आयरन की शक्ति से जीवन को बनाएं स्वस्थ

अकसर देखा जाता है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को ले कर सतर्क नहीं रहतीं. कारण कभी प्रोफैशनल लाइफ में आगे बढ़ने की होड़ तो कभी घर के कामों को जल्दी निबटाने की जरूरत. सभी कामों को सही समय पर करने के चक्कर में वे अपना ध्यान रखना ही भूल जाती हैं. कभी इन का ब्रेकफास्ट स्किप होता है तो कभी लंच.

अगर ऐसा कभीकभी हो तो ठीक है लेकिन ऐसी रूटीन हमेशा फौलो करने पर कुछ दिनों में ही थकान महसूस होने लगती है. धीरेधीरे यह थकान कमजोरी का रूप ले लेती है. कई बार तो महिलाओं को यह समझ में ही नहीं आता कि ऐसा हो क्यों रहा है. उन्हें लगता है कि शायद ज्यादा काम करने की वजह से थकान हो गई है. यहीं पर महिलाओं को सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि ये लक्षण आप के शरीर में आयरन की कमी को दर्शाते हैं. अगर इस के बाद भी महिलाएं लापरवाही करती हैं तो उन के शरीर में खून की कमी हो जाती है और वे एनीमिक हो जाती हैं. और जब शरीर में खून की कमी हो जाती है तो छोटीछोटी बीमारियां भी उन्हें अपनी चपेट में ले लेती हैं.

आयरन की कमी के साइड इफैक्ट्स

जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो महिलाओं का एनीमिया का शिकार होना आम बात है. रिसर्च में यह बात सामने आई है कि भारत की हर 3 महिलाओं में एक एनीमिया से ग्रसित होती है. आकड़ों के अनुसार एक और बात सामने आई है कि इन की उम्र 15 से 49 के बीच में होती है. साथ ही अगर कोई महिला एनीमिक है तो उस के बच्चे का एनीमिक होना स्वाभाविक है.

इस का कारण है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को ले कर लापरवाही करती हैं और सही डाइट नहीं लेती हैं जिस से उन्हें कमजोरी और थकान महसूस होने लगती है. जरा सोचिए जहां तीन में एक महिला एनीमिक हो वहां फौलिक ऐसिड और आयरन सप्लिमैंट की कितनी जरूरत होगी.

इस मामले में वैज्ञानिकों का कहना है कि महिलाओं की शारीरिक बनावट पुरूषों की तुलना में कमजोर होती है. इसलिए पुरूषों की अपेक्षा इन्हें ज्यादा कमजोरी महसूस होती है. यही वह समय है जब इन को अपने ऊपर ध्यान देने की जरूरत होती है.

इस मामले में मुंबई की डा. मीता बाली, जो कि एक क्रेनियो थेरैपिस्ट हैं, का कहना है कि ऐसा अकसर होता है कि पहले शादी फिर बच्चा वाली प्रक्रिया में महिलाएं खुद की बजाय पूरा ध्यान बच्चों और पति पर ही देती हैं. यानी वे अपना ध्यान रखना ही भूल जाती हैं. पूरा फोकस बच्चों और पति पर हो जाता है. वे प्रैग्नैंसी के दौरान आयरन की दवाइयां तो लेती हैं लेकिन बच्चा होने के बाद इस बात को भूल जाती हैं कि बच्चे के साथसाथ उन्हें अपना भी ध्यान रखना है. ऐसे में अगर महिलाएं डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट का सेवन करती हैं तो उन्हें इस तरह की समस्या नहीं झेलनी पड़ती. डा. मीता का कहना है कि कुछ महिलाओं का ध्यान तब खुद पर जाता है जब वे एनीमिक हो चुकी होती हैं. जब थकान महसूस होती है तब उन्हें समझ में आता है कि उन के शरीर में कोई परेशानी है. वे अपनी बात परिवार वालों के साथ शेयर नहीं करतीं और अकेले काम करती रहती हैं. साथ ही इस का जिम्मेदार भी वे परिवार के लोगों को ही मान बैठती हैं. डा. मीता का मानना है कि महिलाओं को अपनी परेशानियां घरवालों के साथ शेयर करनी चाहिए. ऐसा करने से वे बीमारी से भी बच जाएंगी और परिवार वाले उन के कामों में हाथ भी बटा सकेंगे. महिलाओं को परिवार का खयाल रखने के साथ ही थोड़ा समय खुद के लिए भी निकालना चाहिए और साल में एक बार अपनी जांच जरूर करवानी चाहिए ताकि समय रहते यह पता लग जाए कि आप के शरीर में किन विटामिंस और मिनरल्स की कमी है. फिर आप उस हिसाब से सप्लिमैंट ले सकती हैं. ऐसा अगर आप छोटी उम्र से शुरू कर देती हैं तो 50 की उम्र में भी आप हैल्दी रह सकती हैं.

ऐसे नहीं होगी आयरन की कमी

अगर आप थोड़ा ध्यान खुद पर भी देंगी तो आप के शरीर में आयरन की कमी नहीं होगी. इस के लिए आप सब से पहले ऐसी चीजों को अपनी डाइट में शामिल करें जिन में भरपूर मात्रा में आयरन हो. साथ ही डाक्टर की सलाह से आप आयरन की गोलियां भी ले सकती हैं. अकसर देखा जाता है कि लोग बीमारी से निबटने के लिए पूरी तरह से डाक्टर पर निर्भर हो जाते हैं और अपने स्तर पर कोशिश ही नहीं करते. आप भी शरीर में आयरन की भरपाई के लिए सिर्फ सप्लिमैंट पर निर्भर न हो कर नैचुरल चीजों का सेवन करें.

खाने में ऐसे पदार्थों को शामिल करें जिन को खाने से आयरन की कमी दूर हो सके. हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक, बथुआ, चोकरयुक्त आटा, मल्टीग्रेन आटा, चुकंदर, अनार, काबुली चना, अंकुरित अनाज, राजमा, संतरे का रस, सोयाबीन, हरी मूंग व मसूर दाल, सूखे मेवे, गुड़, अंगूर, अमरूद, अंडा और दूध, मेथी, रैड मीट, सरसों का साग, पालक, चौराई, मछली आदि अपनी डाइट में शामिल करें. साथ ही सप्लिमैंट में आप आयरन की कमी को दूर करने के लिए डाक्टर की सलाह से रुद्ब1शद्दद्गठ्ठ का भी उपयोग कर सकतीं हैं. शायद आप को पता भी हो कि आयरन की कमी से एनीमिया रोग हो जाता है. जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता है. ये लाल रक्त कोशिकाएं ही दिमाग को ऊर्जा प्रदान करने का काम करती हैं.

गर्भवती महिलाओं के लिए आयरन और फौलिक ऐसिड की जरूरत ज्यादा होती है, क्योंकि फौलिक ऐसिड नई कोशिकाओं को विकसित करने का काम करता है. साथ ही गर्भ में जब बच्चा पल रहा होता है तो उस के विकास में सहायक होता है. इसी पर बच्चे का दिमाग और स्पाइनल कौर्ड का विकास भी निर्भर होता है. साथ ही लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और एनीमिया से बचे रहने के लिए शरीर में इस का होना जरूरी है. यही नहीं फौलिक ऐसिड से महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर और कोलोन कैंसर का खतरा भी कम रहता है. आयरन और फौलिक ऐसिड की कमी को दूर करने के लिए जितनी हो सके उतनी मात्रा में हरी पत्तेदार सब्जियां, दालें और फलों का सेवन करना चाहिए.

जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो हमारा मैटाबोलिज्म ठीक से काम नहीं करता है. नतीजतन, हमारे शरीर को भरपूर ऊर्जा नहीं मिल पाती. महिलाओं के शरीर को जब भरपूर मात्रा में ऊर्जा नहीं मिलती तो उन्हें थकान महसूस होती है. लेकिन उन्हें लगता है कि यह कामकाज और भागदौड़ की वजह से थकान हो रही है. इस के बावजूद वे अपने शरीर पर ध्यान नहीं देतीं. और जब तक उन्हें पता चलता है बहुत देर हो चुकी होती है. जो महिलाएं घर और बाहर दोनों जगह काम करती हैं उन के अंदर आयरन की कमी बाकी महिलाओं के मुकाबले ज्यादा पाई जाती है. क्योंकि कभीकभी उन्हें नाइट शिफ्ट में भी काम करना पड़ता है. नाइट शिफ्ट में काम करने के बाद जब वे घर आती हैं तो दिन में भी घर का काम करना पड़ता है. इस कारण इन के शरीर को भरपूर मात्रा में भोजन नहीं मिल पाता और शरीर कमजोर हो जाता है. महिलाएं सोचतीं हैं कि पीरियड्स में ज्यादा ब्लीडिंग होना आम बात है लेकिन ऐसा नहीं है. ज्यादा ब्लीडिंग के कारण महिलाओं में आयरन की कमी हो जाती है. ऐसे में अगर आप डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लीमैंट जैसे रुद्ब1शद्दद्गठ्ठ का प्रयोग करती हैं तो भी आप के अंदर आयरन की कमी नहीं होगी. इस के अलावा शाकाहारी महिलाओं में आयरन की कमी ज्यादा देखने को मिलती है. ऐसा नहीं है कि आयरन की कमी सिर्फ ज्यादा उम्र की महिलाओं में होती है या सिर्फ 40 से 50 उम्र की महिलाएं ही इस के लक्षण महसूस करती हैं. यंग महिलाएं भी थक जाती हैं और उन के अंदर भी आयरन की कमी हो सकती है.

आयरन की कमी को दूर करने के लिए इन चीजों को डाइट में करें शामिल

आयरन की कमी को दूर करने के लिए आप भी अपनी डाइट में ऐसी चीजों को शामिल करें जो इस के अच्छे स्रोत हैं. अपने खानपान में बदलाव ला कर भी आयरन की कमी को पूरा कर सकती हैं. हरी पत्तेदार सब्जियां खाना हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, यह आप ने न जाने कितनी बार सुना होगा लेकिन शायद ही इसे फौलो किया हो. तो अब इसे अपनी डाइट में शामिल करने का सही समय आ गया है. इसे खाने से आप को भरपूर मात्रा में आयरन मिलेगा. इस के अलावा बींस, मटर, इमली, फलियां, चुकंदर, ब्रोकली, टमाटर, मशरूम भी खाने चाहिए. इन में से कुछ चीजें तो हर सीजन में बाजार में आसानी से मिल जाती हें, तो इन का सेवन कर आप खुद को हैल्दी रख सकती हैं.

आयरन के अन्य स्रोत

आयरन की कमी को दूर करने के लिए फलों और सब्जियों के अलावा कुछ पदार्थ हैं जिन्हें डाइट में शामिल करने से आयरन की भरपाई शरीर में तेजी से होगी. जैसे चिकन, रैड मीट, काबुली चने, सोयाबीन और साबूत अनाज इत्यादि. साथ ही अंडे, ब्रैड, मूंगफली, टूना फिश, गुड़, कद्दू के बीज और पोहा खाने से आप के अंदर आयरन की कमी नहीं होगी.

कब करें आयरन सप्लिमैंट का सेवन

आयरन की मात्रा न कम होनी चाहिए न ज्यादा. अगर आप के शरीर में आयरन की कमी ज्यादा हो गई है तो आप को डाक्टर की सलाह से आयरन सप्लिमैंट जैसे लीवोजिन लेना चाहिए. साथ ही सप्लिमैंट के साइड इफैक्ट्स से बचने के लिए अपनी डाइट में फाइबर की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए.

आयरन की कमी से होगी यह परेशानी

महिलाएं सब से ज्यादा इस समस्या से जूझ रहीं हैं. भारत में हर तीन में से एक महिला इस की चपेट में है. अगर आप के शरीर में आयरन की कमी होगी तो थकान के साथ आप कई अन्य बीमारियों से भी ग्रसित हो सकती हैं. मसलन:

धड़कनों का तेज हो जाना

जब शरीर में आयरन की कमी होती है तो धड़कनें तेज हो जाती है क्योंकि, आक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए दिल अधिक रक्त पंप करता है. इस कारण धड़कनें बढ़ जाती हैं. यही नहीं अगर आप के अंदर आयरन की कमी बहुत ज्यादा है तो हार्ट फेल होने के चांसेस भी बढ़ जाते हैं.

एनीमिया

जिन महिलाओं के शरीर में आयरन की कमी होती है वे जल्द ही एनीमिया की चपेट में आ जाती हैं. कारण है पीरियड्स में अधिक ब्लीडिंग और प्रैग्नैंसी. इस तरह की समस्या से बचने के लिए आयरन से भरपूर भोजन और सप्लिमैंट ले सकती हैं.

प्रैग्नैंसी में प्रौब्लम

जिन महिलाओं में प्रैग्नैंसी के समय आयरन की कमी होती है, उन के बच्चे पर इस का गहरा असर पड़ता है. उन का विकास ठीक से नहीं हो पाता है. साथ ही समय के पहले ही डिलिवरी भी हो सकती है. इसलिए गर्भवती महिलाओं को चाहिए कि वे आयरन सप्लिमैंट लेने के साथ खाने में भी ऐसी चीजों को शामिल करें जिन में आयरन की मात्रा भरपूर हो.

विटामिन सी है सहायक

अगर आप भी आयरन सप्लिमैंट लेती हैं तो इसे विटामिन सी के साथ लें. आप पहले विटामिन सी से भरपूर कोई फल या जूस पी लें. इस के बाद आयरन की सप्लिमैंट लें. ऐसा करने से आप का पेट ज्यादा ऐसिडिक हो जाएगा और ज्यादा से ज्यादा आयरन को अवशोषित करेगा. साथ ही आयरन सप्लिमैंट लेने के दौरान 1 घंटे पहले और बाद में चाय या कौफी का सेवन करने से बचें, क्योंकि ये पेय पदार्थ शरीर में आयरन के अवशोषण की गति को धीमा कर देते हैं.

क्यों जरूरी है कैल्शियम

लुधियाना हौस्पिटल में किए गए एक ताजा अध्ययन के अनुसार 14 से 17 साल के आयुवर्ग की लगभग 20% लड़कियों में कैल्शियम की कमी पाई गई है, जबकि पहले इतनी ज्यादा मात्रा में कैल्शियम की कमी केवल प्रैगनैंट और उम्रदराज महिलाओं में ही पाई जाती थी.

इस की वजह आज की बिगड़ती जीवनशैली है. आजकल लोग तेजी से पैकेट फूड पर निर्भर होते जा रहे हैं जिस के कारण उन के शरीर को संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा.

महिलाएं अपने पति और बच्चों की सेहत का तो भरपूर खयाल रखती हैं, मगर अकसर अपनी फिटनैस के प्रति लापरवाह हो जाती हैं. अच्छे स्वास्थ्य और मजबूत शरीर के लिए कैल्शियम बेहद जरूरी है. इस से हड्डियों और दांतों को मजबूती मिलती है.

हमारी हड्डियों का 70% हिस्सा कैल्शियम फास्फेट से बना होता है. यही कारण है कि कैल्शियम हड्डियों और दांतों की अच्छी सेहत के लिए सब से जरूरी होता है.

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कैल्शियम की अधिक जरूरत होती है. उन के शरीर में 1000 से 1200 एमएल कैल्शियम होना चाहिए वरना इस की कमी से कई तरह की शारीरिक परेशानियां होने लगती हैं.

कैल्शियम तंदुरुस्त दिल, मसल्स की फिटनैस, दांतों, नाखूनों और हड्डियों की मजबूती के लिए जिम्मेदार होता है. इस की कमी से बारबार फ्रैक्चर होना औस्टियोपोरोसिस का खतरा, संवेदनशून्यता, पूरे बदन में दर्द, मांसपेशियों में मरोड़ होना, थकावट, दिल की धड़कन बढ़ना, मासिकधर्म में अधिक दर्द होना, बालों का झड़ना जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं.

ऐसे में यह जरूरी है कि कैल्शियम की पूर्ति अपनी डाइट से करें न कि सप्लिमैंट्स के जरीए.

महिलाओं में कैल्शियम की कमी के कारण

मेनोपौज की उम्र यानी 45 से 50 वर्ष की महिलाओं में अकसर यह कैल्शियम की कमी सब से अधिक होती है क्योंकि इस उम्र में फीमेल हारमोन ऐस्ट्रोजन का स्तर गिरने लगता है, जबकि यह कैल्शियम, मैटाबोलिज्म में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

हारमोनल परिवर्तन:  कैल्शियम रिच डाइट की कमी खासकर डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही आदि न खाना.

हारमोन डिसऔर्डर हाइपोथायरायडिज्म:  इस स्थिति में शरीर में पर्याप्त मात्रा थायराइड का उत्पादन नहीं होता जो ब्लड में कैल्शियम लैवल कंट्रोल करता है.

महिलाओं का ज्यादातर समय किचन में बीतता है, मगर वे यह नहीं जानतीं कि किचन में ही ऐसी बहुत सी सामग्री उपलब्ध हैं जो उन के शरीर में कैल्शियम की कमी दूर कर सकती है. इस के सेवन से उन्हें ऊपर से कैल्शियम सप्लिमैंट्स लेने की जरूरत नहीं पड़ती.

रागी: रागी में काफी मात्रा में कैल्शियम होता है. 100 ग्राम रागी में करीब 370 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है.

सोयाबीन: सोयाबीन में भी पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मौजूद होता है. 100 ग्राम सोयाबीन में करीब 175 मिलीग्राम कैल्शियम होता है.

पालक: पालक देख कर नाकमुंह सिकोड़ने वाली महिलाओं के लिए यह जानना जरूरी है कि 100 ग्राम पालक में 90 मिलीग्राम कैल्शियम पाया जाता है. इस के प्रयोग से पहले इसे कम से कम 1 मिनट जरूर उबालें ताकि इस में मौजूद औक्सैलिक ऐसिड कौंसंट्रेशन घट जाता है, जो कैल्शियम औबजर्वेशन के लिए जरूरी होता है.

हाल ही में किए गए अध्ययन के अनुसार कोकोनट औयल का प्रयोग कर बोन डैंसिटी के लौस को रोक सकते हैं, साथ ही यह शरीर में कैल्शियम के अवशोषण में भी मदद करता है.

धूप सेंकना: भोजन ही नहीं बल्कि सुबह की धूप सेंकना जरूरी है, क्योंकि इस में मौजूद विटामिन डी कैल्शियम अवशोषण के लिए जरूरी होता है. विटामिन डी खून में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रण करने के लिए जिम्मेदार होता है. इस का सेवन शरीर में कैल्शियम अवशोषित करने की क्षमता को बढ़ाता है और हड्डी टूटने का खतरा कम होता है.

सेहत के लिए दही है सही

दूध के मुकाबले दही खाना सेहत के लिए हर तरह से ज्यादा लाभकारी है. दूध में मिलने वाला फैट और चिकनाई बौडी को एक उम्र के बाद नुकसान देती है. इस के मुकाबले दही में मिलने वाला फासफोरस और विटामिन डी बौडी के लिए लाभकारी होता है.

दही में कैल्सियम को ऐसिड के रूप में समा लेने की खूबी भी होती है. रोज 300 एमएल दही खाने से औस्टियोपोरोसिस, कैंसर और पेट के दूसरे रोगों से बचाव होता है. दही बौडी की गरमी को शांत कर ठंडक का एहसास दिलाता है. फंगस को दूर करने के लिए भी दही का प्रयोग खूब किया जाता है.

हैल्थजोन की डाइरैक्टर और डाइटिशियन तान्या साहनी का कहना है कि दही का प्रयोग कई रूपों में किया जाता है. देश के अलगअलग हिस्सों में दही का प्रयोग रायता, लस्सी और श्रीखंड के रूप में किया जाता है. दही का प्रयोग कर कई तरह की सब्जियां भी बनाई जाती हैं. कुछ लोग दही में काला नमक और जीरा डाल कर खाते हैं. यह पेट के लिए कई तरह से लाभकारी होता है. जो लोग वजन घटाना चाहते हैं दही उन के लिए भी कई तरह से लाभकारी होता है.

बीमारियां भगाए दही

दही का नियमित सेवन करने से शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रहता है. इस में मिलने वाला फास्फोरस और विटामिन डी कैल्सियम को ऐसिड रूप में ढाल देता है. जो लोग बचपन से ही दही का भरपूर मात्रा में सेवन करते हैं उन्हें बुढ़ापे में औस्टियोपोरोसिस जैसा रोग होने का खतरा कम हो जाता है.

दही में अच्छी किस्म के बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं. आंतों में जब अच्छे किस्म के बैक्टीरिया की कमी हो जाती है तो भूख न लगने जैसी तमाम बीमारियां पैदा हो जाती हैं. इस के अलावा बीमारी या ऐंटीबायोटिक थेरैपी के दौरान भोजन में मौजूद विटामिन और खनिज हजम नहीं होते. इस हालत में दही ही सब से अच्छा भोजन बन जाता है. यह इन तत्त्वों को हजम करने में मदद करता है, जिस से पेट में होने वाली बीमारियां अपनेआप खत्म हो जाती हैं.

तान्या साहनी के अनुसार आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में पेट की बीमारियों से परेशान  होने वाले लोगों की संख्या सब से ज्यादा होती है. ऐसे लोग अपनी डाइट में प्रचुर मात्रा में दही को शामिल करें तो अच्छा रहेगा. इस से पेट में होने वाली सब से खास बीमारी भोजन का न पचना या अपच रहना दूर हो सकता है.

दही खाने से उन लोगों को भी लाभ होगा जो भूख न लगने की शिकायत करते हैं. दही खाने से पाचन क्रिया सही रहती है, जिस से खुल कर भूख लगती है और खाना भी सही तरह से पच जाता है. दही खाने से बौडी को अच्छी डाइट मिलती है जिस से स्किन में ग्लो रहता है.

इन्फैक्शन से बचाव

जानकारी के मुताबिक रोज 300 एमएल दही खाने से कैंडिडा इन्फैक्शन द्वारा होने वाले मुंह के छालों से छुटकारा मिलता है. महिलाओं में अकसर कैंडिडा इन्फैक्शन होने के कारण मुंह में छाले पड़ जाते हैं. जिन महिलाओं को इस तरह की शिकायत हो वे दही का भरपूर मात्रा में सेवन करें.

मुंह के छालों पर दिन में 2-3 बार दही लगाने से भी छाले जल्दी ठीक हो जाते हैं. बौडी के ब्लड सिस्टम में इन्फैक्शन को कंट्रोल करने में व्हाइट ब्लड सैल का योगदान सब से ज्यादा होता है. दही खाने से व्हाइट ब्लड सैल्स मजबूत होती हैं, जो बौडी की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं.

बढ़ती उम्र के लोगों को दही का सेवन जरूर करना चाहिए. जो लोग लंबी बीमारी से जूझ रहे होते हैं दही उन के लिए भी बहुत उपयोगी होता है. सभी डाइटिशियन ऐंटीबायोटिक थेरैपी के दौरान दही का नियमित सेवन करने की सलाह देती हैं.

दिल को रखे स्वस्थ

दही का सेवन कर के ब्लड में कोलैस्ट्रौल को कम किया जा सकता है, जिस से हार्ट में होने वाले कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव करना आसान हो जाता है. डाक्टरों का कहना है कि दही खाने से ब्लड कोलैस्ट्रौल को कम किया जा सकता है.

दही है खास

दूध में लैक्टोबेसिलस बुलगारिक्स बैक्टीरिया डाला जाता है, जिस से शुगर लैक्टिक ऐसिड में बदल जाती है. इस से दूध जम जाता है. इस जमे दूध को ही दही कहा जाता है. यह प्रिजर्वेटिव की तरह काम करता है. दही खमीर युक्त डेरी उत्पाद माना जाता है.

पौष्टिकता के मामले में दही को दूध से कम नहीं माना जाता है. यह कैल्सियम तत्त्व के साथ ही तैयार होता है. कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और फैट्स को साधारण रूप में तोड़ा जाता है. इसीलिए दही को प्री डाइजैस्टिव फूड माना जाता है. बच्चों के डाक्टर दही को छोटे बच्चों के लिए भी उपयुक्त मानते हैं.

दही में सीएलए यानी कंजुगेटेड लिनोलेइक ऐसिड होता है. सीएलए फ्री रैडिकल सैल्स को बनने से रोकने का काम करता है. ये सैल्स बौडी के विकास को रोकने का काम करती हैं. दही से कैंसर और हार्ट रोगों को रोकने में मदद मिलती है.

दही को तैयार करते समय इस बात का खास खयाल रखा जाना चाहिए कि इसे फुल फैट मिल्क से तैयार न किया जाए. इस तरह से तैयार दही में फैट और कैलोरी की मात्रा बढ़ जाती है. पहले से मीठा और मीठे के रूप में तैयार दही में सीएलए के लाभ कम हो जाते हैं.

अगर दही को मीठा खाना है तो इस में चीनी की जगह शहद या ताजा फल मिलाया जा सकता है. दही से बनाई जाने वाली छाछ गरमी को अंदर और बाहर दोनों तरह से बचाती है. गरमी के मौसम में तपती धूप का प्रकोप रोकने के लिए दही और छाछ का सेवन जरूरी होता है.

कुछ लोगों में यह भ्रांति होती है कि दही खाने से जुकाम और सर्दी जैसी बीमारियां हो जाती हैं. इस तरह के लोगों को दही का सेवन दिन में खाने के बाद करना चाहिए. ठंडे या फ्रिज में रखे दही का सेवन नहीं करना चाहिए. दही का सेवन हमेशा ताजा ही करना चाहिए.

शहद की इन खूबियों को नहीं जानती होंगी आप

कई जगहों पर शक्कर की जगह पर शहद का इस्तेमाल होता है. शहद के उपयोग से बहुत सी बीमारियां दूर रहती हैं. यही कारण है कि ज्यादातर रसोइयों में आपको शहद दिख जाएगा.

पुराने जमाने में शहद का प्रयोग दवा के तौर पर होता था. जानकारों का मानना है कि किसी दवाई के साथ शहद लेने से दवाई का असर और ज्यादा होता है.

ध्यान दें, कभी भी शहद को पका के इस्तेमाल ना करें. ऐसा करने से ये जहरीला हो जाता है. इसे गर्म पानी में ना डालें और ना ही इसे पकाएं. अगर पानी में डाल कर पीना जरूरी लगे तो पहले पानी को हल्का गुनगुना कर लें, फिर उसमें शहद डाल कर इस्तेमाल करें.

health benefits of honey

चोट को ठीक करे

शहद एक नेचुरल एंटीसेप्‍टिक गुण है. चोट लग जाने पर घाव को गरम पानी और साबुन से धो कर उस पर कच्‍छी शहद लगाएं और किसी बैंडेज से बांध दें. बैंडडेज को कई दिनों तक बदलते रहें. जल्दी ही आपको आराम मिलेगा.

पाचन में है काफी लाभकारी

शहद पाचन क्रिया में काफी लाभकारी होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये एक प्राकृतिक एंजाइम्‍स हैं. पेट के गैस में भी ये काफी असरदार है.

health benefits of honey

हाइ ब्‍लडप्रेशर कम करें

बढ़े हुए ब्लडप्रेशर में शहद का सेवन लहसुन के साथ करना लाभप्रद होता है.

जलने में है उपयोगी

शरीर के किसी भी हिस्से के जलने में शहद काफी फायदेमंद होता है. जलन वाली जगह पर शहद लगाने से घाव को ठंडक मिलती है और इंफेक्शन का खतरा कम होता है.

health benefits of honey

अनिंद्रा में लाभदायक

सोने से पहले गुनगुने दूध में शहद मिक्‍स कर के पियें, लाभ मिलेगा.

मोटापे से छुटकारा पाएं

मोटापा घटाने के लिए गर्म पानी में नींबू और शहद मिला कर पिएं. इससे शरीर में मेटाबौलिज्म बढ़ता है, इससे मोटापा तेजी से कम होता है. इसके उपयोग से शरीर भी साफ रहता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें