पीरियड्स की मुश्किलों से कैसे निबटें

कुछ लड़कियां पीरियड्स के दौरान मूड स्विंग्स का सामना करती हैं तो कुछ लड़कियों को कोई खास बदलाव महसूस नहीं होता है. ऐसे ही कुछ लड़कियां डिप्रैशन और इमोशनल आउटबर्स्ट का शिकार होती हैं. इसे कहते हैं प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम और 90 प्रतिशत लड़कियां वर्तमान में इसे महसूस कर रही हैं.

पीरियड के दौरान अनेक परेशानियां भी आती हैं. महीने में 2 बार पीरियड्स क्यों हो रहे हैं? मसलन, फ्लो इतना ज्यादा या इतना कम क्यों है ? पीरियड्स और लड़कियों के समान क्यों नहीं हैं? अनियमित पीरियड्स क्यों हैं? ये सब प्रश्न अकसर हमारे दिमाग में घर कर लेते हैं.

हमें यह समझने की जरूरत है कि ये सब परेशानियां असामान्य नहीं हैं. हर महिला का मासिकधर्म और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है.

असामान्य माहवारी

पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य होना, पीरियड्स देर से आना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहना आदि असामान्य पीरियड माने जाते हैं. यह कोई बीमारी नहीं है. इसे अलगअलग हर लड़की में देखा जाता है. इस में अचानक मरोड़ उठने लगती है और बदनदर्द होने लगता है. अनियमित और असामान्य पीरियड को एनोबुलेशन से भी जोड़ा जा सकता है. आमतौर पर इस कारण हार्मोंस में असंतुलन हो सकता है.

ये भी पढ़ें- महिलाएं बन रहीं थायराइड का शिकार

प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम हर साल भारत की एक करोड़ से भी ज्यादा लड़कियों में देखा जाता है. यह एक ऐसी समस्या है जो लड़कियों को हर महीने पीरियड से कुछ दिनों पहले प्रभावित करती है. इस दौरान लड़कियां शारीरिक और भावनात्मक रूप से खुद को कमजोर महसूस करती हैं.

मुंहासे, सूजन, थकान, चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग्स इस के कुछ सामान्य लक्षण हैं. सटीक लक्षण और उन की तीव्रता लड़की से लड़की और चक्र से चक्र पर निर्भर करती है.

हार्मोंस में परिवर्तन इस सिंड्रोम का एक महत्त्वपूर्ण कारण है. विटामिन की कमी, शरीर में उच्च सोडियम का स्तर, कैफीन और शराब का अधिक सेवन पीएमएस का कारण बन सकते हैं. पीएमएस 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में देखा जा सकता है.

इलाज है जरूरी

माहवारी में आने वाले अनियमित पीरियड्स या पीएमएस जैसी परेशानियों का इलाज बहुत ही सरल है. ऐक्सरसाइज हमेशा से ही पीरियड्स की परेशानी का हल रही है. एक स्त्रोत के अनुसार हफ्ते में 5 दिन 35 से 40 मिनट ऐक्सरसाइज करने से उन हार्मोंस की मात्रा कम हो जाती है जिन के कारण अनियमित माहवारी हो सकती है.

यदि किसी लड़की को पीरियड्स के दौरान बहुत दर्द हो, भारी रक्तस्राव हो, 7 दिनों? से ज्यादा पीरियड के बीच उल्टियां हों तो अच्छा यही होगा कि तुरंत उसे डाक्टर के पास ले कर जाएं.

क्या खाएं क्या नहीं

–  दोपहर के भोजन में मिक्स दाल, सलाद, पनीर और उबले अंडे शामिल करें. इन के सेवन से शरीर में प्रोटीन की जरूरत पूरी होगी.

–  काले चने, राजमा और फलियां न खाएं तो बेहतर होगा. इन के सेवन से पेट दर्द या मरोड़ की शिकायत हो सकती है जो माहवारी के दर्द को और मुश्किल बना सकती है.

–  इस दौरान खून में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित रख जरूरी है, इसलिए मीठी चीजों का सेवन कम करें.

–  विटामिन बी6 और आयरन की कमी को पूरा करने के लिए ब्रोकली, टमाटर, मक्का इत्यादि खा सकती हैं. साथ ही विटामिन सी ने भरपूर चीजें जैसे नीबू, संतरा इत्यादि भी लें.

ये भी पढ़ें-  इम्यूनिटी बढ़ाने वाले 7 ब्रेकफास्ट

–  माहवारी के दर्द से मैगनिशियम और पोटैशियम युक्त चीजें नजात दिलाने में सहायक हैं. इस के लिए केला, सोया पनीर यानी टोफू और सेम इत्यादि का सेवन कर सकती हैं.

माहवारी कोई बीमारी नहीं

पीरियड्स के बारे मे हमारा समाज आज भी खुल कर बात करने से कतराता है. इसे आज भी सभी के सामने बात न करने वाली चीज समझा जाता है. पैड छिपा कर लाओ, लड़कों से मत बताओ और घर में इस दौरान सभी से दूर रहो जैसी बातें हर लड़की को सिखाई जाती हैं.

पीरियड्स कोई छिपाने वाली बात नहीं है. यह एक नैचुरल प्रक्रिया है जो हर महिला को मासिकधर्म के रूप में होती है. लेकिन पीरियड्स का नाम सुनते ही कई लोग असहज महसूस करने लगते हैं जैसे किसी गंदे शब्द का इस्तेमाल कर लिया हो.

कई महिलाओं के मन में पीरियड्स को ले कर कई समस्याएं, कई सवाल होते हैं, जिन पर वे खुल कर बात भी नहीं कर पातीं. आज हमारा समाज आधुनिकता की ओर तेजी से बढ़ तो रहा है लेकिन समाज की मानसिकता अभी भी पुरने खूंटे से बंधी हुई है. आज भी महिलाओं को पीरियड्स होने पर मंदिर जाने नहीं दिया जाता, अचार छूने नहीं दिया जाता, उन के साथ अलग व्यवहार किया जाता है. ऐसी सोच को बदलने और समाज को जागरूक करने के लिए हर साल 28 मई को वर्ल्ड मैंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता है जो इस साल भी हाल ही में मनाया गया.

वर्ल्ड मैंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाने का मुख्य उद्देश्य है समाज में फैली मासिकधर्म संबंधी गलत अवधारणा को दूर करना और महिलाओं को पीरियड्स के समय स्वच्छता के लिए जागरूक करना. इस की शुरुआत साल 2014 को हुई.

मासिकधर्म कोई बीमारी या गंदगी नहीं

पत्रिकाओं, टीवी और इंटरनैट के जरिए हमें कई सारी जानकारियां अब मिलने लगी हैं जिस वजह से समाज की सोच में सुधार भी देखने को मिला है. पहले यदि टीवी पर सैनिटरी पैड का प्रचार आता था तो चैनल बदल दिया जाता था. लेकिन अब ऐसा कम देखने को मिलता है. लेकिन अभी भी लोग इस के बारे में खुल कर बात नहीं करते. यहां तक कि खुद महिलाएं इस पर बात करने में असहज महसूस करती हैं.

ये भी पढ़ें- कोरोना से लड़ाई में WHO ने की एकजुट रहने की अपील, बोले- राजनीति ना करें

एक ही घर में रहने के बावजूद पीरियड्स के लिए कई गुप्त नामों का इस्तेमाल किया जाता है ताकि किसी को पता न लगे. पैड को काली पौलिथीन या पेपर से कवर किया जाता है. जैसे कोई जानलेवा हथियार को छुपाया जा रहा है. लोगों को समझना जरूरी है कि मासिक धर्म कोई अपराध नहीं है बल्कि प्रकृति की ओर से दिया गया महिलाओं को एक तोहफा है. ऐसे समय में महिलाओं की खास ध्यान रखने की जरूरत है न कि उन के साथ अलग व्यवहार किया जाना चाहिए.

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कितना सुरक्षित

पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर में कई प्रकार के बदलाव आते हैं, जिन के बारे में उन्हें पता नहीं होता. जब पहली बार लड़कियों को पीरियड्स आते हैं तो मां का फर्ज बनता है वह इस बारे में खुल कर बात करें. लेकिन ऐसा नहीं हो पाता. पीरियड्स को शर्म की पोटली में बांध कर रख दिया जाता है. आज भी गांवकस्बों में कई महिलाएं पीरियड्स होने पर कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. वहीं कई महिलाएं सैनिटरी पैड का इस्तेमाल तो करती हैं लेकिन इस का सही रूप से इस्तेमाल करना नहीं जानती.

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करना बहुत आसान है लेकिन यह बीमारियों को न्योता भी देता है. दरअसल, सैनिटरी पैड में डायोक्सिन नाम के एक पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है. डायोक्सिन का उपयोग नैपकिन को सफेद रखने के लिए किया जाता है. हालांकि इस की मात्रा कम होती है लेकिन फिर भी यह नुकसानदायक हो सकता है. जिस से कई बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है जैसे ओवेरियन कैंसर, हार्मोनल डिसफंक्शन. इसलिए महिलाओं को इन दिनों आर्गेनिक क्लौथ से पैड्स का इस्तेमाल करना चाहिए. ये पैड रुई और जूट से बने होते हैं. यह इस्तेमाल करने में भी आरामदायक है और उपयोग किए गए पैड्स को धो कर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है. साथ ही ये पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचाते.

लंबे समय तक पैड का इस्तेमाल है खतरनाक

सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करने से महिलाओं में इंफैक्शन और जलन की शिकायत आमतौर पर देखी जाती है. ऐसी परेशानियां ज्यादातर पीरियड्स खत्म होने के बाद होती है. जब ज्यादा लंबे समय तक पैड्स का इस्तेमाल किया जाता है, तो इस से एयर सर्कुलेशन बहुत कम हो जाता है और वैजाइना में स्टेफिलोकोकस औरेयस बैक्टीरिया पनप जाते हैं. यही बैक्टीरिया पीरियड्स के कुछ दिनों बाद ऐलर्जी या इंफैक्शन का कारण बन जाते हैं.

पीरियड्स के समय साफसफाई है जरूरी

– पीरियड्स के समय में हर 4 घंटे के अंदर अपना पैड बदलना चाहिए.

– कौटन पैड का इस्तेमाल करें.

– अगर आप टैंपौन का यूज करती हैं तो हर

2 घंटे में इसे बदलें.

– लगातार समयसमय पर अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई करती रहें, जिस से कि पीरियड्स से आने वाली गंध से छुटकारा मिले.

ये भी पढ़ें- इन तरीकों से लॉकडाउन के दौरान करें पीसीओएस चेक

– पीरियड्स के समय शरीर में बहुत अधिक दर्द होता है. इसलिए इन दिनों कुनकुने पानी से नहाएं. इस से दर्द में राहत मिलेगी.

– इन दिनों अपने बिस्तर की सफाई का ध्यान रखना चाहिए.

– पीरियड्स के समय टाइट पैंट या लोअर न पहनें.

Facebook Vote Poll- ‘फेयर एंड लवली’ से जल्द हटेगा ‘फेयर’ शब्द… 

Menstrual Hygiene Day: टैम्पोन और मैंस्ट्रुअल कप

टैम्पोन और मासिक धर्म कप को “स्त्री स्वच्छता उत्पाद” में ही गिना जाता है. पीरियड्स के दौरान वैजाइना से निकलने वाले रक्त और टिश्यू को सोखने या इकट्ठा करने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता है .

टैम्पोन और मैन्सट्रुअल कप क्या हैं?

टैम्पोन और मैन्सट्रुअल कप आपको सामान्य जीवन का अनुभव कराते हैं. टैम्पोन कॉटन से बने छोटे प्लग होते हैं, जो आपकी वैजाइना के अंदर फिट होते हैं और पीरियड में आने वाले खून को सोखते हैं. कुछ टैम्पोन ऐप्लिकेटर के साथ आते हैं जो इसे वैजाइना में डालने में मदद करते हैं. टैम्पोन के अंत में एक स्ट्रिंग जुड़ी होती है, जिससे आप उन्हें आसानी से खींच सकते हैं.

मैंस्ट्रुअल कप छोटे घंटी या कटोरे के आकार के होते हैं और वे रबड़, सिलिकॉन या नरम प्लास्टिक से बने होते हैं. वजाइना के अंदर कप को पहना जाता हैं और यह पीरियड में निकले रक्त को एकत्र कर लेता है . ज्यादातर कप दोबारा उपयोग में लाए जा सकते हैं. ज़रुरत के हिसाब से आपको इसकी आवश्यकता होती है. आवश्यकता के बाद इसे धो लें और फिर से उपयोग करें. अन्य कप डिस्पोजेबल होते हैं और आप इन्हें एक बार या एक पीरियड चक्र के बाद फेंक सकते हैं.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में मिली छूट के बाद बाहर जाते समय किन बातों का रखें विशेष

टैम्पोन का उपयोग कैसे करें ?

टैम्पोन कईं तरह से उपलब्ध हैं, जैसे – लाइट, रेगुलर और सुपर . कुछ टैम्पोन एप्लीकेटर्स के साथ आते हैं – कार्डबोर्ड या प्लास्टिक से बनी छोटी स्टिक्स, जो वजाइना में टैम्पोन डालने में मदद करती हैं और कुछ टैम्पोन के पास एप्लीकेटर नहीं होता, इसलिए आप उन्हें अपनी उंगली से डालते हैं.

इसके बाद अपने हाथ धोएं और एक आरामदायक स्थिति में पहुंचें. आप स्क्वाट कर सकते हैं, एक पैर ऊपर रख सकते हैं या अपने घुटनों की मदद से शौचालय में बैठ सकते हैं. ऐप्लिकेटर या अपनी उंगली का उपयोग करके टैम्पोन को अपनी वजाइना में धकेलें, यह भी देखना चाहिए कि आप किस तरह के टैम्पोन का इस्तेमाल करते हैं. यदि आप आराम कर रही हैं तो वैजाइना में टैम्पोन डालना ज्यादा आसान होता है. सुचारू, राउंड एप्लिकेटर के साथ टैम्पोन का उपयोग आसान होता है. आप टैम्पोन या ऐप्लिकेटर की नोक पर थोड़ी चिकनाई भी लगा सकती हैं.

यदि आपको कोई परेशानी हो रही है, तो किसी ऐसे व्यक्ति से पूछें जिस पर आप भरोसा करते हैं (जैसे आपकी माँ, बहन, या कोई अन्य व्यक्ति जिन्होंने पहले कभी टैम्पोन का इस्तेमाल किया है) ताकि वह आपको यह दिखा सकें कि टैम्पोन को वैजाइना में कैसे डाला जाए. रैपर और ऐप्लिकेटर को कूड़ेदान में फेंक दें, उन्हें फ्लश न करें. हर 4 से 8 घंटे में अपना टैम्पोन बदलना सबसे अच्छा है. टैम्पोन लगाने के 8 घंटे बाद ही इसे बदलें .

आप रात भर टैम्पोन पहन सकते हैं, लेकिन इसे सोने से ठीक पहले लगाएं और सुबह उठते ही इसे बदल दें. टैम्पोन में एक छोर होता है जो आपकी वजाइना से बाहर लटका होता है. आप टैम्पोन को धीरे से स्ट्रिंग खींचकर बाहर निकालते हैं . टैम्पोन को बाहर निकालना आसान होता है, जब यह ज्यादा पीरियड फ्लो की वजह से उसे गीला कर देता है . यदि टैम्पोन वजाइना में लंबे समय से है तो यह टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम नामक बीमारी का कारण बन सकता है .

यदि आप टैम्पोन का उपयोग कर रही हैं और आपको उल्टी, तेज बुखार, दस्त, मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, चक्कर आना, बेहोशी या कमजोरी और दाने हो रहे हैं, तो टैम्पोन को बाहर निकालें और अपने गायनाकॉलजिस्ट से संपर्क करें . टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम को रोकने के लिए, आप सबसे कम अवशोषक टैम्पोन का उपयोग कर सकती हैं और अपने टैम्पोन को हर 4 से 8 घंटे या आवश्यकतानुसार बदल सकती हैं . टैम्पोन डालने से आमतौर पर चोट नहीं लगती, लेकिन शुरुआत में प्रैक्टिस करनी पड़ सकती है . जब तक आपको यह पता न चले कि आपके लिए कौन सा टैम्पोन ठीक है, तब तक अलग-अलग प्रकार के टैम्पोन आजमाएं . लेकिन पीरियड खत्म होने पर टैम्पोन न पहनें . यदि टैम्पोन डालना पीड़ादायक हो रहा है, तो इस बारे में डॉक्टर या नर्स से बात करें .

मैन्सट्रुअल कप का उपयोग कैसे करें ?

कईं तरह के कप होते हैं और वह सभी निर्देशों और चित्रों के साथ आते हैं . अपने हाथ धोएं और एक आरामदायक सहज स्थिति में आ जाएं . आप स्क्वाट कर सकते हैं, एक पैर ऊपर रख सकते हैं या अपने घुटनों का सहारा लेकर शौचालय पर बैठ सकते हैं . कप को निचोड़ें या मोड़ें ताकि यह सिकुड़ जाए और इसे अपनी उंगलियों से अपने वजाइना के अंदर करें . अपने कप के साथ आए निर्देशों का उपयोग करके इसे निचोड़ने का सबसे अच्छा तरीका समझें . यदि आप आराम कर रही हैं तो आपकी वैजाइना में कप डालना ज्यादा आसान है .

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में किशोरों में बढ़ रही है घातक निष्क्रियता 

कुछ कपों को आपकी वजाइना में, आपके गर्भाशय ग्रीवा के पास ऊंचा करके रखा जाना चाहिए, बाकि आपकी वजाइना के निचले हिस्से में बैठते हैं . यदि आपका कप असहजता पैदा कर रहा है या गलत जगह है, तो इसे बाहर निकालें और फिर से डालने की कोशिश करें . आप मैन्सट्रुअल कप को एक बार में 8 से 12 घंटे तक पहन सकती हैं . कुछ मैन्सट्रुअल कप में थोड़ा सा स्टेम होता है जिसे आप बाहर निकालने के लिए खींचते हैं . रिम के चारों ओर एक उंगली हुक करके, इसे निचोड़कर और इसे बाहर निकालकर हटा दिया जाता है . ज्यादातर कप पुन: प्रयोग किए जा सकते हैं .

इसे टॉयलेट, सिंक या शॉवर की नाली में खाली कर दें और इसे फिर से उपयोग करने से पहले धो लें . यदि आप किसी ऐसी जगह पर हैं जहाँ आप कप नहीं धो सकती हैं, तो बस इसे खाली कर दें और वापस डाल दें . हमेशा अपने कप के पैकेट के साथ आए सफाई और स्टोरेज के निर्देशों का पालन करें . अन्य कप डिस्पोजेबल हैं, आप उन्हें एक उपयोग या एक पीरियड के बाद फेंक दें . इन कपों को रैपर या टॉयलेट पेपर में लपेटें और फेंक दें, टॉयलेट में न बहाएं . कप को डालना सुरक्षित है, लेकिन शुरुआत में थोड़ी प्रैक्टिस की ज़रुरत होती है . अगर कप डालने में पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं, तो डॉक्टर या नर्स से परामर्श करें .

यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है कि आप अपनी जीवन शैली के बारे में सोचें कि आपकी ज़रुरतों के लिए सबसे बेहतर क्या होगा .

श्रीजना बगारिया, सह-संस्थापक, पी सेफ से बातचीत पर आधारित..

जब हों महीने में 2 बार पीरियड्स, कहीं ये 8 कारण तो नहीं

हर महिला की पीरियड्स अवधि अलगअलग हो सकती है. ज्यादातर यह अवधि 28 दिनों की होती है, लेकिन यह 21 से 35 दिनों के बीच बदल भी सकती है. पीरियड्स नियमित तब माने जाते हैं जब किसी महिला को 2 महीने में 1 बार या फिर 1 महीने में 2-3 बार होने लगे. यह एक गंभीर समस्या है, इसलिए जल्द से जल्द गाइनोकोलौजिस्ट से मिल कर इस का इलाज करवाना चाहिए, क्योंकि इस के कारण नई शादीशुदा लड़कियों को आगे चल कर मां बनने में परेशानी हो सकती है. अनियमित पीरियड्स के कई कारण हैं जैसे:

1. बर्थ कंट्रोल पिल्स:

अगर आप बर्थ कंट्रोल पिल्स लेती हैं तो आप की बौडी में बहुत से हारमोनल बदलाव आते हैं, जिन की वजह से भी ब्लीडिंग हो सकती है. मान लीजिए आप नियमित पिल्स लेती हैं और फिर अचानक बंद कर देती हैं तो ऐडिशनल ब्लीडिंग होने लगती है. ज्यादातर यह ब्लीडिंग पीरियड डेट के 2 सप्ताह बाद होती है, साथ ही अगर आप ने हालफिलहाल इन पिल्स को लेना शुरू किया है तो भी हारमोनल बदलाव की वजह से ऐक्स्ट्रा ब्लीडिंग होने लगती है.

ये भी पढ़ें- #lockdown: इन 5 टिप्स से घर पर खुद को रखें फिट

2. प्रैगनैंट तो नहीं:

महिलाओं को लगता है कि प्रैगनैंट होने पर पीरियड रुक जाता है, लेकिन गर्भवती होने के बाद भी बीचबीच में ब्लीडिंग हो सकती है. ऐसा शुरुआत के 3 महीनों में होना आम बात है.

3. ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी:

जहां सामान्य प्रैगनैंसी में भू्रण का विकास गर्भाशय के अंदर होता है वहीं ऐक्टोपिक प्रैगनैंसी में भू्रण का विकास फैलोपियन ट्यूब, अंडेदानी या पेट में कहीं भी हो जाता है. इन जगहों पर भू्रण का विकास नहीं हो पाता है धीरेधीरे जब उस का आकार बढ़ने लगता है तो वह जगह फट जाती है, जिस से ज्यादा ब्लीडिंग होने लगती है. और महिलाएं इसे पीरियड से रिलेटेड ब्लीडिंग समझने की गलती करती हैं. ऐसे हालात में तुरंत डाक्टर के पास जाना चाहिए, क्योंकि कई बार यह स्थिति गंभीर बन जाती है.

4. मिसकैरेज तो नहीं:

गर्भ के 3 महीनों तक ब्लीडिंग होना नौर्मल है, लेकिन यह मिसकैरेज का भी एक संकेत हो सकता है. मिसकैरेज यानी गर्भाशाय में किसी वजह से भ्रूण का अपनेआप अंत हो जाना. रिपोर्ट्स के अनुसार करीब 15 से 17% महिलाओं का मिसकैरेज हो जाता है.

5. हारमोनल बीमारी पीसीओएस:

पीसीओएस यानी पौलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम एक हारमोनल बीमारी है. इस बीमारी में अंडाशय में छोटेछोटे फौलिकल्स जमा हो जाते हैं, जो नियमित रूप से अंडे देने में असमर्थ होते हैं. इसलिए जब महिलाओं के अंडाशय से अंडा निकलने की प्रक्रिया नहीं होती या लेट हो जाती है तो हारमोनल डिसबैलेंस हो जाता है, जिस का असर ब्लीडिंग पर दिखता है और महीने में 2 बार पीरियड्स हो जाते हैं.

6. थायराइड की प्रौब्लम:

जिन महिलाओं में थायराइड की समस्या होती है उन के पीरियड्स भी अनियमित हो सकते हैं, क्योंकि उन के मासिकचक्र को प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन हारमोन मिल कर कंट्रोल करते हैं, जिन का निर्माण थायराइड ग्रंथि से होता है. इसलिए थायराइड की प्रौब्लम्स को पीडियड्स की अनियमितता से जोड़ कर देखा जाता है.

7. समय से पहले मेनोपौज:

जब किसी महिला को 40 से 45 की उम्र के बाद लगातार 12 महीने तक पीरियड्स नहीं आते तो यह मेनोपौज कहलाता है. लेकिन अगर समय से पहले ही किसी को यह समस्या हो जाए तो इस स्थिति को अर्ली मेनोपौज कहा जाता है, जिस की वजह से महिला का पीरियड पूरी तरह नहीं आता और उसे अनियमित मासिकधर्म की समस्या भी हो जाती है. अकसर मेनोपौज से पहले महिलाओं को महीने में 2 बार पीरियड्स होते हैं.

ये भी पढ़ें- #coronavirus: कोरोना वायरस से बचाती है शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता

8. स्ट्रैस लेने से:

एक रिसर्च के अनुसार जो महिलाएं हाई लैवल स्ट्रैस लेती हैं उन में भी अनियमित पीरियड्स की समस्या पाई जाती है. दरअसल, जब महिलाएं चिंता करती हैं तो उन के अंदर स्ट्रैस हारमोन बढ़ जाते हैं, जिस की वजह से पीरियड या तो बहुत जल्दी आ जाता है या फिर बहुत लेट. इस की वजह से कभी मासिकधर्म मिस तो कभी महीने में 2 बार आ सकता है.

अचानक वजह घटने या बढ़ने से: जब किसी महिला का वजन अचानक बढ़ या घट जाता है तो उस के अंदर हारमोंस बदलाव भी आते हैं. रिसर्च के अनुसार बौडी का वेट कंट्रोल करने से लंबे समय तक अनियमित पीरियड्स की समस्या हो सकती है.

2 बार पीरियड्स से बचने के टिप्स

– ऐक्सरसाइज उतनी ही करें जितनी आप का शरीर सह सके.

– पानी ज्यादा से ज्यादा पीएं. इस से बौडी डिटौक्स होती है.

– ज्यादा दर्द और ब्लीडिंग से बचने के लिए चक्रासन करें.

– हलका भोजन करें यानी मसालेदार और खट्टा खाने से परहेज करें.

– चायकौफी और कौल्डड्रिंक्स का सेवन न करें.

– अदरक को आधा कप पानी में उबाल कर उस में थोड़ा सा शहद मिलाएं और भोजन करने के बाद 2-3 बार इस का सेवन करें.

– नियमित पीरियड्स के लिए कच्चे पपीते का जूस पीएं.

– सौंफ में ऐंटीस्पैज्मोडिक तत्त्व होते हैं, जो पीरियड्स को नियमित करने में मदद करते हैं.

पीरियड्स का नाम लेकर भोली जनता को क्यों डराते हैं स्वामी जी?

अब तक पीरियड्स को लेकर समाज में अंधविश्वास बना हुआ है. आज भी हमारे समाज में पीरियड्स के खून को गंदा माना जाता है. लड़कियां इसे छिपाने की पूरी कोशिश करती हैं. पीरियड्स के समय पर एक अजीब सी टेंशन उनके मन में बैठी रहती है. कहीं बैठने और उस जगह से उठने के बाद कई बार पीछे मुड़कर वह अपने कपड़े को चेक करती है कि अगर दाग लग जाए और किसी ने देख लिया तो क्या होगा? लोग क्या कहेंगे जैसे की उन्होंने कोई अपराध कर दिया हो. जिस खून से नन्हीं सी जान का निर्माण होता है भला वो गंदा कैसे हो सकता है…

अगर किसी लड़की को पीरियड ना हो तो भी लोग उसे भला बुरा बोलते हैं, यहां तक की उसकी शादी में भी अड़चने आती हैं और अगर पीरियड्स हो तो भी उन दिनों उसे कई समस्याओं से गुजरना पड़ता है.

पीरियड्स से जुड़ी अजीबो-ग़रीब बातें…

पीरियड्स से जुड़ी कई अजीबो-ग़रीब बातें हमारे सामने आई हैं. जब मैं स्कूल में पढ़ती थी और मेरी एक सहेली को उसके घर ट्यूशन क्लास के लिए सुबह लेने गई तो देखा कि कड़ाके की ठंड में वह जमीन पर सोई थी. पूछा तो उसने बताया कि पीरियड के दिनों में उसे जमीन पर सोना पड़ता है. ऐसे ही कई और बातों से हम लड़कियों का पाला पड़ा होगा जैसे किचन में नहीं जाना है, खाना नहीं बनना है, मंदिर नहीं जाना है और हां उन दिनों तो आप पूजा भी नहीं कर सकते. यहां तक की खाने का समान भी जैसे अचार छूना भी मना होता है. क्या हम महिलाएं पीरियड्स के समय सो कॉल्ड अछूत हो जाती हैं? कई जगहों पर तो आपको अपने पति और बच्चों से भी दूर रहना पड़ता है, बस पड़े रहो घर के किसी कोने में.

ये भी पढ़ें- पांचवीं तक पढ़ी हैं उमा भारती तो 9th पास हैं तेजिस्वी यादव, जानें कितने पढ़ें-लिखे हैं ये 16 नेता

हालांकि कुछ लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं लेकिन कुछ अंधविश्वासी और पाखंडी बाब इसे धर्म से जोड़ने का काम करते हैं और लोगों के मन में डर पैदा करते हैं कि अगर पीरियड्स में आपने ऐसा नहीं किया वैसा नहीं किया तो आपके साथ कुछ गलत हो जाएगा. ढोंगी बाबाओं का काम है धर्म के नाम पर डाराना और लोगों को लूटना.

स्वामी जी की छोटी सोच…

ऐसा ही एक कुछ कहा है गुजरात के स्वामीनारायण भुज मंदिर के स्वामी कृष्णस्वरूप दास का कि, अगर पीरियड्स में महिला अपने पति के लिए खाना बनाती है तो अगले जन्म में वह ‘कुतिया’ (Bitch) बनकर पैदा होगी. ये वही मंदिर है जिसके अनुयायी की ओर से चलाए जा रहे स्कूल के हौस्टल में कुछ दिनों पहले पीरियड की जांच करने के लिए लड़कियों के अंडरवियर उतरवाने का मामला सामने आया था. लड़कियों को मजबूर किया गया था कि इस जांच के लिए वो अपने कड़ते उतारें. मामला सामने आने के बाद प्रशासन की ओर से जांच की बात भी कही गई.

दरअसल, स्वामीनारायण भुज मंदिर का अपना यूट्यूब पेज है जहां दास जी के कई वीडियो अपलोड किए गए हैं. वहीं एक वीडियो में स्वामी का कहना है कि अगर पुरुष माहवारी से गुजर रही महिला के हाथ का बना खाना खा ले तो अगले जन्म वह बैल बनेगा. ज्ञान देने वाले दास यहीं नहीं रूकते, वो आगे कहते हैं कि ये नियम शास्त्रों में लिखा है. बाकी आपको जो समझना है आप समझें. हैरानी इस बात की है कि देश के कई हिस्सों में आज भी इन बेतुके नियमों को माना जाता है.

ये भी पढ़ें- नजर: अंधविश्वास या इसके पीछे है कोई वैज्ञानिक तर्क, जानें यहां

दास जी को हम महिलाएं बताना चाहती हैं कि पीरियड में इतना दर्द होता है कि खड़े होना मुश्किल होता है खाना बनाना, घर के काम करना तो दूर की बात है. कितना अच्छा होता कि, पुरुष इस बात को समझते और इमोशनली व फिजिकली रूप से घर की महिलाओं को सपोर्ट करते ताकि हम सहेलियां एक-दूसरे को हैपी पीरियड का संदेश भेज सकतीं.

जानें पीरियड्स के दौरान क्या खाएं और क्या नहीं

पीरियड्स से पहले होने वाली तकलीफ़, मूड स्विंग्स, पेट में दर्द, क्रैम्प्स (ऐंठन) जैसी समस्याएं यानी पीएमएस की तकलीफें हार्मोन्स के कम या ज़्यादा होने के कारण होती हैं. सच कहें तो हार्मोन्स में बदलाव ही महिलाओं के मासिक धर्म का प्रमुख कारण होता है. लेकिन यदि ये हार्मोन्स असंतुलित हो जाते हैं तो ये तकलीफें हद से ज़्यादा बढ़ जाती है.आइये जानते हैं डायटीशियन डॉ स्नेहल अडसुले से कि पीरियड्स के समय , बाद में और पहले क्याक्या चीज़ें खानी चाहिए;

पीरियड्स के पहले

पीरियड्स के पहले यानी मेन्स्ट्रुअल सायकल के 20वें से 30 वें दिन तक आप के अंदर की ऊर्जा कम हो जाती है. आप थोड़ी उदासी भी महसूस कर सकती हैं. दिन में कई बार काफी ज़्यादा भूख महसूस हो सकती है और इसलिए इन दिनों आप के शरीर और मन के लिए सेहतमंद स्नैक्स ज़रुरी होते हैं.

रिफाइन्ड शक्कर, प्रोसेस्ड फूड और अल्कोहल का सेवन जितना संभव हो कम करें. बादाम, अखरोट, पिस्ता जैसे सूखे मेवे यानी हेल्दी फैट का सेवन करें. सलाद में तिल और सूरजमुखी के बीज शामिल करें. सेब, अमरुद, खजूर,पीच जैसे अधिक फायबर वाले फलों को अपने आहार में शामिल करें.

ये भी पढ़ें- कब और कितना दौड़ें

हायड्रेटेड रहें. सोड़ा और मीठे पेय से परहेज़ करें. पर्याप्त मात्रा में पानी पियें. नींबू पानी में पुदिना और अदरक डाल कर पिएं. रात को सोने से पहले शरीर और मन को आराम मिले इसके लिए पेपरमिंट या कैमोमाईल चाय लें.

खून में आयरन सही मात्रा में रहने से आप का मूड और ऊर्जा का स्तर भी अच्छा रहेगा. नट्स, बीन्स (फलियां), मटर, लाल माँस और मसूर जैसे लोहयुक्त खाद्यपदार्थों का आहार में समावेश करें. पेट फूलने या सूजन जैसी समस्या से बचने के लिए नमक का सेवन कम करें.

पीरियड्स के दिनों में (पहले से सातवें दिन तक)

पीरियड्स के दिनों में खास कर पहले दो दिनों में आप को ऐसा लग सकता है जैसे सारी शक्ति चली गई हो. ऊर्जा का स्तर बेहद कम हो जाता है और आप को थकान महसूस हो सकती है. इसलिए इन दिनों ऐसा भोजन करें जिस से आप के शरीर में ऊर्जा का स्तर ऊँचा ऱखने में मदद मिले. अपने आहार में किशमिश, बादाम, मूँगफली, दूध का समावेश करें.

जंक और प्रोसेस्ड फूड में सोडियम और रिफाइन्ड कार्ब्ज प्रचुर मात्रा में होते हैं. इन्हें खाने से बचें. शीतल पेयों में रिफाइन्ड शक्कर भारी मात्रा में होती है जिस के कारण क्रैम्प्स (ऐंठन) आने की मात्रा और पीड़ा बढ़ सकती है. शीतलपेय या सोड़ा के बजाय नींबूपानी, ताजा फलों का रस या हर्बल टी लें.

ये भी पढ़ें- दौड़ने से पहले जरूर जानें यह बातें

पीरियड्स के बाद के दिन (सातवें दिन से अठारहवें दिन तक)

इन दिनों आप काफी अच्छा महसूस करती हैं. इन्ही दिनों में ओव्यूलेशन होता है. ऐसे में व्यायाम के लिए ये दिन सर्वश्रेष्ठ होते हैं. अपने सलाद या सब्ज़ी में एक चम्मच फ्लैक्स या कद्दू के बीज डालें. इस से आप के शरीर में नैसर्गिक रुप से एस्ट्रोजन का स्तर ऊँचा रहेगा. पालक, दही, हरी सब्ज़ियां, फलियां जैसे कैल्शियमयुक्त खाद्यपदार्थ का सेवन करने के लिए यह सप्ताह सब से अच्छा है. इस चरण में आप की भूख धीरेधीरे कम होती है इसलिए समय पर भोजन करने का खासतौर पर ध्यान रखें.

प्रेग्नेंसी के अलावा इन चीजों के कारण होती है पीरियड्स में देरी

पीरियड्स में महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अनियमित पीरियड महिलाओं के लिए सबसे बड़ी परेशानी होती हैं. अगर ये समय पर ना आए तो महिलाएं आशंकित हो उठती हैं. ऐसे में महिलाओं को डर होता है कि कहीं वो गर्भ से तो नहीं हैं ना. ये आम धारणा है कि जैसे ही पीरियड मिस होता है लोग उसे प्रेग्नेंसी से जोड़ते हैं. लोगों में ये सोच मासिकधर्म से जुड़ी आधी अधूरी जानकारी के कारण है.

असल में पीरियड्स में अनियमितता हार्मोंस में आने वाले बदलावों के कारण होता है. कई जानकारों का मानना है कि अगर कोई महिला 3 महीने में अपना एक पीरियड मिस कर देती है तो उसे गंभीर समस्या हो सकती है. इसके अलावा आपके कामकाज और आपके वातावरण के माहौल का भी पीरियड्स पर फर्क पड़ता है.

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि प्रेग्नेंसी के अलावा और किन कारणों से महिलाओं में पीरियड्स की अनियमितता आती है.

तनाव:

thinking

तनाव के कारण महिलाओं के पीरियड्स पर बुरा असर पड़ता है. अगर आप ज्यादा तनाव लेती हैं तो इसका सीधा असर आपके हार्नोंस पर पड़ता है. यही कारण है कि आपके पिरियड्स में देरी होती है.

ये भी पढ़ें- सांस लेने में तकलीफ हो जाएं अलर्ट

शरीर का कम वजन:

wieght

अगर आपका वजन कम है तो इसका सीधा असर आपके पीरियड्स पर होगा. अगर आपका वजन बहुत कम है तो आपके पीरियड्स में अनियमितताएं आएंगी.

अधिक एक्सरसाइज:

exersize

एक्सरसाइज शरीर के लिए बेहद जरूरी है. इससे हमारी सेहत पर काफी सकारात्मक असर पड़ता है. पर अत्यधिक एक्सरसाइज आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है. इसका सीधा असर आपके हार्मोंस पर पड़ता है, और आपके पीरियड्स ठीक समय पर नहीं आते हैं.

पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम:

pcod

आजकल की जैसी जीवनशैली हो चुकी है, महिलाओं में पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (Polycystic Ovary Syndrome) की समस्या आम हो गई है. इस बीमरी के कारण महिलाओं में अनियमित पीरियड्स की शिकायत हो रही है. ना सिर्फ पीरियड्स बल्कि इस बीमारी के कारण महिलाओं में वजन बढ़ने, बाल झड़ने, चेहरे पर दाग:धब्बे जैसी परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है.

ये भी पढ़ें- नई दुल्हन पर प्रेग्नेंसी का दबाव पड़ सकता है भारी, जानें क्यों

पीरियड्स के दौरान इन बातों का भी रखें ख्याल

बिजी लाइफस्टाइल में बहुत जरूरी है कि आप पीरियड्स के दौरान अपनी स्वच्छता का पूरा ख्याल रखें क्यों कि अगर ऐसा नहीं किया तो बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इसीलिए आज हम आपको बताएंगे की कैसे पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई बनाए रखें और बीमारियों से भी बचे रहें…

1. ब्लीडिंग के दौरान रखें साफ-सफाई

पीरियड्स के दौरान शरीर से ब्लीडिंग होने पर विशेष रूप से अपने प्राइवेट पार्ट्स को साफ रखना महत्वपूर्ण है. इस हिस्से की सफाई के लिए गर्म पानी और इंटिमेट या वैजाइनल वाश का उपयोग करें.

2. कभी भी एक साथ दो पैड का इस्तेमाल न करें

कुछ महिलाएं ज्यादा फ्लो के समय सावधानी वश 2 सेनेटरी पैड का उपयोग करती हैं. यह उचित नहीं क्यों कि यह योनि क्षेत्र में संक्रमण का कारण बन सकता है. इसीलिए एक ही पैड का इस्तेमाल करें और यदि फ्लो अधिक हो तो इसे बदलते रहें.

ये भी पढ़ें- जब त्यौहारों में पीरियड्स शुरू हो जाएं

3. आरामदायक, साफ अंडरवियर पहनें

अपने सैनिटरी पैड को बदलते समय आवश्यक है इन दिनों कुछ आरामदायक अंडरवियर पहने. केवल कौटन या कपड़े से बने अंडरवियर जो आप की स्किन को सांस लेने की अनुमति देते हैं. सिंथेटिक और टाइट अंडरवियर भी संक्रमण को आमंत्रित करते है.

हमेशा प्राइवेट पार्ट्स को आगे से पीछे की तरफ धोएं या पोंछें. यह महत्वपूर्ण है क्यों कि विपरीत दिशा में सफाई, बैक्टीरिया का रास्ता बना सकती है जिस से संक्रमण हो सकता है.

4. अक्सर उत्पादों को बदले

एक सैनिटरी उत्पाद आप के शरीर के संपर्क में जितना लंबा होगा, संक्रमण का खतरा उतना ही अधिक होगा. बहुत लंबे समय तक रहने पर पैड रशेस पैदा कर सकते हैं और संक्रमण भी पैदा कर सकते हैं. आम तौर पर एक पैड का उपयोग 6 घंटे तक किया जा सकता है. टैम्पोन को भी हर 2 से 3 घंटे में बदलने की आवश्यकता होती है.

ये भी पढ़ें- पीरियड्स प्रौब्लम: उन दिनों में क्या खाएं

पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई न करना हो सकता है खतरनाक

महिलाओं और लड़कियों के लिए प्रत्येक महीने 4 -5 दिन काफी थकावट वाला और दर्द भरा होता है. यह वक्त है जब उन्हें पीरियड्स के दर्द से जूझना पड़ता है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि तकलीफ की वजह से आप उन दिनों खुद की देखभाल करना छोड़ दें. बल्कि उन दिनों आप के प्राइवेट पार्ट्स को ज़्यादा देखभाल की जरुरत होती है. आइये जानते हैं इंटरनेशनल फर्टिलिटी सेंटर की डॉ. रीता बक्शी से कि पीरियड्स के दिनों में साफ-सफाई क्यों जरुरी है और कैसे रखी जा सकती है-

1. यूरिन इन्फेक्शन्स

पीरियड्स के दौरान खुद को साफ न रखना बहुत सारे बैक्टीरियाज को आमंत्रित करता है जो आगे चल कर यूरिन इन्फेक्शन्स की वजह बन सकते हैं. इस से पेट के निचले हिस्से में दर्द के साथ किडनी भी प्रभावित हो सकती है.

ये भी पढ़ें- जानें काम के बीच क्यों जरूरी है झपकी

2. रैशज

यह एक बहुत ही आम समस्या है और लगभग हर दूसरी महिला ने कभी न कभी इस का अनुभव किया है. पीरियड्स के दौरान होने वाले रैशेज का मुख्य कारण सैनिटरी नैपकिन को बारबार बदलना नहीं है. आधुनिक समय के नैपकिन बनाने में कंपनियां अच्छी मात्रा में प्लास्टिक और अन्य सामग्री का उपयोग करते हैं जो आप की स्किन के लिए अनुकूल नहीं है. इस के अलावा 4-6 घंटे से अधिक के लिए एक नैपकिन का उपयोग करने से रक्त उस के आसपास के संक्रमण का कारण बन सकता है जिस से स्किन पर चकत्ते और जलन होती है.

3. सफेद डिस्चार्ज

प्राइवेट पार्ट्स से व्हाइट डिस्चार्ज हर बार अस्वस्थ परिस्थितियों की ओर इशारा नहीं करता है. लेकिन पीरियड्स के दौरान अस्वच्छता आप की योनि में बैक्टीरिया का कारण बन सकती है और परिणामस्वरूप सफेद डिस्चार्ज हो सकता है. इस लिए ज़रूरी है कि इस हिस्से को पीरियड्स के दौरान साफ़ और स्वच्छ रखें.

4. बांझपन की संभावना

पीरियड्स के दौरान अशुद्ध कपड़ों का उपयोग करना या लंबे समय तक एक ही सैनिटरी नैपकिन या टैम्पोन का उपयोग करना बैक्टीरिया के विकास को सुविधाजनक बना सकता है. ये बैक्टीरिया बांझपन की संभावना बढ़ा सकते हैं.

ये भी पढ़ें- पीरियड्स प्रौब्लम: उन दिनों में क्या खाएं

5. सरवाइकल कैंसर की संभावना

पीरियड्स के दौरान अस्वच्छता की वजह से कैंसर के विकास की संभावनाएं पैदा हो जाती हैं. महिलाओं के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे अपने पीरियड्स के दौरान न केवल खुद को साफ रखें बल्कि नियमित रूप से अपने प्राइवेट पार्ट की सफाई कर के हमेशा स्वच्छता बनाए रखें.

पीरियड्स प्रौब्लम: उन दिनों में क्या खाएं

महिलाओं को यौनारंभ की उम्र से ले कर मेनोपौज तक लगभग 18 मिग्रा. प्रतिदिन आयरन का सेवन करना जरूरी है. माहवारी के दौरान बहुत अधिक रक्तस्राव को मीनोरहेजिया कहा जाता है. इस से शरीर में आयरन की कमी हो सकती है. एक अनुमान के मुताबिक प्रजनन उम्र की 5 फीसदी महिलाओं में हैवी पीरियड्स के कारण आयरन की कमी की वजह से ऐनीमिया हो जाता है. पीरियड्स के दौरान ज्यादा रक्तस्राव से महिलाओं में आयरन की कमी की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में इस आहार के सेवन से आयरन की कमी को पूरा किया जा सकता है.

हीम आयरन

हीम आयरन पशु उत्पादों में पाया जाता है. हीम आयरन नौनहीम आयरन की तुलना में जल्दी अवशोषित हो जाता है. इन खाद्यपदार्थों में हीम आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

ये भी पढ़ें- जब त्यौहारों में पीरियड्स शुरू हो जाएं

चिकन लिवर

चिकन लिवर की एक सर्विंग में 12.8 मिग्रा. आयरन होता है, जो रोजमर्रा की जरूरत का 70 फीसदी होता है.

शैलफिश

100 ग्राम शैलफिश में 28 मिग्रा. तक आयरन होता है, जो रोजमर्रा की जरूरत का 155 फीसदी होता है.

अंडा

100 ग्राम उबले अंडे में 1.2 मिग्रा. आयरन होता है.

नौनहीम आयरन

नौनहीम आयरन पौधों से मिलने वाले खाद्यस्रोतों में पाया जाता है. यह हीम आयरन की तरह शरीर में तेजी से अवशोषित नहीं होता. किंतु शाकाहारी लोगों के लिए यह आयरन का प्रभावी स्रोत है. नौनहीम आयरन के निम्न सब से अच्छे स्रोत हैं-

हरी पत्तेदार सब्जियां

हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, स्विस कार्ड, काले और बीट ग्रीन्स की हर सर्विंग में 2.5, 6.5 मिग्रा. आयरन होता है, जो रोजमर्रा की जरूरत का 14 से 40 फीसदी होता है. पत्तागोभी और ब्रोकली भी आयरन के अच्छे स्रोत हैं.

टमाटर

टमाटर की प्यूरी या पेस्ट के आधे कप में लगभग 3.9 मिग्रा. आयरन होता है. इस के अलावा टमाटर में विटामिन सी भी होता है, जो आयरन के बेहतर अवशोषण में मदद करता है.

ये भी पढ़ें- फैस्टिवल्स में ऐसे रखें टमी फिट

अमरंथ

अमरंथ एक प्रकार का ग्लूटेनरहित अनाज है. पके अमरंथ के 1 कप में 5.2 मिग्रा. आयरन होता है. यह रोजमर्रा की जरूरत का 29 फीसदी होता है. इस के अलावा यह प्रोटीन का भी संपूर्ण स्रोत है.

ओट्स

ओट्स भी ग्लूटेनरहित सुपर अनाज है. यह आहार कई तरह से फायदेमंद है. पके ओट्स के 1 कप में रोजमर्रा की जरूरत का 19 फीसदी आयरन होता है. यह आहार पाचनतंत्र के लिए भी फायदेमंद है.

किडनी बींस/राजमा

उबले राजमा का 1 कप 4 मिग्रा. आयरन देता है. राजमा प्रोटीन, फाइबर के भी अच्छे स्रोत हैं और ब्लड शुगर का स्तर भी सामान्य बनाए रखने में मदद करते हैं.

खजूर

खजूर प्राकृतिक चीनी के सब से अच्छे स्रोतों में से एक है. इस के अलावा 100 ग्राम खजूर में रोजमर्रा की जरूरत का 5 फीसदी आयरन होता है.

चने/छोले

100 ग्राम चने में 6.6 मिग्रा. आयरन होता है. इस में प्रोटीन और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

सोयाबीन

सोयाबीन के 1 कप में 8.8 ग्राम आयरन होता है.

आयरन के अवशोषण से जुड़े पहलू

आयरन से युक्त आहार का सेवन विटामिन सी के साथ करना चाहिए, क्योंकि विटामिन सी के साथ आयरन के अवशोषण की दर 300 फीसदी तक बढ़ जाती है. इसलिए अपने आहार में संतरा, किवी, नीबू, अंगूर और टमाटर भी शामिल करें.

खाने के साथ चायकौफी का सेवन न करें, क्योंकि इस से आयरन के अवशोषण की दर 50 से 90 फीसदी कम हो जाती है. चाय में मौजूद टैनिन और कौफी में मौजूद कैफीन आयरन के अवशोषण को रोकता है.

कैल्सियम का सेवन ज्यादा मात्रा में करने से आयरन के अवशोषण की दर कम हो जाती है. इसलिए आयरन से युक्त आहार के साथ दूध, चीज, लस्सी आदि का सेवन न करें.

मीट, फिश और पोल्ट्री में आयरन होता है, जो शरीर में तेजी से अवशोषित होता है.

ये भी पढ़ें- खुद को ऐसे रखें फिट

पके पालक में ज्यादा आयरन मिलता है, क्योंकि कच्चे पालक में औक्जेलिक ऐसिड या आक्सेलेट होता है, जो आयरन के अवशोषण में बाधक बन सकता है. पके भोजन के सेवन से आयरन के अवशोषण की दर बढ़ जाती है.

अनाज, लैग्यूम, सोयाबीन में फायटेट्स होते हैं, जिन से आयरन के अवशोषण की दर कम हो जाती है.

नमामी अग्रवाल

सीईओ, नमामी लाइफ

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें