मेरी उम्र 42 साल है, कई दिनों से मेरी पीठ और हाथों में अचानक दर्द होने लगता है,दर्द से कैसे छुटकारा पाऊं?

सवाल

मेरी उम्र 42 साल है. कई दिनों से मेरी पीठ और हाथों में अचानक दर्द होने लगता है. पीठ के दर्द की तीव्रता हर बार अलग होती है. मलमूत्र में भी समस्या हो रही है और कभीकभी पैरों में भी दर्द होता है. क्या ये किसी बीमारी के लक्षण हैं या कोई सामान्य समस्या हैदर्द से कैसे छुटकारा पाऊं?

जवाब

आप के द्वारा बताए गए सभी लक्षण स्पाइनल इन्फैक्शन की ओर इशारा करते हैं. हालांकि समस्या कोई और भी हो सकती हैइसलिए एमआरआई करवा के सही समस्या की पुष्टि करें. इस में रीढ़ का आकार खराब हो सकता हैइसलिए इलाज में देरी बिलकुल न करें.

स्पाइनल संक्रमण का सब से सामान्य उपचार इंट्रावीनस ऐंटीबायोटिक दवाइयों के सेवनब्रेहेसग और शरीर को पूरी तरह आराम देने के साथ शुरू होता है. वर्टिब्रल डिस्क में रक्तप्रवाह ठीक से नहीं हो पाता हैइसलिए जब बैक्टीरिया अटैक करता है तो शरीर की इम्यून कोशिकाओं और ऐंटीबायोटिक दवाइयों को संक्रमण के स्थान तक पहुंचने में मुश्किल होती है.

वहीं ब्रेसिंग संक्रमण के उपचार के दौरान रीढ़ को सही आकार में रखने में मदद करती है. 7-8 हफ्तों के लिए ऐंटीबायोटिक्स का सेवन करने के लिए कहा जाता हैसाथ ही ब्रेसिंग की जाती है जो संक्रमण के ठीक होने तक रीढ़ को सही आकार में रखने में मदद करती है.

इस का दूसरा इलाज सर्जरी हैजिस की सलाह तब दी जाती है जब संक्रमण पर मैडिकेशन का कोई असर नहीं पड़ता है.

World Hearing Day 2024: कान बहने की समस्या को न लें हल्के में, जानें एक्सपर्ट की राय

World Hearing Day 2024: कान और उसकी हेल्थ के बारे में सीके बिरला हॉस्पिटल गुरुग्राम में लीड ईएनटी कंसल्टेंट डॉक्टर अनिष गुप्ता ने विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि पिछले कुछ समय में मिडल ईयर में बहाव के साथ ओटिटिस मीडिया का प्रसार काफी तेजी से बढ़ा है. इस परेशानी को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है लेकिन अगर इसका इलाज न कराया जाए तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं. 3 मार्च को मनाए जाने वाले वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर को देखते हुए ये जरूरी है कि सुनने की क्षमता वाली इस परेशानी के बारे में चर्चा की जाए और इसके खतरे के बारे में समझा जाए.

बहाव के साथ ओटिटिस मीडिया (ओएमई) होने के कई कारण हो सकते हैं जिसमें लगातार कोल्ड होना, एलर्जी, वायरल इंफेक्शन, एडेनोओडाइटिस और एडेनोइड हाइपरट्रॉफी शामिल है. इससे मिडल ईयर यानी मध्य कान का इंफेक्शन हो सकता है या मिडिल ईयर में धीरे-धीरे वेंटिलेशन की समस्या हो सकती है.

ओएमई की घटनाएं खासकर कोविड काल के बाद ज्यादा बढ़ी हैं और इसकी वजह एडेनोइड संक्रमण और हाइपरट्रॉफी को माना जाता है. हालांकि, कोविड वायरस से इसका डायरेक्ट रिलेशन स्थापित होना अभी बाकी है, लेकिन हाल के वक्त में ओएमई के मामलों में 25 से 30 फीसदी का इजाफा हुआ है. 3 से 6 साल के बच्चों को इस समस्या की गिरफ्त में आने का ज्यादा खतरा है, ऐसे में उनकी लगातार स्क्रीनिंग और चेकअप कराने की जरूरत है. जिन बच्चों को एडोनोइड हाइपरट्रॉफी, बार-बार सर्दी, खांसी और एलर्जी होती है, उनके लिए ये जरूरी है.

अगर ओएमई की समस्या की पहचान वक्त पर न हो पाए या फिर इलाज में देरी हो जाए तो इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं. ईयरड्रम को डैमेज हो सकता है, और फिर कान की बीमारी हो सकती है. इस सबके कारण सुनने की क्षमता कम हो सकती है, कान बहने लगते हैं और दूसरी अन्य समस्याएं भी हो जाती हैं. ऐसे में ओएमई के नकारात्मक प्रभाव से बचाव के लिए इससे बचाव और शुरुआती इंटरवेंशन बेहद जरूरी है. समय पर इलाज से ओएमई की समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है और सुनने की क्षमता को बचाया जा सकता है.

जिन लोगों को ये समस्या होने का खतरा है उनकी लगातार स्क्रीनिंग कराने की जरूरत है. मां-बाप, केयर टेकर और मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े लोगों के बीच अवेयरनेस फैलाने के साथ ही ओएमई के शुरुआती लक्षणों के बारे में सबको बताने की जरूरत है ताकि समय पर इलाज किया जा सके.

शैक्षिक अभियान और सामुदायिक आउटरीच प्रोग्राम ओएमई की रोकथाम और मैनेजमेंट में अहम भूमिका निभा सकते हैं. कान की हेल्थ के बारे में लोगों को सचेत करके, इसके अर्ली डिटेक्शन की जानकारी देकर हम संयुक्त रूप से ओएमई से संबंधित परेशानियों से बचाव कर सकते हैं.

इस वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर पर सब लोग मिलकर कान और सुनने की क्षमता पर ध्यान दें, ओएमई से संबंधित रिस्क के बचाव के बारे में जागरूकता फैलाएं. हम सब मिलकर ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि हर व्यक्ति की समय पर जांच हो, समय पर इलाज मिले और उनकी सुनने की शक्ति प्रभावित न हो. आइए मिलकर ऐसे समाज की कल्पना करें जहां हर शख्स को कान की सेहत से जुड़े मामलों में बेहतर से बेहतर ट्रीटमेंट मिल सके और वो मिडिल ईयर की समस्याओं से निजात पा सकें.

डिलीवरी से पहले कराएं Prenatal Testing ताकि ले सकें समय रहते महत्वपूर्ण फैसला

35 वर्षीय स्नेहा को जैसे ही पता लगा कि वो गर्भवती है उसे सैकड़ो चिताओं ने घेर लिया.वो ये सोच सोच कर परेशान रहती थी ,” लेट प्रेगनेंसी के साइड इफेक्ट्स बहुत ज्यादा होते है.उसका आने वाला बच्चा स्वस्थ होगा कि नहीं?”

एक दिन चेकअप के दौरान स्नेहा ने अपने मन का डर डॉक्टर से साझा किया तो उन्होंने स्नेहा को प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट सजेस्ट किये.क्या होता है प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट आप भी जान लीजिए.

प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग के तहत् कुछ ऐसी जांच शामिल होती हैं जो अजन्मे शिशु में संभावित आनुवांशिक विकारों (जेनेटिक डिसऑडर्र) की पुष्टि करती हैं.आनुवांशिक विकार किसी व्यक्ति की जीन्स में होने वाले बदलावों के कारण पैदा होते हैं.इन परीक्षणों से क्रोमोसोम में कम/अतिरिक्त क्रोमोसोम (डाउन्स सिंड्रोम) या जीन्स में होने वाले बदलावों, यानि म्युटेशंस (थैलसीमिया) का पता लगाया जाता है.जरूरी नहीं कि जेनेटिक डिसॉर्डर का कारण हमेशा आनुवांशिक ही हो.

डॉ तलत खान, डॉक्टर इंचार्ज, मेडिकल जेनेटिक्स, मैट्रोपोलिस हैल्थकेयर लिमिटेड के मुताबिक सभी गर्भवती महिलाओं को ये जांच जरूर करवानी चाहिए.दरअसल आंकड़ों के मुताबिक मैट्रोपॉलिस हैल्थकेयर लैबोरेट्री में 1 साल में प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग करवाने वाली 50,000 महिलाओं में से करीब 4 फीसदी की रिपोर्ट पॉजिटिव आयी.जो कि चिंताजनक है.लेकिन परेशानी ये है कि भारत में इस विषय पर अभी भी खुलकर बातचीत नहीं होती और यही कारण है कि जागरूकता स्तर को बेहतर बनाए जाने की जरूरत है.

अमेरिकल कॉलेज ऑफ ऑब्सटैट्रिशियन्स एंड गाइनीकोलॉजिस्ट्स (ACOG) की नवीनतम गाइडलाइंस और फेडेरेशन ऑफ ऑब्सटैट्रिक्स एंड गाइनीकोलॉजिकल सोसायटीज़ ऑफ इंडिया (FOGSI) के मुताबिक, सभी गर्भवती महिलाओं की एन्यूप्लोइडी (aneuploidy) के लिए प्रीनेटल जेनेटिक टेस्टिंग की जानी चाहिए और यह गर्भवती की उम्र या अन्य किसी भी रिस्क फैक्टर्स के संदर्भ के बगैर होनी चाहिए.
प्रेग्नेंसी की शुरुआत होते ही जल्द से जल्द जेनेटिक टेस्टिंग पर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए यानी पहले ट्राइमेस्टर के दौरान क्योंकि 10 से 18 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के समय ही जांच करवाने की सलाह दी जाती है.
सभी गर्भवती महिलाओं की जांच उनकी गेस्टेशनल एज के मुताबिक डुअल मार्कर टेस्ट (11 से 13.6 हफ्ते), क्वाड्रपल मार्कर टेस्ट (14 से 17 हफ्ते) और नॉन-इन्वेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी – 10 हफ्ते के बाद) होना चाहिए.ये टैस्ट नॉन-फास्टिंग ब्लड सैंपल पर किए जा सकते हैं.

यदि स्क्रीनिंग से संभावित समस्या का संकेत मिलता है, तो 30 साल से अधिक उम्र की गर्भवती, फैमिली हिस्ट्री या जेनेटिक डिसऑर्डर के रिस्क को बढ़ाने वाली मेडिकल कंडीशंस वाली महिलाओं को इन्वेसिव प्रीनेटल डायग्नॉस्टिक टेस्ट करवाने चाहिए.

ये डायग्नॉस्टिक टेस्ट, कोरियॉनिक विलस सैंपलिंग और एम्नियोटिक फ्लूइड अनॅलिसिस के आधार पर किए जाते हैं और किसी भी अनुवांशिक या जेनेटिक बीमारी की पुष्टि करने के एकमात्र साधन भी हैं.लेकिन यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि इनके साथ गर्भपात का 0.1% खतरा भी जुड़ा होता है.

महिलाओं के मन में उठने वाले सवाल

टैस्ट रिजल्ट मिलने के बाद क्या होता है?

यदि जांच के नतीजे सामान्य रेंज में होते हैं तो इनसे चिंता काफी हद तक दूर हो जाती है और प्रेग्नेंसी पर नज़र रखने के लिए रूटीन एंटीनेटल चेक-अप तथा फॉलो-अप यूएसजी की मदद ली जाती है.

क्या हाइ-रिस्क सूचना से प्रीनेटल केयर पर असर पड़ता?

प्रीनेटल टेस्टिंग से हैल्थकेयर प्रोवाइडर को उन तमाम स्थतियों की जानकारी मिल जाती है जो प्रसव के बाद इलाज के लिए आवश्यक हो सकती हैं, और इस प्रकार वे संभावित कॉम्प्लीकेशन्स के लिए पहले से तैयारी कर पाते हैं.

स्क्रीनिंग टेस्ट कितने सही होते हैं?

सामान्य ट्राइसॉमी के लिए सभी स्क्रीनिंग टेस्ट 90% संवेदी होते हैं.

क्या एम्नयोसेंटेसिस से गर्भपात (एबॉर्शन) का खतरा होता है?

एम्नियोसेंटेसिस 99.9% सुरक्षित होती है और इसमें गर्भपात का खतरा केवल 0.1% होता है.

क्या इन परीक्षणों से गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग का भी पता लगाया जा सकता?

नहीं, PCPNDT गाइडलाइंस के मुताबिक, प्रसव पूर्व शिशु के लिंग की जानकारी देना गैर-कानूनी होता है.

क्या प्रीनेटल जेनेटिक टेस्ट के साथ फौलो-अप सोनोग्राफी की आवश्यकता होती है?

हां, अल्ट्रासाउंड का समय और फ्रीक्वेंसी का निर्धारण ऑब्सटैट्रिशयन द्वारा किया जाता है और यह हर मरीज के मामले में फर्क हो सकता है.

निष्कर्षः

जेनेटिक टेस्टिंग की सलाह दी जाती है ताकि आप पहली बार प्रीनेटल विजिट के दौरान ही चर्चा कर सकें.
ज्यादातर महिलाओं के मामले में दोनों जेनेटिक स्क्रीनिंग और डायग्नॉस्टिक टेस्ट नेगेटिव आ सकते हैं.
स्क्रीनिंग पर पॉजिटिव रिजल्ट आए तो दोबारा डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाएं ताकि पुष्टि की जा सके.
यह जानकारी आगे टेस्टिंग के लिए, अतिरिक्त मेडिकल केयर, प्रेग्नेंसी के विकल्पों या प्रसव के बाद रिसोर्स/सपोर्ट की तलाश में मददगार हो सकती है.

सर्दियों में करें शिशु की देखभाल

सर्दी का मौसम शिशुओं के लिए एक नाजुक मौसम होता है. सर्दी की शुरुआत शिशुओं के लिए विशेषतौर पर बहुत संवेदनशील होती है क्योंकि शिशुओं के तापमान में व्यस्कों की अपेक्षा जल्दी गिरावट आती है. जितना छोटा शिशु होता है, उतनी ही आसानी से वह रोग से ग्रस्त हो सकता है क्योंकि उस के अंदर कंपकंपा कर अपने शरीर में गरमी उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है तथा उस के शरीर में इतनी वसा भी नहीं होती है जिस का प्रयोग कर वह अपने शरीर के अंदर गरमी पैदा कर सके.

इसलिए स्वाभाविक है कि शिशु को गरम एवं सुरक्षित रखने हेतु उचित व्यवस्था की जाए.

शिशु को आवश्यकतानुसार ऊनी कपड़े पहनाएं बच्चों को मौसम के अनुसार ऊनी कपड़े पहनाना बेहद आवश्यक होता है. उन की त्वचा अत्यंत नाजुक होती है इसलिए उन्हें सर्वप्रथम कोई सूती वस्त्र पहना कर उस के ऊपर ऊनी वस्त्र, स्वैटर अथवा जैकेट आदि पहननी चाहिए क्योंकि ज्यादा गरम कपड़े पहनने पर यदि शिशु को पसीना आता है तो सूती वस्त्र उसे सोख लेता है और शिशु को आराम पहुचाता है. साथ ही ऊनी वस्त्र सीधे शिशु के संपर्क में नहीं आता है जिस से ऊनी रेशों के कारण उस की त्वचा पर किसी भी प्रकार का संक्रमण नहीं होता है और चकत्ते भी नहीं पड़ते हैं.

माताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शिशु को एक मोटा ऊनी कपड़ा पहनाने की अपेक्षा 2 कम गरम ऊनी कपड़े पहनाएं. इस से यदि सर्दी में कमी होने लगे तो वे कपड़े को उतार भी सकती हैं. इस से बच्चे की सर्दी से बचाच भी रहेगा और साथ ही उसे अनावश्यक रूप से पसीना व उल?ान का शिकार भी नहीं होना पड़ेगा. शिशु के पैर में भी उचित रूप से गरम वस्त्र जैसे पाजामा, मोजे आदि पहनाने चाहिए. सिर व हाथों को भी उचित वस्त्रों से ढकना चाहिए ताकि शिशु का शरीर गरम रह सके.

शिशु को घर के अंदर रखें

सर्दी के मौसम में अकसर तापमान में अचानक गिरावट आ जाती है और कई बार तेज हवाएं और बारिश स्थिति को और भी गंभीर बना देती है. ऐसे में शिशु को घर के अंदर रखना उचित होता है. घर का तापमान उचित रखें जिस से शिशु को अत्याधिक वस्त्र न पहनाने पड़ें. कमरे का उचित तापमान 68 डिगरी फारेनहाइट से 72 डिगरी फारेनहाइट माना गया है. रात को सोते समय कमरे का तापमान 65 डिगरी फारेनहाइट से 68 डिगरी फारेनहाइट होना चाहिए. इस से शिशु सुरक्षित रहता है और कमरे के वातावरण में नमी की कमी भी नहीं होती है.

कमरे का तापमान यदि ज्यादा गरम हुआ तो वातावरण में नमी तथा औक्सीजन की कमी हो सकती है जिस से बच्चे के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है. अत: माताओं को ध्यान देना चाहिए कि कमरे का तापमान सामान्य रूप से गरम रहे. यदि कमरे को गरम करने के लिए

हीटर या आग का प्रयोग करते हैं, तो सोने से पूर्व उसे बंद कर दे. वायु के संचार का ध्यान रखें अन्यथा औक्सीजन की कमी से शिशु की मृत्यु हो सकती है.

शिशु को बाहर ले जाते समय सावधानियां

यदि किसी कारणवश शिशु को बाहर ले जाना आवश्यक है तो उसे उचित वस्त्र पहना कर ले जाएं. समयसमय पर यह जांच करती रहें कि शिशु को कोई परेशानी तो नहीं हो रही है. घर से बाहर शिशु को अपने शरीर के पास ही रखें. मानव शरीर की गरमी से शिशु सुरक्षित रहता है. उस के सिर और पैर हमेशा ढक कर रखें. शिशु को ढक कर रखते समय या उस के शरीर को गरमाहट देते समय ध्यान रखें कि उस को सांस लेने में तकलीफ न होने पाए. यह सावधानी शिशु को वस्त्र पहनाते समय भी रखनी चाहिए.

शिशु के खानपान का ध्यान रखें

नवजात का पहला भोजन मां का दूध ही है. उसे पहले 6 माह तक मां का दूध ही देना चाहिए क्योंकि मां के दूध में शिशु के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्त्व उचित मात्रा में उपलब्ध होते हैं. इस के उपरांत शिशु को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना शुरू कर देना चाहिए. शुरुआत में शिशु को दिया जाने वाला भोजन सौम्य, तरल व कुनकुना होना चाहिए. उस के बाद शिशु को अर्ध ठोस आहार देना चाहिए जैसे हलवा, खिचड़ी, मसला हुआ केला, उबला सेब आदि.

8वें माह के पश्चात जब शिशु के दांत निकलना प्रारंभ होने लगें तो उसे ठोस आहार देना चाहिए. शिशु का आहार अधिक तीखा, मिर्चमसाले वाला नहीं होना चाहिए. भोजन में समयसमय पर 1/2 से 1 छोटा चम्मच घी भी दिया जाना चाहिए. ध्यान रहे कि प्यारदुलार में ज्यादा घी न खिलाएं क्योंकि अधिक घी शिशु के लिवर के लिए हानिकारक होता है. शिशु को दिन में कई बार भोजन देना चाहिए. खाली पेट या प्रयाप्त भोजन न देने से शिशु को ठंड जल्दी लग जाएगी और आप का शिशु कुपोषित भी हो सकता है.

शिशु की त्वचा की देखभाल

सर्दी के मौसम में तापमान गिरने तथा वातावरण में हवा के संचार की कमी होने के कारण शिशु की त्वचा में रूखापन हो जाता है तथा कभीकभी उस पर चकत्ते भी पड़ जाते हैं. इस के निवारण के लिए शिशु की त्वचा को साफ रखने के लिए उसे साफ कुनकुने पानी से नहलाना चाहिए. यदि सर्दी अधिक हो तो शिशु को गरम पानी में तौलिया भिगो कर पोंछ देना (स्पंज करना) चाहिए. स्पंज ऐसे स्थान पर करें जहां गरमी हो एवं हवा शांत हो. शिशु की त्वचा रूखी न होने पाए, इस के लिए लोशन लगाएं अथवा तेल से उस की मालिश भी अवश्य करें. इस से शिशु की त्वचा मुलायम, शरीर में रक्तसंचार सही रहता है और उस के शरीर में गरमाहट भी उत्पन्न होती है. मालिश के लिए जैतून, सरसों अथवा नारियल का तेल प्रयोग कर सकते हैं.

मातापिता आलस न करें

ठंड के कारण मातापिता शिशु की देखभाल में बिलकुल लापरवाही न बरतें. यदि उन्हें या परिवारजनों में से किसी को सर्दीजुखाम हुआ है तो शिशु को उस से दूर ही रखना चाहिए क्योंकि शिशु को किसी भी बीमारी का संक्रमण जल्दी होता है. शिशु को उचित समय पर रोगप्रतिरोधक टीके अवश्य लगवाएं क्योंकि टीकाकरण बच्चों को विभिन्न जानलेवा बीमारियों से बचाता है. सर्दी के मौसम के कारण मातापिता इस में जरा भी लापरवाही न बरतें क्योंकि शिशु संवेदनशील होता है और समय से टीकाकरण उसे कई गंभीर बीमारियों से बचाता है.

शिशु को प्राय: सर्दीजुकाम होता रहता है. यदि सही से देखभाल व इलाज न किया जाए तो उसे निमोनिया हो जाने का खतरा भी हो सकता है. शिशु की नाजुक त्वचा की भी उचित देखभाल करना आवश्यक है. उसे कुछ समय तक सूर्य की रोशनी में रखना बेहद आवश्यक है क्योंकि इस से विटामिन डी मिलता है जिस से शिशु की हड्डियां मजबूत होती हैं और साथ ही शरीर में खून का सही प्रवाह शिशु को हृष्टपुष्ट बनाता है और उस की वृद्धि एवं विकास में सहयोग करता है. उस की त्वचा भी स्वस्थ रहती है.

मेरे पति पहले चेन स्मोकर थे, क्या उन्हें अभी भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा हो सकता है

सवाल

मेरे पति चेन स्मोकर थे लेकिन अब उन्होंने स्मोकिंग काफी कम कर दी है. क्या उन के लिए फेफड़ों के कैंसर का खतरा अभी भी है?

जवाब

स्मोकिंग लंग कैंसर का सब से प्रमुख रिस्क फैक्टर है. सिगरेट से निकलने वाले धुएं में कार्सिनोजन (कैंसर का कारण बनने वाले तत्त्व) होते हैं, जो फेफड़ों की सब से अंदरूनी परत बनाने वाली कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त कर देते हैं. आप के पति लगातार कई वर्षों तक धूम्रपान करते रहें इस से उन के फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंच चुका होगा. इसलिए उन के लिए फेफड़ों के कैंसर की चपेट में आने का खतरा धूम्रपान न करने वालों की तुलना में काफी अधिक है. जोखिम को कम करने के लिए उन्हें स्मोकिंग पूरी तरह छोड़ने और ऐसी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित करें जिन से उन के फेफड़े स्वस्थ रहें.

-डा. कनिका शर्मा

 रैडिएशन औंकोलौजिस्ट, धर्मशिला नारायणा सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, दिल्ली द्य

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मेरे परिवार में कैंसर का इतिहास रहा है, क्या मैं डायग्नोसिस करवा सकती हूं

सवाल

मेरे परिवार में कैंसर का पारिवारिक इतिहास है. मैं जानना चाहती हूं कि कैंसर के मामलों में समय पर डायग्नोसिस और उपचार की क्या भूमिका है?

जवाब

कैंसर केवल एक बीमारी नहीं है बल्कि कई स्वास्थ्य समस्याओं की चेतावनी भी है. कैंसर की शुरुआत शरीर के एक भाग या अंग से होती है लेकिन अगर समय रहते उपचार नहीं कराया जाए तो यह शरीर के अन्य भागों और अंगों में भी फैल जाता है. इस के परिणामस्वरूप एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिस का उपचार मुश्किल हो जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कैंसर के कुल मामलों और उस से होने वाली मौतों का अनुपात विश्व में भारत में सब से अधिक है क्योंकि हमारे देश में कैंसर के अधिकतर मामले एडवांस स्टेज में डायग्नोज होते हैं जिस से मरीजों के जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है. अमेरिका के नैशनल कैंसर इंस्टिट्यूट के अनुसार, कैंसर का समय पर डायग्नोज हो जाए तो स्टेज-1 में ठीक होने की संभावना 95त्न तक होती है, जबकि स्टेज-4 आतेआते कैंसर इतना गंभीर हो जाता है कि ठीक होने की संभावना 5त्न से भी कम रह जाती है.

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मुझे ब्रैस्ट कैंसर है. डाक्टर ने सर्जरी के द्वारा ब्रैस्ट का एक भाग निकालने का कहा है लेकिन मुझे किसी ने सलाह दी है कि पूरी ब्रैस्ट निकालना जरूरी है नहीं तो यह दोबारा हो सकता है?

जवाब

सर्जरी के द्वारा ब्रैस्ट के उसी भाग को निकाला जाता है जिस में कैंसर होता है. डाक्टर हमेशा ब्रैस्ट को सुरक्षित रखना चाहते हैं क्योंकि यह मरीज के आत्मविश्वास और सामान्य जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है. स्वस्थ ब्रैस्ट को बचाने से दोबारा कैंसर होने का रिस्क नहीं बढ़ता है. आप अपने डाक्टर पर विश्वास बनाए रखें और उन के निर्देशों का पालन करें.

समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा      

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मुझे कभी-कभी वैजाइनल ब्लीडिंग होती है, ये खतरे की बात तो नहीं है

सवाल

मैं 32 वर्षीय कामकाजी महिला हूं. मुझे 2 माहवारी के बीच भी कभीकभी वैजाइनल ब्लीडिंग होती है. कहीं कोई खतरे की बात तो नहीं?

जवाब

वैजाइना से ब्लीडिंग केवल माहवारी के दौरान ही होनी चाहिए. 2 माहवारी के बीच ब्लीडिंग होना किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है. आप तुरंत किसी अच्छे डाक्टर को दिखाएं, जरूरी जांच कराएं और उपचार शुरू करें. मेनोपौज के बाद, 2 माहवारी के बीच या शारीरिक संबंध बनाने के बाद अगर ब्लीडिंग हो तो महिलाओं को इसे गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि ऐसा होना असामान्य ब्लीडिंग की श्रेणी में आता है जो कैंसर का एक सामान्य लक्षण है.

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मेरी मां को ओवेरियन कैंसर था. जांच कराने पर पता चला कि मेरे शरीर में बीआरसीए जीन मौजूद हैं. मेरा परिवार पूरा हो गया है. क्या मैं अपनी ओवरीज निकलवा सकती हूं ताकि ओवेरियन कैंसर का खतरा खत्म हो जाए?

जवाब

ओवरी निकालने की सर्जरी यानी ऊफोरेक्टोमी किसी महिला के एक या दोनों तरफ के अंडाशयों को हटाने के लिए की गई एक सर्जिकल प्रक्रिया है. डाक्टर कई मामलों में ऊफोरेक्टोमी की सलाह देते हैं. जैसे जब एक महिला में बीआरसीए जीन मौजूद होता है जो स्तन और ओवरी के कैंसर के होने के लिए सब से आम उत्तरदायी जीन है. ऐसे मामलों में महिला के अंडाशय हटाने से उसे कैंसर होने के खतरे को कम किया जा सकता है. आप का परिवार पूरा हो चुका है और आप में बीआरसीए जीन भी मौजूद हैं तो आप को यह सर्जरी करा लेनी चाहिए. इस सर्जरी के बाद ओवेरियन कैंसर का खतरा 95त्न तक कम हो जाता है.

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मेरे गले में काफी खिचखिच रहती है, इस समस्या से कैसे छुटकारा मिलेगा

सवाल

मेरी उम्र 20 साल है. मेरे गले में अकसर खिचखिच की समस्या रहती है, जिस के कारण कई बार बोलतेबोलते अटक जाती हूं. ठंडी चीजों से दूर रहने के बाद भी यह समस्या दूर नहीं हो रही. बताएं क्या करूं?

जवाब

गले में खिचखिच की समस्या कई बार मौसम में बदलाव के कारण होती है और कई बार बैक्टीरिया और वायरस के कारण भी हो सकती है. यदि आप को अकसर यह समस्या बनी रहती है तो इस का मतलब है कि आप को विशेष ऐलर्जी है जिस का कारण बैक्टीरिया और वायरस हैं. इस स्थिति में आप को साफसफाई रखने की जरूरत है. खाना खाने से पहले हाथ जरूर धोएं और किसी का जूठा बिलकुल न खाएं. कब और किन चीजों को खाने के बाद यह समस्या होती है. यह जान कर उन्हें न खाएं. बाहर निकलने पर मास्क अवश्य पहनें. रोज कुनकुने पानी से कुल्ला करें. यदि समस्या गंभीर है तो डाक्टर से संपर्क कर इलाज करवाएं.

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मेरी उम्र 28 साल है. सर्दीजुकाम मेरा पीछा नहीं छोड़ता. एक बार जुकाम हो गया तो वह जल्दी ठीक नहीं होता है और ठीक हो भी जाए तो कुछ दिनों बाद फिर हो जाता है. बताएं क्या करूं?

जवाब

मौसम में बदलाव के साथ सर्दीजुकाम होना आम समस्या है, लेकिन यह समस्या आए दिन परेशान करने लगे तो इसे नजर अंदाज न करें. यदि बारबार जुकाम हो रहा है तो इस के कई कारण हो सकते हैं जैसे तनाव, उचित ट्रीटमैंट न लेना, गलत खानपान, पूरापूरा दिन फील्ड में काम करना और साफसफाई न रखना. आप को डाक्टर से इलाज कराने की जरूरत है. इलाज के साथ तनाव भी कम करें. कम तनाव से इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है, जिस से शरीर स्वस्थ रहता है. खानपान पर भी ध्यान दें. ठंडी चीजों से दूर रहें. रोज सुबहशाम कुनकुने पानी से दोनों नथुनों की सफाई करें. इस से बैक्टीरिया दूर रहेंगे और आप को जुकाम की समस्या से राहत मिलेगी.

समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा      

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सर्दियों में मेरे कान सुन्न हो जाते हैं, इससे बचने के उपाय बताएं

सवाल

ठंड के मौसम में मेरे कान सुन्न पड़ जाते हैं, जिस से सुनने में दिक्कत होती है और दर्द भी होता है. बताएं ऐसा क्यों होता है और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है?
जवाब

ठंड के मौसम में सर्दीजुकाम होना आम बात है. जुकाम में मरीजों की नाक बहती है. इस के कारण नाक से कान के बीच स्थित यूस्टेकियन ट्यूब में नाक से पानी चला जाता है. इस पानी के कारण मिडल इयर में संक्रमण हो जाता है. कई बार कफ के कारण ट्यूब ब्लौक हो जाती है. इस से कान का संक्रमण होने के साथ ही मरीज की सुनने की क्षमता भी कम हो जाती है. कानों में दर्द, भारीपन, मवाद, बुखार, कानों का बहना आदि सब इसी के लक्षण हैं. इस समस्या से बचने के लिए साफसफाई रखनी जरूरी है. आप को ज्यादा सर्दीजुकाम न हो इसलिए इस से पीडि़त लोगों से भी दूरी बनाएं. दूध में चीनी के बजाय 1 चम्मच शहद और 3 चम्मच अदरक का रस मिला कर पीएं समस्या गंभीर है तो डाक्टर से मिलें.

समस्याओं के समाधान ऐल्प्स ब्यूटी क्लीनिक की फाउंडर, डाइरैक्टर डा. भारती तनेजा द्वारा      

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सर्दीजुकाम के दौरान मेरी नाक बंद हो जाती है, इसका कोई उपाय बताएं

सवाल

मेरी उम्र 30 साल है. सर्दीजुकाम के दौरान मेरी नाक बंद हो जाती है. 2 सालों से समस्या बहुत गंभीर हो गई है. कई बार मेरी नाक खुलती ही नहीं है, जिस के कारण मुझे घुटन होने लगती है. मुंह से सांस लेने पर भी आराम नहीं मिलता. बताएं क्या करूं?

जवाब

सर्दीजुकाम के दौरान नाक का बंद होना आम समस्या है. लेकिन कई बार नाक को खोलना बहुत मुश्किल हो जाता है, जिस के चलते मरीज को घुटन होने लगती है. आप की समस्या भी यही है. जब भी आप को यह समस्या हो तो गरम पानी में विक्स का कैप्सूल डाल कर उस पानी की अपने सिर को तौलिए से ढक कर भाप लें. भाप नाक खोलने का एक पुराना और प्रभावशाली तरीका है. कपूर भी नाक को खोलने में मदद करता है. कपूर को नारियल तेल के साथ मिला कर नथुनों में लगाएं. सिर्फ कपूर को सूंघने से भी फायदा मिलेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

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