापा बाहर गए हुए हैं. शायद 2-3 दिन में वापस आएंगे. उन के वापस आते ही भैया तुम्हारी बात चलाएंगे,’’ उस ने बड़ी अपेक्षा से नीरू की ओर देखा. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह स्वयं बोली, ‘‘अरे यार, मैं तो समझी थी कि तुम खुशी से उछल पड़ोगी. भैया को तो कोई पसंद ही नहीं आती थी. कितनी लकी हो तुम, जिस के पीछे लड़कियां लाइन लगाती हों, वे स्वयं तुम्हारे पीछे हैं.’’
नीरू का वहां और रुकने का मन नहीं हुआ. वह जाने को उठी, तो शीतल ने कहा, ‘‘अरे रुको, भैया पहुंचा देंगे. यहींकहीं गए हैं, आ जाएंगे.’’
‘‘नहीं शीतल, मुझे एक जगह और जाना है, अच्छा बाय.’’
‘‘मगर भैया…’’ शीतल पुकारती रह गई. उस रात उसे नींद नहीं आई. खून से लथपथ माली के बेटे का पांव, उस का आसुंओं से भीगा चेहरा और माली की दैन्य स्थिति उसे कचोट रही थी. बारबार एक ही सवाल उस के मन में उठ रहा था, ‘क्या आनंद की परिपक्वता, शालीनता, बड़प्पन केवल एक ढकोसला है? सब के सामने अपनेआप को कितना अच्छा दिखाता है. गाड़ी है, पैसा है, मगर दिल में…’ नीरू का मन खट्टा हो गया.
नीरू सुबह तैयार हो कर कालेज जाने को निकल तो पड़ी पर उस का जाने का मन न हुआ. मेरी ने तो कल ही कह दिया था कि अब कम से कम 4-5 दिन पढ़ाई नहीं होगी, इसलिए वह अपनी दीदी के यहां चली जाएगी. उस के मन में विचार आया कि क्यों न माली के बेटे को देख आऊं. माली का घर उस के कालेज के रास्ते में ही पड़ता था. छोटी सी झोंपड़ी थी उस की. वह सकुचाती हुई उस की झोंपड़ी में घुस गई.
माली शायद काम पर जा चुका था और लड़का एक पुरानी सी खाट पर गुदडि़यों में लिपटा पड़ा था. किसी की आहट सुन कर उस ने आंखें खोलीं. नीरू ने उसे अपना परिचय दिया और उस की खाट पर बैठ कर उस से बातें करने लगी. पहले तो वह बहुत सकुचाया पर बाद में नीरू से प्रोत्साहन और अपनेपन से खुल कर बातें करने लगा.
उस ने बताया कि उस की मां 4-5 घरों में बरतनचौका करती हैं, इसलिए इस समय वहीं गई हुई हैं. पौलीथिन बैग में से नीरू ने बड़ा सा फ्रूट ब्रैड और बिस्कुट का पैकेट निकाला और खोल कर उस के सामने रख दिया.
‘‘आप यह सब क्यों लाई हैं, अभी अम्मां आएंगी तो हम लोग खाना खा लेंगे.’’
‘‘मुझे पता है भैया, अभी थोड़ा खा लो. बाकी बाद में सब मिल कर खाना.’’
उस ने एक ब्रैड का पीस उस की ओर बढ़ाया, जिस तरह से उस ने उसे खाया उस से पता चल गया कि वह वास्तव में भूखा था. उस का मन भर आया. कितना आत्मसम्मान है इस बच्चे में. उसे 2 बिस्कुट खिला कर पानी पिलाया. फिर आने का वादा कर के वह बाहर निकल ही रही थी कि चंदू और मेघा ने अंदर प्रवेश किया. वे एकदूसरे को देख कर चौंके.
उन से 2 मिनट बातें कर के नीरू निकलने ही वाली थी कि मेघा ने कहा, ‘‘नीरूजी, 2 मिनट रुक जाइए. मंगल की मां आती ही होगी. उस से मिल कर हम भी चलते हैं.’’ दूसरा तो कोई काम था नहीं, वह रुक गई.
वे लोग अभी बातें ही कर रहे थे कि मंगल की मां और एक 9-10 साल की लड़की आ गई. मेघा ने बताया कि यह लड़की मंगल की छोटी बहन लक्ष्मी है. मेघा ने एक थैला उस स्त्री के हाथ में दिया और बोली, ‘‘खाना है, सब लोग खा लेना और हां, डब्बों की चिंता मत करो, हम बाद में ले जाएंगे.’’
वह महिला नहीं मानी और बोली, ‘‘नहीं बेटा, रुक जाओ, 2 मिनट का काम है,’’ कहती हुई उस ने फटाफट डब्बों को खाली किया. नीरू ने देखा सब के लिए खाने के साथसाथ मिठाई और समोसे भी थे.
‘‘इतना सारा खाना क्यों ले आए बेटा? रूखासूखा खाने वाले गरीब आदमी हैं हम,’’ उस की आंखें भर आईं. वह डब्बे धोने बाहर चली गई. मेघा को जैसे कुछ याद आया.
‘‘अरे भैया, दवाइयां…’’
‘‘हां, वे तो डिक्की में रह गईं. मैं ले आता हूं.’’
‘‘रुको, बहुत सारे पैकेट्स हैं. मुझे आना ही पड़ेगा.’’ दोनों बाहर चले गए.
दवाइयों के पैकेट के साथ जब वापस आए तो मेघा कह रही थी, ‘‘क्यों बताया आप ने?’’ वह कुछ नाराज लग रही थी.
‘‘नहीं बताता तो निवाला उस के गले से नहीं उतरता. अब जल्दी कर. ये दवाइयां कब, कैसे लेनी हैं, 2 बार अच्छे से समझा कर चल. मां राह देख रही होंगी.’’ नीरू को उन की बातें समझ में नहीं आईं.
दोनों ने अच्छी तरह से दवाइयों के बारे में समझाया और फिर से आने को कह कर बाहर निकल आए.
मेघा ने कहा, ‘‘नीरू एतराज न हो तो थोड़ी देर के लिए मेरे घर चलो, मुझे अच्छा लगेगा. चाहो तो मैं घर आ कर आंटी को बता दूंगी.’’
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‘‘तुम कभी भी मेरे घर आ सकती हो, मुझे भी अच्छा लगेगा. इस वक्त केवल मां की इजाजत के लिए आने की जरूरत नहीं है. मैं घर जा कर बताने ही वाली थी कि मैं कालेज नहीं गई थी. रास्ते में मन बदल गया था और मंगल के घर चली गई थी,’’ नीरू ने हंसते हुए कहा.
‘‘मेघा, तुम मां से कह देना कि मैं एक जरूरी काम से जा रहा हूं. आधे घंटे में घर पहुंच जाऊंगा.’’ चंदू उछल कर गाड़ी में बैठ गया. मेघा नीरू के साथ आटो में बैठ गई.
नीरू को देख कर मेघा की मां बहुत खुश हुई, ‘‘अच्छा किया बेटा, जो अपनी सहेली को साथ ले आई, मंगल कैसा है?’’
‘‘ठीक हो रहा है मां, नीरू भी वहीं थी. हम लोग उस की मां और छोटी बहन से भी मिले.’’
‘‘नीरू बेटे, मुझे बहुत अच्छा लगा. इस के पिता के जाने के बाद इस ने अपना जन्मदिन मनाना ही छोड़ दिया. आज सालों बाद इस ने जन्मदिन पर कम से कम अपनी एक सहेली को तो बुलाया है. मैं तुम्हें यों ही नहीं जाने दूंगी.
‘‘मेघा बेटी, जरा आंटीजी को फोन कर के बता दे कि नीरू आज यहां तुम्हारे साथ खाना खाएगी, वे इस का इंतजार न करें.’’
‘‘नहीं आंटीजी, मुझे मीठा खिला दीजिए, मैं कालेज जाने के लिए घर से खाना खा कर निकली थी, मगर मैं कालेज न जा कर मंगल को देखने चली गई थी.’’
‘‘मेघा, तुम ने मुझे बताया ही नहीं कि आज तुम्हारा जन्मदिन है,’’ नीरू ने कहा.
‘‘इस में जन्मदिन वाली कोई बात नहीं है और कोई दिन होता तो भी मैं यही करती. मंगल के यहां हमारा मिलना एक सुखद संयोग है.’’
उस दिन मेघा के घर से लौटने के बाद नीरू का मन बिलकुल स्थिर और शांत हो गया था. उस ने सोचा, ‘कितना प्यारा घर है, शांत और सुकून देने वाला. कितना प्यार और अपनापन था वहां. उस की सारी बेचैनी दूर हो गई थी.’
इस के बाद उस का मेघा से मेलजोल बढ़ा. वे दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करती थीं. मेघा बहुत कम बोलती थी, मगर जो बोलती थी उस में सार, समझदारी, कोमलता, आर्द्रता आदि होती थी. वह बिना बोले दूसरों की बात समझ जाती थी और उसी के अनुसार काम करती थी. उस के पास आ कर लोगों का आत्मबल बढ़ता था.
धीरेधीरे नीरू को महसूस होने लगा कि उस घर में जब भी जाती है उसे एक शीतल, सुगंध छू जाती है. मन को सुकून मिलता है जैसे वहां स्नेह का मलयानिल बह रहा हो.
आनंद के साथ नीरू की सगाई तय हो गई. एक बार आनंद के कहने पर मेघा ने नीरू की मां को फोन किया कि वह आनंद की बहन है.
नीरू और आनंद एकदूसरे को पसंद करते हैं, पर दोनों इस बात को घर बताने में शरमाते हैं. वे लोग उस के घर आ कर रिश्ते की बात उस के मम्मीपापा से करें.
वह अपने भाई से बहुत प्यार करती है. इसलिए फोन कर रही है. यह बात वे किसी से न कहें, यहां तक कि नीरजा या आनंद से भी नहीं.
‘अंधा क्या चाहे दो आंखें,’ ऐसा रईस और शहर में प्रतिष्ठित खानदान नीरजा को मिले, इस से बढ़ कर उन्हें क्या चाहिए था, वह भी बिना प्रयास के. उस की पढ़ाई भी अब समाप्त होने वाली है. बात आगे बढ़ी और तारीख भी पक्की हो गई. फिर तो आएदिन नीरू के लिए तोहफे आने लगे. कभी कपड़े, कभी सैंडल तो कभी सौंदर्य प्रसाधन.
एक बार नीरू ने आनंद से कहा, ‘‘आप लोग बातबेबात मुझे तोहफे क्यों भेजते हैं? मुझे बड़ा संकोच होता है. प्लीज…’’
‘‘इस बारे में तुम बहुत मत सोचा करो. ऐसे छोटेमोटे तोहफे देना हमारे लिए बहुत बड़ी बात नहीं है. धीरेधीरे तुम्हें आदत पड़ जाएगी,’’ आनंद ने कहा.
उस दिन उन के कालेज के सहपाठी अनुरूप का जन्मदिन था. वह भी शहर के बहुत बड़े उद्योगपति का बेटा था. नीरू अपने मित्रों के साथ शीतलपेय लेते हुए बातें कर रही थी कि पीछे से कंधे पर हाथ पड़ा. उस दबाव से उसे पीड़ा हुई. वह गुस्से से पलटी, सामने आनंद खड़ा था.
‘‘वन मिनट प्लीज,’’ उस के मित्रों से कह कर आनंद उसे हाथ पकड़ कर एक ओर ले गया.
‘‘क्या अजीब से कपड़े पहन लिए हैं तुम ने, इसीलिए तो तोहफे भेजता हूं कि कुछ ढंग का पहनो,’’ उस ने फुसफुसाते हुए कहा.
वह जानती थी कि सारी सहेलियों की नजरें उन्हीं पर टिकी हुई थीं. वह स्तब्ध रह गई. चेहरा लाल हो गया. तोहफों का यह अर्थ उस ने कभी नहीं लगाया था. उसे तो लगा था कि अपना प्यार जताने के लिए वह तोहफे देता है.
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उसे क्या पता था कि वह अपने साथ खड़े होने के लायक बनाने के लिए उसे तोहफे देता है. उस ने आंखों में आने को आतुर आंसुओं को रोका. उसे घिन आ रही थी अपनेआप पर कि इंसान को पहचानने में इतनी बड़ी गलती कैसे
हो गई?
वापस आने पर जीना ने कहा, ‘‘अरे वाह, सब के बीच रोमांस?’’
‘‘नहीं यार, वे लोग अपनी शादी के बाद की पार्टी का प्लान कर रहे थे.’’ यह रूमा थी.
‘‘ठीक कहा तू ने. आनंद कोई भी काम करता है तो सब देखते रह जाते हैं. भई, अपनी नीरू भी तो लकी है.’’ कौन थी ये जो उस के भाग्य की हंसी उड़ा रही थी.
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