मैं जेठानी और सास के सास बहू के सीरियल से परेशान हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 29 वर्षीय शादीशुदा महिला हूं. हम संयुक्त परिवार में रहते हैं. सासससुर के अलावा घर में जेठजेठानी, उन के 2 बच्चे व मेरे पति सहित कुल 8 सदस्य रहते हैं. ससुर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. मुख्य समस्या घर में सासूमां और जेठानी के धारावाहिक प्रेम को ले कर है. वे सासबहू टाइप धारावाहिकों, जिन में अतार्किक, अंधविश्वास भरी बातें होती हैं, को घंटों देखती रहती हैं और वास्तविक दुनिया में भी हम से यही उम्मीद रखती हैं. इस से घर में कभीकभी अनावश्यक तनाव का माहौल पैदा हो जाता है.

इन की बातचीत और बहस में भी वही सासबहू टाइप धारावाहिकों के पात्रों का जिक्र होता है, जिसे सुनसुन कर मैं बोर होती रहती हूं. कई बार मन करता है कि पति से कह कर अलग फ्लैट ले लूं पर पति की इच्छा और अपने मातापिता के प्रति उन का आदर और प्रेम देख कर चुप रह जाती हूं. सम  झ नहीं आता, क्या करूं?

जवाब-

सासबहू पर आधारित धारावाहिक टीवी चैनलों पर खूब दिखाए जाते हैं. बेसिरपैर की काल्पनिक कहानियों और सासबहू के रिश्तों को इन धारावाहिकों में अव्यावहारिक तरीके से दिखाया जाता है.

पिछले कई शोधों व सर्वेक्षणों में यह प्रमाणित हो चुका है कि परिवारों में तनाव का कारण सासबहू के बीच का रिश्ता भी होता है और इस में आग में घी डालने का काम इस टाइप के धारावाहिक कर रहे हैं. ये धारावाहिक न सिर्फ परिवार में तनाव को बढ़ा रहे हैं, बल्कि भूतप्रेत, ओ  झातांत्रिक, डायन जैसे अंधविश्वास को भी बढ़ावा दे रहे हैं.

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काल्पनिक दुनिया व अंधविश्वास में यकीन रखने वाले लोगों में एक तरह का मनोविकार भी देखा गया है, जो इन चीजों को देखसुन कर ही इन्हें सही मानने लगते हैं. ऐसे लोगों की मानसिकता बदलना टेढ़ी खीर होता है. अलबत्ता, इस के लिए आप को धीरेधीरे प्रयास जरूर करना चाहिए.

दिल्ली प्रैस की पत्रिकाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों व अंधविश्वासों के खिलाफ शुरू से मुहिम चलाती आई हैं और अब महिलाएं समाज में व्याप्त ढकोसलों, पाखंडों का विरोध करने लगी हैं.

फिलहाल आप खाली समय में उपयुक्त वक्त देख कर सास और जेठानी को इस के गलत प्रभावों के बारे में बता सकती हैं. आप को उन के मन में यह बात बैठानी होगी कि इस से घर में तनाव का माहौल रहता है और इस का सब से ज्यादा गलत प्रभाव बच्चों और उन के भविष्य पर पड़ता है और वे वैज्ञानिक सोच से भटक कर तथ्यहीन और बेकार की चीजों को सही मान कर भटक सकते हैं. आप अपने ससुर से भी इस में दखल करने को कह सकती हैं.

बेहतर होगा कि खाली समय को ऊर्जावान कार्यों की तरफ लगाएं और उन्हें भी इस के लिए प्रेरित करें. उन्हें पत्रपत्रिकाएं व अच्छा साहित्य पढ़ने को दें. कुप्रथाओं, परंपराओं, अंधविश्वास के गलत प्रभावों को तार्किक ढंग से बताएं ताकि उन की आंखों की पट्टी खुल जाए और वे इस टाइप के धारावाहिकों को देखना बंद कर दें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

महिलाओं के इन 10 नखरों के बारे में जान कर आप मुस्कुराए बिना नहीं रहेंगे

महिलाएं किसी माने में पुरुषों से कम नहीं हैं. कई क्षेत्रों में तो वे पुरुषों को भी पछाड़ चुकी हैं. बात बचत की हो या फिर परिवार को बांधे रखने की, महिलाएं अपनी सारी भूमिकाएं बखूबी निभाती हैं. उन में खूबियों के साथसाथ कुछ ऐसी हरकतें भी होती हैं, जिन का जवाब मिल पाना मुश्किल है. आइए, जानते हैं वे हरकतें कौन सी हैं :

पीछे बुराई सामने बखान:

आप ने अकसर अपनी श्रीमती को अपनी सहेली से कहते सुना होगा कि अरे वह नीलिमा न जाने खुद को क्या समझती है. थोड़े अच्छे कपड़े क्या पहनती है, उसे लगता है उस से सुंदर कोई और है ही नहीं. लेकिन जैसे ही श्रीमती की मुलाकात नीलिमा से किसी पार्टी या फंक्शन में होती है तो उन की राय तुरंत बदल जाती है. तब वे कहती हैं कि हाय नीलिमा, आप की साड़ी बहुत सुंदर है. साडि़यों का कलैक्शन आप के पास कमाल का है. कोई कुछ भी कहे, मुझे आप की ड्रैसिंग सैंस बेहद पसंद है. भई, जब आप को तारीफ करनी ही थी तो पीठ पीछे बुराई क्यों की और अगर सच में मन में नफरत थी तो फिर यह तारीफ क्यों? अब आप ही बताएं कि है न यह सोचने वाली बात?

सलाह लेंगी पर मन की करेंगी:

‘‘अच्छा मांजी मैं व्यायाम क्लास के लिए कहां जाऊं सरकार नगर या बगल वाली बिल्डिंग में?’’

मान लें कि मांजी ने कहा सरकार नगर, लेकिन तब भी वे पति से पूछेंगी, ‘‘आप को क्या लगता है मुझे व्यायाम क्लास के लिए कहां जाना चाहिए?’’

माना पति ने भी कहा सरकार नगर. पर 2 लोगों से एक सा जवाब पाने के बाद भी उन के दिल को तसल्ली नहीं मिलती. अपनी 2-4 सहेलियां से भी यही सवाल पूछेंगी और आखिर में कहेंगी, ‘‘मैं सोच रही हूं बगल वाली बिल्डिंग ठीक रहेगी. सरकार नगर वाली क्लास में बाकी सुविधाएं तो ठीक हैं, लेकिन वह घर से थोड़ा दूर है.’’

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श्रीमतीजी, जब आप को अपने मन की करनी ही थी तो लोगों की सलाह क्यों ली?

खाएंगी भी मोटापे से भी डरेंगी:

‘‘बस…बस थोड़ा ही देना’’  ‘‘अरे यह ज्यादा है थोड़ा कम करो’’, ‘‘चलो आप कह रही हैं तो चख ही लेती हूं’’, ‘‘इतना काफी है ज्यादा खाऊंगी. तो मोटी हो जाऊंगी.’’ जब भी खानेखिलाने की बात होती है महिलाएं अकसर इन जुमलों का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन खाती जरूर हैं. इतना ही नहीं, खाने की सामग्री थोड़ाथोड़ा कहतेकहते अधिक भी हो जाती है और किसी को पता भी नहीं चलता. उन्हें भी नहीं.

अगर वाकई में उन्हें नहीं खाना है तो इतनी सारी बातें कहने के बजाय एक साधारण सा न भी कह सकती हैं.

5 मिनट कहेंगी सजने में घंटों लगा देंगी:

‘‘बस 5 मिनट में रैडी हो कर आई’’, ‘‘हां…हां… मैं तैयार हूं बस 3 मिनट’’, ‘‘बस आ ही रही हूं.’’ महिलाओं के मुंह से ये वाक्य तब सुनने को मिलते हैं जब वे तैयार हो कर कहीं जाने के मूड में होती हैं. पूछने पर हर बार कहती हैं कि बस ‘‘5 मिनट’’ और उन के ये 5 मिनट 5 से 10, 10 से 15, 15 से 20 बढ़ते जाते हैं. हैरान करने वाली बात तो यह है कि तैयार होने में 30 मिनट से भी अधिक समय लगाने के बावजूद कुछ न कुछ बाकी ही रहता है. इस का खुलासा तब होता है जब कोइ उन्हें कहता है कि मिसेज शर्मा, आप बहुत खूबसूरत नजर आ रही है और वे जवाब में कहती हैं, ‘‘क्या खूबसूरत. मैं तो अच्छी तरह से तैयार भी नहीं हो पाई, शर्माजी को आने की जल्दी जो पड़ी थी.’’ क्यों यह भी सच है न?

साथी को बदलेंगी फिर बदलाव से चिढ़ेंगी:

हमसफर भले कितना भी अच्छा क्यों न हो, महिलाओं के लिए वह कभी परफैक्ट नहीं होता है. बारबार टोक कर वे उसे हमेशा सुधारने में लगी रहती हैं. ‘‘भई, पार्टी में कभी आगे बढ़ कर आप भी लोगों से बात कर लिया करो,’’ ‘‘आप कभी खुद शौपिंग पर जा कर हमारे लिए कुछ नहीं लाते हो.’’

बेचारे पति कई बार ये ताने सुनने के बाद खुद को बदल लेते हैं. तब वही पत्नियां उन से कहती हैं, ‘‘पार्टी में तुम्हें लोगो से मिलने की बड़ी जल्दी होती है’’, ‘‘यह अपने मन से क्या उठा लाए? जब शौपिंग करनी नहीं आती है तो करते क्यों हो?’’ अब आप ही बताएं कुसूरवार कौन है?

शौपिंग के लिए हर वक्त रहेंगी रैडी:

‘‘मैं औनलाइन शौंपिंग में यकीन नहीं रखती,’’  कहने वाली महिलाएं को अगर इंटरनैट पर कोई काम करते वक्त साड़ी, सूट या ज्वैलरी का विज्ञापन दिख जाए, तो क्लिक कर के एक बार उसे देखती जरूर हैं. भई, अगर खरीदना नहीं है तो देखना क्यों? कुछ कहती हैं, ‘‘मैं तो बस फलां मौल से शौपिंग करती हूं.’’ लेकिन अगर पता चल जाए कि पास में ज्वैलरी की नई शौप खुली है तो देखने जरूर पहुंच जाती हैं. खरीदें या न खरीदें यह बाद की बात है.

‘‘मैं तो बस संडे को शौपिंग करती हूं.’’ ऐसा कहने वाली महिलाओं की भी कोई कमी नहीं है, लेकिन यह भी बस कहने की बात है. कुछ दिनों बाद वे खुद कहती हैं, ‘‘सोच रही हूं मंडे को शौपिंग पर चली जाऊं, घर में अकेली बैठ कर क्या करूंगी?’’

कहने का मतलब बस यही है कि महिलाएं किसी भी स्थिति में और कहीं भी शौपिंग के लिए तैयार रहती हैं.

हर बात को ले कर रहती हैं कन्फ्यूज्ड:

‘‘जानू शादी में क्या पहनूं, लहंगासाड़ी या फिर घाघराचोली’’, ‘‘मांजी नास्ते में क्या बनाऊं डोसा या ढोकला’’, ‘‘क्या करूं यार समझ नहीं पा रही पार्टी में जाऊं या नहीं.’’ बात छोटी हो या बड़ी, फैसले को ले कर महिलाएं हमेशा कन्फ्यूज्ड रहती हैं. ‘करूं या न करूं, जाऊं या नहीं. क्या पहनूं, क्या नहीं खाऊं या न खाऊं’ जैसी तमाम बातें महिलाओं से जुड़ी होती हैं, लेकिन फैसले को ले कर वे हमेशा हां, न में ही उलझी रहती हैं. मजेदार बात यह है कि महिलाएं जिन बातों को ले कर उलझन में रहती हैं, उन को छोड़ कर कुछ तीसरा ही करती हैं.

लड़ेंगी भी रोएंगी भी:

यह कहना गलत नहीं होगा कि पत्नियां पतियों के सामने अपने आंसुओं का इस्तेमाल तलवार की तरह करती हैं, जिन्हें देख कर बेचारे पति खुद घुटने टेक देते हैं. मजेदार बात तो तब होती है जब गलती खुद पत्नी की होती है, लेकिन वे पति पर बरस पड़ती हैं और आखिर में आंसू बहा कर पति को यों एहसास दिलाती हैं जैसे गलती उन की है. बेचारे पति भी कुछ समझ नहीं पाते. पत्नी की आंखों में आंसू देख कर सौरी बोल कर मामले को रफादफा कर देते हैं और पत्नियां मन ही मन मुसकराती हैं. न जानें वे ऐसी क्यों हैं?

हर हाल में कहेंगी मैं ठीक हूं:

‘‘आप को मेरी कोई फ्रिक नहीं है’’, ‘‘कल से मेरी तबीयत खराब है. पर आप को क्या’’, ‘‘मेरा सिर दर्द से फटा जा रहा है, लेकिन आप को क्या.’’  जैसी न जानें कितनी बातें हैं, जो पत्नियां अपने पति से अकसर गुस्से में कहती हैं खासकर तब जब पति उन का हालचाल उन से न पूछे. लेकिन पत्नियों के तानों के बाद जब कभी पति पत्नी से पूछता है कि अब दर्द कैसा है या तबीयत कैसी है  तो पत्नी कहती है कि मैं ठीक हूं, फिर चाहे दर्द ज्यों का त्यों क्यों न हो. अब आप ही बताएं जब ठीक ही थी तो पति को इतनी बातें सुनाने की क्या जरूरत थी.

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नाराज भी रहेंगी फिक्र भी करेंगी:

चाहे पति आसमान से चांद ही क्यों न ले आएं, लेकिन पत्नियां हमेशा उन से नाराज ही रहती हैं. लेकिन यह भी सच है कि  उन की नाराजगी में फ्रिक भी छिपी होती है. नाराजगी के चलते वे भले फोन लगा कर आप से प्यार भरी बातें न करें, लेकिन नाराजगी के अंदाज में आप की खैरियत का जायजा ले ही लेती हैं. इतना ही नहीं, अपनी नाराजगी को वे हमेशा एक ओर रखती हैं और पति की चायपानी, टिफिन जैसी जरूरतों को एक तरफ, कभी वे अपनी नाराजगी में पति का नुकसान नहीं करती हैं. अब आप ही बताएं क्या वे ऐसी नहीं हैं?

पति के वर्कहोलिज्म को समझना है जरुरी

भावना शाह का विवाह एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत ऐग्जीक्यूटिव से हुआ था, जो 2 साल से अधिक नहीं चला. वजह थी पति का काम से अत्यधिक प्यार. अपने वर्कहोलिक पति से दुखी भावना 16 घंटे अकेले गुजारती थी, क्योंकि उस का पति आधी रात को घर आता था. उस की जिंदगी में न कोई उत्साह रहा था, न रोमांस के लिए समय बचा था. इस कारण उन की सैक्स लाइफ पूरी तरह से प्रभावित हो रही थी. भावना चाहती थी कि कुछ घंटे तो कम से कम पति के साथ बिताए और इसीलिए उस ने अपनी नौकरी भी छोड़ी थी ताकि दोनों की व्यस्तता उन के वैवाहिक जीवन में कड़वाहट न घोल दे.

हफ्ते के 5 दिन मुश्किल से दोनों में कुछ मिनट बात हो पाती और शनिवार, रविवार घर के किसी काम, मेहमानों की आवभगत में गुजर जाते. तब भावना ने तंग आ कर अपने पति से तलाक ले लिया. हालांकि तलाक लेना समस्या का समाधान नहीं है, पर पति की हर समय काम करने की आदत से अधिकांश पत्नियां परेशान रहती हैं. वर्कहोलिक पति वे होते हैं, जिन के लिए उन का काम सब से पहले होता है और उस के सामने पूरा परिवार या अन्य सामाजिक सरोकार गौण होता है. ऐसे पति की पत्नी उस के साथ के लिए तरसती रहती है और वह काम में डूबा रहता है वर्कहोलिक पति की पत्नी अकसर तनाव में रहती है या पति का साथ न मिल पाने की वजह से हर समय चिड़चिड़ी रहती है. बातबात पर लड़ाई करना उस की आदत बन जाता है, जिस से चिढ़ कर पति और देर तक घर से बाहर रहने लगता है.

‘‘मैं अपने पति की हर समय काम में डूबे रहने की आदत से इस कदर परेशान हो गई थी कि कभीकभी तो मुझे लगता था कि जैसे मैं शोकेस में रखी कोई चीज हूं, जिसे 5-10 मिनट के लिए मेरे पति नजर उठा कर देख लेते हैं. वे घर में होते तब भी मैं उन से बात न कर पाने के कारण बोरियत महसूस करती. कितनी ही छोटीछोटी बातें मैं उन से करना चाहती, पर उन के पास टाइम ही कहां था मेरी बातोें के लिए.लड़ाईझगड़ा करने का भी जब उन पर कोई असर नहीं हुआ तो मुझे एहसास हुआ कि वे भी टाइम इज मनी के इस दौर का शिकार हैं. मैं ने धीरेधीरे जब उन के वर्कहोलिज्म को समझना शुरू किया तो मुझे उन का काम करना अब उतना बुरा नहीं लगता, बल्कि अब मैं उन्हें काम में सहयोग देने की कोशिश भी करती हूं,’’ यह कहना है हाउसवाइफ शालू का.

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मैरिड टू वर्क

आज के समय में हम अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने में इतने व्यस्त हैं कि हमारी सारी भावनात्मक ऊर्जाएं काम की ओर लगी हैं. हम काम के प्रति इतने आसक्त हो जाते हैं कि अपने निजी संबंधों के बारे में सोचना तक भूल जाते हैं. काम इस तरह हावी हो जाता है कि यह भी याद नहीं रहता कि पत्नी भी साथ व समय चाहती है. मैरिड टू वर्क की वजह से कई युगलों का वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ जाता है दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल के मनोविज्ञान विभाग की सीनियर कंसल्टैंट डा. स्वाति कश्यप का कहना है, ‘‘अगर आप का पति वर्कहोलिक है, तो उसे इस बात के लिए ताना देने या उस से लड़ने के बजाय उस के साथ बैठ कर बातचीत करें. फिर ऐसा समाधान ढूंढ़ें, जो आप दोनों के लिए उपयुक्त हो. जब बात करने बैठें तो आमनेसामने बैठने के बजाय साथसाथ बैठें और मैं या तुम के बजाय हम का प्रयोग करें. बात करते हुए अपने पति को उन की इस आदत के लिए दोष न दें, न ही अपने प्रश्नों से उन्हें आहत करने की कोशिश करें. आप कह सकती हैं कि उन का साथ आप को अच्छा लगता है और आप उन के साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहती हैं.’’

स्थिति का पता लगाएं

सब से पहले पति के वर्कहोलिक होने के कारण को समझना जरूरी है. क्या यह व्यवहार स्थायी है या कुछ समय के लिए? हो सकता है पति को प्रोमोशन मिलने वाला हो और इस के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही हो या किसी प्रोजैक्ट की डैडलाइन हो या फिर उन के बौस का दबाव उन पर ज्यादा हो. बौस को खुश करने और उन की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए वे काम में डूबे रहते हों. यह देखें कि किसी एक महीने या त्योहारों के समय वे ज्यादा काम करते हैं क्या? अगर ऐसा है तो यह स्थिति अस्थायी हो सकती है. यह समझने का प्रयास करें कि वे क्या सचमुच काम को ले कर गंभीर हैं या झगड़ालू बीवी से तंग आ कर ज्यादा समय औफिस में बिताते हैं. जब पति को घर में सुकून नहीं मिलता है, तो वह जल्दी घर आने से कतराता है. अगर पत्नी उस के वर्कहोलिज्म का कारण है तो समाधान मिलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी. अगर सचमुच पति को काम की लत है और वे आप को नजरअंदाज करने या आप से बचने के लिए काम में नहीं डूबे रहते तो यह स्वीकार कर लें कि आप अपने पति को नहीं बदल सकती हैं. आप स्वयं को बदल सकती हैं. आप के व्यवहार के बदले में आप के पति में परिवर्तन आ सकता है.

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पति के काम की कद्र करें:

अगर आप के पति ही अकेले कमाने वाले हैं और उन पर पूरे परिवार का दायित्व है, तो यह समझना आवश्यक है कि उन का काम उन के लिए कितना महत्त्वपूर्ण है. वे आप की और परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही दिनरात मेहनत करते हैं. अगर आप उन के काम में सहयोग दे सकती हैं तो दें, लेकिन उन्हें उलाहने देते हुए परेशान न करें. दिन में 1-2 बार फोन कर के उन का हालचाल पूछें ताकि उन्हें एहसास हो कि आप उन की चिंता करती हैं और उन के काम की कद्र भी. काम शेयर करें: अगर पति औफिस के काम में उलझे रहते हैं, तो घर के अन्य कामों को करने के लिए उन पर जोर न डालें. घर के अन्य दायित्व अपने ऊपर ले लें ताकि वे निश्चिंत हो कर काम कर सकें.

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पानी या बिजली का बिल आदि जमा करने या घर के लिए खरीदारी का काम अपने हाथ में ले कर उन के काम को शेयर करें. आप के इस सहयोग को वे समझेंगे और आप के लिए समय निकालने का प्रयास अवश्य करेेंगे. घरपरिवार या बच्चों की छोटीछोटी समस्याओं का समाधान खुद कर लें. पति को परेशान न करें. घर का माहौल सुखद बनाएं: अकसर पत्नी के तानों व हर समय बड़बड़ाने की आदत से परेशान हो कर पति काम को उस से दूर रहने का जरिया बना लेता है. अगर घर में शांति का माहौल नहीं होता तो उस का घर आने का मन नहीं करता. घर का वातावरण सुकून भरा हो और अपनेपन की खुशबू उस में बहती हो, ऐसा करना पत्नी का दायित्व होता है. अगर घर में उसे प्यार मिलेगा तो वह घर आने के लिए लालायित रहेगा. कोई हौबी अपनाएं : अगर पति के लिए इतना काम करना अनिवार्य है, तो अपने समय को काटने के लिए किसी हौबी को अपनाएं. किताबें पढ़ें, अपने दोस्तों का दायरा बढ़ाएं. कुछ ऐसा करें, जिस में आप को खुशी मिले. इस से आप पति को ताने देने से भी बच जाएंगी और कुछ रचनात्मक काम करने का भी मौका मिलेगा. फिर जितना भी समय आप साथ होंगे, वह दोष देने व शिकायतें करने में ही नहीं बीतेगा.

तो हमेशा रहेगा 2 बहनों में प्यार

‘‘वाह इस गुलाबी मिडी में तो अपनी अमिता शहजादी जैसी प्यारी लग रही है,’’ मम्मी से बात करते हुए पापा ने कहा तो नमिता उदास हो गई.

अपने हाथ में पकड़ी हुई उसी डिजाइन की पीली मिडी उस ने बिना पहने ही अलमारी में रख दी. वह जानती है कि उस के ऊपर कपड़े नहीं जंचते जबकि उस की बहन पर हर कपड़ा अच्छा लगता है. ऐसा नहीं है कि अपनी बड़ी बहन की तारीफ सुनना उसे बुरा लगता है. मगर बुरा इस बात का लगता है कि उस के पापा और मम्मी हमेशा अमिता की ही तारीफ करते हैं.

नमिता और अमिता 2 बहनें थीं. बड़ी अमिता थी जो बहुत ही खूबसूरत थी और यही एक कारण था कि नमिता अकसर हीनभावना का शिकार हो जाती थी. वह सांवलीसलोनी थी. मांबाप हमेशा बड़ी की तारीफ करते थे.

खूबसूरत होने से उस के व्यक्तित्व में एक अलग आकर्षण नजर आता था. उस के अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ गया था. बचपन से खूब बोलती थी. घर के काम भी फटाफट निबटाती, जबकि नमिता लोगों से बहुत कम बात करती थी.

मांबाप उन के बीच की प्रतिस्पर्धा को कम करने के बजाय अनजाने ही यह बोल कर बढ़ाते जाते थे कि अमिता बहुत खूबसूरत है. हर काम कितनी सफाई से करती है, जब कि नमिता को कुछ नहीं आता. इस का असर यह हुआ कि धीरेधीरे अमिता के मन में भी घमंड आता गया और वह अपने आगे नमिता को हीन सम  झने लगी.

नतीजा यह हुआ कि नमिता ने अपनी दुनिया में रहना शुरू कर दिया. वह पढ़लिख कर बहुत ऊंचे ओहदे पर पहुंचना चाहती थी ताकि सब को दिखा दे कि वह अपनी बहन से कम नहीं. फिर एक दिन सच में ऐसा आया जब नमिता अपनी मेहनत के बल पर बहुत बड़ी अधिकारी बन गई और लोगों को अपने इशारों पर नचाने लगी.

यहां नमिता ने प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप दिया इसलिए सफल हुई. मगर कई बार ऐसा नहीं भी होता है कि इंसान का व्यक्तित्व उम्रभर के लिए कुंद हो जाता है. बचपन में खोया हुआ आत्मविश्वास वापस नहीं आ पाता और इस प्रतिस्पर्धा की भेंट चढ़ जाता है.

अकसर 2 सगी बहनों के बीच भी आपसी प्रतिस्पर्धा की स्थिति पैदा हो जाती है. खासतौर पर ऐसा उन परिस्थितियों में होता है जब मातापिता अपनी बेटियों का पालनपोषण करते समय उन से जानेअनजाने किसी प्रकार का भेदभाव कर बैठते हैं. इस के कई कारण हो सकते हैं.

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किसी एक बेटी के प्रति उन का विशेष लगाव होना: कई दफा मांबाप के लिए वह बेटी ज्यादा प्यारी हो जाती जिस के जन्म के बाद घर में कुछ अच्छा होता है जैसे बेटे का जन्म, नौकरी में तरक्की होना या किसी परेशानी से छुटकारा मिलना. उन्हें लगता है कि बेटी के कारण ही अच्छे दिन आए हैं और वे स्वाभाविक रूप से उस बच्ची से ज्यादा स्नेह करने लगते हैं.

किसी एक बेटी के व्यक्तित्व से प्रभावित होना:

हो सकता है कि एक बेटी ज्यादा गुणी हो, खूबसूरत हो, प्रतिभावान हो या उस का व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली हो, जबकि दूसरी बेटी रूपगुण में औसत हो और व्यक्तित्व भी साधारण हो. ऐसे में मांबाप गुणी और सुंदर बेटी की हर बात पर तारीफ करना शुरू कर देते हैं.

इस से दूसरी बेटी के दिल को चोट लगती है. बचपन से ही वह एक हीनभावना के साथ बड़ी होती है. इस का असर उस के पूरे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है.

बहनों के बीच यह प्रतिस्पर्धा अकसर बचपन से ही पैदा हो जाती है. बचपन में कभी रंगरूप को ले कर, कभी मम्मी ज्यादा प्यार किसे करती है और कभी किस के कपड़े/खिलौने अच्छे हैं जैसी बातें प्रतियोगिता की वजह बनती हैं. बड़ा होने पर ससुराल का अच्छा या बुरा होना, आर्थिक संपन्नता और जीवनसाथी कैसा है जैसी बातों पर भी जलन या प्रतिस्पर्धा पैदा हो जाती है.

बहने जैसेजैसे बड़ी होती हैं वैसेवैसे प्रतिस्पर्धा का कारण बदलता जाता है. यदि दोनों एक ही घर में बहू बन कर जाएं तो यह प्रतिस्पर्धा और भी ज्यादा देखने को मिल सकती है.

पेरैंट्स न करें भेदभाव

अनजाने में मातापिता द्वारा किए भेदभाव के कारण बहनें आपस में प्रतिस्पर्धा करने लगती हैं. उन के स्वभाव में एकदूसरे के प्रति ईर्ष्या और द्वेष पनपने लगता है. यही द्वेष प्रतिस्पर्धा के रूप में सामने आता है और एकदूसरे से अपनेआप को श्रेष्ठ साबित करने का कोई अवसर नहीं छोड़तीं.

इस के विपरीत यदि सभी संतान के साथ समान व्यवहार किया गया हो और बचपन से ही उन के मन में बैठा दिया जाए कि कोई किसी से कम नहीं है तो उन के बीच ऐसी प्रतियोगिता पैदा नहीं होगी. यदि दोनों को ही शुरू से समान अवसर, समान मौके और समान प्यार दिया जाए तो वे प्रतिस्पर्धा करने के बजाय हमेशा खुद से ज्यादा अहमियत बहन की खुशी को देंगी.

40 साल की कमला बताती हैं कि उन की 2 बेटियां हैं. उन की उम्र क्रमश: 7 और 5 साल है. छोटीछोटी चीजों को ले कर अकसर वे आपस में   झगड़ती हैं. उन्हें हमेशा यही शिकायत रहती है कि मम्मी मु  झ से ज्यादा मेरी बहन को प्यार करती हैं.

दरअसल, इस मामले में दोनों बेटियों के बीच मात्र 2 साल का अंतर है. जाहिर है जब छोटी बेटी का जन्म हुआ होगा तो मां उस की देखभाल में व्यस्त हो गई होंगी. इस से उस की बड़ी बहन को मां की ओर से वह प्यार और अटैंशन नहीं मिल पाया होगा जो उस के लिए बेहद जरूरी था.

जब 2 बच्चों के बीच उम्र का इतना कम फासला हो तो दोनों पर समान रूप से ध्यान दे पाना मुश्किल हो जाता है.

इस तरह लगातार बच्चे होने पर बहुत जरूरी है कि उन दोनों के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए. नए शिशु की देखभाल से जुड़ी ऐक्टिविटीज में अपने बड़े बच्चे को विशेष रूप से शामिल करें. छोटे भाई या बहन के साथ ज्यादा वक्त बिताने से उस के मन में स्वाभाविक रूप से अपनत्व की भावना विकसित होगी.

रोजाना अपने बड़े बच्चे को गोद में बैठा कर उस से प्यार भरी बातें करना न भूलें. इस से वह खुद को उपेक्षित महसूस नहीं करेगा.

प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लें

आपस में प्रतिस्पर्धा होना गलत नहीं है. कई बार इंसान की उन्नति/तरक्की या फिर कहिए तो उस के व्यक्तित्व का विकास प्रतिस्पर्धा की भावना के कारण ही होता है. यदि एक बहन पढ़ाई, खेलकूद, खाना बनाने या किसी और तरह से आगे है या ज्यादा चपल है तो दूसरी बहन कहीं न कहीं हीनभावना का शिकार होगी. उसे अपनी बहन से जलन होगी.

बाद में कोशिश करने पर वह किसी और फील्ड में ही भले, लेकिन आगे बढ़ कर जरूर दिखाती है. इस से उस की जिंदगी बेहतर बनती है. इसलिए प्रतिस्पर्धा को हमेशा सकारात्मक रूप में लेना चाहिए.

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रिश्ते पर न आए आंच

अगर दोनों के बीच प्रतिस्पर्धा है तो यह महत्त्वपूर्ण है कि आप उसे टैकल कैसे करती हैं. आप का उस के प्रति रवैया कैसा है. प्रतिस्पर्धा को सकारात्मक रूप में लीजिए और इस के कारण अपने रिश्ते को कभी खराब न होने दीजिए. याद रखिए 2 बहनों का रिश्ता बहुत खास होता है. आज के समय में वैसे भी ज्यादा भाईबहन नहीं होते हैं.

यदि आप का बहन से रिश्ता खराब हो जाए तो आप के मन में जो खालीपन रह जाएगा वह कभी भर नहीं सकता क्योंकि बहन की जगह कभी भी दोस्त या रिलेटिव नहीं ले सकते. बहन तो बहन होती है. इसलिए रिश्ते में पनपी इस प्रतिस्पर्धा को कभी भी इतना तूल न दें कि वह रिश्ते पर चोट करे.

शादी के लिए हां करने से पहले जाननी जरुरी हैं ये 5 बातें

‘शादी,’ यह शब्द सुनते ही किसी के चेहरे पर मुसकराहट आ जाती है तो किसी के चेहरे पर टैंशन. कई लोगों के साथ ये दोनों चीजें होती हैं. मतलब वे कभी खुश होते हैं तो कभी चिंता में पड़ जाते हैं. एक तरफ नए रिश्ते की एक्साइटमैंट होती है तो दूसरी तरफ जिम्मेदारियों का एहसास. कहते हैं न ‘शादी का लड्डू, जो खाए पछताए जो न खाए वह भी पछताए.’ भई, जब पछताना ही है तो क्यों न खा कर ही पछताया जाए. तो अब जब आप ने शादी करने का मन बना ही लिया है तो कुछ सवालों के जवाब जानना आप के लिए बेहद जरूरी हैं. चाहें आप लव मैरिज कर रही हों या फिर अरेंज.

शादी के बाद आप रोज कुछ न कुछ अपने पार्टनर के बारे में नई बातें जान सकती हैं लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो शादी से पहले ही आप दोनों को जानना जरूरी है. इन के जवाब जानने के बाद आप को यह पता चल जाता है कि आप उन से शादी कर सकती हैं या नहीं. साथ ही, इस बात का एहसास हो जाता है कि आप दोनों के लिए आने वाली लाइफ कैसी हो सकती है.

घर के काम की जिम्मेदारी

अब वह समय नहीं रहा कि किसी एक पर काम का पूरा बोझ दे दिया जाए. शादी के बाद ज्यादातर लड़ाई इसी बात की होती है कि झाड़ ूपोंछा, बरतन, कपड़े धोने और खाना बनाने का काम कौन करेगा. अगर होने वाला लाइफपार्टनर आप से यह कहता है कि वह तो पानी भी नहीं उबाल सकता, घर के काम करना तो दूर की बात है. फिर आप सोच लीजिए. अगर आप मैनेज कर सकती हैं तो इस रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन अगर आप को लगता है कि घर के कामों में उन्हें भी मदद करनी चाहिए तो यह बात उन को बता दें.

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अगर वे यह जवाब देते हैं कि वे इस के लिए तैयार हैं तब तो रिश्ते को आगे ले जाइए लेकिन अगर वे यह जताते हैं कि घर के काम की जिम्मेदारी सिर्फ औरत की है तो ऐसे रिश्ते में संभल जाना ही बेहतर है.

शादी के बाद का कैरियर

अपने कैरियर के बारे में अपने होने वाले लाइफपार्टनर से पहले ही बता दें. जैसे, आप कैरियर को ले कर काफी सीरियस और प्रोफैशनल हैं. इस के लिए आप काफी मेहनत भी कर रही हैं और शादी के बाद भी बाहर जा कर काम करना चाहती हैं. वहीं अगर शादी के बाद आप काम नहीं करना चाहतीं तो भी उन से साफसाफ बता दें. साथ ही, उन से यह भी पूछें कि आगे चल कर कैरियर प्लानिंग क्या है. अगर वे ट्रांसफर लेना चाहते हैं तो क्या आप के लिए यह पौसिबल है, यह शादी से पहले ही क्लीयर कर लेना चाहिए.

कर्ज तो नहीं

शादी के कई साल बाद अगर पता चलता है कि पार्टनर ने लाखों का कर्जा लिया है तो बसीबसाई गृहस्थी खराब हो जाती है. इसलिए उन से पहले ही पूछ लें कि क्या कोई उधार या क्रैडिट कार्ड का बड़ा बकाया बिल तो नहीं है. उन के जवाब के बाद सोचसमझ कर अगला कदम बढ़ाएं, क्योंकि आर्थिक वजह से भी बड़ेबड़े झगड़े होते हैं.

बच्चों के बारे में

आज के दौर में बहुत सारे कपल ऐसे हैं जो बच्चे पैदा नहीं करना चाहते. वे एडौप्शन या आईवीएफ को बेहतर मानते हैं. इसलिए शादी के पहले ही एकदूसरे के विचार जानना जरूरी है. क्या पता आप बच्चा चाहती हों और वे नहीं या यह भी हो सकता है कि वे बच्चा चाहते हों लेकिन आप नहीं. इसलिए इस पर खुल कर बात कर लें.

धार्मिक, राजनीतिक विचार और रिस्पैक्ट

आप दोनों एकदूसरे से अपने धार्मिक व राजनीतिक विचार शेयर करें. आजकल हर किसी की अपनी राजनीतिक विचारधारा और धार्मिक नजरिया होता है. कुछ लोग ऐसे होते हैं जो धार्मिक या नास्तिक होते हुए भी किसी और पर अपनी सोच नहीं थोपते और कुछ ऐसे भी होते हैं जो दूसरे पर बहुत ज्यादा हावी हो जाते हैं. तो आप उन के सामने अपनी बात रखिए. हो सकता है कि आप दोनों की सोच एक हो और अगर एक न भी हो तो भी उन से पूछिए कि फ्यूचर में आप दोनों एकदूसरे की विचारधाराओं का सम्मान कर पाएंगे या नहीं. क्या एकदूसरे को इस की आजादी दे पाएंगे. कहीं यह आप के बीच दूरी की वजह तो नहीं बनेगी.

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हैल्थ प्रौब्लम

वैसे तो होने वाले पार्टनर से शादी करने से पहले कोई ऐसी बात नहीं छिपानी चाहिए जिस से आगे चल कर आप दोनों के रिश्ते में दरार पड़े लेकिन आज के दौर में एक अहम सवाल का जवाब जानना बेहद जरूरी हो गया है, वह है हैल्थ प्रौब्लम. जरूरी नहीं है कि बीमारी बड़ी हो. आप दोनों को अपनी स्वास्थ्य समस्याओं पर बात कर लेनी चाहिए, भले ही वह छोटी बीमारी क्यों न हो. आप दोनों अगर मैनेज कर सकते हैं तो रिश्ते को आगे बढ़ाने में कोई बुराई नहीं है.

उफ… यह मम्मीपापा की लड़ाई

आजकल आमतौर पर घरों में कभी नौकरी को ले कर तो कभी पारिवारिक समस्याओं को ले कर कलहकलेश होता ही है. महानगरों में अकसर महिलाएं एवं पुरुष दोनों ही कामकाजी होते हैं. ऐसे में गृहस्थी की गाड़ी चलाना आसान नहीं बड़ा ही मुश्किल होता जा रहा है. आर्थिक स्थिति सुधरती है तो पारिवारिक समस्याएं आने लगती हैं. आर्थिक स्थिति ठीक नहीं तो भी गृहस्थी के खर्चों को ले कर समस्याएं हैं.

कभीकभार पतिपत्नी एकदूसरे से तंग आ कर तलाक लेने की स्थिति तक पहुंच जाते हैं. सिर्फ तलाक ही नहीं यदि पतिपत्नी एकदूसरे से ईमानदारी न रखें और ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में पड़ जाएं तो घर में युवा बच्चों के मन पर बहुत नकारात्मक असर पड़ता है. लेकिन समस्या है कि ऐसे में आखिर बच्चे जाएं कहां? क्या करें या क्या न करें?

रिश्तेदारों के कारण तलाक देने के धमकी

बैंगलुरु में रहने वाले निखिल एक सौफ्टवेयर प्रोफैशनल हैं. उन की अपनी पत्नी से घर में अकसर तूतू, मैंमैं होती रहती है. पहले तो वे पूरा दिन औफिस रहते तो यह तकरार ज्यादा नजर नहीं आती थी. किंतु जब से कोरोना फैला और वर्क फ्रौम होम हुआ यह खिचखिच बढ़ गई. समस्या यह है कि जवान बेटा जो कालेज में पढ़ता है और होस्टल में रहता है वह अब घर से औनलाइन क्लासेज कर रहा है. बेटी भी कक्षा  8 में पड़ती है, जो सारा दिन घर में रहती है.

अब यह झगड़ा अकसर बच्चों के सामने होता है. इस में खास बात यह है कि झगड़े के मुद्दे कोई बड़े खास नहीं होते हैं. छोटेछोटे काम को ले कर बहस, स्वयं को अपने पार्टनर से सुपीरियर दिखाने की होड़ और पहले दूसरा चुप हो इसलिए उसे नीचा दिखाया जाता है.

जबजब झगड़ा होता निखिल पुरानी बातें निकाल लाता और अपनी पत्नी से कहता कि तुम ने मेरी मां से झगड़ा किया, मेरी बहन को घर में आने से रोका आदि. जब वे संयुक्त परिवार में थे बच्चे बहुत छोटे थे. सासननद आदि से उस की पत्नी का सामंजस्य नहीं बैठा था. इसलिए वे अकेले रहने लगे, सो ननद एवं सास ने उन के बच्चों व उस की पत्नी से किसी भी तरह का संबंध नहीं रखा.

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बदला व्यवहार

करीब 5 वर्ष पहले ननद चाहती थी कि उस का बच्चा बैंगलुरु में पढ़ने आ रहा है तो वह निखिल के घर में ही रहे. उस की पत्नी ने इस से इनकार किया तो निखिल ने उसे तलाक देने के धमकी दी. तब से अब तक दोनों में अकसर तनातनी रहती है. उस ने मन ही मन सोच लिया कि यदि निखिल उसे इस तरह धमकाता है तो यह समझ लो कि तलाक हो ही गया. उस ने भी अपना व्यवहार बदल लिया है और दोनों के आपसी प्रेम में कमी आ गई है.

इसलिए अब झगड़े होने तो लाजिम हैं. अब तक यह बात बच्चों से छिपी थी, किंतु अब बच्चे घर हैं तो उन्हें समझ आया कि मातापिता बस जिंदगी ढो रहे हैं.

एक दिन युवा बेटे ने अपने पिता को नाराजगी दिखाई कि आप मां को तलाक देने की बात करते हैं यह भी नहीं सोचते कि छोटी बहन पर क्या असर पडे़गा? मैं तो बड़ा हो चुका हूं पर वह लोगों को क्या जवाब देगी? निश्चित रूप से उन का बेटा समझदार है जो इतनी गहरी बात कह गया.

कई बार वह स्वयं भी परेशान हो जाता है कि दोनों कैसे झगड़ा करते हैं.

एक दिन गुस्से में बोला कि आप दोनों ही बुरे हो. जब देखो झगड़ते हो और वह खाना खाते हुए बीच में ही उठ कर चला गया. इस घटना से यह तो समझ आता है कि उसे यह रोजरोज का झगड़ा पसंद नहीं.

आर्थिक तंगी में युवा बच्चों का कदम

जब से नौकरी गई, चेन्नई में रहने वाले श्रीनिवासन के घर में अकसर रुपयोंपैसों को ले कर झगड़ा होता रहता है. पहले अच्छी सोसायटी में रहते थे, बच्चे भी अच्छे स्कूल में थे. लेकिन नौकरी क्या गई, अपना घर किराए पर दे कर स्वयं कहीं दूर किराए पर रहने चले गए ताकि स्वयं के घर से अच्छा भाड़ा मिले और स्वयं कम भाड़ा दे कर कुछ रुपये बचा सकें. बच्चों का स्कूल भी बदल दिया ताकि कम फीस लगे. लेकिन मन मसोस कर जब परिवार को रहना पड़े तो घर में खटपट तो होनी ही थी.

घर में बैठे श्रीनिवासन अपनी पत्नी पर ही नजर रखते. यह क्यों कर रही हो? ऐसा क्यों नहीं किया? पत्नी भी कितना सहन करे? एक तो पैसे की तंगी, ऊपर से पति की टोकाटोकी. परेशान हो कर वह भी तूतड़ाक पर उतर आई. कभीकभार दोनों का झगड़ा इतना बढ़ जाता कि वह गुस्से में अपने बच्चों को पीट डालती.

युवा होते बच्चे बेचारे एक तरफ तो पैसों की मार सहन कर रहे थे. जहां इस उम्र में शौक पूरे किए जाते हैं, लड़कियां सजधज करती हैं वहीं श्रीनिवासन बातबात पर बच्चों को उन के खर्च के लिए ताने सुनाते. लेकिन उन के बच्चे बड़े समझदार निकले. दोनों भाईबहन ने मिल कर तय किया कि वे अपना खर्च स्वयं उठाएंगे और अपने मातापिता के झगड़ों को नजरअंदाज कर अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीएंगे बेटी तो आसपास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपने खर्च का इंतजाम करने लगी. बेटे ने एक स्टोर में पार्टटाइम नौकरी कर ली. इस से दोहरा फायदा हुआ. एक तो घर की खिचखिच से दूर रहे, दूसरा आत्मनिर्भर भी बने.

ऐक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर

पति विवेक अकसर अपने काम के सिलसिले में विदेश यात्रा पर रहता और युवा होते 2 बच्चे लड़की 10वीं कक्षा एवं बेटा 12वीं कक्षा में था. विवेक की पत्नी के लिए समस्या थी टाइम पास की सो अपनी सहेलियों के साथ किट्टी एवं डिस्को पब्स में जाया करती. युवा होते बच्चों को तो विवेक निर्देश देता कि अपना मन पढ़ाई में लगाओ और मेरी अनुपस्थिति में अपनी मां की बात सुनो.

लेकिन एक दिन जब बेटा रात को देर तक पढ़ रहा था, तो सोसायटी में नीचे वाक के लिए उतर गया. देखा उस की मां किसी गैर पुरुष के साथ गाड़ी में आई और वह पुरुष उसे सोसायटी के बाहर ड्रौप कर अपने घर चला गया. लेकिन जब बेटे ने देखा कि मां ने उस पुरुष को बाय के साथ एक किस भी किया तो उसे अपनी नजरों पर भरोसा न हुआ. लेकिन चोरी कभी छिपती नहीं.

कुछ ही दिनों में सोसायटी में उस की मां के अफेयर की खबरें फैलने लगीं. एक घर से दूसरे बात फैलते हुए वापस उन के घर तक पहुंची. विवेक को जब पता चला तो घर में तहलका मच गया. अब यदि उस की पत्नी किसी भी पुरुष से बोलती तो वह उसे शक की नजर से देखता. अकसर घर में कलहक्लेश रहता. कई बार सोसायटी के लोगों की खुसरफुसर बच्चों के भी कानों में भी पड़ती, उन्हें ताने सुनने पड़ते. सुन कर उन्हें बुरा तो बहुत लगता, अपने मातापिता पर गुस्सा भी आता, लेकिन बेटे को अपने कैरियर की फिक्र थी, वह जानता था कि यदि पढ़ाई में मन न लगाया तो उस का रिजल्ट खराब होगा.

उस के मातापिता बारबार अपने दोनों बच्चों से एकदूसरे की बुराई भी करते तो एक दिन बेटे ने कह दिया कि हमें अपनी जिंदगी जीने दो, आप दोनों आपस में निबटो. बेटा पढ़ाई करता और अपने दोस्तों के साथ कभी फिल्म देखने जाता तो कभी पार्टी कर अपना पूरा ऐंटरटेनमैंट करता. बड़े भाई की देखादेखी छोटी बहन ने भी यही रास्ता अपना लिया.

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स्वयं की जिम्मेदारी

शो बिजनैस में कार्यरत निहाल अपने क्लाइंट्स के साथ तो खूब अच्छा और ईमानदार व्यवहार रखते हैं, किंतु अपनी पत्नी के साथ वफादार नहीं. अकसर अपने बच्चों की उम्र की लड़कियों से घिरे रहने वाले निहाल अपनी पत्नी को पैर की जूती के समान समझते हैं. दोनों का लड़ाईझगड़ा इतना बढ़ गया कि अब तलाक की प्रक्रिया चालू है. जब उन के युवा बच्चों से पूछा गया कि वे किस के साथ रहना चाहेंगे तो दोनों का सहमति से एक ही जवाब था कि इन दोनों के साथ नहीं, हम कहीं भी अकेले रह लेंगे पर इन के झगड़े हमें बरदाश्त नहीं.

दरअसल, बच्चे उन्हें झगड़ते हुए देखते हुए ही बड़े हुए. न तो उन्हें अपने मातापिता से प्यार है और न ही शायद उन को. कितनी बार तो उन के झगड़ों के फलस्वरूप घर में खाना भी नहीं बनता था. कितने ही त्योहार कलहक्लेश में मने. जब गैस्ट घर पर आते तो दिखावा होता कि बहुत समृद्ध, सुशील परिवार है, लेकिन उन के जाते ही वही ढाक के तीन पात वरना बच्चों की खातिर भी कई बार परिवार में शांति रखी जाती है. लेकिन उन के मातापिता तो अपने अहम और जिद में अड़े रहे. बच्चों ने समय रहते इस कटु सत्य को समझ लिया और अपना फैसला सुना दिया.

इन सभी उदाहरणों में मातापिता के झगड़ों से बच्चे परेशान तो हुए, किंतु उन्होंने यह तय कर लिया कि वे उन के झगड़ों का असर अपने निजी जीवन पर नहीं पड़ने देंगे. उन दोनों का जैसा भी रिश्ता है वे आपस में निबटें और निभाएं. हम बच्चों को झगड़े के बीच न खींचें और हम स्वयं भी उन के झगड़ों से अपना मूड और जीवन खराब न करें.

ये बच्चे बड़े ही समझदार हैं. आखिर हमें जो जीवन मिला है वह हमारे लिए है. यदि मातापिता परिस्थितियों को देखते हुए आपस में सामंजस्य न बैठा पाएं तो यह उन की स्वयं की जिम्म्मेदारी है.

शादी के बाद होने वाली प्रौब्लम और उसके जवाब बताएं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय कामकाजी युवती हूं. 2 महीने बाद मेरी शादी होने वाली है. मु झे खाना बनाना नहीं आता जबकि टीवी धारावाहिकों में मैं ने देखा है कि बहू को खाना बनाना नहीं आने पर ससुराल के लोग न सिर्फ उस का मजाक उड़ाते हैं वरन उसे प्रताडि़त भी करते हैं. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

छोटे परदे पर प्रसारित ज्यादातर धारावाहिकों का वास्तविक जीवन से दूरदूर तक वास्ता नहीं होता. सासबहू टाइप के कुछ धारावाहिक तो इतने कपोलकल्पित होते हैं कि जागरूकता फैलाने के बजाय ये समाज में भ्रम और अंधविश्वास फैलाने का काम करते हैं. शायद ही कोई धारावाहिक हो जिस में सासबहू के रिश्ते को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया गया हो.

वास्तविक दुनिया धारावाहिकों की दुनिया से बिलकुल अलग है. आज की सासें सम झदार और आधुनिक खयाल की हैं. उन्हें पता है कि एक कामकाजी बहू को किस तरह गृहस्थ जीवन में ढालना है.

फिर भी आप अपने मंगेतर से बात कर इस बारे में जानकारी दे दें. अभी विवाह में 2 महीने बाकी भी हैं, इसलिए खाना बनाने के लिए सीखना अभी से शुरू कर दें. खाना बनाना भी एक कला है, जिस में निपुण महिला को किसी और पर आश्रित नहीं होना पड़ता, साथ ही उसे पति व बच्चों सहित घर के सभी सदस्यों का भरपूर प्यार भी मिलता है.

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साराऔफिस खाली हो चुका था पर विजित अपनी जगह पर उल झा हुआ सा सोच में बैठा था. वह बहुत देर से तन्वी को फोन करने की सोच रहा था पर जितनी बार मोबाइल हाथ में उठाता, उतनी बार रुक जाता. क्या कहेगा तन्वी से, वही जो कई बार पहले भी कह चुका है?

पिछले काफी समय से तन्वी से उस की बात नहीं हुई थी. लेकिन आज तो वह बात कर के ही रहेगा. उस ने मोबाइल फिर उठाया और नंबर मिला दिया. उधर से तन्वी की हैलो सुनाई दी.

‘‘तन्वी…’’ विजित की आवाज सुन कर तन्वी पलभर के लिए चुप हो गई. फिर तटस्थ स्वर में बोली, ‘‘हां बोलो विजित…’’

‘‘तन्वी एक बार फिर सोचो, सब ठीक हो जाएगा… इतनी जल्दबाजी अच्छी नहीं है… आखिर तुम्हें मु झ से तो कोई शिकायत नहीं है न… बाकी समस्याएं भी सुल झ जाएंगी… कुछ न कुछ हल निकालेंगे उन का… तुम वापस आ जाओ… ऐसा मत करो… ऐसा क्यों कर रही हो तुम मेरे साथ…’’ बोलतेबोलते विजित का स्वर नम हो गया था.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- थोड़ा दूर थोड़ा पास : शादी के बाद क्या हुआ तन्वी के साथ

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महंगी डिमांड्स तो हो जाएं सतर्क

फ्रैंडशिप कब किस उम्र में किससे हो जाए , कहां नहीं जा सकता. और फिर उस लम्हे से जीवन इतना खूबसूरत लगने लगता है कि अपनी इस दोस्त के लिए हम चाँद तारे तक तोड़ लाने की बात करने लगते हैं. क्योंकि विपरीत लिंग के प्रति अट्रैक्शन जो होता है. ये सही है कि आप इस रिश्ते में एकदूसरे को समझें, एकदूसरे के साथ बेहतरीन पल बिताएं, एक दूसरे की फीलिंग्स की कद्र करें, एक दूसरे से हर बात शेयर करें, एक दूसरे की मदद करें. लेकिन जब आपकी पार्टनर इस रिश्ते की आड़ में धीरेधीरे आपसे महंगे गिफ्ट्स की डिमांड करने लगे तो आपके लिए थोड़ा सतर्क होना जरूरी है, ताकि ये दोस्ती आपकी जेब पर भारी न पड़े और आप अपने पार्टनर की सच्चाई को भी जान पाएं. हम आपको बताते हैं कि जब गर्लफ्रैंड करे डिमांड तब आपको क्या करना है और किन बातों का आपको भी ध्यान रखना है.

– फ्रैंडशिप डे पर रिंग की डिमांड

गिफ्ट चाहे छोटा हो या बड़ा , वही अच्छा लगता है, जो दिल से दिया जाता है. न कि मांग कर लिया हुआ गिफ्ट. अभी आपने वैलेंटाइन डे पर ही उसे ब्रैंडेड शौपिंग करवाई थी, लेकिन अब फिर से आने वाले फ्रैंडशिप डे के लिए अगर वह रिंग की डिमांड करने लगे तो आप उसे बोलें कि रिंग तो मैं इस बार तभी दूंगा जब तुम भी इस खास दिन पर अपने हाथों से मुझे रिंग पहनाओगी, वो भी मुझसे पहले . अगर वे मान जाए तो ही उसे रिंग गिफ्ट करे, क्योंकि इस सौदे में घाटा जो नहीं है. लेकिन अगर वह साफ मना कर दे तो आपको भी बिना शर्म किए साफ इंकार कर देना चाहिए. क्योंकि दोस्ती सिर्फ वन वे नहीं बल्कि टू वे पर चलती है.

– आई फोन की जिद

आप दोनों का शौपिंग पर जाने का प्लान बना हो और इस प्लान को बनाने का पूरा क्रेडिट आपकी गर्लफ्रैंड को जाता हो. क्योंकि उसने ही आप पर शौपिंग के लिए जोर जो डाला है . तो आप पहले से ही थोड़ा सावधान हो जाएं. क्योंकि शौपिंग मतलब आपकी पॉकेट पर बोझ पड़ना. ऐसे में अगर वे जबरदस्ती आपसे आई फोन लेने की जिद करने लगे ये बोलकर कि मैं पैसे व कार्ड लाना भूल गई हूं, इसलिए अभी तुम अपने कार्ड से पेमेंट कर दो, बाद में मैं चुका दूंगी तो आप स्मार्ट बनकर साफ मना कर दें कि मैं कार्ड ही नहीं लाया. इसलिए तुम्हें नहीं दिला सकता. क्योंकि अगर अभी आपने पेमेंट कर दी, तो समझ जाएं कि आपकी जेब पर डांका डल गया है. भले ही वो आपके न करने पर आपसे मुंह बना लें तो बनाने दें. क्योंकि पैसों के बल पर कोई भी रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता है.

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– अपनी हर जरूरतों के लिए आप पर निर्भरता

अगर फ्रैंडशिप होने के बाद से वह अपनी हर जरूरतों के लिए आप पर निर्भर है, तो समझ जाएं कि आपसे रिश्ता सिर्फ पैसों के लिए ही रखा हुआ है. कभी फोन रिचार्ज, तो कभी कैब का बिल , तो कभी महंगे रेस्टोरेंट्स में जाने का शौक , यहां तक कि प्यार का सहारा लेकर हर महीने आपसे मोटी रकम वसूल करना. अगर ऐसा आपकी गर्लफ्रैंड की आदत में शामिल हो गया है तो पहले तो उसे प्यार से समझाने की कोशिश करें , लेकिन फिर भी समझ न आए तो ब्रेकअप में ही समझदारी है. क्योंकि अगर ब्रेकअप नहीं किया तो आप सिर्फ लुटेंगे ही , क्योंकि प्यार जो नहीं है इस रिश्ते में.

– स्मार्ट वाच की डिमांड

हो सकता है कि आपकी गर्लफ्रैंड के फ्रैंड्स के पास स्मार्ट वाच या फिर ब्रैंडेड कंपनी की वाच हो. लेकिन उसके पास नहीं. ऐसे में वह रोज आप पर इसे दिलवाने का दबाव बनाए. यहां तक कि अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए आपके साथ इतना अधिक मीठा व्यवहार करें कि आप भी सोच में पड़ जाएं. ऐसे में आप उसकी मीठीमीठी बातों में आने से बेहतर आप समझदारी से काम लें. उसे बोलें कि अभी ये मेरे बजट में नहीं है. इसलिए नहीं दिलवा पाउँगा. आगे भी इस तरह की महंगी चीजें दिलवाने का वादा न करें. समझदार के लिए इस तरह के जवाब ही काफी होते हैं.

ध्यान दें –

– शोऑफ़ से बचें

अकसर लड़कों की यह आदत होती है कि वे अपनी गर्लफ्रैंड पर टशन ज़माने के लिए उन पर कभी अपने पैसों का टशन दिखाते हैं तो कभी उन्हें महंगेमहंगे रेस्टोरेंट्स में ले जाते हैं. जिससे वे अपने बोयफ़्रेंड को काफी अमीर समझ कर उन्हें लूटने लगती हैं . जो बाद में उनकी परेशानी का कारण बन जाता है. क्योंकि रोजरोज की डिमांड्स पूरी करना किसी के बस में नहीं होता. इसलिए शुरुवात से ही रिश्ते में शोऑफ को जगह न दें. ताकि आगे ये रिश्ता बोझ न बने.

– उसे भी मौका दे

अगर आप अपनी फ्रैंडशिप को ये देखने के लिए आजमाना चाहते हैं कि ये प्यार सच्चा है या फिर सारा पैसों का खेल है तो आप अपनी गर्लफ्रैंड को भी खर्चा करने का मौका दें. हर बात में आप आगे आकर उसे पैसे देने से न रोकें. क्योंकि इससे उसकी असलियत सामने नहीं आ पाएगी. आप अगर रेस्टोरेंट में गए हैं और लंच या डिनर के बाद जब बिल देने की बारी आए तो आप ये कहकर भी उससे पैसे निकलवा सकते हैं कि यार सोरी मैं तो जल्दीजल्दी में पर्स ही लाना भूल गया. ऐसे में अगर वे खुशीखुशी ये कहकर दे दे कि कोई बात नहीं डिअर कभी तुम तो कभी मैं , . तो समझ जाएं कि रिश्ता थोड़ा सच्चा है और अगर मुंह बनाए और मजबूरी में बिल पे करने के बाद आपसे ठेडाठेडा बोले तो समझ जाएं कि वे सिर्फ आपके पैसों पर ऐश करना चाहती है.

– आपकी कमाई सिर्फ आपकी ही

हो सकता है कि आपका घर परिवार भी अच्छा हो और आप अच्छी जौब भी करते हो. लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं कि आपकी कमाई को बिना सोचेसमझे आपकी गर्लफ्रैंड यूं ही बर्बाद करे. इसलिए आपको कब, कहा, कितना खर्चा करना है, इस बात का निर्णय आपको लेना होगा. और जब भी आपकी गर्लफ्रैंड बोले कि यार तुम तो कमाते हो, फिर भी इतनी कंजूसी किस बात की, तो आप उसे बोलें कि ये मेहनत की कमाई है और जब जरूरत होती है तो मैं खर्च करता ही हूँ. अगर मैं आज कमाया हुआ आज ही उड़ा दूंगा तो भविष्य के लिए क्या बचाऊंगा. इससे उसे समझ आ जाएगा कि आपके पैसों को खर्च करवाना इतना आसान नहीं.

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– समझें जरूरत को भी

जरूरी नहीं कि हर गर्लफ्रैंड लूटने वाली ही हो और हर बार डिमांड लूटने के मकसद से ही की गई हो. क्योंकि कई बार जरूरत के कारण भी उसे आपसे कुछ मांगना पड़ सकता है. ऐसे में आपकी भी ये जिम्मेदारी है कि आप उसके तुरंत बोलते ही न न कर दें, बल्कि उसकी बात को सुनें व जरूरत को समझें. अगर आपको लगता है कि उसकी मांग जायज है और आप उसे अफोर्ड कर सकते हैं तो हेल्प जरूर करें. क्योंकि अगर आप ज़रूरत के समय भी जान बूझकर मुंह मोड़ लेंगे तो ये एक मजबूत रिश्ते के लिए सही नहीं होगा.

मेरे पति ‘मम्माज बौय’ हैं, जिसके कारण मैं बहुत परेशान हूं?

सवाल-

28 वर्षीय महिला हूं. पिछले साल ही शादी हुई थी. शादी के बाद ससुराल आई तो 2-3 दिन में ही सम झ गई कि पति ‘मम्माज बौय’ हैं. वे अपनी मां से पूछ कर ही कोई काम करते हैं और मेरी एक भी बात नहीं मानते. खाने से ले कर परदे के रंग तक का चयन मेरी सास ही करती हैं और मेरी बातों को जरा भी अहमियत नहीं देतीं. इस से मैं काफी तनाव में रहती हूं. सम झ नहीं आ रहा क्या करूं?

जवाब-

अभी आप की नईनई शादी हुई है. आप के पति सम झदार हैं और इसीलिए वे नहीं चाहते होंगे कि अचानक मां को नजरअंदाज कर आप की बातों को उन के सामने ज्यादा तवज्जो दें. इस से घर में अनावश्यक ही तनाव भरा माहौल हो जाएगा.

आप को धीरेधीरे समय के साथ घर में अपनी जगह बनानी चाहिए. बेहतर होगा कि आप अपनी सास को सास नहीं मां सम झें. उन के साथ खाली वक्त में साथ बैठें, टीवी देखें, शौपिंग करने जाएं, उन की पसंद की ड्रैस खरीद कर उन्हें दें. घर के कामकाज में उन की सहायता करें.

जब आप की सास को यह यकीन हो जाएगा कि अब आप अच्छी तरह से गृहस्थी संभाल सकती हैं, तो धीरेधीरे वे आप को पूरी जिम्मेदारी सौंप देंगी.

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नेहा की नई-नई शादी हुई है. वह विवाह के बाद जब कुछ दिन अपने मायके रहने के लिए आई तो उसे अपने पति से एक ही शिकायत थी कि वह उस का पति कम और ‘मदर्स बौय’ ज्यादा है. यह पूछने पर कि उसे ऐसा क्यों लगता है? उस का जवाब था कि वह अपनी हर छोटीबड़ी जरूरत के लिए मां पर निर्भर है. वह उस का कोई काम करने की कोशिश करती तो वह यह कह कर टाल देता कि तुम से नहीं होगा, मां को ही करने दो.

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मेरी सास की रोकटोक के कारण मैं परेशान हो गई हूं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 25 वर्षीय महिला हूं. हाल ही में शादी हुई है. पति घर की इकलौती संतान हैं और सरकारी बैंक में कार्यरत हैं. घर साधनसंपन्न है. पर सब से बड़ी दिक्कत सासूमां को ले कर है. उन्हें मेरा आधुनिक कपड़े पहनना, टीवी देखना, मोबाइल पर बातें करना और यहां तक कि सोने तक पर पाबंदियां लगाना मु झे बहुत अखरता है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

आप घर की इकलौती बहू हैं तो जाहिर है आगे चल कर आप को बड़ी जिम्मेदारियां निभानी होंगी. यह बात आप की सासूमां सम झती होंगी, इसलिए वे चाहती होंगी कि आप जल्दी अपनी जिम्मेदारी सम झ कर घर संभाल लें. बेहतर होगा कि ससुराल में सब को विश्वास में लेने की कोशिश की जाए. सासूमां को मां समान सम झेंगी, इज्जत देंगी तो जल्द ही वे भी आप से घुलमिल जाएंगी और तब वे खुद ही आप को आधुनिक कपड़े पहनने को प्रेरित कर सकती हैं.

घर का कामकाज निबटा कर टीवी देखने पर सासूमां को भी आपत्ति नहीं होगी. बेहतर यही होगा कि आप सासूमां के साथ अधिक से अधिक रहें, साथ शौपिंग करने जाएं, घर की जिम्मेदारियों को समझें, फिर देखिएगा आप दोनों एकदूसरे की पर्याय बन जाएंगी.

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अकसर देखा जाता है कि घर में सासबहू के झगड़े के बीच पुरुष बेचारे फंस जाते हैं और परिवार की खुशियां दांव पर लग जाती हैं. पर यदि रिश्तों को थोड़े प्यार और समझदारी से जिया जाए तो यही रिश्ते हमारी जिंदगी को खुशनुमा बना देते हैं.

जानिए, कुछ ऐसे टिप्स जो सासबहू के बीच बनाएं संतुलन रखेंगे.

कैसे बनें अच्छी बहू

1. मैरिज काउंसलर कमल खुराना के मुताबिक, बेटा, जो शुरू से ही मां के इतना करीब था कि उस का हर काम मां खुद करती थीं, वही शादी के बाद किसी और का होने लगता है. ऐसे में न चाहते हुए भी मां के दिल में असुरक्षा की भावना आ जाती है. आप अपनी सास की इस स्थिति को समझते हुए शुरू से ही उन से सदभाव का व्यवहार करेंगी तो यकीनन रिश्ते की बुनियाद मजबूत बनेगी.

2. बहू दूसरे घर से आती है. अचानक सास उसे बेटी की तरह प्यार करने लगे, यह सोचना गलत है. प्यार तो धीरेधीरे बढ़ता है. यदि आप धैर्य रखते हुए अपनी तरफ से सास को मां का प्यार और सम्मान देती रहेंगी, तो समय के साथ सास के मन में भी आप के लिए प्यार गहरा होता जाएगा.

3. सास के साथ कम्यूनिकेशन बनाए रखें. नाराज होने पर भी बातचीत बंद न करें.

4. यदि आप से कोई गलती हुई है, आप ने सास के प्रति गलत व्यवहार किया है या कोई काम गलत हो गया है तो सहजता से उसे स्वीकार करते हुए सौरी कह दें.

पूरी खबर पढने के लिए- सास-बहू के रिश्तों में बैलेंस के 80 टिप्स

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