ट्रेवल के दौरान इन 8 बातों का रखें ध्यान

आपने अपना बैग पैक कर लिया है और पूरी तरह से तैयार हो गए है यात्रा पर जाने के लिए. तो ये ध्‍यान रखें कि आपके पास ऐसी एक किताब ज़रूर हो जो आपके परिवार, म्‍यूजिक और दोस्‍तों के अलावा पूरे सफर में आपका साथ न छोड़े. आइए आपको बताते हैं कुछ ऐसी किताबों के बारे में जो सफर के दौरान आपके रोमांच और उत्‍साह को और बढ़ा देंगी.

1. औन द रोड 

अर्थ और ज्ञान की तलाश में सड़क पर निकले लोगों के लिए यह किताब काफी फायदेमंद है. सफर के दौरान अगर आपका दोस्त कार चला रहा है या आप बस में हैं, तो यह किताब आपकी आदर्श साथी साबित होगी.

2. ‘इंटू द वाइल्ड‘ 

जौन क्रैकुअर की किताब ‘इंटू द वाइल्ड’ कहानी है क्रिस्टोफर मैंक्केंडलेस नामक युवक की, जो दुनियादारी को छोड़ अलास्का के निर्जन जंगलों में जिंदगी बिताने चला जाता है. जंगल की यात्रा पर जाने से पहले इस कितना को अपने साथ ले जाना न भूलें.

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3. गोइंग सोलो 

अगर आप किसी ट्रिप पर अकेले जाने का प्‍लान कर रहे हैं तो रोअल डाल की कितना गोइंग सोलो आपको काफी अच्‍छी लगेगी. इस किताब में साहसिक, हास्य और रोचक क्षणों के कई ऐसे पहलू हैं, जो आपको अकेला महसूस नहीं होने देंगे.

4. आई हाईक

अगर आप एक लंबी पैदल यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो अपने पास ग्रिनटर ये किताब ज़रूर रखें. यह आपकी यात्रा के मज़े को दोगुना कर देगी.

5. मर्डर औन द ओरिएंट एक्सप्रेस

अगर आप रोमांच के शौकिन हैं और आपकी यात्रा काफी लंबी है, तो अगाथा क्रिस्टी की ये मर्डर मिस्ट्री आपको निराश नहीं करेगी.

6. अ फिल्‍ड गाइड टू गेटिंग लौस्ट 

रेबेका की इस किताब की कहानी बेहद मार्मिक और प्रेरक है जो आपको सपनों की दुनिया में ले जाएगी.

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7. एन इडियट अब्रोड: द ट्रेवल डायरिज़ औफ कार्ल

ट्रिप के दौरान मूड को रिफ्रेश करने के लिए ये बुक काफी अच्‍छी है. इस किताब में कई ऐसी बातें बताई गईं हैं जो सफर के दौरान आपकी थकान को चुटकी में दूर कर देगी.

8. अलेक्स गारलैंड की द बीच

अगर आपको समुद्र, रेत और सूरज से लगाव है. तो आपको ये किताब बेहद पसंद आएगी.

कश्मीर : हसीन वादियां बुलाएं बारबार

जम्मूकश्मीर की खूबसूरत वादियां और बर्फीले पहाड़ सैलानियों को बारबार यहां आने के लिए मजबूर करते हैं. इन गरमियों में आप भी जम्मूकश्मीर की फिजाओं में पर्यटन के नए अनुभवों से वाबस्ता हो कर मन और तन को सुकून दे सकते हैं.

आतंक के लंबे सिलसिले के बावजूद आज भी कश्मीर में दुनियाभर के सैलानी पहुंचते हैं और डल झील से ले कर गुलमर्ग तक सैरसपाटे करते हैं. अपने पहाड़ी स्वभाव और अपने मूल व्यवसाय के कारण यहां के लोग सैलानियों को सिरआंखों पर बैठाते हैं.

जम्मूकश्मीर हिमालय की बर्फीली पहाडि़यों पर भारत के मुकुट जैसा सजा हुआ है. अलगअलग ऊंचाइयों वाले इस के 3 हिस्से हैं. निचले हिस्से वाला जम्मू, मध्य हिस्से वाला कश्मीर और सब से ऊंचे हिस्से वाला लद्दाख.

जम्मू और श्रीनगर जाने के लिए दिल्ली से पठानकोट के रास्ते पहुंचा जा सकता है, जबकि लद्दाख के लिए दिल्ली से मनाली के रास्ते से हो कर जाया जा सकता है. श्रीनगर के लिए जम्मू के रास्ते से और लेह व लद्दाख को मनाली के रास्ते से दिल्ली और चंडीगढ़ से सीधी बसें हैं. लेह वाली बसें मनाली से आगे केलंग में एक रात के लिए रुकती हैं. मुसाफिर आसपास के होटलों में ठहरते हैं. पर्यटन विभाग की बसों के यात्री पर्यटक तंबुओं में ठहरते हैं.

श्रीनगर

श्रीनगर यानी सौंदर्य का नगर. समुद्रतल से 1,730 मीटर की बुलंदी पर यह कश्मीर का सब से बड़ा नगर है. यह  झेलम और डल झील के खूबसूरत किनारों पर बसा हुआ है. एक विशाल और मैदानी भूखंड के रूप में श्रीनगर चारों ओर फैली पर्वतमालाओं से घिरा है. यहां के सुंदर बाग, कलात्मक इमारतें, देवदार और चिनार के पेड़ इसे वास्तव में धरती पर एक बहुत ही खूबसूरत रूप देते हैं. गुलमर्ग, पहलगाम और सोनमर्ग इस रूप में नगीनों जैसे लगते हैं. हर कहीं लोकल बसों से जुड़े श्रीनगर में टैक्सी और तिपहिया कदमकदम पर उपलब्ध हैं. डल झील के विशाल विस्तार के आरपार जाने के लिए हर कोने पर शिकारे और नौकाएं मिलती हैं. डलगेट पर सुस्ताते मुसाफिर अपने कार्यक्रम बनाते मिलते हैं.

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दर्शनीय स्थल

डल झील और डलगेट : यह झील नगर के पूर्व में 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली है. कभी इस का विस्तार 28 वर्ग किलोमीटर था. डलगेट इस  झील का वह पहला छोर है, जहां सैलानी सब से ज्यादा घूमतेफिरते हैं.

श्रीनगर के केंद्र लालचौक से डलगेट ढाई किलोमीटर है. पर्यटक स्वागत केंद्र पास ही है. यहां ठहरने के लिए हर प्रकार के होटल, गैस्टहाउस, हाउसबोट और मकान बड़ी संख्या में मौजूद हैं. रेस्तराओं की कतारें लगी हैं. मुख्य स्थानों पर सेना व पुलिस की मौजूदगी सैलानियों को निश्ंिचत रखती है.  झील के टापू पर बना नेहरू पार्क सब को आकर्षित करता है. पास ही चारचिनार नामक नन्हा टापू है. श्रीनगर के तमाम मशहूर बाग डल झील के तटों से जुड़े हैं. डल झील से बनी नगीन  झील भी दर्शनीय है.

निशात बाग :  झील के दाहिने किनारे पर बना यह सब से बड़ा मुगल गार्डन है. नगर से 8 किलोमीटर दूर यह बाग फूलों, फौआरों और पेड़ों से सजा हुआ है. इस की दूसरी ओर से पर्वत दिखाई देते हैं.

शालीमार बाग : इसे जहांगीर ने अपनी बीवी नूरजहां के लिए 1616 में बनवाया था. निशात बाग से 4 किलोमीटर आगे एक पहाड़ की तलहटी पर यह फूलों व वनों से मालामाल बाग है. फौआरे और सीढ़ीदार  झरने इसे अनोखा रूप देते हैं. निशात बाग की तरह ही यहां से भी सैलानी सामने की पर्वतमालाओं और डल झील के विस्तार को देख सकते हैं.

बोटैनिकल गार्डन : शालीमार बाग से डलगेट की ओर लौटते हुए एक संपर्क मार्ग से कुछ ही मिनट में यहां पहुंचा जा सकता है. मखमली भूखंडों के बीच पहाड़ की ढलान पर फैले इस वनस्पति पार्क में दुनियाभर के अनोखे फूल, विविध वनस्पतियां और पेड़ मौजूद हैं. यहां एक छोटी  झील में नौकाविहार किया जा सकता है.

चश्मे शाही : इस बाग को शाहजहां ने बनवाया था. बोटैनिकल गार्डन के दाईं तरफ यह बाग अनोखी खूबसूरती का एक नमूना है.

परी महल : यह महल पहले बौद्ध मठ था. शहर से 11 किलोमीटर दूर इस जगह को बाद में शाहजहां के बेटे दारा शिकोह ने सूफी शिक्षाकेंद्र बनाया. यहां से डल झील को नए रूप में देखा जा सकता है.

सुलेमान पहाड़ : यह नगर से 1 हजार फुट की ऊंचाई पर है. यहां से श्रीनगर शहर, डल झील, बागों और बर्फीले पहाड़ों को देखना रोमांचक है.

हजरत बल : डलगेट से 6 किलोमीटर दूर  झील के पश्चिम तट पर और निशात बाग के बिलकुल सामने यह शाहजहां की बनवाई मसजिद है. इस के पीछे अकबर का बनवाया नसीम बाग है, जिस में चिनार के बहुत पुराने पेड़ हैं. यहां बैठ कर कुदरत के नजारों को देखना दिलचस्प है.

लाल चौक : यह श्रीनगर का प्रमुख बाजार है. यहां स्थानीय लोगों को भारी संख्या में देखा जाता है. इस के इर्दगिर्द शहर के अनेक बाजार हैं. लाल चौक क्षेत्र में सस्ते दामों में कपड़े, जूते और सजावट के सामान खरीदे जा सकते हैं.

बाहरी दर्शनीय स्थल

गुलमर्ग : श्रीनगर से गुलमर्ग 52 किलोमीटर दूर समुद्रतल से 2,730 मीटर की ऊंचाई पर है. वास्तव में यह फूलों और मखमली भूखंडों से सजी नूरानी घाटी है. वैसे यहां पानी की कमी नहीं है क्योंकि चारों ओर देवदारों और बर्फ से ढके पहाड़ों से गुलमर्ग तक पानी आता है, जिस से कुछ तालाब बनाए गए हैं.

सोनमर्ग : श्रीनगर-लेह मार्ग पर सोनमर्ग 86 किलोमीटर दूर कश्मीर की आखिरी घाटी है. सिंध नदी के किनारे समुद्रतल से 2,740 मीटर की ऊंचाई पर इस का समूचा इलाका सोने जैसी रंगत के फूलों से सजा हुआ है. इसे खूबसूरत और खतरनाक ढलानों के लिए भी जाना जाता है. यहां से जोजिला पास, कारगिल और लद्दाख के लिए रास्ता जाता है.

पहलगाम : जम्मूश्रीनगर मार्ग पर अनंतनाग है, जहां से 42 किलोमीटर दूर स्थित पहलगाम को रास्ता जाता है. लिद्दर नदी के तट पर बसे पहलगाम का अर्थ ‘गड़रियों का गांव’ है. कहा जाता है कि ईसा ने यहां अपने अज्ञातवास के कुछ वर्ष बिताए थे. यहां बर्फीले पर्वत, घने जंगल, सुंदर वन,  झरने, मखमली भूखंडों पर बहती जलधाराएं और कुदरत के करिश्मे एक नजर में देखे जा सकते हैं. श्रीनगर से 61 किलोमीटर दूर मट्टन नामक जगह पहलगाम जाने वालों के लिए अच्छा विश्रामस्थल है. यहां एक सुंदर झरना भी है.    -सैन्नी अशेष

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लेह लद्दाख

हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से सटा लेह व लद्दाख भले ही आम लोगों की नजरों में छिपा हुआ हो लेकिन पर्यटकों के लिए लद्दाख नया नहीं है. पर्वतारोहण के लिए यह इलाका दशकों से आकर्षण का केंद्र है. लेह व लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य के दुर्गम इलाके हैं. विदेशी पर्यटकों का हमेशा से ही लद्दाख में आवागमन रहा है लेकिन आम लोगों के लिए लद्दाख तब से आकर्षण का केंद्र बना जब से फिल्म ‘थ्री इडियट’ में लद्दाख की हसीन वादियों के कई  दृश्यों का फिल्मांकन दिखाया गया. खासतौर पर पेंगगांग जहां पर खूबसूरत बीच में समुद्र के पानी में तीनों रंगों का संगम है और चारों तरफ पहाडि़यों की चादर है. इसी तरह वह स्कूल जहां पर आमिर खान बच्चों को पढ़ाते हैं. वह खूबसूरत स्कूल भी दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है.

लद्दाख जाना लोगों को मुश्किल लगता था क्योंकि आम लोगों की यह धारणा रही है कि वहां पर आतंकवादियों का बसेरा है. लेकिन अब पिछले कुछ सालों से लेह लद्दाख भी लोगों के बीच प्रसिद्ध हो रहा है. कुछ लोगों में यह धारणा भी थी कि लद्दाख भारत के बाहर है और वहां जाने के लिए पासपोर्ट लगता है. लेकिन अब ये सारी गलत धारणाएं दूर हो गई हैं और अब तो ट्रैवलिंग सर्विस और विमान सेवा की बदौलत लेह व लद्दाख जाना आसान और संभव भी हो गया है.

रास्ते खुले हों तो मनाली के रास्ते दिल्ली से लेह की बसें 1,045 किलोमीटर के रास्ते पर रोज आतीजाती हैं. बस या टैक्सी से मनाली से लेह तक का सफर बड़ा रोमांचक है.

मैं ऐसे समय में लद्दाख पहुंची जब वहां पर सिंधु नदी पर सिंधु त्योहार मनाया जाता है. इस अवसर पर वहां सांस्कृतिक ढंग से नाचगाना, लोकनृत्य, पोलो मैच आदि का आयोजन किया जाता है.

सिंधु उत्सव का आनंद उठाने के बाद जब मैं ने लेहलद्दाख की हसीन वादियों का आनंद उठाने के लिए यात्रा शुरू की तो मैं ने पहाड़ों की कटीली वादियों के बीच ज्यादातर बौद्ध स्तूप पाए जो तकरीबन 500 साल पुराने थे. पहाड़ों की चोटियों से घिरे लद्दाख की खूबसूरती देखते बनती थी.

कई जगहों पर पथरीले पहाड़ों पर बर्फ की चादर सी बिछी थी. लद्दाख की यात्रा के दौरान मुलतानी मिट्टी के पहाड़ के अलावा हमें जो मुख्य आकर्षण देखने को मिले वे थे सफेद रंग का बना हुआ शांति के प्रचार के लिए जापानी बुद्धिस्ट हिल टौप चैंगस्पा का बनाया हुआ शांति स्तूप, लेमायक हैफिस, हिक्से अल्ची, लेह का महल जोकि 17वीं शताब्दी में बना और उस में तिब्बत की कलाकृतियां देखने को मिलती हैं. हौल औफ फेम म्यूजियम जिस में लद्दाख की सांस्कृतिक कलाकृतियां, गौडेस तारा, पुरानी बंदूकें और पुराने सिक्के आदि का अच्छा संग्रह है.

लेह मार्केट में खूबसूरत मफलर, खूबसूरत लद्दाखी गहने, मास्क, प्रेयर व्हील आदि सजे हुए थे. हिमस मोनैस्ट्री वहां की प्रसिद्ध विशाल मोनैस्ट्री है. इस के अलावा एक जगह डबल हम्प है जहां अलग प्रकार के लद्दाखी ऊंट पाए जाते हैं. इन ऊंटों की खासीयत यह है कि इन के बाल सिल्क जैसे होते हैं और ये ऊंचाई में अन्य ऊंटों के मुकाबले अलग होते हैं.

कहां ठहरें

लेह के मुख्य बाजार, कारजू लेन, पर्यटन कार्यालय रोड, चांग्स्पा बाजार, शांति स्तूप रोड और आसपास के बाजारों में काफी होटल और गैस्टहाउस हैं. इस के अलावा कई लोगों ने अपने घरों में भी सैलानियों के लिए ठहरने की व्यवस्थाएं कर रखी हैं.

-आरती सक्सेना

पटनीटौप

जम्मू से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पटनीटौप घने देवदार, चीड़ के जंगल, कलकल करते  झरने, बर्फ से ढकी चोटियों और भीड़भाड़ से दूर कम आबादी वाला स्थान है. चिनाब की घाटी का सौंदर्य, मनलुभावन वादियां और कोहरे के बीच यहां का प्राकृतिक सौंदर्य सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. पटनीटौप पहुंचने के लिए जम्मू और कटरा से नियमित बस सेवा के साथसाथ टैक्सी भी मिलती है.

यहां गरमी की छुट्टियों में लोग सर्दियों का मजा उठाते हैं. सर्दियों में यहां पैराग्लाइडिंग और स्कीइंग का अलग ही आनंद होता है. यहां आ कर सैलानी गोल्फ खेलने का भी लुत्फ खूब उठाते हैं. पटनीटौप में ठहरने के लिए राज्य पर्यटन विभाग के कई टूरिस्ट बंगले और होटल हैं.

दर्शनीय स्थलों में किस्तवाड़ एक अच्छा ट्रैकिंग स्थल है. पटनीटौप से 17 किलोमीटर दूर सनासर की खूबसूरती बेमिसाल है. प्याले के आकार की शांत व सुरम्य इस घाटी के चारों ओर हरेभरे मैदान हैं.

पटनीटौप की पर्वतश्रेणियों की ढलान पर मनोरम स्थान ‘बटोट’ चिनाब की घाटियों का सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है. पटनीटौप से लगभग 11 किलोमीटर दूर शिवगढ़ मरीजों के स्वास्थ्य लाभ के लिए उपयुक्त जगह है क्योंकि यहां की हवा व पानी बहुत शुद्ध हैं.

फिल्मों में कश्मीर की हसीन वादियां देख कर मेरा मन वहां जाने के लिए उतावला था इसलिए शादी के बाद हनीमून मनाने वहीं गए. वाकई वहां पहुंच लगा कि वहां की हसीन वादियों में बिताए हसीन पल कभी नहीं भूल सकते.

-सरिता कश्यप, नई दिल्ली

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बनारस की चाट, जिसे खाने के बाद आप उसका स्वाद भूल नहीं पाएंगे

बनारस वाराणसी काशी ना जाने कितने नामो से हम पुकारते है, इसे.  बनारस में ना जाने ऐसे क्या है जो टूरिस्टों को काफी आकर्षित कर यहाँ तक खींच ही लाती है.  बनारस में देखने समझने को ना जाने कितने चीजें है.  बनारसी साड़ी, ऐतिहासिक घाट, प्राचीन मंदिर, बनारसी पान, और लस्सी आदि के अलावा यहां के कई ऐसे पकवान और खाने की चीजें भी खूब पसंद की जाती हैं.  बात अगर यहाँ के स्ट्रीट फूड की करें तो चाट के बिना यह लिस्ट अधूरी है.  बनारस में चाट की कई वैरायटी आपको मिल जाएगी, जिसे खाने के बाद आप उसका स्वाद  भूल नहीं पाएंगे.  महिलाओं को गोलगप्पे और चाट काफी पसंद होते हैं, ऐसे में अगर आप बनारस गई हैं तो यहां कि इन मशहूर जगहों पर मिलने वाली चाट को खाना न भूलें.

चाट के अलावा इन जगहों पर मिलने वाली ऐसे कई डिश हैं, जो आपका दिल आसानी से जीत लेंगी.  हालांकि बनारसी लोगों की तरह बनारसी खाने की भी अपनी एक खासियत है, जो लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बना लेती हैं.  देसी खाना अगर आपको बेहद पसंद है, तो आप यहां की फेमस डिश को ट्राई कर सकती हैं.  यही नहीं सुबह से लगने वाली भीड़ देख आप खुद भी अंदाजा लगा सकती हैं कि  यहां के लोग खाने के कितने दीवाने हैं.

काशी चाट भंडार

बनारस का सबसे पुराना और फेमस चाट रेस्टोरेंट है काशी चाट भंडार, जो गोदौलिया पर  है.  इस चाट भंडार की  लोकेशन घाट और काशी विश्ननाथ मंदिर के आसपास होने की वजह से यहां हमेशा भीड़ लगी रहती है.  यहां आपको बिना लहसुन और प्याज के चाट या फिर अन्य पकवान परोसे जाते है.   आपको यहां अलग-अलग तरीके की चाट मिलेगी, जिसमें टमाटर चाट, आलू टिक्की, पानी बताशे/ गोलगपा आदि शामिल हैं.  अगर आप बिना लहसुन प्याज के चटपटे पकवानों को टेस्ट करना चाहती हैं तो यहां आकर जरूर  एक्सप्लोर करें.

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राम भंडार

बनारस के ठठेरी बाजार के गली में अगर आप घूम रही हैं तो एक बार राम भंडार के पकवानों का स्वाद जरूर चखे.   हालांकि यहां कि चाट काफी फेमस है,  चाट ही नहीं यहाँ चाट के अलावा भी यहां मिलने वाली कई तरह के  ऐसी पकवान हैं, जिसे देखने के बाद आपके मुंह में पानी आने लगेगा.  चाट के अलावा यहां समोसे, कचौड़ी सब्जी जैसी कई और भी चीजें हैं जो एक बार आपको जरूर ट्राई करनी चाहिए.  खास बात है कि राम भंडार में सभी चीजों को तैयारी देसी घी से की जाती है, जिससे इसका स्वाद दोगुना बढ़ जाता है.  100 रुपये में आप यहां कई फूड आइटम टेस्ट कर सकती हैं.

दीना चाट भंडार

बनारस में दशाश्वमेध घाट बेहद प्रचलित घाट है.  यहां सुबह-सुबह ही लोगों की भीड़ लग जाती है.  सुबह-सुबह गंगा स्नान करने के बाद लोग अपने खाने का इंतजाम भी घाट पर ही करते हैं, लेकिन आप चाट की दीवाने या दीवानी हैं तो दीनानाथ चाट भंडार की चाट को टेस्ट करना न भूलें.  यहां आपको अलग-अलग तरीके की चाट मिल जाएँगी, लेकिन यहाँ सबसे ज्यादा टमाटर चाट खाना पसंद की जाती है, जिसमें मसाले और पालक के अलावा ड्राई टमाटर भी मिक्स होते हैं.  इसके अलावा यहां के गोलगप्पे, आलू टिक्की, और गुलाब जामून भी खूब पसंद किए जाते हैं.

विश्वनाथ चाट भंडार

अगर आप कुल्हड़ में चाट का स्वाद लेना चाहती हैं तो यहां आ सकती हैं.  यहां आपको अलग-अलग वैरायटी में चाट और कई स्ट्रीट फूड मिल जाएंगे.  हालांकि बनारसी समय के पाबंद नहीं होते हैं, ऐसे में वह खाते वक्त पूरा जायका लेना पसंद करते हैं.  कुछ ऐसी ही दीवानगी आपको यहां देखने को मिल जाएगी.  इसलिए अगर आप चाट एक्सप्लोर करना चाहती हैं तो आपके पास अधिक समय होना चाहिए, क्योंकि यहां लगने वाली लाइन से आप परेशान भी हो सकती हैं.

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कचौड़ी गली

अलग-अलग स्ट्रीट फूड से भरपूर है, बनारस की  कचौड़ी गली.  कचौड़ी गली में मिलने वाले कई ऐसे पकवान है, जिसका स्वाद आपका दिल जीत लेंगे.  चाट के अलावा यहां ब्लू लस्सी भी काफी मशहूर है.  अगर आपको अपने डेली रूटीन में किसी एक दिन ऑयली और चटपटा  खाना खाने का मन करे तो कचौड़ी गली जरूर घूम आएं.  कहते है की, बनारसी जिस दिन घर का खाना खाने से बोर हो जाते हैं तो वह ब्रेकफास्ट, लन्च और डिनर तीनों कचौड़ी गली से खाना पसंद करते हैं.  इस गली में चाट और अन्य पकवानों को एक्सप्लोर करने के लिए सुबह-सुबह इस जगह पर जाएं.  आपको बता दें की बनारस की सैर  इस गली को घूमे बिना अधूरी रहेगी.

Travel Special: प्रकृति का अनमोल तोहफा है नेतरहाट

प्राकतिक सौंदर्य एवं खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड राज्य के लातेहार जिले में समुद्र तल से 3,622 फीट ऊंचाई पर स्थित नेतरहाट का मौसम सालभर खुशनुमा रहता है. इसे प्रकृति का अनमोल तोहफा कहा जाता है, यही वजह है इस अनुपम स्थल को निहारने के लिए पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं. आने वाले पर्यटक प्रकृति के इस खूबसूरत स्थल को ‘नेचर हाट’ भी कहते हैं.

नेतरहाट को ‘छोटा नागपुर की रानी’ भी कहा जाता है. नेतरहाट शब्द की उत्पत्ति के विषय में कहा जाता है कि नेतुर (बांस) और हातु (हाट) मिलकर यह शब्द बना है. प्राचीन समय में यहां बांस का जंगल था, जिस कारण इसका नाम नेतरहाट पड़ गया. नेतरहाट पठार के निकट की पहाड़ियां सात पाट कहलाती हैं. यहां बिरहोर, उरांव और बिरजिया जाति के लोग निवास करते हैं.

रांची से करीब 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नेतरहाट आने के लिए प्रतिदिन बसें चलती हैं. रांची से आने के दौरान नेतरहाट पहुंचने के 50 किलोमीटर पूर्व से ही पहाड़ियों पर बने टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर किसी वाहन की सवारी आपको रोमांचित कर देगी.

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नेतरहाट पहुंचने के लिए घने जंगलों और पहाड़ियों से होकर गुजरना पड़ता है. बनारी गांव से एक सर्पीला रास्ता हमें वहां तक ले जाता है. इन रास्तों से गुजरते हुए कभी-कभी लोग भयभीत भी हो जाते हैं. रास्तेभर बांस, सेमल, पलाश, पइन, साल और अयर के पेड़ आपका स्वागत करते नजर आएंगे तो कचनार फूल की महक आपको तरोताजा करती रहेगी.

नेतरहाट आने वाले पर्यटक यहां के सूर्योदय और सूर्यास्त देखना नहीं भूलते. सूर्योदय के दौरान इंद्रधनुषी छटा को देखकर ऐसा लगता है कि हरी वादियों से एक रक्ताभ

गोला धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है. इस क्षण प्रकृति का कण-कण सप्तरंगी हो जाता है और पर्यटक इस दृश्य को देखकर सहसा कह उठते हैं- अद्भुत!

सूर्यास्त देखने के लिए लोग नेतरहाट से 10 किलोमीटर दूर मैगनोलिया प्वाइंट जाते हैं.

पर्यटक यहां का प्रसिद्ध नेतरहाट आवासीय विद्यालय भी देखने आते हैं. इस विद्यालय की स्थापना इंडियन पब्लिक स्कूल कान्फ्रेंस के संस्थापक सदस्य एफ .जे. पायर्स ने वर्ष 1951 में किया था. यह विद्यालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए विख्यात है.

पर्यटक पहाड़ी से उतरती कोयल नदी की बलखाती लहरों के नयनाभिराम दृश्य देखने के लिए कोयल व्यू-प्वांइट पर पहुंचते हैं. नेतरहाट से 35 किलोमीटर दूर शंख नदी पर सदनी जल प्रपात एक महत्वपूर्ण पिकनिक स्थल है तो नेतरहाट से 65 किलोमीटर दूर लोध जलप्रपात भी है.

यदि जंगल-पहाड़ होते हुए पैदल जाएं तो 16 किलोमीटर की दूरी ही तय करनी पड़ती है. वैसे मैगनोलिया प्वाइंट से भी दूर पहाड़ों से गिरती लोधा जलप्रपात के पानी की तीन पतली धाराएं दिखती हैं. यह जलप्रपात 468 फीट की ऊंचाई से गिरती है.

यहां आने वाले पर्यटक ऊपरी घाघरी झरना और निचली घाघरी झरना भी देखना नहीं भूलते. झारखंड का दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात बरहा घाघ भी यहीं है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

यहां तीन से चार दिन रहकर प्रातिक छटा का लुत्फ पूरी तरह उठाया जा सकता है. यहां ठरहने के लिए वन विभाग के रेस्ट हाउस के अलावा विभिन्न श्रेणी के निजी रेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं.

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नेतरहाट आने के लिए रांची से गुमला होते भी एक मार्ग है और डालटनगंज या लातेहार से बेतला नेशनल पार्क और महुआडांड़ होते हुए भी यहां पहुंचा जा सकता है. प्रतिदिन पांच से छह बसें रांची और डालटनगंज से चलती हैं. अगर अपने वाहन से सैर करना चाहें तो कहना ही क्या!

अगर आप गर्मी की लंबी छुट्टी में किसी पर्यटन स्थल की सैर करना चाहते हैं तो नेतरहाट इसके लिए उत्तम स्थान हो सकता है.

बड़े शहरों की सस्ती लेकिन उम्दा मार्केट

जब भी आप कहीं घूमने जाते हैं तो बिना शॉपिंग आपकी ट्रिप अधूरी रहती है. शॉपिंग का असली मजा किसी मॉल में नहीं बल्कि शहर की लोकल और भीड़-भाड़ वाली मार्केट में होता है और यहां चीजें सही दामों पर मिल जाती हैं. यहां आपको शहर के कल्चर के बारे में भी बहुत कुछ पता चलता है. यहां जानिए कुछ बड़े शहरों की सस्ती लेकिन उम्दा मार्केट.

1. कोलाबा कॉजवे मार्केट, मुंबई

इस स्ट्रीट मार्केट में आपको किताबों से लेकर, हैंडीक्रॉफ्ट्स, कपड़ों और फुटवियर्स तक सबकी वैराइटी मिलेगी. यहां की सबसे खास बात है कि यहां ट्रेडिशनल और मार्डन दोनों ही तरह के कपड़ें अवेलेबल होते हैं.

2. सरोजिनी मार्केट, दिल्ली

दिल्ली यूं तो काफी मंहगी जगह है लेकिन यहां स्ट्रीट शॉपिंग काफी सस्ती है. यहां कम बजट के बावजूद आप दिल खोलकर शॉपिंग कर सकते हैं. इंडियन से लेकर वेस्टर्न कपड़े तक मिल जाते हैं.

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3. लाड बाजार, हैदराबाद

हैदराबाद का मोती मशहूर है. हैदराबाद के लाड बाजार पर्ल से लेकर बैंगल, ज्वैलरी और कपड़ों तक की शॉपिंग के लिए जाना जाता है लाड बाजार. शायद ही ऐसी कोई चीज है जो यहां न मिलती हो.

4. जोहरी बाजार, जयपुर

राजस्थान हैंडीक्राफ्ट के लिए जाना जाता. जयपुर के जोहरी बाजार सोने और चांदी की ज्वैलरी के लिए काफी फेमस हैं. इतना ही नहीं यहां के मार्केट में सस्ते दामों पर ज्वैलरी के साथ-साथ महंगी-महंगी साड़ियां और लहंगे भी लोग किराये पर ले जाते हैं.

5. गरियाहाट मार्केट, कोलकाता

कोलकाता की इस मशहूर मार्केट में कपड़े, ज्वैलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, साड़ियों, फर्नीचर सब मौजूद है. यहां सड़क के दोनों ओर दुकानों सजी रहती हैं.

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Travel Special: चलिए बावड़ियों के गांव आभानेरी

आभानेरी राजस्थान का एक प्रसिद्ध गांव है, जिसे बावड़ियों का गांव भी कहा जाता है. यहां विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी के साथ कई छोटी-छोटी अन्य बावड़ियां भी हैं. इन बावड़ियों के साथ आभानेरी का हर्षत माता मंदिर भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. आभानेरी गांव का नाम आभा नगरी(चमकने वाला शहर) था, लेकिन धीरे-धीरे भाषा की तोड़ मरोड़ से इसका नाम आभानेरी पड़ गया.

आभानेरी के ये दोनों ही आकर्षण के केंद्र वास्तुकला के अद्भुत नमूने हैं. प्राचीन काल में वास्तुविदों और नागरिकों द्वारा जल संरक्षण के लिए बनाई गई इस प्रकार की कई बावड़ियां इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जिनमें काफी पानी जमा रहता है और जो क्षेत्र के निवासियों के काम आता है. चांद बावड़ी इन सभी बावड़ियों में सबसे बड़ी और लोकप्रिय है.

विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी, चांद बावड़ी

विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी चाँद बावड़ी का निर्माण राजा चांद ने 8वीं या 9वीं शताब्दी में कराया था. इसे ‘अंधेरे उजाले की बावड़ी’ भी कहा जाता है. चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफेद दिखायी देती है. बावड़ी के तह तक पहुंचने के लिए लगभग 1300 सीढ़ियां बनाई गयीं हैं जो एक अद्भुत कला का उदाहरण है. भुलभुल्लैया जैसी बनी इन सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है, कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता है. यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभयुक्त बरामदों से घिरी हुई है.

इस बावड़ी में एक सुंरगनूमा गुफा भी है जो 17 किलोमीटर लंबी है. यह गुफा पास ही स्थित भंडारेज गांव में निकलती है. कहा जाता है कि कई सालों पहले एक बारात इस गुफा के अंदर गयी जो दोबारा कभी वापस नहीं लौटी. कथानुसार कहा जाता है कि इस बावड़ी और इसके पास ही कुछ अन्य बावड़ियों को एक रात में ही बना कर तैयार किया गया था.

बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिषासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. बावड़ी के एक शिलालेख में राजा चांद का भी उल्लेख किया गया है.

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यह वर्गाकार बावड़ी चारों तरफ से 35 मीटर चौड़ी है. ऊपर से नीचे तक पक्की बनी सीढ़ियों के कारण पानी का स्तर चाहे जो भी हो यहां हमेशा आसानी से पानी भरा जा सकता है. इस बावड़ी के पास ही स्थित हर्षत माता का मंदिर भी लोगों के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र है.

हर्षत माता मंदिर

चांद बावड़ी के पास ही स्थित हर्षत माता का मंदिर पत्थरों पर नक्काशी का एक बेजोड़ नमूना है. इस मंदिर पर कई विदेशी आक्रमण की वजह से यहां की प्रतिमाएं क्षत विक्षत पड़ी हैं. बताया जाता है कि 1021-26 के काल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया तथा सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया था.

10वीं शताब्दी में निर्मित इस मन्दिर में आज भी प्राचीन काल की वास्तुकला और मूर्तिकला के दर्शन होते हैं. आभानेरी की ये बावड़ियां और मंदिर इस जगह को एक विचित्र और चकित कर देने वाला पर्यटक स्थल बनाती हैं.

यह भी कहा जाता है कि चांद बावड़ी का निर्माण भूतों ने किया है, और जानबूझकर इसे इतनी गहरी और अत्यधिक सीढ़ियों वाली बनाई है कि यदि इसमें एक सिक्का उछाला जाये तो उसे वापस पाना लगभग असंभव है. आभानेरी में चांद बावड़ी और अन्य बावड़ियों के बीचोंबीच एक बड़ा गहरा तालाब है, जो इलाके को गर्मी के दिनों में भी ठण्डा रखता है.

बावड़ियों के इस नगर में वास्तुकला के नमूने और यहां की विशिष्टता देख आप दंग रह जाएंगे.

यहां पहुंचें कैसे?

आभानेरी नगर राजस्थान के दौसा जिले से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर है और जयपुर से लगभग 95 किलोमीटर की दूरी पर. जयपुर और दौसा से कई बसों की सुविधा यहां तक के लिए उपलब्ध हैं.

तो अपने अगले राजस्थान या जयपुर की यात्रा में विश्व की सबसे बड़ी बावड़ी चांद बावड़ी की यात्रा करना ना भूलें, जहां की वास्तुकला आपको अचंभित कर देगी.

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Budget Friendly है इन जगहों पर घूमना

भागती दौड़ती जिन्दगी में कई बार हम खुद को खोने लगते हैं. ऐसे में हमें खुद अपने लिए टाइम नहीं मिलता और न ही हमारे कल्पनायें उड़ान भर पाती हैं. अगर आप भी कुछ दिनों के लिए अपने आप को समय देना चाहते हैं तो आप भी हमारे लिस्ट में से कोई जगह सेलेक्ट करें और निकल जाइए जिन्दगी को एन्जॉय करने. सबसे खास बात ये है कि ये सारे ट्रिप्स आपके बजट में हैं, और आप 5000 रुपए में इन जगहों पर घूमने जा सकते हैं.

1.कसोल, हिमाचल प्रदेश

कसोल हिमाचल में आपको हिप्पी वाली फिलिंग आएगी. यहां आपको खूबसूरत वादियों के बीच गोवा जैसे बार और रेस्त्रां मिलेंगे. ये जगह दिल्ली से दूर है, पर आप केवल 800 रुपए के किराए में यहां पहुंच सकते हैं. ऊंची पहाड़ीयों और घनी वादियां से ज्यादा एक्साइटिंग और क्या होगा?

2. जयपुर, राजस्थान

राजस्थान के इस खूबसूरत शहर तक की यात्रा दिल्ली से बहुत आसान है. आप इस शहर में किसी भी होटल में ओवरनाइट स्टे कर सकते हैं. शहर घूमने के लिए आप किसी गाइड की मदद ले सकते हैं, जो महज 500 रुपए में आपको शहर घूमा देगा. खाने पीने के लिए 500 रुपए, और आपकी जेब में अब भी 2000 रुपए बचेंगे. कोई भी ऐतिहासिक जगह इससे सस्ती नहीं हो सकती.

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3. लैंसडाउन, उत्तराखण्ड

आधुनिकता के इस दौर में भी लैंसडाउन ने अपना खूबसूरती बरकरार रखी है. दिल्ली से यहां पहुंचने के लिए आप कोटद्वार तक की बस ले सकते हैं, यह लैंसडाउन से 50 किमी की दूरी पर है. उसके बाद लोकल बस लेकर शहर घूम सकते हैं, जिसमें 1000 रुपए से अधिक खर्च नहीं होंगे. ठहरने के लिए यहां बहुत से होटल हैं, जिसमें सबसे शानदार होटल भी 1500 से अधिक चार्ज नहीं करेंगे. आपके पास अभी भी 2500 रुपए बचे रहेंगे.

4. तवांग, अरुणाचल प्रदेश

यह खूबसूरत पहाड़ियों से घिरा एक रिलीजियस डेस्टिनेशन है. कमर्शियलाइजेशन से अछूता यह स्थान आपके लिए पॉकेट फ्रेंडली है. यहां आपको प्रकृति का मेजिक देखने को मिलेगा और होट्लस भी अधिक चार्ज नहीं करते.

5. ऋषिकेश,उत्तराखण्ड

ऋषिकेश और वहां कि रिवर राफटिंग के बारे में तो आपने सूना ही होगा. ये शहर आस्था और एडवेंचर दोनों का केन्द्र है. दिल्ली से बस से आसानी से ऋषिकेश पहुंचा जा सकता है. वन-वे बस फेयर 200 से शुरू होकर 1400 तक हो सकते हैं. ऋषिकेश में कई आश्रम हैं जहां आप 150 प्रतिदिन के हिसाब से आराम से रुक सकते हैं.

6. कसौली, हिमाचल प्रदेश

कसौली शिमला के पास एक छोटा सा हिल स्टेशन है. कसौली तक पहुंचने के लिए आप दिल्ली से काल्का तक की ट्रेन लें और फिर कसौली के लिए टैक्सी शेयर कर लें. इसमें अधिक से अधिक 1500 रुपए खर्च होंगे. कसौली में आपको 1000 या उससे भी कम में होटल मिल जायेंगे. इसके बाद घूमने फिरने के लिए भी आपके पास 2500 रुपए बच जायेंगे.

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7. मसूरी, उत्तराखण्ड

मसूरी शहर अपने में प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ ब्रिटिश-अधीन भारत का इतिहास भी बताता है. मसूरी तक पहुंचने का सबसे अच्छा रास्ता है एक रोड ट्रिप. इससे आप प्रकृति के सौंदर्य का मजा भी ले पायेंगे. ओवरनाइट स्टे करने के लिए आपको 600 तक अच्छा होटल मिल जाएगा.

8. बिन्सर, उत्तराखण्ड

दिल्ली से 9 घंटे की दूरी पर है बिन्सर. यह जगह अपने वाइल्ड लाइफ के लिए फेमस है. दिल्ली से काठगोदाम के लिए आप ट्रेन से सकते हैं. उसके बाद लोकल बस से आप बिन्सर पहुंच सकते हैं.

Travel Special: रंगीलो राजस्थान का दिल है जोधपुर

शानदार महलों, दुर्ग और मंदिरों के लिए विख्यात रंगीलो राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर की बात ही निराली है. पूरे शहर में बिखरे वैभवशाली महल, जो न सिर्फ यहां के ऐतिहासिक गौरव को जीवंत करते हैं, बल्कि यहां की हस्तकलाएं, लोक-नृत्य, पहनावे और संगीत शहर की समां को रंगीनियत से भर देते हैं…

जोधपुर के आसपास

जोधपुर से करीब 25 किमी. की दूरी पर गुडा बिश्नोई गांव वाइल्डलाइफ और प्रकृति की सुंदर छटा निहारने के लिए बेहतरीन स्थान है. ओसियन जोधपुर से लगभग 65 किमी.की दूरी पर स्थित एक प्राचीन शहर है. यह जैन शैली के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है. यहां ऊंट की सवारी कर सकते हैं.

इसके अलावा, मछिया सफारी पार्क, कायलाना लेक भी दर्शनीय स्थल हैं. पाली में सोमनाथ और नौलखा मंदिर शिल्पकला के लिए मशहूर हैं. उर्स के दौरान मीर मस्तान की दरगाह मुख्य आकर्षण होता है.

जोधपुर शहर फोर्ट, पैलेस और मंदिरों के लिए दुनियाभर में मशहूर है, लेकिन एडवेंचर स्पोट्र्स और खाने-पीने के शौकीनों को भी यह शहर खूब आकर्षित करने लगा है.

रंग-बिरंगे परिधान में सजे लोग और उनकी मनमोहक लोक-नृत्य व संगीत इस शहर की समां में चार-चांद लगा देते हैं. यह राजस्थान के बीचोबीच स्थित है, इसलिए इसे राजस्थान का दिल भी कहा जाता है. राठौड़ वंश के प्रमुख राव जोधा ने इस शहर की स्थापना वर्ष 1459 में की थी. उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जोधपुर है. यह शहर सन सिटी और ब्लू सिटी के नाम से भी मशहूर है. इसे सन सिटी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहां की धूप काफी चमकीली होती है. वहीं, मेहरानगढ़ किले के आसपास नीले रंग से पेंट घरों के कारण इसे ब्लू सिटी के नाम से भी जाना जाता है.

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उमेद भवन पैलेस

जोधपुर जाने वाले पर्यटकों में उमेद भवन पैलेस के प्रति एक खास आकर्षण होता है. महाराजा उमेद सिंह (1929-1942) ने इसे बनवाया था. दरअसल, यह दुनिया के सबसे बड़े प्राइवेट रेजिडेंस में से एक है. इसमें तकरीबन 347 कमरे हैं.

महल की खासियत है कि इसे बलुआ पत्थरों से जोड़ कर बनाया गया था. इस बेजोड़ महल के वास्तुकार हेनरी वॉन थे. महल का एक हिस्सा हेरिटेज होटल में परिवर्तित कर दिया गया है, जबकि बाकी हिस्से को म्यूजियम का रूप दे दिया गया है, जिसमें राजघराने से जुड़ी वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है.

मेहरानगढ़ किला

जोधपुर जाएं, तो मेहरानगढ़ फोर्ट देखना न भूलें. करीब 150 मीटर ऊंचे टीले पर बना यह किला भारत के सबसे बड़े फोर्ट में से एक है. यहां से जोधपुर शहर का शानदार नजारा दिखाई देता है. इसका निर्माण राव जोधा ने 1459 में करवाया था. यहां पहुंचने के लिए घुमावदार रास्तों और पथरीले टीलों से होकर गुजरना होगा, लेकिन फोर्ट पहुंचने के बाद इसकी भव्यता देखते ही बनती है. इस किले में कई पोल यानी प्रवेशद्वार हैं, जिनमें जयपोल,फतहपोल और लोहपोल प्रमुख हैं.

किले में स्थित महलों को देखने के बाद आपको मेहरानगढ़ की भव्यता का एहसास होगा. उस दौर की राजशाही वस्तुओं व धरोहर भी यहां देखे जा सकते हैं. किले की प्राचीर पर आज भी तोपें रखी हैं. उस काल के अस्त्र-शस्त्र और पहनावे भी यहां देखे जा सकते हैं. यहां फूल महल, झांकी महल भी दर्शनीय हैं. अगर आपको एडवेंचर पसंद है, तो इस किले में जिप-लाइनिंग की व्यवस्था है.

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जसवंत थडा

मेहरानगढ़ किले से कुछ ही दूरी पर जसवंत थडा बेहद खूबसूरत स्मारक है. पहाड़ों से घिरे सफेद संगमरमर की बनी इस स्मारक की नक्काशी देखते ही बनती है. इसके पास ही एक झील है, जो चांदनी रात में स्मारक की खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. यह जोधपुर राज परिवार के राठौड़ राजा-महाराजाओं का समाधि स्थल भी है.

मंडोर गार्डन

मारवाड़ के महाराजाओं की पहली राजधानी मंडोर थी. यह जोधपुर से करीब 5 मील की दूरी पर स्थित है. यह पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है. यहां के दुर्ग देवल, देवताओं की राल, गार्डन, म्यूजियम, महल, अजीत पोल आदि दर्शनीय स्थल हैं. लाल पत्थर की बनी विशाल इमारतें स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं. यहां एक हॉल ऑफ हीरोज भी है, जहां दीवारों पर देवी-देवताओं की आकृतियां तराशी गई हैं.

बालसमंद झील

फोर्ट और पैलेस के अलावा, बालसमंद झील भी दर्शनीय स्थल है. काफी पर्यटक यहां आते हैं. यह जोधपुर से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है. इसे 1159 में बालाक राव परिहार ने बनवाया था. यह कृत्रिम झील है. तीन तरफ पहाड़ियों से घिरी यह झील उमेद भवन की खूबसूरती में चार चांद लगाती है.

कैसे और कब जाएं

जोधपुर शहर से 5 किमी. की दूरी पर घरेलू हवाई अड्डा है. यह शहर दिल्ली से साथ-साथ प्रमुख शहरों से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है. जोधपुर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का महीना माना जाता है. जोधपुर और उसके आसपास के स्थान सुकून से देखने के लिए कम से कम 3-5 दिन का समय जरूर रखें.

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स्वाद और शॉपिंग

जोधपुर पहुंचने के बाद आप लोकल फूड का स्वाद लेना न भूलें. यहां का मिर्च बड़ा, समोसा, मावा कचौड़ी, प्याज की कचौड़ी, दाल-बाटी कोरमा, लाल मानस, गट्टे की सब्जी और मखनिया लस्सी सहित कई व्यंजन फूड लवर्स को लुभाते हैं. अगर बात शॉपिंग की करें, तो क्लॉक टावर के आसपास वाले मार्केट में खरीदारी कर सकते हैं. इसके अलावा, त्रिपोलिया बाजार, मोची बाजार, नई सड़क सोजाती गेट, स्टेशन रोड प्रमुख हैं.

यहां हस्तशिल्प, कपड़े, मसाले, ज्वैलरी, कढ़ाई वाले जूते, चमड़े की वस्तुएं आदि खरीद सकते हैं. यहां के लोग आज भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजे हुए हैं. त्योहार, मेले और उत्सवों में यहां के नृत्य-संगीत समां बांध देते हैं. खासकर घूमर, तेरह थाली कालबेलिया, फायर डांस, कच्ची घोड़ी जैसे नृत्य लोगों को थिरकने पर मजबूर कर देते हैं. इनके पहनावों में भी कई रंग दिखता है.

पुरुष धोती पर एक अलग तरह की कमीज औरचटख रंग की गोल पगड़ी और पैरों में शानदार जूतियां पहनते हैं. महिलाएं रंग-बिरंगे लहंगे के साथ पारंपरिक गहनों से लदी होती हैं. खासतौर पर इनके सिर पर बोरला, गले में हार, हाथों में कड़े या कोहनी से ऊपर हाथी दांत का चूड़ा, पैरों में चांदी का कड़ा या खनकती पायल होती है. खास बात यह है कि यहां के लोग काफी मिलनसार होते हैं.

Travel Special: मौनसून में परफेक्ट हैं ये 5 डेस्टिनेशन

मॉनसून ने दस्तक दे दी है. ऐसे मौसम में प्रकृति की छटा देखने का हर किसी का मन होता है. आपका भी मन होगा कि इस सुहाने मौसम में रिमझिम-रिमझिम करती बारिश की बूंदों का मजा किसी ऐसी जगह पर जाकर लें, जहां कुदरत की सबसे ज्यादा मिठास हो. हम आपको पांच ऐसे मानसून ट्रेवल डेस्टिनेशन बताने जा रहे हैं, जहां जाकर आपको प्रकृति की खूबसूरती में खो जायेंगे.

1. लद्दाख:

प्रकृति ने धरती पर लद्दाख को बेमिसाल खूबसूरती बख्शी है. यहां जाने वाला हर कोई यहां की सुंदर वादियों से यह वादा करके वापस जाता है कि वह दोबारा फिर लद्दाख व लेह आएगा. सिंधु नदी के किनारे बसे लद्दाख की सुंदर झीलें, आसमान को छूती पहाड़ की चोटियां व मनमोहक मठ हर किसी को सम्मोहित करते हैं. मॉनसून के मौसम में इन जगहों का आकर्षण और ज्यादा बढ़ जाता है. अगर आप लद्दाख जाने का प्लान बना रहे हैं तो आपके लिए जून से अक्टूबर का महीना बेस्ट रहेगा.

2. मेघालय:

यदि आपको बारिश की फुहारें पसंद हैं तो आपके लिए मेघालय से अच्छी कोई जगह हो ही नही सकती. लगभग पूरे साल वर्षा होने की वजह से इस जगह को ‘बादलों का निवास स्थान’ भी कहते हैं. पृथ्वी के जहां सबसे ज्यादा नमी है तो वह मेघालय का चेरापुंजी है. जिसके नाम को सुनकर ही कई सैलानी इस खूबसूरत प्रदेश की ओर रुख करते रहे हैं. यहां के पेड़-पौधों व पुराने ब्रिजों पर टपकती बारिश की बूंदें आपका मन मोह लेगी.

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3. द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क (उत्तराखंड):

मॉनसून के मौसम में द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क का परिदृश्य आश्चर्यजनक तरीके से सजीव हो जाता है. ऐसे मौसम में जब आप पार्क के विभिन्न किस्मों के तीन सौ फूल देखेंगे तो आपकी आंखें खुली की खुली रह जाएंगी. यह दृश्य देखकर आपको लगेगा कि पार्क में कोई बड़ा चमकीला कारपेट बिछाया गया है. द वैली ऑफ फ्लावर नेशनल पार्क अप्रैल से अक्टूबर महीने तक खुला रहता है.

4. गोवा:

गोवा भारत का एक ऐसा टूरिस्ट स्पॉट है, जहां बारह महीने हलचल रहती है. यहां के समुद्री बीच और भव्य दृश्य हर तरह के सैलानियों को लुभाते हैं. ऐसे मौसम में यहां के गिरजाघरों की सुंदरता और ज्यादा बढ़ जाती है. अगर आप इस मौसम में गोवा जाने का प्लान बना रहे हैं तो आप वहां के वाइब्रेंट मानसून फेस्टिवल का भी मजा ले सकते हैं.

5. केरल:

नदियों व पर्वत-पहाड़ियों से घिरा हुआ एक अनोखा पर्यटन स्थल केरल हमेशा ही सैलानियों को अपनी और खींचता रहा है. वर्षा ऋतु के समय इस जगह का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है. केरल में मॉनसून सीजन को ड्रीम सीजन के नाम से भी जाना जाता है. आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट के लिए बड़ी संख्या में सैलानी इसी मौसम को चुनते हैं, क्योंकि इस समय बॉडी को उपयुक्त वातावरण मिलता है. ऐसे मौसम में आप वहां जाते हैं तो आपको आकर्षक ऑफर भी मिलेंगे.

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Travel Special: बरसात में देखें बुंदेलखंड का सौंदर्य

अगर आप उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक धरोहर को करीब से देखना चाहती हैं तो बुंदेलखंड में पर्यटन का आनंद मॉनसून में लें. बरसात में बुंदेलखंड का सौंदर्य और भी निखर उठता है. बरसात में यहां की नदियां पानी से भर जाती हैं और नदीयों में उठती लहरें बहुत खूबसूरत लगती हैं.

बरसात के दिनों में झांसी का किला, महोबा की वीर भूमि, चित्रकूट, कालिंजर किला, देवगढ़ और बरुवासागर घूमने के लिए अच्छी जगहें हैं.

झांसी का किला

मौनसून पर्यटन की शुरुआत झांसी से ही करें. रानी लक्ष्मीबाई का किला इस शहर की सब से खास घूमने वाली जगह है. 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा है. बंगरा कीपहाड़ियों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. 18वीं शताब्दी में झांसी और उस के किले पर मराठों का अधिकार हो गया था. मराठों के अंतिम शासक गंगाधर राव थे, जिनकी 1853 में मृत्यु हो गई थी. इस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाली.

झांसी का किला अपनी अद्भुत कला के लिए जाना जाता है. इस किले में ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का बखान करती नजर आती हैं.

कालिंजर का किला

झांसी के बाद कालिंजर का किला इतिहास की झलक दिखाता है. यह उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बना है. चंदेल शासकों के द्वारा बनवाया गए इस किले मुगलों को हमेशा चुनौती दी. बड़ी मुश्किल से अकबर ने इसे जीतने में कामयाबी पाई थी. जीत के बाद अकबर ने इसे बीरबल को दे दिया था. उन के बाद यह किला राजा छत्रसाल के अधीन हो गया. यह किला चारों ओर से ऊंची दीवारों से घिरा था.

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आज भी 3 द्वार कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवां द्वार यहां जस के तस खड़े हैं. विंध्य की पहाड़ियों पर 700 फुट की ऊंचाई पर बने इस किले के अंदर शानदार राजा महल और रानी महल बने हैं. किले में ही नीलकंठ मंदिर बना है. इस के अलावा यहां वनखंडेश्वर महादेव मंदिर भी बना है.

कैसे पहुंचे?

रेल के जरीए कालिंजर पहुंचने के लिए अर्तरा रेलवे स्टेशन है, जो झांसी, बांदा इलाहाबाद रेल लाइन पर पडता है.

वायुमार्ग से आने वालों को यहां से 130 किलोमीटर दूर खजुराहो उतरना होगा. सड़क मार्ग से यहां आना हो तो चित्रकूट, बांदा, इलाहाबाद, सतना, छतरपुर और झांसी से बसें मिलती हैं.

महोबा

महोबा की वीर भूमि आपको रोमांच से भर देगी. महोबा का नाम यहां के रहने वाले आल्हा उदल की वीरतापूर्ण कहानियों के लिए मशहूर है. यहां चंदेल राजाओं का शासन था. चंदेल राजाओं के बाद परिहार राजाओं ने यहां शासन किया. आल्हा उदल यहां के प्रमुख लड़ाके थे. बरसात के दिनों में आज भी गांव-गांव में आल्हा उदल की लड़ाइयों के प्रसंग सुने और गाए जाते हैं. आल्हा गाने वाले लोकगायकों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलता है.

गोरखगिरी पर्वत

गोरखगिरी पर्वत एक खूबसूरत पिकनिक स्पौट है. यहां का सूर्य मंदिर भी आपको बहुत अच्छे एक्सपीरियंस देगा. यह राहिला सागर के पश्चिम दिशा में स्थित है. महोबा से 61 किलोमीटर दूर खजुराहो का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है. मौनसून पर्यटन के समय गोरखगिरी पर्वत का हराभरा सौंदर्य मन मोह लेता है.

चित्रकूट

चित्रकूट में आपको अद्भुत सुख और शांति का अनुभव होगा. यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है. 38 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसा चित्रकूट राम के नाम से मशहूर है. यहां वनवास के समय राम ने लंबा समय गुजारा था. इस कारण यहां उन की याद में आज भी तमाम जगहें बनी हैं.

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कैसे पहुंचे?

इलाहाबाद और खजुराहो यहां के करीबी एअरपोर्ट हैं.

रेलमार्ग से यहां पहुंचने वालों को चित्रकूट धाम स्टेशन उतरना होगा.

चित्रकूट में हनुमानधारा प्रमुख दर्शनीय जगह है. यहां पास ही जानकी कुंड और मंदाकिनी नदी का तट है. इस नदी पर 24 घाट बने हैं. चित्रकूट में उत्तर प्रदेश पर्यटक आवास गृह बना है. रामघाट पर शंकर का मंदिर बना है.

स्थानीय मान्यता है कि इसकी स्थापना राम ने ही की थी. चित्रकूट का सब से बड़ा आकर्षण कामदगिरी पर्वत है. यहां दीनदयाल शोध संस्थान भी है जहां प्राकृतिक चिकित्सा की जाती है. चित्रकूट के आसपास ही गुप्त गोदावरी, वाल्मीकि आश्रम, भरतकूप और शरभंग आश्रम जैसी जगहें भी देखने लायक हैं.

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