Healthy रहने के अचूक टिप्स

आजकल हाई हील पहनना फैशन स्टेटमैंट बन चुका है. लेकिन इन्हें पहनने वाले यह नहीं जानते कि वे अपनी सेहत के साथ कितना खिलवाड़ कर रहे हैं यानी अनजाने में कई तरह की परेशानियों जैसे जौइंट प्रौब्लम, पैरों में दर्द आदि को न्योता दे रहे हैं. वरिष्ठ आर्थोपैडिक सर्जन डा. टी. शृंगारी का कहना है कि ऐसे में यह जरूरी है कि सैंडल खरीदते समय यह ध्यान रखें कि वे दोनों पैरों में आराम से फिट आएं. पैर के अंगूठों पर दबाव न पड़े. हाई हील को ज्यादा समय तक पहने रखने के बजाय थोड़ीथोड़ी देर के लिए इन्हें पैरों से निकालती रहें ताकि पैरों को रिलैक्स मिले. गाड़ी चलाते समय गाड़ी में 1 जोड़ी स्लीपर रखना न भूलें ताकि ड्राइविंग करते समय उन्हें पहन सकें. हील को रैग्युलर पहनने के बजाय खास अवसर पर ही पहनें. हील पहनने के बाद रात को सोते समय कुनकुने पानी में नमक गल कर थोड़ी देर के लिए पैरों को उस में रखें. रिलैक्स फील करेंगी.

पलकें झपकाना है जरूरी

सैंटर फौर साइट के डा. महिपाल सचदेव बताते हैं कि टीवी व कंप्यूटर देखते हुए पलकें झपकाना बहुत जरूरी है क्योंकि इस से आंखों में शुष्कता तथा जलन पैदा नहीं होती और पानी आता रहता है. अध्ययनों के अनुसार सामान्य स्थितियों के मुकाबले टीवी देखते हुए लोग पलकों को 5 गुना कम झपकाते हैं. पलकें न झपकाने की वजह से आंसू नहीं आते जिस से आंखें शुष्क हो जाती हैं. हर आधे घंटे बाद स्क्रीन से नजरें हटाएं और दूर रखी किसी चीज पर 5-10 सैकंड नजरें डालें. अपने फोकस को फिर से ऐडजस्ट करने के लिए पहले दूर रखी चीज पर 10-15 सैकंड तक नजरें टिकाए रखें. फिर पास की चीज पर 10-15 सैकंड तक फोकस करें. ऐसा 10 बार करें. इन दोनों व्यायामों से आप की दृष्टि तनावग्रस्त नहीं होगी और आप की आंखों की फोकस करने वाली मांसपेशियों में भी फैलाव होगा. इस के अलावा हर 20 मिनट बाद 20 सैकंड का बे्रक लें और 20 फुट दूर देखें. हर आधे घंटे में यह व्यायाम करें.

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स्मोकिंग, ड्रिंकिंग को कहें बायबाय

मेदांता मेडीसिटी, गुड़गांव के डा. विपुल गुप्ता के अनुसार कुछ साल पहले तक बे्रन स्ट्रोक जैसी बीमारी को बढ़ती उम्र का लक्षण माना जाता था, लेकिन आज यह किसी को भी कहीं पर भी अपना शिकार बना सकता है. यह हमारे देश में मौत का तीसरा सब से बड़ा कारण है और किसी और बीमारी की अपेक्षा शरीर के विकारग्रस्त होने का दूसरा बड़ा कारण है. स्ट्रोक के मरीजों में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है. इस के मुख्य कारणों में एक कारण युवाओं में बढ़ रहा सिगरेट और शराब का चलन भी है. वैसे भी अगर एक बार स्ट्रोक हो जाए तो 4 में से 1 इंसान तो मौत के मुंह में चला ही जाता है और जो बच जाते हैं वे जीवन में कभी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते हैं. स्ट्रोक से बचना है तो अपने लाइफस्टाइल को ठीक रखें तथा सिगरेट व शराब को हमेशा के लिए बाय कहें. इस के अलावा दिमाग की तंदुरुस्ती के लिए सूखा मेवा, मछली, दही, साबूत अनाज आदि को अपने भोजन में शामिल करें.

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स्पाइनल इन्फैक्शन के दर्द से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 42 साल है. कई दिनों से पीठ और हाथों में अचानक दर्द होने लगता है. पीठ के दर्द की तीव्रता हर बार अलग होती है. मलमूत्र में भी समस्या हो रही है और कभीकभी पैरों में भी दर्द होता है. क्या ये किसी बीमारी के लक्षण हैं या कोई सामान्य समस्या है? इस दर्द से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब-

आप के द्वारा बताए गए सभी लक्षण स्पाइनल इन्फैक्शन की ओर इशारा करते हैं. हालांकि समस्या कोई और भी हो सकती है, इसलिए एमआरआई करवा के सही समस्या की पुष्टि करें. इस में रीढ़ का आकार खराब हो सकता है, इसलिए इलाज में देरी बिलकुल न करें. स्पाइनल संक्रमण का सब से सामान्य उपचार इंट्रावीनस ऐंटीबायेटिक दवाइयों के सेवन, ब्रेसिंग और शरीर को पूरी तरह आराम देने के साथ शुरू होता है. वर्टिकल डिस्क में रक्त प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता है, इसलिए जब बैक्टीरिया अटैक करता है तो शरीर की इम्यून कोशिकाओं और एंटीबायोटिक दवाइयों को संक्रमण के स्थान तक पहुंचने में मुश्किल होती है. वहीं, संक्रमण के उपचार के दौरान रीढ़ को सही आकार में रखने में मदद करती हैं. बे्रसिंग संक्रमण के उपचार के दौरान रीढ़ को सही आकार में रखने में मदद करती है. इस का दूसरा इलाज सर्जरी है, जिस की सलाह तब दी जाती है जब संक्रमण पर दवा का कोई असर नहीं पड़ता है.

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32 साल का अंकित पीठ के दर्द से बुरी तरह परेशान था. उस की पीठ का मूवमैंट पूरी तरह रुक सा गया था. रैस्ट करने और दवा लेने के बाद भी हालत में कुछ खास सुधार नहीं हो रहा था. 6 हफ्ते पहले जब उस की पीठ में दर्द शुरू हुआ था, तभी से असामान्य तरीके से उस का वजन भी घटता जा रहा था.

अंकित ने डाक्टर से अपौइंटमैंट लिया. एक्स रे से कुछ पता नहीं चला, तो ब्लड टैस्ट कराने को कहा गया. अतिरिक्त जांच के लिए एमआरआई कराया गया, तो पता चला कि अंकित की रीढ़ की हड्डी में इन्फैक्शन हो गया है और डिस्क स्पेस व उस के आसपास की कोशिकाओं में मवाद भर गया है.

मामले की गंभीरता को देखते हुए उसे तुरंत स्पाइनल ब्रेसेस लगवाने की सलाह दी गई और प्रभावित हिस्से की सीटी गाइडेड बायोप्सी की गई. 6 हफ्ते के लिए ऐंटीबायोटिक खाने, बैड रैस्ट करने और स्पाइनल ब्रेसेस के साथ मूवमैंट की सलाह दी गई.

हालांकि नियमित चैकअप के दौरान यह भी नोट किया गया कि उस की रीढ़ की हड्डी सिकुड़ रही है और उसी की वजह से मरीज की टांगों, ब्लैडर और आंतों पर भी असर पड़ रहा था. इस से नजात पाने के लिए तुरंत सर्जिकल ट्रीटमैंट की जरूरत थी. न्यूरोलौजिकल कंप्रैशन को दूर करने और साथ ही पेडिकल स्क्रू और रौड्स की मदद से स्पाइन को स्थिर बनाए रखने के लिए अंकित की सर्जरी की गई. इस का मकसद दर्द को दूर करना, मरीज को विकलांग होने से बचाने और रीढ़ की हड्डी के आकार को और ज्यादा विकृत होने से रोकना भी था. सर्जरी के बाद मरीज की हालत में तेजी से सुधार हुआ. उस का दर्र्द भी पूरी तरह दूर हो गया.

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बिगड़ी फिगर ऐसे सुधारें

फैट इकट्ठा करना हमारी बौडी की टैंडैंसी है और जैसेजैसे उम्र बढ़ती है यह टैंडैंसी बढ़ती जाती है क्योंकि बौडी का मैटाबोलिक रेट कम होने लगता है. लड़कियों में 16 साल की उम्र के बाद फैट तेजी बढ़ने लगता है और अगर खानपान रिच है और जिंदगी में बहुत भागदौड़ नहीं है तो 2 साल भी नहीं लगते कमर को कमरा बनने में. लड़कियों में फैट का पहला टारगेट हिप्स, कमर व गरदन होती है. स्लिमट्रिम लड़की को तकरीबन 6 किलोग्राम वेट बढ़ जाने के बाद पता चलता है कि उस का वेट बढ़ गया है, क्योंकि यह पूरी बौडी में फैला होता है. हम लोग फैट को सिर्फ अपनी कमर पर महसूस करते हैं, जबकि कमर की मोटाई दिखने से पहले फैट बौडी पर लेयर बना चुका होता है. अपनी बौडी को ले कर अगर आप गंभीर हैं तो लंबे समय तक अपनी फिगर को संभाल सकती हैं. अगर आप समय रहते खुद के लिए कुछ नियमकानून बना लेंगी, तो आगे चल कर पछतावा, कड़ी मेहनत व कड़ा परहेज जैसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ेगा. यह बात किसी से नहीं छिपी है कि फिजिकल ऐक्टिविटी और खानेपीने पर कंट्रोल ही आप को बेडौल होने से बचा सकता है. लेकिन फिर भी कुछ उपाय ऐसे हैं, जो मोटापे की दहलीज पर पहुंचे लोगों को वापस पीछे खींच सकते हैं और फिगर को बिगड़ने से बचा सकते हैं.

ये आदत डालें

सोने से पहले गरम पानी पीने की आदत डालें. यह आदत पड़ गई तो आप के बड़े काम आएगी. अगर पानी से बोरियत हो तो उस में थोड़ा नीबू निचोड़ लें व 1 कालीमिर्च पीस कर डाल लें.

हफ्ते में 1 दिन उपवास रखें. उपवास के दिन केवल फल खाएं.

सुबह फ्रैश होने के बाद व्यायाम जरूर करें.

गेहूं की रोटी के बजाय जौ, चने की रोटी खाएं. इस के लिए 10 किलोग्राम चने में 2 किलोग्राम जौ डलवा कर पिसवा लें.

खाने के तुरंत बाद पानी पीने की आदत बिलकुल छोड़ दें. अगर तेज प्यास लगे तो 1-2 घूंट पानी पीने में कोई बुराई नहीं. वैसे खाने के 1 घंटे बाद ही पानी पीएं.

खाने से पहले 1 कटोरी सब्जियों का सूप पीने की आदत डालें.

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अगर पेट की चरबी बढ़ गई हो

पेट की बढ़ी चरबी बिना ऐक्सरसाइज किए नहीं जाती. उस में भी सिर्फ कमर की ऐक्सारसाइज करने से कमर पतली नहीं होती. कसरत तो आप को पूरी बौडी की करनी होगी. अगर आप ऐक्सरसाइज और डाइट पर ध्यान दे रही हैं, तो पेट की सेंक कुछ हद तक आप की मदद कर सकती है. इस के लिए पतीले में पानी भर कर गरम होने को रख दें. इस में 1 चम्मच नमक और 1 चम्मच अजवायन भी डालें. जब पानी खौलने लगे तो पतीले के ऊपर कोई जाली या आटा चालने वाली लोहे वाली चलनी रख दें. अब भिगो कर निचोड़े हुए 2 छोटे तौलिए उस जाली पर रख दें. फिर 1-1 कर के दोनों तौलियों से अपनी नाभि के ऊपर वाले हिस्से की 10 से 15 मिनट सेंकाई करें. आप रात को सोने से पहले या सुबह के वक्त यह काम कर रोज कर सकती हैं.

मम्मी के कहे का क्या करें

मांएं हमेशा यह कहती हैं कि घीमक्खन खाना चाहिए. यह बात तब तो बिलकुल वाजिब है जब आप बाहर तला हुआ नहीं खातीं. लेकिन बाहर भी सब चल रहा है तो घर में परहेज बरतना होगा. अगर मां जिद करें तो सुबह के वक्त थोड़ा घीमक्खन लेने में कोई बुराई नहीं. कुल मिला कर बात यह है कि आप को खुद तय करना होगा आप बौर्डर लाइन पर हैं, उस के आगे या उस से कई कदम पीछे. फिर उसी हिसाब से योजना बनानी होगी. अपना बीएमआई यानी बौडी मास इंडैक्स जरूर चैक करें. इस से आप को आगे की योजना बनाने में मदद मिलेगी.

जरूरी बात

अगर आप तली हुई चीजों से परहेज नहीं कर रही हैं, तो इन में से कोई भी उपाय आप के काम नहीं आने वाला. यह बात तो स्वाभाविक रूप से समझनी चाहिए कि फास्ट फूड और तला खाना मोटापे की पहली वजह है. इन पर काबू किए बिना फिगर के बारे में सोचना बड़ा मुश्किल है.

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एलोपेसिया ग्रसित महिला का मजाक पड़ा महंगा

हॉलीवुड के सुपर स्टार विल स्मिथ की इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है. इसकी वजह विल स्मिथ है, जिन्होंने OSCAR AWARD FUNCTION 2022 के दौरान कॉमेडियन और होस्ट क्रिस रॉक को जोरदार थप्पर मार देना, क्योंकि उन्होंने उनकी पत्नी जाडा पिंकेट स्मिथ, जो एलोपेसियाएरिएटा की शिकार है, उन्हें लेकर कुछ अभद्र मजाक किया, जिसे सुनते ही विल स्मिथ को गुस्सा आया और उन्होंने स्टेज पर क्रिस रॉक को थप्पड़ जड़ दिया. अपनी पत्नी के लिए इस तरह की एक्सेप्टेंस शायद विश्व में उन पुरुषों के लिए सीख है, जो एलोपेसिया के शिकार अपनी पत्नी या गर्लफ्रेंड को नहीं अपनाते, उन्हें आसानी से तलाक दे देते है या फिर उनसे कोई सम्बन्ध नहीं रखते. हमारे देश में एलोपेसिया के शिकार महिला या लड़की को चुड़ैल, डायन, अपशगुनी, आदि न जाने कितने शब्दों के प्रयोग किया जाता है, जिससे व्यक्ति मानसिक रूप से पीड़ित होकर आत्महत्या तक कर लेते है.

महसूस करती हूं गर्व

इस बारें में एलोपेसिया के शिकार केतकी जानी कहती है कि मैं विल स्मिथ की पत्नी के प्रति उनके पति की इस एक्सेप्टेंस को देखकर बहुत खुश हूं और ऑस्कर अवार्ड में एलोपेसिया या गंजेपन को लेकर मजाक करने की जो गलती क्रिस क्रॉस ने किया है, उसका उन्हें सही जवाब मिल गया है और इसकी गूंज पूरे विश्व में रहनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति एलोपेसिया के शिकार को पब्लिक प्लेटफार्म पर भला-बुरा कहने की जुर्रत न करें. मुझे जब से एलोपेसिया हुआ है, मेरे पति मुझसे दूर रहने लगे है.मैंने कई बार आत्महत्या की कोशिश की थी, पर मेरे बच्चों की वजह से मैंने ऐसा नहीं किया, गर्व के साथ आगे आई और कई ब्यूटी अवार्ड जीती. मेरी दशा ऐसी हुई थी कि लोग मुझे किसी शादी ब्याह में जाने नहीं देते थे, मेरा चेहरा अगर सुबह उठकर कोई देख लें तो उसका पूरा दिन ख़राब हो जायेगा, इसलिए मुझे ऑफिस टाइम में घर पर रहना या फिर सुबह जल्दी उठकर ऑफिस जाना पड़ता था. कुछ लोगों ने मुझे इतना तक कहा है कि तुम कितनी बदनसीब हो, पति के होते हुए भी बाल चले गए. अभी मैं अपने बच्चों के साथ रहती हूं. पति ने पहले मुझे विग पहनने की सलाह दी थी, पर मुझे वह ठीक नहीं लगा, क्योंकि उससे गर्मी अधिक लगती है और मैं बिना हेयर के अपनी जिंदगी से खुश हूं. शुरुआत में खुद को आईने में देखना बहुत मुश्किल था, क्योंकि मेरे बाल पहले लम्बे थे, लेकिन अब पूरी तरह से झड चुके है.

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तिरस्कृत हुई परिवार,समाज और धर्म द्वारा

वह आगे कहती है कि हमारे देश में किसी महिला के सिर पर केश न होने से पूरे घर- परिवार के लिए शर्म की बात होती है, सब उसका मजाक और तिरस्कार करते है. स्त्री की बल्डनेस डिवोर्स का कारण,उससे सेक्स न करना आदि पूरी उम्र तिरस्कार और लांछन का सामना करना पड़ता है. हमारे समाज में लोग सोचते है कि इस रोग से पीड़ित को शर्म से डूब मरना चाहिए या फिर घर के किसी कोने में चुपचाप विग, स्कार्फ और कैप लगाकर जिन्दा रहना चाहिए, जो बहुत गलत है. इसलिए मैं पूरे एलोपेसियाग्रुप के रोगी को सपोर्ट देती हूं, क्योंकि ऐसे बहुत बच्चे और महिलाएं है, जिन्हें हमेशा तिरस्कृत होना पड़ता है. मेरे ग्रुप में करोब सौ एलोपेसिया के मरीज है. स्कूल में पढने वाले एक 13 साल के बच्चे को टीचर अलग बैठाती है, वह बच्चा हमेशा सहमा-सहमा रहता है, उससे कोई बात और खेलता तक नहीं है. कई बार वह घर पर आकर रोता है, मैं उसे काउंसलिंग करती हूं.

क्या है एलोपेसिया

इस बारें में मुंबई की डर्मेटोलोजिस्ट डॉ. अप्रतिम गोयल कहती है कि एलोपेसिया के मरीज के साथ हमेशा ऐसा होता आया है, समाज और परिवार उन्हें एक्सेप्ट नहीं करना चाहते है. असल में ये एक ऑटोइम्यून डिसीज है, जो कभी भी किसी को हो सकता है,जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम और सफेद रक्त कोशिकाएं (WBC) जिनका काम बीमारियों से लड़ना है, वे हेयर फॉलिक्स (Hair Follicles) पर ही हमला करने लगते है, जिसकी वजह से बाल तेजी से गिरने लगते है. कई मरीजों में सिर के कुछ हिस्सों से भी धब्बों की तरह बाल गायब होने लगते है. मेरे हिसाब से विल्स स्मिथ की पत्नी को ओफियासिस एलोपेसिया हुआ है, जिसका इलाज संभव नहीं होता.

इसके होने की वजह कुछ खास पता नहीं चला है, लेकिन ये छूने से नहीं फैलता. ये महिलाओं से अधिक पुरुषों को होता है. एलोपेसिया को समझना आसान नहीं होता, क्योंकि इनके कुछ खास लक्षण नहीं होते, क्योंकि अधिकतर लोगों को स्ट्रेस या किसी बीमारी की वजह से बाल झड़ते है और वे इसे नार्मल समझते है, इससे इसे रोकना नामुमकिन होता है, क्योंकि ये बहुत जल्दी सक्रीय होता है और ये जेनेटिक भी हो सकता है.ये बीमारी अधिकतर थाइरोयड, अस्थमा,मायस्थीनिया ग्रेविस आदि को होने की संभावना अधिक होती है. 50 प्रतिशत केसेज में ये परिवार को होती है. एक हफ्ते में ही ये पैच आने लगते है, इससे मनोवैज्ञानिक तौर पर उस व्यक्ति को प्रभावित करती है. इसका इलाज आसान नहीं, लेकिन 30 प्रतिशत केसेज में बाल फिर से बिना इलाज के आ जाते है, लेकिन ये अनप्रेडिक्टेबल है.

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एलोपेसिया कई प्रकार के होते है ,जो निम्न है,

  • एलोपेशिया एरीएटा में सिर के सारे बाल गुच्छों में पैचेस बनाते हुए झड़ते है,जो एक पैच भी हो सकते है या फिर छोटे-छोटे पैचेस मिलकर पूरा गंजा भी कर सकते है.
  • एलोपेसिया एरिएटा से कई बार अलोपेसिया टोटालिस भी हो सकता है.
  • एलोपेसिया यूनिवर्सलिस में सिर के ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर से बाल झड़ जाते है.

इलाज

इसका कोई सही इलाज न होने की वजह से स्टेरॉयड या कैंसर की दवाई देनी पड़ती है, जिसके साइड इफ़ेक्ट बहुत अधिक और इफ़ेक्ट कम होते है.

ट्रांसप्लांट से क्या लिवर कैंसर से छुटकारा मिल जाएगा?

सवाल-

मैं लिवर कैंसर की तीसरी स्टेज से गुजर रहा हूं. क्या इस अवस्था में लिवर ट्रांसप्लांट संभव है और क्या इस से कैंसर से छुटकारा मिल जाएगा?

जवाब-

लिवर कैंसर 2 प्रकार का होता है – प्राइमरी एवं सैकंडरी. अधिकतर लिवर कैंसर शरीर के किसी अन्य हिस्से में पनपता है और फिर लिवर तक (सैकंडरी/मैटास्टैटिक) फैल जाता है, जबकि प्राथमिक लिवर कैंसर खुद लिवर में पनपता है और फिर लिवर के बाहर फैलता है. लिवर प्रत्यारोपण का विकल्प सिर्फ प्राइमरी लिवर कैंसर और वह भी केवल लिवर तक सीमित छोटे ट्यूमरों वाले मामलों में अपनाया जा सकता है.

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भारत में लिवर ट्रांसप्लान्ट की प्रक्रिया में प्रगति के साथ आज न सिर्फ मरीज लंबे जीवन का आनंद ले सकता है बल्कि सर्जरी के बाद उसके जीवन की गुणवत्ता भी बेहतर हो जाती है.

कई पत्रिकाओं में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, जीवित डोनर लिवर प्रत्यारोपण से गुज़रने वाले 15% से अधिक मरीज विदेशों से होते हैं. फेफड़ों की बीमारियों में वृद्धि और बढ़ती जागरुकता के साथ लगभग 85% डोनर जीवित होते हैं. इससे आकर्षित होकर मिडल ईस्ट, पाकिस्तान, श्री लंका, बांग्लादेश और म्यांमार आदि विदेशों से लोग लिवर ट्रांसप्लान्ट के लिए भारत आते हैं. आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 200 ट्रांसप्लान्ट किए जाते हैं और अबतक लगभग 2500 जीवित डोनर ट्रांसप्लान्ट किए जा चुके हैं.

जीवित या मृतक डोनर वह है जो अपना लिवर मरीज को दान करता है. भारत में अबतक का सबसे बड़ा विकास यह हुआ है कि अब मृत डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है. शरीर से निकाले गए अंगो को कोल्ड स्टोरेज में सीमीत समय के लिए ही रखा जा सकता है और लिवर को डोनर के शरीर से निकालने के 12 घंटो के अंदर ही प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए. जबकि मशीन संरक्षित लिवर की बात करें तो पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर पित्त का उत्पादन कर पाता है.”

भारत में यह तकनीक एक लोकप्रिय प्रक्रिया बन गई है. लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किए जाने के कारण लिवर डोनेशन बिल्कुल सुरक्षित हो गया है.

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AC बनाता है आपको बीमार

क्या आप भी उन लोगों में से हैं जो एसी वाले ऑफिस में काम करके खुद को खुशनसीब समझती हैं? क्या आप जब घर में होती हैं तो उस वक्त भी एसी ऑन ही रहता है और आप ठीक उसके सामने बैठना ही पसंद करती हैं? अगर आप भी ऐसा करने वालों में से हैं तो आपको बता दें कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है और आपको अपनी इस आदत के बारे में एकबार और सोचने की जरूरत है.

एक अध्ययन में पाया गया है कि भले ही लोग एसी को लक्जरी लाइफस्टाइल से जोड़कर देखते हों लेकिन सच्चाई ये है कि एसी में 24 घंटे बैठे रहना सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है.

बीते कुछ समय में एसी का इस्तेमाल अचानक से बढ़ गया है. गर्मियों में प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से धरती का तापमान इतना अधिक हो जाता है कि एसी के बिना काम भी नहीं चलता. ऐसे में जो लोग अफोर्ड कर पाते हैं वो एसी लगवाने में जरा भी देर नहीं करते हैं. रही बात ऑफिसों की तो आज के समय में ज्यादातर दफ्तरों में एसी लगा ही होता है. ये मूलभूत जरूरत हो चुकी है.

पर सोचने वाली बात ये है कि एक आर्टिफिशियल टेंपरेचर में बहुत देर तक रहना किस हद तक खतरनाक हो सकता है, इस ओर कभी भी हमारा ध्यान ही नहीं जाता है. इस टेंपरेचर के बदलाव का सबसे बुरा असर हमारे इम्यून सिस्टम पर पड़ता है.

अगर आपको लगता है कि आप अक्सर ही बीमार पड़ने लगे हैं, तो हो न हो आपकी इस आदत ने आपके इम्यून सिस्टम को कमजोर कर दिया है.

एसी के सामने ज्यादा वक्त बिताने से हो सकती है ये हेल्थ प्रॉब्लम्स

1. साइनस की प्रॉब्लम

प्रोफेशनल्स की मानें तो जो लोग एसी में चार या उससे अधिक घंटे रहते हैं, उनमें साइनस इंफेक्शन होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है. दरअसल, बहुत देर तक ठंड में रहने से मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं.

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2. थकान

अगर आप एसी को बहुत लो करके सोते हैं या उसके सामने बैठते हैं तो आपको हर समय कमजोरी और थकान रहने लगेगी.

3. वायरल इंफेक्शन

बहुत अधिक देर तक एसी में बैठने से फ्रेश एयर सर्कुलेट नहीं हो पाती है. ऐसे में फ्लू, कॉमन कोल्ड जैसी बीमारियां होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है.

4. आंखों का ड्राई हो जाना

एसी में घंटों बिताने वालों में ये प्रॉब्लम सबसे ज्यादा कॉमन है. एसी में बैठने से आंखों ड्राई हो जाती हैं. एसी में बैठने का ये असर स्क‍िन पर भी नजर आता है.

5. एलर्जी

कई बार ऐसा होता है कि लोग एसी को टाइम टू टाइम साफ करना भूल जाते हैं, जिससे एसी की ठंडी हवा के साथ ही डस्ट पार्टिकल भी हवा में मिल जाते हैं. सांस लेने के दौरान ये डस्ट पार्ट‍िकल शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे इम्यून सिस्टम पर असर पड़ता है.

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गरमियों में बारबार पीलिया हो जाता है, इसका कारण बताएं?

सवाल-

मेरे पति की उम्र 45 साल के करीब हैं. उन्हें गरमी के मौसम में बारबार पीलिया हो जाता है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसे रोकने का कोई उपाय है?

जवाब-

आप के पति को बारबार पीलिया होना इस बात का संकेत हो सकता है कि उन का लिवर ठीक काम नहीं कर रहा अथवा उन के हैपेटोबिलिअरी सिस्टम में संक्रमण है. बारबार पीलिया होना लिवर में किसी रोग का लक्षण है. इस का कारण जानने के लिए किसी गैस्ट्रोऐंटरोलौजिस्ट से जांच करवाएं. गरमी के मौसम और मौनसून में दूषित जल व गंदे भोजन के कारण यह बीमारी होना आम बात है. अत: केवल उबला पानी पीएं और मसालेदार, तैलीय भोजन का सेवन न करें.

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दाल जैसे, राजमा, उरद, मूंग आदि में खूब सारा प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और आयरन आदि जैसे ढेर सारे पोषक तत्‍व मिले होते हैं. अगर आप वेजिटेरियन हैं तो दालों को अपने खाने में हर रोज शामिल कीजिये. आइये देखते हैं कि कौन सी दाल में कौन से गुण छुपे हुए हैं.

1. प्रोटीन का भंडार राजमा

राजमा (किडनी बीन्स) में बहुत सारा प्रोटीन होता है. यही नहीं इसमें आयरन, फौसफोरस, मैगनीशियम और विटामिन बी9 पाया जाता है. साथ ही यह सोडियम और पोटैशियम में सबसे लो आहार हैं. राजमा में सोया प्रोडक्‍ट के मुकाबले अधिक प्रोटीन होता है.

2. मसूर दाल

मसूर दाल की प्रकृति गर्म, शुष्क, रक्तवर्द्धक एवं रक्त में गाढ़ापन लाने वाली होती है. इस दाल को खाने से बहुत शक्‍ति मिलती है. दस्त, बहुमूत्र, प्रदर, कब्ज व अनियमित पाचन क्रिया में मसूर की दाल का सेवन लाभकारी होता है. सौदर्य के हिसाब से भी यह दाल बहुत उपयोगी है.

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फूड सप्लिमैंट भी है जरूरी

आज की व्यस्त और भागदौड़ भरी जिंदगी ने हमारी लाइफस्टाइल को बहुत प्रभावित किया है. इसलिए आज एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए संतुलित व पौष्टिक आहार सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए बहुत जरूरी हो गया है.

अपने जीवन की बुनियाद स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के लिए महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स और अच्छे फैटी ऐसिड होते हैं जो हमारी सेहत को बेहतर बनाते हैं.

कैसा हो आहार

पौष्टिक आहार में कैलोरी, विटामिन और वसा की पर्याप्त मात्रा हमारी शारीरिक गतिविधियों के लिए बहुत जरूरी है. इन तत्त्वों वाला संतुलित आहार शरीर को मजबूत बनाता है तथा रोगों से लड़ने के लिए उस की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. एक स्वस्थ संतुलित आहार में सभी खाद्य समूहों से खाद्यपदार्थ शामिल होते हैं. लेकिन वह भोजन जिस में संतृप्त वसा, ट्रांसफैट और कोलैस्ट्रौल की मात्रा अधिक होती है, वह शरीर के कोलैस्ट्रौल के स्तर में वृद्धि करता है और स्वस्थ आहार की श्रेणी में नहीं आता.

खासतौर पर महिलाओं में अन्य शारीरिक क्रियाओं के साथसाथ दिल और दिमाग को सुचारु रूप से चलाने के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड बेहद जरूरी है. शरीर में इस की पूर्ति के लिए ओमेगा 3 फैटी एसिड वाले खाद्यपदार्थों के अलावा डाक्टर की सलाह से न्यूट्रिलाइट सालमन ओमेगा 3 अपने आहार में शामिल कर सकती हैं.

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अमेरिकन डायटेटिक ऐसोसिएशन के मुताबिक, पौष्टिक आहार में शामिल हैं- फलसब्जियां, गेहूं, कम चिकनाई या कम मलाई वाला दूध, अंडे और ड्राईफ्रूट्स. ऐसे आहार में सैचुरेटेड फैट कम होता है.

नोवा हौस्पिटल की डाइट और न्यूट्रिशियन कंसल्टैंट शीला कृष्णा स्वामी का कहना है कि सेहत भरा आहार ही आप की लंबी और स्वस्थ जिंदगी की चाबी है.

ऐसा आहार जिस में पोषक तत्त्व हों, आप के हृदय के लिए अच्छा होता है और आप के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है.

विटामिन और सप्लिमैंट्स

अकसर हम सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात का खाना ठीक तरह से न खा कर विटामिन और प्रोटीन की उचित मात्रा से वंचित रह जाते हैं. यों तो सब्जियां, फल और दालें हमारे शरीर के लिए जरूरी तत्त्वों का अच्छा स्रोत हैं. लेकिन इस के अलावा शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स का संतुलन बनाए रखने के लिए आप न्यूट्रिलाइट प्रोटीन और डेली को चिकित्सकीय परामर्श से अपनी डाइट का हिस्सा बना सकते हैं.

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Breakfast में क्या खाएं क्या नहीं

अकसर यह कहा जाता है कि सुबह का नाश्ता दिन का सब से महत्त्वपूर्ण भोजन है. ऐसा इसलिए क्योंकि पूरी रात नींद लेने और 12 घंटे या इस से अधिक समय तक बिना भोजन के रहने के बाद जब आप का शरीर पोषण के लिए तरस रहा होता है, तो उस की आपूर्ति सुबह का नाश्ता ही करता है. इस के अलावा जागने पर आप के मस्तिष्क में, जो काम करने के लिए ग्लूकोज इस्तेमाल करता है, ऊर्जा की कमी होती है. सुबह का नाश्ता ग्लूकोज की मात्रा को बैलेंस करता है और आप के चयापचय (रस प्रक्रिया) को दोबारा क्रियाशील बनाता है.

इन के अलावा, सुबह नाश्ता करने के अन्य लाभ भी हैं. यह आप की स्मरणशक्ति को बेहतर बनाता है और आप के वजन को काबू में रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सुबह के नाश्ते को नियमित रूप से छोड़ने वालों को दिन में जब भूख लगती है तो वे ज्यादा खाते हैं, जिस से उन का वजन बढ़ता ही है. सुबह नाश्ता करने की अच्छी आदत उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और मधुमेह से पीडि़त लोगों के लिए भी मददगार होती है.

हो पोषक तत्त्वों से भरपूर

न्यूट्रिशनिस्ट कहते हैं कि सुबह का नाश्ता आप को जागने के बाद 2 घंटे के अंदर कर लेना चाहिए. लेकिन इस में यह भी अहम होता है कि आप क्या खाते हैं. दिन का यह पहला भोजन कैल्सियम, आयरन, प्रोटीन, फाइबर और विटामिन बी जैसे जरूरी पोषक तत्त्वों से भरपूर होना चाहिए. लेकिन आमतौर पर अपने देश में सुबह के नाश्ते में खाई जाने वाली चीजें अच्छे स्वास्थ्य के लिए नहीं बनी होतीं. उन में खूब इस्तेमाल की गई चीनी, मक्खन, घी और तेल वगैरह कभीकभी एक बड़ी समस्या का कारण बनते हैं. चिकनाई व तेलयुक्त भोजन में खराब वसा की उच्च मात्रा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है. इस में अत्यधिक कैलोरी और वसा भी खूब होती है, जिस के परिणामस्वरूप मोटापा बढ़ता है और खराब कोलैस्ट्रौल की मात्रा बढ़ती है. धमनियों की भित्तियों पर वसा और प्लाक का धीरेधीरे लेकिन लगातार जमा होना रक्तप्रवाह को बाधित करता है और अंतत: हृदयाघात या स्ट्रोक को जन्म देता है. उच्च कोलैस्ट्रौल पित्त का असंतुलन भी पैदा कर सकता है.

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फोर्टिस अस्पताल, नई दिल्ली की कंसल्टैंट डा. सिमरन सैनी का कहना है कि नाश्ते में घी और मक्खन का अधिक होना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता. पूड़ी, मक्खन के परांठे, सफेद डबलरोटी और ब्रैड रोल जैसे गहरे तले हुए व्यंजनों का नियमित सेवन शरीर में खराब वसा को खतरनाक मात्रा में एकत्रित कर सकता है. चिकनाई व वसायुक्त और मीठे भोजन का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो जुकाम से ले कर कैंसर तक की संभावना को बढ़ाता है. अपने आहार में घी, मक्खन और चीनी के नियमित सेवन के स्थान पर स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को अपनाना बीमारी मुक्त जीवन की कुंजी है.

मीठा करें कम

स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आप को सुबह के नाश्ते में अतिरिक्त मीठे को कम करने और चीनीयुक्त चीजों को उच्च फाइबर वाले और कम मीठे पदार्थों से बदलने की आवश्यकता होती है. मीठे के शौकीन एक सुरक्षित विकल्प के रूप में चीनी के विकल्प इस्तेमाल कर सकते हैं, जो मधुमेह, मोटापे और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीडि़त लोगों के लिए भी आदर्श हैं. स्टेविया, एस्पारटेम और सूक्रैलोस चीनी के ऐसे विकल्प हैं, जो पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं और अपने देश में भी उपलब्ध हैं. परंतु इन का प्रयोग डाक्टर की सलाह से ही करें. तो सुबह के नाश्ते में क्या खाना है और किस से बचना है? इस सवाल का जवाब यह है कि ऐसी चीजें चुनिए जो फाइबर, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर हों और अतिरिक्त मीठे की मात्रा कम रखती हों. अपने आहार को बदलते रहना भी जरूरी है. एक ही चीज को हर रोज मत खाइए. एक ही दिन में भी नाश्ते की भरपूर विविधता रखिए और थोड़ीथोड़ी मात्रा में हर चीज खाइए.

सुबह के स्वास्थ्यवर्धक नाश्ते के कुछ विकल्पों में दलिया, जई, फलों का सलाद, गेहूं की डबलरोटी, मल्टीग्रेन डोसा, पोहा, उपमा, सांबर, दाल, सोया, अंकुरित दालें, सब्जियों के सैंडविच, मक्का, कम वसा या शून्य वसा का दूध एवं दही, लस्सी, कौटेज चीज, ताजे फलों का रस, भूरा चावल, संपूर्ण दानेदार अन्न और केला, तरबूज एवं सेब जैसे फल शामिल हैं. चीनी की अधिक मात्रा रखने वाली चीजों से बचें जैसेकि पेस्ट्री और डब्बाबंद फल. खूब सारे घी या तेल में बने हुए परांठे और आमलेट भी न खाएं. इन के अलावा बहुत ज्यादा मक्खन या घी, सफेद डबलरोटी, सफेद चावल, फ्रैंच टोस्ट, वसायुक्त मीट, संपूर्ण दूध से बना दही और अन्य उत्पाद भी न खाएं. मक्खन और चीनी के स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को चुनें. सुबह एक अच्छा नाश्ता बच्चों और किशोरकिशोरियों के लिए और भी ज्यादा जरूरी है. जो सुबह स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता करते हैं, उन्हें अधिक ऊर्जा मिलती है और उन के द्वारा शारीरिक क्रियाकलापों में भाग लिए जाने की संभावना अधिक होती है, जिस से मोटापे और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है.

ऐसे बच्चे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि वे चिड़चिड़े, बेचैन, थके हुए या तुनकमिजाज भी अपेक्षाकृत कम होते हैं. इसलिए हर किसी को सुबह के नाश्ते को गंभीरता से लेना चाहिए, भले ही वह बालिग हो या बच्चा.

-डा. सिमरन सैनी, फोर्टिस हौस्पिटल

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वजन कम करने का तरीका बताएं?

सवाल-

मैं 34 साल की विवाहित स्त्री हूं. मेरे वक्ष बहुत भारी हैं, इस कारण मुझे कंधों में भी दर्द होने लगा है. कुछ ऐसे सरल उपाय बताएं जिन से उन का आकार घटाया जा सके?

जवाब-

यदि आप का शरीर भारी है तो आप अपना वजन घटाने की कोशिश करें. नियमित व्यायाम करें, सलाद और कच्चे फल व सब्जी ज्यादा खाएं. तलाभुना व घीतेल वाला भोजन कम करें. इस से आप निश्चित रूप से लाभ अनुभव करेंगी. जैसेजैसे वजन घटेगा वैसेवैसे बस्ट लाइन में भी अंतर दिखने लगेगा. लेकिन इस के लिए आप को अपने ऊपर निरंतर संयम रखने की आवश्यकता होगी. कंधों के दर्द से छुटकारा पाने के लिए उन के इर्दगिर्द की पेशियों को मजबूत बनाने वाले व्यायाम नियम से करें. बांहों को ऊपरनीचे, अंदरबाहर ले जाने वाले और कंधों को घुमाने, उचकाने वाले व्यायाम इस के लिए उपयोगी व फायदेमंद रहेंगे. यदि इतने से लाभ नहीं होता तो फिर किसी ऐस्थैटिक बस्ट प्लास्टिक सर्जन से परामर्श लें. बस्ट रिडक्शन सर्जरी द्वारा बस्ट को छोटा ही नहीं करा जा सकता, बल्कि उसे सुंदर व आकर्षक भी बनाया जा सकता है.

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‘‘फरवरी में मेरी बहन की शादी है और फिट होने के लिए मेरे पास केवल एक महीना है,’’ या फिर ‘‘आने वाली छुट्टियां मुझे मियामी में बितानी हैं और मुझे उस के लिए वजन कम करना है,’’ ऐसे संकल्प हम अपने दोस्तों, परिजनों और परिचितों से किसी न किसी समय आमतौर पर सुनते रहते हैं. अपने इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए लोग कई तरह की क्रैश डाइट्स और तेजी से वजन घटाने वाले व्यायाम करते हैं. जबकि ये सभी प्रयास लंबी अवधि में प्रभावी नहीं होते. इसलिए बहुत से जागरूक और समझदार लोग वजन घटाने के ऐसे प्रयास करते हैं, जिन में वजन का घटना लगातार जारी रहता है. वे फिटनैस के लिए पूरे शरीर पर असर करने वाले जुंबा और शरीर को मजबूती देने वाली वेट लिफ्टिंग का सहारा लेते हैं. इस की वजह मांसपेशियों की स्थायी मजबूती और फैट बर्निंग के प्रति बढ़ती जागरूकता है.

फिटनैस के दीवाने लोगों के बीच जुंबा और शरीर को मजबूती देने वाली वेट लिफ्टिंग बेहद लोकप्रिय हो रहे हैं. हालांकि, जुंबा के लिए भी कई लोग जिम जाना पसंद करते हैं, लेकिन जिम के उपकरणों और मशीनों पर वही परंपरागत तरीके से वर्कआउट बड़ी संख्या में फिटनैस प्रेमियों के लिए नीरस हो जाता है. अब वे अपने फिटनैस लक्ष्य हासिल करने के लिए कुछ विविधता, उत्साह और मनोरंजन से भरपूर तकनीक चाहते हैं.

जुंबा का आविष्कार 90 के दशक में एक फिटनैस प्रशिक्षक अल्बर्टो बेटो पेरेज के हाथों हुआ. यह एक मस्ती और ऊर्जा से भरपूर ऐरोबिक फिटनैस प्रोग्राम है, जो दक्षिणी अमेरिकी डांस की विभिन्न शैलियों से प्रेरित है. यह वर्कआउट शैली तेजी से कैलोरी बर्न करने के लिए कारगर है. दरअसल, इस में अपने पंजों पर खड़े रह कर हिपहौप और सालसा की चुस्त बीट्स पर अपनी बौडी को मूव कराना होता है. मुख्य रूप से गु्रप में किया जाने वाला वर्कआउट जुंबा उत्साही बने रहने और फिटनैस लक्ष्यों पर केंद्रित है. चूंकि जुंबा तेज गति से होने वाला डांस है, इसलिए यह अन्य वर्कआउट्स जैसे ट्रेडमिल पर दौड़ने या क्रौसट्रेनर पर समय बिताने के मुकाबले तेजी से फैट बर्न करता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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