गर्भावस्था में होने वाली उल्टी को इन पांच तरीकों से करें काबू

गर्भावस्था में उल्टी का होना बेहद आम बात है. इस दौरान महिलाओं में कई तरह के शारीरिक बदलाव होते हैं. इसका असर उनके मानसिक सेहत पर भी होता है. इस दौरान उनमें कई तरह के हार्मोंनल बदलाव होते हैं जिसके कारण उल्टी की समस्या होती है.

उल्टी होना गर्भावस्था की पहचान होती है. इसके अलावा प्रेग्नेंसी के तीसरे महीने से जी मिचलना और मौर्निंग सिकनेस भी होने लगते हैं. अगर आपकी उल्टी सामान्य है तो घबराने की कोई बात नहीं लेकिन अगर आपको बहुत अधिक उल्टी हो रही है तो तुरंत सतर्क हो जाइए.

इस खबर में हम आपको कुछ घरेलू उपायों के बारे में बताएंगे जिससे आप इन परेशानियों का घर बैठे इलाज कर सकेंगी.

  • ऐसी स्थिति में आंवले का मुरब्बा खाना भी काफी असरदार होता है.
  • गर्भावस्था के लगातार उल्टी होने पर सूखे या हरे धनिया को पीस कर मिश्रण बना लें. समय समय पर इसका सेवन करने से उल्टी की समस्या बंद हो जाती है. इसमें काला नमक मिला कर भी सेवन किया जा सकता है.
  • जीरा, नमर, नींबू का रस और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार कर लें. कुछ देर पर इसे चूसते रहें. ऐसा करने से आपको फायदा होगा.
  • तुलसी के पत्ते के रस में शहद मिलाकर चाटने से भी फायदा होता है.
  • अगर आपको लगातार उल्टियां हो रही हैं तो रात में एक ग्लास पानी में काले चने को भींगा कर छोड़ दें और सुबह में उस पानी को पी लें. ऐसा करने से आपको काफी फायदा होगा.

गर्भावस्था में इसे करें अपनी डाइट में शामिल, स्वस्थ होता है बच्चा

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के खानपान का विशेष ध्यान दिया जाता है. इस दौरान गर्भवती महिला के डाइट का सीधा प्रभाव उसके बच्चे पर भी होता है. इसलिए जरूरी है कि उसके पोषण का खासा ख्याल रखा जाए. जानकारों की माने तो गर्भावस्था के दौरान अंडा खाना बेहद फायदेमंद होता है. अंडे में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, सेलेनियम, जिंक, विटामिन A, D और कुछ मात्रा में B कौम्प्लेक्स भी पाया जाता है. जो शरीर की सभी जरूरतों को पूरा करने का सबसे बेहतर सूपर फूड है.

कई तरह के स्टडीज से भी ये बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान अंडा खाने से बच्चे का दिमाग तेज होता है. इसके साथ ही उसकी सीखने की क्षमता भी तेज होती है. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि गर्भावस्था में अंडा खाना कैसे लाभकारी है और आपके बच्चे पर उसका सकारात्मक असर कैसे होगा.

अंडा प्रोटीन का प्रमुख स्रोत है. इसमें प्रोटीन की प्रचूरता होती है. आपको बता दें कि गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए प्रोटीन बेहद जरूरी तत्व होता है. असल में उसकी हर कोशिका का निर्माण प्रोटीन से होता है. गर्भावस्था में अंडा खाने से भ्रूण का विकास बेहतर होता है.

आपको बता दें कि गर्भवती महिला के लिए एक दिन में दो सौ से तीन सौ तक एडिशनल कैलोरी लेनी चाहिए. इससे उसे और बच्चे, दोनों को पोषण मिलता है. अंडे में करीब 70 कैलोरी होती है जो मां और बच्चे दोनों को एनर्जी देती है.

आपको बता दें कि अंडे में 12 तरह के विटामिन्स होते हैं. इसके अलावा कई तरह के लवण भी इसमे होते हैं. इनमें मौजूद choline और ओमेगा-3 फैटी एसिड बच्चे के संपूर्ण विकास को बढ़ावा देते हैं. इसके सेवन से बच्चे को मानसिक बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है और उसका दिमागी विकास भी होता है.

अगर गर्भवती महिला का ब्लड कोलेस्ट्रौल स्तर सामान्य है तो वह दिन में एक या दो अंडे खा सकती है. अंडे में कुछ मात्रा में सैचुरेटेड फैट भी होता है. अगर महिला का कोलेस्ट्रौल लेवल अधिक है तो उसे जर्दी वाला पीला हिस्सा नहीं खाना चाहिए.

अगर की ये गलती तो सिंदूर भी हो सकता है खतरनाक

30 साल की सरला पिछले कुछ समय से सिर और माथे पर दाने होने से परेशान थी. डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि वह मांग भरने के लिए जो सिंदूर लगाती है, वह घटिया किस्म का है.

यह सुन कर सरला हैरान रह गई और तुरंत इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए अपना इलाज शुरू करा दिया.

लेकिन राधा ने ऐसा नहीं किया. या यों कह सकते हैं कि उस की सास ने उसे रीतिरिवाजों के चलते ऐसा नहीं करने दिया.

दरअसल, राधा की शादी को अभी कुछ ही महीने हुए थे और रोज सुबह नहाने के बाद मांग भरने से उस के सिर में दर्द रहने लगा था.

पहले तो वह समझी नहीं थी लेकिन जब दर्द बरदाश्त से बाहर होने लगा तो वह अपने पति रंजन के साथ डाक्टर के पास गई थी.

डाक्टर ने जांच में पाया कि राधा के सिरदर्द की वजह उस का घटिया किस्म का सिंदूर लगाना है, जो वह थोक के भाव में अपनी मांग में भरती है.

डाक्टर ने राधा को जरूरी दवाएं देते हुए कहा कि तुम कुछ दिन बस नाम के लिए मांग भरना या मत भरना.

पतिपत्नी तो डाक्टर की यह सलाह समझ गए लेकिन जब राधा की सास को यह बात पता चली तो वह बिदक गई और बोली कि फैशन की मारी राधा ने चार जमात क्या पढ़ ली, डाक्टर के साथ मिल कर हमें गुमराह कर रही है, ताकि आगे मांग भरने से बच सके. ऐसा कभी हुआ है कि हमारे घर में किसी सुहागिन ने अपनी मांग सूनी रखी हो?

हिंदू धर्म में हर शादीशुदा औरत से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी मांग लाल रंग के सिंदूर से भर कर रखे. अगर वह ऐसा नहीं करती है तो उस के पति पर मुसीबत आ सकती है या वह मर भी सकता है. पर क्या मिलावट करने वालों को भगवान का भी डर नहीं होता?

सिंदूर में आमतौर पर लैड औक्साइड कैमिकल मिला दिया जाता है, जो एक जहरीली धातु है. इसे मांग में भरने से सिर और माथे की चमड़ी लगातार कई सालों तक इस के संपर्क में आती रहती है, जिस से दाने होने के अलावा बाल झड़ने, टूटने, छोटे पड़ने और जल्दी सफेद होने लगते हैं.

चमड़ी के छेदों के साथ यह कैमिकल दिमाग के भीतर तक पहुंच जाता है जिस से नींद न आना, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं. खून के साथ मिल कर यह शरीर के दूसरे भागों में पहुंच कर और भी बहुत सी बीमारियां पैदा कर सकता है.

दिल्ली के अपोलो अस्पताल में स्किन कौस्मैटिक सर्जरी के स्पैशलिस्ट डाक्टर अनूप धीर ने बताया, ‘‘आमतौर पर लाल और संतरी रंग के सिंदूर में लैड औक्साइड की मात्रा ज्यादा होने से यह नुकसानदायक हो जाता है. अगर किसी को स्किन की एलर्जी नहीं भी है तो उसे भी कैमिकल भरा ऐसा सिंदूर नुकसान पहुंचा सकता है. अगर यह आंख में गिर जाए तो बड़ी परेशानी पैदा कर सकता है.

‘‘अगर किसी के साथ ऐसा हो जाता?है तो उसे साफ पानी से अपनी आंखें धोनी चाहिए और किसी एमबीबीएस डिगरीधारी डाक्टर से आंखों में डालने की दवा लें.

‘‘शादीशुदा औरतों को चाहिए कि वे कम मात्रा में अपनी मांग में सिंदूर भरें. अगर आप को स्किन की एलर्जी है तो इस बारे में डाक्टर से जरूर सलाह लें. अच्छी क्वालिटी का ही सिंदूर इस्तेमाल करें और चटक रंग के चक्कर में सस्ता सिंदूर न खरीदें.’’

Winter Special: सर्दियों में बेहद खास है गुड़, जानिए फायदे

सर्दियों का मौसम अब कुछ दिनों का ही बचा है. पर इसकी शुरुआत में और अंत में सबसे ज्यादा लोगों को ये प्रभावित करती है. इस लिए ठंड से बचने के सारे उपाय आप कर के रखें. इसी क्रम में हम आपको बताएंगे कि इस मौसम में गन्ने की रस से बना गुड़ कितना गुणकारी है. खानपान में इसका अगल ही महत्व है. ये शरीर में खून की होने वाली कमी को रोकता है इसके अलावा ये एक प्रभावशाली एंटीबायोटिक है. खासकर सर्दी के मौसम में इसका प्रयोग सभी उम्र के लोगों के लिए बेहद फायदेमंद है.

आइए जाने कि सर्दी में गुण से होने वाले फायदों के बारे में-

1. अस्थमा को रखे दूर

अस्थमा में गुड़ बेहद लाभकारी होता है. एक कप घिसी हुई मूली में गुड़ और नींबू का रस मिला कर करीब 20 मिनट तक पकाएं. इस मिश्रण को रोजोना एक चम्मच खाएं. इससे अस्थमा में काफी फायदा होगा.

2. नाक की एलर्जी में है फायदेमंद

जिन लोगों को नाक की एलर्जी है उन्हें रोज सबेरे भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस के साथ गुड़ का सेवन करना चाहिए. ऐसा रोजाना करने से नाक की एलर्जी में फायदा मिलता है.

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3. फेफड़ों के लिए है फायदेमंद

गुड़ में सेलेनियम नाम का एक तत्व पाया जाता है जो एक एंटीऔक्सिडेंट है. ये हमारे गले और फेफड़े को इंफेक्शन से बचाता है और शरीर को स्वस्थ रखने में हमारी मदद करता है.ॉ

4. सर्दी जुकाम का इलाज है गुड़

गुड़ तिल की बर्फी खाने  से जुकाम की परेशानी खत्म हो जाती है. इसे खाने से सर्दी में भी गर्मी बनी रहती है.

5. कफ में है असरदार

सर्दी में कफ की परेशानी से लोग परेशान रहते हैं. सर्दियों से होने वाली परेशानियों में गुड़ बेहद असरदार होता है. इन परेशानियों में आप गुड़ की चाय पी सकती हैं. ठंड के दिनों में अदरक, गुड़ और तुलसी के पत्तों का काढ़ा बना कर पीना सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है.

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शादी से पहले कौंट्रासैप्टिव पिल लें या नहीं

किशोरावस्था में अकसर किशोर दूसरे लिंग के प्रति आकर्षित हो शारीरिक संबंध बनाने के लिए उत्सुक रहते हैं. वे प्रेमालाप में सैक्स तो कर लेते हैं, परंतु अपनी अज्ञानता के चलते प्रोटैक्शन का इस्तेमाल नहीं करते जिस के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार की लैंगिक बीमारियों का शिकार हो जाते हैं.

आंकड़ों के अनुसार भारत में हर साल 15 से 19 वर्ष की 1.6 करोड़ लड़कियां गर्भधारण कराती हैं. इस छोटी उम्र में गर्भधारण करने का सब से बड़ा कारण किशोरों का अल्पज्ञान और नामसझी है. बिना प्रोटैक्शन के किए जाने वाले सैक्स से सैक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फैक्शन सर्वाइकल कैंसर और हाइपरटैंशन जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है. ये बीमारियां लड़के व लड़की दोनों को हो सकती हैं.\

किशोरों में प्रैगनैंसी और असुरक्षित सैक्स से होने वाली बीमारियों को ले कर मूलचंद अस्पताल, दिल्ली की सीनियर गाईनोकोलौजिस्ट डा. मीता वर्मा से बात की. उन्होंने किशोरों के इस्तेमाल हेतु कौंट्रासैप्टिव पिल्स और उन के खतरों के बारे में विस्तार से जानकारी दी:

कौंट्रासैप्टिव पिल क्या है और इसे कब व कैसे लेना चाहिए?

यह इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव है. इसे पोस्ट कोर्डल और मौर्निंग आफ्टर पिल भी कहते हैं. आई पिल एक हारमोन है. इस का बैस्ट इफैक्ट तब होता है जब इसे सैक्स के 1 घंटे के आसपास लें. इसे 72 घंटों में 2 बार 24 घंटों के अंतराल में लिया जाता है. इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव की तब जरूरत होती है जब लड़की के साथ बलात्कार हुआ हो. अनचाहे गर्भ का खतरा हो या फिर कंडोम फट जाए. लोग विथड्रौल तकनीक का भी इस्तेमाल करते हैं. इस में यदि अंडरऐज ईजैक्यूलेशन हो गया हो तो फिर इस पिल का इस्तेमाल करते हैं. यदि पीरियड अनियमित हैं और आप सुरक्षा को ले कर चिंतित हैं तो इस स्थिति में भी इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव पिल्स की जरूरत होती है.

यदि कोई लड़की इसे आदत बना ले तो इस के क्या विपरीत प्रभाव हो सकते हैं?

नहीं, इसे आदत नहीं बनाना चाहिए. इस के बहुत से साइड इफैक्ट होते हैं. यदि लड़की किशोरी हो तो सब से पहले तो उसे सैक्स ऐजुकेशन होनी चाहिए. आजकल तो यह नैट में भी उपलब्ध है. 8वीं और 9वीं कक्षा की किताबों में भी इस की जानकारी दी गई है. लड़कियों को पता होना चाहिए कि यह पिल किस प्रकार काम करती है. इस की डोज हैवी होती है. हैवी डोज लेने से मासिकचक्र प्रभावित होता है. वह अनियमित हो जाता है. इस के अलावा उलटियां व चक्कर आना, स्तनों में दर्द, पेट में दर्द और असमय रक्तस्राव हो सकता है. यदि आप सैक्सुअली ऐक्टिव हैं तो आप को कौंट्रासैप्टिव का प्रयोग केवल इमरजैंसी में ही करना चाहिए. इस के साइड इफैक्ट में सब से बड़ा खतरा ट्यूब की प्रैगनैंसी का है. इसलिए यदि इमरजैंसी शब्द कहा जा रहा है तो केवल इमरजैंसी में ही प्रयोग करें. वैसे भी यह 90% ही कारगर है 100% नहीं.

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शादी से पहले इस पिल के इस्तेमाल करने पर क्या लड़की को शादी के बाद गर्भधारण करने में किसी तरह की परेशानी हो सकती है?

अगर लड़की ने लगातार दवा का इस्तेमाल किया है तो बिलकुल होगी. कभीकभार लेने पर परेशानी नहीं आएगी. यदि इस से मासिकचक्र प्रभावित हुआ है तो परेशानी होनी लाजिम है, क्योंकि आप ने ओवुलेशन प्रौसैस यानी अंडा बनने की प्रक्रिया को प्रभावित किया है. आई पिल का अधिक इस्तेमाल ट्यूब जोकि अंडे को कैच करती है की वेर्बिलिटी को रेस्ट्रेट कर देता है. ऐसे में जब आप शादी से पहले हर बार अपने ओवुलेशन को डिस्टर्ब करेंगी तो शादी के बाद गर्भधारण में मुश्किल हो सकती है.

बाजार में और किस तरह की कौंट्रासैप्टिव पिल्स हैं, जिन का इस्तेमाल किया जा सके?

भारत में केवल पिल उपलब्ध है, जो लिवोनोगेरट्रल है. इस में एक टैबलेट 750 माइक्रोग्राम की होती है. ये 2 टैबलेट 24 घंटों के अंतराल में ली जाती हैं. भारत में 1500 माइक्रोग्राम की टैबलेट अभी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि उस की डोज अत्यधिक हैवी है. आजकल इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव में एक और दवा, अंडर ट्रायल है, जिसे यूलीप्रिस्टल कहते हैं. चूंकि यह अभी अंडर ट्रायल है, इसलिए इस का प्रयोग केवल डाक्टर की सलाह पर ही किया जाना चाहिए.

क्या इस पिल के अलावा कोई दूसरा बेहतर विकल्प है?

यह पिल तो इमरजैंसी कौंट्रासैप्टिव है ही, इस के अलावा और कई बर्थ कंट्रोल हैं. सब से अच्छा कंडोम ही है. यह बहुत सी संक्रमण वाली बीमारियों से बचाता है और इस के प्रयोग से इन्फैक्शन भी नहीं होता. इस के अलावा दूसरे बर्थ कंट्रोल ऐप्लिकेशन भी बाजार में उपलब्ध हैं, जिन का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे वैजिनल टैबलेट्स. इन्हें कंडोम के साथ इस्तेमाल करना चाहिए. यदि फर्टाइल पीरियड में सैक्स किया जाए तो कंडोम और वैजिनल टैबलेट, दोनों का ही प्रयोग करें. आजकल ओवुलेशन का पता लगाने के लिए किट्स भी उपलब्ध है. उन से पता लगाएं. वैजिनल टैबलेट्स और कंडोम का एकसाथ इस्तेमाल करें. इस से डबल सुरक्षा मिलेगी.

क्या कंडोम 100% सुरक्षित है?

हां, यदि इस का इस्तेमाल ठीक तरह से किया जाए तो यह बैस्ट कौंट्रासैप्शन है. लड़कियां सैक्स के दौरान वैजिनल टैबलेट्स का भी इस्तेमाल कर सकती हैं, जिस से सुरक्षा दोगुनी हो जाएगी.

यदि लड़की मां बनने के डर से एक की जगह 2 या 3 गोलियां खा ले तो इस के क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं?

नहीं, जो डोज जैसे लिखी है उसे वैसे ही लें. न तो दवा स्किप करें और न ही समय से पहले व ज्यादा लें. यदि आई पिल लेने के 3 हफ्ते बाद तक सैक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल नहीं किया तो ट्यूब की प्रैगनैंसी हो सकती है. यदि 3 हफ्ते बाद तक पीरियड्स न हों तो प्रैगनैंसी टैस्ट करें.

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यदि लड़की यह पिल खा कर किसी प्रकार की परेशानी महसूस करती है और घर वालों को इस बारे में न बता कर चुप रहती हैं तो क्या इस के कोई दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं?

जब कोई लड़की सैक्सुअली ऐक्टिव है और किसी लड़के के साथ सैक्स कर सकती है तो वह चुपचाप जा कर डाक्टर से कंसल्ट भी कर सकती है. यदि लड़की कमा रही है और पढ़ीलिखी है तो डाक्टर की सलाह लेने में हरज क्या है? घर वालों से तो वैसे भी किसी तरह की परेशानी नहीं छिपानी चाहिए. किसी न किसी से जरूर शेयर करनी चाहिए. यदि पैसे नहीं हैं तो सरकारी अस्पतालों के डाक्टर फ्री सलाह देते हैं.

इस पिल से ट्यूब की प्रैगनैंसी होने का खतरा होता है जो जानलेवा हो सकता है. इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि सुरक्षित होने के बावजूद आई पिल से गर्भाशय के बाहर की प्रैगनैंसी हो सकती है जिस से लड़की की जान को खतरा हो सकता है.

युवाओं को सुरक्षित सैक्स संबंधी क्या सलाह देना चाहेंगी?

युवाओं को यह बताना चाहूंगी कि यदि वे 18 साल से बड़े हैं और सैक्स करते हैं तो इस में कोई बुराई नहीं है, मगर कंडोम का जरूर इस्तेमाल करना चाहिए. असुरक्षित सैक्स एचआईवी, एसटीआई व सर्वाइकल कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण हो सकता है. लव, अफेयर, सैक्स और फिजिकल रिलेशनशिप अपनी जगह है और सुरक्षा अपनी जगह. शरमाएं नहीं, बल्कि सही सलाह लें.

वजन कम करने का बेहद आसान तरीका है वाटर वर्कआउट

अगर आप जिमिंग, जुंबा, जौगिंग, पाइलेरस, ऐरोबिक्स, ब्रिस्क वाकिंग आदि फिटनैस के तरीकों से उकता गई हैं, तो वाटर वर्कआउट अपनाएं यानी अब पूल को जिम पूल बनाएं. वैसे तो फिटनैस के सभी तौरतरीकों से बौडी टोनिंग जरूर होती है, पर कैलोरी बर्न करने और बीमारियों से दूर रहने के लिए वाटर वर्कआउट अधिक कारगर है. वाटर वर्कआउट कर के आप कई तरह की बीमारियों को भी दूर कर सकती हैं. इस से शरीर के सभी अंगों की बढ़िया कसरत हो जाती है.

क्या है वाटर वर्कआउट

पानी में ऐक्सरसाइज करना ही वाटर वर्कआउट या ऐक्वा वर्कआउट अथवा ऐरो वर्कआउट कहलाता है. पानी बहता नहीं, बल्कि रुका होना चाहिए. तालाब या स्विमिंग पूल में वाटर ऐक्सरसाइज करना बैस्ट रहता है. इन में पानी का स्तर 3 फुट से अधिक नहीं होना चाहिए. आप अपनी सुविधा के अनुसार पानी का स्तर तय कर सकती हैं यानी घुटनों तक, पैल्विक तक या चैस्ट तक. साथ ही पानी का तापमान 20 से 25 डिग्री सैल्सियस से अधिक नहीं हो.

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पानी में सब छूमंतर

ऐक्सरसाइज करने में मोटापा सब से बड़ी बाधा बनता है. ऐसे में वाटर वर्कआउट अपनाएं. विशेषज्ञों के अनुसार पानी में ऐक्सरसाइज करते समय शरीर का वजन केवल 10% रह जाता है. यही नहीं वाटर वर्कआउट कर के जोड़ों के दर्द, गठिया, मोटापा, मधुमेह आदि में राहत मिलती है. खुले में करने से हाथ या पैर गलत दिशा में जाने से चोट लगने की संभावना रहती है और साथ ही शरीर के भारीपन के कारण ऐक्सरसाइज प्रभावी तरीके से भी नहीं हो पाती है.

वाटर वर्कआउट मांसपेशियों को मजबूती मिलती है. इस के अलावा पानी में व्यायाम करने से शरीर और मन दोनों को तनाव से राहत मिलती है. जब शरीर पानी में होता है तो वजन कम महसूस होता है. इसलिए शरीर पर व्यायाम का प्रभाव भी कम होता है, जो मांसपेशियों में तनाव या शारीरिक तनाव पैदा नहीं करता. पानी में कसरत करने से ताजगी और खुशी महसूस होती है. वाटर वर्कआउट वेट लौस करने और हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद रहता है.

जरूरी है देखरेख

यदि आप पहली बार वाटर वर्कआउट कर रही हैं, तो ट्रेनर की निगरानी में ही करें. 1 घंटे से अधिक पानी में न रहें अन्यथा त्वचा पर सनबर्न हो सकता है. इस से बचने के लिए वाटर वर्कआउट करने के 20 मिनट पहले शरीर पर सनस्क्रीन लगाएं. किसी भी तरह का वाटर वर्कआउट करने के बाद 10-15 मिनट आराम जरूर करें ताकि शरीर का तापमान सामान्य हो जाए.

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कैलोरी बर्नर

आप सेहतमंद तरीके से वजन कम करना चाहती हैं, तो वाटर वर्कआउट जरूर अपनाएं, क्योंकि पानी में ऐक्सरसाइज करने से मांसपेशियों में तनाव नहीं आता है. अगर आप दिन में 1 घंटा वाटर वर्कआउट करती हैं तो 300 से 600 कैलोरी बर्न कर सकती हैं. यानी वाटर वर्कआउट करने से शरीर की चरबी को खत्म करने के साथसाथ उसे सुरक्षित तरीके से शेप में भी ला सकती हैं.

फ्लैक्सिबिलिटी में विस्तार

फ्लैक्सिबिलिटी यानी लचीलापन. वाटर वर्कआउट से जुड़ी है फ्लैक्सिबिलिटी. पानी में  कसरत करने से अंदरूनी चोट नहीं लगती. साथ ही जोड़ अधिक लचीले बनते हैं. नतीजतन उन की सक्रियता में इजाफा होता है.

तनाव से छुटकारा

यदि आप बहुत तनाव में हैं, तो वाटर वर्कआउट करें. इस से आप तरोताजा महसूस करेंगी और तनाव से राहत मिलेगी. पानी में होने पर दिमाग ऐंडोर्फिंस हारमोन रिलीज होते हैं, जिस से तनाव कम होता है.

स्ट्रौंग होतीं मसल्स

जहां वाटर वर्कआउट से वजन कम होता है, वहीं तनाव से राहत मिलती है. मांसपेशियों में लचीलापन बढ़ता है, कई रोगों का निदान होता है. इसे नियमित करने से मसल्स भी स्ट्रौंग होती हैं, साथ ही उन में लचीलापन भी बढ़ता है.

कंट्रोल में ब्लडप्रैशर

पानी में व्यायाम करने से शरीर में रक्त का प्रवाह बेहतर होता है, जिस से ब्लडप्रैशर की समस्या नहीं होती. इस से हार्टबीट भी बेहतर रहती है.

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Health tips: तनाव दूर करने के 5 आसान टिप्स

आप वास्तव में स्वस्थ रहना चाहती हैं, तो शरीर के साथसाथ दिमाग को भी स्वस्थ रखें. कई दफा बीमारियां और शारीरिक पीड़ाएं मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक पहलू से भी जुड़ी होती हैं, जिन पर आमतौर पर हम ध्यान नहीं देते. उदाहरण के लिए फाइब्रोसाइटिस को ही ले लें. यह ऐसी स्थिति है जिस से मांसपेशियों में दर्द, नींद और मूड से संबंधित समस्याएं हो सकती है. यह समस्या पुरुषों से कहीं ज्यादा महिलाओं में दिखती है और यह ताउम्र भी रह सकती हैं. इस की कई वजहें हो सकती हैं जैसे आर्थ्राइटिस, संक्रमण या फिर व्यायाम की कमी. ऐसे में जरूरी है कि शरीर के साथसाथ मानसिक सेहत का भी खयाल रखा जाए.

स्वास्थ्य पर असर

मानसिक बीमारियों की शुरुआत डिप्रैशन से होती है. एक व्यक्ति जब किसी बात को ले कर थोड़े समय के लिए उदास होता है, तो उस के खतरनाक नतीजे नहीं होते. मगर जब उदासी लंबे समय तक बनी रहे तो यह डिप्रैशन में बदल जाती है और व्यक्ति हमेशा उदास, परेशान, तनहा रहने लगता है, नकारात्मक बातें करता है और दूसरों से मिलने से कतराता है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है.

दिल्ली जैसे महानगरों में लोग डिप्रैशन के साथसाथ टैंशन के भी शिकार हो रहे हैं. एक तरफ अधिक से अधिक रुपए कमाने की जरूरत तो दूसरी ओर रिश्तों में बढ़ रहा तनाव और एकाकी जीवन लोगों में टैंशन यानी तनाव बढ़ा रहा है.

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वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 35% से ज्यादा लोग ऐक्सरसाइज करने में आलस करते हैं. शारीरिक रूप से कम सक्रियता व्यक्ति के लिए दिल की बीमारियों, कैंसर, डायबिटीज और हड्डियों के रोगों के साथसाथ मानसिक रोगों का भी खतरा बढ़ाती है.

इन बातों का रखें खयाल

व्यायाम करें: व्यायाम करने से ऐंडोर्फिन हारमोन का संचार बढ़ता है. यह एक ऐसा हारमोन है जो दर्द और तनाव से लड़ता है और अच्छी नींद लाने में सहायक होता है. रोज स्ट्रैचिंग, वाकिंग, स्विमिंग, डांसिंग जैसे व्यायाम मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं.

सामाजिक बनें: अध्ययनों के मुताबिक जिन लोगों को सामाजिक सहयोग मिलता है वे तनाव, डिप्रैशन और दूसरे मानसिक रोगों से दूर रहते हैं. फिर अपनी समस्याओं को दूसरों से डिस्कस करने पर नए रास्ते भी मिलते हैं और तनाव भी घटता है.

पसंदीदा काम करें: अकसर लोग अपनी हौबी के लिए समय नहीं निकाल पाते, जो ठीक नहीं है. अपनी हौबी को अपनाएं. इस से जीवन के प्रति उत्साह बढ़ता है और सोच सकारात्मक होती है. अपने अंदर की रचनात्मकता को बाहर लाएं. यह कोई भी काम जैसे लेखन, बागबानी, कौमेडी, कुकिंग आदि कुछ भी हो सकता है.

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किसी के लिए कुछ कर के देखें: अपने लिए तो हम सभी जीते हैं, मगर कभीकभी दूसरों के लिए भी कुछ कर पाने की खुशी मन से मजबूत बनाती है. किसी की मदद करना, किसी अजनबी को कुछ देना या फिर अपनों के काम आना जैसे कार्य आप को आनंद से भर देंगे. यानी लोगों की तारीफ करें और उन्हें खुशी दें.

दूसरों की परवाह न करें: लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे जैसी बातें अकसर हमारे दिमाग के संतुलन को बिगाड़ देती हैं. इसलिए दूसरों की परवाह किए बगैर वह करें जो आप को सही लगे.

क्या है एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस, जानें इस खतरनाक बीमारी के बारे में

पांच वर्ष पूर्व सुरेश (रोगी के अनुरोध पर बदला हुआ नाम) की गर्दन में तेज दर्द हुआ था. इसके डेढ़ वर्ष बाद सुरेश की कमर में अत्यंत पीड़ादायी दर्द रहने लगा. उन्होंने डाक्टर को दिखाया, लेकिन सही जांच नहीं हो पाई, क्योंकि उनके स्कैन और एक्स-रे सामान्य थे. सुरेश को कमर में सुबह दर्द और अकड़न होती रही.

दर्द के चलते सुरेश दैनिक कार्य करने में असमर्थ थे. केवल 23 वर्ष की आयु में मित्र और परिजन उनके साथ दुर्व्यवहार करने लगे और उन्हें ‘आलसी’ कहना शुरू कर दिया. उनकी अक्रियता और काम न करने की इच्छा का कारण उनके वजन को माना गया. दर्द और दुर्व्यवहार से कुंठित होकर सुरेश को अपना काम बदलना पड़ा. इस समय वह एक दिन में 2 पेनकिलर ले रहे थे.

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तुरंत राहत पाने की इच्छा से सुरेश ने एक और्थोपेडिशियन को दिखाया. डाक्टर की सलाह पर उन्होंने एमआरआई स्कैन करवाया, जिसमें एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस का पता चला. और्थोपेडिशियन ने सुरेश को कुछ कसरत बताई, ताकि वह सक्रिय रहें और रूमैटोलौजिस्ट को दिखाने के लिये भी कहा, ताकि लंबी अवधि में उनकी रीढ़ को क्षति न हो. रूमैटोलौजिस्ट ने सुरेश को बायोलौजिक्स के एक कैटेगरी में उपचार की सलाह दी. बायोलौजिक्स द्वारा उपचार से सुरेश शारीरिक क्षति से बच गये और आज वह घर और औफिस, दोनों जगह सक्रिय हैं.

एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस (एएस) एक अपरिवर्तनीय, दाहक और स्व-प्रतिरक्षित रोग है, जो रीढ़ को प्रभावित करता है. इसे रीढ़ का गठिया भी कहा जाता है, इसमें रीढ़ बढ़ जाती है और उसका लचीलापन चला जाता है.

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इसे अक्सर कमर का आम दर्द समझा जाता है, लेकिन सुबह उठने के बाद यदि कमर में 30-45 मिनट तक दर्द या अकड़न रहे और ऐसा 90 दिनों या अधिक समय तक हो, तो यह एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस हो सकता है. यह किसी को भी हो सकता है, लेकिन आम तौर पर पुरूषों में पाया जाता है, किशोरवय में या 20 से 30 वर्ष की आयु के बीच.

नई दिल्ली में एम्स के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. दानवीर भादू ने कहा,  “एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस एक पुरानी और शरीर में कमजोरी लाने वाली बीमारी है. हालांकि अलग-अलग कारणों से मरीजों को इसके बेहतर इलाज के विकल्प नहीं मिल पाते. बायोलॉजिक थेरेपी अपनाकर हम शरीर की संरचनात्मक प्रक्रिया में नुकसान को कम से कम कर सकते है और मरीजों में चलने-फिरने की स्थिति में सुधार कर सकते हैं. कई मरीज रीढ़ की हड्डीघुटनों और जोड़ों में दर्द के इलाज के लिए अन्य तरीके अपनाने लगते हैंजिससे लंबी अवधि बीतने के बाद भी मरीजों को रोग में कोई आराम नहीं पहुंचता. मरीजों में एलोपैथिक दवा के साइड इफेक्ट्स का डर और गैरपारंपरिक दवाइयों की शाखा जैसे होम्योपैथिक और यूनानी जैसी चिकित्सा विज्ञान की शाखाओं पर विश्वास अब भी बना है. वैकल्पिक दवाएं लेने से रीढ़ की हड्डी के बीच कोई ओर हड्डी पनपने का खतरा रहता हैजिससे वह पूरी तरह सख्त हो सकती है और मरीज के व्हील चेयर पर आने का खतरा रहता है.  

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एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस में सबसे आम चुनौती यह है कि रोगी केवल दर्द से राहत पर ध्यान देता है. पेनकिलर्स और कसरत से कुछ हद तक स्थिति को नियंत्रण में किया जा सकता है, लेकिन जांच और प्रभावी उपचार में विलंब से रीढ़ और गर्दन इस तरह मुड़ सकती है कि आगे देखने के लिये गर्दन को उठाना असंभव हो जाए. इसे ‘स्ट्रक्चरल डैमेज प्रोग्रेशन’ कहा जाता है. और क्षति होने पर रोगी व्हीलचेयर पर आ सकता है. इसलिये एंकीलोसिंग स्पोंडिलाइटिस से पीड़ित व्यक्ति को रूमैटोलौजिस्ट से सलाह लेनी चाहिये और प्रभावी उपचार विकल्प का पालन करना चाहिये. मेडिकल उपचार के अलावा परिजनों, मित्रों और सहकर्मियों के सहयोग से रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

पीरियड्स के ‘बर्दाश्त ना होने वाले दर्द’ को चुटकियों में करें दूर

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इस दौरान महिलाओं को बहुत तेज दर्द का सामना करना पड़ता है. ऐसे में वो दवाइयों का सहारा लेने लगती हैं. पीरियड्स पेन में इस्तेमाल होने वाले पेन किलर्स हाई पावर वाले होते हैं. स्वास्थ पर उनका काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको पांच घरेलू टिप्स के बारे में बताएंगे जिनको अपना कर आप हर महीने होने वाले इस परेशानी से राहत पा सकेंगी.
तो आइए शुरू करें.

1. तले आहार से करें परहेज

पीरियड्स में आपको अपनी डाइट पर खासा ख्याल रखना होगा. इस दौरान तले, भुने खानों से दूर रहें. अपनी डाइट में हरी सब्जियों और फलों को शामिल करें. ये काफी असरदार होते हैं.

2. तेजपत्ता

तेजपत्ता से होने वाले स्वास्थ लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को पता होता है. पीरियड्स से होने वाली परेशानियों में तेजपत्ता काफी कारगर होता है. महावारी के दर्द को दूर करने के लिए महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं.

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3. हौट बैग

पीरियड्स में होने वाले दर्द में हौट बैग काफी कारगर होता है. इसको पेट के उस हिस्से पर रखना होता है जहां दर्द महसूस हो रहा है. ऐसा करने से आपको आराम मिलेगा.

4. कैफीन से रहें दूर

पीरियड्स के दौरान काफीन से दूरी बनाएं रखें. इस वक्त में इसके सेवन से गैस की परेशानी होती है. गैस के कारण कई बार दर्द बढ़ जाता है.

5. एक्सरसाइज को अपनी रूटीन में शामिल करें

डेली रूटीन में एक्सरसाइज को शामिल करने से आपको दर्द में काफी राहत मिलेगी. इससे ब्लौटिंग की परेशानी में भी काफी राहत मिलती है.  ब्लौटिंग की वजह से ही दर्द महसूस होता है. ऐसे में लाइट एक्‍सरसाइज करने से आपकी मसल्‍स रिलैक्‍स महसूस करेंगी.

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6. नमक से भी बना लें दूरी

पीरियड्स में ब्लौटिंग होना एक आम बात है. ऐसे में अगर आप पीरियड्स से कुछ समय पहले ही नमक का सेवन कम कर देती हैं तो आपकी किडनी को अत्यधिक पानी निकालने में मदद मिलने के साथ आपको दर्द में भी राहत मिलेगी.

इन छोटे संकेतों से पहचाने दिल की बीमारी का खतरा

 आम तौर पर ह्रदय रोग के लिए कोरोनरी आर्टर बीमारी प्रमुख कारण होता है. हृदय की अन्य बीमारियों में पेरिकार्डियल रोग, हृदय की मांसपेशियों से संबंधित समस्या, महाधमनी की समस्या हार्ट फेल होना, दिल की धड़कन का अनियमित होना हार्ट के वौल्व से संबंधित बीमारी जैसी कई बीमारियां हैं. इन परेशानियों से बचने के लिए जरूरी है कि आप इनके लक्षणों के बारे में जान लें. और जब भी आपको इनका आभास हो आप तुरंत डाक्टर से मशवरा लें.

ह्रदयघात के लक्षणों में छाती में भारीपन, भुजाओं या कंधों में, गले, जबड़े, पीठ या गर्दन में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं. इसके अलावा धड़कन का बढ़ना, सांस लेने में परेशानी, चक्कर आना, पसीना आना जैसे अन्य लक्षण भी अहम हैं.

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यदि आपको आपकी छाती पर भार महसूस हो रहा है या छाती की मांसपेशियों में खिंचाव महसूस हो रहा है इसका मतलब है कि आपका ह्रदय स्वस्थ नहीं है. वो अच्छे से काम नहीं कर रहा है.

वहीं आप कसरत करने के बाद छाती में दर्द महसूस करते हैं या आपको कुछ ज्यादा थकान महसूस होती हो तो इसका अर्थ है कि आपके हृदय के रक्त प्रवाह में कुछ गड़बड़ी है.

यदि आपको हल्का फुल्का काम करने के बाद भी सांस लेने में परेशानी हो रही है, या जब आप लेटें तब आपको सांस लेने में परेशानी हो रही हो, तो समझ जाइए कि आपके ह्रदय में कुछ परेशानी है.

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इसके अलावा थोड़ा काम करने के बाद भी आपको थकान या चंचलता महसूस होती है तो ये ह्रदय ब्लाकेज के लक्षण हो सकते हैं.

यदि आप ज्यादातर वक्त थका हुआ महसूस करते हैं, इसके अलावा आपको अच्छे से नींद भी ना आती हो, अचानक से आपको थकान हो जाए, उल्टी का मन हो तो समझ जाइए कि आपको ह्रदय संबंधित परेशानी है.

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