माता पिता की असमय मृत्यु के बाद ऐसे रखें बच्चों का ख्याल

जब हम किसी से प्यार करते हैं तो हमारे लिए उस इंसान के बगैर जीना मुश्किल सा हो जाता है. क्योंकि वो नुकसान इतना बड़ा होता है की उसकी भरपाई दुनिया की कोई भी चीज़ नहीं कर सकती. पर इससे भी बड़ी मुश्किल तब जन्म लेती है जब किसी बच्चे के माता पिता की युवावस्था में ही मृत्यु हो जाए.
वयस्कों की तरह, बच्चे भी उसी भयावह दुख की प्रक्रिया से गुजरते हैं. और जैसे माता-पिता के होने के लिए कोई नियम पुस्तिका नहीं है, वैसे ही अपने माता पिता के बगैर बच्चे कैसे प्रतिक्रिया करेंगे,इसके लिए भी कोई नियम पुस्तिका नहीं है.

बच्चे कभी-कभी बहुत दुखी और परेशान हो सकते हैं, कभी-कभी वे शरारती या क्रोधित हो सकते हैं, और हो सकता है की आपको कभी-कभी यह प्रतीत हो की वो भूल गए हैं. लेकिन सच कहूँ तो वे भूलते नहीं है ,एक बच्चा शायद ही कभी मौखिक रूप से अपने दुख को व्यक्त कर सकता है. इसी कारण से कम उम्र के बच्चे अक्सर डिप्रेशन का शिकार हो रहे है.

अवसाद के संकेतों को कैसे पहचाने-

बच्चे और वयस्कों में अवसाद के समान लक्षण हो सकते हैं: हो सकता है वो दूसरों से बात करने से कतराएँ,हो सकता है वो अकेला रहना चाहे, या ये भी हो सकता है की वो कुछ भी नहीं करना चाहे .
वैसे तो यह दु: ख की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा हो सकता है. लेकिन अगर यह लंबे समय तक चलता है तो आप मनोचिक्त्सक से कन्सल्ट कर सकते है.

बच्चो को इस अवसाद से बचाने के लिए ये समझना जरूरी है की बच्चे और किशोर मृत्यु को कैसे देखते है?

क्योंकि उम्र के हर पड़ाव में बच्चे का सोचने और समझने का तरीका बहुत अलग होता है.

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1- जन्म से 2 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चो में मृत्यु की कोई समझ नहीं होती.वो सिर्फ अपने माता पिता की अनुपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं.

माता-पिता की अनुपस्थिति में बच्चो में रोने, प्रतिक्रियाशीलता में कमी और खाने या सोने में बदलाव जैसी प्रतिक्रिया हो सकती है.

2- 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चे-

इस उम्र के बच्चे मृत्यु के बारे में जानेने के लिए बहुत उत्सुक होते हैं. इस उम्र के बच्चो को मृत्यु की स्थायी स्थिति को समझने में परेशानी हो सकती है. “वे कहेंगे कि पापा चले गए हैं और एक घंटे बाद पापा के घर आने के लिए खिड़की पर प्रतीक्षा करेंगे ”

अक्सर कुछ बच्चे अपने आपको दोषी समझते हैं और मानते हैं कि वे अपने माता पिता की मृत्यु के लिए जिम्मेदार हैं, वे “बुरे” थे इसीलिए उनके माता-पिता चले गए.

“(शायद ऐसा इसलिए होता है की जब वो अपने माता पिता के साथ थे तब कभी कभार हंसी-मज़ाक या गुस्से में माता पिता अक्सर बोलते है की ,मै आपको छोड़ कर चला जाऊंगा या जब मेरे जाने के बाद आपको कोई भी प्यार नहीं करेगा. )

ऐसे बच्चे अकसर अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर पाते. और इसी कारण उनके अंदर चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, सोने में कठिनाई, या प्रतिगमन जैसे व्यवहार पाये जाते हैं.

3- 6 वर्ष से 12 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चे मृत्यु को व्यक्ति या आत्मा के रूप में, भूत, परी या कंकाल की तरह समझ सकते हैं.
वो अक्सर मौत के विशिष्ट विवरण में रुचि रखते हैं जैसे मृत्यु के बाद शरीर का क्या होता है??
इस उम्र के बच्चे अपराधबोध, क्रोध, शर्म, चिंता, उदासी सहित कई भावनाओं का अनुभव कर सकते हैं और अपनी मृत्यु के बारे में चिंता कर सकते हैं.

4- 13 वर्ष से 18 वर्ष तक के बच्चे –

इस उम्र के बच्चो को ये नहीं पता होता की उन्हे इन परिस्थितियों में कैसे संभलना है.वो अक्सर परिवार के सदस्यों पर गुस्सा कर सकते हैं या आवेगी या लापरवाह व्यवहार दिखा सकते हैं, जैसे कि मादक द्रव्यों का सेवन, स्कूल में लड़ाई और यौन संकीर्णता.

कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने साल के हैं, परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु कठिन और अक्सर भारी भावनाओं की एक श्रृंखला ला सकती है: सदमे, गहरी उदासी, भ्रम, चिंता और क्रोध, सब कुछ बस नाम लेने के लिए है.पर फिर भी हम खुद को और उन बच्चो को जिनहोने अपने माता पिता को खो दिया है इस कठिन समय से उबारने की कोशिश तो कर सकते हैं.

यहां मैंने बच्चे को मृत्यु और नुकसान को समझाने में मदद करने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं-
1-उन्हें आश्वस्त करें की उनकी गलती नहीं है-

जब किसी बच्चे के माता-पिता की असमय मृत्यु हो जाती है, तो बच्चे खुद को दोषी ठहरा सकते हैं. यह विशेष रूप से तब हो सकता है जब मृत्यु काफी अचानक हो.या बच्चे के माता पिता ने हंसी मज़ाक या गुस्से में कोई ऐसा तर्क दिया हो.
उन्हें यह आश्वस्त करना महत्वपूर्ण है कि मृत्यु एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और उनका इसमे कोई दोष नहीं है.

2-उन्हें बताए की दुखी होना ठीक है-

बच्चे का व्यवहार इस बात पर बहुत निर्भर करता है कि उनके आसपास के लोग कैसे व्यवहार कर रहे हैं. अक्सर बच्चे एक प्रोटेक्टर की भूमिका निभाते हैं और वयस्कों से अपनी भावनाओं के बारे में बात नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि वयस्क परेशान हो जाएगा.
कभी कभी ऐसा भी होता है की आप उन्हें बता रहे हैं कि शोक करना ठीक है, लेकिन अपने दुःख को उनसे छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें लग सकता है कि उन्हें भी ‘मजबूत’ होने की आवश्यकता है.
इसलिए हर समय बच्चों को “मजबूत” होने के लिए दबाव महसूस न कराएं.
अगर बच्चे किसी से अपना दुख कह नहीं पाएंगे तो वो अंदर ही अंदर घुटते रहेंगे ,और यही घुटन एक दिन अवसाद का रूप ले लेगी.

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इसलिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप जितना हो सके पूरी तरह से शोक करें, ताकि वे आपको दुखी देख सकें – और समझें कि दुखी होना या रोना ठीक है.

3-मृत्यु के बारे में बात करते समय, सरल, स्पष्ट शब्दों का उपयोग करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें की भाषा मायने रखती है, इसलिए अपने द्वारा चुने गए शब्दों से अवगत रहें.मृत्यु के बारे में बात करते समय ऐसे शब्दों का प्रयोग करें जो सरल और प्रत्यक्ष हों. उनके माता-पिता की मृत्यु कैसे हुई, इस बारे में जितना संभव हो उतना सरल होने की कोशिश करें. लेकिन केवल एक हद तक जो आपके बच्चे की आयु और विकास के लिए उपयुक्त हो.बहुत अधिक विस्तार में जाने से एक बच्चे के दिमागी विकास पर बुरा असर पड़ेगा. इसलिए अपने स्पष्टीकरण को सत्य लेकिन संक्षिप्त रखें.

उदाहरण के लिए , “मुझे पता है कि आप बहुत दुखी महसूस कर रहे हैं. मैं भी दुखी हूँ. हम दोनों ही उनसे बहुत प्यार करते थे, और वह भी हमसे प्यार करते थे.”
अपने बच्चे की उम्र को ध्यान में रखते हुए मृत्यु की प्रकृति के बारे में ईमानदार रहें.

4-बच्चो को भ्रमित न करें-

एक चीज़ हमेशा याद रखें ‘सच्चाई छुपाने से बाद में अविश्वास पैदा हो सकता है’ क्योंकि बच्चे मौत के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक रहते हैं.

अभी कुछ ही समय पहले की बात है ,एक छोटी बच्ची के पिता का देहांत हो गया था,उसके पूछने पर की पापा कहाँ गए ? घरवालों ने उससे कहा की वो सोते-सोते भगवान जी के पास चले गए.आप यकीन नहीं करेंगे ‘उस छोटी बच्ची को सोने से डर लगने लगा ‘.
इसलिए “नींद में चले गए” जैसे वाक्यांशों को भ्रमित करने के बजाय वास्तविक शब्दों का उपयोग करके मौत की व्याख्या करें.
उदाहरण के लिए , आप कह सकते हैं कि मृत्यु का मतलब है कि व्यक्ति के शरीर ने काम करना बंद कर दिया है या वह व्यक्ति अब सांस नहीं ले सकता है.

एक चीज़ और मृत्यु के बारे में अपने परिवार की धार्मिक या आध्यात्मिक मान्यताओं को साझा करें.

4-उन्हें अपनी भावनाओं और आशंकाओं को साझा करने दें:

माता पिता की मृत्यु के बाद कई बच्चे अपनी कहानी साझा करना चाहते हैं. वे आपको बताना चाहते हैं कि क्या हुआ, वे कहाँ थे जब उन्हें उनके माता पिता की मृत्यु के बारे में बताया गया या उस वक़्त उन्हे कैसा महसूस हुआ………
कभी-कभी बच्चे एक भय का भी अनुभव कर सकते है. वे इस बात को लेकर परेशान हो सकते हैं की अन्य लोग जो उनके करीब हैं वे भी उन्हें छोड़ देंगे या उनकी भी मृत्यु हो जाएगी.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके बच्चे कैसा महसूस कर रहे हैं और क्या कर रहे हैं, बातचीत जारी रखें. हीलिंग का मतलब प्रियजन के बारे में भूलना नहीं है. इसका मतलब है कि व्यक्ति को प्यार के साथ याद करना.

5-परंपराएँ और याद करने के तरीके बनाएँ:

अक्सर ऐसा होता है की जब बच्चे माता पिता से दूर हो जाते है तो कुछ विशेष अवसर जिनमे उनकी अपने माता पिता से कुछ कीमती यादें जुड़ी होती है जैसे मदर्स डे, फादर डे,वर्षगाँठ आदि बच्चो के लिए विशेष रूप से कठिन हो सकते हैं.
कोशिश करें की जितना ज्यादा संभव हो सके बच्चों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के अवसर दे. यह बातचीत के माध्यम से, नाटक के माध्यम से, या ड्राइंग और पेंटिंग के माध्यम से हो सकता है.

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कम उम्र में माता-पिता को खोने से दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता है. यही कारण है कि माता-पिता की मृत्यु के बाद पारिवारिक परामर्श इतना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर नुकसान अप्रत्याशित या दर्दनाक है, जैसे कि आत्महत्या या हिंसक मौत.

NOTE: प्रत्येक परिवार का द्रष्टिकोण अलग हो सकता है.

ननद-भाभी: रिश्ता है प्यार का

मुंबई के ठाणे की हाइलैंड सोसाइटी में रजत और रीना ने एक बिल्डिंग में यह सोच कर फ्लैट लिए कि दोनों भाईबहनों का साथ बना रहेगा. दोनों के 2-2 बच्चे थे, सब बहुत खुश थे कि यह साथ बना रहेगा, पर जैसेजैसे समय बीत रहा था, रजत की पत्नी सीमा की रीना से कुछ खटपट होने लगी जो दिनबदिन बढ़ती गई. कुछ समय बीतने पर रीना के पति की डैथ हो गई दुख के उन पलों में सब भूल रजत और सीमा रीना के साथ खड़े थे.

कुछ दिन सामान्य ही बीते थे कि ननदभाभी का पुराना रवैया शुरू हो गया. रजत बीच में पिसता, सो अलग, बच्चे भी एकदूसरे से दूर होते रहे. दूरियां खूब बढ़ीं, इतनी कि रीना और सीमा की बातचीत ही बंद हो गई. रजत कभीकभी आता, रीना के हालचाल पूछता और चला जाता, पहले जैसी बात ही नहीं रही, फिर जब कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ, ठाणे में केसेज का बुरा हाल था. ऐसे में एक रात सीमा के पेट में अचानक दर्द शुरू हुआ जो किसी भी दवा से ठीक नहीं हुआ. हौस्पिटल जाना खतरे से खाली नहीं था, वायरस का डर था, बच्चे छोटे, रजत बहुत परेशान हुआ, सीमा का दर्द रुक ही नहीं रहा था, रात के 1 बजे किसे फोन करें, क्या करें, कुछ सम झ नहीं आ रहा था.

बहुत प्यार है रिश्ता

सीमा ने अपनी खास फ्रैंड को फोन कर ही दिया, अपने हाल बताए. वे रहती तो उसी बिल्डिंग में थी पर महामारी का जो डर था, उस कारण सीमा की हैल्प करने में सब ने अपनी असमर्थता जताई. फिर रजत ने रीना को फोन किया, वह तुरंत उन के घर आई, रीना के बच्चे कुछ बड़े थे, रजत के बच्चों को अपने बच्चों के पास छोड़ वह तुरंत उन दोनों को ले कर हौस्पिटल गई. सीमा को फौरन एडमिट किया गया, किडनी में स्टोन का तुरंत औपरेशन जरूरी था. रीना ने घर, हौस्पिटल सब संभाल लिया.

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सीमा 3 दिन एडमिट रही, कोरोना का समय था, जरूरी निर्देश दे कर उसे जल्दी घर जाने दिया गया. सीमा को संभलने में कुछ दिन लगे, इन दिनों कोई मेड भी नहीं थी. सारा काम रीना और बच्चों ने मिल कर संभाल लिया. सीमा के ठीक होतेहोते ननदभाभी का रिश्ता इतना मजबूत हो चुका था कि कोई गिलाशिकवा रहा ही नहीं. दोनों बहनों की तरह घुलमिल गईं, बच्चे भी खुश हो गए. सीमा का पहले बहुत बड़ा फ्रैंड सर्किल था पर अब जिस तरह रीना ने साथ दिया था, वह भूल पाने वाली बात नहीं थी. रीना को भी याद था कि पति के न रहने पर दोनों उस के साथ खड़े थे, फिर ये दूरियां कैसे आ गईं, इस बात को  झटक दोनों अब वर्तमान में खुश थीं, एकदूसरे के साथ थीं. बच्चे भी जो इस समय घर से निकल नहीं पा रहे थे. अब एक जगह बैठ कर कभी कुछ खेलते तो कभी कुछ. कोरोना का टाइम सब को बहुत कुछ सिखा गया था.

ननदभाभी का रिश्ता बहुत प्यारा और

नाजुक है, दोनों को एकदूसरे के रूप में एक प्यारी सहेली मिल सकती है, लेकिन कभीकभी कुछ बातों से इस रिश्ते में खटास आ ही जाती है. यह सही है कि जहां 2 बरतन होते हैं, कभी न कभी टकराते हैं, लेकिन सम झदारी इस में है कि बरतन टकराने की आवाज घर से बाहर न जाए. मीठी नोक झोंक कब तकरार में बदल जाती है, पता ही नहीं चलता.

रिश्तों में भरें रंग

कभी आप ने सोचा कि ऐसा क्यों हो जाता है? जवाब है, ‘मैं का भाव,’ यह भाव जब तक आप में रहेगा तब तक आप किसी भी रिश्ते को ज्यादा लंबा नहीं चला पाएंगे. यह सच है कि हमें कभी न कभी अधिकारों का हस्तांतरण करना ही पड़ता है. हमारी थोड़ी सी विनम्रता व अधिकारों का विभाजन हमारे रिश्तों को मधुर बना सकता है.

कहते हैं ताली दोनों हाथों से बजती है, हमेशा एक की ही गलती नहीं होती. कभीकभी भाभी का अपने मायके वालों के प्रति अभिमान व अपने सासससुर की उपेक्षा ननद के भाभी पर क्रोध का कारण बनती है. जीवनभर आप के मातापिता साथ नहीं रह सकते, इस बात को ध्यान में रख कर यदि परिवार के सभी सदस्यों से अच्छा व्यवहार किया जाए तो यह रिश्ता नोक झोंक के बजाय हंसीठिठोली का रिश्ता बन सकता है.

कोविड-19 के समय का अपना एक अनुभव बताते हुए पायल कहती हैं, ‘‘मेरा अपनी ननद अंजू के साथ एक आम सा रिश्ता था, कभीकभी ही मिलना होता था. मैं मुंबई में, वह दिल्ली में, पर इस समय हम दोनों ने जितना फोन पर बातें कीं, गप्पें मारीं इतनी कभी नहीं मारी थीं, वह मु झ से काफी छोटी है, अब तो वह मु झ से कितनी ही रेसिपी, पूछपूछ कर बनाती रहती है. कभी जूम पर, कभी व्हाट्सऐप पर खूब मस्ती करती है. मैं ने नोट किया है कि अपने दोस्तों  से ज्यादा मु झे उस से बात करने में आजकल मजा आ रहा है, क्योंकि मेरी फ्रैंड्स के पास तो वही बातें हैं, कोरोना, लौकडाउन, मेड, घर के काम, वहीं अंजू के पास तो न जाने कितने टौपिक्स रहते हैं, मैं भी फ्रैश हो जाती हूं उस से बातें कर के. सब ठीक होते ही उसे अपने पास बुलाऊंगी.’’

कभीकभी ननदभाभी के बीच में आर्थिक स्तर का अंतर होता है. ऐसे में रिश्ते को संभाल कर रखने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है. सहारनपुर निवासी सुनीता शर्मा अपनी ननद आरती के बारे में बताते हुए कहती है, ‘‘आरती का विवाह बहुत समृद्ध परिवार में हुआ है. ससुराल में लंबाचौड़ा बिजनैस है, आर्थिक रूप से हम उन के आगे कुछ भी नहीं. आरती जब भी आती है, मैं उसे कुछ दिलवाने मार्केट ले जाती हूं, वह सोचसम झ कर कोई आम सी चीज अपने लिए लेती है, वह भी इतनी खुशीखुशी कि दिल भर आता है. यही बोलती रहती है कि सब तो है, मैं तो बस प्यार के लिए आती हूं. मु झे कुछ भी नहीं चाहिए. बहुत कहने पर थोड़ाबहुत ले लेती है कि हमें बुरा भी न लगे और खुद पता नहीं क्याक्या खरीद कर रख जाती है. कभी महसूस नहीं होने देती कि वह अब एक अति धनी परिवार से जुड़ी है, न खाने में कोई नखरा, न पहनने में, जो देते हैं खुशी से ले लेती है.’’

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पैसा नहीं रिश्ता जरूरी

वहीं शामली निवासी नीरा ने अपने धन के मद में चूर हो कर ऐसा किया कि 5 साल पहले की इस घटना पर अब तक लोग उसे बुराभला कहते हैं. कभीकभी ननद इतनी लालची हो जाती है कि सब रिश्तों को भूल सिर्फ अपने फायदे पर ध्यान देती है. नीरा ने अपने बेटे का विवाह किया तो मायके से अपने भाई को बुलाया ही नहीं क्योंकि भाई की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी. वह बड़े बेटे के विवाह में जो दे कर गया, वह नीरा को इतना कम लगा कि उस ने छोटे बेटे के विवाह में किसी को बुलाया ही नहीं. पड़ोस के एक आदमी को अपना भाई बना रखा था जो अमीर था, वह मुंहबोला भाई खूब लेतादेता था. राखी पर भी नीरा को उस के सगे भाई से ज्यादा ही देता था तो नीरा अपने इकलौते भाईभाभी को भूलती ही चली गई. पड़ोस के अमीर भाई से ही सारी रस्में करवाईं. 2 सगे भाईबहन का रिश्ता हमेशा के लिए टूट गया.

इस से बुरा कुछ नहीं होता जब ननद या भाभी पैसे को इतनी अहमियत दे कि आपस का रिश्ता ही खत्म हो जाए. पैसा आनीजानी चीज है. खून के रिश्ते प्यारभरे रिश्ते, इस आर्थिक स्तर के अंतर के कारण खत्म हो जाएं, दुखद है.

दुखसुख की साथी

कभीकभी यह भी देखने में आता है कि ननद और भाभी के बीच उम्र का फासला ज्यादा होता है तो उन दोनों के बीच अलग तरह की बौंडिंग हो जाती है. पुणे की अंजलि अपनी भाभी से 12 साल छोटी है. वह इस विषय पर अपना अनुभव बताते हुए कहती है, ‘‘मेरे मायके में बहुत पुरातनपंथी माहौल था. ऐसे में मैं ने जब कालेज में विजातीय सुनील को पसंद किया तो बस अपनी भाभी से सब शेयर किया. मेरी भाभी ने सबकुछ संभाला, सब को इस विवाह के लिए इतनी मुश्किल से मनाया कि आज तक मैं उन्हें थैंक्स कहती हूं. कोई भी मुश्किल हो, उन्हें कौल करती हूं और फौरन समाधान निकल आता है. मेरे बच्चों की डिलिवरी के समय सबकुछ उन्होंने ही संभाला.’’

मुंबई निवासी नेहा अपनी भाभी के अंधविश्वासी स्वभाव से बहुत परेशान रहती. कुछ हुआ नहीं कि उस की भाभी श्वेता  झट से एक मौलवी से ताबीज लेने भागती. वह जब भी उन के घर जाती, हर समय किसी न किसी अंधविश्वास से घिरी भाभी को देख कर दुख होता. नेहा की तार्किक बातों को श्वेता सिरे से नकार देती. जब नेहा किसी परेशानी में होती, श्वेता उस का श्रेय नेहा की नास्तिकता को दे कर कहती कि तुम कोई पूजापाठ नहीं करती, इसलिए तुम बीमार हुई. नेहा अपने भाई से श्वेता के अंधविश्वासी होने पर बात करती तो श्वेता को अच्छा नहीं लगता. धीरेधीरे नेहा उन से एक दूरी रखने लगी. औपचारिक रिश्तों में फिर वैसा प्यार नहीं रहा जैसा हो सकता था.

ननदभाभी के इस रिश्ते में कई तरह की ननदें होती हैं, कई तरह की भाभियां, एकदूसरे परिवार से आई होती हैं. उन का अलग स्वभाव होता है. परवरिश, सोच, विचार सब अलग होते हैं. ऐसे में 2 अलग तरह के नारी मन जब साथ रहने लगते हैं.

बहुत कुछ ऐसा होता है कि सम झ कर चलना पड़ता है. बहुत खुल कर खर्च करने की आदत थी अंजना को. इकलौती लड़की थी, पेरैंट्स ने भी कभी नहीं टोका था. ससुराल आई तो यहां सब एकदम व्यवस्थित, सोचसम झ कर खर्च करने वाले, ननद रोमा ने बड़ी सम झदारी से काम लिया. अंजना को धीरेधीरे ही यह आदत डाली कि बिना जरूरत के अलमारी में कपड़े भरभर कर रखने में कोई सम झदारी नहीं, जितनी जब जरूरत हो, खरीद लो.

शुरूशुरू में अंजना सब को कंजूस कह कर उन का मजाक उड़ाती रही, पर धीरेधीरे उस में रोमा की बातों से अच्छा बदलाव आने लगा. रोमा ने हंसीहंसी में ही उसे कितना कुछ सिखा दिया. घर के बाकी मैंबर्स को भी यही सम झाती रही कि अंजना अभी नई आई है. उस की फुजूलखर्ची की आदत पर कोई उसे ताना न मारे. कुछ बुरा न कहे, उस की यह आदत एकदम नहीं जा सकती. किसी ने उसे कुछ नहीं कहा. फुजूलखर्ची की अंजना की आदत कब छूटती गई, उसे खुद पता नहीं चला.

ताकि संबंधों में बनी रहे मिठास

ऐसे मौकों पर घर में शांति रखने में मदद का बड़ा रोल होता है. ननद चाहे तो भाभी की कितनी ही बातों को सहेज कर घर में उस का स्थान आदरपूर्ण और प्रेमपूर्ण बना सकती है.

यदि घर में ननदभाभी का रिश्ता प्यारा है तो इस का पूरे घर पर असर होता है, क्योंकि भारतीय परिवार में एकदूसरे से बंधे होते हैं, एक पार्टी का मूड भी खराब होता है तो हर रिश्ते पर असर पड़ता है.

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कोविड-19 के जाने के बाद भी एक लंबे अरसे तक एकदूसरे से, दोस्तों से, पड़ोसियों से पहले की तरह मिलनेजुलने में वक्त लगेगा. सब इतनी जल्दी नौर्मल नहीं होगा. अगर आप ने भी इतने प्यारे रिश्ते से अब तक कुछ दूरी बना कर रख रही हैं तो फौरन एकदूसरे को प्यार से अपना बनाएं, फोन करें, वीडियो पर हंसीमजाक करें, परिवार को जोड़ें. अब आने वाले समय में सहेलियां बाद में ननदभाभी एकदूसरे के काम ज्यादा और पहले आएंगी. यह रिश्ता बना कर तोड़ने की चीज नहीं है. यह तो हमेशा निभाने के लिए है. इस की मिठास का आनंद लें, एकदूसरे को प्यार व सम्मान दें.

इस प्यारे रिश्ते को निभाने के लिए बहुत सी बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे:

– अगर आप दोनों का रिश्ता दोस्ताना है तो गलती से भी कभी एकदूसरी की बातों को किसी से शेयर न करें. अपने पति से भी नहीं वरना आप दोनों का रिश्ता बिगड़ सकता है.

– इस बात का भी ध्यान रखें कि घर के सारे काम की जिम्मेदारी भाभी की नहीं, घर के कामों में उस की जरूर मदद करें. यही नहीं भाभी ननद की पढ़ाई से ले कर उस के दूसरे कामों में भी मदद करें.

– अपनी ननद के सामने घर की किसी बात की बुराई करने से बचें. कोई भी लड़की अपने मातापिता या अपने भाईबहन की बुराई सुनना पसंद नहीं करती. अगर भाभी उस से कोई शिकायत करती भी हैं तो ननद भी कारण सम झे, भाभी की परेशानी को सौल्व करने की कोशिश करे.

– किसी भी नए रिश्ते में गलतफहमी हो जाना सामान्य बात है. ऐसे में छोटीछोटी गलतफहमियों का असर अपने रिश्ते पर न पड़ने दें. अगर आप को अपनी भाभी या ननद की कोई बात बुरी लगी है तो सब से पहले उस चीज को ले कर बात करें न कि गुस्सा हो कर मुंह फुला कर बैठ जाएं और एकदूसरे से बात करना बंद कर दें.

– स्वस्थ रिश्ते फायदेमंद होते हैं, लेकिन जिन रिश्तों में एकदूसरे से बहुत ज्यादा अपेक्षा होती है उन रिश्तों की डोर टूट ही जाती है. ऐसे में एकदूसरे से ज्यादा अपेक्षा न रखें.

– अगर आप से कोई गलती हो भी गई है तो उसे प्यार से उस की पसंद का गिफ्ट दे कर मना लें. बात जल्दी से जल्दी खत्म करें.

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झगड़ालू और क्रोधी वाइफ से कैसे छुटकारा पाया जाए?

सवाल-

मैं सरकारी स्कूल में शिक्षक हूं. घर में किसी चीज की दिक्कत नहीं है पर मेरी परेशानी मेरी पत्नी है, जो निहायत ही झगड़ालू और क्रोधी है. घर में मेरी मां के साथ वह हमेशा लड़ती रहती है और मुझ पर दबाव डालती है कि कहीं और फ्लैट ले लो, मुझे तुम्हारी मां के साथ नहीं रहना. मैं किसी भी हाल में अपनी मां को खुद से अलग नहीं कर सकता. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

पहले तो आप यह जानने की कोशिश करें कि आप की पत्नी ऐसा क्यों चाहती है? तह तक जाए बगैर फिलहाल कोई निर्णय लेना सही नहीं होगा. पत्नी को समझाबुझा सकते हैं. संभव हो तो पत्नी के मातापिता को भी मध्यस्थ बनाएं. पत्नी के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं और साथ घूमनेफिरने जाएं. इन सब से पत्नी सही रास्ते पर आ सकती है.

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वैवाहिक बंधन प्यार का बंधन बना रहे तो इस रिश्ते से बढि़या कोई और रिश्ता नहीं. परंतु किन्हीं कारणों से दिल में दरार आ जाए तो अकसर वह खाई में परिवर्तित होते भी देखी जाती है. कल तक जो लव बर्ड बने फिरते थे, वे ही बाद में एकदूसरे से नफरत करने लगते हैं और बात हिंसा तक पहुंच जाती है.

अतएव पतिपत्नी को परिवार बनाने से पहले ही आपसी मतभेद सुलझा लेने चाहिए और बाद में भी वैचारिक मतभेदों को बच्चों की गैरमौजूदगी में ही दूर करना उचित है ताकि उन का समुचित विकास हो सके.

छोटीछोटी बातों से झगड़े शुरू होते हैं. फिर खिंचतेखिंचते महाभारत का रूप ले लेते हैं. ज्यादातर झगड़े खानदान को ले कर, कमतर अमीरी के तानों, रिश्तेदारों, अपनों के खिलाफ अपशब्द या गालियों, कमतर शिक्षा व स्तर, कमतर सौंदर्य, बच्चे की पढ़ाई व परवरिश, जासूसी, व्यक्तिगत सामान को छूनेछेड़ने, अपनों की आवभगत आदि को ले कर होते हैं. यानी दंपती में से किसी के भी आत्मसम्मान को चोट पहुंचती है तो झगड़ा शुरू हो जाता है, फिर कारण चाहे जो भी हो.

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लड़कियां बिन गलती मांगें माफी

वो कहते हैं न कोई भी चीज अति की भली नहीं होती. फिर चाहे आदत अच्छी हो या बुरी. ऐसी ही एक अच्छी आदत है माफी मांगना. जो किसी भी शख्स के अच्छे व्यक्तिव की निशानी होती है. पर क्या आपको मालूम है कि एक जमात ऐसी भी है जो यूं ही माफी मांग लेती हैं फिर, चाहे जरूरत हो या फिर न हो? अगर नहीं तो जान लीजिए. वो है आधी आबादी. शोध भी इस बात की पुष्टी करते हैं कि महिलाएं ज्यादा माफी मांगती हैं. इसका यह मतलब नहीं कि पुरुष माफी नहीं मांगते. शोध में पाया गया है कि महिलाएं और पुरुष समान माफी मांगते हैं  लेकिन, महिलाएं कई बार तब भी माफी मांग लेती हैं जब उनकी गलती न हो. इसके पीछे कारण महिलाओं और पुरुषों के व्यक्तित्व का अंतर कहा जा सकता है.

ज्यादा भावनात्मक होती हैं महिलाएं

ऐसा नहीं है कि पुरुषों में भाव नहीं होते लेकिन यह भी उतना ही सही है कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भाव प्रधान होती है. अपने इसी स्वभाव के चलते वह कई बार गलती न होने के बावजूद भी माफी मांग लेती हैं. महिलाएं कई बार माफी सिर्फ इस वजह से मांग लेती है कि कहीं उनकी कही बात किसी का दिल न दुखा दे. अक्सर देखा गया है कि वह अपने भावों की गम्भीरता को व्यक्त करने के लिए भी माफी का सहारा लेती हैं. जैसे कि किसी सामान के कम पड़ जाने वो कह देती हैं कि माफ कीजिएगा यह इतना ही बचा था. इस परिस्थिति में वह माफी मांगकर सिर्फ और सिर्फ अपने भाव व्यक्त कर रही है. जबकि सामान की कमी परिस्थितजन्य है.

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परवरिश भी है एक कारण

लड़कियां जब छोटी होती हैं तब ही से उन्हें सिखाया जाता है कि लोग क्या कहेंगे? सबकी सुना करो. लिहाजा, वो हमेशा से ही दूसरे के नजरिए के हिसाब से चलना सीखती हैं. ऐसे में अगर वह अपने वाक्य कि शुरुआत माफ कीजिएगा से करती हैं तो अचम्भे की कोई बात नहीं है. कई बार उनकी सोच दूसरे के हिसाब से चलती है. नतीजा, बिना गलती के भी उन्हें महसूस होता है कि उनसे कोई गलती हो गई है. इतने पर ही बस नहीं होता महिला जमात के कंधों पर जिम्मेदारी भी ज्यादा डाली जाती है. इसी के फलस्वरूप वो वह जिम्मेदारी लेती हैं जिसे उन्हें लेना है साथ ही वह भी ले लेती हैं जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है.

आत्मविश्वास की कमी भी है कारण

आत्मविश्वास में कमी भी आपको हर दम गलत होने का अहसास कराती है और आप उसकी माफी मांगते हैं. ऐसा महिलाओं के साथ भी होता है. ऐसा न हो इसके लिए जरूरी है कि अपने आत्मविश्वास के स्तर में बठोत्तरी की जाए.

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बीवी जब जीजा, साढ़ू की दीवानी हो

लेखक- धीरज कुमार

अंजली की नईनई शादी हुई थी. उस की दिलचस्पी नए घरपरिवार में सामंजस्य बैठाने में कम थी, अपने बड़े जीजा से मोबाइल पर बात करने में ज्यादा थी. जब तक उस का जीजा मोबाइल पर ‘किस‘ नहीं देता था, वह खाती भी नहीं थी.

शादी के कुछ दिन बाद ही उस का जीजा उस से मिलने आ गया था. घर के लोगों ने यह समझा कि ससुराल में अंजली नईनई आई है, इसलिए उस का मन नहीं लग रहा है. इसलिए उस का जीजा मिलने आ गया है.

उस दिन उस का पति काम पर गया था. कुछ जरूरी काम होने के कारण फैक्टरी से पहले लौट आया था, तो उस ने देखा कि उस की पत्नी अंजली अपने जीजा के साथ आपत्तिजनक स्थिति में है.

फिर क्या था…? पतिपत्नी में काफी लड़ाईझगड़ा हुआ. हलांकि उस का साढ़ू मौके की नजाकत को समझ कर वहां से खिसक चुका था. परंतु पतिपत्नी में काफी तनाव भर गया था. दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे थे.

शादी के बाद जीजा से हंसीमजाक करना तो ठीक है, परंतु एकदूसरे से प्यार करना और जिस्मानी संबंध बनाना काफी नुकसानदायक है. शादी के बाद कोई भी पति अपनी पत्नी को किसी के प्रति ऐसा लगाव पसंद नहीं करता है. वह चाहता है कि उस की पत्नी सिर्फ उसी से प्यार करे. यह पुरुष का स्वाभाविक गुण है. पुरुष ही क्यों, कोई भी पत्नी अपने पति को दूसरे के साथ रिश्ता रखना पसंद नहीं करती है. यही बातें पुरुषों पर भी लागू होती हैं.

सरला सरकारी स्कूल में पढ़ाती है. जब वह घर से निकलती है, तो उस के कान मोबाइल पर ही लगे रहते हैं. बस पकड़ने से ले कर स्कूल पहुंचने तक वह मोबाइल पर ही लगी रहती है. एक दिन सड़क पार करते हुए दुर्घटना होने से वह बालबाल बची थी.

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जब इस की जानकारी उस के पति को हुई, तो उस ने सड़क पर चलते हुए मोबाइल पर बात करने से मना किया. फिर भी इस में कोई सुधार नहीं हुआ. तब उस ने उस के मोबाइल काल डिटेल को खंगालना शुरू किया.

सरला के काल डिटेल से पता चला कि दिनभर में लगभग 2 से ढाई घंटे तक वह अपने जीजा से बात करती रहती है. आखिर इतनी बातचीत जीजा से क्यों? तभी उसे समझ में आया कि जब भी वह मोबाइल पर काल करता है, तो उस का मोबाइल बिजी बताता है.

उस के पति का शक और गहराने लगा, जब सैलरी मिलते ही कोई न कोई गिफ्ट अपने दीदी और जीजा के लिए जरूर खरीदती है और अपने बहन के यहां जाने की बातें करती है. बातबात में अपने जीजा का उदाहरण देती है. इसीलिए अब पतिपत्नी के बीच खटास पैदा होने लगा था. उस का पति समझदार था, इसीलिए उस ने समझाने की कोशिश की.

जीजासाली का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है, जिस में दोनों को मीठीमीठी बातें करने की छूट रहती है. इसीलिए घर के लोग भी अनदेखा करते हैं, परंतु कुछ चालाक किस्म के जीजा अपनी सालियों के साथ जिस्मानी संबंध तक बना लेते हैं, जबकि ऐसी स्थिति रिश्ते की मर्यादा को तारतार कर देती है.

जब लड़की कुंवारी रहती है, तो कुछ बातें तो छुपाई जा सकती हैं, किंतु विवाह के बाद लड़की पराए घर की हो जाती है. वहां उस का अपना घरपरिवार होता है, वहां उस का पति होता है. उस नवविवाहिता का पूरा ध्यान अपने घरपरिवार में ही रहना चाहिए. हां, अपने जीजा से संबंध मर्यादित ही होना चाहिए. संबंध ऐसा होना चाहिए, जिस से रिश्ते में खटास नहीं आए. उस के परिवारिक जीवन को तहसनहस न करें.

कई बार देखा गया है कि लड़कियां अपनी बड़ी बहन की शादी के बाद जीजा से लगाव तो रखती हैं, परंतु यह लगाव इतना बढ़ जाता है कि अपनी शादीशुदा जिंदगी में भी आग लगा लेती हैं. ससुराल वाले भी इतना लगाव जीजा के साथ उचित नहीं समझते हैं. कभीकभी यह लगाव उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता है. नतीजतन, दोनों परिवारों के बीच झगड़े का रूप ले लेता है.

जूही को अपने जीजा से काफी लगाव हो चुका था. जब उस की शादी हो गई तो भी अपने जीजा से लगाव कम नहीं हुआ था. उन दिनों वह अपने ससुराल से बड़ी बहन के बच्चा जन्मने के समय जीजा के घर आई थी. उस के जीजा ने उसे इधरउधर खूब घुमायाफिराया. होटल, रेस्त्रां में खिलायापिलाया. उस की बड़ी बहन जब अस्पताल में भरती थी, तो जीजा से उस के जिस्मानी संबंध भी बन गए थे. एक दिन जीजा ने बहलाफुसला कर उस से मंदिर में शादी कर ली.

जब इस बात की जानकारी जूही के पति को हुई, तो काफी झगड़ा हुआ. यह मामला कोर्ट तक चला गया. इस के बाद जूही का पति अपने घर ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ.

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इस प्रकार जूही ने अपनी बड़ी बहन के साथसाथ खुद की भी खुशहाल जिंदगी बरबाद कर ली. इस का आभास उसे कुछ ही दिन बाद होने लगा था, क्योंकि जो अपनापन, प्यार, दुलार अपनी बड़ी बहन से प्राप्त कर रही थी, वह कुछ ही दिन में झगड़े में बदल गए थे. हालांकि इस बात से साफ हो गया था कि उस का जीजा काफी चालाक इनसान था.

इसलिए हर लड़की को इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि अपने जीजा के साथ लगाव इतना ही रखना चाहिए, जिस से मनोरंजन हो सके. हंसीमजाक, ठिठोली तक तो ठीक है, इस के बाद मर्यादा का उल्लंघन करना रिश्ते को जोखिम में तो डालना है ही, साथ ही, लड़की का भविष्य भी खराब हो सकता है. लड़की कहीं की नहीं रह जाती है.

कई बार तो ऐसा होता है कि लड़की की शादी के बाद किसी प्रकार से उस के पति को पता चल जाता है, तो भी शादीशुदा जिंदगी में खटास पैदा होने लगती है. इसलिए हर हाल में लड़की को मर्यादित व्यवहार करना चाहिए.

जीजा के साथ रिश्ता अमर्यादित नहीं होना चाहिए, क्योंकि अमर्यादित रिश्ते की भनक जब परिवार के लोगों को हो जाती है, तो दोनों परिवारों में तल्खी आ जाती है. रिश्ते बदनाम हो जाते हैं सो अलग. जब कभी एकदूसरे की मदद की जरूरत पड़ती है, तो चाहते हुए भी पीछे हट जाना पड़ता है. रिश्ते में आई खटास के कारण ऐसा होता है.

दोनों परिवारों के बीच संबंध मधुर बना रहे, इस की जिम्मेदारी सिर्फ लड़की की ही नहीं है, बल्कि लड़के यानी जीजा की भी होनी चाहिए. जीजा को भी सोचना चाहिए कि उस की पत्नी की बहन आधी घरवाली नहीं है, बल्कि सिर्फ उस की पत्नी की बहन है. उस की इज्जत का खयाल रखना उस की भी जिम्मेदारी है.

शुरू में तो मातापिता लड़कियों को काफी बंदिशों में रखते हैं. लेकिन उस घर में बेटी का पति आता है, तो उस का चरित्र जाने बिना ही अपनी बेटी को उस के साथ घूमनेफिरने की काफी छूट दे देते हैं, जबकि ऐसी स्थिति में भी मां का दायित्व बनता है कि बेटी को यह सीख देनी चाहिए कि अपने जीजा के साथ भी संतुलित व्यवहार रखना उचित है. जीजा भी आम इनसान है. जिस प्रकार से दूसरे लोगों से बचने का प्रयास करती है, वैसे ही जीजा से भी खुद को बचाए रखना जरूरी है. यही बातें शादी के बाद भी याद रखना जरूरी है.

देखा गया है कि ऐसे हालात में कई बार झगड़े की नौबत आ जाती है. पति अपना आपा खो देता है और पत्नी से लड़ाईझगड़ा करने लगता है. कभीकभी पतिपत्नी के बीच के ये झगड़े कानूनी विवाद का रूप भी ले लेते हैं. ऐसे में बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है. लेकिन ऐसी स्थिति में पति को भी शांत रहना चाहिए और अपने परिवारिक जीवन को बचाने का प्रयास करना चाहिए.

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पत्नी को भरपूर प्यार मिले, इस का ध्यान रखना चाहिए. अकसर विवाहित औरतें अपने पति से शारीरिक जरूरतें पूरी न होने के कारण अपने जीजा से संबंध रखना उचित समझती हैं. लेकिन ऐसा सब के साथ नहीं होता है. कभीकभी जीजा की मीठीमीठी बातों के कारण भी पत्नी बहक जाती है. थोड़ा संयम से काम लिया जाए, तो ऐसी परिस्थिति को टाला जा सकता है और पुनः सुखमय जीवन जिया जा सकता है.

सिंगल मदर ऐसे बढ़ाएं दायरा

सफर में अगर कुछ दोस्त, संगीसाथी मिल जाएं तो रास्ता गुजरते समय नहीं लगता. वहीं अगर कुछ देर भी अकेला चलना पड़ जाए तो मन बोझिल हो जाता है. इसलिए आज के दौर में अपना सामाजिक दायरा बढ़ाना बहुत जरूरी है. लोगों से मिलेंजुलें और हर वक्त अकेले रहने के बजाय थोड़ा सोशल बनें. इस से आप खुद भी खुश रहेंगी और परिवार को भी खुश रख पाएंगी.

कितना हो सामाजिक दायरा

1. सोशल नैटवर्किंग में एक्टिव हों

सामाजिक दायरा बढ़ाने के लिए सोशल नैटवर्किंग एक अच्छा तरीका है. यह आप के लिए आसान भी होगा और इस से आप एकसाथ बहुत लोगों से ग्रुप में जुड़ कर बातचीत कर सकती हैं. यह एकदूसरे के बर्थडे आदि पर विश करने या फिर अन्य उत्सवों पर बधाई संदेश देने का अच्छा तरीका है, साथ ही अगर कहीं घूमने जाएं तो फोटो आदि अपलोड करने पर भी पता चलता है कि किस की लाइफ में क्या हो रहा है और बिना मिले ही सब एकदूसरे से टच में रहते हैं.

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2. लोगों के साथ बातचीत है जरूरी

वैज्ञानिक अध्ययनों के मुताबिक, अगर आप रोज 10 मिनट किसी के साथ बात करते हैं, तो इस से आप संवाद की कला में माहिर हो जाते हैं साथ ही याद्दाश्त तेज होती है और बुद्धिमत्ता भी बढ़ने लगती है. इसलिए याद्दाश्त और बुद्धिमत्ता को सक्रिय बनाए रखने के लिए लोगों के साथ बातचीत जरूरी है.

3. बनाएं दोस्त

अगर पुराने फ्रैंड्स से आप टच में नहीं हैं, तो एक बार उन से संपर्क अवश्य करें और उन से मिलने और उन के साथ घूमने का प्रोग्राम बनाएं. उन्हें अपने घर बुलाएं. इस से दोबारा आनाजाना शुरू होगा. इस के अलावा आप चाहें तो कुछ नए दोस्त भी बनाएं अपनी ही सोसाइटी में. अपने बच्चे के दोस्तों की मम्मियों से भी दोस्ती की जा सकती है. इस से कोई प्रौब्लम होने पर मिल कर समाधान निकाला जा सकता है.

4. नए लोगों से मिलें

अगर आप के फ्रैंड्स या रिश्तेदार कम हैं तो उन्हें अपने रिश्तेदारों को लाने के लिए कहें जैसेकि अपनी ननद की ननद को बुलाएं. इस से एक तो आप की ननद खुश होगी दूसरे आप को एक और नई सहेली भी मिल जाएगी. इसी तरह अपने फ्रैंड्स के फ्रैंड्स से मिलना भी नए लोगों से मिलने का अच्छा तरीका है. आप जिस भी नए इंसान से मिलें उसे अपने इस सामाजिक दायरे की एक शुरुआती कड़ी समझने की कोशिश करें.

अगर फ्रैंड के यहां मेहमान आएं हैं तो अपनी पार्टी में उन्हें भी लाने के लिए कहें या फिर अपने फ्रैंड्स के फ्रैंड्स को भी आने के लिए कहें. इन में से कुछ को तो आप जानती ही होंगी. इस तरह आप भी अपने फ्रैंड्स के साथ उन के फ्रैंड्स से मिल सकती हैं. ऐसा करने पर आप को कितने ही अच्छे लोगों से मिलने का अवसर मिल सकता है और कौन जानें इन्हीं में कुछ आप की बैस्टीज बन जाएं.

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5. एंटीसोशल नहीं बनें सोशल

अपने औफिस के कामकाज को अपनी सोशल लाइफ से अलग न रखें और सिर्फ वीकैंड पर परिवार के साथ ऐंजौय करने को सोशल होना नहीं कहते, बल्कि अपने औफिस में भी सब से अच्छी तरह मुसकरा कर मिलें. अगर आप एक दिन औफिस न आएं तो लोग आप को मिस करें, आप का हालचाल पूछें, आप का व्यवहार ऐसा होना चाहिए.

एक मिलनसार महिला के रूप में अपनी पहचान बनाएं. काम के समय काम और लंच ब्रेक या फिर जब भी मौका मिले बातचीत करने से न हिचकिचाएं. किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में जाने से बचें नहीं वरना लोग आप पर ऐंटीसोशल होने का तमगा लगा देंगे. अपने औफिस के कार्यक्रमों आदि में बढ़चढ़ कर हिस्सा लें और उन्हें पूरी तरह ऐंजौय करें.

6. रिश्तों को दें समय

माना कि आज के दौर में सभी के पास समय की कमी होती है, लेकिन जो लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के लिए समय नहीं निकालते, एक वक्त के बाद वे खुद बहुत अकेले हो जाते हैं. इसलिए रिश्तेदारों से मिलने का समय निकालिए. उन का वक्तवक्त पर हालचाल पूछते रहें. इस से उन्हें भी लगेगा कि वे आप के लिए कितने खास हैं.

7. तनाव पर विजय पाने के लिए

अगर आप सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं, तो मानसिक रूप से भी स्वस्थ और सक्रिय रहते हैं. हालिया शोधों में साबित हो चुका है कि सामाजिक संबंध आप को अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु देता है. लोगों के साथ मिलतेजुलते रहने, उन के साथ अपने सुखदुख बांटने से मानसिक स्वास्थ्य बढि़या रहता है. दरअसल, संवाद की कला आप को लोगों से जोड़ने का काम करती है. आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते लोगों का सामाजिक दायरा सिकुड़ता जा रहा है. अपनों से बात करने का वक्त नहीं होता. अपनी परेशानियां किसी के साथ बांटना नहीं चाहते, जिस के चलते अवसाद, ब्लड प्रैशर, तनाव और सिरदर्द जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है.

कैसा हो सामाजिक दायरा

1. शिकायतों के लिए जगह न हो: अगर आप चाहती हैं कि आप का सामाजिक दायरा बड़ा और अच्छा हो तो आप शिकायतें ही न करती रहें. दोस्त गम बांटने में मदद करते हैं पर इस का मतलब यह नहीं होता कि आप पूरा समय रोती ही रहें. अगर आप शिकायतें ही करती रहेंगी तो लोग आप से बचना शुरू कर देंगे.

2. निमंत्रण को स्वीकार करें: यदि लोग आप को मिलने के लिए बुलाते हैं तो आप को उन के बुलावे को यों ही छोड़ने के बजाय उसे स्वीकार करना चाहिए. ऐसा बिलकुल भी न सोचें कि आप उन के साथ सिर्फ इसलिए वक्त नहीं बिताना चाह रही हैं, क्योंकि आप की उन में कोई रुचि नहीं है. एक बार आप उन्हें जौइन कर के तो देखिए. आप का मन भी उन में लगने लगेगा.

वैसे भी अगर आप ऐसे निमंत्रण स्वीकार कर कार्यक्रमों में जाएंगी तो आप को कितने ही अच्छे और नए लोग भी वहां मिल जाएंगे. किसी के निमंत्रण को यों अस्वीकार करना अच्छी बात नहीं है. इस से लोगों के मन में आप के लिए नैगेटिव थौट बन जाएगा. इसलिए हमेशा मना न करें. कभी जाएं कभी मना कर सकती हैं.

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अपने जैसे विचार रखने वालों के क्लब में शामिल हों. यदि आप की कोई हौबी या फिर कोई विशेष दिलचस्पी है तो अपने आसपास मौजूद एक ऐसे क्लब में शामिल हो जाएं जो इन्हीं तरह की रुचियों के लिए बना है. अपने आसपास मौजूद किसी स्पोर्ट्स लीग, बुक क्लब, लाइब्रेरी, हाइकिंग गु्रप या फिर साइक्लिंग टीम से जुड़ने के बारे में सोचें. यदि आप की ऐसी कोई हौबी नहीं है, तो फिर एक नई हौबी तलाशें, लेकिन ऐसी हौबी ही चुनें, जिसे आप लोगों के साथ ग्रुप में रह कर पूरी कर पाएं.

3. सोशल वर्क को भी प्रमुखता दें

आप किसी एनजीओ से जुड़ सकती हैं जहां आप चाहें तो हफ्ते में 1 दिन भी जा सकती हैं. अगर एनजीओ से जुड़ने का समय नहीं है तो गरीब बच्चों को घर बुला कर पढ़ा सकती हैं या फिर अगर आप घर से कोई काम करती हैं जैसे सिलाई, ट्यूशन पढ़ाना आदि तो कुछ बच्चों को फ्री में सिखा और पढ़ा सकती हैं. इस से आप के मन को जो संतोष मिलेगा वह पैसे ले कर नहीं मिलेगा. जब भी जरूरत हो किसी के काम आएं. इस से लोग आप को जानेंगे और वे भी आप की मदद के लिए हमेशा तैयार मिलेंगे.

4. सामाजिक दायरे की लिमिट

सम्माननीय महिलाएं गु्रप से जुड़ी हों: जिस भी ग्रुप को जौइन करें पहले देख लें कि उस में जो महिलाएं जुड़ी हैं वे सब ठीक होनी चाहिए यानी सम्माननीय महिलाएं उस में शामिल हों, क्योंकि अब उस गु्रप से आप भी जुड़ रही हैं तो आप का नाम भी उन के साथ अपनेआप जुड़ जाएगा.

बच्चों की अनदेखी न करें: अपना सोशल सर्कल बनाएं अवश्य, लेकिन इस की भी एक लिमिट होनी चाहिए. यह नहीं कि बच्चे घर में भूखे बैठे हैं और आप अपने सर्कल के साथ बिजी हैं, उन्हें पढ़ानेलिखाने का टाइम भी आप किसी और को दे दें. इसलिए पहले अपने घर की देखभाल करें और फिर अन्य किसी चीज में समय लगाएं.

5. परेशानी में साथ दें

किसी भी एक्टिविटी से जुड़ना मात्र टाइम पास करने का तरीका नहीं होना चाहिए, बल्कि इस में सभी के सुखदुख भी जुड़ जाते हैं. इसलिए किसी की परेशानी में साथ देने की जब बात आए तो पीछे न रहें.

6. जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाएं

वहां जुड़ी महिलाओं से अपनी तुलना कर कुछ न करें. यह न सोचें कि आप उन के जैसे ब्रैंडेड कपड़े क्यों नहीं पहनतीं या फिर आप का स्टेटस उन के जैसा क्यों नहीं है. सब का रहनसहन अलगअलग होता है, इसलिए जितनी चादर हो आप की उतने ही पैर फैलाएं.

7. गलत आदतें न पालें

अगर आप का मिलनाजुलना हाई सोसाइटी के उन लोगों से हो रहा हो जो हाई स्टेटस के नाम पर सिगरेट, शराब आदि को प्रमुखता देते हों तो आप जान लें कि आप गलत ट्रैक पर हैं. आप कितना भी इस सब से बचने का प्रयास करें, लेकिन आप को पता भी नहीं चलेगा कि कब आप इस में फंस गईं. इसलिए ऐसे लोगों का साथ छोड़ देने में ही समझदारी है. ऐसा सामाजिक दायरा किसी काम का नहीं है, जिस में आप गलत रास्ते पर चल पड़ें.

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सभी को एक सूत्र में पिरोएं. अपने सोशल वर्क और सोशल सर्कल में इतना भी न उलझ जाएं कि घरपरिवार और सगे नातेरिश्तेदारों के लिए समय ही न बचे. अगर आप उन की उपेक्षा करेंगी तो दूसरे लोगों से संबंध बनाने का कोई फायदा नहीं है. इसलिए सभी को एक सूत्र में पिरो कर समानता से चलें ताकि परिवार भी खुश रहे और आप भी.

अगर आप आज सिंगल हैं, तो यह आप का अपना फैसला और अपनी मजबूरी थी. इस से बाकी लोगों को कोई मतलब नहीं है. इसलिए लोगों को बारबार यह कह कर कि मैं तो अकेली हूं, ब्लैकमेल न करें, क्योंकि ऐसा करना ज्यादा दिन नहीं चल पाएगा. लोग आप को समझ जाएंगे और आप से दूरी बना लेंगे. कभीकभार दुख शेयर करना ठीक रहता है, लेकिन हर वक्त यह अच्छा नहीं लगता. इस से न आप खुद ऐंजौय कर पाएंगी और न ही दूसरों को करने देंगी.

बनें एक-दूसरे के राजदार

रिश्ते हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं और इन्हीं रिश्तों में सब से खास और करीबी रिश्ता होता है पतिपत्नी का, जिन्हें एकदूसरे का अंग माना जाता है. जीवन की गाड़ी इन्हीं 2 पहियों पर चलती है, इसलिए यह माना जाता है कि इन दोनों का एकदूसरे के साथ सहयोग बना कर प्रेम से चलना बहुत जरूरी है. यह माना गया है कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा भावुक होती हैं, उन पर किसी भी अच्छीबुरी या छोटीबड़ी बात का प्रभाव जल्दी पड़ता है. लेकिन यही औरतें दिल से पुरुषों की तुलना में अधिक मजबूत होती हैं. इसी कारण वे बड़े से बड़ा दर्द भी सह लेती हैं और किसी से कुछ नहीं कहतीं, अपने पति से नहीं. लेकिन इस रिश्ते में प्यार बनाए रखने के लिए जरूरी यह होता है कि दोनों एकदूसरे के राजदार बनें.

पतिपत्नी से जुड़े इस विषय पर हम ने गुजरावाला टाउन, दिल्ली के सीनियर मनोरोग विशेषज्ञ डा. गुरमुख सिंह से बात की, जिस में उन्होंने कुछ प्रश्नों के तार्किक उत्तर इस तरह दिए:

पतिपत्नी का रिश्ता कैसा होना चाहिए?

पतिपत्नी को हमेशा एक अच्छे दोस्त या साथी की ही तरह होना चाहिए. केवल पत्नी को ही नहीं, बल्कि पति को भी अपनी पत्नी को अपना राजदार बनाना चाहिए.

जब मां बाप ही लगें पराए

पतिपत्नी दोस्त कैसे बन सकते हैं?

हमारे यहां आज भी जौइंट फैमिली में बहुत से लोग रहते हैं, जिस में कभीकभी समस्याएं और कठिनाइयां भी आने लगती हैं. ऐसे में पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी और अपनी मां दोनों को समय दे. पत्नी को भी ध्यान रखना चाहिए कि वह केवल अपने बारे में नहीं, बल्कि पूरे परिवार के बारे में सोचे और थोड़ाथोड़ा स्वयं को भी बदलने का प्रयास करे.

क्या ऐसा केवल लव मैरिज में ही संभव है या अरेंज्ड मैरिज वाले पतिपत्नी भी दोस्त बन सकते हैं?

एकदूसरे के साथ सामंजस्य बना कर रखना किसी भी तरह की शादी का मूलमंत्र है. शादी के लव या अरेंज्ड होने का इस पर कोई खास असर नहीं पड़ता. जरूरी है कि एकदूसरे के प्रति लव और केयर दोनों तरफ से हो.

कितना जरूरी होता है एकदूसरे को राजदार बनाना?

आज के समय में पतिपत्नी दोनों ज्यादातर वर्किंग ही होते हैं. ऐसे में एकदूसरे पर विश्वास की कमी रहती है. दिमाग में हमेशा एक शक पनपता रहता है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि दोनों एकदूसरे से सब कुछ शेयर करें ताकि यह विश्वास पनप सके कि मुझ से कुछ भी नहीं छिपाया जा रहा. लेकिन कभीकभी सब कुछ शेयर नहीं भी करना चाहिए, क्योंकि 100% राजदार बनाने से आप का यह पवित्र बंधन टूटने के कगार पर भी पहुंच सकता है. कुछ बातें या राज ऐसे होते हैं, जिन का राज रहना ही सही रहता है.

अगर पति एक्सप्रैसिव न हो तो तालमेल कैसे बैठाएं?

सब की अपनी, अलग पर्सनैलिटी होती है. यह तो कुछ समय बाद हर किसी को एकदूसरे के बारे में समझ में आने लगता है. बस हमें स्वयं अपनी भावनाओं पर संयम रखना आना चाहिए और समय के अनुकूल ही कहना और अपेक्षा करनी चाहिए.

आप के पास इस तरह के कितने केस आते हैं और आप उन्हें कैसे सुलझाते हैं?

हमारे यहां ऐसे बहुत से केस आते हैं, जहां पतिपत्नी के रिलेशन में फ्रैंडशिप की कमी होती है. इस तरह के केसेज में हम दोनों पक्षों की बात सुनते हैं और फिर सुलझाते हैं.

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मेरी बहन मुझसे बातबेबात नाराज रहती है, मैं क्या करूं?

सवाल-

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. मुझ से 5 साल बङी मेरी एक बहन है. हम दोनों को मातापिता से बहुत प्यार मिलता है. मेरी परेशानी यह है कि मेरी बहन मुझ से बातबेबात नाराज हो जाती है और हमेशा मुझे घर में नीचा दिखाने में लगी रहती है. बहन की शिकायत पर मुझे घर में डांट भी सुननी पङती है. समझ नहीं आता क्या करूं? कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

बहन का रिश्ता बङा ही अनमोल होता है. इसे ताउम्र रिश्तों में सहेज कर रखना हमेशा खुशियों की सौगात देता है क्योंकि यही एक ऐसा रिश्ता होता है जिस के साथ आप खुल कर जी सकती हैं, मन की बात शेयर कर सकती हैं.

आप की बङी बहन आप से नाराज रहती हैं तो आप इस की वजह जानने की कोशिश करें. फुरसत के समय जब आप की बहन का मूड अच्छा रहे तो अपनी दिल की बात बताएं और कहें कि आप उन्हें बहुत प्यार करती हैं. बहन को मनाने के लिए आप सौरी कार्ड खरीद कर अथवा बना कर वैसी जगह रखें जहां आप की बहन की नजर बराबर पङती हो. इस के अलावा आप की बहन को जो खाना पसंद है वह आप अपने हाथों से बना कर और उन्हें अपने हाथों से खिला कर उन की नाराजगी दूर कर सकती हैं.

बर्थडे या अन्य अवसरों पर उन्हें केक या फिर कोई अच्छा सा गिफ्ट जरूर दें. अपनी बात भी उन से बराबर शेयर करती रहें और उन्हें यह एहसास दिलाती रहें कि वे आप के लिए बेहद खास हैं. यकीन मानिए, बहन के साथ दोस्ताना संबंध उन्हें भी पसंद आएगा और आप की बहन सिर्फ बहन नहीं, बल्कि अच्छी दोस्त बन जाएगी.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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असमान पड़ोस में कैसे निभाएं

विनय एक डाक्टर है. उस की प्रैक्टिस अच्छी चलती है. लेकिन इन दिनों वह एक अजीब समस्या से परेशान है. कुछ वर्षों पहले उस ने एक सरकारी कालोनी में घर बनाने के लिए भूखंड खरीदा था. उस समय वहां अधिक बसावट नहीं थी, इसलिए वह अपने पिता के साथ अपने पैतृक घर में ही रह रहा है. अब चूंकि नई कालोनी में बसावट होने लगी है तो उस ने भी वहां घर बनाने का निश्चय किया.

नक्शा बनवाने के लिए जब विनय सिविल इंजीनियर के साथ साइट पर गया तो सड़क के दूसरी तरफ बने घरों को देख कर उस का माथा ठनक गया. वे मकान बेहद छोटे आयवर्ग के थे. विनय मन ही मन उन के और अपने रहनसहन की तुलना करने लगा. हालांकि उसे यह तुलना करना बहुत ही ओछा काम लग रहा था लेकिन मन था कि सहज हो ही नहीं पा रहा था.

“आजकल किसे फुरसत है आसपड़ोस में बैठने की. वे अपना कमाएखाएंगे, हम अपना. आप नाहक परेशान हो रहे हैं,” पत्नी ने समझाया.

“इसे बेच कर दूसरा प्लौट खरीदना आसान काम नहीं है. फिर तुम्हें इतनी फुरसत भी कहां है. बेकार ही दलालों के चक्कर में उलझ जाओगे. बहू ठीक कहती है. इसी जमीन पर बनवा लो,” पिता ने भी राय दी तो विनय बुझेमन से घर बनवाने के लिए तैयार हुआ.

अभी मकान का काम चलते कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन सड़क के दूसरी तरफ वाले किसी घर से एक व्यक्ति आया.

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“अच्छा है. पड़ोस में कोई डाक्टर होगा तो रातबेरात काम आएगा,” उस ने विनय को नमस्कार करते हुए कहा. सुनते ही विनय का मूड फिर से उखड़ गया.

जैसेजैसे मकान का काम पूर्णता की तरफ बढ़ रहा था वैसेवैसे विनय का उत्साह फीका पड़ता जा रहा था. जब भी वह अपनी कार किसी पेड़ के नीचे खड़ी करता, कई सारे बच्चे उस के आगेपीछे घूमने लगते. कोई उसे छू कर देखता तो कोई सहला कर. विनय मन ही मन डरता रहता कि कहीं कोई शैतान बच्चा महंगी कार पर खरोंच न लगा दे.

विनय के मित्ररिश्तेदार बनते हुए मकान को देखने आते तो उस के पड़ोस को देख कर व्यंग्य से मुसकरा देते. कुछ तो ‘मखमल में टाट का पैबंद’ कह कर हंस भी देते.

“कहीं हमारे बच्चे भी इन की आदतसंस्कार न सीख लें,” एक दिन पड़ोस के बच्चों को आपस में झगड़ते देख कर पत्नी ने चिंता जाहिर की तो विनय का रहासहा उत्साह भी मर गया. उस ने उसी दिन एक दलाल से कह कर उस मकान को बेचने की बात कर ली.

सानिया की समस्या भी कुछ कम नहीं है. जब भी वह वैस्टर्न ड्रैस पहने अपनी कार चलाती हुई सोसाइटी से बाहर निकलती है तो कई जोड़ी आंखें उस की पीठ पर चिपक जाती हैं. उस के साथ आने वाले दोस्तों में भी आसपास के लोग खासी दिलचस्पी रखते हैं. कई बार तो बीच पार्टी में पडोसी का कोई बच्चा किसी न किसी बहाने से भीतर आने की कोशिश भी करता है. ताकझांक करती ये आंखें उसे दोस्तों के सामने शर्मिंदा कर देती हैं. सानिया मन ही मन घुटती रहती है क्योंकि न तो इस फ्लैट को बेच कर दूसरा खरीदना हो रहा है और न ही निजता का यह अतिक्रमण सहन हो रहा है.

विनय और सानिया जैसी स्थिति किसी के भी सामने आ सकती है. लेकिन घर बेचना या घुटघुट कर जीना इस समस्या का समाधान नहीं है. अनेक आवासीय कालोनियों में इस तरह का असमान भूखंड वितरण देखने में आता है जहां एक तरफ बड़े साइज़ तो उसी के सामने छोटे आकार के भूखंड होते हैं. इसी तरह बड़े शहरों की सोसाइटियों में भी वन बीएचके से ले कर थ्रीफोर बीएचके तक के फ्लैट्स होते हैं.

यह कोई बुरी बात नहीं है. समाज में सभी आयवर्ग के लोग होते हैं और सभी को एक अच्छी आवासीय कालोनी या सोसाइटी में रहने का अधिकार है. हालांकि यह भी सच है कि हर व्यक्ति अपने सामाजिक स्तर, शौक, स्वभाव और आय के अनुसार अपने मित्र चुन लेता है लेकिन फिर भी इस तरह की असमानता कई बार परेशानी का कारण बन जाती है. न केवल उच्च आयवर्ग के लिए बल्कि निम्न या मध्य आयवर्ग के लिए भी.

क्या होती हैं परेशानियां

1. यदि पड़ोस में आप से कम आयवर्ग के लोग रहते हैं तो उन्हें देख कर आप से मिलने आने वाले मित्ररिश्तेदार नाक चढ़ाते हैं. कई बार बातों ही बातों में ताने भी कसते हैं.

2. चूंकि पड़ोस में यही बच्चे हैं तो आपस में खेलेंगे भी. और खेलखेल में झगड़ामनमुटाव होना भी स्वाभाविक है. ऐसे में एकदूसरे की आदतें, संस्कार आदि का स्थानान्तरण होना लाज़िमी है.

3. असमान स्टेटस के कारण उच्च आयवर्ग के लोगों के घर में होने वाली पार्टी आदि निम्न आयवर्ग के लिए कौतुक का विषय होते हैं. जिज्ञासावश लोग ताकझांक करने की कोशिश भी करते हैं जो निजता में सेंध सी लगती है.

4. इस तरह के समारोह में जब बच्चे अपने अन्य मित्रों के साथ आसपड़ोस के दोस्तों को भी आमंत्रित करते हैं तो विचित्र सी स्थिति पैदा हो जाती है. दोनों ही वर्गों के बच्चे आपस में घुलनेमिलने में संकोच करते हैं. नतीजतन, एक अदृश्य खिंचाव सा उत्पन्न हो जाता है.

कैसे निभाएं

1. यहां मकसद किसी को छोटा या निम्न दर्शाना नहीं है. लेकिन, यह सत्य है कि हर आयवर्ग का अपना लिविंग स्टेटस होता है. बेहतर है कि अपने पडोसी को उस की सीमारेखा स्पष्ट जतला दी जाए.

2. यदि पड़ोसी को सचमुच आप की मदद की आवश्यकता है तो बिना किसी पूर्वाग्रह के आगे आएं और यथासंभव उस की मदद करें. इस से आप की इज्जत में इजाफ़ा ही होगा.

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3. यदि आप के परिवार में होने वाला समारोह वृहद स्तर पर हो रहा है तो बिना किसी शर्मशंका के अपने पड़ोसियों को भी अवश्य आमंत्रित करें.

4. पड़ोसियों द्वारा दिए गए उपहारों या लिफाफे को तुरंत खोल कर उन को असहजता की स्थिति में न लाएं. इस में आप का ही बड़प्पन है.

5. यदि बच्चे पड़ोसियों के बच्चों के साथ खेलते हैं तो उन्हें मना न करें. समय के साथ बच्चे अपने साथी अपने अनुसार चुन लेते हैं.

आयवर्ग के अनुसार रहनसहन के स्तर में असमानता न केवल आसपड़ोस बल्कि परिवार में भी देखी जा सकती है. यह शाश्वत सत्य है कि इस तरह की असमानता समाज का हिस्सा है और इसे स्वीकार करने में ही समझदारी है. जिस तरह से पारिवारिक रिश्तों को निभाने में कभी झुकना तो कभी झुकाना पड़ता है वैसी ही व्यावहारिकता आसपड़ोस में भी दिखानी चाहिए.

अनेक तरह की होती हैं मम्मियां

लेखक- वीरेंद्र बहादुर सिंह

आज के युग में एक ओर जहां मातृत्व की जिम्मेदारी बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी ओर मम्मियों में भी अनेक प्रकार देखने को मिलने लगे हैं. हर मम्मी अपने काम, स्वभाव, अगलबगल के वातावरण, बच्चों के व्यक्तित्व और अपनी क्षमता तथा रुचि के अनुसार अपने बच्चे को पालती है. हर मम्मी की अलग स्टाइल होती है, अलग विशेषता और अलग पर्सनैलिटी होती है.

मम्मियों के व्यक्तित्व के आधार पर बनीं मम्मियों की कैटेगरियों को आप भी जानिए.

हैलिकौप्टर मौम

हमेशा बच्चों के अगलबगल घूमने वाली मम्मी यानी हैलिकौप्टर मौम. बच्चे खेल रहे हों, होमवर्क कर रहे हों, सो रहे हों या टीवी देख रहे हों, इस तरह की मम्मियां उन के अगलबगल हैलिकौप्टर की तरह मंडराती रहती हैं. इस तरह की मम्मियों को न बच्चों पर भरोसा होता है और न अगलबगल के लोगों पर. ये अधिक से अधिक चिंता और निगरानी का बोझ लिए बच्चों को अपनी नजरों दूर नहीं होने देना चाहतीं. किचन से ये बच्चों के कमरे में चार बार चक्कर मारेंगी.

खास उम्र तक बच्चों के आगेपीछे रहने से बच्चा कुछ गलत करने या असुरक्षा से बच सकता है, पर बड़े होने पर हैलिकौप्टर मौम के बच्चे डरपोक हो सकते हैं. उन की निर्णय लेने की क्षमता विकसित नहीं हो सकती. उन्हें हमेशा मम्मी के अटेंशन की आदत पड़ जाती है. लंबे समय तक मम्मी का व्यक्तित्व भी तनावग्रस्त बन सकता है. ऐसी मम्मियों के बैलेंस्ड व्यवहार के लिए बच्चों को रास्ता खोजना चाहिए.

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फ्रीस्टाइल मौम

कुछ मम्मियां स्वतंत्र और आधुनिक विचारों वाली होती हैं. ऐसी मम्मियों को ही फ्रीस्टाइल मौम कहते हैं. ये अपने बच्चे को भूल करने, सीखने और मनपसंद काम करने आदि सब तरह की स्वतंत्रता देती हैं. बच्चों को अधिक रोकटोक करने में ये विश्वास नहीं करतीं. बेशक, इस तरह की मम्मियां सभी को पसंद आएंगी. फ्रीस्टाइल मौम के बच्चे कौन्फिडैंट और डिसीजन पावर की क्षमता रखते हैं, परंतु अगर इन में सहीगलत का विवेक न हो तो ये गलत रास्ते पर जा भी सकते हैं. जब तक बच्चे में समझ न आ जाए, तब तक मम्मी का मार्गदर्शन आवश्यक है. कभीकभी बच्चे मिलने वाली छूट का दुरुपयोग करते हैं. इसलिए, बच्चे की मैच्योरिटी, मिजाज और समझ के आधार पर कितनी छूट देनी है, यह तय करना चाहिए.

कौम्पिटेटिव मौम

ऐसी मम्मियों को हर मामले में प्रतियोगिता दिखाई देती है. दुख की बात यह है कि ये बच्चों को प्रतियोगिता का घोड़ा बना देती हैं. अगर किसी मौम ने कह दिया कि ‘मेरा बेटा तो 4 घंटे पढ़ता है’ तो कौम्पिटेटिव मौम अपने बच्चे को 6 घंटे पढ़ने के लिए कहेंगी. फ्रैंड का बच्चा म्यूजिक में जाता है तो अगर उन के बच्चे को खेल में रुचि होगी, तब भी वे उसे म्यूजिक क्लास में ही भेजेंगी. यही नहीं, ये बच्चे के फ्रैंड की मम्मी के साथ भी कौम्पिटीशन में उतर आती हैं. इन्हें दूसरों की अपेक्षा अधिक चाहिए. ऐसी मम्मियां 80 प्रतिशत मामलों में बच्चे का नुकसान करती हैं और खुद दुखी होती हैं.

टायर्ड मौम

ऐसी मम्मियां चौबीसों घंटे थकी दिखाई देती हैं. इन्हें बोलनेचालने और बच्चों को खेलाने में भी थकान लगती है. इन्हें कभी पूरी नींद नहीं मिलती, पूरा समय नहीं मिलता, सिर या पेट दर्द की हमेशा शिकायत रहती है. ऐसी मम्मियों के बच्चे भी हमेशा निस्तेज दिखाई देते हैं, क्योंकि हमेशा थकानऊब की शिकायत से वातावरण की ताजगी गायब हो जाती है. आज की महिलाओं के एकसाथ अनेक मोरचों पर लड़ने की वजह से कभीकभी यह शिकायत सच हो सकती है, पर इस का हल निकालने के बजाय रोते रहने से कोई फायदा नहीं है. टायर्ड मौम बच्चों को भी मानसिक रूप से थका देती हैं.

हौट मेस मौम

हौट मेस मौम यानी बच्चों के पास आने वाला मानवरूपी तूफान. ये हमेशा लेट होती हैं. कहीं जाना होगा तो बच्चों और खुद की ड्रैसिंग के बारे में तय नहीं कर पातीं. जहां जाना होगा वहां के पूरे पते की जानकारी नहीं होगी. इन के बच्चे खुद ही बड़े हो जाते हैं. दुनिया भले ऊंचीनीची हो जाए पर इन के पेट का पानी नहीं हिलता. ऐसी मम्मियों के बच्चे समय के महत्त्व, शिष्टता और जिम्मेदारी सीखने में असफल साबित होते हैं.

परफैक्ट मौम

मम्मी का यह रूप आदर्शवादी माना जाता है. जबकि, ऐसी मम्मियों की मात्रा मात्र 10 प्रतिशत है. ये मम्मियां सौ प्रतिशत अपने मातृत्व के प्रति समर्पित होती हैं. इतना ही नहीं, ये अपनी पत्नी या कैरियर वुमन के रूप में भी अपनी भूमिका बखूबी निभाती हैं. ये अपने और अपने बच्चे के शारीरिक तथा मानसिक विकास के लिए हर जरूरी बात का ध्यान रखती हैं. ऐसी मम्मियों से ज्यादातर बच्चे खुश रहते हैं. ये कभीकभी अधिक सख्त हो कर बच्चों को परिणाम तक ले जाती हैं. परंतु हर समय सख्ती जरूरी है, यह कहना जरा मुश्किल है.

सुपीरियर मौम

ऐसी मम्मियों का सोचना होता है कि वे अपने बच्चे के लिए सबकुछ अच्छा करें. बच्चे का रत्तीभर नुकसान न हो, इस के लिए बच्चे की अधिक से अधिक देखभाल कर के खुद सुपीरियर होना चाहती हैं. जैसे, बच्चों को उबला पानी ही पिलाना, और्गेनिक फूड की व्यवस्था करना, बाहर का बिलकुल न खाने देना, दिन में कई बार हाथ धुलवाना, स्कूलबैग अपनी जगह पर रखवाना और कपड़े में एक भी दाग न लगने देना आदि. ये सभी बातें वैसे तो बच्चे के लिए अच्छी हैं, परंतु ये बच्चे को अन्य बच्चों से दूर ले जाती हैं. बच्चा हर जगह एडजस्ट नहीं हो सकता. अगर कभी उसे बंधन तोड़ने का मन हुआ तो वह झूठ बोल कर चिप्स खाएगा. कपड़े पर दाग न लग जाए, इसलिए डरडर कर खाएगा. बच्चों में अच्छी आदतें दूसरों को देख कर और समझ से आती हैं, लादने से नहीं. ऐसे में बच्चे को बच्चा बन कर जीने देने में ही मजा है.

किडी मौम

इस तरह की मम्मियां एकदम बच्चों जैसा व्यवहार करती हैं. बच्चों के साथ बच्चा बन कर रहती हैं. वे मां हैं, यह बात वे भूल जाती हैं. अगर किडी मौम और बच्चा, दोनों पार्क में झूला झूल रहे हैं तो ये बच्चे से अधिक तेज झूलेंगी. बच्चों की तरह शोर भी करेंगी. बच्चों के साथ उसी की भाषा में बात करेंगी और बच्चों के दोस्त की तरह उस की बातें भी शेयर करेंगी. देखा जाए तो इस में कुछ गलत भी नहीं है. पर मां और बच्चे के बीच जो मानसम्मान या छोटीबड़ी मर्यादा होती है, वह नहीं रह जाती. बच्चे को सिखाने जैसा लाइफ का लेसन नहीं सिखाया जा सकता.

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टैक्नो मौम

ये मम्मियां अनुभव या परिवार में लोगों की सलाह के बदले बच्चे की देखभाल के लिए इंटरनैट को गुरु मानती हैं. बच्चे को सर्दी होगी, तो ये नैट से सर्दी का इतिहासभूगोल दोनों जान लेंगी. बच्चे के रोजरोज के फोटो ये सोशल मीडिया पर अपडेट करती रहेंगी. खिलौनेकपड़े आदि की पसंद भी नैट द्वारा ही करेंगी. बाहर जाएंगी, तब भी बच्चे से कनैक्ट रहेंगी. यूट्यूब से स्टोरी और पोएम सुनाएंगी. ठीक है, टैक्नोलौजी का उपयोग गलत नहीं है, परंतु ऐसा न हो कि बच्चे के साथ बिताने वाला समय मोबाइल और इंटरनैट सर्फिंग में चला जाए. मां की इस आदत से बच्चे भी टैक्नोलौजी पर डिपैंड हो जाएंगे. वास्तव में बचपन में मां कहानी कहे, लोरी गाए और शाम को घुमाने ले जाए, यह ज्यादा अच्छा लगता है.

करियर ओरिऐंटेड मौम

ऐसी मम्मियों को बच्चों से ज्यादा अपने कैरियर की चिंता रहती है. ये बच्चों को आया या किसी अन्य केयरटेकर के भरोसे छोड़ कर आराम से अपना समय, नौकरी या बिजनैस में बिता सकती हैं. ये बच्चों को अच्छा स्कूल, सुखसुविधा या व्यवस्था दे सकती हैं, मात्र समय नहीं दे सकतीं. ये बच्चे की खुशी के साथ समझौता कर सकती हैं, पर अपने काम के साथ नहीं.

बौसी मौम

ऐसी मम्मियों को पूरा दिन हुक्म चलाना अच्छा लगता है. वे कहें नहीं कि बच्चे उन की बात सुन कर उस पर अमल करें, इस तरह की इन की मानसिकता होती है. ये कोई दलील या न सुनना पसंद नहीं करतीं. ऐसी मम्मियों से बच्चे दूर भागते हैं और इन की बौन्डिंग कच्ची रहती है. बच्चों को हमेशा डर रहता है कि मम्मी अभी कुछ कहेंगी, खेलने के लिए या पढ़ने के लिए उठाएंगी वगैरहवगैरह.

मनुष्य के स्वभाव के अनुसार मम्मियों का वर्गीक्रण किया गया है. सोचिए, इन में आप किस तरह की हैं.

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