Father’s day 2022: Celebs से जानें उनके पिता के साथ बिताई खट्टी मीठी बातें  

हर साल Father”s Day जून महीने की तीसरे रविवार को मनाया जाता है. इसे मनाने का उद्देश्य पिता के प्रति आभार जताना है, क्योंकि एक बच्चे के पालन-पोषण में जितना जरुरी एक माँ की होती है, उतनी ही पिता की भी आवश्यकता होती है. इसलिए इस दिन को सभी बच्चे अपने हिसाब से पिता के पसंद के सामान, सरप्राइज डिनर, ट्रिप, फूल आदि देकर  सेलिब्रेट करते है.

फादर डे की शुरुआत कब और कैसे हुई इस बारें में लोगों के अलग-अलग मत है. कुछ का मानना है कि फादर्स डे 1907 में वर्जिनिया में पहली बार मनाया गया था, कुछ मानते है कि 1910 में वाशिंगटन में मनाया गया था, जबकि वर्ष 1916 में अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने इसे मनाने की मंजूरी दी. साल 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने इसे जून महीने की तीसरे रविवार को मनाने की आधिकारिक घोषणा की, इसके बाद से फादर्स डे को जून के तीसरे संडे को मनाया जाता है.

बच्चों के साथ पिता का सम्बन्ध बहुत ही प्यारा होता है, लेकिन आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में बच्चों को पिता के साथ बातें करने या उन्हें समझने का वक्त नहीं होता, ऐसे में ये दिन बच्चों को एक बार फिर से उनके संबंधों को ताजा करने का अच्छा विकल्प है, इसलिए आम बच्चों से लेकर सेलेब्रिटी बच्चे भी शूटिंग पर फंसे रहने की वजह से पिता और फादर्स डे को मिस कर रहे है, आइये जाने पिता से उनके सम्बन्ध, उनकी नजदीकियां, प्यार और टकरार सब कैसा है. जानते है मिलीजुली प्रतिक्रिया उनकी जुबानी.

चारु मलिक

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अभिनेत्री चारू कहती है कि मैं पूरे साल फादर्स डे और मदर्स डे मनाना चाहती हूँ. पिता बेटियों के हमेशा ही बहुत स्पेशल होते है, क्योंकि माँ के साथ बातूनी रिश्ते का इक्वेशन होता है, जबकि पिता के साथ एक अलग ही प्यारा रिश्ता होता है. ये सही है कि उनसे हम अधिक बात नहीं करते, पर उनका प्यार हमेशा किसी न किसी रूप में मिलता रहता है. मैं और मेरी जुड़वाँ बहन पारुल दोनों ही पिता के बहुत करीब है. वे भी हम दोनों के साथ एक मजबूत सम्बन्ध रखते है. मेरे पिता इन्ट्रोवर्ट है और अधिक बात नहीं करते, लेकिन जो भी बात कहते है वह हमारे लिए बहुत उपयोगी होता है. वे एक वकील है और हमेशा अपने केसेज को लेकर व्यस्त रहते है. लाइब्रेरी में बैठकर इन केसेज की स्टडी करते है. उनका शांत और धैर्यवान होना हमारे लिए बहुत ही अच्छा रहा, क्योंकि जब वे बचपन में मुझे मैथ पढाया करते थे और मैं उसमे अच्छे अंक नहीं ला पाती थी. उन्होंने मुझे गणित की बेसिक चीजों को सिखाया. मेरी माँ की मृत्यु के बाद सभी उनके बहुत करीब हो चुके है, ताकि माँ की यादों को वे कुछ हद तक कम कर सकें. अभी वे अमेरिका में पारुल के साथ रहते है. मैंने पिता से कठिन समय में शांत रहना, धैर्य न खोना आदि सीखा है. इसके अलावा मेरे पिता बहुत अच्छा खाना बनाते है और हमें हमारे पसंद का व्यंजन बनाकर खिलाते है.

नसिर खान 

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फिल्म और टीवी अभिनेता नसिर खान का अपने पिता कॉमेडियन और अभिनेता जॉनी वाकर के साथ बहुत अच्छी बोन्डिंग थी. वे कहते है कि उन्होंने मुझे कभी डांटा नहीं. वे मेरे साथ बहुत ही सौम्य स्वभाव रखते थे, लेकिन वे अपने सिद्धांतो पर हमेशा अडिग रहे. मैं परिवार का छोटा बेटा होने की वजह से उन्होंने मुझे अपना कैरियर चुनने की पूरी आज़ादी दी थी. इसके अलावा परिवार के बच्चों के किसी भी निर्णय को वे कभी नहीं लेते थे, उसकी जिम्मेदारी मेरी माँ की थी. वे स्ट्रिक्ट पिता नहीं थे. बड़े होने पर मुझे उनके व्यक्तित्व को काफी हद तक समझ में आया. वे एक शांत इंसान थे और सबके लिए कुछ अच्छा करने की इच्छा रखते थे. मेरे हिसाब से पिता का बच्चों और पत्नी से हमेशा बातचीत करते रहना चाहिए , ताकि एक दूसरे की भावनाओं को समझने का अवसर मिले.

अनुज सचदेवा 

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अभिनेता अनुज का कहना है कि इमोशन को व्यक्त करने का तरीका पुरुषों में अलग होता है. बेटे के लिए उनके इमोशन 2 से 3 बातों के बाद ख़त्म हो जाती है, मसलन आप कैसे हो, क्या कर रहे हो या तबियत कैसी है? आदि. ऐसे कुछ प्रश्नों के उत्तर जान लेने के बाद बातें खत्म हो जाती है, जैसा मैंने अभी तक अपने पिता से सुना है और मुझे लगता है कि सभी पिता और बेटे में सम्बन्ध ऐसा ही होता होगा. मेरे पिता मेरे कैरियर में एक माइलस्टोन की तरह है. मेरे साथ मेरे पिता की सोच का कभी भी मेल नहीं हुआ, जो हर किसी के साथ होता है और ये जेनरेशन गैप का ही परिणाम है, लेकिन मेरे पिता ने हमेशा मेहनत करना सिखाया है, जिसमे शोर्ट कट की कोई जगह नहीं. 

अशोक कुमार बेनीवाल 

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अभिनेता अशोक कुमार बेनीवाल का कहना है कि पूरे विश्व में मैं अपने पिता के सबसे करीब हूँ. उनके साथ मेरा स्ट्रोंग ट्रेडिशनल सम्बन्ध और जुड़ाव है. इनका व्यक्तित्व मेरे लिए बहुत खास है, जब भी मुझे उनकी जरुरत होती है, वे हमारे साथ होते थे. मेरे किसी भी सन्देश को पिता तक पहुँचाने में मेरी माँ का हमेशा सहयोग रहा है. पिता ने अपनी सामर्थ्यता से अधिक किसी काम को करने में मुझे सहयोग दिया. उन्होंने मुझे इमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने की सीख दी, जिसे मैंने अपने जीवन में उतारा है. आज वे हमारे बीच नहीं है, मैं उन्हें बहुत मिस करता हूँ. मुझे आज भी याद आता है जब मैंने अपने पिता, माँ, बड़ी बहन और 6 रिश्तेदारों को वर्ष 2013 को हुए केदारनाथ फ्लड में खो दिया.

सुधा चंद्रन 

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अभिनेत्री सुधा चंद्रन कहती है कि मेरे लिए फादर्स डे केवल एक दिन नहीं 365 दिन भी उनके लिए बात करूँ तो कम पड़ जायेंगे. मेरे हिसाब से हर लड़की के लिए उसका पहला हीरो उसका पिता होता है. मैने हमेशा से उनके जैसा बनना चाहती थी. वे एक विनम्र परिवार से थे. केवल 13 साल की उम्र से उन्होंने अपने परिवार को सेटल किया था.मेरे पिता की तरफ से दो पुरस्कार मेरे लिए बहुत माईने रखती है, जब मैं अस्पताल में थी और मुझे नकली पैर मिला था. उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हारा वो पैर बनूँगा, जिसे तुमने खोया है. मैंने पूछा था कि ऐसा आप कब तक कर पाएंगे? इस पर उन्होंने कहा था कि मैं तुम्हारे साथ तब तक रहना चाहता हूँ, जब तक तुम्हे जरुरत है और ये सही था जब मैं कामयाबी की पीक पर थी, तब वे हमें छोड़ गए. दूसरा अवार्ड मुझे तब मिला जब मैंने पहली बार नकली पैर से डांस किया. परफोर्मेंस के बाद जब मैं घर आई तो उन्होंने मेरे पैर छू लिए. उनके इस व्यवहार के बारें में पूछने पर बताया था कि मैं उनके लिए कला की मूर्ति हूँ.

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पिता के रूप में अभिनेता अनिल कपूर की सोच क्या है, पढ़ें इंटरव्यू

हॉलीवुड और बॉलीवुड में अपनी एक अलग छवि बनाने वाले अभिनेता अनिल कपूर ने हर शैली में काम किया है और आज भी नई-नई भूमिका निभाकर दर्शकों को चकित कर रहे है. कॉमेडी हो या सीरियस, हर अंदाज में वे फिट बैठते है. उन्होंने जिस भी फिल्म में काम किया, दर्शकों के आकर्षण का केंद्र बने, इसे वे अपनी उम्र के हिसाब से सही फिल्म और किरदार का चुनना बताते है, जो उन्हें सावधानी से करना पड़ता है, जिसमें वे अपने दिल की सुनते है. यही वजह है कि उन्होंने काम से कोई ब्रेक नहीं लिया. उनके साथ ‘कॉम बैक’ का कोई टैग नहीं लगा. हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर खुद को नकारात्मक चीजों से दूर रखना पसंद करते है, ताकि हर सुबह उन्हें नया और फ्रेश लगे. खुश रहना और किसी तनाव को पास न आने देना ही उनके फिटनेस का राज है. उन्होंने हर बार माना है कि जीवन एक है और इसमें उतार-चढ़ाव का आना स्वाभाविक है. अनिल कपूर पहली बार धर्मा प्रोडक्शन के साथ फिल्म ‘जुग-जुग जियो’ में पिता की भूमिका निभा रहे है. जो रिलीज पर है. कोविड की वजह से ये फिल्म रिलीज नहीं हो पाई थी, इसलिए सभी इसके आने का इन्तजार कर रहे है.

इतना ही नहीं अनिल कपूर एक अच्छे अभिनेता के अलावा अभिनेत्री सोनम कपूर, अभिनेता हर्षवर्धन कपूर और रिया कपूर के पिता भी है, उन्होंने बच्चों को एक दोस्त की तरह पाला, जिसमे साथ दिया उनकी पत्नी सुनीता कपूर ने. जिससेउन्होंने इमानदारी के साथ काम किया. आइये जानते है अनिल कपूर से उनके पिता बनने और उससे जुड़े कुछ अनुभव जो पेरेंट्स के लिए बहुत उपयोगी होगा, आइये जानते है, इस बारें में उनकी सोच क्या है.

सवाल – ये फिल्म पिता-पुत्र के संबंधों पर आधारित है, रियल लाइफ में आप किस तरह के पिता है ? क्या बच्चों को अनुसाशन में रखना पसंद करते है?

जवाब – फिल्मों का सम्बन्ध और रियल लाइफ का सम्बन्ध बहुत अलग होता है. (हँसते हुए) रियल पिता को समझने के लिए घर आना पड़ेगा. मैं कभी भी स्ट्रिक्ट पिता नहीं हूं, प्यार से उन्हें कुछ भी कराया जा सकता है, स्ट्रिक्ट होने से नहीं. साथ ही धैर्य की भी बहुत जरुरत पड़ती है, स्ट्रिक्ट होने से बच्चा कभी भी अच्छा नहीं बन सकता. तकनिकी युग के बच्चे पहले से ही सब जानते है, इसलिए उन्हें समझ कर पेरेंट्स को कोई सुझाव देनी चाहिए. बच्चों को अपना क्षेत्र चुनने की पूरी आज़ादी भी पेरेंट्स को देनी चाहिए.

सवाल – आपका और आपकी पत्नी सुनीता कपूर का एक कामयाब रिश्ता रहा है, इस बारें में क्या कहना चाहते है?

जवाब – किसी भी रिलेशनशिप में कॉम्प्रोमाइज करने की जरुरत होती है. इससे व्यक्तिदूसरे की तरफ से देख सकता है और कोई ऐसी बात किसी को कह नहीं पाता, जिससे वह व्यक्ति हर्ट हो. गलती हर इन्सान से होती है और उसे मान लेना सबसे सहज बात होती है.

सवाल – इतने सालों बाद भी जब आपकी फिल्म रिलीज पर होती है, तो क्या आपमें पहले जैसा एक्साइटमेंट होता है?

जवाब – ये फिल्म की बनावट पर निर्भर करता है कि फिल्म की कहानी क्या है और निर्देशक कौन है. अगर मैंने किसी डायरेक्टर के साथ पहले भी काम किया है, तो अधिक चिंता नहीं करता.

सवाल – अभिनेत्री नीतू कपूर के साथ काम करना कैसा रहा?

जवाब – नीतू मेरे परिवार की एक सदस्य है और पहली बार मैं उनके साथ फिल्म में काम कर रहा हूं, इसलिए काम करना सहज था, क्योंकि वह खूबसूरत, फ्रेश और नए लुक में सबके सामने आएगी. अभिनय के अलावा उन्हें डांस भी आता है, मैं उन्हें तब से जानता हूं, जब से वह ऋषि कपूर को डेट कर रही थी.

सवाल – सालों साल एक जैसे कद काठी होने का राज क्या है? फिल्मों को चुनते समय किस बात का ध्यान रखते है?

जवाब – मैं पहले जैसा था, वैसा अब नहीं लग सकता, लेकिन मैं खुद पर बहुत ध्यान देता हूं. साथ ही मैं कभी गलतफहमी में नहीं जीता, मैंने उन फिल्मों चुना जो मेरी उम्र के हिसाब से ठीक हो. दर्शक मुझे कुछ कहे, इससे पहले ही मैंने खुद को चुपचाप हीरों से चरित्र अभिनेता में बदल दिया. ये मेरे लिए सही था. मैंने उन फिल्मों को चुना, जिसमे मैं लीड भले ही न हूं, लेकिन जरुरी है. ये चुनाव मेरे लिए सफल रहा. आज मैं बहुत खुश हूं कि दर्शक आज भी मुझे देखना चाहते है. आज के दर्शकों को कोई मुर्ख नहीं बना सकता. इसके अलावा मैं नियमित वर्कआउट करता हूं. किसी प्रकार का नशा नहीं करता. मुझे दक्षिण भारतीय व्यजन में स्टीम्ड इडली बहुत पसंद है, क्योंकि ये बहुत सुरक्षित भोजन है.

सवाल – आप अभी भी किसी फिल्म में सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बने रहते है, इस बारें में क्या कहना चाहते है? सोशल मीडिया पर आप कितने एक्टिव है?

जवाब – उम्र के हिसाब से हमेशा अभिनय करना चाहिए, अभी मैं वरुण धवन की भूमिका नहीं निभा सकता. मैं अपने उम्र की भूमिका निभा रहा हूं. इसलिए सभी मेरे चरित्र को पसंद करते है. हालाँकि इस फेज में आना कठिन था, पर मैंने खुद को समझाया.

सोशल मीडिया पर मैं अधिक एक्टिव नहीं, लेकिन मेरे काफी यंग फोलोअर्स है, जो अधिकतर मिम्स भेजते है. मैं उनका जवाब मिम्स से ही देता हूं. (हँसते हुए) यंग फोलोअर्स अधिक होने की वजह मेरी भूमिका है, जो यंग को भी आकर्षित करती है. फिल्म वेलकम में मेरी भूमिका मजनू भाई की थी, जो पेंटिंग बनाता है. मुझे जब पेंटिंग बनाकर निर्देशक अनीस बज्मी ने दी, तो किसी को पता नहीं था कि मेरी ये भूमिका इतनी पोपुलर होगी. यूथ को मेरा ये किरदार इतना पसंद होगा. मैं कई बार कुछ निर्देशक की कहानियां भी नहीं पढता, क्योंकि वे मेरे टेस्ट को जान चुके है. फिल्म अच्छी तरह बननी चाहिए, सफल हो या न हो ये तो दर्शकों की टेस्ट पर निभर करता है. मैं खुद निर्णय लेता हूं और अंत तक उसे पूरा करता हूं.

सवाल – कंट्रोवर्सी को आप कैसे लेते है और खुद को क्या समझाते है?

जवाब – मैं कंट्रोवर्सी को देखता नहीं हूं, उन लेखों को पढता हूं, जिन्होंने मेरी बातों को ठीक तरह से लिखा है. क्रिटिक सही है, क्योंकि इससे मैं खुद को इम्प्रूव कर सकता हूं, पर मेरे घर में बहुत सारे अच्छे आलोचक है, मैं उनकी अवश्य सुनता हूं.

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Top 10 Best Father’s Day Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फादर्स डे कहानियां हिंदी में

Father’s Day Story in Hindi: एक परिवार की सबसे अहम कड़ी हमारे माता-पिता होते हैं. वहीं मां को हम जहां अपने दिल की बात बताते हैं तो वहीं पिता हमारे हर सपने को पूरा करने में जी जान लगा देते हैं. हालांकि वह अपने दिल की बात कभी शेयर नहीं कर पाते. हालांकि हमारा बुरा हो या अच्छा, हर वक्त में हमारे साथ चट्टान बनकर खड़े होते हैं. इसीलिए इस फादर्स डे के मौके पर आज हम आपके लिए लेकर आये हैं गृहशोभा की 10 Best Father’s Day Story in Hindi, जिसमें पिता के प्यार और परिवार के लिए निभाए फर्ज की दिलचस्प कहानियां हैं, जो आपके दिल को छू लेगी. साथ ही आपको इन Father’s Day Story से आपको कई तरह की सीख भी मिलेगी, जो आपके पिता से आपके रिश्तों को और भी मजबूत करेगी. तो अगर आपको भी है कहानियां पढ़ने के शौकिन हैं तो पढ़िए Grihshobha की Best Father’s Day Story in Hindi 2022.

1. Father’s Day 2022: दूसरा पिता- क्या दूसरे पिता को अपना पाई कल्पना

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पति के बिना पद्मा का जीवन सूखे कमल की भांति सूख चुका था. ऐसे में कमलकांत का मिलना उस के दिल में मीठी फुहार भर गया था. दोनों के गम एकदूसरे का सहारा बनने को आतुर हो उठे थे. परंतु …

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2. Father’s day 2022: फादर्स डे- वरुण और मेरे बीच कैसे खड़ी हो गई दीवार

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नाजुक हालात कहें या वक्त का तकाजा पर फादर्स डे पर हुई उस एक घटना ने वरुण और मेरे बीच एक खामोश दीवार खड़ी कर दी थी. इस बार उस दीवार को ढहाने का काम हम दोनों में से किसी को तो करना ही था.

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3. Father’s day 2022: अब तो जी लें

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पिता के रिटायरमैंट के बाद उन के जीवन में आए अकेलेपन को दूर करने के लिए गौरव व शुभांगी ने ऐसा क्या किया कि उन के दोस्त भी मुरीद हो गए…

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4. Father’s day 2022: चेहरे की चमक- माता-पिता के लिए क्या करना चाहते थे गुंजन व रवि?

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गुंजन व रवि ने अपने मातापिता की खुशियों के लिए एक ऐसा प्लान बनाया कि उन के चेहरे की चमक एक बार फिर वापस लौट आई. आखिर क्या था उन दोनों का प्लान?

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5. Father’s Day 2022: वह कौन थी- एक दुखी पिता की कहानी?

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स्वार्थी बेटेबहू ने पिता अमरनाथ को अनजान शहर में भीख मांगने के लिए छोड़ दिया था. व्यथित अमरनाथ की ऐसे अजनबी ने गैर होते हुए भी विदेश में अपनों से ज्यादा सहयोग और सहारा दिया.

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6. Father’s Day 2022: त्रिकोण का चौथा कोण

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जीवनरूपी शतरंज के सभी मुहरों को अपनी मरजी से सैट करने वाले मोहित को किसी के हस्तक्षेप का अंदेशा न था. लेकिन उस के बेटे ने जब ऐसा किया तो क्या हुआ.

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7. Father’s Day 2022: पापा जल्दी आ जाना- क्या पापा से निकी की मुलाकात हो पाई?

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पापा से बातबात पर मम्मी झगड़तीं जबकि मनोज नाम के व्यक्ति के साथ खूब हंसतीबोलती थीं. नटखट निकी को यह अच्छा नहीं लगता था. समय वह भी आया जब पापा को मम्मी से दूर जाना पड़ा.

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8. Father’s day 2022: पापा मिल गए

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शादी के बाद बानो केवल 2-4 दिन के लिए मायके आई थी. उन दिनों सोफिया इकबाल से बारबार पूछती, ‘‘मेरी अम्मी को आप कहां ले गए थे? कौन हैं आप?’’

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9. Father’s day 2022: बाप बड़ा न भैया- पिता की सीख ने बदली पुनदेव की जिंदगी

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5 बार मैट्रिक में फेल हुए पुनदेव को उस के पिता ने ऐसी राह दिखाई कि उस ने फिर मुड़ कर देखा तक नहीं. आखिर ऐसी कौन सी राह सुझाई थी उस के पिता ने.

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10. Father’s Day 2022: परीक्षाफल- क्या चिन्मय ने पूरा किया पिता का सपना

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मानव और रत्ना को अपने बेटे चिन्मय पर गर्व था क्योंकि वह कक्षा में हमेशा अव्वल आता था, उन का सपना था कि चिन्मय 10वीं की परीक्षा में देश में सब से अधिक अंक ले कर उत्तीर्ण हो.

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Father’s day 2022: कुहरा छंट गया- रोहित क्या निभा पाया कर्तव्य

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Father’s Day 2022: अथ से इति तक- बेटी के विद्रोह ने हिला दी माता- पिता की दुनिया

‘‘चल न शांता, बड़ी अच्छी फिल्म लगी है ‘संगीत’ में. कितने दिन से घर से बाहर गए भी तो नहीं हैं…इन के पास तो कभी समय ही नहीं रहता है,’’ पति के कार्यालय तथा बच्चों के स्कूल, कालेज जाते ही शुभ्रा अपनी सहेली शांता के घर चली आई.

‘‘आज नहीं शुभ्रा, आज बहुत काम है. फिर मैं ने राजेश्वर को बताया भी नहीं है. अचानक ही बिना बताए चली गई तो न जाने क्या समझ बैठें,’’ शांता ने टालने का प्रयत्न किया.

‘‘लो सुनो, अरे, शादी को 20 वर्ष बीत गए, अब भी और कुछ समझने की गुंजाइश है? ले, फोन उठा और बता दे भाईसाहब को कि तू आज मेरे साथ फिल्म देखने जा रही है.’’

‘‘तू नहीं मानने वाली…चल, आज तेरी बात मान ही लेती हूं, तू भी क्या याद करेगी,’’ शांता निर्णयात्मक स्वर में बोली.

निर्णय लेने भर की देर थी, फिर तो शांता ने झटपट पति को फोन किया. बेटी प्रांजलि के नाम पत्र लिख कर खाने की मेज पर फूलदान के नीचे दबा दिया और आननफानन में तैयार हो कर घर की चाबी पड़ोस में देते हुए दोनों सहेलियां बाहर सड़क पर आ गईं.

‘‘अकेले घूमनेफिरने का मजा ही कुछ और है. पति व बच्चों के साथ तो सदा ही जाते हैं, पर यह सब बड़ा रूढि़वादी लगता है. अब देखो, केवल हम दोनों और यह स्वतंत्रता का एहसास, मानो हर आनेजाने वाले की निगाह हमें सहला रही हो,’’ शुभ्रा चहकते हुए बोली.

‘‘पता नहीं, मेरी तो इतनी उलटीसीधी बातें सोचने की आदत ही नहीं है,’’ शांता ने मुसकरा कर टालने का प्रयत्न किया.

‘‘अच्छा शांता, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ समय के लिए हमारी किशोरावस्था हमें वापस मिल जाए. फिर वही पंखों पर उड़ते से हलकेफुलके दिन, सपनीली पलकें लिए झुकीझुकी आंखें…’’ शुभ्रा, अपनी ही रौ में बोलती चली गई.

‘‘शुभ्रा, हम सड़क पर हैं. माना कि तुझे कविता कहने का बड़ा शौक है, पर कुछ तो शर्म किया कर…अब हम किशोरियां नहीं, अब हम किशोरियों की माताएं हैं. कोई ऐसी बातें सुनेगा तो क्या सोचेगा?’’ शांता ने उसे चुप कराने के लिए कहा.

‘‘तू बड़ी मूर्ख है शांता, तू तो किशोरा- वस्था में भी दादीअम्मां की तरह उपदेश झाड़ा करती थी, अब तो फिर भी आयु हो गई, पर एक राज की बात बताऊं?’’

‘‘क्या?’’

‘‘कोई कह नहीं सकता कि तेरी 17-18 वर्ष की बेटी है,’’ शुभ्रा मुसकराई.

‘‘शुभ्रा, तू कभी बड़ी नहीं होगी, यह हमारी आयु है, ऐसी बातें करने की?’’

‘‘लो भला, हमारी आयु को क्या हुआ है…विदेशों में तो हमारे बराबर की स्त्रियां रास रचाती घूमती हैं,’’ शुभ्रा ने शरारत भरा उत्तर दिया.

इस से पहले कि शांता कोई उत्तर दे पाती, आटोरिकशा एक झटके के साथ रुका और दोनों सहेलियां वास्तविकता की धरती पर लौट आईं.

टिकट खरीदने के लिए लंबी कतार लगी थी. शुभ्रा लपक कर वहां खड़ी हो गई और शांता कुछ दूर खड़ी हो कर उस की प्रतीक्षा करने लगी. रंगबिरंगे कपड़े पहने युवकयुवतियों और स्त्रीपुरुषों को शांता बड़े ध्यान से देख रही थी. ऐसे अवसरों पर ही तो नए फैशन, परिधानों आदि का जायजा लिया जा सकता है.

फिल्म का शो खत्म हुआ. शांता भीड़ से बचने के लिए एक ओर हटी ही थी कि तभी भीड़ में जाते एक जोड़े को देख कर मानो उसे सांप सूंघ गया. क्या 2 व्यक्तियों की शक्ल, आकार, चालढाल इतनी अधिक मेल खा सकती है? युवती बिलकुल उस की बेटी प्रांजलि जैसी लग रही थी. ‘कहीं यह प्रांजलि ही तो नहीं?’ एक क्षण को यह विचार मस्तिष्क में कौंधा, पर दूसरे ही क्षण उस ने उसे झटक दिया. प्रांजलि भला इस समय यहां क्या कर रही होगी? वह तो कालेज में होगी. वह युवती कुछ दूर चली गई थी और अपने पुरुष मित्र की किसी बात पर खिलखिला कर हंस रही थी. शांता कुछ देर के लिए उसे घूर कर देखती रही, ‘नहीं, उस की निगाहें इतना धोखा नहीं खा सकतीं, क्या वह अपनी बेटी को नहीं पहचान सकती?’

पर तभी उसे खयाल आया कि प्रांजलि आज स्कर्टब्लाउज पहन कर गई थी और यह युवती तो नीले रंग के चूड़ीदार पाजामेकुरते में थी. शांता ने राहत की सांस ली, पर दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि ऐसा ही चूड़ीदार पाजामाकुरता प्रांजलि के पास भी है. संशय दूर करने के लिए उस ने उस युवती को पुकारने के लिए मुंह खोला ही था कि शुभ्रा के वहां होने के एहसास ने उस के मुंह पर मानो ताला जड़ दिया. शुभ्रा लाख उस की सहेली थी पर अपनी बेटी के संबंध में शांता किसी तरह का खतरा नहीं उठा सकती थी. प्रांजलि के संबंध में कोई ऐसीवैसी बात शुभ्रा को पता चले और फिर यह आम चर्चा का विषय बन जाए, यह वह कभी सहन नहीं कर सकती थी. अत: वह चुपचाप खड़ी रह गई.

‘‘क्या बात है शांता, तबीयत खराब है क्या?’’ तभी शुभ्रा टिकट ले कर आ गई.

‘‘पता नहीं शुभ्रा, कुछ अजीब सा लग रहा है. चक्कर आ रहा है. लगता है, अब मैं अधिक समय खड़ी नहीं रह सकूंगी,’’ शांता किसी प्रकार बोली. सचमुच उस का गला सूख रहा था तथा नेत्रों के सम्मुख अंधेरा छा रहा था.

‘‘गरमी भी तो कैसी पड़ रही है…चल, कुछ ठंडा पीते हैं…’’ कहती शुभ्रा उसे शीतल पेय की दुकान की ओर खींच ले गई.

शीतल पेय पी कर शांता को कुछ राहत अवश्य मिली किंतु मन अब भी ठिकाने पर नहीं था. कुछ देर पहले के हंसीठहाके उदासी में बदल गए थे. फिल्म देखते हुए भी उस की निगाह में प्रांजलि ही घूम रही थी. किसी प्रकार फिल्म समाप्त हुई तो उस ने राहत की सांस ली.

अब उसे घर पहुंचने की जल्दी थी लेकिन शुभ्रा तो बाहर ही खाने का निश्चय कर के आई थी. पर शांता की दशा देख कर शुभ्रा ने भी अपना विचार बदल दिया और दोनों सहेलियां घर पहुंच गईं.

शांता घर पहुंची तो देखा, प्रांजलि अभी घर नहीं लौटी थी. उस की घबराहट की तो कोई सीमा ही नहीं थी. सोचने लगी, ‘लगभग 3 घंटे पहले प्रांजलि को देखा था, न जाने किस आवारा के साथ घूम रही थी? लगता है, यह लड़की तो हमें कहीं का न छोड़ेगी,’ सोचते हुए शांता तो रोने को हो आई.

जब और कुछ न सूझा तो शांता पति का फोन नंबर मिलाने लगी, लेकिन तभी द्वार की घंटी बज उठी. वह लपक कर द्वार तक पहुंची. घबराहट से उस का हृदय तेजी से धड़क रहा था. दरवाजा खोला तो सामने खड़ी प्रांजलि को देख कर उस की जान में जान आई, पर इस बात पर तो वह हैरान रह गई कि प्रांजलि तो वही स्कर्टब्लाउज पहने थी जो वह सुबह पहन कर गई थी. फिर वह नीले चूड़ीदार पाजामेकुरते वाली लड़की? क्या यह संभव नहीं कि उस ने प्रांजलि जैसी शक्लसूरत की किसी अन्य लड़की को देखा हो.

‘‘क्या बात है, मां? इस तरह रास्ता रोक कर क्यों खड़ी हो? मुझे अंदर तो आने दो.’’

‘‘अंदर? हांहां, आओ, तुम्हारा ही तो घर है,’’ शांता वहां से हटते हुए बोली, पर प्रांजलि के अंदर आते ही उस ने शीघ्रता से बेटी के कंधे पर लटकता बैग उतारा और सारा सामान उलट दिया.

नीला चूड़ीदार पाजामाकुरता बैग से बाहर पड़ा शांता को मुंह चिढ़ा रहा था. प्रांजलि भी मां के इस व्यवहार पर स्तब्ध खड़ी थी.

‘‘इस तरह छिपा कर ये कपड़े ले जाने की क्या आवश्यकता थी?’’ शांता का स्वर आवश्यकता से अधिक तीखा था.

‘‘मैं क्यों छिपा कर ले जाने लगी?’’ प्रांजलि अब तक संभल चुकी थी, ‘‘पहले से ही रखा होगा.’’

‘‘तुम अब भी झूठ बोले जा रही हो, प्रांजलि. कालेज छोड़ कर किस के साथ फिल्म देख रही थीं, ‘संगीत’ में? वह तो शुभ्रा मेरे साथ थी और मैं नहीं चाहती थी कि उस के सामने कोई तमाशा खड़ा हो, नहीं तो यह प्रश्न मैं तुम से वहीं करती,’’ शांता गुस्से से चीखी.

‘‘वहीं पूछ लेना था, मां. शुभ्रा चाची तो बिलकुल घर जैसी हैं. फिर एक दिन तो सब को पता चलना ही है.’’

‘‘अपनी मां से इस तरह बेशर्मी से बातें करते तुम्हें शर्म नहीं आती?’’

‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है, मां? सुबोध और मैं एकदूसरे को प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं…साथसाथ फिल्म देखने चले गए तो क्या हो गया?’’

‘‘शर्म नहीं आती, ऐसा कहते? तुम क्या समझती हो कि तुम मनमानी करती रहोगी और हम चुपचाप देखते रहेंगे? आज से तुम्हारा घर से निकलना बंद…बंद करो यह कालेज जाना भी, बहुत हो गई पढ़ाई,’’ शांता ने मानो अपना आज्ञापत्र जारी कर दिया.

प्रांजलि पैर पटकती अपने कमरे में चली गई और स्तंभित शांता वहीं बैठ कर फूटफूट कर रो पड़ी.

Summer Special: ऐसे बनाए टेस्टी पनीर का चीला

पनीर का चीला स्‍वादिष्‍ट होने के साथ-साथ पौष्टिक भी होता है. इसमें बेसन का भी इस्‍तेमाल होता है, इसलिए बेसन पनीर चीला भी कहते हैं. तो आज आपको पनीर चीला बनाने की विधि बताते हैं. इसे जरूर ट्राई कीजिए.

हमें चाहिए:

– बेसन (200 ग्राम)

– पनीर (75 ग्राम)

– प्याज 2 (बारीक कटा हुआ)

– लहसुन 6-7 कली (बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च  04 (बारीक कटी हुई)

– हरा धनिया ( 01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च (01 छोटा चम्मच)

– सौंफ ( 01 छोटा चम्मच)

– अजवायन ( 01 छोटा चम्मच)

– तेल ( सेंकने के लिये)

– नमक ( स्वादानुसार)

– अदरक ( 01 छोटा चम्मच)

बनाने का तरीका

– सबसे पहले पनीर को कद्दूकस कर लें और इसके बाद बेसन को छान लें.

– फिर उसमें पनीर के साथ सारी सामग्री मिला लें.

– अब मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा पानी डालते हुए उसका घोल बना लें.

– यह घोल पकौड़ी के घोल जैसा होना चाहिए, न ज्यादा पतला, न ज्यादा गाढ़ा.

– घोल को अच्छी तरह से फेंट लें और फिर उसे 15 मिनट के लिए ढ़क कर रख दें.

– अब एक नौन स्टिक तवा गरम करें और तवा गरम होने पर 1/2 छोटा चम्मच तेल तवा पर डालें और उसे पूरी सतह पर फैला दें.

– ध्यान रहे तेल सिर्फ तवा को चिकना करने के लिये इस्तेमाल करना है. अगर तवा पर तेल ज्यादा लगे,   तो उसे तवा से पोंछ दें.

– तवा गरम होने पर आंच कम कर दें और 2-3 बड़े चम्मच घोल तवा पर डालें और गोलाई में बराबर से        फैला दें. चीला की नीचे की सतह सुनहरी होने पर उसे पलट दें और उसे सेंक लें.

– इसी तरह सारे चीले सेंक लें, अब  आपकी पनीर चीला बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

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Father’s day Special: रियल लाइफ में सिंगल फादर हैं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ एक्टर

 (मॉडल और अभिनेता)

धारावाहिक ‘कोई अपना सा’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता ऋषिकेश पांडे आर्मी बैकग्राउंड से है. उन्हें सफलता CID धारावाहिक में इंस्पेक्टर सचिन की भूमिका से मिली. अभिनय से पहले वे एक एजेंसी में मार्केटिंग का काम किया करते थे. वहां आने वाले लोगों से ऋषिकेश की जान पहचान बढ़ी और उन्होंने मॉडलिंग शुरू की. थोड़े दिनों बाद उन्होंने धारावाहिक ‘कोई अपना सा’के लिए ऑडिशन दिया और काम मिल गया. इसके बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उनके कुछ प्रमुख सीरियल इस प्रकार है, कहानी घर-घर की, विक्रम और गबराल, कामिनी दामिनी, हमारी बेटियों का विवाह, तारक मेहता का उल्टा चश्मा आदि कई है. अभी वे ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में मुकेश की भूमिका निभा रहे है. काम के दौरान उनका परिचय तृषा दबास से हुआ. प्यार हुआ, शादी की और एक बेटे दक्षय पांडे के पिता बने, लेकिन कुछ पर्सनल अनबन की वजह से 10 साल पहले ऋषिकेश औरतृषा एक दूसरे से अलग हो गए. इस साल उनकाकानूनी तौर पर डिवोर्स कुछ महीने पहले हो चुका है.

मुश्किल था बेटे को संभालना

 

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ऋषिकेश अपने बेटे दक्षय का पालन-पोषण खुद कर रहे है. काम के साथ बेटे की देखभाल कैसे करते है, पूछे जाने पर वे कहते है कि एक छोटे बच्चे के साथ काम बहुत कठिन और तनावपूर्ण था. शादी के बाद सब ठीक था, लेकिन कुछ सालो बाद हम दोनों में अनबन शुरू हो गयी. तृषा मुझे छोड़ अलग रहने लगी. मेरा जीवन हमेशा से बहुत सिंपल रहा है, मुझे पार्टी, नशा ये सब पसंद नहीं. काम के बाद घर पर आना ही मेरा उद्देश्य रहा. डिवोर्स के बाद अच्छी बात ये रही कि तृषा के पेरेंट्स, बहन और कजिन्स ने मेरा साथ दिया, इसलिए कई बार जरुरत पड़ने पर मैं बेटे को उसके नाना-नानी के घर छोड़ता था. वे लोग मेरातृषा से अलग होने की वजह जानते है. इस प्रकार मेरे लिए काम के साथ बच्चे को सम्हालना मुश्किल हो रहा था. कई बार पूरी रात शूटिंग करने के बाद 300 किमी गाड़ी चलाकर उसके स्कूल के फंक्शन में जाता था और टीचर से मिलकर उसे स्कूल पहुंचाकर मैं शूटिंग पर सुबह 11 बजे चला जाता था. बेटे के बीमार होने पर पूरी रात शूट कर उसके पास दिन में रहता था. तब मैंने सोचा कि मैं या तो बच्चा सम्हालूँ या काम करूँ. दोनों काम एक साथ करने में बहुत मुश्किल हो रहा था. जब हमारी अनबन चल रही थी, उस दौरान मेरे पिता की भी मृत्यु हो गयी थी. उस समय मेरा बेटा बहुत छोटा था और तीसरी कक्षा में पढता था. एक बार उसकी छुट्टियां शुरू होने पर उसे कहाँ रखूं उसकी समस्या हो रही थी. उसे मैं अपनी माँ के पास भी छोड़ नहीं सकता था, क्योंकि पिता की मृत्यु के बाद माँ बीमार रहने लगी थी. मैं सोचता था कि बेटे को हमारी बातें न बताई जाय, ताकि उसके मन पर गहरा चोट न लगे. इसलिए पहले की तरह ही बच्चे की देखभाल करता रहा. अभी मैंने उसे होस्टल में डाल दिया  है, क्योंकि अब वह 12 साल का हो चुका है. लॉकडाउन की वजह से अभी वह मेरे साथ मुंबई में है.

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रिश्ता दोस्ती का

ऋषिकेश का बेटे दक्षय के साथ दोस्ती का रिश्ता है. उसे वे ऐसा माहौल देना चाहते है, जिससे उनका बेटा उनसे कुछ न छुपा सकें. ऋषिकेश खुद भी कोई बात बेटे से छुपाते नहीं. कई बार अनुशासन में रखने के लिए थोड़ी कड़क व्यवहार करते है. वैसे दक्षय शांत बच्चा है, वह अपनी पढाई और खेल पर ही समय बिताता है.

होते है बच्चे परेशान

ऋषिकेश का आगे कहना है कि भारत में ऐसे कई घर है, जो आपसी मनमुटाव के बाद भी रिश्ते को सम्हालने की कोशिश करते है, क्योंकि वे परंपरा में बंधकर कर उस रिश्ते को निभाने के लिए मजबूर होते है. मेरा परिवार भी पारंपरिक विचारों वाला है, लेकिन कभी-कभी ऐसे रिश्ते को निभाना संभव नहीं होता. इसके अलावा हर इंसान को ख़ुशी से जीने का अधिकार है, फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला. मैं किसी के साथ बदतमीजी करना, गाली-गलौज देना पसंद नहीं करता. मैंने कई सेलेब्रिटी को आपस में अनबन होने पर बदतमीजी करते हुए सुना है. मेरी कोशिश ये रही है कि बच्चा माता-पिता के व्यवहार से परेशान न हो और सारी चीजें पहले की तरह रहे, क्योंकि माता-पिता के अनबन में बच्चों को सबसे अधिक भुगतना पड़ता है, जबकि उनकी कोई गलती नहीं होती.

तलाश कुछ अलग काम की

आर्मी बैकग्राउंड से सम्बन्ध रखने वाले ऋषिकेश के माता-पिता चाहते थे कि वे मेडिकल फील्ड में जाए, लेकिन उन्हें कुछ अलग करने की इच्छा रही. अभिनय के बारें में सोचा नहीं था, क्योंकि मुंबई में रहना और खाना-पीना महंगा है और कोई रिश्तेदार भी वहां नहीं था. वे कहते है कि मुंबई आकर रहना मेरे लिए बहुत संघर्षपूर्ण था. मैंने शुरू में मुंबई आकर एक मार्केटिंग एजेंसी के लिए काम किया. वही परलोगों से मिलना शुरू हुआ. पहले मॉडलिंग शुरू की और एकता कपूर की धारावाहिक ‘कोई अपना सा’ के लिए ऑडिशन दिया और हीरो की भूमिका मिली. इसके बाद कहानी घर-घर की, कामिनी दामिनी, सी आईडी, पोरस आदि कई धारावाहिकों में मुख्य और सपोर्टिंग किरदार निभाया है. एकता कपूर की सीरियल करने के बाद मुझे पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. अभी मैं ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में काम कर रहा हूँ. इसके अलावा अजय देवगन की एक फिल्म भी कर रहा हूँ. जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव रहे है, लेकिन जब मैं अर्ली ट्वेंटी में था, तो मैंने शादी कर ली.

अच्छी थी दोस्ती

ऋषिकेश की तृषा से मुलाकात एक दोस्त की वजह से हुई थी.तृषा ने भी एक म्यूजिक वीडियो में काम किया था और अपने पिता का व्यवसाय कफपरेड में सम्हालती थी. ऋषिकेश शुरू से ही कोलाबा में रहता है और उनके सामने वाला घर तृषा का था. कई सालों की परिचय के बाद दोनों ने शादी की और बेटा दक्षय हुआ.

लिया कस्टडी बेटे का

बच्चे की कस्टडी ऋषिकेश ने ली है, इसकी वजह पूछने पर वे कहते है कि बचपन से मैं उसकी देखभाल कर रहा हूँ. कहीं भी घूमने जाना हो या व्यायाम करने, मैं बेटे को अपने साथ लेकर जाता था. बचपन से ही मैंने उसका दायित्व लिया है. इसलिए उसकी कस्टडी मैंने लिया है, लेकिन मैं यह भी देखता हूँ कि जब उसका मन करें अपनी माँ से मिले. इसमें मुझे किसी प्रकार की समस्या नहीं है.अभी लॉकडाउन में मैंने खाना बनाने के अलावा घर की साफ़-सफाई सब किया है, उसे नॉन-वेज बहुत पसंद है, खासकर चिकन बहुत पसंद है.

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समझदार है बच्चे

दक्षय अभी 12 साल का है और ऋषिकेश ने उन्हें अपनी रिश्ते के बारें में कभी नहीं बताया, लेकिन बेटे की समझ को देखकर चकित हुए. उनका कहना है कि दक्षय छोटा होने की वजह से मैंने उसे कुछ नहीं कहा, जब भी जरुरत होती, मैं उसकी माँ से मिलवा देता था, ताकि उसे हम दोनों के अलग होने के बारें में पता न चले, लेकिन आज के बच्चे बहुत समझदार होते है. एक बार ट्रेवल करते वक्त वह मुझे तनाव न लेने की बात समझा रहा था. इसके बाद मैंने उसे सारी बातें खुलकर बता दिया, ताकि वह किसी दूसरे से जानने से पहले, मेरा बता देना जरुरी है.

 

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फुटबॉल खेलने का है शौक़ीन

अक्षय को फुटबॉल खेलना पसंद है, इसलिए वह फुटबॉलखिलाड़ी रोनाल्डो का फैन है. फुटबॉल खेलकर उसने गोवा में गोल्ड मैडल भी जीता है. ऋषिकेश कहते है कि उसे टीवी देखना पसंद नहीं और न ही मेरे किसी शो को देखता है. कई बार मैंने जानबूझकर टीवी लगाया पर वह देखता नहीं. शूटिंग पर भी साथ जाना पसंद नहीं करता. वह केवल रोनाल्डो से मिलना चाहता है. मैं अपने बेटे को एक अच्छा इंसान बनाना चाहता हूँ, क्योंकि आज के लोग चकाचौध की जिंदगी और मटेरियलिस्टिक अधिक हो चुके है. मैंने सालों से ये महसूस किया है कि जाति-पाति, धर्म-अधर्म, ऊँच-नीच सिर्फ लोगों को बाँटने का काम करती है और सबको उससे निकलकर जरुरतमंदों की सहायता करना चाहिए. अभिनय मेरा काम से अधिक कुछ भी नहीं और न ही मैं कुछ स्पेशल हूँ. नए जेनरेशन को सबको रेस्पेक्ट करने की बात समझ में आनी चाहिए, जिसे हम खो रहे है.

Father’s day Special: सोशलमीडिया छोड़ दें तो हर जगह संकट में पिता और पितृत्व

यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में यक्ष, युधिष्ठिर से पूछता है, ‘आसमान से भी ऊंचा क्या है ?’ युधिष्ठिर कहते हैं, ‘पिता’ और यक्ष खुश हो जाता है. आगामी फादर्स डे पर सोशल मीडिया में भी हम पिता नामक प्राणी को कुछ ऐसे ही अलंकरणों से सुशोभित होते देख, सुन और पढ़ सकते हैं. इस दिन पिता का गुणगान करने वाले कुछ प्रकार के शेर भी पढ़ने को मिलेंगे-

लिखके वालिद की शान कागज पर रख दिया आसमान कागज पर लेकिन इन रस्मी बुलंदियों से पिता और पितृत्व को लेकर कोई भ्रम भले हम पाल लें हकीकत यह है कि पिता और पितृत्व दोनो ही संकट में हैं. यह कोई अपने देश की बात नहीं है पूरी दुनिया में इन पर ये संकट मंडरा रहा है.  अब अगर हम इस भूमंडलीय युग में भी यह कहें कि दुनिया से हमें क्या लेना देना तब तो अलग बात है नहीं तो हकीकत हमारी नींद उड़ा देगी. भारत सहित ज्यादातर एशियाई देशों में तो फिर भी अभी गनीमत है, लेकिन अमरीका और यूरोपीय देश तेजी से अनुपस्थित पिता वाले समाज बनते जा रहे हैं. अनुपस्थित पिता यानी जिनकी पिता के तौरपर भौतिक मौजूदगी संतान को हासिल नहीं है.

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अमरीका और यूरोप में बहुत तेजी से अनाथ बच्चों का समाज बन रहा है. इसकी वजह यही है अदृश्य या अनुपस्थित पिता. हालांकि समाजशास्त्री पिता के अस्तित्व पर इस संकट को कोई बहुत ताजा संकट नहीं मान रहे. उनके मुताबिक पिता नाम की संस्था पर संकट का यह सिलसिला तो औद्योगिक क्रांति के बाद से ही शुरू हो गया था.

लेकिन अभी तक यह बात दबी छुपी थी तो इसलिए कि जिंदगी को आमूलचूल ढंग से बदल देने वाली इतनी सारी और इतनी संवेदनशील तकनीकें नहीं थीं लेकिन हाल के दशकों में रोजमर्रा के जीवन में उन्नत तकनीकों की जो  बमबारी हुई है उससे पिता नाम की अथॉरिटी पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हो गयी है. पितृत्व पर अपनी मशहूर किताब, ‘सोसायटी विदाउट द फादररू ए कंट्रीब्यूशन टू सोशियल साईकोलोजी’ में अलेक्जेंडर मित्सर्लिच ने पिछली सदी के नब्बे के दशक में ही कह दिया था कि परिवार में पिता की शक्ति का लगातार ह्रास हो रहा है. हालांकि यह सब कुछ  किसी साजिश के तहत नहीं हो रहा. यह होना एक किस्म से स्वाभाविक है. क्योंकि पिता नाम की संस्था ने सदियों तक अपने पास बहुत सारी सत्ताओं को समेट रखा था, उन्हें कभी न कभी तो हाथ से निकलना ही था. अब वे तमाम सत्ताएं धीरे-धीरे उसके हाथ से निकल रही हैं. मसलन पितृत्व की ताकत धीरे-धीरे पुरुषत्व की मुट्ठी से बाहर निकलती जा रही है.

रटगर्स यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के एक प्रोफेसर डेविड पॉपिनो का कहना है कि अगर वर्तमान रुझान जारी रहता है तो इस सदी के अंत तक अमरीका में पैदा होने वाले 50 प्रतिशत बच्चे जैविक पिता की संतान होंगे कहने का मतलब यह कि ये अनुपस्थित पिता या स्पर्म बैंक से खरीदे गए स्पर्म की संतानें होंगी. पिता की अथॉरिटी को यह बहुत बड़ा झटका होगा. आज भी अमरीका में पैदा होने वाले करीबन 30 प्रतिशत बच्चों के या तो पिता ज्ञात नहीं होते या जैविक होते हैं. लेकिन रुकिए पिता नाम के जीव की शान पर यह कोई अकेला संकट नहीं है और भी तमाम संकट टूट पड़े हैं, मसलन-पूरी दुनिया में यहां तक कि पारंपरिक एशिया और अफ्रीका के समाजों तक में गार्जियनशिप पर अब अकेले पिता का दबदबा नहीं रहा. बड़े पैमाने पर बच्चों के प्रथम अभिभावक के रूप में अब मांओं का नाम दर्ज हो रहा है. वह जमाना गया जब स्कूल में एडमिशन के लिए पिता का नाम जरूरी था.

परिवारों में पिता की केन्द्रीय भूमिका तेजी से छीज रही है. बहुत तेजी से परिवार का केन्द्रीय ढांचा मांओं और बच्चों पर केंद्रित हो रहा है जैसे मान लिया गया हो परिवार का स्थाई ढांचा तो उन्हीं से बनता है, पुरुष तो इस ढांचे में आता जाता रहता है. कहने का मतलब वह महत्वपूर्ण है भी और नहीं भी है. पश्चिमी देशों में स्वास्थ्य देखभाल एजेंसियों को स्पष्ट निर्देश हैं कि वे परिवार के नाम पर वो मां और बच्चों की चिंता करें. धीरे-धीरे तमाम संगठनों द्वारा पिता की चिंता करना छोड़ा जा रहा है सिवाय उन कुछ देशों के जहां जनसंख्या की वृद्धि लगातार नकारात्मक होती जा रही है. आज पश्चिमी देशों में गर्भावस्था, श्रम और प्रसव के संदर्भ में तमाम नियुक्तियां मां को ध्यान में रखकर, उनकी सहूलियत के हिसाब से होती हैं. स्कूल रिकॉर्ड और परिवार सेवा संगठनों में फाइलें अक्सर बच्चे और मां के नाम पर होती हैं, पिता के नहीं. अस्पतालों में दीवारों के रंग हल्के होते हैं क्योंकि उन्हें महिलाओं और बच्चों की पसंद को  ध्यान में रखकर रंगा जाता है. अधिकांश परिवार कल्याणकारी दफ्तरों में, जब बैठकें  होती है तो उनमें पिता को आमंत्रित करना जरूरी नहीं समझा जाता है. ये सब बातें हैं जो बताती हैं कि पिता का अस्तित्व संकट में है.

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वैसे व्यवहारिक दुनिया में पिता इसलिए भी हाल के सालों में बैकफुट हुए हैंय क्योंकि दैनिक इस्तेमाल में आने वाले तमाम उपकरणों ने अचानक उन्हें अपने बच्चों से काफी पीछे कर दिया है. मानव इतिहास के किसी भी मोड़ में पिता और उनकी संतानों के बीच तकनीकी समझ और इस्तेमाल में इतना फासला पहले कभी नहीं रहा जितना हाल के सालों में देखा गया है. रहीस से रहीस घरों में भी पिताजी स्मार्ट फोन के इस्तेमाल में अपने बच्चों से पीछे हैं. अगर उन्हें इसकी समझ है भी तो भी वे अपने बच्चों से रफ्तार के मामले में बहुत धीमें हैं.

पिता अपने बच्चों के मुकाबले  तमाम उपकरणों के बहुत कम फीचरों का इस्तेमाल करना जानते हैं. आज की दैनिक जिंदगी में जीवनशैली के रूप में जितनी भी तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है, उन सबमें पिता अपनी संतानों से समझ और उनके संचालन में पिछड़ गया है. इसलिए आज के पिता के पास कई दशकों पहले वाले पिता की तरह अपनी संतान के हर सवाल का जवाब नहीं है. यह बात पिता को भी मालूम है और उसकी संतानों को भी. यही कारण है कि आज के बच्चे छूटते ही कह देते हैं अरे छोड़ो आपको क्या मालूम ? पहले ऐसा नहीं था. पहले कौशल के मामले में पिता और संतान के बीच इतना बड़ा जनरेशन गैप नहीं था. इसलिए अब पिता बच्चों के लिए आसमान से भी ऊंचे नहीं रहे.

हालांकि नई पीढी की यह अग्रता बहुत दिनों तक नहीं चलने वाली. अगले 15-20 सालों में पिता और उनकी संतानों के व्यवहारिक तकनीकी ज्ञान एक स्तर के हो जायेंगे. लेकिन सवाल है कि क्या तब तक पिता नाम के शख्स की अथॉरिटी बचेगी ?

Father’s day Special: जानें हुमा कुरैशी को अपने पिता से क्या सीख मिली

मॉडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री हुमा कुरैशी दिल्ली की है. हुमा को अभिनय पसंद होने की वजह से उन्होंने दिल्ली में पढाई पूरी कर थिएटर ज्वाइन किया और कई डॉक्युमेंट्री में काम किया. वर्ष 2008 मेंएक फ्रेंड के कहने पर हुमा फिल्म ‘जंक्शन’ की ऑडिशन के लिएमुंबई आई,लेकिन फिल्म नहीं बनी. इसके बाद उन्हें कई विज्ञापनों का कॉन्ट्रैक्ट मिला. एक मोबाइल कंपनी की शूटिंग के दौराननिर्देशक अनुराग कश्यप ने उनके अभिनय की बारीकियों को देखकर फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ के लिए साइन किया. उन्होंने इस फिल्म की पार्ट 1 और 2 दोनों में अभिनय किया. फिल्म हिट हुई और हुमा को पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. हुमा की कुछ प्रसिद्ध फिल्में ‘एक थी डायन, डी-डे, बदलापुर, डेढ़ इश्कियां, हाई वे, जॉली एल एल बी आदि है. हुमा ने आजतक जितनी भी फिल्मे की है, उनके अभिनय को दर्शकों और आलोचकों ने सराहा है, जिसके फलस्वरूप उन्हें कई पुरस्कार भी मिले है. हिंदी फिल्म के अलावा हुमा ने हॉलीवुड फिल्म ‘आर्मी ऑफ़ द डेड’ भी किया है.

हुमा जितनी साहसी और स्पष्टभाषी दिखती है, रियल लाइफ में बहुत इमोशनल और सादगी भरी है. हुमा की दोस्ती सभी बड़े स्टार और निर्देशक से रहती है. हुमा को केवल एक फिल्म करने की इच्छा थी, लेकिन अब कई फिल्मों और वेब सीरीज उनकी जर्नी में शामिल हो चुकी है. हुमा की वेब सीरीज ‘महारानी’ ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लाइव पर रिलीज हो चुकी है, जिसमें हुमा ने ‘रानी भारती’ की भूमिका निभाई है, जो बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी से प्रेरित है. इस वेब सीरीज की सफलता पर हुमा ने बात की, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल-सफलता को हमेशा ही सेलिब्रेट किया जाता है, लेकिन इस कोविड महामारी में हर व्यक्ति अपने भविष्य को लेकर चिंतित है, आप इस माहौल में सफलता को कैसे सेलिब्रेट करना चाहती है?

सफलता और असफलता को मैं अपने जीवन में अधिक महत्व नहीं देती, क्योंकि सफलता के मूल में मैं वही लड़की हूँ, जो दिल्ली से अभिनय के लिए आई और सफल नहीं थी. मैं कोशिश करती हूँ कि मैं कभी न बदलूँ, जैसा पहली थी, अभी भी वैसी ही रहना चाहती हूँ. वेब सीरीज के सफल होने के पीछे अच्छी टीम, सही कहानी,सही निर्देशक,सही कैमरामैन,सही स्क्रिप्ट राइटर आदि सबकी समय और मेहनत का नतीजा है, जिसके फलस्वरूप कहानी में रियलिटी दिखी, जिसे दर्शक पसंद कर रहे है.

सवाल-इस भूमिका को निभाने में कितनी तैयारियां करनी पड़ी?

इसकी स्क्रिप्ट बहुत अच्छी तरह से लिखी गयी थी, इसलिए इसे पढ़ा, समझा और इसे छोटे-छोटे पार्ट में तैयारी की, क्योंकि ये महिला गांव की है और वहां से वह कभी पटना भी नहीं गयी है. गांव में वह कभी स्कूल नहीं गयी, साइन नहीं की है, काम में हमेशा फंसी रहती है. देखा जाय तो मेरी निजी जिंदगी इस भूमिका से बहुत दूर है. मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती जिसे आप जानते हो,उसे अभिनय में अनभिज्ञ रहने से था. मसलन मुझे हस्ताक्षर करना आता है, लेकिन अभिनय में कोशिश करने पर भी हस्ताक्षर नहीं कर पा रही हूँ. इस दृश्य को करना मेरे लिए बहुत चुनौती थी.

सवाल-क्या राजनीति में आपको आने की इच्छा है?

नहीं, मुझे कभी भी राजनीति पसंद नहीं. मैं दिल्ली की गार्गी कॉलेज में पढ़ती थी, जो लड़कियों की है. उस कॉलेज ने मुझे महिला सशक्तिकरण का सही अर्थ में सिखाया, क्योंकि लड़कियों से दोस्ती करना, उनके व्यवहार को समझना, फिमेल बोन्डिंग को देखना आदि सब महिला कॉलेज में अलग होता है. मुझे बेसिक ह्यूमैनिटी समझ में आती है, पर पॉलिटिक्स नहीं समझ में आती. कॉलेज में मैं ड्रामा सोसाइटी की प्रेसिडेंट थी, लेकिन उसमें कोई चुनाव नहीं होता था. (हंसती हुई) मैं कॉलेज की थोड़ी गुंडी अवश्य थी.

सवाल-कोविड महामारी में फिल्म इंडस्ट्री को बहुत अधिक लॉस हुआ है,थिएटर बंद है,ऐसे में ओटीटी प्लेटफॉर्म अच्छा साबित हो रही है, क्योंकि इस पर वेब सीरीज के साथ-साथ फिल्में भी रिलीज हो रही है, पर ओटीटी पर एक या डेढ़ घंटे की फिल्म को भी दर्शक देखना नहीं चाहते, जबकि वेब सीरीज, लंबी होने पर भी दर्शक उसे देखना पसंद करते है, इस बारें में आपकी सोच क्या है?

ये सही है कि कोरोना ख़त्म होने पर और सारे लोगों को वैक्सीन लगने के बाद ही हॉल खुल सकते है. थिएटर हॉल खुलने में अभी देर है, ऐसे में ओटीटी ही मनोरंजन का एकमात्र माध्यम रह गया है. ये सही है कि दर्शकों को आगे चलकर थिएटर हॉल में लाना मुश्किल होगा, लेकिन जिस तरह से माँ के हाथ का खाना सबको पसंद होता है, लेकिन कभी- कभी परिवार, दोस्तों और बॉय फ्रेंड के साथ, तैयार होकर बाहर जाने में भी अच्छा लगता है. असल में ये सब अलग-अलग अनुभव है, जो लाइफ में होना जरुरी है और लोग इसे एन्जॉय भी करते है. वैसे ही कभी घर पर बैठकर फिल्में देखना या कभी बाहर जाकर फिल्में देखने का अनुभव अलग होता है. दोनों ही अनुभव हमारे जीवन में अहमियत रखते है. मैं भी थिएटर हॉल खुलने का रास्ता देख रही हूँ, बड़े स्क्रीन पर एक बड़ा सा पॉपकॉर्न हाथ में लेकर खाते हुए बहुत सारे लोगों के साथ फिल्म देखने का मज़ा ही कुछ और है.

दो घंटे की फिल्म में कहानी के मुख्य पात्र को ऊपर-ऊपर से दिखाया जाता है. हीरो, हिरोइन दोनों मिले, गाना गाया, प्यार हो गया, मारपीट कुछ ऐसा ही चलता रहता है, लेकिन फिल्म के बाकी चरित्र, रीजन, कल्चर आदि को समझने का समय नहीं होता. सीरीज मजेदार लगने की वजह कहानी की भाषा, सहयोगी पात्र, संस्कृति, कलाकारों के भाव आदि सब दिखाने के लिए समय होता है. मसलन मैंने महारानी वेब सीरीज में वहां की रीतिरिवाज, संस्कृति, दही चिवडा आदि को मैंने नजदीक से देखा और अभिनय किया. असल में ऐसे किसी भी दृश्य से जब दर्शक खुद को जोड़ लेते है, तो उसे वह कहानी अच्छी लगने लगती है.

सवाल-आपने इंडस्ट्री में करीब 10 साल बिता चुकी है और बॉलीवुड, हॉलीवुड और साउथ की  फिल्मों में काम किया है, आप इस जर्नी को कैसे देखती है?

ये सही है कि मैंने एक सपना देखा है और अब वह धीरे-धीरे पूरा हो रहा है. मैंने हमेशा से अभिनेत्री बनना चाहती थी, लेकिन कैसे होगा पता नहीं था. समय के साथ-साथ मैं आगे बढ़ती गयी. मैं चंचल दिल की लड़की हूँ और अपने काम से अधिक संतुष्ट नहीं हूँ. मैं कलाकार के रूप में हर नयी किरदार को एक्स्प्लोर करना चाहती हूँ.

सवाल-क्या ओटीटी की वजह से आपको अधिक मौके मिल रहे है?

अभी तो थिएटर बंद है, ऐसे में ओटीटी ही एकमात्र माध्यम है. आगे मेरी फिल्में भी डिजिटल मिडिया पर रिलीज होंगी, क्योंकि अभी फिल्म बनाया जा सकता है, लेकिन थिएटर न खुलने से वह बेकार हो जाती है. मैंने दो सीरीज ही की है. लैला और महारानी, दोनों को करने में मुझे मज़ा बहुत आया. मुझे ही नहीं सभी कलाकारों को काम मिल रहा है.

सवाल-किसी भी महिला राजनेत्री अगर कम पढ़ीलिखी या अनपढ़ हो, तो उसे पुरुषों के मजाक कापात्र बनना पड़ता है, उनके काम को अधिक तवज्जों नहीं दी जाती,ऐसा आये दिन हर जगह महिलाओं के साथहोता रहता है, इसकी वजह क्या समझती है?

मेरे हिसाब से महिलाएं,चाहे किसी भी क्षेत्र में काम करती हो, पर्दे के सामने या पर्दे के पीछे हो, भेदभाव है, एक ग्लास सीलिंग है, सभी उसे तोड़ने की लगातार कोशिश कर रही है. कई बार ऐसा करने से समाज और दोस्त रोक देते है, तो कई बार महिला खुद अपनी सफलता से डर जाती है. ये एक प्रकार की कंडीशनिंग ही तो है. महिलाओं को ग्रो करने के लिए कहा जाता है, लेकिन एक दायरे के बाद उन्हें रोक दिया जाता है. वजह कुछ भी नहीं होती, लेकिन चल रहा है. वुमन एम्पावरमेंट में पुरुष और महिला में भेदभाव न करना,लड़के और लड़की को समान समझना आदि के बारें में बात की जाती है, लेकिन रिजल्ट कुछ खास नहीं दिखता. हालाँकि पहले से अभी कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अभी और अधिक सुधार की जरुरत है. सभी महिलाएं यहाँ अपनी दादीयां, माँ, बहन, पड़ोसन आदि की वजह से ही आगे बढ़े है. मेरी जिंदगी में बहुत सारी औरतों ने मेरा साथ दिया है. महारानी शब्द को भी लोग. चिड में लड़की या महिला कहते है और ये नार्मल बात होती है.

 

सवाल-फादर डे के मौके पर पिता के साथ बिताये कुछ पल को शेयर करे, उनका आपके साथ बोन्डिंग कैसी रही?

मेरे पिता सलीम कुरैशी बहुत ही अच्छे सज्जन है, उन्होंने हमेशा मेहनत कर आगे बढ़ने की सलाह दी है. उन्होंने 4 साल पहले 10 रेस्तरां की श्रृंखला (Saleem’s) दिल्ली में खोला है. उन्होंने अपना व्यवसाय एक छोटे से ढाबे से शुरू किया था,लेकिन उनकी मेहनत और लगन से वह बड़ी हो चुकी है. उनके उस छोटे ढाबे की विश्वसनीय मुगलई पाकशैली सबको हमेशा पसंद आती थी. इन रेस्तरां की मुगलई भोजन आज भी प्रसिद्ध है.मेरी माँअमीना कुरैशी हाउसवाइफ है, लेकिन उन्होंने हमारे हर काम में सहयोग दिया है. मैंने अपनी पिता से कठिन श्रम, पैशन और अपने काम पर फोकस्ड रहने की सीख ली है.

सवाल-आपने दिल्ली में एक टेम्पररी हॉस्पिटल कोविड पेशेंट के लिए खोला है,ताकि कोरोना पेशेंट को सुविधा हो, उसके बारें में बतायें और एक नागरिक होने के नाते देश को क्या सीख मिली?

एक महीने पहले बहुत सारे लोग बीमार पड़ रहे थे और मुझे कईयों के फ़ोन बेड और ऑक्सीजन के लिए आ रहे थे, मैंने फंड इकठ्ठा किया और दिल्ली के तिलक नगर में 100 बेड कोरोना रोगियों के लिए और 70 ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर की व्यवस्था की है. अभी 50 प्रतिशत ही पैसा इकठ्ठा हुआ और कोशिश की जा रही है. इसके अलावा मैं वहां 40 बेड की एक सेटअप बच्चों के लिए करना चाहती हूँ, ताकि तीसरी लहर में बच्चों को सुरक्षित रखा जाय. मेरी समझ से मेडिकल के क्षेत्र में अब इन्वेस्ट करना चाहिए, ताकि जो लोग अस्पताल के बाहर एक बेड और ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे, वो दृश्य वापस हमें देखने को न मिले.

महामारी जब आती है, तब वह पैसा, अमीरी-गरीबी, ऊँच-नीच आदि कुछ नहीं देखती, ऐसे में देश को अपने लोगों को सुरक्षित रखने के लिए हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और वैज्ञानिक शिक्षा पर इन्वेस्ट करने की जरुरत है. इसके लिए एक प्लानिंग के द्वारा इन्वेस्ट करना चाहिए. इसके अलावा इस महामारी में अनाथ हुए बच्चों को सही तरह से एस्टाब्लिश करना है, ताकि उनकी शिक्षा और हेल्थ का ध्यान रखा जा सकें.

Father’s Day Special: पापा जल्दी आ जाना

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