सलाह दें कि मैं अपने प्रति भाई की नफरत को कैसे कम करूं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं और अपने भाई भाभी के साथ रहती हूं. मेरी समस्या यह है कि मेरा भाई मुझ से नफरत करता है. मैं नहीं जानती मेरे प्रति उस के इस व्यवहार का क्या कारण है? सलाह दें कि मैं अपने प्रति भाई की नफरत को कैसे कम करूं क्योंकि भाई की नफरत के साथ उस घर में रहना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है.

जवाब

सब से पहले आप अपने भाई से उस के मन में आप के प्रति नफरत का कारण जानने की कोशिश करें. भाई की नफरत का कारण बचपन की कोई घटना हो सकती हैं. जिस की वजह से भाई के दिल पर आप के प्रति नाराजगी पैदा हो गई हो. भाइयों को कई बार लगता है कि बहन संपत्ति में हिस्सा मांगेगी और बिना मांगे ही उसे शत्रु मान लेते हैं.

वैसे भी हमारे देश में पुरुष अपने को बहन का रखवाला मानते हैं और लड़के पिता की तरह पेश आते हैं. आप भाई के अच्छे मूड को देख कर उस से बात करें. भाभी को अपनी समस्या बताएं और आप उस कड़वाहट को आमनेसामने बैठ कर सुलझाने का प्रयास करें. बात करने से ही नफरत का कारण पता चलेगा और समस्या का समाधान भी तभी निकल पाएगा.

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जलन नहीं हो आपस में लगन

यों तो पैदा होते ही एक शिशु में कई सारी भावनाओं का समावेश हो जाता है, जो कुदरती तौर पर होना भी चाहिए, क्योंकि अगर ये भावनाएं उस में नजर न आएं तो बच्चा शक के दायरे में आने लगता है कि क्या वह नौर्मल है? ये भावनाएं होती हैं प्यार, नफरत, डर, जलन, घमंड, गुस्सा आदि.

अगर ये सब एक बच्चे या बड़े में उचित मात्रा में हों तो उसे नौर्मल समझा जाता है और ये नुकसानदेह भी नहीं होतीं. लेकिन इन में से एक भी भाव जरूरत से ज्यादा मात्रा में हो तो न सिर्फ परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए समस्या का कारण बन जाता है, क्योंकि किसी भी भावना की अति इंसान को अपराध की तरफ ले जाती है. जैसे कुछ साल पहले भाजपा के प्रसिद्ध नेता प्रमोद महाजन के भाई ने अपनी नफरत के चलते उन्हें गोली मार दी.

कहने का तात्पर्य यह है कि जलन और द्वेष की भावना इंसान को कहीं का नहीं छोड़ती. अगर द्वेष और जलन की यही भावना 2 बहनों के बीच होती है, तो उन से जुड़े और भी कई लोगों को इस की आग में जलना पड़ता है. ज्यादातर देखा गया है कि 2 बहनों के बीच अकसर जलन की भावना का समावेश होता है. अगर यह जलन की भावना प्यार की भावना से कम है, तो मामला रफादफा हो जाता है, लेकिन इस जलन की भावना में द्वेष और दुश्मनी का समावेश ज्यादा है, तो यह काफी नुकसानदेह भी साबित हो जाती है.

द्वेष व जलन नहीं

अगर 2 बहनों के बीच जलन का कारण ढूंढ़ने जाएं तो कई कारण मिलते हैं. जैसे 2 बहनों में एक का ज्यादा खूबसूरत होना, दोनों बहनों में एक को परिवार वालों का ज्यादा अटैंशन मिलना या दोनों में से किसी एक बहन को मां या पिता का जरूरत से ज्यादा प्यार और दूसरी को तिरस्कार मिलना, एक बहन का ज्यादा बुद्धिमान और दूसरी का बुद्धू होना या एक बहन के पास ज्यादा पैसा होना और दूसरी का गरीब होना. ऐसे कारण 2 बहनों के बीच जलन और द्वेष के बीज पैदा करते हैं.

इसी बात को मद्देनजर रखते हुए 20 वर्षीय खुशबू बताती हैं कि उन के घर में उस की छोटी बहन मिताली को जो उस से सिर्फ 3 साल छोटी है, कुछ ज्यादा ही महत्ता दी जाती है. जैसे अगर दोनों बहनें किसी फैमिली फंक्शन में डांस करें, जिस में खुशबू चाहे कितना ही अच्छा डांस क्या करें, लेकिन उस की मां तारीफ उस की छोटी बहन की ही करती हैं.

खुशबू बताती है कि वह अपने घर में अपने सभी भाईबहनों में कहीं ज्यादा होशियार और बुद्धिमान है, बावजूद इस के उस को कभी प्रशंसा नहीं मिलती. वहीं दूसरी ओर उस की बहन में बहुत सारी कमियां हैं बावजूद इस के वह हमेशा सभी के आकर्षण का केंद्र बनी रहती है. इस की वजह हैं खासतौर पर खुशबू की मां, जो सिर्फ और सिर्फ खुशबू की छोटी बहन की ही प्रशंसा करती हैं. इस बात से निराश हो कर कई बार खुशबू ने आत्महत्या तक करने की कोशिश की, लेकिन उस के पिता ने उसे बचा लिया.

वजह दौलत भी

खुशबू की तरह चेतना भी अपनी बहन की जलन का शिकार है, लेकिन यहां वजह दूसरी है. चेतना छोटी बहन है और उस की बड़ी बहन है आशा. जलन की वजह है चेतना की खूबसूरती. बचपन से ही चेतना की खूबसूरती के चर्चे होते रहते थे वहीं दूसरी ओर आशा को बदसूरत होने की वजह से नीचा देखना पड़ता था, जिस वजह से आशा चेतना को अपनी दुश्मन समझने लगी. चेतना की गलती न होते हुए भी उस को अपनी बहन के प्यार से न सिर्फ वंचित रहना पड़ा, बल्कि अपनी बड़ी बहन की नफरत का भी शिकार होना पड़ा.

कई बार 2 बहनों के बीच जलन, दुश्मनी, द्वेष का कारण जायदाद, पैसा व अमीरी भी बन जाती है. इस संबंध में नीलिमा बताती हैं, ‘‘हम 2 बहनों ने एक जैसी शिक्षा ली, लेकिन मैं ने मेहनत कर के ज्यादा पैसा कमा लिया. अपनी मां के कहे अनुसार बचत करकर के मैं ने अपनी कमाई से कार और फ्लैट भी खरीद लिया जबकि मेरी बहन ज्यादा पैसा नहीं कमा पाई और गरीबी में जीवन निर्वाह कर रही थी. इसी वजह से उस की मेरे प्रति जलन की भावना इतनी बढ़ गई कि वह दुश्मनी में बदल गई. आज हमारे बीच जलन का यह आलम है कि हम बहनें एकदूसरे का मुंह तक देखना पसंद नहीं करतीं. बहन होने के बावजूद वह हमेशा मेरे लिए गड्ढा खोदती रहती है. हमेशा इसी कोशिश में रहती है कि मेरे घरपरिवार वाले मेरे अगेंस्ट और उस की फेवर में हो जाएं.’’

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मेरी सास, ननद के ससुराल के मामले में दखलंदाजी करती हैं, मैं क्या करुं?

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सवाल

मेरी ननद की शादी को अभी केवल 4 महीने हुए हैं. वर का चुनाव घर वालों ने स्वयं किया था अर्थात ननद की अरेंज्ड मैरिज है. बावजूद इस के मेरी सास बेटी की ससुराल के सदस्यों के बारे में मीनमेख निकालती रहती हैं, जबकि सभी लोग काफी शिष्ट और शालीन हैं. सास दिन में कई कई बार फोन कर के बेटी के घर की खोज खबर लेती रहती हैं. उसे अनापशनाप सलाह देती हैं. उन का व्यवहार कहां तक उचित है? चाह कर भी मैं उन्हें मना नहीं कर सकती. क्या करूं कि वे अनावश्यक दखलंदाजी बंद कर दें?

जवाब

आप बहू हैं इसलिए यदि सास को कोई सलाह देंगी तो उन्हें नागवार गुजरेगा. इसलिए आप पति से कहलवाएं. वे अपनी मां को समझाएं कि वे बेटी के परिवार में हस्तक्षेप न करें. बेटे को समझाना आप की सास को अखरेगा नहीं और आप की चिंता भी दूर हो जाएगी.

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घरेलू हिंसा कानून : सास बहू दोनों के लिए

मेरे महल्ले में एक वृद्ध महिला अपने घर में अकेली रहती हैं. वे बेहद मिलनसार व हंसमुख हैं. उन का इकलौता बेटा और बहू भी इसी शहर में अलग घर ले कर रहते हैं. एक दिन जब मैं ने उन से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने जो कुछ भी बताया वह सुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

उन्होंने बताया, ‘‘मेरे बेटे ने प्रेमविवाह किया था. फिर भी हम ने कोई आपत्ति नहीं की. बहू ने भी आते ही अपने व्यवहार से हम दोनों का दिल जीत लिया. 2 साल बहुत अच्छे से बीते. लेकिन मेरे पति की मृत्यु होते ही मेरे प्रति अप्रत्याशित रूप से बहू का व्यवहार बदलने लगा. अब वह बेटे के सामने तो मेरे साथ अच्छा व्यवहार करती, परंतु उस के जाते ही वह बातबात पर मुझे ताने देती और हर वक्त झल्लाती रहती. मुझे लगता है कि शायद अधिक काम करने की वजह से वह चिड़चिड़ी हो गई है, इसलिए मैं ने उस के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया. मगर उस ने तो जैसे मेरे हर काम में मीनमेख निकालने की ठान रखी थी.

‘‘धीरेधीरे वह घर की सभी चीजों को अपने तरीके से रखने व इस्तेमाल करने लगी. हद तो तब हो गई जब उस ने फ्रिज और रसोई को भी लौक करना शुरू कर दिया. एक दिन वह मुझ से मेरी अलमारी की चाबी मांगने लगी. मैं ने इनकार किया तो वह झल्लाते हुए मुझे अपशब्द कहने लगी. जब मैं ने यह सबकुछ अपने बेटे को बताया तो वह भी बहू की ही जबान बोलने लगा. फिर तो मुझे अपनी बहू का एक नया ही रूप देखने को मिला. वह जोरजोर से रोनेचिल्लाने लगी तथा रसोई में जा कर आत्महत्या का प्रयास भी करने लगी. साथ ही, यह धमकी भी दे रही थी कि वह यह सबकुछ वीडियो बना कर पुलिस में दे देगी और हम सब को दहेज लेने तथा उसे प्रताडि़त करने के इलजाम में जेल की चक्की पिसवाएगी. उस समय तो मैं चुप रह गई, परंतु मैं ने हार नहीं मानी.

‘‘अगले ही दिन बिना बहू को बताए उस के मातापिता को बुलवाया. अपने एक वकील मित्र तथा कुछ रिश्तेदारों को भी बुलवाया. फिर मैं ने सब के सामने अपने कुछ जेवर तथा पति की भविष्यनिधि के कुछ रुपए अपने बेटेबहू को देते हुए इस घर से चले जाने को कहा. मेरे वकील मित्र ने भी बहू को निकालते हुए कहा कि महिला संबंधी कानून सिर्फ तुम्हारे लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी सास के लिए भी है. तुम्हारी सास भी चाहे तो तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट कर सकती है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम सीधी तरह से इस घर से चली जाओ. मेरा यह रूप देख कर बहू और बेटा दोनों ही चुपचाप घर से चले गए. अब मैं भले ही अकेली हूं परंतु स्वस्थ व सुरक्षित महसूस करती हूं.’’

उक्त महिला की यह स्थिति देख कर मुझे ऐसा लगा कि अब इस रिश्ते को नए नजरिए से भी देखने की आवश्यकता है. सासबहू के बीच झगड़े होना आम बात है. परंतु, जब सास अपनी बहू के क्रियाकलापों से खुद को असुरक्षित व मानसिक रूप से दबाव महसूस करे तो इस रिश्ते से अलग हो जाना ही उचित है. बदलते समय और बिखरते संयुक्त परिवार के साथ सासबहू के रिश्तों में भी काफी परिवर्तन आया है.

एकल परिवार की वृद्धि होने के कारण लड़कियां प्रारंभ से ही सासविहीन ससुराल की ही अपेक्षा करती हैं. वे पति व बच्चे तो चाहती हैं परंतु पति से संबंधित अन्य कोई रिश्ता उन्हें गवारा नहीं होता. शायद वे यह भूल जाती हैं कि आज यदि वे बहू हैं तो कल वे सास भी बनेंगी.

फिल्मों और धारावाहिकों का प्रभाव:  हम मानें या न मानें, फिल्में व धारावाहिक हमारे भारतीय परिवार व समाज पर गहरा असर डालते हैं. पुरानी फिल्मों में बहू को बेचारी तथा सास को दहेजलोभी, कुटिल बताते हुए बहू को जला कर मार डालने वाले दृश्य दिखाए जाते थे.

कई अदाकारा तो विशेषरूप से कुटिल सास का बेहतरीन अभिनय करने के लिए ही जानी जाती हैं. आजकल के सासबहू सीरीज धारावाहिकों का फलक इतना विशाल रहता है कि उस में सबकुछ समाया रहता है. कहीं गोपी, अक्षरा और इशिता जैसी संस्कारशील बहुएं भी हैं तो कहीं गौरा और दादीसा जैसी कठोर व खतरनाक सासें हैं. कोकिला जैसी अच्छी सास भी है तो राधा जैसी सनकी बहू भी है. अब इन में से कौन सा किरदार किस के ऊपर क्या प्रभाव डालता है, यह तो आने वाले समय में ही पता चलता है.

आज के व्यस्त समाज में आशा सहाय और विजयपत सिंघानिया की स्थिति देख कर तो यही लगता है कि अब हम सब को अपनी वृद्धावस्था के लिए पहले से ही ठोस उपाय कर लेने चाहिए. कई यूरोपियन देशों में तो व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद शोक मनाने के लिए भी सारे इंतजाम करने के बाद ही मरता है. हमारे समाज का तो ढांचा ही कुछ ऐसा है कि हम अपने बच्चों से बहुत सारी अपेक्षाएं रखते हैं.

हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, बेटेबहू के हाथ से तर्पण व मोक्ष पाने का लालच इतना ज्यादा है कि चाहे जो भी हो जाए, वृद्ध दंपती बेटेबहू के साथ ही रहना चाहते हैं. बेटियां चाहे जितना भी प्यार करें, वे बेटियों के साथ नहीं रह सकते, न ही उन से कोई मदद मांगते हैं. कुछ बेटियां भी शादी के बाद मायके की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेना चाहती हैं. और दामाद को तो ससुराल के मामले में बोलने का कोई हक ही नहीं होता.

भारतीय समाज में एक औरत के लिए सास बनना किसी पदवी से कम नहीं होता. महिला को लगता है कि अब तक उस ने बहू बन कर काफी दुख झेले हैं, और अब तो वह सास बन गई है. सो, अब उस के आराम करने के दिन हैं. सास की हमउम्र सहेलियां भी बहू के आते ही उस के कान भरने शुरू कर देती हैं. ‘‘बहू को थोड़ा कंट्रोल में रखो, अभी से छूट दोगी तो पछताओगी बाद में.’’

‘‘उसे घर के रीतिरिवाज अच्छे से समझा देना और उसी के मुताबिक चलने को कहना.’’

‘‘अब तो तुम्हारा बेटा गया तुम्हारे हाथ से’’, इत्यादि जुमले अकसर सुनने को मिलते हैं. ऐसे में नईनई सास बनी एक औरत असुरक्षा की भावना से घिर जाती है और बहू को अपना प्रतिद्वंद्वी समझ बैठती है. जबकि सही माने में देखा जाए तो सासबहू का रिश्ता मांबेटी जैसा होता है. आप चाहें तो गुरु और शिष्या के जैसा भी हो सकता है और सहेलियों जैसा भी.

यदि हम कुछ बातों का विशेषरूप से ध्यान रखें तो ऐसी विपरित परिस्थितियों से निबटा जा सकता है, जैसे-

–       नई बहू के साथ घर के बाकी सदस्यों के जैसा ही व्यवहार करें. उस से प्यार भी करें और विश्वास भी, परंतु न तो चौबीसों घंटे उस पर निगरानी रखें और न ही उस की बातों पर अंधविश्वास करें.

–       नई बहू के सामने हमेशा अपने गहनों व प्रौपर्टी की नुमाइश न करें और न ही उस से बारबार यह कहें कि ‘मेरे मरने के बाद सबकुछ तुम्हारा ही है.’ इस से बहू के मन में लालच पैदा हो सकता है. अच्छा होगा कि आप पहले बहू को ससुराल में घुलमिल जाने दें तथा उस के मन में ससुराल के प्रति लगाव पैदा होने दें.

–       बहू की गलतियों पर न तो उस का मजाक उड़ाएं और न ही उस के मायके वालों को कोसें. बल्कि, अपने अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए सहीगलत, उचितअनुचित का ज्ञान दें. परंतु याद रहे कि ‘हमारे जमाने में…’ वाला जुमला न इस्तेमाल करें.

–       बहू की गलतियों के लिए बेटे को ताना न दें, वरना बहू तो आप से चिढ़ेगी ही, बेटा भी आप से दूर हो जाएगा.

–       अपने स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें तथा घरेलू कार्यों में आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें.

–       समसामयिक जानकारियों, कानूनी नियमों, बैंक व जीवनबीमा संबंधी नियमों तथा इलैक्ट्रौनिक गैजेट्स के बारे में भी अपडेट रहें. इस के लिए आप अपनी बहू का भी सहयोग ले सकती हैं. इस से वह आप को पुरातनपंथी नहीं समझेगी, और वह किसी बात में आप से सलाह लेने में हिचकेगी भी नहीं.

–       अपने पड़ोसी व रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने का प्रयास करें.

–       बेटेबहू को स्पेस दें. उन के आपसी झगड़ों में बिन मांगे अपनी सलाह न दें.

–       परंपराओं के नाम पर जबरदस्ती के रीतिरिवाज अपनी बहू पर न थोपें. उस के विचारों का भी सम्मान करें.

आखिर में, यदि आप को अपनी बहू का व्यवहार अप्रत्याशित रूप से खतरनाक महसूस हो रहा है तो आप अदालत का दरवाजा खटखटाने में संकोच न करें. याद रखिए घरेलू हिंसा का जो कानून आप की बहू के लिए है वह आप के लिए भी है.

कानून की नजर में

केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक अंगरेजी अखबार के जरिए यह कहा था कि घरेलू हिंसा कानून ऐसा होना चाहिए जो बहू के साथसाथ सास को भी सुरक्षा प्रदान कर सके. क्योंकि अब बहुओं द्वारा सास को सताने के भी बहुत मामले आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि हिंदू मैरिज कानून के मुताबिक, कोई भी बहू किसी भी बेटे को उस के मांबाप के दायित्वों के निर्वहन से मना नहीं कर सकती.

क्या कहता है समाज

भारतीय समाज के लोगों ने अपने मन में इस रिश्ते को ले कर काफी पूर्वाग्रह पाल रखे हैं. विशेषकर युवा पीढ़ी बहू को हमेशा बेचारी व सास को दोषी मानती है. युवतियां भी शादी से पहले से ही सासबहू के रिश्ते के प्रति वितृष्णा से भरी होती हैं. वे ससुराल में जाते ही सबकुछ अपने तरीके से करने की जिद में लग जाती हैं. वे पति को ममा बौयज कह कर ताने देती हैं और सास को भी अपने बेटे से दूर रखने की कोशिश करती हैं.

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Divorce के बाद समझदारी से लें काम ताकि न हो पछतावा

जब निशा और रमेश ने शादी के 15 साल बाद एकदूसरे से अलग होने का फैसला किया तब निशा को मालूम नहीं था कि उस के हक क्या हैं, किसकिस चीज पर उसे हक मांगना चाहिए और किस चीज पर नहीं. इसलिए उस ने घर की संपत्ति में से अपना हिस्सा नहीं मांगा, जिस पर दोनों का अधिकार था. चूंकि रमेश ने बच्चे निशा के पास ही रहने दिए तो घर की संपत्ति पर उस का ध्यान ही नहीं गया जबकि निशा भी कामकाजी थी और मुंबई के उपनगर मीरा रोड में दोनों जिस फ्लैट में रहते थे, उसे दोनों के कमाए गए साझे पैसे से खरीदा गया था.

दरअसल, तलाक के समय निशा इतनी टूट गई थी कि भविष्य की किसी सोचसमझ या आ सकने वाली परेशानी पर अपना ध्यान ही नहीं लगा सकी. वास्तव में तलाक इमोशनल लैवल पर ऐसी ही चोट पहुंचाता है. लेकिन इस के आर्थिक परिणाम और भी खतरनाक होते हैं.

तलाक के कुछ महीनों बाद ही निशा को एहसास हो गया कि वह बड़ी गलती कर बैठी है. कुछ ही दिनों की अकेली जिंदगी के बुरे अनुभवों से वह जान गई कि सारी संपत्ति रमेश को दे कर उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. तब उस ने रमेश से अपना हिस्सा मांगा और याद दिलाया कि मकान उन दोनों ने मिल कर खरीदा था.

प्रौपर्टी पर कानूनन हक

कानून के मुताबिक, वैवाहिक जीवन के दौरान खरीदी गई कोई भी प्रौपर्टी पतिपत्नी दोनों की होती है. उस पर दोनों का ही मालिकाना हक होता है. याद रहे यह नियम तब भी लागू होता है, जब संपत्ति खरीदने में पत्नी की कोई भूमिका न हो. हां, मगर विरासत में मिली या कोई दूसरी प्रौपर्टी इस कानून के दायरे में नहीं आती. लेकिन जिन चीजों में पत्नी का हक बनता है उन में अगर सुबूत न भी हों तो भी उन में पत्नी को हक मिलता है.

निशा के मामले में प्रौपर्टी यानी मकान रमेश के नाम था. लेकिन घर के लिए गए लोन में वह सहआवेदक और सहऋ णी थी. साथ ही उस ने अपने अकाउंट से घर के लिए कई ईएमआई भी अदा की थीं. तलाक के बाद अभी तक उस ने होम लोन ईएमआई का ईसीएस मैंडेट भी खत्म नहीं किया था. इस वजह से पति से अलग होने के बाद भी 2 महीने तक होम लोन की 2 ईएमआई उस के खाते से निकल गईं. इसे देख निशा ने अपने बैंक को आगे की ईएमआई रोकने के लिए कहा. इस पर बैंक ने इस के लिए लंबाचौड़ा प्रोसैस बता दिया, जिसे पूरा किए बिना इसे रोक पाना मुमकिन नहीं.

मुआवजे की मांग

तलाक के कुछ ही महीनों बाद सामने आ गई यह अकेली परेशानी नहीं थी. कई और परेशानियों ने उसे अचानक आ घेरा. दरअसल, निशा ने तलाक के वक्त पति से बच्चों की परवरिश के लिए किसी किस्म के मुआवजे की कोई मांग नहीं की थी. उस समय उसे लग रहा था कि वह जो कमाती है, उसी में कैसे भी कर के पूरा कर लेगी. उसे आर्थिक दिक्कत महसूस होने लगी.

निशा को बहुत जल्द समझ में आ गया कि उस ने अपना हक न मांग कर बड़ी गलती कर दी है.

अगर साथ रहना संभव न रह गया हो और तलाक लेना जरूरी बन गया हो तो किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए, आइए जानते हैं:

अपना हिस्सा जरूर लें:

कानून के मुताबिक अगर शादी के दौरान कोई प्रौपर्टी  खरीदी गई है, तो उस में पतिपत्नी दोनों की बराबर की हिस्सेदारी होती है. भले किसी एक ने ही अपनी कमाई से उसे खरीदा हो. यह हिस्सा तब भी मांगें जब आप आर्थिक रूप से मजबूत हों, क्योंकि तलाक के बाद किसी की भी जिंदगी में बड़ा आर्थिक बदलाव आ सकता है. जब लग रहा हो कि अब तलाक हो ही जाएगा तो उस समय कुछ और आर्थिक सजगता अमल में लाना जरूरी है जैसे साझे बैंक अकाउंट्स और क्रैडिट कार्ड्स जितनी जल्दी हो बंद कर दें.

इस मामले में विकास मिश्र का अनुभव आप को बहुत कुछ बता सकता है. विकास का जब शादी के 3 साल बाद सुनीता से तलाक हो गया तो उस के कुछ दिनों बाद उसे कूरियर से मिला पत्नी के एड औन क्रैडिंट कार्ड का भारीभरकम बिल बहुत नागवार गुजरा. वह गुस्से में भड़क उठा.

उस ने एक पल को तो सोचा कि क्रैडिट कार्ड बिल फाड़ कर फेंक दे. पैसा वह किसी भी कीमत पर नहीं चुकाना चाहता था. लेकिन उस के फाइनैंस ऐडवाइजर ने बताया कि पेमैंट डिफाल्ट से उस के क्रैडिट स्कोर पर भारी असर पड़ेगा. इसलिए विकास ने वह बिल चुका कर अपने बैंक को फोन कर के उस क्रैडिट कार्ड को ब्लौक करने को कहा.

बकाया लोन चुकाएं:

जब राजेश और सुमन तलाक ले रहे थे, तो कार सुमन ने अपने पास रखी, जिस के लिए दोनों ने मिल कर लोन लिया था. कार की 11 ईएमआई बची हुई थीं. तलाक के बाद जब राजेश ने किस्तें देना बंद कर दीं तो लोन चुकाने के लिए बैंक की ओर से उन से संपर्क किया गया.

राजेश ने पैसा सुमन से वसूलने के लिए कहा. सुमन ने कर्ज की बाकी रकम चुका भी दी. फिर भी बैंक ने राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया. ऐसा क्यों किया गया. इस पर क्रैडिट इन्फौरमेशन ब्यूरो (सिबिल) में सीनियर अधिकारी कहते हैं कि अगर किसी कपल ने ज्वौइंट लोन लिया है, तो उसे चुकाने की जिम्मेदारी दोनों की है. तलाक के बाद भी वे इस फाइनैंशियल लायबिलिटी से मुक्त नहीं हो सकते.

क्रैडिट स्कोर पर रखें नजर:

अलग होने वाले कपल को अपने क्रैडिट स्कोर के बारे में खास सावधानी बरतनी चाहिए. अगर कोई ज्वौइंट लोन बकाया है, तो उस की पेमैंट को ले कर कभी भी विवाद हो सकता है. इस का असर दोनों के ही क्रैडिट स्कोर पर पड़ सकता है. यह तब भी हो सकता है जब बैंक अपना कर्ज वसूल ले.

राजेश और सुमन के मामले में राजेश ने सुमन के लिए ही कार का लोन लिया था और अंतत: चुकाया भी उसी ने. लेकिन इस के बाद भी राजेश डिफाल्टर हो गया, क्योंकि बुनियादी तौर पर किस्त वही भरता था. उसी की अकाउंट से जाती थी. मगर तलाक के बारे में उस ने बैंक को अपनी तरफ से सूचित नहीं किया और न ही ऐसे समय में पूरा किया जाने वाला प्रोसैस पूरा किया, इसलिए बैंक ने अपना कर्ज वापस पाने के बाद भी राजेश को डिफाल्टर घोषित कर दिया.

दरअसल, डिवौर्स सैटलमैंट में किसी एक को लोन चुकाने के लिए भी अगर कहा जाता है, तो भी बैंक के साथ औरिजनल ऐग्रीमैंट नहीं बदलेगा. जिस में दोनों पार्टनर की लोन चुकाने की जवाबदेही है.

परिसंपत्तियों का बंटवारा:

अगर तलाक आपसी सहमति से होता है तो संपत्तियों के बंटवारे जैसी तमाम परेशानियों से बचा जा सकता है. हालांकि यह तभी हो पाता है, जब अलग होने वाले पार्टनर सही डिमांड करें. अलग होते वक्त दोनों को एसैट्स और लायबिलिटी की लिस्ट बना लेनी चाहिए. उन की मार्केट वैल्यू का ठीकठीक पता लगा लेना चाहिए.

कपल आपसी सहमति से इन सभी चीजों का बंटवारा कर सकते हैं और बकाया लोन के लिए जवाबदेही भी आपस में बांट सकते हैं. हालांकि यह काम करना इतना आसान नहीं है, जितना लगता है. फिर भी कोशिश की जाए तो दोनों को ही फायदा है. दोनों मिल कर तय कर सकते हैं कि पत्नी को घर मिले और दूसरे एसैट्स पति को.

ऐसा इसलिए क्योंकि पत्नी घर मिलने से खुद को आर्थिक तौर पर सुरक्षित महसूस करेगी. यह अलग बात है कि इस के बाद भी उसे फिक्स्ड इनकम की जरूरत होगी जो घर से नहीं मिल सकती. इसलिए पत्नी को ऐसे एसैंट्स की मांग करनी चाहिए. जिन से उसे नियमित इनकम हो सके.

वैसे समझदारी तो इसी में है कि रिश्ता बिगड़ने की तरफ बढ़े उस से पहले ही चौकन्ना हो घर को टूटने से बचा लें. अगर यह कतई मुमकिन न हो तो इन तमाम बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि तलाक के बाद बिलकुल बरबाद होने से बचा जा सके.

Relationship : क्या है अल्फा मेल और बीटा मेल, कौन है आप के लिए सही

Relationship : अल्फा मेल जहां हमेशा जोश और गुस्से से भरा हुआ नजर आता है, वहीं बीटा मेल काफी कूल और जिंदगी को खुल कर जीने वाले माने जाते हैं. एक परफैक्ट मेल के इन दोनों ही रूपों में काफी बड़ा अंतर है. अगर आप भी नहीं जानते कि अल्फा और बीटा मेल की क्या अवधारणा है, तो अपना लाइफ पार्टनर चुनने से पहले इन बातों पर जरूर गौर करें :

आत्मविश्वास से भरा होता है अल्फा मेल

सब से पहले जानते हैं कि आखिर अल्फा मेल होते कैसे हैं. ऐसी प्रवृति के पुरुषों में स्वाभाविक रूप से नेतृत्व की क्षमता होती है. यह अकसर समूह में सब से आगे होते हैं. उस की राय और फैसले महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं. ऐसे पुरुषों का आत्मविश्वास बहुत मजबूत होता है. वह किसी भी चुनौती का सामना करने में नहीं डरते. उन के व्यक्तित्व में भी आप को ये सारी बातें नजर आती हैं. वे शारीरिक रूप से फिट और मानसिक रूप से मजबूत होते हैं. हालांकि ऐसे पुरुष अकसर डोमिनेटिंग नेचर के होते हैं और दूसरों पर हावी होने की कोशिश करते हैं. ये दूसरों से बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा रखते हैं. अपने ज्यादातर फैसने खुद को केंद्र में रख कर करते हैं.

संतुष्टि से जीवन बिताते हैं बीटा मेल

बीटा मेल काफी हद तक अल्फा मेल से अलग होते हैं. ऐसे पुरुष शांत स्वभाव के होते हैं. वे हमेशा सब की मदद करने के लिए आगे रहते हैं. बीटा मेल काफी इमोशनल होते हैं और दूसरे की भावनाओं को गहराई से समझते हैं. ये लीडर बनने की जगह टीम को साथ ले कर चलने में विश्वास रखते हैं और मिलजुल कर काम करते हैं. इतना ही नहीं बीटा मेल अपने पार्टनर की जरूरत को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और उन्हें पूरा सम्मान भी देते हैं.

यह स्वभाव से लचीले होते हैं और हर परिस्थिति में खुद को ढालने की कोशिश करते हैं. वे अकसर दूसरों को भी बोलने का मौका देते हैं, हालांकि कई बार उन के इस स्वभाव को उन की कमजोरी समझ लिया जाता है.

आप के लिए कौन है बेहतर

अब सवाल यह है कि आप के लिए कैसा मेल बैस्ट है. दरअसल, यह पूरी तरीके से आप की निजी पसंद पर निर्भर करता है. हालांकि अल्फा मेल के मुकाबले बीटा मेल के साथ जिंदगी ​जीना काफी आसान है. लेकिन जिंदगी में आगे बढ़ने की संभावनाओं की बात करें तो इस मामले में अल्फा मेल आगे निकल सकते हैं क्योंकि ऐसे पुरुष हमेशा लीडर बन कर उभरते हैं.

Relationship Tips In Hindi : क्रश को प्यार में चाहते हैं बदलना, तो न करें ये गलतियां

Relationship Tips In Hindi : क्रश कब किसको किस पर हो जाए , पता नहीं होता. लेकिन ये भी हर किसी के बस में नहीं कि  उस क्रश को सही से प्रपोज करके प्यार में बदलना. ऐसे में जब प्रपोज करने पर आपको हमेशा नाकामयाबी ही मिलती हो तो दिल टूट जाता है और समझ नहीं आता कि आखिर हम में ऐसी क्या कमी रह गई थी जो हमारा प्यार अधूरा रह गया. ऐसे में आपके लिए ये जानना बहुत जरूरी है कि पार्टनर ने आपको क्यों न कहा है. आइए जानते हैं इस संबंध में.

1. ऐटिटूड भरा प्रपोजल 

भले ही आपने अपने क्रश को प्रपोज तो कर दिया, लेकिन वो प्रपोजल आपका ऐटिटूड से भरा हुआ हो, तो हमेशा आपको न ही सुनने को मिलेगी. क्योंकि आप जिसे भी प्रपोज करें वो नहीं चाहेगा कि जिससे मैं संबंध जोड़ने जा रही हूं , उसमें ऐटिटूड हो. फिर चाहे आप कितने भी गुड लुकिंग क्यों न हो, आपके प्रपोजल को न करने पर मजबूर कर ही देगा. क्योंकि जिसमें अभी इतना ऐटिटूड है आगे कितना होगा, कहा नहीं जा सकता. और शायद इसलिए ही आपको हमेशा अपने क्रश को प्रपोज करने में असफलता मिलती हो.

टिप जब भी आप अपने पार्टनर को प्रपोज करने जाएं तो आपके प्रपोजल का तरीका बहुत ही सोफ्ट व सामने वाले को अपनी तरफ मोहित करने वाला होना चाहिए. न कि रौब व ऐटिटूड से भरा हुआ हो.

2. आपका गुड लुकिंग नहीं होना 

क्रश होने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन हो सकता है कि आप जब भी अपने क्रश को प्रपोज करते हो, तो आपको न ही या बगर ऑफ यानि निकल जाओ मेरी जिंदगी से ही सुनने को मिलता हो. ऐसा इसलिए क्योंकि आप उसे प्रपोज करने तो पहुंच गए लेकिन अपने हुलिए पर जरा ध्यान देना ही भूल गए हैं. ऐसे में आपके क्रश से आपको न ही सुनने को मिलेगी. क्योंकि कोई भी लड़की ये नहीं चाहेगी कि उसका पार्टनर दिखने में अच्छा न हो. क्योंकि कहते हैं न कि बातों का इफेक्ट बाद में लोगों पर पड़ता है पहले तो चेहरा ही वर्क करता है. ऐसे में प्रपोज करने से पहले अपने हुलिए पर ध्यान जरूर दें.

टिप  भले ही आपको टिप टोप रहने का शौक न हो, लेकिन जब आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हो तो खुद को टिप टोप बनाकर ही जाएं. ताकि लड़की की नजरों में आप पहली नजर में ही बस जाएं. और वे आपके प्रपोजल को न न कर पाए. क्योंकि गुड लुकिंग, हैंडसम बोय की कामना हर लड़की को होती है.

3. इशारों के बाद प्रपोज करना 

कुछ लड़कों की ये आदत होती है कि वे जिसे पसंद करते हैं , उसे इशारों से अपने मन का हाल बताने की कोशिश करते हैं. जबकि लड़कियां ऐसे लड़कों से दूरी बनाने में ही समझदारी समझती हैं. क्योंकि ऐसे लड़के उन्हें नियत के सही नहीं लगते. उन्हें लगता है कि जो अभी ऐसी हरकत करता है वो आगे किस हद तक चला जाएगा, कहा नहीं जा सकता. ऐसे में वे उनके प्रपोज करते ही उन्हें साफ इंकार कर देती हैं.

टिप  जिस पर भी आपका क्रश है ,और आप उसे प्रपोज करने के बारे में सोच रहे हैं तो इस बात का खास ध्यान रखें कि आप भले ही उसे छुपछुप कर देखें जरूर , लेकिन उसे इशारे न करें. जब भी उसे प्रपोज करें तो आपकी आंखों में उसके लिए प्यार दिखे, न कि एक अजीब सी शरारत.

4. शो ऑफ करके प्रपोज करना 

ये सच है कि आज अधिकांश लड़कियां पैसा , शोहरत देखकर ही लड़कों के प्रपोजल को मंजूर करती हैं. लेकिन हर स्तिथि में ये जरूरी नहीं है कि लड़कियां गाड़ी , पैसा देखकर ही इम्प्रेस हो. ऐसे में अगर आप अपने क्रश को प्रपोज करने जा रहे हैं और आप अगर उसे अपने पैसों का रुतबा दिखाकर प्रपोज कर रहे हैं तो यकीन मानिए आपको न ही सुनने को मिलेगा. क्योंकि जो शुरूवात में इतना दिखावा कर रहा है वो आगे भी अपने पैसों के बल पर मुझे नीचा दिखाने की कोशिश करेगा, ऐसा सोच कर लड़की आपके गुड लुकिंग होते हुए भी आपको कई बार न करने में ही समझदारी समझेगी.

टिप जब प्रपोज करने के लिए जाएं तो आप इस बात का ध्यान रखें कि आपकी पर्सनालिटी व आपके प्रपोज़ करने के अंदाज में पैसों का दिखावा जरा भी न हो.

5. ज्यादा स्मार्ट बनना 

कुछ लड़कों की ये आदत होती है कि वे लड़कियों के सामने खुद को जरूरत से ज्यादा स्मार्ट दिखाने की कोशिश करते हैं. इसी चक्कर में जब वे अपने क्रश को अपना बनाने के बारे में सोचते हैं तब उनकी ये स्मार्टनेस उनके रिजेक्शन के रूप में सामने आती है. क्योंकि कोई भी लड़की जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने वाले लड़के को पसंद नहीं करना चाहती. ऐसे में बस वे यही सोचते रह जाते हैं कि लड़की ने हमें रिजेक्ट क्यों किया, जबकि हमने तो उन्हें पहल करके पहले प्रपोज किया है.

टिप  जब भी लड़की को प्रपोज करें तो ओवर स्मार्टनेस को एक तरफ रखकर कूल डाउन होकर इस अंदाज में प्रपोज करें कि आपका क्रश आपको हां कहे बिना रह न सके. क्योंकि जब आप में कुछ खास होगा, तभी तो कोई आपकी और अट्रैक्ट होगा.

जब कोई आपके दिल का सीक्रेट जानना चाहे, तो रखें इन बातों का ध्यान

किसी से कोई बात उगलवाने के लिए प्राय: हम अपनी कोशिश तब तक जारी रखते हैं, जब तक कि पूरी बात अपने मन की तसल्ली लायक न उगलवा लें.

रीना और सविता ननदभाभी हैं. सविता की रीना के अलावा 2 ननदें और हैं. किसी अवसर पर सविता की अपनी बीच वाली ननद से कुछ कहासुनी हो गई, जिस से संबंधों में कड़वाहट आ गई. छुट्टियों में जब रीना भाभी के घर रहने आई, तो उस ने बातोंबातों में चर्चा की कि बीच वाली जीजी आई थीं. कुछ खरीदारी करनी थी.

चूंकि सविता के मन में चोर था, इसलिए वह यह मान ही नहीं सकती थी कि बीच वाली ननद ने कोई बुराई न की हो. अत: उस ने तत्काल पूछा, ‘‘क्या कह रही थीं?’’

जवाब मिला, ‘‘कुछ खास नहीं. वही राजीखुशी की बातें कर रही थीं.’’

अनावश्यक कान भरना

पर चूंकि सविता का तनाव बीच वाली ननद से चल रहा था. अत: वह मान ही नहीं सकती थी कि वे अपनी बहन के घर जाएं और दोनों बहनों में उस की बाबत कोई चर्चा ही न हो. अत: उस के मन के चोर ने उसे उकसाया तो उस ने फिर कहा, ‘‘कुछ तो चर्चा हुई ही होगी. आखिर रही तो घर पर ही थीं. क्या कह रही थीं, बताती क्यों नहीं? मैं तो बस यों ही यह जानना चाह रही हूं कि आखिर वे क्या कह रही थीं?’’

रीना चूंकि पूरी बात जानती थी अत: समझदारी से काम लेते हुए बोली, ‘‘सच भाभी, जीजी ने तो कुछ भी नहीं कहा. कुछ कहा होता तभी तो बताती.’’

सविता अब भी भरोसा नहीं कर पाई. उसे लगा दोनों बहनें एक हो गई हैं. मिल कर उस की खूब बुराई की होगी, नमकमिर्च लगा कर. अब देखो कैसे भोली बन रही है. जैसे कुछ कहासुना ही न हो.

फिर तुनक कर बोली, ‘‘नहीं बताना है, तो मत बताओ. मैं क्या जानती नहीं.’’

पूरी बातचीत में सविता वह जानने की कोशिश करती रही, जो उस ने मन में सोच रखा था. पर जब वैसा कुछ भी सुनने को नहीं मिला, तब उसे भरोसा नहीं हुआ और परिणाम यह हुआ कि वह बीच वाली ननद से तो तनाव ले ही चुकी थी, इस ननद से भी उलझ पड़ी और मन का चैन पूरी तरह गंवा बैठी.

बेवजह तनाव

ऐसा प्राय: होता है. लोग अपने बारे में दूसरों की राय जानना चाहते हैं. कोई न बताए तो भी कुरेदकुरेद कर जानना चाहते हैं मानो जिन की राय, विचार उन्हें जानने हैं, वे कोई जज हों जो कह देंगे अच्छा तो अच्छा ही माना जाएगा.

हमारे एक परिचित हैं. वे जब आएंगे तो कहेंगे, ‘‘भाभीजी अभी कुछ दिन पहले आप के जेठजी मिले थे. आप लोगों की चर्चा होती रही. बहुत शिकायतें हैं उन्हें आप से और भैया से.’’

संभवतया वे यह बात इसलिए कहते हैं कि हम लोग चिढ़ कर उन से कुछ कहें और वे तमाशे का आनंद उठाएं. वास्तव में यह कह कर कि फलां कह रहा था, जो उत्सुकता जगाई जाती है, वह बिना पैसे का तमाशा बन उन का बखूबी मनोरंजन करती है. मैं अकसर ऐसी किसी आधीअधूरी बात पर कान देने के बजाय कहने वाले को हतोत्साहित करने के उद्देश्य से कहती हूं, ‘‘कहने दो, क्या फर्क पड़ता है? जब कभी आमनेसामने पड़ेंगे और वे मुझ से कुछ कहेंगे तब जो उचित होगा जवाब दे दूंगी. अभी क्या बेवजह तनाव मोल लें?’’

एक दिन इन्हीं सज्जन ने मिलने पर कहा, ‘‘भाभीजी, आप के जेठजी तमाम किस्म की बातें आप लोगों के बारे में कहते रहते हैं. हमारा तो सुन कर खून खौल जाता है. आप को तनाव नहीं होता?’’ मैं ने मुसकरा कर यह कहते हुए बात टाल दी, ‘‘जब कभी मुझ से कहेंगे तब देख लूंगी. हर किसी के कहने पर क्या जानूं कि क्या सच है और क्या झूठ?’’

वास्तव में भीतर की बात उगलवाना व बेवजह किसी को भी तनाव देना और खुद आनंद लेना आज आम बात हो गई है. 2 की लड़ाई में तीसरा हाथ सेंकता ही है यानी मजे लेले कर तमाशा देखता है और अपरिपक्व लोग समझदारी का दामन छोड़ तमाशा दिखाते भी हैं.

झूठी तसल्ली

बताने वाला सच बताए या झूठ सुनने वाले को कभी तसल्ली नहीं होती. उसे सदैव लगता है, कुछ छिपा रहा है. फिर जब सुनने वाला कुरेद कर पूछता है कि और क्याक्या बातें हुईं, तो बताने वाला उस की झूठी तसल्ली के लिए सच के अलावा भी मन से जोड़ कर बहुत कुछ बता देता है. इधर पूछने वाले को चैन तो मिलता नहीं, हां तनाव जरूर बढ़ने लगता है. वह आक्रामक रुख इख्तियार कर बुराभला बोल मन की भड़ास निकालता जरूर है, पर यह भूल जाता है कि जिसे बता रहा है, वह यदि यही बातें उस संबंधित व्यक्ति को बता देगा तब क्या होगा?

ऐसे में यह याद रखना जरूरी है कि पूछने वाला न तो हमारा हितैषी है और न ही उस का जिस की बात कह रहा है. वह तो मात्र मजे लेने को ऐसा कर रहा है. ऐसे लोगों से सावधान रहना जरूरी है ताकि अपने जी का चैन बना रहे व संबंधों में खटास न बढ़े.

रिश्ते में आ गई है तलाक की नौबत,अपनाएं ये बातें बच सकता है रिश्ता

शादी एक ऐसा पवित्र बंधन हैं जिसके जरिए दो अजनबी एक दूसरे के साथ ऐसे अटूट रिश्ते में बंध जाते हैं जिसमे एक दूसरे की खुशी,अपनी खुशी बन जाती है और दुख दर्द अपने गम बन जाते हैं .यह दोनों पार्टनर्स के लिए एक नए जीवन की शुरुआत होती है. कामयाब शादी का एक मूल मंत्र हैं कि यदि पति की आदतों में पत्नी अपनी खुशी और पत्नी की आदतों में पति अपनी खुशी खोज ले तो जीवन खुशनुमा हो जाता है. शादी ब्याह का बंधन एक विश्वास के धागे पर टिका होता है और जिस रिश्ते  में एक दूसरे के प्रति केयर  और रिस्पांसिबिलिटी का भाव होता है उस रिश्ते में हमेशा प्यार बना रहता है ऐसा रिश्ता एक सम्पूर्ण व कामयाब रिश्ते कि पहचान बन जाता है और जिस रिश्ते में बात बात पर ईगो आने लगता है रेस्पेक्ट व बराबरी का भाव खत्म होने लगता है तो वह रिश्ता टिक नहीं पाता. इसीलिए रहीम जी ने अपने दोहे में लिखा हैं ‘रहीमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे तो फिर ना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए ‘ तो जरूरी है कि छोटीमोटी बातों को राई का पहाड़ ना बनाएं व एक दूसरे के  प्रति प्रेम व विश्वास बनाए रखें.

एक दूसरे की रिस्पेक्ट है जरूरी 

किसी भी रिश्ते को निभाने के लिए एक दूसरे के प्रति बराबरी, शेयर एंड केयर का  भाव होना अति आवश्यक है यह पति पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए रामबाण का कार्य करता है यदि आपका पार्टनर आपसे किसी भी क्षेत्र में कम है तो उसे कभी भी निचा ना दिखाएं बल्कि उसकी अच्छाईयों को तब्बजो दें , और उसको एहसास दिलाएं कि वह आपके जीवन में कितना जरूरी है और वो जैसा भी हैं वैसा ही आपके लिए खास है.

 मुसीबत में ना छोड़े साथ

मुश्किल समय में भी आप अपने पार्टनर को दोष न देकर उसके साथ खड़े होते हैं तो आप एक आदर्श पार्टनर कहलाते हैं जब भी कभी आपके पार्टनर पर कोई विपदा आए तो उसका साथ ना छोड़े बल्कि उसकी ढाल बनकर उसका हौसला बढ़ाएं क्योंकि मुसीबत कितनी भी बड़ी क्यों ना हो लेकिन यदि आपका पार्टनर साथ है तो आप हर मुसीबत का सामना आसानी से कर सकते हैं. और इससे आपकी लव बौन्डिंग मजबूत होती है.

 उसकी खूबियों को आंके

आप अपने पार्टनर के बाहरी रंगरूप को ध्यान न देते हुए उसकी आंतरिक सुंदरता से प्रेम करें. हमेशा ध्यान रखें कि यदि आप अपने पार्टनर कि खामियों पर ही फोकस करते रहते हैं तो यह एक बड़े टकराव कि वजह बन सकती हैं लेकिन यदि आप उसकी कमियों पर कम बल्कि खूबियों पर फोकस ज्यादा करते हैं तो वह खुद ही अपने अंदर कि कमियों को खूबियों में बदलने कि कोशिश करता है इसीलिए खूबियों का आकलन आपके रिश्ते को मजबूती देता है जब भी आपको लगे कि आपका रिश्ता कमजोर पड़ने लगा है तो अपने पार्टनर कि खूबियों पर अधिक से अधिक ध्यान दें आपके गिले शिकवे अपने आप कम होने लगेंगे.

पार्टनर की इच्छाओं को दें महत्व

अपनी इच्छा अपने पार्टनर पर बिलकुल भी थोपने की कोशिश ना करें पति-पत्नी को चाहिए कि वो एक दूसरे की इच्छाओं की हमेशा कद्र करें. अगर आप कोई भी काम करने जा रहें है तो अपने पार्टनर की सलाह जरूर लें. और हमेशा अपने पार्टनर कि इच्छाओं को भी समझने कि कोशिश करें.

तुलना ना करें

यह हर रिश्ते में जरूरी हैं कि अपने रिश्ते में किसी और की तुलना को बीच में ना आने दे. कई लोग ऐसे होते हैं कि अपने करीबियों के रिश्तो कि तुलना करते रहते हैं जो कि सबसे गलत है. इस बात को समझें कि आप दोनों का जो रिश्ता हैं वह सबसे बेहतर है और हमेशा रहेगा.

मेरे हसबैंड अपनी भाभी से ज्यादा क्लोज हैं, ऐसा लगता है कि वह मुझसे प्यार नहीं करते…

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल

मेरी शादी को 6 महीने हुए है, मेरे पति मुझसे ज्यादा अपनी भाभी के क्लोज हैं. दोनों एक दूसरे के पसंदनापसंद का ख्याल रखते हैं. दरअसल मेरे पति के भाई दूसरे शहर में रहते हैं, तो भाभी किसी भी काम के लिए मेरे पति पर ही निर्भर रहती हैं. हालांकि वह मेरी मदद करती है. लेकिन मेरे पति और उनके बीच स्ट्रौंग बौन्डिंग है. मेरे पति हर बात अपनी भाभी से शेयर करते हैं. मैं चाहती हूं कि पति अपनी भाभी के बजाय मुझ से अपने दिल की बातें करें. मैं उन के ज्यादा करीब रहूं. मुझे कभीकभी लगता है कि वे मुझे प्यार ही नहीं करते. उन्हें अपनी भाभी का साथ ज्यादा अच्छा लगता है. समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूं?

जवाब

देखिए अभी आपकी नईनई शादी हुई है. हो सकता है घर के तौरतरीके सिखने में आपको थोड़ा टाइम लगे और जैसा कि आपने बताया कि आपके पति के भाई घर से बाहर रहते हैं, तो अभी भाभी आपके घर की बड़ी सदस्य हैं और ये भी बात सच है कि आपसे पहले उन की भाभी बरसों से उस परिवार का हिस्सा हैं, तो आपको बेवजह ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए बल्कि आपको अपने पति का साथ देना चाहिए, उनका भरोसा जीतना चाहिए.

अभी आपको अपने पति के साथ रोमांटिक पल बिताना चाहिए. बेकार के घर की बातों को दिल से नहीं लगाना चाहिए. आप अपने पति के साथ नाइट आउट पर जाएं. आप अपने लुक पर ध्यान दें. शादी के शुरुआती दिनों को यादगार बनाएं न कि भाभी के साथ आपके पति के कैसे रिश्ते हैं.. इस तरह की बातों पर ध्यान न दें.

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आप भले ही बोलें के मेरा बौयफ्रैंड मुझसे कुछ नहीं छुपाता और हर बात शेयर करता, वह बहुत आपेन है. लेकिन ऐसा नहीं है. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो बौयफ्रैंड दिल में होती हैं लेकिन उसे वह जुबान पर लाना नहीं चाहता.

1. साथ का अहसास

लड़के देखने में बड़े तेज होते हैं. वह हमेशा अपनी गर्लफ्रैंड की तुलना करते रहते हैं. ऐसे में जब आप अपने पार्टनर के साथ कहीं डिनर में जा रही होती हैं तो पूरी तरह से सज संवरकर जाना चाहती हैं. बड़ी सी गाउन और बेहद फैशन के साथ निकलने की कोशिश करती हैं. बौयफ्रैंड को आपका हमेशा सरल लिबास और कम फैशन भाता है जिससे कि साथ चलने में एक दूसरे का अहसास हो सके. भारी कपड़ों के साथ दूर रहना पड़ता है. उस वक्त आपकी खुशी और घंटों ड्रेस को लेकर बिताए समय का लिहाज कर वह कुछ नहीं बोलता लेकिन दिल में यही होती है सिंपल और सोबर ही आप ज्यादा सुंदर दिखती हैं.

2. शायद रिश्ता गहरा नहीं है

रिलेशनशिप में आने के बाद लड़कों को बातोंबातों में यह अहसास होता है कि शायद उसकी गर्लफ्रैंड की ओर से यह रिश्ता अभी पक्का नहीं है. वह इस कदर अटैच नहीं है जितना की बौयफ्रैंड. ऐसे में वह अक्सर इस रिश्ते को जांचने की कोशिश करता है लेकिन इस बात को बोलता नहीं. इमोशनली वह अंदर से घुटता रहता है. इसे जांचने के लिए अक्सर वह फिजिकल रिलेशन या किस का सहारा लेता है कि आप क्या बोल रही हैं.

3. फिजिकल रिलेशन

भले ही आपका बौयफ्रैंड यह बोले की वह रिश्ते में सैक्स को ज्यादा अहमियत नहीं देता लेकिन लड़के ऐसा कतई नहीं हो​ते. अपनी गर्लफ्रैंड के साथ वो सेक्स के बारे में सोचते ही हैं. यह कोई जरूरी नहीं कि हर रोज ही सेक्स करें लेकिन कभीकभी की तो चाहत होती ही है. इन चीजों को आप खुद भी नोटिस कर सकते हैं. नए रिश्ते में भले ही वह कुछ न बोले लेकिन जैसे ही रिश्ता पुराना होता है. वह अपने घर पर अकेला होने पर ​बुलाता है या फिर आपको यह जरूर बताएगा कि उसके दोस्त का कमरा अक्सर खाली होता है. इन सब बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि वह क्या चाहता है.

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ननद के कारण शादीशुदा लाइफ में प्राइवेसी नहीं मिल रही, मैं क्या करूं?

अर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 19 वर्षीय पटना की रहने वाली विवाहिता हूं. विवाह हुए 6 महीने हुए हैं. पति दिल्ली में कार्यरत हैं. इसी महीने पति के साथ दिल्ली शिफ्ट हुई हूं तो ससुराल वालों ने मेरी अविवाहित ननद को उस के लिए लड़का देखने की जिम्मेदारी के साथ हमारे साथ भेज दिया. उस के साथ से अनजान शहर में मुझे पति की गैरमौजूदगी में सहारा तो मिलता है पर दिक्कत भी है. सिनेमा जाएं या कहीं और हर जगह उसे साथ ले कर जाना पड़ता है. इस से हमें प्राइवेसी नहीं मिलती. बताएं क्या करें?

जवाब-

ननद के रूप में आप को एक सहेली मिल गई है. इस से नए माहौल में आप को ऐडजस्ट करने में मदद मिली है वरना पति के औफिस जाने के बाद दिनभर आप बोर हो जातीं. जहां तक प्राइवेसी की बात है, तो पति का साथ तो वैसे भी आप को रात को ही मिलता. इस वक्त भी शयनकक्ष में आप की प्राइवेसी में खलल डालने वाला कोई नहीं है. इसलिए जितना भी समय पति के साथ आप को मिलता है उसे भरपूर जीएं. वह आप का क्वालिटी टाइम होना चाहिए. फिर ननद विवाह योग्य है. आज नहीं तो कल उस का विवाह हो जाएगा. तब आप अपनी प्राइवेसी को जी भर कर ऐंजौय करेंगी.

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प्रथा नहीं जानती थी कि यों जरा सी बात का बतंगड़ बन जाएगा. हालांकि अपने क्षणिक आवेश का उसे भी बहुत दुख है, लेकिन अब तो बात उस के हाथ से जा चुकी है. वैसे भी विवाहित ननदों के तेवर सास से कम नहीं होते. फिर रजनी तो इस घर की लाडली छोटी बेटी थी. सब के स्नेह की इकलौती अधिकारी… उस के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार के लिए ये जरा सी बात बहुत बड़ी बात थी.

‘हां, जरा सी बात ही तो थी… क्या हुआ जो आवेश में रजनी को एक थप्पड़ लग गया. उसे इतना तूल देने की क्या जरूरत थी. वैसे भी मैं ने किसी द्ववेष से तो उसे थप्पड़ नहीं मारा था. मैं तो रजनी को अपनी छोटी बहन मानती हूं. रजनी की जगह मेरी अपनी बहन होती तो क्या इसे पी नहीं जाती. लेकिन रजनी लाख बहन जैसी होगी, बहन तो नहीं है न. इसीलिए तांडव मचा रखा है,’ प्रथा जितना सोचती उतना ही उल झती जाती. मामले को सुल झाने का कोई सिरा उस के हाथ नहीं आ रहा था.

दूसरा कोई मसला होता तो प्रथा पति भावेश को अपनी बगल में खड़ा पाती, लेकिन यहां तो मामला उस की अपनी छोटी बहन का है, जिसे रजनी ने अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया है. अब तो भावेश भी उस से नाराज है. किसकिस को मनाए… किसकिस को सफाई दे… प्रथा सम झ नहीं पा रही थी.

हालांकि ननद पर हाथ उठते ही प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो गया था. लेकिन वह जली हुई साड़ी बारबार उसे अपनी गलती नहीं मानने के लिए उकसा रही थी. दरअसल, प्रथा को अपनी सहेली की शादी की सालगिरह पार्टी में जाना था. भावेश पहले ही तैयार हो कर उसे देर करने का ताना मार रहा था ऊपर से जिस साड़ी को वह पहनने की सोच रही थी वह आयरन नहीं की हुई थी.

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एक बेटी होने के नाते मैं ससुराल या मायके में कैसे बैलेंस बनाऊं?

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक जरूर पढ़ें…

सवाल-

मैं 25 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. ससुराल और मायका आसपास ही है. इस वजह से मेरी मां और अन्य रिश्तेदार अकसर ससुराल आतेजाते रहते हैं. पति को कोई आपत्ति नहीं है पर मेरी सास को यह पसंद नहीं. वे कहती हैं कि तुम अपनी मां से बात करो कि वे कभीकभी मिलने आया करें. हालांकि ससुराल में मेरे मायके के लोगों का पूरा ध्यान रखा जाता है, मानसम्मान में कमी नहीं है मगर सास का मानना है कि रिश्तेदारी में दूरी रखने से संबंध में नयापन रहता है. इस वजह से घर में क्लेश भी होता है पर मैं अपनी मां से कहूं तो क्या कहूं? एक बेटी होने के नाते मैं उन का दिल नहीं दुखाना चाहती. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

आप की सास का कहना सही है. रिश्ते दिल से निभाएं पर उन में उचित दूरी जरूरी है. इस से रिश्ता लंबा चलता है और संबंधों में गरमाहट भी बनी रहती है.

अधिकांश मामलों में देखा गया है कि जब बेटी का ससुराल नजदीक होता है तब उस के मायके के रिश्तेदारों का बराबर ससुराल में आनाजाना होता है और वे अकसर पारिवारिक मामलों में दखलंदाजी करते हैं. इस से बेटी का बसाबसाया घर भी उजाड़ जाता है.

भले ही हरेक सुखदुख में एकदूसरे का साथ निभाएं पर रिश्तों में दूरियां जरूर रखें. इस से सभी के दिलों में प्रेम व रिश्तों की मिठास बनी रहती है.

आप अपनी मां से इस बारे में खुल कर बात करें. वे आप की मां हैं और यह कभी नहीं चाहेंगी कि इस वजह से घर में क्लेश हो. हां, एक बेटी होने का दायित्व भी आप को निभाना होगा और इसलिए एक निश्चित तिथि या अवकाश के दिन आप खुद भी मायके जा कर उन का हालचाल लेती रहें.

आप उन से फोन पर भी नियमित संपर्क में रहें, मायके वालों के सुखदुख में शामिल रहें. यकीनन, इस से घर में क्लेश खत्म हो जाएगा और रिश्तों में मिठास भी बनी रहेगी.

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