रिटायरमैंट से पहले वित्तीय प्लानिंग

बचत का हर व्यक्ति के जीवन में होना बहुत जरूरी है. जितना भी आप कमाएं उस का कुछ भाग बचत के रूप में जरूर रखें. अगर ऐसा आप कमाते वक्त नहीं सोचते तो आगे चल कर दिनोंदिन बढ़ती महंगाई की मार आप को अवश्य झेलनी पड़ेगी. एक उम्र के बाद काम करना वश में नहीं होता, जबकि बढ़ती उम्र की वजह से बीमारी और अच्छे खानपान वगैरह के खर्च बढ़ते जाते हैं. ऐसे में जितनी जल्दी आप रिटायरमैंट से पहले सेविंग के बारे में सोचेंगे, उतनी ही बड़ी आप की बचत होगी. जब आप रिटायरमैंट के कगार पर होंगे तो भले ही बाजार की कीमतों की अपेक्षा आप की बचत कम दिखे, पर अपनी जरूरतों को सीमित दायरे में रख कर और अच्छी प्लानिंग कर के आप एक अच्छी जिंदगी गुजार सकेंगे. आज के दौर में यह बहुत जरूरी है कि अपनी रिटायरमैंट से पहले सेविंग में विविधता लाई जाए. लेकिन यह कैसे करें, इस के बारे में मुंबई के फाइनैंशियल प्लानर धवल कक्कड़ से बातचीत हुई.

उन्होंने बताया कि सब से पहले आप अपनी उम्र, जरूरतों, आय और बैकग्राउंड पर ध्यान दें. ये 4 कारक प्रमुख हैं. अगर आप के पास घर है तो ‘हाई रिस्क हाई रिटर्न’ पर आप जा सकते हैं. अगर घर लेना है, शादी करनी है तो मार्केट रिस्क हमेशा कम लें, क्योंकि बाजार भाव हमेशा चढ़ता और उतरता रहता है, जिस में पैसा खोने का डर लगा रहता है.

7 साल की सेविंग सब से आदर्श मानी जाती है. लेकिन अगर आप के रिटायरमैंट में देर है तो जल्दी पैसा बनाने की बात सोचनी चाहिए. प्रौपर्टी और सोने में इन्वैस्टमैंट अच्छा होता है, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के चढ़नेउतरने पर निर्भर रहने वाली स्कीम की अपेक्षा अधिक लाभ देता है. किसी भी इन्वैस्टमैंट को करते समय उस की अवधि अवश्य देख लें. अगर मंदी का समय हो तो ‘बायर’ बनें और तेजी हो तो ‘सैलर’. इस से आप को एक अच्छी रकम हाथ लगेगी, जो भविष्य में काम आएगी. स्टाक और बांड्स मेें रिटायरमैंट

सेविंग करना भी अच्छा होता है. उस में पैसे खोने का डर रहता है, पर अगर आप का ध्यान रोज मार्केट की तरफ रहे तो ऐसा नहीं होता. म्यूचुअल फंड में ‘सिप’ यानी ‘सिस्टेमैटिक इन्वैस्टमैंट प्लान’ लें. इस के लिए अच्छे फाइनैंशियल एडवाइजर की सलाह लें. भारत में करीब 100 म्यूचुअल फंड कंपनियां हैं जिन में से केवल 10 ही ऐसी हैं जहां आप का पैसा सुरक्षित रह सकता है.

हमेशा ‘टर्म प्लान’ में इन्वैस्ट करें ताकि अगर आप पर कोई आपदा आए तो परिवारजनों को आप की बचत का लाभ मिल सके. लेकिन आप कितना व्यय करेंगे और कितना बचाएंगे इस की योजना इस प्रकार बनाएं- अगर आप की उम्र 20 से 30 वर्ष हो तो अपनी आय का 20% सालाना आप बचत कर सकते हैं.

35 साल की उम्र होने पर 15 से 20%, 45 से 50 वर्ष की उम्र होने पर 10 से 15% और 50 वर्ष के ऊपर होने पर 10% अपनी आय की सालाना बचत कर सकते हैं. गोल्ड फंड या गोल्ड ऐक्सचेंज क्रैडिट फंड में पैसा डालें. अपनी बचत का 99% भी आप सोने की खरीद में डाल सकते हैं. इस में रिस्क नहीं होता, इस का लाभ अधिक मिलता है.

सरकार की ऋण पालिसी में पैसा डालें. ‘गवर्नमेंट सिक्यूरिटीज’ में पैसा डालना हमेशा लाभदायक रहता है, क्योंकि यह रिस्क फ्री रहता है और बाजार भाव के उतारचढ़ाव का असर इस पर नहीं पड़ता. प्लान अवश्य करना चाहिए. ऐसी पालिसी के धारक बनें जिस का भविष्य में आप को पूरा लाभ मिले. अपनी आमदनी को हमेशा ‘व्हाइटमनी’ में रखें. ‘ब्लैकमनी’ कभी न रखें.

वित्तीय प्लानिंग में अपनी आय और संपत्ति का वसीयतनामा पहले तैयार करें, जिस में पावर औफ एटार्नी जरूर बनाएं. नहीं तो संपत्ति और पैसे को ले कर परिवार में झगड़े होने लगते हैं. हर 5 साल बाद अपने इन्वैस्टमैंट की जांचपरख अवश्य करें, इस से बाजार भाव के अनुसार आप अपने फाइनैंस की प्लानिंग फिर से कर पाएंगे.

इस के आगे धवल कक्कड़ कहते हैं कि आज के युवाओं को इस बारे में अधिक ध्यान देना चाहिए, क्योंकि आज के युवा 30 से 40 हजार रुपए प्रतिमाह कमाते हैं पर उन्हें शौक पूरे करने की अधिक धुन रहती है. वे पैसे खर्च अधिक करते हैं. जबकि आज से 20-30 वर्षों बाद जब हमारे देश का और अधिक विकास हो चुका होगा तब महंगाई और अधिक होगी. खर्चा 5 गुना अधिक बढ़ेगा. ऐसे में शुरू से बचत न करने पर और अधिक परेशानी आएगी.

पैसे बचत करने के आसान तरीके, आप भी अपनाइए

बचत करना कौन नहीं चाहता है, हर कोई चाहता है की वो अपने रोज के खर्चो में से कुछ बचत करे जो बाद में अपने परिवार के काम में आये, ज्यादातर इस बात की चिंता महिलाओं को होती है,

क्योंकि घर का खर्चा उन्ही को चलाना होता है. पर क्या आप सही तरीके से बचत कर पाती हैं, शायद हो सकता हैं कुछ लोग अच्छी बचत कर लेते होंगे पर बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो बचत के मामले में थोड़ा कमजोर हैं, पैसे घर पे आते ही ना जाने कहा खर्च हो जाते हैं. यह महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या है अगर आप बचत करना चाहती हैं तो यहां पर आपको कुछ आसान तरीके बताये जा रहे हैं जो आपको बचत करने में बहुत ज्यादा मदद करते हैं. अब आप भी अच्छी बचत कर पाएंगे पर उसके लिए आपको अपनी कुछ आदतों को बदलना होगा. तभी आप एक अच्छी बचत कर पाएंगे.

कहां खर्च करती हैं आप अपने पैसे

जब आपकी मासिक आय घर पर आती है तो आप सबसे पहले सभी जगह देने वाले पैसे अलग कर देती होंगी और कुछ पैसो को संभाल कर रख देती होंगी, और फिर वो भी कभी ना कभी खर्च हो ही जाते हैं. इसलिए इस खर्चे से बचने के लिए सबसे आसान तरीका यह है कि, जब आपकी मासिक आय आती है तो सबसे पहले उसमें से पैसो का कुछ भाग सेविंग करना शुरू करदें अर्थात या तो आप कोई गुल्लक बना लें या फिर अपने बैंक अकाउंट में जमा करले और उन पैसो को कभी ना निकाले. जब तक आपको ज्यादा जरुरत ना पड़ जाये, ऐसे आप हर माह अच्छी सेविंग कर सकती हैं.

कर्जे से हमेशा बचें

कई बार ऐसा होता है कि आपको पैसो की जरुरत पड़ती है और आप अपने दोस्तों या अपने रिश्तेदारों से मदद लें लेते हैं. कर्जे से हमेशा बचने कि कोशिश करें क्योंकि एक बार अगर आप किसी से पैसो कि मदद लें लेते हैं तो फिर आपको धीरे धीरे उस चीज की आदत हो जाती है, फिर आपको थोड़ा बहुत भी परेशानी हो तो आप फिर वही बात दोहराती हैं.

इसलिए कर्जे से जितना हो सके उतना बचने की कोशिश करें. क्योंकि जहां आपने एक बार कर्जा लेना शुरू कर दिया तो फिर आप सेविंग कभी नहीं कर सकती. ज्यादा सुविधा की जगह कम सुविधा से काम चला लें पर कर्जे से बचकर रहें.

फालतू के खर्चो से बचें

फालतू के खर्चों से मतलब इस प्रकार है कि, आज के समय में हम हो या आप छोटी छोटी जगह बहुत फालतू खर्चा करते हैं, जैसे रोज बहार खाना, रोज कही ना कही घूमने जाना, रोज कुछ ना कुछ खरीदना आदि ऐसे बहुत से फालतू खर्चे हैं जो आमतौर पर आप प्रतिदिन करती रहतीं हैं.

इन सभी फालतू खर्चो से बचें रोज बाहर खाने की जगह अपने घर पर खाना खाये और अगर आपका बाहर खाना खाने का मन हैं ही तो हफ्ते में एक बार बाहर चले जाये पर इसे अपनी रोज की आदत ना बनाये, ये सब आपके स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है.

रोज घूमने की जगह हफ्ते में एक दिन घूमने जाएं, ऐसे आप अपने बहुत से खर्चो को कम कर सकते हैं, इन छोटी छोटी सेविंग से ही तो आप बड़ी सेविंग कर पाएंगी. इसलिए ध्यान दें फालतू के खर्चो को कम करदे.

महत्वपूर्ण ध्यान रखने योग्य बातें

  • अगर आपके परिवार में दो व्यक्ति जौब करने वाले हैं तो आप अच्छी बचत कर सकते हैं, सिर्फ एक ही व्यक्ति की आय का यूज करें और एक व्यक्ति की आय को सीधा बचत खाते में डाल दें.
  • हर महीने अपना बजट बनाये और उसका पालन भी करें.
  • आपके द्वारा की जाने वाली हर खरीददारी पर नजर रखें और ध्यान पूर्वक खरीदी करें.
  • आजकल सभी बैंको में अलग अलग प्रकार की सेविंग की सुविधाएं शुरू हो गयी हैं, उन सभी सुविधाओं का लाभ उठाये.
  • सर्वप्रथम अगर आपने किसी से कर्जा लिया है तो उसका भुगतान करें और उसके बाद ही अपनी सेविंग करना शुरू करें.
  • अपनी एक बजट डायरी बना लें और उसमे अपने हर महीने के खर्चो का लेखा जोखा करें इससे आपको ध्यान रहेगा कि आप कहां पर कितना पैसा खर्च कर रहीं हैं.
  • अगर आपके परिवार में छोटे बच्चे हैं तो उन्हें सिखाएं कि फालतू टीवी ना खोले, फालतू लाइट ना जलाये और फालतू में पानी ना बहायें इससे आपका बिल और ज्यादा बड़ जायेगा और इस बात का आप भी ध्यान रखें, क्योंकि बहुत सारी बचत तो आप घर बैठे ही कर सकती हैं.
  • जब आप कभी बाजार जाते हैं तो अपने पास ज्यादा पैसे ना रखें, क्योंकि आप जितने पैसे लें कर जाते हैं वो कही ना कही पर खर्च हो जाते हैं, इसलिए जितने पैसों की जरुरत हो उतने ही पैसे अपने साथ ले जाये.
  • अगर आप किसी भी बड़ी चीज को खरीदने कि सोचते हैं, तो सबसे पहले उसके बारे में सभी जगह से पता करें और सोच समझ कर अच्छी दुकान से खरीदे.
  • अगर आपका औफिस या मार्किट पास ही है तो कोशिश करें कि आप पैदल ही जाएं ना कि गाड़ी या रिक्शा से जाएं.
  • आप अपने पैसों की सेविंग के लिए एफडी, म्युचुअल फण्ड और सेविंग अकाउंट आदि का प्रयोग भी कर सकती हैं.

बच्चों को वित्तीय जानकारी कैसे दें?

तकनीकी में हो रहे बदलाव और जीवन यापन की लागत में हो रही वृद्धि के मद्देनजर हमें खुद से सवाल पूछना चाहिए कि क्या आज के बच्चों को हम वित्तीय उत्पादों व सेवाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी दे रहे हैं. बच्चों को अब पैसे के लेनदेन व निवेश प्रबंधन की शिक्षा देना काफी अहम हो गया है.

कुछ वर्ष पहले उद्योग चैंबर एसोचैम ने एक सर्वेक्षण के आधार पर कहा था कि अब बच्चों को 3,000 रुपये से लेकर 12 हजार रुपये मासिक तक की राशि बतौर पॉकेट मनी मिलने लगी है.इस पैसे को वे मॉल में खरीददारी करने में या फोन रिचार्ज करने जैसे चीजों पर खर्च कर रहे हैं. एक दशक पहले बच्चों को 400 से 500 रुपये जेब खर्च के तौर पर मिलते थे. इस बदलाव से पता चलता है कि पैसे का हिसाब-किताब रखने की मानसिकता को विकसित करना कितना जरूरी है.

1. नकद खरीदारी की आदत डालें

वैसे तो अब क्रेडिट व डेबिट कार्ड सामान्य सी बात है. इसके जरिये खरीदारी करना कई मामले में आसान भी होता है, लेकिन शुरुआत में बेहतर होगा कि आप बच्चों को नकदी में खरीदारी करने की आदत डालें. मसलन चाय-काफी का भुगतान और किराना दुकानों पर छोटी खरीदारी करना वगैरह. इससे उन्हें पैसे का हिसाब-किताब रखने की व्यावहारिक जानकारी मिलेगी.

2. एटीएम के जरिये पैसे के स्नोत की जानकारी दें

तीन-चार साल के बच्चों को पैसे के स्नोत की जानकारी देने के लिए एटीएम एक बेहतर जगह है. बच्चे दरअसल यह समझते हैं कि पैसे के स्नोत की कोई सीमा नहीं होती. एटीएम ले जाकर उन्हें बताया जा सकता है कि पैसा कहां से आता है और यह असीमित आपूर्ति का केंद्र नहीं है, बल्कि जितने रुपये निकालेंगे आपके बैंक खाते में उतनी ही कम राशि बचेगी.

3. सुपरमार्केट में भी पाठशाला

अक्सर हम बच्चों को सुपरमार्केट ले जाते हैं. वहां भी कई तरह की शिक्षा दी जा सकती है मसलन कैसे किफायती सामान खरीदें, कैसे महंगे-सस्ते पर फैसला करें. इससे उनमें ब्रांड व उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर भी जागरूकता बढ़ेगी.

4. छोटी उम्र से बचत की आदत

अगर आप बच्चों को छोटी उम्र से ही इच्छा, चाह और जरूरत के बीच अंतर समझाने की कोशिश करें तो यह अच्छी शुरुआत होगी. अगर संबंधियों की तरफ से कोई मौद्रिक उपहार मिलता है तो उसका प्रबंध कैसे करें, कैसे उसे बचत में शामिल करें, कैसे उसे सोच समझ कर खर्च करें. इन छोटी-छोटी बातों की जानकारी देकर आप उनमें बचत की आदत डाल सकते हैं.

5. वित्तीय तौर पर आजादी दें

बच्चों को जितनी जल्दी वित्तीय आजादी की समझ आ जाए, उतना ही बेहतर होगा. इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा. वे यह समझेंगे कि हर चीज के लिए माता-पिता पर आश्रित नहीं रहा जा सकता. अगर आपका बच्चा दस वर्ष का हो गया है तो उसका अपना बैंक खाता खोल दीजिए. बैंक खाते के साथ उसका अपना डेबिट कार्ड आ जाएगा. उसे यह देखने दीजिए कि किस तरह से राशि ब्याज के साथ बढ़ती है?

6. खुद बनिए आदर्श

सबसे अहम सीख आप बच्चों को उनका आदर्श बनकर दे सकते हैं. आपातकालीन स्थिति के लिए बचत कीजिए और बच्चों के सामने एक उदाहरण पेश कीजिए. वैसे इस तरह के उदाहरण हमारे देश में हमेशा से रहे हैं. अगर आप पैसे को लेकर एक जिम्मेदारी का अनुभव करते हैं तो यह सीख जरूर बच्चों तक पहुंचेगी.

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Mutual Fund में कब और कैसे करें निवेश

अपने रोजमर्रा के खर्चों के बीच छोटीमोटी बचत तो हम सब कर ही लेते हैं, मगर फायदा तो तब है जब बचत के साथसाथ निवेश की भी आदत डाली जाए. जब निवेश की बात आती है तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में शेयर मार्केट में पैसे लगाने का खयाल आता है. जबकि असलियत तो यह है कि यदि आप को शेयर बाजार में पैसे लगाने का अनुभव नहीं है तो यह आप के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है. फाइनैंशियल प्लानर, अनुभव शाह के मुताबिक नए निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना एक बेहतरीन विकल्प है. ऐसा नहीं है कि म्यूचुअल फंड में निवेश करने में कोई जोखिम नहीं, पर शेयर बाजार में निवेश की तुलना में यह फिर भी कम जोखिम भरा है.

आइए, जानते हैं कि इक्विटी में निवेश की तुलना में म्यूचुअल फंड क्यों है बेहतर:

क्या है

आप म्यूचुअल फंड में निवेश करें इस से पहले आप को शेयर और म्यूचुअल फंड के बीच का फर्क पता होना चाहिए. जब आप शेयर बाजार में पैसा लगाते हैं, तो इस का मतलब है कि आप एक सार्वजनिक कंपनी के शेयर तब खरीद रहे हैं जब उन की कीमत कम है और कीमत बढ़ने पर इन्हें बेच देंगे. हालांकि म्यूचुअल फंड में निवेश करने का मतलब यह है कि आप का फंड मैनेजर आप के द्वारा निवेश की गई रकम को बौंड, शेयर, डिबैंचर जैसे निवेश के अलगअलग विकल्पों में लगाता है. ऐसे में म्यूचुअल फंड का रिटर्न अलगअलग प्रतिभूतियों पर हो रहे मुनाफे पर निर्भर करेगा.

जोखिम

म्यूचुअल फंड और शेयर इक्विटी में निवेश दोनों में ही जोखिम है. हालांकि जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो यह जोखिम थोड़ा कम हो जाता है. जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो आप के पास का निवेश विभिन्न प्रकार के निवेश उपकरणों में किया जाता है. यदि एक उपकरण का प्रदर्शन खराब है तो दूसरे का अच्छा हो सकता है. ऐसे में जोखिम कम हो जाता है. इक्विटी में निवेश का सब से बड़ा नुकसान यह है कि यदि शेयर बाजार नीचे जा रहा है तो आप को उसी अनुपात में नुकसान भी होता है. कुल मिला कर आप के निवेश का प्रदर्शन किसी एक कंपनी के शेयरों के प्रदर्शन तक ही सीमित रह जाता है.

नए निवेशकों के लिए बेहतर

जो लोग पहली बार निवेश कर रहे हैं और उन्हें शेयर बाजार का अनुभव नहीं, ऐसे निवेशकों के लिए म्यूचुअल फंड बेहतर है. म्यूचुअल फंड में निवेश करने के बाद इस के प्रबंधन की सारी जिम्मेदारी फंड मैनेजर की होती है. इस के लिए निवेशक को परेशान नहीं होना पड़ता. हालांकि इस के लिए निवेशक को समयसमय पर इस के प्रबंधन के लिए फीस चुकानी पड़ती है. जहां तक इक्विटी शेयर में निवेश की बात है तो इस के लिए पर्याप्त रिसर्च की जरूरत पड़ती है और यदि घाटा होता है तो सारी जिम्मेदारी आप की होती है.

जटिल

म्यूचुअल फंड की तुलना में इक्विटी शेयर में निवेश करना काफी जटिल है. साथ ही इस में समय भी काफी लगता है. शेयर में निवेश करने की स्थिति में हर पल बाजार की स्थिति और शेयर के भाव पर नजर रखनी पड़ती है. जबकि म्यूचुअल फंड में निवेश करने की स्थिति में यह काम फंड मैनेजर का होता है.

डाइवर्सिफिकेशन

एक अच्छा निवेशक वही होता है, जो मुनाफा कमाने के लिए केवल एक तरह के निवेश विकल्प और सैक्टर पर निर्भर न रहे. विभिन्न सैक्टरों और निवेश के विकल्पों में पैसा लगाना ही डाइवर्सिफिकेशन कहलाता है. म्यूचुअल फंड में निवेशक को डाइवर्सिफिकेशन का विकल्प मिलता है, जबकि ऐसा इक्विटी शेयर के साथ नहीं है.

सावधानी

अकसर देखा गया है कि म्यूचुअल फंड या फिर अन्य किसी विकल्प में निवेश के दौरान लोग लापरवाही से दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर देते हैं. ऐसा करने से आप मुसीबत में पड़ सकते हैं. लिहाजा, हस्ताक्षर करने से पहले पौलिसी से संबंधित दस्तावेज ध्यान से पढ़ें.

दस्तावेज जमा करते वक्त एड्रेस पू्रफ देते समय अपना स्थाई पता दें. सभी प्रकार के पत्राचार में यह काम आएगा.

आप के निवेश से संबंधित सारी स्टेटमैंट आप को बड़ी आसानी से ईमेल पर मिल सकती है. लिहाजा ईमेल एड्रेस का कौलम भरते वक्त सतर्क रहें.

म्यूचुअल फंड में निवेश के दौरान फंडों का प्रबंधन करना फंड मैनेजर की जिम्मेदारी होती है. इस का मतलब यह नहीं कि आप अपने निवेश की सुध ही न लें. समयसमय पर अपने निवेश की समीक्षा करते रहें. यदि आप इस के प्रदर्शन से संतुष्ट न हों तो फंड मैनेजर बदलने पर विचार करें.

म्यूचुअल फंड भी कई प्रकार के होते हैं. उदाहरण के तौर पर डेट, इक्विटी, लिक्विड म्यूचुअल फंड आदि. लिहाजा, इस में निवेश से पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि आप ने जिस म्यूचुअल फंड में निवेश किया है वह कौन सा है और विभिन्न परिस्थितियों में इस का प्रदर्शन कैसा होगा.

बचत से करें भविष्य सुरक्षित

खुशहाल वर्तमान व सुख और सुकून भरे भविष्य के लिए किए गए उचित प्रयास ही फायदे का सौदा साबित होते हैं. सिर्फ कमानेखाने व बेहिसाब खर्च करने का नाम ही जिंदगी नहीं है. जीवन में भविष्य की प्लानिंग भी करनी पड़ती है और इस में सब से महत्त्वपूर्ण है फाइनैंशियल प्लानिंग. समयसमय पर आने वाली बड़ी जरूरतों या जिम्मेदारियों को पूरा करने में पहले से बचत कर के जमा की हुई राशि एक मजबूत सहारा होती है. यह आर्थिक सुरक्षा का एहसास कायम रख कर जीवन को आसान बना देती है.

सुरक्षित भविष्य के लिए जानिए कुछ आवश्यक बातें:

1. बचत की आदत डालें

हर महीने अपनी आय का कुछ हिस्सा बचत खाते में डालें और उस के बाद बचे हुए पैसे से पूरे महीने का बजट तैयार करें. हो सके तो बचत के पैसे से रिकरिंग डिपौजिट कराते रहें. राशि कम हो या ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता. बचत की आदत पड़ते ही आप बड़ी रकम जोड़ना शुरू कर देंगे. धीरेधीरे इसे अपनी आदत बना लें. जैसेजैसे आप की बचत राशि बढ़ती जाएगी, आप को खुशी मिलने के साथसाथ और बचत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी व आप की आर्थिक स्थिति मजबूत होती जाएगी.

2. उचित योजना बनाएं

भविष्य की आर्थिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए आवश्यक है कि उचित योजना बनाएं. अपने व घर के तमाम खर्चों का हिसाब लगाएं व अपनी कुल आमदनी भी जोड़ लें. खर्च और आमदनी की तुलना करें. अब देखें कि जितना पैसा बच रहा है, उस से भविष्य की जरूरतें पूरी हो सकेंगी या नहीं. आवश्यक हो तो गैरजरूरी खर्चों में कटौती करें.

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3. बेतहाशा खर्च करने की आदत से बचें

आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया’ वाली कहावत उस वक्त चरितार्थ होने लगती है जब गैरजरूरी चीजों या शौकिया तौर पर पैसे खर्च करते हुए इस बात का भी ध्यान नहीं रखा जाता कि हम अपनी आय से अधिक खर्च करते हुए पिछली जमा राशि को भी लुटाते जा रहे हैं. अत: अपने दैनिक खर्चों पर नजर डालें और प्रतिदिन के खर्चों का हिसाब रखें. आप स्वयं पर और घर पर कितना खर्च करते हैं, घर में एक दिन का खर्च कितना है, इन सब बातों को ध्यान में रखें. बाजार में जाने से पहले खरीदारी के सामान की एक लिस्ट तैयार करें. बाजार में सामान खरीदते वक्त मोलभाव करें. ऐसा करने से निश्चित रूप से बचत होगी. जहां तक संभव हो भुगतान कैश से ही करें. क्रैडिट कार्ड पर निर्भर न रहें. इस का इस्तेमाल केवल आवश्यकता पड़ने पर ही करें, क्योंकि क्रैडिट कार्ड के कारण अनावश्यक खर्च भी हो जाते हैं.

4. अलग अलग सेविंग अकाउंट्स

बचत की राशि को सैलरी अकाउंट में रखने के बजाय उस के लिए अलग से सेविंग अकाउंट खोलें. बचत के लिए पैसे को अलगअलग जगह इन्वैस्ट करें. पोस्ट आफिस व बैंकों द्वारा चलाई जाने वाली सेविंग स्कीम का लाभ उठा सकते हैं. एनएससी, केवीपी, एमआईएस आदि स्कीम पैसों के निवेश में अच्छे विकल्प हैं. स्माल सेविंग स्कीम लेना बेहतर होता है. इस के अलावा ‘पीपीएफ’ में भी पैसा डाल कर फायदा हो सकता है. इस से पैसा सुरक्षित रहने के साथसाथ टैक्स में भी छूट मिलती है. इस के साथ ही इंश्योरैंस भी कराएं.

5. उपयुक्त इन्वैस्टमैंट

इन्वैस्टमैंट के मामले में सोचसमझ कर फैसला लें. इन्वैस्टमैंट का जो भी विकल्प चुनें वे आप की जरूरतों के मुताबिक ही हों. इस मामले में आप की आवश्यकताएं, आप की उम्र, फाइनैंशियल रिसोर्स, रिक्स प्रोफाइल, इन्वैस्टमैंट के लक्ष्य आदि पर निर्धारित होती हैं. इन्वैस्टमैंट प्लान लेते वक्त यह भी ध्यान रखें कि आप कितने समय बाद, कितने रिटर्न की उम्मीद कर रहे हैं.

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6. फाइनैंशियल लक्ष्य

सब से पहले यह जरूरी है कि आवश्यकतानुसार शौर्ट टर्म या लांग टर्म फाइनैंशियल प्लान बनाया जाए. जैसे कि आप कोई बिजली का उपकरण खरीदना चाहते हैं या फिर कार अथवा मकान. बिजली का उपकरण या ऐसी कोई अन्य चीज खरीदने के लिए आप को ज्यादा लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा. ये चीजें 1 या 2 महीने में खरीदने का इंतजाम किया जा सकता है, लेकिन कार या मकान के लिए एक लंबी अवधि तक बचत की आवश्यकता पड़ती है तभी आप इसे खरीद सकते हैं, जिस के लिए बहुत पहले से ही प्लानिंग कर लें.

निवेश से पहले न करें ये 5 गलतियां

अपने कल को बेहतर बनाने के लिए आज से बचत शुरु करने से बेहतर कुछ और नहीं है. एक्सपर्ट्स भी यही मानते हैं कि अपने जीवन की पहली नौकरी लगते ही सेविंग्स शुरु कर देनी चाहिए. अक्‍सर लोग ऐसा करते  भी हैं. लेकिन कई बार हम सेविंग, इंवेस्‍टमेंट के दौरान कई छोटी छोटी गलतियां कर जाते हैं. ऐसा कई बार जानकारी के अभाव में होता है. कई लोग ऐसे भी होते हैं जो बचत तो कर रहे हैं, मगर उनके जहन में ढेर सारे सवाल है और वह यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि बचत को और कैसे बेहतर किया जा सकता है.

1. बीमा पॉलिसी को टैक्स बचाने के उदेश्य से खरीदना

कई लोग टैक्स बचाने के लिए बीमा पॉलिसी खरीद लेते हैं. उन्हें अपनी इस गलती का एहसास साल के आखिरी में होता है जब उन्हें अपने नियोक्ता को निवेश संबंधित प्रमाण देने होते हैं. बीमा पॉलिसी होना एक अच्छी बात है, लेकिन जीवन बीमा की तुलना में अन्य सभी टैक्स सेविंग विकल्प बेहतर होते हैं. टैक्स सेविंग फंड्स जैसे कि ईएलएसएस कम उम्र के बचत करने वाले लोगों के लिए सबसे अच्छा ऑप्शन है.

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2. निवेश से पहले जानकारी का अभाव

जब लोग नियमित रूप से बचत नहीं करते तो बैंक एकाउंट में पड़े पड़े वह खर्च हो जाते है. इससे दो नुकसान होते हैं, पहला छोटी उम्र में निवेश करने के अनुरुप यह आपकी पूंजी को नहीं बढ़ा पाता. और दूसरा इससे बेफिजूल खर्च करने की आदत पड़ जाती है. बचत करने के लिए शुरुआत में अपनी मासिक तनख्वाह का 5 फीसदी से 10 फीसदी तक नियमित रूप से डेट फंड या फिर रेकरिंग डिपॉजिट में निवेश करें.

3. दूसरों को देखकर शेयर बाजार में निवेश करना

ऐसा लोग तब करते हैं जब उनमें स्टॉक्स में निवेश को लेकर कम जानकारी होती है. साथ ही शेयर बाजार में निवेश करते समय लोगों को लगता है कि उनकी निवेश राशि दो गुना हो जाएगी, जबकि ऐसा सोचना गलत है. निवेश करने से पहले अपने दोस्त, रिश्तेदार या सहकर्मी का देख लें कि किसको कितना मुनाफा या नुकसान हुआ है. निवेश करने से पहले स्टॉक से जुड़ी सारी जानकारी प्राप्त कर लें.

4. हर साल नौकरी बदलना

कई लोग सैलरी बढ़ाने के लिए जल्दी-जल्दी नौकरी बदलते हैं. जबकि नौकरी तब बदलनी चाहिए जब आप एक जगह काम करके अपनी स्किल्स अच्छी करें. इसके बाद आप जहां भी जाएंगे आपको अच्छी सैलरी का ऑफर दिया जाएगा.

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5. एजुकेशन लोन के बारे में भूल जाना

नौकरी से पहले कई लोग आगे की पढ़ाई के लिए एमबीए जैसे कोर्स में दाखिला लेते हैं. ऐसे में पढ़ाई के खर्चे को उठाने के लिए लोन की आवश्यकता पड़ती है. घर से दूर रहकर नौकरी करने पर लोग अपने बैंक से संपर्क नहीं कर पाते. ऐसे में ब्याज बढ़ता रहता है. इसलिए अपने एजुकेशन लोन के बारे अपना ध्यान केंद्रित करें.

जानें प्रौपर्टी गिरवी रखें या बेचें

कुछ सपने हर व्यक्ति देखता है, जैसे अपना घर, अपनी कार, बच्चों को अच्छे स्कूल/कालेज में पढ़ाना और बुरे वक्त के लिए अच्छाखासा बैंक बैलेंस. इन चीजों को ले कर देखे गए सब के सपनों में सिर्फ एक ही फर्क होता है- छोटा घर या बड़ा घर, इस ब्रैंड की कार अथवा उस ब्रैंड की और बैंक बैलेंस बढ़ाने के लिए कितनी मोटी रकम का निवेश. ऐसा देखा जाता है कि बेहद जरूरी होने के बावजूद लोग अपनी प्रौपर्टी को गिरवी रख कर पैसा निकालने का मन नहीं बना पाते हैं. तो क्या इस की वजह सिर्फ अपने घर से होने वाला लगाव है? जी नहीं, इस के पीछे एक भय जिम्मेदार है और वह है अपनी संपत्ति को खो देने का भय.

काफी हद तक यह डर वाजिब भी लगता है, क्योंकि संपत्ति गिरवी रखने के बारे में सूचनाओं का बेहद अभाव है. अधिक जानकारी उपलब्ध कराई जाए तो स्थिति में बदलाव संभव है. एक प्रौपर्टी आप के लिए पैसे निकालने का जरीया हो सकती है, जिस से आप अपनी बेहद जरूरी जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकते हैं. लेकिन ऐसा उसी स्थिति में मुमकिन है जब आप को यह जानकारी हो कि इस से ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे निकाल और प्रौपर्टी खोने के डर से खुद को कैसे उबार सकते हैं. एक संपत्ति का मालिक शादी, व्यापार में निवेश, बच्चों का उच्च शिक्षा या फिर अन्य किसी कार्य के लिए अपनी संपत्ति को गिरवी रख कर पैसा ले सकता है. बस, संपत्ति गिरवी रखने से पहले कुछ बातों की जानकारी रखना बहुत जरूरी है:

संपत्ति का लोन चल रहा हो तब उसे गिरवी रखना:

जब किसी प्रौपर्टी पर पहले से लोन चल रहा हो, उस दौरान उस संपत्ति को गिरवी नहीं रखा जा सकता है. हालांकि कुछ खास हालात में ऋणदाता की सहमति पर संपत्ति को दोबारा गिरवी रखा जा सकता है. संपत्ति गिरवी रख कर ऋणदाता उपभोक्ता को दिए गए अपने रुपयों की अदायगी सुनिश्चित करता है. वहीं उपभोक्ता प्रौपर्टी गिरवी रख कर अपनी जरूरत के समय आर्थिक मदद प्राप्त करता है. कोई व्यक्ति बिना कुछ गिरवी रखे भी ऋण ले सकता है, लेकिन किसी संपत्ति के बदले लिए गए ऋण की ब्याज दर कम होती है.

लोन चुकता करने में असक्षमता:

अगर कर्ज लेने वाला उस का भुगतान कर पाने में सक्षम नहीं होता है, तब ऋण देने वाली संस्था नियमों के हिसाब से उस संपत्ति के जरीए अपने पैसों की वसूली कर सकती है. ऐसा करने के लिए ऋणदाता को नियमानुसार कोर्ट में केस फाइल करना पड़ता है और वहां से मिले निर्देशों के अनुसार उसे बेच कर अपने पैसों की वसूली के लिए उस संपत्ति को अपने कब्जे में ले कर बेच सकता है. डिफाल्टर होने के कारणों के अनुसार अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं. मसलन, अगर धोखाधड़ी का मामला है तो कर्जदार के खिलाफ आपराधिक मामला भी दर्ज हो सकता है.

लोन की अदायगी में देरी होने पर कुछ आर्थिक दंड भी लगाया जाता है. कर्ज लेने वाले को मूल धन और उस के ब्याज के साथ इस अतिरिक्त आर्थिक दंड का भुगतान भी करना पड़ता है.

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संपत्ति गिरवी रखने पर ब्याज दर:

संपत्ति गिरवी रख कर लिए गए ऋण की अदायगी मासिक भुगतान के रूप में की जाती है. यह भुगतान 10, 15% या फिर इस से भी अधिक हो सकता है. यह लोन के प्रकार, कर्ज देने वाले संस्थान के नियमों और कर्ज लेने वाले की क्षमता पर भी निर्भर करता है. आमतौर पर घर खरीदने के लिए लिया गया कर्ज संपत्ति गिरवी रख कर लिए गए कर्ज से सस्ता पड़ता है. ऐसे में अन्य कार्यों जैसेकि व्यापार, यात्रा आदि के लिए ही पुरानी संपत्ति के बदले कर्ज लेना चाहिए. अगर किसी के पास अधिक नक्दी यानी सरप्लस फंड है, तो वह पूरा कर्ज एकसाथ चुका सकता है. ऐसा आमतौर पर कर्ज लेने के 6 महीने बाद किया जा सकता है. ऐसा जरूरी नहीं कि आप धीरेधीरे कर के ही कर्ज चुकाएं. मार्केट से उठाए गए ज्यादातर कर्ज का भुगतान अपनी पूरी अवधि से पहले ही हो जाता है.

डिफाल्ट होने पर संपत्ति खाली कराना:

कभी भी 1 या 2 महीने भुगतान में देरी होने पर कर्ज लेने वाले को भगोड़ा नहीं माना जाता है. हां, अगर यह देरी कई महीनों की हो जाए मसलन 4 या इस से भी अधिक महीनों की और कर्ज लेने वाले की तरफ से इस संबंध में कोई सूचना न दी गई हो अथवा बातचीत भी न की गई हो तो कर्ज देने वाला संस्थान कर्ज लेने वाले के खिलाफ कानूनी काररवाई कर सकता है. कानूनी प्रक्रिया शुरू होने के बाद ऋणदाता द्वारा अपनाए गए कानूनी तरीके के आधार पर संपत्ति खाली कराने में 6 महीनों से ले कर डेढ़ साल तक का समय लग सकता है.

गिरवी रखी संपत्ति को बेचना:

गिरवी रखी संपत्ति को कर्ज देने वाले की सहमति के बिना नहीं बेचा जा सकता है. खासतौर पर तब जब कर्ज का भुगतान रुका हुआ हो. अगर कर्ज का भुगतान समय पर हो रहा हो तब कर्ज देने वाले संस्थान को विश्वास में ले कर संपत्ति को बेच कर कर्ज की बकाया राशि नए मालिक के नाम हस्तांतरित की जा सकती है

बेहतर विकल्प

सभी मामलों में संपत्ति को गिरवी रखना उसे बेचने से बेहतर विकल्प नहीं होता है. दोनों के अपने फायदे व नुकसान हैं. आइए, जानते हैं:

– जब आप प्रौपर्टी गिरवी रखते हैं तब आप को उसे खाली करने की जरूरत नहीं होती. आप उस में रह सकते हैं अथवा उस का व्यापार के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन आप संपत्ति बेच देते हैं, तो आप उस का इस्तेमाल नहीं कर सकते. आप को उसे खाली करना ही होता है.

– गिरवी रखने की स्थिति में प्रौपर्टी पर मालिकाना हक बरकरार रहता है. लेकिन इसे बेचने की स्थिति में मालिकाना हक खरीदार को मिल जाता है.

– गिरवी रख कर आप संपत्ति की मूल कीमत का आमतौर पर 70 से 80 फीसदी हिस्सा ही कर्ज के रूप में ले सकते हैं. लेकिन अगर आप संपत्ति बेचते हैं, तो आप को उस का पूरा पैसा मिल जाएगा.

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– गिरवी रखने की स्थिति में भविष्य में संपत्ति की कीमत बढ़ने का उस के मालिक को कोई लाभ नहीं होता है. लेकिन जब यह संपत्ति बिक जाती है तब खरीदार को भविष्य में होने वाली मूल्य बढ़ोतरी का फायदा हो सकता है.

– कई बार ऐसी स्थिति भी होती है कि संपत्ति का मालिक संपत्ति गिरवी रख कर लोन लेने की शर्तों को पूरा नहीं कर पाता. संपत्ति का मालिक होने के बावजद अगर आप के पास कर्ज चुकाने के लिए पैसों का कोई स्रोत नहीं है तो आप को लोन नहीं मिलेगा. लेकिन संपत्ति का मालिक अपनी संपत्ति को बेच जरूर सकता है.

– गिरवी रखी संपत्ति को कर्ज देने वाले की अनुमति से लीज अथवा किराए पर चढ़ा कर आमदनी का एक अन्य स्रोत भी बनाया जा सकता है.

30 की उम्र में कहां करें निवेश

आज का दौर अनिश्चिंतताओं से भरा हुआ है. कभी महामारियों का हमला, तो कभी रोजगार का संकट युवाओं को संपन्न व खुशहाल जीवन जीने के रास्ते में रोड़े अटकाता है. ऐसे में स्मार्ट इनवैस्टमैंट यानी सुरक्षित और मुनाफेदार निवेश ही आप के जीवन की संपन्नता की नींव को मजबूत कर सकता है.

तो आइए फाइनैंशियल कंसल्टैंट राघेंद्र मिश्रा से जानते हैं युवाओं के लिए सब से सुगम, सुरक्षित और सर्वोत्तम निवेश विकल्प क्या है:

स्टैप 1: टर्म इंश्योरैंस

अगर बात करें 30 की उम्र की तो अकसर इस उम्र तक हम अपनी जिम्मेदारियों को सम   झने लगते हैं ऐसे में हमारा पहला और सब से अहम कदम होना चाहिए कि हम टर्म इंश्योरैंस लें क्योंकि जीवन में कब, क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता. कब हम जीवन को अलविदा कह दें किसी को पता नहीं होता. ऐसे में टर्म इंश्योरैंस असली जीवन बीमा प्लान है, जो आप के परिवार को आप के जाने के बाद फाइनैंशियल सपोर्ट प्रदान करने का काम करता है.

इस के अंतर्गत पौलिसी की अवधि के दौरान बीमा करवाने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होने पर यह इंश्योरैंस पौलिसी के अंतर्गत बनाए गए नौमिनी को एकमुश्त राशि प्रदान करता है. इसलिए टर्म इंश्योरैंस आज बेहद जरूरी हो गया है. इस बात का ध्यान रखें कि जितनी जल्दी आप टर्म इंश्योरैंस ले लेंगे उतना ही आप को कम प्रीमियम देना पड़ेगा.

बैस्ट टर्म इंश्योरैंस प्लान कैसे चुनें

–  आप को हमेशा कंपनी का क्लेम सैटलमैंट रेशो देखना चाहिए ताकि आप को ज्ञात हो जाए कि परिवार पर मुसीबत आने पर कंपनी कितने समय में क्लेम सेटलमैंट कर देती है वरना बाद में परिवार को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

–  आप को कंपनी के ब्रैंड और उस की मार्केट में क्या अहमियत है, इस की जांच जरूर करनी चाहिए.

–  किसी भी कंपनी का प्लान अच्छी तरह चैक

करने के बाद ही टर्म इंश्योरैंस लेना चाहिए. उस में यह भी चैक कर लें कि उस में क्या कवर है और क्या नहीं तथा कितने साल तक का कवर है. इस से पौलिसी के चयन में आसानी होगी.

–  टर्म इंश्योरैंस आप की वार्षिक सैलरी का लगभग 10 गुणा होना चाहिए.

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स्टैप 2: हैल्थ इंश्योरैंस

हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी मुश्किल समय में परिवार पर बिना बो   झ डाले आर्थिक सहायता प्रदान करने का काम करती है. सोचिए अगर आप के परिवार में अचानक कोई अपना बीमार हो जाए और आप ने कोई हैल्थ पौलिसी न ली हो, तो आप सब से पहले बिना सोचेसम   झे उस का इलाज तो करवाएंगे ही, लेकिन इस इलाज के दौरान जो आप को शारीरिक व पैसों के कारण आर्थिक मार    झेलनी पड़ेगी वह आप की कमर तोड़ देगी.

इस से हो सकता है कि आप की फ्यूचर प्लानिंग भी पूरी तरह से बिगड़ जाए. इसलिए जरूरी है समय रहते हैल्थ इंश्योरैंस लेने की ताकि आप के साथसाथ आप का परिवार भी इस में कवर हो जाए और मुसीबत की घड़ी में यह इंश्योरैंस आप के बड़े काम का साबित हो. हैल्थ इंश्योरैंस वैसे तो छोटी उम्र से ही ले लेना चाहिए ताकि कम प्रीमियम देने के साथसाथ आप अपनी और अपनी फैमिली की हैल्थ संबंधित चिंताओं से मुक्त हो जाएं.

लेकिन यदि आप इसे लेने में लेट हो गए हैं तो आप अभी भी इसे ले सकते हैं क्योंकि उम्र के साथ बीमारियों का डर बढ़ सकता है. जान लें कि कुछ बीमारियां पहले साल से ही कवर नहीं होतीं. इन का कुछ वेटिंग पीरियड होता है. ऐसी स्थिति में आप की पौकेट पर बो   झ पड़ सकता है.

नोट: आप को बता दें कि इंश्योरैंस न सिर्फ आप को सुरक्षा देते हैं बल्कि टैक्स सेविंग में भी आप की मदद करते हैं.

काम के हैल्थ इंश्योरैंस

इनडिविजुअल हैल्थ इंश्योरैंस: इस में पौलिसी का लाभ केवल एक व्यक्ति यानी सिंगल व्यक्ति ही उठा सकता है. इसलिए यह पौलिसी आप तभी लें जब आप अकेले हों.

फैमिली हैल्थ इंश्योरैंस: इस में आप अपने साथ अपने परिवार को कवर कर सकते हैं. इस में समइनशोरेड परिवार के सभी सदस्यों पर लागू होता है.

टौपअप हैल्थ इंश्योरैंस: अगर आप के पास पहले से कोई हैल्थ इंश्योरैंस है तो आप अपना प्रीमियम कवरेज बढ़ाने के लिए टौपअप हैल्थ इंश्योरैंस भी ले सकते हैं. इस का प्रीमियम हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी के मुकाबले काफी कम होता है क्योंकि इस का इस्तेमाल केवल तभी होगा, जब आप अपनी हैल्थ इंश्योरैंस पौलिसी का पूरा समऐश्योर्ड यूज कर चुके हों. आजकल कुछ हैल्थ पौलिसीज आप को फिटनैस के हिसाब से छूट भी देती हैं. आप अपने हैल्दी लाइफस्टाइल से इन पौलिसीज में प्रीमियम भी बचा सकते हैं.

स्टैप 3: इनवैस्टमैंट के लिए म्यूचुअल फंड

स्टैप 1 और स्टैप 2 जीवन की अनिश्चिंतताओं में आप के परिवार को सुरक्षा प्रदान करने का काम करता है. लेकिन खुद को फाइनैंशियल स्ट्रौंग बनाने यानी बचत करने के लिए, अपनी छोटीबड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए  म्यूचुअल फंड में इनवैस्ट करना आज काफी बेहतर विकल्प है क्योंकि इस में अच्छा व टिकाऊ रिटर्न जो मिल रहा है. ‘सिक्यूरिटी ऐक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया’ ने इस में रिस्क और सेफ्टी के आधार पर 17-18 तरह की कैटेगरी डिवाइड की हैं, जिन में आप अपनी जरूरत, रिटर्न व रिस्क को देखते हुए इंनैस्ट कर सकते हैं.

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आप को बता दें कि सिप यानी सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान के जरीए इस में निवेश करने वालों की संख्या काफी ज्यादा है क्योंकि इस में आप अपनी पसंद की म्यूचुअल फंड स्कीम में रैग्युरली एक निश्चित रकम इनवैस्ट कर सकते हैं. यह आप मंथली, क्वार्टली व सेमीऐनुअली किसी भी मोड़ का चयन कर के आसानी से अपने फाइनैंशियल गोल को पूरा कर सकते हैं.

कैसेकैसे म्यूचुअल फंड्स

डेब्ट्स फंड: ये ऐसे फंड्स होते हैं , जो एक निश्चित इनकम रिटर्न देते हैं.

गिल्ट फंड: यहे फंड आप का पैसा सिर्फ गवर्नमैंट सिक्युरिटीज में ही इनवैस्ट करते हैं, जिस से रिस्क न के बराबर होता है.

लिक्विड फंड्स: ये ऐसे फंड्स होते हैं, जिन्हें किसी भी समय यानी जरूरत पड़ने पर बंद करवाए जा सकते हैं. यह काफी सेफ तरीका है.

इक्विलिटी फंड: इस में रिस्क ज्यादा है तो रिटर्न भी ज्यादा मिलता है क्योंकि इस में आप का पैसा स्टौक मार्केट में लगता है. म्यूचुअल फंड में इनवैस्टमैंट के जरीए आप अपने गोल्स जैसे गाड़ी खरीदना, घर खरीदना, बच्चे की हायर स्टडीज के लिए पैसे जमा करना, बच्चों की मैरिज के लिए या फिर रिटायरमैंट तक के लिए इस में निवेश कर के बड़ी आसानी से गोल प्लानिंग कर सकते हैं.

स्टैप 4: रिटायरमैंट प्लानिंग

वैसे 30 की उम्र में अगर रिटायरमैंट की बात करें तो दूर की कल्पना प्रतीत होती है. लेकिन कब हम जिम्मेदारियों से घिर कर 30 से 50 के हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता. ऐसे में अगर 50 की उम्र में रिटायरमैंट प्लानिंग के बारे में सोचेंगे तब तक काफी देर हो चुकी होगी.

इसलिए जरूरी है 30 में ही इस के बारे में विचार कर निवेश शुरू कर देना ताकि 60 के बाद आप ठाटबाट से रह सकें वरना पैसे की तंगी बुढ़ापे में आप का सुखचैन छीन कर रख देगी क्योंकि कम उम्र में निवेश करने पर आप को ज्यादा रिटर्न जो मिलता है. इस के लिए आप निम्न प्लान में इनवैस्ट कर सकते हैं:

म्यूचुअल फंड : अगर आप प्राइवेट नौकरी में हैं तो आप को छोटी उम्र से ही रिटायरमैंट के लिए एक सिस्टेमैटिक वे में म्यूचुअल फंड में इनवैस्ट करना शुरू कर देना चाहिए. इस के लिए आप अपने अनुमानित खर्चों के हिसाब से रिटायरमैंट के बाद कितने पैसों की जरूरत पड़ेगी उस का टारगेट बना कर छोटीछोटी सिप में इनवैस्टमैंट कर के सेफली पैसा जमा कर सकते हैं. इस में आप अपनी सुविधा के हिसाब से तारीख का चयन कर के निवेश कर सकते हैं.

पीपीएफ: आप प्रौविडैंट फंड में भी निवेश कर सकते हैं. यह भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली एक सेवानिवृत्ति बचत योजना है, जिस का उद्देश्य रिटायरमैंट के बाद सभी को सिक्योर जीवन प्रदान करना है. इस के तहत आप साल में कम से कम 500 रुपए और ज्यादा से ज्याद डेढ़ लाख रुपए जमा कर सकते हैं.

पैंशन फंड: यह एक तरह की पैंशन योजना है, जो लंबी अवधि तक लागू रहती है. यह पैंशन योजना तुलनात्मक रूप से मैच्योरिटी पर बेहतर रिटर्न प्रदान करती है.

यूलिप: इसे यूनिट लिंक्ड इंश्योरैंस प्लान कहा जाता है. इस में लाइफ कवर के साथसाथ कंपनीज निवेश का भी मौका देती हैं.

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स्टैप 5: इमरजैंसी फंड भी है जरूरी

पिछले 2 साल में दुनिया ने ऐसा समय देखा है, जिस की हम ने कभी कल्पना भी नहीं की थी, जिस के कारण बहुत से लोगों ने अपनी नौकरियां खो दीं, अपनों को खोया और यहां तक कि अपनों को बचाने के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़े. इसलिए आज के समय की जरूरत है इमरजैंसी फंड की, जो आप की आकस्मिक जरूरतों में आप की बैकबोन का काम करेगा. इस के लिए आप के पास कम से कम 6 महीने से 1 साल तक के सभी जरूरी खर्चों के बराबर का फंड होना चाहिए.

इस के लिए आप अपने पैसों को लिक्विड फंड, हाई इंटरैस्ट सेविंग अकाउंट में इनवैस्ट कर सकते हैं और इमरजैंसी की स्थिति में आप इस फंड का इस्तेमाल कर के लोन लेने से भी बच सकते हैं. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि इमरजैंसी की स्थिति में ही इस फंड का इस्तेमाल करें.

जब खरीदें जीवन बीमा

जीवन बीमा पौलिसी असल में बीमा कंपनी और बीमाकृत जीवन के बीच एक अनुबंध होता है, जिस में बीमा धारक द्वारा भुगतान किए गए प्रीमियम के बदले बीमा कंपनी बीमाकृत व्यक्ति की मौत या तय समय के बाद एक निश्चित रकम, जिसे बैनिफिट्स कहते हैं, देने को राजी होती है. जीवन बीमा की आवश्यकता समझने के बाद भी लोगों के लिए सही प्लान का चयन करना हमेशा मुश्किल होता है. यह पर्सनल फाइनैंस के उन विषयों में से एक है, जिसे समझने में अधिकतर लोग गलती करते हैं. सामान्यतया, जीवन बीमा पौलिसी बीमा धारक की आवश्यकता एवं बचत क्षमता के आधार पर खरीदी जाती है. जीवन बीमा प्लान आप के प्रियजनों को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान कर उन्हें सुरक्षित करने के लिए लिया जाता है, इसलिए इसे खरीदने से पहले आप को अतिरिक्त सावधान रहना चाहिए. आप अगली बार जीवन बीमा खरीदते समय क्या करें और क्या न करें को ध्यान में जरूर रखें.

क्या करें

विशेषज्ञों व अलगअलग स्रोतों से सलाह लें और प्रत्येक सलाह पर धैर्यपूर्वक विचार करें. फिर इस के आधार पर जीवन बीमा के लिए अपनी आवश्यकताओं के बारे में सोचें. यदि आप संख्या में इस की मात्रा निर्धारित कर सकते हैं तो करें. जैसे आप यह देखें कि अगर आप के परिवार में 4 सदस्य हैं, तो आप के बिना घर चलाने के लिए उन्हें कितने पैसों की आवश्यकता होगी? यदि आप परिवार के मुख्य कमाने वाले सदस्य हैं, तो आप के बाद आप के बच्चों की स्कूल फीस, कालेज फीस और अन्य खर्र्चों को पूरा करने के लिए न्यूनतम कितने रुपयों की नियमित आवश्यकता होगी. इस में आप अपने सभी कर्ज, देयताएं, यहां तक कि क्रैडिट कार्ड की बकाया राशि भी शामिल करें. इस बात को समझने की कोशिश करें कि जीवन बीमा आप के परिवार को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने का जरीया है. इसे महज एक टैक्स बचाने के माध्यम के तौर पर इस्तेमाल न करें.

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अपने परिजनों विशेषकर जीवनसाथी/ नौमिनी को पौलिसी के बारे में जरूर बताएं. उसे यह भी समझाएं कि कोई अनहोनी होने पर क्लेम लेने के लिए उसे क्या करना होगा. ऐसे में अकसर हम सभी अनहोनी जैसे मुद्दों पर बातचीत करने से बचते हैं, जबकि आप अपने प्रियजनों को अपने जाने के बाद उन के लिए बनाए गए सुरक्षा कवच से अवगत करा कर अपने कौमन सैंस और समझदारी का परिचय दे रहे होते हैं. अपनी पौलिसी की नियमित आधार पर समीक्षा करें और परिस्थितियों व आवश्यकता में बदलाव होने पर उस में सुधार करें. उदाहरण के लिए यदि आप की शादी हो जाती है, आप के घर में नन्हा मेहमान आ जाता है, आप की देयता या कर्ज में बढ़ोतरी हो जाती है या आप का पेशा बदल जाता है आदि, तो अपनी पौलिसी की समीक्षा करने के दौरान आप अपने वित्तीय सलाहकार की सहायता भी ले सकते हैं.

क्या न करें

सिर्फ सस्ते के चक्कर में आवश्यकता से कम का कवर न लें. यदि आप को प्रीमियम का खर्च वहन करने में समस्या है तो कवर कम करने के बजाय कम अवधि का प्लान चुनें. प्रपोजल फौर्म में कोई भी कौलम खाली न छोड़ें तथा किसी दूसरे को अपना फौर्म भरने भी न दें. अपने प्रीमियम का भुगतान करना न भूलें, न ही इस में विलंब करें क्योंकि लैप्स अवधि के दौरान पौलिसी का कवर नहीं होता है और क्लेम नहीं मिलता है. पौलिसी लेते समय न कोई तथ्य छिपाएं, न ही कोई गलत जानकारी दें क्योंकि इस से क्लेम के समय विवाद की स्थिति बन सकती है.   

– अनिल चोपड़ा, ग्रुप सीईओ एवं निदेशक, बजाज कैपिटल

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अपना स्वास्थ्य करें सुरक्षित

महिलाएं ही अपने परिवार में स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देती हैं और सभी का खयाल रखती हैं, मगर वे कामकाजी और पारिवारिक जीवन में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि दोनों को संभालने के चक्कर में अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज करती हैं. ज्यादातर महिलाओं को इस बात का एहसास नहीं होता कि वे अपने परिवार के स्वास्थ्य का खयाल अच्छी तरह तभी रख सकती हैं, जब वे खुद बिलकुल स्वस्थ होंगी.

ऐसे में स्वास्थ्य बीमा की जरूरत को भी समझना बहुत जरूरी हो जाता है, जो आप को किसी भी मैडिकल आपात स्थिति में बड़े संकट से बचा सकता है. जांच में कोई बड़ी बीमारी निकल आए तो उस से न सिर्फ आप के स्वास्थ्य को नुकसान होता है, बल्कि वह आप की पूरी जिंदगी को भी खराब कर सकती है. आज मैडिकल इलाज बहुत महंगा हो गया है. इतना महंगा कि व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य बीमा के बिना अपने दम पर इतना वित्तीय बोझ वहन करना मुमकिन नहीं है.

स्वास्थ्य बीमा सभी आयुवर्गों के लिए उपयोगी होता है. युवा लड़कियां स्वयं और अपने मातापिता के लिए स्वास्थ्य बीमा ले सकती हैं, जबकि विवाहित महिलाएं स्वयं और अपने नए परिवार के लिए स्वास्थ्य बीमा का विकल्प चुन सकती हैं.

क्या है स्वास्थ्य बीमा

स्वास्थ्य बीमा एक व्यापक कौन्सैप्ट है, जो लोगों को किसी अप्रत्याशित मैडिकल आपदा और उस पर होने वाले खर्च से सुरक्षा प्रदान करता है. आज बाजार में ऐसी कई योजनाएं मौजूद हैं, जिन में कवर, लाभ इत्यादि उपलब्ध हैं, लेकिन सभी में कुछ न कुछ अंतर होता है.

महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा

बाजार में महिलाओं पर केंद्रित कई अनूठी योजनाएं उपलब्ध हैं, जो सिर्फ उन की जरूरतों और गंभीर बीमारियों को कवर करती हैं. हालांकि बाजार में उपलब्ध इन योजनाओं के लिए कोई विशेष प्रीमियम मूल्य नहीं है.

सभी स्वास्थ्य बीमा कंपनियां महिलाओं पर केंद्रित उत्पाद उपलब्ध नहीं करातीं, लेकिन कंपनियों की नीतियों में मैटरनिटी बैनिफिट शामिल होता है. कंपनियों की नई योजनाएं विभिन्न आयुवर्गों की महिलाओं और उन के जीवन के कई चरणों के लिए हैं. बाजार में उपलब्ध प्रत्येक पौलिसी दूसरी पौलिसी से अलग होती है. पौलिसी के कुछ सामान्य प्रावधान निम्नलिखित हैं:

– बीमा कंपनी के नैटवर्क के अस्पतालों में कैशलैस हौस्पिटलाइजेशन.

– अस्पताल में भरती होने से पहले या भरती होने के दौरान आने वाला खर्च.

– अधिकृत केंद्रों पर हैल्थ चैकअप की लागत.

– मैटरनिटी बैनिफिट, जो अस्पताल में भरती होने का खर्च भी कवर करता है. जन्म से पूर्व और जन्म के बाद होने वाला खर्च शामिल.

– ऐसी पौलिसी, जो आप के परिवार को भी कवर करे. पौलिसीधारक को कैंसर, हार्टअटैक, स्ट्रोक और गुरदे खराब होने जैसी गंभीर बीमारी होने पर संपूर्ण भुगतान.

– धारा 80 डी के तहत लाभ.

– पौलिसी में महिलाओं की गंभीर बीमारियां जैसे स्तन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर और स्पौंडिलाइटिस आदि भी कवर होता है.

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अविवाहित/विवाहित महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा

अविवाहित या विवाहित महिलाओं द्वारा उठाया जाने वाला मैडिकल खर्च काफी अधिक होता है. अगर उन के परिवार में किसी को गंभीर बीमारी हो जाए, जिस के इलाज पर काफी रकम खर्च करने की जरूरत हो तो एक समग्र हैल्थकेयर योजना और एक गंभीर बीमारी योजना परिवार को ऐसे समय में वित्तीय मदद उपलब्ध कराती है.

अगर आप अकेले ही बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही हैं तो स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के जरीए निम्तलिखित लाभ उठा सकती हैं:

– व्यापक स्वास्थ्य कवर के तहत आप के साथ आप का बच्चा भी कवर हो सकता है.

– एक ही कवर में चाइल्ड केयर बैनिफिट भी उपलब्ध हो सकता है.

– इस कवर में 12 वर्ष की आयु तक वैक्सिनेशन शुल्क भी शामिल.

– आप अपने सिंगल कवर के तहत अपने बच्चों के साथ ही अपने अभिभावकों को भी शामिल कर सकती हैं.

– किसी भी गंभीर बीमारी की स्थिति में अस्पताल में इलाज पर होने वाला पूरा खर्च शामिल.

नवविवाहित युगल के लिए स्वास्थ्य बीमा

नवविवाहित महिलाएं ऐसा बीमा योजना चुन सकती हैं कि जब अपना परिवार आगे बढ़ाने की योजना बनाएं तो मैटरनिटी बैनिफिट ले सकें. युगल मैटरनिटी लाभ तभी ले सकते हैं, जब पति और पत्नी को यह योजना लिए कम से कम 2 साल का समय बीत गया हो.

संयुक्त परिवार में रहने वाली महिलाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा अगर कोई महिला संयुक्त परिवार में रहती है तो उस के लिए भी बाजार में ऐसी पौलिसियां हैं, जो एक बार में 15 लोगों को कवर कर सकती हैं जैसे स्वयं, पति, उन पर निर्भर लोग (25 वर्ष तक की आयु के अविवाहित) या फिर उन पर निर्भर नहीं रहने वाले बच्चे, उन पर निर्भर या निर्भर नहीं रहने वाले अभिभावाक, निर्भर रहने वाले भाईबहन, बहुएं, दामाद, सासससुर, दादादादी और पोतेपोती (अधिकतम 15 सदस्य तक).

वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्वास्थ्य बीमा

वरिष्ठ महिला नागरिक किसी बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल में भरती होने पर स्वास्थ्य बीमा का लाभ उठा सकती हैं. अस्पताल से आने के बाद नर्सिंग जैसी सेवाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं और ये सेवाएं उस समय बहुत काम आती हैं, जब घर में उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं हो. कुछ पौलिसियों में नई पौलिसी खरीदने के लिए कोई उम्र सीमा नहीं होती. हालांकि उस के तहत व्यक्ति को दिए जाने वाले लाभ पौलिसी दर पौलिसी बदल सकते हैं.

बीमित रकम और भुगतान किया जाने वाला प्रीमियम

स्वास्थ्य बीमा पौलिसी का प्रीमियम योजना, प्लान, कवरेज की सीमा और बीमित रकम के साथ ही व्यक्ति की उम्र पर भी निर्भर करता है व इसी के अनुसार बढ़ या घट सकता है. प्रीमियम का भुगतान ईसीएस, कैश, चैक और डायरैक्ट औनलाइन भी किया जा सकता है.

दावों का निबटान

बीमाकर्ता पौलिसीधारक को विस्तृत दिशानिर्देश उपलब्ध कराते हैं, जिन में लिखा होता है कि दावे के लिए उन्हें क्या करना है. अस्पताल में भरती दावों के लिए बीमा कंपनी के नैटवर्क में शामिल अस्पतालों में कैशलैस सुविधा उपलब्ध  होती है. इन अस्पतालों को सूची बीमाधारक को पौलिसी लेते समय ही उपलब्ध करा दी जाती है. अगर बीमाकंपनी के नैटवर्क में शामिल अस्पतालों के अतिरिक्त कहीं और इलाज कराया तो बीमाधारक को दावों का भुगतान प्रतिपूर्ति के आधार पर करना होता है.

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कैसे खरीदें पौलिसी

पौलिसी की खरीद औनलाइन भी की जा सकती है. इस के अतिरिक्त आप बीमा कंपनी की अपने नजदीक की शाखा या कौल सैंटर पर भी कौल कर सकते हैं. उस के बाद वे एक उपयुक्त अधिकारी को आप से संपर्क करने को कहेंगे, जो आप को उस योजना की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराएगा.

बीमाकर्ता का चयन कैसे करें

व्यक्ति को बीमा हमेशा अच्छी साख वाली बीमा कंपनी से ही लेना चाहिए, जिन की सेवा और दावे निबटान का रिकौर्ड बहुत अच्छा हो, क्योंकि ये बातें उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं, जब वास्तव में आप को अपने बीमा का इस्तेमाल करने की जरूरत होती है. सस्ती पौलिसी जरूरी नहीं कि हमेशा अच्छी हो. ऐसी पौलिसी चुनें, जो कवरेज और बीमित रकम के लिहाज से आप की जरूरतों को पूरा करती हो. पूरी विवरणिका और पौलिसी के नियमों व शर्तों को ध्यान से पढ़ें, जिस से आप को निबटान इंतजार की अवधि, क्या शामिल नहीं है और पौलिसी में कितनी सीमा है जैसी जानकारी मिल सके. किसी भी पौलिसी पर हस्ताक्षर करने से पहले अच्छी तरह सोच समझ लें.

(श्रीराज देशपांडे, प्रमुख (स्वास्थ्य बीमा) फ्यूचर जेनेराली इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड)

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