बदल रहे हैं नई पीढ़ी के पति-पत्नी

 ऋचा की सास उस के पास 1 महीने के लिए रहने आई थीं. उन के वापस जाते ही ऋचा मेरे पास आई और रोंआसे स्वर में बोली, ‘‘आज मुझे 1 महीने बाद चैन मिला है. पता नहीं ये सासें बहुओं को लोहे का बना क्यों समझती हैं, यार. हम भी इंसान हैं. खुद तो कोई काम करना नहीं चाहती और यदि उन का बेटा जरा भी मदद करे तो भी अपने जमाने की दुहाई दे कर तानों की बौछार से कलेजा छलनी कर देती हैं. वे यह नहीं समझतीं कि उन के जमाने में उन के कार्य घर तक ही सीमित थे, लेकिन अब हमें जीवन के हर क्षेत्र में पति का सहयोग करना पड़ता है. आर्थिक सहयोग करने के साथसाथ बाहर के अन्य सभी कार्यों में कंधे से कंधा मिला कर भी चलना पड़ता है. ऐसे में पति घर के कार्यों में अपनी पत्नी का सहयोग करे तो सास को क्यों बुरा लगता है? उन की सोच समय की मांग के अनुसार क्यों नहीं बदलती? बेटे भी अपनी मां के सामने मुंह नहीं खोलते.’’

उस के धाराप्रवाह बोलने के बाद मैं सोच में पड़ गई कि सच ही तो है कि पुरानी पीढ़ी की सोच में आज की पीढ़ी की महिलाओं की जीवनशैली में बदलाव के अनुसार परिवर्तन आना बहुत आवश्यक है.

1. पतिपत्नी की बदली जीवनशैली

नई टैक्नोलौजी के कारण एकल परिवार होने के कारण युवा पीढ़ी के पतिपत्नी की जीवनशैली में अत्यधिक बदलाव हो रहे हैं, लेकिन अधिकतर नई पीढ़ी की जीवनशैली के इस बदलाव को पुरानी पीढ़ी द्वारा नकारात्मक दृष्टिकोण से ही आंका जा रहा है, क्योंकि सदियों से चली आई परंपराओं के इतर उन्हें देखने की आदत ही नहीं है, इसलिए बदलाव को वे स्वीकार नहीं कर पाते, लेकिन समय के साथ हमारे शरीर में परिवर्तन आना अनिवार्य है. प्रकृति में भी बदलाव आता है, तो अपने आसपास के बदले नए परिवेश के अनुसार अपनी सोच में भी बदलाव को अनिवार्य क्यों नहीं मानते? क्यों हम पुरानी मान्यताओं का बोझ ढोते रहना ही पसंद करते हैं? जो हम देखते आए हैं, सुनते आए हैं, सहते आए हैं. वह उस समय के परिवेश के अनुकूल था, लेकिन आज के परिवेश के अनुसार बदलाव को हम क्यों पुराने चश्मे से ही धुंधला देख कर उन के क्रियाकलापों पर टिप्पणी कर रहे हैं? अफसोस है कि युवा पीढ़ी की अच्छी बातों की तारीफ करने के लिए न तो हमारे पास दृष्टि है न मन, है तो सिर्फ आलोचनाओं का भंडार.

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2. पुरानी पीढ़ी में कार्यों का विभाजन

पहले जमाने में लड़के और लड़की के कार्यों का विभाजन रहता था, क्योंकि लड़कियां घर से निकलती ही नहीं थी. इसलिए गृहकार्यों का भार पूर्णतया उन के जिम्मे रहता था और इस के लिए उन दोनों के बीच अच्छीखासी लक्ष्मण रेखा खींच दी जाती थी, लेकिन अब जब लड़कियां लड़कों के बराबर पढ़ाई के साथसाथ नौकरी भी कर रही है तो यह विभाजन समाप्त हो जाना चाहिए.

3. आधुनिक युवा पीढ़ी में कार्यविभाजन नहीं

युवा पीढ़ी की लड़कियों ने पढ़लिख कर आत्मनिर्भर हो कर जागरूकता के कारण कार्यविभाजन के लिए विद्रोह करना आरंभ किया ही था कि कब समय ने बदलाव की अंगड़ाई ली और यह सोच दबे पांव हमारे घरों में घुसपैठ करने लगी, कब पुरुष सोफे से उठ कर किचन में दखल देने पहुंच गया, पता ही नहीं चला, क्योंकि इस की चाल कछुए की चाल थी. निश्चित रूप से यह पश्चिमी सभ्यता की देन है, जहां कार्य विभाजन होता ही नहीं है.

4. स्त्रीपुरुष की बराबरी को लेकर शोध

स्त्रीपुरुष की बराबरी को ले कर शोधों में भले ही सकारात्मक नतीजे दिख रहे हों, लेकिन वास्तविकता थोड़ी अलग है. पिछले दिनों नेल्सन इंडिया द्वारा भारत के 5 अलगअलग शहरों में कराए गए एक सर्वे में लगभग दोतिहाई स्त्रियों ने माना कि उन्हें घर में असमानता का सामना करना पड़ता है. इस सर्वे में मुंबई, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद और बैंगलुरु जैसे बड़े शहर शामिल हैं. सर्वे में शिल्पा शेट्टी, मंदिरा बेदी और नेहा धूपिया जैसी सैलिब्रिटीज को भी शामिल किया गया. लगभग 70% स्त्रियों ने कहा कि उन का ज्यादातर समय घर के कामों में बीत जाता है और पति के साथ वक्त नहीं बिता पातीं.

दिलचस्प बात यह है कि 76% पुरुष भी यही मानते हैं कि खाना बनाने, कपड़े धोने या बच्चों की देखभाल जैसे कार्य स्त्रियों के हैं. छोटे शहरों में तो अभी भी पुरुष यदि स्त्रियों के घरेलू कार्यों में मदद करें तो उन का मजाक उड़ाया जाता है. नौकरी करने वाली औरतें दोगुनी जिम्मेदारी निभाने के लिए मजबूर हैं. वैसे एकल परिवारों का चलन बढ़ने से थोड़ा बदलाव भी दिख रहा है. पुरुष घरेलू कार्यों में सहयोग दे रहे हैं लेकिन इसे पूरी तरह बराबरी नहीं माना जा सकता.

5. इस बदलाव की शुरुआत अच्छी है

अभी यह बदलाव कुछ प्रतिशत तक ही सीमित है, लेकिन यह शुरुआत अच्छी है और पूरा विश्वास है कि यह सुखद बदलाव की आंधी पूरे भारत को अपनी गिरफ्त में ले लेगी. यह बदलाव पतिपत्नी के रिश्तों में भी सकारात्मक परिवर्तन ला रहा है. उन के बीच स्वस्थ दोस्ती का रिश्ता कायम हो रहा है. उन में आपस में एकदूसरे के लिए समर्पण की, त्याग की भावना और सहयोग की प्रवृत्ति बढ़ने के साथसाथ स्त्री का सामाजिक स्तर भी बढ़ रहा है.

6. पतिपत्नी के रिश्ते दोस्ताना

आरंभ में इस ने उच्चवर्गीय समाज में पांव पसारे, जहां समाज का हस्तक्षेप न के बराबर होता है. उस के बाद मध्यवर्गीय परिवारों में भी इस बदलाव के लिए क्रांति सी आ गई. अब पतिपत्नी मानने लगे हैं कि उन्हें एकदूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए. समय के साथ पुराने मूल्यों, मान्यताओं, परंपराओं को बदलना आवश्यक है.

7. युवा पीढ़ी के पिता की भूमिका बदली

पहले जमाने के विपरीत पिता की भूमिका बच्चों के बाहरी कार्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों की तरह अस्पतालों में प्रसव के समय मां के साथ पिता को भी बच्चों के पालनपोषण से संबंधित हर क्रियाकलाप करने की ट्रेनिंग दी जाने लगी है. औफिस वाले भी कर्मचारी की पत्नी के प्रसव के समय बच्चे और मां की देखरेख के लिए उसे छुट्टियों से भी लाभान्वित करते हैं. अब बच्चे का पालनपोषण करना केवल मां का ही कर्तव्य नहीं रह गया, बल्कि पति भी बराबर का भागीदार हो रहा है. पहले बच्चों के डायपर बदलना पुरुषों की शान के खिलाफ था, लेकिन अब वे सार्वजनिक रूप से भी ऐसा करने में संकोच नहीं करते. शोध यह भी कहते हैं कि चाइल्ड केयर के मामले में स्त्रियों की जिम्मेदारियां हमेशा पुरुषों से अधिक रही हैं. भले ही वे होममेकर हों या नौकरीपेशा.

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8. बदलाव के परिणाम परिवार के लिए सुखद

जौर्जिया यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्र विभाग के शोधकर्ता डेनियल कार्लसन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘‘दृष्टिकोण को बदलना और एकदूसरे को सहयोग देना परिवार और रिश्तों की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी है. यदि पतिपत्नी में एक खुश और दूसरा नाखुश होगा तो रिश्ते कभी बेहतर नहीं होंगे. पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों की नींव को मजबूत बनाए रखने के लिए भी ऐसा जरूरी होता है. दोनों परिवाररूपी गाड़ी के 2 पहिए हैं. परिवार को सुचारु रूप से चलाने के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है. नए परीक्षणों, शोधों के बाद समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक इस नतीजे तक पहुंच रहे हैं कि पत्नी को बराबरी का दर्जा देने वाले पुरुष ज्यादा सुखी रहते हैं. ऐसे पुरुषों का सैक्स जीवन औरों के मुकाबले बेहतर होता है.

9. पुरानी पीढ़ी भी लाभान्वित

स्त्रीपुरुष में घरेलू कार्यों को ले कर तालमेल रहे तो पुरानी पीढ़ी को भी बहुत लाभ हैं. पुरुष भी रिटायरमैंट के बाद स्त्रियों की तरह घरेलू कार्यों में व्यस्त रह कर अपने खालीपन को भर सकते हैं. परिवार के बड़ेबूढ़ों को पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होने के कारण आरंभ में उन्हें यह बदलाव अजीब सा लगा. लेकिन धीरेधीरे उन की आंखों को सब देखने की आदत सी पड़ रही है. रिटायरमैंट के बाद बेटेबहू द्वारा सारे कार्य सुचारू रूप से करने के कारण उन की जिम्मेदारी कम हो रही है और वे अपनी उम्र के इस पड़ाव को समय दे पा रहे हैं. इसलिए इस बदलाव को हितकर समझ कर स्वीकार करना ही उचित है और इस का स्वागत किया जाने लगा है. इस बदलाव को जिस पति और उस के परिवार वालों ने स्वीकार लिया, वे ही रिश्ते स्थाई होते हैं वरन तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में देर नहीं होती.

पत्नियों की इन 7 आदतों से चिढ़ते हैं पति

पति और पत्नी का रिश्ता भी अनोखा है. यह कुछ खट्टा है, तो कुछ मीठा. पति पत्नी के बिना रह भी नहीं सकते हैं, तो उन की कई आदतों से पतियों को चिढ़न भी होती है. कभीकभी पति झगड़े के दौरान अपनी नापसंद का खुलासा कर देते हैं, तो कभी कलह के डर से चुप रह कर मन ही मन कुढ़ते रहते हैं. आइए, जानते हैं कि पत्नियों की वे कौन सी आदतें हैं, जो पतियों को पसंद नहीं होतीं और उन से वे परेशान हो उठते हैं:

1. दूसरी महिलाओं की प्रशंसा से ईर्ष्या

अकसर दूसरी किसी महिला की प्रशंसा अपने पति के मुंह से सुनते ही पत्नी के चेहरे का रंग बदल जाता है. उस के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाती है. मन में शक का बीज पनप जाता है. उसे लगने लगता है कि अवश्य ही पति उस महिला की ओर आकर्षित हो रहा है. कुछ महिलाएं भावुक हो कर पति को खरीखोटी भी सुनाने लगती हैं या फिर मुंह फुला कर बैठ जाती हैं. बहुत सी तो आंखों से आंसू बहाते हुए यह भी कहने लगती हैं कि तुम्हें तो मेरी कोई चीज अच्छी ही नहीं लगती. सारा दिन उसी के गुण गाते रहते हो. उसी के पास चले जाओ. पतियों को पत्नियों की यह आदत बिलकुल अच्छी नहीं लगती.

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2. सैक्स को हथियार बनाना

सैक्स पति और पत्नी दोनों की नैसर्गिक जरूरत होती है. लेकिन पत्नियां कई बार इस प्राकृतिक जरूरत को अपना हथियार बना लेती हैं. कोई भी ऐसी बात मनवानी हो या हलकी सी भी झड़प हो जाए तो वे पति को सब से पहले सैक्स से ही वंचित करती हैं. एक ही बिस्तर पर होने के बावजूद मुंह विपरीत दिशा में कर के सो जाती हैं. पत्नियों की यह आदत पतियों को नागवार लगती हैं.

3. बात घुमाफिरा कर कहना

कई पत्नियां किसी भी बात को साफसाफ नहीं कहतीं. हमेशा घुमाफिरा कर संकेत देने की कोशिश करती हैं. ऐसे में जब पति उन का मकसद नहीं समझ पाते, तो वे ताने कसने लगती हैं. फिर भी पति इशारे को समझ नहीं पाते तो वे चिड़चिड़ी हो कर गलत व्यवहार करने लगती हैं. अत: पति चाहते हैं कि पत्नी जो भी कहना चाहे साफसाफ कहे.

4. पर्सनल चीजों से छेड़छाड़

अपनत्व, एकाधिकार जताने के लिए जब पत्नियां औफिस बैग, पैंटशर्ट की जेब, पर्स, मोबाइल, लैपटौप जैसी चीजों से छेड़छाड़ करती हैं या उन की स्कैनिंग करती हैं, तो इस से पतियों को मन ही मन बहुत कोफ्त होती है. ज्यादा परेशानी तो तब महसूस होती है जब वे किसी महिला फिर चाहे वह कोई क्लाइंट ही क्यों न हो, का फोन एसएमएस, फोटो या कोई कागजात देख कर उस के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करने लगती हैं. पर्स में ज्यादा रुपए देख कर पूछने लगती हैं कि ये कहां से आए, किस ने दिए आदि.

5. लगातार बोलते रहना

कई पत्नियां एक बार बोलना शुरू हो जाए, तो नौनस्टौप बोलती रहती हैं. पता नहीं उन के पास इतनी बातों का स्टौक कहां से आता है. सहेली की शादी में जा कर आएं, डाक्टर को दिखा कर आएं, पड़ोसी के घर में नया टीवी आए, विषय कोई भी हो, वे उस की रनिंग कमैंट्री शुरू कर देती हैं. 1-1 मिनट का ब्योरा पूरे विस्तार के साथ देने लगती हैं. जबकि पति चाहते हैं कि बातचीत सीमित हो. टू द पौइंट हो.

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6. हर वक्त टोकाटाकी

कुछ पत्नियां हर वक्त टोकाटाकी करती रहती हैं. मानों उन्हें अपने पति की हर गतिविधि या आदत पर एतराज होता है. जैसे आज यह ड्रैस क्यों पहनी? आज जल्दी क्यों जा रहे हो? आज देर से क्यों आए? इतने फोन क्यों करते हो? 2-2 मोबाइल क्यों रखते हो? ऐसे सवालों की बहुत लंबी लिस्ट है, जिन्हें पूछपूछ कर पत्नियां पतियों को पका देती हैं.

7. शौपिंग की लत

शौपिंग करना पत्नियों की बड़ी कमजोरी है. कई बार तो वे टाइमपास या मन बहलाने के लिए शौपिंग करती हैं. उन की शौपिंग बड़ी बोरिंग होती है. 1-1 चीज को ध्यान से देखना और उस की कीमत पूछना, कपड़ों को अपने शरीर से लगालगा कर देखना, बिना जरूरत खानेपीने की चीजों को खरीदना, डिस्काउंट के लालच में अधिक मात्रा में खरीद लेना और फिर फेंक देना आदि सचमुच इरिटेटिंग आदतें हैं. पति इन से बहुत ज्यादा चिढ़ते हैं.

क्या बेहतर सुरक्षा पति से ही

हमारा समाज सदियों से पुरुषप्रधान रहा है. इस प्रधानता की देन के लिए केवल समाज ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि कुदरत ने भी औरत की शारीरिक संरचना ऐसी की है कि वह पुरुष की अपेक्षाकृत कमजोर है. अत: यह स्पष्ट है कि स्त्री को सुरक्षा के लिए पुरुष के सहारे की आवश्यकता है और बेहतर संरक्षक ही सुरक्षा दे सकता है, इसलिए पुरुष का स्त्री से हर क्षेत्र में बेहतर होना आवश्यक है, यह सर्वविदित है. लेकिन पुरुष कई बार संरक्षक के स्थान पर भक्षक का रूप भी ले लेता है. यह बात दीगर है कि उस के लिए खास तरह के व्यायाम कर के या ट्रेनिंग ले कर उस से औरत मुकाबला कर सकती है, लेकिन यह अपवाद है. इसीलिए पैदा होने के बाद पहले पिता के, फिर भाई के, फिर पति के और बुढ़ापे में बेटे के संरक्षण में रह कर वह स्वयं को सुरक्षित रखती है.

स्त्री पुरुष पर निर्भर क्यों

अब प्रश्न उठता है कि क्या केवल शारीरिक सुरक्षा के लिए ही स्त्री पुरुष पर निर्भर करती है? नहीं. आर्थिक, सामाजिक सुरक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है. पहले जमाने में बालविवाह का प्रावधान था ताकि लड़की ससुराल के नए परिवेश में अपनेआप को आसानी से ढाल सके. लड़कियों को शिक्षित नहीं किया जाता था. तब वे आर्थिक दृष्टि से पूर्णरूप से पुरुषों पर निर्भर रहती थीं. समाज में विवाह के पहले औरत की पहचान पिता के नाम से होती थी, विवाह के बाद पति के नाम से. उस का अपना तो जैसे कोई वजूद ही नहीं था.

जिस लड़की के विवाह के पहले पिता या भाई नहीं होता था, वह अपनेआप को बहुत असुरक्षित महसूस करती थी. यहां तक कि परिणामस्वरूप आर्थिक अभाव के कारण उस के विवाह में भी अड़चनें आती थीं. विवाह के बाद भी यदि किसी कारणवश उस के पति की मृत्यु हो जाती थी या उस के द्वारा त्याग दी जाती थी, तो उस का पूरा जीवन ही अभिशप्त हो कर रह जाता था. जैसे उसी ने कोई अपराध किया हो. उस को पुन: विवाह की भी अनुमति नहीं थी. समाज में वह मनहूस के विशेषण से नवाजी जाती थी. वह किसी भी सामाजिकमांगलिक कार्य का हिस्सा नहीं बन सकती थी. उस के पूरे कार्यकलाप के लिए सीमा रेखा खींच कर उसे प्रतिबंधित कर दिया जाता था. उसे जीवन नए सिरे से आरंभ करना पड़ता था.

उसे पुरुषों की लोलुप नजरों का शिकार हो कर जनता की संपत्ति बनते देर नहीं लगती थी. इसी प्रकार बिना पति के पत्नी का जीवन बिना पतवार के नाव के समान होता था. आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर न होने के कारण उसे परिवार वालों की दया का पात्र बन कर जीवनयापन करना पड़ता था. पुरुष जैसे उस के शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक और किसी हद तक मानसिक सुरक्षा की बीमा पौलिसी था.

क्या पुरुष सुरक्षा देने में सक्षम

पहले जमाने में हर दृष्टि से स्त्री अबला थी, इसलिए उम्र के हर पड़ाव में उसे पुरुष के संरक्षण की आवश्यकता पड़ती थी और उस के विवाह के समय हर माने में उस के अपेक्षाकृत उस से श्रेष्ठ पुरुष को ढूंढ़ा जाता था, जैसेकि उम्र में, कदकाठी में, शिक्षा में तथा आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर ताकि वह अपनी पत्नी को हर प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर सके. लेकिन क्या इतना ध्यान रखने के बाद भी वास्तव में उसे अपने पति से सुरक्षा मिलती थी? नहीं. वह मात्र बच्चे पैदा करने वाली और घरेलू कार्य करने वाली मशीन बन कर रह जाती थी. उसे परिवार द्वारा प्रताडि़त किए जाने पर भी उस का पति आज्ञाकारी पुत्र की तरह मूकदर्शक ही बना रहता था. आर्थिक दृष्टि से भी आत्मनिर्भर होने के बावजूद वह पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों और रीतिरिवाजों के भंवरजाल में फंस कर अपने मन की कुछ भी नहीं कर पाता था तो पत्नी को क्या आर्थिक सुरक्षा देता?

रहा सवाल शारीरिक संरक्षण का तो वह पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अपनी वासना की पूर्ति के लिए उस का बलात्कार कर के स्वयं ही रक्षक से भक्षक बन जाता है, तो औरों से सुरक्षित रखने की उस से क्या उम्मीद की जा सकती है?

बदल गया समय

अब समय बदल गया है. महिलाएं पढ़लिख कर आत्मनिर्भर और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गई हैं. अब उन्हें अपनी पहचान के लिए किसी की पीठ के पीछे खड़े होने की आवश्यकता नहीं है. हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर कार्य कर रही हैं और समाज में प्रतिष्ठित हो रही हैं. इस का सब से अधिक श्रेय उन की आर्थिक आत्मनिर्भरता को जाता है. इस से उन के अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ है और वे अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम हो गई हैं.

पति के सरनेम के साथ अपने विवाह पूर्व सरनेम को अपने नाम के साथ साधिकार जोड़ने लगी हैं. किसी भी दस्तावेज में पिता, पति के नाम के साथ मां और पत्नी का नाम भी मान्य होने लगा है. पैतृक संपत्ति में बेटी को भी बेटे के बराबर अधिकार मिलने लगा है. परित्यक्ताओं या विधवाओं की स्थिति भी आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत सुधरी है. वे आत्मनिर्भर होने के कारण किसी की दया की पात्र न हो कर स्वाभिमान से जीवनयापन करती हैं और उन्हें संपत्ति से भी हिस्सा मिलता है. और तो और, पुन: विवाह कर के समाज के द्वारा उन के लिए बनाई गई वर्जनाओं और कुरीतियों की धज्जियां उड़ाने में भी वे सक्षम हैं.

तो क्या आज के संदर्भ में जब पत्नी आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर है, जागरूक है, उस की सुरक्षा के लिए बेहतर पति की अपेक्षा करने की आवश्यकता नहीं है? है. जिस रफ्तार से पत्नियों की दशा में सुधार हो रहा है, उस की तुलना में समाज की उन के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया में बहुत धीमी गति से सुधार हो रहा है. वह अभी भी हर क्षेत्र में पत्नियों को पति से कमतर आंकने में ही संतुष्ट है.

समाज का रोड़ा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए समाज के नियमों के विरुद्ध जा कर स्थिति को संभालने की क्षमता बहुत कम लोगों में होती है. दूसरा पति का अहम भी है, जो उसे घुट्टी में पिलाया जाता है. फिर कुछ कुदरत ने भी उस की संरचना में योगदान दिया है, जो पत्नी को उस से आगे बढ़ने में रोड़े अटकाने का काम करती है. इस का बहुत अच्छा उदाहरण अमिताभ बच्चन की मूवी ‘अभिमान’ है.

लड़का लड़की से उम्र में बड़ा हो, लंबा हो, शारीरिक संरचना से भी बड़ा दिखाई दे, अधिक कमाऊ हो, हर क्षेत्र में पत्नी से बेहतर हो, इस के पीछे भी उस की पत्नी को शाशित करने की मानसिकता ही है. पति की अहम संतुष्टि के लिए तथा सामाजिक दृष्टिकोण से भी छोटी पत्नी पति के वर्चस्व के साथ आसानी से तालमेल बैठा सकती है. वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक सा हो गया है.

अधिकतर लड़कियां आज भी अपने से बेहतर पति की कामना करती हैं और ऐसे पति के साथ ही अपनेआप को सुरक्षित समझती हैं. उन के नाम से अपनी पहचान बता कर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करती हैं.

सब से ताजा खबर है कि पुरुषप्रधान लड़ाकू बेड़े में महिलाओं ने भी अपना स्थान बना लिया है. किसी भी क्षेत्र में स्त्री पुरुष से पीछे नहीं है, लेकिन हर स्त्री की सफलता के पीछे किसी न किसी पुरुष का संरक्षण है. विवाह के लिए समाज के द्वारा बनाए गए मानदंड भी अब लचीले हो रहे हैं. पतिपत्नी में आपसी समझ हो तो किसी नियमकानून को मानना आवश्यक नहीं है.

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“यह काम तो पति का है”…क्या आप भी ऐसा ही सोचती हैं

नेहा की शादी को 5 साल हो चुके थे. वह अपने पति के साथ इतनी खुश थी कि उसे कभी किसी चीज का खयाल नहीं रहता था. पति राकेश कभी समझाता भी था तो वह कहती कि तुम्हारे साथ रहते हुए मुझे इन चीजों को समझने की क्या जरूरत है. इस के चलते राकेश को अपना बहुत सारा काम खुद संभालना पड़ता था. सारे रुपएपैसों का हिसाबकिताब वह खुद ही रखता था. वह पैसों की केवल उतनी चाह रखती थी जितने उसे खर्च के लिए चाहिए होते थे.

अचानक राकेश को सरकारी काम से कुछ समय के लिए विदेश जाना पड़ा. शुरुआत में तो नेहा बहुत खुश थी कि वह भी साथ जाएगी, पर जब सरकार ने इस की इजाजत नहीं  दी तो उसे घर में अकेले रहना पड़ा. अब घर का सारा भार नेहा के ही ऊपर आ गया. मगर उस ने तो कभी घर के कामों को समझा ही नहीं था. इसलिए उस के सामने परेशानी आ गई. कभी एलआईसी की पौलिसी, तो कभी बिजली, पानी का बिल भरने की परेशानी. नेहा को अब समझ आने लगा था कि अगर उस ने ये काम करने पहले से सीख लिए होते तो आज उसे इतनी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता.

नेहा से भी ज्यादा परेशानी में तो सीमा फंसी. वह भी घर के कामों पर कभी ध्यान नहीं देती थी. एक दिन उस के पति के दुर्घटनाग्रस्त होने पर उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. अब सीमा को समझ नहीं आ रहा था कि बीमारी के इलाज के लिए पैसे कहां से लाए, क्योंकि उसे पता ही नहीं था कि बैंक की पासबुक कहां रखी है, एटीएम का पिन कोड क्या है. वह परेशान थी. पास पैसा होते हुए भी उसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा. शौपिंग, किट्टी पार्टियों और दोस्तों में व्यस्त रहने वाली सीमा को अब महसूस हो रहा था कि अगर वह पहले से घर के इन कामों को समझ लेती तो यह परेशानी न होती.

नेहा और सीमा से अलग रश्मि ने अपने पति का पूरा काम खुद संभाल रखा है. पति अपने वेतन को एक जौइंट आउंट में डाल देता है. सारा काम रश्मि खुद कराती है. पति का पूरा ध्यान अपनी नौकरी पर रहता है. वह तरक्की की राह पर आगे बढ़ता जा रहा है. उस के सामने कभी कोई मुश्किल नहीं आती है. रश्मि को भी छोटेछोटे कामों के लिए पति की राह नहीं देखनी पड़ती. दोनों की गाड़ी तेजी से जीवन की राह पर आगे बढ़ती जा रही है. जो पत्नी पति की सहयोगी बन कर उस की मदद करती है वही पति की प्रिय होती है.

जीवन में इस तरह के हालात किसी के भी सामने और कभी भी आ सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप घर के कामों को समझें. खासतौर से घर के आर्थिक कामों को समझना बेहद जरूरी है. पत्नी पति की प्रिय तो होती ही है, जरूरी यह होता कि वह पति की सहयोगी भी बन कर रहे. इस में कोई बुराई नहीं होती है. अगर सबकुछ सामान्यतौर पर चलता है, तो भी आप के सहयोगी बनने से पति पर से काम का बोझ काफी कम हो जाता है. उसे अपने कैरियर से जुड़े काम करने का पूरा समय मिल जाता है.

आप भी इन टिप्स पर गौर कर पति की प्रिय होने के साथसाथ सहयोगी भी बन सकती हैं:

– घर की सभी जरूरतों की अलगअलग फाइल बना लें. मसलन, टैलीफोन बिल, मोबाइल बिल, हाउस टैक्स, प्रौपर्टी, बैंक में जमा पैसों, इनकम टैक्स आदि की फाइल बना लें. इन से संबंधित हर छोटाबड़ा कागज फाइल में रखें ताकि जरूरत पड़ने पर आप फाइल निकाल कर दे सकें. कई बार कोई कागज समय पर न मिलने से नुकसान भी हो जाता है.

– आप बैंक में जो पैसा जमा कर रही हैं उस का पूरा  ब्योरा आप के पास होना चाहिए. बैंक की पासबुक को हमेशा अपडेट रखें. इसी तरह चैकबुक का भी पूरा हिसाब रखें. इस बात का हिसाब रहे कि आप कब, किस के नाम और कितने पैसों का चैक काट रही हैं. चैक काटने के बाद आप के खाते में कितना बैलेंस बच रहा है. यह ध्यान रखने पर चैंक के बाउंस होने का खतरा नहीं रहेगा, आप के पास कितना पैसा है यह भी आप को पता चलता रहेगा.

– हाउस टैक्स, बिजली, पानी, फोन का बिल आप खुद ही जमा करें. इस की अलगअलग फाइल बना लें. जमा बिल की रसीद और बिलों की कापी भी जरूर लगा दें. अगर कभी हिसाब में कोई गड़बड़ी हो तो उसे आसानी से सही किया जा सकता है.

– आप जो भी सामान घर में प्रयोग कर रही हों उस के सर्विस स्टेशन के फोन नंबर अपने पास रखें. इस के लिए एक डायरी बना लें. छोटेछोटे कागज के टुकड़े रहेंगे तो उन के खो जाने का खतरा रहता है. इस के अलावा पुलिस, फायर, अस्पताल, बिजली, पानी के दफ्तर के नबंर भी आप के पास होने चाहिए. ताकि जरूरत पड़ने पर खुद फोन कर उन्हें बुला सकें. बातबात पर पति को परेशान न करना पड़े.

– जो भी नया सामान खरीदें उस की रसीद गारंटी कार्ड या उस से जुड़े दूसरे कागजात फाइल में रखें ताकि जरूरत पड़ने पर काम आ सकें. कभीकभी जब सामान खराब होता है तब याद आती है कि उस की रसीद और गारंटीकार्ड कहां रखा है.

– अगर लोन लिया हो तो उस की भी फाइल बना लें, जिस में यह लिखा हो कि लोन कब लिया है? ब्याज दर क्या है? किस्त का पैसा हर महीने बैंक से कट रहा है, यह भी पता करती रहें. बैंक लोन की किस्त समय पर जमा कराएं और उस की रसीद फाइल में रखें. जरूरी कागजातों की फोटोकौपी भी रखें ताकि अगर कभीकभी औरिजनल कागज खो जाए तो उस की फोटोकौपी से काम चलाया जा सके.

– अगर पति के औफिस के कुछ कागज घर पर रहते हैं तो उन्हें भी संभाल कर रखें. यह न सोचें कि औफिस के कागजातों से आप का क्या मतलब.

– अगर पति किसी को पैसा उधार देते हैं तो उस की भी अलग से फाइल बना लें ताकि पता चलता रहे कि कब किस से कितना पैसा लेना है. ऐसे और बहुत सारे काम कर आप पति की सहयोगी बन सकती हैं.

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