REVIEW: जानें कैसी है ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’ Film

रेटिंगःडेढ़ स्टार

निर्माताः फायर रे फिल्मस

निर्देशकः हरीश व्यास

कलाकारः अंशुमन झा, जरीन खान,  गुरूफतेह पीरजादा, जान्हवी रावत.

अवधिः एक घंटा 57 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी हॉट स्टार

बीसवीं सदी जाते जाते बौलीवुड को समलैंगिकता का मुद्दा पकड़ा गया और तमाम फिल्मकार इसी मुद्दे को अपनी फिल्मों में भुनाते हुए लोगो का मनोरंजन करने के नाम पर अपनी तिजोरियां भरने का प्रयास कर रहे हैं. फिल्मकार हरीश व्यास भी समलैंगिकता के मुद्दे पर एक अति अपरिपक्व या यॅूं कहें कि ‘बिना पेंदे का लोटा’ को चरितार्थ करने वाली कहानी पर फिल्म ‘‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’’लेकर आए हैं. जो कि नौ मई से ओटीटी प्लेटफार्म डिजनी हॉट स्टार पर स्ट्रीम हो रही है. इस फिल्म में हरीश व्यास ने समलैगिकता का जो तर्क दिया है, वह बहुत ही बेवकूफी भरा है. इतना ही नही लेखक-निर्देशक हरीश व्यास ने रोमांटिक ड्रामा फिल्म ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’में लड़की के पतलून पहनने के मुद्दे से शुरू होकर,  देसी समलैंगिक समुदाय के तर्कों और परिवार में संघर्ष को दिखाने की जो कोशिश की है, उसमें वह बुरी तरह से मात खा गए हैं.

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कहानीः

कहानी शुरू होती है मानसी(  जरीन खान )के परिवार से, जहां चर्चा हो रही है कि मानसी बचपन से ही जींस पटलून पहनते पहनते लेस्बियन हो गयी. तो वहीं चंडीगढ़ में कर्नल रंधावा(सुशील दहिया)का बेटा वीर प्रताप रंधावा(अंशुमन झा)की सगाई तरण कौर (आंचल बत्रा)से हो रही है. वीर प्रताप , तरण कौर को बता देता है कि वह ‘गे’है और वीर प्रताप रंधावा सगाई करने की बजाय घर से भागकर दिल्ली अपने मित्र व उद्योगपति अक्षय मित्तल के घर पहुंचता है. पता चलता है कि अक्षय प्रताप ने भले ही मिताली(प्रभलीन कौर)से शादी कर ली हो, पर अक्षय मित्तल भी ‘गे’ है. वीर व अक्षय के बीच गहरा प्यार है. मगर सामाजिक मान प्रतिष्ठा के चलते अक्षय ने इस बात को उजागर नही किया. यहां तक कि इस कड़वे सच से मिताली भी अनभिज्ञ है, पर मिताली को इस बात की शिकायत है कि उसके  पति अक्षय के पास उसके लिए समय नही है. दूसरे दिन अक्षय द्वारा आयोजित समलैंगिक पार्टी में वीर प्रताप रंधावा की मुलाकात मानसी से होती है. मानसी भी लेस्बियन है और जब लड़के वाले उसे देखने आते हैं , तो वह घर से भागकर अपनी लेस्बियन प्रेमिका निक्की(जान्हवी रावत)के पास दिल्ली पहुंच जाती है. मगर मानसी को उसकी सखी निक्की (जाह्नवी रावत) रूम पर नहीं मिलती.  निक्की अपने घर मैकलोडगंज गई है. निक्की की सलाह पर मानसी ड्ग्स में लिप्त अशर(नितिन शर्मा)के पास पहुंचती है, पर फिर उसका घर छोड़ देती है. अब वीर, मानसी को अपने घर में शरण देता है, जबकि दोनों विपरीत स्वभाव के हैं. दूसरे दिन वीर प्रताप,  मानसी को उसकी सखी निक्की के पास पहुंचाने के लिए मैकलोडगंज, हिमाचल प्रदेश के लिए जीप में निकल पड़ते हैं. रास्ता लंबा है और जिंदगी भी उन्हें यहां-वहां घुमाते हुए अंततः अकेले-अकेले छोड़ देती है. वास्तव में निक्की अपेन एमएलए पिता की आज्ञा के चलते  मानसी को ठुकरा देती है. अब मानसी व वीर एक होने का निर्णय ले लेते हैं. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. कुछ वक्त बाद मानसी की प्रेमिका उसके पास आ जाती है.  मगर फिर  एक हादसा होता है और मानसी के सामने अपनी प्रेमिका और वीर में से किसी एक को चुनने की चुनौती आती है. अब मानसी क्या करेगी?

लेखन व निर्देशनः

अति कमजोर कथा, पटकथा व संवाद वाली इस फिल्म में लेस्बियन के लिए लेखक व निर्देशक हरीश व्यास का तर्क ही बेतुका है. दूसरी बात लेखक व निर्देशक होते हुए भी हरीश व्यास इस समलंैगिक रोमांटिक व ‘रोड ट्पि’ वाली कहानी को सही दिशा नहीं दे पाए. बिना पेंदे के लोटे की तरह फिल्म इधर उधर लुढ़कती रहती है. इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी यह है कि फिल्म सर्जक इस फिल्म में न तो समलैगिकता लेस्बियन गे के मुद्दे को ही उठा पाए और न ही रोड ट्पि में ही रोचक या रोमांचक दृश्यों का समावेश कर पाए. इतना ही नही जब वीर के माता पिता को पता चलता है कि उनका बेटा ‘गे’है अथवा मानसी के घर में उसके लेस्बियन की जानकारी मिलने पर मध्यमवर्गीय परिवारों में जिस ढंग की प्रतिक्रियाएं  व संघर्ष होना चाहिए, वह भी उभर नही पाया. यहां तक कि जब मिताली को पता चलता है कि वह जिस इंसान के साथ चार वर्ष से वैवाहिक जिंदगी जीती आयी है, वह ‘गे’है, तो जिस तरह का तूफान उठना चाहिए था, वैसा कुछ नही होता. फिल्मकार ने इस फिल्म में प्रसिद्ध सूफी संत बुल्ले शाह के लोकप्रिय गीत ‘‘बुल्ला की जाणा कि मैं कोण. . ’’को एकदम बाजारू तरीके से इस्तेमाल किया है. रोड ट्पि यानी कि मानसी व वीर यात्रा के दौरान उबाउ बातचीत ही करते हैं. फिल्म सिर्फ बोर करती है.

हरीश व्यास संवादों के मामले में भी बुरी तरह मात खा गए हैं.  उनके दोनों मुख्य किरदारों के संवादों में न तो परिवार या समाज से संघर्ष है,  न उनके पास अपनी आत्मा को बयान करने वाले शब्द हैं.  फिल्म के सभी समलैंगिक किरदार यानी कि वीर,  मानसी, निक्की और अक्षय अपनी पहचान छुपाने का ठीकरा अपने अपने पिता पर फोड़ते हैं.

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फिल्म का क्लायमेक्स व जिस मोड़ पर जाकर फिल्म खत्म होती है, वह भी समझ से परे है. यहां तक कि फिल्म की शुरूआत में ही निक्की व मानसी के बीच समलैंगिक संबंध को बताने वाला दृश्य यदि न होता,  तो भी फिल्म पर कोई असर न होता.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो वीर प्रताप रंधावा का किरदार निभाने वाले अभिनेता अंशुमन झा पिछले ग्यारह वर्ष से अभिनय जगत में सक्रिय हैं और कई दिग्गज फिल्मकारों के संग काम कर चुके हैं, मगर अब तक उनकी अपनी कोई ईमेज नही बन पायी है. 2019 में प्रदर्शित फिल्मकार अश्विन कुमार की फिल्म‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’में आर्मी आफिसर का किरदार निभाकर  अंशुमन झा ने एक उम्मीद जगायी थी, पर इस फिल्म से एक बार फिर वह उम्मीद खत्म हो गयी. फिल्म में उनके अभिनय का कोई नया रंग नजर नही आता. अंशुमन झा इस फिल्म के निर्माता भी हैं, इसलिए अपने कैरियर पर कुल्हाड़ी मारने के लिए वह किसी अन्य को दोष भी नही दे सकते. अब भविष्य में उन्हे कहानी व किरदारों के चयन में कुछ अधिक सावधानी बरतनी होगी. अफसोस की बात यह है कि लंबे समय बाद उन्हे हीरोईन के तौर पर यह फिल्म मिली थी, पर वह इसमें अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में बुरी तरह से नाकाम रही हैं. गुरूफतेह पीरजादा, जान्हवी रावत व प्रभलीन कौर ने अपनी तरफ से मेहनत करने का प्रयास जरुर किया है, मगर इन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का कोई खास अवसर ही नही मिला.

REVIEW: जानें कैसी है अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘द बिग बुल’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः अजय देवगन और आनंद पंडित

निर्देशकः कुकू गुलाटी

कलाकारः अभिषेक बच्चन, सोहम शाह,  निकिता दत्ता, इलियाना डिक्रूजा,  सुप्रिया पाठक, राम कपूर व अन्य.

अवधिः लगभग दो घंटा पैंतिस मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः डिजनी प्लस हॉट स्टार

1992 में भारतीय शेअर बाजार में एक बहुत बड़ा स्कैम हुआ था, जिसके कर्ताधर्ता शेअर दलाल हर्षद मेहता थे. उन्ही की कहानी पर कुछ दिन पहले दस एपीसोड लंबी हंसल मेहता निर्देशित वेब सीरीज ‘‘स्कैम 1992’’आयी थी, जिसे काफी पसंद किया गया था. अब उसी कहानी पर फिल्मकार कुकू गुलाटी अपराध कथा वाली फिल्म ‘‘द बिग बुल’’लेकर आए हैं, जो कि आठ अप्रैल की रात से ‘डिजनी प्लस हॉट स्टार’’पर स्ट्रीम हो रही है. बहरहाल, फिल्म‘‘द बिग बुल’’की कहानी में हर्षद मेहता, पत्रकार सुचेता दलाल सहित सभी किरदारों के नाम बदले हुए हैं और फिल्मकार ने इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित बताया है.

कहानीः

वर्तमान समय में पैंतिल वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को अस्सी व नब्बे के दशक के बीच शेअर दलाल हर्षद मेहता की पूरी कहानी पता है. उस वक्त इसे हर्षद मेहता स्कैम कहा गया था. जो युवा पीढ़ी इस कहानी से परिचित नहीं थी, उसे वेब सीरीज‘‘स्कैम 1992’’से पता चल गया.

यह कहानी शुरू होती है 1987 से, जब निम्न मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार की. इस परिवार के दो बेटे हेमंत शाह(अभिषेक बच्चन) और वीरेंद्र शाह(सोहम शाह ) छोटी नौकरी व छोटी दलाली से कमाई कर जिंदगी गुजार रहे हैं. पर हेमंत शाह के सपने बहुत बड़े हैं. हेमंत शाह के सपने तो आसमान से भी परे हैं और वह अपनी जिंदगी में बहुत ही कम समय में देश का पहला बिलिनियर बनना चाहते हैं. एक दिन हेमंत शाह को बलदेव से शेअर बाजार में पैसा लगाकर कमाने की एक अंदरूनी जानकारी मिलती है. उसी दिन उन्हें पता चलता है कि उनका छोटा भाई वीरेंद्र शाह शेअर बाजार में पैसा लगाकर नुकसान उठा चुका है. पर वीरेंद्र अपने हिसाब से अंदरूनी जानकारी की जांचकर शेअर बाजार में पैसा लगा देता है और पहली बार में ही वह लंबा चैड़ा फायदा कमा लेते हैं. उसके बाद तो उनके सपने और बड़े हो जाते हैं. अब हेमंत शाह बैंक रसीद यानी कि बी आर का दुरूपयोग करते हुए शेअर बाजार में पैसा कमाने लगते हैं. देखते ही देखते वह‘शेअर बाजार के नामचीन  दलाल बन जाते हैं. इस बीच हेमंत शाह अपनी प्रेमिका प्रिया(निकिता दत्ता)संग शादी भी कर लेते हैं. वीरेंद्र शुरूआत में झिझकते हुए अपने भाई हेमंत शाह का साथ देता है, पर बाद में वह भी हेमंत के हर काम में भागीदार बन जाता है. लेकिन वीरेंद्र हमेशा चाहता है कि उसका भाई धीमी गति से उड़ान भरे. जिससे कहीं भी पकड़ा न जाए. मगर हेमंत शाह को धीमी गति से चलना पसंद नही है. इसी उंची उड़ान को भरते हुए हेमंत शाह सरकार का हिस्सा बने राजनेता के बेटे संजीव कोहली(समीर सोनी) के संपर्क में आते हैं. संजीव कोहली, हेमंत को आश्वासन देते हैं कि हर मुसीबत के समय उनके पिता उसे बचा लेंगे. यह वह दौर है,  जब देश में आर्थिक उदारीकरण की शुरूआत हुई है.

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हेमंत शाह ने बैंक रसीद बी आर के साथ ही बैंकिंग व सरकारी सिस्टम की कमियों का जमकर फायदा उठाते हुए अपनी तिजोरी भरी और कालबा देवी की चाल से निकलकर पेंटा हाउसनुमा आलीशान बंगले में रहने लगते हैं. हेमंत की चालों के चलते शेअर बाजार में बढ़ते शेअरों के दामों में खोजी पत्रकार मीरा(ईलियाना डिक्रूजा) को दाल में काला नजर आता है. वह अपने तरीके से हेमंत शाह के कारनामों की जांच कर अपने अखबार में लिखना शुरू कर देती है. उधर हेमंत शाह की दुश्मनी सेबी के चेअरमैन मनी मालपानी( सौरभ शुक्ला) से भी हो जाती है. एक दिन मनी मालपानी उसे सावधान भी करते है. पर हेमंत शाह अपने सपनों की उड़ान में मदमस्त कह देते है कि वह भले ही गलत काम कर रहा हो, पर कानून के हिसाब से वह गलत नही है. संजीव कोहली के साथ हाथ मिलाने के बाद हेमंत शाह कहने लगते हैं कि हुकुम का इक्का उनकी जेब में है. मगर एक दिन हेमंत शाह बुरी तरह से फंसते है, उस वक्त उनका ‘हुकुम का इक्का’फोन तक नही उठाता. अपने अति आत्मविश्वास या घमंड के चलते किसी तरह का समझौता करने की बजाय अपने वकील अशोक(राम कपूर)के साथ मिलकर‘हुकुम का इक्का’पर ही आरोप लगा देते हैं. हेमंत मानते हैं कि उन्होने कुछ भी गलत नही किया. उन्होने हर आम इंसान को पैसा कमाने का अवसर दिया. जो कुछ भी गलत हुआ है वह पोलीटिकल सिस्टम के चलते हुआ है. पर जांच में अंततः हेमंत शाह दोषी पाए जाते हैं, जिन्हे सजा हो जाती है और हार्ट अटैक से जेल में ही मौत हो जाती है.

लेखन व निर्देशनः

अफसोस की बात यह है कि अतीत में एक असफल फिल्म निर्देशित कर चुके कुकू गुलाटी ने भी फिल्म‘द बिग बुल’’से हेमंत शाह की ही तरह लंबे सपने देख रखे थे, लेकिन यह फिल्म एक अति सतही फिल्म बनी है. पटकथा व फिल्मांकन के स्तर पर काफी कमियां है. कई किरदारों के साथ न्याय नहीं कर पाए. लेखक ने फिल्म में बैंकिग सिस्टम व सरकारी सिस्टम पर भी उंगली उठायी है, मगर बहुत बचकर निकलने के प्रयास में कथानक गड़बड़ कर गए. फिल्म की शुरूआत में इसे कुछ सत्य घटनाक्रम से पे्ररित कहा गया है, मगर फिल्मकार का सारा ध्यान हर्षद मेहता की बायोपिक बनाने में ही रहा, इसी वजह से वह उस युग की जटिलताओ को भी अनदेखा कर गए. फिल्म में जब हेमंत शाह को कोई बड़ी सफलता मिलती है, तो वह जिस तरह की हंसी हंसते हैं, उसे देखकर दर्शक को अस्सी व नब्बे के दशक की फिल्मों के खलनायक की हंसी का अहसास होता है. इंटरवल तक तो कुकू गुलाटी किसी तरह फिल्म पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं, मगर इंटरवल के बाद उनके हाथ से फिल्म फिसल गयी है. फिल्म के क्लायमेक्स में तो वह बुरी तरह से मात खा गए हैं. कुछ किरदारो के लिए कलाकारों का चयन भी गलत किया है. संवाद भी काफी सतही है. फिल्म की एडीटिंग भी गड़बड़ है.

फिल्म में हेमंत शाह काएक संवाद है-‘‘कहानी किरदार से नही हालात से पैदा होती है. ’’मगर फिल्म‘‘द बिग बुल’’में हालात या किरदार से कुछ भी पैदा नही हुआ.

इमोशंस भावनाओं का घोर अभाव है. फिल्म के कुछ संवाद इस ओर भी इशारा करते है कि फिल्म को किसी खास अजेंडे के तहत बनाया गया है और जब जब फिल्में किसी अजेंडे के तहत बनायी गयी हैं, तब तब उनका हश्र अच्छा नही रहा.

अभिनयः

हेमंत शाह के किरदार में अभिषेक बच्चन प्रभावित नही कर पाते है. कई दृश्यों में वह अपनी पुरानी फिल्म ‘गुरू’की झलक जरुर पेश कर जाते हैं. कई जगह उसी फिल्म की तर्ज पर खुद को दोहराते हुए नजर आते हैं. मगर हमें यह याद रखना चाहिए कि यह हर्षद मेहता की कहानी है. कई ऐसे जटिल दृश्य हैं, जहां वह अपनी प्रतिभा का परिचय देने में बुरी तरह से असफल रहे हैं. वास्तव में यहां अभिषेक बच्चन को अच्छी पटकथा नही मिली और न ही निर्देशक के तौर पर यहां मणि रत्नम हैं. हेमंत के भाई वीरेंद्र शाह के किरदार में सोहम शाह ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. हेमंत शाह की पत्नी प्रिया के किरदार में निकिता दत्ता है, मगर उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नही. पत्रकार मीरा के किरदार में ईलियाना डिक्रूजा हैं. अफसोस उनके हिस्से भी कुछ करने को नहीं रहा. जबकि इस कहानी में पत्रकार सुचेता दलाल का किरदार काफी अहम है. सेबी के चेअरमैन मालपानी के किरदार में सौरभ शुक्ला और मजदूर नेता राणा सावंत के किरदार में महेश मांजरेकर का चयन गलत सिद्ध होता है. सुप्रिया पाठक, राम कपूर, लेखा प्रजापति, कानन अरूणाचलम की प्रतिभा को जाया किया गया है. लेखक व निर्देशक ने इनके किरदारों को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

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REVIEW: गुदगुदाती है वेब सीरीज मेट्रो पार्क 2

रेटिंगः ढाई स्टार

 निर्देशकः अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन

लेखनः अजय वेणुगोपालन

कलाकारः रणवीर शोरी, पूर्बी जोशी, पितोबाश, ओमी वैद्य, वेगा तमोटिया,  सरिता जोशी, मिलिंद सोमन और गोपाल दत्त

अवधिः 12 एपीसोड, हर एपसोड बीस से बाइस मिनट की अवधि का, कुल समय लगभग चार घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः ईरोज नाउ पर 29 जनवरी से

अमरीका के न्यू जर्सी में बसे एक गुजराती भारतीय परिवार से जुड़े हास्यप्रद घटनाक्रमों और हास्यमय परिस्थितियों से लोगों को हॅंसा चुकी वेब सीरीज‘‘मेट्रो पार्क’’का दूसरा सीजन ‘‘मेट्रो पार्क 2 ’’लेकर आ रहे हैं अबी वर्गीज और अजयन वेणुगोपालन.

कहानीः

यह कहानी अमेरिका के न्यू जर्सी में बसे एक देसी भारतीय गुजराती परिवार की विलक्षणताओं और विचित्रताओं के इर्द गिर्द घूमती है. जो अमरीका जैसे देश में आधुनिक परिवेश में रहते हुए भारतीयता से जुडे हुए हैं. इस परिवार के मुखिया कल्पेश(रणवीर शोरी) हैं, उनके परिवार में उनकी पत्नी पायल(पूर्वी जोशी ), बेटा पंकज(आरव जोशी) व बेटी मुन्नी है. कल्पेश की स्थानीय नगर पालिका व पुलिस विभाग में अच्छी पहचान है. पायल की बहन किंजल(वेगा तमोटिया)भी न्यू जर्सी में ही रहती है. किंजल के दक्षिण भारतीय पति कानन(ओमी वैद्य) हैं, जो एक कारपोरेट कंपनी में कार्यरत हैं. कल्पेश का एक ‘पे एंड रन’नामक रिटेल दुकान है,  जिसमें बिट्टू (पितोबाश)काम करता है. पायल का अपना ब्यूटी पार्लर है, जहां पर शीला(माया जोशी) भी काम करती हैं. पहले एपीसोड की शुरूआत होती है किंजल की नवजात बेटी के नामकरण समारोह से. पायल व किंजल को तकलीफ है कि ऐसे मौके पर उनकी मॉं (सरिता जोशी) वहां मौजूद नहीं है, वैसे कल्पेश ने पायल की मां को भारत से अमरीका बुलाने के लिए वीजा के लिए आवेदन दिया है. मगर रात में जब कल्पेश और पायल अपने घर पहुंचते हैं, तो पता चलता है कि वीजा का आवेदन खारिज हो गया है. पता चलता है कि फार्म भरने में कल्पेश ने कुछ गलती कर दी थी. इसके चलते कल्पेश व पायल में मीठी नोंकझोक होती है.

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तीसरे एपीसोड में रिटेल शॉप में बढ़ती चोरी के चलते कल्पेश, लाल भाई(गोपाल दत्त) को सिक्यूरिटी के रूप में दरवाजे पर तैनात कर देते हैं. पायल व किंजल की मां (सरिता जोशी)अमरीका नही आ पाती,  मगर किंजल के पति घर में रोबोट लेकर आ जाते हैं. परिणामतः पायल और किंजल की माँ (सरिता जोशी) हर जगह एक रोबोट के रूप में मौजूद हैं, जहाँ कोई भी स्क्रीन पर या उसके माध्यम से उसे देख और सुन सकता है. फिर पायल का खुद को यूट्यूब सनसनी दिखाने का जुनून सवार होता है, जिसके चलते कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं. इसी तरह हर एपीसोड में कुछ परिस्थिति जन्य घटनाक्रम के साथ पारिवारिक नोकझोक भी चलती रहती है. दो एपीसोड में पायल के पूर्व सहपाठी और दॉतों के डाक्टर अर्पित(मिलिंद सोमण) की वजह से कुछ नए घटनाक्रम समने आते हैं. और कल्पेश के अंदर एक भारतीय पुरूष जागृत होता है.

लेखन व निर्देशनः

‘मेट्रो पार्क’सीजन वन की आपेक्षा सीजन दो ज्यादा बेहतर बना है. यह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बसे भारतीय समाजों का प्रतिबिंब है. पारिवारिक ड्रामा के साथ हास्य के ऐसे क्षण पिरोए गए हैं, जो कि दर्शकों का मनोरंजन करते हैं. सीजन एक के मुकाबले सीजन दो में निर्देशन बेहतर है. फिर भी ‘मेट्रो पार्क सीजन 2’एक साधारण वेब सीरीज ही है. भारतीय राजनीति व बौलीवुड को लेकर गढ़े गए जोक्स बहुत ही सतही हैं. शुरूआत में रोबोट(सरिता जोशी) के चलते पैदा हुए हास्य क्षण गुदगुदाते हैं, मगर फिर वह दोहराव नजर आने लगते हैं. यह लेखक व निदेशक दोनों की कमजोरी है.

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अभिनयः

पटेल परिवार के रूप में रणवीर शोरी और पूर्वी जोशी के बीच की केमिस्ट्री कमाल की है. तो वहीं रणवीर शोरी और पितोबाश के बीच की ट्यूनिंग भी इस वेब सीरीज को दर्शनीय बनाती है. ‘थ्री इडिएट्स’के बाद इसमें ओमी वैद्य ने कमाल का अभिनय किया है. उनकी कॉमिक टाइमिंग कमाल की है. वेगा तमोटिया ने ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर ओमी वैद्य के साथ वेगा तमोटिया की जोड़ी जमती नही है. वेगा तमोटिया इस वेब सीरीज की कमजोर कड़ी हैं. पितोबाश का अभिनय फनी है और वह लोगों को हंसाते हैं. सरिता जोशी व मिलिंद सोमण की छोटी मौजूदगी हास्य के क्षण पैदा करने में कामयाब रही है.

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